Book Title: Aagam 10 PRASHNA VYAKARANAM Moolam evam Vrutti
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar

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Page 299
________________ आगम (१०) प्रत सूत्रांक [२९] दीप अनुक्रम [४५] प्रश्नव्याकरणदशा” - अंगसूत्र - १० ( मूलं + वृत्तिः) अध्ययनं [५] श्रुतस्कन्ध: [२], मूलं [२९] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित आगमसूत्र [१०], अंग सूत्र [१०] “प्रश्नव्याकरणदशा" मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचित वृत्तिः Ecation Interfational कप्पइ गामागरनगरखेडकब्बडमडंबदोणमुहपट्टणासमयं च किंचि अप्पं व बहुं व अणुं व थूलं व तसथावर कायदब्वजायं मणसावि परिधेत्तुं ण हिरन्नसुवन्नखेत्तवत्थु न दासीदासभयक पेस हयगयगवेलगं च न जाणजुग्गस्यणाइ ण छत्तकं न कुंडिया न उवाणहा न पेहुणवीयणतालियेटका ण यावि अयतज्यतंवसीसककंसरयतजातरूवमणिमुत्ताधारपुडक संखदं तमणिसिंग से लकायवरचेलचम्मपत्ताई महरिहाई परस्स अज्झोषवाय लोभजणणाई परियडेडं गुणवओ न यावि पुप्फफलकंदमूलादियाई सणसत्तरसाई सन्बधनाई तिहिवि जोगेहिं परिधेतुं ओसहमे सज्जभोयणट्टयाए संजएणं, किं कारणं?, अपरिमितणाणदंसणधरेहिं सीलगुणविणय तव संजमनायकेहिं तित्थयरेहिं सब्वजगज्जीववच्छलेहिं तिलोयमहिएहिं जिणवरिंदेहिं एस जोणी जंगमाणं दिट्ठा न कप्पइ जोणिसमुच्छेदोत्ति तेण वज्जति समणसीहा, जंपिय ओदणकुम्मासगंजतप्पमंधुभुजियपलल सूप सक्कु लिवेढिमबरसरक चुन्नकोस गपिंड सिहरिणिवट्टमोयगखीर दहिसप्पिनवनीत तेलगुलखंडमच्छंडियमधुमज्जमंसखज्जकवंजणविधिमादिकं पणीयं उवस्सए परघरे व रन्ने न कप्पती तंपि सन्निहिं का सुविहियाणं, जंपिय उद्दिठवियरश्चियगपज्जवजातं पकिण्णपाउकरणपामि भीसकजायं कीयकडपाहुडे च दाणट्टपुन्नपगडं समणवणीमगट्टयाए व कयं पच्छाकम्मं पुरेकम्मं नितिकम्मं मक्खियं अतिरिक्तं मोहरं चैव सयग्गहमाहडं मट्टिउवलितं अच्छेजं चैव अणीस जं तं तिहीसु जन्नेसु ऊसवेसु य अंतो व वहिं व होज समणट्टयाए ठवियं हिंसासावज्जसंपत्तं न कप्पती तंपिय परिधेतुं, अह केरिसयं पुणाइ क For Penal Use Only ~ 298~

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