Book Title: Aatma ka Darshan
Author(s): Jain Vishva Bharti
Publisher: Jain Vishva Bharti

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Page 753
________________ आत्मा का दर्शन ७३० खण्ड-५ ६१४. कम्म-मल-विप्पमुक्को, कर्म मल से विमुक्त जीव ऊपर लोकान्त तक जाता उड्ढे लोगस्स अंत-मधिगंता। है और वहां वह सर्वज्ञ तथा सर्वदर्शी के रूप में सो सव्वणाण-दरिसी, इन्द्रियातीत अनन्तसुख भोगता है। लहदि सुह-मणिंदिय-मणतं॥ ६१५. चक्कि -कुरु-फणि-सुरेदेसु, . अहमिंदे जं सुहं तिकाल-भवं। तत्तो अणंत-गुणिदं, सिद्धाणं खणसुहं होदि॥ चक्रवर्ती, देवकुरु, उत्तरकुरु के यौगलिक, नागेन्द्र सुरेन्द्र एवं अहमिन्द्रों को त्रिकाल में जितना सुख मिलता है उस सुख से सिद्धों के एक क्षण का सुख अनन्त गुना होता है। ६१६. सव्वे सरा नियटति, तक्का जत्थ न विज्जइ। मई तत्थ न गाहिया, ओए अप्पइट्ठाणस्स खेयन्ने॥ मोक्षावस्था का शब्दों में वर्णन करना संभव नहीं है, क्योंकि वहां शब्दों की प्रवृत्ति नहीं है। न वहां तर्क का ही प्रवेश संभव है, क्योंकि वहां मानस-व्यापार संभव नहीं है। मोक्षावस्था संकल्प-विकल्पातीत है। साथ ही समस्त मलकलंक से रहित होने से वहां ओज भी नहीं है। रागातीत होने के कारण सातवें नरक तक की भूमि का ज्ञान होने पर भी वहां किसी प्रकार का खेद नहीं है। जहां न दुःख है न सुख, न पीड़ा है न बाधा,, न मरण है न जन्म, वहीं निर्वाण है। ६१७. ण वि दुक्खं ण वि सुक्खं, ___ण वि पीडा व विज्जदे बाहा। ण वि मरणं ण वि जणणं, तत्थेव य होइ णिव्वाणं॥ ६१८. ण वि इंदिय उवसग्गा, ण वि मोहो विम्हयो ण णिहा य। ण य तिण्हा व छहा, तत्थेव य होइ णिव्वाणं॥ जहां न इन्द्रियां हैं न उपसर्ग, न मोह है न विस्मय, न निद्रा है न तृष्णा और न भूख, चहीं निर्वाण है। ६१९. ण वि कम्मं णोकम्म, ण वि चिंता णेव अट्टहाणि। ण वि धम्मसुक्क-झाणे,तत्थेव य होइ णिव्वाणं॥ जहां न कर्म है न नोकर्म, न चिन्ता है न आर्त-रौद्र ध्यान, न धर्मध्यान है और न शुक्लध्यान, वहीं निर्वाण है। ६२०. विज्जदि केवल-णाणं, केवल-सोक्खं च केवलं विरयं। केवलदिदिठ अमत्तं, अत्थित्तं सप्पदेसत्तं॥ वहां अर्थात् मुक्तजीवों में केवलज्ञान, केवलदर्शन, केवलसुख, केवलवीर्य, अरूपता, अस्तित्व और सप्रदेशत्व-ये गुण होते हैं। ६२१. निव्वाणं ति अबाहंति, सिद्धी लोगग्गमेव य। खेमं सिवं अणाबाहं, जं चरंति महेसिणो॥ जिस स्थान को महर्षि ही प्राप्त करते हैं, वह स्थान निर्वाण है, अबाध है, सिद्धि है, लोकाग्र है, क्षेम, शिव और अनाबाध है।

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