Book Title: Kailas Shrutasagar Granthsuchi Vol 1
Author(s): Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Atharva Shri Kailassagarsur Gyarmandir ਵੈਬ ਗੈਰ ਫਾਰਰ ਫਿਲ ( 3 ) KAILASA SRUTASAGARA GRANTHASUCI Descriptive Catalogue of Jain Manuscripts (Vol. 1) ਵ੪੫॥ ਬਵਜ਼ੀਰ। ਸਬੁTa॥ ਸਨ। Acharya Sri Kailasasagarsuri Gyanmandir Sri Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba Tirth, Gandhinagar Far Private And Personal use only Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatinh.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandit आचार्य श्री कैलाससागरसूरि स्मृति ग्रंथसूची - रत्न १ . श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र, कोबा तीर्थ संचालित आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमन्दिरे देवर्द्धिगणि क्षमाश्रमण हस्तप्रत भाण्डागारस्थ हस्तलिखितग्रंथानां विस्तृतसूची विभाग - १ : हस्तप्रत सूची . वर्ग - १ : जैन साहित्य खंड - १ : आशीर्वाद व प्रेरणा : आचार्य श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी Descriptive Catalogue of Manuscripts Preserved in Dēvarddhigaņi Kşamāśramaņa Hastaprata Bhāņdāgāra, Acharya Shri Kailasasagarsuri Gyanmandir under the auspices of Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra, Koba Tirth Class - I: Jain Literature Section - I: Manuscripts' Catalogue Volume - 1 : Blessings & Inspirations : Acharya Shri Padmasagarsurishwarji de Published by as Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra, Koba Tirth, Gandhinagar, India 2003 For Private And Personal Use Only Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatinh.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandit आचार्य श्री कैलाससागरसूरि स्मृति ग्रंथसूची - रत्न १ Ācārya Śhri Kailāsasāgarasūri Smrti Granthasūci - Ratna 1 कैलास श्रुतसागर ग्रंथसूची : १.१.१ Kailāsa Śrutasāgara Granthasūci : 1.1.1 : Compiler : : सूचीकर्ता : मुनि निर्वाणसागर Muni Nirvansagar : संपादक : पं. मनोज र. जैन डॉ. बालाजी गणोरकर : Editors: Pt. Manoj R. Jain Dr. Balaji Ganorkar : संपादन सहयोगी : संजय र. झा शैलेष प्र. महेता नवीन वि. जैन प्रमोद र. शाह : Editorial Associates : Sanjay R. Jha Shailesh P. Maheta Navin V. Jain Pramod R. Shah : कम्प्यूटर प्रोग्रामिंग : .. केतन दी. शाह : Computer Programming : Ketan D. Shah For Private And Personal Use Only Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavit Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailaseagarsun Gyanmandie आचार्य श्री कैलाससागरसूरि स्मृति ग्रंथसूची - रत्न १ कैलास श्रुतसागर ग्रंथसूची (१.१.१) श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र, कोबा तीर्थ संचालित आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमन्दिर देवर्द्धिगणि क्षमाश्रमण हस्तप्रत भाण्डागार में संगृहीत हस्तलिखित ग्रंथों की विस्तृत सूची : आशीर्वाद व प्रेरणा : आचार्य श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी प्रकाशक 6 श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र, कोबा तीर्थ, गांधीनगर वीर सं. २५२९ ० वि.सं. २०५९ ० ई. २००३ For Private And Personal Use Only Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jan Aradhana Kendra www.kobatirthang Acharya Shri Kailassagarsuri Gyan mandir Acharya Shri Kailasasagarsuri Memorial Catalogue Series - 1 Kailāsa Śrutasāgara Granthasūci Descriptive Catalogue of Manuscripts - 1.1.1 Preserved in Dēvarddhigani Kșamāśramana Hastaprata Bhāndāgāra, Acharya Shri Kailasasagarsuri Gyanmandir o Copy rights : reserved by Publisher o Copies : 250 o Birthday of H.H.Acharya Shri Padmasagarsurishwarji Maharaj Bhadrapad Sudi 12, Vir Samvat 2529, Vikram Samvat 2059,7 September 2003 O Edition : First Courtsey for printing this volume : Rameshkumar Chauthmalji, Taradevi Rameshkumar & sons Jitendra, Jinendra For the bliss of mother Late Kamladevi Chauthmalji (of Novi, at present Shioganj-Rajasthan) O Available at: Shruta Sarita Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra, Koba Tirth o Published by : Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba Tirth, Gandhinagar 382009. INDIA Tel: (079) 3276204, 3276205, 3276252 Fax: 3276249 Web site: www.kobatirth.org, E_mail: gyanmandir@kobatirth.org o Price: Rs. 500/ Printed by : Neminath Printers, Shahibaug, Ahmedabad. Ph : 5625035 आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर दशाब्दी वर्ष fa.. ROX-R048 (P883 - Poof) परम पूज्य आचार्य श्री पद्मसागरसूरि म.सा. के ६९ वें जन्मदिवस के उपलक्ष्य में For Private And Personal Use Only Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jan Aradhana Kendra www.kobatinh.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyan mandir -: मंगल कामना :आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर, कोबा (गुजरात) के हस्तप्रत. संग्रह का "कैलास श्रुतसागर सूचीपत्र" प्रकाशित होने जा रहा है, यह प्रसन्नता का विषय है. वर्षों की महेनत आज सफल होने जा रही है. आज तक जितने भी सूचिपत्र देखने में आए हैं, उनसे अलग प्रकार की विशेषता इसमें देखने को मिलेगी. विद्वानों के लिए यह ज्ञान के दर्पण जैसा काम करेगा. __ पूज्य परमोपकारी आचार्य भगवंत श्री कैलाससागरसूरीश्वरजी के शुभाशीर्वाद से देश का यह सबसे समृद्ध जैन ज्ञानमंदिर बना है, जो प्राचीन परंपरानुसार अपनी प्रणाली को कायम रखते हुए भी आधुनिक साधन एवं सुविधाओं से संपन्न है. पूज्य साधु-साध्वीजी म. सा. एवं शोधकर्ताओं तथा विद्वानों को पूर्ण सहयोग प्रदान करने में यह ज्ञानमंदिर हमेशा तत्पर रहता है. इस सूचिपत्र में हस्तप्रतों के विवरण आदि कष्टसाध्य कार्य को तैयार करने में अन्य मुनियों के साथ-साथ मुनिराज श्री निर्वाणसागरजी एवं मुनिराज श्री अजयसागरजी म.सा. का श्रेष्ठ योगदान रहा है. अत्यधिक श्रम लेकर उन्होंने इस कार्य को सफल बनाने में अपूर्व सम्यक् श्रुतज्ञान की भक्ति की है. साथ ही विद्वान पंडितों ने भी कार्य में अपेक्षाकृत अधिक सहयोग प्रदान किया है. मुनिवरों, विद्वान् पंडितों, कम्प्यूटर प्रोग्रामरों, अन्य सहयोगियों एवं व्यवस्थापकों को मैं अपनी ओर से धन्यवाद देता हूँ उनके कार्य की अनुमोदना करता हूँ. मुझे आशा है कि इस सूचिपत्र का विद्वान एवं शोधकर्तागण सुंदर उपयोग कर अपनी ज्ञानोपासना में अभिवृद्धि करेंगे. पभसागरसरि. हि०१४--२.३ For Private And Personal Use Only Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jalt Aradhana Kendra www.kobatinh.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandit * * * * * * * * * * * * * * * * * * * १ सादर समर्पण * * * * कल्याणस्वरूप तीर्थंकरों द्वारा स्थापित श्रमणप्रधान चतुर्विध श्रीसंघ के कर कमलों में... * * * * कि जिनकी बदौलत यह श्रुत परंपरा अक्षुण्ण रही. * * * * * * * * * * * * * * * * * * * * For Private And Personal Use Only Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir - कोबातीर्थमंडन प्रभु श्री महावीरस्वामी For Private And Personal use only Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shun Kailassagatum Gyanmandir योगनिष्ठ आचार्य श्रीमद् बुद्धिसागरसूरीश्वरजी माला, For Private And Personal use only Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shil Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kallassagarsur Gyanmandiri शांतमूर्ति आचार्य श्री कीर्तिसागरसूरीश्वरजी म.सा, For Hiivalle And Personal use only Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shel Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirthata Acharya Shri Kallassagarsur Gyanmandir । गच्छाधिपति आचार्य श्री कैलाससागरसूरीश्वरजी म.सा. For Private And Personal use only Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shil Mahavir Jain Aradhana Kende www.kobatirth.org Acharya Shri Kallassagarsurl Cyanmandir शास्त्रविद आचार्य श्री कल्याणसागरासारीश्वरजी म.सा, For Fivelle And Personal use only Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kallassagarsuri Gyanmandir थुनादारक आचार्य श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी म.सा. For Private And Personal Use Only Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra सचित्र कल्पसूत्र, पंचपाटी, सुलेखन कला से युक्त, वि.सं. १तृवी सदी. दिव्य समयसी निक ततः शतितीरंपरागत आय निकम्मान विहसिती र माग । अनिडर रंग मामादाविकपणे शामिड समये ॥३४॥ कलेव मनोरमेलि मिश्रा सिहिंगो अमलाम नमः गच्छसि। रमेव समयेरिनि), डवरागामगए नगरे वजण संतिमगांव समयेगो श्रम मायमाया पा X बोलन उपमानायाम्म निसम्मनासि । खकदि प्रकारेण दिनं अश्वार्धयनियमण्डनमा दिखे। रागदो मिं परिरुपशोभितायनज्ञानमादिपनि सिद्दिगई गए गो श्रमतिवमि देवा विडिय रक्त मात्रा गोतमन्त्रतिनामा 995 मित्रको ध्ययन॥॥॥ गण रुबाबद X म नो xxxसा Xx का आनन्दघनचोवीसी, www.kobatirth.org. स्क नरें 3 ि Seemer मर ॥ WWWWW एवगान पदर में दी नही काव्यादिकग्रदो ॥ नदिरात मकाया किकतो दोसाध|धरदो।।। छंतर ताज्ञानानंद रावत ॥ वरजितसमाजवद्याधियविधि ninibs dn ते विवियानीमाय निर्कितीर मादामी पनवे मधमा यादरी की रमणीरंग दिला कारिमलटारमा रम मदरसा सकलनमा राममायाक्सुमित फलदातामा विस्तार ऊसक तमारा लिय दीयांतणारे वालियार श्रीया मामीण रतिक्रम निभायी तिफल पाइय Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir रंपरतीरे जातो म मानयोग् नवना पोलिक्लि परिणामप्रति मात पदमा Grey रिपूर्ण मी xx ४२ संयम नवाश्या सा x तामिन www-ContaCort हिमा लोकि काफनरसिं शिक्षामन भ भीकमपुरखादीस सिनवंदरिएमा पापमन 14 सामीणाइतिश्रीयाद काशी किनकित सममिनिसचीत लाख याविनको कित सामजिमिलर सिमागत नामानिमीवीर पारि दिनदयानंद नायकवाद नेदमसिसागराफलिनामि॥२॥ इतिनमस्कारासमाप्तानि लिखितामित For Private And Personal Use Only समय निगमय पदा दोश्वमत या दिवसापर पान गागर ॥ इमामानमा ४ वहिरात जे तस्यातमा ईथर मध्य फल्लिका में तीर्थकर चित्र, वि.सं. १६-१०वी सदी 2005 Salon Sy Granfitses unp Liberal Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobirth ora Acharya Shri Kailasanat Gyanmandir प्राथमिक रूप से प्राप्त हस्तप्रता का जीर्ण-शीर्ण अस्तव्यस्त ढेर जिनका यथोचित संरक्षण यहाँ पर होता है.. HamanahatmandariommannermecomeremfhheentaGheerenालि कामाmardininhaurahalauncements ansineMat yamefouTwwwmuneraturthunfortantभिER atnanamamomarahmapmnimaNiralain HIRONMaayuvaareANILAMumbaranandamammaNaamerekamadieamegamimarathiurtiahatexsamarnamAnas HAMIRPORamanamitene मामलामामामामाकाROENaamreniwaamanenntensiRRIAAmarnatREER सम MARRIEqfotosimename य सिमगावमधीमानलयनका सामान्यकरिसाहाराHindimamahimsaneeti Angramm लायकपविशषिभितार सिमसालारमिrimalsmmeगांमध्यापारयांधायाधMAAmamiane SANEmatalaunal Meanidenायामामबमरणारसम मिल किया पाशमायालयामारण्ामियाजाश्यमाणिERI Lemamacumentarch Samantamannmalaरमयाबगानाकानिमा शारितासाभवामानगरमायाकामवनशर्मका नायालय SAROHARगमगमगादावनाचारधामन्यापयरहरामान गमावामपामासमाकलमषालवारकराMADARAanimune Datemeinameब ISRANसातिरकोपबीमारिवारिकामा निमशंभीषश्यामको कम्मावियलयनmannermemale minecraf f iotice Ananाममा सय मालागामोशी समयमा Sonfidentialior t iurre n d Initationmentaकाममाममममममरियमशारागसाताएवामान्यानामावनिमममममममविनयामा F romyamosaamaareनिगम मंगaiwanायाममा राजनराताराbauminatural मायनेकि NAकामकाजाधमांशपरीक्षामावलियमmummisfiemaesiamininemann agerSaritatememRNRAMyeritories andyaratna कारवाला लिगामायापलजमावाश्विासाच्यामाधारकालीमाजामधासमnutes mmaNISTRATH दवणगालमत्रलालीममीतनरोगमा सयाममनोगामामुलायमशिला संगों RAI MandalaaloKजीवनयभावगाहावामानारनकालिका माविमापयामिामलमा ENTIRTHEATRAcaiofuin n aria JanaauAVRATREST IneinsamirmatihasinI RONARmislele n imarafarikathamaremacanadaeantanAmARAafetPutra STMAITINCT E RTAINMurude-AwadhewaaamewsAg romarwarRARKantrwa stheartmanacond Ramana ntrah i mitehimireoneONARISHARMitamfourt.immperialecomasarangalmemanTARA जिनशतक पंचपाटी, संशोधनात्मक चिह्नों से युक्त, वि.सं. १०वी सदी जमकरासनसंपनिहाय माक्षसरियामचरिणतिगकामविसयविसदश्यम द्यावारयदारदि Hanumanाममा M ORRulumionldNANE तिविमणिया धमनासंसयाविणासंबं पारातिपरसदाराव मध्यविश्यामजसंन्नास पणि काम मा प्रांतो एकालाAAR भरमासमरा का माहमारिया यसमा योगदाय महिसा भिगाय मारितिपकमेकमयुयगणायामराय यस्ता रिमादिनसम विजयी - IASNET मागसमय-प्रमाणाधीन nufgmaiविषयमा र विकशि मिशामिवियन सिंमासमयचम्मिगणयनितिधारमाधम्मयुगास्थायबसाश imgvanks anाधी- जसल- RAmmake avोगोte माविमना- मितिsh रिaumनायंचरिना कसमता सच्यायपाति यसकिनिरागलावाविवाहतिरागवाहा लिका- SAE- madars. AMDHONAur Connoiss एकमा परins उवद्यालोया उदाहास्यासविदलाएंव परलोय एम्झदाराविरयातादवकश्यस्स्सदा प्रश्नव्याकरण शब्दार्थ अनुसार चित्रों से युक्त, वि.सं. १७वी सदी For Private And Personal use only Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir प्रकाशकीय जिनेश्वरदेव चरम तीर्थंकर श्री महावीरस्वामी, योगनिष्ठ आचार्यदेव श्री बुद्धिसागरसूरीश्वरजी तथा परम पूज्य गच्छाधिपति आचार्य श्री कैलाससागरसूरीश्वरजी की दिव्यकृपा से परम पूज्य आचार्यदेव श्री कल्याणसागरसूरीश्वरजी के शिष्यप्रवर राष्ट्रसंत आचार्यदेव श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी की प्रेरणा एवं कुशल निर्देशन में आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर के देवर्द्धिगणि क्षमाश्रमण हस्तप्रत भाण्डागारस्थ हस्तलिखित जैन ग्रंथों की सूची के प्रथम भाग का यह प्रकाशन चतुर्विध संघ के करकमलों में समर्पित करते हुए श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र, कोबातीर्थ अपार हर्ष की अनुभूति कर रहा है. विश्व में बहुत से ग्रंथालय तथा ज्ञानभंडार हैं, किन्तु प्राचीन परम्पराओं की रक्षा करते हुए ज्ञानतीर्थरूप आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर में हस्तलिखित ग्रंथों का जो बेशुमार दुर्लभ खजाना पूज्य गुरुदेवश्री द्वारा भारतभर के कोने-कोने से एकत्र किया गया है वह भूमंडल पर अब अपना उल्लेखनीय स्थान प्राप्त कर चुका है. बहुत थोड़े से वर्षों अर्थात मात्र एक दशक के अन्दर इस ज्ञानतीर्थ की जो भी उपलब्धियाँ हुई हैं उनका वर्णन करना हमारे बस की बात नहीं है. हमारे लिए यह अत्यंत सौभाग्य एवं गौरव का विषय है कि पूज्य गुरुदेवश्री की प्रेरणा से भारतभर के अनेक श्रीसंघों, संस्थाओं एवं महानुभावों ने इस संस्था पर अटूट विश्वास रखकर अपने पास सैकड़ों वर्षों से संगृहीत अपनी प्राण-प्रिय विरासत को सुरक्षित करने व उसके श्रेष्ठतम उपयोग हेतु हमें सौंपा है. हमारा यह पूरा व भरसक प्रयास रहा है कि अनेक कठिन अवरोधों के बावजूद समाज द्वारा हम पर किए गए विश्वास को सार्थक व मूर्तिमंत करें. इस प्रकाशन कार्य में कम्प्यूटर आधारित तथा संस्था में ही विकसित किये गये विशेष प्रोग्राम के अंदर प्रविष्ट हस्तप्रतों की विस्तृत सूचनाओं के आधार पर चुनी हुई सूचनाओं को ही यहाँ पर प्रकाशित किया जा रहा है. समग्र सूची और भी अधिक विस्तार से ज्ञानतीर्थ के कम्प्यूटरों पर उपलब्ध है, जिनका आप कभी भी उपयोग कर सकते हैं. समग्र सूचनाओं का प्रकाशन संस्था के लिए आर्थिक दृष्टि से भी सम्भव नहीं था. हस्तप्रतों के संरक्षण, विभागीकरण, सूचीकरण तथा रखरखाव के कार्य व मार्गदर्शन में पूज्य आचार्यदेव के सभी शिष्यों-प्रशिष्यों का विशेष योगदान रहा है. इन साधु-भगवंतों के परिश्रम एवं सूझबूझ के बिना यह कार्य अतिदुष्कर था ऐसा कहने में संकोच नहीं होता. मुनिप्रवर श्री निर्वाणसागरजी ने हस्तप्रतों की प्रथम कच्ची सूची एवं बाद में पक्की सूची हेतु एक लाख से ज्यादा फॉर्म भरने का अहर्निश (अक्सर दिन में १८ से ज्यादा घंटों तक) वर्षों-वर्ष भगीरथ परिश्रम किया है. इतना ही नहीं प्रतों को प्रथम व्यवस्थित कर उन पर रेपर सेट करवाना, उनके पन्ने गिनना आदि कार्यों से लगाकर हर तरह के कार्य किए हैं. मुनिश्री का यह योगदान हस्तप्रत संरक्षण एवं सूचीकरण के क्षेत्र में एक मिसालरूप है. सूचीकरण हेतु कम्प्यूटर आधारित सूचना पद्धति विकसित करने में मुनिराज श्री अजयसागरजी ने अपनी साधु जीवन की मर्यादा में रहते हुए अनमोल समय दिया है. पूज्य पंन्यासप्रवर श्री देवेन्द्रसागरजी तथा विशेष तौर पर पू. मुनिराज श्री नयपद्मसागरजी का अनेक तरह से उल्लेखनीय योगदान रहा हैं. पू. पंन्यासप्रवर श्री अमृतसागरजी, पंन्यासप्रवर श्री अरूणोदयसागरजी, पंन्यासप्रवर श्री विनयसागरजी, गणिवर्य श्री अरविंदसागरजी, मुनिराज श्री महेन्द्रसागरजी तथा मुनिराज श्री प्रशान्तसागरजी ने भी अपना अवसरोचित योगदान दिया हैं. साथ ही पूज्य श्री के शिष्य-प्रशिष्य स्व. उपाध्याय श्री धरणेन्द्रसागरजी, आचार्यप्रवर श्री वर्धमानसागरसूरिजी, गणिवर्य श्री विवेकसागरजी, मुनिराज श्री विमलसागरजी, पद्मरत्नसागरजी, अमरपद्मसागरजी, रविपद्मसागरजी आदि सभी पूज्यवरों का अपनी-अपनी तरह से सहयोग रहा है. गणिवर्य श्री ज्ञानसागरजी के शिष्य मुनिप्रवर श्री हेमचन्द्रसागरजी का भी अपना सहयोग रहा है. श्रीसंघ एवं श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र द्वारा पूज्यवरों का यह उपकार कभी नहीं भूलाया जा सकेगा. एतदर्थ किसी भी प्रकार से कृतज्ञता प्रदर्शित करने के अतिरिक्त गुरु-दक्षिणा देना हमारे लिए संभव नहीं है. आप सभी पूज्यों की अमीदृष्टि हमेशा इसी प्रकार इस तीर्थ हेतु बनी रहे यही मंगल कामना है. प्रखर श्रुतोपासक व संघ हितचिंतक विशिष्ट कोटी के त्यागी स्व. जौहरीमलजी पारख (सेवा मंदिर, रावटी, जोधपुर) ने पूज्यश्री के सूचन से कई बार यहाँ पधारकर सूचीकरण का यह कार्य प्रारंभ करवाया था व प्रारंभ की कुछ प्रतों का कार्य स्वयं ने भी किया था व बाद में भी अपने अनुभवों का लेन-देन जारी रखा था. सूचीकरण का कार्य उनके द्वारा तैयार किये गये पैमाने को ही जरुरी फेरफार के साथ अपनाकर किया गया है. संस्था के प्रति उनकी अपार सहयोग की भावना थी. हम For Private And Personal Use Only Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org उनके लिए श्रद्धा सुमन सहित आभार व्यक्त करते हैं. सूचिकरण अवधारणा को विकसित करने में तथा कम्प्यूटर प्रोग्रामिंग के कार्य में ग्रंथालय विज्ञान की प्रचलित प्रणालियों के स्थान पर महत्तम उपयोगिता व सुझबूझ का उपयोग करने में तथा समय-समय पर सहयोगी बनने में यहाँ के पंडितजनों तथा प्रोग्रामरों ने अपनी शक्तियों का यथासंभव महत्तम उपयोग किया है. जिसके लिए संस्था सभी को हार्दिक धन्यवाद देती है. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तप्रत सूची के इस भाग को प्रस्तुत रूप देने में संस्था के सभी विभागों व खासकर ज्ञानमंदिर के श्री रसिकभाई शाह आदि सभी कार्यकर्ताओं का प्रशंसनीय सहयोग प्राप्त हुआ है जिसके लिए वे धन्यवाद के पात्र हैं. सभी के मिले जुले समर्पित सहयोग के बिना यह विशालकाय कार्य संभव नहीं था. संस्था में हस्तप्रत सूचीकरण व संलग्न अन्य विविध प्रवृत्तियों हेतु भारत व विदेश के श्रीसंघों, संस्थाओं व महानुभावों का आर्थिक सहयोग यदि नहीं मिल पाता तो यह कार्य आगे बढ़ाना मुश्किल था. समस्त चतुर्विध संघ तथा संस्था के सभी शुभेच्छुकों को इस अवसर पर धन्यवाद दिया जाता है. कैलास श्रुतसागर ग्रंथसूची के इस प्रथम भाग के प्रकाशन में वित्तीय सहयोग प्रदान करने वाले श्री रमेशभाई चौथमलजी जैन नोवी निवासी के प्रति संस्था कृतज्ञता व्यक्त करती हैं. साथ ही निम्नोक्त संस्था एवं महानुभावों का भी विशिष्ट सहयोग संस्था को सूचीकरण के इस कार्य हेतु मिला है : जैन सेन्टर ओफ नॉर्दर्न केलिफोर्निया- अमेरिका, शेठ आणंदजी कल्याणजी धार्मिक धर्मादा ट्रस्ट, पालडी - अहमदाबाद, श्री श्वेतांबर मूर्तिपूजक जैन बोर्डिंग अहमदाबाद, श्री शंभुकुमारजी कासलीवाल- मुंबई, शेठ मोतीशा जैन रिलिजीयस एन्ड चेरीटेबल ट्रस्ट भायखला - मुंबई, श्री सांताक्रुज तपागच्छ जैन संघ -मुंबई, फेडरेशन ओफ जैन एसोसीएसन इन नॉर्थ अमेरीका, "जैना" हस्ते डॉ. प्रेम गडा-अमेरीका, एम. जे. फाउन्डेशन - मुंबई, श्री कल्याण पार्श्वनाथ जैन संघ, चौपाटी - मुंबई आदि. आप सभी के उदार सहयोग हेतु हम आभारी हैं. अपेक्षा रखते हैं कि भविष्य में भी संस्था की विविध प्रवृत्तियों में आपका हार्दिक सहयोग मिलता रहेगा. किसी भी प्रकार के सरकारी या इसी तरह के अन्य अनुदान को न लेकर मात्र समाज ही की ओर से मिलनेवाले आर्थिक आदि सहयोग के द्वारा ही कार्य करने की सुविचारित नीति के तहत कार्य करने के कारण यहाँ सम्पन्न हो रहे कार्यों की अपनी मर्यादाएँ हैं तो अपना एक गौरव एवं तोष भी ! श्रीसंघ के इस कार्य में देव - गुरु-धर्म की कृपा से हम कितने सफल हुए हैं, इसके लिए विशिष्ट गुरु भगवंतों एवं विश्वभर के विद्वानों ने यहाँ आकर यहाँ की व्यवस्था व उपलब्ध सामग्रियों को देखकर जो उद्गार व्यक्त किये हैं, उनका अवलोकन करना होगा. इससे भी ज्यादा तो आप यहाँ पधारिये और स्वयं यहाँ के कार्यों को देखिये. संस्था की विकास यात्रा में आप किस प्रकार से सहयोगी बन सकते हैं इन संभावनाओं को तलाशिए. वह आपके उत्कर्ष के लिए अनुपम अवसर होगा. यहाँ संस्था में उपलब्ध संसाधनों, सूझ, विशेषज्ञता एवं सज्जता के आधार पर हो सकने की संभावना वाले कार्यों की सूची बृहदाकार है. अब इन संभावनाओं को साकार करना यह श्रीसंघ, समाज पर निर्भर है कि उनकी ओर से यहाँ तन-मन-धन से सहकार कितना मिल पाता है. आज तक सभी का यह सहकार संस्था को निरंतर मिलता रहा है व और बेहतरीन तरीके से आगे भी मिलना जारी रहेगा, ऐसा हमारा विश्वास है. इसी श्रद्धा के आधार पर यह ज्ञान-यज्ञ हम जारी रखे हुए हैं. हमें विश्वास है कि श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र द्वारा आचार्य श्री कैलाससागरसूरि स्मृति ग्रंथसूची के इस प्रथम रत्न का समाज में स्वागत किया जाएगा. अंत में श्री जिनशासन देव से यही प्रार्थना करते हैं कि श्रीसंघ व समाज द्वारा हमारी ओर रखी गई आशा और अपेक्षाओं को सही तौर पर पूर्ण करने में हम सदा सक्षम व प्रवृत्त रहें.. 4 ट्रस्टीगण श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र ट्रस्ट कोबा, गांधीनगर For Private And Personal Use Only Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir प्राक्कथन ग्रंथालय में वाचन सामग्री संबंधी सूचनाओं का कम्प्यूटर पर सूचीकरण व हस्तलिखित ग्रंथों की सूची का प्रकाशन आर्यावर्त आदिकाल से ही अपनी अनेकविध विशेषताओं के कारण भूमंडल पर सुप्रसिद्ध रहा है. इन अनेकविध विशेषताओं का एक महत्वपूर्ण अंग है, श्रुत संपदा. श्रुत यानी गुरु परम्परा से सुनकर प्राप्त किया हुआ ज्ञान, जो आगे चलकर लिपिबद्ध हुआ और इसे ही हम पांडुलिपि, हस्तलिखित ग्रंथ, हस्तप्रत, manuscript आदि नामों से जानते हैं. इसी की संपदा यानी निधि. आर्षद्रष्टा महान ऋषि-मुनियों के तप, ज्ञान और उपदेशों के संग्रह द्वारा हराभरा यह देश संसार में श्रेष्ठ है. हमारे पूर्वजों ने अपने जीवन को श्रुतज्ञान की उपासना से कितना सुवासित किया था इसका परिचय आज भी हमारे पास परम्परा से प्राप्त जो श्रुत धरोहर है, उससे भली-भांति हो जाता है. प्राचीन समय में इस देश में धर्म, नीति, राजशासन व सामाजिक व्यवस्थापन आदि के संयोजन और नीति-नियमों के निर्धारण करने में तीर्थंकरों, ऋषि-मुनियों व जैन श्रमणों का अविस्मरणीय योगदान रहा है. आगम, वेद, त्रिपिटक, उपनिषद, इतिहास, पुराण आदि के अलावा छोटी-मोटी अनेक रचनाएँ भी होती रहीं, जिनके आधार पर एक प्रकार से कहा जाय तो आर्यावर्त की धार्मिक, राजनीतिक व सामाजिक व्यवस्था आज पर्यन्त अक्षुण्ण चली आ रही है. इसी कारण भारत युगों-युगों से एक धर्मप्रधान देश रहा है. यहाँ की सभी प्रकार की गतिविधियों का केन्द्रबिन्दु धर्म ही रहा है. प्रागैतिहासिक समय में धर्म, नीति-नियमादि सभी व्यवहार मौखिक ही थे, परंतु अवसर्पिणी काल के प्रभाव से धीरे-धीरे परिवर्तन आया और लेखन कला का प्रारंभ हुआ. संयोगवश सभी प्रकार के धार्मिक सिद्धान्त तथा कर्मकाण्ड, दर्शन, व्याकरण, ज्योतिष, आयुर्वेद, मन्त्र-तन्त्र, राजनीति, इतिहास, पुराण व आचारादि संहिताएँ लिपिबद्ध होने लगीं. जैन आगम, सैद्धान्तिक प्रकरण, न्याय, सामाचारी इत्यादि विशालकाय साहित्य भी इसी तरह लिपिबद्ध होने लगा. समय के साथ-साथ लेखन तकनीक व लेखन सामग्री में भी परिवर्तन हुआ. __ भारतीय धर्म दर्शनों का अपने-अपने सिद्धान्त प्रतिपादन करनेवाला एक हजार वर्ष से भी पहले लेखबद्ध किया गया और परवर्ती सदियों में भी निरंतर लिखा गया सुविशाल साहित्य इस देश की अद्वितीय पहचान बना हुआ है. इक्कीसवीं सदी के जमाने में आज भी अनेक महानुभावों द्वारा उसी प्राचीन पद्धति से साहित्य लिपिबद्ध किया जा रहा है. यह अनुलेखन कार्य भी जरूरी है, जिससे आनेवाली पीढ़ी दर पीढ़ी तक श्रुतपरम्परा सुरक्षित रहेगी एवं हमारा कर्तव्य निर्वहन भी होगा. भारतवर्ष पर सदियों से विदेशी आक्रमण, राजनीतिक व भौगोलिक कारणों तथा कुदरती आफतों के चलते आध्यात्मिक भूमि के नाम से विश्वविख्यात आर्यावर्त की बेशकीमती लिपिबद्ध ज्ञानसंपदा जो अनुभव के आधार पर गीतार्थ बहुश्रुत वर्ग ने बड़े परिश्रम से रचित व संगृहीत की थी, वह किसी न किसी तरह से नष्ट-विनष्ट होनी प्रारम्भ हो गई. मुस्लिम आक्रमणों तथा ईस्ट इंडिया कंपनी के आगमन के पश्चात रही-सही ज्ञाननिधि के विनाश में तीव्रता आई या तो विदेशों में स्थानांतरित कर दी गई. अज्ञानवश वर्तमान में भी यह जघन्य प्रवृत्ति जारी है. हमारे देश के लिए यह दुर्भाग्य की बात है. ऐसी विषम परिस्थिति में भी कोबा ज्ञानतीर्थ में परम पूज्य आचार्यदेव श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी के अविरत सत्प्रयासों एवं श्रीसंघ के उदार सहयोग से विशिष्ट रूप से संगृहित जैन धर्म एवं भारतीय संस्कृति की विरासतरूप प्राचीन हस्तप्रतों के विशालकाय सुंदर संग्रह का व्यवस्थापन वस्तुतः एक बहुत बड़ा चुनौतीपूर्ण कार्य था. लेकिन कम्प्यूटर की सहायता से परम पूज्य आचार्य भगवंत के विद्वान सुयोग्य श्रुतभक्त शिष्यों तथा संस्था के कार्यकर्ताओं की कार्य समन्वय की दक्षता ने इस कार्य को सुकर बना दिया है. सर्वप्रथम अस्त-व्यस्त अवस्था में प्राप्त इन प्रतों को व्यवस्थित करने का कार्य किया गया है. जिसमें बड़ी संख्या में मानो रद्दी की तरह अस्त-व्यस्त और बिखरे हुए पन्नों का मिलान कर हजारों की तादाद में अपूर्ण प्रतों को परिपूर्ण करने का सफल प्रयास किया गया है. अधिकांश उत्तम प्रतों को अलग छाँट लिया गया है एवं और भी बहुसंख्यक ऐसे ही अन्य ग्रंथों पर यह जटिल प्रक्रिया क्रमशः जारी है. प्रतों पर खादीभंडार के मजबूत कागज का आवेष्टन लगाना, नाप के अनुसार वर्गीकरण करना, १-४ व ५ से ज्यादा पत्रों For Private And Personal Use Only Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir वाले ग्रंथों को अलग छाँटकर विषय व भाषानुसार विभागीकरण करना- यह सब हो जाने के बाद सूचीकरण का कार्य प्रारंभ होता है. इस हेतु हर प्रत का सांगोपांग अध्ययन कर अपेक्षित सूचनाओं का संकलन व वर्गीकरण होता है. पूज्य आचार्यश्री के शिष्य शांतमूर्ति पूज्य उपाध्यायप्रवर श्री धरणेन्द्रसागरजी के कर्मनिष्ठ शिष्य प्रतिक्रमणसूत्रों का सर्व प्रथम रोमन लिप्यंतरण व हिंदी अंग्रेजी अर्थ सहित संपादित करनेवाले पूज्य तपस्वी मुनिराज श्री निर्वाणसागरजी ने ६०,००० से ज्यादा प्रतों हेतु १,००,००० से ज्यादा प्रपत्र बरसों तक अहर्निश परिश्रम करके भर रखें हैं. इन्हें यथानियम कम्प्यूटर में प्रविष्ट करके इन सूचनाओं का संपादन किया जाता है. इस कार्य के दौरान बीच-बीच में आद्य-अंतभाग हीन ऐसी अपूर्ण प्रतें, अशुद्ध लिखी प्रतें, बड़ी मुश्किली से थोड़ी बहुत ही पढ़ी जा सकें ऐसी अपठनीय लिपिवाली या जीर्ण दशावाली प्रतें, सूचीकर्ता व संपादकों के लिए अल्प परिचित ऐसी मारुगूर्जर कुल की देशी बोली की कृतियोंवाली प्रतें, प्रतों में रही कृति की सूचनाओ में परस्पर विरोधाभास... जैसी अनेकविध जटिलता युक्त हस्तप्रतें हाथ में आती रहती हैं, जिनका निराकरण प्रत के गहराई से अध्ययन के द्वारा एवं अनेकविध संदर्भो को देखने से होता है. कई बार एक ही प्रत में १०० से भी ज्यादा पेटा कृतियाँ लिखी मिलती हैं, जिनकी सारी सूचनाएँ कम्प्यूटर में सूचीकृत करने में दो-दो दिन तक लग जाते हैं. इन सब बाधाओं को पारस्परिक सहयोग से पार करते हुए सूचीकरण का कार्य जारी रहता है. इस कार्य दौरान उल्लेखनीय व महत्वपूर्ण प्रतें भी प्राप्त होती हैं. कुछ एक उदाहरण निम्नलिखित हैं. १. सोमगणि के शिष्य हर्षोदयमुनि द्वारा रचित व स्वहस्ताक्षर से लिखित समवायांगसूत्र अवचूरि. प्रति. प्रत नं. ५२५२ प्रतिलेखन वर्ष - १६९९. २. गद्यबद्ध विस्तृत प्रति लेखन पुष्पिका हेतु देखें प्रत नं. ३७१५ प्रतिलेखन वर्ष १८०२. ३. पद्यबद्ध विस्तृत प्रतिलेखन पुष्पिका जिसमें कि उपकेशगच्छीय आचार्य श्री जिनसागरसूरि के उपदेश से प्रत लिखवाई जाने का उल्लेख है. यह प्रत संशोधित है. प्रत नं. ७१५, प्रतिलेखन वर्ष - १५०६.. ४. चौबीस श्लोकमय पद्यबद्ध प्रतिलेखन पुष्पिका. प्रत नं. १५२, प्रतिलेखन वर्ष - १७वी सदी. ५. एक ही प्रत में क्रमशः ग्रंथमाला की भाँति भिन्न-भिन्न कृतियों को पृथक्-पृथक् पत्र क्रम दिया हुआ मिलता है. सुंदर अक्षरों से तथा शुद्ध पाठों से युक्त प्रतें भी मिलती है. यथा- प्रत नं. ८८३, प्रतिलेखन वर्ष - १४५३ में आचार्य श्री देवसुन्दरसूरि के उपदेश से लिखी गई पञ्चाशक, पञ्चसूत्र आदि की प्रत. ६. खरतरगच्छीय आचार्यश्री जिनचन्द्रसूरि के शिष्य उपा० समयराज रचित जैनधर्ममञ्जरी प्रत जो कि इनके ही शिष्य लाडन द्वारा लिखी गई है. प्रत नं. ९७० प्रतिलेखन वर्ष - १६६४ यह प्रत भीमजी रावल के राज्यकाल में लिखी गई. ७. प्रतिलेखन पुष्पिकान्तर्गत ग्यासदीन (गयासुद्दीन - मुगलशासक) के राज्यकाल का उल्लेख है. प्रत नं. १९४२ प्रतिलेखन संवत-१५२९ इस तरह की अनेकविध महत्वपूर्ण विशिष्ट प्रतें भी मिलती रहती हैं. बीच बीच में प्रायः अप्रकाशित कृतिओं का भी पता लगता है. इनमें से कुछ एक की सूची पृष्ठ ३१-३२ पर दी है. साथ ही प्रत की विशेषता को बतलाने वाली २२ जितनी लाक्षणिकताओं एवं अनेक उपलाक्षणिकताओं व प्रत की दशा को बतलानेवाली २० जितनी लाक्षणिकताओं एवं अनेक उपलाक्षणिकताओं के संकेतों की यथायोग्य प्रविष्टि कर दी जाती है. इन लाक्षणिकताओं के बहुविध उपयोग है. यथा इनके आधार से भविष्य में कम्प्यूटर प्रोग्राम द्वारा अनेक अपूर्ण प्रतों को परस्पर मिलाकर संपूर्ण किया जा सकेगा. ये लाक्षणिकताएँ संशोधकों के लिए प्रत चयन में भी बड़ी मददगार बनती है. सूचीकरण के बाद सूचीगत सूचनाओं को व्यापक नजरिए से संपादित किया जाता है. सूचीकरण पश्चात के कार्य जैसे पुनरुद्धार, जिरॉक्स, स्केनिंग, फोटोग्राफी, माइक्रोफिल्म एवं डिजिटल एडिटींग आदि कार्य भी आयोजित किए गये हैं. ग्रन्थराशि के एक-एक ग्रंथ, एक-एक पन्ने तथा इनके टुकड़ें भी हमारी अमूल्य धरोहर हैं. उसका जतन करना भी उतना ही महत्वपूर्ण है. इसलिए इनका संरक्षण तथा फ्यूमिगेशन आदि प्राचीन अर्वाचीन दोनों पद्धतियों से कुशल कार्यकरों के मार्गदर्शन में हो रहा है. उत्तम सागवान की लकड़ी के बने एवं खास प्रकार से स्टील द्वारा संरक्षित कबाटों में लाल मोटे कपड़े में इन ग्रंथों को आवेष्टित कर के रखने का कार्य भी प्रगति पर है. जैन साहित्य एवं साहित्यकार कोश परियोजना के अन्तर्गत शक्यतम सभी जैन ग्रंथों व उनमें अन्तर्निहित कृतियों का For Private And Personal Use Only Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir कम्प्यूटर पर सूचीकरण यहाँ का एक बहुत बड़ा महत्वाकांक्षी कार्य है. इस कार्य को २१ कम्प्यूटरों पर कम्प्यूटर के उपयोग के लिए विशेष रूप से प्रशिक्षित किए गए आठ पण्डितों तथा अन्य अनेक सह कार्यकरों के सहयोग से किया जा रहा है. __इस परियोजना की सब से बड़ी विशेषता है, ग्रंथों की सूचना पद्धति. अन्य सभी ग्रन्थालयों में अपनायी गई मुख्यतः प्रकाशन और पुस्तक इन दो स्तरों पर ही आधारित द्विस्तरीय पद्धति के स्थान पर यहाँ बहुस्तरीय सूचना पद्धति विकसित की गई है. जिसे कृति, विद्वान, प्रत व प्रकाशन इत्यादि भागों में विभक्त कर बहुआयामी बनाया गया है. ग्रन्थालय सूचना पद्धति में कृति की विभावना स्वतः में अनूठी एवं बहूपयोगी सिद्ध हुई है. कृति को हस्तलिखित प्रतों तथा प्रकाशनों के साथ संयोजित किया गया है, जिससे कोई भी कृति चाहे छोटी से छोटी अर्थात् १ श्लोक या गाथा वाली भी क्यों न हो उससे संबन्धित सभी प्रतों व सभी मुद्रित प्रकाशनों की सूचनाएँ एक साथ मिल जाती हैं. इसी तरह व्यक्ति - विद्वान का भी कृति सर्जक, हस्तप्रत प्रतिलेखक आदि व प्रकाशन, सामयिक के संपादक, संकलनकार, संशोधक, संयोजक, प्रेरक एवं प्राचीन मूर्ति आदि के प्रतिष्ठापक, भरवानेवाले इत्यादि आयामों में एकीकृत परिचय रखा गया है. इस प्रकार प्रत, पुस्तक, कृति, प्रकाशन, सामयिक व एक अंश में संग्रहालयगत पुरासामग्री इन सभी का अपने-अपने स्थान पर महत्व कायम रखा गया है, जिसके अन्तर्गत सभी प्रकार की विशद् सूचनाएँ कम्प्यूटर पर उपलब्ध हो जाती हैं. सचीकरण के कार्य हेत ग्रन्थालय विज्ञान की किसी प्रस्थापित प्रणाली के अनुसार नहीं वरन अनुभवों के आधार पर भारतीय साहित्य की लाक्षणिकताओं के अनुरूप बहुजनोपयोगी तर्कसंगत सूचीकरण प्रणाली विकसित की गई है एवं तदनुरूप विशेष कम्प्यूटर प्रोग्राम तैयार किया गया है, जिसके अन्तर्गत उपरोक्त सभी प्रकार की सूक्ष्मतम जानकारी मात्र यहीं पर पहली बार कम्प्यूटर में प्रविष्ट की जा रही है. सूचीकरण व संपादन के दौरान स्पष्ट हुए नियमों और तर्कों - Logics के आधार से कम्प्यूटर प्रोग्राम को और अधिक कार्यक्षम बनाने का कार्य भी साथ ही चलता रहता है. जिससे भविष्य में सूचनाओं की प्रविष्टि सरल बन जाय व क्षतियुक्त सूचनाएँ कम्प्यूटर या तो स्वीकारे ही नहीं या संभवित भूल की ओर ध्यान आकृष्ट कर दें. बरसों के इन सब अनुभवों व सज्जता के आधार पर सूचीकरण संबंधी यह कम्प्यूटर प्रोग्राम कम्प्यूटर विज्ञान में विकसित नवीनतम तकनीकों का महत्तम उपयोग करते हुए संपूर्ण नए सिरे से पुनः बनाया जा रहा है कि जिससे इन सूचनाओं को महत्तम तर्कसंगत एवं उपयोगी तरीके से संगृहीत किया जा सकें, सूचनाओं की प्रविष्टि ज्यादा सरलता व तीव्रता से शुद्धिपूर्वक हो सकें व सूचनाओं की प्राप्ति भी व्यापक फलक पर एवं कहीं ज्यादा सटीक व आसान बनें. अभी तक विगत एक दशक में अनेकविध अन्य प्रवृत्तियों के साथ-साथ लगभग ८४,००० हस्तलिखित प्रतियों तथा १,०८,७३० से ज्यादा मुद्रित ग्रंथों की सूचनाएँ विविध स्तरों पर कम्प्यूटरीकृत की जा चुकी हैं. इन सूचनाओं के संपादित हो जाने पर इन्हें महत्तम शुद्ध रूप से प्रकाशित स्वरूप में उपलब्ध करने की योजना है. इसी बहुजनोपयोगी भावना के अन्तर्गत हस्तप्रतों के विस्तृत सूची प्रकाशन परियोजना के तहत प्रथम भाग का प्रकाशन आपके कर कमलों में सादर प्रस्तुत है. हस्तप्रत सूची प्रकाशन परियोजना की संभावित रूपरेखा पृष्ठ २२ पर दी गई हैं. इस सूची के निर्माण में बहुत सी विभावनाएँ व तदनुरूप नियमावली सर्वप्रथम उपस्थित की गई हैं तो कुछ एक में परिष्कार, परिवर्धन भी किया गया है. कुछ एक खास अर्थों में रूढ़ की गई है. यह सब आवश्यकता व उपयोगिता ज्यूं-ज्यूं प्रसंगानुसार ध्यान में आती गई त्यूं-त्यूं क्रमशः अनेक उथल-पाथलों के साथ हुआ है. इनमें से 'कृति', 'कृति आदि के नाम', 'पेटा-कृति' आदि मुख्य विभावनाओं का परिचय इस प्रस्तावना के बाद के पृष्ठों में इस सूचीपत्र के योग्य विस्तार के साथ दिया गया है. पूर्व की विभावनाओं में आगे चल कर परिवर्तन/परिष्कार भी हुआ है. इन सबकी असर जिन प्रतों की सूची पहले से ही बन चुकी हों उन पर भी पड़ती थी. बाद की प्रतों की सूची में तो यह सभी सुधार अपेक्षाकृत अपेक्षित रूप से आया ही है परंतु पूर्वनिर्मित सूची में प्रयासों के बावजूद भी क्षतियाँ रह गई हों यह संभव है- क्षमस्व! श्रुतभक्ति का यह सब कार्य करने के बाद सबसे ज्यादा प्रसन्नता व सार्थकता की अनुभूति तब होती है जब गुणवान सक्षम गुरू भगवंतों आदि को उनके बरसों से अपेक्षित ग्रंथ यहाँ से सहज ही मिल जाते हैं और उनके अंतस्थल के हर्षोद्गार भरे आशीर्वचन मिलते हैं. वह घड़ी संस्था व संस्था के अधिष्ठाताओं एवं कार्यकर्ताओं के लिए सबसे धन्य होती है. For Private And Personal Use Only Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तप्रतों की इस दुर्लभ विरासत में मात्र धर्मों, तत्वज्ञान या साहित्य के महत्व की ही प्रतें नहीं है अपितु आयुर्वेद, ज्योतिष, कला, शिल्प स्थापत्य व विविध साधना पद्धतियों का भी गहन ज्ञान इसमें छिपा पड़ा है. हस्तप्रतों के अंत में रही प्रतिलेखन पुष्पिका एवं कृतियों के अंत में रही रचना प्रशस्तियों में भारत के इतिहास की महत्वपूर्ण घटनाओं आदि के संबंध में ठोस साक्ष्य भरे पड़े हैं. इस तरह यह सूची भारत के प्राचीन गौरव व धार्मिक, सांस्कृतिक धरोहर को उजागर करने में अनुपेक्षणीय आधार का कार्य करेगी. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir इस सूचीपत्र में हस्तप्रत, कृति व विद्वान / व्यक्ति संबंधी जितनी भी सूचनाएँ समाविष्ट की गई है उन सब का विस्तृत ब्योरा, टाइप सेटिंग संबंधी सुचनाएँ पृष्ठ ३३ से दी गई हैं एवं प्रयुक्त संकेतों का स्पष्टीकरण पृष्ठ ३९ से दिया गया है. आभार : समग्र कार्य दौरान पूज्य आचार्यदेव श्रीमत् पद्मसागरसूरीश्वरजी की ओर से मिले प्रेरणा व प्रोत्साहन ने इस जटिल कार्य को करने में हमें सदा उत्साहित रखा है. साथ ही पूज्यश्री के शिष्य - प्रशिष्य की ओर से भी हमें सदा सहयोग व मार्गदर्शन मिलता रहा है हम पूज्यश्री एवं उनके शिष्य मंडल के चरणों में श्रद्धावनत हैं. 4 हस्तप्रतों को पढ़ने तथा लिपियों का पंडितजनों को सम्यक् अभ्यास कराने तथा समय-समय पर सलाह देने हेतु पूज्य पुण्यविजयजी की वरद कृपा प्राप्त वयोवृद्ध लिपि व पाण्डुलिपि विशेषज्ञ श्री लक्ष्मणभाई हीरालाल भोजक के प्रति हम आभार व्यक्त करना चाहते हैं. मुद्रित ग्रंथों के आधार पर कृति संपादन हेतु श्री रामप्रकाश जगदीश झा, श्री मनीष रमणलाल पारेख तथा प्रतों की विविध प्रकार की प्राथमिक सूचनाएँ कम्प्यूटर पर प्रविष्ट करने एवं प्रत विभाग में विविध प्रकार से सहयोग करने हेतु श्री संजय सोमाभाई गुर्जर तथा ग्रंथालय विभाग के अन्य सभी सहकार्यकरों को त्वरा से संदर्भ पुस्तकें तथा प्रतें उपलब्ध कराने हेतु हार्दिक धन्यवाद. जीर्ण, चिपकी व फफुंदग्रस्त आदि हस्तप्रतों के पुनरुद्धार एवं रख-रखाव के कार्यों में सहयोगी बननेवाले सम्राट संप्रति संग्रहालय के श्री आसीत वस्तुपालभाई शाह को भी हम धन्यवाद ज्ञापन करते हैं. इस अवसर पर संस्था के भूतपूर्व कार्यकर्तागण पंडित श्री दिलीपभाई वाडीलाल शाह, श्री जिगरभाई कीर्तिभाई धामी, प्रोग्रामर श्री प्रितेनभाई कुमुदभाई शाह व श्री जिज्ञेशभाई सुरेनभाई शाह सहित प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से जुड़े हुए सभी महानुभावों को उनके द्वारा किए गये कार्यों तथा प्रदत्त सहयोग हेतु धन्यवाद दिया जाता है. हस्तप्रतों के सूचीकरण परियोजना के व्यवस्थापन में समय-समय पर अपना सक्रिय सहयोग तथा मार्गदर्शन देने हेतु श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र के ट्रस्टियों में से विशेष रूप से सक्रिय संस्था के प्रमुख श्री सोहनलालजी लालचंदजी चौधरी, सुश्रावक श्री शांतिकाका (शांतिलाल मोहनलाल शाह), श्री हेमन्तभाई चीमनलाल ब्रोकर, श्री चांदमलजी पारसमलजी गोलिया, श्री भीखुभाई चीमनलाल चोकसी, श्री किरीटभाई कोबावाला, श्री कल्पेशभाई जयन्तीलाल शाह व स्व. उदयनभाई रसिकलाल शाह आदि एवं इस कार्य के अन्य सभी प्रत्यक्ष परोक्ष सहयोगियों व शुभेच्छकों को इस अवसर पर संपादक मंडल हार्दिक आभार व्यक्त करता है. प्रस्तुत सूची में यदि कहीं पर कोई अच्छाईयाँ हैं तो उनका यश इस सूची की मूल संकल्पना के प्रदाता श्राद्धवर्य श्री जौहरीमलजी पारेख एवं जैन सूचियों के पूर्व प्रणेता पूज्य मुनि श्री चतुरविजयजी महाराज ( लीम्बडी सूची), आगम प्रभाकर मुनिप्रवर श्री पुण्यविजयजी महाराज (जेसलमेर आदि के सूचीपत्र), अप्रतिम प्रतिभा के धनी आगम संशोधक पूज्य मुनिप्रवर श्री जम्बूविजयजी महाराज (जेसलमेर, पाटण के नूतन सूचीपत्र), चिमनलाल डाह्याभाई दलाल (बरोडा से प्रकाशित पाटण का पुराना सूचीपत्र), विद्वान श्राद्धवर्य हीरालाल रसिकलाल कापडीया (भाण्डारकर ऑरिएन्टल रिसर्च इन्स्टीट्यूट पूना की जैन हस्तप्रतों के सूचीपत्र) आदि को समर्पित है कि जिनके अनुभवों का लाभ हमें मिल सका है. यदि कहीं पर कमियाँ है तो वे हमारी मर्यादाओं की वजह से हैं. उनकी जिम्मेदारी हमारी हैं. 8 सुचीकरण का यह कार्य पर्याप्त सावधानी पूर्वक किया गया है फिर भी जटिलता एवं अनेक मर्यादाओं के रहते क्वचित भूलें रह भी गई होंगी. इन भूलों के लिए व जिनाज्ञा विरूद्ध किसी भी तरह की प्ररूपणा के लिए हम त्रिविध मिच्छा मि दुक्कडम् देते हैं. विद्वानों से करबद्ध आग्रह है कि इस प्रकाशन में रही भूलों हेतु हमारा ध्यान आकृष्ट करें एवं इसे और बेहतर बनाने हेतु अपने सुझाव अवश्य भेजें, जिससे अगली आवृत्ति व अगले भागों में यथोचित सुधार किए जा सकें. -संपादक मंडल . For Private And Personal Use Only - Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तप्रत : एक परिचय प्राचीन लेखन शैली के दो रूप हैं- प्रथम अभिलेख रूप में और द्वितीय हस्तप्रत रूप में. प्राचीन भारतीय साहित्य को जिस रूप में आज हम प्राप्त करते हैं, उनका आधार हस्तप्रत है. शास्त्र की हस्तलिखित नकल होने के कारण यह हस्तप्रत कहलाई. इसे पाण्डुलिपि भी कहा गया है. मूल प्रति कालक्रम से नष्ट होती जाती थी तथा इसकी कई प्रतियाँ तैयार होती जाती थी. प्रतिलिपि से प्रत शब्द लिया गया ज्ञात होता है. प्राचीन संस्कृति को जानने के लिए हस्तप्रतों का विशिष्ट महत्व है, क्योंकि मात्र पुरातत्वीय साक्ष्यों के आधार पर इतिहास का निर्माण नहीं हो सकता. इतिहास की पुष्टि के लिए साहित्य अनिवार्य आवश्यकता है. प्राचीन काल में ज्ञानभंडारों में हस्तलिखित साहित्य ही होता था. हस्तप्रत लेखन के देश में कई केन्द्र थे. इन केन्द्रों (लेखनस्थलों) के आधार पर अध्ययन करने पर भिन्न-भिन्न वाचना वाली प्रतों के समूह (कुलों) का ज्ञान होता है तथा समीक्षित आवृत्ति के प्रकाशन में इनका बड़ा महत्व होता है. __ हस्तप्रतें मुख्य रूप से ताड़पत्र, कागज, भोजपत्र, अगरपत्र एवं वस्त्र पर लिखी गई हैं. इनका लेखन ॐ नमः सिद्धम्, श्रीवीतरागाय नमः आदि मंगलसूचक शब्दों, भले मिंडी आदि संकेतों से प्रारम्भ कर शुभं भवतु श्रीसंघस्य आदि मंगलसूचक शब्दों, कलश व तद्सूचक 'छ' अक्षर आदि संकेतों से पूर्ण किया जाता है. हस्तप्रत के प्रकार १. आंतरिक प्रकार :- यह हस्तलिखित प्रति के रूपविधान का प्रकार है. इसके अंतर्गत लेखन की पद्धति आती है, जिसे एक पाट (एकपाठ), द्विपाट (द्विपाठ), त्रिपाट (त्रिपाठ), पंचपाट (पंचपाठ) शुड (शूढ), चित्रपुस्तक, सुवर्णाक्षरी, रौप्याक्षरी, सूक्ष्माक्षरी व स्थूलाक्षरी आदि कहते हैं. ग्रंथों के ये भेद कागज पर हस्तप्रत लेखन परम्परा प्रारम्भ होने के बाद विशेष विकसित हुए लगते हैं. इन प्रकारों के आधार पर लहिया (प्रतिलेखक) की रूचि, दक्षता आदि का परिचय होता है. ऐसी प्रतों का बाह्य स्वरूप सादा दिखने के बावजूद अंदर के पत्र देखने पर ही इनकी विशिष्टता का बोध होता है. २. बाह्य प्रकार :- प्राचीन हस्तलिखित प्रतें प्रायः लम्बी, पतली पट्टी के ताड़पत्र पर मिलती हैं. इनके मध्य भाग में एक छिद्र तथा कई बार उचित दूरी पर दो छिद्र मिलते हैं. ताडपत्रों पर स्याही से व कुरेद कर दो प्रकार से प्रतें लिखी मिलती हैं. कुरेदकर लिखने की प्रथा उड़ीसा, आंध्रप्रदेश, तमीलनाडु, केरल व कर्णाटक के प्रदेशों में रही एवं शेष भारत में स्याही से ही लिखने की प्रथा रही. कागज के प्रयोग के प्रारंभ के बाद इन्हीं ताड़पत्रों को आदर्श मानकर कागज की प्रतें भी प्रारंभ में बड़े-बड़े लंबे पत्रों पर लिखी गईं. इन ताडपत्रीय पत्रों के लंबाई-चौड़ाई के आधार पर जैन भाष्यकारों, चूर्णिकारों तथा टीकाकारों ने प्रतों के पांच प्रकार बताये हैं(१) गंडी (२) कच्छपी (३) मुष्टि (४) संपुटफलक (५) छेदपाटी १. गंडी- प्रत की लंबाई और चौड़ाई एक समान हो उसे गंडी कहा जाता है. २. कच्छपी- दोनों किनारों पर सँकरी तथा बीच में फैली हुई कछुए के आकार की प्रत को कच्छपी प्रत कहा जाता है. ३. मुष्टि- जो प्रत मुट्ठी में आ जाय इतनी छोटी हो उसे मुष्टि प्रकार की प्रत कहते हैं. ४. संपुट फलक- लकड़ी की पाटियों पर लिखी प्रत संपुटफलक के नाम से जानी जाती है. ५. छेदपाटी (छिवाडी) - प्राकृत शब्द छिवाडी का संस्कृत रूप छेदपाटी है. इस प्रकार की प्रतों में पत्रों की संख्या कम होने से प्रति की मोटाई कम होती है लेकिन लंबाई-चौड़ाई पर्याप्त प्रमाण में होती है. उपर्युक्त पाँच प्रकारों के अतिरिक्त कागज व वस्त्र पर फरमान की तरह गोल कुंडली प्रकार से लिखे ग्रंथ भी मिलते हैं जिन्हें अंग्रेजी भाषा में scroll कहते हैं. यह २० मीटर जितने लंबे हो सकते हैं किन्तु इसकी चौड़ाई सामान्य-औसत ही होती है. जैन विज्ञप्तिपत्र, महाभारत, श्रीमद्भागवत, जन्मपत्रिका आदि कुंडली आकार (स्क्रोल) में लिखे मिलते हैं. इसी तरह समेट कर अनेक तहों में किए गए लंबे चौड़े कपडे, कागज आदि के पट्ट भी मिलते हैं. सामान्यतः यंत्र, कोष्ठक, आराधना पट्ट एवं अदीद्वीप पट्ट आदि इनमें लिखे होते हैं. इनके अलावा ताम्रपत्रों एवं शिलापट्टों पर भी ग्रंथ लिखे मिलते हैं. हस्तप्रत के पन्ने प्रायः खुले ही होते हैं किन्तु कई बार पत्रों को मध्य में सिलाई कर या बांध कर पुस्तकाकार दो भागों में For Private And Personal Use Only Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir बांट दिया जाता है. ऐसे पत्रों वाली प्रत को गुटका कहा जाता है. ये बही की तरह ऊपर की ओर एवं सामान्य पुस्तक की तरह बगल में खुलने वाले - इस तरह दो प्रकार से बंधे मिलते हैं. मोटे गत्ते के आवरण में बंधे ये गुटके अत्यंत लघुकाय से लगाकर बृहत्काय तक होते हैं. अक्सर इन गुटकों को लपेट कर बांध देने के लिए इनके साथ दोरी भी लगी होती है. ___ चित्रपुस्तक : इस शब्द से पुस्तकों में खींचे गए चित्रों की कल्पना कोई न करे. यहाँ पर 'चित्रपुस्तक' इस नाम से लिखावट की पद्धति में से निष्पन्न चित्र यह अर्थ अभिप्रेत है. कुछ लेखक लिखाई के बीच ऐसी सावधानी के साथ जगह खाली छोड़ देते हैं, जिससे अनेक प्रकार के चौकोर, तिकोन, षट्कोण, छत्र, स्वस्तिक, अग्निशिखा, वज्र, डमरू, गोमूत्रिका आदि आकृति, चित्र तथा लेखक के विवक्षित ग्रन्थनाम, गुरुनाम अथवा चाहे जिस व्यक्ति का नाम या श्लोक-गाथा आदि देखे किंवा पढ़े जा सकते हैं. अतः इस प्रकार के पुस्तक को हमें 'रिक्तलिपिचित्रपुस्तक' इस नाम से पहचानने के लिए मुनि श्री पुण्यविजयजी ने कहा है. इसी प्रकार लेखक लिखाई के बीच में खाली जगह न छोड़कर काली स्याही से अविच्छिन्न लिखी जाती लिखावट के बीच के अमुक-अमुक अक्षर ऐसी सावधानी और खूबी से लाल स्याही से लिखते जिससे उस लिखावट में अनेक चित्राकृतियाँ, नाम अथवा श्लोक आदि देखे-पढे जा सकते हैं. ऐसी चित्रपुस्तकों को 'लिपिचित्रपुस्तक' का नाम दिया गया हैं. इसके अतिरिक्त 'अंकस्थानचित्रपुस्तक' भी चित्रपुस्तक का एक दूसरा प्रकारान्तर है. इसमें पत्रांक के स्थान में विविध प्राणी, वृक्ष, मन्दिर आदि की आकृतियाँ बनाकर उनके बीच पत्रांक लिखे जाते हैं. कुछ प्रतों में मध्य व पार्श्व-फुल्लिकाएँ बड़े ही कलात्मक ढंग से चित्रित व कई बार सोने, चांदी के वरख व अभ्रक से सुशोभित मिलती है. ऐसी प्रतें विक्रमीय १५वी से १७वी सदी की सविशेष मिलती हैं. इसी तरह प्रथम व अंतिम पत्रों पर भी बड़ी ही सुंदर रंगीन रेखाकृतियाँ चित्रित मिलती है जिन्हें चित्रपृष्ठिका के नाम से जाना जाता है. कई प्रतों की पार्श्वरेखाएँ भी बडी कलात्मक बनाई जाती थी. चित्रित प्रतों की अपनी ही एक अलग बृहत्कथा हैं. प्रतों में एक दो से लगाकर बड़ी तादाद में सोने की स्याही व अन्य विविध रंगों से बने बड़े ही सुंदर व सुरेख चित्र मिलते है. आलेख के चारों ओर की खाली जगह में भी विविध सुंदर वेल बुट्टे एवं अन्य कलात्मक चित्र चित्रित मिलते हैं. ___ कालक्रम से लेखन शैली में परिवर्तन देखा जाता है. यथा विक्रम की १४वी-१५वी सदी में प्रत के मध्य में चौकोर फुल्लिका - रिक्त स्थान देखने में आता है जो कि ताडपत्रों में दोरी पिरोने हेतु छोड़ी जाने वाली खाली जगह की विरासत थी. बाद में यही कालक्रम से वापी का आकार धारणकर धीरे धीरे लुप्त होता पाया गया है. शैली की तरह लिपि भी परिवर्तनशील रही है. विक्रम की ११वी सदी के पूर्व और पश्चात की लिपि में काफी भेद पाया जाता है. कहते हैं कि नवांगी टीकाकार श्री अभयदेवसूरि को प्राचीन प्रतों की लिपि को पढ़ने में हुई दिक़्क़तों के कारण जैन लिपिपाटी स्थिर की गई और तब से अत्यल्प परिवर्तन के साथ प्रायः वही पाटी मुद्रणयुग पर्यंत सदियों तक स्थिर रही. मुख्य फर्क पडीमात्रा-पृष्ठमात्रा का शिरोमात्रा में परिवर्तित होने का ज्ञात होता है. योग्य अध्ययन हो तो प्रत के आकार-प्रकार, लेखन शैली एवं अक्षर परिवर्तन के आधार पर कोई भी प्रत किस सदी में लिखी गई है उसका पर्याप्त सही अनुमान आसानी से लगाया जा सकता है. ___ ताड़पत्र युग और उसके बाद के प्रारंभिक कागज के युग में भी पत्रांक दो तरह से लिखे मिलते हैं. बाई ओर सामान्य तौर पर संस्कृत भाषा में क्वचित ही बननेवाले विशिष्ट अक्षर संयोगमय संकेत जो शतक, दशम व इकाई हेतु भिन्न-भिन्न होते थे और ऊपर से नीचे की ओर लिखे जाते थे. इन्हीं संकेतों का उपयोग प्रायश्चित्त ग्रंथों में ह्रस्व दीर्घ इ की मात्रा के साथ चतुर्गुरू, षड्लघु आदि को इंगित करने हेतु हुआ है. पृष्ठ के दाईं ओर सामान्य अंकों में पृष्ठांक लिखे मिलते हैं. प्रत लिखते समय भूल न रह जाय उस हेतु भी पर्याप्त जागृति रखी जाती थी. एक बार लिखने के बाद विद्वान साधु आदि उस प्रत को पूरी तरह पढ़कर उसके गलत पाठ को हरताल, सफ़ेदा आदि से मिटा कर, छूट गए पाठ को हंसपाद आदि योग्य निशानी पूर्वक पंक्ति के बीच ही या बगल के हांसीये आदि में ओली-पंक्ति क्रमांक के साथ लिख देते थे. इसी के साथ वाचक को सुगमता रहे इस हेतु सामासिक पदों के ऊपर छोटी-छोटी खड़ी रेखाएँ कर के पदच्छेद को दर्शाते थे. क्रियापदों के ऊपर अलग निशानियाँ करते थे एवं विशेष्य-विशेषण आदि संबंध दर्शाने के लिए भी परस्पर समान सूक्ष्म निशानियाँ करते थे. सामासिक पदों में शब्दों के ऊपर उनके वचन-विभक्ति दर्शाने हेतु ११, १२, १३, २१, २२, २३... इत्यादि अंक भी लिखते थे, तो संबोधन हेतु 'हे' लिखा मिलता है. इससे भी आगे बढ़ कर - मानो चतुर्थी हुई है तो क्यों? 10 For Private And Personal Use Only Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir यह बतलाने के लिए 'हेतो' इस तरह से हेत्वर्थे चतुर्थी का संकेत मिलता है. दार्शनिक ग्रंथों में पक्ष-प्रतिपक्ष के अनेक स्तरों तक अवांतर चर्चाएँ आती हैं. उन चर्चाओं का प्रारंभ व समापन बतलाने के लिए दोनों ही जगहों पर प्रत्येक चर्चा हेतु अलग-अलग प्रकार के संकेत मिलते हैं. श्लोकों पर अन्वय दर्शक अंक क्रमानुसार लिखे जाते थे. संधिविच्छेद बताने के लिए संधि दर्शक स्वर भी शब्दों के ऊपर सूक्ष्माक्षरों से लिखे जाते थे. प्रत वाचन में सुगमता की ये निशानियाँ बड़े ही सूक्ष्माक्षरों से लिखी होती हैं. इसी तरह अवचूरि, टीकादि भाग एवं कभी-कभी पूरी की पूरी प्रत इतने सूक्ष्माक्षरों से लिखी मिलती है कि जिन्हें पढ़ना भी आज दुरूह होता है. विचार आता है कि जिसे पढ़ने में भी आँखों को बड़ी दिक़्क़त होती है उन प्रतों को महानुभावों ने लिखा कैसे होगा. फिर भी यह हकीकत है कि लिखा है और हजारों की तादाद में लिखा है, विहार में सुगमता से अधिक मात्रा में प्रतों को उठा कर साथ रखी जा सकें इसी एकमात्र परोपकार की ही भावना से. श्रमण व श्रावकगण विशाल संख्या में भक्तिभाव से श्रेष्ठ कोटी के ग्रंथों का लेखन किया करते थे. श्रावकवर्ग लहियाओं के पास भी ग्रंथों को लिखवाता था. कायस्थ, ब्राह्मण, नागर, महात्मा, भोजक इत्यादि जाति के लोगों ने लहिया के रूप में प्रतों को लिखने का कार्य किया है. प्रत लिखने वाले को लहिया कहा जाता है. इन्हें प्रत में अक्षरों को गिन कर पारिश्रमिक दिया जाता था. लेखन सामग्री - पत्र, कंबिका, गांठ (ग्रंथि), लिप्यासन (ताडपत्र, कागज आदि लिपी के आसन) सांकळ, स्याही, लेखनी, ओलिया (फांटिया) इत्यादि हुआ करती थी. ग्रंथ शोधन सामग्री - पीछी, तूलिका, हरताल, सफेदा, घूटा, गेरु इत्यादि प्रयुक्त थी. जैन प्रतों को लिखने में व उसकी सज्जा पर इतना ध्यान दिया जाता था कि एकबार देखने मात्र पर ही पता चल जाता है कि यह जैन प्रत है या अन्य. पूर्व महर्षियों ने लेखन पर जितना ध्यान दिया उतना ही ध्यान ग्रंथों के संरक्षण पर भी दिया. ग्रंथों को लाल मोटे कपड़े या रेशमी कपड़े में बड़ी मजबूती से बाँधकर लकड़ी या कागज की बनी मंजूषाओं में सुरक्षित रखा जाता था व श्रुत को ही समर्पित ज्ञानपंचमी जैसे पर्वो पर इनका प्रतिलेखन किया जाता था. शिथिल-ढीला बंधन यह एक अपराध सा समझा जाता था. प्रतों के अंत में प्रतिलेखन संबंधी मिलने वाले विविध श्लोकों में एक अति प्रचलित श्लोक में खास हिदायत दी गई है कि "रक्षेत् शिथिल बंधनात्". इसी तरह जल, तैल, अग्नि, मूषक, चोर, मूर्ख व पर-हस्त से प्रत की रक्षा करने की हिदायतें भी मिलती है. साथ ही इन श्लोकों-पद्यों में प्रतिलेखक स्वयं के हाथों बड़े परिश्रम से लिखी गई प्रत के प्रति अपनी भावनाओं को प्रकट करते थे. __ कहते हैं कि मुद्रण युग के आ जाने से ग्रंथ पढ़नेवालों को बड़ी सुविधाएँ हुई हैं इसमें उपलब्धता, श्रेष्ठ संपादन आदि पहलुओं से एक देश तथ्य भी है परंतु वाचक हेतु अत्यंत उपकारी ऐसी विभक्ति-वचन संकेत जैसी उपरोक्त सुविधाओं से युक्त एक भी प्रकाशन अद्यावधि देखने में नहीं आया है. मुद्रण कला ने ग्रंथों की सुलभता अवश्य कर दी है परंतु कहीं न कहीं यह भुला दिया जा रहा है कि सुलभता का मतलब सुगमता - ग्रंथगत महापुरुषों के कथन के एकांत कल्याणकारी यथार्थ हार्द तक पहुँचना - नहीं हो जाता. सुगमता तो मार्गस्थमति व समर्पण से प्राप्त गुरूकृपा का ही परिणाम हो सकती हैं. अपरिपक्वों को शास्त्रों की निरपेक्ष सुलभता स्वच्छंदता जनित स्व-पर हेतु अपायों की अनिच्छनीय परंपरा खड़ी कर सकती हैं, करती हैं यह सभी महर्षियों की अनुभवसिद्ध एकमत अभिघोषणा हैं. आत्मार्थियों को इस हेतु जागृति रखनी आवश्यक है. For Private And Personal Use Only Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तप्रत प्रतिलेखन पुष्पिका एक परिचय परिचय हस्तप्रत के विषय में लघुतम से महत्तम सूचनाएँ प्रतिलेखन पुष्पिका से ज्ञात होती हैं. हस्तप्रत के संबंध में लेखन संवत, लेखन स्थल व अन्य आनुषंगिक माहिती लहिया / पाठक, लिखवानेवाले / उपदेशक आदि के व्यक्तित्व कृतित्व के विषय में, उनकी गुरु परम्परा व उनके द्वारा किए गए प्रतिष्ठा, अन्य ग्रंथलेखापन, ग्रंथसर्जन, आदि कार्यों के विषय में, विद्वान के गच्छ की उत्पत्ति आदि के विषय में, (स्वयं के शिष्य, गुरुभाई, अन्य कोई विशिष्ट मंत्री आदि) किसके लिए या किसकी प्रेरणा से प्रत लिखी गई है, यदि प्रेरक गृहस्थ हो तो क्वचित उसकी वंश परम्परा, प्रति को शास्त्र मर्यादा आदि की दृष्टि से उसे संशोधन करनेवाले अन्य आचार्य आदि का नाम व उनके द्वारा किए गए धर्म कार्य, लेखन में सहयोगी अपने शिष्य, गुरुभाई आदि अन्य विद्वान का नाम, वर्तमान गच्छ नायक का नाम शासक राजा, उसकी वंशावली व उसके द्वारा किए गए कार्यों का वर्णन, लेखन संवत, लेखन स्थल- शहर / गाँव / राज्य का नाम, समीपस्थ जिन प्रासाद का नाम, वसती-उपाश्रय का नाम (कई बार यह वस्ती किसी श्रावक आदि के नाम से भी जुड़ी होती है. वसती = वसही = बस्ती), तत्कालीन किसी घटना का उल्लेख जो कि धार्मिक, ऐतिहासिक दृष्टि से महत्व की हो... इत्यादि बालों में से किन्हीं भी मुद्दों का प्रतिलेखन पुष्पिका में विस्तार से या संक्षेप में समावेश हो सकता है. प्रतिलेखन पुष्पिका कई बार अत्यंत संक्षिप्त से लेकर अनेक पृष्ठों तक की विस्तृत हो सकती है, तो कई बार होती ही नहीं है. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir उपलब्धता का स्थान प्रतिलेखन पुष्पिका ज्यादातर मात्र प्रत में कृति की समाप्ति के बाद ही होती है. परंतु कई बार हस्तप्रत में खंड-खंड में भी मिलती है. यथा- कुछ एक अंश कृति के प्रारंभ में होता है, कुछ एक अंश प्रत्येक अध्याय - पाद आदि की समाप्ति में होता है व शेष अंश अंत भाग में होता है. कई बार प्रतिलेखन पुष्पिका मात्र प्रत के आद्यभाग में ही होती है. कई बार प्रत में मूल व टीका, टबार्थ आदि दोनों होते हैं. ऐसे में मूल व टीका आदि हेतु प्रतिलेखन पुष्पिका भिन्न भी होती है. क्योंकि लिखते समय प्रथम मूल लिखा जाता था एवं टबार्थ, टीका आदि हेतु योग्यरूप से जगह खाली छोड़ दी जाती थी. जहाँ पर बाद में अनुकूलता से उसी या अन्य व्यक्ति द्वारा लिखा जाता था. अतः दोनों प्रतिलेखन पुष्पिका भिन्न भी हो सकती है. क्वचित पेटांकों में भी प्रतिलेखन पुष्पिका स्वतंत्र रूप से या विविध पेटांकों के समूहों के लिए मिलती हैं क्योंकि पेटा कृतियाँ कई बार बड़े व्यापक काल खंड में विभिन्न व्यक्तियों द्वारा भी लिखी जाती थी. इसी तरह प्रत्येक पेटांकगत मूल व टीका आदि की भी स्वतंत्र प्रतिलेखन पुष्पिकाएँ मिल सकती हैं. प्रत के सर्वथा आद्य भाग में प्रतिलेखक द्वारा लिखा जाने वाले स्वयं के इष्ट देव, गुरु आदि को नमन भी प्रतिलेखक के विषय में महत्वपूर्ण सूचना उपलब्ध कराता है. यहाँ पर गुरु का नाम सामान्यतः तत्कालीन गच्छनायक का होता है या स्वयं के गुरु का होता है. जिनेश्वर का नाम समीपस्थ जिनमंदिर के मूलनायक का हो सकता है. प्रतिलेखन पुष्पिका का स्वरूप प्रतिलेखन पुष्पिका सामान्यतः गद्यबद्ध होती है. क्वचित सुंदर रूप से काव्यात्मक पद्यबद्ध भी मिलती है. प्रतिलेखन में पुष्पिका प्रतिलेखक का गुप्त नाम प्रतिलेखक कई बार प्रतिलेखन पुष्पिका के श्लोकों, गाथाओं में अत्यंत चमत्कारिक काव्य रचना करते हुए गूढ रूप से या खंड-खंड - या गूढ़ सांकेतिक शब्दों में स्वयं का नाम गुंफित करता है जो एकाएक पता भी नहीं चलता.. इस सूचीपत्र में सामान्यतः प्रतिलेखन पुष्पिकागत प्रतिलेखक नाम, गुरु का नाम व गच्छ, स्थल, संवत, जैसी सीमित सूचनाएँ ही प्रविष्ट की गई है शेष सूचनाएँ यथावसर यथानुकूलता प्रविष्ट कर परिशिष्ट खंडों में प्रकाशित करने की योजना है. 12 For Private And Personal Use Only Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर में ग्रंथालय सूचना प्रणाली में प्रयुक्त विविध अवधारणाएँ कृति की अवधारणा कृति शब्द का सामान्य परिचय : कर्ता द्वारा विषय प्रतिपादन की इच्छा से पद्य, गद्य, अथवा गद्य व पद्य मिश्रित आदि किसी भी प्रकार से शब्दबद्ध की गई रचना को कृति कहते हैं. इस तरह की हर रचना की एक या अधिक नियत भाषा होती है, अपवादिक मामलों के सिवाय उसका अध्याय, गाथा, ग्रंथाग्र आदि प्रायः नियत परिमाण होता है. नियत आदि/अंतिमवाक्य होते हैं. पर्याप्त मात्रा में कृतियों के कर्ता का नाम भी उपलबध होता है. गद्य, पद्यादि प्रकार होते हैं व एक या अधिक विषयों का प्रतिपादन होता है. कृति का रचनावर्ष व स्थल भी हो सकता है. ये कुछ ऐसे तथ्य हैं कि जो हर रचना के अपने निजी होते हैं. किसी भी रचना संबंधी चाहे जितनी हस्तप्रतें या उसके प्रकाशन देख लिए जाय - उपरोक्त बातें तो अपनी मर्यादा में लगभग एक समान ही मिलेगी. रचना को ही यहाँ कृतिनाम से संबोधित किया गया है. यह कृति 'कृति स्वरूप' में वर्णित मूल, नियुक्ति, भाष्य, टीका, अनुवाद, विवरण, संबद्ध, आदि किसी भी स्वरूप में हो सकती है. कृति यदि किसी अन्य कृति के टीका, वृत्ति, भाष्य, विवरणादि स्वरूप होती है तब वह टीका आदि 'संतति' स्वरूप कही जाती है व मूल कृति परिवार के B, C, D, E, F...आदि किसी भी स्तर के सदस्य के रूप में होती है. उपयोगिता अनुसार कृतियों को दो प्रकार से देखा गया हैं. स्थिर एवं फुटकर. यहाँ पर 'स्थिर' कृति से जिनकी विधिवत स्वतंत्र रचना हुई हो अथवा किसी कृति का अंश ही होने पर भी जिसकी स्थापना एक स्वतंत्र कृति के रूप में प्रस्थापित हो - यह अर्थ लिया जाएगा. यथा - आगम, प्रकरण, महाकाव्य, स्तवन, स्तुति, टीका, बालावबोध आदि. व्यक्तिगत छुटपुट उद्धरण संग्रह, बोल, थोकडा चर्चा आदि को यथायोग्य 'फुटकर' कृतियों में लिया गया है. कल्पसूत्र व भगवद् गीता जैसी कृतियाँ दशाश्रुतस्कंध, महाभारत के ही भाग स्वरूप होने पर भी लोक में एक तरह से स्वतंत्र के ही रूप में अत्यंत रूढ़ होने से इन्हें स्वतंत्र स्थिर कृतियों के रूप में लिया गया हैं. कृति का अन्तरंग परिचय : किसी भी भारतीय कृति के प्रारम्भ में प्रायः मंगलाचरण होता है. साथ ही विषय संकेत, अपनी माहिती का आधार, ग्रन्थ पठन के अधिकारी व ग्रन्थ रचना प्रयोजन आदि का उल्लेख होता है. बाद में क्वचित भूमिका आदि बांधकर विषयवस्तु का निरूपण हुआ दिखता है. मंगलाचरण में सामान्यतः कर्ता के इष्टदेव या गुरु का स्मरण या उनके गुणों का संकीर्तन/अनुशंसा/अनुमोदना मिलती है. कई बार कृति अध्याय-पाद आदि में विभक्त-उपविभक्त होती है तो कई बार संपूर्ण कृति में कोई अध्याय आदि नहीं होता और वह एक संपूर्ण अखंड कृति होती है. ___ कई बार कृति गाथा, श्लोक या सूत्रबद्ध होती है, जिनका स्वयं का अपना एक अनुक्रम होता है. कुछ कृतियों में यह कृति की पूर्णता तक प्रारम्भ से अंत तक सीधा आगे बढ़ता चला जाता है, तो कई कृतियों में प्रत्येक अध्याय आदि से यह क्रम नए सिरे से प्रारम्भ होता है. कृतिगत अध्याय/पाद आदि के अपने स्वतन्त्र एकाधिक नाम भी होते हैं. कृति की महाकाव्य, नाटक, सूत्र, चंपू, सट्टक, स्तोत्र, स्तव, रास, ढाल, चौपाई, छंद, सज्झाय, स्तवन, स्तुति, चैत्यवंदन, पद धवल, झूलणा, झीलणा, हरियाली इत्यादि प्रकार की 'रचना शैली' भी होती है जो कि प्रायः मूल की ही होती है. इनका उल्लेख यथायोग्य कृति नाम के साथ ही ज्यादातर प्राप्त होता है. कृति के अन्त में अक्सर कर्तानाम, कर्ता की गुर्वावली, रचना संवत, रचना स्थल आदि अनेकविध ऐतिहासिक महत्व के तथ्यों का समावेश करती रचना प्रशस्ति हुआ करती है. किन्हीं कृतियों में रचना प्रशस्ति प्रत्येक अध्याय आदि के अन्त में भी होती है. कृतियों की सरलता एवं शीघ्रता से पहचान हो सकें एवं उनके बीच के पारंपरिक संबंधों को सुगमता से जाना जा सकें एतदर्थ यहाँ की सूचना प्रणाली में कृति के निम्नलिखित 'स्वरूप' अभी तक तय किये गये हैं. १. मूल : किसी अन्य कृति हेतु न लिखी जाकर संपूर्ण स्वतंत्र रूप में अपने विषय का प्रतिपादन करने वाली कृति 'A' स्तर की अर्थात् 'मूल' के रूप में पहचानी जाती है. इसके नीचे B, C आदि स्तर की अन्य कृतियाँ इसके परिवार के सदस्य के रूप में हो सकती हैं परंतु इसके उपर कोई अन्य कृति नहीं होती. अपने परिवार के सर्वोच्च मुखिया के रूप में 'मूल' प्रधान कृति होती है. 13 For Private And Personal Use Only Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir २. नियुक्ति : जैनागमों पर सामान्यतः संक्षिप्त शैली से सूत्र की प्रस्तावनारूप, सूत्र को समझने के लिए आवश्यक पदार्थों/विषयों की स्पष्टता/पूर्ति रूप नियुक्ति होती है. वर्तमान में मात्र ८+२ आगमों पर ही नियुक्ति मिलती हैं. परंपरा से नियुक्तियों के कर्ता श्रुतकेवली श्री भद्रबाहुस्वामी कहे जाते हैं. नियुक्तियाँ पद्यबद्ध - गाथामय ही होती हैं व इनकी भाषा अर्धमागधी/प्राकृत होती है. नियुक्तियों में कालक्रम से भाष्य की अनेक गाथाएँ सम्मिलित हो गई हैं जिन्हें अलग कर पाना दुष्कर कार्य है. ज्यादातर आगमिक टीकाएँ व प्राचीन चूर्णियाँ प्रधानतः यथोपलब्ध नियुक्तियों पर ही लिखी गई हैं. नियुक्तियाँ आगमों के सिवाय अन्य साहित्य पर नहीं मिलती. ओघनियुक्ति एवं पिंडनियुक्ति के नामों में नियुक्ति शब्द अवश्य है परंतु ये हकीकत में नियुक्तियाँ न हो कर मूल कृतियों के रूप में ही प्रस्थापित हैं. ३. भाष्य : भाष्य प्रायः नियुक्तियों से भी लघुकाय है व प्राकृत भाषा में ही पद्य-गाथाबद्ध है. विशेषावश्यकभाष्य, जो मुख्य रूप से आवश्यकसूत्र की सामायिक अध्ययन नियुक्ति हिस्से पर लिखा गया है, महाकाय है. आगमेतर जैन भाष्य प्रायः संस्कृत में है. यथा तत्त्वार्थभाष्य. इसी तरह जैनेतर भाष्य भी संस्कृत में ही है. यथा व्यासभाष्य, शांकरभाष्य, अणुभाष्य आदि. भाष्यों की बहुत सी गाथाएँ नियुक्तियों के साथ मिश्रित हो गई हैं. ४. चूर्णि : चूर्णि शब्द चूर्ण से आया है. जिस तरह मोटे (गरिष्ठ) दल का भोजन पचने में भारी पड़ता है परंतु उसी को पीस कर उसका चूर्ण बनाकर दिया जाय तो छोटा बालक भी उसे अच्छी तरह पचा सकता है. उसी तरह विवेच्य कृति के दुरूह अंशों को चूर्णवत् कर 'बालानां सुखबोधाय' रची हुई कृति को चूर्णि से संबोधित किया गया है. चूर्णियाँ दो तरह की होती हैं. (१) जैन आगमों - व नियुक्तियों पर सामान्यतः संयुक्तरूप से विस्तृत विवेचनारूप गद्यबद्ध रूप से भाष्यों के तुरंत बाद के काल में रचित प्राकृत व संस्कृत मिश्रित भाषा की ये चूर्णियाँ आगमिक टीकाओं की तरह ही प्रधानतः नियुक्तियों पर हैं परंतु मूल+नियुक्ति पर भी संयुक्तरूप से रची गई है. इनमें से अनेक चूर्णियों का आदिवाक्य 'मंगलादीणि सत्थाणि...' होता है जो ज्यादातर मामलों में एक-डेढ़ पृष्ठों तक एक समान होता है. इन चूर्णियों में कई बार पूरे के पूरे वाक्य संस्कृत या प्राकृत में होते हैं तो कई बार एक ही वाक्य में दोनों भाषाओं का प्रयोग पाया जाता है. फिर भी प्राकृतभाषा का प्रयोग बहुलता से मिलता है. प्राचीन आगमिक चूर्णियाँ वर्तमान में १५ या १६ आगमों पर मिलती हैं. भगवतीसूत्र पर दो चूर्णियाँ मिलती है. (२) अन्य प्रकार की चूर्णियाँ प्रायः हर तरह की कृतियों पर सामान्यतः जरूरी पाठांश मात्र पर अतिसंक्षिप्त स्पष्टतारूप होती है. इनकी भाषा प्रायः संस्कृत ही होती है, क्वचित मा.गु. अंश भी इनमें पाये जाते है. अधिकांश चूर्णियों एवं अवचूर्णि/अवचूरियों के बीच कोई भेद किया नहीं जा सकता. कई बार कर्ता स्वयं ही या प्रतिलेखक एक ही कृति के लिए चूर्णि/अवचूरि इन दोनों तरीकों से संबोधित कर देते हैं. ऐसे में कृति को अवचूरि/अवचूर्णि के रूप में लेना ज्यादा उचित माना गया है. ये चूर्णियाँ सामान्यतः विक्रम की १०वीं सदी के बाद खास कर १२वीं, १३वीं सदी से रची गई है. ५. अवचूर्णि : मोटे (बड़े) दल का चूरा करना अवचूर्णि के नाम से जाना जाता है. अवचूर्णि प्रधानतः संस्कृत में होती है. अवचूर्णि प्रायः तीन प्रकार की होती है. १. टीका के संक्षिप्तीकरण रूप. २. टिप्पण के विस्तृतीकरण रूप. ३. स्वतंत्र अवचूर्णि. ६. टीका : मूल पर सामान्यतः संस्कृत व क्वचित प्राकृत में रचित वृत्ति, व्याख्या, दीपिका, न्यास, लघुवृत्ति, बृहद् वृत्ति, वार्तिक आदि अभिधानांश वाली रचनाओं हेतु टीका नामक स्वरूप मान्य किया गया है, टीका सामान्यतः गद्यात्मक ही होती है. क्वचित् पद्यबद्ध टीकाएँ भी मिलती है. टीका अपनी विवेच्य कृति के प्रतिपाद्य विषय के सामान्य, मध्यम, विस्तृत या अतिविस्तृत विवरण के रूप में होती है. यह मूल, नियुक्ति, भाष्य, टीका या इनके किसी अंश/हिस्से मात्र पर B, C, D... किसी भी स्तर पर रची जाती है. 14 For Private And Personal Use Only Page #28 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir संयुक्त टीका : कई बार यह एक ही परिवार की एकाधिक कृतियों पर संयुक्त रूप से भी टीका होती है. खासकर आगमों पर इस तरह की टीका पाई जाती है. इसी प्रकार मूल व टीका पर भी अन्य संयुक्त टीका मिलती है. इस तरह की टीकाएँ संयुक्त टीका के रूप में जानी जाती है. प्रस्तुत सूची में संयुक्त मामले में एक ही टीका को सुविधा के लिए काल्पनिक एकाधिक रूपों में विभक्त करके दर्शाया गया है यथा (१) आवश्यकसूत्र मूल की, (२) नियुक्ति की, (३) भाष्य की हारीभद्री टीका #. इस तरह की प्रत्येक टीका के नाम के अंत में संयुक्तता सूचक '#' निशान किया जाता है. क्वचित पूर्व के किसी महर्षि की टीका पर बाद में उपयोगी कथा भाग भी जोड़ दिया जाता था. ऐसे में उस टीका की दो आवृत्तियाँ निश्चित की गई हैं. यथा- उपदेशमाला पर सिद्धर्षिगणि कृत कथा भाग रहित टीका व वर्धमानसूरि प्रक्षिप्त कथा भाग सहित टीका. सामान्यतः टीकाकार पूर्व के मौजूद व्याख्या ग्रंथों का आधार ले कर ही अपनी टीका बनाते रहे हैं. क्वचित यह बृहत् टीका की सरल-संक्षिप्त आवृत्ति भी होती है. वृत्ति, व्याख्या, दीपिका, लघुवृत्ति, बृहवृत्ति, वार्तिक, पंजिका, विवरण, विषमपदविवरण आदि सभी टीका के पर्यायवाची के रूप में प्रस्थापित हैं. किसी जमाने में वृत्ति आदि सभी स्वरूपों की अपनी खास पहचान, खासियत एवं प्रयोजन हुआ करता था. अवचूरि/अवचूर्णि भी कई बार टीका जैसी ही होती है. ७. अवचूरि : कृति के क्लिष्ट अंशों पर संस्कृत भाषा में अति संक्षिप्त शैली में की गई गद्यबद्ध व्याख्या अवचूरि कही जाती है. अपवादरूप किस्सों में मा.गु. कृतियों पर भी संस्कृत अवचूरि पाई जाती है. (देखें - चूर्णि/अवचूर्णि) ८. बालावबोध : कृति सहज रूप में बाल जीवों को अवबोध कराने हेतु प्रायः मारुगुर्जर व देशी भाषाओं में किए गये गद्यबद्ध सुगम अनुवाद/विवरण को बालावबोध संज्ञा दी गई है. सामान्यतः प्रतों में मूल मोटे अक्षरों में तथा बालावबोध छोटे अक्षरों में दो-तीन पंक्तियों में मूल की प्रत्येक पंक्ति के ऊपर लिखा गया मिलता है. क्वचित् मात्र बालावबोध भी मिलता है. ये विभिन्न कृतियों पर प्रचुरता से मिलते हैं. ९. टबार्थ : बाल जीवों के अध्ययन की सुगमता हेतु शब्द या वाक्यांश के उपरी भाग पर खास छोड़ी हुई खाली जगह में उस शब्द या वाक्यांश के सामान्यतः मा.गु. या अन्य देशी भाषा में खंड-खंड लिखे गये अर्थ को टबार्थ कहा जाता है. खासकर हस्तप्रतों में यह स्वरूप मिलता है. क्वचित् यही अर्थ बालावबोध के रूप में भी लिखा मिलता है. सामान्यतः टबार्थ प्राकृत, संस्कृत मूल कृतियों हेतु ही लिखे मिलते हैं क्वचित मा.गु. कृतियों के भी टबार्थ मिलते हैं. टबार्थ की पहचान कृतिगत कम और उसकी खंड-खंड लेखन शैली से ज्यादा होती है. १०. हिस्सा : कृति का यह स्वरूप यहाँ खास तौर पर निर्धारित किया गया है. मूल या टीका आदि के किसी खास अंश - हिस्से पर ही जब स्वतंत्र टीका, टबार्थ, अवचूरि आदि उपलब्ध होते हैं तब कृति के उतने विवक्षित अंश को एक काल्पनिक कृति के रूप में निम्नस्तर पर स्थापित कर उसकी भी संतति के रूप में उस टीका, टबार्थ आदि को रखा जाता है. यथा विशेषावश्यकभाष्य 'आवश्यक सूत्र के सामायिक अध्ययन (करेमि भंते सूत्र) की नियुक्ति' पर है. अतः इसे 'आवश्यक सूत्र की नियुक्ति के सामायिक अध्ययन का हिस्सा' नाम की काल्पनिक कृति की संतान के रूप में रखा गया है. क्वचित् मुख्य कृति के सीधे संतान के रूप में भी इन आंशिक टीकादि का ग्रहण कर उनके नाम के साथ योग्य स्पष्टता कर दी गई है. भगवतीसूत्र आदि आगमों के छोटे-छोटे अंश- आलावे मूल पाठ ही या टबार्थ आदि के साथ लिखे हुए प्रचुरता से मिलते हैं. सामान्य संयोगों में जिन कृतियों की प्रतों में यह प्रचुरता नहीं है वहाँ उन प्रतों के विवक्षित मुख्य कृति के साथ ही रख कर उसकी पूर्णता में 'प्रतिपूर्ण' लिख दिया गया है. परंतु जिन कृतियों की ऐसी प्रतों की प्रचुरता मिलती हो एवं उनकी संशोधन आदि की दृष्टि से उपयोगिता कम हो ऐसी प्रतों हेतु एक सर्वसामान्य 'हिस्सा' वाली काल्पनिक कृति उपस्थित कर उसके साथ इन प्रतों को रख दिया गया है एवं प्रतनाम, प्रतविशेष में उपलब्ध परिमाण संबंधी आवश्यक स्पष्टता लिख दी गई है. ऐसी काल्पनिक कृतियों की सर्वसामान्यता बतलाने हेतु उनके नाम के अंत में '' का चिह्न लगा दिया गया है. 15 For Private And Personal Use Only Page #29 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir यदि ऐसा न करते तो शोधार्थियों को संपूर्ण या बृहद् अंशवाली प्रतें ढूंढने में अनेक दिक्कतें आती. क्योंकि ये उपयोगी प्रतें सूची में आई लघु-आंशिक प्रतों, कि जो सैकड़ों तक की तादाद में मिलती है, उनके ढेर में खो-सी जाती. प्रस्तुत विभाजन कर देने से अध्येताओं को उपयोगी प्रतों के चयन में आसानी रहेगी. परंतु यदि ऐसे किसी खास अंश की ही प्रतें प्रचुरता से मिलती है तो उनके लिए सामान्य से भिन्न स्पष्ट हिस्सावाली कृतियाँ अलग से स्थापित कर के उन प्रतों को ऐसी अलग कृतियों के साथ रखा गया है. यथा - सूत्रकृतांगसूत्र का वीर थुई अध्ययन. इस 'हिस्सा' विभावना वाली कृतियों की महत्ता प्रस्तुत सूची में पूरी तरह से ख्याल में आनी मुश्किल है परंतु भावी 'कृति अनुसार प्रतसूची' में इसकी महत्ता/ उपयोगिता सुतरां ख्याल आएगी. ११. बीजक/अनुक्रमणिका : हस्तप्रतों में कृति के बीजक/विषयानुक्रमणिका का अलग से अस्तित्व होता है. हस्तप्रतों के प्रारंभ या अन्त में तथा कभी स्वतंत्र रूप से भी ये प्राप्त होती है. इनकी भी संतति के रूप में प्रविष्टि की गई हैं. १२. अन्तर्वाच्य : कल्पसूत्र के व्याख्यान के समय जब वह टीका आदि के आधार से पढ़ा न जा कर सीधे मूल के ही आधार से पढ़ा जाता था तब आवश्यक स्पष्टीकरणों, पूरक सूचनाओं, कथा भागों आदि का संग्रह अलग से साथ में रखा जाता था एवं बीच-बीच में यथावसर उस प्रत का आधार लेकर व्याख्यान दिया जाता था. मूल पाठ के अंतर्गत बीच-बीच में पढ़ने की आवश्यकता होने से इन्हें अन्तर्वाच्य के रूप में जाना गया. कई प्रतों में ये अन्तर्वाच्य मूल के साथ ही बीच-बीच में लिखे मिलते हैं ताकि बार-बार दूसरी प्रत हाथ में लेनी न पड़े. सामान्यतः कल्पसूत्र के ही अन्तर्वाच्य प्राप्त होते हैं. अन्तर्वाच्य की भाषा संस्कृत, प्राकृत या मारूगुर्जर भी हो सकती हैं. १३. टिप्पण : कृति पर यत्र-तत्र क्लिष्ट अंश पर स्पष्टतारूप सामान्यतः संस्कृत भाषाबद्ध कृति को टिप्पण नाम से जाना जाता है. यह अवचूरि से भी संक्षिप्त होता है व विषमपदपर्याय से जरा विस्तृत होता है. क्वचित् टिप्पण नामधारी कृति हकीकत में एक तरह से टीका ही होती है - यथा 'आवश्यकसूत्र - हारिभद्री वृत्ति पर हेमचंद्रसूरि कृत टिप्पण.' टिप्पण, अवचूरि, अवचूर्णि, विषमपदपर्याय का परस्पर का नजदीकी रिश्ता रहा है. परिवर्तित होते-होते ये कब एक दूसरे के कलेवर में आ जाते हैं यह परखना मुश्किल होता है. प्रत के चारों ओर हांसियों में जो उपयोगी टिप्पणियाँ लिखी मिलती है उनका उल्लेख प्रत विशेष में यथायोग्य कर दिया गया है. १४. यंत्र : रेखाकृतियों से बने कोष्ठक आदि हेतु यह स्वरूप दिया गया है. १५. कथा : कृति में कई बार समयोचित कथाओं का भी उल्लेख होता है. ऐसी उल्लिखित कथाएँ पूरे विस्तार के साथ स्वतंत्र रूप से संगृहीत मिलती हैं. १६. संक्षेप : विस्तृत कृति में से मात्र बाल जीवों/ प्रारंभिक अध्येताओं हेतु उपयोगी अंश- गाथादि को लेकर कृति की संक्षिप्त आवृत्ति बनाई हुई प्राप्त होती है उस हेतु 'संक्षेप' स्वरूप निर्धारित किया गया है. यथा 'उपमिति सारोद्धार'. लघु, मध्यम व बृहद् वृत्तियों में लघुवृत्ति - यह संक्षेप न हो कर कर्ता द्वारा स्वेच्छा से बनाई गई अलग वृत्ति ही है. 'संक्षेप' सामान्यतः मूल का ही ज्यादातर प्राप्त होता है. १७. अन्वय : श्लोक/गाथा का जब मात्र अन्वय हो. प्रायः यह स्वरूप संस्कृत, प्राकृत पद्यमय मुद्रित साहित्य में मिलता है. हस्तप्रतों में पाठ पर अन्वयदर्शक अंक भी उपलब्ध होते हैं. इनका उल्लेख प्रतविशेष में कर दिया गया है. १८. सम्बद्ध : जब कोई कृति किसी अन्य कृति से सीधी सम्बद्ध हो परंतु टीका, अनुवाद आदि न हो उस हेतु यह स्वरूप निर्धारित किया गया है. जैसे- भगवतीसूत्र की गहुंली इत्यादि. १९. प्रक्रिया : सामान्यतः संस्कृत, प्राकृत व्याकरण के अपनी विवक्षा अनुसार मात्र उपयोगी सूत्रों को सामान्यतः साधनिका क्रम से प्रस्तुत करती हुई टीका को प्रक्रिया कहते हैं. प्रक्रिया की भाषा संस्कृत होती है. जैसेहैमलघुप्रक्रिया, सारस्वतप्रक्रिया लघुसिद्धान्त कौमुदी आदि. 16 For Private And Personal Use Only Page #30 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir २०. प्रवचन : सामान्यतः मूल कृतियों पर होने वाले प्रवचनों, व्याख्यानों के संकलनों हेतु यह स्वरूप तय किया गया है. इनके अलावा भी कुछ और स्वरूप निर्धारित किए गये हैं, जो कि प्रकाशित आधुनिक कृतियों में ही मिलते हैं. इनका परिचय यहाँ प्रस्तुत न होने से नहीं दिया गया है. टबार्थ, बालावबोध, अवचूरि, अवचूर्णि, टिप्पण, अंतर्वाच्य जैसी कृतियाँ प्रस्थापित एवं प्रतिलेखक की एक तरह से व्यक्तिगत दोनों ही प्रकार की मिलती है. प्रस्थापित कृति की प्रायः एक जैसी अनेक नकलें मिलती हैं. जबकि व्यक्तिगत प्रकार की कृतियाँ यद्यपि सामान्यतः किसी प्रस्थापित कृति के ही आधार से होती हैं परंतु लेखक/प्रतिलेखक उसकी भाषा, प्रस्तुति, व विवेचन विस्तार की सीमा अपनी अनुकूलता से रखता था. कल्पसूत्र के टबार्थ व बालावबोधों में व्यक्तिगत कृति की यह प्रवृत्ति प्रचुरता से मिलती है. एक ही रूढ़ मंगलाचरण से प्रारंभ होनेवाली अनेक प्रतों में मूल के विवरण में अत्यंत भिन्नता मिलती है. कई बार एक ही स्थिर कृति जो मारूगूर्जर भाषा की होती है, विभिन्न प्रतों में उसकी भाषा में इस प्रवृत्ति के चलते भी बड़ा फर्क पाया जाता है उत्तरी राजस्थानी, दक्षिणी राजस्थानी, उत्तरी गुजराती आदि क्षेत्रकृत व कालकृत अनेक बोलीभेदों की असर उस कृति की विविध प्रतों में दिखाई देती हैं. भाषा परिवर्तन की यह असर स्तवन, सज्झाय, रास आदि देशी भाषा की कृतियों में भी व्यापकरूप से देखने में आती है. कृति व उसके स्वरूपों का यहाँ पर आवश्यक सामान्य विवरण ही दिया गया है. विशेष विस्तार से विवरण तो द्वितीय कृति माहिती विभाग के सूची पत्रों में देने की भावना हैं. पेटा कृति की अवधारणा जब एक ही हस्तप्रत में एकाधिक स्वतंत्र कृतियाँ या मिश्रित कृति समूह ('सह' सूचित) क्रमशः विभिन्न पृष्ठ-अवधियों पर हो तो ऐसी कृति या मिश्रित कृति समूह की माहिती श्री जौहरीमलजी पारख की विभावना के अनुसार पेटा कृति के रूप में ली गई हैं. इन प्रत्येक कृति या मिश्रित कृति परिवार (सह वाली कृतियों) हेतु एक स्वतंत्र पेटा अंक दिया है. यथा- 'भक्तामर स्तोत्र सह टीका, मूल का अनुवाद व टीका का अनुवाद' इस प्रकार भक्तामर के परिवार की उपलब्ध अनेक कृतियों में से चार कृतियाँ यहाँ मिश्रित रूप से एक ही प्रत में लिखी गई हैं. अर्थात् भक्तामर का प्रथम काव्य, मूल का अर्थ, टीका व टीका का अर्थ फिर दूसरा काव्य, मूल का अर्थ, टीका व टीका का अर्थ उसके बाद तीसरा श्लोक एवं उसकी टीका आदि... इसी तरह श्लोक ४४ पर्यंत होते है. इस तरह चारों कृतियाँ मिश्रित रूप से चलती हैं, अतः इन चारों को एक ही पेटांक में समाविष्ट किया गया है. फिर इसी तरह कल्याणमंदिर हो तो उसका दूसरा पेटांक बनेगा. १. किसी भी प्रत में पेटा कृतियाँ निम्न संयोगों में पायी जाती हैं : १.१. हस्तप्रत में स्तवन, स्तोत्र, पूजा, देववंदन आदि का संग्रह हो. १.२. हस्तप्रत मूलतः किसी एक प्रधान कृति/मिश्रित कृति समूह हेतु ही हो लेकिन यदि उसके प्रारंभ या अंत में अन्य एकाधिक कृतियाँ/मिश्रित कृतियाँ भी शामिल कर दी गई हो. १.३. प्रथम पूरा मूल हो, बाद के पृष्ठों में उसी की टीका हो तथा उसके बाद के पृष्ठों में अनुवाद हो. ऐसे में ये सब एक ही कृति परिवार की कृतियाँ होने पर भी प्रत्येक कृति स्वतंत्र पृष्ठों पर क्रमशः अलग-अलग होने से इन्हें मिश्रित कृति समूह नहीं कहा गया है और प्रत्येक को स्वतंत्र पेटा अंक दिया गया है. १.४. हस्तलिखित प्रतों में कई बार सुभाषित संग्रह, औषधादि विषयक सामग्री, तंत्र-मंत्रादि भी लिखे मिलते हैं. इन्हें भी यथोचित पेटांक के रूप में लिया गया है. २. पेटांकों हेतु पृष्ठांकों का लेखन : प्रत की पेटाकृतियों के पत्रांक निम्नलिखित पद्धतियों से लिखे गये हैं. १अ-५आ - प्रथम पत्र की एक तरफ से प्रारंभ हो कर पांचवें पत्र की दूसरी ओर कहीं समाप्त. ५आ-७अ - पांचवें पत्र की दूसरी ओर कहीं से प्रारंभ हो कर सातवें पत्र की प्रथम ओर कहीं पर समाप्त. १० - १०वा - पृष्ठ संपूर्ण ११-१५ अ- ११वे पृष्ठ संपूर्ण से पंद्रहवें पृष्ठ की पहली तरफ तक. 17 For Private And Personal Use Only Page #31 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ३. पेटा कृति की उपयोगिता : ३.१. किसी प्रत में अन्तर्निहित एक या एक से अधिक पेटा कृति / कृतियों को प्रविष्ट करने से सभी प्रकार की कृतियों के विषय में जानकारी मिल पाती है चाहे वह कृति कितनी भी बड़ी हो या छोटी से छोटी (क्वचित् एक श्लोक जितनी भी क्यों न हो. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३.२. ऐसी कृतियों भले ही जिनका आकार छोटा हो लेकिन वे महत्त्वपूर्ण हों तो वे किन-किन हस्तप्रतों में किन पृष्ठों पर हैं इसकी जानकारी शीघ्र ही मिल जाती है. यदि ये प्रविष्टियाँ न की जाएं तो इनकी शोध असम्भव जैसी ही समझनी चाहिए. क्योंकि मानव की स्मरण शक्ति तथा उसको प्राप्त होने वाली सूचनाओं / ज्ञान की एक सीमा है. ४. निम्न संयोगों में पेटाकृतियों को प्रविष्ट नहीं किया गया है. ४.१. प्रत के नीचे प्रतिलेखन श्लोक से भिन्न एक-दो पूर्णतया सामान्य श्लोक हो तो उनका उल्लेख प्रत - नाम में दे दिया गया है. ऐसे श्लोकों की पेटांक प्रविष्टि नहीं की गई है. ४.२. एक ही प्रत में अत्यंत सामान्य फुटकर, अपठनीय अक्षरों में लिखी अतः सूची में नहीं लेने योग्य एक से अधिक कृतियाँ साथ में हों तो ऐसी कृतियों को मिलाकर एक ही पेटांक बनाया गया है. ४.३. पेटा कृति के संभवित नामों को प्रत नाम के ही नियमों के अनुसार भरा गया है. संग्रहात्मक प्रकार के नाम पेटांक में लागू नहीं होते हैं. कृति, प्रत, पेटांक व प्रकाशन नाम की अवधारणा आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर की सूचना प्रणाली में किसी भी रचना हस्तप्रत, पेटाकृति या प्रकाशन के एकाधिक नाम से शोध संभव है. ये अपरनाम / उपनाम निम्नोक्त विविध प्रकार के हो सकते हैं. १. तकनीकी नाम : ज्ञानतीर्थ की शब्दावली में प्रत या प्रकाशन में खास नियमानुसार निर्मित प्रत, प्रकाशन, पेटांक में यथार्थरूप से कौन सी कृतियाँ समाविष्ट है इसकी सही स्पष्टता हेतु 'सह'; 'व'; ','; 'का, के, की' (षष्ठी विभक्ती) से युक्त नामों को तकनीकी नाम से संबोधित किया गया है. यह नाम प्रत या प्रकाशन नाम हेतु तथा पेटांक वाला मुद्दा होने पर पेटांक नाम में स्वीकार्य होगा. 'B' व उससे आगे के स्तर की टीकादि कृतियों के नाम में '-' व 'का, के की' (षष्ठी विभक्ति) के प्रयोग से यह स्पष्ट किया जाता हैं कि प्रस्तुत कृति अपनी 'मुल' कृति तक की कृतियाँ के साथ किन स्वरूप संबंधों से जुडी हुई है. यह नाम प्रकार संभवतः केवल यहीं पर प्रयुक्त हुआ आपको विदित होगा. इस प्रकार के नाम द्वारा कृति की बहुत कुछ बातें स्वयमेव ही नाम मात्र से स्पष्ट हो जाती है. २. सामान्य निर्मित नाम 'पद' आदि सामान्य कृतियों का निश्चित नाम न मिल पाने पर विवेकाधीन व नियमाधीन कृति पार्श्वजिन स्तवन, औपदेशिक पद का स्पष्ट परिचय करवानेवाला सामान्य नाम बनाया जाता है. जैसे ३. कर्ता प्रदत्त मुख्य नाम : यह कृति का मुख्यनाम होता है. इसके द्वारा कृति सामान्यतः जानी जाती है. सामान्यतः इसका उल्लेख कर्ता स्वयं कृति के आद्य या अंत भाग में किया करता है. अपवाद रूप संयोगों में कर्ताप्रदत्तनाम मुख्यनाम न बन कर अन्य कोई नाम मुख्यनाम के रूप में प्रस्थापित हो जाता है. और कर्ताप्रदत्त नाम उपनाम बन जाता है. ४. कर्ता प्रदत्त उपनाम ( अपरनाम ) : कर्ता स्वयं कृति को कई बार एकाधिक नामों से स्वयं की ही कृति में संबोधित करता है, ऐसे में मुख्य भिन्न सभी नाम कृति के उपनाम के रूप में जाने जाएँगे... ५. रूढ़ या प्रचलित अन्य नाम : वाचकों, प्रतिलेखकों द्वारा कृति की किसी विशिष्टता के कारण दिए गये लोक में रूढ़िगत नाम इस श्रेणी में रखें गये हैं. ये भी एक तरह से उपनाम ही हैं निम्नलिखित विशिष्टताओं के कारण कृति के रूढ नाम बन सकते हैं. १. इसके परिमाण - कद के आधार पर यथा लघु, मध्यम, बृहत्. २. आदिवाक्य के आधार पर जैसे वृंदारुवृत्ति, दोघट्टी वृत्ति, लोगस्स सूत्र. ३. लोक बोली के कारण अपभ्रंश होने से यथा अइमत्ता हेतु एमंता रास. 18 For Private And Personal Use Only Page #32 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ४. एक पद लोप हो जाने से. जैसे चित्रसेन-पद्मावती रास हेतु चित्रसेन रास. ५. कृति शैली दर्शक शब्द के फेरफार के कारण. जैसे शालिभद्र चौपाई का शालिभद्र रास. ६. कृति के विषय की विशिष्टता दर्शक शब्द युक्त होने पर. यथा पुण्ये हंसराजवच्छराज चौपाई इत्यादि. ७. कृति रचना की विशेषता को दर्शाता नाम. यथा चित्रकाव्यबद्ध पार्श्वजिन स्तोत्र, क्रियागुप्त महावीर जिनस्तव, यमकबद्ध पंचजिन स्तोत्र आदि. ८. स्थलादि विशेषण दर्शक नाम. यथा जिराउलामंडन पार्श्वजिन स्तोत्र. मुख्य नाम पर एकाधिक प्रचलित नाम विवेकाधीन आवश्यकता तथा उपयोगितानुसार प्रविष्ट किये जाते हैं. इससे किसी भी प्रकार के नाम से शोध आने पर सूचना सहजता से उपलब्ध की जा सकती है. कृतियों का नामाभिधान करते समय एकरूपता व स्पष्टता हेतु निम्नलिखित मुद्दों पर विशेष ध्यान रखा गया है : १. गद्य, पद्य किसी भी तरह की संस्कृत, प्राकृत, अपभ्रंश - प्रस्थापित कृतियों हेतु व मारुगूर्जर व हिंदी कुल की भाषा की प्रस्थापित पद्य कृतियों हेतु जिस भाषा की कृति हो उसी भाषा में यदि कृति नाम मिले तो मुख्य नाम वही रखा गया है. जैसे सिरिसिरिवाल कहा, सुपासनाह चरिय, अक्षरबावनी, आचारछत्तीसी. परंतु आगमिक कृतियों के नाम संस्कृत में ही दिए गए हैं. २. आवश्यक सूत्र के अंतर्गत आनेवाले वंदित्तु, पगामसज्झाय, पक्खीसूत्र इत्यादि नामों को स्वतंत्र न लिखकर सामान्यतः इनके पूर्व योग्यरूप से 'आवश्यकसूत्र-' शब्द रखा गया है. ३. कृतिनाम में मात्र कवित्त, पद, सज्झाय, स्तोत्र, स्तवन जैसा कोई जनरल कृति नाम प्रविष्ट नहीं किया जाता बल्कि इन नामों के साथ सम्बन्धित तीर्थंकर, भगवान, देव-देवी, गुरू, व्यक्ति आदि का नाम, अथवा स्थल का नाम, अथवा कोई विषय आदि बनता हो तो उसका संकेत करते हुए कृति का नाम लिखा गया है. जैसे- आत्मनिंदागर्भित, औपदेशिक, आध्यात्मिक, १० भव इत्यादि. कुछ कृतियों में इन तीनों में से एकाधिक प्रकार मिल सकते हैं. जैसेपार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वर आत्मनिंदागर्भित. ४. कृति नाम में पद, गीत और कवित्त ये तीन शब्द हों तो विशेष ध्यान दिया गया है. क्योंकि ऐसी कृति स्तवन अथवा सज्झाय भी हो सकती है. स्तवन/सज्झाय में सामान्यतः कम से कम पाँच गाथाएँ होनी चाहिए. स्तवन सामान्य रूप से किसी तीर्थंकर, भगवान को सम्बोधित करते हुए उनके गुणगान-महिमा आदि से युक्त होता है. जबकि सज्झाय में प्रायः उपदेश ही होता है परंतु कभी-कभी चरित्र अथवा कोई उपदेशात्मक घटना-प्रसंग भी होता है, कभी-कभी कोयडा-पहेली भी होती है अथवा अध्यात्मप्रधान बातें भी होती हैं. यदि इनमें पाँच से कम गाथाएँ हों और स्तवन, सज्झाय आदि में न जा सके तो इन्हें पद-गीत-कवित्त के रूप में ही रखें गये हैं. किसी स्थल, दृश्य, नायिका आदि का वर्णन किया गया हो ऐसे पद आदि में पाँच अथवा इससे अधिक गाथाएँ भी हो सकती हैं. इन नामों में स्तवन/सज्झाय वाला नाम नहीं बनाया गया. विशेष रूप से तो प्रत में उपलब्ध नाम की प्रतनाम अथवा पेटांकनाम में ज्यों का त्यों लिया गया है. जिससे यह पता चलता है कि प्रत में यह कृति किस नाम से है. ५. जिनका कृति का स्पष्ट निर्धारित नाम मिलता न हो ऐसी गद्य कृतिओं हेतु हिन्दी में सुसंगत नाम दिया गया है. जैसे अरिहंतवाणी के पैंतीसगुण (गद्य). परंतु जहाँ पर रूढ़ नाम मिलते हो वहाँ यथावत् नाम लिखा गया हैं. जैसे अढीद्वीप विचार. ६. सतियों के नाम के बाद सती शब्द अवश्य लिखा गया हैं, जैसे अंजनासती चौपाई. ७. सामान्यतः तीर्थों के नाम में स्थान नाम के बाद 'तीर्थ' शब्द लिखा गया है. जैसे- शत्रुजयतीर्थ स्तवन, हस्तिनापुरतीर्थ कल्प, परंतु शत्रुजयमंडन आदिजिन स्तवन में तीर्थनाम प्रधान न होने से तीर्थ शब्द न लगाकर आदिजिन स्तवन-शत्रुजयमंडन लिखा गया हैं. ८. तिथि वाचक, मास (महिना) वाचक शब्द संस्कृत में ही दिए गए हैं जैसे- एकादशीतिथि सज्झाय पूर्णिमातिथि स्तुति - इसमें देशी भाषा की कृतियों में द्वितीया हेतु बीज को अपवाद रखा गया है. ९. तप, व्रत, तिथि विषयक नामों में उनके साथ तप इत्यादि शब्द को नाम में सम्मिलित किया गया है. जैसे 19 For Private And Personal Use Only Page #33 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra आयंबिलतप सज्झाय. ज्ञानपंचमीतप स्तवन इत्यादि. १०. देववंदन इत्यादि में 'चातुर्मासिक' के स्थान पर 'चीमासी' शब्द रखा गया है. किन्तु व्याख्यान में 'चातुर्मासिक' शब्द ही रखा गया है. जैसे- चौमासी देववंदन / चातुर्मासिक व्याख्यान.. www.kobatirth.org ११. समकित के स्थान पर सम्यक्त्व किया गया है. जैसे- सम्यक्त्व सज्झाय. अपवाद:- समकितना सडसठ बोलनी सज्झाय में यथावत् ही लिखा गया है. १२. विजयहीरसूरि विजयलक्ष्मीसूरि जैसे नाम वाली कृतियों में विद्वान का मूल नाम दिया गया है. यह नियम कृतिनाम तथा विद्वान दोनों हेतु हैं. जैसे- हीरविजयसूरि भास. १३. औपदेशिक कृतियों में प्रतिलेखक के द्वारा उपदेश हितोपदेश, शिखामण इत्यादि नामकरण किया गया हो तब ऐसे सभी नामों के स्थान पर औपदेशिक पद, औपदेशिक सज्झाय इत्यादि नाम एकरूपता हेतु दिया गया है. जब कि प्रत, पेटांक नाम प्रत में यथोपलब्ध दिए गए हैं. गोडीजी गौतम १४. २४ दंडक ३० बोल विचार १४ गुणस्थानक ४१ द्वार १८२४१२० इरियावही भेद इत्यादि नामों में संख्यावाचक शब्दों को एकरूपता हेतु यथाशक्य अंकों में ही लिखा गया है. जीरावला दीपावली शत्रुंजयतीर्थ शंखेश्वर " १५. कृतियों का नामाभिधान करते समय निम्नलिखित रूप से विविध विकल्पों में से प्रधान नाम को ही लेने का आग्रह रखा गया है. प्रधान नाम अइमुत्ता इरियावही औपदेशिक सम्मेतशिखर साधारणजिन Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रतों में मिलने वाले वैकल्पिक नाम अतिमुक्तक, अइमुत्तो, अतिमुक्त, एमंता, ऐमंता, इर्यापथिकी, ईर्यापथिकि, इरियावहिया, इरीयावही / हि, ईरीयावही / हि, ईरियावही / हि. आत्माप्रबोध, आत्मासंयम, आत्मोपदेश, उपदेश, उपदेशक, काया उपदेश, जीवहितशिक्षा, जीवोपदेश, प्रतिबोध, वृथा संसार, शिखामण, सिखामण, हितशिक्षा, हितोपदेश. गउडी, गवडी, गोडिजी, गोडि, गोडी, गौड, गौडी. इन्द्रभूति इन्द्रभूतिगौतम गोतम प्रथमगणधर जीराउला, जीराउलि जीराउली जीरापल्ली, दीवाली, दीपमालि/लीका, दिपावली दीपालिका, दीपालीका, दिपालिका. गिरिराज, विमलाचल, विमलगिरि, सेत्रुंजा, सेत्रुजा, शेत्रुंजा, शेत्रुजा, सिद्धगिरि, सिद्धाचल. शंखपुर, संखपुर, संखेसर, शंखेसर, संखेश्वर. समेतशि/ शीखर, समेतसिखर, समेतसीखर सम्मेदशिखर, + गिरि. सामान्यजिन " . · भण, स्थंभण. थूलभद्र, थुलिभद्द, थुली/ लिभद्द, थूलीभद्द, स्थूलभद्र, स्थुलिभद्र, स्थूळभद्र स्थंभन स्थूलभद्र (विस्तृत सूची का यह एक अंश मात्र है.) १६. नाम में 'थुई' शब्द की जगह 'स्तुति' शब्द सर्वत्र रखा गया है जैसे- आदिजिन स्तुति (आदिजिन थुई), महावीरजिन स्तुति (महावीरजिन थुई). इसी तरह अन्य भी समझें. १७. कृति मुख्यनाम में तीर्थंकरों के नाम में सर्वत्र तीर्थंकर का स्पष्ट व रूढनाम ले कर उनके पीछे - प्रभु, स्वामी आदि न लगाकर 'जिन' शब्द लगाया गया है ताकि एकरूपता बनी रहे. यथा- ऋषभदेव, युगादिदेव, आदीश्वर, आदेश्वर, प्रथम जिन के लिए आदिजिन नाम ही मुख्यनाम रखा गया है. इसी तरह सुपास के लिए सुपार्श्वजिन; अरिष्टनेमि, रिष्टनेमि, नेम के लिए नेमिजिन; पास, पारस, पारश के लिए पार्श्वजिन वीर, वर्धमान, वर्द्धमान, चरमजिन के लिए महावीर जिन इत्यादि नाम लिए गए है. १८. (कृति / विद्वान) नाम के प्रारंभ में आचार्य - मुनि आदि उपाधि सूचक शब्द, श्री, श्रीमद्, श्रीमती, कुमारी, अथ, सचित्र, 20 For Private And Personal Use Only Page #34 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir इत्यादि प्रविष्ट नहीं किये गये हैं. परंतु यदि श्री शब्द किसी नाम का भाग है तो आदि नामों के साथ श्री की प्रविष्टि की जाती है. जैसे 'श्रीपाल' श्रीधर, श्रीनाथ. १९. कृतिनाम यथासंभव शुद्ध भरने का प्रयास किया गया है. सामान्यतः व्याकरणशुद्ध व रूढनामों को मान्य रखा गया है. यथा प्रत में 'चैतमती चरचा' ऐसा नाम हो तो इसे 'चैत्यमति की चर्चा' इस प्रकार प्रविष्ट किया गया है. २०. पूजा, स्तवन, चैत्यवंदन, होरी, कवित, सवैया, पद, सज्झाय, विचार, ढाल, स्तुति, चरित्र, बोल, रास, चौपाई, प्रकरण, श्लोक, आराधना, कुलक, विधि आदि कृति प्रकार रचना शैली सूचक शब्द नाम में सम्मिलित न लिख जगह छोड़ कर अलग ही लिखे गये हैं. जैसे- अष्टप्रकारी पूजा, आध्यात्मिक सवैया, पुण्य कुलक, चारित्र आराधना, धन्य चरित्र रास. २१. पच्चीसी, बावनी, छत्रीसी, बत्रीसी आदि छंद परिमाण सूचक शब्द नाम में अलग न कर एक साथ रखे गये हैं. जैसे अध्यात्मपच्चीसी, छंदबावनी. २२. तीर्थंकर आदि नाम के आगे गाँव, विषय या विशेषण आदि शब्दों को अकारादिक्रम में एकरूपता लाने हेतु मूलनाम के बाद हाईफन (-) देकर रखा गया है. जिसमें 'मंडन' आदि शब्दों का प्रयोग यथाशक्य टाला गया है. जैसे- पार्श्वजिन स्तवन- स्थंभन, आदिजिन स्तवन-विनतीरूप. २३. प्रत की अपूर्णता आदि की वजह से प्रत का 'स्थूलिभद्र रास' जैसा सामान्य नाम का तो पता चला हो परंतु कर्ता, आदिवाक्य, अंतिमवाक्य, गाथा आदि परिमाण का किसी तरह से पता न चलता हो ऐसे में प्रायः अन्य माहिती विहीन मात्र नाम वाली काल्पनिक कृति ली गई है एवं उसके नाम के अंत में भेद दर्शक '*' अंकित किया गया है. २४. इसी तरह जिस कृति का नाम भी पता नहीं चलता हो और उसे स्पष्टरूप से बना कर दे पाना भी संभव नहीं हो वहाँ पर सर्वसामान्य काल्पनिक कृतियाँ बना कर उन्हें ले लिया गया है - यथा जैन काव्य* इत्यादि एवं इनके नाम के पीछे भी सामान्य कृति सूचक* अंकित कर दिया गया है. २५. व्याकरण, ज्योतिष, आयुर्वेद, तंत्र, मंत्र आदि से संबंधित कृतियों के साथ प्रायः कृति की पहचान करना मुश्किल होता है, ऐसे मामलों में भी विवेकाधीन सामान्य कृति हेतु नाम के अंत में '*' का उपयोग किया गया है. कृति संबंधी कुछ विशेष बातें जहाँ पर एक ही कृति के गाथादि परिमाण में पर्याप्त बड़ा भेद मिला हो वहाँ वहाँ उस कृति की एकाधिक आवृत्तियाँ मान्य रखी गई हैं व यथावश्यक कृतिनाम के ही अंत में स्पष्टता हेतु गाथा संख्या का उल्लेख कर दिया गया हैं. यथा१. उवसग्गहर जैसी कृतियों का नाम जिनमें प्रस्थापित रूप से गाथा क्रमांक में वैविध्य मिलता है उन्हें गाथासूचक शब्दों के साथ दिया गया है. अर्थात् कृति नाम के बाद कुल गाथा की संख्या का उल्लेख किया गया है. जैसे- उवसग्गहरं स्तोत्र (गाथा-५), उवसग्गहरं स्तोत्र (गाथा-११) इत्यादि. २. ऋषिमंडलस्तोत्र जैसी कृतियों में कृतिनाम के बाद लघु/बृहत् का प्रयोग किया गया है. जैसे- ऋषिमंडल स्तोत्र - लघु/बृहत् इत्यादि. गाथांक संख्या ६० व इस संख्या के समीपवर्ती गाथा परिमाण वाला ऋषिमंडल लघु व १०० व इसके आसपास की गाथा परिमाण वाला ऋषिमंडल बृहत् नाम से प्रविष्ट किया गया है. ३. अजितशांति व बृहत्शांति में भी भिन्नता दर्शाने हेतु कृतिनाम में खरतर०/तपा० आदि का प्रयोग हुआ है. जैसे अजितशांति - तपा०, अजितशांति - खरतर० अमुक संयोगों में एक ही कृति, विभिन्न, प्रतों में विविध कर्ताओं के नाम से प्राप्त हुई है उन कृतियों को भी एकाधिक आवृत्तियाँ उपलब्ध कर्तानाम से ही गृहित की गई हैं. तीर्थंकरों, ऐतिहासिक पुरुषों व तीर्थों आदि के कई बार अनेक नाम मिलते हैं. वहाँ पर जहाँ संभव था वहाँ एकरूपता हेतु निम्नोक्त स्थिर नामों के ही उपयोग का आग्रह रखा गया है. For Private And Personal Use Only Page #35 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir कैलास श्रुतसागर सूची प्रकाशन की रूपरेखा इस सूचीपत्र में मुख्य तीन विभाग किए गए हैं. १ हस्तप्रत माहिती. २ कृति माहिती. ३ विद्वान- व्यक्ति माहिती. यद्यपि कम्प्यूटर में सभी तरह की सूचनाएँ विस्तृतरूप से भरी गई हैं एवं आगे भी उनमें परिष्कार, विस्तार जारी रखने का आयोजन है. प्रत्येक विभाग में मात्र तत्-तत् विभाग की सूचनाएँ शक्य विस्तार से देकर अन्य विभागों की सूचनाओं को आवश्यक हद तक संक्षेप में दिया जाएगा. इन संक्षिप्त सूचनाओं की विस्तृत माहिती के लिए संबद्ध विभाग के सूचीपत्र की अपेक्षा रहेगी. उपयोगिता एवं अनुकूलता के अनुसार उपरोक्त तीनों विभागों के सूचीपत्रों के प्रकाशन का आयोजन है. १. हस्तप्रत विभाग इस विभाग में महत्तम उपयोगिता को ध्यान में रखते हुए कृति की प्रधानता के अनुसार निम्न वर्ग किए गए हैं. ये सूचियाँ यथोपलब्ध प्रत क्रमांक के अनुक्रम से होगी. १.१ जैन कृति वाली प्रते. १.२ धर्मेतर साहित्यिक आदि कृति वाली प्रतें. १.३ वैदिक कृति वाली प्रते. १.४ शेष धर्मों की कृति वाली प्रतें. इनमें प्रथम हस्तप्रत आधारित इस सूची में सूचनाएँ दो स्तरों पर दी गई हैं. प्रत माहिती स्तर : इस स्तर पर प्रत संबंधी उपलब्ध सूचनाएँ उपयोगिता एवं सूची पुस्तक के कद की मर्यादा को ध्यान में रखते हुए विविध अनुच्छेदों में शक्य महत्तम विस्तार से दी गई हैं. कृति माहिती स्तर : इस द्वितीय स्तर पर प्रत में रही कृतियों का निर्णय करने हेतु आवश्यक लघुतम सूचना ही दी गई है. पुस्तक के कद को मर्यादित रखने के लिए भी यह आवश्यक था. कृति की शक्यतम विस्तृत माहिती तो द्वितीय कृति विभाग वाली सूची में दिए जाने का आयोजन है. १.५ हस्तप्रत विभाग के परिशिष्ट : इस वर्ग में हस्तप्रत विभागीय विविध परिशिष्टों का समावेश किया जाएगा. १.५.१ प्रत, पेटांक व कृति लेखनगत विशिष्ट प्रतिलेखन पुष्पिकाओं का संग्रह. (देखें - प्रतिलेखन पुष्पिका परिचय) १.५.२ प्रतिलेखन वर्ष से प्रत क्रमांक : प्रत में उपलब्ध प्रतिलेखन वर्ष को वीरसंवत में बदलकर वर्ष के अनुक्रम से प्रत की माहिती इस सूची में दी जाएगी. विक्रम, शक, ईस्वी आदि अन्य वर्ष प्राप्त करने के लिए जरूरी वर्ष घटाने ो. प्रचलित संवतों में वीर संवत सब से प्राचीन होने से इसके आधार पर सभी तरह की सूचनाएँ एक ही अनुक्रम में आसानी से दी जा सकेगी. १.५.३ प्रतिलेखन स्थल से प्रत क्रमांक : हस्तप्रत जिस स्थल (नगर-गाँव) में लिखी गई हो वह नाम उपनाम, राज्य आदि अन्य आनुषंगिक उपलब्ध सूचनाओं के साथ यहाँ अकारादि क्रम से आएगा व प्रत्येक नाम के साथ उस नगर में लिखी गई प्रतों के क्रमांक व उपलब्ध प्रतिलेखन संवत - इतनी सूचनाएँ प्रतिलेखन संवत के अनुक्रम से आएगी. इससे विद्वानों को ऐतिहासिक अध्ययन हेतु सुगमता रहेगी. १.५.४ विद्वान/व्यक्ति (प्रतिलेखक आदि) नाम से प्रत माहिती : इस सूची में प्रत, पेटांक व कृति स्तर पर रही प्रतिलेखन पुष्पिकाओं में उल्लिखित हस्तप्रत को लिखने, लिखवानेवाले, पठनार्थ आदि विद्वान/व्यक्तियों का नाम अकारादि क्रम से आएगा. यह सूची द्विस्तरीय होगी. (१) विद्वान/व्यक्ति माहिती स्तर (२) प्रत माहिती स्तर. विद्वान/व्यक्ति माहिती स्तर पर विद्वान/व्यक्ति संबंधी आवश्यक लघुत्तम सूचना होगी एवं प्रत माहिती स्तर पर प्रतिलेखन वर्षानुक्रम से विद्वान व्यक्ति की प्रतिलेखक पठनार्थ आदि भूमिका, प्रतक्रमांक, पेटांक, कृतिक्रमांक], प्रतिलेखनवर्ष - ये सूचनाएँ आएगी. इससे विद्वान/ व्यक्ति के जीवन-कवन का अध्ययन करने में सुगमता रहेगी. 22 For Private And Personal Use Only Page #36 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir २. कृति विभाग इस विभाग के तहत कृति को केन्द्र में रखकर उससे संबद्ध अनेकविध सूचनाएँ निम्नोक्त प्रकार से आएगी. २.१ कृति पर से प्रत माहिती : इस सूची में 'कृति परिवार वृक्ष' शैली से कृति की शक्य महत्तम विस्तार पूर्वक सूचनाएँ होंगी. मूल (सर्वोच्च) कृतियाँ परस्पर अकारादि क्रम से होगी व तत्-तत् मूल कृति के नीचे उस पर से लिखी गई कृतियाँ, प्र-कृतियाँ, आदि शाखा/प्रशाखा की शैली से आएगी. इस वर्ग में उपयोगिता एवं सुविधा को ध्यान में रखते हुए समग्र साहित्य जैन, धर्मेतर, वैदिक व अन्य धर्म (२.१.१-२.१.४) इन चार उपवर्गों में विभक्त होगा एवं प्रत्येक वर्ग पुनः भाषा वर्गानुसार निम्नोक्त चार-चार प्रकारों में विभक्त होगा. २.१.१.१ जैन संस्कृत, प्राकृत, अपभ्रंश - स्थिर कृतियाँ. २.१.१.२ जैन मारूगुर्जर, गुजराती, राजस्थानी इत्यादि देशी भाषाओं की - स्थिर कृतियाँ. २.१.१.३ जैन संस्कृत, प्राकृत, अपभ्रंश - फुटकर कृतियाँ. २.१.१.४ जैन मारूगुर्जर आदि देशी भाषा - फुटकर कृतियाँ. २.१.२.१ से ४ धर्मेतर शेष - उपरोक्त चारों प्रकार की कृतियाँ. २.१.३.१ से ४ वैदिक - उपरोक्त चारों प्रकार की कृतियाँ. २.१.४.१ से ४ अन्य धर्म - उपरोक्त चारों प्रकार की कृतियाँ. यहाँ पर 'स्थिर' कृति से जिनकी विधिवत स्वतंत्र रचना हुई हो अथवा किसी कृति का अंश ही होने पर भी जिसकी स्थापना एक स्वतंत्र कृति के रूप में प्रस्थापित हो - यह अर्थ लिया जाएगा. यथा - आगम, प्रकरण, महाकाव्य, स्तवन, स्तुति, टीका, बालावबोध आदि. व्यक्तिगत छुटपुट उद्धरण संग्रह, बोल, थोकडा चर्चा आदि को यथायोग्य 'फुटकर' कृतियों में लिया गया है. _ इस सूची में दो स्तर पर यथोपलब्ध संपूर्ण कृति माहिती एवं लघुत्तम आवश्यक मात्रा में संबद्ध प्रतों की माहिती आएगी. प्रत माहिती स्तर पर प्रत/पेटांकगत कृति के अध्याय, गाथादि एवं ग्रंथान के प्रतगत वैविध्य को एवं प्रतगत आदि/अंतिमवाक्य के वैविध्य को भी निर्दिष्ट किया जाएगा ताकि संबद्ध प्रतों के तुलनात्मक अध्ययन में सुगमता रहे. २.२ आदिवाक्य से कृति माहिती: इस सूची में अकारादिक्रम से आदिवाक्य एवं उनसे जुड़ी कृति की माहिती होगी. आदिवाक्य एवं अंतिमवाक्य की विशेषता है कि हर कृति के लिए ये सर्वथा भिन्न होते हैं. किन्हीं भी दो कृतियों का संपूर्ण पाठ पूर्णतः समान-एक जैसा नहीं हो सकता. इनकी इसी विशेषता के बल से हम किसी भी कृति को निर्णित रूप से ढूँढ़ सकते हैं. अन्य तरीकों से इतना निर्णित ढंग से कृति को ढूँढना कई बार सहज संभव नहीं हो पाता. यथा पार्श्वनाथ भगवान के अज्ञात कर्तृक 'मा.गु.' भाषा में पांच गाथा के अनेक स्तवन मिल जाएँगे. ऐसे में मात्र आदि-अंतिमवाक्य ही प्रत्येक स्तवन को एक दूसरे से भिन्न सिद्ध कर पाएँगे. फिर भी आदि वाक्यों में कुछ एक व्यावहारिक समस्याएँ देखी गई हैं. आगमिक आदि कई कृतियों के आदि/अंतिमवाक्य काफी दूर तक एक समान होते हैं. अतः प्रारंभिक स्तर पर ही भिन्नता लाने के लिए इन्हें यहाँ अनुभवों के आधार पर बनाए गए नियमों के अनुसार शून्यादि निशानी के प्रक्षेप पूर्वक योग्यरूप से संक्षिप्त कर के लिया जाता है. २.३ अंतिमवाक्य से कृति माहिती : यह सूची भी आदिवाक्यवाली सूची की तरह होगी परंतु इसमें निम्नोक्त भिन्नता होगी. इसमें 'अंतिमवाक्य' अपने अंतिम अक्षर पूर्व के अक्षरों की ओर विलोम (उल्टे) जाते हुए अक्षरों के अकारादि क्रम से अवस्थित होंगे. सेटिंग में भी अंतिमवाक्य को दाईं ओर सटाकर right align कर के रखा जाएगा ताकि अनेक अंतिम वाक्यों के अंत के अक्षर एक ही नजर में आ सकें. यहाँ पर अपेक्षित अंतिमवाक्य के ढूँढने हेतु उन्हें दाएँ से बाएँ (right to left) पढ़ना होगा. For Private And Personal Use Only Page #37 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org २.४ विद्वान नाम से कृति माहिती इस सूची में विद्वान व उनसे संबद्ध कृतियों की लघुतम आवश्यक सूचनाएँ होंगी. यह सूची द्विस्तरीय होगी. इसमें विद्वान नाम अकारादि क्रम से होंगे और प्रत्येक विद्वान नाम के नीचे उनकी रची हुई कृतियाँ अकारादिक्रम से दी जाएगी. २.५ रचना वर्ष से कृति माहिती कृति के रचना वर्ष को वीर संवत में बदलकर उस वर्ष के अनुक्रम से कृति की माहिती इस सूची में दी जाएगी. विक्रम, शक, ईस्वी आदि अन्य वर्ष प्राप्त करने के लिए निर्धारित जरूरी वर्ष घटाने होंगे. २.६ रचना स्थल से कृति माहिती : कृति की रचना जिस स्थल (गाँव, नगर) में हुई हो उनके नाम उपनाम, उपलब्ध राज्य आदि सूचना के साथ अकारादि क्रम से दिए जाएँगे. प्रत्येक नाम के नीचे उसके साथ जुड़ी हुई कृतियों की संक्षिप्त माहिती भी दी जाएगी. एक ही स्थल के कालभेद व बोलीभेद से अनेक स्वरूपों में नाम मिलते हैं. इन सभी नामों से स्थलों की खोज हो सकेगी. २.७ भाषा पर से कृति माहिती : प्राकृत, संस्कृत, अपभ्रंश आदि प्रत्येक भाषा के आधार पर कृतियों की सूची प्रकाशित करने की भी योजना है. इसमें सर्वप्रथम भाषाओं का शीर्षक आएगा और उसके नीचे अकारादि क्रम से कृति की आवश्यक सूचनाएँ दी जाएँगी. २.८ विषय विभाग पर से कृति माहिती इसमें कृतिगत निर्धारित विषय विभागों के अनुसार कृति की सूची होगी.. ३. विद्वान / व्यक्ति व गच्छ माहिती विभाग Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir इस विभाग में कृति व हस्तप्रतों से संबंधित विद्वान / व्यक्तियों एवं गच्छों की विविध प्रकार से सूचनाएँ देने का आयोजन है. ३.१ विद्वान / व्यक्ति माहिती यह वर्ग विद्वान / व्यक्तियों से संबद्ध विस्तृत माहिती का होगा व विद्वान नाम / उपनाम के अकारादि क्रम से यह सूची होगी. यह सूची अनेक उपवर्गों में विभक्त होगी. ३.१.१ जैन साधुओं की सूची : आचार्य, उपाध्याय, पंन्यास, पंडित, गणिवर्य, मुनि आदि की विस्तृत माहिती से युक्त सूची. ३.१.२ जैन साध्वियों की सूची : प्रवर्तिनी, साध्वी, आर्या आदि की विस्तृत माहिती से युक्त सूची. ३.१.३ जैन श्रावकों की सूची : जैन श्रावकों की विस्तृत माहिती से युक्त सूची. ३.१.४ जैन आविकाओं की सूची जैन श्राविकाओं की विस्तृत माहिती से युक्त सूची. ३.१.५ शेष विद्वान / व्यक्तियों की सूची राजा, मंत्री एवं अन्य व्यक्तियों की सूची. ३.२ विद्वान शिष्य / संतति माहिती नाम अकारादिक्रम वाली इस सूची में विद्वान के शिष्य संतति की सूची होगी. ३.३ विद्वान शिष्य परम्परा वंशवृक्ष : इस सूची में हस्तप्रतों, कृतियों में उपलब्ध गुरू-शिष्यादि परंपराओं को संकलित कर विविध वंशवृक्षों के रूप में प्रस्तुत की जाएगी. ३.४ विद्वान-गच्छ माहिती वर्ग : गच्छ को केन्द्र में रखते हुए निम्नोक्त वर्गों की सूचियाँ बनेंगी. ३.४.१ गच्छ माहिती : इसमें प्रतों की प्रतिलेखन पुष्पिकाओं एवं कृतियों की रचना प्रशस्तियों में उपलब्ध सभी गच्छों की शक्य विस्तृत माहिती गच्छनाम, उपनामों के अकारादि क्रम से होगी. ३.४.२ गच्छ शाखा प्रशाखा वंशवृक्ष इसमें मुख्य गच्छनाम के अकारादि क्रम से उनमें से निकली शाखा प्रशाखाओं की सूचनाएँ वंशवृक्ष शैली में होंगी. ३.४.३ गच्छानुसार विद्वान माहिती इसमें गच्छ माहिती व विद्वान माहिती संक्षेप में होगी व दोनों ही अपने-अपने स्तर पर अकारादिक्रम युक्त होंगी. सूची प्रकाशन की यह एक संभवित रूपरेखा है. अनुभवों, उपयोगिता एवं व्यवहारिक मर्यादाओं के आधार पर इसमें यथासमय योग्य परिवर्तन भी किया जाएगा. कृति, विद्वान एवं गच्छ माहिती का सुसंकलन अपने आप में एक महाकार्य है. काफी जटिलताएँ हैं इसमें पर्याप्त गवेषणाओं के लिए काफी श्रम, समय, सहायक सामग्री, धन व अनुभव की आवश्यकता रहेगी. 24 For Private And Personal Use Only Page #38 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र, कोबा तीर्थ आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर व इसके प्रणेता आचार्य श्रीमत् पद्मसागरसूरि महाराज द्वारा अनुपम श्रुतोद्धार श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र- कोबा तीर्थ अपनी प्राचीन श्रुतनिधि के संरक्षण व संवर्धन के लिए आज विश्वभर में सुप्रसिद्ध है. आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर में संगृहीत प्राचीन जैन व जैनेतर हस्तप्रतों का विशाल ज्ञानभंडार भारतभर में अपने ढंग का एक अद्वितीय संग्रह है. ग्रंथालय सूचना के क्षेत्र में अपने अनूठे तरीके से कम्प्यूटर आधारित विशेष आधुनिक सूचना पद्धति के द्वारा यह ज्ञाननिधि ज्ञान-पिपासु साधक वर्ग, श्रमण समुदाय, विद्वान समूह व आम जनता के लिए एक सुन्दर उपलब्धि स्रोत बनी है. यहाँ पर न केवल एकाध प्रवृत्ति का स्रोत है, वरन् सम्यग् ज्ञान-दर्शन-चारित्र की सामग्रियों का भी त्रिवेणी संगम हुआ है. जिन्होंने भी इस ज्ञानतीर्थ का लाभ लिया है या स्पर्शना की है वे चाहे सामान्य व्यक्ति हो या विद्वान, गृहस्थ हो या साधु, श्रमण हो या संन्यासी सभी ने अपनी जिज्ञासा परितृप्त कर यहाँ के लिए मुक्त कंठ से प्रशंसा भरे आशीर्वचन प्रगट किए हैं, कर रहे हैं. इस क्षेत्र में जैन समाज व प्रमुख भारतवासियों को बड़े गौरव का अनुभव हो रहा है. आचार्य श्री पद्मसागरसूरि महाराज की हस्तप्रतों के संग्रह हेतु लगन अपनी प्राचीन श्रुत एवं कला विरासत के संरक्षण हेतु दिए गए योगदान के फलस्वरूप पूज्यपाद राष्ट्रसन्त आचार्य श्रीमत् पद्मसागरसूरीश्वरजी महाराज साहब का उपकार युगों-युगों तक भूलाया नहीं जा सकेगा. पूज्यश्री ने सम्यग् ज्ञान के संरक्षण व संवर्धन के लिए ऐसा अनुपम कार्य किया है, जिसका इस युग में कोई उदाहरण नहीं है. आनेवाली पीढ़ी इस कार्य को एक सर्वश्रेष्ठ कार्य के रूप में सुवर्णाक्षरों से इतिहास में अंकित करेगी. बरसों पहले (सन् १९६५ के आसपास) हिन्दुस्तान पाकिस्तान का युद्ध चल रहा था. उस समय हस्तलिखित ग्रंथों को बेचनेवाले बहुत आया करते थे. आचार्यश्री (उस वक्त मुनि अवस्था में) उन दिनों राजस्थान की पावन धरा पर विचरण कर रहे थे. आपने सोचा कि अपने पूर्वजों की महान सांस्कृतिक धरोहर बाहर चली जाय और विदेशों में बिके यह बात तो अच्छी नहीं है. अपनी विरासत, अपना साहित्य हम क्यों न सँजोकर रखें? इसे भारत से बाहर क्यों जाने दें? बस इसी बात ने पूज्यश्री के मानस पटल को उजागर कर दिया. एक निश्चय किया और जहाँ से मिला, जैसा भी मिला शक्य सारा का सारा पाण्डुलिपि साहित्य इकट्ठा करवा के उसे प्रतिष्ठित संस्थान लालभाई दलपतभाई भारतीय संस्कृति विद्यामंदिर (एल. डी. इंस्टीट्यूट ऑफ इन्डोलोजी) अहमदाबाद में भेजते रहे. इसी प्रकार शिल्प स्थापत्य की चीजें आप खोज-खोज कर वहीं पर भेजते रहे. मुनि श्री पुण्यविजयजी महाराज उन दिनों लालभाई दलपतभाई भारतीय संस्कृति विद्यामंदिर से जुड़े हुए थे और श्री कस्तूरभाई शेठ इसके संरक्षक थे. उन दोनों ने आपके इस स्तुत्य प्रयास और योगदान की बड़ी सराहना की. आगे भी अधिक से अधिक संग्रहणीय वस्तुओं का सहयोग करने की अपने पत्रों में अपील की थी. इसी दौरान पूज्य आचार्यश्री ने आगम प्रभाकर मुनि श्री पुण्यविजयजी को महोपाध्याय श्री यशोविजयजी की स्वहस्तलिखित पाण्डुलिपियां भेजीं तो मुनि पुण्यविजयजी महाराज के उद्गार थे- 'यदि तुमने मुझे पूज्य उपाध्याय यशोविजयजी के हस्ताक्षरों के दर्शन मात्र ही करवाए होते तो भी मैं अपने आप को धन्यभाग समझता, जब कि तुमने तो मुझे ये हस्तप्रतें भेंट ही भेज दी हैं.' इस प्रकार हजारों की संख्या में बहुमूल्य हस्तप्रत ग्रन्थसमूह का योगदान करके आचार्यश्री ने एल.डी. इन्स्टिट्यूट को समृद्ध कर गौरवान्वित किया तथा भारतीय संस्कृति की मूल्यवान निधि को नष्ट होने से बचाया. सम्यग् ज्ञानयज्ञ के इस भगीरथ कार्य के दौरान स्वनाम धन्य शेठ श्री कस्तूरभाई लालभाई और गुजरात के तत्कालीन उप मुख्यमंत्री श्री कान्तिलालजी घीया का आचार्यश्री से नियमित मिलना हुआ करता था. दोनों महानुभावों ने पूज्यश्री से निवेदन किया कि महाराजजी आप जो कार्य कर रहे हैं वह संघ के लिए बहुमूल्य है, परंतु अब यह कार्य संपूर्ण श्रीसंघीय 25 For Private And Personal Use Only Page #39 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org व्यवस्थापन के तहत ही किया जाय तो अत्युत्तम रहेगा. इसमें हम संपूर्ण सहयोग देंगे. आचार्यश्री ने इस बात पर बड़ी गंभीरता से गौर किया और उनके सृजनशील विचारों ने आज के श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र, कोबा तीर्थ जैसे अन्तर्राष्ट्रीय संस्थान को मानस जन्म दिया. श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र, कोबा तीर्थ की स्थापना Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आचार्यश्री का पुण्य ही ऐसा जागृत है कि एक ओर संकल्प किया तो दूसरी ओर से सहायक सामग्रियाँ एक-एक करके जुटने लगी. योगनिष्ठ आचार्यदेव श्री बुद्धिसागरसूरि महाराजजी ने अपने ग्रंथों में श्रुत समुद्धार एवं रक्षण की जो भावना जगह-जगह पर व्यक्त की है उसके दिव्य परमाणु एवं महान योगीराज दादागुरुदेव गच्छाधिपति आचार्य श्री कैलाससागरसूरि महाराज की प्रेरणा और आशीर्वाद तो मानो पुरुषार्थ और सिद्धि की तरह साथ ही थे. गच्छाधिपति आचार्यदेव की सठोरणा से कोबा चौराहे के आसपास की मौके की जमीन इस पुण्य कार्य हेतु स्वर्गस्थ शेठ रसिकलाल अचरतलाल शाह द्वारा सादर प्रस्तुत की गई. दादागुरुदेव श्री चाहते थे कि एक ऐसा उत्तम स्थान बनें जहाँ पर साधु भगवन्तों के अध्ययन की समुचित व्यवस्था हो. शास्त्र अध्ययन हेतु कोई भी सामग्री एक ही जगह से प्राप्त हो और साथ-साथ चारित्र व दर्शन की परिशुद्धि का पवित्र संगम हो. महापुरुषों की इच्छा ही कुदरत की इच्छा बन जाती है. ज्ञानभंडार के निर्माण हेतु शेठ श्री तेजराजजी जुगराजजी सालेचा का आर्थिक सहयोग भी प्राप्त हुआ. सन् १९८० के २६, दिसम्बर के शुभ दिन श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र, कोबा तीर्थ की विधिवत स्थापना हुई. - कलिकाल में मोक्षमार्ग के दो आधार स्तंभ है. प्रथम विश्व को आध्यात्मिक प्रकाश देनेवाले जिनबिम्ब और द्वितीय श्रुतज्ञान की सम्यग् उपासना इन दोनों का समन्वय है श्रीमहावीर जैन आराधना केन्द्र कोबा जिनशासन की प्रतिनिधि संस्थाओं में यह केन्द्र अग्रस्थान प्राप्त कर चुका है. यहाँ धर्म एवं आराधना की एकाध नहीं अनेकविध प्रवृत्तियों का महासंगम हुआ है. यह तीर्थभूमि कला स्थापत्ययुक्त भव्य जिनालय, आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर, जैन आराधना भवन ( उपाश्रय), आचार्य श्री कैलाससागरसूरि स्मारक मन्दिर (गुरुमन्दिर), मुमुक्षु कुटीर आदि विविध विभागों के साथ विशाल पैमाने पर विकसित होकर जिनशासन की प्रभावना करने में समर्थ सिद्ध हुई है. आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर का प्रारम्भ दादा गुरुदेव गच्छाधिपति आचार्य श्री कैलाससागरसूरि महाराज को समर्पित इस प्रकल्प का प्रारम्भ वैशाख सुदि ६, वि.सं. २०४९ को हुआ था. पूज्य आचार्यश्री ने यहाँ चल रहे ज्ञानयज्ञ के लिए अभी तक लगभग ८०,००० कि.मी. से भी अधिक पैदल विहार के दौरान जैन बस्ती से खाली हो चुके गाँवों में जाकर उपाश्रय आदि में बरसों से बंद पड़े कबाटों को जब बड़ी मुश्किली से खुलवाया तो अनेक जगहों पर बड़े आघातजनक अनुभव हुए. पूरे के पूरे ग्रंथ भरे कबाट दीमक भक्षित मिट्टी के ढेर के रूप में पाए गए तो कई जगहों पर बरसाती पानी कबाटों में प्रविष्ट हो जाने की वजह से भीग जाने के कारण ग्रंथ चिपक कर गट्टे की तरह हो गए एवं बुरी तरह फफूँद ग्रस्त व कीटक भक्षित पाए गए. कई बार लोहे के पीप आदि में ठूंस कर जैसे-तैसे भर दी गई धूल से सनी विशीर्ण हालत में प्रतें प्राप्त हुई हैं. कुछ स्थानों पर तो संघ वालों को पता तक नहीं था कि उनके पास विरासत रूप ग्रंथ भी है. ये टांड ( मचान, माळिए) पर चमगादडों के बीच बरसों से पड़े थे और वहाँ से मिले. कई जगहों पर सुरक्षित अवस्था में भी भंडार मिले. इन चिपके ग्रंथों के पत्रों को अलग करना स्वयं में एक दुरूह कार्य है. फफूँद व कीटकग्रस्त जीर्ण हो चुकी प्रतों को साफ कर पुनः मजबूत करना भी अत्यंत श्रमसाध्य कार्य है. इन्हें ठीक करते समय उड़नेवाले विषाक्त कणों से आँखें लाल हो जाती थी एवं नाक पर कपड़ा बाँधकर रखने पर भी जुकाम हो जाता था. इस कार्य की एक ही बैठक के बाद कपड़े पहन कर रखने योग्य नहीं रहते थे. नीचे गिरा कचरा भी इतना होता था कि एक बार में तो साफ भी नहीं होता था. रद्दी जैसे उन ढेरों में से भी कई बार बड़े ही काम के ग्रंथ मिले हैं. आज भी इस तरह से काम चलता ही रहता हैं. 26 For Private And Personal Use Only Page #40 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ग्रंथों की दुर्दशा की वजह है- भारत के लिए प्रतिकूल एवं कुदरती सिद्धान्तों से विरूद्ध ऐसी थोपी हुई आर्थिक सामाजिक व्यवस्थाएँ अपना लेने की वज़ह से गाँव, कस्बों के टूटने से हुआ शहरीकरण एवं अपने हृदय में रहे सांस्कृतिक गौरव को योजना पूर्वक तोड़नेवाली शिक्षा प्रणाली को अपनाने से हमारे भीतर अपनी संस्कृति व विरासत की ओर खड़ी हुई उपेक्षा. फलस्वरूप ऐसे भी अनेक लोग मिले जिन्हें स्वयं श्रुतोद्धार का कार्य करना या इसमें सहकार देना तो दूर रहा, कार्य में रोड़े डालना मात्र अपना कर्तव्य लगता है. ऐसों के बीच भी हर विघ्नों को लांघ कर अडिग संकल्प के धनी आचार्यश्री निरंतर यह कार्य करते ही रहे हैं. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पूज्यश्री इतना ही कर के रूके नहीं अपितु भारतीय शिल्प कला-स्थापत्य और खासकर जैन शिल्प स्थापत्य के उत्तम नमूने संगृहीत कर इसी संस्था में एक सुंदर संग्रहालय भी स्थापित करवाया है, जो सम्राट संप्रति संग्रहालय के नाम से विख्यात है. आचार्यश्री की कड़ी मेहनत तथा अटूट लगन से आज इस ग्रन्थागार में हस्तप्रत, ताड़पत्र व पुस्तकों का करीबन तीन लाख से ऊपर विशाल संग्रह, अनेक स्वर्णलिखित ग्रंथ, बेशकीमती सामग्री, सचित्र प्रतें, सैकड़ों मूर्तियाँ, शिल्प - स्थापत्य इत्यादि बहुमूल्य पुरातन सामग्री व सुंदर शिल्पकला के नमूने जैन व भारतीय संस्कृति की अमूल्य निधि व धरोहर के रूप में विद्यमान है. इस संग्रह के सदुपयोग का लाभ चतुर्विध संघ और देशी-विदेशी विद्वानों को निरंतर मिल रहा है. इतना ही नहीं यहाँ पर विकसित आधुनिक सुविधाओं के कारण संशोधन के क्षेत्र में कार्य कर रहे विद्वानों के लिए यह ज्ञानमंदिर आशीर्वाद रूप सिद्ध हुआ है. सच कहा जाय तो सैकड़ों वर्षों के बाद इतने विशाल जैन श्रुत साहित्य की सुरक्षा करनेवाले जैनाचायों में आचार्यश्री का सम्मानित नाम सदियों तक अग्र पंक्तियों में अंकित रहेगा. परम पूज्य आचार्यदेव श्री पद्मसागरसूरि महाराजश्री ने अनेक छोटे-बड़े मंदिरों का जीर्णोद्धार करवाया है, अनेक स्थानों पर जिनप्रतिमाओं की प्रतिष्ठा करवाई हैं परंतु श्रुतोद्धार का जो उन्होंने प्रयास किया है उसे इतिहास कभी भूला नहीं सकेगा. संपादक मंडल का हृदयोद्गार पूज्य राष्ट्रसन्त आचार्य श्रीमत् पद्मसागरसूरीश्वरजी की कृपादृष्टि एवं भारतीय साहित्य की लाक्षणिकताओं के अनुरूप सूचीकरण विज्ञान में अनेक उपयोगी विभावनाओं को सर्वप्रथम उपस्थित करने वाले पूज्य मुनिराज श्री अजयसागरजी की सत्प्रेरणा और उनका कुशल निर्देशन न होता तो शायद कैलास श्रुतसागर हस्तप्रत सूची रूप यह प्रथम पुष्प इतने सुंदर रूप में आपके कर-कमलों में अर्पण करने का हमें सौभाग्य प्राप्त न होता. मात्र निर्देशन ही नहीं अपितु अपने अनोखे अनुभव से हस्तप्रत के सभी कार्यों में मार्गदर्शन देकर हमे यह भगीरथ कार्य करने में प्रोत्साहित किया है एवं सक्षम बनाया है. कार्य की जटीलताओं से उद्भूत समस्याओं की विकट घड़ियों में जब पूज्य मुनिश्री कहते है कि- आठ पंडित आप लोग और नौवें पंडित के रुप में मैं अर्थात् अजयसागर... हर समय आपके साथ ही हूं. तब हमें नैतिक बल व आनन्द की यादगार अनुभूति होती है.. इनके वात्सल्यपूत मार्गदर्शन से ही हम Card Index प्रविष्ट करने से लेकर आज कम्प्यूटर पर सीधे सूचनाओं की प्रविष्टि व संपादन कार्य सुचारुतया करने में समर्थ हो सके हैं. वास्तव में हम सब तो निमित्तमात्र हैं, इस महाकार्य का श्रेय तो मुनिश्री को ही जाता है. इस कार्य की शृंखला में आगे भी आपका इसी प्रकार अमृतमय सान्निध्य रहे इसी मंगल कामना के साथ.... 27 संपादक मंडल आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमन्दिर, कोबातीर्थ For Private And Personal Use Only Page #41 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra १ २ ३ ४ हस्तप्रत सूचीकरण में विशिष्ट आर्थिक सहयोगियों की नामावली जैन सेन्टर ओफ नोर्धर्न केलिफोर्निया शेठ आणंदजी कल्याणजी (धार्मिक धर्मादा ट्रस्ट), पालडी श्री श्वेतांबर मूर्तिपूजक जैन बोर्डिंग श्री शंभुकुमार कासलीवाल शेठ मोतीशा जैन रिलिजीयस एन्ड चेरीटेबल ट्रस्ट श्री सांताक्रुज तपागच्छ जैन संघ ७ फेडरेशन ओफ जैन एसोसीएसन ईन नोर्थ अमेरीका, "जैना" ह. डॉ. प्रेम गडा अमेरीका ८ एम. जे. फाउन्डेशन ९ कल्याण पार्श्वनाथ जैन संघ, चौपाटी ५ ६ १ ३ ४ ५ ६ ७ ८ ९ १० ११ १२ 2 2 2 2 2 2 2 2 2 १३ १४ १५ १६ १७ १८ १९ २० २१ www.kobatirth.org २२ हस्तप्रत सूचीकरण में आर्थिक सहयोगियों की नामावली श्री शांतिनगर श्वे. जैन संघ श्री सुपार्श्वनाथ जैन संघ, वालकेश्वर श्री साबरमती रामनगर जैन श्वे. मू. पू. संघ साबरमती विमलाचल प्रीन्ट एन्ड पेक प्रा. लि. श्री साबरमती रामनगर जैन संघ साबरमती श्री दशापोरवाड सोसायटी जैन संघ ट्रस्ट, पालडी - किशोरमलजी सुमेरमलजी नाहर भायखल्ला श्री विश्वनंदिकर जैन संघ न्यु सेवा गुजरात सेवा केन्द्र श्री वडस्मा जैन संघ डी. आर. रांका श्री भीड़भंजन जैन श्वे. धनराजजी गणेशजी श्रीमाल जयंतिलाल शामलदास शाह गीरधरलाल जीवणभाई चेरीटी ट्रस्ट श्री गुजराती . मू. पू. संघ श्री लावण्य जैन श्वे. मू. पू. संघ प्रवीण महेंदीवाला श्री सुंदरनगर जैन संघ स्व. माणेकबेन शांतिलाल शाह (हस्ते. गौतम शांतिलाल शाह) सर्वे बिजनेस सर्विसीस प्रा. लि. सोनाचंदजी बैद 28 For Private And Personal Use Only अमेरिका अहमदाबाद अहमदाबाद मुंबई मुंबई मुंबई अहमदाबाद मुंबई अहमदाबाद अहमदाबाद अहमदाबाद अहमदाबाद मुंबई अहमदाबाद मुंबई मुंबई वडस्मा बेंग्लोर अहमदाबाद Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मुंबई मद्रास अहमदाबाद हावरा मुंबई अहमदाबाद Page #42 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir बेंग्लोर अहमदाबाद लांघणज मुंबई अहमदाबाद वेलोर बक्तावरमलजी तेजराजजी तालेडा दुदमल सरतमलजी बलार कांगा भंवरलालजी पूनमचंदजी नेमचंदजी बाबुलालजी संघवी महावीर ट्रेडर्स कुंदनमलजी पुखराजजी पीताणी भायाभाई भवानजी झवेरी बाबुभाई एम. मंगुकीया श्री लांघणज श्वे. मू. पू. जैन संघ उषाबेन ज्योतिन्द्रकुमार शाह एस. एस. कमल धनराजजी श्रीमाल जीवतराजजी शीवराजजी वी. एम. शाह स्व. मोहनलालजी वी. मुक्तिलाल चीमनलाल शाह ज्योतिबेन राजेन्द्रकुमार गांधी ए. गौतम सिंघी राजमलजी मुणोत शा केशरीमल गौतमचंद शा लक्ष्मीचंदजी अशोककुमारजी भीकमचंद प्रकाशचंदजी गांधी राजेन्द्र रतीलाल लालचंद उकलचंदजी भणसाली घेवरचंदजी तिलकचंदजी सुखराजजी सुमेरमलजी महेता कोलाचंदजी हस्तमलजी जोजाणी पृथ्वीराजजी वेलजीभाई सेठ थानचंदजी सोहनराजजी मीरा आनंद जैन परिषद भदूरमलजी यु. शाह अशोककुमारजी सुमेरमलजी परमार नरेशकुमारजी सुमेरमलजी परमार लहेरीभाई मोहनचंदजी के. सी. जैन वेलोर बेंग्लोर For Private And Personal Use Only Page #43 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir प्रात: स्मरणीय गच्छाधिपति आचार्यदेव श्री कैलाससागरसूरीश्वरजी के दिव्य आशीष सर्वथा सहु सुखी थाओ पाप ना कोई आचरो राग-द्वेषथी मुक्त थईने मोक्ष-सुख सहु जग वरो For Private And Personal Use Only Page #44 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ज्ञानमंदिरस्थ हस्तप्रतों में उपलब्ध संभवित अप्रकाशित कृतियों की सूची आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर के ग्रंथालय में उपलब्ध प्रकाशनों व हस्तप्रतों की अभी तक प्रविष्ट सूची के आधार पर निम्नलिखित हस्तलिखित ग्रंथों के अप्रकाशित होने की संभावना है. यह सूची मात्र उपरी तौर पर ही ढूंढी गई कृतियों की ही है, इनके अलावा भी बड़ी संख्या में मूल ग्रंथ, टीका, अवचूरियाँ, रास आदि साहित्य व लघु अप्रकाशित कृतियाँ मिल सकती है. संस्कृत प्राकृत कृतियाँ १. स्थानांगसूत्र- दीपिका टीका, रचना संवत - १६५९. कर्ता - मेघराज, पार्श्वचंद्रसूरि के शिष्य. प्रत- ११४४४. ले. संवत १७०९. २. उत्तराध्ययनसूत्र की टीका, रचना संवत - १६७५. कर्ता - खरतरगच्छीय पुण्यसागर प्रत - ११९. ले. संवत - १७वी. ३. समवायांगसूत्र की अवचूरि, रचना संवत - १६९९. कर्ता- तपागच्छीय हर्षोदयमुनि के स्व हस्ताक्षरों से लिखित प्रति प्रत- ५२५२. ले. संवत - १६९९. ४. आवश्यकसूत्र, नियुक्ति व भाष्य इन तीनों पर लघुवृत्ति, रचना संवत १२९६. कर्ता चंद्रगच्छीय तिलकाचार्य प्रत ७१५. ले. संवत १५०६. ५. दशाश्रुतस्कंधसूत्र की जनहिता टीका कर्ता नागपुरतपागच्छीय ब्रह्मर्षि (विनयदेवसूरि ). प्रत- ११५५९. ले. संवत १९०३. ६. जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति की टीका, रचना संवत १६७५. कर्ता- खरतरगच्छीय पुण्यसागर प्रत - ११९ ले संवत १७वी. ७. जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति की टीका, कर्ता नागपुरतपागच्छीय ब्रह्मर्षि (विनयदेवसूरि) प्रत- ५७३३२. ले. संवत १७वी. ८. पञ्चाशक की (सं./प्रा.) चूर्णि कर्ता चंद्रसूरि प्रत- १४१९३. ले. संवत १६१८. ९. श्राद्धलघुजीतकल्प सह स्वोपज्ञ टीका, कर्ता- चंद्रगच्छीय तिलकाचार्य. प्रत- ६०३७५. ले. संवत-१४७६. १०. पौषधिकप्रायश्चित्तसामाचारी सह स्वोपज्ञ टीका, कर्ता- चंद्रगच्छीय तिलकाचार्य. प्रत- ६०३७५. ले. संवत - १४७६. ११. बृहत्क्षेत्रसमास नव्य, रचना संवत - १३७३. कर्ता - तपागच्छीय सोमतिलकसूरि. प्रत- ५९३३. ले. संवत - १६वी. १२. बृहत्क्षेत्रसमास जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण कृत का संक्षेप लघुक्षेत्रसमास. प्रत- २१०५६. ले. संवत - १६०४. १३. साधुवन्दित्तुसूत्र की अर्थनिर्णयकौमुदी टीका, रचना संवत - १३६४. कर्ता- खरतरगच्छीय जिनप्रभसूरि. प्रत- ३१५४६. ले. संवत - १६वी. १४. सिद्धहेमशब्दानुशासन अष्टम अध्याय की व्युत्पत्तिदीपिका टीका, रचना संवत १६\१७वी. कर्ता बृहत्तपागच्छीय उदयसौभाग्य प्रत - १२८७० ले संवत - १६२५. १५. सिद्धहेमप्राकृत व्याकरण तहत अपभ्रंश व्याकरण की स्वोपज्ञ वृत्तिगत उदाहृत दोधक टीका की दोचकव्याख्यालेश टीका, कर्ता तपागच्छीय सुमतिरत्न प्रत- ६४०३४. ले. संवत १६४७. १६. श्रीपालनरेन्द्र चरित्र रचना संवत - १५७२. कर्ता- तपागच्छीय कमलचारित्र के शिष्य चारित्रविजय (विजयचारित्र ?). प्रत- ३५६८. ले. संवत १५७८. १७. शान्तिनाथ चरित्र, रचना संवत १३२२. कर्ता मुनिदेवसूरि (देवचंद्रसूरि कृत प्राकृत भाषा निबद्ध शांतिनाथ चरित्र पर आधारित. कनकप्रभ के शिष्य प्रद्युम्न द्वारा शंसोधित) प्रत - ६०४७८. ले. संवत - १५वी. १८. मेघाभ्युदय काव्य सह अवचूरि, कर्ता - मानांकसूरि श्लोक-३६. प्रत- ३१११८. ले. संवत - १७वी. १९. वृंदावन काव्य सह अवचूरि, कर्ता - पूर्णतल्लगच्छीय शांतिसूरि श्लोक - ५२. प्रत- ३१११८. ले संवत - १७वी. २०. भावशतक सह स्वोपज्ञ अवचूरि, रचना संवत - १६३४. कर्ता - तपागच्छीय हेमविजय प्रत- ३३४६. ले. संवत - १७वी. २१. भक्तामर स्तोत्र की बालहितैषिणी टीका, रचनासंवत १६५२. कर्ता तपा. कनककुशल प्रत १३६८८. ले. संवत १६६३. २२. अमरुशतक की शृङ्गारदीपक टीका कर्ता कोमटि भूपाल प्रत- ५७९०७. ले. संवत १७६७. 31 For Private And Personal Use Only Page #45 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org २३. न्यायसिद्धान्तमञ्जरी की टीका, रचना संवत - १७९४. कर्ता - कृष्ण भट्टाचार्य. प्रत- १६६३५. ले. संवत - १८वी. २४. कल्याणमंदिर स्तोत्र की टीका, रचना संवत १६५२. कर्ता तपागच्छीय कनककुशल प्रत २६०२७. ले. संवत १७४२. २५. कल्याणमंदिर स्तोत्र की टीका कर्ता तपागच्छीय गुणरत्नसूरि प्रत- २५९६. ले. संवत १५११. मारुगुर्जर भाषा की कृतियाँ १. चित्रसेनपद्मावती रास, रचना संवत - १७५७. कर्ता- तपागच्छीय कांतिसागर. प्रत- १३७८५. ले. संवत - १७६४. २. कुमारपाल रास, रचना संवत - १६४०. कर्ता - तपागच्छीय हीरकुशल. प्रत- २१६६१. ले.संवत-१६८१. ३. दामन्नक रास, रचना संवत १७८२. कर्ता- उदयरत्न. प्रत- १६४८५. ले. संवत १७८७. ४. सुरप्रियकेवली रास, रचना संवत - १५६७. कर्ता- लावण्यसमय प्रत - ९६६३. ले. संवत - १७वी. ५. उपमितिभवप्रपञ्चा रास रचना संवत १८वी. कर्ता खरतरगच्छीय जिनहर्ष प्रत- २१५४०. ले. संवत - १९वी. ६. ढालमञ्जरी, रचना संवत १८२२. कर्ता तपागच्छीय सुज्ञानसागर. प्रत- १५०७४ ले संवत १८६१. ७. हरिवंश रास, रचना संवत १७९९ कर्ता - उदयरत्न प्रत - १४४३३. ले. संवत - १९०३. ८. कयवन्ना रास, रचना संवत - १७३५. कर्ता- दीपविजय. प्रत- १३७२८. ले. संवत - १८वी. ९. उपदेशमाला रास रचना संवत १६८०. कर्ता- ऋषभदास संघवी के स्व हस्ताक्षरों से लिखित प्रति प्रत- २१३. ले. संवत १७वी. १०. श्रेणिक रास, रचना संवत - १६८२. कर्ता- ऋषभदास संघवी प्रत - १३८४४ ले संवत - १७वी. ११. पूजाविधि रास, रचना संवत १६८२ कर्ता ऋषभदास संघवी प्रत - १३८७८. ले. संवत १७वी. १२. जीवविचार रास, रचना संवत - १६७६. कर्ता- ऋषभदास संघवी. प्रत- ५७४१९. ले. संवत - १८वी. १३. श्रीपाल रास, रचना संवत - १८५३. कर्ता- तपागच्छीय चेतनविजय प्रत- ५८३१५. ले. संवत - १९वी . १४. श्रीपालराजा रास, रचना संवत १७३७. कर्ता- तपागच्छीय लक्ष्मीविजय प्रत - १६२२९. ले. संवत - १८१९. १५. शत्रुंजय रास, रचना संवत १६७३ कर्ता- भावविजय प्रत- २९७४७. ले. संवत १७००. १६. विद्याविलास चौपाई, रचना संवत - १७११. कर्ता - खरतरगच्छीय जिनहर्ष प्रत - १९३८०. ले. संवत - १७८५. १७. मृगांकलेखा रास, रचना संवत १७४८ कर्ता - खरतरगच्छीय जिनहर्ष. प्रत- १३७६५. ले. संवत - १७८७. १८. त्रैलोक्यसार चौपाई, रचना संवत - १६२७. कर्ता- सरस्वतीगच्छीय सुमतिकीर्तिसूरि प्रत - १४२८५. ले.संवत -१८वी. पाप ताप के हरण को, चंदन रस श्रुतज्ञान । श्रुत अनुभव रस राचिये, साचिये जिन गुण तान ।। Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir दुपम काल जिन बिम्ब जिनागम | भवियण कुं आधारा || श्रुतथी शुभमति संपजे, श्रुतथी जाय विकार, वासित जाणे भला, तत्त्वातत्त्व विचार || श्रुत 32 For Private And Personal Use Only Page #46 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org प्रस्तुत हस्तप्रत सूचीगत सूचनाओं का स्पष्टीकरण जैन हस्तप्रतों का समावेश करनेवाली हस्तप्रत आधारित इस सूची में सूचनाएँ दो स्तरों पर दी गई हैं. (१) प्रत माहिती स्तर (२) संबन्धित कृति माहिती स्तर प्रत माहिती स्तर इस स्तर पर प्रत संबंधी उपलब्ध सुचनाएँ उपयोगिता एवं सूची पुस्तक के कद की मर्यादा को ध्यान में रखते हुए विविध अनुच्छेदों में निम्नोक्त क्रम से शक्य महत्तम विस्तार से दी गई हैं. यद्यपि कम्प्यूटर पर ये सूचनाएँ और भी विस्तार से उपलब्ध है. १. प्रत क्रमांक : प्रत्येक प्रत का यह स्वतंत्र क्रमांक है. इस विभाग में मात्र जैन कृतियोंवाली प्रतों का ही समावेश होने से व बीच-बीच में अन्य वर्गों की प्रतें भी अनुक्रम में होने से वे क्रमांक यहाँ नहीं मिलेंगे. यह क्रमांक अनुच्छेद- Paragraph के बायी ओर निकला हुआ गाढ़े अक्षरों Bold type में छपा है. २. प्रत महत्तादि सूचक चिह्न यदि प्रत संशोधित हो, टिप्पणक आदि से युक्त हो, कर्ता के स्वहस्ताक्षर से लिखित हो इत्यादि निम्नोक्त आधारों से प्रत महत्वपूर्ण सिद्ध होती हो तो विद्वानों को प्रत की यह महत्ता बताने के लिए क्रमांक के बाद में कोष्टक के अंदर इस तरह (+), (), (#) चिह्न दिए गये हैं. २.१ प्रत में अग्रलिखित विशिष्टताएँ होने पर प्रत नंबर के बाद (+) का चिह्न लगाया गया है Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १. कर्ता द्वारा लिखित, २. कर्ता के शिष्य द्वारा लिखित, ३. प्रसिद्ध व्यक्ति द्वारा लिखित, ४. रचना के समवर्ती काल में लिखित, ५. संशोधित पाठ, ६. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, ७. अन्वयदर्शक अंक युक्त पाठ, ८. पदच्छेद चिह्न युक्त पाठ, ९. संधिसूचक चिह्न युक्त पाठ, १० वचन विभक्ति चिह्न युक्त पाठ, ११. पदसूचक चिह्न युक्त पाठ, १२. शुद्धप्रायः पाठ इनका उल्लेख प्रत विशेष के तहत होगा. २.२ प्रत दुर्वाच्य, अवाच्य, अशुद्ध पाठ वाली होने पर प्रत क्रमांक के बाद () का चिह्न लगाया गया है. इनका उल्लेख 'प्र. वि. ' में प्राप्त होगा. - २.३ कट, फट जाने आदि के कारण हुई प्रत व पाठ की निम्नोक्त अवदशाओं की जानकारी कराने के लिए प्रत क्रमांक के अंत में (#) का चिह्न लगाया गया है. छप गये हैं (८) अक्षर की स्याही फैल गई है (९) नष्ट होने लगे है (१०) नष्ट हो गयें है. इनका उल्लेख 'प्रत दशा' के तहत प्राप्त होगा. (१) मूल पाठ का अंश नष्ट हो गया (खंडित) (२) टीकादि का अंश नष्ट है (३) मूल व टीका का अंश नष्ट है. (४) टिप्पणक का अंश नष्ट है (५) अक्षर फीके पड़ गये (६) अक्षर मिट गये (७) अक्षर पन्नों पर आमने-सामने ३. प्रतनाम : यह नाम प्रत में रही कृति / कृतियों के आधार से बनता है. (१) कृति के एकाधिक नाम प्रचलित हो सकते हैं उनमें से प्रत में जो नाम दिया गया होगा वही नाम यहाँ लिया गया है. यथा- कल्पसूत्र हेतु यदि 'बारसासूत्र' या 'पर्युषणाकल्प' ऐसा नाम दिया हो तो वही नाम यहाँ पर लिया गया है. जब कि द्वितीय कृति स्तर पर तो कृति का जो प्रधान नाम 'कल्पसूत्र' होगा वही आएगा. इसी तरह प्रत में 'अइमुत्ता रास' की जगह 'एमंता रास' यह नाम होगा तो वही नाम प्रतनाम के रूप में आएगा. 33 · (२) कोई टीका विशेष का बृहत् टीका के रूप में उल्लेख हो तो वह नाम इसी तरह से यहाँ मिलेगा. कई बार बालावबोध या टबार्थ हेतु कर्ता / प्रतिलेखक वार्तिक टीका जैसी पहचान देते हैं. ऐसे में 'कल्पसूत्र का वार्तिक' इस प्रकार से ही नाम मिलेगा. जब कि द्वितीय स्तर पर 'कृति नाम' में तो बालावबोध या टबार्थ इसी तरह का मिलेगा. (३) प्रत में मात्र एक ही कृति या कृति परिवार के अंश रूप अनेक कृतियाँ मिश्रितरूप से हों (पेटा कृति का मामला For Private And Personal Use Only Page #47 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir न बनता हो) तो इसमें कृतिनाम सूचीकरण हेतु यहाँ पर निर्धारित यथानियम/यथायोग्य 'सह' आदि से युक्त आएगा. यथा - आवश्यकसूत्र सह नियुक्ति व टीका. (४) प्रत में यदि एकाधिक पेटाकृति/संयुक्त कृति परिवारांश हो तो यह नाम यथायोग्य विविध प्रकार का निम्नवत् दिया गया है(अ) प्रत में एक या अधिक कृतियाँ अंत के पत्रों में या क्वचित प्रारंभिक पत्रों में गौण रूप से हो तो यह नाम निम्न रूप से मिलेगा. • कल्पसूत्र सह टबार्थ व पट्टावली • गजसुकुमाल रास व स्तवन संग्रह (आ) प्रत में अनेक कृतियाँ गौण मुख्य भेद के बिना संगृहीत हो तो नाम निम्न रूप से सामान्य प्रकार के होंगे • स्तवन संग्रह • जीवविचार, कर्मग्रंथ आदि प्रकरण सह टीका. विशेष स्पष्टताओं हेतु देखें - 'कृति, प्रत, पेटांक, प्रकाशन नाम अवधारणा'. ४. पूर्णता - हस्तप्रत की पूर्णता संबंधी उपयोगिता व स्पष्टता को ध्यान में रखते हुए निम्नप्रकार से वर्गीकृत किया गया है. ४.१. संपूर्ण : पूरी तरह से संपूर्ण प्रत. ४.२. पूर्ण : मात्र एक देश से अत्यल्प अपूर्ण यथा - १०० में से ९८ पत्र उपलब्ध हो ऐसी प्रतों को अपूर्ण कह देने से प्रत की महत्ता कुछ ज्यादा ही घट जाती है एवं उपयोगी होने के बावजूद भी प्रथम दृष्ट्या संशोधक प्रत को देखना टाल दे ऐसा बन सकता है. इस तरह के अनुभवों को ध्यान में रखते हुए श्राद्धवर्य श्री जौहरीमलजी पारख ने संपूर्णता की नजदीकी को बतलानेवाले अर्थ में 'पूर्ण' शब्द को ऐसे संदर्भ में रूद किया था. ४.३. प्रतिपूर्ण : प्रतिलेखक ने उपयोगिता, आवश्यकता व सुविधा आदि के आधार पर कोई खास अध्याय अंश मात्र ही लिखा हो और उतना संपूर्ण हो. ४.४. अपूर्ण : प्रत का ठीक-ठीक हिस्सा अनुपलब्ध हो. प्रत क्वचित प्रतिलेखक/लहिया ही किसी कारणवश लिखना अपूर्ण छोड़ देता है - ऐसे में यहाँ प्रत अपूर्ण का संकेत मिलेगा एवं पूर्णता विशेष में प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण ऐसा उल्लेख मिलेगा. ४.५. त्रुटक : बीच-बीच के अनेक पत्र अनुपलब्ध हो. ४.६. प्रतिअपूर्ण : प्रतिलेखक ने ही कोई खास अध्याय मात्र ही लिखा हो और उसमें भी पत्र अनुपलब्ध हो. खासकर प्रत के अंत सिवाय के पत्र अनुपलब्ध हो ऐसे में यह संकेत तय हो सकता है. यह पूर्णता प्रत व कृति दोनो स्तरों पर होती है. दोनों स्तरों पर यह परस्पर समान और भिन्न भी हो सकती है. यथा- प्रत अपूर्ण हो तो भी उसमें यदि स्तवन आदि पेटा कृतियाँ हैं तो ज्यादातर पेटा कृतियाँ संपूर्ण हो सकती है. जिन कृतियों के पत्र नष्ट हो चुके है वे ही अपूर्ण होगी, सब की सब नहीं. इसी तरह संयुक्त रूप से लिखे गए मूल व टीका में से अंतिम पत्र नष्ट होने से मूल संपूर्ण और टीका अपूर्ण हो सकती है. क्वचित दोनों संपूर्ण हो और मात्र प्रतिलेखन पुष्पिका का भाग अनुपलब्ध होने से प्रत को संपूर्ण का दर्जा नहीं दिया गया हो ऐसा बन सकता हैं. ऐसे में प्रत के साथ पूर्णता 'पूर्ण' लिखा मिलेगा एवं दोनों कृतियों की पूर्णता में 'संपूर्ण' लिखा मिलेगा. • जहाँ प्रत व कृति दोनों की पूर्णता एक जैसी होगी वहाँ मात्र प्रत स्तर पर ही पूर्णता का उल्लेख मिलेगा. परंतु कृति की पूर्णता जहाँ प्रत से भिन्न होगी वहाँ वहाँ कृति के साथ भी खुद की पूर्णता का उल्लेख मिलेगा. • कृति स्तर पर यह मात्र - संपूर्ण, पूर्ण व अपूर्ण इन तीन प्रकार का ही मिलेगा. 34 For Private And Personal Use Only Page #48 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ५. प्रतिलेखन संवत : प्रत में उपलब्ध विक्रम, शक आदि संवत या लेखन शैली, अक्षरों की लाक्षणिकता आदि के आधार पर अनुमानित विक्रम संवत का उल्लेख किया गया है. ६. प्रत दशा : प्रथम दृष्टि से पता चल सके इस हेतु श्रेष्ठ, मध्यम, जीर्ण इन तीनों में से कोई भी एक माहिती यहाँ अवश्य दी गई है. दशा संबंधी विशेष माहिती 'प्र दशा' के अंतर्गत दी गई है. १ से ५०-४ (५, ७, १५, २७) = ४६. ५ से ६० (३*, १७, १८) = ५३. ७. पृष्ठ माहिती : प्रत के प्रथम व अंतिम उपलब्ध पृष्ठांक, घटते-बढ़ते पृष्ठ व उनका योग एवं कुल उपलब्ध पृष्ठ इतनी माहिती यहाँ आएगी. यथा Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 1*1 यहाँ ३ के साथ जो है वह अवास्तविक घटते पत्र का सूचक है यह पत्र हकीकत में घट नहीं रहा है परंतु प्रतिलेखक ने पत्रांक लिखने में भूल की है व एक अंक कुदा गया है. पाठ कहीं नहीं टूट रहा है. क्वचित अवास्तविक घटते पत्र हेतु (३+४) ऐसा भी लिखा होता है. अवास्तविक घटते पत्र की असर प्रत की संपूर्णता पर नहीं पड़ती. ५ से ६० - ३ (३ *, १७, २८) + २ (४,३५) = ५५. यहाँ '+ २' के बाद जो दो पत्रांक दिए हैं वे बढ़ते पत्र के है. प्रतिलेखक ने पत्रांक लिखते समय भूल से एक ही पत्रांक दुहरा दिया होता है. ऐसे में प्रत में पत्रांक के पास अक्सर 'पर' (प्रथम) व 'द्वि' ( द्वितीया) क्रमशः लिखा मिलता हैं. ८. लिपि माहिती : यहाँ प्रत जिस लिपि में लिखी गई है उसका उल्लेख किया गया है. यथा- जैन देवनागरी, देवनागरी, गुजराती, मोडी, बंगाली, तामिल-ग्रंथम्, मलयालम, कन्नड़, उडिया इत्यादि प्रस्तुत विभाग में समाविष्ट लगभग सभी हस्तप्रतों की लिपी जैन देवनागरी (जैदेना.) ही है. क्वचित् देवनागरी होगी एवं अपवादरूप किस्सों में गुजराती लिपी हो सकती है.. ९. प्रत प्रकार : सामान्यतः कागज की बिनबंधे छुट्टे पत्रों वाली प्रतों से भिन्न किसी भी पदार्थ पर लिखी गई गुटका आदि प्रकार की प्रत होगी तो उसका उल्लेख यहाँ आएगा. अन्यथा 'प्रत सर्व सामान्य कागज के छुट्टे पत्रों की है' यह समझ लिया जाना चाहिए. १०. प्रतिलेखन स्थल माहिति : जिस स्थल पर प्रत का लेखन कार्य हुआ हो उसका उल्लेख यहाँ दिया गया है. कई बार एक स्थान पर लेखन प्रारम्भ किया हुआ प्राप्त होता है तथा पूर्णता किसी अन्य स्थान पर ज्ञात होती है. क्वचित विविध पेटा कृतियाँ विविध स्थलों पर एवं विविध वर्षों में विविध व्यक्तियों द्वारा लिखी गई प्राप्त होती है. ऐसे में मुख्य या अंतिम पेटा कृति की यह माहिती प्रत माहिती के साथ दी गई है एवं अन्य पेटांकों की माहिती तत् तत् पेटांक के साथ दी गई है. क्वचित मूल व टीका/टबार्थ आदि भिन्न व्यक्तियों ने भिन्न स्थल-समय पर लिखे होते हैं इसमें से मूल के साथ की माहिती का उल्लेख प्रत माहिती में होता है एवं टीका आदि की माहिती का उल्लेख होता है. पेटांक वाले मामले में दोनों का उल्लेख 'पे.वि.' में किया गया है. 'प्र.वि.' में - ११. प्रतिलेखक नाम : प्रत को लिखने वाले (विद्वान या लहिया Scribe), जिनके पठनार्थ प्रत लिखी गई हो, जिनके उपदेश से प्रत लिखी गई हो, गच्छाधिपति - जिनकी निश्रा में प्रत लिखी गई हो या अन्य किसी रूप से प्रत के साथ व्यक्ति का नाम जुड़ा हो तो ऐसे यथोपलब्ध एक या अधिक व्यक्ति / विद्वान का नाम व गुरु, गच्छ का नाम यहाँ दिया गया है. गुरु परम्परा आदि के रूप में ये नाम काफी विस्तार से भी मिलते है परंतु इस सूची पत्र में अधिकांश प्रतिलेखक, पठनार्थ, निश्रादाता गच्छाधिपति आदि एक दो नामों तक का ही समावेश किया गया है. १२. प्रतिलेखन पुष्पिका उपलब्धि संकेत यदि प्रत में प्रतिलेखन पुष्पिका (संवत, स्थल, प्रतिलेखक आदि का उल्लेख ) की उपलब्धि की मात्रा के निम्नलिखित संकेत यहाँ दिए गए है. भविष्य में इन संकेतों के आधार पर विस्तृत सूचनाएँ खड़ी की जा सकेगी. फिलहाल संवत, प्रतिलेखक पठनार्थ व स्थल की ही माहिती मुख्य रूप से दी गई है. 35 For Private And Personal Use Only - Page #49 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir १२.१. नहीं : जब हस्तप्रत में कृति की समाप्ति के बाद कुछ भी लिखा नहीं होता तब प्रतिलेखन पुष्पिका की उपलब्धि 'नहीं' के रूप में दी गई है. १२.२. सामान्य : जब प्रतिलेखक का नाम, प्रतिलेखन का वास्तविक वर्ष, लेखन स्थल आदि संबंधी सामान्य सूचनाएँ उपलब्ध हो तब इसे 'सामान्य' लिखा जाता है. १२.३. मध्यम : जब प्रतिलेखक के गुरु, प्रेरक, गच्छ आदि तक की सामान्य माहिती हो तब 'मध्यम' स्वरूप की प्रतिलेखन पुष्पिका कही जाती है.. १२.४. विस्तृत : जब विस्तार से लहिया, गुरुपरम्परा, राजा, अमात्य आदि का वर्णन हो, वहाँ 'विस्तृत' प्रतिलेखन पुष्पिका मानी जाती है. १२.५. अतिविस्तृत : जब प्रतिलेखन पुष्पिका में विशेष रूप से अन्य अनेक सूचनाओं, कार्यों, घटनाओं आदि का वर्णन मिलता है तब उसे अति विस्तृत कहा जाता है. प्रस्तुत सूची में उपयोगीता की दृष्टि से मात्र मध्यम एवं विस्तृत का ही उल्लेख मिलेगा. अति विस्तृत का उपयोग भावी सूची पत्रों में होना हैं. १३. प्रतविशेष : प्रत संबंधी शेष उल्लेखनीय अन्य बातों का एवं प्रतगत कृति संबंधी परंतु संभवतः इसी प्रत में उपलब्ध; ऐसी उल्लेखनीय बातों का समावेश यहाँ किया गया है. खासकर कृति के परिमाण संबंधी अध्याय-ढाल आदि, गाथा, श्लोक, सूत्र आदि एवं ग्रंथाग्र की इस प्रत में उपलब्ध संयुक्त व स्वतंत्र संख्या का यथोचित उल्लेख किया गया है. कई बार यह देखा गया है कि पद्यबद्ध कृतियों में पद्य संख्या में विभिन्न प्रतों में विविधता मिलती है. अतः इनका उल्लेख यहाँ किया गया है. कई बार ग्रंथाग्र संख्या लहिया अपनी और से बढ़ाकर लिख देता था - इस तरह की सूचना को 'प्र.पु.-' पूर्वक लिखा गया है. इसी तरह प्रत क्रमांक के साथ दिए गए (+- चिह्नों हेतु शुद्धता आदि दर्शक आवश्यक सूचनाएँ भी यहाँ पर दी गई है. प्रत यदि पंचपाठ, त्रिपाठ, द्विपाठ पद्धति से लिखी गई हो उसकी भी सूचना यहाँ दी गई है. १४. पूर्णता विशेष : प्रत यदि संपूर्ण नहीं है तो कृति का कौन सा अंश उपलब्ध/अनुपलब्ध है यह स्पष्टता इसमें होगी. साथ ही प्रत यदि प्रतिलेखक द्वारा ही अपूर्ण छोड़ दी गई है तो उसका उल्लेख भी यहाँ होगा. अपूर्ण प्रतों में प्रारंभ व बीच के पत्र यदि अनुपलब्ध है तो उनका पता पृष्ठ माहिती के बढ़ते घटते पत्रों से चल जाता है परंतु अंत के पत्रों की अनुपब्धि का एकाएक विवरण यहाँ दिया गया है. १५. दशा विशेष : प्रत क्रमांक के साथ न द्वारा सूचित प्रत जीर्ण दशा व उसकी मात्रा संबंधी स्पष्टता यहाँ पर दी गई है. इसके आधार पर प्रत की उपयोगिता तय हो सकती है. १६. प्रतिलेखन श्लोक : प्रत के अंत में प्रतिलेखन पुष्पिका के साथ - जलाद् रक्षेत्..., यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा... आदि श्लोक दिए होते है इन श्लोकों/गाथाओं का संग्रह अलग से भावी खंडों में परिशिष्ट में दिया जाएगा. उस परिशिष्टगत श्लोकांक यहाँ लिखे मिलेंगे. साथ ही साथ संकेत के रूप में प्रथम पाद भी दिया गया है. १७. लंबाई, चौड़ाई : प्रत की लंबाई चौड़ाई आधे से.मी. के अंतर की शुद्धि के साथ यहाँ दी गई है. सामान्यतः जैन प्रतों के पृष्ठ, फिर भले ही वे चाहे १००० से भी ज्यादा क्यों न हो, बड़े ढंग से एक समान नाप में कटे मिलते हैं फिर भी अपवाद रूप मामलों में ये पत्र एक ही प्रत में छोटे-बड़े भी मिलते हैं वहाँ पर '-' से विभाजित कर पत्रों का लघुतम व महत्तम नाप दिया गया है. यथा २५.५-२७७१३.५-१४.५ - यहाँ पर 'x' के पूर्व में लघुतम व महत्तम लंबाई है एवं बाद में लघुतम व महत्तम चौड़ाई दी गई है १८. पंक्ति-अक्षर : नाप ही की तरह पृष्ठगत पंक्ति व पंक्तिगत अक्षरों को भी अंदाजन गिन कर लघुतम व महत्तम रूप से दिया गया है. नाप, पंक्त्याक्षर व कुल पृष्ठ संख्या के आधार पर आवश्यकता पड़ने पर कुल पृष्ठ x २ (पहलू) x पंक्ति x अक्षर/ ३२ - इस तरह गिनती कर के प्रत का अंदाजित ग्रंथमान निकाला जा सकता है. प्रत में जब मूल व टीका/बालावबोध दोनों ही हो तब सामान्यतः मूल ही के पंक्ति अक्षर दिए गए है - क्वचित लघुतम व महत्तम में दोनों की ही इकट्ठी गणना हो गई हैं. जिन प्रतों में पंक्ति, अक्षर दोनों में से जिसका भी अंदाज निकालना शक्य नहीं था 36 For Private And Personal Use Only Page #50 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org वहाँ - प्र. वि. में यथा संयोग 'पंक्ति/ अक्षर अनियमित' यूँ दिया गया है. नाप व पंक्त्याक्षर सबसे अंत में ' ( )' में दिए गए है. कृति माहिती स्तर इस द्वितीय स्तर पर प्रत में रही कृतियों का निर्णय करने हेतु आवश्यक लघुतम सूचना ही दी गई है. पुस्तक के कद को मर्यादित रखने के लिए भी यह आवश्यक था. कृति की शक्यतम विस्तृत माहिती तो 'द्वितीय कृति विभागवाली सूची में दिए जाने का आयोजन है, (क) यदि प्रत में एक ही कृति होगी तो मात्र उसी की सूचना दी गई है. (ख) संयुक्त कृति की पहचान के लिए कृति नाम के बाद # का चिह्न लगाया गया है. जैसे - आवश्यकसूत्र सह निर्युक्ति, भाष्य व तीनों की लघुवृत्ति देखें प्रत क्रमांक ७१५. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (ग) यदि प्रत में संयुक्त कृति परिवारांश रूप एकाधिक कृतियाँ (यथा, मूल, निर्युक्ति व टीका) हो तो उन सभी की सूचनाएँ क्रमशः नीचे-नीचे दी गई है. ये सूचनाएँ प्रत माहिती की प्रथम पंक्ति की अपेक्षा थोड़ी अंदर की ओर दबाकर दी गई है. (घ) यदि प्रत में अनेक पेटा कृतियाँ हों तो 'पे.'- संकेत के साथ पेटा क्रमांक पूर्वक सभी पेटा कृतियाँ (उपरोक्त क, ख दोनों प्रकार की ) क्रमशः दी गई है. १. पेटांक : इस स्थान पर प्रत में उपलब्ध एकाधिक स्वतंत्र कृतियों का क्रमशः अनुक्रम दिया गया है. यह गाढ़े अक्षरों में छापा गया हैं. २. पेटांक नाम प्रत में पेटा कृतियाँ हों तो पेटा नाम प्रत नाम के ही नियमों के तहत प्रत में यथोपलब्ध नाम के अनुसार आएगा. पेटांक में उपरोक्त 'ख' प्रकार से कृतियाँ हों तो 'सह' वाला पेटानाम अवश्य दिया गया है. कृति नाम इसके बाद के अनुच्छेद में दिया गया है. यदि पेटा नाम न हो तो उसकी जगह कृतिनाम ही इस पंक्ति में दे दिया गया है. यह नाम भी गाढ़े अक्षरों में छापा गया है. ३. पेटांक पृष्ठ इसके बाद वह पेटांक प्रत में किस पृष्ठ से किस पृष्ठ तक है, वे पृष्ठांक आएँगे. यथा ( १०-१५), (१०आ-१५अ). यहाँ 'अ', 'आ' पृष्ठ की अगली - पिछली ओर (obverse / reverse) के सूचक हैं. क्योंकि हस्तप्रतों में सामान्यतः पृष्ठ के दूसरी ओर ही पूरे पत्र का क्रमांक लिखा होता है. क्वचित १ / २ (४०) इस तरह से भी आधे पृष्ट हेतु लिखा मिल सकता है. ४. पेटांक विशेष : यदि उस पेटांक के लिए कोई विशेष माहिती (यथा, कृति की प्रस्थापित गाथा संख्या से भिन्न गाथा संख्या कृति अपूर्णता, प्रतिलेखक नाम, प्रतिलेखन स्थल, प्रतिलेखन संवत इत्यादि) उपलब्ध हो तो नाम के बाद पेटांक विशेष में दिया गया है. ५. कृति नाम : कृति का मुख्यनाम यहाँ दिया गया है. पेटानाम हो तो कृति का नाम द्वितीय अनुच्छेद में दिया गया है. पेटांक हो फिर भी स्वतंत्र पेटानाम न हो तो कृतिनाम प्रथम अनुच्छेद में दिया गया है. कृति नाम व कर्ता नाम गाढ़े तिरछे - Bold+Italic अक्षरों में दिये गये है. 1 ६. कर्ता स्वरूप, नाम : यहाँ पर कृति के एक या अधिक रचयिता (कर्ता) के स्वरूप (पहचान ) जैसे- आचार्य, उपाध्याय, गणि, मुनि, साध्वीजी, पंडित, श्रावक आदि संबंधी संकेत सहित कर्ता के नामों का उल्लेख किया गया है. ७. कृति भाषा : प्राकृत, संस्कृत, अपभ्रंश, मारूगुर्जर, राजस्थानी प्राचीन हिन्दी आदि कृति की एक या एक से अधिक जो भी भाषाएँ हों वे दी गई हैं. , 37 ८. कृति प्रकार : गद्य, पद्य, गद्य व पद्य, कोष्ठक, यंत्रादि में से कोई भी कृति का प्रकार हो सकता है. ९. कृति रचना वर्ष कृति की पूर्णता का वर्ष कृति का रचना वर्ष कहा गया है, वह विक्रम, शक आदि वर्ष प्रकार के साथ यथोपलब्ध यहाँ दिया गया है. For Private And Personal Use Only Page #51 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir १०. पूर्णता : प्रतगत कृति की पूर्णता यदि प्रत की पूर्णता से भिन्न हो तो उसका उल्लेख यहाँ किया गया है, अन्यथा प्रत की पूर्णता ही कृति की पूर्णता समझी जानी चाहिए. ११. कति का आदिवाक्य : विविध प्रतों में एक ही कृति के थोड़े फेरबदल पूर्वक या बिल्कुल ही भिन्न विविध आदिवाक्य पाए जाते हैं. कभी मंगलाचरण होता है तो कभी नहीं होता. कल्पसूत्र में ज्यादातर प्रतियों में 'नमो अरिहंताणं' से पाठ प्रारंभ होता है परंतु कुछ एक प्रतों में सीधे 'तेणं कालेणं' से भी पाठ प्रारंभ होता पाया गया है. टबार्थ आदि में कभी मंगलाचरण भिन्न-भिन्न होते हैं परंतु शेष पाठ समान होता है तो कभी इससे विपरीत होता है. यही बात अंतिमवाक्य के लिए भी अपनी तरह से लागू होती है. इन सभी विविध आदि/अंतिम वाक्यों को कृति माहिती के साथ संकलित कर लिया जाता है और उस संग्रह में से प्रत में उपलब्ध एक या दो आदि वाक्यों को यथावश्यक यहाँ दिया गया है ताकि यह पता चल सकें कि हकीकत में प्रत में आदिवाक्य किस तरह से हैं. इस सूची में आदि/अंतिम वाक्यों के १५ से २० अक्षरों तक का भाग दिया गया है. विस्तृत रूप से आदि/अंतिमवाक्य २. कृति विभाग की सूची में देने का आयोजन है. १२. कृति का अंतिमवाक्य : कृति जहाँ पर पूर्ण होती है उन शब्दसमूहों को अंतिमवाक्य के रूप में आदिवाक्य की ही तरह लिया गया है. ० उपर्युक्त मुद्दों में १ से १२ तक के सभी मुद्दे प्रत में यदि पेटांक हो और वे पेटांक अपने स्वतंत्र नाम सहित हो तब दिए गए हैं. ० प्रत में पेटांक रहित कृतिवाली प्रतों हेतु ५ से १२ तक के मुद्दे आएँगे. ० बिना स्वतंत्र पेटांक नाम वाले संयोगों में उपरोक्त सूची से निम्नलिखित मुद्दे ही समाविष्ट किए गए हैं - १. पेटांक __ नंबर, ५. कृतिनाम, ६. कर्ता, ७. भाषा, ८. कृति प्रकार, ९. कृति रचना वर्ष, (३. प्रत में पेटा कृति के पृष्ठ, १०. कृति की पूर्णता.) ११. आदिवाक्य, १२. अंतिमवाक्य. पे.वि., प्र.वि., पू.वि. इत्यादि प्रतीक तिरछे दिए गए है. कृति व विद्वान के अपरनाम यद्यपि कम्प्यूटर पर उपलब्ध हैं फिर भी इस सूची में उनकी उपयोगिता अत्यल्प ही होने से व कद की मर्यादा होने से यहाँ नहीं दिए गए हैं. प्रस्तुत सूची पत्र में निम्नलिखित संख्या में सूचनाओं का संग्रह दिया गया हैं. ० अंतिम प्रत क्रमांक - ५५८५ ० इस सूचीपत्र में मात्र जैन कृतियों वाली प्रतों का ही समावेश किया होने से वास्तविक रूप से ३९३३ प्रतों का ही समावेश इस खंड में हुआ हैं. ० समाविष्ट प्रतों में कुल २८०२ कृति परिवारों का समावेश हुआ हैं. ० इन परिवारों की कुल ३९१२ कृतियों का समावेश हुआ हैं. ० उपरोक्त कृतियाँ प्रतों में कुल ८४८५ बार आई हैं. 38 For Private And Personal Use Only Page #52 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir प्रस्तुत सूची में प्रयुक्त संक्षेप व संकेत कृति /प्रत/पेटांक नाम के बीच : का, की, के, से इत्यादि विभक्ति सूचक प्रतक्रमांक के अंत में छोटे अक्षरों में - दुर्वाच्य अवाच्य अशुद्ध पाठ - सूचक प्रतक्रमांक के अंत में छोटे अक्षरों में - प्रत की महत्ता सूचक - कर्ता द्वारा लिखित प्रत कर्ता के शिष्य द्वारा लिखित प्रसिद्ध व्यक्ति द्वारा लिखित रचना के समवर्ती काल में लिखित संशोधित पाठ शुद्धप्रायः पाठ टिप्पण युक्त विशेष पाठ पाठ में सुगमता हेतु विविध प्रकार के चिह्नयुक्त प्रत यथाअन्वय दर्शक अंक युक्त पदच्छेद चिह्न संधिसूचक चिह्न वचन विभक्ति चिह्न क्रियापद सूचक चिह्न कृति नाम के बाद प्रयुक्त होने पर संयुक्त कृति की पहचान - यथा आवश्यकसूत्र सह नियुक्ति, भाष्य व तीनों की लघुवृत्ति. देखें प्रत क्रमांक - ७१५. प्रत की अवदशा, पाठ नष्ट हो जाने से उपयोगिता में कमी सूचक. इस हेतु दशा विशेष में निम्न संकेत हो सकते है. मूल पाठ का अंश नष्ट हो गया (खंडित). टीकादि का अंश नष्ट है. मूल व टीका का अंश नष्ट है. टिप्पणक का अंश नष्ट है. अक्षर फीके पड़ गये. अक्षर मिट गये. अक्षर पन्नों पर आमने-सामने छप गये हैं अक्षर की स्याही फैल गई है. जिर्णतावश नष्ट होने लगे हैं. जिर्णतावश नष्ट हो गये हैं. अर्द्धमागधी (भाषा) अपभ्रंश (भाषा) अंतिमवाक्य (कृति माहिती) आचार्य (विद्वान स्वरूप) अ.मा. अप. अंति. आ. For Private And Personal Use Only Page #53 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ग. देना. पठ. प+ग عو ر ته د आदि. आदिवाक्य (कृति माहिती) उपा. उपाध्याय (विद्वान स्वरूप) गच्छा . गच्छाधिपति ( विद्वान स्वरूप) गणि (विद्वान स्वरूप) गा. गाथा (परिमाण) गुज. गुजराती (भाषा) ग्रंथाग्र (परिमाण) जैदेना. जैन देवनागरी (लिपी) देवनागरी (लिपी) पठनार्थ (प्रतिलेखन पुष्पिका) पद्य व गद्य (कृति प्रकार) पंन्यास, पंडित (विद्वान स्वरूप) वर्ष के पूर्व में हो तो संवत से उतने वर्ष पूर्व का सूचक. यथा- विपू. ७वी. = विक्रम पूर्व सातवीं सदी. पू.वि. पूर्णता विशेष पृष्ठ (प्रत माहिती स्तर पर व पेटा कृति स्तर पर) पेटांक, पेटाकृति अनुक्रम प्रत माहिती स्तर में प्रतगत कुल पेटा कृति, कृति माहिती स्तर में पेटा कृति क्रमांक पे.नाम पेटाकृति नाम पे.वि. पेटांक विशेष, पेटाकृति विशेष प्र.वि. प्रति विशेष प्र.ले.श्लो. प्रत के अंत में मिलने वाले प्रतिलेखन श्लोक (जलात् रक्षेत्... इत्यादि) प्र.ले.पु. प्रतिलेखन पुष्पिका प्राकृत (भाषा) मुनि (विद्वान स्वरूप) मारुगुर्जर (भाषा) राज. राजस्थानी (भाषा) लिखवा. लिखवाने वाला (प्रतिलेखन पुष्पिका) ले. प्रतिलेखक, लहिया, Scribe (प्रतिलेखन पुष्पिका) ले.स्थल लेखन स्थल (प्रतिलेखन पुष्पिका) वर्ष संख्या के पूर्व होने पर वीर संवत, वर्ष संख्या पश्चात होने पर 'वीं सदी' यथा वी ८वीं सदी विक्रम संवत शक संवत सर्वग्रं. सर्व ग्रंथाग्र (प्रत व पेटांक विशेष में) संस्कृत (भाषा) श्रावक (विद्वान स्वरूप) साध्वीजी (विद्वान स्वरूप) प्रा. मा.गु. वि. 40 For Private And Personal Use Only Page #54 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir अनुक्रमणिका मंगलकामना समर्पण ......... 2 प्रकाशकीय ...... ....... 3-4 प्राक्कथन 5-8 .... 12 हस्तप्रत : एक परिचय .. 9-11 हस्तप्रत प्रतिलेखन पुष्पिका : एक परिचय विविध अवधारणाएँ ................ 13-21 कृति अवधारणा ...... 13-17 पेटा कृति अवधारणा 17-18 कृति, प्रत, पेटांक व प्रकाशन नाम की अवधारणा ..... 18-21 कैलास श्रुतसागर सूची प्रकाशन की रूपरेखा ......... 22-24 श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र व श्रुतोद्धार का इतिहास ........... 25-27 हस्तप्रत सूचीकरण सहयोग सौजन्य 28-29 संभवित अप्रकाशित कृतियों की सूची 31-32 प्रस्तुत सूची की सूचनाओं का स्पष्टीकरण ..................... 33-38 प्रस्तुत सूची में प्रयुक्त संक्षेप व संकेत .................... 39-40 हस्तप्रत सूची १-५६० For Private And Personal Use Only Page #55 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir || श्री महावीराय नमः || ।। श्री बुद्धि-कीर्ति-कैलाससागरसूरि सद्गुरुभ्यो नमः ।। कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची हस्तलिखित जैन साहित्य भाग - १ १.” कल्पसूत्र सह टिप्पण, पूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ७२-१(३०)=७१, जैदेना., प्र.वि. संशोधित, पंचपाठ-प्रारंभिक पत्र, पदच्छेद सूचक लकीरें-लाल, पू.वि. बीच के व अंतिम पत्र नहीं हैं., (२७.५४१२, ९४३१). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदिः णमो अरिहन्ताणं० पढमं; अंति: कल्पसूत्र-टिप्पण, सं.,मागु., गद्य, आदि:-; अंतिः२. कल्पसूत्र व दोहा, संपूर्ण, वि. १८४९, श्रेष्ठ, पृ. ४०, पे. २, जैदेना., ले.स्थल. सोजतनगर, पठ. पं. गुलाबचन्द (गुरु पं. रायचन्द): पं. हरखचन्द (गुरु पण्डित रायचन्द),प्र.ले.पु. मध्यम, (२५.५४१३, १५४३६). पे. १. कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, (पृ. १-४०आ), आदिः णमो अरिहन्ताणं० पढमं; अंतिः उवदंसेइ त्ति बेमि., पे.वि. ९-व्याख्यान; प्र.पु. ग्रं.१२००. पे. २. औपदेशिक दोहा, कवि तुलसी, हिन्दी, पद्य, (पृ. ४०आ), आदिः ग्यान गरिब गुरु; अंतिः सरधा सील सन्तोष., पे.वि. गा.१. ३." बारसासूत्र, संपूर्ण, वि. १८९०, श्रेष्ठ, पृ. १०१+२(३५ से ३६)=१०३, जैदेना., प्र.वि. ९-व्याख्यान, ग्रं. १२१६, संशोधित, (२५४१२, ७४३०). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: णमो अरिहन्ताणं० पढमं; अंतिः उवदंसेइ त्ति बेमि. ४." कल्पसूत्र सह बालावबोध व व्याख्यान+कथा, संपूर्ण, वि. १७५८, श्रेष्ठ, पृ. १००-१(४९)=९९, जैदेना., प्र.वि. मूल-९ व्याख्यान., संशोधित, (२७४१३, १४४३७).. कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदिः तेणं कालेणं० समणे; अंतिः उवदंसेइ त्ति बेमि. कल्पसूत्र-बालावबोध*, मागु.,राज., गद्य, आदिः उत्तराफाल्गुनी; अंतिः जगन्नाथ बोलइ. कल्पसूत्र-व्याख्यान+कथा* , मागु., गद्य, आदिः एह श्रीकल्पसूत्रई; अंतिः कथा वर्तमान जोग. ५.” कल्पसूत्र सह टबार्थ व्याख्यान १-७, प्रतिपूर्ण, वि. १८७९, श्रेष्ठ, पृ. १२०, जैदेना., ले.स्थल. हुरडा, ले. खूबचन्द, प्र.वि. पीठिका नहीं है. प्रसंगोपात् टीका से उद्धृत संस्कृत कथाएँ व उनका टबार्थ भी लिखा है., संशोधित, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, पू.वि. ऋषभचरित्र तक है., (२७.५४१५.५, ७X३५). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदिः तेणं कालेणं० समणे; अंति: कल्पसूत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः तेणइ कालि जे; अंतिः६.” कल्पसूत्र, संपूर्ण, वि. १६७६, श्रेष्ठ, पृ. ३६, जैदेना., ले. ऋ. हेमा (गुरु ऋ. माइदास); ऋ. दुरगा (गुरु ऋ. माइदास); ऋ. योगा (गुरु ऋ. माइदास), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. ग्रं. १२१६, ९-व्याख्यान, संशोधित, पदच्छेद सूचक लकीरें-प्रारंभिक पत्र, (२७४१३.५, १५४३६). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदिः णमो अरिहन्ताणं० पढमं; अंतिः उवदंसेइ त्ति बेमि. ७." कल्पसूत्र, संपूर्ण, वि. १८६४, श्रेष्ठ, पृ. ७२, जैदेना., प्र.वि. ९-व्याख्यान, ग्रं. १२१६, पदच्छेद सूचक लकीरें-कुछ पत्र, (२६४११, ११४२७). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदिः णमो अरिहन्ताणं० पढमं; अंतिः उवदंसेइ त्ति बेमि. For Private And Personal Use Only Page #56 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य भाग - १ ८. कल्पसूत्र, संपूर्ण, वि. १९३३, श्रेष्ठ, पृ. १४२, जैदेना., ले. पं. वीरचन्द(बृहदाचार्यागच्छ), प्र.वि. ग्रं. १२१६, ९-व्याख्यान. प्रतिले.वर्ष- (वह्नि)वंनिगुणनिधिइन्दु., (२४४१२, ६४२४). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदिः णमो अरिहन्ताणं० पढमं; अंतिः उवदंसेइ त्ति बेमि. ९. कल्पसूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४९, जैदेना., पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. अनुमानित ग्रं.१०६५ तक है., (२५४११, ११४३०). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदिः णमो अरिहन्ताणं० पढमं; अंति:१०." कल्पसूत्र की कल्पलता टीका का बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, प्र. ८०-१(६३)=७९, जैदेना.,प्र.वि. संशोधित, पू.वि. बीच के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. त्रिशलामाता की पुनः गर्भकुशलता तक हैं., (२६.५४१२, ११४३१). कल्पसूत्र-कल्पलता टीका का बालावबोध', मागु., गद्य, आदिः (१) नत्वा श्रीमन्महावीरं (२) इहां प्रथम त्रिजगत्; अंति:११.” कल्पसूत्र सह टबार्थ व व्याख्यान+कथा, संपूर्ण, वि. १९२६, श्रेष्ठ, पृ. १७६, जैदेना., ले.स्थल. पल्लिकानगर-पालि, ले. मु. ऋषभचन्दजी (गुरु मु. प्रेमचन्दजी, चन्द्रगच्छ), पठ. मु. रूपचन्दजी (गुरु मु. ऋषभचन्दजी, चन्द्रगच्छ), प्र.ले.पु. विस्तृत,प्र.वि. मूल-९-व्याख्यान. सर्वग्रं. १३४९२., संशोधित, टिप्पण युक्त विशेष पाठ-कुछ पत्र,प्र.ले.श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्टं, (२७.५४१२.५, ६x४४). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदिः णमो अरिहन्ताणं० पढमं; अंतिः उवदंसेइ त्ति बेमि. कल्पसूत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः तेणइ कालि जे; अंतिः सुधर्मा गणधरे कह्यो. कल्पसूत्र-व्याख्यान+कथा* , मागु., गद्य, आदि: नमः श्रीवर्द्धमानाय; अंति:#. १२. कल्पसूत्र सह टबार्थ व व्याख्यान+कथा, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १४३, जैदेना., ले. पं. गौतमविजय (गुरु पं. धनविजय), पठ. पं. हेमविजय (गुरु पं. गौतमविजय), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. संशोधित, पदच्छेद सूचक लकीरें-कुछ पत्र, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. सातवाँ व्याख्यान-ऋषभदेवचरित्र तक है., दशा वि. विवर्ण पानी से अक्षरों की स्याही फैल गयी है, (२६.५४१२, ६-१५४३६). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदिः णमो अरिहन्ताणं० पढमं; अंति:कल्पसूत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः (१) चोसठि इन्द्रनेपूजनीक (२) ते काल चउथा आरारूप; अंति: कल्पसूत्र-व्याख्यान+कथा* , मागु., गद्य, आदिः कल्याणानि समुल्ल; अंति:१३." कल्पसूत्र सह टबार्थ व व्याख्यान+कथा, संपूर्ण, वि. १८३०, श्रेष्ठ, पृ. १२१, जैदेना., ले.स्थल. रेया/रीया, ले. ऋ. जीवणदास (गुरु ऋ. जसराजजी), पठ. ऋ. रामचन्द (गुरु ऋ. जीवणदास); ऋ. फतैचन्द (गुरु ऋ. जीवणदास), प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, प्र.ले.श्लो. (२) अदृष्टि दोषो लिखितं मयात्र; (५०६) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा , (२६.५४१०.५, ७-१७४४६). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदिः णमो अरिहन्ताणं० पढम; अंतिः उवदंसेइ त्ति बेमि. कल्पसूत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, आदि: नमस्कार होज्यो; अंतिः अध्ययन समत्त भणीइ. कल्पसूत्र-व्याख्यान+कथा* , मागु., गद्य, आदिः श्रीवर्द्धमानजिनं; अंति:#. १४." कल्पसूत्र सह टबार्थ व व्याख्यान+कथा व्याख्यान १-८, प्रतिअपूर्ण, वि. १८२१, श्रेष्ठ, पृ. १८६-७(१२३ से १२९)+६(३७,४१,७१,७५,८० से ८१)=१८५, जैदेना., ले.स्थल. पातस्याहपुर, ले. मु. रङ्गसौभाग्य (गुरु पं. खुशालसौभाग्य), अन्य- गणि नेमसोमजी; पं. जयसोमजी; पं. निधानविजयजी ग.,प्र.ले.पु. विस्तृत,प्र.वि. अंतिम पृष्ठ पर उपरोक्त तीनों अन्य विद्वानों द्वारा विजापुर में प्रत की लेनदेन के विषय में उल्लेख है. पृष्ठ ७१ पर वीरप्रभु की जन्मकुंडली दी है., संशोधित, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, प्र.ले.श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्टं; (४६९) भग्न पृष्टि कटी ग्रीवा, (२५.५४१२, ४-१३४४२). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदिः णमो अरिहन्ताणं० पढमं; अंति: For Private And Personal Use Only Page #57 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ३ www.kobatirth.org: (+) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची कल्पसूत्र-कल्पप्रकाश टबार्थ, गणि सुखसागर, मागु., गद्य, वि. १७६२, आदिः (१) ॐ नमः परमानन्द (२) तेणं का० ते कालने; अंति: कल्पसूत्र - व्याख्यान + कथा*, मागु., गद्य, आदि:-; अंति: १५. कल्पसूत्र का अन्तर्वाच्य (कल्पान्तर्वाच्य बालावबोध), संपूर्ण, वि. १७६१, मध्यम, पृ. ३७, जैदेना, पठ. गणि विबुधविजय, प्र. वि. द्विपाठ, टिप्पण युक्त विशेष पाठ-कुछ पत्र, ( २६१२.५, १६x४८). कल्पसूत्र-अन्तर्वाच्य · मागु., गद्य, आदि: कल्याणानि समुल्ल; अंतिः मिच्छा मि दुक्कडं. १६. कल्पसूत्र का बालावबोध वाचना ४-७ प्रतिअपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ७१, जैदेना., गच्छा. आ. जिनउदयसूरि (गुरु आ. जिनचन्द्रसूरि, खरतरगच्छ ), प्र. वि. किंचित् सूत्रपाठ भी लिखा है तथा प्रत्येक वाचना की पत्र - संख्या १ से चालू होती है. पू. वि. वाचना-४ से ७ अपूर्ण तक हैं. (२६४१३, १४४२८). कल्पसूत्र - बालावबोध' मागु., राज, गद्य, आदि-: अंति: (+) १७. कल्पसूत्र सह टबार्थ व व्याख्यान+कथा, पूर्ण, वि. १८६५, श्रेष्ठ, पृ. २०७-१ (१८) २०६, जैदेना., ले. ऋ. पन्नाजी, लिखवा. ऋ. मानजी (गुरु पण्डित जैतसिंह ऋषि), अन्य ऋ. जगरूप, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. मूल - ९ - व्याख्यान., संशोधित टिप्पण युक्त विशेष पाठ, प्र.ले. श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्टं, ( २६.५४११, ६ १२४४६). · कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि णमो अरिहन्ताणं० पढमं अंतिः उपदंसेइ त्ति बेमि कल्पसूत्र - टबार्थ *, मागु., गद्य, आदि: (१) ते काल चउथो आरो (२) णमो० अरिहन्तने; अंतिः कल्प उपदिश्यो कहियो. कल्पसूत्र - व्याख्यान कथा, मागु, गद्य, आदिः श्रीवर्द्धमानजिनं अति: ; (+) १८. कल्पसूत्र सह टवार्थ व व्याख्यान+कथा, संपूर्ण वि. १८७५, श्रेष्ठ, पृ. १४६, जैदेना, ले. स्थल. अकबराबाद, ले. ऋ. उत्तमचन्द्र (गुरु ऋ. हेमराज, गुज. लुङ्कागच्छ), प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र. वि. मूल - ९ - व्याख्यान. प्र. पु. टबार्थ- ग्रं. ५०१६ ., संशोधित टिप्पण युक्त विशेष पाठ-कुछ पत्र (२६.५४१२.५. ८-१५०४०). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा. गद्य, आदि णमो अरिहन्ताणं० पढमं अंति: उवदंसेइ त्ति बेमि कल्पसूत्र - टबार्थ *, मागु., गद्य, आदि: नमस्कार होज्यो राग; अंतिः देखाडै हु इम कहूं. कल्पसूत्र- व्याख्यान+ कथा*, मागु., गद्य, आदिः श्रीवर्द्धमानजिनं; अंतिः कूड कपट राखवो नही. १९. कल्पसूत्र सह टबार्थ व व्याख्यान+कथा, पूर्ण, वि. १८२२, श्रेष्ठ, पृ. १५१ - १ (१) = १५०, जैदेना., ले. स्थल. वाजोली, ले. ऋ. जीवणराम (गुरु ऋ. खीवराज), प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र. वि. मूल - ९ - व्याख्यान. टबार्थ लेखनसंवत् वि. १८२३. संशोधित टिप्पण युक्त विशेष पाठ-कुछ पत्र, प्र.ले. श्लो. (४७०) मन रञ्जण तन सुख दीयण, ( २६५१३, ५०४५), कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि णमो अरिहन्ताणं० पढमं अंतिः उपदंसेइ त्ति बेमि कल्पसूत्र - टबार्थ *, मागु., गद्य, आदिः हिवै श्रीभगवन्त; अंतिः आपणा शिष्यनइ. कल्पसूत्र - व्याख्यान + कथा*, मागु., गद्य, आदि:-; अंतिः संसारमांहे भमे. २०. कल्पसूत्र सह टबार्थ व व्याख्यान+कथा, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १४०, जैदेना., प्र. वि. द्विपाठ - कुछ पत्र, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. स्थविरावली में आर्यनाग तक है. (२४.५५१०.५, ७४३५). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदिः णमो अरिहन्ताणं० पढमं; अंतिः कल्पसूत्र - टबार्थ + व्याख्यान + कथा, आ. सोमविमलसूरि, मागु., गद्य, आदिः ते काल अवसर्पिणीनो; अंतिःकल्पसूत्र - व्याख्यान + कथा*, मागु., गद्य, आदिः सकलार्थसिद्धिजननी; अंति: (0) २१. कल्पसूत्र सह वृत्ति, संपूर्ण, वि. १६वी, मध्यम, पृ. ४०, जैदेना, अन्य मु. सोमसुन्दर लिखवा श्राविका हरदे श्रीमाल, प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र. वि. मूल ग्रं. १२१६ ९- व्याख्यान सोमसुंदरजी के उपदेश से यह प्रति लिखवाई गयी. प्रथम पत्र For Private And Personal Use Only Page #58 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य भाग - १ 3 . का उपरी भाग टूटा होने से टीका का आदिवाक्य पढा नहीं जाता है., दशा वि. जीर्ण-प्रारंभ व अंत के कुछ पत्रकिनारी खंडित है-टीकादि का अंश नष्ट है, (२६.५४११, १३४४४). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदिः णमो अरिहन्ताणं० पढमं; अंतिः उवदंसेइ त्ति बेमि. कल्पसूत्र-टीका* , सं., गद्य, आदिः#; अंतिः बेमिति इति ब्रविमीति. २२.” कल्पसूत्र सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १८६८, श्रेष्ठ, पृ. २०२, जैदेना., ले. मु. ऋषभचन्दजी (गुरु ऋ. कचरदासजी, कच्छोलीवालगच्छ), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. मूल-९-व्याख्यान. सर्वग्रं. १००००., संशोधित, (२७४१४.५, १५४३९). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदिः णमो अरिहन्ताणं० पढमं; अंतिः उवदंसेइ त्ति बेमि. कल्पसूत्र-बालावबोध, मु. शिवनिधान, मागु., गद्य, वि. १६८०, आदि: नमः श्रीवर्द्धमानाय; अंति: मङ्गलिक भणी थाओ. २३." कल्पसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८७५, श्रेष्ठ, पृ. ९०, जैदेना., ले.स्थल. वोरावड, ले. ऋ. दूदराजजी (गुरु ऋ. पेमराजजी), प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र.वि. मूल-९-व्याख्यान., टिप्पण युक्त विशेष पाठ, पदच्छेद सूचक लकीरें-वचन विभक्ति संकेत, अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-कुछ पत्र, (२४४१४, ७४३१). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदिः णमो अरिहन्ताणं पढमं; अंतिः उवदंसेइ त्ति बेमि. कल्पसूत्र-टबार्थ', सं., गद्य, आदिः श्रीमद्वीरचरित्र; अंतिः दिश्यते इति ब्रविमि. २४." कल्पसूत्र सह बालावबोध व व्याख्यान+कथा, संपूर्ण, वि. १६वी, श्रेष्ठ, पृ. ६६, जैदेना., अन्य- साध्वीजी वीरबा; साध्वीजी नाथबा, प्र.वि. मूल-९-व्याख्यान., (२९.५४११-११.५, १५४५०). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदिः णमो अरिहन्ताणं० पढमं; अंतिः उवदंसेइ त्ति बेमि. कल्पसूत्र-बालावबोध', मागु.,राज., गद्य, आदिः तीणइ कालि तीणइ समइ; अंतिः सिद्धान्त तेह तणइ. कल्पसूत्र-व्याख्यान+कथा* , मागु., गद्य, आदिः नैतत् पर्वसमं पर्वं; अंतिः#. २५.” कल्पसूत्र सह टबार्थ व व्याख्यान+कथा व्याख्यान १-८, प्रतिपूर्ण, वि. १९उ., श्रेष्ठ, पृ. १६३, जैदेना., ले.स्थल. घ्रांणपुर नगर, प्र.वि. संशोधित, पू.वि. अष्टम व्याख्यान-ऋषभदेवचरित्र तक ही है., (२६.५४११.५, ६-६६४३३). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदिः णमो अरिहन्ताणं० पढमं; अंतिःकल्पसूत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः चोसठि इन्द्रनेपूजनीक; अंति: कल्पसूत्र-व्याख्यान+कथा* , मागु., गद्य, आदिः श्रीचतुर्विंशतिजिनान; अंति:२६. कल्पसूत्र सह टबार्थ व व्याख्यान+कथा व्याख्यान १-८, प्रतिपूर्ण, वि. १८६३, श्रेष्ठ, पृ. १९८, जैदेना., ले. पं. निधानविजय (गुरु पं. खुशालविजय, तपागच्छ), पठ. मु. रूपविजय (गुरु पं. निधानविजय), प्र.ले.पु. विस्तृत, पू.वि. अष्टम व्याख्यान-स्थविरावली तक है., (२६४१२, ५-१६४३२-३५). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदिः णमो अरिहन्ताणं० पढमं; अंति:कल्पसूत्र-टबार्थ', मागु., गद्य, आदिः (१) चोसठि इन्द्रनेपूजनीक (२) ते० तिण कालेइ तिण; अंतिः कल्पसूत्र-व्याख्यान+कथा* , मागु., गद्य, आदिः कल्याणानि समुल्ल; अंति:२७.” कल्पसूत्र सह टबार्थ व व्याख्यान+कथा, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३०३, जैदेना., ले.स्थल. रागोगढ, ले. मु. केसरविजय (गुरु पं. नयविजय गणि), प्र.वि. मूल-९-व्याख्यान. व्याख्यान का कुछेक भाग मारुगुर्जर भाषा में भी लिखा है., संशोधित, (२४.५४१०.५, ४-११४३१-३५). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदिः णमो अरिहन्ताणं० पढमं; अंतिः उवदंसेइ त्ति बेमि. कल्पसूत्र-टबार्थ' , मागु., गद्य, आदिः चोसठि इन्द्रनेपूजनीक; अंतिः आपणा शिष्यनइ. कल्पसूत्र-व्याख्यान+कथा* , सं., गद्य, आदिः पुरिमचरिमाणकप्पो; अंतिः शास्त्रेभ्यो ज्ञेया. २८. कल्पसूत्र सह टबार्थ व कल्पकल्लोलिका बालावबोध - व्याख्यान १-८, प्रतिपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १६९, जैदेना., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, पू.वि. अष्टम व्याख्यान ऋषभदेव-चरित्र तक है., (२६.५४११.५, ६-१३४४३). For Private And Personal Use Only Page #59 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ५ www.kobatirth.org: Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा. गद्य, आदि: णमो अरिहन्ताणं० पढमं अंति: ; " कल्पसूत्र - टबार्थ *, मागु., गद्य, आदि: चोसठि इन्द्रनेपूजनीक; अंति: कल्पसूत्र - कल्पकल्लोलिका बालावबोध, मु. अमृतकुशल, मागु, गद्य वि. १७७५, आदि: कल्याणानि समुल्ल; अंति:२९. कल्पसूत्र का व्याख्यान+कथा व्याख्यान १-८, प्रतिपूर्ण, वि. १९३६, श्रेष्ठ, पृ. १५०, जैदेना, ले. स्थल. विजापुर, ले. (+) हरिलाल लहिया, प्र.वि. संशोधित, पू. वि. अष्टम व्याख्यान ऋषभदेव - चरित्र तक है., प्र. ले. श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्टं; (४७१) भग्नपृष्टं कटिग्रीवा; (४) जलं रक्षेत् स्थलं रक्षेत्, (२७x१३, १३×३२). कल्पसूत्र-कल्पवार्तिक व्याख्यान + कथा, पं. जिनविजय, मागु., गद्य, आदिः पुरिम चरिमाण कप्पो; अंतिः कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ३०.” कल्पसूत्र सह टबार्थ, व्याख्यान + कथा, प्रतिक्रमण आदि फलदर्शक गाथा सङ्ग्रह सह टबार्थ व पट्टावली, पूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १५८, पे. ३, जैदेना., प्र. वि. संशोधित, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. पट्टावली अन्तर्गत जिनलब्धिरि अपूर्ण तक है. (१९४१०, ११४३०). " (+) पे. १. पे. नाम. कल्पसूत्र सह टबार्थ व व्याख्यान + कथा, पृ. १-१५६अ, संपूर्ण ; कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा. गद्य, आदि णमो अरिहन्ताणं० पढमं अंति: उवदंसेइ ति बेमि कल्पसूत्र - टबार्थ *, मागु., गद्य, आदिः (१) नमस्कार हुवो (२) तिणे काले चोथे आरै; अंतिः वार श्रीभगवन्त को. कल्पसूत्र - व्याख्यान + कथा, सं., गद्य, आदि नमः श्रीवर्द्धमानाय अंति#. पे.वि. मूल ग्रं. १२१६ अध्याय-९ व्याख्यान. पे. २. पे नाम, प्रतिक्रमण आदि फलदर्शक गाथासङ्ग्रह सह टवार्थ, पृ. १५६आ-१५७आ, संपूर्ण प्रतिक्रमणादिफलदर्शक गाथा सङ्ग्रह, प्रा., पद्य, आदि आवस्सएण एण सावय: अंतिः नरयगई तस्स फलं भवंति प्रतिक्रमणादिफलदर्शक गाथा सङ्ग्रह-टबार्थ, राज, गद्य, आदिः पडिकमणो कीयांसुं; अंतिः जीवदया पालणी कही.. पं. वि. मूल-गा.८. : पे. ३. पट्टावली खरतरगच्छीय, सं., गद्य, (पृ. १५७आ, पूर्ण), आदि: श्रीगौतमस्वामीगृहे अंतिः-, पे.वि. अन्तके पत्र नहीं हैं. खरतरगच्छीय जिनलब्धिसूरि सं. १७२५ अपूर्ण तक है. खरतरगच्छ का उद्भव व इसके पहले की परम्परा का उल्लेख मिलता है. ३१. व्यवहारसूत्र की नियुक्ति व भाष्य, संपूर्ण वि. १९९६, श्रेष्ठ, पृ. १२८, जैदेना ले. स्थल, बंबाई (मुंबई), प्र. वि. प्र.पु. सर्वनं, " ५४५६., (३०x१३, १६x४९). व्यवहारसूत्र नियुक्ति, आ. भद्रबाहुस्वामी प्रा. पद्य, आदि # अंतिः #. , .. व्यवहारसूत्र-भाष्य #, प्रा., पद्य, आदि: ववहारो ववहारी; अंतिः (१) मविग्घेण गच्छन्ति ( २ ) णमो सुतदेवयाए भगवती . ३२. बृहत्कल्पसूत्र की विशेषकल्पचूर्णि, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३२१, जैदेना., प्र. वि. पृष्ठमात्रा वाली प्राचीन प्रति अक्षरशः प्रतिलिपि., (२९x१३, १३x४४). बृहत्कल्पसूत्र- विशेषकल्पचूर्णि, प्रा. सं., गद्य, आदिः नमो अरिहन्ताणं० से; अंतिः मोक्खं वा पावति. " For Private And Personal Use Only ३३. व्यवहारसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण वि. १७९३ श्रेष्ठ, पृ. २८, जैदेना. प्र. वि. मूल- १० उद्देशक.. टिप्पण युक्त " (२७४११, ६x४८). व्यवहारसूत्र आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गय, आदि जे भिक्खु मासियं अंतिः महापज्जवसाणे भवइ. " व्यवहारसूत्र- टबार्थ, मागु., गद्य, आदि: जे० जे कोइ भि० साधु; अंतिः क्षय करवारूप फल हुइ. " ३४. महानिशीथसूत्र, संपूर्ण वि. १९९६, श्रेष्ठ, पृ. ८४, जैदेना. ले. स्थल, मुम्बापुरी ले कस्तूरचन्द व्यास, पठ पं. प्रीतिविजय, लिखवा. श्री. माणेकलाल चुन्नीलाल, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. अध्याय ६ अध्ययन + २चूलिका, (२९.५X१३, १६x४८). महानिशीथसूत्र, प्रा., गद्य, आदिः ॐ नमो अरहन्ताणं; अंतिः महानिसीहम्मि पाएण. विशेष पाठ, Page #60 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य भाग - १ ३५.” महानिशीथसूत्र, संपूर्ण, वि. १९९६, श्रेष्ठ, पृ. ७५+१(२०)=७६, जैदेना., ले.स्थल. मुंबापुरी(मुंबई, ले. कस्तूरचन्द व्यास, पठ. पं. प्रीतिविजय, लिखवा. श्रा. माणेकलाल चुन्नीलाल, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. अध्याय-६अध्ययन+२चूलिका, संशोधित, (२९.५४१३.५, १६४५४). महानिशीथसूत्र, प्रा., गद्य, आदिः ॐ नमो तित्थस्स; अंति: महानिसीहम्मि पाएण. ३६.” जीतकल्प की बृहत्चूर्णि की विषमपद व्याख्या, संपूर्ण, वि. १९९६, श्रेष्ठ, पृ. २८, जैदेना., ले.स्थल. मुंबई, ले. कस्तूरचन्द व्यास, पठ. पं. प्रीतिविजय, लिखवा. श्रा. माणेकलाल चुन्नीलाल, प्र.वि. ग्रं. ११२०. अंत में परिशिष्ट दिया है., संशोधित, प्र.ले.श्लो. (५७७) यावल्लवणोदन्यान्, (३०x१३, १६४५५). जीतकल्पसूत्र-चूर्णि की विषमपदव्याख्या, आ. चन्द्रसूरि, सं., गद्य, वि. १२२७, आदि: नत्वा श्रीमन्महावीरं; अंतिः गीतार्थविद्वद्भिः. ३७." जीतकल्प की चूर्णि, संपूर्ण, वि. १९९६, श्रेष्ठ, पृ. २०+१(११)=२१, जैदेना., ले.स्थल. ममाइनगर (मुंबई), ले. कस्तूरचन्द व्यास, प्र.वि. गा.१०३, संशोधित, (२९.५४१३, १६४५२). जीतकल्पसूत्र-चूर्णि, आ. सिद्धसेन , प्रा., प+ग, आदिः सिद्धत्थसिद्धसासण; अंतिः परमोवारकारिण महग्धं. ३८.” कल्पसूत्र सह टबार्थ व व्याख्यान+कथा - दशअछेरा अधिकार, प्रतिपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २७, जैदेना., प्र.वि. संशोधित, पू.वि. अछेरा अधिकार तक., (२६४११, १४४५०). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदिः णमो अरिहन्ताणं० पढमं; अंतिःकल्पसूत्र-टबार्थ', मागु., गद्य, आदिः नमो क० माहरो नमस्कार; अंति: कल्पसूत्र-व्याख्यान+कथा* , मागु., गद्य, आदिः श्रीदशाश्रुतस्कन्ध; अंति:३९.” व्यवहारसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९६५, श्रेष्ठ, पृ. ५६, जैदेना., ले.स्थल. बीकानेर, ले. मु. कृपाचन्द महात्मा(खरतरगच्छ), प्र.वि. मूल-१० उद्देशक., संशोधित, (२६.५४११, ५४४१). व्यवहारसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदिः जे भिक्खू मासियं; अंतिः महापज्जवसाणे भवइ. व्यवहारसूत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः जे० जे कोइ भि० साधु; अंतिः क्षय करवारूप फल हुइ. ४०.” व्यवहारसूत्र सह टबार्थ, पूर्ण, वि. १७४५, जीर्ण, पृ. १७-१(१)=१६, जैदेना., ले.स्थल. बीकानेर, ले. ऋ. सामा (गुरु ऋ. लालचन्द), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. मूल-१० उद्देशक. टबार्थ टिप्पणक के रूप मे है।, पंचपाठ, दशा वि. जीर्ण-किनारी खंडित है-दाहिना भाग-बाँया भाग-टीकादि का अंश नष्ट है, (२९.५४१२.५, १३४५३). व्यवहारसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि:-; अंतिः महापज्जवसाणे भवइ. व्यवहारसूत्र-टबार्थ', मागु., गद्य, आदि:-; अंति:४१.” पर्यन्ताराधना सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १२, जैदेना., प्र.वि. मूल-गा.७०., संशोधित, (२६४१२.५, ४४२६). पर्यन्ताराधना, आ. सोमसूरि, प्रा., पद्य, आदिः नमिउण भणइ; अंतिः ते सासयं सुक्खं. पर्यन्ताराधना-टबार्थ', मागु., गद्य, आदिः नमस्करी प्रणमीनइ; अंतिः नित्य भणिवउ गुणिवउ. ४२. पर्यन्ताराधना व सातलाखसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८३२, श्रेष्ठ, पृ. ६, पे. २, जैदेना., ले.स्थल. वांकानेर, (२६x११.५, ६x४३). पे. १. पे. नाम, पज्जन्ताराधना प्रकरण सह टबार्थ, पृ. १आ-६आ पर्यन्ताराधना, आ. सोमसूरि, प्रा., पद्य, आदिः नमिउण भणइ; अंतिः ते सासयं सुक्खं. पर्यन्ताराधना-टबार्थ, मागु., गद्य., पे.वि. मूल परिमाण-गा.७० . पे. २. पे. नाम. चोराशीलाखजीवयोनीगाथा सह टबार्थ, पृ. ६आ-६आ श्रावकआलोयणासूत्र-तपागच्छीय, संबद्ध, गुज., पद्य, आदिः सातलाख पृथ्वीकाय; अंतिः मिच्छामि दुक्कडम्. श्रावकआलोयणासूत्र-तपागच्छीय-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः ७ पृथ्वीकाय ७ अपकाय; अंतिः मिच्छामि दुक्कडं. For Private And Personal Use Only Page #61 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ४३." चउसरण सह बालाविबोध, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ५, जैदेना., ले.स्थल. श्रीपत्तन, ले. ऋ. सामन्त, प्र.वि. मूल गा.६३. प्रत में टबार्थ बालावबोध रूप में उल्लिखित है., संशोधित, पदच्छेद सूचक लकीरें, (२६.५४११, ७X५१). चतुःशरण प्रकीर्णक, गणि वीरभद्र, प्रा., पद्य, आदिः सावज्ज जोग विरई; अंतिः कारणं निव्वुइ सुहाणं. चतुःशरण प्रकीर्णक-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः सावध योग क० पाप; अंतिः मोक्षना सुखनुं हेतु. ४४. चतुसरण, संपूर्ण, वि. १९१६, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना., ले. खेमचन्द परसोत्तम ठाकोर, प्र.वि. गा.६३, संशोधित, पदच्छेद सूचक लकीरें, दशा वि. मूषक भक्षित-प्रथम पत्र-बाँया भाग-मूल पाठ का अंश खंडित है , (२८x१५, १०x२६). चतुःशरण प्रकीर्णक, गणि वीरभद्र, प्रा., पद्य, आदिः सावज्ज जोग विरई; अंतिः कारणं निव्वुइ सुहाणं. ४५. गच्छाचारप्रकीर्णक सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९४१, श्रेष्ठ, पृ. ११, जैदेना., ले.स्थल. अमदावाद, ले. बदरीनारायण जोसी, प्र.वि. मूल-गा.१३७., (२९४१५.५, ६x४३). गच्छाचार प्रकीर्णक, प्रा., पद्य, आदिः नमिऊण महावीरं; अंतिः इच्छंता हियमप्पणो. गच्छाचार प्रकीर्णक-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः नमस्कार करी; अंतिः हित पामि आत्मानि. ४६.' पाक्षिकसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९६९, श्रेष्ठ, पृ. ३१, जैदेना., ले.स्थल. अमदावाद, प्र.वि. संशोधित, (२३.५४१०.५, ५४३३). पाक्षिकसूत्र, प्रा., प+ग, आदिः तित्थङ्करे य तित्थे; अंतिः जेसिं सुयसायरे भत्ति. पाक्षिकसूत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः तीर्थङ्कर प्रते; अंतिः मिच्छामिदुक्कडं देवउ. ४७." पाक्षिकादिसूत्र सह वृत्ति, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ४४, पे. ३, जैदेना., प्र.वि. संशोधन हेतु शुद्ध प्रति., संशोधित, (२६४११.५, १७४६२). पे. १.पे. नाम. पाक्षिकसूत्र सह वृत्ति, पृ. १-४१अ पाक्षिकसूत्र, प्रा., प+ग, आदिः तित्थङ्करे य तित्थे; अंतिः जेसिं सुयसायरे भत्ति. पाक्षिकसूत्र-टीका, आ. यशोदेवसूरि, सं., गद्य, वि. ११८०, आदिः शिवशमैकनिमित्तं; अंतिः (१)पुस्तकं जयन्तु (२)तेह गृह्यते इति. पे. २. पे. नाम. गुरुवन्दनसूत्र सह टीका, पृ. ४१अ-४१आ गुरुवन्दनसूत्र-श्वे.मू.पू., संबद्ध, प्रा., गद्य, आदिः इच्छा० सन्दि०; अंतिः मिच्छामि दुक्कडम्. गुरुवन्दनसूत्र-टीका, आ. यशोदेवसूरि, सं., गद्य, वि. ११८०, आदिः साम्प्रतं शेष; अंति: चेवेह भागवई पमाणन्ति. पे. ३. पे. नाम. पाक्षिकक्षामणासूत्र सह टीका, पृ. ४१आ-४४अ क्षामणकसूत्र, प्रा., गद्य, आदिः इच्छामि खमासमणो; अंतिः नित्थारग पारगा होह. क्षामणकसूत्र-टीका, आ. यशोदेवसूरि, सं., गद्य, वि. ११८०, आदिः ततो यथा राजानं पुष्प; अंतिः पडिलेहणवेला भवइत्ति. ४८. श्राद्धप्रतिक्रमणसूत्रसङ्ग्रह सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १७, जैदेना., प्र.वि. संशोधित, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. गा.४९ तक है., (२६.५४१३, ५४३५). श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र , संबद्ध, प्रा.,मागु., प+ग, आदिः नमो अरिहं० सव्वसाहूण; अंति: श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः श्रीअरिहन्तनै माहरो; अंति:४९." श्राद्धप्रतिक्रमणसूत्र सह अर्थदीपिका टीका, अपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १९५-२७(१ से २६,११९)=१६८, जैदेना., ले. पं. शवसी,प्र.वि. संशोधित, पदच्छेद सूचक लकीरें-कुछ पत्र, पू.वि. सम्यक्त्वाधिकार प्रथम अपूर्ण तक नहीं है., प्र.ले.श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्टं; (४२) अदृष्ट दोषा मतिविभ्रमाश्च, (२५.५४११.५, १३४४४). वन्दित्तुसूत्र, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि:-; अंतिः वन्दामि जिणे चउवीसं. वन्दित्तुसूत्र-अर्थदीपिका टीका, आ. रत्नशेखरसूरि, सं., गद्य, वि. १४९६, आदिः-: अंतिः जीयादियं च चिरम्. For Private And Personal Use Only Page #62 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य भाग - १ ५०. पाक्षिकसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९६८, श्रेष्ठ, पृ. ३०, जैदेना., (२४.५४११.५, ५४३३). पाक्षिकसूत्र , प्रा., प+ग, आदिः तित्थङ्करे य तित्थे; अंति: जेसिं सुयसायरे भत्ति. पाक्षिकसूत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः तीर्थङ्कर प्रते; अंतिः मिच्छामिदुक्कडं देवउ. ५१.' षडावश्यक सह टबार्थ (वार्तिक), संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५६, जैदेना., ले. जेठा, प्र.वि. बालावबोध का कुछेक अंश टबार्थ की तरह लिखा गया है., संशोधित, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२६.५४१२.५, ४-१४४३८-४७). श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा., प+ग, आदिः नमो अरिहन्ताणं०; अंतिः वन्दामि जिणे चउवीसं. श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय-बालावबोध, मु. जिनविजय, मागु., गद्य, वि. १७५१, आदिः (१) बार गुणे करि सहित (२) श्रीजसविजयगुरुणां; अंतिः निश्चल मनई करी. ५२." पाक्षिकसूत्र सह अवचूरि, अपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ११-६(१ से ६)-५, जैदेना., ले. वाचक राजमेरु (गुरु आ. सोमदेवसूरि, चैत्रगच्छ), पठ. मु. विनयकलश, अन्य- गणि महिमासागर, प्र.वि. मूल अन्तिम संपूर्ण तथा अवचूरि अपूर्ण., टिप्पण युक्त विशेष पाठ, पंचपाठ, पू.वि. प्रारंभ व अंत के पत्र नहीं हैं. , (२६.५४१२.५, ८४३३). पाक्षिकसूत्र, प्रा., प+ग, आदि:-; अंतिः जेसिं सुयसायरे भत्ति. पाक्षिकसूत्र-अवचूरि, सं., गद्य, आदि:-; अंति:५३.” पाक्षिकसूत्र व क्षामण, संपूर्ण, वि. १८५१, मध्यम, पृ. १४, पे. २, जैदेना., ले.स्थल. जावाल, ले. पं. नायकविजय, पठ. किसनचन्द, प्र.ले.पु. विस्तृत,प्र.वि. प्र.पु. सुमतिजिन प्रसादात्., संशोधित, (२५४११.५, १३४३२). पे. १. पे. नाम. पाक्षिकसूत्र, पृ. ०१आ-१३अ पाक्षिकसूत्र, प्रा., प+ग, आदिः तित्थङ्करे य तित्थे; अंतिः जेसिं सुयसायरे भत्ति. पे. २. पे. नाम. पाक्षिकक्षामणासूत्र, पृ. १३अ-१४अ क्षामणकसूत्र, प्रा., गद्य, आदिः इच्छामि खमासमणो; अंतिः नित्थारग पारगा होह. ५४. पाक्षिकसूत्र, गुरुवन्दनसूत्रसङ्ग्रह व खामणा सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९११, श्रेष्ठ, पृ. १६०+२(१,३)=१६२, पे. ३, जैदेना., ले. मु. डुगरविजय, लिखवा. मु. ऋद्धिविजय (गुरु मु. लक्ष्मीविजय),प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. बालावबोध का कुछेक अंश टबार्थ की तरह लिखा गया है., द्विपाठ, (२६४१३.५, १०४३५). पे. १. पे. नाम, पाक्षिकसूत्र सह बालावबोध, पृ. १-१५२आ पाक्षिकसूत्र, प्रा., प+ग, आदिः तित्थङ्करे य तित्थे; अंतिः जेसिं सुयसायरे भत्ति. पाक्षिकसूत्र-बालावबोध, आ. ज्ञानविमलसूरि, मागु., गद्य, वि. १७७३, आदिः ऐन्द्रवृन्दप्रणतं; अंतिः वली बहुश्रुतथी जाणवु. पे. २. पे. नाम. गुरुवन्दनसूत्र सह टबार्थ, पृ. १५३अ-१५४आ गुरुवन्दनसूत्र-श्वे.मू.पू., संबद्ध, प्रा., गद्य, आदिः इच्छा० सन्दि०; अंतिः मिच्छामि दुक्कडम्. गुरुवन्दनसूत्र-बालावबोध, आ. ज्ञानविमलसूरि, मागु., गद्य, वि. १७७३, आदिः इच्छं क० खामुं छु; अंतिः फोक निरर्थक थाओ. पे. ३. पे. नाम. पाक्षिकक्षामणासूत्र सह टबार्थ, पृ. १५५अ-१५९अ क्षामणकसूत्र, प्रा., गद्य, आदिः इच्छामि खमासमणो; अंतिः नित्थारग पारगा होह. क्षामणकसूत्र-बालावबोध, आ. ज्ञानविमलसूरि, मागु., गद्य, वि. १७७३, आदिः इच्छामि क० वाञ्छु; अंति: गुरुवचन जाणवो. ५५. साधुप्रतिक्रमणसूत्र सङ्ग्रह, अजितशान्ति व गौतमस्वामी रास, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १६-२(१,४)=१४, पे. ३, जैदेना., पू.वि. प्रथम एक, बीच व अंत के पत्र नहीं हैं. , (२४४११, १२४३६). For Private And Personal Use Only Page #63 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची पे. १. साधुपञ्चप्रतिक्रमणसूत्र सङ्ग्रह-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,गुज., प+ग, (पृ. -२अ-१०अ, अपूर्ण), आदि:-; अंतिः मिच्छामि दुक्कडम्., पे.वि. प्रथम एक व बीच के पत्र नहीं हैं. पे. २. अजितशान्ति स्तव , आ. नन्दिषेणसूरि, प्रा., पद्य, (पृ. १०अ-१३अ, संपूर्ण), आदिः अजियं जिय सव्वभयं; अंतिः जिणवयणे आयरं कुणह., पे.वि. गा.४०. पे. ३. गौतमस्वामी रास, उपा. विनयप्रभ , मागु., पद्य, वि. १४१२, (पृ. १३अ-१६आ, अपूर्ण), आदिः वीर जिणेसर चरण ___ कमल; अंति:-, पे.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. गा.४२ तक है. ५६." श्राद्धपाक्षिकअतिचार, संपूर्ण, वि. १९३७, श्रेष्ठ, पृ. ९, जैदेना., ले.स्थल. मांडल, ले. मोहन डामर, अन्य- मु. कुसलचन्दजी, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. संशोधित, (२६.५४१५, १२४३५). श्रावकपाक्षिकअतिचार-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मागु., गद्य, आदिः नाणम्मि दंसणम्मि०; अंतिः मिच्छामि दुक्कडम्. ५७. श्राद्धपाक्षिकअतिचार, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, जैदेना.,प्र.वि. प्र.पु. ग्रं. २०९., (२६४१४.५, १३४२९). श्रावकपाक्षिकअतिचार-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मागु., गद्य, आदिः नाणम्मि दंसणम्मि०; अंतिः मिच्छामि दुक्कडम्. ५८. पाक्षिकसूत्र व खामणा, संपूर्ण, वि. १९४३, श्रेष्ठ, पृ. ११, पे. २, जैदेना., ले.स्थल. पालिताणा, ले. हठिसिङ्ग मानसिङ्ग बारोट, (२८x१५, १४४३७). पे. १. पे. नाम. पाक्षिकसूत्र, पृ. ०१आ-१०आ पाक्षिकसूत्र, प्रा., प+ग, आदिः तित्थङ्करे य तित्थे; अंतिः जेसिं सुयसायरे भत्ति. पे. २. पे. नाम. क्षामणासूत्र, पृ. १०आ-११अ क्षामणकसूत्र, प्रा., गद्य, आदिः इच्छामि खमासमणो; अंतिः नित्थारग पारगा होह. ५९. श्रावकअतिचार, संपूर्ण, वि. १८७४, श्रेष्ठ, पृ. ९, जैदेना., ले. पं. खुशालविजय(कतुपुरागच्छ), पठ. श्रा. गुलाबचन्द, (२६.५४१३, १०४३७). श्रावकपाक्षिकअतिचार-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मागु., गद्य, आदिः नाणम्मि दंसणम्मि०; अंतिः मिच्छामि दुक्कडम्. ६०. साधुप्रतिक्रमणसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, जीर्ण, पृ. १३, जैदेना., ले.स्थल. जयतारणिनगर, ले. मु. ठाकुर (गुरु ऋ. बापाजी), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. संशोधित, त्रिपाठ-बीच के कुछ पत्र, (२७.५४१३.५, ४-६४३६-३८). साधुवन्दित्तुसूत्र, संबद्ध, प्रा., गद्य, आदिः करेमि भन्ते० चत्तारि; अंतिः वन्दामि जिणे चउवीसं. साधुवन्दित्तुसूत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, आदि: चार बोल तेम मङ्गलिक; अंतिः वान्दउ नमसकार करूं. ६१. खरतरगच्छीय प्रतिक्रमणसूत्रसङ्ग्रह सह बालावबोध, सिद्धचक्रयन्त्र, स्तवन, स्तुति व प्रतिक्रमणविधिसङ्ग्रह, संपूर्ण, वि. १७१०, श्रेष्ठ, पृ. ४४, पे. ९, जैदेना., ले.स्थल. सूरतबंदर, ले. गणि पुण्यकलश (गुरु गणि धर्ममन्दिरजी, खरतरगच्छ), गच्छा. आ. जिनरत्नसूरिजी (गुरु गणि कल्याणधीर, खरतरगच्छ), प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र.वि. संशोधित, पदच्छेद सूचक लकीरें-मूल पाठ-कुछ पत्र, प्र.ले.श्लो. (५०९) यादृशं पुस्तके दृष्टं, (२५४११, ४४३५). पे. १. पे. नाम. खरतरगच्छीय प्रतिक्रमणसूत्र सङ्ग्रह सह बालावबोध, पृ. १-४४ साधुश्रावकप्रतिक्रमणसूत्र सङ्ग्रह-खरतरगच्छीय, संबद्ध, प्रा.,सं., प+ग, आदिः णमो अरिहन्ताणं; अंतिः जिणे चउव्वीसं. साधुश्रावकप्रतिक्रमणसूत्र सङ्ग्रह-खरतरगच्छीय-बालावबोध, मागु., गद्य, आदिः सुरासुरनमस्कृत्य; अंतिः अरिहन्त चउवीस ऋषभादि. पे. २. सिद्धचक्र लघुयन्त्र, सं., यंत्र, (पृ. २५अ), आदिः ॐ ह्रीं असिआउसा; अंति: जयवान् भवति. पे. ३. सिद्धचक्र स्तवन, प्रा., पद्य, (पृ. २५अ), आदिः अरिहन्तसिद्धायरिया; अंतिः मणह मणोरह पूरिमह., पे.वि. गा.६. पे. ४. सिद्धचक्र चैत्यवन्दन, आ. ज्ञानविमलसूरि, प्रा., पद्य, (पृ. २५अ-२५आ), आदिः उप्पन्नसन्नाणमहो; अंतिः सिद्धचक्कं नमामि., पे.वि. गा.६. For Private And Personal Use Only Page #64 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य भाग - १ १० पे. ५. सिद्धचक्र स्तुति, प्रा., पद्य, (पृ. २५आ), आदि: भत्तिजुत्ताण सत्ताण; अंति: महन्ताण कल्लाणगं., पे.वि. गा.४. पे. ६.सिद्धचक्र बृहदयन्त्र, सं., यंत्र, (पृ. २५आ), आदि:#; अंतिः#. पे.७. प्रतिक्रमणविधि सङ्ग्रह-खरतरगच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मागु., गद्य, (पृ. २६अ-२७आ), आदिः पाछिली रात्रइ; अंतिः साता हुवइ तिम करउ. पे. ८. पे. नाम. सन्ध्यालघुप्रतिक्रमण विधि, पृ. २७आ लघुप्रतिक्रमणविधि-सन्ध्याकालीन, संबद्ध, मागु., गद्य, आदिः प्रथम इरियावही; अंतिः इति क्षमाश्रमणद्वयं. पे. ९.पे. नाम. प्रभातलघुप्रतिक्रमण विधि, पृ. २७आ लघुप्रतिक्रमणविधि प्राभातिक, संबद्ध, मागु., गद्य, आदिः पहिली इरियावही; अंतिः सज्झाय प्रमुख कीजइ. ६२." षडावश्यकसूत्र सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ४६+१(३६)=४७, जैदेना., प्र.वि. प्र.पु. सर्वग्रं. २५००., संशोधित, (२६४११, १७-१९४६३). श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा., प+ग, आदिः नमो अरिहन्ताणं०; अंतिः वन्दामि जिणे चउवीसं. श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय-बालावबोध, पं. हेमहंस गणि, मागु., गद्य, वि. १५०१, आदिः (१) श्रेयांसि श्रीमहावीर (२) नमो अर्हद्भ्यः ; अंतिः मोक्ष फलदाईउ थाइ. ६३." चन्दपणती, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ६०, जैदेना., प्र.वि. २० प्राभृत; प्र.पु. मूल-ग्रं. १८००, संशोधित, पदच्छेद सूचक लकीरें, (२७४१३, ११४३८). चन्द्रप्रज्ञप्ति, प्रा., पद्य, आदिः नमो अरि० जयति; अंतिः अविणीएसु दायव्वं. ६४." पण्णावणासूत्तं सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८८४, श्रेष्ठ, पृ. ५७२, जैदेना., प्र.वि. मूल-अध्याय-३६ पद, ग्रं. ७७८७.प्र.पु. सर्वग्रं. ३४०००. प्रति में टबार्थप्रशस्ति लिखी नहीं है., टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२५४१३, ५४३३). प्रज्ञापनासूत्र, वाचक श्यामाचार्य, प्रा., गद्य, आदिः नमो अरिहन्ताणं; अंतिः सुही सुहं पत्ता. प्रज्ञापनासूत्र-टबार्थ, मु. धनविमल, मागु., गद्य, आदिः प्रणम्य श्रीमहावीरं; अंतिः सुख पाम्या छइ. ६५. पन्नवणासूत्र सह वृत्ति, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. २७६+१(२०६)=२७७, जैदेना., प्र.वि. मूल-३६ पद., ग्रं. ७७८७; टीका ग्रं. १६०००., संशोधित, त्रिपाठ, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२५.५४१०.५, १७४६८). प्रज्ञापनासूत्र, वाचक श्यामाचार्य, प्रा., गद्य, आदिः नमो अरिहन्ताणं; अंतिः सुही सुहं पत्ता. प्रज्ञापनासूत्र-टीका, आ. मलयगिरिसूरि , सं., गद्य, आदिः जयति नमदमरमुकुटप्रति; अंतिः जिनवचनसद्बोधम्. ६६. जीवाभिगमसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९६०, श्रेष्ठ, पृ. २६४, जैदेना., ले.स्थल. विक्रमपुरनगर, ले. मु. गणेशदास (गुरु मु. लछीराम, खरतरगच्छ), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. मूल-१० प्रतिपत्ति; टबार्थ-ग्रं. २००००; प्र.पु. उभयग्रं. २४०२१. विक्रमपुर का अर्वाचीन नाम वीकानेर के मु. रीणी में यह प्रति लिखी गयी है., प्र.ले.श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्टं; (६) कर कूबड मस्तक अधो, (२४.५४११.५, ७४४६-५०). जीवाभिगमसूत्र, प्रा., गद्य, आदिः णमो उसभादियाणं; अंतिः सव्वजीवा पण्णत्ता. जीवाभिगमसूत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः श्रीवीरजिनं नत्वा; अंतिः जीव सर्व कह्या छे. ६७. चातुर्मासिक व होलिका व्याख्यान, संपूर्ण, वि. १८७४, श्रेष्ठ, पृ. १६, पे. २, जैदेना., ले.स्थल. बीकानेर, ले. पं. अखैचन्द, पठ. पं. लालचन्द,प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. संशोधित, पदच्छेद सूचक लकीरें, (२५४११, १५४४१-४५). पे. १. पे. नाम. चतुर्मासिक व्याख्यान, पृ. १आ-१५अ चातुर्मासिक व्याख्यान, राज., गद्य, आदिः श्रीपार्श्व सुख; अंतिः जयवंतौ प्रवत्तौ. पे. २. होलिकापर्व व्याख्यान, राज., गद्य, (पृ. १५अ-१६आ), आदिः लोक होलिका इसौ; अंतिः मुक्तिरूप सुख मिलै. ६८. जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति सह टबार्थ, पूर्ण, वि. १८८५, श्रेष्ठ, पृ. २६७-२(१२१,२२२)=२६५, जैदेना., (२५४११, ६x४०). जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति, प्रा., गद्य, आदि: नमो अरिहंताणं० तेणं; अंतिः उवदंसेइ त्ति बेमि. For Private And Personal Use Only Page #65 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति-टबार्थ, मु. जीवविजय, मागु., गद्य, वि. १७७०, आदिः श्रीसिद्धार्थनराधिप; अंतिः जम्बू प्रति कहे छे. ६९. निरियावलिकादि पांच उपाङ्गसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८८८, मध्यम, पृ. ५८, पे. ५, जैदेना., ले.स्थल. पटियाला, ले. साध्वीजी मङ्गला (गुरु साध्वीजी दीपीजी), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. संशोधित, (२६.५४११, ८४३९). पे. १. पे. नाम. कल्पिकासूत्र सह टबार्थ, पृ. १-२३अ कल्पिकासूत्र, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं तेणं०; अंतिः वरं मायातो सरिसणामाओ. कल्पिकासूत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः तिणि कालि तिणि; अंतिः नामे सूत्र समाप्त. पे. २. पे. नाम. कल्पावतंसिकासूत्र सह टबार्थ, पृ. २३अ-२५आ कल्पावतंसिकासूत्र, प्रा., गद्य, आदिः जइ णं भन्ते समणेणं०; अंतिः वा महाविदेहे सिद्धे. कल्पावतंसिकासूत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः जउ हे पुज्य तपस्वीइ; अंतिः वडिंसियासूत्र समाप्त. पे. ३.पे. नाम. पुष्पिकासूत्र सह टबार्थ, पृ. २५आ-४८अ पुष्पिकासूत्र, प्रा., गद्य, आदिः जइ णं भन्ते समणेणं०; अंतिः चेइयाइं जहा संगहणीए. पुष्पिकासूत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः जौ हे पूज्य; अंतिः पुफीयासूत्र समाप्त. पे. ४. पे. नाम. पुष्पचूलिकासूत्र सह टबार्थ, पृ. ४८अ-५१आ पुष्पचूलिकासूत्र, प्रा., गद्य, आदिः जइ णं भंते समणेणं०; अंतिः हे वासे सिज्झिहिंति. पुष्पचूलिकासूत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः जउ हे पुज्य तपस्वीइ; अंतिः पूर्व पाठ कहिवउ. पे. ५. पे. नाम. वृष्णिदशासूत्र सह टबार्थ, पृ. ५१आ-५८अ वृष्णिदशासूत्र, प्रा., गद्य, आदि: जइ णं भंते० पंचमस्स; अंतिः मइरित्त एक्कारससु वि. वृष्णिदशासूत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः जौ हे पूज्य० पांचमान; अंतिः पवर्गि बारइ उदेसा. ७०. चन्द्रप्रज्ञप्तिसूत्र, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, प्र. ६८, जैदेना., ले. गणि मानसौभाग्य (गुरु पण्डित विजयसौभाग्य), प्र.वि. २० प्राभृत, संशोधित, (२६.५४१२.५, १५४३३). चन्द्रप्रज्ञप्ति, प्रा., पद्य, आदिः नमो अरि० जयति; अंतिः अविणीएसु दायव्वं. ७१. निरयावली, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ४५, पे. ५, जैदेना., प्र.वि. संशोधित, पदच्छेद सूचक लकीरें, संशोधित, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२५.५४११, ११४३७). पे. १. कल्पिकासूत्र, प्रा., गद्य, (पृ. १-१८अ), आदिः तेणं कालेणं तेणं०; अंतिः वरं मायातो सरिसणामाओ. पे. २. कल्पावतंसिकासूत्र, प्रा., गद्य, (पृ. १८अ-१९आ), आदिः जति णं भंते समणेणं०; अंतिः वा महाविदेहे सिद्धे. पे. ३. पुष्पिकासूत्र, प्रा., गद्य, (पृ. १९आ-३७अ), आदिः (१) जति णं भंते समणेणं० (२) जइ णं भन्ते समणेणं०; अंतिः चेइयाइं जहा संगहणीए. पे. ४. पुष्पचूलिकासूत्र, प्रा., गद्य, (पृ. ३७अ-३९आ), आदिः जइ णं भंते समणेणं०; अंतिः हे वासे सिज्झिहिंति. पे. ५. वृष्णिदशासूत्र, प्रा., गद्य, (पृ. ३९आ-४५अ), आदिः जइ णं भंते. पंचमस्स; अंतिः मइरित्त एक्कारससु वि ७२." उववाई उपाङ्ग सूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९१६, श्रेष्ठ, पृ. १०१, जैदेना., ले.स्थल. राणावसनयर, ले. ऋ. अनोपचन्द, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-कुछ पत्र, प्र.ले.श्लो. (५०६) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा ; (१४) जलाद्रक्षेत् तैलाद्रक्षेत्, (२५.५४१२.५, ६४३४). औपपातिकसूत्र, प्रा., प+ग, आदिः तेणं कालेणं० चम्पा०; अंतिः सुही सुहं पत्ता. औपपातिकसूत्र-टबार्थ, आ. पार्श्वचन्द्रसूरि, मागु., गद्य, आदिः (१) वन्दित्वा श्रीजिनं (२) तिणी कालि चोथा आराने; __ अंतिः सुख पाम्या थका. ७३." उत्तराध्ययनसूत्र सह सुखबोधा वृत्ति, पूर्ण, वि. १६२१, मध्यम, पृ. २४३-१(१)=२४२, जैदेना., प्र.वि. मूल-३६अध्ययन; टीका-ग्रं. १२०००. एक तरफ हांसिए में जगह छोडी हुई हैं।, संशोधित, (३०x११, १५४५५). For Private And Personal Use Only Page #66 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य भाग - १ उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध , प्रा., प+ग, आदि:-; अंतिः भवसिद्धिय संवुडे. उत्तराध्ययनसूत्र-सुखबोधा लघु टीका, आ. नेमिचन्द्रसूरि, सं., गद्य, वि. ११२९, आदि:-; अंतिः तेरस्या विनिश्चितम. ७४." उत्तराध्ययनसूत्र सह टबार्थ+कथा, संपूर्ण, वि. १८२१, श्रेष्ठ, पृ. ५७९, जैदेना., ले.स्थल. वर्द्धमानपुर, ले. गणि हंसविजय (गुरु पं. गजविजय), प्र.ले.पु. विस्तृत,प्र.वि. मूल-३६अध्ययन. प्रति.स्थल वर्द्धमानपुर अर्वाचीन नाम वढवांण है. विजापुर संवत-१८८१ में मुक्तिविजयजी ने इस प्रति का संशोधन किया., संशोधित, पदच्छेद सूचक लकीरें, प्र.ले.श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्टं, (१७X०८, १६४३२). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध , प्रा., प+ग, आदिः सञ्जोगाविप्पमुक्कस्स; अंतिः सम्मए त्ति बेमि. उत्तराध्ययनसूत्र-टबार्थ+कथा सङ्ग्रह, मु. पार्श्वचन्द्रसूरि-शिष्य, मागु., गद्य, आदिः पूर्वसंजोग मातापिता; अंतिः जम्बू प्रतइं कहई छइ. ७५. नन्दीसूत्र सह टबार्थ, कथा, अनुज्ञानन्दीसूत्र व योगनन्दीसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९११, श्रेष्ठ, पृ. ५५, पे. ३, जैदेना., ले.स्थल. रावलपिंडी, ले. श्रा. अमरदत्त गोसाइ, पठ. मु. गुलाबरायजी, प्र.ले.पु. मध्यम, (२७४१२.५, ८ २५४४९-५८). पे. १.पे. नाम. नन्दीसूत्र सह टबार्थ व कथा, पृ. १-५०आ नन्दीसूत्र, आ. देववाचक, प्रा., प+ग, आदि: जयइ जगजीवजोणीवियाणओ; अंतिः से त्तं परोक्खणाणं. नन्दीसूत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः नन्दी ते आनन्दनी; अंतिः किस्युं अ० आचाराङ्ग. नन्दीसूत्र-कथा सङ्ग्रह* , मागु., गद्य, आदिः#; अंति: #. पे. २. पे. नाम. अनुज्ञानन्दीसूत्र-लघुनन्दीसूत्र सह टबार्थ, पृ. ५०आ-५४अ ___ लघुनन्दीसूत्र-अनुज्ञानन्दीसूत्र, आ. देववाचक, प्रा., गद्य, आदिः से किं तं अणुण्णा; अंतिः वीसमणुण्णाए णामाई लघुनन्दीसूत्र-अनुज्ञानन्दीसूत्र-टबार्थ , मागु., गद्य, आदिः से० ते किं० किस्युं; अंतिः अनुग्याना नाम जाणवा. पे. ३. पे. नाम. योगनन्दीसूत्र सह टबार्थ, पृ. ५४अ-५५अ योगनन्दीसूत्र, आ. देववाचक, प्रा., गद्य, आदिः आभिणिबोहियनाणं; अंतिः अणुजाणामि. योगनन्दीसूत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः आ० मतिज्ञान ते; अंतिः किस्युं अ० आचाराङ्ग. ७६. नन्दीसूत्र सह बालावबोध व लघुनन्दीसूत्र, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ४५, पे. २, जैदेना., प्र.वि. संशोधित, त्रिपाठ, (२५४१२.५, १६४५४). पे. १. पे. नाम. नन्दीसूत्र सह बालावबोध, पृ. १-४३अ नन्दीसूत्र, आ. देववाचक, प्रा., प+ग, आदिः जयइ जगजीवजोणीवियाणओ; अंतिः से त्तं परोक्खणाणं. नन्दीसूत्र-बालावबोध*, मागु., गद्य, आदिः जय० विषय कयाषादिक; अंतिः ए परोक्ष श्रुतज्ञान. लघनन्दीसत्र-अनुज्ञानन्दीसत्र, आ. देववाचक, प्रा., गद्य, (प. ४३अ-४५अ), आदिः से किं तं अण्ण्णा ; अंतिः वीसमणुण्णाए णामाइं. ७७." नन्दीसूत्र सह बालावबोध - अधिकार २ व लघुनन्दीसूत्र, संपूर्ण, वि. १६७०, श्रेष्ठ, पृ. ५०, पे. २, जैदेना., ले.स्थल. जेसलमेर, ले. श्रा. साम्मलदास हरदासाणी,प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र.वि. संशोधित, त्रिपाठ, (२७X १२.५, १८४३८). पे. १. पे. नाम. नन्दीसूत्र द्वितीयअधिकार सह बालावबोध, पृ. १-४७अ, प्रतिपूर्ण नन्दीसूत्र, आ. देववाचक, प्रा., प+ग, आदिः-; अंतिः से त्तं परोक्खणाणं. नन्दीसूत्र-बालावबोध* , मागु., गद्य, आदिः-; अंतिः चित् गणवच्छेयः., पे.वि. द्वितीय अधिकार से अंत तक. पे. २. लघुनन्दीसूत्र-अनुज्ञानन्दीसूत्र, आ. देववाचक, प्रा., गद्य, (पृ. ४७आ-५०, संपूर्ण), आदि: से किं तं अणुण्णा; अंतिः वीसमणुण्णाए णामाई., पे.वि. किंचित् टिप्पण भी दिया है. For Private And Personal Use Only Page #67 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir १३ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ७८. दशवैकालिकसूत्र की शिष्यबोधिनी नाम्नी वृत्ति का सङ्क्षिप्त संस्करण, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ९९, जैदेना.,प्र.वि. प्र.पु. ग्रं. २६००., संशोधित, पदच्छेद सूचक लकीरें, (२६.५४१०, १०x४०). दशवैकालिकसूत्र-लघुटीका, आ. सुमतिसूरि, सं., गद्य, आदिः जयति विजितान्यतेजाः; अंति: यान्ति पदमव्ययम्. ७९." उत्तराध्ययनसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८४८, श्रेष्ठ, पृ. २१८, जैदेना., प्र.वि. मूल-३६अध्ययन., पदच्छेद सूचक लकीरें प्रारंभिक पत्र, पू.वि. अध्ययन-१० गा.२० तक ही टबार्थ है., (२७.५४१२.५, ५४३४). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध , प्रा., प+ग, (संपूर्ण), आदिः सञ्जोगाविप्पमुक्कस्स; अंतिः सम्मए त्ति बेमि. उत्तराध्ययनसूत्र-टबार्थ , मागु., गद्य, (अपूर्ण), आदिः संयोग बे प्रकारे; अंति:८०." दशवैकालिकसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५९, जैदेना., प्र.वि. मूल-१०अध्ययनरचूलिका., संशोधित, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२७४११, ५४४१). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यम्भवसूरि, प्रा., पद्य, वि. पू.४, आदिः धम्मो मङ्गलमुक्किट्ठ; अंतिः (१)मुच्चइ त्ति बेमि (२)गई त्ति बेमि. दशवैकालिकसूत्र-टबार्थ, प्राहिं., गद्य, आदिः (१) प्रणम्य श्रीमहावीरं (२) दुर्गति पडिता जीव; अंतिः से वि० कहौ हो. ८१. दशवैकालिकसूत्र सजायो एकादस, संपूर्ण, वि. १९७२, श्रेष्ठ, पृ. १०, जैदेना., ले.स्थल. पालिताणा, ले. करमचन्द रामजी लहिया, प्र.वि. ११सज्झाय, (२४.५४१२, ९४३६). दशवैकालिकसूत्र-सज्झाय, मु. वृद्धिविजय, संबद्ध, मागु., पद्य, आदिः श्रीगुरूपदपंकज नमीजी; अंतिः गायो सकल जगीसे रे. ८२." दशवैकालिकसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ५८, जैदेना., प्र.वि. मूल-अध्याय-अध्ययन१०चूलिकार., संशोधित, पू.वि. द्वितीय चूलिका की अंतिम ६ गाथा का टबार्थ नहीं हैं., (२७४१२.५, ५४४१). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यम्भवसूरि, प्रा., पद्य, वि. पू.४, आदिः धम्मो मङ्गलमुक्किट्ठ; अंतिः (१)मुच्चइ त्ति बेमि (२)निच्चला होसु. दशवैकालिकसूत्र-टबार्थ', मागु., गद्य, आदिः धर्मरूपीओ मङ्गलिक; अंतिः सुधर्मास्वामी कहइ छइ. ८३." दशवैकालिकसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९४९, श्रेष्ठ, पृ. ६४, जैदेना., प्र.वि. मूल-अध्याय-अध्ययन१०., संशोधित, (२८x१२.५, ५४३५). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यम्भवसूरि, प्रा., पद्य, वि. पू.४, आदिः धम्मो मङ्गलमुक्किट्ठ; अंति: गई त्ति बेमि. दशवैकालिकसूत्र-टबार्थ , मागु., गद्य, आदिः ध० धर्म म० मङ्गलीक; अंतिः मोक्ष ग० गतिने पामइ. ८४.” दशवैकालिकसूत्र व सूयडाङ्गसूत्रे वीरस्तुति अध्ययन सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ३०, पे. २, जैदेना., प्र.वि. संशोधित, पदच्छेद सूचक लकीरें, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., (२६४१०.५, ७४५६). पे. १. पे. नाम. दशवैकालिकसूत्र सह टबार्थ, पृ. १-३०आ, संपूर्ण दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यम्भवसूरि, प्रा., पद्य, वि. पू.४, आदिः धम्मो मङ्गलमुक्किट्ठ; अंतिः गई त्ति बेमि. दशवैकालिकसूत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः धर्मरूपीओ मङ्गलिक; अंतिः शिष्य प्रति कह्यो., पे.वि. मूल-अध्याय १०अध्ययन. पे. २. पे. नाम. वीरस्तुति अध्ययन सह टबार्थ, पृ. ३०आ-, अपूर्ण सूत्रकृताङ्गसूत्र-हिस्सा वीरस्तुति अध्ययन, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., पद्य, आदिः पुच्छिंसुणं समणा; अंति:सूत्रकृताङ्गसूत्र-हिस्सा वीरस्तुतिअध्ययन काटबार्थ, मागु., गद्य, आदि: पु० नरकनां दुख; अंतिः-, पे.वि. मात्र प्रथम पत्र है. गा.५ अपूर्ण तक है. ८५. दशवैकालिकसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५४, जैदेना., प्र.वि. मूल-अध्याय-अध्ययन१०चूलिकार. अध्ययन-१० की गाथा -१७ से टबार्थ नहीं हैं., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-कुछ पत्र, (२६४११, ६४४१). For Private And Personal Use Only Page #68 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org: Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य भाग १ ' , दशवैकालिकसूत्र आ. शय्यम्भवसूरि प्रा. पद्य वि. पू. ४ (संपूर्ण), आदि धम्मो मङ्गलमुक्किट्ठ अंति: (१) गाई ति बेमि (२)आलणा सङ्घे . दशवेकालिकसूत्र -टवार्थ मागु, गद्य, (पूर्ण), आदि श्रीजिनधर्म उत्कृष्ट अंतिः (*) " ८६. भगवतीसूत्र, पूर्ण, वि. १८७३ श्रेष्ठ, पृ. ४२९-३ (१६३,२२८, २३८ ) = ४२६, जैदेना. प्र. वि. ४१शतक: प्र.पु. मूल ग्रं. १६०००, दशा वि. मूल पाठ का अंश खंडित है अल्प विवर्ण पानी से फफुंदग्रस्त अल्प (२८४१३ १३०४७). भगवतीसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदिः नमो अरहन्ताणं; अंतिः भावेमाणे विहरति . १४ ८७. भगवतीसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ७४६ + २ (५४७,५८३ ) = ७४८, जैदेना., प्र. वि. मूल- ४१शतक; प्र.पु. मूल . ग्रं. १५७७५. अंतिम पत्र पर ग्रन्थ की अनुक्रमणिका दी गयी है., (२५५११.५, ८४३८). भगवतीसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी प्रा. गद्य, आदि: नमो अरहन्ताणं अंतिः अविग्धं लिहन्तस्स. भगवती सूत्र - टवार्थ, मु. सत्यसागर, मागु, गद्य, आदिः सुखसंततिवृद्ध्यर्थ: अंतिः प्रते नमस्कार करुं. (+) ८८. भगवतीसूत्र सह टबार्थ, पूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १०४१-३ (३४४,८०८, १०३९) + १ (७९९) = १०३९, जैदेना., प्र. वि. मूल४१ शतक. टबार्थकार की प्रशस्ति नहीं है., संशोधित, (२५.५x११.५, ६x४५). भगवतीसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: नमो अरहन्ताणं: अंतिः करितं नम॑स्सामि भगवतीसूत्र- टवार्थ, गणि मेघराज, मागु, गद्य, आदि देवदेवं जिनं नत्वा अंतिः प्रतइ नमस्कार करुं. ८९. उपाशकदशाङ्गसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण वि. १८५०, श्रेष्ठ, पृ. ५५, जैदेना. ले. ऋ. कपूरचन्द (गुरु . चिमनराम), प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र. वि. मूल- अध्याय- १० प्र. पु. उभयनं ३१५१ (२६४१२, ६x४३). उपासकदशाङ्गसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदि: तेणं० चंपा नामं नयरी; अंति: दिवसेस अगं तहेव उपासकदशाङ्गसूत्र-टबार्थ, मु. हर्षवल्लभ, मागु., गद्य, वि. १६९३, आदि: तेणे काले चउथा; अंति: कहिउ प्ररूप्यउ. ९०. ज्ञाताधर्मकथाङ्गसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७९१ श्रेष्ठ, पृ. ३०६, जैदेना., ले. स्थल सत्यपुर, ले. मु. वृद्धिराजजी (गुरु मु. ललितराजजी), गच्छा. आ. विद्यासागरसूरि ( अञ्चलगच्छ), प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र. वि. प्र.पु. सर्वग्रं. ५५००., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-कुछ पत्र, संशोधित प्र.ले. श्लो. (५०६) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा (१७) जलाद्रक्षे तैलाद्रक्षे, (२६.५४१२, २०४४०-५०). For Private And Personal Use Only ज्ञाताधर्मकथाङ्गसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदिः तेणं कालेणं० चम्पाए; अंतिः पुरिसुत्तमाणं. ज्ञाताधर्मकथाङ्गसूत्र-टबार्थ, उपा. कनकसुन्दर, मागु., गद्य, आदिः प्रणम्य श्रीमहावीरं; अंतिः सम्पूर्णम्. ९१. ज्ञाताधर्मकथाङ्गसूत्र सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८२५, श्रेष्ठ, पृ. २६, जैदेना ले. पं. हस्तिकुशलजी (गुरु पं. अमरकुशलजी), प्र. वि. १९ भास, २७ ढाल, गा.६७२ प्र. पु. संबद्ध ग्रं. १२००, दशा वि. विवर्ण अक्षरों की स्याही फैल गयी है, (२५x१२, १७-२०X३४-३८ ) . ज्ञाताधर्मकथाङ्गसूत्र- भास, मु. प्रीतिविजय, संबद्ध मागु पद्य वि. १७२१ आदि श्रीश्रुतदेवी नमी अंतिः चउविह सङ्घ उल्लास. ९२. भगवती सूत्र की वृत्ति, पूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ३८९-३ ( ३७३ से ३७५ ) + ३(४३, ५८, ९४ ) = ३८९, जैदेना. ले. स्थल सीरोही, ले. मु. चाम्पाजी, प्र. वि. ग्रं. १८६१६, ४१शतक. सूत्रपाठ प्रतीकमात्र है., ( २४४१०.५, १५-१८x४८). भगवतीसूत्र अभयदेवीय टीका, आ. अभयदेवसूरि सं., गद्य वि. ११२८ आदि सर्वज्ञमीश्वरमनन्त: अंतिः . (१) मशक मियर्त्यथवा पथि ( २ ) श्लोकमानेन निश्चितम् . ९३. भगवतीसूत्र, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ५३२, जैदेना., प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. प्र. पु. ग्रं. १६०००., संशोधित, ( २६ ११, १३x३२). भगवतीसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी प्रा. गद्य, आदि: नमो अरहन्ताणं अंतिः उद्दिसन्तेहि, ; ९४.” समवायाङ्गसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७२८, मध्यम, पृ. ९४, जैदेना., ले. स्थल. राखी, ले. मु. सांवल (गुरु मु. Page #69 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची देवीदास), प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र.वि. मूल-ग्रं. १६६७; टबार्थ-ग्रं. ४४७४; प्र.पु. उभयग्रं. ६१७५. टबार्थलेखन संवत्१७३७., संशोधित, (२७.५४११, ५४५७). समवायाङ्गसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदिः सुयं मे० इह खलु; अंतिः अज्झयणन्ति त्तिबेमि. समवायाङ्गसूत्र-टबार्थ, वाचक मेघराजजी, मागु., गद्य, वि. १७उ., आदिः पांचमो गणधर सुधर्मा; अंतिः मेघरा० कृतोयं टबार्थ. ९५. ठाणाङ्गसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८९४, श्रेष्ठ, पृ. १८५+१(४१)=१८६, जैदेना., ले.स्थल. बीकानेर, प्र.वि. मूल १०स्थान.प्र.पु. सर्वग्रं. १६०००. प्रति में टबार्थकार का नामोल्लेख नहीं है. जिरावला पार्श्वनाथ प्रसादेन., संशोधित, (२५.५४१२.५, ८४३७). स्थानाङ्गसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदिः सुयं मे आउसं तेणं; अंतिः अणन्ता पण्णत्ता. स्थानाङ्गसूत्र-टबार्थ, उपा. मेघराज, मागु., गद्य, आदिः श्रीमद्वीरजिनं नत्वा; अंतिः पुद्गल अनन्ता कहिआ. ९६. समवायाङ्गसूत्र सह वृत्ति, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १०५-१(२३)=१०४, जैदेना., ले.स्थल. अणहिल्लपाटकनगर, ले. कीका मोढ, प्र.वि. मूल-ग्रं. १६६७, १०३अध्ययन; टीका-ग्रं. ३५७५., संशोधित, पंचपाठ, पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न, (२६.५४११. , ६४३०). समवायाङ्गसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदिः सुयं मे० इह खलु; अंतिः अज्झयणन्ति त्तिबेमि. समवायाङ्गसूत्र-वृत्ति, आ. अभयदेवसूरि , सं., गद्य, वि. ११२०, आदिः (१) श्रीवर्द्धमानमानम्य (२) श्रुतमाकर्णितं मे; अंतिः पादौनाष्टशती तथा. ९७. समवायाङ्गसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९६९, श्रेष्ठ, पृ. १२५, जैदेना., ले.स्थल. सरदारशहर, ले. मु. गणेशदास; मु. धनराज (गुरु मु. गणेशदास), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. प्र.पु. मूल-ग्रं. २००४.प्र.पु. टबार्थ-ग्रं. ६४१२. टबार्थकार की प्रशस्ति नहीं है. मूल के लेखक गणेशदास व टबार्थ के लेखक धनराज हैं., संशोधित, प्र.ले.श्लो. (५६५) याद्रसं पुस्तकं दृष्ट्वा ; (६) कर कूबड मस्तक अधो, (२५.५४११, ५४४४). समवायाङ्गसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदिः सुयं मे० इह खलु; अंतिः अज्झयणन्ति त्तिबेमि. समवायाङ्गसूत्र-टबार्थ, वाचक मेघराजजी, मागु., गद्य, वि. १७उ., आदिः देवदेवं जिनं नत्वा; अंतिः आगलि कहुं छु. ९८." ज्ञाताधर्मकथाङ्गसूत्र-प्रथम श्रुतस्कन्धे प्रथम अध्ययन सह टबार्थ, प्रतिपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ७२, जैदेना., प्र.वि. प्र.पु. ग्रं. ११०५. प्र.पु. टबार्थ-ग्रं. १६९१., संशोधित, (२६४११, ७४३०). ज्ञाताधर्मकथाङ्गसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदिः तेणं कालेणं० चम्पाए; अंति: ज्ञाताधर्मकथाङ्गसूत्र-टबार्थ, उपा. कनकसुन्दर, मागु., गद्य, आदिः प्रणम्य श्रीमहावीरं; अंति:९९. ज्ञाताधर्मकथाङ्गसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९०६, श्रेष्ठ, पृ. ३३२, जैदेना., ले.स्थल. राणावसग्राम, ले. ऋ. शोभाचन्द (गुरु ऋ. हुकमचन्द), पठ. ऋ. अनोपचन्द (गुरु ऋ. हुकमचन्द), प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र.वि. मूल-१९अध्ययन; प्र.पु. मूल-ग्रं. ६०००. प्र.पु. टबार्थ-ग्रं. १९३८७., संशोधित, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, पदच्छेद सूचक लकीरें-मूल पाठ-कुछ पत्र, प्र.ले.श्लो. (५७८) याद्रसं पुस्तकं द्रष्ट्वा , (२५४१२, ७X३४). ज्ञाताधर्मकथाङ्गसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदिः तेणं कालेणं० चम्पाए; अंति: जाव सम्पत्तेणं. ज्ञाताधर्मकथाङ्गसूत्र-टबार्थ, गणि प्रेमजी, मागु., गद्य, वि. १६९९, आदिः प्रणम्य श्रीमहावीरं; अंतिः प्रेमजिना टबार्थः. १००." भगवतीसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २७४, जैदेना., प्र.वि. प्रत नं.६२६५ इसी प्रत का अवशेष भाग है. पत्रांक अव्यवस्थित व गलत होने से निर्दिष्ट अंश को अलग करके उक्त नंबर पर रखा गया है., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-कुछ पत्र, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्रारंभ से ८वें शतक छट्ठा उद्देश अपूर्ण तक है., (२६.५४१२.५, ७X४४). भगवतीसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: नमो अरहन्ताणं; अंति:भगवतीसूत्र-टबार्थ, गणि मेघराज, मागु., गद्य, आदिः देवदेवं जिनं नत्वा; अंति: For Private And Personal Use Only Page #70 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य भाग - १ १६ १०१. सूत्रकृताङ्गसूत्र-द्वितीयश्रुतस्कन्ध सह टबार्थ, प्रतिपूर्ण, वि. २०उ., श्रेष्ठ, पृ. १९६+१(७१)=१९७, जैदेना., (२७.५४११.५, ४४३१). सूत्रकृताङ्गसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदि:-; अंतिः विहरति त्ति बेमि. सूत्रकृताङ्गसूत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः-; अंतिः विहरवा इच्छउ छउ. १०२." भगवतीसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८८३, श्रेष्ठ, पृ. ८५१+३(१०४,५०६,७१३)=८५४, जैदेना., ले.स्थल. सिंघाणा, ले. मु. तुलसीराम (गुरु पण्डित देवकरण), प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र.वि. मूल-४१शतक., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-कुछ पत्र, (२६४१२, ७-८४४३). भगवतीसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदिः नमो अरहन्ताणं; अंतिः भावेमाणे विहरति. भगवतीसूत्र-टबार्थ, गणि मेघराज, मागु., गद्य, आदिः देवदेवं जिनं नत्वा; अंतिः प्रतइ नमस्कार करूं. १०३. भगवतीसूत्र सह वृत्ति, अपूर्ण, वि. २०उ., श्रेष्ठ, पृ. ९८१-२६(४,५४०,६२६ से ६४९)=९५५, जैदेना.,प्र.वि. मूल-ग्रं. १५७५२,४१शतक; टीका-ग्रं. १८६१६,४१शतक. आधुनिक प्रत. मुद्रित प्रत पर से लिखी गयी प्रत., टिप्पण युक्त विशेष पाठ, दशा वि. दीमक भक्षित-अनेक पत्र-मूल व टीका का अंश नष्ट है-अल्प, (२८x१२.५, १४४४८). भगवतीसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदिः नमो अरहन्ताणं; अंतिः भावेमाणे विहरति. भगवतीसूत्र-अभयदेवीय टीका, आ. अभयदेवसूरि , सं., गद्य, वि. ११२८, आदिः सर्वज्ञमीश्वरमनन्त; अंतिः श्लोकमानेन निश्चितम्. १०४. विपाकसूत्र, संपूर्ण, वि. १६०४, श्रेष्ठ, पृ. ३४, जैदेना., लिखवा. श्राविका सुहिलालदे, प्र.वि. अध्याय-२० अध्ययन; प्र.पु. ग्रं. १३१६, (२७४११.५, १३४४५). विपाकसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदिः तेणं कालेणं तेणं; अंति: सेसं जहा आयारस्स. १०५." उपाशकदशाङ्गसूत्र सह टबार्थ व वर्धमानदेशना, पूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, प्र. १६४-१(१०६)=१६३, पे. २, जैदेना., प्र.वि. टबार्थ के साथ-साथ वर्द्धमान देशना भी चल रही है., टिप्पण युक्त विशेष पाठ, संशोधित, (२४.५४१२, ६४३६). पे. १. पे. नाम. उपासकदशाङ्ग सह टबार्थ, पृ. १-१६४, संपूर्ण उपासकदशाङ्गसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदिः तेणं० चंपा नामं नयरी; अंतिः दिवसेसु अङ्गं तहेव. उपासकदशाङ्गसूत्र-टबार्थ, मु. हर्षवल्लभ, मागु., गद्य, वि. १६९३, आदिः (१) तेणे काले चउथा (२) प्रणम्य __ श्रीमहावीरं; अंतिः दिवसे अङ्ग तहेव., पे.वि. मूल-अध्याय-१०. पे. २. वर्द्धमानदेशना, गणि राजकीर्ति, सं., गद्य, (पृ. ३-१६३, पूर्ण), आदिः नमः श्रीपार्श्वनाथाय; अंतिः (१)शोधयन्तु गतमत्सराः (२)राजकीर्तिगणिना., पे.वि. १०उल्लास; प्र.पु. ग्रं.६३००. बीच का एक पत्र नहीं है. १०६." प्रश्नव्याकरणसूत्र सह स्तबकार्थ, संपूर्ण, वि. १७४१, श्रेष्ठ, पृ. ५७, जैदेना., ले.स्थल. नव्यद्रंगे, प्र.वि. मूल-अध्याय-१०; प्र.पु. मूल-ग्रं. १२५०., टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२५४११, ८४४८). प्रश्नव्याकरणसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदि: जंबू अपरिग्गहो; अंतिः शरीरधरे भविस्सत्तीति. प्रश्नव्याकरणसूत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः अहो जम्बू ए; अंतिः शरीरनो धरणहार हुस्यै. १०७. विपाकसूत्र विवरण, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १८, जैदेना.,प्र.वि. प्र.पु. टीका ग्रं. ९०९. (सर्वांकग्रन्थ-८३८२ व अक्षर १३-?)., (२७४१२.५, १५४६४). विपाकसूत्र-टीका, आ. अभयदेवसूरि , सं., गद्य, आदिः नत्वा श्रीवर्द्धमान; अंति: मदभयदेवाचार्यस्येति. १०८. भगवत्यङ्गवृत्ति, पूर्ण, वि. १९१६, श्रेष्ठ, पृ. ३६४-२(१५२,३५२)=३६२, जैदेना., ले.स्थल. मुंबई, ले. चतुर्भुज ओझा(औदिच्य ब्राह्मण.), पठ. मु. वृद्धिविजय,प्र.वि. ग्रं. १८६१६,४१शतक, प्र.ले.श्लो. (५०६) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा ; For Private And Personal Use Only Page #71 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir १७ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची (८) उदकानलचोरेभ्यो; (४५) भग्न पृष्टी कटी ग्रीवा; (५२५) तैलाद् रक्षेज्जलाद्रक्षेद्; (९) उपसर्गः क्षयं यांति, (३०x१३.५, १५४५१). भगवतीसूत्र-अभयदेवीय टीका, आ. अभयदेवसूरि , सं., गद्य, वि. ११२८, आदिः सर्वज्ञमीश्वरमनन्त; अंतिः मशंकमियय॑थवा पथि. १०९." ज्ञाताधर्मकथाङ्गसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३५९, जैदेना., प्र.वि. मूल-१९अध्ययन, ग्रं. ५५००. टबार्थ ग्रं. ८५००., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-कुछ पत्र, (२५.५४११, ६४३६). ज्ञाताधर्मकथाङ्गसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदिः तेणं कालेणं० चम्पाए; अंतिः जाव पुरिससिहेणं. ज्ञाताधर्मकथाङ्गसूत्र-टबार्थ, उपा. कनकसुन्दर, मागु., गद्य, आदिः प्रणम्य श्रीमहावीरं; अंतिः धर्मकथा संपूर्ण. ११०." ज्ञाताधर्मकथाङ्गसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९२२, श्रेष्ठ, पृ. २८७, जैदेना., ले.स्थल. विक्रमपुर, ले. पं. वासुदेव(कवलागच्छ),प्र.वि. मूल-१९अध्ययन. प्र.पु. सर्वग्रं. २४०००., टिप्पण युक्त विशेष पाठ,प्र.ले.श्लो. (५०६) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा ; (४४०) तैलाद् रक्षेद् जलाद् रक्षेद्, (२६४१२.५, ७X४५). ज्ञाताधर्मकथाङ्गसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदिः तेणं कालेणं० चम्पाए; अंतिः जाव पुरिससिहेणं. ज्ञाताधर्मकथाङ्गसूत्र-टबार्थ, उपा. कनकसुन्दर, मागु., गद्य, आदिः प्रणम्य श्रीमहावीरं; अंतिः धर्मकथा संपूर्ण. १११.” ज्ञाताधर्मकथाङ्गसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९२८, श्रेष्ठ, पृ. २३८, जैदेना., ले.स्थल. फलोधीनगर, ले. मु. विद्यालाल महात्मा, प्र.वि. मूल-१९अध्ययन., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-कुछ पत्र, प्र.ले.श्लो. (४७१) भग्नपृष्टं कटिग्रीवा, (२८x१२.५, ७X४९). ज्ञाताधर्मकथाङ्गसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदिः तेणं कालेणं० चम्पाए; अंतिः जाव पुरिससिहेणं. ज्ञाताधर्मकथाङ्गसूत्र-टबार्थ, उपा. कनकसुन्दर, मागु., गद्य, आदिः प्रणम्य श्रीमहावीरं; अंतिः धर्मकथा संपूर्ण. ११२. ज्ञाताधर्मकथाङ्गसूत्र सह टबार्थ, त्रुटक, वि. १८वी, जीर्ण, पृ. ५३३-३३५(१ से ६१,६३ से ७९,८१,१०३,१३९ से १४०,१४४ से ३१७,३२९ से ३३२,३८० से ३८५,३९५ से ३९६,३९८ से ३९९,४२४,४३५ से ४३७,४३९ से ४८५,४९० से ४९५,५०३,५०६ से ५०७,५२३ से ५२७)=१९८, जैदेना., प्र.वि. मूल-१९अध्ययन. पाँच पन्ने छूटक है। प्रत अतिजीर्ण एवं फटी व टूटी है., पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., (२५.५४१२.५, ५४२७). ज्ञाताधर्मकथाङ्गसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदि:-; अंति: ज्ञाताधर्मकथाङ्गसूत्र-टबार्थ , मागु., गद्य, आदि:-; अंतिः११३." प्रश्नव्याकरणसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ८२, जैदेना., प्र.वि. मूल-अध्याय-१०; प्र.पु. मूल-ग्रं. १२५०. टीकानुसारी प्रचलित पाठ., टिप्पण युक्त विशेष पाठ, प्र.ले.श्लो. (५०६) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा , (२७४११.५, ७४३६). प्रश्नव्याकरणसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदिः जंबू अपरिग्गहो; अंतिः शरीरधरे भविस्सत्तीति. प्रश्नव्याकरणसूत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः हे जम्बू एह; अंतिः अनन्ता सुख पामइ. ११४.” ज्ञाताधर्मकथाङ्गसूत्र बीजकविस्तर, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २२-१२(१ से १२)=१०, जैदेना., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२६४१२, १७४५१). ज्ञाताधर्मकथाङ्गसूत्र-बीजक, मागु., गद्य, आदिः#; अंतिः #. ११५. निरियावलियादिपञ्चोपाङ्गसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९०६, श्रेष्ठ, पृ. ६३, पे. ५, जैदेना., ले.स्थल. राणावास, ले. ऋ. नरसिङ्घदासजी(बृहत्लुङ्कागच्छ); ऋ. हुकमचन्द,प्र.वि. प्र.पु. सर्वमूलग्रं. २३६६.. (२५४११.५, ७४४४). पे. १. पे. नाम. कल्पिकासूत्र सह टबार्थ, पृ. ०१आ-२४आ कल्पिकासूत्र, प्रा., गद्य, आदिः तेणं कालेणं तेणं०; अंतिः वरं मायातो सरिसणामाओ. कल्पिकासूत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः ते कालइ उसर्पणीनो; अंतिः नामे सूत्र समाप्त. पे. २. पे. नाम. कल्पावतंसिकासूत्र सह टबार्थ, पृ. २४आ-२६आ For Private And Personal Use Only Page #72 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य भाग १ .. www.kobatirth.org: कल्पावतंसिकासूत्र, प्रा., गद्य, आदि: जइ णं भन्ते समणेणं०; अंतिः वा महाविदेहे सिद्धे. कल्पावतंसिकासूत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, आदि: (१) जौ हे भगवन्त समण० (२) श्रीवीतरागदेवनै०; अंतिः डिंसियासूत्र समाप्त. पे. ३. पे. नाम. पुष्पिकासूत्र सह टबार्थ, पृ. २६-५१ पुष्पिकासूत्र, प्रा., गद्य, आदि जति णं भंते समणेणं०: अंतिः चेइयाई जहा संगहणीए. पुष्पिकासूत्र -टबार्थ, मागु., गद्य, आदि: (१) जौ हे पूज्य (२) श्रीवीतरागदेवनै; अंतिः पुफीयासूत्र समाप्त. पे. ४. पे नाम पुष्पचूलिकासूत्र सह टवार्थ, पृ. ५१आ-५५आ पुष्पचूलिकासूत्र, प्रा., गद्य, आदिः जइ णं भंते समणेणं०; अंतिः हे वासे सिज्झिहिंति. पुष्पचूलिकासूत्र - टवार्थ मागु, गद्य, आदि: जी हे पूज्य श्रमण; अंतिः क्षेत्रे सीझइम. पे. ५. पे. नाम. वृष्णिदशासूत्र सह टबार्थ, पृ. ५५आ-६३अ वृष्णिदशासूत्र, प्रा., गद्य, आदि: जइ णं भंते० पंचमस्स; अंतिः मइरित्त एक्कारससु वि. वृष्णिदशासूत्र- टवार्थ, मागु, गद्य, आदि जउ हे पूज्य तपस्वीह अंतिः पवर्ग बारइ उदेसा (+) ११६.” राजप्रश्नीय वृत्तिका, संपूर्ण, वि. १७वी, जीर्ण, पृ. ७२, जैदेना., प्र. वि. प्र. पु. ग्रं. ३९५०., (२६×११, १५४५८). राजप्रश्नीयसूत्र - टीका, आ. मलयगिरिसूरि सं., गद्य, आदिः प्रणमत वीरजिनेश्वर; अंतिः स्तेन भवतु कृती . · " ११७. * राजप्रश्नीयसूत्र की वृत्ति अपूर्ण वि. १७वी मध्यम, पृ. ७०-७१ से ७ ) - ६३, जैदेना. प्र. वि. प्र. पु. ग्रं. ३७५० दशा वि. मूषक भक्षित-अनेक पत्र- नीचला भाग मूल पाठ का अंश खंडित है अल्प, (२९.५४१०.५, १३४५६). राजप्रश्नीयसूत्र- टीका, आ. मलयगिरिसूरि सं., गद्य, आदि:-; अंतिः ताडनानि कशादिघाताः. " Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ११८. सुयगडाङ्गसूत्र सह टवार्थ प्रथम श्रुतस्कन्ध, प्रतिपूर्ण, वि. १८७४, श्रेष्ठ, पृ. ४२, जैदेना, ले. स्थल बढोतनगर, ले. तुलसीराम, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, दशा वि. हानिकारक स्याही - पत्र नष्ट होने लगे हैं, प्र. ले. श्लो. (५०६ ) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा; (२५) भग्नपृष्ठकटिग्रीवा (३९५) जलाद्रक्षे तैलाद्रक्षे; (१०) जावंत चन्द्र रविलोके, (२६×११.५, ७०९४७) सूत्रकृताङ्गसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी प्रा. प+ग, आदि बुज्झिज्ज तिउट्टेज्ज; अंतिः " सूत्रकृताङ्गसूत्र- टबार्थ, मागु., गद्य, आदि: जिम आज्ञा सहित: अंतिः ११९. जम्बूप्रज्ञप्तिसूत्र की वृत्ति, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. २५८, जैदेना., प्र. वि. ग्रं. १३२७५, ( २६११, १७५०). जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति - टीका, उपा. पुण्यसागर सं. गद्य वि. १६७५, आदि प्रथमनाथमहं अतिः पारतन्त्र्यमावेदितं. " . (+) १२०. आचाराङ्गसूत्र सह टवार्थ-प्रथम श्रुतस्कन्ध, प्रतिपूर्ण, वि. १८३०, श्रेष्ठ, पृ. ५७, जैदेना. ले. मु. दीपचन्दजी (गुरु मु. मनसुखरायजी), प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ - कुछ पत्र (२६.५x११, ६x४७). आचाराङ्गसूत्र आ. सुधर्मास्वामी प्रा. प+ग, आदि: सुर्य मे आउसं० इह अंति: " आचाराद्गसूत्र- टवार्थ मागु., गद्य, आदि: सु० एहवउ साम्भलउ: अंति १८ १२१.” सूत्रकृताङ्गसूत्र सह टबार्थ-द्वितीय श्रुतस्कन्ध, प्रतिअपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १२८ - २ (१ से २ ) = १२६, जैदेना., प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-कुछ पत्र, पू. वि. प्रारंभ व अंत के पत्र नहीं हैं. अध्ययन- १ सूत्र - ६३५ से अध्ययन ७ अपूर्ण तक है., (२५.५४१०.५. ५४३५). सूत्रकृतागसूत्र आ. सुधर्मास्वामी प्रा. प+ग, आदि: अंति: " सूत्रकृताङ्गसूत्र- टबार्थ *, मागु., गद्य, आदि:-; अंति: For Private And Personal Use Only १२२. विपाकसूत्र, संपूर्ण वि. १७वी श्रेष्ठ, पृ. ५१, जैदेना, प्र. वि. ग्रं. १२५०, अध्याय २० अध्ययन, टिप्पण युक्त विशेष पाठ कुछ पत्र (२६.५४१२, ११४४०). विपाकसूत्र आ. सुधर्मास्वामी प्रा. गद्य, आदि तेणं कालेणं तेणं अंतिः सेसं जहा आयारस्स. Page #73 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org: १९ १२३. समवायाङ्गसूत्र, पूर्ण, वि. १५९१, श्रेष्ठ, पृ. ४७-१(१६) ४६, जैदेना ले. स्थल लोदेहाणानगर, प्र. वि. सूत्र " १५९, १०३ अध्ययन, (२५.५४१०.५ १५४३७). समवायाङ्गसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी प्रा. गद्य, आदिः सुयं मे० इह खलु अंतिः अज्झयणन्ति तिबेमि , " कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची (+4) १२४. सूत्रकृताङ्गसूत्र सह टबार्थ- प्रथम श्रुतस्कन्ध, प्रतिपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १००, जैदेना., प्र. वि. प्र. पू. उभय ग्रं. ३८००., पदच्छेद सुचक लकीरें, दशा वि. विवर्ण लाल अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं. (२६.५४११, ४X३३). सूत्रकृताङ्गसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदिः बुज्झिज्ज तिउट्टेज्ज; अंतिः सूत्रकृताङ्गसूत्र- टबार्थ, मागु., गद्य, आदि: (१) प्रथम श्रीआचाराङ्ग (२) बु० जिनाज्ञा सहित; अंतिः (+) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १२५. आचाराङ्गसूत्र सह बालावबोध द्वितीय श्रुतस्कन्ध, प्रतिपूर्ण, वि. १७वी श्रेष्ठ, पृ. १००-१ (६६+६७)+१ (६१)=१००, जैदेना., प्र. वि. प्र. पु. उभय ग्रं. ८५११, त्रिपाठ, ( २६४१०.५, १७ - १८५२-५४). आचाराङ्गसूत्र · आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदि:-; अंतिः विमुच्चति त्ति बेमि आचाराङ्गसूत्र-बालावबोध, आ. पार्श्वचन्द्रसूरि, मागु., गद्य, वि. १८वी, आदिः-; अंतिः चिरं नन्द्यात्. १२६.” विवाहपन्नत्तीसूत्र सह वृत्ति, संपूर्ण, वि. १६१९, श्रेष्ठ, पृ. ९०२ - १(७४६+७४७)+१ (८८६)=९०२, जैदेना., प्र. वि. मूल४१शतक प्र.पु. मूल ग्रं. १५०५०. प्र.पु. टीका ग्रं. १८००० पंचपाठ-कुछ पत्र, संशोधित टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२६.५x११, १३x२३). भगवतीसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि (१) नमो अरहन्ताणं ( २ ) णमो बम्मीए लिवीए: अंतिः भावेमाणे विहरति " भगवती सूत्र - अभयदेवीय टीका, आ. अभयदेवसूरि सं., गद्य वि. ११२८ आदि (१) सर्वज्ञमीश्वरमनन्त (२) तत्र नम इति नैपातिक अंतिः (१) मशंक मियर्त्यथवा पथि ( २ ) श्चेति न व्याखाताः. १२७. उवाइसूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ८-२ (३,६) = ६, जैदेना., प्र. वि. प्रत्येक पत्रों पर ३-३ पत्रांक दिये गये हैं जो २० से ४३ तक है. उसे क्रमशः गिनकर पत्रांक भरा गया है., पू. वि. प्रारंभ, बीच के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. (२५४११.५, १४४४२). औपपातिकसूत्र, प्रा., प+ग, आदि:-: अंति १२८.” अन्तगडदशाङ्गसूत्र सह टवार्थ, संपूर्ण वि. १९४९, श्रेष्ठ, पृ. १०१ जैदेना. प्र. वि. मूल- अध्याय ९२. प्र. पु. उभय ग्रं. ३०००., ( २६४१३ ५४२८). अन्तकृद्दशाङ्गसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं० चम्पा०; अंतिः अयमट्ठे पण्णत्ते. अन्तकृद्दशाङ्गसूत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, आदि: अन्तगड शब्दस्य; अंतिः ज्ञाताधर्मकथानी परे. १२९.' सूत्रकृताङ्गसूत्र सह टवार्थ प्रथम श्रुतस्कन्ध, प्रतिपूर्ण, वि. १७८३, श्रेष्ठ, पृ. ५६, जैदेना., ले. स्थल. सूरत, ले. मु. वीरपाल शिवजी (गुरु ऋ. कुसलाजी), प्र. वि. बालावबोध टबार्थ की तरह लिखा गया है., टिप्पण युक्त विशेष पाठ, संशोधित - अंतिम पत्र, (२७४१३, ६३५) . सूत्रकृताङ्गसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदिः बुज्झिज्ज तिउटेज्ज; अंति: सूत्रकृताङ्गसूत्र- वालावबोध, आ. पार्श्वचन्द्रसूरि मागु, गद्य आदि प्रणम्य सद्गुरुन: अंति: " १३०. राजप्रश्नीयसूत्र सह टवार्थ, संपूर्ण, वि. १८९० श्रेष्ठ, पृ. १२१, जैदेना. ले. स्थल बम्बई, ले. पं. महिमारत्नजी (गुरु वाचक जैसार, खरतरगच्छ ), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. प्र. पु. मूल-ग्रं. २२२० टबार्थ नं. ५५०० (२६.५४१३.५, ७x४०). राजप्रश्नीयसूत्र, प्रा., गद्य, आदिः नमो अरिहंताणं० तेणं; अंतिः सुपस्से परसवणा नमो. For Private And Personal Use Only राजप्रश्नीयसूत्र - टबार्थ, वाचक मेघराजजी, मागु., गद्य, आदि: (१) देवदेवं जिनं नत्वा (२) नमस्कार थाओ; अंतिः (१) मानं विनिश्चितं ( २ ) नमस्कार हुवी. Page #74 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य भाग - १ १३१." निरियावलिकादि पञ्चोपाङ्गसूत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २६, पे. ५, जैदेना., प्र.वि. प्र.पु. कुल पेटा ग्रं. ११००. ___आंशिक यत्र-तत्र टबार्थ है., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-कुछ पत्र, (२६x११.५, १३७५०). पे. १.पे. नाम. कल्पिकासूत्र सह टबार्थ, पृ. १-११अ, संपूर्ण कल्पिकासूत्र, प्रा., गद्य, आदिः तेणं कालेणं तेणं; अंतिः वरं मायातो सरिसणामाओ. कल्पिकासूत्र-टबार्थ, मागु., गद्य(अपूर्ण), आदि: तेणि कालि तेणि; अंति:-, पे.वि. मूल-अध्याय-१०अध्ययन. पत्रांक ९आ से ११अ का टबार्थ नहीं दिया गया है. पे. २. पे. नाम. निरयावलिका-द्वितीयवर्ग, पृ. ११अ-१२अ, संपूर्ण कल्पावतंसिकासूत्र, प्रा., गद्य, आदिः जइ णं भन्ते समणेणं०; अंतिः वा महाविदेहे सिद्धे., पे.वि. १० अध्ययन. पे. ३. पे. नाम. निरयावलिका-तृतीयवर्ग, पृ. १२अ-२१आ, संपूर्ण पुष्पिकासूत्र, प्रा., गद्य, आदिः जति णं भंते समणेणं०; अंतिः चेइयाइं जहा संगहणीए., पे.वि. १० अध्ययन. कठिनपदटिप्पण. पे. ४. पे. नाम. निरयावलिका-चतुर्थवर्ग, पृ. २१आ-२३अ, संपूर्ण पुष्पचूलिकासूत्र, प्रा., गद्य, आदिः जइ णं भंते समणेणं०; अंतिः हे वासे सिज्झिहिंति., पे.वि. १० अध्ययन. पे. ५. पे. नाम. निरयावलिका-पञ्चमवर्ग, पृ. २३अ-२६अ, संपूर्ण वृष्णिदशासूत्र, प्रा., गद्य, आदिः जइ णं भंते० पंचमस्स; अंतिः मइरित्त एक्कारससु वि., पे.वि. १२ अध्ययन. १३२." जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८४२, श्रेष्ठ, पृ. १८८, जैदेना., ले.स्थल. पाटपुरा, ले. नुणाजी, प्र.वि. मूल-७ वक्षस्कार; प्र.पु.मूल-ग्रं. ४४५४., टिप्पण युक्त विशेष पाठ, अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-कुछ पत्र, संशोधित, (२७.५४११.५, १०४३७). जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति, प्रा., गद्य, आदिः तेणं कालेणं तेणं; अंतिः उवदंसेइ त्ति बेमि. जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति-टबार्थ, मु. जीवविजय, मागु., गद्य, वि. १७७०, आदि: नमस्कार थाओ; अंतिः जम्बू प्रति कहे छे. १३३. सूर्यप्रज्ञप्तिसूत्र की वृत्ति, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १९९, जैदेना., पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. प्रारंभ से प्राभृत-११ __अपूर्ण तक है., (२५४१२, ११-२५४३६). सूर्यप्रज्ञप्ति-टीका, आ. मलयगिरिसूरि , सं., गद्य, आदिः यथास्थितं जगत्; अंतिः१३४.” उत्तराध्ययनसूत्र सह टबार्थ+कथा- अध्ययन-१ से १८, प्रतिपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ११७, जैदेना.,प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, पदच्छेद सूचक लकीरें, (२६४११.५, ६-१७X४१-४७). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग, आदिः सञ्जोगाविप्पमुक्कस्स; अंति: उत्तराध्ययनसूत्र-टबार्थ + कथा सङ्ग्रह , मागु., गद्य, आदिः श्रीमहावीरने वारे; अंति:१३५.” उत्तराध्ययनसूत्र, संपूर्ण, वि. १६८४, श्रेष्ठ, पृ. ४४, जैदेना., लिखवा. मु. खीमा(अञ्चलगच्छ.), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. ३६अध्ययन. संवत् १६८४ में अञ्चलगच्छाधिपति आचार्य श्री कल्याणसागरसूरि ने श्री धनराज गणि को यह प्रति पढने हेतु दी., संशोधित-प्रारंभ में ज्यादा, बाद में क्वचित, (२६.५४११, १३४५५). