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महावीरषदकल्याणक पूजा ( ११ ) ( लय अम्बिका विरुद बखाने : मात्रा ७) महिमा को न पिछाने, प्रभु तव महिमा को न पिछाने । गोशालक था महा पातकी, अवरणवादी तुम्हारा । तेजोलेरया से जलते बचाया, पर दुर्जन कम माने । प्रमु.१॥ संगम देव महा अपकारी, नीच. उपद्रवकारी। इक यामिनी में बीस उपद्रव, अतिहु भयंकर कोने । प्रभु.२॥ स्थान-स्थान पर अपमानित कर, तस्कर दोप लगाये। अशन पान से वंचित करके, छः महीने दुख दीने । प्र.३॥ आखिर में हत हार मान कर, परणन गिरा तुम्हारे। ऐसे निर्दय पापी प्रलोभी, पामा प्रदान की तुमने । प्रभु ४॥ वैशाली लोहकार शाला में, रहे अटल प्रभु ध्याने । लोहकार ने अशुभ मानकर, लौह धन बरसाने । प्रभु.५॥ હ, પોષાત્ત મહીં છતમી, વૈર પૂર્વ કાને છે श्रवण-रन्ध्रों में कील ठोंक कर, अति पीड़ा पहुंचाने । प्रभु.६। खरक वैद्य ने कोल काटकर, स्वस्थ किया क्षण माहि । व्यंतरी इक कटपूतना नामा, शोतोपसर्ग कीने । प्रभु.७/ अपकारी पर भी उपकारी, चेतोदार मनस्वी । समकित स्वर्ग मुक्ति के दाता, गौरन कौन पखाने । प्रभु.॥
दोहाफर्भ निर्जरा के लिये, विचरे मलेच्छ प्रदेश । महा भयंकर कट सहि, दहे कर्म अनिमेष ॥१॥