Page #1
--------------------------------------------------------------------------
________________
THE FREE INDOLOGICAL
COLLECTION WWW.SANSKRITDOCUMENTS.ORG/TFIC
FAIR USE DECLARATION
This book is sourced from another online repository and provided to you at this site under the TFIC collection. It is provided under commonly held Fair Use guidelines for individual educational or research use. We believe that the book is in the public domain and public dissemination was the intent of the original repository. We applaud and support their work wholeheartedly and only provide this version of this book at this site to make it available to even more readers. We believe that cataloging plays a big part in finding valuable books and try to facilitate that, through our TFIC group efforts. In some cases, the original sources are no longer online or are very hard to access, or marked up in or provided in Indian languages, rather than the more widely used English language. TFIC tries to address these needs too. Our intent is to aid all these repositories and digitization projects and is in no way to undercut them. For more information about our mission and our fair use guidelines, please visit our website.
Note that we provide this book and others because, to the best of our knowledge, they are in the public domain, in our jurisdiction. However, before downloading and using it, you must verify that it is legal for you, in your jurisdiction, to access and use this copy of the book. Please do not download this book in error. We may not be held responsible for any copyright or other legal violations. Placing this notice in the front of every book, serves to both alert you, and to relieve us of any responsibility.
If you are the intellectual property owner of this or any other book in our collection, please email us, if you have any objections to how we present or provide this book here, or to our providing this book at all. We shall work with you immediately.
-The TFIC Team.
Page #2
--------------------------------------------------------------------------
Page #3
--------------------------------------------------------------------------
________________
બિનખનિમાત્રામાં પામો મણિક
શ્રી હાવીર-
થ
થાપર જૂના
ભોપાવાવ વિવાહિની સત્વા ના, નાની, તલ,
મામૂના, હા -
Page #4
--------------------------------------------------------------------------
________________
प्रकासकः -
મુનિ વિનવસાગર, સાહિત્યા
मन्या सुमति सदन • कोटा (राजस्थान),
वि० सं० २०१२ ० ई. स. १६५६
मुद्रक
जन प्रिन्टिंग प्रेस
कोटा (राजस्थान)
Page #5
--------------------------------------------------------------------------
________________
ભાવાર્ય શ્રી બિનવિનભૂમિની )
Page #6
--------------------------------------------------------------------------
Page #7
--------------------------------------------------------------------------
________________
सपूजा द्वारा कोई पूजा ही
AAAAAP तीर्थकर
लेखक के दो शब्द . प्रस्तुत पूजा की उपादेयता इसी से स्पष्ट है कि पूजा-साहित्य मैं भगवान महावीर के ' कल्याणक' की कोई पूजा ही नहीं थी इसीलिये इस कमी की इस पूजा द्वारा पूति की गई है।
प्रत्येक तीर्थकर केच्यवन, जन्म, दीक्षा, केवल ज्ञान और निय ये पाँच कल्याणकातो होते ही हैं, परन्तु अन्तिम तीर्थ६५, शासन नायक वर्षमान स्वामी के छः कल्याणक हुए हैं। प्रथम च्यवन और दूसरा गर्भहरण होने से छः माने जाते हैं।
कई महाशय जो इस गर्भ-हरण पायाणक को नीच और गर्हित होने के कारण अमङ्गल स्वरूप मानते हैं, वे लोग यह भूल जाते है कि स्थानांगसूत्र, समवायांग सूत्र, कल्पसूत्र, आचासंग सूत्र नादिशा में छः ही बताये है। अतः उन्हें आगम साहित्य के प्रति मतामह के कारण मनमानापन न करते हुए शास्त्रीय मान्यता को ही स्वीकार करना चाहिये और प्रचार करना चाहिए । जिन . पाठकों को इस विषय में रस हो और विशेष निर्णय करना चाहते हों, उन्हें स्वर्गीय आचार्यदेव गीतार्थ-प्रवर पूज्येश्वर श्री जिनमणिसागरसूरीश्वरजी महाराज लिखित 'षट्कल्याणक निर्ययः" और मेरी, लिपि वल्लभ भारतो,.५५ गणि श्री बुद्धिमुनिजी सम्पाविस पिएचनिशुद्धि प्रकरण में मेरे द्वारा लिखित उपोधात देखना चाहिये।
प्रस्तुत पूजा मे कल्याणकों के अनुपात से ही ६ पूजायें रखी है। प्रथम पूजा में एक दाल, दूसरी, तीसरी और पॉची पूजा में दो-दो दाल, चौथी पूजा में ३ ढाल तथा छठी पूजा में एक नाल नौर एक कलश है। इस प्रकार कुल १२ ढालें हैं। इसमें रागि
tv.
