Book Title: Aagam 10 PRASHNA VYAKARANAM Moolam evam Vrutti
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar
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आगम
(१०)
प्रत
सूत्रांक
[२९]
दीप
अनुक्रम [४५]
प्रश्नव्याकरणदशा” - अंगसूत्र - १० ( मूलं + वृत्ति:)
अध्ययनं [५]
श्रुतस्कन्ध: [२],
मूलं [२९]
मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित आगमसूत्र [१०], अंग सूत्र [१०] “प्रश्नव्याकरणदशा" मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचित वृत्तिः
Eaton Inte
य संसारंतट्ठिते य संसारसमुच्छिन्ने सततं मरणाणुपारते पारगे य सव्वेलिं संसयाणं पवयणमायाहिं अहिं अटुकम्मगंठीविमो के अट्ठमयमहणे ससमयकुसले य भवति सुहदुक्खनिब्बिसे से अभितरवाहिरंमि सया तवोवहाणंमि य सुहृज्जुते संते दंते य हियनिरते ईरियासमिते भासासमिते एसणासमिते आयाणभंडमनिक्वणासमिते उच्चारपासवणखेल सिंघाणजहपारिट्ठावणियासमिते मणगुत्ते वयगुत्ते कायगुत्ते गुसिंदिए गुत्तभयारी चाई लज्जू धन्ने तबस्सी खंतिखमे जितिंदिए सोधिए अणियाणे अवहिल्लेस्से अममे अकिंचणे छिन्नगंधे निरुवलेवे सुविमलवरकंसभायणं व मुकतोए संखेविव निरंजणे विगयरागदोसमोहे कुम्मो इव इंदिए गुत्ते जच्चकंचणगं व जायरूत्रे पोक्खरपत्तं च निरुवलेवे चंदो इव सोमभावयाए सूरो व दित्ततेए अचले जह मंदरे गिरिवरे अक्खोभे सागरो व्व थिमिए पुढवी व सव्वासस तवसा ि भास सिछन्निव जाततेए जलियहुयासणो विव तेयसा जलते गोसीसचंदणंपिव सीयले सुगंधे य हरयो विव समयभावे उग्घोसियमुनिम्मलं व आयंसमंडलतलं व पागडभावेण सुद्धभावे सोंडीरे कुंजरोव वसभेव जायथामे सीहे वा जहा मिगाहिये होति दुप्पधरिसे सारयसलिलं व सुद्धहियये भारंडे चेव अप्पमत्ते खग्गविसाणं व एगजाते खाणुं चैव उढकाए सुन्नागारेथ्व अप्पडिकम्मे सुन्नागारावणस्संतो निवायसरणप्प दीपज्झाणमिव निष्पकंपे जहा खुरो चैव एगधारे जहा अही चैव एगदिट्ठी आगासं चैव निराळंबे विहगे विवसओ विमुके कयपरनिलए जहा चेव उरए अप्पडिबद्धे अनिलोन्य जीवोब्व अप्पडियगती
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