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पष्ट निर्वाण कल्याणक पूजा
षष्ठ निर्वाण कल्याणक पूजा
दोहा -तीस वर्ष गृह पास के, संयम बैंतालीस । पूर्ण श्रायु प्रभु पार करि, मुक्ति लहे जगदीश ॥१॥
अस्थिनाम इक जानिये, चम्पा नगरी तीन । वैशाली वाणिज्य में, चार चउमासी कीन ॥२॥ पउदह नालन्दा किये, छः मिथिला में जान । द्वय चउमासी भद्रिका, श्रालम्भिका इक मान ॥३॥ श्रावस्तीअर म्लेच्छ भूमि, ईक-इफ पउमासी ठाय । मध्यम पापा अन्त में, आये श्री जिनराय ॥४॥
(लय झट जावो चन्दन हार लावो ... ) जिन स्वामी, महावीर नामी, परम पद पाते हैं । करि कमों का अंत, चले मुक्ति के पंथ, मन भाते हैं।
साखी के
निर्वाण-समय निज जानकर, अखण्ड देशना देत । गौतम को करके पृथक, देखो सिद्धि-वधू वर लेत रे
अमर बन जाते हैं । जिन० १॥