भारत
Page #8
--------------------------------------------------------------------------
________________
नियाँ दो शास्त्रीय संगीत की हैं और अवशिष्ट सब वर्तमान प्रषलित ही ग्रहण की गई है, जिससे गायकों को सरलता पड़े।
पूजा में क्या वय-विषय है ? इस पर जरा गौर कर लेना समुचित ही होगा।
प्रथम पूजा में नयसार के भव में सन्यपत्र प्राप्ति से २६ भवों का संक्षेप उल्लेख किया गया है। आपाद शुक्ला ६ इस्तोतरानपात्र में मान का जीव दशम देवलोक से च्युत होकर माइणकुन्ड प्राम निवासी, कोडाल गोत्रीय वित्र ऋषभदत की सहचरी जालंधर गौत्रीया देवानन्दा की कुक्षि में उत्पन्न होता है। देवानन्दा १४ स्वप्न देखती है,अपने स्वामी से इसका फल पूछती है भौर स्वामी के मुख से 'पुत्ररत्न' फल श्रवणकर हर्षित होती है।
दूसरी पूजा में आश्विन या त्रयोदशी को इन्द्रकी श्राज्ञा से हरिणगमेषी देव द्वारा गर्भ परिवर्तन होता है । अर्थात् महावीर का गर्भ सत्रियकुण्ड के अधिपति सिद्धार्थ की पत्नी त्रिशला की कुक्षि में आता है और त्रिशला का पुत्रीरूपा गर्भ देवानन्दा के गर्भ में आता है। त्रिशला १४ स्वप्न देखती है। सिद्धार्थ से एक स्वप्न लक्षण पाठकों से फल श्रवण कर हर्षित होती है । राज, धन धान्यादि की वृद्धि होने से वर्धमान नाम रखेंगे ऐसा जनक और जननी संकल्प करते हैं।
गर्भावस्था में जननी को पीड़ा न हो, अतएव गर्भ की चलन क्रिया त्यागकर, महावीर स्थिर बनते हैं। माता को संकल्प-विकल्प के साथ अतिशय दुःख होता है। महावीर यह जानकर प्रतिज्ञा करते हैं कि अहो । माता-पिता का इतना वात्सल्य ! अत: इनके जीवित रहते हुए में दीक्षा ग्रहण नहीं लगा। .
तीसरी पूजा में चैत्र शुक्ला त्रयोदशी को वर्षभान का जन्म होता है। दिककुमारियाँ और इन्द्रों द्वारा जन्मोत्सव मनाने के पश्चात् सिद्धार्थ राजा उत्सव मनाता है। वर्षमान नाम-करण किया
Page #9
--------------------------------------------------------------------------
________________
जाता है। श्रीमलिकी क्रीड़ा में देषों द्वारा महावीर' नाम रखा जाता है। बड़े भाई नन्दिवर्धन और बहिन सुदर्शना के साथकोड़ा करते हुए समय व्यतीत करते है। युवावस्था में यशोदा नामक सामन्त कुमारी से पाणिग्रहण होता है। प्रियदर्शना नामक पुत्री होती है। माता-पिता के देहावसान के पश्चात् भाई नन्दिपनि से दीक्षा ग्रहण करने की अनुमति चाहते हैं, किन्तु भाई
और भाभी के नाम पर साधक के रूप में साधना करते हुए दो वर्ष रहना स्वीकार करते हैं। ...
... . चौथी पूजा में लोकान्तिक देवताओं द्वारा समय सूचित करने पर, वर्षीदान देकर, प्रिया यशोदा से अनुमति लेकर मिगसर शुदी १० को सयम-पथ ग्रहण करते हैं । सयम-पथ पर भासद होने के पश्चात् ज्ञान प्राप्त करने के पूर्व तक १२ वर्ष ६ महीने और १५ दिन तक अनेकों गोपालक का, शूलपाणिका, चन्डकौशिक का, गोशालक का, सगम देव का, लोहकार का, गोपालक द्वारा कानों में कीलें ठोंकने का, कटपूतना व्यतरी-श्रादि के उपसर्ग सहन करते हुए एक अत्युत्कट अभिप्रद धारण करते हैं, जिसकी पूर्ति चन्दन बाला द्वारा होती है। अन्त में भगवान की सम्पूर्ण तपोराशि का उल्लेख किया गया है।
पाँची पूजा में श्रमण महावीर को वैशाख शुक्ला दशमी को कैवल्य की प्राप्ति होती है। देवतानों द्वारा समवसरण की रचना की जाती है। भगवान अपने उपदेशों द्वारा यज्ञादि हिंसाकृत्यों को बन्द कर अहिंसा और सत्य धर्म का प्रचार करते हुए
पतुर्विध संघ की स्थापना करते हैं । विश्व को अपना अनुपम - सम्देश सुनाते हैं । सर्वज्ञ, सदर्शिता के गुणों को प्रकट किया गया है।
ठी पूजा में कार्तिक कृष्णा श्रमावास्था (दीपावली) को श्रमण भगवान महावीर शेष कर्मा का प्रयकर, अजर, अमर, अक्षय,
Page #10
--------------------------------------------------------------------------
________________
( ग ) अपुनर्भव हो जाते हैं। प्रधान शिष्य गौतम को महावीर के बिसह में अत्यन्त दुःख होता है । अन्त में विशुद्ध अध्यवसायों पर पड़ते हुए केवलज्ञान को प्राप्त करते हैं।
कलश में लेखक ने छह कल्याणकों को परम मगलकारी दिखाते हुए अपनी गुरुपरम्परा का, संधत् का और स्थान का Seोस किया है। -
इस प्रकार देखा जाय तो इन छः पूजाओं में प्रम भगवान महावीर का सक्षेप में समग्र जीवन-चरित्र ही गया है।