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग, आदिः सञ्जोगाविष्पमुक्कस्स; अंतिः पुत्वरिसी एव भासन्ति. १३६. उत्तराध्ययनसूत्र, संपूर्ण, वि. १६८६, श्रेष्ठ, पृ. ७२, जैदेना., ले.स्थल. मोल्हेलाव, ले. मु. नरसिङ्घजी (गुरु मु. हरजी), पठ. आ. जीवा, प्र.वि. ३६अध्ययन; प्र.पु. मूल-ग्रं. २१००. प्र.वर्ष-षट्रससिद्धि शशिकला., प्र.ले.श्लो. (११) अज्ञान भावत्मति विभ्रम; (४४०) तैलाद् रक्षेद् जलाद् रक्षेद्; (१) यादृशं पुस्तकं दृष्टं; (५२३) मङ्गलं लेखकानां च, (२६४११, १३४४०). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध , प्रा., प+ग, आदिः सञ्जोगाविप्पमुक्कस्स; अंतिः सम्मए त्ति बेमि. १३७. उत्तराध्ययनसूत्र सह अधिरोहिणी वृत्ति, संपूर्ण, वि. १९१६, श्रेष्ठ, पृ. ४४२+१(१)=४४३, जैदेना., ले. मु. चतुर्भुज For Private And Personal Use Only Page #75 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir २१ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ब्रह्मचारी, लिखवा. मु. वृद्धिविजय, प्र.वि. मूल-३६अध्ययन. प्रथम पत्र पर अध्ययनों की अनुक्रमणिका दी गयी है. प्रशस्ति भाग की अंतिम पंक्ति प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., (३०x१३.५, १३४५२). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध , प्रा., प+ग, आदिः सञ्जोगाविप्पमुक्कस्स; अंतिः सम्मए त्ति बेमि. उत्तराध्ययनसूत्र-अधिरोहिणी वृत्ति, मु. भावविजय, सं., गद्य, वि. १६८९, आदिः (१) ॐ नमः सिद्धि (२) संयोगात् द्रव्यतो; अंतिः (१)दिशतु मङ्गलैकगृहम् (२)इति सूत्रार्थः. १३८. उत्तराध्ययनसूत्र सह टबार्थ+कथा, संपूर्ण, वि. १८३१, श्रेष्ठ, पृ. २७४, जैदेना., ले.स्थल. बिलाडा, ले. मु. आनन्दविजय, प्र.वि. मूल-३६अध्ययन. प्र.पु. मूल+टबार्थ+कथा- ग्रं. ३६०००., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-कुछ पत्र, (२६४११.५, ५४३६). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध , प्रा., प+ग, आदिः सञ्जोगाविप्पमुक्कस्स; अंतिः सम्मए त्ति बेमि. उत्तराध्ययनसूत्र-टबार्थ+कथा सङ्ग्रह, मु. पार्श्वचन्द्रसूरि-शिष्य, मागु., गद्य, आदिः हिवे उत्तराध्ययननो; अंतिः जम्बू प्रतइं कहई छइ. १३९. उत्तराध्ययनसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि.२०पू, श्रेष्ठ, पृ. २१४-१(५६+५७)=२१३, जैदेना., ले.स्थल. पेथापुर, ले. जेठालाल चुनिलाल लहिया, प्र.वि. मूल-३६अध्ययन. प्र.पु. सर्वग्रं. ८२२२., (२५.५४१३, ५४३४). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध , प्रा., प+ग, आदिः सञ्जोगाविप्पमुक्कस्स; अंतिः सम्मए त्ति बेमि. उत्तराध्ययनसूत्र-टबार्थ' , मागु., गद्य, आदिः संयोग बे प्रकारे; अंतिः हुं तुझ प्रते कह्यो. १४०. दशवैकालिकसूत्रनियुक्ति सह शिष्यबोधिनी टीका, संपूर्ण, वि. १९उ., श्रेष्ठ, पृ. २७३, जैदेना.,प्र.वि. टीका-ग्रं.६८५०., (२६४१२.५, ११४३७). दशवैकालिकसूत्र-नियुक्ति, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., पद्य, आदिः सिद्धिगइमुवगयाणं; अंतिः चरण गुणट्ठितो साहू. दशवैकालिकसूत्र-शिष्यबोधिनी टीका# , आ. हरिभद्रसूरि, सं., गद्य, आदि: जयति विजितान्यतेजाः; अंतिः दशवैकालिकटीका. १४१.” उत्तराध्ययनसूत्र सह बृहद्वृत्ति, पूर्ण, वि. १६१६, श्रेष्ठ, पृ. २४०-३(१ से ३)=२३७, जैदेना., ले.स्थल. अलवरगढ, गच्छा. आ. जिनचन्द्रसूरि (गुरु आ. जिनराजसूरि, खरतरगच्छ), अन्य- गणि चारित्रमेरू (गुरु उपा. रत्नसागर, खरतरगच्छ), लिखवा. श्राविका पेथाहीबाई खिवधर छजलाणी, अन्य- श्राविका चाओबाई,प्र.ले.पु. मध्यम,प्र.वि. मूल३६अध्ययन., टिप्पण युक्त विशेष पाठ, प्र.ले.श्लो. (१३) लेखिता पतिरियं तावत्, (२६.५४१०.५, १७४५९). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग, आदि:-; अंतिः (१)सम्मए त्ति बेमि (२)पसाया अहिजेज्झा. उत्तराध्ययनसूत्र-शिष्यहिता बृहद्वृत्ति # , आ. शान्तिसूरि, सं., गद्य, आदिः-; अंतिः यथायोगम्. १४२. ज्ञाताधर्मकथाङ्गसूत्र सह प्रदेश टीका, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २५४, जैदेना., प्र.वि. मूल-ग्रं. ५५००,१९अध्ययन टीका-ग्रं. ३८००. मुद्रित प्रत पर से लिखी हुई प्रतीत होती है., (२७.५४१२.५, १४४४०). ज्ञाताधर्मकथाङ्गसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदिः तेणं कालेणं० चम्पाए; अंतिः जाव सम्पत्तेणं. ज्ञाताधर्मकथाङ्गसूत्र-टीका, आ. अभयदेवसूरि , सं., गद्य, वि. ११२०, आदिः नत्वा श्रीमन्महावीरं; अंतिः धर्मकथाप्रदेशटीकेति. १४३." विपाकसूत्र सह वृत्ति, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ९६-३२(१ से ३२)=६४, जैदेना., प्र.वि. मूल-ग्रं. १२५०,अध्याय-२० अध्ययन; टीका-ग्रं. ९००. अनुपलब्ध पत्रों पर कोई अन्य कृति होने की संभावना हैं. अर्वाचीन प्रत. किसी मुद्रित प्रत पर से लिखी गयी है., द्विपाठ, संशोधित-बीच के कुछ पत्र, (२७.५४१२, १०x४२). विपाकसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, (संपूर्ण), आदिः तेणं कालेणं तेणं; अंतिः सेसं जहा आयारस्स. विपाकसूत्र-टीका, आ. अभयदेवसूरि , सं., गद्य, (संपूर्ण), आदिः नत्वा श्रीवर्द्धमान; अंतिः मदभयदेवाचार्यस्येति. १४४." भगवतीसूत्र, संपूर्ण, वि. १६१८, श्रेष्ठ, पृ. २३७, जैदेना., अन्य- श्राविका हरबाई; ऋ. भवानकरम, प्र.वि. ग्रं. For Private And Personal Use Only Page #76 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org: (+) हस्तलिखित जैन साहित्य भाग १ १५७५२,४१शतक; प्र.पु. ग्रं. १६०००. पाठ प्राचीन कुल (शैली) का है- यथा- एवं वदासि. शुद्ध प्रत. संवत १८०६ विरमग्राम में हरबाई ने ऋषि भवानकरम को प्रत बहोराया है. प्र.ले. श्लो. (५०६) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा (२६४११, १७०४५९). भगवतीसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदिः नमो अरहन्ताणं; अंतिः भावेमाणे विहरति . १४५. भगवतीसूत्र, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४७४-३२१ (१ से ३२१ ) + १ (३६९) = १५४, जैदेना., पू.वि. बीच के पत्र हैं. शतक-८ उद्देश - ८ सूत्र ४२८ अपूर्ण से शतक - १२ आंशिक चौथा उद्देश व ग्रं. ८००० तक है., ( २६.५४११.५, ७९४२). भगवतीसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि:-; अंतिः१४७." सूत्रकृताङ्गसूत्र सह टबार्थ, प्रतिपूर्ण, वि. १८५५, श्रेष्ठ, पृ. मु. देवकरजी साधु, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, पू. वि. सूत्रकृताङ्गसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदि:-; अंतिः विहरति त्ति बेमि. सूत्रकृताङ्गसूत्र- टबार्थ, मागु, गद्य, आदि-: अंति: Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १३७-५३ (१ से ५३ ) = ८४, जैदेना., ले. स्थल. वीहाणी, ले. द्वीतिय श्रुतस्कंध से है, (२५.५०११, ६x४१). (+) १४८. जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति, संपूर्ण वि. १६७२ श्रेष्ठ, पृ. १५१, जैदेना. ले. स्थल मंगलपुर, ले. सामलिया विप्र ( श्रीमाल ज्ञाति), प्र.वि. ७ वक्षस्कार; प्र.पु. मूल ग्रं. ४१५४, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२७X११.५, ९x४३ ) . जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति, प्रा., गद्य, आदिः नमो अरिहंताणं० तेणं; अंतिः उवदंसेइ त्ति बेमि. , १० अध्ययन. पे. ५. पे नाम. वृष्णिदशासूत्र सह टीका, पृ. ३७अ-४०आ (+) १४९. औपपातिकसूत्र, संपूर्ण वि. १५८०, मध्यम, पृ. ५१, जैदेना, पठ. श्री. नरसिङ्घ शाह, प्र. वि. सूत्र - १८९. ग्रं. १६०० प्र.पु. मूल ग्रं. १४२८. सं. १५८२ वर्षे शाह वच्छा सकाशात् गृहिता पत्रांक ४९ खंडित है. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, पंचपाठ-कुछ पत्र (२५.५४११, ११४३८). " औपपातिकसूत्र, प्रा., प+ग, आदि: तेणं कालेणं० चम्पा०; अंतिः सुही सुहं पत्ता. 9. निरियावलियादिपञ्चोपाङ्गसूत्र सह टीका, संपूर्ण, वि. १६वी श्रेष्ठ, पृ. ४० पे ५ जैदेना, प्र. वि. प्र.पु. सर्व मूल+ टीका ग्रं. ११००९, त्रिपाठ, टिप्पण युक्त विशेष पाठ - कुछ पत्र, (२७४११, १२X४५). पे. १. पे. नाम. कल्पिकासूत्र सह टीका, पृ. ०१आ - १९आ कल्पिकासूत्र, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं तेणं०; अंतिः वरं मायातो सरिसणामाओ. कल्पिकासूत्र- टीका, आ. चन्द्रसूरि, सं., गद्य, आदिः पार्श्वनाथं नमस्कृत; अंतिः शेषं सर्वं सुगमम्., पे.वि. मूल अध्याय १० अध्ययन. पे. २. पे नाम. कल्पावतंसिकासूत्र सह टीका, पृ. १९आ-२१अ कल्पावतंसिकासूत्र, प्रा., गद्य, आदिः जति णं भंते समणेणं०; अंतिः वा महाविदेहे सिद्धे. कल्पावतंसिकासूत्र- टीका, आ. चन्द्रसूरि, सं., गद्य, आदिः श्रेणिकनप्तॄणां ; अंतिः द्वितीयवर्गश्च., पे.वि. मूल " For Private And Personal Use Only २२ अध्याय १० अध्ययन. पे. ३. पे नाम. पुष्पिकासूत्र सह टीका, पृ. २१अ -३५अ पुष्पिकासूत्र, प्रा., गद्य, आदि जति णं भंते समणेणं०: अंति: चेइयाई जहा संगहणीए. पुष्पिकासूत्र- टीका, आ. चन्द्रसूरि सं., गद्य, आदि अथ तृतीयवर्गोपि दशा: अंतिः देवस्य व्यक्तव्यता. पे.वि. मूल १० अध्ययन. पे. ४. पे नाम. पुष्पावतंसिकासूत्र सह टीका, पृ. ३५अ-३७अ पुष्पचूलिकासूत्र प्रा. गद्य, आदि जइ णं भंते समणेणं अति: हे वासे सिज्झिहिंति , पुष्पचूलिकासूत्र- टीका, आ. चन्द्रसूरि सं., गद्य, आदि: चतुर्थवर्गोपि अंतिः चतुर्थवर्गसमाप्तिः, पे. वि. मूल-अध्याय , Page #77 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir २३ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची वृष्णिदशासूत्र, प्रा., गद्य, आदिः जइ णं भंते० पंचमस्स; अंतिः मइरित्त एक्कारससु वि. वृष्णिदशासूत्र-टीका, आ. चन्द्रसूरि, सं., गद्य, आदिः पञ्चमवर्गे वन्हिदसा; अंतिः दुखानामन्तं करिष्यति., पे.वि. __ मूल-अध्याय-१२ अध्ययन. १५१.” जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति, अपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ३९, जैदेना., पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. भरतचरित्र तक है., (२८x१२, १५४५५). जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति, प्रा., गद्य, आदिः तेणं कालेणं तेणं; अंति:१५२. कल्पसूत्र सह कल्पकिरणावली वृत्ति, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. २०१, जैदेना., गच्छा. आ. विजयदानसूरि, प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र.वि. मूल-ग्रं. १२१६,९-व्याख्यान; टीका-ग्रं. ४८१४. श्रीदानसूरि के सानिध्य में अहमदाबाद निवासी महजपाल, उसकी पत्नी पद्मा, पुत्र विमलदास ने शत्रुञ्जय सङ्घ निकलवाकर यह प्रति स्वयं लिखी..?, त्रिपाठ, (२६४१०.५, ६x४५). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदिः णमो अरिहन्ताणं० पढमं; अंतिः उवदंसेइ त्ति बेमि. कल्पसूत्र-कल्पकिरणावली टीका, उपा. धर्मसागर गणि, सं., गद्य, वि. १६२८, आदिः प्रणम्य प्रणताशेष; अंतिः रमुष्या शतशः प्रतिः. १५३. कल्पसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १६७५, श्रेष्ठ, पृ. १२४-४३(१ से ३,३२ से ७१)=८१, जैदेना., प्र.वि. मूल-ग्रं. १२१६,९ व्याख्यान; टबार्थ-ग्रं. ५२१६. अंत में कल्पसूत्र सुनने की विधि दी गयी है।, संशोधित, टिप्पण युक्त विशेष पाठ-कुछ पत्र, त्रिपाठ-कुछ पत्र, (२६४११, ६४३५). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि:-; अंतिः उवदंसेइ त्ति बेमि. कल्पसूत्र-टबार्थ+व्याख्यान+कथा, आ. सोमविमलसूरि, मागु., गद्य, आदि:-; अंतिः शिष्य आगले कहिउ. १५४.” कर्मग्रन्थ पञ्चम की विनेयहिता वृत्ति, संपूर्ण, वि. १४९८, श्रेष्ठ, पृ. ३८, जैदेना., अन्य- उपा. जयसागर गणि (गुरु आ. जिनराजसूरि, खरतरगच्छ),प्र.वि. ग्रं. ३७००. मूल पत्रांक-२७३-३१०., संशोधित, (२६.५४११, २१४८२). शतक नव्य कर्मग्रन्थ-विनेयहिता वृत्ति, आ. हेमचन्द्रसूरि मलधारि, सं., गद्य, आदि: जयत्यभिप्रेतसमृद्धि; अंतिः इयमनुरचिता शतकवृत्ति. १५५. अध्यात्मगीता सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ६७, जैदेना., ले. मु. खेतशी, प्र.वि. मूल-परिमाण-गा.४९; बालावबोध-ग्रं. १२५०., (२६४१२.५, १०४२६). अध्यात्मगीता, गणि देवचन्द्र, मागु., पद्य, आदिः प्रणमियै विश्वहित; अंति: मुनि सुप्रतिता. अध्यात्मगीता-बालावबोध, मु. अमीकुंयरजी, मागु., गद्य, वि. १८८२, आदिः संवेगी सिरदार; अंतिः (१)अमीकुंय० कहै निज रूप (२)तसघर लछि लीला करै. १५६. षड्दर्शनसमुच्चय सह तर्करहस्यदीपिका टीका, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५०, जैदेना., प्र.वि. मूल-श्लो.८७., (२४.५४१३, २८४५३). षड्दर्शनसमुच्चय, आ. हरिभद्रसूरि, सं., पद्य, आदिः सद्दर्शनं जिनं नत्वा; अंतिः यालोच्यः सुबुद्धिभिः. षड्दर्शनसमुच्चय-तर्करहस्यदीपिका टीका, आ. गुणरत्नसूरि, सं., गद्य, आदिः जयति विजितरागः केवला; अंतिः च तत्र कुशलमतिभिः. १५७." ज्ञानार्णव, अपूर्ण, वि. १५८५, श्रेष्ठ, पृ. १४०-३९(९८ से १३४,१३६,१३८)=१०१, जैदेना., ले.स्थल. कुरुजंगल, राज्यकाल- राजा बाबरपातिशाह, प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न-वचन विभक्ति संकेत, पृ.वि. बीच-बीच व अंत के पत्र नहीं हैं. अंत में प्रशस्ति अधूरी है., (२६.५४११.५, ११४२७). ज्ञानार्णव, आ. शुभचन्द्र, सं., पद्य, आदिः ज्ञानलक्ष्मीघनाश्लेष; अंतिः ज्ञानं व्यवस्थितम्. For Private And Personal Use Only Page #78 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य भाग - १ २४ १५८." अन्ययोगव्यवच्छेदद्वात्रिंशिका सह स्याद्वादमञ्जरी टीका, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ११९, जैदेना., प्र.वि. श्लो.३२., टिप्पण युक्त विशेष पाठ, संशोधित, (२५.५४११.५, ११४३४). अन्ययोगव्यवच्छेदद्वात्रिंशिका, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, आदिः अनन्तविज्ञानमतीतदोष; अंतिः कृतसपर्याः कृतधियः. अन्ययोगव्यवच्छेदद्वात्रिंशिका-स्याद्वाद्मञ्जरीवृत्ति, आ. मल्लिषेणसूरि, सं., गद्य, शक. १२१४, आदिः यस्य ज्ञानमनन्तवस्तु; अंतिः सास्त्यत्र सम्यग्यतः. १५९. श्राद्धगुण विवरण, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६४, जैदेना., प्र.वि. अध्याय-३५, संशोधित, (२६४११, १५४३८). श्राद्धगुण विवरण, उपा. जिनमण्डन, सं., गद्य, वि. १४९८, आदिः प्रणम्य श्रीमहावीरं; अंतिः श्चिरं नन्द्यात्. १६०." उपदेशमाला सह टबार्थ+कथा व तीर्थ स्तवन, संपूर्ण, वि. १८५७, श्रेष्ठ, पृ. १०५, पे. २, जैदेना., ले.स्थल. अवंतिकानगर, ले. पं. फतेहसेनजी (गुरु पं. लक्ष्मीराज, खरतरगच्छ), गच्छा. आ. जिनधर्मरत्नसूरिजी, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-कुछ पत्र, (२६.५४१४, ६x४२). पे. १. पे. नाम. उपदेशमाला सह टबार्थ+कथा, पृ. १-१०५, संपूर्ण उपदेशमाला, गणि धर्मदास, प्रा., पद्य, आदिः (१) नमिऊण जिणवरिन्दे (२) जगचूडामणिभूओ उसभो; अंतिः वयण विणिग्गया वाणी. उपदेशमाला-बालावबोध, मु. वृद्धिविजय, मागु., गद्य, वि. १७१३, आदिः प्रणम्य श्रीमहावीरं; अंतिः वाणी श्रुतदेवता ते..पे.वि. मूल-गा.५४४. पे. २. तीर्थमाला स्तवन, उपा. समयसुन्दर गणि, मागु., पद्य, (पृ. १अ, अपूर्ण), आदिः सेत्रुञ्जे सिखर; अंतिः-, पे.वि. यह पत्र पेटांक १ के प्रथम पत्र से चिपका हुआ है अतः गा.९ तक ही पाठ है. १६१. कर्मग्रन्थ १ से ५, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५८,पे. ५, जैदेना.. पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. कर्मग्रन्थ-५ गा.६३ तक है., (२८x१३.५, ३४३६). पे. १. कर्मविपाक नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, (पृ. १-१३आ, संपूर्ण), आदिः सिरिवीरजिणं वन्दिय; अंतिः लिहिओ देविन्दसूरीहिं., पे.वि. गा.६३. पे. २. कर्मस्तव नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, (पृ. १३आ-२१अ, संपूर्ण), आदिः तह थुणिमो वीरजिणं; अंतिः वन्दियं नमह तं वीरं., पे.वि. गा.३४. पे. ३. बन्धस्वामित्व नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, (पृ. २१अ-२७अ, संपूर्ण), आदिः बन्धविहाणविमुक्कं; अंतिः नेयं कम्मत्थयं सोउं., पे.वि. गा.२५. पे. ४. षडशीति नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, (पृ. २७अ-४५अ, संपूर्ण), आदिः नमिय जिणं जिय; अंतिः देविन्दसूरीहिं., पे.वि. गा.८९. पे. ५. शतक नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, (पृ. ४५अ-५८, अपूर्ण), आदिः नमिय जिणं धुवबन्धोदय; अंति:-, पे.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. गा.६३ तक लिखा है. १६२." नवतत्त्व प्रकरण, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना., प्र.वि. गा.१०७, संशोधित-बीच के कुछ पत्र-अंतिम पत्र, (२७४१५, १३४४१). नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदिः जीवाजीवापुन्नं; अंतिः अणागयद्धा अणन्तगुणा. १६३.” दण्डक, जीवविचार व नवतत्त्व प्रकरण सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९३८, श्रेष्ठ, पृ. २१, पे. ३, जैदेना., ले.स्थल. वटप्रदनगर, ले. ऋ. मोतीचन्द्रजी, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२७X१३.५, ४४३४). पे. १. पे. नाम, दण्डक प्रकरण सह टबार्थ, पृ. १-८अ दण्डक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, आदिः नमिउं चउवीस; अंतिः एसा विनत्ति अप्पहिआ. For Private And Personal Use Only Page #79 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir २५ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची मा दण्डक प्रकरण-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः ऋषभादिक २४ जिननै; अंतिः पोताना हितने काजे.,पे.वि. मूल गा.४५. पे. २. पे. नाम, जीवविचार सह टबार्थ, पृ. ८आ-१५अ जीवविचार प्रकरण, आ. शान्तिसूरि, प्रा., पद्य, आदिः भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंतिः रुद्दाओ सुयसमुद्दाओ. जीवविचार प्रकरण-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः त्रण भुवनने विषे; अंतिः थकी भणवाने अर्थे., पे.वि. मूल-गा.५१. पे. ३. पे. नाम. नवतत्त्व सह टबार्थ, पृ. १५अ-२१ नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदिः जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंतिः नाहं मरणस्स बीहामि. नवतत्त्व प्रकरण-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः यथावस्थित साचुं जे; अंतिः हुं म० मरणथी बीहतो., पे.वि. मूल गा.४५. १६४. आस्रवादि त्रिभङ्गी सङ्ग्रह सह टीका व यन्त्र, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ११७+२(५४ से ५५)=११९, पे. ४, जैदेना.,प्र.वि. सभी पेटांक स्वतन्त्र है पर टीकाकार की प्रशस्ति से पता चलता है कि सबों को मिलाकर त्रिभंगीसार सम्मिलित कृति बनायी गयी है तथा सब पर टीका है. यह टीका कर्णाट टीका(कन्नड़) पर से ली गयी है ऐसा लगता है. मूलपाठ हेतु संदर्भ प्रत-२८२९५. संशोधनार्थ सफेद रंग का उपयोग किया गया है., संशोधित, दशा वि. विवर्ण-पानी से अक्षरों की स्याही फैल गयी है-काल प्रभाव से , लाल रंग के उडे हुए अक्षर वाले पत्र-पाठ की बाद में पूर्ति की गई हैं, प्र.ले.श्लो. (५०६) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा , (२६४११, ९-१०४३८). पे. १.पे. नाम. आश्रवत्रिभङ्गी सह सुबोधा टीका व यन्त्र, पृ. १-३४आ आस्रवत्रिभङ्गी, मु. श्रुतमुनि, प्रा., पद्य, वि. १४वी, आदिः पणमिय सुरिन्दपूजियपय; अंतिः सो बालिन्दो चिरं जयऊ. आस्रवत्रिभङ्गी-सुबोधा टीका, सं., गद्य, आदिः सर्वज्ञं करुणार्णवं; अंतिः सबालेन्दुश्चिरं जयउ. आस्रवत्रिभङ्गी-यन्त्र, सं.प्राहिं., यंत्र, आदि:-; अंति:पे. २. पे. नाम. बन्धत्रिभङ्गी मार्गणा सह टीका व यन्त्र, पृ. ३४आ-६०अ बन्धत्रिभङ्गी, मु. नेमिचन्दजिन, प्रा., पद्य, आदिः णमिऊण णेमिचन्दं; अंतिः च अस्थि गुणभिदयं. बन्धत्रिभङ्गी-टीका, मु. सोमदेव, सं., गद्य, आदिः प्रणम्य परमात्मानं; अंतिः काययोग्यरचना आहारक. बन्धत्रिभङगी-यन्त्र, सं.,मागु., यंत्र, आदिः आहारकद्विक २; अंतिः २ एवं ९ विच्छित्ति. पे. ३. पे. नाम. उदयत्रिभङ्गी सह टीका व यन्त्र, पृ. ६०अ-१००अ उदयत्रिभङ्गी, मु. नेमिचन्द्र सिद्धान्त चक्रवर्ती, प्रा., पद्य, आदिः पञ्चणवदोणिअट्ठावीसं; अंतिः च्चिय णेमिचंदेण. उदयत्रिभङ्गी-टीका, सं., गद्य, आदिः सङ्गिपञ्चेन्द्रिय; अंतिः रचना योग्य राशिः. उदयत्रिभङ्गी-यन्त्र, सं.,मागु., यंत्र, आदिः#; अंतिः#. पे. ४. पे. नाम. सत्तात्रिभङ्गी सह सुबोधा टीका व यन्त्र, पृ. १००आ-११७ सत्तात्रिभङ्गी, मु. नेमिचन्दजिन, प्रा., पद्य, आदिः पञ्चणवदोणिअट्ठावीसं; अंतिः सिद्धिं समाहिं च. सत्तात्रिभङ्गी-सुबोधा टीका, मु. सोमदेव, सं., गद्य, आदिः मिथ्यात्वादिसयोगिजिन; अंतिः (१)दिशतु कृपां करोतु (२)टीकासुबोधाभिधाम्. सत्तात्रिभङ्गी-यन्त्र, सं.,मागु., यंत्र, आदिः सत्ताकर्मप्रकृति; अंतिः कार्मणयोगरचनावत्. १६५. उपदेशरत्नकोश सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८३९, श्रेष्ठ, पृ. ८, जैदेना., ले.स्थल. अमराकोटवाल-मुवा, ले. पं. हर्षसौभाग्य (गुरु गणि जयसौभाग्य), लिखवा. पं. चन्दनसोम, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. मूल-गा.२९., (२३.५४१२.५, ३४२४). उपदेशरत्नमाला, आ. पद्मजिनेश्वरसूरि, प्रा., पद्य, आदिः उवएसरयणकोसं नासि; अंतिः विउलं उवएसमालमिणं. उपदेशरत्नमाला-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः उपदेशरूप रतन तेहनो; अंतिः रतनमाला प्रीति धरे. पदण. For Private And Personal Use Only Page #80 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org: हस्तलिखित जैन साहित्य भाग १ (+) .. १६६. धर्मरत्नाकर, संपूर्ण, वि. १८४८, श्रेष्ठ, पृ. ११४, जैदेना. ले. स्थल, अजमेर, ले. पण्डित गोपालदास, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. २१अवसर, पदच्छेद सूचक लकीरें - संधि सूचक चिह्न - क्रियापद संकेत, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ, संशोधित, (२२.५x१३.५, १०x३५). धर्मरत्नाकर, मु. जयसेन, सं., पद्य, आदि लक्ष्मीनिरस्तनिखिला अंतिः पठ्यमानं श्रिये, पे. २. पे नाम, न्यायावतारसूत्र की टीका का टिप्पनक, पृ. ६६अ ९७ न्यायावतार - टिप्पण आ. देवभद्रसूरि सं. गद्य, आदि नत्वा श्रीवीरमेकान्त: अंतिः समस्तलोक 7 , " १६७.” न्यायावतारसूत्र की टीका व टीका का टिप्पणक, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ९७, पे. २, जैदेना., प्र. वि. अशुद्ध पाठ, (२५.५४११.५, १४४३९). पे. १. पे. नाम. न्यायावतारसूत्र की टीका, पृ. १-६६अ न्यायावतार - टीका, गणि सिद्धर्षि, सं., गद्य, आदि: अवियुतसामान्यवि अंति: मतलम्पटमेव चेतः. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १६८. समाधितन्त्र सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १८८८, श्रेष्ठ, पृ. १४३, जैदेना., ले. स्थल. दादरी, ले. मु. गोपालदास जती, प्र. वि. मूल- श्लो. १०४. प्र. पु. बालावबोध ग्रं. ५००० अनुमानित (२५.५४११.५ १३०४३). समाधिशतक, आ. पूज्यपादाचार्य, सं., पद्य, आदिः येनात्माबुध्यतात्म; अंतिः समाघितन्त्रम्. समाधिशतक - बालावबोध, मु. पर्वतधर्मार्थी, मागु, गद्य, आदि जिनान् प्रणम्याखिल: अंतिः (१) कृतधीः कृतधीः समाधी (२) लीलाइ पामिस्यइ. उपदेशकन्दली, श्रा. आसड, प्रा., पद्य, आदि: तिहुयणमङ्गलतिलयं; अंतिः रइयं गुरूवयसाणुसारेण. उपदेशकन्दली-वृत्ति, आ. बालचन्द्रसूरि, सं., गद्य, आदिः यन्नाभिनासिक: अंतिः वृत्तितां वृत्तिरेषा. १६९.” उपदेशकन्दली सह वृत्ति, संपूर्ण, वि. १९५७, श्रेष्ठ, पृ. १६०, जैदेना., प्र. वि. मूल- अध्याय- १३ विश्राम टीका- ग्रं. ७६००., संशोधित, (२७४१२. १४४६५). १७०. पञ्चनिर्ग्रन्थी सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १९ जैदेना. प्र. वि. हिस्सा गा. १०८. प्र. पु. बार्थ ग्रं. ५००, ( २६ १४, ४x२९). , " भगवती सूत्र - अभयदेवीय टीका का हिस्सा पञ्चनिर्ग्रन्थी प्रकरण, आ. अभयदेवसूरि प्रा. पद्य वि. ११२८, आदि पन्नवण वेय रागे कप्प; अंतिः रइया भावत्थसरणत्थं. २६ पंचनिर्ग्रन्धी प्रकरण-टवार्थ, उपा. यशोविजयजी गणि, मागु, गद्य वि. १८वी आदि नयविजयगुरूणां अंतिः किङ्किणीका भवत्येषा. 1 १७१. सङ्ग्रहणीसूत्र सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९२३, श्रेष्ठ, पृ. ४८, जैदेना., ले. पं. कल्याणविजय (गुरु आ. विजयदेवसूरि, तपागच्छ); पं. अमृतविजय (गुरु पं. सिंहविजय), प्र. वि. मूल-गा. २७६; बालावबोध ग्रं. १७५७, (२७×१२.५, १२x४४). बृहत्सग्रहणी, आ. चन्द्रसूरि प्रा. पद्य वि. १२वी आदि नमिउं अरिहन्ताई अंति: सन्नि गईरागई ए. " " बृहत्सङ्ग्रहणी-बालावबोध, गणि दयासिंह, मागु., गद्य, वि. १४९७, आदि: (१) नत्वा श्रीवीरजिनं ( २ ) श्रीमहावीर चोवीसमो; अंतिः लवलेश जाणिवानइ. १७२. अनेकान्तजयपताकासूत्र व नैयायिक श्लोकानि, संपूर्ण वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ७५, पे. २, जैदेना. (२८४१३.५, १५४५५). पे. १. अनेकान्तजयपताका, आ. हरिभद्रसूरि, सं., गद्य, (पृ. १७५अ), आदिः जयति विनिर्जितरागः; अंतिः हरिभद्राचार्यस्येति, पे.वि. ग्रं. ३७५०, अध्याय-६. For Private And Personal Use Only पे. २. नैयायिक श्लोकानि, मु. यक्षदेव, सं., पद्य, (पृ. ७५वा), आदि: मतिबद्धाः शुद्धा; अंतिः मासौ यक्षदेवो मुनिः., पे.वि. श्लो. ५. १७३.” चैत्यपरिपाटी, आराधना वार्ता व चउरासी जीव खामणा आराधना, संपूर्ण, वि. १७३३, श्रेष्ठ, पृ. ५७, पे. ३, जैदेना., Page #81 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra २७ www.kobatirth.org: प्र. वि. संशोधित, प्र. ले. श्लो. (५०९) यादृशं पुस्तके दृष्टं (२४.५५११, ५४३५). " पे. १. त्रिभुवनप्रासादजिनबिम्बसङ्ख्या चैत्यपरिपाटी, मागु, गद्य (पृ. १आ-५आ), आदि पहिलउं त्रिकाल अतीत अंतिः समुद्र हेलां निस्तरु, पे. वि. प्र.पु. नं. १०९. पे. २. आराधना वार्ता, प्रा., मागु., पद्य, (पृ. ५आ- ५५ अ ), आदिः नमो अरिहन्ताणं; अंतिः लहइ जिउ सासयं ठाणं. पे. ३. जीवखामणा कुलक, प्रा., पद्य, (पृ. ५५अ-५७अ), आदि: जो कोवि मए जीवो; अंतिः कम्मखयकारणं होउ., पे.वि. गा.३८. १७४. पञ्चम कर्मग्रन्थ-शतक सह टवार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ५०, जैदेना, प्र. वि. मूल-गा. १००., टिप्पण युक्त विशेष पाठ, प्र.ले.श्लो. (३) भग्नपृष्टि कटिग्रीवा; (१४) जलाद्रक्षेत् तैलाद्रक्षेत्, ( २४.५X१०.५, ३x२५). शतक नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, आदिः नमिय जिणं धुवबन्धोदय अंतिः सयगमिणं आयसरणट्ठा. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir शतक नव्य कर्मग्रन्थ-टबार्थ, मागु., गद्य, आदि: (१) परमात्मानइं भव्य (२) नमस्कार करीने; अंतिः सम्भारवानइ काजि . १७५. चतुर्थ कर्मग्रन्थ-षडशीति सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३०, जैदेना., ले. स्थल. राजनगर, प्र. वि. मूल-गा. ८६. संवत १७७५ में लिखित प्रत की नकल होने की संभावना है. (२६.५४१३, ३x२९). " षडशीति नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, आदिः नमिय जिणं जिय; अंतिः देविन्दसूरीहिं. षडशीति नव्य कर्मग्रन्थ-टबार्थ, मागु, गद्य, आदि: हवई चउथा कर्मग्रन्थ: अंतिः श्रीतपागच्छ नायकइ. कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १७६.” उपदेश रसाल, पूर्ण, वि. १७७२, श्रेष्ठ, पृ. ६२ - १ (७) = ६१, जैदेना., ले. स्थल. संस्थानपुर, ले. पं. चतुरविजय, प्र. वि. अध्याय-५२. पत्राङ्क १२आ एवं १३अ पर पाठ के लिए खाली जगह रखी हुई है., संशोधित - प्रारंभिक पत्र, प्र. ले. श्लो. (३०५) अदृष्ट दोषान् मति विभ्रमाच्च, ( २६४१०.५, १५४४६). उपदेश रसाल, सं., गद्य, आदिः एसो मङ्गलनिलओ; अंतिः सङ्घार्चादिमङ्गलम्. सागारधर्मामृत, आ. आशाधर से " (+) १७७.” श्रावकाचार, पूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ८५-२ (१,२४ + २५ ) = ८३, जैदेना., प्र. वि. अध्याय-८. सप्रसंग पाठ है., संशोधित, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ, पू.वि. प्रारंभ, बीच व अंत के पत्र नहीं हैं. अध्याय- १ श्लो. ३ से अपूर्ण प्रशस्ति भाग तक है. (२४.५४१०.५, ७५२८). (+) पद्य वि. १२९६ आदि अति: ; 1 १७८.” सङ्ग्रहणीसूत्र, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १६, जैदेना., ले. आ. विमलप्रभसूरि, पठ. मु. देदाजी, प्र. वि. गा.२८२, संशोधित टिप्पण युक्त विशेष पाठ, ( २६ १०.५, १३४३६). बृहत्सङ्ग्रहणी, आ. चन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदिः नमिउं अरिहन्ताइं; अंतिः सन्नि गईरागई वेए. १७९. सङ्ग्रहणीसूत्र, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १०७, जैदेना., प्र. वि. गा.३१७. पत्रांक गलत दिया है. पत्र- ५४ व ७२ की जगह पाठ क्रमबद्ध है. (२६४१३-५, ३x२५). " बृहत्सङ्ग्रहणी, आ. चन्द्रसूरि प्रा. पद्य वि. १२वी आदि नमिउं अरिहन्ताई अंतिः जा वीरजिण तित्थं. "7 , (+) १८०. नवतत्त्व विचार सङ्ग्रह, सम्यक्त्वछप्पनी व पञ्चमहाव्रत, पूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ४९ पे ३, जैदेना, प्र. वि. प्रत , नं. १९७ पर से लिखी जाने की संभावना है. पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., ( २४४१२, २७४५७). · पे. १. नवतत्त्व प्रकरण- बालावबोध + यन्त्र, प्रा.सं., मागु., प+ग, (पृ. १आ - ४६आ, संपूर्ण), आदिः भुवणपइवं वीरं णमिउण; अंति: गओ समत्ति जिण पसीया, पे.वि. यन्त्र व भांगा के साथ. पे. २. पे. नाम. सम्यक्तछपनी, पृ. ४७अ ४७आ, संपूर्ण सम्यक्त्वछप्पनी प्राहिं, पद्य, आदि इम समकित मन थिर करो अंतिः तथा श्रावक है आराध., पं.वि. गा. ५६. पे. ३. पंचमहाव्रत, मागु., प+ग, (पृ. ४८अ - ४९आ, पूर्ण), आदिः द्रव्य थकी अजीव है; अंति:-, पे. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. १८१. आत्मप्रबोध, संपूर्ण वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. २०९ देना. प्र. वि. मूल परिमाण ४प्रकाश, संशोधित (२७.५४१२, १४X३२ " " " For Private And Personal Use Only Page #82 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य भाग १ - www.kobatirth.org: " Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४०). आत्मप्रबोध, आ. जिनलाभसूरि, प्रा., पद्य, वि. १८३३, आदि: (१) अनन्तविज्ञानविशुद्ध (२) जगत्त्याधीश० शुचि; अंतिः ग्रन्थवरात्मबोधः. १८२. ज्ञानसार, संपूर्ण, वि. १९१७, श्रेष्ठ, पृ. १४, जैदेना., ले. स्थल. राजनगर, ले. मु. जीवराज, पठ. मु. मोहनलाल, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. ३२अष्टक, श्लो. २७२ अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ प्रारंभिक पत्र, संशोधित, (२७०४१४.५, १२४२९). ज्ञानसार, उपा. यशोविजयजी गणि, सं., पद्य, आदि: ऐन्द्रश्रीसुखमग्नेन; अंतिः स्वीयं कृतं मङ्गलम्. १८३. कालिकाचार्य कथा, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १४, जैदेना., ले. स्थल. अणहीलपुरपाटन, प्र. वि. ग्रं. ४४१, संशोधित, (२५४११.५. १४४४०-४१). कालिकाचार्य कथा, उपा. समयसुन्दर गणि, सं., प+ग, वि. १६६६, आदिः प्रणम्य श्रीगुरुं; अंतिः सङ्घः प्रवर्त्तताम्. १८४. नवतत्त्व बालावबोध व उच्छिष्ट चण्डालिनी मन्त्र, पूर्ण, वि. १९०५ मध्यम, पृ. १५-१ (१) - १४, पे. २ जैदेना. ले. स्थल राधनपुर, ले गणि ऋद्धिविजय दशा वि. चिपके पत्र अलग करते वक्त विशीर्ण-अंतिम पत्र, विवर्ण- पानी से अक्षरों " २८ की स्याही फैल गयी है, प्र.ले. श्लो. (५०६) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा (२०४१५.५. २४४४६). पे. १. नवतत्त्व प्रकरण- बालावबोध *, मागु., गद्य, (पृ. १-१५अ, पूर्ण), आदि:-; अंतिः सामटा मोक्ष जाय., पे. वि. प्रथम पत्र नहीं है. पे. २. पे. नाम. उच्छिष्ट चण्डालिनी मन्त्र, प्र. १५आ, संपूर्ण मन्त्र-तन्त्र-यन्त्र सङ्ग्रह *, सं., प्रा., मागु., प+ग, आदि: # अंतिः #, पे.वि. पाठ अवाच्य है. १८५. न्यायप्रवेशक सह शिष्यहिता वृत्ति व नैयायिक श्लोक, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २२ पे. २. जैदेना. (२७४१४ १३४४१). पे. १. पे नाम, न्यायप्रवेशसूत्र सह शिष्यहिता टीका, पृ. १-२२अ न्यायप्रवेशसूत्र, दिङ्नाग, सं., गद्य, आदि: साधनं दूषणं चैव; अंतिः सान्यत्र सुविचारिता. न्यायप्रवेशसूत्र- शिष्यहिता वृत्ति, आ. हरिभद्रसूरि सं., गद्य, आदिः सम्यग्ज्ञानस्य अंतिः संलभतां जनस्तेन. पे. २. पे नाम नैयायिक श्लोक, पृ. २२ ६ दर्शन विचार, सं., पद्य, आदिः चार्वाकोध्यक्षमेकं अंति: भूमिरिति चार्वाका., पे.वि. श्लो. ४. (+) १८६. नवतत्त्व सह टवार्थ व चक्रेश्वरी मन्त्र, संपूर्ण, वि. १८वी श्रेष्ठ, पृ. १६, पे. २, जैदेना, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२५.५X१२.५, ३x४५). पे. १. पे. नाम. नवतत्त्व प्रकरण सह टबार्थ, पृ. १-१७ नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: जीवा अजीवा पुन्नं; अंतिः दुचक्की केसव चक्कीय. नवतत्त्व प्रकरण-टबार्थ, मागु, गद्य, आदि जीवति प्राणान् अंतिः अन्तरं ज्ञेयं. पे.वि. मूल-गा. २९. पे. २. पे. नाम. चक्रेश्वरी मन्त्र, पृ. १७आ मन्त्र-तन्त्र-यन्त्र सङ्ग्रह *, सं., प्रा., मागु., प+ग, आदि: #; अंतिः #. १८७. प्रश्नोत्तररत्नमाला, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १६-१० ( १ से १० ) = ६, जैदेना., प्र. वि. श्लो. २९. मात्र प्रथम पत्र पर स्तबक है. प्र. ले. एलो. (५०६) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा (२५.५४१२.५, ३५३२). " प्रश्नोत्तररत्नमाला, आ. विमलसूरि, सं., पद्य, (संपूर्ण), आदिः प्रणिपत्य; अंतिः कण्ठगता किं न भूषयति. For Private And Personal Use Only (+) १८८. आत्मप्रबोध, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १४९+१ (१२५) - १५०, जैदेना. प्र. वि. मूल परिमाण ४प्रकाश, संशोधित, " पदच्छेद सूचक लकीरें संधि सूचक चिह्न क्रियापद संकेत, (२७४१२.५, १५४४६). आत्मप्रबोध, आ. जिनलाभसूरि, प्रा., पद्य, वि. १८३३, आदि: (१) अनन्तविज्ञानविशुद्ध (२) जगत्त्याधीश० शुचि: अंतिः Page #83 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra २९ www.kobatirth.org: ग्रन्थवरात्मबोधः. १८९.' अष्टकप्रकरण सह वृत्ति, संपूर्ण, वि. २०वी, जीर्ण, पृ. ६९, जैदेना., प्र. वि. मूल- ३२अष्टक; टीका- ग्रं. ३३७० प्रत अत्यन्त जीर्ण होने के कारण अंतिमवाक्य अवाच्य है., संशोधित, (२७.५x१३.५, १७४५९). अष्टकप्रकरण, आ. हरिभद्रसूरि, सं., पद्य, आदिः यस्य सङ्क्लेशजननो०; अंतिः धातुं न शक्यते. अष्टकप्रकरण-वृत्ति, आ. जिनेश्वरसूरि सं., गद्य वि. १०८०, आदि आविष्कृताशेषपदार्थ: अंतिः #. , " (+) (+) १९०. उपदेशमाला की हेयोपादेया वृत्ति, पूर्ण, वि. १७पू, मध्यम, पृ. ५१ देना. प्र. वि. कथारहित लघु संस्करण, पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न, पू. वि. १९४५७). अंतिम पत्र नहीं है. प्रारंभ से ५३० गाथा तक की वृत्ति है., ( २८x१०.५, उपदेशमाला हेयोपादेया वृत्ति, गणि सिद्धर्षि Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची זי सं. गद्य, वि. १०वी आदि हेयोपादेयार्थोपदेश: अंति: १९१. सङ्घयणी बृहत्, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २०, जैदेना., प्र. वि. गा. ३९३, (२७.५x१४, १४X३३). बृहत्सङ्ग्रहणी, आ. चन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदिः नमिउं अरिहन्ताई; अंतिः जा वीरजिण तित्थं. १९२.” शास्त्रवार्ता समुच्चय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २०, जैदेना., प्र. वि. ग्रं. ७००, संशोधित कुछ पत्र, (२६.५x१३.५, १३४४४). शास्त्रवार्तासमुच्चय, आ. हरिभद्रसूरि, सं., पद्य, आदिः प्रणम्य परमात्मानं अंतिः धीयतां भक्तिरागः. (+) १९३. विचारसारषट्त्रिशिका सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. १८४७, श्रेष्ठ, पृ. ८ जैदेना, प्र. वि. मूल-गा. ४२. 1 पाठ, पदच्छेद सूचक लकीरें, (२६X१३, ४X३८). दण्डक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, आदिः नमिउं चउवीस; अंतिः एसा विनत्ति अप्पहिआ. दण्डक प्रकरण- अवचूरि, सं., गद्य, आदि: श्रीचतुर्विंशतिजिनान: अंतिः विज्ञप्ति आत्महिता. टिप्पण युक्त विशेष (+) " १९४. गौतमपृच्छा सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १८वी श्रेष्ठ, पृ. ७, जैदेना. प्र. वि. मुलगा. ६४., संशोधित, ( २६ १३, १२४४०), गौतमपृच्छा, प्रा., पद्य, आदिः नमिऊण तित्थनाहं; अंति: गोयमपुच्छा महत्थावि. गीतमपृच्छा - बालावबोध" मागु, पद्य, आदि: तीर्थनाथ श्रीमहावीर अंतिः चउसठि गाथा हुई. १९५. नवतत्त्व का बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९६१, मध्यम, पृ. १५, जैदेना., ले. श्रा. लक्ष्मीचन्द दोशी, अन्य- श्रा. खेङ्गार, (२७.५४१४.५, १३x४६). नवतत्त्व प्रकरण-वालावबोध, मागु गद्य, आदि हवे नवतत्त्वना नाम अंतिः अजीव ते मिश्र कहीइ. १९६. प्रशमरति प्रकरण सह टीका, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ६२+२ (१७,२६) ६४, जैदेना. ले. स्थल नागोर, प्र. वि. मूलश्लो. ३१० ; टीका- ग्रं. २५५२. त्रिपाठ, ( २६ ११, १३ - १४४५३ ) . प्रशमरति प्रकरण, वाचक उमास्वाति, सं., पद्य, आदिः नाभेयाद्याः; अंतिः साधनमर्हच्छासनं जयति. प्रशमरति प्रकरण- टीका, सं., गद्य, आदिः प्रशमस्थेन येनेयं; अंतिः मन्यद्भावेन जयति. For Private And Personal Use Only १९७.” नवतत्त्व बालावबोध यन्त्रादि सङ्ग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५०, पे. ४, जैदेना., ले. स्थल. नागोर, प्र. वि. प्रत नं. १८० पर से लिखी जाने की संभावना है., टिप्पण युक्त विशेष पाठ, ( २४.५x१२, २६६०). पे. १. नवतत्त्व प्रकरण- बालावबोध + यन्त्र, प्रा. सं., मागु., प+ग, (पृ. १आ-४७आ, संपूर्ण), आदिः भुवणपइवं वीरं णमिउण; अंतिः गओ समत्ति जिण पसीया, पे. वि. प्र. पु. श्लो. ३१६. विविध ग्रन्थों के नवतत्त्व विषयक आधार पाठों को संकलन करके गाथाक्रम दिया गया है. पे. २. पे. नाम. सम्यक्त्व स्वरूप, पृ. ४८अ - ४८आ, संपूर्ण सम्यक्त्वछप्पनी, प्राहिं., पद्य, आदि: इम समकित मन थिर करो; अंतिः तथा श्रावक है आराध., पे.वि. गा. ५६ यन्त्रयुक्त. पे. ३. पंचमहाव्रत, मागु, प+ग, (पृ. ४९अ - ५०आ, पूर्ण), आदिः द्रव्य थकी अजीव हे; अंति:-, पे. वि. प्रतिलेखक द्वारा Page #84 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य भाग १ www.kobatirth.org: अपूर्ण. यन्त्रयुक्त व विविध अन्य आधारपाठादि के साथ. महाव्रत - १ से ४. पे. ४. चर्मपद गाथा, प्रा., पद्य, (पृ. ५०आ, संपूर्ण), आदिः परमाणुउमितइउ; अंतिः आकास थूल दिठन्ता. १९८. समाधितन्त्र दोधक, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १०, जैदेना., ले. स्थल. मांडवी, ले. वजेशङ्कर, प्र. वि. गा.१०५, (२६४१२, ९४२६). समाधिशतक, उपा. यशोविजयजी गणि, प्राहिं., पद्य, आदिः समरी भगवति भारती; अंतिः जाणो निश्चय बुध. १९९. उपदेशमाला सह कथा, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ५४+१ (२१) = ५५, जैदेना., पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. गा. १०२ तक है.. (२७.५४१३. १४४४२) उपदेशमाला, गणि धर्मदास, प्रा., पद्य, आदिः नमिऊण जिणवरिन्दे; अंति: " उपदेशमाला-कथा' मागु, गद्य, आदि अंति २००. गुणस्थानक्रमारोह सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १८वी श्रेष्ठ, पृ. २१, जैदेना. ले. पं. वर्द्धमान, प्र. वि. मूल श्लो. १३६, - " Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (२७.५४१२.५. १७४४८). , " " गुणस्थानक्रमारोह आ. रत्नशेखरसूरि सं. पद्य वि. १४४७ आदि गुणस्थानक्रमारोह: अंतिः रत्नशेखरसूरिभिः गुणस्थानक्रमारोह-बालावबोध, मु. श्रीसार, मागु., गद्य, वि. १६९२, आदिः सुरासुरनराधीश; अंतिः विदीधिती यावत्.. २०१.” सङ्घयणिसूत्र सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १५६८, श्रेष्ठ, पृ. ३७, जैदेना., ले. मु. राज (गुरु गणि पुण्यवर्द्धन, खरतरगच्छ), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. मूल-गा. २७५., संशोधित टिप्पण युक्त विशेष पाठ - कुछ पत्र, (२७x१३, १५x४६). बृहत्सङ्ग्रहणी, आ. चन्द्रसूरि प्रा. पद्य वि. १२वी आदि नमिउं अरिहन्ताई अंतिः सन्नि गईरागई वेए. 1 , " , बृहत्सङ्ग्रहणी -बालावबोध, गणि दयासिंह, मागु, गद्य वि. १४९७ आदि नत्वा श्रीवीरजिनं अंति लवलेश जाणिवानइ. २०२. गोम्मटसार सह सम्यग्ज्ञानचन्द्रिका भाषाटीका, अपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १२७-२ (६४ से ६५ ) - १२५, जैदेना. प्र. वि. (+) " " संशोधित, टिप्पण युक्त विशेष पाठ - कुछ पत्र, पू. वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं. जीवकांड का जीवसमास नामक द्वितीय अधिकार तक है. (२८.५४१३ १४४५० ). गोम्मटसार आ. नेमिचन्द्र प्रा. पद्य, आदिः सिद्धं सुद्धं पणमिय: अंतिःगोम्मटसार-सम्यक्ज्ञानचन्द्रिका भाषाटीका, पण्डित टोडरमल (दिगम्बर), प्राहिं., गद्य, आदि: वन्दौ ज्ञानानन्दकर; " अंति: (+) २०३. सिन्दूरप्रकर, संपूर्ण वि. १९३४ श्रेष्ठ, पृ. ११, जैदेना. ले. स्थल. बाकरा, प्र. वि. श्लो. ९८, संशोधित, अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ, दशा वि. विवर्ण- पानी से अक्षरों की स्याही फैल गयी है, (२५.५X११, ९३८). सिन्दूरप्रकर, आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य, आदिः सिंदूरप्रकरस्तपः; अंतिः सूक्तमुक्तावलीयम्. २०४. सङ्घयणी सह टबार्थ, पूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ६४, जैदेना, प्र. वि. संशोधित टिप्पण युक्त विशेष पाठ-कुछ पत्र, पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है. गा. ३४२ अपूर्ण तक है., (२६X१३, ४x२९). बृहत्सङ्ग्रहणी, आ. चन्द्रसूरि प्रा. पद्य वि. १२वी आदि नमिउं अरिहन्ताई: अंति: , " " बृहत्सङ्ग्रहणी-टवार्थ मागु, गद्य, आदि: नमस्कार अरिहन्ता: अंति: " ३० २०५.” उत्तराध्ययनसूत्र व उत्तराध्ययनसूत्रनिर्युक्तिगत उत्तराध्ययनसूत्रमाहात्म्य सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १७४८, श्रेष्ठ, पृ. १४५ १४ (२ से ९,३७,११८ से १२२ ) = १३१, पे. २, जैदेना., ले. ऋ. खीमसी, प्र. वि. कीर्तिसागरसुरेन्द्रजी प्रसादात्., टिप्पण युक्त विशेष पाठ- कुछ पत्र, प्र.ले. श्लो. (५३८) तैलं रक्षेत् जलं रक्षेत् (४७१) भग्नपृष्टं कटिग्रीवा, ( २६४१०, ६४३६४०). For Private And Personal Use Only पे. १. पे. नाम. उत्तराध्ययनसूत्र सह टबार्थ, पृ. १-१४४, अपूर्ण उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग, आदिः सञ्जोगाविप्पमुक्कस्स; अंति: (१) सम्मए त्ति बेमि ( २ ) पुव्वरिसी एव भासन्ति Page #85 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ३१ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची उत्तराध्ययनसूत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, आदि:-; अंतिः तेहनइ इष्ट वल्लभ छइ., पे.वि. मूल-अध्याय-३६अध्ययन. बीच-बीच के पत्र नहीं हैं. अध्ययन-१ गा.७ से अध्ययन-२ गा.४६ तथा अध्ययन-३३ के गा.२४ से अध्ययन-३४ तक नहीं है. पे. २. पे. नाम. उत्तराध्ययनसूत्रनियुक्तिगत उत्तराध्ययनसूत्रमाहात्म्य सह टबार्थ, पृ. १४४अ-१४५, प्रतिपूर्ण उत्तराध्ययनसूत्र-नियुक्ति , आ. भद्रबाहुस्वामी , प्रा., पद्य, आदि:-; अंति: उत्तराध्ययनसूत्र-नियुक्ति का टबार्थ, मागु., गद्य, आदि:-; अंति:२०६." नवतत्त्व का बालावबोध, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ४०-१(३)=३९, जैदेना., प्र.वि. संशोधित, पू.वि. बीच के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. गा.८१ तक है., (३१.५४७, ७४५८). नवतत्त्व प्रकरण-बालावबोध, मु. मेरुतुङ्गसूरि-शिष्य, मागु., गद्य, आदिः श्रीवीरं विश्वविभुं; अंति:२०७.” सुक्तमाला सह बालावबोध व सुभाषित, संपूर्ण, वि. १९०९, श्रेष्ठ, पृ. ४५, पे. २, जैदेना., ले. मु. परमानन्दजी(अवचलगच्छ), प्र.वि. संशोधित, (२८x१४.५, ११४३२). पे. १.पे. नाम. सुक्तमाला सह बालावबोध, पृ. १-४५ सूक्तमाला, मु. केशरविमल, सं.,मागु., पद्य, वि. १७५४, आदिः सकलसुकृत्यवल्लीवृन्द; अंतिः केसरविमलेन विबुधेन. सूक्तमाला-बालावबोध', मागु., गद्य, आदिः सकल सर्व जे शुभ; अंतिः पण विशेष भाव छे., पे.वि. मूल-अध्याय ४वर्ग. पे. २. सुभाषित श्लोक सङ्ग्रह', सं., पद्य, (पृ. ४५अ), आदिः विद्यालक्ष्मी; अंतिः आदिवैरसमागमम्., पे.वि. श्लो.१. २०८. गौतमपृच्छा सह टबार्थ व कथा, संपूर्ण, वि. १९०२, जीर्ण, पृ. ७७, जैदेना., ले.स्थल. रतलाम, ले. मु. रूपचन्द(पूनमीयागच्छ), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. मूल-गा.६४., (२५४१३.५, १३४३२). गौतमपृच्छा, प्रा., पद्य, आदिः नमिऊण तित्थनाहं; अंति: गोयमपुच्छा महत्थावि. गौतमपृच्छा-बालावबोध, आ. जिनसूरि, मागु., गद्य, आदि: नमस्कार करीनै; अंतिः (१)भावमो भाव मोटा छै (२)सुधाभुषण सेविता. गौतमपृच्छा-कथा सङ्ग्रह', मागु., गद्य, आदिः#; अंतिः#. २०९." न्यायसार सह न्यायतात्पर्यदीपिका टीका, पूर्ण, वि. १५३४, श्रेष्ठ, प्र. ९५, जैदेना., प्र.वि. मूल-३ परिच्छेद. अन्य किसी ने बाद में टीका की अंतिम पंक्तिओं को हरताल से मिटाकर उस पर "श्रीसिद्धहेमचंद्राचार्य विरचितायां न्यायसार समाप्तः" इस तरह से पुष्पिका लिख दी है व उसीने सं.१५३४ लिखा है वास्तव में अंत के दो-तीन पत्र नहीं हैं इस प्रत में मुद्रित पाठ में भिन्नता मिलती है., संशोधित, संधि सूचक चिह्न-क्रियापद संकेत-प्रारंभिक पत्र, टिप्पण युक्त विशेष पाठ-अल्प मात्रा में, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., (२७X१०.५, १३४४१). न्यायसार, आ. भासर्वज्ञ, सं., गद्य, आदिः प्रणम्य शंभुं जगतः; अंति:न्यायसार-न्यायतात्पर्यदीपिका वृत्ति, आ. जयसिंहसूरि, सं., गद्य, वि. १५वी, आदिः (१) ननु प्रकृतप्रकरण (२) सत्वं यस्य वदत्य; अंतिः२१०. पांत्रीस बोल, अपूर्ण, वि. १९७२, श्रेष्ठ, पृ. ६-१(१)=५, जैदेना., ले.स्थल. पालीताणा, ले. करमचन्द रामजी लहिया, (२४.५४१२, ९४२९). ३५ बोल, राज., गद्य, आदि:-; अंति: सें आवे मोह सुं आवे. २११.” तत्त्वगीता (कर्मकाण्ड), संपूर्ण, वि. १९८०, श्रेष्ठ, पृ. ४२, जैदेना., ले.स्थल. बीकानेर, ले. जयनारायण पुरोहित, प्र.वि. अध्याय-३६, संशोधित, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, त्रिपाठ, (२७.५४१५.५, १२४३१). For Private And Personal Use Only Page #86 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य भाग १ - www.kobatirth.org: Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अर्हद्गीता, उपा. मेघविजय, सं., पद्य, वि. १८वी, आदि: सरस्वती सदा; अंतिः वाचकम्. २१२. चोवीसदण्डक सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८८५, श्रेष्ठ, पृ. १२, जैदेना., ले. स्थल. भावनगर, ले. पदमसी जेवंतजी सागरी, प्र. वि. मूल-गा. ५० टबार्थ ग्रं. ३५० (२७.५४१४.५, ३x२९) दण्डक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, आदिः नमिउं चउवीस; अंतिः एसा विनत्ति अप्पहिआ. ; दण्डक प्रकरण- टवार्थ मागु., गद्य, आदि (१) इन्द्रराजिनतं नत्वा (२) नमिउं क० नमस्कार अंतिः कही भो भव्यने काजे (+) २१३. ३." उपदेशमाला रास, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ४६, जैदेना., ले. कवि ऋषभदास सङ्घवी (तपागच्छ), प्र. वि. अनुवाद गा. ७१२, ढाळ - ६४., कर्ता के हस्ताक्षर से लिखित प्रत, संशोधित, ( २९x१२, ११४४५), उपदेशमाला-उपदेशमाला रास, कवि ऋषभदास सङ्घवी, आधारित, मागु., पद्य, वि. १६८०, आदिः वेणा वंश वजावती; अंति: मनोरथ सही फल्यो रे. २१४.” वर्धमानदेशना, अपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ८१, जैदेना., प्र. वि. संशोधित, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. उल्लास-२ गा. ३५० तक है., (२७४१२.५, १३४४०). वर्द्धमानदेशना, पं. शुभवर्द्धन गणि, प्रा., पद्य, आदिः वीरजिणन्दं देविन्द; अंतिः (+) २१५. प्रश्नउत्तर ग्रन्थ, संपूर्ण, वि. १८७८, श्रेष्ठ, पृ. ४२, जैदेना., ले. स्थल पाटण, ले. पं. मोतीविजय, लिखवा. मु. सुमतिविजय, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. संशोधित, (२४×११.५, १२४३८). ३२ अध्यात्मसार प्रश्नोत्तर, मागु., गद्य, आदिः (१) चेतः केवरा कौमुदि (२) जय भगवान त्रिलोक्य; अंतिः कोड प्रते पा... २१६. पुष्पमाला प्रकरण, संपूर्ण, वि. १६१६, श्रेष्ठ, पृ. २२, जैदेना., ले. स्थल. योधपुर (जोधपुर), ले. मु. जेसा (कोरण्टगच्छ), राज्यकाल- राजा मालदेव, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. गा. ५०५ प्र. पु. मूल ग्रं. ६५२. प्र. ले. श्लो. (५०६) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, ( २६११, १३X२५ ) . पुष्पमाला प्रकरण, आ. हेमचन्द्रसूरि मलधारि, प्रा. पद्य आदिः सिद्धं कम्ममविग्ग; अंतिः सया सुहत्थिहिं. २१८. योगशास्त्र प्रकाश ४, प्रतिपूर्ण वि. १६९०, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदेना. ले. स्थल द्वीपबन्दर, ले. लहुआ, प्र. वि. प्र.पु. ग्रं. - , १३६., ( २६१२, ११x४१). योगशास्त्र, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, आदि:-; अंतिः २१९.” सङ्ग्रहणी सह वृत्ति, संपूर्ण, वि. १८८१, श्रेष्ठ, पृ. १२६, जैदेना., प्र. वि. मूल-गा. २७३ : टीका- ग्रं. ३५००. अंत में लिखी प्रक्षेपगाथाओ से अंतिमवाक्य का पता नहीं चल रहा है., संशोधित, पदच्छेद सुचक लकीरें संधि सूचक चिह्न-वचन विभक्ति संकेत, अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ, (२५x१०, ११४४२). बृहत्सङ्ग्रहणी, आ. चन्द्रसूरि प्रा. पद्य वि. १२वी आदि नमितं अरिहन्ताई अंतिः #. , " , बृहत्सङ्ग्रहणी- टीका, आ. देवभद्रसूरि सं., गद्य, आदि अत्यद्भुतं अंतिः (१) वृत्तिः समर्थिता (२) लोकानां सर्वसंख्यया. " (+) २२०. श्राद्धविधि प्रकरण सह स्वोपज्ञ विधिकौमुदी वृत्ति, संपूर्ण वि. १९५४ श्रेष्ठ, पृ. १६५+२ (१३४, १३९ ) - १६७, जैवेना.. प्र. वि. मूल-६प्रकाश टीका ग्रं. ६७६१, संशोधित, (२९.५x११.५, १४९४५) श्राद्धविधि प्रकरण, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., पद्य, आदिः सिरिवीरजिणं पणमिय; अंतिः लहुं लहन्ति धुवं. आद्धविधि प्रकरण-स्वोपज्ञ विधिकौमुदी टीका, आ. रत्नशेखरसूरि सं., पद्य, वि. १५०६, आदि: अर्हत्सिद्धगणी अंति जयदायिनी कृतिनाम्. २२१. नवतत्त्व का बालाबोध, संपूर्ण वि. १९४९, श्रेष्ठ, पृ. ३९, जैदेना ले स्थल काणुंड, ले. ॠ. रघुनाथ (गुरु मु. " मङ्गलसेन ), ( २६.५x१३. २१४४० ). नवतत्त्व प्रकरण-बालावबोध*, राज, गद्य, आदिः जीवाजीवा० जीवतत्त्व; अंतिः सुख पामीसी सुखी थासइ. For Private And Personal Use Only Page #87 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ३३ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २२२." तत्त्वार्थसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ६७, जैदेना., प्र.वि. मूल-अध्याय-१०., टिप्पण युक्त विशेष पाठ, पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न-मूल पाठ-कुछ पत्र, (२७४१२.५, २४२६). तत्त्वार्थाधिगमसूत्र, वाचक उमास्वाति, सं., प+ग, आदिः सम्यग्दर्शनज्ञान; अंतिः चिरेण परमार्थम. तत्त्वार्थाधिगमसूत्र-टबार्थ , प्राहिं., गद्य, आदिः सम्यग्दर्शन सम्यग्; अंतिः सूक्ष्मसम्पराय यथा. २२३. प्रश्नोत्तररत्नमाला बोल, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना., प्र.वि. प्र.पु. प्रश्नोत्तर-६५., (२५४१४, १२४२२). बोल सङ्ग्रह , सं.,प्रा.,मागु., गद्य, आदिः हिवै शिष्य पूछै; अंतिः तेहने घणो लाभ थाई छै. २२४. योगशास्त्र - प्रकाश १ से ४, प्रतिअपूर्ण, वि. १५वी, जीर्ण, पृ. १७-१(२)=१६, जैदेना., प्र.वि. संशोधित, पदच्छेद सूचक लकीरें-वचन विभक्ति संकेत, अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, पू.वि. प्रकाश-१ श्लो.२९ से अंत तक नहीं है., दशा वि. जीर्ण-काल प्रभाव से -खामीयुक्त पदार्थ से-बीच के कुछ पत्र-पत्र खंडित है-मूल पाठ का अंश खंडित है , (२५४१०, १२४४०). योगशास्त्र, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, आदिः नमो दुर्वाररागादि; अंति:२२५. नवतत्त्व सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९६३, श्रेष्ठ, पृ. ३३, जैदेना., ले.स्थल. जोधपुर, ले. छबील वीरचन्दजी व्यास, प्र.वि. मूल-गा.११२., (२६४१२, ३४२६). नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवापुन्नं; अंतिः सन्नि पज्जत्ते. नवतत्त्व प्रकरण-टबार्थ , मागु., गद्य, आदिः चेतना सहित ते जीव; अंतिः दोयनी उदीरणा छे. २२६. विचारपञ्चाशिका सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, जैदेना., ले. मु. खुशालविजय, प्र.वि. मूल-गा.५१., ___ संशोधित, (२६४१२.५, ५४३२). विचारपंचाशिका , गणि विजयविमल, प्रा., पद्य, आदिः वीरपयकयं नमिउं; अंतिः सूरिवराणं विणएण. विचारपंचाशिका-टबार्थ, मागु., गद्य, आदि: वीर पय क० महावीरदेव; अंतिः हुये कस्यो इत्यादि. २२७." द्रव्यगुणपर्याय रास सह टबार्थ, षट्दर्शनाष्टक व दुहा सङ्ग्रह, संपूर्ण, वि. १८१५, श्रेष्ठ, पृ. ४३, पे. ४, जैदेना., ले. मु. शिवसुन्दर, प्र.वि. संशोधित, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२५४१२.५, ५४२८). पे. १. पे. नाम. द्रव्यगुणपर्याय रास सह टबार्थ, पृ. १-४२अ द्रव्यगुणपर्याय रास, उपा. यशोविजयजी गणि, मागु., पद्य, वि. १७२९, आदिः श्रीगुरु जितविजय; अंतिः जसविजय बुध जयकरी. द्रव्यगुणपर्याय रास-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः द्रव्यानुयोग; अंतिः#., पे.वि. मूल-ढाळ-१७. पे. २. षड्दर्शनाष्टक, मागु., पद्य, (पृ. ४२-४२), आदिः शिवमत बोध; अंतिः सौ दशा छानवै और., पे.वि. गा.८. पे. ३. औपदेशिक पद, प्राहिं., पद्य, (पृ. ४२आ), आदि: जो निहचे मारग; अंतिः मिश्रित परिनाम., पे.वि. गा.५. पे. ४. पे. नाम. वैद्य, ज्योतिषि, वैष्णव, मुशलमान आदि के धार्मिक लक्षणोपदेश दुहा, पृ. ४३अ दुहा सङ्ग्रह, मागु.,प्रा.,सं., पद्य, आदिः#; अंतिः#., पे.वि. दुहा-८.. २२८." अध्यात्मकल्पद्रुम सह साम्यरहस्य टीका, संपूर्ण, वि. १९१६, श्रेष्ठ, पृ. १०२, जैदेना., ले.स्थल. मुंबई, ले. चतुर्भुज ब्राह्मण, लिखवा. मु. वृद्धिविजय, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. मूल-श्लो.२७८,१६अधिकार., पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न, संशोधित, टिप्पण युक्त विशेष पाठ-कुछ पत्र, त्रिपाठ, (३०x१३.५, १-२४११-४२). अध्यात्मकल्पद्रुम, आ. मुनिसुन्दरसूरि, सं., पद्य, आदि: जयश्रीरान्तरारीणां०; अंति: जयश्रिया शिवश्रीः. अध्यात्मकल्पद्रुम-अधिरोहिणी वृत्ति, उपा. धनविजय, सं., गद्य, आदिः ॐ नमः परमाप्ताय; अंतिः दोषा खलु विधेयेति. २२९." जीवविचार प्रकरण सह टबार्थ (अर्थ), संपूर्ण, वि. १८४१, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदेना., ले. मु. रूपचन्द (गुरु पं. इन्द्रवर्द्धन For Private And Personal Use Only Page #88 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org: हस्तलिखित जैन साहित्य भाग १ ३४ " गणि, सागरगच्छ), प्र. वि. मूल-गा. ५१., संशोधित, प्र.ले. श्लो. (५०६) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा (२८३) भग्न पृष्टि कटी ग्रीवा (५३२) तिलात् रक्षे जला रक्षेत् (५३३) मङ्गलं लेखकानां च (२४.५x१२.५, ५X३३)जीवविचार प्रकरण, आ. शान्तिसूरि, प्रा., पद्य, आदिः भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंतिः रुद्दाओ सुयसमुद्दाओ. जीवविचार प्रकरण-टबार्थ *, मागु., गद्य, आदिः त्रिभुवनउ प्रकाशक: अंतिः सिद्धान्तनु लेइने.. २३०. दसदृष्टान्त, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १०, जैदेना, (२५.५४१३.५, ११४३०). मनुष्यभव दुर्लभता १० दृष्टान्त, मागु, गद्य, आदि चेतः कैरवकौमुदी अंतिः परमपद पामीई. २३१.' गौतमपृच्छा सह टबार्थ+कथा, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ६३, जैदेना., ले. ऋ. मेघराज, प्र. वि. मूल-गा. ६४., संशोधित, (२८४१३ १४४४९). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गौतमपृच्छा, प्रा., पद्य, आदिः नमिऊण तित्थनाहं; अंति: गोयमपुच्छा महत्थावि. गौतमपृच्छा-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः (१) श्रीवामानन्दनं देवं (२) नमस्कार करीनै तीर्थ; अंतिः पूछ्या भगवन्तनै. · २३३. गौतमपृच्छा सह बालाबोध, संपूर्ण वि. १८३६, श्रेष्ठ, पृ. ४१, जैदेना. ले. स्थल साहजाहांनाबाद, प्र. वि. मूल-गा. ६४., संशोधित (२६४११.५, १५४३३). गीतमपृच्छा, प्रा., पद्य, आदि नमिऊण तित्थनाहं अंति: गोयमपुच्छा महत्थावि. गौतमपृच्छा-बालावबोध, आ. जिनसूरि, मागु., गद्य, आदि: (१) नत्वा वीरजिनं (२) तीर्थनाथ श्रीमहावीर; अंतिः इण माहिजि जाणिवा. २३४. ऋषिमण्डल स्तोत्र प्रकरण सह कथार्णववृत्ति, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २६६, जैदेना. प्र. वि. मूल-गा. २१८ टीका ग्रं. . ७२६१, २६४१३, १२०४३). ऋषिमण्डल प्रकरण, आ. धर्मघोषसूरि, प्रा., पद्य, वि. १४वी, आदिः भत्तिब्भरनमिरसुरवर; अंतिः सो लहइ सिद्धिसुहं. ऋषिमण्डल प्रकरण-कथार्णवाङ्क वृत्ति, गणि पद्ममन्दिर, सं., गद्य, वि. १५५३, आदि: (१) जयाय जगतामीशो युगादी (२) ऋषभादिजिनवरेन्द्राणा; अंतिः (१) सञ्जायताम् (२) सुगममिति गाथार्थः. (+) 1. यतिदिनचर्या सह अवचूरि, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ६८, जैदेना. प्र. वि. मूल-गा. १५४. संशोधित, पदच्छेद सूचक " लकीरें संधि सूचक चिह्न, त्रिपाठ, (२७४११.५ १ ३४३५). यतिदिनचर्या, आ. भावदेवसूरि, प्रा., पद्य, आदिः वीरं नमिऊण जिणं; अंतिः एसा थोवमइजइजोग्गा. यतिदिनचर्या अवचूरि, मु. मतिसागर सं., गद्य, आदि (१) प्रणम्य जगदानन्दं (२) अहं सामाचारी अंतिः स्तोकमतियतियोग्या. २३६. चौवीसठाणा व चौवीसठाणाचर्चा, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ३८, पे. २, जैदेना., (२७x१३.५, ९-१३×३२). पे. १. २४ स्थानक, मागु, गद्य (पृ. १आ-११आ) आदि गयन्दिय च काए: अंतिः कोडिलाख २६. " पे. २. २४ स्थानक चर्चा, मागु., गद्य, (पृ. १२अ -३८अ ), आदि: एक इन्द्री जाति; अंतिः कुलकोडी लाख सर्व. (+) २३७. उपदेशमाला सह वृत्ति, संपूर्ण, वि. १९५४, श्रेष्ठ, पृ. २५० + १ (९७) = २५१, जैदेना., ले. स्थल. पेथापुर, ले. गोपालदास पुरोहित, प्र. वि. मूल-गा. ५४४. प्र. पु. टीकाग्रं. ७५००, संशोधित द्विपाठ - त्रिपाठ, (२९.५४११.५ १२४४०). उपदेशमाला, गणि धर्मदास, प्रा., पद्य, आदिः नमिऊण जिणवरिन्दे; अंतिः वयण विणिग्गया वाणी. " उपदेशमाला- वृत्ति, गणि रामविजय, सं. गद्य वि. १७८१, आदि (१) श्रेयस्करं कामित (२) नमिऊण इति नमिऊण अंतिः (१) वाणी श्रुतदेवी (२) विजयतां सदा.. २३८.) प्रतिष्ठाकल्प, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ६३, गुजराती, प्र. वि. देवनागरी शैली में गुजराती लिपि., संशोधित, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२०.५४१०, ८- ९४२६). प्रतिष्ठाकल्प, उपा. सकलचन्द्रगणि, सं. मागु, गद्य आदि प्राप्त थएली एवी अंतिः विजयदानसूरीश्वराग्रे " For Private And Personal Use Only Page #89 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ३५ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २३९." अनुयोगविधि सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९३७, श्रेष्ठ, पृ. ४२, जैदेना., ले. पं. धीरसुन्दर(कवलागच्छ),प्र.वि. संशोधित, (२४४१२.५, ५४३४). वडीदीक्षा अनुयोग विधि, प्रा.,सं.,मागु., गद्य, आदिः नमो अरिहन्ताणं; अंतिः यथायोग्य नाम दीजइ. वडीदीक्षा अनुयोग विधि-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः (१) पुंजी काजओ (२) अरिहन्त विहारमाणनै; अंतिः नही गुरु कहे इम कहू. २४०." ज्ञानपञ्चमी देववन्दन विधि, संपूर्ण, वि. १८९२, श्रेष्ठ, पृ. ९, जैदेना., ले.स्थल. रसुलपुर, ले. मु. मयंकरत्न (गुरु पं. राजरत्न, तपागच्छ),प्र.ले.पु. विस्तृत,प्र.वि. संशोधित, प्र.ले.श्लो. (५२८) याद्रीसं पुस्तकं द्रीष्टवा; (५३३) मङ्गलं लेखकानां च, (२७.५४१३.५, १३४३८). ज्ञानपंचमीपर्व देववन्दन, आ. लक्ष्मीसूरि, मागु., पद्य, आदिः श्रीसौभाग्यपञ्चमी; अंतिः विजयलक्ष्मी शुभ हेज. २४१.” आचारदिनकर, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ६५, जैदेना., प्र.वि. ३६ उदय, संशोधित, (३०x१३.५, १६४५०). आचारदिनकर , आ. वर्द्धमानसूरि, सं., प+ग, आदिः तत्त्वज्ञानमयो लोके; अंतिः महानन्दभृतो जयन्ति. २४२.” पौषदशमी कथा, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना., ले.स्थल. गोधावी, ले. पं. जतनकुशल गणि, प्र.वि. संशोधित, (२८x१४, १२४३७). पौषदशमीपर्व कथा, आ. कनकाचार्य, सं., गद्य, आदिः प्रणम्य पार्श्वनाथ; अंतिः इदं सम्बन्धं रचनीयम्. २४३. आलोचना विधि, पद्मावती आराधना व सन्थारा विधि, संपूर्ण, वि. १८८९, मध्यम, पृ. १०, पे. ३, जैदेना., ले.स्थल. बीकानेर, ले. ऋ. गङ्गाराम, (२६.५४१२, १४४३०). पे. १. आलोयणा विधि, मागु., गद्य, (पृ. १-८अ), आदिः णमो अरिहन्ताणं०; अंतिः वाचनीया विवेकिभिः. पे. २. पद्मावती आराधना, उपा. समयसुन्दर गणि, मागु., पद्य, (पृ. ८अ-९आ), आदिः हिवे राणी पद्मावती; अंतिः पापथी छुटे तत्काळ., पे.वि. गा.३६. पे. ३. सन्थारा विधि, राज., गद्य, (पृ. १०अ), आदिः प्रथम नवकार तीन भणी; अंतिः वोसिरामित्ति पावगं. २४४. दिवालिकाकल्प सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९०१, श्रेष्ठ, पृ. ६४, जैदेना., ले.स्थल. गोधावी, ले. पं. जतनकुशल गणि, प्र.वि. मूल-श्लो.४३६. प्र.पु. सर्वग्रं. २१९०., संशोधित, (२७.५४१२, ४४३०).. दीपावलीपर्व कल्प, आ. जिनसुन्दरसूरि, सं., पद्य, वि. १४८३, आदिः श्रीवर्द्धमानमाङ्गल; अंतिः चन्द्रार्कजगत्त्रये. दीपावलीपर्व कल्प-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः अर्हन्त बालबोधिनां; अंतिः ए प्रतपो दिवालीकल्प. २४५. योग विधि, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १२, जैदेना., प्र.वि. संशोधित, (२६.५४१४, १३४३३). भगवतीयोग विधि, मु. शिवनिधान, मागु., गद्य, आदिः सुमुहूर्त दिने; अंतिः स भवति साधु. २४६. मौनएकादशी व सौभाग्यपञ्चमी कथा, संपूर्ण, वि. १८८६, श्रेष्ठ, पृ. ५, पे. २, जैदेना., पठ. मु. वीर्धसागर, ले. मु. जयसागर, (२५.५४११.५, १४४३७). पे. १. मौनएकादशीपर्व कथा, सं., गद्य, (पृ. १-२आ), आदिः श्रीवीरं नत्वा गौतमः; अंतिः एकादशीमाराध्य समभवत्. पे. २. सौभाग्यपञ्चमीपर्व कथा, सं., गद्य, (पृ. ३-५), आदिः जीवानां सर्वार्था; अंतिः विषये उद्यमः कर्तव्य. २४७. शुद्ध आम्बिल विचार सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना., (२८x१४, ५-१२४३५-३९). शुद्धआयम्बिल विचार, सं.,प्रा., गद्य, आदिः आम्लश्चतुर्थोरस; अंतिः तिसुवि विभासियव्वं. शुद्धआयम्बिल विचार-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः साधुने आम्बिलमाहिं; अंतिः रिते त्रण भेद कह्या. २४९." दशवैकालिक सूत्र, अपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १७, जैदेना., प्र.वि. संशोधित, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. अध्ययन-७ __गा.५५ अपूर्ण तक है., (२६४११, ११४३५-४०). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यम्भवसूरि, प्रा., पद्य, वि. पू.४, आदिः धम्मो मङ्गलमुक्किट्ठ; अंति:२५०." उपधान विधि, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १०, जैदेना., ले.स्थल. राजनगर, प्र.वि. संशोधित, (२६.५४१३, १३४४०). For Private And Personal Use Only Page #90 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य भाग - १ उपधानतप विधि, सं.,प्रा.,मागु., गद्य, आदिः पहिलं नवकार-; अंतिः सुअसिद्धेखमणसढ्ढचोरो. २५१. मौनएकादशी कल्प सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८५७, श्रेष्ठ, पृ. ४४-१९(१ से १९)=२५, जैदेना., ले.स्थल. भावनगर, ले. पं. निधानविजय गणि (गुरु पं. गौतमविजय), प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र.वि. मूल-श्लो.२०१., (२७७१३, ४४३६). मौनएकादशीपर्व कथा , मु. रविसागर, सं., पद्य, वि. १६५७, (संपूर्ण), आदिः प्रणम्य ऋषभदेवं; अंतिः सागरशररसशशिप्रमिते. मौनएकादशीपर्व कथा-टबार्थ, मागु., गद्य, (संपूर्ण), आदिः प्रणमीने चरण कमल; अंतिः सोलसतावने वरसे. २५२.” पोषवदिदशमी कथा सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ११, जैदेना.,ले. पं. शिवचन्द्र, प्र.वि. मूल-श्लो.७५. पेज नं. ३ तक ही टबार्थ लिखा है., पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न, (२५.५४११.५, ५४२५). पौषदशमीपर्व कथा, मु. जिनेन्द्रसागर, सं., पद्य, आदिः ध्यात्वा वामेयमर्हन; अंतिः शीघ्र रचयाञ्चकार. पौषदशमीपर्व कथा-टबार्थ , मागु., गद्य, आदिः इहां ज भरतक्षेत्रने; अंतिः#. २५३." वरदत्तगुणमञ्जरी कथानक-सौभाग्यपञ्चमी माहात्म्य विषये सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८५७, श्रेष्ठ, पृ. १९, जैदेना., ले.स्थल. भावनगर, ले. मु. निधानविजय, प्र.वि. श्लो.१५०., संशोधित, (२७४१३, ४४३६). ज्ञानपंचमीपर्व कथा, गणि कनककुशल, सं., पद्य, वि. १६५५, आदिः श्रीमत्पार्श्व; अंतिः तैरेव मेडतानगरे. ज्ञानपंचमीपर्व कथा-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः श्रीमन्त शोभालक्ष्मी; अंतिः माहात्म्यने कार्ये. २५४. शान्तिस्नात्र विधि, संपूर्ण, वि. १९८२, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदेना., ले.स्थल. पाटण, ले. करमचन्द रामजी लहिया, (२६.५४१३, १४४५५). शान्तिस्नात्र विधि, मु. सकलचन्द, सं.,मागु., पद्य, आदिः अथ प्रतिष्ठायां वा; अंतिः वाजा वागते धारा देवी. २५५. दीपालीकाकल्प सह टबार्थ व दिपालिका माङ्गलिक श्लोक सङग्रह, संपूर्ण, वि. १८९८, श्रेष्ठ, प्र. ५१, पे. २, जैदेना. ले.स्थल. गोधावी, ले. गणि जतनकुशल (गुरु गणि अमृतकुशल), प्र.वि. संशोधित, (२८.५४१३.५, ५४३७). पे. १. पे. नाम. दिपालिकाकल्प सह टबार्थ, पृ. १-५१ दीपावलीपर्व कल्प, आ. जिनसुन्दरसूरि, सं., पद्य, वि. १४८३, आदिः श्रीवर्द्धमानमाङ्गल; अंतिः चन्द्रार्कजगत्त्रये. दीपावलीपर्व कल्प-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः अर्हन्त बालबोधिनां; अंतिः ए प्रतपो दिवालीकल्प., पे.वि. मूल श्लो.४३६. पे. २. पे. नाम. दीपावली माङ्गलिकश्लोक सङ्ग्रह, पृ. ५१अ श्लोक सङ्ग्रह जैनधार्मिक, सं.,प्रा., पद्य, आदिः#; अंतिः#., पे.वि. श्लो.५. २५७." योग विधि, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ६, जैदेना., प्र.वि. संशोधित, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., (२७४११, १५४३६). योग विधि, प्रा.,सं., गद्य, आदिः पसत्थे खित्ते; अंति:२५८." मार्गशीर्षशुक्लैकादशी कथा व मौनएकादशी व्याख्यान, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, पे. २, जैदेना.,प्र.वि. संशोधित, पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न, (२५४१३, १६x४३). पे. १. मौनएकादशीपर्व कथा, सं., गद्य, (पृ. १अ-३अ), आदिः श्रीवीरं नत्वा गौतमः; अंतिः एकादशीमाराध्य समभवत्. पे. २. मौनएकादशीपर्व कथा, आ. सौभाग्यनन्दिसूरि, सं., पद्य, वि. १५७६, (पृ. ३अ-६आ), आदिः अन्यदा नेमिरीशाने; ___अंतिः हम्मीरपुरसंश्रितैः., पे.वि. श्लो.११६. २५९." स्तोत्र सङ्ग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १९, पे. ८, जैदेना., प्र.वि. संशोधित, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२२.५४१०.५, ११४३८). पे. १. पे. नाम. भक्तामर स्तोत्र सह मन्त्र, पृ. १अ-५अ भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुङ्गसूरि, सं., पद्य, आदिः भक्तामरप्रणतमौलिमणि; अंतिः समुपैति लक्ष्मी. भक्तामर स्तोत्र-मन्त्र, संबद्ध, सं., गद्य, आदिः ॐ ह्रीं अर्ह णमो; अंतिः घौ प्स्नौं स्वाहा., पे.वि. मूल-श्लो.४४+४. For Private And Personal Use Only Page #91 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ३७ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची पे. २. कल्याणमन्दिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकर, सं., पद्य, (पृ. ५आ-८आ), आदि: कल्याणमन्दिरमुदारमवद; अंतिः मोक्षं प्रपद्यन्ते., पे.वि. श्लो.४४ . पे. ३. सिद्धिप्रिय स्तोत्र, मु. देवनन्दि, सं., पद्य, ईस. ५-६श, (पृ. ९अ-११अ), आदिः सिद्धिप्रियैः; अंतिः तातः ___ सतामीशिताः., पे.वि. श्लो.२६. पे. ४. एकीभाव स्तोत्र, आ. वादिराजसूरि, सं., पद्य, ईस. ११वी, (पृ. ११अ-१३अ), आदिः एकीभावं गत इव मया; अंतिः वादिराजमनुभव्यसहायः., पे.वि. श्लो.२६. पे. ५.पे. नाम. चतुर्विंशतिजिन स्तवन, पृ. १३अ-१५अ जिनचतुर्विंशतिका, श्रा. भूपाल, सं., पद्य, आदिः श्रीलीलायतनं महीकुल; अंतिः भूयात् पुनदर्शनम्., पे.वि. श्लो.२५. पे. ६. पद्मावतीदेवी स्तोत्र, सं., पद्य, (पृ. १५अ-१६अ), आदिः श्रीपार्श्वनाथजिन; अंतिः पूजयामीष्टसिद्ध्यै., पे.वि. श्लो.११. पे. ७. पद्मावतीदेवी स्तव, सं., पद्य, (पृ. १६आ-१९अ), आदिः श्रीमद्गीर्वाणचक्र; अंतिः प्रसीद परमेश्वरि., पे.वि. श्लो.३०. पे. ८. ज्वालामालिनी स्तोत्र, सं., गद्य, (पृ. १९अ), आदिः ॐ नमो भगवते; अंतिः ज्ञापयति स्वाहा. २६०." भक्तामर स्तोत्र सह गुणाकरीय वृत्ति, संपूर्ण, वि. १९१७, श्रेष्ठ, पृ. ४२, जैदेना., ले.स्थल. मुंबई, ले. चतुर्भुज ब्राह्मण, लिखवा. मु. वृद्धिविजय, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. मूल-श्लो.४४; टीका-ग्रं. १५७२., संशोधित, (३०x१३.५, १३x४९). भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुङ्गसूरि, सं., पद्य, आदिः भक्तामरप्रणतमौलिमणि; अंतिः समुपैति लक्ष्मी. भक्तामर स्तोत्र-गुणाकरीय टीका, आ. गुणाकरसूरि, सं., गद्य, वि. १४२६, आदिः (१) पूजाज्ञानवचोपायापगमा (२) सम्यग् जिनपादयुगं; अंतिः (१)मतिः० प्रायशः सन्ति (२)स्वधिया व्याख्येयः. २६१. भक्तामर स्तोत्र सह गुणाकरीय वृत्ति, संपूर्ण, वि. १८८१, श्रेष्ठ, पृ. ४६, जैदेना., ले. मु. भावचन्द्र (गुरु गणि दोलतचन्द्र), प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र.वि. मूल-श्लो.४४; टीका-ग्रं. १५७२., पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न-कुछ पत्र, संशोधित, टिप्पण युक्त विशेष पाठ-अल्प मात्रा में, प्र.ले.श्लो. (२१) जिहां ध्रु सायर चंद रवि, (२५४११.५, १३४४२). भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुङ्गसूरि, सं., पद्य, आदिः भक्तामरप्रणतमौलिमणि; अंतिः समुपैति लक्ष्मी. भक्तामर स्तोत्र-गुणाकरीय टीका, आ. गुणाकरसूरि, सं., गद्य, वि. १४२६, आदिः (१) पूजाज्ञानवचोपायापगमा (२) सम्यग् जिनपादयुगं; अंतिः (१)मतिः० प्रायशः सन्ति. २६२.” कल्याणकनी पूजा, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, जैदेना., प्र.वि. गा.१४०,ग्रं. २१०,ढाळ-११, संशोधित, ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित, (२६४१२, १२४३८). पंचकल्याणक पूजा, पं. रूपविजय, मागु., पद्य, वि. १८८९, आदिः अमरनिकर नित जेहना; अंतिः रुपविजय गुण गाया २६३. नवस्मरण व मन्त्र, संपूर्ण, वि. १८७८, श्रेष्ठ, पृ. १२,पे. २, जैदेना., ले.स्थल. पालनपुर, ले. पं. रङ्गविजय गणि (गुरु पं. रुपविजय गणि), पठ. जीवा; कर्मचन्द, प्र.ले.पु. मध्यम, (२५.५४१२.५, १०x३७). पे. १. नवस्मरण, आ. अनेक श्रुतस्थविर, प्रा.,सं., प+ग, (पृ. १-१२), आदिः नमो अरिहन्ताणं० हवइ; अंतिः जैनं जयति शासनम्., पे.वि. कल्याणमंदिर नही लिखा है. पे. २. पे. नाम. मन्त्रसङ्ग्रह (रक्षामन्त्र व गौतमस्वामी मन्त्र), पृ. १२आ मन्त्र-तन्त्र-यन्त्र सङ्ग्रह*, सं.,प्रा.,मागु., प+ग, आदिः#; अंतिः#. २६४. दुःखप्रतिकारविज्ञप्ति स्तोत्र, पूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ९-१(३)=८, जैदेना., प्र.वि. श्लो.३७, पू.वि. गा.८ से १२ नहीं है., (२८.५४१६.५, ५४२२). For Private And Personal Use Only Page #92 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य भाग १ - www.kobatirth.org: दुःखप्रतिकारविज्ञप्ति स्तोत्र, आ. मुनिसुन्दरसूरि सं., पद्य, आदि आनन्दं यः परं अंतिः अस्तु मां योजयेत्. २६५. अष्टप्रकारी पूजा, संपूर्ण, वि. १८६४, श्रेष्ठ, पृ. ८- १ ( २*) = ७, जैदेना., ले. स्थल. आणंदपुर, ले. मु. रङ्गविजय (गुरु गणि रुपविजय), प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र. वि. ढाळ -९, (२१×१२.५, १०x२८). ८ प्रकारी पूजा, मु. देवविजय, मागु, पथ, वि. १८२१, आदि: अजर अमर निकलङ्क जे अंतिः मोक्षं हि वीराः, २६६. चतुर्विंशतितीर्थङ्कराणां संस्कृत पूजा, संपूर्ण वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ४५, जैदेना, (२७९१२.५, १०x३९). २४ जिन पूजा, सं., गद्य, आदिः विघ्नौघाः प्रलयं; अंतिः कल्याणकोटिप्रदम्. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २६७. गौतमस्वामी रास, श्लोक व सकडालपुत्र सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ५, पे. ३, जैदेना., ले. स्थल. दधीपुर, ले. , पं. हितेन प्र. वि. मूलपत्रांक ६१-६५. पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., (२५.५४१३, १३४३६). पे. १. गौतमस्वामी रास, आ. विजयभद्रसूरि, मागु., पद्य, (पृ. १-५, संपूर्ण), आदि: वीर जिणेसर चरण कमल; अंतिः गुरु ईम भणे ए., पे. वि. गा.४४. पे. २. पे. नाम. श्रृङ्गार विषयक श्लोक, पृ. ५अ, संपूर्ण औपदेशिक दूहा*, प्राहिं., पद्य, आदि: #; अंतिः #., पे.वि. गा.१. पे. ३. स्थूलभद्र सज्झाय, मु. ज्ञान, मागु., पद्य, (पृ. ५आ-, अपूर्ण), आदि: कहे सखी पिउडे स्युं: अंति:-, पे. वि. मात्र प्रथम पत्र है. ३८ २६८. उपासकदशाङ्गसूत्रे आणन्दश्रावकसम्बन्ध, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ८ जैदेना. (२६४१०.५, ९४३४-३६). उपासकदशाङ्गसूत्र-आणन्दश्रावक सम्बन्ध, श्रा. मोतीचन्द, संबद्ध, मागु., पद्य, आदिः वाणीज गामे पधारीया; अंतिः वातो तत्तवत तब कही. " २६९. स्नात्रपूजा व सत्तरभेदी पूजा, संपूर्ण वि. १८९३ श्रेष्ठ, पृ. २३ पे २ जैदेना. ले. स्थल कंडोरणा, ले. मु. यत्नकुशल " " (गुरु पं. विजयकुशल गणि), राज्यकाल - राजा रणमल्ल, प्र.ले.पु. मध्यम, ( २६.५x१३.५, ९x२७). पे. १. स्नात्र पूजा, श्री. वछ भण्डारी, मागु, पद्य, (पृ. १अ- (अ), आदि पवित्र धोती पेरी अंतिः जयोजयो जयवन्तजी., पे.वि. गा. ७०. पे. २. १७ भेदी पूजा, उपा. सकलचन्द्रगणि, मागु., पद्य, (पृ. ८अ - २३अ), आदिः अरिहन्त मुखपङ्कज; अंतिः स्यो फल चुंणीयो रे, पं.वि. गा. १०८, डाळ- १७. " २७०. चतुर्विंशतिजिन स्तोत्र सह टीका, संपूर्ण, वि. १९६०, श्रेष्ठ, पृ. १८ जैदेना. ले. स्थल पाटण, ले. रामनारायण पुरोहित, प्र. वि. मूल - श्लो. २९, ग्रं. ४४; टीका ग्रं. ४५७ प्र.पु. सर्वग्रं - ५०१, अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-मूल पाठ, त्रिपाठ, (२७.५४१४, १x४२). , ; २४ जिन स्तुति, आ. जिनप्रभसूरि, सं., पद्य वि. १६५२, आदि ऋषभनम्रसुरासुरशेखर अंति: जरसा रहितं पदम्. २४ जिन स्तुति- टीका, गणि कनककुशल, सं., गद्य, वि. १६५२, आदि: (१) प्रणम्य परया भक्त्या (२) हे ऋषभ हे जिन अंतिः श्लोकैरधिका समजायत. For Private And Personal Use Only २७१. तीर्थमाला स्तोत्र सह अवचूरि, संपूर्ण वि. १८४१ श्रेष्ठ, पृ. २८, जैदेना. ले. स्थल सिरोही, ले. शिवचन्द, लिखवा. मु. गजविमल, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. मूल-गा. १११, प्र.ले. श्लो. (५०६) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, ( २६ १३, ११३०). तीर्थमाला स्तोत्र, आ. महेन्द्रसिंहसूरि प्रा. पद्य, आदि अरिहन्तं भगवन्तं अतिः मुणिविन्द थुय महिया. तीर्थमाला स्तोत्र - अवचूरि, सं., गद्य, आदि: अर्हन्तं पूजायोग्यं; अंतिः महिताः सत्कृताश्च.. (+) २७२. सीमन्धरस्वामी स्तवन सह टबार्थ (सिमन्धरविनन्ति), संपूर्ण, वि. १९२७, श्रेष्ठ, पृ. ८८, जैदेना., ले. श्री. मोतीचन्द रुपचन्द्र शाह, प्र. वि. मूल-ढाल १७ गा.३५४ ग्रं. ५३३ टबार्थ ग्रं. १२०१, संशोधित (२६.५x१२.५. ३३४). सीमन्धरजिन विज्ञप्तिस्तवन साडात्रणसोगाथा, उपा. यशोविजयजी गणि, मागु., पद्य, आदिः सीमन्धर साहिब आगई; अंतिः शास्त्र मर्यादा भणी. , Page #93 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ३९ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची सीमन्धरजिन विज्ञप्तिस्तवन-टबार्थ, आ. ज्ञानविमलसूरि, मागु., गद्य, आदिः सीमन्धर पूर्व; अंतिः गहिला छे ते डाहा छइ. २७३. साधुवन्दना, संपूर्ण वि. १८१०, श्रेष्ठ, पृ. ५. जैदेना. प्र. वि. गा८७, डाळ-७ (२६४१२, १२४४६). साधुवन्दना आ. पार्श्वचन्द्रसूरि मागु, पद्य, आदि रिसहजिण पमुह चउवीस अंतिः पासचंद्रसूरिय थुण्या.. : 1 www.kobatirth.org: २७४.' अर्हन्नामसहस्रसमुच्चय सह स्वोपज्ञ सुबोधिका वृत्ति, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३२, जैदेना., प्र. वि. मूल - १० शतक., संशोधित, पदच्छेद सूचक लकीरें, त्रिपाठ, (२७१२.५, २- ३x४२). अर्हन्नामसहस्रसमुच्चय, वाचक देवविजय, सं., पद्य, वि. १६५८, आदिः प्रणम्य मगसीपार्श्व; अंतिः विनिर्मितं देवविजयेन. अर्हन्नामसहखसमुच्चय- स्वोपज्ञ सुबोधिका वृत्ति, वाचक देवविजय, सं. गद्य, वि. १६९८ आदि (१) श्रीसुपार्श्वगुरु (२) इह हि सकलकुशलनिबन्ध; अंतिः चिरं जियात्. " २७५. बारव्रत पूजा, अपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ८, जैदेना, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. सातवीं पूजा अपूर्ण तक है. (२३.५X१२.५, ८४३३). १२ व्रत पूजा विधि, मु. वीरविजय, मागु, पद्य, वि. १८८७, आदिः उच्चैर्गुणैर्यस्य: अंतिः Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir , २७६. गीतमस्वामी रास, संपूर्ण, वि. १८९७, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना. प्र. वि. गा. ४३. (२०१५.५, १४४२६). " " (+) गीतमस्वामी रास, आ. विजयभद्रसूरि मागु पद्य, आदि: वीर जिणेसर चरण कमल अंति: गुरु ईम भणे ए. २७७. सिद्धगिरि स्तवन, संपूर्ण वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदेना, प्र. वि. गा. १०९, संशोधित (२४.५४१२.५, १२४२९). श्रीआदेश्वर अजरामर अंतिः सुजसे जय सिरि शत्रुंजयतीर्थ स्तवन, मु. कल्याणसागरसूरि-शिष्य मागु पद्य, आदि २७८. वीरजिन स्तवन, महावीरजी रो पारणो व लुकमान हकीम की नसीयत 1 संपूर्ण वि. १९२३ श्रेष्ठ, पृ. ११, पे. ३, जैदेना. ले. स्थल विक्रमपुर, प्र.ले. श्लो. (१६) भणजो गुणजो वाचजो (२५.५४१३, १३४३०). पे. १. पे. नाम. वीरजिन स्तवन, पृ. १-६अ पुण्यप्रकाश स्तवन, उपा. विनयविजय मागु पद्य वि. १७२९, आदि: सकल सिद्धिदायक: अंतिः नामे पुण्यप्रकाश ए., पे.वि. ढाळ - ८. (+) " पे. २. महावीरजिन पारणाविनती स्तवन, पं. वीरविजय, मागु., पद्य, (पृ. ६अ - ६आ), आदि: चोमासी पारणो; अंतिः वीर वचन रस गावे रे., पे.वि. गा. ८.. पे. ३. लुकमानहकीम नसीयत, हिन्दी, प+ग, (पृ. ६आ-११आ), आदि: जहा गणधर आसमान; अंतिः सो पीछे पीछतावगा. २७९. चौविस म्हाराज की पूजा, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ५०, जैदेना. प्र. वि. संशोधित, ( २९x१२.५, ११४७). पंचकल्याणक पूजा चौवीसजिन आ. वृन्दावन धर्मचन्द अग्रवाल, प्राहिं, पद्य, आदि वन्दी पाञ्चौ अंति: जानि खिमां उर आनियां. " २८०.” वीतराग स्तोत्र सह अवचूर्णि, अपूर्ण, वि. १६वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना., प्र. वि. संशोधित, पंचपाठ, मूल पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें - संधि सूचक चिह्न, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्रकाश - १५ गा. ४ तक है., ( २६.५ १२.५, ८-१३x४६). वीतराग स्तोत्र, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, आदिः यः परात्मा परं; अंतिः वीतराग स्तोत्र - अवचूरि, मु. विशालराजसूरि - शिष्य, सं., गद्य, वि. १५१२, आदि: जयति श्रीजिनो वीरः; अंतिः For Private And Personal Use Only २८१.” आनन्दघनजीमहाराजकृत चौईसी सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ३९, जैदेना., ले. स्थल. पाली, ले. वीरचन्द · वोरा, प्र. वि. मूल- अध्याय २४ स्तवन. प्र. पु. सर्वग्रं. १७५५ संशोधित, ( २३-५४१२, ५४२७). स्तवनचौवीसी, मु. आनन्दघन, मागु., पद्य, वि. १८पू, आदिः ऋषभ जिनेश्वर प्रीतम; अंतिः आनन्दघन प्रभु जाग रे .. स्तवनचौवीसी-टबार्थ, आ. ज्ञानविमलसूरि, मागु., गद्य, आदि: (१) चिदानन्दमय जिनवरु (२) श्रीऋषभदेव जिनेश्वर; अंतिः ते करी मोक्षपद पाये. Page #94 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य भाग - १ २८२. छन्द सङ्ग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ७-१(४)=६, पे. १०, जैदेना., (२६.५४१३.५, १६x४८). पे. १. शनिश्चर छन्द, पण्डित ललितसागर, मागु., पद्य, (पृ. १अ-अ, संपूर्ण), आदिः सरसती सामिणी; अंतिः ललितसागर इम कहे., पे.वि. गा.३१. पे. २. पार्श्वजिन छन्द-शर्खेश्वर, मु. हस्तिरत्न, मागु., पद्य, (पृ. २अ-२आ, संपूर्ण), आदिः सरसति सार सदा; अंतिः ____ भविजन मन सीद्धो., पे.वि. गा.२५. पे. ३. पे. नाम. नोकार छन्द, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण नमस्कारमहामन्त्र छन्द , वाचक कुशललाभ, मागु., पद्य, आदिः वञ्छित पूरे विविध; अंतिः रिद्धि वञ्छित लहै., पे.वि. गा.१३. पे. ४. पद्मावतीदेवी छन्द, मु. हर्षसागर, मागु., पद्य, (पृ. ३अ-३आ-, पूर्ण), आदिः श्रीपार्श्व प्रतिमा; अंतिः-, पे.वि. गा.११. अंतिम पत्र नहीं है. अंतिम-कलश की गाथा अपूर्ण है. पे. ५. अनुभूतसिद्धसारस्वत स्तव, आ. बप्पभट्टसूरि, सं., पद्य, (पृ. -५अ, अपूर्ण), आदि:-; अंतिः रञ्जयति स्फुटम्., पे.वि. श्लो.१३. प्रथम पत्र नहीं है. श्लो.१० अपूर्ण से है. पे. ६. पार्श्वजिन स्तोत्र-शखेश्वर, मु. लब्धिरूचि, सं.,मागु., पद्य, वि. १७१२, (पृ. ५अ-६अ, संपूर्ण), आदिः जय जय जगनायक; अंतिः नेति मुदा प्रणम्यः., पे.वि. गा.३२. पे. ७. पार्श्वजिन चैत्यवन्दन, सं., पद्य, (पृ. ६अ, संपूर्ण), आदिः ॐ नमः पार्श्वनाथाय; अंतिः मे वाञ्छितं नाथ. पे. ८. पार्श्वजिन छन्द-शर्खेश्वर, मु. जिनहर्ष, मागु., पद्य, (पृ. ६अ, संपूर्ण), आदिः सकल सुरासुर; अंतिः जिनहर्ष अकल अविनास., पे.वि. गा.८. पे. ९. सरस्वतीदेवी छन्द, मु. सहजसुन्दर, मागु., पद्य, (पृ. ६अ-६आ, संपूर्ण), आदिः शशिकर जिनकर; अंतिः नित पूजो सरस्वती., पे.वि. गा.१४,ढाळ-३. पे. १०.जिनपूजाविधि छन्द, मु. प्रीतविमल, मागु., पद्य, (पृ. ६आ-७अ, संपूर्ण), आदिः सुविधिनाथनी पूजा; अंतिः कहे मन उल्लास., पे.वि. गा.१३. २८३. शक्रस्तव व ऋषिमण्डल स्तोत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, पे. २, जैदेना., ले.स्थल. पेथापुर, ले. जेठालाल चुनिलाल लहिया, (२७.५४१४, १२४४५). पे. १.शक्रस्तव, आ. सिद्धसेनदिवाकर, सं., प+ग, (पृ. १अ-३आ), आदिः ॐ नमोर्हते परमात्म; अंतिः लिलेखे सम्पदा पदम्. पे. २. ऋषिमण्डल स्तोत्र, आ. गौतमस्वामी गणधर, सं., पद्य, (पृ. ३आ-५आ), आदिः आद्यन्ताक्षरसंलक्ष्य; अंतिः लभ्यते पदमव्यय., पे.वि. ग्रं.१५०. २८४." चतुर्विंशतिजिन स्तुति, संपूर्ण, वि. १८४१, श्रेष्ठ, पृ. १७, जैदेना., ले.स्थल. पाली, ले. पण्डित ज्ञानचन्द (गुरु मु. अमृतकीर्ति, खरतरगच्छ), प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र.वि. श्लो.७७, ग्रं. १४८, अध्याय-२४ चैत्यवंदन. संवत्कुमदिनीपतिसारगसिद्धिभूप्रमिते., संशोधित, पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (१६.५४९, ८x१९-२३). स्तुतिचौवीसी, वाचक क्षमाकल्याण, सं., पद्य, वि. १९वी, आदिः सद्भक्त्यानतमौलि; अंतिः (१)सा जयतादजस्रम् (२)बुधात्मबुद्ध्यैः. २८५." सज्झाय, स्तवन, गीत, छन्द आदि सङ्ग्रह व दोषावली, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १५६-४९(१ से ४९)=१०७, पे. ९४, जैदेना., गुटका, ले.स्थल. लींबडी, ले. मु. धनविजय, प्र.वि. संशोधित, (२४४९, १७४३८). पे. १. स्थूलिभद्र नवरसो, वाचक उदयरत्न, मागु., पद्य, वि. १७५९, (पृ. -५०अ-५३अ, अपूर्ण), आदि:-; अंतिः मनोरथ वेगे फल्या रे., पे.वि. ढाळ-९. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. प्रथम ढाल की गा.८ अपूर्ण से है. For Private And Personal Use Only Page #95 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची पे. २. शीलनववाड सज्झाय, वाचक उदयरत्न, मागु., पद्य, वि. १७६३, (पृ. ५३अ-५५आ, संपूर्ण), आदिः श्रीगुरुने चरणे नमी; अंतिः तेहने जाउ भामणे. पे. ३. दशार्णभद्रराजा सज्झाय, मु. लालविजय, मागु., पद्य, (पृ. ५५आ-५७अ, संपूर्ण), आदिः सारद बुद्धिदाई सेवक; ___ अंतिः लालविजय निसदीश., पे.वि. गा.१८. पे. ४. झाञ्झरियामुनि सज्झाय, मु. भावरत्न, मागु., पद्य, वि. १७५६, (पृ. ५७अ-५९अ, संपूर्ण), आदिः सरसति चरणे शीस नमावी; अंतिः साम्भलतां मन मोहे के., पे.वि. ढाळ-४. पे. ५. अनाथीमुनि सज्झाय, पं. रामविजय, मागु., पद्य, (पृ. ५९अ-६०अ, संपूर्ण), आदिः मगधाधिप श्रेणिक; अंतिः इम बोले मुनि राम के., पे.वि. गा.३०. पे. ६. बलभद्रमुनि सज्झाय, मु. कवियण, मागु., पद्य, (पृ. ६०आ-६१आ, संपूर्ण), आदिः द्वारिका हुन्ती निकल; अंतिः सगो नही कोयै तोले., पे.वि. गा.३०. पे. ७. सम्यक्त्व सज्झाय, मु. चरणकुमार, मागु., पद्य, (पृ. ६१आ-६३आ, संपूर्ण), आदिः समकित सी विधि पामे; अंतिः पभणे चरणकुमार रे., पे.वि. गा.२२+३७. पे. ८. नन्दिषेणमुनि सज्झाय, मु. लब्धिविजय, मागु., पद्य, (पृ. ६३आ-६४अ, संपूर्ण), आदिः पञ्चसयां धणि; अंतिः लब्धिविजय निसदीसे रे., पे.वि. गा.१६. पे. ९. कर्मछत्रीसी, उपा. समयसुन्दर गणि, मागु., पद्य, वि. १६६८, (पृ. ६४अ-६५आ, संपूर्ण), आदिः कर्म थकी छूटे नही; अंतिः धर्म तणो परमाणजी., पे.वि. गा.३६. पे. १०. दोषावली, मागु., पद्य, (पृ. ६६अ-७०आ, संपूर्ण), आदिः ॐ नमो रक्तिया; अंतिः बान्धीये सुखं भवति. पे. ११. अवन्तिसुकुमाल सज्झाय, गणि महानन्द, मागु., पद्य, (पृ. ७०आ-७२आ, संपूर्ण), आदिः सरसति मुझ आपो ___ अविरल; अंतिः तस घर परमाणन्द., पे.वि. गा.१३.. पे. १२. पे. नाम. सर्वार्थसिद्ध स्वाध्याय, पृ. ७२-७३अ, संपूर्ण सर्वार्थसिद्धविमानवर्णन सज्झाय, मु. गुणविजय, मागु., पद्य, आदिः जगदानन्दन गुणनीलो; अंतिः पुन्य थकी फले आसो रे., पे.वि. गा.१६. पे. १३. पे. नाम. रहनेम सज्झाय, पृ. ७३अ-७३आ, संपूर्ण राजिमती सज्झाय, मु. हितविजय, मागु., पद्य, आदिः प्रणमी सद्गुरु पाय; अंतिः पद युगल लह्योजी., पे.वि. गा.११. पे. १४. रथनेमि सज्झाय, मु. तेजहर्ष, मागु., पद्य, (पृ. ७३आ-७४अ, संपूर्ण), आदिः यादव कुलना; अंतिः तुं चित्तमां आण रे., पे.वि. गा.९. पे. १५. कलियुग सज्झाय, मु. प्रीतिविमल, मागु., पद्य, (पृ. ७४अ-७४आ, संपूर्ण), आदिः सरसति सांमणि; अंतिः सुकृत एक सवायो छे., पे.वि. गा.१२. पे. १६. पे. नाम. आत्महितोपदेश सज्झाय, पृ. ७४आ-७५अ, संपूर्ण वैराग्य सज्झाय, मु. लब्धि, मागु., पद्य, आदिः जीवडां तुं जोए; अंतिः कीजीइं धरमनो ढाल., पे.वि. गा.६. पे. १७. औपदेशिक सज्झाय, मु. कुंअर, प्राहिं., पद्य, (पृ.७५अ-७५आ, संपूर्ण), आदिः पभणे प्रीतम; अंतिः भणे कुंअर सुखवासो., पे.वि. गा.१४. पे. १८. औपदेशिक सज्झाय , मु. जयसोम, मागु., पद्य, (पृ. ७५आ-७६आ, संपूर्ण), आदिः कामनी कहे निज; अंतिः कारणै करो धर्म सवाई., पे.वि. गा.११. पे. १९. शान्तिजिन गीत, पं. हितविजय, मागु., पद्य, (पृ. ७६आ-७७अ, संपूर्ण), आदिः सारद सुगुरु नमी; अंतिः हितविजय सुख भाण., पे.वि. गा.७. For Private And Personal Use Only Page #96 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य भाग १ - www.kobatirth.org: पे. २०. देवानन्दा राज्झाय उपा. सकलचन्द्रगणि, प्राहिं, पद्य, (पृ. ७७अ-७७आ, संपूर्ण) आदि जिनवर रूप देखी अंतिः पूछे उलट मनमां आणी., पे.वि. गा.११. . पे. २१. विषयपरिहार सज्झाय, मु. सिद्धविजय, मागु., पद्य, (पृ. ७७-७८अ, संपूर्ण), आदिः रे जीव विषय; अंतिः तस प्रणमुं नसदीसो रे., पे.वि. गा. १३. " Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir , पे. २२. २२ अभक्ष्य ३२ अनन्तकाय सज्झाय आ. लक्ष्मीरत्नसूरि मागु, पद्य, (पृ. ७८ अ-७८आ, संपूर्ण), आदि: जिनशासन रे सूधी; अंतिः प्राणी ते शिवसुख लहे., पे.वि. गा. ५. पे. २३. समकीतसुखडी सज्झाय मागु, पद्य, (पृ. ७८ आ-७९अ संपूर्ण) आदि चाखो नर समकित सुखडली; अंतिः दर्शनने प्यारी रे, पे.वि. गा.५. पे. २४. पे. नाम. शत्रुञ्जयतीर्थ उपरि तप अनन्तफलदायक सज्झाय, पृ. ७९-७९आ, संपूर्ण प्रत्याख्यानफल सज्झाय, मु. प्रीति, मागु., पद्य, आदिः पचखि पचक्खाण; अंतिः तीर्थ अभिध्यान धरता, पे.वि. गा. ७. पे. २५. पे. नाम. थूलभद्र सज्झाय, पृ. ७९-८०अ, संपूर्ण स्थूलिभद्र राज्झाय पण्डित नयसुन्दर, मागु, पद्य, आदि कोरया कामिनि: अंति: गुण गायें तसहीसी रे, पे.वि. गा. २२. " पे. २६. औपदेशिक सज्झाय, मु. लावण्यसमय, मागु., पद्य, (पृ. ८०आ, संपूर्ण), आदिः आदित्य जोइने; अंतिः चन्दो जिन वीर, पे.वि. गा.८. ४२ पे. २७. आध्यात्मिक सज्झाय, मु. मोहनविजय, मागु., पद्य, (पृ. ८०आ, संपूर्ण), आदिः पीउडा जिनचरणानी; अंतिः मोहन अनुभव मागे, पे.वि. गा. ५. पे. २८. औपदेशिक दूहा*, प्राहिं., पद्य, (पृ. ८०आ, संपूर्ण), आदि: #; अंतिः#., पे.वि. गा.१. पे. २९ कठीआरा दृष्टान्त सज्झाय, मु. गुणविजय, मागु, पद्य, (पृ. ८१-८२अ संपूर्ण), आदि: वीर जिनवर रे गोयम अंतिः बोले परम पदवी पामीइ., पे.वि. गा. १४. पे. ३०. मांकण सज्झाय, मु. माणिक मागु, पद्य, (पृ. ८२अ, संपूर्ण), आदि माङ्कणनो चटको; अंतिः मांहि गवायो रे. पे. ३१. औपदेशिक सज्झाय, मु. ऋद्धिविजय, मागु., पद्य, (पृ. ८२आ, संपूर्ण), आदि: चतुर तुं चाखि; अंतिः सुख सकल सीझइं. पे. ३२. स्थूलिभद्र सज्झाय, मु. रूपविजय, मागु., पद्य, (पृ. ८२-८३अ, संपूर्ण), आदि: चंपा मोर्यो हे; अंतिः लहिये सुख अपार, पे.वि. गा.६. पे. ३३. पे. नाम. शीयल सज्झाय, पृ. ८३अ - ८४अ, संपूर्ण औपदेशिक सज्झाय, मु. उदयरत्न, मागु., पद्य, आदिः एक अनोपम शिखामण; अंतिः उदयरतन इम उच्चरे. पे. ३४. विजयप्रभसूरि भास, मु. रामविजय, मागु., पद्य, (पृ. ८४अ - ८४आ, संपूर्ण), आदिः निजगुरुना प्रणमी; अंतिः रामविजय गुण गाया, पे. वि. गा. ७. पे. ३५. आत्मगर्हा सज्झाय, मागु., पद्य, (पृ. ८४-८५अ, संपूर्ण), आदि: श्रीगर्भावासे इम; अंतिः जयो मुगति मझार तो. For Private And Personal Use Only पे. ३६ . औपदेशिक सज्झाय, मु. माल, मागु., पद्य, (पृ. ८५अ-८५आ, संपूर्ण), आदिः रातदिवस काया; अंतिः मुगति वधु परणीजे., पे. वि. गा. ९. पे. ३७. पे. नाम. हीरविजय सज्झाय, पृ. ८५आ, संपूर्ण हीरविजयसूरि भास, मु. सहजविजय, मागु., पद्य, आदिः आज सकल सिद्धान्त; अंतिः सहजविजय धें आसीस., पे.वि. गा.९. पे. ३८. पे. नाम. नमिराजर्षि स्वाध्याय, पृ. ८५-८६अ, संपूर्ण Page #97 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ४३ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची नमिराजर्षि सज्झाय, उपा. समयसुन्दर गणि, मागु., पद्य, आदि: जी हो मिथीला नगरीनो; अंति: पामीजे भवपार., पे.वि. गा.७. पे. ३९. रेवतीश्राविका सज्झाय, मु. कवियण, मागु., पद्य, (पृ. ८६अ-८६आ, संपूर्ण), आदिः सोवन सिङ्घासने रेवती; ___ अंतिः दानथी जयजयकार रे., पे.वि. गा.१०. पे. ४०. चित्रसम्भूति सज्झाय, मु. कवियण, मागु., पद्य, (पृ. ८६आ-८७आ, संपूर्ण), आदिः चित्त कहे ब्रह्मराय; अंतिः भणे ते शिवपद लहिस्ये., पे.वि. गा.१८. पे. ४१. पे. नाम. अर्जुन सज्झाय, पृ. ८७आ-८८अ, संपूर्ण अर्जुनमाली सज्झाय, मु. कवियण, मागु., पद्य, वि. १७४७, आदिः श्रीगुरुचरणे नमी; अंतिः तणा फल देयो देव., पे.वि. गा.१५. पे. ४२. १३ काठिया सज्झाय, मु. हेमविमलसूरि-शिष्य, मागु., पद्य, (पृ. ८८अ-८९अ, संपूर्ण), आदिः पहिला प्रणमुं गौतम; अंतिः हेमविमलसूरि सीसे कही., पे.वि. गा.१५. पे. ४३. ललिताङ्गकुमार सज्झाय, मु. कुंवरविजय, मागु., पद्य, (पृ. ८९अ-९०आ, संपूर्ण), आदि: मानवभव पामी; अंतिः दीपे ते निसदीस., पे.वि. गा.९. पे. ४४. मुनिसुव्रतजिन स्तवन, मु. हंसरतन, मागु., पद्य, (पृ. ९०आ-९१अ, संपूर्ण), आदिः वरसे वरसे वचन सुधा; अंतिः सीञ्च्यो समकित छोडी., पे.वि. गा.९. पे.४५. अनाथीमुनि सज्झाय, उपा. समयसुन्दर गणि, मागु., पद्य, (पृ. ९१अ-९१आ, संपूर्ण), आदिः श्रेणिक रयवाडी चड्यो; अंतिः वन्दे रे बे करजोडि., पे.वि. गा.९. पे. ४६. स्थुलिभद्रनवरस सज्झाय, मु. ज्ञानसागर, मागु., पद्य, (पृ. ९१आ-९४अ, संपूर्ण), आदिः करी श्रृङ्गार कोश्या; ___ अंतिः शिवसुख शाश्वता तेह., पे.वि. गा.४९, अध्याय-६ गीत. पे. ४७. इलाचीकुमार सज्झाय, मु. लब्धिविजय, मागु., पद्य, (पृ. ९४अ-९४आ, संपूर्ण), आदिः नाम इलापुत्र जाणिये; ___ अंतिः लब्धिविजय गुण गाय., पे.वि. गा.९. पे. ४८. अणगस गीत, मु. माणिक, मागु., पद्य, (पृ. ९४आ-९५आ, संपूर्ण), आदिः अणगस करवो कालि; अंतिः करवो अणगस वारंवार., पे.वि. गा.२३. पे. ४९. पे. नाम. सीतलनाथ स्तवन, पृ. ९५आ-९६आ, संपूर्ण शीतलजिन स्तवन-अमरसरपुरमण्डन, उपा. समयसुन्दर गणि, मागु., पद्य, आदिः मोरा साहेब हो श्रीशी; अंतिः सुणता जनमन मोहए., पे.वि. गा.१५. पे. ५०. ढंढणऋषि सज्झाय, मु. जिनहर्ष, मागु., पद्य, (पृ. ९६आ-९७अ, संपूर्ण), आदिः ढंढणऋषिने वंदना हुं; अंतिः कहे जिनहर्ष सुजाण रे., पे.वि. गा.९. पे. ५१. प्रसन्नचन्द्रराजर्षि सज्झाय, मु. कुंअरविजय, मागु., पद्य, (पृ. ९७अ-९७आ, संपूर्ण), आदि: मन वसि करवू; अंतिः सीस कुंअर पभणन्त., पे.वि. गा.११. पे. ५२. मृगापुत्र सज्झाय, मु. सिंहविमल, मागु., पद्य, (पृ. ९७आ-९८आ, संपूर्ण), आदिः सुग्रीव नयर; अंतिः होजो तास प्रणाम रे., पे.वि. गा.२४. पे. ५३. वज्रस्वामी सज्झाय, मु. ऋद्धिविजय, मागु., पद्य, (पृ. ९८आ-९९आ, संपूर्ण), आदिः गणधर दश पूरवधर; अंतिः विजय प्रभु बन्दा हो., पे.वि. गा.१३. पे. ५४. पे. नाम. कर्मोपरि सज्झाय, पृ. ९९आ-१००अ, संपूर्ण कर्म सज्झाय, मु. रिद्धिहर्ष, मागु., पद्य, आदिः देवदाणव तीर्थङ्कर; अंतिः नमो कर्म महाराजा रे., पे.वि. गा.१८. पे. ५५. पे. नाम. पिण्डविशुद्धि विषये आषाढभूति चउपई, पृ. १००आ-१११आ, संपूर्ण For Private And Personal Use Only Page #98 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य भाग १ - www.kobatirth.org: आषाढाभूति चौपाई, मु. ज्ञानसागर, मागु., पद्य, वि. १७२४, आदिः सकल ऋद्धि समृद्धिकर; अंतिः होजो परम कल्याणो रे., पे.वि. ढाळ- १६ प्र. पु. ग्रं. २५१. पे. ५६. पे. नाम. भमरगीता, पृ. १११आ - ११३अ, संपूर्ण ; नेमिजिन भ्रमरगीता, उपा. विनयविजय, मागु, पद्य, आदि समुद्रविजयनृप कुल अंतिः प्रभु थुण्या सानुकूल., पे.वि. गा. २७. पे. ५७. १४ गुणठाणा राज्झाय, मु. ललितविजय, मागु पद्य (पृ. ११३अ ११४अ संपूर्ण) आदि पहिलुं गुणठाणो कयो: अंति: ललित कहे सुजगीस., पे.वि. गा. १५. पे. ५८. ११ प्रतिमा सज्झाय, मु. ललितविजय, मागु., पद्य, (पृ. ११४अ - ११५अ, संपूर्ण), आदिः गुरुजी कहै प्रतिमा; अंतः ललित वन्दे गुणठाण., पे.वि. गा.१८. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पे. ५९. पार्श्वजिन छन्द- अंतरीक्ष, वाचक भावविजय, मागु., पद्य, (पृ. ११५अ - ११८आ, संपूर्ण), आदिः सरसति मात मयाकरी: अंतिः भणे जय देव जय जयकरण., पे. वि. गा. ५१. सुहङ्कर; अंतिः नमो पास त्रेवीसमो, पे.वि. गा.१५. पे. ६१. पे नाम, वयरस्वामी रास, पृ. १२०-१२४आ, संपूर्ण पे. ६०. पार्श्वजिन स्तवन- शेरीसा, मु. लावण्यसमय, मागु पद्य वि. १५६२ (पृ. ११८आ- १२०आ, संपूर्ण) आदि स्वामि .. · " "" वज्रस्वामी रास मु. जिनहर्ष मागु पद्य वि. १७५९ आदि अरथ भरतमांहि शोभतो अंतिः हर्ष वयर गुण गाया " रे., पे.वि. ढाळ - १५. पे. ६२. ५ इन्द्रिय सज्झाय, मु. हेमविजय, मागु, पद्य, (पृ. १२४आ-१२५अ संपूर्ण), आदि श्रीजिनधर्म उदय अंतिः हेमविजय पभणन्त रे., पे.वि. गा. ९. पे. ६३. पे. नाम. नेमनाथगुणरत्नाकर छन्द, पृ. १२५अ - १३५आ, संपूर्ण नेमिजिन छन्द, मु. हेमचन्द्र, मागु., पद्य, आदिः वन्देहं विमलं; अंतिः हेमचन्द्र विस्तार, पे. वि. गा.१९१, ३ अधिकार. ४४ पे. ६४. स्तवनचौवीसी, उपा. यशोविजयजी गणि, मागु., पद्य, (पृ. १३५आ - १४०आ, संपूर्ण), आदि: जगजीवन जगवाल हो; अंतिः जीवन जीव आधारो रे, पे. वि. अध्याय- २४ स्तवन. पे. ६५. पे. नाम. शीलोपरि कलावती स्वाध्याय, पृ. १४०-१४१अ संपूर्ण कलावती राज्झाय, मु. भक्तिविजय, मागु, पद्य, आदि शीले लच्छी: अंतिः नमे नित पाय लाल रे, पे.वि. गा.२३. पे. ६६. सीतासती सज्झाय, मु. भोजसागर, मागु, पद्य, (पृ. १४१३-१४२अ संपूर्ण), आदि दशरथ नरवर अंति सिलवन्त तणो हुं दास., पे.वि. गा.२१. पे. ६७. पे नाम. धवलधिग गोडिपार्श्वजिन स्तवन, पृ. १४२अ १४३अ, संपूर्ण 1 पार्श्वजिन स्तवन-धवलधिङ्गगोडीजी, मु. भाण, मागु., पद्य, आदिः सकल मङ्गलनो; अंतिः नामथी भाण प्रसिद्ध., पे.वि. गा.२५. पे. ६८. दमदन्तमुनि सज्झाय, आ. ज्ञानविमलसूरि, मागु., पद्य, (पृ. १४३ - १४३आ, संपूर्ण ), आदि: विहार करता; अंतिः तणे ध्याने परमानन्द, पे.वि. गा. १८. पे. ६९. कर्मयुद्ध सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, प्राहिं., पद्य, (पृ. १४३ - १४४अ, संपूर्ण), आदि: धर्म के विलासवास; अंतिः पाउ हयमपिलं गेहि, पे.वि. गा. ५. For Private And Personal Use Only पे. ७०. शान्तिजिन स्तवन, मु. कवियण, मागु., पद्य, (पृ. १४४अ, संपूर्ण), आदि: भवभञ्जण भगवन्त; अंतिः आणी वार सेवकनी उलमां, पे. वि. गा.६. पे. ७१. औपदेशिक सज्झाय, कवि धर्मसिंह, मागु., पद्य, (पृ. १४४अ - १४४आ, संपूर्ण ), आदिः करयो मती अहंकार; अंतिः कहे एह धरम मनमें धरो., पे.वि. गा.११. Page #99 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ४५ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची पे. ७२. गजसुकुमाल सज्झाय, मु. दानविजय, मागु., पद्य, (पृ. १४४आ-१४५आ, संपूर्ण), आदिः श्रीनेमिसर जिनवर; अंतिः दाननें एहवा मुनिवरू., पे.वि. गा.१७. पे.७३. पे. नाम. पञ्चमीतप स्तवन, पृ. १४५आ-१४६आ, संपूर्ण ज्ञानपंचमीपर्व वृद्धस्तवन, उपा. समयसुन्दर गणि, मागु., पद्य, आदिः प्रणमुं श्रीगुरुपाय; अंति: भगति भाव प्रशंसीयो., पे.वि. गा.२२. पे. ७४. पंचमहाव्रतभावना सज्झाय, मु. जस, मागु., पद्य, (पृ. १४६आ-१४८अ, संपूर्ण), आदिः महाव्रत पहिलु रे; अंति: सेवतां पाया हो., पे.वि. ५ सज्झाय. पे. ७५. रुक्मिणी सज्झाय, मु. राजविजय, मागु., पद्य, (पृ. १४८अ, संपूर्ण), आदिः विचरता गामो गाम; अंतिः राजविजे रङ्गे भणे., पे.वि. गा.१४. पे. ७६. चन्द्रबाहुजिन स्तवन, मु. न्यायसागर, राज., पद्य, (पृ. १४८अ-१४८आ, संपूर्ण), आदिः चन्द्रबाहु जिनराज; अंतिः न्यायसागर सुखकारि बो., पे.वि. गा.८. पे. ७७. पे. नाम. सेतुञ्जय स्तवन, पृ. १४८आ, संपूर्ण शत्रुजयतीर्थ स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मागु., पद्य, आदि: माहरू मन मोह्यु रे; अंतिः कहता नावे पार., पे.वि. गा.५. पे. ७८. उत्तराध्ययनसूत्र-सज्झाय, वाचक उदयविजय, संबद्ध, मागु., पद्य, (पृ. १४८आ, संपूर्ण), आदिः केवलनाण गुण पुरीओ; अंतिः उदयविजय सुखकन्द रे., पे.वि. गा.७. पे. ७९. नेमराजिमती गीत, मु. रूपचन्द, प्राहिं., पद्य, (पृ. १४८आ-१४९अ, संपूर्ण), आदिः आजू मे वारि नेमजी; अंतिः अनहद खेल न हारवो., पे.वि. गा.६. पे. ८०. पार्श्वजिन गीत, मु. मोहनविजय, प्राहिं., पद्य, (पृ. १४९अ, संपूर्ण), आदि: बे दरवाजे तेडे खोल; अंतिः रङ्ग लागो चित वोल., पे.वि. गा.५. पे. ८१. उत्तराध्ययनसूत्र-सज्झाय, वाचक उदयविजय, संबद्ध, मागु., पद्य, (पृ. १४९अ, संपूर्ण), आदिः पवयण देवी चित्त धरी; अंतिः विनय सयल सुखकन्द., पे.वि. गा.८. पे. ८२. उत्तराध्ययनसूत्र-सज्झाय, वाचक उदयविजय, संबद्ध, मागु., पद्य, (पृ. १४९अ-१४९आ, संपूर्ण), आदि: नमोनमो मनक महामुनि; अंतिः हुइ परमाणन्दो रे., पे.वि. गा.७. पे. ८३. उत्तराध्ययनसूत्र-सज्झाय, वाचक उदयविजय, संबद्ध, मागु., पद्य, (पृ. १४९आ, संपूर्ण), आदिः पञ्चम अध्ययनै कहै; अंतिः विजयसिंहगुरु सीसनी ए., पे.वि. गा.७. पे. ८४. पार्श्वजिन गीत, मु. आनन्दघन, प्राहिं., पद्य, (पृ. १४९आ, संपूर्ण), आदिः मेरे एही ज; अंतिः करो कुछु ओर न चाहु., पे.वि. गा.३. पे. ८५. नेमिजिन बलगीत, मु. रूपचन्द, मागु., पद्य, (पृ. १४९आ-१५०अ, संपूर्ण), आदिः समुद्रविजय सुत; अंतिः बल ___जोवानी पान्ति., पे.वि. गा.९. पे. ८६.पे. नाम. साधारणजिन स्तव, पृ. १५०अ, संपूर्ण २४ जिन स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मागु., पद्य, आदिः प्रह समे भाव धरी; अंतिः नित रहो जो जगीस., पे.वि. गा.५. पे. ८७. पे. नाम. साधारणजिन स्तव, पृ. १५०अ, संपूर्ण साधारणजिन गीत, प्राहिं., पद्य, आदिः जब जिनराज कृपा होवे; अंतिः अवराकुं ध्यावइ., पे.वि. गा.४. पे. ८८. औपदेशिक सज्झाय, मु. लावण्यकीर्ति, मागु., पद्य, (पृ. १५०अ-१५१अ, संपूर्ण), आदि: भजि भजि भगवन्त; अंतिः तो पामो भवपार., पे.वि. गा.२७. पे. ८९. पे. नाम. पञ्चमीउपरि स्तवन, पृ. १५१अ-१५३आ, संपूर्ण For Private And Personal Use Only Page #100 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य भाग - १ ४६ पंचमीतिथि स्तवन-वरदत्तगुणमञ्जरी कथा गर्भित, आ. ज्ञानविमलसूरि, मागु., पद्य, आदिः प्रणमी प्रेमई पास; अंतिः ज्ञाने सुजस सवाय., पे.वि. गा.५५. पे. ९०. शान्तिजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, राज., पद्य, (पृ. १५३आ, संपूर्ण), आदिः साहिब शान्तिजिणन्द; अंतिः युं ही ज भणैजी., पे.वि. गा.९. पे. ९१.पे. नाम. नेम गीत, पृ. १५४अ-१५४आ, संपूर्ण नेमिजिन गीत, मागु., पद्य, आदिः नेमजी स्युं बोलवानो; अंतिः तेहने मुगतिनो वास., पे.वि. गा.१९ प्रतिलेखक-पं धनसिंघ लींबडी मध्ये. पे. ९२. आदिजिन स्तवन, मु. भीमचन्द, मागु., पद्य, (पृ. १५४आ-१५५अ, संपूर्ण), आदिः सकल कला; अंतिः भीमचन्दे ___गुण गाया हो., पे.वि. गा.११.. पे. ९३. छेलामारु गीत, मागु., पद्य, (पृ. १५५अ-१५६अ, संपूर्ण), आदिः झरमर हो छेलामारु; अंतिः साचा कर लीयाजी. पे. ९४. योगी गीत, मागु., पद्य, (पृ. १५६अ-१५६आ, संपूर्ण), आदिः आव्यो आव्यो रे नणदल; अंतिः मसरु घाघरो हो जी., पे.वि. गा.१८. २८६. वीरजिन स्तवन सह बालावबोध, पूर्ण, वि. १८९०, जीर्ण, पृ. ९६-१(३)=९५, जैदेना., ले.स्थल. लिंबडी, ले. मु. तत्वसार(अञ्चलगच्छ), पठ. मु. उद्योतविजय, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. मूल-ग्रं. २२८; बालावबोध-ग्रं. ३११७., संशोधित, द्विपाठ, (२५४११, १४४४२). महावीरजिन स्तवन-स्थापनानिक्षेपप्रमाण पञ्चाङ्गीगर्भित, उपा. यशोविजयजी गणि, मागु., पद्य, वि. १७३३, आदिः प्रणमी श्रीगुरुना; अंतिः आणा सिर वहेस्येजी. महावीरजिन स्तवन-बालावबोध, पं. पद्मविजय, मागु., गद्य, वि. १८४९, आदिः प्रणम्य श्रीमहावीरं; अंतिः तिष्ठताच्छुद्धवासनः. २८७." प्रवचनपरीक्षा सह स्वोपज्ञ सहस्रकिरणा वृत्ति, संपूर्ण, वि. १९१६, श्रेष्ठ, पृ. ४२४, जैदेना., ले.स्थल. बम्बई, ले. चतुर्भुज ओझा(औदिच्य ब्राह्मण.), लिखवा. मु. वृद्धिविजय,प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. मूल-ग्रं. १२०५,११विश्राम; टीका-ग्रं. १३३८७; प्र.पु. सर्वग्रं. १४५९१., संशोधित, त्रिपाठ-कुछ पत्र, द्विपाठ-कुछ पत्र, (२६४१२.५, १३४४८). प्रवचनपरीक्षा, उपा. धर्मसागरगणि, प्रा., पद्य, वि. १६२९, आदिः पणमिअ णाणनिहाणं वीर; अंतिः सहस्सकिरणो जयउ एसो. प्रवचनपरीक्षा-स्वोपज्ञ सहस्रकिरणा वृत्ति, उपा. धर्मसागरगणि, सं., गद्य, वि. १६२९, आदिः (१) प्रणम्य श्रीमहावीरं (२) वीरजिणं इति विशेषेण; अंतिः विजयतां सपुत्रपौत्रा. २८८." सिद्धान्तसार चर्चा सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९११, श्रेष्ठ, पृ. १८७, जैदेना., प्र.वि. टबार्थ रचना के समीवर्ती काल में लिखित प्रत., ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित-टबार्थादि, संशोधित, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, प्र.ले.श्लो. (५०६) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा , (२५.५४१३.५, ७-२७४२७-३९). सिद्धान्तसार चर्चा, प्रा., गद्य, आदिः अणाणाए एगे सोवट्ठाणे; अंतिः तहेव भाणियव्वो. सिद्धान्तसार चर्चा-टबार्थ, मु. दुलीचन्द रतनेश, मागु., गद्य, वि. १९०६, आदिः (१) तेरापन्थिया साथे (२) हिवे छट्ठो उद्देशो; अंति: जां लग जिनवर आण. २८९." पाण्डव चरित्र, अपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १३६-३(१५,८१ से ८२)=१३३, जैदेना.,प्र.वि. संशोधित, पू.वि. बीच-बीच व ___ अंत के पत्र नहीं हैं. सर्ग-१८ अपूर्ण तक हैं., (२५.५४११, १७४५१). पाण्डव चरित्र, गणि देवविजय, सं., गद्य, वि. १६६०, आदिः (१) अस्मिन् जम्बूद्वीपे (२) ॐ नमो वृषभस्वामिने; अंतिः२९०." वीर चरित्र, संपूर्ण, वि. १९३१, श्रेष्ठ, पृ. ९७-१(४८+४९)=९६, जैदेना., प्र.वि. खण्ड-४, ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित, (२६४११.५, ७४२८-३५). महावीरजिन चरित्र, मु. लेखराज, मागु., पद्य, वि. १९३०, आदिः प्रथम नमूं अरिहन्त; अंतिः महावीर नामसु जै मिलै. For Private And Personal Use Only Page #101 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ४७ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २९१." प्रद्युम्न चरित्र, संपूर्ण, वि. १६९६, श्रेष्ठ, पृ. ९०, जैदेना., प्र.वि. ग्रं. ३५६९,सर्ग-१७, ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित, संशोधित, पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न-प्रारंभिक पत्र, (२५४११, १५४४७). प्रद्युम्न चरित्र, उपा. रत्नचन्द्र, सं., पद्य, वि. १६७४, आदिः राज्यलक्ष्मीायल; अंतिः वर्णाः षोडशचाधिकाः. २९२.” रामजसोरसायण रास, संपूर्ण, वि. १८६८, श्रेष्ठ, पृ. १४८, जैदेना., प्र.वि. अध्याय-४ अधिकार, संशोधित, (२७४१३, १३४३०). रामयशोरसायन रास, मु. केशराज, मागु., पद्य, वि. १६८३, आदिः श्रीमुनिसुव्रतस्वामी; अंतिः सदा हरख वधामणी. २९३." चन्दनृपति चरित्र रास, पूर्ण, वि. १८२३, श्रेष्ठ, पृ. १२२-१(८)=१२१, जैदेना., ले.स्थल. लवणपुर, ले. मु. कल्याणविमल (गुरु पं. नित्यविमल),प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र.वि. अध्याय-४ उल्लास; प्र.पु.सर्वगा.२६७१,श्लोकसंख्या-४७५०, संशोधित, प्र.ले.श्लो. (४६९) भग्न पृष्टि कटी ग्रीवा; (१७) जलाद्रक्षे तैलाद्रक्षे, (२६४१३.५, १४४४०). चन्द्रराजा रास, मु. मोहनविजय, मागु., पद्य, वि. १७८३, आदिः प्रथम धराधव तीम; अंतिः वर्णव्या गुण चन्दना. २९४." उत्तम चरित्र, संपूर्ण, वि. १६७६, श्रेष्ठ, पृ. २०, जैदेना., ले. ऋ. सिङ्घजी (गुरु ऋ. कुंअरपाल), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. गा.६३८, संशोधित, अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-कुछ पत्र, (२७४१३, १५४४५). उत्तमकुमार चरित्र, मु. विजयशील, मागु., पद्य, वि. १६४१, आदिः सकल सुख सन्ततिकरण; अंतिः ऋद्धि वृद्धि सुविसाल. २९५. ऋषभनाथ चरित्र, संपूर्ण, वि. १८००, श्रेष्ठ, पृ. १९७, जैदेना., ले. मु. पाण्डे (गुरु पण्डित अखैराम), प्र.वि. सर्ग-२० प्रत में प्रतिलेखन वर्ष १८० लिखा है., संशोधित, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२६.५४११.५, ११४३४). ऋषभजिन चरित्र, मु. सकलकीर्ति भट्टारक, सं., पद्य, आदिः श्रीमन्तं त्रिजगन्; अंतिः लोकपण्डिताबुधैः. २९६. भुवनभानुकेवली चरित्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८४१, श्रेष्ठ, पृ. १२९, जैदेना., ले. उपा. रत्नविजय (गुरु उपा. लावण्यविजय),प्र.वि. टबार्थ-ग्रं. ५०००. प्र.लेखनसंवत्-चंद्रअष्टयुग्मअग्नि. वर्षसूचक शब्द व अंक में अन्तर है., (२८x१३, ६x४४). भुवनभानुकेवली चरित्र, सं., गद्य, आदिः अस्तीह जम्बूद्वीपे; अंति: नरेन्द्रर्षिः केवली. भुवनभानुकेवली चरित्र-टबार्थ, मु. तत्त्वहंस, मागु., गद्य, वि. १८०१, आदि: श्रीमद्देवगुरुं; अंतिः तत्वहंसेन धीमता. २९७." ऋषभजिन विवाहलो, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, जैदेना.,प्र.वि. संशोधित, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. ढाल-३८वीं अधूरी तक है., (२७४१४, १५४४१). आदिजिन विवाहलो, मागु., पद्य, आदिः सासनदेवीय पाय; अंति:२९८. जम्बू अध्ययन का बालावबोध, अपूर्ण, वि. १८६८, श्रेष्ठ, पृ. ४७-३०(१ से ३०)=१७, जैदेना., ले.स्थल. थादला, ले. पं. विजयचन्द, प्र.वि. प्र.पु. उद्देशक-२१., पू.वि. उद्देशक ९ से २१ तक है., (२५४१३, १०x२४). जम्बूअध्ययन प्रकीर्णक-बालावबोध, मागु., गद्य, आदि:-; अंतिः भव भवने विशे पामशे. २९९. विक्रमसेन चौपाई, संपूर्ण, वि. १७८६, श्रेष्ठ, पृ. ५०, जैदेना., ले.स्थल. पत्तननगर, ले. पं. दोलतचन्द्र, प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र.वि. ढाळ-६४, संशोधित, (२५.५४११.५, १४४३९). विक्रमसेनराजा चौपाई, मु. परमसागर, मागु., पद्य, वि. १७२४, आदिः परम ज्योति प्रकास; अंतिः परमसागर आणन्दा ३००." सुकुमालस्वामि चरित्र, पूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५३-३(१,२०,२९)=५०, जैदेना., प्र.वि. सर्ग-९, श्लो.११००; प्र.पु. मूल-ग्रं. १०२००, संशोधित, पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न, (२८x१३, १०४३३). सुकुमालस्वामी चरित्र, मु. सकलकीर्ति भट्टारक, सं., पद्य, आदि:-; अंतिः ह्येकादशशतप्रमाः. ३०१. मरुदेवीमाता चौढालीयो व कलावती सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ.६, पे. २, जैदेना., ले.स्थल. पालीताणा, ले. करमचन्द रामजी लहिया, (२४.५४१२, ९४२९). For Private And Personal Use Only Page #102 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य भाग - १ ४८ पे. १. मरुदेवीमाता चौढालिया, ऋ. रायचन्द, मागु., पद्य, वि. १८५५, (पृ. १अ-५आ), आदिः माताजी मरुदेवा; अंतिः नितनित ज्ञान अभ्यास., पे.वि. ढाळ-४. पे. २. कलावती सज्झाय, मु. हीरविजय, मागु., पद्य, (पृ. ५आ-६आ), आदि: नयरी कोसम्बीनो; अंति: बोले आवागमण निवार रे., पे.वि. गा.१३. ३०२. रोहिणेयचोर कथा सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदेना., प्र.वि. संबद्ध-श्लो.७६., (३१.५४१६.५, ८४३५). कर्पूरप्रकर-रोहिणेयचोर कथा, संबद्ध, सं., पद्य, आदिः धेषपिबोधकवच; अंतिः निवहा अजरामरा स्युः. कर्पूरप्रकर-रोहिणेयचोर कथा का टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः हिवई पजूसणपर्व; अंतिः अमर इति सिध हास्यु. ३०३. श्रीपाल रास, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५४-२(१ से २)=५२, जैदेना.,प्र.वि. संशोधित, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, पू.वि. बीच के पत्र हैं. खंड-१ ढाल-२ से खंड-४ ढाल-१३ गा.१० अपूर्ण तक है., (२८.५४१३.५, १३४४७). श्रीपाल रास, उपा. विनयविजय , उपा. यशोविजयजी गणि, मागु., पद्य, वि. १७३८, आदि:-; अंति:३०४.” राजहंस चौपाई, पूर्ण, वि. १७४८, श्रेष्ठ, पृ. ११-१(१)=१०, जैदेना., ले.स्थल. कसूंबिआपाटक, ले. मु. हेमराज(पूर्णचन्द्रगच्छ), पठ. श्रा. प्रेमजी ठाकरसी, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. ढाळ-२३, ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित, (२४.५४१२.५, १५४४२). राजहंस चौपाई, मु. हेम , मागु., पद्य, वि. १७४८, आदिः-; अंतिः दुक्कडं दीधउ छे. ३०५. पद्मिनी चरित्र, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ३४, जैदेना., प्र.वि. गा.८१६, ग्रं. ११५७, खण्ड-३/ ढाल ३९, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२४.५४१२, १३४४८). गोराबादल रास, गणि लब्धिउदय, मागु., पद्य, वि. १७०७, आदिः श्रीआदिसर प्रथम; अंतिः सील सफल सुरकन्द. ३०६. हंसराजवच्छराज चोपि, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४९, जैदेना., ले. ऋ. नरसीङ्घ, प्र.वि. खण्ड-४, (२५४११.५, १२४३२). हंसराजवत्सराज चौपाई, आ. जिनोदयसूरि, मागु., पद्य, वि. १६८०, आदिः आदिसर आदे; अंतिः दिनदिन हुयै जयजयकार. ३०७. महाबलमलयसुन्दरी चरित्र, संपूर्ण, वि. १८६४, श्रेष्ठ, पृ. १५२, जैदेना., ले.स्थल. दशरथपुर, ले. मु. वल्लभविजय (गुरु गणि निधानविजय), प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र.वि. खण्ड-४/ ढाल-९१; प्र.पु. मूल-गा.१०५२, ग्रं. २४८८, प्र.ले.श्लो. (५०६) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा , (२७.५४१२.५, ११४३३). महाबलमलयासुन्दरी रास, मु. कान्तिविजय, मागु., पद्य, वि. १७७५, आदिः स्वस्ति श्रीसुख; अंतिः चोथा खण्डनी ढाल ३०८. मुनिपति राजऋषि कथानक चरित्र, संपूर्ण, वि. १८९३, श्रेष्ठ, पृ. ४४, जैदेना., (२६.५४१२.५, १३४३३). मुनिपति चरित्र, मागु., गद्य, आदिः प्रणिपत्य पार्श्वनाथ; अंतिः सिद्ध पामस्ये. ३०९. विजयप्रशस्ति महाकाव्य सह विजयदीपिका वृत्ति, संपूर्ण, वि. १९५१, श्रेष्ठ, पृ. २९६, जैदेना., ले.स्थल. नागौर, ले. नरोत्तम, प्र.वि. मूल-सर्ग-२१; टीका-ग्रं. १००००. लहिया की भूल से पत्रांक २९२ की जगह २९३ अंकित है परंतु पाठ संपूर्ण है. अवास्तविक घटते पत्र., त्रिपाठ, (२८x१२, १२४४१). विजयप्रशस्ति महाकाव्य, गणि हेमविजय, सं., पद्य, आदिः श्रेयांसि वः सृजतु; अंतिः कुर्वन् सतां मङ्गलम्. विजयप्रशस्ति महाकाव्य-विजप्रदीपिका वृत्ति, मु. गुणविजय, सं., गद्य, वि. १६८८, आदिः स्वस्ति श्रीनाभि; अंतिः (१)नाथः प्रसिद्ध्यै (२)साधिकाः सर्वसङ्ख्यया. ३१०. सम्यक्त्वकौमुदी, संपूर्ण, वि. १६५१, श्रेष्ठ, पृ. ४२, जैदेना., ले.स्थल. नागपुर, ले. मु. रयणचन्द्र, प्र.वि. संशोधित, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न-वचन विभक्ति संकेत-क्रियापद संकेत, (२५.५४११.५, १५४४३). For Private And Personal Use Only Page #103 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ४९ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची सम्यक्त्वकौमुदी, आ. जयशेखरसूरि, सं., गद्य, वि. १४५७, आदिः श्रीवर्द्धमानमानम्य; अंतिः कथां सम्यक्त्वकौमुदी. ३११. पार्श्वजिन चरित्र, संपूर्ण, वि. १६वी, मध्यम, पृ. ३७, जैदेना., प्र.वि. अशुद्ध पाठ, पदच्छेद सूचक लकीरें, (२६४११, १५४५२). पार्श्वजिन चरित्र, आ. देवभद्राचार्य, प्रा., गद्य, वि. ११६८, आदिः रसरुहिरमंसमेज्जट्ठि; अंतिः सुरलोय सिरिंसिवन्द. ३१२. रूपसेन कनकावती चरित्र, अपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ४०-१(१)=३९, जैदेना., पू.वि. प्रथम एक व अंत के पत्र नहीं हैं. श्लो.४ से २६७ तक है., (२५.५४१०.५, ११४३६). रूपसेनकनकावती चरित्र, आ. जिनसूरि, सं., पद्य, आदि:-; अंति:३१३. श्रीपाल रास, संपूर्ण, वि. १८३४, श्रेष्ठ, पृ. ५७, जैदेना., ले. मु. कल्याणविजय यति, पठ. श्राविका मैनाजी, प्र.वि. ढाळ ४०, (२५.५४१२.५, १०४३२). श्रीपाल रास, मु. ज्ञानसागर, आधारित, मागु., पद्य, वि. १७२६, आदिः सकल सुरासुर; अंतिः सहुं चित चङ्गे रे. ३१४. महाबलमलयसुन्दरी चरित्र, संपूर्ण, वि. १९६०, श्रेष्ठ, पृ. ६२, जैदेना., ले.स्थल. जलेसर, ले. साध्वीजी बालवुधी (गुरु साध्वीजी जीयोजी), प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र.वि. खण्ड-४/ ढाल-१४८, (२६४१२, १६४६२). महाबलमलयासुन्दरी रास, मु. जिनहर्ष, मागु., पद्य, वि. १७५१, आदिः श्रीशान्तिसर सोलमो; अंतिः विचार मनोरथ पूरवेजी. ३१५. ढालसागर, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ९६, जैदेना., प्र.वि. खण्ड-९/ ढाल १५१, संशोधित, टिप्पण युक्त विशेष पाठ कुछ पत्र, (२५.५४११, २४४५०). पाण्डव रास, आ. गुणसागरसूरि, मागु., पद्य, वि. १६७६, आदिः श्रीजिन आदिजिनेश्वरू; अंतिः जंपे संघ रंग वधामणो. ३१६. सीताराम चौपाई, संपूर्ण, वि. १९२४, श्रेष्ठ, पृ. ९२+१(८८)=९३, जैदेना., ले.स्थल. रामनगर, ले. ऋ. मनसा (गुरु ऋ. मङ्गल), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. खण्ड-९, गा.२४१४, ग्रं. ३७०४. प्रति.संवत्-युगभुजनिधिभू., (२८x१२.५, १५ १६x४३). सीताराम चौपाई, उपा. समयसुन्दर गणि, मागु., पद्य, वि. १७उ., आदिः स्वस्ति श्रीसुखसंपदा; अंतिः कोडी कल्याणो ३१७. वीसस्थानक विचारसार पुण्यविलास रास, संपूर्ण, वि. १८६७, श्रेष्ठ, पृ. ८२, जैदेना., ले.स्थल. आनंदपुर, ले. पं. भाग्यविजय गणि (गुरु पं. जयविजय), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.ले.श्लो. (५२६) भग्नि मुष्टि कटी ग्रीवा; (१९) यावत् लवणसमुद्रो, (२७x१४, १९x४६). २० स्थानकविचारसार रास, मु. जिनहर्ष, मागु., पद्य, वि. १७४८, आदिः सकलसिद्धि; अंतिः कहे जिनहर्ष मलावो रे. ३१८. भोजराजा चौपाई, अपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. २१, जैदेना., पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्रस्ताव-४ गाथा ९४ तक है., (२४.५४११, १५४४४). भोजराजा चरित्र, मागु., पद्य, आदिः समरिय सरसति सुगुरु; अंति:३१९. अष्टप्रकारीपूजा रास, संपूर्ण, वि. १७९३, श्रेष्ठ, पृ. ५९, जैदेना., ले.स्थल. थीरा, ले. पण्डित डुङ्गरजी (गुरु पं. मेघविजय गणि), पठ. पण्डित आस्याराम (गुरु पण्डित डुङ्गरजी); मु. भाणजी (गुरु पं. मेघविजय गणि), प्र.ले.पु. विस्तृत,प्र.वि. ढाळ-७८; प्र.पु. मूल-गा.२०९४, (२५.५४१२.५, १७४५१). ८ प्रकारी पूजा रास, वाचक उदयरत्न, मागु., पद्य, वि. १७५५, आदिः अजर अमर अविनाश; अंतिः सम्पति बहु पाया ३२०." अष्टप्रकारीपूजा रास, पूर्ण, वि. १८६१, श्रेष्ठ, पृ. ७३-१(१)=७२, जैदेना., ले.स्थल. उत्तेलिया, ले. मु. रङ्गरत्न (गुरु पं. कुशलरत्न), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. ढाळ-७८, पदच्छेद सूचक लकीरें-प्रारंभिक पत्र, पू.वि. ढाल-१ गा.३ तक नहीं है., प्र.ले.श्लो. (५०६) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा , (२७.५४१३, १६-१७४३६). For Private And Personal Use Only Page #104 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य भाग - १ ८ प्रकारी पूजा रास, वाचक उदयरत्न, मागु., पद्य, वि. १७५५, आदि:-; अंतिः सम्पति बहु पाया रे. ३२१." शान्तिनाथ चरित्र, संपूर्ण, वि. १७०३, श्रेष्ठ, पृ. १४२, जैदेना., ले.स्थल. स्तंभनतीर्थ, ले. गणि वैराग्यसागर, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. ६ प्रस्ताव, संशोधित, पदच्छेद सूचक लकीरें, प्र.ले.श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्टं, (२५.५४११, १७X४६). शान्तिजिन चरित्र, आ. भावचन्द्रसूरि, सं., गद्य, वि. १५३५, आदिः प्रणिपत्यार्हतः; अंतिः स करोतु शान्तिः. ३२३. अञ्जनासुन्दरी चौपाई, संपूर्ण, वि. १७९२, श्रेष्ठ, पृ. ४०, जैदेना., प्र.वि. खण्ड-३, (२४.५४१२.५, १३४२६). अंजनासुन्दरी रास, मु. पुण्यसागर, मागु., पद्य, वि. १६८९, आदिः श्रीगणधर गौतम प्रमुख; अंतिः वृद्धि मङ्गलमाल. ३२४." रायसिंहरत्नवती कथा, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २५, जैदेना., ले. मु. हर्षविजय (गुरु मु. दानविजय), प्र.वि. ढाल २४, गा.६०५, ग्रं.७८५, संशोधित, (२५४१३, १५४३१). राजसिंहरत्नवती कथा, मु. गौडीदास, मागु., पद्य, वि. १७५५, आदिः सारद शुभमतिदायिनी; अंतिः सकल सङ्घ मङ्गल करु. ३२५. कुमारपाल चरित्र, संपूर्ण, वि. १९५३, श्रेष्ठ, पृ. १२१+१(४३)=१२२, जैदेना., ले.स्थल. पालीताणा, (२९.५४१४, १३४४२). कुमारपाल प्रबन्ध, उपा. जिनमण्डन, सं., प+ग, वि. १४९२, आदिः ॐ नमः श्रीमहावीर; अंतिः प्रमित वत्सरे रुचिरः. ३२६.” महीपाल कथा सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १७८९, मध्यम, पृ. १२४-७(१ से ७)=११७, जैदेना., ले.स्थल. एमनावादनगर, ले. मु. देवमुनि (गुरु मु. सिवाजी), प्र.वि. मूल-गा.१८३६., संशोधित, पदच्छेद सूचक लकीरें, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, पू.वि. गा.९० तक नहीं हैं., (२५.५४१०.५, ७X४१). महिपालराजा कथा, गणि वीरदेव, प्रा., पद्य, आदि:-; अंतिः निययगुरूणं पसाएण. महिपालराजा चरित्र-टबार्थ, मागु., गद्य, आदि:-; अंतिः प्रसाद करि सही. ३२७." दानप्रकाश सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८३२, श्रेष्ठ, पृ. ९१, जैदेना., ले.स्थल. सलेमाबाद, ले. मु. नवनिधविजय, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. मूल-ग्रं. ८३४, अध्याय-८प्रकाश., पदच्छेद सूचक लकीरें, (२६४१२.५, ५४३०). दानप्रकाश, गणि कनककुशल, सं., पद्य, वि. १६५६, आदिः श्रीपार्श्वः पार्श्व; अंतिः यत्नमिहैव महोद्यताः. दानप्रकाश-टबार्थ, गणि ऋद्धिविजय, मागु., गद्य, आदिः श्रीपार्श्वनाथस्वामि; अंतिः हो घणा काल ताई. ३२८." त्रिषष्टिशलाकापुरुष चरित्र- पर्व-१, प्रतिपूर्ण, वि. १५५४, श्रेष्ठ, पृ. १६०, जैदेना., ले.स्थल. अमदावाद, गच्छा. आ. देवगुप्तसूरि, ले. मु. उदयमेरु (गुरु मु. कीर्तिकल्लोल, उपकेशगच्छ),प्र.ले.पु. मध्यम,प्र.वि. प्र.पु. मूल अंश-सर्ग-६, ग्रं. ५०००., संशोधित, प्र.ले.श्लो. (५०९) यादृशं पुस्तके दृष्टं; (५६२) भग्नि पृष्टि कटि ग्रीवा, (२७.५४११, १३४४१). त्रिषष्टिशलाकापुरुष चरित्र, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १२२०, आदिः सकलार्हत्प्रतिष्ठान; अंति:३२९. महाबलमलयसुन्दरी रास, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १०६, जैदेना., प्र.वि. खण्ड-४/ ढाल-९१, (२४४११.५, १५४३७). महाबलमलयासुन्दरी रास, मु. कान्तिविजय, मागु., पद्य, वि. १७७५, आदिः स्वस्ति श्रीसुख; अंति: चोथा खण्डनी ढाल ३३०. चारप्रत्येकबुद्ध चरित्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४४, जैदेना., प्र.वि. मूल-अध्याय-९., (२५.५४१२, ८४४०). ४ प्रत्येकबुद्ध चरित्र, सं., पद्य, आदिः करकण्डू कलिगेषु; अंतिः चत्वारोपि मोक्षगता. ४ प्रत्येकबुद्ध चरित्र-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः करकण्डू प्रत्येक; अंतिः करो सकलने उपगार. ३३१.” हरिबल चरित्र, संपूर्ण, वि. १८५३, श्रेष्ठ, पृ. ७३, जैदेना., ले.स्थल. समी, ले. गणि धर्मविजय (गुरु गणि पुण्यविजय), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. ग्रं. ३७५१,खण्ड-४उल्लास, संशोधित, प्र.ले.श्लो. (१४१) यादशं पुस्तकं कृत्वा; (५०१) भग्न दृष्टि कटि ग्रीवा; (१७३) जलात् रक्षै तैलात् रक्ष, (२६४१२, १६x४६). हरिबल चौपाई, मु. लब्धिविजय, मागु., पद्य, वि. १८१०, आदिः प्रथम धराधर जगधणी; अंतिः लब्धीनी वाचा फलयो रे. ३३२. सम्यक्त्वकौमुदी कथा, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ४३, जैदेना., (३१x१०.५, ११४५१). For Private And Personal Use Only Page #105 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ५१ (+) www.kobatirth.org: सम्यक्त्वकौमुदी कथानक, सं., गद्य, आदिः श्रीवर्द्धमानमानम्य: अंतिः विपर्ययादिष्यते बन्ध. ३३३." रङ्गरत्नागर, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १५-१ (४) - १४, जैदेना, प्र. वि. संशोधित, पू. वि. बीच के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण गाथा १ से ९९ तक है., (२७.५४११, १०X३०). नेमिजिन रास, मु. लावण्यसमय, मागु., पद्य, वि. १५४६, आदिः सारद सार दया कर देवी; अंति: ३३४.” मलयसुन्दरी चरित्र, संपूर्ण, वि. १८२१, श्रेष्ठ, पृ. ९४, जैदेना., ले. स्थल. वेडग्राम, ले. पं. धनविजय (गुरु पं.. माणिक्यविजय) पठ. पं. गौतमविजय (गुरु पं. धनविजय) प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र. वि. खण्ड-४ / ढाल ९१ प्र. पु. मूलगा. १०२२, ग्रं. ३४८८, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, प्र.ले. श्लो. (४७५) यादशं पुस्तकं दृष्ट्वा (१७) जलाद्रक्षे तैलाद्रक्षे; (४५४) मङ्गलं लेखकानां च (२१) जिहां ध्रु सायर चंद रवि, ( २६.५x१२, १५X३९). महाबलमलयासुन्दरी रास मु. कान्तिविजय, मागु, पद्य वि. १७७५ आदिः स्वस्ति श्रीसुख अंतिः चोथा खण्डनी ढाल रे. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३३५. श्रीपाल चरित्र, संपूर्ण, वि. १८५४, श्रेष्ठ, पृ. ६१, जैदेना., ले. मु. रतनचन्द, लिखवा. ऋ. देवीचन्दजी, प्र.वि. गा.१८२५,खण्ड-४, ढाळ ४१, (२७११.५, १३X३२). श्रीपाल रास उपा. विनयविजय उपा. यशोविजयजी गणि, मागु, पद्य वि. १७३८ आदिः कल्पवेल कवियण तणी; अंतिः लहसे ज्ञान विशालाजी. कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची (+) ३३६. चन्द्र चरित्र, संपूर्ण वि. १७९०, श्रेष्ठ, पृ. ५६, जैदेना. ले. स्थल, निंबाजनगर, ले. गणि भाणसागर (गुरु गणि " सुविधसागर), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. अध्याय- ४उल्लास, १०३ ढाल, गा. ३५१५ प्र.पु. मूल-ग्रं. ३०५५, संशोधित, (२५.५४११, १६४६०). (+) ३३७. कुमारपाल रास, संपूर्ण, वि. १८२१ चन्द्रराजा रास, मु. विद्यारुचि, मागु पद्य वि. १७१७ आदि: श्रीजिननायक समरीई: अंतिः पाने शिवसुख लील " " " श्रेष्ठ, पृ. ११५, जैदेना ले. स्थल, पाटण, ले. पं. कान्तिविजय, प्र. वि. गा. २८७६ नं. ४१६०,ढाळ-१२९, संशोधित टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२५x१३, १५x४०). कुमारपाल रास, मु. जिनहर्ष, मागु पद्य वि. १७४२, आदि: श्रीसरसति भगवति नमुं अंतिः ओगणत्रीस ढाळ गावो हो. ३३८. रूपसेनराजा कनकावती कथा संपूर्ण वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ४५, जैदेना. प्र. वि. प्र.पु. ग्रंथाग्रंथ श्लो. ११००., संशोधित, (२८x१३, १२४३० ). रूपसेनकनकावती चरित्र, आ. जिनसूरि, सं., पद्य, आदिः श्रीमन्तं विदुरं अंतिः सुकृताय कृता कथा. · (+) " ३३९. चित्रसेनपद्मावती कथानक, संपूर्ण वि. १७२४, श्रेष्ठ, पृ. १४ जैदेना. ले. स्थल, मंडाणा, पठ. मु. जिनविजय, प्र. वि. श्लो. ५०५ संशोधित टिप्पण युक्त विशेष पाठ, ( २६.५४१२, १५०४१). चित्रसेनपद्मावती चरित्र पाठक राजवल्लभ, सं., पद्य वि. १५२४, आदि: नत्वा जिनपतिमाद्यं अंति पाठकराजवल्लभः. ३४०. लीलापतझणकारा चरित्र, संपूर्ण वि २००७, श्रेष्ठ, पृ. ८, देना, ले. स्थल माण्डवगढ़, ले. रामचन्द्र भाटी, प्र. वि. गा.३४, (२६.५४१४, १७४४८). लीलापतझणकारा चरित्र, मु. कालु, हिन्दी, पद्य, वि. १९६८, आदिः यह शीलतणा श्रृङ्गार; अंतिः झणकार का नारीजी. ३४१.” प्रियङ्करनृप कथा, संपूर्ण, वि. १६५२, श्रेष्ठ, पृ. ३२, जैदेना., ले. उपा. रत्नशेखर, प्र. वि. प्र. पु. ग्रं. २११६., दशा वि. विवर्ण पानी से अक्षरों की स्याही फैल गयी है आरम्भ के कुछ पत्र (२५४११.५, १४४३८). उवसग्गहर स्तोत्र-गाथा ०५ की प्रियङ्करनृप कथा, मु. जिनसूर मुनि, सं., प्रा., गद्य, वि. १६वी, आदिः वंशाब्ज श्रीकरोहंसो अंतिः सुखभाजो भवन्तीति. For Private And Personal Use Only ३४२. श्रेणिकनरेन्द्रराजा रास, पूर्ण, वि. १७३८, श्रेष्ठ, पृ. ४६ - १ ( १ ) -४५, जैदेना. ले. स्थल उंझा, ले. मु. कनकरत्न ( गुरु मु. " Page #106 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य भाग १ ५२ विनयरत्न), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. गा. ६०६, पू. वि. गाथा १ से ८ नहीं है., प्र.ले. श्लो. (५०६) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा ; (१११) भग्नपृष्टिकटीग्रीवा, (२३४१४.५, १३x२९). श्रेणिकराजा रास, आ. सोमविमलसूरि मागु पद्य वि. १६०३, आदि-: अंतिः मङ्गल जयकार. ३४३. सुरसुन्दरी रास, संपूर्ण, वि. १७०३, श्रेष्ठ, पृ. ४४, जैदेना., प्र. वि. गा. ५०५, ( २४.५x१२, ९३३). " सुरसुन्दरी रास, मु. नयसुन्दर मागु पद्य वि. १६४४ आदि आदिधर्मनी करिवाए: अंतिः इम भणि आणन्दपुरी. ३४४. विक्रमनरेश्वर चौपाई, पूर्ण, वि. १८५५ श्रेष्ठ, पृ. ६२-२(१ से २ ) =६०, जैदेना. ले. मु. लालचन्द्र प्र. वि. गा. १३११, बाळ६४. प्रतिले. संवत् - संवत्सरापंचगजाइंदु., पू.वि. ढाल - १ गा. १ से २० नहीं है., ( २६१२.५, १२X४१). विक्रमसेनराजा चौपाई, मु. परमसागर, मागु., पद्य, वि. १७२४, आदि:-; अंतिः परमसागर आणन्दो रे. (+) www.kobatirth.org: ३४५. चौपाई सङ्ग्रह, संपूर्ण, वि. १९४६, श्रेष्ठ, पृ. ६०, पे. ३, जैदेना., ले. स्थल. चोपासणी-जोधपुर, ले. पं. सुमेरचन्द (गुरु पण्डित भवानीराम ) प्र.ले.पु. मध्यम, (२५४१४.५, १३०४०), Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पे. १. धर्मदत्तधनवती चौपाई, मु. कुशलहर्ष, मागु., पद्य, वि. १७८८, (पृ. १अ - २५आ), आदिः प्रथम नमू चोवीस जिन; अंतिः कुसल हर्ष गुणगाया. पे.वि. खण्ड-२/ ढाल ३२. पे. २. पे. नाम. हरचन्दराजारी चोपाई, पृ. २६अ - ४५ आ " हरिश्चन्द्रराजा चौपाई. मु. प्रेम राज पद्य वि. १८३४ आदि आदेसर आदी करी वीतराग अंति नही पड़े दुकाल., पे.वि. ढाळ-२३. पे. ३. पे. नाम मानतूङ्गमानवती चोपाई, पृ. ४५-६० मानतुङ्गमानवती रास, उपा. अभयसोम मागु पद्य वि. १७२७, आदिः प्रणमुं माता सरसती : अंतिः भेद .. J मतिमन्दिर लहै., पे.वि. ढाळ- १५. · ३४६.” श्रीपाल चरित्र, संपूर्ण, वि. १८०८, श्रेष्ठ, पृ. ४२, जैदेना., ले. स्थल. आंतरपुर, ले. मु. विवेकसौभाग्य (गुरु पं. महिमासौभाग्य), पठ. मु. वृद्धिसौभाग्य ( गुरु मु. विवेकसौभाग्य), प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र. वि. खण्ड-४, ढाळ ४१, संशोधित टिप्पण युक्त विशेष पाठ- कुछ पत्र, ( २६.५x१३, १६x४५). श्रीपाल रास उपा. विनयविजय उपा. यशोविजयजी गणि, मागु पद्य वि. १७३८ आदिः कल्पवेल कवियण तणी: · प अंतिः लहसे ज्ञान विशालाजी. " ३४७. श्रीपाल रास सह बालावबोध - खण्ड ३-४ प्रतिपूर्ण, वि. १८६८, श्रेष्ठ, पृ. ११६, जैदेना., ले. स्थल. जोधपुर, ले. मु... कल्याणविजय, पठ. साध्वीजी पुण्यसरीजी, प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र. वि. बालावबोध किंचित टबार्थ स्वरुप मे लिखा है., (२६४११.५ १२-१४०२७-३४). श्रीपाल रास, उपा. विनयविजय उपा. यशोविजयजी गणि, मागु., पद्य, वि. १७३८, आदि:-; अंति: लहसे ज्ञान विशालाजी. श्रीपाल रास- बालावबोध *, मागु., गद्य, आदि:-; अंतिः (+) ३४८. शान्तिनाथ चरित्र, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १६३, जैदेना., ले. श्री चुनीलाल नानचन्द शा. प्र. वि. श्लो. १६३२, ६ प्रस्ताव, पदच्छेद सूचक लकीरें (२६.५x१४, १४X३७). शान्तिनाथ चरित्र, आ. अजितप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३०७, आदिः श्रेयोरत्नकरोद्भूता; अंतिः स करोतु शान्तिः. ३४९. ढालसागर व दुहा सग्रह, संपूर्ण, वि. १७८५, श्रेष्ठ, पृ. ११२, पे. २ जैदेना ले. स्थल उदयपुर, ले. साध्वीजी कौसुम्बाश्रीजी (गुरु साध्वीजी पद्माश्रीजी), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, प्र.ले. श्लो. (५६५) याद्रसं पुस्तकं दृष्ट्वा, (२५x११, १९x४२ ). पे. १. पाण्डव रास, आ. गुणसागरसूरि, मागु., पद्य, वि. १६७६, (पृ. १ - ११२), आदि: श्रीजिन आदिजिनेश्वरू; अंतिः जंपे For Private And Personal Use Only Page #107 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ५३ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ___ संघ रंग वधामणो., पे.वि. खण्ड-९; प्र.पु. ग्रं.६०००, ढाल-१५२. पे. २. पे. नाम. गुरुमाहात्म्य विषयक दुहा, पृ. १२२अ । दुहा सङ्ग्रह', मागु.,प्रा.,सं., पद्य, आदिः#; अंतिः#., पे.वि. गा.५. ३५१.” श्रीपाल रास सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १८५०, श्रेष्ठ, पृ. ७७, जैदेना., ले.स्थल. मामटखेडा, ले. धनरूप; पं. नथमल्ल, प्र.वि. मूल-खण्ड-४.प्र.पु. बालावबोध-ग्रं. २४००. खंड ३ के बाद अपेक्षित स्थलों पर ही बालावबोध दिया गया है., टिप्पण युक्त विशेष पाठ, अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-कुछ पत्र, (२८x१२.५, ८ः४५). श्रीपाल रास, उपा. विनयविजय , उपा. यशोविजयजी गणि, मागु., पद्य, वि. १७३८, (संपूर्ण), आदिः कल्पवेल कवियण तणी; अंतिः लहसे ज्ञान विशालाजी.. श्रीपाल रास-बालावबोध*, मागु., गद्य, (अपूर्ण), आदि:-; अंति:३५२." हरिवंश प्रबन्ध- ढालसागर, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १३०, जैदेना., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२७.५४१२, १६x४०). पाण्डव रास, आ. गुणसागरसूरि, मागु., पद्य, वि. १६७६, आदिः श्रीजिन आदिजिनेश्वरू; अंति: जंपे संघ रंग वधामणो. ३५३. चन्दकेवली चरित्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २३४, जैदेना., प्र.वि. मूल-श्लो.९५९; प्र.पु. ग्रं. ९५५०., (२६४१३, ६x४३). श्रीचन्द्रकेवलि चरित्र, मु. सिद्धर्षि, सं., पद्य, वि. ५९८, आदिः ॐ ध्यात्वा श्रीजिनं; अंतिः सङ्घश्चिरं नन्दतात्. श्रीचन्द्रकेवलि चरित्र-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः ध्यात्वा श्रीमन; अंतिः जीव होज्यो चतुर्विध. ३५५.” चन्द्रकेवली चरित्र, संपूर्ण, वि. १८५२, श्रेष्ठ, पृ. ९२, जैदेना., ले.स्थल. झाबवा, ले. मु. धनरूप (गुरु पण्डित नथमल), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. श्लो.९६७; प्र.पु. ग्रं.३५८४, संशोधित, पदच्छेद सूचक लकीरें, अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठकुछ पत्र, (२५.५४११, १६४३५). श्रीचन्द्रकेवलि चरित्र, मु. सिद्धर्षि, सं., पद्य, वि. ५९८, आदिः ॐ ध्यात्वा श्रीजिनं; अंतिः सङ्घश्चिरं नन्दतात्. ३५६." सरस्वतीप्रक्रिया टीका- चन्द्रकीर्ति नाम्नी, अपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १५, जैदेना., प्र.वि. संशोधित, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. विसर्गसंधि तक है., (२५.५४१०.५, १४४४८-५०). सारस्वत व्याकरण-दीपिका टीका, आ. चन्द्रकीर्तिसूरि, सं., गद्य, वि. १६६४, आदिः नमोस्तु सर्वकल्याण; अंति:३५७.” यशोधर चरित्र, पूर्ण, वि. १६०९, श्रेष्ठ, पृ. १०१-२३(१ से २३)=७८, जैदेना., ले.स्थल. गंधारबंदर, प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न, संशोधित, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, पू.वि. श्लोक १ से ६ अपूर्ण तक नहीं है., (२५.५४१२, ७४२०). यशोधर चरित्र, मु. सकलकीर्ति भट्टारक, सं., पद्य, आदि:-; अंतिः सर्वग्रन्थस्य लेखकैः. ३५८." जम्बूस्वामि चरित्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १६, जैदेना., ले.स्थल. वाव, प्र.वि. संशोधित, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२३.५४११.५, १४४३१). जम्बूस्वामी कथा, मागु., गद्य, आदिः (१) सप्रभावं जिनं (२) त्रैलोक्यना नायक; अंतिः (१)भवन्ति भविनां सदा (२)करणहार हुओ. ३५९.” मलयसुन्दरी चरित्र, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ७१, जैदेना., ले.स्थल. पाटन, ले. कीसनदास, प्र.वि. ४प्रस्ताव, संशोधित, (२५.५४११.५, १५४४५). मलयासुन्दरी चरित्र, आ. जयतिलकसूरि, सं., पद्य, आदिः चतुरङ्गो जयत्यहन; अंतिः मयेदं तथा. ३६०." पुराणसार सङ्ग्रह, अपूर्ण, वि. १९पू, श्रेष्ठ, पृ. १९१, जैदेना., प्र.वि. संशोधित, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. अध्याय-१५ अपूर्ण तक है., (२६४११.५, ११४३५). पुराणसार सङ्ग्रह, मु. सकलकीर्ति भट्टारक, सं., गद्य, आदिः सर्वकर्मारिसन्तानं; अंति: For Private And Personal Use Only Page #108 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य भाग १ - ३६१. मयणरेहा कथा, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ९, जैदेना. प्र. वि. गा. २९४ (२६.५४१४, १७५०), मदनरेखा कथा, हिन्दी, पद्य, आदि शान्तिनाथ प्रभु अंतिः चरित्र सुखकार रे. www.kobatirth.org: ३६२. रिषदत्ता चोपी, संपूर्ण, वि. १९६३, श्रेष्ठ, पृ. २९, जैदेना., ले. स्थल. राणावास, ले. ऋ. अनोपचन्द (लम्पकगच्छ), प्र. वि. ढाळ - ५७, (२३.५x११.५, १५X४०). ऋषिदत्तासती चौपाई, ऋ. चोथमल, मागु., पद्य, वि. १८६४, आदि: सासण नायक; अंतिः वरते जैजैकारोजी. ३६३. श्रीपाल चरित्र खण्ड-३ ढाल ४ से ८, प्रतिपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, जैदेना., पू. वि. खंड-३ ढाल -४ से तृतिय खंड संपूर्ण., (२७४१४५ १२४४८). श्रीपाल रास, उपा. विनयविजय, उपा. यशोविजयजी गणि, मागु., पद्य, वि. १७३८, आदि:-: अंतिः Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (+) ३६४. वासुपूज्य चरित्र, संपूर्ण, वि. १९५८, श्रेष्ठ, पृ. २७९, जैदेना., ले. स्थल नागौर, ले. नरोत्तम पुरोहित, प्र. वि. ग्रं. ५४९४, पदच्छेद सूचक लकीरें संधि सूचक चिह्न क्रियापद संकेत- वचन विभक्ति संकेत, (२७०४१२.५, ९४४०). वासुपूज्य चरित्र, आ. वर्द्धमानसूरि, सं., पद्य, वि. १२९९, आदिः अर्हन्तं नौमि ; अंतिः जयिनः सुरेन्द्राः. - - ३६५.” रत्नपाल रास, सवैया व दूहा, संपूर्ण, वि. १७८६, श्रेष्ठ, पृ. ३६, पे. ५, जैदेना., ले. स्थल. भांगरोडिया, ले. पं. रत्नविजय (गुरु पं. लक्ष्मीविजय, तपागच्छ), प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र. वि. गाथांक क्रमशः है. संशोधित टिप्पण युक्त विशेष पाठ - कुछ पत्र, (२६×१३, १९x४४). पे. १. रत्नपालरत्नावती चौपाई. मु. मोहनविजय, मागु पद्य वि. १७६० (पृ. १-३६), आदि: सकल श्रेणि में अंति मोहनविजय विलासजी पे. वि. दाल-६६ गा. १३७२. " 1 पे. २. औपदेशिक सवैया मु. उदैराज, प्राहिं, पद्य, (पृ. ३६आ), आदि जिस दिन पाणी तीर अंतिः एक आकी नवडो , नर मे., पे.वि. गा.१. पे. ३. औपदेशिक सवैया, मु. मोहन, प्राहिं., पद्य, (पृ. ३६आ), आदि: जइइ तो लजीइ; अंतिः लाल एके सेकर निभाइए., पे.वि. गा.१. पे. ४. औपदेशिक सवैया, कवि गद्द, प्राहिं., पद्य, (पृ. ३६आ), आदि: अस्त्रीचरित्र नव; अंतिः तब एक कोड नारी लहै., पे.वि. गा.२. पे. ५. औपदेशिक दूहा प्राहिं, पद्य, (पृ. ३६आ), आदि # अंति# पे.वि. गा.१. ३६६. लीलावती रास, अपूर्ण, वि. १२वी श्रेष्ठ, पृ. २४, जैदेना, प्र. वि. संशोधित पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण ढाल १९ " " गाथा ६२८ तक है., (२२.५x११.५, १७४३६). लीलावती रास, मु. सुन्दर, मागु., पद्य, आदिः चिद्रुपी आनन्दमां ; अंतिः ५४ ३६७. स्थूलिभद्र नवढालिया, शीलनववाडी व स्तवनादि सङ्ग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी श्रेष्ठ, पृ. ६ पे. ४ जैदेना ले ऋ चिमनराम (गुरु ऋ. ईसरदास), (२५.५x१२.५, १६x४६). पे. १. स्थूलिभद्र नवरसो, वाचक उदयरत्न, मागु, पद्य, वि. १७५९ (पृ. १अ - ३अ) आदि सुखसंपत्ति दायक सदा अंतिः मनोरथ सगला फल्या रे, पे.वि. गा.७४, ढाळ - ९. पे. २. शीलनववाड सज्झाय, मु. जिनहर्ष, मागु., पद्य, वि. १७२९, (पृ. ३अ-६अ ), आदि: श्रीनेमिसर चरणयुग; अंतिः जगती नववाडि, पे. वि. गा. ९६. For Private And Personal Use Only पे. ३. विहरमान २० जिन स्तवन, मु. दीपविजय, मागु., पद्य, (पृ. ६अ-६आ), आदिः विहरमान जिनवीस; अंतिः दीप वचन मन आसता., पे.वि. गा. ९. पे. ४. पे. नाम ऋषभजिन स्तवन, पृ. ६आ Page #109 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ५५ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची आदिजिन स्तवन, मु. केसर, राज., पद्य, आदि: जे जगनायक जगगुरुजी; अंतिः द्यो दरसण सुखकन्द., पे.वि. गा.५. ३६८. श्रीपालनरेन्द्र चरित्र, संपूर्ण, वि. १८२७, श्रेष्ठ, पृ. २८, जैदेना., ले.स्थल. आडानगर, ले. पं. भीमसागर, प्र.वि. ग्रं. ३२१., (२३४१३, १५४३९). श्रीपाल चरित्र-वार्तिक, आ. ज्ञानविमलसूरि, मागु., गद्य, वि. १७७९, आदिः प्रणम्य श्रीजिन; अंतिः आराधन करता हुया. ३६९." चंदनरिंद चौपाई- शीलाधिकारे, संपूर्ण, वि. १८०३, श्रेष्ठ, पृ. ९५, जैदेना., ले.स्थल. कृष्णगढ, ले. मु. तखतविजय (गुरु पं. रामविजय गणि), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. ६/१०३ढाल, संशोधित, (२५.५४११, १३४३२). चन्द्रराजा रास, मु. विद्यारुचि, मागु., पद्य, वि. १७१७, आदिः श्रीजिननायक समरीइं; अंतिः लाभे लील विलासा रे. ३७०.” शान्तिनाथ चरित्र, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १३९+३(७९,८६,१३०)=१४२, जैदेना., प्र.वि. ग्रं. ५०००, अध्याय-६प्रकाश, संशोधित, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२५.५४११, १५४४४). शान्तिनाथ चरित्र, आ. अजितप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३०७, आदिः श्रेयोरत्नकरोद्भूता; अंतिः स करोतु शान्तिः. ३७१.” सीता चरित्र, संपूर्ण, वि. १८९६, श्रेष्ठ, पृ. २८८, जैदेना., ले.स्थल. बर्द्धनपुर, पठ. मु. अमरकीर्ति (गुरु वाचक रत्नचन्द्र), राज्यकाल- राजा बलवन्तसिंह; राजा प्रतापसिंहजी,प्र.ले.पु. विस्तृत,प्र.वि. ७/२२ ढाल, गा.५२६८, ग्रं. ६८६१, अशुद्ध पाठ, प्र.ले.श्लो. (२३) जब लग मेरु अडग है, (२९४११.५, १२४३२). सीतासती चरित्र, मु. मयाचन्द, मागु., पद्य, वि. १८००, आदिः प्रथम जिनैश्वर; अंतिः वीरशासण मायजी. ३७२.” हरिविक्रम चरित्र, संपूर्ण, वि. १९५५, श्रेष्ठ, पृ. १३२+१(३६)=१३३, जैदेना., ले.स्थल. जोधपुर, ले. गोपीकिशन बोडा, प्र.वि. सर्ग-१२, संशोधित, पदच्छेद सूचक लकीरें-क्रियापद संकेत, (२७.५४१२.५, १२४५२). हरिविक्रम चरित्र, आ. जयतिलकसूरि, सं., पद्य, आदिः श्रीतीर्थाय; अंतिः प्रविशोध्य सर्वम्. ३७३. हरिवंश प्रबन्ध, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३०, जैदेना., पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. द्वितीय अधिकार तक है., (२५.५४११, १४-१६४३८). पाण्डव रास, आ. गुणसागरसूरि, मागु., पद्य, वि. १६७६, आदिः श्रीजिन आदिजिनेश्वरू; अंतिः३७४.” सम्यक्त्वकौमुदी कथा, संपूर्ण, वि. १६३९, श्रेष्ठ, पृ. ९४, जैदेना., ले.स्थल. दावडग्राम, ले. गणि तेजविजय (गुरु पं. विशालसत्य), प्र.वि. श्लो.१५३३, ग्रं. १५३३, संशोधित, (२४४१०.५, ११-१२४२७). सम्यक्त्वकौमुदी कथा, आ. गुणाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १५०२, आदिः तस्मै नित्यं; अंतिः सम्यक्त्वकौमुदी. ३७५." हरिवंश प्रबन्ध, संपूर्ण, वि. १८९९, श्रेष्ठ, पृ. १४३+१(११५)=१४४, जैदेना., ले.स्थल. भीवाणी, ले. ऋ. शोभाराम (गुरु मु. डालूराम), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. ९ खंड/१५१ ढाल; प्र.पु. मूलगा.३९२१,, संशोधित, टिप्पण युक्त विशेष पाठ कुछ पत्र, (२४.५४१२, १८४३१). पाण्डव रास, आ. गुणसागरसूरि, मागु., पद्य, वि. १६७६, आदिः श्रीजिन आदिजिनेश्वरू; अंतिः जंपे संघ रंग वधामणो. ३७६." त्रिषष्टिशलाकापुरूष चरित्र पर्व-७, प्रतिअपूर्ण, वि. १६वी, श्रेष्ठ, पृ. १०८-१(१)=१०७, जैदेना., प्र.वि. संशोधित, पू.वि. प्रथम एक व अंत के पत्र नहीं हैं. पर्व-७ सर्ग-१ के श्लो.१७ से सर्ग-१० श्लो.२३५ तक है., (२८x११, १३४५०). त्रिषष्टिशलाकापुरुष चरित्र, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १२२०, आदि:-; अंति:३७७. विक्रमादित्यभूपालपंचडण्ड चौपाई, संपूर्ण, वि. १८८०, श्रेष्ठ, पृ. ५६, जैदेना., ले.स्थल. गंगापुर, ले. मु. मयाचन्द(बृहत्विजयगच्छ),प्र.वि. ग्रं. ३१६८, खण्ड-६/ढाल ७५. यह प्रति में कृति रचना संवत के लिये "सिद्धसेनमुनिशशिहर" ऐसा पाठ लिखा है., (२४x१४.५, २०४४६). विक्रमराजा चौपई, गणि लक्ष्मीवल्लभ, मागु., पद्य, वि. १७२८, आदिः प्रणमु पासजिणन्द पय; अंतिः अहनिस उछवरङ्ग बधाइ. ३७८. कइवन्ना चौपाई, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना., ले. पण्डित महिमोदय गणि, पठ. श्राविका वीरोबाई, प्र.वि. For Private And Personal Use Only Page #110 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य भाग - १ गा.११८, ग्रं. १८७; प्र.पु. मूल-ग्रं. १८७, (२६४११, १५४४२). कयवन्ना चौपाई, आ. साधुरत्नसूरि, मागु., पद्य, आदिः वन्दी वीर जिनेसर; अंतिः रयण नवनिधि आङ्गणइ. ३७९." चित्तसम्भूत्तिऋषि रास, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३२, जैदेना.,प्र.वि. ढाळ-३९, संशोधित, (२४.५४११, १४४३७). चित्रसम्भूति चौपाई, मु. ज्ञानसागर, मागु., पद्य, वि. १७३१, आदिः प्रथम नमुं परमेसरु; अंतिः दीइं दोलति दीदारु रे. ३८०." शान्तिनाथ चरित्र, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १९४, जैदेना.,प्र.वि. ६ प्रस्ताव, संशोधित-प्रारंभिक पत्र, (२५.५४११, १२४४८). शान्तिजिन चरित्र, आ. भावचन्द्रसूरि, सं., गद्य, वि. १५३५, आदिः (१) प्रणिपत्यार्हतः (२) सर्वे संसारिणो जीवा; अंतिः स करोतु शान्तिः. ३८१." आषाढभूति चौपाई, पूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ९-१(८)-८, जैदेना., ले.स्थल. योधपुर, ले. पण्डित हरचन्द, प्र.वि. ढाळ-१६, संशोधित, पू.वि. बीच का एक पृष्ठ नहीं है., (२१.५४१०.५, १४४३८). आषाढाभूति चौपाई, मु. ज्ञानसागर, मागु., पद्य, वि. १७२४, (अपूर्ण), आदिः सकल ऋद्धि समृद्धिकर; अंतिः होजो परम कल्याणो रे. ३८२. सत्तरिसयट्ठाण सह छायानुवाद व बालावबोध, पूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ९१, जैदेना., ले.स्थल. प्रांतिज, प्र.वि. मूल गा.३५८.,पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है. मात्र अंतिम गाथा का बालावबोध अपूर्ण हैं., (२७४११.५, १२-१३४३२-४८). सप्ततिशतस्थान प्रकरण, आ. सोमतिलकसूरि , प्रा., पद्य, वि. १३८७, (संपूर्ण), आदिः सिरिरिसहाइ जिणिन्दे; अंतिः सङ्घवई रयणएणय रसा. सप्ततिशतस्थान प्रकरण-छायानुवाद, आ. ऋद्धिसागरसूरि, सं., गद्य, (संपूर्ण), आदिः आदीश्वरं नमस्कृत्य; अंतिः सङ्घपति रत्नतनयस्य. सप्ततिशतस्थान प्रकरण-भावार्थ, मागु., गद्य, (पूर्ण), आदिः ॐ नमः श्रीमहावीरं; अंतिः नामे ग्रन्थ लख्यो. ३८३. सत्तरिसयट्ठाण सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ७१, जैदेना., प्र.वि. मूल-गा.३६०. प्र.पु. सर्वग्रं. ३५०५., (२८.५४१४, ४४३६). सप्ततिशतस्थान प्रकरण, आ. सोमतिलकसूरि , प्रा., पद्य, वि. १३८७, आदिः सिरिरिसहाइ जिणिन्दे; अंतिः सिरिसोमतिलयसूरीहिं. सप्ततिशतस्थान प्रकरण-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः (१) श्रीमत्पार्श्वजिनं (२) श्रीलक्ष्मीवन्त; अंतिः रूपे रचना करी छे. ३८४." इकवीसठाण सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७६२, श्रेष्ठ, पृ. ७, जैदेना., प्र.वि. मूल-गा.६६., संशोधित, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, पदच्छेद सूचक लकीरें, (२५४१२.५, ६x४२). एकविंशतिस्थान प्रकरण, आ. सिद्धसेनसूरि, प्रा., पद्य, आदिः चवण विमाणा नयरी; अंतिः असेस साहारणा भणिया. एकविंशतिस्थान प्रकरण-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः च्यवनविमाननाम नगरीना; अंतिः साधारण सरीखा कहीया. ३८५. वृद्धपट्टावली, संपूर्ण, वि. १८८२, श्रेष्ठ, पृ. ६०+१(१५)=६१, जैदेना., पठ. पं. बुद्धिविजय (गुरु पं. भक्तिविजय), प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र.वि. प्र.पु. पाटपरंपरा-६६ जिनेन्द्रसूरि तक है., (२६.५४१२.५, १६४३८). पट्टावली तपागच्छीय, मागु., गद्य, आदिः प्रणम्य त्रिविधं; अंतिः छासठमो पाट जाणवो. ३८६. क्षेत्रसमास सह स्वोपज्ञ वृत्ति, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ४१, जैदेना., प्र.वि. मूल-गा.२६२,अध्याय-६ अधिकार. मूल सूत्र की अंतिम गाथा नहीं लिखी है. साधारण चित्रों से युक्त., त्रिपाठ, (२५.५४११, १७४५०). लघुक्षेत्रसमास प्रकरण, आ. रत्नशेखरसूरि , प्रा., पद्य, वि. १५वी, आदिः वीरं जयसेहरपय; अंतिः#. लघुक्षेत्रसमास प्रकरण-स्वोपज्ञ टीका, आ. रत्नशेखरसूरि, सं., गद्य, वि. १५वी, आदिः अर्हमिति ब्रह्मपदं; अंतिः श्रेयसे सन्तु. ३८७. लघुक्षेत्रसमास, संपूर्ण, वि. १९२१, श्रेष्ठ, पृ. १७, जैदेना., ले.स्थल. ममाइनगर, ले. मु. हंसविजय (गुरु मु. दीपविजय, For Private And Personal Use Only Page #111 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ५७ www.kobatirth.org: आणन्दसूरगच्छ ), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. गा. ३०१ (२७.५४१४.५ १३४३१). , · " लघुक्षेत्रसमास प्रकरण आ. रत्नशेखरसूरि प्रा. पद्य वि. १५वी आदि वीरं जयसेहरपय अंति: कुसलरङ्गमई पसिद्धि. ו. , ३८८. लघुक्षेत्रसमास सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ३२, जैदेना. पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. गा.६२ तक है., (२५४१३. १०४४१). लघुक्षेत्रसमास प्रकरण, आ. रत्नशेखरसूरि प्रा., पद्य, वि. १५वी, आदि: वीरं जयसेहरपय; अंति: लघुक्षेत्रसमास- बालावबोध, पं. दयासिंह, मागु., गद्य, वि. १५२९, आदि: (१) हुं ब्रह्मज्ञाननुं (२) वीरं० हुं क्षेत्र : अंतिः ३८९. सिद्धाचल रास, संपूर्ण, वि. १८३७, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना., ले. स्थल. बोरावड, ले. ऋ. चिमनराम, पठ. ऋ. कपूरचन्द (गुरु ऋ. चिमनराम), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. ढाळ -६, गा.१०८, (२२x१३, १५X३८). शत्रुंजयतीर्थ रास, उपा. समयसुन्दर गणि, मागु., पद्य, वि. १६८२, आदि: श्रीरिसहेसर पाय नमी; अंतिः सुणतां आणन्द थाय. (+) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ३९०." सङ्ग्रहणीसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३७, जैदेना. प्र. वि. मूल-गा. ३५२, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२६४११, ५४३९). बृहत्सङ्ग्रहणी, आ. चन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदिः नमिउं अरिहन्ताइं; अंतिः जा वीरजिण तित्थं. बृहत्सङ्ग्रहणी-टबार्थ, मु. धर्ममेरु, मागु., गद्य, आदिः नमस्कार करीने; अंतिः ता सीम नन्दउ. ३९१. योगचिन्तामणि सह अर्थ, पूर्ण, वि. १७६०, श्रेष्ठ, पृ. ११०-३ (२५,२८,५६) = १०७, जैदेना, ले. स्थल औरंगाबाद, ले. गणि समृद्धिविजय, प्र. वि. मूल- अध्याय ७. अर्थ क्रमबद्ध नहीं हैं. पत्रांक - ११०B पुष्पिका पत्र की दो नकल है., संशोधित, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, ( २६.५x११, १३x४२). योगचिन्तामणि, आ. हर्षकीर्तिसूरि, सं. पद्य वि. १७वी आदिः यत्र वित्रासमायान्ति: अंतिः योगचिन्तामणिश्विरम्. " T योगचिन्तामणि- अर्थ *, मागु., गद्य, आदि:- अंति: "" ३९४. योगचिन्तामणि सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८८८, श्रेष्ठ, पृ. १९०, जैदेना. ले. स्थल हरिदुर्ग, प्र. वि. मूल- अध्याय ७. प्रथम पत्र पर टबार्थ लीखा नही है।, प्र.ले. श्लो. (५०६) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा (५६०) जलात् रक्षेत् थलात् रक्षे, (30x98, " ६×३०). योगचिन्तामणि, आ. हर्षकीर्तिसूरि, सं. पद्य वि. १७वी (संपूर्ण) आदि यत्र वित्रासमायान्ति; अंतिः योगचिन्तामणिश्चिरम्. योगचिन्तामणि-टबार्थ*, मागु., गद्य, (पूर्ण), आदि:-; अंतिः चिन्तामणि घणोकाल सीम. ४०१." द्रव्यगुणशतश्लोकी सह टवार्थ (तिमलशतक), संपूर्ण वि. १८३१, श्रेष्ठ, पृ. २८, देना, प्र. वि. मूल श्लो. १००., पदच्छेद सूचक लकीरें टिप्पण युक्त विशेष पाठ, ( २६४१३, ४X३२ ). द्रव्यगुण शतश्लोकी, त्रिमल्ल भट्ट, सं., पद्य, आदिः श्रीकण्ठं गिरिजागणेश अंतिः शुद्धस्तु दाहादिकृत्. " द्रव्यगुण शतश्लोकी-टवार्थ, कवि रूपचन्द, राज, गद्य वि. १८३१, आदि: (१) गिरिजा क० पार्वती (२) ज्यों त्रिमल्ल शतके: अंति: (१) कृत क० दाह बलण करे (२) वाल रूप कीधो सुगम. 'अष्टदृष्टि सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८११, श्रेष्ठ, पृ. ५. जैदेना. प्र. वि. ढाळ-८, संशोधित, (२५.५४१०.५, ११४३६-३८). योगदृष्टि सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मागु., पद्य, आदिः शिवसुख कारण उपदेशी; अंतिः वाचक जशने वयणेजी. For Private And Personal Use Only ४१३. प्रश्नोत्तर सङ्ग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १९-२(१ से २) १७, जैदेना., पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक . द्वारा अपूर्ण. प्रारंभिक प्रश्न १ से ५ नहीं है व प्रश्नोत्तर ८० तक है., ( २६४११.५, १५४३४-३६). प्रश्नोत्तर सङ्ग्रह, सं., प्रा., मागु., गद्य, आदि:-; अंति: Page #112 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य भाग - १ ४१५." योगचिन्तामणि सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५५, जैदेना., प्र.वि. संशोधित, पदच्छेद सूचक लकीरें, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. अध्याय-६ अपूर्ण तक है., (३०x१४.५, १०४३९). योगचिन्तामणि, आ. हर्षकीर्तिसूरि, सं., पद्य, वि. १७वी, आदिः (१) यत्र वित्रासमायान्ति (२) श्रीसर्वज्ञं; अंति: योगचिन्तामणि-टबार्थ, मागु., गद्य, आदि: जबइ वित्रासनइ; अंति:४३२. विचाररत्नसार सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ९३, जैदेना., पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. प्रश्न-६२ तक है., (२५.५४१२.५, ११४३६). विचारसार प्रकरण-बालावबोध, मु. देवचन्द्र, मागु., गद्य, आदिः प्रणम्य श्रीमहावीरं; अंति:विचारसार प्रकरण-बालावबोध, आ. ज्ञानविजयसूरि, मागु., गद्य, आदिः (१) वीरप्रभुनी वाणी (२) प्रणम्य श्रीमहावीरं; अंति:४३४. प्रकरण चतुष्क, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १२, पे. ४, जैदेना., (२६४१२.५, ११४३१). पे. १. जीवविचार प्रकरण, आ. शान्तिसूरि, प्रा., पद्य, (पृ. १-४आ), आदिः भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंतिः रुद्दाओ ___सुयसमुद्दाओ., पे.वि. गा.५१. पे. २. नवतत्त्व प्रकरण, आ. मणिरत्नसूरि, प्रा., पद्य, (पृ. ४आ-८अ), आदिः जीवाजीवापुन्नं पावा; अंतिः लिहिओ ___मणिरयणसूरिहिं., पे.वि. गा.५८. पे. ३. पे. नाम. विचारषट्त्रिंशिका, पृ. ८अ-११अ दण्डक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, आदिः नमिउं चउवीस; अंतिः एसा विनत्ति अप्पहिआ., पे.वि. गा.४६. पे. ४.पे. नाम. जम्बुद्वीपसङ्घयणी, पृ. ११-१२आ लघुसङ्ग्रहणी, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदिः नमिय जिणं सव्वन्नु; अंतिः रईया हरिभद्दसूरिहिं., पे.वि. गा.३०. ४३५. गुणस्थानक व धर्मदेशना विचार, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ५, पे. २, जैदेना., (२६४११.५, १७४१८-४२). पे. १. १४ गुणठाणा विचार, मागु., गद्य, (पृ. १-५), आदिः बन्धप्रकृतयस्तासां; अंतिः खपावी मोक्षे जाइ. पे. २. पे. नाम. धर्मदेशना विचार, पृ. ५आ __जैन सामान्यकृति-पेटाङ्क बाकी*, सं.,प्रा.,मागु., प+ग, आदिः#; अंतिः#. ४३६." दानकुलक, दण्डक प्रकरण व सुभाषित सङ्ग्रह, संपूर्ण, वि. १८५०, मध्यम, पृ. ५, पे. ३, जैदेना., ले.स्थल. सुदामापुरी, पठ. ऋ. खीमजी, (२४४१२, १५४४०). पे. १. दानशीलतपभावना कुलक, मु. अशोकमुनि, प्रा., पद्य, (पृ. १आ-३आ), आदिः देवाहिदेवं नमिऊण; अंतिः सूरि खमउ तेणं. पे. २. दण्डक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, (पृ. ३आ-५अ), आदिः नमिउं चउवीस; अंतिः एसा विनत्ति अप्पहिआ., पे.वि. गा.४५. पे. ३. जैन दुहा सङ्ग्रह', सं.,प्रा.,मागु., प+ग, (पृ. ५अ-५आ), आदि:-; अंतिः -, पे.वि. प्र.पु. गा.३+२+१. ४३७. ऋषभजिन शलोकादि, संपूर्ण, वि. १८४३, श्रेष्ठ, पृ. ७, पे. ४, जैदेना., ले.स्थल. सरीयारपुर, ले. ऋ. मोतीचन्द्रजी, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-बीच का एक पत्र, (२६.५४१३, ९४३२). पे. १. आदिजिन शलोको, मागु., पद्य, (पृ. १अ-२आ), आदिः सरसत सामण तुज; अंतिः कोड की करु निसाणी. पे. २. साधारणजिन पद-आत्मनिन्दागर्भित, मागु., पद्य, (पृ. २आ-३अ), आदिः मनमोहन जिनराजजी रे; अंतिः कषाय सहाय रे जी., पे.वि. गा.३. पे. ३. पंचसहेली रास, कवि छहल, प्राहिं., पद्य, वि. १५७५, (पृ. ३अ-७अ), आदि: देख्या नगर सुहामणा; अंतिः कवि छहल परगास.,पे.वि. गा.६१. For Private And Personal Use Only Page #113 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची पे. ४. नमस्कारमहामन्त्र स्तवन, कान, मागु., पद्य, (पृ. ७अ-७आ), आदिः अष्ट लबध नव नीध; अंतिः कहे ए वचन रसाल., पे.वि. गा.५. ४५७. ज्योतिषसार सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८८८, श्रेष्ठ, पृ. ४७, जैदेना., ले.स्थल. अजमेर, ले. मु. सदानन्द, प्र.वि. मूल श्लो.२९४., (२४x१०.५, ५४३३). ज्योतिषसार, आ. नरचन्द्रसूरि, सं., पद्य, आदिः श्रीअर्हन्तजिनं; अंतिः स्थासुवृष्टिश्च. ज्योतिषसार-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः श्रीअरिहन्त प्रते; अंतिः हुवई ते वास्तै भला. ४५९. पासाकेवली, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदेना., ले. मु. आणन्दविजय लैहरी, पठ. मु. उत्तमविजय, (२५.५४१२, १०-१२४४०-४२). पाशाकेवली-पाशाकेवलीभाषा* , आधारित, मागु., गद्य, आदिः (१) ॐ नमो भगवति (२) १११ उत्तम थानिकलाभ; अंतिः वारू छइ भलु छै. ४६१. कर्मग्रन्थ चतुर्थ सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २८, जैदेना., प्र.वि. मूल-गा.८६., (२६४१२.५, ३४२५-२७). षडशीति नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिय जिणं जिय; अंतिः देविन्दसूरीहिं. षडशीति नव्य कर्मग्रन्थ-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः हवइं चउथा कर्मग्रन्थ; अंतिः श्रीतपागच्छ नायकइ. ४६५." रघुवंश सह पञ्जिका टीका, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २०, जैदेना., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. द्वितीय सर्ग श्लो.४३ तक लिखा है., (२६४११, १७४४५-५०). रघुवंश, कालिदास, सं., पद्य, आदिः वागर्थाविव सम्पृक्तौ; अंति: रघुवंश-सुबोधिका टीका, गणि श्रीविजय, सं., गद्य, आदिः अहं कालिदासनामाकविता; अंतिः४६७.” अभिधानचिन्तामणिनाममाला, अपूर्ण, वि. १७९६, श्रेष्ठ, पृ. ५५-३१(१ से ३१)=२४, जैदेना., ले. मु. पद्मसागर के लघुभ्रातृ (गुरु मु. गुणपतिसागर), प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र.वि. ६ कांड; प्र.पु. मूल-ग्रं. १५९१, संशोधित, पू.वि. कांड-१ से ३ नहीं है., (२५.५४११, १३४३४). अभिधानचिन्तामणि नाममाला, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, आदि:-; अंतिः रोषोक्तावु नतौ नमः. ४६८. विवेकविलास, संपूर्ण, वि. १८२६, श्रेष्ठ, पृ. ११७-१(६४)+१(६३)=११७, जैदेना., ले.स्थल. सौम्ये, ले. पं. देवरत्न, प्र.वि. १२उल्लास. प्रथम २ पत्र पर टबार्थ है।, यह ग्रन्थ खरतर प्रसिद्ध दादाश्री जिनदत्तसूरि का बनाया हुआ नहीं है।, (२४.५४११.५, ५४४२). विवेकविलास, आ. जिनदत्तसूरि, सं., पद्य, आदिः शाश्वतानन्दरूपाय; अंति: लोकोत्तरं शाश्वतम्. ४६९. कोकशास्त्र, संपूर्ण, वि. १७३०, श्रेष्ठ, पृ. ७८, जैदेना., प्र.वि. गा.१४९२, (२४.५४११, ११४४०). कोकसार, आ. नर्बुदाचार्य, मागु., पद्य, वि. १६५६, आदिः मातङ्गी मति आपीये; अंतिः नरबुद कहे सुखसंपदा. ४७०." अभिधानचिन्तामणिनाममाला सह स्वोपज्ञवृत्ति, संपूर्ण, वि. १६वी, मध्यम, पृ. १८८+१(१७९)=१८९, जैदेना., प्र.वि. मूल ६ कांड. प्र.पु.टीका-श्लो.११२०, सर्वग्रन्थाग्रन्थ-१००००., संशोधित, (२६४११, १५४४६). अभिधानचिन्तामणि नाममाला, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, आदिः प्रणिपत्यार्हतः; अंतिः रोषोक्तावु नतौ नमः. अभिधानचिन्तामणि नाममाला-स्वोपज्ञ तत्त्वाभिधायिनी विवृति, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., गद्य, वि. १२१६, आदिः धर्मतीर्थकृतां वाचा; अंतिः निपात्यन्ते पदे पदे. ४७२.” अनेकार्थध्वनिमञ्जरी, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ८, देना., प्र.वि. ३ अधिकार, संशोधित, (२६.५४११.५, १२४३६). अनेकार्थध्वनिमञ्जरी, सं., पद्य, आदिः शिवं भद्रं शिवः; अंति: समयो बन्धुसोमयोः. ४७३.” अभिधानचिन्तामणिनाममाला, संपूर्ण, वि. १८०६, श्रेष्ठ, पृ. ६५, जैदेना., ले.स्थल. देवलीग्राम, ले. यति शोभाचन्द, पठ. For Private And Personal Use Only Page #114 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य भाग - १ ६० साध्वीजी चैना (गुरु साध्वीजी मटुजी), प्र.वि. ६ कांड. प्रत दो लिपिकों ने लिखी है., संशोधित, (२५४११.५, १२१५४३०-३५). अभिधानचिन्तामणि नाममाला, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, आदिः प्रणिपत्यार्हतः; अंति: रोषोक्तावु नतौ नमः. ४७४. अभिधानचिन्तामणिनाममाला, संपूर्ण, वि. १८४५, श्रेष्ठ, पृ. ८७, जैदेना., ले.स्थल. पीही, ले. ऋ. भवानीचन्द, प्र.वि. ६ ___ कांड; प्र.पु. ग्रन्थाग्रंथ-३०००, (२६x११, ११४३८). अभिधानचिन्तामणि नाममाला, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, आदिः प्रणिपत्यार्हतः; अंतिः रोषोक्तावु नतौ नमः. ४७५.” अभिधानचिन्तामणि, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ४४-१२(१ से १२)=३२, जैदेना., ले. मु. हरदास, प्र.वि. ६ कांड, संशोधित-प्रारंभिक पत्र, पू.वि. प्रारंभ से कांड-३ श्लो.३२ तक नहीं है., (२६४१०, १३४५३). अभिधानचिन्तामणि नाममाला, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, आदि:-; अंतिः रोषोक्तावु नतौ नमः. ४७९.” अभिधानचिन्तामणिनाममाला, संपूर्ण, वि. १६९६, श्रेष्ठ, पृ. ६५, जैदेना., ले.स्थल. स्तंभतीर्थबंदर, ले. वाचक उदयरत्न (गुरु मु. विशाल, बृहत्खरतरगच्छ), गच्छा. आ. जिनसागरसूरि (गुरु वाचक उदयरत्न, खरतरगच्छ), पठ. मु. विशाल(बृहत्खरतरगच्छ), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. ६ कांड; प्र.पु. ग्रं. १००३, संशोधित-बीच के कुछ पत्र, पदच्छेद सूचक लकीरें-बीच के कुछ पत्र, प्र.ले.श्लो. (५३४) यदृशं पुस्तके दृष्टं, (२५.५४१०.५, ११४४०). अभिधानचिन्तामणि नाममाला, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, आदिः प्रणिपत्यार्हतः; अंतिः रोषोक्तावु नतौ नमः. ४८०. अभिधानचिन्तामणिनाममाला, संपूर्ण, वि. १८११, श्रेष्ठ, पृ. ३८, जैदेना., ले.स्थल. कालू, ले. गणि रुघपति, प्र.वि. ६ कांड, (२५.५४१२, १४४४७). अभिधानचिन्तामणि नाममाला, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, आदिः प्रणिपत्यार्हतः; अंतिः रोषोक्तावु नतौ नमः. ४८३." विदग्धमुखमण्डन सह वृत्ति, संपूर्ण, वि. १६९६, श्रेष्ठ, पृ. ३०, जैदेना., ले.स्थल. नवीननगर, ले. पण्डित भक्तिकुशल गणि (गुरु पण्डित दयाकुशल गणि), पठ. गणि पद्मकुशल (गुरु पण्डित भक्तिकुशल गणि), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. मूल-४ परिच्छेद. प्रतिलेखक द्वारा मूल का अंतिम श्लोक नही लिखा हैं., संशोधित, टिप्पण युक्त विशेष पाठ-कुछ पत्र, (२६.५४१२.५, २१४५८). विदग्धमुखमण्डन काव्य , आ. धर्मदाससूरि, सं., पद्य, आदिः सिद्धौषधानि भवदुःख; अंतिः#. विदग्धमुखमण्डन काव्य-वृत्ति, सं., गद्य, आदिः स्मृत्वा जिनेन्द्र; अंतिः युष्माकं श्रियेस्तु. ४९०. सिद्धहेमशब्दानुशासन की लघुवृत्ति सह अवचूरि अध्याय १,२, प्रतिअपूर्ण, वि. १५वी, जीर्ण, पृ. ६६-३(१,२६,६३)=६३, जैदेना.,प्र.वि. संशोधित- किसी प्राचीनतर प्रति की प्रतिलिपि जीर्ण प्रतिबिम्ब कराने योग्य. अप्रकाशित।, संशोधित, पू.वि. प्रथम व बीच के पत्र नहीं है. अध्याय-२ तक है.,दशा वि. खामीयुक्त पदार्थ से-पत्र नष्ट होने लगे हैं, (२७४९.५, १४४५५). सिद्धहेमशब्दानुशासन-स्वोपज्ञ लघुवृत्ति, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., गद्य, आदि:-; अंति: सिद्धहेमशब्दानुशासन-स्वोपज्ञ लघुवृत्ति की अवचूरि, सं., गद्य, आदि:-; अंति:४९२. सिद्धान्तचन्द्रिका सह सुबोधिनीवृत्ति - पूर्वार्द्ध, प्रतिपूर्ण, वि. १८५३, श्रेष्ठ, पृ. १३०, जैदेना., ले.स्थल. बालोचरनगर, ले. मु. कस्तुरसागर (गुरु मु. जीवणसागर, तपागच्छ), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. संशोधित, प्र.ले.श्लो. (५९१) जब लग मेरु महिंदरा, (२४४११, १५४३७). सिद्धान्तचन्द्रिका, आ. रामाश्रम, सं., गद्य, आदिः नमस्कृत्य महेशानं; अंति:सिद्धान्तचन्द्रिका-सुबोधिनी वृत्ति, गणि सदानन्द, सं., गद्य, वि. १७९९, आदिः पुराणपुरुषं ध्यात्वा; अंति: आदिः सियुमार्क जीर्ण, पृ. For Private And Personal Use Only Page #115 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ६१ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ४९७." न्यायसङ्ग्रह सह न्यायार्थमञ्जूषा बृहद्वृत्ति, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ५८, पे. २, जैदेना., प्र.वि. तीनखण्ड में सम्पूर्ण. A समुच्चित न्याय- ५७ अनुच्छेद. B स्वसमुच्चित न्याय-६५ अनुच्छेद. C विलक्षण न्याय- १८ अनुच्छेद., संशोधित, (२५.५४१०.५, १५४५६). पे. १. पे. नाम. न्यायसङ्ग्रह-(सं.)न्यायार्थमञ्जूषा बृहद्वृत्ति, पृ. ०१अ-०२अ न्यायसङ्ग्रह, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, संबद्ध, सं., गद्य, आदिः स्वं रूपं शब्दस्या; अंतिः शास्त्रप्रवृत्तिः. न्यायसङ्ग्रह-न्यायार्थमञ्जूषा बृहद्वृत्ति, गणि हेमहंस, सं., गद्य, वि. १५१५, आदिः (१) त्रैलोक्यालादहेतु (२) ॐरूपाय नमः; अंतिःपे. २. पे. नाम. न्यायसङ्ग्रह, पृ. ०२-३अ न्यायसङ्ग्रह, गणि हेमहंस, संबद्ध, सं., गद्य, आदिः प्रकृतिग्रहणे; अंति:न्यायसङ्ग्रह-स्वोपज्ञ न्यायार्थमञ्जूषा बृहद्वृत्ति, गणि हेमहंस, सं., गद्य, वि. १५१५, आदिः (१) त्रैलोक्यालादहेतु (२) अथ स्वसमुच्चित; अंतिः-, पे.वि. इस प्रत में वक्षस्कार २-६ तक ही है. सप्तम वक्षस्कार बहुवक्तव्यतावाले एक न्याय का नहीं दिया है. ५०४." हैम प्राकृतव्याकरण सह स्वोपज्ञ प्रकाशिका वृत्ति, संपूर्ण, वि. १५१८, श्रेष्ठ, पृ. ८८-१(२५+२६)=८७, जैदेना., ले.स्थल. पाटण, पठ. मु. सोमरत्न (गुरु उपा. राजशेखर, कोरण्टकीयगच्छ), ले. उपा. कुञ्जर (गुरु उपा. रामभद्र, कोरण्टकीयगच्छ), प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र.वि. हिस्सा-४ पाद; टीका-ग्रं. २२००; प्र.पु.टीका-ग्रं. २१८५., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-अधिक मात्रा में, पदच्छेद सूचक लकीरें-वचन विभक्ति संकेत-क्रियापद संकेत, प्र.ले.श्लो. (५०९) यादृशं पुस्तके दृष्टं, (३०x११.५, १२४३५).. प्राकृतव्याकरण, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., गद्य, आदिः अथ प्राकृतम् बहुलम; अंतिः संस्कृतवत्सिद्धम्. प्राकृतव्याकरण-स्वोपज्ञ प्राकृतप्रकाश टीका, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., गद्य, आदिः अथ शब्द आनन्त; अंतिः (१)ताभ्युदयश्चेति (२)मिदं मुनि हेमचन्द्रः. ५०७. सारस्वतप्रक्रिया की दीपिकावृत्ति, संपूर्ण, वि. १८७३, श्रेष्ठ, पृ. ११९, जैदेना., ले.स्थल. कृष्णगढ, (२६.५४१४.५, १९४५४). सारस्वत व्याकरण-दीपिका टीका, आ. चन्द्रकीर्तिसूरि, सं., गद्य, वि. १६६४, आदिः नमोस्तु सर्वकल्याण; अंतिः बुधैश्चिरम्. ५१८. रघुवंश टीका शिशुहितैषिणीनाम्नी, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १४५-७९(१ से ७९)=६६, जैदेना., प्र.वि. श्रीमालान्वय साधु श्रीमालिगतनूजसाधु श्रीअरडक्कमल्ल समभ्यर्थित खरतरगच्छाय., पू.वि. प्रारंभ से सर्ग-९ श्लो.८१ तक नहीं हैं., प्र.ले.श्लो. (५०९) यादृशं पुस्तके दृष्टं, (२६.५४११.५, १६४५२). रघुवंश-शिशुहितैषिणी टीका, आ. चारित्रवर्धनसूरि, सं., गद्य, वि. १६वी, आदिः-; अंतिः वृत्तमितिभद्रम्. ५२८. पञ्चाख्याननीतिशास्त्र, संपूर्ण, वि. १९८०, श्रेष्ठ, पृ. ४८, जैदेना., ले. मु. सौभाग्यचन्द महात्मा, प्र.ले.श्लो. (४५९) मङ्गलं लेखकस्यापि; (५०६) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा , (२७x१४, १५४३३). पञ्चतन्त्र-पञ्चाख्यानोद्धार, उपा. मेघविजय, संबद्ध, सं., गद्य, वि. १७१६, आदिः नत्वा श्रीमगसी; अंतिः नवरङ्गपुरेवरे. ५३९. सम्बोधसत्तरी, संपूर्ण, वि. १८५३, श्रेष्ठ, प्र. ७, जैदेना., ले.स्थल. पालीताणा, ले. मु. खुशालहर्ष, पठ. रतन, प्र.वि. गा.१२६, (२६४१३, १३-१४४२७-२८). सम्बोधसप्ततिका, आ. जयशेखरसूरि, प्रा., पद्य, आदिः नमिऊण तिलोअगुरुं; अंतिः लहई नत्थि सन्देहो. ५४२. मानवती रास, अपूर्ण, वि. १९वी, जीर्ण, पृ. १५, जैदेना., पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. १७मी ढाल गा.१ तक है., (२५.५४१२.५, १२४३८). मानतुङ्गमानवती रास, मु. मोहनविजय, मागु., पद्य, वि. १७६०, आदिः ऋषभजिणन्द पदाम्बुजे; अंतिः For Private And Personal Use Only Page #116 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य भाग - १ ६२ ५४३. पञ्चाख्यान चौपई, अपूर्ण, वि. १७३९, श्रेष्ठ, पृ. ५६-८(१ से ८)=४८, जैदेना., ले.स्थल. भारया, ले. पं. रत्नविजय (गुरु गणि ज्ञानविजय),प्र.ले.पु. विस्तृत,प्र.वि. ५ अधिकार, गा.२६१६, पू.वि. गा.३१० तक नहीं है., (२५.५४११.५, २० २१४५०). पंचाख्याननीतिशास्त्र-पद्यानुवाद पञ्चाख्यान चौपाई, मु. रत्नसुन्दरसूरि, मागु., पद्य, वि. १६२२, आदि:-; अंतिः कवि पूरइ आस. ५४५. कुमारसम्भव सह सुबोधिका वृत्ति - सर्ग १ से ७, प्रतिपूर्ण, वि. १७६२, श्रेष्ठ, पृ. ९५+२८,८२)=९७, जैदेना., ले.स्थल. पत्तन, ले. पण्डित तेजचन्द्र, पठ. गणि दानचन्द्र (गुरु गणि जिनचन्द्र),प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. टीका-सर्ग-७., संशोधित, त्रिपाठ, (२६४१३, ३-१४४३२-३५). कुमारसम्भव, कालिदास, सं., पद्य, (प्रतिपूर्ण), आदिः अस्त्युत्तरस्यां; अंति: कुमारसम्भव-सुबोधिका व्याख्या, गणि श्रीविजय, सं., गद्य, (संपूर्ण), आदिः श्रीशद्धेश्वरपार्श्व; अंतिः दत्तवाचं दत्तोत्तरं. ५४७. स्तवन, सज्झाय व सवैया आदि सङ्ग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, पे. १२, जैदेना., (२३.५४११, १५४३९). पे. १. औपदेशिक दूहा, राज., पद्य, (पृ. १अ-२अ), आदिः आयो आस करेह; अंतिः जो नवि मिलसी आज., पे.वि. गा.४४. पे. २.४ प्रहर वर्णन, मागु., पद्य, (पृ. २अ), आदिः पहिलो पोहर रयण; अंतिः प्रीयु मुच्छारा बाल., पे.वि. गा.४. पे. ३. प्रास्ताविकश्लोक सङ्ग्रह, सं.,प्रा., पद्य, (पृ. २आ-४आ), आदि: दातादरीद्रीकृपणो; अंतिः द्रष्टिः कर्णभूषणम्., पे.वि. श्लो.५७. पे. ४. देशना सज्झाय, मु. लब्धि, मागु., पद्य, (पृ. ४आ-५अ), आदिः आज आसाढ्युंउ; अंतिः लब्धि भणे सुभ आज हो., पे.वि. गा.१६. पे. ५. समवसरण गीत, मु. रत्न, मागु., पद्य, (पृ. ५अ-५आ), आदिः आज हुँ गइती रे; अंतिः तणा डङ्का वाजे रे., पे.वि. गा.७. पे. ६. अइमुत्तामुनि सज्झाय, मु. मेरुविजय, मागु., पद्य, (पृ. ५आ-६अ), आदिः वीर जिणेसर प्रणमी; अंतिः मेरुनमइ अणगारजी., पे.वि. गा.११. पे. ७. नेमराजिमती सज्झाय , मु. कान्ति, मागु., पद्य, (पृ. ६अ-६आ), आदिः राजन्द वरसे मेहल; अंतिः कान्ति नमे वारंवार., पे.वि. गा.७. पे. ८. विरहव्यथा गीत, राज., पद्य, (पृ. ६आ), आदिः उर्छ रे सवारी माहरा.; अंतिः दिवस विलम्बिया रे., पे.वि. गा.५. पे. ९. आदिजिन स्तवन, मु. राम, प्राहिं., पद्य, (पृ. ६आ-७अ), आदिः प्रभु तुंह्म मुरति; अंतिः निध लच्छि पीव्या रे., पे.वि. गा.६. पे. १०. सुविधिजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मागु., पद्य, (पृ. ७अ), आदिः अरज सुणो इक सुविधि; अंति: मोहनविजय कहे सिरनामी., पे.वि. गा.७. पे. ११. देवी गरबो, गोडीदास, मागु., पद्य, (पृ. ७अ-७आ), आदिः प्रथम समरूं देव गणेस; अंति: नवनिधि थास्ये रे. पे. १२. आध्यात्मिक सवैया, मागु., पद्य, (पृ. ७आ), आदिः नही काम नही क्रोध; अंतिः सो जोगीसर जाणीयइ., पे.वि. गा.१. ५५५. कृष्णरुक्मणि कीर्तिवल्ली सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७०८, श्रेष्ठ, पृ. ५२, जैदेना., ले.स्थल. पत्तननगर, ले. गणि विजयवर्धन (गुरु गणि ऋद्धिविजय), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. मूल-गा.३०४. प्र.पु. सर्वग्रं. ३७२५., टिप्पण युक्त विशेष पाठ, प्र.ले.श्लो. (५०९) यादृशं पुस्तके दृष्टं; (५१८) तैलाद्रक्षे ज्जलाद्रक्षेत्, (२५.५४११, ४४३७). कृष्णरुक्मणी वेलि, राजा पृथ्वीराज राठोड, मागु., पद्य, वि. १६३७, आदिः परमेसर प्रणमि; अंतिः श्रीफल भगति अपार. For Private And Personal Use Only Page #117 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ६३ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची कृष्णरुक्मणी वेलि-टबार्थ, मु. शिवनिधान, मागु., पद्य, वि. १६३८, आदिः पहिलं परमेश्वरने; अंतिः (१)अविचल फल पामई (२)उदयवर रयनायर सरवङ्ग. ५६५. सूक्तमाला, सूतक विचार, दुष्करचतुष्क व पोसहमां पाणी पीवानी गाथा, संपूर्ण, वि. १७९३, मध्यम, पृ. ८, पे. ४, जैदेना., ले. पं. राजसागर गणि, (२४.५४१०.५, १४४५१). पे. १. सूक्तमाला, मु. केशरविमल, सं.,मागु., पद्य, वि. १७५४, (पृ. १-८), आदिः सकलसुकृत्यवल्लीवृन्द; अंतिः केसरविमलेन विबुधेन., पे.वि. ४ वर्ग. पे. २. सूतक विचार, मागु., गद्य, (पृ. ८आ), आदिः पुत्र जन्म्यां १०; अंतिः आभडे तो पहर १२ सूतक. पे. ३. पौषधव्रत आहारादिग्रहण गाथा, प्रा., पद्य, (पृ. ८आ), आदिः फासू असणं पाणं भगवया; अंतिः साधए पोसहो तहा., पे.वि. गा.१. पे. ४. दुष्करचतुष्क गाथा , प्रा., पद्य, (पृ. ८आ), आदिः अक्खाण रसणि कम्माण; अंतिः दुक्खेहिं जिप्पन्ति., पे.वि. गा.१. ५७१.” बन्धस्वामित्व व षडशिती सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ३१-१४(१ से १४)=१७, पे. २, जैदेना., प्र.वि. संशोधित, पू.वि. कर्मविपाक व कर्मस्तव नहीं हैं.,प्र.ले.श्लो. (५३६) जलाद् रक्षेत् तैलात् रक्षेत्, (२६४११, ५४२७-३२). पे. १. पे. नाम. बन्धस्वामित्व सह टबार्थ, पृ. -१५अ-१९अ, संपूर्ण बन्धस्वामित्व नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, आदिः बन्धविहाणविमुक्कं; अंतिः नेयं कम्मत्थयं सोउं. बन्धस्वामित्व नव्य कर्मग्रन्थ-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः बन्धविधान कर्मबन्धना; अंतिः भणी साम्भलीनइ., पे.वि. मूल-गा.२५. पे. २. पे. नाम. षडशीति सह टबार्थ, पृ. १९अ-३१, संपूर्ण षडशीति नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, आदिः नमिय जिणं जिय; अंतिः देविन्दसूरीहिं. षडशीति नव्य कर्मग्रन्थ-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः वीतरागदेवनइ नमस्करी; अंतिः देवेन्द्रसूरिहिं., पे.वि. मूल गा.८७. ५७६.” अभिधानचिन्तामणिनाममाला-काण्ड १ से २, प्रतिपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १२, जैदेना., ले.स्थल. स्थंभतीर्थ, ले. पं. वृद्धिविजय, प्र.वि. संशोधित, (२६४११, ११४३२). अभिधानचिन्तामणि नाममाला, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, आदिः प्रणिपत्यार्हतः; अंति:६४३. अक्षरबावनी व सवाइया, संपूर्ण, वि. १८८८, श्रेष्ठ, प्र. ५, पे. २, जैदेना., ले.स्थल. विक्रमपुर, ले. पं. किसनविजय, प्र.ले.पु. मध्यम,प्र.वि. संशोधित, (२५.५४११, १५४३८). पे. १. अक्षरबावनी, मु. मान, प्राहिं., पद्य, (पृ. १-५), आदिः ॐकार अपार अलख्य; अंतिः बावन अक्षर बावनी गाई., पे.वि. गा.५७. पे. २. औपदेशिक पद, प्राहिं., पद्य, (पृ. ५आ), आदिः पापी कहा जोणे साध; अंतिः प्रीत भइ न भइ है., पे.वि. गा.१. ६४४. भगवतीसूत्र की वृत्ति, संपूर्ण, वि. १६वी, श्रेष्ठ, पृ. ४४१-१(१७५+१७६)=४४०, जैदेना., ले.स्थल. दिसा वालम, ले. वाछा गणपति द्विज, प्र.वि. ग्रं. १८६१६, (३०x११.५, १३४५३). भगवतीसूत्र-अभयदेवीय टीका, आ. अभयदेवसूरि , सं., गद्य, वि. ११२८, आदिः सर्वज्ञमीश्वरमनन्त; अंतिः श्लोकमानेन निश्चितम्. ६४५. प्रश्नव्याकरणसूत्र सह वृत्ति, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १६५-२०(१,६ से १६,१८ से २५)=१४५, जैदेना.,प्र.वि. मूल-ग्रं. १३००, अध्याय-१०; टीका-ग्रं. ५६३०. मुद्रित प्रत पर से लिखा गया है., (२७.५४१२.५, १४४४५). प्रश्नव्याकरणसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदिः-; अंतिः अङ्गं जहा आयारस्स. प्रश्नव्याकरणसूत्र-टीका, आ. अभयदेवसूरि , सं., गद्य, वि. १२वी, आदि:-; अंतिः (१)इति ब्रवीमीति (२)संशोधिता For Private And Personal Use Only Page #118 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य भाग - १ चेयम. ६४६. आचाराङ्गसूत्र सह नियुक्ति व वृत्ति, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३९३, जैदेना., ले.स्थल. वढवाण, ले. श्रा. लालचन्द रुघनाथ, प्र.वि. मूल-२५अध्ययन; प्र.पु. मूल-ग्रं. २५५४.प्र.पु. सर्वग्रन्थाग्रन्थ-१२०००. मुद्रित पर से प्रतिलिपी., (२६.५४११.५, १५४४४). आचाराङ्गसूत्र , आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदिः सुयं मे आउसं० इह; अंतिः विमुच्चति त्ति बेमि. आचाराङ्गसूत्र-नियुक्ति, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., पद्य, आदिः वन्दितु सव्वसिद्धे; अंतिः हुन्ति अज्झयणा. आचाराङ्गसूत्र-टीका # , आ. शीलाङ्काचार्य, सं., गद्य, वि. ९१८, आदि: जयति समस्तवस्तु; अंतिः मार्गप्रवणोस्तु लोकः. आचाराङ्गसूत्र-नियुक्ति की टीका #, आ. शीलाङ्काचार्य, सं., गद्य, वि. ९१८, आदिः तत्र वन्दित्वा; अंतिः#. ६४७. उपाशकदशाङ्गसूत्र सह टबार्थ, पूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ६६, जैदेना., पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है., (२५.५४११, ६४३२). उपासकदशाङ्गसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदिः तेणं० चंपा नामं नयरी; अंति: उपासकदशाङ्गसूत्र-टबार्थ, मागु., पद्य, आदिः (१) प्रणम्य श्रीमहावीरं (२) तेणई कालि तेणइ समइ; अंति:६४८.” ठाणाङ्गसूत्र सह वृत्ति, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ४३५-६(२,१३७,३७७,३९४ से ३९५,३३०+३३१)+३(२९४ से २९५,३०८)=४३२, जैदेना., प्र.वि. त्रिपाठ, पू.वि. बीच-बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., दशा वि. संश्लिष्ट-बीच के कुछ पत्र, मूषक भक्षित-टीकादि का अंश नष्ट है, (२५४११, १३४४१). स्थानाङ्गसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदिः सुयं मे आउसं तेणं; अंति: स्थानाङ्गसूत्र-टीका, आ. अभयदेवसूरि , सं., गद्य, वि. ११२०, आदिः श्रीवीरं जिननाथं; अंति:६४९. भगवतीसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ७१५-२(१५५,५६१+५६२)=७१३, जैदेना., पू.वि. बीच व अंत के पत्र __ नहीं हैं. सत्रहवाँ शतक पूर्ण तक है., (२५.५४१०.५, ७४३७). भगवतीसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदिः नमो अरहन्ताणं; अंति: भगवतीसूत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः श्रीअरिहन्तनइ; अंति:६५०.” ठाणाङ्गसूत्र, संपूर्ण, वि. १५वी, श्रेष्ठ, पृ. ८४, जैदेना., प्र.वि. १०स्थान; प्र.पु. मूल-ग्रं. ३७७७. अन्तिमपत्र बाद में लिखा गया।, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, पदच्छेद सूचक लकीरें-कुछ पत्र, (३०x११, १४४५१). स्थानाङ्गसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदिः सुयं मे आउसं तेणं; अंतिः अणन्ता पण्णत्ता. ६५१. ज्ञाताधर्मकथाङ्गसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १७४६, श्रेष्ठ, पृ. ३०९-९१(१ से ९१)=२१८, जैदेना., ले. मु. कल्याणसोम (गुरु उपा. जयसोम, तपागच्छ), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. मूल-ग्रं. ५५००,१९अध्ययन. प्र.पु.सर्वग्रन्थाग्रन्थ-१३९१०., पू.वि. श्रुतस्कन्ध-१ अध्ययन-४ अपूर्ण तक नहीं है., प्र.ले.श्लो. (४९९) यादृशं पुस्तके दृष्टं, (२५.५४११, ६x४०). ज्ञाताधर्मकथाङ्गसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदिः तेणं कालेणं० चम्पाए; अंति: ज्ञाताधर्मकथाङ्गसूत्र-टबार्थ, उपा. कनकसुन्दर, मागु., गद्य, आदिः प्रणम्य श्रीमहावीरं; अंतिः६५२." भगवतीसूत्र सह अवचूरि (दुर्गपद शब्दार्थ), संपूर्ण, वि. १६६४, श्रेष्ठ, पृ. ७९३, जैदेना., ले. राउलविष्णु महादेव, प्र.वि. मूल-ग्रं. १५७५२,४१शतक. १८८८ में गणि दयामेरुजी को वहराया गया सुभट दुर्गे।, टिप्पण युक्त विशेष पाठ-कुछ पत्र, (२५.५४११, ९४३५). भगवतीसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: नमो अरहन्ताणं; अंतिः भावेमाणे विहरति. भगवतीसूत्र-शब्दार्थ, सं.,मागु., गद्य, आदिः अथ विवाहपन्नत्ति; अंतिः विस्तीर्ण छइ इत्यर्थ. ६५३." प्रश्नव्याकरणसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १०८, जैदेना., प्र.वि. प्र.पु. मूल-ग्रं. १२५०., पदच्छेद सूचक लकीरें-वचन विभक्ति संकेत-क्रियापद संकेत, अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, संशोधित, (२४४१०.५, ५४४१). For Private And Personal Use Only Page #119 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ६५ www.kobatirth.org: कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची प्रश्नव्याकरणसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी प्रा. प+ग, आदि जम्बू इणमो अण्हयसंवर: अंतिः शरीरधरे भविस्सतीति प्रश्नव्याकरणसूत्र - टवार्थ मागु., गद्य, आदि: अहो जम्बू ए अंतिः अनन्ता सुख पामइ. ६५४.” ठाणाङ्गसूत्र सह वृत्ति, पूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ४२९ - ३ (११३,३१३, ३४३)+५ (२५,७५,७४, १२३, २४३) = ४३१, जैदेना., अन्य- मु. गणेश (गुरु गणि विजयशेखर, अञ्चलगच्छ), प्र. वि. मूल - १० स्थान प्र. पु. मूलग्रं. ३७५०; टीका- ग्रं. १४२५०; प्र.पु. टीका ग्रं. १४३००. वि.सं. १७०५ में अंचलगच्छीय आ. कल्याणसागरसूरि के राज्य में धवलकनगर के ग्रन्थागार में यह ग्रन्थ वाचक विजयशेखर गणि के शिष्य मुनि गणेश ने भव्य जीवो के पठन-पाठन हेतु रखा. प्र.पु. मूल-ग्रे. १५००., अशुद्ध पाठ, पंचपाठ, प्र.ले. श्लो. (५०९) यादृशं पुस्तके दृष्टं, (२५×११.५, ७X३०). स्थानाङ्गसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदिः सुयं मे आउसं तेणं; अंतिः अणन्ता पण्णत्ता. स्थानाङ्गसूत्र - टीका, आ. अभयदेवसूरि, सं., गद्य, वि. ११२०, आदिः श्रीवीरं जिननाथं; अंति: ( १ )भ्योन्येभ्य इति (२) टीकाल्पधियोपि गम्या. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ६५५. सूत्रकृताङ्गसूत्र सह नियुक्ति व वृत्ति, संपूर्ण वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ४२७ जैदेना, प्र. वि. मूल ग्रं. २१००, अध्याय- २३.प्र.पु. सर्वग्रं. १२८५०. मुद्रित पर से प्रतिलिपी, (२७.५X१२.५, १४४४७). सूत्रकृतागसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी प्रा. प+ग, आदि बुज्झिज्ज तिउटेज्ज अंतिः विहरति त्ति बेगि " सूत्रकृताङ्गसूत्र- निर्युक्ति, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., पद्य, आदि: तित्थयरे य जिणवरे; अंति: कहियम्मि उवसन्ता. सूत्रकृताङ्गसूत्र- बृहद्वृत्ति # आ. शीलाङ्काचार्य, सं. गद्य वि. १०वी आदि (१) स्वपरसमयार्थसूचकम (२) संहितादिक्रमेण; अंतिः (१) कल्याणभाग् भवतु (२) चरणगुणट्ठिओ साहू. (+) ६५६. भगवतीसूत्र, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ६५३ - ३ (२४० + २३९, १९३+१९४,४५९)+५ (१६८,२२६,२६१,४३६,४४९) =६५५, जैदेना., प्र. वि. ४१शतक, संशोधित, (२५.५X१०.५, ११४३०). भगवतीसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदिः नमो अरहन्ताणं; अंतिः भावेमाणे विहरति .. ६५७. ज्ञाताधर्मकथाङ्गसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २८६-१(२३२+२३३) +२(७, ८९) = २८७, जैदेना., प्र. वि. मूल१९ अध्ययन. प्र. पु. सर्वग्रन्थाग्रन्थ- १४००० (२५.५५११, ७०४५). ज्ञाताधर्मकथाङ्गसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदि: तेणं कालेणं० चम्पाए; अंतिः पुरिसवरगन्धहत्थिणं. ज्ञाताधर्मकथाङ्गसूत्र-टबार्थ, उपा. कनकसुन्दर, मागु., गद्य, आदिः प्रणम्य श्रीमहावीरं; अंति: गन्धहस्ति समान. ६५८. भगवतीसूत्र की वृहद्वृत्ति, संपूर्ण वि. १६०२ श्रेष्ठ, पृ. ३७५+१ (५३) ३७६. जैदेना, राज्यकाल- राजा दुर्जनसल्ल महराज, प्र. वि. ग्रं. १८६१६, प्र.ले. श्लो. (५०९) यादृशं पुस्तके दृष्टं (५४१) भग्न पृष्ट कटी ग्रीवा, (२५.५४१०.५, १५४५५). " भगवतीसूत्र - अभयदेवीय टीका, आ. अभयदेवसूरि सं., गद्य वि. ११२८, आदिः सर्वज्ञमीश्वरमनन्त; अंतिः (१) श्लोकमानेन निश्चितम् (२) श्वेति न व्याखाताः. ६५९. उपाशकदशाङ्गसूत्र, अन्तकृद्दशाङ्गसूत्र व अनुत्तरौपपातिकदशाङ्गसूत्र की वृत्ति, अपूर्ण, वि. १६वी, श्रेष्ठ, पृ. २२८ (७, १३ से १९) = १४, पे. ३, जैदेना, लिखवा. गणि लक्ष्मीकल्लोल (गुरु उपा. हर्षकल्लोल), प्र. वि. प्र. पु. सर्व टीका ग्रं. १३००.., (२६×११, १७४६१). पे. १. पे. नाम. उपासकदशाङ्गसूत्र की टीका, पृ. १-१२, अपूर्ण उपासकदशाङ्गसूत्र- वृत्ति, आ. अभयदेवसूरि सं., गद्य, वि. १११७, आदिः (१) श्रीवर्द्धमानमानम्य ( २ ) अंत के पत्र नहीं हैं. तृतीय अध्ययन तक है. २०अ २१अ, अपूर्ण तत्रोपासकदशा: अंतिः- पे.वि. बीच का व सं., गद्य, आदि:- अति: (१) ननु विधीयतां सर्वथा ; , पे. २. पे. नाम. अन्तकृद्दशाङ्गसूत्र का विवरण, पृ. अन्तकृदशाङ्गसूत्र- टीका आ. अभयदेवसूरि , " (२) कथाविवरणादवसेयमेवं च पे. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. For Private And Personal Use Only Page #120 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य भाग १ . www.kobatirth.org: १०३अध्ययन., टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२७x१२, ८x४६). समवायाङ्गसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी प्रा. गद्य, आदिः सुयं मे० इह खल: अंतिः अज्झयणन्ति तिबेमि पे. ३. पे नाम, अनुत्तरोपपातिकसूत्र का विवरण, पृ. २१अ-२२, संपूर्ण " अनुतरौपपातिकदशाङ्गसूत्र- टीका आ. अभयदेवसूरि सं. गद्य वि. १२वी आदि अथानुत्तरीपपातिकदशा; अंतिः मन्तकृदशाङ्गवदिति. (+) ६६०. समवायाङ्गसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण वि. १८३५, श्रेष्ठ, पृ. ९४ जैदेना. प्र. वि. मूल ग्रं. १६६७ टबार्थ परिमाण अज्ञात. " Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir समवायाङ्गसूत्र-टबार्थ, वाचक मेघराजजी, मागु., गद्य, वि. १७उ., आदि: (१) देवदेवं जिनं नत्वा (२) सु० साम्भल्यउ; अंतिः बहुमान देखाड्यउ. (+) , ६६१. आचाराङ्गसूत्र, पूर्ण, वि. १८वी श्रेष्ठ, पृ. ३०, जैदेना, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें, संशोधित, प्र. वि. अंतिम पत्र नहीं है. उपधानश्रुत उद्देशक ४ की गा.९ तक है. (२७४११, ११४४०). आचाराङ्गसूत्र आ. सुधर्मास्वामी प्रा. प+ग, आदिः सुयं मे आउसं० इह अंति: ६६२. सूत्रकृताङ्गसूत्र सह सूत्रकृताङ्गदीपिका टीका, संपूर्ण वि. १६४१ श्रेष्ठ, पृ. १६८, जैदेना, प्र. वि. मूल- अध्याय- २३.. संशोधित (२६४१०.५. १५०४२). सूत्रकृतागसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी प्रा. प+ग, आदि बुज्झिज्ज तिउटेज्ज अंति विहरति त्ति बेमि सूत्रकृताङ्गसूत्र- दीपिका वृत्ति, मु. हर्षकुल, सं. गद्य वि. १५८३, आदिः प्रणम्य श्रीजिनं अंतिः जगति जयतु विरम्. ६६३. सूत्रकृताङ्गसूत्र की वृत्ति, संपूर्ण वि. १६२२, श्रेष्ठ, पृ. २४२, जैदेना. ले. स्थल. दुग्गड, राज्यकाल राजा अकबर, लिखवा. दुर्गादास (गुरु मु. दुर्गादास + मानचन्द के गुरु), प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र. वि. भार्या मैतौ पञ्चमी उद्यापने ।, (२८४११.५, १६४५१). सूत्रकृताङ्गसूत्र-बृहद्वृत्ति #, आ. शीलाङ्काचार्य, सं., गद्य, वि. १०वी, आदि: (१) स्वपरसमयार्थसूचकम (२) इहापसदसंसारान् अंति: (१) कल्याणभाग् भवतु (२) चरणगुणट्ठिओ साहू. ६६ ६६४.” औपपातिकसूत्र सह वृत्ति, संपूर्ण, वि. १६वी, श्रेष्ठ, पृ. ३३, जैदेना., प्र. वि. संशोधित-शुरुआत व अंत के कुछ पत्र, टिप्पण युक्त विशेष पाठ- शुरुआत व अंत के कुछ पत्र, पदच्छेद सुचक लकीरें शुरुआत व अंत के कुछ पत्र, पंचपाठ, प्र.ले. श्लो. (१४१) यादशं पुस्तकं कृत्वा, (२५.५x११, २५x४३). औपपातिकसूत्र, प्रा. प+ग, आदि: तेणं काले० चम्पा०: अंतिः सुही सुहं पत्ता. " औपपातिकसूत्र- टीका, आ. अभयदेवसूरि, सं., गद्य, आदिः श्रीवर्द्धमानमानम्य; अंति: ( १ ) संशोधिता चेयम् (२) व्यक्तार्थे एवेति. ६६५. उबवाईसूत्र, संपूर्ण वि. १६३९, श्रेष्ठ, पृ. ५७ जैदेना. ले. ऋ. दरहऋषि, राज्यकाल राजा अकबर (२७४११.५, · " ११×३२-३४). औपपातिकसूत्र प्रा. प+ग, आदि तेणं काले० चम्पा०: अंतिः सुही सुहं पत्ता. " " ६६६. जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिसूत्र, संपूर्ण वि. १७वी, मध्यम, पृ. १७२, जैदेना, प्र. वि. ग्रं. ४४५४ संशोधित (२६११.५, ११४३६). " जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं तेणं; अंति: उवदंसेइ त्ति बेमि ६६७.” निरयावलिकादिपञ्चोपाङ्गसूत्र, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ४८, पे. ५, जैदेना., प्र. वि. सर्वग्रं. ११०९., संशोधित, (२६.५४११, ११४३६). पे. १. पे. नाम. कल्पिकासूत्र, पृ. १-१९आ कल्पिकासूत्र, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं ते अंतिः वरं मायातो सरिसणामाओ. पे. २. पे. नाम. कल्पावतंसिकासूत्र, पृ. १९आ-२१आ कल्पावतंसिकासूत्र प्रा. गद्य, आदि जति णं भंते समणेणं०: अंतिः वा महाविदेहे सिद्धे, For Private And Personal Use Only Page #121 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ६७ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची पे. ३. पे. नाम. पुष्पिकासूत्र, पृ. २१आ-४०आ पुष्पिकासूत्र, प्रा., गद्य, आदिः जति णं भंते समणेणं०; अंतिः चेइयाई जहा संगहणीए. पे. ४. पे. नाम. पुष्पचूलिकासूत्र, पृ. ४०आ-४३आ पुष्पचूलिकासूत्र, प्रा., गद्य, आदिः जइ णं भंते समणेणं०; अंतिः हे वासे सिज्झिहिंति. पे. ५. पे. नाम. वृष्णिदशासूत्र, पृ. ४३आ-४८ वृष्णिदशासूत्र, प्रा., गद्य, आदि: जइ णं भंते० पंचमस्स; अंतिः मइरित्त एक्कारससु वि. ६६८. सूर्यप्रज्ञप्तिसूत्र सह वृत्ति, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २१५-११(१ से ३,१३ से १७,३८ से ४०)=२०४, जैदेना., प्र.वि. सुन्दर लिखावट. मुद्रित की प्रतिलिपी., पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., (२७.५४१२, १४४४८). सूर्यप्रज्ञप्ति, प्रा., गद्य, आदिः-; अंति: सूर्यप्रज्ञप्ति-टीका, आ. मलयगिरिसूरि , सं., गद्य, आदि:-; अंति:६६९. निर्यावलियादिपञ्चोपाङ्गसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९५८, श्रेष्ठ, पृ. ७३, पे. ५, जैदेना., ले.स्थल. बीकानेर, ले. मु. गणेशदास (गुरु मु. लछीराम, खरतरगच्छ), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. प्र.पु.सर्वग्रं. ५१००., प्र.ले.श्लो. (४९९) यादृशं पुस्तके दृष्टं; (६) कर कूबड मस्तक अधो, (२४.५४१२, ७X४१). पे. १.पे. नाम. कल्पिकासूत्र सह टबार्थ, पृ. १-२७आ कल्पिकासूत्र, प्रा., गद्य, आदिः तेणं कालेणं तेणं०; अंतिः वरं मायातो सरिसणामाओ. कल्पिकासूत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः ते० ते कालने विषइ; अंतिः नामे सूत्र समाप्त. पे. २. पे. नाम. कल्पावतंसिकासूत्र सह टबार्थ, पृ. २७आ-३१आ कल्पावतंसिकासूत्र, प्रा., गद्य, आदिः जइ णं भन्ते समणेणं०; अंतिः वा महाविदेहे सिद्धे. कल्पावतंसिकासूत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः ज० जउ भं० हे पूज्य; अंतिः वडिंसियासूत्र समाप्त. पे. ३. पे. नाम. पुष्पिकासूत्र सह टबार्थ, पृ. ३१आ-६१आ पुष्पिकासूत्र, प्रा., गद्य, आदिः जइ णं भन्ते समणेणं०; अंतिः चेइयाइं जहा संगहणीए. पुष्पिकासूत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः ज० जो भं० हे पूज्य; अंतिः पुफीयासूत्र समाप्त. पे. ४. पे. नाम. पुष्पचूलिकासूत्र सह टबार्थ, पृ. ६१आ-६४आ पुष्पचूलिकासूत्र, प्रा., गद्य, आदिः जइ णं भंते समणेणं०; अंतिः हे वासे सिज्झिहिंति. पुष्पचूलिकासूत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः ज० जो हे पूज्य; अंतिः खेत्र सीझसी सर्व. पे. ५. पे. नाम. वृष्णिदशासूत्र सह टबार्थ, पृ. ६४आ-७३अ वृष्णिदशासूत्र, प्रा., गद्य, आदि: जइ णं भंते० पंचमस्स; अंति: मइरित्त एक्कारससु वि. वृष्णिदशासूत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, आदि: ज० जो भं० हे पुज्य; अंतिः इग्यार हजु अध्येन. ६७०. उवाई उपाङ्ग, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ४८, जैदेना., प्र.वि. प्र.पु. ग्रं. १२५०., (२५.५४११.५, ११४३४). औपपातिकसूत्र, प्रा., प+ग, आदिः तेणं कालेणं० चम्पा०; अंतिः सुही सुहं पत्ता. ६७१. प्रज्ञापनासूत्र सह वृत्ति, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ६११-३९(३८२,३८५ से ४१९,४३७,६०७ से ६०८)-५७२, जैदेना., प्र.वि. मूल-अध्याय-३६ पद; टीका-ग्रं. १६०००. सुन्दर लिखावट । मुद्रित की प्रतिलिपी।, (२७.५४१२.५, १३४४८). प्रज्ञापनासूत्र, वाचक श्यामाचार्य, प्रा., गद्य, आदिः नमो अरिहन्ताणं; अंतिः सुही सुहं पत्ता. प्रज्ञापनासूत्र-टीका, आ. मलयगिरिसूरि , सं., गद्य, आदिः (१) जयति नमदमरमुकुटप्रति (२) अथ प्रज्ञापनेति कः; अंतिः (१)सन्तस्तिष्टन्ति (२)जिनवचनसद्बोधम्. ६७२. जीवाभिगमसूत्र की टीका, संपूर्ण, वि. १५वी, श्रेष्ठ, पृ. २३६, जैदेना., प्र.वि. प्र.पु. ग्रं. १३०००., (२६.५४११, १६४५८). For Private And Personal Use Only Page #122 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य भाग - १ ६८ जीवाभिगमसूत्र-टीका, आ. मलयगिरिसूरि , सं., गद्य, आदिः (१) प्रणमत पदनखतेजप्रति (२) इह रागद्वेषाद्यभिभूत; अंतिः (१)चिरमभिमतफलसिद्धेः (२)सिद्धान्तसद्बोधम्. ६७३. प्रज्ञापनासूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३६९-२१४(१ से २१४)=१५५, जैदेना., पू.वि. बीच के पत्र हैं., (२४.५४११, ७X४२). प्रज्ञापनासूत्र, वाचक श्यामाचार्य, प्रा., गद्य, आदि:-: अंति:६७४.” कल्पसूत्र सह टबार्थ व व्याख्यान+कथा, संपूर्ण, वि. १७६४, श्रेष्ठ, पृ. १४४, जैदेना., ले.स्थल. पुप्फावतीनगर, पठ. मु. महिमारत्न (गुरु मु. रूपरत्न, चन्द्रगच्छ), राज्यकाल- राजा अजितसिंह, प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र.वि. मूल-ग्रं. १२१६,९व्याख्यान. प्र.पु.सर्वग्रं. १३४९२., टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२६४११.५, ७४४२). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदिः तेणं कालेणं० समणे; अंतिः उवदंसेइ त्ति बेमि. कल्पसूत्र-टबार्थ', मागु., गद्य, आदिः तेणइ कालि जे; अंतिः सुधर्मा गणधरे कह्यो. कल्पसूत्र-व्याख्यान+कथा* , मागु., गद्य, आदिः नमः श्रीवर्द्धमानाय; अंतिः#. ६७५.” कल्पसूत्र सह कल्पलताटीका व टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८७५, श्रेष्ठ, पृ. २४८, जैदेना., ले.स्थल. सिंघाराम, ले. पं. न्यायविशाल, प्र.वि. मूल-ग्रं. १२१६,९-व्याख्यान. प्रतिलेखन संवत्-बाणेभवसुभूम्यब्दे., पदच्छेद सूचक लकीरें, संशोधित, टिप्पण युक्त विशेष पाठ-कुछ पत्र, प्र.ले.श्लो. (३७८) यावच्चन्द्रस्य सूर्यस्य, (२५४११.५, ५४२९). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदिः णमो अरिहन्ताणं० पढमं; अंतिः उवदंसेइ त्ति बेमि. कल्पसूत्र-कल्पलता टीका, उपा. समयसुन्दर गणि, सं., गद्य, वि. १६८५, आदिः प्रणम्य परमं ज्योतिः; अंतिः#. कल्पसूत्र-टबार्थ , मागु., गद्य, आदिः ते० तिण कालेइ तिण; अंतिः इसौ विसेषे दिखावै. ६७६. कल्पसूत्र सह टबार्थ व व्याख्यान+कथा, पूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २०५-१(१)=२०४, जैदेना., ले. पं. नेमिविजय, पू.वि. प्रथम एक व अंत के पत्र नहीं हैं. सामाचारीगा.४४ अपूर्ण तक है., (२६४११.५, ६४३०). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदिः णमो अरिहन्ताणं० पढमं; अंति:कल्पसूत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः (१) ते० तिण कालेइ तिण (२) आठकर्मरुप अरी जे; अंति: कल्पसूत्र-व्याख्यान+कथा* , मागु., गद्य, आदि:-; अंतिः६७७. कल्पसूत्र सह किरणावली वृत्ति, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. २२१, जैदेना., लिखवा. श्रा. सहजपाल,प्र.वि. मूल-ग्रं. १२१६,९-व्याख्यान., त्रिपाठ, द्विपाठ, (२६४११, ११४४२). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदिः तेणं कालेणं० समणे; अंतिः उवदंसेइ त्ति बेमि. कल्पसूत्र-कल्पकिरणावली टीका, उपा. धर्मसागर गणि, सं., गद्य, वि. १६२८, आदिः (१) प्रणम्य प्रणताशेष (२) यत्र यत्तदोर्नित्य; अंतिः (१)मभिहितमिति (२)रमुष्या शतशः प्रतिः... ६७८.” कल्पसूत्र सह कल्पद्रुमकलिकाटीका व टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १२७, जैदेना., अन्य- आ. जिनचन्द्रसूरि (गुरु आ. जिनधर्मसूरि, खरतरगच्छ), प्र.ले.पु. विस्तृत,प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें, संशोधित, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. आठवें व्याख्यान तक है., (२५.५४१२, ५४३५). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदिः णमो अरिहन्ताणं पढमं; अंति:कल्पसूत्र-कल्पद्रुमकलिका टीका, गणि लक्ष्मीवल्लभ, सं., गद्य, वि. १८वी, आदिः (१) श्रीवर्द्धमानस्य (२) तस्मिन्काले; अंति: कल्पसूत्र-टबार्थ' , मागु., गद्य, आदिः अर्हदादि पञ्चपदानां; अंति:६७९. कल्पसूत्र सह कल्पद्रुमकलिकाटीका व टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८७२, श्रेष्ठ, पृ. १७५+१(३५)=१७६, जैदेना., ले.स्थल. अम्बिकावतिनगर, ले. नथमल्ल; मु. न्यायविशाल(बृहदाचार्यगच्छ), गच्छा. गच्छाधिपति जिनसम्भवसूरि(बृहदाचार्यगच्छ), अन्य- आ. जिनचन्द्रसूरि, प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र.वि. मूल-ग्रं. १२१६,९-व्याख्यान.प्र.पु. For Private And Personal Use Only Page #123 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची सर्वग्रं. ५८५०. जिनचंद्रसूरि की परंपरा विस्तृत दी गई है. प्रतिलेखन संवत्-भुजाद्रिवसुइंद्वब्दे. अंत में प्रतिक्रमणादि फल की गाथाएँ लिखी है. ट.आदि-तस्मिन् काले चतुर्थारके तस्मिन् समये. ट.अंतिम-वारंवार श्रीभगवंते कह्यो तिको अमै कह्यो., पदच्छेद सूचक लकीरें-क्रियापद संकेत, संशोधित, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, दशा वि. चंदन पूजा के निशान-जीर्ण हो गये हैं-मूल व टीका का अंश नष्ट है, प्र.ले.श्लो. (४८२) भग्न पुष्टी कटी ग्रीवा; (४४०) तैलाद् रक्षेद् जलाद् रक्षेद्, (२५४१२, ५४३०). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदिः णमो अरिहन्ताणं० पढमं; अंतिः उवदंसेइ त्ति बेमि. कल्पसूत्र-कल्पद्रुमकलिका टीका, गणि लक्ष्मीवल्लभ, सं., गद्य, वि. १८वी, आदिः (१) श्रीवर्द्धमानस्य (२) तस्मिन्काले; अंतिः #. कल्पसूत्र-टबार्थ', मागु., गद्य, आदिः चतुषष्टीन्द्रकृतां; अंतिः कह्यो तिको अमे कह्यो. ६८०. कल्पसूत्र सह टबार्थ व अन्तर्वाच्य(कल्पान्तर्वाच्यानि), पूर्ण, वि. १८३६, श्रेष्ठ, पृ. २८२-५(१,११६ से ११७,१४३,१५२)=२७७, जैदेना., प्र.वि. मूल-ग्रं. १२१६,९-व्याख्यान., पू.वि. प्रायः ग्रं.१२०० तक है., प्र.ले.श्लो. (४८५) यावल्लवणसमुद्रो, (२५.५४११, ६४३६). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदिः णमो अरिहन्ताणं पढमं; अंतिः उवदंसेइ त्ति बेमि. कल्पसूत्र-टबार्थ', मागु., गद्य, आदिः (१) तेणइ कालि जे (२) अरीन् कर्मघ्नान; अंतिः आपणा शिष्यनइ कल्पसूत्र-अन्तर्वाच्य*, सं., गद्य, आदि:-; अंतिः श्रीसङ्घभट्टारकः. ६८१.” कल्पसूत्र सह टबार्थ व व्याख्यान+कथा, संपूर्ण, वि. १८४७, श्रेष्ठ, पृ. ११८+४(८२ से ८५)=१२२, जैदेना., ले. यति फतैचन्द्र(खरतरगच्छ), पठ. मु. स्वरूपचन्द्र, प्र.वि. मूल-ग्रं. १२१६,९-व्याख्यान.प्र.पु. सर्वग्रं. ४५४५. व्याख्यान का कुछेक पाठ मारुगुर्जर में भी लिखा है. अंत में प्रतिक्रमणादिफल टबार्थ सहित लिखा है., संशोधित, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, पदच्छेद सूचक लकीरें-प्रारंभ में क्वचित बाद में ज्यादा, प्र.ले.श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्टं, (२४.५४११.५, ५४४७). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदिः णमो अरिहन्ताणं० पढमं; अंति: उवदंसेइ त्ति बेमि. कल्पसूत्र-टबार्थ , मागु., गद्य, आदिः (१) चोसठि इन्द्रनेपूजनीक (२) ते कालनइ विषइ चतुर्थ; अंतिः कह्यो तिको अमे कह्यो. कल्पसूत्र-व्याख्यान+कथा* , सं., गद्य, आदिः नमः श्रीवर्द्धमानाय; अंतिः पर्वाराधनीयम्. ६८२.” कल्पसूत्र सह टबार्थ व व्याख्यान+कथा- व्याख्यान १ से ७, प्रतिपूर्ण, वि. १८६५, श्रेष्ठ, पृ. १८६, जैदेना., ले.स्थल. पाटडी, ले. गणि निधानविजय (गुरु पं. हेमविजय), पठ. मु. वल्लभविजय, प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-कुछ पत्र, पू.वि. ऋषभदेव चरित्र तक., (२६४११.५, ५४२९). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदिः णमो अरिहन्ताणं० पढमं; अंति:कल्पसूत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः (१) अरिहन्तनइ माहरो (२) तिणे काले वर्तमाने; अंतिः कल्पसूत्र-व्याख्यान+कथा, मागु., गद्य, आदिः कल्याणानि समुल्ल; अंति:६८३." कल्पसूत्र, संपूर्ण, वि. १८७८, श्रेष्ठ, पृ. ७५, जैदेना., ले.स्थल. पुष्पावती, ले. मु. प्रेमरत्न (गुरु मु. तारारत्न, चन्द्रगच्छ), प्र.वि. ग्रं. १२१६,९-व्याख्यान, पदच्छेद सूचक लकीरें, (२६४१२.५, ८x२४). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदिः तेणं कालेणं० समणे; अंतिः उवदंसेइ त्ति बेमि. ६८४.” कल्पसूत्र सह टिप्पण व चतुर्थीपर्युषणापर्वस्थापक कालिकाचार्यकथा, संपूर्ण, वि. १५९८, श्रेष्ठ, पृ. ७०, पे. २, जैदेना., ले. वाचक रामकुशल (गुरु उपा. गुणदेव, मलधारगच्छ), पठ. पण्डित क्षमासुन्दर(मलधारगच्छ), प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र.वि. पट्टावली क्रम से प्रतिलेखक की २५ पीढीयाँ दी गई है., टिप्पण युक्त विशेष पाठ, प्र.ले.श्लो. (५१६) यदक्षरः पदभृष्टं; (४९९) यादृशं पुस्तके दृष्टं, (२५.५४११, ९४३५). पे. १. पे. नाम. कल्पसूत्र सह टिप्पण, पृ. १-६६अ For Private And Personal Use Only Page #124 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य भाग - १ कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदिः तेणं कालेणं समणे; अंतिः उवदंसेइ त्ति बेमि. कल्पसूत्र-टिप्पण, सं., गद्य, आदिः तस्मिन् काले वर्तमान; अंतिः प्ररूपयति दर्पणतलवत्., पे.वि. मूल ग्रं.१२१६,अध्याय-९-व्याख्यान. पे. २. कालिकाचार्य कथा, आ. महेश्वरसूरि, सं., पद्य, वि. १३वी, (पृ. ६६आ-६९आ), आदिः पञ्चमीसंस्थितं पर्व; अंतिः सूरिसागरचन्द्रवत्., पे.वि. श्लो.५१. ६८५.” कल्पसूत्र सह टबार्थ व व्याख्यान+कथा, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १८४+१०(९० से ९७,९९,९८)=१९४, जैदेना., प्र.वि. संशोधित, पू.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं. समाचारी १४वीं तक है., (२४.५४११.५, ६x२५). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदिः णमो अरिहन्ताणं० पढमं; अंति:कल्पसूत्र-टबार्थ', मागु., गद्य, आदिः (१) अरिहन्तनइ माहरो (२) तेणइ कालि जे; अंति: कल्पसूत्र-व्याख्यान+कथा* , मागु., गद्य, आदिः प्रणम्य प्रणताशेषवीर; अंति:६८६. कल्पसूत्र सह टबार्थ व व्याख्यान+कथा, पूर्ण, वि. १८४६, श्रेष्ठ, पृ. १८५-१(१)=१८४, जैदेना., ले.स्थल. पोटलानगर, पठ. मु. दयानिधान (गुरु पं. हितलावण्यजी, बृहत्तखरतरगच्छ), ले. पं. हितलावण्यजी(बृहत्तखरतरगच्छ), प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र.वि. मूल-ग्रं. १२१६,९-व्याख्यान., पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है। अंत के पत्रो में टबार्थ नहीं लिखा है., (२६.५४१२.५, ६x४१). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, (संपूर्ण), आदिः णमो अरिहन्ताणं० पढमं; अंतिः उवदंसेइ त्ति बेमि. कल्पसूत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, (अपूर्ण), आदिः (१) तेणइ कालि जे (२) नमो क० माहरो नमस्कार; अंति: कल्पसूत्र-व्याख्यान+कथा* , मागु., गद्य, (पूर्ण), आदि:-; अंति:६८७.' कल्पसूत्र सह टबार्थ व व्याख्यान+कथा, पूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २७९-६(१,१९० से १९२,२३६,२४८)=२७३, जैदेना., प्र.वि. मूल-ग्रं. १२१६,९-व्याख्यान., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-प्रारंभिक पत्र, (२५.५४११.५, ५-१३४२६-३६). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदिः णमो अरिहन्ताणं पढम; अंतिः उवदंसेइ त्ति बेमि. कल्पसूत्र-टबार्थ', मागु., गद्य, आदिः (१) नमो क० माहरो नमस्कार (२) तेणि कालै तेणि समयइ; अंतिः आपणा शिष्यने कहे. कल्पसूत्र-व्याख्यान+कथा, मागु., गद्य, आदि:-; अंति:६८८.” कल्पसूत्र सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. १६वी, श्रेष्ठ, पृ. ६४, जैदेना.,प्र.वि. मूल-ग्रं. १२१६,९-व्याख्यान., संशोधित, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, पदच्छेद सूचक लकीरें-वचन विभक्ति संकेत-क्रियापद संकेत, (२६४११, ९४३७). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदिः णमो अरिहन्ताणं पढमं; अंतिः उवदंसेइ त्ति बेमि. कल्पसूत्र-अवचूरि*, सं., गद्य, आदिः (१) तेणं० ते इति प्राकृत (२) आदौ केषुचिदादशेषु; अंतिः गणेशोपदेशेनेति. ६८९. कल्पसूत्र सह टबार्थ, पूर्ण, वि. १७४०, मध्यम, पृ. १७६-१(१)=१७५, जैदेना., ले.स्थल. बहिलवा, पठ. मु. प्रदीपचन्द्र, प्र.वि. मूल-ग्रं. १२१६,९-व्याख्यान. पीठिका नही है., पू.वि. अंत की पीठिका नहीं है., (२५.५४१०.५, ५४२३). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि:-; अंति: कल्पसूत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, आदि:-; अंति:६९०.” कल्पसूत्र सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ९८-२(२७.५५+५६)=९६, जैदेना., प्र.वि. मूल-ग्रं. १२१६,९ व्याख्यान., संशोधित, टिप्पण युक्त विशेष पाठ-कुछ पत्र, (२५.५४११, १३४५१). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदिः णमो अरिहन्ताणं० पढमं; अंतिः उवदंसेइ त्ति बेमि. कल्पसूत्र-बालावबोध*, मागु.,राज., गद्य, आदिः नमो अरिहन्ताणं; अंतिः आराध्यो उपदेस्यो. ६९१.” कल्पसूत्र सह टबार्थ+व्याख्यान+कथा, संपूर्ण, वि. १९०१, श्रेष्ठ, पृ. १३९+१(१२७)=१४०, जैदेना., ले.स्थल. सुरत, ले. For Private And Personal Use Only Page #125 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ७१ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची श्रा. वल्लभदास वनमाळीदास वणिक,प्र.वि. मूल-ग्रं. १२१६,९-व्याख्यान; प्र.पु. ग्रं. ५६००., टिप्पण युक्त विशेष पाठकुछ पत्र, (२८x१३, ६४५१). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, (संपूर्ण), आदिः णमो अरिहन्ताणं० पढमं; अंतिः उवदंसेइ त्ति बेमि. कल्पसूत्र-टबार्थ+व्याख्यान+कथा, आ. सोमविमलसूरि, मागु., गद्य, (पूर्ण), आदिः सकलार्थसिद्धिजननी; अंतिः देखाड्या इम कह्यु. ६९२.” कल्पसूत्र सह टबार्थ, व्याख्यान+कथा व श्लोक, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १६१-१(१३)+१(१०)=१६१, पे. २, जैदेना., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-कुछ पत्र, प्र.ले.श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्टं; (४०) यदिमप्यक्षरं भृष्टं, (२५४११.५, ६४२५). पे. १. पे. नाम. कल्पसूत्र सह टबार्थ व व्याख्यान+कथा, पृ. १-१६१ कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदिः णमो अरिहन्ताणं० पढमं; अंतिः उवदंसेइ त्ति बेमि. कल्पसूत्र-टबार्थ+व्याख्यान+कथा, आ. सोमविमलसूरि, मागु., गद्य, आदिः अरिहन्तनइ नमस्कार; अंतिः एतलइ गुरुक्त जाणवु. कल्पसूत्र-टबार्थ+कथा, सं., गद्य, आदिः वर्द्धमानं जिनं; अंतिः उपदेशनुं इम कहिउं., पे.वि. मूल-ग्रं.१२१६,अध्याय ९-व्याख्यान. व्याख्यान का कुछेक अंश मारुगुर्जर में भी लिखा है. पे. २. पे. नाम. मङ्गळ श्लोक, पृ. १६१आ श्लोक सङ्ग्रह जैनधार्मिक , सं.,प्रा., पद्य, आदिः#; अंतिः#., पे.वि. श्लो.१. ६९३. कल्पसूत्र सह टबार्थ व व्याख्यान+कथा, संपूर्ण, वि. १८३९, श्रेष्ठ, पृ. १७४, जैदेना., ले.स्थल. द्रापरा, ले. पं. लालविजय (गुरु गणि कुंअरविजय), प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र.वि. मूल-ग्रं. १२१६,९-व्याख्यान; प्र.पु. ग्रं. १११६. पृष्ठ ६७ पर त्रिशलामाता व महावीर जन्म काल चित्र दिया है., (२७.५४१३, ६४३७). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदिः णमो अरिहन्ताणं० पढमं; अंतिः उवदंसेइ त्ति बेमि. कल्पसूत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः (१) अरिहन्तनइ माहरो (२) चोसठि इन्द्रनेपूजनीक; अंतिः आस्यदे स्वमुखे. कल्पसूत्र-व्याख्यान+कथा* , सं., गद्य, आदिः प्रणम्य श्रीजिनपार्श; अंति: #. ६९४." कल्पसूत्र सह टबार्थ व व्याख्यान+कथा, अपूर्ण, वि. १८१८, श्रेष्ठ, प्र. १२२-४४(१ से ३३,९८ से १०८)=७८, जैदेना., ले. मु. रूपचन्द (गुरु गणि रत्नसुन्दर), प्र.वि. मूल-ग्रं. १२१६,९-व्याख्यान; प्र.पु. ग्रं. ८०००., संशोधित, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, पू.वि. व्याख्यान-२ तक नहीं है., (२५.५४११, १५४४७). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि:-; अंतिः उवदंसेइ त्ति बेमि. कल्पसूत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, आदि:-; अंतिः आगै एहवौ कहता हूआ. कल्पसूत्र-व्याख्यान+कथा* , मागु., गद्य, आदिः-; अंति:६९५. कल्पसूत्र, पूर्ण, वि. १६वी, श्रेष्ठ, पृ. ११६-१(१)=११५, जैदेना., पू.वि. प्रथम व अंत के पत्र नहीं हैं., (२५.५४१०.५, ७४२८). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि:-; अंति:६९६. कल्पसूत्र सह बालावबोध, पूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १२८-४(१,२३,२५,१२४+१२५)=१२४, जैदेना., प्र.वि. मूल-ग्रं. १२१६,९-व्याख्यान. बीच-बीच में कई स्थान पर प्रतिलेखक ने पाठ छोड़ दिया है., (२६४११, १०x४०). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदिः णमो अरिहन्ताणं० पढम; अंतिः उवदंसेइ त्ति बेमि. कल्पसूत्र-बालावबोध* , मागु.,राज., गद्य, आदि:-; अंतिः माङ्गलक्यमाला थाउ. ६९७." कल्पसूत्र सह टबार्थ व व्याख्यान+कथा, संपूर्ण, वि. १७८५, श्रेष्ठ, पृ. १७३, जैदेना., ले.स्थल. दिहोर, ले. ऋ. For Private And Personal Use Only Page #126 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य भाग १ - www.kobatirth.org: रणछोड, पठ. ऋ. भवाण, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. मूल-ग्रं. १२१६, ९ - व्याख्यान. अंतिम कुछेक भाग का टबार्थ नही लिखा है., टिप्पण युक्त विशेष पाठ - कुछ पत्र, संशोधित, ( २६.५x११.५, ६३१). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, (संपूर्ण), आदि: णमो अरिहन्ताणं० पढमं अंतिः उवदंसेइ त्ति बेमि कल्पसूत्र - टवार्थ मागु, गद्य, (पूर्ण), आदि श्रीवर्द्धमानं जिनं अंति: , कल्पसूत्र - व्याख्यान+कथा मागु, गद्य, (संपूर्ण), आदि नमो अरिहन्ताणं अंतिः #. उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग, आदि:-;: अंति: उत्तराध्ययनसूत्र- शिष्यहिता बृहद्वृत्ति # आ. शान्तिसूरि, सं. गद्य, आदि-: अंति: " ६९८. उत्तराध्ययनसूत्र सह वृत्ति, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २२५-३३ (१ से ३३ ) = १९२, जैदेना., प्र. वि. मुद्रित प्रत उपरसे लिखित., पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. द्वितीय अध्ययन से १८ वें अध्ययन अपूर्ण तक है., (२५.५४१२.५ १२४३३). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग, आदिः सञ्जोगाविप्पमुक्कस्स; अंति:उत्तराध्ययनसूत्र- नियुक्ति आ. भद्रबाहुस्वामी प्रा. पद्य आदि नामं उवणादविए अंति: , " ६९९.” उत्तराध्ययनसूत्र सह निर्बुक्ति व वृत्ति, अपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ५६० -१६ ( ३४१ से ३५६ ) - ५४४ जैदेना. प्र. वि. सुन्दर लिखावट - मुद्रित पर से प्रतिलिपी, अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ, पू. वि. अन्त के पत्र नहीं हैं. अध्ययन -३६ गा.१४ तक है., (२६x१२.५, १३x४९). उत्तराध्ययनसूत्र- शिष्यहिता वृहद्धति # आ. शान्तिसूरि, सं., गद्य, आदि शिवदाः सन्तु अंति: . Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ७००. दसवैकालिकसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९३९, श्रेष्ठ, पृ. ७४, जैदेना., प्र. वि. मूल- अध्याय - अध्ययन १०. प्र. पु. सर्वग्रं. ७०००., (२५X११.५, ४X३९). , दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यम्भवसूरि, प्रा., पद्य, वि. पू. ४, आदिः धम्मो मङ्गलमुक्किट्ठ; अंतिः गइं त्ति बेमि दशवैकालिकसूत्र- टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः प्रणम्य श्रीमहावीरं; अंतिः जम्बू प्रते केला हवा.... ७०१.” उत्तराध्ययनसूत्र सह टबार्थ, पूर्ण, वि. १६७०, मध्यम, पृ. मु. खिरा, प्र. वि. मूल-३६ अध्ययन. प्र. पु. सर्वग्रं. ६६४५. मतिशंसा (२६५११, ५४२८). २३४-३ (१,१३ से १४ ) - २३१, जैदेना., ले.स्थल. सिरोही, ले. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, प्र.ले. श्लो. (४९०) अज्ञानाच्च ७२ उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग, आदि:-; अंतिः सम्मए त्ति बेमि उत्तराध्ययनसूत्र- टबार्थ+ कथा सङ्ग्रह, मु. पार्श्वचन्द्रसूरि - शिष्य, मागु., गद्य, आदि:-; अंतिः वलसर छइ इसिउ बोलिउ. ७०२. नन्दीसूत्र व अनुज्ञानन्दीसूत्र सह बालावबोध, पूर्ण, वि. १८वी श्रेष्ठ, पृ. ४४-१ (११) ४३, पे. २ जैदेना. प्र. वि. पंचपाठ, पू. वि. बीच के व अंतिम पत्र नहीं हैं., ( २६४११, ८४३६). पे. १. पे. नाम. नन्दीसूत्र सह बालावबोध, पृ. १-४२आ, पूर्ण नन्दी सूत्र, आ. देववाचक प्रा. प+ग, आदि: सेलघणकुडग चालणि अंति से तं परोक्खणाणं. . " नन्दी सूत्र - बालावबोध' मागु, गद्य, आदि: सेल क० सेल मलसेलीउ अंतिः ए परोक्ष श्रुतज्ञान, पे.वि. बीच का पत्र नहीं है. प्रारंभिक स्थविरावलि का पाठ नहीं है. : पे. २. पे. नाम. अनुज्ञानन्दीसूत्र सह बालावबोध, पृ. ४२-४४- पूर्ण 1 लघुनन्दीसूत्र- अनुज्ञानन्दीसूत्र, आ. देववाचक, प्रा., गद्य, आदिः से किं तं अणुण्णा; : अंति: लघुनन्दीसूत्र-अनुज्ञानन्दीसूत्र - बालावबोध, मागु., गद्य (संपूर्ण), आदिः घणा जीवनुं नाम; अंतिः वित् गणवच्छेयः., पे. वि. अंतिम पत्र नहीं है. मात्र मूलपाठ किंचित नहीं है. (+) ७०३. दशवेकालिकसूत्र सह शिष्यबोधिनी वृत्ति, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १९३ जैदेना. प्र. वि. मूल-अध्याय . For Private And Personal Use Only Page #127 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ७३ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची अध्ययन१०चूलिकार. सुन्दर लिखावट - मुद्रित पर से प्रतिलिपी।, त्रिपाठ, कुछ पत्र-पदच्छेद सूचक लकीरें-वचन विभक्ति संकेत-क्रियापद संकेत, संशोधित-प्रारंभिक पत्र, (२८x१२.५, १२४५३). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यम्भवसूरि, प्रा., पद्य, वि. पू.४, आदिः धम्मो मङ्गलमुक्किट्ठ; अंतिः (१)मुच्चइ त्ति बेमि (२)आलणा सो. दशवैकालिकसूत्र-शिष्यबोधिनी टीका# , आ. हरिभद्रसूरि, सं., गद्य, आदिः जयति विजितान्यतेजाः; अंति: गुणानुरागी भवतु लोकः. ७०४." उत्तराध्ययनसूत्र सह वृत्ति - अध्ययन १-२३, प्रतिपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २०७, जैदेना., प्र.वि. कही कही वृत्ति का अनुवाद भी दिया है।, टिप्पण युक्त विशेष पाठ-प्रारंभिक पत्र, संशोधित-प्रारंभिक पत्र, प्रारंभिक पत्र-पदच्छेद सूचक लकीरें-क्रियापद संकेत, (२६४११, १५४५१). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग, आदिः सञ्जोगाविप्पमुक्कस्स; अंति: उत्तराध्ययनसूत्र-लेशार्थदीपिका टीका, सं., गद्य, आदिः भिक्षो विनयं; अंति:७०५. उत्तराध्ययनसूत्र की कथाएँ, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ५८, जैदेना.,प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-प्रारंभिक पत्र, संशोधित-प्रारंभिक पत्र, प्रारंभिक पत्र-पदच्छेद सूचक लकीरें-क्रियापद संकेत, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. अध्ययन१३ अपूर्ण तक है., (२६.५४११, १६-१७४४५). उत्तराध्ययनसूत्र-कथा सङ्ग्रह, पं. पद्मसागर, सं., गद्य, वि. १६५७, आदिः प्रणम्य श्रीमहावीरं; अंति:७०६." उत्तराध्ययनसूत्र सह व्याख्या, त्रुटक, वि. १६वी, श्रेष्ठ, पृ. १७३-११४(१ से १०६,११७ से ११९,१५६,१६०,१६८ से १६९,१७१)=५९, जैदेना.,प्र.वि. कही कही व्याख्या मारुगुर्जर में है।, संशोधित, टिप्पण युक्त विशेष पाठ-कुछ पत्र, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., (३१x११, १२४४९). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध , प्रा., प+ग, आदिः- अंति: उत्तराध्ययनसूत्र-टीका, सं., गद्य, आदि:-; अंति:७०७." नन्दीसूत्र सह वृत्ति, अनुज्ञाप्ररुपणा व योगक्रिया, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २५४, पे. ३, जैदेना., प्र.वि. मुद्रित पर से प्रतिलिपी।, अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ, (२७.५४१२.५, १२४४७). पे. १. पे. नाम. नन्दीसूत्र सह टीका, पृ. १-२५१अ नन्दीसूत्र, आ. देववाचक, प्रा., प+ग, आदि: जयइ जगजीवजोणीवियाणओ; अंतिः से तं परोक्खणाणं. नन्दीसूत्र-टीका, आ. हरिभद्रसूरि, सं., गद्य, आदि: जयति भुवनैकभानुः; अंतिः जिनशासने नन्दीम्., पे.वि. मूल __गा.७००. प्र.पु. सर्वग्रं.७७३२. पे. २. लघुनन्दीसूत्र-अनुज्ञानन्दीसूत्र, आ. देववाचक, प्रा., गद्य, (पृ. २५१अ-२५३आ), आदिः से किं तं अणुण्णा; अंतिः वीसमणुण्णाए णामाइं. पे. ३. योगनन्दीसूत्र, आ. देववाचक, प्रा., गद्य, (पृ. २५३आ-२५४आ), आदिः नाणं पञ्चविहं; अंतिः अणुजाणामि. ७०८. ओघनियुक्ति सह वृत्ति, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २२७, जैदेना., प्र.वि. मूल-गा.११७०. सुन्दर लिखावट - मुद्रित पर से प्रतिलिपी., (२७.५४१२.५, १४४४८). ओघनियुक्ति, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., पद्य, आदिः नमो अरहन्ताणं० हवइ; अंति: गुणवन्नेहिं सम्मत्ता. ओघनियुक्ति-टीका # , आ. द्रोणाचार्य, सं., गद्य, वि. १२वी, आदिः अर्हद्भ्यस्त्रिभुवन; अंतिः संहननो सिद्ध्यतीति. ७०९. उत्तराध्ययनसूत्र सह सुखबोधा लघुवृत्ति, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. २३९+२(१२८,१३४)=२४१, जैदेना.,प्र.वि. मूल ३६अध्ययन. कही कही सूत्रपाठ प्रतिक मात्र दिया गया है., संशोधित, (२७४११, १५४४९). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध , प्रा., प+ग, आदिः सञ्जोगाविप्पमुक्कस्स; अंति: पसाया अहिजेज्झा. For Private And Personal Use Only Page #128 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य भाग - १ ७४ उत्तराध्ययनसूत्र-सुखबोधा लघु टीका, आ. नेमिचन्द्रसूरि, सं., गद्य, वि. ११२९, आदिः (१) प्रणम्य विघ्न (२) संयोगात्; अंतिः यथायोगम्. ७१०. उत्तराध्ययनसूत्र सह वृत्ति, पूर्ण, वि. १६५३, श्रेष्ठ, पृ. ३१७-६(१ से ४,२५५ से २५६)+११(६८,८४ से ९३)=३२२, जैदेना., ले.स्थल. सिद्धपुर, ले. मु. हर्षसाधु, प्र.वि. मूल-३६अध्ययन टीका-ग्रं. १२०००; प्र.पु.मूल ग्रं. २०००; प्र.पु.टीका ग्रं. १२०००., (२५.५४११.५, १५४४८). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध , प्रा., प+ग, आदिः-: अंतिः पसाया अहिजेज्झा. उत्तराध्ययनसूत्र-सुखबोधा लघु टीका, आ. नेमिचन्द्रसूरि, सं., गद्य, वि. ११२९, आदि:-; अंतिः (१)तेरस्या विनिश्चितम् (२)यथायोगम्. ७११. पिण्डनियुक्ति सह वृत्ति, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १७९, जैदेना., प्र.वि. मूल-गा.६७१; प्र.पु. ग्रं. ७०००. नकल ___ करनेवाले ने १५०२ के लिपिक की पुष्पिका की भी नकल करली है।, (२७४१२, १३४५०). पिण्डनियुक्ति, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., पद्य, आदिः पिण्डे उग्गम उप्पाय; अंतिः विसोहिजुत्तस्स. पिण्डनियुक्ति-वृत्ति, आ. मलयगिरिसूरि , सं., गद्य, आदि: जयति जिनवर्द्धमानः; अंतिः धर्मः शरणमुत्तमः. ७१२. नन्दीसूत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४२, जैदेना., प्र.वि. संशोधित, टिप्पण युक्त विशेष पाठ-कुछ पत्र, (२५४१२, ८३१). नन्दीसूत्र, आ. देववाचक, प्रा., प+ग, आदि: जयइ जगजीवजोणीवियाणओ; अंतिः से तं परोक्खणाणं. ७१३." नन्दीसूत्र सह अवचूरि व अनुज्ञानन्दीसूत्र, संपूर्ण, वि. १६२९, श्रेष्ठ, पृ. ४४, पे. २, जैदेना., ले. ऋ. माधव (गुरु ऋ. डीडा),प्र.वि. संशोधित, पंचपाठ-प्रारंभिक पत्र, (२७.५४१०.५, ९४२५). पे. १. पे. नाम. नन्दीसूत्र सह अवचूरि, पृ. १-३९अ नन्दीसूत्र, आ. देववाचक, प्रा., प+ग, आदि: जयइ जगजीवजोणीवियाणओ; अंतिः से तं परोक्खणाणं. नन्दीसूत्र-अवचूरि, सं., गद्य, आदिः जयतीति; अंतिः त्रयं प्रसिद्धम्., पे.वि. मूल-गा.७००; अवचूरि-ग्रं.१७००. पे. २. लघुनन्दीसूत्र-अनुज्ञानन्दीसूत्र, आ. देववाचक, प्रा., गद्य, (पृ. ३९आ-४४आ), आदिः से किं तं अणुण्णा; अंतिः वीसमणुण्णाए णामाइं. ७१४." उत्तराध्ययनसूत्र सह टबार्थ+कथा, संपूर्ण, वि. १८४९, श्रेष्ठ, पृ. २०२, जैदेना., प्र.वि. मूल-३६अध्ययन प्र.पु.मूलगा.१६४८ प्र.पु.उभय ग्रं. १४०००. अन्तिम पत्र में किस अध्ययन में कितनी गाथा है उसका विवरण दिया है., टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२६.५४१२, ४-६x४५). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग, आदिः सञ्जोगाविष्पमुक्कस्स; अंतिः सम्मए त्ति बेमि. उत्तराध्ययनसूत्र-टबार्थ+कथा सङ्ग्रह, मु. पार्श्वचन्द्रसूरि-शिष्य, मागु., गद्य, आदिः (१) पूर्वसंजोग मातापिता (२) श्रीवर्द्धमानजिनं; अंति: मुक्तिने विषे पहुता. ७१५." आवश्यकसूत्र सह नियुक्ति, भाष्य व तीनों की लघुवृत्ति, संपूर्ण, वि. १५०६, मध्यम, पृ. २०४+२(१६,१०२)=२०६, जैदेना., लिखवा. श्रा. धीर, अन्य- आ. जिनसागरसूरि (गुरु आ. जिनचन्द्रसूरि, खरतरगच्छ),प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र.वि. मूल-६ अध्ययन.प्र.पु. सर्वग्रं. १२३२५. भाष्य आदिवाक्य-"अवरविदेहे गामस्स" पत्रांक-१८B पर तथा अंतिमवाक्य "छीए छीए तिगं पेहे" पत्रांक-१८०A की दूसरी पंक्ति पर है. जिनसागरसूरि के उपदेश से यह प्रति लिखवाई गई. प्रति.वर्ष-ऋतुगगनशरेन्दुमिते., पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न, संशोधित, प्र.ले.श्लो. (४८) यावच्चंद्र रविद्योमि, (२९.५४११.५, १९४६०). आवश्यकसूत्र , प्रा., प+ग, आदिः णमो अरहंताणं०; अंतिः वत्तियागारेणं वोसिरइ. आवश्यकसूत्र-नियुक्ति , आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., पद्य, आदिः आभिणिबोहियनाणं; अंतिः चरणगुणट्ठिओ साहू. आवश्यकसूत्र-लघुवृत्ति # , आ. तिलकाचार्य, सं., गद्य, वि. १२९६, आदिः (१) देवः श्रीनाभि (२) अर्थाभिमुखोनियतोबोधो; अंतिः (१)खेलतात्कृतिमानसे (२)महोदयपदावाप्तिरिति. For Private And Personal Use Only Page #129 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ७५ www.kobatirth.org: आवश्यकसूत्र नियुक्ति की लघुटीका #. आ. तिलकाचार्य, सं., गद्य वि. १२९६ आदि अंतिः आवश्यकसूत्र नियुक्ति का भाष्य, प्रा., पद्य, आदि अवरविदेहे गामस्स: अंति: छीए तिगी पेहे. आवश्यक सूत्र- नियुक्ति के भाष्य की लघुटीका #, आ. तिलकाचार्य, सं., गद्य, आदि: #; अंतिः #. ७१६. भाष्यत्रय सह बालावबोध व श्लोक, संपूर्ण, वि. १९६८, श्रेष्ठ, पृ. ५७, पे. २, जैदेना., ले. स्थल. पेथापुर, ले. जेठालाल चुनिलाल लहिया, लिखवा. मु. सुखसागर, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. त्रिपाठ, द्विपाठ, (२७.५x१३.५, ३-१२४३८). पे. १. पे. नाम. भाष्यत्रय सह बालावबोध, पृ. १-५७ भाष्यत्रय, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, आदिः वन्दित्तु वन्दणिज्जे; अंतिः सासयसुक्खं अणाबाहं. भाष्यत्रय-बालावबोध, आ. ज्ञानविमलसूरि, मागु., गद्य, वि. १७५८, आदि: ऐन्द्रश्रेणिनुतं; अंतिः सामाचारि च मङ्गलं. पे.वि. मूल अध्याय-३ भाष्य. पे. २. मांगलिक श्लोक सं., पद्य, (पृ. ५७आ), आदि अर्हतो मङ्गलं अंतिः सामाचारिमङ्गलम्., पे. वि. श्लो. २. ७१७. आवश्यकसूत्र की निर्युक्ति सह विशेषावश्यकभाष्य, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १५२, जैदेना., प्र. वि. हिस्सा प्रथमअध्ययन. सुन्दर लिखावट मुद्रित पर से प्रतिलिपी, अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ, (२७१२, १४४४०). आवश्यक सूत्र - नियुक्ति का हिस्सा सामायिक अध्ययन नियुक्ति, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा. पद्य, आदि आभिणिबोहियनाणं; अंतिः चरणगुणट्ठिओ साहू. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची विशेषावश्यकभाष्य आ. जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण, प्रा. पद्य, आदि कयपवयणप्पणामो अंतिः एसोणुगमो परिसमत्तो. , " (+) ७१८. आवश्यक सूत्र के सामायिक अध्ययन की नियुक्ति सह विशेषावश्यकभाष्य व नियुक्तिभाष्य की संयुक्त शिष्यहिता बृहद्वृत्ति, संपूर्ण, वि. १४३६, मध्यम, पृ. ३२३, जैदेना., ले. स्थल. अणहिलपुर, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. प्रथम अध्ययन भाष्य- अध्याय-प्रथम अध्ययन टीका ग्रं. २८००० प्र. पु. निर्युक्तिहिस्सा- ७९९ प्र.पु. भाष्य-२८८३. प्र. पु. प्राग्वाटवंशीय सामन्तसिंह ने गुरु जयानन्दसूरि के उपदेश से संवत १४३६ अणहिलपुर में यह प्रत लिखवाई. भाष्य की ३६८२ गाथायें व्याख्यात और बाकी की ७१४ गाथायें अतिदेश से समझी गयी है. प्रथम दो पत्र अनुपूरित है, संशोधित, (२८४१२, २१४६५). " , आवश्यक सूत्र- नियुक्ति का हिस्सा सामायिक अध्ययन नियुक्ति, आ. भद्रबाहुस्वामी प्रा. पद्य आदि आभिणिबोहियनाणं अंतिः चरणगुणट्ठिओ साहू. . विशेषावश्यकभाष्य आ. जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण, प्रा., पद्य, आदि कयपवयणप्पणामो अतिः जोग्गो सेसाणुओगस्स. विशेषावश्यकभाष्य-शिष्यहितावृहट्टीका, आ. हेमचन्द्रसूरि मलधारि, सं. गद्य वि. १२वी आदि (१) श्रीसिद्धार्थनरेन्द " (२) वोच्छमिति क्रिया: अंति: (१) नमते प्रीत्यविच्छेदः (२) तद् यानपात्रमिति. . ७१९. आवश्यक सूत्र की सामायिक अध्ययन की नियुक्ति, विशेषावश्यकभाष्य सह छाया व शिष्यहिता वृहद्वृत्ति, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ९२०-२८६ (१ से ११३, १२८ से ३०० ) = ६३४, जैदेना., प्र. वि. मुद्रित की प्रतिलिपी । पू. वि. गाथा १ से २७९ व ३१४ से ९३९ तक नहीं है. प्रथम भाग पत्र ११४ से १२७ तक है. द्वितीय व तृतीय भाग सम्पूर्ण है., (२७.५x१२.५, १२X४८). ' For Private And Personal Use Only आवश्यक सूत्र- नियुक्ति का हिस्सा सामायिक अध्ययन नियुक्ति, आ. भद्रबाहुस्वामी प्रा. पद्य, आदि-: अंति चरणगुणट्ठिओ साहू. विशेषावश्यकभाष्य, आ. जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण, प्रा., पद्य, आदि:-; अंतिः जोग्गो सेसाणुओगस्स. आवश्यक सूत्र- नियुक्ति का हिस्सा सामायिक अध्ययन की छाया, सं., पद्य, वि. २१वी, आदि:-; अंतिः योग्यः शेषानुयोगस्य. विशेषावश्यकभाष्य - शिष्यहितावृहट्टीका, आ. हेमचन्द्रसूरि मलधारि, सं. गद्य वि. १२वी आदि अंतिः नमते " " प्रीत्यविच्छेदा ७२०. तन्दुलवैचारिकप्रकीर्णक, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. २३, जैदेना., (२६×११.५, ९×३९). , Page #130 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org: हस्तलिखित जैन साहित्य भाग १ तन्दुलवैचारिक प्रकीर्णक, प्रा., प+ग, आदिः निज्जरिय जरामरणं; अंतिः मुच्चह सव्वदुक्खाणं. (+) .. ७२१. जम्बू अध्ययन सह टबार्थ, संपूर्ण वि. १८३. श्रेष्ठ, पृ. ४६, जैदेना. ले. स्थल, बालमग्राम, ले. पं. मयाविजय (गुरु गणि ऋद्धिविजय), प्र. वि. मूल-२१ उद्देश., पदच्छेद सूचक लकीरें टिप्पण युक्त विशेष पाठ (२६.५४१३ ५ ९३६). जम्बू अध्ययन प्रकीर्णक, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं० रायगिहे अंतिः से आराहगा भणिया ' 1 जम्बूअध्ययन प्रकीर्णक-टवार्थ, उपा. पद्मसुन्दर मागु, गद्य, आदि ते कालनि विष ते अति: एकविसमो उद्देशो. ७२२. जम्बूअध्ययन सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८८६, श्रेष्ठ, पृ. ५३, जैदेना., प्र. वि. मूल - २१उद्देश, प्र. पु. मूल ग्रं. ७५०, ( २४X१३, ९०x३४). " .. जम्बू अध्ययन प्रकीर्णक, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं० रायगिहे; अंतिः से आराहगा भणिया. जम्बूअध्ययन प्रकीर्णक-टवार्थ मागु, गद्य, आदि: ते काल चउथो आरो; अंतिः ते आराधक कच्या.. (+) ७२३. कल्पसूत्र सह टवार्थ व व्याख्यान+कथा, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ६७-१७(१ से १०, १२, १४,१८,२५ से , २८)+१ (३०) =५१, जैदेना. प्र. वि. संशोधित टिप्पण युक्त विशेष पाठ-कुछ पत्र (२७४११ ५ १ ९४४५) कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी प्रा. गद्य, आदि:-: अंति:कल्पसूत्र - टबार्थ *, मागु., गद्य, आदि:-; अंति: · कल्पसूत्र - व्याख्यान + कथा* माग गद्य, आदि:-: अंति: " Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (+) ७३६. आचारदिनकर, पूर्ण, वि. १८८२, श्रेष्ठ, पृ. ४६६-९ (१,३,४३० से ४३६) = ४५७, जैदेना. ले. स्थल, सोजतनगर, ले. " · केवलराम व्यास (पिता प्रहलाद व्यास ). प्र. वि. १ ये वर्द्धमानसूरि जयानन्द के शिष्य नहीं प्रशिष्य है। २ जिनेश्वरसूरि के गुरु वर्द्धमानसूरि ने आचारदिनकर नहीं लिखा है। रचनाप्रशस्ति बीगतवार दी हुई है । ३६ उदय, पदच्छेद सूचक लकीरें संधि सूचक चिहन (२४.५x१२ १२४३७). आचारदिनकर, आ. वर्द्धमानसूरि, सं., प+ग, आदि:-; अंतिः महानन्दभृतो जयन्ति. ७३७. पार्श्वनाथ स्तोत्र सह अवचूरि, संपूर्ण वि. १७वी श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदेना. प्र. वि. मूल-गा. ३० टीका ग्रं. २५०. त्रिपाठ, ; (२७११, ११x२९). जयतिहुअण स्तोत्र, आ. अभयदेवसूरि, प्रा., पद्य, आदि: जयतिहुयणवर कप्परुक्ख; अंतिः विण्णवइ अणिन्दिय. जयतिहुअण स्तोत्र- टीका, सं., गद्य, आदि: अत्रायं वृद्ध: अंतिः स्त्रिलोकलोकश्लाघितः ઉદ ७३९. षट्त्रिंशतजल्प विचार, संपूर्ण वि. १९५१, श्रेष्ठ, पृ. ५५, जैवेना., ले. स्थल पालनपुर ले. श्री. किसनदास मुथा, प्र. वि. प्र.ले. नागोरवासी । उ. धर्मसागर के ग्रन्थों को जलमग्न करने एवं उसे गच्छबाहिर करने का उल्लेख।, (२७४१२, १५९४४) षट्त्रिंशज्जल्पविचार सङ्ग्रह, मु. भावविजय, सं., गद्य, वि. १६७९, आदिः ॐ नमः श्रीपार्श्व; अंतिः श्चिरं नन्दतात्. ७४०.” सामाचारीशतक सह बीजक, संपूर्ण, वि. १९०९, श्रेष्ठ, पृ. १५९, जैदेना., ले. स्थल. मंबोई (बोम्बे), ले. गङ्गाराम, प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र. वि. मूल-५ प्रकाश., संशोधित, पदच्छेद सूचक लकीरें, (२७×१३, १५x४३). सामाचारीशतक, उपा. समयसुन्दर गणि, सं., गद्य, वि. १६७२, आदिः श्रीवीरं च गुरुं ; अंति: (१) गणिः समयसुन्दरः (२) द्रुतं दूरतो यान्ति. सामाचारीशतक - बीजक सं., गद्य, आदि: सामायिकदण्डकोच्चारान: अंतिः १०० श्री शान्तिकविधिः. ७४१." चर्चासमाधान व औषध, संपूर्ण, वि. १८८०, श्रेष्ठ, पृ. ७३ पे. २, जैदेना, पठ. पण्डित देवकरणजी (गुरु पं. दुलीचन्दशिष्य), ले. पं. दुलीचन्द - शिष्य, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. संशोधित, (२९x१३, १२X४७). पे. १. चर्चा समाधान - दिगम्बरधार्मिक, भूधर, प्राहिं, पद्य वि. १३वी (पृ. १-७३) आदि जयो वीर जिनचन्द्रमा; अंति प्रिय कारणी कुमार. पे. २. औषध सङ्ग्रह *, मागु., गद्य, (पृ. ७३आ), आदि: #; अंतिः #. For Private And Personal Use Only Page #131 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ७७ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ७४३.” हैमलघुप्रक्रिया, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ११३, जैदेना., प्र.वि. संशोधित, पदच्छेद सूचक लकीरें, (२७४१३, ११४३३). सिद्धहेमशब्दानुशासन-हैमलघुप्रक्रिया, उपा. विनयविजय , सं., गद्य, वि. १७१०, आदिः प्रणम्य परमात्मानं; अंतिः कृष्टपच्याः शालयः. ७४६. सारस्वतीप्रक्रिया सह सुबोधिका वृत्ति, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १५७-६(८२ से ८६,१४८)+१(६५)=१५२, जैदेना.,प्र.वि. त्रिपाठ, पू.वि. बीच-बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., (२५४११, १७४४९). सारस्वत व्याकरण, आ. अनुभूतिस्वरूप, सं., गद्य, आदिः प्रणम्य परमात्मानं; अंति:सारस्वत व्याकरण-दीपिका टीका, आ. चन्द्रकीर्तिसूरि, सं., गद्य, वि. १६६४, आदिः (१) नमोस्तु सर्वकल्याण (२) प्रणम्येत्यादि; अंति:७४७. अभिधानचिन्तामणि नाममाला सह स्वोपज्ञवृत्ति काण्ड-४ से ६, प्रतिपूर्ण, वि. १६५७, श्रेष्ठ, पृ. ८३, जैदेना., प्र.वि. प्र.पु. टीका-ग्रं. ११२०; प्र.पु.सर्व ग्रं. १००००., (२५.५४११, १५४४६). अभिधानचिन्तामणि नाममाला, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, आदि:-; अंतिः रोषोक्तावु नतौ नमः. अभिधानचिन्तामणि नाममाला-स्वोपज्ञ तत्त्वाभिधायिनी विवृति, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., गद्य, वि. १२१६, आदिः-; अंतिः निपात्यन्ते पदे पदे. ७४८." अभिधानचिन्तामणिनाममाला, अपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ३२-९(१ से ७,११,२८)=२३, जैदेना., प्र.वि. (संशोधित प्रचुर प्रमाण में सक्षिप्त टिप्पणक युक्त), टिप्पण युक्त विशेष पाठ-अधिक मात्रा में, संशोधित, पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न-वचन विभक्ति संकेत-क्रियापद संकेत, अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ, पू.वि. प्रथम कांड श्लो.२५ से काण्ड ३ तक है., (३०.५४११, ११४४८). अभिधानचिन्तामणि नाममाला, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, आदि:-; अंति:७४९.” अभिधानचिन्तामणिनाममाला व शेषनाममाला, अपूर्ण, वि. १७९४, मध्यम, पृ. ६३-३९(२४ से ६२)=२४, पे. २, जैदेना., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-शुरुआत व अंत के कुछ पत्र, संशोधित, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२६४११, १२४३९). पे. १. अभिधानचिन्तामणि नाममाला, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, (पृ. १-२३-), आदिः प्रणिपत्यार्हतः; अंति:-, पे.वि. अन्त के पत्र नहीं हैं. कांड-३ श्लो.३१३ अपूर्ण तक है. पे. २. अभिधानचिन्तामणि नाममाला-शेषनाममाला, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, संबद्ध, सं., पद्य, (पृ. ६३-), आदि:-; अंतिः निपात्यन्ते पदे पदे., पे.वि. श्लो.२०५; प्र.पु. ग्रं.१९००. मात्र अंतिम पत्र है. श्लो.१९० तक नहीं है. ७५०. क्षेत्रसमास सह वृत्ति (वृद्ध टीका), संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १५४, जैदेना., ले.स्थल. अणहीलपुरपाटण, ले. अम्बावीदास (गुरु देवसूरज), प्र.वि. मूल-गा.६५५,५ अधिकार; टीका-अध्याय-५., ऊपरी पंक्तियों में कलात्मक मात्राएँपत्र अखंड है-ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित-कुछ पत्र-पार्श्व-लिपीक द्वारा पाठ मालुम न पड़ने पर बीचबीच में थोड़ी-थोड़ी जगह, प्र.ले.श्लो. (५०९) यादृशं पुस्तके दृष्टं; (४८५) यावल्लवणसमुद्रो, (२८.५४१२.५, १७X४७). बृहत्क्षेत्रसमास, आ. जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण, प्रा., पद्य, वि.०६वी, आदि: नमिऊण सजलजलहर; अंतिः उत्तमसुयसम्पयं देउ. बृहत्क्षेत्रसमास-टीका, आ. मलयगिरिसूरि , सं., गद्य, वि. १३वी, आदि: जयति जिनवचनमवितथममित; अंतिः मङ्गलमशिश्रियम्. ७५१.” शत्रुजय माहात्म्य, संपूर्ण, वि. १९४९, श्रेष्ठ, पृ. २६१-१(२७+२८)=२६०, जैदेना., ले.स्थल. अहमदाबाद, ले. लादुराम जेठमल व्यास, प्र.वि. ग्रं. १००००,सर्ग-१४, संशोधित, पदच्छेद सूचक लकीरें-क्रियापद संकेत, (२५.५४११.५, १४४४४). शत्रुजय माहात्म्य, आ. धनेश्वरसूरि, सं., पद्य, आदिः ॐ नमो विश्वनाथाय; अंति: म्भोनिधिं ग्रन्थ एषः. ७५२. शत्रुजय माहात्म्य, संपूर्ण, वि. १७२२, श्रेष्ठ, पृ. २१६+१(१३९)=२१७, जैदेना., ले.स्थल. नटीपद्रनगर, प्र.वि. सर्ग-१४. पन्ने- प्रथम पत्र अनुपूरित तथा खंडित है।, (२४.५४११, १५४४७). For Private And Personal Use Only Page #132 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य भाग - १ ७८ शत्रुजय माहात्म्य, आ. धनेश्वरसूरि, सं., पद्य, आदिः ॐ नमो विश्वनाथाय; अंतिः सिद्धो दयाद्रिस्थितः. ७५३. विक्रमसेन चौपाई, संपूर्ण, वि. १७७४, श्रेष्ठ, पृ. २७, जैदेना., ले. खरथाजी, प्र.वि. ढाळ-५२; प्र.पु. मूल-ग्रं. १५००, (२६४११, १७४५२). विक्रमसेनराजा चौपाई, मु. मानसागर, मागु., पद्य, वि. १७२४, आदिः सुखदाता सङ्घश्वरो; अंतिः दिनदिन दोलति पाईजी. ७५४." प्रद्युम्न चरित्र, संपूर्ण, वि. १९५१, श्रेष्ठ, पृ. ११७, जैदेना., ले.स्थल. बीकानेर, ले. पं. वासुदेव(कवलागच्छ), प्र.वि. ग्रं. ४८५०,सर्ग-१६, संशोधित, (२७.५४१२, १५४४७). प्रद्युम्न चरित्र, मु. सोमकीर्ति, सं., पद्य, वि. १५३३, आदिः श्रीमन्तं सन्मतिं; अंतिः श्रीसर्वज्ञ प्रसादतः. ७५५. वस्तुपाल चरित्र, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १७८, जैदेना., प्र.वि. अध्याय-८प्रस्ताव. अक्षर छोटे-बडे।, (२७.५४१२.५, ११४३३). वस्तुपालमन्त्री चरित्र, गणि जिनहर्ष, सं., पद्य, वि. १४९७, आदिः श्रीमानर्हन् शिवः; अंतिः वृत्तमिदं व्यधात्. ७५६. हरिवंश प्रबन्ध, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १४३, जैदेना., प्र.वि. ग्रं. ५७५०, ढाळ-१५१, (२५४१२, १६-१७४३८). पाण्डव रास, आ. गुणसागरसूरि, मागु., पद्य, वि. १६७६, आदिः श्रीजिन आदिजिनेश्वरू; अंति: जंपे संघ रंग वधामणो. ७५७." विंशतिस्थानक कथानक (विचारामृतसङ्ग्रह), संपूर्ण, वि. १९५३, श्रेष्ठ, पृ. ८७, जैदेना.,प्र.वि. ग्रं. ३००१, संशोधित, (२७.५४१२, १५४४१). विचारामृतसार सङ्ग्रह, गणि जिनहर्ष, सं., पद्य, वि. १५०२, आदिः श्रीभूर्भुवः स्वस्र; अंतिः तावन्नन्दतु नन्दति. ७५८." चन्द्रराजा रास, संपूर्ण, वि. १८८२, श्रेष्ठ, पृ. ११४, जैदेना., ले.स्थल. कालेसरा, ले. गणि क्षमाविजय (गुरु पं. ___ जगरुपविजय), प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र.वि. खण्ड-४उल्लास/ढाल-१०८, संशोधित, (२३.५४१३, १४४३९). चन्द्रराजा रास, मु. मोहनविजय, मागु., पद्य, वि. १७८३, आदिः प्रथम धराधव तीम; अंतिः वर्णव्या गुण चन्दना. ७५९. दानकल्पद्रुम व श्लोक सङ्ग्रह सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८५९, श्रेष्ठ, पृ. १२६, पे. ३, जैदेना., ले.स्थल. जामपुर, ले. मु. लालविजय (गुरु पं. हेमविजय), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.ले.श्लो. (५१०) यादृसं पुस्तकं दृष्टवा; (५०) जलं रक्षेत स्थलं रक्षेत; (१६७) जिहां लगे मेरु अडिग है, (२७.५४१३, ६x२६). पे. १. पे. नाम. धन्ना चरित्र सह टबार्थ, पृ. १-१२५आ दानकल्पद्रुम, आ. जिनकीर्तिसूरि, सं., पद्य, आदिः स श्रेयस्त्रिजगद्; अंतिः श्रीदानकल्पद्रुमः. दानकल्पद्रुम-टबार्थ, मु. रामविजय, मागु., गद्य, वि. १८३३, आदिः श्रीऋषभस्वामी; अंतिः प्रती जियात्., पे.वि. मूल-अध्याय-९ पल्लव. पे. २. पे. नाम. सुभाषित सङ्ग्रह सह टबार्, पृ. १२५आ-१२६अ सुभाषित सङ्ग्रह", सं., पद्य, आदिः प्रतिकुलतामुपगते; अंतिः सरणं गतास्मीते वैरीण. सुभाषित सङ्ग्रह-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः घणा घणा साधर्मी; अंतिः अने क्लेसयोत्री छु. पे. ३. श्लोक सङ्ग्रह जैनधार्मिक, सं.,प्रा., पद्य, (पृ. १२६आ), आदिः#; अंतिः#. ७६०." श्रीपाल रास, संपूर्ण, वि. १९१५, श्रेष्ठ, पृ. ६२, जैदेना., ले.स्थल. बडलू, ले. पं. तिलोकचन्द (गुरु मु. भवानीराम), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. गा.१८२५, खण्ड-४, ढाळ ४१, टिप्पण युक्त विशेष पाठ-बीच के कुछ पत्र, प्र.ले.श्लो. (५६५) याद्रसं पुस्तकं दृष्ट्वा , (२८.५४१३.५, १३४३२). श्रीपाल रास, उपा. विनयविजय , उपा. यशोविजयजी गणि, मागु., पद्य, वि. १७३८, आदिः कल्पवेल कवियण तणी; अंतिः हुओ पूर्ण सुकण्ठो रे. ७६१. चन्दकेवली रास, संपूर्ण, वि. १८५५, श्रेष्ठ, पृ. १२६, जैदेना.,ले. ऋ. दयचन्द (गुरु ऋ. उदयचन्द), प्र.वि. गा.२७०८, अध्याय-४ उल्लास, (२४.५४११, १४४३१). For Private And Personal Use Only Page #133 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ७९ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची चन्द्रराजा रास, मु. मोहनविजय, मागु., पद्य, वि. १७८३, आदिः प्रथम धराधव तीम; अंतिः वर्णव्या गुण चन्दना. ७६२. धन्नाशालिभद्र रास, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १०७, जैदेना., प्र.वि. गा.२२४२, ग्रं. २५००, ढाळ-८५, (२५४११, ११ १२४३५). धन्नाशालिभद्र रास, मु. जिनविजय, मागु., पद्य, आदिः ऐन्द्र श्रेणिं नत; अंतिः पाये सुच्छायो रे. ७६३. सम्यक्त्वकौमुदी कथानक सह टबार्थ, पूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १२१-१(७२)=१२०, जैदेना., प्र.वि. प्रतिलेखक द्वारा टबार्थ व प्रतिलेखन पुष्पिका अपूर्ण., (२६४१३, ६४३४). सम्यक्त्वकौमुदी कथानक, सं., गद्य, (पूर्ण), आदिः श्रीवर्द्धमानमानम्य; अंतिः स्वर्गमश्नुते. सम्यक्त्वकौमुदी कथानक-टबार्थ, मागु., गद्य, (अपूर्ण), आदिः श्रीवर्द्धमान; अंति:७६४. सूक्तमाला सह मुग्धाबोध बालावबोध, पूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १०४, जैदेना., प्र.वि. मूल-४ वर्ग.. पू.वि. अंतिम पत्र नही है. मात्र प्रति.पु. नहीं है., (२७४१२, १४४३५). सूक्तमाला, मु. केशरविमल, सं.,मागु., पद्य, वि. १७५४, (संपूर्ण), आदिः सकलसुकृत्यवल्लीवृन्द; अंतिः गम्य विचारणीयं. सूक्तमाला-बालावबोध, मु. प्रतापविजय, मागु., गद्य, (संपूर्ण), आदिः तदनुक्रम सङ्ग्रहो; अंतिः स्वरुप ते एहज विचारउ. ७६५. धर्मसङ्ग्रह सह स्वोपज्ञ वृत्ति - पूर्वार्ध, प्रतिपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २५९, जैदेना., प्र.वि. प्र.पु.पूर्वार्ध-ग्रं. ९४२३. मुद्रित की प्रतिलिपी। क्वचित उ.यशोविजयजी प्रणीत टिप्पण भी है। ७१ श्लोक पूरे।, (२६.५४१२, १४४४७). धर्मसङ्ग्रह, उपा. मानविजय, सं., पद्य, वि. १७३१, आदिः प्रणम्य प्रणताशेष; अंतिः धर्मसङ्ग्रह-स्वोपज्ञ टीका , उपा. मानविजय, सं., गद्य, वि. १७३१, आदिः प्रणम्य विश्वेश्वर; अंति:७६६.” समयसारनाटकभाषा, संपूर्ण, वि. १७४३, श्रेष्ठ, पृ. ४९, जैदेना., ले.स्थल. जेसलमेर, ले. पण्डित सौख्यवर्द्धन (गुरु आ. धर्मसूरि),प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. गा.७२७. आ.कुन्दकुन्द की प्रसिद्ध रचना पर आधारित., पदच्छेद सूचक लकीरें, (२४.५४१०.५, १५४४३). समयसार नाटक-पद्यानुवाद, श्रा. बनारसीदास, प्राहिं., पद्य, वि. १६९३, आदिः करम भरम जग तिमिर; अंतिः नाममइ परमारथ विरतन्त. ७६७.” सङ्ग्रहणीसूत्र सह वृत्ति, पूर्ण, वि. १६वी, श्रेष्ठ, पृ. ६५-१(१)=६४, जैदेना., प्र.वि. मूल-गा.२७६; प्र.पु.मूल-ग्रं. ३५००., संशोधित-प्रारंभिक पत्र, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, पंचपाठ, (२६४१२, ३४३१). बृहत्सङ्ग्रहणी, आ. चन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदिः-; अंतिः जा वीरजिण तित्थं. बृहत्सङ्ग्रहणी-टीका, आ. देवभद्रसूरि, सं., गद्य, आदि:-; अंतिः लोकानां सर्वसंख्यया. ७६८. विचाररत्नसार बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९१८, श्रेष्ठ, पृ. ११३+१(५२)=११४, जैदेना., ले.स्थल. नागपुर, ले. पं. रायचन्द्र (गुरु पं. रविचन्द्र), प्र.ले.श्लो. (५३) कर दुख अंगुरी नेयन, (२४.५४१३, ११४२७). विचारसार प्रकरण-बालावबोध, मु. देवचन्द्र, मागु., गद्य, आदिः प्रणम्य श्रीमहावीरं; अंतिः कारणभूतं मुणेयव्वं. ७६९. चौढालीया, रासादि सङ्ग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ९४, पे. ४७, जैदेना., (२५.५४१२, १७४४८). पे. १. धन्नाकाकन्दी चौढालिया, ऋ. आसकर्ण, मागु., पद्य, वि. १८५९, (पृ. १आ-३अ), आदिः पुजजी पधारीया; अंतिः रायचन्दजी पसाय के., पे.वि. ढाळ-७. पे. २. तेतलीपुत्र चौढालिया, ऋ. जेमल, मागु., पद्य, वि. १८२५, (पृ. ३अ-६आ), आदिः अरिहन्त सिधनै; अंतिः अनूसारे भासो रे., पे.वि. ढाळ-४. पे. ३.४ प्रत्येकबुद्ध सज्झाय, उपा. समयसुन्दर गणि, मागु., पद्य, (पृ. ६आ-७अ), आदि: चंपानगरी अति; अंतिः नितनित प्रणमुं पाय., पे.वि. ढाळ-५. For Private And Personal Use Only Page #134 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य भाग - १ पे. ४. धनमित्र चौपाई, ऋ. रायचन्द, मागु., पद्य, (पृ. ७अ-८अ), आदिः साधु धन्य संसार; अंतिः बात सिरै ले चाढी रे., पे.वि. ढाळ-३. पे. ५. तामलीतापस चौपाई, मागु., पद्य, (पृ. ८अ-१०आ), आदिः चोविसमां जिनवर नमुं; अंतिः मिच्छामि दुकमोय., पे.वि. ढाळ-९. पे. ६. सुबाहुकुमार चरित्र, ऋ. जैमल, मागु., पद्य, (पृ. १०आ-१३अ), आदिः नमु वीर सासनधणी; अंतिः साम्भलजो सहु भवि कोइ., पे.वि. ढाळ-८. पे. ७. अगडदत्त ढाल, मु. नन्दराम, मागु., पद्य, वि. १९७८, (पृ. १३अ-१४आ), आदि: अरिहंत सिधने; अंतिः धीर्यमलजी सुपसाय., पे.वि. ढाळ-५. पे. ८. पे. नाम. कोणिक री ढाल, पृ. १४आ-१७आ कोणिकराजा रास, मागु., पद्य, आदिः सुखे राज श्रेणिक; अंतिः ते कर्मना रोग रे., पे.वि. ढाळ-१४. पे. ९. जिनरक्षितजिनपाल चौढालिया, मागु., पद्य, (पृ. १७आ-१९आ), आदिः अनन्त चोवीसी आगे; अंतिः माहाविदेह जासी मोक्ष., पे.