Book Title: Aatma ka Darshan
Author(s): Jain Vishva Bharti
Publisher: Jain Vishva Bharti

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Page 783
________________ आत्मा का दर्शन कायगुत्त कालवेला कितिकम्म किरिय (वाय) कुल कुलगर केवलनाण केवलिपण्णत्त खओवसम खंडिय खीणमोह गण गणहर गणिपिडग गणिसंपया गति गुण गुणव्यय गुत्ति गोय चरित्तधम्म चरिया चारित्तमोहणीय चित्तमंत चोइसपुब्वि : शरीर का निग्रह करने वाला । : स्वाध्याय का समय। : वंदन | छउमत्थ आत्मा, कर्म, पुनर्जन्म आदि में विश्वास करने वाले । : एक आचार्य के शिष्यों का समूह। यौगलिक युग के कुल व्यवस्थापक । : समस्त द्रव्यों और उनकी समस्त पर्यायों का साक्षात्कार करने वाला ज्ञान । वीतराग पुरुषों द्वारा कथित तत्त्व। : कर्मों का हल्कापन | विद्यार्थी : मोह कर्म का सर्वथा क्षय करने वाले जीव की अवस्था। : कुल का समुदाय - दो आचार्यों का शिष्य समूह | : आचार्य । : द्वादशांगरूप शास्त्र | : आचार्य की समृद्धि । : एक भव से दूसरे भव में जाना । : चारित्र को पुष्ट करने वाली भावनाएं । चउत्थ/चउत्थभत्त: उपवास। चयणकाल चरित ७६० स्वीकृत व्रतों में गुणों का अधान करने वाले व्रत। प्रवृत्ति का निरोध। जीव को अच्छी या बुरी दृष्टि से देखे जाने में निमित्तभूत कर्म । 00 : देवों के च्यवन का समय। : महाव्रत आदि का आचरण । : आचारधर्म : मूल व उत्तरगुण रूप चारित्र । : चारित्र को विकृत करनेवाला कर्म । सजीव । : चवदहपूर्व विशिष्ट ज्ञानराशि का ज्ञाता । : अकेवली-जिसे केवलज्ञान उपलब्ध नहीं हो । हुआ छंदणा (सामायारी) : भिक्षा के लाए आहार के लिए साधर्मिक साधु को आमंत्रित करना । पृथ्वी, पानी, अग्नि, वायु, वनस्पति और त्रस -छह प्रकार के जीवों क छज्जीवणिकाय छट्ठखमण जत्ता जयणा जवणिज्ज जाइसरण जिइंदिय जिण जिणकण्प जीत जीवट्ठाण जीवत्थिकाय जोगवं ठाण ठिति ठित ठितिपकप्प णय णिच्छियणय णिसेज्जा णेगम (णय ) परिशिष्ट : दो दिन का उपवास । : संयम - यात्रा । : संयम । इन्द्रिय और मन का संयम : पूर्वजन्म की स्मृति । : इन्द्रिय और मन का निग्रह करने, वाला । : बीतराग पुरुष । : जिन - वीतराग के सदृश आचार का ? पालन । : आलोच्य विषय में किसी आचार्य; • एवं बहुश्रुत साधु द्वारा निष्पक्ष भाव से दिया गया निर्णय | : चैतन्ययुक्त पदार्थ । : समाधियुक् 해 विशुद्धि के आधार पर होनेवाल जीव की अवस्था : आसन । : वर्तमान भवस्थिति । : कर्मों का आत्मा के साथ लगे रहने का कालमान। : मर्यादा, व्यवस्था । : वस्तु के एक अंश को जानने वाला तथा अन्य अंशों को सापेक्ष दृष्टि से समझने वाला ज्ञाता की अभिप्राय । : यथार्थ का प्रतिपादन करने वाला अभिप्राय । : स्वाध्याय भूमि । : सामान्य- विशेष अथवा संकल्प पर सापेक्ष दृष्टि से विचार करने वाला ज्ञाता का अभिप्राय ।

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