प्रकाशन का इतिहास गत वर्ष मेरा चातुर्मास बम्बई पायधुनी स्थित महावीर स्वामी के देरासर मेथा। उस समय भायखला निवासी माई थपरतलाल शिवलाल शाह ने छह कल्याणक की पूजा बनाने को अनेकों बार आग्रह किया था, लेकिन संयोग घश उनकी इच्छा की पूर्ति । उस समय में नहीं कर सका था। इस वर्ष भी अपने कई मित्रों एव सहयोगियों का श्रीमह रहा कि रचना की ही जाय । उसी प्रेम पूर्ण आग्रह के वशीभूत होकर यह पूजा बनाई गई है। इस पूजों की भाषा अत्यन्त ही सरल रखी गई है, जिससे सामान्य पाठक भी इस-पूजा का भाव हृदयगम कर सके।
मेर सुस्नेही उपाध्याय श्री कवीन्द्रसागरजी महाराज ने इसका संशोधन कर जो उदारता दिखलाई है उसके लिये में उनका अत्यन्त ही कृतज्ञ हूँ।
- गेय रूप मे मेरी यह प्रथम कृति ही होने के कारण निसंदेह इसमें अनेकों त्रुटियाँ होंगी, उन्हें विजण सुधारने का प्रयास करेंगे। २२-३-५६
- लेखक कोटा (राजस्थान)
Page #11
--------------------------------------------------------------------------
________________
कथन महोपाध्याय श्री विनयसागरजी महाराज ने 'महावीर पट् कल्याणक पूजा' की रचना कर जैन पूजा साहित्य में एक प्रशंसनीय अभिवृद्धि की है । गत चार सौ वर्षों से इस प्रकार की पूजाओं का बोलचाल की भाषा में प्रचार पढ़ा
और सैकड़ों की संख्या में ऐसे साहित्य का निर्माण हुश्रा । इससे दो प्रकार के लाभ मिले । एक तो भवसमुद्र निस्तारिणी तीकर-भक्ति और दूसरे में एतद्विषयक गंभीर शास्त्रीय ज्ञान का देशी भाषाओं में सुगमता पूर्वक हृदयङ्गम करने की सरल साधन । यह पूजा तो प्रकारान्तर से भगवान महावीर का विशुद्ध प्रोजन चरित्र ही है; जो श्वेताम्बर जैनागमों द्वारा पूर्णतया समर्थित है। इसका पट् कल्याणक शब्द शायद कुछ प.धुओं को न जचता हो, पर है वह अवश्य ही सत्य फिर भले ही क्यों न यह आश्चर्य-भूत माना जाता हो । पोचाराम, स्थानाx, - समवाया, कल्पसत्र और पंचाशक आदि जैनागम पाँचों मंगलकारी कल्याणकों को उत्तरा फाल्गुनी नक्षत्र में मानते हैं। छह निर्माण केल्याणक स्वाति नक्षत्र में हुआ जिसे माने बिना कोई चारा नहीं । आत्मार्थियों को निष्पक्षता पूर्वक यह तथ्य मानने में आना कानी नहीं होनी चाहिए कि देवानंदा मानणी की कृषि में आना तो कल्याण
Page #12
--------------------------------------------------------------------------
________________
है फिर त्रिशलामाता की कुक्षि में आगमन अकल्याणक कैसे हो सकता है ? इसी कल्याणक के चतुर्दश महास्वमादि . उतारने की सारी क्रियाएँ मान्य करते हुए मात्र कल्याणक शब्द, अमान्य करने का हठाग्रह क्यों ? . इस पूजा के निर्माता महोपाध्याय श्री विनयसागरजी म. साहित्याचार्य, दर्शन शास्त्री, साहित्यरत्न और शास्त्रविशारद हैं। आपने तरुणवर्ष में एकनिष्ठ अध्ययन द्वारा परीक्षाएं पास करके ये उपाधियाँ प्राप्त की हैं। श्रापका काव्य निर्माण का यह प्रथम प्रयास है फिर भी प्रसाद गुण युक्त,
आधुनिक तनों में, सुन्दर शब्द योजना द्वारा अपने भक्तजनों को जो प्रसादी दी है। वस्तुत: अभिनदनीय है। श्राप जसे उदीयमान रत्न से हमें बड़ी बड़ी श्राशाएं हैं । शासनदेव से प्रार्थना है कि श्राप दीर्वायु हों और अपनी विद्वत्ता द्वारा जन-चाइमय और राष्ट्र भाषा हिन्दी का भण्डार भर
भंवरलाल नाहटा
Page #13
--------------------------------------------------------------------------
________________
નમો નમઃ ગિનમણિanહરિયાવ
:
નહાવીર- ટૂ-જામજોરા
प्रथम च्यवन कल्याणक पूजा સિદ્ધ યુદ્ધ શિવશt વિમો, સર્વ હિંદ દેવશમણ તીર્થપતિ દે , મહાવીર ઝિન વર્ધમાન નિતરિપુ નમું વર્ધમાન પણ ! સુમતિ હિન્દુ -મણિ, રો પ્રતિ લદ સવ શ્રત લેવી પ્રણમ્ સહી, વી-ધારિણી વિ. પદ્ વેન્યાણ પૂગના, વર્ણન કવિત લેવિ.
' (ા સિદ્ધચન ધ વન્ડો) " જ્યાણ અણધારી વન્ડો બહોવી અવતારી ! વાર વાર નિહારી ગુન્હો મહાવીર અવતરીત ટેપ પહિને મા નવસાર વિવેદી, સાપુ સેવા મારે સતિ ગુણ પાર્વે મવનિતી, તવ હી સે ત્રણ વા વન્દશા
Page #14
--------------------------------------------------------------------------
________________
( ૨ )
પ્રથમ વ્યવનવાજ્યા પૂના
મરિત્તિ મા વી વન્દ્રા,
વાસુને માને છે ની માત્ર વારમ વધે, વીર મ ય હાનિં વોરા નવન મા મેં માસમ, તાણ વીલ તવ યોગી . વીર સ્થાન પ્રારાધન છે, તીર્થંકર પ૦ મો વન્ડોશ રાત વત્તો છે જ્યવાર, સત્તાવીસમ મ મેં શ્રેષ્ઠ વધારે શાસન સ્વામી, રાજ્ય નીવન મેં વન્દ્ર, બ્રાહ્મણ ઋષમા બ્રાહ્મણ, દેવી દેવાનંદ | વિ સુપન લેતા તન-મન મેં હવે પરમાનં વન્દ્રો,શા. નામૃત હૃતિ સેવાનો, તિન પર પધાર! સ્વામી સુપને તેણે મને, જ્યાં જdો હિતરો? વો.દા. વૈ પુરાણ ગ્રાહા પરિવા, મત શાસન વિજ્ઞાની હોમ પુત્ર મનોહા તેરે, ના નીવન જોશી વોળા શ્રવણના વધ મન ની, સેવાનન્દ સોની વ્યવન ન્યાવક જી પૂના,રવિનય વિધાની વર્નો.
