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द्वितीय गर्भापहार कल्याणक पूना
आधार, स्थान, समवाय, कल्प-श्रादि सूत्र दशति । गसंघर, श्रुतधर, पूर्वाचार्य, फैल्या रूप बतलाते ।
___मंगलकारी महान । गर्भ० ४ ।
दोहा ज्योतिषी गण दैवज्ञ गणी, भूपति लीन्ह घुलाय । वगुणनफल-पुत्र सुनि, हर्ष न हृदय समाय ॥१॥ सिद्धि अभिवृद्धि सकल, नित नव प्रकटे जीत । विशला श्री सिद्धार्थ के, सफल मनोरथ होत ॥२॥ अष्ट सिद्धिनवनिधि सब, प्रकट क्षण-क्षण माहि । पुण्य नगर महाराजगृह, अानन्द नहीं समाहिं ॥३॥ पूर्ण मनोरथ जब हुए, तहिं विचारे भूप । वर्धमान प्रिया राखि हों, यथा नाम गुण रू५ ॥४॥
(लय गजल -56 जाग मुसाफिर भोर भयो.) ५४ देखि उद९ दुख जननी के, झट निश्चलता अपनाते हैं। ना को नाशंका होती है, संशय चिहुं दिशि मँडराते हैं।१। स्या देव हुए प्रतिकूल मेरे, क्यों झंझावात पहाते हैं। मेरी शान्ति की दुनिया में, विक्षोभ-अग्नि सुलगाते हैं।२।
या-जाग के कृत क्रम से, प्रतिकार खड़ा बदला लेने। हेवा बाज क्यों गये, संसार लगा है दुख देने ।२।