Book Title: Aagam 10 PRASHNA VYAKARANAM Moolam evam Vrutti
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar

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Page 266
________________ आगम (१०) प्रत सूत्रांक [२७] + गाथा: दीप अनुक्रम [३९-४३] प्रश्नव्याक र० श्रीअभयदेव० वृत्तिः ॥ १३१ ॥ “प्रश्नव्याकरणदशा” Education inte - श्रुतस्कन्धः [२], अध्ययनं [४] मूलं [२७] + गाथा: मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित आगमसूत्र - [१०], अंग सूत्र [१०] “प्रश्नव्याकरणदशा" मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचित वृत्तिः अंगसूत्र-१० (मूलं+वृत्तिः) क्खपावाण विउसवणं, तस्स इभा पंच भावणाओ चउत्थयस्स होंति अवंभ चेरवेरमणपरिरक्खणडयाए, पढमं सयणासणघरदुवार अंगण आगासगवक्खसाल अभिलोयणपच्छवत्थुकपसाहणकण्हाणिकावकासा अवकासा जे य वेसियाणं अच्छंतिय जरथ इत्थिकाओ अभिक्खणं मोहदोसरतिरागवणीओ कहिंति य कहाओ बहुबिहाओ तेऽवि हु वज्जणिज्जा इत्थिसंसत्तसंकिलिट्टा अन्नेवि य एवमादी अवकासा ते हु वज्जणिज्जा जत्थ मणोविarat वा भंगो वा भंसगो वा अहं रुई च हज्ज झाणं तं तं बजेज वज्जभीरु अणायतणं अंतपंतवासी एवमसंपत्तवासवसही समितिजोगेण भाषितो भवति अंतरप्पा आरतमण विरयगामधम्मे जितेंदिए गंभ चेरगुत्ते १। वितियं नारीजणस्स मज्झे न कहेयब्वा कहा विचित्ता विव्वोयविलाससंपडत्ता हाससिंगारलोइयन्त्र मोहजणणी न आवाहविवाहवरकहाविव इत्थीणं वा सुभगदुभगकहा चउस िच महिलागुणा न वनसजातिकुलरूवनामनेवरथपरिजणकह इत्थियाणं अन्नावि य एवमादियाओ कहाओ सिंगारकलुणाओ तव संजम बंभचेरघातोवघातियाओ अणुचरमाणेणं वंभचेरं न कहेयच्या न सुणेयच्या न चिंतेयच्या, एवं इत्थीकहविरतिसमितिजोगेणं भावितो भवति अंतरप्पा आरतमणविरयगामधम्मे जितिंदिए बंभचेरगुत्ते २ । ततीयं नारीण हसितभणितं चेद्वियविप्पेक्खि तराइविलासकीलियं वियोतियगीतवातियसरीरसंठाणवश कर चरणनयणलावन्नरूव जोन्वणपयोहरा धरवत्थालंकारभूसणाणि य गुज्झोवकासियाई अ नाणि य एवमादियाई तवसंजमबंभचेरघातोवघातियाइं अणुचरमाणेणं बंभवेरं न चक्खुसा न मणसा न For Parks Use Only ~265~ ४ धर्मद्वारे सभावनाक ब्रह्मचर्यम् सू० २७ ॥ १३१ ॥


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