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जन्म कर
( ८ ) तृतीय जन्म कल्याणक पूजा करो निवासवर्ष दीप्रियवर, अनुमतिदो तुम हर्पित होकर । दया की भीख मैं चाहूँ बन्धुवर याचना ।। नं.७॥ वर्धन की ममता को निरखकर, अनुमति दी अपना प्रण खोकर। लोह निमाऊ तुम्हरा, पं दो चाहना न.८॥ दर्शन, ज्ञान, चरित की धार, पहे त्रिपथगामिनि अविकारा। गृह में भी रहे तपस्वी यह केसी साधना ॥न.६॥
(मन्त्रम्) सायि-मीवर-मनन्त-हितावह श्री सिद्धार्थवंशजगनांगणपूर्णचन्द्रम् । सवज्ञ-देव-त्रिशलात्मज वर्धमान ।
सइद्रन्यभावविधिना सतत यजेऽहम् । ही परमात्मने अनन्तानन्तज्ञानशक्तये जन्मजरामृत्युनिवारणाय श्रीमजिनेन्द्राय महावीरपट्कल्याणकपूजायां तृतीय जन्म' करायके अष्टद्रप्य निर्वामिते स्वाहा ।
इति तृतीय कल्याणक पूजा ।