Book Title: Aatma ka Darshan
Author(s): Jain Vishva Bharti
Publisher: Jain Vishva Bharti

View full book text
Previous | Next

Page 754
________________ समत्तं ६२२. लाउअ एरण्डफले, गइ पुव्व-पओगेणं, अग्गी-धूमे उसू धणु-विमुक्के । एवं सिद्धाण वि गती तु ॥ ६२३. अव्वाबाह- मणिदिय मणोवमं पुण्ण- पाव णिम्मुक्कं । पुणरागमण-विरहियं, णिच्चं अचलं अणालंबं ॥ द्रव्य सूत्र ६२४. धम्मो अहम्मो आगासं, कालो पुग्गल जन्तवो । एस लोगो त्ति पण्णत्तो, जिणेहिं वरदंसिहिं ॥ ६२५. आगास-काल पुग्गल तेसिं अचेदणत्तं, धम्माधम्मेसु णत्थि जीवगुणा । भणिदं जीवस्स चेदणदा ॥ ६२६. आगास-काल- जीवा, धमाधम्मा य मुत्ति-परिहीणा । मुत्तं पुग्गल - दव्वं, जीवो खलु चेदणो तेसु ॥ ६२७. जीवा पुग्गलकाया, ७३१ सह सक्किरिया हवंति ण य सेसा । पुग्गलकरणा जीवा, खंधा खलु कालकरणा दु ॥ ६२८. धम्मो अहम्मो आगासं, अताणि यदव्वाणि, दव्वं इक्किक्क- माहियं । कालो पुग्गल जंतवो ॥ अ. ३ : तत्त्व-दर्शन जैसे मिट्टी से लिप्स तुम्बी जल में डूब जाती है और मिट्टी का लेप दूर होते ही ऊपर तैरने लग जाती है। अथवा जैसे एरण्ड का फल धूप से सूखने पर फटता है तो उसके बीज ऊपर को ही जाते हैं अथवा जैसे अग्नि या धूम की गति स्वभावतः ऊपर की ओर होती है अथवा जैसे धनुष से छूटा हुआ बाण पूर्व-प्रयोग से गतिमान् होता है, वैसे ही सिद्ध जीवों की गति भी स्वभावतः ऊपर की ओर होती है परमात्म-तत्त्व अव्याबाध, अतीन्द्रिय, अनुपम, पुण्यपाप-रहित, पुनरागमनरहित, नित्य, अचल और निरालंब होता है। द्रव्य सूत्र परमदर्शी जिनवरों ने कहा है लोक धर्म, अधर्म, आकाश, काल, पुद्गल और जीव इस प्रकार छह द्रव्यात्मक है। आकाश, काल, पुद्गल, धर्म और अधर्म द्रव्यों में के गुण नहीं होते, इसलिए इन्हें अजीव कहा गया है। जीव का गुण चेतनता है। आकाश, काल, जीव, धर्म और अधर्म द्रव्य अमूर्तिक हैं । पुद्गल द्रव्य मूर्त्त है। इन सबमें केवल जीव द्रव्य ही चेतन है। जीव और पुद्गलकाय ये दो द्रव्य सक्रिय हैं। शेष सब द्रव्य निष्क्रिय हैं। जीव के सक्रिय होने का बाह्य साधन कर्म नोकर्मरूप पुद्गल है और पुद्गल के सक्रिय होने का बाह्य साधन कालद्रव्य है। धर्म, अधर्म और आकाश ये तीनों द्रव्य संख्या में एक-एक है। काल (व्यावहारिक), पुद्गल और जीव ये तीनों द्रव्य अनंत अनंत हैं।

Loading...

Page Navigation
1 ... 752 753 754 755 756 757 758 759 760 761 762 763 764 765 766 767 768 769 770 771 772 773 774 775 776 777 778 779 780 781 782 783 784 785 786 787 788 789 790 791 792