वि. ढाळ-४. पे. १०. धन्ना चौढालिया, फतेचन्द, मागु., पद्य, (पृ. १९आ-२१आ), आदिः सकल अमर सेवत; अंतिः अविचल कोड कल्याण., पे.वि. ढाळ-४. पे. ११. पुण्डरिककण्डरिक चौपाई, मागु., पद्य, (पृ. २१आ-२२आ), आदिः पुण्डरीकणी नामै; अंतिः स्वार्थ सिधमै जायजी., पे.वि. ढाळ-५. पे. १२. दामनककुमार चौपाई, ऋ. रतनचन्द, मागु., पद्य, वि. १८९१, (पृ. २२आ-२४आ), आदिः वीर नमुं त्रिभुवन; ____ अंतिः अष्टढाल गुण गाया., पे.वि. ढाळ-८. पे. १३. मेतारजमुनि चौढालिया, मागु., पद्य, (पृ. २४आ-२५आ), आदिः साकेत नगर; अंतिः लही जग मै जस पूरो., पे.वि. ढाळ-५. पे. १४. जयघोषविजयघोष रास, ऋ. आसकर्ण, मागु., पद्य, वि. १८३०, (पृ. २५आ-२७अ), आदिः वारणसी नगरी भली; ___ अंतिः मुनिधर्म उजवालीयो ए., पे.वि. ढाळ-७. पे. १५. सकडालमन्त्री चौढालिया, ऋ. जैमल, मागु., पद्य, (पृ. २७अ-३१अ), आदिः वीर नमुं सासनधणी; अंतिः श्रावक श्रीवीरना., पे.वि. ढाळ-८. पे. १६. महाशतकश्रावक चौढालिया, ऋ. जैमल, मागु., पद्य, (पृ. ३१अ-३३अ), आदिः अरिहन्त देव आराधीयै; अंतिः सुणो धरी चाव हो., पे.वि. ढाळ-४. पे. १७. देवानन्दा चौढालिया, मु. विनयचन्द, मागु., पद्य, (पृ. ३३अ-३४अ), आदिः सकलजीव सुखदायको; अंतिः बीकानेर चोमास., पे.वि. ढाळ-४. पे. १८. कामदेव चौढालिया, ऋ. रायचन्द, मागु., पद्य, वि. १८२७, (पृ. ३४अ-३६अ), आदिः वेहरमान वीसे नमुं; अंतिः पामिजो निस्तार हो., पे.वि. ढाळ-४. पे. १९. पे. नाम. सागरचन्द्र चौढालीयो, पृ. ३६अ-३८अ सागरचन्द्र रास, ऋ. रतनचन्द, मागु., पद्य, वि. १८५१, आदिः प्रणमी देवगुरु भणी; अंतिः सिधपुर सहर मझारजी., पे.वि. ढाळ-६. पे. २०.पे. नाम. ऋषभदेव सम्बन्ध, पृ. ३८अ-४१अ आदिजिन रास , मागु., पद्य, आदिः जुगल्यानौ तीन; अंति: मुगत गया सोभागी., पे.वि. ढाळ-१७. पे. २१. पे. नाम, मेघमुनि चौढालीयो, पृ. ४१अ-४४अ मेघकुमार रास, मागु., पद्य, आदिः ऋषभादिक चौवीसनै; अंतिः मुगति मारग मै जासी., पे.वि. ढाळ-७. For Private And Personal Use Only Page #135 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची पे. २२. देवकी ढाल, राज., पद्य, (पृ. ४४अ-४७अ), आदिः बेरागे मन वाल; अंतिः इछा काइय न राखी., पे.वि. ढाळ १३. पे. २३. पे. नाम. नेम चरित्र, पृ. ४७अ-५०आ नेमिजिन रास, मागु., पद्य, आदि: सङ्खराजाने जसोमता; अंतिः छतीससू सिवपूरी., पे.वि. ढाळ-१८. पे. २४. कीर्तिध्वजराजा सज्झाय, राज., पद्य, (पृ. ५०आ-५२अ), आदिः राय दसरथ पेली; अंतिः सहु हरख्या बाई भाई., पे.वि. ढाळ-७. पे. २५.पे. नाम. अषाडभूतस्वाम्मीजी रो इधकार, पृ. ५२१-५३आ आषाढाभूति रास, ऋ. रतनचन्द, मागु., पद्य, वि. १८८३, आदि: गणधर गौतम गुणनीलो; अंतिः मोहनी पासी रे लो., पे.वि. ढाळ-९. पे. २६. पे. नाम. देवदन्ता री ढाल, पृ. ५३आ-५५अ देवदत्ता चौपाई, मु. रत्नधर्म, मागु., पद्य, वि. १८९१, आदिः एकादसमां अङ्ग; अंतिः रत्नधर्म शुद्ध लीध., पे.वि. ढाळ-७. पे. २७. पे. नाम. श्रीमति शील कथा, पृ. ५५अ-५६आ श्रीमती रास, ऋ. रतनचन्द, मागु., पद्य, वि. १८९४, आदिः सील धर्म सुख; अंतिः धर्म सहुने सुखदाई., पे.वि. ढाळ-६. पे. २८. पे. नाम. वङ्कचूल रास, पृ. ५६आ-५८अ वंकचूल चौपाई, ऋ. रतनचन्द, मागु., पद्य, वि. १८९१, आदिः वङ्कचूल भाखी; अंतिः ढाला किवि सुविशालै., पे.वि. ढाळ-६. पे. २९. खन्धकमुनि चौढालिया, ऋ. जैमल , राज., पद्य, वि. १८११, (पृ. ५८अ-६०अ), आदिः नमु वीर सासणधणी गणधर; अंतिः करज्यौ सहु कोय., पे.वि. ढाळ-४. पे. ३०. अर्जुनमाली ढाल, ऋ. जैमल, मागु., पद्य, वि. १८२३, (पृ. ६०अ-६१अ), आदिः राजगरी नगरी हुन्ती; अंतिः सुध पुनम सुभ ठाइ., पे.वि. ढाळ-७. पे. ३१. इक्षुकारराजा ढाल, मागु., पद्य, (पृ. ६१अ-६३अ), आदिः देव हुंता पूर्व भवे; अंति: मोक्ष सुखकार., पे.वि. ढाळ पे. ३२. अइमुत्ताकुमार ढाल, मु. रायचन्द, मागु., पद्य, वि. १८३१, (पृ. ६३अ-६४आ), आदिः बुधबालकनी प्रगटी; अंतिः कहै पाली मझार कै., पे.वि. ढाळ-६. पे. ३३. थावच्चाकुमार चौढालिया, पुण्यपाल, मागु., पद्य, (पृ. ६४आ-६५आ), आदिः महला माहे वेठो; अंतिः धन ते दीयो छिटकायौ., पे.वि. ढाळ-४. पे. ३४. पे. नाम. अषाढाभूति ढाल, पृ. ६५आ-६७अ आषाढाभूति पंचढालिया, मागु., पद्य, आदिः दरसण परीसो बावीसमो; अंति: परीहार हो गुराजी., पे.वि. ढाळ-५. पे. ३५. पे. नाम. वर्धमान गौतम चौढालीयो, पृ. ६७अ-६९अ महावीरजिन गौतम चौढालिया, ऋ. रायचन्द, राज., पद्य, वि. १८३९, आदिः मान न कीजै मानवी; अंतिः कियो दिवाली रे दिन., पे.वि. ढाळ-४. पे. ३६. पे. नाम. , पृ. ६९अ-७१आ कान्हडकठियारा रास, मु. मानसागर, मागु., पद्य, वि. १७४६, आदिः पारसनाथ प्रणमुं सदा; अंतिः सुगुण जैसे वै नरनार., पे.वि. ढाळ-८. पे. ३७. निर्मोही ढाल, ऋ. रतनचन्द, मागु., पद्य, वि. १८७४, (पृ.७१अ-७३अ), आदिः निरमोही गुण वरणवू; अंतिः पञ्च ढाल प्रसिद्ध रे., पे.वि. ढाळ-५. For Private And Personal Use Only Page #136 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra " www.kobatirth.org: ८२ हस्तलिखित जैन साहित्य भाग १ पे ३८. कार्तिकसेठ पञ्चढालिया . जैमल मागु., पद्य, (पृ. ७३अ-७५अ) आदि अरिहन्त सिध: अंतिः उपीउग दिल राखी, पे.वि. डाळ-५. . Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पे. ३९. चन्दनमलयागिरि ढाल, ऋ. रतनचन्द, मागु., पद्य, (पृ. ७५अ-७९अ ), आदि: सासणनायक समरीये; अंतिः रतचन्द रिष गाई रे., पे.वि. ढाळ- १५. पे. ४०. ये नाम सुभद्रासती ढाल, पृ. ७९-८२अ सुभद्रासती चौढालिया, मागु, पद्य, आदि सिवसुख दायक लायक अंतिः गावा सुख लहेवा, पे. वि. डाळ-५. पे. ४१. १८ नातरा ढाल, मागु., पद्य, (पृ. ८२-८३आ), आदिः परबो कहकर जोडनै; अंतिः वेरागे मन आणु रे., पे.वि. ढाळ - ४. पे. ४२. अवन्तिसुकुमाल रास, मु. जिनहर्ष, मागु., पद्य, वि. १७४१, (पृ. ८३आ-८७अ ), आदि: मुनिवर आर्य सुहस्ती; अंतिः हर्ष सुख पावी रे., पे.वि. ढाळ- १३.. पे. ४३. पे नाम, पृ. ८७अ-८९आ खन्धकमुनि ढाल, राज., पद्य, आदिः वध परिसो वर्णवं; अंतिः तिण अनुसारै इधकारो., पे.वि. ढाळ - ८. पे. ४४. पे. नाम. चेलणादेवी रास, पृ. ८९आ - ९०आ चेलणासती चौढालिया ऋ रायचन्द, मागु पद्य वि. १८३३, आदि: ओसर जे नर अंति प्रमाण सम्मत १८३३.. पे.वि. ढाळ - ४. " पे. ४५. पे. नाम एलापुत्र चौढालीयो, पृ. ९०आ- ९१आ इलाचीकुमार चौढालिया, मागु., पद्य, आदिः प्रथम गुणधर गुणनीलो; अंतिः नामे जय जयकार हो., पे.वि. ढाळ -४. पे. ४६. पे नाम उदारो चौढालीयो, पृ. ९१आ - ९३अ उदायीराजा चौढालिया, मागु., पद्य, आदिः चम्पानगरी पधारीया; अंतिः मे सीध पदवी पायो रे, पे.वि. ढाळ - ४. पे. ४७. पे नाम. चित्त सम्भूत ढाल, पृ. ९३अ - ९४आ चित्रसम्भूति चौढालिया, मागु., पद्य, आदिः प्रणमुं गणधर गुर; अंतिः पहुता मुगति मझार., पे.वि. ढाळ-५. ७७०. उपदेशमाला सह कर्णिका वृत्ति, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २०५ - १ (१)+१ (८१) =२०५, जैदेना., पू.वि. प्रथम एक व अंत के पत्र नहीं हैं. गा.२ से ३२९ तक है., (२५४१०.५, १५४६०). उपदेशमाला, गणि धर्मदास, प्रा., पद्य, आदि:-: अंति: उपदेशमाला-उपदेशकर्णिका वृत्ति, आ. उदयप्रभसूरि, सं., गद्य, वि. १२९९, आदि:-; अंतिः ७७१. वैराग्यकल्पलता, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २३९, जैदेना, प्र. वि. ९स्तबक, श्लो. ११२५, (२८.५४११.५, १०४५३) 1 वैराग्यकल्पलता, उपा. यशोविजयजी गणि, सं., पद्य, आदि: ऐन्द्रीं श्रियं नाभि: अंतिः मार्गानुसारिस्थितिम् . ७७२. पुण्याभ्युदय (व्याख्यान सङ्ग्रह), पूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ५८-१ (४२) = ५७, जैदेना., प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें, संशोधित टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२६x११, १५X४६). पुण्याभ्युदय काव्य पण्डित पुण्यनन्दन गणि, सं. प्रा. प+ग, वि. १६वी, आदि जयति जगत्स्य यस्तु अंति (१) युष्मादृशाः श्रावकाः (२) गणिना कृतम् . ७७३. पुष्पमाला सह वृत्ति, पूर्ण, वि. १६४९, श्रेष्ठ, पृ. १३७-१ (१०९ ) = १३६, जैदेना., प्र. वि. मूल-गा. ५०५. प्र. पु. सर्वग्रं. ५१६८. अंत में ग्रंथगत कथाओं की सूचि दी गयी है. प्र. ले. श्लो. (५१०) यादूसं पुस्तकं दृष्टवा, (२५४११, १३४५१). पुष्पमाला प्रकरण, आ. हेमचन्द्रसूरि मलधारि, प्रा., पद्य, आदिः सिद्धमकम्ममविग्ग; अंतिः सया सुहत्थिहिं. पुष्पमाला प्रकरण-लघुवृत्ति, गणि साधुसोम, सं., गद्य, वि. १५१२, आदिः जयति जगदेकभानुः; अंतिः समर्थिताहम्मदावादे. ७७४. षड्दर्शनसमुच्चय सह तर्करहस्यदीपिका वृत्ति, पूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १९५- १ ( १ ) -१९४ जैदेना. प्र. वि. मूल For Private And Personal Use Only Page #137 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ८३ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ७अधिकार, श्लो.८७., संशोधित, (२५.५४११.५, १०४३५). षड्दर्शनसमुच्चय, आ. हरिभद्रसूरि, सं., पद्य, आदिः-; अंतिः यालोच्यः सुबुद्धिभिः. षड्दर्शनसमुच्चय-तर्करहस्यदीपिका टीका, आ. गुणरत्नसूरि, सं., गद्य, आदिः-; अंतिः च तत्र कुशलमतिभिः. ७७५. अध्यात्मकल्पद्रुम शान्तरस वर्णन, संपूर्ण, वि. १९२६, श्रेष्ठ, पृ. ८५, जैदेना., ले.स्थल. प्रतापगढ, ले. पुरुषोत्तम (पिता नन्दकिशोर पञ्चोली), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. श्लो.१८५०, (२५.५४१२.५, १०४३४). अध्यात्मकल्पद्रुम-शान्तरसवर्णन, मागु., गद्य, आदिः अहो भव्य जीवो सदाकाल; अंतिः चाखे तो परमपद पामइ. ७७६. अन्ययोगव्यवच्छेदद्वात्रिंशिका सह स्याद्वादमञ्जरी वृत्ति, संपूर्ण, वि. १७५७, मध्यम, पृ. ४७, जैदेना., ले.स्थल. अहिपुर, ले. मु. सुजाण (गुरु मु. नरेन्द्र), प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र.वि. श्लो.३२. प्र.पु.टीका-ग्रं. २८००. प्रति.वर्ष- हयबाणसमुद्रइन्दु., पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न-वचन विभक्ति संकेत-क्रियापद संकेत, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, संशोधित, (२५.५४११, १७४५९). अन्ययोगव्यवच्छेदद्वात्रिंशिका, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, आदिः अनन्तविज्ञानमतीतदोष; अंतिः कृतसपर्याः कृतधियः. अन्ययोगव्यवच्छेदद्वात्रिंशिका-स्याद्वादद्मञ्जरीवृत्ति, आ. मल्लिषेणसूरि, सं., गद्य, शक. १२१४, आदिः यस्य ज्ञानमनन्तवस्तु; अंतिः सास्त्यत्र सम्यग्यतः. ७७७. रत्नाकरपच्चीसी सह वृत्ति, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ११, जैदेना., ले.स्थल. छाणिगाँव, ले. दयाशङ्कर केशवराम, पठ. आ. दिनेन्द्रसूरि, प्र.वि. मूल-श्लो.२५., संशोधित, (२६४१२, १३४३२-३४). रत्नाकरपच्चीसी, आ. रत्नाकरसूरि, सं., पद्य, आदिः श्रेयः श्रियां मङ्गल; अंतिः श्रेयस्करं प्रार्थये. रत्नाकरपच्चीसी-टीका, मु. भोजसागर, सं., गद्य, वि. १७९५, आदि: नमस्कृत्य जिनं; अंतिः शरनिधिसंयममितेवर्षे. ७७८." सङ्ग्रहणी सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १८३२, मध्यम, पृ. ४७, जैदेना., ले.स्थल. जैसलमेर, पठ. साध्वीजी सुखमाला, राज्यकाल- राजा मूलराज रावल,प्र.वि. मूल-गा.३४९. बालावबोध का अंतिम वाक्य अवाच्य होने से नही भरा है., संशोधित, (२८.५४१३, १५४३६). बृहत्सङ्ग्रहणी, आ. चन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदिः नमिउं अरिहन्ताइं; अंतिः जा वीरजिण तित्थं. बृहत्सङ्ग्रहणी-बालावबोध, मागु., गद्य, आदि: नमस्कार करीने; अंतिः#. ७७९. चौवीसदण्डक के पांत्रीसबोल व भगवतीसूत्र के त्रेवीस बोल, संपूर्ण, वि. १९२७, श्रेष्ठ, पृ. ५०, पे. २, जैदेना., ले.स्थल. पल्लिकानगर, ले. अमरदत्त ब्राह्मण, पठ. श्रा. तेजमाल शेठ,प्र.ले.पु. मध्यम, (२६.५४११.५, ११४४२). पे. १.२४ दण्डक ३५ बोल, मागु., गद्य, (पृ. १-५०आ), आदिः संसारी जीवो च्यार; अंतिः दण्डकनी कुलकोडि कही., पे.वि. प्र.पु. ग्रं.१३९४. पे. २. भगवतीसूत्र-बोल सङ्ग्रह, संबद्ध, मागु., गद्य, (पृ. ५०आ), आदिः जीवे तिवा आउखाने; अंतिः व्यापी रह्यो ते भणी. ७८०." नवतत्त्व प्रकरण सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ५, जैदेना., ले. ऋ. अमरा, प्र.वि. मूल-गा.४४., टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२५४१०.५, ६४३४). नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदिः जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंतिः अणागयद्धा अणन्तगुणा. नवतत्त्व प्रकरण-टबार्थ', मागु., गद्य, आदिः जीवतत्त्व अजीवतत्त्व; अंतिः परावर्त्त जास्यइं. ७८१.” प्रवचनसार सह वृत्ति, त्रुटक, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ३०२-२३०(१ से १५०,१८३ से २२०,२२२ से २२८,२३० से २५९,२६१,२६७ से २७०)=७२, जैदेना., प्र.वि. संशोधित, पदच्छेद सूचक लकीरें, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं. ७६५वीं गाथा से ११९१ तक है., (२६४१०.५, १७४६९). प्रवचनसार, आ. कुन्दकुन्दाचार्य, प्रा., पद्य, आदि:-; अंति: For Private And Personal Use Only Page #138 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य भाग १ www.kobatirth.org: प्रवचनसार-वृत्ति, आ. अमृतचन्द्रसूरि, सं., गद्य, आदि:-; अंतिः ७८२. योगशास्त्र सह अवचूरि प्रकाश १ से ४, प्रतिपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ५८, जैदेना., प्र.ले. श्लो. (५०९) यादृशं पुस्तके दृष्टं, ( २४.५x११, १७४४०). योगशास्त्र-हिस्सा, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, आदि:-; अंतिः योगशास्त्र-हिस्सा प्रकाश १-४ की अवचूरि, आ. अमरप्रभसूरि, सं., गद्य, आदि:-; अंतिः - Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ७८३. आचारप्रदीप, पूर्ण, वि. १७वी श्रेष्ठ, पृ. १०२, जैदेना. प्र. वि. प्रकाश-५ संशोधित, पदच्छेद सुचक लकीरें, पु.वि. अंतिम .. पत्र नहीं है. रचनाप्रशस्ति श्लो. ११ अपूर्ण तक है., ( २६११, १३४५४). आचारप्रदीप, आ. रत्नशेखरसूरि, सं., गद्य, वि. १५१६, (संपूर्ण), आदिः श्रीवर्द्धमानमनुपम; अंतिः प्रकाशः स्फुट:. (+) ७८४. नय विचार, अपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. २९-१ ( १ ) - २८, जैदेना, पू. वि. प्रथम एक व अंत के पत्र नहीं हैं. (२६.५४१२, १०x२८). नय विचार मागु, गद्य, आदि:-: अंति: ७८५. समयसारनाटक सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ५२, जैदेना., पू. वि. अन्त के पत्र नहीं हैं. गा. १४२ तक है., (२७.५४१३. ४०३८). , समयसार नाटक -पद्यानुवाद, श्रा. बनारसीदास, प्राहिं, पद्य वि. १६९३, आदि: करम भरम जग तिमिर अंतिःसमयसारनाटक-पद्यानुवाद का टबार्थ, पण्डित रूपचन्द, प्राहिं., गद्य, आदि: जिनवचन समुद्रकौ कौ; अंति: ७८६.” कल्पसूत्र का व्याख्यान व कथा - व्याख्यान - २ से ८, प्रतिअपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २२६ - १ (१७३) = २२५, जैदेना., प्र.वि. संशोधित, (२५-२५.५४१३-१३.५, ११-१२४३२). कल्पसूत्र - व्याख्यान + कथा*, मागु., गद्य, आदि:-: अंति: ७८७." कल्पसूत्र सह टबार्थ + अन्तर्वाच्य ( व्याख्यान) + कथा व वीरस्तुति, संपूर्ण, वि. १८२८, मध्यम, पृ. २१४, पे. २, जैदेना., ले. स्थल. खेडा हरीयालागाम, ले. पं. मोहनरत्न ( गुरु पं. कल्याणरत्न, तपागच्छ), प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, प्र.ले. श्लो. (५६) यादृशं पुस्तकं दष्टं (४८३) भग्न पृष्टी कटी ग्रीवा (५५) अज्ञाने च मतिशंसा (२६.५x१२. ६४३७). पे. १. पे नाम, कल्पसूत्र सह टवार्थ+अन्तर्वाच्य ( व्याख्यान) + कथा, पृ. १-२१४ कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदिः णमो अरिहन्ताणं० पढमं अंतिः उवदंसेइ त्ति बेमि. ८४ कल्पसूत्र- टवार्थ+ व्याख्यान+कथा, आ. सोमविमलसूरि मागु, गद्य, आदि (१) सकलार्थसिद्धिजननी (२) वर्द्धमानं जिनं; अंतिः मनोवाक्कायशुद्धित:., पे.वि. मूल - ग्रं. १२१६, अध्याय - ९ - व्याख्यान. प्र. पु. सर्वग्रं. ९०००. पे. २. महावीरजिन स्तुति, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, (पृ. २१४अ), आदि: वीरः सर्वसुरासुरेन्द; अंतिः श्रीवीर भद्रं दिश., पे.वि. श्लो. १. ७८८.” वैद्यवल्लभ सह टबार्थ व कालज्ञान श्लोक सङ्ग्रह, संपूर्ण, वि. १९००, मध्यम, पृ. ३१, पे. २, जैदेना., ले. मु. दलपत सागर, पठ. श्रीराम, प्र. वि. संशोधित, पदच्छेद सूचक लकीरें प्रारंभिक पत्र (२५४१४.५ ६४३३). पे. १. पे नाम वैद्यवल्लभ सह टवार्थ, पृ. १-३१ वैद्यवल्लभ, मु. हस्तिरुचि, सं., पद्य, वि. १७२६, आदि सरस्वती हृदि अंतिः विनिर्मिता स्वयम्. वैद्यवल्लभ-टबार्थ, मागु, गद्य, आदि सरस्वति कहता अंतिः पोते कीधी छे, पं.वि. मूल- अध्याय ८ विलास. पे. २. कालज्ञान श्लोक सङ्ग्रह, मागु., पद्य, (पृ. ३१आ), आदि: रोगि मूखे फल पूछिये; अंतिः शुन्ये पुरुष विणासे., पे.वि. गा.३. For Private And Personal Use Only Page #139 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org: Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ८५ (+) ७८९. श्रीपाल रास सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, प्र. २७, जैदेना. ले. पं. नयविजय प्र. वि. पत्र नंबर अंकित नहीं है। टिप्पण युक्त विशेष पाठ, पू.वि. बीच-बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., (२५.५४१०.५, ४४४२) श्रीपाल रास, उपा. विनयविजय उपा. यशोविजयजी गणि, मागु., पद्य, वि. १७३८, आदिः कल्पवेल कवियण तणी; अंति: श्रीपाल रास- बालावबोध *, मागु., गद्य, आदि:-; अंति: ७९२.” वैराग्यशतक व इन्द्रियपराजयशतक सह टबार्थ ( शब्दार्थ), संपूर्ण, वि. १६वी, श्रेष्ठ, पृ. १३, पे. २, जैदेना., प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें, पंचपाठ, संशोधित, (२७×११, ६-९×३८-४५). पे. १. पे. नाम. वैराग्यशतक सह टबार्थ, पृ. १आ-७आ वैराग्यशतक, प्रा., पद्य, आदि: संसारंमि असारे नत्थि; अंतिः लहइ जिउ सासयं ठाणं. पे.वि. वैराग्यशतक-टवार्थ, मागु, गद्य, आदि: संसार असारमाहि नथी अंतिः जीव शाश्वतुं ठाम, पे. वि. मूल-गा. १०४. पे. २. ये नाम इन्द्रियपराजय शतक सह टबार्थ, पृ. ७आ-१३आ इन्द्रियपराजयशतक, प्रा., पद्य, आदि सुच्चिअ सुरो सो चेव अंतिः संवेग रसायणं निच्वं. इन्द्रियपराजयशतक- टबार्थ, मागु., गद्य, आदि: तेहिज सुर तेहिज: अंतिः संवेग रसायन नित्यं पे वि. मूल गा. १०२. ७९३. सङ्ग्रहणी प्रकरण सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ७३, जैदेना., प्र. वि. मूल - गा. ४०७., (२८x१३, ४X३५). बृहत्सङ्ग्रहणी, आ. चन्द्रसूरि प्रा. पद्य वि. १२वी आदि नमिउं अरिहन्ताई अंतिः जा वीरजिण तित्यं बृहत्सङ्ग्रहणी-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः नमिउं कहतां नमस्कार; अंतिः वीरनुं तीर्थ वर्तइ. ७९४.” नवतत्त्व प्रकरण, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ५, जैदेना., प्र. वि. गा. ४८, पदच्छेद सूचक लकीरें-प्रथम पत्र, (२८४१३.५, ८४२५) नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंतिः बोहिय इक्कणिक्काय. ७९५. सूत्रकृताङ्गसूत्र सह बालावबोध, संपूर्ण वि. १७वी, मध्यम, पृ. २०९ जैदेना. प्र. वि. मूल- अध्याय - २३ (२६४१२.५. १३x४९). सूत्रकृताङ्गसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदिः बुज्झिज्ज तिउट्टेज्ज; अंतिः विहरति त्ति बेमि. सूत्रकृताङ्गसूत्र- बालावबोध, आ. पार्श्वचन्द्रसूरि मागु, गद्य, आदि प्रणम्य सद्गुरुन अंतिः तुम्ह प्रति कहउ छ ७९६. निसीथसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८९९, श्रेष्ठ, पृ. ८८, जैदेना., ले. स्थल. सेसपर, पठ. मु. ऋद्धिविजय (गुरु मु. लक्ष्मीविजय), लिखवा. श्रा. डुंगरजी, प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र. वि. मूल - २०उद्देश., (२९x१४, ५X३१). निशीथसूत्र, प्रा., गद्य, आदिः जे भिखु हत्थ; अंति: पसिस्सोवभोज्जं च. निशीथसूत्र- टबार्थ, मागु., गद्य, आदि: जे० जे साधु ह०; अंतिः उपरान्त छ मास थया.. ७९७. अञ्जनासती चौपाई, संपूर्ण, वि. २००६, श्रेष्ठ, पृ. १०, जैदेना., ले. स्थल. नागोर, ले. रामचन्द्र भाटी, प्र. वि. गा. ३२७, (२८.५४१५. १९४४६). अंजनासुन्दरी चौपाई, मु. पूज्यराज, प्राहिं., पद्य, वि. १९८९, आदि: अरिहन्त सिद्ध समरू: अंतिः राजने किया चौमासा. ७९९. सङ्ग्रहणीसूत्र, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १९, जैदेना., ले. भइखदास, प्र. वि. गा. ८८, संशोधित, (२५.५४१२.५, ११४३७). बृहत्सङ्ग्रहणी, आ. चन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदिः नमिउं अरिहन्ताइं; अंतिः जा वीरजिण तित्थं. ८००.” समयसार नाटक, नेमिजिन सज्झाय व पार्श्वजिन सवैया सह जाप मन्त्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५, पे. ३, जैदेना. प्र. वि. अशुद्ध पाठ, (२७४१२.५ १६४५४). For Private And Personal Use Only Page #140 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य भाग १ - ८६ पे. १. समयसार नाटक- पद्यानुवाद, श्रा. बनारसीदास, प्राहिं., पद्य, वि. १६९३, (पृ. १-५, अपूर्ण), आदिः करम भरम जग तिमिर; अंतिः-, पे.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. प्रारंभ से गा. ७९ तक है. www.kobatirth.org: पे. २. पार्श्वजिनमन्त्र सवैया, मु. गुणचन्द, मागु., पद्य, (पृ. ५आ, संपूर्ण), आदिः श्रीपार्श्वजिननो; अंतिः प्रणाम प्रभाव ए., पे. वि. प्र. पु. गा. १. अन्त में पार्श्वजिन का मन्त्र भी दिया है. पे. ३. नेमिजिन सज्झाय, मु. जय, मागु, पद्य, (पृ. ५आ, संपूर्ण), आदि: तोरणाथी मुख फेरने अंतिः वन्दु से कर जोड़ रे., पे.वि.गा. ९. ८०१. क्षेत्रसमास, संपूर्ण, वि. १७७९, मध्यम, पृ. ८, जैदेना., ले. स्थल. सुदामापुर, ले. मु. विजयकरण (गुरु मु. गाङ्गजी), प्र. वि. अध्याय-५. प्रति स्थल - आधुनिक नाम पोरबन्दर, ( २६१२.५, १५×५१). वृहत्क्षेत्रसमास- लघुक्षेत्र समास, आ. जिनमद्रगणि क्षमाश्रमण, संक्षेप, प्रा., पद्य, आदि नमिऊणसजलजलहर: अंतिः झाएज्जा सम्मदीट्ठीए. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (+) ८०२. कल्पसूत्र सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १५वी, मध्यम, पृ. ५०-३ (४७ से ४९ ) = ४७, जैदेना., प्र. वि. मूल ग्रं. १२१६,९ , व्याख्यान., संशोधित कुछ पत्र-पदच्छेद सूचक लकीरें संधि सुचक चिह्न ( ३१x१३, १५४६२ ). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं० समणे; अंति: उवदंसेइ त्ति बेमि कल्पसूत्र - बालावबोध, मु. जिनसागरसूरि-शिष्य मागु, गद्य, आदिः नमः श्रीवर्द्धमानाय अंतिः जगन्नाथ बोलइ. " ८०६. औपपातिकसूत्र सह टिप्पण, संपूर्ण, वि. १७वी मध्यम, पृ. ४१, जैदेना. प्र. वि. मूल- सूत्र - १८९.. टिप्पण युक्त विशेष " पाठ, संशोधित, (२५.५X११, ११४४४). औपपातिकसूत्र, प्रा., प+ग, (संपूर्ण), आदि: तेणं कालेणं० चम्पा०; अंतिः सुही सुहं पत्ता. औपपातिकसूत्र-विषमपद टिप्पण *, सं., मागु., गद्य, (अपूर्ण), आदि:-; अंतिः - (+) ८०७. सप्ततिकासूत्र सह टीका, संपूर्ण, वि. १६वी, मध्यम, पृ. ६९, जैदेना., प्र. वि. मूल-गा. ८९; टीका- ग्रं. ३८८०. मूल के कर्ता जिनरत्नकोश नामक संदर्भ ग्रन्थ के आधार से है, संशोधित, ( २६४११, १७९५६), सप्ततिका कर्मग्रन्थ, प्रा., पद्य, आदिः सिद्धपएहिं महत्थं; अंतिः पूरेऊणं परिकहन्तु. " सप्ततिका कर्मग्रन्थ- टीका, आ. मलयगिरिसूरि सं., गद्य, आदि: अशेषकर्मांशतमःसमूह; अंतिः धर्मं परममङ्गलम्. ८०९. योगशास्त्र का बालावबोध प्रकाश १ से ४ प्रतिपूर्ण, वि. १५वी मध्यम, पृ. ५२, जैदेना. (२६४११, १३४४७). .. योगशास्त्र-हिस्सा प्रकाश १ से ४ का बालावबोध, सं., मागु., गद्य, आदिः श्रीमहावीरनई कारणि; अंतिः मुख्यपणुं छइ जेह रहइ. . (+) ८१०. चन्दराजा रास, पूर्ण, वि. १७४२, मध्यम, पृ. ७४-२ (१ से २ ) =७२, जैदेना. ले. स्थल. सादडी, ले. मु. विमल, प्र. वि. ६/ १०३ ढाल, गा.२५०५, ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित संशोधित (२६४१०.५. १५९४४). चन्द्रराजा रास, मु. विद्यारुचि, मागु, पद्य, वि. १७१७ आदि अंति: पामे शिवसुख लील. ; " ८१२. लघुसङ्ग्रहणी सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७८८, मध्यम, पृ. ३८, जैदेना., ले. स्थल. तिमरीग्राम, ले. भैरुदास (गुरु पण्डित सुभाचन्द). प्र. वि. मूल-गा. ३१९. वस्तुतः यह प्रत बृहत्संग्रहणी है पर प्रतिलेखक की भूल से पुष्पिका में लघुसंग्रहणी का उल्लेख हो गया है., पदच्छेद सूचक लकीरें, संशोधित, ( २६.५x११, ५X३४). बृहत्सग्रहणी, आ. चन्द्रसूरि प्रा. पद्य वि. १२वी आदि नमिउं अरिहन्ताई अंतिः जा वीरजिण तित्यं P · बृहत्सङ्ग्रहणी-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः नमिउं कहतां नमस्कार; अंतिः वीरनुं तीर्थ ति लगी. (+) ८१४. प्रद्युम्न चरित्र, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १६३-३४(१०९ से १२९, १३१ से १३८, १४३ से १४७ ) - १२९, जैदेना., प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र. वि. ग्रं. ४८५० सर्ग १६. पत्रांक- १०९ अनुपुर्ति के रूप में है, पदच्छेद सुचक लकीरें संधि सूचक चिह्न, प्र.वि. (२६.५४१०.५. १३-१५४४३). प्रद्युम्न चरित्र. मु. सोमकीर्ति सं., पद्य वि. १५३३ आदि श्रीमन्तं सन्मति: अंतिः श्रीसर्वज्ञ प्रसादतः " For Private And Personal Use Only Page #141 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ८७ ८१५.” कल्पसूत्र सह टबार्थ व व्याख्यान+कथा, अपूर्ण, वि. १७७५, मध्यम, पृ. १६३-६८ (१ से ६८) =९५, जैदेना., ले.स्थल. योगिणीपुर, ले. पं. सुगुणतिलक (गुरु वाचक रूपकुशल, खरतरगच्छ गच्छा. आ. जिनचन्द्रसूरि ( खरतरगच्छ ), प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र. वि. मूल-ग्रं. १२१६, ९ - व्याख्यान, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२७१२, ५-१८४३५-४८). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी प्रा. गद्य, आदि-: अंति: उवदंसेइ ति बेमि " कल्पसूत्र - टबार्थ *, मागु., गद्य, आदि:-; अंति: हेति कहिइ वारजी. कल्पसूत्र व्याख्यान+कथा', सं., गद्य, आदि:-: अंति: www.kobatirth.org: ८१६. मुनिपति चरित्र, संपूर्ण, वि. १८वी श्रेष्ठ, पृ. ३४, जैदेना. प्र. वि. गा. ७३३ (२६४१२, १३४३७). " मुनिपति चौपाई, पं. हीरकलश, मागु., पद्य, वि. १६०८, आदिः जिन चउवीसे पय नमी : अंतिः रचियउ चरिय उदार. ८१७. पाक्षिकसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९४८, श्रेष्ठ, पृ. ६३, जैदेना., ले. स्थल. अहिपुर, ले. श्रा. माइदास मुथा, प्र. वि. प्रतिलेखक द्वारा टबार्थ अपूर्ण टबार्थ १-६ आलापक तक ही है. (२६.५४११.५, ४४१६). पाक्षिकसूत्र, प्रा., प+ग, (संपूर्ण), आदिः तित्थङ्करे य तित्थे; अंतिः जेसिं सुयसायरे भत्ति... पाक्षिकसूत्र - टवार्थ, मागु, गद्य (अपूर्ण), आदि तीर्थङ्कर प्रते; अंतिः , " ८१८. जीवाभिगमसूत्रटीका, अपूर्ण, वि. १६वी, जीर्ण, पृ. ३१०-१४० (१११ से २५० ) - १७०, जैदेना. प्र. वि. मूल-गा. ९४०, अध्याय १९. संशोधित (२६४११, १५००३७) जीवाभिगमसूत्र टीका, आ. मलयगिरिसूरि · Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir " सं. गद्य आदि प्रणमत पदनखतेजप्रति अति: " 1 ८१९.' सूत्रकृताङ्गसूत्र, संपूर्ण वि. १७वी, मध्यम, पृ. ६०, जैदेना. प्र. वि. अध्याय- २३ ग्रं. २१०० टिप्पण युक्त विशेष पाठ " कुछ पत्र, (२५.५x११, १३x४६ ) . सूत्रकृताङ्गसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदिः बुज्झिज्ज तिउटेज्ज; अंतिः विहरति त्ति बेमि ८२१. कल्पसूत्र का बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९४१, श्रेष्ठ, पृ. १६४, जैदेना., ले. श्रा. रइजी, प्र. वि. प्रतिलेखक ने पट्टावली में भूल होने का निर्देश किया है। ( २०x१२ १२४३९). कल्पसूत्र - बालावबोध*, मागु., राज, गद्य, आदिः नमो अरिहन्ताणं; अंतिः अनन्तु ज्ञान पामे. (+) ८२२. पञ्चाशकसूत्र सह शिष्यहिता वृत्ति, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २७१+१ ( २१२ ) - २७२, जैदेना. प्र. वि. मूल गा. ९४०, अध्याय १९ संशोधित, (२७४१३ १३४३६). पंचाशक, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदिः नमिऊण वद्धमाणं सावग; अंतिः तवोविहिपयरणं समत्तं. पंचाशक- शिष्यहिता वृत्ति आ. अभयदेवसूरि सं. गद्य वि. ११२४ आदि सदृष्टीनां समस्ता; अंतिः शोधिता चेति. ८२३. द्रव्यसङ्ग्रह सह टीका, पूर्ण, वि. १६७०, मध्यम, पृ. १५२ - १ ( १ ) = १५१, जैदेना., प्र. वि. मूल-ग्रं. ३०००., (२८.५x११.५, ८X३५). द्रव्यसङ्ग्रह. मु. नेमिचन्द्र सिद्धान्त चक्रवर्ती, प्रा., पद्य, आदि:- अंतिः मुणिणा भणियं जं. द्रव्यसङ्ग्रह - वृत्ति, आ. ब्रह्मदेव, सं., गद्य, आदि:-; अंतिः क्रियाकारक सम्बन्ध. ८२४." समयसारनाटक, संपूर्ण, वि. १८०२ श्रेष्ठ, पृ. ७३, जैदेना., ले. स्थल वैद्यनगर, प्र. वि. गा. ७२७, संशोधित, पदच्छेद सूचक लकीरें, (२५x११.५, ११४३१). समयसार नाटक- पद्यानुवाद, श्रा. बनारसीदास, प्राहिं., पद्य, वि. १६९३, आदि: करम भरम जग तिमिर; परमारथ विरतन्त. For Private And Personal Use Only अंतिः नाममइ (+) " ८२६. जीवाभिगमसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १७७, जैदेना. प्र. वि. ११७A तक टबार्थ लिखा है टिप्पण युक्त विशेष पाठ, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. तृतिय पडिवत्ति में दीवसमुद्दवत्ती अदिकार अपूर्ण तक है., (२७.५x१३, ६x४५). जीवाभिगमसूत्र, प्रा., गद्य, आदि: णमो उसभादियाणं: अंति: Page #142 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य भाग - १ जीवाभिगमसूत्र-टबार्थ, मु. धनविमल, मागु., गद्य, आदिः नमस्कार हुवो माहरु; अंति:८२७. जिनप्रतिमास्थापना प्रबन्ध, पूर्ण, वि. १७८८, श्रेष्ठ, पृ. ३८-३(१ से ३)=३५, जैदेना., पठ. केसरीसिङ्ग, प्र.वि. अध्याय १३ अधिकार, पू.वि. प्रारम्भ के पत्र नहीं हैं., (२८x१६.५-१६.८, १५४३४). जिनप्रतिमास्थापना प्रबन्ध, मु. ब्रह्म, मागु., पद्य, वि. १६७७, आदि:-; अंति: जिनधर्म विस्तरइं. ८२८. समरादित्यकेवली चरित्र, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ७९, जैदेना., पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. गा.४०१अपूर्ण तक है., (२७.५४१६, १०x२३). समरादित्यकेवली रास, कवि पद्मविजय, मागु., पद्य, आदिः कालादिक जे आठ; अंति:८२९. पद्मपुराण भाषा, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २५६-१(१४५)=२५५, जैदेना., पू.वि. बीच के व अंतिम पत्र नहीं हैं. गा.४५३९ तक है., (२६.५४१२.५, १२४४०). पद्मपुराण-पद्यानुवाद, मागु., पद्य, आदिः आदिनाथ वन्दु जिनराय; अंति:८३०. भक्तामर स्तोत्र सह पञ्चाङ्ग पद्धति विवरण, पूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४९-१(४३)=४८, जैदेना.,प्र.वि. मूल-श्लो.४८., पू.वि. काव्य-४३ नहीं है., (२६४१२.५, ११४४६). भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुङ्गसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलिमणि; अंतिः समुपैति लक्ष्मी. भक्तामर स्तोत्र यन्त्रमन्त्राम्नाय-पञ्चांगपद्धति विवरण, आ. हरिभद्रसूरि, सं.,प्रा., गद्य, आदिः द्वितीय अङ्ग ऋद्धि; अंतिः सिद्धिः कमलावरोति. ८३४." चन्द्रराजा चरित्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९०४, मध्यम, पृ. २२५, जैदेना., ले.स्थल. मजल, ले. गणि लब्धिविजय (गुरु गणि कृष्णविजय), पठ. मु. नारणजी (गुरु गणि लब्धिविजय), प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र.वि. मूल-श्लो.९६७, अध्याय-४. टबार्थ का प्रतिलेखन संवत् १९०५ है., संशोधित-प्रारंभिक पत्र, पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न, (२८x१४, ७x३२). श्रीचन्द्रकेवलि चरित्र, मु. सिद्धर्षि, सं., पद्य, वि. ५९८, आदिः ॐ ध्यात्वा श्रीजिनं; अंतिः सङ्घश्चिरं नन्दतात्. श्रीचन्द्रकेवलि चरित्र-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः ध्यात्वा श्रीमन्; अंतिः जीव होज्यो चतुर्विध. ८३५.” पञ्चाशकसूत्र सह वृत्ति, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २३०, जैदेना., प्र.वि. मूल-अध्याय-१९पंचाशक, गा.९४०, ग्रं. ११८७; टीका-ग्रं. ९९८२., संशोधित, (३०x१३.५, १६४५०). पंचाशक, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदिः नमिऊण वद्धमाणं सावग; अंतिः तवोविहिपयरणं समत्तं. पंचाशक-शिष्यहिता वृत्ति, आ. अभयदेवसूरि , सं., गद्य, वि. ११२४, आदिः सदृष्टीनां समस्ता; अंतिः शोधिता चेति. ८३६.” राजप्रश्नीयसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८७२, श्रेष्ठ, पृ. २०५, जैदेना., ले.स्थल. सीवपुरी, ले. मु. देवेन्द्रविजय (गुरु मु. केशरविजय, आणन्दसूरिगच्छ), गच्छा. आ. सुरेन्द्रविजयसूरि,प्र.ले.पु. विस्तृत,प्र.वि. मूल-सूत्र-१७५, ग्रं. २०००.प्र.पु. टबार्थ-ग्रन्थाग्रंथ-३२६८. चतुरविजय-देवसूरिगच्छीय की प्रत के उपर से लिखी गयी प्रत., टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२६४११, ५४२९). राजप्रश्नीयसूत्र, प्रा., गद्य, आदिः नमो अरिहंताणं० तेणं; अंतिः सुपस्से पस्सवणा नमो. राजप्रश्नीयसूत्र-टबार्थ, वाचक मेघराजजी, मागु., गद्य, आदिः देवदेवं जिनं नत्वा; अंतिः तेह भणी नमस्कार थाओ. ८३७." कल्पसूत्र सह कल्पसुबोधिका वृत्ति, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १७८-१(१२८+१२९)=१७७, जैदेना., प्र.वि. मूल-९ व्याख्यान., संशोधित, त्रिपाठ, (२७४१३, १४४३९). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदिः तेणं कालेणं० समणे; अंतिः उवदंसेइ त्ति बेमि. कल्पसूत्र-सुबोधिका टीका, उपा. विनयविजय , सं., गद्य, वि. १६९६, आदिः प्रणम्य परमश्रेयस्कर; अंतिः विद्वज्जनराश्रिता. For Private And Personal Use Only Page #143 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ८९ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ८३९. चित्रसेन पद्मावती चरित्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८५६, श्रेष्ठ, पृ. १११, जैदेना., ले.स्थल. राधनपुर, ले. मु. जिनविजय; मु. शुभविजय (गुरु गणि ललितविजय), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. मूल-श्लो.१२३५., (२७.५४१२.५, ५४४१). चित्रसेनपद्मावती चरित्र, पाठक राजवल्लभ, सं., पद्य, वि. १५२४, आदि: नत्वा जिनपतिमाद्यं; अंतिः कथां पाठकराजवल्लभः. चित्रसेनपद्मावती चरित्र-टबार्थ, गणि भक्तिविजय, मागु., गद्य, आदिः अद्य क० पहेला युगल; अंतिः अर्थ मनोहर नीपजावी. ८४२." भगवतीसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १७३१+२(१७३,६७९)=१७३३, जैदेना., प्र.वि. मूल-४१शतक; प्र.पु. मूल-ग्रं. १५७५०.प्र.पु. सर्वग्रं. १२५०००. अन्यत्र दुर्लभ । आदि एवं अन्त में चित्र पृष्टिका।, पदच्छेद सूचक लकीरें-मूल पाठ-प्रारंभिक पत्र, (२६४११, ५४३२). भगवतीसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: नमो अरहन्ताणं; अंतिः देउ अविलिहं तस्स. भगवतीसूत्र-टबार्थ, गणि मेघराज, मागु., गद्य, आदिः (१) देवदेवं जिनं नत्वा (२) च० चलमाणे चलीइं; अंतिः प्रते नमस्कार करूं. ८४३. समकितसडसठ बोल सज्झाय सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २०, जैदेना., ले.स्थल. वीजापुर, ले. चुनीलाल, प्र.वि. मूल-ढाळ-१२., (२७४१४.५, ३४३३). समकितना सडसठबोलनी सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मागु., पद्य, आदिः सुकृतवल्लि कादंबिनी; अंतिः वाचक जस इम बोले रे. समकितना सडसठबोलनी सज्झाय-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः सुकृत पूण्यं तद्रूप; अंतिः यशविजय० इम कह्यो छे. ८४४. कुसलानुबन्धी प्रकीर्णक सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ११, जैदेना., ले. तलजा बारोट, प्र.वि. मूल-गा.६३., (२८x१४.५, ४४३७). चतुःशरण प्रकीर्णक, गणि वीरभद्र, प्रा., पद्य, आदिः सावज्ज जोग विरई; अंतिः कारणं निव्वुइ सुहाणं. चतुःशरण प्रकीर्णक-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः सावज्ज क० सावद्य; अंतिः ए अध्ययन इत्यर्थः. ८४६. दीपावली कल्प सह टबार्थ (कथानक), संपूर्ण, वि. २०पू, श्रेष्ठ, पृ. ५३, जैदेना., प्र.वि. मूल-श्लो.४४३, ग्रं. १५००., (२७.५४१३.५, ४४३५). दीपावलीपर्व कल्प, आ. जिनसुन्दरसूरि, सं., पद्य, वि. १४८३, आदिः श्रीवर्द्धमानमाङ्गल; अंति: चन्द्रार्कजगत्त्रये. दीपावलीपर्व कल्प-टबार्थ, गणि सुखसागर, मागु., गद्य, वि. १७६३, आदिः अर्ह नत्वाल्प; अंति: वोर्हद्धर्मदीपोत्सवः. ८४९. ज्ञातधर्मकथाङ्गसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, जीर्ण, पृ. २९०-१५५(११७ से २७१)=१३५, जैदेना., प्र.वि. पन्ने-१ से ११६ तक व २७२ से २९० तक. जीर्ण चिपकी हुई प्रति., पू.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., (२५४११, ७४४०). ज्ञाताधर्मकथाङ्गसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदि:-; अंति: ज्ञाताधर्मकथाङ्गसूत्र-टबार्थ, उपा. कनकसुन्दर, मागु., गद्य, आदि:-; अंति:८५०. सङ्ग्रहणी सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १०८+१(६२)=१०९, जैदेना., ले. जीवणसिंह, प्र.वि. मूल-गा.४०६. नक्शों से चित्रित।, (२६४१२.५, ४४३०). बृहत्सङ्ग्रहणी, आ. चन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदिः नमिउं अरिहन्ताइं; अंतिः जा वीरजिण तित्थं. बृहत्सङ्ग्रहणी-टबार्थ , मु. धर्ममेरु, मागु., गद्य, आदिः नमस्कार करीने; अंतिः तिरथ सुधा प्रवर्तओ. ८५१. वीतराग स्तोत्र, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, प्र. २८-६(१ से ५,८)=२२, जैदेना., प्र.वि. रासायनिक कोई पदार्थ गिरने से ____एक कोने में सभी पत्र गोलाकार में जल गये हैं., (१५.५४१०.५, १३४३४). वीतराग स्तोत्र, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, आदि:-; अंतिः फलमीप्सितम्. ८५२. बार भावना व अढारपापस्थानक स्वाध्याय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १०, पे. २, जैदेना., (२६४१२, १३४३९). For Private And Personal Use Only Page #144 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य भाग - १ पे. १.१२ भावना, उपा. जयसोम, मागु., पद्य, वि. १६४६, (पृ. १-३), आदिः आदीसर जिणवर तणा; अंतिः भणतां सवि सुख थाअइ., पे.वि. ढाळ-१३, गा.७२. पे. २. १८ पापस्थानक निवारण सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मागु., पद्य, (पृ. ४-१०), आदिः पापस्थानक पहिलं; अंतिः वाचकजस इम भाखेजी., पे.वि. १८ सज्झाय. ८५३. दसका पान्त्रिस बोल, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना., ले.स्थल. पालीताणा, ले. श्रा. हरिचन्द जयचन्द गान्धी, (२२४१३.५, १२४३०). दसकापान्त्रिस बोल, मागु., गद्य, आदि: पहले बोले १० यतिधर्म; अंति: सें आवे मोहसुं आवे. ८५४. चोवीसदण्डक २९द्वार, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १२, जैदेना., (२३४१३.५, १०x४२). २४ दण्डक २९ बोल, मागु., गद्य, आदिः प्रथम नामद्वार बीजु; अंतिः जीव अनन्तगुणाधिका. ८५६. कल्पसूत्र सह टबार्थ व व्याख्यान+कथा, संपूर्ण, वि. १८२२, मध्यम, पृ. १४९, जैदेना., ले.स्थल. रेयांग्राम, ले. ऋ. गौडीदास; पं. जीवणदास, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. मूल-ग्रं. १२१६, ९-व्याख्यान. प्र.पु.सर्वग्रं. ८०००., प्र.ले.श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्टं, (२४.५४१०.५, ६-१७४३१-४२). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: णमो अरिहन्ताणं० पढमं; अंतिः उवदंसेइ त्ति बेमि. कल्पसूत्र-टबार्थ , मागु., गद्य, आदिः नमो क० माहरो नमस्कार; अंतिः एतलै गुरुसु जणाव्यौ. कल्पसूत्र-व्याख्यान+कथा* , मागु., गद्य, आदिः#; अंतिः#. ८५७. नन्दीसूत्र, अनुज्ञानन्दीसूत्र व योगनन्दीसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९०१, श्रेष्ठ, पृ. ६७, पे. ३, जैदेना., ले.स्थल. सरीयारीग्राम, ले. मु. हुकमचन्द(लुङ्कागच्छ),प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ,प्र.ले.श्लो. (५०६) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा ; (२०९) जलाद्रक्षे थलाद्रक्षे; (५४४) कट कुबडी कठिनगत, (२७.५४१२.५, ६-२२४३८-६४). पे. १. पे. नाम. नन्दीसूत्र सह टबार्थ, पृ. १-६०अ नन्दीसूत्र, आ. देववाचक, प्रा., प+ग, आदिः जयइ जगजीवजोणीवियाणओ; अंतिः से तं परोक्खणाणं. नन्दीसूत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः नन्दी ते आनन्दनी; अंतिः ए परोक्ष श्रुतज्ञान. पे. २. पे. नाम. अनुज्ञानन्दीसूत्र सह टबार्थ, पृ. ६०अ-६५अ लघुनन्दीसूत्र-अनुज्ञानन्दीसूत्र, आ. देववाचक, प्रा., गद्य, आदिः से किं तं अणुण्णा; अंतिः वीसमणुण्णाए णामाइं. लघुनन्दीसूत्र-अनुज्ञानन्दीसूत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः से० ते अथ हिवे; अंतिः अनुग्याना नाम जाणवा. पे. ३. पे. नाम. योगनन्दीसूत्र सह टबार्थ, पृ. ६५अ-६७ योगनन्दीसूत्र, आ. देववाचक, प्रा., गद्य, आदिः आभिणिबोहियनाणं; अंतिः अणुजाणामि. योगनन्दीसूत्र-टबार्थ', मागु., गद्य, आदिः आ० मतिज्ञान ते; अंतिः किस्युं अ० आचाराङ्ग. ८५८. दण्डक चोईवीसी स्तोत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८४५, श्रेष्ठ, पृ. ८, जैदेना., प्र.वि. मूल-गा.३९. टबार्थ मात्र १० गाथा तक है।, (२४४१२.५, ३४३४). दण्डक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, (संपूर्ण), आदिः नमिउं चउवीस; अंतिः एसा विनत्ति अप्पहिआ. दण्डक प्रकरण-टबार्थ, राज., गद्य, (अपूर्ण), आदिः नमीउं क० नमस्कार; अंतिः८५९. साधुपाक्षिकअतिचार व क्षामणासूत्र, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १२, पे. २, जैदेना., पू.वि. अन्त के पत्र नहीं हैं., (२१४११.५, ६४१९). पे. १. पे. नाम. साधुपाक्षिकअतिचार, पृ. ०१अ-११अ, संपूर्ण साधुपाक्षिकअतिचार श्वे.मू.पू., संबद्ध, मागु.,प्रा., गद्य, आदि: नाणम्मि दंसणम्मि०; अंतिः अनेरो जे कोई अतिचार. पे. २. पे. नाम. पाक्षिकक्षामणासूत्र, पृ. ११अ-१२आ-, अपूर्ण । क्षामणकसूत्र, प्रा., गद्य, आदिः इच्छामि खमासमणो; अंतिः-, पे.वि. अन्त के पत्र नहीं हैं. For Private And Personal Use Only Page #145 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ९१ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ८६०. सत्तरभेदी पूजा, संपूर्ण, वि. १८५३, श्रेष्ठ, पृ. ७, जैदेना., ले.स्थल. बोरसिद्धग्राम, ले. पं. आणन्दसागर, पठ. श्रा. दीपचन्द रुपचन्द,प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. गा.१०८, ढाळ-१७, प्र.ले.श्लो. (४७५) यादशं पुस्तकं दृष्ट्वा , (२७.५४१४, १३४३३). १७ भेदी पूजा, उपा. सकलचन्द्रगणि, मागु., पद्य, आदिः अरिहन्त मुखपङ्कज; अंतिः सकल थुणियो रे. ८६३. सम्बोधसप्ततिका व शलाकापुरुषबल सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८६२, श्रेष्ठ, पृ. १८, पे. २, जैदेना., ले.स्थल. बर्हानपुरनगर, (२८.५४१४.५, ३४३३). पे. १. पे. नाम. सम्बोधसप्ततिका सह टबार्थ, पृ. १-१८ सम्बोधसप्ततिका, आ. जयशेखरसूरि, प्रा., पद्य, आदिः नमिऊण तिलोअगुरुं; अंतिः लहई नत्थि सन्देहो. सम्बोधसप्ततिका-टबार्थ, मागु., गद्य, आदि: नमिऊण कहतां मन वचन; अंतिः मोक्षसुख हुइ सही., पे.वि. मूल गा.८५. पे. २. पे. नाम. शलाकापुरूषबलगाथा सह टबार्थ, पृ. १८अ शलाकापुरूष बल गाथा, प्रा., पद्य, आदिः च्छत्ते सिरम्म्मि; अंतिः वासु सादेवेहे. शलाकापुरूष बल गाथा-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः प्रथम वासुदेव; अंतिः एतलु बल घटथी., पे.वि. मूल-गा.१. ८६५." राजप्रश्नीयसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८९९, श्रेष्ठ, पृ. १६६-२(११०,१४९)=१६४, जैदेना., ले.स्थल. थांनगढ, ले. गणि जतनकुशल (गुरु गणि अमृतकुशल), राज्यकाल- राजा वासिङ्गजी, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. संशोधित, (२७४१३, ५४४०). राजप्रश्नीयसूत्र, प्रा., गद्य, आदिः नमो अरिहंताणं० तेणं; अंतिः सुपस्से पस्सवणा नमो. राजप्रश्नीयसूत्र-टबार्थ, वाचक मेघराजजी, मागु., गद्य, आदिः देवदेवं जिनं नत्वा; अंतिः राजानी केसी सामा. ८६६." उत्तराध्ययनसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७०६, श्रेष्ठ, पृ. २१७, जैदेना., ले.स्थल. वीकीपुरनगर, लिखवा. श्रा. अमीपा छाजड, प्र.वि. मूल-३६अध्ययन.प्र.पु. सर्वग्रं. ११५८०. छाजड अमीपा ने लिखवाकर धर्महेतु से वहोराई।, संशोधितप्रारंभिक पत्र, (२५.५४१०.५, ४४३९). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग, आदिः सञ्जोगाविप्पमुक्कस्स; अंतिः (१)सम्मए त्ति बेमि (२)पुत्वरिसी एव भासन्ति. उत्तराध्ययनसूत्र-टबार्थ+कथा सङ्ग्रह, मु. पार्श्वचन्द्रसूरि-शिष्य, मागु., गद्य, आदिः पूर्वसंजोग मातापिता; अंतिः भाष्यकारनुं जाणवू. ८६७. कल्पसूत्र, संपूर्ण, वि. १८७९, मध्यम, पृ. ४८, जैदेना., प्र.वि. ग्रं. १२१६, ९-व्याख्यान, (२७४१६, १४४३३). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदिः णमो अरिहन्ताणं० पढमं; अंतिः उवदंसेइ त्ति बेमि. ८. चन्द्रराजा रास, संपूर्ण, वि. १९१५, श्रेष्ठ, पृ. १०९, जैदेना.,ले. म्. रामविजय, अन्य- श्रा. गणपत मोतिसा, प्र.ले.पू. मध्यम, प्र.वि. प्रतिलेखक ने तो पुष्पिका देकर प्रत पूर्ण किया है पर, वस्तुतः प्रत में उल्लास-४ के १८वी ढाल तक ही है. इस तरह प्रत अपूर्ण है., (२७४१३, १५४२९). चन्द्रराजा रास, मु. मोहनविजय, मागु., पद्य, वि. १७८३, (अपूर्ण), आदिः प्रथम धराधव तीम; अंति:८७२." उपदेशमाला सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८०३, श्रेष्ठ, पृ. १३२+२(८,६६)=१३४, जैदेना., ले.स्थल. गजपाटक, ले. गणि राजशील (गुरु गणि लावण्यशील), प्र.वि. मूल-गा.५४४., पदच्छेद सूचक लकीरें, (२६x११.५, ४४३४). उपदेशमाला, गणि धर्मदास, प्रा., पद्य, आदिः नमिऊण जिणवरिन्दे; अंतिः वयण विणिग्गया वाणी. उपदेशमाला-बालावबोध, मु. वृद्धिविजय, मागु., गद्य, वि. १७१३, आदिः (१) प्रणम्य श्रीमहावीरं (२) नमिउण कहितां नमस्कार; अंतिः नीकली जे वाणी. ८७५.” सङ्ग्रहणीसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८४६, श्रेष्ठ, पृ. ६३, जैदेना., पठ. गणि रूपविजय (गुरु गणि पद्मविजय, संवेग For Private And Personal Use Only Page #146 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य भाग १ - www.kobatirth.org: पक्षीय) प्र. वि. मूल-गा. ३५३. प्रतिलेखन वर्ष १९२५ अलग से दिया है। संशोधित, पदच्छेद सूचक लकीरें, (२७.५X१३.५, ४X३१). बृहत्सङ्ग्रहणी, आ. चन्द्रसूरि प्रा. पद्य वि. १२वी आदि नमि अरिहन्ताई अंतिः जा वीरजिण तित्यं बृहत्सङ्ग्रहणी-टबार्थ, मु. धर्ममेरु, मागु., गद्य, आदि: नमस्कार करीने; अंतिः संघयण जयवंती वरतो. ८७६. योगचिन्तामणि सह टवार्थ, संपूर्ण वि. १८९२ श्रेष्ठ, पृ. १४४ जैदेना. ले. स्थल. सरवाडनगर, ले. बदनमल, प्र. वि. मूलअध्याय ७. प्र. ले. श्लो. (१५) अदृष्टदोषात् मतिविभ्रमात् च (४०४) भग्न पृष्टि कटी ग्रीवा (२६४११.५. ७०४४०). योगचिन्तामणि, आ. हर्षकीर्तिसूरि, सं. पद्य वि. १७वी आदिः यत्र वित्रासमायान्ति: अंतिः सप्तमको मिश्रकाध्याय. योगचिन्तामणि- टवार्थ, मागु, गद्य, आदि जब वित्रासनइ: अंतिः पूरो हुवो. " Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 'उत्तराध्ययनसूत्र सह टवार्थ सूत्रपठनफल सहित संपूर्ण वि. १७९९, श्रेष्ठ, पृ. १७९, जैदेना. ले. स्थल धुनाड ग्राम, ले. गणि गलालविजय (गुरु मु. डुङ्गरविजय, तपागच्छ), प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र. वि. मूल-३६अध्ययन. अन्त में ग्रन्थमाहात्म्यगाथाबद्ध व अध्ययनों का नाम दिया गया है., टिप्पण युक्त विशेष पाठ, प्र.ले. श्लो. (५४५) श्री सकल सङ्घ आनन्द कर (५४६) भव अनन्तना भय हरे (२६४११.५ ५०३३) " उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा. प+ग, आदि सज्जोगाविष्यमुक्कस्स अति: (१) सम्मए ति बेमि (२) पुव्वरिसी एव भासन्ति उत्तराध्ययनसूत्र -टबार्थ + कथा सङ्ग्रह, मु. पार्श्वचन्द्रसूरि-शिष्य मागु, गद्य, आदि: पूर्वसंजोग मातापिता; अंतिः भाष्यकारनं जाणवुं. 1 ८७९. कल्पसूत्र, संपूर्ण, वि. १८३४, मध्यम, पृ. ४६ जैदेना ले. स्थल धाणसा, पठ. पं. माणिक्यविजय गणि, प्र. वि. ९ "" व्याख्यान, ग्रं. १२१६, (२७४११, १३३०). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा. गद्य, आदि णमो अरिहन्ताणं० पढमं अंतिः उवदंसेइ त्ति बेमि ९२ " ८८०. सम्यक्त्वकौमुदी कथानक सह टवार्थ, संपूर्ण वि. १९५४ श्रेष्ठ, पृ. १०९ + १ ९५ ) - ११०, जैदेना. ले. स्थल विद्युतनगर, ले. मु. पद्मसागर (गुरु मु. पुण्यसागर ), ( २५.५५११.५, ६४३७). सम्यक्त्वकौमुदी कथानक, सं. गद्य, आदिः श्रीवर्द्धमानमानम्य अतिः स्वर्गमश्नुते. सम्यक्त्वकौमुदी कथानक-टबार्थ *, मागु., गद्य, आदिः श्रीवर्द्धमान; अंतिः ते नर मोक्षसुख पाये... , ८८३." पञ्चसूत्र, षोडशक व अष्टकप्रकरण सह वृत्ति, संपूर्ण, वि. १४५३, श्रेष्ठ, पृ. १७९, पे. ६, जैदेना., अन्य- आ. देवसुन्दरसूरि (तपागच्छ), प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र. वि. तपा. देवसुन्दरसूरिणामुपदेशेन सा. पाल्हा सुत सा. राणमल्ल भार्या रत्नादेद्या पूनसी जनन्या श्रे सामल पचीसुतया लिखपितं ( पुस्तकान्तरे च चन्द्रप्रभ चरित्रं लिखापितं), संशोधित, (२६.५४८.५, ११४५८). पे. १. पंचसूत्र, आ. चिरन्तनाचार्य, प्रा., गद्य, (पृ. १-७आ), आदिः णमो वीयरागाणं; अंतिः त्ति पवज्जाफलसुत्तं., पे.वि. सूत्र - ५. पे. २. पे. नाम. पञ्चसूत्र की हारिभद्रीय टीका, पृ. ८अ-३०आ पंचसूत्र - टीका, आ. हरिभद्रसूरि, सं., गद्य, आदिः प्रणम्य परमात्मानं; अंतिः सत्वाः सुखिन: सन्तु., पे.वि. ग्रं.८८०. पे. ३. षोडशक प्रकरण, आ. हरिभद्रसूरि सं., पद्य, (पृ. ३१आ- ३९अ), आदि प्रणिपत्य जिनं वीरं अंति " हारिभद्रमिदम्., पे.वि. अध्याय- १६ षोडशक. पे. ४. पे. नाम. षोडशकप्रकरण की वृत्ति, पृ. ३९-८०आ षोडशक प्रकरण-सुगमार्थकल्पना वृत्ति, आ. यशोभद्रसूरि, सं., गद्य, वि. ११वी, आदिः अमृतमिवामृतमनघं जगाद; अंतिः द्वारेण संस्तीति पं.वि. प्र. पु. ग्रं. १५००. पे. ५. अष्टकप्रकरण, आ. हरिभद्रसूरि सं., पद्य, (पृ. ८१आ-८८आ), आदिः यस्य सङ्क्लेशजननो०: अंतिः भवन्तु सुखिनो जनाः., पे.वि. ३२अष्टक. For Private And Personal Use Only Page #147 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची पे. ६.पे. नाम. अष्टकप्रकरण सह टीका, पृ. ८९अ-१७९ अष्टकप्रकरण, आ. हरिभद्रसूरि, सं., पद्य, आदिः यस्य सङ्क्लेशजननो०; अंतिः भवन्तु सुखिनो जनाः. अष्टकप्रकरण-वृत्ति, आ. जिनेश्वरसूरि, सं., गद्य, वि. १०८०, आदिः आविष्कृताशेषपदार्थ; अंतिः लोकानां सप्ततिस्तथा., पे.वि. मूल-अध्याय-३२अष्टक; टीका-ग्रं.३३७०. ८८४." उपदेशप्रासाद सह टबार्थ - ५ से १० स्तम्भ, प्रतिपूर्ण, वि. १८८४, श्रेष्ठ, पृ. ४३, जैदेना., ले.स्थल. कालद्रीनगर, प्र.वि. प्र.पु. मूल ग्रं. ९६७.प्र.पु.टबार्थ-ग्रं. ११६१. श्री महावीरजी प्रसादात्., (२६४११, ७४४४-५०). उपदेशप्रासाद, आ. लक्ष्मीसूरि, सं., प+ग, वि. १८४३, आदि:-; अंति: उपदेशप्रासाद-टबार्थ', मागु., गद्य, आदि:-; अंति:८८५. सूर्यप्रज्ञप्तिसूत्र, संपूर्ण, वि. १६वी, मध्यम, पृ. ५८+१(३१)=५९, जैदेना.,प्र.वि. प्र.पु. ग्रं. २२००., संशोधित, (२९.५४१०.५, १३४५५). सूर्यप्रज्ञप्ति, प्रा., गद्य, आदि: नमो अरि० तेणं०; अंतिः सोक्खुप्पाए सदापाए. ८८६." ओघनियुक्ति सह टीका, संपूर्ण, वि. १६वी, मध्यम, पृ. १६०-१(११०+१११)=१५९, जैदेना., प्र.वि. संशोधित, पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न-वचन विभक्ति संकेत, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (३०.५४११, १५४५५). ओघनियुक्ति, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., पद्य, आदिः नमो अरिहन्ताणं; अंतिः गुणवन्नेहिं सम्मत्ता. ओघनियुक्ति-टीका #, आ. द्रोणाचार्य, सं., गद्य, वि. १२वी, आदिः अर्हद्भ्यस्त्रिभुवन; अंतिः संहननो सिद्ध्यतीति. ८८७." श्राद्धपाक्षिक अतिचार, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ८, जैदेना., प्र.वि. संशोधित, पू.वि. अन्त के पत्र नहीं हैं. संलेखणा तक है., (२६४१०.५, १०४३१). श्रावकपाक्षिकअतिचार-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मागु., गद्य, आदिः नाणम्मि दंसणम्मि०; अंति:८८९." सूत्रकृताङगसूत्र सह बालावबोध स्कन्ध-१, प्रतिअपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, प्र. ५९, जैदेना.,प्र.वि. मूल- प्रथम श्रुतस्कंध., पंचपाठ, संशोधित, पदच्छेद सूचक लकीरें, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., (२६.५४११, ७४३३). सूत्रकृताङ्गसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदिः बुज्झिज्ज तिउट्टेज्ज; अंतिः सूत्रकृताङ्गसूत्र-बालावबोध, आ. पार्श्वचन्द्रसूरि, मागु., गद्य, आदिः प्रणम्य सद्गुरुन; अंति:८९१." प्रवचनसारोद्धार सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १८०, जैदेना., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, पू.वि. अन्तिम पत्र नहीं है. गा.१६०५ अपूर्ण तक है., (२७४११, ५४३७). प्रवचनसारोद्धार, आ. नेमिचन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदिः नमिऊण जुगाइजिणं; अंति: प्रवचनसारोद्धार-टबार्थ, मागु., गद्य, आदि: नमस्कार करीनइं ऋषभ; अंति:८९४.” श्रीपाल रास, पूर्ण, वि. १८९९, मध्यम, पृ. ११३-३(३४ से ३६)=११०, जैदेना., ले. पं. ऋद्धिसोम, प्र.वि. खण्ड-४, ढाळ १४, दशा वि. हानिकारक स्याही-बीच के कुछ पत्र-पत्र नष्ट होने लगे हैं, (२७.५४१३.५, ५४२५). श्रीपाल रास, उपा. विनयविजय , उपा. यशोविजयजी गणि, मागु., पद्य, वि. १७३८, आदिः कल्पवेल कवियण तणी; अंतिः लहसे ज्ञान विशालाजी. ८९५.” यन्त्रराज सह टीका, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३५, जैदेना., प्र.वि. संशोधित, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. अध्याय-३ श्लो.१९ तक है., (२७.५४१३-१३.५, १०४३४). यन्त्रराज, आ. महेन्द्रसूरि, सं., पद्य, शक. १२९२, आदिः श्रीसर्वज्ञपदाम्बुजं; अंति: यन्त्रराज-टीका, आ. मलयेन्द्रसूरि, सं., गद्य, आदिः प्रणम्य सर्वज्ञ; अंति:८९८.” कल्पसूत्र, संपूर्ण, वि. १६७३, मध्यम, पृ. ८२, जैदेना., ले.स्थल. वेगनपुर, ले. राउल गोव्यचन्द(अउदीच्यज्ञाती), For Private And Personal Use Only Page #148 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य भाग १ - www.kobatirth.org: लिखवा. मु. माण्डन (गुरु मु. वृद्धिविजय, तपागच्छ), प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र. वि. ९ - व्याख्यान: प्र. पु. मूल - ग्रं. १३००, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, संशोधित (२६४११, ९४३६). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदिः णमो अरिहन्ताणं० पढमं अंतिः उवदंसेइ त्ति बेमि. ८९९.” दशवेकालिकसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण वि. १८वी, मध्यम, पृ. ६६, जैदेना, प्र. वि. मूल- अध्याय-अध्ययन १० चूलिकार.. संशोधित, (२५.५११, ५०३२). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यम्भवसूरि प्रा. पद्य वि. पू.४ आदि धम्मो मङ्गलमुक्किट्ठ अंतिः मुच्चइ ति बेमि . दशवैकालिकसूत्र - टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः धर्म केवलीउ भाष्यउ; अंतिः शिष्य प्रतइ कहइ छइ. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (+) ९०३. भगवतीसूत्र की वृत्ति, संपूर्ण, वि. १६५१, श्रेष्ठ, पृ. ३८४ + १ ( २९६) = ३८५, जैदेना., ले. स्थल. सारंगपुर, ले. भीमजी, प्र. वि. ग्रं. १८६१६, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, पदच्छेद सूचक लकीरें संधि सूचक चिह्न-वचन विभक्ति संकेत क्रियापद संकेत (२६४११, १५४५५). भगवतीसूत्र- अभयदेवीय टीका, आ. अभयदेवसूरि, सं., गद्य, वि. ११२८, आदिः सर्वज्ञमीश्वरमनन्त; अंतिः श्लोकमानेन निश्चितम् ९०४.” उत्तराध्ययनसूत्र सह टबार्थ + कथा, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३२३ - १ (८३)+१ (४८) = ३२३, जैदेना., प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, पू.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं. अध्ययन- १७ अपूर्ण तक है., (२६×११.५, ६x४३). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा. प+ग, आदि सञ्जोगाविष्यमुक्कस्स; अंति: " उत्तराध्ययनसूत्र- टवार्थ+ कथा सङ्ग्रह, मु. पार्श्वचन्द्रसूरि-शिष्य मागु, गद्य, आदिः श्रीवर्द्धमानजिनं: अंतिः " ९०५. विचार सङ्ग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १४२-३३ (१ से ३३ ) = १०९, जैदेना., पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. (२७४१३, १०x२८). विचार सङ्ग्रह *, मागु., गद्य, आदि:-; अंतिः ९४ (+) ९०६. अध्यात्मकल्पद्रुम सह टिप्पणी, प्रतिअपूर्ण, वि. १८वी श्रेष्ठ, पृ. १२, जैदेना. प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें संधि सूचक - चिह्न-वचन विभक्ति संकेत- क्रियापद संकेत, अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, पू. वि. अध्याय१५ - श्लोक२७४ तक है अन्त के पत्र नहीं हैं. (२६४११, १३४४२). विवेकविलास, आ. जिनदत्तसूरि, सं., पद्य, आदिः शाश्वतानन्दरूपाय; अंतिः लोकोत्तरं शाश्वतम्. विवेकविलास- बालावबोध, मागु, गद्य, आदि: तेको एक परमात्मानइ अंति: तेह प्रति उपार्जइ. अध्यात्मकल्पद्रुम, आ. मुनिसुन्दरसूरि, सं., पद्य, आदि: जयश्रीरान्तरारीणां०; अंतिः अध्यात्मकल्पद्रुम अधिरोहिणी टीका की टिप्पणी, उपा. धनविजय, सं., गद्य, आदि अथायं श्रीमान् शान्त: अंतिः९११. विवेकविलास सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १८५९, श्रेष्ठ, पृ. ७३, जैदेना., ले. स्थल. सदामापुरी, ले. मु. वीरजी (गुरु मु. सामजी), प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र. वि. मूल - १२उल्लास. प्र. पु. पू. हर्षचन्द्रजी की निश्रा में।, प्र.ले. श्लो. (५०६) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा (८५) जलाद्रक्षे स्थलाद्रक्षे (२६.५४१३, १६४३७). -, ९१३. विक्रमसेन चौपाई, संपूर्ण, वि. १८१६, श्रेष्ठ, पृ. ३५, जैदेना., ले. स्थल सिहोरनगर, ले. गणि हर्षविजय (गुरु गणि जीवविजय), पठ. पं. शान्तिविजय, प्र. वि. ढाळ - ५२, (२५.५x१३, १६४३७). विक्रमसेनराजा चौपाई. मु. मानसागर, मागु पद्य वि. १७२४, आदि सुखदाता सङ्खेश्वरो अंति दिनदिन दोलति पाईजी. For Private And Personal Use Only ९१४. श्रुतबोध व कल्याणमन्दिर स्तोत्र सह टीका, संपूर्ण, वि. १९२५, मध्यम, पृ. २५, पे. २, जैदेना., ले. स्थल. मर्मोजीनगर, प्र.वि. अन्त में प्राकृत मात्रा प्रस्तार अलग से है ।, (२८.५x१४, १४४४३). पे. १. पे नाम श्रुतबोध सह टीका, पृ. १-१२ श्रुतबोध, कालिदास, सं., पद्य, आदि छन्दसां लक्षणं; अंतिः कथितोत्तलघुस्तः. Page #149 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ९५ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची श्रुतबोध-मनोरमा टीका, आ. हर्षकीर्तिसूरि, सं., गद्य, आदिः श्रीमत्सारस्वतं; अंतिः बालावबोधाय वै., पे.वि. मूल __ श्लो.४१. पे. २. पे. नाम. कल्याणमन्दिर स्तोत्र सह टीका, पृ. १२आ-२५अ कल्याणमन्दिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकर, सं., पद्य, आदिः कल्याणमन्दिरमुदारमवद; अंति: मोक्षं प्रपद्यन्ते. कल्याणमन्दिर स्तोत्र-टीका, आ. गुणसागरसूरि, सं., गद्य, आदिः यो नित्यं बहुभिः; अंतिः कस्य न शोभते., पे.वि. मूल-श्लो.४४. ९१५.” श्रीपाल रास, संपूर्ण, वि. १८६०, मध्यम, पृ. ७०, जैदेना., ले.स्थल. स्तंभनतीर्थ, ले. मु. गुणचन्द(अञ्चलगच्छ), पठ. श्रा. मुलचन्द,प्र.ले.पु. मध्यम,प्र.वि. खण्ड-४, संशोधित,प्र.ले.श्लो. (५०६) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा , (२६४१२, ११४३६). श्रीपाल रास, उपा. विनयविजय , उपा. यशोविजयजी गणि, मागु., पद्य, वि. १७३८, आदि: कल्पवेल कवियण तणी; अंतिः लहसे ज्ञान विशालाजी. ९१६. मौनएकादशी कथा सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८६५, मध्यम, पृ. २३, जैदेना., ले.स्थल. वाराईनगर, ले. पण्डित हरचन्द, प्र.वि. मूल-श्लो.२०१. र.प्र. उनानगर में विजय हीरसूरि का स्तूप होने का उल्लेख है। सेनसूरि राज्ये।, (२५४१३.५, ६४३४). मौनएकादशीपर्व कथा, मु. रविसागर, सं., पद्य, वि. १६५७, आदिः प्रणम्य ऋषभदेवं; अंतिः सागरशररसशशिप्रमिते. मौनएकादशीपर्व कथा-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः प्रणम्य पुरहुतालिपरि; अंतिः १६६७ वर्षे ए कथा करी. ९१८. उपदेशमाला सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ४४, जैदेना., प्र.वि. मूल-गा.५४४., (२४.५४१२.५, ८४३२). उपदेशमाला, गणि धर्मदास, प्रा., पद्य, आदिः नमिऊण जिणवरिन्दे; अंतिः वयण विणिग्गया वाणी. उपदेशमाला-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः नमिऊण कहीइ नमीनइ; अंतिः थिकुं नीसरी वांणी. ९१९. दानशीलतपभावना संवाद, संपूर्ण, वि. १८७१, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना., ले.स्थल. बशुग्राम, ले. पं. ऋषभविजय गणि (गुरु पं. रङ्गविजय), पठ. श्राविका जतनबाई, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. गा.१०२; प्र.पु. श्लो.१३९, (२३४११.५, १३४३६). दानशीलतपभावना संवाद, उपा. समयसुन्दर गणि, मागु., पद्य, वि. १६६२, आदिः प्रथम जिनेसर पाय; अंतिः समृद्धि सुप्रसादो रे. ९२०. धनपालपञ्चाशिका सह बालावबोध, पूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ७, जैदेना., पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है. गा.४६ तक है., (२७४१२.५, १५४५२). ऋषभपञ्चाशिका, कवि धनपाल, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: जयजन्तुकप्पपायव; अंति: ऋषभपञ्चाशिका-बालावबोध, मागु., गद्य, आदिः श्रीवीरजिनं नत्वा; अंति:९२१. गजसिङ्घ चरित्र, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २१, जैदेना., पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. पंचम विश्राम अपूर्ण तक है., (२३४१२, १७४३८). गजसिङ्घकुमार चरित्र, आ. विनयचन्द्रसूरि, सं., गद्य, आदिः प्रणम्य भारतीदेवीं; अंति:९२२." पाक्षिकसूत्र व खामणा, पूर्ण, वि. १४६५, मध्यम, पृ. १६-१(१)=१५, पे. २, जैदेना., पठ. देवजी छात्र, (१८.५४१०.५, १०x२८). पे. १. पे. नाम. पाक्षिकसूत्र, पृ. ०२अ-१५आ, पूर्ण पाक्षिकसूत्र, प्रा., प+ग, आदि:-; अंतिः जेसिं सुयसायरे भत्ति., पे.वि. प्रथम पत्र नहीं है. पे. २.पे. नाम. पाक्षिकक्षामणासूत्र, पृ. १५आ-१६आ, संपूर्ण क्षामणकसूत्र, प्रा., गद्य, आदिः इच्छामि खमासमणो; अंतिः नित्थारग पारगा होह. ९२३." नेमिजिन चरित्र- खण्ड ३,४, प्रतिअपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ७५-३६(१ से १०,४१ से ६६)=३९, जैदेना., प्र.वि. खण्ड For Private And Personal Use Only Page #150 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य भाग - १ ४, संशोधित, (०००००x१४.५, १५४४१). नेमिजिन चरित्र, पं. पद्मविजय, मागु., पद्य, वि. १८२०, आदि:-; अंतिः होशे मङ्गलमाल रे. ९२६. कल्पसूत्र सह टबार्थ व व्याख्यान+कथा, अपूर्ण, वि. १८२२, मध्यम, पृ. १५२-१०१(७.५० से १४९)=५१, जैदेना., ले.स्थल. धाकडीग्राम, ले. ऋ. करमचन्द (गुरु ऋ. जसकरण), राज्यकाल- राजा भाटी, प्र.ले.पु. विस्तृत,प्र.वि. मूल-९-व्याख्यान., (२५४१०.५, ६-१४४३२-३८). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदिः णमो अरिहन्ताणं० पढमं; अंतिः उवदंसेइ त्ति बेमि. कल्पसूत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, आदि: नमो क० माहरो नमस्कार; अंति: एतले गुरुक्त जणाविउ. कल्पसूत्र-व्याख्यान+कथा, मागु., गद्य, आदि:-; अंति:९२७. कुर्मापूत्र चरित्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९५६, श्रेष्ठ, पृ. २०, जैदेना., ले. ठकरलालजी शवजी, प्र.वि. मूल-गा.१९८. प्र.पु.ग्रं१०००., (३१x१५.५, ५४४१). कुम्मापुत्त चरिअं, मु. माणिक्यविमल, प्रा., पद्य, आदिः नमिऊण वद्धमाणं; अंतिः इच्छन्तं चिरं जयउं. कुम्मापुत्त चरिअं-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः प्रणम्य श्रीमहावीरं; अंतिः रहो मोटा आणन्दशुं. ९३०." औपपातिकसूत्र सह टिप्पण, पूर्ण, वि. १६७२, जीर्ण, पृ. ५२-१(१)=५१, जैदेना., ले.स्थल. सिरोही, प्र.वि. मूल- ग्रं. ११६७., पदच्छेद सूचक लकीरें, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, पंचपाठ-कुछ पत्र, (२६.५४११, ११४३७). औपपातिकसूत्र, प्रा., प+ग, आदि:-; अंतिः सुही सुहं पत्ता. औपपातिकसूत्र-विषमपद टिप्पण, सं.,मागु., गद्य, आदि:-: अंति:९३१." श्रीपाल रास- खण्ड १ से ३, प्रतिअपूर्ण, वि. १८३०, श्रेष्ठ, पृ. ७५-२१(५ से २४,५७)=५४, जैदेना., ले.स्थल. खेरालु, ले. मु. प्रसिद्धविजय (गुरु मु. खुशालविजय), प्र.ले.पु. विस्तृत, (२६४१२, १०-१३-१८-२३). श्रीपाल रास, उपा. विनयविजय , उपा. यशोविजयजी गणि, मागु., पद्य, वि. १७३८, आदिः कल्पवेल कवियण तणी; अंति:९३२. वीसस्थानकतप विधि, संपूर्ण, वि. १८४७, श्रेष्ठ, पृ. १८, जैदेना., ले.स्थल. खंभात, ले. गणि न्यायवर्द्धन, (२६४१४.५, १६४३९). २० स्थानकतप विधि , मागु., गद्य, आदिः श्रीदंयदर्हत्पदवी; अंतिः विस्तार थाइ. ९३३. वडीदीक्षा विधि, संपूर्ण, वि. १९८४, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना., ले.स्थल. राजनगर, ले. पं. क्षान्तिमुनि, प्र.वि. सुंदर अक्षर, (३०x१५.५, १३४३७). वडीदीक्षा विधि, गुज., गद्य, आदिः प्रथम नाणमांडी; अंतिः मुख राखीने गणावीये. ९३५. वीरजिनपञ्चकल्याणक स्तवन, संपूर्ण, वि. १९७२, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना., ले.स्थल. पालिताणा, ले. करमचन्द रामजी लहिया, प्र.वि. गा.५६,ढाळ-३, (२४.५४१२, ९४३६). महावीरजिन स्तवन-पञ्चकल्याणक, मु. रामविजय, मागु., पद्य, वि. १७७३, आदिः शासननायक शिवकरण; अंति: नामे लही अधिक जगीस ए. ९३६.” बृहत्कल्पसूत्र सह विषमपदटिप्पण, संपूर्ण, वि. १७५६, श्रेष्ठ, पृ. १४, जैदेना., ले.स्थल. जहानाबाद, ले. हरजी, प्र.वि. मूल-अध्याय-६. प्र.पु. ग्रं. ५२५., टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२६४१०.५, १३४४२). बृहत्कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदिः नो कप्पइ निग्गंथाण; अंतिः कप्पट्ठिई त्तिबेमि. बृहत्कल्पसूत्र-विषमपद टिप्पण* , सं.,मागु., गद्य, आदिः#; अंति: #. ९३७. द्वादशभावना सज्झाय व नववाडी सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १०, पे. २, जैदेना., (१८.५४१५, १३४३२). पे. १. १२ भावना सज्झाय , उपा. जयसोम, मागु., पद्य, वि. १७०३, (पृ. १-७अ), आदिः पास जिणेसर पाय नमी; अंतिः For Private And Personal Use Only Page #151 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ९७ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची भणी जेसलमेर मझार., पे.वि. गा.१२७. पे. २. शीलनववाड सज्झाय, वाचक उदयरत्न, मागु., पद्य, वि. १७६३, (पृ. ७आ-१०अ), आदिः सहगुरुने चरणे नमी; अंतिः तेहने जाउ भामणे., पे.वि. ढाळ-१०. ९३८. सूक्ति सङ्ग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ८, जैदेना., पू.वि. अन्त के पत्र नहीं हैं., (२१४१३, १७४३३). सूक्ति सङ्ग्रह, सं.,प्रा.,मागु., पद्य, आदिः धर्मतः सकलमङ्गलावली; अंति:९३९. प्रवचनसारोद्धार सह वृत्ति, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३८८+२(३७२ से ३७३)=३९०, जैदेना., प्र.वि. सर्व-ग्रं. १८०००., (२६४१३.५, १७४३७). प्रवचनसारोद्धार, आ. नेमिचन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदिः नमिऊण जुगाइजिणं; अंतिः नन्दउ बहु पढिज्जन्तो. प्रवचनसारोद्धार-तत्त्वज्ञानविकासिनी वृत्ति, आ. सिद्धसेनसूरि, सं., गद्य, वि. १२४२, आदिः सन्नद्धेरपि यत्तमो; अंतिः गिरिर्जयतु तावदियम्. ९४०.” कल्पसूत्र सह टबार्थ व व्याख्यान+कथा, संपूर्ण, वि. १८०८, श्रेष्ठ, पृ. १३९+१(१३७)=१४०, जैदेना., ले. ऋ. ग्यानचन्द, प्र.वि. मूल-९-व्याख्यान., टिप्पण युक्त विशेष पाठ, द्विपाठ-बीच के कुछ पत्र,प्र.ले.श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्टं, (२४x१०, १२४५१). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदिः णमो अरिहन्ताणं पढमं; अंतिः उवदंसेइ त्ति बेमि. कल्पसूत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः प्रणम्य परमज्योति; अंतिः अध्ययन सम्पूर्य थयउ. कल्पसूत्र-व्याख्यान+कथा* , मागु., गद्य, आदिः#; अंतिः#. ९४२. हंसराज वच्छराज चौपाई, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४४-१(४३)=४३, जैदेना., पू.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं. प्रारंभ से ढाल-४३ कडी-१३ तक है., (२७X१३.५, १२४३२). हंसराजवत्सराज चौपाई, आ. जिनोदयसूरि, मागु., पद्य, वि. १६८०, आदिः आदिसर आदे; अंति:९४४.” जीवविचार सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८५५, श्रेष्ठ, पृ. ८, जैदेना., ले.स्थल. सिरोही, प्र.वि. मूल-गा.५१., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-कुछ पत्र, (२५.५४१२, ५४३०). जीवविचार प्रकरण, आ. शान्तिसूरि, प्रा., पद्य, आदिः भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंतिः रुद्दाओ सुयसमुद्दाओ. जीवविचार प्रकरण-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः भुवन तीन लोकनइ; अंतिः जे समुद्र तेह थकी. ९४५. मौनएकादशी कथा, संपूर्ण, वि. १७७४, श्रेष्ठ, पृ. ७, जैदेना., ले.स्थल. बहिरामपुर, अन्य- आ. देवरत्नसूरि (गुरु आ. अमररत्नसूरि, तपागच्छ), ले. श्रा. लाधा जयकरण परिख, प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र.वि. श्लो.११७, (२५.५४११, ११४३३). मौनएकादशीपर्व कथा, आ. सौभाग्यनन्दिसूरि, सं., पद्य, वि. १५७६, आदिः अन्यदा नेमिरीशाने; अंतिः हम्मीरपुरसंश्रितैः. ९४६. अक्षयतृतीया कथा, संपूर्ण, वि. १९०४, श्रेष्ठ, पृ. ९, जैदेना., ले.स्थल. गोधावी, ले. पं. जतनकुशल, (२९x१४.५, १२४३३). अक्षयतृतीयापर्व कथा, सं., गद्य, आदिः स्वस्ति श्रीसुखदातार; अंति: गद्यवार्ता रचितवान्. ९४७.” सौभाग्यपञ्चमी कथा सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९१४, श्रेष्ठ, पृ. १५, जैदेना., ले.स्थल. गोधावी, ले. पं. जतनकुशल, प्र.वि. मूल-श्लो.१५२., संशोधित, (२९४१३, ५४३९). ज्ञानपंचमीपर्व कथा, गणि कनककुशल, सं., पद्य, वि. १६५५, आदिः श्रीमत्पार्श्व; अंतिः सुभमंगलं न परे. सौभाग्यपञ्चमीपर्व कथा-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः प्रणम्य प्रणाम करीने; अंतिः शुभं मङ्गल न परे. ९४८. चैत्यवन्दन सङ्ग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, पे. १२, जैदेना., (२७X१४, १६४३६). पे. १. पे. नाम. सिद्धचक्र नमस्कार, पृ. १अ-१आ नवपद नमस्कार, आ. ज्ञानविमलसूरि, मागु., पद्य, आदिः नमोनन्त सन्त प्रमोद; अंतिः सदा प्रधाना., पे.वि. For Private And Personal Use Only Page #152 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य भाग - १ गा.२१. पे.२.पे. नाम. तिर्थमाला चैतवन्दन, पृ. १आ-२अ तीर्थवन्दना चैत्यवन्दन, सं., पद्य, आदिः सद्भक्त्या देवलोके; अंतिः सततं चित्तमानन्दकारि., पे.वि. श्लो.१०. पे. ३. नवपद चैत्यवन्दन, सं., पद्य, (पृ. २अ-२आ), आदिः राजगृहे पुरे; अंतिः सिद्धचक्राप्रधान., पे.वि. श्लो.१४. पे. ४. वीतरागाष्टक, सं., पद्य, (पृ. २आ-३अ), आदिः शिवं शुद्धबुद्धं; अंतिः श्रीमानभूदं च्युताः., पे.वि. श्लो.९. पे. ५. रत्नाकरपच्चीसी, आ. रत्नाकरसूरि, सं., पद्य, (पृ. ३अ-४अ), आदिः श्रेयः श्रियां मङ्गल; अंतिः श्रेयस्करं प्रार्थये., पे.वि. श्लो.२५. पे. ६. पे. नाम, शान्तिदेव चैतवन्दन, पृ. ४अ-४आ शान्तिजिन चैत्यवन्दन, उपा. कुशलसागर, सं., पद्य, आदिः सकलदेवनरेश्वरवन्दितं; अंतिः सम्पदः प्राप्नुवन्ति., पे.वि. श्लो.१३. पे. ७.पे. नाम. चिन्तामणिपार्श्वनाथ स्तोत्र, पृ. ४आ-५अ पार्श्वजिन स्तोत्र-चिन्तामणि, सं., पद्य, आदिः किं कर्पूरमयं सुधारस; अंतिः बोधिबीजं ददातु., पे.वि. श्लो.११. पे. ८. पार्श्वजिन चैत्यवन्दन, मु. शिवसुन्दर, सं., पद्य, (पृ. ५अ-५आ), आदिः वरसं वरसं वरसं वरसं; अंतिः शिवसुन्दरसौख्यभरम्., पे.वि. श्लो.७. पे. ९.८ प्रकारी पूजा चैत्यवन्दन, सं., पद्य, (पृ. ५-५आ), आदिः विमलकेवलभासनभास्करं; अंतिः मोक्षसौख्यं श्रयन्ति., पे.वि. श्लो.९. पे. १०.२४ जिन स्तव, आ. जिनप्रभसूरि, सं., पद्य, (पृ. ६अ-६अ), आदिः नतसुरेन्द्रजिनेन्द्र; अंतिः कुरु मङ्गलम्., पे.वि. श्लो.९. पे. ११.२४ जिन स्तुति, आ. जिनप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १६५२, (पृ. ६अ-७अ), आदिः ऋषभनम्रसुरासुरशेखर; अंतिः जरसा रहितं पदम्., पे.वि. श्लो.२९,ग्रं.४४. पे. १२. सिद्धचक्र चैत्यवन्दन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मागु., पद्य, (पृ. ७आ-७आ), आदिः शिव सुखदायक सिद्धचक; अंतिः तणो नयविमल कहे., पे.वि. गा.४. ९४९. लघुशान्ति स्तोत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९२७, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना., ले.स्थल. राजनगर, ले. नागरदास (गुरु रामदास), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. मूल-श्लो.१७+२; टबार्थ-परिमाण अज्ञात, (२७x१४.५, ३४२८). लघुशान्ति, आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, आदिः शान्तिं शान्ति; अंतिः जैनं जयति शासनम्. लघुशान्ति-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः श्रीशान्तिनाथ शान्ति; अंतिः सर्वमाइ उत्कृष्ट छेइ. ९५१. सूत्रकृताङ्गसूत्र सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ८६, जैदेना.,प्र.वि. मूल-अध्याय-२३., त्रिपाठ, (२६४११, १०x४०). सूत्रकृताङ्गसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदिः बुज्झिज्ज तिउट्टेज्ज; अंतिः विहरति त्ति बेमि. सूत्रकृताङ्गसूत्र-बालावबोध, आ. पार्श्वचन्द्रसूरि, मागु., गद्य, आदिः प्रणम्य सद्गुरुन; अंतिः तुम्ह प्रति कहउ छउ. ९५२." भगवतीसूत्र सह टबार्थ, प्रतिअपूर्ण, वि. १८५५, मध्यम, पृ. ९४, जैदेना., ले.स्थल. साहजाहानाबाद, ले. ऋ. खेमचन्द (गुरु मु. नैणसुख, चन्द्रगच्छ), प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, पू.वि. बीच-बीच के उद्देशों में से अपेक्षित पाठ ही है. कही कही टबार्थ लिखा नहीं है., (२७४१२, १२४५५). भगवतीसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि:-; अंति: भगवतीसूत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, आदि:-: अंति:९५४. औपपातिकसूत्र, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ९९-६(१,३ से ५,४१,४६)+२(६२ से ६३)=९५, जैदेना., (२३.५४१०.५, ५४४४). For Private And Personal Use Only Page #153 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची औपपातिकसूत्र, प्रा., प+ग, आदिः-; अंति:९५६. स्वरोदयज्ञान सह भाषा, संपूर्ण, वि. १८८९, श्रेष्ठ, पृ. ९, देना., ले.स्थल. जावालग्राम, ले. मु. खूबचन्द (गुरु मु. मोतीविजय), प्र.वि. मूल-श्लो.१४४., (२६.५४११, ११४३९). स्वरोदयज्ञान, शिवपार्वती, सं., पद्य, आदिः अथान्यतः; अंतिः अरुणेन हुतासना. स्वरोदयज्ञान-भाषाटीका, मु. लालचन्द, हिन्दी, गद्य, वि. १५५३, आदिः अब मैं स्वरोदय; अंतिः करी अखेराज के हेत. ९५७. नवतत्त्व यन्त्र सङ्ग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५८, जैदेना., प्र.वि. पंक्त्याक्षर अनियमित है., (२५.५४११.५४). नवतत्त्व यन्त्र सङ्ग्रह, मागु., कोष्टक, आदिः#; अंतिः#. ९५८.” कल्पसूत्र सह कल्पलताटीका, संपूर्ण, वि. १७३७, मध्यम, पृ. १३५+१(४३)=१३६, जैदेना., ले.स्थल. पाटण, प्र.वि. मूल ग्रं. १२१६, ९-व्याख्यान., संशोधित, त्रिपाठ, (२६.५४११.५, १६४५६). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदिः णमो अरिहन्ताणं० पढमं; अंतिः उवदंसेइ त्ति बेमि. कल्पसूत्र-कल्पलता टीका, उपा. समयसुन्दर गणि, सं., गद्य, वि. १६८५, आदिः प्रणम्य परमं ज्योतिः; अंतिः तावन्नन्दतु सापि हि. ९५९." जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १५७, जैदेना., प्र.वि. मूल-७ वक्षस्कार; प्र.पु. सर्वग्रं. १६०००., टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२६४१२.५, ७-१३४४८). जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति, प्रा., गद्य, आदिः नमो अरिहंताणं० तेणं; अंतिः उवदंसेइ त्ति बेमि. जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति-टबार्थ, मु. जीवविजय, मागु., गद्य, वि. १७७०, आदिः श्रीसिद्धार्थनराधिप; अंति: जम्बू प्रति कहे छे. ९६०. चौवीसजिन पूजा व वीसा यन्त्र, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५०+२(३६,४९)=५२, पे. २, जैदेना., (२७४११.५, ११४३३). पे. १. २४ जिन पूजा, मु. रामचन्द, प्राहिं., पद्य, (पृ. १-५०), आदिः सिधि बुधि दायक; अंतिः कीर्ति जग विस्तरै., पे.वि. २४ पूजा. पे. २. वीसा यन्त्र, प्राहिं., यंत्र, (पृ. ५०आ), आदि:#; अंतिः#. ९६१. शत्रुञ्जय माहात्म्य-१ से ५ सर्ग, प्रतिअपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ९८, जैदेना., पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., (२५.५४१२.५, १५४४२). शत्रुजय माहात्म्य, आ. धनेश्वरसूरि, सं., पद्य, (प्रतिपूर्ण), आदिः ॐ नमो विश्वनाथाय; अंतिः९६३. औपपातिकसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ९०+१(१२)=९१, जैदेना., प्र.वि. मूल-ग्रं. ११७५. प्र.पु. सर्वग्रं. ५२५०., (२६४१३, ६४३७). औपपातिकसूत्र, प्रा., प+ग, आदिः तेणं कालेणं० चम्पा०; अंतिः सुही सुहं पत्ता. औपपातिकसूत्र-टबार्थ, आ. पार्श्वचन्द्रसूरि, मागु., गद्य, आदिः श्रीजिन कहतां वीतराग; अंतिः सुख पाम्या थका. ९६८. षट्पर्वी अधिकार गर्भित स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, जैदेना., प्र.वि. संशोधित, (२७.५४१३.५, ९४३६). महावीरजिन स्तवन-षट्पर्व, पं. पद्मविजय, मागु., पद्य, वि. १८३०, आदि: गुरु पद पङ्कज नमी; अंति: नाम खटपर्वी धर्यो. ९७०." धर्ममञ्जरी चउपई चतुःपदिका, संपूर्ण, वि. १६६४, श्रेष्ठ, पृ. १३, जैदेना., ले.स्थल. जेसलमेर, ले. मु. लाडनमुनि (गुरु उपा. समयराज, खरतरगच्छ), पठ. मु. रुपचन्द, राज्यकाल- राजा भीमजी राउल,प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र.वि. गा.२७४, संशोधित, कर्ता के शिष्य द्वारा लिखित प्रत, ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित, (२६४११, १३४४४). जैनधर्ममञ्जरी चौपाई, उपा. समयराज, मागु., पद्य, वि. १६६२, आदि: जिनमुख कमल निवासिणी; अंतिः समयराज० मङ्गल सुखकरु. ९७१. वीरजिन स्तवन सह वृत्ति, संपूर्ण, वि. १८२२, श्रेष्ठ, पृ. १०, जैदेना., ले.स्थल. जेसलमेर, ले. मु. नन्दलाल (गुरु गणि For Private And Personal Use Only Page #154 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य भाग १ - www.kobatirth.org: · दयानन्द), प्र.ले.पु. मध्यम प्र. वि. मूल- श्लो. ३०, ग्रं. ३५७. त्रिपाठ, पदच्छेद सूचक लकीरें संधि सुचक चिह्न, (२६×१२.५, ३-३७X१२-५१). महावीरजिन स्तवन, आ. जिनवल्लभसूरि, सं., पद्य, आदिः भावारिवारणनिवारणदारु; अंतिः दृष्टिं दयालो मि महावीरजिन स्तवन-टीका, उपा. जयसागर गणि, सं., गद्य, वि. १४६५, आदिः श्रेयोर्थं; अंतिः भवतीति भावार्थः. ९७२. भक्तामर स्तोत्र की भाषा, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना., प्र. वि. गा. ४८, संशोधित, (३०.५x१६, १०x३१). भक्तामर स्तोत्र-भाषानुवाद, मु. हेमराज, मागु, पद्य, आदि आदि पुरूष आदिस अंतिः ते पाये शिवखेत. ९७३. साधुप्रतिक्रमणसूत्र सह टवार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी श्रेष्ठ, पृ. १८, जैदेना. ले. मु. लक्ष्मीविजय, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष i पाठ- कुछ पत्र, ( २६.५x१३, ५x२९). साधुवन्दित्तुसूत्र संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि: करेमि भन्ते० चत्तारि अंति: वन्दामि जिणे चरवीसं. साधुवन्दित्तुसूत्र - बालावबोध, मागु., गद्य, आदिः वाञ्छु छं हे भगवान; अंतिः प्रते प्रणाम करु छं. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ९७४. गुणमाला सह स्वोपज्ञ टीका, संपूर्ण, वि. १८३०, श्रेष्ठ, पृ. ८३, जैदेना, ले. स्थल. सूर्यपुर, ले. पं. पद्मविजय (गुरु पं. सुन्दरविजय) प्र. वि. प्र. लेखनवर्ष नभ अग्नि नागेन्दु वर्षे (१२.५४१२, १५४३५). " गुणमाला, उपा. रामविजय, सं., प्रा., गद्य, वि. १८१७, आदिः प्रत्यक्षीकृत्य; अंतिः प्रयासः सफल आसीत्. गुणमाला - स्वोपज्ञ टीका, उपा. रामविजय, सं. गद्य वि. १८१७, आदिः स श्रीसिद्धार्थसूनुः अंतिः मनोगतभावान् जानाति, १०० ९७५. पार्श्वजिन स्तवन सह टीका, संपूर्ण, वि. १९७०, श्रेष्ठ, पृ. ७, पे. २, जैदेना., ले. स्थल पाटण, ले. जयनारायण पुरोहित नागोरवाला, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. प्र. पु. हंसविजय के उपदेश से., त्रिपाठ, (२७१२.५, १०X३०). पे. १. पे नाम. सर्वज्ञ स्तोत्र सह अवचूरि, पृ. १आ-आ सर्वज्ञ स्तोत्र, आ. सोमतिलकसूरि, सं., पद्य, आदि शुभभावानतः स्तीगि अंतिः मानत्यन्तहारिश्रियम्. सर्वज्ञ स्तोत्र - अवचूरि, सं., गद्य, आदिः सह दानवैश्च; अंतिः श्लोकेन सम्बन्ध:., पे.वि. .पे.वि. मूल-श्लो. १०. पे. २. पे नाम, पार्श्वनाथस्तवन सह अवचूर्णि पृ. ३अ-७अ i पार्श्वजिन स्तोत्र. मु. पद्मप्रभदेव, सं., पद्य, आदि लक्ष्मीर्महस्तुल्य अंतिः स्तोत्रं जगन्मङ्गलम् पार्श्वजिन स्तोत्र- टीका, आ. मुनिशेखरसूरि सं., गद्य, आदि: लक्ष्मी इत्यादि अंतिः सूरिः श्रीमुनिशेखर, पे. वि. मूल-श्लो. ९. ९७६. नवस्मरण व लघुशान्ति, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ८, पे. २, जैदेना.. पू. वि. अन्त के पत्र नहीं हैं., ( २४४१०.५, ९४३४). पे. १. नवस्मरण, आ. अनेक श्रुतस्थविर, प्रा. सं., प+ग, (पृ. १अ - ८अ प्रतिपूर्ण), आदिः नमो अरिहन्ताणं० हवइ; अंति:-, पे.वि. नवकार से अजितशांति तक ५ स्मरण है.. पे. २. लघुशान्ति, आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, (पृ. ८- अपूर्ण), आदिः शान्तिं शान्ति; अंतिः- पे.वि. मात्र प्रथम पत्र है.. " श्लो. १ से १२ अपूर्ण तक है. ९७७. श्राद्धप्रतिक्रमणसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ११, जैदेना., प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें, पू. वि. पत्र क्रमांक १ से दीया है परंतु प्रारंभ का पाठ नहीं है और वंदितुसूत्र की ४३ गाथा पर संपूर्ण किया है. (२०x१२, ४x२२). प्रतिक्रमणसूत्र सङ्ग्रह श्वे. मू. पू. *, संबद्ध, प्रा., सं., मागु., प+ग, आदि:-; अंतिः वन्दामि जिणे चउवीसं. प्रतिक्रमणसूत्र सङ्ग्रह-श्वे. मू. पू. टबार्थ *, मागु, गद्य, आदि:-; अंतिः श्रीजिन चउवीसइ. For Private And Personal Use Only ९७८. धन्नाशालिभद्र रास, संपूर्ण, वि. १७६२, मध्यम, पृ. १०, जैदेना., ले. मु. धीरसुन्दर (गुरु पं. प्रतापसुन्दर ), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. गा. ५११, प्र.ले. श्लो. (४८५) यावल्लवणसमुद्रो, (२५.५१२.५, १७४६५). Page #155 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir १०१ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची धन्नाशालिभद्र रास, मु. मतिसार, मागु., पद्य, वि. १६७८, आदिः शासननायक समरीइं; अंति: मनवञ्छित फल लहिस्यइ. ९७९. श्लोक, स्तुति, स्तवनादि सज्झाय सङ्ग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ७, पे. ६, जैदेना., (२५४१०.५, १३४३९). पे. १. विमलमन्त्री श्लोक, पण्डित विनीतविमल, मागु., पद्य, (पृ. १अ-६अ), आदि: सरसति समरूं; अंतिः विनीतविमल गुण गायो., पे.वि. गा.१०९. पे. २. नेमिजिन स्तुति, कवि ऋषभदास सङ्घवी, मागु., पद्य, (पृ. ६अ-६अ), आदिः श्रावण सुदि दिन; अंतिः सफल करो अवतार तो., पे.वि. गा.४. पे. ३. नेमराजिमती सज्झाय, मु. हेमहर्ष, मागु., पद्य, (पृ. ६आ-६आ), आदिः नव भव केरी; अंतिः वन्दन गीरनार चली., पे.वि. गा.५. पे. ४. नेमिजिन स्तवन, मु. दोलत , मागु., पद्य, (पृ. ६आ-६आ), आदिः मोह तणा दल मोडी रथ; अंतिः नायक नेम नगीना., पे.वि. गा.११. पे. ५. स्थूलिभद्र सज्झाय, मु. नेमविजय, मागु., पद्य, (पृ. ७अ-७अ), आदिः सहज सलुणी कोश्या; अंतिः कहे सीसराय यादी., पे.वि. गा.१३. पे. ६. स्थूलिभद्र सज्झाय, गणि लब्धिउदय, मागु., पद्य, (पृ. ७आ-७आ), आदिः मुनिवर रहण चोमासे; अंतिः दिनदिन सुख सवाया., पे.वि. गा.११. ९८०. स्तवन, चौढालीया व स्तोत्रादि सङ्ग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २६+१(१५)=२७, पे. २८, जैदेना., (२४.५४११.५, ११-१३४३१-३६). पे. १. महावीरजिनविनती स्तवन, उपा. समयसुन्दर गणि, मागु., पद्य, (पृ. १अ-२अ), आदिः वीर सुणो मुज विनती; ___ अंतिः थुण्यो त्रिभुवन तिलो., पे.वि. गा.१९. पे. २. सीमन्धरजिनविनती स्तवन, उपा. भक्तिलाभ, मागु., पद्य, (पृ. २अ-३अ), आदिः सकल संसार अवतार; अंतिः आस्या मन तणी., पे.वि. गा.१८. पे. ३. पे. नाम. , पृ. ३अ-३आ आदिजिन स्तवन, मु. लालचन्द, मागु., पद्य, वि. १८३९, आदिः ऋषभ जिणेसर त्रिभुवन; अंतिः बीकानेर मझारो रे., पे.वि. गा.११. पे. ४. पार्श्वजिन स्तवन-शखेश्वर, आ. जिनचन्दसूरि, मागु., पद्य, (पृ. ३आ-४अ), आदिः श्रीशद्धेश्वर पास; अंतिः सयल रिपु जीपतो., पे.वि. गा.५. पे. ५. पार्श्वजिन स्तवन-शद्धेश्वर, मु. जिनहर्ष, मागु., पद्य, (पृ. ४अ-४आ), आदिः अन्तरजामी सुण अलवेसर; अंतिः मुजने भवसागरथी तारो., पे.वि. गा.५. पे. ६. ज्ञानपंचमीपर्व वृद्धस्तवन, उपा. समयसुन्दर गणि, मागु., पद्य, (पृ. ४आ-६आ), आदिः प्रणमुं श्रीगुरुपाय; अंतिः भगति भाव प्रशंसीयो., पे.वि. ढाळ-३, गा.२५. पे. ७. ज्ञानपंचमीपर्व लघुस्तवन, उपा. समयसुन्दर गणि, मागु., पद्य, (पृ. ६आ), आदिः पञ्चमी तप तुमे करो; अंतिः __ पञ्चमो भेद रे., पे.वि. गा.५. पे. ८. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, आ. जिनभक्तिसूरि, प्राहिं., पद्य, (पृ. ६आ-७आ), आदिः सुणि सुणि शेत्रुञ्जा; अंतिः जिनभक्ति सुणिन्दा., पे.वि. गा.११. पे. ९. पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, श्रीचन्द, मागु., पद्य, वि. १७२२, (पृ. ७आ-८अ), आदि: अमल कमल जिम धवल; अंतिः सफल फली आस.,पे.वि. गा.९. पे. १०. सीमन्धरजिन स्तवन, मु. जिनचन्द्र, मागु., पद्य, (पृ. ८अ-९अ), आदिः सुगुण सेनही साजन; अंति: लहै नित प्रेम अभङ्ग., पे.वि. गा.१०. For Private And Personal Use Only Page #156 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org: हस्तलिखित जैन साहित्य भाग १ " पे. ११. पार्श्वजिन बृहत्स्तवन- गोडीजी मु. समयरग, मागु, पद्य, (पृ. ९अ - १०अ ), आदि पास जिनेसर जगतिलोए: अंतिः समयरङ्ग इण परि बोले, पे. वि. दाळ-५, २३. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पे. १२. मौनएकादशीपर्व स्तवन, उपा. समयसुन्दर गणि, मागु., पद्य, वि. १६८१, (पृ. १०अ १०आ), आदिः समवसरण बेठा भगवंत अंतिः कहे कहाँ चाहडी., पे.वि. गा.१३. पे. १३. नन्दीश्वरद्वीप स्तवन, मु. जिनचन्द, मागु, पद्य, (पृ. १० आ-१२अ), आदि: नन्दीसर बावन जिणाले: अंति चन्द्रगुण गाये रे, पे.वि. ना. १५. पे. १४. शत्रुंजयतीर्थ स्तवन, मु. राजसमुद्र मागू., पद्य, (प्र. १२अ - १२ आ) आदि श्रीविमलाचल सिरतिली अंति अविचल लील विलास.. पं. वि. गा.११. पे. १५. पार्श्वजिन स्तवन पाठक सदानन्द, मागु, पद्य, (पृ. १२आ) आदि मोरा पास जिनराय: अंतिः सिधा सगला काज., पे.वि. गा. ५. " पे. १६. सम्मेतशिखरतीर्थ स्तवन, मु. खुशालचन्द, प्राहिं, पद्य, (पृ. १३अ) आदि तुम तो भले विराजोजी अंतिः हरख हरख गुण गावै., पे.वि. गा. ५. पे. १७. पार्श्वजिन स्तवन- गोडीजी, मु. जिनराज, मागु., पद्य, (पृ. १३अ - १३आ), आदि: वाल्हेसर मुझ वीनती; अंतिः जपे जिनराज जहो, पे.वि. ७. पे. १८. आलोयणाछत्रीसी, उपा. समयसुन्दर गणि, मागु., पद्य, वि. १६९८ (पृ. १३आ - १५आ), आदिः पाप आलोओ छं; अंतिः करी आलोयण उच्छाहि., पे.वि. गा.३६. पे. १९. ऋषिवत्रीसी, मु. जिनहर्ष, मागु, पद्य, (पृ. १५-१६ आ), आदि अष्टापद श्रीआदि अंति जिनहर्ष नमुं करजोडी., पे. वि. गा. ३२. , १०२ पे. २०. अष्टापदतीर्थ स्तवन, उपा. पद्मराज पाठक, मागु., पद्य, (पृ. १६आ - १७आ), आदि जिनवर चरण नमी करी; अंतिः तसु शिवसम्पति थाय रे, पे.वि. ढाळ - ४, गा.१५. पे. २१. आदिजिन स्तवन- आत्मनिन्दागर्भित वाचक कमलहर्ष, मागु, पद्य, (पृ. १७आ-२०आ), आदि आदीसर पहिलो अरिहंत; अंतिः सफल भव अपणौ गिणी, पे.वि. ढाळ - ४, गा.५१. पे. २२. शत्रुंजयतीर्थ स्तवन, मु. जिनहर्ष, मागु, पद्य, (पृ. २०आ-२१अ) आदि सिद्धाचलमण्डण स्वामी; अंति सिद्धाचल गुण गाईये., पे.वि. गा. १५. पे. २३. त्रिषष्टिशलाकापुरुष स्तवन, मु. वसती मागु, पद्य, (पृ. २१अ-२२अ ), आदि धरम महारथ सारथ सारं अंतिः मुनि वसतौ मुदा., पे.वि. गा. १८. पे. २४. पार्श्वजिन स्तवन, मु. अमृतधर्म मागु, पद्य, (पृ. २२आ) आदि पारस प्रभु साहिब अंति चाहुं अमृतधर्म उदारा., पे.वि. गा. ५. पे. २५. पंचपरमेष्ठि स्तोत्र, प्रा., पद्य, (पृ. २२आ), आदि परमेष्ठिमन्तसारं अंतिः आरुग्गं देह सुहपन्नो पे. वि. गा. ७. पे. २६. पार्श्वजिन स्तवन, पाठक सदानन्द, मागु., पद्य, (पृ. २४अ), आदि: मोरा पास जिनराय; अंतिः सिधा सगला काज., पे.वि. गा. ५. पे. २७. पार्श्वजिन स्तवन, कवि धर्मसिंह, प्राहिं, पद्य, (पृ. २४अ-२४आ), आदि ऊगी धन दिन आज अंतिः कवि धर्मसी कहे री., पे.वि. गा. ७. पे. २८. पार्श्वजिन स्तवन- शङ्खश्वर, आ. जिनचन्दसूरि, मागु., पद्य, (पृ. २४आ), आदिः श्रीशङ्खेश्वर पास; अंतिः सयल रिपु जीपतो., पे. वि. गा. ५. ९८१. अञ्जनासुन्दरी सम्बन्ध, संपूर्ण, वि. १९४४, श्रेष्ठ, पृ. १४, जैदेना. (२६१२, १६ - १७४७-४८). अंजनासुन्दरी सम्बन्ध मागु, पद्य, आदि: श्रीगणधर गौतम प्रमुख अंतिः ताइय वाकसतीजेडार. ९८३. कर्मप्रकृति सह टीका, संपूर्ण, वि. १६वी, श्रेष्ठ, पृ. १३५, जैदेना., प्र. वि. प्र.पु. सर्वग्रं. ८०००., ( २६.५x११, १७५५). For Private And Personal Use Only Page #157 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir १०३ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची कर्मप्रकृति, आ. शिवशर्मसूरि, प्रा., पद्य, आदिः सिद्धं सिद्धत्थसुयं; अंतिः सो मे सरणं महावीरो. कर्मप्रकृति-टीका, आ. मलयगिरिसूरि , सं., गद्य, आदिः प्रणम्य कर्मद्रुम; अंतिः जैनो धर्मश्च मङ्गलम्. ९८७.' कल्पसूत्र सह टबार्थ व व्याख्यान+कथा, पूर्ण, वि. १८४६, श्रेष्ठ, पृ. १५०-१(१२६)=१४९, जैदेना., ले.स्थल. थलवट, ले. ऋ. थाना (गुरु ऋ. जिणदास), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. मूल-ग्रं. १२१६, ९-व्याख्यान. प्र.पु. सर्वग्रं. ५०१६., संशोधित, टिप्पण युक्त विशेष पाठ-कुछ पत्र, (२७४११, ७-१५४३८-४४). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदिः णमो अरिहन्ताणं० पढमं; अंतिः उवदंसेइ ति बेमि. कल्पसूत्र-टबार्थ', मागु., गद्य, आदिः श्रीवर्द्धमानं जिनं; अंतिः देखाडै हु इम कहूं. कल्पसूत्र-व्याख्यान+कथा* , मागु., गद्य, आदिः-; अंतिः९८९. दसवैकालिकसूत्र, संपूर्ण, वि. १८१६, मध्यम, पृ. १८, जैदेना., ले.स्थल. थांवला, ले. ऋ. जीवणदास (गुरु ऋ. खींवराज),प्र.वि. अध्याय-अध्ययन१०, (२७४१२.५, १३४४५). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यम्भवसुरि, प्रा., पद्य, वि. पू.४, आदिः धम्मो मङ्गलमुक्किट्ठ; अंतिः गई त्ति बेमि. ९९०.” सुक्तावली सङ्ग्रह, उपदेशरत्नमाला सह टबार्थ व ताराताम्बोलनगरी वर्णन, संपूर्ण, वि. १७६२, मध्यम, पृ. २७, पे. ४, जैदेना., ले.स्थल. वघ्नपुर, ले. गणि ईसरविमल,प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें, (२५४१२, ५४३९). पे. १. तारातम्बोलनगरी वर्णन, मागु., गद्य, (पृ. १अ), आदिः लाहोरथी गाऊ १५०; अंतिः सही करी मानज्योजी. पे. २. पे. नाम. सूक्तावली सह टबार्थ, पृ. १आ-२४आ सूक्तावली, सं., पद्य, आदिः राज्यं निःसचिवं; अंतिः कौरवकर्णहीनम्. सूक्तावली सङ्ग्रह-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः राज्य प्रधान बिना; अंतिः कर्णे करी हीणं., पे.वि. मूल-श्लो.१३८. पे. ३. पे. नाम. उपदेशरत्नमाला सह टबार्थ, पृ. २४आ-२७अ उपदेशरत्नमाला, आ. पद्मजिनेश्वरसूरि, प्रा., पद्य, आदिः उवएसरयणकोसं नासि; अंतिः विउलं उवएसमालमिणं. उपदेशरत्नमाला-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः उपदेश रूपीया रत्न; अंतिः सुख भोगवई., पे.वि. मूल-गा.२५. पे. ४. सूक्तावली सङ्ग्रह, सं., पद्य, (पृ. २७आ), आदिः आज्ञाभङ्गो; अंतिः का तत्र परिवेदना., पे.वि. श्लो.२८. ९९२. भाष्यत्रयाणामर्थ यन्त्रक, संपूर्ण, वि. १९६८, श्रेष्ठ, पृ. २१, जैदेना., ले.स्थल. पेथापुर, ले. जेठालाल चुनीलाल भावसार, लिखवा. मु. सुखसागर, प्र.ले.पु. मध्यम, (२७.५४१४, १२-१४४४२). भाष्यत्रय-अर्थयन्त्र पदार्थविवरण, मु. सुखसागर, प्रा.,मागु., गद्य, वि. १७२४, आदिः#; अंतिः#. ९९४.” कल्पसूत्र सह टबार्थ व व्याख्यान+कथा, पूर्ण, वि. १८२५, श्रेष्ठ, पृ. १६७-१(१)=१६६, जैदेना., ले.स्थल. आउवानगर चैनपुरा, ले. मु. दौलतसौभाग्य (गुरु पं. गुलाबसौभाग्य),प्र.वि. मूल-ग्रं. १२१६, ९-व्याख्यान. प्र.पु. सर्वग्रन्थाग्रंथ६२५१., संशोधित, टिप्पण युक्त विशेष पाठ-कुछ पत्र, (२५.५४११, ६-१४४३६-४२). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदिः तेणं कालेणं० समणे; अंतिः उवदंसेइ त्ति बेमि. कल्पसूत्र-टबार्थ', मागु., गद्य, आदि:-; अंतिः शिष्य प्रतइ कह्यो. कल्पसूत्र-व्याख्यान+कथा* , मागु., गद्य, आदि:-; अंति:९९५." चारप्रत्येकबुध रास, संपूर्ण, वि. १७९९, श्रेष्ठ, पृ. २८, जैदेना., ले.स्थल. जावालनगर, ले. पं. प्रेमचन्द; पं. कृपाचन्द्र गणि, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. खण्ड-४, संशोधित, प्र.ले.श्लो. (४७५) यादशं पुस्तकं दृष्ट्वा ; (६५) यावत गंगातटे भातिपूर, (२४४१३, १६४३१). ४ प्रत्येकबुद्ध रास, उपा. समयसुन्दर गणि, मागु., पद्य, वि. १६६५, आदिः श्रीसिद्धारथ कुलतिलउ; अंतिः आणंद लीलविलास. ९९६. नेमीनाथ विवाहलो, संपूर्ण, वि. १९१९, श्रेष्ठ, पृ. १३, जैदेना., प्र.वि. ढाळ-२२, (२७४१४.५, ११४२७). For Private And Personal Use Only Page #158 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य भाग - १ १०४ नेमिजिन विवाहलो, पं. वीरविजय, मागु., पद्य, वि. १८४९, आदिः सरसती सरण नमी रे; अंतिः कमला झाक जमाला. ९९७." प्रतिक्रमण विधि-हेतुगर्भित, संपूर्ण, वि. १६६४, मध्यम, पृ. २१, जैदेना., ले. ज्यादव पण्ड्या , प्र.वि. संशोधित, (२६४११, १५४४९-५०). प्रतिक्रमणगर्भहेतु, आ. जयचन्द्रसूरि, संबद्ध, सं.,प्रा., पद्य, वि. १५०६, आदिः श्रीवर्द्धमानमानम्य; अंतिः लुप्तश्चिरन्नन्दतात्. ९९८. पन्द्रहतिथी सातवार चरित्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६, जैदेना., पू.वि. अन्त के पत्र नहीं हैं. सात वार प्रारंभ मात्र है., (२४.५४१२.५, १३४४३). १५ तिथि ७ वार चरित्र, मु. लब्धिविजय, मागु., पद्य, आदिः श्रीमत् गौडी जगधणी; अंति:१०००. होली कथानक सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९१२, श्रेष्ठ, पृ. १२, जैदेना., ले.स्थल. वेरावल, प्र.वि. मूल-श्लो.१३९., (२६.५४१४.५, ६४३६). होलीरजपर्व प्रबन्ध, गणि फतेन्द्रसागर, सं., पद्य, वि. १८२२, आदिः श्रीवर्द्धमानमानम्य; अंतिः श्रीविद्याकाख्यपुरे. होलिकापर्व कथा-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः श्रीवर्द्धमानस्वामी; अंतिः श्रीविझेवानगर मांहइ. १००१. श्राद्धपाक्षिक अतिचार, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ५, जैदेना., प्र.ले.श्लो. (५०६) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा , (२५.५४१०.५, १५४३६). श्रावकपाक्षिकअतिचार-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मागु., गद्य, आदिः नाणम्मि दंसणम्मि०; अंतिः मिच्छामि दुक्कडम्. १००३. जीवविचार प्रकरण सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९२२, श्रेष्ठ, पृ. १०, जैदेना., ले.स्थल. धोराजी, ले. पं. मोतीचन्द, प्र.वि. मूल-गा.५१., (२४४१२.५, ३४३०). जीवविचार प्रकरण, आ. शान्तिसूरि, प्रा., पद्य, आदिः भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंतिः रुद्दाओ सुयसमुद्दाओ. जीवविचार प्रकरण-टबार्थ', मागु., गद्य, आदिः भुवन जे त्रिभुवन; अंतिः सूत्र समुद्र थकी. १००४. दीपावलीपर्व व्याख्यान, पूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ९-१(१)=८, जैदेना., (२५.५४११.५, ११४३०-३३). दीपावलीपर्व व्याख्यान, मागु., गद्य, आदि:-; अंतिः ते वर्तमान जोग. १००५. प्रस्ताविकदुहा सङ्ग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना., ले.स्थल. मडवाडीयागाम, ले. मु. मोतिविजय, पठ. खुबचन्द, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. गा.२२२ खुबचंद वास्तव्यं लिखा मिलता है इस को पठनार्थ मे लीया गया है., (२७४१२, १७४५०). प्रास्ताविकदोहा सङ्ग्रह', राज.,मागु., पद्य, आदिः जे जाणु दीजे नही; अंतिः सफल गिणस्य अवतार. १००६. वङ्गचूलिका प्रकीर्णक सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १९, जैदेना., ले. श्राविका दीवालीबाई, पठ. साध्वीजी तीरथश्री, प्र.वि. टबार्थ अपूर्ण है., (२७.५४१४.५, ५४३०). वङ्गचूलिका प्रकीर्णक, आ. यशोभद्रसूरि, प्रा., पद्य, (संपूर्ण), आदिः भत्तिब्भरनमियसुरवर; अंतिः ददचित्तो होह पइदियहं. वङ्गचूलिका प्रकीर्णक-टबार्थ, मागु., गद्य, (अपूर्ण), आदिः भक्तिना समुहे करीने; अंति:१००९." भक्तामर स्तोत्र सह वृत्ति, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६४, जैदेना., प्र.वि. मूल-श्लो.४४+४., पदच्छेद सूचक लकीरें संधि सूचक चिह्न, संशोधित, अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ, (२६४११, ९४२६). भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुङ्गसूरि, सं., पद्य, आदिः भक्तामरप्रणतमौलिमणि; अंतिः समुपैति लक्ष्मी. भक्तामर स्तोत्र-टीका, मु. रायमल्ल ब्रह्म, सं., गद्य, वि. १६६७, आदिः श्रीवर्द्धमानं; अंतिः रायमल्लेन वर्णिना. १०१०." ज्ञाताधर्मकथाङ्गसूत्र सह टबार्थ, पूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ४०८-१(१९०)=४०७, जैदेना., प्र.वि. मूल-ग्रं. ५५००,१९अध्ययन; टबार्थ ग्रं. ८५००., (२५४१०.५, ५४४०). ज्ञाताधर्मकथाङ्गसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदिः तेणं कालेणं० चम्पाए; अंतिः जाव पुरिससिहेणं. For Private And Personal Use Only Page #159 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir १०५ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ज्ञाताधर्मकथाङ्गसूत्र-टबार्थ, उपा. कनकसुन्दर, मागु., गद्य, आदिः प्रणम्य श्रीमहावीरं; अंतिः धर्मकथा संपूर्ण. १०११. समाधितन्त्र दोधक व वीसविहरमान स्तवनवीसी, संपूर्ण, वि. १८८८, श्रेष्ठ, प्र. १७, पे. २, जैदेना., ले.स्थल. पुष्पावती, ले. मु. वीरचन्द्र, (१८.५४१५, १३४२७). पे. १. समाधिशतक, उपा. यशोविजयजी गणि, प्राहिं., पद्य, (पृ. १अ-६अ), आदिः समरी भगवति भारति; अंतिः जाणो निश्चय बुद्ध., पे.वि. गा.१०५. पे. २. विहरमानजिन स्तवनवीसी, गणि देवचन्द्र, मागु., पद्य, (पृ. ६अ-१७आ), आदिः श्रीसीमन्धर जिनवर; अंतिः सुजस महोदय वृन्दो रे., पे.वि. २०स्तवन. १०१२. उपासकदशाङ्गसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८४०, मध्यम, पृ. ५२, जैदेना., ले.स्थल. दिल्ली, ले. ऋ. नूणाजी (गुरु ऋ. सवरामदास),प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. मूल-ग्रं. ८१२,अध्याय-१०., टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२६४११, ८४३५). उपासकदशाङ्गसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदिः तेणं० चंपा नामं नयरी; अंतिः विदेहम्मि सिज्झिहिइ. उपासकदशाङ्गसूत्र-टबार्थ, मागु., पद्य, आदिः ते कालनें विषं ते; अंति: दस दिवसने विषे कहें. १०१४. साधु अतिचार व छिक स्तुति, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, पे. २, जैदेना., (२७४१५, १०४३१). पे. १. साधुपाक्षिकअतिचार श्वे.मू.पू., संबद्ध, मागु.,प्रा., गद्य, (पृ. ५), आदिः नाणम्मि दंसणम्मि०; अंतिः अनेरो जे कोई अतिचार. पे. २. क्षुद्रोपद्रवनिवारण स्तुति, सं., पद्य, (पृ. ५अ), आदिः सर्वे यक्षाम्बिकाद्य; अंतिः द्रुतं द्रावयन्तु नः., पे.वि. श्लो.१. १०१५. दशवैकालिकसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९१५, श्रेष्ठ, पृ. ६८-४०(१ से ४०)=२८, जैदेना., ले.स्थल. राजनगर, ले. तरभोवनदास पटेल, पठ. मोतिकुंवर बहन, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. मूल-अध्याय-१०अध्ययन., टिप्पण युक्त विशेष पाठ, पू.वि. प्रारंभ से अध्ययन-६ गा.६६ अपूर्ण तक नहीं है., (२७४१५, ६४३३). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यम्भवसूरि, प्रा., पद्य, वि. पू.४, आदि:-; अंति: गई त्ति बेमि. दशवैकालिकसूत्र-टबार्थ , मागु., गद्य, आदि:-; अंतिः छे तेम हुं कहुं छु. १०१६. सिद्धहैमचन्द्रशब्दानुशासन सह ढुण्ढिकावृत्ति -चतुष्कवृत्ति, प्रतिपूर्ण, वि. १६वी, जीर्ण, पृ. १३८, जैदेना., प्र.वि. प्र.पु. अकबरोर्वीरमण० श्रीविजयसेनसूरीश्वरशिष्यैः रामविजयविबुधैः पञ्चदशलक्षपुस्तकचित्कोशे ज्ञानभक्त्यै विहितः., (३१४११, १६-१९४५७-७१). सिद्धहेमशब्दानुशासन, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., गद्य, वि. ११९३, आदिः अहँ सिद्धिः स्याद; अंतिःसिद्धहेमशब्दानुशासन-स्वोपज्ञ तत्त्वप्रकाशिका बृहद्वृत्ति, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., गद्य, वि. ११९३, आदिः प्रणम्य परमात्मानं; अंति: सिद्धहेमशब्दानुशासन-बृहद्वृत्ति की दुण्ढिका टीका, मु. सौभाग्यसागर, सं.,मागु., गद्य, वि. १५९१, आदि:-; अंति:१०१७. त्रिषष्टिशलाकापुरुष चरित्र पर्व-७, प्रतिअपूर्ण, वि. १५वी, मध्यम, पृ. १६५, जैदेना., पू.वि. अन्त के पत्र नहीं हैं. पर्व-७ सर्ग-१२ तक है., (३०x१२, ११४३४-४३). त्रिषष्टिशलाकापुरुष चरित्र, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १२२०, आदि:-; अंति:१०१८. वासुपूज्य चरित्र, संपूर्ण, वि. १५वी, श्रेष्ठ, पृ. ३०५, जैदेना.,प्र.वि. ग्रं. ५४९४. तपागच्छ के इन्द्रनन्दिसूरि के शिष्य माणिक्यमेरू गणि द्वारा चित्तकोष में रखवायी गयी।, (३१x१०, ९४३१-४२). वासुपूज्य चरित्र, आ. वर्द्धमानसूरि, सं., पद्य, वि. १२९९, आदिः अर्हन्तं नौमि; अंति: जयिनः सुरेन्द्राः. १०१९." देशीनाममाला सह स्वोपज्ञवृत्ति, संपूर्ण, वि. १६५८, मध्यम, पृ. ७८, जैदेना., प्र.वि. मूल-ग्रं. ३७५,८वर्ग; टीका-ग्रं. २९४५. <श्लोक ६७,१७,६८>, पदच्छेद सूचक लकीरें, अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, प्र.ले.श्लो. (५१८) तैलाद्रक्षे ज्जलाद्रक्षेत्; (६८) तदिदं विशदं शास्त्रं, (२६४११, १५४४४-५०). For Private And Personal Use Only Page #160 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य भाग १ - www.kobatirth.org: (+) देशीनाममाला, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ प्रा. पद्य, आदि गमणय पमाण गहिरा अंति " सिरिहेमचन्दमुणिवइणा. देशीनाममाला-स्वोपज्ञ टीका, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., गद्य, आदिः देशी दुःसन्दर्भा; अंतिः विरचित इति भद्रम्. १०२०.” पुष्पमाला सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. १५८१, मध्यम, पृ. ४३, जैदेना., ले. गणि चारित्रकुञ्जर (गुरु आ . जिनहंससूरि, खरतरगच्छ), प्र. वि. मूल-गा. ५०५: अवचूरि-ग्रं. ११२०, पंचपाठ, संशोधित, पदच्छेद सूचक लकीरें कुछ पत्र, (२६.५४११, ३ ११४२९). पुष्पमाला प्रकरण, आ. हेमचन्द्रसूरि मलधारि, प्रा., पद्य, आदिः सिद्धमकम्ममविग्ग; अंतिः सया सुहत्थिहिं. पुष्पमाला प्रकरणअवचूरि, सं., गद्य, आदि आदी इष्टदेवता अंतिः प्रकरणोपसंहाराधिकार. ; Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १०६ १०२१." उत्तराध्ययनसूत्र सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. १६वी, श्रेष्ठ, पृ. ७२, जैदेना, प्र. वि. मूल - ३६ अध्ययन, पंचपाठ, संशोधित - कुछ पत्र, ( २६.५x११.५, ९- १२४३८-४०). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग, आदिः सञ्जोगाविप्पमुक्कस्स अंति: (१) सम्मए त्ति बेमि (२) पुव्वरिसी एव भासन्ति १०२३. दशवैकालिक की अवचूरि, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ७, जैदेना., ( २६.५x११, २६-२८x८३-९१). दशवैकालिकसूत्र - अवचूरि, सं. गद्य, आदि संहितादि षट्विधा अंतिः एवंभूता स्थापना चेति.. उत्तराध्ययनसूत्र - अवचूरि, सं., गद्य, आदिः सञ्जोगा० संयोगा अंतिः सम्मतान् अभिप्रेतान्. " १०२२. पञ्चकल्प की चूर्णि संपूर्ण वि. १६७१, मध्यम, पृ. ७३. जैदेना. प्र. वि. ग्रं. ३३४५. विजयदेवसूरिविराजमाने उपाध्यायकल्याणविजयगणिनामुपदेशेन अहम्मदावादवास्तव्यवृद्धशाखीयउकेशज्ञातिय सा समरसिंघमार्या बा. हंसाइ सुतेन श्रीजिनशासने प्रवर्तमानविशेषग्रन्थसङ्ग्रहकुर्वता सा. पालकेन सुतवाघजीप्रमुखकुटुम्बपरिवारयुतेन स्वश्रेयोर्थं स्वचित्तकोशे पञ्चकल्पचूर्णिपुस्तक लेखितं (२६४११, १३४५१). पंचकल्पसूत्र-चूर्णि#, प्रा.सं., गद्य, आदिः मङ्गलादीणि; अंतिः दुक्खक्खयं धीर. १०२४. षष्टिशतक सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १६वी, मध्यम, पृ. १८ जैदेना. प्र. वि. मूल-गा. १६१ (२७४११.५, १७-१९४५१ " (५७). षष्टिशतक प्रकरण, श्रा. नेमिचन्द्र भाण्डागारिक, प्रा., पद्य, आदि: अरिहं देवो सुगुरू: अंतिः जिणंतु जन्तु सिवं. षष्टिशतक प्रकरण-बालावबोध, आ. सोमसुन्दरसूरि, मागु, गद्य वि. १४९६, आदि: एक श्रीअरिहन्त; अंतिः अनन्त सुख लहउ. १०२५. सिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासन आख्यातावचूरि, प्रतिपूर्ण, वि. १६वी, मध्यम, पृ. २७, जैदेना, प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र. वि. प्र.पु. १. पं. राजशेखर गणि.... आख्यात अवचूरि आपी धर्म निमित्त सं. १५७१ वर्षे पाटणि चोमासि अमरसुन्दर मुनि कृते । २, तपागच्छे रत्नपुरा बुहारा गोत्रे संकुरापुत्र सं. आसकरणकेन स्वज्ञानकोशे हैमाख्यातावचूरिका गृहीता तत्पुत्ररत्न सं रतन परिपालनार्थम् श्रीपत्तननगरे झेरोक्ष कराने योग्य व अप्रकाशित (२६.५९११, २१४६५-७२). सिद्धहेमशब्दानुशासन आख्यात अवचूरि, सं. गद्य, आदि: वृघूड् वृद्धौ वृघ्न; अंतिः ए एदैतोयाय् आय्. " For Private And Personal Use Only १०२६. चतुर्विंशति प्रबन्ध, संपूर्ण, वि. १५०६, मध्यम, पृ. ४२, जैदेना., प्र. वि. २४ प्रबन्ध, ( २६.५x११, २० - २२x६६-७८). प्रबन्धकोश, आ. राजशेखरसूरि सं., गद्य वि. १४०५, आदि राज्याभिषेककनकासनस्थ अंति एवं प्रभु सत्ववान्. १०२७. उपदेशचिन्तामणि प्रकरण, संपूर्ण, वि. १५वी, मध्यम, पृ. ९, जैदेना., प्र. वि. गा.५४०, अध्याय - ३. प्रतिबिम्ब कराने योग्य । किसी ग्रन्थ श्रेणी के पत्र १३०-१३८ ।, (३१x१०, १५x५३-६३). उपदेशचिन्तामणि, आ. जयशेखरसूरि, प्रा., पद्य, आदि: तित्थयरे भयवंते परम; अंतिः सरिसा सिरिसाहणी होउ. १०२८. भोज प्रबन्ध, संपूर्ण, वि. १४८५, मध्यम, पृ. २४, देना, (३२x११.५, १५-१७×५६-६०). Page #161 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra १०७ www.kobatirth.org: भोजप्रबन्ध, पण्डित बल्लालसेन, सं., प+ग, वि. १६वी, आदिः श्रीमन्तो धाराधीश्वर: अंतिः लक्षं दत्तवान्. १०२९. श्राद्धजीतकल्प सह वृत्ति, पूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ६८ - १(१ ) = ६७, जैदेना., प्र. वि. मूल-गा. १४१; टीका- ग्रं. २६४६., (२७४११-५, १३४४६ ४९) श्राद्धजीतकल्प, आ. धर्मघोषसूरि, प्रा., पद्य, वि. १४वी, आदि:-; अंतिः सोहिन्तु गीअत्था. श्राद्धजीतकल्प- टीका, सं., गद्य, आदि:-: अंतिः जनयन्त्विति गाथार्थः . Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १०३०. चतुर्विंशति प्रबन्ध- आर्यनन्दिल से मदनवर्मा प्रबन्ध, प्रतिपूर्ण, वि. १५वी श्रेष्ठ, पृ. १३, जैदेना. (३१.५४१०, १४४५६ " ६६). प्रबन्धकोश, आ. राजशेखरसूरि, सं., गद्य, वि. १४०५, आदि:- अंतिः " १०३१.' वसुदेवहिण्डी खण्ड-२, प्रतिपूर्ण, वि. १६वी, मध्यम, पृ. ३६४ + २(३५,११६) = ३६६, जैदेना., प्र. वि. प्र. पु. ग्रं. १९०००., संशोधित, ( २६११, १५X४५-५०). वसुदेवहिण्डी, गणि सङ्घदासगणि क्षमाश्रमण, गणि धर्मसेन, प्रा., प+ग, आदि:-; अंतिः रोहिणी बालचन्द्रा " १०३२. सिद्धमचन्द्रशब्दानुशासन सह हेमलक्षणसूत्रार्थ प्रतिपूर्ण, वि. १६वी, मध्यम, पृ. ३२, जैदेना. प्र. वि. प्रतिबिम्ब कराने योग्य अप्रकाशित (२६.५४११, १५-१६९४७-५४). सिद्धहेमशब्दानुशासन, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., गद्य वि. ११९३ आदि अहं सिद्धिः स्याद: अंति:सिद्धमशब्दानुशासन- हेमलक्षणसूत्रार्थ १-४ अध्ययन, मु. गुणधीर, मागु, गद्य, आदि: अहं नत्त्वा तथा; अंतिः रहिं कीर्ति हुई. १०३३. सिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासन सह अवचूरि पाद १-६, प्रतिपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. २५, जैदेना., पठ. पं. शिवविमल; पं. धनविमल (२७४११.५. १९४६५-६९). सिद्धहेमशब्दानुशासन, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., गद्य वि. ११९३, आदि अहं सिद्धिः स्याद: अंतिः . सिद्धहेमशब्दानुशासन- अवचूरि, सं., गद्य, आदिः प्रणम्य प्र उपसर्ग; अंतिः रः पादान्ते विसर्गः.. 1 १०३४. आचारप्रदीप, संपूर्ण, वि. १५६६, मध्यम, पृ. ८६, जैदेना. ले. स्थल, पत्तन प्र. वि. अध्याय-५ प्र. पु. मूल ग्रं. ४६११, " " (२६११, १५x५० -५४). आचारप्रदीप, आ. रत्नशेखरसूरि सं. गद्य वि. १५१६, आदिः श्रीवर्द्धमानमनुपम अंतिः (१) प्रकाशः स्फुटः " , (२) जयदायकश्च विदाम् १०३५. ऋषिमण्डल की अवचूरि, संपूर्ण, वि. १४८१, मध्यम, पृ. १२, जैदेना., ले. स्थल. नागपुर (नागउर), ले. गणि देवलब्धि ( गुरु गणि जयानन्द), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. प्र.पु. ग्रं. ३८१, (१९x९, १४-१५X४०-४२). ऋषिमण्डल प्रकरण अवचूरि, सं., गद्य आदि भक्तिभरण नमि: अंतिः सिद्धिसुखं लभन्ताम्. " १०३६. सूर्यप्रज्ञप्ति संपूर्ण, वि. १५२८, जीर्ण, पृ. ४१, जैदेना. ले. स्थल. अहमदाबाद, प्र. वि. ग्रं. २० प्राभृत प्रत जीर्ण होने से पत्र गिनती दुःशक्य. सद्य प्रतिलिपि की आवश्यकता., (३०x११.५, १३४५८). सूर्यप्रज्ञप्ति, प्रा., गद्य, आदि नमो अरि० तेणं०: अंतिः सोक्खुप्पाए सदापाए. १०३७. पिण्डविशुद्धि प्रकरण सह दीपिका टीका, संपूर्ण, वि. १४२३, मध्यम, पृ. १२, जैदेना., ले. आ. धनदेवसूरि (गुरु आ. हेमविमलसूरि, तपागच्छ), प्र. वि. मूल - गा. १०३., (३१×११, १६×५५). पिण्डविशुद्धि प्रकरण, आ. जिनवल्लभसूरि, प्रा., पद्य, आदिः देविन्दविन्दवन्दिय: अंतिः बोहिन्तु सोहिन्तु य. पिण्डविशुद्धि प्रकरण- दीपिका टीका, आ. उदयसिंहसूरि, सं., गद्य, वि. १२९५, आदिः तं नमत श्रीवीरं; अंतिः स्नेहेन सम्पुष्यताम्. For Private And Personal Use Only १०३९. गौतमपृच्छा सह बालावबोध, संपूर्ण वि. १८३२, श्रेष्ठ, पृ. ५२, जैदेना. ले. स्थल. रोहिडा, ले. गणि कपुरविजय (गुरु पं. केशरविजय), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. मूल-गा. ६४., ( २६ १२, १५X३६). Page #162 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य भाग १ - गीतमपृच्छा, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण तित्धनाएं: अंति: गोयमपुच्छा महत्थावि. गौतमपृच्छा-बालावबोध, आ. जिनसूरि, मागु., गद्य, आदिः नत्वा कहता नमीने; अंतिः हर्षपूरण भावता. www.kobatirth.org: १०४१. नयसप्तभङ्गी का बालावबोध व नयचक्र सामान्य वचनिका, संपूर्ण, वि. १८९३ श्रेष्ठ, पृ. १६. पे. २, जैदेना. ले. स्थल. नागोर, ले. मु. सेरो (गुरु मु. तुलसीदास), प्र.ले.पु. विस्तृत, ( २६.५x११, २०x४१). पे. १. नयचक- बालावबोध, मागु, गद्य, (पृ. १-७3) आदि अनुजोगद्वार सूत्रे अंतिः तिवारइ पुद्गल कहइ. पे. २. नयचक्र सामान्यवचनिका, श्रा. हेमराज शाह, प्राहिं., गद्य, (पृ. ७अ - १६), आदि: वन्दो श्रीजिनके वचन; अंतिः मूलत्वावियोजनीयैति. लग्नसुवोधी एकोत्तरी, मु. रामचन्द, मागु, पद्य वि. १९पू, आदि: अंति: चतुरजन के चीज. ; 1 Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (+) १०४२. " जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति यन्त्र, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ३१, जैदेना, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ - कुछ पत्र (२६.५४१२, २१०४५-५४) जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति-यन्त्र सङ्ग्रह *, मागु., गद्य, आदिः#; अंतिः#. १०४४. लग्नसुबोधीएकोत्तरी (दोहरा), पूर्ण, वि. १८५३, श्रेष्ठ, पृ. ६-१ (१) =५, जैदेना. ले. मु. किसनचन्द (गुरु पं. " केसरविजय), प्र. वि. गा. ७१ (२६.५४११.५, १०X३६). १०८ १०४५. प्रबोधचिन्तामणि, संपूर्ण, वि. १८८९, श्रेष्ठ, पृ. १५, जैदेना., ले. स्थल. जावाल, ले. मु. खुबचन्द ( गुरु मु. उत्तमविजय), " प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र. ले. श्लो. (५०७) जब लग मेर अडिग हे (२६.५५११, १२४४०). प्रबोधचिन्तामणि, मागु., गद्य, आदिः नमो अरिहन्ताणं; अंतिः सुखसम्पदा पामस्ये. " (+) १०४६. द्रव्यानुगमा, संपूर्ण, वि. १८२१ मध्यम, पृ. १०, जैदेना. ले. ऋ. महताब, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें संधि सूचक चिह्न (२६४११, १८४५३). द्रव्यानुगम, संबद्ध, प्रा. गद्य, आदि कई विहाणं भन्ते अंतिः पज्जवा अणन्त गुणा. (+) १०४७. जम्बूस्वामी कथा, संपूर्ण, वि. १८११, मध्यम, पृ. ९, जैदेना., ले. स्थल. फतेपुर, ले. जूलानाथा, ( २६११, १७५७). जम्बूस्वामी कथा, मागु., गद्य, आदि: (१) सप्रभावं जिनं (२) श्रीमहावीर एक वार अंतिः करणहार हुआ. १०४८.” अनेकान्तवादप्रवेश प्रकरण, संपूर्ण, वि. १६वी, श्रेष्ठ, पृ. १३, जैदेना., ले. स्थल. सिद्धपुर, ले. गणि समुद्र (गुरु पं. हेमसागर ), प्र. वि. ग्रं. ७३० पदच्छेद सूचक लकीरें संधि सूचक चिह्न, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, ( २६.५५११.५, १४१६५६-६३). अनेकान्तवादप्रवेश, आ. हरिभद्रसूरि सं. प+ग, आदि जयति विनिर्जितरागः: अंतिः अत एव रागद्वेषाभावः १०५१.” दशवैकालिकसूत्र, संपूर्ण वि. १६वी, मध्यम, पृ. १८ जैदेना. प्र. वि. १० अध्ययन २ चूलिका, संशोधित, पदच्छेद सूचक लकीरें - संधि सूचक चिह्न, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, ( ३१x१२, १३५१). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यम्भवसूरि, प्रा., पद्य, वि. पू. ४, आदिः धम्मो मङ्गलमुक्किट्ठ; अंतिः (१) मुच्चइत्ति बेमि (२) आलणा सङ्घे. " १०५६.” भक्तामर स्तोत्र सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ६, जैदेना., प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. गा. २१ तक है., ( २६x१०.५, ३x३३). भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुङ्गसूरि, सं., पद्य, आदिः भक्तामरप्रणतमौलिमणि; अंति: भक्तामर स्तोत्र-बालावबोध, मागु., गद्य, आदिः भक्त जे अमर देवता; अंतिः १०५९. सुक्तमाला, संपूर्ण, वि. १८५३, श्रेष्ठ, पृ. १६- १(२ )+ १ ( ३ ) - १६, जैदेना., ले. स्थल. कालद्री, ले. मु. किसनचन्द, प्र. वि. अध्याय-१-४, (२५.५X११.५, ११×३२). सूक्तमाला मु. केशरविमल, सं., मागु पद्य वि. १७५४ आदिः सकलसुकृत्यवल्ली वृन्द अतिः केसरविमलेन विबुधेन. १०६१. १०१ बोल विचार, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ८, जैदेना., पू. वि. अन्त के पत्र नहीं हैं., (२५X११, १३x४०). For Private And Personal Use Only Page #163 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra १०९ www.kobatirth.org: जिनप्रतिमा चर्चा- मूर्तिपूजकमतमण्डन, मागु., गद्य, आदिः श्रीजिनप्रतिमा; अंतिः १०६२. भाष्यत्रय, संपूर्ण, वि. १८६१ मध्यम, पृ. ७, जैदेना., ले. स्थल. सीध्रोत, ले. पं. भाणविजय, पठ. मु. उत्तमचन्द, प्र.ले.पु. मध्यम, ( २६ ११.५, १३४३८). भाष्यत्रय आ. देवेन्द्रसूरि प्रा. पद्य, आदि वन्दित्तु वन्दणिज्जे अंतिः सासयसुक्खं अणाबाह , " १०६३. बालचन्द बत्तीसी, संपूर्ण, वि. १८८९, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदेना., ले. मु. खूमचन्द ( गुरु मु. उत्तमविजय), प्र. वि. गा. ३३, (२५.५x१०.५, ११४३७). मदनयुद्ध, मु. बुधराज मागु पद्य वि. १५८९, आदि अंति जय स्वामी रिसहेस. ; अध्यात्मवत्तीसी मु. बालचन्द, प्राहिं, पद्य वि. १६८५, आदि अजर अमर परमेश्वरकुं अंतिः रुपचन्द जाणीए. १०६५. मदनयुद्ध, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १८-६ (१ से ६ ) - १२, जैदेना. प्र. वि. गा. १५७, पू.वि. गा. १ से ५१ तक नहीं है.. (२५.५x१०.५, ९४३६). १३४४०). नय विचार, मागु, गद्य, आदि:-; अंतिः सौख्य कृते सततं सतां . १०७०. चौवीसदण्डक द्वार-२९ संपूर्ण वि. १९वी मध्यम पृ. १०, जैदेना. (२४४१०.५, १४४३६). २४ दण्डक २९ बोल, मागु गद्य, आदि: प्रथम नामद्वार बीजु अंतिः जीव अनन्तगुणाधिका १०७१ नयप्रदीप, अपूर्ण, वि. १८८५, मध्यम, पृ. ११-२ (१ से २) -९, जैदेना. ले. स्थल. जालोर, ले. मु. खुबकुशल, ( २४४११, Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ,י " १०७३. साधुप्रतिक्रमणसूत्र सङ्ग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ६, जैदेना., (२५X११, १०x३२). साधु प्रतिक्रमणसूत्र सङ्ग्रह श्वे. मू. पू. संबद्ध प्रा. प+ग, आदि इच्छाकारेण सन्दिसह अंतिः मिच्छामि दुक्कडम्. " १०७४. वङ्कचूल कथा, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ७, जैदेना. (२४.५x११, ११३६). कचूल कथा, मागु, पद्य, आदि शान्ति जिणेसर सोलमा अंतिः अधिको खेम रे प्राणी. १०७६ . अणुत्तरोववाईदशाङ्गसूत्र सह टवार्थ, पूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १९-१(१३) = १८, जैदेना. प्र. वि. मूल- अध्याय-३३.. (२४.५४११.५, ५X४०). १०७७. प्रमाण स्वरूप, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १०, जैदेना., ( २४४१२, १३४३५). प्रमाणस्वरूप, हिन्दी, गद्य, आदिः प्रत्यक्ष प्रमाण; अंतिः सो आगम प्रमाण. , अनुत्तरौपपातिकदशाङ्गसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदि: तेणं कालेणं० नवमस्स; अंतिः कहाणं तहा यव्वं .. अनुत्तरीपपातिकदशाङ्गसूत्र- टवार्थ, मागु, गद्य, आदि ते काल चउथाआराने अंतिः धर्मकथानी परे जाणवा ; १०७८. साधुप्रतिक्रमणसूत्र सङ्ग्रह, संपूर्ण वि. १८५५ श्रेष्ठ, पृ. ७ जैदेना, ले. ॠ महताब, पठ. हंसोजी, (२७४१४, १५X३६). साधुप्रतिक्रमणसूत्र सङ्ग्रह, संबद्ध, प्रा., प+ग, आदिः णमो अरिहन्ताणं०; अंतिः अरिसयम्मि पयइयव्व. १०७९. आर्यवसुधारिणी वसुधारा स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९१२, श्रेष्ठ, पृ. ८, जैदेना., ले. स्थल. अजयदुर्ग, ले. रामरिख ब्राह्मण, लिखवा. फतेचन्द सेठ, प्र.ले.पु. मध्यम, (२५४१४.५, ११४३५). वसुधारा, सं., गद्य, आदि: (१) नमो अरिहन्ताणं (२) संसारद्वयदैनस्य; अंतिः भाषितमभ्यवन्दन्निति. , १०८१. जीवविचार प्रकरण सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १०, जैदेना., ले. स्थल. नारदपुर, ले. मु. कपुरविजय (गुरु पं. केसरविजय), गच्छा. आ. उदयसूरि प्र.ले.पु. मध्यम प्र. वि. मूल-गा. ५१. टबार्थ ८ गाथा तक ही लिखा है., (२६.५४१२, ४४२८)जीवविचार प्रकरण, आ. शान्तिसूरि, प्रा., पद्य, (संपूर्ण), आदि: भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंतिः रुद्दाओ सुयसमुद्दाओ. जीवविचार प्रकरण-टबार्थ, मागु., गद्य, (अपूर्ण), आदि: (१) स्मारं स्मारं गुरो (२) भुवण कहतां जीवाजीवा; अंतिः For Private And Personal Use Only Page #164 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य भाग - १ ११० १०८२." पण्णवणासूत्र सह भाषापर्याय, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २५, जैदेना., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., (२७.५४११, २४x७०). प्रज्ञापनासूत्र , वाचक श्यामाचार्य, प्रा., गद्य, आदिः नमो अरिहन्ताणं; अंति: प्रज्ञापनासूत्र-पर्याय, संबद्ध, मागु., गद्य, आदिः एम पाञ्च पदनि नमिने; अंति:१०८३. लीलावती का भाषानुवाद, संपूर्ण, वि. १८९८, श्रेष्ठ, पृ. २०, जैदेना., ले. गणि खन्तिविजय (गुरु मु. उत्तमविजय), प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र.वि. अध्याय-१६, गा.७०७, (२७.५४१२.५, १४४४०). लीलावती-भाषानुवाद, मु. लालचन्द, मागु., पद्य, वि. १७३६, आदिः सोभित सिंदूर पुर; अंतिः वरतो जनसुख काज. १०८४. आठकर्मनी १५८ प्रकृतिविचार, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ६, जैदेना., (२५.५४११, १७४३७). ८ कर्म १५८ प्रकृति विचार, मागु., गद्य, आदिः मूल कर्म आठ तेहनी; अंतिः विषइ उद्यम करिवउ. १०८५.” तत्वार्थाधिगमसूत्र सह टबार्थ व भावार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १२, जैदेना., प्र.वि. मूल-सूत्र-१९८, अध्याय-१०., टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२७.५४११.५, ६x४५). तत्त्वार्थाधिगमसूत्र, वाचक उमास्वाति, सं., प+ग, आदिः सम्यग्दर्शनज्ञान; अंतिः चिरेण परमार्थम्. तत्त्वार्थाधिगमसूत्र-बालावबोध, प्राहिं., गद्य, आदिः मोक्ष मार्ग के अंतिः जू है ते साधिवे है. १०८६. सुरसुन्दरी रास, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १६, जैदेना., पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. खंड-४ ढाल-१० तक है., (२६.५४१०.५, १७४५०). सुरसुन्दरी चौपाई, मु. धर्मवर्धन, मागु., पद्य, वि. १७३६, आदिः सासण जेहनउ सलहियइ; अंति:१०८९. भिखणजी ढाल व भीखणजीस्वामीगुण सज्झाय, पूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४०-१(१)=३९, पे. २, जैदेना., पू.वि. गा.१ से १८ तक नहीं है., (२७.५४१२, १२४४५). पे. १. भिखणजी-तेरापन्थी ढाल, माईदास मन्ता, राज., पद्य, वि. १८७७, (पृ. १-३९अ, पूर्ण), आदि:-; अंतिः माफिक कीधी विनतीजी., पे.वि. प्रथम पत्र नहीं है. पे. २. भिखणजीस्वामिगुण सज्झाय, श्रा. गिरधरदास, राज., पद्य, (पृ. ३९अ-४०आ, संपूर्ण), आदिः पहु उठी प्रणमुं सदा; अंतिः मिल्या वंछित फल्या ए., पे.वि. गा.४०. १०९०. पुलाकपञ्चभेद वर्णन, पुनीयण्ठा यन्त्र व सञ्जया यन्त्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, पे. ३, जैदेना., प्र.वि. पंक्त्याक्षर अनियमित है., (२७.५४१२४). पे. १. पुलाकपंचभेद वर्णन, मागु., गद्य, (पृ. १अ), आदिः पुलाक ते केहन्ह; अंतिः जेहनइ ते अरहन्त. पे. २. पे. नाम. पुनीयंठाण यन्त्र, पृ. १आ-३आ भगवतीसूत्र-यन्त्र, मागु., यंत्र, आदि:#; अंतिः#. पे. ३. पे. नाम. संजया यन्त्र, पृ. ४अ-५ भगवतीसूत्र-यन्त्र, मागु., यंत्र, आदिः#; अंति:#. १०९२." जम्बूद्वीप आठक्षेत्र विचार यन्त्र- प्रथम अधिकार, प्रतिपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना.,प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष __ पाठ, (२७.५४१२, २७४६४-६७). लघुसङ्ग्रहणी-यन्त्र, मागु., गद्य, आदि:-; अंति:१०९५.” अन्तगडदशाङ्गसूत्र, संपूर्ण, वि. १८३३, श्रेष्ठ, पृ. १२, जैदेना., ले.स्थल. आग्रा, ले. ऋ. दयालदास (गुरु ऋ. ज्वालानाथ), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. ग्रं. ८९९,अध्याय-९२, पदच्छेद सूचक लकीरें, संशोधित, (२७४११, १५४७८). अन्तकृद्दशाङ्गसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदिः तेणं कालेणं० चम्पा०; अंतिः अयमढे पण्णत्ते. १०९६. नवपदगुण विधि व दीपमालिका गुणणो, संपूर्ण, वि. १८७३, श्रेष्ठ, पृ. ६, पे. २, जैदेना., (२८x१२.५, १४४३३). For Private And Personal Use Only Page #165 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir १११ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची पे. १. नवपदतप विधि, सं.,राज., गद्य, (पृ. १-६आ, अपूर्ण), आदिः-; अंतिः ह्रीं णमो तवस्स २०००., पे.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं, पत्र क्रमांक १ से है परंतु अरिहंत व सिद्ध के गुण नहीं लिखा है. पे. २. दीपावलीपर्वगुणन विधि, सं., गद्य, (पृ. ६आ, संपूर्ण), आदिः ॐ ह्री श्रीमहावीर; अंतिः सर्वज्ञाय नमः. १०९७. उपासकदशाङ्गसूत्र सह टबार्थ, पूर्ण, वि. १८४१, श्रेष्ठ, पृ. ६४-३(४१,६२ से ६३)=६१, जैदेना., ले.स्थल. जालोर, पठ. साध्वीजी प्रेमश्री,प्र.वि. मूल-अध्याय-१०, ग्रं. ८१२. प्र.पु. सर्वग्रं. ३०००., प्र.ले.श्लो. (५०६) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा , (२५४११, ५४४४). उपासकदशाङ्गसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदिः तेणं० चंपा नामं नयरी; अंतिः दिवसेसु अङ्गं तहेव. उपासकदशाङ्गसूत्र-टबार्थ, मागु., पद्य, आदिः तस्मिन् कालै ते काल; अंतिः प्रतिबोध पामीउ. १०९८. षडावश्यकसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७६४, श्रेष्ठ, पृ. २६, जैदेना., ले. मु. रत्नविजय (गुरु पं. रविविजय), पठ. श्राविका गलालबाई,प्र.ले.पु. मध्यम, (२५.५४११.५, ४४१९). प्रतिक्रमणसूत्र सङ्ग्रह-श्वे.मू.पू.*, संबद्ध, प्रा.,सं.,मागु., प+ग, आदिः नमो अरिहन्ताणं; अंति: पासु पयच्छउ वञ्छिउ. प्रतिक्रमणसूत्र सङ्ग्रह-श्वे.मू.पू. टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः माहरउ नमस्कार; अंतिः लोकने वाञ्छित पूरु. १०९९. सूयगडाङ्गसूत्र श्रुतस्कन्ध-१, प्रतिपूर्ण, वि. १८५५, श्रेष्ठ, पृ. ६९, जैदेना., ले.स्थल. सोजत, (२४.५४१०.५, ५४३४). सूत्रकृताङ्गसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदिः बुज्झिज्ज तिउट्टेज्ज; अंति:११००. सोहमकुलरत्न पट्टावली रास व पण्डितो की नामावली, संपूर्ण, वि. १९१८, श्रेष्ठ, पृ. ६३-१(१२)+१(१३)=६३, पे. २, जैदेना., (२७.५४१२, १२४३९). पे. १. सोहमकुलरत्न पट्टावली रास, पं. दीपविजय, मागु., पद्य, (पृ. १आ-६२आ), आदिः स्वस्ति श्रीत्रिसला; अंति: (१)दीपविजय कविराया रे (२)नाम चतुर्थोल्लास., पे.वि. ढाळ-६५. पे. २. विजयानन्दसूरि विजयदेवसूरिआदि समुदायों के पण्डितों की नामावली, मागु., गद्य, (पृ. ६२आ-६३अ), आदिः १ पं विनयविजय; अंतिः पुण्यसागरमतम्. ११०१.” जीवविचार, नवतत्त्व व दण्डक प्रकरण, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ९, पे. ३, जैदेना., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न, अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ, अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ, (२३.५४११, १०४३०-३३). पे. १. जीवविचार प्रकरण, आ. शान्तिसूरि, प्रा., पद्य, (पृ. १अ-४अ), आदि: भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंतिः रुद्दाओ सुयसमुद्दाओ., पे.वि. गा.५१. पे. २. नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, (पृ. ४अ-७अ), आदि: जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंतिः बोहिय इक्कणिक्काय., पे.वि. गा.४८. पे. ३. दण्डक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, (पृ. ७अ-९आ), आदि: नमिउं चउवीस; अंतिः एसा विनत्ति अप्पहिआ., पे.वि. गा.३८. ११०२. उपदेशप्रसाद सह टबार्थ-२ से ३ स्तम्भ, प्रतिअपूर्ण, वि. १९४१, श्रेष्ठ, पृ. ४९+१७(१ से १७)=६६, पे. २, जैदेना., ले.स्थल. खेडा, ले. कालिदास व्यास, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. स्तम्भ-३ अपूर्ण तक है., (२९x१४, ७x३५). पे. १. पे. नाम. उपदेशप्रसाद सह टबार्थ, पृ. १-४९, प्रतिअपूर्ण उपदेशप्रासाद', सं., पद्य, आदि:-; अंति: उपदेशप्रासाद-टबार्थ, मागु., गद्य, आदि:-; अंति:-, पे.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. स्तंभ-३ अपूर्ण तक है. पे. २. जैन श्लोक *, सं., पद्य, (पृ. १अ, संपूर्ण), आदि:-; अंति:११०३." उपदेशमाला सह टीका, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ७८, जैदेना., प्र.वि. टीका - टबार्थ की तरह है., टिप्पण युक्त विशेष पाठ, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. गाथा ८२ तक है., (२५.५४१२.५, १६४३०). उपदेशमाला , गणि धर्मदास, प्रा., पद्य, आदिः (१) नमिऊण जिणवरिन्दे (२) जगचूडामणिभूओ उसभो; अंति: For Private And Personal Use Only Page #166 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य भाग १ .. www.kobatirth.org: सूत्रकृतागसूत्र आ. सुधर्मास्वामी प्रा. प+ग, आदि: अंतिः विहरति तिबेमि " सूत्रकृताङ्गसूत्र- टबार्थ* मागु., गद्य, आदि:-; अंतिः शिष्य प्रतै कहइं छइं. उपदेशमाला-वृत्ति, गणि रामविजय, सं., गद्य, वि. १७८१, आदि: (१) श्रेयस्करं कामित (२) नत्वा विभुं सकलकामित; अंतिः ११०४. सुयगडाङ्गसूत्र सह टबार्थ श्रुतस्कन्ध-२, प्रतिपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ७९, जैदेना., प्र. वि. मूल- अध्याय-२३., (२५.५x१२, ६४५५). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ११०५. कालिकाचार्य कथा, संपूर्ण, वि. १७४४, मध्यम, पृ. १६, जैदेना., ले. उपा. कीर्तिविशालविजय, पठ. मु. महिमासागर, (२६४११, १३४३३). कालिकाचार्य कथा, मागु., गद्य, आदि: अर्हत भगवंत उत्पन्न; अंतिः जयवंत प्रवर्तउ. (+) ११०७. वीरजिन स्तुति, सप्त स्मरण, सामायिक ३२ दोषादि, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २८, पे. ४, जैदेना., प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२५४१२, १०x३०). ११२ पे. १. महावीरजिन स्तुति, सं., पद्य, (पृ. २०अ २०आ, संपूर्ण), आदिः वीरः सर्वसुरासुरेन्द; अंतिः श्रेयस्करी देहनाम्., पे.वि. श्लो. ८. पे. २. नवस्मरण, आ. अनेक श्रुतस्थविर, प्रा. सं., प+ग, (पृ. २०आ-२८आ, प्रतिपूर्ण), आदिः नमो अरिहन्ताणं० हवा; अंतिः-, पे.वि. नमस्कारमंत्र व उवसग्गहरंस्तोत्र प्रतीकमात्र है. बृहत्शांति, कल्याणमंदिर व भक्तामरस्तोत्र नहीं है.. पे. ३. सामायिक के बत्तीसदूषण, संबद्ध, मागु., गद्य, (पृ. १अ, संपूर्ण), आदि: पालषी न जोडईं; अंतिः ए १० दोष मनना. पे. ४. पे. नाम. प्रतिक्रमणसूत्र सङ्ग्रह, पृ. ०१ - २०अ, संपूर्ण साधु श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र सङ्ग्रह - खरतरगच्छीय, संबद्ध, प्रा.सं., प+ग, आदिः णमो अरिहन्ताणं; अंति:#., पे.वि. खरतरगच्छीय, ११०८. कल्याणमन्दिर स्तोत्र, संपूर्ण वि. १७वी, जीर्ण, पृ. ५. जैदेना. प्र. वि. श्लो.४४ (२५४११, ९४३१), कल्याणमन्दिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकर, सं., पद्य, आदि कल्याणमन्दिरमुदारमवद: अंतिः मोक्षं प्रपद्यन्ते. ११०९. विपाकसूत्र की वृत्ति, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ३२, जैदेना., प्र. वि. ग्रं. ९००, ( २६ १०.५, ११४३८). विपाकसूत्र- टीका, आ. अभयदेवसूरि, सं., गद्य, आदिः नत्वा श्रीवर्द्धमान; अंति: (१) मदभयदेवाचार्यस्येति (२) नवाप्यनुगन्तव्यानीति. १११०. गौतमपृच्छा सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ६, जैदेना., ले. स्थल. हंसारकोट, प्र. वि. मूल-गा. ६४., (२७X११.५, ७३३). गौतमपृच्छा, प्रा., पद्य, आदिः नमिऊण तित्थनाहं; अंति: गोयमपुच्छा महत्थावि. गीतमपृच्छा- टवार्थ, मागु, गद्य, आदि: तीर्थनाथ श्रीमहावीर अंतिः प्रच्छा महार्थ कही. " पे. १. पे नाम, पाक्षिकसूत्र सह टवार्थ, पृ. ०१आ-२३आ पाक्षिकसूत्र, प्रा., प+ग, आदि: तित्थङ्करे य तित्थे; अंति: जेसिं सुयसायरे भत्ति.. पाक्षिकसूत्र टवार्थ, मागु, गद्य, आदि तीर्थकर प्रते अंतिः मिथ्या विफल होज्यो. P पे. २. पे नाम पाक्षिकक्षामणासूत्र, पृ. २४-२४आ १११३. पाक्षिकसूत्र सह टबार्थ व पाक्षिक खामणा, संपूर्ण, वि. १८१२, मध्यम, पृ. २४, पे. २, जैदेना., ले. स्थल. कर्णपुरनगर, ले. उद्योत, ( २५x११, ४X३२ ) . क्षामणकसूत्र, प्रा., गद्य, आदि इच्छामि खमासमणो; अंतिः नित्थारग पारगा होह... (+) १११४. हैमी नाममाला व हरिनामानि अपूर्ण, वि. १८३८, मध्यम, पृ. ५६, ये. २, जैदेना. ले. स्थल भिनमालनगर, ले. मु. For Private And Personal Use Only Page #167 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ११३ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची गणपतविजय (गुरु गणि देवेन्द्रविजय), पठ. मु. प्रेमविजय, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न, अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., (२६४११.५, १३४३८). पे. १. अभिधानचिन्तामणि नाममाला, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, (पृ. १-५६, संपूर्ण), आदिः प्रणिपत्यार्हतः; अंतिः रोषोक्तावु नतौ नमः., पे.वि. ६ कांड. पे. २. श्लोक सङ्ग्रह', सं.प्रा.,मागु.,हिन्दी, पद्य, (पृ. ५६आ, अपूर्ण), आदि:-; अंतिः-, पे.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. जैनेतर सामान्य श्लोक . १११५.” वाग्भट्टालङ्कार सह ज्ञानप्रमोद वृत्ति, संपूर्ण, वि. १७६२, मध्यम, पृ. ५३, जैदेना., ले.स्थल. विक्रमपुर, ले. ऋ. सुजाणसिंह, प्र.वि. मूल-५परिच्छेद., (२५.५४११.५, १७४५९). वाग्भटालङ्कार, जैनकवि वाग्भट्ट , सं., पद्य, वि. १२वी, आदिः श्रियं दिशतु वो देवः; अंतिः सारस्वताध्यायिनः. वाग्भटालङ्कार-ज्ञानप्रमोदिका वृत्ति, वाचक ज्ञानप्रमोद, सं., गद्य, वि. १६८१, आदिः यस्यानेकगुणास्पदस्य; अंतिः वक्तारः स्युरिति. १११६." लघुनाममाला, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३१, जैदेना., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. श्लो.८५ तक है., (२४४१०.५, १०-११४२५). लघुनाममाला, आ. हर्षकीर्तिसूरि, सं., पद्य, आदिः प्रणम्य परमात्मानं; अंति:१११७. पाक्षिकअतिचार, चैत्यवन्दन व स्तोत्रादि, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १२, पे. २०, जैदेना., (२६.५४१४.५, १०x२७). पे. १. साधुपाक्षिकअतिचार श्वे.मू.पू., संबद्ध, मागु.,प्रा., गद्य, (पृ. १अ-२आ), आदिः नाणम्मि दंसणमिय; अंतिः मिच्छामिदुक्कडम्. पे. २. सकलाहत् स्तोत्र, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, (पृ. २आ-४आ), आदिः सकलार्हत्प्रतिष्ठानम; अंतिः श्रेयसे शान्तिनाथ., पे.वि. श्लो.२७. अंत मे सकलकुशलवल्ली आदि तीन गाथा अलग से मिलती है. पे. ३. सुभाषित श्लोक सङ्ग्रह, सं., पद्य, (पृ. ४आ), आदिः वाश्चारेड ध्वजधक; अंतिः सुपुत्र कुलदीपक:., पे.वि. श्लो.२. पे. ४. बीजतिथि चैत्यवन्दन, पं. पद्मविजय, मागु., पद्य, (पृ. ५अ), आदि: दुविध धर्म जिणे; अंतिः नमता होय सुख खाण., पे.वि. गा.७. पे. ५. ज्ञानपंचमीपर्व चैत्यवन्दन, मु. रङ्गविजय, मागु., पद्य, (पृ. ५आ-६अ), आदिः त्रिगडे बेठा वीरजिन; अंतिः रङ्गविजय लहो सार., पे.वि. गा.९. पे. ६. अष्टमीतिथि चैत्यवन्दन, मु. मेघविजय, मागु., पद्य, (पृ. ६अ), आदिः श्रीचन्द्रप्रभु नित; अंतिः ते पामो भवि पार ए., पे.वि. गा.६. पे. ७. एकादशीतिथि चैत्यवन्दन, मु. खिमाविजय, मागु., पद्य, (पृ. ६आ-७अ), आदिः शासननायक वीरजी; अंतिः सफल करो अवतार., पे.वि. गा.९. पे. ८.२४ जिन चैत्यवन्दन, पं. वीरविजय, मागु., पद्य, (पृ. ७अ), आदिः शान्ति नमि मल्लि; अंतिः सुखिया श्रीशुभवीर., पे.वि. गा.३. पे. ९. सीमन्धरजिन चैत्यवन्दन, मु. हर्षविजय, मागु., पद्य, (पृ. ७अ-८अ), आदिः पूरव दिशि इशान; अंतिः पुरो सङ्घ जगीश., पे.वि. गा.८. पे. १०. शत्रुजयतीर्थ चैत्यवन्दन, मु. कल्याण, मागु., पद्य, (पृ. ८अ), आदिः जय जय नाभिनरिन्दनन्द; अंतिः निसदिन नमत कल्याण., पे.वि. गा.३. पे. ११. शत्रुजयतीर्थ चैत्यवन्दन, पं. पदमविजय, सं., पद्य, (पृ. ८अ-८आ), आदिः विमलकेवलज्ञानकमला; अंतिः पद्मविजय सुविहितकरम्., पे.वि. श्लो.८ . For Private And Personal Use Only Page #168 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य भाग - १ ११४ पे. १२. सर्वजिन स्तोत्र, सं., पद्य, (पृ. ८आ-९अ), आदि: जय वीतमोह: जय वीतदोष; अंतिः सुचन्द्राभिरूपः., पे.वि. श्लो.५. पे. १३. सीमन्धरजिन स्तोत्र, आ. रूपसिंह, सं., पद्य, (पृ. ९अ-९आ), आदिः अनन्त कल्याणकरं; अंतिः तेषां वत साधुरूपा., पे.वि. श्लो.५. पे. १४. २४ जिन स्तव, आ. जिनप्रभसूरि*, सं., पद्य, (पृ. ९आ-१०आ), आदिः नतसुरेन्द्रजिनेन्द्र; अंतिः कुरु मङ्गलम्., पे.वि. श्लो.९. पे. १५. साधारणजिन चैत्यवन्दन, आ. मुनिसुन्दरसूरि, सं., पद्य, (पृ. १०आ-११अ), आदिः जय श्रीजिनकल्याण; अंतिः वृद्धितराचिरात्ममापि., पे.वि. श्लो.६. पे. १६. पार्श्वजिन स्तोत्र, सं., पद्य, (पृ. ११अ-११आ), आदिः प्रणमामि सदा प्रभु; अंतिः पार्श्वजिनं शिवदम्., पे.वि. ___श्लो.७. पे. १७. सिद्धचक्र चैत्यवन्दन, आ. ज्ञानविमलसूरि, प्रा., पद्य, (पृ. ११आ-१२अ), आदिः उप्पन्नसन्नाणमहो; अंतिः सिद्धचक्कं नमामि., पे.वि. गा.६. पे. १८. भवनदेवी स्तुति, सं., पद्य, (पृ. १२अ), आदिः ज्ञानादिगुणयुतानां; अंतिः सदा सर्वसाधुनाम्., पे.वि. श्लो.१. पे. १९. क्षेत्रदेवता स्तुति, संबद्ध, सं., पद्य, (पृ. १२अ-१२आ), आदिः यस्याः क्षेत्रं; अंतिः भूयान्नः सुखदायिनी., पे.वि. श्लो.१. पे. २०. पाक्षिकचौमासीसंवत्सरीतप आलापक, संबद्ध, प्रा.,मागु., गद्य, (पृ. १२आ), आदिः इच्छाकारेण सन्दिसह; अंतिः छसहस्र सिज्झाय. १११८. भुवनदीपक सह अर्थ, अङ्गविद्या व ज्योतिष श्लोक, पूर्ण, वि. १७५६, मध्यम, पृ. १९-१(१)=१८, पे. ३, जैदेना., ले. फरसराम, (२६x१४, १५४३२). पे. १. पे. नाम. भुवनदीपक सह अर्थ, पृ. -२-१९आ, पूर्ण भुवनदीपक, आ. पद्मप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३पू, आदि:-; अंतिः श्रीपद्मप्रभुसूरिभिः. भुवनदीपक-बालावबोध', मागु., गद्य, आदि:-; अंतिः-, पे.वि. मूल-श्लो.१६४. प्रथम पत्र नहीं है. श्लो.१ से ९ नहीं प पे. २. पे. नाम. नारदोक्त अङ्गविद्या, पृ. १९आ-२०अ, अपूर्ण अंगविद्या, ऋ. नारद मुनि, सं., पद्य, आदिः अङ्गविद्यां प्रवि; अंतिः-,पे.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. मात्र-८ श्लोक तक ही उपलब्ध है. पे. ३. पे. नाम. दशाभुक्तभोग्यफलादि सङ्ग्रह, पृ. २०अ-२०आ, संपूर्ण __ ज्योतिष*, सं.,मागु., पद्य, आदिः#; अंतिः#., पे.वि. परिमाण श्लो.१. १११९. आणन्द सन्धि, अपूर्ण, वि. १८२१, मध्यम, पृ. ९-१(८)=८, जैदेना., ले.स्थल. पीपाड, ले. साध्वीजी मटोसर, (२६४११, १७४३६). आनन्दश्रावक सन्धि, पाठक श्रीसार, मागु., पद्य, वि. १६८४, आदिः वर्द्धमान जिनवर चरण; अंतिः पभणइ मुनि श्रीसार. ११२०. कल्पसूत्र की पीठिका सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २६-२(१ से २)=२४, जैदेना., पू.वि. प्रारंभ व अंत के पत्र नहीं हैं., (२७.५४११.५, ५४३२). कल्पसूत्र-पीठिका* , संबद्ध, सं., गद्य, आदिः-; अंति: कल्पसूत्र-पीठिका का टबार्थ , मागु., गद्य, आदि:-; अंति:११२१. स्तवनचौवीसी सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८२५, श्रेष्ठ, पृ. ४५, जैदेना., ले.स्थल. जावाल, ले. गणि कपूरविजय (गुरु पं. For Private And Personal Use Only Page #169 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ११५ www.kobatirth.org: " केसरविजय), प्र. वि. मूल- अध्याय २४ स्तवन. प्र. पु. सर्वग्रं. १२०० प्र. पु. बार्थ-ग्रं. ८२८. अंतिम दो स्तवन श्रीज्ञानविमलसूरिजी का है., (२५.५x११.५, ४x२६). स्तवनचौवीसी, मु. आनन्दघन, मागु., पद्य, वि. १८पू, आदिः ऋषभ जिनेश्वर प्रीतम; अंतिः अनन्त सुखनो सदा रे. स्तवनचौवीसी-टबार्थ, आ. ज्ञानविमलसूरि, मागु., गद्य, आदिः श्रीआनन्दघनोक्ता; अंतिः अखयसम्पद अति घणी . ११२२.” सुभाषित सङ्ग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ५. जैदेना., प्र. वि. संशोधित पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. गा.४२ तक है., (२७.५४१३, १०x२४). सुभाषित श्लोकसङ्ग्रह *, सं., पद्य, आदिः राज्यं निःसचिवं; अंतिः ११२३. चौवीसदण्डक के २८ बोल, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ८, जैदेना. (२६.५x११, १५४४८). २८ दण्डक बोल, मागु., गद्य, आदि: प्रथम नाम द्वार १; अंति: अनन्तगुणा अधिका कहवा. ११२४ चौवीसदण्डक सह टवार्थ, संपूर्ण वि. १८५५, मध्यम, पृ. ६, जैदेना, ले. स्थल सिरोही, प्र. वि. मूल-गा.३८. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२५.५X१२, ५x२९). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची दण्डक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, आदिः नमिउं चउवीस अंतिः एसा विनत्ति अप्पहिआ. दण्डक प्रकरण- बालावबोध, मागु, गद्य, आदि: नमस्करी चउवीस अंतिः हितने काजे लिखीइ छइ. ; ११२७. धन्नाशालीभद्र रास, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २३, जैदेना., पू. वि. अन्त के पत्र नहीं हैं. ढाल - २० के अपूर्ण दोहे - ६ तक है., (२७४१२, १३४३३). शालिभद्र चौपाई, मु. मतिसार, मागु., पद्य, वि. १६७८, आदिः सासननायक समरियै; अंतिः ११२८.” चौवीसदण्डक, दसाणुवाइ व अल्पबहुत्व बोल, संपूर्ण, वि. १७६२, मध्यम, पृ. २२, पे. ३, जैदेना., ले. स्थल. भयसांणनगर, ले. ऋ. राघवजी, पठ. ऋ. रायचन्द (गुरु ऋ. आसकर्णजी), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, संशोधित - कुछ पत्र (२६.५x११.५, १९५२). पे. १. २४ दण्डक ३० बोल विचार, आ. रूपजीवर्षी, मागु., पद्य, (पृ. १-२०अ ), आदिः दण्डक १ लेसा २ ठिति; अंतिः सिद्ध अविनासी अक्षय, पे. २. दसाणुवाइ, मागु.. गद्य, (पृ. २०अ २१अ) आदि जीव समुचय सर्व थोडा अंतिः अधोग्राम मोटउ छइ. पे. ३. पे नाम. अल्पबहुत्व बोल, पृ. २१अ-२२अ बोल सङ्ग्रह *, मागु., प्रा., सं., गद्य, आदि: #; अंतिः#. ११३१. अञ्जनासुन्दरी रास, अपूर्ण, वि. २०वी, जीर्ण, पृ. ५, जैदेना., पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. गा.८५ तक है., (२६.५X११.५, २०x३६). अंजनासुन्दरी रास, मागु., पद्य, आदिः पहिलो प्रणमुं: अंतिः ११३२. योगवहन विधि, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १२-३ (१ से २,६ ) = ९, जैदेना., पू. वि. प्रारंभ, बीच व अंत के पत्र नहीं हैं. . (२६४११, १५४४१ ). योगोवहन विधि, प्रा. मागु, गद्य, आदि:-: अंतिः ११३३. पाक्षिकसूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, जीर्ण, पृ. १४, जैदेना., पू. वि. अन्त के पत्र नहीं हैं., ( २८x१३, ११x२८). पाक्षिकसूत्र, प्रा., प+ग, आदि: तित्थङ्करे य तित्थे; अंति: ११३८. पाशाकेवली, संपूर्ण वि. १८९२ मध्यम, पृ. ६. जैदेना ले सिरदार हिमतरामजी व्यास, प्र. वि. श्लो. १७७, (२९.५४१३.५. १४४४२). For Private And Personal Use Only पाशाकेवली, ऋ. गर्ग, सं., पद्य, आदि: (१) ॐ नमो भगवती (२) नत्वा जिनेन्द्र अंतिः चन्द्रमागगनं ध्रुवम्. ११४०. सुभाषित, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १८, देना, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. गा. १०३ तक है., ( २४ ११, १०X३१). सुभाषित, मागु., पद्य, आदिः प्रथम कोड अडतीस ; अंति: Page #170 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य भाग १ - www.kobatirth.org: योगदृष्टि सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मागु., पद्य, आदिः शिवसुखकारण उपदिशी; अंतिः ११४६. सम्यक्त्वकौमुदी कथा, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३०, जैदेना., (२५.५x११, १८x४५). सम्यक्त्वकौमुदी कथानक, सं., गद्य, आदिः श्रीवर्द्धमानमानम्य; अंतिः विपर्ययादिष्यते बन्ध. ११४२.” भगवतीसूत्रे शतक ६ उद्देश ४ सप्रदेश अप्रदेश अधिकार, प्रतिपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना., प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, ( २६४११, १८-१९४६३). भगवतीसूत्र- सप्रदेशअप्रदेश विचार, संबद्ध, मागु., गद्य, आदि:-; अंतिः ११४५. आठदृष्टि रास, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना., पू. वि. अन्त के पत्र नहीं हैं. ढाल -८ की गा. ८ तक है, (२७४१२, १२४३२). ११५०. उपदेशमाला व योगशास्त्र- १ से ४ प्रकाश, प्रतिअपूर्ण, वि. १६वी, मध्यम, पृ. १५, पे. २, जैदेना., पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., (२६.५x११, २०x६०). पे. १. उपदेशमाला, गणि धर्मदास, प्रा., पद्य, (पृ. १ ९अ, संपूर्ण), आदि नमिऊण जिणवरिन्दे अंतिः वयण विणिग्गया वाणी., पे.वि. गा.५४४. पे. २. योगशास्त्र, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, (पृ. ९अ - १५अ, प्रतिपूर्ण), आदिः नमो दुर्वाररागादि; अंति:-, पे. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण, प्रकाश १ से ४. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ११५१. मानमञ्जरी व आयुष्यमान, संपूर्ण वि. १८८०, श्रेष्ठ, पृ. १५, पे. २. जैदेना, ले. स्थल. बाबाग्राम ले रत्नचन्द, (२४४१०, १२-१४४३७). " - पे. १. मानमञ्जरी, नन्ददास, हिन्दी, पद्य, (पृ. १-१५), आदि: तन मान पद परम गुरु: अंतिः नन्ददास के हीय. पे.वि. गा. २७६. पे. २. आयुष्य विचार, प्रा., पद्य, (पृ. १अ) आदि मणुआण वीसोत्तरसयं अंति: बग क्रोस कुकडगं पे.वि. गा.२. (+) ११५५. सीताराम चौपाई, संपूर्ण वि. १६८३ मध्यम, पृ. ९५, जैदेना ले. स्थल, मेडता, प्र. वि. खण्ड-९, ग्रं. ३७०४ प्र.पु. मूल "" गा. २४१४. मेडता वास्तव्य गलोछा गोत्रीय शा. नेतसी सु श्रावकेन भात्रिव्य शा. राजसी शा. जादु पुत्र शा. पासदत्त प्रमुख परिवार युतेन श्री नगर घट्टानगरे भाण्डागारे श्री सङ्घ वाचनाय मुक्ता श्री सीताराम चतुःपदी प्रतिरीयम् ।। जैनगुर्जरकवि में रचना सं. १६८७ दिया है, परन्तु प्रतिलेखन पुष्पिका से ज्ञात होता है कि रचना सं. १६८३ या इससे पूर्व होना चाहिये जिन नरसी राजसी आदि श्रावकों का उल्लेख रचना प्रशस्ति में है, उन्हीं के द्वारा यह प्रति सं. १६८३ में घट्टानगर के सङ्घ को भेंट दी गयी है, संशोधित ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित टिप्पण युक्त विशेष पाठ, पदच्छेद सूचक लकीरें (२६४११, १५४४४). " सीताराम चौपाई, उपा. समयसुन्दर गणि, मागु., पद्य, वि. १७उ., आदिः स्वस्ति श्रीसुखसंपदा; अंतिः आणन्द कोडि " ११६ For Private And Personal Use Only ११५९. स्वयम्भू स्तोत्र सह क्रियाकलाप टीका, संपूर्ण वि. १८३२, मध्यम, पृ. ५१, जैदेना. ले. स्थल. पालडी, ले. आ. राजकीर्ति, पठ, पण्डित सवाईराम, प्र. वि. टीका - अध्याय-२ परिच्छेद, (२९.५x१२ १२x४९). स्वयम्भू स्तोत्र आ. समन्तभद्राचार्य, सं., पद्य, आदि स्वयम्भुवा० समञ्जस अंतिः समन्तभद्रं सकलम्. ' कल्याणौजी. ११५६. श्राद्धप्रतिक्रमणसूत्र सङ्ग्रह सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८१७, श्रेष्ठ, पृ. ८१-७ (१ से ४,४१ से ४३ ) =७४, जैदेना., ले. मु. जसविजय (गुरु पं. नित्यविजय), पठ श्राविका सहजकुअर बाई, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. अंत में "पोसह लेवानो विधि" लिखी है., (२८x१३, ३x२३ ) - ; श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र संबद्ध, प्रा. मागु प+ग, आदि अंतिः इय सम्मत्तं मए गहियं. श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, आदि:-; अंतिः मई ग्रह्यो छइ. Page #171 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ११७ www.kobatirth.org: स्वयम्भू स्तोत्र- क्रियाकलाप टीका, आ. प्रभाचन्द्र, सं., गद्य, आदि: स्वयं परोपदेशमन्तरेण: अंतिः (१) नयभक्त्यवतंसकलमिति (२) बुधप्रहलादचेतस्थलम्. ११६४. गौतमस्वामी रास व काया सज्झाय, संपूर्ण वि. १९०१ मध्यम, पृ. ७, पे. २, जैदेना. ले. स्थल, खेरवा, ले. मु. लक्ष्मीविजय, पठ. साहिबचन्द, प्र.ले.पु. मध्यम, ( २६ १२, १०X२७). पे. १. गौतमस्वामी रास, आ. विजयभद्रसूरि मागु, पद्य, (पृ. १७अ) आदि वीर जिणेसर चरण कमल अंतिः इम भणे ए., पे. वि. गा. ५९. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची पे. २. काया अनित्यता राज्झाय, राज, पद्य, (पृ. ७आ) आदि सुण बहीनी प्रीउडो अंतिः नारी वीण सोभागी रे.. पे.वि. गा. ७. यह कृति में कर्ता का नामोल्लेख नहीं है. ११६५. उपदेशमाला, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ९, जैदेना, पठ. मु. पुण्यसागर (गुरु पण्डित भुवनसागर गणि). पू. वि. J प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण गा.२०२ तक है. (२६४१२, १३४४२). , उपदेशमाला, गणि धर्मदास, प्रा., पद्य, आदिः नमिऊण जिणवरिन्दे; अंतिः ११६६. पुराणहुण्डी सह अर्थ व सुभाषित, संपूर्ण, वि. १८८६, श्रेष्ठ, पृ. २३, पे. २, जैदेना. ले. स्थल दिल्लीनगर, ले. मु. विनयचन्द्र, प्र.ले. श्लो. (५०६) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, ( २४.५x११, १६x३९). पे. १. पे. नाम. पुराणहुण्डी सह अर्थ, पृ. १-२३ पुराणहुण्डी, सं., पद्य, आदिः श्रूयतां धर्म्मः अंतिः स्मरणादपि तत्फलम्. पुराणहुण्डी- अर्थ मागु, गद्य, आदि धर्म सगलां रो साम्भल अंतिः स्मरण थकी ते फल होय., पं.वि. मूल · श्लो. २७८. प्र. पु. सर्वग्रं. ९२४. पे. २. सुभाषित श्लोक सङ्ग्रह, सं., पद्य, (पृ. २३आ), आदिः यदि तुरगशतैः अंतिः समत्त्वमेति राजहंस, पे.वि. श्लो. १. ११६७.” दानशीलतप भावना चौढाल्यो, संपूर्ण, वि. १८५२, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना., ले. स्थल. इंदोर, ले. भीमा, प्र. वि. ढाळ - ४, संशोधित, ( २६.५x१०.५, १४४३९). (+) · दानशीलतपभावना संवाद, उपा. समयसुन्दर गणि मागु पद्य वि. १६६२, आदि: प्रथम जिनेसर पाय अंतिः समृद्धि सुप्रसादो रे. ११७२. धर्मपरीक्षा का भाषानुवाद, पूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ६४, जैदेना, पू. वि. अंतिम पत्र नहीं है. गा. २५५ तक है... (२६.५४१२, १५४४८) धर्मपरीक्षा-पद्यानुवाद प्राहिं, पद्य, आदि: पणऊं अरिहन्त देव अंति: , ११७५." कल्पसूत्र सह टवार्थ व व्याख्यान+कथा, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ११-५ (१ से ५)-६, जैदेना. प्र. वि. पीठिका मारुगुर्जर भाषा में है. संशोधित टिप्पण युक्त विशेष पाठ (२३४१३, ६४३३). " · कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदिः णमो अरिहन्ताणं० पढमं; अंतिः कल्पसूत्र - टबार्थ *, मागु., गद्य, आदि: (१) अरिहन्तनइ माहरो (२) तेणइ कालि जे; अंति: कल्पसूत्र- व्याख्यान+कथा, सं. गद्य, आदि:-: अंति: " ११७६. सज्झाय, लावणी, छन्द व स्तवन सङ्ग्रह, संपूर्ण वि. १८७६, श्रेष्ठ, पृ. ३१, पे. ६४, जैदेना. (२५४११, १५४३६). पे. १. औपदेशिक सज्झाय, मु. लावण्यसमय, मागु., पद्य, (पृ. १आ-१आ), आदिः सुधो धर्म मकिस विनय; अंतिः ले ते चिर काले वन्दो., पे.वि. गा. ९. For Private And Personal Use Only पे. २. औपदेशिक सज्झाय, मु. रिख, मागु., पद्य, (पृ. १आ-३अ), आदिः रतन चिन्तामणि नर भव; अंतिः वरते जय जयकार.. पे.वि. गा.३७. Page #172 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य भाग - १ ११८ पे. ३. नेमराजिमती सज्झाय, मु. उदय, मागु., पद्य, (पृ. ३अ-३आ), आदिः राजेमति कहे राज; अंतिः आणन्द अतिघणो हो लाल., पे.वि. गा.११. पे. ४. औपदेशिक लावणी, मु. अखमल, प्राहिं., पद्य, (पृ. ३आ-४अ), आदिः जगत मे खबर नहि पल; अंतिः विनति अखमल की., पे.वि. गा.९. पे. ५. राजिमतीरथनेमि लावणी, ऋ. रामकिसन, मागु., पद्य, वि. १८६७, (पृ. ४अ-५अ), आदिः बावीसमा श्रीनेमजी; ___ अंतिः प्रभु के गुण गाना., पे.वि. गा.२६. पे. ६. औपदेशिक लावणी, मु. देवचन्द, प्राहिं., पद्य, (पृ. ५अ-५आ), आदिः काया रे कहेती; अंतिः नवकार भज लेना., पे.वि. गा.७. पे. ७. औपदेशिक लावणी, मु. जिनदास, प्राहिं., पद्य, (पृ. ५आ-५आ), आदिः तुम भजो जिनेसर देव; अंतिः जिनदास लावणी गाइ.,पे.वि. गा.४. पे. ८. पे. नाम. उपदेशि लावणी, पृ. ५आ-६अ __ औपदेशिक लावणी, मु. जिनदास, प्राहिं., पद्य, आदिः म्हे नित न नमा; अंतिः चाउ हुं दरसण कुं., पे.वि. गा.४. पे. ९. औपदेशिक लावणी, मु. जिनदास, प्राहिं., पद्य, (पृ. ६अ-६आ), आदिः ग्यान ध्यान संजम; अंतिः जिनवर की मे गाइ., पे.वि. गा.४. पे. १०. औपदेशिक लावणी, मु. जिनदास, प्राहिं., पद्य, (पृ. ६आ-७अ), आदिः सुगुरु की सिख हइये; अंतिः सदा मेवाउ जिन सरणा., पे.वि. गा.४. पे. ११. औपदेशिक लावणी, मु. जिनदास , प्राहिं., पद्य, (पृ. ७अ-७अ), आदिः तुम तजकर राजुल; अंतिः जिनदास सुनो जिनवर रे., पे.वि. गा.४. पे. १२. अजरामलजी जोड, ऋ. मोतीचन्द, प्राहिं., पद्य, वि. १८६८, (पृ. ७अ-७आ), आदिः तुम प्रह उठी प्रभात; अंतिः भणेसे जो सतगुरु रे., पे.वि. गा.५. पे. १३. अजरामलजी जोड, ऋ. मोतीचन्द, प्राहिं., पद्य, वि. १८६८, (पृ. ७आ-७आ), आदिः हां रे प्राण्णी; अंतिः वीनवे मोतीर्ष ज आणी., पे.वि. गा.७. पे. १४. अजरामलजी जोड, मु. डुङ्गर, प्राहिं., पद्य, (पृ. ८अ-८अ), आदिः चरन सरन नित; अंतिः डुङ्गर को भव फेरो., पे.वि. गा.४. पे. १५. अजरामलजी जोड, मु. डुङ्गर, प्राहिं., पद्य, (पृ. ८अ-८अ), आदिः अरज सुणो एक; अंतिः डुंगर करे सेवा तेरी., पे.वि. गा.३. पे. १६. औपदेशिक सज्झाय, मु. जिनदास, प्राहिं., पद्य, (पृ. ८अ-८अ), आदिः चेतन तेरी कुंहन; अंतिः तिरी कुंहन गत तेरी., पे.वि. गा.३. पे. १७. औपदेशिक सज्झाय, मु. जिनदास, प्राहिं., पद्य, (पृ. ८अ-८अ), आदिः कुंहन कुंहन छब जिनवर; अंतिः दुर करो दुर्गत मेरी., पे.वि. गा.३. पे. १८. औपदेशिक सज्झाय, मु. उदयभाण, प्राहिं., पद्य, (पृ. ८आ-८आ), आदिः हारे प्राणी मानलेअंतिः समरो भवोभव सुखदानी., पे.वि. गा.६. पे. १९. जम्बूस्वामी लावणी, ऋ. चोथमल, राज., पद्य, वि. १८५८, (पृ. ८आ-९आ), आदिः सेठ रिषभदत पिता; अंतिः जुगतसुं पाली पीठ चाइ., पे.वि. गा.३१. पे. २०. औपदेशिक लावणी, ऋ. रामकिसन , प्राहिं., पद्य, वि. १८६८, (पृ. ९आ-१०आ), आदिः चेत चतुर नर कहे; अंतिः उपदेश सुणाया है., पे.वि. गा.१९. पे. २१. महादेव छन्द, मागु., पद्य, (पृ. १०आ-११आ), आदिः शंकर वसे कैलासमां; अंतिः तेहना भव दुख भाजे रे., पे.वि. गा.२३. For Private And Personal Use Only Page #173 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ११९ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची पे. २२. औपदेशिक सज्झाय, ऋ. चोथमल, प्राहिं., पद्य, (पृ. ११-११आ), आदिः साधु कहे तुं सुण; अंतिः सिखदेवे छे सखडी छे., पे.वि. गा.१२. पे. २३. धर्मरुचि सज्झाय, ऋ. चोथमल, मागु., पद्य, (पृ. ११आ-१२अ), आदिः धर्मरुचि मुनिवर; अंतिः नित्य प्रणमीजे पाय., पे.वि. गा.११. पे. २४. औपदेशिक सज्झाय, मु. जिनदास, प्राहिं., पद्य, (पृ. १२अ-१२आ), आदिः तु जाप जपन्त; अंतिः सर्व चल्यो छाड गोति., पे.वि. गा.११. पे. २५. औपदेशिक सज्झाय, मु. जिनदास, प्राहिं., पद्य, (पृ. १२आ-१३अ), आदिः ब्रह्मपद जीता; अंति: यु कोइ न कीसी की., पे.वि. गा.६. पे. २६. पे. नाम. पद्मप्रभु सज्झाय, पृ. १३अ-१३अ पद्मप्रभजिन पद, मु. जिनदास, मागु., पद्य, आदिः पदमप्रभु गुण गाउ; अंतिः मुज दीयो परमानन्द., पे.वि. गा.४. पे. २७. चन्दनबाला सज्झाय, ऋ. रायचन्द, मागु., पद्य, (पृ. १३अ-१३आ), आदिः दीक्षा लइने वीर; अंतिः तेम ते परमानन्द., पे.वि. गा.१०. पे. २८. नेमराजिमती लावणी, मु. चतुरकुशल, मागु., पद्य, (पृ. १३आ-१३आ), आदिः नेमनाथ मेरी अर्ज; अंतिः फेरा नहीं फिरने की., पे.वि. गा.१०. पे. २९. श्रावकबारव्रत सज्झाय, मागु., पद्य, (पृ. १३आ-१४अ), आदिः अनन्तज्ञान दर्शन; अंतिः करी खरी जायोजी., पे.वि. गा.९. पे. ३०. शील सज्झाय, सङ्घो, मागु., पद्य, (पृ. १४अ-१४आ); अंतिः रहे ते वचन ज भाखो., पे.वि. गा.८. पे. ३१. महाजन सज्झाय, मीठा, मागु., पद्य, (पृ. १४आ-१४आ), आदिः महाजन महाजन मलजो; अंतिः जोवनीयु जाता., पे.वि. गा.६. पे. ३२. औपदेशिक सज्झाय, मीठा, मागु., पद्य, (पृ. १४आ-१४आ), आदिः प्रथम चरण नही चाले; अंतिः स्वामी मोहनने मलजो., पे.वि. गा.६. पे. ३३. सुभद्रासती सज्झाय, गणि कान्तिविजय, मागु., पद्य, (पृ. १४आ-१६अ), आदिः बुधीदायक रे प्रणमी; अंतिः कान्ति इम गाइ सती., पे.वि. गा.२० पे. ३४. श्रावक सज्झाय, पण्डित विनीतचन्द, मागु., पद्य, (पृ. १६अ-१६आ), आदिः प्रणमी पद पङ्कज; अंतिः देव गुरु आसिस., पे.वि. गा.१७. पे. ३५. औपदेशिक सज्झाय, मागु., पद्य, (पृ. १६आ-१७अ), आदिः चेतन चेतो रे काल; अंतिः ते सिवपुरमां माले., पे.वि. गा.१९. पे. ३६. १६ स्वप्न सज्झाय, मागु., पद्य, (पृ. १७अ-१८अ), आदिः सुपन देखी; अंतिः सुपन अर्थ दाख्यो रे., पे.वि. गा.२०. पे. ३७. औपदेशिक सज्झाय, मागु., पद्य, (पृ. १८अ-१८अ), आदिः प्रभु तणा गुण गाउ; अंतिः जोग करणी करजो रे., पे.वि. गा.११. पे. ३८. लोभ सज्झाय, मागु., पद्य, (पृ. १८अ-१८आ), आदिः धन्धो करी धन; अंतिः विण मोकलीयो जाय रे., पे.वि. गा.८. पे. ३९. वाणोतरशेठ सज्झाय, मागु., पद्य, (पृ. १८आ-१९अ), आदिः सेठ भणे सांभल; अंतिः अवर न दीसे ताहरो रे., पे.वि. गा.१४. पे. ४०. कणहटिया सज्झाय, मागु., पद्य, (पृ. १९अ-१९आ), आदिः गोतमस्वामीने नमावू; अंतिः नारी ते वरजो सहु., पे.वि. गा.१६. पे. ४१. औपदेशिक सज्झाय, मु. भुवनकीर्ति, मागु., पद्य, (पृ. १९आ-२०अ), आदि: चतुर विहारी आतम; अंतिः बलीहारी For Private And Personal Use Only Page #174 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org: हस्तलिखित जैन साहित्य भाग १ नाम तुमारे., पे. वि. गा.८. पे. ४२ चित्रसम्भूति राज्झाय मु. कवियण, मागु पद्य (पृ. २०अ २०आ) आदि चित्त कहे ब्रह्मराय: अंतिः सीवपुरी " लेसे हो के पे.वि. गा. १९. " Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पे. ४३. सम्भवजिन स्तवन, आ. विद्यासागरसूरि, मागु., पद्य, (पृ. २०आ-२०आ), आदि: बीजुं मने कांइज; अंतिः तुंहीज मुज सुलतान., पे.वि. गा.५. पे. ४४. सम्भवजिन स्तवन, मु. प्रेम मागु., पद्य, (पृ. २०आ - २१अ ), आदि: सुरपति जिम सुख; अंतिः पातिक दुर पलाय., पे.वि. गा.५. " पे ४५ अभिनन्दनजिन स्तवन, मु. प्रेमविजय, मागु, पद्य, (पृ. २१अ - २१अ ) आदि संवरराय घर सुन्दरी; अंतिः जिनना पञ्चकल्याण., पे.वि. गा. ५. पे. ४६. महावीरजिनविनती स्तवन, उपा. समयसुन्दर गणि, मागु., पद्य, (पृ. २१अ-२२अ), आदिः वीर सुणो मोरी विनती; अंतिः थुण्यो त्रिभुवनतिलो. पे.वि. गा.१९. पे. ४७. सीमन्धरजिन स्तवन, मु. जिनराज, मागु., पद्य, (पृ. २२अ -२२अ), आदिः सीमन्धर करजोड; अंतिः मत मेलोजी विसार, पे. वि. गा.७. पे. ४८. देवानन्दा सज्झाय, उपा. सकलचन्द्रगणि, प्राहिं., पद्य, (पृ. २२अ - २२आ), आदि: जिनवर रूप देखी; अंतिः विस्तार बहुतेरा., पे.वि. गा.१०. " पे. ४९. २० बोल सज्झाय, ऋ. रायचन्द, मागु., पद्य, वि. १८३७, (पृ. २२आ - २३अ), आदिः किणसुं वादुं विवाद, अंतिः मेडतेनगर मोझारजी., पे.वि. गा. १६. १२० पे. ५० औपदेशिक सज्झाय मागु., पद्य, (पृ. २३३-२४अ), आदि केवल जन राम हरि रे अति तेनो तोल रेहेसे रे.. पे.वि. गा.१९. पे. ५१ मेघकुमार सज्झाय प्राहिं, पद्य, (पृ. २४-२५अ) आदि दुर्लभ लाधो मनुष्य अंतिः क्रोध लोभ अहंकार नही., पे.वि. गा.२०. पे. ५२. औपदेशिक सज्झाय, मु. वीरविजय, मागु, पद्य, (पृ. २५अ-२५आ) आदि रात दिवस काया अंति वीर वचन सुणो नर नारी, पे.वि. गा.६. पे. ५३ . औपदेशिक सज्झाय, मु. कवियण, हिन्दी, पद्य, (पृ. २५-२६अ ), आदि: चेतन केम रहेवासे रे; अंतिः पोहचे भवलता जड कापे., पे.वि. गा.१०. . पे. ५४. ऑपदेशिक राज्झाय ऋ. लालचन्द, राज, पद्य, (पृ. २६अ-२६आ), आदि हां रे भाई नरक निगोद: अंतिः विनवे चरणारी बलीहारी.. पे.वि. गा.१२. " पे. ५५.१५ तिथि राज्झाय मु. उदयरतन, मागु, पद्य, (पृ. २६आ-२७अ ), आदि: एकम कहे तुंः अंतिः भोगवे ते आपो आप., पे.वि. गा. १७. पे. ५६. जम्बूस्वामी सज्झाय, मु. सिद्धिविजय, मागु, पद्य, (पृ. २७अ-२७आ), आदि राजग्रही नगरी वसे अंतिः तास तणा गुण गाया रे, पे. वि. गा. १४. पे. ५७. ममतात्याग सज्झाय, मु. उदयरत्न, मागु., पद्य, (पृ. २७-२८अ ), आदि: चतुर सनेही चेतन; अंतिः भजजे श्री भगवन्त., पे.वि. गा.११. पे. ५८. पे. नाम. राजेमती सज्झाय, पृ. २८अ-२८अ नेमराजिमती लावणी, मागु, पद्य, आदि मेरा पिया चाल्या अंतिः भगती भली वरणी, पे.वि. गा.६. पे. ५९. राजिमती सज्झाय. मु. प्रेम मागु, पद्य, (पृ. २८अ-२८आ), आदि जिन नेम मनावीया रे अंतिः प्रेम मुनि गुणगाया., पे. वि. गा.७. पे. ६०. पंचमआरा सज्झाय, राज, पद्य, (पृ. २८आ-२९अ) आदि अरिहन्त सिद्ध साधु अति सुख पामो श्रीकार.. For Private And Personal Use Only Page #175 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir १२१ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची पे.वि. गा.१३. पे. ६१. पाण्डव सज्झाय, मु. कवियण, मागु., पद्य, (पृ. २९अ-२९आ), आदिः हस्तीनापुर नगर भलो; अंतिः मुज आवागमन निवार रे., पे.वि. गा.२०. पे. ६२. जिनरक्षितजिनपाल सज्झाय, मु. अमर, मागु., पद्य, (पृ. २९आ-३०आ), आदिः हा रे लाल चंपानगरी; अंतिः अमर प्रणमे ततकाल रे., पे.वि. गा.२०. पे. ६३. राजिमतीरथनेमि सज्झाय, मु. सीसविजय?, मागु., पद्य, (पृ. ३०आ-३१अ), आदिः राजुल देखी रङ्ग; अंतिः सकमल वाधिए जो., पे.वि. गा.११. पे. ६४. अकर्मी सज्झाय, मागु., पद्य, (पृ. ३१अ-३१आ), आदिः एक सीखामण कहुं छु; अंतिः सुख पामे अपार., पे.वि. गा.२१. ११७८. सिन्दुरप्रकर, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १०, जैदेना., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. गा.६३ तक है., (२४४११, ८४३०). सिन्दूरप्रकर, आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य, आदिः सिंदूरप्रकरस्तपः; अंति:११७९. मृगाङ्कलेखा चौपाई, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १३, जैदेना., प्र.वि. गा.३८८, (२५.५४११, १५-१७X४७). मृगाङ्कलेखा चौपाई, मागु., पद्य, आदिः गोयम गुणहर पय; अंतिः सवि हुं कर प्रणाम. ११८०. पर्यन्ताराधना, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, जैदेना.. पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. गा.५२वीं अपूर्ण तक है., (२४४११.५, ५४३३). पर्यन्ताराधना, आ. सोमसूरि, प्रा., पद्य, आदिः नमिउण भणइ; अंति:११९०. पच्चक्खाणसूत्र व अणाहारीवस्तुनाम, संपूर्ण, वि. १८६९, श्रेष्ठ, पृ. ७, पे. २, जैदेना., ले.स्थल. श्रीमालनगर, ले. मु. सुखसागर, (२३.५४११.५, ९४२७). पे. १. प्रत्याख्यानसूत्र , संबद्ध, प्रा., पद्य, (पृ. १-७अ), आदिः उग्गए सूरे नमुक्कार; अंतिः वत्तियागारेणं वोसिरइ. पे. २. अणाहारीवस्तु नाम, मागु., गद्य, (पृ. ७), आदिः हलदेर १ बेहडा २; अंतिः चमेड ५० जवखार ५१. ११९१. कमरेखा चरित्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५१, जैदेना., पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मूल चौथे स्कन्ध के गा.९९ तक है, प्रशस्तिश्लोक ही अनुपलब्ध व टबार्थ प्रथम स्कन्ध की गा.२४६ तक है., (२४.५४११.५, ६x४४). कर्मरेखा चरित्र, सं., पद्य, (पूर्ण), आदिः प्रणम्य शिरसा पार्श; अंति: कर्मरेखा चरित्र-टबार्थ, मागु., गद्य, (अपूर्ण), आदिः (१) वामापुत्र प्रणम्याहं (२) मस्तके करी; अंति:११९४. निश्चयव्यवहार स्तवन, संपूर्ण, वि. १८८७, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना., ले.स्थल. धांणोरानगर, ले. मु. सुखसागर (गुरु मु. जीतसागर), प्र.वि. ढाळ-६, (२३.५४११, १२४२९). शान्तिजिन स्तवन-निश्चयव्यवहारगर्भित, उपा. यशोविजयजी गणि, मागु., पद्य, वि. १७३४, आदिः शान्ति जिणेसर केसर; अंतिः वाचक जस विजयसीरी लही. १२००. चन्दन मलयागिरी चोपई, संपूर्ण, वि. १८०१, मध्यम, पृ. ९, जैदेना., ले.स्थल. सीरोडी, ले. गणि कृपाविजय (गुरु मु. रूपविजय),प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र.वि. अध्याय-५, (२५.५४११.५, १४४४३). चन्दनमलयागिरि रास, मु. भद्रसेन, मागु., पद्य, आदिः स्वस्ति श्रीविक्रम; अंतिः भयो सुभवञ्छित भोग. १२०१." शालिभद्र चउपई, संपूर्ण, वि. १७९४, श्रेष्ठ, पृ. २०, जैदेना., ले.स्थल. जालोरनगर, ले. गणि विवेकसागर (गुरु पं. भुवनसागर गणि), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. ढाळ-२९, संशोधित, (२५.५४११, १४४४३). शालिभद्र चौपाई, मु. मतिसार, मागु., पद्य, वि. १६७८, आदिः सासननायक समरियै; अंतिः फल लहिस्यइजी. १२०२." शालिभद्रधन्ना दानविषयै चउपइ, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १४, जैदेना., ले.स्थल. डबोकग्राम, ले. मु. महिमाविजय For Private And Personal Use Only Page #176 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य भाग - १ १२२ (गुरु आ. विजयरत्नसूरि), प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र.वि. ढाळ-२९; प्र.पु. मूल-गा.५२२, संशोधित, (२५.५४११, १८४४३). शालिभद्र चौपाई, मु. मतिसार, मागु., पद्य, वि. १६७८, आदिः सासननायक समरियै; अंतिः मनवंछित फल लहिस्यैजी. १२०३. नवस्मरण, लघुशान्ति व पार्श्वजिन स्तोत्र, अपूर्ण, वि. १८४६, मध्यम, पृ. १३, पे. ३, जैदेना., ले. मु. सवाईसागर (गुरु पं. भीमसागर), पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., (२६४११, १३४३६). पे. १. नवस्मरण, आ. अनेक श्रुतस्थविर, प्रा.,सं., प+ग, (पृ. १-१३, संपूर्ण), आदिः नमो अरिहन्ताणं हवइ; अंतिः जैनं जयति शासनम्., पे.वि. ९ स्मरण. पे. २. लघुशान्ति, आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, (पृ. १०आ-११अ, संपूर्ण), आदिः शान्तिं शान्ति; अंति: जैनं जयति शासनम्., पे.वि. श्लो.१७+२. यह कृति बीच में लिखी गई है. पे. ३. पार्श्वजिन चैत्यवन्दन, सं., पद्य, (पृ. १३आ, अपूर्ण), आदिः ॐ नमः पार्श्वनाथाय; अंतिः-, पे.वि. प्रतिलेखक द्वारा ___ अपूर्ण, केवल प्रथम श्लोक है. १२०५. नवपद पूजा, संपूर्ण, वि. १८५७, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदेना., ले. मु. कुयरसागर, प्र.वि. खण्ड-४, (२६४१२, १२४३५). नवपद पूजा, उपा. यशोविजयजी गणि, प्रा.,सं.,मागु., पद्य, आदिः उपन्नसन्नाणमहोमयाणं; अंतिः यजामहे स्वाहा. १२०७. जीवविचार स्तवन, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना., पू.वि. अन्तिम पत्र नहीं है. गा.७४ तक है., (२४.५४११.५, ११४३५). जीवविचार स्तवन, मु. वृद्धिविजय, मागु., पद्य, वि. १७१२, आदिः श्रीसरसती रे वरसती; अंति:१२०९.” अन्तगडदशाङ्गसूत्र सह टबार्थ व वर्धमानतपयन्त्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४०+१(३) ४१, पे. २, जैदेना.,प्र.वि. संशोधित, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२७.५४१२, ९x४७). पे. १.पे. नाम. अन्तगडदशाङ्गसूत्र सह टबार्थ, पृ. १आ-४०अ अन्तकृद्दशाङ्गसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदिः तेणं कालेणं० चम्पा०; अंतिः अयमठे पण्णत्ते. अन्तकृद्दशाङ्गसूत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः तेणि कालि चउथइ; अंतिः ज्ञाताधर्मकथानी परे. पे. २. वर्द्धमानतप यन्त्र, मागु., कोष्टक, (पृ. ४०अ-४०आ), आदि:#; अंतिः#. १२१०.” सुभाषित श्लोक सङ्ग्रह सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १३, जैदेना., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. गा.४२ अपूर्ण तक है व टबार्थ गा.२५ है., (२४४११, ३४३४). औपदेशिक श्लोक सङ्ग्रह', सं.,प्रा., पद्य, आदिः धर्मे रागः श्रुतौ; अंतिः औपदेशिक श्लोक सङ्ग्रह-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः अर्हन्त भगवन्त; अंति:१२१५. सुक्तावली, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना., पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. गा.२९ अपूर्ण तक है., (२६४१२, ९४२७). सूक्तावली, सं., पद्य, आदिः राज्यं निःसचिवं; अंति:१२१६." जीवविचार सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८५७, श्रेष्ठ, पृ. ७, जैदेना., ले.स्थल. वटपद्र, ले. पं. धर्मविजय गणि (गुरु पं. रत्नविजय), पठ. पं. कल्याणसागर, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. मूल-गा.५१., पदच्छेद सूचक लकीरें, (२४४११.५, ५४३०). जीवविचार प्रकरण, आ. शान्तिसूरि, प्रा., पद्य, आदिः भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंतिः रुद्दाओ सुयसमुद्दाओ. जीवविचार प्रकरण-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः त्रिन भुवन दीप समान; अंतिः समुद्र ते थकी. १२१८. आर्यवसुधारा स्तोत्र व गौतमस्वामि रास, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, पे. २, जैदेना., ले. ऋ. सारङ्गधर, (२७४१२.५, १३४३५). पे. १. वसुधारा, सं., गद्य, (पृ. १-६अ), आदिः संसारद्वयदैनस्य; अंतिः भाषितमभ्यवन्दन्निति. पे. २. गौतमस्वामी रास, मागु., पद्य, (पृ. ६अ-९आ), आदिः वीर जिनेसर चरण कमल; अंतिः (१)वृद्धि कल्याण करो (२)बहु विद्या निलो ए., पे.वि. गा.४३. For Private And Personal Use Only Page #177 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir १२३ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १२१९." विचारषट्त्रिंशिका सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, जैदेना., ले.स्थल. सूर्यपूरनगर, ले. पं. मोहनरत्न, प्र.वि. मूल-गा.४७., टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२४.५४१३, ५४३३). दण्डक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, आदिः नमिउं चउवीस; अंतिः एसा विनत्ति अप्पहिआ. दण्डक प्रकरण-टबार्थ, राज., गद्य, आदिः नमिउं कहितां नमस्कार; अंतिः हितकारी पणइ जाणीनइ. १२२४. श्राद्धपाक्षिक अतिचार, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदेना., पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. तपाचार-आभ्यन्तर तप के अतिचार अपूर्ण तक है., (२७.५४१३.५, १५४३६). श्रावकपाक्षिकअतिचार-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मागु., गद्य, आदिः नाणम्मि दंसणम्मि०; अंति:१२३०. पद्मणी चरित्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३६-७(१ से ३,५,७ से ८,३४)=२९, जैदेना., पू.वि. प्रारंभ, बीच व अंत के पत्र नहीं हैं. तीसरे काण्ड के गा.४९२ तक है., (२४४११, १४४४२). गोराबादल रास, गणि लब्धिउदय, मागु., पद्य, वि. १७०७, आदि:-; अंतिः१२३१.” अभिधानचिन्तामणिनाममाला, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ५२-१५(१ से १५)=३७, जैदेना., प्र.वि. ६ कांड, पदच्छेद सूचक लकीरें, टिप्पण युक्त विशेष पाठ-कुछ पत्र, पू.वि. काण्ड-२ श्लो.८० तक है., (२५४१०.५, १३४४२). अभिधानचिन्तामणि नाममाला, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, आदिः-; अंतिः रोषोक्तावु नतौ नमः. १२३३. स्तवनचोवीसी सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८८१, श्रेष्ठ, पृ. ४०, जैदेना., ले.स्थल. जावाल, ले. मु. उत्तमविजय (गुरु पं. कान्तिविजय); मु. खुबचन्द (गुरु मु. उत्तमविजय),प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र.वि. मूल-अध्याय-२४ स्तवन; प्र.पु. मूल-ग्रं. ३६५; टबार्थ-ग्रं. ८२८; प्र.पु. सर्वग्रं. -१२००. मूल के लेखक उत्तमविजयजी व टबार्थ के लेखक उनके शिष्य खुबचन्दजी सं.१८९० है., (२६४१२, ४४२९). स्तवनचौवीसी, मु. आनन्दघन, मागु., पद्य, वि. १८पू, आदिः ऋषभ जिनेश्वर प्रीतम; अंतिः अनन्त सुखनो सदा रे. स्तवनचौवीसी-टबार्थ, आ. ज्ञानविमलसूरि, मागु., गद्य, आदिः ऋषभदेव जिनेश्वरनइं; अंतिः (१)अखयसम्पद अति घणी (२)स्तुति स्तवना कही. १२३४." श्राद्धपाक्षिक अतिचार, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १०-१(१)=९, जैदेना., प्र.वि. संशोधित, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, पू.वि. प्रथम एक व अंत के पत्र नहीं हैं. तपाचार-अभ्यन्तर तप का अतिचार अपूर्ण तक है., (२७४१३, १०x२७). श्रावकपाक्षिकअतिचार-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मागु., गद्य, आदि:-; अंति:१२३६. श्राद्धपाक्षिक अतिचार, संपूर्ण, वि. १६९१, श्रेष्ठ, पृ. १०, जैदेना., ले.स्थल. मकाहड, ले. मु. हीरामेघ(मडाडगच्छ), राज्यकाल- राजा अक्षयराज, प्र.ले.पु. विस्तृत, (२५.५४१०, ९४२७). श्रावकपाक्षिकअतिचार-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मागु., गद्य, आदि: नाणम्मि दंसणम्मि०; अंतिः मिच्छामि दुक्कडम्. १२३८.” सोलसती सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५, जैदेना., पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. शीलवती सज्झाय गा.२ तक है., दशा वि. विवर्ण-पानी से अक्षरों की स्याही फैल गयी है, (२४.५४११, १६४५४). १६ सती सज्झाय, मु. मेघराज, मागु., पद्य, आदिः जिन गुरु गौतम पाय; अंतिः१२४०. मृगाकलेखामहासती चौपाई, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १३-३(१ से ३)=१०, जैदेना., प्र.वि. गा.३८८, पू.वि. गा.१०३ तक नहीं है., (२६४१०.५, १५४४९). मृगाङ्कलेखा चौपाई, मागु., पद्य, आदि:-; अंतिः सवि हुं कर प्रणाम. १२४१. जाम्भवती चौपाई व नेमराजीमती सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८३८, श्रेष्ठ, पृ. ६, पे. २, जैदेना., ले.स्थल. विक्रमपुर, ले. ऋ. उग्रचन्द, पठ. साध्वीजी फतुजी आर्या; साध्वीजी अनू आर्या, प्र.ले.पु. मध्यम, (२६४११, १६x४८). पे. १. जम्बूवती चौपाई, मु. सूरसागर, मागु., पद्य, (पृ. १-६), आदिः पहिली ढाल सोहामणी; अंतिः समांणो दिधो पाट तो. For Private And Personal Use Only Page #178 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य भाग १ - www.kobatirth.org: Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पे. २. नेमराजिमती सज्झाय, मु. विनीतसागर, मागु., पद्य, (पृ. ६आ), आदि: समुद्रविजय रायहंस; अंतिः विनीतसागर कहे थे. वि. पेटांक लेखन संवत १८५१ है. गा.११. " (+) १२४२. अर्जुनमाली व थांवचापुत्र चौपाई, अपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ४१-३३(१ से ३३) ८ पे २ जैदेना, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, ( २५x११.५, २०x५२ ). १२४ पे. १. अर्जुनमाली ढाल, ऋ. जंगल, मागु पद्य वि. १८२३ (पृ. ३४-३४आ) आदि अंतिः सुध पुनम सुभ ठाइ .. पे.वि. ढाळ-७. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. ढाल -५ गा. ९ तक नहीं है. पे. २. थावच्यामुनि चौपाई, उपा. समयसुन्दर गणि, मागु, पद्य वि. १६९१ (पृ. ३४आ-४१आ-), आदि: नेमिनाथना पाय नमुं; अंतिः-, पे.वि. अन्त के पत्र नहीं हैं. ढाल -७ गा. ५ तक है. १२४३.” अघटकुमार चौपाई, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ६-१ (१) =५, जैदेना., प्र. वि. संशोधित, पू.वि. बीच के पत्र हैं. ढाल -१ गा.११ से ढाल - १० गा. १ अपूर्ण तक है., (२५.५X११, १७९४७). अघटकुमारमहीधवराजा चौपाई, गणि पुण्यशील, मागु., पद्य, आदि:-: अंति: १२४५.” कालिकाचार्य कथा व पट्टावली, संपूर्ण, वि. १७७२, श्रेष्ठ, पृ. २२, पे. २, जैदेना., ले. स्थल. बिकानेर, प्र. वि. अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ, ( २६११, १५४४५ ).. " पे. १. कालिकाचार्य कथा, उपा. समयसुन्दर गणि सं. प+ग, वि. १६६६ (पृ. १-१२अ ), आदि: प्रणम्य श्रीगुरु अंतिः बालावबोधिकाम्., पे.वि. ग्रं. ४४१. पे. २. पट्टावली खरतरगच्छीय, सं. मागु, गद्य, (पृ. १२अ - २२आ) आदि गुब्बारग्रामवासी अंतिः सङ्घ जयवन्तो वर्त्तच. १२४७. सूक्तमाला, संपूर्ण, वि. १९२७, श्रेष्ठ, पृ. १३. जैदेना. ले. जेठा शुक्ल, लिखवा श्रा. न्यालचन्द, प्र. वि. ४ वर्ग, " (२५.५X११, ११x४१ ). सूक्तमाला मु. केशरविमल, सं. मागु पद्य वि. १७५४ आदि सकलसुकृत्यवल्लीवृन्द अंतिः केसरविमलेन विबुधेन. · १२५३. पञ्चाख्यान वार्ता सङ्ग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ३७-१ ( ३ ) = ३६, जैदेना., पू.वि. बीच के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. कथा-४९ अपूर्ण तक है., ( २६ ११, १२X४३). पंचाख्यान- बालावबोध, पं. जिनविजय, मागु, गद्य वि. १७३०, आदि: दक्षिणदेश तिहां अंति ; १२५४. अनुत्तरोववाइदसाओसूत्र, संपूर्ण वि. १९६५, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदेना, ले. मु. केशरीचन्द ( खरतरगच्छ ). प्र. वि. अध्याय-३३, (२६.५x११.५, १६४४८). अनुत्तरीपपातिकदशाङ्गसूत्र आ. सुधर्मास्वामी प्रा. प+ग, आदि: तेणं कालेणं० नवमस्स: अंति कहाणं तहा णेयव्वं. , १२५७. नारचन्द्र जोतिष सह बालाबोध, संपूर्ण वि. १९०४, जीर्ण, पृ. २३, जैदेना. ले. स्थल. वासगढ़ भारजा, ले. गु. काना " .. ( गुरु मु. सदाजी), प्र. वि. मूल - श्लो. १५८, (२५×११.५, ९-१०×२५). ज्योतिषसार, आ. नरचन्द्रसूरि, सं., पद्य, आदिः श्रीअर्हन्तजिनं; अंतिः कालकला विवर्जते. नारचन्द्र ज्योतिष-बालावबोध*, मागु., गद्य, आदि:-; अंतिः १२५८. नवस्मरण व लघुशान्ति, संपूर्ण, वि. १९१४, श्रेष्ठ, पृ. २७, पे. २, जैदेना., ले. स्थल. वटप्रदनगर (२४४११.५, ९४२७). पे. १. नवस्मरण, आ. अनेक श्रुतस्थविर, प्रा. सं., प+ग, (पृ. १आ-२५अ ) आदि नमो अरिहन्ताणं० हवइ: अंति जैनं जयति शासनम्, पे.वि. ९ स्मरण. " पे. २. लघुशान्ति, आ. मानदेवसूरि सं. पद्य (पृ. २५अ - २७अ ) आदि शान्ति शान्ति: अंतिः (१) सूरिः श्रीमानदेवश्व · " (२) जैनं जयति शासनम्., पे.वि. श्लो. १७+२. 1 १२५९.* चम्पकश्रेष्ठी चौपाई व गाथा संपूर्ण, वि. १७५६, श्रेष्ठ, पृ. १८, पे. २. जैवेना. ले. स्थल सांगानेरनगर, ले. पं. मतिविमल, दशा वि. विवर्ण-पानी से अक्षरों की स्याही फैल गयी है, (२५x१२, १५X३५). पे. १. चम्पक श्रेष्ठी चौपाई, उपा. समयसुन्दर गणि मागु For Private And Personal Use Only पद्य वि. १६९५ (पृ. १-१८) आदि जालोर मांहि जाणीयइ Page #179 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir १२५ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची अंति: भली वात बणावी रे., पे.वि. गा.५०७,ढाळ-२९. पे. २. जैन गाथा *, प्रा., पद्य, (पृ. १८आ), आदि:#; अंतिः#. १२६०. कर्मविपाक स्तव (प्रथम कर्मग्रन्थ), अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ८-३(१,३ से ४)=५, जैदेना., प्र.वि. गा.६०, (२५४११, ४४४८). कर्मविपाक नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि:-; अंतिः लिहिओ देविन्दसूरीहिं. १२६३. सिन्दुरप्रकर, संपूर्ण, वि. १८६८, श्रेष्ठ, पृ. १०, जैदेना., ले. मु. डुङ्गरविजय (गुरु पं. तेजविजय, तपागच्छ), प्र.वि. श्लो.१००, पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न, अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ, (२५४१२, १०x४०). सिन्दूरप्रकर, आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य, आदिः सिंदूरप्रकरस्तपः; अंतिः स जानाति जनाग्रतः. १२६५.” गौतमपृच्छा सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १८६८, मध्यम, पृ. ६१, जैदेना., ले.स्थल. स्यांणानगर, ले. मु. गणपतविजय (गुरु पं. प्रेमविजय), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. मूल-गा.६५., टिप्पण युक्त विशेष पाठ, दशा वि. विवर्ण-पानी से अक्षरों की स्याही फैल गयी है, (२५.५४११.५, १२-१५४३२-३९). गौतमपृच्छा, प्रा., पद्य, आदिः नमिऊण तित्थनाहं; अंति: गोयमपुच्छा महत्थावि. गौतमपृच्छा-बालावबोध, आ. जिनसूरि, मागु., गद्य, आदि: नत्वा कहता नमीने; अंतिः हर्षपूरण भावता. १२६६. जम्बूअध्ययन सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९११, श्रेष्ठ, पृ. ५६+२(३५,४५)=५८, जैदेना., ले.स्थल. कानोडग्राम, ले. ऋ. विनयचन्द(लुङ्कागच्छ), प्र.वि. मूल-२१उद्देश., (२६४१२, ६४३९). जम्बूअध्ययन प्रकीर्णक, प्रा., गद्य, आदिः तेणं कालेणं० रायगिहे; अंतिः से आराहगा भणिया. जम्बूअध्ययन प्रकीर्णक-टबार्थ, उपा. पद्मसुन्दर, मागु., गद्य, आदिः ते कालनि विषइ ते; अंतिः आराधक जीव कह्या. १२६७. प्रतिक्रमणसूत्र सङ्ग्रह व स्तुति सङ्ग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, पे. ६, जैदेना., ले. मु. ताराचन्द्र(नागोरी तपगच्छ), (२५४१२.५, १३४३८). पे. १. पंचप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,सं.,मागु., पद्य, (पृ. १आ-६अ), आदि: नमो अरिहन्ताणं; अंतिः अम्ह सया पसत्था. पे. २. बीजतिथि स्तुति, मु. लब्धिविजय, मागु., पद्य, (पृ. ६अ-६आ), आदिः दिन सकल मनोहर; अंतिः पुरो मनोरथ ____ माय., पे.वि. गा.४. पे. ३. मौनएकादशीपर्व स्तुति, मु. गुणहर्ष-शिष्य, मागु., पद्य, (पृ. ७अ), आदिः एकादशी अति रुअडी; अंतिः सङ्घ तणा निशदिश., पे.वि. गा.४. पे. ४. पाक्षिक स्तुति, आ. बालचन्द्रसूरि, सं., पद्य, (पृ. ७अ-७आ), आदिः स्नातस्याप्रतिमस्य; अंतिः कार्येषु सिद्धिम्., पे.वि. श्लो.४. पे. ५. नेमिजिन स्तुति, कवि ऋषभदास सङ्घवी, मागु., पद्य, (पृ. ७आ), आदिः श्रावण सुदि दिन; अंतिः सफल करो अवतार तो., पे.वि. गा.४. पे. ६. संसारदावानल स्तुति, आ. हरिभद्रसूरि, सं.,प्रा., पद्य, (पृ. ६आ-७अ), आदिः संसारदावानलदाहनीरं; अंति: देवि सारम्., पे.वि. श्लो.४. १२६८." अभिधानचिन्तामणिनाममाला काण्ड १,२, प्रतिपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १२, जैदेना.,प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२५४१०.५, १५४२८). अभिधानचिन्तामणि नाममाला, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, आदिः प्रणिपत्यार्हतः; अंति:१२७१. दशवैकालिकसूत्र सह वृत्ति, अपूर्ण, वि. १५वी, श्रेष्ठ, पृ. ४३, जैदेना., पू.वि. अन्त के पत्र नहीं हैं. प्रथम चूलिका का अंतिम श्लोक से नहीं है., (३०.५४११.५, १५४५६). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यम्भवसूरि, प्रा., पद्य, वि. पू.४, आदिः धम्मो मङ्गलमुक्किट्ठ; अंतिः For Private And Personal Use Only Page #180 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य भाग - १ १२६ दशवैकालिकसूत्र-टीका, आ. तिलकाचार्य, सं., प+ग, वि. १३०४, आदिः अर्हन्तः प्रथयन्तु; अंति:१२७४." भुवनदीपक सह बालावबोध व जयपराजय विचार, संपूर्ण, वि. १८१२, श्रेष्ठ, पृ. ७, पे. २, जैदेना., ले.स्थल. खीमलीग्राम, ले. पं. हेमराज (गुरु पं. केशवदास), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. त्रिपाठ, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२५४१२, ११-१४४४१). पे. १. पे. नाम. भुवनदीपक सह बालावबोध, पृ. १-७ भुवनदीपक, आ. पद्मप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३पू, आदिः सारस्वतं नमस्कृत्य; अंतिः श्रीपद्मप्रभुसूरिभिः. भुवनदीपक-बालावबोध, मागु., गद्य, आदिः ग्रहाधिपति १ उच्च; अंतिः शून्ये शून्यं भवेत्., पे.वि. मूल-श्लो.१८१. पे. २. ज्योतिष, सं.,मागु., पद्य, (पृ. ७आ), आदि:#; अंतिः#. १२७५. मुनिपति कथा, पूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १८, जैदेना., पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है. गा.६०७ तक है., (२४.५४१३, १९ २०४४२). मुनिपति चौपाई, मु. सिंहकुल, मागु., पद्य, वि. १५५०, आदिः गोयम गणहर गोयम गणहर; अंति:१२७६." श्राद्धप्रतिक्रमणसूत्र सङ्ग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ७, जैदेना., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., (२५४१०.५, १०४३०). प्रतिक्रमणसूत्र सङ्ग्रह-श्वे.मू.पू.*, संबद्ध, प्रा.,सं.,मागु., प+ग, आदिः नमो अरिहन्ताणं; अंति:१२७७.” सङ्ग्रहणी प्रकरण बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९०५, श्रेष्ठ, पृ. ९, जैदेना., दशा वि. विवर्ण-पानी से अक्षरों की स्याही फैल गयी है, (२३.५४११, १२४३१). लघुसङ्ग्रहणी-बालावबोध, मागु., गद्य, आदिः जम्बूद्वीप एक लाख; अंतिः द्वीप परद्वीप जाणवा. १२७८. अवन्तीसुकमाल स्वाध्याय, संपूर्ण, वि. १८११, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना., ले.स्थल. पालनपुर,ले. ऋ. रामचन्द्र (गुरु ऋ. विजाजी), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. ढाळ-१३, (२४४११.५, १६४३६). अवन्तिसुकुमाल रास, मु. जिनहर्ष, मागु., पद्य, वि. १७४१, आदिः मुनिवर आर्य सुहस्ती; अंतिः हरख सुख पावई रे. १२७९. दश पच्चक्खाण व मुहपत्ति के बोल ५०, संपूर्ण, वि. १९३३, श्रेष्ठ, पृ. ९, पे. २, जैदेना., ले.स्थल. सिरोहीनगर, ले. ___ ऋ. हुकमचन्द, (२६.५४११.५, ६x२४). पे. १. प्रत्याख्यानसूत्र, संबद्ध, प्रा., पद्य, (पृ. १-८अ), आदिः उग्गए सूरे नमोक्कार; अंतिः वत्तियागारेणं वोसिरइ. पे. २. मुखवस्त्रिकाप्रतिलेखन के पचास बोल, संबद्ध, मागु., गद्य, (पृ. ८आ-९अ), आदिः प्रथम दृष्टि पडिलेहण; अंतिः छकायनी जेणा करु. १२८१. कायस्थिति बोल - पन्नवणा १८ मा पदे, संपूर्ण, वि. १८२१, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना., (२४४१०.५, १४४३७). कायस्थिति बोल, मागु., गद्य, आदिः जीव गइ इन्द्रिय; अंतिः सादि सपर्यवसित. १२८४." दशवैकालिकसूत्र, संपूर्ण, वि. १९६२, श्रेष्ठ, पृ. २१, जैदेना., प्र.वि. अध्याय-१०अध्ययन, पदच्छेद सूचक लकीरें, (२३.५४१२, १५४३५). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यम्भवसूरि, प्रा., पद्य, वि. पू.४, आदिः धम्मो मङ्गलमुक्किट्ठ; अंति: गई त्ति बेमि. १२८५. क्षेत्रसमास यन्त्र, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना.,प्र.वि. पंक्त्याक्षर अनियमित है. प्रतनाम मां बालावबोध नो उल्लेख नथी. परंतु आदिवाक्य मां बालावबोध आपेल छे..पू.वि. अन्त के पत्र नहीं हैं., (२६४१२४). लघुक्षेत्रसमास-यन्त्र सङ्ग्रह*, मागु., कोष्टक, (संपूर्ण), आदिः#; अंति: #. १२८६. दानशीलतपभावना कुलक सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५, जैदेना., प्र.वि. मूल-गा.४९., (२५४१२, ६x४०). दानशीलतपभावना कुलक, मु. अशोकमुनि, प्रा., पद्य, आदिः देवाहिदेवं नमिऊण; अंतिः सूरि खमउ तेणं. दानशीलतपभावना कुलक-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः देवाधिदेव श्रीमहावीर; अंतिः ते आचार्य खमज्यो. For Private And Personal Use Only Page #181 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir १२७ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १२८७. उपदेशमाला, पूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १४, जैदेना., पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है. गा.५३३ तक है., (२६४११, १६४५०). उपदेशमाला, गणि धर्मदास, प्रा., पद्य, आदि: जगचूडामणिभूओ उसभो; अंति:१२८८. मौनएकादशी व्याख्यान व स्तवन, संपूर्ण, वि. १८५३, श्रेष्ठ, पृ. ५, पे. २, जैदेना., (२६.५४१०.५, १३४४९-५२). पे. १. मौनएकादशीपर्व व्याख्यान, मागु., गद्य, (पृ. १-५), आदिः सिरिवीरं नमिऊण; अंतिः सकल सुख विभागी थाइ. पे. २. मौनएकादशीपर्व स्तवन , उपा. समयसुन्दर गणि, मागु., पद्य, वि. १६८१, (पृ. ५आ), आदिः समवसरण बेठा भगवंत; अंतिः सकल सुख विभागी थाइ.,पे.वि. गा.१३. १२८९.” महावीरजिन री नीसाणी, संपूर्ण, वि. १८१८, मध्यम, पृ. ५, जैदेना., ले.स्थल. उदैपुर, ले. मु. वनिराज, प्र.वि. गा.३६, दशा वि. विवर्ण-पानी से अक्षरों की स्याही फैल गयी है, (२४.५४११.५, ११४३१). महावीरजिन नीसाणी, मु. माणेकमुनि, प्राहिं., पद्य, आदिः माता सरसती सेवक; अंतिः माणेकमुनि गायन्दा. १२९०. मृगाकलेखासती चौपाई, संपूर्ण, वि. १७वी, जीर्ण, पृ. २१, जैदेना.,प्र.वि. गा.३६१, (२६४११, ११४३६). मृगाकलेखा चौपाई, मागु., पद्य, आदि: गोयम गुणहर पय; अंतिः सवि हुं कर प्रणाम. १२९१. वैदर्भि चौपाई, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, जैदेना., पठ. लवगादेजी,प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२५४१०.५, १५४३६). दमयन्ती चौपाई, ऋ. प्रेमराज, मागु., पद्य, आदिः जिनधर्म माहे दीपता; अंतिः पहुञ्चइ मोक्ष मोझार. १२९२. मदनरेखा रास, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ८, जैदेना., पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. गा.६१ तक है., (२५.५४११.५, १२४२९). मदनरेखा रास, मागु., पद्य, आदिः जूआ मांस दारु तणी; अंति:१२९५.” दानशीलतपभावना कुलक सह टबार्थ व सुभाषित, अपूर्ण, वि. १८२६, श्रेष्ठ, पृ. ७-१(२)=६, पे. २, जैदेना., ले.स्थल. भृगूकच्छ, ले. मु. मोतिविजय,प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-अंतिम पत्र, पदच्छेद सूचक लकीरें, (२६४११.५, ५४३५). पे. १. पे. नाम. दानशीलतपभाव कुलक सह टबार्थ, पृ. १-७, अपूर्ण दानशीलतपभावना कुलक, मु. अशोकमुनि, प्रा., पद्य, आदिः देवाहिदेवं नमिऊण; अंतिः सूरि खमउ तेणं. दानशीलतपभावना कुलक-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः देवाधिदेव श्रीमहावीर; अंतिः ते आचार्य खमज्यो., पे.वि. मूल-गा.४९. बीच का एक पत्र नहीं है. पे. २. श्लोक सङ्ग्रह, सं.,प्रा.,मागु.,हिन्दी, पद्य, (पृ. ७आ, संपूर्ण), आदिः#; अंतिः#. १२९९." उत्तराध्ययनसूत्र सह टबार्थ - अध्ययन १९, प्रतिअपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १०-१(८)=९, जैदेना., ले.स्थल. सानंद, ले. पं. मोहनविजय,प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, पदच्छेद सूचक लकीरें, पू.वि. गा.७३ से ८३ तक नहीं है., (२६४११, ६x२९). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध , प्रा., प+ग, आदि:-; अंति: उत्तराध्ययनसूत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, आदि:- : अंतिः१३०१.” साधुप्रतिक्रमणसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८३०, श्रेष्ठ, प्र. ६, पे. २, जैदेना., ले.स्थल. नांदीपुरग्राम, ले. गणि कपूरविजय (गुरु पं. केसरविजय), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२५.५४११, ६४३५). पे. १. पे. नाम. आवश्यकसूत्र का हिस्सा साधुप्रतिक्रणसूत्र सह टबार्थ, पृ. १अ-६अ साधुवन्दित्तुसूत्र, संबद्ध, प्रा., गद्य, आदिः करेमि भन्ते० चत्तारि; अंतिः (१)वन्दामि जिणे चउवीसं. साधुवन्दित्तुसूत्र-बालावबोध, मागु., गद्य, आदिः वाञ्छउ निवर्त्तवा; अंतिः मङ्गलीक भणी भणीयौ., पे.वि. संबद्ध सूत्र-२१. For Private And Personal Use Only Page #182 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य भाग - १ १२८ पे. २. श्लोक सङ्ग्रह', सं.,प्रा.,मागु.,हिन्दी, पद्य, (पृ. ६अ), आदिः#; अंतिः#. १३०२. दशवैकालिकसूत्र सह अवचूरि व उपलब्धिप्रकरण, संपूर्ण, वि. १६८०, मध्यम, पृ. ३६, पे. २, जैदेना., ले.स्थल. नागपुर, ले. मु. मथेन वर्धमान(खरतरगच्छ), पठ. श्राविका हंसाबाई,प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. पंचपाठ, (२५४११, ७४११). पे. १. पे. नाम. दशवैकालिकसूत्र सह अवचूरि, पृ. १-३६ दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यम्भवसूरि, प्रा., पद्य, वि. पू.४, आदिः धम्मो मङ्गलमुक्किट्ठ; अंतिः मुच्चइ त्ति बेमि. दशवैकालिकसूत्र-अवचूरि, सं., गद्य, आदिः धम्मो मङ्गलम् ; अंतिः नामद्वितीयाचूला., पे.वि. मूल-अध्याय १०अध्ययनरचूलिका. पे. २. उपलब्धि प्रकरण, प्रा., पद्य, (पृ. ३६), आदिः रगे भद्वचरित्ता; अंतिः इम पञ्चमं नरयं., पे.वि. गा.२८. १३०४. सीमन्धरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, प्र. ६, जैदेना., प्र.वि. गा.११५,ढाळ-७, (२४.५४१०.५, १२-१४४३१). सीमन्धरजिन स्तवन, मु. सिद्धिविजय, मागु., पद्य, वि. १७१३, आदिः अनन्त चोवीसी; अंतिः भविक जन मङ्गल करो. १३०६. कर्मग्रन्थ ५,६ सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ११३-८८(१ से ८८)=२५, पे. २, जैदेना.,प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२४.५४११, ४४२७). पे. १. पे. नाम. पञ्चमकर्मग्रन्थ सह टबार्थ, पृ. -८९अ, अपूर्ण शतक नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि:-; अंतिः सयगमिणं आयसरणट्ठा. शतक नव्य कर्मग्रन्थ-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः-; अंतिः सम्भारवानइ अर्थइ., पे.वि. मूल-गा.१००. अंतिम पत्र है. गा.९९ अपूर्ण तक नहीं है. पे. २. पे. नाम. सत्तरी कर्मग्रन्थ सह टबार्थ, पृ. ८९अ-११३, संपूर्ण सप्ततिका कर्मग्रन्थ, प्रा., पद्य, आदिः सिद्धपएहिं महत्थं; अंतिः एगुणा होइ नउइओ. सप्ततिका कर्मग्रन्थ-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः सिद्ध निश्चल पद छइ; अंतिः उणी नेउ गाथा होइ., पे.वि. मूल गा.९३. प्र.पु. उभय ग्रं.४५०. १३०७. अणुत्तरोववाइसूत्र, संपूर्ण, वि. १९९१, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदेना., ले.स्थल. कपासण, प्र.वि. अध्याय-३३, (२४४११.५, १८४४१). अनुत्तरौपपातिकदशाङ्गसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदिः तेणं कालेणं नवमस्स; अंतिः कहाणं तहा णेयव्वं. १३०९." गुणकरण्डक गुणावली चौपाई, पूर्ण, वि. १८१२, मध्यम, पृ. ३१-१(१)=३०, जैदेना., ले.स्थल. डेडाग्राम, ले. मु. प्रसिद्धरुची (गुरु गणि रङ्गरुची), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-कुछ पत्र, (२५.५४११, १२ १६४३७). गुणकरण्डकगुणावलि चौपाई, ऋ. दीपमुनि, मागु., पद्य, वि. १७५४, आदि:-; अंतिः सम्पति जस थावैजी. १३१५. बार भावना, संपूर्ण, वि. १९१४, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदेना., ले. बुलाकी सेवग (पिता मदजी सेवग), प्र.वि. गा.१२५,ढाळ-१३, (२६४१२, १३४३२). १२ भावना सज्झाय , उपा. जयसोम, मागु., पद्य, वि. १७०३, आदिः पास जिणेसर पाय नमी; अंतिः भणी जेसलमेर मझार. १३१६. भक्तामर स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना., प्र.वि. श्लो.४४, (२६४११.५, १०४३४). भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुङ्गसूरि, सं., पद्य, आदिः भक्तामरप्रणतमौलिमणि; अंतिः समुपैति लक्ष्मी. १३१७." उत्तराध्ययनसूत्र - अध्ययन ३६, प्रतिअपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ८, जैदेना., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. गा.२४९ तक है., (२४४१२, १६४३६). For Private And Personal Use Only Page #183 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra १२९ उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग, आदि:-; अंति: १३१८. तीर्थमाला स्तोत्र व पञ्चमङ्गल, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ५, पे. २, जैदेना. (२३.५४१२, १६४३१). पे. १. तीर्थमाला स्तोत्र, आ. महेन्द्रसिंहसूरि, प्रा., पद्य, (पृ. १५), आदि: अरिहन्तं भगवन्तं अंतिः मुणिविन्द थुय महिया, पे.वि. गा. १११. T www.kobatirth.org: पे. २. पंचमङ्गल पाठ, प्रा., पद्य, (पृ. ५अ) आदि अरिहन्त मङ्गल अंतिः वोसरामि ते पावगं पे.वि. गा८. १३२२. आदिजिन स्तवन व मेघकुमार चौढालीयो, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ७, पे. २, जैदेना., (२५.५X११.५, ११×२४-२९). पे. १. आदिजिन स्तवन- आत्मनिन्दागर्मित वाचक कमलहर्ष, मागु, पद्य, (पृ. १अ - ४आ), आदि आदीसर पहिलो अरिहंत; अंतिः सफल भव अपणौ गिणी, पे.वि. गा. ५१, ढाळ - ४. पे. २. मेघकुमार चौढालिया, मु. जिनहर्ष-शिष्य, मागु., पद्य, (पृ. ४आ-७आ), आदि: श्रीजिनवरनो रे चरण; अंतिः चूको आणा माग रे, पे.वि. ढाळ-४. १३२३. नवपद गुण, अपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ९-२(६ से ७) =७, जैदेना, पू. वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., (२८.५५१३.५. , ८x२८). नवपद गुण, सं., गद्य, आदि: अरिहन्त के १२ गुण अंति: १३२४. कर्मविपाक का यन्त्र ( प्रथम कर्मग्रन्थ का यन्त्र) पूर्ण वि. १९११, श्रेष्ठ, पृ. २१-२ (७ से ८) = १९ जैदेना. ले. पं. " अमृतविजय (२४.५४१४. १३४२६-२९). कर्मविपाक नव्य कर्मग्रन्थ- यन्त्र, मु. सुमतिवर्द्धन, राज, गद्य, आदिः श्रीवीरजिन प्रते; अंतिः अन्तराय कर्म बांधे.. १३२७. गौतम रास, संपूर्ण, वि. १९३२, श्रेष्ठ, पृ. ८ जैदेना, ले. स्थल सिरोहीनगर ले इन्द्रमाण, प्र. वि. गा४८ (२६.५०१२. , Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir " कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ९x३१). गीतमस्वामी रास, आ. विजयभद्रसूरि मागु, पद्य, आदि वीर जिणेसर चरण कमल: अंतिः इम भणे ए. १३२८. नवस्मरण, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ५, जैदेना, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. अजितशान्ति की गा २६ तक है., (२५.५X११, ११४३८). नवस्मरण, आ. अनेक श्रुतस्थविर, प्रा. सं., प+ग, आदि:-: अंति: " , (+) १३२९. त्रिषष्टिशलाकापुरुष चरित्र प्रथमपर्वे १ से ३ सर्ग, प्रतिअपूर्ण, वि. १७वी श्रेष्ठ, पृ. ६२ - १ ( १ ) - ६१, जैदेना. ले. पं. रत्नसुन्दर, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, पदच्छेद सूचक लकीरें - प्रारंभिक पत्र (२६११, १५४४९). त्रिषष्टिशलाकापुरुष चरित्र, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य वि. १२२०, आदि: अंति: (+) " १३३१. क्षेत्रसमास सह टवार्थ, अपूर्ण, वि. १७९६, श्रेष्ठ, पृ. ६१-८ (८ से १०,२० से २४) =५३, जैदेना. ले. स्थल आऊआनगर, ले. मु. जसविजय (गुरु पं. राजविजय) प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र. वि. मूल-गा. २६६ अध्याय ६ अधिकार, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२५x११, ३४३१). लघुक्षेत्रसमास प्रकरण आ. रत्नशेखरसूरि प्रा. पद्य वि. १५वी आदि वीरं जयसेहरपय; अंति: कुसलरङ्गमई " , " , . पसिद्धिं. लघुक्षेत्रसमास-बालावबोध, आ. पार्श्वचन्द्रसूरि, मागु., गद्य, आदि: वीर श्रीमहावीर केहवउ: अंतिः प्रसिद्धि पामे. १३३३. ज्योतिषसार सङ्ग्रह प्रथम परिच्छेद प्रतिपूर्ण, वि. १८वी श्रेष्ठ, पृ. १२, जैदेना, पठ. गणि जससागर, ( २६४१०.५, १४X३८-४३). ज्योतिषसार आ. नरचन्द्रसूरि सं., पद्य, आदि श्री अर्हन्तजिनं: अंति: १३३४. नवतत्त्व प्रकरण सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ९, जैदेना., ले. मु. हंसराज ( खरतरगच्छ ), प्र. वि. मूल - गा. ५०. इस प्रत में अभयदेवसूरि विरचित नवतत्त्व ऐसा लिखा है, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२५.५१२, ५x२३). For Private And Personal Use Only Page #184 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य भाग - १ नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंतिः बोहिय इक्कणिक्काय. नवतत्त्व प्रकरण-टबार्थ, राज., गद्य, आदिः जीवतत्त्व अजीवतत्त्व; अंतिः एकसिद्ध अनेकसिद्ध. १३३५." नवतत्त्व सह टबार्थ, पूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ११, जैदेना., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. गा.४९ तक है., (२६४१२, ३४३०). नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदिः जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंतिः नवतत्त्व प्रकरण-टबार्थ, राज., गद्य, आदिः जीवतत्त्व अजीवतत्त्व; अंति:१३३६. श्रमणप्रतिक्रमणसूत्र सङ्ग्रह, आदिजिन स्तुति, वीरजिनस्तोत्र व शत्रुञ्जयस्तव, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १३, पे. ४, जैदेना., (२६४१२, १३४३२). पे. १.पे. नाम. साधुप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह, पृ. १-१३आ साधुप्रतिक्रमणसूत्र सङ्ग्रह श्वे.मू.पू., संबद्ध, प्रा., प+ग, आदिः नमो अरिहन्ताणं; अंतिः खमामि सव्वस्स अहयंपि. पे. २. आदिजिन स्तुति, सं., पद्य, (पृ. १३अ), आदिः युगादिपुरुषेन्द्राय; अंतिः कूष्माण्डी कमलेक्षणा., पे.वि. श्लो.४ . पे. ३. महावीरजिन स्तोत्र, मु. मुनिसुन्दर, प्रा., पद्य, (पृ. १३अ), आदिः जय सिरिजिणवरतिहुअणजण; अंतिः निअपयसुहदाणओ अइरा., पे.वि. गा.५. पे. ४. शत्रुजयतीर्थ स्तव, सं., पद्य, (पृ. १३अ-१३आ), आदिः नव प्रव्रजितैः प्रथम; अंतिः शासनोति भवे भवे., पे.वि. श्लो.५. १३३७." दण्डकसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २८-२०(१ से २०)=८, जैदेना., ले.स्थल. सवाइजैनगर, ले. ताराचन्द, प्र.वि. मूल-गा.४० प्र.पु. सर्वग्रं. १३५१. प्रत के अन्त में नवतत्वप्रकरण, जीवविचार प्रकरण व दंडकप्रकरण ये तीनो प्रकरणों का नामोल्लेख सूत्रार्थ ग्रन्थान के साथ मिलता है., टिप्पण युक्त विशेष पाठ, पू.वि. मात्र दंडक प्रकरण है., (२६४१२, ३४३०). दण्डक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, (संपूर्ण), आदिः नमिउं चउवीस; अंतिः एसा विनत्ति अप्पहिआ. दण्डक प्रकरण-टबार्थ , मागु., पद्य, (संपूर्ण), आदिः नमस्कार करीने ऋषभादि; अंतिः हितकारणी की विनती. १३३८. नेमजीरो चोक, प्रभाती व श्लोक, अपूर्ण, वि. १८७२, मध्यम, पृ. ८-२(१ से २)=६, पे. ३, जैदेना., ले.स्थल. जाबुवे, ले. श्रा. वगतचन्द नेणावाल, (२५.५४१२, १२४२८). पे. १. नेमिजिन चौवीसचोक, मु. अमृतविजय, मागु., पद्य, वि. १८३९, (पृ. -३-८अ, अपूर्ण), आदि:-; अंतिः अमृतविजये गुण गाया., पे.वि. ढाळ-२४. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. पे. २. पार्श्वजिन स्तवन, मु. जिनहर्ष, मागु., पद्य, (पृ. ८अ-८आ, संपूर्ण), आदिः सारद वदन अमृतनी वाणी; अंतिः भाग्यदिसा अब जागी रे., पे.वि. गा.७. पे. ३. जैन श्लोक *, सं., पद्य, (पृ. ८आ, संपूर्ण), आदिः#; अंतिः#. १३३९. वकचूल चरित्र व श्रवण स्तवन, संपूर्ण, वि. २००९, श्रेष्ठ, पृ. ५, पे. २, जैदेना., ले.स्थल. ब्यावर, ले. जसवन्तराज, (२५४११.५, १५४३२). पे. १. वंकचूल चरित्र, ऋ. हीरालाल, हिन्दी, पद्य, वि. २०वी, (पृ. १-५अ), आदिः महावीर जिनवर नमुं; अंतिः सङ्ग पत्थर तिरे., पे.वि. गा.१०२. पे.२.पे. नाम. श्रवण स्तवन, पृ. ५अ-५आ औपदेशिक पद , राज., पद्य, आदिः कहती त्रिया सुनो; अंति: मुक्ति मारग पहुंचाय., पे.वि. गा.२०. १३४०. पार्श्वजिन, माणिभद्र व सरस्वतीछन्द संग्रह, संपूर्ण, वि. १८६४, श्रेष्ठ, पृ. १३, पे. ८, जैदेना., ले.स्थल. बालीनगर, ले. मु. रविसागर (गुरु मु. जीतसागर), प्र.ले.पु. मध्यम, (२६.५४१२, ११४३४). For Private And Personal Use Only Page #185 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir १३१ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची पे. १. पे. नाम. गोडीपार्श्वजिन छन्द, पृ. १अ-२आ पार्श्वजिन छन्द-गोडीजी, वाचक कुशललाभ, मागु., पद्य, आदि: सरसति सुमति आप; अंतिः धवलधींग गोडी धणी., पे.वि. गा.२२. पे. २. पे. नाम. अन्तरिक्षपार्श्वजिन छन्द, पृ. २आ-७अ पार्श्वजिन छन्द-अंतरीक्ष, वाचक भावविजय, मागु., पद्य, आदिः सरसति मात मयाकरी; अंति: जयो पास जय जयकरण., पे.वि. गा.४६. पे. ३. पे. नाम. शर्केश्वरपार्श्वजिन छन्द, पृ. ७अ-७आ पार्श्वजिन छन्द-शखेश्वर, मु. उदयरत्न, मागु., पद्य, आदिः सेवो पास शर्खेश्वरो; अंतिः आपो आप तुठा., पे.वि. गा.७. पे. ४. पे. नाम. माणिभद्रजीरो छन्द, पृ. ७आ-८आ माणिभद्रवीर छन्द, म. शिवकीर्ति, माग., पद्य, आदिः श्रीमाणिभद्र सदा; अंतिः मुनी इम सुजस कहे., पे.वि. गा.९ पे. ५. सरस्वतीदेवी स्तोत्र, सं., पद्य, (पृ. ८आ-९अ), आदि: नमोस्तु शारदादेवी; अंतिः निशेषजाड्यापहा., पे.वि. श्लो.१०. पे. ६. सरस्वतीदेवी स्तोत्र, सं., पद्य, (पृ. ९अ-९आ), आदिः वाग्वादीनी नमस्तुभ्य; अंतिः निर्मलबुद्धिमन्दरम्., पे.वि. श्लो.७. पे. ७. पे. नाम. गोडीपार्श्वजिन छन्द, पृ. ९आ-१०आ पार्श्वजिन छन्द-गोडीजी, मु. वनीतराज, मागु., पद्य, आदिः सुख सम्पत दाई; अंतिः वनीतराज गाया जगधणी., पे.वि. गा.९ . पे. ८. पार्श्वजिन स्तोत्र-शर्केश्वर, मु. लब्धिरूचि, सं.,मागु., पद्य, वि. १७१२, (पृ. ११अ-१३आ), आदि: जय जय जगनायक; अंतिः सुख थाय सदा., पे.वि. गा.३२ . १३४१.” स्तवन, सज्झाय, स्तुति आदि सङ्ग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १६-४(१ से ४)=१२, पे. २५, जैदेना., ले. मयाचन्द,प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, पू.वि. प्रारंभ व अंत के पत्र नहीं हैं., (२५४१०, १७X४३). पे. १. महावीरजिन स्तवन-सत्यावीसभवगर्मित, मु. जैनेन्द्रसागर, मागु., पद्य, (पृ. -५अ, अपूर्ण), आदि:-; अंतिः जयो वीर जय जय करो., पे.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. पे. २. पे. नाम. वरकाणापार्श्वजिन स्तवन, पृ. ५आ, संपूर्ण पार्श्वजिन स्तवन-वरकाणा, आ. जिनभक्तिसूरि, मागु., पद्य, आदिः वरकाणापुर राजीया; अंति: मोरा रे तुम साम्भलो., पे.वि. गा.७. पे. ३. पार्श्वजिन स्तवन, मु. केसरविजय, मागु., पद्य, (पृ. ५आ, संपूर्ण), आदिः हां रे मोरा पासजी; अंतिः मुनिवर केसर धीर., पे.वि. गा.८. पे. ४. पे. नाम. गोडीपार्श्वजिन स्तवन, पृ. ५आ, संपूर्ण पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. जिनहर्ष, मागु., पद्य, आदिः गुण गिरूओ गोडी धणी; अंतिः मुज प्राण आधार., पे.वि. गा.७. पे. ५. मधुबिन्दु सज्झाय, मु. चरणप्रमोद-शिष्य, मागु., पद्य, (पृ. ६अ, संपूर्ण), आदिः सरसति मुझने रे मात; अंतिः परम पदवी पांमीयै., पे.वि. गा.१०. पे. ६. सुभद्रासती सज्झाय, मु. परमसागर, मागु., पद्य, (पृ. ६अ-७अ, संपूर्ण), आदिः मन समरी रे अमरी; अंतिः तेहनै जाउं भामणै., पे.वि. गा.११. पे. ७. क्रोध सज्झाय, मु. भावसागर, मागु., पद्य, (पृ. ७आ, संपूर्ण), आदिः क्रोध न करिये भोला; अंतिः उपशम आणो For Private And Personal Use Only Page #186 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य भाग १ - www.kobatirth.org: Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पासे रे.. पे.वि. गा.९. पे. ८. मान राज्झाय, पण्डित भावसागर, मागु पद्य (पृ. ७आ, संपूर्ण), आदि अभिमान न करस्यो कोई अंतिः नगर रहि चौमासै हो, पे.वि. गा.८. पे. ९. माया सज्झाय, मु. भावसागर, मागु., पद्य, (पृ. ८अ, संपूर्ण), आदि: माया मूल संसारनो; अंति: लहे सुख निर्वाण पे. वि. गा. ७. पे. १०. लोभ सज्झाय, पण्डित भावसागर, मागु., पद्य, (पृ. ८ अ, संपूर्ण), आदिः लोभ न करीये प्राणीया; अंतिः पहोचे सयल जगीस रे., पे.वि. गा. ७. पे. ११. सुलसाश्राविका सज्झाय, मु. कल्याणविमल, मागु., पद्य, (पृ. ८अ -८आ, संपूर्ण), आदिः धन धन साची सुलसा; अंतिः कल्याणविमल गुणगाय रे., पे.वि. गा.१०. १३२ पे. १२. अष्टमीतिथि स्तुति, आ. ज्ञानविमलसूरि, मागु., पद्य, (पृ. ८आ, संपूर्ण), आदिः मङ्गल आठ करी जिन; अंतिः तपथी कोडि कल्याणजी., पे.वि. गा. ४. पे. १३. औपदेशिक सज्झाय, राज, पद्य, (पृ. ९अ, संपूर्ण ), आदि: खबर कर दैणौ दीजैरो; अंतिः पामो नरभव सार., पे.वि. गा. १६. पे. १४. ऑपदेशिक छन्द पण्डित लक्ष्मीकल्लोल, मागु पद्य, (पृ. ९अ ९आ, संपूर्ण) आदि भगवती भारती चरण अंतिः धरज्यो मनि चोल, पे.वि. गा. १६. " पे. १५.४ माङ्गलिक, मागु, पद्य, (पृ. ९आ-१०अ संपूर्ण), आदि: पहिलो मङ्गलीक: अंतिः सुख लहै अनन्त, पे.वि. गा. ५. पे. १६. औपदेशिक सज्झाय, मु. लावण्यसमय, मागु., पद्य, (पृ. १०अ, संपूर्ण), आदिः सुधो धरम मुकिस विनय; अंतिः चिरकाले नन्दौ रे, पे.वि. गा.९. पे. १७. २२ अभक्ष्य नाम, मागु., गद्य, (पृ. १०अ, संपूर्ण), आदि: वडोलीया पीप पीपर; अंति: चलितरस बहुबीज.. पे. १८. ३२ अनन्तकाय विचार, मागु., गद्य, (पृ. १०अ - १०आ, संपूर्ण), आदि: कचूर हलदनीला; अंतिः खीलोइ खरसूया. पे. १९. नन्दिषेणमुनि सज्झाय, मु. जिनराज, मागु., पद्य, (पृ. १०आ, संपूर्ण), आदिः साधुजी न जइए रे; अंतिः परघर गमण निवार, पे.वि. गा. १०. पे. २० औपदेशिक सज्झाय, अमरचन्द्र प्राहिं, पद्य, (पृ. १०आ-११अ, संपूर्ण), आदि: क्या करि जुठि माया अंति , सुख लहै सहि मनगमता, पे.वि. गा.६. पे. २१. महावीरजिन स्तवन, मु. उदयरत्न, मागु., पद्य, (पृ. ११अ, संपूर्ण), आदिः साहिबीयानी सेवामां; अंतिः जै जै श्रीमहावीर, पे.वि. गा.६. पे. २२. शत्रुंजयतीर्थ स्तवन, मु. ऋद्धिहर्ष, मागु, पद्य, (पृ. ११अ ११आ, संपूर्ण) आदि सहीयां मोरी चालो अंतिः अरिहन्त श्रीआदिनाथ, पे.वि. गा.१३. ; पे. २३ . बुद्धिरासो, आ. शालिभद्रसूरि, मागु., पद्य, (पृ. ११आ-१३अ, संपूर्ण ), आदिः प्रणमवि देव अम्बाई; अंतिः ते घरि टले क्लेश तो पे.वि. गा.६३. पे. २४. आदिजिन स्तवन- आत्मनिन्दागर्भित, वाचक कमलहर्ष, मागु., पद्य, (पृ. १३ - १४आ, संपूर्ण), आदिः आदीसर पहिलो; अंतिः सफल भव आपणो गीणी. पे.वि. गा. ५२. बाळ ४. पे. २५. अवन्तिसुकुमाल रास, मु. जिनहर्ष, मागु., पद्य, वि. १७४१, (पृ. १४आ - १६आ-, अपूर्ण), आदि: मुनिवर आर्य सुहस्ती अंति, पे.वि. अंतिम पत्र नहीं है. गा.७९ तक पाठ है. , (+) १३४२. स्तवन, पद व गीत आदि सङ्ग्रह, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. ७, पे. ३३, जैदेना, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ बीच के कुछ पत्र (२६४११, १३४३५). , पे. १. आध्यात्मिक पद, बनारसीदास, प्राहिं., पद्य, (पृ. १अ), आदि: तुं आतम गुण जाण; अंतिः मोह कोह For Private And Personal Use Only Page #187 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir १३३ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची छोडावनहार., पे.वि. गा.४. पे. २. निरञ्जन पद, रूपचन्द, हिन्दी, पद्य, (पृ. १अ), आदिः देव निरञ्जन भव भय; अंतिः जे बेठा सो तरीया हे., पे.वि. गा.३. पे. ३. प्रबोध पद, मागु., पद्य, (पृ. १अ-१आ), आदिः जाग रे अब जाग; अंतिः वीतराग लहो शिवमाग रे., पे.वि. गा.३. पे. ४. आदिजिन पद , मु. मान, प्राहिं., पद्य, (पृ. १आ), आदिः आज तो हमारे भाव; अंतिः राग कवि मान गाएहिं., पे.वि. गा.३. पे. ५. आदिजिन पद, मु. साधुकीर्ति, प्राहिं., पद्य, (पृ. १आ), आदिः आज ऋषभ घर आवे; अंतिः साधुकीरति गुण गावें., पे.वि. गा.३. पे. ६. गौतमस्वामी स्तवन, मु. पुण्यउदय, मागु., पद्य, (पृ. १आ-२अ), आदिः प्रभाते गोतम प्रणमी; अंतिः प्रगट्यो परधान., पे.वि. गा.८. पे. ७. नवपद स्तवन, कवि जगमाल, मागु., पद्य, (पृ. २अ-२आ), आदि: जपो जपो रे भवीका; अंतिः सारो० मत को विचारो., पे.वि. गा.४. पे. ८. आध्यात्मिक पद, मु. उदयरत्न, राज., पद्य, (पृ. २आ), आदिः योवनीयानी फोजां; अंतिः कहीये वातां जेथी रे., पे.वि. गा.५. पे. ९. पार्श्वजिन स्तवन-शखेश्वर, मु. धीर, प्राहिं., पद्य, (पृ. २आ), आदिः अजब ज्योत हेरी जिन; अंतिः आसापुरो मेरे मन की., पे.वि. गा.३. पे. १०. पार्श्वजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, प्राहिं., पद्य, (पृ. २आ-३अ), आदि: मेरे साहिब तुमही; अंति: दीओ परमानन्दा., पे.वि. गा.५. पे. ११. पार्श्वजिन पद-चिन्तामणी, मु. भानुचन्द, प्राहिं., पद्य, (पृ. ३अ), आदिः प्रभु को दरिशण पायो; अंतिः आनन्द अधिक उपायो., पे.वि. गा.३. पे. १२. अजितजिन स्तवन, वाचक मेघ, प्राहिं., पद्य, (पृ. ३अ), आदिः तुं मेरे जीवन प्रान; अंतिः निरमल दीजे नाण., पे.वि. गा.३. पे. १३. आध्यात्मिक पद , मु. आनन्दघन, प्राहिं., पद्य, (पृ. ३अ), आदिः रे घरीया रे वाउ रें; अंतिः विरला कोई पावें., पे.वि. गा.३. पे. १४. पे. नाम. लाहोरीपार्श्वजिन पद, पृ. ३अ पार्श्वजिन पद-लाहोर, मु. भानुचन्द, मागु., पद्य, आदि: भोर भयौ भोर भयौ; अंतिः नीलतनुं अतिहे छोटा., पे.वि. गा.३. पे. १५. चन्द्रप्रभजिन स्तवन, मु. देवकुशल, मागु., पद्य, (पृ. ३आ), आदि: चन्द्रप्रभुजीसुं; अंतिः देवकुशलने प्यारी., पे.वि. गा.७. पे. १६. सुविधिजिन स्तवन, मु. रूपचन्द, प्राहिं., पद्य, (पृ. ३आ), आदिः मुजरा साहिब मेरा; अंतिः निरां जिन तेरा रे., पे.वि. गा.३. पे. १७. आदिजिन स्तवन, मु. कनककुशल, प्राहिं., पद्य, (पृ. ३आ-४अ), आदिः अईयो अइयो नाटक; अंतिः एही मेवा माङ्गेलो., पे.वि. गा.४. पे. १८. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. कान्तिविजय, मागु., पद्य, (पृ. ४अ), आदिः श्री रे सिद्धाचल; अंतिः श्रीसिद्धाचल गायो..पे.वि. गा.५. पे. १९. पार्श्वजिन पद-दीवबन्दर, श्रा. रुपचन्द, प्राहिं., पद्य, (पृ. ४अ), आदिः सचा सांई हो डङ्का; अंतिः रूपचन्द तुम बंदा., पे.वि. गा.४. पे. २०. आध्यात्मिक पद, श्रा. रुपचन्द, मागु., पद्य, (पृ. ४अ), आदिः लख लहो रे लख लहो; अंति: गुण निरांजन गाउं For Private And Personal Use Only Page #188 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org: हस्तलिखित जैन साहित्य भाग १ रे पे वि. गा.२. पे. २१. पे नाम. अध्यात्म पद, पृ. ४आ दानशीलतपभाव प्रभाती, उपा. समयसुन्दर गणि, मागु., पद्य, आदिः रे जीव जिन धरम; अंतिः मुगति तणां फल तांहि., पे.वि. गा.६. पे. २२. आध्यात्मिक पद, मु. दानविजय, मागु, पद्य, (पृ. ४आ) आदि रे जीव निद्रा परिहरो; अंतिः दानविजय जयकार रे., पे.वि. गा.५. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir , पे. २३. नेमिजिन गीत, आ. ज्ञानविमलसूरि प्राहिं, पद्य, (पृ. ४आ-५अ) आदि रहो रहो रे प्रीतम अंति होत मेरी आखडीयां, पे.वि. गा.६. , " पे. २४ सम्भवजिन पद मागु, पद्य, (पृ. ५अ), आदि वाके गढ फोज चढी: अंतिः मङ्गाउं आठे चोर, पे. वि. गा.४. पे. २५. मूर्खसीखामण पद, प्राहिं., पद्य, (पृ. ५अ - ५आ), आदि: ऐसे क्युं प्रभुः अंतिः विना तूं समजत नाही., पे.वि. गा. ८. पे. २६. आदिजिन स्तवन उपा. यशोविजयजी गणि, प्राहिं, पद्य वि. १८वी (पृ. ५आ), आदि ऋषभदेव हितकारी अंतिः तुम हो परम उपकारी, पे.वि. गा.६. पे. २७. पार्श्वजिन स्तवन, मु. माणिक प्राहिं पद्य, (पृ. ५आ-६आ), आदि कागद केसें पढाऊं अंतिः दरिसन अहनिस चाउं., पे.वि. गा. ५. १३४ पे. २८. पार्श्वजिन स्तवन, मु. मानविजय, मागु, पद्य, (पृ. ६अ ), आदिः प्रभाते प्रणमुं प्रभ अंति मौज दियण महिराण.. ये.वि. गा.५. पे. २९. पे. नाम. पार्श्वलीला जिनस्तवन, पृ. ६अ-६आ पार्श्वजिन बाललीला स्तवन, मु. जिनचन्द्र मागु, पद्य, आदि सुरगिरी शिखरें: अंतिः आस्या पुंहचाडे रे.. पे.वि. गा.६ प्रतिलेखक की भूल से अन्तिमवाक्य में कर्ता जिनवन्द की जगह जीतचन्द लिखा गया है. पाठ में "जिनचंद सेवक जिनचंद बोले" की जगह "जितचंद सेवक जितचंद बोले" पाठ है. पे. ३०. महावीरजिन स्तवन, मागु., पद्य, (पृ. ६आ), आदि: महावीरस्वामी मुगति; अंतिः दुनीया फेरो टाल., पे.वि. गा.६. पे. ३१. शत्रुंजयतीर्थ स्तवन, मु. उदयरतन, मागु., पद्य, (पृ. ६आ-७अ ), आदिः डुगर ठण्डो रे; अंतिः होसी अति उछरांगो रे, पे.वि.गा. ८. पे. ३२. पार्श्वजिन स्तवन, मु. लालविजय, मागु., पद्य, (पृ. ७अ-७आ), आदिः आज सखी सङ्खसरो; अंतिः कहे० चरणे रहीइं., पे.वि. गा. ५. पे. ३३. गौतमस्वामी गीत, उपा. समयसुन्दर गणि, मागु., पद्य, वि. १७वी, (पृ. ७आ), आदिः गौतम नाम जपो परभाते; अंतिः सुन्दर गौतम गुण गाते., पे.वि. गा.३. 1 १३४३. अभिधानचिन्तामणिनाममाला काण्ड ३ प्रतिपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १९ जैदेना, दशा वि. विवर्ण अक्षरों की स्याही फैल गयी है-बीच के कुछ पत्र, (२५.५४११, १३४४९). अभिधानचिन्तामणि नाममाला, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, आदि:-; अंति: १३४४. मोती कपासीया सम्बन्ध, पूर्ण, वि. १८३६, श्रेष्ठ, पृ. ६-१ ( १ ) = ५, जैदेना., ले. यति मानविमल, पठ. ऋ. सवजी, प्र. वि. गा. १०३, (२५४१०.५. १०४३३-३६). मोतीकपासीया सम्बन्ध पाठक श्रीसार, मागु, पद्य, वि. १६८९, आदि-: अंतिः चतुरनरां चमतकार. (+) १३४५. वैद्यवल्लभ सह टवार्थ व मूत्रपरीक्षा, पूर्ण, वि. १८१७, श्रेष्ठ, पृ. २५-३ (१२ से १४ ) -२२. पे. २. देना. ले. स्थल. मेडतानगर, ले. दामोदर पञ्चोली, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२५.५X११.५, ६x२७). पे. १. पे नाम वैद्यवल्लभ सह टवार्थ, पृ. १-२४, पूर्ण For Private And Personal Use Only Page #189 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir १३५ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची वैद्यवल्लभ, मु. हस्तिरुचि, सं., पद्य, वि. १७२६, आदिः सरस्वतीं हृदि; अंतिः रोहिरसो सुविशेष एव. वैद्यवल्लभ-टबार्थ', मागु., गद्य, आदिः श्रीसरस्वती देवता; अंतिः चूर्ण कह्यो विशेषपणै., पे.वि. मूल-अध्याय ८विलास. बीच के पत्र नहीं हैं.विलास-४ श्लो.१७ से विलास-५ श्लो.१३ तक नहीं है. पे. २. मूत्रपरीक्षा, सं., पद्य, (पृ. २४आ-२५आ, संपूर्ण), आदिः श्रीमत्पार्श्वभिधं; अंतिः दोषद्वयसमुद्भवम्., पे.वि. श्लो.३०. १३४६." कल्पसूत्र की कथासङ्ग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ७८, जैदेना., प्र.वि. मारुगुर्जर भाषा में कथासंग्रह, संशोधित, दशा वि. विवर्ण-पानी से अक्षरों की स्याही फैल गयी है-, , विवर्ण-अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, (२५४११, १२४२९). कल्पसूत्र-कथा सङ्ग्रह', सं.,मागु., गद्य, आदिः बलदेव बलिदेव वासुदेव; अंतिः दत्तो ते दशपूर्वणः. १३४७. आवश्यकसूत्र की नियुक्ति व स्थविरावली, संपूर्ण, वि. १६वी, श्रेष्ठ, पृ. ७२, पे. २, जैदेना., प्र.वि. प्रथम २६ पत्र परिपूर्ति किए हुए।, (२६४११, १५४४५). पे. १. पे. नाम. नन्दीसूत्र की स्थविरावली, पृ. १आ-२आ नन्दीसूत्र-स्थविरावली, आ. देववाचक, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदिः जयइजगजीवजोणीवियाणओ; अंतिः नाणस्स ___परूवणं वुच्छं., पे.वि. गा.५०. पे. २. पे. नाम. आवश्यकसूत्र की नियुक्ति, पृ. २आ-७३ आवश्यकसूत्र-नियुक्ति , आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., पद्य, आदि: आभिणिबोहियनाणं; अंतिः चरणगुणट्ठिओ साहू. १३४८." आचाराङ्गसूत्र, संपूर्ण, वि. १६वी, श्रेष्ठ, पृ. ७२, जैदेना., प्र.वि. २५अध्ययन; प्र.पु. मूल-ग्रं. २५५४, संशोधित, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, पदच्छेद सूचक लकीरें, अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ, (२७.५४१०.५, १३४४४). आचाराङ्गसूत्र , आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदिः सुयं मे आउसं० इह; अंतिः विमुच्चति त्ति बेमि. १३४९. वसुधारा स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १८९९, श्रेष्ठ, पृ. ७, जैदेना., (२५४११.५, १२४३४). वसुधारा, सं., गद्य, आदिः संसारद्वयदैनस्य; अंतिः भाषितमभ्यवन्दन्निति. १३५०." विचार सङ्ग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १८, जैदेना., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२४.५४१०.५, २५-२६४७६). नयचक्र सङ्ग्रह, गणि देवचन्द्र, मागु., गद्य, आदिः प्रथम पाञ्च; अंतिः सुवर्ण न थायइ. १३५३. भाष्यत्रय सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ४६-६(२,१६,२०,३२,३६,४२)=४०, जैदेना., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, दशा वि. विवर्ण-पानी से अक्षरों की स्याही फैल गयी है-बीच के कुछ पत्र, मूषक भक्षित-अंत के कुछ पत्र, (२७४११, ३-४४२६). भाष्यत्रय, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: वन्दित्तु वन्दणिज्जे; अंतिः सासयसुक्खं अणाबाहं. भाष्यत्रय-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः बन्दित्तु क० वान्दी; अंतिः१३५४. वैदर्भी रास, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, जैदेना., पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. ढाल-७ की गा.४५ तक है., (२४४१२, १५४४०-४७). दमयन्ती चौपाई, ऋ. प्रेमराज, मागु., पद्य, आदिः जिनधर्म मांहे दीपता; अंति:१३५६. कल्पसूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १९-४(१ से ४)=१५, जैदेना.,प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, पदच्छेद सूचक लकीरें, संशोधित, पू.वि. बीच के पत्र हैं., (२५४१२.५, ९४२४). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि:-; अंतिः१३५७. दशवैकालिकसूत्र, पूर्ण, वि. १९६३, श्रेष्ठ, पृ. १३, जैदेना., ले.स्थल. बीकानेर, ले. पं. चुनीलाल, पठ. श्राविका टुगीबाई, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. अध्याय-अध्ययन१०, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. मात्र चूलिकाएं नहीं हैं., (२५.५४११.५, १७४५५). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यम्भवसूरि, प्रा., पद्य, वि. पू.४, आदिः धम्मो मङ्गलमुक्किट्ठ; अंति: For Private And Personal Use Only Page #190 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra (+) www.kobatirth.org: हस्तलिखित जैन साहित्य भाग १ " १३६०. वरदत्तगुणमञ्जरी चौपाई (ज्ञानपञ्चमी कथा) संपूर्ण वि. १८उ. श्रेष्ठ, पृ. ३०, देना, ले. स्थल आग्रानगर, ले. श्राविका रईयादेवी, पठ. श्राविका रईयादेवी, प्र. वि. ढाळ-२१, ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित, (२६.५४११.५, ११५२५). वरदत्तगुणमंजरी चौपाई, मु. ऋषभसागर, मागु., पद्य, आदिः पास जिणेसर पाय नमुं; अंतिः हुवै तस चित्तैजी. (+) " १३६१. आचाराङ्गसूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १८, जैदेना. प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, पू. वि. अन्त के पत्र नहीं हैं. अध्ययन-८ के उद्देश- ३ तक है, दशा वि. विवर्ण-पानी से अक्षरों की स्याही फैल गयी है, खंडित भाग पर कागज चिपकाए हुए हैं-बीच का एक पत्र (२६.५x११.५, १६-१७४५२). आचाराङ्गसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदिः सुयं मे आउसं० इह; अंति: (२५.५४११.५. १३०४३). नन्दीसूत्र, आ. देववाचक, प्रा., प+ग, आदि: जयइ जगजीवजोणीवियाणओ; अंति: Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १३६२. साधुवन्दना, पूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ९, देना, पू. वि. अन्त के पत्र नहीं हैं. ढाल - १३ गा. ७ तक है., (२६×१०.५, १४४३४). साधुवन्दना, मु. श्रीदेव, मागु, पद्य, आदिः पञ्च भरत पञ्च इरव अंति: १३६३. नन्दीसूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २६-१(३) - २५, जैदेना, पू.वि. बीच के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., " 7 १३६६. उपदेशमाला व श्रेयांसजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ६, पे. २, जैदेना., (२६×१०.५, १०-११×३३). पे. १. उपदेशमाला, गणि धर्मदास, प्रा., पद्य, (पृ. १-६अ, अपूर्ण), आदि जगचूडामणिभूओ उसभो अंतिः वयण विणिग्गया वाणी., पे.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. गा. १०० तक ही लिखा है. पे. २. श्रेयांसजिन स्तवन, मु. विनयलाभ, प्राहिं., पद्य, (पृ. ६अ - ६आ, संपूर्ण), आदि: मन मान्यौ मेरे ; अंतिः विनयलाभ पुण्यवन्त., पे.वि. गा. ७. १३६७. मानतुङ्गमहीपालमानवती चौपाई, संपूर्ण, वि. १८७२, मध्यम, पृ. ८, जैदेना., प्र. वि. ढाळ - ८. "अब्दनयनशैलावसुधरणी", (२४.५४११, १३४३८). मानवुङ्गमानवती रास, अनुपचन्द-शिष्य मागु., पद्य, वि. १८७०, आदि: श्रीजिनशान्ति जिनेसर: अंतिः प्रसादे० जयनगरे कही. १३६ For Private And Personal Use Only १३६८." कल्याणमन्दिर स्तोत्र, संपूर्ण वि. १८९७ श्रेष्ठ, पृ. ७ जैदेना. प्र. वि. श्लो. ४४ (२४४१२, ५X३७). कल्याणमन्दिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकर, सं., पद्य, आदि कल्याणमन्दिरमुदारमवद: अंतिः मोक्षं प्रपद्यन्ते. १३६९. सिङ्घासणबत्तीसी चौपाई ( सिंहासन), अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २९, जैदेना., पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. ढाल - ३ · अपूर्ण तक है. (२४.५४११, १४-१५४३३). " सिंहासनबत्रीसी चौपाई, मु. विनयलाभ, मागु., पद्य, वि. १७४८, आदिः आदि जिणेसर आदिदेव; अंतिः १३७०. श्रीपाल चौपाई, संपूर्ण, वि. १८७७, श्रेष्ठ, पृ. ३३, जैदेना., ले. स्थल. मकसुदावाद, ले. ऋ. अखैचन्द, प्र. वि. गा. ८६१,ढाळ - ४९, (२५.५X११.५, १५X३८). श्रीपाल बृहत्रास, मु. जिनहर्ष, मागु, पद्य, वि. १७४०, आदि: अरिहन्त अनन्तगुण; अंतिः पातकवन लुणिज्ये रे. १३७३. क्षेत्रसमास प्रकरण सह बालावबोध व चतुर्विधसङ्घ में से नरकगामी सङ्ख्या, संपूर्ण, वि. १८७५, श्रेष्ठ, पृ. ५२+१(२४)=५३, पे. २, जैदेना. ले. स्थल नागोर, ले. साध्वीजी कुनणां आर्या (गुरु खुसाला), प्र.ले.पु. मध्यम, (२५.५०१२, १५९४४). पे. १. पे. नाम. लघुक्षेत्रसमास सह बालावबोध, पृ. १-५२ Page #191 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir १३७ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची लघुक्षेत्रसमास प्रकरण, आ. रत्नशेखरसूरि , प्रा., पद्य, वि. १५वी, आदिः वीरं जयसेहरपय; अंतिः कुसलरङ्गमई पसिद्धिं. लघुक्षेत्रसमास-बालावबोध, मु. उदयसागर , मागु., गद्य, वि. १६८६, आदिः निश्शेषकर्मदलनं; अंतिः सङ्क्षिप्तम्., पे.वि. मूल-गा.२६३, अध्याय-६ अधिकार. पे. २. नरकगामीसाधुसाध्वीआदि सङ्ख्या विचार, मागु., गद्य, (पृ. ५२आ), आदिः सूर साधु सूर पणौ; अंतिः निसीथ सूत्रनी साख छै. १३७४. विपाकसूत्र, संपूर्ण, वि. १६२९, श्रेष्ठ, पृ. ४४, जैदेना.,प्र.वि. ग्रं. १२५०, अध्याय-२० अध्ययन, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, संशोधित, (२६.५४११, १३-१५४२५-२८). विपाकसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदिः तेणं कालेणं तेणं; अंतिः सेसं जहा आयारस्स. १३७५.” राजप्रश्नीयसूत्र सह कठिनपद टिप्पण, संपूर्ण, वि. १५९६, श्रेष्ठ, पृ. ८८, जैदेना., ले. गोवाल, प्र.वि. मूल-सूत्र-१७५, ग्रं. २०७९. टिप्पण कहि कहि लिखा है., टिप्पण युक्त विशेष पाठ, पदच्छेद सूचक लकीरें, (२६४११.५, ११४३३-३८). राजप्रश्नीयसूत्र, प्रा., गद्य, (संपूर्ण), आदिः नमो अरिहंताणं० तेणं; अंतिः सुपस्से पस्सवणा नमो. राजप्रश्नीयसूत्र-टिप्पण* , मागु., गद्य, (अपूर्ण), आदिः- अंति:१३७६. नवतत्त्व सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, जैदेना.,प्र.वि. मूल-गा.५१. अंतिम गाथाओ का टबार्ष नही लिखा है., टिप्पण युक्त विशेष पाठ, पदच्छेद सूचक लकीरें, (२५.५४११.५, ४४३३). नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, (संपूर्ण), आदिः जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंतिः भेएहिं उदाहरणं. नवतत्त्व प्रकरण-टबार्थ, राज., गद्य, (अपूर्ण), आदिः जीवतत्त्व अजीवतत्त्व; अंति:१३७८. पाक्षिकसूत्र, खामणा व पाक्षिक अतिचार, संपूर्ण, वि. १७६२, श्रेष्ठ, पृ. २५, पे. ३, जैदेना., ले.स्थल. व्रघ्नपुर, ले. गणि ईसरविमल, पठ. मु. रामचन्द (गुरु गणि किशनविमल), प्र.ले.पु. विस्तृत, (२४४१०.५, १०x२७). पे. १. पे. नाम. साधुपाक्षिकसूत्र, पृ. ०१आ-१९आ पाक्षिकसूत्र, प्रा., प+ग, आदिः तित्थङ्करे य तित्थे; अंतिः जेसिं सुयसायरे भत्ति. पे. २. पे. नाम. साधुपाक्षिकक्षामणासूत्र, पृ. १९आ-२०आ क्षामणकसूत्र, प्रा., गद्य, आदिः इच्छामि खमासमणो; अंतिः नित्थारग पारगा होह. पे. ३.पे. नाम. साधुपाक्षिकादिअतिचार, पृ. २०आ-२५अ साधुपाक्षिकअतिचार श्वे.मू.पू., संबद्ध, मागु.,प्रा., गद्य, आदि: नाणम्मि दंसणम्मि०; अंतिः अनेरो जे कोई अतिचार. १३७९. दशवैकालिकसूत्र, पूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २१, जैदेना., पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. अध्ययन-१० की गा.२० तक है., (२४४११.५, १४४४०). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यम्भवसूरि, प्रा., पद्य, वि. पू.४, आदिः धम्मो मङ्गलमुक्किट्ठ; अंति:१३८०." सिन्दूरप्रकर, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, जैदेना., प्र.वि. श्लो.१००, संशोधित, पदच्छेद सूचक लकीरें, (२६४१२, १२४३९). सिन्दूरप्रकर, आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य, आदिः सिंदूरप्रकरस्तपः; अंतिः निशमेति नाशम्. १३८१. उत्तराध्ययनसूत्र स्वाध्याय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, जैदेना., प्र.वि. ढाळ-२३, (२५४११, १५४४१). उत्तराध्ययनसूत्र-विनयादि३६अध्ययन सज्झाय, वाचक उदयविजय, संबद्ध, मागु., पद्य, आदिः पवयणदेवी चित्तधरीजी; अंतिः सिस उदय सुरङ्ग रे. १३८२. पर्यन्ताराधना सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १४, जैदेना., प्र.वि. मूल-गा.७०., (२५.५४११.५, १-४४३२). पर्यन्ताराधना, आ. सोमसूरि, प्रा., पद्य, आदिः नमिउण भणइ; अंतिः ते सासयं सुक्खं. पर्यन्ताराधना-टबार्थ , मागु., गद्य, आदिः सकल जीवनइं मङ्गलकारी; अंतिः परमानन्दपद पामइ. For Private And Personal Use Only Page #192 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य भाग १ .. १३८ १३८६. भक्तामर स्तोत्र सह टबार्थ, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ९, जैदेना. ले. स्थल बिकानेर, ले. पं. भिमराज, प्र. वि. मूल " .. श्लो.४४ (२६४१२.५, ६x२६-२८). भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुङ्गसूरि, सं., पद्य, आदिः भक्तामरप्रणतमौलिमणि अंतिः समुपैति लक्ष्मी. भक्तामर स्तोत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, आदि: भगत कहिये भगवन्तनी; अंतिः कर्तुं तेहनु जाणवु. १३८७. समवायाङ्गसूत्र वृत्ति, अपूर्ण, वि. १६वी, श्रेष्ठ, पृ. ६१-४३ (१ से ४३ ) + १(५२) = १९, जैदेना., ले. आ. कीर्तिरत्नसूरि ( खरतरगच्छ ) पठ मु. कल्याणचन्द्र (गुरु आ कीर्तिरत्नसूरि, खरतरगच्छ ) प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. ग्रं. ३५७५ सं.१६२० में खरतरगच्छीय भावहर्षोपाध्याय ने यह प्रत ग्रहण किया., ( २६११, १७४५६-६०). समवायाद्गसूत्र- वृत्ति, आ. अभयदेवसूरि सं., गद्य वि. ११२०, आदि:- अतिः पादन्यूना च षट्शती. www.kobatirth.org: 1 (+) १३८८. कल्पसूत्र सह टबार्थ, प्रतिअपूर्ण, वि. १७८१, श्रेष्ठ, पृ. ९६-९(१ से ९) ८७, जैदेना ले. स्थल जयतारणनगर, ले. ऋ. अमीचन्द, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, संशोधित, ( २६४११, ७९३३). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि:-; अंतिः कल्पसूत्र - टवार्थ मागु., गद्य, आदि:- अति: " Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir , (+) " १३८९. जम्बूद्विप पन्नति, संपूर्ण, वि. १६वी श्रेष्ठ, पृ. ११२, जैदेना. प्र. वि. ग्रं. ४२४६, ७ वक्षस्कार, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, संशोधित, पदच्छेद सूचक लकीरें (२६४१०.५, १३४४७). जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति, प्रा., गद्य, आदिः नमो अरिहंताणं० तेणं; अंति: उवदंसेइ त्ति बेमि. (+) १३९०. उपदेशमाला सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १७८३, श्रेष्ठ, पृ. ४०, जैदेना., ले. स्थल. मेदनीपुर, ले. ऋ. उदा (गुरु ऋ. पुनसी), प्र. वि. मूल-गा. ५४४. टबार्थ गा. २२ तक लिखा है. बालावबोध टबार्थशैली में लिखा है. (२६४११, ६९५०)उपदेशमाला, गणि धर्मदास, प्रा., पद्य, (संपूर्ण), आदिः नमिऊण जिणवरिन्दे; अंतिः वयण विणिग्गया वाणी. उपदेशमाला-बालावबोध, मु. रत्नचरित्र - शिष्य, मागु., गद्य, (अपूर्ण), आदिः प्रणमी नमस्कार करीनइ; अंतिः १३९१. कल्पसूत्र की पीठिका, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ९, जैदेना., प्र. वि. प्रत की हुंडी से टबार्थ की प्रत लग रही है परंतु प्रारंभिक भाग ही है. पू. वि. प्रारंभ के पत्र हैं, कोकण साधु वृत्तान्त अपूर्ण तक है. (२५.५४११, १७४३४-४१). " कल्पसूत्र- पीठिका, संबद्ध, मागु., गद्य, आदि: अर्हन्त भगवन्त उत्पन; अंतिः १३९२. सङ्ग्रहणी सह वृत्ति, संपूर्ण, वि. १८९२, श्रेष्ठ, पृ. १४७, जैदेना., ले. स्थल. लस्कर, ले. भवानीराम ब्राह्मण, पठ. मु. रतनचन्द (गुरु मु. रूपचन्द, खरतरगच्छ ), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. मूल-गा. २७३ टीका ग्रं. ३५०० मूल का अन्तिमवाक्य पत्रांक-१३९४ पर उपलब्ध है., (२५.५४१२, १०x४३) बृहत्सङ्ग्रहणी, आ. चन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदिः नमिउं अरिहन्ताइं; अंतिः (१) णिम्मिया अत्तपढणट्ठा (२) सन्नि गईरागई ए. बृहत्सङ्ग्रहणी-टीका, आ. देवभद्रसूरि, सं., गद्य, आदि: अत्यद्भुतं; अंतिः (१) वृत्ति: समर्थिता ( २ ) लोकानां सर्वसंख्यया ... १३९४. गौतमस्वामी रास संपूर्ण वि. १८६४ मध्यम, पृ. ६. जैदेना, ले. स्थल, जालंधर, ले. मु. राजविजय, प्र. वि. गा.४७, संशोधित, (२५x१०, १०X३५). गौतमस्वामी रास, आ. विजयभद्रसूरि, मागु., पद्य, आदिः वीर जिणेसर चरण कमल; अंतिः जीम साखा विस्तरे ए. १३९७. गीतचौवीसी, पूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ७, जैदेना., पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. ढाल - २५ व कलश अपूर्ण तक है., (२५४१२, ९४३६). गीतचौवीसी, मु. जिनराज ?, मागु., पद्य, आदिः आज सकल मङ्गल मिले; अंतिः १३९८. सिद्धचक्रकलश पूजा, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६, जैदेना., प्र. वि. खण्ड- ४. ४ खंड, दशा वि. विवर्ण-पानी सेअक्षरों की स्याही फैल गयी है, (२५.५x१२.५, १६x४४). नवपद पूजा उपा. यशोविजयजी गणि, प्रा. सं., मागु, पद्य, आदि उपन्नसन्नाणमहोमयाणं अंतिः यजामहे स्वाहा. , For Private And Personal Use Only Page #193 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org: १३९ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १३९९. स्थूलिभद्र नवरासो, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना., प्र. वि. ढाळ - ९, ( २४४१२.५, १२४३९). स्थूलभद्र नवरसो, वाचक उदयरत्न, मागु, पद्य वि. १७५९ आदि सुखसंपति दायक सदा अंति: उदयरत्न शिरनामी रे. १४००.” सिद्धाचल रास, संपूर्ण वि. १९६४ श्रेष्ठ, पृ. ११, जैदेना., ले. स्थल फलोदीनगर, ले. मु. धनराज (गुरु गु. गणेशदास), प्र. वि. ग. ११२, ढाळ - ६, संशोधित, ( २४४१२, ९x२२). शत्रुंजयतीर्थ रास उपा. समयसुन्दर गणि मागु, पद्य वि. १६८२, आदि: श्रीरिसहेसर पाय नमी अंतिः सुणतां आणन्द थाय. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १४०१. चोवीसठाणा मार्गणाद्वार, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १०, जैदेना., प्र. वि. * पंक्ति - अक्षर माहिती अनियमित है।, अन्त के पत्र नहीं हैं., (२६X१३ x). पू.वि. २४ स्थानक मार्गणाद्वार, मागु., कोष्टक, आदि: गइन्दियकाए जोएवेए; अंति: १४०२. जादवहीड, संपूर्ण, वि. १६६३, श्रेष्ठ, पृ. १३, जैदेना., ले. मु. हीरा ( गुरु मु. मघेनसीहा ), (२६×११.५, ११×३५). यादव हीड, मागु, गद्य, आदिः इहेव जम्बूद्दीये अंति: ग्रहण करिस्यइ. १४०३. उदयस्वामित्व यन्त्र, षट्द्रव्यपरिमाण विचार व नवतत्वे हेयज्ञेयउपादेय, पूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ११-१(७) = १०, पे. ३. जैदेना, प्र. वि. पंक्ति- अक्षर माहिती अनियमित है। (२५.५५१२.५४). पे. १. उदयस्वामित्व यन्त्र, मु. सुमतिवर्द्धन मागु, गद्य, (पृ. १-११, पूर्ण), आदि ज्ञानावरणी दर्शनावरण; अंति: जाति एवं १२ लाभ, पे.वि. बीच का एक पत्र नहीं है. पे. २. ६ द्रव्यपरिणाम विचार, प्रा., पद्य, (पृ. १अ संपूर्ण), आदिः परिणामि जीव मुत्ता; अंतिः सुद्धबुद्धिर्हि, पे. वि. गा. ३. पे. ३. नवतत्त्व प्रकरण-हेयज्ञेयउपादेय, संबद्ध, प्रा., पद्य, (पृ. १अ, संपूर्ण ), आदि: हेया बन्धासव; अंतिः मिस्सो होय अजीवो., पं.वि. मूल-गा.२. १४०४. दसवीकालसूत्र-अध्ययन १ से ४, प्रतिपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदेना., (२५.५x१०.५, १३×३८). दशवैकालिकसूत्र आ. शय्यम्भवसूरि प्रा. पद्य वि. पू.४, आदि धम्मो मङ्गलमुक्किट्ठ अति: १४०५." आदिजिन विवाहलो, संपूर्ण वि. १६१२, श्रेष्ठ, पृ. १५, जैदेना. ले. स्थल. लाभपुर, पठ. लाडा, प्र. वि. गा.२४३, डाळ४४. प्र.लेखनसंवत्-शशिकलाकलितवियद्वेदविदिता, अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ, संशोधित, पदच्छेद सूचक लकीरें, (२६४११, १२४३६). आदिजिन विवाहलो, मागु, पद्य, आदि सासनदेवीय पाय अंतिः सेवक इम मुदा. १४०६.” ऋषिमण्डल महास्तोत्र, संपूर्ण, वि. १७८६, मध्यम, पृ. ७, जैदेना., ले. पं. रङ्गवल्लभ (गुरु गणि राजसोम), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. श्लो. ८८, पदच्छेद सूचक लकीरें, संशोधित, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२५.५x११.५, ९×२८). ऋषिमण्डल स्तोत्र, आ. गौतमस्वामी गणधर, सं., पद्य, आदिः आद्यन्ताक्षरसंलक्ष्य; अंतिः लभ्यते पदमव्यय. १४०७.” समवायाङ्गसूत्र, संपूर्ण, वि. १८९८, श्रेष्ठ, पृ. ६७, जैदेना., ले. स्थल. रामपुर, ले. श्राविका सीरुपबाई, प्र. वि. सूत्र - १५९, ग्रं. १६६७, १०३ अध्ययन, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, ( २४.५५११, ११४४१). समवायाद्गसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी प्रा. गद्य, आदि: सुर्य मे० इह खलु अंतिः अज्झयणन्ति तिबेमि " " १४०८. बासठीयो यन्त्र, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना., प्र. वि. * पंक्ति- अक्षर माहिती अनियमित है । ( २५.५x११.५x). ६२ मार्गणा यन्त्र, प्रा., मागु., पद्य, आदि: #; अंति:#. १४०९.” नवस्मरण, पार्श्वजिन स्तोत्र व स्तुति सङ्ग्रह, संपूर्ण, वि. १९११, श्रेष्ठ, पृ. १६, पे. ४, जैदेना., ले. स्थल. योधपुर, ले. रायचन्द्र, राज्यकाल राजा तखतसिङ्घ, प्र.ले.पु. मध्यम, दशा वि. विवर्ण-पानी से अक्षरों की स्याही फैल गयी है, (२७.५X१३, १० - ११४३२-३३). For Private And Personal Use Only Page #194 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य भाग १ - www.kobatirth.org: पे. १. नवस्मरण, आ. अनेक श्रुतस्थविर, प्रा. सं., प+ग, (पृ. १अ - १५अ), आदिः नमो अरिहन्ताणं० हवइ; अंति: जैनं जयति शासनम्, पे.वि. ९ स्मरण. पे. २. पार्श्वजिन छन्द-शङ्खेश्वर, मु. उदयरत्न, मागु., पद्य, (पृ. २सरा), आदिः सेवो पास शङ्खश्वरो; अंतिः आपो आप तुठा, पे.वि. गा. ७. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पे. ३. जिनस्तुति सङ्ग्रह, सं., प्रा., मागु., पद्य, (पृ. २आ-३अ), आदिः मङ्गलं भगवान वीरो; अंतिः जैनं जयति शासनम्, पे.वि. श्लो. ८. सामान्य जिनस्तुति व मांगलिक पाठ. पे. ४. लघुशान्ति, आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, (पृ. १५अ - १६अ ), आदिः शान्तिं शान्ति; अंतिः जैनं जयति शासनम्., पे.वि. श्लो. १७+२. (+) १४१०. उत्तराध्ययनसूत्र - अध्ययन १३-१४ प्रतिअपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १२, जैदेना., पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. अध्ययन१४ गा.७ तक है., ( २६५१२.५, १६४४३). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग, आदिः सञ्जोगाविप्पमुक्कस्स; अंति: १४११. प्रश्नोत्तरसार्द्धशतक, संपूर्ण वि. १८७७, श्रेष्ठ, पृ. २६, जैदेना, ले. स्थल. अजीमगंज, ले. पं. कस्तूरचन्द, अन्यहरखचन्दजी वैद, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, ( २४.५x१२, १४४४०-४१). प्रश्नोत्तरसार्द्धशतक, वाचक क्षमाकल्याण, मागु., गद्य, आदिः पहिलै बोलै तीर्थङ्कर; अंतिः शास्त्रमै कह्यो छे. १४१२. सामुद्रिकशास्त्र, पूर्ण, वि. १८९४ श्रेष्ठ, पृ. १५- १(१ ) - १४, देना, ले. स्थल विहाराग्राम, ले. मु. शान्तिविजय (वृद्धतपागच्छ), प्र. वि. प्रकरण-११, पू. वि. श्लो. ६ तक नहीं है., (२५.५X१२.५, ८X३०). सामुद्रिक शास्त्र, सं., पद्य, आदि:-; अंतिः रमयन्ति चित्रणी. १४० १४१३. चैत्यवन्दन सग्रह व तीर्थमाला स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ५, पे. ३, जैदेना. (२५४११.५, १०-११९३३) 1 पे. १. सकलार्हत् स्तोत्र, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, (पृ. १अ - २अ), आदिः सकलार्हत्प्रतिष्ठानम; अंतिः श्रीवीरं प्रणिदध्महे, पे.वि. श्लो. २७. " पे. २. २४ जिन चैत्यवन्दन, सं., पद्य, (पृ. २अ-४अ), आदि: सुवर्णवर्णं गजराज अंतिः पूर निन्दुऐ वन्दे, पे.वि. श्लो. २९. पे. ३. तीर्थवन्दना चैत्यवन्दन, सं., पद्य, (पृ. ४अ - ५अ), आदि: सद्भक्त्या देवलोके अंतिः सततं चित्तमानन्दकारि... पे.वि. श्लो. १०. (+) १४१४. बन्धसामीत्त सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८९५, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना., ले. स्थल. मांडवीबंदर, ले. गणि महिमासागर, प्र. वि. मूल-गा.२५ टबार्थ-गा. २५. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२५.५४१३ ४x२९). बन्धस्वामित्व नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, आदिः बन्धविहाणविमुक्कं; अंतिः नेयं कम्मत्थयं सोउं.. बन्धस्वामित्व नव्य कर्मग्रन्थ- टवार्थ मागु गद्य, आदि: कर्म बन्धना प्रकारथी: अंतिः कर्मस्तवथी साम्भलीनइ. " (*) १४१५. * पाखीसूत्र, खामणा व पाक्षिकादिप्रतिक्रमणविधि, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ८, पे. ३, जैदेना. ले. स्थल. पोरबंदर, , ले. पं. रङ्गविजय, प्र. वि. शीतलनाथ जिन प्रसादात् । दशा वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, (२८.५४१२.५, १६४३६-३९). पे. १. पे. नाम. पाक्षिक सूत्र, पृ. ०१-०७आ पाक्षिकसूत्र, प्रा. प+ग, आदि तित्थङ्करे व तित्थे अंतिः जेर्सि सुयसायरे भत्ति. ; पे. २. पे. नाम. पाक्षिकक्षामणा सूत्र, पृ. ०७-०८अ क्षामणकसूत्र, प्रा., गद्य, आदि इच्छामि खमासमणो अंतिः नित्थारग पारगा होह पे. ३. पे. नाम. पाक्षिक प्रतिक्रमणविधिगाथा, पृ. ०८अ ०८अ पाक्षिकचौमासीसंवत्सरी प्रतिक्रमण विधि, संबद्ध, प्रा. मागु पद्य, आदि मुहपत्तिवन्दणयं अंतिः पक्खि पडिक्कमणं., पे. वि. गा.०३. For Private And Personal Use Only Page #195 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org: १४१ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १४२३. इग्यारअङ्ग, बाहुबल सज्झाय, वीरसेन स्तवन व ज्ञानपञ्चमी देववन्दन, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ५, पे. ४, जैदेना, पू. वि. अन्त के पत्र नहीं हैं., (२५.५४११, १३४४१ ). पे. १. ११ अङ्ग सज्झाय, मु. विनयचन्द्र, मागु., पद्य, वि. १७५५, (पृ. १-५अ, संपूर्ण ), आदि: पहिलो अङ्ग सुहामणों; अंतः इग्यार सज्झाय कि., पे.वि. ढाळ - १२. पे. २. वीरसेनजिन स्तवन उपा. देवचन्द्र मागु, पद्य, (पृ. ५अ संपूर्ण), आदि: वीरसेन जगदीस ताहरी अंतिः सेवथी चिर आनन्दीयेजी, पे.वि. गा.८. , Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पे. ३. बाहुबली सज्झाय, मु. विमलकीर्ति, मागु., पद्य, (पृ. ५अ - ५आ, संपूर्ण), आदि: बाहुबल चारित लीयो; अंतिः विमलकीरति गुण गाय., पे.वि. गा.१२. (+0) पे. ४. ज्ञानपंचमीपर्व देववन्दन विधि, मागु, गद्य, (पृ. ५आ-, अपूर्ण), आदि: तिहां प्रथम पवित्र अंति, पे. वि. प्रथम पत्र है. प्रारंभ मात्र. " १४२४. नवस्मरण सह टवार्थ, प्रतिपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ५. जैदेना. प्र. वि. अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ, पू.वि. नवकारमन्त्र, उवसग्गहरस्तोत्र, सन्तिकरं व भयहरस्तोत्र, दशा वि. मुषक भक्षित, विवर्ण-पानी से अक्षरों की स्याही फैल गयी है, (२५५११, ५०४०). नवस्मरण आ. अनेक श्रुतस्थाविर, प्रा.सं. प+ग आदि नमो अरिहन्ताणं० हवइ: अंतिःनवस्मरण- टबार्थ, मागु, गद्य, आदि: त्रिभुवननी पूजानई: अंति " १४२६. स्तवनवीसी, चौवीसी व उपदेशसत्तरी, पूर्ण, वि. १८७०, श्रेष्ठ, पृ. २८, पे. ३, जैदेना. ले. स्थल सीवपुरी, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., ( २४.५x१०.५, ११४३०). पे. १. पे नाम बेहरमानजिन स्तवनानन्दमन्दिरे कलशाधिरोपणकल्पसम स्तवनम्, पृ. १-११अ व २४, पूर्ण " विहरमानजिन स्तवनवीसी, पं. जिनविजय, मागु, पद्य वि. १७८९, आदिः सुगुण सुगुण सोभागी अंतिः धर्मध्यान सुख पाया., पे.वि. २० स्तवन प्रतिलेखक द्वारा बीच-बीच में अपूर्ण. पुष्पिका अंतर्गत कर्तारूप में खीमाविजयजी का उल्लेख है. प्रशस्तिभाग पत्रांक- २४ पर उपलब्ध है. पे. २. स्तवनचीवीसी पं. जिनविजय, मागु, पद्य वि. १८वी (पृ. ११आ-२३आ, संपूर्ण) आदि नाभिनरेसर नन्दना हो; · , अंतिः सेवक जिन सुखदाया रे, पे.वि. अध्याय- २४ स्तवन. पे. ३. गर्भावास राज्झाय पाठक श्रीसार, मागु, पद्य, (पृ. २४आ-२८आ, संपूर्ण), आदि उत्पति जो जो आपणी: अंतिः " इम कहे श्रीसार ए., पे. वि. गा. ७२. १४२७. रत्नाकरपच्चीसी, छन्द, सज्झाय व चैत्यवन्दन, पूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ९-१(७) -८, पे. ८, जैदेना. ले. पं. खुशालविजय, (२३.५x११.५, १०x३२). पे. १. पे नाम आदिनाथ स्तुति, पृ. १-३अ संपूर्ण रत्नाकरपच्चीसी आ. रत्नाकरसूरि सं., पद्य, आदिः श्रेयः श्रियां मङ्गल: अंतिः श्रेयस्करं प्रार्थये, पं.वि. श्लो. २५. पे. २. माणिभद्रवीर छन्द, मु. उदयकुशल, मागु, पद्य, (पृ. ३आ-५अ संपूर्ण) आदि सरस वचन द्यो सरसती; अंति लाख लाख रीझा लहे., पे.वि. गा.२६. पे. ३. पुण्य सज्झाय, उपा. समयसुन्दर गणि, मागु., पद्य, (पृ. ५अ - ५आ, संपूर्ण), आदिः पारकी होड मत कर रे; अंतिः कोटानुकोटी पार. पे.वि. गा.३. " पे. ४. साधारणजिन गीत, मु. मान, मागु., पद्य, (पृ. ५आ-६अ, संपूर्ण), आदि: सरसति देवी मन रङ्ग; अंतिः मान कहे करजोडि., पे.वि. मा.१२. पे. ५. पे. नाम. गौतमस्वामि स्तोत्र, पृ. ६अ - ६आ, संपूर्ण For Private And Personal Use Only Page #196 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org: हस्तलिखित जैन साहित्य भाग १ पे. वि. गा. ८. गीतमस्वामी स्तवन. मु. पुण्यउदय मागु, पद्य, आदि प्रभाते गौतम प्रणमी: अंतिः प्रगट्यो परधान.. पे. ६. नमस्कारमहामन्त्र छन्द वाचक कुशललाभ, मागु, पद्य, (पृ. ८अ - ९आ, संपूर्ण), आदिः वंछित पूरे विविध अंति 1 Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir विविधरूप वंछित फले., पे.