- (મન્ન) સાવલીશ્વર મનન્ત હિતાવુ શ્રી સિદ્ધાર્થશાળનાથપૂવન્દ્ર !
સર્વજ્ઞ-વ-ત્રિપત્તિસ્મિન ર્ધમાન - - સદ્રવ્યમાવવિધિના સતત અને છઠ્ઠી પરમાત્માને અનન્તાનાજ્ઞાનરત્યે નન્મ-જ્ઞામૃત્યુનિવરિહરિ ચરિંગનેન્દ્રાય મહાવીરવન્યપૂના પ્રથમ વ્યવનન્યાણ અર્ણવ્ય નિવાસ સ્વાહા !
• इति प्रथम कल्याण पूजा।
Page #15
--------------------------------------------------------------------------
________________
महावीर षट् कल्याणक पूजा ( ३ ) द्वितीय गर्भापहार कल्याणक पूजा
- दोहा देवानन्दा कुक्षि में, देख विभु को इन्द्र । मन में संशय होत है, राहु देखि जिम चंद्र ॥१॥ नीच गोत्र विपाक से, यह भारचर्य अयोग ।
ममाचार हैं, क्यों न करूं ? प्राप्त पुण्य संयोग ॥२॥ (ल4 जादुगर सैयां छोड़ मेरी पइयां ... फिल्म 'नागिन') इन्द्र श्राज्ञा से, मृगनैपी, श्राकर मत्यलोक गर्भसंहरण किया। देवा कारत्न त्रिशलाकुचि में,त्रिशला का देवांकुक्षि गर्भसंक्रमण किया
आश्विन कृष्ण त्रयोदशी, मध्य रात्रि के माहि। दिवस तिरासी आये विमुवर, त्रिशला कुक्षि भांहि ॥ . यह आश्चर्य महान् । गर्भ० १ ।
यह चउदह सुपने देखे माता, जीताचार हुआ है । .. इसीलिये यह द्वितीय कल्याणक, मंगलकारी कहा है।
. अपहरण है मंगलधाम । गर्भ० २। कतिपय पिज्ञ गर्भहरण को, कहते अमंगलरूप हैं।' वे विज्ञ नहीं पर विशंमन्य हैं, शास्त्रदृष्टि से दूर हैं।
संकीर्ण वृत्ति गंभीर । गर्भ: ३ ।
Page #16
--------------------------------------------------------------------------
________________
( ४ )
द्वितीय गर्भापहार कल्याणक पूना
आधार, स्थान, समवाय, कल्प-श्रादि सूत्र दशति । गसंघर, श्रुतधर, पूर्वाचार्य, फैल्या रूप बतलाते ।
___मंगलकारी महान । गर्भ० ४ ।
दोहा ज्योतिषी गण दैवज्ञ गणी, भूपति लीन्ह घुलाय । वगुणनफल-पुत्र सुनि, हर्ष न हृदय समाय ॥१॥ सिद्धि अभिवृद्धि सकल, नित नव प्रकटे जीत । विशला श्री सिद्धार्थ के, सफल मनोरथ होत ॥२॥ अष्ट सिद्धिनवनिधि सब, प्रकट क्षण-क्षण माहि । पुण्य नगर महाराजगृह, अानन्द नहीं समाहिं ॥३॥ पूर्ण मनोरथ जब हुए, तहिं विचारे भूप । वर्धमान प्रिया राखि हों, यथा नाम गुण रू५ ॥४॥
(लय गजल -56 जाग मुसाफिर भोर भयो.) ५४ देखि उद९ दुख जननी के, झट निश्चलता अपनाते हैं। ना को नाशंका होती है, संशय चिहुं दिशि मँडराते हैं।१। स्या देव हुए प्रतिकूल मेरे, क्यों झंझावात पहाते हैं। मेरी शान्ति की दुनिया में, विक्षोभ-अग्नि सुलगाते हैं।२।
या-जाग के कृत क्रम से, प्रतिकार खड़ा बदला लेने। हेवा बाज क्यों गये, संसार लगा है दुख देने ।२।
Page #17
--------------------------------------------------------------------------
________________
महावीर - कल्याणक पूजा देवों ने छीना क्यों मुझसे, अपहरण हुश्रा सब कुछ मे।। पलटी प्रभुता इक पल-छिन में, झट चंचल रूप बनाते हैं ।४। जननी की आकुलता विलोकि, प्रभु चेतन-गति दर्शाते हैं। ममतामयि की ममता लखका, काव्यरूढ हो जाते हैं। प्रण किया प्रभु ने हैं जन तक, पितु मातु हमारे दुनिया में । दीक्षा नहीं ग्रहण करू तब तक द टेक रेख बन जाते हैं।६। माता मन हषित प्रेम पुल, सुख रोम-रोम छा जाता है। आनन्द रूप प्रभु का प्रतिदिन, प्रति पल अानन्द बढ़ाता है ।
.! (मन्त्रम् ) सार्वीयमीरवर नगनन्त-हितावह श्रीसिद्धार्थवंश गगनांगण -पूर्णचन्द्रम् । सर्वज्ञ-देव--त्रिशलात्मज वर्धमान
सद्रव्य-भावविधिना सततं यजेऽहम् । ॐ ह्रो परमात्मने अनन्तानन्तज्ञानशकये जन्मजरामृत्युनिवाररणाय श्रीमजिनेन्द्राय महावीरपटुकल्याणकपूजाया द्वितीयगर्भापहार-कल्याणके अष्टद्रव्यं निर्वामित स्वाहा ।
इति द्वितीय कल्याणक पूजा ।
Page #18
--------------------------------------------------------------------------
________________
तृतीय जन्म कल्याणक पूजा
1. तृतीय जन कल्याणक पूजा
दोहा चैत्र शुक्ल तेरस तिथि, मधु ऋतु आधी रात । न मास जिन अवतरे, शुभ दिन साढे सात ॥१॥ हस्तोत्तर नक्षत्र था, नव वसन्त लहरात । जग विमोर था प्रेम में, प्रभुता प्रभु विकसात ॥२॥
