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महावीर षट् कल्याणक पूजा ( १७ )
* साखी कार्तिक कृष्ण अमावस, स्वाति नखत में प्राण ! । देह त्याग त्यागी चले, कर विश्व-जीवन कल्याण रे' अक्षय कहलाते हैं । जिन. २॥
साखी अचल, अरुज, अविनश्वर, ज्योति स्वरूप अनन्त । अनन्त ज्ञानी दर्शनी, मङ्गल रूप सुसन्त रे
मुक्ति पद पाते हैं। जिन० ३॥
* साखी વેલ છે. ન્યાણ , તુલી દુર લવ કેવ ! कौन हरे तम-पुञ्ज अब, कहन लगे तब देवरे
अथ बरसाते हैं। जिन ४॥
* साखी सुनकर मुख से देव के, महावीर निर्माण । दुखित हुए गौतम तभी, कर वीर प्रभु का ध्यान रे
मन में पसाते हैं। जिन ॥
तज संकल्प-विकल्प संब, गुण श्रेणी चढ़ि जायें । कर्मों को निमल कर, कोल्य ज्ञान को पापॅ रे
देव हर्षाते हैं | जिन० ६॥