वि. गा.१७. पे. ७. आदिजिन चैत्यवन्दन, कवि ऋषभदास सङ्घवी, मागु., पद्य, (पृ. ९आ, संपूर्ण), आदिः प्रथम पुजो आदिदेव; अंतिः श्रीधर्मनाथ रे नाम, पे.वि. गा.५. पे. ८. जैन गाथा *, प्रा., पद्य, (पृ. ९आ, संपूर्ण), आदि: #; अंतिः #., पे.वि. गा.१. १४२८. स्तवन सङ्ग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ७-१(३) = ६, पे. ६, जैदेना., पू.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., . (२६.५४११, १६४४८). " पे. १. विहरमान २० जिन स्तवन, मु. केशवदास, मागु., पद्य, वि. १५२५, (पृ. १-२अ, संपूर्ण), आदिः सबल देव समरुं; अंतिः प्रणमइ निसदीस. पे.वि. गा.३१. १४२ पे. २. पार्श्वजिन स्तवन, मागु., पद्य, (पृ. २अ-२आ-, अपूर्ण), आदिः प्रणमिय पास जिणेसरु; अंति:-, पे.वि. अंतिम पत्र नहीं है. गा.१५ अपूर्ण तक है. पे. ३. ३५ वाणीगुण स्तवन, मागु, पद्य, (पृ. ४अ संपूर्ण), आदि: वीर वाणी गुण पइत्रीस अंतिः पात्रीस ते वाणी भेद.. पे.वि. गा.१०. पे. ४. शान्तिजिन स्तवन, मु. श्रीमल्ल-शिष्य, मागु., पद्य, वि. १६५६, (पृ. ४अ - ५आ, संपूर्ण), आदिः प्रणमीय पासजिन; अंतिः सोलमा श्रीजिनवरा., पे.वि. ढाळ - ३. पे. ५. नेमिजिन स्तवन, मु. नयशेखर, मागु., पद्य, (पृ. ५आ - ६आ, संपूर्ण), आदि: श्रीसहगुरुना पाय; अंतिः सेवा सयल जग आणन्दणो, पे.वि. गा. ४२. पे. ६. महावीरजिन स्तवन, मागु., पद्य, (पृ. ६आ-७आ-, अपूर्ण), आदिः सारङ्गी सुखकारजी; अंतिः-, पे.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. गा. ३५ अपूर्ण तक है. १४२९. गम्मा यन्त्र, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १०, जैदेना., प्र. वि. *पंक्ति- अक्षर माहिती अनियमित है।, पू.वि. अन्त के पत्र नहीं हैं., (२५.५x१२.५४). गम्मा यन्त्र, मागु., कोष्टक, (पूर्ण), आदि:-; अंतिः " १४३०.” कर्मग्रन्थ यन्त्र, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ७-१ (६) = ६, जैदेना., प्र. वि. * पंक्ति - अक्षर माहिती अनियमित है ।, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, पू.वि. बीच के व अंतिम पत्र नहीं हैं., (२५.५४१२.५४). उदयस्वामित्व यन्त्र, मु. सुमतिवर्द्धन, मागु., गद्य, आदिः ज्ञानावरणी दर्शनावरण; अंतिः १४३१. दण्डकद्वार कोष्टक, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना., प्र. वि. * पंक्ति - अक्षर माहिती अनियमित है।, पू.वि. अन्त के पत्र नहीं हैं. (२३.५x१२-५४) दण्डक प्रकरण- कोष्टक, मागु., कोष्टक, आदि:-; अंतिः १४३२.” षडावश्यकसूत्र सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३१-२ (२ से ३ ) = २९, जैदेना., प्र. वि. प्रारम्भ में नमस्कार मन्त्र पर कथाएँ दी गयी है, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, पु.वि. बीच के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण.. (२६४१२, १५४२८). चैत्यवन्दनसूत्र, प्रा.सं., प+ग, आदि नमो अरिहन्ताणं: अंति: चैत्यवन्दनसूत्र सङ्ग्रह - बालावबोध, मागु, गद्य, आदि समणेण सावएणावि अंति: For Private And Personal Use Only १४३३. नन्दिषेणमुनि चौपाई, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ७ जैदेना. प्र. वि. गा. २६०, ( २६४१२.५, १७४५१), नन्दिषेणमुनि चौपाई, मु. मतिसार, मागु., पद्य, वि. १८०३, आदिः वर्द्धमान चौविसमो; अंतिः नवनिधि मङ्गलमालो रे.. Page #197 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir १४३ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १४३५. होलिका कथा सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८६७, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदेना.,ले. मु. उद्योतविजय, प्र.वि. मूल-श्लो.६५., (२४.५४१२.५, ८x२८-३१). होलिकापर्व कथा, सं., पद्य, आदिः ऋषभस्वामिनं वन्दे; अंतिः यतो धर्मस्ततो जयः. होलिकापर्व कथा-टबार्थ, प्राहिं., गद्य, आदिः ऋषभस्वामी तिनकु; अंतिः जिहां धर्म तिहां जय. १४३६. विक्रमनृप चौपाई, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ९३-१(१)=९२, जैदेना., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, पू.वि. बीच के ___पत्र हैं. खंड-१ ढाल-२ से खंड-६ की ढाल-७ गा.३ तक है., (२५.५४११.५, ११४५२-५४). विक्रमराजा चौपाई, मागु., पद्य, आदिः-; अंति:१४३७." बृहत्सङ्ग्रहणी, संपूर्ण, वि. १६वी, मध्यम, पृ. १७, जैदेना., प्र.वि. गा.३११, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, पदच्छेद सूचक लकीरें, (२६४१०.५, ११४३८). बृहत्सङ्ग्रहणी, आ. चन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदिः नमिउं अरिहन्ताइं; अंतिः जा वीरजिण तित्थं. १४३८. अन्तगडदशाङ्गसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८३३, मध्यम, पृ. ३०, जैदेना., ले.स्थल. सनेल, ले. साध्वीजी उदा आर्याजी, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. मूल-वर्ग-८; प्र.पु. मूल-ग्रं. ७९०., (२६.५४१२, ८४४७). अन्तकृद्दशाङ्गसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदिः तेणं कालेणं० चम्पा०; अंतिः अयमढे पण्णत्ते. अन्तकृद्दशाङ्गसूत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः तेणे काले चउथो; अंतिः ज्ञाताधर्मकथानी परे. १४३९. जम्बूगुणरत्नमाल, संपूर्ण, वि. १९४२, श्रेष्ठ, पृ. २५, जैदेना., ले.स्थल. मुरारछावनिग्राम, ले. ऋ. रामवकस, प्र.वि. ढाळ-३५. प्र.लेखन वर्ष-चंद्रदीपवेदयुग., ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित, (२५.५४१२, २०४३९). जम्बूस्वामी चरित्र, श्रा. आणन्द जेठमल, गुज., पद्य, वि. १९२०, आदिः शासनपति वर्धमाननो; अंतिः सेवो थाय छे कल्याण ए. १४४०.” अभिधानचिन्तामणिनाममाला, पूर्ण, वि. १७६१, मध्यम, पृ. ४७-४(१ से ४)=४३, जैदेना., ले.स्थल. जसोलनगर, ले. कवि वीरमार्णव, प्र.ले.पु. मध्यम,प्र.वि. ६ कांड, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, पू.वि. कांड-२ श्लो.१९ अपूर्ण तक नहीं है., (२५.५४१०, १३४४३). अभिधानचिन्तामणि नाममाला, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, आदि:-; अंतिः रोषोक्तावु नतौ नमः. १४४१." उदयस्वामित्व यन्त्र, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १०-१(८)-९, जैदेना., प्र.वि. *पंक्ति-अक्षर अनियमित है।, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२६४१२.५४). उदयस्वामित्व यन्त्र, मु. सुमतिवर्द्धन, मागु., गद्य, आदि:-; अंति:१४४६. जम्बूकुमार चौपाई, अपूर्ण, वि. १८३२, मध्यम, पृ. ३९-५(१ से २,१७,२४,२६)=३४, जैदेना., ले.स्थल. विक्रमपुर,प्र.वि. गा.१४७७, दशा वि. विवर्ण-पानी से-अक्षरों की स्याही फैल गयी है, (२३४१०.५, १५४४५-५५). जम्बूस्वामी चौपाई, मु. पद्मचन्द्र, मागु., पद्य, वि. १७१४, आदि:-; अंतिः सयल सङ्घ सुखकारो रे. १४४८. मृगावती चौपाई, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १०, जैदेना., प्र.वि. गा.७४३, खण्ड-३; प्र.पु. मूल-ग्रं. १२११, (२५x१०.५, २३४६०-७४). मृगावती चौपाई, उपा. समयसुन्दर गणि, मागु., पद्य, वि. १६६८, आदिः समरु सरसति सामिणी; अंतिः वृद्धि सुजगीसा १४४९. मुहूर्तमुक्तावली सह टबार्थ व ज्योतिषादि, संपूर्ण, वि. १७६३, मध्यम, पृ. ६, पे. ३, देना., ले.स्थल. बोहिया, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, दशा वि. विवर्ण-पानी से अक्षरों की स्याही फैल गयी है, (२५४११, ७४३३). पे. १. पे. नाम. मुहूर्तमुक्तावली सह टबार्थ, पृ. १-६ मुहूर्तमुक्तावली, आ. परमहंस परिव्राजक, सं., पद्य, आदिः श्रीशं हरशारदां; अंतिः पादपलितौषधिरोपणं च. मुहूर्तमुक्तावली-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः श्रीपार्श्वनाथ; अंति: ए वृक्षरोपण महूर्त. For Private And Personal Use Only Page #198 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य भाग - १ १४४ पे. २. मसा औषध, मागु., गद्य, (पृ. ६अ), आदिः हीरा कसी लोहचूर; अंतिः उतरे नहीं मसी सुध. पे. ३. ज्योतिष, सं.,मागु., पद्य, (पृ. ६आ), आदि:#; अंतिः#. १४५०. जीवविचार सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८०८, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदेना., ले. ऋ. रामचन्द्र (गुरु ऋ. विजाजी), प्र.वि. मूल गा.५१., (२४४११.५, ५४३३). जीवविचार प्रकरण, आ. शान्तिसूरि, प्रा., पद्य, आदिः भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंति: रुद्दाओ सुयसमुद्दाओ. जीवविचार प्रकरण-टबार्थ , मागु., गद्य, आदिः त्रिण भुवनमाहि दीवा; अंतिः एवं जाणी धरम करवो. १४५१. अभक्ष्यअनन्तकाय, बीयालीसदोस व श्रावक सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, पे. ३, जैदेना., (२७४१३, १०४३१). पे. १. अभक्ष्यअनन्तकाय सज्झाय, आ. देवरत्नसूरि, मागु., पद्य, (पृ. १अ-२अ), आदिः जिनसासन रे सूधी; अंतिः ते विध सुखह लहै., पे.वि. गा.१०. पे. २. पे. नाम. गोचरीना बेतालीस दोषनी सज्झाय, पृ. २अ-४अ ४२ दोष वर्जन सज्झाय, मागु., पद्य, आदिः तिजि सुमति छै एषणा; अंतिः वरते सदाइ समाध., पे.वि. गा.३१, ढाळ-२. पे. ३. श्रावक सज्झाय, मागु., पद्य, (पृ. ४अ-५आ), आदिः भिन भिन जाणै रे; अंतिः छाली पीवै नीरोजी., पे.वि. गा.२१. १४५४. स्नात्रपञ्चाशिका सह बालावबोध व कथा, संपूर्ण, वि. १८६५, श्रेष्ठ, पृ. २६, जैदेना., ले. गणि देविन्द्रविजय (गुरु मु. केशरविजय), प्र.वि. मूल-श्लो.५०.कथा-अध्याय-५० कथा. शान्तिनाथ प्रसादात्।,प्र.ले.श्लो. (१६) भणजो गुणजो वाचजो; (१) यादृशं पुस्तकं दृष्टं, (२३.५४१२.५, १४४३६). स्नात्रपञ्चाशिका, गणि शुभशील, सं., पद्य, आदिः प्रणम्य श्रीजिनान; अंति: मुक्ति सुखार्थिना. स्नात्रपञ्चासिका-बालावबोध, मागु., गद्य, आदिः प्रणम्य क० प्रणाम; अंतिः सुख एकभव करी पामस्ये. स्नात्रपञ्चाशिका-कथा, मागु., गद्य, आदिः श्रीपुर नगरने विषे; अंतिः मुक्तिसुख पामे. १४५६. स्तवनचौवीसी सङ्ग्रह व आदिजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, पे. ३, जैदेना.. पू.वि. अन्त के पत्र नहीं हैं., (२५.५४१३, १७४२९). पे. १. स्तवनचौवीसी, चेतन, मागु., पद्य, (पृ. १-४अ, संपूर्ण), आदिः सेवो रे भविजन जिन; अंति: गायो मास वसन्त., ___ पे.वि. अध्याय-२४स्तवन. पे. २. स्तवनचौवीसी, चेतन, प्राहिं., पद्य, (पृ. ४अ-७आ, संपूर्ण), आदिः आज ऋषभ जिन होरी; अंतिः तुम साहिब गुण खाण., पे.वि. अध्याय-२४ स्तवन. पे. ३. आदिजिन स्तवन, प्राहिं., पद्य, (पृ. ७आ-, अपूर्ण), आदिः चरन सरन मोहि दीजै; अंतिः-, पे.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. गा.१ से ३ तक है. १४५९. इक्षुकुमार-कलावती षढालियो, संपूर्ण, वि. १९४२, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदेना., ले.स्थल. लक्ष्मणापुरी, ले. ऋ. गोकुलचन्द्र(विजयगच्छ),प्र.वि. ढाळ-६, (२५४१२, ११४४२). इक्षुकुमारकलावती षड्ढालिया, मु. माल, मागु., पद्य, वि. १८५५, आदि: चोवीसे जिनवर नमुं; अंति: माल मुनि गुणगाय १४६१." उत्तराध्ययनसूत्र, अपूर्ण, वि. १८३७, श्रेष्ठ, पृ. ५५-२०(१ से २०)=३५, जैदेना., ले.स्थल. नागोर, ले. ऋ. आनन्दचन्द्र, प्र.वि. ३६अध्ययन; प्र.पु. मूल-ग्रं. २२५०, पदच्छेद सूचक लकीरें, पू.वि. अध्ययन-१९ गा.५ तक के पाठ नहीं हैं., (२८x१२, १५४४०). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध , प्रा., प+ग, आदि:-; अंतिः सम्मए त्ति बेमि. For Private And Personal Use Only Page #199 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir १४५ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १४६२. चौवीसदण्डकभेदगमा का विस्तार, पूर्ण, वि. १७४७, श्रेष्ठ, पृ. ८८-१(१)=८७, जैदेना., ले.स्थल. उदैपुर, पठ. श्राविका खेमाबाई, (२५.५४११, २५४१०-१२). २४ दण्डकभेदगमाविस्तार, राज., गद्य, आदि:-; अंति:१४६४." प्रश्नव्याकरण सह टबार्थ - १ श्रुतस्कन्ध, प्रतिपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३६, जैदेना.,प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२५४११.५, ७४४७). प्रश्नव्याकरणसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदिः जम्बू इणमो अण्हयसंवर; अंतिः प्रश्नव्याकरणसूत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः हे जम्बू एह; अंति:१४६५. हंसावली चरित्र, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, जैदेना.,पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. ढाल-१३ गा.११ तक है., (२६x१०.५, १७X४४). हंसावलि चरित्र, मागु., पद्य, आदिः सरसति भगति नमी; अंति:१४६८. अढारपापस्थानपरिहार कुलक व गीत, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १७-४(७ से ९,१६)=१३, पे. २, जैदेना., ले. साध्वीजी लीलाबाई आर्या, (२५४११.५, ११४३०). पे. १.१८ पापस्थानकपरिहार कुलक, मु. ब्रह्म, मागु., पद्य, (पृ. १-१७, अपूर्ण), आदिः सुन्दर रूप विचार; अंतिः वन्दियो भवियण प्राणी., पे.वि. ढाल-१८, ग्रं.३५०. बीच-बीच के पत्र नहीं हैं. पे. २. जिनगुण गीत, आ. विजयदेवसूरि, मागु., पद्य, (पृ. १७अ, संपूर्ण), आदिः तोरउं रे दरसण देखता; अंतिः श्रीविजयदेवसूरि रे., पे.वि. गा.२. १४७०." चतुःशरण प्रकीर्णक सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. १६८०, श्रेष्ठ, प्र. ७, जैदेना., ले.स्थल. नागपुर, ले. पं. वर्द्धमान, प्र.वि. मूल-गा.६३., पंचपाठ, (२५४११, ४-७४३३). चतुःशरण प्रकीर्णक, गणि वीरभद्र, प्रा., पद्य, आदिः सावज्ज जोग विरई; अंतिः कारणं निव्वुइ सुहाणं. चतुःशरण प्रकीर्णक-अवचूरि, आ. सोमसुन्दरसूरि, सं., गद्य, आदिः इदमध्ययनं परमपद; अंतिः भवतीति गाथार्थः. १४७१. दानविविधभेद रास, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १२१-१(१)=१२०, जैदेना., पू.वि. प्रथम एक व अंत के पत्र नहीं हैं. ढाल-३९ अपूर्ण व गा.२३६१ तक हैं., (२४x११, १२४३०). दानविविधभेद रास, आ. गुणसागरसूरि, मागु., पद्य, आदि:-; अंति:१४७२.” सामाचारी, त्रुटक, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ३५-१९(१ से ५,७ से १२,१४ से १९,२२,२९)=१६, जैदेना., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२५.५४११, १३४४४). सामाचारी*, सं., पद्य, आदि:-; अंति:१४७३. कल्पसूत्र सह टबार्थ व व्याख्यान+कथा - व्याख्यान १-६, प्रतिअपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ८३-२(६०,७९)=८१, जैदेना., ले. मु. चतुरसागर, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, पू.वि. महावीरस्वामी केवलज्ञान उत्पत्ति तक है., दशा वि. विवर्ण-पानी से अक्षरों की स्याही फैल गयी है, (२५४११, ५४३४). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदिः णमो अरिहन्ताणं० पढम; अंतिःकल्पसूत्र-टबार्थ', मागु., गद्य, आदिः रागद्वेषरुपीया वयरी; अंतिः कल्पसूत्र-व्याख्यान+कथा* , मागु., गद्य, आदिः नमः श्रीवर्द्धमानाय; अंति:१४७४. वीसविहरमानजिन स्तवन व आदिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, पे. २, जैदेना., (२६.५४११, १३४३९). पे. १. स्तवनवीसी, आ. जिनराजसूरि, मागु., पद्य, (पृ. १-६अ), आदिः मुज हीयडौ हेजालूवौ; अंतिः विहरमाण जिन वीस., पे.वि. अध्याय-२० स्तवन. For Private And Personal Use Only Page #200 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य भाग - १ १४६ पे. २. नरक चौढालिया, मु. गुणसागर, मागु., पद्य, (पृ. ६अ-७आ), आदिः आदि जिणन्द जुहारीयइ; अंतिः स्वामि समरण पाईयइ., पे.वि. गा.३१. १४७५. गजसुकुमाल रास, संपूर्ण, वि. १९४६, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना., ले.स्थल. अकबराबाद, ले. ऋ. रामकसेन, प्र.वि. ढाळ-१८, (२६४१२, २१४६०). गजसुकुमाल रास, मागु., पद्य, आदिः तिन काले तिनही; अंतिः करसी कर्मनो सोख हो. १४७६. वैद्यवल्लभ सह टबार्थ, पूर्ण, वि. १७७०, श्रेष्ठ, पृ. १९-१(८)=१८, जैदेना., ले.स्थल. उदयपुर, ले. आ. यशोदेवसूरि (गुरु आ. शान्तिसूरि, चन्द्रगच्छ), प्र.वि. मूल अध्याय-८विलास., पदच्छेद सूचक लकीरें, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२६४११, ७X४२). वैद्यवल्लभ, मु. हस्तिरुचि, सं., पद्य, वि. १७२६, आदिः सरस्वतीं हृदि; अंतिः महाशोथविनाशनः. वैद्यवल्लभ-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः श्रीसरस्वती देवता; अंतिः चूर्ण कह्यो विशेषपणै. १४७७. स्याद्वादमतचर्चा विचार, संपूर्ण, वि. १९१६, श्रेष्ठ, पृ. ८-१(५)+१(४)=८, जैदेना., ले.स्थल. विक्रमपुर, ले. मु. रूपचन्द (गुरु गणि रत्नसुन्दर), (२५४११.५, १९-२०४५३). स्याद्वादमतचर्चा विचार, राज., गद्य, आदिः नास्तिकमति कहै; अंतिः एहवौ जगत्र छै. १४८०." वीरच्छुतीअध्ययन सह टबार्थ व मेरुना नाम, संपूर्ण, वि. १८०९, मध्यम, पृ. ६, पे. २, जैदेना., ले.स्थल. लांबडीया, ले. पं. हरिसागर, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, दशा वि. विवर्ण-पानी से अक्षरों की स्याही फैल गयी है, (२५४११, ५४२९). पे. १. पे. नाम. वीरच्छुतीनामाध्ययनं सह टबार्थ, पृ. १-६ सूत्रकृताङ्गसूत्र-हिस्सा वीरस्तुति अध्ययन, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., पद्य, आदिः पुच्छिंसुणं समणा; अंतिः देवाहिव आगमिस्सन्ति. सूत्रकृताङ्गसूत्र-हिस्सा महावीरजिन स्तुति-अध्ययन का टबार्थ, मागु., गद्य, आदि: पु० पुछता हवा कोण; अंतिः इम हुं बे० कहुं छु., पे.वि. हिस्सा -गा.२९; टबार्थ-गा.२९. पे. २. मेरु के सोल नाम, प्रा., गद्य, (पृ. ६अ), आदिः एमन्दरस्सणं पव्वयस्स; अंतिः दिसाईय वडेंसेय. १४८२. चन्दनमलयागिरि कथा व सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८६३, मध्यम, पृ. १५, पे. २, जैदेना., ले.स्थल. सीरोहीनगर, ले. मु. देविचन्द (गुरु मु. नायकविजय),प्र.वि. प्र.पु. आदिनाथ प्रसादात्, (२३४११, १०-११४२१). पे. १. चन्दनमलयागिरि कथा, मागु., गद्य, (पृ. १-१२आ), आदिः विजय सेठे पोतानी; अंतिः पाली शिवगति पोहता. पे. २. चन्दनमलयागिरि सज्झाय, मु. चन्द्रविजय, मागु., पद्य, (पृ. १२आ-१५आ), आदिः विजय कहे विजया प्रति; अंतिः शाश्वता ते सुख लहे., पे.वि. गा.१०. १४८३.” दशवैकालिकसूत्र, त्रुटक, वि. १७५७, मध्यम, पृ. २२-९(१,३,६,१२ से १५,१८,२०)=१३, जैदेना., ले.स्थल. कुलैथ, ले. ऋ. दीपा (गुरु ऋ. विरधाजी), पठ. श्रा. वनवारीदास मुथरादास चौधरी, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. अध्याय-अध्ययन१०, पदच्छेद सूचक लकीरें, (२४४१०, १२४३८). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यम्भवसूरि, प्रा., पद्य, वि. पू.४, आदि:-; अंति: गई त्ति बेमि. १४८४. स्तवन, सज्झाय, सवैया, गीत, पद व श्लोक सङ्ग्रह, अपूर्ण, वि. १९२२, श्रेष्ठ, पृ. ५, पे. १४, जैदेना., पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., (२५४११.५, ११४३२). पे. १.१६ सती सज्झाय, मु. रूपविजय, मागु., पद्य, (पृ. १अ, संपूर्ण), आदिः सरसती माता प्रणमुं; अंतिः रूपविजय भावे गुण गाय., पे.वि. गा.७. पे. २. आदिजिन स्तवन, मु. चन्दकुशल, प्राहिं., पद्य, (पृ. १अ-१आ, संपूर्ण), आदिः देखोने आदेसर बाबा; अंतिः चंदकुसल गुण गाया हे., पे.वि. गा.५. For Private And Personal Use Only Page #201 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir १४७ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची पे. ३. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. विनयविजय-शिष्य, मागु., पद्य, (पृ. १आ-२अ, संपूर्ण), आदिः आज उञ्जम छे रे अधिको; अंतिः प्रभु प्रणमुं निसदिस., पे.वि. गा.५. पे. ४. प्रमादपरिहार सज्झाय, मागु., पद्य, (पृ. २अ-२आ, संपूर्ण), आदिः पेहलो प्रमाद मद; अंतिः लेहसे तेह शिवगेह., पे.वि. गा.१०. पे. ५. आदिजिन स्तवन, मु. पद्मविजय, मागु., पद्य, (पृ. २आ-३अ, संपूर्ण), आदिः जगचिन्तामणी जगगुरु; अंतिः सवि सुख थाय लाल रे., पे.वि. गा.५. पे. ६. शान्तिजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, प्राहिं., पद्य, (पृ. ३अ, संपूर्ण), आदिः हम मगन भए प्रभु; अंतिः जीत लीओ मेदान मे., पे.वि. गा.६. पे. ७. पे. नाम. शर्केश्वरपार्श्वजिन स्तवन, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण पार्श्वजिन स्तवन-शखेश्वर, आ. जिनचन्दसूरि, मागु., पद्य, आदि: श्रीशद्धेश्वर पास; अंतिः सयल रिपु जीपतो., पे.वि. गा.५. पे. ८. आदिजिन सवैया, प्राहिं., पद्य, (पृ. ३आ-४अ, संपूर्ण), आदिः गङ्गतरंग समुहजल; अंतिः महाराज हमारी आशीष हे., पे.वि. गा.१. पे. ९. आदिजिन स्तवन, मु. देवचन्द्रजी, मागु., पद्य, (पृ. ४अ, संपूर्ण), आदिः ऋषभ जिणन्दशुं; अंतिः अविचल सुखवास., पे.वि. गा.६. पे. १०.पे. नाम. शंखेश्वरपार्श्वजिन स्तवन, पृ. ४आ, संपूर्ण पार्श्वजिन स्तवन-शखेश्वर, मु. मोहनविजय, मागु., पद्य, आदिः अलगी रहेने तु; अंतिः जिनगुण स्तुती लटकाली., पे.वि. गा.५. पे. ११. साधारणजिन पद, मु. आनन्दघन, मागु., पद्य, (पृ. ४आ-५अ, संपूर्ण), आदि: मेरो निरञ्जन यार हो; अंतिः तो मेरो फेरो टले., पे.वि. गा.३. पे. १२. पार्श्वजिन पद, मु. वृद्धिकुशल-शिष्य, राज., पद्य, (पृ. ५अ, संपूर्ण), आदि: जोडी थांरी कोन जुंडे; अंतिः भवभव दीजे तुम दीदार., पे.वि. गा.६. पे. १३. ज्ञानीदसलक्षण श्लोक, सं., पद्य, (पृ. ५अ, संपूर्ण), आदिः अक्रोधवैराग्य; अंतिः मूलं दसलक्षणा., पे.वि. श्लो.१. पे. १४. गौतमस्वामी छन्द, मु. लावण्यसमय, मागु., पद्य, (पृ. ५आ, अपूर्ण), आदिः वीर जिणेसर केरो सीस; अंति:-, पे.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. प्रथम गाथा के दो पद तक ही लिखा है. १४८५.” प्रतिक्रमणसूत्र सङ्ग्रह, सप्तस्मरण व स्तुतिस्तोत्र सङ्ग्रह, संपूर्ण, वि. १८६९, मध्यम, पृ. ८२, पे. ५४, जैदेना., पठ. पं. रूपमन्दिर (गुरु पं. ज्ञानरङ्ग), ले. पं. ज्ञानरङ्ग (गुरु उपा. ज्ञानविजय), प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न, (२५.५४११, १८४४७). पे. १.पे. नाम. खरतरगच्छीय प्रतिक्रमणसूत्र सङ्ग्रह, पृ. १-१०आ, संपूर्ण साधुश्रावकप्रतिक्रमणसूत्र सङ्ग्रह-खरतरगच्छीय, संबद्ध, प्रा.,सं., प+ग, आदिः णमो अरिहन्ताणं; अंतिः इच्छामोणुसड्ढीम्. पे. २. प्रव्रज्या कुलक, प्रा., पद्य, (पृ. ७आ-८आ, संपूर्ण), आदिः संसार विसम सायर भवजल; अंति: तरंति ते भवसलिलरासिं.,पे.वि. गा.३४. उपपेटांक-१. पे. ३. क्षामणकसूत्र, प्रा., गद्य, (पृ. १०अ-१०आ, संपूर्ण), आदिः इच्छामि खमासमणो; अंतिः नित्थारग पारगा होह., पे.वि. उपपेटांक-३. पे. ४. अतिचार आलोयणा-रात्रिदिवसगत, मागु., गद्य, (पृ. १०आ, संपूर्ण), आदिः आजुणा चौपहुर दिवस; अंतिः आलोअणमांहि आलोयस्यां. पे. ५. पे. नाम. नमस्कार पार्श्वजिनद्वात्रिंशिका, पृ. १०आ-१२अ, संपूर्ण For Private And Personal Use Only Page #202 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य भाग १ - www.kobatirth.org: Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जयतिहुअण स्तोत्र, आ. अभयदेवसूरि, प्रा., पद्य, आदि: जयतिहुयणवर कप्परुक्ख; अंतिः विण्णवइ अणिन्दिय., वि. मा.३०. पे. ६. सप्तस्मरण-खरतरगच्छीय, मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा., पद्य, (पृ. १२अ - १७अ, संपूर्ण), आदि: अजिअंजि सव्वभयं; अंतिः भवे पास जिणचन्द, पे.वि. ७ स्मरण. सप्तम स्मरण उवसग्गहरं स्तोत्र मूलपाठ का मात्र संकेत है. पे. ७. पे. नाम. शान्ति स्तोत्र, पृ. १७अ - १७आ, संपूर्ण लघुशान्ति, आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, आदि: शान्ति शान्ति: अंतिः सुशि श्रीमानदेवश्च पे. वि, श्लो. १७, " पे. ८. पे. नाम. वृद्धिशान्ति, पृ. १७आ-१८आ, संपूर्ण बृहत्शान्ति स्तोत्र- तपागच्छीय, सं., गद्य, आदि: भो भो भव्याः श्रृणुत: अंति जैनं जयति शासनम्. पे. ९ पे नाम. सप्ततिशतजिन स्तोत्र, पृ. १८आ-१९अ संपूर्ण १४८ तिजयपहुत्त स्तोत्र, प्रा., पद्य, आदि: तिजयपहुत्तपयासय अट्ठ; अंतिः निच्चमच्चेह., पे.वि. गा.१४. पे. १०. पार्श्वजिन स्तोत्र नवग्रहगर्भित, आ. जिनप्रभसूरि, प्रा., पद्य, (पृ. १९अ, संपूर्ण), आदि: दोसावहारदक्खो नालिया; अंतिः गहा न पीडन्ति, पे.वि. गा. १०. " पे. ११. भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुङ्गसूरि, सं. पद्य (पृ. १९ अ २१अ संपूर्ण) आदि भक्तामरप्रणतमीलिमणि : अंतिः समुपैति लक्ष्मी., पे.वि. श्लो. ४४. पे. १२. पे. नाम. कल्याण स्तोत्र, पृ. २१अ-२२आ, संपूर्ण कल्याणमन्दिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकर, सं., पद्य, आदि कल्याणमन्दिरमुदारमवद अंतिः मोक्षं प्रपद्यन्ते.. पे.वि. श्लो. ४४. पे. १३. पे नाम. महा स्तोत्र, पृ. २२आ - २३आ, संपूर्ण महावीर जिन स्तवन आ जिनवल्लभरि सं., पद्य, आदि भावारिवारणनिवारणदारु: अंतिः दृष्टिं दयालो मयि., " , पे.वि. श्लो. ३०. पे. १४. पे. नाम. महावीर चरित्र, पृ. २३आ-२४आ, संपूर्ण दुरियरयसमीर स्तोत्र, आ. जिनवल्लभसूरि, प्रा. पद्य, आदि: दुरिअरयसमीरं मोह अंतिः सया पायप्यणामो तुह.. पे.वि. गा.४३. पे. १५. नवतत्त्व प्रकरण, प्रा. पद्य (पृ. २५अ-२६अ, संपूर्ण) आदि जीवाजीवा पुण्णं पावा: अंतिः बोहिय " " इक्कणिक्काय, पे. वि. गा. ५०. " पे. १६. जीवविचार प्रकरण आ. शान्तिसूरि प्रा. पद्य, (पृ. २६अ-२७अ संपूर्ण), आदि भुवणपईवं वीरं नमिऊण: अंतिः रुद्दाओ सुयसमुद्दाओ., पे.वि. गा. ५१. पे. १७. पे. नाम. विचारषट्त्रिंशिका, पृ. २७अ - २८अ, संपूर्ण दण्डक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, आदिः नमिउं चउवीस; अंतिः एसा विनत्ति अप्पहिआ, पे.वि. गा. ४०. पे. १८. पार्श्वजिन स्तुति- जेसलमेर, सं., पद्य, (पृ. २८अ संपूर्ण), आदि: शमदमोत्तमवस्तुमहापणं; अंतिः सा जिनशासनदेवता, पे.वि. श्लो. ४. पे. १९. आदिजिन स्तुति, सं., पद्य, (पृ. २८अ-२८आ, संपूर्ण), आदिः युगादिपुरुषेन्द्राय: अंतिः कृष्णाण्डी कमलेक्षणा.. पे.वि., श्लो.४. For Private And Personal Use Only पे. २०. महावीरजिन स्तुति, सं., पद्य, (पृ. २८आ, संपूर्ण), आदिः यदंहिनमनादेव देहिन; अंतिः नित्यं मम मङ्गलेभ्यः., पे.वि. श्लो. ४. पे. २१. ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, सं., पद्य, (पृ. २८आ, संपूर्ण), आदि पञ्चानन्तक सुप्रपञ्च: अंतिः सिद्धायिका नायिका.. पे.वि. श्लो४. Page #203 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir १४९ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची पे. २२. अष्टमीतिथि स्तुति, अप., पद्य, (पृ. २८आ-२९अ, संपूर्ण), आदिः महामङ्गलं अष्ट सोहै; अंतिः विहसन्ति कल्याणदाता., पे.वि. गा.४ . पे. २३. पे. नाम. इकादशी स्तुति, पृ. २९अ, संपूर्ण मौनएकादशीपर्व स्तुति, सं., पद्य, आदिः अरस्य प्रवज्या; अंतिः विपदः पञ्चकमदः., पे.वि. श्लो.४. पे. २४.२४ जिन स्तुति, आ. जिनकुशलसूरि, सं., पद्य, (पृ. २९अ, संपूर्ण), आदिः नाभेयाजितवासुपूज्य; अंतिः प्रयच्छन्तु नः., पे.वि. श्लो.४. पे. २५. पे. नाम. चतुर्विंशतिजिन स्तुति, पृ. २९अ-२९आ, संपूर्ण पंचकल्याणक स्तुति, सं., पद्य, आदिः नाभेयं सम्भवं तं; अंतिः पञ्चकल्लाण एसो., पे.वि. श्लो.४. पे. २६.पे. नाम. नेम स्तुति, पृ. २९आ, संपूर्ण नेमिजिन स्तुति, मागु., पद्य, आदिः सुरअसुरवन्दितपाय; अंतिः करो ते अम्बा देवीए., पे.वि. गा.४. पे. २७. पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तुति, पृ. २९आ, संपूर्ण पार्श्वजिन स्तुति, सं., पद्य, आदिः हर्षनतासुरनिर्जरलोकं; अंतिः शस्त निदाघः., पे.वि. श्लो.४. पे. २८. पे. नाम. सामान्यजिन स्तुति, पृ. २९आ-३०अ, संपूर्ण साधारणजिन स्तुति, सं., पद्य, आदिः अविरलकमलगवलमुक्ताफल; अंतिः देवी श्रुतोच्चयम्., पे.वि. श्लो.४. पे. २९. पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तुति, पृ. ३०अ, संपूर्ण पार्श्वजिन स्तुति, सं., पद्य, आदिः अमरगिरिशिरस्थस्फार; अंतिः श्रुतं नः श्रुताङ्गी., पे.वि. श्लो.४. पे. ३०. पे. नाम. पारणा स्तुति, पृ. ३०अ-३०आ, संपूर्ण महावीरजिन पारणा स्तुति, सं., पद्य, आदिः यत्पारणासु प्रथमासु; अंतिः तु मम प्रमोदम्., पे.वि. श्लो.४. पे. ३१. पे. नाम. पलाकित स्तुति, पृ. ३०आ, संपूर्ण पार्श्वजिन स्तुति, सं., पद्य, आदिः श्रीसर्वज्ञं ज्योति; अंतिः वृद्धिं वैदुष्यम्., पे.वि. श्लो.४. पे. ३२. विहरमान २० जिन स्तुति, मागु., पद्य, (पृ. ३०आ, संपूर्ण), आदिः पञ्चविदेह विषय; अंति: जण मनवञ्छित सारै., पे.वि. गा.४. पे. ३३. बीजतिथि स्तुति, प्रा., पद्य, (पृ. ३०आ, संपूर्ण), आदिः महीमण्डणं; अंतिः देहि मे सुद्धनाणं., पे.वि. गा.४. पे. ३४. आदिजिन स्तुति-अर्बुदगिरिमण्डन, अप., पद्य, (पृ. ३०आ-३१अ, संपूर्ण), आदिः वरमुक्तियहार सुतार; अंतिः __सुहाणि कुणे सुसया., पे.वि. गा.४. पे. ३५. पे. नाम. सेत्रुञ्जय स्तुति, पृ. ३१अ, संपूर्ण शत्रुजयतीर्थ स्तुति, आ. नन्दसूरि, मागु., पद्य, आदिः श्रीशत्रुञ्जमण्डण; अंतिः तुम्ह पाय सेवता., पे.वि. गा.४. पे. ३६. महावीरजिन स्तुति, सं., पद्य, (पृ. ३१अ-३१आ, संपूर्ण), आदिः वीरं देवं नित्यं; अंतिः देवी दद्यात्सौख्यम्., पे.वि. श्लो.१. पे. ३७.पे. नाम. ऋषभ स्तुति, पृ. ३१अ-३१आ, संपूर्ण पंचतीर्थ स्तुति, सं., पद्य, आदिः श्रीशत्रुञ्जयमुख्य; अंतिः श्रीशान्तिभद्रङ्कराः., पे.वि. श्लो.४. पे. ३८. पाक्षिक स्तुति, आ. बालचन्द्रसूरि, सं., पद्य, (पृ. ३१आ, संपूर्ण), आदिः स्नातस्याप्रतिमस्य; अंतिः कार्येषु सिद्धिम्., पे.वि. श्लो.४. पे. ३९. पे. नाम. वर्द्धमान स्तुति, पृ. ३१अ, संपूर्ण __कल्लाणकन्द स्तुति, प्रा., पद्य, आदिः कल्लाणकन्दं पढमं; अंतिः अम्ह सया पसत्था., पे.वि. गा.४. पे. ४०. पे. नाम. सामान्यजिन दण्डक स्तुति, पृ. ३१आ-३२अ, संपूर्ण २४ दण्डक स्तुति, आ. जिनेश्वरसूरि, सं., पद्य, आदिः रुचितरुचिमहामणि; अंतिः दद्यादलं भारती भारती., पे.वि. श्लो .४. For Private And Personal Use Only Page #204 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य भाग - १ १५० पे. ४१. साधारणजिन स्तुति, मु. कवियण, मागु., पद्य, (पृ. ३२अ, संपूर्ण), आदिः चम्पक केतकी पाडल; अंतिः जौ तू? देव अम्बाई., पे.वि. गा.४. पे. ४२. पार्श्वजिन स्तुति, आ. जिनकुशलसूरि, सं., पद्य, (पृ. ३२आ, संपूर्ण), आदिः दें दें कि धप; अंतिः दिशतु शासनदेवता., पे.वि. श्लो.४. पे. ४३. नेमिजिन स्तुति, आ. जिनलाभसूरि, मागु., पद्य, (पृ. ३२आ, संपूर्ण), आदिः गिरनार सिहरि पर; अंतिः आस ____फले सुजगीस., पे.वि. गा.४. पे. ४४. महावीरजिन स्तुति, आ. जिनलाभसूरि, मागु., पद्य, (पृ. ३२आ, संपूर्ण), आदिः मूरति मनमोहन कञ्चन; अंतिः इम श्रीजिनलाभसूरिन्द., पे.वि. गा.४ . पे. ४५. आदिजिन स्तुति, सं., पद्य, (पृ. ३२आ-३३अ, संपूर्ण), आदिः नगरकोट्टनगोत्तममण्डन; अंतिः कुशलानि सदाम्बिका., पे.वि. श्लो.४. पे. ४६. पे. नाम. दीपमालिका थुई, पृ. ३३अ, संपूर्ण दीपावलीपर्व स्तुति, मु. भालतिलक, मागु., पद्य, आदि: जय जय कर मङ्गल दीपक; अंतिः भालतिलक वर हीर., पे.वि. गा.१. अन्तिमपृष्ठ का उपर का भाग खण्डित है।. पे. ४७. पे. नाम. दशवैकालिकसूत्र - अध्ययन १ से ३, पृ. ३३अ-३३आ, प्रतिपूर्ण दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यम्भवसूरि, प्रा., पद्य, वि. पू.४, आदिः धम्मो मङ्गलमुक्किट्ठ; अंति:पे. ४८. पे. नाम. उपदेशमाला स्वाध्याय, पृ. ३३आ-३४आ, संपूर्ण पौषध सज्झाय-खरतरगच्छीय, प्रा., पद्य, आदिः जगचूडामणिभूओ उसभो; अंति: उप्पन्नं केवलं नाणं., पे.वि. गा.३३. पे. ४९. पे. नाम. आवश्यकसूत्र-साधुप्रतिक्रमणसूत्र सङ्ग्रह का हिस्सा पाक्षिकसूत्र, पृ. ३४आ-४०आ, संपूर्ण पाक्षिकसूत्र, प्रा., प+ग, आदिः तित्थङ्करे य तित्थे; अंति: जेसिं सुयसायरे भत्ति. पे. ५०. पे. नाम. सम्बोधसत्तरी, पृ. ४०आ-४२आ, संपूर्ण सम्बोधसप्ततिका, आ. जयशेखरसूरि, प्रा., पद्य, आदिः नमिऊण तिलोअगुरुं; अंतिः लहई नत्थि सन्देहो., पे.वि. गा.८०. पे. ५१. मुहपत्तिपडिलेहण गाथा, प्रा., पद्य, (पृ. ४२आ, संपूर्ण), आदिः मुहपत्ती पन्नास; अंतिः विराहणच्चाय पन्नासं., पे.वि. गा.२+२=४. पे. ५२. पे. नाम. सङ्ग्रहणी सूत्र, पृ. ४२आ-४९आ, संपूर्ण बृहत्सङ्ग्रहणी, आ. चन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदिः नमिउं अरिहन्ताइं; अंतिः (१)णिम्मिया अत्तपढणट्ठा (२)जा वीरजिण तित्थं., पे.वि. गा.३११. पे. ५३. सिन्दूरप्रकर, आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य, (पृ. ४९आ-५४अ, संपूर्ण), आदिः सिंदूरप्रकरस्तपः; अंतिः सूक्तमुक्तावलीयम्., पे.वि. श्लो.९९. पे. ५४. अभिधानचिन्तामणि नाममाला, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, (पृ. ५४अ-८२, संपूर्ण), आदिः प्रणिपत्यार्हतः; अंतिः रोषोक्तावु नतौ नमः., पे.वि. ६ कांड. १४८६. श्लोक सङ्ग्रह व सिद्ध पन्दरभेद, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ५, पे. २, जैदेना., (२५४१०.५, १५४४७). पे. १. श्लोक सङ्ग्रह जैनधार्मिक, सं.प्रा., पद्य, (पृ. १-५), आदिः#; अंतिः#. पे. २. सिद्धपंद्रहभेद गाथा सङ्ग्रह, प्रा., पद्य, (पृ. ५आ), आदिः भवियजणविहियबोहे; अंतिः मणुवाहमावासं वा., पे.वि. गा.७. १४८७. नवतत्त्व, जीवविचार, दण्डक प्रकरण, बृहत्सङ्ग्रहणी व स्तुति सङ्ग्रह, अपूर्ण, वि. १८९३, श्रेष्ठ, पृ. ३०, पे. २५, जैदेना., ले.स्थल. अजमेर, ले. पं. लालचन्द, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., (२५.५४११, ११४३२). For Private And Personal Use Only Page #205 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir १५१ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची पे. १. नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, (पृ. १-३आ, संपूर्ण), आदिः जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंतिः बोहिय इक्कणिक्काय., पे.वि. गा.५१. पे. २. जीवविचार प्रकरण, आ. शान्तिसूरि, प्रा., पद्य, (पृ. ३आ-६अ, संपूर्ण), आदिः भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंतिः रुद्दाओ सुयसमुद्दाओ., पे.वि. गा.५१. पे. ३. दण्डक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, (पृ. ६अ-८आ, संपूर्ण), आदिः नमिउं चउवीस; अंतिः एसा विनत्ति __ अप्पहिआ., पे.वि. गा.४०. पे. ४.बृहत्सङ्ग्रहणी, आ. चन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, (पृ. ८आ-२४आ, संपूर्ण), आदिः नमिउं अरिहन्ताई; अंतिः जा वीरजिण तित्थं., पे.वि. गा.३०१. पे. ५. पे. नाम. आदीश्वर स्तुति, पृ. २५अ, संपूर्ण आदिजिन स्तुति, आ. नन्दसूरि, मागु., पद्य, आदिः श्रीशेत्रुञ्जमण्डण; अंतिः तुम्ह पाय सेवता., पे.वि. गा.४. पे. ६. मौनएकादशीपर्व स्तुति, सं., पद्य, (पृ. २५अ-२५आ, संपूर्ण), आदि: अरस्य प्रवज्या; अंतिः विपदः पञ्चकमदः., पे.वि. श्लो.४ . पे.७. महावीरजिन स्तुति, सं., पद्य, (पृ. २५अ, संपूर्ण), आदिः वीरं देवं नित्यं; अंतिः देवी दद्यात्सौख्यम्., पे.वि. श्लो.१. पे. ८. पार्श्वजिन स्तुति, सं., पद्य, (पृ. २५आ, संपूर्ण), आदिः हर्षनतासुरनिर्जरलोकं; अंतिः शस्त निजाघः., पे.वि. श्लो.४ पे. ९. पार्श्वजिन स्तुति-जेसलमेर, सं., पद्य, (पृ. २५आ-२६अ, संपूर्ण), आदिः शमदमोत्तमवस्तुमहापणं; अंति: सा जिनशासनदेवता., पे.वि. श्लो.४ . पे. १०. पे. नाम. ऋषभदेवजिन स्तुति, पृ. २६अ, संपूर्ण आदिजिन स्तुति-अर्बुदगिरिमण्डन, अप., पद्य, आदिः वरमुक्तियहार सुतार; अंतिः सुहाणि कुणे सुसया., पे.वि. गा.४. पे. ११.२४ जिन स्तुति, अप., पद्य, (पृ. २६अ-२६आ, संपूर्ण), आदिः भरहेसर कारियदेवहरे; अंतिः विगणंतु अणंतदहंसगुणा., पे.वि. गा.२. पे. १२. पे. नाम. चउवीसतीर्थङ्कर स्तुति, पृ. २६आ, संपूर्ण साधारणजिन स्तुति, सं., पद्य, आदिः श्रीतीर्थराजपदपद्म; अंतिः दाता दधतां शिवं वः., पे.वि. श्लो.१. पे. १३. महावीरजिन स्तुति, सं., पद्य, (पृ. २६आ, संपूर्ण), आदिः यदंह्रिनमनादेव देहिन; अंतिः नित्यं मम मङ्गलेभ्यः., पे.वि. श्लो.४ . पे. १४. ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, सं., पद्य, (पृ. २६आ-२७अ, संपूर्ण), आदिः पञ्चानन्तक सुप्रपञ्च; अंतिः सिद्धायिका त्रायिका., पे.वि. श्लो.४ . पे. १५. दीपावलीपर्व स्तुति, आ. जिनचन्द्रसूरि, सं., पद्य, (पृ. २७अ-२७आ, संपूर्ण), आदिः पापायां पुरि; अंतिः ___ शार्दूलविक्रीडितम्., पे.वि. श्लो.४ . पे. १६.२४ जिन स्तुति, आ. जिनकुशलसूरि, सं., पद्य, (पृ. २७आ-२८अ, संपूर्ण), आदि: नाभेयाजितवासुपूज्य; अंतिः प्रयच्छन्तु नः., पे.वि. श्लो.४. पे. १७. महावीरजिन पारणा स्तुति, सं., पद्य, (पृ. २८अ-२८आ, संपूर्ण), आदिः यत्पारणासु प्रथमासु; अंतिः तु मम ___ प्रमोदम्., पे.वि. श्लो.४. पे. १८. अन्नपूर्णा स्तुति, प्रा., पद्य, (पृ. २८आ, संपूर्ण), आदिः उस्सभस्स य पारणए; अंति: भरहे साहु न सीयन्ति., पे.वि. गा.४. पे. १९. पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तुति, पृ. २८आ-२९अ, संपूर्ण पार्श्वजिन स्तुति, सं., पद्य, आदिः श्रीसर्वज्ञ ज्योति; अंतिः वृद्धिं वैदुष्यम्., पे.वि. श्लो.४. For Private And Personal Use Only Page #206 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org: हस्तलिखित जैन साहित्य भाग १ : अंति: पे. २०. चैत्रीपूर्णिमापर्व स्तुति, उपा. समयसुन्दर गणि, मागु., पद्य, (पृ. २९अ, संपूर्ण), आदि: श्रीशेत्रुञ्जय तीरथ ; कहे सानिधि करो.. पं.वि. मा.४. पे २१. अष्टमीतिथि स्तुति, अप, पद्य, (पृ. २९अ - २९आ, संपूर्ण) आदि महामङ्गलं अष्ट सोहै: अंतिः सन्ति कल्याणदाता, पे.वि. गा.४. पे. २२. बीजतिथि स्तुति, मु. लब्धिविजय, मागु., पद्य, (पृ. २९आ-३०अ, संपूर्ण), आदिः दिन सकल मनोहर; अंतिः पूर मनोरथ माय., पे.वि. गा. ४. पे. २३ . नेमिजिन स्तुति, मागु., पद्य, (पृ. ३०अ, संपूर्ण), आदि: सुरअसुरवन्दितपाय; अंतिः करो ते अम्बा देवीए., पे.वि. गा. ४. पे. २४. पे. नाम. ऋषभदेव स्तुति, पृ. ३०आ, संपूर्ण आदिजिन स्तुति, सं., पद्य, आदिः युगादिपुरुषेन्द्राय अंति कूष्माण्डी कमलेक्षणा. पं.वि. श्लो. ४. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir " पे. २५. शत्रुंजयतीर्थ स्तुति, मागु., पद्य, (पृ. ३०आ-, अपूर्ण), आदिः आगे पूरव वार नीवाणु: अंति:-, पे.वि. अन्तके पत्र नहीं हैं. गा.३ अपूर्ण तक है. १४८८. स्तवनचीवीसी सङ्ग्रह, स्तवनवीसी, स्तवन व सज्झाय सङ्ग्रह, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ६४, पे. १४ जैदेना., (२४x१०.५, ११४३५). पे. १. स्तवनचौवीसी, मु. आनन्दघन, मागु., पद्य, वि. १८पू, (पृ. १-१५अ ), आदिः ऋषभ जिनेश्वर प्रीतम; अंतिः अनन्त सुखनो सदा रे, पे.वि. २२ स्तवन- आनंदघन कृत अंतिम २ स्तवन ज्ञानविमलसूरि कृत अध्याय २४ स्तवन. पे. २. स्तवनचाँवीसी, गणि देवचन्द्र मागु, पद्य, वि. १८वी (पृ. १५अ-३०आ), आदि ऋषभ जिणिन्दसु अंतिः पूर्णानन्द समाजोजी, पे.वि. अध्याय- २४ स्तवन. पे. ३. स्तवनचीवीसी आ जिनराजसूरि मागु पद्य, (पृ. ३०आ-३९अ) आदि मनमधुकर मोही रह्यो : अंतिः चढती बोलति पावौजी., पे. वि. अध्याय- २४ स्तवन. १५२ पे. ४. महावीरजिनविनती स्तवन, उपा. समयसुन्दर गणि, मागु., पद्य, (पृ. ३९अ - ४०अ), आदि: वीर सुणो मोरी विनती; अंतिः थुण्यो त्रिभुवन तिलओ., पे.वि. गा.१९. पे. ५. विहरमानजिन स्तवनवीसी, गणि देवचन्द्र, मागु., पद्य, (पृ. ४०अ - ५०अ ), आदिः श्रीसीमन्धर जिनवर; अंतिः परम महोदय युक्ति रे., पे.वि. अध्याय- २० स्तवन. पे. ६. १८ पापस्थानक निवारण सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मागु., पद्य, (पृ. ५१आ-५९आ), आदिः पापस्थानक पहिलुं; अंतिः वाचकजस इम भाखेजी., पे.वि. ढाळ - १८. पे. ७. गजसुकुमाल सज्झाय, गणि देवचन्द्र, मागु., पद्य, (पृ. ५९आ - ६२अ ), आदिः द्वारिका नगरी ऋद्धि; अंति: गुरु सहाय रे, पे.वि. गा.३८, ढाळ - ३. पे. ८. मीनएकादशीपर्व स्तवन, उपा. समयसुन्दर गणि, मागु पद्य वि. १६८१ (पृ. ६२-६३अ) आदि समवसरण बेठा भगवंत अंतिः समयसुंदर कहे दाहाडी, पे. वि. गा. १३. 7 For Private And Personal Use Only पे. ९. पार्श्वजिन स्तवन- शङ्खश्वर, मु. जिनहर्ष, मागु, पद्य, (पृ. ६३अ), आदि अन्तरजामी सुण अलवेसर अंति मुजने भवसागरथी तारो., पे.वि. गा. ५. पे. १०. सुमतिजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मागु., पद्य, (पृ. ६३अ - ६३आ), आदि: सुमतिनाथ गुणस्युं; अंतिः मुझ प्रेम प्रकार, पे.वि. गा. ५. पे. ११. सुपार्श्वजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मागु., पद्य, (पृ. ६३आ), आदि: श्रीसुपास जिनराज ; अंतिः वाचक जसे थुण्योजी., पे. वि. गा. ५. Page #207 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org: कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १५३ पे. १२. वासुपूज्यजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मागु., पद्य, (पृ. ६३-आ-६४अ) आदि स्वामी तुमे कांइ: अंतिः जस कहे हेजे लहस्युं., पे.वि. गा. ५. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पे. १३. आदिजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मागु., पद्य, (पृ. ६४अ - ६४आ), आदि: जगजीवन जग वालहो; अंतिः जो सुखनो पोष लाल रे., पे.वि. गा.५. पे. १४. नवपद स्तवन, मागु., पद्य, (पृ. ६४आ), आदि: तीरथनायक जिनवरू रे; अंतिः नित प्रति नमत कल्याण., पे.वि. गा.५. मु. १४८९. स्तवन, सज्झाय व पदादि सङ्ग्रह, संपूर्ण, वि. १८९७, श्रेष्ठ, पृ. १२, पे. २५, जैदेना., ले. स्थल भीनमालनगर, ले. सुखसागर (गुरु मु. जीतसागर), (२५x११.५ ११५३३), पे. १. पे. नाम. अक्षौहिणीमान, तौलमान, भारमानादि श्लोक सङ्ग्रह, पृ. १-२अ अक्षौहिणी आदि मानसूचक कवित्त, मागु, पद्य, आदि # अंतिः #. पे. २. पे. नाम. पाञ्चमी स्वाध्याय, पृ. २आ-४अ ज्ञानपंचमीपर्व सज्झाय, आ. लक्ष्मीसूरि मागु पद्य, आदि श्रीवासुपूज्य जिणेसर अंतिः सङ्घ सकल सुखदाय रे, पे.वि. गा.३+३+८+३+३=२०. पे. ३. पे. नाम. भडली दुहा (ज्योतिषदुहा सङ्ग्रह), पृ. ४अ ज्योतिष, सं.,मागु., पद्य, आदि: #; अंतिः #., पे.वि. बीच मे एक जैन गाथा .. पे. ४. सिद्धचक्र स्तवन, वाचक भोजसागर, मागु., पद्य, (पृ. ४-५अ), आदि: श्रीसिद्धचक्र सेवो; अंतिः भणे ए उत्तम अधिकार, पे. वि. गा. ८. पे. ५. धर्मोपदेश सवैया, मार्कण्ड, मागु, पद्य, (पृ. ५अ ), आदि: तज रे मन गाम गमारण अंतिः मृजाद नहीं गुर की.. पे.वि. गा.१. पे. ६. पे. नाम. साहित्यिक दोहा, पृ. ५अ दुहा सङ्ग्रह मागू. प्रा. सं., पद्य, आदि में अंतिः . पे.वि. गा.२. पे. ७. गर्भापहार गाथा, सं., प्रा., पद्य, (पृ. ५अ - ६अ ), आदिः योनिद्वारेण गर्भं; अंतिः पुण करेज्जा., पे.वि. गा. ५. पे. ८. पे. नाम. मान्धाता कथा गर्भापहार सम्बन्ध उपर, पृ. ५आ - ६आ कथा सङ्ग्रह**, सं., प्रा., मागु., पद्य, आदि: #; अंतिः #. पे. ९. स्त्री चरित्र पद कवि गद, मागु, पद्य, (पृ. ७अ), आदि: त्रिया चरित्र दशलाख अंतिः चरित्र एता करे., पे. वि. , . गा.१. पे. १०. पे. नाम. पुरूष लक्षण दोहा, पृ. ७अ अधमपुरूष लक्षण, कवि गद्द, मागु., पद्य, आदिः बुरो पन्थ को चालणो; अंति: सबथी बुरो ज माङ्गणो., पे.वि. गा.१. पे. ११. पे. नाम. कलियुग साधु पद, पृ. ७अ-७आ कलियुगसाधु पद, कवि धीर, मागु., पद्य, आदि: मुनिवर होय मजुर वदे; अंतिः कलिजुग आयो इसो., पे.वि. गा.२ , पे. १२. औपदेशिक दूहा राज, पद्य, (पृ. ७आ), आदि: मांचे मोटी खोड प्रथम अंतिः तो के पडियो ज., पे. वि. गा.३. ' पे. १३. अधमपुरूष लक्षण, कवि गद्द, मागु., पद्य, (पृ. ७आ), आदि: तरणो डार्यो साह जिण; अंतिः तरणाथी भारथ हुआ., पे.वि. गा.१. पे. १४. ५ अपथ्य कवित्त, कवि गद, मागु, पद्य, (पृ. ७आ-(अ), आदि प्रथम अपत्य उन्दरो अंतिः अपथ्य प्रथवी मे रहे., पे.वि. गा.१. पे. १५. वस्तुपालमन्त्री दानधर्म विचार मागु, पद्य, (पृ. ८अ), आदि अदार कोड शेत्रुञ्ज अंतिः वीत लाहो लीयो. For Private And Personal Use Only Page #208 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य भाग - १ १५४ पे. १६. कठोरवचनफल पद, प्राहिं., पद्य, (पृ. ८आ), आदिः जो सर लगो लोह की; अंतिः व्यापत सकल शरीर., पे.वि. गा.२. पे. १७. औपदेशिक पद, मागु., पद्य, (पृ. ८आ), आदिः गया दान सनमान गया; अंतिः दीसे जड जड बारणा.,पे.वि. गा.१. पे. १८. पे. नाम. चैत्रशुक्लपक्ष बोधक पद, पृ. ८आ चैत्रशुक्लपक्ष फलकथन, मागु., पद्य, आदिः पञ्चम रोहिणी सप्तमी; अंतिः गर्भ सवे विणठा., पे.वि. गा.१. पे. १९. औपदेशिक पद, उदेराज, राज., पद्य, (पृ. ८आ-९अ), आदिः हीमत राख हीया विच; अंतिः लिख्यो सो होवेगो., पे.वि. गा.१. पे. २०. अविश्वास कवित्त, कवि गद्द, प्राहिं., पद्य, (पृ. ९अ), आदिः सापां कीसो सेद ठगा; अंतिः रहे गाफल हुआ ठगी जीए., पे.वि. गा.२. पे. २१. दुहा सङ्ग्रह', मागु.,प्रा.,सं., पद्य, (पृ. ९अ-९आ), आदिः#; अंति: #., पे.वि. गा.५. पे. २२. औपदेशिक सज्झाय, मु. जिनहर्ष, मागु., पद्य, (पृ. ९आ), आदि: जुग मे जीवन थोडो; अंति: भजो पार उतार., पे.वि. गा.५. पे. २३. औपदेशिक सज्झाय , मु. उदयरतन, प्राहिं., पद्य, (पृ. ९आ-१०अ), आदिः यामे वास मे छे मरदो; अंतिः ____ मुगतपुरी मे खेलो., पे.वि. गा.७. पे. २४. अंगुलमान विचार, मागु., गद्य, (पृ. १०अ-१२अ), आदिः अनुयोगद्वार मध्ये; अंतिः आवे छे इम पिण जाणवो. पे. २५. अष्टमहासिद्धि स्वरूप, मागु., गद्य, (पृ. १२अ-१२आ), आदिः ते के ही पहिला; अंतिः वशित्वसिद्धि जाणवी. १४९०. पच्चक्खाणसूत्र, प्रतिक्रमणसूत्रादि विधिसङ्ग्रह व श्रावकव्रत, संपूर्ण, वि. १८९०, श्रेष्ठ, पृ. १९, पे. ११, जैदेना., ले. लखुमचन्द, प्र.ले.श्लो. (४७९) भग्न पृष्टि कटी ग्रीवा, (२५४१२, ११४३६). पे. १. प्रत्याख्यानसूत्र, संबद्ध, प्रा., पद्य, (पृ. १-२आ), आदिः उग्गए सूरे नमुक्कार; अंतिः वत्तियागारेणं वोसिरइ. पे. २. पे. नाम. तपागच्छीय प्रतिक्रमणादिविधि संग्रह, पृ. २आ-६अ प्रतिक्रमणविधि सङ्ग्रह-तपागच्छीय , संबद्ध, गुज.,मागु.,प्रा., गद्य, आदिः#; अंति:#. पे. ३. व्याख्यानश्रवण विधि, प्रा.,मागु., गद्य, (पृ. ६अ-६आ), आदिः इच्छामि खमा; अंतिः वायाणं प्रसाद करोजी. पे. ४. कल्पसूत्र-वाचन विधि, संबद्ध, मागु., गद्य, (पृ. ६आ), आदिः इरियावही पडिकमी; अंति: वायाणं प्रसाद करोजी. पे. ५. ब्रह्मचर्यव्रतोच्चारण विधि, प्रा.,मागु., गद्य, (पृ. ७अ-७आ), आदिः प्रथम इरियावही; अंतिः धर्मोपदेश गुरु दई. पे. ६. गोचरीआलोअण विधि, प्रा.,मागु., गद्य, (पृ. ७आ), आदिः गोचरीथी आवीने; अंतिः लोगस्स प्रगट कहविसे. पे. ७. साधुनित्यक्रिया विधि, प्रा.,मागु., गद्य, (पृ. ८अ-१०आ), आदिः ए क्रिया सम्प्रदाय; अंतिः उपराठी पडिलेहण छै. पे. ८. आलोयणा विचार, मागु., गद्य, (पृ. १०आ-११अ), आदिः १ सूत्रार्थ पोरसी ९; अंतिः सूईपातने छठ २. पे. ९. पे. नाम. श्रमणोपासिक प्रायश्चित विधि, पृ. ११अ-१६आ श्रावकप्रायश्चित विधि, मागु., गद्य, आदिः खमासमण देइ गुरूने; अंतिः दुक्कडं तस्स. पे. १०. यतिप्रायश्चित विधि, मागु., गद्य, (पृ. १६आ-१७आ), आदि: ज्ञानना अतिचार कहै; अंतिः सम्प्रदाय सुद्ध छै. पे. ११. श्रावकबारहव्रत विचार, मागु., गद्य, (पृ. १८अ-१९आ), आदिः पहिला समकित व्रतना; अंतिः बार व्रत पालुं सही. १४९१. सज्झाय सङ्ग्रह, संपूर्ण, वि. १९१३, श्रेष्ठ, पृ. १३, पे. २४, जैदेना., ले.स्थल. खडारानगर, ले. मु. गजेन्द्रसागर, (२५४११.५, १४४४०). पे. १. झाञ्झरियामुनि सज्झाय, मु. भावरत्न, मागु., पद्य, वि. १७५६, (पृ. १-३अ), आदिः सरसति चरणे शीस नमावी; अंतिः साम्भलतां मन मोहे के.,पे.वि. गा.४३. पे. २. चेलणासती सज्झाय, उपा. समयसुन्दर गणि, मागु., पद्य, (पृ. ३अ-३आ), आदिः वीरे वखाणी राणी; अंतिः For Private And Personal Use Only Page #209 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra १५५ www.kobatirth.org: पामीयो भव तणो पार., पे.वि. गा. ७. पे. ३. औपदेशिक सज्झाय, मु. हर्षचन्द, प्राहिं, पद्य, (पृ. ३आ), आदि आरिज देस उदार नरभव: अंति: पामो भवपार, पे.वि. गा. ५. पे. ४. पंचमहाव्रत सज्झाय, आ. देवसूरि, मागु., पद्य, (पृ. ३आ-४अ), आदि: सुरतरुनी परि दोहिलो; अंतिः विनवे रे विजयदेवसूरि, पे.वि. गा. १५. पे. ५. उंडणऋषि सज्झाय, मु. जिनहर्ष, मागु, पद्य, (पृ. ४अ ४आ), आदि ठंढणऋषिने वन्दना अंतिः सुजाण रे हुंवारी लाल., पे.वि. गा. ९. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पे. ६. प्रतिक्रमणफल राज्झाय मागु, पद्य, (पृ. ४आ-५अ) आदि करो पडिकमणो भावसुं अंतिः करसे जे नरनार लाल रे.. पे.वि. गा.५. कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची पे. ७. अइमुत्तामुनि सज्झाय, आ. लक्ष्मीरत्नसूरि, मागु., पद्य, (पृ. ५अ - ५आ), आदि: श्रीजिनवर वांदीने; अंतिः वंदे अइमतो अणगार, पे. वि. गा. १८. पे. ८. वैराग्य सज्झाय, मु. राजसमुद्र, मागु., पद्य, (पृ. ५आ-६अ), आदिः आज की काल चलेसी रे; अंतिः नारी विनां सोभागी रे.. पे.वि. गा.७. पे. ९. मेतारजमुनि राज्झाय मु. राजविजय, मागु, पद्य, (पृ. ६अ ६आ), आदि: समदम गुणना आगरुजी अंतिः साधु तणी ए सज्झाय., पे.वि. गा.१३. पे. १०. रथनेमि सज्झाय, मु. देवविजय, मागु., पद्य, (पृ. ६आ-७अ), आदि: काउसग व्रत रहनेम; अंतिः सुख लेस्ये रे., पे.वि. गा.११. पे. ११. पंचमआरा सज्झाय, मु. जिनहर्ष, मागु., पद्य, (पृ. ७अ-७आ), आदि: वीर कहे गौतम सुणो; अंतिः गाया गुण सुविशाल रे., पे.वि.गा.२३. पे. १२. अनाथीमुनि सज्झाय, उपा. समयसुन्दर गणि, मागु., पद्य, (पृ. ८अ ), आदिः श्रेणिक रयवाडी चड्यो; अंतिः वन्दे रे बे करजोडि., पे. वि. गा.९. पे. १३. वैराग्य सज्झाय, मु. अमर, मागु., पद्य, (पृ. ८अ -८आ), आदिः सुणि सुणि प्राणी रे; अंतिः आपो हृदय मझार., पे.वि. गा. ९. " पे. १४. धोबीडा सज्झाय, उपा. समयसुन्दर गणि, मागु, पद्य, (पृ. ८आ-९अ) आदि धोबीडा तुं धोजे मननु अंतिः सुखडी अमृतवेल रे., पे. वि. गा.६. , पे. १५. नेमराजिमती राज्झाय श्रा. रूपचन्द, मागु, पद्य, (पृ. ९अ ), आदि अणसमजूं जीसी सीखामण: अंतिः नामे पातिक जाइ नासी., पे.वि. गा.११. पे. १६. वैराग्य सज्झाय, मु. मानसागर, मागु पद्य (पृ. ९अ - ९आ), आदि मानवनो भव पामीयो अंतिः सुख लहीये निरवाण., पे.वि. गा.११. पे. १७. मोक्षनगर सज्झाय कवि सहजसुन्दर मागु, पद्य, (पृ. ९आ-१०अ ) आदि मोक्षनगर मांरो सासरो: अंतिः मुगति निदान रे लाल, पे.वि. गा. ५. " " पे. १८. ज्ञानपंचमीपर्व सज्झाय, आ. लक्ष्मीसूरि मागु, पद्य, (पृ. १०अ ११अ) आदि श्रीवासुपूज्य जिणेसर: अंतिः सङ्घ सयल सुखकारी रे., पे.वि. डाळ-४. पे. १९. ज्ञानपंचमीपर्व सज्झाय वाचक देवविजय, मागु, पद्य, (पृ. ११अ ) आदि सद्गुरुना प्रणमुं अंतिः देवनी पूरो जगीश., पे.वि. गा.५. पे. २०. अष्टमीतिथि सज्झाय, वाचक देवविजय, मागु., पद्य, (पृ. ११अ - ११आ), आदिः श्रीसरसतिने चरणे; ' अंतिः वाचिक देव सुसीस पे.वि. गा.६. " पे. २१. जम्बूस्वामी राज्झाय, मु. महिमासागर मागु पद्य (पृ. ११आ) आदि जी हो श्रीसोहमपति: अंति: नीत नवलो . For Private And Personal Use Only Page #210 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य भाग - १ १५६ आणन्द., पे.वि. गा.७. पे. २२. नेमिजिन सज्झाय, मु. दानविजय, मागु., पद्य, (पृ. ११आ-१२अ), आदिः ए संसार असार सरूप; अंतिः नामथी भवसायर तरे., पे.वि. गा.५. पे. २३. पंचपरमेष्ठि सज्झाय, मु. जिनराज, मागु., पद्य, (पृ. १२अ), आदिः पञ्चपरमेष्ठि आराधै; अंतिः धर्म भवोभवे ___ध्यावे., पे.वि. गा.५. पे. २४. विजयसेठविजयासेठाणी सज्झाय, आ. हर्षकीर्तिसूरि, मागु., पद्य, (पृ. १२आ-१३आ), आदिः प्रह उठी रे पञ्च; अंतिः कुसल नित घर अवतरे., पे.वि. गा.२५. १४९२." स्तवन, पद, स्वाध्याय व स्तुति सङ्ग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३०, पे. ३०, जैदेना.,प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२६.५४१२, १०४३२). पे. १. स्तवनचौवीसी, मु. मोहनविजय, मागु., पद्य, (पृ. १-१५आ), आदिः प्रथम तीर्थङ्कर; अंतिः वसीयो तु विसवावीस रे., पे.वि. ढाळ-२४. पे. २. आदिजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मागु., पद्य, (पृ. १५आ-१६अ), आदि: बालपणे आपण ससनेहि; अंतिः वृषभ लञ्छन बलिहारी., पे.वि. गा.६. पे. ३. औपदेशिक पद, प्राहिं., पद्य, (पृ. १६अ), आदिः राम रता सोई पारगता; अंतिः वरता सोई पारगता रे., पे.वि. गा.४. पे. ४. पार्श्वजिन स्तवन-शखेश्वर, मु. मोहनविजय, मागु., पद्य, (पृ. १६अ-१६आ), आदि: समय समय सो वार; अंतिः सेवक करी जाणो रे., पे.वि. गा.८. पे. ५. पार्श्वजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मागु., पद्य, वि. १८वी, (पृ. १६आ-१७अ), आदिः प्रभु जगजीवन जगबन्धु; अंतिः चरणनी सेवा दीजै रे.,पे.वि. गा.८. पे. ६. आध्यात्मिक पद, मागु., पद्य, (पृ. १७अ-१७आ), आदिः ता योगी चित ल्याउं; अंतिः सेवू बहुरन काल न आउ., पे.वि. गा.५. पे. ७. आदिजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, राज., पद्य, (पृ. १७आ-१८अ), आदिः राज मरुदेवी केरा; अंति: मोहनविजय गुण गाया.,पे.वि. गा.७. पे. ८. आदिजिन स्तुति-मरुदेवामाता केवलज्ञान, मु. मोहनविजय, मागु., पद्य, (पृ. १८अ-१८आ), आदिः गजकुंभे बेसी आवे; अंति: मोहन जयजयकार., पे.वि. गा.४. पे. ९. कवित्त, राज., पद्य, (पृ. १८आ-१९अ), आदिः मारू म्हारा कठरे; अंतिः तीखें नयणें धूल रही., पे.वि. गा.३. पे. १०. अजितजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मागु., पद्य, (पृ. १९अ), आदिः ओलग अजित जिणन्दनी; अंति: रूपनो जिन अन्तरजामी., पे.वि. गा.५. पे. ११. पार्श्वजिन स्तवन-शखेश्वर, मु. मोहनविजय, मागु., पद्य, (पृ. १९अ-१९आ), आदिः रहिने रहिने रहिनें; अंतिः जिनगुण स्तुती लटकाली., पे.वि. गा.६. पे. १२. पार्श्वजिन स्तवन-पुरुषादानीय, मु. मोहनविजय, मागु., पद्य, (पृ. १९आ-२०अ), आदिः पुरसादाणी सांवल वरणो; अंतिः कहै० करुणा करज्यौ., पे.वि. गा.७. पे. १३. पद्मप्रभजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मागु., पद्य, (पृ. २०अ-२०आ), आदि: पदमप्रभू तुम सेवनां; अंतिः निरवहयो साचो नेह., पे.वि. गा.५. पे. १४. अजितजिन स्तवन, मु. कान्तिविजय, मागु., पद्य, (पृ. २०आ), आदिः अजित जिणेसर मुजने; अंतिः भव पार उतार., पे.वि. गा.३. पे. १५. आदिजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मागु., पद्य, (पृ. २०आ-२१अ), आदिः आदीसर जगदीसरू रे; अंतिः तुं प्राण For Private And Personal Use Only Page #211 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir १५७ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची आधार., पे.वि. गा.५. पे. १६. अनन्तजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मागु., पद्य, (पृ. २१अ-२१आ), आदिः प्रीतडी अनन्त जिनराज; अंतिः हुवा ___ आज सवि काज रे., पे.वि. गा.९. पे. १७. मल्लिजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मागु., पद्य, (पृ. २२अ-२२आ), आदिः विबुधवल्ली समा मल्लि; अंतिः जिनराज लीला विलासी., पे.वि. गा.७. पे. १८. अजितजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मागु., पद्य, (पृ. २२आ-२३अ), आदि: ओलगडी अजित जिणन्दनी; अंतिः नामे जयकार नवनिध के., पे.वि. गा.७. पे. १९. पार्श्वजिन स्तवन-मनमोहन, मु. मोहनविजय, मागु., पद्य, (पृ. २३अ-२३आ), आदिः मनमोहन पावन देहडीजी; अंतिः ताहरो जीवनदास हो.,पे.वि. गा.५. पे. २०. पे. नाम. सम्भवजिन गीत, पृ. २३आ-२४अ सम्भवजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मागु., पद्य, आदिः समकित दाता समकित; अंतिः रसना पावन कीधी., पे.वि. गा.७. पे. २१. शीतलजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मागु., पद्य, (पृ. २४अ-२४आ), आदिः शीतल जिन सुणौ स्वामी; अंतिः ___मोहन वचन सम्बाह ज्यौ., पे.वि. गा.७. पे. २२. पार्श्वजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मागु., पद्य, (पृ. २४आ-२५अ), आदिः साहिब आङ्गी तुम्हारी; अंतिः कहै तुझसुं जगीस हो., पे.वि. गा.८. पे. २३. नेमराजिमती सज्झाय, मु. मोहनविजय, मागु., पद्य, (पृ. २५आ-२६अ), आदिः पीउजी रे पीउजी नाम; अंतिः मोहन आस्या फली., पे.वि. गा.६. पे. २४. नवपदमहिमा स्तवन, मु. मोहनविजय, मागु., पद्य, (पृ. २६अ-२७अ), आदिः इण परि भवियण नवपद; अंतिः कहै० नवपदनो आधार रे., पे.वि. गा.१५. पे. २५. अर्द्धपुदगलपरावर्तनविचार सज्झाय, मु. मोहनविजय, मागु., पद्य, (पृ. २७अ-२८अ), आदिः श्रीजिन उपदेशें; ____ अंति: उपशमरस इम पीजेजी., पे.वि. गा.१३. पे. २६. साधारणजिन पद, मु. मोहनविजय, मागु., पद्य, (पृ. २८अ-२८आ), आदिः क्युं जिन भक्ति; अंतिः अवगति की ___ गति न्यारी., पे.वि. गा.८. पे. २७. नवपद स्तवन, मु. उत्तमसागर-शिष्य, मागु., पद्य, (पृ. २८आ-२९अ), आदिः गोयम नाणी हो कहै; अंति: बहु सुख पाया., पे.वि. गा.५. पे. २८. बांसुरी पद, मोहन, मागु., पद्य, (पृ. २९अ-२९आ), आदिः सुणि बांसलडी बैरणि; अंतिः मोहन दया धारी मनमें., पे.वि. गा.६. पे. २९. नेमिजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मागु., पद्य, (पृ. २९आ-३०अ), आदिः यादवजी हो समुद्रविजय; अंतिः जयो शिवादेवी मल्हार., पे.वि. गा.७. पे. ३०. पार्श्वजिन स्तवन-पञ्चासरा, मु. मोहनविजय, मागु., पद्य, (पृ. ३०अ-३०आ), आदिः इन्दु किरण सम तुम्ह; अंतिः मोहन अनुभव गायो., पे.वि. गा.७. १४९८.” ऋषिमण्डल स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना., प्र.वि. श्लो.९३, अशुद्ध पाठ-अल्प मात्रा में, (२७४१३.५, १४४३०). ऋषिमण्डल स्तोत्र, आ. गौतमस्वामी गणधर, सं., पद्य, आदिः आद्यन्ताक्षरसंलक्ष्य; अंतिः लभ्यते पदमव्यय. १५००." सप्तस्मरण, प्रतिपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, जैदेना., प्र.वि. संशोधित, पू.वि. तिजयपहुत्तस्तोत्र व कल्याणमंदिरस्तोत्र नहीं है., (२८x१३, १३४३९). नवस्मरण, आ. अनेक श्रुतस्थविर, प्रा.,सं., प+ग, आदिः नमो अरिहन्ताणं० हवइ; अंतिः जैनं जयति शासनम्. For Private And Personal Use Only Page #212 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य भाग - १ १५८ १५०२. नरपतिजयचर्या-पञ्चस्वरचक्र सह जयलक्ष्मी टीका, प्रतिपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना., (२८.५४१२, १६ १७४५७). नरपतिजयचर्या, नरपति, सं., प+ग, वि. १२३२, आदि:-; अंति: नरपतिजयचर्या-जयलक्ष्मी टीका, कवि हरिवंश, सं., , आदि:-; अंति:१५०६. गोमट्टसार भाषा, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ६५, जैदेना.,प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२६४१३, १४४५३). गोमट्टसार-भाषा, राज., गद्य, आदि: सन्दृष्टे; अंतिः षट कारक विधान है. १५१४. नवस्मरण सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १५-६(१ से ६)=९, जैदेना., पू.वि. बीच के पत्र हैं. भयहरस्तोत्र गा.२१ से भक्तामरस्तोत्र-गा.३ तक हैं, (२५४१०, ४४३७). नवस्मरण, आ. अनेक श्रुतस्थविर, प्रा.,सं., प+ग, आदि:-; अंति: नवस्मरण-टबार्थ, मागु., गद्य, आदि:-; अंति:१५१५. पार्श्वजिन निसाणी व लावणी, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, पे. २, जैदेना., ले. पं. देवेन्द्र, (२४.५४१०.५, ११४३०). पे. १. पार्श्वजिन निसाणी-घग्घर, मु. जिनहर्ष, प्राहिं., पद्य, (पृ. १अ-४अ), आदिः सुखसम्पत्तिदायक; अंतिः जिनहरष कहन्दा है., पे.वि. गा.२७. पे. २. पार्श्वजिन लावणी-गोडीजी, मु. रूपविजय, मागु., पद्य, (पृ. ४अ-५आ), आदिः जगत भविक जिन पास; अंतिः गौडीचा सुख कन्दा., पे.वि. गा.१६. १५१७. हरषचन्दजीस्वामीजी री चर्चा, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदेना., (२६.५४१२, २५४४१). हरखचन्दजीवामी धार्मिकप्रश्नोत्तर, राज., गद्य, आदिः काचो पाणी पीवै ते; अंतिः सातावेदनी वेदे. १५१८." वेदकल्प सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २८, जैदेना., प्र.वि. मूल-उद्देशक-६., टिप्पण युक्त विशेष पाठ, संशोधित, (२५.५४११.५, ६-७४३५). बृहत्कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, (संपूर्ण), आदि: नो कप्पइ निग्गंथाण; अंति: कप्पट्टिई त्तिबेमि. बृहत्कल्पसूत्र-टबार्थ', मागु., गद्य, (अपूर्ण), आदि:-; अंतिः१५२०. चिन्तामणिपार्श्वनाथ स्तोत्र, पूर्ण, वि. १९६१, श्रेष्ठ, पृ. ६-१(१)-५, जैदेना., ले.स्थल. चंद्रावतीनगर, ले. पं. धर्मचन्द्र, प्र.वि. श्लो.११ भटेवा पार्श्वनाथ प्रसादात्।, पू.वि. श्लो. १ व २ नहीं हैं., (२५.५४११.५, ३४२९). पार्श्वजिन स्तोत्र-चिन्तामणि, सं., पद्य, आदि:-; अंतिः बोधिबीजं ददातु. १५२१.." अगडदत्त चौपाई, अपूर्ण, वि. १८वी, जीर्ण, पृ. ७-२(१ से २)=५, जैदेना., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, पू.वि. बीच के पत्र हैं., दशा वि. विवर्ण-पानी से अक्षरों की स्याही फैल गयी है-, अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, (२५४१०.५, २०४५०). अगडदत्त चौपाई, मागु., पद्य, आदि:-; अंतिः१५२३." दशाश्रुतस्कन्ध सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९८१, श्रेष्ठ, पृ. ५२, जैदेना., ले.स्थल. बीकानेर, प्र.वि. मूल-ग्रं. १३८०,१० दशा., टिप्पण युक्त विशेष पाठ, संशोधित, प्र.ले.श्लो. (७८) जावय लवण समुद्रो, (२४.५४११.५, ७४४४). दशाश्रुतस्कन्धसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., पद्य, आदिः नमो अरिहंताणं० हवइ; अंतिः उवदंसेइ त्ति बेमि. दशाश्रुतस्कन्धसूत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः श्रीदशाश्रुतस्कंध; अंतिः अर्थ पुरो थाइं. १५२७. सिंहासणबत्रीसी कथा (विक्रम), अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ६४, जैदेना.,प्र.वि. संशोधित, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, पू.वि. अन्त के पत्र नहीं हैं. कथा-२४ की गा.१५ तक है., (२५.५४११, १५४४४). सिंहासनबत्रीसी चौपाई, पं. हीरकलश, मागु., पद्य, वि. १६३६, (प्रतिपूर्ण), आदिः आराहीय श्रीहरखी; अंति: For Private And Personal Use Only Page #213 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir १५९ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १५२८." पाक्षिकसूत्र, संपूर्ण, वि. १८९४, श्रेष्ठ, पृ. ११, जैदेना., ले. ऋ. देवचन्द, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-प्रारंभिक पत्र, दशा वि. विवर्ण-अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, (२४४१०, १२४२७). पाक्षिकसूत्र, प्रा., प+ग, आदिः तित्थङ्करे य तित्थे; अंतिः जेसिं सुयसायरे भत्ति. १५२९.” सङ्ग्रहणी, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १०, जैदेना., प्र.वि. गा.२८३, संशोधित, पदच्छेद सूचक लकीरें, (२५४११, १४४४०). बृहत्सङ्ग्रहणी, आ. चन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदिः नमिउं अरिहन्ताइं; अंतिः जा वीरजिण तित्थं. १५३१. भगवतीसूत्र, अपूर्ण, वि. १७वी, जीर्ण, पृ. ३४-८(१ से ५,१२,२८.३०)=२६, जैदेना., (२६.५४१०.५, १२४४७). भगवतीसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि:-; अंतिः१५३४. गोराबादल चौपाई, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २३, जैदेना., पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. गा.४०२ तक है., (२५४११.५, १२४३६). गोराबादल रास, गणि लब्धिउदय, मागु., पद्य, वि. १७०७, आदिः श्रीआदिसर प्रथम; अंति:१५३५. जम्बू चरित्र, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १०-४(१ से ४)=६, जैदेना., पू.वि. बीच के पत्र हैं. , (२६x१०.५, १६x४६). जम्बूस्वामी चरित्र, श्रा. आणन्द जेठमल, गुज., पद्य, वि. १९२०, आदि:-; अंति:१५४०. अढीद्वीप विचार, पूर्ण, वि. १९५८, श्रेष्ठ, पृ. १०-१(१)=९, जैदेना., ले.स्थल. सवाइजैपुर, ले. ऋ. प्यालीराम, (२५.५४११, २०४४६). ढाईद्वीप विचार, मागु., गद्य, आदि:-; अंतिः सनीसर ९०० सनीसर. १५४१. नमीराजा ढाल, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदेना., प्र.वि. ढाळ-७, (२४.५४१२, १०x२९). नमिराजर्षि ढाल, ऋ. आसकर्ण, मागु., पद्य, वि. १८३९, आदिः सासण नायक समरीये; अंतिः तेरस तीथरो नाम ए. १५४३." प्रतिक्रमणसूत्र, जयतिहुयणस्तोत्रादि सङ्ग्रह, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ७, पे. २, जैदेना., प्र.वि. संशोधित-सुंदर प्रारंभिक पत्र, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., (२५.५४११, १३४५०). पे. १. पे. नाम. आवश्यकसूत्र-खरतरगच्छीय श्राद्धप्रतिक्रमणसूत्र सङ्ग्रह, पृ. १-७अ, संपूर्ण श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-खरतरगच्छीय, संबद्ध, प्रा.,सं.,मागु., प+ग, आदिः इच्छामि खमासमणो; अंतिः मिच्छामि दुक्कडम्. पे. २. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तोत्र, पृ. ७आ-, अपूर्ण जयतिहुअण स्तोत्र, आ. अभयदेवसूरि , प्रा., पद्य, आदिः जयतिहुयणवर कप्परुक्ख; अंति:-,पे.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. गा.८ तक है. १५४४. आराधना- अन्तिम आराधना, संपूर्ण, वि. १७३३, श्रेष्ठ, पृ. ९, जैदेना., ले.स्थल. आग्रा, ले. मु. बुद्धिसागर, प्र.वि. गा.९६, (२५४११, ९४२९). आराधना, मागु., पद्य, आदिः पहिलउ नमस्कार; अंतिः आइसो जाइसवह विमाण. १५४५.” साधुप्रतिक्रमणसूत्र सह टबार्थ, पूर्ण, वि. १७३७, श्रेष्ठ, पृ. २७-२(१३,२१)+१(३)=२६, जैदेना., ले. मु. खेतसी, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२५.५४११, ५४३३). साधुप्रतिक्रमणसूत्र-स्थानकवासी, संबद्ध, प्रा., प+ग, आदि: नमो अरिहन्ताणं०; अंतिः मिच्छामि दुक्कडं. साधुप्रतिक्रमणसूत्र-स्थानकवासी-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः नमस्कार होज्यो; अंतिः मिथ्या निष्फल हुवो. १५४६. आनन्द की सन्धी, अपूर्ण, वि. १७७४, मध्यम, पृ. १३-२(१ से २)=११, जैदेना., ले.स्थल. जोधपुर, ले. मु. देवीदास (गुरु आ. उदैसङ्घजी), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. ढाल-१५, गा.२५१, प्र.ले.श्लो. (५०६) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा , (२५.५४१०.५, १३४३२). आनन्दश्रावक सन्धि, पाठक श्रीसार, मागु., पद्य, वि. १६८४, आदि:-; अंतिः पभणइ मुनि श्रीसार. For Private And Personal Use Only Page #214 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य भाग १ - (+4) १५४९. 'ढोलामारू दोहा, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ५, जैदेना., ले. वाचक जयविमल, पठ. पं. खेतसी (गुरु वाचक जयविमल) पं. चतुरा ( गुरु वाचक जयविमल) पं. रामचन्द (गुरु वाचक जयविमल) पं. राजसी (गुरु वाचक जयविमल); पण्डित रतनसी (गुरु वाचक जयविमल); पं. ठाकुरसी (गुरु वाचक जयविमल), प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र. वि. गा. २३६, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, दशा वि. विवर्ण अक्षरों की स्याही फैल गयी है, (२५४१०५ २०x४८). ढोलामारू दोहा, मागु., पद्य, आदि: पूगल पिङ्गल रावो; अंतिः कलिमें रहस्यै बोल.. www.kobatirth.org: १५५०.” शीयल रास, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ७, जैदेना., ले. स्थल. खेरवा नगर, ले. पं. कृष्णविजय, प्र. वि. गा. ६८, ग्रं. २५१, दशा वि. विवर्ण - पानी से अक्षरों की स्याही फैल गयी है, (२५x११.५, १७९३५). शील रास, आ. विजयदेवसूरि, मागु., पद्य, आदि: पहिलुं प्रणाम करूं; अंतिः श्रीविजयदेवसूरि. (+4) १५५१. शान्तिजिन निश्चयव्यवहार स्तवन, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना. प्र. वि. गा.४९. डाळ- ६, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, दशा वि. विवर्ण-पानी से अक्षरों की स्याही फैल गयी है, ( २६११, ९३०). शान्तिजिन स्तवन- निश्चयव्यवहारगर्भित उपा. यशोविजयजी गणि, मागु पद्य वि. १७३४ आदि शान्ति जिणेसर केसर; अंति: जसविजय विबुध जयवरी. १५५२. जीवविचार स्तवन, संपूर्ण, वि. १९५४, श्रेष्ठ, पृ. ७, जैदेना., प्र. वि. ढाळ - ९, (२७४११.५, ९×३१). जीवविचार स्तवन, मु. वृद्धिविजय, मागु, पद्य वि. १७१२, आदिः श्रीसरसती रे बरसती अंतिः विजय पभणे आनन्दकारी, · १५५५.” नवतत्त्व व जीवविचार प्रकरण सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ९-४ (१ से ४ ) = ५, पे. २, जैदेना., प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, प्र. वि. बीच के पत्र हैं., (२५.५४११, १०४३६-६१ ). पे. १. पे. नाम. नवतत्त्व प्रकरण सह टबार्थ, पृ. ५अ, अपूर्ण नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि:-; अंतिः Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir समत्तं निच्चलं तस्स. " ; नवतत्त्व प्रकरण- टवार्थ मागु, गद्य, आदि अंतिः निश्चल हुई तेहनउ, पं.वि. मूल-परिमाण गा. ३३. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. गा. १ से ३१ नहीं है. पे. २. पे. नाम. जीवविचार प्रकरण सह टबार्थ, पृ. ५अ - ९आ-, पूर्ण जीवविचार प्रकरण, आ. शान्तिसूरि, प्रा., पद्य, आदिः भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंतिः जीवविचार प्रकरण-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः भूवनमांहि प्रदीप अंति:-, पे. वि. अंतिम पत्र नहीं है. गा. १ से ४८ तक है. " · १६० १५६१. प्रतिक्रमणसूत्र, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १४-३ (१ से ३) = ११, जैदेना., पू.वि. बीच के पत्र हैं., ( २४x१०, ६x२२). श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा., प+ग, आदि:-; अंतिः १५६३. अजितशान्ति स्तवन सह टबार्थ, पूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ८, जैदेना., पू. वि. अंतिम पत्र नहीं है. गा.३६ तक है., (२६४११, ५४२८). अजितशान्ति स्तव, आ. नन्दिषेणसूरि, प्रा., पद्य, आदिः अजियं जिय सव्वभयं; अंति:अजितशान्ति स्तव-टबार्थ, मागु., गद्य, आदि: अजितनाथ जीता छइ सर्व; अंति: " " १५६४. नवस्मरण, प्रतिपूर्ण, वि. १८वी श्रेष्ठ, पृ. १०, जैदेना. प्र. वि. कल्याणमन्दिर नहीं है, (२५४१२.५, १४९४०). नवस्मरण, आ. अनेक श्रुतस्थविर, प्रा. सं., प+ग, आदिः नमो अरिहन्ताणं० हवइ; अंतिः जैनं जयति शासनम् . १५६६. गौतम रास, संपूर्ण, वि. १८८०, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना., ले. स्थल. सिरोही, ले. ऋ. लालचन्द (गुरु ऋ. जसकरण), प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र. वि. गा.६६, (२५x१०.५, ११×३२). गीतमस्वामी रास, आ. विजयभद्रसूरि मागु, पद्य, आदि वीर जिणेसर चरण कमल: अंतिः वृद्धि गर सम्पजे ए. १५६७. सोलसती स्वाध्याय, स्तुति व गौतमस्वामी रास, संपूर्ण वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १० पे ३ जैदेना, (२५.५४१२, १x२७) For Private And Personal Use Only Page #215 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir १६१ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची पे. १. १६ सती सज्झाय, मु. उदयरत्न, मागु., पद्य, (पृ. १-३अ), आदिः श्रीआदिनाथ आदि जिनवर; अंतिः लेसे सुख सम्पदा ए., पे.वि. गा.१७. पे. २. पे. नाम. सोलसती नाम, पृ. ३अ १६ सती स्तुति, सं., पद्य, आदिः ब्राह्मी चन्दनबालिका; अंतिः कुर्वन्तु वो मङ्गलम्., पे.वि. श्लो.१. पे. ३. गौतमस्वामी रास, मु. उदयरत्न, मागु., पद्य, (पृ. ३आ-१०), आदिः वीर जिणेसर चरण; अंतिः मनवञ्छित आस्या फले ए., पे.वि. गा.६८. १५६८." भक्तामर स्तोत्र व चतुर्विंशतिजिन नाम, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, पे. २, जैदेना., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२५.५४१०.५, ९४३०). पे. १. भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुङ्गसूरि, सं., पद्य, (पृ. १-६), आदिः भक्तामरप्रणतमौलिमणि; अंतिः समुपैति लक्ष्मी., पे.वि. श्लो.४४. पे. २.२४ जिन नाम, सं., गद्य, (पृ. ६अ), आदिः ऋषभ १ अजित २ श्रीसम; अंतिः पार्श्व वर्द्धमान. १५७१. सम्बोधसत्तरि प्रकरण सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, जैदेना., ले. पं. धर्ममन्दिर, प्र.वि. मूल-गा.७४., पदच्छेद सूचक लकीरें, (२५.५४११, ५४३७). सम्बोधसप्ततिका, आ. जयशेखरसूरि, प्रा., पद्य, आदिः नमिऊण तिलोअगुरुं; अंतिः लहई नत्थि सन्देहो. सम्बोधसप्ततिका-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः नमस्कार करीनइ तिन; अंतिः पामइ इहां सन्देह नही. १५७२. क्षुल्लककुमार व वस्तुपाल-तेजपाल रास, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, पे. २, जैदेना., (२५.५४११, १५४३६). पे. १. क्षुल्लककुमार रास, उपा. समयसुन्दर गणि, मागु., पद्य, वि. १६९४, (पृ. १-४अ), आदिः पारसनाथ प्रणमी करी; अंतिः लहिज्यो लील विलासोजी., पे.वि. गा.५४,ढाळ-४. पे. २. वस्तुपालतेजपालमन्त्री रास, उपा. समयसुन्दर गणि, मागु., पद्य, वि. १६८२, (पृ. ४अ-५आ), आदिः सरसति सामिणि मनि; अंतिः सुणतां परम उल्लास., पे.वि. गा.४०,ढाळ-२. १५७३. ऋषभ, पार्श्वजिन स्तवन, गौतम स्तुति व श्लोकादि सङ्ग्रह, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ५, पे. ७, जैदेना., ले. मु. ज्ञानसागर (गुरु उपा. क्षमालाभ), (२६४११, ११४४२). पे. १. आदिजिन विनतिस्तवन-शत्रुजयमण्डन, मु. लावण्यसमय, मागु., पद्य, वि. १५६२, (पृ. १-३अ, संपूर्ण), आदिः जय पढम जिणेसर; अंतिः लावण्यसमें भणे ए., पे.वि. गा.४५. पे. २. पार्श्वजिन स्तवन-वटपद्रचिंतामणि, मु. गुणसागर, मागु., पद्य, (पृ. ३आ-५अ, संपूर्ण), आदिः जय जय गुरु देवाधिदेव; अंतिः जिम न पहुं संसारी., पे.वि. गा.१४. पे. ३. गौतमस्वामी छन्द, मु. लावण्यसमय, मागु., पद्य, (पृ. ५अ-५आ, अपूर्ण), आदिः वीर जिणेसर केरो सीस; अंतिः-, पे.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. गा.२ लिखा है. पे. ४. सप्ततिशतस्थान, प्रा., पद्य, (पृ. ५आ, संपूर्ण), आदिः अट्ठण्हं जणणीओ; अंतिः अट्ठ बोद्धव्वा., पे.वि. गा.२. पे. ५. पे. नाम. गाथासङ्ग्रह जैन प्राकृत, पृ. ५आ, संपूर्ण जैन गाथा *, प्रा., पद्य, आदिः#; अंतिः#., पे.वि. गा.३. पे. ६.७ समुद्घात, प्रा.,मागु., पद्य, (पृ. ५आ, संपूर्ण), आदिः वेयण कसाय मरणे; अंतिः त्रिन्ह समय अणाहारी., पे.वि. गा.२. पे. ७. पे. नाम. गाथासङ्ग्रह जैन संस्कृत+प्राकृत, पृ. ५आ, संपूर्ण जैन गाथा *, सं.,प्रा., पद्य, आदिः #; अंतिः #., पे.वि. गा.२. १५७५. श्रीपाल रास सह बालावबोध, प्रतिपूर्ण, वि. १८७२, श्रेष्ठ, पृ. ४१, जैदेना., ले.स्थल. आभापुरीनगर, ले. ऋ. मोहन, For Private And Personal Use Only Page #216 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य भाग - १ १६२ राज्यकाल- राजा त्रीलोक्यनाथ जैन, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. प्र.पु. मूल-गा.३८३., टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२५.५४१२, ६-१७४३४-४१). श्रीपाल रास, उपा. विनयविजय , उपा. यशोविजयजी गणि, मागु., पद्य, वि. १७३८, आदि:-; अंतिः लहसे ज्ञान विशालाजी. श्रीपाल रास-बालावबोध* , मागु., गद्य, आदि:-; अंतिः समापती कुर्वन्ती. १५७७. सुखविपाक सह टबार्थ श्रुतस्कन्ध-२, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, जैदेना., (२५.५४१२, ९x४३). विपाकसूत्र-हिस्सा सुखविपाक द्वितीयश्रुतस्कन्ध, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं तेणं; अंति: सेसं जहा आयारस्स. विपाकसूत्र-हिस्सा सुखविपाकद्वितीयश्रुतस्कन्ध का टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः ते उत्सर्पणीनो चोथो; अंतिः#. १५७८. नमीरायऋषि सातढाल, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदेना., पठ. साध्वीजी प्रतापां (गुरु साध्वीजी खुसाली), प्र.वि. ढाळ-७, (२५.५४११, १०४३३). नमिराजर्षि ढाल, ऋ. आसकर्ण, मागु., पद्य, वि. १८३९, आदिः सासण नायक समरीये; अंतिः दुकडंजी होयजी. १५८१.” कर्मग्रन्थ १-४ सह टबार्थ व सन्थारा पोरसीसूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २१-१(१४)=२०, पे. ५, जैदेना.,प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, संशोधित, पू.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., (२५४११, ४४१२). पे. १. पे. नाम. प्रथम कर्मग्रन्थ सह टबार्थ, पृ. १आ-९आ, संपूर्ण कर्मविपाक नव्य कर्मग्रन्थ , आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, आदिः सिरिवीरजिणं वन्दिय; अंतिः लिहिओ देविन्दसूरीहिं. कर्मविपाक नव्य कर्मग्रन्थ-टबार्थ, मु. धनविजय, मागु., गद्य, वि. १७वी, आदिः (१) शारदां वरदां (२) श्रीमहावीर प्रति; अंतिः ए कर्मग्रन्थ लिख्यो., पे.वि. मूल-गा.६०. पे. २. पे. नाम. कर्मग्रन्थ द्वितीय सह टबार्थ, पृ. १०अ-१५अ, अपूर्ण कर्मस्तव नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, आदिः तह थुणिमो वीरजिणं; अंतिः वन्दियं नमह तं वीरं. कर्मस्तव नव्य कर्मग्रन्थ-टबार्थ, मु. धनविजय, मागु., गद्य, आदिः तिम हुं स्तवु छु; अंति: श्रीमहावीर प्रतिइं., पे.वि. मूल-गा.३४. बीच का एक पत्र नहीं है. गा.२८ से ३३ नहीं है. पे. ३.पे. नाम. तृतीय कर्मग्रन्थ सह टबार्थ, पृ. १५अ-१९आ, संपूर्ण बन्धस्वामित्व नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, आदिः बन्धविहाणविमुक्कं; अंति: नेयं कम्मत्थयं सोउं. बन्धस्वामित्व नव्य कर्मग्रन्थ-टबार्थ, मु. धनविजय, मागु., गद्य, आदिः कर्मबन्धथी मुकाणउं; अंतिः कर्मस्तव साम्भली., पे.वि. मूल-गा.२५. पे. ४. पे. नाम. चतुर्थ कर्मग्रन्थ सह टबार्थ, पृ. १९आ-२१आ-, अपूर्ण षडशीति नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, आदिः नमिय जिणं जिय; अंति:षडशीति नव्य कर्मग्रन्थ-टबार्थ, मु. धनविजय, मागु., गद्य, आदिः नत्वा जिन तीर्थङ्कर; अंतिः-, पे.वि. अंत के __ पत्र नहीं हैं. प्रारंभ से गा.१५ तक है. पे. ५. सन्थारापोरसीसूत्र, प्रा., पद्य, (पृ. १अ, अपूर्ण), आदिः अणुजाणह परम गुरु; अंतिः-,पे.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. १५८२." अजितशान्ति स्तवन सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १८-३(१,७ से ८)=१५, जैदेना., प्र.वि. मूल-गा.३९., पदच्छेद सूचक लकीरें, संशोधित, पू.वि. गा.१ से ४ नहीं है तथा गा.१७-१८ आंशिक है., (२५४११.५, ११४३८). अजितशान्ति स्तव , आ. नन्दिषेणसूरि, प्रा., पद्य, आदि:-; अंतिः जिणवयणे आयरं कुणह. अजितशान्ति स्तव-बालावबोध , गणि मेरुसुन्दर, मागु., गद्य, आदि:-; अंतिः सविहुनइं कल्याण हुवउ. For Private And Personal Use Only Page #217 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org: Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १६३ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची " १५८३. मयणरेहा रास, अपूर्ण, वि. १८उ श्रेष्ठ, पृ. ७ जैदेना. पु. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. गा. ९२ तक है. (२५४१०.५, १३X३२). मदनरेखा रास, मागु., पद्य, आदि: श्रीजिन चउवीसइ नमी; अंतिः १५८५. जीव विचार, नवतत्त्व, दण्डक प्रकरण व ऋषभजिन स्तवन संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ११ पे ४ जैदेना, (२४.५x१०.५, १०x२७-३१). पे. १. जीवविचार प्रकरण, आ. शान्तिसूरि, प्रा., पद्य, (पृ. १- ४अ), आदिः भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंतिः रुद्दाओ सुयसमुद्दाओ., पे.वि.गा. ५०. पे. २. नवतत्त्व प्रकरण, प्रा. पद्य (पृ. ४अ-७आ), आदि जीवाजीवा पुण्णं पावा अंतिः भेएहिं उदाहरणं. पे.वि. गा.६१. पे. ३. दण्डक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, (पृ. ७आ-११अ) आदि नमितं चडवीस अंतिः एसा विनत्ति अप्पहिआ.. पे.वि. गा. ४१. पे. ४. आदिजिन स्तवन, मु. लालचन्द, मागु, पद्य वि. १८३९ (पृ. ११) आदि ऋषभ जिणेसर त्रिभुवन अंति बीकानेर मझारो रे.. पं.वि. गा.११. १५८७. चारमङ्गल चौपाई, संपूर्ण, वि. १९६८, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदेना., ले. स्थल. नागोर, प्र. वि. ढाळ -५ (२४४१२, १६५०-५३). ४ मङ्गल रास . जेमल, राज, पद्य, आदि अनन्त चोवीसी जिण अति: ज्ये पोहचो निरवाण " १५८८. मेणरेहा चरित्र (मयरेहा), संपूर्ण, वि. २०वी मध्यम, पृ. ५. जैदेना. प्र. वि. गा.१७९ (२५.५४११.५, १५९४८-५०% मदनरेखा चौपाई, मागु, पद्य, आदि विसन सातमो परिनारनो अंतिः हीरे सेवग चित्त लाई. १५८९. अन्तगडदशाङ्गसूत्र, संपूर्ण वि. १६७१, श्रेष्ठ, पृ. ३७, देना. ले. स्थल, जेसलमेर, ले. श्रा. सांगलदास हरिदास, पठ. साध्वीजी तारू आर्या, प्र. वि. ग्रं. ८९९ अध्याय-९२ प्र.पु. ग्रं. १८५० ग्रंथाग्र बाद में लिखा गया है. प्र. ले. श्लो. (५०९) यादृशं पुस्तके दृष्टं (२६.५४११.५, १३४२८). अन्तकृद्दशाङ्गसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा. गद्य, आदि: तेण कालेनं० चम्पा०: अंतिः अयमठ्ठे पण्णत्ते. १५९०. षडावश्यक सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १८उ., श्रेष्ठ, पृ. ७८, जैदेना., ले. मु. पद्मकुशल, प्र.वि. प्र.पु. बालावबोध-ग्रं. ३८५०. बालावबोधकार का नामोल्लेख नहीं है., ( २६४११, १६४४३). आवक प्रतिक्रमणसूत्र- तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा. प+ग, आदि नमो अरिहन्ताणं०: अंतिः #. श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय- बालावबोध, पं. हेमहंस गणि, मागु., गद्य, वि. १५०१, आदिः श्रेयांसि श्रीमहावीर; अंतिः मोक्ष फलदाईउ थाइ. १५९१. श्राद्धपाक्षिक अतिचार, संपूर्ण वि. १९३३ श्रेष्ठ, पृ. ८, जैदेना. ले. पं. ज्ञानानन्द, पठ. श्री. नाथु (२६.५४११.५, १३४३६) श्रावकपाक्षिक अतिचार-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा., मागु., गद्य, आदि: नाणम्मि दंसणम्मि०; अंतिः मिच्छामि दुक्कडम्. १५९४.” सूत्रकृताङ्गसूत्र अध्ययन ६ व उत्तराध्ययनसूत्र अध्ययन ९-१०, संपूर्ण, वि. १९९४, श्रेष्ठ, पृ. ७, पे. २, जैदेना., प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें (२४.५४१२ १२x२८). पे. १. पे नाम सूत्रकृताद्गसूत्र का हिस्सा वीरस्तुति अध्ययन, पृ. १-३अ संपूर्ण सूत्रकृतागसूत्र-हिस्सा वीरस्तुति अध्ययन, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., पद्य, आदि: पुच्छिंसुर्ण समणा: अंतिः देवाहिव आगमिस्सन्ति., पे.वि.गा. २९. अंत में पंचमहव्वय आदि ६ गाथाएँ लिखी है परंतु गाथा क्रमांक सळंग है. पे. २. पे. नाम. उत्तराध्ययनसूत्र - नमिप्रव्रज्या व दुमपत्तय अध्ययन, पृ. ३अ-७, प्रतिपूर्ण उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग, आदि:-; अंतिः १५९५. महादण्डक भाषा, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५६-४४ (१ से ४४ ) = १२, जैदेना., पू.वि. बीच के पत्र हैं., (२५x११, ९X३०). For Private And Personal Use Only Page #218 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य भाग - १ १६४ महादण्डक भाषा, मागु., गद्य, आदिः-; अंति:१५९७." नवतत्त्व सह टबार्थ, पूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ७-१(४)=६, जैदेना., ले. गणि लक्ष्मीविजय (गुरु पं. कमलविजय गणि), प्र.वि. मूल-गा.४७., टिप्पण युक्त विशेष पाठ, पू.वि. गा.१८ से २५ तक नहीं है., (२५.५४११, ४४३३). नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंतिः अणागयद्धा अणन्तगुणा. नवतत्त्व प्रकरण-टबार्थ', मागु., गद्य, आदि: जीवतत्त्व १ अजीव; अंतिः अनन्तगुणा हस्यइ. १५९८. बारहभावना वेलि, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १३-६(१ से ६)=७, जैदेना.,प्र.वि. गा.१२८; ग्रं. २००, (२५.५४१०.५, ११४३१). १२ भावना सज्झाय, उपा. जयसोम, मागु., पद्य, वि. १७०३, आदिः पास जिणेसर पाय नमी; अंतिः भणी जेसलमेर मझार. १५९९." नवतत्त्व प्रकरण सह टबार्थ, पूर्ण, वि. १८५१, श्रेष्ठ, प्र. ८-१(१)-७, जैदेना., ले. पं. उत्तमविजय, प्र.वि. मूल-गा.५०; प्र.पु. मूल-ग्रं. ३००., टिप्पण युक्त विशेष पाठ, पू.वि. गा.४ तक नहीं है व अन्तिम ५०वीं गाथा का टबार्थ नहीं है., (२५.५४१२.५, ४४२९). नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि:-; अंतिः बोहिय इक्कणिक्काय. नवतत्त्व प्रकरण-टबार्थ , मागु., गद्य, आदि:-; अंति:१६०२." जैनधर्मवरसंस्तवन सह स्वोपज्ञ वृत्ति, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ४५-९(१ से ९)=३६, जैदेना., प्र.वि. मूल-श्लो.४५., टिप्पण युक्त विशेष पाठ, द्विपाठ, संशोधित, पू.वि. गा.७ तक नहीं हैं., (२६४११.५, १४४४४). जैनधर्मवरसंस्तवन, आ. भावप्रभसूरि, सं., पद्य, आदिः कल्याणमन्दिरमिमं; अंतिः सदन्तिमपादलग्नम्. जैनधर्मवरसंस्तवन-स्वोपज्ञ टीका, आ. भावप्रभसूरि, सं., गद्य, वि. १७९१, आदि:-; अंतिः आश्रितमित्यर्थः. स्मर्ण प्रतिपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, प्र. ९, जैदेना., पृ.वि. बहत्शांति, भक्तामरस्तोत्र व कल्याणमंदिरस्तोत्र नहीं है. (२४.५४११, १०४३०). नवस्मरण, आ. अनेक श्रुतस्थविर, प्रा.,सं., प+ग, आदिः नमो अरिहन्ताणं० हवइ; अंति:१६०६. छब्बीसद्वार व जिनवर्ण, संपूर्ण, वि. १८४१, श्रेष्ठ, पृ. ९, पे. २, जैदेना., ले.स्थल. वलोलपुर, ले. ऋ. कुसालचन्द, (२७४११.५, १५४१६). पे. १.२४ दण्डक २६ द्वार विचार, मागु., गद्य, (पृ. १-९), आदिः सरीर अवगाहणा सङ्घयण; अंतिः तिन जोग पावइ. पे. २. तीर्थङ्कर शरीरवर्ण विचार, मागु., गद्य, (पृ. १अ), आदि. २० से २२ निलो वर्ण; अंतिः तीर्थंकरा को सोवनवरण. १६०७. उत्तराध्ययनसूत्र सह वृत्ति, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १०१, जैदेना., पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. अध्ययन-३ की निह्नव कथा-३ के श्लो.१८ तक है., (२५.५४११, १३४४४). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध , प्रा., प+ग, आदिः सञ्जोगाविप्पमुक्कस्स; अंति: उत्तराध्ययनसूत्र-अधिरोहिणी वृत्ति, मु. भावविजय, सं., गद्य, वि. १६८९, आदिः ॐ नमः सिद्धि; अंतिः१६०८." उपासकदशाङ्गसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २८, जैदेना., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. अध्ययन-३ प्रारंभिक पाठमात्र तक है., (२६४१२, ७४४४). उपासकदशाङ्गसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदिः तेणं० चंपा नामं नयरी; अंति: उपासकदशाङ्गसूत्र-टबार्थ, मागु., पद्य, आदिः साधुने उपसमीपे वर्ते; अंति:१६०९. अनुत्तरोववाईदशाङ्गसूत्र, संपूर्ण, वि. १६वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना., (२५.५४११.५, १५-१६x४८). अनुत्तरौपपातिकदशाङ्गसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदिः तेणं कालेणं० नवमस्स; अंतिः जहा धम्मकहा णेयव्वा. १६१०. अनुत्तरोववादियदसासूत्र, संपूर्ण, वि. १६वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, जैदेना., ले. नाथा, प्र.वि. प्र.पु. ग्रं. १९६., टिप्पण युक्त For Private And Personal Use Only Page #219 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra १६५ www.kobatirth.org: विशेष पाठ, दशा वि. विवर्ण अक्षरों की स्थाही फैल गयी है. (२६४१०.५, ११४३९). 1 अनुतरीपपातिकदशाङ्गसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी प्रा. प+ग, आदि: तेणं कालेणं० नवमस्स: अंतिः अयमट्ठे पण्णत्ते. १६११. अनुत्तरोववाईदसासूत्र सह वृत्ति, संपूर्ण वि. १६वी श्रेष्ठ, पृ. १०, जैदेना. प्र. वि. प्र.पु. मूल ग्रं. १९८. प्र. पु. टीका ग्रं. १०१., पंचपाठ, संशोधित, (२६×११, १३X३१). अनुत्तरीपपातिकदशाङ्गसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी प्रा. प+ग, आदिः तेणं कालेणं० नवमस्स: अंतिः अयमट्ठे पण्णत्ते. अनुत्तरौपपातिकदशाङ्गसूत्र- टीका, आ. अभयदेवसूरि, सं., गद्य, वि. १२वी, आदि: अथानुत्तरौपपातिकदशा; अंतिः मन्तकृद्दशाङ्गवदिति. (+) १६१२.” अन्तगडदशाङ्गसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५७, जैदेना., प्र. वि. संशोधित टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२५.५४१२, ७x४५). अन्तकृद्दशाङ्गसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी प्रा. गद्य, आदि: तेण कालेनं० चम्पा०: अंतिः अयमट्ठे पण्णत्ते. अन्तकृद्दशाङ्गसूत्र- टवार्थ, मागु, गद्य, आदि: ते० तेणे काले चउथो अंतिः धर्मकथानी परह जाणवो. ; Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १६१३. चउशरण प्रकरण सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १६४९, श्रेष्ठ, पृ. १२- ४(३ से ५,७ ) = ८, जैदेना., ले. स्थल राजनगर, ले. मु. सुमतिसुन्दर (गुरु गणि धर्मनिधान, बृहत्खरतरगच्छ ) पठ. साध्वीजी सौभाग्यमाला (गुरु साध्वीजी " विनयमाला). प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र. वि. मूल-गा.६३: बालावबोध ग्रं. ३४७ टिप्पण युक्त विशेष पाठ, पदच्छेद सूचक लकीरें, ( २६११, ९३४). चतुःशरण प्रकीर्णक, गणि वीरभद्र, प्रा., पद्य, आदिः सावज्ज जोग विरई: अंतिः कारणं निव्वुइ सुहाणं. चतुःशरण प्रकीर्णक- बालावबोध, मागु, गद्य, आदि नमो अरिहन्ताण अंतिः अनन्त सुख ते जीव लहइ. कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची , १६१४.” खरतरगच्छीय पट्टावली, संपूर्ण, वि. १८८७, श्रेष्ठ, पृ. २४, जैदेना., ले. स्थल. विक्रमपुर, पठ. पं. अभयचन्दजी, प्र. वि. संवत् १८८७ में ७० वे परंपरा क्रम तक श्री जिनहर्षसूरिजी तक का संकलन है तथा पत्रांक- २४वा परंपराक्रम-७१ संवत १८९२ में श्री जिनसौभाग्यसूरि बाद में जोड़ा गया है., टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२५.५x११.५, १५X३०). पट्टावली खरतरगच्छीय, वाचक क्षमाकल्याण, सं., गद्य वि. १८३०, आदिः प्रणिपत्य जगन्नाथं अंति जीर्णगढे०नवासी. (+) १६१५. उपासकदशाङ्गसूत्र, पूर्ण, वि. १५९९, श्रेष्ठ, पृ. ३६-२(३२ से ३३ ) - ३४, जैदेना, प्र. वि. ग्रं. ८१२ अध्याय- १० टिप्पण युक्त विशेष पाठ, पदच्छेद सूचक लकीरें (२६.५४११, ११४३७) उपासकदशाङ्गसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदि: तेणं० चंपा नामं नयरी; अंतिः दिवसेसु अङ्गं तहेव. १६१७. नवस्मरण, संपूर्ण, वि. १८०९, श्रेष्ठ, पृ. १४, जैदेना., ले. स्थल भीनमाल, ले. पं. सिद्धसागर, पठ. महेशदास, ( २४४१०, . १३X३९). नवस्मरण, आ. अनेक श्रुतस्थविर, प्रा. सं., प+ग, आदि नमो अरिहन्ताणं० हवइ अंति जैनं जयति शासनम्. " (+8) १६२१. कल्याणमन्दिर स्तोत्र सह टवार्थ, संपूर्ण वि. १८०२, मध्यम, पृ. ८ जैदेना ले. मु. हेमराज, प्र. वि. मूल- श्लो. ४४; टबार्थ-ग्रं. ४२५., टिप्पण युक्त विशेष पाठ, पदच्छेद सूचक लकीरें संधि 'सूचक चिह्न, दशा वि. विवर्ण-पानी से अक्षरों की स्याही फैल गयी है. (२६.५४११.५, ५४३३). For Private And Personal Use Only कल्याणमन्दिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकर, सं., पद्य, आदिः कल्याणमन्दिरमुदारमवद; अंतिः मोक्षं प्रपद्यन्ते. कल्याणमन्दिर स्तोत्र- टवार्थ, आ. वर्द्धमानसूर, मागु, गद्य, आदि: कल्याण कहता मङ्गलीक: अंतिः छइ ए स्तोत्रनो. १६२३."" उणादय, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ८, जैदेना., प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, दशा वि. विवर्ण-पानी से अक्षरों की स्याही फैल गयी है, (२७४१२, १०x३८). सिद्धहेमशब्दानुशासन- उणादिगणसूत्र, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, संबद्ध, सं., गद्य वि. १२वी, आदि Page #220 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य भाग - १ १६६ कृवापाजिस्वदिसाध्यशौ; अंतिः वहेः क्विप् सश्च डा. १६२४. ज्योतिषसार, अपूर्ण, वि. १९०४, श्रेष्ठ, पृ. १४, जैदेना., ले. मु. हुकमचन्द्र, प्र.वि. प्रत के अन्त में उर्दू लिपि में कुछ लिखा हुआ है., पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. अध्याय-२ के श्लो.४ तक है., (२६४१२, ९४२३). ज्योतिषसार, आ. नरचन्द्रसूरि, सं., पद्य, आदिः श्रीअर्हन्तजिनं; अंति:१६२५. जयतिहुअण स्तोत्र सह बालावबोध व अष्टलब्धि, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ७-१(५)=६, पे. २, जैदेना., (२६.५४११, २१४५२). पे. १. पे. नाम, जयतिहुअण स्तोत्र सह बालावबोध, पृ. १-७आ, अपूर्ण जयतिहुअण स्तोत्र, आ. अभयदेवसूरि , प्रा., पद्य, आदिः जयतिहुयणवर कप्परुक्ख; अंतिः विण्णवइ अणिन्दिय. जयतिहुयण स्तोत्र-बालावबोध, गणि मेरुसुन्दर, मागु., गद्य, आदिः जय सर्वोक्तर्षेण; अंतिः मेरुसुंदर गणिना., पे.वि. मूल-गा.३०. बीच का एक पत्र नहीं है. पे. २. अष्टलब्धि, सं., गद्य, (पृ. ७आ, संपूर्ण), आदिः अणिमा महिमा लघिमा; अंति: जीव वशीकरण लब्धि. १६२६. अजितशान्ति स्तव सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ६, जैदेना., पठ. भगवानजी, प्र.वि. मूल-गा.४०., (२६४११, ७४३४). अजितशान्ति स्तव , आ. नन्दिषेणसूरि, प्रा., पद्य, आदिः अजियं जिय सव्वभयं; अंतिः जिणवयणे आयरं कुणह. अजितशान्ति स्तव-टबार्थ, मागु., गद्य, आदि: अजितनाथ जीता छइ सर्व; अंतिः तेहनइ विषे आदर करो. १६२८. कल्पसूत्र, पूर्ण, वि. १९६०, श्रेष्ठ, पृ. ६२-१(२)=६१, जैदेना., ले.स्थल. धीमणगांव-दतापुर, ले. ऋ. अनोपचन्द (गुरु ऋ. भवानीराम, बृहन्नागोरी लुङ्कागच्छ), प्र.वि. ९-व्याख्यान; प्र.पु. मूल-ग्रं. १२५०, (२६.५४१२, ९४३८). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदिः णमो अरिहन्ताणं० पढमं; अंतिः उवदंसेइ त्ति बेमि. १६३०. प्रतिक्रमणसूत्र सङ्ग्रह व बीज स्तुति, संपूर्ण, वि. १८५०, मध्यम, पृ. ९, पे. २, जैदेना., ले. श्रा. मोतीचन्द, (२७४१०, १०x२८). पे. १. पे. नाम. प्रतिक्रमणसूत्र सङ्ग्रह, पृ. १अ-९अ प्रतिक्रमणसूत्र सङ्ग्रह-श्वे.मू.पू.*, संबद्ध, प्रा.,सं.,मागु., प+ग, आदिः नमो अरिहन्ताणं; अंतिः कार्येषु सिद्धिम्. पे. २. बीजतिथि स्तुति, मु. लब्धिविजय, मागु., पद्य, (पृ. ९आ), आदिः दिन सकल मनोहर; अंतिः पुरो मनोरथ माय., पे.वि. गा.४. १६३१." चउवीसदण्डक विचारछत्रीसी सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८१०, मध्यम, पृ. ७, जैदेना., प्र.वि. मूल-गा.४५., संशोधित, (२५४११, ४४३६). दण्डक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, आदि: नमिउं चउवीस; अंतिः एसा विनत्ति अप्पहिआ. दण्डक प्रकरण-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः नमस्कार करी चउवीस; अंतिः निमित्तइं प्रकास्यउ. १६३२. हेमीनाममाला, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १८-१(६)=१७, जैदेना., पू.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं. कांड-३ के श्लो.१५९ तक है., (२४.५४१०.५, १४४३२). अभिधानचिन्तामणि नाममाला, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, आदिः प्रणिपत्यार्हतः; अंति:१६३३.” दशवैकालिकसूत्र, अपूर्ण, वि. १८९६, श्रेष्ठ, पृ. १९-८(१ से ६,९ से १०)=११, जैदेना., ले.स्थल. हांसी, ले. मु. आत्माराम साधु, प्र.वि. अध्याय-अध्ययन१०, पू.वि. अध्ययन-५ गा.२३ तक नहीं हैं., दशा वि. अक्षर फीके पड गये हैं अंत के कुछ पत्र, (२४.५४१२, १५४३९-४४). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यम्भवसूरि, प्रा., पद्य, वि. पू.४, आदि:-; अंतिः गई त्ति बेमि. १६३४." नवस्मरण व लघुशान्ति सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १७७९, मध्यम, पृ. ३७-३(३४ से ३६)=३४, पे. २, जैदेना., प्र.वि. For Private And Personal Use Only Page #221 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra १६७ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची अक्षर अवाच्य, दशा वि. विवर्ण-पानी से अक्षरों की स्याही फैल गयी है, विवर्ण अक्षर मिट गए हैं-बीच के कुछ पत्र, ( २६११.५, ४X३३-३६). पे. १. पे. नाम. नवस्मरण सह टबार्थ, पे. २. पे. नाम. लघुशान्ति सह टबार्थ, पृ. - ३७ पृ. १-३३ नवस्मरण, आ. अनेक श्रुतस्थविर, प्रा.सं., प+ग, आदि:-; अंति: नवस्मरण-टबार्थ, मागु, गद्य, आदि: अंति, पे. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. (+) www.kobatirth.org: लघुशान्ति, आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, आदि:-: अंति: लघुशान्ति-टवार्थ मागु, गद्य, आदि:- अंति: पे.वि. मूल श्लो. १७. बीच के पत्र नहीं हैं. " " १६३५. नन्दीसूत्र व अनुज्ञानन्दीसूत्र, पूर्ण, वि. १९वी मध्यम पृ. २४- १ ( १ ) - २३, पे. २ जैदेना. प्र. वि. प्र. पु. सर्वग्रं. ७५०. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, संशोधित, पदच्छेद सूचक लकीरें (२४४११.५ १४४३६). 1 " " पे. १. नन्दी सूत्र, आ. देववाचक, प्रा. प+ग, (पृ. २-२१अ पूर्ण), आदि- अंति से तं परोक्खणाणं, पे. वि. प्रथम पत्र " नहीं है. अध्ययन- १ का प्रारंभिक अंश नहीं है. " Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पे. २. लघुनन्दीसूत्र अनुज्ञानन्दीसूत्र, आ. देववाचक, प्रा., गद्य (पृ. २१अ-२४अ संपूर्ण), आदि से किं तं अणुण्णा अंतिः वीसमणुण्णाए णामाई. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ७ जैदेना. (२५०११ १३४३५). १६३६. जीवभेद रा ५६३ बोल थोकडा, संपूर्ण वि. जीव के पांचसीतिरसठवोल थोकडा, मागु, गद्य आदि जीव गइ इन्दीये काये अंतिः तीनसोने एकावन थया. १६३७. दृष्टान्त कथानक सङ्ग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ११, जैदेना., ले. स्थल. नागोर, ( २४.५X११, २१x२६). दृष्टान्त कथानक सङ्ग्रह मागु, गद्य, आदि राजगृही नगरी अंतिः नाक धरा काटीया. i १६३८. नन्दीसूत्रपाठ, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १४, जैदेना., (२५.५×११.५, १६४५०). नन्दीसूत्र, आ. देववाचक, प्रा., प+ग, आदिः जयइ जगजीवजोणीवियाणओ; अंतिः से तं परोक्खणाणं. १६३९.* जम्बुवती रास, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ८, जैदेना, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. दशा वि. विवर्ण-पानी से अक्षरों की स्याही फैल गयी है कुछ पत्र- अल्प, (२५४११, १४४३४). जम्बूवती चौपाई, मु. सूरसागर, मागु., पद्य, आदि: पहिली ढाल सोहामणी; अंति: १६४१. नन्दिषेण चौपाई, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, जैदेना., (२५.५×११.५, १५४४५). नन्दिषेणमुनि चौपाई. मु. मतिसार, मागु पद्य वि. १८०३, आदि वर्द्धमान चौविसमो अंतिः नवनिधि मङ्गलमालो रे. १६४२. उत्तराध्ययनसूत्र अध्ययन ३६ प्रतिपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, जैदेना, (२५.५x१२, १६x४४). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा. प+ग, आदि-: अंतिः सम्मए त्ति बेमि , १६४४. श्राद्धपाक्षिक अतिचार, संपूर्ण, वि. १८५३, मध्यम, पृ. ७, जैदेना., ले. स्थल. कालद्री, ले. गणि नायकविजय (गुरु गणि कपूरविजय), (२६.५x११, १३×३३). श्रावक पाक्षिक अतिचार तपागच्छीय संबद्ध, प्रा. मागु., गद्य, आदि: नाणम्मि दंसणम्मि०: अंतिः मिच्छामि दुक्कडम्. १६४५. कर्मग्रन्थषट्क, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १७२ - १४६ (१ से १४६ ) = २६, पे. ६, जैदेना., ( २४.५x१०.५, ९४३७). पे. १. पे. नाम. प्रथम कर्मविपाक कर्मग्रन्थ, पृ. १४७अ - १५१अ संपूर्ण कर्मविपाक नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, आदिः सिरिवीरजिणं वन्दिय; अंतिः लिहिओ देविन्दसूरीहिं., पे.वि. गा. ६०. पे. २. पे. नाम. कर्मस्तव सूत्र, पृ. १५१अ- १५३आ, संपूर्ण For Private And Personal Use Only कर्मस्तव नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: तह थुणिमो वीरजिणं; अंतिः वन्दियं नमह तं वीरं ., पे.वि. गा. ३४. Page #222 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य भाग १ www.kobatirth.org: पे. ३. पे. नाम. बन्धस्वामि प्रकरण, पृ. १५३आ-१५५, संपूर्ण बन्धस्वामित्व नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि प्रा. पद्य, आदि बन्धविहाणविमुक्कं अंतिः नेयं कम्मत्थयं सोउं.. पे.वि. गा.२५. पे. ४. पे. नाम. षडशीतिका चतुर्थ कर्मग्रन्थ, पृ. १५५अ - १६०आ, संपूर्ण षडशीति नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, आदिः नमिय जिणं जिय; अंतिः देविन्दसूरीहिं., पे.वि. गा.८७. पे. ५. पे नाम. शतक सूत्र, पृ. १६०आ- १६६अ, संपूर्ण शतक नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, आदिः नमिय जिणं धुवबन्धोदय; अंतिः सयगमिणं आयसरणट्ठा, पे. वि. गा. १००. पे. ६. पं. नाम सप्ततिका सूत्र, पृ. १६०अ १०७२, संपूर्ण Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सप्ततिका कर्मग्रन्थ, प्रा., पद्य, आदि: सिद्धपएहिं महत्थं; अंति: (१) पूरेऊणं परिकहन्तु (२) एगुणा होइ नउइओ., वि. मा.२९३. (+) १६४८. उत्तराध्ययनसूत्र सह टवार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी जीर्ण, पृ. १६३-४४ (१ से ३८, १४२, १४६, १४८, १५० से १५१,१६०)+१(८४)=१२०, जैदेना. प्र. वि. मूल-३६ अध्ययन, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२७.५५११, ५४२८-३३). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग, आदि:-; अंतिः उत्तराध्ययन सूत्र- टवार्थ+ कथा सङ्ग्रह. मु. पार्श्वचन्द्रसूरि-शिष्य मागु, गद्य, आदि- अति: " १६४९. अम्बड चरित्र, संपूर्ण, वि. १७वी, जीर्ण, पृ. १८ जैदेना, राज्यकाल राजा गजसिंह, ले. मु. सारङ्ग ( खरतरगच्छ). प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. गा. ५०१ (२४.५x१०.५, १५X४४-४६ ) . अम्बड चरित्र. मु. विनयसमुद्र मागु, पद्य, आदि: पहिलउ पणम आदि वलि अंतिः कही मन भाव. १६५०.” दशवैकालिकसूत्र अध्ययन १ से ४, प्रतिपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ६, जैदेना., प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें, (२५.५०१२. १६४३६) दशवैकालिकसूत्र आ. शय्यम्भवसूरि प्रा. पद्य वि. पू.४ आदि धम्मो मङ्गलमुक्किट्ठ: अंति- , " १६८ १६५३. देवकीगजसुकुमाल चरित्र चौपाई, संपूर्ण, वि. २०वी मध्यम, पृ. ६, जैदेना. प्र. वि. ढाळ-१५ (२६४१२.५, १६४४०). " गजसुकुमाल चीपाई मु. माधव, मागु, पद्य, आदि रिठनेमि नामे हुवा अंतिः इसीए० आण रिदय विवेक. " १६५४. तत्त्वार्थसूत्र, संपूर्ण, वि. १८९१, श्रेष्ठ, पृ. ११, जैदेना., ले. स्थल. वडनगर, ले. धनेश्वर, पठ. साध्वीजी सुन्दरमतीबाई, प्र. वि. श्लो. १९८, अध्याय १० अन्त में प्राकृत संस्कृत श्लो 9 में तत्त्वार्थसूत्र- फलश्रुति दी गयी है. (२५४१२, ११४३०). तत्त्वार्थाधिगमसूत्र, वाचक उमास्वाति, सं., प+ग, आदिः सम्यग्दर्शनज्ञान; अंतिः चिरेण परमार्थम्. , (W) १६५६. वीसस्थानक पूजा, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १५, जैदेना., ले. स्थल जमालपुर (राजनगर, ले. पं. अमृतविजय, लिखवा. पं. रूपविजय, प्र. वि. डाळ - २१. गौडी प्रसादात् दशा वि. विवर्ण- पानी से अक्षरों की स्याही फैल गयी है-, अक्षर मिट गए हैं, चिपके पत्र अलग करते वक्त विशीर्ण, (२५.५x११.५, १४४३५). .. २० स्थानक पूजा, पं. रूपविजय, मागु पद्य वि. १८८३, आदि: सुरपति श्रीपति नरपति: अंतिः रूपविजय सुहङ्करो. १६५७.” श्राद्धप्रतिक्रमणसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, जैदेना., प्र. वि. संबद्ध-गा. ५०. टबार्थ गाथा ४३ तक है टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२७४१२.५, ४४३०). वन्दित्तसूत्र, संबद्ध, प्रा., पद्य, (संपूर्ण), आदिः वन्दित्तु सव्वसिद्धेः अंतिः वन्दामि जिणे चउवीसं. वन्दित्तुसूत्र - टबार्थ *, मागु., गद्य, (पूर्ण), आदि: वन्दितु क० वान्दीनै; अंतिः १६५८. दशवैकालिक सज्झाय, पूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ५. जैदेना, पृ. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. अध्ययन- १० की गा.३ तक है. (२४४१२, १२४३२). For Private And Personal Use Only Page #223 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir १६९ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची दशवैकालिकसूत्र-सज्झाय, मु. जैतसी, संबद्ध, मागु., पद्य, वि. १७१७, आदिः धर्ममङ्गल महिमा; अंति:१६६१.” मोक्षमार्ग वचनका, अपूर्ण, वि. २०वी, जीर्ण, पृ. ४०, जैदेना., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., (२५४१३, १२४३१). मोक्षमार्ग वचनिका, मागु., गद्य, आदिः तत्र प्रथम जीव अनादि; अंतिः१६६२. चन्द चरित्र, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १९-७(१ से ७)=१२, जैदेना., पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. विलास-१ ढाल-७ गा.३ से विलास-२ ढाल-१ गा.१० तक है., (२६४१२, १५४३६). चन्द्रराजा रास, मु. मोहनविजय, मागु., पद्य, वि. १७८३, आदि:-; अंति:१६६३." समवायाङ्गसूत्र सह वृत्ति, पूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ८५-२(८२ से ८३)=८३, जैदेना., प्र.वि. मूल-१०३अध्ययन; प्र.पु. मूल-ग्रं. १६६७. प्र.पु. टीका-ग्रं. ३८७०., त्रिपाठ, दशा वि. विवर्ण-पानी से अक्षरों की स्याही फैल गयी है-, अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, (२६४११, ६४५४). समवायाङ्गसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदिः सुयं मे० इह खलु; अंतिः अज्झयणन्ति त्तिबेमि. समवायाङ्गसूत्र-वृत्ति, आ. अभयदेवसूरि , सं., गद्य, वि. ११२०, आदिः श्रीवर्द्धमानमानम्य; अंतिः वृत्तितः समाप्तम्. १६६४. साधुश्रावकप्रतिक्रमणसूत्र सङ्ग्रह (पायचन्दगच्छीय), संपूर्ण, वि. १८८१, श्रेष्ठ, पृ. ९, जैदेना., ले.स्थल. उज्जैननगर, पठ. ऋ. सौभाग्यचन्द; ऋ. फतैचन्द; गणेश, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. अंत मे प्रतिक्रमण विधि दी है., (२५.५४१३.५, १७४३३). साधुश्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-पायचन्दगच्छीय, संबद्ध, प्रा., प+ग, आदिः नमो अरिहन्ताणं; अंतिः काउसग्ग करणो. १६६५. दण्डकछत्तीसी सह अर्थ, संपूर्ण, वि. १८७०, मध्यम, पृ. १९-६(१ से ६)=१३, देना., ले.स्थल. ढाका-बंग्लादेश, ले. पं. उत्तमचन्द,प्र.वि. मूल-गा.३९., दशा वि. विवर्ण-पानी से अक्षरों की स्याही फैल गयी है, (२५.५४११.५, १३४५२). दण्डक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, आदिः नमिउं चउवीस; अंतिः एसा विनत्ति अप्पहिआ. दण्डक प्रकरण-अर्थ, राज., गद्य, आदिः चोवीस तिर्थङ्करजीने; अंतिः तिर्थंकराजीरी स्तुति. १६६८. द्वितीय कर्मग्रन्थ यन्त्र, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, जैदेना., प्र.वि. *पंक्ति-अक्षर अनियमित है, (२४.५४१३.५४). कर्मस्तव नव्य कर्मग्रन्थ-यन्त्र, मु. सुमतिवर्द्धन, मागु., यंत्र, आदिः बन्ध प्रकृतिओ छे; अंति: १३ अथवा १२ विच्छेद. १६६९. उपदेशमाला सह बालावबोध व कथा, संपूर्ण, वि. १८६४, श्रेष्ठ, पृ. ७९, देना., ले.स्थल. नवानगर, ले. मु. माहवजी (गुरु गणि विनयमूर्ति, अचलगच्छ), प्र.वि. मूल-गा.५४४. प्र.पु. कथा-६७., (२८.५४१३, ६४३२-३५). उपदेशमाला, गणि धर्मदास, प्रा., पद्य, आदिः (१) नमिऊण जिणवरिन्दे (२) जगचूडामणिभूओ उसभो; अंतिः वयण विणिग्गया वाणी. उपदेशमाला-बालावबोध, मागु., गद्य, आदि: नमस्कार करीने; अंतिः थकी नीकली वाणी. उपदेशमाला-कथा सङ्ग्रह, सं., गद्य, आदिः प्रणम्य गुरुपादाब्जं; अंतिः संसारे परिभ्रमिष्यसि. १६७०. कल्पसूत्र सह टबार्थ व व्याख्यान+कथा, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३७, जैदेना., पू.वि. प्रारंभ के पत्र हैं. महावीरस्वामी के दस अछेरा वर्णन तक है., (२६.५४१३, ६-१३४२६-४१). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदिः णमो अरिहन्ताणं० पढमं; अंति:कल्पसूत्र-टबार्थ', मागु., गद्य, आदिः (१) अरिहन्तनइ माहरो (२) ते कालनइ विषइ चतुर्थ; अंति: कल्पसूत्र-व्याख्यान+कथा* , मागु., गद्य, आदिः कोइक साधु गुरुनी; अंतिः१६७३. श्रीपाल रास सह टबार्थ-खण्ड ४, प्रतिपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४३, जैदेना., ले.स्थल. नवानगर, (२८x१३.५, ६४३७). श्रीपाल रास, उपा. विनयविजय , उपा. यशोविजयजी गणि, मागु., पद्य, वि. १७३८, आदि:-; अंतिः लहसे ज्ञान विशालाजी. For Private And Personal Use Only Page #224 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य भाग - १ १७० श्रीपाल रास-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः त्रीजो खण्ड पूरो; अंतिः उत्कण्ठा सम्पूर्ण थई. १६७४. चन्द्रराजा रास, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३६, जैदेना., पू.वि. अन्त के पत्र नहीं हैं. गा.१३१० तक है., (२८x१३, १७४५३). चन्द्रराजा रास , मु. मोहनविजय, मागु., पद्य, वि. १७८३, आदिः प्रथम धराधव तीम; अंतिः१६७५. नवपद पूजा, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २४-१२(१ से ९,११ से १३)=१२, जैदेना., प्र.वि. ढाळ-९, (२७४१३.५, ७x१४). नवपद उलाळा, गणि देवचन्द्र, मागु., पद्य, वि. १८वी, आदि:-; अंतिः तणा नाथ देवाधिदेवो. १६७७. कर्मग्रन्थ-१ से ३, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, पे. ३, जैदेना., (२५४११, १५४३५). पे. १. कर्मविपाक नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, (पृ. १-३अ), आदिः सिरिवीरजिणं वन्दिय; अंतिः लिहिओ देविन्दसूरीहिं., पे.वि. गा.६०. पे. २. कर्मस्तव नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, (पृ. ३अ-५अ), आदिः तह थुणिमो वीरजिणं; अंति: वन्दियं नमह तं वीरं., पे.वि. गा.३४. पे. ३. बन्धस्वामित्व नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, (पृ. ५अ-६), आदिः बन्धविहाणविमुक्कं; अंतिः नेयं कम्मत्थयं सोउं., पे.वि. गा.२५. १६७८. नवस्मरण, लघुशान्ति व तिजयपहुत्त स्तोत्र, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १६-५(९ से १३)=११, पे. ३, जैदेना., प्र.वि. अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ, संशोधित, पदच्छेद सूचक लकीरें, पू.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., दशा वि. विवर्ण-पानी से अक्षरों की स्याही फैल गयी है, (२५.५४११, १०४२७-२९). पे. १. नवस्मरण, आ. अनेक श्रुतस्थविर, प्रा.,सं., प+ग, (पृ. १-१६अ, अपूर्ण), आदि: नमो अरिहन्ताणं० हवइ; अंतिः-, ___ पे.वि. बीच के पत्र नहीं हैं. भक्तामर व कल्याणमंदिर स्तोत्र का पाठ नहीं है. पे. २. लघुशान्ति, आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, (पृ. १६-, अपूर्ण), आदिः शान्तिं शान्ति; अंतिः-, पे.वि. प्रारंभ के पत्र हैं. श्लो.११ तक है. पे. ३. तिजयपहुत्त स्तोत्र, प्रा., पद्य, (पृ. १अ, संपूर्ण), आदिः तिजयपहुत्तपयासय अट्ठ; अंतिः निच्चमच्चेह., पे.वि. बाद का लिखा लगता है. प्र.वर्ष-१८७५ स्थल-हैदराबाद व लेखक मुनि चैनजी. गा.१४. १६७९.” कल्पसूत्र सह टबार्थ व व्याख्यान+कथा, पूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १६२, जैदेना., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. ग्रं.१२०० तक लिखा है., (२५४१२.५, ६४३५). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदिः णमो अरिहन्ताणं० पढमं; अंति:कल्पसूत्र-टबार्थ', मागु., गद्य, आदिः (१) श्रमण भगवन्त (२) एहवो ते पाञ्च; अंति: कल्पसूत्र-व्याख्यान+कथा* , मागु., गद्य, आदिः नमो अरिहन्ताणं; अंतिः१६८१.” उत्तराध्ययनसूत्र सह टबार्थ, पूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १९७-५(१ से ५)=१९२, जैदेना.,प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, पू.वि. प्रारंभ व अंत के पत्र नहीं हैं. अध्ययन-१ की गा.२७ अपूर्ण से अध्ययन-३६ की गा.२६३ तक है., (२७४१०.५, ५४४५). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध , प्रा., प+ग, आदि:-; अंति: उत्तराध्ययनसूत्र-टबार्थ+कथा* , मागु., गद्य, आदि:-; अंति:१६८२." हस्तसञ्जीवनसिद्धज्ञान, संपूर्ण, वि. १७४९, श्रेष्ठ, पृ. १३, जैदेना., प्र.वि. श्लो.२८३,ग्रं. ५२५, संशोधित, (२६४११, १३४३८). हस्तसञ्जीवन , उपा. मेघविजय, सं., पद्य, आदिः स्वस्ति श्रीभरणं; अंतिः (१)श्रीरस्तु शाश्वती (२)मेघाद्विजयाख्य वाचकः. For Private And Personal Use Only Page #225 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir १७१ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १६८४. ऋषिमण्डल स्तोत्र, पूजा व स्तवन, संपूर्ण, वि. १९४५, श्रेष्ठ, पृ. १२, पे. ३, जैदेना., ले. ऋ. मेकाक्षिपनइन्दु, प्र.वि. प्रतिलेखक नाम सांकेतिक है., (२५.५४१०.५, १०x२६). पे. १. ऋषिमण्डल स्तोत्र, आ. गौतमस्वामी गणधर, सं., पद्य, (पृ. १-५आ), आदिः आद्यन्ताक्षरसंलक्ष्य; अंतिः लभ्यते पदमव्यय., पे.वि. श्लो.९४. पे. २. ऋषिमण्डल पूजा विधि, संबद्ध, सं., गद्य, (पृ. ५आ-१२अ), आदिः प्रणम्य श्रीजिनाधीशं; अंतिः जिनेभ्यो ददे मुदा. पे. ३. पे. नाम. ऋषिमण्डल स्तवन, पृ. १२अ-१२आ ___ ऋषिमण्डल जयमाला, प्रा., पद्य, आदि: पणमवि जिणदेवहं; अंतिः ऊत्तारिज्जई अग्घुवर., पे.वि. गा.७. १६८५. उपदेशबावनी, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, जैदेना., प्र.वि. गा.५२, (२४.५४१२.५, १४४३५). उपदेशबावनी, ऋ. लालचन्द, प्राहिं., पद्य, वि. १८७०, आदिः सरस वचन सरस्वति तणा; अंतिः ऐसा नाम धराया है. १६८८. उपासकदशाङ्गसूत्र वृत्ति, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ५६, जैदेना., प्र.वि. प्र.पु. ग्रं. १३००., (२६४११, ११४३७). उपासकदशाङ्गसूत्र-वृत्ति, आ. अभयदेवसूरि , सं., गद्य, वि. १११७, आदिः (१) श्रीवर्द्धमानमानम्य (२) तत्रोपासकदशाः; अंतिः कुर्वतां प्रीतये मे. १६८९. उत्तराध्ययनसूत्र सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ११, जैदेना., प्र.वि. अन्तिम पत्र आधा खण्डित है, पाठ पूर्ण है लेकिन प्रतिलेखन पुष्पिका का भाग फटा हुआ है., (२५४११.५, २१४५३). उत्तराध्ययनसूत्र-सज्झाय, मु. ब्रह्म, संबद्ध, मागु., पद्य, वि. १७वी, आदिः अमीयसमाणी वाणी वरसता; अंतिः जिनभाषित निरतउ जाणउ. १६९०. कल्पसूत्र सह टबार्थ व व्याख्यान+कथा, संपूर्ण, वि. १८२०, श्रेष्ठ, पृ. १३१, जैदेना., ले.स्थल. विक्रमपुर, प्र.वि. मूल ग्रं. १२१६,९-व्याख्यान. प्रतिलेखन संवत् में १८१२० लिखा है., पदच्छेद सूचक लकीरें, (२५.५४११, ७४४२). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदिः णमो अरिहन्ताणं० पढमं; अंतिः उवदंसेइ त्ति बेमि. कल्पसूत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः तेणइ कालि जे; अंतिः आपणा शिष्यनइ. कल्पसूत्र-व्याख्यान+कथा* , मागु., गद्य, आदिः तत्र समस्त कल्याण; अंतिः अलिया गलीया करी. १६९२. पाखीसूत्र व खामणा सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९६२, श्रेष्ठ, पृ. ३२, पे. २, जैदेना., ले. कन्हैयालाल लहिया, (२७४१२, ५४३८). पे. १. पे. नाम. पाक्षिकसूत्र सह टबार्थ, पृ. १आ-३०अ पाक्षिकसूत्र, प्रा., प+ग, आदिः तित्थङ्करे य तित्थे; अंति: जेसिं सुयसायरे भत्ति. पाक्षिकसूत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः तीर्थङ्कर प्रते; अंतिः विषे भक्ति छे. पे. २. पे. नाम. पाक्षिकक्षामणासूत्र सह टबार्थ, पृ. ३०अ-३२ क्षामणकसूत्र, प्रा., गद्य, आदिः इच्छामि खमासमणो; अंतिः नित्थारग पारगा होह. क्षामणकसूत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः इच्छुञ्छु हे क्षमा; अंतिः समुद्रथी पारगामी हो. १६९३. कर्मग्रन्थषट्क, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २८, पे. ६, जैदेना., प्र.वि. प्र.पु. कुल मूलगा.५७७., (२४४११.५, ११४२९). पे. १. कर्मविपाक नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, (पृ. १-५अ), आदिः सिरिवीरजिणं वन्दिय; अंतिः लिहिओ देविन्दसूरीहिं., पे.वि. गा.६३. पे. २. कर्मस्तव नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, (पृ. ५अ-७आ), आदिः तह थुणिमो वीरजिणं; अंतिः वन्दियं नमह तं वीरं., पे.वि. गा.३४. पे. ३. बन्धस्वामित्व नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, (पृ. ७आ-९अ), आदिः बन्धविहाणविमुक्कं; अंतिः नेयं कम्मत्थयं सोउं., पे.वि. गा.२५. For Private And Personal Use Only Page #226 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य भाग - १ १७२ पे. ४. षडशीति नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, (पृ. ९अ-१४आ), आदि: नमिय जिणं जिय; अंतिः देविन्दसूरीहिं., पे.वि. गा.९०. पे. ५. शतक नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, (पृ. १४आ-२०आ), आदि: नमिय जिणं धुवबन्धोदय; अंतिः सयगमिणं आयसरणट्ठा., पे.वि. गा.१००. पे. ६. सप्ततिका कर्मग्रन्थ, प्रा., पद्य, (पृ. २१अ-२८), आदिः सिद्धपएहिं महत्थं; अंतिः (१)पूरेऊणं परिकहन्तु (२)एगुणा होइ नउइओ., पे.वि. गा.१०२. १६९९. आगमसार (मोक्षमारग वचनिका), अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, जैदेना., पू.वि. अन्त के पत्र नहीं हैं., (२५४११.५, ११-१३४३९). आगमसारोद्धार, उपा. देवचन्द, मागु., गद्य, वि. १७७६, आदिः भव्य जीवने; अंति:१७००. श्रुतबोधछन्द की टीका, अपूर्ण, वि. १८१३, मध्यम, पृ. १४-४(१ से ३,१३)=१०, देना., ले.स्थल. द्रव्यपुर, ले. मुकन्दराम __पुरोहित, पू.वि. श्लो.१५ तक नहीं हैं., (२५४१०.५, ११४४२). श्रुतबोध-मनोरमा टीका, आ. हर्षकीर्तिसूरि, सं., गद्य, आदि:-; अंतिः बालावबोधाय वै. १७०२." जन्मजातक पद्धति सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८६९, श्रेष्ठ, पृ. १९, जैदेना., ले.स्थल. सीरोही, ले. मु. देवेन्द्रविजय (गुरु मु. केशरविजय),प्र.ले.पु. मध्यम,प्र.वि. मूल-श्लो.९४., टिप्पण युक्त विशेष पाठ, पदच्छेद सूचक लकीरें, (२३.५४१२, ५४२८). जातक पद्धति, मु. हर्षविजय, सं., पद्य, वि. १७६५, आदिः प्रणम्य पार्श्वदेवेश; अंतिः एषा जातकदीपिका. जातकपद्धति-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः प्रणाम करीने; अंति: बोध थावाने अर्थे. १७०३." सम्बोधसत्तरी सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८०६, श्रेष्ठ, पृ. ७, जैदेना., ले.स्थल. मांडोली, ले. मु. वृद्धिसागर (गुरु मु. महिमासागर), पठ. मु. जीवणसागर,प्र.ले.पु. मध्यम,प्र.वि. मूल-गा.७४., टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२६४११.५, ६४३६). सम्बोधसप्ततिका, आ. जयशेखरसूरि, प्रा., पद्य, आदिः नमिऊण तिलोअगुरुं; अंतिः लहई नत्थि सन्देहो. सम्बोधसप्ततिका-टबार्थ, मागु., गद्य, आदि: नमस्कार करीनइ तिन; अंतिः पामइ इहां सन्देह नही. १७०४." नवतत्त्व प्रकरण सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८५५, श्रेष्ठ, पृ. १४, जैदेना., ले.स्थल. सीरोही/शिवपुरी, ले. श्रा. किसनचन्द; गणि नायकविजय (गुरु गणि कपूरविजय),प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. मूल-गा.६०. प्र.पु. टबार्थ ग्रं.३१५., टिप्पण युक्त विशेष पाठ, प्र.ले.श्लो. (८२) जब लगि रवि ससि मेरु महि, (२५.५४१२, ३-४४२६). नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंतिः बोहिय इक्कणिक्काय. नवतत्त्व प्रकरण-टबार्थ, आ. पार्श्वचन्द्रसूरि, मागु., गद्य, आदिः साचउ वस्तुनउ स्वरूप; अंतिः श्रीपार्श्वचन्द्रेण. १७०५." वीसस्थानक पूजा, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ८-३(१ से ३)=५, जैदेना., प्र.वि. ढाळ-२०, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२६४११.५, १५४३२). २० स्थानक पूजा, आ. लक्ष्मीसूरि, मागु., पद्य, वि. १८४५, आदिः-; अंतिः पभणै सयल सङ्घ जयकरू. १७०६. अग्यारअङग स्वाध्याय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदेना., ले. पं. देवेन्द्र, प्र.वि. ढाळ-११, (२६x१०.५, ११४२९). ११ अङ्ग सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मागु., पद्य, वि. १७२२, आदिः आचाराङ्ग पहेलुं: अंतिः कीजे कोडि जतन्न रे. १७०८." नवतत्त्व प्रकरण सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८२३, श्रेष्ठ, पृ. ३३, जैदेना., ले.स्थल. कालद्रीनगर, ले. गणि केसरविजय (गुरु गणि देवेन्द्ररुचि, तपागच्छ), पठ. मु. कपूरविजय (गुरु गणि केसरविजय), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. मूल-गा.१०१., टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२५४१२, ४४२५). For Private And Personal Use Only Page #227 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra १७३ नववत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि जीवाजीवापुन्नं अंति: अणन्तभागोय सिद्धि गओ नवतत्त्व प्रकरण- टबार्थ, मागु, गद्य, आदि जीव तत्त्व प्राण अंतिः हजी सिद्धि गया छइ. www.kobatirth.org: (+) १७०९. लीलावती चौपाई, संपूर्ण वि. १८७७, मध्यम, पृ. २०, जैदेना., ले. स्थल वाल्हीनगर, प्र. वि. गा.६१९, डाळ - २९. (२५.५४११.५, १३४४८). लीलावती चीपाई मु. लाभवर्द्धन, मागु, पथ, वि. १७२८ आदि: त्रेवीसमो त्रिभुवन अंतिः ऋद्धि वृद्धि सुखकार . कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १७११.” रामविनोद व नाडीपरीक्षा, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४७, पे. २, जैदेना., प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२६.५४११.५, १८४५५). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पे. १. रामविनोद, पं. रामचन्द्र गणि, मागु., पद्य, वि. १७२०, (पृ. १-४७आ), आदि: सिद्धबुद्धदायक; अंतिः रामविनोद विनोदसु., पे.वि. ७ समुद्देश. पे. २. नाडीपरीक्षा, पं. रामचन्द्र गणि, मागु, पद्य, (पृ. ४८अ - ४८आ), आदि: सुभमति सरसति समरियै: अंतिः एह कही रामचन्दही., पे.वि. गा. ४६. औपपातिकसूत्र, प्रा., प+ग, आदि:-; अंतिः सुही सुहं पत्ता. औपपातिकसूत्र - टवार्थ आ. पार्श्वचन्द्रसूरि मागु., गद्य, आदि-: अंति सुख पाम्या थका " १७१३.” उववाईसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १७७३, मध्यम, पृ. ८५-३९ (१ से ४, ६ से ७, ११ से ४३) = ४६, जैदेना., ले. स्थल. सत्थाणा ले. पं. वैराग्यसागर (गुरु पं. सिद्धिसागर), पठ. मु. दलपतसागर (गुरु पं. वैराग्यसागर); मु. राजेन्द्रसागर ' ( गुरु मु. दलपतसागर), प्र.ले.पु. मध्यम, दशा वि. अक्षर फीके पड गये हैं, जीवातकृत छिद्र युक्त बीच के कुछ पत्र, (२५.५४११.५, ६४४३). (+0) १७१४. उत्तराध्ययनसूत्र सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. १६४२ श्रेष्ठ, पृ. ९६+१(१२) - ९७ जैदेना. प्र. वि. मूल ३६ अध्ययन अन्त में नियुक्तिकार माहात्म्य ६ गाथाओं में दिया हुआ है, संशोधित, पंचपाठ, दशा वि. विवर्ण-पानी से अक्षरों की स्याही फैल गयी है- आरम्भ के कुछ पत्र ( २६ ११, ९-१२ ३७ ). उत्तराध्ययनसूत्र. मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा. प+ग, आदिः सञ्जोगाविष्पमुक्करस अंतिः (१) सम्मए सि बेगि ( २ ) पुव्वरिसी एव भासन्ति उत्तराध्ययन सूत्र - अवचूरि, सं., गद्य, आदि: (१) अर्हत्सिद्धाचार्य (२) संयोगा० संयोगा; अंतिः स्तदधीनत्वात्तस्येति. १७१५. कर्पूरप्रकरण सह बालावबोध व कथा, संपूर्ण, वि. १७८२, मध्यम, पृ. १२८, जैदेना., ले. स्थल. श्रीधकारपुर, ले. मु. गणपतिसागर (गुरु पं. नारायणसागर), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. मूल - श्लो. १७९. प्र. पु. बालावबोध ग्रं. ५५००., (२६×११, (१३४४४). कर्पूरप्रकर, मु. हरिसेन, सं., पद्य, आदि: कर्पूरप्रकरः शमामृत: अंतिः नेमिचरित्रकर्त्री. कर्पूरप्रकर- बालावबोध, गणि मेरुसुन्दर, मागु, गद्य, आदिः पार्श्वश्रिये सोस्तु अंतिः गुण छे जेह तणा कर्पूरप्रकर- कथा*, मागु., गद्य, आदि: #; अंतिः #. १७१६.” मृगाङ्क चरित्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २४, जैदेना., प्र. वि. मूल - श्लो. २८८ प्रतिलेखक द्वारा टबार्थ मात्र ५४ श्लोक तक लिखा है., पदच्छेद सूचक लकीरें - संधि सूचक चिह्न - अल्प मात्रा में पार्श्व रेखा-लाल-, १+२, (२४.५X११.५, ५x४५). मृगाङ्क चरित्र, मु. ऋद्धिचन्द्र, सं., पद्य, (संपूर्ण), आदि: श्रीपार्थः प्रत्य; अंतिः चित्तशान्तिकृत्. मृगाङ्क चरित्र - टबार्थ, मागु., गद्य, (अपूर्ण), आदिः श्रीमत्पार्श्वजिनं; अंतिः For Private And Personal Use Only १७१८.) उत्तराध्ययन की नियुक्ति, संपूर्ण, वि. १९८१, श्रेष्ठ, पृ. १४, जैदेना., ले. स्थल. नागोर, प्र. वि. गा.६०७, संशोधित, (२४.५X११.५, १६४५१). Page #228 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य भाग - १ १७४ उत्तराध्ययनसूत्र-नियुक्ति , आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., पद्य, आदि: नामं ठवणादविए; अंतिः पसाया अहिज्झिज्जा. १७२४. निसीतसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९०७, श्रेष्ठ, पृ. ४६, जैदेना.,ले. ऋ. शिवचन्द, प्र.वि. मूल-२०उद्देश., (२५४१२.५, ८४१-४२). निशीथसूत्र, प्रा., गद्य, आदिः जे भिखु हत्थ; अंतिः पसिस्सोवभोज्जं च. निशीथसूत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, आदि: जे कोई भि० अणगार; अंतिः शिष्यनइ भणवानइ अर्थइ. १७२६. उपासकदशाङ्गसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७६३, श्रेष्ठ, पृ. ३३, जैदेना., ले.स्थल. द्विजग्राम, ले. ऋ. जयचन्द्र, प्र.वि. मूल-अध्याय-१०., टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२७४११.५, ९४४६-५०). उपासकदशाङ्गसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदिः तेणं० चंपा नामं नयरी; अंतिः दिवसेसु उद्दिसन्ति. उपासकदशाङ्गसूत्र-टबार्थ, मागु., पद्य, आदिः ते कालनें विषं ते; अंतिः दस दिवसने विषे कहें. १७२८. नर्मदासती चौपाई, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १३, जैदेना., पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. ढाल-२७ की गा.२ तक है., (२३x१०.५, १६x४०). नर्मदासती चौपाई, ऋ. रायचन्द, मागु., पद्य, आदिः सासणनायक समरीयै; अंति:१७२९. श्राद्धपाक्षिक अतिचार, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ८-२(१,४)=६, जैदेना., (२७४११.५, ११-१३४३६-३८). श्रावकपाक्षिकअतिचार-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मागु., गद्य, आदिः-; अंतिः मिच्छामि दुक्कडम्. १७३०. श्राद्धपाक्षिक अतिचार, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २१-१३(१ से १३)=८, जैदेना., पू.वि. बीच के पत्र हैं. अन्तिम वीर्याचार अपूर्ण तक है., (२६x११.५, ८४३२-३९). श्रावकपाक्षिकअतिचार-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मागु., गद्य, आदि:-; अंति:१७३१. उपासगदशाङ्गसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १६, जैदेना., पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. अध्ययन-२ अपूर्ण तक है., (२६४११.५, ७-८४४०-४२). उपासकदशाङ्गसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदिः तेणं० चंपा नाम नयरी; अंति: उपासकदशाङ्गसूत्र-टबार्थ, मागु., पद्य, आदिः ते काल चोथो आरो; अंति:१७३२." उपासगदशाङ्गसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८७४, मध्यम, पृ. ३९-३०(१ से ३०)=९, जैदेना., ले.स्थल. बिकानेर, ले. रतनचन्द (गुरु विसनदास), प्र.वि. मूल-अध्याय-१०., टिप्पण युक्त विशेष पाठ, पू.वि. अध्ययन-७ अपूर्ण तक नहीं है., दशा वि. विवर्ण-पानी से अक्षरों की स्याही फैल गयी है, प्र.ले.श्लो. (३७) भग्न पृष्टि कटी ग्रीवा, (२५४११.५, १०x४९-५३). उपासकदशाङ्गसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदि:-; अंतिः दिवसेसु उद्दिसन्ति. उपासकदशाङ्गसूत्र-टबार्थ, मागु., पद्य, आदि:-; अंतिः उपदिसे साधु. १७३३. साधुपाक्षिक अतिचार-तपागच्छ, संपूर्ण, वि. १७९३, मध्यम, पृ. ५, जैदेना., पठ. मु. दोलतविजय, (२४.५४१०.५, १०४२५-२६). साधुपाक्षिकअतिचार श्वे.मू.पू., संबद्ध, मागु.,प्रा., गद्य, आदिः नाणम्मि दंसणम्मि०; अंतिः अनेरो जे कोई अतिचार. १७३४." श्राद्धप्रतिक्रमणसूत्रसङ्ग्रह सह टबार्थ-खरतर, संपूर्ण, वि. १६६६, श्रेष्ठ, पृ. १३, जैदेना., ले.स्थल. फलवर्द्धकानगर, ले. पं. सीहा (गुरु गणि कनकरङ्ग, बृहत्खरतरगच्छ), गच्छा. आ. जिनचन्द्रसूरि (गुरु आ. जिनराजसूरि, खरतरगच्छ), प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र.वि. अंत मे तीन मांगलिक गाथाएँ हैं., टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२६४११, ६x४५). श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-खरतरगच्छीय, संबद्ध, प्रा.,सं.,मागु., प+ग, आदिः णमो अरिहन्ताणं; अंतिः वन्दामि जिणे चउवीसं. श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-खरतरगच्छीय-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः माहरउ नमस्कार; अंतिः तीर्थङ्कर चोवीसनइ. १७३५. दशवैकालिकसूत्र-१ से ४ अध्ययन, प्रतिपूर्ण, वि. १९वी, जीर्ण, पृ. ८, जैदेना., (२५४११, ११४३६). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यम्भवसूरि, प्रा., पद्य, वि. पू.४, आदिः धम्मो मङ्गलमुक्किट्ठ; अंति: For Private And Personal Use Only Page #229 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir १७५ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १७३६. मङ्गल(चारमङ्गल), संपूर्ण, वि. १९७०, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदेना., प्र.वि. ढाळ-५, (२६.५४१२, १६४५५). ४ मङ्गल रास, ऋ. जेमल, राज., पद्य, आदिः अनन्त चोवीसी जिण; अंति: ज्युं पोहचो निरवाण. १७३७. नवतत्त्व बालावबोध, दशप्रकारे मिथ्यात्व व अष्टकर्मदृष्टान्त, संपूर्ण, वि. १८६०, श्रेष्ठ, पृ. १४, पे. ३, जैदेना., पठ. साध्वीजी चतुरांजी, (२६x१२.५, १७X४२-४४). पे. १. नवतत्त्व प्रकरण-बालावबोध, राज., गद्य, (पृ. १-१४), आदि: जीवतत्त्व कणीनै; अंतिः माहरी वन्दणा होज्यो. पे. २. मिथ्यात्व के दशप्रकार, प्रा.,मागु., गद्य, (पृ. १४आ), आदिः धमे धूमे सना अधमे; अंतिः पचीस मिध्यात्व जाणवा. पे. ३. ८ कर्म दृष्टान्त, राज., गद्य, (पृ. १४आ), आदिः ज्ञानावरणी कर्म को; अंतिः कर्म भण्डारीरो. १७३८. दशाश्रुतस्कन्ध सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९४१, श्रेष्ठ, पृ. २७, जैदेना., ले.स्थल. नागोर, ले. लक्ष्मीनारायण, प्र.वि. मूल १० दशा., (२५४१२, ९४५८-६२). दशाश्रुतस्कन्धसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., पद्य, आदिः नमो अरिहंताणं० हवा; अंतिः उवदंसेइ त्ति बेमि. दशाश्रुतस्कन्धसूत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः नमस्कार थावो अरिहंत; अंतिः जम्बू प्रते कह्यो. १७३९. स्थानकवासी पट्टावली, संपूर्ण, वि. १९६७, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदेना., (२४४१२, २३-२४४३२-३५). पट्टावली स्थानकवासी, राज., गद्य, आदिः समणभगवान श्रीमहावीर; अंतिः सिकारसी सो प्रमाण. १७४०. दानशीलतपभावना कुलक सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९५६, श्रेष्ठ, पृ. ८, जैदेना., ले.स्थल. रिणी-बिकानेर, ले. मु. मुनीलाल (गुरु मु. गणेशदास, खरतरगच्छ), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. मूल-गा.४९., (२४.५४१२, ५४३०-३१). दानशीलतपभावना कुलक, मु. अशोकमुनि, प्रा., पद्य, आदिः देवाहिदेवं नमिऊण; अंतिः सूरि खमउ तेणं. दानशीलतपभावना कुलक-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः देवाधिदेव श्रीमहावीर; अंतिः ते आचार्य खमज्यो. १७४१.” ज्योतिषचक्र विवरण, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १८, जैदेना.,प्र.वि. ७द्वार, ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित, (२५४१२, १६x४७-४९). ज्योतिषचक्र विचार, श्रा. हजारीमल लुकड, राज., प+ग, वि. १९३१, आदिः श्रीगुरुदेवोनें; अंतिः ते पामैं भवपार. १७४२." तत्त्वार्थसूत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, जैदेना., प्र.वि. श्लो.१९८,अध्याय-१०, पदच्छेद सूचक लकीरें, संशोधित, (२५.५४१०.५, १३४३२-३४). तत्त्वार्थाधिगमसूत्र, वाचक उमास्वाति, सं., प+ग, आदिः सम्यग्दर्शनज्ञान; अंतिः चिरेण परमार्थम्. १७४३. सिन्दूरप्रकर सह व्याख्या, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २२-१(२)=२१, जैदेना., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न-प्रारंभ में ज्यादा, बाद में क्वचित, अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-कुछ पत्र, पू.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं. श्लो.७७ तक है., (२६४१०.५, १५४४७). सिन्दूरप्रकर, आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य, आदिः सिंदूरप्रकरस्तपः; अंति: सिन्दूरप्रकर-टीका, आ. हर्षकीर्तिसूरि, सं., गद्य, वि. १६५५, आदिः श्रीमत्पार्श्वजिनं; अंति:१७४९." नयचक्र व नवतत्त्व पर नयादि विचार, संपूर्ण, वि. १८८६, श्रेष्ठ, पृ. ५, पे. २, जैदेना., ले.स्थल. नागोर, ले. अनोपचन्द,प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२५४१०.५, २१-२३४५१-५२). पे. १. नय विचार, राज., गद्य, (पृ. १-५), आदिः नैगमनय का ३ भेद भुत; अंतिः तिवारै पुद्गल कहइ. पे. २. नवतत्त्व चारनयनिक्षेपादि, मागु., कोष्टक, (पृ. ५), आदि: #; अंतिः#. १७५०. रिषभजिन चरित्त, पूर्ण, वि. १८४५, मध्यम, पृ. २४, जैदेना., ले.स्थल. गगरांण, ले. ऋ. कीसनाजी, पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है., (२४.५४१२, १७४३७-३९). आदिजिन चौपाई, ऋ. रायचन्द, मागु., पद्य, वि. १८४०, आदिः अरिहन्त सिद्धनै; अंति:१७५१." इगवीस ठाणा, संपूर्ण, वि. १६वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना., प्र.वि. गा.७२. अन्त में यन्त्र दिया हुआ है., पदच्छेद सूचक लकीरें, संशोधित, अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-कुछ पत्र, (२५.५४१०.५, १३४३०-३७). For Private And Personal Use Only Page #230 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य भाग - १ १७६ एकविंशतिस्थान प्रकरण, आ. सिद्धसेनसूरि, प्रा., पद्य, आदिः चवण विमाणा नयरी; अंति: गब्भट्ठिईयं हीरं. १७५२." विपाकसूत्र, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ४८, जैदेना., ले.स्थल. आणंद, ले. ऋ. सोमा, प्र.वि. अध्याय-२० अध्ययन, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२७.५४११.५, ११४४१). विपाकसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदिः तेणं कालेणं तेणं; अंतिः सेसं जहा आयारस्स. १७५३. स्नात्र पूजा व अष्टप्रकारी पूजा, संपूर्ण, वि. १९५७, श्रेष्ठ, पृ. १३, पे. २, जैदेना., ले.स्थल. कनकावतीनगर, ले. पं. केशरकुशल, पठ. श्रा. मोतीलाल, (२५.५४११.५, ९-१०४३२). पे. १. स्नात्र पूजा, पं. वीरविजय, सं.मागु., पद्य, (पृ. १-५आ), आदिः सरसशान्ति सुधारस; अंतिः पावे घरघर हर्ष वधाई. पे. २. अष्टप्रकारी पूजा, पं. वीरविजय, मागु., पद्य, वि. १८५८, (पृ.६-१३अ), आदिः सरस वचन रस वरसती; अंतिः यजामये स्वाहा. १७५४. स्नात्रपूजा विधिसहित, पद व औषध सङ्ग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १३+१(१०)=१४, पे. ३, जैदेना., (२३४११.५, ९-११४२१). पे. १. स्नात्र पूजा, गणि देवचन्द्र, मागु., पद्य, (पृ. १अ-१३अ), आदिः (१) चोतिसे अतिसय (२) प्रथम पाटला; अंतिः कही सूत्र मझार. पे. २. औषध सङ्ग्रह', मागु., गद्य, (पृ. १३आ), आदि: #; अंतिः#. पे. ३. औपदेशिक पद, मु. आनन्दघन, मागु., पद्य, (पृ. १०आ), आदिः अवसर बेर बेर नही; अंतिः समरी समरी गुण गावे., पे.वि. गा.५. १७५५." कल्पसूत्र-नेमिनाथ चरित्र का अन्तर्वाच्य, प्रतिअपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १०, जैदेना., प्र.वि. मूल पन्ने ९७ से १०६ है., संशोधित, पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., (२५४१०.५, १६४३४). कल्पसूत्र-अन्तर्वाच्य , सं., गद्य, आदि:-; अंति:१७५६." नन्दीसूत्र सह पर्याय, संपूर्ण, वि. १८०२, श्रेष्ठ, पृ. ३५, जैदेना., ले.स्थल. सोजतनगर, ले. ऋ. कुशलसिङ्घ, प्र.वि. नंदीसूत्रपर्याय कृति व लक्षण दोनो तरह से टबार्थ की तरह दिया हुआ है., टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२४.५४११, ७ ८४५२-५५). नन्दीसूत्र, आ. देववाचक, प्रा., प+ग, आदिः जयइ जगजीवजोणीवियाणओ; अंतिः से त्तं परोक्खणाणं. नन्दीसूत्र-टबार्थ , मागु., गद्य, आदिः ज० इतिन्द्रियविषय; अंतिः परोक्षज्ञानना भेद छइ. १७५७." निर्यावलिकादि पञ्चोपाङ्गसूत्र, संपूर्ण, वि. १८९२, श्रेष्ठ, पृ. ६३, पे. ५, जैदेना., ले.स्थल. रामपुरा, पठ. सीरुबाई, (२५४११, ८४४३).. पे. १.पे. नाम. कल्पिकासूत्र, पृ. १-२३आ कल्पिकासूत्र, प्रा., गद्य, आदिः तेणं कालेणं तेणं०; अंतिः वरं मायातो सरिसणामाओ., पे.वि. १० अध्ययन. पे.२.पे. नाम. कल्पावतंसिकासूत्र, पृ. २३आ-२६अ कल्पावतंसिकासूत्र, प्रा., गद्य, आदि: जइ णं भन्ते समणेणं०; अंतिः वा महाविदेहे सिद्धे., पे.वि. १० अध्ययन. पे. ३. पे. नाम. पुष्पिकासूत्र, पृ. २६अ-५४अ पुष्पिकासूत्र, प्रा., गद्य, आदिः जइ णं भन्ते समणेणं०; अंतिः चेइयाइं जहा संगहणीए., पे.वि. १० अध्ययन. पे. ४. पे. नाम. पुष्पचूलिकासूत्र, पृ. ५४अ-५७अ पुष्पचूलिकासूत्र, प्रा., गद्य, आदिः जइ णं भंते समणेणं०; अंतिः हे वासे सिज्झिहिंति., पे.वि. १० अध्ययन. पे. ५. पे. नाम. वृष्णिदशासूत्र, पृ. ५७अ-६३अ For Private And Personal Use Only Page #231 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir १७७ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची वृष्णिदशासूत्र, प्रा., गद्य, आदिः जइ णं भंते० पंचमस्स; अंति: मइरित्त एक्कारससु वि., पे.वि. १२ अध्ययन. १७५८. विपाकसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८९७, श्रेष्ठ, पृ. ४५+१(३३)=४६, जैदेना., ले.स्थल. रामपुरा, ले. सीरुबाई, प्र.वि. मूल-अध्याय-२० अध्ययन प्र.पु. मूल ग्रं. १२१६. टबार्थ क्रमशः नहीं है एवं नाममात्र ही है., (२५४११.५, १२-१३४३६ ३७). विपाकसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, (संपूर्ण), आदिः तेणं कालेणं तेणं; अंति: सेसं जहा आयारस्स. विपाकसूत्र-टबार्थ', मागु., गद्य, (अपूर्ण), आदि:-; अंति:१७६०. ऋषिमण्डल स्तोत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९४७, श्रेष्ठ, पृ. १२, जैदेना., ले.स्थल. जोधपुर, ले. चमनीराम, प्र.वि. मूल श्लो.८१. टबार्थ में प्रतिलेखन स्थल शुभदपुर दिया है., (२६४११, ३४३०). ऋषिमण्डल स्तोत्र, आ. गौतमस्वामी गणधर, सं., पद्य, आदिः आद्यन्ताक्षरसंलक्ष्य; अंतिः परमानन्दसम्पदाम्. ऋषिमण्डल स्तोत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः आदिको अक्षर अन्तको; अंतिः पद की सम्पदा पामे. १७६१. आषाढभूतिऋषि प्रबन्ध, गौतमपृच्छा सन्धि व कायावाडी गीत, संपूर्ण, वि. १६८५, श्रेष्ठ, पृ. ७, पे. ३, जैदेना., ले.स्थल. महाजननगरे, ले. गणि सौभाग्यमेरु (गुरु गणि विजयमन्दिर, खरतरगच्छ), (२६.५४११, १७४६१). पे. १. आषाढाभूति प्रबन्ध, मु. कीर्तिमुनि, प्राहिं., पद्य, वि. १६२४, (पृ. १-६अ), आदिः सुखनिधान जिनवर मनि; अंतिः ___ जगीस० सुणता आणन्द., पे.वि. गा.१९०. पे. २. गौतमपृच्छा सन्धि, मु. नयरङ्ग, मागु., पद्य, (पृ. ६अ-७आ), आदिः वीर जिणन्द तणा; अंतिः फलइ इम पभणइ नयरंग.,पे.वि. गा.४६. पे. ३. काया सज्झाय, मु. पदमतिलक, मागु., पद्य, (पृ. ७आ), आदिः मनमाली धणियय; अंतिः जिम खोडी न लागइ., पे.वि. गा.७. १७६२. नन्दीसूत्र, संपूर्ण, वि. १९८२, श्रेष्ठ, पृ. १३, जैदेना., ले.स्थल. नागोर, ले. सुरजलाल चवाण, (२५.५४११, १७४५०). नन्दीसूत्र, आ. देववाचक, प्रा., प+ग, आदिः जयइ जगजीवजोणीवियाणओ; अंतिः से तं परोक्खणाणं. १७६४." सिन्दूरप्रकरण, पूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १९, जैदेना.,प्र.वि. श्लो.१००, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. श्लो.१०० तक है., दशा वि. विवर्ण-पानी से अक्षरों की स्याही फैल गयी है-अधिक, (२५.५४१२, ९४२२-२३). सिन्दूरप्रकर, आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य, आदिः सिंदूरप्रकरस्तपः; अंति:१७६५. नवतत्त्व सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १९, जैदेना.,प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. गा.९४ तक है., दशा वि. विवर्ण-पानी से अक्षरों की स्याही फैल गयी है, (२५४११, ३-५४३१-३२). नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदिः जीवाजीवापुन्नं; अंति: नवतत्त्व प्रकरण-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः श्रीवीरजिनं नत्वा; अंति:१७६६. सिन्दूरप्रकरण, संपूर्ण, वि. १८१०, श्रेष्ठ, पृ. ८, जैदेना., ले.स्थल. जेसलमेर, ले. पं. ज्ञानवल्लभ (गुरु मु. अभयचन्द), पठ. मु. कुशलदत्त (गुरु पं. ज्ञानवल्लभ); मु. अभयचन्द; मु. पुन्यसी (गुरु पं. ज्ञानवल्लभ), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. श्लो.१०१, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न-वचन विभक्ति संकेत-क्रियापद संकेत, अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ, (२५४१०.५, १५४३२-३४). सिन्दूरप्रकर, आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य, आदिः सिंदूरप्रकरस्तपः; अंतिः सूक्तमुक्तावलीयम्. १७६७. धर्मोपदेश सह स्वोपज्ञ वृत्ति, संपूर्ण, वि. १९३०, श्रेष्ठ, पृ. ४१, जैदेना., ले.स्थल. बालूचर, ले. मु. सदासुख(ना.पु.लुङ्कागच्छ),प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. मूल-१२ प्रक्रम, श्लो.११०.,प्र.ले.श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्टं; (५३८) तैलं रक्षेत् जलं रक्षेत्; (२४९) शास्त्राभ्यासः सदाकार्यो; (२५०) अध नास्ति जिनाधीशः; (२५१) शृण्वंति जिनवाणी यो; (५३९) शास्त्रैच श्रूयमाणेच; (५४०) एषा सिष्यास्ति भव्यानां; (१२७) शिवमस्तु सर्वजगतः, (२५.५४१२, १७४३७-३८). For Private And Personal Use Only Page #232 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य भाग १ - " www.kobatirth.org: धर्मोपदेश, गणि लक्ष्मीवल्लभ, सं., पद्य, आदि: ओमित्यक्षरमक्षर; अंतिः सज्जनानाम्. धर्मोपदेश-स्वोपज्ञ वृत्ति, गणि लक्ष्मीवल्लभ, सं., गद्य, वि. १७४५, आदि: श्रीपार्श्व; अंतिः सद्वृत्तिसहितोयम्. १७६८. सम्बोधसत्तरी सह टवार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ९, जैदेना ले गणि धनकुशल, प्र. वि. मूल-गा 1७३: (+) मूल-गा. ७३; टबार्थ- ग्रं. ., ४१०. टिप्पण युक्त विशेष पाठ (२६४१०.५. ५०३२) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir . सम्बोधसप्ततिका, आ. जयशेखरसूरि, प्रा., पद्य, आदिः नमिऊण तिलोअगुरुं; अंतिः लहई नत्थि सन्देहो .. सम्बोधसप्ततिका-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः नत्वा प्रणामं कृत्वा ; अंतिः इणमे सन्देह नही. १७६९." विचारषट्त्रिंशिका सह टबार्थ, संपूर्ण वि. १८४९, मध्यम, पृ. ६, जैदेना. प्र. वि. मूल-गा. ४० टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२६४११.५, ४-५४३७-३८). दण्डक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, आदिः नमिउं चउवीस; अंतिः एसा विनत्ति अप्पहिआ. दण्डक प्रकरण-टबार्थ, मागु., गद्य, आदि: ऐन्द्रराजं जिनं; अंतिः आपणा जीवने हितकारी . (W) १७७०. पाखीसूत्र, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ७ जैदेना, दशा वि. विवर्ण पानी से अक्षरों की स्याही फैल गयी है, (२५.५४१०.५, १६-१७४४४-४८) पाक्षिकसूत्र, प्रा., प+ग, आदिः तित्थङ्करे य तित्थे; अंति: जेसिं सुयसायरे भत्ति. १७७१. अजितशान्ति सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७९९, श्रेष्ठ, पृ. ८, जैदेना., ले. स्थल. गिरपुनगर, ले. मु. दानसुन्दर (गुरु खुशाल+दानसुन्दर के गुरु, वडतपागच्छ), प्र.ले.पु. मध्यम प्र. वि. मुलगा. ४०. (२४५११, ५५२७-२९). अजितशान्ति स्तव, आ. नन्दिषेणसूरि, प्रा., पद्य, आदिः अजियं जिय सव्वभयं; अंतिः जिणवयणे आयरं कुणह अजितशान्ति स्तव-टबार्थ मागु, गद्य, आदि अजितनाथ जीता छइ सर्व अंतिः तेहनइ विषे आदर करो. १७७४. जीवविचार सह बालावबोध, पूर्ण, वि. १८२३, श्रेष्ठ, पृ. २१-१ ( २ ) =२०, जैदेना., ले. मु. हरकरण (गुरु मु. पृथ्वीचन्द), लिखवा. मु. पृथ्वीचन्द, प्र. वि. मूल-गा. ५१. पू. वि. बीच का एक पत्र नहीं हैं., (२५.५X११.५, ५x४२). जीवविचार प्रकरण, आ. शान्तिसूरि, प्रा., पद्य, आदिः भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंतिः रुद्दाओ सुयसमुद्दाओ. ; जीवविचार प्रकरण-टबार्थ, मागु., गद्य, आदि: स्मारं स्मारं गुरो: अंतिः सिद्धान्त समुद्री .. १७८ १७७५. सप्तस्मरण- खरतरगच्छीय, अपूर्ण, वि. १७४३, जीर्ण, पृ. ७-१ ( १ ) = ६, जैदेना., प्र. वि. अंत में भक्तामर की ४ गुप्त गाथाए लिखी है, (२५.५४१०.५, १३०४३). ; सप्तस्मरण - खरतरगच्छीय. मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा., पद्य, आदि अंतिः भवे पास जिणचन्द १७७८. जीवविचार व नवतत्त्व प्रकरण, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ७, पे. ३, जैदेना. (२७४१२.५, १४९२५). पे. १ जीवविचार प्रकरण, आ. शान्तिसूरि, प्रा., पद्य, (पृ. १आ-३आ), आदि: भुवणपईवं वीरं नमिऊण अंतिः रुदाओ सुयसमुद्दाओ., पे.वि. गा. ५१. पे. २. नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, (पृ. ३आ-७आ), आदि जीवाजीवापुन्नं अंतिः अणागयद्वा अणन्तगुणा., पे. वि. गा. ९८. पे. ३. जैन गाथा *, प्रा., पद्य, (पृ. ७आ), आदि: #; अंतिः #., पे.वि. गा.४. १७७९.” रत्नपाल रास, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २०, जैदेना., पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. खण्ड - ३ गा. ११८ तक है., दशा वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है. (२६.५४११.५, १८-१९४४०). रत्नपातरत्नावती रास मु. सूरविजय, मागु पद्य वि. १७३२, आदि रीषभादिक जिनवर नमुं: अंतिः -, १७८०. दस ठाणा, पूर्ण, वि. १८७९, जीर्ण, पृ. ३६-३ (१ से २,२१ ) - ३३, जैदेना., ले. स्थल. बीकानेर, (२४×१२, १६x४०). १० ठाणा, राज., गद्य, आदि:-: अंतिः सुषम काल जाणीजै. For Private And Personal Use Only १७८१. दशवैकालिकसूत्र, उत्तराध्ययनसूत्र व सज्झाय सङ्ग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ४१-१४ (१ से ५,७ से १५ )- २७, पे. ७, जैदेना., ( २४.५x१२, ११x२८-३४). Page #233 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra १७९ www.kobatirth.org: पे. १. पे. नाम. सूत्रकृताङ्ग का हिस्सा वीरस्तुति अध्ययन, पृ. - ६अ - ६आ-, अपूर्ण सूत्रकृताङ्गसूत्र-हिस्सा वीरस्तुति अध्ययन, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., पद्य, आदि:-; अंतिः, पे.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है. गा. ९ से २३ अपूर्ण तक है. पे. २. पे. नाम. दशवैकालिकसूत्र अध्ययन १-४, पृ. १६अ - २१अ प्रतिअपूर्ण दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यम्भवसूरि, प्रा., पद्य, वि. पू. ४, आदि:-: अंति:-, पे. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. चतुर्थ अध्ययन तक है. पे. ३. उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग, (पृ. २१अ - ३५आ, प्रतिपूर्ण), आदि:-; अंतिः सम्मए त्ति बेमि.. पे. ४. विजयसेठविजयासेठाणी सज्झाय, ऋ. लालचन्द, मागु., पद्य, वि. १८६१ (पृ. ३५आ-३९अ, संपूर्ण), आदिः श्रीवीतराग जिण देव अंतिः भर जोबन के माहीजी, पे.वि. गा. १७. ; पे. ५. औपदेशिक सज्झाय, मु. रतनचन्द, राज, पद्य, (पृ. ३९अ - ४०अ, संपूर्ण), आदिः इण कालरो भरोसे भाइ; अंतिः कीजो धर्म रसालो., पे.वि. गा. १३. , Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पे. ६. जम्बूस्वामी सज्झाय, राज., पद्य, (पृ. ४०अ - ४१अ, संपूर्ण), आदि: राजगृही नगरीरा वासी; अंतिः विचारी आठु नारी, पे.वि. गा.२०. कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची पे. ७. औपदेशिक सज्झाय प्राहिं, पद्य, (पृ. ४१आ, अपूर्ण) आदि गइ सो गइ अब राख रही अंति, पे. वि. अंतिम पत्र नही है. ' १७८२. स्तवन- सज्झाय सङ्ग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ७, पे. १४, जैदेना., ले. मु. लिहरसागर, (२४×१२, ११×३६). पे. १. दानशीलतपभाव प्रभाती उपा. समयसुन्दर गणि, मागु., पद्य, (पृ. १अ), आदि रे जीव जिन धरम अंतिः ए छे मुगतिदातार, पे. वि. गा.६. पे. २. आदिजिन जन्मवधाई स्तवन प्राहिं, पद्य, (पृ. १अ - १आ), आदि आज तो बधाइ राजा नाभि: अंति आदिसर दियाल रे.. पे.वि. गा६. पे. ३. पंचतीर्थ स्तवन, मु. लावण्यसमय, मागु, पद्य, (पृ. १-२ आ) आदि आदये आदये आदजिणेस अतिः सुखे आवे आसना, पे. वि. गा.१२. पे. ४. शत्रुंजयतीर्थं स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मागु, पद्य, (पृ. २आ), आदि विमलाचल नित वन्दीये अंतिः तेह " नर चीर नंदे., पे.वि. गा. ५. पे. ५. सीमन्धरजिनविनती स्तवन, उपा. भक्तिलाभ, मागु., पद्य, (पृ. ३अ - ४अ), आदिः सफल संसार अवतार; अंतिः पुरी आसा मनतणी., पे.वि. गा. १८. पे. ६. सीमन्धरजिनविनती स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि प्राहिं, पद्य, (पृ. ४अ-४आ) आदि सीमन्धर विनती सुणि अंतिः कहा कहुं बहु तेरा, पे.वि. गा. ५. . पे. ७. सीमन्धरजिन स्तवन, मु. कान, मागु, पद्य, (पृ. ४-५ अ) आदि महाविदेहक्षेत्रनो अंति: गुण गाउ नित ताहराजी पे.वि. गा. ७. पे. ८. सीमन्धरजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मागु., पद्य, (पृ. ५अ -५आ), आदि पुष्कलवइ विजये जयो अंतिः धरजो धर्मस्नेह पे.वि. गा.७. For Private And Personal Use Only पे. ९. शत्रुंजयतीर्थ स्तवन, मु. कान्तिविजय, मागु, पद्य, (पृ. ५आ), आदि: श्री रे सिद्धाचल अतिः श्रीसिद्धाचल गायो, पे.वि. गा. ५. पे. १०. शत्रुंजयतीर्थ स्तुति, आ. ज्ञानविमलसूरि, प्राहिं., पद्य, (पृ. ५आ), आदिः मरुदेवी के लाडले; अंतिः विमल० हुं सदा सनेही., पे.वि. गा. ३. पे. ११. शत्रुंजयतीर्थ स्तवन, मु. उदयरतन, मागु., पद्य, (पृ. ६अ ), आदिः ते दिन क्यारे आवसी; अंति: त्यारे निरमल थासुं., पं.वि. गा.८. Page #234 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य भाग - १ १८० पे. १२. आदिजिन पद , मु. जयन्त, प्राहिं., पद्य, (पृ. ६अ-६आ), आदिः आज तो हमारे भाग; अंतिः जयन्त गुण गाये ., पे.वि. गा.३. पे. १३. गौतमस्वामी सज्झाय, वाचक मानविजय, मागु., पद्य, (पृ. ६आ), आदिः श्रीगौतम गुरु समरीए; अंतिः होवे कुसल कल्याण.,पे.वि. गा.८. पे. १४. १६ सती सज्झाय, मु. उदयरत्न, मागु., पद्य, (पृ. ६आ-७आ), आदिः आदिनाथ आदि जिनवर; अंतिः लहस्ये सुखसम्पदा ए., पे.वि. गा.१७. १७८३.” सप्तस्मरण सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, जीर्ण, पृ. १४-२(१,८)=१२, जैदेना.,प्र.वि. मूल-७ स्मरण., संशोधित, पदच्छेद सूचक लकीरें-वचन विभक्ति संकेत, (२५४१०.५, ६x४१-४३). सप्तस्मरण-खरतरगच्छीय, मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा., पद्य, आदिः-; अंतिः भवे पास जिणचन्द. सप्तस्मरण-खरतरगच्छीय-टबार्थ, मागु., गद्य, आदि:-; अंति:१७८४.” अञ्चलगच्छीय नवस्मरण, संपूर्ण, वि. १८३६, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदेना., ले.स्थल. आसंबीआ, पठ. रूपचन्द, प्र.वि. ९ स्मरण, संशोधित, (२६.५४१२, १६४३७). नवस्मरण अञ्चलगच्छीय, सं.,प्रा., प+ग, आदिः परमेष्ठि नमस्कार; अंतिः सङ्घस्य मुदम्. १७८५. गौतमस्वामी रास, नवकार, पार्श्वजिन छन्द सङ्ग्रह, संपूर्ण, वि. १९५२, श्रेष्ठ, पृ. ९, पे. ४, जैदेना., ले.स्थल. सीवपुर, ले. पं. फूलचन्द, दशा वि. अक्षर फीके पड गये हैं-अल्प, (२६४११, १२४३१). पे. १. गौतमस्वामी रास, मु. उदयरत्न, मागु., पद्य, (पृ. १-६अ), आदिः वीर जिणेसर चरण; अंति: मनवञ्छित आस्या फले ए., पे.वि. गा.६७. पे. २. नमस्कारमहामन्त्र छन्द, वाचक कुशललाभ, मागु., पद्य, (पृ. ६आ-७आ), आदिः वंछित पूरे विविध; अंतिः विविधरूप वंछित फले., पे.वि. गा.१७. पे. ३. पार्श्वजिन छंद, मागु., पद्य, (पृ. ७आ-९अ), आदिः सरस वदन सुखकारसारं; अंतिः मनवञ्छित फल पावे सही., पे.वि. गा.११. पे. ४. पार्श्वजिन छन्द, मु. दानविजय, प्राहिं., पद्य, (पृ. ९अ-९आ), आदिः वाणारसी राया पास; अंतिः तुम नमन्दा हे. १७८६. स्तोत्र, चैत्यवन्दन व स्तवनादि सङ्ग्रह, संपूर्ण, वि. १८९५, श्रेष्ठ, पृ. ९, पे. ७, जैदेना., ले.स्थल. सुभट्टपुर, ले. पं. विनयचन्द्र, पठ. मु. शिवचन्द, प्र.ले.पु. मध्यम, (२५.५४११.५, १२४३१). पे. १. भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुङ्गसूरि, सं., पद्य, (पृ. १-४अ), आदिः भक्तामरप्रणतमौलिमणि; अंति: समुपैति लक्ष्मी., पे.वि. श्लो.४४ . पे. २. कल्याणमन्दिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकर, सं., पद्य, (पृ. ४अ-७अ), आदिः कल्याणमन्दिरमुदारमवद; अंतिः मोक्षं प्रपद्यन्ते., पे.वि. श्लो.४४ . पे. ३. पार्श्वजिन चैत्यवन्दन, सं., पद्य, (पृ. ७अ), आदिः ॐ नमः पार्श्वनाथाय; अंतिः मे वाञ्छितं नाथ., पे.वि. श्लो.५. पे. ४. मांगलिक श्लोक, सं., पद्य, (पृ.७), आदिः मङ्गलं भगवान् वीरो; अंतिः कुर्वन्तो वो मङ्गलं., पे.वि. श्लो.८ . पे.५. गौतमस्वामी छन्द, मु. लावण्यसमय, मागु., पद्य, (पृ. ७आ-८अ), आदिः वीर जिनेसर केरो; अंति: गौतम तूठे सम्पति कोड., पे.वि. गा.९. पे. ६. पार्श्वजिन छन्द-शखेश्वर, मु. उदयरत्न, मागु., पद्य, (पृ. ८वां), आदिः सेवो पास शर्केश्वरो; अंतिः आपो आप तुठा., पे.वि. गा.७. पे. ७. माणिभद्रवीर छन्द, उपा. यशोविजयजी गणि, मागु., पद्य, (पृ. ८आ-९), आदिः श्रीमाणिभद्र सदा; अंतिः मली इम सुजस० कहे., पे.वि. गा.११. १७८७. सज्झाय, स्तवन, स्तुति सङ्ग्रह, नवकारअर्थ व पच्चक्खाणसूत्र आदि, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, पे. ५, जैदेना., पू.वि. अन्त के पत्र नहीं हैं., (२५.५४११, १२४३४-३६). For Private And Personal Use Only Page #235 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir १८१ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची पे. १. औपदेशिक छन्द, पण्डित लक्ष्मीकल्लोल, मागु., पद्य, (पृ. १आ-२अ, संपूर्ण), आदिः भगवती भारती चरण; अंतिः धरज्यो मनि चोल., पे.वि. गा.१६. पे. २. औपदेशिक सज्झाय, मागु., पद्य, (पृ. २अ-२आ, संपूर्ण), आदिः श्रीजिनसासण उपसम; अंति: गावै जे नरनार., पे.वि. गा.१४. पे. ३. विहरमान २० जिन स्तवन, पाठक धर्मसिंह, मागु., पद्य, वि. १७२९, (पृ. २आ-४अ, संपूर्ण), आदिः वन्दु मनसुध विहरणमाण; अंतिः नेह धरी ध्रमसी नमे., पे.वि. गा.३६.. पे. ४. आदिजिन स्तवन-२८ लब्धिगर्भित, मु. धर्मवर्धन, मागु., पद्य, वि. १७२६, (पृ. ४आ-६अ, संपूर्ण), आदिः प्रणमुं प्रथम; अंतिः प्रगट ग्यान प्रकाश., पे.वि. गा.२५,ढाळ-३. पे. ५. पे. नाम. नवकार सह अर्थ, पृ. ६अ-८अ, संपूर्ण नमस्कार महामन्त्र, प्रा., पद्य, आदिः नमो अरिहन्ताणं नमो; अंतिः पढमं हवई मङ्गलम्. नमस्कारमहामन्त्र-अर्थ, मागु., गद्य, आदिः माहरओ नमस्कार; अंतिः संसारो तस्स किं कुणई., पे.वि. मूल अध्याय-९ पद. पे. ६. महावीरजिन स्तुति, सं., पद्य, (पृ. ८आ, संपूर्ण), आदिः नमः श्रीवीरनाथाय; अंतिः शिरसा जिनागमम्., पे.वि. श्लो .३. पे.७. महावीरजिन स्तुति, सं., पद्य, (पृ. ८आ, संपूर्ण), आदि: विशाललोचनदलं; अंतिः बुधैर्नमस्कृतम्., पे.वि. श्लो.३. पे. ८. संसारदावानल स्तुति, आ. हरिभद्रसूरि, सं.,प्रा., पद्य, (पृ. ८आ-९अ, संपूर्ण), आदिः संसारदावानलदाहनीरं; __ अंतिः देवि सारम्., पे.वि. श्लो.४. पे. ९.१४ नियम गाथा, प्रा., पद्य, (पृ. ९अ, संपूर्ण), आदिः सच्चित्त दव्व विगई; अंतिः न्हाण्ण भत्तेसु., पे.वि. गा.१. पे. १०. प्रत्याख्यानसूत्र, संबद्ध, प्रा., पद्य, (पृ. ९-, अपूर्ण), आदिः उग्गए सूरे नमुक्कार; अंतिः-, पे.वि. अंतिम पत्र नहीं १७८८. स्तवन सङ्ग्रह, अपूर्ण, वि. १८वी, जीर्ण, पृ. ८-१(५)=७, पे. ८, जैदेना., पू.वि. बीच व अन्त के पत्र नहीं हैं., दशा वि. विवर्ण-पानी से अक्षरों की स्याही फैल गयी है, (२५.५४१०.५, १७४३४). पे. १. अजितशान्ति स्तवन , उपा. मेरुनन्दन, संबद्ध, मागु., पद्य, (पृ. १अ-२अ, संपूर्ण), आदि: मङ्गल कमला कन्द ए; अंतिः मेरुनन्दन उवज्झाय ए., पे.वि. गा.३२. पे. २. सीमन्धरजिनविनती स्तवन, उपा. भक्तिलाभ, मागु., पद्य, (पृ. २अ-३अ, संपूर्ण), आदिः सफल संसार अवतार; अंतिः पुरी आसा मनतणी., पे.वि. गा.१८. पे. ३.२४ जिन स्तवन, मु. साधुरङ्ग, मागु., पद्य, (पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण), आदिः पहिलं प्रणमुं आदि; अंतिः वीनवै० अविचल ऋद्धि., पे.वि. गा.१४. पे. ४. अष्टापदतीर्थ स्तवन, मागु., पद्य, (पृ. ३आ-४आ-, पूर्ण), आदिः चउवीसे जिणवर नमी; अंतिः-, पे.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. गा.३० तक है. पे. ५. पार्श्वजिन स्तवन-फलवर्द्धि, गणि गुणवर्द्धन, मागु., पद्य, (पृ. -६अ, अपूर्ण), आदि:-; अंतिः आधारो रे पासजिणिन्द., पे.वि. मात्र अंतिम पत्र है. मात्र गा.९ मी है. पे. ६. पार्श्वजिन स्तवन, गणि दानविजय, मागु., पद्य, (पृ. ६अ, संपूर्ण), आदिः वामा रे नन्दण; अंतिः साहिब पूरउ मन आस रे., पे.वि. गा.५. पे. ७. पार्श्वजिन स्तवन-स्तम्भन, मागु., पद्य, (पृ. ६अ-६आ, संपूर्ण), आदिः थम्भणपुर श्रीपास; अंतिः मण्डण पासनाह चउसालो.,पे.वि. गा.९. पे. ८. पार्श्वजिन स्तवन-स्तम्भन, वाचक कुशललाभ, मागु., पद्य, (पृ. ६आ-८आ-, पूर्ण), आदिः प्रभु प्रणमुं रे; अंतिः-, पे.वि. अंतिम पत्र नहीं है. गा.१८ तक है. For Private And Personal Use Only Page #236 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य भाग - १ १८२ 100%). १७८९. तिजयपहुत्त स्तोत्रादि सङ्ग्रह, संपूर्ण, वि. १७७४, श्रेष्ठ, पृ. ५, पे. ८, जैदेना., ले. पं. महिमासागर, पठ. मु. केसरसागर (गुरु गणि देवसागर), प्र.ले.पु. मध्यम, (२५४१०.५, १३४४०). पे. १.तिजयपहुत्त स्तोत्र, प्रा., पद्य, (पृ. १अ), आदिः तिजयपहुत्तपयासय अठ्ठ; अंतिः निच्चमच्चेह., पे.वि. गा.१५. पे. २. नमिऊण स्तोत्र, आ. मानतुङ्गसूरि, प्रा., पद्य, (पृ. १अ-२अ), आदिः नमिऊण पणयसुरगण; अंतिः नासइ तस्स दूरेण., पे.वि. गा.२४. पे. ३.बृहत्शान्ति स्तोत्र-तपागच्छीय, सं., गद्य, (पृ. २अ-३आ), आदि: भो भो भव्याः श्रृणुत; अंतिः जैनं जयति शासनम्. पे. ४. लघुशान्ति, आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, (पृ. ३आ-४अ), आदिः शान्तिं शान्ति; अंति: जैनं जयति शासनम्., पे.वि. श्लो.१७+२. पे. ५. सकलार्हत् स्तोत्र, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, (पृ. ४अ-५अ), आदिः सकलार्हत्प्रतिष्ठानम; अंतिः श्रीवीरजिननेत्रयोः., पे.वि. श्लो.३५. श्लो.३० से ३५ अलग मिलता है. पे.६. ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, सं., पद्य, (पृ. ५आ), आदिः पञ्चानन्तक सुप्रपञ्च; अंतिः सिद्धायिका त्रायिका., पे.वि. श्लो.४. पे. ७. साधारणजिन स्तुति, आ. सोमप्रभ, मागु., पद्य, (पृ. ५आ), आदिः कल्याणसारसवितानीय; अंतिः परमागम सिद्धसूरेः., पे.वि. गा.१. पे. ८. साधारणजिन स्तुति, सं., पद्य, (पृ. ५आ), आदिः श्रीतीर्थराजपदपद्म; अंतिः दाता दधतां शिवं वः., पे.वि. श्लो.१. १७९१.” स्तुति सङ्ग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ११, पे. ३२, जैदेना., दशा वि. विवर्ण-पानी से अक्षरों की स्याही फैल गयी है-अल्प, (२५.५४१०.५, १७X४४). पे. १.२४ जिन स्तुति, आ. जिनकुशलसूरि, सं., पद्य, (पृ. १अ), आदिः नाभेयाजितवासुपूज्य; अंतिः प्रयच्छन्तु नः., पे.वि. श्लो.४. पे. २. पार्श्वजिन स्तुति, सं., पद्य, (पृ. १अ), आदिः हर्षनतासुरनिर्जरलोकं ; अंतिः शस्त निजाघः., पे.वि. श्लो.४. पे. ३. महावीरजिन पारणा स्तुति, सं., पद्य, (पृ. १अ), आदिः यत्पारणासु प्रथमासु; अंतिः तु मम प्रमोदम्., पे.वि. श्लो .४. पे. ४. ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, सं., पद्य, (पृ. १अ-१आ), आदिः पञ्चानन्तक सुप्रपञ्च; अंतिः सिद्धायिका त्रायिका., पे.वि. श्लो.४. पे. ५. पंचकल्याणक स्तुति, सं., पद्य, (पृ. १आ), आदिः नाभेयं सम्भवं तं; अंतिः पञ्चकल्लाण एसो., पे.वि. श्लो.४. पे. ६. आदिजिन स्तुति-अर्बुदगिरिमण्डन, अप., पद्य, (पृ. १आ-२अ), आदिः वरमुक्तियहार सुतार; अंतिः सुहाणि कुणे सुसया., पे.वि. गा.४. पे. ७. बीजतिथि स्तुति, प्रा., पद्य, (पृ. २अ), आदिः महीमण्डणं; अंतिः देहि मे सुद्धनाणं., पे.वि. गा.४. पे. ८. आदिजिन स्तुति, सं., पद्य, (पृ. २अ), आदिः युगादिपुरुषेन्द्राय; अंतिः कूष्माण्डी कमलेक्षणा., पे.वि. श्लो.४. पे. ९. महावीरजिन स्तुति, सं., पद्य, (पृ. २अ), आदिः यदंह्रिनमनादेव देहिन; अंतिः नित्यं मम मङ्गलेभ्यः., पे.वि. - __श्लो .४. पे. १०. पार्श्वजिन स्तुति, सं., पद्य, (पृ. २अ-२आ), आदिः श्रीसर्वज्ञं ज्योति; अंतिः वृद्धिं वैदुष्यम्., पे.वि. श्लो.४. पे. ११.पे. नाम. महावीर वृद्धस्तुति, पृ. २आ पाक्षिक स्तुति, आ. बालचन्द्रसूरि, सं., पद्य, आदिः स्नातस्याप्रतिमस्य; अंतिः कार्येषु सिद्धिम्., पे.वि. -श्लो.४. पे. १२. कल्लाणकन्द स्तुति, प्रा., पद्य, (पृ. २आ-३अ), आदिः कल्लाणकन्दं पढमं; अंतिः अम्ह सया पसत्था., पे.वि. गा.४. For Private And Personal Use Only Page #237 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra १८३ www.kobatirth.org: Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची पे. १३. महावीरजिन स्तुति, सं., पद्य, (पृ. ३अ), आदि: वीरं देवं नित्यं; अंतिः देवी दद्यात्सौख्यम्., पे.वि. श्लो. १. चार बार बोलने योग्य. पे. १४. पार्श्वजिन स्तुति - जेसलमेर, सं., पद्य, (पृ. ३अ), आदिः शमदमोत्तमवस्तुमहापणं; अंतिः सा जिनशासनदेवता., पे.वि. - श्लो. ४. पे. १५. महावीरजिन स्तुति, सं., पद्य, (पृ. ३अ), आदिः यदंहिनमनादेव देहिन; अंतिः नित्यं मम मङ्गलेभ्यः., पे.वि. - श्लो. ४. पे. १६. २४ जिन स्तुति, अप, पद्य, (पृ. ३अ) आदि भरहेसर कारियदेवहरे अंतिः विगणंतु अनंतदहंसगुणा., पे. वि. गा.२. पे. १७. मौनएकादशीपर्व स्तुति, सं., पद्य, (पृ. ३अ) आदि अरस्य प्रवज्या अंतिः विपदः पञ्चकमदः, पं.वि. -श्लो. १. पे. १८. पे. नाम. दीपालिका स्तुति, पृ. ३अ " दीपावलीपर्व स्तुति, आ. जिनचन्द्रसूरि सं., पद्य, आदिः पापायां पुरि अंतिः शार्दूलविक्रीडितम् पे.वि. -श्लो. १. पे. १९. पे. नाम. विहरमाणजिन स्तुति, पृ. ३आ विहरमान २० जिन स्तुति, मागु., पद्य, आदिः पञ्चविदेह विषय; अंतिः जण मनवञ्छित सारै, पे.वि. गा. ४. पे. २०. शत्रुंजयतीर्थ स्तुति, आ. नन्दसूरि मागु, पद्य, (पृ. ३आ), आदि: श्रीशत्रुञ्जमण्डण अंतिः तुम्ह पाय सेवता., पे.वि. गा. ४. पे. २१. पे नाम. सुखडी स्तुति, पृ. ३आ-४अ साधारणजिन स्तुति, मु. कवियण, मागु, पद्य, आदि: चम्पक केतकी पाडल अंतिः जो तुसे देवी अम्बाई., पे. वि. गा. ४. पे. २२. पार्श्वजिन स्तुति-स्तम्भन, प्रा., पद्य, (पृ. ४अ), आदि: सिरिथम्भणयट्ठिय पास; अंतिः समुन्नइ निमित्तम्., पे.वि. गा.२. पे. २३ . महावीरजिन स्तुति, सं., पद्य, (पृ. ३अ), आदिः नमोस्तु वर्द्धमानाय; अंतिः बुधैर्नमस्कृतम्, पे.वि. श्लो. ४. पे. २४. महावीरजिन स्तुति, प्रा., पद्य, (पृ. ४अ), आदि: परसमयतिमिरतरणि; अंतिः मे मङ्गलं देवि सारं., पे.वि. गा. ४. पे. २५. पे. नाम. पाक्षिक स्तुति, पृ. ४था श्रुतदेवी स्तुति, सं., पद्य, आदिः कमलदल विपुलनयना; अंतिः श्रुतदेवता सिद्धिम्, पे.वि. श्लो. ३. पे. २६. पार्श्वजिन स्तुति, सं., पद्य, (पृ. ४आ), आदिः अमरगिरिशिरस्थस्फार; अंतिः श्रुतं नः श्रुताङ्गी., पे.वि. श्लो. ४. पे. २७. आदिजिन स्तुति, सं., पद्य, (पृ. ४आ), आदि प्रणतसुरासुरमीलि अंति चक्रेश्वरी देवी, पे.वि. श्लो.४. पे. २८. साधारणजिन स्तुति, सं., पद्य, (पृ. ४आ), आदि: वासवस्तुतपदोमहा; अंतिः दधतां सुखश्रियाम्., पे.वि. श्लो. १. पे. २९. २४ दण्डक स्तुति, आ. जिनेश्वरसूरि, सं., पद्य, (पृ. ४आ-५अ ), आदि: रुचितरुचिमहामणि; अंतिः दद्यादलं भारती भारती, पे.वि. श्लो. ४. पे. ३०. साधारण जिन स्तुति, सं., पद्य, (पृ. ५अ-५आ), आदि अविरलकमलगवलमुक्ताफल, अंतिः देवी श्रुतोच्चयम्... पे.वि. श्लो. ४. पे. ३१. पे. नाम. पाक्षिकप्रतिक्रमण स्तुति, पृ. ५आ पार्श्वजिन स्तुति, आ. जिनकुशलसूरि, सं., पद्य, आदिः ट्रें दें कि धप; अंतिः दिशतु शासनदेवता., पे.वि. श्लो. ४. पे. ३२. सुपात्रदानफल स्तोत्र, प्रा., पद्य, (पृ. ५आ), आदि उसभस्सय पारणए; अंतिः भरहे साहू न सीयन्ति., पे.वि.. गा. ५. १७९२.” प्रतिक्रमणसूत्र सङ्ग्रह व स्तुति सङ्ग्रह, संपूर्ण, वि. १८३६, श्रेष्ठ, पृ. १४, पे. १६, जैदेना., ले. स्थल. जावाल, पठ. मु. चतुरा ( गुरु गणि कपूरविजय), ले. पाठक चिरांजी, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ - कुछ पत्र, (२५.५४११.५, १३-१४४३४). For Private And Personal Use Only Page #238 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य भाग १ - www.kobatirth.org: पे. १. पे. नाम. प्रतिक्रमणसूत्र सङ्ग्रह, पृ. ०१-७अ देवसिराईप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा., सं., मागु., प+ग, आदिः नमो अरिहन्ताणं; अंतिः जैनं जयति Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir शासनम्. पे. २. कल्लाणकन्द स्तुति, प्रा., पद्य, (पृ. ७अ ), आदि: कल्लाणकन्दं पढमं; अंतिः अम्ह सया पसत्था, पे. वि. गा.४. पे. ३. बीजतिथि स्तुति, मु. लब्धिविजय, मागु, पद्य, (पृ. ७अ-७आ), आदि दिन सकल मनोहर अंतिः पुरो मनोरथ माय., पे.वि. गा. ४. पे. ४. ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, सं., पद्य, (पृ. ७आ-८अ ), आदिः श्रीनेमिः पञ्चरूप; अंतिः कुशलं धीमतां सावधान.., पे.वि. श्लो. ४. पे. ५. संसारदावानल स्तुति, आ. हरिभद्रसूरि सं., प्रा., पद्य, (पृ. ८अ ) आदि संसारदावानलदाहनीरं अंतिः देवि सारम्., पे.वि. श्लो. ४. , १८४ पे. ६. पीषदशमीपर्व स्तुति, मु. धीरविजय, मागु, पद्य, (पृ. ८अ (आ) आदि श्रीशङ्खेसर पास अंतिः मनवाञ्छित सुख थायजी., पे.वि. गा. ४. पे. ७. मौनएकादशीपर्व स्तुति, मु. गुणहर्ष-शिष्य मागु., पद्य, (पृ. ८आ - ९अ ), आदि एकादशी अति रुअडी: अंतिः सङ्घ तणा निशदिश., पं.वि. गा.४. पे. ८. मौनएकादशीपर्व स्तुति, मु. लालविजय, मागु, पद्य, (पृ. ९अ ९आ) आदि गौत्तम बोले ग्रन्थ अंतिः सङ्घने विधन निवारी, पे.वि. गा.४. पे. ९. पाक्षिक स्तुति, आ. बालचन्द्रसूरि, सं., पद्य, (पृ. ९आ-१०अ ), आदिः स्नातस्याप्रतिमस्य; अंतिः कार्येषु सिद्धिम्., पे.वि. श्लो. ४. पे. १०. सिद्धचक्र स्तुति, मु. उत्तमसागर, मागु., पद्य, (पृ. १०अ - १०आ), आदिः सिद्धचक्र सेवो भवि; अंतिः वाचक० उत्तम सीस सवाई, पे.वि. गा.४. पे. ११. वन्दित्तुसूत्र, संबद्ध, प्रा., पद्य, (पृ. १०आ - १२ आ), आदिः वन्दित्तु सव्वसिद्धेः अंतिः वन्दामि जिणे चउवीसं., पे.वि. गा. ५०. पे. १२. पर्युषणपर्व स्तुति, मु. बुधविजय, मागु., पद्य, (पृ. १२आ - १३अ), आदिः वीर जिणेसर अति; अंतिः बुधविजय जयकारीजी., पे.वि. गा.४. , पे. १३. आदिजिन स्तुति, कवि ऋषभदास सङ्घवी, मागु., पद्य, (पृ. १३अ), आदिः प्रह उठी वन्दु; अंतिः रुषभदास गुण गाइ, पे. वि. गा. ४. पे. १४. शान्तिजिन स्तुति, श्रा. ऋषभदास, मागु., पद्य, (पृ. १३अ - १३आ), आदिः शान्ति जिणेसर समरीइं; अंतिः ऋषभदासनी वाणी., पे.वि. गा. ४. पे. १५. नेमिजिन स्तुति, कवि ऋषभदास सङ्घवी, मागु., पद्य, (पृ. १३आ), आदि: श्रावण सुदि दिन; अंतिः सफल करो अवतार तो, पे.वि. गा.४. पे. १६. पे. नाम. श्राद्धप्रतिक्रमणसूत्र, पृ. १३-१४ अ साधारणजिन स्तुति, मु. कवियण, मागु, पद्य, आदिः चम्पक केतकी पाडल अंतिः जी तूठे देव अम्बाई., पे. वि. गा. ४. १७९४.'' प्रतिक्रमणसूत्र सङ्ग्रह व स्तुति सङ्ग्रह, पूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २६-१ (१) - २५, पे. ३६, जैदेना., प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें टिप्पण युक्त विशेष पाठ, दशा वि. विवर्ण-पानी से अक्षरों की स्याही फैल गयी है - अल्प, ( २६ ११, १२४३५). पे. १. पे. नाम. प्रतिक्रमणसूत्र सङ्ग्रह, पृ. २अ - ६आ, पूर्ण साधु श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र सङ्ग्रह- खरतरगच्छीय, संबद्ध, प्रा. सं., प+ग, आदि अंतिः सेसो संसार फलहेऊ. For Private And Personal Use Only Page #239 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir १८५ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची पे.वि. प्रथम पत्र नहीं है. पे. २. बीजतिथि स्तुति , प्रा., पद्य, (पृ. ६आ-७अ, संपूर्ण), आदिः महीमण्डणं; अंतिः देहि मे सुद्धनाणं., पे.वि. गा.४. पे. ३. ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, सं., पद्य, (पृ. ७अ, संपूर्ण), आदिः पञ्चानन्तक सुप्रपञ्च; अंतिः सिद्धायिका त्रायिका., पे.वि. श्लो.४. पे. ४. पे. नाम. लघ्वीस्त्रीछन्दसि स्तुति, पृ. ७आ, संपूर्ण ___ महावीरजिन स्तुति, सं., पद्य, आदिः वीरं देवं नित्यं; अंतिः देवी दद्यात्सौख्यम्., पे.वि. श्लो.१. पे. ५. विहरमान २० जिन स्तुति, मागु., पद्य, (पृ. ७आ, संपूर्ण), आदिः पञ्चविदेह विषय; अंतिः जण मनवञ्छित सारै., पे.वि. गा.४. पे. ६. पार्श्वजिन स्तुति-जेसलमेर, सं., पद्य, (पृ. ७आ, संपूर्ण), आदिः शमदमोत्तमवस्तुमहापणं; अंतिः सा जिनशासनदेवता., पे.वि. श्लो.४ . पे. ७. पार्श्वजिन स्तुति, सं., पद्य, (पृ. ७आ-८अ, संपूर्ण), आदिः श्रीसर्वज्ञं ज्योति; अंतिः वृद्धिं वैदुष्यम्., पे.वि. श्लो.४. पे. ८. पार्श्वजिन स्तुति, सं., पद्य, (पृ. ८अ, संपूर्ण), आदिः हर्षनतासुरनिर्जरलोकं ; अंतिः शस्त निजाघः., पे.वि. श्लो.४. पे. ९. महावीरजिन स्तुति, सं., पद्य, (पृ. ८अ-८आ, संपूर्ण), आदिः यदंह्रिनमनादेव देहिन; अंतिः नित्यं मम मङ्गलेभ्यः., पे.वि. श्लो.४. पे. १०. महावीरजिन स्तुति, मागु., पद्य, (पृ. ८आ, संपूर्ण), आदि: बालपणे डाबो पाय; अंतिः मेलै मुक्ति साथ., पे.वि. गा.४. पे. ११. पे. नाम. चतुर्विंशतिजिन स्तुति, पृ. ८आ-९अ, संपूर्ण साधारणजिन स्तुति, सं., पद्य, आदिः अविरलकमलगवलमुक्ताफल; अंति: देवी श्रुतोच्चयम्., पे.वि. श्लो.४. पे. १२. आदिजिन स्तुति-अर्बुदगिरिमण्डन, अप., पद्य, (पृ. ९अ, संपूर्ण), आदिः वरमुक्तियहार सुतार; अंतिः सुहाणि कुणे सुसया., पे.वि. गा.४. पे. १३. पे. नाम. आदिजिन स्तुति, पृ. ९आ, संपूर्ण २४ जिन स्तुति, अप., पद्य, आदिः भरहेसर कारियदेवहरे; अंतिः विगणंतु अणंतदहंसगुणा., पे.वि. गा.२. पे. १४. पे. नाम. अष्टमीतपः स्तुति, पृ. ९आ, संपूर्ण अष्टमीतिथि स्तुति, अप., पद्य, आदिः महामङ्गलं अष्ट सोहै; अंतिः सन्ति कल्याणदाता., पे.वि. गा.४ . पे. १५. पे. नाम. अष्टमी स्तुति, पृ. ९आ-१०अ, संपूर्ण ___ अष्टमीतिथि स्तुति, आ. जिनसुखसूरि, मागु., पद्य, आदि: चोवीसे जिनवर प्रणमुं: अंतिः जीवित जनम प्रमाण., पे.वि. गा.४. पे. १६. पे. नाम. पार्श्व स्तुति, पृ. १०अ, संपूर्ण पार्श्वजिन स्तुति, आ. जिनभक्तिसूरि, मागु., पद्य, आदिः अश्वसेन नरेसर; अंतिः कलत्र बहु वित्त., पे.वि. गा.४. पे. १७. मौनएकादशीपर्व स्तुति, सं., पद्य, (पृ. १०अ-१०आ, संपूर्ण), आदिः अरस्य प्रवज्या; अंतिः विपदः पञ्चकमदः., पे.वि. श्लो .४. पे. १८. पे. नाम. दण्डक स्तुति, पृ. १०आ-११अ, संपूर्ण २४ दण्डक स्तुति, आ. जिनेश्वरसूरि, सं., पद्य, आदिः रुचितरुचिमहामणि; अंतिः दद्यादलं भारती भारती., पे.वि. श्लो.४. पे. १९. पार्श्वजिन स्तुति, आ. जिनकुशलसूरि, सं., पद्य, (पृ. ११अ-११आ, संपूर्ण), आदिः दें दें कि धप; अंतिः दिशतु शासनदेवता., पे.वि. श्लो.४.। पे. २०. पे. नाम. ऋषभजिन स्तुति, पृ. ११आ-१२अ, संपूर्ण आदिजिन स्तुति, सं., पद्य, आदिः ऋषभनाथ भनाथनिभानन; अंतिः तनुभातनु भारती., पे.वि. श्लो.४. For Private And Personal Use Only Page #240 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य भाग - १ १८६ पे. २१. आदिजिन स्तुति, सं., पद्य, (पृ. १२अ, संपूर्ण), आदिः युगादिपुरुषेन्द्राय; अंतिः कूष्माण्डी कमलेक्षणा., पे.वि. श्लो .४. पे. २२. पे. नाम. दीपमालिका स्तुति, पृ. १२अ-१२आ, संपूर्ण दीपावलीपर्व स्तुति, आ. जिनचन्द्रसूरि, सं., पद्य, आदिः पापायां पुरि; अंतिः शार्दूलविक्रीडितम्., पे.वि. श्लो.४. पे. २३. शत्रुजयतीर्थ स्तुति, सं., पद्य, (पृ. १२आ, संपूर्ण), आदिः श्रीशेत्रुञ्जयमुख्य; अंतिः ते सन्तु भद्रङ्कराः., पे.वि. श्लो .४. पे. २४. पे. नाम. साधोरतिचार गाथा, पृ. १२आ, संपूर्ण साधुअतिचारचिन्तवन गाथा, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदिः सयणासणन्नपाणे; अंतिः वितहायरणेय अइयरो., पे.वि. गा.१. पे. २५. पे. नाम. गोचरचर्या गाथा, पृ. १३अ, संपूर्ण गोचरीआलोअण गाथा, प्रा., पद्य, आदिः कालेणय गोअरिआ; अंतिः जङ्किञ्चि अणुउत्तं., पे.वि. गा.१. पे. २६. आगारसङ्ख्या गाथा, प्रा., पद्य, (पृ. १३अ, संपूर्ण), आदिः दोचेव नमुक्कारे आगार; अंतिः सेसेसु चत्तारि., पे.वि. गा.३. पे. २७. प्रत्याख्यानसूत्र, संबद्ध, प्रा., पद्य, (पृ. १३अ-१४आ, संपूर्ण), आदिः उग्गए सूरे नमुक्कार; अंतिः वत्तियागारेणं वोसिरइ. पे. २८. पे. नाम. स्तम्भनकतीर्थराज पार्श्वनाथ स्तवन, पृ. १४-१६आ, संपूर्ण जयतिहुअण स्तोत्र, आ. अभयदेवसूरि , प्रा., पद्य, आदिः जयतिहुयणवर कप्परुक्ख; अंतिः विण्णवइ अणिन्दिय., पे.वि. गा.३०. पे. २९. साधुवन्दित्तुसूत्र, संबद्ध, प्रा., गद्य, (पृ. १७अ-१९आ, संपूर्ण), आदिः इच्छामि पडिक्कमिउ; अंतिः वन्दामि जिणे चउवीसं. पे. ३०. प्रव्रज्या कुलक, प्रा., पद्य, (पृ. १९आ-२०आ, संपूर्ण), आदिः संसार विसम सायर भवजल; अंतिः तरंति ते भवसलिलरासिं., पे.वि. गा.३४. पे. ३१. वन्दित्तुसूत्र, संबद्ध, प्रा., पद्य, (पृ. २१अ-२३अ, संपूर्ण), आदिः वन्दित्तु सव्वसिद्धे; अंतिः वन्दामि जिणे चउवीसं., पे.वि. मूल-गा.५०. पे. ३२. सन्थारापोरसीसूत्र, प्रा., पद्य, (पृ. २३अ-२४अ, संपूर्ण), आदिः निसिही निसिही निसीहि; अंति: मज्झवि तेह खमन्तु., पे.वि. गा.१४. पे. ३३.पे. नाम. दशवैकालिकसूत्र-१ से २ अध्ययन, पृ. २४अ-२४आ, प्रतिपूर्ण दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यम्भवसूरि, प्रा., पद्य, वि. पू.४, आदिः धम्मो मङ्गलमुक्किट्ठ; अंति:पे. ३४. पौषध सज्झाय-खरतरगच्छीय, प्रा., पद्य, (पृ. २४आ-२६अ, संपूर्ण), आदिः जगचूडामणिभूओ उसभो; अंतिः उप्पन्नं केवलं नाणं., पे.वि. गा.३३. पे. ३५. पर्युषणपर्व स्तुति, आ. जिनलाभसूरि, मागु., पद्य, (पृ. २६अ, संपूर्ण), आदिः वलि वलि हुं ध्या; अंतिः कहै जिनलाभसुरीन्द., पे.वि. गा.४. पे. ३६. महावीरजिन स्तुति, सं., पद्य, (पृ. २६अ, संपूर्ण), आदिः लोकाधारं शान्ताकारं; अंतिः मे धर्मे शिक्षा., पे.वि. श्लो .४. १७९५. सज्झाय सङ्ग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २५, पे. ४४, जैदेना., ले.स्थल. जावाल, ले. मु. कान्तिविजय (गुरु उपा. कीर्तिविजय), (२६.५४११.५, ११४४०). पे. १. काया सज्झाय, मु. पदमतिलक, मागु., पद्य, (पृ. १अ-१आ, संपूर्ण), आदिः वनमाली धणी इम कहे; अंतिः मत खोड लगाई.,पे.वि. गा.११. For Private And Personal Use Only Page #241 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra १८७ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची पे. २. बाहुबली सज्झाय, मु. माणिक्य, मागु., पद्य, (पृ. १आ, संपूर्ण), आदि: बेहनड बोले हो बाहूबल; अंतिः चढतो छे पे.वि. गा. ५. www.kobatirth.org: वान.. पे. ३. दशवैकालिकसूत्र- सज्झाय, मु. वृद्धिविजय, संबद्ध, मागु, पद्य, (पृ. १आ-२अ संपूर्ण), आदि गणधर धरम इम उपदेशे; अंतिः विजय लह्यो तेह रे, पे.वि. गा. ७. पे. ४. अष्टमीतिथि सज्झाय वाचक देवविजय, मागु, पद्य, (पृ. २अ आ, संपूर्ण) आदि श्रीसरसतिने चरणे: अंतिः " वाचिक देव सुसीस., पे. वि. गा. ७. , पे. ५. पौषदशमीपर्व सज्झाय, मु. दानविजय, मागु., पद्य, (पृ. २आ-३अ, संपूर्ण ), आदिः प्रणमी पास जिणेसर; अंतिः प्रणमे तस पाय., पे.वि. गा. ७. , पे. ६. एकादशीतिथि सज्झाय वाचक उदयरतन मागु., पद्य, (पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण), आदि आज एकादसी हे नणदल अंतिः अविचल लीला लेसी., पे.वि. गा. ७. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir " पे. ७. मान राज्झाय, पण्डित भावसागर, मागु, पद्य, (पृ. ३आ-४अ, संपूर्ण), आदि अभिमान न करस्यो कोई: अंतिः नगर रहि चौमासै हो., पे.वि. गा.८. पे. ८. माया सज्झाय, मु. भावसागर, मागु., पद्य, (पृ. ४अ - ४आ, संपूर्ण), आदि: माया मूल संसारनो; अंतिः लहे सुख निर्वाण, पे.वि. गा. ७. पे. ९. लोभ सज्झाय, पण्डित भावसागर, मागु., पद्य, (पृ. ४आ-५अ, संपूर्ण), आदि: लोभ न करीये प्राणीया; अंति पहोचे सयल जगीस रे., पे.वि. गा.८. पे. १०. पे. नाम. अइमुत्ता सज्झाय, पृ. ५अ, संपूर्ण अइमुत्तामुनि सज्झाय, उपा. मानविजय, मागु, पद्य, आदि गुण आदरीइ प्राणीया: अंतिः घरइ बहु प्यार., पे. वि. , गा. ७. पे. ११. अरणिकमुनि राज्झाय, मु. रूपविजय, मागु., पद्य, (पृ. ५अ-६अ, संपूर्ण), आदि अरणिक मुनिवर चाल्या अंतिः मनवाञ्छित फल लीधोजी. पे. वि. गा.११. " पे. १२. भगवती सूत्र- सज्झाय, उपा. विनयविजय संबद्ध मागु पद्य वि. १७३८, (पृ. ६अ-७अ संपूर्ण), आदि: वंदि 1 प्रणमी: अंतिः विनयविजय गुण गाय रे, पे.वि. गा.२०. पे. १३. ज्ञानपंचमीपर्व सज्झाय, मु. कान्तिविजय, मागु पद्य, (पृ. ७अ आ, संपूर्ण) आदि सद्गुरू चरण पसाउले; अंतिः विजय गुण गाय रे, पे. वि. गा. ७. " " पे. १४. ७ वार सज्झाय, मु. लावण्यसमय, मागु, पद्य, (पृ. ७आ-८अ संपूर्ण), आदि: सीखामण सद्गुरु तणी अंति भणे वंदो श्रीमहावीर.. पे.वि. गा.८. पे. १५. नेमराजिमती सज्झाय, ऋ. खेमो, मागु., पद्य, (पृ. ८अ-८आ, संपूर्ण ), आदि: श्रीनेमिसर नित नमु; अंतिः मनवाञ्छित द्यो नेमजी., पे.वि. गा. १५. पे. १६. इरियावही सज्झाय, मु. मेघचन्द्र- शिष्य, मागु., पद्य, (पृ. ८आ - ९अ, संपूर्ण), आदि: नारी मे दीठी इक आवती; अंतिः एहनी करज्यो सेव रे., पे.वि. गा.७. पे. १७. खामणा सज्झाय, समरो, मागु., पद्य, (पृ. ९अ, संपूर्ण), आदिः अरिहन्तजीने खामणाजी; अंतिः कहेजी आवागमण निवार, पे.वि. गा.६. पे. १८. रुक्मिणी सज्झाय, मु. राजविजय, मागु., पद्य, (पृ. ९अ - ९आ, संपूर्ण ), आदिः विचरन्ता गामोगाम; अंतिः राजविजय रङ्गे भणे., पे.वि. गा. ७. For Private And Personal Use Only पे. १९. २४ जिन साधुसाध्वीश्रावक श्राविकासम्पदा सज्झाय, मु. करमसी, मागु., पद्य, (पृ. ९आ-१०अ, संपूर्ण), आदिः चोवीस तीर्थङ्करनो; अंतिः श्रीसङ्घ वन्दौ सही., पे.वि. गा.६. Page #242 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य भाग - १ १८८ पे. २०.७ व्यसन सज्झाय, मु. जयरङ्ग, मागु., पद्य, (पृ. १०अ-११अ, संपूर्ण), आदिः पर उपगारी साध सुगुरु; अंतिः रङ्गे जेरङ्गे कहे., पे.वि. गा.९. पे. २१. नन्दिषेणमुनि सज्झाय, मु. रूपविजय, मागु., पद्य, (पृ. ११अ, संपूर्ण), आदिः रहो रहो रहो वालहा; अंतिः रुपविजय जयकार.,पे.वि. गा.५. पे. २२. औपदेशिक सज्झाय, मु. विनय, प्राहिं., पद्य, (पृ. ११अ-११आ, संपूर्ण), आदिः किसके चेले किसके; अंतिः __विराजे सुख भरपूर., पे.वि. गा.४. पे. २३. दान सज्झाय, मु. दीप्तिविजय, मागु., पद्य, (पृ. ११आ, संपूर्ण), आदिः प्रणमी श्रीगोयम; अंतिः पूरो जगीस., पे.वि. गा.७. पे. २४. प्रसन्नचन्द्रराजर्षि सज्झाय, मु. ऋद्धिहर्ष, मागु., पद्य, (पृ. १२अ, संपूर्ण), आदिः प्रणमुं तुमारा पाय; अंतिः जिण दीठा प्रत्यक्ष., पे.वि. गा.६.. पे. २५. मेतारजमुनि सज्झाय, मु. राजविजय, मागु., पद्य, (पृ. १२अ-१३अ, संपूर्ण), आदिः समदम गुणना आगरुजी; अंतिः साधु तणी ए सज्झाय., पे.वि. गा.१३. पे. २६. गजसुकुमाल सज्झाय, उपा. समयसुन्दर गणि, मागु., पद्य, (पृ. १३अ, संपूर्ण), आदिः नयरी द्वारामती; अंतिः समयसुन्दर तसु ध्यान., पे.वि. गा.६. पे. २७. औपदेशिक सज्झाय, प्रा., पद्य, (पृ. १३अ-१४अ, संपूर्ण), आदिः जयई जगजीवजोणी विआणओ; अंतिः भदं दम सङ्घ सुरस्स., पे.वि. गा.१०.. पे. २८. पे. नाम. उपदेश सज्झाय, पृ. १४अ, प्रतिपूर्ण दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यम्भवसूरि, प्रा., पद्य, वि. पू.४, आदिः धम्मो मङ्गलमुक्किट्ठ; अंतिः-, पे.वि. प्र.पु. मूल अंश-अध्ययन-१. पे. २९. औपदेशिक सज्झाय, मु. लावण्यसमय, मागु., पद्य, (पृ. १४अ-१४आ, संपूर्ण), आदिः धर्म म मुकीस विनय; ___ अंतिः ते चिरकाले नन्दो रे., पे.वि. गा.८. पे. ३०. घृत सज्झाय, मु. लालविजय, मागु., पद्य, (पृ. १४आ-१५आ, संपूर्ण), आदिः भवीयण भाव घणु धरी; अंतिः लालविजय घीनु गण कहिउ., पे.वि. गा.१९. पे. ३१. जुवटा सज्झाय, मु. आणन्द, मागु., पद्य, (पृ. १५आ-१६आ, संपूर्ण), आदिः दीहो साम्भल सीखडी; अंतिः कहे करजोडी रे., पे.वि. गा.११. पे. ३२. औपदेशिक सज्झाय, मु. उदयरतन, प्राहिं., पद्य, (पृ. १६आ, संपूर्ण), आदिः यामें वास में बें; अंति: मुगतपुरी मे खेलो., पे.वि. गा.७. पे. ३३. बलदेव सज्झाय, मु. सकल , मागु., पद्य, (पृ. १६आ-१७अ, संपूर्ण), आदिः तुङ्गीआगीर सीखर सोहे; अंतिः सकल मुनि सुख देइ रे., पे.वि. गा.८. पे. ३४. औपदेशिक सज्झाय, महमद, मागु., पद्य, (पृ. १७अ-१७आ, संपूर्ण), आदि: भूलो मन भमरा कांई; अंतिः लेसो साहिब हाथ., पे.वि. गा.१२. पे. ३५. परदेशीजीव सज्झाय, मु. राजसमुद्र, मागु., पद्य, (पृ. १७आ-१८अ, संपूर्ण), आदि: एक काया दुजी कामनी; अंतिः स्वारथ को संसार., पे.वि. गा.५.। पे. ३६. करकण्डुऋषि सज्झाय, उपा. समयसुन्दर गणि, मागु., पद्य, (पृ. १८अ, संपूर्ण), आदिः चम्पानगरी अति भली; ___ अंतिः प्रणम्या पातक जाय रे., पे.वि. गा.५. पे. ३७.५ इन्द्रिय सज्झाय , मु. जिनहर्ष, मागु., पद्य, (पृ. १८अ-१८आ, संपूर्ण), आदिः काम अन्ध गजराज; अंतिः लेहो सुख सासता., पे.वि. गा.६. - For Private And Personal Use Only Page #243 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra १८९ www.kobatirth.org: , कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची पे. ३८. सामायिक सज्झाय, मु. नेमसागर, मागु., पद्य, (पृ. १८ आ - १९अ, संपूर्ण ), आदिः सामायिक मन सुधे करो; अंतिः व्रत पालो निसदिस., पे.वि. गा.५. पे. ३९. मृगापुत्र सज्झाय मागु पद्य (पृ. १९अ १९आ, संपूर्ण) आदिः सुग्रीवनयर सोहामणुं अंतिः होज्यो त्रिकाल हो.. पे.वि. गा.१४. " " Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पे. ४०. जम्बूस्वामी सज्झाय, मु. कवियण, मागु., पद्य, (पृ. १९आ-२०आ, संपूर्ण), आदिः श्रेणीक नरवर राजीयों; अंतिः पोहता मुगति मझार, पे.वि. गा. १८. पे. ४१. विजय सेठविजयासेठाणी राज्झाय, आ. हर्षकीर्तिसूरि मागु, पद्य, (पृ. २१आ-२३अ संपूर्ण) आदि प्रह उठी रे पञ्च: अंतिः कुसल नित घर अवतरे, पे. वि. गा. २५, डाळ- ३. पे. ४२. नवकारवाली राज्झाय, मु. लब्धि, मागु, पद्य, (पृ. २३अ-२३आ, संपूर्ण ), आदि: बार गुण अरिहन्तना; अंतिः नित नित नवकारतो., पे.वि. गा. ९. पे. ४३. ज्ञानपंचमीपर्व सज्झाय, आ. लक्ष्मीसूरि, मागु., पद्य, (पृ. २३आ - २५अ, संपूर्ण), आदिः श्रीवासुपूज्य जिणेसर; अंतिः सङ्घ सकल सुखदाय रे., पे.वि. गा. १६, ढाळ - ५. पे. ४४. पे. नाम. शालिभद्र सज्जाय, पृ. २०आ-२१आ, संपूर्ण शालिभद्र सज्झाय, मु. सहजसुन्दर, मागु., पद्य, आदिः प्रथम गोवाल तणे भवेज; अंति: सहजसुन्दरनी वाण. १७९६. स्तोत्र सङ्ग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ६, पे. ८, जैदेना, पठ. श्री. रामा, (२५x११, १२-१३x४८). पे. १. अजितशान्ति स्तव आ. नन्दिषेणसूरि, प्रा., पद्य, (पृ. १अ-३अ) आदि अजियं जिय सव्वमयं अंतिः जिणवयणे " आयरं कुणह., पे. वि. गा. ४७. पे. २. महावीरजिन स्तवन, प्रा., पद्य, (पृ. ३सरा), आदि: जयइ नवनलिनकुवलय; अंतिः दिसउ खयं सव्वदुरिआणं., पे.वि. गा.६. पे. ३. उवसग्गहर स्तोत्र - गाथा ०५. आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., पद्य, (पृ. ३आ), आदि उवसग्गहरं पासं पास अंतिः भवे पास जिणचन्द, पे.वि. गा.५. पे. ४. नमिऊण स्तोत्र, आ. मानतुङ्गसूरि, प्रा., पद्य, (पृ. ३आ-४आ), आदिः नमिऊण पणयसुरगण; अंतिः नासइ तस्स दूरेण., पे. वि. गा. २५. पे. ५. पार्श्वजिन स्तोत्र-जीरावला, आ. मेरुतुङ्गसूरि, सं., पद्य, वि. १५वी, (पृ. ४आ-५अ), आदिः ॐ नमो देवदेवाय; अंतिः लभेत् ध्रुवम्, पे. वि., श्लो. १४. पे. ६. अजितशान्ति लघुस्तव -अञ्चलगच्छीय, कवि वीर गणि, प्रा., पद्य, (पृ. ५अ - ५आ), आदिः गब्भअवयार सोहम्मसुर; अंतिः सुह सयल सम्पज्जए., पे.वि. गा. ८. पे. ७. पे. नाम. लघु अजितशान्ति स्तवन, पृ. ५-६अ अजितशान्ति वृहत्स्तव अञ्चलगच्छीय, आ. जयशेखरसूरि सं., पद्य, आदिः सकलसुखनिवहदानाय अंति सङ्घस्य मुदं पे. वि. श्लो. १७. " पे. ८. तिजयपहुत्त स्तोत्र, प्रा., पद्य, (पृ. ६आ), आदि तिजयपहुत्तपयासय अट्ठ: अंतिः निच्चमच्चेह, पे. वि. गा. १४. यन्त्र के साथ. १७९७. स्तवन, सज्झाय व पद सङ्ग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ७, पे. ८, जैदेना., ( २४.५x११, १४X३७). पे. १. १७ भेदी पूजा स्तवन, मु. वीरविजय, मागु पद्य वि. १६५२ (पृ. १अ-३अ) आदि वन्दी चौवीसजिन अंतिः रिद्धिवृद्धि सदा लहइ, पे.वि. गा. ३१. 1 पे. २. पार्श्वजिन स्तवन- पञ्चकल्याणक मु. पुण्यसागर, मागु., पद्य, (पृ. ३अ-४आ), आदिः पणमि पर परमट्ठ पयत; अंतिः सुहङ्कर चिरं जयउ., पे.वि. ढाळ - ३. For Private And Personal Use Only Page #244 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य भाग १ .. १९० पे. ३. आदिजिन स्तवन- शत्रुञ्जयमण्डन, उपा. रत्ननिधान, मागु, पद्य, (पृ. ४आ-५अ) आदि श्रीजुगादीसजिन अंतिः सुखकरौ जगदीस ए., पे.वि. ढाळ - ३. पे. ४. शत्रुंजयतीर्थ स्तवन, मल्लीदास, मागु., पद्य, (पृ. ५अ-५आ), आदिः पीया बे चालौ; अंतिः सब तीरथ सुखकारा., पे.वि. गा.६. www.kobatirth.org: पे. ५. २४ जिन स्तवन, पाठक सोमसागर- शिष्य, मागु., पद्य, (पृ. ५आ-७अ), आदि: पहिलो प्रणमुं प्रथम अंतिः सुख थापउ दिन दिनै, पे.वि. गा.२४. पे. ६. औपदेशिक सज्झाय, मागु., पद्य, (पृ. ७अ - ७आ), आदि: सुन्दर सुभ मन कीजीयै; अंतिः उनर कदेय न आवै रे., पे.वि. गा.११. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पे. ७. औपदेशिक पद, प्राहिं., पद्य, (पृ. ७आ), आदिः बाग नही वेली नहीं; अंतिः फिरूं लेवुडन कुं संग., पे.वि. गा.४. पे. ८. प्रास्ताविक कवित्त, राज, पद्य, (पृ. ७आ), आदि: बीबी पहिरण देखी अंतिः तैसी सीला तिराय, पे.वि. गा. ५. १७९८. सज्झाय सङ्ग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १५- ३ ( ३ से ४,६) = १२, पे. २३, जैदेना. (२६.५X११, ११×३५). पे. १. सीतासती सज्झाय, मु. उदयरतन, मागु., पद्य, (पृ. १अ - १आ, संपूर्ण), आदि: जनकसुता हुं नाम; अंतिः नित होजो परिणामे पे. वि. गा.8. " पे. २. सीतासती सज्झाय, मु. जिनहर्ष, मागु., पद्य, (पृ. १आ-२अ, संपूर्ण), आदिः जलजलती मलती; अंतिः नित प्रणमु पाय रे., पे.वि. गा. ९. ד पे. ३. स्थूलभद्र सज्झाय, उपा. समयसुन्दर गणि, मागु., पद्य, (पृ. २अ-२आ, संपूर्ण), आदि प्रीतडली न किजीये; अंतिः समयसुन्दर कहे एम., पे. वि. गा. ७. पे. ४. नन्दिषेणमुनि सज्झाय, मु. मेरुविजय, मागु., पद्य, (पृ. २आ-, अपूर्ण), आदि: राजगृही नयरीनो वासी; अंतिः-, पे. वि. प्रारंभ के पत्र हैं. गा.४ अपूर्ण तक है. पे. ५. १३ काठिया सज्झाय, आ. भावप्रभसूरि, मागु., पद्य, (पृ. ५अ, अपूर्ण), आदि:-; अंतिः धन्य तेह नवारो., पे.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. गा.५ अपूर्ण तक नही है. पे. ६. रात्रिभोजन सज्झाय, मु. वसता, मागु., पद्य, (पृ. ५आ-, अपूर्ण), आदिः ग्यान भणो गुण खाणी; अंतिः #., पे.वि. अंतिम पत्र नही है. , ; पे. ७. औपदेशिक सज्झाय, मु. मानसागर, मागु पद्य, (पृ. ७अ-७आ, अपूर्ण), आदि: अंतिः कहे कवि मान., पे. वि. प्रारंभ का पत्र नही है. पे. ८. कर्म राज्झाय, मु. दान, मागु, पद्य, (पृ. ७आ-८अ संपूर्ण), आदिः सुखदुःख सरज्यां अंतिः धरम सदा सुखकार रे., पे.वि. गा. ८. पे. ९. जीव सज्झाय वाचक बुधविजय, मागु, पद्य, (पृ. ८अ -८आ, संपूर्ण), आदि: समवसरण सङ्घासणेजी: अंतिः प्रणमुंबे करजोडि., पे.वि. गा.११. पे. १०. इलाचीकुमार सज्झाय, मु. लब्धिविजय, मागु, पद्य, (पृ. ८आ-९आ, संपूर्ण), आदि नाम इलापुत्र जाणिये अंतिः लब्धिविजय गुण गाय., पं.वि. गा. ९. पे. ११. जीवदया राज्झाय, मु. विवेकचन्द, मागु, पद्य, (पृ. ९आ-१०आ, संपूर्ण) आदि सयल तीर्थङ्कर करु: अंतिः कहे एह विचार, पे. वि. गा.२५. " पे. १२. मेतारजमुनि सज्झाय, मु. जिनहर्ष, मागु., पद्य, (पृ. ११अ - ११आ, संपूर्ण), आदिः श्रेणिक राजा तणौ रे; अंतिः उठी त्रिकालजी पे.वि. गा.९. For Private And Personal Use Only पे. १३. स्थूलभद्र सज्झाय, कवि सहजसुन्दर, मागु, पद्य, (पृ. ११आ, संपूर्ण), आदि: चन्दलीया तु वेहलो; अंतिः जोज्यी चौमासे रे, पं.वि. गा.६. Page #245 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra १९१ www.kobatirth.org: कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची पे. १४. राजिमतीरथनेमि सज्झाय, आ. ज्ञानविमलसूरि, मागु., पद्य, (पृ. ११आ - १२अ, संपूर्ण), आदिः छेडो नाजी नाजी छेडो अंति: ज्ञानविमल गुण माला.. पे.वि. गा. ५. पे. १५. निन्दात्याग सज्झाय, उपा. समयसुन्दर गणि, मागु., पद्य, (पृ. १२अ - १२आ, संपूर्ण), आदिः निन्दा म करजो कोईनी; अंतिः समयसुन्दर सुखकार रे, पे.वि. गा. ५. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पे. १६. औपदेशिक सज्झाय, उपा. समयसुन्दर गणि, मागु., पद्य, (पृ. १२आ, संपूर्ण), आदि: गुण छे पुरा रे श्रीअ; अंतिः भणीस हलावा रे बोल पे.वि. गा.६. पे. १७. प्राणातिपातविरमणव्रत सज्झाय मु. कान्तिविजय, मागु, पद्य, (पृ. १२आ - १३अ संपूर्ण), आदि: सकल मनोरथ पूरवे रे; अंतिः प्रेमे प्रणमे पाय रे, पे.वि. गा.६. पे. १८. अदत्तादानविरमणव्रत सज्झाय, मु. कान्तिविजय, मागु., पद्य, (पृ. १३अ - १३आ, संपूर्ण), आदि: त्रीजुं महाव्रत; अंतिः पाय नमे करजोडि., पे.वि. गा.६. पे. १९. शील सज्झाय, मु. कान्तिविजय, मागु., पद्य, (पृ. १३आ - १४अ, संपूर्ण), आदि: सरसति केरा रे चरणकमल; अंतिः सीयल पालो नरनारी. पे.वि. गा.८. पे. २०. औपदेशिक सज्झाय, कवि मानसागर, मागु., पद्य, (पृ. १४अ - १४आ, संपूर्ण), आदि: मानवभव भलो पामीयो; अंतिः कहे सुख लहौ निरवाण., पे.वि. गा.११. पे. २१. क्रोध सज्झाय, मु. भावसागर मागु पद्य (पृ. १४-१५अ संपूर्ण), आदि: क्रोध न करिये भोला अंति " (१) उपशम आणो पासे रे., पे.वि. गा. ९. · पे. २२. ढंढणऋषि सज्झाय, मु. जिनहर्ष, मागु., पद्य, (पृ. १५अ - १५आ, संपूर्ण ), आदिः ढंढणऋषिने वंदना हुं; अंतिः कहे जिनहर्ष सुजाण रे., पे.वि. गा. ९. (+) पे. २३. परनारीपरिहार सज्झाय, मु. शान्तिविजय, मागु., पद्य, (पृ. १५आ, संपूर्ण), आदिः जीव वारु छं मोरा ; अंतिः जीव आवागमन निवारो., पे.वि. गा.५. १७९९. स्तुति सङ्ग्रह, सप्तस्मरण व प्रकरणचतुष्कादि, अपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. ४९-१२ (१ से ८,१५ से १८ ) - ३७, पे. २४, जैदेना. प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें, पृ. वि. प्रारंभ, बीच के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. (२६४१२, १३४४५) " पे. १. बीजतिथि स्तुति, प्रा., पद्य, (पृ. ९अ, अपूर्ण), आदि:-; अंतिः देहि मे सुद्धनाणं., पे.वि. गा. ४. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. श्लो. २ तक नहीं है, पे. २. ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, सं., पद्य, (पृ. ९अ, संपूर्ण), आदि पञ्चानन्तक सुप्रपञ्च: अंतिः सिद्धायिका त्रायिका., पे. वि. श्लो. ४. पे. ३. अष्टमीतिथि स्तुति, अप, पद्य, (पृ. ९, संपूर्ण), आदि: महामङ्गलं अष्ट सोहे: अंतिः सन्ति कल्याणदाता, पे.वि. गा. ४. पे. ४. मौनएकादशीपर्व स्तुति, सं., पद्य, (पृ. ९आ-१०अ संपूर्ण), आदि अरस्य प्रवज्या अंतिः विपदः पञ्चकमदः, पे.वि. श्लो ४. पे. ५. पार्श्वजिन स्तुति, आ. जिनकुशलसूरि, सं., पद्य, (पृ. १०अ, संपूर्ण ), आदिः दें दें कि धप; अंतिः दिशतु शासनदेवता., पे.वि. श्लो. ४. पे. ६. २४ जिन स्तुति, आ. जिनकुशलसूरि, सं., पद्य, (पृ. १०अ - १०आ, संपूर्ण), आदिः नाभेयाजितवासुपूज्य; अंतिः प्रयच्छन्तु नः, पे.वि. श्लो. ४. J " पे. ७. आदिजिन स्तुति अर्बुदगिरिमण्डन, अप, पद्य (पृ. १० आ- ११अ संपूर्ण ) आदि वरमुक्तियहार सुतार: अंतिः सुहाणि कुणे सुसया, पे.वि. गा. ४. For Private And Personal Use Only Page #246 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य भाग - १ १९२ पे. ८. पार्श्वजिन स्तुति-जेसलमेर, सं., पद्य, (पृ. ११अ, संपूर्ण), आदिः शमदमोत्तमवस्तुमहापणं; अंतिः सा जिनशासनदेवता., पे.वि. श्लो.४. पे. ९. पार्श्वजिन स्तुति, सं., पद्य, (पृ. ११अ, संपूर्ण), आदिः हर्षनतासुरनिर्जरलोकं; अंतिः शस्त निजाघः., पे.वि. श्लो.४. पे. १०. विहरमान २० जिन स्तुति, मागु., पद्य, (पृ. ११अ-११आ, संपूर्ण), आदिः पञ्चविदेह विषय; अंतिः जण मनवञ्छित सारै., पे.वि. गा.४. पे. ११. शत्रुजयतीर्थ स्तुति, आ. नन्दसूरि, मागु., पद्य, (पृ. ११आ, संपूर्ण), आदिः श्रीशत्रुञ्जमण्डण; अंतिः तुम्ह पाय सेवता., पे.वि. गा.४. पे. १२.पे. नाम. दीपमालिका स्तुति, पृ. ११आ-१२अ, संपूर्ण दीपावलीपर्व स्तुति, आ. जिनचन्द्रसूरि, सं., पद्य, आदिः पापायां पुरि; अंतिः शार्दूलविक्रीडितम्., पे.वि. श्लो.४. पे. १३. पे. नाम. अणोझा स्तुति, पृ. १२अ, संपूर्ण महावीरजिन स्तुति, सं., पद्य, आदिः यदंह्रिनमनादेव देहिन; अंतिः नित्यं मम मङ्गलेभ्यः., पे.वि. श्लो.४. पे. १४. अष्टमीतिथि स्तुति, आ. जिनसुखसूरि, मागु., पद्य, (पृ. १२आ, संपूर्ण), आदिः चोवीसे जिनवर प्रणमुं; अंतिः जीवित जनम प्रमाण., पे.वि. गा.४. पे. १५. पार्श्वजिन स्तुति, सं., पद्य, (पृ. १२आ-१३अ, संपूर्ण), आदिः श्रीसर्वज्ञं ज्योति; अंतिः वृद्धिं वैदुष्यम्., पे.वि. श्लो.४. पे. १६. नेमिजिन स्तुति, मागु., पद्य, (पृ. १३अ, संपूर्ण), आदिः सुरअसुरवन्दितपाय; अंतिः करो ते अम्बा देवीए., पे.वि. गा.४. पे. १७. सप्तस्मरण-खरतरगच्छीय, मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा., पद्य, (पृ. १३-२३, अपूर्ण), आदिः अजिअं जिअ सव्वभयं; अंतिः भवे पास जिणचन्द., पे.वि. स्मरण-७ बीच के पत्र नहीं हैं. जयतिहुअणस्तोत्र गा.२० से अजितशान्ति की गा.६ तक के पाठ नहीं है. पे. १८. नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, (पृ. २३आ-२५आ, संपूर्ण), आदि: जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंतिः बोहिय इक्कणिक्काय., पे.वि. गा.५१. पे. १९. जीवविचार प्रकरण, आ. शान्तिसूरि, प्रा., पद्य, (पृ. २५आ-२७आ, संपूर्ण), आदिः भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंतिः रुद्दाओ सुयसमुद्दाओ., पे.वि. गा.५१. पे. २०. दण्डक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, (पृ. २७आ-२९आ, संपूर्ण), आदिः नमिउं चउवीस; अंतिः एसा विनत्ति अप्पहिआ., पे.वि. गा.४०. पे. २१. पे. नाम. त्रैलोक्यदीपिकानाम सङ्ग्रहणी सूत्र, पृ. २९आ-४३आ, संपूर्ण बृहत्सङ्ग्रहणी, आ. चन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: नमिउं अरिहन्ताइं; अंतिः जा वीरजिण तित्थं., पे.वि. गा.३४२. पे. २२. कर्मविपाक नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, (पृ. ४३आ-४६अ, संपूर्ण), आदिः सिरिवीरजिणं वन्दिय; अंतिः लिहिओ देविन्दसूरीहिं., पे.वि. गा.६१. पे. २३. कर्मस्तव नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, (पृ. ४६अ-४७आ, संपूर्ण), आदिः तह थुणिमो वीरजिणं; अंतिः वन्दियं नमह तं वीरं., पे.वि. गा.३५. पे. २४. बन्धस्वामित्व नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, (पृ. ४७आ-४९, संपूर्ण), आदिः बन्धविहाणविमुक्कं; अंतिः नेयं कम्मत्थयं सोउं., पे.वि. गा.२५. १८००. स्तवन, पद, सज्झाय, लावणी व छन्द सङ्ग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४५-२९(१ से २८,३२)=१६, पे. २५, जैदेना., (२४.५४१२, १०४३१). For Private And Personal Use Only Page #247 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir १९३ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची पे. १. नेमिजिन स्तवन, मु. रतनचन्द, राज., पद्य, (पृ. २९आ, संपूर्ण), आदिः सांवरियो साहेब है; अंतिः कहे० लीजे नाम सबेरो., पे.वि. गा.५. पे. २. शान्तिजिन स्तवन, ऋ. रतनचन्द, राज., पद्य, (पृ. २९आ-३०अ, संपूर्ण), आदिः तुं धन तुं धन तुं; अंतिः हंस हुं भर पामी., पे.वि. गा.५. पे. ३. महावीरजिन स्तवन, ऋ. कुशलचन्द, राज., पद्य, (पृ. ३०अ-३०आ, संपूर्ण), आदिः महावीर स्वामीने; अंतिः कहे० दुःख दूर हरी., पे.वि. गा.५. पे. ४. नेमिजिन स्तवन, मु. रतनचन्द, राज., पद्य, (पृ. ३०आ, संपूर्ण), आदिः सांवलिया साहेब सुख; अंतिः आई आज हमारी बारी., पे.वि. गा.६. पे. ५. औपदेशिक पद, मु. रतनचन्द, राज., पद्य, (पृ. ३०आ-३१अ, संपूर्ण), आदिः जोबनीयारी मोजां; अंतिः आराधो सुख सेती रे., पे.वि. गा.६. पे. ६. औपदेशिक पद, मु. विनयचन्द, राज., पद्य, (पृ. ३१अ-३१आ, संपूर्ण), आदिः रे चेतन पोते तुं; अंतिः भव दुष्कृत ___टाले तुं.,पे.वि. गा.५. पे. ७.२४ जिन स्तवन, मागु., पद्य, (पृ. ३१आ-, अपूर्ण), आदिः श्रीरिषभ अजित सम्भव; अंतिः-, पे.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. गा.१ से ५ तक है. पे. ८. औपदेशिक पद, मु. जेमल-शिष्य, राज., पद्य, वि. १८३६, (पृ.-३३अ, अपूर्ण), आदि:-; अंतिः तणो अभ्यास री माई., पे.वि. गा.१०. प्रथम पत्र नहीं है. गा.१ से ९ नहीं है. पे. ९. सीमन्धरजिन स्तवन, मु. लालचन्द, मागु., पद्य, (पृ. -३३अ-३३आ, संपूर्ण), आदिः श्रीसीमन्धरजी सुणजो; अंतिः एही अरदासोजी., पे.वि. गा.७. पे. १०. औपदेशिक पद, प्राहिं., पद्य, (पृ. ३३आ, संपूर्ण), आदिः वटावेउ रे बित गईओ; अंतिः खोल देखो दोय नेण., पे.वि. गा.३. पे. ११. दानशीलतपभाव प्रभाती, उपा. समयसुन्दर गणि, मागु., पद्य, (पृ. ३३आ-३४अ, संपूर्ण), आदिः रे जीव जैनधर्म कीजीय; अंतिः मोक्ष तणा फल पाय रे., पे.वि. गा.६. पे. १२. संवर सज्झाय, मागु., पद्य, (पृ. ३४अ-३५अ, संपूर्ण), आदिः वीर जिणेसर; अंतिः शिवरमणी वेगे वरो., पे.वि. गा.६. पे. १३. नमस्कारमहामन्त्र स्तवन, ऋ. रायचन्द, राज., पद्य, वि. १९वी, (पृ. ३५अ-३५आ, संपूर्ण), आदिः प्रथम श्रीअरिहन्त; अंतिः चाहो तो धरम करो., पे.वि. गा.१३. पे. १४. बाहुबली सज्झाय, उपा. समयसुन्दर गणि, मागु., पद्य, (पृ. ३५आ-३६अ, संपूर्ण), आदिः राजतणा अति लोभीया; अंतिः समयसुंदर वंदे पाय रे., पे.वि. गा.७. पे. १५. महावीरजिन छन्द, ऋ. लालचन्द, राज., पद्य, वि. १८६२, (पृ. ३६अ-३८अ, संपूर्ण), आदिः श्रीमहावीर सासण धणी; अंतिः धन श्रीवीरजिणन्द., पे.वि. गा.११. पे. १६. औपदेशिक पद, मु. रतनचन्द, राज., पद्य, (पृ. ३८अ-३८आ, संपूर्ण), आदिः तेरी फूलसी देह पलक; अंतिः सुखरी आवी लाखे रे., पे.वि. गा.५. पे. १७. धर्मरुचि सज्झाय, मु. रतनचन्द, राज., पद्य, (पृ. ३८आ-३९अ, संपूर्ण), आदिः चम्पानगरनी रुप; अंतिः नाम थकी सिव वासो हो., पे.वि. गा.१५. पे. १८. पैसानी ढाल, मु. जेतसी, राज., पद्य, (पृ. ३९आ-४०अ, संपूर्ण), आदि: श्रीजिनवर गणधर; अंतिः मुज निस्तार रे., पे.वि. गा.९. पे. १९. परनारीपरिहार सज्झाय, राज., पद्य, (पृ. ४०अ-४०आ, संपूर्ण), आदिः मतता कहो नार बिराणी; अंतिः जस उत्तम प्राणी.,पे.वि. गा.६. For Private And Personal Use Only Page #248 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य भाग - १ १९४ पे. २०. नेमराजिमती लावणी, मु. जिनदास, प्राहिं., पद्य, (पृ. ४०आ-४१अ, संपूर्ण), आदिः फिकर अब लगी मेरा; अंतिः पद दीजे प्रभु हमकुं., पे.वि. गा.४. पे. २१. औपदेशिक लावणी, मु. जिनदास, प्राहिं., पद्य, (पृ. ४१अ-४२अ, संपूर्ण), आदिः तु मत जो जगत के; अंतिः उपदेश सुणो मत काना., पे.वि. गा.४. पे. २२. सुमतिकुमति लावणी, जिनदास, प्राहिं., पद्य, (पृ. ४३अ-४३आ, संपूर्ण), आदिः हारे तुं कुमति; अंतिः बात खोटी ___मत खेडे., पे.वि. गा.४. पे. २३. औपदेशिक सज्झाय , मु. रतनचन्द, राज., पद्य, (पृ. ४३आ-४४अ, संपूर्ण), आदिः इण कालरो भरोसो भाई; अंतिः कीजो धर्म रसालो., पे.वि. गा.१२. पे. २४. मनभमरा सज्झाय, मु. लब्धिविजय, मागु., पद्य, (पृ. ४४अ-४४आ, संपूर्ण), आदिः भूलो मन भमरा कांई; अंतिः लब्धिविजय गुण गाय., पे.वि. गा.९. पे. २५. अरणिकमुनि सज्झाय, उपा. समयसुन्दर गणि, मागु., पद्य, (पृ. ४५अ-४५आ-, पूर्ण), आदिः अरणिक मुनिवर चाल्या; अंतिः मनवञ्छित फल लीधोजी., पे.वि. गा.८. अंतिम पत्र नहीं है. अंतिम कडी मात्र नही है. १८०१. प्रबोधचिन्तामणि ढाल, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १६, जैदेना., पू.वि. अन्त के पत्र नहीं हैं. खंड-२ ढाल-३ गा.१५ तक है., (२६४१३, १०४२७). प्रबोधचिन्तामणि ढाल, मु. धर्ममन्दिर, मागु., पद्य, वि. १७४१, आदि: चिदानन्द चित चाहसु; अंति:१८०२. स्तवन व छन्द सङ्ग्रह, संपूर्ण, वि. १९३९, मध्यम, पृ. १०, पे. ९, जैदेना., ले.स्थल. दसाडाग्राम, ले. मु. मोतीविजय; मु. दौलतविजय, प्र.ले.पु. मध्यम, (२८.५४१३, ११४२८). पे. १. २४ जिन स्तवन-मातापितानामादिगर्भित, मु. आणन्द, मागु., पद्य, वि. १५६२, (पृ. १अ-३अ), आदिः सयल जिणेसर प्रणमुं; अंतिः तास सीस प्रणमु आणन्द., पे.वि. गा.२९. पे. २. पंचतीर्थ स्तवन, मु. लावण्यसमय, मागु., पद्य, (पृ. ३अ-४अ), आदिः आदि हे आदि जिणेसरु; अंतिः घरघर नव निधान के., पे.वि. गा.११. पे. ३. रावण कवित्त , मागु., पद्य, (पृ. ४अ-५अ), आदिः लङ्कागढ प्रमाण जोयण; अंतिः क्षोणी मुनियो वदंति., पे.वि. गा.६. पे. ४. शनिश्चर छन्द, पण्डित ललितसागर, मागु., पद्य, (पृ. ५अ-६आ), आदिः सरसति सामिण; अंतिः सारदा वरदा भवेत., पे.वि. गा.३२. पे. ५. शान्तिजिन छन्द, आ. गुणसागरसूरि, प्राहिं., पद्य, (पृ. ७अ-८अ), आदिः सारद माय नमुं; अंतिः मनवञ्छित शिवसुख पावे., पे.वि. गा.२१. पे. ६. औपदेशिक दूहा', प्राहिं., पद्य, (पृ. ८अ), आदिः#; अंतिः#., पे.वि. गा.१. पे. ७. नमस्कारमहामन्त्र छन्द, वाचक कुशललाभ , मागु., पद्य, (पृ. ८अ-९आ), आदिः वंछित पूरे विविध; अंतिः सिद्धि वंछित लहे., पे.वि. गा.१४. पे. ८. औपदेशिक छन्द, पण्डित लक्ष्मीकल्लोल, मागु., पद्य, (पृ. ९आ-१०आ), आदिः भगवती भारती चरण; अंतिः धरज्यो मनि चोल., पे.वि. गा.१४. पे. ९. अष्टापदतीर्थ स्तवन, उपा. समयसुन्दर गणि, मागु., पद्य, (पृ. १०आ), आदिः मनडुं अष्टापद मोह्यु; अंतिः प्रह उगमते सूरजी., पे.वि. गा.५. १८०३. स्तुति सङ्ग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, पे. १५, जैदेना., ले. मु. मेघविजय (गुरु मु. अमरविजय), पठ. श्रा. नानजी, (२६x१३.५, ११४४४). पे. १. आध्यात्मिक स्तुति, आ. भावप्रभसूरि, मागु., पद्य, (पृ. १अ), आदिः उठी सवेरे सामायिक; अंतिः शिवपद सुख अणुभोगीजी., पे.वि. गा.४. For Private And Personal Use Only Page #249 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir १९५ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची पे. २. दीपावलीपर्व स्तुति, मु. भालतिलक, मागु., पद्य, (पृ. १अ), आदि: जय जय कर मङ्गल दीपक; अंति: भालतिलक वर हीर., पे.वि. गा.१. पे. ३. पंचमीतिथि स्तुति, आ. ज्ञानविमलसूरि, मागु., पद्य, (पृ. १आ), आदिः धरम जिणन्द परम पद; अंतिः नयविमल सदा सुखदेवी., पे.वि. गा.४. पे. ४. ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, मागु., पद्य, (पृ. १आ-२अ), आदिः नेमि जिणवर कही; अंतिः करे अम्ब अम्बाश्वरी., पे.वि. गा.४. पे. ५. पर्युषणपर्व स्तुति, मु. बुधविजय, मागु., पद्य, (पृ. २अ-२आ), आदिः वीर जिणेसर अति; अंतिः बुधविजय जयकारीजी., पे.वि. गा.४. पे. ६. साधारणजिन स्तुति, मु. कवियण, मागु., पद्य, (पृ. २आ-३अ), आदिः चम्पक केतकी पाडल; अंतिः जो तुंसे देवी अम्बाई., पे.वि. गा.४. पे. ७. अष्टमीतिथि स्तुति , मागु., पद्य, (पृ. ३अ), आदिः अष्टमी अष्ट परमाद; अंतिः अष्टसुख सानिध करे., पे.वि. गा.४. पे. ८. मौनएकादशीपर्व स्तुति, मागु., पद्य, (पृ. ३अ-३आ), आदि: नेमिजिन उपदेशी मौन; अंतिः करा सन्तुठे सुरवरा., पे.वि. गा.४. पे. ९. पाक्षिक स्तुति, आ. बालचन्द्रसूरि, सं., पद्य, (पृ. ३आ-४अ), आदिः स्नातस्याप्रतिमस्य; अंतिः कार्येषु सिद्धिम्., पे.वि. श्लो.४. पे. १०. चतुर्थीतिथि स्तुति, मु. नय, मागु., पद्य, (पृ. ४अ), आदिः सर्वार्थसिद्धथी चवीए; अंतिः नय निहालतो., पे.वि. गा.४. पे. ११. बारसतिथि स्तुति, मागु., पद्य, (पृ. ४अ-४आ), आदिः जे बारसने दिने ज्ञान; अंतिः पाखे न कमे पतीजं., पे.वि. गा.४. पे. १२. अमावस्यातिथि स्तुति, मु. नयविजय, मागु., पद्य, (पृ. ४आ), आदिः अमावस्या तो थई उजली; अंतिः लीला करो नित नित., पे.वि. गा.४. पे. १३. शत्रुजयतीर्थ स्तुति, श्रा. ऋषभदास, मागु., पद्य, (पृ. ४आ-५अ), आदिः श्रीशत्रुञ्जय तीरथ; अंतिः ऋषभदास ___ गुण गाय., पे.वि. गा.४. पे. १४. सिद्धचक्र स्तुति, गणि कान्तिविजय, मागु., पद्य, वि. १८उ., (पृ. ५अ-५आ), आदिः पहिले पद जपीइ; अंतिः कान्तिविजय गुण गाय., पे.वि. गा.४. पे. १५. सीमन्धरजिन स्तुति, मागु., पद्य, (पृ. ५आ), आदिः श्रीसीमन्धरस्वामी; अंतिः आवागमण निवार निवार., पे.वि. गा.१. १८०४. स्तवन सङ्ग्रह, भ्रमरगीता व शालीभद्र सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८४०, मध्यम, पृ. ७, पे. ६, जैदेना., ले.स्थल. सूर्यपुरग्राम, ले. मु. मयारत्न, पठ. श्राविका सेहेजबाई, (२९x१२.५, १२४४०). पे. १. पे. नाम. पञ्चमीतपविषये गुणमञ्जरीवरदत्त कथाप्रसङ्गगर्भित वीरविभो स्तवन, पृ. १अ-४आ ज्ञानपंचमीपर्व स्तवन, पं. जिनविजय, मागु., पद्य, वि. १७९३, आदिः सुत सिद्धारथ भूपनो; अंतिः सकल भवि मङ्गल करे., पे.वि. ढाळ-६. पे. २. नेमिजिन भ्रमरगीता, उपा. विनयविजय, मागु., पद्य, (पृ. ४आ-६अ), आदिः समुद्रविजय कुलचन्दलो; अंतिः प्रभु थुण्या सानुकूल., पे.वि. गा.२७. पे. ३. शीतलजिन स्तवन, मु. उदयरतन, मागु., पद्य, (पृ. ६अ-६आ), आदिः प्रभु सितलनाथ प्रभात; अंतिः उदयरतन कहे माहरूं., पे.वि. गा.७. For Private And Personal Use Only Page #250 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य भाग - १ १९६ पे. ४. पे. नाम. धरमनाथजिन स्तवन, पृ. ६आ-७अ धर्मजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मागु., पद्य, आदिः हां रे मुंने धरम; अंतिः उलट अति घणे रे लो., पे.वि. गा.७. पे. ५. पे. नाम. श्रीमन्धरजिन स्तवन, पृ. ७अ सीमन्धरजिन स्तवन, मु. जसराय, मागु., पद्य, आदिः श्रीश्रीश्रीसीमन्धर; अंतिः किरति काज सराय., पे.वि. गा.७. पे. ६. पे. नाम. धन्नासालिभद्र सिज्झाय, पृ. ७अ-७आ शालिभद्रधन्ना सज्झाय , वाचक उदय, मागु., पद्य, आदिः अजिया जोरावर करमें; अंतिः होजो वारंवार रे., पे.वि. गा.७. १८०५. योगशास्त्र सह बालावबोध - प्रकाश १ व गृहस्थधर्मस्वरूप, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २५, पे. २, जैदेना., पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., (२८.५४१३, १५४३५). पे. १.पे. नाम. योगशास्त्र सह बालावबोध-प्रकाश-१, पृ. १अ-२३आ, प्रतिपूर्ण योगशास्त्र, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, आदिः नमो दुर्वाररागादि; अंति:योगशास्त्र-हिस्सा प्रकाश १ से ४ का बालावबोध, आ. सोमसुन्दरसूरि, मागु., गद्य, आदिः (१) प्रणम्य जिनसिद्धादीन (२) हिवडां श्रीमहावीरना; अंति:पे. २. गृहस्थधर्म स्वरूप, मागु., गद्य, (पृ. २३आ, अपूर्ण), आदिः सम्यक्त्वमूलानि; अंतिः-, पे.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. १८०६. अष्टमी, एकादशी व पञ्चमी स्तवन, संपूर्ण, वि. १९३१, मध्यम, पृ. ५, पे. ३, जैदेना., ले.स्थल. विझोवा, पठ. मु. प्रतापसागर (गुरु पं. चारित्रसागर); मु. पुण्यसागर (गुरु मु. मोतीसागर),ले. पं. चारित्रसागर,प्र.ले.पु. मध्यम, (२४.५४१३.५, १४४२६). पे. १. अष्टमीतिथि स्तवन, मु. कान्तिविजय, मागु., पद्य, (पृ. १अ-२आ, संपूर्ण), आदिः हां रे मारे ठाम धर्म; अंतिः कांति सुख पामे घणु., पे.वि. गा.२४,ढाळ-२. पे. २. मौनएकादशीपर्व स्तवन, मु. कान्तिविजय, मागु., पद्य, वि. १७६९, (पृ. २आ-३आ, प्रतिपूर्ण), आदिः द्वारिका नयरी; अंतिः-, पे.वि. मात्र प्रथम ढाल है. पे. ३. ज्ञानपंचमीपर्व वृद्धस्तवन, उपा. समयसुन्दर गणि, मागु., पद्य, (पृ. ४अ-५आ, संपूर्ण), आदिः प्रणमुं श्रीगुरुपाय; अंतिः भगति भाव प्रशंसीयो., पे.वि. गा.२५,ढाळ-३. १८०७. सवैया सङ्ग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदेना.,प्र.वि. गा.५५ छंद, (२७४१२.५, १५४३८). आध्यात्मिक सवैया सङ्ग्रह, पं. रूपविजय, हिन्दी, पद्य, आदिः ॐ हे अविकार; अंतिः जय चित्तमांहि धरे हे. १८०८." सिन्दूरप्रकर सह टीका व जैनधार्मिक श्लोक सङ्ग्रह, संपूर्ण, वि. १७५२, मध्यम, पृ. १२, पे. २, जैदेना., ले. वाचक नेमहर्ष (गुरु पं. समयमूर्ति), प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें, अक्षर-त्रिपाठ, (२५.५४११, ६-८४५०-५५). पे. १. पे. नाम. सिन्दूरप्रकर सह टीका, पृ. १-१२ सिन्दूरप्रकर, आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य, आदिः सिंदूरप्रकरस्तपः; अंतिः सूक्तमुक्तावलीयम्. सिन्दूरप्रकर-टीका, पं. धर्मचन्द्र, सं., गद्य, आदिः नत्वा वीरवरो धीरः; अंतिः सूचनमिति वृत्तार्थः., पे.वि. मूल श्लो.९९. पे. २. श्लोक सङ्ग्रह जैनधार्मिक* , सं.,प्रा., पद्य, (पृ. १२वा), आदिः#; अंतिः#., पे.वि. श्लो.७+२=९. १८०९. १४ गुणठाणा विचार, संपूर्ण, वि. १९०१, श्रेष्ठ, पृ. १४, जैदेना., ले.स्थल. भरतपुर-गोपालगढ, ले. मु. ऋषभदेवीचन्द (गुरु ऋ. मलुकचन्द), पठ. ऋ. मलुकचन्द (गुरु मु. आनन्दजस), प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र.वि. दिवानजी जिनदासजी की प्रति पर से यह प्रति लिखी गई है।, (२६४१२.५, १९४४९). १४ गुणठाणा विचार, प्राहिं., गद्य, आदिः नामद्वार ते १४; अंतिः ए ५ जोग सासता. For Private And Personal Use Only Page #251 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir १९७ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १८१०." सूक्तावली व अमीझरापार्श्व स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ९, पे. २, जैदेना., ले. गणि अमृतविजय, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें, प्र.ले.श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्टं, (२५४११.५, १५-१७४३८-४४). पे. १. सूक्तमाला, मु. केशरविमल, सं.,मागु., पद्य, वि. १७५४, (पृ. १-९अ), आदिः सकलसुकृत्यवल्लीवृन्द; अंतिः केसरविमलेन विबुधेन., पे.वि. ४ वर्ग. पे. २. पार्श्वजिन स्तवन-अमीझरा, मु. महेन्द्र, मागु., पद्य, वि. १८६२, (पृ. ९आ), आदि: जगगुरु वामानन्दन; अंतिः ____ महेन्द्र पद अनुसरे., पे.वि. गा.६. १८११. सुक्तावली, संपूर्ण, वि. १९३४, श्रेष्ठ, पृ. १६, जैदेना., ले.स्थल. सिरोहीनगर, ले. आ. हुकमचन्द्र(मण्डावडगच्छ), पठ. श्रा. इन्द्रभाण मोतीचन्द(मण्डावडगच्छ), प्र.ले.पु. विस्तृत,प्र.वि. ४ वर्ग, (२७४११.५, १३४२६). सूक्तमाला, मु. केशरविमल, सं.,मागु., पद्य, वि. १७५४, आदिः सकलसुकृत्यवल्लीवृन्द; अंतिः केसरविमलेन विबुधेन. १८१२." क्षेत्रसमास सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७१७, मध्यम, पृ. ३१, जैदेना., ले. मु. विजयसौभाग्य (गुरु गणि भाग्यसौभाग्य), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. मूल-परिमाण गा.२६२,अध्याय-६ अधिकार. बालावबोध टबार्थ की रीति से लिखा गया है., टिप्पण युक्त विशेष पाठ, दशा वि. विवर्ण-पानी से अक्षरों की स्याही फैल गयी है-किनारी खंडित है, (२५.५४११, ५४४७-५१). लघुक्षेत्रसमास प्रकरण, आ. रत्नशेखरसूरि , प्रा., पद्य, वि. १५वी, आदिः वीरं जयसेहरपय; अंतिः कुसलरङ्गमई पसिद्धिं. लघुक्षेत्रसमास-बालावबोध , आ. पार्श्वचन्द्रसूरि, मागु., गद्य, आदिः वीर केता श्रीमहावीर; अंतिः प्रसिद्धि पामे. १८१३. क्षेत्रसमास सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २७, जैदेना., प्र.वि. मूल-गा.२६६,अध्याय-६ अधिकार., टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२६.५४१०.५, ६x४०-४६). लघुक्षेत्रसमास प्रकरण, आ. रत्नशेखरसूरि , प्रा., पद्य, वि. १५वी, (संपूर्ण), आदिः वीरं जयसेहरपय; अंतिः कुसलरङ्गमयं पसिद्धं. लघुक्षेत्रसमास-टबार्थ, मागु., गद्य, (पूर्ण), आदिः वीर क० वर्द्धमानजिन; अंति:१८१४.” पर्युषणअष्टाह्निका व्याख्यान सह टबार्थ व चतुर्विंशतिजिन स्तोत्र सह यन्त्र, संपूर्ण, वि. १८८६, श्रेष्ठ, पृ. ३९, पे. २, जैदेना., ले.स्थल. भांटुठीनगर, ले. वदनचन्द मथेन, राज्यकाल- राजा मुर्यादसिंघ राजा, प्र.ले.पु. मध्यम, दशा वि. विवर्ण-पानी से अक्षरों की स्याही फैल गयी है, प्र.ले.श्लो. (५६६) अदृष्टिदोषात् प्रतिविभ्रमा च; (५०६) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा , (२८x१३, ७४३५-३६). पे. १. पे. नाम. पर्युषणाष्टाह्निका व्याख्यान सह टबार्थ, पृ. १-३९ व्याख्यान कथा सङ्ग्रह, सं., पद्य, आदिः स्मृत्वा पार्श्व; अंतिः करगामिनि भवति. व्याख्यान कथा सङ्ग्रह-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः समरीने श्रीपार्श्व; अंतिः आवे स्त्रीयां परणे. पे. २.२४ जिन स्तोत्र, मु. सुखनिधान, सं., पद्य, (पृ. ३९वा), आदिः आदौ नेमिजिनं नौमी; अंति: मोक्षलक्ष्मीनिवासम्., पे.वि. श्लो.८. पचीसी यन्त्र भी दिया गया है. १८१५. सिद्धान्तसारोद्धार, पूर्ण, वि. १७६१, श्रेष्ठ, पृ. ६४-१(४२)=६३, जैदेना., ले.स्थल. औरंगाबाद, ले. मु. नयभद्र (गुरु मु. कीर्तिकमल, बृहत्खरतरगच्छ),प्र.ले.पु. मध्यम, (२५.५४१२, १३४४२). सिद्धान्तसारोद्धार, मागु., गद्य, (संपूर्ण), आदिः प्रथम जम्बूद्वीप; अंतिः दुक्कडं दीजै. १८१७." व्याख्यान सङ्ग्रह सह विवेचन, संपूर्ण, वि. १८९५, श्रेष्ठ, पृ. १९, जैदेना., ले.स्थल. हरजीग्राम, ले. गणि खन्तिविजय (गुरु मु. उत्तमविजय), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, प्र.ले.श्लो. (२३) जब लग मेरु अडग है; (५३१) लखमण बाण्ण मंधरै, (२६४११, ११-१२४३४). व्याख्यान सङ्ग्रह, सं.,प्रा.,मागु., पद्य, आदिः जिनेन्द्रपूजा; अंतिः#. For Private And Personal Use Only Page #252 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य भाग - १ १९८ व्याख्यान सङ्ग्रह-विवेचन, मागु., गद्य, आदिः श्रीअरिहन्त भगवन्त; अंतिः संसार शेष राखे. १८१८. जीवविचार, नवतत्त्व विचार, बारदेवलोक नाम व बावीसपरीसह, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ११, पे. ३, जैदेना., ले.स्थल. सिरीयारी, ले. पं. रामसौभाग्य, (२५.५४११.५, १३-१४४३२-३५). पे. १. नवतत्त्व विचार, मु. परमसौभाग्य, मागु., गद्य, (पृ. १-११), आदिः (१) सम्यग्दृष्टिने जे (२) जीवतत्त्व जीव सुख; अंतिः (१)योग दोहिला छई (२)सामग्री पुण दुल्लहा. पे. २. १२ देवलोक नाम, मागु., गद्य, (पृ. ११आ), आदिः पहिलो सौधर्मइ; अंतिः प्राणत आरण अच्युत. पे. ३.२२ परिसह उदयहेतुभूत कर्म विचार, मागु., गद्य, (पृ. ११आ), आदिः चार कर्म ने उदै २२; अंतिः परीसह उपजै ते जाणवु. १८१९. सप्तभङ्गी विवेचन, संपूर्ण, वि. १९५२, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना., ले.स्थल. राधनपुर, ले. अमरदत्त ब्राह्मण, पठ. श्रा. कमलसीजी गुलाबचन्द्रजी, प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र.वि. प्र.पु. मूल ग्रं. १४०२. प्र.पु. लिपिकने राधनपुर निवासी गुलाबचन्द्र के पुत्र कमलसीजी के लिए लिखा. श्री बुद्धिविजय शिष्य आत्मारामजी म. की प्रति पर से यह प्रति लिखी गई है., (२७४१२.५, १२४४६). सप्तभङ्गी विचार, हिन्दी, गद्य, आदि: जैनमतवालों को प्रथम; अंतिः भङ्गेनोपदर्शत. १८२०. उपदेशमाला, चरणसत्तरी करणसत्तरी गाथा व संयमप्रकार गाथा, संपूर्ण, वि. १६वी, मध्यम, पृ. २६, पे. ३, जैदेना., प्र.वि. संशोधित, पदच्छेद सूचक लकीरें-मध्यम मात्रा में, दशा वि. किनारी अधिक उपयोग के कारण खंडित है, विवर्ण-पानी से अक्षरों की स्याही फैल गयी है-अल्प, (२६४११, ११४३८). पे. १. उपदेशमाला, गणि धर्मदास, प्रा., पद्य, (पृ. १-२६), आदि: नमिऊण जिणवरिन्दे; अंतिः वयण विणिग्गया वाणी., पे.वि. गा.५४४. पे. २. चरणसत्तरीकरणसत्तरी गाथा, प्रा., पद्य, (पृ. २६वा), आदिः एवय समणधम्म १० सञ्जम; अंतिः चेव कर्णतु., पे.वि. गा.२. पे. ३. संयमसतरभेद, प्रा., पद्य, (पृ. २६अ), आदिः पञ्चाश्रवाद्विरमणं; अंतिः चेति संयमद्वादशभेदः., पे.वि. गा.१. १८२१. कर्मग्रन्थ चतुर्थ सह टबार्थ, पूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १९, जैदेना., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, पू.वि. अन्तिम पत्र नहीं है. गा.८४ तक है., (२६४११.५, ४४३०). षडशीति नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, आदिः नमिय जिणं जिय; अंति: षडशीति नव्य कर्मग्रन्थ-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः हवइं चउथा कर्मग्रन्थ; अंति:१८२२. आत्मशिक्षाभावना व श्लोक सङ्ग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ११, पे. २, जैदेना., लिखवा. मु. कल्याणविमल, (२८.५४१२, १०-११४२८). पे. १. औपदेशिक दूहा, मागु., पद्य, (पृ. १-११आ), आदिः श्रीसरसती निज पाय; अंति: सही आणन्द थाय., पे.वि. गा.७९. पे. २. औपदेशिक पद, मागु., पद्य, (पृ. १२आ), आदिः चलं चितं चलं वितं; अंतिः सान्धेने त्रूटे तेर., पे.वि. गा.३. १८२३. जीवविचार सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १२-७(१ से ७)=५, जैदेना., प्र.वि. मूल-गा.५१., टिप्पण युक्त विशेष पाठ, दशा वि. विवर्ण-पानी से अक्षरों की स्याही फैल गयी है, (२६४११, ५४३६). जीवविचार प्रकरण, आ. शान्तिसूरि, प्रा., पद्य, आदिः भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंतिः रुद्दाओ सुयसमुद्दाओ. जीवविचार प्रकरण-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः श्रीमत्पार्श्वजिनं; अंतिः ए जीवविचार उद्धर्यो. १८२४.* जीवविचार सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, जैदेना.,प्र.वि. क्षेत्रसमास सम्बन्धी यन्त्र दिये गये हैं। पदच्छेद सूचक लकीरें, पू.वि. अन्त के पत्र नहीं हैं. गा.२३ तक है., दशा वि. विवर्ण-पानी से अक्षरों की स्याही फैल गयी है-अल्प, मूषक भक्षित-अंतिम पत्र, (२५.५४११, ४४३३-३७). For Private And Personal Use Only Page #253 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir १९९ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची जीवविचार प्रकरण, आ. शान्तिसूरि, प्रा., पद्य, आदिः भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंति: जीवविचार प्रकरण-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः स्मारं स्मारं गुरो; अंतिः१८२५.” परमाणुखण्डषट्त्रिंशिका प्रकरण की टीका, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६, जैदेना., प्र.वि. संशोधित-पार्श्व रेखा लाल-, १+२४२, पू.वि. अन्त के पत्र नहीं हैं. गा.२४ तक की टीका है., (२६.५४१२, १६x४४). परमाणुखण्डषट्त्रिंशिका प्रकरण-टीका, आ. रत्नसिंहसूरि, सं., गद्य, आदिः यथास्थिताणुजीवादि; अंति:१८२६. सम्यक्त्वपच्चीसी सह अवचूरि व नवतत्त्व सह विवरण, संपूर्ण, वि. १६वी, मध्यम, पृ. ७, पे. २, जैदेना., ले. वाचक भानुलब्धि, प्र.वि. पंचपाठ, पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न-कुछ पत्र, दशा वि. विवर्ण-पानी से अक्षरों की स्याही फैल गयी है-अक्षर मिट गए हैं-अल्प, (२६.५४१०.५, ९४३६). पे. १. पे. नाम. सम्यक्त्वपच्चीसी सह अवचूरि, पृ. १अ-३आ सम्यक्त्वपच्चीसी, प्रा., पद्य, आदिः जह सम्मत्तसरूवं; अंतिः हवेउ सम्मत्तसम्पत्ति. सम्यक्त्वपच्चीसी-अवचूरि, सं., गद्य, आदिः यथा येन औपशमिकत्वादि; अंतिः भवत्विति सुगममन्यत्., पे.वि. मूल परिमाण-गा.२५. पे. २. पे. नाम. नवतत्त्व सह विवरण, पृ. ३आ-७ नवतत्त्व प्रकरण, आ. जयशेखरसूरि, प्रा., पद्य, आदिः जीवाजीवा पुण्णं; अंतिः समत्तं निच्चलं तस्स. नवतत्त्व प्रकरण-विवरण, सं., गद्य, आदिः जयति श्रीमहावीरः; अंतिः शीघ्रं प्राप्नुवन्ति., पे.वि. मूल-गा.३६. १८२७. सिन्दूरप्रकरण सह स्तबकार्थ, संपूर्ण, वि. १८५४, श्रेष्ठ, पृ. २४, जैदेना., ले.स्थल. सिरोहीनगर, ले. श्रा. किसनचन्द, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. मूल-श्लो.१००., पदच्छेद सूचक लकीरें, (२७४११, ५४३२). सिन्दूरप्रकर, आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य, आदिः सिंदूरप्रकरस्तपः; अंतिः सूक्तमुक्तावलीयम्. सिन्दूरप्रकर-टबार्थ, पं. नायकविजय, मागु., गद्य, आदिः सिन्दुरनो प्रकर; अंति: मोतीनी माला तुल्य छे. १८२९. कायस्थिति के २२ द्वार वर्णन, संपूर्ण, वि. १८३५, मध्यम, पृ. ६, जैदेना., ले.स्थल. बडोद, ले. ऋ. अनोपचन्द (गुरु मु. उदयभानु), प्र.वि. जीवाभिगम प्रज्ञापनासूभान्तर्गत ग्रन्थ।, (२६४११, २८४७५). कायस्थिति बाईसद्वार वर्णन, मागु., गद्य, आदिः जीव १ गई २ इन्दिय ३; अंतिः मिच्छामि दुक्कडम्. १८३०. वैराग्यशतक सह टबार्थ व श्लोक सङ्ग्रह, संपूर्ण, वि. १८३१, मध्यम, पृ. ८, पे. २, जैदेना., ले.स्थल. बडोद, ले. ऋ. अनोपचन्द (गुरु मु. ताराचन्द),प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, पदच्छेद सूचक लकीरें, (२५४१०.५, ६x४९). पे. १. पे. नाम. वैराग्यशतक सह टबार्थ, पृ. १-८ वैराग्यशतक, प्रा., पद्य, आदिः संसारंमि असारे नत्यि; अंतिः लहइ जिउ सासयं ठाणं. वैराग्यशतक-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः चउदशराजप्रमाणलोक; अंतिः ठा० स्थानक प्रतिइ., पे.वि. मूल-गा.१०४ पे. २. श्लोक सङ्ग्रह जैनधार्मिक, सं.,प्रा., पद्य, (पृ. ८आ), आदिः#; अंतिः#., पे.वि. गा.२. १८३२. पिण्डविशुद्धि प्रकरण सह वृत्ति, पूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १४-२(२ से ३)=१२, जैदेना., प्र.वि. मूल-गा.१०३. जिनवल्लभ गणि कृत वृत्ति का सक्षेप., टिप्पण युक्त विशेष पाठ, पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न-कुछ पत्र, अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-कुछ पत्र, (२६.५४११, १६x४६). पिण्डविशुद्धि प्रकरण, आ. जिनवल्लभसूरि, प्रा., पद्य, आदिः देविन्दविन्दवन्दिय; अंतिः बोहिन्तु सोहिन्तु य. पिण्डविशुद्धि प्रकरण-दीपिका टीका, आ. उदयसिंहसूरि, सं., गद्य, वि. १२९५, आदिः तं नमत श्रीवीरं; अंतिः सम्पुष्ट्यताम्. For Private And Personal Use Only Page #254 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य भाग १ - www.kobatirth.org: १८३३. उपदेशमाला का बालावबोध, संपूर्ण, वि. १५१९, श्रेष्ठ, पृ. ३९ जैदेना. (२६४११, १३४४३)उपदेशमाला-बालावबोध, मागु., गद्य, आदि: जगचूडामणि० रिषभ जग; अंतिः वाणी श्रुतदेवता खमउ. १८३४.” पर्युषणाष्टानिका व्याख्यान, संपूर्ण, वि. १९५९, श्रेष्ठ, पृ. १३, जैदेना., ले. स्थल. साथीण, ले. पं. चतुरसागर, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें संधि सूचक चिह्न क्रियापद संकेत, अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, संशोधित, ( २६ १४, १४४४६). - अष्टानिकापर्व व्याख्यान वाचक क्षमाकल्याण, सं. गद्य वि. १८६०, आदि शान्तीशं शान्ति: अंतिः विलोक्य तत्.. १८३५. पञ्चप्रतिक्रमण विधि, संपूर्ण वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना, ( २४४१२, १३४३६ ) . प्रतिक्रमणविधि सङ्ग्रह- खरतरगच्छीय संबद्ध, प्रा. मागु, गद्य, आदि में अंतिः #. १८३६. दशविधपच्चक्खाण, मुहपत्ति बोल व औषधि नाम, संपूर्ण, वि. १९२९, श्रेष्ठ, पृ. ६, पे. ३, जैदेना., ले.स्थल. सिरोहीनगर, ले. आ. हुकमचन्द्र ( मण्डावडगच्छ), पठ. श्रा इन्द्रभाण मोतीचन्द (मण्डावडगच्छ), (२४×११.५, १०११x२२-२५) . " पे. १. प्रत्याख्यानसूत्र संबद्ध, प्रा., पद्य, (पृ. १-६अ ) आदि उग्गए सुरे नमुक्कार अंति वतियागारेण वोसिरामि पे. २. मुखवस्त्रिकाप्रतिलेखन के पचास बोल, संबद्ध, मागु., गद्य, (पृ. ६ठा), आदिः प्रथम दृष्टि पडिलेहण; अंतिः छकायनी जेणा करु. पे. ३. औषध सङ्ग्रह मागु., गद्य, (पृ. १अ) आदि # अंतिः # .. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir , (+-) १८३७. औपदेशिक कथा सङ्ग्रह, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ४५-९ (५ से ७, १५ से १९, २७ ) = ३६, जैदेना., पू. वि. बीच व अन्त के पत्र नहीं हैं. (२६४११, १४-१५४६२). औपदेशिक कथा सङ्ग्रह, मागु., पद्य, आदि: कुमारनन्देर्न; अंतिः १८३८. भद्रबाहु संहिता, अपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ५५, जैदेना.. पू. वि. अन्त के पत्र नहीं हैं. प्रारंभ से अधिकार ९ के कुछ अंश तक है., ( २४.५X१२.५, ९४३८). भद्रबाहुसंहिता, मु. गोवर्द्धन-शिष्य, सं., पद्य, आदि: नत्वा चन्द्रप्रभदेवं अति: i १८३९.* पर्युषण अष्टानिका व्याख्यान, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ७, जैदेना. पु. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण, दशा वि. विवर्ण- पानी से अक्षरों की स्याही फैल गयी है, ( २६.५x११.५, १२४३९). पर्युषणाष्टानिका व्याख्यान, मागु, गद्य, आदि: नमो अरिहन्ताणं: अंति: २०० १८४०. सिद्धान्तसारोद्धार विचार सङ्ग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १६ - २ (१२ से १३ ) - १४ जैदेना. प्र. वि. अक्षर- दुर्वाच्य, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, दशा वि. विवर्ण-पानी से अक्षरों की स्याही फैल गयी है अधिक (२६.५४११, १६४६२). सिद्धान्तसारोद्धार विचार, राज, गद्य, आदि:-: अंति: · (+) १८४१. ब्रह्मबावनी, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १३, जैदेना. प्र. वि. गा. ५२, संशोधित (२३.५x११.५, ९४२९-३१) " ब्रह्मवावनी, मु. निहालचन्द, हिन्दी पद्य वि. १८०१ आदि ॐकार अपार परमेश्वर: अंति गुनको गहीजियो. For Private And Personal Use Only (क) १८४२. द्वीपसमुद्र व ज्योतिष विचार, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ७, जैदेना., पू. वि. अन्त के पत्र नहीं हैं., दशा वि. विवर्णपानी से अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, ( २४.५४१२.५, २०४५० -५१). क्षेत्रसमास विचार, मागु., गद्य, आदि: हवे कांइएक बोल; अंतिः १८४३. खरतरगच्छीय पञ्चप्रतिक्रमणसूत्रसङ्ग्रह, संपूर्ण, वि. १८९९, श्रेष्ठ, पृ. २३, जैदेना., ले. स्थल. वालोचर, ले. पं. ऋद्धिसागर मुनि ( गुरु वाचक महिमाकल्याण, खरतरगच्छ क्षेमशाखा) प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. प्रतिलेखन कार्य १८९२ में प्रारंभ हुआ जो १८९९ में पूर्ण हुआ. (२७४१२.५, १३४३५). पंचप्रतिक्रमणसूत्र-खरतरगच्छीय, संबद्ध, प्रा., प+ग, आदिः तित्थङ्करे अ तित्थे; अंतिः दुक्कडं देवुं छं. Page #255 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir २०१ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १८४४. मौनएकादशी कथा, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदेना., प्र.वि. श्लो.१६३, (२६४११.५, १३-१५४४७-५३). मौनएकादशीपर्व कथा, आ. सौभाग्यनन्दिसूरि, सं., पद्य, वि. १५७६, आदि: बरवई नयरीए; अंतिः हम्मीरपुरसंश्रितैः. १८४५. कथा सङ्ग्रह, अपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १२-१(१)=११, जैदेना., प्र.वि. किसी प्राकृत ग्रंथ के कथ संक्षेप., पृ.वि. बीच के पत्र हैं. गाथा ३० से ४७२ तक का अंश है., (२६.५४११, १७४६७). कथा सङ्ग्रह** , सं.प्रा.,मागु., पद्य, आदि:- अंति:१८४६. पुष्पमाला की स्वोपज्ञ अवचूरि, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. २१, जैदेना., (२६४११, १८४५६). पुष्पमाला प्रकरण-स्खोपज्ञ वृत्ति, आ. हेमचन्द्रसूरि मलधारि, सं., गद्य, वि. १२वी, आदिः येन प्रबोधपरिनिर्मित; अंतिः णोपसंहारद्वाराधिकार. १८४७. सूक्तमाला - दूसरा वर्ग, प्रतिपूर्ण, वि. १९५२, श्रेष्ठ, पृ. ८, जैदेना., ले.स्थल. विजापुर, ले. पुनमचन्द, (२८x१२, १२४४०). सूक्तमाला, मु. केशरविमल, सं.,मागु., पद्य, वि. १७५४, आदि:-; अंति:१८४८." चतुर्मासिक व्याख्यान का विवरण, पूर्ण, वि. १८९७, श्रेष्ठ, पृ. ८-१(१)=७, जैदेना., ले.स्थल. पाली, ले. मु. तेजरुचि, दशा वि. विवर्ण-अक्षरों की स्याही फैल गयी है, (२५.५४११.५, १७४४४). १२४ अतिचार वर्णन, राज., गद्य, आदि:-; अंति:१८४९. इकवीसठाणा प्रकरण सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८६७, श्रेष्ठ, पृ. १५, जैदेना., ले.स्थल. प्रतापगढ, राज्यकाल- राजा दीपसिङ्घ सामन्तसिङ्घ, पठ. श्रा. शीवलाल, गच्छा. आ. नयरत्नसूरि, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. मूल-गा.६८., (२५.५४११.५, ४४२३). एकविंशतिस्थान प्रकरण, आ. सिद्धसेनसूरि, प्रा., पद्य, आदिः चवण विमाणा नयरी; अंति: असेस साहारणा भणिया. एकविंशतिस्थान प्रकरण-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः (१) श्रीमत्पार्श्वजिनाधी (२) चवणद्वार विमानद्वार; अंतिः साधारण क० सरि कहा. १८५०. अष्टप्रकारीपूजा रास, संपूर्ण, वि. १८५२, श्रेष्ठ, पृ. १०३, जैदेना., ले.स्थल. भिन्नमाल, ले. मु. जीतसागर (गुरु पं. दीपसागर), प्र.वि. ढाळ-७८, (२४४११, ११४३९). ८ प्रकारी पूजा रास, वाचक उदयरत्न, मागु., पद्य, वि. १७५५, आदिः अजर अमर अविनाश; अंतिः सम्पति बहु पाया १८५१. सुधर्मोपदेश सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८८५, श्रेष्ठ, पृ. १८, जैदेना., ले.स्थल. उंडनगर, ले. पं. गजेन्द्रविजय (गुरु पं. राजेन्द्रविजय), पठ. श्रा. खूबचन्द, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. मूल-श्लो.१०८., (२६.५४१२, ६४३३). सुधर्मोपदेश, सं., पद्य, आदिः लज्जातो भयतो; अंतिः मुखदुममला षट्दर्शनः. सुधर्मोपदेश-टबार्थ, मागु., पद्य, आदिः हिवे धर्म प्राणीने; अंतिः ए षट्दर्शन जाणवा. १८५२. गौतमपृच्छा, अपूर्ण, वि. १९पू, मध्यम, पृ. ७, जैदेना., पठ. पं. देवेन्द्र, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. गा.१०० तक है., (२६४१०.५, १०-११४३८). गौतमपृच्छा चौपाई, मु. लावण्यसमय, मागु., पद्य, वि. १५४५, आदिः सकल मनोरथ पूरवइ; अंतिः१८५३. नवतत्त्व प्रकरण सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९३५, श्रेष्ठ, पृ. १४, जैदेना., ले.स्थल. उमीयापुर, ले. श्रा. नागरदास भाईचन्द शाह (सेठ), पठ. श्राविका दीवालीबाई, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. मूल-गा.६६., (२९.५४१२, ३-४४३३-३९). नवतत्त्व प्रकरण, आ. मणिरत्नसूरि, प्रा., पद्य, आदिः जीवाजीवापुन्नं पावा; अंतिः लिहिओ मणिरयणसूरिहिं. नवतत्त्व प्रकरण-टबार्थ, मागु., गद्य, आदि: नत्वा देवार्यदेवेश; अंतिः बुद्धिने प्राग्भारे. For Private And Personal Use Only Page #256 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य भाग १ २०२ १८५४. लोकस्थ विविधपदार्थ राशि व भाव सङ्ग्रह, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ३६, जैदेना., ले. स्थल. सारंगपुर, ले. छीतर जोसी, (२७४११.५, १३-१४४३०-३३). . बोल सङ्ग्रह, प्रा.,मागु., गद्य, आदि: समझवा हेतु मन राखिवा; अंतिः अश्वरत्न गजरत्न. www.kobatirth.org: १८५५. त्रैलोक्यदीपिका, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १७-१ (१२) + १ (१३) = १७, जैदेना., ले. मु. ललितविजय, प्र. वि. गा.३७१, (२८४११.५, ११४४६). बृहत्सङ्ग्रहणी, आ. चन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदिः नमिउं अरिहन्ताइं अंतिः जा वीरजिण तित्थं. ; १८५६ . आलोयणा, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना., ( २४.५x११, १४४४०). आलोयणा विधि, मु. वालचन्द, मागु., गद्य, आदिः प्रथम नोकार २१ गुणनो; अंतिः ध्यान उपजै आनन्द हे. १८५७. चातुर्मासिक व्याख्यान, प्रतिअपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. २०, जैदेना. पु.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. केवल प्रथम " व्याख्यान (२६४१३, ९४३२). चातुर्मासिक व्याख्यान, मागु गद्य ( प्रतिपूर्ण), आदि सामायिक आवश्यकव्रत: अंतिः " १८५८.* कर्मविपाक नव्य कर्मग्रन्थ सह टवार्थ व बालावबोध, त्रुटक, वि. १८वी श्रेष्ठ, पृ. ६०-५१ (१.३ से ४६ से ८,१० से ५४)= ९, जैदेना. पु. वि. बीच-बीच के पत्र हैं. गा.२ के बालावबोध से मूलगा. ५९ तक है. दशा वि. विवर्ण-पानी से अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं- अंत के कुछ पत्र, फफुंदग्रस्त, (२५x१२, ११३७). कर्मविपाक नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि प्रा. पद्य, आदि-: अंति:कर्मविपाक नव्य कर्मग्रन्थ-टबार्थ, मागु., गद्य, आदि:-; अंति:मागु, गद्य, आदि:-: अंतिः कर्मविपाक नव्य कर्मग्रन्थ- वालावबोध' Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir , १८५९. आनन्दश्रावक रास, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २६ - १ (१) = २५, जैदेना, पू. वि. प्रथम पत्र नहीं है व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., (२६×१०.५, ८x२२). आनन्दश्रावक रास, मागु., पद्य, आदि:-; अंति: (+) " १८६०. बोल सङ्ग्रह, पूर्ण, वि. १९६१ मध्यम, पृ. ५३-२ (१,१५ ) - ५१, जैवेना. ले. स्थल स्थालकोट, ले. मु. मोतीलाल (गुरु मु. पुरणचन्द), प्र.ले.पु. मध्यम, ( २४.५x१२, १८४४६). बोल सङ्ग्रह सं., प्रा. मागु, गद्य, आदि-: अंतिः मिच्छामि दुक्कडम्. १८६१. अनेकान्तनयचक्र, संपूर्ण वि. १९५९ श्रेष्ठ, पृ. १३, पे. २, देना. ले. स्थल विद्युतपुर, ले. मु. पद्मसागर (गुरु मु. " पुण्यसागर), राज्यकाल- राजा योगसिंह, प्र.ले.पु. मध्यम, ( २६१२.५, १५X४०). पे. १. अनेकान्तनयचक्र, सं., गद्य (पृ. १-११अ ) आदि चिदानन्दं हृदि अंतिः यः ज्ञेयाः सुधियैः , पे. २. अनेकान्तनयचक्र, सं., पद्य, (पृ. ११अ - १३ ), आदि: एकमत्र पुरं तात; अंतिः हि महात्मनः, पे.वि. का. ७७. (′′) १८६२. पाक्षिक व खामणासूत्र, संपूर्ण वि. १८६४, मध्यम, पृ. ११, पे. २ जैदेना. ले. मु. गणपतसागर (गुरु मु. "" ललितसागर), दशा वि. विवर्ण-पानी से अक्षरों की स्याही फैल गयी है अल्प, खंडित भाग पर कागज चिपकाए हुए हैं - अंत के कुछ पत्र, ( २४.५X११, १४४३६). पे. १. पे नाम, पाक्षिकसूत्र, पृ. ०१४- ११आ पाक्षिकसूत्र, प्रा., प+ग, आदिः तित्थङ्करे य तित्थे; अंतिः मिच्छामि दुक्कडं. पे. २. पे नाम. पाक्षिकक्षामणासूत्र, पृ. ११आ-११आ क्षामणकसूत्र, प्रा., गद्य, आदि: इच्छामि खमासमणो; अंतिः नित्थारग पारगा होह. १८६३. अष्टकर्म की १५८ प्रकृति विचार, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ११, जैदेना, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२६.५४११.५, १४४४७). १५८ प्रकृति विचार, मागु., गद्य, आदिः कर्मग्रंथमाहि ८ कर्म: अंतिः नरकनें विषइ हुई. For Private And Personal Use Only Page #257 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir २०३ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १८६५. वैराग्यशतक प्रकरण सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७५९, श्रेष्ठ, पृ. ११, जैदेना., ले. गणि तिलकसागर, प्र.वि. मूल गा.१०४., दशा वि. विवर्ण-पानी से अक्षरों की स्याही फैल गयी है, (२६.५४११.५, ५४३७). वैराग्यशतक, प्रा., पद्य, आदिः संसारंमि असारे नत्थि; अंतिः लहइ जिउ सासयं ठाणं. वैराग्यशतक-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः संसार असारने विषे; अंतिः लहई शाश्वतानो ठाम. १८६६. सम्बोधसत्तरी, दशश्रावक नाम सह टबार्थ व नवतत्त्व के रुपी आदि भेद, संपूर्ण, वि. १७८१, मध्यम, पृ. १४, पे. ३, जैदेना., ले.स्थल. बीकानेर, ले. मु. प्रेमराज, (२५.५४१०.५, ४४३७). पे. १.पे. नाम. सम्बोधसत्तरी सह टबार्थ, पृ. १-१४ सम्बोधसप्ततिका, आ. जयशेखरसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिण तिलोअगुरुं; अंतिः लहई नत्थि सन्देहो. सम्बोधसप्ततिका-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः नमस्कार करीनै; अंतिः ईहां सन्देह नही., पे.वि. मूल-गा.१०५. पे. २.पे. नाम. दस श्रावकनाम सह टबार्थ, पृ. १४अ आनन्दादिदशश्रावक नाम, प्रा.,मागु., पद्य, आदिः आणन्दे १ कामदेवे; अंतिः दसवि सुहम्मेइ गवया. आनन्दादिदशश्रावक नाम-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः आणन्द श्रावक जेहनै; अंतिः मात्र जाणिवो., पे.वि. मूल गा.२. पे. ३. नवतत्त्व प्रकरण-रूपी अरूपी मीश्र भेद, संबद्ध, प्रा., पद्य, (पृ. १४अ), आदिः जीवो संवर निर्जर; अंतिः मिश्रो होइ अजीवो., पे.वि. मूल-गा.१. १८६७. आगमसारोद्धार, संपूर्ण, वि. १९३४, श्रेष्ठ, पृ. ६७, जैदेना., ले.स्थल. फलोधी, (२४.५४११.५, १२४३९). आगमसारोद्धार, उपा. देवचन्द, मागु., गद्य, वि. १७७६, आदिः हिवै भव्य जीवने; अंतिः फली मन आस. १८६८. चउसरणपयन्ना सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १०, जैदेना.,प्र.वि. मूल-गा.६३. बालावबोध शैली में टबार्थ नहीं लिखा गया है., (२६.५४१२, १३४३७). चतुःशरण प्रकीर्णक, गणि वीरभद्र, प्रा., पद्य, आदिः सावज्ज जोग विरई; अंतिः कारणं निव्वुइ सुहाणं. चतुःशरण प्रकीर्णक-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः चउसरण पइनाना; अंति: दीन कीधउ० कीउ. १८६९. कल्पसूत्र माण्डणी, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ९, जैदेना., (२६४११, १४४४५). कल्पसूत्र-मांडणी, संबद्ध, मागु., गद्य, आदिः वर्द्धमानं जिनं; अंतिः अनुसारी चैत्य कीधउ. १८७०." सिद्धपञ्चासिका प्रकरण सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १६९६, श्रेष्ठ, पृ. ८, जैदेना., ले.स्थल. उदयपुर, ले. ऋ. मेघा (गुरु ऋ. वीकाजी), पठ. ऋ. माना, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. मूल-गा.५०. प्र.पु. ग्रं. १८००., त्रिपाठ, संशोधित, पदच्छेद सूचक लकीरें-मूल पाठ, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२६४११, २-४४५२). सिद्धपञ्चाशिका प्रकरण, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, आदिः सिद्धं सिद्धत्थसुअं; अंतिः देविन्दसूरिहिं. सिद्धपञ्चाशिका प्रकरण-बालावबोध, मागु., गद्य, आदिः सिद्धं आपणो अर्थ; अंतिः सूरिइं इन्दं कृतं. १८७१. पर्यन्ताराधना सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, जैदेना., ले. पं. अमीविजय (गुरु पं. वर्द्धमानविजय), प्र.वि. मूल-गा.६९., (२७४११.५, ५४३६). पर्यन्ताराधना, आ. सोमसूरि, प्रा., पद्य, आदिः नमिउण भणइ; अंतिः ते सासयं सुक्खं. पर्यन्ताराधना-टबार्थ , मागु., गद्य, आदिः श्रीमहावीर नमस्करी; अंतिः लहइं ते शाश्वता सुख. १८७४. पञ्चम कर्मग्रन्थ यन्त्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, जैदेना., (२७.५४१२.५, १३-१८४३५-३९). शतक नव्य कर्मग्रन्थ-कोष्ठक, संबद्ध, मागु., यंत्र, आदिः ध्रुवबन्धनी प्रकृति; अंतिः असङ्ख्यात गुणौ. १८७५.” कर्मविपाक सह स्वोपज्ञ टीका, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६०, जैदेना., प्र.वि. मूल-गा.६०; टीका-ग्रं. १८८२., पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न-प्रारंभिक पत्र, (२५४१२.५, १२४४१).. कर्मविपाक नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, आदिः सिरिवीरजिणं वन्दिय; अंतिः लिहिओ देविन्दसूरीहिं. For Private And Personal Use Only Page #258 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य भाग - १ २०४ कर्मविपाक नव्य कर्मग्रन्थ-स्वोपज्ञ सुबोधा टीका, आ. देवेन्द्रसूरि, सं., गद्य, आदिः दिनेशवद्ध्यानवरप्रता; अंतिः सर्वोपि तेन जनः. १८७६. सिन्दूरप्रकरण, संपूर्ण, वि. १९१२, श्रेष्ठ, पृ. १२, जैदेना., ले. पं. हितधीर, पठ. श्रा. लक्ष्मीचन्द नाहटा, प्र.वि. श्लो.१००, प्र.ले.श्लो. (५४७) जालुं मेर धरा समुद, (२५४१३, १२४३२). सिन्दूरप्रकर, आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य, आदिः सिंदूरप्रकरस्तपः; अंतिः सूक्तमुक्तावलीयम्. १८७७." चौवीसदण्डक पैंतीसद्वार, संपूर्ण, वि. १९४७, श्रेष्ठ, पृ. ४७, जैदेना., ले.स्थल. पल्लिकानगर, ले. मेदपाटी अमरदत्त ब्राह्मण, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२७४१२.५, ११४४७-४८). २४ दण्डक ३५ बोल, मागु., गद्य, आदिः संसारी जीवो च्यार; अंतिः दण्डकनी कुलकोडि कही.. १८७८. सूक्तावली व श्लोक सङ्ग्रह, संपूर्ण, वि. १९१२, श्रेष्ठ, पृ. १३, पे. २, जैदेना., ले.स्थल. शुभट्टपुर, ले. रायचन्द्र, राज्यकाल- राजा तखतसिङ्घ, पठ. रायचन्द्र, प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र.ले.श्लो. (५२७) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, (२७.५४१२.५, १०x४०). पे. १. सूक्तमाला, मु. केशरविमल , सं.,मागु., पद्य, वि. १७५४, (पृ. १-१३आ), आदिः सकलसुकृत्यवल्लीवृन्द; अंतिः केसरविमलेन विबुधेन., पे.वि. अध्याय-४वर्ग. पे. २. श्लोक सङ्ग्रह, सं.,प्रा.,मागु.,हिन्दी, पद्य, (पृ. १३आ), आदिः#; अंतिः#. १८७९. सिन्दूरप्रकरण, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १३, जैदेना.,प्र.वि. श्लो.१०२, संशोधित, (२७.५४१३, १०४३२). सिन्दूरप्रकर, आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य, आदिः सिंदूरप्रकरस्तपः; अंतिः सूक्तमुक्तावलीयम्. १८८०. गोमट्टसारे सन्दृष्टिचूलिका की सम्यग्ज्ञानचन्द्रिका भाषाटीका, प्रतिपूर्ण, वि. १९६८, श्रेष्ठ, पृ. ५२, जैदेना., ले.स्थल. जालरापाटणछावणी, ले. ऋ. गजमल, पू.वि. संदृष्टि चूलिका की भाषाटीका., (२६.५४१२, १७२५९-८०). गोम्मटसार-सम्यक्ज्ञानचन्द्रिका भाषाटीका, पण्डित टोडरमल (दिगम्बर), प्राहिं., गद्य, आदि:-; अंतिः युराप्तागममुनीश्वराः. १८८१.” समयसार प्रकरण, संपूर्ण, वि. १६६९, श्रेष्ठ, पृ. १४, जैदेना.,प्र.वि. अध्याय-१०, पदच्छेद सूचक लकीरें-बीच के कुछ पत्र, (२६.५४११.५, ९४३५). समयसार प्रकरण, आ. देवानन्दसूरि, प्रा., गद्य, वि. १४६९, आदिः सव्वन्नु मोक्खमक्खन्; अंतिः सययं सिवं दिन्तु. १८८२. पुण्यप्रकाश स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, जैदेना., प्र.वि. ढाळ-८, दशा वि. अक्षर फीके पड गये हैं, (२५.५४१३.५, १५-१७x१८). पुण्यप्रकाश स्तवन , उपा. विनयविजय , मागु., पद्य, वि. १७२९, आदिः सकल सिद्धिदायक; अंतिः नामे पुण्यप्रकाश ए. १८८३. प्रश्नोत्तरसार्द्धशतक का बीजक, संपूर्ण, वि. १९०५, श्रेष्ठ, पृ. १०, जैदेना., ले.स्थल. कलकत्ता, ले. मु. सदासुख(ना.पु.लुङ्कागच्छ), (२५.५४१३, २५४५४-५८). प्रश्नोत्तरसार्द्धशतक, वाचक क्षमाकल्याण, मागु., गद्य, आदिः पहिलै बोलै तीर्थङ्कर; अंतिः शास्त्रमै कह्यो छे. १८८४." पुण्यप्रकाश स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना., प्र.वि. ढाळ-८, दशा वि. विवर्ण-अक्षरों की स्याही फैल गयी है, (२७४१२, १२४३३). पुण्यप्रकाश स्तवन , उपा. विनयविजय , मागु., पद्य, वि. १७२९, आदिः सकल सिद्धिदायक; अंति: नामे पुण्यप्रकाश ए. १८८५. सूक्तमाला, संपूर्ण, वि. १९४१, श्रेष्ठ, पृ. १४, जैदेना., ले.स्थल. शिवपुरी, पठ. श्रा. इन्द्रचन्द, प्र.वि. ४ वर्ग, प्र.ले.श्लो. (५२) पोथी प्यारी प्राणथी, (२७४१२, ११४३७). सूक्तमाला, मु. केशरविमल, सं.,मागु., पद्य, वि. १७५४, आदिः सकलसुकृत्यवल्लीवृन्द; अंतिः केसरविमलेन विबुधेन. १८८६. चातुर्मासिक व्याख्यानपद्धति, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १०, जैदेना., पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. आवश्यक में प्रतिक्रमण का व्याख्यान अधूरा, (२५४१२, १३४४१-४३). For Private And Personal Use Only Page #259 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra २०५ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची अंति: चातुर्मासिक व्याख्यान, उपा. समयसुन्दर गणि, सं., गद्य, वि. १६६५, आदि: प्रणम्य परमानन्दपञ्च; १८८७.” चातुर्मासिक व्याख्यान सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९०२, मध्यम, पृ. १०, जैदेना, पठ. श्राविका मघीबाई, दशा वि. विवर्ण पानी से अक्षरों की स्याही फैल गयी है. (२५.५४१२.५, १७४३८-४२). चातुर्मासिकत्रय व्याख्यान, सं., मागु., गद्य, आदि: सामाइकावश्यक पौषधानि ; अंतिः #. चातुर्मासिकत्रय व्याख्यान- बालावबोध, मागु, गद्य, आदि आसाद चौमासो अंतिः दुक्कडं दीजै. www.kobatirth.org: १८८८.” नवतत्त्व सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १४-२ (१,७) = १२, जैदेना, पू.वि. बीच के पत्र हैं. गा.२८ से ३७ तक है., दशा वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है- अल्प, ( २४.५x१३.५, ११-१३३५). नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: अंति: : नवतत्त्व प्रकरण-बालावबोध *, मागु., गद्य, आदि:-; अंतिः Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १८८९. शीलनववाड ढाल, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदेना., प्र. वि. ढाळ - १०, ( २४४१२, १५४३४). शीलनववाड ढाल, मु. अगरचन्द, मागु., पद्य, वि. १८३६, आदिः प्रणमुं पञ्चपरमेष्ठि; अंतिः हरख अपार री माई. १८९०. षट्द्रव्यस्वरूप, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदेना., (२५.