(लयः मधुर-मधुर बाजे धुनि . . . . ) नगर और, डगर-डगर, वाजती बधाइयाँ । देव देवलोक छोरि, देवरानि धाइयाँ॥नगर.१॥
आज पनि कुण्ड प्राम, पुण्य धाम पाइयाँ । दिगकुमारि देवियों ने, सूतिक्रम रचाइयाँ । नगर. २ ॥ देवराज अहो भाग्य, मे शैल आईयाँ । ले गये प्रभु उठाय, महोत्सव मनाइयाँ नगर.३॥ सुनत ही बधाई बेगि, नृप उछाह पाइयाँ । धन्य-धन्य भाग्य मेरे, ऐसो सुत जाइयाँ ।। नगर.४॥ कौस्तुभ, वैडूर्य पीत, नील मणि लुटाइयाँ । स्वर्ण-रजत कौन कहे, इच्छा भर पाइयाँ ॥ नगर. ५॥ दिवस दसों दिशि आज, आनन्द बधाइयाँ । मंत्र मुग्धजननि-जनक, स्वर्गिक छवि छाइयाँ।नगर. ६॥ ज्ञात जन भुलाय लीन्ह, षट् रस जिमाइयाँ । वर्धमान नोम राखि, हृदय से लगाइयाँ निगर.७॥
Page #19
--------------------------------------------------------------------------
________________
महावीर षट् कल्याणक पूजा ( ७ )
दोही चन्द्र कला सो अहर्निश, पर्धित श्री वर्धमान । श्रामलिकी क्रीड़ा करत, शीश मुष्टि दे तान ॥१॥ छली देव की छल क्रिया, जाने जब भगवान । 'महावीर त नाम कहि,पापो समकित दान ॥२॥
' (लय वो पंछी बावरिया) - नन्दी वर्धन बन्धु, बहिन श्री सुदर्शना ।
तरूणकेलि रसलि, एक संग खेलना ॥ समरवीर की पुत्री यशोदा, कुँवर प्राप्त कर हुई प्रमोदा । जीवन अर्पण करके, कर तप सेवना ॥ नं. १॥ सुख के दिन पीते मंगलमय,प्रेम प्रवाह थाह नहीं निश्या जनभी शक्ति अनूप- रूप प्रिय । दर्शना ।नं. २॥ मात-पिता स्वर्गाहुए जब, पूर्ण प्रतिज्ञा जान प्रभूतव ।। श्राये बन्यु के पास, करें यह याचना ।। नं. ३॥ भाई अब अाज्ञादो मुझको, धारण करलू संयम प्रत को। विख तारक बन जाऊँ यही मम भावना ।।नं. ४॥ ज्येष्ठ बन्धु द्रवीभूत हो बोले, पलक मद मनके पखोले। भैया त्याग न जाओ रहो मम कमिना ।नं. ५॥ भूला नहीं दुख मात-पिताका,तोड़ रहे क्यों मुझ से नाता। नम नये पर नये नमक नहीं सरना ।नं.६॥
Page #20
--------------------------------------------------------------------------
________________
जन्म कर
( ८ ) तृतीय जन्म कल्याणक पूजा करो निवासवर्ष दीप्रियवर, अनुमतिदो तुम हर्पित होकर । दया की भीख मैं चाहूँ बन्धुवर याचना ।। नं.७॥ वर्धन की ममता को निरखकर, अनुमति दी अपना प्रण खोकर। लोह निमाऊ तुम्हरा, पं दो चाहना न.८॥ दर्शन, ज्ञान, चरित की धार, पहे त्रिपथगामिनि अविकारा। गृह में भी रहे तपस्वी यह केसी साधना ॥न.६॥
(मन्त्रम्) सायि-मीवर-मनन्त-हितावह श्री सिद्धार्थवंशजगनांगणपूर्णचन्द्रम् । सवज्ञ-देव-त्रिशलात्मज वर्धमान ।
सइद्रन्यभावविधिना सतत यजेऽहम् । ही परमात्मने अनन्तानन्तज्ञानशक्तये जन्मजरामृत्युनिवारणाय श्रीमजिनेन्द्राय महावीरपट्कल्याणकपूजायां तृतीय जन्म' करायके अष्टद्रप्य निर्वामिते स्वाहा ।
इति तृतीय कल्याणक पूजा ।
Page #21
--------------------------------------------------------------------------
________________
महाबीर-षट्-मस्याण ५i ( ) चतुर्थ दीक्षा कल्याणक पूजा
दोहा अनायास, प्रकटे पुनि, श्री लोकान्तिक देव । प्रभु से बोले विनत हो, सहज पालु सदैव ॥१॥ एक वर्ष अब बीत चुका, प्रभु की तत्काल | ધર્મ-વત્ર પ્રવર્તન, મિટે નાત નંગત વારસા नीति निभाने के लिये, पहुँच यशोदा पास । कहा वीर ने हे प्रिये, विदा करो सोल्लास ॥३॥ प्रिय मुख से यह बात सुन, बोली वह मम प्राय ।।... जात्रो! जात्रो !! प्रेम से, फरो विश्वयायामा
( लय सुनो सुनो हे दुनिया पालो......) चले प्रभु धन धाम छोड़कर, संयम-प्रत के हो अनुरागी। वर्षी दान देकर के विभुवर, श्राज बने हैं अयं निरागी।। इन्द्र-इन्द्राणि, नगर नर नारी, उत्सव खूप मनाते हैं । पूजन-अर्चन करके प्रभु का, प्रेम-पुष्प बरसाते हैं। चन्द्र प्रभा शिविका में बैठकर, हातखण्ड में आते हैं । अशोक तर तर त्यागे सब कुछ, शिव सरूप बनजाते हैं। मिगसर शुदी दसमी को प्रभुवर, संयम-पर्य अपनाते हैं । अपनाकर बन पूर्ण यमी वे, मने पर्यव पर प्रति है ।। पले.
