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महावीर षट् कल्याणक पूजा ( ७ )
दोही चन्द्र कला सो अहर्निश, पर्धित श्री वर्धमान । श्रामलिकी क्रीड़ा करत, शीश मुष्टि दे तान ॥१॥ छली देव की छल क्रिया, जाने जब भगवान । 'महावीर त नाम कहि,पापो समकित दान ॥२॥
' (लय वो पंछी बावरिया) - नन्दी वर्धन बन्धु, बहिन श्री सुदर्शना ।
तरूणकेलि रसलि, एक संग खेलना ॥ समरवीर की पुत्री यशोदा, कुँवर प्राप्त कर हुई प्रमोदा । जीवन अर्पण करके, कर तप सेवना ॥ नं. १॥ सुख के दिन पीते मंगलमय,प्रेम प्रवाह थाह नहीं निश्या जनभी शक्ति अनूप- रूप प्रिय । दर्शना ।नं. २॥ मात-पिता स्वर्गाहुए जब, पूर्ण प्रतिज्ञा जान प्रभूतव ।। श्राये बन्यु के पास, करें यह याचना ।। नं. ३॥ भाई अब अाज्ञादो मुझको, धारण करलू संयम प्रत को। विख तारक बन जाऊँ यही मम भावना ।।नं. ४॥ ज्येष्ठ बन्धु द्रवीभूत हो बोले, पलक मद मनके पखोले। भैया त्याग न जाओ रहो मम कमिना ।नं. ५॥ भूला नहीं दुख मात-पिताका,तोड़ रहे क्यों मुझ से नाता। नम नये पर नये नमक नहीं सरना ।नं.६॥