५X११.५, २०×५६). ६ द्रव्य स्वरूप, मागु., गद्य, आदि: पहीलों जीवद्रव्य; अंतिः संस्थान अयोघनवत्. १८९१." बोल सङ्ग्रह, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १८ जैदेना. प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ (२३४१०.५, १९५०). बोल सङ्ग्रह, राज, गद्य, आदिः सव्वत्थोवा जीवा अंतिः मरण रासीना जीव छे. १८९२ सूक्तमाला, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, प्र. १२, जैदेना, प्र. वि. ४ वर्ग (२४.५४११.५. १३-१४४३४). सूक्तमाला, मु. केशरविमल, सं., मागु., पद्य, वि. १७५४, आदिः सकलसुकृत्यवल्लीवृन्द; अंतिः केसरविमलेन विबुधेन. १८९३. जीवविचार सह टबार्थ, संपूर्ण वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ७ जैदेना., प्र. वि. मूल-गा. ५१, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (+) (२५४११-५, ४९३५-३९) . जीवविचार प्रकरण, आ. शान्तिसूरि, प्रा., पद्य, आदिः भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंतिः रुद्दाओ सुयसमुद्दाओ .. जीवविचार प्रकरण- टवार्थ मागु, गद्य, आदि तीन भवन का स्वामी अंतिः सिद्धान्त समुद्र थकी. · १८९४ सिन्दूरप्रकर, संपूर्ण, वि. १९१७, मध्यम, पृ. ८ जैदेना. ले. स्थल पीपल्या मेवाड, ले. ॠ. जगजीवण (गुरु आ. जिनचन्द्रसूरि, बीजयगच्छ), पठ. श्री. श्रीलाल (विजयगच्छ); श्रा. मोतीलाल (विजयगच्छ); श्रा. हीरालाल ( विजयगच्छ), प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र. वि. श्लो. १०० (२४४११.५ १२-१३४३८-४०). सिन्दूरप्रकर, आ. सोमप्रभसूरि, सं. पद्य, आदि सिंदूरप्रकरस्तपः अंतिः सुक्तमुक्तावलीयम्. · १८९६. गुणानन्दचूडामणि, संपूर्ण, वि. १६वी, श्रेष्ठ, पृ. २०, जैदेना., ले. स्थल. स्तंभतीर्थनगर, ले. गणि अमरमेरू (गुरु उपा. अमरनन्दि), प्र. वि. अध्याय-७, पदच्छेद सूचक लकीरें संधि सूचक चिह्न (२५.५४११, १९६६). गुणानन्दचूडामणि निगम, सं., गद्य, आदिः ये पूर्वेह्यपरेशु: अंतिः इति निगमो वेदितव्यः. १८९८.” दशाश्रुतस्कन्धसूत्र व आगमिकगाथा संपूर्ण, वि. १७वी श्रेष्ठ, पृ. ३३, पे. २. जैदेना. प्र. वि. संशोधित, पदच्छेद सूचक लकीरें, ( २६११.५, ११४३४). पे. १. दशाश्रुतस्कन्धसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., पद्य, (पृ. १-३३), आदि नमो अरिहंताणं हवइ: अंति: उवदंसेइ ति बेमि., पे.वि. १० दशा. पे. २. जैन गाथा, प्रा., पद्य, (पृ. १अ ), आदि: अंतिः # १८९९. भक्तामर स्तोत्र सह बालावबोध, संपूर्ण वि. १७३०, श्रेष्ठ, पृ. २३ जैदेना. ले. स्थल. कपासणनगर, पठ. मु. राजरूवि (गुरु पं. महिमारूचि), प्र. वि. मूल - श्लो. ४४., ( २३×११, १४X३९). भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुङ्गसूरि सं., पद्य, आदि भक्तामरप्रणतमौलिमणि अंतिः समुपैति लक्ष्मी. For Private And Personal Use Only Page #260 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य भाग - १ २०६ भक्तामर स्तोत्र-बालावबोध, गणि मेरुसुन्दर, मागु., गद्य, आदिः प्रणम्य श्रीमहावीरं; अंतिः स्व आपणही वरे. १९००. वसुधारा स्तोत्र सविधि, अपूर्ण, वि. १७८९, मध्यम, पृ. ७-२(४ से ५)=५, जैदेना., ले. पं. मेघराज, (२५.५४१०.५, ११४३१). वसुधारा, सं., गद्य, आदिः संसारद्वयदैन्यस्य; अंतिः व्याधीरोगान् मुच्यते. १९०६. माधवानल चौपाई, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १७, जैदेना., प्र.वि. गा.५६३, (२५४१०.५, १५४४५-४९). माधवानल चौपाई, वाचक कुशललाभ, मागु., पद्य, वि. १६१६, आदिः देवि सरसति देवि; अंतिः सुख पामे संसारि. १९०८. नेमिनाथ चरित्र - मेघदूतान्त्यपादपादसमस्यारचित, संपूर्ण, वि. १७वी, जीर्ण, पृ. ७, जैदेना., प्र.वि. अंतिम चार पत्र जर्जरित है., (२९.५४११.५, १३४४७-५०). नेमिदूत, आ. विक्रम, आधारित, सं., पद्य, वि. १३वी, आदिः प्राणित्राणप्रवणहृदय; अंतिः झांझणो मुग्धबुद्धिः. १९११. सिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासन की लघुवृत्ति, प्रतिअपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ३०-४(८,१८,२६ से २७)=२६, जैदेना., पू.वि. प्रारंभ, बीच के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. अध्याय-२ पाद-३ सूत्र-२४ से अध्याय-३ पाद-२ सूत्र-४७ तक है., (२७४११.५, १३४३९). सिद्धहेमशब्दानुशासन-स्वोपज्ञ लघुवृत्ति, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., गद्य, आदि:-; अंति:१९१२." सिद्धान्तचन्द्रिका सह सुबोधिनी वृत्ति - उत्तरार्द्ध, प्रतिपूर्ण, वि. १८५३, मध्यम, पृ. ९६, जैदेना., ले.स्थल. हरिदुर्गनगर, ले. ऋ. खुस्यालचन्द्र(खरतरगच्छ), पठ. मु. श्रीचन्द्र(खरतरगच्छ), प्र.ले.पु. मध्यम,प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-कुछ पत्र, संशोधित, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, पू.वि. आख्यात से अंत (कृदन्त) तक है., (२६४१२.५, १७X४५). सिद्धान्तचन्द्रिका , आ. रामाश्रम, सं., गद्य, आदि:-; अंतिः सिद्धिर्यथामातरादेः. सिद्धान्तचन्द्रिका-सुबोधिनी वृत्ति, गणि सदानन्द, सं., गद्य, वि. १७९९, आदि:-; अंतिः कृदन्ते कृतवानृजम्. १९१९. सिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासन अध्याय-८ सह स्वोपज्ञ बृहद्वृत्ति, प्रतिअपूर्ण, वि. १६वी, जीर्ण, पृ. ४९-३१(१ से २५,२८ से ३२,३८)=१८, जैदेना.,प्र.वि. बिना नम्बर के तीन पत्र फटे हुए है। पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., (२६४११, १५४५० ५७). प्राकृतव्याकरण, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., गद्य, आदि:-; अंतिः संस्कृतवत्सिद्धम्. प्राकृतव्याकरण-स्वोपज्ञ प्राकृतप्रकाश टीका, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., गद्य, आदि:-; अंति:१९२२.” अभिधानचिन्तामणि नाममाला - काण्ड १, प्रतिपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना., ले. मु. शान्तिविजय, दशा वि. विवर्ण-पानी से अक्षरों की स्याही फैल गयी है, परस्पर घिसे हुए पत्र, (२४४१२, १२४२३-२४). अभिधानचिन्तामणि नाममाला, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, आदिः प्रणिपत्यार्हतः; अंति:१९३२." अभिधानचिन्तामणि नाममाला, अपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ३१, जैदेना., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें, संशोधित, पू.वि. अन्त के पत्र नहीं हैं. चतुर्थ कांड के श्लो.२३ तक है., (२६x१०.५, १३-१५४४२). अभिधानचिन्तामणि नाममाला, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, आदिः प्रणिपत्यार्हतः; अंति:१९३४." वाग्भट्टालङ्कार सह टीका, अपूर्ण, वि. १६वी, मध्यम, पृ. ९-३(१,६ से ७)=६, जैदेना., प्र.वि. टीकागत अवशेष पाठ हासियों में दिया गया है।, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, पू.वि. बीच के पत्र हैं., दशा वि. जीर्ण-दाहिना भाग-बाँया भाग अल्प-टिप्पणक का अंश नष्ट, (२५.५४१०.५, १३४४८-५०). वाग्भटालङ्कार, जैनकवि वाग्भट्ट , सं., पद्य, वि. १२वी, आदिः श्रियं दिशतु वो देवः; अंतिः सारस्वताध्यायिनः. वाग्भटालङ्कार-टीका, सं., गद्य, आदि:-; अंति:१९३६." शारदीय लघुनाममाला, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १८, जैदेना., प्र.वि. श्लो.४५८, (२७.५४११.५, १३४४५). लघुनाममाला, आ. हर्षकीर्तिसूरि, सं., पद्य, आदिः प्रणम्य परमात्मानं; अंतिः हर्षकी० बत नाममाला. For Private And Personal Use Only Page #261 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra " www.kobatirth.org: २०७ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १९३७. शारदीय लघुनाममाला संपूर्ण वि. १८६३, श्रेष्ठ, पृ. २२, जैदेना ले. स्थल वल्लभीनगर, प्र. वि. ३कांड, पदच्छेद .. सूचक लकीरें (२६४१२, १२४४० ). लघुनाममाला, आ. हर्षकीर्तिसूरि, सं., पद्य, आदिः प्रणम्य परमात्मानं अंतिः हर्षकी० बत नाममाला. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १९३९. छन्दोनुशासन सह स्वोपज्ञ वृत्ति, संपूर्ण, वि. १६८०, जीर्ण, पृ. २४, जैदेना., ले. स्थल. पत्तन, ले. रामजी, पठ. पीताम्बर, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. मूल-अध्याय-८ टीका- अध्याय ८. किसी प्राचीन प्रत पर से लिखी जाने की संभावना है... (२७४१३, १२x२९). छन्दोनुशासन, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., गद्य, आदि: वाचं ध्यात्वार्हतीं; अंतिः द्विघ्नानेकाध्वयोगः . छन्दोनुशासन-स्वोपज्ञ वृत्ति, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., गद्य, आदिः शब्दानुशासनविरचना; अंतिः त्वस्माभिरुक्तः. (′′) १९४२. त्रिषष्ठिशलाकापुरुष चरित्र पर्व-८, प्रतिअपूर्ण, वि. १५२९, श्रेष्ठ, पृ. १३८ - १ ( १ ) - १३७, जैदेना, ले. स्थल, वेईग्राममालवदे, गच्छा. राजा ग्यासदीन, प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र. वि. प्र. पु. ग्रं. ४८८८., दशा वि. विवर्ण- पानी से अक्षरों की स्याही फैल गयी है, प्र.ले. श्लो. (५०९) यादृशं पुस्तके दृष्टं (२६.५x१०.५, १४४३९-४१). त्रिषष्टिशलाकापुरुष चरित्र, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य वि. १२२०, आदि:-: अंति: १९४३. अनाथीमुनि सन्धि, संपूर्ण वि. १९१३, श्रेष्ठ, पृ. ५. जैदेना, ले. स्थल. लोहेमडा, ले. साध्वीजी जसोदा (गुरु साध्वीजी पनाजी), पठ. श्री. राजा, प्र.ले.पु. मध्यम (२६.५४१२, १६४३५). अनाथीमुनि सन्धि, ऋ. खेमो, मागु., पद्य, वि. १७३५, आदिः वन्दियै वीर जिणेसर; अंतिः अवतार आज मनोरथ फली. १९४४.” अञ्जनासती रास, संपूर्ण, वि. १८७८, श्रेष्ठ, पृ. १०, जैदेना., ले. स्थल. रोयट, अन्य- साध्वीजी पुजी आर्या, प्र. वि. गा. १५५, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२५x११.५, १७ - १८x४४). अंजनासुन्दरी रास, मागु., पद्य, आदि: पहिलु कडाइ इहो; अंतिः ग्रन्थ श्रीउपदेशमाल. 7 १९४५.* मानतुङ्ग मानवती रास, संपूर्ण वि. १८वी श्रेष्ठ, पृ. ३३, जैदेना, प्र.वि.] ढाळ - ४७, दशा वि. विवर्ण-पानी से अक्षरों " की स्याही फैल गयी है अल्प (२६४११, १५०४०) मानतुङ्गमानवती रास, मु. मोहनविजय, मागु., पद्य, वि. १७६०, आदिः ऋषभजिणन्द चरणाम्बुजे; अंतिः घरघर मङ्गलमाल हे. " १९४६. मृगावती चौपाई, संपूर्ण वि. १७वी श्रेष्ठ, पृ. २९ जैदेना. ले. स्थल विक्रमनगर, प्र. वि. खण्ड-३ गा. ७४५, संशोधितकुछ पत्र, ( २६ ११, १३४५२). मृगावती चौपाई, उपा. समयसुन्दर गणि, मागु, पद्य, वि. १६६८, आदिः समरु सरसति सामिणी: अंतिः वृद्धि सुजगीसा बे. १९४७. शीलोपदेशमाला सङ्क्षिप्तकथा सङ्ग्रह, संपूर्ण, वि. १५३३, श्रेष्ठ, पृ. ४४, जैदेना., ले. पं. मेघा, ( २६ ११, १७४५५). शीलोपदेशमाला सङ्क्षिप्तकथा सङ्ग्रह, सं., गद्य, आदि परलोए विहु सुर अंतिः सुखानि बुभुजे १९४८. श्रीपाल रास, संपूर्ण, वि. १८४७ मध्यम पृ. ४०, जैदेना. ले. स्थल, बातानगर, ले. पं. नेमविजय, प्र.ले.पु. मध्यम, , प्र.वि. खण्ड-४, ढाळ ४१. १- २५ तक के पन्ने अन्य लिपिक के लिखे हुए है।, दशा वि. विवर्ण-पानी से अक्षरों की स्याही फैल गयी है, प्र.ले. श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट, (२५०१२. १५४४१). श्रीपाल रास, उपा. विनयविजय उपा. यशोविजयजी गणि, मागु., पद्य, वि. १७३८, आदिः कल्पवेल कवियण तणी; अंतिः लहसे ज्ञान विशालाजी. १९४९. द्रौपदी चौपाई, संपूर्ण, वि. १७२८, श्रेष्ठ, पृ. २७, जैदेना., ले. स्थल. कोटा, ले. ऋ. गदाजी - शिष्य (गुरु ऋ. गदाजी), प्र.वि.] दाळ-३९ (२६४११. १७०४५१). For Private And Personal Use Only Page #262 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य भाग - १ २०८ द्रौपदी चौपाई, वाचक कनककीर्ति, मागु., पद्य, वि. १६९३, आदिः पुरिसादाणी पासजिण; अंतिः कनककीरति सुखकार. १९५०. प्रियकरनृप कथा, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ३०, जैदेना., अन्य- गणि अमरज्ञान, प्र.वि. मूल-गा.२४७; प्र.पु. ग्रं. ८००., (२६४११, १३४४८). उवसग्गहर स्तोत्र-गाथा ०५ की प्रियङ्करनृप कथा, मु. जिनसूर मुनि, सं.,प्रा., गद्य, वि. १६वी, आदिः वंशाब्जो श्रीकरो; अंतिः सुखभाजो भवन्ति ते. १९५१. ललिताङ्गकुमार रास, पूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५२, जैदेना., प्र.वि. खण्ड-४, पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है. प्रतिलेखन प्रशस्ति अधूरी है., (२६४१२, १२४३०). ललिताङ्गकुमार रास, मु. पद्मसागर, मागु., पद्य, वि. १९५४, (संपूर्ण), आदिः सुकृतवल्लिविकाशिनी; अंतिः सजन जन भवि भाइजी. १९५२. खन्धकमुनि चौढालियो, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १३-३(१० से १२)=१०, जैदेना., प्र.वि. ढाळ-४, (२७.५४१२.५, ७४२०). खन्धकमुनि चौढालिया, ऋ. जैमल, राज., पद्य, वि. १८११, आदिः नमुं वीर सासनधणीजी; अंतिः मिच्छामि दुक्कड होय. १९५३. शत्रुञ्जयउद्धार रास, अपूर्ण, वि. १६८४, श्रेष्ठ, पृ. ६-१(१)=५, जैदेना., पठ. साध्वीजी ज्ञानचुला (गुरु साध्वीजी कमलचूला), प्र.वि. गा.११७., पू.वि. गा.११ अपूर्ण तक नहीं है., (२४४१०.५, १३-१५४४०). शत्रुजयतीर्थउद्धार रास , मु. नयसुन्दर, मागु., पद्य, वि. १६३८, आदि:-; अंतिः देहि दरसण जय करे. १९५४. विक्रमराजा रास, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १७-२(२,११)=१५, जैदेना., पू.वि. बीच व अन्त के पत्र नहीं हैं., दशा वि. विवर्ण-पानी से अक्षरों की स्याही फैल गयी है-अल्प, (२४.५४१०, ११४३१). विक्रमचौबोली रास, वाचक अभयसोम, मागु., पद्य, वि. १७२४, आदिः वीणा पुस्तक धारणी; अंति:१९५५. आणन्द श्रावक सन्धि, पूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १२-१(१)=११, जैदेना., प्र.वि. गा.२४८, पू.वि. गा.१२ अपूर्ण तक नहीं है., (२६x१०.५, १४४३६-३८). आनन्दश्रावक सन्धि, पाठक श्रीसार, मागु., पद्य, वि. १६८४, आदि:-; अंतिः पभणइ मुनि श्रीसार. १९५६." जम्बूअध्ययन सह टबार्थ, पूर्ण, वि. १८७४, श्रेष्ठ, पृ. ७४-२(१,३४)=७२, जैदेना., ले.स्थल. वल्लभीनगर, ले. मु. सुखसागर (गुरु मु. जीतसागर),प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. मूल-२१उद्देश., प्रसिद्ध व्यक्ति द्वारा लिखित प्रत-पार्श्व रेखालाल-, १+२, पू.वि. \ टबार्थ मात्र पत्रांक २३ तक लिखा है., (२६४१२, ६४३३). जम्बूअध्ययन प्रकीर्णक, प्रा., गद्य, (संपूर्ण), आदिः तेणं कालेणं० रायगिहे; अंतिः से आराहगा भणिया. जम्बूअध्ययन प्रकीर्णक-टबार्थ, उपा. पद्मसुन्दर, मागु., गद्य, (अपूर्ण), आदिः ते कालनि विषइ ते; अंति:१९५७. कान्हडकठियारी ढाल, संपूर्ण, वि. १८५८, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदेना., ले.स्थल. आग्रा, ले. साध्वीजी सीता, पठ. दया, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. गा.१५२, (२५.५४१२, १८-१९४३८). कान्हडकठियारा रास, मु. मानसागर, मागु., पद्य, वि. १७४६, आदिः पारसनाथ प्रणमुं मुदा; अंतिः सुणजो चतुर सुजाण. १९५८. शालिभद्र चौपाई व श्लोक, संपूर्ण, वि. १९०२, श्रेष्ठ, पृ. ३०, पे. २, जैदेना., ले.स्थल. अलायग्राम, ले. मु. पुण्यविजय (गुरु मु. उत्तमविजय), दशा वि. विवर्ण-अक्षर फीके पड गये हैं, (२५४१२.५, १२४२१). पे. १. शालिभद्र चौपाई, मु. मतिसार, मागु., पद्य, वि. १६७८, (पृ. १-३०), आदिः सासननायक समरियै; अंतिः मनवंछित फल लहिस्यैजी., पे.वि. ढाळ-२९; प्र.पु. गा.५००. पे. २. जैन श्लोक *, सं., पद्य, (पृ. ३०), आदिः #; अंतिः #. For Private And Personal Use Only Page #263 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir २०९ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १९५९.” सम्यक्त्वकौमुदी कथानक सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८८२, श्रेष्ठ, पृ. ९६, जैदेना., ले.स्थल. नागोर, ले. ऋ. शिवदास, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें, (२६.५४१२, ६x४८). सम्यक्त्वकौमुदी कथानक, सं., गद्य, आदिः श्रीवर्द्धमानमानम्य; अंतिः स्वर्गमश्नुते. सम्यक्त्वकौमुदी कथानक-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः श्रीवर्द्धमान; अंतिः ते नर मोक्षसुख पामे. १९६०. वरदत्तगुणमञ्जरी कथा सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८३४, श्रेष्ठ, पृ. १४, जैदेना., ले.स्थल. कालंद्रीनगर, ले. गणि कपूरविजय (गुरु पं. केसरविजय), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. मूल-मूल-श्लो.१५२., (२५.५४११.५, ६४३१). ज्ञानपंचमीपर्व कथा, गणि कनककुशल, सं., पद्य, वि. १६५५, आदिः श्रीमत्पार्श्व; अंतिः तैरेव मेडतानगरे. वरदत्तगुणमंजरी कथा-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः श्रीपार्श्वनाथ प्रतै; अंतिः विषइ कथा रची. १९६१. सुव्रतऋषि कथा सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८३४, श्रेष्ठ, पृ. १७, जैदेना., ले.स्थल. कालंद्रीनगर, ले. गणि कपूरविजय (गुरु पं. केसरविजय), प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र.वि. मूल-गा.१५७., (२५.५४११.५, ६४३४). मौनएकादशीपर्व कथा, प्रा., पद्य, आदिः सिरिवीरं नमिऊण; अंतिः तह मुक्खसुक्खं. मौनएकादशीपर्व कथा-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः श्रीमहावीर प्रतै; अंतिः मोक्ष सुख प्रतै पामे. १९६२." कथा सङ्ग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ८, जैदेना., दशा वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है-अल्प, (२५.५४११, २१४४८). कथा सङ्ग्रह** , सं.,प्रा.,मागु., पद्य, आदिः हिवे छ आरानुं नाम; अंति:#. १९६४. जम्बू चरित्र व श्लोक सङ्ग्रह, संपूर्ण, वि. १६७८, मध्यम, पृ. १३, पे. २, जैदेना., ले.स्थल. माहरोठ, ले. मु. हरजी (गुरु ऋ. लक्ष्मणजी), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, दशा वि. विवर्ण-काल प्रभाव से -अक्षर फीके पड गये हैं, (२६.५४११, १९४४५). पे. १. जम्बूस्वामी चरित्र, मु. मल्लिदास, मागु., पद्य, वि. १६४९, (पृ. १-१३), आदिः सरसति सरस सुकवि सकति; ___ अंतिः पहुचइ मुगति मझारि., पे.वि. गा.४८८. पे. २. श्लोक सङ्ग्रह जैनधार्मिक* , सं.,प्रा., पद्य, (पृ. १३आ), आदि: #; अंतिः#. १९६५." शालिभद्र शलोको, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ७, जैदेना., पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. गाथा ६८ तक है., दशा वि. विवर्ण-पानी से अक्षरों की स्याही फैल गयी है, फफूंदग्रस्त, (२४४१३, ९४२८-३१). शालिभद्र शलोको, गणि कनकप्रिय, मागु., पद्य, वि. १७८१, आदिः सरसत सामण समरु सखदाई; अंति:१९६६. मेघकुमार ढाल, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदेना., पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. ५वीं ढाल की ७वी गाथा तक है., (२६.५४१२, ११४३०). मेघकुमार रास, मागु., पद्य, आदिः ऋषभादिक चौवीसनै अंति:१९६७. राजीमतीरहनेमि पञ्चढाल्यो, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना., प्र.वि. ढाळ-५, (२३.५४१२.५, ११४२०). राजिमतीरथनेमि पंचढालिया, ऋ. रायचन्द, राज., पद्य, वि. १८५४, आदिः अरिहन्त सिद्धनें; अंतिः कीनी जोड हो. १९६८. चन्द्रलेखा चौपाई, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ३२, जैदेना., प्र.वि. ढाळ-२९, दशा वि. विवर्ण-अक्षरों की स्याही फैल __ गयी है-अल्प, (२७४१३, १४४३३). चन्द्रलेखा रास, मु. मतिकुशल, मागु., पद्य, वि. १७२८, आदिः सरसति भगति नमी करी; अंतिः त्रिभुवनपति हुवे तेह. १९६९. मानतुङ्गमानवती रास, संपूर्ण, वि. १८८८, श्रेष्ठ, पृ. ४२, जैदेना., ले.स्थल. माढा, ले. लवजी,प्र.वि. ढाळ-४७, प्र.ले.श्लो. (५२९) जब लगे मेरु थिर रहे, (२७.५४१३, १४४३५). मानतुङ्गमानवती रास, मु. मोहनविजय, मागु., पद्य, वि. १७६०, आदिः ऋषभजिणन्द चरणाम्बुजे; अंतिः घरघर मङ्गलमाल हे. १९७०." अष्टनिह्नव वर्णन, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १०९-९६(१ से ९६)=१३, जैदेना., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि For Private And Personal Use Only Page #264 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य भाग १ - ८ निनव वर्णन, सं., पद्य, आदि:-: अंति: , २१० सूचक चिह्न, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, संशोधित, पृ. वि. बीच के पत्र हैं. निनवकथा - १ गा.८ से निनव-८ गा. ३२ तक है., (२५.५५११, १५९४४) www.kobatirth.org: , " १९७१. साम्बप्रद्युम्न चौपाई, पूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ४२-२ (१ से २) - ४०, जैदेना. प्र. वि. ढाळ - २२ प्र. पु. मूल ग्रं. १७५६, पू. वि. प्रथम ढाल गा. ११ अपूर्ण से है., (२५.५x११, १२x२६). साम्वप्रद्युम्न प्रबन्ध उपा. समयसुन्दर गणि, मागु पद्य वि. १६५९ आदि- अति सङ्घ सुजस जगीस ए. १९७२.” मुनिपति चरित्र का अनुवाद, संपूर्ण, वि. १६वी, मध्यम, पृ. २२, देना., प्र. वि. भाषाकीय दृष्टि से महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ।, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, ( २६ ११, १५४४५). मुनिपति चरित्र अनुवाद, मागु, गद्य, आदि एह भरतक्षेत्रमाहि: अंतिः मिच्छामि दुक्कडम्. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १९७३.” विद्याविलास कथानक, संपूर्ण, वि. १६वी, जीर्ण, पृ. १०, जैदेना., प्र. वि. मरम्मत कराने की आवश्यकता है., टिप्पण युक्त विशेष पाठ, ( २६४११, १२४४५). विद्याविलास कथानक, सं., गद्य, आदिः ऐश्वर्यराज्यं गुणिना; अंतिः मुक्तिं यास्यतः. १९७४. दस दसारण चरित्र, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना., पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. गाथा ७३ तक है., (२५.५४१०.५, ११४३२). गजसुकुमाल रास, मु. शुभवर्द्धन - शिष्य, मागु, पद्य, आदि: देसाख देस सोरठ द्वार अंति: १९७५."" नेमराजुल चौपाई, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५, जैदेना., पू. वि. अन्त के पत्र नहीं हैं. गा. ४८ तक है., दशा वि. विवर्ण- पानी से अक्षरों की स्याही फैल गयी है, (२५.५४१०.५, १३४४०). शील रास, आ. विजयदेवसूरि, मागु., पद्य, आदिः पहिलो प्रणाम करूं; अंतिः १९७६.” नेमिजिन चौवीसचोक, श्लोक व सिद्ध स्तवन, अपूर्ण, वि. १८७२, मध्यम, पृ. ८- १(३) = ७, पे. ३, जैदेना., ले.स्थल. औरंगाबाद, ले. मु. चतुरभुज ( खरतरबृ. आचार्यग.), पू. वि. ढाल - ५ गा. ४ अपूर्ण से ढाल ८ तक नहीं है., दशा वि. विवर्ण पानी से अक्षरों की स्याही फेल गयी है अधिक अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जीर्ण, (२५x११.५, १२४३६). " पे. १. नेमिजिन चौवीसचोक, मु. अमृतविजय, मागु., पद्य, वि. १८३९, (पृ. १-८, पूर्ण), आदि: सरसति चरणाम्बुज नमी; अंतिः अमृतविजये गुण गाया. पे.वि. ढाळ-२४ बीच का एक पत्र नहीं है. पे. २. जैन गाथा *, मागु., पद्य, (पृ. ८आ, संपूर्ण), आदि:-; अंतिः पे. ३. सिद्धपद स्तवन, मागु., पद्य, (पृ. ८आ, संपूर्ण), आदि: जगत भूषण विगत दूषण; अंतिः नमो सिद्ध निरञ्जन, पे.वि. गा. १३. (#) १९७७. हरिचन्दराजा चौपाई, संपूर्ण वि. १९६५ मध्यम, पृ. २६, जैदेना. ले. स्थल. देवल्या, ले. मु. देवीचन्द ( नेनवालगच्छ), राज्यकाल- राजा मोडसिंह, प्र.ले.पु. मध्यम, दशा वि. अक्षर फीके पड़ गये हैं, ( २६४११.५, १०x३३). हरिश्चन्द्रराजा चौपाई, मु. प्रेम, राज., पद्य, वि. १८३४, आदिः आदि जिनेसर पाय नमी; अंतिः नाम तीकारा होये. १९७८. इलापुत्र रास व पद्मावती स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १७७९, श्रेष्ठ, पृ. ६, पे. २, जैदेना., ले. स्थल. दुर्जनजयपुर, ले. मु. पुण्यविजय (गुरु मु. भीमविजय); पं. रूपविजय गणि, प्र.ले.पु. मध्यम, (२६×११.५, १४x६१). पे. १. इलाचीकुमार चौपाई, मु. ज्ञानसागर मागु, पद्य, वि. १७१९ (पृ. १६) आदिः सकलसिद्धदायक सदा अंति ज्ञान दर्शन अजूआले. पे. २. पद्मावतीदेवी स्तोत्र मागु, पद्य, (पृ. ६आ), आदि पणमवि सवि अरिहन्त; अंतिः सवि वञ्छित मन तणा, पे.वि. गा. १३. For Private And Personal Use Only Page #265 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir २११ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १९७९. भुवनभानुकेवली चरित्र का बालावबोध, संपूर्ण, वि. १६वी, मध्यम, पृ. १२३, जैदेना., प्र.वि. महत्त्वपूर्ण प्रति।, (२६४११, ११४३७). भुवनभानुकेवली चरित्र-बालावबोध , मु. हरिकलश, मागु., गद्य, आदिः सिरिवीरं नमीअ जिणं; अंतिः ज्ञानवृद्धि हुई. १९८०. ऋषभदेव विवाहलो धवलबन्ध, संपूर्ण, वि. १५९८, श्रेष्ठ, पृ. ७, जैदेना., ले.स्थल. इलदुर्ग, ले. गणि लक्ष्मीकल्लोल (गुरु उपा. हर्षकल्लोल), पठ. रमाई, लिखवा. मजाई, प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र.वि. ढाळ-४४, गा.२४४, (२५.५४१०.५, १५४५१). आदिजिन विवाहलो, मागु., पद्य, आदिः सासनदेवीय पाय; अंति: सेवक इम मुदा. १९८१. सिंहासनबत्रीसी कथा, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३०+१(२२)=३१, जैदेना., प्र.ले.श्लो. (५३३) मङ्गलं लेखकानां च; (५९९) यावत् विद्यात् समुद्र, (२६.५४११.५, १९-२०४५९). सिंहासनबत्रीसी कथा, मागु., पद्य, आदिः पंचाख्यान इसु कहइ; अंति: रिधि पामइ बहु परी. १९८२. रूपालक्ष्मण कथा, संपूर्ण, वि. १८७३, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना., ले.स्थल. अजमेर, ले. साध्वीजी चम्पा; साध्वीजी वरजुजी, प्र.ले.पु. मध्यम, (२५४११.५, १८:५८). सुसढमुनि कथा, गुज., गद्य, आदिः राजग्रही नामें; अंतिः कथा कही आगम अनुसारे. १९८३. सुभद्रा चौढालीयो, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना., प्र.वि. ढाळ-५. अंत मे सवैया की एक गाथा., (२४.५४११, १३४३५). सुभद्रासती चौढालिया, मागु., पद्य, आदिः सिव सुख दायक लायक; अंतिः मुल मर्म धर्मनो ए. १९८४. मृगाकलेखा चौपाई, संपूर्ण, वि. १६९२, मध्यम, पृ. १९, जैदेना., ले.स्थल. फलवर्द्धिकानगर, ले. पण्डित सारङ्ग, प्र.वि. गा.४०३., (२४.५४१०.५, १३४४१-४२). मृगाङ्कलेखा चौपाई, मागु., पद्य, आदिः गोयम गुणहर पय; अंतिः सवि हुं कर प्रणाम. १९८५.” श्रीपाल रास, पूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ४९-१(१)=४८, जैदेना., पू.वि. प्रथम व अंतिम पत्र नहीं हैं.\, दशा वि. विवर्ण-पानी से अक्षरों की स्याही फैल गयी है, (२५.५४१२.५, १३-१८४३०-४२). श्रीपाल रास, उपा. विनयविजय , उपा. यशोविजयजी गणि, मागु., पद्य, वि. १७३८, आदि:-; अंति:१९८६. चित्रसेनपद्मावती चरित्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४६, देना., पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. मूल गा.४५१ तक लिखा है व टबार्थ ३२६ गाथा तक है., (२६४११.५, ५४३०). चित्रसेनपद्मावती चरित्र, पाठक राजवल्लभ, सं., पद्य, वि. १५२४, आदिः नत्वा जिनपतिमाद्यं; अंतिः कथां पाठकराजवल्लभः. चित्रसेनपद्मावती चरित्र-टबार्थ, मागु., गद्य, आदि: अशरण शरण भव भय हरण; अंति:१९८७. चम्पकप्रेष्ठि चौपाई, संपूर्ण, वि. १८९५, श्रेष्ठ, पृ. २३, जैदेना., ले.स्थल. धारावास, ले. वखतावरचन्द्र, प्र.वि. ढाळ-२९, (२४४११, १५४४३). चम्पक श्रेष्ठी चौपाई, उपा. समयसुन्दर गणि, मागु., पद्य, वि. १६९५, आदिः सान्तिनाथ जिन सोलमा; अंतिः उगणतीसमी ढाल वणाई रे. १९८८." कयवन्ना चौपाई, धर्म पाप परिवार व जीव आयुप्रमाण, संपूर्ण, वि. १८१८, श्रेष्ठ, पृ. २०, पे. ३, जैदेना., ले. गणि खुशालसौभाग्य (गुरु गणि जयसौभाग्य), प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, दशा वि. अक्षर फीके पड गये हैं, (२६४११.५, १५४३८). पे. १. कयवन्ना चौपाई, मु. जयतसी, मागु., पद्य, वि. १७२१, (पृ. १अ-२०अ), आदिः स्वस्ति श्रीसुख; अंतिः धरम करण मन उलसै छै.,पे.वि. ढाळ-३१. पे. २. धर्मपाप परिवार, राज., गद्य, (पृ. २०आ), आदिः धर्मरो पिता ज्ञान; अंतिः पापरो मूल क्रोध. For Private And Personal Use Only Page #266 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य भाग १ .. (#) , पे. ३. आयुष्य विचार मागु, गद्य, (पृ. २०आ), आदि मनुष्यनो वर्ष १२०: अंतिः ५० वर्ष मकोडा मास ३. १९८९.” शालिभद्र चौपाई, पूर्ण, वि. १७९४, श्रेष्ठ, पृ. १८-२ (१३,१७) = १६, जैदेना., ले. मु. वखतविजय (गुरु मु. हितविजय), दशा वि. विवर्ण-पानी से अक्षरों की स्याही फैल गयी है. (२४४१०.५, १५४३६). शालिभद्र चौपाई, मु. मतिसार, मागु., पद्य, वि. १६७८, आदिः सासणनायक समरीयइ; अंतिः मनवंछित फल लहस्यैजी. १९९०. विक्रमसेनराजा चउबोली कथा संपूर्ण, वि. १८५५, जीर्ण, पृ. १५, जैदेना ले बाघा मथेन प्र. वि. ढाळ १७ दशा वि. विवर्ण अक्षरों की स्याही फैल गयी है- अल्प, चिपके पत्र अलग करते वक्त स्याही उखडी हुई- अंत के कुछ पत्र, (२९४१०.५. १०-११४४०). विक्रमचौबोली रास वाचक अभयसोम, मागु पद्य वि. १७२४, आदि: वीणा पुस्तक धारणी अतिः मतिमन्दिर काजे , " सही. · " www.kobatirth.org: (+) १९९१. चन्द्रगुप्त सोलस्वप्न विचार स्तवन व पट्टावली, संपूर्ण वि. १८१०, श्रेष्ठ, पृ. ५. पे. २ जैदेना. प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ (२६.५४१०.५ १२४५०). पे. १. चन्द्रगुप्त सोलहस्वप्न विचार, प्रा. गद्य (पृ. १-५), आदि: तेणं कालेणं तेणं अंतिः करिस्सन्ति तिबेमि पे. २. पे. नाम थेरावली, पृ. ५आ पट्टावली प्राचीन, प्रा., पद्य, आदि: सिरि वीर १ जयइ; अंति: गणि सोय देवड्ढी., पे.वि. गा. ३. २७ मुख्य पट्टधरों की नामावली. पट्टावली सं. प्रा. मागु., गद्य, आदि:-: अति: · Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १९९२. पट्टावली, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २१-१ ( १ ) - २०, जैदेना., पू.वि. बीच के पत्र हैं. जंबूकुमारचरित्र अपूर्ण से पाट५२ के प्रारंभ तक है., ( २८x१२, १०x२६ ) . १९९३. खरतरगच्छीय पट्टावलली, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १०, जैदेना. (२५.५४११.५ १४४३६). -, पट्टावली खरतरगच्छीय, राज, गद्य, आदिः सुधर्मास्वामि ५०: अंतिः जिनहर्षसूरिजी हूवा . 7 १९९४. पट्टावली खरतरगच्छीय, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १०, जैदेना., प्र. वि. सं. १८१९ तक की पट्टावली है., · (२५.५४१०.५. १३४४२). पट्टावली खरतरगच्छीय, सं. मागु., गद्य, आदिः गुब्बरग्रामवासी; अंतिः श्रीसङ्घः प्रवर्ततां. १९९५.” पट्टावली खरतरगच्छीय, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ८, जैदेना., प्र. वि. ६५ वी पाट श्रीजिनराजसूरि तक, संशोधित, पदच्छेद सूचक लकीरें टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२५.५४१०.५, १५४४९). पट्टावली खरतरगच्छीय, सं., मागु, गद्य, आदि: गुब्बरग्रामवासी अंतिः चिरं नन्दतात्. . (+) " १९९६. पट्टावली खरतरगच्छीय, संपूर्ण वि. १८९७ श्रेष्ठ, पृ. २७, जैदेना. ले. पण्डित थरोऊमुनि प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, दशा वि. विवर्ण अक्षरों की स्याही फैल गयी है, प्र.ले. श्लो. (४४०) तैलाद् रक्षेद् जलाद् रक्षेद्; (३) भग्नपृष्टि कटिग्रीवा, (२५x१२.५, १५०३४). पट्टावली खरतरगच्छीय, वाचक क्षमाकल्याण, सं., गद्य, वि. १८३०, आदिः प्रणिपत्य जगन्नाथं; अंतिः जीर्णगढे०नवासौ. " १९९७. पट्टावली खरतरगच्छीय, अपूर्ण, वि. १७वी श्रेष्ठ, पृ. १५ जैदेना. पु. वि. अन्त के पत्र नहीं हैं. १६१३ वर्ष में हुए जिनचन्द्रसूरि तक है, (२५.५४११, १५९५२). पट्टावली खरतरगच्छीय, सं. मागु, गद्य, आदि हिवइ गुरा तणी अंतिः २१२ १९९८. शेत्रुञ्जाउद्धार रास, संपूर्ण वि. १८५४ श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना. ले. स्थल शिवपुरीनगर, ले. मु. शान्तिविजय, पठ " कसना, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. गा. ११८, (२५.५×११.५, १५X४०). For Private And Personal Use Only Page #267 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org: २१३ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची शत्रुंजयतीर्थउद्धार रास, मु. नयसुन्दर, मागु., पद्य, वि. १६३८, आदिः विमल गिरिवर विमल; अंतिः दिओ दरसण जय करूँ. १९९९. दसआश्चर्य वर्णन व कल्पसूत्रमें आते विविध विषयों की अनुक्रमणिका, संपूर्ण, वि. १७वी, जीर्ण, पृ. ७, पे. २, जैदेना., (२६४११, ११४४०). पे. १. १० आश्चर्य वर्णन प्रा. मागु, पद्य, (पृ. १अ ५आ), आदि उवसग्ग१ गब्भहरणंर: अतिः थई ए दशमुं अच्छेरु... पे.वि. ग्रं. ११३. 1 " पे. २. पे नाम, कल्पसूत्रमां आवता विविध विषयोनी अनुक्रमणिका, पृ. ५आ-७अ जैन सामान्यकृति-पेटाङ्क बाकी, सं., प्रा., मागु., प+ग, आदिः #; अंतिः #., पे.वि. ग्रं. २७. २०००.' क्षेत्रसमास सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९२७, श्रेष्ठ, पृ. १६, जैदेना., ले. स्थल. राहोनगर, ले. मु. उत्तम, प्र. वि. मूलगा. १९१. अन्त में द्वीपप्रमाणविचार दिया गया है, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ, ( २६४१०, ६x३८). बृहत्क्षेत्रसमास- लघुक्षेत्रसमास, आ. जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण, संक्षेप, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊणसजलजलहर: अंतिः झाएज्जा सम्मदीटीए. बृहत्क्षेत्रसमास-सक्षेप लघुक्षेत्रसमास का टबार्थ, मागु, गद्य, आदि नमिऊण कहतां नमस्कार : अंतिः ध्यावउ सम्यग्दृष्टीइ. २००१. नारचन्द्र ज्योतिष सङ्ग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम पृ. ५, जैदेना. पु. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. (२६.५४११.५. " १४४२९) ज्योतिषसार, आ. नरचन्द्रसूरि, सं., पद्य, आदिः श्रीअर्हन्तजिनं; अंतिः Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २००५. नारचन्द्र ज्योतिष सह यन्त्रोद्धार टिप्पणक व ज्योतिष श्लोक, पूर्ण, वि. १६४२, श्रेष्ठ, पृ. २१-१ ( १ ) २०, पे. २. जैदेना., ले. मु. धर्मसी, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, संशोधित, पदच्छेद सूचक लकीरें, अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ, पू.वि. श्लो. १ से ८ नहीं है., ( २६.५x१०.५, ९x४०). पे. १. पे. नाम. नारचन्द्र ज्योतिष सह टिप्पण, पृ. २-२१, पूर्ण पत्र नहीं है. प्रतिलेखक की भूल से अन्त में प्रथम प्रकीर्णक लिखे जाने की संभावना है. " ज्योतिषसार आ. नरचन्द्रसूरि सं., पद्य, आदि अंति: ठाणंमि वज्जिज्जा. " ज्योतिषसार यन्त्रकोद्वार टिप्पण, आ. सागरचन्द्रसूरि सं., गद्य, आदि:-: अंति, पे. वि. मूल श्लो. ३५६. प्रथम पे. २. ज्योतिष *, सं.,मागु., पद्य, (पृ. २१आ, संपूर्ण), आदि:-; अंतिः २०१३. ज्योतिषसार प्रकीर्ण- १, प्रतिपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ८, जैदेना, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ - प्रारंभिक पत्र, दशा वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है अल्प (२४४१०.५, १३४३८). ज्योतिषसार, आ. नरचन्द्रसूरि, सं., पद्य, आदि:-; अंतिः २०१५. भुवनदीपक, संपूर्ण वि. १८७८, श्रेष्ठ, पृ. २४, जैदेना. ले. स्थल, नारदपुरी, ले. मु. लक्ष्मीचन्द, प्र. वि. श्लो. १७५, " (२५.५४१२, ५०२७) भुवनदीपक आ. पद्मप्रभसूरि सं. पद्य वि. १३५, आदि सारस्वतं नमस्कृत्य अंतिः श्रीपद्मप्रभुसूरिभिः · २०३९.'' अभिधानचिन्तामणि नाममाला, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ११, जैदेना., प्र. वि. संशोधित, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. तृतीय काण्ड की ४ गाथा तक है., दशा वि. विवर्ण अक्षरों की स्याही फैल गयी है, (२५x११, १५४४१-४९). अभिधानचिन्तामणि नाममाला, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, आदिः प्रणिपत्यार्हतः: अंतिः For Private And Personal Use Only २०४०.” सूत्रकृताङ्गसूत्र सह बालावबोध - श्रुतस्कन्ध-१, प्रतिपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ८२, जैदेना., प्र. वि. पंचपाठ, दशा वि. विवर्ण अक्षरों की स्याही फैल गयी है- अल्प (२६.५x१०.५, ७२५). Page #268 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य भाग - १ २१४ सूत्रकृताङ्गसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदिः बुज्झिज्ज तिउट्टेज्ज; अंति: सूत्रकृताङ्गसूत्र-बालावबोध, आ. पार्श्वचन्द्रसूरि, मागु., गद्य, आदिः प्रणम्य सद्गुरुन; अंति:२०४१. सूत्रकृताङ्गसूत्र सह बालावबोध - श्रुतस्कन्ध-१, प्रतिअपूर्ण, वि. १६वी, मध्यम, पृ. ५६-४(२ से ४,४३)=५२, जैदेना., (२५.५४११, ६-१०४३०-४३). सूत्रकृताङ्गसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदिः बुज्झिज्ज तिउट्टेज्ज; अंति: सूत्रकृताङ्गसूत्र-बालावबोध, आ. पार्श्वचन्द्रसूरि, मागु., गद्य, आदिः प्रणम्य सद्गुरुन; अंतिः२०४२. अनुत्तरोपपातिकसूत्र सह टबार्थ, पूर्ण, वि. १९३८, श्रेष्ठ, पृ. १३-१(१)=१२, जैदेना., ले.स्थल. जयनगर, ले. देवकृष्ण जोशी, दशा वि. बटकने योग्य-अक्षर फीके पड गये हैं, (२५.५४११.५, ६४५१). अनुत्तरौपपातिकदशाङ्गसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदिः-; अंतिः कहाणं तहा णेयव्वं. अनुत्तरौपपातिकदशाङ्गसूत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, आदि.-; अंतिः परइ त० तिम जाणवा. २०४३." प्रश्नव्याकरणसूत्र सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ७०, जैदेना.,प्र.वि. मूल-परिमाण-अध्याय-१०. प्र.पु. सर्वग्रं. ५२५०., पंचपाठ, (२६.५४१०, ४-११४२८-३५). प्रश्नव्याकरणसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदिः जम्बू इणमो अण्हयसंवर; अंतिः अङ्गं जहा आयारस्स. प्रश्नव्याकरणसूत्र-बालावबोध, आ. पार्श्वचन्द्रसूरि, मागु., गद्य, आदिः श्रीवर्द्धमानमानम्य; अंतिः जाइं अनन्तसुख पामे. २०४४. भगवतीसूत्र, अपूर्ण, वि. १७वी, जीर्ण, पृ. ५१-१५(१ से १५) ३६, जैदेना., पू.वि. प्रारंभ व अंत के पत्र नहीं हैं. शतक-१ ___ उद्देश-७ अपूर्ण से है., (२७४१०, ११४४५). भगवतीसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि:-; अंति:२०४५." उपासकदशाङ्गसूत्र, अपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १७, जैदेना., ले.स्थल. पत्तन, प्र.वि. अंत मे आगमिक दो पंक्तिया दी गई है., टिप्पण युक्त विशेष पाठ, पू.वि. अन्त के पत्र नहीं हैं., (२६.५४११, १५४४३). उपासकदशाङ्गसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदिः तेणं० चंपा नाम नयरी; अंति:२०४६. विपाकसूत्र, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. २९, जैदेना.,प्र.वि. ग्रं. १२५०,अध्याय-२० अध्ययन; प्र.पु. ग्रं. १३१६, (२६x११.५, १५४४८). विपाकसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदिः तेणं कालेणं तेणं; अंतिः सेसं जहा आयारस्स. २०४७. प्रज्ञापनासूत्र, संपूर्ण, वि. १६वी, मध्यम, पृ. १७०, जैदेना., प्र.वि. सूत्र-२१७६,ग्रं. ७७८७,अध्याय-३६ पद; प्र.पु. ग्रं. ७७८७, संशोधित, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, दशा वि. विवर्ण-अक्षरों की स्याही फैल गयी है, चिपके पत्र अलग करते वक्त स्याही उखडी हुई-अंत के कुछ पत्र, (२६४१०.५, १५४५८). प्रज्ञापनासूत्र, वाचक श्यामाचार्य, प्रा., गद्य, आदिः नमो अरिहन्ताणं; अंतिः सुही सुहं पत्ता. २०४८. पर्यायपद-प्रज्ञापनासूत्रे, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना., (२५४११.५, १९४४८). प्रज्ञापनासूत्र-पर्याय , संबद्ध, मागु., गद्य, आदिः जघन्य अवगाहनाने रीया; अंतिः उत्तर जन्त्रथी जाणवो. २०४९.” ज्ञाताधर्मकथाङ्गसूत्र सह टबार्थ - अध्ययन-१, प्रतिअपूर्ण, वि. १७४९, श्रेष्ठ, पृ. ६५-१०(१ से १०)=५५, जैदेना., ले.स्थल. पांजरापोल, ले. गणि कनकरत्न, प्र.वि. संशोधित, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२५.५४१२, ७४४४). ज्ञाताधर्मकथाङ्गसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदि:-; अंति: ज्ञाताधर्मकथाङ्गसूत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, आदि:-: अंति:२०५०. ज्ञाताधर्मकथाङ्गसूत्र, संपूर्ण, वि. १६१४, मध्यम, पृ. १३६, जैदेना., प्र.वि. १९अध्ययन; प्र.पु. मूल-ग्रं. ४४८०, (२५४११, १३४४४). ज्ञाताधर्मकथाङ्गसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदिः तेणं कालेणं० चम्पाए; अंति: जाव सम्पत्तेणं. For Private And Personal Use Only Page #269 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra उपासकदशाङ्गसूत्र-वृत्ति, आ. अभयदेवसूरि तत्रोपासक दशाः; अंतिः कुर्वतां प्रीतये मे. कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २१५ २०५१.” उपाशकदशाङ्ग सह वृत्ति, संपूर्ण, वि. १६५१, श्रेष्ठ, पृ. ३२, जैदेना., ले. पं. रत्नविजय (गुरु गणि कान्हजी), प्र. वि. मूल-ग्रं. ८१२, अध्याय-१०, संशोधित त्रिपाठ, टिप्पण युक्त विशेष पाठ (२६.५४११, २-१५९५४-६५)उपासकदशाङ्गसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदि: तेणं० चंपा नामं नयरी; अंतिः दिवसेसु अङ्गं तहेव.. सं गद्य वि. १११७, आदि (१) श्रीवर्द्धमानमानम्य (२) " " www.kobatirth.org: २०५२.'' राजप्रश्नीयसूत्र सह मलयगिरीय टीका का विषमस्थल टिप्पण, संपूर्ण, वि. १६वी, श्रेष्ठ, पृ. ७६, जैदेना., प्र. वि. मूलसूत्र-१७५., संशोधित, पंचपाठ, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, दशा वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है- अल्प, प्र.ले. श्लो. (१४१) यादशं पुस्तकं कृत्वा, (२७११, ११x४४). राजप्रश्नीयसूत्र, प्रा., गद्य, आदिः नमो अरिहंताणं० तेणं; अंतिः सुपस्से परसवणा नमो. राजप्रश्नीयसूत्र टीका का विषमपद टिप्पण, सं., गद्य आदि वक्तव्यता उपपातिकः अंतिः ताडनानि कशादिघाताः २०५३.” राजप्रश्नीयसूत्रोपरि चौपाई, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ४७-३५ (१ से ३५ ) = १२, जैदेना., पू.वि. ढाल २५ गाथा ६ के पत्र नहीं है., दशा वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, ( २४४१०.५, १३-१५X३३-३८). राजप्रश्नीयसूत्र चौपाई, आ. जिनचन्दसूरि संबद्ध, मागु पद्य वि. १७०९, आदि अंति: लीलविलास हे सहीयइ. ६-१(१ ) =५. जैदेना, दशा वि. विवर्ण-पानी से अक्षरों की , (+) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir .. २०५४. जीवाभिगमसूत्रे बोल सङ्ग्रह, पूर्ण, वि. १८७२, जीर्ण, पृ. स्याही फैल गयी है, ( २४.५x१०.५, १५x४५). बोल सग्रह जीवाभिगमसूत्रे, मागु, गद्य, आदि:-: अंति " २०५५. निरयावलियादिपञ्चोपाङ्ग सह टबार्थ, संपूर्ण वि. १८८९ श्रेष्ठ, पृ. ४७ पे ५ जैदेना ले. स्थल आनंदपुर, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२५४११, ८४४९). पे. १. पे. नाम कल्पिकासूत्र सह टबार्थ, पृ. १-१८अ कल्पिकासूत्र, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं तेनं०: अंतिः वरं मायातो सरिसणामाओ. कल्पिकासूत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः ते कालइ उसर्पणीनो; अंतिः नामे सूत्र समाप्त., अध्याय १० अध्ययन. पे. ३. पे. नाम. पुष्पिका सह टबार्थ, पृ. २०अ -४०अ पुष्पिकासूत्र, प्रा., गद्य, आदि जइ णं भन्ते समणेणं० अंतिः चेइयाई जहा संगहणीए. अध्ययन. पे. २. पे. नाम. कल्पावतंसिकासूत्र सह टवार्थ, पृ. १८अ-२०अ कल्पावतंसिकासूत्र, प्रा., गद्य, आदि जइ णं भन्ते समणेणं०: अंतिः वा महाविदेहे सिद्धे. कल्पावतंसिकासूत्र- टबार्थ, मागु, गद्य, आदि जी हे भगवन्त समण०: अंतिः विदेह खेत्रे सीझस्यै, पे. वि. मूल पे.वि. मूल- अध्याय १० पुष्पिकासूत्र - टबार्थ, मागु, गद्य, आदि: जी हे पूज्य अंतिः पुफीयासूत्र समाप्त. पे. वि. मूल- अध्याय १० अध्ययन. पे. ४. पे. नाम. पुष्पिचूलिका सह टबार्थ, पृ. ४०-४२आ पुष्पचूलिकासूत्र, प्रा. गद्य, आदि: जइ णं भंते समणेणं०: अंतिः हे वासे सिज्झिहिंति " पुष्पचूलिकासूत्र - टबार्थ, मागु., गद्य, आदि: जौ हे पूज्य श्रमण; अंतिः पूर्व पाठ कहिवउ., पे.वि. मूल- अध्याय - १० For Private And Personal Use Only अध्ययन. पे. ५. पे नाम. वृष्णिदशा सह टबार्थ, पृ. ४२आ-४७आ वृष्णिदशासूत्र, प्रा., गद्य, आदिः जइ णं भंते० पंचमस्स; अंतिः मइरित्त एक्कारससु वि. वृष्णिदशासूत्र - टवार्थ, मागु., गद्य, आदि: जी हे पूज्य० पांचमान अंतिः एम सर्व ५२ उद्देशा. पं. वि. मूल-अध्याय १२ अध्ययन. Page #270 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य भाग - १ २१६ २०५६." औपपातिकसूत्र, संपूर्ण, वि. १६२४, श्रेष्ठ, पृ. ७१, जैदेना., ले.स्थल. गोगुंदा(मेवाड), ले. ऋ. डीडा,प्र.वि. प्र.पु. ग्रं. १३००., पदच्छेद सूचक लकीरें, संशोधित, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२६४११, ११४२७). औपपातिकसूत्र, प्रा., प+ग, आदिः तेणं कालेणं० चम्पा०; अंतिः सुही सुहं पत्ता. २०५७. निरयावलिकादिपञ्चोपाङ्गसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ५३, पे. ५, जैदेना., (२६४११, ७४५४). पे. १. पे. नाम. कल्पिकासूत्र सह टबार्थ, पृ. १-२२अ कल्पिकासूत्र, प्रा., गद्य, आदिः तेणं कालेणं तेणं०; अंतिः वरं मायातो सरिसणामाओ. कल्पिकासूत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः तिणि कालि तिणि; अंति: कुमरना नाम छइ., पे.वि. मूल-अध्याय-१० अध्ययन. पे. २. पे. नाम. कल्पावतंसिकासूत्र सह टबार्थ, पृ. २२अ-२३आ कल्पावतंसिकासूत्र, प्रा., गद्य, आदि: जइ णं भन्ते समणेणं०; अंतिः वा महाविदेहे सिद्धे. कल्पावतंसिकासूत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः ज० जउ भं० हे पूज्य; अंति: महाविदेहइ सीझस्यइ., पे.वि. मूल अध्याय-१० अध्ययन. पे. ३. पे. नाम. पुष्पिकासूत्र सह टबार्थ, पृ. २४अ-४४अ पुष्पिकासूत्र, प्रा., गद्य, आदिः जइ णं भन्ते समणेणं०; अंतिः चेइयाइं जहा संगहणीए. पुष्पिकासूत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः जओ हे पूज्य; अंतिः पुफीयासूत्र समाप्त., पे.वि. मूल-अध्याय-१० अध्ययन. पे. ४. पे. नाम. पुष्पचूलिकासूत्र सह टबार्थ, पृ. ४४अ-४७आ पुष्पचूलिकासूत्र, प्रा., गद्य, आदिः जइ णं भंते समणेणं०; अंतिः हे वासे सिज्झिहिंति. पुष्पचूलिकासूत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः जौ हे पूज्य श्रमण; अंतिः क्षेत्रे सीझइम., पे.वि. मूल-अध्याय-१० अध्ययन. पे. ५. पे. नाम. वृष्णिदशासूत्र सह टबार्थ, पृ. ४७आ-५३अ वृष्णिदशासूत्र, प्रा., गद्य, आदिः जइ णं भंते० पंचमस्स; अंतिः मइरित्त एक्कारससु वि. वृष्णिदशासूत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः (१) जौ हे पूज्य० पांचमान (२) ज० जो भं० हे पुज्य; अंतिः पवर्गि बारइ उदेसा., पे.वि. मूल-अध्याय-१२ अध्ययन. २०५८." अनुत्तरोववाईसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८५४, मध्यम, पृ. ११, जैदेना., ले.स्थल. गुहाणा, ले. लखाजी, प्र.वि. मूल ग्रं. १९२,अध्याय-३३., टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२७४११, ७X५२). अनुत्तरौपपातिकदशाङ्गसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदिः तेणं कालेणं० नवमस्स; अंतिः कहाणं तहा णेयव्वं. अनुत्तरौपपातिकदशाङ्गसूत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः (१) ते काल चउथाआराने (२) तेणे काल चउथा० तेणइ; अंतिः (१)परि तिमज जाणिवा (२)परइ त० तिम जाणवा. २०५९.” कल्पसूत्र सह टबार्थ व व्याख्यान+कथा, संपूर्ण, वि. १८१२, श्रेष्ठ, पृ. १३०, जैदेना., ले.स्थल. कंटालीयाग्राम, ले. ऋ. दुलीचन्द, प्र.वि. मूल-९-व्याख्यान. प्र.पु. टबार्थ+व्याख्यान+कथा-ग्रं. ८०००., टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२६४११, ७४४१). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदिः णमो अरिहन्ताणं० पढम; अंतिः उवदंसेइ त्ति बेमि. कल्पसूत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः तेणइ कालि जे; अंतिः (१)एतले गुरुक्त जणाविउ (२)एतलै गुरुसु जणाव्यौ. कल्पसूत्र-व्याख्यान+कथा* , मागु., गद्य, आदि: नमो अरिहन्ताणं; अंतिः न खमावै ते विराधक. २०६०. कल्पसूत्र सह टबार्थ व व्याख्यान+कथा, त्रुटक, वि. १६वी, मध्यम, पृ. ७८-५४(१ से ११,१३ से १७,१९ से ४०,५० से ५२,५४,६२,६६ से ७०,७२ से ७७)=२४, जैदेना., प्र.वि. मूल-ग्रं. १२१६,९-व्याख्यान., संशोधित, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., (२६४१०, ६४३९). For Private And Personal Use Only Page #271 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir २१७ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदिः-; अंतिःकल्पसूत्र-टबार्थ', मागु., गद्य, आदि:-; अंति: कल्पसूत्र-व्याख्यान+कथा* , मागु., गद्य, आदि:-; अंतिः२०६१. कल्पसूत्र-दशअच्छेरा व चौदस्वप्न विचार, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १९-७(१ से ७)=१२, पे. २, जैदेना., (२४४१०, १३४३७). पे. १. पे. नाम. कल्पसूत्रे दशअच्छेरा, पृ. ८अ-१५आ, संपूर्ण कल्पसूत्र-दशआश्चर्य वर्णन, संबद्ध, मागु., गद्य, आदिः उवसग्ग गब्भहरणं; अंतिः ऊपजइ पणि जन्म न हुइ. पे. २. पे. नाम. कल्पसूत्रे चौदस्वप्न विचार, पृ. १५आ-१९आ, संपूर्ण __ कल्पसूत्र-चौदहस्वप्न विचार, संबद्ध, राज., गद्य, आदिः परिलइ स्वप्नइ सिंह; अंतिः महा तेजस्फूर्ति. २०६२. बृहत्कल्पसूत्र, पूर्ण, वि. १७६२, श्रेष्ठ, पृ. ३५-१(३१)=३४, जैदेना., ले.स्थल. बीकानेर, पठ. श्रा. पृथ्वीमल शाह,प्र.वि. श्लो.४७३,अध्याय-६, संशोधित, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२७४१२, ५४४२-४६). बृहत्कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदिः नो कप्पइ निग्गंथाण; अंतिः कप्पट्ठिई त्तिबेमि. २०६३. निसीथसूत्र, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ३२, जैदेना., प्र.वि. २०उद्देश; प्र.पु. ग्रं. ८२५, (२९.५४११.५, ९x४२-४४). निशीथसूत्र, प्रा., गद्य, आदि: जे भिखु हत्थ; अंतिः पसिस्सो भवोज्जं च. २०६४. कल्पसूत्र स्थविरावली सह कल्पद्रुमकलिका टीका, प्रतिअपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २१-६(१ से ६)=१५, जैदेना., प्र.वि. संशोधित, पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न, पू.वि. स्थविरावली में स्थुलिभद्र कोशा वेश्या के प्रसंग तक के पत्र नहीं है., (२६x११, १४४४०-४१). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि:-; अंति: कल्पसूत्र-कल्पद्रुमकलिका टीका, गणि लक्ष्मीवल्लभ, सं., गद्य, वि. १८वी, आदिः-; अंतिः२०६५. कल्पसूत्र सह टबार्थ व व्याख्यान+कथा, पूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ११५-१(१)=११४, जैदेना., प्र.वि. मूल-ग्रं. १२१६,९-व्याख्यान., संशोधित, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, दशा वि. विवर्ण-अक्षरों की स्याही फैल गयी है-अल्प-अक्षर फीके पड गये हैं, (२५४११, ६-१७४५०). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि:-; अंतिः उवदंसेइ त्ति बेमि. कल्पसूत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, आदि:-: अंतिः ते मोक्ष फलदाई हुइ. कल्पसूत्र-व्याख्यान+कथा* , सं., गद्य, आदि:-; अंति:२०६६. दशवैकालिकसूत्र सह लघुवृत्ति, संपूर्ण, वि. १६वी, श्रेष्ठ, पृ. ६२, जैदेना.,प्र.वि. मूल-अध्याय-अध्ययन१०चूलिकार., संशोधित, त्रिपाठ, (२६४११, ३-१४४४६-५१). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यम्भवसूरि, प्रा., पद्य, वि. पू.४, आदिः धम्मो मङ्गलमुक्किट्ठ; अंतिः (१)मुच्चइ त्ति बेमि (२)आलणा सो. दशवैकालिकसूत्र-लघुटीका, आ. सुमतिसूरि, सं., गद्य, आदिः जयति विजितान्यतेजाः; अंतिः रक्षन्तु सङ्घ सदा. २०६७. दशवैकालिकसूत्र - अध्ययन १ से ४, प्रतिपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ८, जैदेना., (२५.५४११.५, ११४३८). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यम्भवसूरि, प्रा., पद्य, वि. पू.४, आदिः धम्मो मङ्गलमुक्किट्ठ; अंति:२०६८." दशवैकालिकसूत्र सह बालावबोध, पूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४६-३(१,१६,४)=४३, जैदेना.,प्र.वि. मूल-अध्याय अध्ययन१०., टिप्पण युक्त विशेष पाठ, दशा वि. विवर्ण-पानी से अक्षरों की स्याही फैल गयी है, (२६४१२, २-७४३५). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यम्भवसूरि, प्रा., पद्य, वि. पू.४, आदि:-; अंति: गई त्ति बेमि. दशवैकालिकसूत्र-बालावबोध, मागु., गद्य, आदि:-; अंतिः अपुनरागति मोक्षगति. For Private And Personal Use Only Page #272 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य भाग १ - www.kobatirth.org: २१८ २०६९." दशवैकालिकसूत्र सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १६७१ मध्यम, पृ. ४२, जैदेना ले स्थल जैतपुर, ले. मु. केशव (गुरु .. मु. थोभण), प्र. वि. मूल- अध्याय - अध्ययन १०., पंचपाठ, (२७१२, ७-१२x२४-२७). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यम्भवसूरि, प्रा., पद्य, वि. पू. ४, आदिः धम्मो मङ्गलमुक्किट्ठ; अंतिः गइं त्ति बेमि दशवैकालिकसूत्र - बालावबोध, मागु., गद्य, आदिः आदि मध्ये अवसनि; अंतिः इम कह्यु इमहउ बोल्यउ. २०७०. अनुयोगद्वारसूत्र, संपूर्ण, वि. १८४४, श्रेष्ठ, पृ. ८३, जैदेना, पठ. ऋ. महताब ( गुरु ऋ. भवानिदास), (२६×११.५, ६x४७) अनुयोगद्वारसूत्र · आ. रक्षितसूरि, प्रा., प+ग, आदिः नाणं पञ्चविहं; अंतिः साहू से तं नए... २०७१. उत्तराध्ययनसूत्र, अपूर्ण, वि. १६६२, श्रेष्ठ, पृ. ८५-७२ (१ से ७२ ) = १३, जैदेना., ले. स्थल. नव्यनगर, ले. पं. उदयसागर गणि (गुरु मु. वीरोदय, बृहत्खरतरगच्छ ), पठ. मु. सुखसागर (गुरु पं. उदयसागर गणि, बृहत्खरतरगच्छ), गच्छा. गच्छाधिपति जिनचन्द्रसूरि (बृहत्खरतरगच्छ ), प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र. वि. ३६अध्ययन, पू. वि. अणगार नामक ३५ वें अध्ययन की गा १२ अपूर्ण से है., (२५४१०.५, ११४३७). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा. प+ग, आदि:-: अंतिः सम्मए त्ति बेमि "" (#) 'उत्तराध्ययनसूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २३-३ (१३१७ से १८) २०, जैदेना. पु.वि. बीच के पत्र नहीं हैं व · प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण अध्ययन- १४ गा.२९ अपूर्ण तक है. दशा वि. विवर्ण पानी से अक्षरों की स्याही फैल गयी है, (+4) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( २६ ११.५, ७५९). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग, आदिः सञ्जोगाविप्पमुक्कस्स; अंतिः २०७३ * नन्दीसूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १५-२ (१,१३ ) - १३, जैदेना. पु.वि. बीच के पत्र हैं. दशा वि. अक्षर फीके पड " गये हैं, बटकने योग्य, ( २६४१२, १६ - १८x४२). नन्दीसूत्र, आ. देववाचक प्रा. प+ग, आदि: अंति: " २०७४ श्राद्धप्रतिक्रमणसूत्र सङ्ग्रह, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ७ जैदेना. प्र. वि. संशोधित, दशा वि. अक्षर फीके पड गये हैं, ( २६१२.५, १४४४३). ". आवकप्रतिक्रमणसूत्र - स्थानकवासी संबद्ध, प्रा. मागु प+ग, आदि नमो अरिहन्ताणं अंतिः नमो जिणाणं जीयभयाणं. २०७५ साधुप्रतिक्रमणसूत्र व चौदनियम सज्झाय, संपूर्ण वि. १९४३ मध्यम, पृ. ५, पे. २, जैदेना. ले. स्थल. कपडवंजनगर, ले. पं. व्रजसागर, (२६×१३, १३४३० ). " पे. १. ये नाम साधुप्रतिक्रमणसूत्र पृ. १आ-४अ साधुवन्दित्तुसूत्र संबद्ध, प्रा., गद्य, आदिः चत्तारि मङ्गलं; अंतिः वन्दामि जिणे चउवीसं. " पे. २. १४ नियम सज्झाय, मागु., पद्य, (पृ. ४अ - ५आ), आदिः सारदाय प्रणमि करीजी; अंतिः जस महिमा जगमांहे., पे.वि. गा.२०. 1 २०७६.” श्राद्धप्रतिक्रमणसूत्र, संपूर्ण, वि. १८८१, मध्यम, पृ. ५, जैदेना., ले. मु. हेमराज ( गुरु मु. जसकरण भट्टारक), प्र. वि. गा. ५०, दशा वि. विवर्ण पानी से अक्षरों की स्याही फैल गयी है (२४४१०.५, ९-१०x२२). J वन्दित्तुसूत्र संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: वन्दित्तु सव्वसिद्धेः अंतिः वन्दामि जिणे चउवीसं. २०७७ श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र सङ्ग्रह सह टवार्थ (पार्श्वचन्द्रगच्छीय), संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २०, जैदेना. (२६१३.००, ४-७X३२). आवक प्रतिक्रमणसूत्र - पायचन्दगच्छीय संबद्ध, प्रा. सं. मागु प+ग, आदि णमो अरिहन्ताणं अंतिः #. श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-पायचन्दगच्छीय-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः श्रीअरिहन्त भणी; अंतिः फलनो कारण जाणवो. For Private And Personal Use Only २०७८ चतुःशरण प्रकीर्णक सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १४-३ (१० से १२ ) = ११, जैदेना. पू. वि. बीच व अन्त के " पत्र नहीं हैं. गा. ४४ तक है., (२५.५४११.५, १३X२७). Page #273 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir २१९ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची चतुःशरण प्रकीर्णक, गणि वीरभद्र, प्रा., पद्य, आदिः सावज्ज जोग विरई; अंति: चतुःशरण प्रकीर्णक-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः सर्व सावध व्यापार; अंति:२०७९." चतुःशरण प्रकीर्णक सह टबार्थ, चाररत्न व चौदअसुचिस्थान, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १५, पे. २, जैदेना., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२६.५४१२, २४२९). पे. १. पे. नाम. चतुःशरण प्रकीर्णक सह टबार्थ, पृ. १अ-१५आ चतुःशरण प्रकीर्णक, गणि वीरभद्र, प्रा., पद्य, आदिः सावज्ज जोग विरई; अंतिः कारणं निव्वुइ सुहाणं. चतुःशरण प्रकीर्णक-टबार्थ, आ. ज्ञानविमलसूरि, मागु., गद्य, वि. १७३२, आदिः सावद्य योगनी विरति; अंतिः सफल कारण छइं., पे.वि. मूल-गा.६३. पे. २. जैनगाथा सङ्ग्रह', सं.,प्रा.,मागु., पद्य, (पृ. १५आ), आदि:#; अंतिः#. २०८०. चतुःशरण प्रकीर्णक, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना., ले. मु. राजचन्द्र, पठ. श्राविका रेखा, प्र.वि. गा.६३, (२४४११, ९४२५). चतुःशरण प्रकीर्णक, गणि वीरभद्र, प्रा., पद्य, आदिः सावज्ज जोग विरई; अंतिः कारणं निव्वुइ सुहाणं. २०८१." अनुयोगद्वारसूत्र, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ६१+१(४१)=६२, जैदेना., प्र.वि. प्र.पु.मूल-ग्रं. १४००., पदच्छेद सूचक लकीरें, दशा वि. जीवातकृत छिद्र युक्त-बीच के कुछ पत्र-अक्षरों की स्याही फैल गयी है-अल्प, (२६.५४११, ११४३९). अनुयोगद्वारसूत्र , आ. रक्षितसूरि, प्रा., प+ग, आदिः नाणं पञ्चविहं; अंतिः साहू से तं नए. २०८२." भाष्यत्रय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदेना., प्र.वि. संशोधित-खाली जगह-अंक व दंड लाल स्याही से, दशा वि. आग से दग्ध, विवर्ण-पानी से अक्षरों की स्याही फैल गयी है, (२५४१०.५, १४४४०). भाष्यत्रय, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, आदिः वन्दित्तु वन्दणिज्जे; अंतिः सासयसुक्खं अणाबाई २०८३." आदिजिन जन्माभिषेक कलश सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९१९, श्रेष्ठ, प्र. ९, जैदेना., ले. गणि खन्तिविजय (गुरु म. उत्तमविजय), प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२५.५४११.५, ४४३१). आदिजिन जन्माभिषेक कलश, अप., पद्य, आदिः मुक्तालङ्कारविकार; अंतिः तुम्ह दइ वरमुत्ति. आदिजिन जन्माभिषेक कलश-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः पूर्व दिसई तथा; अंति: मुक्ति मोक्ष आपे. २०८४." सत्तरभेदी पूजा, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, प्र. ५, जैदेना., पू.वि. अन्त के पत्र नहीं हैं. १५वी ढाल पूजा अधूरी है., दशा वि. मूषक भक्षित-किनारी-अक्षरों की स्याही फैल गयी है-अल्प, (२६.५४१२, ११४३०). १७ भेदी पूजा, उपा. सकलचन्द्रगणि, मागु., पद्य, आदिः अरिहन्त मुखपङ्कज; अंति:२०८५. जिनबिम्बप्रतिष्ठा पूजा, संपूर्ण, वि. १९५१, श्रेष्ठ, पृ. ५३, जैदेना., ले.स्थल. खेडा, ले. कालिदास प्राणानाथ व्यास, (२५४१२, ११४३१). प्रतिष्ठाकल्प, उपा. सकलचन्द्रगणि, सं.,मागु., गद्य, आदिः प्रणम्य श्रीमहावीरं; अंतिः जिन प्रतिमा पधरावे. २०८६.” दीवाली कल्प सह टबार्थ व मौनएकादशी स्तवन, संपूर्ण, वि. १८१९, मध्यम, पृ. २७, पे. २, जैदेना., ले.स्थल. माढाग्राम, ले. गणि खुशालसौभाग्य (गुरु गणि जयसौभाग्य), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, प्र.ले.श्लो. (४८२) भग्न पुष्टी कटी ग्रीवा; (१४१) यादशं पुस्तकं कृत्वा, (२६४११, ७४३९). पे. १.पे. नाम. दीवालीकल्प सह टबार्थ, पृ. १अ-२७अ दीपावलीपर्व कल्प, आ. जिनसुन्दरसूरि, सं., पद्य, वि. १४८३, आदिः श्रीवर्द्धमानमाङ्गल; अंतिः चन्द्रार्कजगत्त्रये. दीपावलीपर्व कल्प-टबार्थ, गणि सुखसागर, मागु., गद्य, वि. १७६३, आदिः अहँ नत्वाल्प; अंतिः विर्षे उद्योत करे., पे.वि. मूल-श्लो.४३६,सर्व ग्रं.१२५५. For Private And Personal Use Only Page #274 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य भाग - १ २२० पे. २. मौनएकादशीपर्व स्तवन , उपा. समयसुन्दर गणि, मागु., पद्य, वि. १६८१, (पृ. २७आ), आदिः समवसरण बेठा __ भगवंत; अंतिः सुदी अगियारस वडी., पे.वि. गा.१३. २०८८." स्तवनचौवीसी, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदेना., प्र.वि. संशोधित-बीच के कुछ पत्र, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. स्तवन-१६ की गाथा ४ तक है., (२५४१०.५, ११४४४). स्तवनचौवीसी, आ. लब्धिसागरसूरि, मागु.,प्रा., पद्य, आदि: नाभिराय कुल कुवलय; अंति:२०८९. समण अने समणोपासकनी प्रतिक्रमण विधि, संपूर्ण, वि. १९३२, श्रेष्ठ, पृ. १०, जैदेना., ले.स्थल. भाणपुरनगर, ले. यति देवसागर, प्र.ले.पु. मध्यम, (२५४११, २०४५६). साधुश्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-लोकागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,सं., प+ग, आदिः णमो अरिहन्ताणं; अंतिः विधि पडिकमणानी जाणवी. २०९०. प्रतिष्ठा विधि सङ्ग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३५, जैदेना., ले.स्थल. विद्युतपुर, ले. पं. पद्मसागर, (२५.५४१३.५, १३४३९). प्रतिष्ठा विधि सङ्ग्रह, सं.,मागु., गद्य, आदिः प्रणम्य स्वस्ति; अंतिः चम्बेलिरो तेल गावोघत. २०९१. भक्तामर स्तोत्र व आदिजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. १९४१, श्रेष्ठ, पृ. ५, पे. २, जैदेना., ले.स्थल. अहमदाबाद, ले. चन्दनमल, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., (२५४१२.५, ११४२६). पे. १. भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुङ्गसूरि, सं., पद्य, (पृ. १अ-५आ, संपूर्ण), आदिः भक्तामरप्रणतमौलिमणि; अंतिः समुपैति लक्ष्मी., पे.वि. श्लो.४४. पे. २. आदिजिन स्तवन-राणकपुर, उपा. समयसुन्दर गणि, मागु., पद्य, वि. १६७६, (पृ. ५आ-, अपूर्ण), आदिः राणपुरे रलीयामणो रे; अंतिः-,पे.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. २०९२. नव स्मरण व श्लोक सङ्ग्रह, प्रतिपूर्ण, वि. १७४०, मध्यम, पृ. १२, पे. २, जैदेना., दशा वि. विवर्ण-पानी से अक्षरों की स्याही फैल गयी है, (२५४१०.५, १२४२५). पे. १. पे. नाम. सप्तस्मरण., पृ. १आ-१२अ, प्रतिपूर्ण नवस्मरण, आ. अनेक श्रुतस्थविर, प्रा.,सं., प+ग, आदिः नमो अरिहन्ताणं० हवइ; अंतिः-,पे.वि. तिजयपहुत्त, कल्याणमंदिर व बडीशांति नहीं है. पे. २. श्लोक सङ्ग्रह जैनधार्मिक, सं.,प्रा., पद्य, (पृ. १अ.१२आ, संपूर्ण), आदिः#; अंतिः#. २०९३." अजितशान्ति स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना., प्र.वि. गा.४४, संशोधित, (२४.५४१२.५, ११४३२). अजितशान्ति स्तव , आ. नन्दिषेणसूरि, प्रा., पद्य, आदिः अजियं जिय सव्वभयं; अंतिः जिणवयणे आयरं कुणह. २०९४. सिद्धचक्रपूजन विधि, संपूर्ण, वि. १८९९, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना., ले. पं. चैनजी, प्र.वि. प्रचलन से भिन्न विधि., (२६४१२.५, १६x४४-४५). सिद्धचक्रपूजन विधि, मागु., गद्य, आदिः प्रथम उष्ण जल करके; अंतिः कही० यथासुख विचरीजे. २०९५. नवपद ओली विधि, सिद्धचक्र चैत्यवन्दन, स्तवन, व स्तुति सङ्ग्रह, संपूर्ण, वि. १९५५, श्रेष्ठ, पृ. ८, पे. ७, जैदेना., ले.स्थल. विद्युतपुर, ले. पं. पद्मसागर, (२६४१३, १६४३६). पे. १. ओली विधि सङ्ग्रह, प्रा., गद्य, (पृ. १अ-६आ), आदिः ए तप प्रथम आसोसुदि; अंतिः प्रत्येक दिवसे कीजे. पे. २. सिद्धचक्र चैत्यवन्दन, आ. ज्ञानविमलसूरि, प्रा., पद्य, (पृ. ७अ-७अ), आदि: उप्पन्नसन्नाणमहो; अंतिः सिद्धचक्कं नमामि., पे.वि. गा.६. पे. ३. पंचपरमेष्ठिगुणगर्भितजिन चैत्यवन्दन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मागु., पद्य, (पृ. ७अ-७अ), आदिः बार गुण अरिहन्तदेव; अंतिः नयविमल सुखकार., पे.वि. गा.३. For Private And Personal Use Only Page #275 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir २२१ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची पे. ४. सिद्धचक्र स्तुति, मु. उत्तमसागर, मागु., पद्य, (पृ. ७अ-७आ), आदिः सिद्धचक्र सेवो भवि; अंति: वाचक० उत्तम सीस सवाई., पे.वि. गा.४. पे. ५. सिद्धचक्र स्तुति, आ. ज्ञानविमलसूरि, मागु., पद्य, (पृ. ७आ-७आ), आदिः अरिहन्त नमो वळी; अंतिः नय विमलेसर वर आपो., पे.वि. गा.४. पे. ६. सिद्धचक्र स्तवन, मागु., पद्य, (पृ. ७आ-८अ), आदिः नवपद महिमा सांभलो; अंतिः होजो हो भवभव आधार., पे.वि. गा.५. पे. ७. सिद्धचक्र स्तवन, मु. ज्ञानविनोद, प्राहिं., पद्य, (पृ. ८अ-८अ), आदिः गौतम पूछत श्रीजिन; अंतिः भक्ति करो भगवान की., पे.वि. गा.७. २०९६.” उपधान विधि व दीक्षा विधि, संपूर्ण, वि. १८१७, श्रेष्ठ, पृ. १०, पे. २, जैदेना., पठ. गणि कुंवरसौभाग्य (गुरु गणि विद्यासौभाग्य), दशा वि. विवर्ण-पानी से अक्षरों की स्याही फैल गयी है, (२५.५४११.५, १५४३४). पे. १. उपधानतप विधि, सं.,प्रा.,मागु., गद्य, (पृ. १-७), आदिः अहँ स्तनोतु स; अंतिः सज्झाय उपवास १. पे. २. दीक्षा विधि, प्रा.,गुज.,सं., गद्य, (पृ. ८अ-१०आ), आदिः अथ सम्यक्तालापक; अंतिः करे सामाचारी मध्ये. २०९७. अजितशान्ति स्तवन व श्लोक, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, पे. २, जैदेना., (२४४१३, १०x२२). पे. १. जैन गाथा *, मागु., पद्य, (पृ. १अ), आदि:-; अंतिः-,पे.वि. गा.१. पे. २. अजितशान्ति स्तव , आ. नन्दिषेणसूरि, प्रा., पद्य, (पृ. १-७), आदिः अजियं जिय सव्वभयं; अंतिः जिणवयणे आयरं कुणह., पे.वि. गा.४०. २०९८. भक्तामर स्तोत्र सह व्याख्या, संपूर्ण, वि. १६वी, श्रेष्ठ, पृ. ३०, जैदेना., प्र.वि. मूल-श्लो.४४+४; टीका-ग्रं. १५७२., (२६४११, १७४५४). भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुङ्गसूरि, सं., पद्य, आदिः भक्तामरप्रणतमौलिमणि; अंतिः समुपैति लक्ष्मी. भक्तामर स्तोत्र-गुणाकरीय टीका, आ. गुणाकरसूरि, सं., गद्य, वि. १४२६, आदिः पूजाज्ञानवचोपायापगमा; अंतिः मतिः० प्रायशः सन्ति. २०९९." स्नात्र, नवाणुप्रकारी पूजा व नवपद पूजा, संपूर्ण, वि. १८८९, श्रेष्ठ, पृ. १९, पे. ३, जैदेना., ले.स्थल. रोहिरा, ले. मु. जीतविजय, पठ. श्रा. जयचन्द सामजी, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित, दशा वि. विवर्ण-पानी से अक्षरों की स्याही फैल गयी है, (२५४११.५, १२४३०). पे. १. स्नात्र पूजा, आ. मङ्गलसूरि, मागु., पद्य, वि. १३वी, (पृ. १-५आ), आदिः मुक्तालङ्कारविकारसार; अंतिः भविया पुजो एह ज देव. पे. २.९९ प्रकारी पूजा, पं. वीरविजय, मागु., पद्य, वि. १८८४, (पृ. ५आ-१३आ), आदिः श्रीशङ्खसर पासजी; अंतिः आतम आप ठवायो रे. पे. ३. नवपद उलाळा, गणि देवचन्द्र, मागु., पद्य, वि. १८वी, (पृ. १३आ-१९आ), आदिः तीर्थपति अरिहा नमुं; अंतिः देवचन्द्र शुसोभता. २१००.” अढारपापस्थानक, कुरगडुमुनि व अरणिकमुनि सज्झाय, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ६, पे. ३, जैदेना., पू.वि. अन्त के पत्र नहीं हैं., दशा वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है-, अक्षर फीके पड गये हैं, (२५४११, १६४३६). पे. १.१८ पापस्थानक निवारण सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मागु., पद्य, (पृ. १-६, संपूर्ण), आदिः पापस्थानक पहिलंअंतिः वाचकजस इम भाखेजी., पे.वि. १८ सज्झाय; प्र.पु. ग्रं.२११. पे. २. कुरगडुमुनि सज्झाय, मु. जिनहर्ष, मागु., पद्य, (पृ. ६आ, संपूर्ण), आदिः कुअरगडू मुनिवर नित; अंतिः थाज्यो ___ वार हजारोजी., पे.वि. गा.७. पे. ३. अरणिकमुनि सज्झाय, मागु., पद्य, (पृ. ६आ, अपूर्ण), आदिः अरहन्नो गयो गोचरी; अंति:-, पे.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. गाथा १ से ३ तक है. For Private And Personal Use Only Page #276 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य भाग - १ २२२ २१०१. नवस्मरण, पार्श्वजिन, बृहस्पति, शनीश्चर व नवग्रह स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ११, पे. ५, जैदेना., (२६४११.५, १३४४२). पे. १. नवस्मरण, आ. अनेक श्रुतस्थविर, प्रा.,सं., प+ग, (पृ. १आ-१०अ, प्रतिपूर्ण), आदिः नमो अरिहन्ताणं० हवइ; अंतिः जैनं जयति शासनम्., पे.वि. कल्याणमंदिर स्तोत्र नही है. पे. २. पार्श्वजिन चैत्यवन्दन, सं., पद्य, (पृ. १०अ-१०अ, संपूर्ण), आदिः ॐ नमः पार्श्वनाथाय; अंतिः मे वाञ्छितं नाथ., पे.वि. श्लो.५. पे.३.बृहस्पति स्तोत्र, सं., पद्य, (पृ. १०अ-१०अ, संपूर्ण), आदिः ॐ बृहस्पतिः; अंतिः सुप्रति सुप्रजायते., पे.वि. श्लो.५. पे. ४. शनिश्चर स्तोत्र, सं., पद्य, (पृ. १०आ-१०आ, संपूर्ण), आदिः यः पुरा राज्यभ्रष्टा; अंतिः वृद्धिं जयं कुरु., पे.वि. श्लो.११. पे. ५. ग्रहशान्ति स्तोत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, सं., पद्य, (पृ. १०आ-११अ, संपूर्ण), आदिः जगद्गुरुं नमस्कृत्य; अंतिः शान्तिविधि श्रुतम्., पे.वि. श्लो.११. २१०२. स्तवनचौवीसी, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १०, जैदेना., पृ.वि. अन्त के पत्र नहीं हैं. स्तवन-२० गा.५ तक है., (२५.५४१२.५, ११४३०). स्तवनचौवीसी, मु. रामविजय, मागु., पद्य, आदिः ओलगडी आदिनाथनी; अंति:२१०३. ऋषिमण्डल पूजा, व स्तोत्रलेखन विधि, संपूर्ण, वि. १८८१, श्रेष्ठ, पृ. ५, पे. ३, जैदेना., ले.स्थल. सुददंतिनगर, ले. मु. कमलसागर, दशा वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, (२४४१२, २५-२७४४८). पे. १. ऋषिमण्डल पूजा विधि, संबद्ध, सं., गद्य, (पृ. १आ-४आ), आदिः प्रणम्य श्रीजिनाधीशं; अंतिः जिनेभ्यो ददे मुदा., पे.वि. ग्रं.३८३. पे. २. ऋषिमण्डल स्तोत्र आलेखन विधि, आ. विबुधचन्द्रसूरि, सं., गद्य, (पृ. ४आ-५आ), आदिः वर्द्धमानमीशं; अंतिः दर्शनदिशश्च भवति. पे. ३. ऋषिमण्डल पूजा मन्त्र, संबद्ध, सं., गद्य, (पृ. ५आ), आदिः ॐ ह्राँ अरिहन्ताणं; अंतिः अणिमा सिद्धये स्वाहा. २१०४." भक्तामर स्तोत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५, जैदेना., ले. मु. सौम्यसागर, प्र.वि. मूल-श्लो.४४., टिप्पण युक्त विशेष पाठ, अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ, (२४४१०.५, ७४३६). भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुङ्गसूरि, सं., पद्य, आदिः भक्तामरप्रणतमौलिमणि; अंतिः समुपैति लक्ष्मी. भक्तामर स्तोत्र-टबार्थ , मागु., गद्य, आदिः भक्त जे अमर देवता; अंतिः आवइ लक्ष्मी देवता. २१०५. देवाधिदेव रचना, संपूर्ण, वि. १९४२, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदेना., ले.स्थल. कुजरावाले, ले. बेलीराम मिश्र, प्र.वि. गा.८५, संशोधित, पदच्छेद सूचक लकीरें-प्रारंभिक पत्र, (२५४१२, १५४४५). देवाधिदेव रचना, हरजसराय, हिन्दी, पद्य, वि. १८६०, आदिः सकल जगतपद परमपद पूरण; अंतिः प्रभु समता घणी. २१०६. स्तवन, सज्झाय व चैत्यवन्दन सङ्ग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १२-५(१ से ५)=७, पे. ५, जैदेना., (२३.५४११.५, ८x२७). पे. १. सिद्धचक्र स्तवन, मु. सुविधिविजय, मागु., पद्य, वि. १४१७, (पृ. ६अ-७अ, संपूर्ण), आदिः सकल सुरासुर सेवित; ___ अंति: सुविधिविजय सुविलास.,पे.वि. गा.११. पे. २. सिद्धचक्र स्तवन, वाचक भोजसागर, मागु., पद्य, (पृ. ७अ-८अ, संपूर्ण), आदिः सिद्धचक्र सुहामणो; अंतिः उत्तम अधिकारजी., पे.वि. गा.८. पे. ३. पे. नाम. श्रावक करणी सज्झाय, पृ. ८अ-८आ, संपूर्ण पौषध सज्झाय-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदिः मन्हजिणाणं आणं; अंतिः निच्चं सुगुरूवएसेणं., पे.वि. मूल गा.५. For Private And Personal Use Only Page #277 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir २२३ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची पे. ४. विहरमान २० जिन चैत्यवन्दन, मु. दीपविजय, मागु., पद्य, (पृ. ८आ-९आ, संपूर्ण), आदिः विहरमान ते जिनवर; अंतिः द्यो सुख सासता., पे.वि. गा.७ . पे. ५. नवपद स्तवन, मु. दानविजय, मागु., पद्य, वि. १७६२, (पृ. ९अ-१२अ, संपूर्ण), आदिः सकल कुशल कमलानो; अंतिः दानविजय जयकारा रे., पे.वि. गा.२३ प्र.पु. ग्रं.४०. २१०७. स्नात्रपूजा विधि, संपूर्ण, वि. १८७२, जीर्ण, पृ. १७, जैदेना., ले.स्थल. आबोरी, ले. पं. नन्दवर्धन, (२४४१२, १०x२२). स्नात्र पूजा, गणि देवचन्द्र, मागु., पद्य, आदिः (१) चोतिसे अतिसय (२) प्रथम हुन्ती सगली; अंतिः (१)कही सूत्र मझार (२)यथाशक्ति दान दीजै. २१०८. सिद्धाचल स्तवन, संपूर्ण, वि. १९२०, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना., ले.स्थल. नासिक, ले. पं. भाग्यविजय गणि (गुरु पं. जयविजय), प्र.वि. गा.१११, (२६४१२, ११४४४). शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. कल्याणसागरसूरि-शिष्य, मागु., पद्य, आदिः श्रीआदेश्वर अजरामर; अंतिः सुजसे जय सिरि. २१०९." भक्तामर स्तोत्र सह सुखबोधिका टीका, संपूर्ण, वि. १७२५, श्रेष्ठ, पृ. १०, जैदेना., प्र.वि. मूल-श्लो.४४., संशोधित, त्रिपाठ, पदच्छेद सूचक लकीरें, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२६४११, ३-५४३९). भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुङ्गसूरि, सं., पद्य, आदिः भक्तामरप्रणतमौलिमणि; अंतिः समुपैति लक्ष्मी. भक्तामर स्तोत्र-सुखबोधिका टीका, आ. अमरप्रभसूरि, सं., गद्य, आदिः किल इति सत्ये किलेति; अंतिः (१)विचित्रपुष्पाम् (२)शोध्यतामियम्. २११०. भक्तामर स्तोत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, जीर्ण, पृ. ८, जैदेना., प्र.वि. मूल-श्लो.४४., (२३.५४१०.५, ६x२९). भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुङ्गसुरि, सं., पद्य, आदिः भक्तामरप्रणतमौलिमणि; अंतिः समुपैति लक्ष्मी. भक्तामर स्तोत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, आदि: भक्तिवन्त जे देवता; अंतिः पामइ ते प्रतइ. २१११. स्तवनवीसी, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ८-१(७)=७, जैदेना., पू.वि. बीच व अन्त के पत्र नहीं हैं. स्तवन-१५ गा.२ से स्तवन-१६ गा.३ तक व अंतिम दो स्तवन नहीं है., (२७४१२.५, १२४३३). स्तवनवीसी, आ. ज्ञानविमलसूरि, मागु., पद्य, आदिः श्रीसीमन्धर साहिबा; अंति:२११२. स्तवनचौवीसी व कलियुग सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, पे. २, जैदेना., (२५.५४११, १५४३८). पे. १. पदचौवीसी,श्रा. विनयचन्द्र कुमट, मागु., पद्य, वि. १९०६, (पृ. १-६), आदिः श्रीआदिश्वर सामी हो; अंतिः __ महास्तुति पूरण करी., पे.वि. २४स्तवन. पे. २. कलियुग सज्झाय, प्राहिं., पद्य, (पृ. ६अ), आदिः ऐसा कलजुग आवैगा रे; अंतिः पुरस मन ध्यावैगा., पे.वि. गा.११. २११३. स्तवनचौवीसी, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १९-१(५)=१८, जैदेना., पू.वि. बीच व अन्त के पत्र नहीं हैं, शितलजिन स्तवन गा.२ तक है., (२५४१३, ७x१४). स्तवनचौवीसी, गणि देवचन्द्र, मागु., पद्य, वि. १८वी, आदिः ऋषभ जिणिन्दसु; अंति:२११४. साधुवन्दना व चारमङ्गल, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २४-७(१ से ७)=१७, पे. २, जैदेना., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२४x१०.५, ८४३३). पे. १. साधुवन्दना, ऋ. जेमल, मागु., पद्य, वि. १८०७, (पृ. -८अ, अपूर्ण), आदि:-; अंतिः जेमलजी एह तरणनो दाव., पे.वि. परिमाण गा.५६. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. गाथा १ से ५२ तक नहीं है. पे. २.४ मङ्गल रास, ऋ. जेमल, राज., पद्य, (पृ. ८आ-२४आ, संपूर्ण), आदिः अनन्त चोवीशीजिन नमुं: अंतिः इणमे न चले खोट., पे.वि. गा.११०, ढाळ-४. २११५.” भक्तामर स्तोत्र सह सुखबोधिका टीका, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, जैदेना., ले. पं. लक्ष्मीविजय, प्र.वि. मूल For Private And Personal Use Only Page #278 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य भाग - १ २२४ श्लो.४४., दशा वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है-अल्प, किनारी अधिक उपयोग के कारण खंडित है, (२१x११.५, १३४४५). भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुङ्गसूरि, सं., पद्य, आदिः भक्तामरप्रणतमौलिमणि; अंतिः समुपैति लक्ष्मी. भक्तामर स्तोत्र-सुखबोधिका टीका, आ. अमरप्रभसूरि, सं., गद्य, आदिः किल इति सत्ये किलेति; अंतिः विचित्रपुष्पाम्. २११६." वीरजिन स्तोत्र सह टीका, संपूर्ण, वि. १६४८, श्रेष्ठ, पृ. १०, जैदेना., ले. पं. जयमन्दिर (गुरु गणि नयकमल, खरतरगच्छ), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. मूल-गा.४४. प्र.वर्ष-वसुयुगरसरसावर्षे., संशोधित, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, पदच्छेद सूचक लकीरें, (२५.५४१०.५, १५४६५-७०). दुरियरयसमीर स्तोत्र, आ. जिनवल्लभसूरि, प्रा., पद्य, आदिः दुरिअरयसमीरं मोह; अंतिः सया पायप्पणामो तुह. दुरिअरयसमीर स्तोत्र-टीका , गणि साधुसोम, सं., गद्य, आदिः (१) वर्द्धयतु वर्द्धमानः (२) कीर्तयामि कथयामि कः; अंतिः (१)नामेति वृत्तार्थः (२)सदा वल्लभो जायतामिति. २११७." वीतराग स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १६वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, जैदेना., प्र.वि. अध्याय-२०, पदच्छेद सूचक लकीरें, (२६४११, १३४४१). वीतराग स्तोत्र, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, आदिः यः परात्मा परं; अंतिः फलमीप्सितम्. २११८." चतुर्विंशतिका स्तुति सह स्वोपज्ञ वृत्ति, पूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ९, जैदेना., प्र.वि. त्रिपाठ, पदच्छेद सूचक लकीरें, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. श्लो.२७ अपूर्ण तक है., (२५४११, २-३४३९). ३४ अतिशय स्तवन, सं., पद्य, आदिः स्वस्ति श्रीसुखदान; अंतिः ३४ अतिशय स्तवन-स्वोपज्ञ वृत्ति, सं., गद्य, आदिः (१) मनोज्ञमार्हतं ज्योति (२) अहमिति शेषः कर्तृपदं; अंति:२११९. कल्याणमन्दिर स्तोत्र सह वृत्ति, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदेना., प्र.वि. मूल-श्लो.४४., (२५.५४११, १५४६२). कल्याणमन्दिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकर, सं., पद्य, आदिः कल्याणमन्दिरमुदारमवद; अंतिः मोक्षं प्रपद्यन्ते. कल्याणमन्दिर स्तोत्र-टीका, आ. गुणरत्नसूरि, सं., गद्य, आदिः (१) तत्रेदमादिवृत्तद्वयं (२) श्रीपार्श्वजिनमानम्य; अंतिः सुगुरुप्रसादात्. २१२०. श्रीपाल चरित्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३२, जैदेना., पू.वि. प्रारंभ के पत्र हैं. प्रथम खंड गा.२२६ तक है., (२६४११.५, ५४३०). सिरिसिरिवाल कहा, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., पद्य, वि. १४२८, आदिः अरिहाइ नवपयाइं; अंति: सिरिसिरिवाल कहा-टबार्थ, मागु., पद्य, आदिः अरिहन्त आदि देई नवपद; अंति:२१२१.” भक्तामर स्तोत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, जैदेना.,प्र.वि. मूल-श्लो.४४., संशोधित, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, दशा वि. अक्षर फीके पड गये हैं, (२४x१०.५, ४४४१). भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुङ्गसूरि, सं., पद्य, आदिः भक्तामरप्रणतमौलिमणि; अंतिः समुपैति लक्ष्मी. भक्तामर स्तोत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः भक्त जे अमरदेवता; अंतिः करी प्रगटपणे कह्यो. २१२२. कल्याणमन्दिर स्तोत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८९८, श्रेष्ठ, पृ. १०, जैदेना., ले. मु. रितसागर, प्र.वि. मूल-श्लो.४४. प्र.पु. ग्रं. उभय-२३५., (२६x११, ४४३७)... कल्याणमन्दिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकर, सं., पद्य, आदिः कल्याणमन्दिरमुदारमवद; अंतिः मोक्षं प्रपद्यन्ते. कल्याणमन्दिर स्तोत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः मङ्गलिकनुं घर अनइं; अंतिः मोक्षनी पामी छइ. २१२३." दुण्ढियामत चर्चा, संपूर्ण, वि. १९३७, श्रेष्ठ, पृ. ९, जैदेना., ले.स्थल. पल्लिकानगर, ले. अमरदत्त ब्राह्मण, पठ. श्रा. तेजमाल (पिता श्रा. फौजमल),प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित, (२६४११.५, १५४६३). For Private And Personal Use Only Page #279 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir २२५ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ढुण्ढकमत प्रश्नोत्तर-स्थानकवासीमतनिरसन, मु. चनणविजय, हिन्दी, गद्य, वि. १९३५, आदिः अथ प्रश्नोत्तर; अंतिः प्रश्नस्य चोत्तरं. २१२४.” सङ्गति सज्झाय व समकित मिथ्यात्व विचार, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, प्र. ९-२(१,३)=७, पे. २, देना., पू.वि. बीच के पत्र हैं., दशा वि. विवर्ण-पानी से अक्षरों की स्याही फैल गयी है-अल्प, (२४.५४११.५, १३-१४४३७-४०). पे. १. सङ्गति सज्झाय, मागु., पद्य, (पृ. -२अ), आदि:-; अंतिः वारीय लखत कुविकार., पे.वि. गा.७. प्रथम पत्र नहीं पे. २. सम्यक्त्वमिथ्यात्वविचार ढाल, मागु., पद्य, (पृ. २-९-), आदिः चरण कमल जिनराजना; अंति:-, पे.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं. २१२५. प्रश्नोत्तर सङ्ग्रह तपागच्छ-खरतरगच्छ, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १०, जैदेना., (२५.५४१२.५, १४४२९-३२). प्रश्नोत्तर सङ्ग्रह-तपगच्छ खरतरगच्छ, मागु., गद्य, आदिः श्रावकनें इरियावही; अंतिः निश्चय छे ते जाणज्यो. २१२६. जिनप्रतिमा चर्चा, संपूर्ण, वि. १९०९, श्रेष्ठ, पृ. ७, जैदेना., ले.स्थल. लसकर, ले. पण्डित नेमचन्द्र, पठ. श्रा. वाघमल मागा, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. ग्रं. १५९, (२५४१३, १६x४२). जिनप्रतिमा चर्चा-मूर्तिपूजकमतमण्डन, मागु., गद्य, आदिः श्रीजिनप्रतिमा; अंतिः परे पूजा कीधी. २१२७. कवित सङ्ग्रह, अपूर्ण, वि. १६वी, मध्यम, पृ. ७, जैदेना., पू.वि. अन्त के पत्र नहीं हैं. कवित १ से ८८ तक है., (२६४११, ११४३९). कवित्त, कवि हेम, प्राहिं., पद्य, आदिः सुनय पोषहत दोष मोख; अंति:२१२८. नवपदतप विधि, सिद्धचक्रपूजन विधि व नवपद चैत्यवन्दनादि सङ्ग्रह, अपूर्ण, वि. १९३८, श्रेष्ठ, पृ. २३-११(१ से ११)=१२, पे. २०, जैदेना., पू.वि. बीच के पत्र हैं., (२७.५४१२.५, ९४३५-३६). पे. १. नवपदतप विधि, सं.,राज., गद्य, (पृ. -१२अ-१३अ, अपूर्ण), आदिः-; अंतिः चावलारो आम्बिल कीजे., पे.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. पे. २. नवपदआराधन विधि, मागु., गद्य, (पृ. १३अ-१८आ, संपूर्ण), आदिः आसो सुदि सातमी तथा; अंतिः वजावे आरति करे. पे. ३. नवपद चैत्यवदन, पाठक हीरधर्म, मागु., पद्य, (पृ. १८आ-१९अ, संपूर्ण), आदि: जयजय श्रीअरिहन्त; अंतिः हीरधर्म अलिसन्त., पे.वि. गा.३. पे. ४. अरिहन्तपद स्तवन, मु. कुशल, मागु., पद्य, (पृ. १९अ-१९आ, संपूर्ण), आदिः श्रीतेरम गुण बसिकै; अंतिः जगकुं ___ नित सेव., पे.वि. गा.५. पे. ५. अरिहन्तपद स्तुति, मागु., पद्य, (पृ. १९आ, संपूर्ण), आदिः द्रव्यपर्याय प्ररुपक; अंतिः आराधो गुण भुरोजी., पे.वि. गा.१. पे. ६. सिद्धपद चैत्यवन्दन, पाठक हीरधर्म, मागु., पद्य, (पृ. १९आ-२०अ, संपूर्ण), आदिः श्रीशैलेसी पूर्व; अंतिः वन्दे धरी शुभ भाव., पे.वि. गा.३. पे. ७. पे. नाम. सिद्धपद स्तवन, पृ. २०अ-२०आ, संपूर्ण पंचकल्याणक स्तवन, मु. कुशल, मागु., पद्य, आदिः अष्टवरस नगमा सहीये; अंतिः जगजीव मिलोगा तेहमे., पे.वि. गा.५. पे. ८. सिद्धपद स्तुति, मागु., पद्य, (पृ. २०आ, संपूर्ण), आदिः अष्ट करमकुं दमन; अंतिः केवलग्यानी भासीजी., पे.वि. गा.१. पे. ९. आचार्यपद चैत्यवन्दन, पाठक हीरधर्म, मागु., पद्य, (पृ. २०आ-२१अ, संपूर्ण), आदिः जिनपद कुल मुखरस अनिल; अंतिः अठ्ठोत्तरसो वार., पे.वि. गा.३. For Private And Personal Use Only Page #280 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य भाग - १ २२६ पे. १०. आचार्यपद स्तवन, मु. कुशल, मागु., पद्य, (पृ. २१अ, संपूर्ण), आदिः खन्ती खडगथी; अंतिः जीव कुशलता सेवो हो., पे.वि. गा.५. पे. ११. आचार्यपद स्तुति, मागु., पद्य, (पृ. २१अ-२१आ, संपूर्ण), आदिः पञ्चाचारकुं पालै; अंतिः आचारज गुण ध्यानीजी., पे.वि. गा.१. पे. १२. उपाध्यायपद चैत्यवन्दन, पाठक हीरधर्म, मागु., पद्य, (पृ. २१आ, संपूर्ण), आदिः धन धन श्रीउवज्झाय; अंतिः वन्दे पाठकवर्य., पे.वि. गा.३. पे. १३. उपाध्यायपद स्तवन, मु. कुशल, मागु., पद्य, (पृ. २१आ-२२अ, संपूर्ण), आदिः हुयने हुयने; अंतिः चेतन कुशलता पाय., पे.वि. गा.५. पे. १४. उपाध्यायपद स्तुति, मागु., पद्य, (पृ. २२अ-२२आ, संपूर्ण), आदिः अङ्ग इग्यारे; अंतिः पाठक पूजो अविकारीजी., पे.वि. गा.१. पे. १५. साधुपद चैत्यवन्दन, पाठक हीरधर्म, मागु., पद्य, (पृ. २२आ, संपूर्ण), आदिः दंसण नाण चरित्त करी; अंतिः हीरधर्म के काज., पे.वि. गा.३. पे. १६. साधुपद स्तवन , मु. कुशल, मागु., पद्य, (पृ. २२आ-२३अ, संपूर्ण), आदिः निकषाया जगजन; अंतिः भवतु जगती वहो., पे.वि. गा.५. पे. १७. साधुपद स्तुति, मागु., पद्य, (पृ. २३अ, संपूर्ण), आदिः सुमति गुपति कर; अंतिः पद गुण उपजावैजी., पे.वि. गा.१. पे. १८. दर्शनपद चैत्यवन्दन, पाठक हीरधर्म, मागु., पद्य, (पृ. २३अ-२३आ, संपूर्ण), आदिः हुय पुग्गल परिअछ; अंतिः अहनिश करत प्रणाम., पे.वि. गा.३. पे. १९. दर्शनपद स्तवन, मु. कुशल, मागु., पद्य, (पृ. २३आ, संपूर्ण), आदिः देव श्रीजिनराज; अंतिः जीव लाभै कुसल कलारी., पे.वि. गा.५.. पे. २०. दर्शनपद स्तुति, मागु., पद्य, (पृ. २३आ-, अपूर्ण), आदिः जिनपन्नत तत्त सुधा; अंति:-, पे.वि. अंत के पत्र नहीं २१६१. विचार सङ्ग्रह सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८८८, श्रेष्ठ, पृ. ५१, पे. ३, जैदेना., ले.स्थल. मालेगाँव, ले. पं. रङ्गसागर गणि, दशा वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है-, अक्षर फीके पड गये हैं, (२४४११, १३४४७). पे. १. पे. नाम. ईर्यापथिकी कुलक सह टबार्थ., पृ. १-२आ इरियावही कुलक, प्रा., पद्य, आदिः चउदस पय अडचत्ता; अंतिः रे जीव निच्चंपि. इरियावही कुलक-टबार्थ, मागु., गद्य, आदि: चौदह नारकी ४८; अंतिः जीव ताहरो उद्धार थाइ., पे.वि. मूल गा.१२. पे. २. पे. नाम. पौषध कुलक सह टबार्थ., पृ. ३अ-४आ पौषध कुलक, आ. जिनकीर्तिसूरि, प्रा., पद्य, आदिः बत्तीसदीवससहस्सा; अंतिः धम्मम्मि उजमहो. पौषध कुलक-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः हवे सो वर्षनो ३६; अंतिः विषे उद्यम करो., पे.वि. मूल-गा.१६. पे. ३. पे. नाम. सामायिक के ३२ दोष आदि विविधविचार सङ्ग्रह सह टबार्थ, पृ. ४आ-५१अ विचार सङ्ग्रह', सं.,प्रा., गद्य, आदिः#; अंतिः#. विचार सङ्ग्रह-टबार्थ, मागु., गद्य, आदि:#; अंतिः#., पे.वि. विविध विषयों का संग्रहरूप होने से आदि अंतिमवाक्य नहीं भरा है. २१६२. जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ८५-५३(१ से ५३)=३२, जैदेना.,प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, पू.वि. बीच के पत्र हैं., दशा वि. विवर्ण-पानी से अक्षरों की स्याही फैल गयी है-अल्प, (२४४१३, ७४३८). जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति, प्रा., गद्य, आदिः-; अंतिः For Private And Personal Use Only Page #281 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra २२७ www.kobatirth.org: , जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति-टवार्थ मागु, गद्य, आदि:- अंति २१६३. व्याख्यान सङ्ग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ५०, जैदेना., पू.वि. अन्त के पत्र नहीं हैं., ( २४.५X१२, १३x४०). व्याख्यान सङ्ग्रह, से, प्रा. मागु, पद्य, आदि दानं दुर्गतिनाशाय अति: " Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २१६४.” ज्ञाताधर्मकथाङ्गसूत्र सह टवार्थ, अपूर्ण, वि. १७वी जीर्ण, पृ. २९१-४९ (२०,१३८ से १६८, १९६,२०१,२२७, २३५,२४४ से २५२,२५६,२५८ से २५९,२६२ ) + ८ (१९.२४, ११९,२२५ से २२६,२२८, २३० से २३१ ) - २५०, जैदेना. प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, पू. वि. बीच-बीच व अन्त के पत्र नहीं हैं., ( २६११, ५४४४). ज्ञाताधर्मकथाङ्गसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदिः-; अंतिः ज्ञाताधर्मकथाङ्गसूत्र-टबार्थ *, मागु., गद्य, आदि:-; अंतिः २१६५.* गोराबादल चौपाई, पूर्ण, वि. १७९९, मध्यम, पृ. ३६-२(२ से ३ ) -३४, जैदेना. ले. गणि जयसौभाग्य ( गुरु गणि मसौभाग्य), प्र.वि. गा. ९१०, पू. वि. गाथा १२ से ५७ तक नहीं है., दशा वि. खंडित भाग पर कागज चिपकाए हुए हैं - अक्षरों की स्याही फैल गयी है, (२५.५X११, १६x४२). गोराबादल चौपाई, आ. हेमरत्नसूरि, मागु., पद्य, वि. १६४७, (संपूर्ण), आदि: सुखदाता सङ्खसरो; अंतिः कुम्भलमेर मझार. (+) २१७०. सिन्दूरप्रकर सह टवार्थ, संपूर्ण, वि. १८३६, मध्यम, पृ. १६ जैदेना. ले. स्थल आऊआनगर, ले. मु. क्षमासौभाग्य (गुरु गणि रामसौभाग्य). प्र. वि. मूल श्लो. १००., पदच्छेद सूचक लकीरें, अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, दशा वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, प्र.ले. श्लो. (१४१) यादशं पुस्तकं कृत्वा, (२५x११.५, ६x४२). सिन्दूरप्रकर, आ. सोमप्रमसूरि, सं. पद्य, आदि सिंदूरप्रकरस्तप: अंतिः सूक्तमुक्तावलीयम्. सिन्दूरप्रकर-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः ग्रन्थकर्ता ग्रन्थरं; अंतिः नाश प्रते पामइ. " २१७१. ." निरयावलियादिपञ्चोपाङ्ग सूत्र, संपूर्ण, वि. १७२३, मध्यम, पृ. २३, पे. ५, जैदेना., प्र. वि. प्र. पु- सर्वग्रंथाग- ११०० साधिका प्रतिलेखन पुष्पिका अस्पष्ट है, संशोधित (२६४११, १५४५८). पे. १. पे. नाम. कल्पिकासूत्र, पृ. ०१-१०अ कल्पिकासूत्र, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं तेणं०; अंतिः वरं मायातो सरिसणामाओ., पे.वि. १० अध्ययन. पे. २. पे. नाम. कल्पावतंसिकासूत्र, पृ. १०अ १०आ कल्पावतंसिकासूत्र प्रा., गद्य, आदि जइ णं भन्ते समणेणं० अंतिः वा महाविदेहे सिद्धे, पै. वि. १० अध्ययन. पे. ३. पे. नाम. पुष्पिकासूत्र, पृ. १०आ - १९आ पुष्पिकासूत्र, प्रा., गद्य, आदिः जइ णं भन्ते समणेणं०; अंतिः चेइयाइं जहा संगहणीए., पे. वि. १० अध्ययन. पे. ४. पे नाम. पुष्पचूलिकासूत्र, पृ. १९आ-२१अ पुष्पचूलिकासूत्र, प्रा., गद्य, आदिः जइ णं भंते समणेणं०; अंतिः हे वासे सिज्झिहिंति., पे.वि. १० अध्ययन. पे. ५. पे नाम वृष्णिदशासूत्र, पृ. २१-२३आ वृष्णिदशासूत्र, प्रा., गद्य, आदि: जइ णं भंते० पंचमस्स; अंतिः मइरित्त एक्कारससु वि., पे.वि. १२ अध्ययन. २१७२. वसुधारा स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १८९४, श्रेष्ठ, पृ. ७, जैदेना., ले. स्थल. कुंडलपुरनगर, ले. मु. लावण्यकुशल, (२७X१२, १२४३३). वसुधारा, सं., गद्य, आदि: संसारद्वयदैन्यस्य अंतिः वृद्धयः सम्पद्यते, २१७४. वैद्यवल्लभ सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७६६, मध्यम, पृ. १०, जैदेना., ले. स्थल. राहोलीग्राम, ले. ऋ. नाथाजी, प्र. वि. मूलश्लो. ३२६, अध्याय-८ विलास. (२६.५४११, ८४५६), वैद्यवल्लभ, मु. हस्तिरुचि, सं., पद्य, वि. १७२६, आदि: सरस्वतीं हृदि; अंतिः गर्दभ अश्वसमानयुता. वैद्यवल्लभ-टबार्थ, राज, गद्य, आदि: सरस्वती माता हृदय; अंतिः रोगांरी उत्पति कही. For Private And Personal Use Only Page #282 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य भाग १ - www.kobatirth.org: २१७६. आठकर्मनी १५८ प्रकृति विचार, संपूर्ण, वि. १८७५, मध्यम, पृ. ६, जैदेना., ( २८.५x१२, १२X४३). ८ कर्म १५८ प्रकृति विचार, मागु., गद्य, आदिः आठ कर्म ते केहा; अंतिः नामकर्म भेद जाणवा २१७५. दशवैकालिक सज्झाय सङ्ग्रह, संपूर्ण, वि. १८९३, मध्यम, पृ. ६, जैदेना., प्र. वि. अध्याय- १०, ( २७१२.५, ११३१). दशवैकालिकसूत्र-सज्झाय, मु. जैतसी, संबद्ध, मागु., पद्य, वि. १७१७, आदिः धर्ममङ्गल महिमा ; अंतिः सदाजी जयतसी जयजय रंग. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २१७७. नेमिजिन विवाहलो, संपूर्ण वि. १८वी, मध्यम, पृ. १९ जैदेना. प्र. वि. डाळ- ४६, (२५.५४११.५, ११४४१). " " नेमिजिन विवाहलो, मु. ब्रह्म, मागु., पद्य, आदि सारद सार दया करे; अंतिः एह सयल अधिकार. २१७८." षट्पञ्चाशिका, भुवनदीपक व मासफल, संपूर्ण, वि. १७९६, मध्यम, पृ. १२, पे. ३, जैदेना., ले. स्थल. घाणेराव नगर, ले. गणि सुबुद्धिविजय ( वृद्धितपगच्छ ). प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ (२६४१०.५, १५४५१), " पे. १. षट्पञ्चाशिका, भट्टोत्पल, सं., पद्य, (पृ. १-७आ), आदिः ज्ञर्किद्रुश्रुक्र; अंतिः जातिश्च लग्नपात्., पे. वि. अध्याय ५. पे. २. भुवनदीपक आ. पद्मप्रभसूरि सं पद्य वि. १३पू (पृ. ७आ-१२ आ), आदि सारस्वतं नमस्कृत्य; अंतिः · " " श्रीपद्मप्रभुसूरिभिः, पे.वि. श्लो. १७०. पे. ३. ज्योतिष *, सं., मागु., पद्य, (पृ. १२आ), आदिः #; अंतिः#. २१७९. पञ्चमी स्तवन, संपूर्ण, वि. १८६६, मध्यम, पृ. १८ - १२(१ से १२ ) = ६, जैदेना., ले. स्थल. समी, ले. मु. हर्षसागर, पठ. श्राविका तुलछां, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. ढाळ-६, ( २६४१२, १०x२९). ज्ञानपंचमीपर्व स्तवन, पं. जिनविजय, मागु पद्य वि. १७९३ आदिः सुत सिद्धारथ भूपनो अंतिः सकल भवि मङ्गल करे. (+) (+4) २१८०. करणकुतुहल की गणककुमुदकौमुदी टीका, प्रतिपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ८, जैदेना. ले. मु. गणपतविजय, प्र. वि. अक्षर- सूक्ष्म- टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पार्श्व रेखा लाल, १+२ पू.वि. २ अधिकार तक है, दशा वि. विवर्ण अक्षरों की स्याही फैल गयी है- अल्प (२६४१२, २३४५२) " करणकुतूहल- गणककुमुदकौमुदी टीका, गणि सुमतिहर्ष, सं., गद्य वि. १६७८, आदि: शम्मुस्वयम्भुवमहं अंति: २१८१. प्रतिक्रमणसूत्र सङ्ग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६, जैदेना., (२७४१२, १३४३८). देवसिराईप्रतिक्रमणसूत्र- तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा. सं., मागु., प+ग, आदिः नमो अरिहन्ताणं; अंतिः जैनं जयति शासनम्. २१८२. जीवविचार सह टवार्थ, संपूर्ण वि. १८७० श्रेष्ठ, पृ. ११-१ (९) + १ (८) =११, जैदेना. ले. स्थल सांडेरावनगर, ले. पं. .. सुखसागर ( तपगछ), प्र. वि. मूल-गा. ५१, टिप्पण युक्त विशेष पाठ (२४.५४१२ ३-७X२९-३४). २२८ जीवविचार प्रकरण, आ. शान्तिसूरि, प्रा., पद्य, आदिः भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंतिः रुद्दाओ सुयसमुद्दाओ. जीवविचार प्रकरण-टबार्थ *, मागु., गद्य, आदिः त्रिभुवनउ प्रकाशक: अंतिः सिद्धान्तनु लेइने.. २१८३. स्तवनचौवीसी, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ११, जैदेना., प्र. वि. अध्याय- २४ स्तवन, (२५४११.५, १२X४१). स्तवनचौवीसी, मु. जिनेन्द्रसागर, मागु., पद्य, आदिः आदीसर सुखकारी हो; अंतिः उत्तम एहवी वाणी रे.. " २१८४. स्तवनचौवीसी, अपूर्ण, वि. १८२१, मध्यम, पृ. ६- १ ( ४ ) = ५, जैदेना., ले. स्थल. कांनपुरा, ले. मु. गुणपतविजय, प्र. वि. अध्याय- २४ स्तवन., पू. वि. स्तवन- १३ गा. ३ से स्तवन - १६ गा. ५ तक नहीं है., (२५x११.५, १५x४५). स्तवनचौवीसी, मु. कवियण मागु, पद्य, आदि: साहिबा वालेसर अरिहन: अंतिः निसाण वजाव्या रे. २१८५. इकवीसठाणा व पार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १८६८, मध्यम, पृ. ६, पे. २, जैदेना., ले. स्थल. सांडेरानगर, ले. श्री. रुप, ( २४.५x११, ९४३८ ) . For Private And Personal Use Only पे. १. एकविंशतिस्थान प्रकरण, आ. सिद्धसेनसूरि प्रा. पद्य (पृ. १-६ ) आदि चवण विमाणा नयरी: अंतिः असेस साहारणा भणिया, पे.वि. गा. ६८. Page #283 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir २२९ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची पे. २. पार्श्वजिन स्तवन , मु. लाभउदय, मागु., पद्य, (पृ. ६आ), आदिः उठोनी मेरे आतमराम; अंतिः वरतु सदा बधाइ रे., पे.वि. गा.५. २१८६." क्षेत्रसमास विचार, संपूर्ण, वि. १८८०, मध्यम, पृ. ३३, जैदेना.,प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-प्रथम पत्र, दशा वि. अक्षर फीके पड गये हैं, (२३४११, १२४३२). क्षेत्रसमास विचार, मागु., गद्य, आदिः हवे कांइएक बोल; अंतिः शास्त्रथी जाणवो. २१८७." श्रीपाल रास - खण्ड २ से ३, प्रतिअपूर्ण, वि. १८१८, मध्यम, पृ. ४२-१९(१ से १९)=२३, जैदेना.,प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, पू.वि. प्रथम खंड नहीं है., (२७४१३.५, ११४३०). श्रीपाल रास, उपा. विनयविजय , उपा. यशोविजयजी गणि, मागु., पद्य, वि. १७३८, आदि:-: अंतिः२१८८. कल्पसूत्र सह टबार्थ व व्याख्यान+कथा, संपूर्ण, वि. १८३०, मध्यम, पृ. १६८, जैदेना., ले.स्थल. सागवाडानगर(वागड, ले. मु. खुशालसागर-शिष्य (गुरु मु. खुशालसागर), प्र.वि. मूल-ग्रं. १२१६,९-व्याख्यान., संशोधित, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२५.५४१२, ६x२८). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदिः णमो अरिहन्ताणं० पढमं; अंतिः उवदंसेइ त्ति बेमि. कल्पसूत्र-टबार्थ , मागु., गद्य, आदिः अरिहन्तनइ माहरो; अंतिः#. कल्पसूत्र-व्याख्यान+कथा* , मागु., गद्य, आदिः#; अंतिः#. २१८९. कल्पसूत्र सह टबार्थ व व्याख्यान+कथा व्याख्यान १-८, प्रतिअपूर्ण, वि. १९२९, श्रेष्ठ, पृ. १४०-१(१)=१३९, जैदेना., ले.स्थल. पालिताणा, ले. पं. हमीरविजय, प्र.वि. मूल-ग्रं. १२१६, ९-व्याख्यान., (२६.५४११.५, ६४३७). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदिः णमो अरिहन्ताणं० पढमं; अंतिःकल्पसूत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः अरिहन्तनइ माहरो; अंति: कल्पसूत्र-व्याख्यान+कथा* , मागु., गद्य, आदिः-; अंति:२१९३." बृहत्सङ्ग्रहणी, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १५, जैदेना., प्र.वि. गा.४१७, संशोधित, (२६४१२, १३४५०). बृहत्सङ्ग्रहणी, आ. चन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदिः नमिउं अरिहन्ताइं; अंतिः जा वीरजिण तित्थं. २१९५." जीवविचार सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ६, जैदेना., ले.स्थल. आसोप, ले. मु. गुमानहंस, प्र.वि. मूल गा.५१., टिप्पण युक्त विशेष पाठ, प्र.ले.श्लो. (१४१) यादशं पुस्तकं कृत्वा, (२५x१०.५, ५४३१). जीवविचार प्रकरण, आ. शान्तिसूरि, प्रा., पद्य, आदिः भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंति: रुद्दाओ सुयसमुद्दाओ. जीवविचार प्रकरण-टबार्थ', मागु., गद्य, आदिः त्रिभुवनउ प्रकाशक; अंतिः सिद्धान्तनु लेइने. २१९७.” ठाणाङ्गसूत्र सह टीका, संपूर्ण, वि. १६६७, श्रेष्ठ, पृ. २७४, जैदेना., ले.स्थल. फलवर्द्धिनगर, प्र.वि. मूल-१०स्थान; प्र.पु. मूल-१४५००; टीका-१०स्थान., संशोधित, (२५४१०.५, १५४५८). स्थानाङ्गसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदिः सुयं मे आउसं तेणं; अंतिः अणन्ता पण्णत्ता. स्थानाङ्गसूत्र-टीका, आ. अभयदेवसूरि , सं., गद्य, वि. ११२०, आदिः श्रीवीरं जिननाथं; अंतिः टीकाल्पधियोपि गम्या. २१९८. उत्तराध्ययनसूत्र, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ६१, जैदेना., प्र.वि. ३६अध्ययन, (२४४१२, १५४३८). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध , प्रा., प+ग, आदिः सञ्जोगाविप्पमुक्कस्स; अंतिः (१)सम्मए त्ति बेमि (२)पुत्वरिसी एव भासन्ति. २१९९. अन्तगडदशाङ्गसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६३, जैदेना.,प्र.वि. मूल-ग्रं. ८९९,अध्याय-९२., (२४४१२.५, ७४३४). अन्तकृद्दशाङ्गसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदिः तेणं कालेणं० चम्पा०; अंतिः अयमढे पण्णत्ते. अन्तकृद्दशाङ्गसूत्र-टबार्थ , मागु., गद्य, आदिः ते० तेणे काले ते०; अंतिः ए अर्थ कह्यो. २२००." चातुर्मासिक व्याख्यान, संपूर्ण, वि. १८८६, मध्यम, पृ. १७, जैदेना., ले.स्थल. फलवर्द्धिनगर, ले. मु. उमेदविजय, For Private And Personal Use Only Page #284 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य भाग - १ २३० प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-प्रारंभिक पत्र, दशा वि. बटकने योग्य, विवर्ण-पानी से अक्षरों की स्याही फैल गयी है अल्प, (२५.५४११, १३४४२). चातुर्मासिक व्याख्यान, ऋ. सुरचन्द्र, सं.,प्रा.,मागु., गद्य, आदिः प्रणम्य श्रीमहावीरं; अंतिः जैनं जयति शासनम्. २२०१. भले का अर्थ, संपूर्ण, वि. १८८४, मध्यम, पृ. ५, जैदेना., ले. मु. सुमतिसौभाग्य, दशा वि. विवर्ण-पानी से अक्षरों की स्याही फैल गयी है, (२५४११, १२४३१). महावीरजिन प्रश्नोत्तर-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः अथ प्रभु निसाले बेठा; अंतिः भेलजै जिम मङ्गलमाहा. २२०२. बृहत्शान्ति सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना., (२५४११, ५४३२). बृहत्शान्ति स्तोत्र-तपागच्छीय, सं., गद्य, (संपूर्ण), आदिः भो भो भव्याः श्रृणुत; अंति: जैनं जयति शासनम्. बृहत्शान्ति स्तोत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, (पूर्ण), आदिः भो भो भव्य जीवो; अंति:२२०३.” सम्बोधसत्तरी सह टीका, संपूर्ण, वि. १७४९, मध्यम, पृ. ६, जैदेना., प्र.वि. मूल-गा.७७., (२६४१०.५, ६x४६). सम्बोधसप्ततिका, आ. जयशेखरसूरि, प्रा., पद्य, आदिः नमिऊण तिलोअगुरुं; अंतिः लहई नत्थि सन्देहो. सम्बोधसप्ततिका-छाया, सं., गद्य, आदि: नत्वा त्रिलोक्यगुरुं; अंतिः स लभते नैवात्रसंशयः. २२०४. चैत्रीपुनम देववन्दन विधि, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, जैदेना., (२६४१३, ११४४०). चैत्रपूर्णिमा देववन्दन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मागु., पद्य, आदिः तिहां प्रथम प्रतिमा; अंतिः धर्म शर्म घरि आवी रे. २२०५.* जीवविचार प्रकरण सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५, जैदेना.,प्र.वि. मूल-गा.५१., टिप्पण युक्त विशेष पाठ, दशा वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, (२६.५४१२, ६४३६). जीवविचार प्रकरण, आ. शान्तिसूरि, प्रा., पद्य, आदिः भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंति: रुद्दाओ सुयसमुद्दाओ. जीवविचार प्रकरण-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः स्वर्ग मर्त्य पाताल; अंतिः जे समुद्र तेह थकी. २२०७." सङ्ग्रहणीसूत्र सह बालावबोध, पूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ३९-२(२० से २१)=३७, जैदेना., प्र.वि. मूल-गा.३४९; बालावबोध-ग्रं. १७५७., संशोधित, पू.वि. गाथा १२६ अपूर्ण से १५० तक नहीं है., (२५४११.५, १५४५६). बृहत्सङ्ग्रहणी, आ. चन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: नमिउं अरिहन्ताइं; अंतिः सन्नि गईरागई वेए. बृहत्सङ्ग्रहणी-बालावबोध, गणि दयासिंह, मागु., गद्य, वि. १४९७, आदिः नत्वा श्रीवीरजिनं; अंतिः एह बालावबोध रचिउ. २२०८. चन्दकेवली रास, संपूर्ण, वि. १७९३, मध्यम, पृ. ६६, पे. २, जैदेना., ले. पं. वृद्धिविजय (गुरु पं. नेमविजय), प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, दशा वि. अक्षर फीके पड गये हैं, (२७X११.५, १८४४४). पे. १. चन्द्रराजा रास, मु. मोहनविजय, मागु., पद्य, वि. १७८३, (पृ. १-६६अ), आदिः प्रथम धराधव तीम; अंतिः वर्णव्या गुण चन्दना., पे.वि. ४उल्लास,ढाळ१०८. पे. २. चन्द्रराजादसभव वर्णन, मागु., गद्य, (पृ. ६६अ), आदिः चन्दराजा ते १ रूपमति; अंतिः आगलि कह्या छै. २२११." सत्तरिसयठाण यन्त्र, संपूर्ण, वि. १८९९, मध्यम, पृ. १२, जैदेना., ले.स्थल. मूमासर, ले. पं. गोधु, प्र.वि. *पंक्ति-अक्षर अनियमित है।, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२६४१२४). सप्ततिशतस्थान प्रकरण-यन्त्र, मागु., कोष्टक, आदिः#; अंतिः#. २२१२. रामविनोद व नाडीपरिक्षा(वैद्यक), पूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २४-२(१,४)=२२, पे. २, जैदेना., ले.स्थल. सरसा, ले. पं. सभाचन्द,प्र.वि. पृष्ठ दो का आधा भाग ही है।, दशा वि. विवर्ण-पानी से-काल प्रभाव से -अक्षरों की स्याही फैल गयी है-अक्षर फीके पड गये हैं, (२५.५४१०.५, १७४४८). पे. १. रामविनोद, पं. रामचन्द्र गणि, मागु., पद्य, वि. १७२०, (पृ. -२अ-२३अ, पूर्ण), आदि:-; अंतिः लगि मेरु दिणन्द., पे.वि. ७ समुद्देश; प्र.पु. ग्रं.३३२५. प्रारंभ व बीच के पत्र नहीं हैं. For Private And Personal Use Only Page #285 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir २३१ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची पे. २. नाडीपरीक्षा, पं. रामचन्द्र गणि, मागु., पद्य, (पृ. २३अ-२४आ, संपूर्ण), आदिः सुभमति सरसति समरियै; अंतिः एह कही रामचन्दही. २२१३." भक्तामर स्तोत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७२४, मध्यम, पृ. ६, जैदेना., प्र.वि. मूल-श्लो.४४., टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२३४१०, ७४४४-४५). भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुङ्गसूरि, सं., पद्य, आदिः भक्तामरप्रणतमौलिमणि; अंतिः समुपैति लक्ष्मी. भक्तामर स्तोत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः भक्त जे अमरदेवता; अंतिः मानतुङ्गाचार्य. २२१४. स्तवनचौवीसी, पूर्ण, वि. १८७९, मध्यम, पृ. १०-१(८)=९, जैदेना., ले.स्थल. सिवाणा, ले. मु. वगतसागर (गुरु पं. विवेकसागर), पठ. मु. भोपतसागर (गुरु पं. विवेकसागर), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. अध्याय-२४स्तवन, पू.वि. स्तवन १९ गाथा ३ से स्तवन २१ गाथा ६ तक नहीं है., (२५.५४११, १३४४२). स्तवनचौवीसी, मु. मोहनविजय, मागु., पद्य, (संपूर्ण), आदिः प्रथम तीर्थङ्कर; अंति: वसीयो तु विसवावीस रे. २२१५.” स्तवनचौवीसी, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५, जैदेना.,प्र.वि. अध्याय-२४ स्तवन, दशा वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, (२४.५४११, १४४४३). स्तवनचौवीसी, मु. दानविजय, मागु., पद्य, आदिः मङ्गल वेलि वधारवा; अंतिः दानविजय जयकार. २२१६. स्तवनचौवीसी, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ६, जैदेना., प्र.वि. अध्याय-२४ स्तवन, (२५.५४११.५, १५४४५). स्तवनचौवीसी, आ. ज्ञानविमलसूरि, मागु., पद्य, आदिः आदिकरण अरिहन्तजी; अंतिः अखय अनन्त सुख पावइ. २२१९." जीवविचार सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८०५, मध्यम, पृ. ७, जैदेना., ले.स्थल. सिवपुरि, ले. गणि रामचन्द्र (गुरु गणि विजयचन्द्र), पठ. गोविन्दचन्द्र, प्र.वि. मूल-गा.५१., टिप्पण युक्त विशेष पाठ, दशा वि. विवर्ण-अक्षरों की स्याही फैल गयी है, (२५४१०, ४४३५). जीवविचार प्रकरण, आ. शान्तिसूरि, प्रा., पद्य, आदिः भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंतिः रुद्दाओ सुयसमुद्दाओ. जीवविचार प्रकरण-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः त्रिभुवनमांहि प्रदीप; अंतिः सिद्धान्तनउ लेइनइ. २२२१. भुवनदीपक सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १५, पे. २, जैदेना., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२५.५४११.५, ७X४६). पे. १. पे. नाम. भुवनदीप सह टबार्थ, पृ. १अ-१५आ भुवनदीपक, आ. पद्मप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३पू, आदिः सारस्वतं नमस्कृत्य; अंतिः श्रीपद्मप्रभुसूरिभिः. भुवनदीपक-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः सरस्वति सबन्धियो गह; अंतिः आचार्ये कह्यो छई., पे.वि. मूल-श्लो.२०८. पे. २. महावीरजिन जन्मपत्रिका, सं., गद्य, (पृ. १५आ), आदिः गतकलि संवत युग २६९; अंतिः उल्लापने वर्द्धमानः. २२२३. कल्याणमन्दिर सह बालावबोध, पार्श्वजिन स्तवन, काया स्वाध्याय व षोडशश्रृङ्गार, अपूर्ण, वि. १८०७, मध्यम, पृ. ११-४(१ से ४)=७, पे. ४, जैदेना., ले.स्थल. जेसलमेर, ले. पं. हेमसागर, पठ. मु. ऋषभसागर, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, दशा वि. विवर्ण-पानी से अक्षरों की स्याही फैल गयी है, फफूंदग्रस्त, (२५४११, १५४४४). पे. १. पे. नाम. कल्याणमन्दिर सह बालावबोध, पृ. -५-११, अपूर्ण कल्याणमन्दिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकर, सं., पद्य, आदि:-; अंतिः मोक्षं प्रपद्यन्ते. कल्याणमन्दिर स्तोत्र-बालावबोध*, मागु., गद्य, आदिः-; अंतिः (१)आचार्य पाटेधर हुआ (२)छे मल समूह जेहनो., पे.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. श्लो.१ से १६ तक नहीं है. पे. २. कायाअनित्यता पद, मु. जिनहर्ष, हिन्दी, पद्य, (पृ. ११अ, संपूर्ण), आदिः काहे काया रूप देखी; अंतिः होती सनतकुमार की., पे.वि. गा.१. For Private And Personal Use Only Page #286 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य भाग - १ २३२ पे. ३. पार्श्वजिन स्तवन-श्रृङ्खलाबन्ध, मु. जैनचन्द्र, सं., पद्य, (पृ. ११आ, संपूर्ण), आदिः सर्वदेवसेवितपदपद्म; अंतिः ____ मुक्तालतावाङ्मदे., पे.वि. श्लो.७ . पे. ४.१६ शृङ्गार नाम, सं., पद्य, (पृ. ११आ, संपूर्ण), आदिः आदौ मज्जनं चारुचीरं; अंतिः श्रृङ्गारका षोडशकाः., पे.वि. श्लो.१. २२२५. अभिधानचिन्तामणि नाममाला - काण्ड १ से २, प्रतिपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १५, जैदेना., प्र.वि. संशोधित, दशा वि. बटकने योग्य-अक्षरों की स्याही फैल गयी है, (२५४११, १२४३९). अभिधानचिन्तामणि नाममाला, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, आदिः प्रणिपत्यार्हतः; अंति:२२२६. योगप्रदीप सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २३, जैदेना.,ले. मु. शान्तिविमल (गुरु पण्डित शान्तिविमल, तपागच्छ), प्र.वि. मूल-श्लो.१४३., (२९x१२, ४४३१). योगप्रदीप, सं., पद्य, आदिः यावन्न ग्रस्यते; अंतिः ब्रह्म परमं पदम्. योगप्रदीप-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः जिहा लगइ रोग व्यापे; अंतिः ते ब्रह्मपद जाण तुं. २२२८." नवस्मरण, प्रतिपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १६, जैदेना.,ले. मु. वीरविजय, प्र.वि. अशुद्ध पाठ, पू.वि. आठ स्मरण है. कल्याणमंदिर स्तोत्र नही है., (२४४१२.५, १०-११४२९). नवस्मरण, आ. अनेक श्रुतस्थविर, प्रा.,सं., प+ग, आदि: नमो अरिहन्ताणं० हवइ; अंतिः जैनं जयति शासनम्. २२२९." भीमकुमार कथा, संपूर्ण, वि. १९६१, श्रेष्ठ, पृ. ८, जैदेना., ले. धनसुखराम बेचरदास, प्र.वि. श्लो.२५२, संशोधित, (२८.५४१३.५, १५४५१). भीमकुमार कथा, सं., पद्य, आदिः कपिशीर्षकदलकलितं; अंतिः भावित जैनमतः सदा. २२३०. प्रतिक्रमणसूत्र सङ्ग्रह, पूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १०-१(१)=९, जैदेना., (२६४१३, १२४३७). प्रतिक्रमणसूत्र सङ्ग्रह-श्वे.मू.पू.*, संबद्ध, प्रा.,सं.,मागु., प+ग, (अपूर्ण), आदिः-; अंतिः जैन जयति शासनम्. २२३१. वीसस्थानक पूजा व विधि, संपूर्ण, वि. १८५८, मध्यम, पृ. ९, पे. २, जैदेना., ले.स्थल. सूरत, पठ. श्राविका कुंअर, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, दशा वि. जीवातकृत छिद्र युक्त, विवर्ण-पानी से अक्षरों की स्याही फैल गयी है, (२७.५४१३, १३-१७४३५-४०). पे. १.२० स्थानक पूजा, आ. लक्ष्मीसूरि, मागु., पद्य, वि. १८४५, (पृ. १अ-८आ), आदिः श्रीशङ्खस्वर पासजी; अंतिः पभणै सयल सङ्घ जयकरू., पे.वि. ढाळ-२०. पे. २. २० स्थानकतप विधि, मागु.,गुज., प+ग, (पृ. ९अ-९आ), आदिः#; अंतिः#. २२३२. आलोयणा विधि, संपूर्ण, वि. १८९४, श्रेष्ठ, पृ. १४, जैदेना., (२९x१२.५, ८x२८). आलोयणा विधि, मागु., गद्य, आदिः प्रथम इरियावहि पडकमी; अंतिः मिच्छामि दुक्कडं. २२३३. रामचन्द्र चरित्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८५५, श्रेष्ठ, पृ. ३१६, जैदेना., ले.स्थल. भावनगर, ले. पं. जीतकुशल (गुरु पं. दीपकुशल), प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र.वि. हिस्सा -ग्रं. ४०३२,अध्याय-१०; टबार्थ-ग्रं. ११०१६., (२८x१३, ६x२७). रामचन्द्र चरित्र, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, आदिः अथ श्रीसुव्रतस्वामी; अंतिः प्रपेदे पदम्. रामचन्द्र चरित्र-टबार्थ, मु. महानन्द, मागु., गद्य, आदिः नत्वा श्रीमज्जिनान्; अंतिः पद प्रतें पाम्या. २२३४.” प्रमाणनयतत्त्वालोक की रत्नाकराख्य लघुटीका, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३७, जैदेना.,प्र.वि. संशोधित, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-बीच के कुछ पत्र, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., (२९.५४१३, १२४४६). प्रमाणनयतत्त्वालोकालङ्कार-स्याद्वादरत्नाकरटीका की रत्नाकरावतारिका टीका, आ. रत्नप्रभसूरि, सं., गद्य, आदिः सिद्धये वर्द्धमान; अंति: For Private And Personal Use Only Page #287 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir २३३ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २२३५. न्यायप्रवेश सह शिष्यहिता टीका व षड्दर्शन परिचय, संपूर्ण, वि. १९३३, श्रेष्ठ, पृ. २४, पे. २, जैदेना., प्र.वि. टिप्पण __ युक्त विशेष पाठ, (२९x१३, १२४३८). पे. १. न्यायप्रवेशसूत्र-शिष्यहिता वृत्ति, आ. हरिभद्रसूरि, सं., गद्य, (पृ.), आदिः सम्यग्ज्ञानस्य; अंतिः संलभतां जनस्तेन. पे. २.६ दर्शन विचार, सं., पद्य, (पृ. २४आ), आदिः चार्वाकोध्यक्षमेकं ; अंतिः भूमिरिति चार्वाका.,पे.वि. श्लो.४. २२३८." सङ्ग्रहणी सूत्र सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १५, जैदेना., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, पू.वि. प्रारंभ के पत्र हैं. गा.४३ तक है., (२९.५४१३.५, १२-१७४५३). बृहत्सङ्ग्रहणी, आ. चन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदिः नमिउं अरिहन्ताइं; अंति: बृहत्सङ्ग्रहणी-बालावबोध', मागु., गद्य, आदिः ॐ नत्वा अरिहन्तादी; अंति:२२३९." धातुपाठ, अनुबन्धफल, वृत्तगणफल व प्रयत्न विवरण, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १८, पे. ४, जैदेना., ले.स्थल. जावालपुर, प्र.वि. संवत १७६९ की लिखी प्रत पर से लिखी गयी है., टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२९.५४१४, २० २७४४४). पे. १. धातुपाठ, गणि पुण्यसुन्दर, संबद्ध, सं., गद्य, (पृ. १-१८अ), आदिः अकारान्ता धातवः; अंतिः (१)पुण्यसुन्दरगणिभिः (२)अनादरे भ्वा० प० सेट., पे.वि. प्र.पु. ग्रं.१९८१. पे. २. अनुबन्धफल, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, (पृ. १८अ), आदिः उच्चारणेस्त्यवर्णाद; अंतिः चानुबन्धः कथितो मया., पे.वि. श्लो.१०. पे. ३. वृत्तगणफल, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, (पृ. १८अ), आदिः द्युतादेरद्यतन्यां; अंतिः चैतदीषितं वानरेण हि., पे.वि. श्लो.६. पे. ४. प्रयत्न विवरण, गणि पुण्यसुन्दर, संबद्ध, सं., पद्य, (पृ. १८अ-१८आ), आदिः बाह्याभ्यन्तरभेदेन; अंतिः लिखितो मया., पे.वि. मूल-श्लो.१४. २२४७. नवतत्त्व प्रकरण सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १८९३, श्रेष्ठ, पृ. २७, जैदेना., ले.स्थल. राधिकापुर,प्र.वि. मूल-गा.५५. अन्तिम गाथा का बालावबोध नहीं है., (२९४११, ११४३९). नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदिः जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंतिः बोहिय इक्कणिक्काय. नवतत्त्व प्रकरण-बालावबोध', मागु., गद्य, आदिः यथा यथास्थित साचउं; अंतिः जिमाहि मोक्षइ जाइ. २२४८." अभिधानचिन्तामणि नाममाला, संपूर्ण, वि. १८०९, मध्यम, पृ. ४६, जैदेना., ले. मु. सुखधर्मजीत (गुरु मु. नरेन्द्रधर्मजीत),प्र.वि. ६ कांड, अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-शुरुआत व अंत के कुछ पत्र, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, दशा वि. विवर्ण-पानी से अक्षरों की स्याही फैल गयी है, फफूंदग्रस्त, (३०x१२.५, १५४४७). अभिधानचिन्तामणि नाममाला, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, आदिः प्रणिपत्यार्हतः; अंतिः रोषोक्तावु नतौ नमः. २२४९. ठाणाङ्गसूत्र व अनुयोगद्वार से उद्धृत किञ्चित् सूत्रपाठ, संपूर्ण, वि. १५९४, मध्यम, पृ. ६९, पे. २, जैदेना., ले.स्थल. संमाणा, ले. मु. कीर्तिसिङ्घ, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. संशोधित, (२९.५४११.५, १५४४७). पे. १. स्थानाङ्गसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, (पृ. १-६९), आदिः सुयं मे आउसं तेणं; अंतिः अणन्ता पण्णत्ता., पे.वि. १०स्थान. पे. २. पे. नाम. अनुयोगद्वारसूत्र से उद्धृत किञ्चित् प्राकृत एवं संस्कृत पाठ, पृ. ६९आ आगम छुटक पन्ने , प्रा.,सं.,मागु., , आदि:-; अंति:२२५०." संवेगरङ्गशाला, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २७४, जैदेना.,प्र.वि. गा.१००५४, संशोधित, (२७४१३, १४४४७). संवेगरङ्गशाला, आ. जिनचन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११२५, आदिः रेहइ जेसिं पय; अंतिः सम्मोहमहणत्थं. For Private And Personal Use Only Page #288 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य भाग - १ २३४ २२५१. मानतुङ्गमानवती रास व विसुरो विचार, पूर्ण, वि. १८८८, श्रेष्ठ, पृ. ५०-१(४२)=४९, पे. २, जैदेना., ले.स्थल. कुदवा, ले. पं. क्षमाविजय(तपागच्छ), (२५.५४१२.५, १३४३५). पे. १. मानतुङ्गमानवती रास, मु. मोहनविजय, मागु., पद्य, वि. १७६०, (पृ. १-५०, पूर्ण), आदिः ऋषभजिणन्द पदाम्बुजे; अंतिः घरघर मङ्गलमाल हे., पे.वि. ढाळ-४७. बीच का एक पत्र नहीं है. ढाल-३८ गा.१४ से ढाल-३९ गा.१६ तक नहीं है. पे. २. बिच्छूसुकन विचार, राज., गद्य, (पृ. ५०आ, संपूर्ण), आदिः पडवा पडि तो राजरौ; अंतिः बाह पडै तो मित्रलाभ. २२५२." जीवाभिगमसूत्र टीका, संपूर्ण, वि. १८७८, श्रेष्ठ, पृ. ३४१, जैदेना., प्र.वि. ग्रं. १४०००; प्र.पु. ग्रं. १४०००, संशोधित, ___ पदच्छेद सूचक लकीरें, (२५.५४११, १५४५१). जीवाभिगमसूत्र-टीका, आ. मलयगिरिसूरि , सं., गद्य, आदिः प्रणमत पदनखतेजःप्रति; अंतिः सिद्धान्तसद्बोधम्. २२५३." धातुपाठ सह स्वोपज्ञ धातुतरङग टीका, पूर्ण, वि. १७०७, मध्यम, प्र. ५७-१(४१)=५६, जैदेना., ले.स्थल. सोजितनगर, ले. गणि जससागर (गुरु आ. कल्याणसागरसूरि), राज्यकाल- राजा जसवन्तसिंह, प्र.ले.पु. विस्तृत, दशा वि. विवर्ण पानी से अक्षरों की स्याही फैल गयी है, (२५.५४११.५, १९४५४). सारस्वत व्याकरण-धातुपाठ, आ. हर्षकीर्तिसूरि, संबद्ध, सं., पद्य, वि. १६६३, आदिः श्रीसर्वज्ञं जिनं; अंतिः नन्दताच्चिरम्. सारस्वत व्याकरण-धातुपाठ की स्वोपज्ञ धातुतरङ्गिणी टीका, आ. हर्षकीर्तिसूरि, सं., गद्य, आदिः नमस्कृत्य महोनन्तं; अंतिः निर्मलां मतिम्. २२५५." अनुयोगद्वार, अपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ९०-२४(६० से ७४,८१ से ८९)=६६, जैदेना., प्र.वि. प्र.पु. ग्रं. २२२५., संशोधित, पदच्छेद सूचक लकीरें, (२६.५४११.५, ११४३०). अनुयोगद्वारसूत्र , आ. रक्षितसूरि, प्रा., प+ग, आदिः नाणं पञ्चविहं; अंतिः साहू से तं नए. २२५७.” प्रश्नव्याकरणसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७७४, मध्यम, पृ. १३९, जैदेना., ले.स्थल. पालणपुर, ले. पं. सुन्दरविजय, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. मूल-अध्याय-१०; प्र.पु. मूल-ग्रं. १२५०.प्र.पु. बालावबोध-ग्रं. २८९१. बालावबोध टबार्थरूप में लिखा गया है., टिप्पण युक्त विशेष पाठ, दशा वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, (२५.५४११, ५४३१). प्रश्नव्याकरणसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदिः जम्बू इणमो अण्हयसंवर; अंतिः शरीरधरे भविस्सत्तीति. प्रश्नव्याकरणसूत्र-बालावबोध, आ. पार्श्वचन्द्रसूरि, मागु., गद्य, आदिः श्रीवर्द्धमानमानम्य; अंति: जाइं अनन्तसुख पामे. २२६२. स्तवनचौवीसी सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८२६, मध्यम, प्र. २८, जैदेना., ले.स्थल. कटारिया(वागडदेश, ले. गणि खुशालसौभाग्य (गुरु गणि जयसौभाग्य),प्र.वि. मूल-अध्याय-२४ स्तवन., टिप्पण युक्त विशेष पाठ, दशा वि. अक्षर फीके पड गये हैं, (२५.५४११, ५४३९). स्तवनचौवीसी, मु. आनन्दघन, मागु., पद्य, वि. १८पू, आदिः ऋषभ जिनेश्वर प्रीतम; अंतिः आनन्दघन प्रभु जाग रे. स्तवनचौवीसी-टबार्थ, आ. ज्ञानविमलसूरि, मागु., गद्य, आदिः चिदानन्दमय जिनवरु; अंति: ते करी मोक्षपद पामे. २२६३. भले का विवेचन, संपूर्ण, वि. १८८०, मध्यम, पृ. ११, जैदेना., ले.स्थल. बालीनगर, ले. मु. गौतम, (२३.५४१०.५, ८x२०). महावीरजिन प्रश्नोत्तर-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः अथ प्रभु निसाले बेठा; अंतिः परमानन्द पद पामस्यो. २२६४." प्रश्नशतक व मूर्ख के १४८ बोल, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६, पे. २, जैदेना., ले.स्थल. फलोदी, ले. साध्वीजी पद्मा आर्या, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२६४११.५, १८-२०x४०). पे. १. प्रश्नशतक- ज्ञाताधर्मकथाङ्गे, मागु., पद्य, (पृ. १-५अ), आदिः ज्ञाताधर्मकथा साढि; अंति: तेहनइं प्रतापइं., पे.वि. गा.१०१. For Private And Personal Use Only Page #289 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir २३५ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची पे. २. मूर्ख के १४८ बोल, मागु., गद्य, (पृ. ५अ-६आ), आदिः बालकसु प्रीत करे ते; अंतिः नियानो करै सो मुरख., पे.वि. ग्रं.१४८ बोल. २२६५." अष्टप्रकारी पूजा कथा सङ्ग्रह सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५, जैदेना., पू.वि. प्रारंभ के पत्र हैं. गा.५२ अपूर्ण तक है., दशा वि. विवर्ण-पानी से अक्षर फीके पड गये हैं, (२६४११, ६४३०). ८ प्रकारी पूजा कथा सङ्ग्रह, प्रा., पद्य, आदिः पणमह तं नाभिसुयं; अंति: ८ प्रकारी पूजा कथा सङ्ग्रह-टबार्थ, मागु., गद्य, आदि: नमस्कार हो ते; अंति:२२६८.” नवपद पूजा, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५, जैदेना., ले.स्थल. सुरत, ले. मु. रङ्गविजय (गुरु मु. अमृतविजय, तपगच्छ), प्र.वि. खण्ड-४, दशा वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है-अल्प, (२६.५४१२.५, १४-१५४४४). नवपद पूजा, उपा. यशोविजयजी गणि, प्रा.,सं.,मागु., पद्य, आदिः उपन्नसन्नाणमहोमयाणं; अंतिः (१)यजामहे स्वाहा. २२६९." लघुक्षेत्रसमास सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७५५, मध्यम, पृ. ४९, जैदेना., ले.स्थल. नागोर, ले. मु. नरविजय (गुरु आ. राजचन्द्रसूरि), लिखवा. श्राविका सुखमादे बाई,प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र.वि. मूल-गा.२६५; टबार्थ-ग्रं. २१३५., संशोधित, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, दशा वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, फफूंदग्रस्त-अल्प, (२४.५४१०.५, ४४२५). लघुक्षेत्रसमास प्रकरण, आ. रत्नशेखरसूरि , प्रा., पद्य, वि. १५वी, आदिः वीरं जयसेहरपय; अंतिः कुसलरङ्गमयं पसिद्धं. लघुक्षेत्रसमास-टबार्थ , वाचक मेघराजजी, मागु., गद्य, आदिः वीर श्रीमहावीर केहवा; अंतिः (१)संशोधनीयं धीधनैः (२)रंगमय प्रसिद्धि पामउ. २२७०." बृहत्तकल्पसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८०१, मध्यम, पृ. २१, जैदेना., ले.स्थल. सालकोट, ले. मु. दानीराय (गुरु मु. लालमण), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. मूल-अध्याय-६; प्र.पु. मूल ग्रं. ५००. टबार्थ प्रारंभ के तीन पत्रों में ही लिखा है., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-प्रारंभिक पत्र, पदच्छेद सूचक लकीरें-प्रारंभिक पत्र, (२५.५४११, ७४५४). बृहत्कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, (संपूर्ण), आदिः नो कप्पइ निग्गंथाण; अंतिः कप्पट्ठिई त्तिबेमि. बृहत्कल्पसूत्र-टबार्थ , मागु., गद्य, (अपूर्ण), आदिः कव० कश्चित नगरं; अंतिः२२७३." स्तवनवीसी, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदेना., ले. मु. कुशालचन्द, पठ. श्राविका अमरीबाई, प्र.वि. संशोधित, (२८x१३, १३४४४). स्तवनवीसी, उपा. यशोविजयजी गणि, मागु., पद्य, आदिः पुखलवई विजये जयो रे; अंतिः वाचक यश इम बोलई रे. २२७४. श्राद्धप्रतिक्रमणसूत्र सङ्ग्रह सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ११, जैदेना., (२७४१२.५, ३४२२). प्रतिक्रमणसूत्र सङ्ग्रह-श्वे.मू.पू.*, संबद्ध, प्रा.,सं.,मागु., प+ग, आदि: जगचिन्तामणी० जगगुरु; अंतिः भूयान्न सुखदायिनी. प्रतिक्रमणसूत्र सङ्ग्रह-श्वे.मू.पू. टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः हे वीतरागदेव तुमे; अंतिः अमनइ सुखनी आपणहारी. २२७६. ढुण्ढकमत चर्चा, संपूर्ण, वि. १९४१, श्रेष्ठ, प्र. ६, जैदेना., ले.स्थल. पल्लिकानगर, ले. श्रा. तेजमल पोरवाल, प्र.वि. अध्याय-१०० प्रश्न, (२७.५४११, १४४४५). ढुण्ढकमत चर्चा-स्थानकवासीमतनिरसन, आ. विजयानन्दसूरि, प्राहिं., गद्य, वि. २०वी, आदिः साधमारगी दया; अंतिः आगे वधते जाते है. २२७७.” दीपोत्सविका कल्प सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९०३, श्रेष्ठ, पृ. ४३, जैदेना., ले.स्थल. वल्लभीनगर, ले. पं. सुखसागर, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. मूल-श्लो.४३७. मनमोहन पार्श्वप्रभु प्रसादात्., संशोधित, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, दशा वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है-अल्प, (२६४१२, ६४३०). दीपावलीपर्व कल्प, आ. जिनसुन्दरसूरि, सं., पद्य, वि. १४८३, आदिः श्रीवर्द्धमानमाङ्गल; अंतिः चन्द्रार्कजगत्त्रये. ANS. For Private And Personal Use Only Page #290 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य भाग १ २३६ दीपावलीपर्व कल्प-टवार्थ, गणि सुखसागर, मागु, गद्य वि. १७६३, आदि (१) अष्टमहाप्रातिहार्यनी (२) अहं नत्वाल्प अंतिः तिवार लगे प्रतपो (+) २२७९. ऋषिमण्डल प्रकरण संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १२, जैदेना. प्र. वि. गा. २२१, ( २६.५५११, ११४३७). ऋषिमण्डल प्रकरण, आ. धर्मघोषसूरि, प्रा., पद्य, वि. १४वी, आदिः भत्तिब्भरनमिरसुरवर; अंतिः सो लहइ सिद्धिसुहं. २२८०. नवकारमन्त्र सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ५, जैदेना., (२५x११, १२३८). नमस्कार महामन्त्र, प्रा., पद्य, आदिः नमो अरिहन्ताणं नमो: अंतिः पढमं हवई मङ्गलम् . नमस्कार महामन्त्र - बालावबोध* मागु, गद्य, आदि माहरउ नमस्कार अंतिः सिद्ध वडा कहीयइ. ; . २२८१. आलविणा विधि, संपूर्ण, वि. १९५८, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना., ले. स्थल. जयपुर, ले. जगराम, (२५.५X१०.५, २०-२२x४३). आलोयणा विधि, मागु., गद्य, आदिः अन्तकाल अठार; अंतिः श्राविका आराधक हुवे. www.kobatirth.org: २२८२. भक्तामर स्तोत्र सह वृत्ति, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ५, जैदेना. प्र. वि. मूल - श्लो.४४., संशोधित, (२५.५x१०.५, ६x४४) भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुङ्गसूरि, सं., पद्य, आदि भक्तामरप्रणतमौलिमणि अंतिः समुपैति लक्ष्मी, भक्तामर स्तोत्र - अवचूरि, सं., गद्य, आदि: भक्ता अमरा; अंतिः तुङ्गा मानतुङ्गा...... (+) " , २२८३. प्रियमेलक चौपाई, अपूर्ण, वि. १८वी मध्यम, पृ. ९-१ ( ७ )=८, जैदेना. प्र. वि. डाल- ११, गा. २३०, ( २५४१०.५, १३०४८). प्रियमेलक चौपाई, उपा. समयसुन्दर गणि, मागु., पद्य, वि. १६७२, आदिः प्रणमुं सद्गुरु पाय; अंतिः पुण्ये अधिकुं प्रमोद. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २२८४. अभिधानचिन्तामणि नाममाला, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १२, जैदेना., प्र. वि. संशोधित - पंचपाठ-बीच के कुछ पत्र, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ बीच के कुछ पत्र, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. दो कांड है., (२६.५x१०.५, ११४५३). अभिधानचिन्तामणि नाममाला आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, आदिः प्रणिपत्यार्हत: अंति . (+4) " २२८९. प्रतिक्रमणसूत्र सङ्ग्रह सह टबार्थ, संपूर्ण वि. १८२५, मध्यम, पृ. २१, जैदेना. प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, दशा वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है- अल्प (२६४११.५, ४x२५). J प्रतिक्रमणसूत्र सङ्ग्रह श्वे. मू. पू. प्रतिक्रमणसूत्र सङ्ग्रह-श्वे. मू. पू. (+) ; संबद्ध, प्रा.सं.मागु प+ग, आदि नमो अरिहन्ताणं अंतिः मिच्छामि दुक्कडं. टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः बारगुणे सहित अरिहन्त; अंतिः मिथ्या फोकट होज्यो . " २२९०. श्रीपाल चरित्र, पूर्ण, वि. १७९४ श्रेष्ठ, पृ. ३४- १(१ ) - ३३, जैदेना. ले. स्थल आमोदनगर, ले. मु. सदाविजय, प्र. वि. " ढाळ - ४०. पू. वि. गा. ४ तक नहीं है., (२५.५४११, १४४४२). श्रीपाल रास, मु. ज्ञानसागर, आधारित, मागु., पद्य, वि. १७२६, आदि:-; अंतिः सहुं चित चङ्गै रे.. २२९१. सूर्यप्रज्ञप्तिसूत्र, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १००, जैदेना., प्र. वि. ग्रं. २२०० २० प्राभृत, संशोधित, (२७११, ११४३७). सूर्यप्रज्ञप्ति, प्रा., गद्य, आदि: नमो अरि० तेणं०: अंतिः सोक्खुप्पाए सदापाए. २२९३. चारप्रत्येकबुध चौपाई, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ३३, जैदेना. प्र. वि. संशोधित टिप्पण युक्त विशेष पाठ, पृ. वि. अन्त के पत्र नहीं हैं. चतुर्थ खंडे ढाल -८ की गा .२३ तक है., दशा वि. विवर्ण- पानी से अक्षरों की स्याही फैल गयी है. (२६५११, १५४३४). ४ प्रत्येकबुद्ध रास, उपा. समयसुन्दर गणि, मागु., पद्य, वि. १६६५, आदि: सिद्धारथ शशिकुलतिलो; अंतिः २२९४. शान्तरस वर्णन अध्यात्मकल्पद्रुमे, संपूर्ण, वि. १९१४, श्रेष्ठ, पृ. ७०, जैदेना., ले. स्थल. पालनपुर, ले. श्री. लवजी मोतीचन्द, प्र. वि. श्लो. १८५०, ( २८.५४१४, १२४३६). अध्यात्मकल्पद्रुम-शान्तरसवर्णन, मागु, गद्य, आदि अहो भव्य जीवो सदाकाल अंतिः चाखे तो परमपद पामइ. For Private And Personal Use Only Page #291 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir २३७ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २२९५. गौतमपृच्छा सह बालावबोध, पूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १३९, जैदेना., ले. ऋ. हर्षचन्द, प्र.वि. मूल-गा.६४..पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है. प्रतिलेखन पुष्पिका का पत्र नहीं है., (२५४१२, ९४२९). गौतमपृच्छा, प्रा., पद्य, (संपूर्ण), आदिः नमिऊण तित्थनाहं; अंति: गोयमपुच्छा महत्थावि. गौतमपृच्छा-बालावबोध, आ. जिनसूरि, मागु., गद्य, (संपूर्ण), आदिः नत्वा कहता नमीने; अंतिः हर्षपूरण भावता. २२९६. पाण्डव चरित्र महाकाव्य, अपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. २४१-११३(१ से ११३)=१२८, जैदेना.,प्र.वि. सर्ग-१८; प्र.पु. ग्रं. ९८८४, पू.वि. सर्ग-८ गा.२७५ अपूर्ण से है., (२५४११, १३४३८). पाण्डव चरित्र, आ. देवप्रभसूरि मलधारी, सं., पद्य, आदि:-; अंतिः महाकाव्यमेतद्धिनोतु. २२९८." नारचन्द्र ज्योतिष सह टिप्पण, संपूर्ण, वि. १७९१, मध्यम, पृ. १८, जैदेना., ले. हेमा ब्राह्मण, पठ. दयाराम, प्र.वि. मूल-श्लो.३३५., टिप्पण युक्त विशेष पाठ, दशा वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है-अक्षर फीके पड गये हैं, (२५.५४११, १२-१३४३९). ज्योतिषसार, आ. नरचन्द्रसूरि, सं., पद्य, आदिः श्रीअर्हन्तजिनं; अंति: सुभिक्खं न सन्देहो. ज्योतिषसार-यन्त्रकोद्धार टिप्पण, आ. सागरचन्द्रसूरि, सं., गद्य, आदिः सरस्वती प्रसादेन; अंतिः#. २२९९." आगमसारोद्धार, संपूर्ण, वि. १८३५, श्रेष्ठ, पृ. २२, जैदेना., ले.स्थल. पीपाडपुर, ले. मु. कपूरविजय (गुरु मु. तिलकविजय), राज्यकाल- राजा विजयसिङ्घजी, प्र.ले.पु. विस्तृत, दशा वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, (२६.५४१०.५, १६४४६). आगमसारोद्धार, उपा. देवचन्द, मागु., गद्य, वि. १७७६, आदिः भव्य जीवने; अंतिः फली मन आस. २३००." जीवविचार व नवतत्त्व, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५, पे. २, जैदेना.,प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२६४११, १२-१४४३४). पे. १. जीवविचार प्रकरण, आ. शान्तिसूरि, प्रा., पद्य, (पृ. १-३आ), आदिः भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंतिः रुद्दाओ सुयसमुद्दाओ., पे.वि. गा.५१. पे. २. नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, (पृ. ३आ-५आ), आदिः जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंतिः अणागयद्धा अणन्तगुणा., पे.वि. गा.५५. २३०१.” माणिभद्र छन्द सङ्ग्रह, संपूर्ण, वि. १९५२, श्रेष्ठ, पृ. ५, पे. ५, जैदेना., ले.स्थल. विद्युतपुरनगर, ले. पुनमचन्द, दशा वि. अक्षर फीके पड गये हैं, (२८x१२, १२४४५). पे. १. माणिभद्रवीर छन्द, मु. कुशललक्ष्मी, मागु., पद्य, (पृ. १.५), आदिः सरसति भगवती भारती; अंतिः लाल कुशललक्ष्मी लही., पे.वि. गा.१९. पे. २. माणिभद्रवीर छन्द, मनोहर, मागु., पद्य, (पृ. १आ), आदिः प्रथम मात तोने; अंति: माणिभद्र चिन्तामणि., पे.वि. गा.९. पे. ३. माणिभद्रवीर छन्द, मु. उदयकुशल, मागु., पद्य, (पृ. २), आदिः सरस वचन द्यो सरसति; अंतिः लाख लोक रीझावे., पे.वि. गा.२६. पे. ४. माणिभद्रवीर छन्द, कवि दीपविजय, मागु., पद्य, (पृ. २आ), आदिः सरस वचन दे सारदा; अंतिः देज्यो दोलत __घणी., पे.वि. गा.१२. पे. ५. माणिभद्रवीर छन्द, मनो, मागु., पद्य, (पृ. ५), आदिः साचो मणिभद्र वीर; अंतिः वीर तुं छे रखवाल., पे.वि. गा.९. २३०२." दण्डक प्रकरण सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८३८, मध्यम, पृ. ७, जैदेना., प्र.वि. मूल-गा.३८., टिप्पण युक्त विशेष पाठ, दशा वि. विवर्ण-अक्षरों की स्याही फैल गयी है, (२५४११, ४४२६). दण्डक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, आदिः नमिउं चउवीस; अंति: एसा विनत्ति अप्पहिआ. For Private And Personal Use Only Page #292 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य भाग - १ २३८ दण्डक प्रकरण-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः चोवीस तीर्थङ्करोने; अंतिः वीनती लिखी. २३०३. पुरन्दरकुमार रास, पूर्ण, वि. १६९७, मध्यम, पृ. १३-१(११)=१२, जैदेना., ले.स्थल. धमकडाग्राम, ले. मु. विवेकविजय (गुरु पं. गुणविजय), प्र.ले.पु. मध्यम,प्र.वि. गा.३७६,ढाळ-१२, (२६४११, १५४४४). पुरन्दरकुमार रास, वाचक मालदेव, मागु., पद्य, आदिः वरदायक सुरदेवता; अंतिः मिच्छामि दुक्कडं दीय. २३०४. सदयवच्छसावलिङ्गारी वात, संपूर्ण, वि. १७८८, मध्यम, पृ. १८, जैदेना., ले. मु. दोलिविजय (गुरु पं. माणिक्यविजय), (२६४११, १३-१४४३४). सदयवत्ससावलिंगा कथा, मागु., प+ग, आदिः न्यायसूतारा नरवहण; अंतिः आदिमी चमोचम घसाय. २३०५. अष्टकप्रकरण, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, जैदेना.,प्र.वि. संशोधित, (२८.५४१२.५, १३४५०). अष्टकप्रकरण, आ. हरिभद्रसूरि, सं., पद्य, आदिः यस्य सङ्क्लेशजननो०; अंतिः भवन्तु सुखिनो जनाः. २३०६. सम्बोधसत्तरी, संपूर्ण, वि. १८९२, मध्यम, पृ. ७, जैदेना., ले.स्थल. खेरवा, ले. मु. गुमानसौभाग्य, प्र.वि. गा.९३, (२५४११, १०x२२). सम्बोधसप्ततिका, आ. जयशेखरसूरि, प्रा., पद्य, आदिः नमिऊण तिलोअगुरुं; अंतिः लहई नत्थि सन्देहो. २३०७. भुवनदीपक सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १५, जैदेना., प्र.वि. मूल-श्लो.१७४., दशा वि. मूषक भक्षित अक्षर फीके पड गये हैं, (२५४११, ६४३४). भुवनदीपक, आ. पद्मप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३पू, आदिः सारस्वतं नमस्कृत्य; अंतिः श्रीपद्मप्रभुसूरिभिः. भुवनदीपक-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः सरस्वतीने नमस्कार; अंतिः कह्यो ए ग्रन्थ. २३१०. वीरथुई सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना., प्र.वि. हिस्सा -गा.२९., (२६x११, ४४३९). सूत्रकृताङ्गसूत्र-हिस्सा वीरस्तुति अध्ययन, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., पद्य, आदिः पुच्छिंसुणं समणा; अंतिः देवाहिव आगमिस्सन्ति. सूत्रकृताङ्गसूत्र-हिस्सा महावीरजिन स्तुति-अध्ययन का टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः पु० पुछता हवा कोण; अंतिः इम हुं बे० कहुं छु. २३११. सौभाग्यपञ्चमी कथा, संपूर्ण, वि. १९००, मध्यम, पृ. ५, जैदेना., दशा वि. अक्षर फीके पड गये हैं, (२६४११.५, १५४५२). ज्ञानपंचमीपर्व कथा, मागु., गद्य, आदिः शुक्लकार्तिकपञ्चम्या; अंतिः पञ्चमगति पामे. २३१२." पाशाकेवली, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६, जैदेना., दशा वि. चिपके पत्र अलग करते वक्त स्याही उखडी हुई अक्षरों की स्याही फैल गयी है, (२६४११.५, १५४४२). पाशाकेवली, ऋ. गर्ग, सं., पद्य, आदिः यत्सत्यं त्रिषु; अंतिः तया पाशकढालनम्. २३१३." उगणतीसी भावना सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ५, जैदेना., प्र.वि. मूल-गा.२९., दशा वि. अक्षर फीके पड गये हैं, (२६४१०, ५४३१). एगूणतीसी भावना, प्रा., पद्य, आदिः संसारम्मि असारे; अंति: मुच्चह सव्वदुक्खाइं. एगूणतीसी भावना-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः संसार असारमाहि नथी; अंतिः जाई आठ कर्म छूटइ. २३१५. जम्बूद्वीपविचार विवरण, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ५, जैदेना., (२६४११, १३४४७). लघुसङ्ग्रहणी-खण्डाजोयण बोल* , संबद्ध, मागु., गद्य, आदिः जम्बुद्वीप पहिलपणि; अंति: प्रमाणे लख्यो छे. २३१७." सिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासन सह स्वोपज्ञवृत्ति- अध्याय ८, प्रतिपूर्ण, वि. १८९०, श्रेष्ठ, पृ. ७५, जैदेना., ले. ऋ. वचूलाल, प्र.वि. संशोधित, पदच्छेद सूचक लकीरें, (२५४११, ८x३१). सिद्धहेमशब्दानुशासन, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., गद्य, वि. ११९३, आदि:-; अंतिः For Private And Personal Use Only Page #293 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir २३९ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची सिद्धहेमशब्दानुशासन-स्वोपज्ञ तत्त्वप्रकाशिका बृहद्वृत्ति, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., गद्य, वि. ११९३, आदि:-: अंति:२३१९. चौवीसजिन के प्रथमगणधर व साध्वीनाम द्रव्यसङ्ग्रह सह अर्थ व तैवीसपदवी विचार, संपूर्ण, वि. १८९१, श्रेष्ठ, पृ. १८, पे. ३, जैदेना., ले.स्थल. विजोवा, (२५४११.५, १६x४६). पे. १.२४ जिन प्रथमगणधर प्रथमसाध्वी नाम, मागु., पद्य, (पृ. १अ), आदिः उत्तम नर पञ्चुत्तर; अंति: २३ चन्दनबाला..पे.वि. गा.२. पे. २. पे. नाम. द्रव्यसङ्ग्रह सह टबार्थ, पृ. १अ-१७आ द्रव्यसङ्ग्रह, मु. नेमिचन्द्र सिद्धान्त चक्रवर्ती, प्रा., पद्य, आदिः जीवमजीवं दव्वं; अंतिः मुणिणा भणिज्जं. द्रव्यसङ्ग्रह-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः जीवद्रव्य अजीवद्रव्य; अंतिः देवे ए ग्रन्थ कीधो., पे.वि. मूल-गा.५८. पे. ३. २३ पदवी विचार, मागु., गद्य, (पृ. १७आ-१८आ), आदिः सात एकेन्द्री रत्ननी; अंतिः ए पदवी न पामइ. २३२१. मौनएकादशी व सौभाग्यपञ्चमी कथा, संपूर्ण, वि. १८६२, श्रेष्ठ, पृ. ५, पे. २, जैदेना., ले. मु. लालसागर, (२५४१०.५, १३४३५). पे. १. मौनएकादशीपर्व कथा, सं., गद्य, (पृ. १-३अ), आदिः श्रीवीरं नत्वा गौतमः; अंतिः एकादशीमाराध्य समभवत्. पे. २. सौभाग्यपञ्चमीपर्व कथा, सं., गद्य, (पृ. ३अ-५आ), आदिः जीवानां सर्वार्था; अंतिः विषये उद्यमः कर्तव्य. २३२२. तेजसार चौपाई, संपूर्ण, वि. १८१०, जीर्ण, पृ. १४, जैदेना., ले.स्थल. टापराग्राम, प्र.वि. गा.४०६, (२५४११.५, १५४४६). तेजसार रास, वाचक कुशललाभ, मागु., पद्य, वि. १६२४, आदिः श्रीसिद्धारथ कुलतिलो; अंतिः तेहना सहु मनोरथ फलइ. २३२५." पाक्षिकसूत्र, खामणा व चौवीसजिन स्तवन सङ्ग्रह, संपूर्ण, वि. १७९७, श्रेष्ठ, पृ. ११, पे. ४, जैदेना., ले.स्थल. आसाढमारनगर, ले. किसुन, दशा वि. विवर्ण-पानी से अक्षरों की स्याही फैल गयी है, (२६x१०.५, ११-१२४४२). पे. १.पे. नाम. चोवीसजिन स्तवन, पृ. ०१अ-०१अ २४ जिन स्तवन-मातापितानामादिगर्भित, मु. आणन्द, मागु., पद्य, वि. १५६२, आदिः सयल जिणेसर प्रणमुं; अंतिः तास सीस प्रणमु आणन्द., पे.वि. गा.२९. पे. २. पे. नाम. पाक्षिकसूत्र, पृ. ०१आ-१०आ पाक्षिकसूत्र, प्रा., प+ग, आदिः तित्थङ्करे य तित्थे; अंतिः मिच्छामि दुक्कडं. पे. ३. पे. नाम. पाक्षिकक्षामणासूत्र, पृ. १०आ-११अ क्षामणकसूत्र, प्रा., गद्य, आदिः इच्छामि खमासमणो; अंतिः नित्थारग पारगा होह. पे. ४. पे. नाम. चोवीसजिन स्तवन, पृ. ११आ-११आ २४ जिन स्तवन, ऋ. खेमो, मागु., पद्य, आदिः पहिला प्रणमुं प्रथम; अंतिः पामे सुख अनन्त., पे.वि. गा.८. २३२६." स्तवनचौवीसी, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, जैदेना., प्र.वि. २४स्तवन, संशोधित, (२५.५४११.५, १५४४४). पदचौवीसी, श्रा. विनयचन्द्र कुमट, मागु., पद्य, वि. १९०६, आदिः श्रीआदिश्वर सामी हो; अंति: महास्तुति पूरण करी. २३२९.” मृगापुत्र चरित्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ९, जैदेना., प्र.वि. गा.१२६, दशा वि. विवर्ण-पानी से अक्षरों की स्याही फैल गयी है, (२६.५४११.५, १०४३३). मृगापुत्र चरित्र, मु. विद्यारत्न, मागु., पद्य, आदिः तित्थङ्करे त्रेवीसमु; अंतिः इणि परी भणइ. २३३०. वीरजिन स्तवन सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ५, जैदेना., ले. श्रा. अमरसी, प्र.वि. मूल-श्लो.३०, ग्रं. ३५७., टिप्पण युक्त विशेष पाठ, दशा वि. विवर्ण-पानी से अक्षरों की स्याही फैल गयी है, (२६४११, ५४३९). महावीरजिन स्तवन, आ. जिनवल्लभसूरि, सं., पद्य, आदिः भावारिवारणनिवारणदारु; अंतिः दृष्टिं दयालो मयि. महावीरजिन स्तवन-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः अन्तरङ्ग वयरी; अंतिः दयावन्त माहरइ विषइ. For Private And Personal Use Only Page #294 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य भाग - १ २४० २३३३. कर्मग्रन्थ १-६ सह अवचूरि व परमेष्ठिरक्षा स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ४६, पे. ७, जैदेना., प्र.वि. पंचपाठ, (२६४११, १-१३४१३-३५). पे. १. पे. नाम. कर्मविपाक सह टिप्पण, पृ. १-४अ, संपूर्ण ___ कर्मविपाक नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, आदिः सिरिवीरजिणं वन्दिय; अंतिः लिहिओ देविन्दसूरीहिं. कर्मविपाक नव्य कर्मग्रन्थ-टिप्पण, मागु., गद्य, आदि:-; अंतिः-, पे.वि. मूल-गा.६०. पे. २. कर्मस्तव नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, (पृ. ४अ-६अ, संपूर्ण), आदिः तह थुणिमो वीरजिणं; अंतिः वन्दियं नमह तं वीरं., पे.वि. गा.३४. पे. ३. पे. नाम. बन्धस्वामित्व सह अवचूरि, पृ. ६अ-७आ, संपूर्ण बन्धस्वामित्व नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, आदिः बन्धविहाणविमुक्कं; अंतिः नेयं कम्मत्थयं सोउं. बन्धस्वामित्व-अवचूरि, सं., गद्य(अपूर्ण), आदि:-; अंतिः देशद्वारेण भणनात्., पे.वि. मूल-गा.२५. अवचूरि गा.१८ से पे. ४. पे. नाम. षडशीति सह अवचुरि, पृ. ७आ-१९अ, संपूर्ण षडशीति नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, आदिः नमिय जिणं जिय; अंति: देविन्दसूरीहिं. षडशीति नव्य कर्मग्रन्थ-अवचूरि, सं., गद्य, आदिः नमनि० तत्र जीवन्ति; अंतिः शास्त्रेभ्य इति शेषः., पे.वि. मूल गा.८६. पे. ५. पे. नाम. शतक सह अवचूरि, पृ. १९आ-३९आ, संपूर्ण शतक नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, आदिः नमिय जिणं धुवबन्धोदय; अंतिः सयगमिणं आयसरणट्ठा. शतक नव्य कर्मग्रन्थ-अवचूरि, सं., गद्य, आदिः नमिअजिणं० मिथ्यात्व; अंतिः क्षये ज्ञानी भवति.,पे.वि. मूल गा.१००. पे.६. सप्ततिका कर्मग्रन्थ, प्रा., पद्य, (पृ. ३९आ-४६आ, संपूर्ण), आदिः सिद्धपएहिं महत्थं; अंतिः एगुणा होइ नउइओ., पे.वि. गा.८९. पे. ७. वज्रपंजर स्तोत्र, सं.,प्रा., पद्य, (पृ. १अ-१अ, संपूर्ण), आदिः पञ्चपरमेष्ठि नमस्कार; अंतिः राधिश्चापि कदाचन., पे.वि. श्लो.८. २३३४. सिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासन - अध्याय १ से ४, प्रतिपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ५, जैदेना., प्र.वि. प्र.पु. मूल अंश-ग्रं. २६१२., (२६४११, २१-२३४६४). सिद्धहेमशब्दानुशासन, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., गद्य, वि. ११९३, आदिः अर्ह सिद्धिः स्याद; अंति:२३३५. वसुधारा स्तोत्र व विधि, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ७, पे. २, जैदेना., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न-वचन विभक्ति संकेत, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२६४११, ११४३३). पे. १. वसुधारा, सं., गद्य, (पृ. १-७अ), आदिः संसारद्वयदैन्यस्य; अंतिः भाषितमभ्यनन्दन्निति. पे. २. पे. नाम. वसुधारा विधि, पृ. ७अ-७आ वसुधारा विधि, संबद्ध, मागु., गद्य, आदिः इयं वसुधारा धनद; अंतिः सहिओ स्वाहा. २३३६. स्तुति सङ्ग्रह, संपूर्ण, वि. १८६२, मध्यम, पृ. ३५, पे. ५७, जैदेना., ले.स्थल. जालोर, ले. पं. लहेरसागर, (२५४११.५, ९४३४). पे. १. कल्लाणकन्द स्तुति, प्रा., पद्य, (पृ. १आ-१आ), आदिः कल्लाणकन्दं पढमं; अंतिः अम्ह सया पसत्था., पे.वि. गा.४. पे. २. पंचतीर्थी स्तुति, मागु., पद्य, (पृ. १आ-आ), आदिः आदि आदि जिनेसर; अंतिः जिनशासन कल्याणजी., पे.वि. गा.४. For Private And Personal Use Only Page #295 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir २४१ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची पे. ३. बीजतिथि स्तुति, मु. लब्धिविजय, मागु., पद्य, (पृ. २आ-३अ), आदि: दिन सकल मनोहर; अंतिः पुरो मनोरथ माय., पे.वि. गा.४. पे. ४. सीमन्धरजिन स्तुति, मु. शान्तिकुशल, मागु., पद्य, (पृ. ३अ-३आ), आदि: सीमन्धर मुजमन वाल्हो; अंतिः ___शान्तिकुशल सुखदाताजी., पे.वि. गा.४. पे.५. ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, सं., पद्य, (पृ. ३आ-४अ), आदिः श्रीनेमिः पञ्चरूप; अंतिः कुशलं धीमतां सावधाना., पे.वि. श्लो.४. पे. ६. नेमिजिन स्तुति, कवि ऋषभदास सङ्घवी, मागु., पद्य, (पृ. ४अ-४आ), आदिः श्रावण सुदि दिन; अंतिः सफल करो अवतार तो., पे.वि. गा.४. पे. ७. संसारदावानल स्तुति, आ. हरिभद्रसूरि, सं.,प्रा., पद्य, (पृ. ४आ-५अ), आदिः संसारदावानलदाहनीरं; अंतिः देवि सारम्., पे.वि. श्लो.४ . पे. ८. अष्टमीतिथि स्तुति, आ. ज्ञानविमलसूरि, मागु., पद्य, (पृ. ५अ-६अ), आदिः मङ्गल आठ करी जिन; अंतिः तपथी कोडि कल्याणजी.,पे.वि. गा.४. पे. ९. अष्टमीतिथि स्तुति , मागु., पद्य, (पृ. ६अ-६अ), आदिः अष्टमी अष्ट परमाद; अंतिः पालता सुर सानिधि करे., पे.वि. गा.४. पे. १०. मौनएकादशीपर्व स्तुति, मागु., पद्य, (पृ. ६आ-६आ), आदिः नेमिजिन उपदेशी मौन; अंतिः करा सन्तुठे सुरवरा., पे.वि. गा.४. पे. ११. मौनएकादशीपर्व स्तुति, मु. गुणहर्ष-शिष्य, मागु., पद्य, (पृ. ६आ-७अ), आदिः एकादशी अति रुअडी; अंतिः सङ्घ तणा निशदिश., पे.वि. गा.४. पे. १२. मौनएकादशीपर्व स्तुति, आ. ज्ञानविमलसूरि, मागु., पद्य, (पृ. ७आ-८अ), आदिः नयरी द्वारामती कृष्ण; अंतिः कवि नय इम पभणीजे., पे.वि. गा.४. पे. १३. पाक्षिक स्तुति, आ. बालचन्द्रसूरि, सं., पद्य, (पृ. ८अ-९अ), आदिः स्नातस्याप्रतिमस्य; अंतिः कार्येषु सिद्धिम्., पे.वि. श्लो.४. पे. १४. आदिजिन स्तुति, मु. कान्तिविजय, मागु., पद्य, (पृ. ९अ-१०अ), आदिः सुधर्म देवलोक पहिलो; अंतिः कांतिविजय गुण गाय., पे.वि. गा.४. पे. १५. शत्रुजयतीर्थ स्तुति, मु. कल्याणविजय-शिष्य, मागु., पद्य, (पृ. १०अ-१०आ), आदिः शेत्रुञ्ज साहिब आदि; अंतिः इम जपइ निशदिश., पे.वि. गा.४. पे. १६. शत्रुजयतीर्थ स्तुति, गणि शुभविजय, मागु., पद्य, (पृ. १०आ-११आ), आदि: श्रीविमलाचल गिरवर; अंतिः अविचल पूरे आस., पे.वि. गा.४. पे. १७. शत्रुजयतीर्थ स्तुति, श्रा. ऋषभदास, मागु., पद्य, (पृ. ११आ-१२अ), आदिः श्रीशत्रुञ्जय तीरथ; अंति: ऋषभदास ___गुण गाय., पे.वि. गा.४. पे. १८. आदिजिन स्तुति, कवि ऋषभदास सङ्घवी, मागु., पद्य, (पृ. १२आ-१३अ), आदिः प्रह उठी वन्दु; अंतिः रुषभदास गुण गाइ., पे.वि. गा.४. पे. १९. आदिजिन स्तुति-मरुदेवामाता केवलज्ञान, मु. मोहनविजय, मागु., पद्य, (पृ. १३अ-१३आ), आदि: गजकुंभे बेसी आवे; अंतिः मोहन जयजयकार., पे.वि. गा.४. पे. २०. आदिजिन स्तुति-अर्बुदगिरिमण्डन, अप., पद्य, (पृ. १३आ-१४अ), आदिः वरमुक्तियहार सुतार; अंतिः सुहाणि कुणे सुसया., पे.वि. गा.४. पे. २१. शान्तिजिन स्तुति, पण्डित शुभविजय, मागु., पद्य, (पृ. १४अ-१४आ), आदिः मोहन मुरति सुन्दर; अंतिः दिन वधते दीवाजेजी., पे.वि. गा.४. For Private And Personal Use Only Page #296 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य भाग - १ २४२ पे. २२. शान्तिजिन स्तुति, मागु., पद्य, (पृ. १४आ-१५अ), आदिः शान्तिजिन शान्ति; अंतिः पुण्य प्रभाविका., पे.वि. गा.४. पे. २३. शान्तिजिन स्तुति, श्रा. ऋषभदास, मागु., पद्य, (पृ. १५अ-१५आ), आदिः शान्ति जिणेसर समरीइं; अंतिः ऋषभदासनी वाणी., पे.वि. गा.४. पे. २४. नेमिजिन स्तुति, मागु., पद्य, (पृ. १५आ-१६अ), आदिः सुरअसुरवन्दितपाय; अंतिः करो ते अम्बा देवीए., पे.वि. गा.४. पे. २५. पार्श्वजिन स्तुति-शद्धेश्वर, उपा. नयविजय, मागु., पद्य, (पृ. १६आ-१७अ), आदिः वन्दो शोसर पास; अंतिः नयविजय जयकार., पे.वि. गा.४. पे. २६. पार्श्वजिन स्तुति-शखेश्वर, मु. महिमारुचि, मागु., पद्य, (पृ. १७अ-१८अ), आदिः शङ्ख्सर पास जिणन्द; ___ अंतिः द्यो दोलति मुज माई., पे.वि. गा.४. पे. २७. पार्श्वजिन स्तुति, मु. समुद्र, मागु., पद्य, (पृ. १८अ-१८आ), आदिः जय पास देवा करूं; अंतिः सङ्घ आस्या तुरणी., पे.वि. गा.४. पे. २८. पार्श्वजिन स्तुति, मु. पुण्यरुचि, मागु., पद्य, (पृ. १८आ-१९अ), आदिः श्रीपास जिणेसर पुजा; अंतिः सुख सम्पति हितकार., पे.वि. गा.४. पे. २९. पार्श्वजिन स्तुति-वरकाणा, पं. कमलविजय, मागु., पद्य, (पृ. १९अ-१९आ), आदिः वरकाणइं वर मण्डण; अंतिः ___द्यो सुख सम्पदा., पे.वि. गा.४. पे. ३०. पार्श्वजिन स्तुति-भीनमालमण्डन पुरुषादाणी, उपा. कुशलसागर, मागु., पद्य, (पृ. १९आ-२०अ), आदिः प्रभु पास जिणन्द; अंतिः ए तुठी उत्तम कामगवी., पे.वि. गा.४. पे. ३१. पार्श्वजिन स्तुति, मु. मोहनविजय, मागु., पद्य, (पृ. २०अ-२०आ), आदिः मेरु महीधर सुन्दर; अंतिः मोहन जयजयकारं., पे.वि. गा.४. पे. ३२. महावीरजिन स्तुति, उपा. नयविजय, मागु., पद्य, (पृ. २१अ-२२अ), आदि: भवियण वन्दो; अंतिः नयविजय जयदाई., पे.वि. गा.४. पे. ३३. महावीरजिन स्तुति, मु. लालविजय, मागु., पद्य, (पृ. २२अ-२२अ), आदिः वान्दु वीर जिनेसर; अंतिः कहे सदाइ सङ्गट हरे., पे.वि. गा.४. पे. ३४. महावीरजिन स्तुति, मु. रत्नविमल, मागु., पद्य, (पृ. २२अ-२३अ), आदिः सासननायक श्रीमहावीर; अंतिः द्यो सरसती वाणीजी., पे.वि. गा.४. पे. ३५. महावीरजिन स्तुति, मु. पुण्यरुचि, मागु., पद्य, (पृ. २३अ-२३आ), आदिः महावीर मोटो जगनाथ; अंतिः रूचिने दोलित करे., पे.वि. गा.४. पे. ३६. रोहिणीतप स्तुति, मु. लब्धिरूचि, मागु., पद्य, (पृ. २३आ-२४अ), आदिः जयकारी जिनवर; अंतिः लब्धिविजय जयकार., पे.वि. गा.४. पे. ३७. रोहिणीतप स्तुति, मु. पद्मसागर, मागु., पद्य, (पृ. २४अ-२४आ), आदिः जयानन्दन दीपतो; अंतिः पद्मसागर गुण गाय तो., पे.वि. गा.४. पे. ३८. साधारणजिन स्तुति, मु. कवियण, मागु., पद्य, (पृ. २४आ-२५आ), आदि: चम्पक केतकी पाडल; अंतिः जो तुंसे देवी अम्बाई., पे.वि. गा.४. पे. ३९. पर्युषणपर्व स्तुति, आ. ज्ञानविमलसूरि, मागु., पद्य, (पृ. २५आ-२६आ), आदिः पर्व पजुसण पुण्ये; अंतिः सुजश ____ महोदय लीजे., पे.वि. गा.४. पे. ४०. पर्युषणपर्व स्तुति, पं. जिनविजय, मागु., पद्य, (पृ. २६आ-२७अ), आदिः पुण्यनुं पोषण; अंतिः दिनदिन अधिक वधाइजी.,पे.वि. गा.४. For Private And Personal Use Only Page #297 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir २४३ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची पे. ४१. पर्युषणपर्व स्तुति, मु. बुधविजय, मागु., पद्य, (पृ. २७अ-२७आ), आदिः वीर जिणेसर अति; अंतिः बुधविजय जयकारीजी., पे.वि. गा.४. पे. ४२. पर्युषणपर्व स्तुति, मु. पद्मविजय, मागु., पद्य, (पृ. २८अ-२८आ), आदिः एक पनोति पदमणि; अंति: पद्म कहइ प्रणमीजेजी., पे.वि. गा.४. पे. ४३. पर्युषणपर्व स्तुति, मु. मानविजय, मागु., पद्य, (पृ. २८आ-२९अ), आदिः सत्तरभेदी जिनपूजा; अंतिः पुरो देवी सिद्धाइजी., पे.वि. गा.४. पे. ४४. पर्युषणपर्व स्तुति, मु. अमरविजय, मागु., पद्य, (पृ. २९अ-२९आ), आदिः परव पजुसण पुण्ये; अंतिः निसदिन करो वधाइजी., पे.वि. गा.४. पे. ४५. पर्युषणपर्व स्तुति, पं. रविविजय, मागु., पद्य, (पृ. २९आ-३०अ), आदिः वीर जिनेसर त्रिसला; अंति: रविनइ सिद्धाइ दीजेजी., पे.वि. गा.४. पे. ४६. सिद्धचक्र स्तुति, मु. उत्तमसागर, मागु., पद्य, (पृ. ३०आ-३१अ), आदिः सिद्धचक्र सेवो भवि; अंतिः वाचक० उत्तम सीस सवाई., पे.वि. गा.४. पे. ४७. सिद्धचक्र स्तुति, मु. नेमिविजय, मागु., पद्य, (पृ. ३१अ-३१आ), आदिः भाव भगते करी सुगुरु; अंतिः तसु वाञ्छित साधस्ये., पे.वि. गा.४. पे. ४८. सिद्धचक्र स्तुति, प्रा., पद्य, (पृ. ३१आ-३२अ), आदिः भत्तिजुत्ताण सत्ताण; अंतिः महन्ताण कल्लाणगं., पे.वि. गा.४. पे. ४९. सिद्धचक्र स्तुति, मु. भाणविजय, मागु., पद्य, (पृ. ३२अ-३२आ), आदिः वीरजिणेशर अति अलवेसर; अंतिः सानिध करज्यो मायजी.,पे.वि. गा.४. पे. ५०. सिद्धचक्र स्तुति, गणि कान्तिविजय, मागु., पद्य, वि. १८उ., (पृ. ३२आ-३३आ), आदिः पहिले पद जपीइ; अंतिः कान्तिविजय गुण गाय., पे.वि. गा.४. पे. ५१. सिद्धचक्र स्तुति, उपा. नयविजय, मागु., पद्य, (पृ. ३३आ-३४अ), आदिः सासननायक शिवसुखदायक; अंतिः नयविजय जयकारीजी., पे.वि. गा.४. पे. ५२. पार्श्वजिन स्तुति, मु. विवेकचन्द, मागु., पद्य, (पृ. ३४अ-३५अ), आदिः पदल विहार जिणेशर; अंतिः जीवज्यो कोडि वरिसजी., पे.वि. गा.४. पे. ५३. आदिजिन स्तुति-वीसलपुरमण्डन, मु. देवकुशल, मागु., पद्य, (पृ. ३५अ-३५अ), आदिः विसलपुर वान्दु; अंतिः सङ्घना विघ्न निवार., पे.वि. गा.४. पे. ५४. साधारणजिन स्तुति, सं., पद्य, (पृ. ३५आ-३५आ), आदिः श्रीतीर्थराजपदपद्म; अंतिः दाता दधतां शिवं वः., पे.वि. श्लो.१. पे. ५५. महावीरजिन स्तुति, सं., पद्य, (पृ. ३५आ-३५आ), आदिः वीरं देवं नित्यं; अंतिः देवी दद्यात्सौख्यम्., पे.वि. श्लो.१. पे. ५६. साधारणजिन स्तुति, प्रा., पद्य, (पृ. ३५आ-३५आ), आदिः शुभारतीरा जिनवारयामा; अंतिः जिनवारतारा., पे.वि. गा.१. पे. ५७. साधारणजिन स्तुति, प्रा., पद्य, (पृ. ३५आ-३५आ), आदिः सत्थीयनन्दावत्तजुत्त; अंतिः सुत्तसूरि वित्तमहेसर., पे.वि. गा.१. २३३७.” स्तोत्र, चैत्यवन्दन सङ्ग्रह व स्तुति, संपूर्ण, वि. १९५१, मध्यम, पृ. ९, पे. १८, जैदेना., ले.स्थल. विजापुर, ले. श्रा. पुनमचन्द, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-अंतिम पत्र, (२४.५४१४, १२४२७). पे. १.२४ जिन स्तोत्र, मु. सुखनिधान, सं., पद्य, (पृ. १अ), आदिः आदौ नेमिजिनं नौमी; अंतिः मोक्षलक्ष्मीनिवासम्., पे.वि. श्लो.८. For Private And Personal Use Only Page #298 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org: हस्तलिखित जैन साहित्य भाग १ पे. २. पार्श्वजिन स्तोत्र - चिन्तामणि, सं., पद्य, (पृ. १अ - २आ), आदिः किं कर्पूरमयं सुधारस; अंतिः बोधिबीजं ददातु., पे.वि. श्लो. ११. ; पे. ३. तीर्थवन्दना चैत्यवन्दन, सं., पद्य, (पृ. २आ-३आ), आदि सद्भक्त्या देवलोके अंतिः सततं चित्तमानन्दकारि., पे.वि.श्लो १० पे. ४. पे नाम शाश्वताचैत्य स्तोत्र, पृ. ३आ-४आ मंगलचैत्य स्तोत्र, सं., पद्य, आदिः नित्ये श्रीभुवनाधि; अंतिः कुर्वन्तु वो मङ्गलम्., पे.वि. श्लो. ८. पे. ५. पे नाम. एकीभावेसम स्तोत्र, पृ. ४आ-५अ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सर्वजिन स्तोत्र, सं., पद्य, आदिः जय वीतराय मोहजय; अंतिः सुचन्द्राभिरूपः., पे.वि. श्लो. ५. पे. ६. सीमन्धरजिन स्तोत्र, आ. रूपसिंह, सं., पद्य, (पृ. ५अ - ५आ), आदि अनन्त कल्याणकरं अंतिः तेषां वत साधुरूपा., पे.वि. श्लो. ५. पे. ७. २४ जिन स्तव, आ. जिनप्रभसूरि *, सं., पद्य, (पृ. ५आ-६अ), आदि: नतसुरेन्द्रजिनेन्द्र : अंतिः कुरु मङ्गलम्., पे.वि. श्लो. ९. पे. ८. साधारणजिन चैत्यवन्दन आ. मुनिसुन्दरसूरि सं., पद्य, (पृ. ६अ-६आ), आदि जय श्रीजिनकल्याण : अंतिः वृद्धितराचिरात्ममापि, पे.वि. श्लो. ६. पे. ९. पार्श्वजिन स्तोत्र, सं., पद्य, (पृ. ६आ-७अ ), आदिः प्रणमामि सदा प्रभुः अंतिः पार्श्वजिनं शिवदम्., पे.वि. श्लो.६. पे. १०. साधारणजिन स्तव, आ. जयानन्दसूरि, सं., पद्य, (पृ. ७अ - ७आ), आदिः देवाः प्रभो यं; अंतिः जयानन्दमयप्रदेया., पे.वि. श्लो. ९. " पे. ११. सीमन्धरजिन चैत्यवन्दन, मु. हर्षविजय, मागु., पद्य, (पृ. ७आ-८अ ) आदि पूरव दिशि इशान अंतिः पुरो सङ्घ जगीश., पे.वि. गा. ८. पे. १२. सीमन्धरजिन स्तोत्र, सं., पद्य, (पृ. ८अ - ९अ), आदि: त्रैलोक्यपूज्यस्य; अंतिः शान्तिकारं कृतं मे., पे.वि. श्लो. ८. पे. १३. महावीरजिन स्तुति-विजापुर, मागु, पद्य, (पृ. ९अ) आदि विजापुर वसिया महावीर अंतिः मेलावाट छटन्दा हे.., पे. वि. गा.१. पे. १४. शत्रुंजयतीर्थ चैत्यवन्दन, मु. कल्याण, मागु, पद्य, (पृ. ९आ), आदि जय जय नाभिनरिन्दनन्द: अंतिः निसदिन नमत कल्याण, पे.वि. गा. ३. पे. १५. शत्रुंजयतीर्थ चैत्यवन्दन, पं. पद्मविजय, सं., पद्य, (पृ. ९आ), आदिः विमलकेवलज्ञानकमला; अंतिः पद्मविजय सुविहितकरम्., पे.वि. श्लो. ७. २४४ पे. १६. पंचतीर्थी चैत्यवन्दन, कवि ऋषभदास सङ्घवी, मागु., पद्य, (पृ. ९आ), आदिः आज देव अरिहन्त; अंतिः धरे आज देव महिमा घणो., पे.वि. गा. ५.. पे. १७. ज्ञानपंचमीपर्व चैत्यवन्दन, मु. रङ्गविजय, मागु., पद्य, (पृ. ९आ) आदि त्रिगडे बेठा वीरजिन; अंति रङ्गविजय लहो सार, पे.वि. गा.९. " पे. १८. अष्टमीतिथि चैत्यवन्दन, मु. मेघविजय मागु पद्य, (पृ. ९आ), आदि: श्रीचन्द्रप्रभु नित अंतिः ते पामो भवि पार ए.. पे.वि. गा.६. " २३३८. स्तवन, गणधर सज्झाय सङ्ग्रह व गौतम स्तुति, संपूर्ण, वि. १८५१, मध्यम, पृ. ६, पे. ९, जैदेना., ले. स्थल. कपदीपुरा, ले. मु. जीतसागर, (२५x११, १५x५१). पे. १ स्तवनचीवीसी, मु. न्यायसागर, मागु, पद्य, (पृ. १४-५अ), आदि जग उपगारी रे साहिब: अंतिः शीस जिन गुण भजे. For Private And Personal Use Only पे. २. शान्तिजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मागु, पद्य, (पृ. ५आ-५आ) आदि अचिरानन्दन ओतपु द्यो: अंतिः मोहन प्रणमे पाय., पे.वि. गा. ५. Page #299 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir २४५ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची पे. ३. विमलजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मागु., पद्य, (पृ. ४आ-५अ), आदिः विमल जिणन्द सुग्यान; अंति: सेवक विनति मानोजी., पे.वि. गा.७. पे. ४. अजितजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मागु., पद्य, (पृ. ५आ-५आ), आदिः ओलगडी अजित जिणन्दनी; अंतिः नामे जयकार नवनिध के.,पे.वि. गा.७. पे. ५. महावीरजिन स्तवन, मु. उदयरत्न, मागु., पद्य, (पृ. ५आ-६अ), आदिः श्रीप्रभुजी तुमे तो; अंतिः कहे एह वडा ध्यावो., पे.वि. गा.१२. पे. ६. गौतमस्वामी स्तुति, मागु., पद्य, (पृ. ६अ-६अ), आदिः सकललब्धिपदं विपदापहं; अंतिः फलं श्रुतदेवता., पे.वि. गा.४ . पे.७.११ गणधर भास, उपा. यशोविजयजी गणि, मागु., पद्य, (पृ. ६अ-६आ), आदिः पहिलो गणधर विरलो वर; अंतिः धर्म स्नेही रे., पे.वि. गा.७. पे. ८. अग्निभूतिगणधर सज्झाय , उपा. यशोविजयजी गणि, मागु., पद्य, (पृ. ६आ-६आ), आदिः गोबर गाम समृद्ध; अंतिः वाचक जस कहेजी., पे.वि. गा.७. पे. ९. वायुभूतिगणधर सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मागु., पद्य, (पृ. ६आ-६आ), आदिः त्रीजो गणधर मुज; अंतिः लहे सुख हजूर के., पे.वि. गा.७. २३३९. क्षेत्रसमास, संपूर्ण, वि. १८९३, श्रेष्ठ, पृ. २५, जैदेना., ले.स्थल. सांडेरावनगर, ले. मु. सुखसागर (गुरु कवि दीपसागर), प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र.वि. अध्याय-५, प्र.ले.श्लो. (१४१) यादशं पुस्तकं कृत्वा; (५००) जले रक्षं स्तैले रक्षं, (२५४१२.५, ८x२४). बृहत्क्षेत्रसमास-लघुक्षेत्रसमास, आ. जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण, संक्षेप, प्रा., पद्य, आदिः नमिऊणसजलजलहर; अंतिः झाएज्जा सम्मदीट्ठीए. २३४०. चैत्यवन्दन, स्तवन, सज्झाय व बारमासो सङ्ग्रह, पूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १०-१(३)=९, पे. १८, जैदेना., (२५४११.५, १३४२८). पे. १. पंचपरमेष्ठिगुणगर्भितजिन चैत्यवन्दन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मागु., पद्य, (पृ. १अ-१अ, संपूर्ण), आदिः बार गुण अरिहन्तदेव; अंतिः नयविमल सुखकार., पे.वि. गा.३. पे. २.२० स्थानकतप चैत्यवन्दन, पं. पद्मविजय, मागु., पद्य, (पृ. १अ-१अ, संपूर्ण), आदिः पहेले पद अरिहन्त; अंतिः __ होय सुख खाणी., पे.वि. गा.५. पे. ३. बीजतिथि चैत्यवन्दन, पं. पद्मविजय, मागु., पद्य, (पृ. १अ-१अ, संपूर्ण), आदिः दुविध धर्म जिणे; अंतिः होइ सुख खाणी., पे.वि. गा.७. पे. ४. शत्रुजयतीर्थ चैत्यवन्दन, पं. पदमविजय, सं., पद्य, (पृ. १आ-२अ, संपूर्ण), आदिः विमलकेवलज्ञानकमला; अंतिः पद्मविजय सुविहितकरम्., पे.वि. श्लो.७. पे. ५. साधारणजिन चैत्यवन्दन, मु. राम, मागु., पद्य, (पृ. २अ-२आ, संपूर्ण), आदि: परमेश्वर परमात्मा; अंतिः चिन्दानन्द सुख थाय., पे.वि. गा.३. पे. ६.२० स्थानकतप काउसग्ग चैत्यवन, पं. पद्मविजय, मागु., पद्य, (पृ. १अ, संपूर्ण), आदिः चोवीस पनर पीसतालीसनो; अंतिः नमी निज कारज साधे., पे.वि. गा.५. पे.७. साधारणजिन चैत्यवन्दन, मु. राम, मागु., पद्य, (पृ. २आ-आ, संपूर्ण), आदिः निज रूपे जिननाथ के अंतिः राम कहे सुखपूर., पे.वि. गा.३. पे. ८. अष्टमीतिथि चैत्यवन्दन, पं. पद्मविजय, मागु., पद्य, (पृ. २आ-२आ, संपूर्ण), आदि: महा सुदी आठमने दिने; अंतिः सेव्याथी सिव वास., पे.वि. गा.७. For Private And Personal Use Only Page #300 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य भाग - १ २४६ पे. ९. सीमन्धरजिन स्तवन, कवि पद्मविजय, मागु., पद्य, (पृ. ४अ-४अ, संपूर्ण), आदिः सुणो चन्दाजी सीमन्धर; अंतिः ___ वाधे मुज मन अतिनूरो., पे.वि. गा.७. पे. १०. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मागु., पद्य, (पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण), आदिः सिद्धगिरि ध्यायो; अंतिः ज्ञानविमल० इम गुणगाइ., पे.वि. गा.४. पे. ११. महावीरजिन जन्मकुण्डली स्तवन, पं. वीरविजय, मागु., पद्य, (पृ. ४आ-५आ, संपूर्ण), आदिः सेवधी संचउ घेरियां; अंतिः शुभवीर प्रभु मेहेरसे., पे.वि. गा.१०. पे. १२. अष्टापदतीर्थ स्तवन, मु. ज्ञानविमल, मागु., पद्य, (पृ. ५आ-६अ, संपूर्ण), आदिः अष्टापद गिरि जात्रा; अंतिः सुरनर नायक गावे., पे.वि. गा.८. पे. १३. अष्टापदतीर्थ स्तवन, मु. वीरविजय, मागु., पद्य, (पृ. ६अ-६आ, संपूर्ण), आदिः चउ अठ दस दोय; अंति: गायो ऋषभ सीव ठाम रे., पे.वि. गा.८. पे. १४. पार्श्वजिन स्तवन-शद्धेश्वर, मु. जिनहर्ष, मागु., पद्य, (पृ. ६आ-७अ, संपूर्ण), आदिः अन्तरजामी सुण अलवेसर; अंति: मुजने भवसागरथी तारो., पे.वि. गा.५. पे. १५. नेमराजिमती बारमासो, मु. वीरविजय, मागु., पद्य, (पृ. ७अ-८आ, संपूर्ण), आदिः सखि तोरण आई कन्त; अंतिः शाल समयमां देखतां., पे.वि. गा.१८. पे. १६. सहजानन्दी सज्झाय, पं. वीरविजय, मागु., पद्य, (पृ. ८आ-९आ, संपूर्ण), आदिः सहजानन्दी रे आतीमा; अंतिः __ भवजल तरीया अनेक रे., पे.वि. गा.११. पे. १७. सिद्धचक्र स्तवन, मु. केशरविजय, मागु., पद्य, (पृ. १०अ-१०आ, संपूर्ण), आदिः समरी सारद माय प्रणमी; अंतिः सीस केशर गुण गाय., पे.वि. गा.९. पे. १८. पे. नाम. सीता की सज्झाय, पृ. १०आ-१०आ, संपूर्ण सीतासती सज्झाय , मु. उदयरतन, मागु., पद्य, आदिः जनकसुता हुं नाम; अंतिः नित्य होजो प्रणाम., पे.वि. गा.७. २३४१. स्तवन, सज्झाय आदि सङ्ग्रह, संपूर्ण, वि. १९१२, श्रेष्ठ, पृ. १७, पे. ५१, जैदेना., ले.स्थल. धारानगर, ले. ऋ. रणधीर (गुरु मु. मलुकचन्द), राज्यकाल- राजा यशवन्तसिङ्घ, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. अन्त में ग्रन्थ की खतावणी (अनुक्रमणिका) दी गयी है., (२५.५४१०.५, १८४५०). पे. १. निर्मोही ढाल, ऋ. रतनचन्द, मागु., पद्य, वि. १८७४, (पृ. १-२आ), आदिः निरमोही गुण वरणवू; अंतिः पञ्च ढाल प्रसिद्ध रे., पे.वि. ढाळ-५. पे. २. दशार्णभद्रराजा चौढालिया, मागु., पद्य, (पृ. २आ-३आ), आदिः ऋषभ जिनेसर पाय नमुं; अंतिः ते पामे सुखसार., पे.वि. ढाळ-४. पे. ३. धर्मोपदेश सज्झाय, मागु., पद्य, वि. १८९४, (पृ. ३आ-४अ), आदिः मनुष्य जाति लही; अंतिः धर्म भगति लही., पे.वि. गा.१९. पे. ४. मेघकुमार सज्झाय, प्राहिं., पद्य, (पृ. ४अ-५अ), आदिः दुर्लभ लाधो मनुष्य; अंतिः क्रोध लोभ अहंकार नही., पे.वि. गा.२०. पे. ५. औपदेशिक सज्झाय, राज., पद्य, (पृ. ५अ), आदिः धर्म पावे तो कोई अंतिः कोद्रण होवे लारेजी., पे.वि. गा.६. पे. ६. औपदेशिक पद, प्राहिं., पद्य, (पृ. ५अ), आदिः धरम उपजत हेत हिंसा; अंतिः नकार है नही मूल., पे.वि. गा.४. पे. ७. शील पद, प्राहिं., पद्य, (पृ. ५आ), आदिः जाकी महिमा त्रिभुवन; अंतिः शीलवन्त आज के., पे.वि. गा.४. पे. ८. धम्मोमङ्गल सज्झाय, मु. जेतसी, मागु., पद्य, (पृ. ५आ-६अ), आदिः धम्मो मङ्गल महिमा; अंति: जैतसी धरमे जय जयकार., पे.वि. गा.१९. पे. ९. जैन गाथा *, मागु., पद्य, (पृ. ६अ), आदि:-; अंति: For Private And Personal Use Only Page #301 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir २४७ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची पे. १०. औपदेशिक सज्झाय, मु. विनयचन्द्र, मागु., पद्य, वि. १८७४, (पृ. ६अ-६आ), आदिः श्रीजिनवरनो ए उपदेस; ___ अंतिः विनयचन्द ए जोडी ढाल., पे.वि. गा.२५.. पे. ११. साधारणजिन लावणी, मु. जिनदास, राज., पद्य, (पृ. ६आ-७अ), आदिः मनसुण रे थारी सफळ; अंतिः खाण मान नहि मावे., पे.वि. गा.५. पे. १२. नेमिजिन लावणी, मु. जिनदास, प्राहिं., पद्य, (पृ. ७अ), आदिः मति जावो गिरनार नेम; अंतिः नित उठी दर्शणकुं रे., पे.वि. गा.४. पे. १३. औपदेशिक लावणी, मु. जिनदास, प्राहिं., पद्य, (पृ. ७अ), आदिः चल चेतन अब उठकर अपने; अंतिः एक निज दरसण चहिये., पे.वि. गा.४. पे. १४. औपदेशिक लावणी, मु. जिनदास, प्राहिं., पद्य, (पृ.७अ-७आ), आदिः करमदल मलकुं क्षय; अंति: मनमें कोई शङ्का रे., पे.वि. गा.४. पे. १५. औपदेशिक लावणी, मु. जिनदास, प्राहिं., पद्य, (पृ. ७आ), आदिः बल जावो रे मुसा पर; अंतिः जिणदास० चरण पेठेरी., पे.वि. गा.५. पे. १६. पार्श्वजिन पद-अन्तरीक्षजी, मु. जिनदास, प्राहिं., पद्य, (पृ. ७आ-८अ), आदिः अन्तरीक अन्तरजामी; अंतिः जिनदास की मेटो खामी., पे.वि. गा.५. पे. १७. औपदेशिक लावणी, मु. जिनदास, प्राहिं., पद्य, (पृ. ८अ), आदिः सुकृत की बात तेरे; अंतिः से जोर तेरो नहीं रे., पे.वि. गा.५. पे. १८. औपदेशिक पद, मु. जिनदास, प्राहिं., पद्य, (पृ. ८अ-८आ), आदिः तुम तजौ जगत का ख्याल; अंतिः उपदेश धरे मत कांणा., पे.वि. गा.४. पे. १९. नेमराजिमती पद, मु. जिनदास, प्राहिं., पद्य, (पृ. ८आ), आदिः सुनरी सईया स्याम; अंतिः कर आयो में उलेरी., पे.वि. गा.४. पे. २०. आत्मनिन्दा पद, मु. जिनदास, प्राहिं., पद्य, (पृ. ८आ), आदिः तप जप विना नित खाय; अंतिः कुख में भावो रे., पे.वि. गा.६. पे. २१. नेमराजिमती पद, चन्द्रप्रताप, मागु., पद्य, (पृ. ८आ), आदिः सांवराजी सुं कहीयो; अंति: नाथ मेरो तुमही ___कयोरी., पे.वि. गा.५. पे. २२. औपदेशिक गीत, मागु., पद्य, (पृ. ८आ-९अ), आदिः चिहुं गतिमांहि चाक; अंतिः अनंत चतुष्टय थावै री., पे.वि. ___ गा.८. पे. २३. सम्यग्दर्शन गीत, प्राहिं., पद्य, (पृ. ९अ), आदिः दरसण षट दरसण निज; अंति: भवजल पारजी., पे.वि. गा.७. पे. २४. सीतासती सज्झाय, मु. विनयचन्द, मागु., पद्य, (पृ. ९अ-९आ), आदिः बेगवतीथी बाम्भनी; अंतिः जयपुर नगर मझार., पे.वि. गा.११. पे. २५. बांसुरी पद, मोहन, मागु., पद्य, (पृ. ९आ), आदिः सुण वांसडली वैराग; अंतिः मोहन दया धारी मनमें., पे.वि. गा.६. पे. २६. नेमिजिन पद, मु. दोलत, मागु., पद्य, (पृ. ९आ), आदिः नेमीसर वान्दवा नेमी; अंतिः महिर करो महाराज., पे.वि. गा.५. पे. २७. तपपद सज्झाय, ऋ. रायचन्द, मागु., पद्य, (पृ. ९आ-१०अ), आदिः तप वडो रे संसार में; अंतिः जोधानै चोमासो रे., पे.वि. गा.१४. पे. २८. औपदेशिक पद, मु. रूपचन्द, प्राहिं., पद्य, (पृ. १०अ), आदिः मोय कैसे तारोगै दीन; अंतिः रूपचन्द गुण गाय., पे.वि. गा.५. For Private And Personal Use Only Page #302 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir २४८ हस्तलिखित जैन साहित्य भाग - १ पे. २९. साधारणजिन स्तवन, मु. जिनदास, प्राहिं., पद्य, (पृ. १०अ), आदिः मे दास तमारो मेरी; अंतिः कीजै मोकु खोटेको खरो., पे.वि. गा.३. पे. ३०. औपदेशिक पद, मु. जिनदास, प्राहिं., पद्य, (पृ. १०अ), आदिः तुम जिनन्द जगतपति; अंतिः किरीया सब नाखी., पे.वि. गा.४. पे. ३१. औपदेशिक पद, मु. पेम, प्राहिं., पद्य, (पृ. १०अ), आदिः ममत मत कीज्यो राज; अंतिः बधे सुख दिनदिन में., पे.वि. गा.४. पे. ३२. औपदेशिक पद, मागु., पद्य, (पृ. १०अ-१०आ), आदिः मानव भव लाधो राज; अंतिः समझै नही चित आधो., पे.वि. गा.३. पे. ३३. औपदेशिक पद, मु. विनयचन्द, मागु., पद्य, (पृ. १०आ), आदिः मन मेला नर मेला किम; अंतिः पन्थक सिरखा चेला रे., पे.वि. गा.६. पे. ३४. औपदेशिक सज्झाय, प्राहिं., पद्य, (पृ. १०आ-११अ), आदिः कडवा बोल्या अनरथ; अंति: मोसो कोइ मत प्रकासो., पे.वि. गा.२४. पे. ३५. कवित्त, मागु., पद्य, (पृ. ११अ), आदिः आज हीङ्ग आण तेल; अंतिः पचास आण बेंर की., पे.वि. गा.१. पे. ३६. पे. नाम. आनन्द स्तवन, पृ. ११अ-११आ आनन्दश्रावक गौतमस्वामी चर्चा स्तवन, ऋ. चौथमल, मागु., पद्य, वि. १८२४, आदिः हाथ जोडी आनन्द कहें; अंतिः ऋषि चोथमल कहै उलासही., पे.वि. गा.१३. पे. ३७. औपदेशिक पद, मु. विनयचन्द, प्राहिं., पद्य, (पृ. ११आ), आदिः सुकरत करले रे मुजी; अंतिः सुकृत साहमो-जी., पे.वि. गा.१०. पे. ३८. सुकृतकरणी पद, मु. विनयचन्द, राज., पद्य, (पृ. ११आ-१२अ), आदिः सुकृत करलै रे गैला; अंतिः सुणतां चित्त ठरेला., पे.वि. गा.८. पे. ३९. सम्भवजिन स्तवन, मु. विनयचन्द, मागु., पद्य, (पृ. १२अ), आदिः आज मारा सम्भवजिन; अंतिः आवागमन मिटासां राज., पे.वि. गा.७. पे. ४०. नवकारवाली स्तवन, मागु., पद्य, वि. १८३१, (पृ. १२अ-१२आ), आदिः अरिहन्त पहलै पद जाणी; अंति: नहीतर जपतां कटै जाली., पे.वि. गा.१२. पे. ४१. औपदेशिक पद, नग, राज., पद्य, (पृ. १२आ), आदिः थोडे दिन को जीवणो; अंतिः जब देखी जमका क्यझ., पे.वि. गा.८. पे. ४२. विहरमान २० जिन स्तवन, मु. विनयचन्द, मागु., पद्य, (पृ. १२आ-१३अ), आदिः प्रात समय परमाद; अंतिः चरणां सासन माय रे., पे.वि. गा.९. पे. ४३. औपदेशिक सज्झाय, मु. विनयचन्द, राज., पद्य, (पृ. १३अ), आदिः प्रभुजी रो नाम; अंतिः विनयचन्द वरदाई., पे.वि. गा.९. पे. ४४. सीतासती पद, मु. विनयचन्द, प्राहिं., पद्य, (पृ. १३अ), आदिः राम अयोध्या राज; अंतिः टरें नही दोनुं टारी., पे.वि. गा.५. पे. ४५. महावीरजिन पद, ऋ. रायचन्द, मागु., पद्य, (पृ. १३अ-१३आ), आदि: सिद्धारथ कुल में जी; अंतिः आईं तुमारे ___पासजी., पे.वि. गा.१४. पे. ४६. महावीरजिन सज्झाय, ऋ. रायचन्द, मागु., पद्य, (पृ. १३आ-१४अ), आदिः शासननायक वीर जिणन्द; अंतिः क्रिपाजी नाथ., पे.वि. गा.१०. पे. ४७. औपदेशिक पद, मु. विनयचन्द, मागु., पद्य, वि. १८६५, (पृ. १४अ), आदिः बाहिर साग अध्यातम; अंतिः दसमीने परब लो हरी., पे.वि. गा.१७. For Private And Personal Use Only Page #303 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir २४९ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची पे. ४८. साधुषट्कायसंयम होरी, मु. विनयचन्द, मागु., पद्य, वि. १९वी, (पृ. १४अ-१४आ), आदिः ऐसै मुनिराज छकाय; अंतिः जिहां दरिया वत वइया., पे.वि. गा.१४. पे. ४९. सगपण व्यवहार, ऋ. लालचन्द, मागु., पद्य, वि. १८६३, (पृ. १४आ-१५अ), आदिः श्रीअरिहन्त सिद्ध; अंतिः __सहर भांणपुर कै मांहि., पे.वि. गा.२५. पे. ५०. पार्श्वजिन स्तवन, मु. जिनचन्द्र, प्राहिं., पद्य, (पृ. १५अ), आदिः जय बोलो पास जिनेसर; अंतिः छाया सुरतरु की., पे.वि. गा.७. पे. ५१. पे. नाम. सवैया, कवित, कुण्डलीया सङ्ग्रह, पृ. १५अ-१६आ कवित सङ्ग्रह', मागु.,प्राहिं.,राज., पद्य, आदि:-; अंति:-, पे.वि. गा.२३. २३४२. पद, सवैया, स्तुति व स्तवनादि सङ्ग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १४, पे. १६७, जैदेना., (२५.५४११, २२४५६). पे. १. औपदेशिक पद, राज.,प्राहिं., पद्य, (पृ. १अ), आदिः मन्दिर च्यार चुनाय; अंतिः सुनता भनता सुख लीजो. पे. २. औपदेशिक पद, गुलाब, राज., पद्य, (पृ. १अ), आदिः वनडो भलो रिझायो येहि; अंतिः तो शिवरमनी वर पायो., पे.वि. गा.५. पे. ३. साधारणजिन पद, प्राहिं., पद्य, (पृ. १अ), आदिः बिन देखे रह्यों नही; अंतिः आनन्द उर न समाय., पे.वि. गा.४. पे. ४. नेमिजिन पद, प्राहिं., पद्य, (पृ. १आ), आदिः नेमजी तुम बाल; अंति: आवागमन निवारि., पे.वि. गा.२. पे. ५. सत्सङग पद, मु. जिनदास, प्राहिं., पद्य, (पृ. १अ), आदिः सङ्गत साधो; अंतिः तृष्णा तापसे तार., पे.वि. गा.५. पे. ६. सत्सङगफल पद, प्राहिं., पद्य, (पृ. १अ), आदिः सङ्गत साधों से; अंतिः सरनै पड्यो छु मै आन., पे.वि. गा.६. पे. ७. आदिजिन पद, प्राहिं., पद्य, (पृ. १अ-१आ), आदिः जिनस्वामी सिवगामी; अंतिः आगे धरणेन्द्र चन्दनी., पे.वि. गा.४. पे. ८. नेमिजिन पद, प्राहिं., पद्य, (पृ. १आ), आदिः छपन कोडि जादौ मिल्या; अंतिः मुज लीजीयै हो राज., पे.वि. गा.५. पे. ९. साधारणजिन पद, मु. रतन-शिष्य, प्राहिं., पद्य, (पृ. १आ), आदिः अरजी सुनो येक हमारी; अंतिः शिवरमणी छै न्यारी., पे.वि. गा.४. पे. १०. नेमिजिन पद, प्राहिं., पद्य, (पृ. १आ), आदिः नेमस्वाम से कहियो; अंति: लही मुक्तिना दोरी., पे.वि. गा.४. पे. ११. महावीरजिन पद, मागु., पद्य, (पृ. १आ), आदिः तुं तो अनन्तबली; अंतिः मुजकु किम बिसरायो., पे.वि. गा.४. पे. १२. औपदेशिक पद, भूधर, प्राहिं., पद्य, (पृ. १आ), आदिः चरखा भया पुराना रे; अंतिः भूदर समझ सवेरा., पे.वि. गा.५. पे. १३. साधारणजिन पद, मु. विनयचन्द, राज., पद्य, (पृ. १आ-२अ), आदिः रेखता कर भावपुजा; अंतिः पूजा सकल समाधी., पे.वि. गा.७. पे. १४. साधारणजिन पद, मु. रूपचन्द, प्राहिं., पद्य, (पृ. २अ), आदि: जल विन कमल कमल बिन; अंतिः समझी नही जिनवाणी., पे.वि. गा.४. पे. १५. सुपार्श्वजिन पद, मु. हर्षचन्द, प्राहिं., पद्य, (पृ. २अ), आदिः श्रीसुपास जिनेसरजीकु; अंतिः हर्षचन्द प्रभु बन्दा., पे.वि. गा.४. पे. १६. साधारणजिन पद, कमलापति, राज., पद्य, (पृ. २अ), आदि: मोह भरोसो भारी परम; अंतिः सेवा मागु में थारी.,पे.वि. गा.५. पे. १७.५ इन्द्रियविषय पद, मु. जगराम, प्राहिं., पद्य, (पृ. २अ), आदि: भोग दुखदाई तजो भवि; अंतिः सेवो धर्म जिनराई., पे.वि. गा.४. पे. १८. औपदेशिक पद, प्राहिं.,राज., पद्य, (पृ.अ),आदिः पुन साकरे कोयार; अंतिः सेवो समर बारंबार., पे.वि. गा.४. For Private And Personal Use Only Page #304 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य भाग - १ २५० पे. १९. औपदेशिक पद, प्राहिं., पद्य, (पृ. २अ-२आ), आदिः आव चल संग हमारे; अंतिः आनन्द भये हमारे री., पे.वि. गा.७. पे. २०. निद्रा पद, मु. चिदानन्द, राज., पद्य, (पृ. २आ), आदिः बिनजारन अंखीया खोल; अंतिः रङ्गमे रङ्ग झकोल., पे.वि. गा.४. पे. २१. औपदेशिक पद, मु. आनन्दघन, प्राहिं., पद्य, (पृ. २आ), आदिः अबधु सो जोगी मेरा; अंतिः आनन्दघन पद पाया., पे.वि. गा.५. पे. २२. ५६३ जीवभेद स्तवन, कवि ऋषभदास सङ्घवी, प्राहिं., पद्य, (पृ. २आ), आदिः मिच्छामिदुकडं इन पर; अंतिः इम कहे ऋषभदासजी., पे.वि. गा.१३. पे. २३. मूर्खमन पद, राज., पद्य, (पृ. ३अ), आदि: अरे मन मूरख पन्थी; अंतिः दीनी बात जाताय रे., पे.वि. गा.४. पे. २४. संसार अस्थिरता पद, मु. भागचन्द, प्राहिं., पद्य, (पृ. ३अ), आदिः जीव तु भ्रमत सदैव; अंतिः सतगुरु का चेला.,पे.वि. गा.३.। पे. २५. मदनाष्टक, प्राहिं., पद्य, (पृ. ३अ), आदि: मनसि मननितान्तं आन; अंतिः मदन सिरस भूय., पे.वि. गा.८. पे. २६. असारसंसार पद, प्राहिं., पद्य, (पृ. ३अ-४अ), आदिः वाला जोवन उमर थोरी; अंतिः बिन सजन विरह तरसइयां., पे.वि. गा.१०. पे. २७. औपदेशिक पद, कबीर, प्राहिं., पद्य, (पृ. ४अ), आदिः जोबन धन पाहुनो दिन; अंतिः बिन सत लागे न वारा., पे.वि. गा.४. पे. २८. औपदेशिक पद, कबीर, राज., पद्य, (पृ. ४अ), आदिः जन्म सारौ बाता मे; अंतिः कुन थारी साह करे रे., पे.वि. गा.३. पे. २९. कुब्जानार पद, प्राहिं., पद्य, (पृ. ४अ), आदिः कुब्जाने जादु डारा; अंतिः चरण चित्त धारा रे., पे.वि. गा.३. पे. ३०. बालकृष्ण पद, मागु., पद्य, (पृ. ४अ), आदिः वीर अपनो साम खोटो; अंतिः चरणा को लीयो योटा रे., पे.वि. गा.४. पे. ३१. सीतासती पद, राज., पद्य, (पृ. ४अ), आदिः सीताने कोन हरी रे; अंतिः या बिध आन बनी रे., पे.वि. गा.६. पे. ३२. औपदेशिक पद, कबीर, प्राहिं., पद्य, (पृ. ४अ-४आ), आदिः मना तुं एसो नीच; अंतिः वे नर जमलोके जासी., पे.वि. गा.३. पे. ३३. काव्यचमत्कृति श्लोक, सं., पद्य, (पृ. ४आ), आदिः#; अंतिः#., पे.वि. श्लो.५. सलंग गाथा क्रमांक १ से ५. पे. ३४. आध्यात्मिक सवैया, प्राहिं., पद्य, (पृ. ४आ), आदि:#; अंतिः#., पे.वि. गा.३. सलंग गाथा क्रमांक-६ से ८ तक. पे. ३५. औपदेशिक दोहा सङ्ग्रह, प्राहिं., पद्य, (पृ. ४आ-५अ), आदिः चोपड खेले चतुरनर; अंतिः मित्र तुमारे काज., पे.वि. गा.४६. सलंग गाथा क्रमांक -९ से ५४ तक. पे. ३६. नेमिजिन पद, मु. भूषण, राज., पद्य, (पृ. ५अ), आदि: नेम निरञ्जन ध्यावो; अंतिः सहु जननो जस लीनो रे., पे.वि. गा.४. पे. ३७. नेमराजिमती पद, मु. जिनदास, राज., पद्य, (पृ. ५अ-५आ), आदि: म्हारा वालेसर सेती; अंतिः नित प्रभु पाय., पे.वि. गा.४. पे. ३८. आध्यात्मिक पद, मु. जिनदास, प्राहिं., पद्य, (पृ. ५आ), आदिः तन वसतरकु रंग लगायो; अंतिः मोटो लगायो दागो रे.,पे.वि. गा.८. पे. ३९. नेमराजिमती पद, मु. जिनदास, राज., पद्य, (पृ. ५आ), आदिः थारी सांवली सुरत; अंतिः कछुइ लगावो कारी रे., पे.वि. ढाळ-४. पे. ४०. मोहमाया पद, प्राहिं., पद्य, (पृ. ५आ), आदिः कोइ मत करजो प्रीत; अंतिः कबहु न होय फजीत., पे.वि. गा.२५. For Private And Personal Use Only Page #305 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra २५१ www.kobatirth.org: कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची पे. ४१. कुसाधु पद प्राहिं, पद्य, (पृ. ५आ) आदि नाम धरायो फकीर वैदु: अंतिः किस बिध उतरे तीर रे. पे.वि. गा. ४. पे. ४२. नेमराजिमती पद, मु. जिनदास, राज, पद्य, (पृ. ५आ), आदिः स्याम मिलन की उमग अंतिः जगते तिर गये री. पे.वि. मा.५. " Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पे. ४३. पार्श्वजिन चौढालिया, मु. दोलत प्राहिं, पद्य, (पृ. ५आ-६अ), आदि: पारसनाथ सहाई हमारे अंतिः दास दोलत आपका., पे.वि. गा.३. पे. ४४. ऑपदेशिक पद, मु. गोपाल, प्राहिं, पद्य, (पृ. ६अ-६आ), आदि एह परमादी जीव जग अंति करनी वैकुंठ ले जाई., पे.वि.गा. ४. पे. ४५. औपदेशिक पद, मु. नवल, प्राहिं., पद्य, (पृ. ६आ), आदि: पुदगल का क्या विसवास; अंतिः लग आवै सासा., पे.वि. गा.३. पे. ४६. नेमराजिमती पद, प्राहिं., पद्य, (पृ. ६आ), आदि: राजुल पुकार करती; अंतिः तुम्हारे चरन खडी., पे.वि. गा.३. पे. ४७. नेमराजिमती पद, प्राहिं., पद्य, (पृ. ६आ), आदि: अरियो कांइ गुनो; अंतिः हितकरी आप सखी., पे.वि. गा.३. पे. ४८. बुढ़ापा पद, मु. भुधर, प्राहिं, पद्य, (पृ. ६आ), आदिः आयो रे बुढापो वेरी; अंतिः पीछे पछतावे प्रानी., पे.वि. गा.३. पे. ४९. नेमराजिमती पद राज, पद्य, (पृ. ६आ), आदि: हमारे घर आवोजी नेम: अंतिः ले चलो अपने लार, पे.वि. गा. ५. पे. ५०. महावीरजिन पद, मु. हर्षचन्द, प्राहिं., पद्य, (पृ. ६आ), आदिः भेट वीर जिनन्द; अंतिः हरख भरी हर्षचन्द री., पे.वि. गा. ५. पे. ५१. आदिजिन पद, मु. आनन्द अमृत ? राज, पद्य, (पृ. ६आ) आदि जित जाउ तित कलनां अंतिः आनन्दअमृत पे.वि. गा. ३. वान.. पे. ५२. औपदेशिक पढ, राज, पद्य, (पृ. ६आ), आदि नगन रूप दोउ हाथ अंतिः नमो नमो उचरो है. पे. वि. गा४. पे. ५३. शील पद, मु. जिनदास, प्राहि., पद्य, (पृ. ६आ-७अ) आदि मदन मनोरथ परिहारी अंतिः पद पाये ब्रह्मचारी.. पे.वि. गा. ३. पे. ५४. मानवभव पद, मु. करनजी, प्राहिं, पद्य, (पृ. ७अ), आदि: मना तेने रामजीने अंतिः कहे चेतन लख वाना रे., पे.वि. गा.३. ; पे. ५५. शील पद, मु. मेघराज, राज, पद्य, (पृ. ७अ), आदि त्रिया न सगी काहु अंतिः आस फली मनहु की... वि. गा. ४. " पे. ५६. नेमराजिमती पद प्राहिं, पद्य, (प्र. ७अ) आदि समझ क्यों ना खेलीये अंतिः यारु तजाता चल्यौरी, पं.वि. गा. ४. पे. ५७. नेमराजिमती पद, प्राहिं., पद्य, (पृ. ७अ ), आदि: कोइवि लइयो खबर नेमजी; अंतिः करस्यो पुर जाने की ., पे. वि. गा.२. पे. ५८. साधारणजिन पद, मु. रूपचन्द, प्राहिं., पद्य, (पृ. ७अ), आदिः अबतो निभाये बनेगी; अंतिः दीजो शिवपुर राज., पे.वि. मा.४. पे. ५९. माया पढ, मु. भूधर, राज, पद्य, (पृ. ७अ), आदि अरि जग ठगनी तु माया अंतिः भोडु कर जग पाय., पे.वि. गा. ४. पे. ६०. नेमराजिमती पद, राज., पद्य, (पृ. ७अ ), आदि: सावरो वरन वन आयो; अंतिः धन धन ए वर पायो, पे.वि. गा. ४. पे. ६१. साधारणजिन पद, राज, पद्य, (पृ. ७अ) आदि मे तो थांकी सर्न अंति: मेरी तुमकुं लाज., पे. वि. गा.३. For Private And Personal Use Only Page #306 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org: हस्तलिखित जैन साहित्य भाग १ पे. ६२. आदिजिन पद, मु. भूधर, प्राहिं, पद्य, (पृ. ७अ-७आ), आदि लगीलो नाभिनन्दनसुं अंतिः श्रीजिन समज भूदरयों., पे.वि. गा.६. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पे. ६३. ऑपदेशिक सवैया, कवि गोविन्दलाल, राज, पद्य, (पृ. ७आ), आदि राजन की नीत गइ अंतिः आऊ देव ध्यायो है., पे. वि. गा.७. पे. ६४. क्रोध पद, मु. नवल, राज, पद्य, (पृ. ७आ), आदिः भूलि हु क्रोध न करिय; अंतिः यह कहिवत जग गाई रे., पे.वि. गा. ४. पे. ६५. औपदेशिक पद, प्राहिं. राज, पद्य, (पृ. ७आ), आदिः दुखसु काहि डरे रे; अंतिः वे सब विपत हरे रे., पे.वि. गा. ३. पे. ६६ औपदेशिक पद प्राहिं, पद्य, (पृ. ७आ), आदि अरे मन सोच समझ अंतिः ध्रग ये जिंदगारी, पं.वि. गा.३. " पे. ६७. साधारणजिन पद, प्राहिं., पद्य, (पृ. ७आ-८अ ), आदिः टुक दिलकी चरम खोल; अंतिः पावे सिध भोयगा., पे.वि. गा. ९. पे. ६८. औपदेशिक पद, मु. सुखसागर, राज, पद्य, (पृ. ८अ ), आदि: चेतन अपनो रूप निहारो; अंतिः पद पावो अविकारो, पे. वि. गा. ४. ; पे. ६९. साधारणजिन पद, मु. आनन्द, राज, पद्य, (पृ. ८अ ), आदि मनुवा जिनन्द गुण अंतिः आनन्द वञ्छित पाय रे... पे.वि. गा.19. पे. ७२. औपदेशिक पद, प्राहिं., पद्य, (पृ. ८अ ), आदिः मगन रहो रे प्रभु के अंतिः जपे पे. ७३. औपदेशिक पद, रामदास, राज, पद्य, (पृ. ८अ ), आदि: भजन करी रे नर भव; पं.वि. मा.३. २५२ पे. ७०. महावीरजिन पद प्राहिं, पद्य, (पृ. ८अ ), आदि: सरन तेरी आयो अंति: सिवकारण बडवीर, पे.वि. गा.३. , पे. ७१. नेमराजिमती पद, मु. जगतराम, राज, पद्य, (पृ. ८अ ), आदि नेमीसर चल देखीये अति हर्ष हीये न समाय.. पे.वि. गा.३. पे. ७४. महावीरजिन पद, प्राहिं., पद्य, (पृ. ८अ ), आदि: सरन तेरी आयो; अंति: सिवकारण वडवीर., पे.वि. गा.५. पे. ७५. नेमिजिन पद प्राहिं, पद्य, (पृ. ८अ (आ), आदि वारी हो बधाइयां रङ्ग अंतिः ये आसीस सब दीनी. पे. वि. गा. ३. पे. ७६. सुमतिजिन पद, मु. हर्षचन्द, प्राहिं., पद्य, (पृ. ८आ), आदिः प्रभुजी जो तुम तारक; अंतिः बाहि गरेकी निवईये. पं. वि. गा. ५. " वडे धनवान., पे.वि. गा.४. अंतिः बेठो मङ्गल गाव., पे. ७७. औपदेशिक पद, राज., पद्य, (पृ. ८आ), आदि: इन नैन की केसी; अंतिः जनम जनम हमरी, पे.वि. गा.४. पे. ७८. साधारणजिन पद प्राहि., पद्य, (पृ. ८आ) आदि प्रात भयो तवही ते अंतिः रस में रङ्गयगी., पे. वि. गा.३. , " पे. ७९. साधारणजिन पद, मु. जगतराम, प्राहिं, पद्य, (पृ. (आ) आदि दरशन कोउ माहो लाग अंति: गुन अनभो जाग रह्यो, पे.वि. गा. ५. पे. ८०. साधारणजिन पद, मु. जगतराम, प्राहिं., पद्य, (पृ. ८आ), आदि: श्रीअरिहन्त सरन तेरी; अंतिः जगतराम चरन चित लायो, पे.वि. गा.४. पे. ८१. नेमराजिमती पद, मु. जगतराम, प्राहिं., पद्य, (पृ. ८आ), आदि: चल री सखी री; अंतिः नम नम पाप नसइये., पे.वि. गा. ४. For Private And Personal Use Only पे. ८२. नेमराजिमती पद, मु. जगतराम, प्राहिं., पद्य, (पृ. ८आ), आदिः सखी री मनावो; अंतिः प्रभु विन नहीं सरनो., पे.वि. गा.३. पे. ८३. साधारणजिन पद, मु. नवल, प्राहिं., पद्य, (पृ. ८आ-९अ), आदिः किये आराधना तेरी; अंतिः नवल चेरा तुमारा है., पे.वि. गा. ४. Page #307 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir २५३ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची पे. ८४. साधारणजिन पद, मु. हर्षचन्द, प्राहिं., पद्य, (पृ. ९अ), आदिः दर्शन किया हो; अंतिः भवोदधि पार उतारिया. पे.८५. सीमन्धरजिन पद, मु. भूधर, प्राहिं., पद्य, (पृ. ९अ), आदिः सीमन्धरस्वामी मे; अंतिः समरथ साहिब मेरा., पे.वि. गा.३. पे. ८६. पार्श्वजिन पद, मु. द्यानत, राज., पद्य, (पृ. ९अ), आदिः अब मोय तारलो पारस; अंतिः करि द्यानत सिवगामी., पे.वि. गा.४. पे. ८७. शील पद, मु. हर्षकीर्ति, प्राहिं., पद्य, (पृ. ९अ), आदिः चतुर चित्त विचारी; अंतिः सील सुखको निधान., पे.वि. गा.४. पे. ८८. साधारणजिन पद, प्राहिं., पद्य, (पृ. ९अ), आदिः मेरा चसमो दातारा; अंति: मुजको मुक्ति कहां है. पे. ८९. जीवहिंसाफल पद, मु. द्यानत, प्राहिं., पद्य, (पृ. ९अ), आदिः चेतन मानीले सारी; अंतिः करुना आनो छतिया., पे.वि. गा.३. पे. ९०. साधारणजिन पद, मु. भूधर, प्राहिं., पद्य, (पृ. ९अ), आदिः जिनराज ना विसारो मत; अंतिः जाहर दगा है यारो., पे.वि. गा.७. पे. ९१. आदिजिन पद, मु. नवल, प्राहिं., पद्य, (पृ. ९अ), आदिः घडी धन आजकी मेरी; अंतिः मुख आज जिनवर का., पे.वि. गा.३. पे. ९२. अशुभकर्मफल पद, प्राहिं., पद्य, (पृ. ९अ), आदि: सुन रे प्रानी पुन्य; अंतिः शुभ कर्म झकझोले रे., पे.वि. गा.४. पे. ९३. साधारणजिन पद, राज., पद्य, (पृ. ९अ), आदिः अब में अरज कराछां; अंतिः हितकर करिस्यौ काजजी., पे.वि. गा.३. पे. ९४. औपदेशिक पद, प्राहिं., पद्य, (पृ. ९आ), आदिः देखो होनी जगत में; अंतिः सुगम होत गुरु गाइ रे., पे.वि. गा.४. पे. ९५. नेमराजिमती पद, प्राहिं., पद्य, (पृ. ९आ), आदि: नेमि मिलने की बारी; अंति: मुगतिसे लगा जिया., पे.वि. गा.४. पे. ९६. बीजतिथि स्तुति, मु. लब्धिविजय, मागु., पद्य, (पृ. ९आ), आदिः दिन सकल मनोहर; अंतिः पुरो मनोरथ माय., पे.वि. गा.४. पे. ९७. अष्टमीतिथि स्तुति, मु. सौभाग्यविजय, मागु., पद्य, (पृ. ९आ), आदिः श्रीरिसहेसर रङ्गधरने; अंतिः सोभाग्य जंपे उलासाजी., पे.वि. गा.४. पे. ९८. एकादशीतिथि स्तुति, मु. सौभाग्यविजय, मागु., पद्य, (पृ. ९आ), आदिः प्रह उठी वन्दुं; अंतिः सौभाग्य जम्पै छन्द., पे.वि. गा.४. पे. ९९. चतुर्दशीतिथि स्तुति, मु. सौभाग्यविजय, मागु., पद्य, (पृ. ९आ-१०अ), आदिः करुणासागर कुन्थु; अंतिः विजय गुण गायाजी., पे.वि. गा.२. पे. १००. पार्श्वजिन लघुस्तवन-सारङ्गशब्दयुक्त, मु. रामविजय, सं., पद्य, वी. १९४२, (पृ. १०अ), आदिः वामासुत; ____ अंतिः श्रेयसेस्तु., पे.वि. श्लो.८. पे. १०१. शत्रुजयतीर्थ स्तुति, मागु., पद्य, (पृ. १०अ), आदिः आगे पूरव वार नीवाणु; अंतिः कारिज सिद्धि हमारीजी., पे.वि. गा.४. पे. १०२. नेमिजिन स्तुति, मागु., पद्य, (पृ. १०अ), आदिः सुरअसुरवन्दितपाय; अंतिः करो ते अम्बा देवीए., पे.वि. गा.४. पे. १०३. धर्मकरणी पद, प्राहिं., पद्य, (पृ. १०अ), आदिः अब आछो दाव बनो है; अंतिः कर जग प्रभुको ध्यान., पे.वि. गा.५. पे. १०४. औपदेशिक पद, प्राहिं., पद्य, (पृ. १०अ-१०आ), आदिः ब्रह्मग्यान नहीं; अंतिः अमर पद थाना रे भाई..पे.वि. गा.२. For Private And Personal Use Only Page #308 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य भाग १ २५४ पे. १०५ औपदेशिक पद, राज, पद्य, (पृ. १०आ), आदि: अरे तें वाद जन्म; अंतिः सतगुरु सीख न भायो रे, पे.वि. गा. ५. पे. १०६. साधारणजिन पद- साचादेव, मु. भागचन्द, प्राहिं, पद्य, (पृ. १०आ) आदि बुधजन पक्षपात तज: अंति कहो पूजपनो है किनमे., पे.वि. गा. ४. पे. १०७. सद्गुरू पद, प्राहिं, पद्य, (पृ. १०आ), आदि में अमली जिननाम का अंतिः जानो सही संसारण आवे., पे.वि. गा. ५. पे. १०८. नेमराजिमती पद प्राहिं, पद्य, (पृ. १०आ), आदि मे देखूंगी सखी आज अंति जग तारन तरन... पे.वि. गा.५. पे. १०९. साधारणजिन पद, मु. जगतराम, प्राहिं, पद्य, (पृ. १० आ-११अ ), आदि: म्हारी गति कीन होसी अंति: तुमने व्यापो काई., पे.वि. गा. ५. www.kobatirth.org: पे. ११०. साधारणजिन पद, मु. भूधर, प्राहिं, पद्य, (पृ. ११अ ), आदि: जप माला जिनवर नामकी अंतिः रटना पूरन राम की, पे.वि. गा.६. पे. १११. औपदेशिक पद, कबीर, प्राहिं., पद्य, (पृ. ११अ ), आदिः राग विनज क्या कीना; अंतिः आयो हुं सरन तुमारी., पे.वि. गा.२. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पे. ११२. महावीरजिन पद, मु. हर्षचन्द, प्राहिं., पद्य, (पृ. ११अ), आदि: माई मेरो मन तेरो; अंति: सबही काज सरे रे., पे.वि. गा.४. पे. ११३. रावण पद, ऋ. जवाहर, प्राहिं, पद्य, (पृ. ११अ) आदि रावण कुं समझावै रानी: अंतिः हम नाहि कहि जानी., पे.वि. गा. ३. पे. ११४. जिनवाणी पद, मु. जिनदास, राज, पद्य, (पृ. ११अ) आदि प्रभु धारी वानी छे अति में जिनदास दोर., पे.वि. गा. ४. " पे. ११५. औपदेशिक पद, मु. जिनदास, राज., पद्य, (पृ. ११अ ), आदि: अरी काया काची थारी; अंतिः भइ जगतमाहै जीत पं.वि. गा.३. पे. ११६. औपदेशिक पद, मु. जिनदास, राज., पद्य, (पृ. ११अ), आदिः सिद्ध सरूपी सदा पद; अंतिः जनम मिलायो घुले रे. पे. वि. गा.४. पे. ११७. अज्ञानीजीव पद, मु. जिनराज प्राहिं, पद्य, (पृ. ११अ ११आ), आदि कहा रे अग्यानी जीवकु: अंतिः कहा वाको सहज मिटावे. पे.वि. गा.३. 1 .. पे. ११८. आत्मस्वरूप पद, मु. ज्ञानसार, प्राहिं., पद्य, (पृ. ११आ), आदिः जाग रे सवरे नवि हानी; अंतिः पद निज राजधानी., पे.वि. गा.३. · पे. ११९. आदिजिन पद, मु. जिनराज, प्राहिं., पद्य, (पृ. ११आ), आदि: जाग जग मुकटमणि; अंतिः दुख काट भव फन्दा., पे.वि. गा.३. पे. १२०. पार्श्वजिन पद, मु. जिनहर्ष प्राहिं, पद्य, (पृ. ११आ), आदि जागो मेरे लाल विसाल: अंतिः वारि वारि जावणा., पे.वि. गा.४. , पे. १२१ ४ कषाय पद, मु. चिदानन्द प्राहिं, पद्य, (पृ. ११आ), आदि जैन धर्म नही कीता अंति भारी करमसु रीता हो., पे.वि. गा. ३. पे. १२२. संसारीसम्बन्धअसारता पद राज, पद्य (पृ. ११आ) आदि मन रे तुं छाडि माया अंतिः स्वामी नाम सम्भाल., पे.वि. गा.३. ; " पे. १२३. पार्श्वजिन पद, मु. वृद्धकुशल, राजप्राहिं, पद्य, (पृ. ११आ), आदि तेवीसमा जिनराज जोडी अंतिः भवभव दीज्यौ दीदार, पे.वि. गा.६. For Private And Personal Use Only Page #309 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir २५५ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची पे. १२४. सुविधिजिन पद, राज., पद्य, (पृ. ११आ), आदिः वांके गढ फोज चढी है; अंति: मगावं आठो चोर., पे.वि. गा.५. पे. १२५. सम्यक्त्व पद, मु. इन्द्र, प्राहिं., पद्य, (पृ. ११आ-१२अ), आदिः ना जानु चेतन कहां; अंतिः अटल भये भये., पे.वि. गा.५. पे. १२६. आदिजिन पद, श्रा. चम्पाराम दीवान, प्राहिं., पद्य, (पृ. १२अ), आदिः श्रीऋषभदेव को ध्यान; अंतिः गायो ग्यान गुन गायो., पे.वि. गा.६. पे. १२७. नेमराजिमती पद, राज., पद्य, (पृ. १२अ), आदिः सुनरी सईयो नेमीनाथ; अंतिः चुनीन लियो लार., पे.वि. गा.२. पे. १२८. औपदेशिक पद, मु. जिनदास, प्राहिं., पद्य, (पृ. १२अ), आदि: मेतो नर्क निगोद को; अंतिः हुइ मेरी हांसी रे., पे.वि. गा.६. पे. १२९. साधारणजिन पद, मु. जिनदास, प्राहिं., पद्य, (पृ. १२अ), आदिः दरशन दोहिलोजी महाराज; अंतिः दिलमें धरी मेरी लाज., पे.वि. गा.५.. पे. १३०. नेमराजिमती पद, मु. जिनदास, प्राहिं., पद्य, (पृ. १२अ), आदिः ओर न आवे दाय दिवानी; अंतिः सरनो लीयो ___में समाय., पे.वि. गा.५. पे. १३१. पार्श्वजिन पद, पण्डित खीमाविजय, प्राहिं., पद्य, (पृ. १२अ), आदिः मधुवन में धूम मची; अंतिः खीमाविजय कहै करजोडी., पे.वि. गा.३. पे. १३२. पार्श्वजिन पद, मु. उदयरत्न, राज., पद्य, (पृ. १२अ), आदिः प्यारो पारसनाथ; अंति: आवे बहु धसमसीया., पे.वि. गा.५. पे. १३३. धर्मजिन पद, मु. खिमा, प्राहिं., पद्य, (पृ. १२अ-१२आ), आदिः एक सुनले नाथ अरज; अंतिः अनोपम कीरत छै तेरी., पे.वि. गा.५. पे. १३४. नेमिजिन पद, मु. चन्द, प्राहिं., पद्य, (पृ. १२आ), आदिः जादव मन मेरो हर लीनो; अंतिः चंद कहै मे हरखियो रे.,पे.वि. गा.६. पे. १३५. आदिजिन पद, मु. चतुरकुशल, राज., पद्य, (पृ. १२आ), आदिः विसरे मत नाम प्रभूजी; अंतिः लहै रङ्ग पतङ्ग फीको., पे.वि. गा.६. पे. १३६. औपदेशिक पद, प्राहिं., पद्य, (पृ. १२आ), आदिः होरी खेलो रे भविक; अंतिः दसविध साधु धरम करके., पे.वि. गा.३. पे. १३७. आध्यात्मिक पद, कबीर, प्राहिं., पद्य, (पृ. १२आ), आदिः ऐसी होरी खेलो जामे; अंतिः सत्य कबीर की होरी., पे.वि. गा.३. पे. १३८. साधारणजिन पद, मु. जिनदास, प्राहिं., पद्य, (पृ. १२आ), आदिः तुम चरनन की सेवा; अंतिः दास लीजो निवारही रे., पे.वि. गा.६. पे. १३९. सम्यक्त्व पद, मु. जिनदास, मागु., पद्य, (पृ. १२आ), आदिः छवि निरखत मेरो मन; अंतिः जिनदास जंजाल जोयो रे., पे.वि. गा.३०. पे. १४०. सुभाषित पद, राज., पद्य, (पृ. १२आ-१३अ), आदिः अब तो स्याम सोवन; अंतिः बन्यो पातन की छाय., पे.वि. गा.४. पे. १४१. साधारणजिन पद, गुलाब, प्राहिं., पद्य, (पृ. १३अ), आदिः येसै मतवाले नेन खोल; अंतिः शर्न आयो चलिकै., पे.वि. गा.३. पे. १४२. औपदेशिक पद, जेष्ठ, प्राहिं.,राज., पद्य, (पृ. १३अ), आदिः चेतन तुं ध्यान आरत; अंतिः तुरत ही आनन्द पावै., पे.वि. गा.४. For Private And Personal Use Only Page #310 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य भाग - १ २५६ पे. १४३. औपदेशिक दूहा सङ्ग्रह, प्राहिं.,राज., पद्य, (पृ. १३अ-१३आ), आदि: मोपन साचुं करिहुं; अंतिः पीउ जलमे ठाढी रही., पे.वि. गा.४. पे. १४४. नेमराजिमती पद, प्राहिं., पद्य, (पृ. १३आ), आदिः गिरनारी चढ जाउंगी; अंतिः चर्नकमल सिरनाम., पे.वि. गा.४. पे. १४५. राजुल पद, प्राहिं., पद्य, (पृ. १३आ), आदिः (१) होरी खेलन को नहीरी (२) सुनोरी सखी येक विनती; अंतिः जपो मन वचन काय., पे.वि. गा.३. पे. १४६. कषायत्याग पद, मु. मोहन, प्राहिं., पद्य, (पृ. १३आ), आदिः जाके कर्म नसाने जो; अंतिः कहै मोहन करजोडी., पे.वि. गा.५. पे. १४७.२४ जिनवन्दना पद, जादुराय, प्राहिं., पद्य, (पृ. १३आ), आदिः वन्दु जिनदेव सदा; अंतिः जादुराय चरन के चेरे., पे.वि. गा.३. पे. १४८.२४ जिन कुसुममाला पद, मु. जगतराम, राज., पद्य, (पृ. १३आ), आदिः जिनजी के नाम जपो रे; अंतिः न वरनी जाई., पे.वि. गा.४. पे. १४९. आदिजिन पद, प्राहिं., पद्य, (पृ. १३आ), आदिः अब मोय तारोगे; अंतिः मेरी करो प्रतिपाल., पे.वि. गा.४. पे. १५०. आध्यात्मिक पद, मु. रूपचन्द, प्राहिं.,राज., पद्य, (पृ. १३आ-१४अ), आदिः है इस सहिर विचको; अंतिः दुश्मन मान गुमान., पे.वि. गा.४. पे. १५१. साधारणजिन पद, राज., पद्य, (पृ. १४अ), आदिः अनी में निसदिन; अंतिः प्रभु दीठा नैन मे., पे.वि. गा.४. पे. १५२. साधारणजिन पद, मु. द्यानत, प्राहिं., पद्य, (पृ. १४अ), आदिः मे तो तेरी आज महिमा; अंतिः हम जाचक तुम दानी., पे.वि. गा.३. पे. १५३. महावीरजिन पद, जयराम, प्राहिं., पद्य, (पृ. १४अ), आदिः असरन सरन चरन कमल; अंतिः सीलवन्त जाके., पे.वि. गा.४. पे. १५४. पार्श्वजिन पद, प्राहिं., पद्य, (पृ. १४अ), आदिः पास जिनन्दा साढी; अंतिः दास चहित है दीदारा., पे.वि. गा.४. पे. १५५.४ कषाय पद, मु. चिदानन्द, प्राहिं., पद्य, (पृ. १४अ), आदिः जैन धर्म नही कीतावो; अंतिः भारी करम रस लीता., पे.वि. गा.३. पे. १५६. आध्यात्मिक पद, सूरदास, प्राहिं., पद्य, (पृ. १४अ), आदिः हमारे अवर देहो; अंतिः तुम जीते हमारी., पे.वि. गा.३. पे. १५७. आदिजिन स्तवन, मु. चन्दकुशल, प्राहिं., पद्य, (पृ. १४अ), आदिः देखोनि आदेसरस्वामी; अंतिः चन्दकुसल गुन गाया है., पे.वि. गा.४. पे. १५८. औपदेशिक पद, मु. भूधर, प्राहिं., पद्य, (पृ. १४अ), आदिः ते मेरा दरद न पाया; अंतिः किस गुरुने फरमाया., पे.वि. गा.४. पे. १५९. औपदेशिक पद, प्राहिं., पद्य, (पृ. १४अ), आदिः वटाउडा गुजर गइ सारी; अंतिः पायो परम सुख चेण., पे.वि. गा.३. पे. १६०. साधारणजिन पद, प्राहिं., पद्य, (पृ. १४अ-१४आ), आदिः ये अरजी मोरे सइयां; अंतिः देवे क्यो ना सइयां., पे.वि. गा.४. पे. १६१. औपदेशिक पद, मु. जिनदास, प्राहिं., पद्य, (पृ. १४आ), आदिः तेने केसी फकीरी करी; अंतिः आतम रती ना करी रे., पे.वि. गा.५. पे. १६२. फकीरी पद, मु. जिनदास, प्राहिं., पद्य, (पृ. १४आ), आदिः तेने एसी फकीरी करी; अंति: गरज रती ना सरी रे.,पे.वि. गा.४. For Private And Personal Use Only Page #311 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir २५७ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची पे. १६३. माया पद, कबीर, प्राहिं., पद्य, (पृ. १४आ), आदिः माया का गुलाम गीधी; अंतिः धीक् धीक् जिन्दगी., पे.वि. गा.३. पे. १६४. आध्यात्मिक पद, कबीर, प्राहिं., पद्य, (पृ. १४आ), आदि: तेरी काया में गुलजार; अंतिः आवागमन निवार., पे.वि. गा.४. पे. १६५. नेमराजिमती पद, प्राहिं., पद्य, (पृ. १४आ), आदिः विन सजन नेम विन नीद; अंतिः पार और ना चाहती., पे.वि. गा.५. पे. १६६. आध्यात्मिक पद, मु. चिदानन्द, प्राहिं., पद्य, (पृ. १४आ), आदिः सन्तो अचरज रूप तमासा; अंतिः पतिया का वासा., पे.वि. गा.४. पे. १६७. आध्यात्मिक पद, सूरदास, प्राहिं., पद्य, (पृ. १४आ), आदिः हमारो अवर देहो; अंतिः तुम जीते हम हारी., पे.वि. गा.३. २३४३.” साधुप्रतिक्रमणसूत्र सङ्ग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ९, जैदेना., दशा वि. विवर्ण-पानी से अक्षरों की स्याही फैल गयी है-, अक्षर फीके पड गये हैं, खंडित भाग पर कागज चिपकाए हुए हैं-आरम्भ के कुछ पत्र, (२६४११, १२४३७). साधुप्रतिक्रमणसूत्र सङ्ग्रह श्वे.मू.पू., संबद्ध, प्रा., प+ग, आदिः नमो अरिहन्ताणं; अंतिः खमामि सव्वस्स अहयंपि. २३४४. नवकार रास, संपूर्ण, वि. १६६१, श्रेष्ठ, पृ. ८, जैदेना., प्र.वि. गा.१९०, (२६४१२, १४४४०). नमस्कारमहामन्त्र रास, ऋ. धर्मसी, मागु., पद्य, आदिः पारस पद प्रणमुं सदा; अंतिः काज सर्व सुख आपीइ ए. २३४५. पुण्यप्रकाश स्तवन, संपूर्ण, वि. १८८५, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना., ले.स्थल. लारागुडा, ले. मु. तीर्थसागर, प्र.वि. गा.१०२,ढाळ-८, (२५४११.५, १३४३६). पुण्यप्रकाश स्तवन, उपा. विनयविजय , मागु., पद्य, वि. १७२९, आदिः सकल सिद्धिदायक; अंतिः नामे पुण्यप्रकाश ए. २३४६." उपधान स्तवन, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना., ले. मु. उत्तमचन्द (गुरु मु. विद्याचन्द, तपागच्छ), प्र.वि. ढाळ-५, कर्ता के हस्ताक्षर से लिखित प्रत, दशा वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, (२५४११.५, १३-१४४३२). उपधानतप स्तवन, मु. उत्तमचन्द, मागु., पद्य, वि. १७११, आदिः समरी सरसति सारदा रे; अंतिः उत्तमचन्द मङ्गल करो. २३४७.” नवतत्त्व सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना., प्र.वि. मूल-गा.४४., दशा वि. विवर्ण-पानी से अक्षरों की स्याही फैल गयी है, (२५४११.५, ६४३०). नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदिः जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंतिः अणागयद्धा अणन्तगुणा. नवतत्त्व प्रकरण-टबार्थ, राज., गद्य, आदिः जीवतत्त्व अजीवतत्त्व; अंतिः अनन्तगुणा छई. २३४८. साधुप्रतिक्रमणसूत्र सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ७, जैदेना., ले. ऋ. रामदास, प्र.वि. पंचपाठ, (२४.५४१०.५, १-१०x४२). साधुवन्दित्तुसूत्र, संबद्ध, प्रा., गद्य, आदिः करेमि भन्ते चत्तारि; अंतिः वन्दामि जिणे चउवीसं. साधुवन्दित्तुसूत्र-बालावबोध, मागु., गद्य, आदिः निवर्तवा वाञ्छुउ; अंतिः चोवीस तीर्थंकर वांदउ. २३५१. स्थुलिभद्र नवरसो, संपूर्ण, वि. १८२८, मध्यम, पृ. ५, जैदेना., ले. साध्वीजी माना, प्र.वि. ढाळ-९, (२६४११.५, १५४३९). स्थूलिभद्र नवरसो, वाचक उदयरत्न, मागु., पद्य, वि. १७५९, आदिः सुखसंपति दायक सदा; अंतिः वृक्ष आङ्गण फल्या रे. २३५२. जम्बूपृच्छा, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १३, जैदेना., प्र.वि. ढाळ-१३, (२९x१२.५, ११४४१). जम्बूपृच्छा, मु. वीरजी, मागु., पद्य, वि. १७२८, आदिः सकल पदारथ सर्वदा; अंतिः वीरजी मुनि सुखकारी. २३५५. शालिभद्र चरित्र, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १७-१(२)=१६, जैदेना.. पू.वि. बीच का एक व अंत के पत्र नहीं हैं., (२५.५४११, १५४४६). For Private And Personal Use Only Page #312 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य भाग - १ २५८ शालिभद्र चौपाई, मु. मतिसार, मागु., पद्य, वि. १६७८, आदिः सासणनायक समरीयइ; अंतिः२३५६. सिद्धहेमचन्द्रानुसारिणीप्रक्रिया सह स्वोपज्ञ वृत्ति, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १९, जैदेना.,प्र.वि. अशुद्ध पाठ, त्रिपाठ, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. ३२ सूत्र तक है., (२८.५४१२, २-३४५१). सिद्धहेमशब्दानुशासन-हैमलघुप्रक्रिया, उपा. विनयविजय , सं., गद्य, वि. १७१०, आदिः अर्हमित्यक्षरं ध्येय; अंति:सिद्धहेमशब्दानुशासन-हैमलघुप्रक्रिया की स्वोपज्ञ हैमप्रकाश वृत्ति, उपा. विनयविजय , सं., गद्य, वि. १८वी, आदिः प्रणम्य पार्श्व; अंति:२३५७." द्रौपदी चौपाई, पूर्ण, वि. १७००, मध्यम, पृ. ४२-१(४१)=४१, जैदेना., ले.स्थल. साहपुर, प्र.वि. ढाळ-३९, संशोधित, (२६४११, १७X४४). द्रौपदी चौपाई, वाचक कनककीर्ति, मागु., पद्य, वि. १६९३, आदिः पुरिसादाणी पासजिण; अंतिः कनककीरति सुखकार. २३५८. भक्तामर स्तोत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ५, जैदेना., पठ. मु. विशेषसागर, प्र.वि. मूल-श्लो.४४., (२५.५४११, ६४४६). भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुङ्गसूरि, सं., पद्य, आदिः भक्तामरप्रणतमौलिमणि; अंतिः समुपैति लक्ष्मी. भक्तामर स्तोत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः भक्तिवन्त देवता नमता; अंतिः पुरुषने आवि थामी थाइ. २३५९. पाखीसूत्र, संपूर्ण, वि. १९५२, श्रेष्ठ, पृ. १५, जैदेना., ले.स्थल. खेडा, ले. कालिदास व्यास, (२५४१२, ११४२९). पाक्षिकसूत्र, प्रा., प+ग, आदिः तित्थङ्करे य तित्थे; अंतिः जेसिं सुयसायरे भत्ति. २३६०. सत्तरिसयठाणा, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १९, जैदेना., प्र.वि. गा.३५८, (२५४११, १३४४०). सप्ततिशतस्थान प्रकरण, आ. सोमतिलकसूरि , प्रा., पद्य, वि. १३८७, आदिः सिरिरिसहाइ जिणिन्दे; अंतिः जाइ सो सिद्धिठाणे. २३६१." लोगस्ससूत्र सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ६, जैदेना., पठ. साध्वीजी जयसुन्दरी (गुरु साध्वीजी विनयसुन्दरी),प्र.वि. हिस्सा-गा.७., संशोधित, (२५४११, १३४३६). लोगस्ससूत्र, प्रा., पद्य, आदिः लोगस्स उज्जोअगरे; अंतिः सिद्धिं मम दिसन्तु. लोगस्ससूत्र-बालावबोध*, मागु., गद्य, आदिः चऊद राजलोकमाहि; अंतिः दिसतु कहीइ दिउ. २३६३. दीवाली कल्प, मौनएकादशी व होली कथा सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९३५, श्रेष्ठ, पृ. ४३-१०(१४ से २३)=३३, पे. ३, जैदेना., पठ. पं. चुनीलाल, प्र.वि. संशोधित, (२५४१२.५, ७X४३). पे. १. पे. नाम. दीपालिका कल्प सह टबार्थ, पृ. १-१३-, अपूर्ण दीपावलीपर्व कल्प, प्रा., पद्य, आदि: उप्पायविगमधुवमयमसेस; अंति: दीपावलीपर्व कल्प-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः उप्पन्नेवा सर्व; अंतिः-, पे.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. गा.१२८ तक है. पे. २. पे. नाममौनएकादशी कथानक सह टबार्थ, पृ. २४अ-४०आ, संपूर्ण मौनएकादशीपर्व कथा माहात्म्य , मु. दानचन्द्र , सं., पद्य, वि. १७०८, आदि: ऐश्वर्यौदार्यगांभीर; अंतिः जिनाष्टम्याम. मौनएकादशीपर्व कथामाहात्म्य-टबार्थ', मागु., गद्य, आदिः इश्वरपणुं दातारपणुं; अंतिः कृष्णाष्टमी दिने., पे.वि. मूल-श्लो.२२०. पे. ३. पे. नाम. होली कथानक सह टबार्थ, पृ. ४०आ-४३आ, संपूर्ण होलिकापर्व कथा, आ. जिनसुन्दरसूरि, सं., पद्य, आदिः वर्द्धमानजिनं नत्वा; अंतिः विज्ञानायाञ्चनोचितः. होलिकापर्व कथा-टबार्थ , मागु., गद्य, आदिः श्रीमहावीरजिन प्रते; अंतिः प्रार्थनइ योग्य., पे.वि. मूल-श्लो.५१. अंतिम दो-तीन श्लोको में तफावत है. For Private And Personal Use Only Page #313 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir २५९ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २३६७. श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र व वीसस्थानक स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, पे. २, जैदेना., (२५४१२, १०x१२). पे. १.पे. नाम. श्राद्धप्रतिक्रमणसूत्र, पृ. ०१-०५अ वन्दित्तुसूत्र, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदिः वन्दित्तु सव्वसिद्धे; अंतिः वन्दामि जिणे चउवीसं., पे.वि. गा.५०. पे. २.२० स्थानक स्तवन, मु. खिमाविजय, मागु., पद्य, (पृ.५), आदि: सुअदेवी समरी कहुं; अंतिः जिनपद सुजस सवाय.,पे.वि. गा.१४. २३६८." पञ्चकल्याणक पूजा, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ९, जैदेना., प्र.वि. गा.१४०,ग्रं. २१०,ढाळ-११, ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित, संशोधित, प्र.ले.श्लो. (१४१) यादशं पुस्तकं कृत्वा, (२७४१२.५, १३४३०). पंचकल्याणक पूजा, पं. रूपविजय, मागु., पद्य, वि. १८८९, आदिः अमरनिकर नित जेहना; अंतिः रुपविजय गुण गाया २३६९.” सारदीलघुनाममाला, संपूर्ण, वि. १८२४, श्रेष्ठ, पृ. २७, जैदेना., ले. मु. भानुविमल, पठ. आसाराम, प्र.वि. श्लो.४६१, ग्रं. ५५०, ३कांड, संशोधित, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न,प्र.ले.श्लो. (१५) अदृष्टदोषात् मतिविभ्रमात् च, (२५.५४११.५, ११४३३). लघुनाममाला, आ. हर्षकीर्तिसूरि, सं., पद्य, आदिः प्रणम्य परमात्मानं; अंतिः हर्षकी० बत नाममाला. २३७२. तीन मनोरथ, दानशीलतपभावना संवाद व सुभद्रासती चौढालीयो, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १०-३(१ से २,९)=७, पे. ३, जैदेना.,पू.वि. बीच के पत्र हैं., (२४४१२, १०x१२). पे. १. श्रावक के तीन मनोरथ, मागु., पद्य, (पृ. -३अ-३आ, अपूर्ण), आदि:-; अंतिः स्थानक प्रत्ये पामे., पे.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. पे. २. दानशीलतपभावना संवाद, उपा. समयसुन्दर गणि, मागु., पद्य, वि. १६६२, (पृ. ३आ-९आ, संपूर्ण), आदिः प्रथम __जिनेसर पाय; अंतिः समृद्धि सुप्रसादो रे., पे.वि. ढाल-५. पे. ३. सुभद्रासती रास, मु. मानसागर, मागु., पद्य, वि. १७५९, (पृ. ९आ-, अपूर्ण), आदिः सरसति सामणि वीनवू; अंतिः-, पे.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मात्र प्रथम १ गाथा ही है. २३७३." सीमन्धरस्वामी विनतीरूप स्तवन सह टबार्थ, पूर्ण, वि. १८५३, श्रेष्ठ, पृ. ६७-१(३)=६६, जैदेना., ले.स्थल. भावनगर, ले. पं. जीतकुशल (गुरु पं. दीपकुशल), प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र.वि. गा.३५४; टबार्थ-ग्रं. १२०१, दशा वि. विवर्ण-पानी से अक्षर फीके पड गये हैं, (२८.५४१३, ३४३७). सीमन्धरजिन विज्ञप्तिस्तवन साडात्रणसोगाथा, उपा. यशोविजयजी गणि, मागु., पद्य, आदिः सीमन्धर साहिब आगइं; अंतिः शास्त्र मर्यादा भणी. सीमन्धरजिन विज्ञप्तिस्तवन-टबार्थ, आ. ज्ञानविमलसूरि, मागु., गद्य, आदिः सीमन्धर पूर्व; अंति: गहिला छे ते डाहा छइ. २३७६. जम्बूअध्ययन सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८७१, श्रेष्ठ, पृ. १२४, जैदेना., ले.स्थल. वालीनगर, ले. मु. प्रेमसागर (गुरु मु. जीतसागर), प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र.वि. मूल-२१उद्देश., (२५४११, ४४२३). जम्बूअध्ययन प्रकीर्णक, प्रा., गद्य, आदिः तेणं कालेणं० रायगिहे; अंतिः से आराहगा भणिया. जम्बूअध्ययन प्रकीर्णक-टबार्थ, उपा. पद्मसुन्दर, मागु., गद्य, आदिः ते कालनि विषइ ते; अंतिः प्राणी मोक्ष जास्ये. २३७७." उत्तराध्ययनसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १४२, जैदेना., प्र.वि. मूल-३६अध्ययन, ग्रं. २०००. प्र.पु. टबार्थ-ग्रं. ७०२६., संशोधित, पदच्छेद सूचक लकीरें-मूल पाठ, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२६x१०.५, ५४४९). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग, आदिः सञ्जोगाविप्पमुक्कस्स; अंतिः (१)सम्मए त्ति बेमि (२)पुव्वरिसी एव भासन्ति. उत्तराध्ययनसूत्र-टबार्थ , मागु., गद्य, आदिः (१) वर्द्धमानजिनं नत्वा० (२) पूर्वइ संयोग माता; अंतिः परुप्यो जम्बू प्रतइ. For Private And Personal Use Only Page #314 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य भाग १ .. www.kobatirth.org: २६० २३८०. जन्मपत्री पद्धति, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४१-१६ (१ से ४,२३ से ३४ ) - २५, जैदेना, पू. वि. बीच-बीच के पत्र हैं., (२५.५X११, १७५०). जन्मपत्री पद्धति, मु. मानसागर सं., गद्य, आदि:-: अंति: , २३८१.” शियल वेलि, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १३, जैदेना., प्र. वि. ढाळ - १८, संशोधित, ( २४.५X१२.५, १३X२८). स्थूलभद्र शीयलवेलि, पं. वीरविजय, मागु., पद्य, वि. १८६२, आदिः सयल सुहङ्कर पासजिन; अंतिः विमला कमला वरशे रे. २३८२." स्तवन चौवीसी, संपूर्ण वि. १९६३ श्रेष्ठ, पृ. ५. जैवेना. प्र. वि. २४स्तवन, संशोधित, (२५४११.५, १८४५६), पदचौवीसी, श्रा. विनयचन्द्र कुमट, मागु., पद्य, वि. १९०६, आदिः श्रीआदिश्वर सामी हो; अंतिः महास्तुति पूरण करी. २३८३. श्रीपालनरेन्द्र कथा सह टबार्थ, संपूर्ण वि. १९३६, श्रेष्ठ, पृ. ११५, जैदेना, प्र. वि. मूल-गा. १३४१. प्र. पु. सर्वग्रं. ४३००, Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (२५.५४१३, ७४३१). सिरिसिरिवाल कहा, आ. रत्नशेखरसूरि प्रा. पद्य वि. १४२८ आदि अरिहाइ नवपयाई अंतिः वाइज्जन्ता कहा एसा. सिरिसिरियाल कहा-टबार्थ मागु, पद्य, आदि अरिहन्त आदि देई नवपद अंतिः करो वाच्यमान कथाया. २३८४. श्रीपालराजा रास, संपूर्ण, वि. १८७०, श्रेष्ठ, पृ. ४८, जैदेना., ले. स्थल. बिकानेर, ले. पं. महिमारत्न, प्र. वि. गा. १५३५. ढाळ - ४७, (२५४१०.५ १३४३८). श्रीपालराजा रास मु. लालचन्द आधारित, मागु पद्य वि. १८३७, आदि स्वस्ति श्रीदायक अंतिः ऊपर हित धरज्यौजी. (+) " २३८५. तिलोकसुन्दरी रास (व्याख्यान), संपूर्ण वि. १९७९, श्रेष्ठ, पृ. ७ जैदेना. प्र. वि. दाळ - १२. अन्तिम पृष्ठ कापली के रूप में है। संशोधित (२४४१२, १६४३९). त्रैलोक्यसुन्दरी रास ऋ. सबलदास, मागु, पद्य वि. १८५२ आदि विहरमान वीसे नमुं अंतिः जिण घर लील " विलासो रे, (W) २३८६. सम्यक्त्वकौमुदी रास अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २४, जैदेना, पू. वि. अन्त के पत्र नहीं हैं. दाल- २४ की गा७ तक " है.. दशा वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, (२५.५५१२, १५४४१). समयक्त्वकौमुदी कथा रास, मु. विनयचन्द, मागु., पद्य, वि. १८८५, आदि: विजयमान श्रीवीर; अंति: (+) २३८७. दशवैकालिकसूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १३, जैदेना, प्र. वि. संशोधित, पू. वि. अन्त के पत्र नहीं हैं. विणयसमाही नामक नवम अध्ययन का चतुर्थ उद्देश अपूर्ण तक है., ( २४.५x१२, १७x४८). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यम्भवसूरि प्रा. पद्य वि. पू.४ आदि धम्मो मङ्गलमुक्किट्ठ; अंति , " (+) २३८८. पञ्चमी स्तवन, आनन्द सन्धि, जीवोत्पत्ति सज्झाय व वैराग्य स्वाध्याय, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ३०, पे. ४, जैदेना., प्र. वि. संशोधित गेरु लाल रंग से अंकित विशेष पाठ, (२५.५x१२, ११x२३). , , पे. १. सौभाग्यपञ्चमीपर्व स्तवन, मु. गुणविजय, मागु, पद्य, (पृ. १५३), आदि: प्रणमी पास जिणेसर: अंति: गुणविजय रङ्गे गुणि., पे.वि. गा.४९, ढाळ - ६. पे. २. आनन्द श्रावक सन्धि पाठक श्रीसार मागु, पद्य वि. १६८४ (पृ. ५अ-२४अ), आदि: वर्द्धमान जिनवर चरण अंतिः पभणइ मुनि श्रीसार, पे. वि. गा. २५२, ढाळ-१५. पे. ३. गर्भावास राज्झाय पाठक श्रीसार, मागु, पद्य, (पृ. २४अ-२८आ), आदि उतपति जोइजो आपणी अंतिः इम कहे ; श्रीसार ए., पे.वि. गा. ७२. पे. ४. पंचमहाव्रत सज्झाय, आ. देवसूरि मागु, पद्य, (पृ. २८आ-३०अ), आदि सुरतरुनी परि दोहिलो; अंतिः श्रीविजयदेवसुर के. पे. वि. गा.१५. For Private And Personal Use Only Page #315 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २६१ २३८९.* जिनगुण सवैया व श्लोक, संपूर्ण वि. १८६९, मध्यम, पृ. ९. पे. २, जैदेना., ले. स्थल भीनमालनगर, ले. पं. लहेरसागर, दशा वि. विवर्ण-पानी से अक्षरों की स्याही फैल गयी है, फफुंदग्रस्त, ( २४.५x११.५ १२४३४). पे. १. २४ जिन स्तुति, आ. ज्ञानविमलसूरि, मागु., पद्य, (पृ. १- ९आ), आदिः ब्रह्म सुता वाणी; अंतिः धरि निसुणो नरनारी. पे. २. २४ जिनगुण सवैया, कवि लाल, प्राहिं., पद्य, (पृ. ९आ-९आ), आदिः सरसत कुं पहिली समर; अंतिः रिद्धरु वृद्ध सुथानो. पे. वि. ग.१. " www.kobatirth.org: (+8) २३९०. साम्बप्रद्युम्न प्रबन्ध, संपूर्ण वि. १८वी श्रेष्ठ, पृ. २२, जैदेना, ले. स्थल, थिराद्रनगर, प्र. वि. ढाळ - २२, गा.१०००, ग्रं. ८००, संशोधित टिप्पण युक्त विशेष पाठ, दशा वि. विवर्ण पानी से अक्षरों की स्याही फैल गयी है.. फफुंदग्रस्तअक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, ( २४.५X१०.५, १४४३८-४०). (+) " साम्बप्रद्युम्न प्रबन्ध, उपा. समयसुन्दर गणि, मागु पद्य वि. १६५९ आदिः श्रीनेमीसर गुणनिलउ: अंतिः सङ्घ सुजस जगीस ए. २३९२.” सम्यक्त्व स्वरूप, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ६, जैदेना., प्र. वि. संशोधित, (२५x११, ९४२७). सम्यक्त्व स्वरूप, मागु., प्रा., गद्य, आदि: जिम सम्यक्त्वनुं; अंतिः प्राप्ति थाउ था. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २३९३. प्रश्नोत्तर, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १० जैदेना, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण, दशा वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है-, अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, ( २४.५x१२, १५X४०). प्रश्नोत्तर तिलोकचन्दकृत, श्रा. तिलोकचन्द लुणिया, मागु., गद्य, आदि: तुमे कह्युं जे समकित; अंतिः २३९४. गीतमपृच्छा चौपाई, संपूर्ण वि. १७९८, श्रेष्ठ, पृ. ५. जैदेना. ले. स्थल राजनगर, ले. श्री. हीराचन्द, प्र. वि. गा. १२१, " टिप्पण युक्त विशेष पाठ, ( २४.५४१२, १६४३९) गीतमपृच्छा चौपाई, मु. लावण्यसमय माग, पद्य वि. १५४५, आदि सकल मनोरथ पूरवइ: अंतिः जे जिनवचने वसिउ. , २३९५." पार्श्वजिन विवाहलो, संपूर्ण वि. १८९५ मध्यम, पृ. १४ जैदेना. प्र. वि. ढाळ - १८ टिप्पण युक्त विशेष पाठ-बीच का " एक पत्र (२४.५x१२.५, १५४३२). रे. पार्श्वजिन विवाहलो, मु. रङ्गविजय, मागु पद्य वि. १८६० आदि स्वस्ति श्रीदायक अंतिः उलट आणी अङ्ग २३९८. बूढापा चरित्र रास, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ५. जैदेना, पू. वि. अंत के पत्र नहीं है. २०वी ढाल अधूरी है.. (२४×१२, १३४३७). बुढ़ापा रास राज, पद्य, आदि दया माता वीनवु अंति: " २३९९.” स्तवनचौवीसी, संपूर्ण, वि. १९६८, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना., प्र. वि. २४स्तवन, संशोधित, ( २४.५x१२, १६४६५). पदचौवीसी, श्रा. विनयचन्द्र कुमट, मागु., पद्य, वि. १९०६, आदिः श्रीआदिश्वर सामी हो; अंतिः महास्तुति पूरण करी. २४००. खण्डाजोयण १० द्वार, संपूर्ण, वि. १९४९, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदेना., ले. स्थल. जावरा, ले. ऋ. हेमराज (गुरु ऋ. बदीचन्द), (२४.५४११, २०४५४). लघुसङ्ग्रहणी - १० द्वार विचार, संबद्ध मागु, गद्य, आदि खण्डा जोयण वासा अंतिः १४५६००० नदी जाणवी ए. २४०१.” नन्दीसूत्रपाठ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २२ - १ (१८) = २१, जैदेना., प्र. वि. संशोधित, पू.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., ( २४.५X११, १४X३४). नन्दीसूत्र, आ. देववाचक, प्रा., प+ग, आदिः जयइ जगजीवजोणीवियाणओ; अंतिः २४०२.” दशवैकालिकसूत्र अध्यन सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५, जैदेना., ले. ऋ. भोजराज, प्र. वि. अध्याय१० अध्ययन, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, दशा वि. चिपके पत्र अलग करते वक्त स्याही उखडी हुई अक्षर फीके पड गये हैं. (२४.५०११, १२४३१). For Private And Personal Use Only Page #316 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य भाग - १ २६२ दशवैकालिकसूत्र-सज्झाय, मु. जैतसी, संबद्ध, मागु., पद्य, वि. १७१७, आदिः धर्ममङ्गल महिमा; अंति: गीत रच्या सुखकार. २४०३. कर्मचेतनभावसङ्ग्राम रास, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, प्र. ७, जैदेना., पठ. साध्वीजी सोनोजी,प्र.वि. ढाळ-१७, (२४.५४११.५, १५४४५). कर्मचेतन रास, कवि नर, मागु., पद्य, आदिः अनन्त चोवीसी हुई गई; अंतिः यौं विध नोबत गाजे. २४०४." दसाणुवाई अर्थ व खेताणवाई, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ९, पे. २, जैदेना., प्र.वि. संशोधित, (२५४१२, १४४३०). पे. १. पे. नाम. दसाणुवाई-अर्थ, पृ. १-४अ दसाणुवाई-अर्थ, मागु., गद्य, आदिः राजग्रही नगरी गुणसल; अंति: मुनष अधिका ते माटे. पे. २. क्षेत्रोपपत्ति, मागु., गद्य, (पृ. ४अ-९आ), आदिः खेताणुवाएणं सव्वत्थो; अंतिः निमित आवे ते जाणवा. २४०५." अढारपापस्थानक सज्झाय, संपूर्ण, वि. १७९२, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदेना., ले.स्थल. राजनगर, पठ. पण्डित विमलचन्द, प्र.वि. ढाळ-१८, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२५.५४११.५, १५४४५). १८ पापस्थानक निवारण सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मागु., पद्य, आदिः पापस्थानक पहिलं; अंतिः वाचकजस इम भाखेजी. २४०६. स्तवनचौवीसी, पूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, जैदेना.,प्र.वि. २४स्तवन, पू.वि. अन्तिम पत्र नहीं है. २४ स्तवन संपूर्ण है मात्र कलस की गाथाएँ नहीं है., (२५.५४१२, १४४३४). पदचौवीसी, श्रा. विनयचन्द्र कुमट, मागु., पद्य, वि. १९०६, आदिः श्रीआदिश्वर सामी हो; अंति: जल जातरी प्राणी. २४०९.” सम्यक्त्वकौमुदी कथा, संपूर्ण, वि. १७५९, मध्यम, पृ. ३५, जैदेना., ले.स्थल. वावडीग्राम, ले. पं. कपूरसागर गणि (गुरु पं. शान्तिसागर गणि), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. ग्रं. १६७५, संशोधित, प्र.ले.श्लो. (५०६) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा , (२५.५४१०, १७४४८). सम्यक्त्वकौमुदी कथानक, सं., गद्य, आदिः श्रीवर्द्धमानमानम्य; अंतिः घटना व्यापारबद्धादर:. २४१०.” ओघनियुक्ति की अवचूरि, पूर्ण, वि. १५०८, श्रेष्ठ, पृ. ३६-१(१)=३५, जैदेना., प्र.वि. प्र.पु. ग्रं. ३२००., संशोधित, (२६.५४११, २२४५८). ओघनियुक्ति-अवचूर्णि # , आ. ज्ञानसागरसूरि, सं., गद्य, वि. १४३९, आदि:-; अंतिः (१)तु भवानङ्गीकृत्य (२)एसाअण स्पष्टा. २४१६." अष्टापदतीर्थ स्तवन व विजयदेवसूरि स्वाध्याय, संपूर्ण, वि. १७१५, मध्यम, पृ. ६, पे. २, जैदेना., ले. मु. रामसुन्दर, पठ. श्राविका कोका, प्र.वि. संशोधित, (२५.५४११, ९४३०). पे. १. अष्टापदतीर्थ स्तवन, मु. जयसागर, मागु., पद्य, (पृ. १-६अ), आदिः इक सरसति अतिसय; अंतिः भणह निसुणह एक चित्त., पे.वि. गा.५२. पे. २. देवसूरि सज्झाय, मु. अमीसुन्दर शीष्य, मागु., पद्य, (पृ. ६अ-६आ), आदिः समरीय सरसति भगति; अंतिः तपगच्छराज सूरिसर., पे.वि. गा.६. २४१७. रत्नसञ्चय सह टबार्थ व श्लोक सङ्ग्रह, संपूर्ण, वि. १८२६, श्रेष्ठ, पृ. ५२, पे. २, जैदेना., ले.स्थल. बुरहानपुर, ले. गणि दीपनिधान (गुरु गणि शिवसागर, अञ्चलगच्छ), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२६.५४१२, ६x४०-४८). पे. १. पे. नाम. रत्नसञ्चय सह टबार्थ, पृ. १-५२ रत्नसंचय, आ. हर्षनिधानसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण जिणवरिन्दे; अंति: गाहा आगमे भणिया. रत्नसंचय-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः (१) श्रीमहावीरनै नमस्कार (२) महावीरने नमीने उपगार; अंतिः सात धनुष देहनो मान. For Private And Personal Use Only Page #317 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra २६३ www.kobatirth.org: अति: पे. २. जैन सामान्यकृति-पेटाङ्क बाकी, सं., प्रा., मागु प+ग, (पृ. १अ + ५२आ), आदि २४१९.” आचाराङ्गसूत्र, संपूर्ण वि. १६१०, मध्यम, पृ. ८०, जैदेना. ले. स्थल धंधुका, पठ. पं. करमचन्द (गुरु वाचक विनयराज, अञ्चलगच्छ) प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र. वि. २५ अध्ययन, पदच्छेद सूचक लकीरें संशोधित टिप्पण युक्त विशेष पाठ, प्र.ले.श्लो. (५६७) यादृशं पुस्तके दृष्टं, ( २६.५X११, ११४३५). "" आचाराङ्गसूत्र · आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदिः सुयं मे आउसं० इह; अंतिः विमुच्चति त्ति बेमि Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २४२३. माधवनल चौपाई, संपूर्ण वि. १८१२, मध्यम, पृ. २५, जैदेना. ले. स्थल. नारदपुरी, ले. मु. चेलागेमा ( गुरु मु. देवेन्द्रविजय) प्र. वि. गा.६२९, संशोधित (२४.५४११ १३४४४-५१). " कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची माधवानल चौपाई, वाचक कुशललाभ, मागु, पथ, वि. १६१६, आदि देवि सरसति देवि अंति: (१) सुख पामइ संसारि (२) लगि चोपई सीद्ध. (+0) " २४२४. चोवीसजिन सवैया सग्रह व श्लोक, संपूर्ण, वि. २०वी मध्यम, पृ. ११, पे. ३, जैदेना. ले. स्थल भिनमाल, ले. मु. सुखसागर, प्र. वि. संशोधित, दशा वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं- अक्षरों की स्याही फैल गयी है, (२६.५x११.५, १०x३१). पे. १. २४ जिन स्तुति आ. ज्ञानविमलसूरि मागु, पद्य, (पृ. १-६अ) आदि ब्रह्म सुता वाणी अंतिः धरि निसुणो नरनारी, पे.वि. गा. २६. पे. २. २४ जिनगुण सवैया, कवि लाल, प्राहिं., पद्य, (पृ. ६अ - ११आ), आदि: सरसत कुं पहिली समर; अंतिः रिद्धरु वृद्ध सुथानो. पे. ३. जैन श्लोक *, सं., पद्य, (पृ. ११आ), आदि: #; अंति:#., पे.वि. गा.१. " २४२५. अञ्जनासुन्दरी चौपाई (पवनञ्जयकुमार सम्बन्ध), संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३६, जैदेना., प्र. वि. खण्ड-३, गा.६५१; प्र.पु. मूल- ९३६ (२६४१२. १३४३२). अंजनासुन्दरी रास, मु. पुण्यसागर, मागु., पद्य, वि. १६८९, आदि: गणधर गौतम प्रमुख; अंतिः वृद्धि मङ्गलमाल. २४२६.” शालीभद्र चौपाई, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १९, जैदेना., प्र. वि. गा. ५११, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२५.५x११.५, १५X३८). धन्नाशालिभद्र रास, मु. मतिसार, मागु पद्य वि. १६७८ आदि शासननायक समरीई: अंतिः मनवञ्छित फल " लहस्य इ. (+) (W) २४२८. विक्रमसेन नरेश्वर चौपाई, संपूर्ण वि. १४४८ मध्यम, पृ. ३०, जैदेना. ले. मु. गुणविजय (गुरु गु. तेजविजय), प्र. वि. ढाळ - ६४, दशा वि. विवर्ण-पानी से अक्षरों की स्याही फैल गयी है, ( २४४११.५. १९४४६). विक्रमसेनराजा चौपाई, मु. परमसागर, मागु., पद्य, वि. १७२४, आदिः परम ज्योति प्रकास ; अंतिः परमसागर आणन्दा रे. २४२९. हेमदण्डग, संपूर्ण, वि. १८९२ श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदेना. ले. स्थल विक्रमपुर, ले. ऋ. विनय, प्र. वि. गा. १०७. प्र. लेखन संवत् नेत्रनिधिप्रवचनमातृधरा, संशोधित (२४४११, १८४४७) हेमदण्डक, प्रा., पद्य, आदिः जीवभेया सरीराहार; अंतिः अप्पाबहुदण्डगम्मि. हेमदण्डक-भाषाटीका, मु. ज्ञानसार, मागु., पद्य, वि. १८६१, आदि: जो ध्रुव अलख अमूरती; अंतिः हेमदण्डग सुजगीस. २४३०.” लोकनालिद्वात्रिंशका सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १७३८, जीर्ण, पृ. ६, जैदेना., ले. स्थल. लाभपुर, ले. ऋ. सबला, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. मूल-गा. ३२. त्रिपाठ, टिप्पण युक्त विशेष पाठ (२६.५४११.५, २२४७१). " लोकनालिद्वात्रिंशिका, आ. धर्मघोषसूरि प्रा. पद्य, आदि जिणदंसणं विणा जं; अंतिः जहा भमह न इह मिसं. , " लोकनालिद्वात्रिंशिका बालावबोध, मु. सहजरत्न, मागु, गद्य, आदिः श्रीमदाप्ती प्रणम्या: अंतिः विशोध्यं धीधनैर्भृशं. For Private And Personal Use Only Page #318 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य भाग - १ २६४ २४३२. सज्झाय सङ्ग्रह, स्वाध्याय, लावणी व पद्मावती आराधना, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ८-२(१ से २)=६, पे. ८, जैदेना., (२४४१२, १२४३२). पे. १. औपदेशिक सज्झाय, महमद, मागु., पद्य, (पृ. -३अ-३अ, अपूर्ण), आदि:-: अंतिः लेसो साहिब हाथ., पे.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. पे. २. इलाचीकुमार सज्झाय, मु. लब्धिविजय, मागु., पद्य, (पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण), आदिः नामे इलाचीपुत्र जाणी; अंतिः ___ लब्धिविजय गुण गाय., पे.वि. गा.१०. पे. ३. अरणिकमुनि सज्झाय, उपा. समयसुन्दर गणि, मागु., पद्य, (पृ. ३आ-४अ, संपूर्ण), आदिः अरणिक मुनिवर ___ चाल्या; अंति: मनवञ्छित फल लीधोजी., पे.वि. गा.८. पे. ४. ढंढणऋषि सज्झाय, मु. जिनहर्ष, मागु., पद्य, (पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण), आदिः ढंढणऋषिने वंदना हुं; अंतिः कहे जिनहर्ष सुजाण रे., पे.वि. गा.९. पे. ५. नेमराजिमती लावणी, मु. जिनदास, प्राहिं., पद्य, (पृ. ५अ-५अ, संपूर्ण), आदिः फिकर अब लगी मेरा; अंतिः पद दीजे प्रभु हमकुं., पे.वि. गा.४. पे. ६. १६ सती सज्झाय, मागु., पद्य, (पृ. ५अ-५आ, संपूर्ण), आदिः सीतल जिनवर करूं; अंति: नाम समरो निसदीस., पे.वि. गा.५. पे. ७. विजयसेठविजयासेठाणी सज्झाय, ऋ. चोथमल, मागु., पद्य, (पृ. ५आ-६आ, संपूर्ण), आदिः सिल तणी रे महिमां; अंतिकहेस रे सुणो सेण भाई., पे.वि. गा.२०. पे. ८. पद्मावती आराधना, उपा. समयसुन्दर गणि, मागु., पद्य, (पृ. ६आ-८अ, संपूर्ण), आदिः हवे राणी पद्मावती; अंतिः पापथी छुटे तत्काळ., पे.वि. गा.३५,ढाळ-३. २४३३. बार भावना, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, प्र. ५, जैदेना., (२४४१२, १७४४५). १२ भावना, मु. धर्मरुचि, मागु., गद्य, आदिः पहिलि अनित भावना ते; अंतिः धरमरुचि अणगार भावी. २४३४." सिन्दूरप्रकरण, संपूर्ण, वि. १९३६, श्रेष्ठ, पृ. ८, जैदेना., ले. आर्यकाजडाव, प्र.वि. श्लो.१०१, पदच्छेद सूचक लकीरें प्रारंभिक पत्र, (२६४१२.५, १३४३४). सिन्दूरप्रकर, आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य, आदिः सिंदूरप्रकरस्तपः; अंतिः स जानाति जनाग्रतः. २४३७. पासाकेवली, पूर्ण, वि. १७५९, जीर्ण, पृ. ७-१(१)=६, देना., ले. ठाकुरदास ब्राह्मण, प्र.वि. श्लो.१८४, संशोधित, पृ.वि. श्लोक १ से १३ नहीं है., दशा वि. किनारी अधिक उपयोग के कारण खंडित है, विवर्ण-पानी से अक्षरों की स्याही फैल गयी है-अक्षर फीके पड गये हैं, (२४.५४११, १०x४८). पाशाकेवली, ऋ. गर्ग, सं., पद्य, आदि:-; अंतिः सत्योपासक केवली. २४३८. नवस्मरण, पार्श्वजिन चैत्यवन्दन व लघुशान्ति, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १५, पे. ३, जैदेना.,प्र.वि. संशोधित, पदच्छेद सूचक लकीरें-कुछ पत्र, दशा वि. खंडित भाग पर कागज चिपकाए हुए हैं-अक्षरों की स्याही फैल गयी है, (२५४११.५, १४४३५). पे. १. नवस्मरण, आ. अनेक श्रुतस्थविर, प्रा.,सं., प+ग, (पृ. १-१४अ), आदि: नमो अरिहन्ताणं० हवइ; अंतिः जैनं जयति शासनम्. पे. २. पे. नाम. शर्केश्वरपार्श्वजिन स्तोत्र, पृ. १२अ-१२आ पार्श्वजिन चैत्यवन्दन, सं., पद्य, आदिः ॐ नमः पार्श्वनाथाय; अंतिः मे वाञ्छितं नाथ., पे.वि. श्लो.५. पे. ३. लघुशान्ति, आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, (पृ. १४अ-१५अ), आदिः शान्तिं शान्ति; अंतिः जैनं जयति शासनम्., पे.वि. श्लो.१७+२. २४३९. जातकदीपक पद्धति सह टबार्थ व ज्योतिष सङ्ग्रह, संपूर्ण, वि. १८७१, श्रेष्ठ, पृ. ३३, पे. २, जैदेना., ले.स्थल. वालभिनगर, ले. मु. प्रेमसागर (गुरु मु. जीतसागर), प्र.ले.पु. मध्यम, (२४.५४११.५, ५४२५). For Private And Personal Use Only Page #319 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir २६५ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची पे. १. पे. नाम. जातकदीपक पद्धति सह टबार्थ, पृ. १-२७आ, संपूर्ण जातक पद्धति, मु. हर्षविजय, सं., पद्य, वि. १७६५, आदिः प्रणम्य पार्श्वदेवेश; अंतिः एषा जातकदीपिका. जातकपद्धति-टबार्थ, मागु., गद्य(पूर्ण), आदिः नमस्कार करीने; अंति:-, पे.वि. मूल-श्लो.१२९. टबार्थ श्लो.१२५ __ अपूर्ण तक लिखा गया है. पे. २. पे. नाम. ज्योतिषश्लोक सङ्ग्रह, पृ. २८अ-३३अ, संपूर्ण ज्योतिष* , सं.,मागु., पद्य, आदि:#; अंतिः#., पे.वि. श्लो.२३. २४४१." भुवनदीपक सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८९८, श्रेष्ठ, पृ. २२, जैदेना., ले. पं. सुखसागर, प्र.वि. मूल-श्लो.१७५., संशोधित, (२५४११.५, ५४३२). भुवनदीपक, आ. पद्मप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३पू, आदि: सारस्वतं नमस्कृत्य; अंतिः श्रीपद्मप्रभुसूरिभिः. भुवनदीपक-टबार्थ', मागु., गद्य, आदि: सरस्वती सम्बन्धीओ; अंतिः ईस्ये आचार्य कह्यो. २४४६." श्रीपतिपद्धत्ति सह सुबोधिनी वृत्ति, संपूर्ण, वि. १७१७, श्रेष्ठ, पृ. ५९, जैदेना., ले. मु. कर्मचन्द; मु. ठाकुरसी (गुरु पं. जसकीर्ति), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. मूल-अध्याय-८., संशोधित, प्र.ले.श्लो. (५०६) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा ; (५४३) भग्र प्रष्टि कटि ग्रीवा, (२४x१०.५, १५४४१). जातककर्म पद्धति, श्रीपति भट्ट, सं., पद्य, आदिः नत्वा तां श्रुतदेवता; अंतिः खलु तत्सरूपदृक्. जातककर्म पद्धति-सुबोधिनी वृत्ति, गणि सुमतिहर्ष, सं., गद्य, वि. १६७३, आदिः श्रीअश्वसेनिचलनाम्बु; अंतिः शुभ्रे षष्टी दिने. २४४७. उत्तराध्ययनसूत्र सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १६०४, मध्यम, पृ. १११, जैदेना.,प्र.वि. मूल-३६अध्ययन., संशोधित, पंचपाठ, पदच्छेद सूचक लकीरें, प्र.ले.श्लो. (५४२) जले रक्षं तेले लिखतं, (२५.५४१०.५, १०४३५). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग, आदिः सञ्जोगाविप्पमुक्कस्स; अंतिः (१)सम्मए त्ति बेमि (२)पुत्वरिसी एव भासन्ति. उत्तराध्ययनसूत्र-बालावबोध, मु. सोमदेव-शिष्य, सं., गद्य, आदिः प्रणम्य श्री; अंतिः जम्बू गणधर हुई कहइ. २४५०. गौतम कुलक सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ८७-१(३०)=८६, जैदेना., पू.वि. बीच के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., (२७.५४१३, ११४३२). गौतम कुलक, प्रा., पद्य, आदिः लुद्धा नरा अत्थपरा; अंति: गौतम कुलक-बालावबोध कथा, पं. पद्मविजय, मागु., गद्य, वि. १८४६, आदिः नत्वा श्रीमन्महावीरं; अंति:२४५२." स्तोत्र सङ्ग्रह, अपूर्ण, वि. १७वी, जीर्ण, पृ. ५, पे. ४, जैदेना., प्र.वि. संशोधित, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न, पू.वि. बीच के पत्र हैं., (२५४१०.५, १५४५६). पे. १. पे. नाम. थाम्भणा बत्रीसी, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण जयतिहुअण स्तोत्र, आ. अभयदेवसूरि , प्रा., पद्य, आदि: जयतिहुयणवर कप्परुक्ख; अंतिः विण्णवइ अणिन्दिय., पे.वि. गा.३०. पे. २. भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुङ्गसूरि, सं., पद्य, (पृ. २अ-४अ, संपूर्ण), आदिः भक्तामरप्रणतमौलिमणि; अंतिः समुपैति लक्ष्मी., पे.वि. श्लो.४४. पे. ३. कल्याणमन्दिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकर, सं., पद्य, (पृ. ४अ-५आ, संपूर्ण), आदिः कल्याणमन्दिरमुदारमवद; ___ अंति: मोक्षं प्रपद्यन्ते., पे.वि. श्लो.४४. पे. ४. आवश्यकसूत्र-नियुक्ति , आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., पद्य, (पृ. , अपूर्ण), आदिः आभिणिबोहियनाणं; अंतिः-, पे.वि. अन्त के पत्र नहीं हैं. गा.४ तक है. गाथांक-४ तक के क्रमशः पाठ आवश्यकनियुक्ति से मिलता है, शेष अपूर्ण है. For Private And Personal Use Only Page #320 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य भाग १ - www.kobatirth.org: (+) २४५३. मानतुङ्गमानवती रास संपूर्ण वि. १९वी मध्यम पृ. ३४ जैदेना. प्र. वि. गा. १०१५. डाळ - ४७, संशोधित (२६.५४१२. १५X४५). मानतुङ्गमानवती रास, मु. मोहनविजय, मागु., पद्य, वि. १७६०, आदिः ऋषभजिणन्द चरणाम्बुजे; अंतिः घरघर मङ्गलमाल हे.. २४५४.” श्राद्धप्रतिक्रमणसूत्र सङ्ग्रह व एकादशी स्तुति, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ९, पे. २, जैदेना., ले. स्थल. पालीताणा, पठ. धनीबाई, प्र. वि. संशोधित, ( २४.५x१२, १२४३२). पे. १. पे. नाम. श्राद्धदेवसीराईप्रतिक्रमणसूत्र सङ्ग्रह, पृ. ०१-०९आ देवसिराईप्रतिक्रमणसूत्र - तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा. सं., मागु., प+ग, आदिः नमो अरिहन्ताणं; अंतिः देहि मे देवि " सारं. पे. २. मौनएकादशीपर्व स्तुति, मु. गुणहर्ष-शिष्य, मागु., पद्य, (पृ. ९आ), आदिः एकादशी अति रुअडी; अंतिः सङ्घ तणा निशदिश., पे. वि. गा. ४. · Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (+) २४५९. कर्मग्रन्थ सत्तरी सह बालावबोध ( ६ ) ( व्याख्या), संपूर्ण वि. १६७९ श्रेष्ठ, पृ. ४६, जैदेना, ले. स्थल. कुंदकी महापुरी, ले. मु. झाञ्झण (गुरु ऋ. लीलाजी स्थविर, गुजरातीलुङ्कागच्), राज्यकाल - राजा करण राणा, प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र. वि. मूल गा. ९२, संशोधित टिप्पण युक्त विशेष पाठ (२६.५४११, १८-१९४४८). 7 सप्ततिका कर्मग्रन्थ, प्रा., पद्य, आदिः सिद्धपएहिं महत्थं; अंतिः एगुणा होइ नउइओ. सप्ततिका वालावबोध, मागु, गद्य, आदिः श्रीवर्द्धमानमानम्य अंतिः निव्यासी गाथा हुई. २६६ व्यवहारसूत्र आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा. गद्य, आदि जे भिक्खु मासियं अंतिः महापज्जवसाणे भवइ. " (+) २४६०. बृहत्कल्पसूत्र, संपूर्ण वि. १६वी श्रेष्ठ, पृ. ११, जैदेना. प्र. वि. अध्याय ६ प्र.पु. नं. ४७६ (३१४१२, १३४५१) " बृहत्कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: नो कप्पइ निग्गंधाण अंतिः कप्पट्ठिई तिबेमि २४६१. व्यवहारसूत्र (कप्पववहारो), संपूर्ण, वि. १६वी, श्रेष्ठ, पृ. १३, जैदेना. प्र. वि. १० उद्देशक प्र. पु. ग्रं. ५००, ( ३१x१२, १३४५२). सिन्दूरप्रकर, आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य, (संपूर्ण), आदि: सिंदूरप्रकरस्तपः; अंतिः समुपैति धीरा. सिन्दूरप्रकर-टबार्थ * मागु., गद्य, (अपूर्ण), आदि:-; अंति: , (+) २४६२. सिन्दूरप्रकरण सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८९७, श्रेष्ठ, पृ. ४१, देना., ले. स्थल. रत्नपुरी, पठ. मु. वखतकुशल, राज्यकाल- राजा बलवन्तसिंह, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. मूल श्लो. १०८. टबार्थ मात्र २७ गाथा का है, पदच्छेद सूचक लकीरें कुछ पत्र (२३.५४१३.५. ४x२७). " २४६३." गौतमपृच्छा सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १७४७, मध्यम, पृ. ४५ जैदेना. ले. स्थल. लाडणु नगर, ले. मु. सुबुद्धिविजय (गुरु पं. रत्नविजय), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. मूल - गा. ६४., संशोधित टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२५.५X११, १४४३८). गीतमपृच्छा, प्रा., पद्य, आदिः नमिऊण तित्थनाहं अंति: गोयमपुच्छा महत्थावि. गौतमपृच्छा-बालावबोध, आ. जिनसूरि, मागु., गद्य, आदिः नत्वा वीरजिनं; अंतिः तेहमाहि जाणिवा. For Private And Personal Use Only २४६६.” सिद्धान्तचन्द्रिका सह सुबोधिनीव्याख्या वृत्ति- पूर्वार्द्ध, प्रतिपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १०१, जैदेना., ले. ॠ. रत्न, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें, संशोधित टिप्पण युक्त विशेष पाठ, पू. वि. प्रारंभ (संज्ञा प्रकरण) से पूर्वार्द्ध (अव्ययमाला) तक हैं., ( २६ ११.५, १७x४६). सिद्धान्तचन्द्रिका, आ. रामाश्रम, सं., गद्य, आदि: नमस्कृत्य महेशानं अंतिः सिद्धान्तचन्द्रिका-सुबोधिनी वृत्ति, गणि सदानन्द, सं., गद्य, वि. १७९९, आदिः पुराणपुरुषं ध्यात्वा; अंतिः (+) २४६७. पण्णवणासूत्र (भगवतीसूत्र), संपूर्ण वि. १७वी मध्यम पृ. २०९, जैदेना. प्र. वि. ग्रं. ७७८८ अध्याय-३६ पद, संशोधित, " T (२६४११, १३४४६). Page #321 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir २६७ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची प्रज्ञापनासूत्र, वाचक श्यामाचार्य, प्रा., गद्य, आदिः नमो अरिहन्ताणं; अंतिः सुही सुहं पत्ता. २४६९." कर्मग्रन्थ १-४, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १६, पे. ४, जैदेना., प्र.वि. संशोधित, पदच्छेद सूचक लकीरें-कुछ पत्र, (२७.५४११.५, ९४३८). पे. १. कर्मविपाक नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, (पृ. १अ-५अ), आदिः सिरिवीरजिणं वन्दिय; अंतिः लिहिओ देविन्दसूरीहिं., पे.वि. गा.६१. पे. २. कर्मस्तव नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, (पृ. ५अ-७आ), आदिः तह थुणिमो वीरजिणं; अंतिः वन्दियं नमह तं वीरं., पे.वि. गा.३४. पे. ३. बन्धस्वामित्व नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, (पृ. ७आ-९आ), आदिः बन्धविहाणविमुक्कं ; अंति: नेयं कम्मत्थयं सोउं., पे.वि. गा.२५. पे. ४. षडशीति नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, (पृ. ९आ-१६अ), आदिः नमिय जिणं जिय; अंतिः देविन्दसूरीहिं., पे.वि. गा.८६. २४७१. विचारषट्त्रिंशिका सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदेना.,प्र.वि. मूल-गा.३८., संशोधित, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२६.५४११.५, ५-८४३९-५२). दण्डक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, आदि: नमिउं चउवीस; अंतिः एसा विनत्ति अप्पहिआ. दण्डक प्रकरण-टबार्थ , मागु., गद्य, आदिः ऋषभादिक २४ जिननै; अंतिः पोताना हितने काजे. २४७४." श्रमणप्रतिक्रमण सूत्र सङ्ग्रह व पञ्चमी थुई, संपूर्ण, वि. १८३९, मध्यम, पृ. १३, पे. २, जैदेना., ले. श्रा. पिरागदास __ महाजन जैन, पठ. श्रा. जैतराम, प्र.वि. संशोधित, (२५.५४१२, ९४३५). पे. १. पे. नाम. साधुप्रतिक्रमणसूत्र सङ्ग्रह, पृ. ०१आ-१३आ साधुप्रतिक्रमणसूत्र सङ्ग्रह श्वे.मू.पू., संबद्ध, प्रा., प+ग, आदिः नमो अरिहन्ताणं; अंतिः खमामि सव्वस्स अहयंपि. पे. २. ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, सं., पद्य, (पृ. ९आ-१०अ), आदिः श्रीनेमिः पञ्चरूप; अंतिः कुशलं धीमतां सावधाना., पे.वि. श्लो.४. २४७६.” पाक्षिकसूत्र, खामणा व भरहेसर सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ११, पे. ३, जैदेना., दशा वि. विवर्ण-पानी से अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जीवातकृत छिद्र युक्त-अल्प, (२५४११.५, १२४४१). पे. १.पे. नाम. पाक्षिकसूत्र, पृ. ०१आ-१०आ पाक्षिकसूत्र, प्रा., प+ग, आदिः तित्थङ्करे य तित्थे; अंतिः जेसिं सुयसायरे भत्ति. पे. २.पे. नाम. पाक्षिकक्षामणासूत्र, पृ. १०आ-११अ क्षामणकसूत्र, प्रा., गद्य, आदिः इच्छामि खमासमणो; अंतिः नित्थारग पारगा होह., पे.वि. सूत्र-४ आलावा. पे. ३. पे. नाम. महासतामहासती कुलक, पृ. ११अ-११आ भरहेसर सज्झाय, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: भरहेसर बाहुबली; अंतिः जस पडहो तिहुयणे सयले., पे.वि. मूल गा.१३. २४७८. नन्दीसूत्र स्थविरावली व आवश्यकसूत्र की नियुक्ति, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १७-२(१ से २)=१५, पे. २, जैदेना., पू.वि. बीच के पत्र हैं., (२७४११, १५४५१). पे. १. नन्दीसूत्र-स्थविरावली, आ. देववाचक, संबद्ध, प्रा., पद्य, (पृ. -३अ), आदि:-; अंति: नाणस्स परूवणं वुच्छं., पे.वि. गा.२६. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. गा.१ से १७ तक नहीं है. पे. २. आवश्यकसूत्र-नियुक्ति , आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., पद्य, (पृ. ३अ-१७आ-), आदिः आभिणिबोहियनाणं; अंतिः-, पे.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. गा.३०८ तक है. For Private And Personal Use Only Page #322 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य भाग १ - www.kobatirth.org: " २४७९. दानाधिकारे कयवन्ना चौपाई व श्लोक, संपूर्ण, वि. १९५५, श्रेष्ठ, पृ. २४, पे. २, जैदेना., ले. स्थल. दैलतपुर, ले. रामदास वैष्णव, राज्यकाल - राजा शुपसिंह, प्र.ले.पु. मध्यम, ( २६.५x१३.५, १४X३७). पे. १. कयवन्ना चौपाई, मु. जयतसी मागु पद्य वि. १७२१ (पृ. १-२४), आदि स्वस्ति श्रीसुख अंतिः धरमकरण मन उलसेजी., पे. वि. गा. ५५५, ढाळ - ३१. रचनासंवत् १७३१ है. पे. २. नदीक्षार श्लोक सं., पद्य, (पृ. २४आ), आदि क्षारं नदितटितटाग्र: अंतिः गजजान्चीविष्णु, पे. वि. श्लो. १. 1 (+) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २४८०. कर्मग्रन्थ सह टबार्थ (षट्कर्मग्रन्थ) संपूर्ण, वि. १८९८, श्रेष्ठ, पृ. ८२, पे. ६, जैदेना ले. मु. खुबकुशल, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, ( २४.५४१३, ४x२८). पे. १. पे नाम. कर्मविपाक सह टवार्थ कर्मविपाक नव्य पृ. १-१३आ # २६८ कर्मविपाक नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: सिरिवीरजिणं वन्दिय; अंतिः लिहिओ देविन्दसूरीहिं. कर्मविपाक नव्य कर्मग्रन्थ-टवार्थ, मागु, गद्य, आदिः श्रीमहावीरदेव प्रति अंतिः श्रीदेवेन्द्रसूरिई, पे. वि. मूल-गा. ६२. पे. २. पे. नाम कर्मस्तव सह टवार्थ, पृ. १३आ- २१अ कर्मस्तव नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: तह थुणिमो वीरजिणं; अंतिः वन्दियं नमह तं वीरं. कर्मस्तव नव्य कर्मग्रन्थ-टबार्थ *, मागु., गद्य, आदिः तिम स्तवं महावीरदेव; अंति: हुं पिण स्तवं छं., पे.