Page #22
--------------------------------------------------------------------------
________________
( १० )
चतुर्थ दीक्षा कल्याणक पूजा
[२]
भूपति वर्धन को अनुमति से, वीर वहां से निकल पड़े। सन्ध्या समय वृक्ष के नीचे, ध्यानावस्थित रहे खड़े। उसी समय वाला इक श्राकर, बैल सौंपकर उन्हें चलो । जब लौटा तब पैल नहीं थे, क्रोध अग्नि में भुना जला । रसी लेकर चला मारने, इन्द्र ने आकर रोक लिया । शिक्षा उसको देकर उसने, वीतराग से अर्ज किया। विमो ! आपके हर संकट में, अाज्ञा हो तो साथ रहूँ । अंगीकार न किया वीर ने, फहा स्वयं निज पॉह गहूँ ।। चले.
[३] भोरा सनिवेशाश्रम में विभु, दुईजन्त के पास गये । सुहद-पुत्र को मेंटा ऋषि ने, वीर प्रेम में मग्न भये ।। पन्द्रह दिवस बिनाकर विभुवर, अस्थि ग्राम में आते हैं । शूलपाणि सुर के मन्दिर में, भी इक रात बिताते हैं। उसी रात में शूलपाणि सुर, ऊधम बहुत मचाता है । नाखिर थक कर हार-हार कर, दामा मागकर जाता है । चले०
दोहा सोमभट्ट पितुमीत जन, पहुँचा दीन शरीर । माँगा तब प्रभु ने दिया, देव दुष्य निज चीर ॥२॥ पंडकोशिया साँप ने, उसा पीर-पद एक । शिक्षा पाई, पन तजा, यो गति पाइ नेक ॥२॥
Page #23
--------------------------------------------------------------------------
________________
महावीरषदकल्याणक पूजा ( ११ ) ( लय अम्बिका विरुद बखाने : मात्रा ७) महिमा को न पिछाने, प्रभु तव महिमा को न पिछाने । गोशालक था महा पातकी, अवरणवादी तुम्हारा । तेजोलेरया से जलते बचाया, पर दुर्जन कम माने । प्रमु.१॥ संगम देव महा अपकारी, नीच. उपद्रवकारी। इक यामिनी में बीस उपद्रव, अतिहु भयंकर कोने । प्रभु.२॥ स्थान-स्थान पर अपमानित कर, तस्कर दोप लगाये। अशन पान से वंचित करके, छः महीने दुख दीने । प्र.३॥ आखिर में हत हार मान कर, परणन गिरा तुम्हारे। ऐसे निर्दय पापी प्रलोभी, पामा प्रदान की तुमने । प्रभु ४॥ वैशाली लोहकार शाला में, रहे अटल प्रभु ध्याने । लोहकार ने अशुभ मानकर, लौह धन बरसाने । प्रभु.५॥ હ, પોષાત્ત મહીં છતમી, વૈર પૂર્વ કાને છે श्रवण-रन्ध्रों में कील ठोंक कर, अति पीड़ा पहुंचाने । प्रभु.६। खरक वैद्य ने कोल काटकर, स्वस्थ किया क्षण माहि । व्यंतरी इक कटपूतना नामा, शोतोपसर्ग कीने । प्रभु.७/ अपकारी पर भी उपकारी, चेतोदार मनस्वी । समकित स्वर्ग मुक्ति के दाता, गौरन कौन पखाने । प्रभु.॥
दोहाफर्भ निर्जरा के लिये, विचरे मलेच्छ प्रदेश । महा भयंकर कट सहि, दहे कर्म अनिमेष ॥१॥
Page #24
--------------------------------------------------------------------------
________________
Gી
( ૨ ) અતુર્ય હીરા જન્ચારણા પૂજા
શ્રમ તપસ્વી જે દિયા; શ્રમ વા ! પૂર્ણ ન હો તવ તેવા સવા, નિરાહાર રહૂંટેલા શા
(ાય મુનિ મિત્રી) અતિ સુકાઈ જાનમાલી, રાધાર નિવાસી હો સિન મુકિત પદો રેડી, વિવેસ તીન ઉપવાસી હતો રત્ન ધરતો હદ વેતી, વાન વત્તા રાશી દાગ્રતિ, વીતે પૉવ માસ વિન પતિ, શાન્કી કર્યું અને ધનશ્રેષ્ઠી ઠૌર ધિ સુતા, વન્દન વાના પાતે હૈં . ઇ. દુર્વે પ્રતિજ્ઞા પૂર્ણ વીર , વેવ પુષ્પ વરસતે હૈ પુષ્યદ્રિવ્ય વાર ધૂમ ધામ ,મહિમા શ્રધિ વાતે હૈં ઐતિ. હો મારી, ઝવમાલી, ત્રિમાણિ, વોઝદ્ધિ માણી જૈો માસી, કેદ્ર માલી , પત્ત વત્તર તપ રાશી પ્રતિક સાહે વાહ વરસ, પત્ત મા, છાર્યું ન તાતે હૈં ડગ્ર તપસ્વી તક વત્ત દ્વારા, ધર્મ ના વન તે ઈંઝાતિ પા.
