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नियाँ दो शास्त्रीय संगीत की हैं और अवशिष्ट सब वर्तमान प्रषलित ही ग्रहण की गई है, जिससे गायकों को सरलता पड़े।
पूजा में क्या वय-विषय है ? इस पर जरा गौर कर लेना समुचित ही होगा।
प्रथम पूजा में नयसार के भव में सन्यपत्र प्राप्ति से २६ भवों का संक्षेप उल्लेख किया गया है। आपाद शुक्ला ६ इस्तोतरानपात्र में मान का जीव दशम देवलोक से च्युत होकर माइणकुन्ड प्राम निवासी, कोडाल गोत्रीय वित्र ऋषभदत की सहचरी जालंधर गौत्रीया देवानन्दा की कुक्षि में उत्पन्न होता है। देवानन्दा १४ स्वप्न देखती है,अपने स्वामी से इसका फल पूछती है भौर स्वामी के मुख से 'पुत्ररत्न' फल श्रवणकर हर्षित होती है।
दूसरी पूजा में आश्विन या त्रयोदशी को इन्द्रकी श्राज्ञा से हरिणगमेषी देव द्वारा गर्भ परिवर्तन होता है । अर्थात् महावीर का गर्भ सत्रियकुण्ड के अधिपति सिद्धार्थ की पत्नी त्रिशला की कुक्षि में आता है और त्रिशला का पुत्रीरूपा गर्भ देवानन्दा के गर्भ में आता है। त्रिशला १४ स्वप्न देखती है। सिद्धार्थ से एक स्वप्न लक्षण पाठकों से फल श्रवण कर हर्षित होती है । राज, धन धान्यादि की वृद्धि होने से वर्धमान नाम रखेंगे ऐसा जनक और जननी संकल्प करते हैं।
गर्भावस्था में जननी को पीड़ा न हो, अतएव गर्भ की चलन क्रिया त्यागकर, महावीर स्थिर बनते हैं। माता को संकल्प-विकल्प के साथ अतिशय दुःख होता है। महावीर यह जानकर प्रतिज्ञा करते हैं कि अहो । माता-पिता का इतना वात्सल्य ! अत: इनके जीवित रहते हुए में दीक्षा ग्रहण नहीं लगा। .
तीसरी पूजा में चैत्र शुक्ला त्रयोदशी को वर्षभान का जन्म होता है। दिककुमारियाँ और इन्द्रों द्वारा जन्मोत्सव मनाने के पश्चात् सिद्धार्थ राजा उत्सव मनाता है। वर्षमान नाम-करण किया