वि. मूल गा. ३४. (+) पे. ३. पे. नाम. बन्धस्वामित्व सह टबार्थ, पृ. २१अ - २५आ बन्धस्वामित्व नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, आदिः बन्धविहाणविमुक्कं; अंतिः नेयं कम्मत्थयं सोउं. बन्धस्वामित्व नव्य कर्मग्रन्थ- टवार्थ मागु, गद्य, आदि कर्मबन्धना प्रकार अंति: गुरु पासे साम्भलो. पे.वि. मूल*, गा. २४. पे. ४. पे नाम षडशीति सह टवार्थ, पृ. २५-४२अ षडशीति नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, आदिः नमिय जिणं जिय; अंतिः देविन्दसूरीहिं. षडशीति नव्य कर्मग्रन्थ- स्वार्थ, मागु, गद्य, आदि वीतरागदेवनइ नमस्करी अंति: देवेन्द्रसूरिहिं. पं.वि. मूलगा. ८६. F पे. ५. पे. नाम. शतक सह टबार्थ, पृ. ४२अ - ६३अ शतक नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, आदिः नमिय जिणं धुवबन्धोदय; अंतिः सयगमिणं आयसरणट्ठा. शतक नव्य कर्मग्रन्थ-टबार्थ, मागु, गद्य, आदि जिन प्रते नमीने अंतिः सम्भारवाने अर्थे, पे.वि. मूल-गा. १००. पे. ६. पे नाम. सप्ततिका सह टवार्थ, पृ. ६३अ-८२अ सप्ततिका कर्मग्रन्थ, प्रा., पद्य, आदिः सिद्धपएहिं महत्थं; अंतिः एगुणा होइ नउइओ. सप्ततिका कर्मग्रन्थ-टबार्थ, मागु, गद्य, आदि सिद्ध निश्चल पद छइ अंतिः उणी नेउ गाथा होइ, पे. वि. मूल गा. ९३. २४८१. स्तवनचीवीसी, संपूर्ण वि. १९०१ मध्यम, पृ. ११, जैदेना. ले. स्थल, अजमेर, प्र. वि. अध्याय- २४ स्तवन, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, ( २६x१३, १३३२). स्तवनचौवीसी, कवि पद्मविजय, मागु, पद्य, आदि ऋषभ जिनेश्वर ऋषभ अंतिः पद्मविजय गुण गाया रे. For Private And Personal Use Only २४८३.” ज्ञाताधर्मकथाङ्गसूत्र, अपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ४५, जैदेना, प्र. वि. संशोधित पू. वि. अन्त के पत्र नहीं हैं. प्रथम श्रुतस्कंध का प्रथम अध्ययन अपूर्ण तक है., ( २६५१४.५. ७४३४). ज्ञाताधर्मकथाङ्गसूत्र आ. सुधर्मास्वामी प्रा. प+ग, आदि: तेणं कालेणं० चम्पाए: अति: , २४८६. नवपद पूजा, स्तवन व स्तुति, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ७, पे. ३, जैदेना., (२७x१२.५, ११४३०). Page #323 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra २६९ www.kobatirth.org: पे. १. नवपद लघु पूजा, आ. ज्ञानविमलसूरि, प्रा. सं., पद्य, (पृ. १-७अ), आदिः उपन्नसन्नाणमहोमयाणं; अंतिः चतुरन्वितेभ्यो नमः. पे. २. नवपद स्तवन, मागु, पद्य, (पृ. ७अ-७आ), आदि तीरथनायक जिनवरू रे अंतिः नित प्रति नमत कल्याण, पे.वि. गा. ५. ; पे. ३. नवपद स्तुति, मु. लालचन्द, मागु, पद्य, (पृ. ७आ), आदि नवपद ध्यान धरो रे अंतिः शिवतरु बीज खरो रे.. पे.वि. गा.३. " . २४८७. प्रतिक्रमणसूत्र सङ्ग्रह सह टवार्थ पूर्ण वि. १९०६ मध्यम, पृ. १५- १(१ ) - १४, जैवेना. ले. ऋ. सदासुख (गुरु ऋ. नन्दराम ), प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२७०४१३.५, ४-०९५४-५८). साधु प्रतिक्रमणसूत्र - स्थानकवासी संबद्ध प्रा. प+ग, आदि अंतिः आराहियं अणुपालियं. " साधुप्रतिक्रमणसूत्र - स्थानकवासी-टबार्थ *, मागु., गद्य, आदि:-; अंतिः आज्ञाइं करी पाल्य उ. 7 Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २४८८. श्राद्धदिनकृत्य सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ९१ + १ (६९) = ९२, जैदेना., प्र. वि. संशोधित, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, पू. वि. अन्त के पत्र नहीं है. (३१.५४११.५. १५-१९४६६). श्राद्धदिनकृत्य प्रकरण, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, आदिः वीरं नमिऊण तिलोयभाणु: अंतिः श्राद्धविनकृत्य- बालावबोध, मागु, गद्य, आदि (१) सुरासुराधीशमहीशनम्यं (२) पहिलउं ज्ञान तओ पाछइ अंतिः२४८९. आवश्यकसूत्र सह निर्युक्ति, भाष्य व नियुक्ति+भाष्य की लघुवृत्ति, त्रुटक, वि. १७वी श्रेष्ठ, पृ. १२४-६३ (१ से ९,४३,४७ से ५७,६५ से १०६ ) = ६१, जैदेना, पृ. वि. बीच-बीच के पत्र हैं. (३१.५०११, १३४५४-६७). आवश्यकसूत्र प्रा. प+ग, आदि: अंति " १५४५५). शत्रुंजयतीर्थ माहात्म्य- बालावबोध, सं., मागु., गद्य, आदि:-; अंतिः , आवश्यक सूत्र- लघुवृत्ति #, आ. तिलकाचार्य, सं., गद्य, वि. १२९६, आदि:-; अंति: आवश्यक सूत्र- नियुक्ति आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., पद्य, आदि:-: अंति: " आवश्यकसूत्र-निर्युक्ति की लघुटीका #, आ. तिलकाचार्य, सं., गद्य, वि. १२९६, आदिः-; अंतिःआवश्यक सूत्र- नियुक्ति का भाष्य, प्रा., पद्य, आदि:-; अंतिः आवश्यक सूत्र- नियुक्ति के भाष्य की लघुटीका #, आ. तिलकाचार्य, सं., गद्य, आदि:-; अंति: २४९० शत्रुञ्जय माहात्म्य का बालावबोध, अपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ७-१(१ ) - ६, जैदेना. पु. वि. बीच के पत्र हैं., (२८x१३, २४९२.” कर्णकुतूहल सह गणककुमुदकौमुदीवृत्ति, संपूर्ण, वि. १८५१, मध्यम, पृ. ४५-२ (८, ३१ ) + २ (६, २१) = ४५, जैदेना., ले. स्थल. जोधपुर, ले. मु. कसक्तरचन्द (गुरु पं. कमरविजय) प्र.ले.पु. मध्यम प्र. वि. मूल १० अधिकार टीका ग्रं. २५००., संशोधित टिप्पण युक्त विशेष पाठ (२६५११.५, १६४४५). " करणकुतूहल, आ. भास्कराचार्य, सं., पच, ईस. ११८४ आदि गणेश गिरं पद्मजन्मा अंतिः कुसुमाञ्जलिनार्चये. करणकुतूहल- गणककुमुदकौमुदी टीका, गणि सुमतिहर्ष, सं. गद्य वि. १६७८ आदि इतः षट् भुजङ्ग अंतिः निर्णीतः " " पर्वसम्भवः. For Private And Personal Use Only २४९७.” सातस्मरण, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, जैदेना., प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, पू.वि. अन्त के पत्र नहीं हैं. बृहत्शांति अष्टम स्मरणरूप लिखी है व कल्याणमंदिर नहीं है., ( २४.५X१०.५, १३x४०). नवस्मरण, आ. अनेक श्रुतस्थविर, प्रा. सं., प+ग, आदिः नमो अरिहन्ताणं० हवइ; अंतिः २४९८." नेमिदूत सह टीका, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १२, जैदेना., प्र. वि. संशोधित, त्रिपाठ, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. गा. ५९ तक लिखा है., (२५.५X१२.५, ३-१४४५६-६२). Page #324 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य भाग १ - www.kobatirth.org: नेमिदूत श्रा. विक्रम आधारित, सं., पद्य वि. १३वी आदि प्राणित्राणप्रवणह्रदय अंतिःनेमिदूत टीका, आ. गुणविनयसूरि, सं., गद्य वि. १६४४, आदि: श्रीपार्श्व प्रणिपत अंति:२४९९.*” जम्बूद्वीपसङ्ग्रहणी सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८७९, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदेना., ले. स्थल. हुरडानगर, ले. ऋ. खुबचन्द, ; प्र. वि. मूल-गा. ३१, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, दशा वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है- अल्प, (२७४१४.५, ४०३४). लघुसङ्ग्रहणी, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदिः नमिय जिणं सव्वन्नु; अंतिः रईया हरिभद्दसूरिहिं. लघुसङ्ग्रहणी-टवार्थ मागु, गद्य, आदिः नगिय क० नमस्कार करी अंतिः श्रीहरिभद्रसूरीश्वरे. i (+8) २५००. विचारषट्त्रिंशिका सह टबार्थ, संपूर्ण वि. १८८०, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना. ले. स्थल. हुरडानगर, ले. मु. खुबकुशल, प्र. वि. मूल-गा. ३९., टिप्पण युक्त विशेष पाठ, दशा वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है अल्प, (२७४१४.५, ५X३३). दण्डक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, आदि: नमितं चउवीस अतिः एसा विनति अप्यहिआ. दण्डक प्रकरण-टबार्थ* मागु., गद्य, आदिः ऋषभादिक २४ जिननै; अंतिः आत्माने अर्थे छै. २५०३. स्तोत्र सङ्ग्रह, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ७, पे. ४ जैदेना, (२५.५४१२, १३४३७). , पे. १. ये नाम, नमिऊण स्तोत्र, पृ. १-२अ नमिऊण स्तोत्र, आ. मानतुङ्गसूरि, प्रा., पद्य, आदिः नमिऊण पणयसुरगण; अंतिः नासइ तस्स दूरेण., पे.वि. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गा.२४. पे. २. बृहत्शान्ति स्तोत्र-तपागच्छीय, सं., गद्य, (पृ. २अ - ३आ), आदिः भो भो भव्याः श्रृणुत; अंतिः जैनं जयति शासनम्. पे. ३. लघुशान्ति, आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, (पृ. ३अ - ३आ), आदि: शान्ति शान्ति: अंति: (१) सूरिः श्रीमानदेवश्च (२)जैनं जयति शासनम्., पे. वि. श्लो. १९. पे. ४. अजितशान्ति स्तव आ. नन्विषेणसूरि प्रा. पद्य (पृ. ४आ-७अ ) आदि अजियं जिय सव्वभयं अंतिः जिणवयणे " आयरं कुणह., पे. वि. गा. ४०. २५०५.” चन्दनबाला व कलावती सज्झाय, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, पे. २, जैदेना., प्र. वि. संशोधित, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., ( २६४११.५, १०-१२४३३). पे. १. चन्दनबाला सज्झाय, मु. नित्यलाभ, मागु., पद्य, वि. १७८२, (पृ. १-४आ, संपूर्ण), आदि: श्रीसरसतिना रे पाय; अंतिः नितलाभ ए वाणी., पे.वि. ढाळ - ३. पे. २. कलावती चौढालिया, ऋ. करमसी शिष्य, मागु., पद्य, वि. १८३५, (पृ. ४आ-६अ, अपूर्ण), आदिः मालवदेश मनोहरु तिहां; अंति:-, पे. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. ढाल -२ की गा.५ तक है. २५०६." श्राद्धप्रतिक्रमणसूत्र सङ्ग्रह सह टवार्थ, संपूर्ण, वि. १७४१ श्रेष्ठ, पृ. २१, जैदेना. प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२७४१२, ५X३७). श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र संबद्ध, प्रा., मागु., प+ग, आदिः नमो अरिहं० सव्वसाहूण; अंतिः शिवं सदा सर्वसाधूनां. श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र - टवार्थ, मागु, गद्य, आदि: माहरु नमस्कार अंतिः सदाइ सर्वसाधून थाउ i , (+) २७० २५०७. प्ररूपणा विचार, पूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १९ - १(१८) - १८, जैदेना, प्र. वि. संशोधित, ( २६४११.५, ११४४५). प्ररूपणा विचार, सं., पद्य, आदि आर्हन्त्यमाध्यायचिरं अंतिः सन्तु कल्याणसम्पदे. २५०८. भाषासहस्त्रनाम शतक व सिन्दूर प्रकरण भाषा, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १०, पे. २, जैदेना., पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., (२६×११.५, १५x४१). पे. १. आत्मसहस्रनाम स्तोत्र भाषा, श्री. बनारसीदास प्राहिं, पद्य वि. १६९० (पृ. १५आ, संपूर्ण ), आदि परम देव परनाम करि; अंतिः प्रगट्यो नाम कवित्त., पे.वि. गा.१०१. पे. २. सिन्दूरप्रकर- पद्यानुवाद भाषा, कवि बनारसीदास, प्राहिं., पद्य, वि. १६९१, (पृ. ५आ-१०अ, अपूर्ण), आदि: सोभिततपगजराज अंति, पे. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण अनुवाद-गा. ५९ अपूर्ण तक लिखा है. For Private And Personal Use Only Page #325 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir २७१ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २५०९. आठकर्म १५८ प्रकृति विचार (सङ्क्षप), संपूर्ण, वि. १८८९, श्रेष्ठ, पृ. ८, जैदेना., ले.स्थल. जावाल, ले. पं. उत्तम, (२६.५४११.५, ११४५०). ८ कर्म १५८ प्रकृति विचार, मागु., गद्य, आदिः आठ कर्म ते केहा; अंतिः विषे उद्यम करवो. २५१०. षद्रव्य भाव व शीव पद, संपूर्ण, वि. १८८९, श्रेष्ठ, पृ. ११, पे. २, जैदेना., ले. मु. खूमचन्द (गुरु पं. उत्तमविजय पण्डित), (२६.५४११.५, ११४३६). पे. १.६ द्रव्य भाव, मागु., गद्य, (पृ. १-११), आदिः असङ्ख्यात प्रदेशी; अंति: कांई सुजतु नथी. पे. २. शिव पद, मागु., पद्य, (पृ. ११अ), आदिः शिवपद पामे आत्मा; अंतिः तेहना करु जबाप., पे.वि. गा.३. २५१३." भाष्यत्रय सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ११, जैदेना.,प्र.वि. मूल-३ भाष्य., संशोधित, पंचपाठ, पदच्छेद सूचक लकीरें, (२५.५४१०.५, ७-१६४३९-५६). भाष्यत्रय, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, आदिः वन्दित्तु वन्दणिज्जे; अंतिः सासयसुक्खं अणाबाहं. भाष्यत्रय-अवचूरि, आ. सोमसुन्दरसूरि, सं., गद्य, वि. १५०८, आदिः वन्दि० वन्दनीयान; अंति: श्रीसोमसुन्दरसूरिभिः. २५१४. प्रियमेलक चौपाई, संपूर्ण, वि. १८२७, मध्यम, पृ. ८, जैदेना., ले.स्थल. पुष्फातिनगर, ले. मु. कपूरविजय (गुरु मु. तिलकविजय), प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र.वि. ढाल-११, गा.२३०, (२६४११, १५४४५). प्रियमेलक चौपाई, उपा. समयसुन्दर गणि, मागु., पद्य, वि. १६७२, आदिः प्रणमुं सद्गुरु पाय; अंति: पुण्य अधिक परमोद. २५१७. उत्तराध्ययनसूत्र सह टबार्थ+कथा, त्रुटक, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ११५-९३(१,९,१४ से २७,२९ से ५१,५३ से ५९,६२,६९ से ११४)=२२, जैदेना., पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., (२५.५४११.५, १५४५५). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध , प्रा., प+ग, आदि:-: अंति: उत्तराध्ययनसूत्र-टबार्थ+कथा* , मागु., गद्य, आदि:-; अंतिः२५२१." उपदेशमाला, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १९, जैदेना., प्र.वि. गा.५४४, संशोधित, (२५.५४१०.५, १३४४६). उपदेशमाला, गणि धर्मदास, प्रा., पद्य, आदिः (१) नमिऊण जिणवरिन्दे (२) जगचूडामणिभूओ उसभो; अंतिः वयण विणिग्गया वाणी. २५२२." गजसिंह रास, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १५, जैदेना., ले. मु. लाला, पठ. निभद्रेण, प्र.वि. गा.४३४,खण्ड-४, दशा वि. विवर्ण-पानी से अक्षरों की स्याही फैल गयी है, (२६४११, १३४५२). गजसिङ्घकुमार रास, मु. सुन्दरराज, मागु., पद्य, वि. १५५६, आदिः पास जिणेसर पाय नमी; अंतिः तन मनइ उच्छाहि. २५२८. बासठमार्गणा यन्त्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदेना., प्र.वि. *पंक्ति-अक्षर अनियमित है।, (२५४१२४). ६२ मार्गणा यन्त्र, प्रा.,मागु., पद्य, आदि:-; अंतिः२५२९.” प्रतिक्रमणसूत्र सङ्ग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, जैदेना., ले. पं. रत्नविजय, दशा वि. चिपके पत्र अलग करते वक्त स्याही उखडी हुई-अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, (२६४११, १३४३२). प्रतिक्रमणसूत्र सङ्ग्रह-श्वे.मू.पू.*, संबद्ध, प्रा.,सं.,मागु., प+ग, आदिः नमो अरिहन्ताणं; अंति: गारेणं वोसिरे. २५३०. मेघदूत महाकाव्य सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २५, जैदेना., ले. मु. शुभसागर (गुरु पं. सुजाणसागर), प्र.वि. मूल-श्लो.१२५., पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न-वचन विभक्ति संकेत-क्रियापद संकेत, संशोधित, (२५.५४११, ७४२८). मेघदूत, कालिदास, सं., पद्य, आदिः कश्चित्कान्ताविरह; अंतिः सुखम्भोजयामासशश्वत्. मेघदूत-अवचूरि, सं., गद्य, आदिः आशीनमस्कृया वस्तु; अंतिः कारयामास क्रुद्धं. For Private And Personal Use Only Page #326 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य भाग १ २७२ २५३२. जम्बूद्वीपसङ्ग्रहणी, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना., प्र. वि. गा. ३०. प्रथम तीन गाथा का ही टबार्थ लिखा है., (२६.५४१२.५, ५४२८). www.kobatirth.org: - लघुसङ्ग्रहणी, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदिः नमिय जिणं सव्वन्नु; अंतिः रईया हरिभद्दसूरिहिं. (+-4) २५३३. 3. जीवविचार प्रकरण सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८१६ " श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदेना. ले. स्थल. वडदराग्राम ले. मु. जिनउत्तमसागर (गुरु मु. पृथ्वीसागर), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. मूल-गा. ५३., अशुद्ध पाठ, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, दशा वि. मूषक भक्षित- किनारी अल्प- अक्षरों की स्याही फैल गयी है, (२७४१२, ६४३८-४६). (+) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जीवविचार प्रकरण, आ. शान्तिसूरि, प्रा., पद्य, आदिः भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंतिः रुद्दाओ सुयसमुद्दाओ . जीवविचार प्रकरण-टबार्थ *, मागु., गद्य, आदिः त्रिभुवनउ प्रकाशक: अंतिः सिद्धान्तनु लेइने.. २५३५. चन्द रास, संपूर्ण, वि. १८२५, श्रेष्ठ, पृ. १०८, जैदेना., ले. स्थल पाटण, ले. अबजी कानजी, प्र. वि. गा. २६७० है, संशोधित प्र.ले. श्लो. (१४१) यादर्श पुस्तकं कृत्वा (२६४१२, १५४३६). चन्द्रराजा रास, मु. मोहनविजय, मागु., पद्य, वि. १७८३, आदिः प्रथम धराधव तीम; अंतिः वर्णव्या गुण चन्दना. २५३६." शतककर्मग्रन्थ सह स्वोपज्ञटीका, संपूर्ण वि. १६४६, श्रेष्ठ, पृ. ८५, जैदेना., ले. स्थल. मूलत्राणे, ले. पं. राणा (गुरु पं. कल्याणसार गणि), प्र.वि. मूल-गा. १००; टीका- ग्रं. ४३४०, संशोधित, पदच्छेद सूचक लकीरें, (२६×११, १८×५२). शतक नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि प्रा. पद्य, आदि नमिय जिणं धुवबन्धोदय अंतिः सयगमिणं आयसरणट्ठा. शतक नव्य कर्मग्रन्थ-स्वोपज्ञ टीका, आ. देवेन्द्रसूरि, सं., गद्य, आदिः यो विश्वविश्वभविनां; अंतिः (१)स्मृतिनिमित्तमिति (२) सर्वोपि तेन जनः " २५३७. बोल सङ्ग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ७-१ ( १ ) = ६, जैदेना, पू. वि. प्रथम एक व अंत के पत्र नहीं हैं. दशा वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, ( २४x११.५, १३x४२). ५८ बोल सङ्ग्रह सं. प्रा. मागु, गद्य, आदि:-: अंति: " २५३९. चौमासी व अट्ठाईपर्व व्याख्यान, संपूर्ण वि. १९४६ श्रेष्ठ, पृ. ३०, पे. २, जैदेना. ले. पं. कुशलनिधान प्र. ले. एलो. " (१४) जलाद्रक्षेत् तैलाद्रक्षेत्, ( २४.५x१३.५, १४X३३). पे. १. चातुर्मासिक व्याख्यान, राज, गद्य (पृ. १-१८आ), आदि (१) श्रीपार्श्वसुखमागारं (२) सुखांरा निवास इसा अंतिः दुक्कडम् होज्यो. पे. २. अष्टानिकापर्व व्याख्यान, राज, गद्य (पृ. १८ आ-३०आ), आदि शान्तीशं शान्ति: अंति पर्व वखाण को (+) २५४०. कर्मविपाक विचार, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १४, जैदेना., प्र. वि. *अक्षर अनियमित है., संशोधित, पू. वि. अन्त के पत्र नहीं हैं., ( २६४१३. १३४०). कर्मविपाक नव्य कर्मग्रन्थ-यन्त्र, मु. सुमतिवर्द्धन, राज, गद्य, आदि:- अंति: २५४१. वीतराग स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. २०, जैदेना, पठ. मु. शान्तिहर्ष, प्र. वि. २० प्रकाश, संशोधित, पदच्छेद सूचक लकीरें (२६५११, १५००४२). वीतराग स्तोत्र, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, आदिः यः परात्मा परं अंतिः फलमीप्सितम् . (+4) २५४२." जीवाभिगम सूत्र, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १४२, जैदेना., प्र. वि. ग्रं. ४७००, १० प्रतिपत्ति, संशोधित, ( २६ ११.५, १३४४७). जीवाभिगमसूत्र, प्रा., गद्य, आदिः णमो उसभादियाणं; अंतिः सेत्तं सव्वजीवाभिगमे. २५४३. 'पुण्यप्रकाश स्तवन, संपूर्ण, वि. १८८७, श्रेष्ठ, पृ. ७, जैदेना., प्र. वि. गा. ८४, ढाळ -८, संशोधित, दशा वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है. (२६४१२, ११-१३४२७). पुण्यप्रकाश स्तवन, उपा. विनयविजय, मागु., पद्य, वि. १७२९, आदिः सकल सिद्धिदायक; अंतिः नामे पुण्यप्रकाश ए. For Private And Personal Use Only Page #327 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir २७३ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २५४४." नवतत्त्व प्रकरण, संपूर्ण, वि. १८४१, मध्यम, पृ. १५, जैदेना., पठ. मु. दयाचन्द, प्र.वि. गा.९२, अक्षर-दुर्वाच्य, दशा वि. फफूंदग्रस्त-अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, (२५४११, ३४४८). नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदिः जीवाजीवापुन्नं; अंतिः अणागयद्धा अणन्तगुणा. २५४७. महावीर जन्म कल्याणक, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना., (२५४११, ११-१३४३४). महावीरजिन जन्मकल्याणक वर्णन, प्रा.,मागु., गद्य, आदिः चितासायरं पविट्ठा; अंतिः जन्म कल्याणक हुओ. २५४९." योगविधि सङग्रह, संपूर्ण, वि. १८७९, श्रेष्ठ, प्र. २६, जैदेना.,ले.स्थल. पाटटण, ले. पं. मोतिविजय गणि (गुर ज्ञानविजय गणि), लिखवा. पण्डित तेजविजय (गुरु मु. गुमानविजय),प्र.ले.पु. विस्तृत,प्र.वि. संशोधित, (२७.५४१२, १४-१५४५३). योगविधि सङ्ग्रह, सं.,प्रा.,मागु., गद्य, आदिः श्रीआवश्यक सुअक्खन्ध; अंति: मास ६ दिन ९ लगइं. २५५०.” मेघदूत महाकाव्य सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. १५५९, श्रेष्ठ, पृ. ८, जैदेना., ले. पं. माणिक्यविजय (गुरु गणि संयमनन्दि, तपागच्छ), गच्छा. आ. हेमविमलसूरि(तपागच्छ), प्र.ले.पु. मध्यम,प्र.वि. मूल-श्लो.१२५., पंचपाठ, दशा वि. विवर्ण पानी से अक्षरों की स्याही फैल गयी है, (२६४११, १३-१४४४७-८२). मेघदूत, कालिदास, सं., पद्य, आदिः कश्चित्कान्ताविरह; अंतिः सुखम्भोजयामासशश्वत्. मेघदूत-अवचूरि, सं., गद्य, आदिः कश्चिदनिर्दिष्ट; अंति: वाञ्छित सुखान्. २५५२. कर्मविपाक व कर्मस्तव सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, पे. २, जैदेना., प्र.वि. विद्वान ने कर्मस्तव के टबार्थ का अंतिमवाक्य नहीं लिखा है., टिप्पण युक्त विशेष पाठ, पदच्छेद सूचक लकीरें, पू.वि. प्रारंभ के पत्र हैं. प्रथम दो कर्मग्रंथ संपूर्ण । तृतीय कर्मग्रंथ की प्रथम गाथा का प्रथम पाद तक है., (२७.५४१२, ९४३८). पे. १. पे. नाम. कर्मविपाक सह टबार्थ, पृ. १-५आ, संपूर्ण कर्मविपाक नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, आदिः सिरिवीरजिणं वन्दिय; अंतिः लिहिओ देविन्दसूरीहिं. कर्मविपाक नव्य कर्मग्रन्थ-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः श्रीवर्द्धमानजिन; अंतिः सूरीश्वरे लिख्यो., पे.वि. मूल-गा.६१. पे. २. पे. नाम. कर्मस्तव सह टबार्थ, पृ. ५आ-८आ, संपूर्ण कर्मस्तव नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, आदिः तह थुणिमो वीरजिणं; अंतिः वन्दियं नमह तं वीरं. कर्मस्तव नव्य कर्मग्रन्थ-टबार्थ, सं.,मागु., गद्य, आदिः स्तवीमि येन मिथ्यात; अंतिः#., पे.वि. मूल-गा.३५. २५५३." आवश्यकसूत्र सह नियुक्ति, भाष्य, व नियुक्ति+भाष्य की लघुवृत्ति, अपूर्ण, वि. १४८३, श्रेष्ठ, पृ. २५७-१२८(१ से १२८)=१२९, जैदेना., ले.स्थल. देवकुलवाटकपुर, ले. गणि मुनिरत्न(उकेशगच्छ); मु. जयनन्दन(उकेशगच्छ), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. प्र.पु. सर्वग्रं. १२२२५. भाष्य का अंतिमवाक्य "छीए छीए तिगं पेहे" पत्रांक-२२६A की ग्यारहवीं पंक्ति पर है. प्रतिले.संवत्-विक्रमतो अग्निभूधरसरिन्नाथद्विजेशेर्मिते., संशोधित, (२८x११, १६४५०). आवश्यकसूत्र , प्रा., प+ग, आदि:-; अंतिः वत्तियागारेणं वोसिरइ. आवश्यकसूत्र-लघुवृत्ति #, आ. तिलकाचार्य, सं., गद्य, वि. १२९६, आदि:-; अंतिः (१)खेलतात्कृतिमानसे (२)महोदयपदावाप्तिरिति. आवश्यकसूत्र-नियुक्ति , आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., पद्य, आदि:-; अंतिः चरणगुणट्ठिओ साहू. आवश्यकसूत्र-नियुक्ति की लघुटीका # , आ. तिलकाचार्य, सं., गद्य, वि. १२९६, आदि:-; अंति:आवश्यकसूत्र-नियुक्ति का भाष्य, प्रा., पद्य, आदि:-; अंति: छीए तिगी पेहे. आवश्यकसूत्र-नियुक्ति के भाष्य की लघुटीका # , आ. तिलकाचार्य, सं., गद्य, आदिः-; अंति:२५५४. सिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासन-स्वोपज्ञ लघुवृत्ति के आख्यातवृत्ति की अवचूरि, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. २९, जैदेना., प्र.वि. प्रथम पृष्ठ की उपर की किनारी जीर्ण है।, संशोधित, (२६४११, १८-१९४८३). For Private And Personal Use Only Page #328 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य भाग - १ २७४ सिद्धहेमशब्दानुशासन-स्वोपज्ञ लघुवृत्ति के आख्यातवृत्ति की अवचूरि, सं., गद्य, आदिः वृधूड वृद्धौ वृध; अंतिः तति च शच् गुणाः एय्. २५५५. नवतत्त्व व जीवविचार सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ८-१(७)=७, पे. २, जैदेना., प्र.वि. संशोधित, पदच्छेद सूचक लकीरें, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, दशा वि. विवर्ण-पानी से अक्षरों की स्याही फैल गयी है, चिपके पत्र अलग करते वक्त स्याही उखडी हुई, (२५.५४१०.५, ७४३७). पे. १. पे. नाम. नवतत्त्व सह टबार्थ, पृ. १-४आ, संपूर्ण नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंतिः बोहिय इक्कणिक्काय. नवतत्त्व प्रकरण-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः जीवतत्त्व अजीवतत्त्व; अंतिः परावर्त्त जास्यइं..पे.वि. मूल-गा.४९. पे. २.पे. नाम. जीवविचार प्रकरण सह टबार्थ, पृ. ४आ-८आ, अपूर्ण जीवविचार प्रकरण, आ. शान्तिसूरि, प्रा., पद्य, आदिः भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंतिः रुद्दाओ सुयसमुद्दाओ. जीवविचार प्रकरण-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः त्रिभुवन नइ विषइ; अंतिः श्रुतसमुद्र इकत्र., पे.वि. मूल-गा.५१. बीच का एक पत्र नहीं है. गाथा २८-४१ तक नहीं है. २५५७. नारकी दुख वर्णन दूहा सङ्ग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, पे. २, जैदेना., अज्ञात, (२५.५४११.५, ५४४५). पे. १. नारकीदुखवर्णन दूहा, मु. जिनदास , मागु., पद्य, (पृ. १अ-४अ), आदि: पांचआश्रव मत करो; अंतिः धरम विण ऐसो दुख पायो. पे. २. जैन दुहा सङ्ग्रह, सं.,प्रा.,मागु., प+ग, (पृ. ५अ), आदिः#; अंतिः#. २५५८. प्रस्ताविक श्लोक सङ्ग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, प्र. ७, जैदेना.,प्र.वि. संशोधित, दशा वि. अक्षर फीके पड गये हैं, (२५.५४११, १८-२२४५०).. प्रास्ताविकश्लोक सङ्ग्रह, सं.,प्रा., पद्य, आदिः जिनेन्द्रवदनांभोज; अंति: मूर्तिः कथं भवेत. २५५९." श्रीपाल कथा सह टबार्थ, उर्ध्वलोक यन्त्र व पल्यको मान, संपूर्ण, वि. १८८३, मध्यम, पृ. ६६, पे. ३, जैदेना., प्र.वि. ___ संशोधित, पदच्छेद सूचक लकीरें, (२६४१२.५, ८४५५-५६). पे. १. पे. नाम. श्रीपाल चरित्र सह टबार्थ, पृ. १-६६अ सिरिसिरिवाल कहा, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., पद्य, वि. १४२८, आदिः अरिहाइ नवपयाइं; अंतिः वाइज्जन्ता कहा एसा. सिरिसिरिवाल कहा-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः अरिहन्त प्रमुख नवपद; अंति: जाणतां थकां कथा एह., पे.वि. मूल-गा.१३४३. पे.२.पे. नाम. लोकांते सिद्धिशिला, पृ. ६६अ-६६अ उर्द्धलोकदेवायु यन्त्र, सं., कोष्टक, आदि:#; अंतिः#. पे. ३. पल्योपममान विचार , राज., गद्य, (पृ. ६६१-६६आ), आदिः च्यार कोस को कुवो; अंतिः नही केवलीगम्य छै. २५६०. ज्ञाताधर्मकथाङ्गसूत्र सह टीका, पूर्ण, वि. १६०९, मध्यम, पृ. ६९-१(५८)=६८, जैदेना., ले. गणि धनहर्ष (गुरु पं. विशालसत्य गणि), प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र.वि. मूल-१९अध्ययन.प्र.पु. टीका-ग्रं. ४२५५; प्र.पु. सर्वग्रं. ९७५५. मूल का अंतिम पाठ नहीं दिया है., टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२६.५४१२.५, १९४५६). ज्ञाताधर्मकथाङ्गसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदिः तेणं कालेणं० चम्पाए; अंतिःज्ञाताधर्मकथाङ्गसूत्र-टीका, आ. अभयदेवसूरि , सं., गद्य, वि. ११२०, आदिः नत्वा श्रीमन्महावीरं; अंतिः धर्मकथाप्रदेशटीकेति. २५६१. भाष्यत्रय सह अवचूरि, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ९, जैदेना.,प्र.वि. संशोधित, पंचपाठ, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. भाष्य-३ की गा.३० तक है., दशा वि. विवर्ण-पानी से अक्षरों की स्याही फैल गयी है, (२६४११.५, १८-१९४६०). For Private And Personal Use Only Page #329 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir २७५ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची भाष्यत्रय, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, आदिः वन्दित्तु वन्दणिज्जे; अंति: भाष्यत्रय-अवचूरि, आ. सोमसुन्दरसूरि, सं., गद्य, वि. १५०८, आदिः वन्दनीयान् सर्व; अंतिः२५६२. कल्पसूत्र का अन्तर्वाच्य(कल्पान्तर्वाच्य), संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ४९, जैदेना., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें, संशोधित, दशा वि. विवर्ण-पानी से अक्षरों की स्याही फैल गयी है, (२६४११, १४४४४). कल्पसूत्र-अन्तर्वाच्य, उपा. भक्तिलाभ, सं., गद्य, आदिः पुत्राः पञ्चमतिश्रुत; अंतिः श्रीसङ्घभट्टारकः. २५६३." सिन्दूरप्रकरण, संपूर्ण, वि. १८२९, मध्यम, पृ. ८, जैदेना., ले.स्थल. उदयपुर, ले. पं. तिर्थविजय, पठ. मु. रामचन्द (गुरु पं. तिर्थविजय), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. श्लो.९९, संशोधित, दशा वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, (२६.५४१२, १४४४५). सिन्दूरप्रकर, आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य, आदिः सिंदूरप्रकरस्तपः; अंतिः सूक्तमुक्तावलीयम्. २५६४. गच्छाचार पयन्ना की अवचूरि व पञ्च कालिकाचार्य नाम, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ६,पे. २, जैदेना.,प्र.वि. संशोधित, (२७४११, १७४६८). पे. १. पे. नाम. गच्छाचार प्रकीर्णक की अवचूरि, पृ. १अ-६अ गच्छाचार प्रकीर्णक-अवचूरि, सं., गद्य, आदिः आदौ शास्त्रकारः; अंतिः यश्चारित्रोद्यता इति. पे. २. कालिकाचार्यसमय विचार, सं., गद्य, (पृ. ६अ-६अ), आदिः श्रीवीरनिर्वाणात; अंतिः कर्ता कालिकाचार्यः. २५६५.” अन्तरिक्ष पार्श्वजिन स्तवन, सुभाषित श्लोक व ऋषभजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. । ले.स्थल. सांडेरानगर, ले. पं. रविन्द्रसागर,प्र.वि. संशोधित, (२६४११, ११४२३). पे. १.पे. नाम. अन्तरिक्ष पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १-५आ पार्श्वजिन छन्द-अन्तरीक्ष, मु. लावण्यसमय, मागु., पद्य, वि. १५८५, आदिः सरस वचन द्यो सरसति; अंतिः दरिसण हु वञ्छु सदा., पे.वि. गा.५२. पे. २. सुभाषित श्लोक सङ्ग्रह, सं., पद्य, (पृ. ५आ), आदिः ग्रामे सिंहसमा; अंतिः एवंविधा ब्राह्मणा., पे.वि. श्लो.१. पे. ३. आदिजिन पद, मु. उदयरत्न, मागु., पद्य, (पृ. ५आ), आदिः मरुदेवीनो नन्द; अंतिः प्रभुसु मलि माचो रे., पे.वि. गा.३. २५६६. मुनिपति चरित्र रास, अपूर्ण, वि. १७१५, मध्यम, पृ. २४-१४(१० से २३)=१०, जैदेना., ले.स्थल. षांडप, ले. मु. धीरविजय (गुरु गणि कृष्णविजय), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. गा.६०६; प्र.पु.मूल-गा.७००, पू.वि. गाथा २२३ से ६९२ तक नहीं है., प्र.ले.श्लो. (१४१) यादशं पुस्तकं कृत्वा, (२६४१०.५, १५४४५). मुनिपति चौपाई, मु. सिंहकुल, मागु., पद्य, वि. १५५०, आदिः गोयम गणहर गोयम गणहर; अंतिः सुणतां हर्ष अपार. २५७०." सूक्तावली सङ्ग्रह व षड्दर्शन भेद, संपूर्ण, वि. १८३८, मध्यम, पृ. १३, पे. २, जैदेना., ले.स्थल. पालडीमाहेली, पठ. मु. चतुरा नगजी (गुरु पं. कपूरविजय गणि), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. संशोधित, (२३.५४११, १४४३३). पे. १. सूक्तावली, सं.,प्रा.,मागु., पद्य, (पृ. १-१३), आदिः वीरं विश्वगुरुं; अंतिः हाहा देव न सहीयम्. पे. २.६ दर्शन विचार, मागु., पद्य, (पृ. १३आ), आदिः जैन दर्शन देव; अंतिः योगी पृथ्वीनुं दर्शन. २५७६. पासाकेवली (शकुनावली), संपूर्ण, वि. १८७२, मध्यम, पृ. ८, जैदेना., ले.स्थल. सांडेराव, ले. मु. सुखसागर,प्र.वि. मूल-गा.६४., (२५४१२, ८-११४३२). पाशाकेवली-पाशाकेवलीभाषा* , आधारित, मागु., गद्य, आदिः (१) १११ उत्तम थानक लाभ (२) ॐ नमो भगवति; अंतिः करै सर्व लाभ थास्यै. २५७९." ताजिकसार की कारिका टीका व नृपताकाचक्र, पूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १६-१(१)=१५, पे. २, जैदेना., प्र.वि. संशोधित, (२६.५४११.५, २०-२२x६०). पे. १. पे. नाम. ताजिकसार की कारिका टीका, पृ. १-१६अ, पूर्ण For Private And Personal Use Only Page #330 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य भाग - (+) १ पे. २. नृपताकाचक्र, सं., पद्य, (पृ. १६अ, संपूर्ण), आदि: रेषान्त्रयं निसेतिर्यः: अंतिः छिद्रे ह्रार्थविनाशनं. (+) " ताजिकसार- कारिका टीका, गणि सुमतिहर्ष, सं. गद्य वि. १६७७, आदि: अंतिः रचिता तनुताच्चिरं, पे.वि. प्रथम पत्र नहीं है. २५८३. सङ्ग्रहणी प्रकरण संपूर्ण वि. १७वी, मध्यम, पृ. १४ जैदेना., प्र. वि. गा.३५६, संशोधित (२५४१०.५, १३४४८). बृहत्सङ्ग्रहणी, आ. चन्द्रसूरि प्रा. पद्य वि. १२वी आदि नमिउं अरिहन्ताई अंतिः जा वीरजिण तित्यं : www.kobatirth.org: (+): २५८४. नवतत्त्व यन्त्र, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १७, जैदेना., प्र. वि. * पंक्ति - अक्षर अनियमित है ।, (२५X११.५X). नवतत्त्व प्रकरण यन्त्र, मु. सुमतिवर्द्धन, मागु., कोष्टक, आदि: नवतत्त्व नामस्वरूप; अंतिः एक सिद्ध अनेक सिद्ध. २५८५. दीपालिका कल्प कथा संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. ९, जैदेना. ले. पं. जीवणविजय, प्र. वि. संशोधित टिप्पण युक्त विशेष पाठ, ( २६१२, १५४४६ ) . दीपावलीपर्व कल्प- बालावबोध+ कथा मागु, गद्य आदिः स्वस्ति श्रीसुखदातार अंतिः माला विस्तरउ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २५८६." चोथमाताजी वार्ता व सुमतिजिन स्तवन, संपूर्ण वि. १८०३ श्रेष्ठ, पृ. ५. पे. २, देना, दशा वि. अक्षर फीके पड गये हैं, किनारी अधिक उपयोग के कारण खंडित है (२६४११.५, १५०३८). , पे. १. चौथमाता कथा, राज, गद्य, (पृ. १-५अ), आदि: एक दिन पाण्डवांरी अंतिः सदा बोलबाला रहसी. पे. २. समवसरण गीत, मु. रत्न, मागु., पद्य, (पृ. ५अ - ५आ), आदिः आज हुं गई थी रे समवस; अंतिः जीतना डङ्का वाजे रे, पे.वि. गा.. २५८७. स्तवनचौवीसी, संपूर्ण, वि. १८०३, श्रेष्ठ, पृ. ७ जैदेना. ले. स्थल रांनेर बंदर, ले. उपा. मुक्तिविजय (गुरु पं. " सदाविजय), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. अध्याय- २४ स्तवन, ( २६ ११.५, १५X३८). स्तवनचौवीसी, मु. मानविजय, मागु, पद्य, आदि ऋषभ जिणन्दा ऋषभ अंतिः मानविजय नितु ध्यावे. २५८८. चतुश्चरण प्रकीर्णक सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५, जैदेना., ले. स्थल. पालडी, ले. मु. जीवविजय, प्र. वि. मूल-गा.६३, संशोधित (२३.५x१२, ६x४५). चतुःशरण प्रकीर्णक, गणि वीरभद्र, प्रा., पद्य, आदि: सावज्ज जोग विरई; अंतिः कारणं निव्वुइ सुहाणं. चतुःशरण प्रकीर्णक-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः सावद्य व्यापार त्याग; अंतिः नित्य ए गुणवुं चउसरण. २५८९. विक्रमराजा रास, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २२ - २ (२० से २१ ) - २०, जैदेना., पू. वि. बीच के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. गा. २७७ तक लिखा है., (२७x११, १०x२९). विक्रमचौबोली रास वाचक अभयसोम मागु पद्य वि. १७२४, आदिः चीणा पुस्तक धारणी: अंति: " , , - . २७६ २५९०.” सिद्धान्तचन्द्रिका सह वृत्ति उत्तरार्द्ध, प्रतिपूर्ण, वि. १८४४, श्रेष्ठ, पृ. ११५, जैदेना., ले. स्थल. रेयांनगर, ले. ऋ. रत्न (लुङ्कागच्छ); श्रा. शिवचन्द्र, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. पत्रांक १०६आ से भ्वादिगण आदि गणों का धातुक्रम दिया गया है., संशोधित टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२५४११.५, १७४४७). सिद्धान्तचन्द्रिका, आ. रामाश्रम, सं., गद्य, आदि: अंतिः सिद्धिर्यथामातरादेः. सिद्धान्तचन्द्रिका-सुबोधिनी वृत्ति, गणि सदानन्द, सं., गद्य, वि. १७९९, आदि:-; अंतिः कृदन्ते कृतवानृजम्. २५९२. दशार्णभद्र चौपाई, अपूर्ण, वि. २०वी मध्यम, पृ. ८+१( ८ ) = २. जैदेना, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं, ढाल ११ गा. ३ तक है., (२५.५४१०.५, १६४४२). दशार्णभद्रराजा चौपाई, ऋ. दौलत, मागु., पद्य, आदिः स्वस्ति श्रीआदीसरा ; अंतिः For Private And Personal Use Only २५९६.” कल्याणमन्दिर की वृत्ति, संपूर्ण, वि. १५११, श्रेष्ठ, पृ. ७, जैदेना., ले. मु. तिलकसुन्दर शिष्य (गुरु पं. तिलकसुन्दर ), (२६×११, १७४५८). कल्याणमन्दिर स्तोत्र- टीका, आ. गुणरत्नसूरि, सं., गद्य, आदिः सर्वज्ञं जिनमानम्य: अंतिः सुगुरुप्रसादात्. २५९९. नवतत्त्व बोल, संपूर्ण, वि. १८९९, श्रेष्ठ, पृ. २३, जैदेना., ले. पं. उत्तमविजय, ( २६x११.५, १२४३१). Page #331 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra २७७ www.kobatirth.org: नवतत्त्व प्रकरण-बोल, संबद्ध, मागु., गद्य, आदि: पहेलो जीवतत्त्व बीजो; अंतिः अजीवने मिश्र कहीइ. २६००. आनन्दघन कृत बहोत्तरी गीत सङ्ग्रह प्रतिपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १०, जैदेना. पु. वि. ६७ पद तक हैं. (२४.५४१२, १६५३४). आनन्दघनवहत्तरी, मु. आनन्दघन, प्राहिं, पद्य, आदि क्या सोवे उठि जागि; अंति: २६०२.' नेमिजिन विवाह गरबो, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदेना., प्र. वि. ढाळ - २२, ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल में , लिखित (२७४१२.५, १६४४८). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir नेमिजिन विवाह गरबो, गणि वीरविजय, मागु., पद्य, वि. १८६०, आदि: (१) श्रीशङ्खेश्वर पाय (२) सरसती चरण सरोज रमी; अंतिः कमला झाकझमाला लाल. कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २६०३.” प्रदेशीराजा चौपाई, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४९ जैदेना., प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२५.५x१२, १०x२७). प्रदेशीराजा चौपाई, राज, पद्य, आदि अरिहन्त सिद्धने आरीआ अंतिः ते उतरसी भवपार. ' पे. १. पे. नाम. महादेवी सारणी सह दीपिका टीका, पृ. १-३१, प्रतिअपूर्ण महादेवी सूत्र, महादेव, सं., पद्य, आदिः सिद्धिं करोति राज; अंतिः तज्जेति०. २६०४.” महादेवी सारणी सह दीपिका टीका-अयनांश प्रकरणादि व मासप्रवेश उदाहरण, प्रतिअपूर्ण, वि. १७९७, श्रेष्ठ, पृ. ३१ ४(१२ से १५)=२७, पे. २, जैदेना., ले. स्थल. विजापुर, ले. मु. अमृतविजय (गुरु गणि रत्नविजय), प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें संधि सूचक चिह्न क्रियापद संकेत प्रारंभिक पत्र टिप्पण युक्त विशेष पाठ-कुछ पत्र (२५.५४११.५, १६४५०). - महादेवी सूत्र- दीपिका टीका, वाचक धनराज सं. गद्य वि. १६९२, आदि: श्रीनाभेयं जिनं अंति: ( १ ) सम्यगर्थो विचार्यः (२) नाधार्या गुरो भावितः., पे.वि. मूल - श्लो. ४३ . बीच के पत्र नहीं हैं. पे. २. पे. नाम. मासप्रवेश उदाहरण, पृ. ३१आ, संपूर्ण ज्योतिष *, सं., मागु., पद्य, आदि: #; अंतिः #. २६०६. भक्तामर स्तोत्र सह टीका, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १५, जैदेना., ले. पं. प्रीतिविजय, प्र. वि. मूल - श्लो. ४४., (२५.५४११, १३४३३). भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुङ्गसूरि, सं., पद्य, आदिः भक्तामरप्रणतमौलिमणि; अंतिः समुपैति लक्ष्मी. भक्तामर स्तोत्र - सुखबोधिका टीका, आ. अमरप्रभसूरि, सं., गद्य, आदिः किल इति सत्ये किलेति; अंतिः विचित्रपुष्पाम्. २६०७. वीसस्थानक पूजा, संपूर्ण वि. १८९४ श्रेष्ठ, पृ. ८ जैदेना ले. पं. हेमराज ( खरतरगच्छ ). प्र. वि. ग्रंथ रचना के " समीपवर्ती काल मे लिखित, (२५.५x१२.५, १३४३३-३४). २० स्थानक पूजा, पं. वीरविजय, मागु., पद्य, वि. १८८१, आदिः श्रीशङ्खेश्वर पासजी ; अंतिः सङ्घने तिलक करायो रे. (+8) २६०८.” अन्तगडदशाङ्गसूत्र सह टबार्थ, पूर्ण, वि. १७८८, मध्यम, पृ. ४३-२ (१७,२७)+१ (१०) = ४२, जैदेना., प्र. वि. मूल-ग्रं. ८९९, अध्याय-९२., पू.वि. बीच के व अंतिम पत्र नहीं हैं. प्रतिलेखन पुष्पिका का पत्र नहीं है., दशा वि. विवर्ण-पानी से अक्षरों की स्याही फैल गयी है, (२५.५०११ ७४४०). अन्तकृदशाङ्गसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: तेण कालेनं० चम्पा०: अंतिः अयमट्ठे पण्णत्ते. अन्तकृद्दशाङ्गसूत्र- टवार्थ, मागु, गद्य, आदि: तेणे काले चउथो अंतिः ज्ञाताधर्मकथानी परे. २६०९. मृगाङ्कलेखा कथा संपूर्ण वि. १५८०, मध्यम, पृ. २१, जैदेना. ले. स्थल. ज्येष्टपुर, प्र. वि. ग्रं. ४४३ टिप्पण युक्त विशेष पाठ, दशा वि. विवर्ण-पानी से अक्षरों की स्याही फैल गयी है - अल्प, ( २६.५x११, ११९३४). मृगाङ्कलेखा कथा पाठक राजवल्लभ, सं., पद्य, दि. १३२५, आदि राज्यराजीमती चापि अंतिः शीलमुपासनीयम्. " For Private And Personal Use Only Page #332 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य भाग - १ २७८ २६१०." स्तवनचौवीसी व राधाकृष्ण पखवाडीयो, संपूर्ण, वि. १८३२, मध्यम, पृ. ७, पे. २, जैदेना., ले.स्थल. सुरत, ले. पं. धनविजय, प्र.वि. संशोधित, (२६४११.५, १५४३८). पे. १. स्तवनचौवीसी, आ. ज्ञानविमलसूरि, मागु., पद्य, (पृ. १-७), आदिः आदिकरण अरिहन्तजी; अंतिः ध्याने नाचुजी., पे.वि. अध्याय-२४ स्तवन. पे. २. राधाकृष्ण पखवाडीयो, मागु., पद्य, (पृ. ७अ-७आ), आदिः सखी पडवाने आवे पेहली; अंतिः आणन्द पामी आज., पे.वि. गा.१५. २६१३. पद्मावती रास, अपूर्ण, वि.२०वी, श्रेष्ठ, पृ. ११, जैदेना., पू.वि. अन्त के पत्र नहीं हैं. गा.३५४ तक है., (२५.५४१२, १४४४५). पद्मावतीसती आख्यान, शामलदास, मागु., पद्य, आदिः प्रथम समरु शारदा; अंति:२६१४. आचाराङ्गसूत्र की नियुक्ति, पूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १९-१(१)=१८, जैदेना., प्र.वि. गा.३६८, पू.वि. श्लोक १ से १० तक नहीं है., (२६४११.५, ९x४२). आचाराङ्गसूत्र-नियुक्ति, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., पद्य, आदि:-; अंतिः हुन्ति अज्झयणा. २६१५.” गुणस्थानक क्रमारोह, पूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ, पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है. श्लो.१३६ अपूर्ण तक है., (२५.५४११.५, १२४४७). गुणस्थानक्रमारोह, आ. रत्नशेखरसूरि, सं., पद्य, वि. १४४७, आदि: गुणस्थानक्रमारोह; अंतिः२६२०." वाक्यप्रकाश, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदेना., प्र.वि. श्लो.१२८., टिप्पण युक्त विशेष पाठ, पदच्छेद सूचक लकीरें, संधि सूचक चिह्न, (२६.५४११, १३४३३). वाक्यप्रकाश, गणि उदयधर्म, सं., पद्य, वि. १५०७, आदिः प्रणम्यात्मविदं; अंतिः वाक्यप्रकाशोयम्. २६२२. नन्दीसूत्र सह टबार्थ व अनुज्ञानन्दीसूत्र, संपूर्ण, वि. १६८१, मध्यम, पृ. ४८, पे. २, जैदेना., ले.स्थल. अजमेर, ले. मु. पर्वत (गुरु ऋ. जोधाजी), प्र.वि. पंचपाठ, (२६४११.५, १८४३६). पे. १. पे. नाम. नन्दीसूत्र सह टबार्थ, पृ. १-४४अ नन्दीसूत्र, आ. देववाचक, प्रा., प+ग, आदिः जयइ जगजीवजोणीवियाणओ; अंतिः से तं परोक्खणाणं. नन्दीसूत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः विषय कषायादि जयवन्त; अंतिः ए परोक्ष श्रुतज्ञान. पे. २. लघुनन्दीसूत्र-अनुज्ञानन्दीसूत्र, आ. देववाचक, प्रा., गद्य, (पृ. ४४अ-४८अ), आदिः से किं तं अणुण्णा; अंतिः वीसमणुण्णाए णामाई. २६२५. श्रीपाल रास, संपूर्ण, वि. १८८०, श्रेष्ठ, पृ. ४८, जैदेना., ले.स्थल. सेरगढ, ले. मु. मोतीविजय (गुरु पं. सुज्ञानविजय), पठ. मु. बुद्धिविजय, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. गा.१८२५,खण्ड-४, ढाळ ४१, प्र.ले.श्लो. (१०१) भग्न पृष्टि कटी ग्रीवा; (३३) अदृष्टि दोषामति विभ्रमात्व, (२५.५४११, १६x४५). श्रीपाल रास, उपा. विनयविजय , उपा. यशोविजयजी गणि, मागु., पद्य, वि. १७३८, आदिः कल्पवेल कवियण तणी; अंतिः लहसे ज्ञान विशालाजी. २६२६. प्रतिक्रमणसूत्र, स्तुति, प्रकरणस्तोत्र, स्तवन, सज्झाय आदि सङ्ग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १६२, पे. ७५, जैदेना., प्र.वि. संशोधित, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-कुछ पत्र, (२४.५४११.५, ९४३५). पे. १. प्रव्रज्या कुलक, प्रा., पद्य, (पृ. ९अ-११आ), आदिः संसार विसम सायर भवजल; अंतिः तरंति ते भवसलिलरासिं., पे.वि. गा.३४. पे. २. आगारसङ्ख्या गाथा, प्रा., पद्य, (पृ. १५आ-१६अ), आदिः इमगण्ठिस्सहि मुठसहि; अंतिः सेसेसु चत्तारि., पे.वि. गा.३. पे. ३. पंचपरमेष्ठि स्तुति, सं., पद्य, (पृ. १६अ-१६अ), आदिः अर्हन्तो भगवन्त; अंतिः कुर्वन्तु वो मङ्गलम्. For Private And Personal Use Only Page #333 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir २७९ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची पे. ४. पार्श्वजिन स्तवन-स्तम्भन, सं., पद्य, (पृ. १६अ-१६अ), आदिः श्रीसेढीतटिनीतटे; अंतिः नाथो नृणां श्रिये., पे.वि. श्लो.२. पे. ५. पार्श्वजिन नमस्कार-जीरावला, सं., पद्य, (पृ. १६अ-१६अ), आदिः आधिव्याधिहरो देवो; अंतिः नाथो नृणां श्रिये., पे.वि. श्लो.१. पे. ६. प्रत्याख्यानसूत्र, संबद्ध, प्रा., पद्य, (पृ. १६आ-१९आ), आदिः उग्गए सूरे नमोक्कार; अंतिः वत्तियागारेणं वोसिरइ. पे.७. बीजतिथि स्तुति, प्रा., पद्य, (पृ. १९आ-२०अ), आदिः महीमण्डणं; अंतिः देहि मे सुद्धनाणं., पे.वि. गा.४. पे.८. ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, सं., पद्य, (पृ. २०अ-२०आ), आदिः पञ्चानन्तक सुप्रपञ्च; अंतिः सिद्धायिका त्रायिका., पे.वि. श्लो.४. पे. ९. विहरमान २० जिन स्तुति, मागु., पद्य, (पृ. २०आ-२१अ), आदिः पञ्चविदेह विषय; अंतिः जण मनवञ्छित सारै., पे.वि. गा.४. पे. १०. पार्श्वजिन स्तुति-जेसलमेर, सं., पद्य, (पृ. २१अ-२१अ), आदिः शमदमोत्तमवस्तुमहापणं; अंतिः सा जिनशासनदेवता., पे.वि. श्लो.४. पे. ११. पार्श्वजिन स्तुति, सं., पद्य, (पृ. २१अ-२१आ), आदिः श्रीसर्वज्ञं ज्योति; अंतिः वृद्धिं वैदुष्यम्., पे.वि. श्लो.४. पे. १२. पार्श्वजिन स्तुति, सं., पद्य, (पृ. २१आ-२२अ), आदिः हर्षनतासुरनिर्जरलोकं; अंतिः शस्त निजाघः., पे.वि. श्लो.४. पे. १३. महावीरजिन स्तुति, सं., पद्य, (पृ. २२अ-२२आ), आदिः यदंह्रिनमनादेव देहिन; अंतिः नित्यं मम मङ्गलेभ्यः., पे.वि. श्लो.४. पे. १४. महावीरजिन स्तुति, मागु., पद्य, (पृ. २२आ-२२आ), आदिः बालपणे डाबो पाय; अंति: मेले मुक्ति साथ., पे.वि. गा.४. पे. १५. साधारणजिन स्तुति, सं., पद्य, (पृ. २२आ-२३अ), आदिः अविरलकमलगवलमुक्ताफल; अंतिः देवी श्रुतोच्चयम्., पे.वि. श्लो.४. पे. १६. आदिजिन स्तुति-अर्बुदगिरिमण्डन, अप., पद्य, (पृ. २३आ-२३आ), आदिः वरमुक्तियहार सुतार; अंतिः सुहाणि __कुणे सुसया., पे.वि. गा.४. पे. १७.२४ जिन स्तुति, अप., पद्य, (पृ. २३आ-२४अ), आदिः भरहेसर कारियदेवहरे; अंतिः विगणंतु अणंतदहंसगुणा., पे.वि. गा.२. पे. १८. महावीरजिन स्तुति, सं., पद्य, (पृ. २४अ-२४अ), आदिः वीरं देवं नित्यं; अंतिः देवी दद्यात्सौख्यम्., पे.वि. श्लो.१. पे. १९. अष्टमीतिथि स्तुति, आ. जिनसुखसूरि, मागु., पद्य, (पृ. २४अ-२४आ), आदि: चोवीसे जिनवर प्रणमुं: अंतिः शासन सुरि सुह जाण., पे.वि. गा.४. पे. २०. पार्श्वजिन स्तुति, आ. जिनभक्तिसूरि, मागु., पद्य, (पृ. २४आ-२५अ), आदिः अश्वसेन नरेसर; अंतिः कलत्र बहु वित्त., पे.वि. गा.४. पे. २१. मौनएकादशीपर्व स्तुति, सं., पद्य, (पृ. २५अ-२५आ), आदि: अरस्य प्रवज्या; अंतिः विपदः पञ्चकमदः., पे.वि. श्लो.४. पे. २२.२४ दण्डक स्तुति, आ. जिनेश्वरसूरि, सं., पद्य, (पृ. २५आ-२६अ), आदिः रुचितरुचिमहामणि; अंतिः दद्यादलं भारती भारती., पे.वि. श्लो.४. पे. २३. पार्श्वजिन स्तुति, आ. जिनकुशलसूरि, सं., पद्य, (पृ. २६आ-२७आ), आदिः दें दें कि धप; अंतिः दिशतु शासनदेवता., पे.वि. श्लो.४. For Private And Personal Use Only Page #334 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य भाग - १ २८० पे. २४. आदिजिन स्तुति, सं., पद्य, (पृ. २७-२७आ), आदिः ऋषभनाथ भनाथनिभानन; अंतिः तनुभातनु भारती., पे.वि. श्लो.४. पे. २५. आदिजिन स्तुति, सं., पद्य, (पृ. २७आ-२८अ), आदिः युगादिपुरुषेन्द्राय; अंतिः कूष्माण्डी कमलेक्षणा., पे.वि. श्लो.४. पे. २६. दीपावलीपर्व स्तुति, आ. जिनचन्द्रसूरि, सं., पद्य, (पृ. २८अ-२८आ), आदिः पापायां पुरि; अंतिः शार्दूलविक्रीडितम्., पे.वि. श्लो.४. पे. २७. पंचतीर्थ स्तुति, सं., पद्य, (पृ. २आअ-२९अ), आदिः श्रीशत्रुञ्जयमुख्य; अंतिः तेषां तु भद्रङ्कराः., पे.वि. श्लो.४. पे. २८. शान्तिजिन स्तुति, सं., पद्य, (पृ. २९अ-२९आ), आदिः देवदेवाधिपैः सर्वतो; अंतिः यच्छताद्वस्सदा., पे.वि. श्लो.४. पे. २९. महावीरजिन स्तुति, आ. जिनलाभसूरि, मागु., पद्य, (पृ. २९आ-३०अ), आदिः मूरति मनमोहन कञ्चन; अंतिः इम श्रीजिनलाभसूरिन्द., पे.वि. गा.४. पे. ३०. मौनएकादशीपर्व स्तुति, सं., पद्य, (पृ. ३०अ-३०आ), आदि: दीक्षा श्रीअरनाथकस्य; अंतिः ज्ञानस्य लाभं सदा., पे.वि. श्लो.४. पे. ३१. नेमिजिन स्तुति, आ. जिनलाभसूरि, मागु., पद्य, (पृ. ३०आ-३१अ), आदिः गिरनार सिहरि पर; अंतिः आस फले सुजगीस., पे.वि. गा.४. पे. ३२. साधारणजिन स्तुति, मु. कवियण, मागु., पद्य, (पृ. ३१अ-३२अ), आदिः चम्पक केतकी पाडल; अंतिः जौ तूढ़ __देव अम्बाई., पे.वि. गा.४. पे. ३३. अष्टमीतिथि स्तुति , मागु., पद्य, (पृ. ३२अ-३२अ), आदिः अष्टमी अष्ट परमाद; अंतिः तस विघन दूरे हरे., पे.वि. गा.४. पे. ३४. साधारणजिन स्तुति, सं., पद्य, (पृ. ३२अ-३२आ), आदिः श्रीतीर्थराजपदपद्म; अंतिः दाता ददतां शिवं च., पे.वि. श्लो.१. पे. ३५. ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, आ. जिनचन्द्रसूरि, मागु., पद्य, (पृ. ३२आ-३३अ), आदिः निरुपम सुखदायक जग; अंतिः कहे जिनचन्द मुणिन्द., पे.वि. गा.४. पे. ३६. मौनएकादशीपर्व स्तुति, आ. जिनचन्द्रसूरि, मागु., पद्य, (पृ. ३३अ-३३अ), आदिः अरनाथ जिनेश्वर; अंतिः देव ___करो कल्याण., पे.वि. गा.४. पे. ३७. पार्श्वजिन स्तुति, आ. जिनलाभसूरि, सं., पद्य, (पृ. ३४आ-३५अ), आदिः विशदसद्गुणराजविराजित; अंतिः वाग्जिनलाभशुभार्थदा., पे.वि. श्लो.४. पे. ३८.२४ जिन स्तुति, मागु., पद्य, (पृ. ३५अ-३५अ), आदिः अष्टापदगिरि आदि; अंतिः पामु परमानन्दाजी., पे.वि. गा.१. पे. ३९. महावीरजिन स्तुति, सं., पद्य, (पृ. ३५अ-३५अ), आदिः श्रीदेवार्यं विश्व; अंतिः शश्वद्भूयात्. पे. ४०. वासुपूज्यजिन स्तुति, मागु., पद्य, (पृ. ३५अ-३५आ), आदिः श्रीवासुपूज्य नरेसर; अंतिः विघन हरो नितमेव., पे.वि. गा.४. पे. ४१. आदिजिन स्तुति, आ. जिनसूरि, प्राहिं., पद्य, (पृ. ३५आ-३६अ), आदिः प्रणमुं परम पुरुष; अंतिः कहे जिनसुरन्दाजी., पे.वि. गा.४. पे. ४२. नेमिजिन स्तुति, मागु., पद्य, (पृ. ३६आ-३७अ), आदिः सुरअसुरवन्दितपाय; अंतिः करो ते अम्बा देवीए., पे.वि. गा.४. पे. ४३. पर्युषणपर्व स्तुति, आ. जिनलाभसूरि, मागु., पद्य, (पृ. ३७अ-३७आ), आदिः वलि वलि हुं ध्यावू; अंतिः कहै जिनलाभसुरीन्द., पे.वि. गा.४. For Private And Personal Use Only Page #335 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir २८१ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची पे. ४४. सप्तस्मरण-खरतरगच्छीय, मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा., पद्य, (पृ. ३७आ-५५अ), आदिः अजिअं जिअ सव्वभयं; अंतिः भवे पास जिणचन्द., पे.वि. ७ स्मरण. पे. ४५. लघुशान्ति, आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, (पृ. ५५०-५६अ), आदिः शान्तिं शान्ति; अंतिः सूरिः श्रीमानदेवश्च., पे.वि. श्लो.१९ . पे. ४६. बृहत्शान्ति स्तोत्र-तपागच्छीय, सं., गद्य, (पृ. ५६अ-६०अ), आदि: भो भो भव्याः श्रृणुत; अंतिः जैनं जयति शासनम्. पे. ४७. आदिजिन स्तुति, सं., पद्य, (पृ. ६०अ-६०आ), आदि: जय जय जगदानन्दन जय; अंतिः भगवते ऋषभाय _ नमोनमः., पे.वि. श्लो.५ . पे. ४८. शान्तिजिन स्तुति, सं., पद्य, (पृ.६०आ-६१अ), आदिः किं कल्पद्रमसेवया; अंतिः सेव्यतां शान्तिरेकशः., पे.वि. श्लो.५. पे. ४९. नेमिजिन स्तोत्र, सं., पद्य, (पृ. ६१अ-६१अ), आदिः परमान्नं क्षुधातेन; अंतिः कथं धन्यतमो न गण्यः., पे.वि. श्लो.५. पे. ५०. पार्श्वजिन स्तुति, सं., पद्य, (पृ. ६१आ-६१आ), आदिः अभिनवमङ्गलमालाकरणं; अंतिः बासुरा पुण्य भासुरा., पे.वि. श्लो.५. पे.५१. महावीरजिन स्तवन, सं., पद्य, (पृ.६१आ-६२अ), आदिः कनकाचलमिव धीरं; अंतिः बोधिलाभाय सन्तु., पे.वि. श्लो.६. पे. ५२. पार्श्वजिन स्तवन-करहेटक, सं., पद्य, (पृ. ६२अ-६२आ), आदिः आनन्दभंदकुमुदाकर; अंतिः यदि मेरुधीरम्., पे.वि. श्लो.५. पे. ५३. पार्श्वजिन स्तोत्र, मु. जयसागर, सं., पद्य, (पृ. ६२आ-६३अ), आदिः धर्ममहारथसारथिसारं; अंतिः यूयमखण्डम्., पे.वि. श्लो.५. पे. ५४. शान्तिजिन स्तोत्र, सं., पद्य, (पृ. ६३अ-६३आ), आदिः शान्तये शान्तिकामाय; अंतिः पापशान्तिर्भवेदपि., पे.वि. श्लो.३. पे. ५५. भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुङ्गसूरि, सं., पद्य, (पृ. ६३अ-६८अ), आदिः भक्तामरप्रणतमौलिमणि; अंतिः समुपैति लक्ष्मी., पे.वि. श्लो.४४. पे. ५६. कल्याणमन्दिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकर, सं., पद्य, (पृ. ६८अ-७२आ), आदिः कल्याणमन्दिरमुदारमवद; अंतिः मोक्षं प्रपद्यन्ते., पे.वि. श्लो.४४. पे. ५७. सरस्वतीदेवी स्तोत्र, सं., पद्य, (पृ. ७२आ-७३अ), आदिः सर्वारिष्टप्रणाशाय; अंति: नरपते सिध्यतु स ते., पे.वि. श्लो.९. पे. ५८. पे. नाम. गौतम स्तोत्र, पृ. ७३अ-७३आ सुपात्रदानफल स्तोत्र, प्रा., पद्य, आदिः उसभस्सय पारणए; अंति: चवदेसे बावन्न., पे.वि. गा.६ . पे. ५९. तिजयपहुत्त स्तोत्र, प्रा., पद्य, (पृ. ७३आ-७४आ), आदिः तिजयपहुत्तपयासय अट्ठ; अंतिः निच्चमच्चेह., पे.वि. गा.१४. पे. ६०. प्रतिक्रमणविधि सङ्ग्रह-खरतरगच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मागु., गद्य, (पृ. ८आ-९अ), आदिः भयवं दंसण्णभद्दो; अंतिः मिच्छामि दुक्कडं., पे.वि. मूल-गा.५. पे. ६१. पार्श्वजिन स्तोत्र-नवग्रहगर्भित , आ. जिनप्रभसूरि, प्रा., पद्य, (पृ. ७४आ-७५आ), आदिः दोसावहारदक्खो नालिया; अंतिः गहा न पीडन्ति., पे.वि. गा.१०. पे. ६२. वन्दित्तुसूत्र, संबद्ध, प्रा., पद्य, (पृ. ७५आ-७८आ), आदिः वन्दित्तु सव्वसिद्धे; अंतिः वन्दामि जिणे चउवीसं., पे.वि. गा.५०. For Private And Personal Use Only Page #336 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य भाग - १ २८२ पे. ६३. सन्थारापोरसीसूत्र, प्रा., पद्य, (पृ. ७८आ-८०आ), आदिः निसिही निसिही निसीहि; अंति: मज्झवि तेह खमन्तु., पे.वि. गा.१४. पे. ६४. जीवविचार प्रकरण, आ. शान्तिसूरि, प्रा., पद्य, (पृ. ८०-८४आ), आदिः भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंतिः रुद्दाओ सुयसमुद्दाओ., पे.वि. गा.५१. पे. ६५. नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, (पृ. ८४आ-८८अ), आदिः जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंतिः बोहिय इक्कणिक्काय., पे.वि. गा.५०. पे. ६६. दण्डक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, (पृ. ८८अ-९१अ), आदिः नमिउं चउवीस; अंतिः एसा विनत्ति अप्पहिआ., पे.वि. गा.४०. पे. ६७. दुरियरयसमीर स्तोत्र, आ. जिनवल्लभसूरि, प्रा., पद्य, (पृ. ९०अ-९५अ), आदिः दुरिअरयसमीरं मोह; अंतिः सया पायप्पणामो तुह., पे.वि. गा.४४. पे. ६८. महावीरजिन स्तवन , आ. जिनवल्लभसूरि, सं., पद्य, (पृ. ९५अ-९८आ), आदिः भावारिवारणनिवारणदारु; अंतिः दृष्टिं दयालो मयि., पे.वि. श्लो.३०, ग्रं.३५७. पे. ६९. बृहत्सङ्ग्रहणी, आ. चन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, (पृ. ९८आ-१२०आ), आदिः नमिउं अरिहन्ताइं; अंतिः जा वीरजिण तित्थं., पे.वि. गा.२९८. पे. ७०. सिन्दूरप्रकर, आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य, (पृ. १२०आ-१३४अ), आदिः सिंदूरप्रकरस्तपः; अंतिः ज्ञानगुणास्तनोति., पे.वि. श्लो.९८. पे. ७१. पाक्षिकसूत्र, प्रा., प+ग, (पृ. १३४आ-१५३अ), आदिः तित्थङ्करे य तित्थे; अंतिः मिच्छामि दुक्कडं. पे. ७२. एकविंशतिस्थान प्रकरण, आ. सिद्धसेनसूरि, प्रा., पद्य, (पृ. १५४अ-१५९अ), आदिः चवण विमाणा नयरी; अंतिः असेस साहारणा भणिया., पे.वि. गा.६८. पे. ७३. पौषध सज्झाय-खरतरगच्छीय, प्रा., पद्य, (पृ. १५९अ-१६१अ), आदिः जगचूडामणिभूओ उसभो; अंतिः उप्पन्नं केवलं नाणं., पे.वि. गा.३३. पे. ७४. पे. नाम. साधु श्रावक प्रतिक्रमणसूत्र सङ्ग्रह, पृ. १-९अ+११-१५आ+७५आ __पंचप्रतिक्रमणसूत्र-खरतरगच्छीय, संबद्ध, प्रा., प+ग, आदिः णमो अरिहन्ताणं० जयउ; अंति: जैनं जयति शासनम्., पे.वि. खरतरगच्छीय साधु-श्रावक प्रतिक्रमण. पृष्ठानुसंधान- ७५-७८आ+१३४आ-१५४आ+१६२आ. पे. ७५. जैन सामान्यकृति-पेटाङ्क बाकी*, सं.,प्रा.,मागु., प+ग, (पृ. १६१आ-१६२आ), आदिः#; अंतिः#. २६२८. प्रश्नव्याकरणसूत्र सह टीका, संपूर्ण, वि. १६वी, मध्यम, पृ. ११६, जैदेना., प्र.वि. मूल-अध्याय-१०; टीका-ग्रं. ५६३०. प्रत के अन्त में मूल का मात्र प्रतिकपाठ ही मिलता है., (२६४११.५, १३४५३). प्रश्नव्याकरणसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदि: जंबू अपरिग्गहो; अंति:#. प्रश्नव्याकरणसूत्र-टीका, आ. अभयदेवसूरि , सं., गद्य, वि. १२वी, आदिः श्रीवर्द्धमानमानम्य; अंतिः इति ब्रवीमीति. २६३०. चारित्रसार व चारित्रसार का टिप्पणक, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ९६, पे. २, जैदेना., (२७४१३, १०४३३). पे. १. पे. नाम. भावनासार सङ्ग्रह, पृ. १आ-८७आ चारित्रसार, चामुण्डराय, सं., प+ग, आदिः अरिहननरजोहननरहस्य; अंतिः सारं रणरङ्गसिंहः. पे. २. पे. नाम. चारित्रसार का टिप्पणक, पृ. ८७आ-९६अ चारित्रसार-टिप्पणक, सं., गद्य, आदि: नमोनन्तसुखज्ञान; अंतिः अस्तं क्षिप्रम्. २६३१. बारहव्रत विचार, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ९९-१(८५)=९८, जैदेना., पू.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., (२७४१२, १३४३७). १२ व्रत टीप, गणि उदयसागर, राज., गद्य, आदिः सदा सिद्ध भगवान के; अंति:२६३२. कल्पसूत्र सह टबार्थ व व्याख्यान+कथा- व्याख्यान १ से ८, प्रतिपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १३६, जैदेना., प्र.वि. मूल For Private And Personal Use Only Page #337 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra २८३ कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं० समणे; अंति: कल्पसूत्र - टबार्थ, मु. विनितविजय, मागु., गद्य, आदि: श्रीगोडीजिनं पार्श्व; अंति: कल्पसूत्र - व्याख्यान + कथा* मागु, गद्य, आदि:-: अंति: (+) www.kobatirth.org: कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची "" प्रारंभ पत्र- ८आ. संशोधित टिप्पण युक्त विशेष पाठ, पू. वि. स्थविरावलि तक है, दशा वि. विवर्ण-पानी से अक्षरों की स्याही फैल गयी है- अल्प (२६४११.५, ६- १७४३४). , (+) २६३३. आचाराङ्गसूत्र सह वृत्ति प्रथम श्रुतस्कन्ध अध्याय-१ से ८ प्रतिअपूर्ण, वि. १६वी, मध्यम, पृ. २२९ जैदेना, प्र. वि. त्रिपाठ, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, पू. वि. अन्त के पत्र नहीं हैं., ( २६x१०.५, १-१७x४८-६७). आचाराङ्गसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, (प्रतिपूर्ण), आदिः सुयं मे आउसं० इह; अंति: आचाराङ्गसूत्र-टीका #, आ. शीलाङ्काचार्य, सं., गद्य, वि. ९१८, ( प्रतिपूर्ण), आदि: जयति समस्तवस्तु: अंतिःआचाराङ्गसूत्र- नियुक्ति की टीका # आ. शीलाङ्काचार्य, सं. गद्य वि. ९१८ ( प्रतिपूर्ण) आदि तत्र वन्दित्वा अंतिः " " २६३४. कल्पसूत्र सह टबार्थ व व्याख्यान+कथा, पूर्ण, वि. १८२२ मध्यम, पृ. १६५ -१ ( ७२ ) = १६४, जैदेना. ले. स्थल. सादडी, पठ. मु. अमीचन्द (गुरु मु. माणिकचन्द्र), ले. ऋ. हरचन्द, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. मूल ग्रं. १२१६, ९ - व्याख्यान., संशोधित, पदच्छेद सूचक लकीरें (२६११, १५×५८). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदिः णमो अरिहन्ताणं० पढमं अंति: उवदंसेइ ति बेमि कल्पसूत्र - टबार्थ *, मागु., गद्य, आदि: अरिहन्त भगवन्त: अंतिः अध्ययन सम्पूर्य थयउ. , कल्पसूत्र - व्याख्यान + कथा*, मागु., गद्य, आदि:-; अंति: " २६३५. चन्दराजा रास, संपूर्ण वि. १९१०, श्रेष्ठ, पृ. १२५ जैदेना. ले. स्थल. सुधरी ग्राम ले. मु. देवसागर (गुरु गणि फतेसागर), प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र. वि. गा. २७०८, खण्ड-४, प्र.ले. श्लो. (१४१) यादशं पुस्तकं कृत्वा ; (८१) भग्न पृष्टि कटी ग्रीवा, (२७.५x१२.५, ११४४२). चन्द्रराजा रास, मु. मोहनविजय, मागु., पद्य, वि. १७८३, आदिः प्रथम धराधव तीम; अंतिः वर्णव्या गुण चन्दना.. २६३६.” कल्पसूत्र सह टबार्थ + व्याख्यान+कथा, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १९७, जैदेना. प्र. वि. मूल ग्रं. १२१६, ९ - व्याख्यान. बार्थ पत्रांक १७४ तक लिखा है, संशोधित टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२५४११.५, ५४३७). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, (संपूर्ण), आदिः णमो अरिहन्ताणं० पढमं अंति: उवदंसेइ त्ति बेमि कल्पसूत्र- टवार्थ+ व्याख्यान+कथा आ. सोमविमलसूरि मागु, गद्य (अपूर्ण), आदिः सकलार्थसिद्धिजननी अंति: ' " , २६३७. जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति की वृत्ति, पूर्ण, वि. १७वी श्रेष्ठ, पृ. ३१३-४ (१, ११२ से ११४ ) - ३०९ जैदेना, प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र. वि. " वि. प्रथम बीच के व अंतिम पत्र नहीं हैं. प्रतिलेखन पुष्पिका का पत्र नहीं है.. संशोधित टिप्पण युक्त विशेष पाठ, पृ. ( २५x११, १८४५६ ). जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति- प्रमेयरत्नमञ्जूषा टीका, उपा. शान्तिचन्द्र, सं., गद्य, वि. १६५१, आदि:-; अंतिः नामकथनं चरममङ्गलमिति. २६३८. कल्पसूत्र सह कल्पद्रुमकलिका टीका, पूर्ण, वि. १८४९, श्रेष्ठ, पृ. ३२१-१ (३३) = ३२०, जैदेना., ले. स्थल. साहजिनाबाद, ले. मु. रामकृष्ण (गुरु मु. रूपचन्द, गुजराती लोकागच्छ), प्र. वि. मूल-ग्रं. १२१६, ९- व्याख्यान मूल प्रारंभ पेज नं१० आ व मूल अंतिम पेज नं - ३१९आ., ( २६ ११, १०X३४). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा. गद्य, आदि: तेणं काले० समणे; अंति: उवदंसेइ ति बेमि " कल्पसूत्र - कल्पद्रुमकलिका टीका, गणि लक्ष्मीवल्लम, सं., गद्य वि. १८वी, आदिः श्रीवर्द्धमानस्य अतिः कुर्वतां सतां श्रेयः. For Private And Personal Use Only Page #338 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य भाग - १ २८४ २६३९. उत्तराध्ययनसूत्र सह वृत्ति, अपूर्ण, वि. १७वी, जीर्ण, पृ. ४१०-२(१,७१)=४०८, जैदेना., पू.वि. प्रथम, बीच का एक व अन्त के पत्र नहीं हैं. अध्ययन-३५ शुरुआत तक है., (२४.५४१०.५, १३४४८). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग, आदि:-; अंति: उत्तराध्ययनसूत्र-अधिरोहिणी वृत्ति, मु. भावविजय, सं., गद्य, वि. १६८९, आदि:-; अंति:२६४०.” कल्पसूत्र सह टबार्थ व व्याख्यान+कथा, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ११३, जैदेना., ले. मु. दोलतराज (गुरु मु. मूलराज, अचलगच्छ), प्र.वि. मूल-९-व्याख्यान. मूल प्रारंभ पत्र नं-८आ. अंतिम कुछेक पंक्तियों का टबार्थ नहीं लिखा है., टिप्पण युक्त विशेष पाठ, संशोधित, (२६४१२, ६-८४४६). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, (संपूर्ण), आदिः णमो अरिहन्ताणं० पढमं; अंतिः उवदंसेइ त्ति बेमि. कल्पसूत्र-टबार्थ , मागु., गद्य, (पूर्ण), आदिः नमो क० माहरो नमस्कार; अंति: कल्पसूत्र-व्याख्यान+कथा*, मागु., गद्य, (संपूर्ण), आदिः प्रणम्य श्रीमहावीरं; अंतिः माहे सन्तोष थयो. २६४१. ठाणाङ्गसूत्र सह दीपिका वृत्ति, पूर्ण, वि. १७२५, मध्यम, पृ. ३९५-१(२७२)+३(१९१,३६१,३७८)=३९७, जैदेना., ले.स्थल. लूणकर्णसरनगर, ले. पण्डित तुलसीदास, प्र.वि. मूल-१०स्थान; टीका-ग्रं. १४०००., त्रिपाठ, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, प्र.ले.श्लो. (५०९) यादृशं पुस्तके दृष्टं, (२५४११, १-१२४३६-४४). स्थानाङ्गसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदिः सुयं मे आउसं तेणं; अंतिः अणन्ता पण्णत्ता. स्थानाङ्गसूत्र-दीपिका वृत्ति, गणि नगर्षि, सं., गद्य, वि. १६५७, आदिः प्रणतसुरासुरनाथं; अंतिः (१)वृत्तितोनुगमनीयानि (२)नन्दतु चिरं सा. २६४३." जम्बूअध्ययन सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८८१, श्रेष्ठ, पृ. ४०, जैदेना., ले.स्थल. हुरडाग्राम, ले. मु. खुबकुशल, प्र.वि. मूल-२१उद्देश., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-कुछ पत्र, (२७X१४.५, ८४३८). जम्बूअध्ययन प्रकीर्णक, प्रा., गद्य, आदिः तेणं कालेणं० रायगिहे; अंति: से आराहगा भणिया. जम्बूअध्ययन प्रकीर्णक-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः ते कालने विषई ते; अंतिः मार्गना आराधक कह्या. २६४६. आलोयणा प्रकरण, पूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ९-१(१)=८, जैदेना., (२८x१३, १०x४३). आलोयणा प्रकरण, प्रा., गद्य, आदिः-; अंतिः पविसइत्ति सामायारी. २६४७." मानतुङ्गमानवती रास, संपूर्ण, वि. १८८१, श्रेष्ठ, पृ. ४२, जैदेना., ले.स्थल. साथसेण, ले. पं. नेमविजय, प्र.वि. गा.१०१५,ढाळ-४७, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, दशा वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, (२४४१३, १५४३६). मानतुङ्गमानवती रास, मु. मोहनविजय, मागु., पद्य, वि. १७६०, आदिः ऋषभजिणन्द पदाम्बुजे; अंतिः घरघर मङ्गलमाल हे. २६४८. मौनएकादशी स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना., (२५४१२.५, १०४२५). मौनएकादशीपर्व स्तवन, मु. विशुद्धविमल, मागु., पद्य, आदिः शान्तिकरण श्रीशान्ति; अंतिः पुरुषोतम गुण गायाजी. २६४९. श्रीपाल चरित्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९२६, श्रेष्ठ, पृ. ७१, जैदेना., ले.स्थल. उज्जैन, ले. मु. सवाईसागर (गुरु मु. विजयसागर), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. मूल-गा.१३४१, ग्रं. १६७५., (२३.५४१३, ८-९x४२-४९). सिरिसिरिवाल कहा, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., पद्य, वि. १४२८, आदिः अरिहाइ नवपयाइं; अंतिः वाइज्जन्ता कहा एसा. सिरिसिरिवाल कहा-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः श्रीअरिहन्त नवपद; अंतिः श्रीपालनी कथा. २६५०." श्राद्धप्रतिक्रमणसूत्र सङ्ग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, प्र. ७, जैदेना., प्र.वि. संशोधित, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२५४१३, १३४३३). श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा., प+ग, आदिः नमो अरिहन्ताणं०; अंतिः वन्दामि जिणे चउवीसं. २६५७. वीरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ५, जैदेना., प्र.वि. गा.८१,ढाळ-८, (२६.५४१३, १३४३५). For Private And Personal Use Only Page #339 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir २८५ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची महावीरजिन स्तवन-नयमतगर्भित, आ. लक्ष्मीसूरि, मागु., पद्य, वि. १८२७, आदिः श्रीइन्द्रादिक भावथी; अंतिः पभणे संघने जयकार ए. २६५८. प्रियकरश्रेष्ठि रास, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३२, जैदेना., पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. ढाल-१६ गा.११ तक लिखा है., (२४४१३, १५४३१). प्रियङ्करश्रेष्ठि रास, मु. पद्मसागर, मागु., पद्य, आदिः स्वस्ति श्रीपावन; अंति:२६५९. श्रीपाल रास, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १००, जैदेना.,प्र.वि. खण्ड-४. पत्रांक १ से दिया गया है परंतु बीच के पत्र है., टिप्पण युक्त विशेष पाठ, पू.वि. तृतीय खंड की पाँचवी ढाल से है., (२५.५४१२.५, ३-१४४३०). श्रीपाल रास, उपा. विनयविजय , उपा. यशोविजयजी गणि, मागु., पद्य, वि. १७३८, आदि:-; अंतिः लहसे ज्ञान विशालाजी. २६६०." शालीभद्र रास, संपूर्ण, वि. १९१३, श्रेष्ठ, पृ. २१, जैदेना., ले.स्थल. षाडारानगर, ले. मु. गजेन्द्रसागर (गुरु मु. सुखसागर), प्र.वि. गा.५११, संशोधित, (२६४१२, १५४३९). धन्नाशालिभद्र रास, मु. मतिसार, मागु., पद्य, वि. १६७८, आदिः शासननायक समरीइं; अंति: मनवञ्छित फल लहिस्यइ. २६६१. व्याख्यान कथा सङ्ग्रह सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८८३, श्रेष्ठ, पृ. ६५, जैदेना., ले.स्थल. साहपुरा, ले. पं. प्रमोदकुशल, (२४.५४१०.५, ५-६४३०-३६). व्याख्यान कथा सङ्ग्रह, सं., पद्य, आदिः स्मृत्वा पार्श्व; अंतिः नन्दहेतुसकामन्. व्याख्यान कथा सङ्ग्रह-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः समरूं छु भजू छु; अंतिः मोक्ष पधार्या. २६६२. पाक्षिकसूत्र व खामणा सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९४९, श्रेष्ठ, पृ. ४२, पे. २, जैदेना., ले.स्थल. बीकानेर, ले. मु. प्रतापसागर, (२५.५४१२.५, ४४३०). पे. १. पे. नाम. पाक्षिकसूत्र सह टबार्थ, पृ. ०१आ-३९आ पाक्षिकसूत्र, प्रा., प+ग, आदिः तित्थङ्करे य तित्थे; अंतिः (१)मिच्छामि दुक्कडं (२)जेसिं सुयसायरे भत्ति. पाक्षिकसूत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः तीर्थङ्कर प्रते; अंतिः मिथ्या विफल होज्यो. पे. २. पे. नाम. पाक्षिकक्षामणासूत्र, पृ. ३९आ-४२अ । क्षामणकसूत्र, प्रा., गद्य, आदिः इच्छामि खमासमणो; अंतिः नित्थारग पारगा होह. २६६५. कल्पसूत्र सह टबार्थ व व्याख्यान+कथा व्याख्यान १-८, प्रतिअपूर्ण, वि. १८६१, मध्यम, पृ. ९५-१९(१ से २,६ से ७,१३ से १४,१८,२२ से २३,२५,२९,४०,४३ से ४५,६०,८१,८८ से ८९)=७६, जैदेना., ले.स्थल. राणावास, ले. पं. रुपविजय (गुरु पं. प्रेमविजय), प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, पू.वि. व्याख्यान १ से ८ स्थविरावली तक है., (२६४१३, ९४३४). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि:-; अंति:कल्पसूत्र-टबार्थ', मागु., गद्य, आदि:-; अंति: कल्पसूत्र-व्याख्यान+कथा* , मागु., गद्य, आदि:-; अंति:२६६६. जम्बूस्वामी रास, संपूर्ण, वि. १८६४, मध्यम, पृ. ३७, जैदेना., ले.स्थल. सांडेरानगर, ले. मु. जीतसागर, प्र.वि. गा.६०८,ग्रं. १०३५,ढाळ-३५, (२५.५४१२.५, १२४३२). जम्बूस्वामी रास, आ. ज्ञानविमलसूरि, मागु., पद्य, वि. १७३८, आदिः प्रणमी पास जिणन्दना; अंतिः नितु कोडि कल्याण. २६६७. शान्तिस्नात्र विधि, संपूर्ण, वि. १९९३, श्रेष्ठ, पृ. ११, जैदेना., ले.स्थल. मरुधरदेश, ले. मु. पद्मसागर (गुरु मु. पुण्यसागर), प्र.ले.पु. मध्यम, (२४४१३.५, १३४३७). For Private And Personal Use Only Page #340 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य भाग - १ २८६ avara शान्तिस्नात्र विधि, मु. सकलचन्द, सं.,मागु., पद्य, आदिः प्रतिष्ठायां वा; अंतिः वाजते धारावाडी देवी. २६७०. योगशास्त्र - प्रकाश १ से ४, प्रतिपूर्ण, वि. १९०६, श्रेष्ठ, पृ. २२, जैदेना., ले.स्थल. राद्धिकपुर, ले. मु. सौभाग्यसागर, लिखवा. मु. खुबकुशल, प्र.ले.पु. मध्यम, (२७.५४१३, ११४३७). योगशास्त्र, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, आदिः नमो दुर्वाररागादि; अंति:२६७२. स्थुलिभद्र चरित्र, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ४३, जैदेना., पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. श्लो.५३३ अपूर्ण तक लिखा है., (२७X१३, ६४३८). स्थूलिभद्र चरित्र, आ. जयानन्दसूरि, सं., पद्य, आदिः वीरोवर्यः श्रिये; अंति:२६७४." श्रीपालचरित्र रास, पूर्ण, वि. १९११, श्रेष्ठ, पृ. ८५, जैदेना., प्र.वि. गा.१८२५,खण्ड-४, ढाळ ४१, टिप्पण युक्त विशेष पाठ-कुछ पत्र, पू.वि. अन्तिम पत्र नहीं है. प्र. पु. अधुरी है., (२७.५४१४.५, १४४३१). श्रीपाल रास, उपा. विनयविजय , उपा. यशोविजयजी गणि, मागु., पद्य, वि. १७३८, (संपूर्ण), आदिः कल्पवेल कवियण तणी; अंतिः लहसे ज्ञान विशालाजी. २६७५. चौढालीयादि, पद व स्तवन सङ्ग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २७, पे. ५६, जैदेना., (२७४१३.५, १५४४१). पे. १. पे. नाम. चन्द्रगुपति रो सोलैसुपना रो चोढालीयो, पृ. १-३आ चन्द्रगुप्त चौढालिया, मु. गुणचन्द, मागु., पद्य, वि. १८५०, आदिः विमल बोध उद्योतकर; अंतिः लहीये लील विलास हो., पे.वि. ढाळ-४. पे. २. खन्धकमुनि चौढालिया, मागु., पद्य, (पृ. ३आ-५आ), आदिः महावीर को नित नमी; अंतिः कह्यो भवजल तीर., पे.वि. ढाळ-४. पे. ३. पे. नाम. अयवन्तीसुकमाल री चोपई, पृ. ५आ-१०आ अवन्तिसुकुमाल रास, मु. जिनहर्ष, मागु., पद्य, वि. १७४१, आदिः वीतराग प्रणमी; अंतिः हरख सुख पावई रे., पे.वि. ढाळ-१३. पे. ४. जिनरक्षितजिनपाल चौढालिया, मागु., पद्य, (पृ. १०आ-१२आ), आदिः अनन्त चोवीसी आगे; अंति: मन वीर वचन अवधारो., पे.वि. ढाळ-४. पे.५.पे. नाम. ढण्ढणरिषमुनि रो चौढालीयो, पृ. १२आ-१५अ ढण्ढणऋषि सज्झाय , मागु., पद्य, आदिः तिण कालेने तिण समें; अंति: तुलन आवे लिगार., पे.वि. ढाळ-३. पे.६. औपदेशिक पद, प्राहिं., पद्य, (पृ. १५अ-१५अ), आदिः ऐसी समज के सीरधुल; अंतिः नफार हतन मुल., पे.वि. गा.४. पे. ७. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. जिनचन्द, मागु., पद्य, (पृ. १५अ-१५आ), आदिः आज आपे चालो सहिया; अंतिः प्रेम ___घणो मन आणी रे., पे.वि. गा.९. पे. ८. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. जिनहर्ष, मागु., पद्य, (पृ. १५आ-१६अ), आदिः काली गडो जात्रीडा; अंतिः सिद्धाचल गुणगायाजी., पे.वि. गा.१५. पे. ९. तीर्थमाला स्तवन, उपा. समयसुन्दर गणि, मागु., पद्य, (पृ. १६अ-१६आ), आदिः शेत्रुजे ऋषभ; अंतिः समयसुन्दर कहे एम., पे.वि. गा.१७. पे. १०. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, आ. जिनचन्दसूरि, मागु., पद्य, (पृ. १६आ-१६आ), आदिः भाव धर धन्य दिन आज; अंतिः सजती आनन्द पायो., पे.वि. गा.३. पे. ११. साधारणजिन पद, मागु., पद्य, (पृ. १६आ-१७अ), आदिः परमातम पद भज रे; अंतिः परमातम पद भज रे., पे.वि. गा.४. पे. १२. सम्भवजिन पद, मागु., पद्य, (पृ. १७अ-१७अ), आदिः सार जग श्रीजिननाम; अंतिः सुख आनन्द जैकार., पे.वि. गा.३. For Private And Personal Use Only Page #341 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir २८७ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची पे. १३. सुमतिजिन पद, मु. हर्षचन्द, प्राहिं., पद्य, (पृ. १७अ-१७अ), आदिः प्रभुजी जो तुम तारक; अंतिः बाहि गहेकी निवईये., पे.वि. गा.४. पे. १४. औपदेशिक पद, मु. ज्ञानसार, प्राहिं., पद्य, (पृ. १७अ-१७अ), आदिः भोर भयो भोर भयो भोर; अंति: ग्यानसार जोत ठानी., पे.वि. गा.४. पे. १५. महावीरजिन पद, आ. जिनचन्द्रसूरि, प्राहिं., पद्य, (पृ. १७अ-१७आ), आदिः आखीया मेरे प्रभुजीसु; अंतिः जिनचन्द ऐसे० एकघडी., पे.वि. गा.३. पे. १६. महावीरजिन पद, राज., पद्य, वि. १८३९, (पृ. १७आ-१७आ), आदिः लागो म्हारो वीर; अंतिः सफल कीयो अवतार., पे.वि. गा.४. पे. १७. नेमिजिन पद, मु. हर्षचन्द, प्राहिं., पद्य, (पृ. १७आ-१७आ), आदि: नेमजी मे दासी नव भव; अंति: मे भव भव की चेरी., पे.वि. गा.४. पे. १८. विमलजिन स्तवन, मु. आनन्दघन, मागु., पद्य, (पृ. १७आ-१७आ), आदिः विमलजिन दीठा लोयण; अंतिः आनन्दघन पद सेव., पे.वि. गा.७. पे. १९. पार्श्वजिन पद-चिन्तामणी, मागु., पद्य, वि. १८९३, (पृ. १७आ-१८अ), आदि: म्हारो मन वालो; अंतिः मुगत म्हा सुखकारी., पे.वि. गा.७. पे. २०. साधारणजिन पद, प्राहिं., पद्य, (पृ. १८अ-१८अ), आदिः अरी मेरी अखीयन हरष; अंतिः मिल हे सिद्धगिरि., पे.वि. गा.३. पे. २१. जिनवाणी पद, प्राहिं., पद्य, (पृ. १८अ-१८अ), आदिः जिन मुख वाणी भव; अंतिः मिल हे निर्वाणी., पे.वि. गा.२. पे. २२. साधारणजिन पद, मु. खुशालराय, प्राहिं., पद्य, (पृ. १८आ-१८आ), आदिः अखीया मेरी वावरी; अंतिः ओई तिरवा कोदावरी., पे.वि. गा.२. पे. २३. आदिजिन पद, मागु., पद्य, (पृ. १८आ-१८आ), आदिः मूरतमा धरी रिखव; अंतिः स्थानकथी साम्भरी., पे.वि. गा.३. पे. २४. औपदेशिक पद, प्राहिं., पद्य, (पृ. १८आ-१८आ), आदिः अव तेरो दाव वन्यां; अंतिः पावे पद निर्वाण., पे.वि. गा.५. पे. २५. साधारणजिन पद, मु. ज्ञानसार, मागु., पद्य, (पृ. १८आ-१८आ), आदिः घर आवो ढोल न; अंतिः ग्यानसार खेले वसन्त., पे.वि. गा.५. पे. २६. साधारणजिन पद, प्राहिं., पद्य, (पृ. १८आ-१९अ), आदिः प्यारे आय मिलो काहा; अंतिः आनन्दघन भई वसन्त., पे.वि. गा.४. पे. २७. साधारणजिन पद, मु. ज्ञानउदय, मागु., पद्य, (पृ. १९अ-१९अ), आदि: प्यारा ते रूडी रुडा; अंतिः दीज्यो वसन्त कृपाल., पे.वि. गा.३. पे. २८. औपदेशिक पद, मु. राजसमुद्र, प्राहिं., पद्य, (पृ. १९अ-१९अ), आदिः निकै नाथनै कवहु न; अंतिः युहि जिनम गमायो रे., पे.वि. गा.३. पे. २९. आध्यात्मिक पद, मागु., पद्य, (पृ. १९अ-१९अ), आदिः सासरे आज रङ्ग वधाई; अंति: मलि ललिने कण्ठ लगाई.,पे.वि. गा.३. पे. ३०. औपदेशिक पद, प्राहिं., पद्य, (पृ. १९अ-१९अ), आदि: पीया विन खरी दोहेली; अंतिः सुवास चमेली हो., पे.वि. गा.४. पे. ३१. आध्यात्मिक पद, मागु., पद्य, (पृ. १९आ-१९आ), आदिः उठ रे आतम वीसोरा; अंतिः कहु ओर नठोर., पे.वि. गा.७. For Private And Personal Use Only Page #342 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य भाग - १ २८८ पे. ३२. साधारणजिन पद, मु. लालचन्द, प्राहिं., पद्य, (पृ. १९आ-१९आ), आदि: डोलत जीवडा यु फीरे; अंतिः आवागमण निवार रेडो., पे.वि. गा.४. पे. ३३. पार्श्वजिन पद, मु. भूधर, मागु., पद्य, (पृ. १९आ-१९आ), आदि: देखी मुरत पास की; अंतिः दुख परो तिवारजी., पे.वि. गा.४. पे. ३४. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मागु., पद्य, (पृ. १९अ-२०अ), आदिः शेत्रुञ्जानो वासी; अंतिः भव पार उतारो., पे.वि. गा.६. पे. ३५. साधारणजिन पद, मु. जिनहर्ष, प्राहिं., पद्य, (पृ. २०अ-२०अ), आदिः हो प्रभु मे तेरी; अंतिः दीजे निज से नाणी हो., पे.वि. गा.५. पे. ३६. साधारणजिन पद, प्राहिं., पद्य, (पृ. २०अ-२०अ), आदिः होरी मेरो पीया घर; अंतिः हिल मिल सोरठ गावेरी., पे.वि. गा.३. पे. ३७. साधारणजिन पद, प्राहिं., पद्य, (पृ. २०अ-२०अ), आदि: अब क्या कहु रङ्ग बे; अंतिः निश्चये नाम थयोरी., पे.वि. गा.३. पे. ३८. औपदेशिक पद, प्राहिं., पद्य, (पृ. २०अ-२०अ), आदिः होरी भाई मत खेले; अंतिः सारति ज ख्यालसु भाई., पे.वि. गा.३. पे. ३९. सुमतिजिन पद, मागु., पद्य, वि. १८९९, (पृ. २०अ-२०आ), आदि: नग मे आनन्द वधाई; अंतिः सेवा अभे महा सुखदाई., पे.वि. गा.७.. पे. ४०. पार्श्वजिन स्तवन , मु. लाभवर्द्धन, मागु., पद्य, (पृ. २०आ-२०आ), आदिः सुखकारी हो साहिब; अंतिः सेवक जाणी कृपा करो., पे.वि. गा.४. पे. ४१. औपदेशिक पद, प्राहिं., पद्य, (पृ. २०आ-२०आ), आदिः सुयो तु वोहत निन्द; अंतिः अमृत सरसजा सब माग रे., पे.वि. गा.३. पे. ४२. होरी पद, मु. ज्ञानसार, प्राहिं., पद्य, (पृ. २०आ-२१अ), आदिः पर घर खेलत मेरो पीयो; अंतिः जिन मे मिलीया., पे.वि. गा.३. पे. ४३. होरी पद, मु. भूधर, प्राहिं., पद्य, (पृ. २१अ-२१अ), आदिः घर आये चिदानन्द कन्त; अंति: रीत सुही सन्त होरी., पे.वि. गा.५. पे. ४४. साधारणजिन पद, आ. जिनलाभसूरि, प्राहिं., पद्य, (पृ. २१अ-२१अ), आदिः होरी के खिलईया हारे; अंतिः अनोपम भव निसतिर रे., पे.वि. गा.७. पे. ४५. होरी पद, मु. ज्ञानसार, प्राहिं., पद्य, (पृ. २१अ-२१आ), आदिः ईचरज होरी आई रे देखो; अंतिः देखो लोको ईचरज होरी., पे.वि. गा.४. पे. ४६. साधारणजिन पद, प्राहिं., पद्य, (पृ. २१आ-२१आ), आदिः पायो दरसण जिणराजरो; अंतिः स्मरण त्रिभुवन ताजरो., पे.वि. गा.३. पे. ४७. दानशीलतपभावना पद, प्राहिं., पद्य, (पृ. २१आ-२१आ), आदिः रे मनमां न सीखावने; अंतिः इन विन पार न लेरी रे., पे.वि. गा.३. पे. ४८. राजुल पद, मु. चैनविजय, प्राहिं., पद्य, (पृ. २१आ-२१आ), आदि: देखो सहीयो मेरी लग; अंतिः विनवे मुगत __ वधसु लागो., पे.वि. गा.३. पे. ४९. साधारणजिन पद, मु. आनन्दरतन, मागु., पद्य, (पृ. २१आ-२१आ), आदिः प्रभुजी म्हारी; अंतिः हितकर कीजे काज., पे.वि. गा.३. पे. ५०. पार्श्वजिन स्तवन-फलवर्द्धि, मु. नगविजय, मागु., पद्य, (पृ. २१आ-२२अ), आदिः सुणो भवि जिनजी; अंति: पुरव पुण्ये फल दीयो., पे.वि. गा.१०. For Private And Personal Use Only Page #343 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir २८९ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची पे. ५१. नवपद पद, प्राहिं., पद्य, (पृ. २२अ-२२अ), आदिः जिन नित नमु नित नमु; अंतिः धार मत मन भमो भमो., पे.वि. गा.५. पे. ५२. साधारणजिन पद, मु. सिवचन्द, प्राहिं., पद्य, (पृ. २२अ-२२अ), आदिः तेरी सुरत ऐ जिन मेरा; अंतिः प्रभु करो मयावे., पे.वि. गा.३. पे. ५३. पे. नाम. अठावीसलब्धिअर्थसंयुत स्तवन, पृ. २२आ-२३आ ___ आदिजिन स्तवन-२८ लब्धिगर्भित , मु. धर्मवर्धन , मागु., पद्य, वि. १७२६, आदिः प्रणमुं प्रथम; अंतिः प्रगट ग्यान प्रकाश., पे.वि. गा.२५,ढाळ-३. पे. ५४. पे. नाम. दशत्रिकडाविचारगर्भित श्रीनेमिजित्कानां स्तुति, पृ. २३आ-२५अ नेमिजिन स्तवन, मु. लालचन्द, मागु., पद्य, वि. १८३३, आदिः सद्गुरु चरण नमी करी; अंतिः तवन कीधो चितधरी., पे.वि. ढाळ-४. पे. ५५. पे. नाम. अढाईदीप स्तवन, पृ. २५अ-२६आ विहरमान २० जिन स्तवन, पाठक धर्मसिंह, मागु., पद्य, वि. १७२९, आदिः वन्दु मनसुध विहरणमाण; अंतिः नेह धरी ध्रमसी नमे., पे.वि. गा.३६. पे. ५६. पे. नाम. त्रिषष्टिशलाकापुरुषाणां नाम, गति, शरीर, जीव, मातृ, पितृ सङ्ख्याविचारगर्भित स्तवन, पृ. २६आ२७आ त्रिषष्टिशलाकापुरुष स्तवन, मु. वसतौ, मागु., पद्य, आदिः सदगुरु चरणकमल मन; अंतिः मुनि वसतौ मुदा., पे.वि. गा.१८. २६७६." पद, सज्झाय, बारमासो, विनन्ती, व लावणी सङ्ग्रह, संपूर्ण, वि. १९०१, श्रेष्ठ, पृ. २१, पे. १८, जैदेना., ले.स्थल. सहरोहसार, पठ. श्रा. गुलाबचन्द्र चिरंहरलाल,प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-प्रथम व अंतिम पत्र, (२६४१३, १३४३२). पे. १. नेमिजिन विवाहलो, प्राहिं., पद्य, (पृ. १-१२अ), आदिः प्रथम नमुं अरिहन्तकु; अंतिः कहां लगवल वीन., पे.वि. गा.१२५. पे. २. नेमिजिन बारमासो, मागु., पद्य, (पृ. १२अ-१२आ), आदिः समुद्रविजयरा पुत; अंतिः मुगत सिधायाजी., पे.वि. गा.१०. पे. ३.१२ भावना बारमासो, ऋ. रतनचन्द, मागु., पद्य, (पृ. १३अ-१४अ), आदिः श्रीजिनपद पङ्कज नामो; अंतिः ऋषि रतनचन्दजी गाइयो., पे.वि. गा.१५. पे. ४. औपदेशिक पद , मु. हर्षचन्द, प्राहिं., पद्य, (पृ. १४अ-१४आ), आदिः साधो भाई अब हम कोठी; अंतिः हाथन का कछु नाया., पे.वि. गा.७. पे. ५. औपदेशिक पद , प्राहिं., पद्य, (पृ. १४आ-१५अ), आदिः साधो भाइ अब हम कीनी; अंतिः मुक्त महानिध पाइ., पे.वि. गा.७. पे. ६. औपदेशिक पद, लाल मरहटी, प्राहिं., पद्य, (पृ. १५अ-१५अ), आदिः तुम सुनो पिरानी अरज; अंतिः सुख वरसे सुरपद के., पे.वि. गा.४. पे. ७. औपदेशिक पद, प्राहिं., पद्य, (पृ. १५अ-१५आ), आदिः आगे मिल गए सतगुरु; अंतिः जामण मरण मिटावे सही., पे.वि. गा.३. पे. ८. साधारणजिन पद, मागु., पद्य, (पृ. १५आ-१६अ), आदिः पञ्च वधावो मेरे मन; अंति: मनवञ्छित सुख सम्पदा., पे.वि. गा.८. पे. ९. औपदेशिक पद, मु. ब्रह्म, मागु., पद्य, (पृ. १६अ-१६अ), आदिः प्रथम गुराजी कुं; अंतिः ब्रह्म कहे हित आण., पे.वि. गा.९. For Private And Personal Use Only Page #344 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य भाग - १ २९० पे. १०. आदिजिन विनती, मु. ब्रह्मदेव, राज., पद्य, (पृ. १६अ-१६आ), आदिः प्रथम तीर्थङ्कर; अंतिः रतनत्रय दे सार., पे.वि. गा.१०. पे. ११. साधारणजिन पद, किसनो, मागु., पद्य, (पृ. १६आ-१७अ), आदिः जिन देख्या विण रह्यो; अंतिः किसनो ध्यान लगाय., पे.वि. गा.४. पे. १२. आदिजिन स्तवन-केसरीयाजी, मागु., पद्य, (पृ. १७अ-१७अ), आदिः मे तो जाउ देश मेवाड; अंतिः आवागमन निवार., पे.वि. गा.३. पे. १३. नेमिजिन बारमासो, श्रा. खेतशी शाह, मागु., पद्य, (पृ. १७अ-१८अ), आदिः सहेल्यो रे आवो छे; अंतिः की लहरी गावसी., पे.वि. गा.३८. पे. १४. वैराग्य सज्झाय, मु. भूधर, मागु., पद्य, (पृ. १८अ-१८आ), आदिः एह तन जङ्गम रुखडा; अंतिः भूधर सुख सइयेजी., पे.वि. गा.१०. पे. १५. वैराग्य पद, प्राहिं., पद्य, (पृ. १८आ-१८आ), आदिः धरम को ढोल वजाय सखी; अंतिः सुख सुरङ्गा वासीजी. पे. १६. सम्मेतशिखरतीर्थ पद, प्राहिं., पद्य, (पृ. १९अ-१९अ), आदिः दुर देशसे चालीयाजी; अंतिः आवागमण निवार हो., पे.वि. गा.५. पे. १७. सीतासती सज्झाय, मु. ब्रह्मदेव, प्राहिं., पद्य, (पृ. १९अ-२०अ), आदिः सोमाको दान सब कोइ; अंतिः ब्रह्मा पद पायजी., पे.वि. गा.१७. पे. १८. साधारणजिन पद, मागु., पद्य, (पृ. २०अ-२०आ), आदिः सुन्दर देस ढुण्ढाड; अंति: पाय सोइ सिव पाव तुहे., पे.वि. गा.२५. २६७७. अन्तगडदशाङ्गसूत्र सह टबार्थ, पूर्ण, वि. १९४०, श्रेष्ठ, पृ. ८०-६(१ से ३,६ से ७,१७)=७४, जैदेना., (२६.५४१३, ५४२९). अन्तकृद्दशाङ्गसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि:-; अंतिः अयमढे पण्णत्ते. अन्तकृद्दशाङ्गसूत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, आदि:-; अंतिः ए अर्थ कह्यो.. २६७८. चन्दकेवली रास, संपूर्ण, वि. १८५८, मध्यम, पृ. ९८, जैदेना., ले.स्थल. सतुंबर, ले. गणि रामविजय, पठ. गणि उदयसागर (गुरु मु. अजबसागर), प्र.ले.पु. विस्तृत,प्र.वि. गा.२७०८,खण्ड-४, (२६४१२.५, १४४३८). चन्द्रराजा रास, मु. मोहनविजय, मागु., पद्य, वि. १७८३, आदिः प्रथम धराधव तीम; अंतिः वर्णव्या गुण चन्दना. २६७९." आवश्यकसूत्र, नियुक्ति व भाष्य की टीका, संपूर्ण, वि. १४९१, मध्यम, पृ. २३४, जैदेना., ले. आ. जयकीर्तिसूरि(अञ्चलगच्छ), प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, संशोधित, (२६.५४११, १५४५६). आवश्यकसूत्र-दीपिका टीका #, आ. माणिक्यशेखरसूरि, सं., गद्य, वि. १४०१, आदिः श्रीआवश्यकसूत्र; अंतिः (१)भावनिक्षेपमिच्छन्ति (२)दीपिकामुदन्तनुताम्. आवश्यकसूत्र-नियुक्ति की दीपिका टीका #, आ. माणिक्यशेखरसूरि, सं., गद्य, आदिः#; अंतिः#. आवश्यकसूत्र-नियुक्ति के भाष्य की दीपिका टीका # , आ. माणिक्यशेखरसूरि, सं., गद्य, आदिः#; अंतिः#. २६८०. भगवतीसूत्र, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १४९, जैदेना., पू.वि. अन्त के पत्र नहीं हैं. शतक-१२ उद्देश-६ के प्रारंभ तक है., (२६x११, १५४५३). भगवतीसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदिः नमो अरहन्ताणं; अंति:२६८३." समरादित्यकेवली चरित्र, अपूर्ण, वि. १८७३, श्रेष्ठ, पृ. २०५-८१(९,१०८ से १८७)=१२४, जैदेना., पठ. मु. खुशालविमल, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, पदच्छेद सूचक लकीरें, पू.वि. छठे खंड के प्रारंभ से नवमें खंड की ३२४ गाथा तक नहीं है., (२५.५४११.५, १५४४४). समरादित्यकेवली रास , कवि पद्मविजय, मागु., पद्य, आदिः स्वस्ति श्रीवरसारदा; अंतिः लहेस्ये मङ्गलमाल रे. For Private And Personal Use Only Page #345 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir २९१ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २६८४. ज्ञाताधर्मकथाङ्गसूत्र, पूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १९८-६(१ से ४,१२४ से १२५)=१९२, जैदेना.,प्र.वि. प्र.पु. ग्रं. ६२००, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२६४११, ११४४६). ज्ञाताधर्मकथाङ्गसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदि:-; अंतिः जाव पुरिससिहेणं. २६८५. पन्नवणासूत्र सह टीका, संपूर्ण, वि. १८६७, श्रेष्ठ, पृ. ३३९+१(६३)=३४०, जैदेना., ले.स्थल. पल्लीकानगरी, ले. मु. सुमतिवर्द्धन, प्र.वि. मूल-सूत्र-२१७६, ग्रं. ७७८७, अध्याय-३६ पद; प्र.पु. ग्रं. ७७८७; टीका-ग्रं. १६०००; प्र.पु. ग्रं. १६०००., पदच्छेद सूचक लकीरें, संशोधित, त्रिपाठ, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२७४११, ४-१२४५१-६४). प्रज्ञापनासूत्र, वाचक श्यामाचार्य, प्रा., गद्य, आदिः नमो अरिहन्ताणं; अंतिः सुही सुहं पत्ता. प्रज्ञापनासूत्र-टीका, आ. मलयगिरिसूरि , सं., गद्य, आदिः जयति नमदमरमुकुटप्रति; अंतिः जिनवचनसद्बोधम्. २६८६." सूयगडाङ्गसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ९१, जैदेना., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. अध्ययन-१५ गा.१० अपूर्ण तक है., (२५४११.५, ४४३८). सूत्रकृताङ्गसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदिः बुज्झिज्ज तिउट्टेज्ज; अंति: सूत्रकृताङ्गसूत्र-बालावबोध, आ. पार्श्वचन्द्रसूरि, मागु., गद्य, आदिः आदिदेवं नमस्कृत्य; अंतिः२६८७." जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २६१-११(१ से ११)=२५०, जैदेना., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२६४१२, ७४३९). जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति, प्रा., गद्य, आदिः-; अंतिः उवदंसेइ त्ति बेमि. जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति-टबार्थ, मागु., गद्य, आदि:-; अंतिः तुम्ह प्रति कह्यो. २६८८. कल्पसूत्र, संपूर्ण, वि. १८९०, श्रेष्ठ, पृ. ११२, जैदेना., ले.स्थल. गागुर्गाडा, ले. मु. अखैराज(अविचलगच्छ), प्र.वि. ९ व्याख्यान, ग्रं. १२१६, (२६४११.५, ७४२९). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदिः णमो अरिहन्ताणं० पढमं; अंतिः उवदंसेइ त्ति बेमि. २६८९.” कल्पसूत्र सह बालावबोध, पूर्ण, वि. १८७७, श्रेष्ठ, पृ. १२८-१(४१)=१२७, जैदेना., ले.स्थल. वल्लभीनगर, ले. गणि माणिक्यविजय (गुरु गणि सौभाग्यविजय), प्र.वि. मूल-ग्रं. १२१६, ९-व्याख्यान., संशोधित, (२६.५४१२.५, १७४३६). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदिः तेणं कालेणं० समणे; अंतिः उवदंसेइ त्ति बेमि. कल्पसूत्र-बालावबोध, मु. खीमाविजय, मागु., गद्य, वि. १७०७, आदिः प्रणम्य श्रीमहावीरं; अंतिः शिष्यने इम कहे. २६९०.” कल्पसूत्र सह टबार्थ व व्याख्यान+कथा, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १९४, जैदेना., प्र.वि. मूल-ग्रं. १२१६, ९ व्याख्यान; प्र.पु. ग्रं. सर्व-९०००., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-कुछ पत्र, (२५.५४१२, ७X२९). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदिः णमो अरिहन्ताणं० पढमं; अंतिः उवदंसेइ त्ति बेमि. कल्पसूत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, आदि: नमस्कार अरिहन्तने; अंतिः भक्त जेह तु ते जाणवो. कल्पसूत्र-व्याख्यान+कथा* , मागु., गद्य, आदिः नमः श्रीवर्द्धमानाय; अंतिः#. २६९१. आवश्यकसूत्र की लघुवृत्ति, नियुक्ति सह भाष्य, लघुटीका व भाष्य की टीका, अपूर्ण, वि. १६वी, मध्यम, पृ. १४९ १०७(१ से १५,२७ से ८३,११३ से १४७)=४२, जैदेना., पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., (३१x१२, १३४६८). आवश्यकसूत्र-लघुवृत्ति #, आ. तिलकाचार्य, सं., गद्य, वि. १२९६, आदि:-; अंति:आवश्यकसूत्र-नियुक्ति , आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., पद्य, आदि:-; अंति:आवश्यकसूत्र-नियुक्ति की लघुटीका # , आ. तिलकाचार्य, सं., गद्य, वि. १२९६, आदि:-; अंति:आवश्यकसूत्र-नियुक्ति का भाष्य, प्रा., पद्य, आदि:-; अंति: आवश्यकसूत्र-नियुक्ति के भाष्य की लघुटीका # , आ. तिलकाचार्य, सं., गद्य, आदि:-; अंति:२६९२.” आचाराङ्गसूत्र, संपूर्ण, वि. १६वी, श्रेष्ठ, पृ. ८५, जैदेना.,प्र.वि. ग्रं. २६४४, २५अध्ययन; प्र.पु. ग्रं. २६००, संशोधित, (३९४१२, ११४४७). For Private And Personal Use Only Page #346 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य भाग - १ २९२ आचाराङ्गसूत्र , आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदिः सुयं मे आउसं० इह; अंतिः विमुच्चति त्ति बेमि. २६९३. कल्पसूत्र की पीठिका, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १३, जैदेना., पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., (२४.५४११.५, १० १२४२३). कल्पसूत्र-पीठिका* , संबद्ध, मागु., गद्य, आदिः हिवे पञ्चपरमेष्टि; अंति:२६९४. रामविनोद- उद्देश १ से ५, प्रतिअपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३०-३(२,१८,२९)=२७, जैदेना., (२५.५४१०.५, १७४६१). रामविनोद, पं. रामचन्द्र गणि, मागु., पद्य, वि. १७२०, आदिः सिद्धबुद्धदायक; अंति:२६९५. नरवर्मनृप कथा, संपूर्ण, वि. १४१२, श्रेष्ठ, पृ. ३४, जैदेना., प्र.वि. श्लो.५०२. कर्ता के द्वारा यह प्रति स्वयं लिखी जाने की संभावना है., ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित, (२५४११, १०x४३). नरवर्म चरित्र, उपा. विनयप्रभ, सं., पद्य, वि. १४१२, आदिः आदित्यादि महामहः; अंतिः विकाशं गगने विधत्त. २६९६." मध्याह्न व्याख्यानपद्धति, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ५२, जैदेना., (२६४११, १५४४७). मध्याह्न व्याख्यानपद्धति, मु. हर्षनन्दन, सं., गद्य, आदिः तः प्रतिष्ठा गुखः; अंतिः मरणादानन्द माला भवतु. २६९७. इलापुत्र चौपाई, संपूर्ण, वि. १८२६, श्रेष्ठ, पृ. ९, जैदेना., ले. पं. जसविजय, प्र.वि. ग्रं. २९९,ढाळ-१६, प्र.ले.श्लो. (१४१) यादशं पुस्तकं कृत्वा, (२५.५४११.५, १३४३४). इलाचीकुमार चौपाई, मु. ज्ञानसागर, मागु., पद्य, वि. १७१९, आदिः सकलसिद्धदायक सदा; अंतिः गुण एहवा जाणी. २६९८." दशवैकालिकसूत्र सह टीका, अपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ४६, जैदेना., प्र.वि. संशोधित, पंचपाठ, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. दूसरी चूलिका के तीन श्लोक तक है., (२५.५४११, ५-९४३५-३६). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यम्भवसूरि, प्रा., पद्य, वि. पू.४, आदिः धम्मो मङ्गलमुक्किट्ठ; अंति: दशवैकालिकसूत्र-टीका, आ. तिलकाचार्य, सं., प+ग, वि. १३०४, आदिः धर्मो मङ्गलम्; अंति:२६९९. उववाइसूत्र की वृत्ति, संपूर्ण, वि. १६वी, श्रेष्ठ, पृ. ६४, जैदेना.,प्र.वि. प्र.पु. ग्रं. ३२२५, पदच्छेद सूचक लकीरें शुरुआत व अंत के कुछ पत्र, (२६४११, १७४५२). औपपातिकसूत्र-टीका, आ. अभयदेवसूरि , सं., गद्य, आदिः श्रीवर्द्धमानमानम्य; अंतिः व्यक्तार्थे एवेति. २७००." चतुःशरणप्रकीर्णक सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. १६५१, मध्यम, पृ. १२, जैदेना., ले. ऋ. तपता, प्र.वि. मूल-गा.६३., पंचपाठ, दशा वि. विवर्ण-पानी से अक्षरों की स्याही फैल गयी है-अल्प, (२६४११, १-११४२५-३७). चतुःशरण प्रकीर्णक, गणि वीरभद्र, प्रा., पद्य, आदिः सावज्ज जोग विरई; अंतिः कारणं निव्वुइ सुहाणं. चतुःशरण प्रकीर्णक-अवचूरि, आ. सोमसुन्दरसूरि, सं., गद्य, आदिः इदमध्ययनं परमपद; अंतिः भवतीति गाथार्थः. २७०१.” साधुप्रतिक्रमणसूत्र सङ्ग्रह, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ९, जैदेना., पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., (२५४१०, १३४४१). साधुपञ्चप्रतिक्रमणसूत्र सङ्ग्रह-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,गुज., प+ग, आदिः नमो अरिहन्ताणं; अंति:२७०२. नवतत्त्व सह टबार्थ, चोवीसजिन लावणी, शान्तिजिन स्तवन व सामान्य जिन पद, संपूर्ण, वि. १८८५, श्रेष्ठ, पृ. १६, पे. ४, जैदेना., ले.स्थल. तोलीयासग्राम, ले. चिरङ्गोधु, (२५.५४११.५, १३४३०). पे. १. पे. नाम. नवतत्त्व सह टबार्थ., पृ. १-१५अ नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंतिः होई तवेण पुरश जई. नवतत्त्व प्रकरण-टबार्थ', मागु., गद्य, आदिः जीवतत्त्व अजीवतत्त्व; अंतिः आत्माने शुद्ध करे., पे.वि. मूल-गा.५५. पे. २.२४ जिन लावणी, मु. विनयचन्द, राज., पद्य, (पृ. १४अ-१५अ), आदिः समर समर जिनराज समर; अंतिः विनयचन्द विन्दन करणा., पे.वि. गा.१२. पे. ३. शान्तिजिन स्तवन, मु. अमृत, प्राहिं., पद्य, (पृ. १६अ-१६आ), आदिः सन्त मूरत सुखदाई मै; अंतिः अमृत शुभ भावे रे.,पे.वि. गा.१६. For Private And Personal Use Only Page #347 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir २९३ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची पे. ४. साधारणजिन पद, मु. रुपचन्द, मागु., पद्य, (पृ. १६आ), आदिः तुम जुग च्यार निरञ्ज; अंतिः रुपचन्द हुवे ख्याला., पे.वि. गा.५. २७०४. सीमन्धरजिन स्तवन सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २२, जैदेना., प्र.वि. मूल-ढाल-११, गा.१२५. गाथा ११९ से टबार्थ लिखा हुआ नही है।, (२४.५४१२, ४४३९). सीमन्धरजिनविनती स्तवन सवासोगाथा , उपा. यशोविजयजी गणि, मागु., पद्य, (संपूर्ण), आदिः स्वामी सीमंधर विनती; अंति: जसविजय बुध जयकरो. सीमन्धरजिन स्तवन-टबार्थ, मागु., गद्य, (अपूर्ण), आदिः हे श्रीसीमन्धरस्वामी; अंति:२७०५. रत्नपालरत्नावती चौपाई, संपूर्ण, वि. १९३१, मध्यम, पृ. ४६, जैदेना., ले. मु. चतुर, प्र.वि. गा.६६५,ढाळ-३५, प्र.ले.श्लो. (१४१) यादशं पुस्तकं कृत्वा, (२३.५४११.५, ११४३०). रत्नपालरत्नावती चौपाई, पं. माणिक्यराज, मागु., पद्य, वि. १८१९, आदिः स्वस्ति श्रीप्रभु; अंतिः वरतै मंगलिकमालाजी. २७०६.” अभिधानचिन्तामणी नाममाला सह अवचूरि, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ५, जैदेना.,प्र.वि. संशोधित, पंचपाठ, प्र.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. दूसरे काण्ड की १० गाथा तक है., दशा वि. विवर्ण-पानी से अक्षरों की स्याही फैल गयी है-अल्प, (२३.५४१०, ८-१०x४२-६०). अभिधानचिन्तामणि नाममाला, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, आदिः प्रणिपत्यार्हतः; अंति: अभिधानचिन्तामणि नाममाला-अवचूरि*, मु. साधुरत्न, सं., गद्य, आदि:-; अंति:२७०७." दशवैकालिकसूत्र सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, जैदेना., ले.स्थल. बिलाड, ले. पं. रत्नविजय, प्र.वि. ढाळ ११, (२३.५४१०.५, १५४३९). दशवैकालिकसूत्र-सज्झाय, मु. जिनलब्धि, संबद्ध, मागु., पद्य, वि. १७३४, आदिः सुख दायक लायक सुगुण; अंतिः थिरदोलतियां थाये छे. २७०८. खण्डप्रशस्ति सह वृत्ति, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ७, जैदेना., पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. नृसिंहावतावरह आंशिक टीका तक है., (२६x१०.५, १७४६०). खण्डप्रशस्ति, कवि हनुमत्, सं., पद्य, आदिः कृत क्रोधे यस्मिन्; अंति: खण्डप्रशस्ति-सुबोधिका टीका, आ. गुणविनयसूरि, सं., गद्य, वि. १६४१, आदिः श्रीपार्वं फलवर्धि; अंति:२७१०. सिद्धाचल स्तुति व २१ नाम सह खमासमण विधि, संपूर्ण, वि. १८७१, मध्यम, पृ. ५, पे. २, जैदेना., ले.स्थल. पादलिप्तनगर, (२७४१२, १२४३४-३६). पे. १. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. कल्याणसागरसूरि-शिष्य, मागु., पद्य, (पृ. १-५अ), आदिः श्रीआदेश्वर अजरामर; अंतिः सुजसे जय सिरि., पे.वि. गा.१११. पे. २. शत्रुजयतीर्थ इक्कीसनाम व खमासमण विधि, सं., गद्य, (पृ. ५आ), आदिः श्रीशत्रुञ्जयाय नमः.; अंतिः शत्रुञ्जानुं स्तव. २७१२. जयतिहुअण स्तोत्र सह वृत्ति, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १०, जैदेना., प्र.वि. मूल-गा.३०., (२६.५४१२, १२४३७). जयतिहुअण स्तोत्र, आ. अभयदेवसूरि , प्रा., पद्य, आदिः जयतिहुयणवर कप्परुक्ख; अंतिः विण्णवइ अणिन्दिय. जयतिहुअण स्तोत्र-टीका, सं., गद्य, आदिः अत्रायं वृद्ध; अंतिः स्त्रिलोकलोकश्लाघितः. २७१४. अणुत्तरोववाईदशाङ्गसूत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६, जैदेना.,प्र.वि. अंतिम पत्र का नीचला भाग टूटा हुआ है., (२६.५४११, १४४५१). अनुत्तरौपपातिकदशाङ्गसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदिः तेणं कालेणं० नवमस्स; अंतिः#. २७१५. मृगलेखा चौपाई, संपूर्ण, वि. १९६२, श्रेष्ठ, पृ. १५, जैदेना., प्र.वि. ढाळ-६२, (२६.५४१२, १८:५९). For Private And Personal Use Only Page #348 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य भाग १ - www.kobatirth.org: २९४ मृगाङ्कलेखा चीपाई ऋ. रायचन्द, मागु पद्य वि. १८३८, आदिः आदेसर जिन आददे चोवीस अंतिः वरते कोड कल्याण. , २७१६. उत्तराध्ययनसूत्र अध्ययन - ३६, प्रतिपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १०, जैदेना., (२५.५४१२, १४४३५). उत्तराध्ययनसूत्र. मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा. प+ग, आदि:- अति सम्मए ति बेमि " ; , २७१७. सप्तनय रास, संपूर्ण, वि. १८५६, श्रेष्ठ, पृ. १०, जैदेना. प्र. वि. गा. १८५, डाळ- १५, (२८४११.५, १२४४१) " सप्तनय रास, मु. मानविजय, मागु., पद्य, आदि: श्रीगुरुचरणकमल; अंति: अनन्त कल्याणकार २७१८. वीरजिन पञ्चकल्याणक संपूर्ण, वि. १९०५, श्रेष्ठ, पृ. २२, जैदेना., (२७x१२, १३x४५). महावीरजिन पञ्चकल्याणक अधिकार प्रा. मागु, गद्य, आदि: तेणं कालेणं रसमणे अंतिः कल्पथी उद्धयों छई. २७१९. स्वरोदयशास्त्र (नरपतिजय चर्या), पूर्ण, वि. १६१३, मध्यम, पृ. ४६- १ ( २ ) - ४५, जैदेना. प्र. वि. अध्याय ५. पू. वि. बीच के व अंतिम पत्र नहीं हैं. प्रतिलेखन पुष्पिका का पत्र नहीं है., ( २६.५x१२, १६४५५). नरपतिजयचर्या, नरपति, सं., प+ग, वि. १२३२, आदि: अव्यक्तमव्ययं शान्तं; अंतिः भूवलं तत्त्वसारम्. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २७२०. सङ्ग्रहणीसूत्र सह वृत्ति, संपूर्ण वि. १६वी श्रेष्ठ, पृ. ५५, जैदेना, प्र. वि. मूल-गा. २७३ टीका ग्रं. ३५००., (२६.५X११.५, १७४६७). बृहत्सङ्ग्रहणी आ. चन्द्रसूरि प्रा. पद्य वि. १२वी आदि नमिउं अरिहन्ताई अति: (१) णिम्मिया अत्तपढणट्ठा 1 ' " , ( २ ) सन्नि गईरागई वे . बृहत्सङ्ग्रहणी- टीका, आ. देवभद्रसूरि सं., गद्य, आदि: (१) अत्यद्भुतं (२) इहाद्यपादेनेष्टदेवता: अंति: ( १ ) वृत्तिः समर्थिता (२) लोकानां सर्वसंख्यया. २७२१. स्नात्र विधि, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, जैदेना., ले. स्थल. खेरवा, ले. श्रा. तखतमल, ( २४.५x१०.५, ९४२६). स्नात्र पूजा, श्रा. वछ भण्डारी, मागु., पद्य, आदिः (१) मुक्तालङ्कारहारविकार (२) पवित्र उदक; अंतिः (१) जयजयों जयवन्तजी (२) मुकीइं ठारी नही. २७२२. पाक्षिकसूत्र सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, जैदेना, प्र. वि. पंचपाठ, (२५.५x११.५, ५-२०x४०-४१). पाक्षिकसूत्र, प्रा., प+ग, आदिः तित्थङ्करे य तित्थे; अंतिः मिच्छामि दुक्कडं. पाक्षिकसूत्र-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: तीर्थङ्करान् वन्दे अंतिः कृतं मे दुःकृतमस्तु. i , २७२३. चौवीसदण्डक ३० द्वार विचार, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. २१-६ (६ से ७, ९, १३ से १५ ) = १५, जैदेना. पु.वि. बीचबीच व अंत के पत्र नहीं हैं., (२५.५४१०.५, ९-१३४२६). २४ दण्डक ३० द्वार विचार मागु, गद्य, आदि दण्डक लेश्या ठित्ती अंति: २७२५." नन्दीसूत्र व लघुनन्दीसूत्र, संपूर्ण वि. १८वी श्रेष्ठ, पृ. ३२, पे. २ जैदेना. प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें संशोधित, (२४.५X११, ११३५). पे. १. नन्दीसूत्र, आ. देववाचक प्रा. प+ग, (पृ. १२९आ), आदि जयइ जगजीवजोणीवियाणओ अंतिः से तं परोक्खणाणं. " पे. २. लघुनन्दी सूत्र- अनुज्ञानन्दीसूत्र, आ. देववाचक, प्रा., गद्य (पृ. २९-३२अ) आदि से किं तं अणुण्णा अंति वीसमण्णा णामाई. दीपावलीपर्व कल्प, प्रा., पद्य, आदिः उप्पायविगमधुवमयमसेस; अंतिः सोहेयव्वो सुअधरेहिं. दीपावलीपर्व कल्प-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः उप्पन्नेवा सर्व; अंतिः सोधवो श्रुतधारीये. २७२६. दीपावली कल्प सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८१४, श्रेष्ठ, पृ. १३, जैदेना., ले. स्थल. उदयपुर, ले. मु. आगमसागर, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. मुलगा. १३७, (२५४१२, ६-७९५०-५२). For Private And Personal Use Only Page #349 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir २९५ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २७२७." बावनी, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ७, जैदेना., ले.स्थल. मांडवी बंदर, ले. मु. राघवजी चेला, प्र.वि. गा.६२, दशा __वि. विवर्ण-पानी से अक्षरों की स्याही फैल गयी है, (२५४११.५, १३४४०). अक्षरबावनी , मु. केशवदास, प्राहिं., पद्य, वि. १७३६, आदिः ॐकार सदा सुख देत; अंति: केसवदास सदा सुख पावै. २७२८. पाखीसूत्र व खामणा, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १८, पे. २, जैदेना., प्र.वि. संशोधित, (२५४१२, ११४२७). पे. १.पे. नाम. पाक्षिकसूत्र, पृ. ०१आ-१७आ पाक्षिकसूत्र, प्रा., प+ग, आदिः तित्थङ्करे य तित्थे; अंतिः जेसिं सुयसायरे भत्ति. पे. २. पे. नाम. पाक्षिकक्षामणासूत्र, पृ. १७आ-१८आ क्षामणकसूत्र, प्रा., गद्य, आदिः इच्छामि खमासमणो; अंतिः नित्थारग पारगा होह. २७२९." आचारोपदेश सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८८५, श्रेष्ठ, पृ. २२, जैदेना., ले.स्थल. घाणेरावनगर, ले. पं. गौतमसागर, प्र.वि. मूल-अध्याय-वर्ग-५., संशोधित, (२६४१३, ७४३५-४०). आचारोपदेश, गणि चारित्रसुन्दर, सं., पद्य, आदिः चिदानन्दस्वरूपाय; अंतिः निजयोर्धजन्मनो. आचारोपदेश-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः ज्ञान अने आनन्द तेहज; अंतिः जन्मारो सफल करे. २७३०." दिवाली कल्प व होली व्याख्यान, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १४, पे. २, जैदेना., प्र.वि. संशोधित, दशा वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, (२७.५४१२.५, १३४३०). पे. १. दीपावलीपर्व कल्प, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, (पृ. १-१२अ), आदिः सन्तु श्रीवर्द्धमान; अंतिः भव्य जीव प्रबोधिकः. पे. २. होलिकापर्व व्याख्यान, वाचक क्षमाकल्याण, सं., गद्य, वि. १८३५, (पृ. १२आ-१४आ), आदिः किञ्चिद्विशेषो; अंतिः इष्टार्थः प्राप्यते. २७३१. सज्झाय सङ्ग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, पे. ६, जैदेना., पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., (२४४१२, १०४३७). पे. १. चित्रसम्भूति सज्झाय, मु. कवियण, मागु., पद्य, (पृ. १-२अ, संपूर्ण), आदिः चित्त कहे ब्रह्मराय; अंतिः आवागमण निवारी हो., पे.वि. गा.२३. पे. २. मृगापुत्र सज्झाय, मु. सिंहविमल, मागु., पद्य, (पृ. २अ-३अ, अपूर्ण), आदिः सुग्रीव नयर; अंतिः-, पे.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. गा.१ से १५ तक लिखा है. पे. ३. नवघाटी सज्झाय, मागु., पद्य, वि. १८७९, (पृ. ३अ-४अ, संपूर्ण), आदि: नवघाटी माहे भटकत; अंति: ग्यान प्रकाश दलभतो., पे.वि. गा.९. पे. ४. विजयसेठविजयासेठाणी सज्झाय, ऋ. चोथमल, मागु., पद्य, (पृ. ४अ-५अ, संपूर्ण), आदिः सिल तणी रे महिमां; ___ अंतिः कहेस रे सुणो सेण भाई., पे.वि. गा.२०. पे. ५. जिनपरिवार सज्झाय, मु. आनन्दघन, मागु., पद्य, (पृ. ५आ, अपूर्ण), आदिः राजा राणीने कुटुम्ब; अंतिः-, पे.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. गा.१ से ५ अपूर्ण तक लिखा है. पे. ६. धन्ना सज्झाय, ऋ. आसकर्ण, मागु., पद्य, वि. १८५९, (पृ. ६अ-६आ, संपूर्ण), आदिः धन्नाजी रिख मन; अंतिः अनुसार जोय के., पे.वि. गा.७. २७३२. उपासकदशाङ्गसूत्र की टीका, संपूर्ण, वि. १५५०, श्रेष्ठ, पृ. १०, जैदेना., (२७४११.५, २२४८२). उपासकदशाङ्गसूत्र-वृत्ति, आ. अभयदेवसूरि , सं., गद्य, वि. १११७, आदिः श्रीवर्द्धमानमानम्य; अंतिः कुर्वतां प्रीतये मे. २७३३. राजप्रश्नीयसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १६६३, मध्यम, पृ. ७९, जैदेना.,प्र.वि. मूल-सूत्र-१७५, ग्रं. २१००., टिप्पण युक्त विशेष पाठ, प्र.ले.श्लो. (१४१) यादशं पुस्तकं कृत्वा, (२५.५४११, १३-१४४३६). राजप्रश्नीयसूत्र, प्रा., गद्य, (संपूर्ण), आदिः नमो अरिहंताणं० तेणं; अंतिः सुपस्से पस्सवणा नमो. राजप्रश्नीयसूत्र-टबार्थ , मागु., गद्य, (अपूर्ण), आदि:-; अंति: For Private And Personal Use Only Page #350 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य भाग - १ २९६ २७३४. अष्टप्रकारी पूजा, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना., (२३.५४११.५, ९४२३). ८ प्रकारी पूजा, मु. देवचन्द्रजी, मागु., पद्य, आदिः गङ्गा मागध क्षीरनिधि; अंतिः सौख्यं श्रयन्ति. २७३५. राजसिंहरत्नावली सन्धि, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १३, जैदेना., ले.स्थल. सेरुणाग्राम, प्र.वि. गा.२८८, (२६४११, १३४४४). राजसिंहरत्नवती सन्धि, गणि हर्षप्रभु, मागु., पद्य, वि. १६१९, आदिः पणमिय चउवीसे जिणराया; अंति: मनवञ्छित फलिसिइ. २७३६. क्षेत्रसमास सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७८०, मध्यम, पृ. १३, जैदेना., ले.स्थल. सांगानेर, प्र.वि. संक्षेप-अध्याय-५., (२५.५४११, ८४३९). बृहत्क्षेत्रसमास-लघुक्षेत्रसमास, आ. जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण, संक्षेप, प्रा., पद्य, (संपूर्ण), आदिः नमिऊणसजलजलहर; अंतिः झाएज्जा सम्मदीट्ठीए. बृहत्क्षेत्रसमास-सक्षेप लघुक्षेत्रसमास का टबार्थ, मागु., गद्य, (अपूर्ण), आदिः नमीने जे भगवन्त सजल; अंति:२७३७. स्तुतिचौवीसी, संपूर्ण, वि. १८०६, श्रेष्ठ, पृ. ९, जैदेना., ले.स्थल. खेडनगर, ले. मु. गोवर्धनविजय (गुरु मु. राजविजय),प्र.वि. श्लो.९६, दशा वि. विवर्ण-पानी से अक्षरों की स्याही फैल गयी है,प्र.ले.श्लो. (४७५) यादशं पुस्तकं दृष्ट्वा ; (२८२) जीहा लग मेरु अडग हे; (१७३) जलात् रक्षै तैलात् रक्षै, (२५४१०.५, ११४३३). स्तुतिचतुर्विंशतिका, मु. शोभनमुनि, सं., पद्य, आदिः भव्याम्भोजविबोधनैक; अंतिः हारतारा बलक्षेमदा. २७३८. प्रश्नव्याकरणसूत्र, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ४२, जैदेना., प्र.वि. ग्रं. १३००, (२७.५४११, ११४५२). प्रश्नव्याकरणसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदिः जम्बू इणमो अण्हयसंवर; अंतिः अङ्गं जहा आयारस्स. २७३९. सङ्ग्रहणीसूत्र, संपूर्ण, वि. १८७४, मध्यम, पृ. १९, जैदेना., ले.स्थल. सांडेरानगर, ले. मु. जीतसागर (गुरु गणि रविन्द्रसागर), प्र.वि. गा.३६१, (२६४१२, १२४४०). बृहत्सङ्ग्रहणी, आ. चन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदिः नमिउं अरिहन्ताइं; अंतिः जा वीरजिण तित्थं. २७४०. आगमसारोद्धार, पूर्ण, वि. १८८०, श्रेष्ठ, पृ. ४३-१(२)=४२, जैदेना., (२४४११, १२४३५). आगमसारोद्धार, उपा. देवचन्द, मागु., गद्य, वि. १७७६, आदिः भव्य जीवने; अंतिः फली मन आस. २७४२. अणुत्तरोववाईदशाङ्गसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ११, जैदेना., पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. टबार्थ ___ कहीं कहीं लिखा है., (२६४१३, ६x२८). अनुत्तरौपपातिकदशाङ्गसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदिः तेणं कालेणं० नवमस्स; अंति: अनुत्तरौपपातिकदशाङ्गसूत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, आदि:-; अंति:२७४३. महावीरजिन जन्ममहोत्सव स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना., पठ. साध्वीजी कसुभा,प्र.वि. गा.५०, (२५४११, ९४३०). महावीरजिन जन्ममहोत्सव स्तवन, मु. मल्लिदास, मागु., पद्य, आदिः चरम तीर्थङ्कर पय; अंतिः इम आणि शुभ मन भाव ए. २७४६. प्रतिक्रमणसूत्रसङ्ग्रह, चौदनियम गाथा व पच्चक्खाण सङ्ग्रह सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८१३, श्रेष्ठ, पृ. ३०, पे. ३, जैदेना., ले.स्थल. मकसुदाबाद, ले. ऋ. श्यामजी, (२६.५४११.५, ४४३५). पे. १.पे. नाम. श्राद्धप्रतिक्रमणसूत्र सङ्ग्रह सह टबार्थ, पृ. १-२५आ श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा., प+ग, आदिः नमो अरिहन्ताणं०; अंतिः वन्दामि जिणे चउवीसं. श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः माहरउ नमस्कार; अंतिः निश्चल जाणिवउ. पे. २. पे. नाम. चौदनियम गाथा सह टबार्थ, पृ. २५आ-२६अ ___१४ नियम गाथा, प्रा., पद्य, आदिः सच्चित्त दव्व विगई; अंतिः न्हाण्ण भत्तेसु. For Private And Personal Use Only Page #351 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir २९७ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १४ नियम गाथा-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः सचित्त वस्तु; अंतिः दिन प्रति सम्भारीइ., पे.वि. मूल-गा.१; टबार्थ गा.१. पे. ३. पे. नाम. पच्चक्खाणसूत्र सङ्ग्रह सह टबार्थ, पृ. २६अ-३०अ प्रत्याख्यानसूत्र, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदिः उग्गए सूरे नमुक्कार; अंतिः वत्तियागारेणं वोसिरइ. प्रत्याख्यानसूत्र-टबार्थ', मागु., गद्य, आदिः सूर्यनइ उदये बै घटिक; अंतिः मोकलौ वोसिरायूँ छु. २७४७. सम्यकत्वकौमुदि कथाकन, संपूर्ण, वि. १७७४, श्रेष्ठ, पृ. ४६, जैदेना., ले.स्थल. सौपुर, ले. मु. धनसिन्घजी, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, दशा वि. किनारी अधिक उपयोग के कारण खंडित है-अक्षरों की स्याही फैल गयी है, प्र.ले.श्लो. (६०३) भग्नपृष्टि कटि ग्रीवा, (२५४११, १४४३३). सम्यक्त्वकौमुदी कथानक, सं., गद्य, आदिः श्रीवर्द्धमानमानम्य; अंतिः विपर्ययादिष्यते बन्ध. २७४८. ज्ञाताधर्मकथाङ्गसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५३, जैदेना., पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., (२६४११, ७४३८). ज्ञाताधर्मकथाङ्गसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदिः तेणं कालेणं० चम्पाए; अंति: ज्ञाताधर्मकथाङ्गसूत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः नमस्कार करु छु; अंति:२७४९. प्रतिक्रमणसूत्र सङ्ग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, जैदेना., पू.वि. अन्त के पत्र नहीं हैं., (२४४१०, ११४३०). देवसिराईप्रतिक्रमणसूत्र सङ्ग्रह-अञ्चलगच्छीय, संबद्ध, प्रा.,सं.,गुज., प+ग, आदिः नमो अरिहन्ताणं० पढमं; अंति:२७५०. चौवीसहेमदण्डकद्वार यन्त्र, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, जैदेना., प्र.वि. *पंक्ति-अक्षर अनियमित है., पू.वि. अन्त के __पत्र नहीं हैं. ९७ द्वार तक है., (२५.५४१२.५४). २४ हेमदण्डकद्वार यन्त्र, मागु., कोष्टक, आदि:-: अंति:२७५१.” नारचन्द्रज्योतिष व ज्योतिष सङ्ग्रह, संपूर्ण, वि. १८६९, मध्यम, पृ. १९, पे. २, जैदेना., ले.स्थल. पिंडपुरे, ले. मु. मनोहरविजय, पठ. मु. देविचन्द (गुरु मु. मनोहरविजय),प्र.ले.पु. मध्यम, दशा वि. खंडित भाग पर कागज चिपकाए हुए हैं-पत्र खंडित है-अक्षर फीके पड गये हैं, प्र.ले.श्लो. (४५७) पोथी प्यारी प्राणथी, (२३.५४११, ८-१०x१९). पे. १. ज्योतिषसार-लघुनारचन्द्र ज्योतिष, संक्षेप, सं.,मागु., प+ग, (पृ. १अ-१९आ), आदिः (१) अर्हन्तं जिनं नत्वा (२) चैत्र वैशाख ज्येष्ठ; अंतिः रुण्डमुण्डा च मेदिनी. पे. २. ज्योतिष, सं.,मागु., पद्य, (पृ. १अ,१९आ), आदि:#; अंतिः#. २७५२. निर्यावलियादिपञ्चोपाङ्गसूत्र, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ५१, पे. ५, जैदेना., ले. स्वरूपा, प्र.वि. प्र.पू. मूल-सर्वग्रं. ११९०., संशोधित, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, दशा वि. विवर्ण-पानी से-अल्प-अक्षर फीके पड गये हैं-बीच का एक पत्र, (२६.५४११, ११४२८). पे. १. पे. नाम. कल्पिकासूत्र, पृ. ०१आ-१८ कल्पिकासूत्र, प्रा., गद्य, आदिः तेणं कालेणं तेणं०; अंतिः वरं मायातो सरिसणामाओ., पे.वि. १० अध्ययन. पे. २. पे. नाम. कल्पावतंसिकासूत्र, पृ. १८आ-२०आ कल्पावतंसिकासूत्र, प्रा., गद्य, आदिः जइ णं भन्ते समणेणं०; अंतिः वा महाविदेहे सिद्धे., पे.वि. १० अध्ययन. पे. ३. पे. नाम. पुष्पिकासूत्र, पृ. २०आ-४१आ पुष्पिकासूत्र, प्रा., गद्य, आदिः जति णं भंते समणेणं०; अंतिः चेइयाइं जहा संगहणीए., पे.वि. १० अध्ययन. पे. ४. पे. नाम. पुष्पचूलिकासूत्र, पृ. ४१आ-४५अ पुष्पचूलिकासूत्र, प्रा., गद्य, आदिः जइ णं भंते समणेणं०; अंतिः हे वासे सिज्झिहिंति., पे.वि. १० अध्ययन. पे. ५. पे. नाम. वृष्णिदशासूत्र, पृ. ४५अ-५१अ वृष्णिदशासूत्र, प्रा., गद्य, आदिः जइ णं भंते० पंचमस्स; अंतिः मइरित्त एक्कारससु वि., पे.वि. १२ अध्ययन. For Private And Personal Use Only Page #352 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य भाग - १ २९८ २७५३. सुभाषित सङ्ग्रह, संपूर्ण, वि. १७८५, श्रेष्ठ, पृ. ६०, जैदेना., ले.स्थल. चंपावती, ले. मु. फकीरदास (गुरु मु. साहिमल्ल), (२५.५४११.५, ८४३४). सुभाषितार्णव, सं., पद्य, आदिः चन्द्रनाथं जिनं नत्व; अंतिः चित्ते नैव कदाचन. २७५४." स्तवन सङ्ग्रह सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८५२, श्रेष्ठ, पृ. ४४, पे. ३, जैदेना., ले.स्थल. श्रीमालनगर, ले. कवि दीपसागर (गुरु पं. भक्तिसागर); मु. जीतसागर (गुरु कवि दीपसागर),प्र.ले.पु. मध्यम,प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-कुछ पत्र, (२४.५४११.५, ४४३३). पे. १. पे. नाम. आनन्दघन चौवीसी सह टबार्थ, पृ. १-४०आ स्तवनचौवीसी, मु. आनन्दघन, मागु., पद्य, वि. १८पू, आदिः ऋषभ जिनेश्वर प्रीतम; अंतिः आनन्दघन प्रभु जाग स्तवनचौवीसी-टबार्थ, आ. ज्ञानविमलसूरि, मागु., गद्य, आदिः चिदानन्दमय जिनवरु; अंतिः ते करी मोक्षपद पामे., पे.वि. मूल-अध्याय-२४ स्तवन. पे. २. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन सह टबार्थ, पृ. ४०आ-४२अ पार्श्वजिन स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मागु., पद्य, आदिः पास प्रभु प्रणमुं: अंतिः परमानन्द विलासें रे. पार्श्वजिन स्तवन-टबार्थ, मु. सुखसागर, मागु., गद्य, आदिः श्रीपार्श्वनाथ केहवा; अंतिः परमानन्द लीला पामइ., पे.वि. मूल-गा.८. पे. ३. पे. नाम. वीरजिन स्तवन सह टबार्थ, पृ. ४२१-४४आ महावीरजिन स्तवन, मु. ज्ञानविमल, मागु., पद्य, आदिः करुणा कल्पलता; अंतिः अनन्त सुखनो सदा रे. महावीरजिन स्तवन-टबार्थ, मु. सुखसागर, मागु., गद्य, आदिः श्रीमहावीरजिननी; अंतिः आप रूपे भोक्ता छइ., पे.वि. मूल-गा.१३. २७५५.” सामान्यजिन पद, संपूर्ण, वि. १६वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदेना., प्र.वि. गा.१३०, (२६४११, ११४४१). साधारणजिन पद, प्रा., पद्य, आदिः चउतीसअइसयजुओ; अंतिः न कायरा हुति. २७५६. सिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासन- अवचूरि आख्यात, अपूर्ण, वि. १६वी, श्रेष्ठ, पृ. ८५-७२(१ से ३१,३५ से ७४,७८)=१३, जैदेना., प्र.वि. सूत्र सङ्केत के साथ अवचूरि महत्त्वपूर्ण।, (२६.५४११.५, १७-२१४४८-६०). सिद्धहमशब्दानुशासन-आख्यात अवचूरि, सं., गद्य, आदिः-; अंतिः ए एदैतोयाय् आय. २७५७. जम्बूस्वामी चरित्र, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १२, जैदेना.,प्र.वि. संशोधित, पू.वि. अन्त के पत्र नहीं हैं., (२५.५४११.५, १३४३८). जम्बूअध्ययन प्रकीर्णक-कथा, मागु., गद्य, आदिः एही ज जम्बूद्वीपे; अंतिः२७५८. श्राद्धपाक्षिक अतिचार, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ७-१(१)=६, जैदेना., (२५.५४११, ११४३३). श्रावकपाक्षिकअतिचार-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मागु., गद्य, आदि:-; अंतिः मिच्छामि दुक्कडम्. २७५९." लोकनालिद्वात्रिंशिका व आदिजिन स्तवन सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १७२३, मध्यम, पृ. २३-१२(१ से १२)=११, पे. २, जैदेना., ले.स्थल. भागल, ले. मु. हीरा, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२६४११, ४४३७). पे. १. पे. नाम. लोकनालिद्वात्रिंशिका सह टबार्थ, पृ. १३अ-१७आ, संपूर्ण लोकनालिद्वात्रिंशिका, आ. धर्मघोषसूरि , प्रा., पद्य, आदिः जिणदंसणं विणा जं; अंतिः जहा भमह न इह भिसं. लोकनालिद्वात्रिंशिका-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः जिनना दर्शन; अंतिः नही अनइ सुख पामउ., पे.वि. मूल-गा.३३. पे. २. पे. नाम. आदिजिन स्तवन सह टबार्थ, पृ. १७आ-२३आ, संपूर्ण आदिजिन स्तवन-विज्ञप्तिविचारगर्भित , गणि विजयतिलक, मागु., पद्य, आदिः पहिलु पणमिअ देव; अंतिः विजयतिलक निरंजणो. For Private And Personal Use Only Page #353 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra २९९ www.kobatirth.org: कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची आदिजिन स्तवन- विज्ञप्तिविचारगर्मित- टवार्थ, मागु, गद्य, आदि श्रीविजयतिलक अंतिः कीलुख्य रहिति दिउ., पे. वि. मूल-गा. २१. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २७६०. चतुःशरणप्रकीर्णक सह टबार्थ, संपूर्ण वि. २०वी मध्यम, पृ. ९, जैदेना, प्र. वि. मूल-गा.६३. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२५.५११, ५x२९). चतुःशरण प्रकीर्णक, गणि वीरभद्र, प्रा., पद्य, आदि सावज्ज जोग विरई: अंतिः कारणं निव्वुइ सुहाणं. चतुःशरण प्रकीर्णक-टवार्थ, मागु, गद्य, आदि: सावद्य योग क० पाप अंतिः मोक्षना सुखनुं हेतु. २७६१.” पर्यन्ताराधना सह टबार्थ व जैनगाथा सङ्ग्रह, संपूर्ण, वि. १६९५, मध्यम, पृ. १२, पे. २, जैदेना., ले. स्थल. जानुंदाग्राम, ले. मु. जीतविजय (गुरु मु. दर्शनविजय ). प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. संशोधित (२६४११, ४५२७-४०). पे. १. पे. नाम. पर्यन्ताराधना सह टबार्थ, पृ. १-१२ पर्यन्ताराधना आ. सोमसूरि प्रा. पद्य, आदि: नमिउण भणइ अंतिः ते सासयं सुक्खं. · " " पर्यन्ताराधना-टबार्थ *, मागु., गद्य, आदिः श्रीमहावीर नमस्करी; अंतिः शाश्वता सुख प्रतइं., पे.वि. मूल-गा. ७०. पे. २. जैनगाथा सङ्ग्रह *, सं., प्रा., मागु., पद्य, (पृ. १२आ), आदि: #; अंतिः#. २७६२. पासाकेवली, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदेना, ले. मु. चारित्रविजय (२६४११, १४४३८). पाशाकेवली, ऋ. गर्ग, सं., पद्य, आदिः ॐ नमो भगवती; अंतिः तया पाशकढालनम्. २७६३. कुसुमाञ्जली श्लोक, आदिनाथ जन्माभिषेक व सत्तरभेदी पूजा, प्रतिपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ५, पे. ३, जैदेना., ले. मु. मेघसौभाग्य, (२५५१०.५, १५४३९). पे. १. कुसुमाञ्जलि, प्रा., सं., पद्य, (पृ. १अ, संपूर्ण), आदि: मुक्तालङ्कारसार; अंतिः भविआ दुरियां सेसा., पे.वि. गा.९. स्नात्रपूजा अंतर्गत कुसुमांजली ९ श्लोक. पे. २. आदिजिन जन्माभिषेक कलश, अप., मागु., पद्य, (पृ. १अ-२अ, संपूर्ण ), आदि: विणयनयरी विणयनयरी; अंतिः तुम्ह दियो वर मुक्ति, पे.वि. गा.१९. पे. ३. १७ भेदी पूजा, उपा. सकलचन्द्रगणि, मागु., पद्य, (पृ. २अ - ५आ, संपूर्ण), आदि: अरिहन्त मुखपङ्कज; अंतिः सुरपति जिम थुणियो, पे.वि. ढाल - १७, गा.१०८. २७६५.” श्राद्धपाक्षिक अतिचार, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ७, जैदेना., दशा वि. विवर्ण-पानी से अक्षरों की स्याही फैल गयी है, (२५४१२.५, १४X३७). श्रावक पाक्षिक अतिचार तपागच्छीय संबद्ध, प्रा. मागु, गद्य, आदि विशेषतः श्रावक तणआइ अंतिः मिच्छामि दुक्कडम्. २७६७.” समयसार नाटक, संपूर्ण, वि. १७७८, मध्यम, पृ. ४३, जैदेना., ले. स्थल. बहलवा, ले. गणि रूपभद्र, प्र. वि. गा. ७२८, ग्रं. १७०७ दशा वि. विवर्ण पानी से अक्षरों की स्याही फैल गयी है, ( २६.५४१२, १६४४३) समयसार नाटक-पद्यानुवाद, श्रा. बनारसीदास, प्राहिं., पद्य, वि. १६९३, आदिः करम भरम जग तिमिर; अंतिः नाममइ परमारथ विरतन्त. (+) २७६८. चातुर्मासिक व्याख्यान पद्धति, संपूर्ण, वि. १९०३ श्रेष्ठ, पृ. १३. जैदेना, ले स्थल भोपाल, ले. मु. उमेदचन्द्र (पार्श्वचन्द्रसूरि), प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, पदच्छेद सूचक लकीरें, ( २६१२.५, ११x४०). चातुर्मासिकत्रय व्याख्यान, पाठक क्षमाकल्याण, सं., गद्य अंतिः समक्षं वाच्यम्. २७६९. पटावली, पूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २८, जैदेना., पू.वि. पत्रांक- २८ अनुपूरित है जो प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण है. पट्टावली का अगला भाग इसमें वर्णित है., ( २६४१२, १३४३८ ) . पट्टावली खरतरगच्छीय, वाचक क्षमाकल्याण, सं., गद्य वि. १८३०, आदिः प्रणिपत्य जगन्नार्थ: अंति २७७०." होली व्याख्यान सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९२८, श्रेष्ठ, पृ. ८, जैदेना., ले. स्थल. बम्बई, ले. मु. कीर्तिसागर, प्र. वि. मूलश्लो. १३९. टिप्पण युक्त विशेष पाठ (२६४१२, ९x४०-५२). For Private And Personal Use Only Page #354 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य भाग - १ ३०० होलीरजपर्व प्रबन्ध, गणि फतेन्द्रसागर, सं., पद्य, वि. १८२२, आदिः सुरासुरनतक्रमं; अंतिः चितोचितचरित्तं होली. होलिकापर्व कथा-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः श्रीवर्धमानस्वामी; अंतिः होलीरज पर्व लिख्यौ. २७७१." निशीथसूत्र सह बालावबोध, प्रतिपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २३, जैदेना., प्र.वि. संशोधित, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२६४११, १७४६२). निशीथसूत्र, प्रा., गद्य, आदिः जे भिखु हत्थ; अंति: निशीथसूत्र-बालावबोध* , मागु., गद्य, आदिः सूत्रमय चिलि मिली-; अंति:२७७३. हिगुल प्रकरण, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १०, जैदेना., ले. पं. रतनविजय (गुरु गणि गोविन्दविजय), प्र.वि. श्लो.१८०, (२६४११, १३४३५). हिगुल प्रकरण , उपा. विनयसागर, सं., पद्य, आदिः श्रीमच्छ्रीवासुपूज्य; अंतिः वारयितुं समर्थः २७७४. चैत्रीपूनम देववन्दन विधि, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदेना., (२५.५४११, १५४३६). चैत्रपूर्णिमा देववन्दन विधि, आ. विजयराजसूरि, मागु., पद्य, आदिः नाभिनरेश्वर वंसचन्द; अंतिः दान अधिक आनन्द. २७७६. शत्रुञ्जयउद्धार रास, संपूर्ण, वि. १९३७, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदेना., प्र.वि. गा.१२०, (२७४१२.५, १२४४४). शत्रुजयतीर्थउद्धार रास, मु. नयसुन्दर, मागु., पद्य, वि. १६३८, आदिः विमल गिरिवर विमल; अंतिः दरिशन जयकरो. २७७७. जीवविचार व नवतत्त्व सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७७८, मध्यम, पृ. ७, पे. २, जैदेना., ले. ऋ. खेमजी (गुरु ऋ. नेताजी), प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२६x११.५, ७४४५). पे. १. पे. नाम. जीवविचार सह टबार्थ, पृ. १-४अ जीवविचार प्रकरण, आ. शान्तिसूरि, प्रा., पद्य, आदिः भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंतिः रुद्दाओ सुयसमुद्दाओ. जीवविचार प्रकरण-टबार्थ', मागु., गद्य, आदिः भुवननइ विषइ प्रदीप; अंतिः समुद्रथकी उधरिओ., पे.वि. मूल गा.५१. पे. २. पे. नाम. नवतत्त्व सह टबार्थ, पृ. ४अ-७आ नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदिः जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंतिः अणागयद्धा अणन्तगुणा. नवतत्त्व प्रकरण-टबार्थ, आ. पार्श्वचन्द्रसूरि, मागु., गद्य, आदिः साचउ वस्तुनउ स्वरूप; अंतिः श्रीपार्श्वचन्द्रेण., पे.वि. मूल-गा.४५. २७८१. भुवनदीपक, संपूर्ण, वि. १७८१, मध्यम, पृ. ५, जैदेना., ले.स्थल. मेदनीपुर, ले. मु. हीरानन्द (गुरु गणि भोजसागर), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. श्लो.१७६, दशा वि. विवर्ण-पानी से अक्षरों की स्याही फैल गयी है-अल्प, (२५४११, १५४४४). भुवनदीपक, आ. पद्मप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३पू, आदिः सारस्वतं नमस्कृत्य; अंतिः श्रीपद्मप्रभुसूरिभिः. २७८२. स्थविरावली व उपदेशमाला, अपूर्ण, वि. १८१८, श्रेष्ठ, पृ. ९, पे. २, जैदेना., पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., (२४.५४१०.५, १०४३१). पे. १. स्थविरावली, प्रा., पद्य, (पृ. १-३अ, संपूर्ण), आदिः सावज्जं जोगं विरई: अंतिः नाणस्स परुवणं वुच्छं., पे.वि. गा.५०. पे. २. उपदेशमाला, गणि धर्मदास, प्रा., पद्य, (पृ. ३अ-९आ, अपूर्ण), आदिः नमिऊण जिणवरिन्दे; अंतिः-, पे.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. गा.१०४ तक ही लिखा है. २७८३. स्थुलीभद्र नवरस सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, प्र. ५, जैदेना.,प्र.वि. ढाळ-९, गा.७४, दशा वि. विवर्ण-पानी से अक्षरों की स्याही फैल गयी है, बटकने योग्य, (२५.५४११, ११४३७). स्थूलिभद्र नवरसो, वाचक उदयरत्न, मागु., पद्य, वि. १७५९, आदिः सुखसंपति दायक सदा; अंतिः मनोरथ वेगे फल्या For Private And Personal Use Only Page #355 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ३०१ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २७८४. गौतमपृच्छा सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ७, जैदेना., ले. मु. गजकुशल, पठ. भागवती, प्र.वि. मूल-गा.६४., (२५.५४११, ६४३२). गौतमपृच्छा, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण तित्थनाहं; अंति: गोयमपुच्छा महत्थावि. गौतमपृच्छा-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः तीर्थनाथ श्रीमहावीर; अंतिः वीरइ उत्तर दीधो छइ. २७८५." उपदेशमाला, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २६, जैदेना.,प्र.वि. गा.५४४, संशोधित, (२५४१०.५, ११४३६). उपदेशमाला, गणि धर्मदास, प्रा., पद्य, आदिः जगचूडामणिभूओ उसभो; अंतिः वयण विणिग्गया वाणी. २७८६." विचारषट्त्रिंशिका सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८१०, मध्यम, पृ. १२, जैदेना.,ले.स्थल. जालोरगढ, ले. मु. उद्योतसागर (गुरु मु. भक्तिसागर), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. मूल-गा.४५., टिप्पण युक्त विशेष पाठ, दशा वि. विवर्ण-पानी से अक्षरों की स्याही फैल गयी है-अल्प, (२६४११.५, १३-२१४३९-५२). दण्डक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, आदिः नमिउं चउवीस; अंतिः एसा विनत्ति अप्पहिआ. दण्डक प्रकरण-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः नमस्कार करीने चौवीस; अंतिः दण्डक अर्थ प्ररुपीओ. २७८८. षड्दर्शन विचार सह अर्थ, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ५, जैदेना., प्र.वि. मूल-श्लो.६६., पंचपाठ, (२६४११, ४-९४३४ ३९). ६ दर्शन विचार, सं., पद्य, आदि: जैनं मैमासिकं बौद्धं; अंति: नैवनिः फलम्. ६ दर्शन विचार-अर्थ, मागु., गद्य, आदिः जिन १ मिमासिक २; अंतिः सहित वेगलां० फल तुहइ. २७८९." पाक्षिकसूत्र, संपूर्ण, वि. १८५२, श्रेष्ठ, पृ. ११, जैदेना., ले.स्थल. विक्रमपुर, ले. मु. आनन्दविजय, प्र.वि. संशोधित, (२५४१०.५, ११४३२). पाक्षिकसूत्र, प्रा., प+ग, आदिः तित्थङ्करे य तित्थे; अंतिः जेसिं सुयसायरे भत्ति. २७९०. ज्ञाताधर्मकथाङ्गसूत्र टीका, पूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ६१-१(३२)=६०, जैदेना., प्र.वि. ग्रं. ३८००, (२६.५४११, १७४६७). ज्ञाताधर्मकथाङ्गसूत्र-टीका, आ. अभयदेवसूरि , सं., गद्य, वि. ११२०, आदिः नत्वा श्रीमन्महावीरं; अंतिः संशोधिता चेयम्. २७९१. ज्ञाताधर्मकथाङ्गसूत्र, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १०६, जैदेना., ले.स्थल. नागपुर, ले. पं. उदयसङ्घ(खरतरगच्छ), लिखवा. मु. चन्द्ररत्न(खरतरगच्छ),प्र.वि. ग्रं. ५००५, १९अध्ययन, संशोधित, पदच्छेद सूचक लकीरें, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, प्र.ले.श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्टं, (२६४११, १५७५९). ज्ञाताधर्मकथाङ्गसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदिः तेणं कालेणं० चम्पाए; अंतिः पुरिससीहेणं. २७९२. पद आदि सङ्ग्रह व सुभाषित दोहा पचहत्तरी, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १७-१(१)=१६, पे. ६१, जैदेना., (२६४१२, १०४३६). पे. १. पार्श्वजिन पद, मु. रुपचन्द, प्राहिं., पद्य, (पृ. -२अ-२अ, अपूर्ण), आदि:-; अंतिः भवभव दीज्यो दीदार., पे.वि. गा.३. प्रथम पत्र नहीं है. पे. २. पार्श्वजिन पद, मु. श्रीधर, प्राहिं., पद्य, (पृ. २अ-२अ, संपूर्ण), आदि: नीकी मूरति पास; अंतिः दाता परमानन्द की., पे.वि. गा.३. पे. ३. चन्द्रप्रभजिन स्तवन, जैत, प्राहिं., पद्य, (पृ. २अ-२आ, संपूर्ण), आदिः श्रीचन्दा प्रभु जिन; अंतिः तुम चरणां बलिहारी., पे.वि. गा.६. पे. ४. महावीरजिन स्तवन, मु. हर्षचन्द, प्राहिं., पद्य, (पृ. २आ-२आ, संपूर्ण), आदिः आज महोछव रङ्ग रली; अंतिः आस्या सफल फली री., पे.वि. गा.५. For Private And Personal Use Only Page #356 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य भाग - १ ३०२ पे. ५. साधारणजिन स्तवन, मु. सुखसागर, प्राहिं., पद्य, (पृ. २आ-३अ, संपूर्ण), आदिः रागद्वेष जाके नहि; अंतिः सेवीसे सुखसागर है., पे.वि. गा.५. पे. ६. शान्तिजिन स्तवन, मु. हर्षचन्द, प्राहिं., पद्य, (पृ. ३अ-३अ, संपूर्ण), आदिः चित चाहत सेवा चरण; अंतिः भीत मिटावो मरण की.,पे.वि. गा.४. पे. ७. पार्श्वजिन पद, मु. हर्षचन्द, प्राहिं., पद्य, (पृ. ३अ-३अ, संपूर्ण), आदिः वामाजी के नन्द अरज; अंतिः चाहे मुनि हरखचन्द., पे.वि. गा.४. पे. ८. साधारणजिन स्तवन, मु. ज्ञानउद्योत, प्राहिं., पद्य, (पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण), आदिः खतरा दूर करणा दूर; अंतिः शिवनारी वर छरणा., पे.वि. गा.६. पे. ९. सुमतिजिन पद, मु. रूपचन्द, प्राहिं., पद्य, (पृ. ३आ-३आ, संपूर्ण), आदिः मुजरा साहिब मुजरा; अंति: नाम निरञ्जन तेरा छे., पे.वि. गा.३. पे. १०.४ मङ्गल स्तवन, प्राहिं., पद्य, (पृ. ३आ-४अ, संपूर्ण), आदिः च्यारुं मङ्गल च्यारह; अंति: गुण अनन्त अपार., पे.वि. गा.१२. पे. ११. पार्श्वजिन स्तवन, मु. जिनचन्द्र, प्राहिं., पद्य, (पृ. ४अ-४अ, संपूर्ण), आदि: जय बोलो पास जिनेसर; अंतिः __ पारस जैसी छाया सुरतर., पे.वि. गा.७. पे. १२. आदिजिन पद, मु. जिनदास, प्राहिं., पद्य, (पृ. ४आ-४आ, संपूर्ण), आदिः सांझ समें जिन वन्दु; अंतिः अपनो समरत होत आनन्दो., पे.वि. गा.४. पे. १३. नेमिजिन स्तवन, मु. अक्षयरत्न, मागु., पद्य, (पृ. ४आ-४आ, संपूर्ण), आदिः नेम प्यारा मिले तो; अंतिः अक्षय ___गुण गाईयावो., पे.वि. गा.५. पे. १४. साधारणजिन स्तवन, प्राहिं., पद्य, (पृ. ४आ-५अ, संपूर्ण), आदिः प्रभु तुम गुण सुमरते; अंति: यही पुदगल के ___घेरा है., पे.वि. गा.७. पे. १५. नेमिजिन पद, मु. मिहरचन्द, प्राहिं., पद्य, (पृ. ५अ-५अ, संपूर्ण), आदिः परज नेना भर आवन्दे; अंतिः मिहरचन्द गुण गावन्दे., पे.वि. गा.४. पे. १६. महावीरजिन पद, मु. अक्षयरत्न, प्राहिं., पद्य, (पृ. ५अ-५आ, संपूर्ण), आदिः स्वामी श्रीमहावीर; अंतिः भक्ति अभय पद दीजिये., पे.वि. गा.३. पे. १७. साधारणजिन पद, मु. नवल, प्राहिं., पद्य, (पृ. ५-५आ, संपूर्ण), आदिः एही सभाव पड्या हो; अंतिः सकल जडावो जडावो., पे.वि. गा.३. पे. १८. आदिजिन पद, मु. नवल, प्राहिं., पद्य, (पृ. ५आ-५आ, संपूर्ण), आदिः घरी धन आज की एह सरे; अंतिः नवल आनन्द हु पायो., पे.वि. गा.४. पे. १९. साधारणजिन पद, मु. नवल, प्राहिं., पद्य, (पृ. ५आ-६अ, संपूर्ण), आदिः करु आराधना तेरी हिये; अंतिः नवल चेरा तुमारा है., पे.वि. गा.५. पे. २०. साधारणजिन पद, प्राहिं., पद्य, (पृ. ६अ-६अ, संपूर्ण), आदिः लगजा श्रीगुरु प्यारा; अंतिः करजुग जोग जुहार., पे.वि. गा.४. पे. २१. साधारणजिन पद, मु. रूपचन्द, प्राहिं., पद्य, (पृ. ६अ-६आ, संपूर्ण), आदिः निरंजन यार वोरे अब; अंतिः तुम सम देव न ओर., पे.वि. गा.५. पे. २२. नेमिजिन पद, मु. भूषण, राज., पद्य, (पृ. ६आ-६आ, संपूर्ण), आदिः नेम निरञ्जन ध्यावो; अंतिः सो जगरो जग लीनो रे., पे.वि. गा.४. पे. २३. पार्श्वजिन होरी , मु. रत्नसागर, प्राहिं., पद्य, (पृ. ६आ-७अ, संपूर्ण), आदिः रङ्ग मच्यो जिनद्वार; अंति: मुख बोले जयकार., पे.वि. गा.८. For Private And Personal Use Only Page #357 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ३०३ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची पे. २४. पार्श्वजिन पद, आ. जिनभक्तिसूरि, प्राहिं., पद्य, (पृ. ७अ-७अ, संपूर्ण), आदिः माई रङ्गभर खेलेगे; अंतिः रमे जिनवर सहाय., पे.वि. गा.४. पे. २५. आदिजिन होरी, मु. जिनचन्द्र, प्राहिं., पद्य, (पृ. ७अ-७अ, संपूर्ण), आदिः होरी खेलियै नर बहुर; अंतिः भवभव पातिक जाय., पे.वि. गा.७. पे. २६. औपदेशिक पद, मु. गुणविलास, प्राहिं., पद्य, (पृ. ७अ-७आ, संपूर्ण), आदिः मेरे हृदय कमल फूल्यो; अंतिः शिव रणमकिन्त., पे.वि. गा.३. पे. २७. आध्यात्मिक पद, मु. वसन्त, प्राहिं., पद्य, (पृ. ७आ-७आ, संपूर्ण), आदिः निज आतम घट फूल्यो; अंतिः वंसत नित सांज भोर., पे.वि. गा.७. पे. २८. साधारणजिन पद, मु. सुमति, प्राहिं., पद्य, (पृ. ७आ-८अ, संपूर्ण), आदिः चेतन खेले होरी हो; अंतिः जीवो यहजु जुग जोरी., पे.वि. गा.४. पे. २९. नेमिजिन पद, आ. जिनभक्तिसूरि, प्राहिं., पद्य, (पृ. ८अ-८अ, संपूर्ण), आदिः ऐसे नेम कुंवर खेले; अंतिः रमे उपजत आनन्द.,पे.वि. गा.५. पे. ३०. औपदेशिक पद, प्राहिं., पद्य, (पृ. ८अ-८आ, संपूर्ण), आदिः नव नय के ताल बजाय; अंतिः आतम पान सभारी., पे.वि. गा.४. पे. ३१. साधारणजिन पद, मु. जगराम, मागु., पद्य, (पृ. ८आ-८आ, संपूर्ण), आदिः पूजो चरन जिनेश्वरजी; अंतिः तोहि तोहि त्राता रे., पे.वि. गा.४. पे. ३२. साधारणजिन पद, मु. जगतराम, प्राहिं., पद्य, (पृ. ८आ-८आ, संपूर्ण), आदिः आई वसन्त सन्त चले; अंतिः लीजे पूजीजे जिनराज., पे.वि. गा.३. पे. ३३. साधारणजिन पद, आ. जिनलाभसूरि, प्राहिं., पद्य, (पृ. ८आ-९अ, संपूर्ण), आदिः होरी के खिलईया हारे; अंतिः अनोपम भव निसतिर रे.,पे.वि. गा.७. पे. ३४. पार्श्वजिन पद, मु. जिनचन्द्र, मागु., पद्य, (पृ. ९अ-९अ, संपूर्ण), आदिः आज बधाई म्हारै आज; अंतिः श्रीजिनचन्द सवाइ., पे.वि. गा.५.. पे. ३५. नेमिजिन पद, प्राहिं., पद्य, (पृ. ९अ-९आ, संपूर्ण), आदिः सिखर गिरनार जाना छे; अंतिः पल छिन नर हाना हो., पे.वि. गा.३. पे. ३६. साधारणजिन पद, मु. दौलत, प्राहिं., पद्य, (पृ. ९आ-९आ, संपूर्ण), आदिः सरण जिनराज तेरी हो; अंतिः तोडी करम की बेरी हो., पे.वि. गा.३. पे. ३७. शीतलजिन स्तवन, प्राहिं., पद्य, (पृ. ९आ-९आ, संपूर्ण), आदिः तारिलें मोहि सीतल; अंतिः पाई भए सिवगामी., पे.वि. गा.३. पे. ३८. साधारणजिन पद, मु. जगतराम, प्राहिं., पद्य, (पृ. ९आ-९आ, संपूर्ण), आदिः जे नर जिन वाणी रस; अंतिः जे श्रद्धा दृढ राखे., पे.वि. गा.३. पे. ३९. पार्श्वजिन पद, मु. हर्षचन्द, प्राहिं., पद्य, (पृ. ९आ-१०अ, संपूर्ण), आदिः पास जिनन्दा हो दिल; अंतिः पुनम दिन जिम चन्दा., पे.वि. गा.७. पे. ४०. शान्तिजिन पद, प्राहिं., पद्य, (पृ. १०अ-१०अ, संपूर्ण), आदिः जिनवर मूरति तेरी; अंतिः मन वच काय लगाय., पे.वि. गा.४. पे. ४१. साधारणजिन स्तवन, प्राहिं., पद्य, (पृ. १०अ-१०आ, संपूर्ण), आदि: मुजे हे चाह दरसन; अंतिः तो क्या होइगा., पे.वि. गा.५. पे. ४२. महावीरजिन पद, मु. भुवनकीर्ति, प्राहिं., पद्य, (पृ. १०आ-१०आ, संपूर्ण), आदिः मो मन वीर सुहावे; अंतिः भुवनकीरत गुण गावे., पे.वि. गा.३. For Private And Personal Use Only Page #358 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य भाग - १ ३०४ पे. ४३. साधारणजिन पद, मागु., पद्य, (पृ. १०आ-१०आ, संपूर्ण), आदिः जग दीठा तुं मेरा; अंतिः दरसन ग्यान आधार छे., पे.वि. गा.४. पे. ४४. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. ज्ञानउद्योत, मागु., पद्य, (पृ. १०आ-११अ, संपूर्ण), आदिः सिद्धाचल वन्दो रे; अंतिः भक्ति करुं एक तारी., पे.वि. गा.५. पे. ४५. साधारणजिन पद, मु. जगतराम, प्राहिं., पद्य, (पृ. ११अ-११अ, संपूर्ण), आदिः कैसैं वस करिये ऐसे; अंति: मेरे ____ मगन हीया., पे.वि. गा.३. पे. ४६. पार्श्वजिन पद-गोडीजी, मु. रूपविजय, मागु., पद्य, (पृ. ११अ-११अ, संपूर्ण), आदिः मुजरो मानि न लीज्यो; __ अंतिः उठी प्रणमीज्यो रे., पे.वि. गा.३. पे. ४७. सम्यक्त्व पद, मु. रूपचन्द, प्राहिं., पद्य, (पृ. ११अ-११आ, संपूर्ण), आदिः जागे सौ जिनभक्ति; अंतिः वन्दना हमारी है., पे.वि. गा.३. पे. ४८. आदिजिन पद, मु. साधुकीर्ति, प्राहिं., पद्य, (पृ. ११आ-११आ, संपूर्ण), आदि: आज ऋषभ घर आवे; अंतिः साधुकीरति गुण गावे., पे.वि. गा.३. पे. ४९. महावीरजिन पद, मु. हर्षचन्द, प्राहिं., पद्य, (पृ. ११आ-११आ, संपूर्ण), आदि: भेट वीर जिनन्द; अंतिः हरख भरी हर्षचन्द री., पे.वि. गा.३. पे. ५०. महावीरजिन पद, मु. हर्षचन्द, प्राहिं., पद्य, (पृ. ११आ-१२अ, संपूर्ण), आदि: नाही रे कोई जिनजी; अंतिः सोई परम पुनीता., पे.वि. गा.४. पे. ५१. सुमतिजिन पद, मु. हर्षचन्द, प्राहिं., पद्य, (पृ. १२अ-१२अ, संपूर्ण), आदिः निरखत बदन सुख पायो; अंतिः विन ओर देव नहि लायो., पे.वि. गा.४. पे. ५२. आदिजिन पद, मु. हर्षचन्द, प्राहिं., पद्य, (पृ. १२अ-१२आ, संपूर्ण), आदिः उगत प्रभात नाम जिनजी; अंतिः प्रभु सम्पति बढाईये., पे.वि. गा.४. पे. ५३. आदिजिन पद, प्राहिं., पद्य, (पृ. १२आ-१२आ, संपूर्ण), आदि: भज श्रीऋषभ जिणन्द; अंतिः भजनमे हिरदे ललस्याई., पे.वि. गा.४. पे. ५४. आदिजिन पद, प्राहिं., पद्य, (पृ. १२आ-१३अ, संपूर्ण), आदि: सफल घरी रे मेरी सफल; अंतिः मन विलव्या भरघरी., पे.वि. गा.४. पे. ५५. नेमिजिन पद, प्राहिं., पद्य, (पृ. १३अ-१३अ, संपूर्ण), आदिः चलो देखे नेम पिया; अंतिः दरसण हितकारे., पे.वि. गा.३. पे. ५६. औपदेशिक पद, मु. जयराम, प्राहिं., पद्य, (पृ. १३अ-१३आ, संपूर्ण), आदिः असरण सरण चरण कमल; अंतिः सीलवन्त आज के., पे.वि. गा.४. पे. ५७. जिनवाणी पद, राज., पद्य, (पृ. १३आ-१४अ, संपूर्ण), आदिः जिनन्दा थारी वाणिये; अंतिः भाखे इम किवि कन्त रे., पे.वि. गा.५. पे. ५८. आदिजिन पद, मु. भूधर, प्राहिं., पद्य, (पृ. १४अ-१४अ, संपूर्ण), आदिः आज गई मरुदेवि के; अंतिः जिनके सुमरत पाप टले., पे.वि. गा.४. पे. ५९. साधारणजिन पद, मु. द्यानत, प्राहिं., पद्य, (पृ. १४अ-१४अ, संपूर्ण), आदिः मे तो तेरी आज महिमा; अंतिः हम ___ जाचक तुम दानी., पे.वि. गा.४. पे. ६०. महावीरजिन पद, मु. फकीरचन्द, प्राहिं., पद्य, (पृ. १४अ-१४अ, संपूर्ण), आदिः मेरो मन लागी रह्यो; अंतिः चन्द फकीर गुण गाय., पे.वि. गा.४. पे. ६१. सुभाषित दोहा पचहत्तरी, सं.,मागु.,प्राहिं., पद्य, (पृ. १४अ-१७आ, संपूर्ण), आदिः ज्ञान पदार्थ पाय के; अंतिः खिन वेरी खिन मित्त., पे.वि. श्लो.७५. For Private And Personal Use Only Page #359 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org: कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ३०५ २७९३.' साठिसौ (गणित ग्रन्थ), अपूर्ण, वि. १८७२, श्रेष्ठ, पृ. ११-४ (१ से ४ ) = ७, जैदेना., प्र. वि. गा. १६४, संशोधित, पू. वि. गाथा १-६६ तक नहीं है. (३१x१३.५ १०x४३). " पंचाङ्गगणित विधि, उपा. महिमोदय, मागु पद्य वि. १७३३, आदि:-: अंति: गणितग्रन्थ समुदाय. 7 २७९६.” बासठ मार्गणा यन्त्र, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ९-२ (३ से ४) = ७, जैदेना., प्र. वि. पंक्ति - अक्षर अनियमित है।, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, पु.वि. बीच व अन्त के पत्र नहीं हैं., ( २४.५५१३.५४). ६२ मार्गणा यन्त्र, प्रा., मागु., पद्य, आदि:-; अंतिः Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २७९७. 1." मार्गणाने विषे बन्धोदय उदीरणा सत्तास्थानक, अपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ६२-४० ७ से ८,२० से ५६.५८ ) - २२, (+) जैदेना., प्र.वि. *पंक्ति-अक्षर अनियमित है। टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२५x१३x). मार्गणास्थाने बन्धोदयउदीरणासत्ता स्थानक, मागु. कोष्टक, आदि:-: अंति: (+) २७९८. नेमिदूत काव्य सह वृत्ति, संपूर्ण वि. १९५३ श्रेष्ठ, पृ. २५, जैदेना, ले. स्थल. पालि, ले. मु. धनरूपसागर, प्र. वि. आधारित श्लो. १२६, संशोधित त्रिपाठ, (२७४१३, १८४५१). नेमिदूत, श्रा. विक्रम, आधारित, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: प्राणित्राणप्रवणहृदय; अंतिः प्रीतये झाझणाख्यः. नेमिदूत टीका, आ. गुणविनयसूरि सं., गद्य वि. १६४४, आदि (१) श्रीपार्श्व प्रणिपत ( २ ) श्रीमान् लक्ष्मीवान्; अंतिः (१) शोध्यं विबुधैर्मुदा (२) येनेति आप्तजन्मा. २८०१. मार्गणाने विषे जीव, गुणस्थान, योग, उपयोग व लेश्या यन्त्र, संपूर्ण वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ९, जैदेना. प्र. वि. अक्षर अनियमित है., ( २६ १३, ३९४०). मार्गणास्थाने जीवलेश्यादि यन्त्र मागु, यंत्र, आदि में अंतिः #. २८०४.” कल्याणमन्दिर स्तोत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १७१४, श्रेष्ठ, पृ. ६-१ (१) =५, जैदेना., ले. गणि जसविमल, प्र. वि. मूलश्लो.४४., संशोधित, पू.वि. गा. ८ अपूर्ण से है., ( २६.५११, ५-१०५१-७१). कल्याणमन्दिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकर, सं. पद्य, आदि- अतिः मोक्षं प्रपद्यन्ते. " कल्याणमन्दिर स्तोत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, आदि:-; अंतिः कुमुदचंद्र नाम दीधुं. २८०९. सिंहलसिंह चौपाई व क्रोधसमता स्वाध्याय, अपूर्ण, वि. १९ वी, मध्यम, पृ. ६, पे. २, जैदेना., पू. वि. अन्त के पत्र नहीं हैं.. (२६४११, १६-१७४५८). (+) पे. १. पे. नाम. सिंहलसिंह चौपाई, पृ. १-६अ, संपूर्ण प्रियमेलक चौपाई, उपा. समयसुन्दर गणि, मागु पद्य वि. १६७२ आदि प्रणमुं सद्गुरु पाय: अंतिः पुण्य अधिक परमोद., पे.वि. गा. २३०, ढाळ - ११. पे. २. पे. नाम. क्रोधसमता स्वाध्याय, पृ. ६अ - ६आ-, अपूर्ण " क्षमाछत्रीसी, उपा. समयसुन्दर गणि मागु, पद्य, आदि आदरि जीव क्षमागुण अंति, पे.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. गा. १ से ३२ तक है. २८१२. दशवैकालिकसूत्र, पूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २८-१ (१७) - २७, जैदेना, प्र. वि. अध्याय- अध्ययन १० चूलिकार, संशोधित, (२५४११, ११४४०). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यम्भवसूरि, प्रा., पद्य, वि. पू. ४, आदिः धम्मो मङ्गलमुक्किट्ठ; अंति: (१) मुच्चइति बेमि (२) निच्चला होसु. " (+) २८१३. दशवैकालिकसूत्र, संपूर्ण वि. १६वी श्रेष्ठ, पृ. १५, जैदेना., ले. स्थल विरमपुर, ले. उपा. कनकशेखर, प्र. वि. अध्यायअध्ययन १० चूलिकार, संशोधित, ( २६ ११, १६-१८४४८). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यम्भवसूरि, प्रा., पद्य, वि. पू. ४, आदिः धम्मो मङ्गलमुक्किट्ठ; अंतिः मुच्चइ त्ति बेमि .. For Private And Personal Use Only Page #360 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य भाग - १ ३०६ २८१४. ओघनियुक्ति-टीका की अवचूरि, संपूर्ण, वि. १५३७, श्रेष्ठ, पृ. ४०+१(३१)=४१, जैदेना., ले.स्थल. मधेसणा, ले. गोपाल, प्र.वि. परिपूर्तित पत्र ३१,३१,३३।, (२६.५४११, १९४५३). ओघनियुक्ति-अवचूर्णि # , आ. ज्ञानसागरसूरि, सं., गद्य, वि. १४३९, आदिः प्रक्रान्तोयमावश्यका; अंतिः तु भवानङ्गीकृत्य. २८१६. विशेषणवती, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १०, जैदेना., ले. श्रा. डुङ्गरसी तिलोकसी पारेख, प्र.वि. प्र.पु. ग्रं. ४१९., दशा वि. विवर्ण-पानी से अक्षरों की स्याही फैल गयी है-अल्प, (२६.५४११.५, १५४६०). विशेषणवती, आ. जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण, प्रा., प+ग, आदिः उस्सेहंगुलमेगं हवइ; अंतिः कालेणाइच्चपेढंति. २८१७." षष्टिशतकसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७६२, श्रेष्ठ, पृ. १८, जैदेना., ले.स्थल. श्रीमालनगर, ले. पं. नित्यसागर (गुरु पं. रूपसागर), राज्यकाल- राजा अजितसिंह, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. मूल-गा.१६१., संशोधित, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२६४११, ५४३६). षष्टिशतक प्रकरण, श्रा. नेमिचन्द्र भाण्डागारिक, प्रा., पद्य, आदिः अरिहं देवो सुगुरू; अंतिः जिणंतु जन्तु सिवं. षष्टिशतक प्रकरण-टबार्थ', मागु., गद्य, आदिः राग अनइ द्वेषरुप; अंतिः अनन्त सुख पामउ. २८१९. नवतत्त्व प्रकरण सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७८४, मध्यम, पृ. ६, जैदेना., ले. पं. जीवविजय, पठ. मु. चतुरविजय, प्र.वि. मूल-गा.४३., संशोधित, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, दशा वि. अक्षर फीके पड गये हैं, (२५४६-१२, ४४३४). नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदिः जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंतिः अणागयद्धा अणन्तगुणा. नवतत्त्व प्रकरण-टबार्थ , मागु., गद्य, आदिः जीवतत्त्व अजीवतत्त्व; अंतिः परावर्त्त जास्यइं. २८२२." पासाकेवली, पञ्चकल्याणकपूजा विधि सङ्क्षेप-बृहद् व पुत्रपुत्रीपृच्छा, संपूर्ण, वि. १९३३, श्रेष्ठ, पृ. ८, पे. ४, जैदेना., प्र.वि. संशोधित, (२५.५४१२.५, १४४४१). पे. १. पाशाकेवली, ऋ. गर्ग, सं., पद्य, (पृ. १-७आ), आदिः यत्सत्यं त्रिषु; अंतिः कुलीनाय हितात्मने., पे.वि. श्लो.१९६. पे. २. पंचकल्याणकपूजा विधि, राज., गद्य, (पृ. ७आ), आदिः प्रथम पांच साथिया; अंतिः मिश्री लाडू चढावणा. पे. ३. पंचकल्याणक पूजाविधि, राज., गद्य, (पृ. ७आ-८आ), आदिः प्रथम जो विस्तार; अंतिः आरति करणी गावणी. पे. ४. पे. नाम. पुत्रपुत्री की पृच्छा, पृ. ८आ ज्योतिष*, सं.,मागु., पद्य, आदिः#; अंतिः#. २८२३." भक्तामर स्तोत्र सह वृत्ति, संपूर्ण, वि. १६६५, श्रेष्ठ, पृ. ३२, जैदेना., ले. आ. गुणविनयसूरि (गुरु उपा. जयसोम, खरतरगच्छ), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. मूल-श्लो.४४; टीका-ग्रं. १५७२., संशोधित, पदच्छेद सूचक लकीरें, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२६४११, १५४५५). भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुङ्गसूरि, सं., पद्य, आदिः भक्तामरप्रणतमौलिमणि; अंतिः समुपैति लक्ष्मी. भक्तामर स्तोत्र-गुणाकरीय टीका, आ. गुणाकरसूरि, सं., गद्य, वि. १४२६, आदिः पूजाज्ञानवचोपायापगमा; अंतिः मतिः० प्रायशः सन्ति. २८२४." उपदेशमाला प्रकरण, संपूर्ण, वि. १६७८, मध्यम, पृ. ३९, जैदेना., प्र.वि. गा.५४४; प्र.पु. ग्रं. ६८०, संशोधित, पदच्छेद सूचक लकीरें-प्रारंभिक पत्र, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२५.५४११, ९४३४). उपदेशमाला, गणि धर्मदास, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण जिणवरिन्दे; अंतिः वयण विणिग्गया वाणी. २८२५. उत्तराध्ययसूत्र सज्झाय-भाषा, पूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १५-१(१)=१४, जैदेना., प्र.वि. ढाळ-३६ गीत, (२५.५४११.५, ११४४३). उत्तराध्ययनसूत्र-गीत, उपा. राजशील, संबद्ध, मागु., पद्य, आदि:-; अंतिः लहइ हवइ जयजयकार. २८२७." दशवैकालिकसूत्र सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. १५४०, मध्यम, पृ. ३७, जैदेना., प्र.वि. मूल-अध्याय-अध्ययन१०चूलिकार; For Private And Personal Use Only Page #361 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ३०७ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची प्र.पु.मूल-ग्रं. ७००; अवचूरि-ग्रं. २२४३., संशोधित, पंचपाठ, पदच्छेद सूचक लकीरें-मूल पाठ, (२६x११.५, ८-११४२७ ४७). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यम्भवसूरि, प्रा., पद्य, वि. पू.४, आदिः धम्मो मङ्गलमुक्किट्ठ; अंति: मुच्चइ त्ति बेमि. दशवैकालिकसूत्र-अवचूरि, सं., गद्य, आदिः इहार्थतः श्रीमहावीर; अंतिः ब्रविमीति पूर्ववत्. २८२९.” जीवविचार सह टीका, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १५-१(१४)+१(१३)=१५, जैदेना., प्र.वि. संशोधित, पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न-प्रारंभिक पत्र, अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ, त्रिपाठ, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. गा.४३ तक है., (२५.५४१३, १२-१७४४०-५७). जीवविचार प्रकरण, आ. शान्तिसूरि, प्रा., पद्य, आदिः भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंति: जीवविचार प्रकरण-टीका, पाठक रत्नाकर, सं., गद्य, वि. १६१०, आदिः सज्ज्ञानभास्करं; अंतिः२८३०. बासठमार्गणा आगति यन्त्र, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, जैदेना., प्र.वि. *पंक्ति-अक्षर अनियमित है।, पू.वि. अन्त के पत्र नहीं हैं., (२५४१२.५४). ६२ मार्गणा यन्त्र, प्रा.,मागु., पद्य, आदि:-; अंति:२८३१. बासठमार्गणा उदय यन्त्र, संपूर्ण, वि. १८९०, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदेना., ले.स्थल. नागोर, ले. मु. ताराचन्द्र (गुरु पं. साहबचन्द्र, तपगच्छ), पठ. फूलाबाई, प्र.वि. *पंक्ति-अक्षर अनियमित है।, (२५.५४१३x). ६२ मार्गणाउदय यन्त्र, मागु., कोष्टक, आदिः#; अंतिः#. २८३२. कर्मग्रन्थ २ सुचियन्त्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, जैदेना.,प्र.वि. *पंक्ति-अक्षर अनियमित है।, टिप्पण युक्त विशेष __ पाठ, (२६४१३x). कर्मस्तव नव्य कर्मग्रन्थ-यन्त्र, मु. सुमतिवर्द्धन, मागु., यंत्र, आदि:-; अंति:२८३५. जीवविचार सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, जीर्ण, पृ. ५, जैदेना., ले.स्थल. तलोलि, ले. मु. मयाचन्द, प्र.वि. मूल गा.५१., टिप्पण युक्त विशेष पाठ, दशा वि. किनारी अधिक उपयोग के कारण खंडित है, विवर्ण-तैलीय पदार्थ सेपानी से अक्षरों की स्याही फैल गयी है, (२६४११, ५-६४३६). जीवविचार प्रकरण, आ. शान्तिसूरि, प्रा., पद्य, आदिः भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंतिः रुद्दाओ सुयसमुद्दाओ. जीवविचार प्रकरण-टबार्थ', मागु., गद्य, आदिः त्रिभुवनउ प्रकाशक; अंतिः सिद्धान्तनु लेइने. २८३६." गुरुगुणषट्त्रिंशिका कुलक सह स्वोपज्ञ दीपिका टीका, अपूर्ण, वि. १६४२, श्रेष्ठ, पृ. १४-३(१ से ३)=११, जैदेना., ले.स्थल. मेडतानगर, ले. मु. विनय, प्र.वि. मूल-गा.४०., संशोधित, त्रिपाठ, पू.वि. गा.४ अपूर्ण से है., दशा वि. विवर्ण-पानी से अक्षरों की स्याही फैल गयी है-अल्प, (२५.५४११, २२-२३४६८). गुरुगुणषट्त्रिंशत्षट्त्रिंशिका कुलक, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., पद्य, आदि:-; अंति: पावन्तु कल्लाणं. गुरुगुणषट्त्रिंशत्षट्त्रिंशिका कुलक-स्वोपज्ञ दीपिका टीका, आ. रत्नशेखरसूरि, सं., गद्य, आदि:-; अंतिः स्म विवृतिमिमाम्. २८३७.” दानशीलतपभावना चौढालीयो, संपूर्ण, वि. १८४५, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदेना., प्र.वि. गा.१०१, ढाळ-४, संशोधित, (२५४११, १२४३५). दानशीलतपभावना संवाद, उपा. समयसुन्दर गणि, मागु., पद्य, वि. १६६२, आदिः प्रथम जिनेसर पाय; अंतिः समृद्धि सुप्रसादो रे. २८३८. जम्बू चरित्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १०-१(१)=९, जैदेना., (२६४११.५, १४४४८). जम्बूअध्ययन प्रकीर्णक-कथा, मागु., गद्य, आदि:-; अंतिः (१)अनन्त सुख लाधा (२)अपछिमो नन्दण केवलीणं. २८३९." अध्यात्मकल्पद्रुम, पूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ११, जैदेना., प्र.वि. संशोधित, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. मात्र अंतिम दो गाथाएँ नहीं लिखी है., (२५४११.५, १५४४६). For Private And Personal Use Only Page #362 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य भाग - १ ३०८ अध्यात्मकल्पद्रुम, आ. मुनिसुन्दरसूरि, सं., पद्य, आदिः जयश्रीरान्तरारीणां०; अंतिः२८४०." भक्तामर स्तोत्र, कल्याणमन्दिर स्तोत्र व वीतराग स्तोत्र, अपूर्ण, वि. १६वी, जीर्ण, पृ. ११, पे. ३, जैदेना., प्र.वि. संशोधित, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., (२६४११, ११४४७). पे. १. पे. नाम. युगादिजिन स्तवन, पृ. १आ-४अ, संपूर्ण भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुङ्गसूरि, सं., पद्य, आदिः भक्तामरप्रणतमौलिमणि; अंतिः समुपैति लक्ष्मी., पे.वि. श्लो.४४.४१ के बाद श्लोक संख्या गलत है.. पे. २. कल्याणमन्दिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकर, सं., पद्य, (पृ. ४अ-६आ, संपूर्ण), आदिः कल्याणमन्दिरमुदारमवद; अंति: मोक्षं प्रपद्यन्ते., पे.वि. श्लो.४४ . पे. ३. वीतराग स्तोत्र, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, (पृ. ६आ-११आ-, अपूर्ण), आदिः यः परात्मा परं; अंतिः फलमीप्सितम्., पे.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्रकाश-१५ की श्लो.३ अपूर्ण तक है. २८४१.” समवायाङ्गसूत्र की वृत्ति, अपूर्ण, वि. १६५१, श्रेष्ठ, पृ. ६७-३१(३६ से ६६) ३६, जैदेना., ले. मु. दानराज (गुरु गणि पद्महेम, खरतरगच्छ), गच्छा. आ. जिनसिंहसूरि (गुरु आ. जिनचन्द्रसूरि, खरतरगच्छ), प्र.ले.पु. विस्तृत,प्र.वि. प्र.पु.टीका-ग्रं. ३८००. प्र.लेखनसंवत्-संवतिनेत्रनगेंद्ररसार्क., संशोधित, (२६x११, १७४५४). समवायाङ्गसूत्र-वृत्ति, आ. अभयदेवसूरि , सं., गद्य, वि. ११२०, आदिः श्रीवर्द्धमानमानम्य; अंतिः पादन्यूना च षट्शती. २८४३. सप्तस्मरण सह टबार्थ- खरतरगच्छीय, पूर्ण, वि. १६वी, मध्यम, पृ. १३, जैदेना., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मात्र सप्तम स्मरण की गाथा ५वीं नहीं है., दशा वि. विवर्ण-पानी से अक्षरों की स्याही फैल गयी है, फफूंदग्रस्त, (२६४११, ७X४२-५६). सप्तस्मरण-खरतरगच्छीय, मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा., पद्य, आदिः अजिअं जिअ सव्वभयं; अंति: सप्तस्मरण-खरतरगच्छीय-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः नन्दीषण नामा ऋषि; अंति:२८४४.” आदि, शान्ति, नेमि व पार्श्वजिन चरित्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १६वी, मध्यम, पृ. ७, पे. ४, जैदेना., प्र.वि. सर्वमूलग्रं. ११०. सर्वटबार्थग्रं. १९५., टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२६४११, ७४४२-५६). पे. १. पे. नाम. नाभेय चरित्र सह टबार्थ, पृ. १-२आ नाभेय स्तोत्र, आ. जिनवल्लभसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिय जिणमुसभमुभयं; अंतिः देहि मयं नेहि परमपयं. नाभेय स्तोत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः नमस्करी जिन ऋषभ; अंति: नाभेयचरित्रनउ अर्थ., पे.वि. मूल-गा.२५. पे. २. पे. नाम. शान्तिनाथ चरित्र सह टबार्थ, पृ. २आ-५अ शान्तिजिन चरित्र, आ. जिनवल्लभसूरि, प्रा., पद्य, आदिः अप्पडिहयधम्मचक्केण; अंतिः जिणवल्लह पयं देसु. शान्तिजिन चरित्र-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः अप्रतिहत असखलित धर्म; अंतिः विषे जयवन्ता वा., पे.वि. मूल गा.३३. पे. ३. पे. नाम. नेमिनाथ चरित्र सह टबार्थ, पृ. ४अ-५अ नेमिजिन चरित्र, आ. जिनवल्लभसूरि, प्रा., पद्य, आदिः मयनाहसरिस विलसिर; अंतिः पत्तह कुणसुसिवं. नेमिजिन चरित्र-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः कसतूरी सरिखी प्रसरती; अंति: द्यउ मोक्ष्य मुनइ., पे.वि. मूल-गा.१५. पे. ४. पे. नाम. पार्श्वनाथ चरित्र सह टबार्थ, पृ. ६अ-७अ पार्श्वजिन स्तोत्र, आ. जिनवल्लभसूरि, प्रा., पद्य, आदि: गुणमणिनिहिणो; अंतिः सिवसुक्खपत्त जय. पार्श्वजिन चरित्र-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः गुणरूप रतननउ निधान; अंतिः पहुतउ जयवन्त हुवउ., पे.वि. मूल गा.१५. २८४५.” प्रतिक्रमणसूत्र, स्तुति सङ्ग्रह व सवैया, संपूर्ण, वि. १८३७, जीर्ण, पृ. १६, पे. १९, जैदेना., ले. पं. हरख, पठ. मु. ओपा (गुरु पं. हरख),प्र.वि. अक्षर-दुर्वाच्य, (२५.५४११, १२४२५). For Private And Personal Use Only Page #363 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ३०९ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची पे. १. प्रतिक्रमणसूत्र सङ्ग्रह-श्वे.मू.पू.*, संबद्ध, प्रा.,सं.,मागु., प+ग, (पृ. ०१आ-१०अ), आदिः नमो अरिहन्ताणं; अंतिः जैन जयति शासनम्. पे. २. कल्लाणकन्द स्तुति, प्रा., पद्य, (पृ. १०अ-१०आ), आदि: कल्लाणकन्दं पढमं; अंतिः अम्ह सया पसत्था., पे.वि. गा.४. पे. ३. बीजतिथि स्तुति, मु. लब्धिविजय, मागु., पद्य, (पृ. १०आ-११अ), आदिः दिन सकल मनोहर; अंतिः पुरो मनोरथ माय., पे.वि. गा.४. पे. ४. ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, सं., पद्य, (पृ. ११अ-११आ), आदिः श्रीनेमिः पञ्चरूप; अंति: कुशलं धीमतां सावधाना., पे.वि. श्लो.४. पे. ५. संसारदावानल स्तुति, आ. हरिभद्रसूरि, सं.,प्रा., पद्य, (पृ. ११आ-१२अ), आदिः संसारदावानलदाहनीरं; अंतिः देवि सारम्., पे.वि. श्लो.४. पे. ६. मौनएकादशीपर्व स्तुति, मु. गुणहर्ष-शिष्य, मागु., पद्य, (पृ. १२अ-१२आ), आदिः एकादशी अति रुअडी; अंतिः सङ्घ तणा निशदिश., पे.वि. गा.४. पे.७. पाक्षिक स्तुति, आ. बालचन्द्रसूरि, सं., पद्य, (पृ. १२आ-१३अ), आदिः स्नातस्याप्रतिमस्य; अंतिः कार्येषु सिद्धिम्., पे.वि. श्लो.४. पे. ८. आदिजिन स्तुति-मरुदेवामाता केवलज्ञान, मु. मोहनविजय, मागु., पद्य, (पृ. १३अ-१३आ), आदिः गजकुंभे बेसी आवे; अंतिः मोहन जयजयकार., पे.वि. गा.४. पे. ९. गौतमस्वामी स्तुति, मागु., पद्य, (पृ. १३आ-१४अ), आदिः सकललब्धिपदं विपदापहं; अंतिः फलं श्रुतदेवता., पे.वि. गा.४. पे. १०. पर्युषणपर्व स्तुति, मु. बुधविजय, मागु., पद्य, (पृ. १४अ-१४आ), आदिः वीर जिणेसर अति; अंतिः बुधविजय जयकारीजी., पे.वि. गा.४. पे. ११. आदिजिन स्तुति, कवि ऋषभदास सङ्घवी, मागु., पद्य, (पृ. १४आ-१५अ), आदिः प्रह उठी वन्दु; अंतिः रुषभदास गुण गाइ., पे.वि. गा.४. पे. १२. नेमिजिन स्तुति, कवि ऋषभदास सङ्घवी, मागु., पद्य, (पृ. १५अ-१५आ), आदिः श्रावण सुदि दिन; अंतिः सफल करो अवतार तो., पे.वि. गा.४. पे. १३. पार्श्वजिन स्तुति-भीलडीपुर, मु. हेमसौभाग्य, मागु., पद्य, (पृ. १५आ-१६अ), आदि: भीलडी मुख मण्डण सोहे; ___ अंतिः प्रीत सुखदातार., पे.वि. गा.१ . पे. १४. महावीरजिन स्तुति, सं., पद्य, (पृ. १६अ-१६अ), आदिः वीरं देवं नित्यं; अंतिः देवी दद्यात्सौख्यम्., पे.वि. श्लो.१. पे. १५. महावीरजिन स्तुति, मागु., पद्य, (पृ. १६अ-१६अ), आदि: जय जय मानव सेवीत; अंति: माहागम मञ्जिर ____ गुणराज., पे.वि. गा.१. पे. १६. आदिजिन स्तुति, मु. सौभाग्य, मागु., पद्य, (पृ. १६अ-१६अ), आदिः पुण्डरगिरिस्वामी; अंतिः सौभाग्यनो दातार., __ पे.वि. गा.१. पे. १७. शत्रुजयतीर्थ स्तुति, मु. सौभाग्यविजय, मागु., पद्य, (पृ. १६अ-१६आ), आदि: पुण्डरीक मण्डण पाय; अंतिः द्यो सुखकन्दाजी., पे.वि. गा.१. पे. १८. दीपावलीपर्व स्तुति, मु. भालतिलक, मागु., पद्य, (पृ. १६आ-१६आ), आदिः जय जय कर मङ्गल दीपक; अंतिः भालतिलक वर हीर. पे. १९. सवैया सङ्ग्रह', मागु., पद्य, (पृ. १६आ-१६आ), आदि:#; अंति: #. For Private And Personal Use Only Page #364 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य भाग - १ ३१० २८४८. कर्मग्रन्थ-२ का यन्त्र, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, जैदेना., प्र.वि. *पंक्ति-अक्षर अनियमित है।, पू.वि. अन्त के पत्र नहीं हैं., (२७४१२.५४). कर्मस्तव नव्य कर्मग्रन्थ-यन्त्र, मागु., गद्य, आदि:-; अंति:२८४९." सारस्वती प्रक्रिया सह चन्द्रकीर्ति टीका, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १४, जैदेना., प्र.वि. संशोधित, त्रिपाठ, पू.वि. प्रारंभ के पत्र हैं., (२५.५४११, १४४४५-५३). सारस्वत व्याकरण, आ. अनुभूतिस्वरूप, सं., गद्य, आदिः प्रणम्य परमात्मानं; अंति: सारस्वत व्याकरण-दीपिका टीका, आ. चन्द्रकीर्तिसूरि, सं., गद्य, वि. १६६४, आदिः नमोस्तु सर्वकल्याण; अंति:२८५१. चौवीसठाणा यन्त्र, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ११, जैदेना., प्र.वि. *पंक्ति-अक्षर अनियमित है।, (२५.५४१२.५४). २४ स्थानक यन्त्र, प्रा.,मागु., कोष्टक, आदिः #; अंतिः#. २८५४. नवतत्त्व प्रकरण सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ११, जैदेना., प्र.वि. मूल-गा.५५. प्रथम पत्र खण्डित है।, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, दशा वि. विवर्ण-पानी से अक्षरों की स्याही फैल गयी है-टूटा भाग नहीं है-बीच का एक पत्र, (२६.५४११, ३-११४३३-४७). नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदिः जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंतिः बोहिय इक्कणिक्काय. नवतत्त्व प्रकरण-टबार्थ, पं. नित्यविजय, मागु., गद्य, आदिः जयति श्रीमहावीरः; अंतिः एकसिद्ध अनेकसिद्ध. २८५७." नारचन्द्र प्रकरण, अपूर्ण, वि. १७१०, मध्यम, पृ. ८-२(१,६)=६, जैदेना., ले.स्थल. सोझित, ले. उपा. भुवनरत्न, प्र.वि. श्लो.२६२, संशोधित, (२५४११, १५४४५). ज्योतिषसार, आ. नरचन्द्रसूरि, सं., पद्य, आदि:-; अंति: वासराः सम्भवन्ति. २८६३. समवायाङ्गसूत्र की वृत्ति, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ८३, जैदेना., ले.स्थल. सारंगपुर, ले. छीतर विप्र, प्र.वि. प्र.पु. ग्रं. ३७७५., प्र.ले.श्लो. (५०६) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा , (२६४११, १५४५४). समवायाङ्गसूत्र-वृत्ति, आ. अभयदेवसूरि , सं., गद्य, वि. ११२०, आदिः श्रीवर्द्धमानमानम्य; अंतिः पादन्यूना च षट्शती. २८६४. श्रीपाल रास सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८७४, श्रेष्ठ, पृ. ७९, जैदेना., ले.स्थल. वीजापुर, ले. मु. सवाईसागर (गुरु पं. भीमसागर), प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र.वि. मूल-गा.१८२५,खण्ड-४. उपयुक्त स्थलों पर ही टबार्थ दिया गया है., टिप्पण युक्त विशेष पाठ, प्र.ले.श्लो. (१४१) यादशं पुस्तकं कृत्वा; (२५९) जलाद्रक्षे तिलाद्र!; (५०७) जब लग मेर अडिग हे; (९४) पोथी किण थोथी किजे नही; (४५७) पोथी प्यारी प्राणथी; (५३७) विनेन विद्या ग्राया; (४८२) भग्न पुष्टी कटी ग्रीवा, (२८x१३, ४-१६x४१). श्रीपाल रास, उपा. विनयविजय , उपा. यशोविजयजी गणि, मागु., पद्य, वि. १७३८, आदिः कल्पवेल कवियण तणी; अंतिः लहसे ज्ञान विशालाजी. श्रीपाल रास-टबार्थ, पं. गणेशरुचि, मागु., गद्य, आदिः- ; अंति:२८६५." श्रीपाल रास सह टबार्थ-खण्ड ४, प्रतिपूर्ण, वि. १९०४, श्रेष्ठ, पृ. ४५, जैदेना., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, पू.वि. तीसरे खंड की अंतिम ढाल से प्रारंभ., (२६.५४१३, ५-१२४३९-४२). श्रीपाल रास, उपा. विनयविजय , उपा. यशोविजयजी गणि, मागु., पद्य, वि. १७३८, आदि:- अंतिः लहसे ज्ञान विशालाजी. श्रीपाल रास-टबार्थ , मागु., गद्य, आदि:-; अंतिः उत्कण्ठा सम्पूर्ण थई. २८६७." उत्तराध्ययनसूत्र सह टबार्थ+कथा - अध्ययन-१ से १९, प्रतिपूर्ण, वि. १८३१, श्रेष्ठ, पृ. १७४, जैदेना., ले.स्थल. आग्रा, ले. पं. दीपसागर (गुरु आ. रामचन्द्र), राज्यकाल- राजा अवरङ्गजी, प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, द्विपाठ-कुछ पत्र, प्र.ले.श्लो. (५०६) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा ; (५४८) यावत् गङ्गातटे भाति, (२५.५४११, ४४३७). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध , प्रा., प+ग, आदिः सञ्जोगाविप्पमुक्कस्स; अंति: For Private And Personal Use Only Page #365 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ३११ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची उत्तराध्ययनसूत्र-टबार्थ+कथा* , मागु., गद्य, आदिः उत्तराध्ययनो स्यु; अंति:२८६८." प्रश्नोत्तररत्नाकर, अपूर्ण, वि. १८१७, श्रेष्ठ, पृ. १०२-५०(१ से २९,३५,७७ से ९६)=५२, जैदेना., प्र.वि. ४ उल्लास. अन्तिम अध्याय पुष्पिकान्तर्गत कृतिकार रचित अन्य ग्रन्थों का भी उल्लेख है., संशोधित, (२८x१२, १५४४७). प्रश्नोत्तररत्नाकर, मु. शुभविजय, सं., गद्य, आदिः प्रणिपत्य परं ज्योति; अंतिः वाच्यमानो वचस्विभिः. २८६९. कुमारपाल रास, संपूर्ण, वि. १८२६, श्रेष्ठ, पृ. ९६, जैदेना., ले.स्थल. सुरत, ले. पं. कुसलविजय, प्र.वि. ढाल-१२९, संशोधित, (२६४११.५, १५४४७). कुमारपाल रास, मु. जिनहर्ष, मागु., पद्य, वि. १७४२, आदिः श्रीसरसति भगवति नमुं; अंतिः ओगणत्रीस ढाळ गावो हो. २८७०. समयसारनाटक की भाषा सह अर्थ, पूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १४२, जैदेना., पू.वि. अन्त के पत्र नहीं हैं. मूलगा.७०९ तक है व गाथार्थ-६८६ तक है., (२४४१०.५, १६x४२). समयसार नाटक-पद्यानुवाद, श्रा. बनारसीदास, प्राहिं., पद्य, वि. १६९३, (पूर्ण), आदिः करम भरम जग तिमिर; अंति: समयसारनाटक-पद्यानुवाद का टबार्थ, पण्डित रूपचन्द, प्राहिं., गद्य, (अपूर्ण), आदिः श्रीपार्श्वनाथस्वामी; अंति:२८७२." आर्यवसुधारामहाविद्या, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना., ले. मु. सुमतिसागर, प्र.वि. संशोधित, (२४.५४११, १४४३४). वसुधारा, सं., गद्य, आदिः संसारद्वयदैन्यस्य; अंतिः नामधारिणीमहाविद्या. २८७५. वैराग्यशतक सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ११, जैदेना., प्र.वि. मूल-गा.१०३., संशोधित, पदच्छेद सूचक लकीरें, (२५.५४११, ६४३१). वैराग्यशतक, प्रा., पद्य, आदि: संसारंमि असारे नत्थि; अंतिः लहइ जिउ सासयं ठाणं. वैराग्यशतक-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः संसार असारमाहि नथी; अंतिः जीव शाश्वतुं ठाम. २८७६." श्रीपाल रास- खण्ड १ से ३, प्रतिपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३३, जैदेना., ले.स्थल. पाली, प्र.वि. संशोधित, (२४४११, १५४३७). श्रीपाल रास, उपा. विनयविजय , उपा. यशोविजयजी गणि, मागु., पद्य, वि. १७३८, आदिः कल्पवेल कवियण तणी; अंति:२८७७." भावशतक सह स्वोपज्ञ अवचूरि, पूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १९-१(१)=१८, जैदेना., प्र.वि. मूल-गा.१०३., संशोधित, त्रिपाठ, पू.वि. गा.२ तक नहीं है., (२६४११.५, ५४३७). भावशतक, मु. हेमविजय, प्रा., पद्य, वि. १६३४, आदि:-; अंतिः निजबुद्धि वृद्धौ. भावशतक-स्वोपज्ञ अवचूरि, मु. हेमविजय, सं., गद्य, वि. १६३४, आदिः-; अंतिः भूपाल० इदं सुगमम्. २८७९. भगवतीसूत्र, त्रुटक, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २७४-२६७(१ से २५४,२५६ से २६६,२७१ से २७२)=७, जैदेना., पू.वि. बीच बीच के पत्र हैं., (२६४११, १७x५५). भगवतीसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि:-; अंति:२८८०. चम्पकमाला, शीलतारा व अनुकूलविधातरि धीरकथा, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १०, पे. ३, जैदेना., (२६४११, १७४५८). पे. १. चम्पकमाला कथा , प्रा., पद्य, (पृ. १अ-८अ), आदिः सम्मत्ते थिरचित्ता; अंतिः खेविण चम्पयमालठिआ., पे.वि. गा.३४४. पे. २. शीलतारा कथा, प्रा., पद्य, (पृ. ८अ-१०अ), आदिः वसणदसा पत्ता विहु; अंतिः तारासहिओ गओ सुगई., पे.वि. गा.११६. पे. ३. धीर कथा, सं., गद्य, (पृ. १०अ-१०आ), आदिः प्रियमप्यप्रिया; अंतिः स्तत्र भोगभागी जातः. For Private And Personal Use Only Page #366 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य भाग - १ ३१२ २८८१. विपाकसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ७०, जैदेना., प्र.वि. प्र.पु. सर्वग्रं. ४०००., संशोधित, (२६४१२, ७X४६). विपाकसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदिः तेणं कालेणं तेणं; अंतिः सेसं जहा आयारस्स. विपाकसूत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः तेणइं कालई चउथा; अंतिः सूत्रे कह्यो तिम. २८८२. मृगावती रास, संपूर्ण, वि. १७७७, श्रेष्ठ, पृ. २९, जैदेना., ले.स्थल. स्थंभनतीर्थ, ले. मु. रघुनाथ, प्र.वि. खण्ड-३, (२६४११.५, १५४३७). मृगावती चौपाई, उपा. समयसुन्दर गणि, मागु., पद्य, वि. १६६८, आदिः समरु सरसति सामिणी; अंतिः वृद्धि सुजगीसा २८८४. कर्मग्रन्थ-४, अपूर्ण, वि. १८२७, श्रेष्ठ, पृ. २१-१२(१ से १२)=९, जैदेना., ले. मु. गौतमविजय (गुरु पं. जीतविजय), पठ. श्राविका रूपबाई, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. गा.९०, पृ.वि. चतुर्थ कर्मग्रंथ गा.९ अपूर्ण से है., (२५.५४११.५, ९४२७). षडशीति नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, (पूर्ण), आदि:-; अंतिः देविन्दसूरीहिं. २८८५.” नवपद पूजा व शान्तिजिन आरती, संपूर्ण, वि. १८८७, श्रेष्ठ, पृ. ११, पे. २, जैदेना., ले.स्थल. ध्राणकपुर, ले. मु. सुखसागर, प्र.वि. संशोधित, टिप्पण युक्त विशेष पाठ-कुछ पत्र, (२६४१२, १२४२५). पे. १. नवपद पूजा, उपा. यशोविजयजी गणि, प्रा.,सं.,मागु., पद्य, (पृ. १-१०आ), आदि: नमोनन्तसन्त प्रमोद; अंतिः यजामहे स्वाहा., पे.वि. खण्ड-४. पे. २. शान्तिजिन आरती, प्राहिं., पद्य, (पृ. ११अ), आदिः शान्ति तुमारी तोरा; अंतिः नरनारी अमर पद पावे., पे.वि. गा.७. २८८६. तृतीय कर्मग्रन्थ सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १२, जैदेना., प्र.वि. मूल-गा.२५., (२६.५४१२, २x२४). बन्धस्वामित्व नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, आदिः बन्धविहाणविमुक्कं; अंति: नेयं कम्मत्थयं सोउं. बन्धस्वामित्व नव्य कर्मग्रन्थ-टबार्थ , मागु., गद्य, आदिः बन्ध कर्मरो बन्ध; अंतिः भणीने पछे ए भणज्यो. २८८७. द्वितीय कर्मग्रन्थ सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १५, जैदेना., ले.स्थल. राधणपुर, प्र.वि. मूल-गा.३४., (२६.५४१२, २४२८). कर्मस्तव नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसुरि, प्रा., पद्य, आदिः तह थुणिमो वीरजिणं; अंतिः वन्दियं नमह तं वीरं. कर्मस्तव नव्य कर्मग्रन्थ-टबार्थ, मागु.. गद्य, आदिः तह तिम थवु छउं मन; अंतिः वीर भणी वान्दु छु. २८८९. बन्धसामित्व सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, जैदेना., प्र.वि. मूल-गा.२५., (२६४११.५, ३४२५). बन्धस्वामित्व नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, आदिः बन्धविहाणविमुक्कं; अंतिः नेयं कम्मत्थयं सोउं. बन्धस्वामित्व नव्य कर्मग्रन्थ-टबार्थ , मागु., गद्य, आदिः कर्म बन्धना प्रकारथी; अंतिः कर्मस्तवथी साम्भलीनइ. २८९०. नवपद पूजा व खामणा सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८७४, श्रेष्ठ, पृ. १२, पे. २, जैदेना., ले.स्थल. जालोर, ले. मु. जीतसागर (गुरु गणि रविन्द्रसागर), प्र.ले.पु. मध्यम, (२६४११.५, १२४३०). पे. १. नवपद पूजा, मु. उत्तमविजय, मागु., पद्य, वि. १८३०, (पृ. १-१२अ), आदिः श्रीगोडी पासजी नीति; अंतिः उत्तमविजय जगीस रे., पे.वि. ढाळ-९. पे. २. खामणा सज्झाय, समरो, मागु., पद्य, (पृ. १२अ), आदिः अरिहन्तजीने खामणाजी; अंतिः कहेजी आवागमण निवार., पे.वि. गा.६. २८९१. स्नात्रपूजा विधि, संपूर्ण, वि. १८८९, श्रेष्ठ, पृ. ७, जैदेना., ले.स्थल. विजोवा, ले. मु. सुखसागर (गुरु मु. जीतसागर), प्र.ले.पु. मध्यम, (२५४११, ११४३१). स्नात्र पूजा, मु. नगविजय, मागु., पद्य, आदिः सद्ध्यानविज्ञानघन; अंतिः फले तसु वञ्छित सही. For Private And Personal Use Only Page #367 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ३१३ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २८९२. निवाणुप्रकारी पूजा, संपूर्ण, वि. १८९४, श्रेष्ठ, पृ. ८, जैदेना., ले. मु. कस्तूरविजय, प्र.वि. ढाळ-११, ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित, (२६.५४११.५, १२४२६). ९९ प्रकारी पूजा, पं. वीरविजय, मागु., पद्य, वि. १८८४, आदिः श्रीशद्धेश्वर पासजी; अंतिः आतम आपद आप ठरायो २८९४. अभिधानचिन्तामणि नाममाला, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ४८-४०(१ से ३९,४५)=८, जैदेना., प्र.वि. ६ कांड, पू.वि. अन्त के पत्र हैं. प्रारंभ से कांड-३ श्लो.४९३ अपूर्ण तक नहीं है., (२५.५४१०.५, १२-१४४३४). अभिधानचिन्तामणि नाममाला, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, आदि:-; अंति: रोषोक्तावु नतौ नमः. २८९५. चम्पक श्रेष्ठी चौपाई, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १४, जैदेना., पू.वि. अन्त के पत्र नहीं हैं. खंड-२ ढाल-८ की गा.४ तक है., (२६४११, १७४४३). चम्पक श्रेष्ठी चौपाई, उपा. समयसुन्दर गणि, मागु., पद्य, वि. १६९५, आदिः जालोर मांहि जाणीयइ; अंति:२९००." भक्तामर स्तोत्र सह मन्त्र, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ६-१(२)+१(३)=६, जैदेना., प्र.वि. संबद्ध-अध्याय-४८ मन्त्र., पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. गा.१३ तक लिखा है., दशा वि. विवर्ण-पानी से अक्षरों की स्याही फैल गयी है-अल्प, (२४.५४११, ७४२३). भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुङ्गसूरि, सं., पद्य, आदिः भक्तामरप्रणतमौलिमणि; अंति: भक्तामर स्तोत्र-मन्त्र, संबद्ध, सं., गद्य, आदिः ॐ ह्रीं अहँ णमो; अंति:२९०४." प्रतिक्रमणसूत्र सङ्ग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदेना., (२४.५४११, १०४३३). प्रतिक्रमणसूत्र सङ्ग्रह-श्वे.मू.पू.*, संबद्ध, प्रा.,सं.,मागु., प+ग, आदिः नमो अरिहन्ताणं; अंतिः अप्पाणं वोसिरामि. २९०५.” आदिश्वर स्तव, पार्श्वजिन अष्टक व श्लोक, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, पे. ३, जैदेना., प्र.वि. संशोधित, पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२४४११, ९४३४). पे. १. पे. नाम. भक्तामर स्तोत्र चतुर्थपादसमस्यारूप आदिजिन स्तव सह टिप्पण, पृ. १-६अ आदिजिन स्तव- भक्तामरचतुर्थपादसमस्यारूप, उपा. समयसुन्दर गणि, सं., पद्य, आदिः नमेन्द्रचन्द्रकृत; अंतिः तीर्थपतिहित्वा. आदिजिन स्तव- भक्तामरचतुर्थपादसमस्यारूप-टिप्पण, सं., गद्य, आदिः-; अंतिः-, पे.वि. मूल-श्लो.४५. पे. २. पे. नाम. पार्श्वनाथाष्टक, पृ. ६अ-६आ पार्श्वजिन लघुस्तवन-श्रृङ्गाटकबन्धमय, उपा. समयसुन्दर गणि, सं., पद्य, आदिः कमनकन्दनिकन्दनकर्मदं; अंति: मस्तावीत् सुविशेष्य., पे.वि. श्लो.१०. पे. ३. औपदेशिक श्लोक सङ्ग्रह', सं.,प्रा., पद्य, (पृ. ६आ), आदिः दानं दयादम; अंतिः गतिं नैव गच्छन्ति., पे.वि. श्लो.१. २९०६.” गौतमपृच्छा चौपाई, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ५, जैदेना., प्र.वि. गा.१२१, दशा वि. जीवातकृत छिद्र युक्त, फफूंदग्रस्त-अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं-अल्प, (२४४११, १५-१६४३२). गौतमपृच्छा चौपाई, मु. लावण्यसमय, मागु., पद्य, वि. १५४५, आदिः सकल मनोरथ पूरवइ; अंतिः जे जिनवचने वसिउ. २९०९. बोल सङ्ग्रह, पूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३९, जैदेना., पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है., (२३.५४१२, १३४३८-४१). बोल सङ्ग्रह, मु. सुमतिसागर, मागु., गद्य, वि. १७७२, आदिः अनाहारी छै ते माटे; अंतिः शास्त्र ग्यायकगुणी. २९१०." सङ्ग्रहणीसूत्र, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ७, जैदेना., प्र.वि. अक्षर-दुर्वाच्य, पू.वि. अन्त के पत्र नहीं हैं. गा.२६८ तक है., दशा वि. विवर्ण-पानी से अक्षरों की स्याही फैल गयी है-अधिक, जीवातकृत छिद्र युक्त-अल्प, (२६४११, १५४५५-५६). For Private And Personal Use Only Page #368 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य भाग - १ ३१४ बृहत्सङ्ग्रहणी, आ. चन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदिः नमिउं अरिहन्ताइं; अंति:२९११." जम्बूस्वामी चरित्र कथा सङ्ग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १३-१(१)=१२, जैदेना., पू.वि. बीच के पत्र हैं., दशा वि. चिपके पत्र अलग करते वक्त स्याही उखडी हुई-अधिक, विवर्ण-पानी से अक्षरों की स्याही फैल गयी है, (२५४११, १६४३२-३६). जम्बूस्वामी चरित्र कथा सङ्ग्रह, मागु., गद्य, आदि:-; अंति:२९१४." नवपद पूजा, अपूर्ण, वि. १८९६, मध्यम, पृ. ७-१(१)=६, जैदेना., ले.स्थल. मेडता, ले. मु. अखयचन्द्र(बृहत् नागोरी लूङ्का), पठ. मु. श्रीचन्दजी, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, पू.वि. गा.९ तक नहीं है., (२६४१२.५, १२४४१). नवपद पूजा, उपा. यशोविजयजी गणि, प्रा.,सं.,मागु., पद्य, आदि:-; अंतिः यजामहे स्वाहा. २९१५. नवतत्त्व सह टबार्थ व सुभाषित श्लोक, अपूर्ण, वि. १८०८, मध्यम, पृ. ९-२(७ से ८)-७, पे. २, जैदेना.,ले. मु. अमरचन्द (गुरु मु. रायचन्द),प्र.वि. संशोधित, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२६४१०.५, ४४२७). पे. १. पे. नाम. नवतत्व प्रकरण सह टबार्थ, पृ. १-९आ, अपूर्ण नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदिः जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंतिः अणन्तभागो य सिद्धिगओ. नवतत्त्व प्रकरण-टबार्थ , मागु., गद्य, आदि: जीवतत्त्व अजीवतत्त्व; अंतिः परावर्त्त जास्यइं., पे.वि. मूल-गा.४८. बीच के पत्र नहीं हैं. पे. २. सुभाषित सङ्ग्रह', सं., पद्य, (पृ. ९आ, संपूर्ण), आदिः नागो भाति मदेन; अंतिः लोकत्रयं धार्मिकैः., पे.वि. श्लो.१. २९१६." गौतमस्वामी रास, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना., ले. मु. प्रमोदविजय (गुरु मु. गम्भीरविजय), प्र.वि. गा.६७, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२५४११.५, १२४३६). गौतमस्वामी रास, आ. विजयभद्रसूरि, मागु., पद्य, आदिः वीर जिणेसर चरण कमल; अंतिः सासय शिव सुख सम्पजे. २९१७. गौतमस्वामी रास, संपूर्ण, वि. १८८०, श्रेष्ठ, पृ. ८, जैदेना., ले.स्थल. पालि, ले. पं. विनयचन्द्र,प्र.वि. गा.४८, (२४.५४११.५, ९४२५). गौतमस्वामी रास, आ. विजयभद्रसूरि, मागु., पद्य, आदिः वीर जिणेसर चरण कमल; अंतिः इम भणे ए. २९१८. ज्ञाताधर्मकथाङ्गसूत्र, त्रुटक, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १२१-९३(१ से ५२,५४ से ६४,६६ से ६८,७० से ७३,७८ से ८२,१०३ से १२०)=२८, जैदेना.,प्र.वि. संशोधित, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., (२६४१०.५, १३५४२४५). ज्ञाताधर्मकथाङ्गसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदि:-; अंति:२९१९. साधुवन्दना, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १८, जैदेना., प्र.वि. ढाळ-१४, (२६४१०.५, ११४३२). साधुवन्दना चौपाई, ऋ. कुंवरजी, मागु., पद्य, वि. १६२४, आदिः त्रिभुवन माहि तिलक; अंतिः वेगी एणी परि पाइयइ. २९२०." अजितशान्तिजिन स्तवन, पूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १२-१(११)=११, जैदेना.,प्र.वि. गा.४०, संशोधित, पू.वि. गाथा ३३ अपूर्ण से ३९ तक नहीं है., (२६.५४११, ६४१६). अजितशान्ति स्तव , आ. नन्दिषेणसूरि, प्रा., पद्य, (संपूर्ण), आदिः अजियं जिय सव्वभयं; अंतिः जिणवयणे आयरं कुणह. २९२१.” महावीरजिन उपसर्ग, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें, (२६४१०.५, ११४३४). महावीरजिन उपसर्ग वर्णन , मु. हर्षरङ्ग, मागु., गद्य, आदिः श्रीमहावीर देव; अंतिः कीधउ० जयवन्त हुवउ. २९२३. आचाराङ्गसूत्र - श्रुतस्कन्ध १, प्रतिपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ३४, जैदेना., (२६४११, ११४४०). आचाराङ्गसूत्र , आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदिः सुयं मे आउसं० इह; अंति: For Private And Personal Use Only Page #369 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ३१५ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २९२४." आचाराङ्गसूत्र - श्रुतस्कन्ध २, प्रतिअपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ४५-३(१८,२२,२५)=४२, जैदेना., प्र.वि. प्र.पु. ग्रं. २५२४., संशोधित, (२६.५४११, १०-११४४०). आचाराङ्गसूत्र , आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदि:-; अंतिः विमुच्चति त्ति बेमि. २९२५. गौतम कुलक, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना.,प्र.वि. गा.२०, (२६.५४११, ४४२७). गौतम कुलक, प्रा., पद्य, आदिः लुद्धा नरा अत्थपरा; अंतिः सुहं लहन्ति. २९२६. गुणठाणा विचार, संपूर्ण, वि. १७९६, श्रेष्ठ, पृ. १६, जैदेना., ले.स्थल. सरसानगर, ले. गणि रत्नसी, प्र.ले.पु. मध्यम, (२५४१०.५, १७४६०). १४ गुणस्थानक विचार, राज., गद्य, आदिः श्रीसर्वज्ञं जिनं; अंतिः ज्ञानपूर्वकइज जाणिवौ. २९२७. दशवैकालिकसूत्र - अध्ययन १-४, प्रतिपूर्ण, वि. १९वी, जीर्ण, पृ. ६, जैदेना., (२४४१२, १३४४१). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यम्भवसूरि, प्रा., पद्य, वि. पू.४, आदिः धम्मो मङ्गलमुक्किट्ठ; अंतिः२९२८." इक्कवीसठाणं सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८२७, श्रेष्ठ, प्र. ८, जैदेना., ले.स्थल. डीडवाणानगर, ले. ऋ. उग्रचन्द (गुरु ऋ. भीमराजजी), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. मूल-गा.७३., पदच्छेद सूचक लकीरें,प्र.ले.श्लो. (९६) यादृशं दृष्टं, (२५.५४११, ४४४४). एकविंशतिस्थान प्रकरण, आ. सिद्धसेनसूरि, प्रा., पद्य, आदिः चवण विमाणा नयरी; अंतिः असेस साहारणा भणिया. एकविंशतिस्थान प्रकरण-टबार्थ, मु. मानचन्द्र, मागु., गद्य, आदिः श्रीदेवगुरुनइं; अंतिः चिरं नन्दतु नित्यशः. २९२९. नवतत्त्व सह टबार्थ व कर्माष्टस्थिति, संपूर्ण, वि. १८५०, श्रेष्ठ, पृ. ७, पे. २, जैदेना., ले.स्थल. विक्रमपुर, प्र.वि. संशोधित, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२६४१२, ५४३३). पे. १. पे. नाम. नवतत्त्व सह टबार्थ, पृ. १-७अ नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदिः जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंतिः बोहिय इक्कणिक्काय. नवतत्त्व प्रकरण-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः जीवतत्त्व अजीवतत्त्व; अंतिः परावर्त्त जास्यई., पे.वि. मूल-गा.४८. पे. २.८ कर्मस्थिति विचार, प्रा., पद्य, (पृ. ७अ-७आ), आदि: नाणे दंसणावरणे वेयणि; अंतिः एअं बन्धठिई पमाणं., पे.वि. गा.३. २९३२. क्षेत्रसमास सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९३२, श्रेष्ठ, पृ. ३०, जैदेना., ले.स्थल. नागोर, प्र.वि. मूल-गा.२६७., (२४.५४१२.५, ६४३८). लघुक्षेत्रसमास प्रकरण, आ. रत्नशेखरसूरि , प्रा., पद्य, वि. १५वी, आदिः वीरं जयसेहरपय; अंतिः कुसलरङ्गमई पसिद्धिं. लघुक्षेत्रसमास प्रकरण-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः वीर श्रीमहावीर केहवा; अंतिः सय प्रसिद्ध पामो. २९३३." गौतमपृच्छा सह टबार्थ+कथा, संपूर्ण, वि. १८५८, श्रेष्ठ, पृ. ३८, जैदेना., ले.स्थल. धणलानगर, ले. पं. क्षमासौभाग्य, प्र.वि. मूल-गा.६४., पदच्छेद सूचक लकीरें-मूल पाठ, संशोधित, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, प्र.ले.श्लो. (५४९) मङ्गलं लेखकानां च, (२५४११, १३४२५-३५). गौतमपृच्छा, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण तित्थनाहं; अंति: गोयमपुच्छा महत्थावि. गौतमपृच्छा-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः नमस्कार करीनइ; अंतिः घणुं अर्थ संयुक्त छइ. गौतमपृच्छा-कथा सङ्ग्रह', मागु., गद्य, आदिः-; अंति:२९३४." प्रतिक्रमणसूत्र सङ्ग्रह सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २१, जैदेना., प्र.वि. टबार्थ का अंतिमवाक्य नहीं है., टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२४.५४११.५, ६४२८). साधुश्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,सं.,मागु., प+ग, (संपूर्ण), आदिः नमो अरिहन्ताणं; अंतिः साहु देहस्स धारणा. For Private And Personal Use Only Page #370 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य भाग १ - www.kobatirth.org: " साधु श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र -तपागच्छीय-टवार्थ मागु, गद्य, (अपूर्ण), आदि: माहरो अरिहन्तने; अंति: . २९३५." दृष्टान्त काव्य सह टवार्थ, संपूर्ण वि. १७३४ मध्यम पृ. २३ जैदेना ले. स्थल, रोझीदड़, ले. ऋ. जयराज, पठ. ऋ. गोपाल (गुरु ऋ. जयराज), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. मूल - श्लो. १०२, संशोधित टिप्पण युक्त विशेष पाठ, ( २६४११.५, ५X४०). दृष्टान्तशतक, ऋ. तेजसिङ्घ, सं., पद्य, आदि: नत्वा श्रीवृषभं; अंतिः र्विशोध्यं वरै. दृष्टान्त काव्य-टबार्थ*, मागु., गद्य, आदिः नमस्कार करीने सदेव०; अंतिः तेजसङ्घनी आज्ञा छइ. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २९३७. तेरेपन्थीयानी चर्चा व नव नवकडानी ढाल, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ५, पे. २, जैदेना., (२५x११, १७x४२). पे. १. तेरापन्थमत निरसन चर्चा, राज, पद्य, वि. १८४० (पृ. १अ अ ), आदि एकेक पाखण्डी एहवा अंतिः वदी पाञ्चम थावरवार, पे.वि. गा.३१, ढाळ - १. पे. २. नौनवकडी ढाल, राज, पद्य, वि. १८३३ (पृ. २अ-५) आदि दुषमो आरो पाञ्चमो अंतिः रीया गाम मझार रे.. पे.वि. गा.५८, ढाळ - २. २९३८. कलावती व शीलवती रास, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १८, पे. २, जैदेना., पू.वि. अन्त के पत्र नहीं हैं., (२५.५X११.५, १७४४५). पे. १. कलावती रास, मु. गुणसागर, मागु., पद्य, (पृ. १अ - १०अ, संपूर्ण), आदि: कलावती राणी सती; अंतिः महिमा मेरू समानजी, पे.वि. डाळ-५. पे. २. शीलवती रास, मु. गुणसागर, मागु, पद्य, (पृ. १०अ १८आ-, अपूर्ण), आदि शीलवतीना शीलो इन्द्र अंति:-, पे. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. गा.६४ तक है. ३१६ २९३९.” भक्तामर स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १८६४, मध्यम, पृ. ७-१(५)=६, जैदेना., ले. मु. मोहनसागर, प्र. वि. श्लो.४४. पत्र नंबर में गलती है. संशोधित (२६४११.५ ९४३०). भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुङ्गसूरि, सं., पद्य, आदिः भक्तामरप्रणतमौलिमणि; अंतिः समुपैति लक्ष्मी... २९४०.” छवीसद्वार व जीवभेद विचार, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ८, पे. २, जैदेना., प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., ( २४ ११, १७x४३). पे. १. २४ दण्डक २६ द्वार विचार मागु, गद्य, (पृ. १-८, संपूर्ण), आदि सरीर अवगाहणा सङ्घयण अंतिः काल वन्दना हुइज्यो . पे. २. जीव के पांचसौतिरसठभेद विचार, मागु., गद्य, (पृ. ८आ-, अपूर्ण), आदिः उंचा लोक में ५६३; अंतिः-, पे.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. २९४१.* सुक्तावली व नाममाला, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ९ पे. २ जैदेना, पू. वि. अन्त के पत्र नहीं हैं.. दशा वि. अक्षरों " " की स्याही फैल गयी है, (२५x१० १४४४२). पे. १ सूक्तमाला मु. केशरविगल, सं. मागु पद्य वि. १७५४ (पृ. १९आ, संपूर्ण), आदिः सकलसुकृत्यवल्लीवृन्दः अतिः केसरविमलेन विबुधेन, पे. वि. अध्याय- ४वर्ग. (+) पे. २. लघुनाममाला, आ. हर्षकीर्तिसूरि, सं., पद्य, (पृ. ९आ, अपूर्ण), आदिः प्रणम्य परमात्मानं; अंति:-, पे.वि. मात्र प्रथम पत्र है. प्रारंभ के मात्र दो श्लोक है. २९४४.” सङ्ग्रहणी सूत्र, संपूर्ण, वि. १८५९, श्रेष्ठ, पृ. १६, जैदेना., ले. स्थल. फतेपुर, ले. ऋ. महताब (गुरु ऋ. भवानिदास), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. गा. २८४, संशोधित, (२७X११, १३x४०). बृहत्सङ्ग्रहणी, आ. चन्द्रसूरि प्रा. पद्य वि. १२वी आदि नमिउं अरिहन्ताई अंतिः जा वीरजिण तित्थं. . " (+) २९४५. गजसुकुमाल चौपाई, संपूर्ण वि. १८०६, मध्यम, पृ. २२, जैदेना. ले. स्थल, बीकानेर, ले. पं. युक्तसेन (गुरु पं. For Private And Personal Use Only Page #371 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ३१७ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची हस्तरत्न, बृहतखरतरगच्छ), पठ. साध्वीजी अजबाबाई(गुज.लुङ्कागच्छ.), प्र.ले.पु. मध्यम,प्र.वि. ढाळ-२९, टिप्पण युक्त विशेष पाठ-कुछ पत्र, (२५.५४११, १३४४०). गजसुकुमाल चौपाई, आ. जिनराजसूरि, मागु., पद्य, वि. १६९९, आदिः नेमिसर जिनवरतणा चरण; अंतिः दुक्कडं दीजे. २९४६. सामुद्रिकशास्त्र, तीर्थङ्कर की तिथि आदि, स्त्रीगर्भज्ञान व तेरकाठिया सज्झाय, संपूर्ण, वि. १७५२, मध्यम, पृ. ६, पे. ४, जैदेना., ले.स्थल. थिरादनगर, ले. गणि जीवविजय(तपागच्छ),प्र.वि. संशोधित, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२४४११.५, १९४५२). पे. १. सामुद्रिक शास्त्र, सं., पद्य, (पृ. १-६अ), आदिः देवदेवं नमस्कृत्य; अंति: गवाद्यं दानकेन तु. पे. २. जिनतिथिवारनक्षत्रादिज्ञान, मागु., पद्य, (पृ. ६अ), आदिः तिथि चीन्तवीइं उपरि; अंतिः आदि देई गुणीइं. पे. ३. स्त्री गर्भज्ञान, मागु., गद्य, (पृ. ६अ), आदिः शुक्लपक्ष पूछीइ तो; अंतिः द्वितीयाङ्के पुत्री. पे.४.पे. नाम. १३ काठिया सज्झाय, पृ. ६आ १३ काठिया सज्झाय, मु. हेमविमलसूरि-शिष्य, मागु., पद्य, आदिः प्रणमुं श्रीगौतम; अंतिः हेमविमलसूरि सीसे __कही.,पे.वि. गा.१५. २९४७. मृगलेखा रास, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २२-४(३ से ५,२१)=१८, जैदेना., पृ.वि. बीच-बीच व अंत के पत्र नहीं हैं. ढाल-५० गा.८ अपूर्ण तक है., (२५४११, १६-१८x१८). मृगाङ्कलेखा चौपाई, ऋ. रायचन्द, मागु., पद्य, वि. १८३८, आदिः आदेसर जिन आददे चोवीस; अंति:२९४८. सङ्ग्रहणी सूत्र, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १९, जैदेना., ले.स्थल. अकबराबाद, प्र.वि. गा.२९८, संशोधित, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२५.५४११, ११-१३४३८). बृहत्सङ्ग्रहणी, आ. चन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदिः नमिउं अरिहन्ताइं; अंतिः जा वीरजिण तित्थं. २९५०. नवतत्त्व प्रकरण सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७५५, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना., ले. ऋ. दीपा (गुरु ऋ. विरधाजी), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. मूल-गा.४४., (२५४११, ६४३२). नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदिः जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंतिः अणागयद्धा अणन्तगुणा. नवतत्त्व प्रकरण-टबार्थ, ऋ. उत्तम, मागु., गद्य, आदिः जीवनो जाणवो ते तत्व; अंतिः पणि अनन्ता जाणवा. २९५१. पाक्षिक सूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ९-२(१ से २)=७, जैदेना., प्र.वि. संशोधित, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, पू.वि. बीच के पत्र हैं., (२४.५४११, १५४३५). पाक्षिकसूत्र, प्रा., प+ग, आदि:-; अंतिः२९५२." जीवविचार सह अर्थ, संपूर्ण, वि. १८९८, मध्यम, पृ. ६, जैदेना., ले. ऋ. चयनसुख, प्र.वि. मूल-गा.५१., पदच्छेद सूचक लकीरें-मूल पाठ, त्रिपाठ, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, दशा वि. विवर्ण-पानी से अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं-अधिक, (२३४११.५, १५४३७). जीवविचार प्रकरण, आ. शान्तिसूरि, प्रा., पद्य, आदिः भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंतिः रुद्दाओ सुयसमुद्दाओ. जीवविचार प्रकरण-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः भु० त्रिण भुवनने; अंतिः सिद्धान्तसमुद्र थको. २९५३. उत्तराध्ययनसूत्र - अध्ययन ३६, प्रतिअपूर्ण, वि. १८वी, जीर्ण, पृ. ११, जैदेना., प्र.वि. प्र.पु. मूलअंश-गा.२७३., पू.वि. उल्लिखित पत्रांक-११ गलत है. पत्र १० के बाद तथा अंत के पहले कुछेक पत्र अनुपलब्ध है., (२४.५४११, १५४३९). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग, आदि:-; अंतिः सम्मए त्ति बेमि. २९५४. सौ बोल, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदेना., प्र.वि. १०० बोल, (२४.५४१०.५, १२४३७). १०० बोल, मागु., गद्य, आदिः ज्ञाताधर्मकथा साढा; अंतिः राजसभा में वलभ लागै. For Private And Personal Use Only Page #372 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य भाग ३१८ २९५५. पाक्षिक सूत्र अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ८. जैदेना, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.. दशा वि. अक्षर फीके पड़ गये हैं-अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, (२५x११ १३४४७). १ - पाक्षिकसूत्र प्रा. प+ग, आदि तित्थङ्करे य तित्थे अंति : · 1 (+) www.kobatirth.org: २९५६.” वृद्धक्षेत्रसमास प्रकरण, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, जैदेना., प्र. वि. गा. २६३. अंतिम गाथा नही लिखी है., संशोधित टिप्पण युक्त विशेष पाठ, ( २६.५X११, १४-१६९४६). लघुक्षेत्रसमास प्रकरण, आ. रत्नशेखरसूरि प्रा., पद्य, वि. १५वी, आदि: वीरं जयसेहरपय; अंतिः #. , Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २९५८. जीवविचार सह अर्थ, पूर्ण, वि. १८वी श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना, प्र. वि. संशोधित, पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है. गाथार्थ - ५० अपूर्ण तक है., (२५.५×११, १२-१३x४१). जीवविचार प्रकरण, आ. शान्तिसूरि प्रा. पद्य, आदि भुवणपईवं वीरं नमिऊण अंति: जीवविचार प्रकरण-टबार्थ *, मागु., गद्य, आदिः भुवन त्रिभुवन तणउ; अंतिः २९५९.” श्राद्धप्रतिक्रमणसूत्र सङ्ग्रह सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २२, जैदेना, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., दशा वि. विवर्ण-पानी से अक्षरों की स्याही फैल गयी है, (२८x११.५. ५४३५-३६). श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र संबद्ध, प्रा. मागु, प+ग, आदिः नमो अरिहं० सव्वसाहूण; अंति:आवक प्रतिक्रमणसूत्र - टवार्थ, मागु, गद्य, आदि: माहरउ नमस्कार अंतिः २९६०. नारचन्द्र ज्योतिष का यन्त्रोद्धार टिप्पण, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना., प्र. वि. मूलपाठ मंगलाचरण मात्र है., " पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण प्रारंभिक भाग नक्षत्र होडाचक्र तक है., ( २४९११, ९४२२-२४). ज्योतिषसार यन्त्रकोद्धार टिप्पण, आ. सागरचन्द्रसूरि सं., गद्य, आदि सरस्वतीं नमस्कृत्य अंति: २९६१.* नन्दिषेणमुनि रास, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १८-१ ( ७ ) - १७, जैदेना. पु. वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं. ढाल १६ गा. ९ तक है., दशा वि. विवर्ण-पानी से अक्षरों की स्याही फैल गयी है, चिपके पत्र अलग करते वक्त स्याही उखडी हुई - अधिक, ( २६.५x११, १२४३३-३५). नन्दिषेणमुनि रास, मु. ज्ञानसागर, मागु., पद्य, वि. १७२५, आदिः सुत सिद्धारथ भूपनो; अंतिः २९६२.” मृगावती चौपाई, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १० - ३ (१ से ३) = ७, जैदेना., पू. वि. प्रथम खंड ढाल ५ से १३ तक है., दशा वि. विवर्ण-पानी से अक्षरों की स्याही फैल गयी है-अधिक, ( २६ ११, १५x४५). मृगावती चौपाई, उपा. समयसुन्दर गणि, मागु., पद्य, वि. १६६८, आदि:-; अंतिः वृद्धि सुजगीसा बे. २९६४. अष्टापद रास, संपूर्ण, वि. १९४९, श्रेष्ठ, पृ. १३, जैदेना., ले. स्थल. कनकावती, ले. पं. केशरकुशल (गुरु पं. गौतमकुशल), राज्यकाल - राजा लक्ष्मणसिङ्घ, प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र. वि. ढाळ - ७, (२५.५x११, ११×३४). अष्टापदतीर्थ रास मु. कवियण, मागु, पद्य वि. १८३९, आदि आदी करण आदीसरप्रभु: अंतिः लहस्यो सुख रसाल , 1 ए. (+) २९६५. शान्तिनाथ चरित्र, अपूर्ण, वि. १६७२ श्रेष्ठ, पृ. २१५-३१(१ से २१,११५ से १२४ ) = १८४, जैदेना. ले. मु. अमृतसुन्दर (गुरु मु. रत्नसुन्दर ), प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र. वि. ६ प्रस्ताव, संशोधित, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, पदच्छेद सूचक लकीरें, (२४.५x११, १३४३४). शान्तिजिन चरित्र, आ. भावचन्द्रसूरि सं., गद्य वि. १५३५ आदि-: अंतिः स करोतु शान्तिः २९६६. निर्यावलीयादिपञ्चोपाङ्गसूत्र, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ११२, पे. ५, जैदेना., (२७४१२.५, ७X२३). 1 पे. १. पे. नाम. कल्पिकासूत्र, पृ. १-४०अ कल्पिकासूत्र, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं तेणं० अंतिः वरं मायातो सरिसणामाओ, पे.वि. निरया प्राथमवर्ग पे. २. पे. नाम. कल्पावतंसिकासूत्र, पृ. ४०आ-४४आ For Private And Personal Use Only Page #373 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ३१९ www.kobatirth.org: कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची कल्पावतंसिकासूत्र प्रा. गद्य, आदि जति णं भंते समणेणं०: अंतिः वा महाविदेहे सिद्धे, पे.वि. निरया द्वितीयवर्ग. " .. पे. ३. पे. नाम. पुष्पिकासूत्र, पृ. ४४आ- ९२आ पुष्पिकासूत्र, प्रा. गद्य, आदि जति णं भंते समणेणं०: अंतिः चेइयाई जहा संग्रहणीए पे.वि. निरया तृतीयवर्ग . Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पे. ४. पे. नाम. पुष्पचूलिकासूत्र, पृ. ९२आ- ९९अ पुष्पचूलिकासूत्र, प्रा., गद्य, आदि जइ णं भंते समणेणं०: अंतिः हे वासे सिज्झिहिंति, पे.वि. निरया चतुर्थवर्ग पे. ५. पे. नाम. वृष्णिदशासूत्र, पृ. ९९अ - ११२अ वृष्णिदशासूत्र, प्रा., गद्य, आदिः जइ णं भंते० पंचमस्स; अंतिः मइरित्त एक्कारससु वि., पे.वि. निरया. पंचमवर्ग. २९६७.” ठाणाङ्ग सूत्र, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १२६ - ९ (१ से ९ ) = ११७, जैदेना., प्र. वि. संशोधित, पू. वि. प्रारंभ व अंत के पत्र नहीं हैं., ( २६x११, १३x४०). स्थानाङ्गसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदि:-; अंतिः २९६८.” उपदेशमाला सह टवार्थ व कथा, संपूर्ण, वि. १८१५, श्रेष्ठ, पृ. ११९, जैदेना. ले. स्थल. श्रुथरी, ले. गु. क्षीरसागर (गुरु मु. लाभसागर, अञ्चलगच्छ), प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र. वि. मूल-गा. ५४४ संशोधित टिप्पण युक्त विशेष पाठ, प्र.ले. श्लो. (५०६) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा (२४.५४१२, ५-१७४४३-४५) उपदेशमाला, गणि धर्मदास, प्रा., पद्य, आदिः नमिऊण जिणवरिन्दे; अंतिः वयण विणिग्गया वाणी. उपदेशमाला - बालावबोध मु. वृद्धिविजय मागु, गद्य वि. १७१३ आदि प्रणम्य श्रीमहावीर अंतिः वाणी श्रुतदेवता ते. " ; उपदेशमाला-कथा*, मागु., गद्य, आदि: #; अंतिः #. २९६९.” कर्मग्रन्थ १-५ सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९३३, श्रेष्ठ, पृ. ४९, पे. ५, जैदेना., ले. स्थल. नागोर, ले. मानमल जोसी, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ, (२५.५४१२.५. ५४३८). पे. १. पे. नाम. कर्मविपाक सह टबार्थ, पृ. १आ-९अ " कर्मविपाक नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: सिरिवीरजिणं वन्दिय; अंतिः लिहिओ देविन्दसूरीहिं. कर्मविपाक नव्य कर्मग्रन्थ-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः श्रीवीरजिन पतई अंतिः श्रीदेवेन्द्रसूरिइ., पे.वि. मूल-गा.६२. पे. २. पे. नाम कर्मस्तव सह टवार्थ, पृ. ९आ-१५अ कर्मस्तव नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि प्रा. पद्य आदि तह थुणिमो वीरजिणं अंतिः वन्दियं नमह तं वीरं. कर्मस्तव नव्य कर्मग्रन्थ- टवार्थ मागु, गद्य, आदि तिम श्रीमहावीर प्रतइ अंतिः नमउ ते महावीर, पे.वि. मूलगा. ३४. पे. ३. पे. नाम. बन्धस्वामित्व सह टबार्थ, पृ. १५अ - २०अ बन्धस्वामित्व नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, आदिः बन्धविहाणविमुक्कं; अंतिः नेयं कम्मत्थयं सोउं.. बन्धस्वामित्व नव्य कर्मग्रन्थ-टबार्थ मागु, गद्य, आदि: विधनुं नीपजावि अंतिः कर्मस्तवथी साम्भलीनइ., पे.वि. मूल-गा. २५. ; पे. ४. पे. नाम. षडशीति सह टबार्थ, पृ. २०अ - ३४आ ; , " षडशीति नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि प्रा. पद्य, आदि नमिय जिणं जिय अंति: देविन्दसूरीहिं. षडशीति नव्य कर्मग्रन्थ-टबार्थ, मागु., गद्य, आदि: वीतरागदेवनइ नमस्करी; अंतिः अर्थ लेश मात्र, गा.८६. पे. ५. पे नाम शतककर्मग्रन्थ सह टवार्थ प्र. ३४-४९ आ " For Private And Personal Use Only पे.वि. मूल शतक नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि प्रा. पद्य, आदि नमिय जिणं धुवबन्धोदय अंतिः सयगमिणं आयसरणट्ठा. " Page #374 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य भाग १ - www.kobatirth.org: शतक नव्य कर्मग्रन्थ-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः नमस्कार करिनइ; अंतिः सम्भारवानइ अर्थइ., गा. १००. , २९७१." श्राद्धप्रतिक्रमणसूत्र सङ्ग्रह सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ९३ - १(१ ) - ९२, जैदेना, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, पृ. वि. प्रथम एक व अंत के पत्र नहीं हैं. (२६४१२, १७०९४४) श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र संबद्ध, प्रा., मागु., प+ग, आदि:-; अंतिः श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र- बालावबोध *, मागु., गद्य, आदि:-; अंति: Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir थे.वि. मूल २९७२. चन्दराजा रास, संपूर्ण, वि. १८५७, श्रेष्ठ, पृ. ८३+१(१०) = ८४, जैदेना., ले. स्थल. गोधरा, ले. मु. वेलासागर (गुरु मु. क्षीरसागर, अञ्चलगच्छ), पठ. मु. प्रेमसागर (गुरु मु. महिमासागर), प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र. वि. गा. २७०८, खण्ड-४, संशोधित (२६४१२, १६४४९-५०). ; चन्द्रराजा रास. मु. मोहनविजय, मागु, पद्य वि. १७८३ आदि प्रथम धराधव तीम अंतिः वर्णव्या गुण चन्दना. २९७३. आगमसारोद्धार, पूर्ण, वि. १९३४, मध्यम, पृ. ६७-१(५९) - ६६, जैदेना, ले. स्थल. फलोधी, दशा वि. विवर्ण- पानी सेअक्षरों की स्याही फैल गयी है-अधिक (२४४११. १२४३२). (′′) आगमसारोद्धार, उपा. देवचन्द, मागु., गद्य, वि. १७७६, आदि: हिवै भव्यजीवने; अंतिः फली मन आस.. २९७५. प्रतिष्ठाअञ्जनशलाका कल्प, संपूर्ण, वि. १९९३, श्रेष्ठ, पृ. ४७, जैदेना., ले. स्थल. वीजापुर, ले. मु. पुण्यसागर, प्र.ले.पु. मध्यम, ( २४४१३, १३४३४). प्रतिष्ठाकल्प, उपा. सकलचन्द्रगणि, सं., मागु., गद्य, आदि: प्रणम्य श्रीमहावीरं; अंतिः जोयो तथा शोध्यो. २९७७.” राजप्रश्नीयसूत्र सह टबार्थ, पूर्ण, वि. १९वी, जीर्ण, पृ. ११८ - १ (१) = ११७, जैदेना., प्र. वि. प्र. पु. मूल-ग्रं. २४७९. प्र. पु. बार्थ ग्रं. ४७२५, पदच्छेद सूचक लकीरें मूल पाठ कुछ पत्र, संशोधित, (२५.५४१०.५, ६४४६). - राजप्रश्नीयसूत्र, प्रा., गद्य, आदि:-; अंतिः सुपस्से परसवणा नमो. राजप्रश्नीयसूत्र- टवार्थ, मागु, गद्य, आदि ; अंतिः प्रश्नोरी कहणहार. तक है., ( २४.५x१०.५, ६x४२). आचाराङ्गसूत्र आ. सुधर्मास्वामी प्रा. प+ग, आदि सूर्य मे आउसं० इह अंति: आचाराङ्गसूत्र- टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः सु० एहवउ साम्भलउ; अंतिः ३२० २९७८." आचाराङ्गसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ५६, जैदेना. प्र. वि. संशोधित टिप्पण युक्त विशेष पाठ, . "" पदच्छेद सूचक लकीरें-टबार्थादि, पू. वि. अन्त के पत्र नहीं हैं. प्रथम श्रुतस्कंध अध्ययन-९ के चतुर्थ उद्देश के प्रारंभ व्याख्यान कथा सङ्ग्रह, सं., पद्य, आदिः स्मृत्वा पार्श्व; अंतिः करगामिनि भवति. व्याख्यान कथा सङ्ग्रह-टवार्थ मागु, गद्य, आदि समरीने श्रीपार्श्व अंतिः मुक्तिना सुख पा २९७९. पिण्डनिर्युक्ति सह वृत्ति अपूर्ण, वि. १६७२, मध्यम, पृ. १०५-११(१ से ११ ) ९४ जैदेना ले स्थल, जेसलमेरदुर्ग, ले. " गणि रत्ननन्द (गुरु गणि गुणरङ्ग, खरतरगच्छ ), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. टीका- ग्रं. ७०००., संशोधित, पू. वि. गा.८० तक नहीं है., ( २६.५x११, १७४४६). पिण्डनिर्युक्ति, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., पद्य, आदि:- अंतिः विसोहिजुत्तस्स. पिण्डनिर्युक्ति-वृत्ति, आ. मलयगिरिसूरि, सं., गद्य, आदि:-; अंतिः (१) धर्मः शरणमुत्तमः (२) पिण्डनिर्युक्तिरिति. २९८०. व्याख्यान कथा सङ्ग्रह सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८८७, मध्यम, पृ. ५०+१(५०) = ५१, जैदेना., ले. स्थल. सुद्धदंतनीनयर, ले. कवि दीपविजय (गुरु पं. मनरूपविजय), ( २४.५४१०.५, ५४३३). For Private And Personal Use Only (+) २९८२. सिद्धान्तचन्द्रिका सह सुबोधिनीव्याख्या टीका पूर्वार्द्ध प्रतिपूर्ण, वि. १८५३ मध्यम, पृ. ९७ जैदेना., ले. स्थल हरिदुर्गनगर, ले. ऋ. खुस्यालचन्द्र ( खरतरगच्छ ), पठ. मु. श्रीचन्द्र ( खरतरगच्छ ), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. पदच्छेद Page #375 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ३२१ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची सूचक लकीरें कुछ पत्र टिप्पण युक्त विशेष पाठ-कुछ पत्र, पू.वि. प्रारंभ (संज्ञा प्रकरण) से पूर्वार्द्ध (अव्ययमाला) तक है., प्र. ले. श्लो. (८३) पोथी लिखी आनंदसु (५९८) लेखणी पुस्तिका रामा, ( २६४१२.५, १७४४९). www.kobatirth.org: सिद्धान्तचन्द्रिका, आ. रामाश्रम, सं. गद्य, आदि नमस्कृत्य महेशानं अंति " सिद्धान्तचन्द्रिका सुबोधिनी वृति, गणि सदानन्द सं. गद्य वि. १७९९, आदि: पुराणपुरुषं ध्यात्वा अंति , २९८३. हंसराजवच्छराज चौपाई, संपूर्ण वि. १८५६ मध्यम, पृ. ६४, जैदेना., ले. स्थल रांणभंणाइ, ले. श्रीचन्द नेणावाल, प्र. वि. गा. ९०५, खण्ड-४ ढाळ-४८, (२३.५x१०, ११x२५). हंसराजवत्सराज चौपाई आ जिनोदयसूरि मागु, पद्य वि. १६८०, आदि आदिसर आदे अंतिः वच्छ अने हंसराज ; , (+) २९८५. नवतत्त्व प्रकरण सह टवार्थ व बालावबोध, संपूर्ण वि. १८८५ मध्यम, पृ. ३५, जैदेना, ले. स्थल. चवरसा, ले. मु. तिलोकचन्द (गुरु पं. माणिकचन्द), प्र. वि. मूल-गा. ९७ (२४.५५११.५. ३४३७-४०). नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदिः जीवाजीवापुन्नं; अंतिः अणागयद्धा अणन्तगुणा. नवतत्त्व प्रकरण-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः प्रणम्य पार्श्वनाथं; अंतिः सर्व अनागत अनन्त नवतत्त्व प्रकरण-बालावबोध, मागु., गद्य, आदिः श्रीशङ्खश्वर; अंतिः तनाङ्क निष्पत्तिः. २९८६. निरयावलीकादिपञ्चोपाङ्गसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ९२ पे ५ जैदेना. (२६४११.५, ५४३७). " पे. १. पे नाम कल्पिकासूत्र सह टदार्थ, पृ. १आ-३६अ कल्पिकासूत्र, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं तेणं अंतिः वरं मायातो सरिसणामाओ. कल्पिकासूत्र - टवार्थ, मागु, गद्य, आदि ते ते कालने विषइ: अंतिः नामे सूत्र समाप्त. पे. २. पे. नाम. कल्पावतंसिकासूत्र सह टबार्थ, पृ. ३६अ - ३९आ कल्पावतंसिकासूत्र, प्रा., गद्य, आदि: जइ णं भन्ते समणेणं०; अंतिः वा महाविदेहे सिद्धे. " Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir " कल्पावतंसिकासूत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः जउ हे पुज्य तपस्वीइ; अंतिः वडिंसियासूत्र समाप्त. पे. ३. पे नाम. पुष्पिकासूत्र सह टबार्थ, पृ. ३९आ- ७६ आ पुष्पिकासूत्र, प्रा., गद्य, आदिः जइ णं भन्ते समणेणं०; अंतिः चेइयाइं जहा संगहणीए. पुष्पिकासूत्र- टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः ज० जो भं० हे पूज्य; अंतिः पुफीयासूत्र समाप्त. पे. ४. पे नाम. पुष्पचूलिकासूत्र सह टवार्थ, पृ. ७६आ-८२अ पुष्पचूलिकासूत्र प्रा. गद्य, आदि जइ णं भंते समणेणं०: अंतिः हे वासे सिज्झिहिंति. पुष्पचूलिकासूत्र -टवार्थ मागु, गद्य, आदि: ज० जो हे पूज्य अंति पूर्व पाठ कहिवउ, पे. ५. पे नाम, वृष्णिदशासूत्र सह टवार्थ, पृ. ८२अ- ९२आ वृष्णिदशासूत्र प्रा. गद्य, आदि जइ णं भंते० पंचमस्स अंतिः मइरित एक्कारससु वि. " वृष्णिदशासूत्र - टवार्थ, मागु, गद्य, आदि ज० जो भं० हे पुज्य अंतिः सूत्रबन्ध समाप्त. ; (+) " २९८८. प्रश्नव्याकरणसूत्र सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १६८६, मध्यम, पृ. १४७-२० (१,६० से ७८ ) - १२७, जैदेना. प्र. वि. मूलअध्याय-१०: मूल ग्रं. १२५० संशोधित त्रिपाठ, पू. वि. प्रथम व बीच के पत्र नहीं हैं, दशा वि. विवर्ण-पानी से अक्षरों की स्याही फैल गयी है, चिपके पत्र अलग करते वक्त विशीर्ण, (२७.५४११, २-४९४०). प्रश्नव्याकरणसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदि:-; अंतिः शरीरधरे भविस्सत्तीति. प्रश्नव्याकरणसूत्र- बालावबोध, आ. पार्श्वचन्द्रसूरि, मागु., गद्य, आदि:-; अंतिः जाई अनन्तसुख पामे. For Private And Personal Use Only २९९०. कल्पसूत्र, संपूर्ण, वि. १८११, श्रेष्ठ, पृ. ११५, जैदेना., ले. स्थल. नारदपुरी, ले. मु. भगवान (गुरु मु. नगराज, अञ्चलगच्छ), प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र. वि. ९ - व्याख्यान, ( २४.५x११, ६x२६-३०). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदिः णमो अरिहन्ताणं० पढमं अंति: उवदंसेइ ति बेमि Page #376 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य भाग १ - ३२२ २९९१.” भगवतीसूत्र, अपूर्ण, वि. १७वी, जीर्ण, पृ. २३८ - १४९ (१ से १४९ ) = ८९, जैदेना., प्र. वि. संशोधित, पू. वि. बीच के पत्र हैं. ८००० ग्रंथाग्र तक नहीं हैं. (२४.५४११, १५०५२-५५). " भगवतीसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी (W) २९९३. श्रीपाल रास सह टबार्थ, पूर्ण, गा. १८२५, खण्ड-४, दाळ १४. " श्रीपाल रास उपा. विनयविजय अंतिः लहसे ज्ञान विशालाजी. , प्रा. गद्य, आदि-: अंति: 1 " www.kobatirth.org: , वि. १९वी मध्यम, पृ. १३० - १ (९४) +२ (३४,४७) = १३१, जैदेना., प्र. वि. मूल दशा वि. विवर्ण-पानी से अक्षरों की स्याही फैल गयी है, (२३.५४१३. ६४३३). उपा यशोविजयजी गणि, मागु पद्य वि. १७३८, आदिः कल्पवेल कवियण तणी; 1 Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir " श्रीपाल रास-टवार्थ, मागु, गद्य, आदि सरसती माता केहवी; अंति विस्तिर्ण ते प्राणी. (+) २९९४. कल्पसूत्र सह कल्पद्रुमकलिका टीका, अपूर्ण, वि. १८८०, श्रेष्ठ, पृ. ३०३-२८ ( १५२ से १७९ ) = २७५, जैदेना, पठ. ऋ. जैचन्द, प्र. वि. मूल - ९ - व्याख्यान मूल प्रारंभ पत्र-२ से. मूल अंतिम पत्र - ३०१, संशोधित टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२८४१३.५, ११४३६). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदिः तेणं कालेणं० समणे; अंति: उवदंसेइ त्ति बेमि. कल्पसूत्र- कल्पद्रुमकलिका टीका, गणि लक्ष्मीवल्लभ, सं., गद्य, वि १८वी आदि श्रीवर्द्धमानस्य; अंतिः कल्पसूत्रस्य चेमाम्. (+) २९९७. स्तोत्र, स्तुति व प्रकरण सङ्ग्रह, अपूर्ण, वि. १८९८, श्रेष्ठ, पृ. ७२- २० (१ से ९,२५ से ३५ ) = ५२, पे. ३३, जैदेना., ले. स्थल. अजमेर, ले. रिषलाल मथेन, ( २६.५x१३, १०x३९). पे. १. जयतिहुअण स्तोत्र, आ. अभयदेवसूरि, प्रा., पद्य, (पृ. १०अ १२अ, अपूर्ण), आदि:-; अंतिः विण्णवइ अणिन्दिय., पे.वि. गा.३०. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. गा.५ अपूर्ण से है. पे. २. पे नाम साधुप्रतिक्रमणसूत्र, पृ. १२-१५आ, संपूर्ण साधुवन्दित्तुसूत्र संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि: चत्तारि मङ्गलं अंतिः वन्दानि जिणे चउवीस, पे. ३. वन्दित्तुसूत्र, संबद्ध, प्रा., पद्य, (पृ. १५आ - १८ अ, संपूर्ण), आदिः वन्दित्तु सव्वसिद्धेः अंतिः वन्दामि जिणे चउवीसं., पे.वि. गा.५०. पे. ४. पे. नाम. सीमन्धरस्वामी स्तुति, पृ. १८अ - १८आ, संपूर्ण बीजतिथि स्तुति, प्रा., पद्य, आदिः महीमण्डणं; अंतिः देहि मे सुद्धनाणं., पे. वि. गा. ४. पे. ५. ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, सं., पद्य, (पृ. १८ आ-१९अ, संपूर्ण), आदिः पञ्चानन्तक सुप्रपञ्च; अंतिः सिद्धायिका त्रायिका., पे.वि. श्लो. ४. पे. ६. पे. नाम. वीसविहरमाण स्तुति, पृ. १९अ, संपूर्ण विहरमान २० जिन स्तुति, मागु., पद्य, आदिः पञ्चविदेह विषय; अंतिः जण मनवञ्छित सारै, पे.वि. गा. ४. पे. ७. पार्श्वजिन स्तुति- जेसलमेर, सं., पद्य, (पृ. १९अ - १९आ, संपूर्ण ), आदिः शमदमोत्तमवस्तुमहापणं; अंतिः सा जिनशासनदेवता, पे.वि. श्लो. ४. पे. ८. अष्टमीतिथि स्तुति, आ. जिनसुखसूरि, मागु., पद्य, (पृ. १९आ, संपूर्ण), आदिः चोवीसे जिनवर प्रणमुं; अंतिः जीवित जनम प्रमाण., पे.वि. गा.४. पे. ९. अष्टमीतिथि स्तुति, अप, पद्य, (पृ. १९आ-२०अ, संपूर्ण), आदि: महामङ्गलं अष्ट सोह अंतिः विहसन्ति कल्याणदाता, पे.वि. गा. ४. पे. १०. पार्श्वजिन स्तुति, सं., पद्य, (पृ. २०अ २०आ, संपूर्ण ), आदिः श्रीसर्वज्ञं ज्योति; अंतिः वृद्धिं वैदुष्यम्., पे.वि. श्लो. ४. पे. ११. पार्श्वजिन स्तुति, सं., पद्य, (पृ. २०आ, संपूर्ण ), आदि: हर्षनतासुरनिर्जरलोकं अंतिः शस्त निजाघ, पे. वि. श्लो. ४. For Private And Personal Use Only Page #377 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ३२३ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची पे. १२. आदिजिन स्तुति-अर्बुदगिरिमण्डन, अप., पद्य, (पृ. २०आ-२१अ, संपूर्ण), आदिः वरमुक्तियहार सुतार; अंतिः सुहाणि कुणे सुसया., पे.वि. गा.४. पे. १३. महावीरजिन स्तुति, सं., पद्य, (पृ. २१अ, संपूर्ण), आदिः यदंह्रिनमनादेव देहिन; अंतिः नित्यं मम मङ्गलेभ्यः., पे.वि. श्लो.४. पे. १४. पे. नाम. सेत्रुञ्जा स्तुति, पृ. २१अ-२१आ, संपूर्ण आदिजिन स्तुति, आ. नन्दसूरि, मागु., पद्य, आदिः श्रीशेत्रुञ्जमण्डण; अंतिः तुम्ह पाय सेवता., पे.वि. गा.४. पे. १५. आदिजिन स्तुति, सं., पद्य, (पृ. २१आ, संपूर्ण), आदिः युगादिपुरुषेन्द्राय; अंतिः कूष्माण्डी कमलेक्षणा., पे.वि. श्लो.४. पे. १६. महावीरजिन स्तुति, मागु., पद्य, (पृ. २१आ-२२अ, संपूर्ण), आदिः बालपणे डाबो पाय; अंतिः काज चढे प्रमाणे., पे.वि. गा.४. पे. १७. साधारणजिन स्तुति, सं., पद्य, (पृ. २२अ-२२आ, संपूर्ण), आदि: अविरलकमलगवलमुक्ताफल; अंतिः देवी श्रुतोच्चयम्., पे.वि. श्लो.४. पे. १८. मौनएकादशीपर्व स्तुति, सं., पद्य, (पृ. २२आ, संपूर्ण), आदिः अरस्य प्रवज्या; अंतिः विपदः पञ्चकमदः., पे.वि. श्लो.४. पे. १९. पार्श्वजिन स्तुति, आ. जिनकुशलसूरि, सं., पद्य, (पृ. २२आ-२३अ, संपूर्ण), आदिः दें दें कि धप; अंतिः दिशतु शासनदेवता., पे.वि. श्लो.४. पे. २०. नेमिजिन स्तुति, मागु., पद्य, (पृ. २३अ-२३आ, संपूर्ण), आदिः सुरअसुरवन्दितपाय; अंतिः करो ते अम्बा देवीए., पे.वि. गा.४. पे. २१. सिद्धचक्र स्तुति, आ. जिनलाभसूरि, मागु., पद्य, (पृ. २३आ-२४अ, संपूर्ण), आदिः निरुपम सुखदायक जगनाय; अंतिः श्रीजिनलाभसूरिन्दाजी., पे.वि. गा.४. पे. २२. पर्युषणपर्व स्तुति, आ. जिनलाभसूरि, मागु., पद्य, (पृ. २४अ-२४आ, संपूर्ण), आदिः वलि वलि हुं ध्या; अंतिः कहै जिनलाभसुरीन्द., पे.वि. गा.४. पे. २३. महावीरजिन स्तुति, आ. जिनलाभसूरि, मागु., पद्य, (पृ. २४आ-, अपूर्ण), आदिः मूरति मनमोहन कञ्चन; ___अंति:-, पे.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. गा.३ अपूर्ण तक है. पे. २४. बृहत्शान्ति स्तोत्र-तपागच्छीय, सं., गद्य, (पृ. -३६अ-३७आ, अपूर्ण), आदि:-; अंतिः जैनं जयति शासनम्., पे.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. पे. २५. लघुशान्ति, आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, (पृ. ३७आ-३८आ, संपूर्ण), आदिः शान्तिं शान्ति; अंतिः सूरिः श्रीमानदेवश्च., पे.वि. श्लो.१७. पे. २६. तिजयपहुत्त स्तोत्र, प्रा., पद्य, (पृ. ३८आ-३९अ, संपूर्ण), आदिः तिजयपहुत्तपयासय अठ्ठ; अंतिः निच्चमच्चेह., पे.वि. गा.१४. पे. २७. पार्श्वजिन स्तोत्र-नवग्रहगर्भित, आ. जिनप्रभसूरि, प्रा., पद्य, (पृ. ३९आ-४०अ, संपूर्ण), आदिः दोसावहारदक्खो नालिया; अंतिः गहा न पीडन्ति., पे.वि. गा.१०. पे. २८. भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुङ्गसूरि, सं., पद्य, (पृ. ४०अ-४३आ, संपूर्ण), आदिः भक्तामरप्रणतमौलिमणि; अंतिः समुपैति लक्ष्मी., पे.वि. श्लो.४४. पे. २९. कल्याणमन्दिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकर, सं., पद्य, (पृ. ४३आ-४७अ, संपूर्ण), आदिः ___ कल्याणमन्दिरमुदारमवद; अंतिः मोक्षं प्रपद्यन्ते., पे.वि. श्लो.४४ . पे. ३०. जीवविचार प्रकरण, आ. शान्तिसूरि, प्रा., पद्य, (पृ. ४७-५०अ, संपूर्ण), आदिः भुवणपईवं वीरं नमिण; अंतिः रुद्दाओ सुयसमुद्दाओ., पे.वि. गा.५१. For Private And Personal Use Only Page #378 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ३२४ हस्तलिखित जैन साहित्य भाग - १ पे. ३१. नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, (पृ. ५०अ-५२आ, संपूर्ण), आदिः जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंतिः अणागयद्धा अणन्तगुणा., पे.वि. गा.५०. पे. ३२. पे. नाम. विचारषट्त्रिंशिका, पृ. ५२आ-५५अ, संपूर्ण दण्डक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, आदिः नमिउं चउवीस; अंतिः एसा विनत्ति अप्पहिआ., पे.वि. गा.४०. पे. ३३. बृहत्सङ्ग्रहणी, आ. चन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, (पृ. ५५अ-७२, संपूर्ण), आदि: नमिउं अरिहन्ताइं; अंति: जा वीरजिण तित्थं., पे.वि. गा.३११. २९९८." भगवतीसूत्र, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. २५४-१७२(१ से १२०,१५७ से १९८,२२३,२४४ से २५२)=८२, जैदेना., प्र.वि. संशोधित, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं. शतक ९ का ३३ वाँ उद्देश अपूर्ण से शतक १२ के १० वें उद्देश के प्रारंभ तक है., (३०x११, १५४५५). भगवतीसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि:-; अंति:२९९९." लोकानुयोग, पूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ४९-१(१)=४८, जैदेना.,प्र.वि. संशोधित, प्र.ले.श्लो. (५१७) यादृशं पत्रयो दृष्टं, (३०.५४११.५, १४४६९). लोकानुयोग, सं., पद्य, आदि:-; अंतिः त्रिसहश्रीदशाहतः. ३००१. गोमट्टसार, अपूर्ण, वि. १९६१, श्रेष्ठ, पृ. ९७-१०(१ से १०)+१४(१५,२०,२३,३७,४०,४२,४४,५७,६९,७५,७९,८९ से ९०,९५)=१०१, देना., ले. श्रा. चत्रसिंह कोठारी, (२९.५४१३.५, १५४६५). गोमट्टसारभाषा, हिन्दी, गद्य, आदि:-; अंतिः सन्दृष्टी जाननी. ३००४. शत्रुञ्जयउद्धार रास, अपूर्ण, वि. १८९९, मध्यम, पृ. १३-२(१० से ११)=११, जैदेना., ले.स्थल. अजमेर, ले. मु. वल्लभविजय, प्र.वि. ढाल-१२, (२९x१३.५, १०x२२). शत्रुजयतीर्थउद्धार रास, मु. नयसुन्दर, मागु., पद्य, वि. १६३८, आदिः विमल गिरिवर विमल; अंतिः देहि दरसण जय करे. ३०१५.” लघुशान्तिपूजा विधि, संपूर्ण, वि. १९३६, श्रेष्ठ, पृ. ९, जैदेना., ले.स्थल. लखनउ, ले. ऋ. गोकलचन्द्र (गुरु मु. गुणचन्द्र, विजयगच्छ), प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२७.५४१३, १४४३६-४०). लघुशान्तिपूजा विधि, सं.,मागु., पद्य, आदिः श्रीपंचपरमेष्ठी; अंतिः पद्रव दूर जावै. ३०१६. उपदेशमाला कथा, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १४, जैदेना., पू.वि. अन्त के पत्र नहीं हैं. कथा-२० अपूर्ण तक है., दशा वि. विवर्ण-पानी से अक्षरों की स्याही फैल गयी है-अल्प, (२७४११, १५-१६x४९-५०). उपदेशमाला-कथा* , मागु., गद्य, आदि:-; अंति:३०१७. जीवविचार प्रकरण सह टीका, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदेना., प्र.वि. मूल-गा.५१., त्रिपाठ, (२७.५४१३, ५ ७x३८). जीवविचार प्रकरण, आ. शान्तिसूरि, प्रा., पद्य, आदि: भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंति: रुद्दाओ सुयसमुद्दाओ. जीवविचार प्रकरण-टीका, सं., गद्य, आदिः अस्यां गाथायां; अंतिः तस्मातदिति गाथार्थः. ३०२२. कल्पसूत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ६०, जैदेना., प्र.वि. ९-व्याख्यान., (२७x१२.५, १०४३८-३९). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदिः णमो अरिहन्ताणं पढमं; अंतिः उवदंसेइ त्ति बेमि. ३०२३. चन्दराजा चौपाई, पूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ९४-१(१)+१(४५)=९४, जैदेना., प्र.वि. अध्याय-४ उल्लास, पू.वि. द्वितीय ढाल प्रथम गाथा तक नहीं है., (२५४१२.५, १३-१७४३१-३७). चन्द्रराजा रास, मु. मोहनविजय, मागु., पद्य, वि. १७८३, आदि:-; अंतिः वर्णव्या गुण चन्दना. ३०२४." नारचन्द्रज्योतिष सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३७-१(३२)=३६, जैदेना., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, पू.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं. प्रारंभ से परिच्छेद-२ श्लो.७ तक है., (२६.५४११, ६४३२). For Private And Personal Use Only Page #379 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ३२५ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ज्योतिषसार, आ. नरचन्द्रसूरि, सं., पद्य, आदिः श्रीअर्हन्तजिनं; अंति: नारचन्द्र ज्योतिष-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः माहरो श्रीअरिहन्त; अंति:३०२५. कल्पसूत्र सह टबार्थ+व्याख्यान+कथा, संपूर्ण, वि. १७८५, मध्यम, पृ. ११६, जैदेना., ले. मु. मेरुविजय (गुरु गणि मतिविजय), प्र.वि. मूल-९-व्याख्यान., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-कुछ पत्र, दशा वि. जीवातकृत छिद्र युक्त, विवर्ण-पानी से अक्षरों की स्याही फैल गयी है, (२६४११.५, ८-१४४३८-४३). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदिः णमो अरिहन्ताणं० पढमं; अंतिः उवदंसेइ ति बेमि. कल्पसूत्र-टबार्थ+व्याख्यान+कथा, आ. सोमविमलसूरि, मागु., गद्य, आदिः (१) नमस्कार हो अरिहन्त (२) ते काल चोथा आराने; अंतिः जम्बू प्रतइ. ३०२८.” कल्पसूत्र सह टबार्थ व व्याख्यान+कथा, पूर्ण, वि. १७७८, श्रेष्ठ, पृ. १४६-१३(१६,२० से २५,४२,५३,५८,६८,८७,१२९)=१३३, जैदेना., ले.स्थल. खिमलि, ले. गणि विद्याकुशल (गुरु पं. न्यायकुशल), पठ. गणि अजबकुशल (गुरु गणि विद्याकुशल).प्र.ले.पु. मध्यम,प्र.वि. मूल-९-व्याख्यान. प्रथम पत्र पर सामान्य रङ्गीन चित्र।, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२६४११, ६-१५४२९-३२). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: णमो अरिहन्ताणं० पढमं; अंतिः उवदंसेइ ति बेमि. कल्पसूत्र-टबार्थ , मागु., गद्य, आदिः (१) अरिहन्तनइ माहरो (२) ते कालनइ विषइ चतुर्थ; अंतिः भलइ गुरूक्त जणाविउ. कल्पसूत्र-व्याख्यान+कथा* , मागु., गद्य, आदि:-; अंतिः३०२९.” कल्पसूत्र सह टबार्थ व व्याख्यान+कथा, अपूर्ण, वि. १८८१, श्रेष्ठ, पृ. १७१-८(१९ से २२,२५ से २८)=१६३, जैदेना., ले.स्थल. मेडतानगर, ले. ऋ. चतुरचन्द; ऋ. हर्षचन्द, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. मूल-९-व्याख्यान. पीठिका का भी टबार्थ लिखा है., टिप्पण युक्त विशेष पाठ, पदच्छेद सूचक लकीरें, (२५.५४११.५, ६४३४-४४). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदिः णमो अरिहन्ताणं० पढमं; अंतिः उवदंसेइ त्ति बेमि. कल्पसूत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः ते. तिण कालेइ तिण; अंतिः भगवन्तै उपदिस्यै. कल्पसूत्र-व्याख्यान+कथा, सं., गद्य, आदि:-; अंति:३०३०." ज्ञाताधर्मकथाङ्गसूत्र, अपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १४७-२(१,७८)=१४५, जैदेना., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, पंचपाठ, पू.वि. प्रथम एक, बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., (२५४११, ११४४०). ज्ञाताधर्मकथाङ्गसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदि:-; अंति:३०३१. अणुत्तरोववाईदशाङ्गसूत्र, पूर्ण, वि. १९६१, श्रेष्ठ, पृ. १९-१(१)=१८, जैदेना., ले.स्थल. नागोर, प्र.वि. प्र.पु. ग्रं. २५०., (२८x१२.५, ५४४१). अनुत्तरौपपातिकदशाङ्गसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदिः-; अंतिः कहाणं तहा णेयव्वं. ३०३३. तत्त्वार्थसूत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ६, जैदेना., ले.स्थल. भीदङ-गुजरात, ले. मु. धनरूच दिगम्बरी, प्र.वि. अध्याय-१०. दिगम्बर मतमान्य प्रत. मूल सूत्र से संलग्न प्रारंभिक ४ श्लोक तथा अन्तिम स्वतन्त्र १२ श्लोक (प्रा.+सं.) दिगम्बरीय व्याख्यान का मांगलिक गाथा है., (२७.५४१२, १३-२०x४१-५४). तत्त्वार्थाधिगमसूत्र, वाचक उमास्वाति, सं., प+ग, आदिः सम्यग्दर्शनज्ञान; अंतिः ल्पबहुत्वत्तः साध्या. ३०३५. साधुआवश्यकसूत्र सङ्ग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १९, जैदेना., ले. भवानीदास, पठ. मु. महताबराम, (२७४११.५, ५४३३). साधुप्रतिक्रमणसूत्र सङ्ग्रह श्वे.मू.पू., संबद्ध, प्रा., प+ग, आदि: नमो अरिहन्ताणं; अंतिः खमामि सव्वस्स अहयंपि. ३०३७." भक्तामर स्तोत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ७, जैदेना., ले.स्थल. अघार, ले. मु. प्रेमसागर (गुरु मु. महिमासागर),प्र.वि. मूल-श्लो.४४., दशा वि. अक्षर फीके पड गये हैं, (२५४११.५, ४४४७). For Private And Personal Use Only Page #380 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य भाग - १ भक्तामर स्तोत्र, आ. मानवुङ्गसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलिमणि अंतिः समुपैति लक्ष्मी, भक्तामर स्तोत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः भक्त जे अमरदेवता; अंतिः करी प्रगटपणे को.. www.kobatirth.org: ३०३८. जिनसहस्रनाम स्तव, संपूर्ण, वि. १८२५, मध्यम, पृ. ५, जैदेना., ले. ऋ. मूला (गुरु आ. जयगोपालस्वामी), प्र. वि. गा. १०३. (२६.५४११, १३४४०). आत्मसहस्रनाम स्तोत्र भाषा, श्रा. बनारसीदास, प्राहिं., पद्य, वि. १६९०, आदिः परम देव परनाम करि; अंतिः प्रगट्यो नाम कवित्त. ३०३९. धर्मविलास भाषा-उपदेशशतक, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १३, जैदेना., पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. उपदेशशतक के उपदेश- ३१ व गा. ७४ तक है, (२८x१३, १३X२७). धर्मविलास भाषा, मागु., गद्य, आदि: गुण अनन्त करि सहित; अंतिः (क) ३०४०. भुवनदीपक सह टवार्थ व ज्योतिष, अपूर्ण, वि. १८१३, मध्यम, पृ. १५-८ (७ से १४) ७ पे २ जैदेना ले. स्थल, आमेटग्राम, ले. पं. कुसालविजय, पू.वि. श्लो. ७१ से १६८ अपूर्ण तक नहीं है., दशा वि. विवर्ण-पानी से अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दीमक भक्षित-अल्प, (२५x११, ६३६). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पे. १. पे. नाम. भुवनदीपक सह टबार्थ, पृ. १-१५आ, अपूर्ण भुवनदीपक, आ. पद्मप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३पू, आदि: सारस्वतं नमस्कृत्य; अंतिः श्रीपद्मप्रभसूरिभिः. भुवनदीपक-टबार्थ, मागु, गद्य, आदि सरस्वति सबन्धियो गह अंतिः आचायें कह्यो छई, पे.वि. मूल श्लो. १७४. बीच के पत्र नहीं हैं. पे. २. ज्योतिष, सं., मागु, पद्य, (पृ. १५आ, संपूर्ण), आदि # अंति# ३०४१. कलियुग सेनानी व आत्मोपदेश सज्झायादि, संपूर्ण वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ५, पे. ४, देना, ( २६४११, १९४५० ). · पे. १. कलियुग सेनानी, प्राहिं, पद्य वि. १८२८ (पृ. १अ-२अ) आदि नगर देख्या गाम सरिखा; अंतिः सावण सुदि जगिसारे रे, पे.वि. गा. ७६. पे. २. औपदेशिक सज्झाय, मु. मान, प्राहिं., पद्य, (पृ. २अ - ३आ), आदिः कीजीयै श्रीजिनदेव; अंतिः चूकिसि कवि मान कहि., पे.वि. गा. ३२. पे. ३. १२ भावना सज्झाय, मागु., पद्य, (पृ. ४अ - ४आ), आदि: जीव सुलक्षणा हो; अंतिः परम रयणत्तय गुणो., पे.वि. गा.१२. (+) पे. ४. उपदेशपच्चीसी, प्राहिं., पद्य, (पृ. ४आ-५आ), आदिः ध्यान धरो भगवन्त को; अंतिः के जरे न आकास जरेगो., पे.वि. गा. २७. (+) ३०४२. विचारमञ्जरी, संपूर्ण वि. १७वी, मध्यम, पृ. ६, जैदेना, प्र. वि. गा. १२७, संशोधित, ( २६४११, १३x४२ ). विचारमञ्जरी, आ. विजयदानसूरि, प्रा., पद्य, आदिः वन्दिय वीरजिणेसरदेव; अंतिः अविचल पदवी सिद्धनी ए. ३२६ (+4) ३०४३. कर्मविपाक सह स्वोपज्ञ टीका, पूर्ण, वि. १५७६, मध्यम, पृ. ३६- १ ( १ ) = ३५. जैदेना. ले. मु. विनयकीर्ति (गुरु आ. जिनचन्द्रसूरि खरतरगच्छ ), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. मूल-गा. ६० टीका ग्रं. १८८२. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, पू.वि. प्रथम गाथा नहीं है., प्र.ले. श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्टं, (२६×११.५, १६×५२). कर्मविपाक नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि:-; अंतिः लिहिओ देविन्दसूरीहिं. कर्मविपाक नव्य कर्मग्रन्थ-स्वोपज्ञ सुबोधा टीका, आ. देवेन्द्रसूरि सं. गद्य, आदि ३०४४ नेमीजिन चोक, संपूर्ण वि. १८७७, मध्यम, पृ. ७-१ (६) + १ (३) ७, जैदेना, ले. स्थल सुखसागर (तपगछ), प्र. वि. चोक-२२, (२५.५x१२, १३४३१). नेमिजिन चौवीसचोक, मु. अमृतविजय, मागु., पद्य, वि. १८३९, आदिः समर्या देवी सारदा; अंतिः अमृत गुण गाया. ३०४५. सूक्तमुक्तावलि, संपूर्ण वि. १८७४, मध्यम, पृ. १५ जैदेना ले. स्थल वल्लमीनगर, ले. मु. रविन्द्रसागर (गुरु मु. For Private And Personal Use Only अंतिः सरसीरुहचंचरीकैरिति. श्रीमालनगर, ले. पं. Page #381 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ३२७ www.kobatirth.org: Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची जीतसागर), प्र.ले.पु. मध्यम प्र. वि. श्लो. ९९, संशोधित पदच्छेद सूचक लकीरें, दशा वि. अक्षर फीके पड गये हैं, (२३.५४११.५ १०x२६). सिन्दूरप्रकर, आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य, आदिः सिंदूरप्रकरस्तपः; अंतिः सूक्तमुक्तावलीयम्. ३०४६.” विक्रमराजालीलावती चौपाई, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ७, जैदेना., प्र. वि. ग्रं. ३२५, ढाळ- १७, संशोधित, (२७१२, २०४५०% विक्रमचौबोली रास, वाचक अभयसोम, मागु., पद्य, वि. १७२४, आदि: वीणा पुस्तक धारणी; अंतिः मतिमन्दिर काजे सही. ३०४७. सिद्धाचल तीर्थमाला, अपूर्ण, वि. १८७८, मध्यम, पृ. ११-३ (१ से २,९) = ८, जैदेना., ले. स्थल. अजेदुर्ग, ले. लक्ष्मीचन्द्र, प्र. वि. बाळ - १० (२४.५४११.५ ११५३२). शत्रुंजयतीर्थमाला स्तवन, मु. अमृतरङ्ग, मागु., पद्य, वि. १८४०, आदि:-; अंतिः नीत नमो गीरीराया रे. ३०४८.” वैराग्यशतक सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १३ -४ (३,५ से ७) = ९, जैदेना., ले. ऋ. शिवजी (गुरु ऋ नारायणजी), प्र.वि. मूल-गा. १०५., टिप्पण युक्त विशेष पाठ, पू. वि. गा. १४ अपूर्ण से २३ अपूर्ण तक व ३२ से ५९ गाथा तक नहीं है. (२६.५५११, ५४३८). वैराग्यशतक, प्रा., पद्य, आदि: संसारंमि असारे नत्थि; अंतिः लहइ जिउ सासयं ठाणं. वैराग्यशतक-टबार्थ, मागु., गद्य, आदि: संसार असार अप्रधान; अंतिः सास्वतउ वा स्थानक. ३०५०. कयवन्ना चौपाई, संपूर्ण, वि. १९३०, मध्यम, पृ. ४६, जैदेना., ले. स्थल. बेडा, प्र. वि. गा. ५५५, ढाळ - ३१, (२५x११, १० ११४२८). कयवन्ना चौपाई, मु. जयतसी, मागु., पद्य, वि. १७२१, आदि: स्वस्ति श्रीसुख: अंतिः धरमकरण मन उलसेजी .. ३०५१.” कल्याणमन्दिर स्तोत्र सह टीका, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ७, जैदेना., ले. पं. गणपत, प्र. वि. मूल - श्लो.४४ टीका मात्र प्रथम पत्र पर ही है., दशा वि. विवर्ण-पानी से अक्षरों की स्याही फैल गयी है- अल्प, (२६×१२, ८x२७). कल्याणमन्दिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकर, सं., पद्य, (संपूर्ण), आदि: कल्याणमन्दिरमुदारमवद अंतिः मोक्षं प्रपद्यन्ते. कल्याणमन्दिर स्तोत्र- टीका, आ. गुणरत्नसूरि, सं., गद्य (अपूर्ण), आदि: श्रीपार्श्वजिनमानम्य: अंति--- ३०५२. जम्बू चरित्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ५५, जैदेना., प्र. वि. मूल - २१उद्देश. प्रतिलेखक द्वारा टबार्थ अपूर्ण. मात्र प्रथम उद्देश के प्रारंभिक अंश का टबार्थ है, (२५.५५११, ५०४५) जम्बू अध्ययन प्रकीर्णक, प्रा., गद्य, (संपूर्ण), आदि: तेणं कालेणं० रायगिहे अंति से आराहगा भणिया जम्बू अध्ययन प्रकीर्णक-टबार्थ *, मागु., गद्य, (अपूर्ण), आदि:-; अंतिः ३०५३.” कल्पसूत्र सह टबार्थ व व्याख्यान+कथा, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ८५-२१ (४४ से ५२,५४,७४ से ८४)=६४, जैदेना., प्र. वि. किंचित् व्याख्यान मारुगुर्जर भाषा में भी है., पू. वि. बीच-बीच व अंत के पत्र नहीं हैं. छट्ठे व्याख्यान के प्रारंभ तक है, दशा वि. अक्षरों की स्याही फेल गयी है, (२५४११, ६x२४). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा. गद्य, आदि णमो अरिहन्ताणं० पढमं अंतिः कल्पसूत्र - टबार्थी*, मागु., गद्य, आदि: ते० तिण कालेइ तिण; अंति: कल्पसूत्र - व्याख्यान + कथा*, सं., गद्य, आदि:-: अंति: ३०५७. नलदमयन्ति चौपाई, संपूर्ण वि. १८४८ मध्यम, पृ. ३०, जैदेना., ले. स्थल आउवानगर, ले. मु. क्षमासौभाग्य (गुरु गणि रामसौभाग्य), प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र. वि. खंड- ६, (२६X१०.५, १५४४३). नलदमयन्ती रास, उपा. समयसुन्दर गणि, मागु., पद्य, वि. १६७३, आदि: सीमन्धरस्वामी प्रमुख; अंतिः चतुर माणस चित्त वसी For Private And Personal Use Only Page #382 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य भाग - १ ३२८ ३०५९. उववाईसूत्र की वृत्ति, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ७०, जैदेना., पठ. पं. जससोम गणि, प्र.वि. ग्रं. ३१३५, (२४.५४११.५, १५४४८). औपपातिकसूत्र-टीका, आ. अभयदेवसूरि ,सं., गद्य, आदिः श्रीवर्द्धमानमानम्य; अंति: संशोधिता चेयम्. ३०६०." सम्बोधसित्तरी सह टबार्थ व पूजापरिणाम दृष्टान्त, संपूर्ण, वि. १७६२, मध्यम, पृ. ९, पे. २, जैदेना., ले.स्थल. श्रीमालपुर, ले. पं. नित्यसागर (गुरु पं. रूपसागर),प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२५४१०.५, ६x४२). पे. १. पे. नाम. सम्बोधसत्तरि सह टबार्थ, पृ. १-९आ सम्बोधसप्ततिका, आ. जयशेखरसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण तिलोअगुरुं; अंतिः लहई नत्थि सन्देहो. सम्बोधसप्ततिका-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः नमस्कार करीनइ; अंतिः ईहां सन्देह नही., पे.वि. मूल-गा.१०६; टबार्थ-परिमाण गा.१०६. पे. २. जिनपूजाफल दृष्टान्त, मागु., गद्य, (पृ. ९आ), आदिः एक दरिद्र स्त्री; अंतिः पामीस्यइ इम कथा कही. ३०६१. कालसत्तरिकाप्रमाण सह टबार्थ, पूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ९-१(७)=८, जैदेना., प्र.वि. मूल-गा.७४., पू.वि. गाथा ५५ से ६० नहीं है., (२६४११, ५४४०). कालसप्ततिका, आ. धर्मघोषसूरि , प्रा., पद्य, आदिः देविन्दणयं; अंतिः कालसरूवं किमवि भणियं. कालसप्ततिका-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः इन्द्र महाराय पण; अंतिः सरुप कांइक ए कहिउ. ३०६२. गौतम कुलक सह टीका व कथा, संपूर्ण, वि. १८१०, श्रेष्ठ, पृ. १२, जैदेना., ले.स्थल. अहीनलाग्राम, ले. मु. रूपविजय, प्र.वि. मूल-गा.२०. मूल में प्रतिलेखन वर्ष १८१० तथा टबार्थ में १८११ दिया हुआ है.,प्र.ले.श्लो. (२४५) जब लगें मेरु अडग हे; (५३३) मङ्गलं लेखकानां च; (५५१) चोरानलादुदकेभ्यो, (२५४११, १-२४३४). गौतम कुलक, प्रा., पद्य, आदिः लुद्धा नरा अत्थपरा; अंतिः सुहं लहन्ति. गौतम कुलक-टबार्थ+कथा, मागु., गद्य, आदिः अर्थोपार्जनइं तत्परा; अंतिः लहे शालिभद्रनी परे. ३०६३. जीवविचार प्रकरण सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७११, मध्यम, प्र. ५, जैदेना., ले.स्थल. टुंकनगर, ले. मु. उदयहर्ष, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. मूल-गा.५१., (२५.५४११, ७४२६). जीवविचार प्रकरण, आ. शान्तिसूरि, प्रा., पद्य, आदिः भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंतिः रुद्दाओ सुयसमुद्दाओ. जीवविचार प्रकरण-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः त्रिभुवन मांहि दिवान; अंतिः सिद्धान्त मांहिस्यु. ३०६५. प्रतिक्रमणसूत्र सङ्ग्रह व महावीर स्तवन, संपूर्ण, वि. १९००, मध्यम, पृ. ८,पे. २, जैदेना., (२७४१२.५, १४४३३). पे. १.पे. नाम. प्रतिक्रमणसूत्र सङ्ग्रह खरतरगच्छीय, पृ. ०१-०६अ साधुश्रावकप्रतिक्रमणसूत्र सङ्ग्रह-खरतरगच्छीय, संबद्ध, प्रा.,सं., प+ग, आदि: णमो अरिहन्ताणं; अंतिः (१)समुन्नइ निमित्तं (२)सेसो संसार फलहेऊ. पे. २. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. ६अ-८अ दुरियरयसमीर स्तोत्र, आ. जिनवल्लभसूरि, प्रा., पद्य, आदिः दुरिअरयसमीरं मोह; अंतिः सया पायप्पणामो तुह., पे.वि. गा.४४. ३०६६." क्षेत्रसमास-विचार सङ्क्षिप्त, पूर्ण, वि. १८५७, मध्यम, पृ. २८-२(१ से २)=२६, जैदेना., ले.स्थल. सीरोहीनगर, ले. मु. जीवविजय, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, दशा वि. विवर्ण-पानी से अक्षरों की स्याही फैल गयी है, (२४४१३, १३४३७). लघुक्षेत्रसमास-विचार*, संबद्ध, सं., गद्य, आदि:-; अंतिः सुत्रथी जाणवो. ३०६७." नयचक्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, जैदेना.,प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, पदच्छेद सूचक लकीरें संधि सूचक चिह्न-वचन विभक्ति संकेत, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., (२७.५४१२, ७४३८). For Private And Personal Use Only Page #383 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ३२९ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची नयचक्रसार, गणि देवचन्द्र, सं., गद्य, वि. १८वी, आदिः गुणानां विस्तरं; अंति: नयचक्र-टबार्थ, मागु., गद्य, आदि: गुणनो विस्तार वक्षे; अंति:३०६९. बारे भावना, संपूर्ण, वि. १९३७, श्रेष्ठ, पृ. ९, जैदेना., ले.स्थल. अजयनगर, ले. नन्दलाल शर्मा, (२७७१३.५, १२४३५). १२ भावना, राज., पद्य, आदिः हे रे जीव गढ मड; अंतिः मोरा देवी माताने भाई. ३०७१. अजितशान्ति स्तव, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना., पठ. साध्वीजी पद्माबाई, प्र.वि. गा.४०, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२३.५४११, १०४३३). अजितशान्ति स्तव , आ. नन्दिषेणसूरि, प्रा., पद्य, आदिः अजियं जिय सव्वभयं; अंतिः जिणवयणे आयरं कुणह. ३०७२. वीरपञ्चकल्याणक वधावा व पञ्चमअनुत्तरविमान वर्णन, संपूर्ण, वि. १८७३, श्रेष्ठ, पृ. ५, पे. २, जैदेना., ले.स्थल. पाडीव, ले. पं. उत्तमविजय, (२३४११, ११४३०). पे. १. महावीरजिन पञ्चकल्याणक स्तवन, मु. दीपविजय, मागु., पद्य, (पृ. १-५), आदिः वन्दी जगजननी ब्रह्मा; अंतिः फल महाराज वाला., पे.वि. ढाळ-५. पे. २. पंचमअणुत्तरविमान वर्णन, मागु., गद्य, (पृ. ५आ), आदिः पाञ्चमा अनुत्तर; अंतिः छेद आमुलीनु जाणवु. ३०७३. सुक्तावली, षट्दर्शनभेद व शान्तिजिन पद, संपूर्ण, वि. १८५६, श्रेष्ठ, पृ. १३, पे. ३, जैदेना., ले.स्थल. जावाल, ले. पं. ___ कान्तिविजय (गुरु पं. केसरविजय), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. प्र.पु. सुमतिजिन प्रसादात्., (२५.५४१२, १५४३८). पे. १. सूक्तावली, सं.,प्रा.,मागु., पद्य, (पृ. १-१३आ), आदिः वीरं विश्वगुरुं; अंतिः धुति मे वितर्कः., पे.वि. श्लो.२६०. पे. २.६ दर्शन विचार, मागु., पद्य, (पृ. १३आ), आदि: जैनदर्शन देव अरिहन्त; अंति: योगी पृथ्वीनुं दर्शन., पे.वि. गा.६. पे. ३. शान्तिजिन स्तवन, मु. हर्षचन्द, प्राहिं., पद्य, (पृ. १३आ), आदिः चित चाहत सेवा चरण; अंतिः भीत मिटावो मरण की., पे.वि. गा.४. ३०७४. माधवानलकामकन्दला चौपाई व श्लोक, संपूर्ण, वि. १७७०, मध्यम, पृ. २०, पे. २, जैदेना., ले.स्थल. भीलोडाग्राम, ले. मु. ब्रह्म भीमजी (गुरु आ. अमरकीर्ति), गच्छा . आ. कुन्दकुन्द, प्र.ले.पु. मध्यम, (२५४१०.५, १३-१५४४८). पे. १. माधवानल चौपाई, वाचक कुशललाभ, मागु., पद्य, वि. १६१६, (पृ. १-२०अ), आदिः देवि सरसति देवि; अंतिः सुख पामइ नरनारि., पे.वि. गा.५५५. पे. २. श्लोक सङ्ग्रह', सं.,प्रा.,मागु.,हिन्दी, पद्य, (पृ. २०अ), आदिः#; अंतिः#. ३०७६." भावना, बारभावना व आत्मनिन्दा, संपूर्ण, वि. १९४१, श्रेष्ठ, पृ. १८, पे. ३, जैदेना.,प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२४.५४१३.५, ८x२१). पे. १. आत्मभावना, मागु., प+ग, (पृ. १अ-२अ), आदिः धन्य हो प्रभु संसार; अंतिः करी वन्दण होज्यो. पे. २. १२ भावना, मागु., गद्य, (पृ. २आ-१०अ), आदिः प्रथम अनित्य भावना; अंतिः अठाणुं पुत्रजीने भाई. पे. ३. आत्मनिन्दा भावना, मु. ज्ञानसार, प्राहिं., गद्य, (पृ. १०अ-१८आ), आदिः हे आत्मा हे चेतन ऐ; अंतिः सो नर सुगुण प्रवीन. ३०८०. आचाराङ्गसूत्र, अपूर्ण, वि. १६वी, श्रेष्ठ, पृ. ५८-४८(१ से ४७,४९)=१०, जैदेना., प्र.वि. तीन पन्नों के पत्रांक भाग फटे होने से पत्रांक अस्पष्ट है कुल पत्र सङ्ख्या १३ है., पदच्छेद सूचक लकीरें-अल्प मात्रा में, संशोधित, पू.वि. बीच के पत्र हैं. आंशिक शय्यैषणा से इर्या के कुछ आगे तक पाठ है., (२७४११, १३४४२-४७). आचाराङ्गसूत्र , आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदि:-; अंति:३०८१." प्रतिक्रमणसूत्र सङ्ग्रह (स्थानकवासी), पूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ७-२(१,४)=५, जैदेना., प्र.वि. अक्षर-दुर्वाच्य, दशा वि. विवर्ण-पानी से अक्षरों की स्याही फैल गयी है-अल्प, जीवातकृत छिद्र युक्त, (२५४११, १५४४०). साधुश्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-स्थानकवासी, संबद्ध, प्रा. गुज., प+ग, (अपूर्ण), आदिः-; अंति: For Private And Personal Use Only Page #384 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य भाग - १ ३३० ३०८३. कथा सङ्ग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २१, जैदेना., पू.