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तृतीय जन्म कल्याणक पूजा
1. तृतीय जन कल्याणक पूजा
दोहा चैत्र शुक्ल तेरस तिथि, मधु ऋतु आधी रात । न मास जिन अवतरे, शुभ दिन साढे सात ॥१॥ हस्तोत्तर नक्षत्र था, नव वसन्त लहरात । जग विमोर था प्रेम में, प्रभुता प्रभु विकसात ॥२॥
(लयः मधुर-मधुर बाजे धुनि . . . . ) नगर और, डगर-डगर, वाजती बधाइयाँ । देव देवलोक छोरि, देवरानि धाइयाँ॥नगर.१॥
आज पनि कुण्ड प्राम, पुण्य धाम पाइयाँ । दिगकुमारि देवियों ने, सूतिक्रम रचाइयाँ । नगर. २ ॥ देवराज अहो भाग्य, मे शैल आईयाँ । ले गये प्रभु उठाय, महोत्सव मनाइयाँ नगर.३॥ सुनत ही बधाई बेगि, नृप उछाह पाइयाँ । धन्य-धन्य भाग्य मेरे, ऐसो सुत जाइयाँ ।। नगर.४॥ कौस्तुभ, वैडूर्य पीत, नील मणि लुटाइयाँ । स्वर्ण-रजत कौन कहे, इच्छा भर पाइयाँ ॥ नगर. ५॥ दिवस दसों दिशि आज, आनन्द बधाइयाँ । मंत्र मुग्धजननि-जनक, स्वर्गिक छवि छाइयाँ।नगर. ६॥ ज्ञात जन भुलाय लीन्ह, षट् रस जिमाइयाँ । वर्धमान नोम राखि, हृदय से लगाइयाँ निगर.७॥