Book Title: Aatma ka Darshan
Author(s): Jain Vishva Bharti
Publisher: Jain Vishva Bharti

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Page 784
________________ परिशिष्ट ७६१ आत्मा का दर्शन दसण तस .: हित की प्रवृत्ति और अहित की धारणा (ववहार) : गीतार्थ आचार्य द्वारा किसी निवृत्ति के लिए गमनागमन परिस्थिति में दिए गए प्रायश्चित्त करने वाले जीव। अथवा कृत प्रवृत्ति को याद रखकर तहकार (सामायारी) : आचार्य के वचनों को स्वीकार वैसी परिस्थिति में उस प्रायश्चित्त करना। विधि अथवा प्रवृत्ति का प्रयोग करना। सिस्थयर : तीर्थ-श्रमणसंघ के प्रवर्तक। धारणा :निर्णायक ज्ञान को स्मृति के आधार तिरियलोय : मध्यलोक। पर स्थिर रखना। नलणा/तुला : जिनकल्पी द्वारा स्वीकृत तप, सत्त्व धिक्कार : यौगलिक युग की दंडनीतिआदि भावनाएं। धिक्कार है, तूने यह क्या किया। तयवग्गणा : तेजस शरीर के रूप में परिणत नाणावरणोदय : ज्ञान को आवृत करनेवाले कर्म की होनेवाला सजातीय पुद्गल द्रव्य। उदयावस्था। तेरिच्छिय : तिर्यंच संबंधी। निकायणा : जिस कर्म का उद्वर्तन, अपवर्तन, थावर : हित की प्रवृत्ति एवं अहित की उदीरणा, संक्रमण और निधत्ति न निवृत्ति के लिए गमनागमन करने में असमर्थ जीव। निक्खमण : दीक्षा। थिरीकरण : सम्यक दर्शन-धर्मश्रद्धा में स्थिर निग्गंथ : जैन श्रमण। करना। निज्जरा : तप के द्वारा कर्म विलय से दंड :: हिंसा। होनेवाली आत्मा की उज्ज्वलता। : तत्त्वश्रद्धा। नियट्टिबायर : निवृत्ति-असदृश परिणाम विशुद्धि दव्ववग्गणा : जीव के प्रयोग में आनेवाले पुद्गलों और बादर कषाययुक्त जीव की का समूह। अवस्था। दसम : चार दिन का उपवास। नियम : अभिग्रह रूप प्रतिज्ञाएं। देसावगासिय : परिमित समय के लिए हिंसा आदि निसग्गसम्मत्त : सहज प्राप्त सम्यक्त्व। का त्याग करना। निसीहिया : स्वाध्यायभूमि। दव्वट्ठियणय : जहां पर्याय गौण और द्रव्य मुख्य निसीहिया(सामायारी) : मुनि द्वारा कार्य से निवृत्त होकर हो। आने पर नैषेधिकी-मैं निवृत्त हो दिसिव्वय - : यातायात से संबंधित श्रावक का चुका हूं, ऐसा कहना। छट्ठा व्रत। निहत्ति : उद्वर्तना एवं अपवर्तना के सिवाय दुवालस : पांच दिन का उपवास। शेष छह कारणों के अयोग्य कर्म दुस्सम-सुसमा : दुःख-सुखमय कालखंड। पुद्गलों की अवस्था। दुस्समा : दुःखमय कालखंड। नोइंदिय : मन। धम्मकहा : धर्मचर्चा, धर्मोपदेश। पइरिक्कया : एकांतवास। धम्मझाण : वस्तु के धर्म स्वरूप को यथार्थ : आत्मा और कर्म पुद्गलों का रूप से जानने के लिए होनेवाली एकीभाव। चित्त की एकाग्रता। पओगसंपया : वाद-कौशल। धम्मत्थिकाय : जीव और पुद्गल की गति में पंचिंदिय :: पांच इन्द्रियों वाला प्राणी। उदासीन भाव से सहायक द्रव्य। पंडियमरण : संयमी अवस्था में होने वाली मृत्यु। धम्मपण्णत्ती धर्मोपदेश। पक्खखमण : पन्द्रह दिन का उपवास। का यथार्थ पएस उदासान

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