वि. अन्त के पत्र नहीं हैं. प्रारंभ से २८वी कथा तक है., दशा वि. अक्षर फीके पड गये हैं-अल्प, (२३.५४११, १२४३५). द्रष्टान्तकथा सङ्ग्रह*, मागु., गद्य, आदि:-; अंति:३०८६. मुनिवरसुरवेलि, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ५, जैदेना., पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. गा.७० तक है., (२५४११, ११४३६). साधुवन्दना, उपा. सकलचन्द्रगणि, मागु., पद्य, आदिः तुं जिनवदन कमलनी; अंति:३०८७." व्याख्यान सङ्ग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५, जैदेना., प्र.वि. संशोधित, (२४.५४१०.५, १३४४०). व्याख्यान सङ्ग्रह*, सं.,मागु., गद्य, आदिः श्रीशान्तिनाथादपरो; अंतिः षडेते जगतीतलेस्मिन्. ३०८८. ध्यानमाला, संपूर्ण, वि. १८३९, श्रेष्ठ, पृ. ८, जैदेना., ले.स्थल. वटपद्रनगर, प्र.वि. ढाल-६+कलश, (२६४११.५, १२४३५). ध्यानमाला, श्रा. नेमीदास, मागु., पद्य, वि. १७६६, आदिः श्रीजिनवाणी प्रणमन; अंतिः नेमीदासे व्रतधारि. ३०८९. पार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ११, जैदेना., ले.स्थल. केलवाड, प्र.वि. ढाळ-१४, (२४४११, १०४३२). पार्श्वजिन स्तवन, मु. नेमविजय, मागु., पद्य, वि. १८७७, आदिः भावधरी भजन करु आपे; अंतिः अम घर रङ्ग वधामणा. ३०९०. शालीभद्र चौपाई व अमृतसिद्धियोग श्लोक, पूर्ण, वि. १७४६, मध्यम, पृ. २१-१(१८)=२०, पे. २, जैदेना., ले.स्थल. राजनगर, ले. मु. जीतविजय (गुरु गणि जसविजय), दशा वि. विवर्ण-पानी से अक्षरों की स्याही फैल गयी है-अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, (२४४११, १२-१४४३७). पे. १. धन्नाशालिभद्र रास, मु. मतिसार, मागु., पद्य, वि. १६७८, (पृ. १-२१आ, पूर्ण), आदिः शासननायक समरीइं; अंतिः मनवञ्छित फल लहिस्यइ., पे.वि. बीच का एक पत्र नहीं है. पे. २. श्लोक सङ्ग्रह*, सं.,प्रा.,मागु.,हिन्दी, पद्य, (पृ. २१आ, संपूर्ण), आदिः#; अंतिः#. ३०९१." सम्बोधसत्तरी सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १६, जैदेना., प्र.वि. मूल-गा.१०५; टबार्थ-ग्रं. ७९४., (२५४११, ४४३४). सम्बोधसप्ततिका, आ. जयशेखरसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण तिलोअगुरुं; अंतिः लहई नत्थि सन्देहो. सम्बोधसप्ततिका-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः नमस्कार करीनै; अंतिः ईहां सन्देह नही. ३०९३." जातकपद्धति सह टबार्थ स श्लोक सङ्ग्रह, संपूर्ण, वि. १८७६, श्रेष्ठ, पृ. ९, पे. २, जैदेना., ले.स्थल. व्यालपुर, ले. मु. मयासागर,प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, पदच्छेद सूचक लकीरें, (२५४११, ७४४३). पे. १. पे. नाम, जातकपद्धति सह टबार्थ, पृ. १-९आ। जातक पद्धति, मु. हर्षविजय, सं., पद्य, वि. १७६५, आदिः प्रणम्य पार्श्वदेवेश; अंतिः एषा जातकदीपिका. जातकपद्धति-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः श्रीपार्श्वदेव प्रतै; अंति: जातिक दीपका रचिता., पे.वि. मूल-श्लो.९३. पे. २. चोरस्थानक परीक्षा, मागु., पद्य, (पृ. ९आ), आदिः मेष वृषि २ चोर; अंतिः कन्या तुलै जल नजिक., पे.वि. गा.१. ३०९७. नवाणुप्रकारी पूजा, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदेना., ले.स्थल. सिणोर, ले. वाचक रामविजय (गुरु गणि गजविजय, तपागच्छ), प्र.वि. प्र.पु. गा.१०८., (२६४११.५, १२४२६). ९९ प्रकारी पूजा, पं. वीरविजय, मागु., पद्य, वि. १८८४, आदिः श्रीशोसर पासजी; अंतिः आतम आप ठवायो रे. ३०९८. स्नात्रपूजा विधि सहित, संपूर्ण, वि. १८३३, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना., ले.स्थल. ध्राणकपुर, ले. मु. दीपसागर, (२६.५४११.५, ११४३९). स्नात्र पूजा, आ. मङ्गलसूरि, मागु., पद्य, वि. १३वी, आदिः पूर्वे बाजोट उपरि; अंतिः (१)भविया पुजो एह ज देव (२)उतारी राजा कुमारपाले. For Private And Personal Use Only Page #385 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ३३१ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ३१००. वसुधारा व पठनविधि, संपूर्ण, वि. १८७९, श्रेष्ठ, पृ. ५, पे. २, जैदेना., ले.स्थल. जालोर, ले. मु. कस्तूरविजय, (२७.५४१२, १४४३८). पे. १. वसुधारा, सं., गद्य, (पृ. १-४आ), आदिः संसारद्वयदैन्यस्य; अंतिः भाषितमभ्यनन्दन्निति. पे. २. वसुधारा विधि, संबद्ध, मागु., गद्य, (पृ. ४आ-५), आदिः पुत्रवती स्त्री पासे; अंतिः शिखाइ वषट् स्वाहा. ३१०१. शत्रुञ्जय तीर्थमाला, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदेना., ले.स्थल. दधिपुर, ले. मु. रामचन्द्र, प्र.वि. ढाळ-१०, (२७४१२, १५४४५). शत्रुजयतीर्थमाला स्तवन, मु. अमृतरङ्ग, मागु., पद्य, वि. १८४०, आदिः विमलाचल वाल्हा वारू; अंतिः अमृतरङ्ग सुहङ्करू. ३१०२. स्तवन चौवीसी व सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८४६, श्रेष्ठ, पृ. ७, पे. २, जैदेना., ले.स्थल. भीनमाल, ले. पं. खुशाल (गुरु जगनाथजी), प्र.ले.पु. मध्यम, (२६४१२, १५४४१). पे. १. स्तवनचौवीसी, मु. रामविजय, मागु., पद्य, (पृ. १-७अ), आदिः ओलगडी आदिनाथनी; अंतिः रामविजय जयश्री लही., पे.वि. ढाळ-२४ स्तवन. पे. २. चेतनसुमतिमिलन सज्झाय, मु. रूपचन्द, मागु., पद्य, (पृ. ७अ-७आ), आदिः अवीनासीनी सेजडीइं; अंतिः प्रीत बिन्धाणीजी., पे.वि. गा.६. ३१०३. चतुःशरण प्रकरण सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७७८, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदेना., ले. गणि अमरविजय, प्र.वि. मूल-गा.६३., (२६.५४१२, ५४३७). चतुःशरण प्रकीर्णक, गणि वीरभद्र, प्रा., पद्य, आदिः सावज्ज जोग विरई; अंतिः कारणं निव्वुइ सुहाणं. चतुःशरण प्रकीर्णक-टबार्थ, गणि लाभकुशल, मागु., गद्य, आदिः प्रणम्य श्रीमहावीरं; अंतिः सुखनुं दातार छइं. ३१०६. विक्रम चौपाई, अपूर्ण, वि. १६५९, श्रेष्ठ, पृ. १०-५(१,४ से ५,८ से ९)=५, जैदेना., ले.स्थल. चांवडनगर, ले. साह नाका, पठ. गणि प्रीतिसागर, प्र.ले.पु. मध्यम, पू.वि. प्रथम व बीच के पत्र नहीं हैं., दशा वि. जीवातकृत छिद्र युक्त, विवर्ण-पानी से अक्षरों की स्याही फैल गयी है, (२६४१०.५, १०४३८). विक्रमराजा चौपाई, मागु., पद्य, आदि:-; अंति: ग्रहइ विग्रहि समुरे. ३१११. वज्जालग्ग, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदेना., पू.वि. अन्त के पत्र नहीं हैं. गा.१४८ तक है., (२६x११, १३४३२). वज्जालग्गं, मु. जगवल्लभ, प्रा., पद्य, आदिः सव्वन्नुवयणं पङ्कय; अंति:३११३. मलयसुन्दरी चरित्र, अपूर्ण, वि. १८वी, जीर्ण, पृ. २२, जैदेना., पू.वि. अन्त के पत्र नहीं हैं. गा.८०३ तक है., (२६४१२, १५४४७). मलयासुन्दरी चरित्र, प्रा., पद्य, आदिः पणयपयकमलसुरयणां; अंति:३११४. भगवतीसूत्रग्रन्थ विषयानुक्रमणिका, संपूर्ण, वि. १९६८, श्रेष्ठ, पृ. १५-१(१४)+१(१३)=१५, जैदेना., (२८x११.५, ३० ३८x२२-२४). भगवतीसूत्र-बीजक, मागु., गद्य, आदि:#; अंतिः #. ३११५. जिनवस्त्रादिपूजा विधि, अष्टप्रकारी पूजा व काकोदरेश्वर स्तुति, अपूर्ण, वि. १८७६, श्रेष्ठ, पृ. १२-७(१ से ७)=५, पे. ३, जैदेना., ले.स्थल. पाटलीपुर, ले. गौतमचन्द्र, (२५४१२, १२४३४). पे. १. जिनवस्त्रादिपूजा विधि, मागु., पद्य, (पृ. -८अ-८आ, अपूर्ण), आदिः-; अंतिः-, पे.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. पे. २. पे. नाम. लघ्वी अष्टप्रकारी पूजा, पृ. ९अ-१२आ, संपूर्ण ८ प्रकारी लघुपूजा, मागु., पद्य, आदिः स्वस्ति श्रीसुखपूरवा; अंति: चाष्टकर्मक्षयाय. पे. ३. काकोदरेश्वर स्तुति, सं., पद्य, (पृ. १२आ, संपूर्ण), आदिः इहाष्टधा जिनार्चनं; अंतिः वल्लभो भवेत् सदा., पे.वि. श्लो.८. For Private And Personal Use Only Page #386 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य भाग - १ ३३२ ३११७. उपासकदशाङ्गसूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ८, जैदेना., पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. प्रारंभ के कुछ अंश तक _है., (२६.५४१०.५, ६x४५). उपासकदशाङ्गसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदिः तेणं० चंपा नामं नयरी; अंति:३११८. चतुर्मासिक व्याख्यान व अतिचार विवरण, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २२, पे. २, जैदेना., (२५.५४१२, १३४३३). पे. १. चातुर्मासिक व्याख्यान, प्रा.,राज., पद्य, (पृ. १-२२), आदिः सामायिकावश्यक ; अंतिः मिच्छामिदुक्कडं दैणो. पे. २. पे. नाम. अतिचार विवरण-वन्दारुवृत्तौ, पृ. २२आ अतिचार विवरण, संबद्ध, सं., गद्य, आदिः ननु कथं बन्धादयोति; अंतिः सर्वत्रातिचारतावसेया. ३११९." प्रश्नव्याकरण सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना.,प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. प्रारंभिक कुछ अंश तक मूल तथा प्रथम पत्र पर ही टबार्थ है., (२४.५४१२, ४४२९). प्रश्नव्याकरणसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदि: जम्बू इणमो अण्हयसंवर; अंति: प्रश्नव्याकरणसूत्र-टबार्थ', मागु., गद्य, आदिः अहो जम्बू हुं धुरै; अंति:३१२०. बोल सङ्ग्रह (लघु दण्डकादि), अपूर्ण, वि. १९३५, श्रेष्ठ, पृ. ४५-१५(८,२१,३२ से ४४)=३०, जैदेना., ले. ऋ. भैरुदास, (२४.५४११, १६४३९). लघुदण्डकभेद बोल, मागु., गद्य, आदिः शरीर ओगाहणा सङ्घयण; अंतिः केवली मे वासुदेव नही. ३१२१. नवतत्त्व का बालावबोध व देव सम्बन्धित विचार, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १२, पे. २, जैदेना., पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. क्रिया-२५ तक ही लिखा है., (२४.५४१०.५, २१-२२४८४). पे. १. पे. नाम. नवतत्त्व का बालावबोध, पृ. १अ-१२आ, अपूर्ण नवतत्त्व प्रकरण-बालावबोध, मागु., गद्य, आदिः प्रथम जीवतत्त्वं; अंतिः-, पे.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. २५ क्रिया तक लिखा है. पे. २. पे. नाम. देव सम्बन्धित विचार, पृ. १२आ, संपूर्ण ___ जैन सामान्यकृति-पेटाक बाकी*, सं.,प्रा.,मागु., प+ग, आदि: #; अंति:#. ३१२२." स्नात्रपूजा सङ्ग्रह विधि सहित, श्लोक व सवैया, संपूर्ण, वि. १८वी, जीर्ण, पृ. ५, पे. ३, जैदेना., दशा वि. किनारी अधिक उपयोग के कारण खंडित है, विवर्ण-पानी से अक्षरों की स्याही फैल गयी है, (२५४१०.५, १५४४४). पे. १. स्नात्रपूजा सङ्ग्रह', मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, सं.,प्रा.,मागु., प+ग, (पृ. १-५), आदिः (१) नमो अरिहन्ताणं (२) ____ मुक्तालङ्कार विकार; अंतिः (१)समकित सुजस सवायो रे (२)भविआ पूजो एहिज देव. पे. २. श्रृङ्गार श्लोक, सं., पद्य, (पृ. ५अ-५आ), आदिः हे कान्तिकुचभार; अंतिः किद्धकरण भुक्तम्., पे.वि. श्लो.२. पे. ३. औपदेशिक सवैया* , प्राहिं., पद्य, (पृ. ५आ), आदि: देह अचेतन प्रेत धरी; अंतिः क्युं न देह की यारी., पे.वि. गा.१. ३१२३. उपदेश पद, बावनी व श्लोक सङ्ग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २७-१(२२)=२६, पे. ३, जैदेना., पू.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., (२४४११, १९४४४). पे. १. औपदेशिक पद, प्राहिं., पद्य, (पृ. १अ-१३अ, संपूर्ण), आदिः जीवन की चाह हुवें; अंतिः बंश की बात न्यारी., पे.वि. गा.१९२. पे. २. उपदेशबावनी, ऋ. लालचन्द, प्राहिं., पद्य, वि. १८७०, (पृ. १३अ-१७अ, संपूर्ण), आदिः सरस वचन सरस्वति तणा; अंतिः पण्डित अति घणु जाण., पे.वि. गा.५३. पे. ३. श्लोक सङ्ग्रह', सं.,प्रा.,मागु.,हिन्दी, पद्य, (पृ. १७अ-२७आ-, अपूर्ण), आदि:-; अंतिः-, पे.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं. ३१२८. नेमीजिन रास, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदेना., पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. गा.४९ तक है., (२७४१३, ९४२२). For Private And Personal Use Only Page #387 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ३३३ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची नेमिजिन रास, मागु., पद्य, आदिः सरसति सामणि पाय; अंतिः३१२९. पदादि सङ्ग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ९-२(४,६)=७, पे. ५३, जैदेना., (२५४१२, २०४५७). पे. १. मेवाडदेश छन्द, कवि जिनेन्द्र, राज., पद्य, (पृ. १अ, संपूर्ण), आदिः मण धर माता भारति; अंतिः मत दीजो आदेश., पे.वि. गा.११. पे. २. धन्नाकाकन्दी सज्झाय, मु. राम, राज., पद्य, वि. १९३०, (पृ. १अ, संपूर्ण), आदिः धन्नोजी तो नावे ने; अंतिः नितनित वन्दो पाय., पे.वि. गा.६. पे. ३.धर्मशरण पद, मु. राम, प्राहिं., पद्य, (पृ. १अ-१आ, संपूर्ण), आदिः धन भी छोडूं घर भी; अंतिः महिमा किम जोडु., पे.वि. गा.६. पे. ४. महावीरजिन पद, मागु., पद्य, (पृ. १आ, संपूर्ण), आदिः कुन्डनपुर अवतर्या; अंतिः निरखे थोभ विमान., पे.वि. गा.८. पे. ५. जीवदया पद, सन्तोष, राज., पद्य, (पृ. १आ, संपूर्ण), आदिः अणछण्या पाणी भर लावे; अंतिः तुम शीवपुर सिद्धाई., पे.वि. गा.११. पे.६. औपदेशिक पद, राज., पद्य, (पृ. १आ-२अ, संपूर्ण), आदिः प्रबल प्रताप करि; अंतिः इसो काम पापी., पे.वि. गा.८. पे. ७. वाणी पद, ऋ. रतनचन्द, राज., पद्य, (पृ. २अ, संपूर्ण), आदिः हे रसना विगर विचारि; अंतिः कर लीनो छे कोल., पे.वि. गा.५. पे. ८. औपदेशिक पद, कबीर, प्राहिं., पद्य, (पृ. २अ, संपूर्ण), आदिः ममता वीन दोरी न रहै; अंतिः साधो विरला पार लहे.,पे.वि. गा.४. पे. ९. बाहुबली सज्झाय, राज., पद्य, (पृ. २अ, संपूर्ण), आदिः आदिनाथजी ब्राह्मी; अंतिः देव जय जय गाय., पे.वि. गा.९. पे. १०. मंगलानन्द पद, मङ्गलानन्द, प्राहिं., पद्य, (पृ. २अ, संपूर्ण), आदिः मेरा हीरा गमा दिया; अंतिः पया वहां हजरे मे., पे.वि. गा.४. पे. ११. दानशीलतपभाव पद, राज., पद्य, (पृ. २अ-२आ, संपूर्ण), आदिः दवया ले लो सत गुरु; अंति: क्यों नही लेती., पे.वि. गा.४. पे. १२. हरिभजन पद, प्राहिं., पद्य, (पृ. २आ, संपूर्ण), आदिः सुनेरी मैने निर्बल; अंतिः सबबल हारे को हर नाम., पे.वि. गा.३. पे. १३. औपदेशिक पद, कबीर, राज., पद्य, (पृ. २आ, संपूर्ण), आदिः तु तो राम सुमर जग; अंतिः नरक पचत वाको पचवा दे., पे.वि. गा.३. पे. १४. बुढ़ापा पद, दुर्लभ, मागु., पद्य, (पृ. २आ, संपूर्ण), आदिः घडपण म्हारे नथि जोतो; अंतिः नाम लीजीए रे., __पे.वि. गा.६. पे. १५. श्रावककरणी पद, राज., पद्य, (पृ. २आ-३अ, संपूर्ण), आदिः आभरं परिग्रह छाडिने; अंतिः ए श्रावक मन चिन्तवे., पे.वि. गा.१२. पे. १६. श्रावकचारप्रकार पद, श्रा. मोतीचन्द, मागु., पद्य, वि. १८३६, (पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण), आदिः वर्धमान शासन धणी; अंतिः साम्भलजो नरनारजी., पे.वि. गा.३६. पे. १७. यौवन पद, राज., पद्य, (पृ. ३आ-, अपूर्ण), आदिः जोवन मे जोर जालम; अंतिः-, पे.वि. अंतिम पत्र नहीं है. पे. १८. गजसुकुमाल सज्झाय, मु. जिनदास, राज., पद्य, (पृ. ५अ, संपूर्ण), आदिः कमलानो फुल प्यारो; अंतिः धन थारो अवतारो रे., पे.वि. गा.५. For Private And Personal Use Only Page #388 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ३३४ हस्तलिखित जैन साहित्य भाग - १ पे. १९. औपदेशिक पद, मु. जिनदास, राज., पद्य, (पृ. ५अ, संपूर्ण), आदिः सन्तो भाइ कुवे भाङ्ग; अंतिः दूरगत दूर खडी रे., पे.वि. गा.५. पे. २०. आध्यात्मिक पद, मु. जिनदास, प्राहिं., पद्य, (पृ. ५अ, संपूर्ण), आदिः मुनीवरजी को दाव नही; अंतिः जनम गयो तेरो वइ., पे.वि. गा.५. पे. २१. औपदेशिक पद, प्राहिं., पद्य, (पृ. ५अ, संपूर्ण), आदिः रहम जो करता है बदला; अंतिः असर हो जाएगा., पे.वि. गा.६. पे. २२. औपदेशिक पद, प्राहिं., पद्य, (पृ. ५अ, संपूर्ण), आदिः जुल्म कर करके जलीलों; अंति: गवाते न चलो., पे.वि. गा.४. पे. २३. औपदेशिक पद, प्राहिं., पद्य, (पृ. ५आ, संपूर्ण), आदिः जुलम करना छोड दै; अंतिः वस्ले वुता के वास्ते., पे.वि. गा.८. पे. २४. मांसभक्षणफल पद, वासुदेव, प्राहिं., पद्य, (पृ. ५आ, संपूर्ण), आदिः देखो कर ध्यान मांस; अंतिः मिलेगा नरक महान., पे.वि. गा.८. पे. २५. जगतअस्थिरता पद, मागु., पद्य, (पृ. ५आ, संपूर्ण), आदिः जाय छे जगत चाल्युं; अंति: पण ते मरण पाम्या रे., पे.वि. गा.११. पे. २६. औपदेशिक पद, चरणदास, प्राहिं., पद्य, (पृ. ५आ, संपूर्ण), आदिः पिले रे अब तुं हो; अंतिः रूप भर्या विसका रे., पे.वि. गा.८. पे. २७. मनुष्यभव पद, ऋ. रतनचन्द, राज., पद्य, (पृ. ५आ, संपूर्ण), आदि: मानवरो भव मत जाय रे; अंति: सफल फले मन आसा., पे.वि. गा.७. पे. २८. आध्यात्मिक पद, मु. जिनदास, प्राहिं., पद्य, (पृ. ७अ, संपूर्ण), आदिः सिध स्वरूप सदा पद; अंतिः मिलायो धुले रे., पे.वि. गा.४. पे. २९. आध्यात्मिक पद, मु. जिनदास, प्राहिं., पद्य, (पृ. ७अ, संपूर्ण), आदिः झझुटि उपरवत् तम छो; अंतिः निग्रन्थ को मत तानिए., पे.वि. गा.३. पे. ३०. आध्यात्मिक पद, मु. जिनदास, प्राहिं., पद्य, (पृ. ७अ, संपूर्ण), आदिः चाल एहि थे जग ताणा; अंतिः जिनदास एसा धिठा हो., पे.वि. गा.४. पे. ३१. आध्यात्मिक पद, मु. जिनदास, प्राहिं., पद्य, (पृ. ७अ, संपूर्ण), आदिः सुक्रत विण सम्पति; अंतिः पण त्रसना नहि तोडे., पे.वि. गा.६. पे. ३२. आध्यात्मिक पद, मु. जिनदास, प्राहिं., पद्य, (पृ. ७अ, संपूर्ण), आदिः तन वस्त्र कुं रङ्ग; अंतिः मोटो लगायो दागो रे.,पे.वि. गा.५. पे. ३३. आध्यात्मिक पद, मु. जिनदास, प्राहिं., पद्य, (पृ. ७अ, संपूर्ण), आदिः ज्ञान नही पाया नही; अंतिः लोकाने उर दीखाया., पे.वि. गा.४. पे. ३४. आध्यात्मिक पद, मु. जिनदास, मागु., पद्य, (पृ. ७अ, संपूर्ण), आदिः समकित की सरधा सुध; अंतिः खाण्ड खोपरा खाया., पे.वि. गा.४. पे. ३५. आध्यात्मिक पद, मु. जिनदास, प्राहिं., पद्य, (पृ. ७अ, संपूर्ण), आदिः मोटो विष हे विषयन; अंतिः जिनदासे गुणगायो हे.,पे.वि. गा.४. पे. ३६. आध्यात्मिक पद, मु. जिनदास, प्राहिं., पद्य, (पृ. ७अ-७आ, संपूर्ण), आदिः परभव मे मेरो कोइय न; अंतिः कर जिनदास गम खाई है., पे.वि. गा.८. पे. ३७. आध्यात्मिक पद, मु. जिनदास, प्राहिं., पद्य, (पृ. ७आ, संपूर्ण), आदिः पर भव में मेरो समरथ; अंतिः एही मति मुज भाई है., पे.वि. गा.८. For Private And Personal Use Only Page #389 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ३३५ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची पे. ३८. औपदेशिक पद, मु. नेमिचन्द, प्राहिं., पद्य, वि. १९७४, (पृ. ७आ, संपूर्ण), आदि: अरे टेडि रे पगडी पग; अंतिः जब चोमासा ठाया रे., पे.वि. गा.१३. पे. ३९. मनुष्यभवदुर्लभता पद, प्राहिं., पद्य, (पृ. ७आ, संपूर्ण), आदिः प्रभु का नाम लेने; अंतिः वोही तो सङ्ग आती है., पे.वि. गा.३. पे. ४०. क्रोध सज्झाय, मु. उदयरत्न, मागु., पद्य, (पृ. ८अ, संपूर्ण), आदिः कड़वां फळ छे क्रोधनां; अंतिः उपशम रसे नाही.,पे.वि. गा.६. पे. ४१. संसार अस्थिरता पद, चान्दमल, राज., पद्य, (पृ. ८अ, संपूर्ण), आदिः मुतलब की सब बात जगत; अंतिः धरो प्रभु ध्यानो.,पे.वि. गा.५. पे. ४२. श्रावकहितशिक्षा पद, चान्दमल, राज., पद्य, (पृ. ८अ, संपूर्ण), आदिः श्रावकजी सुनीए हित; अंतिः चान्दमल यो गाय., पे.वि. गा.८. पे. ४३. साधुगुण पद, चान्दमल, प्राहिं., पद्य, (पृ. ८अ, संपूर्ण), आदिः एसे सन्त जगत में; अंतिः वार वार बलिहारि., पे.वि. गा.७. पे. ४४. हरिवंश ढाल, संबद्ध, मागु., पद्य, (पृ. ८आ-, अपूर्ण), आदिः एक उगे एक आथमें एक; अंतिः-,पे.वि. ९ नंबर का पत्र क्रमांक बाद में हाथ से लिखा है इस लिए यह कृति अपूर्ण है. पे. ४५. औपदेशिक सज्झाय, ऋ. दलीचन्द, मागु., पद्य, (पृ. ९अ, संपूर्ण), आदिः मनवा समज ले रे वीर; अंतिः ज्यु उतरो भव पार., पे.वि. गा.१३. पे. ४६. जिनगुण पद, मु. हर्षचन्द, प्राहिं., पद्य, (पृ. ९अ, संपूर्ण), आदिः अब तो मोय उद्धार्यो; अंतिः दुःख मेटीये मरन को., पे.वि. गा.५. पे. ४७. औपदेशिक पद, प्राहिं., पद्य, (पृ. ९अ, संपूर्ण), आदिः शान्त कोइ विरला पावे; अंतिः बैठा रेलमें जाय., पे.वि. गा.४. पे. ४८. खोटा सगपण पद, प्राहिं., पद्य, (पृ. ९अ, संपूर्ण), आदिः यार खुद गरजि जमाना; अंतिः मोह कर दुख उठाना है., पे.वि. गा.५. पे. ४९. गुरुगुण पद, मागु., पद्य, (पृ. ९अ-९आ, संपूर्ण), आदिः अमृतभीनी वाण सांभलता; अंतिः भण्डार सत्यगुरु., पे.वि. गा.८. पे. ५०. श्रेणिकराजा सज्झाय, चान्दमल, मागु., पद्य, वि. १९८९, (पृ. ९आ, संपूर्ण), आदिः एक दिन इन्द्र सभा; अंति: सेणिक चरित वाची., पे.वि. गा.५. पे. ५१. औपदेशिक पद, मु. जिनदास, प्राहिं., पद्य, (पृ. ९आ, संपूर्ण), आदिः मना तोने कीसि विध; अंतिः जोतिमे जोति समाउ.,पे.वि. गा.४. पे. ५२. सङ्गति पद, प्राहिं., पद्य, (पृ. ९आ, संपूर्ण), आदिः सदा तुम करते रहोजी; अंतिः तुम हो जावोगे पार., पे.वि. गा.६. पे. ५३. क्रोध पद, मागु., पद्य, (पृ. ९आ-, अपूर्ण), आदिः हृदय न राखो रिस बेनि; अंतिः-, पे.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. गा.८ तक है. ३१३०. सज्झाय व स्तवनादि सङ्ग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १८-२(१,४)=१६, पे. ४६, जैदेना., पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं.. (२५.५४११, २३४५०). पे. १. चन्दनबाला सज्झाय, ऋ. रतनचन्द, मागु., पद्य, (पृ. -२अ, अपूर्ण), आदि:-: अंतिः ढाल जोडी टकसाला., पे.वि. गा.२१. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. गा.१ से ११वी गाथा अधूरी तक नहीं है. पे. २. चन्द्रप्रभजिन स्तवन, ऋ. रायचन्द, मागु., पद्य, वि. १८२६, (पृ. २अ-२आ, संपूर्ण), आदिः चन्द्रपुरी नगरी भली; अंतिः संवत अठारे छावीसोजी.,पे.वि. गा.१७. For Private And Personal Use Only Page #390 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org: हस्तलिखित जैन साहित्य भाग १ पे. ३. आनन्दादिदशश्रावक सज्झाय . रायचन्द, मागु पद्य वि. १८२९, (पृ. २आ, संपूर्ण), आदि आणन्द ने सेवानन्दा; अंतिः रायचन्द इम भास हो, पे.वि. गा. १८. , Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पे. ४. १५ तिथि सज्झाय, मु. उदयरतन, मागु., पद्य, (पृ. २आ-३अ, संपूर्ण ), आदिः एकम कहे तुं; अंतिः भोगवे ते आपो पे.वि. गा.१७. आप.. पे. ५. भाषासमिति सज्झाय, ऋ. रायचन्द, राज, पद्य, (पृ. ३अ - ३आ, संपूर्ण), आदिः सत्य विवहार भाषा; अंतिः ज्ञान तणो एरस साधु., पे.वि. गा.१८. पे. ६. मरुदेवीमाता सज्झाय ऋ रायचन्द, राज, पद्य, (पृ. ३आ, संपूर्ण) आदि दीख्यारा दिनधी न अंति गुणचालीसमी ढाल रसालो., पे.वि. गा. १३. पे. ७. १६ सती सज्झाय मागु, पद्य, (पृ. ३आ-, अपूर्ण), आदि: सीतल जिनवर करु: अंति: पं. वि. अन्त के पत्र नहीं हैं. प्रथम दो गाथा है. पे. ८. शील राज्झाय, गणि भोजसागर, मागु., पद्य, (पृ. 4अ, अपूर्ण), आदि: अंतिः सीलवन्त तणो हुं दास., पे.वि. गा. १७. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. गा. १ से १४ नहीं है. पे. ९. बलभद्रकृष्ण सझाय, भु. लावण्यसमय, मागु, पद्य, (पृ. ५अ-५आ, संपूर्ण), आदि द्वारीका हुति: अंतिः धर्म समो नही को तोले, पे.वि. गा. २९. ३३६ पे. १०. निन्दक सज्झाय, ऋ. रायचन्द, मागु., पद्य, वि. १८३५, (पृ. ५आ-६अ, संपूर्ण), आदि: नवरो माणस तो नन्दक; अंतिः सहर जोधाणै चोमासो ए., पे.वि. गा. २७. पे. ११. कमलावती सज्झाय, ऋ. जैमल, मागु., पद्य, (पृ. ६अ - ६आ, संपूर्ण), आदि: महिला में बेठी राणी; अंतिः मिच्छामि दुकडम् मोय. पे.वि. गा.२९. पे. १२ . अनाथीमुनि सज्झाय, पं. रामविजय, मागु., पद्य, (पृ. ६आ-७आ, संपूर्ण ), आदि: मगधाधिप श्रेणिक; अंतिः इ बोले मुनि राम के., पे.वि. गा.३०. पे. १३. वैराग्यपच्चीसी, गोपालदास, मागु., पद्य, (पृ. ७आ, संपूर्ण), आदिः इह प्रमादी जीव जग; अंतिः करणी बैकुंठजी पाइ, पे. वि. गा.२५. पे. १४. औपदेशिक सज्झाय, मु. रतनचन्द, राज, पद्य, (पृ. ७आ-८अ, संपूर्ण), आदिः इण कालरो भरोसो भाई; अंतिः कीजे धर्म रसालो ए., पे.वि. गा. १३. पे. १५ ऑपदेशिक राज्झाय ऋ. लालचन्द राज, पद्य, (पृ. ८अ-८आ, संपूर्ण), आदि हां रे भाई नरक निगोद: अंतिः दास चरण बलीहारी., पे.वि. गा.१२. पे. १६. १६ सती सज्झाय, मु. प्रेमराज, मागु., पद्य, (पृ. ८आ, संपूर्ण), आदिः सील सुरङ्गी सुभान्त; अंतिः प्रसंस सदा पद्मावती. पं. वि. गा. ७. पे. १७. २० बोल सज्झाय, ऋ. रायचन्द, मागु., पद्य, वि. १८३७, (पृ. ८आ- ९अ, संपूर्ण), आदिः किणसुं वाद विवाद; अंतिः मद गाल्यो महावीरेजी., पे.वि. गा. १५. पे. १८. क्षमा सज्झाय, मागु., पद्य, (पृ. ९अ, संपूर्ण), आदि: खिमा धर्म पहिलो; अंतिः जो चाहो भवपारो रे., पे.वि. गा. १३. पे. १९. बुढ़ापा सज्झाय, मागु., पद्य, (पृ. ९अ - ९आ, संपूर्ण), आदि: बुढो हलवे हलवे चाले; अंतिः एक धर्म तणो आधारी, पे.वि. गा.१९. पे.वि. पे. २०. बुढ़ापा सज्झाय, राज, पद्य, (पृ. ९आ, संपूर्ण), आदि: कुणे बुढापा तेडीयो: अंतिः मानवनो अवतार.. गा. १४. For Private And Personal Use Only पे. २१. सासरीया सज्झाय, मागु., पद्य, (पृ. ९आ-१०अ संपूर्ण), आदिः साधु कहे तुं साम्भल; अंतिः देवे गाली भुण्डी., पे.वि. गा.८. Page #391 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ३३७ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची पे. २२. सुकोशलमुनि सज्झाय, पं. देवीचन्द, मागु., पद्य, वि. १६०२, (पृ. १०अ १०आ, संपूर्ण), आदिः जम्बूदीप मझार; अंतिः देवीचन्द विनवे ए., पे. वि. गा. ४७. www.kobatirth.org: पे. २३. महावीरजिन गौतमसंवाद सज्झाय, वाचक वीरविजय गणि, राज., पद्य, (पृ. १०आ - ११अ, संपूर्ण), आदि: वीर जिनवर रे गोयम; अंतिः परम पदवी पामीये., पे.वि. गा. ७.. पे. २४. उपदेशछत्रीसी, रतनचन्द, मागु, पद्य, (पृ. ११अ ११आ, संपूर्ण), आदि सबद करी सतगुरु अंतिः सुणता पातक नासे रे, पे.वि. गा. ३६. पे. २५ ऑपदेशिक राज्झाय, मु. अखेराज, राज, पद्य, (पृ. ११आ- १२अ संपूर्ण), आदिः यो भव रतन चिन्तामण : अंतिः भव जीव तरीया रे, पे.वि. गा.१३. पे. २६. गुरुसङ्गति पद, राज, पद्य, (पृ. १२अ संपूर्ण), आदि: पुन जोगे गुरु मीलीया; अंतिः वहेती वेलामे लो लावो., पे.वि. गा.१८. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पे. २७.७ व्यसन सज्झाय ऋ. धर्मसी, मागु पद्य (पृ. १२अ १२आ, संपूर्ण), आदिः सात व्यसननो रे सद्गः अंति कहे धर्मसी सुखकार, पे.वि. गा. ९. पे. २८. सतीगुण सज्झाय, मु. कनककीर्ति मागु, पद्य, (पृ. १२आ, संपूर्ण), आदि सरसति सामण वीनवुजी: अंति: गुण गाया बहु भात.. पे.वि. गा. १४. पे. २९. खन्धकमुनि सज्झाय, मु. कवियण, मागु., पद्य, (पृ. १२आ- १३अ, संपूर्ण ), आदि: सीमन्धर पाय नमुंजी; अंतिः जिम पामो सुख अपार, पे.वि. गा. ३४. " " पे. ३०. भोजनछत्रीसी, आ. गुणसागरसूरि राज, पद्य, (पृ. १३अ १४अ संपूर्ण), आदि तिसला राणी कहे मेरे अंति पुरण कीधी भोजन छत्तीसी., पे.वि. गा.३६. पे. ३१. अइमुत्तामुनि राज्झाय, आ. लक्ष्मीरत्नसूरि मागु, पद्य, (पृ. १४अ १४आ, संपूर्ण) आदि वीर जिणंद वांदीने अंतिः ते मुनिवरना पाया, पे.वि. गा.२०. पे. ३२. औपदेशिक सज्झाय, मु. प्रीतविजय, राज., पद्य, (पृ. १४आ, संपूर्ण), आदि: मुर्ख नर चेतो रे; अंतिः करो चित्त लाई रे., पे.वि. गा.७. पे. ३३. विजयसेठविजयासेठाणी सज्झाय, ऋ. रतनचन्द, मागु., पद्य, (पृ. १४आ, संपूर्ण), आदिः शुक्ल पक्ष वीजया; अंतिः केवल पाम्या निर्वाणी., पं.वि. गा.८. पे. ३४. शील सज्झाय, राज., पद्य, (पृ. १४-१५अ, संपूर्ण ), आदि: समज पीउ चपल मति रमे; अंतिः बात अप वखाणी., पे.वि. गा. १३. पे. ३५. अरणिकमुनि सज्झाय, मु. रूपविजय, मागु., पद्य, (पृ. १५अ, संपूर्ण), आदिः अरणिक मुनिवर चाल्या; अंतिः आतम काज कीधोजी., पे.वि. गा. ८.. पे. ३६. पंचमआरा सज्झाय, ऋ. लालचन्द, राज., पद्य, (पृ. १५अ - १५आ, संपूर्ण), आदि: श्रीजिनचरण कमल नमी; अंतिः बोल रे मांय हो, पे.वि. गा. १३. पे. ४०. सनत्कुमारचक्रवर्ति सज्झाय, मु. करे; अंति: गातां सुख पावै अपारो, पे. ३७. नववाडी सज्झाय आ. अजितदेवसूरि मागु, पद्य, (पृ. १५आ, संपूर्ण), आदि: रमणी पसु पडग तणी रे अंतिः बोले अजितविजय सुरके., पे.वि. गा.११. पे ३८. ५ इन्द्रिय राज्झाय, मु. जिनहर्ष, मागु, पद्य, (पृ. १६अ, संपूर्ण ), आदि काम अन्ध गजराज अंतिः लहो सुख सासता., पे.वि. गा.६. पे. ३९. शालिभद्र सज्झाय, मु. सहजसुन्दर, मागु., पद्य, (पृ. १६अ, संपूर्ण), आदि: प्रथम गोवाल तणे भवेज; अंतिः सहजसुन्दरनी वाण, पे.वि. गा. १६. " खेम मागु., पद्य, वि. १७४६, (पृ. १६अ - १६आ, संपूर्ण), आदिः सुरपति प्रशंसा पे.वि. गा. १९. For Private And Personal Use Only Page #392 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org: हस्तलिखित जैन साहित्य भाग - १ पे. ४१. औपदेशिक सवैया, उपा. धर्मसी, मागु., पद्य, (पृ. १६आ - १७आ, संपूर्ण), आदिः श्रीसद्गुरु उपदेश; अंतिः श्रीधर्मसी उवज्झाय., पे.वि. गा.३६. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पे. ४२. बाहुबली सज्झाय, उपा. समयसुन्दर गणि, मागु., पद्य, (पृ. १७आ, संपूर्ण ), आदिः राजतणा अति लोभीया; अंतिः समयसुन्दर दीपाया रे., पे.वि. गा. ७. पे. ४३. ७ व्यसन सज्झाय, राज., पद्य, (पृ. १७ - १८अ संपूर्ण ), आदिः काया कामण जीवसुं इम; अंतिः ध्यान चितमां धरो., पे.वि. गा. ८. · ३३८ पे. ४४. पंचपरमेष्ठि आरती, मागु पद्य, (पृ. १८अ संपूर्ण), आदि पहिली आरती अरिहन्त अंतिः फल निश्चे पावो., पे.वि. गा.१५. पे. ४५. कलियुगपच्चीसी, राज, पद्य, (पृ. १८अ १८आ, संपूर्ण) आदि तीन भुवन का नाथ: अंतिः मुगत तणा फल पावे छे., पे.वि. गा.२५. पे. ४६. औपदेशिक सज्झाय, मागु., पद्य, (पृ. १८आ-, अपूर्ण), आदि: च्यार पहर को दिन; अंति:-, पे. वि. अन्त के पत्र नहीं हैं. गा. १ से ८ तक है. ३१३१. स्तोत्र, सज्झाय व स्तवनादि सङ्ग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १३, पे. १९, जैदेना., (२७.५x१२, ११३६). पे. १. पार्श्वजिन चैत्यवन्दन, सं., पद्य, (पृ. १अ ), आदिः ॐ नमः पार्श्वनाथाय अंतिः मे वाञ्छितं नाथ, पं.वि. श्लो. ५. पे. २. मांगलिक श्लोक सं., पद्य, (पृ. १अ) आदि मङ्गलं भगवान् वीरो अंतिः कुर्वन्तु वो मङ्गलम्., पे.वि. श्लो.६. पे. ३. मनभमरा राज्झाय, महम्मद, मागु, पद्य, (पृ. १आ-२अ) आदि भूलो मन भमरा कांइ अंतिः लेखो साहब ऐ हाथ., पे.वि. गा. १८. ; पे. ४. पे नाम पार्श्वजिननी बाललीला, पृ. २अ-३-आ पार्श्वजिन बाललीला स्तवन, मु. जिनचन्द्र, मागु., पद्य, आदिः सुरगिरि शिखरे ने; अंतिः आस्या पोहचाडे रे., पे.वि. गा.६. पे. ५. पे. नाम. शैत्रुञ्जाजीरो स्तवन, पृ. २आ- ३अ शत्रुंजयतीर्थ स्तवन, मु. उदयरतन, मागु, पद्य, आदि डुङ्गर ठाडो रे अंतिः पामे अमर विमानो रे, पे.वि. गा. ७. पृ. ४आ-६अ चतुराई दृष्टान्त, मागु., गद्य, आदिः एकदा समयाने विषे; अंतिः अरइ जो राजा भोज छे. पे. ६. पे. नाम. काया नी सज्झाय, पृ. ३अ - ३आ काया सज्झाय, मु. पदमतिलक, मागु, पद्य, आदि मनमाली धणियय: अंतिः राखज्यौ रखे खोट लगाइ, पे.वि. गा.११. पे. ७. हीरविजयसूरि सज्झाय, मु. विजयसेनसूरि- शिष्य, मागु., पद्य, (पृ. ३आ-४आ), आदि: बे कर जोडीजी वीनवु अंतिः होज्यो मुझे आणन्द, पे.वि. गा.२०. पे. ८. पे. नाम. राजा भोज तथा पण्डित माघ की वार्ता, पे. ९. कर्कशानारी पद सूरज, राज, पद्य, (पृ. ६अ) आदि मगरी उपर कउआ बोले अंतिः कब मरे भरतार, पे. वि. ; गा. ८. पे. १०. अमावस्याव्रत कथा, राज., गद्य, (पृ. ६आ-११अ ), आदि: श्रीअर्जुन पूछे श्री; अंतिः पामसी वैकुण्ठ जासी. पे. ११. अरणिकमुनि सज्झाय, मु. रूपविजय, मागु., पद्य, (पृ. ११अ - १२अ ), आदि: अरणिक मुनिवर चाल्या; अंतिः मनवञ्छित फल लीधोजी., पे. वि. गा. १२. For Private And Personal Use Only पे. १२. वासुपूज्यजिन स्तवन, मु. जीतचन्द, मागु., पद्य, (पृ. १२अ ), आदिः श्रीवासुपूज्य जिन; अंतिः जीत वदन्ते नेह रे., पे.वि. गा.५. Page #393 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ३३९ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची पे. १३. महावीरजिन स्तवन , उपा. विनयविजय , मागु., पद्य, वि. १७उ., (पृ. १२अ-१२आ), आदिः सिद्धारथना रे नन्दन; अंतिः विनयविजय गुण गाय., पे.वि. गा.५. पे. १४. जैन सुभाषित*, सं., पद्य, (पृ. १२आ), आदिः#; अंतिः#. पे. १५. हीरविजयसूरि सवैया , प्राहिं., पद्य, (पृ. १२आ-१३अ), आदिः गागेडेदि गागेडेदि; अंतिः शाह अकबर गाजी., पे.वि. गा.३. पे. १६. महावीरजिन चैत्यवन्दन, मागु., पद्य, (पृ. १३अ), आदि: वन्दु जगदाधार सार; अंति: आपो करी सुपसाय., पे.वि. गा.३. पे. १७. सम्मेतशिखरतीर्थ चैत्यवन्दन, मागु., पद्य, (पृ. १३अ-१३आ), आदिः पूरव दिसे दीपतो; अंति: तीरथ करण कल्याण., पे.वि. गा.३. पे. १८. शत्रुजयतीर्थ चैत्यवन्दन, मु. कल्याण, मागु., पद्य, (पृ. १३आ), आदि: जय जय नाभिनरिन्दनन्द; अंतिः निसदिन नमत कल्याण.,पे.वि. गा.३. पे. १९. पे. नाम. चैत्यशान्ति, पृ. १३आ शान्तिजिन चैत्यवन्दन, मु. अमृतविजय, मागु., पद्य, आदिः सोलम जिनवर शान्तिनाथ; अंतिः लहीये कोड कल्याण., पे.वि. गा.३. ३१३३." सज्झाय, स्तवन, लावणी व श्लोकादि सङ्ग्रह, त्रुटक, वि. २००७, श्रेष्ठ, पृ. १२५-१०७(१ से १९,२१ से २३,२५ से ३१,३३ से ३९,४१ से ५६,५८ से ७६,७९ से ८७.९१ से ९५,९७ से ११८)=१८, पे. ४२, जैदेना., ले.स्थल. नयान्भार, ले. मु. घासीलाल, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., (२५४११.५, १५४३४). पे. १. मेतारजमुनि सज्झाय, मु. राजविजय, मागु., पद्य, (पृ. -२०अ, अपूर्ण), आदि:-; अंतिः साधु तणी ए सज्झाय., पे.वि. गा.१३. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. मात्र अंतिम १३वी गाथा है. पे. २. प्रसन्नचन्द्रराजर्षि सज्झाय, मु. लक्ष्मीरत्न, मागु., पद्य, (पृ. २०अ, संपूर्ण), आदिः (१) राज छोडी रलीयामणो (२) प्रणमुं तुमारा पाय; अंतिः तुमने नमावू सीस., पे.वि. गा.६. पे. ३. अरणिकमुनि सज्झाय, उपा. समयसुन्दर गणि, मागु., पद्य, (पृ. २०अ-२०आ, संपूर्ण), आदिः अरणिक मुनिवर चाल्या; अंतिः मनवञ्छित फल लीधोजी., पे.वि. गा.८. पे. ४. अइमुत्तामुनि सज्झाय, मु. हीरालाल, मागु., पद्य, वि. १९४०, (पृ. २०आ-, पूर्ण), आदिः एवंता मुनिवर नाव; अंति:-, पे.वि. अन्त के पत्र नहीं हैं. गा.१३ तक है. पे. ५. चेलणासती सज्झाय, उपा. समयसुन्दर गणि, मागु., पद्य, (पृ. २४अ, संपूर्ण), आदिः (१) वीरे वखाणी राणी (२) वीर वन्दी घरे; अंतिः पामशे भव तणो पार., पे.वि. गा.७. पे. ६. चेलणासती सज्झाय, मु. नन्दलालशिष्य, मागु., पद्य, (पृ. २४अ-२४आ, संपूर्ण), आदिः कोणिकराजानी छोटी जी; अंतिः सेती वरते मङ्गलाचार., पे.वि. गा.७. पे. ७. करकण्डुऋषि सज्झाय, उपा. समयसुन्दर गणि, मागु., पद्य, (पृ. २४आ, संपूर्ण), आदिः चम्पानगरी अति भली; अंतिः प्रणम्या पातक जाय रे., पे.वि. गा.५. पे. ८. चन्दनबालासती लावणी, मागु., पद्य, (पृ. २४आ-, अपूर्ण), आदिः (१) या चम्पानगरी दधीवाहन (२) यो कोसम्बीनगरी; अंतिः-, पे.वि. अन्त के पत्र नहीं हैं. गाथा आंशिक ३ तक है. पे. ९. चन्द्रसेनराजा सज्झाय, मु. नन्दलालशिष्य, राज., पद्य, (पृ. ३२अ, संपूर्ण), आदिः (१) कनकपुरी नगरीतणो हो (२) श्रावक श्रीवीरना हो; अंतिः शिष्य कहत हुलास के., पे.वि. गा.८. पे. १०. सुदर्शनसेठ सज्झाय, मु. नन्दलालशिष्य, मागु., पद्य, (पृ. ३२अ-३२आ, संपूर्ण), आदिः सुदर्शन श्रावक पूरण; अंतिः जोड़ करी इम गावे रे., पे.वि. मूल गा.५. For Private And Personal Use Only Page #394 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य भाग - १ ३४० पे. ११. श्रावक सज्झाय, मागु., पद्य, (पृ. ३२आ-, अपूर्ण), आदिः श्रावक चीत चोखे करो; अंतिः-, पे.वि. अन्त के पत्र नहीं हैं. गा.११ तक है. पे. १२. जम्बूस्वामी सज्झाय, मु. नन्द, मागु., पद्य, (पृ. -४०अ, अपूर्ण), आदि:-; अंतिः जोड़ी बुद्धि समान., पे.वि. गा.११. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. गा.१ से ६ नहीं है. पे. १३. जम्बूस्वामी सज्झाय, देवीलाल, राज., पद्य, (पृ. ४०अ, संपूर्ण), आदिः बोल बोल सासु का जाया; अंतिः राजुल की जोड़ी रे., पे.वि. गा.५. पे. १४. मृगापुत्र सज्झाय, मागु., पद्य, (पृ. ४०अ-४०आ, संपूर्ण), आदिः सुग्रीवनगर सुहामणोजी; अंतिः प्रते लीजो नाम रे., पे.वि. गा.१५. पे. १५. ढंढणऋषि सज्झाय, मु. जिनहर्ष, मागु., पद्य, (पृ. ४०आ-, अपूर्ण), आदिः ढंढणऋषिने वंदना हुँ; अंतिः-, पे.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. गा.४ तक है. पे. १६. महावीरजिन स्तवन, मागु., पद्य, (पृ. ५७अ-५७आ, संपूर्ण), आदिः दसमा सुरग थकी; अंतिः जासी खेवा पार., पे.वि. गा.२३. पे. १७. महावीरजिन जन्म स्तवन, प्राहिं., पद्य, (पृ. ५७आ, संपूर्ण), आदिः प्रभुजी को जन्म भयो; अंतिः भवसागर तीर जावे रे., पे.वि. गा.१३. पे. १८. महावीरजिन स्तवन, प्राहिं., पद्य, (पृ. ५७आ-, अपूर्ण), आदिः रमक जमक महावीरजी; अंतिः-, पे.वि. अन्त के पत्र नहीं हैं. गा.४ तक है. पे. १९. कृष्ण पद, प्राहिं., पद्य, वि. १८८२, (पृ. -७७अ, अपूर्ण), आदि:-; अंतिः मुझे दोष छै नाय., पे.वि. गा.७. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. गा.१ से ३ नहीं है. पे. २०. कृष्ण गीत, हीरालाल, प्राहिं., पद्य, (पृ. ७७अ, संपूर्ण), आदिः जल जमना तट जावे रे; अंतिः जल जगत में पसरीयो., पे.वि. गा.११. पे. २१. कृष्णनागण संवाद गीत, कवि गिरधर, राज., पद्य, (पृ. ७७अ-७७आ, संपूर्ण), आदिः (१) जल छोड जमुना जावो (२) किणी दिशा से आयो रे; अंतिः पद हरजस गावियो., पे.वि. गा.९. पे. २२. पे. नाम. बलभद्र कृष्ण सज्झाय, पृ. ७७आ-७८अ, संपूर्ण बलभद्रमुनि सज्झाय, मागु., पद्य, आदिः हुं तुझ आगल सुं कहु; अंतिः के फल आव्या धाय रे., पे.वि. गा.१७. पे. २३. देवकीचिन्ता सज्झाय, ऋ. अमी, मागु., पद्य, (पृ. ७८अ-७८आ, संपूर्ण), आदिः देवकी की चिन्ता; अंति: मुझे ___ फरमावो रे., पे.वि. गा.१६. पे. २४. कृष्ण सज्झाय, मागु., पद्य, (पृ. ७८आ-, अपूर्ण), आदिः मुनिवर नगरी द्वारका; अंतिः-, पे.वि. अन्त के पत्र नहीं हैं. गा.१२ व ३ दोहे तक है. पे. २५. दानशीलतपभावना सज्झाय, ऋ. चोथमल, मागु., पद्य, वि. १८५२, (पृ. -८८अ, अपूर्ण), आदि:-; अंतिः सुणज्यो बाल गोपाल., पे.वि. गा.११. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. गा.१ से ८ नहीं है. पे. २६. दानशीलतपभाव प्रभाती, उपा. समयसुन्दर गणि, मागु., पद्य, (पृ. ८८अ, संपूर्ण), आदिः रे जीव जिन धरम; ___अंतिः मोक्ष तणा फल पाय रे., पे.वि. गा.६. पे. २७. दया सज्झाय, हुसनबेग, हिन्दी, पद्य, (पृ. ८८अ-८८आ, संपूर्ण), आदिः दया पोषा में बड़ो; अंतिः के मुनिवर देखो., पे.वि. गा.५. पे. २८. अर्जुनमाली लावणी, श्रा. सुरतराम, मागु., पद्य, वि. १९३२, (पृ. ८८-८९अ, संपूर्ण), आदिः राजग्रही नगरी के अंतिः मोह ममता अलगी डारी., पे.वि. गा.६. पे. २९. दया सज्झाय, ऋ. चौथमल, प्राहिं., पद्य, (पृ. ८९अ-८९आ, संपूर्ण), आदिः दया के बिन्दुन; अंतिः किस दिन पहुंचाओगे., पे.वि. गा.७. For Private And Personal Use Only Page #395 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ३४१ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची पे. ३०. दया सज्झाय, मु. विसनलाल, हिन्दी, पद्य, वि. १९६२, (पृ. ८९आ, संपूर्ण), आदिः दया विन करणी नंननन; अंतिः विसनलाल० हरखे सममम., पे.वि. गा.१०. पे. ३१. दया सज्झाय, मु. चौथमल, प्राहिं., पद्य, (पृ. ८९आ, संपूर्ण), आदिः दया को धार धार रे; अंतिः जीना है दिन चार.,पे.वि. गा.५. पे. ३२. दया सज्झाय, मु. घासीलाल, प्राहिं., पद्य, (पृ. ९०अ, संपूर्ण), आदिः दया की बात बड़ी भारी; अंतिः दो मोक्षपुरी लो पाई., पे.वि. गा.१०. पे. ३३. दया सज्झाय, मु. नवीदास, प्राहिं., पद्य, (पृ. ९०अ, संपूर्ण), आदिः तु मत मारे रे वीरा; अंतिः समरो साहिब हीरा., पे.वि. गा.४. पे. ३४. दया सज्झाय, मु. नवीदास, प्राहिं., पद्य, (पृ. ९०अ-९०आ, संपूर्ण), आदिः तु मत मारे रे मुझकू; अंतिः शूली देगा तुझको., पे.वि. गा.५. पे. ३५. दया सज्झाय, ऋ. हीरालाल, राज., पद्य, वि. १९४४, (पृ. ९०आ, संपूर्ण), आदिः मारी दयामाता थाने; अंतिः गुरुदेवा उपगार हो., पे.वि. गा.१३. पे. ३६. मनुष्यजन्म स्तवन, मागु., पद्य, (पृ. ९०आ-, अपूर्ण), आदिः वाज्या नगारा जीत्या; अंतिः-, पे.वि. अन्त के पत्र नहीं हैं. गा.३ तक है. पे. ३७. दया सज्झाय, मु. कृष्ण, प्राहिं., पद्य, (पृ. -९६अ, अपूर्ण), आदि:-; अंतिः परम जैन वाणी., पे.वि. गा.४. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. गा.२ तक नहीं है. पे. ३८. मातृभूमि गीत, प्राहिं., पद्य, (पृ. ९६अ, संपूर्ण), आदिः सान्ति समर में कभी; अंतिः जीना और मरना होगा., पे.वि. गा.६. पे. ३९. ज्ञानपंचमीपर्व लघुस्तवन, उपा. समयसुन्दर गणि, मागु., पद्य, (पृ. ९६अ-९६आ, संपूर्ण), आदिः पञ्चमी तप तुमे करो; अंतिः पञ्चमो भेद रे., पे.वि. गा.५. पे. ४०. तपपद सज्झाय, ऋ. हीरालाल, राज., पद्य, (पृ. ९६आ, संपूर्ण), आदिः सुरायो तप में; अंतिः सुराने चडियो वैराग., पे.वि. गा.१२. पे. ४१. तपपद सज्झाय, ऋ. रायचन्द, मागु., पद्य, (पृ. ९६आ-, अपूर्ण), आदिः तप बडो रे संसार में; अंतिः चैत्री पुनमजीरा रे., पे.वि. अंतिम पत्र नहीं है. गा.४ तक है. पे. ४२. धन्नाचरित्र लावणी, मु. हीरालाल-शिष्य , हिन्दी, पद्य, (पृ. ११९अ-१२५-, अपूर्ण), आदिः महावीरप्रभू जगगुरु; ____ अंतिः-, पे.वि. अन्त के पत्र नहीं हैं. गा.१६० तक है. ३१३४. गौतम कुलक व विनय कुलक सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, पे. २, जैदेना., (२४४१०.५, ५४२८). पे. १. पे. नाम. गौतम कुलक सह टबार्थ, पृ. १अ-४अ गौतम कुलक, प्रा., पद्य, आदिः लुद्धा नरा अत्थपरा; अंतिः सुहं लहन्ति. गौतम कुलक-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः लु० लोभीया नर मनुष्य; अंतिः अनेक श्रावक जाणवा., पे.वि. मूल गा.२०. पे. २. पे. नाम. विनय कुलक सह टबार्थ, पृ. ४अ-५आ विनय कुलक, प्रा., पद्य, आदिः विनयो जिणसासणे मूलं; अंतिः संलेहणा मरणं. विनय कुलक-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः विनयते जिनशासननइ; अंतिः संलेखणा सहित मरण ते., पे.वि. मूल गा.१३; टबार्थ-गा.१३. ३१३५. हेमदण्डक यन्त्र, पूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६-१(१)=५, पे. २, जैदेना.,प्र.वि. *पंक्ति-अक्षर अनियमित है।, (२७४१३, १७४३२). For Private And Personal Use Only Page #396 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य भाग १ .. www.kobatirth.org: ३४२ पे. १. हेमदण्डक यन्त्र, संबद्ध, प्रा. मागु. कोष्टक, (पृ. २-६, अपूर्ण), आदि-: अंति, पे.वि. मूल-परिमाण भेद- ११८. प्रथम पत्र नहीं है. १-१२ भेद नहीं है. पे. २. पे. नाम. हेमदण्डक गाथा, पृ. ६ठा, संपूर्ण हेमदण्डक, प्रा., पद्य, आदि जीवभेया सरीराहार: अंतिः अप्पाबहुदण्डगम्मि, पे.वि. गा. ५. ३१४७. श्लोक सङ्ग्रह सह अर्थ - विविध पुराणों से, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना., पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. गा. ७८ तक लिखा है., ( २६४११, १६-१७९५६). औपदेशिक श्लोक सग्रह, सं., पद्य, आदि: महतामपि दानानां अति: अपदेशिक श्लोक सङ्ग्रह- अर्थ' मागु, गद्य, आदि-: अंति: , Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (W) " ३१४८. मल्लीकुमारी चरित्र, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ७-१ ( ३ ) - ६, जैदेना. ले. स्थल. पालासणी, ले. साध्वीजी चोथी आर्या, प्र. वि. डाळ-२०. पू.वि. बाल-७ गा.३ से ढाल ९ गा. १४ तक नहीं हैं. दशा वि. विवर्ण पानी से अक्षरों की स्याही फैल गयी है, (२५.५X११, १८x४९). मल्लिजिन रास, ऋ. रायचन्द, मागु पद्य वि. १८२४, आदि ; अंति भणता सुणता जै जै कार. ३१४९. अष्टापदतीर्थ व धर्मजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १२-७(१ से ७) =५, पे. २, जैदेना., पू.वि. बीच के पत्र हैं., ( २५X११.५, ९x२०). पे. १. अष्टापदतीर्थ स्तवन, मु. दानविजय, मागु., पद्य, (पृ. ८अ - १२अ, पूर्ण), आदि:-; अंति:-, पे. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. प्रथम गाथा नहीं है, अंतिम गाथा का पत्र फटा हुआ है... पे. २. धर्मजिन स्तवन मागु, पद्य, (पृ. १२अ - १२आ, अपूर्ण) आदि प्रणमु प्रभु रे श्री अंति, पे. वि. अंतिम पत्र नहीं है.. गा. ७ तक है. (+) ३१५०. जीवविचार व नवतत्त्व की वृत्ति, पूर्ण, वि. १८५८, श्रेष्ठ, पृ. १८-१ (१) १७ पे २ जैदेना ले. मुक्तेन्दु, (२५.५४११.५. " १४-१५४४४). पे. १. पे. नाम. जीवविचार प्रकरण की ईश्वराचार्थीय टीका की अक्षरार्थदीपिका टीका, पृ. २-अ, पूर्ण जीवविचार प्रकरण-अक्षरार्थदीपिका टीका, सं., गद्य, आदि:-; अंतिः सङ्घाय श्रेयसेस्तु., पे. वि. प्रथम पत्र नहीं है. पे. २. पे. नाम. नवतत्त्व प्रकरण की टीका, पृ. ७अ - १८आ, संपूर्ण नवतत्त्व प्रकरण- अवचूरि, मु. साधुरत्न, सं., गद्य, आदि: जयति श्रीमहावीरश्रेय; अंतिः इति पञ्चदशभेदा:., पे.वि. प्र.पु. ग्रं. ७००. ३१५१.” कयवन्ना चोपई, पूर्ण, वि. १७५४, श्रेष्ठ, पृ. सुहर्ष, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. गा. ५५५, (२६४१०.५, १४९३९) कयवन्ना चौपाई, मु. जयतसी, मागु., पद्य, वि. १७२१, आदि:-; अंतिः धरम करण मन उलसै छै. २१ - १ ( १ ) = २०, जैदेना., ले. स्थल. रामपुर, ले. मु. हेमहर्ष, पठ. पं. ढाळ - ३१, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, पू. वि. गा. ११ अपूर्ण से है., ३१५३. दानशीलतपभावना चौपाई, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ७, जैदेना., प्र. वि. ढाळ - ४. अंतिम पत्र चिपके हुए होने से अंतिमवाक्य नहीं भरा गया है., ( २६४१०, ८०४१-४२). दानशीलतपभावना संवाद, उपा. समयसुन्दर गणि, मागु., पद्य, वि. १६६२, आदिः प्रथम जिनेसर पाय; अंतिः #. ३१५४.” ऋषभजिन विज्ञप्तिविचारगर्भित स्तवन सह अनुवाद, संपूर्ण, वि. १६७४ मध्यम, पृ. १०, जैदेना., ले. स्थल. स्थंभनपुर, ले. पं. लब्धिकीर्ति (गुरु वाचक अभयसुन्दर ), गच्छा आ जिनसिंहसूरि (गुरु आ जिनचन्द्रसूरि, खरतरगच्छ ), प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र. वि. गा. २१. संशोधित टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२५.५४११, १६४४८). For Private And Personal Use Only Page #397 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ३४३ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची आदिजिन स्तवन-विज्ञप्तिविचारगर्भित, गणि विजयतिलक, मागु., पद्य, आदि: पहिलु पणमिअ देव; अंतिः विजयतिलक निरंजणो. आदिजिन स्तवन-विज्ञप्तिविचारगर्भित-बालावबोध, पाठक कमललाभ, मागु., गद्य, आदिः पहिलउ देव तीर्थङ्कर; अंतिः तवनकारनउ नाम जणिवउ. ३१५५. वरदत्तगुणमञ्जरी कथा, संपूर्ण, वि. १८६८, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदेना., ले.स्थल. जेसलमेर, ले. मु. कान्तिरत्न(खरतरगच्छ?), प्र.वि. श्लो.१४८, (२५.५४१०.५, ११४३७). ज्ञानपंचमीपर्व कथा, गणि कनककुशल, सं., पद्य, वि. १६५५, आदिः श्रीमत्पार्श्व; अंतिः तैरेव मेडतानगरे. ३१५६. धर्मोपदेश व्याख्यान सङ्ग्रह, संपूर्ण, वि. १८६१, श्रेष्ठ, पृ. २३, जैदेना., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-प्रारंभिक पत्र, (२६४११, ११४४३). व्याख्यान सङ्ग्रह', सं.,मागु., गद्य, आदिः देवपूजा दया दानं; अंतिः फेर तत्त्व न आदरे. ३१५७.” हूण्डी सङ्ग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ७, जैदेना., प्र.वि. चूहे द्वारा कुतरे हुए पत्र होने से अंतिमवाक्य नही भरा गया है., दशा वि. चिपके पत्र अलग करते वक्त स्याही उखडी हुई, चिपके पत्र अलग करते वक्त विशीर्ण, विवर्णपानी से अक्षरों की स्याही फैल गयी है, (२६४११.५, १०-१३४३१-३७). विचार सङ्ग्रह' , मागु., गद्य, आदिः ठाणाङ्गमाहिं त्रीजे; अंतिः#. ३१५८." चौदस्वप्न वर्णन, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदेना., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें, (२५४११, १३४५८). १४ स्वप्न विचार, मागु., गद्य, आदिः स्वप्न पाठक कहइ छइ; अंतिः मनुष्य आगलि कहेवू. ३१५९. जन्मपत्री पद्धति, अपूर्ण, वि. १७८४, श्रेष्ठ, पृ. २४-१०(१ से ८,१४ से १५)=१४, जैदेना., (२५.५४११.५, १७-१८४४२ ४५). जन्मपत्री पद्धति, मु. मानसागर, सं., गद्य, (संपूर्ण), आदि: नीचोनितास्पष्टतरा; अंतिः अकस्माद् भयमाप्नोति. ३१६०." हंसराजवच्छराज चौपाई, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६, जैदेना., पू.वि. अन्त के पत्र नहीं हैं. गा.१९८ तक है., दशा वि. विवर्ण-पानी से अक्षरों की स्याही फैल गयी है-अधिक, चिपके पत्र अलग करते वक्त स्याही उखडी हुई, (२४.५४११.५, १६-१८४३६). हंसराजवत्सराज चौपाई, आ. जिनोदयसूरि, मागु., पद्य, वि. १६८०, आदिः आदिसर आदे; अंति:३१६२. सम्यक्त्व कुलक सह शिशुबोध बालावबोध व टीका, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, पे. २, देना., पू.वि. अन्त के पत्र नहीं हैं., (२५.५४११.५, १३४३६). पे. १. पे. नाम. सम्यक्त्व कुलक सह शिशुबोध बालावबोध, पृ. १-६आ, संपूर्ण सम्यक्त्वपच्चीसी, प्रा., पद्य, आदिः जह सम्मत्तसरूवं; अंतिः हवेउ सम्मत्तसम्पत्ति. सम्यक्त्वपच्चीसी-शिशुबोध बालावबोध, उपा. मतिकीर्ति, मागु., गद्य, आदि: जिम समकितनौ सरूप; अंतिः समकितनौ पामिवौ थाइवौ., पे.वि. मूल-गा.२५. पे. २. पे. नाम. सम्यक्त्व कुलक सह व्याख्या, पृ. ६आ-७आ-, अपूर्ण सम्यक्त्वपच्चीसी, प्रा., पद्य, आदि: जह सम्मत्तसरूवं; अंतिःसम्यक्त्वपच्चीसी-अवचूरि, सं., गद्य, आदिः यथा येन औपशमिकत्वादि; अंतिः-, पे.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. गा.६ तक पाठ है. ३१६३. अञ्जनासती रास, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १५-२(१ से २)=१३, जैदेना., प्र.वि. गा.१६८, (२४.५४१२, १७४३७ ४२). अंजनासुन्दरी रास, मु. पुण्यसागर, मागु., पद्य, वि. १६८९, आदि:-; अंतिः सती ए सीरोमण गाई ए. ३१६४. चन्दराजा चौपाई, अपूर्ण, वि. १८८५, श्रेष्ठ, पृ. १०४-६१(१ से ६०,१०३) ४३, जैदेना., ले.स्थल. समदरडीनगर, ले. मु. For Private And Personal Use Only Page #398 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य भाग १ - ३४४ हितसमुद्र (गुरु गणि कीर्तिधर्म), गच्छा. आ. जिनहर्षसूरि (गुरु मु. क्षेमकीर्ति, खरतरगच्छ ), प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र. वि. उल्लास - ४ प्र.पु. मूल-ग्रं. ३५००, पू. वि. तृतीय उल्लास ढाल - १६ गा. १३ से है., प्र.ले. श्लो. (९५) खायजो पीजो खरचजो; (७४) जब लग मेरु अडिग है, (२५.५x१२, १५x४३). www.kobatirth.org: चन्द्रराजा रास मु. मोहनविजय, मागु, पद्य, वि. १७८३, आदि अंतिः वर्णव्या गुण चन्दना. , (+) ३१६५. सङ्ग्रहणी, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १३, जैदेना, अन्य मु. गोविन्दजी, प्र. वि. गा.३०९, पदच्छेद सूचक लकीरें, (२६.५x१२, १३x४३). बृहत्सङ्ग्रहणी, आ. चन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, वि १२वी आदि नमिउं अरिहन्ताई अंति: (१) जा वीरजिण तित्थं (२) आवलिया एग खडु भवे , ३१६७. सङ्ग्रहणीसूत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २२, जैदेना., प्र. वि. गा. ३१२, ( २६.५x१२, ११x२७). बृहत्सङ्ग्रहणी, आ. चन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदिः नमिउं अरिहन्ताइं; अंतिः जा वीरजिण तित्थं.. ३१६८. चैत्यवन्दनभाष्य सह अर्थ, संपूर्ण, वि. १८९९, मध्यम, पृ. ६, जैदेना. ले. स्थल भागनगर-हैद्राबा, ले. ऋ. चैनजी, पठ श्रा. विसनचन्दजी, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. मूल-गा. ६३. मूल के अनुसार बालावबोध का अवशेष पाठ प्रत्येक पृष्ठ पर टिप्पणक की तरह हासियों में लिखा गया है. त्रिपाठ, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, पदच्छेद सूचक लकीरें संधि सूचक चिह्न, दशा वि. विवर्ण पानी से अक्षरों की स्याही फैल गयी है, ( २६४१२.५, १५४३८-४८). .. (′′) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir चैत्यवन्दनभाष्य, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, आदिः वन्दित्तु वन्दणिज्जे; अंतिः परमपयं पावइ लहुं सो. चैत्यवन्दनभाष्य-बालावबोध, मागु., गद्य, आदिः वं कहतां वांदीनइ; अंतिः पदवी पामे ए भाव. ३१६९. ब्रह्मबावनी व नवरत्न कवित, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, पे. २, जैदेना., पू. वि. अन्त के पत्र नहीं हैं., ( २५X१२.५, १५X३५). पे. १. ब्रह्मबावनी, मु. निहालचन्द, हिन्दी, पद्य, वि. १८०१ (पृ. १अ - ७अ, संपूर्ण), आदिः ॐकार अपार परमेश्वर; अंतिः गुनको गहीजियो, पे. वि. गा.५२. पे. २. नवरत्न कवित, राज, पद्य, (पृ. ७आ, अपूर्ण), आदि: धन्वन्तरी क्षपनक अंति, पे.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. गा. ५ तक है. ३१७०."" स्तवनवीसी, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदेना., ले. लवजी, प्र. वि. अध्याय- २० स्तवन, दशा वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, ( २४४१२.५. १४४३६-४०) स्तवनवीसी, उपा. यशोविजयजी गणि, मागु., पद्य, आदि: पुखलवई विजये जयो रे; अंतिः वाचक यश इम बोलई रे .. ३१७१. धनसागर रास, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १६ - १ (१) = १५, जैदेना, पू. वि. प्रथम एक व अंत के पत्र नहीं हैं. गाथा ११ से ३१६ तक है. (२४.५४११, १३४४०). धनसागर रास, मागु., पद्य, आदि:- अंति: · ३१७२. खण्डाजोयन, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ८- २ (१ से २ ) = ६, जैदेना., पू. वि. प्रारंभ व अन्त के पत्र नहीं हैं., (२४.५x१०.५, २१४३९). लघुसङ्ग्रहणी- खण्डाजोयण बोल', संबद्ध, मागु, गद्य, आदि--: अंति: ३१७३. बृहच्छान्ति, अपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. २९-४ (१ से २,८,२६ ) - २५, जैदेना. पु.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., ( २६.५५११, ३X११). बृहत्शान्ति स्तोत्र- तपागच्छीय, सं. गद्य, आदि:- अंति: ३१७४. सिन्दूरप्रकरण, संपूर्ण वि. १८०७, श्रेष्ठ, पृ. १४ जैदेना. ले. प्रभुदत्त, राज्यकाल राजा जगतसिंह राणा, प्र. वि. श्लो. १००, दशा वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, ( २६११, १०- ११x२६). सिन्दूरप्रकर, आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य, आदि: सिंदूरप्रकरस्तपः; अंतिः सूक्तमुक्तावलीयम्. For Private And Personal Use Only Page #399 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ३४५ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ३१७५. कुसलानुबन्धीअध्ययन सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, जैदेना., ले. मु. कपूरचन्द, प्र.वि. मूल-गा.६३., (२६.५४१०.५, ४४४४). चतुःशरण प्रकीर्णक, गणि वीरभद्र, प्रा., पद्य, आदिः सावज्ज जोग विरई; अंतिः कारणं निव्वुइ सुहाणं. चतुःशरण प्रकीर्णक-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः सर्व सावध व्यापार; अंतिः ए चउसरण अध्ययन गणीवउ. ३१७६.” पाक्षिकसूत्र व खामणासूत्र, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १२, पे. २, जैदेना., ले. रत्ना, प्र.वि. संशोधित, (२६४११, १३४३४). पे. १. पे. नाम. पाक्षिकसूत्र, पृ. ०१अ-११आ ____ पाक्षिकसूत्र, प्रा., प+ग, आदिः तित्थङ्करे य तित्थे; अंतिः (१)मिच्छामि दुक्कडं (२)जेसिं सुयसायरे भत्ति. पे. २.पे. नाम. पाक्षिकक्षामणासूत्र, पृ. ११आ-१२आ क्षामणकसूत्र, प्रा., गद्य, आदिः इच्छामि खमासमणो; अंतिः नित्थारग पारगा होह. ३१७८. गजसिङ्घ चरित्र, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १७-३(५ से ६,१४)=१४, जैदेना., पू.वि. बीच-बीच व अंत के पत्र नहीं हैं. चतुर्थ खंड की गा.९६ तक है., (२६.५४११, १५४३६). गजसिङ्घकुमार रास, मु. सुन्दरराज, मागु., पद्य, वि. १५५६, आदिः पास जिणेसर पाय नमी; अंति:३१७९.” दशवैकालिकसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १६८०, श्रेष्ठ, पृ. ६७, जैदेना., पठ. साध्वीजी हंसा आर्या, प्र.वि. मूल अध्याय-१०अध्ययन., टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२४.५४११, ५४३४). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यम्भवसूरि, प्रा., पद्य, वि. पू.४, आदिः धम्मो मङ्गलमुक्किट्ठ; अंति: गई त्ति बेमि. दशवैकालिकसूत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः जिनधर्म उत्कृष्ट; अंतिः कहुं छं गुरुवचने. ३१८०. भक्तामर स्तोत्र सह टीका, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ४७-५(१२,१५,१९,२३,४५)=४२, जैदेना., प्र.वि. मन्त्र व विधि के साथ., पू.वि. बीच-बीच व अन्त के पत्र नहीं हैं. श्लो.२७ तक है., (२६.५४११.५, ९४३८). भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुङ्गसूरि, सं., पद्य, आदिः भक्तामरप्रणतमौलिमणि; अंति:भक्तामर स्तोत्र-गुणाकरीय टीका, आ. गुणाकरसूरि, सं., गद्य, वि. १४२६, आदिः- अंति: भक्तामर स्तोत्र-कथा, सं., गद्य, आदि:-; अंति:३१८१. सज्झाय, छन्द, लावणी, स्तवन व पद सङ्ग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १८-२(१ से २)=१६, जैदेना.,प्र.वि. मूल के अनुसार बालावबोध का अवशेष पाठ प्रत्येक पृष्ठ पर टिप्पणक की तरह हासियों में लिखा गया है., अशुद्ध पाठ, पू.वि. बीच के पत्र हैं., (२६४१२.५, २०x४२). जैनकाव्य सङ्ग्रह', मागु., पद्य, आदि:-; अंति:३१८३. ज्ञाताधर्मकथाङ्गसूत्र, त्रुटक, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १०२-७८(१ से ६७,७३,७८ से ८४,९०,१०० से १०१)=२४, जैदेना., पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., (२६४११, १५४४८-५४). ज्ञाताधर्मकथाङ्गसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदि:-; अंति:३१८४. आत्मप्रबोध कुलक सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, जैदेना., प्र.वि. मूल-गा.४३., (२५४११.५, ४४२४-२६). आत्मावबोध कुलक, आ. जयशेखरसूरि*, प्रा., पद्य, आदिः धम्मप्पहारमणिज्जे; अंतिः जिणं जयसेहरो होसि. आत्मावबोध कुलक-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः धर्मप्पह क० धर्मनी; अंतिः मोक्षइ पहुचई सही. ३१८५. आराधना सह अर्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, जैदेना., प्र.वि. संक्षेप-गा.४०., (२५.५४११, १५४५१-५२). पर्यन्ताराधना-सक्षेप, संक्षेप, प्रा., पद्य, आदिः नमिउण भणइ एवं; अंतिः जस्स धम्मे सयामणो. पर्यन्ताराधना-सक्षेप का बालावबोध, मागु., गद्य, आदिः पहिली पहिकमि; अंतिः अनन्ता सुख पामइ लहइ. ३१८६. आगमसारोद्धार, पूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ९२-१(१)=९१, जैदेना., ले.स्थल. राश, ले. पं. पुण्यसुन्दर गणि(कवलगच्छ), प्र.वि. प्र.पु. ग्रं. २०००., (२६४११.५, १०४३०-३२). For Private And Personal Use Only Page #400 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य भाग - १ ३४६ आगमसारोद्धार, उपा. देवचन्द, मागु., गद्य, वि. १७७६, आदि:-; अंतिः फली मन आस. ३१८७. उपसर्गहर स्तोत्र की वृत्ति, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३२, जैदेना., (२७४१२.५, १३४३७-३९). उवसग्गहर स्तोत्र-गाथा ०५ की प्रियङ्करनृप कथा, मु. जिनसूर मुनि, सं.,प्रा., गद्य, वि. १६वी, आदिः वंशाब्जश्रीकरोहंसो; अंतिः सम्पदः स्युः पदे पदे. ३१९०." सिद्धान्तहुण्डी सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १८५५, श्रेष्ठ, पृ. ६०, जैदेना., ले.स्थल. रतलाम, ले. मु. ऋषभसागर, राज्यकाल- राजा पर्बतसिङ्घ (पिता राजा पदमसिङ्घ), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. मूल-ग्रं. २०१६., टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२९x१२.५, ११४४८). सिद्धान्तहुण्डी, पं. सहजकुशल, मागु., गद्य, आदिः नमिऊण जिणवराई; अंतिः जिवाणं च बोहित्थं. सिद्धान्तहुण्डी-बालावबोध, मागु., गद्य, आदिः श्रीजिनादिक प्रति; अंतिः भव्य जीवनइ बुजविवु. ३१९१. दशपच्चक्खाण व चौदनियम सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, पे. २, जैदेना., प्र.ले.श्लो. (५०६) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा , (२६४१३, ३४२३-२५). पे. १. पे. नाम. दसपच्चक्खाण सह टबार्थ, पृ. १-६अ प्रत्याख्यानसूत्र, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदिः उग्गए सुरे नमुकार; अंतिः वतियागारेणं वोसिरामि. दशप्रत्याख्यान-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः सूर्यना उदयथी माण्डी; अंतिः आत्मा वोसिरा, छं. पे. २. पे. नाम. चौदनियम सह टबार्थ, पृ. ६अ-६आ १४ नियम गाथा, प्रा., पद्य, आदिः सच्चित्त दव्व विगई; अंतिः न्हाण्ण भत्तेसु. १४ नियम गाथा-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः पाणी फल बीज दातण ते; अंति: सक्षेप करीने., पे.वि. मूल-गा.१. ३१९२. सत्तरिसयठाणासूत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १४, जैदेना., प्र.वि. गा.३५९; प्र.पु. मूल-ग्रं. ६५०, (२७४१२.५, १४४४० ४३). सप्ततिशतस्थान प्रकरण, आ. सोमतिलकसूरि , प्रा., पद्य, वि. १३८७, आदिः सिरिरिसहाइ जिणिन्दे; अंतिः जाइ सो सिद्धिठाणे. ३१९३." गौतमपृच्छा सह व्याख्या, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४७, जैदेना., प्र.वि. मूल-गा.६४., संशोधित, (२७.५४१२.५, १३४४१-४५). गौतमपृच्छा, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण तित्थनाहं; अंति: गोयमपुच्छा महत्थावि. गौतमपृच्छा-टीका, मु. मतिवर्द्धन, सं., गद्य, वि. १७३८, आदिः वीरजिनं प्रणम्यादौ; अंतिः नगर्यां च शुभे दिने. ३१९४. स्तवनचौवीसी सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९१८, श्रेष्ठ, पृ. ५७, जैदेना., ले.स्थल. बम्बई, ले. शिवलाल देवकृष्ण व्यास, प्र.वि. मूल-अध्याय-२४ स्तवन., प्र.ले.श्लो. (७९) एक पोथी और एक पद्मनी, (२६४१३.५, ३४२७-३४). स्तवनचौवीसी, मु. आनन्दघन, मागु., पद्य, वि. १८पू, आदिः ऋषभ जिनेश्वर प्रीतम; अंतिः अखय सम्पद अतिघणी. स्तवनचौवीसी-टबार्थ, आ. ज्ञानविमलसूरि, मागु., गद्य, आदिः श्रीआनन्दघनोक्ता; अंतिः पूरणां कीधी छे. ३१९५. चातुर्मासिकपर्व व्याख्यान- प्रथम व्याख्यान, प्रतिपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २१, जैदेना., ले. मु. सुखसागर, (२८x१३, ११४३२). चातुर्मासिक व्याख्यान, उपा. समयसुन्दर गणि, सं., गद्य, वि. १६६५, आदिः प्रणम्य परमानन्द; अंति:३१९६. परमात्मप्रकाश दोहा, संपूर्ण, वि. १८वी, जीर्ण, पृ. १९, जैदेना., प्र.वि. परिमाण गा.३५०, (२५.५४१४.५, १३४२८-२९). परमात्मप्रकाश, मु. योगीन्द्रदेव, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदिः जे जाया झाणग्गियए; अंतिः केवलो कोवि बोहो. ३१९७. कल्पसूत्र सह टबार्थ, पूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १५५, जैदेना.,प्र.वि. मूल-९-व्याख्यान., पदच्छेद सूचक लकीरें, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है. शायद अंत की एक-दो पंक्ति नहीं हैं., (२७४११.५, ५४३०-३३). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदिः णमो अरिहन्ताणं० पढमं; अंतिः For Private And Personal Use Only Page #401 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ३४७ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची कल्पसूत्र-टबार्थ , मागु., गद्य, आदिः अरिहन्तनइ माहरो; अंति:३१९८." उत्तराध्ययनसूत्र सह टबार्थ व कथा, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १७७, जैदेना., प्र.वि. मूल-३६अध्ययन., टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२६.५४११.५, ७-८४३४-४०). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध , प्रा., प+ग, आदिः सञ्जोगाविप्पमुक्कस्स; अंतिः सम्मए त्ति बेमि. उत्तराध्ययनसूत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः पूर्वल्या संयोग; अंतिः विषे प्रवर्तनहारइ. ३२००." श्रावकआलोचना विचार व पोरसीमान, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, पे. २, जैदेना., प्र.वि. अशुद्ध पाठ, (२५४१२.५, १६४३७-४५). पे. १. आलोयणा विचार, सं.,प्रा.,मागु., प+ग, (पृ. १-७आ), आदिः प्रथमं मुहूर्तं; अंति: वाडस्य पछितम्. पे. २. पोरसीमान गाथा , प्रा., पद्य, (पृ. ७आ), आदिः आसाढे मासेइ पया पोसे; अंतिः कुचतुरगुलं., पे.वि. गा.२. ३२०१. वीसस्थानक पूजा व विधि, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ११, पे. २, जैदेना., ले.स्थल. आजोल, (२५४११.५, १३४३० ३२). पे. १.२० स्थानक पूजा, आ. लक्ष्मीसूरि, मागु., पद्य, वि. १८४५, (पृ. १अ-११अ), आदिः श्रीशद्धेश्वर पासजी; अंतिः पभणै सयल सङ्घ जयकरू.,पे.वि. ढाळ-२०. पे. २.२० स्थानकपूजा विधि, मागु., गद्य, (पृ. ११अ-११आ), आदिः वीस स्थानक तप माडता; अंतिः सर्व विधि साचववी. ३२०२. गौतमपृच्छा चौपाई, संपूर्ण, वि. १५९७, मध्यम, पृ. ६, जैदेना., ले. गणि सङ्घमाणिक्य (गुरु गणि सङ्घविमल), प्र.वि. गा.१२३, (२५४१०.५, १३४४४). गौतमपृच्छा चौपाई, मु. लावण्यसमय , मागु., पद्य, वि. १५४५, आदिः सकल मनोरथ पूरवइ; अंति: जे जिनवचने वसिउ. ३२०३. सिद्धाचल स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, जैदेना., प्र.वि. ढाळ-१०, (२५४११, १३४३७-४४). शत्रुजयतीर्थमाला स्तवन, मु. अमृतरङ्ग, मागु., पद्य, वि. १८४०, आदिः विमलाचल वाल्हा वारू; अंतिः नित नमो गिरिराया रे. ३२०४. सनत्कुमारचक्रवर्ति चौपाई, संपूर्ण, वि. १८७८, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदेना., ले.स्थल. देवगढ, ले. ऋ. माणकचन्द (गुरु ऋ. बृजलाल), प्र.ले.पु. मध्यम, (२६४११.५, १२-१३४३९-४२). सनत्कुमारचक्रवर्ति चौपाई, ऋ. गोविन्द, मागु., पद्य, वि. १८४९, आदिः एक दिवस सुर इन्दजी; अंति: भलडारेवाडे चोमासेजी. ३२०५. आलोयणा विधि, संपूर्ण, वि. १८५३, मध्यम, पृ. ५, जैदेना., ले.स्थल. पाटोधि, ले. साध्वीजी रामकवर आर्या (गुरु साध्वीजी केसरजी आर्या), प्र.ले.पु. मध्यम,प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२५.५४११.५, २१-२२४३४-५२). आलोयणा विधि, मागु., गद्य, आदिः अतीत काल अठार पाप; अंतिः साध श्रावक आराधक होय. ३२०७. नेमजिन चोवीसचोक, संपूर्ण, वि. १९०५, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदेना., ले.स्थल. बामणोली, ले. ऋ. हरजीमल (गुरु ऋ. रतनचन्द), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. २४ चोक, (२४.५४१२, १५४३८-४०). नेमिजिन चौवीसचोक, मु. अमृतविजय, मागु., पद्य, वि. १८३९, आदिः सरसति चरणाम्बुज नमी; अंतिः अमृत गुण गाया. ३२०८." कल्याणमन्दिर स्तोत्र सह टबार्थ, पूर्ण, वि. १८६२, श्रेष्ठ, पृ. १०-१(३)=९, जैदेना., ले.स्थल. बावरा, ले. पं. गोविन्दविजय (गुरु मु. जसवन्तविजय), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. मूल-श्लो.४४., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-कुछ पत्र, पू.वि. काव्य-३१ तक ही टबार्थ लिखा हुआ है., दशा वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, (२५.५४११.५, ५४२६-२७). कल्याणमन्दिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकर, सं., पद्य, (संपूर्ण), आदिः कल्याणमन्दिरमुदारमवद; अंतिः मोक्षं प्रपद्यन्ते. For Private And Personal Use Only Page #402 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य भाग - १ ३४८ कसरि कल्याणमन्दिर स्तोत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, (अपूर्ण), आदिः कल्याणक क० मङ्गलिक; अंति:३२०९. सिन्दूरप्रकरण, अपूर्ण, वि. १८८१, श्रेष्ठ, पृ. १०-२(१,९)=८, जैदेना., ले. मु. फतैचन्द, पठ. मु. कस्तुरचन्द(खरतर भावहर्ष गच्छ),प्र.वि. श्लो.१००, संशोधित, पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न-प्रारंभिक पत्र, अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-प्रारंभिक पत्र, टिप्पण युक्त विशेष पाठ-प्रारंभिक पत्र, पू.वि. श्लोक १ से ६ व ८५ से ९६ नहीं है., (२५.५४१२, ११४३४-४१). सिन्दूरप्रकर, आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य, आदि:-; अंतिः सूक्तमुक्तावलीयम्. ३२१३." कर्मग्रन्थ १ से ३ सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७१४, श्रेष्ठ, पृ. २१, पे. ३, जैदेना., ले.स्थल. मेदनीपुर, ले. मु. नयनसुन्दर (गुरु आ. कक्कसूरि), पठ. साध्वीजी समयलच्छि, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२८x११, १८४३५-६१). पे. १.पे. नाम. कर्मविपाक सह टबार्थ, पृ. १-११अ कर्मविपाक नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसुरि, प्रा., पद्य, आदिः सिरिवीरजिणं वन्दिय; अंतिः लिहिओ देविन्दसूरीहिं. कर्मविपाक नव्य कर्मग्रन्थ-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः श्रीवीरजिन वान्दी; अंतिः श्रीदेवेन्द्रसूरिइं., पे.वि. मूल-गा.६०. पे. २. पे. नाम. कर्मस्तव सह टबार्थ, पृ. ११अ-१७अ कर्मस्तव नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, आदिः तह थुणिमो वीरजिणं; अंति: वन्दियं नमह तं वीरं. कर्मस्तव नव्य कर्मग्रन्थ-टबार्थ', मागु., गद्य, आदिः तथा श्रीमहावीरनी; अंतिः करउ अहो भव्यप्राणी., पे.वि. मूल गा.३४. पे. ३. पे. नाम. बन्धस्वामित्व सह टबार्थ, पृ. १७अ-२१आ बन्धस्वामित्व नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, आदिः बन्धविहाणविमुक्कं; अंति: नेयं कम्मत्थयं सोउं. बन्धस्वामित्व नव्य कर्मग्रन्थ-टबार्थ', मागु., गद्य, आदिः हिव त्रीजउ कर्म; अंतिः कर्मस्तवथी साम्भलीनइ., पे.वि. मूल-गा.२५. ३२१४." प्रतिक्रमणसूत्र सङ्ग्रह सह वृत्ति, संपूर्ण, वि. १६६७, श्रेष्ठ, पृ. २८, पे. २, जैदेना., ले.स्थल. बुरहानपुर, ले. श्रा. नेमा (पिता श्रा. दासु साह), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. पंचपाठ, संशोधित, (२६x११, ४-९४२८-३५). पे. १. पे. नाम. श्राद्धप्रतिक्रमणसूत्र सङ्ग्रह सह अवचूर्णि, पृ. १आ-२२आ श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र , संबद्ध, प्रा.,मागु., प+ग, आदिः नमो अरिहं० सव्वसाहूण; अंतिः वन्दामि जिणे चउवीसं. श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-अवचूर्णि, सं., गद्य, आदिः इह तावत् श्रावकेणापि; अंतिः जिनान् वन्देहम्. पे. २. पे. नाम. साधुप्रतिक्रमणसूत्र सह तिलकाचार्यांय टीका, पृ. २२आ-२८अ साधुवन्दित्तुसूत्र, संबद्ध, प्रा., गद्य, आदिः (१) करेमि भन्ते० चत्तारि (२) चत्तारि मङ्गलं; अंतिः वन्दामि जिणे चउवीसं. साधुवन्दित्तुसूत्र-लघुटीका, आ. तिलकाचार्य, सं., गद्य, आदिः श्रीवीरजिनाधिपतिं; अंतिः श्रेय एवेति मन्यते. ३२१५. उपदेशतरङ्गिणी सह दृष्टान्त कथा, अपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ७७, जैदेना., पू.वि. अन्त के पत्र नहीं हैं. प्रारंभ से तरंग-५ उपदेश-९ तक है., (२६.५४११, १५४४२-४३). उपदेशतरङ्गिणी, गणि रत्नमन्दिरगणि, सं., पद्य, आदिः श्रीनाभेयः स वो; अंति: उपदेशतरङ्गिणी-कथा, सं., गद्य, आदि:-; अंति:३२१६. कर्मग्रन्थ-१ कर्मविपाक सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १५, जैदेना., ले. जेठालाल, प्र.वि. मूल-गा.६३. अंतिम गाथा का टबार्थ नही लिखा है., (२७४१२, ४४२५-२६). कर्मविपाक नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, आदिः सिरिवीरजिणं वन्दिय; अंतिः लिहिओ देविन्दसूरीहिं. कर्मविपाक नव्य कर्मग्रन्थ-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः श्रीवीरजिन प्रते; अंतिः देवेन्द्रसूरीश्वरइं. For Private And Personal Use Only Page #403 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org: ३४९ ३२१८. नन्दीसूत्र, अपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदेना., पू. वि. प्रारंभ व अंत के पत्र नहीं हैं., ( २६×११, १८४६३). नन्दीसूत्र, आ. देववाचक, प्रा., प+ग, आदि:-: अंति: , Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३२१९. कर्मग्रन्थ-द्वितीय सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १८ जैवेना. ले. जेठालाल चुनिलाल लहिया, प्र. वि. मूलगा. ३४. प्र. पु. बार्थ ग्रं. २००. संशोधित (२७४१२ २४२४-२६). कर्मस्तव नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: तह थुणिमो वीरजिणं; अंतिः वन्दियं नमह तं वीरं. कर्मस्तव नव्य कर्मग्रन्थ-टबार्थ *, मागु., गद्य, आदिः तथा प्रकारे स्तुति; अंतिः ते महावीरदेव प्रते. कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ३२२०, कर्मग्रन्थ तृतीय सह टबार्थ, संपूर्ण वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १४ जैदेना. ले. जेठालाल चुनिलाल लहिया, प्र. वि. मूल , " " गा.२५., संशोधित, (२७४१२, २x२२-२४). बन्धस्वामित्व नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, आदिः बन्धविहाणविमुक्कं; अंतिः नेयं कम्मत्थयं सोउं. बन्धस्वामित्व नव्य कर्मग्रन्थ-टबार्थी मागु, गद्य, आदि बन्धना कारणथी मुकाणा अंतिः कर्मस्तवधी साम्भलीनइ. ३२२१.” कर्मग्रन्थ-पञ्चम सह टबार्थ व चौद बोल, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४३, पे. २, देना., प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ - कुछ पत्र, (२८x१२, ३१२-१६). पे. १. पे. नाम. शतक कर्मग्रन्थ सह टबार्थ, पृ. १-४२आ शतक नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, आदिः नमिय जिणं धुवबन्धोदय; अंतिः सयगमिणं आयसरणट्ठा. शतक नव्य कर्मग्रन्थ-टवार्थ, मागु, गद्य, आदि प्रणमीने जिन प्रति अंतिः सम्भारवाने अर्थि. पे.वि. मूल-गा. १००. पे. २. १४ बोल *, मागु., गद्य, (पृ. ४३अ), आदि: पेहेले बोले सूक्ष्म; अंतिः थानक सङ्ख्यात गुणा., पे.वि. गा.१५. (+) ३२२२. कल्याणमन्दिर स्तव सह टवार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी श्रेष्ठ, पृ. १०, जैदेना. प्र. वि. मूल श्लो. ४४., पदच्छेद सूचक - · लकीरें टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२५०११, ४४३४-३५). कल्याणमन्दिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकर, सं., पद्य, आदि: कल्याणमन्दिरमुदारमवद: अंतिः मोक्षं प्रपद्यन्ते. कल्याणमन्दिर स्तोत्र- टवार्थ, मागु, गद्य, आदि (१) कवीशं सद्गुरू नत्वा (२) क० समस्त जे कल्याण: अंतिः पामइ ते लहइ. (+) ३२२३. सीमन्धरजिन स्तवन सह स्वोपज्ञ टवार्थ, संपूर्ण, वि. १८७१, श्रेष्ठ, पृ. २७, जैदेना. ले. स्थल. श्रीलासनगर, ले. पं. " देवेन्द्रविजय, प्र. वि. मूल ढाळ-११, गा. १२५, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२५४११, ४४२४-२७). सीमन्धरजिनविनती स्तवन सवासोगाथा, उपा. यशोविजयजी गणि मागु, पद्य, आदि स्वामी सीमंधर विनती अंति जसविजय बुध जयकरो. सीमन्धरजिनविनती स्तवन-टबार्थ, उपा. यशोविजयजी गणि, मागु, गद्य, आदि अहो श्रीसीमन्धर अंतिः परोपगारी श्रीसाहेबजी. , (+) ३२२४. निशीथसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९०६, श्रेष्ठ, पृ. ८९ + १ (१४) = ९०, जैदेना., ले. स्थल भुजनगर, ले. रूपजी त्रवाडी, प्र.वि. मूल-२०उद्देश. पत्रांक- २ खंडित तथा अर्धभाग है., पदच्छेद सूचक लकीरें, ( २६.५x१०.५, ५x२९-३०). निशीथसूत्र, प्रा., गद्य, आदिः जे भिखु हत्थ; अंतिः पसिस्सो भवोज्जं च. निशीथसूत्र- टवार्थ मागु, गद्य, आदि जे० जे साधु ह०: अंतिः उपरान्त छ मास थया. ३२२५. कर्मविपाक व कर्मस्तव सह बालावबोध, संपूर्ण वि. १८वी श्रेष्ठ, पृ. २१+१ (१८)-२२, पे. २. जैदेना, (२५४११ For Private And Personal Use Only १५X३४). पे. १. पे नाम कर्मविपाक सह बालावबोध, पृ. १२-१४आ कर्मविपाक नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: सिरिवीरजिणं वन्दिय; अंतिः लिहिओ देविन्दसूरीहिं. Page #404 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य भाग - १ ३५० कर्मविपाक नव्य कर्मग्रन्थ-बालावबोध, मागु., गद्य, आदिः प्रणम्य भारती देवीं; अंतिः श्रीदेवेन्द्रसूरइ., पे.वि. मूल गा.६०. पे. २. पे. नाम. कर्मस्तव सह बालावबोध, पृ. १४आ-२१आ कर्मस्तव नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, आदिः तह थुणिमो वीरजिणं; अंतिः वन्दियं नमह तं वीरं. कर्मस्तव नव्य कर्मग्रन्थ-बालावबोध*, मागु., गद्य, आदिः तिम श्रीमहावीर प्रति; अंतिः कर्मनी सत्ता पुरी थई., पे.वि. मूल-गा.३४. ३२२६. दशवैकालिकसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १७९८, श्रेष्ठ, पृ. ६४-३(१५ से १७)=६१, जैदेना.,प्र.वि. मूल-अध्याय अध्ययन१०चूलिकार., (२६४११, ५४३४). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यम्भवसूरि, प्रा., पद्य, वि. पू.४, आदिः धम्मो मङ्गलमुक्किट्ठ; अंतिः (१)मुच्चइ त्ति बेमि (२)भविआण विबोहणट्ठाए. दशवैकालिकसूत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः धर्म केवलीउ भाष्यउ; अंतिः शिष्य प्रतइ कहइ छइ. ३२२९. तेजसारनृप रसिक चौपाई, संपूर्ण, वि.२०वी, श्रेष्ठ, पृ. १५, जैदेना., ले. पं. कल्याण, प्र.वि. गा.४१४, (२५४११, १५४३९-४०). तेजसार रास, वाचक कुशललाभ, मागु., पद्य, वि. १६२४, आदिः श्रीसिद्धारथ कुलतिलो; अंति: तेहना सहु मनोरथ फलइ. ३२३१. भक्तामर स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १८८९, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना., ले.स्थल. गैतारग्राम, ले. ऋ. रतनलाल, प्र.वि. श्लो.४८, (२५४११, १०४२५-२६). भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुङ्गसूरि, सं., पद्य, आदिः भक्तामरप्रणतमौलिमणि; अंतिः समुपैति लक्ष्मी. ३२३३. सङ्ग्रहणीसूत्र, पूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १९-१(१)=१८, जैदेना., प्र.वि. गा.३०२, पू.वि. गाथा १ से ९ तक नहीं है., (२५.५४१०, १०-१२४३२-३५). बृहत्सङ्ग्रहणी, आ. चन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि:-; अंतिः जा वीरजिण तित्थं. ३२३५.” अभिधानचिन्तामणि नाममाला, पूर्ण, वि. १८४०, श्रेष्ठ, पृ. ५२, जैदेना.,प्र.वि. संशोधित, पदच्छेद सूचक लकीरें, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, पू.वि. अन्तिम पत्र नहीं है. कांड-६ श्लो.१५८ तक है., दशा वि. विवर्ण-पानी से अक्षरों की स्याही फैल गयी है, (२५.५४१०.५, १९x४७-४८). अभिधानचिन्तामणि नाममाला, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, आदिः प्रणिपत्यार्हतः; अंति:३२३७. कल्पसूत्र सह बालावबोध - व्याख्यान २, ४ व ५, प्रतिअपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३२-१३(१६ से २८)+२(३० से ३१)=२१, जैदेना.,प्र.वि. संशोधित, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., (२६४११, १५४३८-४८). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि:-; अंति: कल्पसूत्र-बालावबोध , मागु.,राज., गद्य, आदिः-; अंति:३२३८. वीसस्थानक क्षमाश्रमणदान विधि, पूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १५-१(४)=१४, जैदेना., ले.स्थल. सादडी, ले. शिवदेव व्यास, (२७४११, १०४३४-३५). २० स्थानक खमासणदान विधि, मागु., गद्य, आदिः तिहां प्रथम स्थानके; अंतिः काउसग्ग णमो तित्थस्स. ३२४०. नेमराजुल रास व सीलरक्षाप्रकाश, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १४, पे. २, जैदेना., (२६४११.५, १२४३७-४१). पे. १. नेमराजिमती रास, मु. पुण्यरत्न, मागु., पद्य, (पृ. १अ-४आ), आदिः सारद पय पणमी करी; अंतिः प्रसन्न श्रीनेमजिणंद., पे.वि. गा.७०. पे. २. शील रास, आ. विजयदेवसूरि, मागु., पद्य, (पृ. ४आ-१४आ), आदिः पहिलउ प्रणाम करूं; अंति: इम श्रीविजयदेवसूरि., पे.वि. गा.७७. For Private And Personal Use Only Page #405 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org: ३५१ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ३२४१.” क्षेत्रसमासलघु सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९२६, श्रेष्ठ, पृ. २४, जैदेना., ले. स्थल. भावनगर, ले. मु. गुलाबविजय, प्र. वि. मूल-गा. १०३. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, पदच्छेद सूचक लकीरें (२६.५५११, ३-४x२४). लघुक्षेत्रसमास प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: सिरिवीरजिण वन्दिय; अंतिः वा बहुसुया . लघुक्षेत्रसमास प्रकरण- टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः आठप्रातिहार्य; अंतिः घणां छोकरा थस्ये. ३२४२. कुमारपाल रास, अपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ९१ जैदेना, पृ. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण गा ३०२१ अर्धपाद अपूर्ण तक , है., (२५.५४११, १९४३५-४५), " कुमारपाल रास, कवि ऋषभदास सङ्घवी, मागु., पद्य, वि. १६७०, आदिः सकल सिद्ध सुपरि नमुं; अंतिः३२४३. त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित्र पर्व ८ अरिष्टनेमिजिन चरित्र, प्रतिपूर्ण, वि. १६५९, श्रेष्ठ, पृ. ९० जैदेना. ले. स्थल अर्गलपुर, ले. मु. मतिसुन्दर ( खरतरगच्छ ), गच्छा. राजा अकबर, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. मूल अंश- सर्ग -१२, प्र.पु. मूल अंश ग्रं. ४७५०. प्र. वर्ष-नंदेष्विन्दुकलामितेब्दे, पदच्छेद सूचक लकीरें संधि सूचक चिह्न, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, संशोधित, (२८.५४११.५. १६४५३-५९). त्रिषष्टिशलाकापुरुष चरित्र, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १२२०, आदिः-; अंतिः ३२४४.” रत्नचूड चौपाई, संपूर्ण, वि. १७६१, श्रेष्ठ, पृ. ३७, जैदेना., ले. मु. ताराचन्द (गुरु पं. लक्ष्मीकीर्ति), प्र. वि. ढाळ - ३८, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२५४११, १६४३०-३८). रत्नचूड चौपाई, मु. लालचन्द, मागु., पद्य, वि. १७३९, आदि: प्रथम पणमि परमेष्ठि; अंतिः उदय पद लहिस्यैजी. ३२४५. तिलोकचन्दकृत प्रश्नोत्तर पूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १६ - १ (१०) - १५, जैदेना, (२५.५४१०.५, १०४३६-३८). प्रश्नोत्तर तिलोकचन्दकृत, श्रा. तिलोकचन्द लुणिया, मागु., गद्य, आदि: तुमे कह्युं जे समकित ; अंतिः इत्यादि विचारणीयम्. ३२४६. आठकर्मनी १५८ प्रकृति, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १२, जैदेना, (२५.५१११, ८x२४-२५). ८ कर्म १५८ प्रकृति विचार मागु गद्य, आदि आठ कर्म ते केहा अंतिः विलय थइ जाय. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३२४७. रत्नपालरत्नवती दृष्टान्त प्रभवजम्बुसंवादे, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १५, जैदेना. ले. स्थल. लिंबडी, ले. श्रा. अमृतलाल हंसराज सेठ (२६४११.५ १३x२४- २७) रत्नपालरत्नवती दृष्टान्त प्रभवजम्बूसंवादे, राज, गद्य, आदिः पुत्र उपरि प्रभो अंतिः जंबु ग्रहने विषे रहो. ३२४८.” उपदेशमाला सह व्याख्या व कथा, अपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १७-८ (१ से ८) = ९, जैदेना., प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें - प्रारंभिक पत्र, पू.वि. बीच के पत्र हैं. गा. ३ अपूर्ण से गा. ११ अपूर्ण तक है., (२५.५४१०.५. १७४४७). उपदेशमाला, गणि धर्मदास, प्रा., पद्य, आदि:-; अंति: उपदेशमाला-वृत्ति, गणि रामविजय, सं., गद्य, वि. १७८१, आदि:-; अंतिः (#) ३२४९. शत्रुञ्जय रास, पूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ७ जैदेना. पु. वि. अन्तिम पत्र नहीं है. ढाल ६ गा.२१ तक है., दशा वि. " " विवर्ण पानी से अक्षरों की स्याही फैल गयी है- अल्प, (२५.५४११, ११-१२४२९). शत्रुंजयतीर्थ रास, उपा. समयसुन्दर गणि, मागु., पद्य, वि. १६८२, आदिः श्रीरिसहेसर पाय नमी : अंति: "" ३२५०." कयवन्ना चौपाई व जैनगाथा संपूर्ण वि. १९३२, श्रेष्ठ, पृ. १३, पे. २, जैदेना. ले. स्थल अकवरावाद, ले. साध्वीजी जसोदा (गुरु साध्वीजी पनाजी), प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२५.५x१२.५, १७x४५-५०). पे. १. कयवन्ना चौपाई, गङ्गाराम मागु, पद्य वि. १९२१ (पृ. १-१३) आदि पुर्णवञ्छत सुखकर्ण अंतिः नीरमल मतने राखी रे., पे.वि. ढाळ - २९. पे. २. जैन गाथा *, मागु., पद्य, (पृ. १२आ - १३आ), आदि:-; अंतिः · , ३२५१. नवपद विधि, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ११, जैदेना., (२५.५४१२, ११x२०). नवपद विधि, राज, गद्य, आदिः प्रभातरो संझारो; अंतिः तपना ५० भेद जाणवा. For Private And Personal Use Only Page #406 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य भाग - १ ३५२ ३२५२." पज्जूसवणाकप्प, संपूर्ण, वि. १८६८, श्रेष्ठ, पृ. ६२, जैदेना., ले.स्थल. मिरजापुर, ले. मु. वछैराज (गुरु गणि आनन्दरत्न, खरतरगच्छ), प्र.ले.पु. मध्यम,प्र.वि. ग्रं. १२१६, ९-व्याख्यान, संशोधित, पदच्छेद सूचक लकीरें-कुछ पत्र, (२६४११.५, ११४२६-३०). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदिः णमो अरिहन्ताणं० पढमं; अंतिः उवदंसेइ त्ति बेमि. ३२५४. उपदेशमाला सह वृत्ति व कथा, संपूर्ण, वि. १९५८, श्रेष्ठ, पृ. १७६, देना., ले.स्थल. पाटण, ले. वल्लभ जोसी, प्र.वि. मूल-गा.५४४., त्रिपाठ, प्र.ले.श्लो. (५०६) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा ; (४४०) तैलाद् रक्षेद् जलाद् रक्षेद्; (१००) बद्धमुष्टी कटी ग्रीवा, (३०x१४, १२-१४४४३-४९). उपदेशमाला , गणि धर्मदास, प्रा., पद्य, आदिः (१) नमिऊण जिणवरिन्दे (२) जगचूडामणिभूओ उसभो; अंतिः वयण विणिग्गया वाणी. उपदेशमाला-वृत्ति, गणि रामविजय, सं., गद्य, वि. १७८१, आदिः श्रेयस्करं कामित; अंतिः वाणी श्रुतदेवी. उपदेशमाला-कथा सङ्ग्रह, सं., गद्य, आदिः प्रणम्य गुरुपादाब्ज; अंतिः संसारे परिभ्रमिष्यसि. ३२५५." हरिवंशपुराण, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४२६-२०८(१ से २०८)=२१८, जैदेना., प्र.वि. सर्ग-६६, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, संशोधित, पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न, अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ, पू.वि. सर्ग-२८ की गा.४९ अपूर्ण से है., (२९.५४१३, ११४३४-३७). हरिवंशपुराण, आ. जिनसेनाचार्य, सं., पद्य, शक. ७०५, आदि:-; अंतिः पृथिव्यां चिरम्. ३२५९. पिण्डविशुद्धि प्रकरण सह वृत्ति, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६७, जैदेना., प्र.वि. मूल-गा.१०३; टीका-ग्रं. २८००., (२७.५४१३.५, १४४४९-५०). पिण्डविशुद्धि प्रकरण, आ. जिनवल्लभसूरि, प्रा., पद्य, आदिः देविन्दविन्दवन्दिय; अंतिः बोहिन्तु सोहिन्तु य. पिण्डविशुद्धि प्रकरण-लघुवृत्ति, आ. यशोदेवसूरि, सं., गद्य, वि. ११७६, आदिः (१) देवा भवनपत्यादय (२) यदुदितलवयोगाद्देहिनः; अंतिः (१)दूलच्छन्दोवृत्तार्थः (२)शेषविबुधैश्च.. ३२६१.” गति आगति यन्त्र व भावनाभेद, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, पे. २, जैदेना., प्र.वि. *पंक्ति-अक्षर अनियमित है।, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२५.५४१२.५४). पे. १. जीवगतिआगति यन्त्र, मागु., कोष्टक, (पृ. १-५), आदि: #; अंतिः#. पे. २. उपशमादिभावना के प्रभेद, मागु., कोष्टक, (पृ. ६अ), आदिः उपसम भावना २ भेद; अंति: भेद उत्तरभेद जाणवा. ३२६३. आराधनापताका प्रकरण, संपूर्ण, वि. १९५७, श्रेष्ठ, पृ. २८, जैदेना., ले. सरबादुर, प्र.वि. गा.९९०, (२७४१३, १५४४८). आराधनापताका प्रकीर्णक, प्रा., पद्य, आदिः नियसुचरियगुणसाहप्प; अंतिः जिणसासणं सुदूरं. ३२६४. पाक्षिकसूत्र, खामणा व पाक्षिकादि तप, संपूर्ण, वि. १९२३, श्रेष्ठ, पृ. १५, पे. ३, जैदेना.,ले. मु. हंसविजय (गुरु आ. आनन्दसूरि, आणन्दसूरिगच्छ), (२५.५४१३, १३-१४४२५-२६). पे. १.पे. नाम. पाक्षिकसूत्र, पृ. ०१अ-१४अ पाक्षिकसूत्र, प्रा., प+ग, आदिः तित्थङ्करे य तित्थे; अंतिः (१)मिच्छामि दुक्कडं (२)जेसिं सुयसायरे भत्ति. पे. २. पे. नाम. क्षामणासूत्र, पृ. १४अ-१५अ क्षामणकसूत्र, प्रा., गद्य, आदिः इच्छामि खमासमणो; अंतिः नित्थारग पारगा होह. पे. ३. पे. नाम. पाक्षिक तप विधान, पृ. १५अ-१५अ पाक्षिकचौमासीसंवत्सरीतप आलापक, संबद्ध, प्रा.,मागु., गद्य, आदि: इच्छाकारेण सन्दिसह; अंति: आयम्बिल त्रण निवि. ३२६६. प्रतिक्रमणसूत्र सङ्ग्रह, बीज व एकादशी स्तुति, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, पे. ३, जैदेना., (२६.५४१२.५, ११४२७-३०). For Private And Personal Use Only Page #407 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ३५३ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची पे. १.बीजतिथि स्तुति, मु. लब्धिविजय, मागु., पद्य, (पृ. ६आ-७अ), आदिः दिन सकल मनोहर; अंतिः पुरो मनोरथ ___ माय., पे.वि. गा.४. पे. २. मौनएकादशीपर्व स्तुति, मु. गुणहर्ष-शिष्य, मागु., पद्य, (पृ. ७अ-७आ), आदिः एकादशी अति रुअडी; अंतिः सङ्घ तणा निशदिश., पे.वि. गा.४. पे. ३. पे. नाम. साधुप्रतिक्रमणसूत्र सङ्ग्रह, पृ. ०१आ-१७अ साधुप्रतिक्रमणसूत्र सङ्ग्रह श्वे.मू.पू., संबद्ध, प्रा., प+ग, आदिः नमो अरिहन्ताणं; अंतिः (१)खमामि सव्वस्स अहयंपि (२)जैनं जयति शासनम्., पे.वि. साधु प्रतिक्रमण के सूत्रों के साथ पौषधादि सूत्र भी दिये गये है. ३२६७. जैनधर्म विषयक चर्चा, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, जैदेना., पू.वि. अन्त के पत्र नहीं हैं., (२५४१२, १७X४३-४७). जिनप्रतिमा चर्चा-मूर्तिपूजकमतमान्य, राज., गद्य, आदिः सर्व भाई लोग जिन; अंतिः३२७१.” दशवैकालिकसूत्र सह टबार्थ व जैनश्लोक, पूर्ण, वि. १८७३, श्रेष्ठ, पृ. ४६-४(२ से ५)=४२, पे. २, जैदेना., ले.स्थल. जयनगर, ले. मु. रूपचन्द्र(तपागच्छ),प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२७.५४१२.५, ७४३३-३८). पे. १. पे. नाम. दशवैकालिक सह टबार्थ, पृ. १-४६, पूर्ण दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यम्भवसूरि, प्रा., पद्य, वि. पू.४, आदिः धम्मो मङ्गलमुक्किट्ठ; अंति: गई त्ति बेमि. दशवैकालिकसूत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः मङ्गलाचरण करई सर्व; अंतिः मोक्षलक्ष्मी पामे., पे.वि. मूल-अध्याय १०अध्ययनरचूलिका; प्र.पु. मूल-ग्रं.४६००. बीच के पत्र नहीं हैं. पे. २. जैन श्लोक *, सं., पद्य, (पृ. ४६आ, संपूर्ण), आदिः#; अंतिः#. ३२७२. योगशास्त्र की स्वोपज्ञ अवचूरि - प्रकाश १ से ४, प्रतिपूर्ण, वि. १४८३, श्रेष्ठ, पृ. १५, जैदेना., प्र.वि. संशोधित, (२६४११, २१४७०-८३). योगशास्त्र-स्वोपज्ञ वृत्ति, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., गद्य, आदिः प्रणम्य सिद्धाद्भुत; अंतिः#. ३२७४. आलोयणा सङ्ग्रह, संपूर्ण, वि. १६७७, श्रेष्ठ, पृ. १२, पे. ४, जैदेना., ले.स्थल. डुंगलानगर, ले. गणि जसविजय (गुरु उपा. विमलहर्ष, तपागच्छ), प्र.ले.पु. मध्यम, (२५.५४१०.५, ११४३१-३८). पे. १. आलोयणा विचार, सं.,प्रा.,मागु., प+ग, (पृ. १-७आ), आदिः प्रथमं मुहूर्तं; अंतिः दुक्कडं तस्स. पे. २. श्रावक आलोयणा, प्रा.,सं., पद्य, (पृ.७आ-९अ), आदिः तिव्वार पनरठारस इग; अंतिः स्वाध्यायेनोपवासः. पे. ३. आलोचना, सं., गद्य, (पृ. ९आ), आदिः बालालोचनाया; अंतिः दसपइवरिसं छमासं जा. पे. ४. श्रावक आलोयणा, मागु., गद्य, (पृ. १०अ-१२आ), आदि: ज्ञानाचारि पोथी पाटी; अंतिः ३६ उपवासा भवन्ति. ३२७५." नवतत्त्व पदार्थ विचार, संपूर्ण, वि. १९७२, श्रेष्ठ, पृ. १०, जैदेना., ले.स्थल. मपशरूर, ले. अमरसिंह, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२५४१२.५, ४५-५०४३३-३५). नवतत्त्व प्रकरण-पदार्थ विचार, मागु., गद्य, आदि: जीव अजीव पुन्य पाप; अंतिः पन्दरा भेदथी सिध भया. ३२७६. योगशास्त्र की अवचूरि - प्रकाश १ से ४, पूर्ण, वि. १६वी, श्रेष्ठ, पृ. १८-१(१)=१७, जैदेना., प्र.वि. प्र.पु. ग्रं. १८००., पू.वि. प्रथम प्रकाश गा.२२ तक नहीं है., (२६४११, २१४७३-७७). योगशास्त्र-हिस्सा प्रकाश १ से ४ की अवचूरि, सं., गद्य, आदि:-; अंतिः ध्याता ध्यानो भवेत्. ३२७७." श्रीपाल रास सह टबार्थ-खण्ड ४, प्रतिपूर्ण, वि. १८४३, श्रेष्ठ, पृ. ५५, जैदेना., ले.स्थल. आदरिआणा, ले. श्रा. सुरचन्द दोसी (पिता श्रा. वीरचन्द दोसी), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२६४१२, ५४३०-३८). श्रीपाल रास, उपा. विनयविजय , उपा. यशोविजयजी गणि, मागु., पद्य, वि. १७३८, आदि:-; अंतिः लहसे ज्ञान विशालाजी. श्रीपाल रास-टबार्थ', मागु., गद्य, आदि:-; अंति: For Private And Personal Use Only Page #408 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य भाग १ - www.kobatirth.org: ३५४ ३२७८." भाष्यत्रय सह टबार्थ, संपूर्ण वि. १८५७ श्रेष्ठ, पृ. २१, जैदेना. ले. स्थल. सुरजपुर, ले. मु मयारत्न प्र. वि. मूल- ३ भाष्य., टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२७.५x१२, ४-५ २६-४० ). भाष्यत्रय, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, आदिः वन्दित्तु वन्दणिज्जे; अंतिः सासयसुक्खं अणाबाहं... भाष्यत्रय-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः वन्दित्तु कहितां; अंतिः बाधा पीडा रहित. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३२७९." कल्पसूत्र का बालावबोध, संपूर्ण वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १२८, जैदेना, प्र. वि. संशोधित (२४.५४१३.५, १४४३८-३९). कल्पसूत्र-बालावबोध, मु. खीमाविजय, मागु., गद्य, वि. १७०७, आदिः प्रणम्य श्रीमहावीरं; अंतिः वारे वारे इम देखाडे.. ३२८०. अष्टाह्निका महोत्सव सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८८२, श्रेष्ठ, पृ. ३०, जैदेना., ले. स्थल. सथांणानगर, ले. मु. अमृतकुशल, (२७.५X१३, ८४३७-४१). पर्युषणाष्टानिका व्याख्यान, मु. नन्दलाल, सं. पद्य वि. १७८९, आदि स्मृत्वा पार्श्व: अंतिः करगामिनी भवति पर्युषणाष्टानिका व्याख्यान- टवार्थ, मागु, गद्य, आदिः समरीने श्रीपार्श्वजी अंतिः हाथे आवती होइ, ३२८१. वैराग्यशतक सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १७, जैदेना. ले. गौरीशङ्कर गोविन्दजी भट्ट, प्र. वि. मूल "" गा.१०४; प्र.पु. मूल ग्रं. ५००., ( २६.५x१३.५, ४x२९-३४). वैराग्यशतक, प्रा., पद्य, आदि: संसारंगि असारे नत्थि: अंतिः लहइ जिउ सासयं ठाणं. वैराग्यशतक-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः संसारनइ विषदं सर्व; अंति: रूप स्थानक प्रते. ३२८२. उत्तराध्ययनसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ७५, जैदेना., पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. १९ अध्ययन तक लिखा है। अंत के कुछेक पत्रों में टबार्थ नहीं लिखा है., ( २७.५१३, ५X३३-३५). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा. प+ग, आदिः सञ्जोगाविप्पमुक्कस्स; अंति: उत्तराध्ययनसूत्र- टवार्थ मागु, गद्य, आदि उत्तराध्ययननो अंतिः तुज प्रते कहूं छं. ३२८३. पञ्चमहाव्रत कथा, संपूर्ण, वि. १८९६, श्रेष्ठ, पृ. २५, जैदेना., ले. स्थल. सुर्जपुर, ले. मु. गुणरत्न ( गुरु मु. तेजरत्न), प्र.ले.पु. विस्तृत, ( २६ १३.५, १७×३६-४०). पंचमहाव्रत कथा, मागु., गद्य, आदिः जम्बुद्वीपे महाविदेह; अंतिः दशभवनो विस्तार कह्यो. (+) ३२८४. दिपालिका कल्प सह टवार्थ, संपूर्ण, वि. १८५८, श्रेष्ठ, पृ. २९ जैदेना. ले. स्थल, पेढांमलीनगर, ले. गणि रत्नसोम (गुरु पं. कस्तुरसोम), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. मूल - श्लो. ४३८, टिप्पण युक्त विशेष पाठ - कुछ पत्र, (२७X१३, ७-८×३२३४). " दीपावलीपर्व कल्प, आ. जिनसुन्दरसूरि सं., पद्य वि. १४८३, आदि श्रीवर्द्धमानमाद्गल अंतिः चन्द्रार्कजगत्त्रये. दीपावलीपर्व कल्प- टवार्थ मागु, गद्य, आदिः श्रीमहावीरदेव अंतिः चन्द्रमा सूर्य ताइ i ३२८५. श्राद्धजीतकल्प सह टीका, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ६५, जैदेना., प्र. वि. मूल-गा. १४२. प्र. पु. टीका ग्रं. २६००., . (२७.५४१३, १५४४४-४६). श्राद्धजीतकल्प, आ. धर्मघोषसूरि, प्रा., पद्य, वि. १४वी, आदिः कयपवयणप्पणामो जीयगयं; अंतिः रइयं सोहन्तु गीयत्था. श्राद्धजीतकल्प- टीका, सं. गद्य, आदिः श्रीवीरं सगणधरं० अंतिः प्ररूप शेषवक्तम्. ३२८६.” न्यायसङ्ग्रह की स्वोपज्ञ न्यायार्थमञ्जूषा टीका, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २९, जैदेना., प्र. वि. प्र. पु. ग्रं. १४००., अशुद्ध पाठ, (२७.५X१३, १५x५२-५४). न्यायसङ्ग्रह- स्वोपज्ञ न्यायार्थमञ्जूषा वृहद्वृत्ति, गणि हेमहंस, सं., गद्य वि. १५१५ आदिः अत्र प्रकृतिर्धातु: अंतिः सम्पूर्णतां लम्मितः, ३२८७. कल्याणमन्दिर स्तोत्र सह अवचूरि, पूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ११, जैना, प्र. वि. त्रिपाठ, पू. वि. अन्तिम पत्र नहीं है. काव्य- ४३ तक है. (२९x१३, १५-१६४३२-३५) For Private And Personal Use Only Page #409 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ३५५ कल्याणमन्दिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकर, सं., पद्य, आदि कल्याणमन्दिरमुदारमवद: अंति:कल्याणमन्दिर स्तोत्र- टीका, पाठक हर्षकीर्ति, सं., गद्य, आदिः किल इति सत्य एषः; अंति: www.kobatirth.org: ३२९० नेमिजिन, सीमन्धरजिन स्तवन सामायिकफल सज्झाय व श्लोक, अपूर्ण, वि. १८२४, श्रेष्ठ, पृ. ८-३(१ से ३)=५, पे. ४, जैदेना., ले. स्थल. करुजानगर, ( २६ १२.५, १३४३२-३५). पे. १. सौभाग्यपञ्चमीपर्व स्तवन, मु. गुणविजय, मागु., पद्य, (पृ. ४अ - ६अ, अपूर्ण), आदि:-; अंतिः गुणविजय रङ्गे गुणि., पे. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. ढाल - १ की गा. १ से ३ तक नहीं है. पे. २. सीमन्धरजिन स्तवन, सन्तोष, मागु., पद्य, (पृ. ६अ-८अ, संपूर्ण), आदिः सुणि सुणि सरसती; अंतिः पूर्व पून्य पायो रे.. पे. वि. गा. ४०. पे. ३. सामायिक सज्झाय, मु. नेमसागर, मागु., पद्य, (पृ. ८अ, संपूर्ण), आदि: सामायिक मन सुद्धे: अंतिः सामायिक पालो निसदीस., पे.वि. गा. ५. पे. ४. जैन गाथा *, मागु., पद्य, (पृ. ८अ, संपूर्ण), आदि:-; अंतिः (+) ३२९१." मेरुत्रयोदशी कथा पूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ७-१(१ ) = ६, जैदेना. प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें टिप्पण युक्त विशेष " , पाठ (२६४१२.५, १३४४१). मेरुत्रयोदशी कथा, सं., गद्य, आदि:-; अंतिः स मुक्तिसाधनं भवति. " ३२९२. अञ्जनासती रास, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १६-२ (२८) = १४, जैदेना. प्र. वि. गा. १५८ (२५४१२, १६-१८४२८-३०). अंजनासुन्दरी रास, मागु, पद्य, (संपूर्ण), आदि पहिलइनइ कड बहो पाय अंति जगतनी माल तो. कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ३२९३. उत्तराध्ययनसूत्र सह टवार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १७९, जैदेना. प्र. वि. मूल ३६ अध्ययन. (२६४१२, ६४३६-४१). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग, आदिः सञ्जोगाविप्पमुक्कस्स; अंतिः (१) सम्म त्ति बेमि (२) पुव्वरिसी एव भासन्ति , Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir " (#) उत्तराध्ययनसूत्र- टवार्थ मागु, गद्य, आदि उत्तराध्ययननो अंतिः तुज प्रते कहुं हुं. ३२९४. चन्दराजा रास, संपूर्ण, वि. १८६९, श्रेष्ठ, पृ. १०२, जैदेना., प्र. वि. ढाल - १०८., ( २६.५X१२, १३-१४४४१-४२). चन्द्रराजा रास, मु. मोहनविजय, मागु., पद्य, वि. १७८३, आदिः प्रथम धराधव तीम; अंतिः वर्णव्या गुण चन्दना. ३२९६. वीरजिन स्तवन, पूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ६-१ (४) -५, जैदेना, प्र. वि. गा. ९७. पू. वि. गाथा ५६ से ७१ तक नहीं है.. (२५४११.५, ११४३१-३६) " · महावीरजिन स्तवन, मु. लक्ष्मण, मागु., पद्य, वि. १५२१, आदिः पहिलो धुरि समरुं; अंतिः घर निश्चै अफला फलै. ३३००.” सङ्ग्रयणीसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण वि. १८३९, श्रेष्ठ, पृ. ५८, जैदेना. ले. स्थल रामपूरा ले. आ. आनन्दविमलसूरि ( गुरु उपा. धीरविमल ), प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र. वि. मूल-गा. ३४२, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२५.५४११.५, ५x२६-३२). बृहत्सङ्ग्रहणी, आ. चन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदिः नमिउं अरिहन्ताइं अंतिः जा वीरजिण तित्थं. बृहत्सङ्ग्रहणी-टवार्थ मागु, गद्य, आदि: नमस्कार अरिहन्ता: अंतिः लगइ न दोष प्रवर्त्तो. ३३०१. बोल सङ्ग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ८ जैदेना. दशा वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, (२५.५४११, १३३६-४१). बोल सग्रह, राज, गद्य, आदि उपाध्याय पास वन्दनइ अंतिः केतलाएक लिखाइ, .. For Private And Personal Use Only ३३०२. सत्तरभेदी पूजा, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, जैदेना., पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. सातवी पूजा अधूरी है., ( २५X११.५, ८x२१-२४). १७ भेदी पूजा, आ. विजयानन्दसूरि, मागु., पद्य, आदि: सकल जिनन्द मुणिन्दनी; अंतिः ३३०३. भक्तामर स्तोत्र सह प्राकृतवार्ता वृत्ति (बालावबोध) अपूर्ण, वि. १८१०, श्रेष्ठ, पृ. २५-६ (१ से ६ ) = १९, जैदेना., ले. स्थल. गुंदवचननगर, ले. मु. देवेन्द्ररुचि (गुरु गणि दयारुचि, तपागच्छ), प्र. वि. मूल - श्लो. ४४. प्र. पु. अवचूरि-ग्रं. Page #410 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य भाग - १ ३५६ ६५१., पू.वि. गाथा १ से ८ तक नहीं है., दशा वि. विवर्ण-पानी से अक्षरों की स्याही फैल गयी है, चिपके पत्र अलग करते वक्त स्याही उखडी हुई-अल्प, (२४४१२, १२-१४४२८-३२). भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुङ्गसूरि, सं., पद्य, आदि:-; अंतिः समुपैति लक्ष्मी. भक्तामर स्तोत्र-अवचूरि, सं., गद्य, आदि:-; अंतिः तुङ्गा मानतुङ्गा.... ३३०४. सङ्ग्रहणीसूत्र सह त्रैलोक्यदीपिका टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६९, जैदेना., प्र.वि. मूल-गा.३४४. सयन्त्र., (२६.५४११.५, ४४२७-२९). बृहत्सङ्ग्रहणी, आ. चन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदिः नमिउं अरिहन्ताइं; अंतिः जा वीरजिण तित्थं. बृहत्सङ्ग्रहणी-टबार्थ, मु. जीवविजय, मागु., गद्य, आदिः नमस्कार करीने; अंतिः जयवन्त हुए त्यां लगी. ३३०५. तन्दुलवैचारिक प्रकीर्णक सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २१, जैदेना.,प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-कुछ पत्र, पू.वि. अन्त के पत्र नहीं हैं., (२६४११.५, ५४४०-४२). तन्दुलवैचारिक प्रकीर्णक, प्रा., प+ग, आदिः निजरिय जरामरणं; अंति: तन्दुलवैचारिक प्रकीर्णक-बालावबोध, आ. पार्श्वचन्द्रसूरि, मागु., गद्य, आदिः अहं कहु० तन्दुल; अंति:३३०६. माधवानल कामकुन्दला चौपाई, संपूर्ण, वि. १७७९, श्रेष्ठ, पृ. १३, जैदेना., प्र.वि. गा.५८०, (२५४११, २०x४०-४८). माधवानल चौपाई, वाचक कुशललाभ, मागु., पद्य, वि. १६१६, आदिः देवि सरसति देवि; अंतिः सुख पामइ संसारि. ३३०७. वीरजिन उपसर्ग, त्रिशला विलाप व पाण्डकवनशीला वर्णन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, पे. ३, जैदेना., (२८x११, १९-२०४५०-५४). पे. १. महावीरजिन उपसर्ग, मागु., गद्य, (पृ. १अ-५अ), आदिः अणुलोमो दीक्षा समइ; अंतिः कर्मरहित हुवउ. पे. २. त्रिशलाराणी गर्भचिन्ताविलाप गीत, उपा. समयसुन्दर गणि, मागु., पद्य, (पृ. ५अ-५आ), आदिः प्रणमुं जिण चउवीसमो; अंतिः जिम त्रिसला सती., पे.वि. गा.२३. पे. ३. पाण्डुकवनशीला वर्णन, मागु., गद्य, (पृ. ५आ), आदिः जेणे वे पंडग वण; अंति: चार जोजन उंचा छइ. ३३०८. पदार्थ सङ्ग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १३, जैदेना., पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. बोल-५५१ तक है., (२५.५४१२, १७-२१४३३-३६). जीवादि पदार्थ सङ्ग्रह, राज., गद्य, आदिः बेइन्द्री प्रजापत्ता; अंति:३३०९. शुकराज चौपाई, संपूर्ण, वि. १८०८, श्रेष्ठ, पृ. ४१, जैदेना., ले. पं. कल्याणरत्न (गुरु आ. दानरत्नसूरि, तपागच्छ), प्र.वि. ग्रं. १४५९, खण्ड-४, (२६.५४११.५, १५४३६-४०). शुकराज चौपाई, मु. ज्ञानसागर, मागु., पद्य, वि. १७७१, आदिः सकल सिद्धि दातार वर; अंतिः सहित सुजाणो रे. ३३१०. श्राद्धप्रतिक्रमणसूत्र सङ्ग्रह सह अर्थ, संपूर्ण, वि. १९२९, श्रेष्ठ, पृ. ७०, जैदेना., (२६.५४११.५, १२४३७-४५). श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र , संबद्ध, प्रा.,मागु., प+ग, आदिः नमो अरिहं० सव्वसाहूण; अंतिः इय सम्मत्तं मए गहियं. श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-अर्थ, मागु., गद्य, आदिः अरि कहता रागादिक; अंतिः अङ्गीकार कीg. ३३११. सिद्धपाहुड सह टीका, संपूर्ण, वि. १९५८, श्रेष्ठ, पृ. ३१, जैदेना., प्र.वि. मूल-परिमाण गा.११८., त्रिपाठ, (२७४११.५, १३४४१-४५). सिद्धप्राभृत प्रकीर्णक, प्रा., पद्य, आदिः तिहुयणपणए तिहुयण; अंतिः सुयाणुसारेण णायव्वं. सिद्धप्राभृत प्रकीर्णक-टीका, सं., गद्य, आदिः (१) सकलभुवनेशभूतान्निखिल (२) तिहुयणपणए इत्यादि; अंतिः (१)सिद्धप्राभृतकमिति (२)काकृद्भिश्चिरन्तनैः. ३३१२. द्वादशशतसूत्र वाचना, संपूर्ण, वि. १८४२, श्रेष्ठ, पृ. ३६, जैदेना., ले.स्थल. भावपुर, पठ. गणि नेमविजय (गुरु गणि रविविजय); मु. केसरविजय,प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. ९-व्याख्यान, (२६.५४११.५, १५४३२-३७). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदिः णमो अरिहन्ताणं० पढमं; अंतिः उवदंसेइ त्ति बेमि. For Private And Personal Use Only Page #411 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ३५७ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ३३१४." गजसुकुमाल चरित्र, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना., प्र.वि. गा.९१, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२५४११, ११४४०-४२). गजसुकुमाल रास, मु. शुभवर्द्धन-शिष्य, मागु., पद्य, आदिः देस सोरठ द्वारापुरी; अंतिः भणता होइ आणन्द. ३३१५.” नवतत्त्व प्रकरण सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, जैदेना., प्र.वि. मूल-गा.५०., टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२६४११.५, ४४३४-३७). नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदिः जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंतिः बोहिय इक्कणिक्काय. नवतत्त्व प्रकरण-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः श्रीभगवन्त सत्य; अंतिः एक सिद्ध अनेक सिद्ध. ३३१६. सिद्ध १५ द्वार बोल विचार, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना., (२६४११, २५४५४-६१). सिद्ध के १५ द्वार बोल, मागु., गद्य, आदिः अणन्तर सीझणा द्वार; अंतिः ते सङ्ख्यात गुणा. ३३१७. किसनबावनी व दोहे, संपूर्ण, वि. १९५२, श्रेष्ठ, पृ. ५, पे. ३, जैदेना., (२६४११.५, १६x४८-५२). पे. १. किसनबावनी, वाचक किशन, प्राहिं., पद्य, वि. १७६७, (पृ. १अ-५आ), आदिः ॐकार अमर अमार; अंतिः कीनी उपदेश बावनी., पे.वि. गा.६२. इस प्रत में रचना वर्ष १७६३ (संवत सतरै सै तरेसठ)है. पे. २. औपदेशिक दोहा सङ्ग्रह, प्राहिं., पद्य, (पृ. ५आ), आदिः एक समे जब सींह; अंतिः सोते काढी लीध., पे.वि. गा.१३. पे. ३. दुहा सङ्ग्रह', मागु.,प्रा.,सं., पद्य, (पृ. ५आ), आदि:-; अंतिः-, पे.वि. प्र.पु. मूल गा.१. ३३१९. शत्रुञ्जयउद्धार रास, संपूर्ण, वि. १७९९, मध्यम, पृ. ५, जैदेना., ले.स्थल. गांदली, ले. पं. मुनिविजय (गुरु आ. विजयक्षमासूरि), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. गा.११८, प्र.ले.श्लो. (५०६) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा ; (१०१) भग्न पृष्टि कटी ग्रीवा, (२६४११, १३४३८-४०). शत्रुजयतीर्थउद्धार रास, मु. नयसुन्दर, मागु., पद्य, वि. १६३८, आदिः विमल गिरिवर विमल; अंतिः दरिशन जयकरो. ३३२०. पार्श्वनाथ चरित्र, पूर्ण, वि. १६६१, मध्यम, पृ. ७९-२(३८,४७)+२(३७,४६)=७९, जैदेना.,प्र.वि. ग्रं. ३१६०- अक्षर-१४१५, सर्ग-६, ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित-अक्षर-सामान्य, (२५४११, १५४४३-४७). पार्श्वजिन चरित्र, मु. हेमविजय, सं., पद्य, वि. १६३२, आदिः श्रिये तत् परमं; अंतिः (१)समीयाय रम्यः (२)जयति वाङमयरत्नमेतत्. ३३२१. क्षमा कुलक सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना.,प्र.वि. मूल-गा.२५, ग्रं. ७२., (२५.५४११.५, ५४२४ २७). क्षमा कुलक, प्रा., पद्य, आदिः नमिऊण पुवपुरिसाण; अंतिः पावइ पसमवररयणम्. क्षमा कुलक-टबार्थ, मागु., गद्य, आदि: नमीनइ पूर्व पुरुषनइ; अंतिः ते जीव शांतरस पामइ. ३३२२." सूयगडाङ्गसूत्र सह टबार्थ- प्रथम श्रुतस्कन्ध, प्रतिपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ८३, जैदेना., प्र.वि. प्र.पु. मूल अंश अध्ययन-१६. प्र.पु. टबार्थ ग्रं. ४०२५., टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२६.५४११.५, ५४३०-३१). सूत्रकृताङ्गसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदिः बुज्झिज्ज तिउट्टेज्ज; अंति: सूत्रकृताङ्गसूत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः बुज्झि० छकायजीवना; अंति:३३२५. रामविनोद, संपूर्ण, वि. १८३८, श्रेष्ठ, प्र. ५७, जैदेना., ले.स्थल. खैरवानगर, ले. ऋ. नरसिङ्घ (गुरु ऋ. रूपचन्द), पठ. ऋ. प्रेमचन्द (गुरु ऋ. नरसिङ्घ), प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र.वि. ७ समुद्देश, (२६.५४११.५, १७४४९-५८). रामविनोद, पं. रामचन्द्र गणि, मागु., पद्य, वि. १७२०, आदिः सिद्धबुद्धदायक; अंतिः रामविनोद विनोदसु. ३३२६. कालिकाचार्य कथा, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ११, जैदेना., ले.स्थल. सुभटपुर, प्र.वि. ग्रं. ४५१, (२६४११.५, १४४४८ ५३). For Private And Personal Use Only Page #412 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य भाग १ - ३५८ कालिकाचार्य कथा, उपा. समयसुन्दर गणि, सं., प+ग, वि. १६६६, आदि: (१) प्रणम्य श्रीगुरुं (२) अत्र पूर्वं स्थविरा: अंतिः बालावबोधिकाम्. www.kobatirth.org: ३३२७. जिनपाल कथा, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ७, जैदेना., प्र. वि. गा. १११. अंत मे ग्रंथ की विषयसूचि दी है।, (२६.५४११.५, १२४३५-४३). जिनपालजिनरक्षित कथा, मागु., पद्य, आदि: चारित्र लेइ विषइ; अंतिः लोकइ पामिसी भवपार. ३३२८. पदार्थ सङ्ग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ७, जैदेना., ( २६.५x११.५, २७-२९×६१). " जीवादि पदार्थ सङ्ग्रह, मागु, गद्य, आदि नामद्वार लक्षणद्वार अंतिः छप्पन अन्तरद्वीप. ३३२९. नवतत्त्व प्रकरण सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १०, जैदेना. ले. मु. माणकचन्द ( कोरण्टगच्छ). प्र. वि. मूल " गा.४४., (२६×११, ३x२९-३२). नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदिः जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंतिः अणागयद्धा अणन्तगुणा. नवतत्त्व प्रकरण-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः साचु वस्तुनुं स्वरुप; अंतिः धरवा सदाई सवन्दा. ३३३०.) सुक्तावली सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १५, जैदेना., ले. ऋ. ठाकुरसी (गुरु ऋ. भवानजी), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. मूल - श्लो. १३८. टिप्पण युक्त विशेष पाठ- कुछ पत्र (२५.५४११.५, ६×३७-४२), सूक्तावली, सं., पद्य, आदिः राज्यं निःसचिवं; अंतिः असुखी च जीव. सूक्तावली सग्रह-टवार्थ, मागु, गद्य, आदि राज्य प्रधान बिना अतिः कर्णे करी हीणं. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३३३१. नारकीदुःख साखी व सवैया, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ६, पे. २, जैदेना. (२४.५०११, १९-२१४३४-३८). पे. १. नारकीदुःख साखी, मागु., पद्य, (पृ. १अ - ६आ), आदिः आदिदेव अरू अन्त; अंतिः पारं गच्छन्ति मानवा:., । पे.वि. गा. २४४. पे. २. स्त्री लक्षण सवैया, मागु., पद्य, (पृ. ६आ), आदिः टूटो सो छपर धाइवि; अंतिः चाहनइ होति विच. ३३३३.” उपधानमालारोपण विधि, रात्रिपूजानिषेध विचार व पाखीप्रतिक्रमण विधि, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, पे. ३, जैदेना. पू. वि. अन्त के पत्र नहीं हैं, दशा वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, (२५.५४१०.५, १५०३८-४०). पे. १. उपधानतप मालारोपण विधि, सं., प्रा., गद्य, (पृ. १आ - ४आ, संपूर्ण), आदिः ननु महानिशीथोक्ते; अंतिः विधिर्दूरापास्त एव. पे. २. रात्रिपूजानिषेध विचार प्रा. गद्य (पृ. ४आ-५अ संपूर्ण), आदि: ननु अट्ठमी चउदसी अंतिः सञ्झा विगमो " . पे. ३. पे. नाम. पाक्षिकप्रतिक्रमण विधि, पृ. ०५-०५- अपूर्ण प्रतिक्रमणविधि*, संबद्ध, प्रा., मागु., गद्य, आदिः श्रीप्रवचनसारोद्धार; अंति:-, पे. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. " ३३३४. आगमिक सिद्धान्तचर्चा सङ्ग्रह व दव्वम्मिजिणहरा पाठ, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ३७, पे. २, जैदेना., ले. स्थल. अर्गालपुरा, ले. पं. कपूरचन्द, लिखवा. श्री. लखा, (२५.५४१०.५, ११४४०). पे. १.५८ बोल सङ्ग्रह, सं., प्रा., मागु., गद्य, (पृ. १-३७आ), आदि: श्रीसिद्धान्तमाहि; अंतिः ते केतलाएक लिखीइ., पे.वि. प्र.पु. नं. ११३९. सिद्धान्त का विषयानुक्रम प्रारंभ में दिया गया है. पे. २. पे नाम, ओघनियुक्ति का हिस्सा दव्वम्मि जिणहरा की टीका, पृ. ३७आ (W) ओघनियुक्ति- हिस्सा दव्वम्मिजिणहरापाठ की टीका, सं., गद्य, आदि द्रव्यलिङ्गिपरिगृहीत: अंतिः यद्रोचितं तव ३३३५. श्रीपाल रास, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ७ जैदेना. पु. वि. अन्त के पत्र नहीं हैं. गा. २२३ तक है, दशा वि. विवर्णपानी से अक्षरों की स्याही फैल गयी है. (२६.५४११, १५४३८-४२). श्रीपाल रास, मु. ज्ञानसागर मागु, पद्य वि. १५३१, आदि कर कमल जोडि करि अति: 1 , " (+) ३३३६. पट्टावली, अपूर्ण, वि. १७१३ मध्यम, पृ. ७ जैदेना. ले. स्थल राजनगर, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, पू. वि. अंत " For Private And Personal Use Only Page #413 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ३५९ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची के पत्र नहीं हैं. ६९वीं पाट तक है., दशा वि. विवर्ण-पानी से अक्षरों की स्याही फैल गयी है, (२६.५४११.५, १६४३१ ३९). पट्टावली तपागच्छीय, मागु., गद्य, आदिः श्रीकल्पसूत्र; अंति:३३३७. ऋषभजिन विवाहलो, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, जैदेना., पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. ढाल-३७ अपूर्ण तक है., (२५.५४११, १५४३७). आदिजिन विवाहलो, मागु., पद्य, आदिः सासनदेवीय पाय; अंति:३३३८." भाष्यत्रय, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदेना., ले. मु. शान्तिविजय, प्र.वि. ३ भाष्य. चैत्यवंदनभाष्य गा.६३, गुरूवंदनभाष्य गा.४१ व दसपचक्खाणभाष्य गा.४८., दशा वि. हानिकारक स्याही, विवर्ण-पानी से अक्षरों की स्याही फैल गयी है-अल्प-आरम्भ के कुछ पत्र, (२६४११.५, १७४४१-४३). भाष्यत्रय, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, आदिः वन्दित्तु वन्दणिज्जे; अंतिः सासयसुक्खं अणाबाहं. ३३३९. उपदेशमाला सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १६७३, श्रेष्ठ, पृ. ७१, जैदेना., पठ. श्राविका सोनाई श्राविका, प्र.वि. मूल-गा.५४३. प्रथम पत्र पर तीर्थंकर परमात्मा का सुन्दर रङ्गीन चित्र है।, (२५४११, ५४२७-३०). उपदेशमाला , गणि धर्मदास, प्रा., पद्य, आदिः (१) नमिऊण जिणवरिन्दे (२) जगचूडामणिभूओ उसभो; अंतिः वयण विणिग्गया वाणी. उपदेशमाला-बालावबोध, मागु., गद्य, आदिः नमीऊण कहीइ नमीनइ; अंतिः मुखथिकु नीसरी वाणी. ३३४०. क्रोध मान माया लोभ चौढालीयो व लाखरूपई का दोहा, संपूर्ण, वि. १९१०, श्रेष्ठ, पृ. ५, पे. २, जैदेना., ले.स्थल. सीघाणा, ले. बालमुकन्द, (२५.५४११.५, १३४२३-२५). पे. १. क्रोधमानमायालोभ चौढालिया, मु. धनिदास, मागु., पद्य, वि. १९०९, (पृ. १-५आ), आदिः क्रोध म कर रे; अंतिः गुरुचरणां चित दिनु., पे.वि. ढाळ-४. पे. २. सुभाषित पद, मागु., पद्य, (पृ. ५आ), आदिः हेत महन्त की वातसुं; अंतिः जो जीव उपज लाख., पे.वि. गा.१. ३३४२." भाव सङ्ग्रह, अपूर्ण, वि. १७उ., श्रेष्ठ, पृ. ११-१(९)=१०, जैदेना., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, संशोधित, पू.वि. बीच का एक व अन्त के पत्र नहीं हैं. प्रारंभ से गा.१६२ तक है., दशा वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, (२५.५४१०, ८-१०४३२-३९). भाव सङ्ग्रह, आ. देवसेन, प्रा., पद्य, वि. १०वी, आदिः पणविय सुरसेणणुयं; अंति:३३४३.” कर्मग्रन्थ पदार्थ, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ८-२(१ से २)=६, जैदेना., प्र.वि. *पंक्ति-अक्षर अनियमित है।, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२५.५४११.५, १८-२५४४३). कर्मग्रन्थ पदार्थ, मागु., गद्य, आदि:-; अंतिः दशमै यशकीर्तिनौ बन्ध. ३३४४. विचार सङ्ग्रह, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ८-१(५)=७, जैदेना., (२५४११, ७०४३२-४१). विचार सङ्ग्रह', मागु., गद्य, आदि:-; अंति:३३४५." नन्दीसूत्र सह बालावबोध व कथा, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ७-१(१)=६, जैदेना.,प्र.वि. द्विपाठ, पदच्छेद सूचक लकीरें, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, पू.वि. प्रारंभ व अन्त के पत्र नहीं हैं., (२४.५४११४-४५). नन्दीसूत्र, आ. देववाचक, प्रा., प+ग, आदि:-: अंति:नन्दीसूत्र-बालावबोध', मागु., गद्य, आदि:-; अंति: नन्दीसूत्र-कथा सङ्ग्रह', मागु., गद्य, आदि:-: अंति:३३४६." भावशतक सह स्वोपज्ञ अवचूरि, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १०, जैदेना., प्र.वि. मूल-गा.१०३; प्र.पु. उभयग्रं. ७२७., पंचपाठ, पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न, (२६x१०.५, ८-९x४०). भावशतक, मु. हेमविजय, प्रा., पद्य, वि. १६३४, आदिः श्रीमान् श्रुतौ; अंति: निजबुद्धि वृद्धौ. For Private And Personal Use Only Page #414 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य भाग १ - www.kobatirth.org: i भावशतक- स्वोपज्ञ अवचूरि, मु. हेमविजय, सं., गद्य वि. १६३४, आदिः स्मृत्वा श्रीशारदा अंतिः भूपाल० इदं सुगमम्, ३३४७, नेमजिन चोवीसचोक, पूर्ण, वि. १८७८, श्रेष्ठ, पृ. १८-१ ( १ ) = १७, जैदेना. ले. स्थल, पाली, ले. गणि उमेदविजय, प्र. वि. २४ चोक, पू. वि. प्रथम चोक अपूर्ण है., ( २४.५४११.५, ७४१८-२० ). " नेमिजिन चौवीसचोक, मु. अमृतविजय, मागु, पद्य वि. १८३९ (अपूर्ण), आदि:-: अंतिः अमृत गुण गाया. ३३४८. पदार्थ सङ्ग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ९, जैदेना. पु.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. (२७४११, २७-२९४५४-५६), पदार्थ सङ्ग्रह, मागु., गद्य, आदिः जीव गइ इन्दिय काए: अंति: (+) " Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३३५०. भक्तामर स्तोत्र व कल्याणमन्दिर स्तोत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १४, पे. २ जैदेना. पू. वि. अन्त के पत्र नहीं हैं., (२५.५४११, ३४३१). " पे. १. पे. नाम. भक्तामर स्तोत्र सह टबार्थ, पृ. १-१४आ, संपूर्ण भक्तामर स्तोत्र, आ. मानवुद्गसूरि, सं., पद्य, आदि भक्तामरप्रणतमौलिमणि अंतिः समुपैति लक्ष्मी, ; भक्तामर स्तोत्र- टवार्थ, मागु, गद्य, आदि: भक्त जे अमरदेवता: अंतिः भलइ तेहनइ श्रेयो भवत, पे. वि. मूलश्लो. ४४. पे. २. पे. नाम. कल्याणमन्दिर स्तोत्र सह टबार्थ, पृ. १४आ-, अपूर्ण कल्याणमन्दिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकर, सं., पद्य, आदि: कल्याणमन्दिरमुदारमवद: अंतिः कल्याणमन्दिर स्तोत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, आदि: केहवुं छे कमल ते; अंति:-, पे. वि. अंत के पत्र नहीं हैं.. ३३५२." आठ कर्म विचार, पूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १०, जैदेना., प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, पू. वि. अन्त के पत्र नहीं हैं. अल्पबहुत्व के ६२ बोल में ६०वीं बोल से अधूरा है ( २५४११ १३x२९-३६). ८ कर्म ६२ बोल, मागु., गद्य, आदि: पढमं नाणावरणं बीयं; अंति: ३६० ३३५३." चतुर्विंशतिजिन स्तुति, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ६, जैदेना., ले. मु. गुणराज प्र. वि. २४ स्तुतिजोडा, श्लो.९६, संशोधित, पदच्छेद सूचक लकीरें संधि सूचक चिह्न वचन विभक्ति संकेत- कुछ पत्र (२४.५x११.५, १३-१५४४०-४५). स्तुतिचतुर्विंशतिका, मु. शोभनमुनि सं., पद्य, आदि: भव्याम्भोजविबोधनैक: अंतिः हारतारा बलक्षेमदा ३३५४. अनन्तकीर्ति कथा संपूर्ण वि. १८वी, मध्यम, पृ. ११, जैदेना. ले. स्थल. मम्मणवाहणनगर, ले. गणि जिनरत्न, (२६.५X११, १३X३१-३२). अनन्तकीर्ति कथा, सं., गद्य, आदि: (१) परदार विरत्ताणं इहेव (२) भारते क्षेत्रे; अंतिः मुत्पाद्य शिवं ययौ . ३३५५. थुलीभद्र नवरस, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना., प्र. वि. ढाळ - ९, ( २६.५x१०.५, १०X३७-४१). स्थूलिभद्र नवरसो, वाचक उदयरत्न, मागु, पद्य वि. १७५९ आदि सुखसंपति दायक सदा अंतिः मनोरथ वेगे फल्या ; रे. (+) ३३५६.” द्वादशव्रत टिप व वीर कल्याणक विगत, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ५, पे. २, जैदेना, दशा वि. विवर्ण- पानी से - अक्षरों की स्याही फैल गयी है अल्प (२६४११, १६४४८-५४). पे. १. १२ व्रत टीप, मागु., गद्य, (पृ. १-५आ), आदि: प्रथम सम्यक्त्व देव; अंतिः नोकारवाली १ गुणवी . पे. २. महावीरजिन कल्याणक विचार, मागु, गद्य, (पृ. ५आ), आदि आसाढ सुदि ६ च्यवन अंतिः महावीर पारङ्गताय नमः. ३३५७. नवकारमन्त्र सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १६२०, श्रेष्ठ, पृ. ८, जैदेना, प्र. वि. संशोधित, (२५.५x१०.५, ११×३९). नमस्कार महामन्त्र प्रा. पद्य आदि नमो अरिहन्ताणं नमो अंतिः पढमं हवाई मङ्गलम्. ; " " नमस्कारमहामन्त्र-बालावबोध *, मागु., गद्य, आदिः बारसगुण अरिहन्ता; अंतिः वाञ्छित फल पाम. For Private And Personal Use Only ३३५८. प्रतिक्रमणसूत्र सङ्ग्रह सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ८, जैदेना., पू. वि. अन्त के पत्र नहीं हैं. सामायिकसूत्र तक है. (२४४१०.५, ३x२५-२६). " Page #415 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ३६१ www.kobatirth.org: प्रतिक्रमणसूत्र सङ्ग्रह - वेताम्बर संबद्ध, प्रा. सं., प+ग, आदि नमोअरिहन्ताणं० करेमि अति:प्रतिक्रमणसूत्र सङ्ग्रह-ताम्बर-टवार्थ मागु, गद्य, आदि: अरिहन्तदेव चौवीस: अंति: " ३३५९.” कल्पसूत्र सह टबार्थ व व्याख्यान+कथा, संपूर्ण, वि. १८६८, श्रेष्ठ, पृ. १५०, जैदेना. प्र. वि. मूल ९ - व्याख्यान, संशोधित टिप्पण युक्त विशेष पाठ-कुछ पत्र, (२५x१२, ६- २०X३३-४८). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदिः णमो अरिहन्ताणं० पढमं; अंति: उवदंसेइ त्ति बेमि. कल्पसूत्र - टबार्थ *, मागु., गद्य, आदि: तेणइ कालि जे; अंतिः सुधर्मा गणधरे को.. कल्पसूत्र - व्याख्यान + कथा' मागु, गद्य, आदि: नमो अरिहन्ताणं अंतिः # आचाराद्गसूत्र आ. सुधर्मास्वामी प्रा. प+ग, आदि: अंतिः विमुच्चति त्ति बेमि " " आचाराङ्गसूत्र- टवार्थ, मागु, गद्य, आदि अंति होइ एम कहुं एं. ३३६०.” आचाराङ्गसूत्र सह टबार्थ- द्वितीय श्रुतस्कन्ध, प्रतिपूर्ण, वि. १८४५, श्रेष्ठ, पृ. १२४, जैदेना., ले. स्थल. विहाणी, ले. मु. देवकृष्णजी, प्र. वि. प्र. पु. मूल अंश - सूत्र - ६७९, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, ( २६११.५, ७४३२-३४). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ३३६१. गौतम कुलक सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९४१, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदेना., प्र. वि. मूल - गा.२०., (२५X११, ३X२४-२५). गीतम कुलक, प्रा., पद्य, आदि: लुद्धा नरा अत्थपरा: अंतिः सुहं लहन्ति, गौतम कुलक-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः लु० लोभीया नर मनुष्य; अंतिः ते पणा प्रति पामइ. ३३६२. श्रावक पाक्षिक अतिचार संपूर्ण वि. १८९५ श्रेष्ठ, पृ. ११-१ ( २ )+१ (३) ११, जैदेना. ले. स्थल राजनगर, लिखवा. दलिचन्द (पिता मु. लालचन्द), प्र.ले.पु. मध्यम, (२८x१२, १०X३३-३९). श्रावक पाक्षिक अतिचार तपागच्छीय संबद्ध प्रा. मागु., गद्य, आदि: नाणम्मि दंसणम्मि०: अंतिः मिच्छामि दुक्कडम् (+) (+) 1. अभिधानचिन्तामणि नाममाला संपूर्ण वि. १८६८, श्रेष्ठ, पृ. ६५, जैदेना ले. स्थल कोटासर, ले. मु. सत्यसौभाग्य, प्र. वि. ६ कांड, संशोधित, (२५.५४११.५. ११४३४-४० ). अभिधानचिन्तामणि नाममाला, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, आदिः प्रणिपत्यार्हतः; अंतिः रोषोक्तावु नतौ नमः. ३३६४. समयसार नाटक, संपूर्ण, वि. १७९७, श्रेष्ठ, पृ. ६८, जैवेना. ले. मु. ऋद्धिविमल (गुरु पं. सिङ्घविमल), राज्यकालराजा किसनसिंङ्घ, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. गा. ७२७, (२५.५x११, १३४३२-३४). समयसार नाटक- पद्यानुवाद, आ. बनारसीदास, प्राहिं. पद्य वि. १६९३, आदि: करम भरम जग तिमिर अंतिः नाममइ परमारथ विरतन्त. " ३३६५." स्तुतिचौवीसी सह अवचूरि, पूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ११, जैदेना., प्र. वि. मूल - २४ स्तुतिजोडा, श्लो. ९६., पंचपाठ, संशोधित, पदच्छेद सूचक लकीरें संधि सूचक चिह्न-वचन विभक्ति संकेत, पू. वि. अंतिम पत्र नहीं है. मात्र महावीरजिन की अन्तिम ३ स्तुतियां नहीं है. (२६४११, ८-१०४२७-२८). स्तुतिचतुर्विंशतिका, मु. शोभनमुनि, सं., पद्य, आदिः भव्याम्भोजविबोधनैक; अंति: स्तुतिचतुर्विंशतिका- अवचूरि, सं., गद्य, आदि (१) धनपालपण्डितबान्धवेन० (२) भव्यां० हे नाभिनन्दन: अंति: ३३६६. पुन्यसारकुमारसम्बन्ध सह टवार्थ, संपूर्ण, वि. १८७७, श्रेष्ठ, पृ. २१, जैदेना ले. स्थल, पालनपुर, प्र. वि. मूल-श्लो. २०१. " प्र. पु. पल्लविया पार्श्वनाथजी प्रसादात्., ( २६.५X११, ५X३०-३३). पुण्यसारकुमार चरित्र, आ. अजितप्रभसूरि, सं., पद्य, आदिः कुलं रूपं कलाभ्यासो अंतिः च चार्य अजितप्रभेश्च. पुण्यसारकुमार चरित्र - टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः प्रणम्य पार्श्वनाथेश; अंतिः ज्ञानना दरिया तेहोनइ. For Private And Personal Use Only ३३६७.” षडावश्यकसूत्र सह बालावबोध व कथा व चतुर्दशी स्तुति, संपूर्ण, वि. १८५४, श्रेष्ठ, पृ. १११, पे. २, जैदेना., ले.स्थल. भावनगर बिंदर, प्र. वि. संशोधित, प्र.ले. श्लो. (१०२) भग्न पृष्टि कटी ग्रीवा (५६०) जलात् रक्षेत् थलात् रक्षे, (२५X११.५, १३-१४४३९-४५) . Page #416 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य भाग - १ ३६२ पे. १. पे. नाम. षडावश्यकसूत्र सह बालावबोध, पृ. १-११० श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा., प+ग, आदिः नमो अरिहन्ताणं०; अंतिः#. श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय-बालावबोध, मु. जिनविजय, मागु., गद्य, वि. १७५१, आदि: बार गुणे करि सहित; अंतिः तुष्टान् प्रवर्तते., पे.वि. बालावबोध का कुछेक अंश टबार्थ स्वरूप में भी दिया गया है. पे. २. पाक्षिक स्तुति, आ. बालचन्द्रसूरि, सं., पद्य, (पृ. ११०-१११), आदिः स्नातस्याप्रतिमस्य; अंतिः कार्येषु सिद्धिम्., पे.वि. श्लो.४. ३३६८. तत्त्व वचनिका, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २१, जैदेना., (२४.५४१२.५, १७४३२-३३).. तत्त्वप्रकाश, श्रा. दलपतराय, प्राहिं., पद्य, आदिः प्रथम शिष्य गुरु; अंतिः सिद्ध गती म वसे हे. ३३७०. व्यवहारसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९५४, श्रेष्ठ, पृ. ४०, जैदेना., ले.स्थल. गायरीणी, प्र.वि. मूल-१० उद्देशक., (२४.५४१२, ७४३६-४२). व्यवहारसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदिः जे भिक्खू मासियं; अंतिः महापज्जवसाणे भवइ. व्यवहारसूत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः जे० जे कोइ भि० साधु; अंतिः क्षय करवारूप फल हुइ. ३३७१. वीरजिन स्तवन व सम्यक्त्वमाहात्म्य गाथा सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १८७९, श्रेष्ठ, पृ. ११४, पे. २, जैदेना., ले.स्थल. मौर्यपुर, ले. मु. तेजरत्न (गुरु मु. राजेन्द्ररत्न),प्र.ले.पु. विस्तृत,प्र.वि. त्रिपाठ,प्र.ले.श्लो. (५०६) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा , (२७४११.५, १-५४३१-३२). पे. १. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन सह बालावबोध, पृ. १-११४आ महावीरजिन स्तवन-स्थापनानिक्षेपप्रमाण पञ्चाङ्गीगर्मित, उपा. यशोविजयजी गणि, मागु., पद्य, वि. १७३३, आदिः प्रणमी श्रीगुरुना; अंतिः आणा सिर वहेस्येजी. महावीरजिन स्तवन-बालावबोध, मागु., गद्य, आदिः ए स्तवनमां प्राइ पद; अंतिः आज्ञा मस्तके वहस्येइ., पे.वि. मूल-ग्रं.२२८. प्र.पु. बालावबोध-ग्रं.३११७; प्र.पु. उभय-ग्रं.३३६४. पे. २.पे. नाम. सम्यक्त्व माहात्म्य गाथा सह बालावबोध, पृ. ११४आ सम्यक्त्वमाहात्म्य गाथा, सं., पद्य, आदिः ध्यानं दुक्ख निधान; अंतिः तत्सर्वमन्तर्गडु. सम्यक्त्वमाहात्म्य गाथा-बालावबोध, मागु., गद्य, आदिः समकित विना ध्यान; अंति: फलक ग्रहात्., पे.वि. मूल श्लो .१. ३३७३." प्रकरणचतुष्क व सुक्तावली सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८५५, मध्यम, पृ. १०, पे. ५, जैदेना., ले.स्थल. सोहीनगर, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., (२६.५४१२.५, ४४३३). पे. १. पे. नाम. लघुसङ्ग्रहणी सह टबार्थ व विवरण, पृ. १अ-७अ, संपूर्ण लघुसङ्ग्रहणी, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदिः नमिय जिणं सव्वन्न; अंतिः रईया हरिभद्दसूरिहिं. लघुसङ्ग्रहणी-टबार्थ , मागु., गद्य, आदिः नमिय क० नमस्कार करी; अंतिः आचार्ये कह्यो. लघुसङ्ग्रहणी-खण्डाजोयण बोल* , संबद्ध, मागु., गद्य, आदिः एकने लाखगुणो करीइ; अंतिः प्रमाणे लख्यो छे., पे.वि. मूल-गा.३०. पे. २. पे. नाम. सुक्तावली सह टबार्थ, पृ. ७अ-१०आ, संपूर्ण सूक्तावली, सं.,प्रा., पद्य, आदि: सकल कुशलवल्ली; अंतिः सम्मधम्मम्मि उजगेह. सूक्तावली-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः सकल क० समस्त कुसल; अंतिः परम्परा सुख पामसे., पे.वि. मूल-श्लो.३२. पे. ३. पे. नाम. जीवविचार सह टबार्थ, पृ. १०आ-१७अ, संपूर्ण जीवविचार प्रकरण, आ. शान्तिसूरि, प्रा., पद्य, आदिः भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंतिः रुद्दाओ सुयसमुद्दाओ. जीवविचार प्रकरण-टबार्थ , मागु., गद्य, आदिः भुवन क० स्वर्ग मृत; अंतिः थकी कह्यौ छे., पे.वि. मूल-गा.५१. For Private And Personal Use Only Page #417 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ३६३ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची पे. ४. पे. नाम. नवतत्त्व सह टबार्थ, पृ. १७आ-२४अ, संपूर्ण नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदिः जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंतिः अणागयद्धा अणन्तगुणा. नवतत्त्व प्रकरण-टबार्थ, राज., गद्य, आदिः जीवतत्त्व अजीवतत्त्व; अंतिः वचन होइ ते प्रमाणे., पे.वि. मूल-गा.५५. पे. ५. दण्डक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, (पृ. २४-, अपूर्ण), आदिः नमिउं चउवीस; अंति:-, पे.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. ३३७४. वीरजिन स्तवन सह बालावबोध व श्लोक, संपूर्ण, वि. १८६३, श्रेष्ठ, पृ. २७, पे. २, जैदेना., ले.स्थल. सांकरा, ले. गणि तेजविजय (गुरु पं. रत्नविजय), प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र.ले.श्लो. (१२२) जब लग मेरु स्थिर रहें, (२७४१२.५, १३ १४४२७-३१). पे. १. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन सह बालावबोध, पृ. १-२७आ, संपूर्ण महावीरजिन स्तवन-स्थापनानिक्षेपप्रमाण पञ्चाङ्गीगर्भित , उपा. यशोविजयजी गणि, मागु., पद्य, वि. १७३३, आदिः प्रणमी श्रीगुरुना; अंतिः आणा सिर वहेस्येजी. महावीरजिन स्तवन-बालावबोध, मागु., गद्य(अपूर्ण), आदिः अधिका निक्षेपा; अंतिः-, पे.वि. मूल- ढाळ-७. बालावबोध का अंतिम वाक्य प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. पे. २. जैन गाथा *, मागु., पद्य, (पृ. २७आ, संपूर्ण), आदि:-; अंति:३३७५. सिङ्घासण बत्रीसी, संपूर्ण, वि. १७६३, श्रेष्ठ, पृ. ७४, जैदेना., ले. मु. तेजरत्न, (२४.५४११, १३-१४४३६-३९). सिंहासनबत्रीसी, गणि सङ्घविजय, मागु., पद्य, वि. १६७८, आदिः सकल मङ्गल धर्म धुरि; अंतिः सुणता एह चरित्र. ३३७६. थुलीभद्र शीयलवेली, संपूर्ण, वि. १९०२, श्रेष्ठ, पृ. ११, जैदेना., प्र.वि. ढाळ-१८, (२७४११.५, १२४३४-३५). स्थूलिभद्र शीयलवेलि, पं. वीरविजय, मागु., पद्य, वि. १८६२, आदिः सयल सुहंकर पासजी; अंतिः विमला कमला वरशे रे. ३३७७. शान्तिस्नात्र महोत्सव विधि, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, जैदेना., (२८x११.५, १२४४१-४४). शान्तिस्नात्र विधि, मु. सकलचन्द, सं.,मागु., पद्य, आदिः हवे पुर्वोक्त शुभ; अंतिः शान्तिस्नात्र विधि. ३३७८. प्रतिष्ठाकल्प, पूर्ण, वि. १९५४, श्रेष्ठ, पृ. २०-१(१९)=१९, जैदेना., ले.स्थल. पेथापुर, ले. नथमल जोसी, (२८x११.५, १२४४०-४२). प्रतिष्ठाकल्प, सं.,मागु., पद्य, (संपूर्ण), आदिः क्षुद्रोपद्रवसमनार्थ; अंतिः च वाद्यन्ते. ३३७९. आचार विधि सङ्ग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २९-१(२७)+१(२६)=२९, जैदेना., (२४.५४११, १६-१७X४०-४२). सामाचारी प्रकरण, प्रा.,सं., गद्य, आदिः आयारमयं वीरं वन्दिय; अंतिः दुज्जइ गमणं पसाहेइ. ३३८०. कल्पसूत्र, संपूर्ण, वि. १६२२, श्रेष्ठ, पृ. ४४, जैदेना., ले.स्थल. सिरोही, प्र.वि. ९-व्याख्यान, ग्रं. १२१६, संशोधित, पदच्छेद सूचक लकीरें-कुछ पत्र, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२६४११, १३४४०). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदिः णमो अरिहन्ताणं० पढमं; अंतिः उवदंसेइ त्ति बेमि. ३३८१. सिन्दूरप्रकर सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १८२०, श्रेष्ठ, पृ. ६१, जैदेना., ले.स्थल. सूर्यपुर, ले. मु. मयारत्न, प्र.ले.पु. मध्यम,प्र.वि. मूल-श्लो.१००. प्र.पु. बालावबोध-ग्रं. २५९०., (२४.५४१०.५, १४४४१-४२). सिन्दूरप्रकर, आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य, आदिः सिंदूरप्रकरस्तपः; अंतिः शमेति नाशम्. सिन्दूरप्रकर-बालावबोध, मागु., गद्य, आदिः प्रणम्य श्रीमहावीरं; अंतिः कारणि सांभलवो भणवो. ३३८२." उपदेशमाला प्रकरण, पूर्ण, वि. १६वी, मध्यम, पृ. ३०-२(१ से २)=२८, जैदेना., प्र.वि. गा.५४४, संशोधित, पू.वि. गाथा १ से २९ नहीं है., (२५.५४११, ११४३२-३४). उपदेशमाला, गणि धर्मदास, प्रा., पद्य, आदि:-; अंतिः वयण विणिग्गया वाणी. For Private And Personal Use Only Page #418 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य भाग - १ ३६४ ३३८५. पासाकेवली, संपूर्ण, वि. १८३९, मध्यम, पृ. ९, जैदेना., ले.स्थल. जगत्तारणी, ले. मु. देवेन्द्रविजय, (२६x११, ९४३१ ३३). पाशाकेवली-पाशाकेवलीभाषा* , आधारित, मागु., गद्य, आदिः (१) १११ उत्तम थानक लाभ (२) ॐ नमो भगवति; अंतिः माने सकुन उत्तम छै. ३३८६. अरहनक रास, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना., ले. पं. भीमसुन्दर, (२५.५४१०.५, १३४३५-३७). अर्हन्नकमुनि रास, गणि महिमासागर, मागु., पद्य, वि. १७७४, आदिः सरसति सामिणि वीनवं; अंतिः भेट्यो रे गुरुराय. ३३८७. वीरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १८५७, श्रेष्ठ, पृ. १२, जैदेना., ले.स्थल. लींबडी, ले. श्रा. भुखणसीराज सङ्घवी, (२५.५४११, १०x२९-३१). महावीरजिन स्तवन-स्थापनानिक्षेपप्रमाण पञ्चाङ्गीगर्भित, उपा. यशोविजयजी गणि, मागु., पद्य, वि. १७३३, आदिः प्रणमी श्रीगुरुना; अंतिः आणा सिर वहेस्येजी. ३३८८. जिनबिम्बप्रवेशस्थापना विधि, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना., ले.स्थल. डभोई, ले. गणि सुजयविजय (गुरु वाचक रामविजय, तपागच्छ), (२४.५४१०.५, ७४३०-३४). जिनबिम्बप्रवेशस्थापना विधि, सं.,मागु., गद्य, आदिः पहिलु मुहूर्त भलुं; अंतिः १०८ वार स्मरे. ३३८९. आषाढभूति रास, पूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ११-१(१)=१०, जैदेना., प्र.वि. ढाल-१६, पू.वि. ढाल-१ गा.५ तक नहीं है., (२३.५४१०, १२४३९). आषाढाभूति चौपाई, मु. ज्ञानसागर, मागु., पद्य, वि. १७२४, आदि:-; अंतिः होज्यो इम कल्याणो रे. ३३९०. हरिचन्द्र कथा, संपूर्ण, वि. १६६१, मध्यम, पृ. १६, जैदेना., ले.स्थल. सेरपुरा, ले. गणि जगविमल, पठ. गणि प्रेमविमल, प्र.ले.पु. मध्यम,प्र.वि. श्लो.४७३, (२५.५४११, १४४३५). हरिश्चन्द्र कथा, सं., पद्य, आदिः यदुरं यदुराराध्य; अंतिः पालयामास काश्यपीम्. ३३९१. सुदर्शन रास, संपूर्ण, वि. १७३२, श्रेष्ठ, पृ. ८, जैदेना., ले.स्थल. वैराट, ले. ऋ. यादवजी, पठ. ऋ. नागजी (गुरु ऋ. यादवजी), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. गा.२०९, (२५.५४११.५, १४-१५४३६-४०). सुदर्शनसेठ रास, मु. विजयशेखर, मागु., पद्य, वि. १६८१, आदिः प्रणमुं ऋषभजिणन्द ए; अंतिः होयो लील विलास रे. ३३९४. दशवैकालिकसूत्र सह अवचूरि व बालावबोध - अध्ययन १ से ५, प्रतिपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १३, जैदेना., (२६.५४११, १५४५६-५८). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यम्भवसूरि, प्रा., पद्य, वि. पू.४, आदिः धम्मो मङ्गलमुक्किट्ठ; अंति:दशवैकालिकसूत्र-अवचूरि, सं., गद्य, आदिः धर्म उत्कृष्टम्; अंति: दशवैकालिकसूत्र-बालावबोध, मागु., गद्य, आदिः धर्म सर्वोत्तम; अंति:३३९५. दशवैकालिकसूत्र, अपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. २६-७(१९ से २५)=१९, जैदेना.,प्र.वि. अध्ययन-१०, संशोधित, पू.वि. अध्ययन-८ गा.३ से अध्ययन-१० गा.१८ तक नहीं है., (२५.५४११, ११४४०). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यम्भवसूरि, प्रा., पद्य, वि. पू.४, आदिः धम्मो मङ्गलमुक्किट्ठ; अंति: गई त्ति बेमि. ३३९६. कर्मग्रन्थ-२ सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २५, जैदेना., प्र.वि. मूल-गा.३४. कर्मग्रन्थ चतुष्क या षट्क से अलग किया गया लगता है. पत्रांक-४५-६९., (२४४११, १४-१५४२३-३३). कर्मस्तव नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, आदिः तह थुणिमो वीरजिणं; अंतिः वन्दियं नमह तं वीरं. कर्मस्तव नव्य कर्मग्रन्थ-बालावबोध, मागु., गद्य, आदिः त्रिजगत् सृष्टि; अंतिः पूर्वक नमस्कार करु. ३३९७. मानवभव दशदृष्टान्त सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९०१, श्रेष्ठ, पृ. ७-१(५)-६, जैदेना., ले. गणि खन्तिविजय, पठ. गणि खन्तिविजय, प्र.वि. ढाळ-१०, (२५४१२, १२४३२). For Private And Personal Use Only Page #419 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ३६५ (+) www.kobatirth.org: कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १० दृष्टान्त सज्झाय, पं. जिनविजय, मागु., पद्य, वि. १७९०, (संपूर्ण), आदि: श्रीजिनवीर नमी करीजी; अंतिः घरे कोडि कल्याण. ३३९८. जम्बूपृच्छा, संपूर्ण वि. १७९५, मध्यम, प्र. १५ जैदेना. (२६४११.५, १०x३५-३८). " जम्बू पृच्छा, मु. वीरजी मागु, पच, वि. १७२८ आदि सकल पदारथ सरवदा पुरे अंतिः वीरजी मुनि सुखकारी, ३३९९.* स्तुति चौवीसी, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ९ देना. प्र. वि. २४ स्तुतिजोडा, श्लो. ९६ दशा वि. अक्षरों की स्याही फेल गयी है, चिपके पत्र अलग करते वक्त स्याही उखडी हुई, (२५.५X११.५, ११४३३-३५). स्तुतिचतुर्विंशतिका, मु. शोभनमुनि, सं., पद्य, आदिः भव्याम्भोजविबोधनैक; अंतिः हारतारा बलक्षेमदा.. ३४०० " दशवैकालिकसूत्र सह टवार्थ, संपूर्ण, वि. १६९२ श्रेष्ठ, पृ. ६५, जैवेना. ले. स्थल सरखेजनगर, ले. ऋ. सहसाजी, प्र. वि. मूल- अध्याय १० अध्ययन, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२७११, ५X३६-३८). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यम्भवसूरि, प्रा., पद्य, वि. पू. ४, आदिः धम्मो मङ्गलमुक्किट्ठ; अंतिः गइं त्ति बेमि दशवैकालिकसूत्र-टबार्थ *, मागु., गद्य, आदि: ध० जीवनइ दुर्गति; अंतिः गति मोक्ष रुप पामइ. ३४०२.” प्रश्नोत्तर सङ्ग्रह, पूर्ण, वि. १९४४, श्रेष्ठ, पृ. ४८ - १(१ ) = ४७, जैदेना., ले. राजाराम, प्र. वि. अंत मे सूचि, टिप्पण युक्त विशेष पाठ-कुछ पत्र (२५४११.५, १७४४२-४४). प्रश्नोत्तर सङ्ग्रह, ऋ. रूपचन्द, राज, गद्य, आदि:-: अंति: कहित पावत आरामजी. (+) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३४०३. दशवेकालिकसूत्र सह टवार्थ, संपूर्ण वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ९३, जैदेना. प्र. वि. मूल- अध्ययन- १०. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, ( २६५११.५, ४x२७-३४). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यम्भवसूरि, प्रा., पद्य, वि. पू. ४, आदिः धम्मो मङ्गलमुक्किट्ठ; अंतिः गइं त्ति बेमि दशवैकालिकसूत्र-टबार्थ *, मागु., गद्य, आदिः ध० जीवनइ दुर्गति; अंतिः प्ररुप्यो. . ३४०४.” दीपालिका कल्प सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४९ - १ (४८) = ४८, जैदेना., प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, पू. वि. बीच व अन्त के पत्र नहीं हैं. गा.४२८ तक है. (२५.५५११, ५०२९-३०) दीपावलीपर्व कल्प, आ. जिनसुन्दरसूरि सं. पद्य वि. १४८३, आदि श्रीवर्द्धमानमाङ्गल अति: दीपावलीपर्व कल्प-टबार्थ, मागु., गद्य, आदि: अर्हन्त बालबोधिनां; अंतिः ३४०५. अञ्जनासती रास, अपूर्ण, वि. १९२४, श्रेष्ठ, पृ. १३ -४ (५ से ८) = ९, देना., ले. स्थल. राजपुर बनेड - मेव, ले. घनश्याम व्यास, प्र. वि. डाळ- ११, पृ. वि. डाल-३ गा.१२ से ढाल ८ गा. १९ तक नहीं है. (२५४११.५, १३४३०-३३). अंजनासुन्दरी रास, मु. विनयचन्द, मागु., पद्य, आदिः परमेष्ठिपद मन्त्रथी; अंतिः विनय नमें निसदीस ए. " ३४०६.” शान्तिनाथ चरित्र व गाथा सङ्ग्रह, संपूर्ण, वि. १७११, श्रेष्ठ, पृ. ले. स्थल, जेसलमेर, ले. ऋ. ताराचन्द, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. १४४४२-४७) १६५ + ३ ( २४ से २५, २७ )=१६८, पे. २, जैदेना., संशोधित, पदच्छेद सुचक लकीरें, ( २४.५४११-५, पे. १. शान्तिजिन चरित्र, आ. भावचन्द्रसूरि, सं., गद्य, वि. १५३५, (पृ. १ - १६५), आदिः प्रणिपत्यार्हतः; अंतिः स करोतु शान्ति, पे. वि. ६ प्रस्ताव, " पे. २. जैन गाथा, मागु पद्य (पृ. १६४-१६४आ), आदि: # अंति#. " ३४०७. दशठाणाङ्ग बोल, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १४, जैदेना, (२५.५x१२, १३×३२-३३). १० स्थान बोल, मागु, गद्य, आदि मन ठामि राखवा हेते; अंतिः नंदिणिपिया सालहीपिया. ३४०८. वीरजिन स्तवन अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ९-३(१ से ३) -६, जैदेना, पृ. वि. प्रथम डाल गाथा १ से १४ तक नहीं है.. (२५X११.५, १४X३७-४०). : महावीरजिन स्तवन- स्थापनानिक्षेपप्रमाण पञ्चाङ्गीगर्मित, उपा. यशोविजयजी गणि, मागु पद्य वि. १७३३, आदिअंतिः आणा सिर व्हेस्येजी, For Private And Personal Use Only Page #420 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य भाग - १ ३६६ ३४०९. चौवीस द्वार, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना., प्र.वि. *पंक्ति माहिती अनियमित है।, (२४.५४१२४-४४). २४ द्वार, मागु., गद्य, आदिः नामद्वार १ लक्षण; अंतिः सदा धर्मध्यान ध्याइए. ३४११. गुणस्थान वचनिका, संपूर्ण, वि. १९३८, श्रेष्ठ, पृ. ४१, जैदेना., ले. राधेलाल मिश्रा, (२४.५४११.५, १६x४०-४४). १४ गुणठाण वचनिका, मागु., गद्य, आदिः ते मांहि प्रथम नाम; अंतिः ते अभव्यने लाभे. ३४१२. दशवैकालिकसूत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २३, जैदेना., प्र.वि. मूल परिमाण-अध्ययन-१०., (२४.५४११.५, १३४३० ३७). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यम्भवसूरि, प्रा., पद्य, वि. पू.४, आदिः धम्मो मङ्गलमुक्किट्ठ; अंति: गई त्ति बेमि. ३४१३.” कर्मचेतनसङ्ग्रामभाव रास, पूर्ण, वि. १९१०, श्रेष्ठ, पृ. ७-१(१)=६, जैदेना., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, पू.वि. ढाल १ की गाथा १ से ८ नहीं है., (२४.५४१२, १६४३८-४०). कर्मचेतन रास, कवि नर, मागु., पद्य, आदि:-; अंति: यौं विध नोबत गाजे. ३४१४. हंसवछहंसावली रास, संपूर्ण, वि. १८४०, श्रेष्ठ, पृ. ३९, जैदेना., ले.स्थल. ओडु, ले. मु. अमृतरत्न (गुरु उपा. जसरत्न), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. ढाळ-४५, (२६४११.५, १३४२८-३६). हंसराजवत्सराज चौपाई, आ. जिनोदयसूरि, मागु., पद्य, वि. १६८०, आदिः आदिसर आदे; अंतिः कहे श्रीजिनोदयसूर ३४१५." दशवैकालिकसूत्र सह नियुक्ति की शिष्यहिता टीका, संपूर्ण, वि. १६९३, मध्यम, पृ. ७९, जैदेना., ले.स्थल. भर्भरीरामपुरा, ले. ऋ. धर्मसिंह(लुङ्कागच्छ), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. मूल-अध्याय-अध्ययन१०चूलिकार; टीका ग्रं. ७०००. ताडपत्र पर से प्रत लिखी गयी है तथा ताडपत्रीय ग्रं.६८१० है., त्रिपाठ, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२६४११, १-६४५०-५२). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यम्भवसूरि, प्रा., पद्य, वि. पू.४, आदिः धम्मो मङ्गलमुक्किट्ठ; अंतिः (१)मुच्चइ त्ति बेमि (२)आलणा सचे. दशवैकालिकसूत्र-शिष्यबोधिनी टीका# , आ. हरिभद्रसूरि, सं., गद्य, आदिः तत्रास्खलितपदोच्चारण; अंतिः (१)गुणानुरागी भवतु लोकः (२)दशवैकालिकटीका. ३४१६. उत्तराध्ययनसूत्र सह दीपिका टीका, अपूर्ण, वि. १६७४, श्रेष्ठ, पृ. १९१-२३(१ से २३)=१६८, जैदेना., ले.स्थल. जेसलमेर, ले. श्रा. पुजा(लुङ्कागच्छ), गच्छा. आ. रतनसीजी(लुङ्कागच्छ),प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. मूल-३६अध्ययन; टीका-परिमाण ग्रं. ८६७०., त्रिपाठ, प्र.ले.श्लो. (५१४) यादृशं सन्मुखं दृष्ट्वा ; (१९) यावत् लवणसमुद्रो, (२६४११.५, १-७४४७-४८). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग, आदि:-: अंतिः सम्बुडे त्ति बेमि. उत्तराध्ययनसूत्र-दीपिका टीका, आ. जयकीर्तिसूरि, सं., गद्य, वि. १५वी, आदि:-; अंतिः पुस्तकरत्नमेतत्. ३४१७. चित्रसेन पद्मावती चरित्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८५०, श्रेष्ठ, पृ. १०८, जैदेना., ले.स्थल. भुजनगर, ले. गणि यत्नसागर (गुरु मु. विशेषसागर), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. मूल-श्लो.१२३२., (२५४११.५, ५४३८). चित्रसेनपदमावती चरित्र, पाठक राजवल्लभ, सं., पद्य, वि. १५२४, आदिः नत्वा जिनपतिमाद्यं; अंतिः कथां पाठकराजवल्लभः. चित्रसेनपद्मावती चरित्र-टबार्थ, गणि भक्तिविजय, मागु., गद्य, आदिः अद्य क० पहेला युगल; अंतिः (१)अर्थे का छे (२)वल्लभनामा उपाध्याये. ३४१९. व्यवहारसूत्र, संपूर्ण, वि. १६वी, श्रेष्ठ, पृ. १०, जैदेना., लिखवा. श्रा. सहिसकरण वच्छा साह, प्र.वि. १० उद्देशक; प्र.पु. ग्रं. ५००, (३१x१२.५, १५४५८-६०). व्यवहारसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदिः जे भिक्खू मासियं; अंतिः महापज्जवसाणे भवइ. For Private And Personal Use Only Page #421 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ३६७ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ३४२०." आवश्यकसूत्रनियुक्ति सह भाष्य व नियुक्ति, भाष्य की शिष्यहिता टीका, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५६१-४६०(१ से ४६०)=१०१, जैदेना.,प्र.वि. टीका-ग्रं. २२०००; प्र.पु. टीका-ग्रं. २२५००., टिप्पण युक्त विशेष पाठ, पू.वि. प्रारंभ से अस्वाध्यायिक नियुक्ति की आंशिक गाथा तक नहीं है., (३०x१४, १३४४३-५०). आवश्यकसूत्र-नियुक्ति , आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., पद्य, आदि:-; अंतिः चरणगुणट्ठिओ साहू. आवश्यकसूत्र-नियुक्ति की शिष्यहिता टीका #, आ. हरिभद्रसूरि, सं., गद्य, आदि:-; अंतिः (१)मिच्छन्तीति गाथार्थः (२)माध्यस्थमवाप्तुवन्तु. आवश्यकसूत्र-नियुक्ति का भाष्य, प्रा., पद्य, आदि:-; अंति: आवश्यकसूत्र-नियुक्ति के भाष्य की टीका # , आ. हरिभद्रसूरि, सं., गद्य, आदि:-; अंति:३४२१." आवश्यकसूत्र सह नियुक्ति, भाष्य व मूल, नियुक्ति व भाष्य की बृहद्वृत्ति, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ५२५-४६३(१ से ४६०,४६८ से ४६९,४८१)=६२, जैदेना., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, पू.वि. बीच के पत्र हैं., (२९.५४१४, १३१४४४६). आवश्यकसूत्र , प्रा., प+ग, आदि:-; अंति:आवश्यकसूत्र-शिष्यहिताटीका #, आ. हरिभद्रसूरि, सं., गद्य, आदि:-; अंति:आवश्यकसूत्र-नियुक्ति , आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., पद्य, आदि:-; अंति:आवश्यकसूत्र-नियुक्ति की शिष्यहिता टीका #, आ. हरिभद्रसूरि, सं., गद्य, आदिः-; अंति:आवश्यकसूत्र-नियुक्ति का भाष्य, प्रा., पद्य, आदि:-; अंति: आवश्यकसूत्र-नियुक्ति के भाष्य की टीका # , आ. हरिभद्रसूरि, सं., गद्य, आदि:-; अंति:३४२४. चातुर्मासिक व्याख्यान, संपूर्ण, वि. १८९०, श्रेष्ठ, पृ. १५, जैदेना., ले.स्थल. अजमेर, प्र.वि. ग्रं. ४०१, (२८.५४१३, १४४३३). चातुर्मासिकत्रय व्याख्यान, पाठक क्षमाकल्याण, सं., गद्य, आदिः स्मारं स्मारं स्फुरद; अंतिः सुविशदं व्याख्याभृत. ३४२६." व्याख्यानसार सङ्ग्रह सह अक्षरानुक्रमणिका (विविध साहित्य सङ्ग्रह), संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १४१+६(१७,३५,५०,११० से १११,११३)=१४७, जैदेना., प्र.वि. पन्ने- १७+३५(x४)+५०+११०+१११+११३=१५०, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२९x१३.५, १५४५५-६३). व्याख्यानसार सङ्ग्रह, मागु., गद्य, आदिः देव स्तुति रायने; अंतिः तो शोभसो थइ रूपाला. ३४२७. ऋषिमण्डल की प्रभातव्याख्यानपद्धति टीका, संपूर्ण, वि. १८८४, श्रेष्ठ, पृ. १०२, जैदेना., ले.स्थल. धोराजी, ले. ऋ. हीराचन्द (गुरु ऋ. सुन्दरजी),प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. प्र.पु. टीका+कथाग्रं. ४५६४, कथा-५०., (२९.५४१४, १७ २१४४२-४७). ऋषिमण्डल प्रकरण-प्रभातव्याख्यानपद्धति टीका, गणि हर्षनन्दन, सं., गद्य, वि. १७०४, आदिः अथ मल्लिस्वामि; अंतिः (१)उत्पाद्य मोक्षं गतः (२)सुप्रतिष्ठमुनिकथा. ३४२९.” समयसारनाटक भाषानुवाद, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ८३, जैदेना., प्र.वि. संशोधित, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. गा.७२४ तक है., (२८.५४१४.५, १२४३०-३३). समयसारनाटक-पद्यानुवाद का टबार्थ, पण्डित रूपचन्द, प्राहिं., गद्य, आदिः श्रीजिनवचन समुद्रको; अंति:३४३१. स्तवनचौवीसी सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १८९६, श्रेष्ठ, पृ. ५२, जैदेना., ले.स्थल. राजनगर, ले. ऋ. खुशीयालजी, प्र.वि. मूल-अध्याय-२४ स्तवन., (२६४१३.५, ४४३१-३४). स्तवनचौवीसी, मु. आनन्दघन, मागु., पद्य, वि. १८पू, आदिः ऋषभ जिनेश्वर प्रीतम; अंतिः आनन्दघन प्रभु जाग रे. स्तवनचौवीसी-टबार्थ, आ. ज्ञानविमलसूरि, मागु., गद्य, आदिः आनन्दघघनस्यास्या; अंतिः अखय सम्पद अति घणी. For Private And Personal Use Only Page #422 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य भाग १ www.kobatirth.org: - ३६८ (+) ३४३२. श्रीपाल रास व नवपदगुण, संपूर्ण, वि. १८८९ श्रेष्ठ, पृ. ५६, पे. २ जैदेना. ले. स्थल सवाईजयनगर, ले. मनालाल द्विज, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-कुछ पत्र (२६.५x१३.५, १२X४०-४४). पे. १. श्रीपाल रास, उपा. विनयविजय, उपा. यशोविजयजी गणि, मागु., पद्य, वि. १७३८, (पृ. १-५६), आदिः कल्पवेल कवियण तणी: अंति: लहसे ज्ञान विशालाजी, पे.वि. खण्ड-४, ढाळ ४१. पे. २. नवपद गुण, सं., गद्य, (पृ. १अ), आदिः ॐ ह्रीं श्रींनमो; अंतिः गुण तपा १२ गुणयुक्त. ३४३३. हैमकोश, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ५४, जैदेना., ले. बालकृष्ण हरिदेव गोस्वामि, प्र. वि. ६ कांड, (२५.५x१४, १६१८४३६-४२). अभिधानचिन्तामणि नाममाला, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, आदि: (१) प्रणिपत्यार्हतः; अंतिः प्रवहो गमनं बहि:. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३४३५.” शान्तिनाथजिन चरित्र, संपूर्ण, वि. १९५५, श्रेष्ठ, पृ. १२५, जैदेना., ले. स्थल. अहिपुर, ले. लादुराम व्यास लहिया, प्र. वि. ६प्रस्ताव, श्लो. १६३२+२२ प्र. पु. मूल ग्रं. ४९११, संशोधित, पदच्छेद सूचक लकीरें संधि सूचक चिह्न अल्प मात्रा में, टिप्पण युक्त विशेष पाठ - कुछ पत्र, (२७१४, १६x४२). - शान्तिनाथ चरित्र, आ. अजितप्रभसूरि, सं., पद्य वि. १३०७, आदिः श्रेयोरत्नकरोद्भूता: अंति: (१) स करोतु शान्तिः (२) पक्षे च निर्मले. ३४३८. श्रीचन्द्र चरित्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८६७, श्रेष्ठ, पृ. २०९, जैदेना., ले. गणि लालविजय (गुरु मु. न्यायविजय), पठ. मु. शुभविजय (गुरु गणि लालविजय), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. मूल- अध्याय ४ अध्ययन प्र.पु.ग्रं. ९५५०. (२७.५४१२.५, ७०४०). (+) श्रीचन्द्रकेवलि चरित्र, मु. सिद्धर्षि, सं., पद्य, वि. ५९८ आदिः ॐ ध्यात्वा श्रीजिनं; अंतिः सङ्घश्चिरं नन्दतात्. श्रीचन्द्रकेवलि चरित्र - टबार्थ, मागु गद्य, आदि (१) ॐकार सिद्धनो ध्यान (२) ध्यात्वा श्रीमन् अंतिः ते चिरञ्जीव रहो सङ्घ. ३४४०." वर्द्धमानदेशना, संपूर्ण, वि. १९६२, श्रेष्ठ, पृ. १५३, जैदेना., ले. स्थल. पेथापुर, ले. जेठालाल चुनिलाल लहिया, लिखवा. मु. सुखसागर (गुरु मु. रविसागर, तपा. सागरशाखा) प्र.ले.पु. मध्यम प्र. वि. १०उल्लास प्र. पु. ग्रं. ४४५०, संशोधित (२६.५x१३, १२४४१). वर्द्धमानदेशना, गणि राजकीर्ति, सं., गद्य, आदिः नमः श्रीपार्श्वनाथाय; अंतिः शोधयन्तु गतमत्सराः. " ३४४१.” कल्पसूत्र सह कल्पसुबोधिका टीका, संपूर्ण, वि. १९१४, श्रेष्ठ, पृ. २२०, जैदेना., ले. स्थल. जननीपुर, ले. वेङ्कट मोहनलाल व्यास, प्र. वि. मूल-ग्रं. १२१६, ९ - व्याख्यान., त्रिपाठ, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२७.५X१३, १२-१५X४०). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं० समणे; अंति: उवदंसेइ त्ति बेमि कल्पसूत्र-सुबोधिका टीका, उपा. विनयविजय, सं., गद्य वि. १६९६ आदि प्रणम्य परमश्रेयस्कर: अंतिः 1 विद्वज्जनैराश्रिता. ३४४४. प्रश्न सङ्ग्रह प्रश्नोत्तररत्नमाला मध्ये संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ६. जैदेना., ले. स्थल नागोर, ले. ताराचन्द (२८.५४१४, १२४२१). प्रश्नोत्तररत्नमाला, मागु., गद्य, आदिः हवै प्रश्नोत्तर; अंतिः तेहनै घणो लाभ थाइ छै. ३४४७. आठकर्म विचार, चौवीसदण्डक व दसपच्चक्खाण स्तवन, संपूर्ण, वि. १९२०, श्रेष्ठ, पृ. ८, पे. ३, जैदेना., ले. स्थल. भागनगर, ले. पं. हंससुन्दर, (२८x१३.५, १५४३४-३६). पे. १.८ कर्म १५८ प्रकृति विचार, मागु., गद्य, (पृ. १अ - ५आ), आदि: ज्ञानवरणीय दर्शना; अंतिः कर्म विचारो ज्ञेया. पे. २. पार्श्वजिन स्तवन- चौवीसदण्डकविचारगर्भित पाठक धर्मसिंह, मागु, पद्य, वि. १७२९, (पृ. ५आ - ७अ ), आदि: पूर F मनोरथ पास जिणेसर; अंतिः गावै धरमसी सुजगीस ए. पे.वि. गा.३४, ढाळ - ४. For Private And Personal Use Only Page #423 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ३६९ www.kobatirth.org: कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची पे. ३. १० पच्चक्खाण स्तवन, पं. रामचन्द्र गणि, मागु., पद्य, वि. १७३१, (पृ. ७अ -८आ), आदि: सिद्धारथ नन्दण नमुं; अंतिः रामचन्द्र तपविधि भणे., पे.वि. गा.३३, ढाळ - ३. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३४४९. भक्तामर स्तोत्र सह सुबोधिका टीका, संपूर्ण वि. १९१४ श्रेष्ठ, पृ. १२, जैदेना. ले. मु. रत्नसागर, प्र. वि. मूल श्लो. ४४., (२८.५४१३. १८४५०-५२). भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुङ्गसूरि, सं., पद्य, आदिः भक्तामरप्रणतमौलिमणि : अंतिः समुपैति लक्ष्मी. भक्तामर स्तोत्र-सुबोधिका टीका, सं., गद्य, आदिः नाभेयादिजिनाः; अंतिः इति क्रियापदम्. ३४५०. नवस्मरण, पार्श्वजिनस्तोत्र, लघुशान्ति व पाक्षिकसूत्र - खामणा, अपूर्ण, वि. १९२८, श्रेष्ठ, पृ. ३९-२० ( १ से २० ) = १९, पे. ५, जैदेना., ले. स्थल. पीपलीया, ले. मु. रत्नसागर, (२९.५x१३, १५X३४-३६). पे. १. नवस्मरण, आ. अनेक श्रुतस्थविर, प्रा., सं., प+ग, (पृ. २१अ - ३०अ, अपूर्ण), आदि:-; अंति: जैनं जयति शासनम्., पे. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. भक्तामरस्तोत्र के श्लो. २८ से अजितशान्ति तक है. पे. २. पे नाम. पार्श्व स्तोत्र, पृ. २४अ-२४आ, संपूर्ण पार्श्वजिन चैत्यवन्दन, सं., पद्य, आदिः ॐ नमः पार्श्वनाथाय; अंतिः मे वाञ्छितं नाथ., पे.वि. श्लो. ५. पे. ३. लघुशान्ति, आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, (पृ. २६अ - २६आ, संपूर्ण), आदिः शान्तिं शान्ति; अंति: (१) सूरिः श्रीमानदेवश्च ( २ ) जैनं जयति शासनम्, पे.वि. श्लो. १७+२. पे. ४. पे. नाम. पाक्षिकसूत्र, पृ. ३०अ - ३९अ, संपूर्ण पाक्षिकसूत्र, प्रा., प+ग, आदिः तित्थङ्करे य तित्थे; अंति: (१)मिच्छामि दुक्कडं ( २ ) जेसिं सुयसायरे भत्ति. पे. ५. पे. नाम. पाक्षिकक्षामणासूत्र, पृ. ३९अ - ३९आ, संपूर्ण क्षामणकसूत्र, प्रा., गद्य, आदि इच्छामि खमासमणो अंतिः नित्थारग पारगा होह. ; ३४५१. चौवीसदण्डक ओगणत्रीसद्वार विचार, संपूर्ण वि. १९६७, मध्यम, पृ. १३, जैदेना, (२७.५४१३, १२४४१). २४ दण्डक २९ बोल, मागु., गद्य, आदिः प्रथम नामद्वार बीजु: अंतिः अनंत गुणे अधिक जाणवा. ३४५२. चौवीसदण्डक २९द्वार विचार, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १३, जैदेना. (२६.५x१३, १०x४०). २४ दण्डक २९ बोल, मागु., गद्य, आदिः प्रथम नामद्वार बीजु; अंतिः अनंत गुणे अधिक जाणवा. ३४५३ . चतुर्विंशतिजिन स्तुति, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदेना., प्र. वि. श्लो.७७, (२८x१३, १२X३२-३४). स्तुतिचौवीसी, वाचक क्षमाकल्याण, सं., पद्य, वि. १९वी आदिः सद्भक्त्यानतमौलि; अंतिः सा जयतादजस्रम्. ३४५४.” जम्बूद्वीपपन्नत्ति सह टबार्थ, पूर्ण, वि. १८४१ श्रेष्ठ, पृ. १५८-१(१११ ) = १५७, जैदेना., ले. स्थल. साहजीहांवाद, ले. मु. हिमताजी, प्र. वि. मूल-७ वक्षस्कार, प्र.पु. मूल ग्रं. ४४५४., टिप्पण युक्त विशेष पाठ, पू. वि. अन्त में कुछ पत्र पर टबार्थ नहीं है., (२९.५४१२ ८-१०४४८-६०) जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति, प्रा., गद्य, आदि: नमो अरिहंताणं० तेणं अंति: उवदंसेइ ति बेगि जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति-टबार्थ *, मागु., गद्य, आदि: ते० ते काल चउथा आरा; अंतिः तुम्ह प्रति कह्यो. ३४५५." ववहारसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २८, जैदेना. प्र. वि. मूल १० उद्देशक टिप्पण युक्त विशेष पाठ, " " संशोधित, प्र.ले. श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट (२६) भग्न पृष्टिं कटी ग्रीवा (१७) जलाद्रक्षे तैलाद्रक्षे, (२८. ५०१२, ८x४१-४४). व्यवहारसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदिः जे भिक्खू मासियं; अंतिः महापज्जवसाणे भवइ. व्यवहारसूत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, आदि: जे० जे कोइ भि० साधु: अंतिः क्षय करवारूप फल हुइ. ३४५६.* धन्नाशालीभद्र रास, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ८५-१(१४) = ८४, जैदेना. पु. वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं. खंड-४ " 1 की ढाल २४ गा.९ तक है, दशा वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है- अल्प (२७.५४१२, १३-१४९३६-३७). धनाशालिभद्र रास, मु. जिनविजय, मागु, पद्य, आदि ऐन्द्रश्रेणि नत अंति: For Private And Personal Use Only Page #424 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य भाग - १ ३७० ३४५८. पार्श्वनाथजिन छन्द-अन्तरिक्ष, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, प्र. ५, जैदेना., ले.स्थल. कोठनगर, ले. पं. डुङ्गरविजय, प्र.वि. गा.५१, (२५.५४११.५, ११४३४). पार्श्वजिन छन्द-अंतरीक्ष , वाचक भावविजय, मागु., पद्य, आदिः सरसति मात मयाकरी; अंतिः भणै जयो देव जय जयकरण. ३४५९. कल्पसूत्र, संपूर्ण, वि. १८६८, श्रेष्ठ, पृ. ९२, जैदेना., ले.स्थल. विक्रमपुर, ले. मु. मनोहरविजय, प्र.वि. ९-व्याख्यान, ग्रं. १२१६, पदच्छेद सूचक लकीरें, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, संशोधित, (२६४१२.५, ८x२८-३१). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदिः तेणं कालेणं० समणे; अंतिः उवदंसेइ त्ति बेमि. ३४६०. पञ्चप्रतिक्रमणसूत्र सङ्ग्रह, पूर्ण, वि. १८६६, मध्यम, पृ. २०-१(८)=१९, जैदेना., ले.स्थल. अमनगर, ले. गणि सौभाग्यचन्द्र, पठ. श्राविका हीरबाई,प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. प्रत के बीच में वि.१८६६ तथा प्रत पूर्णता पर वि.१८६५ का उल्लेख है., पू.वि. वंदित्तुसूत्र नहीं है., (२७.५४१३, १३४२९-३७). पंचप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,सं.,मागु., पद्य, आदिः नमो अरिहन्ताणं; अंतिः कार्येषु सिद्धिम्. ३४६१. नवाणुप्रकारी पूजा, संपूर्ण, वि. १९१८, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना., ले.स्थल. अहमदनगर, ले. पं. कनकविजय गणि (गुरु पं. कपूरविजय गणि), पठ. मु. भाग्यविजय (गुरु पं. कनकविजय गणि), प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र.वि. प्र.पु. सर्वगा.१०५. प्रति.वर्ष-मात्र "संवत् अष्टादश वर्षे का ही उल्लेख है., ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित, (२८x१२, १४४४३). ९९ प्रकारी पूजा, पं. वीरविजय, मागु., पद्य, वि. १८८४, आदिः श्रीशद्धेश्वर पासजी; अंतिः आतम आपद आप ठरायो ३४६३. नवतत्त्व विचार व चौदगुणठाणा विचार, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १०-१(१)=९, पे. २, जैदेना., पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., (२५.५४१२.५, १६४३९-४२). पे. १. नवतत्त्व १३ द्वार विचार, मागु., गद्य, (पृ. -२अ-८आ), आदि:-; अंति: तलावरुप मोक्ष जाणवो., पे.वि. प्रथम पत्र नहीं है. पे. २.१४ गुणठाणा विचार, मागु., गद्य, (पृ. ८आ-१०आ), आदिः तत्र प्रथम द्वार; अंतिः अव्याबाध ठिकाणो छे., पे.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण दूसरे द्वार तक लिखा है. ३४६४. शालिभद्र चरित्र सह टीका, संपूर्ण, वि. १९६५, श्रेष्ठ, पृ. ४३, जैदेना., ले.स्थल. घोघाबंदर-भावनगर, ले. लालजी लहीया, प्र.वि. मूल-ग्रं. १२२४, ७प्रक्रम., (२६.५४१२.५, १४४४१). शालिभद्र चरित्र, पण्डित धर्मकुमार, सं., पद्य, वि. १३३४, (संपूर्ण), आदिः श्रीदानधर्मकल्प; अंतिः विस्तारिधर्मोन्नतिः. शालिभद्र चरित्र-टीका, सं., पद्य, (अपूर्ण), आदिः ग्रन्थप्रारम्भेष्टौ; अंतिः३४६५. यतिप्रतिक्रमणं साधुप्रतिक्रमणसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १९, जैदेना., (२७.५४१३, ३-१९४३६-५०). साधुवन्दित्तुसूत्र, संबद्ध, प्रा., गद्य, आदिः करेमि भन्ते० चत्तारि; अंतिः वन्दामि जिणे चउवीसं. साधुवन्दित्तुसूत्र-टबार्थ, आ. ज्ञानविमलसूरि, मागु., गद्य, वि. १७४९, आदिः (१) ॐ नत्वा पार्श्वनाथ (२) प्रकासक० अतिहिं; अंतिः तीर्थङ्कर जिन प्रति. ३४६६. श्रीपाल रास सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १००-१४(१ से ११,४० से ४१,५१)=८६, जैदेना., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, पू.वि. बीच के पत्र हैं. खंड-१ की ढाल-८ अपूर्ण से खंड ४ ढाल ११ गाथा ४४ तक है., दशा वि. चिपके पत्र अलग करते वक्त स्याही उखडी हुई-अक्षरों की स्याही फैल गयी है-अल्प, विवर्ण-पानी से, (२६.५४१२.५, ५४३०-३३). श्रीपाल रास, उपा. विनयविजय , उपा. यशोविजयजी गणि, मागु., पद्य, वि. १७३८, आदि:-; अंति:श्रीपाल रास-टबार्थ , मागु., गद्य, आदि:-; अंति: For Private And Personal Use Only Page #425 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ३७१ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ३४६८. जम्बूद्वीपसङ्ग्रहणी सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदेना., प्र.वि. मूल-गा.३०., (२५.५४१३, ४४३०-३२). लघुसङ्ग्रहणी, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिय जिणं सव्वन्नु; अंति: रईया हरिभद्दसूरिहिं. लघुसङ्ग्रहणी-टबार्थ', मागु., गद्य, आदिः नमिय क० नमस्कार करी; अंतिः श्रीहरिभद्रसूरीश्वरे. ३४६९. कल्पसूत्र का व्याख्यान+कथा, अपूर्ण, वि. १८७४, श्रेष्ठ, पृ. २२१-१९६(१ से १७५,१९० से २१०)=२५, जैदेना., ले.स्थल. देवगुढ, ले. ऋ. मोतीचन्द(लुङ्कागच्छ), पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.,प्र.ले.श्लो. (४८२) भग्न पुष्टी कटी ग्रीवा; (२८२) जीहा लग मेरु अडग हे; (१०४) शास्त्र अर्थ संग्रह करै; (१०५) धन्य तिके लिखे, (२८x१२.५, १३४३४-३५). कल्पसूत्र-व्याख्यान+कथा* , मागु., गद्य, आदि:-; अंतिः जिम सुख पामे. ३४७०. पर्युषणाअष्टान्हिका व्याख्यान सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९३७, श्रेष्ठ, पृ. ३९, जैदेना., ले.स्थल. कालाउना, ले. ऋ. इन्द्रचन्द्र, प्र.वि. श्लो.६२४. प्र.पु. टबार्थ ग्रं. ९३६., (२५.५४१२.५, ७४३४-३९). पर्युषणाष्टाह्निका व्याख्यान, मु. नन्दलाल , सं., पद्य, वि. १७८९, आदिः स्मृत्वा पार्श्व; अंतिः करगामिनी भवति. पर्युषणाष्टाह्निका व्याख्यान-टबार्थ , मागु., गद्य, आदिः स्मृ० श्रीपार्श्वनाथ; अंतिः आनन्द करणहार धर्म. ३४७१. समयसार नाटक, संपूर्ण, वि. १९०९, श्रेष्ठ, पृ. ७६, जैदेना., ले.स्थल. तालध्वजपुर, ले. भीमजी मेता (पिता हंसराज मेता), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. गा.७२७, (२४.५४१३, ११४३५-३७). समयसार नाटक-पद्यानुवाद, श्रा. बनारसीदास, प्राहिं., पद्य, वि. १६९३, आदिः करम भरम जग तिमिर; अंतिः नाममइ परमारथ विरतन्त. ३४७२. विषमपदपर्याय सङ्ग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५१, पे. १८, जैदेना., प्र.वि. प्र.पु. सर्वपर्याय ग्रं. ३३६४., संशोधित, (२६४१३.५, १९४३५-४०). पे. १.पे. नाम. नन्दिसूत्र का विषमपद पर्याय, पृ. १-२आ नन्दीसूत्र-हरिभद्रीय टीका का विषमपदटिप्पन, आ. चन्द्रकीर्तिसूरि, सं., गद्य, आदि: पंक्ति २ जयतीति; अंतिः जितशत्रुः भ्रातृजः. पे. २. पे. नाम. आवश्यकसूत्र-वृत्ति का विषमपद पर्याय, पृ. २आ-१७अ आवश्यकसूत्र-विषमपद पर्याय टिप्पण, सं., गद्य, आदिः जिनेत्यादि जिनाः; अंतिः याम्नायो द्रष्टव्यः. पे. ३. पे. नाम. दशवैकालिकसूत्र विषमपद पर्याय, पृ. १७अ-२०अ दशवैकालिकसूत्र-विषमपदपर्याय टिप्पण, सं., गद्य, आदिः वोन्दीति तत्तु गुणसत; अंतिः संतोषनिवारणं स्थापना. पे. ४. पे. नाम. ओघनियुक्ति का विषमपद पर्याय, पृ. २०आ ओघनियुक्ति-विषमपदपर्याय टिप्पण, सं., गद्य, आदिः प्रयोजनमिति नगर; अंतिः सिन्हेतित्रेहः. पे. ५. पे. नाम. पिण्डनियुक्ति का विषमपद पर्याय, पृ. २०आ-२१अ पिण्डनियुक्ति-विषमपदपर्याय टिप्पण, सं., गद्य, आदिः परिसण्ठियमिति स्वच्छ; अंतिः इति नास्ति मेदिच्छा. पे. ६. पे. नाम. पिण्डनियुक्ति का विषमगाथा विवरण, पृ. २१अ-२६अ पिण्डनियुक्ति-विषमगाथा विवरण, सं., गद्य, आदिः (१) दस ससिहा गाहा इह (२) इह साधर्मिकचिन्तायां; अंतिः हृतवदित्यर्थः. पे. ७. पे. नाम. उत्तराध्ययनसूत्र बृहद्वृत्ति का विषमपद पर्याय, पृ. २६अ-३१अ उत्तराध्ययनसूत्र-शिष्यहिता बृहद्धृत्ति का विषमपदपर्याय टिप्पण, सं., गद्य, आदिः ऊर्ध्वा रक्षिका; अंतिः द्वीन्द्रियादीनाम्. पे. ८. पे. नाम. आचाराङ्गसूत्र का विषमपद पर्याय, पृ. ३१अ-३३आ आचारागसूत्र-विषमपद पर्याय टिप्पण, सं., गद्य, आदि: जयतीति स्कन्दकं छन्द; अंतिः इति देशी कुड्यादि. For Private And Personal Use Only Page #426 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य भाग - १ ३७२ पे. ९.पे. नाम. सूत्रकृताङ्गसूत्र का विषमपद पर्याय, पृ. ३३आ-३५अ सूत्रकृताङ्गसूत्र-विषमपदपर्याय टिप्पण, सं., गद्य, आदिः सूत्रकृतमिति सूचा; अंतिः कार्यारम्भकत्वम्. पे. १०.पे. नाम. पञ्चस्थानकसूत्र का विषमपद पर्याय, पृ. ३५अ-३७आ पंचस्थानकसूत्र-विषमपद पर्याय, सं., गद्य, आदिः तत्सन्तानस्येति; अंतिः कल्पे इति जिनकल्पादौ. पे. ११.पे. नाम. स्थानाङ्गसूत्र का विषमपद पर्याय, पृ. ३७आ-३८अ स्थानाङ्गसूत्र-विषमपदपर्याय टिप्पण, सं., गद्य, आदिः पालयति वेति वस्त्र; अंतिः दिक्पालमनुज्ञापयति. पे. १२. पे. नाम. समवायाङ्गसूत्र का विषमपद पर्याय, पृ. ३७आ-३८अ समवायाङ्गसूत्र-विषमपद पर्याय टिप्पण, सं., गद्य, आदिः दुरितानि इति योजनशत; अंतिः अवस्यमुत्पत्तव्यम्. पे. १३. पे. नाम. भगवतीसूत्र का विषमपद पर्याय, पृ. ४०आ-४४अ भगवतीसूत्र-विषमपद पर्याय, सं., गद्य, आदिः घनोदार इति अग्राम्य; अंतिः ठिउ इति पठितः. पे. १४. पे. नाम. जीवाभिगमसूत्र का विषमपद पर्याय, पृ. ४४अ-४६अ जीवाभिगमसूत्र-विषमपदपर्याय, सं., गद्य, आदिः इह खलु इति; अंतिः करेन्तस्स परिवडियम्. पे. १५.पे. नाम. प्रज्ञापनोपाङ्ग का विषमपद पर्याय टिप्पण, पृ. ४६अ-४७अ प्रज्ञापनासूत्र-विषमपदपर्याय टिप्पण, सं., गद्य, आदिः वचनादिति वचनाज्जिन; अंतिः आदि इति भाषया. पे. १६. पे. नाम. प्रज्ञापनासूत्र-विवरण का विषमपद पर्याय टिप्पण, पृ. ४७अ-४८आ प्रज्ञापनासूत्र-विवरण का विषमपदपर्याय टिप्पण, सं., गद्य, आदिः सिन्तमिति जीवे बद्धं; अंतिः इति सेतस्यायुः शेषम्. पे. १७. पे. नाम. साधुजितकल्प का विषमपद पर्याय टिप्पण, पृ. ४८आ-५१आ जीतकल्पसूत्र-विषमपदपर्याय टिप्पण, सं., गद्य, आदिः शास्त्रारम्भे; अंतिः सहलं होइ सव्वं तु. पे. १८. पे. नाम. जीतकल्प का यन्त्र, पृ. ५१आ जीतकल्पसूत्र-यन्त्र, संबद्ध, सं., यंत्र, आदि:#; अंतिः#. ३४७३. कर्मविपाकविचार यन्त्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १८, जैदेना., (२६.५४१२.५, १३-१४४२८-३०). कर्मविपाक नव्य कर्मग्रन्थ-यन्त्र, मु. सुमतिवर्द्धन, राज., गद्य, आदिः श्रीवीरजिन प्रते; अंतिः अन्तराय कर्म बांधे. ३४७५. सूक्तावली सङ्ग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ८५, जैदेना.,प्र.वि. श्लो.१४००, संशोधित, पदच्छेद सूचक लकीरें, (२६.५४१२.५, ९-१३४३४-३५). सूक्तावली, सं.,प्रा.,मागु., पद्य, आदिः वीरं विश्वगुरुं; अंतिः ताहं हूसिज्झइ लीह. ३४७६. सन्थारापइन्नासूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १४, जैदेना., प्र.वि. मूल-गा.१२०; प्र.पु. मूल-ग्रं. ४००., (२७४१३.५, ५४३३-३५). संस्तारक प्रकीर्णक, गणि वीरभद्र, प्रा., पद्य, आदिः काऊण नमुक्कारं जिणवर; अंतिः सुहसंकमणं मम दितु. संस्तारक प्रकीर्णक-टबार्थ , मागु., गद्य, आदिः श्रीवीरन्द प्रणेदौ; अंतिः पामीइ अम्हनइ सन्तु. ३४७७. श्राद्धप्रतिक्रमणसूत्र सङ्ग्रह सह अर्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४६, जैदेना., (२७.५४१३.५, १२४३०-३४). श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र , संबद्ध, प्रा.,मागु., प+ग, आदिः नमो अरिहं० सव्वसाहूण; अंतिः (१)वत्तियागारेणं वोसिरइ (२)सव्वस्स अहयम्पि. श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-अर्थ, मागु., गद्य, आदिः प्रथम सकल मङ्गलिक०; अंतिः विशें भक्ति छे. ३४७८." थूलीभद्र चरित्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८६७, श्रेष्ठ, पृ. ७३, जैदेना., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-कुछ पत्र, (२७.५४१२.५, ५४३७). स्थूलिभद्र चरित्र, आ. जयानन्दसूरि, सं., पद्य, आदिः वीरोवर्यः श्रिये; अंति: पुण्यशीलप्रवृद्धिम्. For Private And Personal Use Only Page #427 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ३७३ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची स्थूलिभद्र चरित्र-टबार्थ, मु. अमृतसागर, मागु., गद्य, आदिः श्रीवीरप्रभु जे ते; अंतिः अरथे निरन्तर हो. ३४७९. दूहा सङ्ग्रह, मधुबिन्दु सज्झाय, वीरजिन पारणा व नवतत्त्व स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २७-१(२५)=२६, पे. ४, जैदेना., पू.वि. बीच का एक व अन्त के पत्र नहीं हैं., (२८x१३.५, १६x४२-४८). पे. १. प्रास्ताविकदोहा सङ्ग्रह', राज.,मागु., पद्य, (पृ. १अ-२४आ-, अपूर्ण), आदिः बुरी प्रती भमर की; अंतिः-, पे.वि. गा.१०६१ तक है. अंतिम पत्र नहीं है. बीच-बीच में कुछ दूहे छोड कर लिखा हुआ है. पे. २. मधुबिन्दु सज्झाय, मु. चरणप्रमोद-शिष्य, मागु., पद्य, (पृ. -२६अ, अपूर्ण), आदि:-; अंतिः परमसुख इम माङ्गीइ., पे.वि. गा.१०. प्रथम पत्र नहीं है. गा.१ से ४ अपूर्ण तक नहीं है. पे. ३. महावीरजिन पारणा स्तवन, मु. माल, मागु., पद्य, (पृ. २६अ-२७अ, संपूर्ण), आदिः श्रीअरिहन्त अनन्त; अंतिः दान दीयो सुपात्रनेजी., पे.वि. गा.३१. पे. ४. नवतत्त्व स्तवन, मागु., पद्य, (पृ. २७अ-२७आ-, अपूर्ण), आदिः परम निरञ्जण परम गुरु; अंतिः-, पे.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. गा.३१ तक है. ३४८०. संसार असारतानिरूपण कथा, संपूर्ण, वि. २१वी, श्रेष्ठ, पृ. १५, देना., प्र.वि. श्लो.१६० अद्यतन प्रत., (२७४१३, ६४३३ ३७). संसार असारतानिरूपक कथा, सं., पद्य, आदिः श्रीवीरः श्रेयसे; अंति: मोक्षस्थानमवाप्यत. ३४८१. मुनिपति चरित्र का अनुवाद, संपूर्ण, वि. १९६१, श्रेष्ठ, पृ. ४७, देना., ले.स्थल. पेथापुर, ले. जेठालाल चुनीलाल भावसार, पठ. मु. माणेकविजय, प्र.ले.पु. मध्यम, (२७४१२.५, १२४३७-४१). मुनिपति चरित्र-भाषान्तर, मागु., गद्य, आदिः आ जंबूद्वीपना; अंतिः करी मोक्ष पद पामशे. ३४८२." कुमारपाल रास, संपूर्ण, वि. १९३५, श्रेष्ठ, पृ. ६२+१(५८)=६३, जैदेना., ले.स्थल. पालीताणा, ले. पं. ज्ञानविजय, प्र.वि. गा.२८७६, ग्रं. ४१६०, ढाळ-१२९, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२७४ १२.५, १९४५१-६०). कुमारपाल रास, मु. जिनहर्ष, मागु., पद्य, वि. १७४२, आदिः श्रीसरसति भगवति नमुं; अंतिः ओगणत्रीस ढाळ गावो हो. ३४८३.” कल्पसूत्र, संपूर्ण, वि. १७९९, श्रेष्ठ, पृ. ६९, जैदेना., ले.स्थल. विजैलसकर, ले. गणि तिलकविजय, प्र.वि. प्रतिलेखन वर्ष वि.१७४९ को १७९९ बना दिया गया है., पदच्छेद सूचक लकीरें-बीच के कुछ पत्र, (२४४११.५, ११४२५-२९). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदिः तेणं कालेणं० समणे; अंतिः उवदंसेइ त्ति बेमि. ३४८४." कल्पसूत्र सह टबार्थ, पूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १८२, जैदेना., प्र.वि. संशोधित, पदच्छेद सूचक लकीरें, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. स्थविरावली का थोडा भाग नहीं है., (२५४११, ५४४३-४६). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदिः णमो अरिहन्ताणं० पढमं; अंति:कल्पसूत्र-टबार्थ+व्याख्यान+कथा, आ. सोमविमलसूरि, मागु., गद्य, आदिः (१) सकलार्थसिद्धिजननी (२) अरिहन्तनइ नमस्कार; अंति:३४८५. कल्पसूत्र का व्याख्यान- १ से ६ व्याख्यान, प्रतिअपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १२२-५(२२ से २६)=११७, जैदेना.,प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न, अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-कुछ पत्र, (२६.५४१२, ११४३२-३४). कल्पसूत्र-व्याख्यान+कथा, सं., गद्य, आदिः तत्रादौ श्रीऋषभदेव; अंति:३४८६. कल्पसूत्र सह टबार्थ व व्याख्यान+कथा, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १८२, जैदेना., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, द्विपाठ, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. उदायी राजा की आंशिक कथा तक है., (२५४११, १४४४३-४५). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदिः णमो अरिहन्ताणं० पढम; अंतिःकल्पसूत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः (१) अरिहन्तनइ माहरो (२) तेणइ कालि जे; अंतिःकल्पसूत्र-व्याख्यान+कथा* , मागु., गद्य, आदिः आभिणिबोहियनाणं; अंति: For Private And Personal Use Only Page #428 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य भाग - १ ३७४ ३४८७." आवश्यकसूत्र की नियुक्ति, भाष्य सह अवचूर्णि, संपूर्ण, वि. १६वी, श्रेष्ठ, पृ. १३२, जैदेना., ले. गणि धीरसुन्दर (गुरु गणि अमरसुन्दर, तपगच्छ),प्र.वि. प्र.पु. सर्वग्रं. ११५०५. ज्ञानसागरसूरि की अवचूर्णि इस से किञ्चित् सविस्तर है। नियुक्ति व भाष्य का मात्र प्रतीक पाठ मिलता है. नियुक्ति प्रारंभ से है तथा भाष्य ३३B पंक्ति-११ से है. भाष्य वन्दनक प्रत्याख्यान के गा.१४६ 'पंथं किर देसित्ता' के बाद से मिलता है एवं अन्तिम पाठ नियुक्ति गा.१०६९ के बाद पूरा होता है. प्रत अवचूर्णिकार द्वारा लिखित होने की संभावना है., कर्ता के हस्ताक्षर से लिखित प्रत-टबार्थादि, (२६.५४११.५, २०४५९-६१). आवश्यकसूत्र-नियुक्ति , आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., पद्य, आदिः आभिणिबोहियनाणं; अंतिः चरणगुणट्ठिओ साहू. आवश्यकसूत्र-नियुक्ति की अवचूर्णि #, गणि धीरसुन्दर, सं., गद्य, वि. १५वी, आदिः (१) परमेष्ठिनः प्रणिदधत (२) अर्थाभिमुखो नियतः; अंतिः (१)भावनिक्षेपमिच्छन्ति (२)किञ्चित् सविस्तरा. आवश्यकसूत्र-नियुक्ति का भाष्य, प्रा., पद्य, आदिः अवरविदेहे गामस्स; अंतिः अवाउ जम्हा विउ पमाणं. आवश्यकसूत्र-नियुक्ति के भाष्य की अवचूर्णि # , गणि धीरसुन्दर, सं., पद्य, वि. १५वी, आदिः अपरविदेहे ग्रामस्य; अंतिः #. ३४८८." जीवाभिगमसूत्र सह कठिनपदटिप्पण, पूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. २२१-१(१)=२२०, जैदेना., प्र.वि. मूल-१० प्रतिपत्ति., टिप्पण युक्त विशेष पाठ, संशोधित, (२७४११, ११४३४-३६). जीवाभिगमसूत्र, प्रा., गद्य, आदि:-; अंतिः सेत्तं सव्वजीवाभिगमे. जीवाभिगमसूत्र-कठिनपद टिप्पण', सं.,मागु., गद्य, आदि:-; अंति:३४८९. जीवाभिगमसूत्र, संपूर्ण, वि. १५८७, श्रेष्ठ, पृ. १२६+१(६८)=१२७, जैदेना., प्र.वि. १० प्रतिपत्ति, ग्रं. ४७५०, (२६४११, १३४४८-५१). जीवाभिगमसूत्र, प्रा., गद्य, आदिः (१) णमो उसभादियाणं (२) इह खलु जिणमयं० जीवा; अंतिः (१)सेत्तं सव्वजीवाभिगमे (२)सव्वजीवा पण्णत्ता. ३४९०. कर्मग्रन्थ १ से ५ सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १७९०, श्रेष्ठ, पृ. १०३, पे. ५, जैदेना., ले.स्थल. बीकानेर, ले. पण्डित रघुनाथ, गच्छा. आ. जिनभक्तिसूरि (गुरु आ. जिनसुखसूरि, खरतरगच्छ), राज्यकाल- राजा सुजाणसिंघ, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. प्र.पु. श्रीगौडीजी साहायेन., (२६x१०.५, १९४६७-७०). पे. १. पे. नाम, कर्मविपाक सह बालावबोध, पृ. १-१९आ कर्मविपाक नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, आदिः सिरिवीरजिणं वन्दिय; अंतिः लिहिओ देविन्दसूरीहिं. कर्मविपाक नव्य कर्मग्रन्थ-बालावबोध, मु. मतिचन्द्र, मागु., गद्य, आदिः (१) श्रेयोमार्गस्य (२) सकल त्रिभुवन __ जनमनने; अंतिः (१)लिखि बालावबोधिनी (२)लिख्यौ देवेन्द्रसूरे., पे.वि. मूल-गा.६०. पे. २. पे. नाम, कर्मस्तव नव्य कर्मग्रन्थ सह बालावबोध, पृ. १९आ-२९आ कर्मस्तव नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, आदिः तह थुणिमो वीरजिणं; अंतिः वन्दियं नमह तं वीरं. कर्मस्तव नव्य कर्मग्रन्थ-बालावबोध, मु. मतिचन्द्र, मागु., गद्य, आदिः (१) वीरं बोधनिधिं धीरं (२) तथा कहता तिणै; अंतिः (१)लिखिता लोकवार्तया (२)देवेन्द्र वन्दित छै., पे.वि. मूल-गा.३४. पे. ३. पे. नाम. बन्धस्वामित्व नव्य कर्मग्रन्थ सह बालावबोध, पृ. २९आ-३५अ बन्धस्वामित्व नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, आदिः बन्धविहाणविमुक्कं; अंतिः नेयं कम्मत्थयं सोउं. बन्धस्वामित्व नव्य कर्मग्रन्थ-बालावबोध, मु. मतिचन्द्र, मागु., गद्य, आदिः (१) सर्वसर्मपदं नत्वा (२) कर्म परमाणुनौ जीव; अंतिः (१)परोपकृतिहेतवे (२)बहुश्रुति जाणे., पे.वि. मूल-गा.२४. पे. ४. पे. नाम. षडशीति नव्य कर्मग्रन्थ सह बालावबोध, पृ. ३६आ-५४आ षडशीति नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिय जिणं जिय; अंतिः देविन्दसूरीहिं. For Private And Personal Use Only Page #429 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ३७५ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची षडशीति नव्य कर्मग्रन्थ-बालावबोध, मु. मतिचन्द्र, मागु., गद्य, आदिः (१) प्रणम्य शिरसा वीरं (२) जिन कहियै रागद्वेष; अंतिः (१)परोपकृतिहेतवे (२)शास्त्र देखीनै., पे.वि. मूल-गा.८६. पे. ५. पे. नाम. शतक नव्य कर्मग्रन्थ सह बालावबोध, पृ. ५५आ-१०३ शतक नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिय जिणं धुवबन्धोदय; अंतिः सयगमिणं आयसरणट्ठा. शतक नव्य कर्मग्रन्थ-बालावबोध, मु. मतिचन्द्र, मागु., गद्य, आदिः (१) रत्नत्रयोपदेष्टारं (२) जिन कहीये राग द्वेष; अंतिः (१)कृतं गम्यार्थपद्धति (२)आत्मस्मरणने अर्थे., पे.वि. मूल-गा.१००. ३४९१. अभिधानचिन्तामणि नाममाला सह स्वोपज्ञ टीका, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १६०-२(१९ से २०)=१५८, जैदेना., पू.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं. प्रारंभ से कांड-४ श्लो.१३१ तक है., (२५.५४११, १५४४६-४७). अभिधानचिन्तामणि नाममाला, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, आदिः प्रणिपत्यार्हतः; अंति:अभिधानचिन्तामणि नाममाला-स्वोपज्ञ तत्त्वाभिधायिनी विवृति, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., गद्य, वि. १२१६, आदिः धर्मतीर्थकृतां वाचां; अंतिः३४९२." ज्ञाताधर्मकथाङ्गसूत्र, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १९६, जैदेना., प्र.वि. १९अध्ययन; प्र.पु. मूल-ग्रं. ५२००, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, संशोधित, पदच्छेद सूचक लकीरें, (२६.५४११.५, ११४४५-४७). ज्ञाताधर्मकथाङ्गसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदिः तेणं कालेणं० चम्पाए; अंतिः जाव सम्पत्तेणं. ३४९४. चन्दराजा रास, पूर्ण, वि. १९०८, मध्यम, पृ. ७९-१(७७)=७८, जैदेना., ले.स्थल. विलावास, ले. मु. रत्नसागर, प्र.वि. अध्याय-४ उल्लास, पू.वि. बीच के व अंतिम पत्र नहीं हैं., (२४.५४११, १७४४५). चन्द्रराजा रास, मु. मोहनविजय, मागु., पद्य, वि. १७८३, आदिः प्रथम धराधव तीम; अंतिः वर्णव्या गुण चन्दना. ३४९५.” कल्पसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ६९, जैदेना., प्र.वि. मूल-९-व्याख्यान, ग्रं. १२१६. प्र.पु. टबार्थ-ग्रं. २५२५., संशोधित, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२५.५४११, ७४४२-४८). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदिः तेणं कालेणं० समणे; अंतिः उवदंसेइ त्ति बेमि. कल्पसूत्र-टबार्थ', मागु., गद्य, आदिः (१) अरिहन्तनइ माहरो (२) ते कालनइ विषइ चतुर्थ; अंतिः भलइ गुरूक्त जणाविउ. ३४९६.” कल्पसूत्र सह टबार्थ व अन्तर्वाच्य, पूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १०९, जैदेना., ले. मु. महिमाविजय, प्र.वि. संशोधित, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है. ग्रं.ग्रं.१२०० तक के पत्र है., (२५.५४१०, ६-१५४४४-५३). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदिः णमो अरिहन्ताणं० पढमं; अंतिःकल्पसूत्र-टबार्थ , मागु., गद्य, आदिः नमो क० माहरो नमस्कार; अंति: कल्पसूत्र-अन्तर्वाच्य , मागु., गद्य, आदिः कल्याणानि समुल्ल; अंति:३४९८. कल्पसूत्र व पट्टावली, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ८१-१(२)=८०, पे. २, जैदेना., पू.वि. बीच के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., (२५.५४११, ९४३०-३४). पे. १. कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, (पृ. १-८१, पूर्ण), आदिः तेणं कालेणं० समणे; अंतिः उवदंसेइ त्ति बेमि., पे.वि. बीच का एक पत्र नहीं है. पे. २. पट्टावली तपागच्छीय, सं.,मागु., गद्य, (पृ. ८०आ-८१आ, अपूर्ण), आदिः श्रीवर्द्धमान; अंतिः-, पे.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. ३४९९." कल्पसूत्र सह सन्देहविषौधिका टीका, संपूर्ण, वि. १६वी, श्रेष्ठ, पृ. ९७, जैदेना., प्र.वि. मूल-९-व्याख्यान, ग्रं. १२१६. प्र.पु. टीका-ग्रं. २२००., पंचपाठ, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, संशोधित, पदच्छेद सूचक लकीरें, (२६४१०.५, २-१२४२७२८). For Private And Personal Use Only Page #430 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य भाग - १ ३७६ कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदिः तेणं कालेणं० समणे; अंतिः उवदंसेइ त्ति बेमि. कल्पसूत्र-सन्देहविषौषधि टीका, आ. जिनप्रभसूरि, सं., गद्य, वि. १३६४, आदिः (१) ते इति प्राकृतशैली (२) ध्यात्वा श्रीश्रुत; अंतिः कल्पः समाप्त इति. ३५००. कल्पसूत्र सह टबार्थ, व्याख्यान+कथा व पट्टावली, संपूर्ण, वि. १७९५, मध्यम, पृ. १४३, पे. २, जैदेना., ले.स्थल. देवली, ले. मु. भाग्यराज (गुरु पं. सुगुणकीर्ति), राज्यकाल- राजा रामसिङ्घ, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.ले.श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्टं, (२५४१०.५, ६-१६४३७-४०). पे. १. पे. नाम. कल्पसूत्र सह टबार्थ व व्याख्यान+कथा, पृ. १-१४२अ कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदिः णमो अरिहन्ताणं पढमं; अंतिः उवदंसेइ त्ति बेमि. कल्पसूत्र-टबार्थ', मागु., गद्य, आदिः (१) अरिहन्तनइ माहरो (२) तेणइ कालि जे; अंतिः अणपूछ्यौ अर्थ कह्यौ. कल्पसूत्र-व्याख्यान+कथा, मागु., गद्य, आदिः नमः श्रीवर्द्धमानाय; अंतिः#., पे.वि. मूल-अध्याय-९-व्याख्यान, ग्रं.१२१६. पे. २. पट्टावली खरतरगच्छीय, मागु., गद्य, (पृ. १४२अ-१४३अ), आदिः श्रीमहावीर बहुतरी; अंतिः कल्याण प्रवर्तो., पे.वि. ६१वें पाट तक. ३५०१. कल्पसूत्र सह टबार्थ, पूर्ण, वि. १७०५, श्रेष्ठ, पृ. १०९-४(३,४७ से ४८,६८)+१(१०९)=१०६, जैदेना., प्र.वि. संशोधित, पदच्छेद सूचक लकीरें, (२५.५४१०.५, ६४३१-३६). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: णमो अरिहन्ताणं० पढमं; अंतिः उवदंसेइ त्ति बेमि. कल्पसूत्र-टबार्थ , मागु., गद्य, आदिः (१) तेणइ कालि जे (२) नमो क० माहरो नमस्कार; अंतिः आपणी मुक्ति प्रकासइ. ३५०२. कल्पसूत्र सह टीका व टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ११५, जैदेना., प्र.वि. प्र.पु. टीका व टबार्थ ग्रं. ४०२५., (२५.५४११, ६-७४३८-४४). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदिः णमो अरिहन्ताणं पढमं; अंतिः उवदंसेइ त्ति बेमि. कल्पसूत्र-टीका*, सं., गद्य, आदिः कल्याणानि समुल्ल; अंतिः श्रीसङ्घभट्टारकः. कल्पसूत्र-टबार्थ', मागु., गद्य, आदिः (१) तेणइ कालि जे (२) नमो क० माहरो नमस्कार; अंतिः भद्रबाहुस्वामीए. ३५०३." कल्पसूत्र सह कल्पलता टीका व टबार्थ, पूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १५९-१(१३९)=१५८, जैदेना., प्र.वि. संशोधित, टिप्पण युक्त विशेष पाठ-कुछ पत्र, पू.वि. व्याख्यान-९ की टीका व टबार्थ नहीं है., दशा वि. विवर्ण-पानी से अक्षरों की स्याही फैल गयी है-अल्प, (२५४१०.५, ६-१३४४२-४५). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, (संपूर्ण), आदि: णमो अरिहन्ताणं० पढमं; अंतिः उवदंसेइ त्ति बेमि. कल्पसूत्र-कल्पलता टीका , उपा. समयसुन्दर गणि, सं., गद्य, वि. १६८५, (अपूर्ण), आदिः प्रणम्य परमं ज्योतिः; अंति: कल्पसूत्र-टबार्थ , मागु., गद्य, (अपूर्ण), आदिः (१) अरिहन्तनइ माहरो (२) ते कालनइ विषइ चतुर्थ; अंतिः३५०४. सारस्वतव्याकरण की दीपिका टीका, संपूर्ण, वि. १६६४, श्रेष्ठ, पृ. १४५+३(१०,८७ से ८८)=१४८, जैदेना., ले.स्थल. पत्तन, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, संशोधित, प्र.ले.श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्टं; (५५६) भग्नपृष्टि कटी ग्रीवा, (२५४११, १५४४५-४८). सारस्वत व्याकरण-दीपिका टीका, आ. चन्द्रकीर्तिसूरि, सं., गद्य, वि. १६६४, आदिः (१) नमोस्तु सर्वकल्याण (२) प्रणम्येत्यादि; अंतिः (१)वभूव सुमनोहरम् (२)बुधैश्चिरम्. ३५०५. बारसासूत्र, संपूर्ण, वि. १८८७, श्रेष्ठ, पृ. ६९, जैदेना., ले.स्थल. षैद्रपुर-वैद्रप, ले. मु. अखयराज(अञ्चलगच्छ), पठ. मु. अमृतराज(अञ्चलगच्छ), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. ९-व्याख्यान, दशा वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है-अल्प-कुछ पत्र, (२६४११, ११४२४-२८). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदिः णमो अरिहन्ताणं० पढमं; अंतिः अत्थगई वीगई. For Private And Personal Use Only Page #431 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org: कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ३७७ ३५०६. कल्पसूत्र सह कल्पदुर्गपद विवृत्ति, पूर्ण, वि. १८वी श्रेष्ठ, पृ. ६७-३ (६१ से ६३ ) = ६४, जैदेना. प्र. वि. मूल - ९ - व्याख्यान., पंचपाठ, ( २६.५x१०.५, ५-१२४३८-४२). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदिः णमो अरिहन्ताणं० पढमं; अंति: उवदंसेइ त्ति बेमि कल्पसूत्र-सन्देहविषौषधि टीका, आ. जिनप्रभसूरि, सं., गद्य, वि. १३६४, आदि: (१) ते इति प्राकृतशैली (२) ध्यात्वा श्री श्रुत: अंतिः कल्पः समाप्त इति . " ३५०७.” कल्पसूत्र सह टबार्थ, पूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १४६ - ६ (१ से ३, ५, ११ से १२ ) = १४०, जैदेना., प्र. वि. प्र. पु. मूल-सूत्र४६४. आंशिक व्याख्यान भी है., संशोधित, पदच्छेद सूचक लकीरें टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२९×११.५, ५×३६-३८). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि णमो अरिहन्ताणं० पढमं अंतिः उवदंसेइ त्ति बेमि ; कल्पसूत्र- टवार्थ मागु, गद्य, आदि (१) अरिहन्तनइ माहरो (२) तेणइ कालि जे अंतिः भलइ गुरूक्त जणाविउ, ३५०८. सत्तरभेदी पूजा रास, संपूर्ण, वि. १८९०, श्रेष्ठ, पृ. १२९, जैदेना., ले. मु. लक्ष्मीचन्द्र (गुरु पं. तलसीरत्न गणि, वन्दणीकगच्छ), प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र. वि. ढाल - ९५, ग्रं. ७२२५ प्र. पु. मूल- सर्वगा. ४३७१, (२८x१२, १४४५२). १७ भेदी पूजा रास, मु. ज्ञानसागर, मागु., पद्य, वि. १७९७, आदिः सुख सम्पति दायक सदा; अंतिः जिम पोचे मन आस रे. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३५०९. भगवतीसूत्र, संपूर्ण, वि. १४८६, श्रेष्ठ, पृ. २३२, जैदेना, प्र. वि. ग्रं. १५७५२ ४१शतक, संशोधित, (२७.५x१०.५. १७४६६). भगवतीसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि नमो अरहन्ताणं: अंतिः अविग्धं लिहन्तस्स. ३५१०. सम्यक्त्वकौमुदी व जैनधार्मिक श्लोक सङ्ग्रह, संपूर्ण वि. १८२७, श्रेष्ठ, पृ. ३५, पे. २ जैदेना. ले. स्थल कर्णपुरनगर, ले. पं. रूपविजय, प्र.ले. श्लो. (५३३) मङ्गलं लेखकानां च (१०६) लिखणहार अतिचतुर, (२५x१०.५, १५X३९-४३). पे. १. सम्यक्त्वकौमुदी कथानक, सं., गद्य, (पृ. १-३५), आदि श्रीवर्द्धमानमानम्य अति विपर्ययादिष्यते बन्ध, पे.वि. प्र.पु. ग्रं. १३३५. पे. २. श्लोक सङ्ग्रह जैनधार्मिक सं.प्रा. पद्य (पृ. ३४आ-३५अ) आदि # अंतिः #, पे.वि. जिनसमोसरण द्वादश पर्षदा आदि छूटक श्लोक है. ३५११. सोमशतक प्रकरण सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८५०, श्रेष्ठ, पृ. २५, जैदेना ले. स्थल, राज्ञीपुर, ले. मु. भोपतिसागर, प्र. वि. मूल - श्लो. १००., संशोधित, ( २६११.५, ५x२६-२९). सिन्दूरप्रकर, आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य, आदि: सिंदूरप्रकरस्तपः; अंतिः शमेति नाशम् . सिन्दूरप्रकर- टवार्थ, मागु, गद्य, आदि सिन्दूरनउ समूह अंतिः अनिशं सदा नाश पमाढइ. ३५१२. नवतत्त्व प्रकरण सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८२४, श्रेष्ठ, पृ. २८, जैदेना., ले. स्थल. नाडोलनगर, ले. मु. सौजन्यसागर ( गुरु गण हेतुसागर), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. मूल-गा. ९४ पद्मप्रभु प्रसादात्. (२५.५४११.५ १-३२७-३७). नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदिः जीवाजीवापुन्नं; अंतिः अणागयद्धा अणन्तगुणा. नवतत्त्व प्रकरण-टबार्थ*, मागु., गद्य, आदिः (१) श्रीवीरजिनं नत्वा (२) चेतना सहित ते जीव; अंतिः (१) दोयनी उदीरणा छे (२) अनन्तगुणो इति भावः .. 1 (+) ३५१३. नवतत्त्व प्रकरण सह बालावबोध (सार्थ), संपूर्ण वि. १८वी श्रेष्ठ, पृ. २०, जैदेना, पठ श्राविका सुन्दरबाई, प्र. वि. मूल-गा.४२, संशोधित (२५४११, १३४३४-३६). नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंतिः अणागयद्धा अणन्तगुणा... नवतत्त्व प्रकरण-बालावबोध *, मागु., गद्य, आदिः जीवतत्त्व अजीवतत्त्व; अंतिः नीसन्देह माणवु. For Private And Personal Use Only Page #432 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य भाग (+) ३७८ ३५१४. कल्पसूत्र का बालावबोध व्याख्यान १-५ प्रतिपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ७०, जैदेना. प्र. वि. संशोधित, ( २५x१०. ५. १ - " १३४४०-४६). कल्पसूत्र - बालावबोध" मागु, राज, गद्य, आदि: वन्दामि महबाहु अति: (+) ३५१६. कल्पसूत्र, अपूर्ण, वि. १६वी, मध्यम, पृ. ५६-६ (१ से ६) = ५०, जैदेना., प्र. वि. ९ - व्याख्यान, ग्रं. १२१६, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, संशोधित, पदच्छेद सूचक लकीरें, ( २६.५x११.५, ११४३६-४०). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि:-; अंति: उवदंसेइ त्ति बेमि. ३५१७. कल्पसूत्र सह टबार्थ व व्याख्यान+कथा, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २७, जैदेना., पू. वि. प्रारंभ के पत्र हैं. के महावीर जन्माधिकार तक है. (२५x११ ८४३३-३६). www.kobatirth.org: कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा. गद्य, आदि: णमो अरिहन्ताणं० पढमं अंति: .. कल्पसूत्र- टवार्थ मागु, गद्य, आदि (१) अरिहन्तन माहरो (२) तेणइ कालि जे अंति: कल्पसूत्र - व्याख्यान + कथा*, मागु., गद्य, आदि:-; अंति: ३५१९. चौवीसदण्डक २९द्वार विचार, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २३, जैदेना., प्र. वि. प्र. पु. ग्रं. ४००., ( २६.५x१२, १०२७ (३०). " २४ दण्डक २९ बोल, मागु., गद्य, आदि: प्रथम नामद्वार बीजु; अंतिः अनंत गुणे अधिक जाणवा. ३५२०. नन्दीसूत्र सह बालावबोध व अनुज्ञानन्दीसूत्र, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ५३, पे. २, जैदेना., प्र. वि. त्रिपाठ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (२६.५०१२. १-१३४३८-४१). पे. १. पे. नाम. नन्दीसूत्र सह बालावबोध, पृ. १-५०अ नन्दीसूत्र, आ. देववाचक, प्रा., प+ग, आदि: जयइ जगजीवजोणीवियाणओ; अंतिः से तं परोक्खणाणं. नन्दी सूत्र - बालावबोध* मागु., गद्य, आदिः (१) अथ नन्दि इति कः (२) जय० इन्द्रियविषय; अंतिः ए परोक्ष श्रुतज्ञान. पे. २. लघुनन्दीसूत्र अनुज्ञानन्दीसूत्र, आ. देववाचक, प्रा., गद्य (पृ. ५०२-५३अ), आदि से किं तं अणुण्णा अंति वीसमण्णा णामाई.. (+) ३५२१. कल्पसूत्र का अन्तर्वाच्य, संपूर्ण, वि. १६६४, श्रेष्ठ, पृ. २७, जैदेना., ले. स्थल. विक्रमपुर, ले. मु. महेश ( उपकेशगच्छ), राज्यकाल- राजा रायसिङ्घ, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. संशोधित, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२८x१२, १७५२). कल्पसूत्र- अन्तर्वाच्य*, सं., गद्य, आदि: माणुम्माणप्रमाणन्ति; अंतिः क्षामितव्यम्. , ३५२२. कल्पसूत्र, त्रुटक, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ९० - ५५ (१,३,६,८,१० से ११,१४,२० से २३, २५, २७, ३२ से ४२, ४४ से ७३,७९)- ३५, जैदेना. पु.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., (३०x११.५, ९४२८). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि:- ; अंतिः ' 1 ३५२३. नवतत्त्व प्रकरण, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना., प्र. वि. गा.६१, ( २६.५x१२, ११x२७-३०). नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि जीवाजीवा पुण्णं पावा अंतिः अनन्तभागो य सिद्धिगओ. व्याख्यान- ५ अपूर्ण. श्लो. १५६९ तक लिखा है., ( २६.५x१२, ११x४०). सूक्तावली, प्रा., पद्य, आदिः वरअग्गिमि पवेसो वरं; अंति: (+) ३५२४. सुक्तावली, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १९ जैदेना. प्र. वि. संशोधित, पदच्छेद सूचक लकीरें, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा " ३५२५. नवतत्त्व प्रकरण सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९५३, श्रेष्ठ, पृ. १६, जैदेना., ले. स्थल. नागोर, ले. गोपीनाथ, प्र.वि. मूलगा.५३; प्र.पु. ग्रं. २८६ - ७अक्षर., ( २६.५x१२, ३x२३-२९). नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि जीवाजीवा पुण्णं पावा अंतिः अणागयद्धा अणन्तगुणा. नवतत्त्व प्रकरण- टबार्थ मागु, गद्य, आदि जीवतत्त्व अजीवतत्त्व अंतिः परावर्त जास्यइं. For Private And Personal Use Only Page #433 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra (+) ३७९ .. ३५२६. वर्द्धमानजिननाम स्तोत्र, संपूर्ण वि. १९२२ श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदेना. (२६.५४१२, ८४३१-३३). शक्रस्तव, आ. सिद्धसेनदिवाकर, सं., प+ग, आदिः ॐ नमोर्हते परमात्म; अंतिः लिलेखे सम्पदां पदम्. ३५२७.” ज्ञानसार सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ४४, जैदेना., प्र. वि. मूल- ३२अष्टक., टिप्पण युक्त विशेष पाठ, संशोधित, ( २६.५x१२, ३३८-४२). www.kobatirth.org: ज्ञानसार, उपा. यशोविजयजी गणि, सं., पद्य, आदिः ऐन्द्रश्रीसुखमग्नेन; अंतिः स्वीयं कृतं मङ्गलम्. ज्ञानसार-स्वोपज्ञ टबार्थ, उपा. यशोविजयजी गणि, मागु., गद्य, आदि: (१) ऐन्द्रवृन्दनतं नत्वा (२) ऐन्द्र क० इन्द्र; अंति: (१) पोतानुं ज मङ्गल कीधु ( २ ) श्रीयशोविजय वाचकैरयं. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३५२९. बोल सङ्ग्रह, संपूर्ण, वि. १९०५, श्रेष्ठ, पृ. १५, जैदेना., ले. स्थल आग्रा, (२७x१२.५, २०-२२X३७-४०). बोल सङ्ग्रह *, मागु., प्रा., सं., गद्य, आदि: #; अंति:#. कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ३५३०. ऋषिमण्डल पूजन विधि, संपूर्ण वि. २१वी श्रेष्ठ, पृ. ७८, देना. गुजराती, प्र. वि. अत्याधुनिक प्रत (२६४१२, ११४३३ . " (४४), ऋषिमण्डल पूजन विधि, संबद्ध, सं., गुज., पद्य, आदिः यन्त्राच्छादन यन्त्र; अंतिः अने खमासमण देवु. ३५३१. महादेवद्वात्रिंशिका सह टवार्थ, संपूर्ण वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ९, जैवेना. ले. गणि जीतविमल (गुरु पं. जीवविमल ), प्र. वि. मूल- श्लो. ३३., ( २६x१२.५, ३x२३-२४). महादेव स्तोत्र, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, आदिः प्रशान्तं दर्शनं; अंतिः जिनो वा नमस्तस्मै.. महादेव स्तोत्र-टबार्थ *, मागु., गद्य, आदिः प्रशान्त क० अत्यन्त; अंतिः तस्मै क० तेहनइ काजि . ३५३२. दशअछेरां कथा, संपूर्ण वि. १९१५, श्रेष्ठ, पृ. १७, जैदेना. (२७.५x१२.५, ११४३५-३७). कल्पसूत्र -दशअच्छेरा कथा संबद्ध, मागु, गद्य, आदि ते मध्ये हवे प्रथम अंतिः महावीरने वारे जाणवु. ३५३३. यशोधरनरेन्द्र चरित्र, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४९, जैदेना., ले. स्थल. जैसलाद्रौपुर, ( २६.५X१२.५, १३४४१-४४). यशोधर चरित्र वाचक क्षमाकल्याण, सं., गद्य वि. १८३९, आदिः सकलसुरनरेन्द्रश्रेणि अंतिः सकलोपि तेन जनः · " (+) ३५३४. समवायाङ्गसूत्र, संपूर्ण, वि. १५९२, श्रेष्ठ, पृ. ६२, जैदेना., ले. स्थल. सीणोरानगर, ले. कृष्णा जोसी, पठ. श्रा. राजपाल नाथा सङ्घवी, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. १०३ अध्ययन प्र. पु. मूल ग्रं. १८६७, ( २६.५X१२, ११x४०-४२). समवायाङ्गसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी प्रा. गद्य, आदिः सुयं मे० इह खलु अंतिः अज्झयणन्ति तिबेमि (+) ३५३५. श्रीपाल रास, संपूर्ण, वि. १९६०, श्रेष्ठ, पृ. ५१, जैदेना., ले. रामकृष्णदास ( गुरु ललितेश साधु), लिखवा. मु. भूपतिसागर, प्र. वि. खण्ड-४, ढाळ ४१, ( २६.५x१२.५, १२ - १३४४४). श्रीपाल रास उपा. विनयविजय उपा. यशोविजयजी गणि, मागु, पद्य वि. १७३८ आदिः कल्पवेल कवियण तणी: अंति: लहसे ज्ञान विशालाजी. ३५३६.” सीमन्धरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १७३६, श्रेष्ठ, पृ. ८, जैदेना., प्र. वि. गा. १०६, ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित, प्र.ले. श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्टं, ( २४४११, ११४३१). सीमन्धरजिन स्तवन, मु. सिद्धिविजय, मागु., पद्य, वि. १७१३, आदि: अनन्त चोवीसी; अंतिः भविक जन मङ्गल करो. ३५३७. वीसस्थानक पूजा, संपूर्ण वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १३. जैदेना, ( २४.५४१२, ११४२८). " २० स्थानक पूजा, आ. लक्ष्मीसूरि मागु पद्य वि. १८४५ आदिः श्रीशङ्खश्वर पासजी अंतिः सयल सङ्घ मङ्गल ; करो. For Private And Personal Use Only ३५३८. दशवैकालिकसूत्र सह टवार्थ, संपूर्ण, वि. १८३०, मध्यम, पृ. ३२, जैदेना ले. ऋ. लछीराम जती ( खरतरगच्छ ), प्र. वि. " मूल- अध्याय - १० अध्ययन. प्र. पु. मूल+टबार्थ- ग्रं. २८००, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२७.५x११.५, ८x४६-५०). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यम्भवसूरि, प्रा., पद्य, वि. पू. ४, आदिः धम्मो मङ्गलमुक्किट्ठ; अंतिः गइं त्ति बेमि दशवैकालिकसूत्र- टबार्थ *, मागु., गद्य, आदिः ध० जीवनइ दुर्गति; अंतिः गतिनइ विषइ जाय. Page #434 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य भाग - १ ३८० ३५३९. कल्पसूत्र सह टबार्थ व व्याख्यान+कथा - व्याख्यान २,६,७, प्रतिपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ७३, जैदेना.,प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, पदच्छेद सूचक लकीरें-कुछ पत्र, (२५.५४१०.५, ६-१५४३८-५२). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदिः-; अंति:कल्पसूत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, आदि:-: अंति: कल्पसूत्र-व्याख्यान+कथा* , मागु., गद्य, आदि:-; अंति:३५४०. कल्पसूत्र, संपूर्ण, वि. १८८२, श्रेष्ठ, पृ. ७२, जैदेना., प्र.वि. ९-व्याख्यान, (२४.५४११, १०x२९-३२). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदिः णमो अरिहन्ताणं० पढमं; अंतिः उवदंसेइ त्ति बेमि. ३५४१.” कल्पसूत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३२, जैदेना., ले.स्थल. डभोडा, ले. मु. हितविजय (गुरु पं. लालविजय), गच्छा. आ. विजयप्रभसूरि, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. ९-व्याख्यान, दशा वि. विवर्ण-पानी से अक्षरों की स्याही फैल गयी है, (२४४१२, १५-१७४३८). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदिः तेणं कालेणं० समणे; अंतिः उवदंसेइ त्ति बेमि. ३५४२. जिनबिम्बप्रतिष्ठा विधि, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १५, जैदेना., पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., (२४x१२, १५-१८४३९ ४१). जिनबिम्बप्रतिष्ठा विधि, आ. रत्नशेखरसूरि, सं.,मागु., गद्य, आदिः श्रीपार्श्वेशो; अंति:३५४६." वीसस्थानकतप विधि, संपूर्ण, वि. १८७२, श्रेष्ठ, पृ. ५७, जैदेना., ले.स्थल. मगसुदाबाद(अजीमग, ले. पं. चक्रपाण, प्र.वि. संशोधित, (२५४१२, १३४२९-३१). २० स्थानकतप विधि, मु. ज्ञानसागर-शिष्य, प्राहिं., प+ग, आदिः श्रीमदहन्तमानम्य; अंतिः सुख अनन्तसुख अनुभवै. ३५४७." जम्बूअध्ययन सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४४, जैदेना., प्र.वि. मूल-२१उद्देश., (२५४१२, ७४३८-४२). जम्बूअध्ययन प्रकीर्णक, प्रा., गद्य, आदिः तेणं कालेणं० रायगिहे; अंतिः से आराहगा भणिया. जम्बूअध्ययन प्रकीर्णक-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः ते कालने विषई ते; अंतिः आराधक जीव कह्यां. ३५४८. स्थुलीभद्र नवरसो, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, पे. २, जैदेना., पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., (२६४११.५, १२ १४४४४-४८). पे. १. स्थूलिभद्र नवरसो, वाचक उदयरत्न, मागु., पद्य, वि. १७५९, (पृ. १-६अ, संपूर्ण), आदिः मोनै मारा बापना सुंस; अंतिः मनोरथ वेगे फल्या रे., पे.वि. ढाळ-९. पे. २. पे. नाम. स्थूलिभद्र नवरसो के दोहे, पृ. ६अ-६आ, अपूर्ण स्थूलिभद्र नवरसो, वाचक उदयरत्न, मागु., पद्य, वि. १७५९, आदिः सुखसंपति दायक सदा; अंतिः-, पे.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. ढाल-१ गा.८ तक है. ३५४९. वछराजहंसराज चौपाई, संपूर्ण, वि. १९०५, श्रेष्ठ, पृ. २४+१(१)=२५, जैदेना., ले.स्थल. वडोद, ले. ऋ. रायचन्द (गुरु आ. रतनसी), प्र.ले.पु. विस्तृत,प्र.वि. खण्ड-४ ढाळ-४४, (२४.५४११, १८-१९४४१). हंसराजवत्सराज चौपाई, आ. जिनोदयसूरि, मागु., पद्य, वि. १६८०, आदिः आदिसर आदे; अंतिः हंस अनै वच्छराज. ३५५०. उपासकदशाङ्गसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, जैदेना., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें, पू.वि. प्रारंभ के पत्र हैं., (२५.५४११.५, ४४३३). उपासकदशाङ्गसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदिः तेणं० चंपा नाम नयरी; अंति:उपासकदशाङ्गसूत्र-टबार्थ, मु. हर्षवल्लभ, मागु., गद्य, वि. १६९३, आदिः (१) प्रणम्य श्रीमहावीरं (२) ते० तेणे का० काले; अंतिः३५५१. सुक्तमाला, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १७, जैदेना., प्र.वि. अध्याय-४वर्ग., (२६.५४१२, १०४३३-३५). सूक्तमाला, मु. केशरविमल, सं.,मागु., पद्य, वि. १७५४, आदिः सकलसुकृत्यवल्लीवृन्द; अंतिः केसरविमलेन विबुधेन. For Private And Personal Use Only Page #435 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ३८१ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ३५५२. शीलोपदेशमाला सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १६वी, श्रेष्ठ, पृ. १४१-९१(१ से ९१)=५०, जैदेना.,प्र.वि. मूल-गा.११५. प्र.पु. बालावबोध ग्रं. ६२५०., ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित-टबार्थादि, पू.वि. प्रारंभ से महासती ऋषिदत्ताकथा-२९ के प्रारंभिक कुछ भाग तक नहीं है., (२५.५४११, १७४५८-५९). शीलोपदेशमाला, आ. जयकीर्तिसूरि, प्रा., पद्य, आदि:-; अंतिः आराहिय लहह बोहिसुहं. शीलोपदेशमाला-बालावबोध कथा, गणि मेरुसुन्दर, मागु., गद्य, वि. १५५१, आदिः-; अंतिः (१)सकल सुखनइ भाजनइ हुई (२)बालावबोधमरीरचत्. ३५५३. दशवैकालिकसूत्र, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २३, जैदेना., प्र.वि. अध्याय-अध्ययन१०, (२६४११, १३-१४४३१-३४). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यम्भवसूरि, प्रा., पद्य, वि. पू.४, आदिः धम्मो मङ्गलमुक्किट्ठ; अंतिः गई त्ति बेमि. ३५५५. वकचूल रास, दशार्णभद्र रास व श्लोक सङ्ग्रह, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, पे. ३, जैदेना., पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. , (२५४१०.५, ११-१२४३३-३६). पे. १. वंकचूल रास, मागु., पद्य, (पृ. १अ-७अ, संपूर्ण), आदिः आदि जिनवर आदि जिनवर; अंति: संघनी पूरइ आस., पे.वि. गा.९४. पे. २. दशार्णभद्रराजा रास, आ. हीरानन्दसूरि, मागु., पद्य, (पृ. ७अ-९आ, संपूर्ण), आदिः वीर जिणेसर पय नमीए; अंतिः जिणवर वान्दता ए., पे.वि. गा.३१. पे. ३. श्लोक सङ्ग्रह जैनधार्मिक , सं.,प्रा., पद्य, (पृ. ९आ-, अपूर्ण), आदि:-; अंतिः-, पे.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. ३५५६. दीवाली कल्प व वसुधारा स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, प्र. ९, पे. २, जैदेना., ले.स्थल. धेणोज, ले. पं. इन्द्रविजय, (२५.५४१०.५, १६४४५-४६). पे. १. दीपावलीपर्व कल्प, मागु., गद्य, (पृ. १अ-७अ), आदिः स्वस्ति श्रीसुदातारं; अंति: माला प्रवर्त्तस्यें. पे. २. वसुधारा, सं., गद्य, (पृ. ७अ-९आ), आदिः संसारद्वयदैन्यस्य; अंतिः भाषितमभ्यनन्दन्निति. ३५५८. जिनबिम्बप्रतिष्ठा विधि, संपूर्ण, वि. १८१४, श्रेष्ठ, पृ. २६, जैदेना., ले.स्थल. उदयपुर, गच्छा. आ. विजयधर्मसूरि, प्र.वि. प्र.वर्ष-वेदेन्दुसिद्धिश्चन्द्रे., (२५४१०.५, ११४३०-३३). जिनबिम्बप्रतिष्ठा विधि, आ. रत्नशेखरसूरि, सं.,मागु., गद्य, आदिः श्रीपार्श्वेशो; अंतिः ह्रीं क्ष्मीं स्वाहा. ३५५९. चतुःशरण प्रकीर्णक, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, जैदेना., प्र.वि. गा.६३, संशोधित, (२५४१०.५, ७२४-२९). चतुःशरण प्रकीर्णक, गणि वीरभद्र, प्रा., पद्य, आदिः सावज्ज जोग विरई; अंतिः कारणं निव्वुइ सुहाणं. ३५६१. नवतत्त्व, जीवविचार व दण्डक प्रकरण, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, पे. ३, जैदेना., ले.स्थल. पीपलीनगर, ले. पं. रूपसागर, (२६४११, १३-१४४३७-४२). पे. १. नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, (पृ. १-३अ), आदि: जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंतिः अणन्तभागो य सिद्धिगओ., पे.वि. गा.५४. पे. २. जीवविचार प्रकरण, आ. शान्तिसूरि, प्रा., पद्य, (पृ. ३अ-५अ), आदिः भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंतिः रुद्दाओ सुयसमुद्दाओ., पे.वि. गा.५१. पे. ३. दण्डक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, (पृ. ५अ-६), आदिः नमिउं चउवीस; अंतिः एसा विनत्ति अप्पहिआ., पे.वि. गा.४१. ३५६२. पाक्षिकसूत्र व खामणा, अपूर्ण, वि. १८४५, श्रेष्ठ, पृ. ११, पे. २, जैदेना., ले.स्थल. आगेवा, ले. मु. भोपतिसागर, प्र.वि. ___ संशोधित, पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है., (२६४११, १४४३०-३२). पे. १.पे. नाम. पाक्षिकसूत्र, पृ. ०१अ-११आ, संपूर्ण पाक्षिकसूत्र, प्रा., प+ग, आदिः तित्थङ्करे य तित्थे; अंतिः जेसिं सुयसायरे भत्ति. पे. २. पे. नाम. क्षामणासूत्र, पृ. ११आ-११आ, अपूर्ण For Private And Personal Use Only Page #436 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य भाग - १ ३८२ क्षामणकसूत्र, प्रा., गद्य, आदिः इच्छामि खमासमणो; अंतिः-, पे.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. ३५६३.” पद्मनी चरित्र, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १२-२(३,६)=१०, जैदेना., पू.वि. बीच व अन्त के पत्र नहीं हैं., दशा वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है-अल्प, (२४४११, १४-१५४३७-४०). गोराबादल रास, गणि लब्धिउदय, मागु., पद्य, वि. १७०७, आदिः श्रीआदिसर प्रथम; अंतिः३५६४." पर्यन्ताराधना सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७८४, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदेना., ले.स्थल. शांतलपुर, ले. पं. रत्नविजय, प्र.वि. मूल-गा.७०., टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२५४११, ६x४२). पर्यन्ताराधना , आ. सोमसूरि, प्रा., पद्य, आदिः नमिउण भणइ; अंतिः ते सासयं सुक्खं. पर्यन्ताराधना-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः श्रीवीतराग भणी; अंतिः सुख मोक्षसुखने पामे. ३५६६. क्षेत्रसमास, संपूर्ण, वि. १८४३, श्रेष्ठ, पृ. १५, जैदेना., ले.स्थल. बीलाडानगर, ले. भूधर, पठ. पं. उदयधीर, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. गा.२६३, (२५.५४११, १३४३१). लघुक्षेत्रसमास प्रकरण, आ. रत्नशेखरसूरि , प्रा., पद्य, वि. १५वी, आदि: वीरं जयसेहरपय; अंतिः कुसलरङ्गमई पसिद्धिं. ३५६७.” कर्पूरप्रकरण सह टिप्पणक व सुभाषित श्लोक, संपूर्ण, वि. १७८७, श्रेष्ठ, पृ. १२, पे. २, जैदेना., ले. मु. जयहेम, प्र.वि. पंचपाठ, प्र.ले.श्लो. (२७५) पुस्तक लिखन परिश्रम, (२५.५४१०.५, १५४४०-४१). पे. १.पे. नाम. कर्पूरप्रकर सह टिप्पणक, पृ. १-१२आ कर्पूरप्रकर, मु. हरिसेन, सं., पद्य, आदिः कर्पूरप्रकरः शमामृत; अंति: नेमिचरित्रका . कर्पूरप्रकर-टिप्पणक, सं.,मागु., गद्य, आदिः वः युष्माकं जिनेशपेश; अंतिः गुण छइ जेह तणा., पे.वि. मूल श्लो.१७९; प्र.पु. मूल-ग्रं.३६५. पे. २. श्लोक सङ्ग्रह', सं.,प्रा.,मागु.,हिन्दी, पद्य, (पृ. १२आ), आदिः#; अंतिः#., पे.वि. मूल परिमाण-श्लो.१. ३५६८.” श्रीपाल चरित्र, जिनलिङ्गी व जिनगणधरपाठ, पूर्ण, वि. १५७८, श्रेष्ठ, पृ. १४-१(११)=१३, पे. २, जैदेना., प्र.वि. ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित, (२६४१०.५, १५-१६४५२-५३). पे. १. श्रीपालनरेन्द्र चरित्र, मु. चारित्रविजय, सं., पद्य, वि. १५७२, (पृ. १-१४, पूर्ण), आदिः नमन्नाकिसमूहमौलि; अंतिः नन्द्यादानन्ददायिनी., पे.वि. श्लो.५७४ बीच का एक पत्र नहीं है. श्लोकांक-४१६ से ४५७ नहीं है. पे. २. पे. नाम. भगवतीसूत्रोद्धृत जिनलिङ्गीसाधु आदि पाठ, पृ. १अ, संपूर्ण भगवतीसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदिः समणो वासगस्सणं; अंति: गाहावइ कुलं. ३५७०.५" विपाकसूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३१, जैदेना.,प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. श्रुतस्कन्ध-१ अध्ययन-८ तक पूरा तथा अध्ययन-९ आंशिक मात्र है., दशा वि. बटकने योग्य, खंडित भाग पर कागज चिपकाए हुए हैं-कुछ पत्र, विवर्ण-पानी से अक्षरों की स्याही फैल गयी है-आरम्भ के कुछ पत्र, (२५.५४११.५, १३४३९-४४). विपाकसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदिः तेणं कालेणं तेणं; अंति:३५७१. जीवविचार सह टबार्थ व यन्त्रसङ्ग्रह, संपूर्ण, वि. १७६९, मध्यम, पृ. ६, पे. २, जैदेना., ले.स्थल. वेरावल, ले. ऋ. रामजी (गुरु ऋ. वरसङ्घजी), (२६४११, ६४३५-३९). पे. १. पे. नाम. जीवविचार प्रकरण सह टबार्थ, पृ. १आ-६ जीवविचार प्रकरण, आ. शान्तिसूरि, प्रा., पद्य, आदिः भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंतिः रुद्दाओ सुयसमुद्दाओ. जीवविचार प्रकरण-टबार्थ , मागु., गद्य, आदिः भुवन क० त्रिभुवन; अंतिः अवगाहनाथी पामता., पे.वि. मूल गा.५१. पे. २. पे. नाम. चोसठियो यन्त्र, पृ. १अ For Private And Personal Use Only Page #437 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ३८३ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची यन्त्र सङ्ग्रह, सं.,अंग्रेजी,मागु., कोष्टक, आदिः#; अंतिः#. ३५७२. नवतत्त्व सह टबार्थ, सिद्ध के भेद व जीवों के आयुष्य, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ११, पे. ४, जैदेना., प्र.वि. त्रिपाठ, (२६४१०.५, १-३४३८-४४). पे. १.पे. नाम. नवतत्त्व प्रकरण सह बालावबोध, पृ. १-११ नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंतिः अणागयद्धा अणन्तगुणा. नवतत्त्व प्रकरण-बालावबोध', राज., गद्य, आदिः जीवाजीवा० जीवतत्त्व; अंतिः सुख पामीसी सुखी थासइ., पे.वि. मूल-गा.४१. पे. २. सिद्ध के १५भेद, प्रा., गद्य, (पृ. १अ), आदिः तित्थ सिद्धा १; अंतिः एगसिद्धा अणेगसिद्धा. पे. ३. पर्याप्तिविचार गाथा, प्रा., पद्य, (पृ. ११अ-११आ), आदिः आहार शरीर इन्दिय; अंतिः अणन्त सो सव्वजोणीसु., पे.वि. परिमाण श्लो.३. पे. ४. आयुष्य विचार*, मागु., गद्य, (पृ. ११आ), आदिः मनुष्य वर्ष १२० हाथी; अंतिः माछला काचबा वर्ष १००. ३५७४. आदित्यवार कथा, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १०, जैदेना., प्र.वि. गा.१५०, (२६४११.५, ११४३६-३८). आदित्यवार कथा, मागु., पद्य, आदिः रिसहनाह प्रणमउ; अंतिः नामै सुख नित्यमेव. ३५७५. पर्यन्ताराधना, क्षमापना श्लोक सह टबार्थ व भवचरिमपच्चक्खाण, संपूर्ण, वि. १८२७, श्रेष्ठ, पृ. ६, पे. ३, जैदेना., ले. पं. रत्नविजय, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२६.५४११.५, ७४३६-३८). पे. १. पे. नाम. आराधनासूत्र सह टबार्थ, पृ. १-६ पर्यन्ताराधना, आ. सोमसूरि, प्रा., पद्य, आदिः नमिउण भणइ; अंतिः ते सासयं सुक्खं. पर्यन्ताराधना-टबार्थ', मागु., गद्य, आदि: नमस्कार करिने; अंतिः शाश्वता सुख प्रते., पे.वि. मूल-गा.७०. पे. २. पे. नाम. क्षमापना श्लोक सह टबार्थ, पृ. ६आ क्षमापना श्लोक, प्रा., पद्य, आदिः संसारम्मि अणन्ते; अंतिः ते अणुमो अणेसुकयं. क्षमापना श्लोक-टबार्थ', मागु., गद्य, आदिः संसारमा भव अनन्ताइं; अंतिः अनुमोदना हो मुझने., पे.वि. मूल-गा.२. पे. ३. भवचरिम पच्चक्खाण, प्रा., गद्य, (पृ. ६आ), आदिः भवचरिमं पच्चखामि; अंतिः अप्पसक्खियं., पे.वि. गा.३. ३५७६. बृहत्कल्पसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९६४, श्रेष्ठ, पृ. ३१, जैदेना., ले. लक्ष्मीचन्द, प्र.वि. मूल-अध्याय-६; प्र.पु. मूल ग्रं. ३००., प्र.ले.श्लो. (३८) कर कूवड मस्तक अधो, (२६.५४११.५, ६x४०-४४). बृहत्कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: नो कप्पइ निग्गंथाण; अंतिः कप्पट्ठिई तिबेमि. बृहत्कल्पसूत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः हिवे इहां बृहत्; अंतिः तुझ प्रते कहुं छउ. ३५७७. कल्पसूत्र सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. १६७१, मध्यम, पृ. ३५, जैदेना., प्र.वि. मूल-९-व्याख्यान, ग्रं. १२१६., पंचपाठ, (२६.५४११, १३x४१-४८). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदिः णमो अरिहन्ताणं० पढमं; अंतिः उवदंसेइ त्ति बेमि. कल्पसूत्र-अवचूरि*, सं., गद्य, आदिः अत्राध्ययने त्रयं; अंतिः पारतन्त्र्यमभिहितम्.. ३५७८. भोजराज प्रबन्ध, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १०, जैदेना.,पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. प्रारंभ से खण्ड २ श्लो.२१५ तक है., (२६४११, १७-२०४५०-५३). भोजराज प्रबन्ध, गणि शुभशील, सं., पद्य, आदिः नाभेयाद्याजिनाधीशा; अंति:३५७९. चतुःशरण प्रकीर्णक सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ५, जैदेना., ले.स्थल. नवलाही, ले. ऋ. लालू, प्र.वि. मूल-गा.६३., त्रिपाठ-अंक व दंड लाल स्याही से, पदच्छेद सूचक लकीरें-अल्प मात्रा में, (२५.५४१०.५, ४६४३९-४५). For Private And Personal Use Only Page #438 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य भाग - १ ३८४ चतुःशरण प्रकीर्णक, गणि वीरभद्र, प्रा., पद्य, आदि: सावज्ज जोग विरई; अंतिः कारणं निवुइ सुहाणं. चतुःशरण प्रकीर्णक-बालावबोध, मागु., गद्य, आदिः पहिलउ आवश्यकना नाम; अंतिः अनइ मुक्तिना सुख लहइ. ३५८१. जीवविचार प्रकरण सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, जैदेना., पठ. श्राविका फूलमदे, प्र.वि. मूल-गा.५१., (२६४११, ५४३४-३५). जीवविचार प्रकरण, आ. शान्तिसूरि, प्रा., पद्य, आदि: भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंति: रुद्दाओ सुयसमुद्दाओ. जीवविचार प्रकरण-टबार्थ , मागु., गद्य, आदिः त्रिभुवनउ प्रकाशक; अंतिः सिद्धान्तनु लेइने. ३५८२." आचार विधि व उपधान विधि, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २४, पे. २, जैदेना., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२६४११, १३७५०-५२). पे. १. सामाचारी प्रकरण, प्रा.,सं., गद्य, (पृ. १अ-२२अ), आदिः आयारमयं वीरं वन्दिय; अंति: जरमरणविवजिअं ठाणं. पे. २. उपधानतप विधि, सं.,प्रा.,मागु., गद्य, (पृ. २२अ-२४आ), आदिः खमासणो मुहपती; अंतिः पूर्वकमेतद् भवति. ३५८३. चतुर्मासिक व्याख्यान, संपूर्ण, वि. १८९९, श्रेष्ठ, पृ. २६, जैदेना., ले.स्थल. मेदनीपुर, ले. मु. अखयचन्द्र(बृहत् नागोरी लूङ्का ), प्र.ले.श्लो. (४७५) यादशं पुस्तकं दृष्ट्वा ; (५६०) जलात् रक्षेत् थलात् रक्षे, (२४४१०.५, ११४३७-४१). चातुर्मासिक व्याख्यान , प्रा.,राज., पद्य, आदिः सामायिकावश्यक; अंतिः मिच्छामिदुक्कडं दैणो. ३५८९. मरुदेवी चौढालीयो, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना.,प्र.वि. ढाळ-४, (२७४११, १०४३१-३२). मरुदेवीमाता चौढालिया, ऋ. रायचन्द, मागु., पद्य, वि. १८५५, आदिः माताजी मरुदेवा; अंतिः नितनित ज्ञान अभ्यास. ३५९०. मेघासा व पार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, पे. २, जैदेना., ले.स्थल. पेथापुर, ले. जेठालाल चुनिलाल लहिया, प्र.वि. सर्वग्रं. २००., (२७X१२, १२४२७). पे. १. काजलमेघा चौढालिया, मु. नेमविजय, मागु., पद्य, वि. १८१७, (पृ. १अ-८अ), आदिः प्रणमुं नित परमेश्वर; अंतिः एम नेमविजय जयकार., पे.वि. ढाळ-१५. पे. २. पार्श्वजिन स्तवन, मु. कमलविजय, मागु., पद्य, (पृ. ८अ-८आ), आदिः पार्श्वनाथ दुःख कापो; अंतिः दूरो दयालु धणी., पे.वि. गा.५. ३५९२." आठकर्म विचार, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, जैदेना., प्र.वि. अन्त के पत्र नहीं हैं., दशा वि. विवर्ण-पानी से अल्प अक्षरों की स्याही फैल गयी है-अल्प, (२४.५४११.५, १३-१५४३९). ८ कर्म विचार, मागु., गद्य, आदिः ज्ञानावरणीकर्म आंखना; अंति:३५९३. स्तवनचोवीसी, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ६, जैदेना., पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. स्तवन १६ की गाथा ३ तक लिखा है., (२६४११.५, १२४३५-३७). स्तवनचौवीसी, पं. पद्मविजय, मागु., पद्य, आदिः जग चिन्तामणी जगगुरु; अंति:३५९४. नेमिजिन चोक, संपूर्ण, वि. १८९९, श्रेष्ठ, पृ. १२, जैदेना., ले.स्थल. रोहीसोग्राम, ले. पं. हुकमचन्द, प्र.वि. ढाळ-२४, (२५४११.५, १२४२७-२९). नेमिजिन चौवीसचोक, मु. अमृतविजय, मागु., पद्य, वि. १८३९, आदिः समर्या देवी सारदा; अंतिः अमृतविजये गुण गाया. ३५९५. मानतुङ्ग मानवती रास, संपूर्ण, वि. १७९७, श्रेष्ठ, पृ. २७, जैदेना.,ले.स्थल. रीगग्राम, ले. ऋ. गुलाबचन्द, प्र.वि. ढाळ-४७, दशा वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है-अल्प, (२५.५४११, १६-१७४५२-५८). मानतुङ्गमानवती रास, मु. मोहनविजय, मागु., पद्य, वि. १७६०, आदिः ऋषभजिणन्द चरणाम्बुजे; अंतिः घरघर मङ्गलमाल हे. ३५९६. थंभणपार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५, जैदेना., प्र.वि. गा.१८, (२५.५४११, १०४३४-३५). पार्श्वजिन स्तवन-स्तम्भन , वाचक कुशललाभ, मागु., पद्य, आदिः प्रभु प्रणमुं रे; अंतिः जाणी कुसललाभ पजंपये. For Private And Personal Use Only Page #439 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ३८५ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ३५९७. श्रीपालरास चौपाई, संपूर्ण, वि. १९४९, श्रेष्ठ, पृ. ६३, जैदेना., ले.स्थल. अहिपुर, ले. मु. गुणचन्द्र(खरतरगच्छ), प्र.वि. खण्ड-४, ग्रं. १८००, प्र.ले.श्लो. (१२०) यादशं पुस्तकं दृष्टं; (५३) कर दुख अंगुरी नेयन; (२३) जब लग मेरु अडग है, (२४४११.५, १५४३३-३९). श्रीपाल भास, मु. देवमुनि, मागु., पद्य, वि. १९१७, आदिः श्रीअरिहन्त सुसिद्ध; अंतिः अर वंश वृद्धि पामौ. ३५९८. सामुद्रिक शास्त्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८०४, श्रेष्ठ, पृ. १३, जैदेना., ले.स्थल. कयलवानगर-मेवाड, ले. मु. सुज्ञानकुशल, प्र.वि. मूल-श्लो.२७१. प्रति.वर्ष-अधिगगनअष्टचन्द्रे., प्र.ले.श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्टं, (२६४११.५, ८४४८-५०). सामुद्रिक शास्त्र, सं., पद्य, आदिः आदिदेवं प्रणम्यादौ; अंतिः घणपुण्यभाजाम्. सामुद्रिक शास्त्र-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः आदिनाथ जे; अंतिः धजा कमल भलीमाल. ३५९९." योगचिन्तामणि, त्रुटक, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ४९-२१(१,१८,२० से ३६,३८ से ३९)=२८, जैदेना., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं. प्रथम अध्याय से चतुर्थ अध्याय तक है., (२५४११.५, १७४४८-५२). योगचिन्तामणि, आ. हर्षकीर्तिसूरि, सं., पद्य, वि. १७वी, आदि:-; अंति:३६०१. पासाकेवली, संपूर्ण, वि. १८४१, श्रेष्ठ, पृ. ८, जैदेना., (२५.५४११.५, १५४३८-३९). पाशाकेवली-पाशाकेवलीभाषा* , आधारित, मागु., गद्य, आदिः (१) १११ उत्तम थानक लाभ (२) ॐ नमो भगवति; अंतिः सिद्धि हुसई उत्तम. ३६०२. पाक्षिकसूत्र, संपूर्ण, वि. १९८०, श्रेष्ठ, पृ. १०, जैदेना., ले.स्थल. विद्यापुरनगर, ले. नारायणलाल ब्रह्मभट्ट (पिता नत्थुराम), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. प्र.पु. ग्रं. १९०., (२६४१२, ११४३०-३३). पाक्षिकसूत्र, प्रा., प+ग, आदिः तित्थङ्करे य तित्थे; अंतिः (१)मिच्छामि दुक्कडं (२)जेसिं सुयसायरे भत्ति. ३६०६. पाक्षिकसूत्र, संपूर्ण, वि. १९८०, श्रेष्ठ, पृ. ९, जैदेना.,ले. नारायणलाल ब्रह्मभट्ट (पिता नत्थुराम), प्र.वि. प्र.पु. ग्रं. १९०., (२६४१२, ११४३२). पाक्षिकसूत्र, प्रा., प+ग, आदिः तित्थङ्करे य तित्थे; अंतिः जेसिं सुयसायरे भत्ति. ३६११." अढारनातरा सज्झाय व शत्रुञ्जय स्तवन, संपूर्ण, वि. १८४२, मध्यम, पृ. ६, पे. २, जैदेना., ले.स्थल. जालीया, प्र.वि. ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित, दशा वि. विवर्ण-पानी से अक्षरों की स्याही फैल गयी है, (२३४१०.५, १३४३८-४३). पे. १.१८ नातरा सज्झाय, मु. कीर्तिविजय, मागु., पद्य, वि. १८१४, (पृ. १अ-६अ), आदिः वीर धीर गम्भीरवर; अंतिः वृद्धि कीरति कहे., पे.वि. दशा- मध्यम- अंतिम पत्र का कुछ भाग फटा है. ढाळ-५. पे. २. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. उदयरतन, मागु., पद्य, (पृ. ६अ-६आ), आदिः डुङ्गर टाढो रे; अंति: पामे कोड कल्याणो रे., पे.वि. गा.७. ३६१३. सिन्दूरप्रकरण सह टीका, संपूर्ण, वि. १७४९, मध्यम, पृ. १७, जैदेना., ले. मु. जिनराज, प्र.वि. मूल-श्लो.१००. ___अन्तिमपत्र जीर्ण है।, संशोधित, (२५.५४१०.५, २०४५४-५७). सिन्दूरप्रकर, आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य, आदिः सिंदूरप्रकरस्तपः; अंति: सूक्तमुक्तावलीयम्. सिन्दूरप्रकर-टीका, आ. हर्षकीर्तिसूरि, सं., गद्य, वि. १६५५, आदिः श्रीमत्पार्श्वजिनं; अंतिः (१)वृत्तिमिमामकार्षीत् (२)माधाय तत्सर्वम्. ३६१५. सिन्दूरप्रकरण, पूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ५, जैदेना., पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है. गा.९४ तक है., (२४.५४१०, १५४४८ ५१). सिन्दूरप्रकर, आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य, आदिः सिंदूरप्रकरस्तपः; अंति: For Private And Personal Use Only Page #440 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य भाग - १ ३८६ ३६१७. महिपाल चरित्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १२, जैदेना., पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. ढाल १४ गाथा १२ तक है., (२५४११, १६-१७४३४-३८). महिपालराजा चरित्र, मागु., पद्य, आदि: सासण नायक समरीये; अंति:३६१८. नारचन्द्र टीपणारी पाटी, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २३-३(१ से ३)=२०, जैदेना., ले.स्थल. सोजत, ले. मु. सरूपचन्द(अञ्चलगच्छ), (२४.५४१०.५, ९४२८-३१). ज्योतिषसार-जन्मपत्री विचार, संबद्ध, सं., गद्य, आदि:-; अंतिः समीपे गुरु शुक्रयो. ३६१९. षद्रव्य विचार व वीरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, पे. २, जैदेना., (२५.५४११, १२४४३). पे. १.६ द्रव्यविचार स्तवन, मु. हेम, मागु., पद्य, (पृ. १आ-३अ), आदिः सिद्ध नमुं कर जोडी; अंतिः हेम मुनीस कहैरी., पे.वि. गा.४७. पे. २.५ कारण छढालिया, उपा. विनयविजय, मागु., पद्य, वि. १७३२, (पृ. ३अ-६अ), आदिः सिद्धारथ सुत वन्दिये; अंतिः विनय कहे आणन्द ए., पे.वि. गा.५९. ३६२२." शत्रुञ्जयउद्धार रास व गाथा, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ६, पे. २, जैदेना., दशा वि. विवर्ण-पानी से अक्षरों की स्याही फैल गयी है, (२५४११.५, १३४४५-४६). पे. १. शत्रुजयतीर्थउद्धार रास, मु. नयसुन्दर, मागु., पद्य, वि. १६३८, (पृ. १-६), आदिः विमल गिरिवर विमल; अंतिः दरिशन जयकरो., पे.वि. गा.११४. पे. २. जैन गाथा *, प्रा., पद्य, (पृ. ६आ), आदि:#; अंतिः#. ३६२३. वसुधारा स्तोत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदेना., (२६४१०.५, १०-११४३५-४१). वसुधारा, सं., गद्य, आदिः संसारद्वयदैन्यस्य; अंतिः कामितावाप्तिर्भवति. ३६२४. सप्ततिका कर्मग्रन्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना., प्र.वि. गा.९३, (२५.५४१०.५, १३४२९-३५). सप्ततिका कर्मग्रन्थ, प्रा., पद्य, आदिः सिद्धपएहिं महत्थं; अंतिः एगुणा होइ नउइओ. ३६२५. स्तवनवीसी, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, जैदेना., ले. मु. लाभविजय, प्र.वि. अध्याय-२० स्तवन, (२४.५४१०.५, १२ १३४३५-३७). स्तवनवीसी, मु. जीवणविजय, मागु., पद्य, आदिः श्रीसीमन्धर स्वामिजी; अंतिः मङ्गल माला जयवरो. ३६२६. भाव प्रकरण सह टबार्थ व चौदगुणस्थान यन्त्र, संपूर्ण, वि. १९२५, श्रेष्ठ, पृ. १०, पे. २, जैदेना., ले. शिवदान ब्राह्मण, (२६४११, ३४२८-२९). पे. १.पे. नाम. भाव प्रकरण सह टबार्थ, पृ. १-१० भाव प्रकरण, गणि विजयविमल, प्रा., पद्य, वि. १६२३, आदिः आणंदभरियनयणो आणंद; अंतिः रम्माओ पुव्वगंथाओ. भाव प्रकरण-टबार्थ , मागु., गद्य, आदिः आनन्दइ करि भरिय कहता; अंतिः (१)सघले गुणठाणे जाणवा (२)छे ग्रन्थमांहिथी., पे.वि. मूल-गा.३०; प्र.पु. मूल-ग्रं.१८५. पे. २. १४ गुणठाणा यन्त्र, सं.मागु., कोष्टक, (पृ. १अ), आदिः#; अंति: #. ३६२८. आउरपच्चक्खाण, संपूर्ण, वि.२०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना., ले. कृष्ण अमरदत्त लहिया, प्र.वि. गा.६०, (२५४१२.५, ११४३९-४०). आतुरप्रत्याख्यान प्रकीर्णक , गणि वीरभद्र, प्रा., प+ग, आदिः देसिक्कदेसविरओ; अंतिः सव्वदुक्खाणम्. ३६२९." भक्तामर स्तोत्र सह बालहितैषिणी वृत्ति, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १०, जैदेना., ले. ऋ. प्रेमजी, प्र.वि. मूल-श्लो.४४; टीका-ग्रं. ६०७; प्र.पु. सर्वग्रं. ७५८., पदच्छेद सूचक लकीरें-वचन विभक्ति संकेत-क्रियापद संकेत, अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ, (२६४११, १-३४६२-६७). For Private And Personal Use Only Page #441 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ३८७ www.kobatirth.org: Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुङ्गसूरि, सं., पद्य, आदि भक्तामरप्रणतमौलिमणि अंतिः समुपैति लक्ष्मी. भक्तामर स्तोत्र-बालहितैषिणी टीका, मु. कनककुशल, सं., गद्य, वि. १६५२, आदि: (१) प्रणम्य परमानन्ददायक (२) भक्ता० यः संस्तुत: अंतिः मायातीतिमङ्गलम्. ३६३१.” पञ्चाङ्ग विधि व बन्धिचक्र, संपूर्ण, वि. १७६३ श्रेष्ठ, पृ. ९, पे. २, जैदेना. ले. स्थल मढाग्राम ले अमरचन्द, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२५x१०, १५X४०-४३). पे. १. पंचाङ्गगणित विधि, उपा. महिमोदय, मागु., पद्य, वि. १७३३, (पृ. १अ - ९अ), आदिः परम जोति प्रभुकुं; अंतिः गणितग्रन्थ समुदाय, पे. वि. गा. १६४. पे. २. ज्योतिष बन्धिचक्र, सं., मागु पद्य (पृ. ९अ - ९आ), आदि मुखाद्यङ्‌गस्य नामानि अंतिः पछी फल विचारीजै. ३६३२. अभिधानचिन्तामणि नाममाला अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १५ जैदेना. पु. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण प्रारंभ से कांड३ गा. १३ तक है., (२५.५४१०.५, १३४३४-३६). अभिधानचिन्तामणि नाममाला आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, आदि प्रणिपत्यार्हतः अति: ३६३४.” शान्तिनाथ चरित्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १९६ - १५९ (११ से १६९ ) = ३७, जैदेना., प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-कुछ पत्र, पृ. वि. बीच के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण गा. १ से गा ७२ व गा. ४१६ से गा. ५६६ तक है., (२५x११.५, ५४२८-३९). शान्तिनाथ चरित्र, आ. अजितप्रभसूरि, सं. पद्य वि. १३०७, आदिः श्रेयोरत्नकरोद्भूता: अंति " . शान्तिनाथ चरित्र-टबार्थ, मु. लक्ष्मीविजय, मागु., गद्य, वि. १७९९, आदि: (१) श्रीमत्पार्श्वजिनं (२) मंगलिक रूप समुद्र; अंति: ३६३६. दानशीलतपभावना चौडालियो, संपूर्ण वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना. प्र. वि. गा. १०१ (२६.५४१२, १३४४१-४४). दानशीलतपभावना संवाद, उपा. समयसुन्दर गणि, मागु., पद्य, वि. १६६२, आदि: प्रथम जिनेसर पाय; अंतिः समृद्धि सुप्रसादो रे. ३६३७. दशवैकालिकसूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १३, जैदेना, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. अध्याय - ६ गा. २० तक है., (२७४१२. १२४३६-४१). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यम्भवसूरि प्रा. पद्य वि. पू. ४, आदि धम्मो मङ्गलमुक्किट्ठ; अंतिः ३६३९.” पाक्षिकसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९५९, श्रेष्ठ, पृ. २२, जैदेना., ले. पुनमचन्द, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२७०४१२, ४४३६-३८). पाक्षिकसूत्र, प्रा., प+ग, आदिः तित्थङ्करे य तित्थे; अंतिः जेसिं सुयसायरे भत्ति. पाक्षिकसूत्र - टवार्थ, मागु, गद्य, आदि: तीर्थकर प्रते अंतिः मिथ्या विफल होज्यो. ३६४०." कल्पसूत्र सह सुबोधिका टीका, मूल व टीका का टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९६३, श्रेष्ठ, पृ. ४६२, जैदेना., ले. स्थल. नागोर, ले. नथमल व्यास, प्र. वि. मूल - ९ - व्याख्यान प्र. पु. मूल ग्रं. ६०००. प्र. पु. मूल + टीका का टबार्थ- ग्रं. १२२००. मूल का टबार्थ, टीका व टीका का टबार्थ क्रमबद्ध रूप से तथा व्यवस्थित रूप से नहीं अपितु पदार्थ की तरह है., संशोधित, अशुद्ध पाठ, (२७१२.५, ५X४०). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदिः णमो अरिहन्ताणं० पढमं अंति: उवदंसेइ त्ति बेमि. कल्पसूत्र-सुबोधिका टीका, उपा. विनयविजय, सं., गद्य, वि. १६९६, आदि: ( १ ) प्रणम्य परमश्रेयस्कर (२) तस्मिन् काले; अंतिः #. For Private And Personal Use Only कल्पसूत्र - टवार्थ मागु, गद्य, आदि #, अंति: अनुवादे रूपत्वात्. कल्पसूत्र-सुबोधिका टीका का टबार्थ, मागु, गद्य, आदि: (१) नत्वा श्रीभारती (२) परम कल्याणना करनारा अंतिः # ३६४१.' उपदेशचिन्तामणि सह स्वोपज्ञ टीका, पूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ४६५-२ (१,२१७) +२ (२१४, २४९) =४६५, जैदेना., प्र. वि. Page #442 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य भाग १ - www.kobatirth.org: प्र.पु. सर्वग्रं. १२०६४, संशोधित प्रारंभिक पत्र, पदच्छेद सूचक लकीरें संधि सूचक चिह्न प्रारंभिक पत्र (२७४११, ११x४६). उपदेशचिन्तामणि, आ. जयशेखरसूरि, प्रा., पद्य, आदिः तित्थयरे भयवंते परम; अंतिः सरिसा सिरिसाहणी होउ. उपदेशचिन्तामणी-स्वोपज्ञ टीका, आ. जयशेखरसूरि, सं., गद्य, वि. १४३६, आदि:-; अंति: (१) च्यमाना मुनीन्द्रैः (२) भाग्यशोभां साधयतीति. ३६४२.' तत्त्वार्थसूत्र की टीका व आद्य सम्बन्धकारिका की टीका, संपूर्ण, वि. १७९१, श्रेष्ठ, पृ. ७३५+२ (१४८ से १४९)=७३७, पे. २, जैदेना., ले. स्थल बुरहानपुरनगर, प्र. वि. संशोधित, ( २६ ५४११.५ ११५३४-३७). पे. १. पे नाम तत्त्वार्थसूत्र की सम्बन्धकारिका आध की टीका, पृ. १-२६ तत्त्वार्थाधिगमसूत्र आद्य सम्बन्धकारिका की टीका आ. देवगुप्तसूरि, सं., गद्य, आदि (१) वीरं प्रणम्य सर्वज्ञं (२) सम्यगर्हत्प्रवचनमधिग; अंतिः (१) धर्मार्थिना सता ( २ ) परं शास्त्रं भवतीति. पे. २. पे नाम तत्त्वार्थसूत्र की टीका, पृ. २६आ-७३५ तत्त्वार्थाधिगमसूत्र-टीका #, गणि सिद्धसेन, सं., गद्य, आदि: (१) जैनेन्द्रशासनसमुद्रम (२) इदमाद्यमनवद्यं मुक्त; अंति: (१) द्वाविंशतिशतानि वै (२) मचिरेण प्राप्स्यतीति. ३६४३. उत्तराध्ययनसूत्र सह लघुवृत्ति (लघु वृत्ति), अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ३३, जैदेना, पू. वि. प्रारंभ के पत्र हैं., (२५.५४११ ९ १३४३०-३२). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir उत्तराध्ययनसूत्र. मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा. प+ग, आदि सज्जोगाविष्यमुक्करस: अंतिः उत्तराध्ययन सूत्र- दीपिका टीका, मु. विनयहंस, सं., गद्य, वि. १५७२, आदिः उत्तराध्ययनस्येमां; अंतिः , . (+) ३८८ ३६४४.” उत्तराध्ययनसूत्र, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ४९, जैदेना., प्र. वि. ३६ अध्ययन प्र. पु. मूल-ग्रं. २१००, संशोधित, ( २६ ११, १३४५२). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग, आदिः सञ्जोगाविप्पमुक्कस्स; अंतिः सम्मए त्ति बेमि ३६४५. योगचिन्तामणि सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ४३-२ ( १४ से १५ + १६) = ४१, जैदेना., प्र. वि. प्रारंभिक पाठ का बालावबोध नहीं लिखा है. पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., (२५.५x११, ९३०-३२). " योगचिन्तामणि, आ. हर्षकीर्तिसूरि सं., पद्य, वि १७वी आदिः यत्र वित्रासमायान्ति अंति: योगचिन्तामणि-बालावबोध *, मागु., गद्य, आदि:-; अंति: , ३६४६.*” उपदेशमाला सह टबार्थ व बालावबोध, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १७७-१ (१२९) = १७६, जैदेना., प्र. वि. मूल गा. ५४४., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-कुछ पत्र (२६४११.५, ३-१५X३३-४३). उपदेशमाला, गणि धर्मदास, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण जिणवरिन्दे अंतिः वयण विणिग्गया वाणी. उपदेशमाला-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः प्रणम्य श्रीमहावीरं अंतिः वाणी श्रुतदेवताने. P उपदेशमाला-बालावबोध, मु. वृद्धिविजय, मागु., गद्य, वि. १७१३, आदिः वन्दित्वा वीरजिनं; अंतिः संजात इति भद्रं. ३६४७. नन्दी सूत्र की वृत्ति सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १६६५, श्रेष्ठ, पृ. १८८-६ (१ से ६ ) +१ ( २८ ) = १८३, जैदेना ले. पं. " चन्द्रविजय गणि, प्र. वि. पंचपाठ, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, पू. वि. बालावबोध अस्पष्ट है, (२५४११, १५०४०-४२). नन्दीसूत्र- टीका, आ. मलयगिरिसूरि सं., गद्य, आदि:-; अंतिः जैनोधर्मश्च मङ्गलम् . " नन्दी सूत्र - वृत्ति का बालावबोध, मागु., गद्य, आदि:-; अंतिः For Private And Personal Use Only ३६४८. चन्द्रलेहा चौपाई, संपूर्ण, वि. १८५९, श्रेष्ठ, पृ. ३२, जैदेना., ले. स्थल. विक्रमपुर, प्र. वि. ढाळ - २९, ( २४.५x१३, १४४३२ ३३). चन्द्रलेखा रास, मु. मतिकुशल, मागु., पद्य, वि. १७२८, आदि: सरसति भगवति नमी करी; अंतिः त्रिभुवनपति हुवे तेह.. Page #443 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ३८९ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ३६४९.” अध्यात्मसार प्रश्नोत्तर, संपूर्ण, वि. १८८२, श्रेष्ठ, पृ. ३९४, जैदेना., प्र.वि. ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित, (२७४१२, १०x२७). अध्यात्मसार प्रश्नोत्तर, मु. अमीकुंअर, मागु., गद्य, वि. १८८२, आदि: जय भगवान त्रिलोक्य; अंतिः लीला पामे अपार. ३६५१.” उत्तराध्ययनसूत्र सह सूत्रार्थदीपिका टीका, अपूर्ण, वि. १९२४, श्रेष्ठ, पृ. ३२०-१७(३ से ९,१६ से २५)=३०३, जैदेना., ले. पं. गङ्गविनय, प्र.वि. मूल-३६अध्ययन. प्र.पु. टीका-ग्रं. ११३००., द्विपाठ, पू.वि. कहीं कहीं ही मूलपाठ है. अधिकतर मूलपाठ के लिये जगह खाली है., दशा वि. विवर्ण-पानी से अक्षरों की स्याही फैल गयी है-अधिक, (२५.५४१०.५, २४३८-४५). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध , प्रा., प+ग, (अपूर्ण), आदिः सञ्जोगाविप्पमुक्कस्स; अंतिःउत्तराध्ययनसूत्र-सूत्रार्थदीपिका टीका, गणि लक्ष्मीवल्लभ, सं., गद्य, वि. १८पू, (पूर्ण), आदिः अर्हन्तो ज्ञानभाजः; अंतिः (१)सुदीपिकेयम् (२)महतामपीत्युक्तेः. ३६५३. चन्दराजा रास, संपूर्ण, वि. १८५२, श्रेष्ठ, पृ. १११, जैदेना., ले.स्थल. जाबूवा, ले. मु. धनरूप (गुरु पण्डित नथमल), प्र.ले.पु. मध्यम,प्र.वि. अध्याय-४ उल्लास. खंड-१ पीथापुर, खंड-२ नीबडी, खंड-३ भगोर, खंड-४ जाबूवा मे लिखा गया है., (२६.५४१२, १५४४०). चन्द्रराजा रास, मु. मोहनविजय, मागु., पद्य, वि. १७८३, आदिः प्रथम धराधव तीम; अंतिः वर्णव्या गुण चन्दना. ३६५४." अध्यात्मकल्पद्रुम सह अध्यात्मकल्पलता वृत्ति, संपूर्ण, वि. १६७८, श्रेष्ठ, पृ. ६१, जैदेना., ले.स्थल. गंधारबंदर, ले. उपा. रत्नचन्द्र (गुरु उपा. शान्तिचन्द्र, तपागच्छ), पठ. गणि मतिचन्द्र,प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. मूल-श्लो.२७८, १६अधिकार; टीका-ग्रं. २४५९., संशोधित, कर्ता के हस्ताक्षर से लिखित प्रत-टबार्थादि, ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित, त्रिपाठ, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, प्र.ले.श्लो. (५) सुर्याचन्द्रमसौ यावतु, (२५.५४१०.५, ३४४२-५०). अध्यात्मकल्पद्रुम, आ. मुनिसुन्दरसूरि, सं., पद्य, आदि: जयश्रीरान्तरारीणां०; अंति: जयश्रिया शिवश्रीः. अध्यात्मकल्पद्रुम-अध्यात्मकल्पलता टीका, उपा. रत्नचन्द्र, सं., गद्य, वि. १६७४, आदिः (१) प्रणत सुरासुर (२) तत्रोपन्याससूत्रमिदं; अंतिः (१)व्याख्यानमिति (२)वद्धते वर्णयामलम्. ३६५५. पञ्चसङ्ग्रह की टीका, पूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १३६-१(१)=१३५, जैदेना., प्र.वि. प्र.पु. ग्रं. ९०००., (२५.५४११, १५४४७). पंचसङ्ग्रह-स्वोपज्ञ टीका, ऋ. चन्द्र महत्तर, सं., गद्य, आदि:-; अंतिः (१)श्चाविकलं भवत्विति. ३६५६. स्थम्भनपार्श्वजिन स्तवन का बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २४, जैदेना., ले.स्थल. किलकता, (२४.५४११.५, १०x२८). पार्श्वजिन स्तवन-स्तम्भन-बालावबोध, मागु., गद्य, आदि: जयतिहुअण वरकप्परुखजन; अंतिः श्लाघित स्तव्या छइ. ३६५८. कल्पसूत्र सह कल्पलता टीका व टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १६०, जैदेना., ले. ऋ. चतुरचन्द (गुरु ऋ. धर्मचन्द), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. संशोधित, प्र.ले.श्लो. (५०९) यादृशं पुस्तके दृष्टं; (७४) जब लग मेरु अडिग है, (२५४११.५, ७-२०४४२-४५). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदिः णमो अरिहन्ताणं० पढमं; अंतिः उवदंसेइ त्ति बेमि. कल्पसूत्र-कल्पलता टीका , उपा. समयसुन्दर गणि, सं., गद्य, वि. १६८५, आदिः प्रणम्य परमं ज्योतिः; अंतिः समाप्तं समर्थितं इति. कल्पसूत्र-टबार्थ', मागु., गद्य, आदिः चतुषष्टीन्द्रकृतां; अंतिः करणा यत्ने करीनइ. ३६५९. गोराबादल चौपाई, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४०, जैदेना., प्र.वि. गा.९१७, (२६४११, १५४३८-४०). गोराबादल चौपाई, आ. हेमरत्नसूरि, मागु., पद्य, वि. १६४७, आदिः सकल सुख दायक सदा; अंतिः कुम्भलमेर मझार. For Private And Personal Use Only Page #444 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य भाग - १ ३९० ३६६१. परदेशीराजा रास व श्रावक इकवीसगुण नाम, संपूर्ण, वि. १८५४, श्रेष्ठ, पृ. ३४, पे. २, जैदेना., ले.स्थल. लींबडी, ले. पं. नथमल, दशा वि. अक्षर फीके पड गये हैं, (२६४११.५, १५४२८-३०). पे. १. प्रदेशीराजा रास, मु. न्यायसागर, मागु., पद्य, वि. १७३४, (पृ. १-३४), आदिः सकल सिद्ध सम्पद करण; अंतिः लहीये मङ्गल मालो रे., पे.वि. ढाळ-३३. पे. २. श्रावक २१गुणनाम, मागु., गद्य, (पृ. ३४आ), आदिः धर्म रत्ने व्यवहारे; अंतिः श्रावकना गुण छै. ३६६२. प्रमाणनयतत्त्वालोकालकार सह रत्नाकरावतारिका लघुटीका, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ९५, जैदेना.,प्र.वि. मूल-८ परिच्छेद; टीका-ग्रं. ५०००., (२६.५४११, १७४४९-५४). प्रमाणनयतत्त्वालोकालड़कार, आ. वादिदेवसूरि, सं., गद्य, आदिः रागद्वेषविजेतारं; अंतिः च वाच्यम्. प्रमाणनयतत्त्वालोकालङ्कार-स्याद्वादरत्नाकरटीका की रत्नाकरावतारिका टीका, आ. रत्नप्रभसूरि, सं., गद्य, आदि: सिद्धये वर्द्धमान; अंतिः रसर्पन्ति प्रजल्पतः. ३६६४. सारस्वत व्याकरण की दीपिका टीका, संपूर्ण, वि. १६वी, श्रेष्ठ, पृ. १५१, जैदेना.,प्र.