Book Title: Aagam 10 PRASHNA VYAKARANAM Moolam evam Vrutti
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar

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Page 287
________________ आगम (१०) “प्रश्नव्याकरणदशा” - अंगसूत्र-१० (मूलं+वृत्ति:) श्रुतस्कन्ध: [२], ------------------- अध्ययनं [४] ------------------- मूलं [२७] + गाथा: मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [१०], अंग सूत्र - [१०] "प्रश्नव्याकरणदशा" मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचित वृत्ति: प्रत सूत्रांक लक्षणात्, निगमनमाह-एवं प्रणीताहारविरतिसमितियोगेन भावितो भवस्वन्तरात्मा आरतमनोविरतग्रामघर्मा जितेन्द्रियो ब्रह्मचर्यगुप्त इति । 'एवमिदमित्यादि अध्ययनार्थनिगमनवाक्यं पूर्षवदू व्याख्येयम् ॥ समासं ब्रह्मचर्याख्यचतुर्थसंवररूपनवमाध्ययनविवरणम् ॥ ४॥ [२७] गाथा: दीप अनुक्रम [३९-४३] अथ परिग्रहविरतिरूपदशमाध्ययनविवरणम् । व्याख्यातं चतुर्थं संवराध्ययन, अधुना सूत्रनिर्देशक्रमसम्बद्धमथवा अनन्तरं मैथुनविरमणमुक्तं तच्च सथा परिग्रहविरमण एव भवतीति तदभिधानीयमित्येवंसम्बद्धं च पश्चममारभ्यते, तत्रादिसूत्रमिवम्- | जंचू ! अपरिग्गहसंवुडे य समणे आरंभपरिग्गहातो विरते विरते कोहमाणमायालोभा एगे असंजमे दो व रागदोसा तिमि य दंडगारवा य गुत्तीओ तिन्नि तिन्नि य विराहणाओ चत्तारि कसाया झाणसन्नाविकहा तहा य हुंति चउरो पंच य किरियाओ समितिइंदियमहन्वयाई च छ जीवनिकाया छच्च लेसाओ सत्त भया अट्ठ य मया नव चेव य यंभचेरवयगुत्सी दसप्पकारे य समणधम्मे एकारस य उवासकाणं बारस य भिक्खुपडिमा किरियठाणा य भूयगामा परमाधम्मिया गाहासोलसया असंजमअवंभणायअसमाहिठाणा सबला परिसहा सूयगडज्झयणदेवभावणउद्देसगुणपकप्पपावसुतमोहणिजो सिद्धातिगुणा य जोगसंगहे ति SAREauratoninternational अत्र द्वितिये श्रुतस्कन्धे चतुर्थ अध्ययनं परिसमाप्तं अथ वितिये श्रुतस्कन्धे पञ्चमं अध्ययनं “अपरिग्रह" आरभ्यते "परिग्रह-विरमण" - नामक पंचमं संवर-द्वारं ~286~

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