(મન્નમ્) સાબીરવ અનન્ત–હિતાવહં શ્રી સિદ્ધાર્યવંશ-માનાષા-પૂવન્દ્રમ્ | સર્વજ્ઞ હેવ ત્રિશત્તાત્માન વર્ધમાન
સદ્ભવ્યમાવવિવિના સતર્ણ થયું છે છઠ્ઠી પરમામને અનન્તાન્તજ્ઞાનરી વનરામૃત્યુનિવારવાય શ્રીમનનેન્દ્રીય મહાવીરષદુન્યાણપૂવવ વતુર્થदीक्षा-कल्याणके अष्टद्रव्य निर्वपामिते स्वाहा ।
ફતિ તુચે ન્યાણ પૂનાં !
Page #25
--------------------------------------------------------------------------
________________
महावीर-पट-कल्याणक पूजा
(१३ )
पंचम केवल-ज्ञान कल्याणक पूजा
दोहानदी तीर ऋजु वालुका, शाल तरूतर श्रान | शुदि दसमो पैसाख मह, पायो केवल ज्ञान ॥१॥ धन पाती चौकम का, क्षय कर हे सरताज । सर्वदर्शी सर्वज्ञ तुम, जि बने जिनराज ॥२॥
( लय-होई श्रानन्द वहार रे .. . .. .. ) . आज श्रानन्द दिगन्त रे, पूजो भक्ति प्रेम से। टेर। इन्द्रादिक सुर सुरी मिलकर, समवसरण विरचात रे । पूजो.१। चौतीस अतिशय पैंतीस वाणी, शोभित श्री वर्धमान रे । पूजो.२॥ समवसरण में बैठ प्रभ जी चउविह धर्म प्रकाश रे। पूजो.३। इन्द्रभूति, अग्निभूति, वायुभूति, व्यक्त, सुधर्माबारे। जो.४। मण्डित, मौर्यपुत्र, अकम्पित, अचलमाता, मेतार्य रे। पूजो. प्रमुख-प्रभास विप्रवर वैदिक, छात्र सहित परिवार रे। पूजो.६। वैदिक तत्व विवेचन करके, बना दिये अनगार रे। पूजो.७/ शासन के महा स्तम्भ बनाकर, गणधर पदवी दीनी रे। पूजो. चन्दन वाला आदि साध्वी, दीक्षित कर जिनराज रे। पूजो.हा चउविह संघ की स्थापना करके, तीर्थकर पद पाय रे। पूजो.१०॥ देश विदेशमें, ग्राम-नारमें, फिर-फिर किया प्रचार रे! पूजो.११॥ यज्ञ कांड हिंसा कृत्यवंदकर, अहिंसा ध्वज फहरायरे। पूजो.१२।
Page #26
--------------------------------------------------------------------------
________________
( १४ )
पंचम केवल ज्ञान केल्याणक पूजा
(ત્તર–ાતો )
વીતરાજ વિરું અન્તર્યામી ! ધટન્મટ વાસી દે વણાર ! હીન હયાતો! ગ્રાનન્દ ધન દે! સત્ય સ્વવી, નવાનન્દી, નિર્મચારી, વિશ્વન દે!
વીતરામ વિનું અન્તર્યામીશા વિરવ પ્રેમ છે પાટ પટ્ટા, સત્ય, ઋહિંસા, મર્મ સિવાર, સામ્યવાહી જિી પર રવ, વિરવ બક્ષવારી નય છે!
