Book Title: Aatma ka Darshan
Author(s): Jain Vishva Bharti
Publisher: Jain Vishva Bharti

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Page 787
________________ आत्मा का दर्शन ७६४ परिशिष्ट विवाग : कर्मों का शुभ-अशुभ रूप में उदय। वाले जीव की अवस्था। विवित्तसयणासण : एकांतवास/स्त्री, पशु एवं नपुंसक सयंबद्ध : स्वयं बोधि प्राप्त करनेवाला। से रहित स्थान। सरीरसंपया : शारीरिक सौन्दर्य। विहारचरिया : जीवनचर्या । सव्वओभद्द : दस दिन के ऊर्ध्व कायोत्सर्ग में की :: वितर्क। जाने वाली तपस्या और साधना। वेयाणिज्ज (कम्म) : सुख-दुःख का हेतुभूत कर्म। सव्वदरिसी : सम्पूर्ण सामान्य अवबोध। वेयालिय : विकाल वेला-तीनों सन्ध्याओं का सागरोवम : दस कोड़ाकोड़ पल्योपम का एक समय। सागरोपम। वेयावच्च : सेवा। सागारपडिमा : सविकल्प अनशन। वोदाण : कर्म पुद्गलों का क्षय। सागारभत्त : सविकल्प अनशन। संकमण : सजातीय कर्म प्रकृतियों का एक सामाइय :४८ मिनिट के लिए समय-आत्मा दूसरे में परिणमन। . में रहने के अभ्यास का प्रयोग। संगह : अभेद के आधार पर तत्त्व का सामाइयचरित्त : यावज्जीवन के लिए पापकारी प्रतिपादन करने वाला अभिप्राय। प्रवृत्ति का परित्याग। संगहपरिण्णा : संघ-व्यवस्था। सामायारी : संघीय आचार की व्यवस्था। ... संघाडअ : दो मुनियों का समुदय। सावग : जैनधर्म के प्रति आस्था रखनेवाला संवर : पापकारी प्रवृत्ति का निरोध। व्यक्ति। सजोगीकेवलिकेवली के योग-मन, वचन व शरीर सावज्ज : पापकारी प्रवृत्ति। की प्रवृत्त्यात्मक अवस्था। सासायसम्मदिवि : सम्यक्त्व से च्यवमान-उपशम सज्झाय : अध्यात्मशास्त्र का अध्ययन। सम्यक्त्व से च्युत, मिथ्यात्व को सण्णा : शौच। अप्राप्त जीव की अवस्था। : काल आदि के भेद से ध्वनि में साहम्मिय : एक आचार वाले श्रमण एवं श्रावक। अर्थभेद को स्वीकार करने वाला। सिक्खावय : अहिंसा, सत्य आदि व्रतों की पुष्टि अभिप्राय। करने वाले व्रत। समणोवासय : जैन श्रमणों की उपासना सिद्धकेवलणाण : मुक्त आत्माओं का केवलज्ञान।। करनेवाला। सीतोदग : सजीव जल। समभिरूढ : पर्यायवाची शब्दों में निरुक्त के भेद सुक्कझाण . : ध्यान का वह बिन्दु, जिसमें परिपूर्ण से अर्थभेद को स्वीकार करने वाला समाधि हो। अभिप्राय। सुत्त (ववहार) : आगम व्यवहारी की अनुपस्थिति में : • अनुकूल-प्रतिकूल परिस्थितियों बृहत्कल्प, व्यवहार आदि शास्त्रों में रहने वाला संतुलन। के आधार पर संघीय व्यवस्था का • सब जीवों को समान समझना। संचालन। समिति : सम्यक् प्रवृत्ति। सुयधम्म : ज्ञान एवं दर्शन। समुयाणचरिया : अनेक कुलों से भिक्षा लेना। सुयनाण : शब्द, संकेत, आदि से होनेवाला समोसरण : तीर्थंकरों का प्रवचन-स्थल। ज्ञान। सम्मत्त : यथार्थ तत्त्व-श्रद्धा-जीव आदि तत्त्वों सुयसंपया : श्रुत की समृद्धि। में सम्यक् श्रद्धा। सुयसमाहि : ज्ञान से होनेवाली समाधि। सम्मामिच्छद्दिदिठ : सम्यक और मिथ्या-मिश्रित रुचि सुसमदुस्समा सुख-दुःखमय कालखंड। सह समया

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