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जाता है। श्रीमलिकी क्रीड़ा में देषों द्वारा महावीर' नाम रखा जाता है। बड़े भाई नन्दिवर्धन और बहिन सुदर्शना के साथकोड़ा करते हुए समय व्यतीत करते है। युवावस्था में यशोदा नामक सामन्त कुमारी से पाणिग्रहण होता है। प्रियदर्शना नामक पुत्री होती है। माता-पिता के देहावसान के पश्चात् भाई नन्दिपनि से दीक्षा ग्रहण करने की अनुमति चाहते हैं, किन्तु भाई
और भाभी के नाम पर साधक के रूप में साधना करते हुए दो वर्ष रहना स्वीकार करते हैं। ...
... . चौथी पूजा में लोकान्तिक देवताओं द्वारा समय सूचित करने पर, वर्षीदान देकर, प्रिया यशोदा से अनुमति लेकर मिगसर शुदी १० को सयम-पथ ग्रहण करते हैं । सयम-पथ पर भासद होने के पश्चात् ज्ञान प्राप्त करने के पूर्व तक १२ वर्ष ६ महीने और १५ दिन तक अनेकों गोपालक का, शूलपाणिका, चन्डकौशिक का, गोशालक का, सगम देव का, लोहकार का, गोपालक द्वारा कानों में कीलें ठोंकने का, कटपूतना व्यतरी-श्रादि के उपसर्ग सहन करते हुए एक अत्युत्कट अभिप्रद धारण करते हैं, जिसकी पूर्ति चन्दन बाला द्वारा होती है। अन्त में भगवान की सम्पूर्ण तपोराशि का उल्लेख किया गया है।
पाँची पूजा में श्रमण महावीर को वैशाख शुक्ला दशमी को कैवल्य की प्राप्ति होती है। देवतानों द्वारा समवसरण की रचना की जाती है। भगवान अपने उपदेशों द्वारा यज्ञादि हिंसाकृत्यों को बन्द कर अहिंसा और सत्य धर्म का प्रचार करते हुए
पतुर्विध संघ की स्थापना करते हैं । विश्व को अपना अनुपम - सम्देश सुनाते हैं । सर्वज्ञ, सदर्शिता के गुणों को प्रकट किया गया है।
ठी पूजा में कार्तिक कृष्णा श्रमावास्था (दीपावली) को श्रमण भगवान महावीर शेष कर्मा का प्रयकर, अजर, अमर, अक्षय,