વિતરાજ વિષ્ણુ અન્તર્યામી મારા નિર્મળ, નિવેફ્રિી વનને , અનાલ, નિસ્પૃહ રહને , કર્મઠ, ધર્મવીર, વૈશાલી, શ્રાત્મ-શક્તિ છે શા દે! વીતરાગ વિમ્ અન્તર્યામી રાા
(મત્રમ્) લાયમી વર અનન્ત–હિતાવહં શ્રી સિદ્ધાર્થવાનાં-પૂવન્દ્રમ્ |
Page #27
--------------------------------------------------------------------------
________________
महावीर षट् कल्याणक पूजा ( १५ ) सर्वज्ञ--देव त्रिशलात्मज वर्धमान
सद्रव्य-भावविधिना सततं यजेऽहम् । हो परमात्मने अनन्तानन्तज्ञानशकये जन्ममृत्युनिवारशाय श्रीमजिनेन्द्रीय महावीरपटकल्याणकपूजाया पंचमकेवलज्ञान-कल्याणके अष्टद्रव्य निर्वामित स्वाहा ।
इति पंचम् कल्याणक पूजा ।
Page #28
--------------------------------------------------------------------------
________________
पष्ट निर्वाण कल्याणक पूजा
षष्ठ निर्वाण कल्याणक पूजा
दोहा -तीस वर्ष गृह पास के, संयम बैंतालीस । पूर्ण श्रायु प्रभु पार करि, मुक्ति लहे जगदीश ॥१॥
अस्थिनाम इक जानिये, चम्पा नगरी तीन । वैशाली वाणिज्य में, चार चउमासी कीन ॥२॥ पउदह नालन्दा किये, छः मिथिला में जान । द्वय चउमासी भद्रिका, श्रालम्भिका इक मान ॥३॥ श्रावस्तीअर म्लेच्छ भूमि, ईक-इफ पउमासी ठाय । मध्यम पापा अन्त में, आये श्री जिनराय ॥४॥
(लय झट जावो चन्दन हार लावो ... ) जिन स्वामी, महावीर नामी, परम पद पाते हैं । करि कमों का अंत, चले मुक्ति के पंथ, मन भाते हैं।
साखी के
निर्वाण-समय निज जानकर, अखण्ड देशना देत । गौतम को करके पृथक, देखो सिद्धि-वधू वर लेत रे
अमर बन जाते हैं । जिन० १॥
Page #29
--------------------------------------------------------------------------
________________
महावीर षट् कल्याणक पूजा ( १७ )
* साखी कार्तिक कृष्ण अमावस, स्वाति नखत में प्राण ! । देह त्याग त्यागी चले, कर विश्व-जीवन कल्याण रे' अक्षय कहलाते हैं । जिन. २॥
साखी अचल, अरुज, अविनश्वर, ज्योति स्वरूप अनन्त । अनन्त ज्ञानी दर्शनी, मङ्गल रूप सुसन्त रे
मुक्ति पद पाते हैं। जिन० ३॥
* साखी વેલ છે. ન્યાણ , તુલી દુર લવ કેવ ! कौन हरे तम-पुञ्ज अब, कहन लगे तब देवरे
अथ बरसाते हैं। जिन ४॥
* साखी सुनकर मुख से देव के, महावीर निर्माण । दुखित हुए गौतम तभी, कर वीर प्रभु का ध्यान रे
मन में पसाते हैं। जिन ॥
तज संकल्प-विकल्प संब, गुण श्रेणी चढ़ि जायें । कर्मों को निमल कर, कोल्य ज्ञान को पापॅ रे
देव हर्षाते हैं | जिन० ६॥
Page #30
--------------------------------------------------------------------------
________________
पष्ट निर्वाण कल्याणक पूजा
(मन्त्रम्) सायि-मीश्वर-मनन्त-हितावह भी । सिद्धार्थवंशगनांगणपूर्णचन्द्रम् । सर्वज्ञ-देव - त्रिशलात्मज - वर्धमान
सद्व्यमावविधिना सतत यजेऽहम् । ॐ ह्रीं परमात्मने अनन्तानन्तज्ञानशक्तये जन्मतारामृत्युनियारणाय श्रीमजिनेन्द्राय महावीरषटकल्याणकपूजायां षष्टनिर्वाण कल्याणके अष्टद्रव्य निर्वामिते स्वाहा ।
इति पाठ कल्याणक पूजा ।
Page #31
--------------------------------------------------------------------------
________________
महावीर पट् कल्याक पूजा
१६
)
कलश (लय-रोता कहां मूल आये.......") · महावीर जिनवर की पूजा है सुखकारी ।
दर्शन की बलिहारी ॥२॥ वीर विभु के षट्कल्याणक, शास्त्र सिद्ध हैं भाई । परम पवित्र परम फलदायक, जगके मङ्गलकारी ।। पूजा. १॥ शासन के महातभ गणों में, खरतरगच्छाचारी । सुखसागर भगवानसागरजी, हुये परम उपकारी ॥ पूजा. २॥ सुमतिसिन्धु मम दादागुरुर, महोपाध्याय पदधारी । तासु पट्टधर विशद यशस्त्री, शास्त्र धुरन्धर भारी ॥ पूजा. ३॥ 'कल्याणक' 'पर्थपण' 'साध्वी' व्याख्यान निर्णयकारी। भूरियर श्री जिन मणिसागर, गण के परमाधारी ।। पूजा.४॥ तत्पदरेणु महोपाध्याय, साहित्याचार्य कहाये। . श्यामास्नु विनयोदधि ने, पूजा रची मनुहारी ॥ पूजा. ५॥ हिन्द संवत्सर आठ, इन्दु दिन, पन्द्रह अगस्त मॅझारी। दो हजार द्वादस भादों की, कृष्ण त्रयोदशी सारी ।। पूजा.६॥ महासमुन्द नगर अति सुन्दर, जहें श्री शान्ति विराजे। संध चतुर्विध शासन सेवी, पर्ते जय जयकारी ॥पूजा. ७॥
MGork
Page #32
--------------------------------------------------------------------------
________________
( २० )
.- . अती.... .
ॐ जय महावीर विमो! शरणात के रक्षक, तारक भव सिन्धो 1 ||१|| पावापुरी है नीर्थवाम प्रसु, जैसलमेर मंडन ! । फेनागा माँचोर नादिया, उपशपुर भूपण ॥४.२॥ च्युति गर्भ हरण जन्म अदीमा, फेल निर्वाणी । पटुकायाणक वीर तुम्हारे, यह बागम वाणी ॥३॥ श्री श्रीमाली, मेघराजजी, महासमुन्द पासी । प्रेरक हैं प्रिय इस औरती के, हे घट-घट बासी! |ॐ४|| आरती जो यह गाउँ भनि जन, पंछित फल पावें। स्वर्ग मोक्ष फल पाकर के वे, धन-धन हो जावें ॥ॐ॥
柴柴
Page #33
--------------------------------------------------------------------------
_