Book Title: Aagam 10 PRASHNA VYAKARANAM Moolam evam Vrutti
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar

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Page 300
________________ आगम (१०) प्रश्नव्याकरणदशा” - अंगसूत्र-१० (मूलं+वृत्ति:) श्रुतस्कन्ध: [२], ---------------------- अध्ययनं [५] ---------------------- मूलं [२९] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [१०], अंग सूत्र - [१०] "प्रश्नव्याकरणदशा" मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचित वृत्ति: प्रत सूत्रांक प्रश्नध्याक२०श्रीअभयदेव वृत्तिः ॥१४८॥ [२९]] 45-4545453 प्पति ?, जं तं एकारसपिंडवायसुद्धं किणणहणणपयणकयकारियाणुमोयणनवकोडीहिं सुपरिसुद्धं दसहि य दोसेहिं विप्पमुकं उग्गम उप्पायणेसणाए सुद्धं बवगयचुपचवियचत्तदेहं च फासुयं ववगयसंजोगमणिगालं विगयधूमं छट्ठाणनिमित्तं छकायपरिरक्खणवा हणि हणिं फासुकेण भिक्खेण वट्टियब्ब, जंपिय समणस्स सुविहियस्स उ रोगायंके बहुप्पकारंमि समुप्पन्ने वाताहिकपित्तसिंभअतिरित्तकुविय तह सन्निवातजाते व उदयपत्ते उज्जलबलविउलकक्खडपगाढदुक्खे असुभकडुयफरसे चंडफलविवागे महन्भए जीवियंतकरणे सब्यसरीरपरितावणकरे न कप्पती तारिसेवि तह अप्पणो परस्स वा ओसहभेसज्ज भत्तपाणं च तंपि संनिहिकयं, जंपिय समणस्स सुविहियस्स तु पडिग्गधारिस्स भवति भायणभंडोवहिउपकरणं पडिग्गहो पादबंधणं पादकेसरिया पादठवणं च पडलाई तिन्नेव रयत्ताणं च गोच्छओ तिन्नेव य पच्छाका रयोहरणचोलपटकमुहर्णतकमादीयं एयंपिय संजमस्स उववूहणट्ठयाए बायायवर्दसमसगसीयपरिरक्षणट्टयाए उवगरणं रागदोसरहियं परिहरियध्वं संजएण णिचं पडिलेहणपप्फोडणपमजणाए अहो य राओ य अप्पमत्तेण होइ सततं निक्खिवियव्वं च गिव्हियव्वं च भायणभंडोवहिउवकरणं, एवं से संजते विमुत्ते निस्संगे निप्परिग्गहरुई निम्ममे निन्नेहबंधणे सव्वपावविरते वासीचंदणसमाणकप्पे समतिणमणिमुत्तालेडकंचणे समे य माणावमाणणाए समियरते समितरागदोसे समिए समितीसु सम्मदिडी समे व जे सब्वपाणभूतेसु से हु समणे सुयधारते उजुते संजते स साहू सरणं सब्वभूयाणं सब्बजगवच्छले सञ्चभासके ५धर्मद्वारे परिग्रहवि. रतौ संवरपादपः भिक्षाअसनिधिभावनाश्च सू० २९ दीप अनुक्रम [४५] | ॥१४८॥ ~299~

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