Book Title: Aatma ka Darshan
Author(s): Jain Vishva Bharti
Publisher: Jain Vishva Bharti

View full book text
Previous | Next

Page 785
________________ आत्मा का दर्शन पगडि पज्जवलियणय पज्जवणय : कर्मों का स्वभाव । : जहां द्रव्य गौण और पर्याय मुख्य हो । : पर्याय के आधार पर तत्त्व का प्रतिपादन करने वाला अभिप्राय । पडिम्गह : पात्र । पडिपुच्छग : वाचना । पडिपुच्छणा (सामायारी) : एक कार्य के बाद दूसरा कार्य करते समय पुनः गुरु की अनुमति लेना। दूसरों का कार्य करने की अनुमति लेना । पणियभूमि पडिगुद्धजीवी पडिमा पडिलीणया / संलीणया पत्तसंयय परमाणु - पोग्ल परिग्गह परियट्टणा परियाय परिहारट्ठाण परीसह पलिओवम ७६२ पवत्तणी : अनार्यभूमि । जितेन्द्रिय, धृतिमान और संयत योग वाला साधक । : प्रतिज्ञा । इन्द्रिय और मन को नियंत्रित रखना । संयमी साधक की प्रमाद सहित अवस्था । : अविभाज्य पुद्गल । : पदार्थ और उसके प्रति होने वाली मूर्च्छा। : दोहराना । : मुनि जीवन । प्रायश्चित्त का स्थान । : भूख, प्यास आदि कष्टों को सहन करना । : चार कोश की लंबाई-चौड़ाई और गहराई वाले कुएं को नवजात यौगलिक शिशु के केशों के असंख्य खंडों से ठूंस ठूंस कर भरा जाए और प्रति सौ वर्ष के अंतर से एक-एक केश खंड निकालतेनिकालते जितने काल में वह कुआं खाली हो, उस काल को पल्य कहा जाता है पल्य से उपमित कालखंड पल्योपम कहा जाता है। : साध्वी संघ का नेतृत्व करने वाली। पारणय पाव पावावुय पाड पिंड पुच्छणा पुढ़वीजीव पुण्ण पुलाग पुव्व पोरसी पोसहोववास फासुग बंध बंधण बक्कुस बहुस्सुय बायर (खंघ) बालमरण बोहि भत्तपच्चक्खाण भद्द भवपच्चश्य भवसिद्धिय भाव भावियप्पा : तप की परिसमाप्ति । कर्मपुद्गलों का अशुभ रूप में : उदय । : अन्यतीर्थिक श्रमण। : धर्मसम्प्रदाय । : भोजन । : जिज्ञासा । जिन जीवों का शरीर पृथ्वी है। : कर्म पुद्गलों का शुभ रूप में उदय । : संयम को कुछ असार करने वाला । : द्वादशांगी में बारहवें आगम का एक अंश । सूर्योदय से सूर्यास्त तक के कालमान का चतुर्थ भाग । : उपवास के साथ एक दिन-रात के लिए पापकारी प्रवृत्तियों का : परिशिष्ट परित्याग | : निर्जीव । : कर्म पुद्गलों का ग्रहण | : आत्मा और कर्म का संबंध । चारित्र में अतिचार के धब्बे लगानेवाला । : अनेक आगम ग्रंथों का ज्ञाता। : स्थूल पुद्गल समूह | : असंयमी अवस्था में होने वाली मृत्यु | सम्यग दर्शन । भवत्थकेवलणाण : संसारी जीवों का केवलज्ञान । : भव हेतुक | : भव्य । : पदार्थ । : अनशन । : दो दिन के ऊर्ध्व कायोत्सर्ग में की जानेवाली साधना और तपस्या V : ज्ञान, दर्शन, चारित्र एवं विविध प्रकार की अनित्य आदि अनुप्रेक्षाओं का अभ्यास करने वाला ।

Loading...

Page Navigation
1 ... 783 784 785 786 787 788 789 790 791 792