वि. ग्रं.७१२१, ३वृत्ति, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, दशा वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, (२६४११, १४-१५४४८-५२). सारस्वत व्याकरण-दीपिका टीका, आ. चन्द्रकीर्तिसूरि, सं., गद्य, वि. १६६४, आदिः नमोस्तु सर्वकल्याण; अंतिः प्रभुचन्द्रकीर्तिः. ३६६५. भगवतीसूत्र की वृत्ति, अपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ४०६+४(८७ से ८८,१६८,२९८)=४१०, जैदेना.,प्र.वि. पन्ने- १४५, १४६, १४७, १४८ व ३६१ और ३६२ एक ही पन्ने पर है।, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., (२६४११.५, १३-१४४४२-४४). भगवतीसूत्र-अभयदेवीय टीका, आ. अभयदेवसूरि , सं., गद्य, वि. ११२८, आदिः सर्वज्ञमीश्वरमनन्त; अंति:३६६६." भगवतीसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १२२५-१(२९६)+६(२१४,२२०,२९४,२९७,१०५३,१०७२)=१२३०, जैदेना., प्र.वि. मूल-४१शतक., टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२५४११.५, ६४३४-३८). भगवतीसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदिः नमो अरहन्ताणं; अंतिः भावेमाणे विहरति. भगवतीसूत्र-टबार्थ, उपा. पद्मसुन्दर, मागु., गद्य, वि. १८पू, आदिः श्रेयः श्रीसेवितां; अंतिः परकार्यकृतोद्यमाः. ३६६७. कल्पसूत्र, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ३०, जैदेना., पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., (२६४१०.५, ९४२४-२७). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदिः णमो अरिहन्ताणं० पढमं; अंति:३६६८. राजप्रश्नीयसूत्र की टीका, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ७७, जैदेना., प्र.वि. ग्रं. ३७००, (२६४११, १५४५०-५२). राजप्रश्नीयसूत्र-टीका, आ. मलयगिरिसूरि , सं., गद्य, आदिः प्रणमत वीरजिनेश्वर; अंतिः स्तेन भवतु कृती. ३६६९. अञ्जनासुन्दरी रास, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २९, जैदेना., प्र.वि. गा.५७१, (२६४११, १३४३४). अंजनासुन्दरी रास, मु. शान्तिकुशल, मागु., पद्य, वि. १६६७, आदिः सरस वचन वर वरसती; अंतिः रहइ लखमी तस घर वासइ. ३६७०." श्रीपालनरेन्द्र कथा, संपूर्ण, वि. १८३१, श्रेष्ठ, पृ. ३३, जैदेना., ले.स्थल. वाजोलीग्राम, ले. मु. नवनिधिविजय (गुरु वाचक लक्ष्मीविजय), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. गा.१३४१, ग्रं. १६७५, संशोधित, (२६४११.५, १९-२०x४०-४५). सिरिसिरिवाल कहा, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., पद्य, वि. १४२८, आदिः अरिहाइ नवपयाइं; अंतिः वाइज्जन्ता कहा एसा. ३६७१. चन्दनमलयागिरी चौपाई, संपूर्ण, वि. १९२५, श्रेष्ठ, पृ. २९, जैदेना., ले.स्थल. कूसालपुर, ले. पं. मुक्तिविजय, प्र.वि. ढाळ-११, (२५.५४१२, ११४२६-२७). चन्दनमलयागिरि चौपाई, कवि केसर, मागु., पद्य, वि. १७७६, आदिः प्रथम जिनेसर पाय; अंतिः स्वपर सम्पति कोड. ३६७२. विदग्धमुखमण्डन की टीका, संपूर्ण, वि. १६५७, श्रेष्ठ, पृ. ५०, जैदेना., (२५.५४११, १५-१६४३७-३९). For Private And Personal Use Only Page #445 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ३९१ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची विदग्धमुखमण्डन काव्य-टीका, दुर्गुक, सं., गद्य, आदिः विघ्नौघद्विपमर्मभेदन; अंतिः यामिनी तमीत्यमरः. ३६७३. अभिधानचिन्तामणि नाममाला, संपूर्ण, वि. १६७६, श्रेष्ठ, पृ. ६९, जैदेना., ले.स्थल. इडरनगर, ले. आ. विमलचन्द्रसूरि (गुरु पं. रङ्गचन्द्र),प्र.ले.पु. विस्तृत,प्र.वि. ६ कांड, (२६४११, १३४४१).. अभिधानचिन्तामणि नाममाला, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, आदिः प्रणिपत्यार्हतः; अंतिः रोषोक्तावु नतौ नमः. ३६७४." कल्पसूत्र सह टबार्थ व व्याख्यान+कथा, पूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ९९-३(२ से ४)=९६, जैदेना., प्र.वि. मूल-ग्रं. १२१६, ९-व्याख्यान., टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२६४११, ७-१३४४०). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदिः तेणं कालेणं० समणे; अंतिः उवदंसेइ त्ति बेमि. कल्पसूत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः ते० तिण कालेइ तिण; अंतिः एतले गुरुक्त जणाविउ. कल्पसूत्र-व्याख्यान+कथा* , मागु., गद्य, आदि:-; अंति:३६७५. हरीचन्द्रराजा चौपाई, संपूर्ण, वि. १८४६, श्रेष्ठ, पृ. २२, जैदेना., ले.स्थल. जगतारणनगर, ले. मु. न्यायविशाल, प्र.वि. ढाळ-२४, (२७X१०.५, ११४३७). हरिश्चन्द्रराजा चौपाई, मु. विद्याकुशल, मागु., पद्य, वि. १७६४, आदिः परम प्रमोदै प्रणमीयै; अंतिः विलसै लील विलास. ३६७६." क्षेत्रसमास, संपूर्ण, वि. १८९८, श्रेष्ठ, पृ. ३१, जैदेना., ले. मु. ऋषभचन्द (गुरु मु. परमरत्नजीत), प्र.वि. गा.२६६, अध्याय-६ अधिकार, (२७४१०.५, ७४२५-२७). लघुक्षेत्रसमास प्रकरण, आ. रत्नशेखरसूरि , प्रा., पद्य, वि. १५वी, आदिः वीरं जयसेहरपय; अंतिः कुसलरङ्गमयं पसिद्धं. ३६७८." बृहत्सङ्ग्रहणी, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २६, जैदेना., प्र.वि. गा.३९३, अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-प्रारंभिक पत्र, टिप्पण युक्त विशेष पाठ-कुछ पत्र, (२३.५४१०.५, ११४२५-३२). बृहत्सङ्ग्रहणी, आ. चन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदिः नमिउं अरिहन्ताइं; अंतिः जा वीरजिण तित्थं. ३६७९. उपदेशमाला सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १७वी, जीर्ण, पृ. १७७, जैदेना., प्र.वि. मूल-गा.५४४; बालावबोध-ग्रं. ५९००. बालावबोध में कर्ता का नाम मिलता नही है., (२६४११, ११४४०-४५). उपदेशमाला, गणि धर्मदास, प्रा., पद्य, आदिः नमिऊण जिणवरिन्दे; अंतिः वयण विणिग्गया वाणी. उपदेशमाला-बालावबोध, आ. सोमसुन्दरसूरि, मागु., गद्य, वि. १४८५, आदिः श्रीवर्द्धमानजिनवर; अंतिः सिद्धान्तप्राय जाणवी. ३६८०." जम्बूद्वीपपज्ञप्ति सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८६२, श्रेष्ठ, पृ. २८८, जैदेना., ले.स्थल. मांडल, प्र.वि. मूल-७ वक्षस्कार., टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२५.५४१२.५, ७४३०-३३). जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति, प्रा., गद्य, आदिः (१) नमो अरिहंताणं० तेणं (२) तेणं कालेणं तेणं; अंतिः उवदंसेइ त्ति बेमि. जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति-टबार्थ, मु. जीवविजय, मागु., गद्य, वि. १७७०, आदिः माहरो नमस्कार; अंति: जम्बू प्रति कहे छे. ३६८१. कल्पसूत्र सह टबार्थ व अन्तर्वाच्य, संपूर्ण, वि. १८०१, श्रेष्ठ, पृ. २२८, जैदेना., ले.स्थल. वृषभपुर, ले. गणि हेतुसागर (गुरु पं. लाभसागर), प्र.वि. मूल-९-व्याख्यान. प्रतिलेखन संवत-शशिअभ्राष्टेंदु. टबार्थ लेखन संवत-१८०२ है., प्र.ले.श्लो. (४९०) अज्ञानाच्च मतिभ्रंसा; (२१) जिहां ध्रु सायर चंद रवि; (४८५) यावल्लवणसमुद्रो; (४९१) सादरात् ये पठिष्यन्ति, (२५.५४११, ५-६४३४). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदिः णमो अरिहन्ताणं० पढमं; अंतिः उवदंसेइ त्ति बेमि. कल्पसूत्र-टबार्थ+व्याख्यान+कथा, आ. सोमविमलसूरि, मागु., गद्य, आदिः ते काल अवसर्पिणीनो; अंतिः साधुनउ आचार. For Private And Personal Use Only Page #446 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य भाग - १ ३९२ कल्पसूत्र-अन्तर्वाच्य, उपा. भक्तिलाभ, सं., गद्य, आदि: नत्वा श्रीमन्महावीरं; अंतिः श्रीसङ्घभट्टारकः. ३६८२." बारसासूत्र सह कल्पसुबोधिका टीका, पूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १५७, जैदेना., प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र.वि. मूल-९ व्याख्यान., संशोधित, त्रिपाठ, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है. टीका की रचना प्रशस्तिवाला पत्र नहीं है., (२५.५४११.५, १३-१५४३५-५५). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, (संपूर्ण), आदि: णमो अरिहन्ताणं० पढम; अंतिः उवदंसेइ त्ति बेमि. कल्पसूत्र-सुबोधिका टीका, उपा. विनयविजय , सं., गद्य, वि. १६९६, (संपूर्ण), आदिः प्रणम्य परमश्रेयस्कर; अंतिः प्रतीदमुवाचेति. ३६८३. बारसासूत्र सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९वी, जीर्ण, पृ. २५३, जैदेना.,प्र.वि. मूल-९-व्याख्यान. प्र.पु. नष्ट हो चुकी है।, दशा वि. हानिकारक स्याही-अंत के कुछ पत्र-पत्र नष्ट हो गये हैं, (२६x११.५, ११४३५). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदिः णमो अरिहन्ताणं० पढमं; अंतिः उवदंसेइ त्ति बेमि. कल्पसूत्र-बालावबोध* , मागु.,राज., गद्य, आदिः प्रणम्य श्रीमहावीरं; अंति:#. ३६८४. कल्पसूत्र सह टबार्थ व व्याख्यान+कथा, पूर्ण, वि. १८२५, श्रेष्ठ, पृ. १९४-१(४)+१(१६)=१९४, जैदेना., प्र.वि. मूल-९ व्याख्यान., संशोधित, पदच्छेद सूचक लकीरें, टिप्पण युक्त विशेष पाठ-कुछ पत्र, पू.वि. बीच के व अंतिम पत्र नहीं हैं. कुछ पत्र परिपूर्तित व कोरे भी है., दशा वि. चिपके पत्र अलग करते वक्त स्याही उखडी हुई-कुछ पत्र, विवर्ण पानी से अक्षरों की स्याही फैल गयी है-बीच का एक पत्र, (२६.५४११, ५-१५४३९). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदिः तेणं कालेणं० समणे; अंतिः उवदंसेइ त्ति बेमि. कल्पसूत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः तेणइ कालि जे; अंति: भद्रबाहुस्वामीए. कल्पसूत्र-व्याख्यान+कथा*, मागु., गद्य, आदिः श्रीवर्द्धमानजिनं; अंति:३६८५." कल्पसूत्र सह टबार्थ व व्याख्यान+कथा- १ से ८ व्याख्यान, प्रतिपूर्ण, वि. १८६१, श्रेष्ठ, पृ. १७१+२(७६,८९)=१७३, जैदेना., ले.स्थल. थीरानगर, ले. मु. तेजविजय (गुरु गणि हेमविजय), पठ. मु. जयन्तविजय-लघुशिष्य (गुरु मु. जयन्तविजय), ले. पं. मुनिसुन्दरविजय,प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. मूल परिमाण-अध्याय-९ व्याख्यान. पत्रांक- १४७ से अंतिम पत्र-१७० तक पंन्यास मुनिसुंदरविजय गणि द्वारा अनुपूरित है. जिसे वि.सं.१९७२ समाणानगर के चौमासे में लिखा गया है. कल्पसूत्र पीठिका प्रतिलेखक प्रेमचन्दजी है., संशोधित, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२६.५४१२, ६ १५४३८). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: णमो अरिहन्ताणं० पढमं; अंति:कल्पसूत्र-टबार्थ , मागु., गद्य, आदिः (१) अरिहन्तनइ माहरो (२) श्रमण भगवन्त; अंति: कल्पसूत्र-व्याख्यान+कथा* , मागु., गद्य, आदिः प्रणम्य श्रीमहावीरं; अंति:३६८६. कल्पसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ८३, जैदेना., पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. आंशिक आदिनाथ चरित्र तक है., (२६.५४१२, ५४३३-३९). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदिः णमो अरिहन्ताणं० पढमं; अंति: कल्पसूत्र-टबार्थ , मागु., गद्य, आदिः (१) तेणइ कालि जे (२) नमो क० माहरो नमस्कार; अंति:३६८७." कल्पसूत्र का बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १६३-६९(१९ से ६८,९५ से ११३)=९४, जैदेना., प्र.वि. वाचना ११, संशोधित, पदच्छेद सूचक लकीरें-कुछ पत्र, (२६४११.५, १५४४२-४८). कल्पसूत्र-बालावबोध*, मागु.,राज., गद्य, आदिः अज्ञान तिमिरान्धानां; अंतिः पणो दिखाड्यो. ३६८८. कल्पसूत्र सह टबार्थ व व्याख्यान+कथा, संपूर्ण, वि. १७५५, मध्यम, प्र. १०७, जैदेना., ले. ऋ. झाझणजी, प्र.वि. मूल ९-व्याख्यान., संशोधित, टिप्पण युक्त विशेष पाठ-कुछ पत्र, (२६४११, ६-७४४४-४७). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदिः णमो अरिहन्ताणं० पढमं; अंतिः उवदंसेइ त्ति बेमि. For Private And Personal Use Only Page #447 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ३९३ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची कल्पसूत्र-टबार्थ*, मागु., गद्य, आदि: (१) श्रीवर्द्धमानं जिनं (२) ते काल चउथो आरो; अंतिः एहवुं कहता हवा. कल्पसूत्र- व्याख्यान+कथा*, मागु., गद्य, आदिः #; अंतिः #. www.kobatirth.org: 1 ३६८९.” कल्पसूत्र सह टबार्थ, व्याख्यान+कथा व गौतमस्वामी काव्य, पूर्ण, वि. १८५१, श्रेष्ठ, पृ. २०२-२(११७ से ११८)+१ (७१) =२०१, पे. २ जैदेना. ले. स्थल परोतीया ले. ऋ. प्रेमचन्द ( गुरु मु. रामजी, वडगच्छ), राज्यकालसङ्घजी, गच्छा. आ. सुमतिप्रभसूरि (वडगच्छ ), प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र. वि. संशोधित, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, द्विपाठ, पू. वि. बार्थ व कथा के अंतिमवाक्य नहीं है., प्र.ले. श्लो. (१४) जलाद्रक्षेत् तैलाद्रक्षेत्: (१) यादृशं पुस्तकं दृष्टं, (२७१२.५, ७- १६४३८). " पे. १. पे. नाम. कल्पसूत्र सह टबार्थ व व्याख्यान + कथा, पृ. १- २०२, पूर्ण कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि णमो अरिहन्ताणं० पढमं अंति: उवदंसह त्ति बेमि कल्पसूत्र - टवार्थ मागु, गद्य, आदि (१) अरिहन्तन माहरो (२) तेणइ कालि जे अंति: कल्पसूत्र - व्याख्यान + कथा सं. मागु, गद्य, आदिः प्रणम्य परमं ज्योति: अंति:-, पे. वि. मूल- अध्याय-९- व्याख्यान. बीच-बीच के पत्र नहीं हैं. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पे. २. गौतमस्वामी काव्य, सं., पद्य, (पृ. १आ, संपूर्ण), आदि: अब्धिर्लब्धिकदम्ब; अंतिः श्रीगौतमस्यान्मुदे., पे.वि. श्लो. १. १९५०, श्रेष्ठ, पृ. १९५ जैदेना, ले. स्थल, बीकानेर, ले. पं. त्रिपाठ, पदच्छेद सूचक लकीरें, संशोधित, प्र. ले. श्लो. (१) यादृशं (+) ३६९०." कल्पसूत्र सह कल्पसुबोधिका टीका, संपूर्ण, वि. वासुदेव (कवलागच्छ), प्र. वि. मूल-९- व्याख्यान पुस्तकं दृष्टं, (२७४१३.५, १३x४०-४२). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी प्रा. गद्य, आदि: तेणं काले० समणे: अंति उवदंसेइ ति बेमि " " कल्पसूत्र-सुबोधिका टीका, उपा. विनयविजय, सं., गद्य, वि. १६९६, आदि: (१) प्रणम्य परमश्रेयस्कर (२) तस्मिन् काले अंतिः प्रतीदमुवाचेति. ३६९१. कल्पसूत्र का बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९७३, श्रेष्ठ, पृ. १४२, जैदेना., ले. स्थल. एमदावाद - अमदावाद, पठ. साध्वीजी गुलाब श्री-शिष्या (गुरु साध्वीजी गुलाबश्री), (२७४१२, १२X४० ). कल्पसूत्र- बालावबोध, मु. खीमाविजय, मागु., गद्य, वि. १७०७, आदिः प्रणम्य श्रीमहावीरं ; अंतिः (१) शिष्यने इम कहे (२)वारे वारे इम देखाड़े "" ३६९२. कल्पसूत्र सह कल्पसुबोधिका टीका, अपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १०८, जैदेना. प्र. वि. त्रिपाठ, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. सूत्र - १४३ तक है., (२७४१२, १३x४६-४९). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं० समणे; अंति: कल्पसूत्र-सुबोधिका टीका, उपा. विनयविजय, सं. गद्य वि. १६९६ आदि प्रणम्य परमश्रेयस्कर: अंतिः " " ३६९३. कल्पसूत्र सह कल्पसुबोधिका टीका, संपूर्ण, वि. १९६३, श्रेष्ठ, पृ. २०५, जैदेना., ले. स्थल पाटण, ले. गोवर्धन लक्ष्मीशङ्कर वाडी, प्र. वि. मूल ९ व्याख्यान त्रिपाठ, (२७.५x१२.५ १२४४३-५२). " कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं० समणे; अंति: उवदंसेइ त्ति बेमि. कल्पसूत्र-सुबोधिका टीका, उपा. विनयविजय, सं., गद्य वि. १६९६ आदि (१) प्रणम्य परमश्रेयस्कर (२) तस्मिन् काले; अंतिः (१) प्रतीदमुवाचेति (२) विद्वज्जनैराश्रिता. ३६९४.” कल्पसूत्र सह टबार्थ व व्याख्यान+कथा, पट्टावली व स्त्री के ६४ कलानाम, संपूर्ण, वि. १८६०, श्रेष्ठ, पृ. १८९, पे. ३, जैदेना., ले.स्थल. सांडेरानगर, ले. मु. सुमतिविजय (गुरु पं. रुपविजय), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-कुछ पत्र, संशोधित (२६४१२, ५४३५-३७). पे. १. पे. नाम. कल्पसूत्र सह टबार्थ व व्याख्यान+कथा, पृ. १-१८५आ कल्पसूत्र, आ. भद्रवाहस्वामी, प्रा. गद्य, आदि: णमो अरिहन्ताणं० पढमं अंति: उवदंसेइ ति बेमि " For Private And Personal Use Only Page #448 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य भाग - १ ३९४ कल्पसूत्र-टबार्थ', मागु., गद्य, आदिः (१) तेणइ कालि जे (२) चोसठि इन्द्रनेपूजनीक; अंतिः भद्रबाहुस्वामीए. कल्पसूत्र-व्याख्यान+कथा, मागु., गद्य, आदिः सकलार्थसिद्धिजननी; अंतिः#., पे.वि. मूल-अध्याय-९-व्याख्यान. प्रथम पत्र पर भगवान का रंगीन चित्र. पे. २. पट्टावली तपागच्छीय, मागु., गद्य, (पृ. १८५अ-१८८आ), आदिः श्रीवर्द्धमानस्वामी; अंतिः नयरे दक्षिण देशे ७२., पे.वि. ६९ वीं पट्टस्थापना विजयधरणिंद्रसूरि की. पे. ३. स्त्री ६४कला नाम, सं., गद्य, (पृ. १८९अ), आदिः नृत्यौ ऊचित्ये चित्र; अंतिः प्रश्नहेलिका. ३६९५.” कल्पसूत्र सह कल्पकिरणावली टीका, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १७०, जैदेना.,प्र.वि. मूल-९-व्याख्यान., त्रिपाठ, दशा वि. विवर्ण-पानी से अक्षरों की स्याही फैल गयी है, खंडित भाग पर कागज चिपकाए हुए हैं-बीच के कुछ पत्र, (२६४११, २-५४४०). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदिः तेणं कालेणं० समणे; अंतिः उवदंसेइ ति बेमि. कल्पसूत्र-कल्पकिरणावली टीका, उपा. धर्मसागर गणि, सं., गद्य, वि. १६२८, आदिः प्रणम्य प्रणताशेष; अंतिः रमुष्या शतशः प्रतिः. ३६९६. कल्पसूत्र सह टबार्थ व व्याख्यान+कथा-व्याख्यान १ से ८, प्रतिअपूर्ण, वि. १८७८, श्रेष्ठ, पृ. १७३-१०(१,४९ से ५६,८४)=१६३, जैदेना., ले.स्थल. घ्रांणकपुर, ले. मु. ज्ञानसार, प्र.वि. संशोधित, दशा वि. विवर्ण-पानी से अक्षरों की स्याही फैल गयी है, (२५.५४११.५, ६-१२४३२). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदिः णमो अरिहन्ताणं० पढमं; अंति:कल्पसूत्र-टबार्थ , मागु., गद्य, आदिः (१) नमो क० माहरो नमस्कार (२) ते कालनइ विषइ चतुर्थ; अंति: कल्पसूत्र-व्याख्यान+कथा* , मागु., गद्य, आदि:-; अंति:३६९७. कल्पसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १७१, जैदेना.,प्र.वि. मूल-९-व्याख्यान. अंतिम पत्र प्रतिलेखन पुष्पिका वाला नहीं है., पदच्छेद सूचक लकीरें, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, पंचपाठ, (२६x११.५, ५४२८-३१). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदिः णमो अरिहन्ताणं० पढमं; अंतिः उवदंसेइ त्ति बेमि. कल्पसूत्र-टीका* , सं., गद्य, आदिः अत्राध्ययने श्रीकल्प; अंतिः वारं वार उपदर्शयति. कल्पसूत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः (१) अरिहन्तनइ माहरो (२) तेणइ कालि जे; अंतिः भलइ गुरूक्त जणाविउ. ३६९८. कल्पसूत्र सह टबार्थ व व्याख्यान+कथा, संपूर्ण, वि. १७९५, श्रेष्ठ, पृ. १४३, जैदेना., ले.स्थल. पंचवटा, ले. मु. अमीविजय (गुरु पं. वीरविजय), प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र.वि. मूल-९-व्याख्यान. बालावबोध टबार्थ की शैली से लिखा गया है. प्रतिलेखन वर्ष-बाणैनंदामुनिक्षमा., संशोधित, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, द्विपाठ-कुछ पत्र, (२६४११.५, ६४३३-३९). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदिः णमो अरिहन्ताणं० पढमं; अंतिः उवदंसेइ त्ति बेमि. कल्पसूत्र-कल्पप्रदीप बालावबोध, मु. भानुविजय, मागु., गद्य, वि. १७२४, आदिः (१) श्रीपार्श्व प्रणिपत (२) बार गुणे करी सहित; अंतिः (१)वाचक लावण्यविजयेन (२)परोपदेशने अनुसारे. कल्पसूत्र-व्याख्यान+कथा* , सं.,मागु., गद्य, आदि: #; अंतिः#. ३६९९. बारसासूत्र, पूर्ण, वि. १७८०, श्रेष्ठ, पृ. ८२-१(१)=८१, जैदेना., ले.स्थल. जालणापुर, ले. मु. भावसागर (गुरु मु. जितसागर), प्र.ले.पु. मध्यम,प्र.वि. ९-व्याख्यान, (२६४११.५, ९४२५-२८). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि:-: अंतिः उवदंसेइ त्ति बेमि. ३७०१. खरतरगच्छीय पट्टावली, पूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २७, जैदेना., पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. संवत १९१४ में विद्यमान आ. जिनमुक्तिसूरि तक पट्टावली है., (२४४१२, १६४३२). पट्टावली खरतरगच्छीय, वाचक क्षमाकल्याण, सं., गद्य, वि. १८३०, आदिः प्रणिपत्य जगन्नाथं; अंति: For Private And Personal Use Only Page #449 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ३९५ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ३७०२." सूयगडाङ्गसूत्र सह टबार्थ-प्रथम श्रुतस्कन्ध, प्रतिपूर्ण, वि. १७९३, श्रेष्ठ, पृ. ५९, जैदेना., प्र.वि. मूल अंश-अध्याय १६., टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२६४११.५, ६४३६-३८). सूत्रकृताङ्गसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदिः बुज्झिज्ज तिउट्टेज्ज; अंति: सूत्रकृताङ्गसूत्र-टबार्थ', मागु., गद्य, आदिः बुझि नइ छकाय स्वरूप; अंति:३७०४. कल्पसूत्र सह टबार्थ+व्याख्यान+कथा-१ से ८ व्याख्यान, साधु सामाचारी व पट्टावली, प्रतिपूर्ण, वि. १८५३, श्रेष्ठ, पृ. १४३, पे. ३, जैदेना., ले.स्थल. पंचासर, ले. पं. भक्तिविजय (गुरु पं. राजविजय), पठ. मु. खान्तिविजय (गुरु पं. भक्तिविजय), (२५.५४११.५, ६-१६x४५). पे. १. पे. नाम. कल्पसूत्र सह टबार्थ+व्याख्यान+कथा -व्याख्यान १ से ८, पृ. १-१४३, प्रतिपूर्ण कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदिः णमो अरिहन्ताणं० पढमं; अंति:कल्पसूत्र-टबार्थ+व्याख्यान+कथा, आ. सोमविमलसूरि, मागु., गद्य, आदिः (१) नमस्कार हो अरिहन्त (२) ते काल चोथा आराने; अंति:पे. २. पे. नाम. अठावीस प्रकारे साधुनी सामाचारी, पृ. १४३अ, संपूर्ण सामाचारी, सं., पद्य, आदिः प्रथम सामाचारी; अंतिः श्रीकल्पाराधन फल. पे. ३. पट्टावली तपागच्छीय, सं.,मागु., गद्य, (पृ. १४३आ, संपूर्ण), आदिः श्रीवर्द्धमान; अंतिः विजयजिनेन्द्रसूरि. ३७०५." बारसासूत्र, पूर्ण, वि. १८९१, श्रेष्ठ, पृ. १२४-१(१२३)=१२३, जैदेना., ले.स्थल. वल्लभीपुर, प्र.वि. ९-व्याख्यान, ग्रं. १२१६; प्र.पु. मूलसूत्र-२६४. श्रीमनमोहन पार्श्वनाथ प्रसादात्., पदच्छेद सूचक लकीरें-अल्प मात्रा में प्रारंभिक पत्र, (२५.५४१२, ७४२३-२५). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदिः णमो अरिहन्ताणं० पढमं; अंतिः उवदंसेइ त्ति बेमि. ३७०६.” कल्पसूत्र सह कल्पसुबोधिका टीका, अपूर्ण, वि. १७६०, श्रेष्ठ, पृ. २१०-९(८१ से ८९)=२०१, जैदेना., ले.स्थल. स्थंभपुर?, प्र.वि. मूल-९-व्याख्यान., अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-अल्प मात्रा में, पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न-अल्प मात्रा में, संशोधित, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, त्रिपाठ, (२६४११.५, १२४४४). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदिः तेणं कालेणं० समणे; अंतिः उवदंसेइ त्ति बेमि. कल्पसूत्र-सुबोधिका टीका, उपा. विनयविजय , सं., गद्य, वि. १६९६, आदिः प्रणम्य परमश्रेयस्कर; अंतिः विद्वज्जनराश्रिता. ३७०७.” कल्पसूत्र सह कल्पकिरणावली टीका, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. २२५, जैदेना., प्र.वि. मूल-९-व्याख्यान., संशोधित, त्रिपाठ, (२६.५४१०.५, १२४३८-४०). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदिः तेणं कालेणं० समणे; अंतिः उवदंसेइ त्ति बेमि. कल्पसूत्र-कल्पकिरणावली टीका, उपा. धर्मसागर गणि, सं., गद्य, वि. १६२८, आदिः प्रणम्य प्रणताशेष; अंतिः रमुष्या शतशः प्रतिः. ३७०८. बारसासूत्र, संपूर्ण, वि. १८७१, श्रेष्ठ, पृ. ११२-१(३३)+१(३२)=११२, जैदेना., ले.स्थल. वल्लभीनगर, ले. मु. सुखसागर (गुरु मु. जीतसागर), प्र.वि. ९-व्याख्यान. श्रीमनमोहन पार्श्वनाथ प्रसादात्., प्र.ले.श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्टं, (२४.५४११.५, ७४२०-२४). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदिः णमो अरिहन्ताणं० पढमं; अंतिः उवदंसेइ त्ति बेमि. ३७०९.” कल्पसूत्र सह टबार्थ व व्याख्यान+कथा, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १५७, जैदेना., ले. रतनचन्द,प्र.वि. मूल-९ व्याख्यान., संशोधित, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, पदच्छेद सूचक लकीरें-अल्प मात्रा में, (२६.५४१०.५, ११४४५-४८). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदिः णमो अरिहन्ताणं० पढमं; अंतिः उवदंसेइ त्ति बेमि. कल्पसूत्र-टबार्थ', मागु., गद्य, आदिः (१) श्रीवर्द्धमानमानम्य (२) तस्मिन् चतुर्थकाले; अंतिः स्वामीए जम्बू प्रते. For Private And Personal Use Only Page #450 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य भाग - १ ३९६ कल्पसूत्र-व्याख्यान+कथा* , सं., गद्य, आदि: #; अंति:#. ३७१०." कल्पसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ११३, जैदेना., प्र.वि. मूल परिमाण-९-व्याख्यान., संशोधित, टिप्पण युक्त विशेष पाठ-कुछ पत्र, पदच्छेद सूचक लकीरें, (२४.५४११, ५४३६-३८). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदिः णमो अरिहन्ताणं० पढम; अंतिः उवदंसेइ त्ति बेमि. कल्पसूत्र-टबार्थ', मागु., गद्य, आदिः (१) अरिहन्तनइ माहरो (२) तेणइ कालि जे; अंतिः इति ब्रवीमि कहइ. ३७११.” कल्पसूत्र सह टबार्थ व व्याख्यान+कथा, अपूर्ण, वि. १८६२, श्रेष्ठ, पृ. १८३-८(५ से १२)=१७५, जैदेना., ले.स्थल. फलोदी, प्र.वि. मूल-९-व्याख्यान., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-कुछ पत्र, संशोधित,प्र.ले.श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्टं, (२५.५४११.५, ५-१६४३६). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदिः तेणं कालेणं० समणे; अंतिः उवदंसेइ त्ति बेमि. कल्पसूत्र-टबार्थ , मागु., गद्य, आदिः ते कालनइ विषइ चतुर्थ; अंतिः भद्रबाहुस्वामीए. कल्पसूत्र-व्याख्यान+कथा* , मागु., गद्य, आदिः नमो अरिहन्ताणं; अंति:३७१२." कल्पसूत्र सह टबार्थ, अन्तर्वाच्य व अन्तर्वाच्य का टबार्थ व्याख्यान-१ से ८, प्रतिपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १६९, जैदेना., प्र.वि. संशोधित, पदच्छेद सूचक लकीरें-कुछ पत्र, पू.वि. सप्तम व्याख्यान ऋषभदेवचरित्र तक लिखा है., (२५.५४११.५, ७४३८). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदिः तेणं कालेणं० समणे; अंति:कल्पसूत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः तेणइ कालि जे; अंतिःकल्पसूत्र-अन्तर्वाच्य , सं., गद्य, आदिः प्रणम्य श्रीजिनं; अंति: कल्पसूत्र अन्तर्वाच्य का टबार्थ', मागु., गद्य, आदि: नमस्कार करीने; अंति:३७१३. कल्पसूत्र सह कल्पकिरणावली टीका, पूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. २००, जैदेना., प्र.वि. मूल-अध्याय-९ व्याख्यान., त्रिपाठ, संशोधित, पदच्छेद सूचक लकीरें, पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है. टीका प्रशस्ति का पत्र नहीं है., (२५.५४११.५, ११-१३४१७-४३). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, (संपूर्ण), आदिः तेणं कालेणं० समणे; अंतिः उवदंसेइ त्ति बेमि. कल्पसूत्र-कल्पकिरणावली टीका, उपा. धर्मसागर गणि, सं., गद्य, वि. १६२८, (पूर्ण), आदिः प्रणम्य प्रणताशेष; अंतिः मभिहितमिति. ३७१४. कल्पसूत्र सह टबार्थ व व्याख्यान+कथा, संपूर्ण, वि. १८८६, श्रेष्ठ, पृ. २७४, जैदेना., ले.स्थल. राधिकापुर, ले. पं. मोतीविजय, पठ. मु. धनविजय (गुरु पं. थिरविजय), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. मूल-९-व्याख्यान., संशोधित, दशा वि. हानिकारक स्याही-अंतिम पत्र-पत्र नष्ट हो गये हैं, प्र.ले.श्लो. (८५) जलाद्रक्षे स्थलाद्रक्षे; (४९०) अज्ञानाच्च मतिभ्रंसा, (२६४११.५, ४-११४३२-३७). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदिः णमो अरिहन्ताणं पढमं; अंतिः उवदंसेइ त्ति बेमि. कल्पसूत्र-टबार्थ+व्याख्यान+कथा, आ. सोमविमलसूरि, मागु., गद्य, आदिः श्रीपार्श्व प्रणि; अंतिः शिष्य आगले कहिउ. कल्पसूत्र-व्याख्यान+कथा* , मागु., गद्य, आदिः#; अंतिः#. ३७१५. कल्पसूत्र सह टबार्थ, कल्पकल्लोलिका बालावबोध व व्याख्यान+कथा, अपूर्ण, वि. १८०२, श्रेष्ठ, पृ. २१५-१७५(१ से १७५)=४०, जैदेना., ले.स्थल. जींबडी, ले. मु. धनविजय (गुरु गणि माणिक्यविजय), प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र.वि. प्र.पु.टबार्थ-ग्रं. १००००. अन्त में संघगुण व प्रशस्ति संलग्न है, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, पू.वि. प्रारंभ से ऋषभदेव निर्वाण तक पाठ नहीं है., प्र.ले.श्लो. (११०) वाच्यमाना पाठ्यमाना; (११२) यावन्मेरुगिरी स्थिरौ; (१) यादृशं पुस्तकं दृष्टं; (१७) जलाद्रक्षे तैलाद्रक्षे; (४६९) भग्न पृष्टि कटी ग्रीवा, (२५.५४११.५, ६४३८-४१). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि:-; अंतिः उवदंसेइ त्ति बेमि. For Private And Personal Use Only Page #451 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ३९७ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची कल्पसूत्र-टबार्थ' , मागु., गद्य, आदि:-; अंतिः भद्रबाहुस्वामीए. कल्पसूत्र-कल्पकल्लोलिका बालावबोध, आ. लक्ष्मीरत्नसूरि, मागु., गद्य, आदि:-; अंति: कल्पसूत्र-व्याख्यान+कथा* , सं., गद्य, आदि:-; अंति:३७१६. कल्पसूत्र सह कल्पलता टीका, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४९, जैदेना., पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. महावीरस्वामी गर्भापहार तक है., (२६.५४११.५, १३४४३-४६). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदिः णमो अरिहन्ताणं पढमं; अंति:कल्पसूत्र-कल्पलता टीका, उपा. समयसुन्दर गणि, सं., गद्य, वि. १६८५, आदिः (१) प्रणम्य परमं ज्योतिः (२) तेणं कालेणं० ते इति; अंति:३७१७." षडावश्यकसूत्र सह बालावबोध व कथा अधिकार-१ से ४, प्रतिपूर्ण, वि. १७९९, श्रेष्ठ, पृ. ६६, जैदेना., ले. मु. मतिविजय (गुरु मु. देवेन्द्रविजय), प्र.वि. बालावबोध पत्रांक-६ से प्रारंभ होता है., संशोधित, (२५.५४११.५, १५४४८). आवश्यकसूत्र , प्रा., प+ग, आदिः णमो अरहंताणं०; अंति:आवश्यकसूत्र-बालावबोध', मागु., गद्य, आदिः महात्मानी सात वार; अंति: आवश्यकसूत्र-कथा, मागु., गद्य, आदिः भरतक्षेत्रि पोतनपुर; अंति:३७१८. महानिशीथसूत्र सह टबार्थ- अध्ययन-३, प्रतिपूर्ण, वि. १७७१, श्रेष्ठ, पृ. ३९, जैदेना., (२६.५४११.५, ६x४४-४८). महानिशीथसूत्र, प्रा., गद्य, आदि:-; अंति: महानिशीथसूत्र-टबार्थ , मागु., गद्य, आदिः-; अंति:३७१९. कल्पसूत्र, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ५९-११(२९ से ३९)=४८, जैदेना., प्र.वि. ९-व्याख्यान, (२६४११, ११४३०). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: णमो अरिहन्ताणं० पढमं; अंतिः उवदंसेइ त्ति बेमि. ३७२०. कल्पसूत्र, संपूर्ण, वि. १७९१, श्रेष्ठ, पृ. ५२, जैदेना., ले.स्थल. व्यारानगर, ले. गणि न्यायविजय, पठ. मु. जिनविजय (गुरु गणि न्यायविजय), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. ९-व्याख्यान, पदच्छेद सूचक लकीरें, प्र.ले.श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्टं, (२६४११.५, ११४४०). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदिः णमो अरिहन्ताणं पढमं; अंतिः उवदंसेइ त्ति बेमि. ३७२१." बारसासूत्र, संपूर्ण, वि. १९४२, श्रेष्ठ, पृ. ५१, जैदेना., ले.स्थल. अणहिलपुरपाटण, ले. मु. अभयसागर (गुरु पं. रूपसागर), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. ९-व्याख्यान, संशोधित, पदच्छेद सूचक लकीरें-अल्प मात्रा में, प्र.ले.श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्टं; (११३) जब लगई मेरु थिर रहे, (२७.५४१२.५, ११४४२). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदिः णमो अरिहन्ताणं० पढमं; अंतिः उवदंसेइ त्ति बेमि. ३७२२. कल्पसूत्र सह टबार्थ व कल्पकल्लोलिका बालावबोध, संपूर्ण, वि. १८१८, श्रेष्ठ, पृ. १०९-१(१००)+१(९९)=१०९, जैदेना., ले. मु. लीलकुशल (गुरु मु. उदयकुशल), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. अंत में संघगुण की ४ गाथा टबार्थ सहित लिखी है., प्र.ले.श्लो. (८५) जलाद्रक्षे स्थलाद्रक्षे, (२५.५४११.५, ७-१६४३८-४७). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदिः णमो अरिहन्ताणं० पढमं; अंतिः उवदंसेइ त्ति बेमि. कल्पसूत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, आदि: चोसठि इन्द्रनेपूजनीक; अंतिः इम उपदेस देता हवी. कल्पसूत्र-कल्पकल्लोलिका बालावबोध, मु. अमृतकुशल, मागु., गद्य, वि. १७७५, आदिः कल्याणानि समुल्ल; अंतिः जीर्णदूर्गो मयायसी. ३७२३. कल्पसूत्र का बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९००, श्रेष्ठ, पृ. १७९, जैदेना., ले.स्थल. कुचेरा, ले. साध्वीजी चुत्रां (गुरु साध्वीजी अजाजी), पठ. साध्वीजी मखतुलांजी (गुरु साध्वीजी चुत्रां), प्र.ले.पु. मध्यम,प्र.वि. संशोधित, टिप्पण युक्त विशेष पाठ-कुछ पत्र, (२४.५४११.५, १८४४१). कल्पसूत्र-बालावबोध', मागु.,राज., गद्य, आदिः णमो अरिहन्ताणं; अंतिः जिसो उतारीयो छे. For Private And Personal Use Only Page #452 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य भाग - १ ३९८ ३७२४. कल्पसूत्र का बालावबोध, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ९०, जैदेना., प्र.वि. संशोधित, (२५.५४११.५, १६-१७४४२). कल्पसूत्र-बालावबोध* , मागु.,राज., गद्य, आदि: नत्वा श्रीमन्महावीरं; अंतिः मिच्छामि दुक्कडं. ३७२५. कल्पसूत्र सह कल्पलता टीका, संपूर्ण, वि. १८००, श्रेष्ठ, पृ. २१८, जैदेना., ले.स्थल. करीरपुरनगर, ले. पं. देवभक्ति (गुरु मु. सिद्धविजय), प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र.वि. मूल-९-व्याख्यान., संशोधित, पदच्छेद सूचक लकीरें-कुछ पत्र, (२५४१०.५, १३४४१-४४). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदिः णमो अरिहन्ताणं० पढमं; अंतिः उवदंसेइ त्ति बेमि. कल्पसूत्र-कल्पलता टीका, उपा. समयसुन्दर गणि, सं., गद्य, वि. १६८५, आदिः (१) प्रणम्य परमं ज्योतिः (२) तेणं कालेणं० ते इति; अंतिः तावन्नन्दतु सापि हि. ३७२६." कल्पसूत्र सह कल्पदीपिका टीका व टबार्थ, पूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १४२-२(१,३२)+२(३३,१०६)=१४२, जैदेना., ले. मु. मानसागर (गुरु गणि जीतसागर, तपागच्छ), पठ. गणि त्रैलोक्यसागर,प्र.वि. मूल-९-व्याख्यान. टीकाकार पं. मानसागर गणि लिखित प्रति होने की संभावना है., संशोधित, कर्ता के हस्ताक्षर से लिखित प्रत-टबार्थादि, पदच्छेद सूचक लकीरें, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२६४१०.५, ५४४४). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदिः णमो अरिहन्ताणं० पढमं; अंतिः उवदंसेइ त्ति बेमि. कल्पसूत्र-कल्पदीपिका टीका, मु. मानसागर, सं., गद्य, वि. १७५४, आदि:-; अंतिः विमलमतयो दूषणमिदम्. कल्पसूत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः (१) तेणइ कालि जे (२) चोसठि इन्द्रनेपूजनीक; अंतिः देखाड्या इम कहुं. ३७२७. कल्पसूत्र सह टबार्थ व व्याख्यान+कथा, अपूर्ण, वि. १७७०, श्रेष्ठ, पृ. १४५-४५(५३ से ९७)=१००, जैदेना., ले.स्थल. जीर्णदुर्ग, ले. मु. हरिरुचि (गुरु पं. कनकरुचि), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. मूल-९-व्याख्यान. व्याख्यान का किंचित् पाठ मारुगुर्जर भाषा में भी है., संशोधित, टिप्पण युक्त विशेष पाठ-कुछ पत्र, पू.वि. व्याख्यान-५ से आंशिक व्याख्यान-७ तक नहीं है., (२६.५४११.५, ६x४४). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: णमो अरिहन्ताणं० पढमंअंतिः उवदंसेइ त्ति बेमि. कल्पसूत्र-टबार्थ , मागु., गद्य, आदिः (१) तेणइ कालि जे (२) चोसठि इन्द्रनेपूजनीक; अंतिः भद्रबाहुस्वामीए. कल्पसूत्र-व्याख्यान+कथा* , सं., गद्य, आदिः पुरिमचरिमाणकप्पो; अंति:३७२८. कल्पसूत्र का बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ८६-६(१,२८,७७,८१,८४ से ८५)=८०, जैदेना., पू.वि. प्रथम एक, बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., (२५४११.५, ९४३१-३३). कल्पसूत्र-बालावबोध*, मागु.,राज., गद्य, आदि:-; अंति:३७२९. बारसासूत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ९९, जैदेना., प्र.वि. ९-व्याख्यान, प्र.ले.श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्टं, (२६.५४१२, ७४२७-२९). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: णमो अरिहन्ताणं० पढमं; अंतिः उवदंसेइ त्ति बेमि. ३७३०. बारसासूत्र, संपूर्ण, वि. १८७०, श्रेष्ठ, पृ. १३८, जैदेना., ले. कुशाल ब्राह्मण, प्र.वि. ९-व्याख्यान, संशोधित, (२६x१२, ८x१९). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदिः णमो अरिहन्ताणं० पढमं; अंतिः उवदंसेइ त्ति बेमि. ३७३१. कल्पसूत्र सह टबार्थ व व्याख्यान+कथा, पूर्ण, वि. १८०६, श्रेष्ठ, पृ. १९४-१(१९३)=१९३, जैदेना., ले.स्थल. पिच्चयाषनगर, ले. ऋ. दुलीचन्द (गुरु ऋ. तिलोकजी, गुर्जरगच्छ), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. मूल-परिमाण व्याख्यान ९., पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है. अन्तिम कुछ गाथाएं नहीं है., (२६.५४११.५, १४४४०-४२). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, (पूर्ण), आदिः णमो अरिहन्ताणं० पढमं; अंतिःकल्पसूत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, (अपूर्ण), आदिः (१) नमः नमस्कारोस्तु (२) ते इति प्राकृत; अंति:कल्पसूत्र-व्याख्यान+कथा* , सं., गद्य, (पूर्ण), आदिः प्रणम्य परमं ज्योतिः; अंति: For Private And Personal Use Only Page #453 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ३९९ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ३७३२. कल्पसूत्र सह टबार्थ व व्याख्यान+कथा- १ से ८ व्याख्यान, प्रतिपूर्ण, वि. १७८९, श्रेष्ठ, पृ. १३२, जैदेना., ले.स्थल. देवग्राम, (२५.५४११, ६४३१-३३). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदिः णमो अरिहन्ताणं पढम; अंति:कल्पसूत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः (१) तेणइ कालि जे (२) चोसठि इन्द्रनेपूजनीक; अंति: कल्पसूत्र-व्याख्यान+कथा* , सं., गद्य, आदिः प्रणम्य प्रणताशेष; अंति:३७३३. कल्पसूत्र सह टबार्थ, व्याख्यान+ कथा व कल्पसूत्रवाञ्चन विधि, संपूर्ण, वि. १९२५, श्रेष्ठ, पृ. १८६, पे. २, जैदेना., ले.स्थल. शिवपुरी, ले. पं. हंसविजय (गुरु मु. राजविजय, तपागच्छ), पठ. मु. मोतीलाल (गुरु पं. हंसविजय, तपागच्छ), प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र.वि. प्रतिलेखन वर्ष-चंद्रग्रहनयणसर., प्र.ले.श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्टं; (११४) लेखन उर मीस डाबडी, (२६४१२.५, ७४३६-४२). पे. १. पे. नाम. कल्पसूत्र सह टबार्थ व व्याख्यान+कथा, पृ. १-१८५आ कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदिः तेणं कालेणं० समणे; अंतिः उवदंसेइ त्ति बेमि. कल्पसूत्र-टबार्थ', मागु., गद्य, आदिः ते० तिण कालेइ तिण; अंतिः भद्रबाहुस्वामीए. कल्पसूत्र-व्याख्यान+कथा* , मागु., गद्य, आदिः श्रीवर्द्धमानं जिनं; अंतिः#., पे.वि. मूल-अध्याय-९-व्याख्यान, ग्रं.१२१६. प्र.पु. टबार्थ व व्याख्यान-ग्रं.३७८९. मूलपाठ पत्रांक-११अ से चालू है. पे. २. पे. नाम. कल्पसूत्र वाञ्चनविधि, पृ. १८५आ-१८६ कल्पसूत्र-वाचन विधि, संबद्ध, मागु., गद्य, आदिः प्रथम दोय वान्दणा; अंतिः कही पछी वाञ्चवा बेसे. ३७३४. कल्पसूत्र सह टबार्थ व व्याख्यान+कथा, संपूर्ण, वि. १८७४, श्रेष्ठ, पृ. १३५, जैदेना., ले.स्थल. गोंडलग्राम, ले. ऋ. जेराम, प्र.वि. मूल-९-व्याख्यान. इस प्रति में टबार्थकार का नामोल्लेख नहीं है., (२६.५४११.५, १२४३३). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, (संपूर्ण), आदिः णमो अरिहन्ताणं० पढमं; अंतिः उवदंसेइ त्ति बेमि. कल्पसूत्र-टबार्थ+व्याख्यान+कथा, आ. सोमविमलसूरि, मागु., गद्य, (संपूर्ण), आदिः (१) सकलार्थसिद्धिजननी (२) ते काल चोथा आराने; अंतिः हेतु कारण जाणवउ. कल्पसूत्र-व्याख्यान+कथा* , सं., गद्य, (पूर्ण), आदि:-; अंति:३७३५.” कल्पसूत्र सह कल्पसुबोधिका टीका व व्याख्यान, पूर्ण, वि. १८९१, श्रेष्ठ, पृ. २३५-१(१३)=२३४, जैदेना., ले.स्थल. बम्बइ, ले. पं. रामविजय (गुरु मु. विवेकविजय), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. मूल-९-व्याख्यान., द्विपाठ, संशोधित, प्र.ले.श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्टं, (२७४१२, १०-१२४३०-३७). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदिः तेणं कालेणं० समणे; अंतिः उवदंसेइ त्ति बेमि. कल्पसूत्र-सुबोधिका टीका, उपा. विनयविजय , सं., गद्य, वि. १६९६, आदिः (१) प्रणम्य परमश्रेयस्कर (२) तस्मिन् काले; अंतिः (१)प्रतीदमुवाचेति (२)विद्वज्जनराश्रिता. कल्पसूत्र-व्याख्यान+कथा* , सं., गद्य, आदि:-; अंतिः३७३६. कल्पसूत्र सह टबार्थ व व्याख्यान+कथा, अपूर्ण, वि. १७५५, श्रेष्ठ, पृ. ९०-५(१ से ३,५७ से ५८)=८५, जैदेना., ले.स्थल. राखी-कसवा, ले. मु. भवानी (गुरु ऋ. भागमल),प्र.वि. मूल-९-व्याख्यान. प्रति.लेखन संवत्वह्निबाणनगरूप., टिप्पण युक्त विशेष पाठ, पू.वि. प्रारंभ व बीच के कुछ पत्र नहीं हैं. टबार्थ प्रारंभ के ३ पत्र तक ही लिखा है., प्र.ले.श्लो. (११५) अज्ञानभावात्मतिविभ्रमा; (१) यादृशं पुस्तकं दृष्टं, (२९x१२, ७X४६-४८). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदिः णमो अरिहन्ताणं० पढमं; अंतिः उवदंसेइ त्ति बेमि. कल्पसूत्र-टबार्थ , मागु., गद्य, आदिः (१) तेणइ कालि जे (२) नमो क० माहरो नमस्कार; अंतिःकल्पसूत्र-व्याख्यान+कथा* , सं., गद्य, आदि:-; अंति: For Private And Personal Use Only Page #454 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य भाग - १ ४०० ३७३७.” कर्मग्रन्थ षट्क सह टबार्थ, पूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ८६-१(२७)=८५, पे. ६, जैदेना., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, प्र.ले.श्लो. (११६) अशक्य वशात् मतिमंदात्श्चइ, (२५४११.५, ३४५०-५४). पे. १. पे. नाम. कर्मविपाक नव्य कर्मग्रन्थ सह टबार्थ, पृ. १-१८आ, संपूर्ण कर्मविपाक नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, आदिः सिरिवीरजिणं वन्दिय; अंतिः लिहिओ देविन्दसूरीहिं. कर्मविपाक नव्य कर्मग्रन्थ-टबार्थ, मु. धनविजय, मागु., गद्य, वि. १७वी, आदिः शारदां वरदा; अंतिः देवेन्द्रसूरि ___ आचार्य., पे.वि. मूल-गा.६०. पे. २. पे. नाम. कर्मस्तव नव्य कर्मग्रन्थ सह टबार्थ, पृ. १८आ-२६-, पूर्ण कर्मस्तव नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, आदिः तह थुणिमो वीरजिणं; अंति:कर्मस्तव नव्य कर्मग्रन्थ-टबार्थ, मु. धनविजय, मागु., गद्य, आदिः तिम हुं स्तवं छु; अंति:-, पे.वि. अन्तिम पत्र नहीं है. गा.३० तक है. पे. ३.पे. नाम. बन्धस्वामित्व नव्य कर्मग्रन्थ सह टबार्थ, पृ. -२९अ-३४आ, पूर्ण बन्धस्वामित्व नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि:-; अंतिः नेयं कम्मत्थयं सोउं. बन्धस्वामित्व नव्य कर्मग्रन्थ-टबार्थ, मु. धनविजय, मागु., गद्य, आदिः-; अंतिः कर्मस्तव साम्भली., पे.वि. मूल गा.२५. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. गा.१ नहीं है. पे. ४. पे. नाम. खडशीतिका नव्य कर्मग्रन्थ सह टबार्थ, पृ. ३४आ-५२अ, संपूर्ण षडशीति नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, आदिः नमिय जिणं जिय; अंतिः देविन्दसूरीहिं. षडशीति नव्य कर्मग्रन्थ-टबार्थ, मु. धनविजय, मागु., गद्य, आदिः वान्दीनइ तीर्थङ्कर; अंतिः श्रीतपागच्छ नायकइ., पे.वि. मूल-गा.८६ प्र.पु. सूत्रार्थ ग्रं.१६००. पे. ५. पे. नाम. शतक नव्य कर्मग्रन्थ सह टबार्थ, पृ. ५२१-७२अ, संपूर्ण शतक नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, आदिः नमिय जिणं धुवबन्धोदय; अंतिः सयगमिणं आयसरणट्ठा. शतक नव्य कर्मग्रन्थ-टबार्थ, उपा. धनविजय, मागु., गद्य, आदिः ध्रुवबन्धी प्रकृति; अंतिः सम्भारवानइ अर्थइ., पे.वि. मूल-गा.१००; प्र.पु. मूल-ग्रं.१४७. प्र.पु. टबार्थ-ग्रं.५०७. पे. ६. पे. नाम. सप्ततिकासूत्र सह टबार्थ, पृ. ७२अ-८६, संपूर्ण सप्ततिका कर्मग्रन्थ, प्रा., पद्य, आदिः सिद्धपएहिं महत्थं; अंतिः एगुणा होइ नउइओ. सप्ततिका कर्मग्रन्थ-टबार्थ, मु. धनविजय, मागु., गद्य, वि. १७००, आदिः सिद्धि निश्चल पद; अंतिः एकइ ऊणी नेऊ गाथा होइ., पे.वि. मूल-गा.९३. प्र.पु. उभय ग्रं.१११९. मासी देववन्दन, संपूर्ण, वि. १९२९, श्रेष्ठ, प. १९, जैदेना., ले.स्थल. अमदावाद, ले. खेमचन्द, लिखवा. श्राविका समरीबाई, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. प्र.पु. मूल गा.३७५., (२५४११.५, ११४३३). चौमासी देववन्दन, पं. पद्मविजय, मागु., पद्य, आदिः विमल केवलज्ञान कमला; अंतिः पास सांमलनु चेइ रे. ३७३९." सीमन्धरस्वामीवीनति स्तवन सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २१-५(४,७,९,१३,२०)=१६, जैदेना., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, पू.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं. ढाल-११ की गा.१ तक है.. (२४४११.५, ४४२५-३५). जनविनती स्तवन सवासोगाथा, उपा. यशोविजयजी गणि, मागु., पद्य, आदिः स्वामी सीमंधर विनती; अंति:सीमन्धरजिनविनती स्तवन-टबार्थ, उपा. यशोविजयजी गणि, मागु., गद्य, आदिः प्रणम्य पार्श्वदेव; अंति:३७४०. सीमन्धरस्वामीवीनति स्तवन सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २७-१५(१ से १२,२२ से २४)=१२, जैदेना., पू.वि. प्रारंभ, बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., (२४४१२, ४४२८). सीमन्धरजिनविनती स्तवन, मागु., पद्य, आदि:-; अंति:सीमन्धरजिनविनती स्तवन-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः-: अंति: For Private And Personal Use Only Page #455 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ४०१ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ३७४१. चन्द्र चरित्र, पूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ७८, जैदेना.,प्र.वि. गा.२६७१, पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है. प्रतिलेखन पुष्पिका का __ भाग नहीं है., (२६४११.५, १६४५०). चन्द्रराजा रास, मु. मोहनविजय, मागु., पद्य, वि. १७८३, आदिः प्रथम धराधव तीम; अंतिः वर्णव्या गुण चन्दना. ३७४२. कल्पसूत्र सह बालावबोध, पूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १०१, जैदेना.,प्र.वि. मूल-९-व्याख्यान. पत्रांक-१ व ४०अ पर रंगीन चित्र है., संशोधित, पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है., (२७४११, १४४३५). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, (संपूर्ण), आदिः णमो अरिहन्ताणं० पढमं; अंतिः उवदंसेइ त्ति बेमि. कल्पसूत्र-बालावबोध*, मागु.,राज., गद्य, (संपूर्ण), आदिः श्रीकल्पसिद्धान्त; अंतिः सिद्धान्त तेह तणइ. ३७४३. कल्पसूत्र, संपूर्ण, वि. १८२२, श्रेष्ठ, पृ. ५८, जैदेना., ले.स्थल. विक्रमपुर, गच्छा. आ. जिनलाभसूरि, ले. पं. अमृतधर्म, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. ९-व्याख्यान, (२५.५४११.५, १०४३६-४२). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदिः णमो अरिहन्ताणं० पढमं; अंतिः उवदंसेइ त्ति बेमि. ३७४४. कल्पसूत्र व जैनश्लोक, संपूर्ण, वि. १८९३, श्रेष्ठ, पृ. ५३, पे. २, जैदेना., ले.स्थल. उदयपुर, ले. मु. जीवणविजय, (२७४१३, ११-१३४३०). पे. १. कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, (पृ. १आ-५३आ), आदिः णमो अरिहन्ताणं पढमं; अंतिः उवदंसेइ त्ति बेमि., पे.वि. ग्रं.१२१६. पे. २. जैन गाथा *, सं.,प्रा., पद्य, (पृ. ५३आ), आदि: #; अंतिः#. ३७४५. बारसासूत्र, संपूर्ण, वि. १९५९, श्रेष्ठ, पृ. ६७, जैदेना., ले.स्थल. जोधपुर, ले. आसुलाल, प्र.वि. ९-व्याख्यान, (२७४१३, ११४३२). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदिः णमो अरिहन्ताणं० पढमं; अंतिः उवदंसेइ त्ति बेमि. ३७४६. कल्पसूत्र सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २३९, जैदेना., प्र.वि. मूल-९-व्याख्यान., संशोधित, त्रिपाठ, पदच्छेद सूचक लकीरें, (२६४११, १३४४३-४६). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदिः तेणं कालेणं० समणे; अंतिः उवदंसेइ त्ति बेमि. कल्पसूत्र-बालावबोध, मु. खीमाविजय, मागु., गद्य, वि. १७०७, आदिः प्रणम्य श्रीमहावीरं; अंतिः यः कर्ता तस्य मङ्गलं. ३७४७. कल्पसूत्र सह टबार्थ व व्याख्यान+कथा, अपूर्ण, वि. १८१४, श्रेष्ठ, पृ. १७३-३९(१०१ से १३९)=१३४, जैदेना., ले.स्थल. सीरोही (सहीरोइ), ले. मु. भक्तिसुन्दर (गुरु मु. रतनसुन्दर), पठ. पं. रतनसुन्दर, प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र.वि. मूल-ग्रं. १२१६, ९-व्याख्यान. आधी प्रत ईडर में तथा आधी सिरोही में लिखी गयी है., संशोधित, प्र.ले.श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्टं, (२६४११.५, ६x२८-३०). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदिः णमो अरिहन्ताणं० पढमं; अंतिः उवदंसेइ त्ति बेमि. कल्पसूत्र-टबार्थ, मागु.. गद्य, आदिः (१) तेणइ कालि जे (२) नमो क० माहरो नमस्कार; अंतिः एतले गुरुक्त जणाविउ. कल्पसूत्र-व्याख्यान+कथा* , मागु., गद्य, आदिः वन्दामि भद्दबाहुं; अंति:३७४८.” कल्पसूत्र सह व्याख्यान, टबार्थ व आशीर्वचन, पूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १९१-१(७२)=१९०, पे. २, जैदेना., प्र.वि. संशोधित, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२५.५४११.५, ६४३६). पे. १. पे. नाम. कल्पसूत्र सह व्याख्यान व टबार्थ, पृ. १-१९१, पूर्ण कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदिः णमो अरिहन्ताणं० पढमं; अंतिः उवदंसेइ त्ति बेमि. कल्पसूत्र-व्याख्यान, सं., गद्य, आदिः प्रणम्य प्रणताशेषा; अंतिः दृष्टान्ता ज्ञेया. कल्पसूत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, आदि: नमो क० माहरो नमस्कार; अंति: एतले गुरुक्त जणाविउ., पे.वि. मूल अध्याय-९-व्याख्यान. बीच का एक पत्र नहीं है. व्याख्यान में कहीं-कहीं मारुगुर्जर पाठ भी लिखा है. For Private And Personal Use Only Page #456 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य भाग - १ ४०२ पे. २. आशीर्वचन पाठ, सं., पद्य, (पृ. १९१अ, संपूर्ण), आदिः नक्षत्राक्षतपूरीतं; अंतिः श्रीसङ्घभट्टारकः., पे.वि. श्लो.१. ३७४९.” कल्पसूत्र सह टबार्थ व व्याख्यान+कथा, संपूर्ण, वि. १९०९, श्रेष्ठ, पृ. १७९, जैदेना., ले.स्थल. पालीताणा, प्र.वि. मूल ९-व्याख्यान. प्र.पु. सर्वग्रं. ६८९०., संशोधित, (२५.५४१३, ८४३३). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदिः णमो अरिहन्ताणं० पढमं; अंतिः उवदंसेइ त्ति बेमि. कल्पसूत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः (१) अरिहन्तनइ माहरो (२) ते. तिण कालेइ तिण; अंतिः उपदिसै इम कहै. कल्पसूत्र-व्याख्यान+कथा* , मागु., गद्य, आदिः नत्वा श्रीमन्महावीरं; अंतिः#. ३७५०.” कल्पसूत्र सह कल्पकिरणावली टीका, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ३२२+१(१४३)=३२३, जैदेना., प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र.वि. मूल-९-व्याख्यान; टीका-ग्रं. ४८१४., ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित-टबार्थादि, संशोधित, पदच्छेद सूचक लकीरें-कुछ पत्र, त्रिपाठ, (२६.५४११, ३-५४३०-३३). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदिः तेणं कालेणं० समणे; अंतिः उवदंसेइ त्ति बेमि. कल्पसूत्र-कल्पकिरणावली टीका, उपा. धर्मसागर गणि, सं., गद्य, वि. १६२८, आदिः प्रणम्य प्रणताशेष; अंतिः मभिहितमिति. ३७५१. कल्पसूत्र सह टबार्थ व व्याख्यान+कथा, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १६२-२१(१ से ११,१०२ से ११०,१३०)=१४१, जैदेना., पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., दशा वि. विवर्ण-पानी से अक्षरों की स्याही फैल गयी है, (२५४१०, ५-१४४३९४४). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदिः णमो अरिहन्ताणं० पढमं; अंति:कल्पसूत्र-टबार्थ , मागु., गद्य, आदिः (१) अरिहन्तनइ माहरो (२) ते० तिण कालेइ तिण; अंति: कल्पसूत्र-व्याख्यान+कथा* , मागु., गद्य, आदि:-; अंति:३७५२.” कल्पसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १६९२, श्रेष्ठ, पृ. १६४, जैदेना., ले. मु. राजरत्न, प्र.वि. मूल-९-व्याख्यान.प्र.पु. टबार्थ-ग्रं. ५२००. आंशिक व्याख्यान है., संशोधित, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२४.५४१०.५, ६x२३-२६). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदिः णमो अरिहन्ताणं० पढमं; अंतिः उवदंसेइ त्ति बेमि. कल्पसूत्र-टबार्थ+व्याख्यान+कथा, आ. सोमविमलसूरि, मागु., गद्य, आदिः सकलार्थसिद्धिजननी; अंतिः एतलइ गुरुक्त जाणवु. ३७५३. श्रीपाल रास, दूहा व जिनदत्तसूरि दूहा, संपूर्ण, वि. १८९२, श्रेष्ठ, पृ. ७७, पे. २, जैदेना., ले.स्थल. पोसाल रामपुर, ले. श्रा. प्रेमचन्द सुराणा, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.ले.श्लो. (५०६) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा; (१६७) जिहां लगे मेरु अडिग है; (११८) कठिनमृषानी उधोरमुखे; (५८१) मन मजुस गुण रतन हे, (२५४११.५, १२४३५). पे. १. श्रीपाल रास, उपा. विनयविजय , उपा. यशोविजयजी गणि, मागु., पद्य, वि. १७३८, (पृ. १-७७), आदिः कल्पवेल कवियण तणी; अंतिः लहसे ज्ञान विशालाजी., पे.वि. गा.१८२५, खण्ड-४, ढाळ ४१. पे. २. जिनदत्तसूरि दूहा, मागु., पद्य, (पृ. ७४आ), आदिः आ गादी तपज्यो सदा; अंतिः जेणने सुखसाता छे. ३७५४." कल्पसूत्र सह कल्पसुबोधिका टीका, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १८०, जैदेना., ले. पं. जसविजय, प्र.वि. मूल-९ व्याख्यान., संशोधित, त्रिपाठ, पदच्छेद सूचक लकीरें, (२५.५४११, २-४४४०-४४). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: णमो अरिहन्ताणं० पढमं; अंतिः उवदंसेइ त्ति बेमि. कल्पसूत्र-सुबोधिका टीका, उपा. विनयविजय , सं., गद्य, वि. १६९६, आदिः प्रणम्य परमश्रेयस्कर; अंतिः विद्वज्जनराश्रिता. ३७५५. नवतत्त्व सह बालावबोध, पूर्ण, वि. १८७७, श्रेष्ठ, पृ. ६३-१(२)=६२, जैदेना., ले.स्थल. पालनपुर, ले. गणि विद्याविजय (गुरु पं. रूपविजय), प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र.वि. मूल-गा.५३., (२५.५४११.५, १६x४२-४८). नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंतिः बोहिय इक्कणिक्काय. For Private And Personal Use Only Page #457 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ४०३ (+) कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची नवतत्त्व प्रकरण-बालावबोध, मु. देवचन्द, मागु., गद्य, वि. १७६६, आदिः ज्ञानं पञ्चविधं; अंतिः (१) सुलभ बुद्धि फुनी होय (२) जगत्रनिं शिरोमणी छै. ३७५६. सूयगडाङ्गसूत्र सह टवार्थ प्रथमश्रुतरकन्ध, प्रतिपूर्ण, वि. १९१७, श्रेष्ठ, प्र. ९१ जैदेना ले. स्थल वणोदनगर, ले. भृगू, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. प्र. पु. सर्वग्रं. ३७००., संशोधित, ( २६.५x१२.५, ४४४२). सूत्रकृताङ्गसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदिः बुज्झिज्ज तिउट्टेज्ज; अंतिःसूत्रकृताङ्गसूत्र-बालावबोध, आ. पार्श्वचन्द्रसूरि, मागु., गद्य, आदि: (१) आदिदेवं नमस्कृत्य (२) बुज्झे० छ जीवनिकायनु: अंतिः (+) ३७५७." षडावश्यकसूत्र सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १५८०, श्रेष्ठ, पृ. १६४, जैदेना., ले. स्थल. पत्तन, प्र. वि. संशोधित, पदच्छेद सूचक लकीरें (२६.५४११.५, ९४३८). आवक प्रतिक्रमणसूत्र -तपागच्छीय संबद्ध प्रा. प+ग, आदि नमो अरिहन्ताणं० अंतिः वन्दामि जिणे चउवीसं. www.kobatirth.org: " आवक प्रतिक्रमणसूत्र- तपागच्छीय- बालावबोध, पं. हेमहंस गणि, मागु, गद्य वि. १५०१, आदि श्रेयांसि श्रीमहावीर; अंतिः थाउ प्रत्याख्यान. (+) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (+1) ३७५८. आप्तमीमांसा सह टीका, अपूर्ण, वि. १७वी श्रेष्ठ, पृ. १४८-५ ७९ से ८०८६ से ८८ ) - १४३, जैदेना. प्र. वि. पंचपाठ, " पदच्छेद सूचक लकीरें - संधि सूचक चिह्न, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, पू. वि. बीच-बीच व अंत के पत्र नहीं हैं. परिच्छेद १० अपूर्ण तक है, दशा वि. विवर्ण-पानी से अक्षरों की स्याही फैल गयी है अल्प (२६४१०५, १५४५५). आप्तमीमांसा, आ. समन्तभद्र, सं., पद्य, आदिः देवागमनभोयानचामरादि; अंतिः "" आप्तमीमांसा - अष्टशतीभाष्य की अष्टसहस्रीटीका, आ. विद्यानन्दस्वामी, सं. गद्य, आदिः श्रीवर्द्धमानमभिवन: अंति ३७६०.” प्रश्नव्याकरण सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १६६७, श्रेष्ठ, पृ. १०३ - १३ ( १४ से २६ ) - ९०, जैदेना., ले. स्थल.. तिजारानगर, ले. वाचक राजसागर, राज्यकाल राजा सलेम साह, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. मूल- अध्याय - १०: प्र. पु. मूल ग्रं. १२५० पंचपाठ दशा वि. विवर्ण पानी से अक्षरों की स्याही फैल गयी है. (२६५११, ५-७४३५-३७). प्रश्नव्याकरणसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदिः जम्बू इणमो अण्हयसंवर; अंतिः शरीरधरे भविस्सत्तीति.. प्रश्नव्याकरणसूत्र - बालावबोध, आ. पार्श्वचन्द्रसूरि मागु, गद्य, आदि प्रश्नव्याकरण स्युं अंतिः तुज्झ प्रति काउ ३७६२. जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिसूत्र, संपूर्ण वि. १६७७, श्रेष्ठ, पृ. ११७, जैदेना, प्र. वि. ७ वक्षस्कार प्र.पु. मूल ग्रं. ४४५४ संशोधित, (+) " (२६×११, १३x४१-४४). जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति, प्रा. गद्य, आदि: तेणं कालेणं तेणं अंति: उवदंसेइ त्ति बेमि .. (+) ३७६३." आवश्यकसूत्र सह वृत्ति, संपूर्ण, वि. १८३६, श्रेष्ठ, पृ. ८८+ २ (५५ से ५६ ) = ९०, जैदेना., ले. स्थल. मेदनीपुर, ले. आ. जिनसम्भवसूरि, राज्यकाल - राजा विजयप्रतापसिंह, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. टीका- ग्रं. २७२०. अनुपूरित पत्र हेतु प्रतिलेखक ने स्पष्टतापूर्वक प्र. पु. श्लोक में उल्लेख किया है., पदच्छेद सूचक लकीरें संधि सूचक चिह्न, संशोधित, अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ, प्र.ले. श्लो. (५५९) पूर्वापर असम्पूर्णा (२६.५x१०.५, १२९४०-५०). आवश्यक सूत्र प्रा. प+ग, आदिः णमो अरहंताणं०; अंतिः एरिसयम्मि पयइयव्वं. श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र - वन्दारू टीका, आ. देवेन्द्रसूरि सं. गद्य, आदि वृन्दारुवृन्दारक; अंतिः वृत्तितोवरचूर्णितश्च. ३७६५.” दशवैकालिकसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९६३, श्रेष्ठ, पृ. ११९ + १ ( १ ) = १२०, जैदेना., प्र. वि. मूल-अध्यायअध्ययन १० चूलिका२., पदच्छेद सूचक लकीरें, अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ - कुछ पत्र (२७१२, ३x४६). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यम्भवसूरि, प्रा., पद्य, वि. पू. ४, आदिः धम्मो मङ्गलमुक्किट्ठ; अंतिः (१) मुच्चइति बेमि (२) आलणा सङ्घे. दशवैकालिकसूत्र-टबार्थ *, मागु., गद्य, आदि: (१) प्रणम्य श्रीमहावीरं (२) ध० श्रीजिनधर्म; अंतिः (१) करी ए सत्य वात (२) छे तेम हुं कहुं छं. For Private And Personal Use Only Page #458 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य भाग १ - www.kobatirth.org: ३७६६. दशवैकालिकसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ११३, जैदेना. प्र. वि. मूल- अध्याय-अध्ययन १०. (२५.५५११, ३-४x२५-३३). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यम्भवसूरि, प्रा., पद्य, वि. पू. ४, आदिः धम्मो मङ्गलमुक्किट्ठ; अंतिः गइं त्ति बेमि दशवैकालिकसूत्र-टबार्थ *, मागु., गद्य, आदिः ध० श्रीजिनधर्म; अंतिः त्तिबेमि कहता जाय.. (+) ३७६७." कल्पसूत्र सह टबार्थ व व्याख्यान+कथा, पूर्ण, वि. १७७२, श्रेष्ठ, पृ. ९२- १ (७३) = ९१, जैदेना., प्र. वि. मूल - ९ - व्याख्यान, ग्रं. १२१६.प्र.पु. टबार्थ व कथा - ग्रं. ६५०९, संशोधित, पदच्छेद सूचक लकीरें, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, पू.वि. बीच के व अंतिम पत्र नहीं हैं. प्रतिलेखन पुष्पिका का पत्र नहीं है. (२६४११ कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा. गद्य, आदि णमो अरिहन्ताणं० पढमं अंति: उवदंसेइ त्ति बेमि कल्पसूत्र - टबार्थ *, मागु., गद्य, आदि: तेणइ कालि जे; अंतिः एतले गुरुभक्ति जाणवु. ००५२-७२) कल्पसूत्र- व्याख्यान+कथा' मागु, गद्य, आदि:-: अंति: ३७६८. चित्रसेनपद्मावती चरित्र सह टवार्थ, संपूर्ण, वि. १८८८, श्रेष्ठ, पृ. ८४, जैदेना, ले. स्थल ममाइ (मुम्बई), ले. गणि विजय, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. मूल - श्लो. ७४६., (२६×११, ५X३०-३२). चित्रसेनपद्मावती चरित्र, पाठक राजवल्लभ, सं., पद्य वि. १५२४, आदि: नत्वा जिनपत्तिमाद्यं; अंतिः पाठकराजवल्लभः. चित्रसेनपद्मावती चरित्र - टबार्थ, गणि भक्तिविजय, मागु., गद्य, आदिः आद्यं क० पेला युगला; अंतिः चारु निर्मितं. ३७७० कल्पसूत्र सह टवार्थ व व्याख्यान+कथा, पूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १४६-३ (१ से ३ ) - १४३, जैदेना. प्र. वि. मूल-९ व्याख्यान, ग्रं. १२१६ प्र.पु. मूलसूत्र - ४६४ संशोधित टिप्पण युक्त विशेष पाठ, पदच्छेद सुचक लकीरें, पृ. वि. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मूलपीठिका भाग नहीं है., (२६×११, ५X३५). कल्पसूत्र, आ. भद्रवाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: णमो अरिहन्ताणं० पढमं अंति: उवदंसेइ ति बेमि कल्पसूत्र - टवार्थ मागु., गद्य, आदि (१) अरिहन्तनइ माहरो (२) तेणइ कालि जे अंतिः भलइ गुरूक्त जणाविउ कल्पसूत्र - व्याख्यान + कथा*, मागु., गद्य, आदि:-; अंति: ३७७१. कल्पसूत्र सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १७६६, श्रेष्ठ, पृ. १०१, जैदेना. प्र. वि. मूल-९- व्याख्यान, ग्रं. १२१६., त्रिपाठ (२६११, १ - ८X३७). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा. गद्य, आदि णमो अरिहन्ताणं० पढमं अंतिः उवदंसेइ त्ति बेमि कल्पसूत्र - बालावबोध *, मागु., राज, गद्य, आदि: (१) अज्ञान तिमिरान्धानां (२) श्रीकल्पसिद्धान्त; अंति: (१) सिद्धान्त तेह तणइ (२) कथा वाच्यमान जाणवी. ग्रं. १२१६., (२४.५x११, ७- १६४४८-५८). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि णमो अरिहन्ताणं० पढमं अंति: उवदंसेह त्ति बेमि (+) ३७७२. कल्पसूत्र सह टवार्थ व व्याख्यान+कथा ( वार्तिक), संपूर्ण वि. १८वी श्रेष्ठ, पृ. १०५ जैदेना. प्र. वि. मूल-९- व्याख्यान, " ४०४ कल्पसूत्र- -टबार्थ *, मागु., गद्य, आदि: (१) अरिहन्तनइ माहरो (२) तेणइ कालि जे; अंतिः देखाड्या इम कहुं. कल्पसूत्र - व्याख्यान + कथा ऋ. उत्तम मागु, गद्य, आदि: श्रीऋणमजिनं नौमि अंतिः राजानी परै खमावो. ३७७३. कल्पसूत्र का वालावबोध, संपूर्ण, वि. १९३४ श्रेष्ठ, पृ. १३६, जैदेना ले करसन वेलजी दवे, प्र. वि. संशोधित, " (२५.५४११.५, १२४३९-४१). कल्पसूत्र - बालावबोध, मु. खीमाविजय, मागु, गद्य वि. १७०७ आदि प्रणम्य श्रीमहावीर: अंतिः शिष्यने इम कहे. ३७७४." कल्पसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ९५, जैदेना., प्र. वि. मूल - ९ - व्याख्यान प्र. पु. मूल ग्रं. १०००., पदच्छेद सूचक लकीरें, संशोधित टिप्पण युक्त विशेष पाठ-कुछ पत्र (२६.५X११, ६x४४). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा. गद्य, (संपूर्ण) आदि णमो अरिहन्ताणं० पढमं अंतिः उवदंसेइ ति बेमि .. · For Private And Personal Use Only Page #459 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ४०५ www.kobatirth.org: कल्पसूत्र - टबार्थी*, मागु., गद्य, (पूर्ण), आदि: तेणइ कालि जे; अंति: ३७७५. कल्पसूत्र सह टबार्थ व व्याख्यान+कथा, संपूर्ण, वि. १८०६, श्रेष्ठ, पृ. २०६ + १ (१४५) = २०७, जैदेना., ले. स्थल. वालीनगर, ले. गणि किशनविजय, प्र. वि. मूल-९- व्याख्यान, संशोधित टिप्पण युक्त विशेष पाठ-कुछ पत्र, (२७१०.५, ६- १२३३-३६). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: णमो अरिहन्ताणं० पढमं अंतिः उददंसेइ ति बेमि ; कल्पसूत्र- टवार्थ मागु, गद्य, आदि नमो क० माहरो नमस्कार अंतिः भद्रबाहुस्वामीए. कल्पसूत्र - व्याख्यान + कथा*, सं., गद्य, आदिः प्रणम्य प्रणताशेष; अंतिः #. कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि:-: अंति: कल्पसूत्र - बालावबोध' मागु, राज, गद्य, आदि-: अंतिः ३७७६.” कल्पसूत्र सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १६५-२३ (१ से २३ ) = १४२, जैदेना., प्र. वि. त्रिपाठ, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, संशोधित, पृ. वि. प्रारंभ व अंत के पत्र नहीं हैं. (२७४११.५, २-७०४३२). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ३७७७. उपदेशमाला सह टबार्थ, पूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १६८- २ (४७, १६५ ) + १ (४८) - १६७, देना, पृ.वि. बीच के व अंतिम पत्र नहीं हैं. गा. ५४१ तक है., ( २६.५X११, ३-१५X४२-४८). उपदेशमाला, गणि धर्मदास, प्रा., पद्य, आदिः नमिऊण जिणवरिन्दे अंतिः उपदेशमाला - बालावबोध, मु. वृद्धिविजय, मागु, गद्य वि. १७१३ आदिः प्रणम्य श्रीमहावीरं अंति: " ३७७८. विपाकसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी श्रेष्ठ, पृ. ६६. जैदेना. पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. श्रुतस्कन्ध-२ अध्ययन-१ की अपूर्ण पहली गाथा तक है., ( २६.५x११, ७३४). विपाकसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं तेणं; अंतिःविपाकसूत्र - टवार्थ, मागु, गद्य, आदि: ते० वर्त्तमान: अंति: ३७७९. कल्पसूत्र का व्याख्यान + कथा वाचना १९ प्रतिअपूर्ण वि. १९३८ श्रेष्ठ, पृ. १०६-२ (१,५७ ) = १०४, जैदेना. पु.वि. व्याख्यान १-८. ऋषभदेव चरित्र तक है., ( २४.५x१२.५, २०X३७-४३). कल्पसूत्र - व्याख्यान + कथा*, मागु., गद्य, आदि:-; अंति: ३७८०, चौवीसदण्डक २९ द्वार विचार, संपूर्ण वि. १९३७, श्रेष्ठ, पृ. २०, जैदेना ले. साध्वीजी जीतश्रीजी, प्र. वि. टिप्पण युक्त " विशेष पाठ, (२५x१३.५, ११४३०). २४ दण्डक २९ बोल, मागु, गद्य, आदि: प्रथम नामद्वार बीजु अंतिः अनंत गुणे अधिक जाणवा . "" " ३७८१. वीरवंशावली तपागच्छीय, संपूर्ण वि. १८९१ श्रेष्ठ, पृ. ८३, जैदेना ले. स्थल डाडानगर, ले. पं. धरणेन्द्रविजय (गुरु मु. रत्नविजय), प्र.ले.पु. विस्तृत, (२५.५०१२, १२-१४४३६-३९). पट्टावली तपागच्छीय, मागु., गद्य, आदिः प्रणिपत्य जगन्नाथं; अंतिः फेले नितात्. For Private And Personal Use Only ३७८२.” कल्पसूत्र सह कल्पद्रुमकलिका टीका, संपूर्ण, वि. १८८०, श्रेष्ठ, पृ. २०३, जैदेना., ले. स्थल. विक्रमपुर नगर, ले. मु. लाभधर्म (गुरु मु. हर्षविजय), प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र. वि. मूल - ९ - व्याख्यान. प्र. ले संवत् नभोष्टसिद्धींदु., संशोधित, पदच्छेद सूचक लकीरें वचन विभक्ति संकेत-संधि सूचक चिह्न प्र.ले. श्लो. (५०९) यादृशं पुस्तके दृष्ट: (६१) भग्नपृष्टि कटीग्रीवा (५१८) तैलाद्रक्षे ज्जलाद्रक्षेत्: (११९) यावल्लोकेन वर्तेते, ( २६.५४१२.५ १३४४२-४७). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: णमो अरिहन्तार्ण० पदमं अंतिः उददंसेइ त्ति बेमि ; कल्पसूत्र- कल्पद्रुमकलिका टीका, गणि लक्ष्मीवल्लभ, सं., गद्य वि. १८वी आदि श्रीवर्द्धमानस्य अंतिः कल्पसूत्रस्य चेमाम्. (+) ३७८३. कल्पसूत्र का बालावबोध, संपूर्ण, वि. १८९७, श्रेष्ठ, पृ. २१७ + १ (१९०) = २१८, जैदेना., ले. स्थल. सेंसपरा, ले. श्रा. Page #460 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य भाग १ .. डुंगरजी, पठ. मु. ऋद्धिविजय (गुरु मु. लक्ष्मीविजय), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. प्र.पु. ग्रं. ५०५३, संशोधित, (२७१२, १२४३१-३६). कल्पसूत्र - बालावबोध*, मागु., राज., गद्य, आदिः श्रीपार्श्व प्रणिपत; अंतिः सम्पूर्ण कह्यो ते छे.. ३७८४." कल्पसूत्र का व्याख्यान+कथा व्याख्यान १ से ७ प्रतिपूर्ण, वि. १९५४, श्रेष्ठ, पृ. १७५, जैदेना., ले. स्थल. वीसनगर, पठ. मु. गुणविजय, ले. धनसुखराम बेचरदास, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. एक नंबर का पत्र टूटा हुआ है., संशोधित, पू. वि. ऋषभचरित्र तक है., प्र.ले. श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्टं (४७१) भग्नपृष्टं कटिग्रीवा; (४) जलं रक्षेत् स्थलं रक्षेत (२५.५४१४, १३४२५-२७). कल्पसूत्र- द - कल्पवार्तिक व्याख्यान + कथा, पं. जिनविजय, मागु., गद्य, आदि: पुरिम चरिमाण कप्पो; अंतिः www.kobatirth.org: ३७८५. कल्पसूत्र सह टबार्थ, व्याख्यान + कथा व श्लोकसङ्ग्रह सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९००, श्रेष्ठ, पृ. १९७-१५(१ से १०,७५ से ७९)=१८२, पे. २, जैदेना., (२७x१३, ६३०-३२). पे. १. पे. नाम. कल्पसूत्र सह टबार्थ व व्याख्यान + कथा, पृ. ११ - १९७, अपूर्ण कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी प्रा. गद्य, आदि णमो अरिहन्ताणं० पढमं अंति: उवदंसेइ ति बेमि , "" कल्पसूत्र-टबार्थ*, मागु., गद्य, आदिः श्रीवर्द्धमानं जिनं; अंतिः अध्ययन समत्त भणी . कल्पसूत्र - व्याख्यान + कथा मागु, गद्य, आदि - अंति.-, पे. वि. मूल-ग्रं. १२१६ अध्याय - ९ - व्याख्यान प्र. पु. ; सर्वग्रं.७५५०. प्रारंभ व बीच के पत्र नहीं हैं. पत्रांक - ११ से ही ग्रन्थ आरंभ हुआ है. पे. २. पे. नाम. श्लोक सङ्ग्रह सह टबार्थ, पृ. १९७अ, संपूर्ण श्लोक सग्रह जैनधार्मिक, सं., प्रा., पद्य, आदि: # अंतिः #. श्लोक सग्रह जैनधार्मिक-टवार्थ मागु, गद्य, आदि: # अंति, पे. वि. मूल-श्लो. २. , , " ३७८७. जम्बूस्वामी चरित्र, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ८४, जैदेना., प्र. वि. सर्ग - ११, (२८x१२.५, १०x४१). जम्बूस्वामी चरित्र, मु. जिनदास, सं., पद्य, आदि श्रीवर्द्धमानतीर्थेश अंतिः सन्ति निश्चितम् Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir - ३७८६." कल्पसूत्र सह कल्पद्रुमकलिका टीका- व्याख्यान १-७, प्रतिपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २९२, जैदेना., प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें संधि सूचक चिह्न वचन विभक्ति संकेत- क्रियापद संकेत, संशोधित, ( २६४१३, ११४२६-२८). - कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी प्रा. गद्य, आदि: णमो अरिहन्ताणं० पढमं अंति:कल्पसूत्र-कल्पद्रुमकलिका टीका, गणि लक्ष्मीवल्लभ, सं., गद्य, वि. १८वी, आदिः श्रीवर्द्धमानस्य; अंतिः ३७८८. कल्पसूत्र, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ७३, जैदेना., प्र. वि. ९ - व्याख्यान, ( २८.५x१३, ९४३८-४१). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदिः णमो अरिहन्ताणं० पढमं अंति: उवदंसेइ त्ति बेमि " - ४०६ ३७९०. कल्पसूत्र का बालावबोध व्याख्यान १६ प्रतिपूर्ण, वि. १९२४, श्रेष्ठ, पृ. १४३, जैदेना. ले. स्थल. नांणानगर, ले. मु. हीरविजय (गुरु आ राजविजयसूरि) पठ. मु. रत्नविजय, प्र.ले.पु. मध्यम ( २८४१४, ११४२५). कल्पसूत्र - बालावबोध *, मागु., राज, गद्य, आदिः प्रणम्य श्रीमहावीरं; अंति: ३७९१." कल्पसूत्र सह टवार्थ व व्याख्यान+कथा व्याख्यान १-८ प्रतिपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १६३+२(६९.९१)=१६५. , जैदेना., प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, पू.वि. व्याख्यान १८ तक है. ऋषभदेवचरित्र तक है. (२९.५५१४, ६१६×३६-३९). For Private And Personal Use Only कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदिः णमो अरिहन्ताणं० पढमं; अंति: कल्पसूत्र - टबार्थ *, मागु., गद्य, आदि: ते कालनइ विषइ चतुर्थ; अंतिः कल्पसूत्र - व्याख्यान+कथा' मागु, गद्य, आदिः श्रीमद्वीरजिनं नत्वा अंति: ३७९२. कल्पसूत्र, संपूर्ण वि. १९५५ मध्यम, पृ. ८२, जैदेना. ले. स्थल वीसनगर, प्र. वि. ग्रं. १२१६ ९ - व्याख्यान (२९.५५१५. १०X३०-३२). Page #461 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ४०७ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदिः णमो अरिहन्ताणं० पढमं; अंतिः उवदंसेइ त्ति बेमि. ३७९३." कल्पसूत्र सह टबार्थ व व्याख्यान+कथा- व्याख्यान १ से ७, प्रतिपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १३५, जैदेना., ले. शिवाराम व्यास, प्र.वि. संशोधित, पदच्छेद सूचक लकीरें, पू.वि. ऋषभदेवचरित्र तक है., (२९x१४, ६४३३). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुवामी, प्रा., गद्य, आदिः णमो अरिहन्ताणं० पढमं; अंतिःकल्पसूत्र-टबार्थ' , मागु., गद्य, आदिः चोसठि इन्द्रनेपूजनीक; अंति: कल्पसूत्र-व्याख्यान+कथा* , मागु., गद्य, आदिः श्रीचतुर्विंशतिजिनान; अंति:३७९४. कल्पसूत्र सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १४९, जैदेना., ले.स्थल. वीरमगाम, ले. शान्तिलाल लवजी, प्र.वि. मूल-९-व्याख्यान., त्रिपाठ, (३०x१४, १४४५७-६३). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदिः णमो अरिहन्ताणं० पढमं; अंतिः उवदंसेइ त्ति बेमि. कल्पसूत्र-बालावबोध, मु. खीमाविजय, मागु., गद्य, वि. १७०७, आदिः प्रणम्य श्रीमहावीरं; अंतिः शिष्यने इम कहे. ३७९५. बारसासूत्र व वीरजिन चैत्यवन्दन, संपूर्ण, वि. १९०९, श्रेष्ठ, पृ. ९६, पे. २, जैदेना., ले.स्थल. वासानगर, ले. मु. हीरविजय (गुरु आ. राजविजयसूरि), प्र.ले.पु. विस्तृत,प्र.वि. आदिनाथ प्रसादात्. प्रथम पत्र पर आदिनाथ स्वामी का सुन्दर रंगीन चित्र है., (३१.५४१४.५, ९४२४). पे. १. कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, (पृ. १-९६), आदिः णमो अरिहन्ताणं० पढमं; अंतिः उवदंसेइ त्ति बेमि., पे.वि. प्रथम पत्र पर रंगीन चित्र - सामान्य. ९-व्याख्यान. पे. २. महावीरजिन चैत्यवन्दन, सं.,प्रा., पद्य, (पृ. ९६अ-९६आ), आदिः (१) पुरिमचरमाणकप्पो (२) वीर सर्वसुरेन्द्रमही; अंतिः मरालायाद् अर्हते नमः., पे.वि. श्लो.४. ३८०७. मन्त्रराजरहस्य, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १७, जैदेना., प्र.वि. श्लो.६३२, ग्रं. ८००, (२७४१४, १८४४५). मन्त्रराजरहस्य, आ. सिंहतिलकसूरि, सं., प+ग, वि. १३२७, आदिः नत्वा जिनं गुरुं; अंतिः पञ्चपूज्यपदी. ३८१२. कल्पसूत्र सह टबार्थ व व्याख्यान+कथा, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २५४-१४९(१ से ४९,८०,१११ से २०९)=१०५, जैदेना., प्र.वि. संशोधित, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं. स्थविरावली तक है., (२७४१३.५, ५-१२४४०). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदिः-; अंति:कल्पसूत्र-टबार्थ', मागु., गद्य, आदि:-; अंति: कल्पसूत्र-व्याख्यान+कथा* , मागु., गद्य, आदि:-; अंतिः३८१६. वीरजिन पञ्चकल्याणक पूजा, संपूर्ण, वि. १९४६, मध्यम, पृ. १७, जैदेना., ले.स्थल. स्थंभनपूरनगर, ले. कुबेरदास पटेल (पिता रणछोडदास पटेल),प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.ले.श्लो. (१२२) जब लग मेरु स्थिर रहें, (२६.५४१३, १५४४५ ५०). महावीरजिन पञ्चकल्याणक पूजा, मु. हेमकमल, मागु., पद्य, आदिः वीर जिणेसर पाय नमुं; अंतिः तुज पद सेवा दिजे ३८१७." अष्टाह्निका व्याख्यान, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना., प्र.वि. ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., (२७४१३, ९४२८-३३). अष्टाह्निकापर्व व्याख्यान, वाचक क्षमाकल्याण, सं., गद्य, वि. १८६०, आदिः शान्तीशं शान्ति; अंति:३८१८. चौवीसदण्डक २९ द्वार, पूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १९, जैदेना., पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है. अंतिम द्वार अपूर्ण है., (२६४१३, ११४२७-३०). २४ दण्डक २९ बोल, मागु., गद्य, आदिः प्रथम नामद्वार बीजु; अंति:३८१९. सुक्तमुक्तावली सह बालावबोध-प्रथमवर्ग, प्रतिपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ७७, जैदेना., ले.स्थल. पालिताणा, (२७४१३, १०४३०). For Private And Personal Use Only Page #462 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ४०८ हस्तलिखित जैन साहित्य भाग - १ सूक्तमाला, मु. केशरविमल, सं.,मागु., पद्य, वि. १७५४, आदिः सकलसुकृत्यवल्लीवृन्द; अंति: सूक्तमाला-बालावबोध, मु. प्रतापविजय, मागु., गद्य, आदिः तदनुक्रम सङ्ग्रहो; अंति:३८२३. कल्पसूत्र सह कल्पद्रुमकलिका टीका- अधिकार-३ साधुसमाचारी व्याख्यान, प्रतिपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २७, जैदेना., पू.वि. मात्र व्याख्यान-९., (२५.५४१३, १५४३७-४१). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि:-; अंति: कल्पसूत्र-कल्पद्रुमकलिका टीका, गणि लक्ष्मीवल्लभ, सं., गद्य, वि. १८वी, आदि:-; अंतिः त्यग्रेतनवर्तमानयोगः. ३८२५. सप्ततिका सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९३२, श्रेष्ठ, पृ. ७५, जैदेना., ले.स्थल. पाटणनगर, ले. भोजकशङ्कर, प्र.वि. मूल-गा.७२., (२७४१२, ५-१२४३६-४७). सप्ततिका कर्मग्रन्थ, प्रा., पद्य, आदिः सिद्धपएहिं महत्थं; अंतिः एगुणा होइ नउइओ. सप्ततिका-बालावबोध, मागु., गद्य, आदिः ए गाथाने विषै च्यार; अंतिः नेऊ गाथा होइ. ३८२६. चोसठप्रकारी पूजा, विधि व दुहा सङ्ग्रह, संपूर्ण, वि. १९२१, श्रेष्ठ, पृ. ४२, पे. ३, जैदेना., ले. सोमेश्वर शिवलाल व्यास, (२६.५४१२.५, १०-११४३७). पे. १.६४ प्रकारी पूजाविधि सहित, पं. वीरविजय, मागु., पद्य, वि. १८७४, (पृ. १आ-४०अ), आदिः श्रीशद्धेश्वर साहिबो; अंतिः वरस विराजते., पे.वि. अध्याय-६४ पूजा. पे. २.६४ प्रकारी पूजाविधि, मागु., गद्य, (पृ. ४०आ-४१आ), आदि: विशाल जिनभुवनमं; अंतिः पधरावीइ महामहोत्सवे. पे. ३. दुहा सङ्ग्रह* , मागु.,प्रा.,सं., पद्य, (पृ. ४१आ-४२अ), आदिः#; अंतिः#. ३८२९.” कल्पसूत्र सह अर्थ, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना., प्र.वि. संशोधित, द्विपाठ, पू.वि. बीच के पत्र हैं., (२७४१२.५, १२४४४-४८). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि:-; अंति: कल्पसूत्र-अर्थ , मागु., गद्य, आदिः-; अंतिः३८३४. नीशीथसूत्र सह चूर्णि, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४२३-४०८(१ से ४०८)=१५, जैदेना., पू.वि. बीच के पत्र हैं., (२६.५४१२.५, १४४४५-४७). निशीथसूत्र, प्रा., गद्य, आदि:-; अंति: निशीथसूत्र-विशेष चूर्णी # , गणि जिनदास महत्तर, प्रा.,सं., गद्य, वि.०८वी, आदि:-; अंति:३८३५. सूयगडाङ्गसूत्र सह टीका, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३२, जैदेना., प्र.वि. त्रिपाठ, पू.वि. बीच के पत्र हैं., (२७४१३, २४५४). सूत्रकृताङ्गसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदि:-; अंति: सूत्रकृताङ्गसूत्र-बृहद्वृत्ति #, आ. शीलाकाचार्य, सं., गद्य, वि. १०वी, आदि:-; अंति:३८३६. कल्पसूत्र का बालावबोध, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १८, जैदेना., पू.वि. प्रारंभ के पत्र हैं., (२७.५४१३.५, १० १२४४०-४३). कल्पसूत्र-बालावबोध*, मागु.,राज., गद्य, आदिः प्रणम्य श्रीमहावीरं; अंति:३८३७.” कल्पसूत्र, संपूर्ण, वि. १६वी, श्रेष्ठ, पृ. ८६, जैदेना., प्र.वि. ग्रं. १२१६, पंचपाठ, पदच्छेद सूचक लकीरें, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-कुछ पत्र, (२७.५४१२, ९४२९-३१). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदिः तेणं कालेणं० समणे; अंतिः उवदंसेइ त्ति बेमि. ३८३८. दशवैकालिकसूत्र, पूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ९०-२(८८ से ८९)=८८, जैदेना.,प्र.वि. अध्याय-१०अध्ययन, (२८x१३, ५४२६). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यम्भवसूरि, प्रा., पद्य, वि. पू.४, आदिः धम्मो मङ्गलमुक्किट्ठ; अंतिः गई त्ति बेमि. For Private And Personal Use Only Page #463 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ४०९ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ३८३९. चन्दराजा रास, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १८-१(१)=१७, जैदेना., पू.वि. बीच के पत्र हैं. उल्लास-१ ढाल-३ से उल्लास-२ ढाल-३ गा.१० तक है., (२८x१२.५, १७४४२). चन्द्रराजा रास, मु. मोहनविजय, मागु., पद्य, वि. १७८३, आदि:-; अंति:३८४१. आगमसारोद्धार, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५३, जैदेना., (२५४१२, १०४३०-३५). आगमसारोद्धार, उपा. देवचन्द, मागु., गद्य, वि. १७७६, आदिः भव्य जीवने; अंति: फली मन आस. ३८४३. साधुश्राद्धप्रतिक्रमण सूत्रसङ्ग्रह सह अवचूरि, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४८-२(१ से २) ४६, जैदेना., प्र.वि. संशोधित, टिप्पण युक्त विशेष पाठ-कुछ पत्र, (२६४११.५, १२४३५-३९). साधुश्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,सं.,मागु., प+ग, आदि:-; अंतिः जिणे चउव्वीसं. साधुश्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय-अवचूरि, सं., गद्य, आदि:-; अंतिः जिनान् चतुर्विंशतिन्. ३८४४." कल्पसूत्र, संपूर्ण, वि. १९५७, श्रेष्ठ, पृ. ६८, जैदेना., ले.स्थल. वीनातटनगर, ले. ऋ. मयाचन्द (गुरु ऋ. न्यालचन्द), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. ९-व्याख्यान, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२६४१२, १२४२२-२८). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: णमो अरिहन्ताणं० पढमं; अंतिः उवदंसेइ ति बेमि. ३८४५. श्राद्धगुण विवरण, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६३, जैदेना., (२७x१२, १४४४०-४२). श्राद्धगुण विवरण, उपा. जिनमण्डन, सं., गद्य, वि. १४९८, आदिः प्रणम्य श्रीमहावीरं; अंतिः श्चिरं नन्द्यात्. ३८४७. इन्द्रियजयशतक, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, जैदेना., प्र.वि. गा.१००, (२७४१२, ११४३०-३२). इन्द्रियपराजयशतक, प्रा., पद्य, आदिः सुच्चिअ सूरो सो चेव; अंतिः संवेग रसायणं निच्चं. ३८५०.” गौतमपृच्छा सह व्याख्या, पूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३५, जैदेना., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-कुछ पत्र, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. गा.६३ तक है., (२५.५४११.५, १६-१८४४४). गौतमपृच्छा, प्रा., पद्य, आदिः नमिऊण तित्थनाहं; अंति: गौतमपृच्छा-टीका, मु. मतिवर्द्धन, सं., गद्य, वि. १७३८, आदिः नत्वा तीर्थनाथं; अंति:३८५१. दशवैकालिकसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ८८-१(४७+४८)=८७, जैदेना., प्र.वि. मूल-अध्याय अध्ययन१०., टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२५.५४११.५, ४४३४). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यम्भवसूरि, प्रा., पद्य, वि. पू.४, आदिः धम्मो मङ्गलमुक्किट्ठ; अंति: गई त्ति बेमि. दशवैकालिकसूत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः ध० दुर्गत पडता जीवनइ; अंतिः प्ररूप्यो तिम. ३८५२.” अभिधानचिन्तामणि नाममाला व अनेकार्थ सङग्रह, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, प्र. ६१, पे. २, जैदेना., ले. वईकण्ठ, दशा वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं-कुछ पत्र, (२६४११.५, १३X४०-४७). पे. १. अभिधानचिन्तामणि नाममाला, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, (पृ. १आ-५५आ, संपूर्ण), आदिः प्रणिपत्यार्हतः; अंतिः रोषोक्तावु नतौ नमः., पे.वि. ६ कांड. पे. २. अनेकार्थ सङ्ग्रह, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, संबद्ध, सं., पद्य, वि. १२वी, (पृ. ५५आ-६१अ, अपूर्ण), आदिः ध्यात्वार्हतः; अंतिः-, पे.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. ३८५३. सूयगडाङ्गसूत्र सह बालावबोध-श्रुतस्कन्ध २, प्रतिपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ६९, जैदेना., प्र.वि. पंचपाठ, (२५.५४११.५, ६-११४२६-२९). सूत्रकृताङ्गसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदि:-; अंतिः विहरति त्ति बेमि. सूत्रकृताङ्गसूत्र-बालावबोध, आ. पार्श्वचन्द्रसूरि, मागु., गद्य, आदि:-; अंतिः वार्तिकं समाप्तम्. ३८५८. उत्तराध्ययनसूत्र-अध्ययन ३५-३६, प्रतिपूर्ण, वि. १९०७, श्रेष्ठ, पृ. १३, जैदेना., ले.स्थल. जोधपुर, पू.वि. अन्तिम दो अध्याय., (२५४११.५, १२४३६). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग, आदि:-; अंतिः सम्बुडे त्ति बेमि. For Private And Personal Use Only Page #464 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य भाग - १ ४१० ३८५९. योगविधि सङ्ग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २०, जैदेना., पठ. गणि तेजविजय (गुरु गणि देवविजय), प्र.वि. अंत में अनुक्रमणिका दी गयी है., (२६४११, १५४४५-४७). योगविधि सङ्ग्रह, सं.,प्रा.,मागु., गद्य, आदिः आवश्यक सुअक्खन्ध; अंतिः मिच्छामि दुक्कडं. ३८६१. महीपाल चरित्र व सामान्यजिन स्तोत्र, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ३८, पे. २, जैदेना., पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., (२५.५४११.५, १७४३३-५५). पे. १. महिपालराजा कथा, गणि वीरदेव, प्रा., पद्य, (पृ. १-३८आ, संपूर्ण), आदि: नमिऊण रिसहनाहं केवल; अंतिः निययगुरूणं पसाएण., पे.वि. गा.१८१७. पे. २. साधारणजिन स्तोत्र, सं., पद्य, (पृ. ३८आ-३८आ, अपूर्ण), आदिः श्रियं विश्वत्रय; अंतिः-,पे.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. श्लो.२१ तक लिखा है. ३८६२. श्रेणिकसुनन्दा रास, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २५, जैदेना., प्र.वि. ढाळ-११५, (२६४११, १४४४७-५०). सुनन्दासती रास, मु. गुणसागर, मागु., पद्य, आदिः सुनन्दा मोटी सती; अंतिः विषयसु विचार राजा. ३८६४. समयसार नाटक, संपूर्ण, वि. १७१०, मध्यम, पृ. ६३-१(५७+५८)=६२, जैदेना., ले.स्थल. पट्टणनगर, ले. मु. अजितसागर (गुरु गणि कल्याणसागर), पठ. मु. अमृतविजय (गुरु पं. भाणविजय), प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र.वि. गा.७२७, (२६४११, १५४३५-३८). समयसार नाटक-पद्यानुवाद, श्रा. बनारसीदास, प्राहिं., पद्य, वि. १६९३, आदिः करम भरम जग तिमिर; अंति: नाममइ परमारथ विरतन्त. ३८६७." द्रव्यसित्तरीसूत्र सह टीका, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, जैदेना., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-कुछ पत्र, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., (२८x१३.५, १४-१५४४४-४७). द्रव्यसप्ततिका, प्रा., पद्य, आदिः सिरिवीरजिणं वन्दिय; अंति: द्रव्यसप्ततिका-टीका, सं., गद्य, आदिः इह ग्रन्थारम्भे; अंति:३८६८.” कल्पसूत्र, संपूर्ण, वि. १६४५, श्रेष्ठ, पृ. ३५, जैदेना., ले.स्थल. भादासर, ले. मु. आणन्दविजय (गुरु मु. हेमाणन्द, खरतरगच्छ), राज्यकाल- राजा रायसिंह, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. ९-व्याख्यान, संशोधित, (२६४१०.५, १२४५३-५५). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदिः णमो अरिहन्ताणं० पढमं; अंतिः उवदंसेइ त्ति बेमि. ३८६९. ज्ञाताधर्मकथाङ्गसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, जीर्ण, पृ. ९५, जैदेना., पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. अध्ययन-२ प्रारंभ तक है., (२४.५४१०.५, ६४३२-३५). ज्ञाताधर्मकथाङ्गसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदिः तेणं कालेणं० चम्पाए; अंतिः ज्ञाताधर्मकथाङ्गसूत्र-टबार्थ, उपा. कनकसुन्दर, मागु., गद्य, आदिः प्रणम्य श्रीमहावीरं; अंतिः३८७०. कल्पसूत्र, संपूर्ण, वि. १८७६, श्रेष्ठ, पृ. ५५, जैदेना., ले.स्थल. धणलानगर, ले. पं. उत्तमविजय, प्र.वि. ९-व्याख्यान, (२४.५४१०.५, १०-११४२९-३३). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदिः णमो अरिहन्ताणं० पढम; अंतिः उवदंसेइ त्ति बेमि. ३८७१. सामायकाधिकारे चन्द्रलेहा रास, संपूर्ण, वि. १७५३, श्रेष्ठ, पृ. १७, जैदेना., ले.स्थल. द्वीपबंदर, ले. गणि सुखविजय (गुरु आ. विजयप्रभसूरी), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. ढाल-२९, गा.६२४, (२५४११, १९४४३-४५). चन्द्रलेखा रास, मु. मतिकुशल, मागु., पद्य, वि. १७२८, आदिः सरसति भगवति नमी करी; अंतिः त्रिभुवनपति हुवे तेह. ३८७२. पाक्षिकसूत्र व खामणा सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८७०, श्रेष्ठ, पृ. ३५, पे. २, जैदेना., ले.स्थल. शिवपूरी, ले. मु. देवेन्द्रविजय (गुरु मु. केशरविजय), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.ले.श्लो. (१२४) हेतकर पोथी लखी; (२०२) भग्न पृष्टि कटी ग्रीवा, (२६४११, ५४३१-३७). पे. १. पे. नाम. पाक्षिकसूत्र सह टबार्थ, पृ. ०१आ-३३आ For Private And Personal Use Only Page #465 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ४११ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची पाक्षिकसूत्र, प्रा., प+ग, आदिः तित्थङ्करे य तित्थे; अंति: जेसिं सुयसायरे भत्ति. पाक्षिकसूत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः तीर्थङ्करसिद्ध; अंतिः श्रुतसागरनी भक्ति. पे. २. पे. नाम. पाक्षिकक्षामणासूत्र सह टबार्थ, पृ. ३३आ-३५अ क्षामणकसूत्र, प्रा., गद्य, आदिः इच्छामि खमासमणो; अंतिः नित्थारग पारगा होह. क्षामणकसूत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः इच्छामि वाञ्छु हे; अंतिः विषे अधिकार कह्यो. ३८७३. कल्पसूत्र, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ३४, जैदेना., प्र.वि. संशोधित, पदच्छेद सूचक लकीरें, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. समाचारी की प्रारंभ तक है. , (२५.५४११, १३४४४-४७). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदिः णमो अरिहन्ताणं० पढमं; अंतिः३८७४. कल्पसूत्र, संपूर्ण, वि. १७८०, मध्यम, पृ. ४०, जैदेना., प्र.वि. ९-व्याख्यान, (२५४११.५, १४४४०). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदिः णमो अरिहन्ताणं० पढमं; अंतिः उवदंसेइ त्ति बेमि. ३८७५.” कल्पसूत्र का अन्तर्वाच्य(कल्पस्यान्तर्वाच्य), पूर्ण, वि. १६७६, श्रेष्ठ, पृ. ६०-२(५४ से ५५)=५८, जैदेना., प्र.वि. कही कही मूलपाठ भी दिया गया है., संशोधित, (२६४११, ११४३५). कल्पसूत्र-अन्तर्वाच्य, सं., गद्य, आदिः कल्याणानि समुल्ल; अंतिः निशम्य सहर्षो बभूव. ३८७६. रामविनोद व औषध सङ्ग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २९, पे. २, जैदेना., पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., (२५.५४११.५, १२४३६-४०). पे. १. रामविनोद, पं. रामचन्द्र गणि, मागु., पद्य, वि. १७२०, (पृ. १-२९, अपूर्ण), आदिः (१) सिद्धबुद्धदायक (२) अथ पुरुष लक्षण चतुर; अंतिः-, पे.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण, अधिकार ३, गा.६५ तक लिखा है. पे. २. औषध सङ्ग्रह', मागु., गद्य, (पृ. १अ, संपूर्ण), आदिः#; अंति: #. ३८७७. कल्पसूत्र सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. १६६३, श्रेष्ठ, पृ. ४०, जैदेना., ले. मेघजी पण्डा, प्र.वि. मूल-९-व्याख्यान. अवचूरि का नीचला भाग टूटा हुआ है., पंचपाठ-ऊपरी पंक्तियों में कलात्मक मात्राएँ, (२६४११, १२-१३४४०-४४). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदिः णमो अरिहन्ताणं० पढमं; अंतिः उवदंसेइ त्ति बेमि. कल्पसूत्र-अवचूरि*, सं., गद्य, आदिः अत्राध्ययने त्रयं; अंतिः#. ३८७८." इन्द्रियपराजय शतक, वैराग्यशतक व देशनाशतक सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १६०८, श्रेष्ठ, पृ. ३३, पे. ३, जैदेना., ले.स्थल. बिकानेर, (२७.५४११, ५४३८-४५). पे. १. पे. नाम. इन्द्रियपराजय शतक सह टबार्थ, पृ. १आ-१२आ इन्द्रियपराजयशतक, प्रा., पद्य, आदिः सुच्चिअ सूरो सो चेव; अंतिः संवेग रसायणं निच्चं. इन्द्रियपराजयशतक-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः तेहिज सूर तेहिज; अंतिः संवेग रसायन नित्यं., पे.वि. मूल गा.१००. पे. २. पे. नाम. वैराग्यशतक सह टबार्थ, पृ. १२आ-२४आ वैराग्यशतक, प्रा., पद्य, आदिः संसारंमि असारे नत्थि; अंतिः लहइ जिउ सासयं ठाणं. वैराग्यशतक-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः संसार असारमाहि नथी; अंतिः जीव शाश्वतुं ठाम., पे.वि. मूल-गा.१०४. पे. ३. पे. नाम. देशनाशतक सह टबार्थ, पृ. २४आ-३३आ आदिनाथदेशनोद्धार, प्रा., पद्य, आदिः संसारे नत्थि सुहं; अंतिः उपज्जित्ता सिवं जंति. आदिनाथदेशनोद्धार-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः संसारमांहि नथी सुख; अंतिः तिर्यञ्च न हुइ कहीइ., पे.वि. मूल गा.८८. ३८७९." कल्पसूत्र व औषधसङ्ग्रह, संपूर्ण, वि. १६वी, श्रेष्ठ, पृ. ६६, पे. २, जैदेना., (२७४११, ९४३३-३५). For Private And Personal Use Only Page #466 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य भाग - १ ४१२ पे. १. कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, (पृ. १आ-६६आ), आदि: णमो अरिहन्ताणं० पढमं; अंतिः उवदंसेइ त्ति बेमि., पे.वि. ९-व्याख्यान. पे. २. औषधवैद्यक सङ्ग्रह *, सं.,प्रा.,मागु., गद्य, (पृ. १अ), आदिः#; अंतिः#. ३८८१. सामुद्रिक शास्त्र, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना., ले.स्थल. प्रल्हादनपुर, ले. गणि रत्नकुशल (गुरु गणि दामर्षि, तपागच्छ), पठ. पण्डित ज्ञानचन्द्र गणि, प्र.ले.पु. मध्यम, (२६४१०.५, १४४४६-४९). सामुद्रिक शास्त्र, सं., पद्य, आदिः आदिदेवं प्रणम्यादौ; अंतिः स्याद् भाग्यवर्जितः. ३८८५. बृहत्शान्ति सह टबार्थ व श्लोक सङ्ग्रह, संपूर्ण, वि. १८१८, श्रेष्ठ, पृ. ५, पे. २, जैदेना., ले.स्थल. उदयपुर, ले. ऋ. सुजाण, (२४४११, ५४३२-३७). पे. १. पे. नाम. बृह्तशान्ति सह टबार्थ, पृ. १-५ बृहत्शान्ति स्तोत्र-तपागच्छीय, सं., गद्य, आदिः भो भो भव्याः श्रृणुत; अंतिः जैनं जयति शासनम्. बृहत्शान्ति स्तोत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः अहो भव्य जीवो; अंतिः वरतो शासन सदा. पे. २. श्लोक सङ्ग्रह', सं.,प्रा.,मागु.,हिन्दी, पद्य, (पृ. ५आ), आदिः#; अंतिः#. ३८८६. कल्पसूत्र की कल्पकिरणावलीटीका की पीठिका, प्रतिपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १४, जैदेना., (२५४११, १५४४२-४४). कल्पसूत्र-कल्पकिरणावली टीका, उपा. धर्मसागर गणि, सं., गद्य, वि. १६२८, आदिः प्रणम्य प्रणताशेष; अंति:३८८७." अञ्जनासती रास, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १४, जैदेना.,प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., (२५४११, १६४४७-५२). अंजनासुन्दरी रास, मु. पुण्यसागर, मागु., पद्य, वि. १६८९, आदि: गणधर गौतम प्रमुख; अंतिः३८८८. बारभावना रास, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदेना., पू.वि. अन्त के पत्र नहीं हैं. गा.१११ तक है., (२५४१०.५, १२४३२-३६). १२ भावना सज्झाय, उपा. जयसोम, मागु., पद्य, वि. १७०३, आदिः पास जिणेसर पाय नमी; अंति:३८९१.” चौदगुणस्थान सूत्र, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, जैदेना., ले.स्थल. सातच्छदीपुर, प्र.वि. श्लो.१५६, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२६४११, १३४३८-४२). गुणस्थानक्रमारोह, आ. रत्नशेखरसूरि, सं., पद्य, वि. १४४७, आदिः गुणस्थान क्रमारोह; अंतिः रत्नशेखरसूरिभिः. ३८९२. कल्याणमन्दिर स्तोत्र सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना., प्र.वि. मूल-श्लो.४४., पंचपाठ, दशा वि. विवर्ण-पानी से अक्षरों की स्याही फैल गयी है-अल्प, (२६४११, ९-११४३२-३५). कल्याणमन्दिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकर, सं., पद्य, आदिः कल्याणमन्दिरमुदारमवद; अंति: मोक्षं प्रपद्यन्ते. कल्याणमन्दिर स्तोत्र-टीका, आ. गुणरत्नसूरि, सं., गद्य, आदिः कल्या० यस्य० रागादि; अंतिः सुगुरुप्रसादात्. ३८९३." भक्तामर स्तोत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८५०, श्रेष्ठ, पृ. ८, जैदेना., ले.स्थल. देवगढ, ले. ऋ. गोविन्द, प्र.वि. मूल श्लो.४४., अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-कुछ पत्र, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२५४११, ५४३५-३७). भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुङ्गसूरि, सं., पद्य, आदिः भक्तामरप्रणतमौलिमणि; अंतिः समुपैति लक्ष्मी. भक्तामर स्तोत्र-टबार्थ, पं. उदयसागर गणि, राज., गद्य, आदिः (१) अथ श्रीभक्तामर (२) भक्तामर कहतां भक्ति; अंतिः सहजमै ही लक्ष्मी आवै. ३८९६. कल्पसूत्र का प्रारम्भ (कल्पप्रारम्भ), संपूर्ण, वि. १७१५, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना., ले. पण्डित महिमाकुशल (गुरु गणि चारित्रविजय),प्र.ले.पु. मध्यम, (२५.५४१०.५, १३४४६). कल्पसूत्र-पीठिका, संबद्ध, मागु., गद्य, आदिः अर्हन्त भगवन्त उत्पन; अंति: सगले लोके साम्भलिवउ. ३८९७. जम्बूस्वामी कथा, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, जैदेना., ले.स्थल. जालोर, ले. पं. पुण्यरत्न, (२५.५४१०.५, १२४४० ४२). For Private And Personal Use Only Page #467 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ४१३ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची जम्बूस्वामी कथा, मागु., गद्य, आदिः प्रथम भवि श्रीजम्बु; अंतिः पाटइ प्रभवसामि छइठा. ३८९९. कल्पसूत्र, संपूर्ण, वि. १७५४, श्रेष्ठ, पृ. ३५, जैदेना., ले.स्थल. वासानगर, ले. पं. दोलतविजय (गुरु गणि गजविजय), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. ग्रं. १२१६, (२५.५४११, १४-१६x४०-४७). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदिः णमो अरिहन्ताणं० पढमं; अंतिः उवदंसेइ त्ति बेमि. ३९००." कल्पसूत्र, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. २५, जैदेना.,प्र.वि. ग्रं. १२१६, पदच्छेद सूचक लकीरें-प्रथम पत्र, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२६४११, १५४५२-५७). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदिः तेणं कालेणं० समणे; अंतिः उवदंसेइ त्ति बेमि. ३९०२." संवेगद्रुममञ्जरी चौपाई, संपूर्ण, वि. १६५२, मध्यम, पृ. ९, जैदेना., ले. पुरणमल, प्र.वि. गा.१२१, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२६४११, १०४३४-३७). संवेगद्रुममञ्जरी चौपाई, मु. कुशलसंयम, मागु., पद्य, आदिः सकल सरूप प्रणमी; अंतिः संविगइ चउसाल. ३९०३. रात्रिभोजन रास, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २५, जैदेना., प्र.वि. गा.९२५, ढाळ-४४, (२५.५४११.५, १७-१८४४१-४६). रात्रिभोजन रास, गणि अमृतसागर, मागु., पद्य, वि. १७३०, आदिः चिन्तामणि सुखकरण; अंतिः चतुरपणै चोसाल रे. ३९०४. ऋषभजिन धवलबन्ध, संपूर्ण, वि. १५९०, मध्यम, पृ. ९, जैदेना., ले.स्थल. अहमदाबाद, (२६४११, १३४४५-५५). आदिजिन विवाहलो, मागु., पद्य, आदिः सासनदेवीय पाय; अंति: सेवक इमि सदा. ३९०५. बारव्रत सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९१५, श्रेष्ठ, पृ. ७, जैदेना., ले.स्थल. खीमेलनगर, ले. मु. हंसविजय, प्र.वि. ढाळ-१२, (२५४११.५, ११४२४-३४). १२ व्रत सज्झाय, मु. तिलकविजय, मागु., पद्य, आदिः जिनवाणी धन वुठडो; अंतिः तिलकविजय जयकार. ३९०७." दानशीलतपभावना कुलक सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८०६, मध्यम, पृ. ५, जैदेना., प्र.वि. मूल-गा.५०., टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२५.५४१०.५, ६४३५). दानशीलतपभावना कुलक, मु. अशोकमुनि, प्रा., पद्य, आदिः देवाहिदेवं नमिऊण; अंतिः सूरि खमउ तेणं. दानशीलतपभावना कुलक-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः देवाधिदेव श्रीमहावीर; अंतिः ते आचार्य खमज्यो. ३९०८. साधुप्रतिक्रमणसूत्रसङ्ग्रह (स्थानकवासी), संपूर्ण, वि. १८४८, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना., ले.स्थल. सरीयाग्राम, ले. मु. राजाराम, (२६४११, १३४४६). साधुप्रतिक्रमणसूत्र-स्थानकवासी, संबद्ध, प्रा., प+ग, आदिः नमो अरिहन्ताणं०; अंतिः इत्यादि पाठ उच्चरवौ. ३९११. नवतत्त्व विचार, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ८+१(६)=९, जैदेना., पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. बंधतत्त्व अपूर्ण तक है., (२५४११, १६-१७४४७-४९). नवतत्त्व प्रकरण-विचार, संबद्ध, मागु., गद्य, आदि: जीवाजीवा पुण्यः पावा; अंति:३९१३. रत्नपाल रास, संपूर्ण, वि. १७७६, श्रेष्ठ, पृ. २०, जैदेना., ले.स्थल. तरुअचग्राम, पठ. साध्वीजी रुपा आर्या, प्र.वि. खण्ड-३/ढाल-३३, (२६४११, १६४५०-५२). रत्नपालरत्नावती रास, मु. सूरविजय, मागु., पद्य, वि. १७३२, आदिः श्रीऋषभादिक जिन नमुं; अंतिः रच्यो रास उदार. ३९१४. इगवीसप्रकारी पूजा, संपूर्ण, वि. १९१७, मध्यम, पृ. १३, जैदेना., ले.स्थल. स्तम्भनपुर, ले. कामेश्वर व्यास (पिता शिवलाल व्यास), पठ. श्रा. देवचन्द कस्तुरचन्द वाणीया, प्र.ले.पु. मध्यम, (२५.५४११.५, ११४३१-३३). २१ प्रकारी पूजा, उपा. चारित्रनन्दि, सं.,मागु., पद्य, वि. १८९५, आदिः श्रीजिनवर पणमुं सदा; अंतिः (१)रिधि वृद्धि पाय रे (२)वर्णसङ्ख्यया. ३९१५. सत्तरभेदी पूजा, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदेना., प्र.वि. ढाळ-१७, (२५.५४११.५, १३४३९-४२). For Private And Personal Use Only Page #468 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य भाग - १ ४१४ १७ भेदी पूजा, उपा. सकलचन्द्रगणि, मागु., पद्य, आदिः अरिहन्त मुखपङ्कज; अंतिः सुरपति जिम थुणियो. ३९१६. चतुसरणसूत्र, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, जैदेना., प्र.वि. गा.६३, संशोधित, (२६.५४११, ५४३०-३३). चतुःशरण प्रकीर्णक, गणि वीरभद्र, प्रा., पद्य, आदिः सावज्ज जोग विरई; अंतिः कारणं निवुइ सुहाणं. ३९१७. झाञ्झरीया, गजसुकुमाल व प्रभञ्जना सज्झाय, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ८-१(१)=७, पे. ३, जैदेना., (२६४११.५, १३४३४-३६). पे. १. झाझरियामुनि सज्झाय, मु. भावरत्न, मागु., पद्य, वि. १७५६, (पृ. -२अ-३अ, अपूर्ण), आदि:-; अंतिः सहु वृन्द रे., पे.वि. प्रथम पत्र नहीं है. पे. २. गजसुकुमाल सज्झाय, गणि देवचन्द्र, मागु., पद्य, (पृ. ३अ-५अ, संपूर्ण), आदिः द्वारिका नगरी ऋद्धि; अंतिः ___ सुगुरु सहाय रे., पे.वि. गा.३८, ढाळ-३. पे. ३. प्रभञ्जना सज्झाय, गणि देवचन्द्र, मागु., पद्य, (पृ. ५आ-८अ, संपूर्ण), आदिः गिरि वैताढ्यने उपरे; अंतिः करता मङ्गल लील सदाई., पे.वि. ढाळ-३. ३९१८. पञ्चज्ञान पूजा व विधि, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, पे. २, जैदेना., (२६४१२, ११४३६). पे. १. ज्ञानपंचमीपर्व पूजा, पं. रूपविजय, मागु., पद्य, वि. १८८७, (पृ. १आ-७आ), आदिः सकल कुशल कमलावली; अंति: रूपविजय गुण गाया रे. पे. २.५ ज्ञानपूजा विधि, राज., प+ग, (पृ. ७आ-८अ), आदिः ज्ञानं स्यात् कुमतां; अंतिः भेला ५१ थापिइं. ३९१९. कल्पसूत्र का बालावबोध-व्याख्यान ३, प्रतिपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १७, जैदेना., प्र.वि. द्विपाठ, दशा वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है-अल्प, (२७४१२, १०४३१). कल्पसूत्र-बालावबोध* , मागु.,राज., गद्य, आदि:-; अंति:३९२०. कल्पसूत्र सह व्याख्यान+कथा, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १२३-११८(१ से ११८)-५, जैदेना., प्र.वि. द्विपाठ-अंतिम कुछ पत्र, पू.वि. बीच के पत्र हैं., (२५.५४१२.५, १२४२८-३२). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि:-; अंति: कल्पसूत्र-व्याख्यान+कथा* , मागु., गद्य, आदि:-; अंतिः३९२१. कल्पसूत्र की सुबोधिका टीका, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ९-१(८)=८, जैदेना., प्र.वि. द्विपाठ, पू.वि. प्रारंभ के पत्र हैं., (२७४१२, १०x४७-४९). कल्पसूत्र-सुबोधिका टीका, उपा. विनयविजय , सं., गद्य, वि. १६९६, आदिः प्रणम्य परमश्रेयस्कर; अंति:३९२३. स्तवनचौवीसी, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १५-१०(१ से ९,१३)=५, जैदेना., पू.वि. बीच के पत्र हैं., (२५.५४११.५, १०४३१-३६). स्तवनचौवीसी, मु. कमलविजय, मागु., पद्य, वि. १९४६, आदि:-; अंति:३९२४. इकवीसठाणा सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८३३, श्रेष्ठ, पृ. १६, जैदेना., ले.स्थल. जेसलमेर, प्र.वि. मूल-गा.६९., पदच्छेद सूचक लकीरें, (२५४१२, ४४२४-३०). एकविंशतिस्थान प्रकरण, आ. सिद्धसेनसूरि, प्रा., पद्य, आदिः चवण विमाणा नयरी; अंतिः अद्धतेरसवास छउमत्थ. एकविंशतिस्थान प्रकरण-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः जे विमानथी चवीनें; अंतिः छद्मस्थ पणै रह्या. ३९२५.” कर्मस्तव सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९६२, श्रेष्ठ, पृ. ३७-२३(१ से २३)=१४, जैदेना., ले.स्थल. सिद्धक्षेत्र, प्र.वि. मूल गा.३४., टिप्पण युक्त विशेष पाठ, पू.वि. गा.२ से है., (२६.५४१२.५, ३-४४२७). कर्मस्तव नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, (पूर्ण), आदि:-; अंति: वन्दियं नमह तं वीरं. कस्तव नव्य कर्मग्रन्थ-टबार्थ', मागु., गद्य, (पूर्ण), आदि:-; अंतिः तेने नमस्कार करो. For Private And Personal Use Only Page #469 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org: ४१५ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ३९२६. गौतमपृच्छा सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १९ - ३ ( ६ से ८) = १६, जैदेना., पू.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं. (२६.५x१०.५, १७०४४-४८) गौतमपृच्छा, प्रा., पद्य, आदिः नमिऊण तित्थनाहं; अंतिः गौतमपृच्छा-बालावबोध, आ. जिनसूरि, मागु., गद्य, आदिः नत्वा श्रीवीरं जिनं; अंतिः (+) ३९२८. ऋषिदत्ता रास, संपूर्ण, वि. १६८३, श्रेष्ठ, पृ. १७, जैदेना., ले. स्थल. थिराद्रनगर, ले. गणि लाभविजय (गुरु पं. हर्षविजय). प्र. वि. गा.५७०, ढाळ- ४० (२६.५४११, १७-१८४४४). ऋषिदत्तासती रास, आ. जयवन्तसूरि, मागु., पद्य, वि. १६४३, आदिः उदय अधिक दिन दिन; अंतिः दिन दिन आस. ३९२९. चम्पकमाला रास, संपूर्ण वि. १८वी श्रेष्ठ, पृ. ७ जैदेना, प्र. वि. गा. ९२, पदच्छेद सूचक लकीरें संशोधित, ( २६४११, ९३५-४० ). चम्पकमाला रास, मागु., पद्य, आदिः नमिय निरंजन जिनवरू; अंतिः सञ्चइ ए निरमल पुण्य. ३९३०. पट्टावली, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १०, जैदेना., ( २६.५x११.५, १२४३९). पट्टावली तपागच्छीय, मागु, गद्य, आदि: श्रीवर्द्धमान अंतिः मध्ये चोमासु छे. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३९३१. कल्पसूत्र का प्रारम्भणं सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ११, जैदेना, प्र. वि. प्रारंभ में कल्पसूत्र वांचनविधि दी गयी है., ( २५x११, ६३६-४२). 1 कल्पसूत्र - पीठिका, संबद्ध, सं., गद्य, आदि: श्रीकल्पः सहकार एष: अंतिः ख्यायते कल्पसूत्र. कल्पसूत्र-पीठिका का टबार्थ *, मागु., गद्य, आदि: (१) श्रीकल्प सहिकार वखाण (२) सर्वसिद्धिकरां देवीं ; अंतिः कल्प व्याख्यान. ३९३२." सङ्घयणीसूत्र, अपूर्ण, वि. १८वी, जीर्ण, पृ. ६-१(१) - ५, जैदेना, पू.वि. बीच के पत्र हैं. गा.३२ से गा. १३५ तक है. दशा वि. विवर्ण- पानी से अक्षरों की स्याही फैल गयी है, (२५x१०.५, १२X४०). बृहत्सङ्ग्रहणी, आ. चन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि:-; अंति: ३९३४. शारदी नाममाला, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २१-४ ( ७ से १० ) = १७, जैदेना., पू.वि. कांड-१ गा.१२६ से कांड-२ गा. ४५ तक नहीं है., दशा वि. विवर्ण-पानी से अक्षरों की स्याही फैल गयी है-, अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जीवातकृत छिद्र युक्त, (२६X११.५, १०x४२). लघुनाममाला, आ. हर्षकीर्तिसूरि, सं., पद्य, आदिः प्रणम्य परमात्मानं; अंतिः हर्षकीर्त्तिना. ३९३७. पिस्तालीस आगम पूजा, संपूर्ण, वि. १९१९, श्रेष्ठ, पृ. ९, जैदेना., ले. स्थल. राजनगर, ले. ऋ. खेमचन्द, प्र. वि. गा. १७५, ( २४४११.५, ११४३१). ४५ आगम अष्टप्रकारी पूजा, पं. वीरविजय, मागु, पद्य वि. १८८१, आदि: श्रीशङ्खेश्वर पासजी अंतिः सङ्घने तिलक कराओ रे · ३९३८.” सारस्वत व्याकरण की सारस्वतप्रदीप टीका, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ४०, जैदेना., प्र. वि. ग्रं. २०००, पदच्छेद सूचक लकीरें, (२५.५४११, १७४५८). सारस्वत व्याकरण-सारस्वतप्रदीप टीका, मु. सहजकीर्त्ति, सं., गद्य, वि. १७वी, आदिः प्रणम्य पार्श्व; अंतिः (१) मतिमता ज्ञेयः इति (२) प्रत्यक्षरमसंशयम्. ३९४१.” कल्पसूत्र की पीठिका, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना., दशा वि. विवर्ण-पानी से अक्षरों की स्याही फैल गयी है - अल्प, ( २६११, १४४४० ). कल्पसूत्र-पीठिका*, संबद्ध, मागु., गद्य, आदिः श्रीवर्द्धमानं जिनं; अंतिः परलोक सुख पाम्या.. ३९४३. पट्टावली, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १४, जैदेना. (२६१२, १५X४०). पट्टावली तपागच्छीय, मागु., गद्य, आदिः श्रीवर्द्धमानस्वामी; अंतिः विद्यमान छे पाट ६९. For Private And Personal Use Only Page #470 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org: हस्तलिखित जैन साहित्य भाग १ ३९४४.” भक्तामर स्तोत्र सह टबार्थ व कथा, संपूर्ण, वि. १८३९, श्रेष्ठ, पृ. ३६, जैदेना., ले. स्थल. वडलीनगर, ले. पं. मनरूपसागर गणि, पठ. पं. कपूरविजय गणि, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. मूल- श्लो. ४४., टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२७०४११.५, ३-१५४३२-४०). भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुङ्गसूरि, सं., पद्य, आदिः भक्तामरप्रणतमौलिमणि; अंतिः समुपैति लक्ष्मी.. भक्तामर स्तोत्र- टवार्थ" मागु, गद्य, आदि प्रणम्य प्रथमदेवं अंतिः आवइ ज कुण लक्ष्मी. भक्तामर स्तोत्र-कथा, मागु., गद्य, आदि: पूजाज्ञानवचोपायापगमा; अंतिः रणपाल भली गतै पोहतो. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३९४५. पट्टावली, संपूर्ण, वि. १८७१, श्रेष्ठ, पृ. १२, जैदेना., ले. स्थल. भेसवाडा, ले. पं. अमरविजय, ( २६४१२, १४-१५४४१). पट्टावली तपागच्छीय, मागु., गद्य, आदिः वर्द्धमानस्वामि; अंतिः विजेराजसूरिजी . ३९४६. ज्ञानसुखडी, संपूर्ण वि. १९५८, श्रेष्ठ, पृ. ३२, जैदेना. ले. स्थल, बडोत, ले. ॠ. रघुनाथ (गुरु मु. मङ्गलसेन), " ( २६×१२.५, १४४४२). ज्ञानसुखडी, सं. प्रा. मागु, पद्य, आदिः प्रणम्य श्रीजिनराजपद अंतिः इण रीते स्थान आसरी. ३९४७. भगवतीसूत्र बोलसङ्ग्रह, संपूर्ण वि. १९०६, श्रेष्ठ, पृ. १४, जैदेना ले स्थल. लुखियाणानगर, ले. सोभाराम, ( २६x१२.५, २२४५९). i भगवतीसूत्र बोलसङ्ग्रह, संबद्ध, मागु, गद्य, आदि एक मासनी दिक्षा अंतिः १३ १४ में ४ वेदे ३९४८. उपदेशी ढाल व व्यवहारशुद्धि चौपाई, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, पे. २, जैदेना., (२५.५X१२, २२४५४). पे. १. औपदेशिक ढाल, मागु., पद्य, (पृ. १अ - २अ ), आदिः ए संसार असार छै नही; अंतिः करीया महासुख पावै रे., पे.वि. गा. ६५. पे. २. व्यवहारशुद्धि चौपाई, उपा. समयसुन्दर गणि, मागु., पद्य, वि. १६९६, (पृ. २अ - ५अ ), आदिः शान्तिनाथ जिन सोलमो अंतिः श्रीगुरदेव प्रसाद, पे. वि. ढाळ - ९. ३९४९. लेश्या विचार व बोल सङ्ग्रह, संपूर्ण, वि. १९०६, श्रेष्ठ, पृ. २२, पे. ४, जैदेना., ले. स्थल. वणोली, ले. सोभाराम, (२५.५x१२.५, १६x४७). , ४१६ पे. १. लेश्याग्यारहद्वार विचार, प्रा. मागु, गद्य, (पृ. १४-३अ), आदि नामाई पणरसगन्धफरस अंतिः समयनइ विषइ काल करइ. पे. २. दसाणुवाइ, मागु., गद्य, (पृ. ३आ-४आ), आदि: जीव समुचय सर्व थोडा; अंतिः पश्चिमइ विशेषाधिक. पे. ३. जीवाभिगमसूत्र-थोकडा, संक्षेप, मागु., गद्य, (पृ. ४आ - १८अ ), आदि: संसार समापन्न जीव २; अंतिः तिरजञ्च अणन्तगुणा. पे. ४. संजयनियण्ठा के बोल, प्रा. मागु., कोष्टक (पृ. १८अ २२आ), आदि: पन्नवणा १ बेये २: अंतिः #. ३९५०.” ज्ञाताधर्मकथाङ्गसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८८५, श्रेष्ठ, पृ. २१३, जैदेना., ले. स्थल. सिंघाणा, ले. साध्वीजी सुन्दरजी आर्या (गुरु मु. लक्ष्मीचन्द सरस्वतीगच्छ), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. मूल १९ अध्ययन, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, प्र.ले. श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्टं (५५६) भग्नपृष्टि कटी ग्रीवा (५६१) यावत् चन्द्ररविलोके (८५) जलाद्रक्षे स्थलाद्रक्षे, ( २६४१२.५. ९४४५). ज्ञाताधर्मकथाङ्गसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी प्रा. प+ग, आदि: तेण कालेनं० चम्पाए: अंतिः जाव सम्पत्तेणं, ज्ञाताधर्मकथाङ्गसूत्र-टबार्थ *, मागु., गद्य, आदिः ते० तेणइ का० कालइ: अंतिः सुधर्मा गणधर कहै. For Private And Personal Use Only ३९५२. वर्द्धमानदेशना, संपूर्ण, वि. १९५७, श्रेष्ठ, पृ. ११३, देना., ले. स्थल. महुवापत्तण, प्र. वि. १०उल्लास, त्रिपाठ, (२७४१३, १४४५२). वर्द्धमानदेशना, गणि राजकीर्ति, सं., गद्य, आदि ः (१) नमः श्रीपार्श्वनाथाय (२) अस्मिन् जम्बूद्वीपे ; अंतिः राजकीर्तिगणिना. Page #471 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ४१७ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ३९५३.” कल्पसूत्र सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९३८, श्रेष्ठ, पृ. २२७+१(६२)=२२८, जैदेना., ले.स्थल. राजनगर, ले. छबील वीरचन्दजी व्यास, लिखवा. मु. मूलचन्दजी, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. मूल-ग्रं. १२१६, ९-व्याख्यान., संशोधित, त्रिपाठ, प्र.ले.श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्टं, (२७४१२.५, १०-१४४४०). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदिः तेणं कालेणं० समणे; अंतिः उवदंसेइ त्ति बेमि. कल्पसूत्र-बालावबोध, मु. खीमाविजय, मागु., गद्य, वि. १७०७, आदिः प्रणम्य श्रीमहावीरं; अंतिः यः कर्ता तस्य मङ्गलं. ३९५४. चित्रसेनपद्मावती चरित्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ११९, जैदेना., प्र.वि. मूल-श्लो.१२३२., (२७.५४१२, ५४३०). चित्रसेनपद्मावती चरित्र, पाठक राजवल्लभ, सं., पद्य, वि. १५२४, आदि: नत्वा जिनपतिमाद्यं; अंतिः कथां पाठकराजवल्लभः. चित्रसेनपद्मावती चरित्र-टबार्थ, गणि भक्तिविजय, मागु., गद्य, आदिः अद्य क. पहेला युगल; अंतिः वल्लभनामा उपाध्याये. ३९५५. कल्पसूत्र का बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९५२, श्रेष्ठ, पृ. १५६+१(३५)=१५७, जैदेना., ले.स्थल. अहिपुर, ले. हरीकिसन व्यास, प्र.ले.श्लो. (१२६) कर कट ग्रीवा नयन पद, (२७४१२, ११४३६). कल्पसूत्र-बालावबोध, मु. खीमाविजय, मागु., गद्य, वि. १७०७, आदिः (१) प्रणम्य श्रीमहावीरं (२) इहा क्षेत्रे चोमासुं; अंतिः वारे वारे इम देखाडे. ३९५६. अध्यात्मकल्पद्रुम सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९१०, श्रेष्ठ, पृ. ११४, जैदेना., ले.स्थल. रतलाम, प्र.वि. मूल-श्लो.२७२, १६अधिकार., (२७४१३, १३४३०).... अध्यात्मकल्पद्रुम, आ. मुनिसुन्दरसूरि, सं., पद्य, आदिः जयश्रीरान्तरारीणां०; अंति: जयश्रिया शिवश्रीः. अध्यात्मकल्पद्रुम-बालावबोध, मु. हंसरत्न, मागु., गद्य, आदिः श्रीशद्धेश्वरपार्श्व; अंति: पाम्मे ए भावार्थ. ३९६०." बारखडी, संपूर्ण, वि. १९५०, श्रेष्ठ, पृ. १०, जैदेना., प्र.वि. गा.३२, दशा वि. हानिकारक स्याही-अक्षरों की स्याही फैल गयी है-अल्प, (२९.५४१४, ८-१०x१९). बाराक्षरी, चञ्चल, मागु., पद्य, आदिः नमो अरिहन्त बडे; अंतिः करै बजा जेका. ३९६१. प्रश्नोत्तर बोल सङ्ग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १०, जैदेना., (३०.५४१४, १७:५१). प्रश्नोत्तर सङ्ग्रह, उपा. विनयविजय , प्रा.,मागु., गद्य, आदिः नत्वा श्रुतज्ञानम्; अंतिः (१)करता श्रेय कल्याण (२)विनयविजयगणिना. ३९६७. द्वादश भावना, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदेना., (२७४१३, १२४४५). १२ भावना सज्झाय, उपा. सकलचन्द्रगणि, मागु., पद्य, आदिः विमल कुल कमलना हंस; अंतिः ध्यान सकल मुनि आणो. ३९६८. प्रतिष्ठा विधि, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ११, जैदेना., पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., (२६४१३.५, १२-१५४३१-३८). प्रतिष्ठा विधि, सं.,मागु., गद्य, आदिः पूर्वोक्त शुभ दिवसे; अंति:३९६९. सीमन्धरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १०, जैदेना., प्र.वि. ढाल-११, गा.१२५, (२५.५४१३, १३४२५). सीमन्धरजिनविनती स्तवन सवासोगाथा, उपा. यशोविजयजी गणि, मागु., पद्य, आदिः स्वामी सीमंधर विनती; अंतिः जसविजय वाचक जयकरो. ३९७०. नवकार कल्प, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, जैदेना., (२६.५४१४, १०x२२). नमस्कारमहामन्त्र कल्प, सं., गद्य, आदिः पञ्चादिपदानां; अंतिः करणीय सौभाग्यमुद्रा. ३९७१. भाष्यत्रय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, जैदेना., प्र.वि. ३ भाष्य, (२७.५४१३, १२४३३). भाष्यत्रय, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: वन्दित्तु वन्दणिज्जे; अंतिः सासयसुक्खं अणाबाहं. For Private And Personal Use Only Page #472 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य भाग - १ ४१८ ३९७३. स्थूलिभद्र नवरसो व सामान्यजिन स्तुति, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, पे. २, जैदेना., ले. मु. किरपाचन्द महात्मा, (२८.५४१३.५, १३४३६). पे. १. स्थूलिभद्र नवरसो, वाचक उदयरत्न, मागु., पद्य, वि. १७५९, (पृ. १-५), आदिः सुखसंपति दायक सदा; अंतिः मनोरथ वेगे फल्या रे., पे.वि. ढाळ-९. पे. २. आदिजिन स्तुति, सं., पद्य, (पृ. ५अ), आदिः उद्योत्सारं शोभागारं; अंतिः तारा भूत्यैस्तात्., पे.वि. श्लो.४. ३९७४. खण्डाजोयण बोल, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना., पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., (२५४१२.५, १७४४०). लघुसङ्ग्रहणी-खण्डाजोयण बोल*, संबद्ध, मागु., गद्य, आदिः लाख जोयणनो; अंति:३९७५.” साधुप्रतिक्रमणसूत्र व लघुशान्ति, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, पे. २, जैदेना., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-कुछ पत्र, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., (२६.५४१२.५, ९४२१-२६).. पे. १. पे. नाम. साधुप्रतिक्रमणसूत्र, पृ. ०१आ-०६आ, संपूर्ण साधुवन्दित्तुसूत्र, संबद्ध, प्रा., गद्य, आदिः करेमि भन्ते० चत्तारि; अंतिः वन्दामि जिणे चउवीसं., पे.वि. सूत्र-२१. पे. २. लघुशान्ति, आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, (पृ. ६आ-७आ-, अपूर्ण), आदिः शान्तिं शान्ति; अंतिः-, पे.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. श्लो.१३ अपूर्ण तक है. ३९७६." दशवैकालिकसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २५, जैदेना., प्र.वि. मूल-अध्याय-अध्ययन१०चूलिकार प्र.पु. सर्वग्रं. ३१००., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-कुछ पत्र, (२८x१२.५, ९४५१-५८). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यम्भवसूरि, प्रा., पद्य, वि. पू.४, आदिः धम्मो मङ्गलमुक्किट्ठ; अंतिः (१)मुच्चइ त्ति बेमि (२)निच्चला होसु. दशवैकालिकसूत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः धर्म केवलीउ भाष्यउ; अंतिः धर्म हुती चलावउ नही. ३९७८." शुकराज रास, संपूर्ण, वि. १८५५, श्रेष्ठ, पृ. ४८, जैदेना., ले.स्थल. सुरेल, ले. मु. मयारत्न, प्र.वि. ढाळ-६५, टिप्पण युक्त विशेष पाठ-कुछ पत्र, (२६४१२, १४-१५४४५). शुकराज रास, मु. रतनविजय, मागु., पद्य, वि. १८११, आदिः श्रीरीसहेसर वीन; अंतिः सीजे वंछित दायोजी. ३९७९. ढुण्ढकचर्चा प्रश्नोत्तर, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४१, देना., (२६x१३.५, १६x२९-३३). दुण्ढकचर्चा प्रश्नोत्तर-स्थानकवासीमतनिरसन, राज., गद्य, आदिः दुण्ढीयो प्ररूपणा; अंतिः समया यच्छितंह विज्जा. ३९८०. शतक कर्मग्रन्थ सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९६४, श्रेष्ठ, पृ. ४१, जैदेना.,प्र.वि. मूल-गा.१००; टबार्थ-गा.१००, ग्रं. ५०७., (२७४१२.५, १-४४२७). शतक नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, आदिः नमिय जिणं धुवबन्धोदय; अंतिः सयगमिणं आयसरणट्ठा. शतक नव्य कर्मग्रन्थ-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः प्रणमीने जिन प्रति; अंतिः सम्भारवाने अर्थि. ३९८३. वीरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना., प्र.वि. गा.८१, ढाळ-८, (२५४१३.५, १२-१४४३१-३४). महावीरजिन स्तवन-नयमतगर्भित, आ. लक्ष्मीसूरि, मागु., पद्य, वि. १८२७, आदिः श्रीइन्द्रादिक भावथी; अंतिः पभणे संघने जयकार ए. ३९८५. श्रीपाल रास, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ६२, जैदेना., प्र.वि. खण्ड-४, ढाळ ४१, (२८x१३, १२४३६). श्रीपाल रास, उपा. विनयविजय , उपा. यशोविजयजी गणि, मागु., पद्य, वि. १७३८, आदिः कल्पवेल कवियण तणी; अंतिः लहसे ज्ञान विशालाजी. ३९८६. द्वादशव्रत विधि सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९३३, श्रेष्ठ, पृ. ८, जैदेना., (२४४१४, ८x२७). श्रावकबारव्रत विधि, प्रा., पद्य, आदिः अहं भन्ते सम्मत्तं; अंतिः अरहि समणे तहा सो. श्रावकबारव्रत विधि-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः अथ हिवइ हे पूज्य; अंतिः साध्वीनी साखइ खमाउ. For Private And Personal Use Only Page #473 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org: ४१९ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ३९८७. दानशीलतपभावना कुलक सह टवार्थ+कथा, संपूर्ण वि. १९६०, श्रेष्ठ, पृ. ४०, जैदेना, ले. स्थल पालिताणा, प्र. वि. मूल-गा. ५०, (२७.५x१३, १४४४६). दानशीलतपभावना कुलक, मु. अशोकमुनि, प्रा. पद्य, आदि देवाहिदेवं नमिऊण: अंतिः सूरि खमउ तेणं. दानशीलतपभावना कुलक-टबार्थ+ कथा, मागु, गद्य, आदि देवाधिदेवने नमस्कार अंतिः ते खमज्यो श्रुतधर ३९८९.” योग यन्त्र व विधि, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, पे. २, जैदेना., ले. करमचन्द रामजी लहिया, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२८.५४१३.५, १७९६८). पे. १. योगविधि यन्त्र सङ्ग्रह, प्रा., मागु., गद्य, (पृ. १-५अ ), आदि: द्रुमपुष्पिकाध्ययन; अंतिः काउसग्ग १. पे. २. योगविधि यन्त्र सङ्ग्रह, प्रा. मागु, गद्य, (पृ. ५आ), आदि वसतिपूर्वक इच्छामि अंतिः अने सिव पविजाहि ३९९०. पञ्चमीदेववन्दन विधि, संपूर्ण वि. १८९० श्रेष्ठ, पृ. ८ जैदेना, ले स्थल. पाली, ले. श्री. खुशालचन्द पोरवाल शाह, ( २८x१३.५, १२X४१). ज्ञानपंचमीपर्व देववन्दन, आ. लक्ष्मीसूरि मागु, पच आदि प्रथम बाजोठ उपर तथा अंतिः विजयलक्ष्मी शुभ हेज. ३९९१. नेमजिन विवाहलो, संपूर्ण वि. १८८६, श्रेष्ठ, पृ. १०, जैदेना, ले. स्थल. पादरा, ले. पं. नयविजय, प्र. वि. ढाळ-२१, (२८.५x१३.५, १६x२९). नेमिजिन विवाहलो, पं. वीरविजय, मागु., पद्य, आदिः सरसती चरण समरी; अंति: गुण दिल धारी रे. ३९९२. चौवीसदण्डक ओगणतीसद्वार विचार, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १९, जैदेना., ले. स्थल. इडर, (२७x१३.५, १०x३१). २४ दण्डक २९ बोल, मागु., गद्य, आदि: प्रथम नामद्वार बीजु; अंतिः अनंत गुणे अधिक जाणवा. ३९९३.' अष्टप्रकारी पूजा, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ७, जैदेना., प्र. वि. ढाल - ९, संशोधित, ( २६ १३, ९३१). " ८ प्रकारी पूजा, मु. देवविजय, मागु, पथ, वि. १८२१, आदि: अजर अमर निकलङ्क जे अंतिः मोक्षं हि वीराः, ३९९४. पच्चक्खाण भाष्य सह टबार्थ व पच्चक्खाण के भागा, संपूर्ण, वि. १९४२, श्रेष्ठ, पृ. १२, पे. २, जैदेना., ले. ऋ. मोतीचन्द, (२७.५x१३, ३x२८). पे. १. पे. नाम. पच्चक्खाणभाष्य सह टबार्थ, पृ. १-१२ प्रत्याख्यानभाष्य, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, आदिः दस पच्चक्खाण चउविहि; अंतिः सासयसुक्खं अणाबाहं. प्रत्याख्यानभाष्य-टवार्थी मागु, गद्य, आदि दस प्रकारे पच्चखाण अंतिः नवमोद्वार पूरो थयो, पे. वि. मूल-गा. ४८. पे. २. प्रत्याख्यान ४९ भागा मागु, गद्य (पृ. १२) आदि मनई न करुं वचने अंति नही अनुमोदु नही. , Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir , ३९९५. सष्टिशतक भाषा दुहा (दोधक), संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, जैदेना., प्र. वि. गा. १६२, (२७×१३, १२४३८). षष्टिशतक प्रकरण- भाषानुवाद, मोहन, मागु, पद्य, आदिः धन्य कृतारथ केहिये: अंतिः जनसेवक मोहन तास. ३९९६ . पाक्षिकसूत्र व खामणा सह वृत्ति, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. २५, पे. २, जैदेना, प्र. वि. त्रिपाठ, (२९.५४१२.५, १५४४९). पे. १. पे. नाम. साधुपाक्षिकसूत्र सह अवचूरि, पृ. ०१-२४ पाक्षिकसूत्र, प्रा., प+ग, आदिः तित्थङ्करे य तित्थे; अंतिः जेसिं सुयसायरे भत्ति. पाक्षिकसूत्र अवचूरि, सं. गद्य, आदि: तीर्थङ्करांश्वशब्दाद अंतिः मे दुष्कृतमस्तु पे. वि. प्र. पु. ग्रं. ९००. पे. २. पे. नाम. साधु पाक्षिकक्षामणासूत्र सह अवचूरि, पृ. २४आ-२५अ क्षामणकसूत्र, प्रा., गद्य, आदि: इच्छामि खमासमणो: अंतिः नित्थारग पारगा होह.. क्षामणकसूत्र - अवचूरि मागु, गद्य, आदि: अथ पाक्षिक क्षामणानि: अंतिः निस्तारकपारगाभवत्. ३९९७. अध्यात्मकल्पद्रुम सह बालावबोध, संपूर्ण वि. १९१५ श्रेष्ठ, पृ. १२५ जैदेना. ले. रेवाशङ्कर प्राणसुख पण्डया (नागर). प्र.वि. मूल-श्लो. २७२, १६ अधिकार, त्रिपाठ, प्र.ले. श्लो. (१२७) शिवमस्तु सर्वजगतः (४७५) यादशं पुस्तकं दृष्ट्वा, (२७१२.५, ९- १२३०-३४). For Private And Personal Use Only Page #474 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य भाग - १ ४२० अध्यात्मकल्पद्रुम, आ. मुनिसुन्दरसूरि, सं., पद्य, आदि: जयश्रीरान्तरारीणां०; अंतिः जयश्रिया शिवश्रीः. अध्यात्मकल्पद्रुम-बालावबोध, मु. हंसरत्न, मागु., गद्य, आदिः श्रीशर्केश्वरपार्श्व; अंतिः चिरं जयतात्. ३९९८." रुकमणी रास, संपूर्ण, वि. १८२८, मध्यम, पृ. २५, जैदेना., ले. ऋ. मेघा (गुरु ऋ. महेश), प्र.वि. गा.७९८, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२७४१२.५, १५४५७). रुक्मिणी रास, नन्दलाल, राज., पद्य, आदिः वीर जिनेश्वर वन्दिये; अंतिः दुक्कडं हूजियो मुजतो. ३९९९. जीवन्धर चरित्र की भाषा, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २८, जैदेना., पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. अधिकार-२ गा.१०६ तक है., (२७४१२, ७४३४). जीवन्धर चरित्र-टबार्थ, श्रा. नथमल विलाला, मागु., पद्य, आदिः जयवन्तो वरतौ सदा; अंति:४०००. कर्मविपाक कर्मग्रन्थ के प्रश्नोत्तर, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, जैदेना., (२७.५४१२.५, १५-२०x४६). कर्मविपाक नव्य कर्मग्रन्थ-प्रश्नोत्तर, संबद्ध, हिन्दी, गद्य, आदिः शास्त्रानुसार कौन; अंतिः कुछ बढाके लिखे हैं. ४००१." वीरजिन चौढालीयो, संपूर्ण, वि. १९५८, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना., ले.स्थल. गंगेरु,ले. ऋ. श्रीचन्दजी (गुरु ऋ. रघुनाथ), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. गा.६३, ढाळ-४, संशोधित, (२६.५४१२.५, १३४२५). महावीरजिन चौढालिया, ऋ. रायचन्द, राज., पद्य, वि. १८३९, आदिः सिद्धार्थकुलमईजी; अंतिः राजी मन गोड न राख्यो. ४००२. दशवैकालिकसूत्र सह शब्दार्थवृत्ति, संपूर्ण, वि. १९५१, श्रेष्ठ, पृ. ८८, जैदेना., ले.स्थल. बिकानेर, ले. मु. वासुदेव(केरलगच्छ),प्र.वि. मूल-अध्ययन१०चूलिकार., त्रिपाठ,प्र.ले.श्लो. (१४१) यादशं पुस्तकं कृत्वा; (१७३) जलात् र? तैलात् रक्ष, (२६.५४१२.५, ११-१५४४५). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यम्भवसूरि, प्रा., पद्य, वि. पू.४, आदिः धम्मो मङ्गलमुक्किट्ठ; अंतिः (१)मुच्चइ त्ति बेमि (२)आलणा सो. दशवैकालिकसूत्र-दीपिका वृत्ति, उपा. समयसुन्दर गणि, सं., गद्य, वि. १६९१, आदिः स्तम्भनाधीशमानम्य; अंतिः पुनः सार्द्धचतुशतम्. ४००३. समवायाङ्गसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७२१, मध्यम, पृ. १०२, जैदेना., ले.स्थल. प्रतिदिलि, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२७.५४१२, ६x४७). समवायाङ्गसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदिः सुयं मे० इह खलु; अंतिः अज्झयणन्ति त्तिबेमि. समवायाङ्गसूत्र-टबार्थ, वाचक मेघराजजी, मागु., गद्य, वि. १७उ., आदिः देवदेवं जिनं नत्वा; अंतिः बहुमान देखाड्यउ. ४००४." तन्दुलवैचारिक प्रकीर्णक सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८२२, श्रेष्ठ, पृ. ३४, जैदेना., ले. ऋ. मङ्गल, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२८x१३, ६४३२). तन्दुलवैचारिक प्रकीर्णक, प्रा., प+ग, आदिः निजरिय जरामरणं; अंतिः मुच्चह सव्वदुक्खाणं. तन्दुलवैचारिक प्रकीर्णक-टबार्थ, राज., गद्य, आदिः तप जप सञ्जमनइ वलइ; अंतिः गणीजो मुक्तइ जाइजो. ४००५. गौतम कुलक सह बालावबोध+कथा, संपूर्ण, वि. १९१८, श्रेष्ठ, पृ. ३५, जैदेना., ले.स्थल. रावलपिंडी, ले. ऋ. गुलाबचन्द, (२६४१२.५, २२४४०). गौतम कुलक, प्रा., पद्य, आदिः लुद्धा नरा अत्थपरा; अंतिः सुहं लहन्ति. गौतम कुलक-बालावबोध+कथा, ऋ. रिधु?, मागु., गद्य, आदिः सुयदेवी समरि करि; अंतिः करे ते सुखी थासे. ४००६." नवतत्त्व सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदेना., प्र.वि. मूल-गा.६०. टबार्थ गा.३३ तक ही लिखा है., टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२५.५४१२.५, ६४३२). नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, (संपूर्ण), आदिः जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंतिः अणागयद्धा अणन्तगुणा. For Private And Personal Use Only Page #475 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ४२१ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची नवतत्त्व प्रकरण-टबार्थ', मागु., गद्य, (अपूर्ण), आदिः जीवतत्त्व अजीवतत्त्व; अंति:४००८. ज्ञाताधर्मकथाङ्गसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २६४, जैदेना., प्र.वि. मूल १९अध्ययन; प्र.पु. मूल-ग्रं. ५३७५., (२७.५४१२.५, ७X४१). ज्ञाताधर्मकथाङ्गसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदिः तेणं कालेणं० चम्पाए; अंतिः जाव सम्पत्तेणं. ज्ञाताधर्मकथाङ्गसूत्र-टबार्थ, उपा. कनकसुन्दर, मागु., गद्य, आदिः (१) प्रणम्य श्रीमहावीरं (२) तेणइ कालइ जे चउथइ; अंतिः धर्मकथा संपूर्ण. ४००९. कल्पसूत्र सह टबार्थ व व्याख्यान+कथा, संपूर्ण, वि. १८७०, श्रेष्ठ, पृ. १८८, जैदेना., प्र.वि. मूल-ग्रं. १२१६, ९ व्याख्यान., संशोधित, (२६.५४१२.५, ६-१३४२९). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदिः णमो अरिहन्ताणं० पढमं; अंतिः उवदंसेइ त्ति बेमि. कल्पसूत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः अरिहन्तनइ माहरो; अंतिः वारंवार उपदेस करि छि. कल्पसूत्र-व्याख्यान+कथा*, मागु., गद्य, आदिः सकलार्थसिद्धिजननी; अंतिः कूड कपट राखवो नही. ४०१०." सूयगडाङ्गसूत्र सह टबार्थ - श्रुतस्कन्ध २, प्रतिपूर्ण, वि. १७८७, मध्यम, पृ. ९३+१(८०)=९४, जैदेना., ले.स्थल. सोजत, ले. ऋ. लालचन्द (गुरु मु. दीपचन्द), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२५.५४११.५, ६x४४). सूत्रकृताङ्गसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदि:-; अंतिः विहरति त्ति बेमि. सूत्रकृताङ्गसूत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, आदि:-: अंतिः विहरवा इच्छउ छउ. ४०११.” सूर्यजसाराजरीषी रास, संपूर्ण, वि. १८५२, मध्यम, पृ. ८, जैदेना., ले.स्थल. सुर्यपुरनगर, ले. मु. मयारत्न, प्र.वि. ढाळ-१७, संशोधित, (२५.५४१२, १५४३९). सूर्ययशानृप रास, वाचक उदयरत्न, मागु., पद्य, वि. १७८२, आदिः सकल सिद्धि सपद सदन; अंतिः पाम्या बहु प्राणी ४०१२. पच्चक्खाणभाष्य सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९२८, जीर्ण, पृ. १२+१(१२)=१३, जैदेना., ले.स्थल. ठाणानगर, ले. कृष्णपाल, प्र.वि. मूल-गा.४८., (२७४१३, ३४३१). प्रत्याख्यानभाष्य, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, आदिः दस पच्चक्खाण चउविहि; अंतिः सासयसुक्खं अणाबाहं. प्रत्याख्यानभाष्य-टबार्थ, मागु., पद्य, आदिः दस पच्चखाण कहेतां; अंतिः पीडाइ करी रहित छइ. ४०१३. श्राद्धप्रतिक्रमणसूत्र सङ्ग्रह स्थानकवासी, संपूर्ण, वि. १९१७, श्रेष्ठ, पृ. ८, जैदेना., ले.स्थल. अजमेर, ले. दयाचन्द्र, (२७.५४१३.५, ११४२६). साधुश्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-स्थानकवासी, संबद्ध, प्रा.,गुज., प+ग, आदिः नमो अरिहन्ताणं०; अंतिः अप्पाणं वोसिरामि. ४०१४. भक्तामर स्तोत्र सह सुबोधिका टीका, संपूर्ण, वि. १९४८, श्रेष्ठ, पृ. ३१, जैदेना., ले.स्थल. भीणाय, प्र.वि. मूल-श्लो.४४; टीका-ग्रं. ४७५., (२८x१३, ७४३४). भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुङ्गसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलिमणि; अंतिः समुपैति लक्ष्मी. भक्तामर स्तोत्र-सुबोधिका टीका, उपा. समयसुन्दर गणि, सं., गद्य, वि. १६८७, आदि: नत्वा जिनं सुशिष्य; अंतिः सर्वसङ्ख्यायाः. ४०१५. रूपीअरूपी विचार-नवतत्त्वे, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, जैदेना., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-कुछ पत्र, (२५.५४१३.५, १२४२८). नवतत्त्व प्रकरण-रुपी अरूपी बोल, संबद्ध, मागु., गद्य, आदि: नवतत्त्व मांहि रुपि; अंतिः सुत्रमा कर्तुं छे. ४०१६." शत्रुञ्जयतीर्थोद्धार व गिरनार शत्रुञ्जय स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, पे. २, जैदेना., ले.स्थल. पालनपुर, ले. श्रा. लवजी मोतीचन्द, प्र.वि. संशोधित, (२७४१३.५, १२४३१). For Private And Personal Use Only Page #476 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य भाग १ - www.kobatirth.org: ४२२ पे. १. शत्रुंजयतीर्थउद्धार रास, मु. नयसुन्दर, मागु., पद्य, वि. १६३८, (पृ. १-८), आदिः विमल गिरिवर विमल; अंतिः देहि दरसण जय करे., पे.वि. गा. १२०. पे. २. गिरनारशत्रुञ्जयतीर्थ स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मागु., पद्य, (पृ. ८अ -८आ), आदिः सारो सोरठ देश देखाओ; अंतिः प्रभु सिर घरीया, पे.वि. गा७. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४०१७.” गुरुवन्दनभाष्य सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९२८, श्रेष्ठ, पृ. १०, जैदेना., ले. स्थल. पालिताणा, प्र. वि. मूल-गा. ४१, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२७४१३. ३४३१). गुरुवन्दनभाष्य, आ. देवेन्द्रसूरि प्रा. पद्य, आदि गुरुवन्दनणमह तिविह अंतिः अणभिनिवेसीयमच्छारिणो. गुरुवन्दनमाष्य-टवार्थ, मागु., गद्य, आदि: गुरुवन्दन कहितां अंतिः जेहनउ एहवा छे, ४०१९. पाक्षिकसूत्र व खामणा, संपूर्ण, वि. १९००, श्रेष्ठ, पृ. १०, पे. २, जैदेना., ले. स्थल. मेडता, ले. सुखरामदास, ( २५x१२.५, १४४३०). पे. १. पे. नाम. पाक्षिकसूत्र, पृ. ०१अ - १०अ पाक्षिकसूत्र, प्रा. प+ग, आदि: तित्थङ्करे य तित्थे अंतिः जेर्सि सुवसायरे भत्ति. पे. २. पे. नाम. पाक्षिकक्षामणासूत्र, पृ. १०अ १०आ क्षामणकसूत्र, प्रा., गद्य, आदि: इच्छामि खमासमणो; अंतिः नित्थारग पारगा होह... (+) ४०२०.” सङ्ग्रहणीसूत्र सह टिप्पण, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २२, जैदेना. प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-कुछ पत्र, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण मूलगा. १६९ तक लिखा है. टिप्पण गा. १०६ तक लिखा है., ( २६.५४१२, ४४३५). बृहत्सङ्ग्रहणी, आ. चन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: नमिउं अरिहन्ताइं; अंतिः बृहत्सङ्ग्रहणी- टिप्पण, मु. उदयचन्द, सं., गद्य, आदि: नत्वा गुरून्स्थविरां; अंतिः ४०२१. आठकर्म १५८ प्रकृति विचार, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदेना. (२८४१२, १२४३५) , ८ कर्म १५८ प्रकृति विचार मागु, गद्य, आदि आठ कर्म ते केहा: अंतिः विषे उद्यम करवो. · ४०२२. दशवैकालिकसूत्र सह वृत्ति, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ८८, जैदेना., प्र. वि. मूल- अध्याय- अध्ययन १० चूलिका२. अंत में शय्यभवसूरि का परिचय दीया गया है. त्रिपाठ, (२७४१२.५ १४-१५४४४-५०). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यम्भवसूरि, प्रा., पद्य, वि. पू. ४, आदिः धम्मो मङ्गलमुक्किट्ठ; अंतिः मुच्चइति बेमि दशवैकालिकसूत्र- दीपिका वृत्ति, उपा. समयसुन्दर गणि, सं. गद्य वि. १६९१, आदि स्तम्भनाधीशमानम्य अंतिः पुनः " 1 सार्द्धचतुशतम्. ४०२३. वस्तुपाल चरित्र, संपूर्ण वि. १८वी श्रेष्ठ, पृ. १३६, जैदेना. प्र. वि. अध्याय-८ प्रस्ताव, (२७४१२.५, १५४३५). वस्तुपालमन्त्री चरित्र, गणि जिनहर्ष, सं., पद्य, वि. १४९७, आदिः श्रीमानर्हन् शिवः; अंतिः वृत्तमिदं व्यधात्. ४०२४.” गजसुकुमालमुनिसरजी चौपाई, संपूर्ण, वि. १८७५, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना., ले. स्थल. कांधले शहर, प्र. वि. ढाळ - १८, संशोधित (२६.५४१२, २१४५४). गजसुकुमाल चीपाई मागु पद्य, आदि भदलपुर नामे नगर तिहा अंतिः कहई भवि साम्भलो. ४०२५. त्रिषष्टिशलाकापुरुष चरित्र सह टबार्थ- पर्व ८ प्रतिपूर्ण, वि. १९४४, श्रेष्ठ, पृ. २१४, जैदेना., ले. स्थल. अंजारनगर, ले. पं. कीर्तिविजय, (२७.५x१२.५, ८-९x४१). त्रिषष्टिशलाकापुरुष चरित्र, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य वि. १२२०, आदि:- अति: " त्रिषष्टिशलाकापुरुष चरित्र - टवार्थ, पं. रामविजय, मागु., गद्य, आदि:-: अंतिः ४०२७. चन्द्रप्रज्ञप्तिसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८८०, श्रेष्ठ, पृ. ११-२(१ से २) -९, जैदेना. ले. स्थल नारनोल, ले. तुलसीरामजी, प्र. वि. प्र. पु. मूल ग्रं. २१०० (२६.५४११-५, ६-८९४८). चन्द्रप्रज्ञप्ति, प्रा., पद्य, आदि:-; अंतिः अविणीएसु दायव्वं. For Private And Personal Use Only Page #477 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ४२३ www.kobatirth.org: चन्द्रप्रज्ञप्ति-टबार्थ*, मागु., गद्य, आदि:-; अंतिः ते खरो कीयो. " "" 'सूयगडाद्गसूत्र सह टबार्थ- श्रुतस्कन्ध २ प्रतिअपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ६२, जैदेना. प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., ( २६.५x१२, ५३५). सूत्रकृताङ्गसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदि:-; अंतिः सूत्रकृताङ्गसूत्र- टबार्थ *, मागु., गद्य, आदि:-; अंति: ४०२९.” शतक कर्मग्रन्थ सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १४८, जैदेना. प्र. वि. मूल-गा. १०० बालावबोध-गा. १००. संशोधित टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२०x१२, ११४४०). शतक नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि नमिय जिणं धुवबन्धोदय अंतिः सयगमिणं आयसरणट्ठा. शतक नव्य कर्मग्रन्थ-बालावबोध, मु. मतिचन्द्र, मागु, गद्य, आदि दृष्ट्वा येन भृशं अंतिः आत्मस्मरणने अर्थ. ४०३०.” मानतुङ्गमानवती रास मृषावादविरमणाधिकारे, संपूर्ण वि. १९३७, श्रेष्ठ, पृ. ३९, जैदेना ले. स्थल, पाली, ले. पोखरदत्त ब्राह्मण, प्र. वि. ढाळ-४७, संशोधित, ( २६.५x१२, १४४४०). मानतुङ्गमानवती रास, मु. मोहनविजय, मागु., पद्य, वि. १७६०, आदिः ऋषभजिणन्द पदाम्बुजे; अंतिः घरघर मङ्गलमाल है. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४०३१.' लघुक्षेत्रसमास, संपूर्ण, वि. १८९६, श्रेष्ठ, पृ. १२, जैदेना., ले. स्थल नागोर, ले. ऋ. ओदचन्द्रण, प्र. वि. गा. २६६, अध्याय ६ अधिकार, संशोधित (२६४१२५ १५-१६४३८). T कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची (+) लघुक्षेत्रसमास प्रकरण, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., पद्य, वि. १५वी, आदिः वीरं जयसेहरपय; अंतिः कुसलरङ्गमयं पसिद्धं. ४०३२. चन्द्रलेखा चतुपदी, संपूर्ण, वि. १९४८, श्रेष्ठ, पृ. ३२, जैदेना., ले. स्थल. पाली, ले. सुरजमल ब्राह्मण, प्र. वि. ढाळ-२९, (२६.५x१२.५, ११x४०). चन्द्रलेखा रास मु. मतिकुशल मागु, पद्य वि. १७२८ आदिः सरसति भगवति नमी करी अंतिः जांकुं रस निसदिस. ४०३३.” सूरसुन्दरी चौपाई, संपूर्ण, वि. १९४७, श्रेष्ठ, पृ. ३३, जैदेना., ले. स्थल. पल्लीपुर, ले. सुरजमल ब्राह्मण, प्र. वि. खण्ड ४, ढाल - ४०, संशोधित, ( २६.५x१२.५, १०x४२). सुरसुन्दरी चौपाई, मु. धर्मवर्धन, मागु., पद्य, वि. १७३६, आदि: सासण जेहनउ सलहियइ; अंतिः आनंद लील उमंगेजी. ४०३४. मुनिपति चरित्र, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २२-३ (१ से ३) १९, जैदेना. ले. स्थल. सोजितनगर, प्र. वि. संशोधित, .. (२६.५x१२, १६४३७). मुनिपति चरित्र, मागु, पद्य, आदि अंति: अनुक्रमें मोक्ष जासी. " ४०३५. सुयगडाङ्गसूत्र सह टवार्थ- श्रुतस्कन्ध २ प्रतिपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ९३ जैदेना. (२५.५४१२५ ४-७९३३-४१). सूत्रकृताङ्गसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदि:-; अंतिः विहरति त्ति बेमि " सूत्रकृताङ्गसूत्र- टवार्थ मागु., गद्य, आदि:- अतिः शिष्य प्रतै कहई छई. ४०३६. नवपद व दीपावली गुणन विधि, संपूर्ण वि. १९५५, श्रेष्ठ, पृ. ८ पे. २. जैदेना. ले. स्थल अमदावाद, (२७४१२.५. " १२४३८). For Private And Personal Use Only पे. १. नवपदतप विधि, सं., राज., गद्य, (पृ. १-८), आदि: तिहां प्रथम पदे अंतिः ह्रीं णमो तवस्स २०००., पे.वि. ग्रं. ३३५. पे. २. पे. नाम. दीपमालिकागुणन विधि, पृ. ८आ दीपावलीपर्वगुणन विधि, सं., गद्य, आदिः ॐ ह्रीं श्रीं अंतिः सर्वज्ञाय नमः. Page #478 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य भाग - १ ४२४ ४०३७. वीसविहरमानजिन पूजा, संपूर्ण, वि. १९६१, श्रेष्ठ, पृ. ११, जैदेना., ले.स्थल. पेथापुर, ले. जेठालाल चुनिलाल लहिया, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. ग्रं. २७०, २० पूजा, संशोधित, (२६४१३, १२४३६). विहरमान २० जिन पूजा, मु. नित्यविजय, मागु., पद्य, वि. १९१९, आदि: मनमोहन पासजी सकल; अंतिः कण्ठे सोहाया रे. ४०३८.” ऋषिमण्डल स्तोत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८६५, श्रेष्ठ, पृ. ७, जैदेना.,प्र.वि. मूल-श्लो.८१., टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२६.५४१३, ५४३३). ऋषिमण्डल स्तोत्र, आ. गौतमस्वामी गणधर, सं., पद्य, आदिः आद्यन्ताक्षरसंलक्ष्य; अंतिः परमानन्दसम्पदाम्. ऋषिमण्डल स्तोत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः आदिको अक्षर अन्तको; अंतिः पद की सम्पदा पामे. ४०३९. स्तवनचौवीसी, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, जैदेना., प्र.वि. अध्याय-२४ स्तवन, (२८x१२.५, ११-१३४३६-४४). स्तवनचौवीसी, आ. ज्ञानविमलसूरि, मागु., पद्य, आदिः आदिकरण अरिहन्तजी; अंतिः ध्याने नाचुजी. ४०४०. ज्ञानपञ्चमी देववन्दन, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १३, जैदेना., पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., (२८x१२.५, १०४३५). ज्ञानपंचमीपर्व देववन्दन, आ. लक्ष्मीसूरि, मागु., पद्य, आदिः श्रीसौभाग्यपञ्चमी; अंति:४०४१." सिद्धपञ्चाशिका सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १३, जैदेना., प्र.वि. मूल-गा.५०., टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२७४१२.५, ३४३३). सिद्धपञ्चाशिका प्रकरण, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, आदिः सिद्धं सिद्धत्थसुअं; अंतिः देविन्दसूरिहिं. सिद्धपञ्चाशिका प्रकरण-बालावबोध, मागु., गद्य, आदिः सिद्धं आपणो अर्थ; अंतिः सूरिइं इन्दं कृतं. ४०४२." गर्भावास सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदेना., ले. ऋ. लखमीचन्द्र(पार्श्वचन्द्रगच्), प्र.वि. गा.७४, संशोधित, प्र.ले.श्लो. (४६६) पोथी प्यारी प्राणथी, (२५४१२.५, ११४२५). गर्भावास सज्झाय, पाठक श्रीसार, मागु., पद्य, आदिः उतपति जोइजो आपणी; अंतिः इम कहे श्रीसार ए. ४०४३. नवतत्त्व प्रकरण सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९४४, श्रेष्ठ, पृ. १९, जैदेना., ले. जेठालाल चुनिलाल लहिया, प्र.वि. मूल गा.५७; टबार्थ-गा.५७., (२७x१२.५, ३४२४). नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदिः जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंतिः लहिओ श्रीधम्मसुरिहिं. नवतत्त्व प्रकरण-टबार्थ, मागु., पद्य, आदिः जिवतत्त्व प्राणधरे; अंतिः टबा सहित सङ्ग्रह्यो. ४०४४." भाष्यत्रय सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९१०, श्रेष्ठ, पृ. ४६, जैदेना., ले. मु. जयसागर, प्र.वि. मूल-परिमाण गा.६३+४१+४८ ., संशोधित, त्रिपाठ, (२७४१२.५, १४-१७४३७-४०). भाष्यत्रय, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, आदिः वन्दित्तु वन्दणिज्जे; अंतिः सासयसुक्खं अणाबाहं. भाष्यत्रय-बालावबोध, आ. ज्ञानविमलसूरि, मागु., गद्य, वि. १७५८, आदिः ऐन्द्रश्रेणिनुतं; अंतिः इत्यादि ग्रन्थ जोवा. ४०४६. नन्दीसूत्र व अनुज्ञानन्दीसूत्र, संपूर्ण, वि. १९६७, श्रेष्ठ, पृ. १७, पे. २, जैदेना., ले.स्थल. पाली, (२७४१२.५, १४४५०). पे. १. नन्दीसूत्र, आ. देववाचक, प्रा., प+ग, (पृ. १-१६अ), आदि: जयइ जगजीवजोणीवियाणओ; अंतिः से त्तं परोक्खणाणं. पे. २. लघुनन्दीसूत्र-अनुज्ञानन्दीसूत्र, आ. देववाचक, प्रा., गद्य, (पृ. १६अ-१७आ), आदिः से किं तं अणुण्णा; अंतिः वीसमणुण्णाए णामाई. ४०४७. कूर्मापूत्र चरित्र, संपूर्ण, वि. १९५६, जीर्ण, पृ. ८५, जैदेना., ले.स्थल. पेथापुर, प्र.वि. प्रत जीर्ण होने आदि-अंतिमवाक्य __नही भरा है., (२७४१२.५, १४४४७). कुर्मापुत्र चरित्र, सं., पद्य, आदिः#; अंतिः#. ४०४८." पञ्चतीथि पूजा, संपूर्ण, वि. १९३३, श्रेष्ठ, पृ. १०, जैदेना., ले.स्थल. पेथापुर, ले. श्रा. जयसिंह साकरचन्द, प्र.वि. ५ पूजा. सुविधिनाथ प्रसादात्., संशोधित, (२५.५४१३, १३४३७). For Private And Personal Use Only Page #479 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ४२५ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची पंचतीर्थ पूजा, मु. उत्तमविजय, मागु., पद्य, आदिः सुखकर सवेश्वरौ; अंतिः पञ्च करज्यो दया. ४०४९. नवतत्त्व सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९१५, श्रेष्ठ, पृ. १५, जैदेना., ले. गणि लालविजय, प्र.वि. मूल-गा.५५; प्र.पु. ग्रं. ५२५., टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२६४१२.५, ४४१८). नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदिः जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंतिः अणन्तभागो य सिद्धिगओ. नवतत्त्व प्रकरण-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः अरिहन्तादिक पञ्च; अंतिः सीद्धनो थयो छे. ४०५०. गुरुवन्दनभाष्य सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९४१, श्रेष्ठ, पृ. १०, जैदेना., ले.स्थल. सरसपुरा, ले. जेठालाल चुनिलाल लहिया, प्र.वि. मूल-गा.४१., (२७.५४१३, ४४२५). गुरुवन्दनभाष्य, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, आदिः गुरुवन्दनणमह तिविहं; अंतिः अणभिनिवेसीयमच्छरिणो. गुरुवन्दनभाष्य-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः गुरुवन्दन गुणवन्तने; अंतिः मत्सर रहित चालइ. ४०५१. शत्रुञ्जयतीर्थमाला, संपूर्ण, वि. १९४२, श्रेष्ठ, पृ. १०, जैदेना., प्र.वि. ढाळ-१०, संशोधित, (२५.५४१३, १३-१४४३०). शत्रुजयतीर्थमाला स्तवन, मु. अमृतरङ्ग, मागु., पद्य, वि. १८४०, आदिः विमलाचल वारु रे भले; अंतिः (१)नीत नमो गीरीराया रे (२)अमृतरङ्ग सोहङ्करू. ४०५२. जीवविचार सह वृत्ति, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३६, जैदेना., प्र.वि. मूल-गा.५१; टीका-गा.५१., (२५.५४१२.५, ११ १४४३६-३८). जीवविचार प्रकरण, आ. शान्तिसूरि, प्रा., पद्य, आदिः भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंतिः रुद्दाओ सुयसमुद्दाओ. जीवविचार प्रकरण-टीका, पाठक रत्नाकर, सं., गद्य, वि. १६१०, आदिः सज्ज्ञानभास्करं; अंतिः तस्मादित्यक्षरार्थः. ४०५३. सम्यक्त्वसार प्रश्नचर्चा (प्रश्नोत्तर), संपूर्ण, वि. १९५०, श्रेष्ठ, पृ. १८, जैदेना., ले.स्थल. सिंघाणा, प्र.वि. संशोधित, (२७x१२.५, १७-२१४४५-४८). सम्यक्त्वसार प्रश्नोत्तर, मागु., गद्य, आदिः भस्मग्रह उतर्यानो; अंतिः ते मध्ये जाणज्यो. ४०५४. चतुःशरण प्रकीर्णक व गाथा सङ्ग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, पे. २, जैदेना., (२४.५४१२.५, १०४२७-३०). पे. १. चतुःशरण प्रकीर्णक, गणि वीरभद्र, प्रा., पद्य, (पृ. १-५), आदिः सावज्ज जोग विरई; अंतिः कारणं निव्वुइ सुहाणं., पे.वि. गा.६३. पे. २. जैन गाथा *, प्रा., पद्य, (पृ. ५आ), आदिः#; अंतिः#. ४०५५. ज्ञानपञ्चमी देववन्दन, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ८-१(१)-७, जैदेना., (२५४१२.५, १३-१४४३४-३६). ज्ञानपंचमीपर्व देववन्दन, आ. लक्ष्मीसूरि, मागु., पद्य, आदि:-; अंतिः विजयलक्ष्मी शुभ हेज. ४०५६. आराधना व धारणा पच्चक्खाण, अपूर्ण, वि. १९०४, मध्यम, पृ. ६-१(१)=५, पे. २, जैदेना., ले.स्थल. फलोधीनगर, ले. ऋ. देवचन्द, (२५.५४१२, १३४३८-४२). पे. १. आराधना, राज., गद्य, (पृ. -२-६, अपूर्ण), आदि:-; अंतिः (१)इति विध सुणावणरी छै (२)पद्मावती सुणावणी., पे.वि. प्रथम पत्र नहीं है. पे. २. पे. नाम. सोगन री पाटि, पृ. ६आ, संपूर्ण धारणा प्रत्याख्यानसूत्र, प्रा., गद्य, आदिः अरिहन्तसक्खियं; अंतिः वत्तियागारेणं वोसिरे. ४०५७.” चौवीसदण्डक २६ द्वार विचार, संपूर्ण, वि. १९६३, श्रेष्ठ, पृ. ८, जैदेना., पठ. पृथ्वीचन्द, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२६४१२.५, १७-१८४४२-४९). २४ दण्डक २६ द्वार विचार, मागु., गद्य, आदिः सरीर अवगाहणा सङ्घयण; अंतिः दरसण ए २ उपयोग पावे. ४०५९.' सिद्धाचल रास, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, जैदेना., प्र.वि. ढाळ-६, संशोधित, (२६४१२.५, ११४२७-३१). शत्रुजयतीर्थ रास, उपा. समयसुन्दर गणि, मागु., पद्य, वि. १६८२, आदिः श्रीरिसहेसर पाय नमी; अंतिः सुणतां आणन्द थाय. For Private And Personal Use Only Page #480 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य भाग १ - ४०६०. आठकर्म विचार, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ७, जैदेना, (२५.५X१३, १०X३३). ८ कर्म १५८ प्रकृति विचार, मागु., गद्य, आदिः आठ कर्म ते केहा; अंतिः मनवञ्छित सफल थास्यै.. , www.kobatirth.org: ४०६१." स्थुलीभद्र नवरसो, संपूर्ण, वि. १९२७, श्रेष्ठ, पृ. ११, जैदेना., ले. स्थल. पाली, ले. पोखरदास ब्राह्मण, प्र. वि. ढाळ - ९, संशोधित, (२५.५४१२.५ १२४२७). स्थूलिभद्र नवरसो वाचक उदयरत्न, मागु पद्य वि. १७५९ आदि सुखसंपति दायक सदा अंति: ( १ ) कहा भणतां मङ्गलमाल (२) मनोरथ वेगे फल्या रे. -, Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४०६२.” तिलोकसुन्दरी चौपाई, संपूर्ण, वि. १९५३, श्रेष्ठ, पृ. १२, जैदेना., ले. स्थल. नारनवलनगर, ले. ॠ. रघुनाथ (गुरु मु. मङ्गलसेन ), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. ढाळ - २२, संशोधित, ( २६१२.५, १९×३७). त्रैलोक्यसुन्दरी चौपाई, ऋ. कनीरामजी मागु पद्य वि. १८११ आदि अरिहन्त सिद्ध अनन्त: अंतिः फल लुणसी रे लो. ४०६३. चौमासी देववन्दन, संपूर्ण, वि. १९३६, श्रेष्ठ, पृ. १६, जैदेना., ले. स्थल. स्थंभनपुर, ले. कामेश्वर सीवलाल व्यास, (२५४१२, १३४३४). चौमासी देववन्दन, पं. पद्मविजय, मागु., पद्य, आदिः विमल केवलज्ञान कमला; अंतिः पास सांगलनुं चेइ रे.. ४०६४. शान्तिस्नात्र विधि, संपूर्ण, वि. १९२१, श्रेष्ठ, पृ. १०, जैदेना., प्र. वि. प्र.पु. श्लो. २७५., (२६×१२, ११x४०). शान्तिस्नात्र विधि, मु. सकलचन्द, सं., मागु., पद्य, आदिः प्रतिष्ठायां वा; अंतिः वाजते धारावाडी देवी. ४०६५." रात्रीभोजन चौपाई, संपूर्ण, वि. १९५७, श्रेष्ठ, पृ. ११, जैदेना., ले. स्थल. हिलवाडीग्राम, ले. साध्वीजी चम्पा (गुरु साध्वीजी दुर्गाजी), प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र. वि. संशोधित, (२५.५x१२, २०x४१). रात्रिभोजन चौपाई. मु. जिनहर्ष, मागु पद्य वि. १७५९ आदि श्रीसखेश्वर पास अंतिः पडवा केरे दीस. (+) ४२६ ४०६६. अनुत्तरोववाईदशाङ्गसूत्र सह टवार्थ, संपूर्ण वि. १९१२ श्रेष्ठ, पृ. १५ जैदेना. ले. स्थल. नवानगर, ले. मु. कीर्तिहंस, " प्र. वि. मूल- अध्याय - ३३. प्र. पु. सर्वग्रं. १५००., (२५.५X१२.५, ७५२). अनुत्तरीपपातिकदशाङ्गसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी प्रा. प+ग, आदिः तेणं कालेणं० नवमस्स: अंति कहाणं तहा णेयव्वं. अनुत्तरीपपातिकदशाङ्गसूत्र- टवार्थ मागु, गद्य, आदि ते काल चउथाआराने अंतिः धर्मकथानी परे जाणवा ४०६७." राजप्रश्नीयसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ५१-२ (१ से २) ४९ जैदेना. प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष " पाठ, पू. वि. प्रारंभ व अंत के पत्र नहीं हैं., (२५.५x१२, ६-९३८). राजप्रश्नीयसूत्र, प्रा., गद्य, आदि:-; अंति: राजप्रश्नीयसूत्र- टवार्थ मागु, गद्य, आदि-: अंति: " ४०६८." सूयगडाङ्गसूत्र सह टबार्थ- श्रुतस्कन्ध १, प्रतिपूर्ण, वि. १९१२, श्रेष्ठ, पृ. ५८, जैदेना., ले. स्थल. नागोर, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, ( २४.५x१२, ५-६×३६). सूत्रकृताङ्गसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदि: बुज्झिज्ज तिउट्टेज्ज; अंति: सूत्रकृताङ्गसूत्र- बालावबोध, आ. पार्श्वचन्द्रसूरि मागु, गद्य, आदि आदिदेवं आदिः आदिदेवं नमस्कृत्य; अंतिः For Private And Personal Use Only ४०६९.” प्रश्नव्याकरणसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८८०, श्रेष्ठ, पृ. ५८, जैदेना. ले. स्थल मदादरी प्र. वि. मूल गा. १२५०, " अध्याय- १० टिप्पण युक्त विशेष पाठ (२६.५४१२, ६९५१) , प्रश्नव्याकरणसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, (संपूर्ण), आदि: जम्बू इणमो अण्हयसंवर; अंतिः अगं जहा आयारस्स. प्रश्नव्याकरणसूत्र- टवार्थ मागु., गद्य, (पूर्ण), आदि: अहो जम्बू हुं धुरै: अंति: ४०७०." चतुःशरण प्रकीर्णक सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १२, जैदेना. प्र. वि. मूल-गा.६३, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२५.५x१२.५, ४x२४). Page #481 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ४२७ www.kobatirth.org: चतुःशरण प्रकीर्णक, गणि वीरभद्र, प्रा., पद्य, आदि सावज्ज जोग विरई: अंतिः कारणं निव्दुइ सुहाणं. चतुःशरण प्रकीर्णक- बालावबोध, मागु, गद्य, आदि सावध योग विरति ते अतिः कारण छइ जे अध्ययन. ४०७१.' कायस्थिति सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९२२, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना., प्र. वि. मूल-गा. २४., (२७१२.५, ४X३२). कायस्थिति प्रकरण, आ. कुलमण्डनसूरि, प्रा., पद्य, आदि: जह तुहदंसणरहिओ; अंतिः अकायपयसम्पयं देसु. कायस्थिति प्रकरण-टबार्थ *, मागु., गद्य, आदि: जिम ताहरे दर्शनइ; अंतिः सम्पदा प्रतई आपि. ४०७२" सालभद्रधनारी चोपाई चरित्र, संपूर्ण वि. १९०४ मध्यम, पृ. २०, जैदेना. ले. स्थल. जोधपुर, ले. ऋ. हुकमचन्द, प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र. वि. संशोधित, (२५.५x१२, १४X३९). धन्नाशालिभद्र रास, मु. मतिसार, मागु., पद्य, वि. १६७८, आदिः शासननायक समरीइं; अंतिः मनवञ्छित फल लहस्यइ. (+) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची " " ४०७३.” वीरथुइ अध्ययन सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९०४ श्रेष्ठ, पृ. ७, जैदेना. ले. ऋ. रघुनाथ (गुरु मु. मङ्गलसेन), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. हिस्सा-गा. २९: टबार्थ- गा.२९., टिप्पण युक्त विशेष पाठ, अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ - कुछ पत्र, ( २४४१२, ४x२७ ). सूत्रकृताङ्गसूत्र-हिस्सा वीरस्तुति अध्ययन, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., पद्य, आदिः पुच्छिंसुणं समणा; अंतिः देवाहिव आगमिस्सन्ति. सूत्रकृताङ्गसूत्र - हिस्सा महावीरजिन स्तुति अध्ययन का टबार्थ, मागु, गद्य, आदि: पु० पुछता हवा कोण अंतिः इम हुं बै० हु छु. ४०७४. कल्पसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८४९, श्रेष्ठ, पृ. ७०, जैदेना., ले. स्थल. रामनगर - लाखापुरा, ले. ऋ. सनेहीराम (गुरु ऋ. मानकचन्द), प्र.वि. प्र.पु. मूल ग्रं. १८२१. कहीं कहीं नहीवत् टबार्थ लिखा हुआ है., (२८x१२, ९४५२). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य (संपूर्ण), आदि: णमो अरिहन्ताणं० पढमं अंति: उवदंसेइ ति बेमि कल्पसूत्र - टबार्थ *, मागु., गद्य, (त्रुटक), आदि:-; अंति: ४०७५.” राजप्रश्नीयसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८६२, श्रेष्ठ, पृ. १०२, जैदेना., प्र. वि. प्र. पु. मूल-ग्रं. २५१५; टबार्थ-ग्रं. ५०३९., टिप्पण युक्त विशेष पाठ, ( २६११.५, ८x४२). राजप्रश्नीयसूत्र, प्रा., गद्य, आदिः नमो अरिहंताणं० तेणं; अंतिः सुपस्से परसवणा नमो. राजप्रश्नीयसूत्र - टबार्थ, मागु., गद्य, आदि: नमस्कार हुवउ० चउथाआर; अंतिः प्रश्न प्रसवतीनइं. विवेकमञ्जरी, सं., पद्य, आदि: भव्यांभोरूढबोधनैकपटु: अंतिः विवेकमञ्जरी-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः भविक जीवरुपे जे; अंतिः ४०७६. विवेकमञ्जरी सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १२५+१ (५३) - १२६, जैदेना. पु. वि. अंत के पत्र नहीं हैं.. "" (२६.५x११.५, ६४३५). " ४०७७. महिपाल चरित्र चौपाई उपदेशरत्नमाले, पूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ११४-२ (१८,३२ )+७(२४,५५,७१,७७,८७,९० से ९१) = ११९, जैदेना, प्र. वि. ४ / १०८ ढाल, संशोधित (२६.५x१०.५. १२०४२). For Private And Personal Use Only महिपालराजा चौपाई, मु. ऋषिराज, मागु पद्य वि. १९३३ आदि प्रथम तिर्थङ्कर अंतिः वरतै नित कल्याणैजी. ४०७८.) नन्दीसूत्र, अनुज्ञानन्दीसूत्र सह टबार्थ व योगनन्दीसूत्र, संपूर्ण, वि. १८८७, श्रेष्ठ, पृ. ८६, पे. ३, जैदेना., ले.. केसरीचन्द महात्मा, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ (२४.५X१०.५, ५-६X३८-४२), मु. पे. १. पे नाम नन्दीसूत्र सह टवार्थ, पृ. १७९अ नन्दीसूत्र, आ. देववाचक, प्रा., प+ग, आदिः जयइ जगजीवजोणीवियाणओ; अंतिः से त्तं परोक्खणाणं. नन्दीसूत्र - टबार्थ *, मागु., गद्य, आदिः नन्दी ते आनन्दनी; अंतिः परोक्षज्ञानना भेद छइ., पे.वि. अंतर्गत कथाएँ भी दी गयी है. Page #482 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य भाग - १ ४२८ पे. २. पे. नाम. अनुज्ञानन्दीसूत्र सह टबार्थ, पृ. ७९अ-८४आ __ लघुनन्दीसूत्र-अनुज्ञानन्दीसूत्र, आ. देववाचक, प्रा., गद्य, आदिः से किं तं अणुण्णा; अंतिः वीसमणुण्णाए णामाई. लघुनन्दीसूत्र-अनुज्ञानन्दीसूत्र-टबार्थ', मागु., गद्य, आदिः ते० ते कुण अ०; अंतिः अनुग्याना नाम जाणवा. पे. ३. योगनन्दीसूत्र, आ. देववाचक, प्रा., गद्य, (पृ. ८४आ-८६अ), आदिः नाणं पञ्चविहं; अंतिः अणुजाणामि., पे.वि. प्रारंभ की कुछेक पंक्तिओ में ही टबार्थ लिखा है. ४०७९." प्रश्नव्याकरणसूत्र सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १८२९, श्रेष्ठ, पृ. ८५, जैदेना., ले.स्थल. जेसलमेर, प्र.वि. त्रिपाठ, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२५४११, २०-२१४६४-६६). प्रश्नव्याकरणसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदिः जम्बू इणमो अण्हयसंवर; अंतिः शरीरधरे भविस्सत्तीति. प्रश्नव्याकरणसूत्र-बालावबोध, आ. पार्श्वचन्द्रसूरि, मागु., गद्य, आदिः श्रीवर्द्धमानमानम्य; अंतिः जाइं अनन्तसुख पामे. ४०८०." उत्तराध्ययनसूत्र सह टबार्थ व सोलसती स्तुति सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १०६, पे. २, जैदेना., दशा _ वि. विवर्ण-पानी से अक्षरों की स्याही फैल गयी है-अंत के कुछ पत्र, (२५.५४११, ६x४६-५१). पे. १.पे. नाम. उत्तराध्ययनसूत्र सह टबार्थ, पृ. १-१०६ उत्तराध्ययनसूत्र , मु. प्रत्येकबुद्ध , प्रा., प+ग, आदिः सञ्जोगाविप्पमुक्कस्स; अंतिः सम्बुडे त्ति बेमि. उत्तराध्ययनसूत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः प्रणम्य श्रीमहावीरं; अंतिः तुझ प्रतइ कहुं छु., पे.वि. मूल-अध्याय ३६अध्ययन; टबार्थ-ग्रं.११७१५उभ. पे. २. पे. नाम. सोलसती स्तुति सह अवचुरि, पृ. १०६अ १६ सती स्तुति, सं., पद्य, आदिः ब्राह्मी चन्दनबालिका; अंतिः कुर्वन्तु वो मङ्गलम्. १६ सती स्तुति-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः ब्राह्मी चन्दनबाला; अंतिः वः युष्माकं मङ्गलं., पे.वि. मूल-श्लो.१. ४०८१." उत्तराध्ययनसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १९६-१५(९ से १०,२५,३० से ३२,११७ से १२५)=१८१, जैदेना., प्र.वि. मूल-३६अध्ययन. प्र.पु.ग्रं. ३०५०., संशोधित, टिप्पण युक्त विशेष पाठ-कुछ पत्र, (२७४११, ५-६४३३). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध , प्रा., प+ग, आदिः सञ्जोगाविप्पमुक्कस्स; अंतिः सम्बुडे त्ति बेमि. उत्तराध्ययनसूत्र-टबार्थ , मागु., गद्य, आदिः साधु केहवा छइं; अंतिः तेहनइ इष्ट वल्लभ छइ. ४०८२. सप्तितिका कर्मग्रन्थ सह टीका, संपूर्ण, वि. १५५४, श्रेष्ठ, पृ. ८७, जैदेना., ले.स्थल. अहमदाबाद, प्र.वि. प्र.पु. टीका-ग्रं. ४०८०., प्र.ले.श्लो. (४७५) यादशं पुस्तकं दृष्ट्वा ; (१०१) भग्न पृष्टि कटी ग्रीवा, (२६.५४११.५, १५४४८). सप्ततिका कर्मग्रन्थ, प्रा., पद्य, आदिः सिद्धपएहिं महत्थं; अंतिः पूरेऊणं परिकहन्तु. सप्ततिका कर्मग्रन्थ-टीका, आ. मलयगिरिसूरि , सं., गद्य, आदिः अशेषकर्मांशतमासमूह; अंतिः तेनाश्नुतां लोकः. ४०८३.” दशवैकालिकसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८८५, श्रेष्ठ, पृ. ७३, जैदेना., ले.स्थल. हरदुवागंज, ले. ऋ. जोतिरूप (गुरु ऋ. परसराम, गुज.लुङ्कागच्छ), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. मूल-अध्याय-अध्ययन१०चूलिकार., टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२६.५४११, ४-५४३७-३९). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यम्भवसूरि, प्रा., पद्य, वि. पू.४, आदिः धम्मो मङ्गलमुक्किट्ठ; अंतिः (१)मुच्चइ त्ति बेमि (२)आलणा सचे. दशवैकालिकसूत्र-टबार्थ , मागु., गद्य, आदिः धम्मो० दुर्गति पडता; अंतिः छूटै इ० इम कही. ४०८५.” पण्णवणासूत्र, संपूर्ण, वि. १६वी, श्रेष्ठ, पृ. १५८, जैदेना., प्र.वि. अध्याय-३६ पद; प्र.पु. मूल-ग्रं. ७७८७, संशोधित, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२६x११, १५४५७). प्रज्ञापनासूत्र, वाचक श्यामाचार्य, प्रा., गद्य, आदिः नमो अरिहन्ताणं; अंतिः सुही सुहं पत्ता. ४०८६." उत्तराध्ययनसूत्र सह टबार्थ, पूर्ण, वि. १७७३, श्रेष्ठ, पृ. १८६-१(३९+४०)=१८५, जैदेना., प्र.वि. मूल-३६अध्ययन. प्र.पु. मूल-ग्रं. २१००., टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२५.५४११, ५४३६). For Private And Personal Use Only Page #483 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ४२९ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध , प्रा., प+ग, आदिः सञ्जोगाविप्पमुक्कस्स; अंतिः सम्मए त्ति बेमि. उत्तराध्ययनसूत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः सञ्जोग बे प्रकारे; अंतिः तुज प्रतै कहुं छु. ४०८७. कालसत्तरि सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९२७, श्रेष्ठ, पृ. १३, जैदेना., ले.स्थल. राजनगर, ले. नागरदास (गुरु रामदास), प्र.वि. मूल-गा.७५., (२७.५४१२, ४४३१). कालसप्ततिका, आ. धर्मघोषसूरि , प्रा., पद्य, आदि: देविन्दणयं; अंतिः कालसरूवं किमवि भणियं. कालसप्ततिका-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः इन्द्र महाराय पण; अंतिः सरुप कांइक ए कहिउ. ४०८८.” कालगणित का भाङ्गा-प्रश्नोत्तर, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, पे. २, जैदेना., ले.स्थल. जुंडले, ले. सुखदान, प्र.वि. ___संशोधित, (२५४११.५, १७४५३). पे. १. कालगणित भागा, प्राहिं., गद्य, (पृ. १अ-६अ), आदिः आठ सरसव करी एक जव; अंतिः पाञ्चु घणे कहे. पे. २. अग्निकाय विचार, मागु., गद्य, (पृ. ६अ-७आ), आदिः (१) वीजा पदता प्रश्नः (२) तथा तेजसकाय; अंतिः भावपणो न मिटे ते भणी. ४०८९. योगविधि, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, जैदेना., (२६४११, २१४७०-७४). योग विधि, सं., गद्य, आदिः आवश्यकं योगे; अंतिः ब्रह्मचर्यं च. ४०९०." वीरजिन स्तवन सह बालावबोध व शान्तिजिन गीत, संपूर्ण, वि. १७४४, श्रेष्ठ, पृ. २१, पे. २, जैदेना., ले.स्थल. राजनगर, लिखवा. गणि रतनविमल, प्र.वि. ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित, संशोधित, (२४४१०.५, १३ १५४४६). पे. १. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन सह बालावबोध, पृ. १-२१ महावीरजिन स्तवन-स्थापनानिक्षेपप्रमाण पञ्चाङ्गीगर्भित, उपा. यशोविजयजी गणि, मागु., पद्य, वि. १७३३, आदिः प्रणमी श्रीगुरुना; अंतिः आणा सिर वहेस्येजी. महावीरजिन स्तवन-बालावबोध, मागु., गद्य, आदिः जत्छय जं जाणिज्जा; अंतिः नियुक्ति मध्ये छइं., पे.वि. प्रशस्तिगत गाथाओं का बालावबोध नही लिखा है. पे. २. पे. नाम. शान्तिनाथ गीत, पृ. २१अ शान्तिजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, प्राहिं., पद्य, आदिः हम मगन भए प्रभु; अंतिः जीत लीओ मेदान मे., पे.वि. गा.६. ४०९१.” उत्तराध्यनसूत्र सह बालावबोध-अध्ययन २८, प्रतिपूर्ण, वि. १८२७, श्रेष्ठ, पृ. ९, जैदेना., ले.स्थल. तोस्याम, ले. लक्षजी, प्र.वि. टबार्थ अधुरा है., टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२५.५४११, ५-१७४२८-४२). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग, (प्रतिपूर्ण), आदि:-; अंति: उत्तराध्ययनसूत्र-टबार्थ , मागु., गद्य, (प्रतिअपूर्ण), आदि:-; अंति:४०९२." शाश्वतजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, जैदेना., प्र.वि. गा.८४, ढाळ-७, संशोधित, (२५.५४११, ९ १०x२५). शाश्वतजिन स्तवन, मु. माणिकविमल, मागु., पद्य, वि. १७१४, आदि: वीर जिणेसर पाय नमि; अंतिः सुख सम्पति घणी. ४०९३." श्राद्धप्रतिक्रमणसूत्र सङ्ग्रह सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १७, जैदेना., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., (२६४११, ५४३४-३७). श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-पायचन्दगच्छीय, संबद्ध, प्रा.,सं.,मागु., प+ग, आदि:-; अंति:श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-पायचन्दगच्छीय-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः श्रीअरिहन्त भणी; अंति: For Private And Personal Use Only Page #484 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य भाग - १ ४३० ४०९४." आवश्यकसूत्र सह वन्दारुटीका, अपूर्ण, वि. १६९७, श्रेष्ठ, पृ. ५२-२१(१ से २१)=३१, जैदेना., ले.स्थल. गोविंदपुर, ले. गणि लाभचन्द्र (गुरु गणि शान्तिचन्द्र). (२६x११, २१-२२४४८). आवश्यकसूत्र , प्रा., प+ग, आदि:-; अंतिः वत्तियागारेणं वोसिरइ. श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-वन्दारू टीका, आ. देवेन्द्रसूरि, सं., गद्य, आदि:-; अंतिः वृत्तितोवरचूर्णितश्च. ४०९६. सङ्ग्रहणीसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४६, जैदेना., प्र.वि. मूल-गा.३७३., (२५.५४११, ६४२७-३१). बृहत्सङ्ग्रहणी, आ. चन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: नमिउं अरिहन्ताइं; अंतिः जा वीरजिण तित्थं. बृहत्सङ्ग्रहणी-टबार्थ , मागु., गद्य, आदि: नमस्कार करी नइ; अंतिः लगइ न दोष प्रवर्तो. ४०९९. इन्द्रिय शतक, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदेना., प्र.वि. गा.९८, (२५.५४११, ११४३३). इन्द्रियपराजयशतक, प्रा., पद्य, आदिः सुच्चिअ सूरो सो चेव; अंतिः संवेग रसायणं निच्चं. ४१००." लोगस्ससूत्र सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, जैदेना., प्र.वि. हिस्सा-गा.७., दशा वि. विवर्ण-पानी से अक्षरों की स्याही फैल गयी है-अल्प, (२४.५४१०.५, ११४३३). लोगस्ससूत्र, प्रा., पद्य, आदिः लोगस्स उज्जोअगरे; अंतिः सिद्धिं मम दिसन्तु. लोगस्ससूत्र-बालावबोध, मागु., गद्य, आदिः चउद राजलोक मांहि; अंतिः दिसन्तु कहीइ दिओ. ४१०१. नन्दीसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४५, जैदेना., पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., (२५४११, ५४५७). नन्दीसूत्र, आ. देववाचक, प्रा., प+ग, आदि: जयइ जगजीवजोणीवियाणओ; अंति: नन्दीसूत्र-बालावबोध* , मागु., गद्य, आदि: जय० विषय कयाषादिक; अंति:४१०२." नवकार का बालावबोध, संपूर्ण, वि. १७३०, श्रेष्ठ, पृ. १३, जैदेना., प्र.वि. प्र.पु. ग्रं. ३२५., संशोधित, (२५४११, ११४३७). नमस्कारमहामन्त्र-बालावबोध', मागु., गद्य, आदिः बारसगुण अरिहन्ता; अंतिः ए अष्टभङ्गी जाणवा. ४१०३." कायस्थिति सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदेना., प्र.वि. मूल-गा.२५., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-कुछ पत्र, (२५.५४११, ४४२५). कायस्थिति प्रकरण, आ. कुलमण्डनसूरि, प्रा., पद्य, आदिः जह तुहदंसणरहिओ; अंतिः अकायपयसम्पयं देसु. कायस्थिति प्रकरण-टबार्थ, मागु., गद्य, आदि: जिम ताहरा दर्शन रहित; अंतिः सम्पदा प्रतइं आपि. ४१०४." चतुःशरण प्रकीर्णक सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ११, जैदेना.,प्र.वि. मूल-गा.६३; बालावबोध-ग्रं. ३४७., संशोधित, (२६४११, १२-१३४४३-४६). चतुःशरण प्रकीर्णक, गणि वीरभद्र, प्रा., पद्य, आदि: सावज्ज जोग विरई; अंतिः कारणं निव्वुइ सुहाणं. चतुःशरण प्रकीर्णक-बालावबोध, मागु., गद्य, आदिः पहिलु छ आवश्यकनां; अंतिः मुक्तिनां सुख लहइ. ४१०५. जैनधार्मिक सुभाषित सङ्ग्रह व पन्नवणासूत्र सज्झाय सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, पे. ३, जैदेना., ले.स्थल. पालीताणा, ले. मु. कल्याण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., (२५.५४१२, ५४३०). पे. १. पे. नाम. जैन धार्मिक सूक्तावलि सह टबार्थ, पृ. १अ-४आ, संपूर्ण सूक्तावली, सं.प्रा., पद्य, आदिः सकल कुशलवल्ली; अंतिः सम्मधम्मम्मि उजगेह. सूक्तावली-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः सकल क० समस्त कुसल; अंतिः परम्परा सुख पामसे., पे.वि. मूल-श्लो.३२. पे. २. पे. नाम. सुभाषितावली सह टबार्थ, पृ. ४आ-८आ, संपूर्ण सुभाषितावली, प्रा., पद्य, आदिः इन्दियत्तं माणुसत्तं; अंतिः बहुजाया बहुमुहा होति. सुभाषितावली-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः पाञ्च इन्द्री परवडा; अंतिः वारे घणे मुखे बोले., पे.वि. मूल-गा.३१. पे. ३. पे. नाम. पन्नवणासूत्र की सज्झाय सह टबार्थ, पृ. ८आ-, अपूर्ण प्रज्ञापनासूत्र-स्वाध्याय, उपा. यशोविजयजी गणि, संबद्ध, मागु., पद्य, आदिः कहजो रे पण्डित ते; अंतिः For Private And Personal Use Only Page #485 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ४३१ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची प्रज्ञापनासूत्र-स्वाध्याय काटबार्थ, मागु., गद्य, आदिः देखे जाणे ते चेतना; अंतिः-, पे.वि. मात्र प्रथम पत्र है. गा.३ तक लिखा है. ४१०६. सिन्दूरप्रकरण, संपूर्ण, वि. १९वी, जीर्ण, पृ. १२, जैदेना., प्र.वि. श्लो.१००, (२४.५४१२, ९४३४). सिन्दूरप्रकर, आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य, आदिः सिंदूरप्रकरस्तपः; अंतिः सूक्तमुक्तावलीयम्. ४१०८. आठदृष्टि सज्झाय- स्तवन(वीरजिन), संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, जैदेना., प्र.वि. ढाळ-८, (२५४११.५, ११४२८). योगदृष्टि सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मागु., पद्य, आदिः शिवसुखकारण उपदिशी; अंतिः वाचक जसने वयणेजी. ४१०९." गौतम पृच्छा, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, जैदेना., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें, संशोधित, (२५.५४११.५, ११४३५). गौतमपृच्छा चौपाई, मु. लावण्यसमय, मागु., पद्य, वि. १५४५, आदिः सकल मनोरथ पूरवे; अंतिः जे जिनवचने वसिउ. ४११०." शोभन स्तुति, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदेना., प्र.वि. २४ स्तुतिजोडा, श्लो.९६, दशा वि. विवर्ण-पानी से अक्षरों की स्याही फैल गयी है-अल्प, (२६४११.५, १५४४३). स्तुतिचतुर्विंशतिका, मु. शोभनमुनि, सं., पद्य, आदिः भव्याम्भोजविबोधनैक; अंतिः हारतारा बलक्षेमदा. ४११३." चैत्यवन्दनभाष्य सह टबार्थ, पूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ११, जैदेना., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. गा.५४ तक है., (२६.५४११.५, ३४३८). देववन्दन भाष्य, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, आदिः वन्दित्तु वन्दणिज्जे; अंति: देववन्दन भाष्य-टबार्थ, मागु., पद्य, आदि:-; अंति:४११५. वीरद्वात्रिंशिका सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना., प्र.वि. मूल-श्लो.३३., (२५४११.५, ५४३२). महावीरद्वात्रिंशिका, आ. सिद्धसेनदिवाकर, सं., पद्य, आदिः सदायोगसाम्यात्; अंतिः तांश्चक्रिशक्रश्रियः. महावीरद्वात्रिंशिका-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः (१) श्रीगुरुना चरण कमलना (२) सदा योगमार्ग साधे; अंतिः ध्याइते भगवन्तने. ४११६. कर्मप्रकृति व सुभाषित, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १६, पे. २, जैदेना., प्र.वि. संशोधित, पदच्छेद सूचक लकीरें, संधि सूचक चिह्न, अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ, टूटा भाग है-पंचपाठ, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., (२५४११.५, ९४३०). पे. १. कर्मप्रकृति, मु. नेमिचन्द्र सैद्धान्तिक, प्रा., पद्य, (पृ. १-१६, संपूर्ण), आदिः पणमिय सिरसा णैमि; अंतिः न लहई जं इच्छियं जेण., पे.वि. गा.१६१. पे. २. अजैन सुभाषित *, सं., पद्य, (पृ. १६अ-१६आ-, अपूर्ण), आदि:-; अंतिः-, पे.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. ४११७." सिद्धपञ्चाशिका सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना., प्र.वि. मूल-गा.५०. श्लो.१६ तक टबार्थ लिखा है., अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ, टिप्पण युक्त विशेष पाठ-कुछ पत्र, (२५.५४११, ६४३७). सिद्धपञ्चाशिका प्रकरण, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, (संपूर्ण), आदिः सिद्धं सिद्धत्थसुअं; अंति: देविन्दसूरिहिं. सिद्धपञ्चाशिका प्रकरण-टबार्थ, मागु., गद्य, (अपूर्ण), आदिः सिद्ध कहतां मोक्ष; अंति:४११८.” दान कुलक सह टबार्थ व गौतम कुलक, अपूर्ण, वि. १९१३, श्रेष्ठ, पृ. ५, पे. २, जैदेना., ले.स्थल. नारनोल, ले. सुखदास, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., (२५.५४११, ७४३४). पे. १. पे. नाम. दानशीलतपभावना कुलक सह टबार्थ, पृ. १-५, संपूर्ण दानशीलतपभावना कुलक, मु. अशोकमुनि, प्रा., पद्य, आदिः देवाहिदेवं नमिऊण; अंतिः सूरि खमउ तेणं. दानशीलतपभावना कुलक-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः देवाधिदेव श्रीमहावीर; अंतिः ते आचार्य खमज्यो., पे.वि. मूल-गा.४९. For Private And Personal Use Only Page #486 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य भाग - १ ४३२ पे. २. गौतम कुलक, प्रा., पद्य, (पृ. ५आ, अपूर्ण), आदिः लुद्धा नरा अत्थपरा; अंतिः-, पे.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्रथम ५ गाथा है. ४११९." वैद्यवल्लभ सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९००, श्रेष्ठ, पृ. १९, जैदेना., ले.स्थल. साहेपुराग्राम, ले. पं. प्रमोदकुशल, प्र.वि. मूल-श्लो.३२६, अध्याय-८विलास. टबार्थ का अंतिम वाक्य नहिं है., टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२५४११.५, ७X४२). वैद्यवल्लभ, मु. हस्तिरुचि, सं., पद्य, वि. १७२६, (संपूर्ण), आदिः सरस्वतीं हृदि; अंतिः परोपकाराय विहितोयम्. वैद्यवल्लभ-टबार्थ', मागु., गद्य, (अपूर्ण), आदिः श्रीसारदा प्रतै हीय; अंति:४१२०. उपासगदशाङ्गसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ५९, जैदेना., प्र.वि. मूल-ग्रं. ८१२, अध्याय-१०., (२५.५४११, ५४४७). उपासकदशाङ्गसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदिः तेणं० चंपा नामं नयरी; अंतिः दिवसेसु अङ्गं तहेव. उपासकदशाङ्गसूत्र-टबार्थ, मागु., पद्य, आदिः प्रणम्य श्रीमहावीरं; अंतिः दिवसे श्रुताङ्ग तिमज. ४१२१. षडशीति सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २५, जैदेना., प्र.वि. मूल-गा.८६; टबार्थ-गा.८६., (२५.५४११.५, ३४२७). षडशीति नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, आदिः नमिय जिणं जिय; अंतिः देविन्दसूरीहिं. षडशीति नव्य कर्मग्रन्थ-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः वीतरागदेवनइ नमस्करी; अंतिः आचार्य ग्यान हेतु. ४१२२." दशाश्रुतस्कन्ध सह टबार्थ- अध्ययन १ से ९, प्रतिपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३१, जैदेना., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२६४११, ५-११४३५). दशाश्रुतस्कन्धसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., पद्य, आदिः (१) नमो अरिहंताणं० हवइ (२) सुयं मे आउसं तेण०; अंति: दशाश्रुतस्कन्धसूत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः श्रीदशाश्रुतस्कंध; अंति:४१२३." वाग्भट्टालङ्कार की टीका, संपूर्ण, वि. १६८१, श्रेष्ठ, पृ. १९, जैदेना.,ले. पं. जयकलश मुनि (गुरु गणि शिवनिधान),प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. ४ परिच्छेद, संशोधित, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२५.५४११, १५४५०). वाग्भटालङ्कार-टीका, आ. जिनवर्द्धमानसूरि, सं., गद्य, आदिः श्रियमिह दिशतु; अंतिः अलङ्कारत्वेन ज्ञेयः. ४१२५.” मानतुङ्गमानवती चरित्र, संपूर्ण, वि. १८०५, मध्यम, पृ. ३२, जैदेना., ले.स्थल. नारोलीग्राम, ले. पं. लब्धिविजय (गुरु गणि नायकविजय), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. ढाळ-४७, दशा वि. अक्षर फीके पड गये हैं, (२५४१०.५, १३-१६x४२). मानतुङ्गमानवती रास, मु. मोहनविजय, मागु., पद्य, वि. १७६०, आदि: ऋषभजिणन्द पदाम्बुजे; अंतिः घरघर मङ्गलमाल हे. ४१२६." द्रौपदी चौपाई व सुभाषित, संपूर्ण, वि. १७४३, मध्यम, पृ. ३८, पे. २, जैदेना., ले. मु. अनोपसागर (गुरु मु. महिमासागर), प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, दशा वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, प्र.ले.श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्टं; (२०९) जलाद्रक्षे थलाद्रक्षे, (२५.५४१०.५, १५४४२). पे. १. द्रौपदी चौपाई, वाचक कनककीर्ति, मागु., पद्य, वि. १६९३, (पृ. १-३८), आदिः पुरिसादाणी पासजिण; अंतिः कनककीरति सुखकार., पे.वि. ढाळ-३९; प्र.पु. ग्रं.३२४०. पे. २. जैन गाथा *, मागु., पद्य, (पृ. ३८आ), आदिः #; अंतिः#. ४१२७. नेमिजिन पञ्चकल्याणक कथा, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ११, जैदेना., ले. मु. ऋद्धिविजय, (२५.५४११, १४४४१). नेमिजिन पञ्चकल्याणक, सं., गद्य, आदिः तत्रापि पूर्वं; अंतिः पुनः केवलिगम्यमिति. ४१२८. वैदरभी चतुष्पदिका, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदेना., ले. मु. मुक्तिविजय, प्र.वि. संशोधित, (२५.५४१०.५, १३ १५४५२). दमयन्ती चौपाई, उपा. अभयसोम, मागु., पद्य, वि. १७११, आदिः पास जिणेसर परगडो; अंतिः मङ्गल करै सतूर. For Private And Personal Use Only Page #487 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org: कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ४३३ ४१२९."' कर्मग्रन्थ १ से ४, पूर्ण, वि. १८४८, श्रेष्ठ, पृ. १३ - १ ( १ ) = १२, पे. ४, जैदेना., ले. पं. जयसागर, प्र. वि. संशोधित, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, ( २६११, १२४३६). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पे. १. कर्मविपाक नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि प्रा. पद्य (पृ. २अ-४आ, पूर्ण) आदि अंतिः लिहिओ · " " , देविन्दसूरीहिं., पे.वि. गा. ६१. प्रथम पत्र नहीं है. गा. १ से ८ नही है. पे. २. कर्मस्तव नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, (पृ. ४आ- ६आ, संपूर्ण), आदि: तह थुणिमो वीरजिणं; अंतिः वन्दियं नमह तं वीरं. पे.वि. गा.३४. पे. ३. बन्धस्वामित्व नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, (पृ. ६आ-८अ, संपूर्ण), आदिः बन्धविहाणविमुक्कं; अंतिः नेयं कम्मत्थयं सोउं., पे.वि. गा.२५. पे. ४. षडशीति नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि प्रा. पद्य (पृ. ८अ १३आ, संपूर्ण) आदि नमिय जिणं जिय: अंतिः देविन्दसूरीहिं., पे.वि. ग. ८९. ४१३०. स्नात्रपूजा विधि सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७८१, श्रेष्ठ, पृ. ११, जैदेना., ले. मु. हरिरुचि (गुरु पं. कनकरुचि), पठ. गणि वीररुचि, प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र. वि. वछ भंडारी कृत स्नात्रपूजा की गाथाओं के समान अनेक गाथाएँ है., ( २५X११.५, ५X४० ). स्नात्र पूजा, आ. मङ्गलसूरि, मागु., पद्य, वि. १३वी, आदि: मुक्तालङ्कारविकारसार; अंतिः (१) भविया पुजो हज देव (२) उच्छलन्ती सलिलधारा, स्नात्र पूजा- टवार्थ, मागु, गद्य, आदि: मोतीनां आभरण अंतिः भविकनें इम सुभे छे. (+) ४१३१. अभिधानचिन्तामणि नाममाला काण्ड १ प्रतिपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ५. जैदेना, प्र. वि. संशोधित, पदच्छेद सूचक लकीरें (२६४११.५. ९-११४३७). (+) अभिधानचिन्तामणि नाममाला, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, आदिः प्रणिपत्यार्हतः; अंतिः ४१३२. आठकर्म १५८ प्रकृति विचार, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १५, जैदेना., ( २६११.५, १०x२४). ८ कर्म १५८ प्रकृति विचार, मागु., गद्य, आदिः इहां सुशिष्य पूछै; अंतिः मुक्तपदार्थ मिले. 'भक्तामर स्तोत्र सह बालावबोध व कथा संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. २२, जैदेना. प्र. वि. मूल - श्लो. ४४., संशोधित, (२६.५x१२, १३४३८). भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुङ्गसूरि, सं., पद्य, आदिः भक्तामरप्रणतमौलिमणि; अंतिः समुपैति लक्ष्मी. भक्तामर स्तोत्र- बालावबोध, गणि मेरुसुन्दर, मागु., गद्य, आदिः प्रणम्य श्रीमहावीरं; अंतिः स्व आपणही वरे. भक्तामर स्तोत्र - कथा*, मागु., गद्य, आदि: #; अंतिः #. ४१३४. प्राश्चित विधि, संपूर्ण वि. २०वी, जीर्ण, पृ. ८ जैदेना. (२५४१२, १२४३७). आलोयणा विधि, मु. क्षमाकल्याण, मागु. सं., गद्य आदि स्मारं स्मारं अंति क्षमाकल्याण साधुना. ४१३५. प्रश्नोत्तरसार्द्धशतक की सूचिमात्रभाषा, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २४, जैदेना., (२६×११.५, १४४४०). प्रश्नोत्तरसार्द्धशतक-बीजक, मागु., गद्य, आदि: पहिले बोले तीर्थङ्कर; अंतिः शास्त्रमे कह्यो छे. ४१३६.” शान्तरस भावना (शास्त्रोपदेश पद सङ्ग्रह), संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, जैदेना., प्र. वि. श्लो. २७८, प्र. पु. ग्रं. ४२४, संशोधित, ( २६ ११, १८x४३-४७). अध्यात्मकल्पद्रुम, आ. मुनिसुन्दरसूरि सं., पद्य, आदि: जयश्रीरान्तरारीणां०: अंतिः जयश्रिया शिवश्रीः ४१३७. गौतमपृच्छा चउपई, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ८, जैदेना., प्र. वि. गा. ११९, ( २६ ११.५, १३X२८). गौतमपृच्छा चौपाई, मु. लावण्यसमय, मागु., पद्य, वि. १५४५, आदि: सकल मनोरथ पूरवे; अंतिः जे जिनवचने वसिउ. ४१३८. पाक्षिकसूत्र, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ९, जैदेना., (२५.५x११.५, १३-१४X३९). पाक्षिकसूत्र प्रा. प+ग, आदि: तित्थङ्करे व तित्थे अति: जेसिं सुयसायरे मत्ति. " For Private And Personal Use Only Page #488 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य भाग - १ ४३४ ४१३९. निर्यावलियादिपञ्चोपाङ्गसूत्र सह टबार्थ (पाञ्च उपाङ्ग-८ से १२), संपूर्ण, वि. १७०८, श्रेष्ठ, पृ. ५३, पे. ५, जैदेना., ले.स्थल. राणावसग्राम, ले. ऋ. रहीया (गुरु ऋ. रायमल्ल), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. प्र.पु. सर्वग्रं. २८६८., संशोधित, प्र.ले.श्लो. (३) भग्नपृष्टि कटिग्रीवा; (५१८) तैलाद्रक्षे ज्जलाद्रक्षेत्; (५६१) यावत् चन्द्ररविलोके, (२६४११, ७५५४). पे. १.पे. नाम. कल्पिकासूत्र सह टबार्थ, पृ. ०१आ-२१आ कल्पिकासूत्र, प्रा., गद्य, आदिः तेणं कालेणं तेणं०; अंतिः वरं मायातो सरिसणामाओ. कल्पिकासूत्र-टबार्थ, मु. उत्तम, मागु., गद्य, आदिः तेणि कालि तेणि; अंतिः श्चोक्तो हि मुदा., पे.वि. मूल-अध्याय १० अध्ययन. पे. २. पे. नाम. कल्पावतंसिकासूत्र सह टबार्थ, पृ. २१आ-२३आ कल्पावतंसिकासूत्र, प्रा., गद्य, आदि: जइ णं भन्ते समणेणं०; अंतिः वा महाविदेहे सिद्धे. कल्पावतंसिकासूत्र-टबार्थ, मु. उत्तम, मागु., गद्य, आदि: जउ हे पूज्य० कप्प; अंतिः वर्गः प्रोक्तः., पे.वि. मूल अध्याय-१० अध्ययन. पे. ३. पे. नाम. पुष्पिकासूत्र सह टबार्थ, पृ. २३आ-४३आ पुष्पिकासूत्र, प्रा., गद्य, आदिः जति णं भंते समणेणं०; अंतिः चेइयाइं जहा संगहणीए. पुष्पिकासूत्र-टबार्थ, मु. उत्तम, मागु., गद्य, आदिः जउ हे पूज्य० त्रीजा; अंतिः तृतीयोवर्गः समाप्तः., पे.वि. मूल अध्याय-१० अध्ययन. पे. ४. पे. नाम. पुष्पचूलिकासूत्र सह टबार्थ, पृ. ४३आ-४७अ पुष्पचूलिकासूत्र, प्रा., गद्य, आदिः जइ णं भंते समणेणं०; अंतिः हे वासे सिज्झिहिंति. पुष्पचूलिकासूत्र-टबार्थ, मु. उत्तम, मागु., गद्य, आदिः जउ हे पूज्य० दस; अंतिः वर्गः सम्पूर्ण., पे.वि. मूल-अध्याय १० अध्ययन. पे. ५.पे. नाम. वृष्णिदशासूत्र सह टबार्थ, पृ. ४७अ-५२आ वृष्णिदशासूत्र, प्रा., गद्य, आदिः जइ णं भंते० पंचमस्स; अंतिः मइरित्त एक्कारससु वि. वृष्णिदशासूत्र-टबार्थ, मु. उत्तम, मागु., गद्य, आदिः जउ हे पूज्य० पाञ्चमा; अंतिः बारइं उद्देशा कह्या., पे.वि. ___ मूल-अध्याय-१२ अध्ययन. ४१४०." बासट्ठिसयउ प्रकरण, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, जैदेना., प्र.वि. गा.१६२, संशोधित, (२७.५४११, ८४४७). षष्टिशतक प्रकरण, श्रा. नेमिचन्द्र भाण्डागारिक, प्रा., पद्य, आदिः अरिहं देवो सुगुरू; अंतिः जाणन्तु जन्तु सिव्वं. ४१४१." जम्बूस्वामी रास व उपदेश सज्झाय, संपूर्ण, वि. १७६५, श्रेष्ठ, पृ. १४+१(२)=१५, पे. २, जैदेना., ले.स्थल. द्वीपबंदर, ले. ऋ. जेठा (गुरु ऋ. वेलजी, लुङ्कागच्छ वृद्धपक्ष), प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र.वि. ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित, संशोधित, पंचपाठ, (२५.५४११.५, १६-१८४४७). पे. १. जम्बूस्वामी रास, आ. ज्ञानविमलसूरि, मागु., पद्य, वि. १७३८, (पृ. १-१४), आदिः प्रणमी पास जिणन्दना; अंतिः __ नितु कोडि कल्याण., पे.वि. गा.६०८, ढाळ-३५; प्र.पु. ग्रं.१२३५.. पे. २. औपदेशिक सज्झाय, मु. रङ्गदास, मागु., पद्य, (पृ. १४अ), आदिः जगत जीतवू ज इम बोले; अंतिः आवागमन निवारो., पे.वि. गा.१०. ४१४२. दानशीलतपभावना संवाद व सुबाहु सूद्धि, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, पे. २, जैदेना., (२६.५४११.५, १२४३२). पे. १. दानशीलतपभावना संवाद, उपा. समयसुन्दर गणि, मागु., पद्य, वि. १६६२, (पृ. १अ-३अ), आदिः प्रथम जिनेसर पाय; अंतिः समृद्धि सुप्रसादो रे., पे.वि. ग्रं.१३५; प्र.पु. ग्रं.१३५. पे. २. पे. नाम. सुबाहू सूद्धि, पृ. ३अ-५आ For Private And Personal Use Only Page #489 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ४३५ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची सुबाहुकुमार सन्धि, उपा. पुण्यसागर, मागु., पद्य, वि. १६०४, आदिः पणमि पास जिणेसर केरा; अंतिः थायउ नितु भणतां., पे.वि. गा.१०४, ग्रं.१४०; प्र.पु. ग्रं.१४०. ४१४३. अनाथीरिषि चउपइ, संपूर्ण, वि. १५८६, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना., प्र.वि. गा.६३, (२६४११.५, ११४३५). अनाथीमुनि चौपाई, मागु., पद्य, आदिः सिद्ध सवेनइ करूं; अंतिः विकुति ते विचरइ मही. ४१४४. नागिला रास, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १०, जैदेना., ले. साध्वीजी रतना, प्र.वि. गा.१९३, (२६.५४११.५, १४४३४). नागिला रास, ऋ. भीमजी, मागु., पद्य, वि. १६३२, आदिः प्रथम ए गौतम स्वामी; अंतिः श्रीगुरूनी चरणे नमी. ४१४५. नवतत्त्व सह टबार्थ व नारक उत्कृष्ट जघन्य शरीरमान व आयुष्यप्रमाण, संपूर्ण, वि. १७०४, श्रेष्ठ, पृ. १०, पे. २, जैदेना., (३५४११, ३४२८). पे. १. पे. नाम. नवतत्त्व प्रकरण सह टबार्थ, पृ. १-१० नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंतिः अणागयद्धा अणन्तगुणा. नवतत्त्व प्रकरण-टबार्थ, आ. पार्श्वचन्द्रसूरि, मागु., गद्य, आदिः साचउ वस्तुनउ स्वरूप; अंतिः श्रीपार्श्वचन्द्रेण., पे.वि. मूल-गा.४४. प्र.पु. मूल-ग्रं.५०; प्र.पु. टबार्थ-ग्रं.२०३. पे. २. पे. नाम. नारक उत्कृष्ट जघन्य शरीरमान व आयुष्यप्रमाण, पृ. १०आ जैन सामान्यकृति-पेटाङ्क बाकी*, सं.,प्रा.,मागु., प+ग, आदिः#; अंतिः#. ४१४६." ऋषभजिन धवलबन्ध, संपूर्ण, वि. १५९९, श्रेष्ठ, पृ. ९, जैदेना., ले. मु. विजयमण्डन (गुरु उपा. हर्षमण्डन, अञ्चलगच्छ), पठ. वाचक जयसुन्दर (गुरु गणि अमरकीर्ति वाचक, वाणगच्छ), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. संशोधित, प्र.ले.श्लो. (५०६) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा , (२६४११, १४-१७४४०). आदिजिन विवाहलो, मागु., पद्य, आदिः सासनदेवीय पाय; अंतिः सेवक इमि सदा. ४१४७. विद्याविलास, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना., प्र.वि. गा.२०६, संशोधित, दशा वि. विवर्ण-पानी से अक्षरों की स्याही फैल गयी है-अल्प, (२५.५४११, १९४५५). विद्याविलास रास, आ. हीराणन्दसूरि, मागु., पद्य, वि. १४८५, आदिः पहिलं पणमिय पढम; अंतिः वापरु ए चरित्र. ४१४८.” वैदरभी रास, संपूर्ण, वि. १७७७, श्रेष्ठ, पृ. १०, जैदेना., ले.स्थल. पेटलाद, ले. ऋ. रायचन्द, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. संशोधित, पदच्छेद सूचक लकीरें, (२५४१०.५, १०४३३). दमयन्ती रास, उपा. सुमतिहंस, मागु., पद्य, वि. १७१३, आदिः सानिद्ध जस कविता; अंतिः दोलत सकलसचे जयकरो. ४१५१.” कल्याणमन्दिर स्तोत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७५५, मध्यम, पृ. ८, जैदेना., ले.स्थल. गंधारनगर, ले. मु. देवचन्द्र, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. मूल-श्लो.४४., संशोधित, दशा वि. विवर्ण-पानी से अक्षरों की स्याही फैल गयी है, (२५४१०.५, ५४३८). कल्याणमन्दिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकर, सं., पद्य, आदिः कल्याणमन्दिरमुदारमवद; अंति: मोक्षं प्रपद्यन्ते. कल्याणमन्दिर स्तोत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः कल्याण क० मङ्गलीक; अंतिः पामइ जे जीव. ४१५२. प्रश्नशतक सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, जैदेना., प्र.वि. मूल-श्लो.१६१., संशोधित, पंचपाठ, (२६.५४११.५, १५-१६४५७). प्रश्नशतक, आ. जिनवल्लभसूरि, सं., पद्य, आदिः क्रमनखदशकोटीदीप्र; अंतिः प्रसादलवं मयि. प्रश्नशतक-अवचूरि, सं., गद्य, आदिः जिनत् हानि गच्छत; अंतिः नैव जिनवल्लभेन. ४१५३." विपाकसूत्र, पूर्ण, वि. १६०८, मध्यम, पृ. ४९-१(१)=४८, जैदेना., ले.स्थल. मोरबी, प्र.वि. अध्याय-२० अध्ययन, संशोधित, पदच्छेद सूचक लकीरें, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२७.५४११, ११४४२). विपाकसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि:-; अंतिः सेसं जहा आयारस्स. For Private And Personal Use Only Page #490 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य भाग - १ ४३६ ४१५४.” सङ्ग्रहणीसूत्र, संपूर्ण, वि. १७४७, श्रेष्ठ, पृ. १२, जैदेना., ले. ऋ. गोयन्द (गुरु आ. खेमकर्ण), प्र.वि. गा.३३०, संशोधित, (२५.५४१०.५, १४४४१). बृहत्सङ्ग्रहणी, आ. चन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदिः नमिउं अरिहन्ताइं; अंतिः जा वीरजिण तित्थं. ४१५५.” प्रियमेलक रास, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ९, जैदेना.,ले. साध्वीजी लीला (गुरु साध्वीजी रुपा), प्र.वि. संशोधित, (२७४११, १३-१४४४१). प्रियमेलक चौपाई, उपा. समयसुन्दर गणि, मागु., पद्य, वि. १६७२, आदिः प्रणमुं सद्गुरु पाय; अंतिः पुण्ये अधिकुं प्रमोद. ४१५६.” मानतुङ्गमानवती चौपाई व श्लोक सङ्ग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, पे. २, जैदेना., प्र.वि. संशोधित, (२६४१०.५, १५४४७). पे. १. पे. नाम. सत्याधिकारे मानतुङ्गमानवति चौपाई, पृ. १-९ मानतुङ्गमानवती रास, उपा. अभयसोम, मागु., पद्य, वि. १७२७, आदिः प्रणमुं माता सरसती; अंतिः भेद मतिमन्दिर लहै., पे.वि. ढाळ-१५. पे. २. श्लोक सङ्ग्रह', सं.,प्रा.,मागु.,हिन्दी, पद्य, (पृ. ९आ), आदिः#; अंति: #., पे.वि. श्लो.३. ४१५७. कालसित्तरी सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १८, जैदेना., प्र.वि. मूल-गा.७४., पदच्छेद सूचक लकीरें-मूल पाठ, (२६४११, ३४३१). कालसप्ततिका, आ. धर्मघोषसूरि , प्रा., पद्य, आदि: देविन्दणयं; अंतिः कालसरूवं किमवि भणियं. कालसप्ततिका-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः इन्द्र महाराय पण; अंतिः सरुप कांइक ए कहिउ. ४१५९. आरामशोभा कथा, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ११, जैदेना., (२६४११, ११४३२). आरामशोभा कथानक, सं., गद्य, आदि: सद्धर्ममूलसम्यक्त्वन; अंतिः मोक्षं यास्यति. ४१६०. गुरुतत्त्व प्रदीप, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, जैदेना., प्र.वि. श्लो.२४१, ८ विश्राम; प्र.पु. ग्रंथाग्रश्लो.२६६, संशोधित, दशा वि. विवर्ण-पानी से अक्षरों की स्याही फैल गयी है-अल्प, (२६४११, १३४४९). गुरुतत्त्वप्रदीप, सं., पद्य, आदिः प्रणम्य श्रीमहावीर; अंतिः मिथ्यादुःकृतं मम. ४१६१." उत्तराध्ययनसूत्र सह टबार्थ - अध्ययन २५, प्रतिपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १७, जैदेना., प्र.वि. संशोधित, पदच्छेद सूचक लकीरें-मूल पाठ, (२६.५४११, ५४३७). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग, आदि:-: अंति: उत्तराध्ययनसूत्र-टबार्थ , मागु., गद्य, आदि:-; अंतिः४१६३." गौतम कुलक सह बालावबोध+कथा, संपूर्ण, वि. १९३८, श्रेष्ठ, पृ. ३७, जैदेना., ले.स्थल. लिव्वडोत, पठ. मु. मङ्गलसेन (गुरु ऋ. ख्यालीराम),प्र.वि. मूल-गा.२०., संशोधित, (२५.५४११, १८-२२४४३). गौतम कुलक, प्रा., पद्य, आदिः लुद्धा नरा अत्थपरा; अंतिः सुहं लहन्ति. गौतम कुलक-बालावबोध+कथा, ऋ. रिधु?, मागु., गद्य, आदिः सुयदेवी समरि करि; अंतिः करे ते सुखी थासे. ४१६६." उववाईसूत्र सह दुर्गमपद बालावबोध, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ८४, जैदेना.,प्र.वि. संशोधित, पंचपाठ, (२५४१०.५, ४-११४३०). औपपातिकसूत्र, प्रा., प+ग, आदिः तेणं कालेणं० चम्पा०; अंतिः सुही सुहं पत्ता. औपपातिकसूत्र-दुर्गमपदबालावबोध, ऋ. मोहन ऋषि, मागु., गद्य, आदिः प्रणम्य श्रीमहावीरं; अंतिः सुगमा जाणवी व्यक्तौ. ४१६७." उववाईसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, प्र. ९२, जैदेना., प्र.वि. संशोधित, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२५.५४११, ६४३४-४०). For Private And Personal Use Only Page #491 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ४३७ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची औपपातिकसूत्र, प्रा., प+ग, आदिः तेणं कालेणं० चम्पा०; अंतिः सुही सुहं पत्ता. औपपातिकसूत्र-टबार्थ, आ. पार्श्वचन्द्रसूरि, मागु., गद्य, आदिः वन्दित्वा श्रीजिनं; अंतिः सुख पाम्या थका. ४१६८." भोज चरित्र, संपूर्ण, वि. १७०६, श्रेष्ठ, पृ. ५१, जैदेना., ले.स्थल. समाणानगर, ले. साध्वीजी नाथा (गुरु साध्वीजी दमाजी), प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र.वि. गा.१७०४, ४ अधिकार, संशोधित, (२५.५४११, १७४४७-५२). भोज प्रबन्ध, वाचक मालदेव, मागु., पद्य, आदिः जासु अलक्ष्य स्वरूप; अंतिः चउथउ ए सम्बन्ध. ४१६९. सुयगडाङ्गसूत्र सह टबार्थ-श्रुतस्कन्ध २, प्रतिपूर्ण, वि. १८३८, श्रेष्ठ, पृ. ६१-१(३७)+१(३६) ६१, जैदेना., ले.स्थल. तोस्यानगर, ले. लक्षजी, प्र.वि. टबार्थ अधूरा है., पदच्छेद सूचक लकीरें-मूल पाठ, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२७ ११.५, ६-८४४९-५६). सूत्रकृताङ्गसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, (प्रतिपूर्ण), आदि:-; अंतिः विहरति त्ति बेमि. सूत्रकृताङ्गसूत्र-टबार्थ', मागु., गद्य, (प्रतिअपूर्ण), आदि:-; अंतिः४१७०. उपदेशमाला सह टबार्थ, बीजक व कष्टज्ञान विचार, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ५८, पे. २, जैदेना., ले. आ. ज्ञानविमलसूरि (गुरु पं. धीरविमल गणि, तपगच्छ), प्र.वि. कर्ता के हस्ताक्षर से लिखित प्रत-टबार्थादि, संशोधित, (२५.५४११, ५४४०). पे. १. पे. नाम. उपदेशमाला सह टबार्थ व बीजक, पृ. १-५८आ उपदेशमाला, गणि धर्मदास, प्रा., पद्य, आदिः (१) नमिऊण जिणवरिन्दे (२) जगचूडामणिभूओ उसभो; अंतिः वयण विणिग्गया वाणी. उपदेशमाला-टबार्थ, आ. ज्ञानविमलसूरि, मागु., गद्य, वि. १७३२, आदिः (१) श्रीमत्पार्श्वजिनेश (२) नमिऊण जिण० एहनो अर्थ; अंतिः (१)स्फुटं लिख्यते (२)मत्सर विना शोधवी. उपदेशमाला-बीजक, प्रा., गद्य, आदिः नमिऊणजिण०१ जगचूडामणि; अंतिः धन्तमणिदामससिगय., पे.वि. मूल गा.५४४. पे. २. कष्टज्ञान विचार, सं.,मागु., प+ग, (पृ. ५८आ), आदिः ॐ सच्चं भासइ अरहा; अंतिः कहियं चूडामणिसारम्. ४१७१.” हंसराजवच्छराज चतुष्पदी, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३६, जैदेना., ले.स्थल. आचिणाग्राम, ले. मु. गुलाबसागर, प्र.वि. गा.९०६, खण्ड-४, संशोधित, (२५४१०.५, १६४३०). हंसराजवत्सराज चौपाई, आ. जिनोदयसूरि, मागु., पद्य, वि. १६८०, आदिः आदिसर आदे; अंतिः तस घरि आनन्दपूर. ४१७२. निशीथसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८०१, श्रेष्ठ, पृ. ८९, जैदेना., ले.स्थल. उदयपुर, ले. मोवजीराम, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. मूल-२०उद्देश. टबार्थ कहीं-कहीं ही लिखा है., संशोधित, (२६४१२, ७४४१). निशीथसूत्र, प्रा., गद्य, (संपूर्ण), आदिः जे भिखु हत्थ; अंतिः पसिस्सोवभोज्जं च. निशीथसूत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, (अपूर्ण), आदिः नमस्कार हुवो सु; अंतिः लिखी छे सर्व पहिली. ४१७३." दानाधिकारे सिंहासनबत्रीसी कथा चौपाई, संपूर्ण, वि. १७९६, श्रेष्ठ, पृ. ५५, जैदेना., ले. गणि जयसौभाग्य (गुरु गणि नेमसौभाग्य), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. ग्रं. ३५००, संशोधित, प्र.ले.श्लो. (१३०) यावत् चरम समुद्र; (५३३) मङ्गलं लेखकानां च; (५०६) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा; (५५६) भग्नपृष्टि कटी ग्रीवा; (५६३) तैलाद्ररक्षं जलाद्रक्षं; (५६४) यावत् चन्द्र दिवाकरो ग्रहगणं तारागणं वर्तते, (२६x११, १५४४६). सिंहासनबत्रीसी चौपाई, पं. हीरकलश, मागु., पद्य, वि. १६३६, आदिः आराहीय श्रीहरखी; अंति: ऋद्धि पामै बहु परै. ४१७४. अन्तगडदशाङ्गसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३५, जैदेना., (२५.५४११.५, ९४४२). अन्तकृद्दशाङ्गसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदिः तेणं कालेणं० चम्पा०; अंतिः अयमढे पण्णत्ते. अन्तकृद्दशाङ्गसूत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः तेणे काले चउथे आरइ; अंतिः ए अर्थ कह्यो. For Private And Personal Use Only Page #492 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य भाग - १ ४३८ ४१७५. कल्पसूत्र का बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४८-५(२१ से २५)+४(१ से ४)=४७, जैदेना., पू.वि. बीच के पत्र ___ नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., (२५.५४११.५, ९४३९-४५). कल्पसूत्र-बालावबोध* , मागु.,राज., गद्य, आदिः श्रीपार्श्व प्रणिपत; अंति:४१७६. अन्तगडदशाङ्गसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ८१, जैदेना., (२५.५४११, ५४३१). अन्तकृद्दशाङ्गसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदिः तेणं कालेणं० चम्पा०; अंतिः अयमठे पण्णत्ते. अन्तकृद्दशाङ्गसूत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः तेणे काले चउथो; अंतिः माहर मत थकी कहतो. ४१७७. श्रीपाल रास, संपूर्ण, वि. १८८१, श्रेष्ठ, पृ. ६८, जैदेना., ले. मु. निधानसागर (गुरु मु. ज्ञानसागर, नायलगच्छ (नागेन्द्रगच्छ)), प्र.वि. खण्ड-४; प्र.पु.गा.१२४५, ग्रं. १९१४, (२६.५४१२, १२४३५). श्रीपाल रास, उपा. विनयविजय , उपा. यशोविजयजी गणि, मागु., पद्य, वि. १७३८, आदिः कल्पवेल कवियण तणी; अंतिः लहसे ज्ञान विशालाजी. ४१७८." उत्तराध्ययनसूत्र, पूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १०५-२(२ से ३)=१०३, जैदेना.,प्र.वि. संशोधित, पदच्छेद सूचक लकीरें, पू.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं. अध्याय-३६ की गा.१३७ तक के पत्र है., (२७४१०.५, ९४३३). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध , प्रा., प+ग, आदिः सञ्जोगाविप्पमुक्कस्स; अंति:४१७९." प्रश्नव्याकरणसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८४८, श्रेष्ठ, पृ. ७९, जैदेना., ले.स्थल. मुनराबंदर, ले. ऋ. हीराचन्द (गुरु ऋ. वस्ताजी), पठ. ऋ. वालजी, प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र.वि. मूल-अध्याय-१०., संशोधित, टिप्पण युक्त विशेष पाठ-कुछ पत्र, प्र.ले.श्लो. (४६९) भग्न पृष्टि कटी ग्रीवा; (५५४) मेरु महीधर जां लगे, (२५.५४१२, ६x४५).. प्रश्नव्याकरणसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदिः जम्बू इणमो अण्हयसंवर; अंतिः अङ्गं जहा आयारस्स. प्रश्नव्याकरणसूत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः हे जम्बू एह; अंतिः (१)शरीरनो धरणहार हुस्यै (२)अनन्ता सिद्धना ए. ४१८०." शीलोपदेशमाला सह बालावबोध व कथा, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १४६+१(१)=१४७, जैदेना., ले.स्थल. स्तंभतीर्थ, प्र.वि. मूल-गा.११५; प्र.पु. मूल-ग्रन्था-६६७५.प्र.पु. कथा-३८. कथानुक्रमणिका भी दी गयी है., संशोधित, पदच्छेद सूचक लकीरें, (२५.५४११, १५४४८). शीलोपदेशमाला, आ. जयकीर्तिसूरि, प्रा., पद्य, आदिः आबालबम्भयारिं; अंतिः आराहिय लहह बोहिसुहं. शीलोपदेशमाला-बालावबोध+कथा, गणि मेरुसुन्दर, मागु., गद्य, वि. १५५१, आदिः (१) श्रीवामेयममेय (२) आबाल ब्रह्मचारी; अंतिः मोक्षफल पणि पामउ. शीलोपदेशमाला-कथा* , मागु., गद्य, आदिः#; अंतिः#. ४१८१." निर्यावलीयादिपञ्चोपाङ्गसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ८८+१(८८)=८९, पे. ५, जैदेना., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२४४११, ६४३६). पे. १.पे. नाम. कल्पिकासूत्र सह टबार्थ, पृ. १आ-३४आ कल्पिकासूत्र, प्रा., गद्य, आदिः तेणं कालेणं तेणं०; अंतिः वरं मायातो सरिसणामाओ. कल्पिकासूत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः ते० ते कालने विषइ; अंतिः नामे सूत्र समाप्त. पे. २. पे. नाम. कल्पावतंसिकासूत्र सह टबार्थ, पृ. ३४आ-३८अ कल्पावतंसिकासूत्र, प्रा., गद्य, आदिः जइ णं भन्ते समणेणं०; अंतिः वा महाविदेहे सिद्धे. कल्पावतंसिकासूत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः ज० जउ भं० हे पूज्य; अंतिः वडिंसियासूत्र समाप्त. पे. ३. पे. नाम. पुष्पिकासूत्र सह टबार्थ, पृ. ३८अ-७६आ पुष्पिकासूत्र, प्रा., गद्य, आदि: जति णं भंते समणेणं०; अंतिः चेइयाइं जहा संगहणीए. पुष्पिकासूत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः ज० जो भं० हे पूज्य; अंतिः पुफीयासूत्र समाप्त. पे. ४. पे. नाम. पुष्पचूलिकासूत्र सह टबार्थ, पृ. ७६आ-८१अ For Private And Personal Use Only Page #493 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ४३९ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची पुष्पचूलिकासूत्र, प्रा., गद्य, आदिः जइ णं भंते समणेणं०; अंतिः हे वासे सिज्झिहिंति. पुष्पचूलिकासूत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, आदि: ज० जो हे पूज्य; अंतिः पूर्व पाठ कहिवउ. पे. ५. पे. नाम. वृष्णिदशासूत्र सह टबार्थ, पृ. ८१अ-८८ वृष्णिदशासूत्र, प्रा., गद्य, आदिः जइ णं भंते० पंचमस्स; अंतिः मइरित्त एक्कारससु वि. वृष्णिदशासूत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः ज० जो भं० हे पुज्य; अंतिः सूत्रबन्ध समाप्त. ४१८२.” उपदेशप्रासाद सह टबार्थ - १ से २ स्तम्भ, प्रतिपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १५३+२(६३,१२८)=१५५, जैदेना.,प्र.वि. संशोधित, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, पदच्छेद सूचक लकीरें-मूल पाठ, (२५४११.५, ५४३७). उपदेशप्रासाद, आ. लक्ष्मीसूरि, सं., प+ग, वि. १८४३, आदिः स्वस्ति श्रीदो नाभि; अंति: उपदेशप्रासाद-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः श्रेयः सम्पदाना दायक; अंति:४१८३." नन्दीसूत्र की टीका, अपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १००, जैदेना., प्र.वि. संशोधित, पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., (२६४११.५, १३x४३). नन्दीसूत्र-टीका, आ. हरिभद्रसूरि, सं., गद्य, आदिः जयति भुवनैकभानुः; अंति:४१८४." आचाराङ्गसूत्र, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ६८, जैदेना., प्र.वि. २५अध्ययन, संशोधित, पदच्छेद सूचक लकीरें, (२६४११, १३४२९). आचाराङ्गसूत्र , आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदिः सुयं मे आउसं० इह; अंतिः विमुच्चति त्ति बेमि. ४१८५. ज्ञाताधर्मकथागसूत्र की टीका, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, प्र. ९७, जैदेना., पठ. मु. जीवविजय (गुरु ऋ. यादवजी), प्र.वि. ग्रं. ३७००; प्र.पु.टीका-ग्रं. ४२००, संशोधित, पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न-कुछ पत्र, (२५.५४११.५, १५४४७). ज्ञाताधर्मकथाङ्गसूत्र-टीका, आ. अभयदेवसूरि , सं., गद्य, वि. ११२०, आदिः नत्वा श्रीमन्महावीरं; अंतिः संशोधिता चेयम्. ४१८६. उत्तराध्ययनसूत्र, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ८८, जैदेना., प्र.वि. ३६अध्ययन, संशोधित, (२६.५४११, ११४४२). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग, आदिः सञ्जोगाविप्पमुक्कस्स; अंतिः सम्मए त्ति बेमि. ४१८७." शान्तिनाथ चरित्र व अढारभार वनस्पतिमान, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ११०, पे. २, जैदेना., प्र.वि. संशोधित, (२५४११.५, १८-१९४५१). पे. १. शान्तिजिन चरित्र, आ. भावचन्द्रसूरि, सं., गद्य, वि. १५३५, (पृ. १-११०), आदिः प्रणिपत्यार्हतः; अंतिः स करोतु शान्तिः ., पे.वि.६ प्रस्ताव; प्र.पु. ग्रं.७०००. पे. २. १८ भार वनस्पतिमान, सं.,मागु., गद्य, (पृ. ११०आ), आदिः #; अंतिः #. ४१८८." मोक्षमार्ग प्रकाश, संपूर्ण, वि. १९२६, श्रेष्ठ, पृ. ५७, जैदेना., ले.स्थल. अलम, ले. मु. मङ्गलसेन (गुरु ऋ. ख्यालीराम), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. संशोधित, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२६४१२, १६-१८४४८). मोक्षमार्ग प्रकाश, ऋ. रतनचन्द, मागु., पद्य, वि. १८९८, आदिः चतुर्विंशति अरिहन्त; अंति: चरण सरण श्रीकार. ४१९०." उत्तराध्ययनसूत्र, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ९३, जैदेना., प्र.वि. ३६अध्ययन. अंत में प्रत्येक अध्ययन की गाथासंख्या दी गई है., संशोधित, पदच्छेद सूचक लकीरें, (२६४११.५, १०-११४३५). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग, आदिः सञ्जोगाविप्पमुक्कस्स; अंतिः (१)सम्मए त्ति बेमि (२)पुव्वरिसी एव भासन्ति. ४१९१.” उत्तराध्ययनसूत्र, अपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ८९-५१(१ से ४९,५३ से ५४)=३८, जैदेना., प्र.वि. संशोधित, पू.वि. बीच के पत्र हैं. अध्ययन-२३ से अध्ययन-३६ गा.२६७ तक है., (२५.५४११.५, १३४४२). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग, आदि:-; अंति: For Private And Personal Use Only Page #494 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य भाग - १ ४४० ४१९२." रत्नकुमार रास-दानाधिकारे, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ७०, जैदेना., ले.स्थल. वडोदरा, ले. लालचन्द सुरचन्द, प्र.वि. खण्ड-४, संशोधित, (२६.५४११.५, १४४३७). रत्नकुमार रास, मु. वीरजी, मागु., पद्य, वि. १८११, आदिः आदेसर आदे करी चोवीसे; अंतिः दिनदिन जयजयकार. ४१९३." रत्नचूड चौपाई, संपूर्ण, वि. १७८५, श्रेष्ठ, पृ. ८४, जैदेना., ले.स्थल. साहिजिहानाबाद, ले. गणि ऋद्धिविजय (गुरु पं. चतुरविजय), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. ढाल-६२, संशोधित, प्र.ले.श्लो. (५८२) अस्मद्धरि जसराज के, (२५.५४१२, १३ १४४३२). रत्नचूड चौपाई, मु. अमरसागर, मागु., पद्य, वि. १७४८, आदिः सरसति मात मया करी; अंतिः पुंहती मनह जगीस कि. ४१९४.” जसोधर रास, संपूर्ण, वि. १६८९, श्रेष्ठ, पृ. १९, जैदेना., ले.स्थल. सीसांग, ले. मु. देवचन्द (गुरु मु. सामल).प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. गा.५००, संशोधित, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२७.५४१२, १६-१८४३८). यशोधर रास, ऋ. ज्ञानदास, मागु., पद्य, वि. १६२३, आदिः श्रीगौतमने चरणे नमुं: अंतिः सखि कहि ज्ञानदास. ४१९५." चन्दनबाला चौपाई, संपूर्ण, वि. १९१०, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदेना., ले.स्थल. सिंघणा, ले. मु. नयनसुखदास (गुरु मु. ख्यालीराम), प्र.वि. गा.१६०, संशोधित, (२५.५४१२.५, १६x४०). चन्दनबाला चौपाई, मु. ब्रह्म, प्राहिं., पद्य, आदि: मोह पिसाच वसकरण कुं; अंतिः सीत तणा गुण वरण-इ. ४१९६.” कर्मविपाक सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १९, जैदेना., प्र.वि. मूल-गा.६१., संशोधित, (२६.५४१२, ३४२८). कर्मविपाक नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, आदिः सिरिवीरजिणं वन्दिय; अंतिः लिहिओ देविन्दसूरीहिं. कर्मविपाक नव्य कर्मग्रन्थ-टबार्थ, मु. राजसार-शिष्य, मागु., गद्य, आदिः प्रणिपत्य जगन्नाथं; अंतिः आचार्ये लिख्यो छे. ४१९७. जीवविचार सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८१०, श्रेष्ठ, प्र. ९, जैदेना., ले.स्थल. दीवबंदर, ले. मु. भवान (गुरु ऋ. कृष्णजी), प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र.वि. मूल-गा.५१. गाथा १ से ९ तक ही टबार्थ है।, पदच्छेद सूचक लकीरें-प्रारंभिक पत्र, (२५४११.५, ४४३३). जीवविचार प्रकरण, आ. शान्तिसूरि, प्रा., पद्य, (संपूर्ण), आदिः भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंतिः रुद्दाओ सुयसमुद्दाओ. जीवविचार प्रकरण-टबार्थ, मागु., गद्य, (अपूर्ण), आदिः श्रीमत्पार्श्वजिनं; अंति:४१९८. महावीरस्वामी बारढाल स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, जैदेना., प्र.वि. गा.८९, ढाळ-१२, (२५.५४११.५, १०४३३). महावीरजिन स्तवन-सत्यावीसभवगर्मित, मु. हंसराज , मागु., पद्य, वि. १७वी, आदिः सरसति भगवति दिओ मति; अंतिः कहे धन मुझ एह गुरू. ४१९९. जीवविचार सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८१७, श्रेष्ठ, पृ. ८, जैदेना., ले.स्थल. आमोग्राम, ले. ऋ. रायचन्द (गुरु ऋ. हीरजी), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. मूल-गा.५१. टबार्थ गा.३१ तक लिखा है., (२४४१२, ५४२७). जीवविचार प्रकरण, आ. शान्तिसूरि, प्रा., पद्य, (संपूर्ण), आदिः भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंतिः रुद्दाओ सुयसमुद्दाओ. जीवविचार प्रकरण-टबार्थ, मागु., गद्य, (अपूर्ण), आदिः त्रिभुवनउ प्रकाशक; अंति:४२००. रामयसोरसायन, संपूर्ण, वि. १९५२, श्रेष्ठ, पृ. ६७, जैदेना., ले.स्थल. सिंघाणा, ले. साध्वीजी सोनाजी (गुरु साध्वीजी चन्दरावलजी), प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र.वि. अध्याय-४ अधिकार, संशोधित, (२४.५४११.५, २१-२३४४०). रामयशोरसायन रास, मु. केशराज, मागु., पद्य, वि. १६८३, आदिः श्रीमुनिसुव्रतस्वामी; अंतिः सदा हरख वधामणी. ४२०३. कल्याणमन्दिर स्तोत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८४२, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदेना., ले.स्थल. भीलाडा, ले. साध्वीजी फतु आर्या (गुरु साध्वीजी अखुजी), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. मूल-श्लो.४४., (२५.५४११.५, ६x४४). कल्याणमन्दिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकर, सं., पद्य, आदिः कल्याणमन्दिरमुदारमवद; अंतिः मोक्षं प्रपद्यन्ते. कल्याणमन्दिर स्तोत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः कल्याणमन्दिर करतां; अंतिः स्तुति मन्त्रसहित छै. For Private And Personal Use Only Page #495 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ४४१ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ४२०४. सिद्धपञ्चाशिका सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १२, जैदेना., प्र.वि. मूल-गा.५०., पदच्छेद सूचक लकीरें, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२६.५४११.५, ३४२७). सिद्धपञ्चाशिका प्रकरण, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, आदिः सिद्धं सिद्धत्थसुअं; अंतिः देविन्दसूरिहिं. सिद्धपञ्चाशिका प्रकरण-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः सि कहेता शिवसुख; अंतिः देविन्द्रसुरिद्र. ४२०५. उपासकदशाङ्गसूत्र, संपूर्ण, वि. १५९९, श्रेष्ठ, पृ. ३०, जैदेना., ले.स्थल. वेलाउल, प्र.वि. अध्याय-१०, संशोधित, पदच्छेद सूचक लकीरें, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२७.५४११, ११४४३). उपासकदशाङ्गसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदिः तेणं० चंपा नाम नयरी; अंतिः दिवसेसु अगं तहेव. ४२०६. श्राद्धदिनकृत्य, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १०, जैदेना., प्र.वि. गा.३४१, ग्रं. ३९०, संशोधित, (२५.५४११, १३४४८). श्राद्धदिनकृत्य प्रकरण, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, आदिः वीरं नमिऊण तिलोयभाणु; अंतिः मिच्छामिह दुक्कडन्ति. ४२०७. मेरुगिरि नमस्कार, संपूर्ण, वि. १८४६, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदेना., ले.स्थल. राजनगर, ले. पं. जयसागर, प्र.वि. गा.४२, प्र.ले.श्लो. (५०६) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा , (२६४११.५, १३-१४४२७). मेरुगिरि नमस्कार, आ. ज्ञानविमलसूरि, मागु., पद्य, आदिः सिद्ध सकल समरूं सदा; अंतिः वन्दु शुभ मर्म. ४२०८. नेमिजिन विवाहलो, संपूर्ण, वि. १९५२, श्रेष्ठ, पृ. १५, जैदेना., ले. बुलाखीराम गणपतराम क्षत्रीय, (२७ ११.५, ९४२८). नेमिजिन विवाह गरबो, गणि वीरविजय, मागु., पद्य, वि. १८६०, आदिः सरसती चरण सरोज रमी; अंतिः कमला झाकझमाला लाल. ४२०९." चतुर्विंशतिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १८२३, श्रेष्ठ, पृ. १०, जैदेना., ले. ऋ. सोमचन्द, प्र.वि. अध्याय-२४ स्तवन, टिप्पण युक्त विशेष पाठ-कुछ पत्र, दशा वि. विवर्ण-पानी से अक्षरों की स्याही फैल गयी है, (२५.५४११.५, १५४४२). स्तवनचौवीसी, गणि देवचन्द्र, मागु., पद्य, वि. १८वी, आदिः ऋषभ जिणिन्दसु; अंतिः पूर्णानन्द समाजोजी. ४२१०. बावीसपरीसह उदाहरण व बारराशि वर्णमाला, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, पे. २, जैदेना., पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., (२५.५४११.५, २१४३५). पे. १.२२ परिसह दृष्टान्त, मागु., गद्य, (पृ. १-६, संपूर्ण), आदिः उजेणी नगरी यइ हस्त; अंतिः अनेरा साधुभी करिज्यउ. पे. २. होडाचक्र वर्णमाला , मागु., गद्य, (पृ. ६आ-, अपूर्ण), आदिः चु चे चो ला लि लुं; अंतिः-, पे.वि. अंत के पत्र नहीं ४२११. नवतत्त्व का बालावबोध व नवतत्त्वभाषा सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २१, पे. २, जैदेना., ले. अचलदास पुरोहित, (२७.५४१२, ९४२५). पे. १. नवतत्त्व प्रकरण-भाषार्थ, मागु., गद्य, (पृ. १अ-१७अ), आदिः जीवतत्त्व १ अजीव; अंतिः इति मोक्ष विचार. पे. २. पे. नाम. नवतत्त्वभाषा सह टबार्थ, पृ. १७अ-२१आ नवतत्त्वभाषा, मागु., पद्य, आदिः चेतनवन्त अनन्तगुण; अंतिः मोक्षतत्व सो जानि. नवतत्त्वभाषा-टबार्थ, प्राहिं., गद्य, आदिः जानवो मात्र से चेतन; अंति: मोक्ष तत्व जानी लीजे. ४२१२." चौवीसदण्डक सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ११, जैदेना., प्र.वि. मूल-गा.४५., संशोधित, (२६४१२, ४४३२). दण्डक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, आदिः नमिउं चउवीस; अंतिः एसा विनत्ति अप्पहिआ. दण्डक प्रकरण-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः चौवीश तीर्थङ्कर; अंतिः एहवी लिखी आत्मार्थे. ४२१३. देशनाशतक, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदेना., प्र.वि. गा.८८, (२७४१२, ११४३२). आदिनाथदेशनोद्धार, प्रा., पद्य, आदिः संसारे नत्थि सुहं; अंति: उपज्जित्ता सिवं जंति. ४२१४. नवतत्त्व सह बालावबोध व दुहो, संपूर्ण, वि. १९२५, श्रेष्ठ, पृ. १७, पे. २, जैदेना., ले.स्थल. लिंबडी, ले. रामजी, (२७.५४१२, १२-१३४३७). For Private And Personal Use Only Page #496 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य भाग - १ ४४२ पे. १.पे. नाम. नवतत्त्व सह बालावबोध, पृ. १-१७ नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदिः जीवाजीवापुन्नं; अंतिः अणागयद्धा अणन्तगुणा. नवतत्त्व प्रकरण-बालावबोध, मागु., गद्य, आदिः पहिलं जीवतत्व; अंतिः ए वातनुं सन्देह नहि., पे.वि. मूल-गा.८२. पे. २. पे. नाम. दुहो, पृ. १७अ काव्य/दुहा/कवित्त/पद्य, मागु., पद्य, आदि: #; अंतिः#., पे.वि. गा.१. ४२१५. पासाकेवली सुकनावली, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना., (२५४१२, १३४४०). पाशाकेवली-पाशाकेवलीभाषा* , आधारित, मागु., गद्य, आदिः (१) ॐ रीद्धि नमो भगवती (२) १११ उत्तम ए सुकन; अंतिः तासु कलेस मीटेगा. ४२१६. पूनपाल री चौपाई, अपूर्ण, वि. १९४४, श्रेष्ठ, पृ. ११-२(३,१०)=९, जैदेना., ले.स्थल. लसकर,प्र.वि. ढाळ-१९, (२५४१२, १६-१७४४८). पुण्यपाल चौपाई, मु. केसर, मागु., पद्य, आदिः आदेसर आदे करी चौवीस; अंतिः कमुना न रही काय. ४२१८. पञ्चपरमेष्ठि नमस्कार व गाथा सङ्ग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, पे. २, जैदेना., पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., (२४.५४११.५, १०४३२). पे. १. पंचपरमेष्ठि नमस्कार, मागु., गद्य, (पृ. १-८, संपूर्ण), आदिः आसन छोडी हाथ जोडी; अंतिः सिद्धि वडा कहीयइ. पे. २. जैन गाथा *, मागु., पद्य, (पृ. ८अ-८आ, अपूर्ण), आदि:-; अंतिः-, पे.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. ४२१९." व्यवहारसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७८७, श्रेष्ठ, पृ. ३५, जैदेना., ले.स्थल. स्यामानगरी, ले. ऋ. खेमाजी,प्र.वि. मूल-१० उद्देशक., संशोधित, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, प्र.ले.श्लो. (५०६) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा; (४७९) भग्न पृष्टि कटी ग्रीवा; (१७) जलाद्रक्षे तैलाद्रक्षे, (२५४१२, ७४४४). व्यवहारसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदिः जे भिक्खू मासियं; अंतिः महापज्जवसाणे भवइ. व्यवहारसूत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः जे० जे कोइ भि० साधु; अंतिः क्षय करवारूप फल हुइ. ४२२०. बारव्रतपूजा विधि, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २२, जैदेना., (२५४११.५, ७४२७). १२ व्रत पूजा विधि, मु. वीरविजय, मागु., पद्य, वि. १८८७, आदिः उच्चैर्गुणैर्यस्य; अंतिः जग जस पडह वजायो रे. ४२२१. कालकाचार्य बालावबोध, पूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ९-१(१)=८, जैदेना.,प्र.वि. प्र.पु. ग्रं. ४५०., संशोधित, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२६.५४११.५, १७-१८४५३). कालिकाचार्य कथा, उपा. समयसुन्दर गणि, सं., प+ग, वि. १६६६, आदि:-; अंतिः बालावबोधिकाम्. ४२२२." जम्बूद्वीपलघुसङ्ग्रहणी सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, जैदेना.,प्र.वि. मूल-गा.३०. प्र.पु. सर्वग्रं. १४०., संशोधित, (२७.५४१२, ३४२८). लघुसङ्ग्रहणी, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदिः नमिय जिणं सव्वन्नु; अंतिः रईया हरिभद्दसूरिहिं. लघुसङ्ग्रहणी-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः नमिय क० नमस्कार करी; अंतिः श्रीहरिभद्रसूरीश्वरे. ४२२३. मृगावती आख्यान, संपूर्ण, वि. १६८४, श्रेष्ठ, पृ. १३, जैदेना., ले.स्थल. द्रुणपुर, ले. करमचन्द जोघा, प्र.वि. गा.४२१, (२६४११.५, १७४४५). मृगावती रास, उपा. सकलचन्द्रगणि, मागु., पद्य, आदिः सिद्धारथ नरपति कुलिं; अंति: भरू पुण्य तणा घडा. ४२२४." स्तुतिचौवीसी, संपूर्ण, वि. १६६२, श्रेष्ठ, पृ. ८, जैदेना.,प्र.वि. २४ स्तुतिजोडा, श्लो.९६, संशोधित, (२६.५४११.५, ११४४१). स्तुतिचतुर्विंशतिका, मु. शोभनमुनि, सं., पद्य, आदिः भव्याम्भोजविबोधनैक; अंतिः हारतारा बलक्षेमदा. For Private And Personal Use Only Page #497 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ४४३ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची NS " T. . .०२. ४२२५.” पुरन्दरकुमार रास, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५, जैदेना., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, पू.वि. अंत के पत्र नहीं _हैं. गा.३४४ तक है., (२६.५४११, २३-२५४४५). पुरन्दरकुमार रास, वाचक मालदेव, मागु., पद्य, आदिः वरदाई श्रुतदेवता; अंति:४२२६.” परमानन्द स्तोत्र व आत्मप्रबोध कुलक, संपूर्ण, वि. १७९६, श्रेष्ठ, पृ. ५, पे. २, जैदेना., ले.स्थल. सुरतबंदर, ले. मु. कृपासागर (गुरु पं. सुमितसागर), प्र.ले.पु. मध्यम, दशा वि. विवर्ण-पानी से अक्षरों की स्याही फैल गयी है-अल्प, (२६४११.५, ११४३६). पे. १. परमानन्द स्तोत्र, सं., पद्य, (पृ. १अ-२आ), आदि: परमानन्दसम्पन्नं; अंतिः परमं पदमात्मनः., पे.वि. श्लो.२५. पे. २. आत्मावबोध कुलक, आ. जयशेखरसूरि*, प्रा., पद्य, (पृ. २आ-५अ), आदिः धम्मप्पहारमणिज्जे; अंतिः जिणं जयसेहरो होसि., पे.वि. गा.४३. ४२२८. स्तवनचौवीसी, संपूर्ण, वि. १९०४, श्रेष्ठ, पृ. ८, जैदेना.,प्र.वि. ढाळ-२४ स्तवन. *पंक्ति माहिती अनियमित है।, प्र.ले.श्लो. (१७२) मुष्णीयाद्यइम ग्रन्थं; (५५७) ज्यो गीरी सायरमु कुरमे; (१५६) ज्ञान हंदा दोय गुणं; (५५८) एकएक अक्षर भणे; (१३५) जिहां द्रुसायर चंद रवि; (४५४) मङ्गलं लेखकानां च; (१४१) यादशं पुस्तकं कृत्वा; (५०१) भग्न दृष्टि कटि ग्रीवा; (२८७) जलात् रक्षेत्र स्थलात् रक्षेत्; (५२९) जब लगे मेरु थिर रहे, (२४.५४११.५४). स्तवनचौवीसी, मु. रामविजय, मागु., पद्य, आदिः ओलगडी आदिनाथनी; अंतिः रामविजय जयश्री लही. ४२२९." इकवीसठाणा सह अर्थ, संपूर्ण, वि. १८४९, श्रेष्ठ, पृ. ८, जैदेना., ले.स्थल. सरीयारी, ले. मु. रघुनाथ, प्र.वि. मूल गा.६६., संशोधित, (२६४११.५, १४४३९). एकविंशतिस्थान प्रकरण, आ. सिद्धसेनसूरि, प्रा., पद्य, आदिः चवण विमाणा नयरी; अंतिः असेस साहारणा भणिया. एकविंशतिस्थान प्रकरण-अर्थ, मागु., गद्य, आदिः चवन विमान कहीस्यु: अंतिः साधारण बोल जाणवा. ४२३०." जम्बूद्वीप प्रकरण सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १३, जैदेना., प्र.वि. संक्षेप-गा.१२७.प्र.पु. सर्वग्रं. ३७४ अक्षर १९ ज्यादा., संशोधित, (२६x११.५, ५४३९). बृहत्क्षेत्रसमास-सक्षेप जम्बूद्वीप प्रकरण , आ. जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण, संक्षेप, प्रा., पद्य, आदिः नमिऊणसजलजलहर; अंतिः तेरगुलद्धहिअं. बृहत्क्षेत्रसमास-सक्षेप जम्बूद्वीप प्रकरण का टबार्थ', मागु., गद्य, आदिः नमीनइ जलसहित मेघ; अंतिः अङ्गुल तेरइ झाझेरां. ४२३२. विपाकसूत्र, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ५०, जैदेना.,प्र.वि. ग्रं. १२५०, अध्याय-२० अध्ययन, संशोधित, पदच्छेद __ सूचक लकीरें, (२६४११, ११४३९). विपाकसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदिः तेणं कालेणं तेणं; अंतिः सेसं जहा आयारस्स. ४२३३. विचारषट्त्रिंशिका विज्ञप्तिका सह टबार्थ (दण्डक प्रकरण), संपूर्ण, वि. १८३८, श्रेष्ठ, पृ. ८, जैदेना., ले.स्थल. दीवबंदर, ले. मयाचन्द सेवक, प्र.वि. गा.५९., टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२५४११.५, ५४३२). दण्डक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, आदिः नमिउं चउवीस; अंतिः एसा विनत्ति अप्पहिआ. दण्डक प्रकरण-टबार्थ , मागु., गद्य, आदिः प्रणमीनइं चउवीस; अंतिः जीवनइं हितकारिणी. ४२३४." चैत्यवन्दनभाष्य, संपूर्ण, वि. १९१८, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना., ले. बालगिर बाबा, प्र.वि. गा.६३, संशोधित, (२७.५४११.५, १०४३५). चैत्यवन्दनभाष्य, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, आदिः वन्दित्तु वन्दणिज्जे; अंतिः परमपयं पावइ लहुं सो. ४२३५.” पर्यन्ताराधना सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. १६वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना., प्र.वि. मूल-गा.७०., संशोधित, पदच्छेद सूचक लकीरें-मूल पाठ, (२९x११.५, ८४३३). पर्यन्ताराधना, आ. सोमसूरि, प्रा., पद्य, आदिः नमिउण भणइ; अंतिः ते सासयं सुक्खं. For Private And Personal Use Only Page #498 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य भाग - १ ४४४ पर्यन्ताराधना-अवचूरि, गणि विनयराज, सं., गद्य, आदिः कश्चिद् गुरुर्भणति; अंतिः (१)ते शाश्वतं सौख्यम् (२)अवचूरि विहिता. ४२३६. नवतत्त्व सह लेशप्रकाशकस्तव प्रदीप बालावबोध, संपूर्ण, वि. १५६७, श्रेष्ठ, पृ. १०, जैदेना., ले.स्थल. पत्तन, प्र.ले.श्लो. (५०९) यादृशं पुस्तके दृष्टं, (२७४११.५, १४४५३). नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदिः जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंतिः अणन्तभागो य सिद्धिगओ. नवतत्त्व प्रकरण-लेशप्रकाशकस्तवप्रदीप बालावबोध, मागु., गद्य, आदिः वन्दित्वानन्दमाकन्द; अंतिः अर्द्धपुद्गल जाणिवउ. ४२३७. सम्यक्त स्तव सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना., ले.स्थल. सांतिलपुर, ले. मु. हस्तिविजय, प्र.वि. मूल-गा.२५., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-प्रारंभिक पत्र, (२७४११.५, ४४३३). सम्यक्त्वपच्चीसी, प्रा., पद्य, आदिः जह सम्मत्तसरूवं; अंतिः हवेउ सम्मत्तसम्पत्ति. सम्यक्त्वपच्चीसी-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः जह कहतां जे रीति; अंतिः रूपिणी सम्पदा. ४२३८. वैदर्भि चौपाई, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ६, जैदेना., (२५४१०.५, १५४३९). दमयन्ती चौपाई, ऋ. प्रेमराज, मागु., पद्य, आदिः जिण धरममांहे जागवो; अंतिः पुहचइ नगर मझार. ४२४१. मृगावती आख्यान, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १४, जैदेना., प्र.वि. गा.४२१, (२६.५४११.५, १३४५५). मृगावती रास, उपा. सकलचन्द्रगणि, मागु., पद्य, आदिः सिद्धारथ नरपति कुलिं; अंतिः भरू पुण्य तणा घडा. ४२४२. चैत्यवन्दनभाष्य सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९४२, श्रेष्ठ, पृ. १९, जैदेना., प्र.वि. मूल-गा.६३., (२५४१२, ३४२१). चैत्यवन्दनभाष्य, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, आदिः वन्दित्तु वन्दणिज्जे; अंति: परमपयं पावइ लहुं सो. चैत्यवन्दनभाष्य-टबार्थ', मागु., गद्य, आदिः वान्दि नमस्कार करीने; अंतिः तेणे पूजित अर्चित छे. ४२४३. वीरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १८७६, श्रेष्ठ, पृ. १०, जैदेना.,प्र.वि. ढाळ-११, गा.२१२, ग्रं. २७०, (२८.५४१२, १४४४३). महावीरजिन स्तवन, पं. वीरविजय, मागु., पद्य, वि. १८६४, आदिः विमल वचन रस वरसती; अंतिः शान्ति करायो रे. ४२४६. शालिभद्र रास, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २६, जैदेना., (२५.५४११.५, १२४३५). शालिभद्र चौपाई, मु. मतिसार, मागु., पद्य, वि. १६७८, आदिः सासननायक समरियै; अंतिः फल लहिस्यइजी. ४२४७. स्तवन चोवीशी, अपूर्ण, वि. १८६०, श्रेष्ठ, पृ. १२-२(१,१०)=१०, जैदेना., ले.स्थल. भावनगर, (२६४१२, ११४३७). स्तवनचौवीसी, पं. जिनविजय, मागु., पद्य, आदिः-; अंतिः सुद्ध ठराव्यो रे. ४२४८. उपदेशी दुहा सङ्ग्रह, संपूर्ण, वि. १९५५, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदेना., (२६४११.५, १०x२५). औपदेशिक दूहा सङ्ग्रह, मागु., पद्य, आदिः सिद्ध श्रीपरमातमा; अंतिः पावे मुक्ति समाध. ४२४९. हठिसिंह अञ्जनशलाका स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना., ले.स्थल. सेंसपर, ले. ऋ. डुङ्गरजी, प्र.वि. ढाळ-५, (२८x१२.५, १२४३४). हठिसिंहमन्दिर अजनशलाकाप्रतिष्ठा स्तवन, पं. वीरविजय, मागु., पद्य, आदिः विनय विवेकी लोकतणा; अंतिः वीरविजय महाराजा रे. ४२५०. महावीरजिन पञ्चकल्याणक स्तवन, संपूर्ण, वि. १९४६, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदेना., ले.स्थल. सीधपूरनगर, प्र.वि. गा.५६, ढाळ-३, (२६४१२.५, ८४३१). महावीरजिन स्तवन-पञ्चकल्याणक, मु. रामविजय, मागु., पद्य, वि. १७७३, आदिः शासननायक शिवकरण; अंतिः नामे लही अधिक जगीस ए. ४२५१. कयवन्ना चौपाई, संपूर्ण, वि. १९३७, श्रेष्ठ, पृ. १५, जैदेना., ले. मु. मङ्गलसेन, प्र.वि. ढाळ-२९, (२६४१२.५, १७X४२). कयवन्ना चौपाई, मागु., पद्य, वि. १९२१, आदिः पूरण वञ्छित सुखकरण; अंतिः लीजो० निरमल राखी रे. For Private And Personal Use Only Page #499 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ४४५ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ४२५२. विक्रमचोबोली रास, संपूर्ण, वि. १८१८, श्रेष्ठ, पृ. ९, जैदेना., ले.स्थल. खेडांनगर, ले. मु. लालविजय (गुरु पं. मुगतिविजय), प्र.वि. ग्रं. ३२५, ढाळ-१७, (२६.५४११, १५-१६x४५). विक्रमचौबोली रास, वाचक अभयसोम, मागु., पद्य, वि. १७२४, आदिः वीणा पुस्तक धारणी; अंतिः मतिसुन्दर काजे कही. ४२५३.” दशवैकालिकसूत्र, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २०-१(५+६)=१९, जैदेना., प्र.वि. अध्याय-अध्ययन१०चूलिकार, पदच्छेद सूचक लकीरें-अनेक, (२६.५४११.५, १३४४४). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यम्भवसूरि, प्रा., पद्य, वि. पू.४, आदिः धम्मो मङ्गलमुक्किट्ठ; अंतिः (१)मुच्चइ त्ति बेमि (२)आलणा सो. ४२५४. दशवैकालिकसूत्र, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. २९, जैदेना., प्र.वि. अध्याय-अध्ययन१०, (२७४११, ११४३७). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यम्भवसूरि, प्रा., पद्य, वि. पू.४, आदिः धम्मो मङ्गलमुक्किट्ठ; अंति: गई त्ति बेमि. ४२५५.” अतिथिसंविभागवत कथा, संपूर्ण, वि. १६४८, श्रेष्ठ, पृ. ८, जैदेना., प्र.वि. ग्रं. ४००, संशोधित, (२६४१०.५, १७४४८). चन्द्रधवल कथा-अतिथिसंविभागवते, आ. माणिक्यसून्दरसूरि, सं., गद्य, आदिः इह भरतक्षेत्रे; अंतिः सिद्धिसौख्यं सिखेव. ४२५६. सिद्धचक्र रास, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २९, देना., (२५.५४१०.५, ९४२९). श्रीपाल रास, मु. ज्ञानसागर, मागु., पद्य, वि. १५३१, आदिः कर कमल जोडि करि; अंतिः जिम भूपति श्रीपाल. ४२५७. चित्रसेनपद्मावती कथा शीलविषये, अपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १३-१(१०)=१२, जैदेना., प्र.वि. श्लो.५०८, संशोधित, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, पू.वि. गा.३६१ से ४०१ तक नहीं है., (२६४११, १४४४५). चित्रसेनपद्मावती चरित्र, पाठक राजवल्लभ, सं., पद्य, वि. १५२४, आदिः नत्वा जिनपतिमाद्यं; अंतिः पाठकराजवल्लभः. ४२५९. सिन्दूरप्रकरण सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७८१, मध्यम, पृ. १६, जैदेना., प्र.वि. मूल-श्लो.१००., (२५.५४११.५, ६४३८). सिन्दूरप्रकर, आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य, आदिः सिंदूरप्रकरस्तपः; अंतिः सूक्तमुक्तावलीयम्. सिन्दूरप्रकर-टबार्थ, राज., गद्य, आदिः ग्रन्थ के आदि; अंति: मुक्तावली इसइ नामिइ. ४२६०. सिद्धान्त बोल, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ११, जैदेना., पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., (२४.५४११, १४४४०). ५८ बोल सङ्ग्रह, सं.,प्रा.,मागु., गद्य, आदिः मुरड माटी हीगलु; अंति:४२६१. विवाहपडल सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १२, देना.,प्र.वि. मूल-श्लो.१९१. बालावबोध का मात्र मंगलाचरण ही दिया गया है. आचार्य श्री सोमसुन्दरसूरि शिष्य मुनि श्री अमरसुन्दरजी रचित मात्र पाणिपीडन ग्रंथ का मंगलाचरण मात्र है इसके बाद विवाह पटल क्रमशः पाठ मिलता है व प्रतिलेखक की भूल से बालावबोध लिखना बाकी रह गया है अथवा अन्य ग्रन्थ'पाणीपिडन ग्रन्थस्य क्रियते बालबोधकं' इस ग्रन्थ में भ्रमवशात् लिखा गया है., (२४४११, ११-१२४३०). विवाहपडल, सं., पद्य, (संपूर्ण), आदिः जम्भाराति पुरोहिते; अंतिः मूनि संस्थितः. विवाहपडल-बालावबोध, मु. सोमसुन्दरसूरि-शिष्य, मागु., गद्य, (अपूर्ण), आदि:-; अंति:४२६२." इन्द्रियपराजयशतक सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ५, जैदेना., ले.स्थल. मांडण, ले. ऋ. कान्हांजी, प्र.वि. मूल-गा.१०२., संशोधित, पंचपाठ, पदच्छेद सूचक लकीरें, (२६.५४१०.५, ११४३९). इन्द्रियपराजयशतक, प्रा., पद्य, आदिः सुच्चिअ सूरो सो चेव; अंतिः संवेग रसायणं निच्चं. इन्द्रियपराजयशतक-बालावबोध, मागु., गद्य, आदिः तेहिज शूरा तेहिज; अंतिः रसायण सेवि. ४२६३. पच्चीस बोल, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, जैदेना., (२५४१०.५, ९४३२). २५ बोल, मागु., गद्य, आदि: नरकगति १ तिर्यंचगति; अंतिः यथाख्यातचारीत्र. For Private And Personal Use Only Page #500 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ४४६ हस्तलिखित जैन साहित्य भाग - १ ४२६४. बासठमार्गणा बालावबोध व अनागत चौवीसी जिननाम, संपूर्ण, वि. १८९९, श्रेष्ठ, पृ. ६, पे. २, जैदेना., ले.स्थल. जेसलमेर, ले. मु. सवाईसागर (गुरु मु. विजयसागर), प्र.ले.पु. मध्यम, (२४.५४१०.५, १४४३४). पे. १. पे. नाम. बासठ मार्गणा बालावबोध, पृ. १-६ ६२ मार्गणाद्वार विचार, मागु., गद्य, आदिः (१) नमिउं अरिहन्ताई बोले (२) गई इन्द्रिय काय जोए; अंतिः लाभे लेश्या लाभे. पे. २. पे. नाम. आवती चौविसी का नाम, पृ. ६ठा अनागतचौवीसजिन नाम, मागु., पद्य, आदिः पद्मनाभजी १ सुरदेवजी; अंतिः अनन्तवीर्यजी. ४२६५." एषणाशतक, संपूर्ण, वि. १६७५, श्रेष्ठ, पृ. ७, जैदेना., ले. ऋ. हाथी; ऋ. माण्डण, प्र.वि. गा.१०१, संशोधित, (२६४११.५, १३४२६). एषणाशतकभाषा, आ. पार्श्वचन्द्रसूरि, मागु., पद्य, आदिः श्रीजिनशासन समवडइं; अंतिः तसु पय नामउं सीस. ४२६६." विचार स्तव सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १७६४, मध्यम, पृ. ७, जैदेना., ले. मयाराम व्यास, प्र.वि. मूल-गा.२१., संशोधित, अक्षर-दुर्वाच्य, दशा वि. विवर्ण-पानी से अक्षरों की स्याही फैल गयी है-अल्प, प्र.ले.श्लो. (५०९) यादृशं पुस्तके दृष्टं, (२५४११, १४४३१). आदिजिन स्तवन-विज्ञप्तिविचारगर्भित, गणि विजयतिलक, मागु., पद्य, आदिः पहिलउ पणमिय देव; अंतिः विजयतिलओ निरञ्जणो. आदिजिन स्तवन-बालावबोध, मागु., गद्य, आदिः श्रीविजयतिलक; अंतिः तिलक प्राय छे. ४२६७. वैराग्यशतक सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, जैदेना., प्र.वि. मूल-गा.१०४., (२६.५४११, ८४३४). वैराग्यशतक, प्रा., पद्य, आदिः संसारंमि असारे नत्थि; अंतिः लहइ जिउ सासयं ठाणं. वैराग्यशतक-टबार्थ, मागु., गद्य, आदि: संसार असारमाहि नथी; अंतिः तुं शाश्वतुं ठाम. ४२६८." लोकनालिका सह वार्तिक, संपूर्ण, वि. १६४५, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना., ले. ऋ. माहावजी (गुरु ऋ. राम), प्र.ले.पु. ___ मध्यम, प्र.वि. मूल-गा.३२., संशोधित, पंचपाठ, (२६.५४११, ७-८४२५). लोकनालिद्वात्रिंशिका, आ. धर्मघोषसूरि , प्रा., पद्य, आदिः जिणदंसणं विणा जं; अंतिः जहा भमह न इह भिसं. लोकनालिद्वात्रिंशिका-वार्तिक, ऋ. मोल्हा, मागु., गद्य, आदिः आदिदेवं नमस्कृत्य; अंति: वार्तिकावबोधः. ४२७०. सन्मतितर्क प्रकरण, संपूर्ण, वि. १६वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना.,प्र.वि. गा.७०, (२५.५४११, १५४५४). सन्मतितर्क प्रकरण, आ. सिद्धसेनदिवाकर, प्रा., पद्य, आदिः सिद्धं सिद्धट्ठाणं; अंतिः संविग्गसुहाहिगम्मस्स. ४२७१." उपदेशमाला, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १८, जैदेना., प्र.वि. गा.५४४, संशोधित, (२६४११, १३४५०). उपदेशमाला, गणि धर्मदास, प्रा., पद्य, आदिः नमिऊण जिणवरिन्दे; अंतिः वयण विणिग्गया वाणी. ४२७२. प्रतिक्रमणसूत्र सङ्ग्रह सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८६२, श्रेष्ठ, पृ. १६, जैदेना., ले.स्थल. जयपुर, (२५.५४१०.५, ७ २७४३८-४८). साधुप्रतिक्रमणसूत्र सङ्ग्रह , संबद्ध, प्रा., प+ग, आदिः णमो अरिहन्ताणं०; अंतिः अरिसयम्मि पयइयव्व. साधुप्रतिक्रमणसूत्र सङ्ग्रह-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः नमो० नमस्कार होवउ; अंतिः विशुद्धं मुणेयव्वम्. ४२७४." सोमशतक काव्य, संपूर्ण, वि. १७३८, श्रेष्ठ, पृ. २६, जैदेना., ले.स्थल. पाटण, प्र.वि. श्लो.१०४, संशोधित-खाली जगह-टबार्थादि, (२४x१०.५, ४४३४). सिन्दूरप्रकर, आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य, आदिः सिंदूरप्रकरस्तपः; अंतिः सूक्तमुक्तावलीयम्. ४२७५.” सत्तरभेदी पूजा, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, जैदेना., प्र.वि. गा.१०८, ढाळ-१७, संशोधित, (२३.५४१०.५, ११४३०). १७ भेदी पूजा, उपा. सकलचन्द्रगणि, मागु., पद्य, आदिः अरिहन्त मुखपङ्कज; अंतिः सकल थुणियो रे. For Private And Personal Use Only Page #501 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ४४७ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ४२७६. चितसम्भूति रास व अर्जुनमाली रास, संपूर्ण, वि. १८७५, श्रेष्ठ, पृ. ६, पे. २, जैदेना., ले. स्थल. वरनाला, ले. साध्वीजी पन्नाजी, ( २४.५x११, २१x४१). पे. १. चित्रसम्भूति रास मागु, पद्य, (पृ. १अ-४आ) आदि चितसम्भूतिनी वार्ता: अंतिः नरनारीया० सार हो. पे.वि. ढाळ - ७. पे. २. अर्जुनमाली ढाल, ऋ. जैमल, मागु., पद्य, वि. १८२३, (पृ. ४आ-६आ), आदिः वर्द्धमान जिनवर नमुं; अंतिः तेविसमा य० सुभदाय, पे.वि. ढाळ ७. ४२७७.) नेमिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदेना., ले. गणि रविविजय, प्र. वि. गा. ७२, संशोधित, ( २४.५x१०.५, १०X३४). · www.kobatirth.org: नेमिजिन नवरसो कवि ऋषभदास सङ्घवी, मागु, पद्य, वि. १६६७ आदि सरसति सामिनी पाय अंतिः नेमि जिनेश्वरो. ४२७८. नवतत्त्व का बालावबोध, संपूर्ण, वि. १८७९, श्रेष्ठ, पृ. ७, जैदेना., (२५x१०.५, १३४३२). नवतत्त्व प्रकरण-बालावबोध *, मागु., गद्य, आदिः हिवे विवेकी सम्यगदृष; अंतिः होइ तेमाथी मोक्ष जाई. ४२७९. प्रियमेलक चौपाई, संपूर्ण, वि. १७६७, श्रेष्ठ, पृ. ९, जैदेना., ले. स्थल. जेसलमेर, ले. पं. मुनिमूर्ति गणि, प्र. वि. ढाल - ११, गा.२५०, (२५x१०.५, १३-१५X३५). प्रियमेलक चौपाई, उपा. समयसुन्दर गणि मागु, पद्य वि. १६७२, आदि: प्रणमुं सद्गुरु पाय अंतिः पुण्ये अधिकुं प्रमोद. ४२८०. वसुधारा स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, जैदेना., ले. स्थल. अहम्मदनगर, ले. पं. राजरत्न गणि, प्र.ले.पु. मध्यम, (२६४१०.५, ११४३५). वसुधारा, सं., गद्य, आदि: संसारद्वयदैन्यस्य अंतिः वर्षे वर्षे क्रियति, ; ४२८१. अवन्तीसुकुमाल चौढालीयो, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ११, जैदेना., प्र. वि. ढाळ - १३, ( २४.५X१०, ९४२९). अवन्तिसुकुमाल रास, मु. जिनहर्ष, मागु., पद्य, वि. १७४१, आदि: मुनिवर आर्य सुहस्ती; अंतिः हरख सुख पावई रे.. ४२८२. स्तवनवीसी व पाखीप्रतिक्रमण विधि, संपूर्ण वि. १८५३ श्रेष्ठ, पृ. ११, पं. २, जैदेना. (२६.५४११, १०X३०). पे. १. स्तवनवीसी, उपा. यशोविजयजी गणि, मागु., पद्य, (पृ. १अ - ११अ ), आदि: पुखलवई विजये जयो रे; अंतिः वाचक यश इम बोलई रे, पे. वि. अध्याय- २० स्तवन. पे. २. पे. नाम. पाक्षिकप्रतिक्रमण विधि, पृ. ११अ - ११आ प्रतिक्रमणविधि सङ्ग्रह- तपागच्छीय, संबद्ध, गुज. मागु., प्रा., गद्य, आदिः#; अंतिः#. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir - ४२८३ . उत्तराध्ययनसूत्र सह टबार्थ केसीगौतम अध्ययन, प्रतिपूर्ण, वि. १८४४, श्रेष्ठ, पृ. ७, जैदेना., ले. गणि देवेन्द्रसागर, (२६५११, ५०४४), उत्तराध्ययनसूत्र. मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग, आदि:-: अंति: उत्तराध्ययन सूत्र - टबार्थ *, मागु., गद्य, आदि:-; अंतिः " . (+) " ४२८४. भक्तामर स्तोत्र सह टवार्थ, संपूर्ण वि. १८०९, श्रेष्ठ, पृ. ७ जैदेना. प्र. वि. मूल- श्लो ४४ टिप्पण युक्त विशेष पाठ, ( २५X१०, ३x४० ). भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुङ्गसूरि, सं., पद्य, आदिः भक्तामरप्रणतमौलिमणि; अंतिः समुपैति लक्ष्मी... भक्तामर स्तोत्र- टवार्थ मागु, गद्य, आदि भक्त कहितां भक्ति; अंतिः वरे लक्ष्मीवन्त थाउ " For Private And Personal Use Only ४२८५. चौवीसदण्डक के ३० द्वार, संपूर्ण वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १६, जैदेना. (२५.५४११.५ १३४३७). २४ दण्डक ३० द्वार विचार, मागु., गद्य, आदिः दण्डक लेश्या ठित्ती; अंतिः नामे देवता जाणवो. ४२८६. धर्मपरीक्षा कथा सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८६९, श्रेष्ठ, पृ. २६, जैदेना., ले. पं. हुकमविजय, प्र. वि. मूल - श्लो. ३६७.प्र.पु. Page #502 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य भाग - १ ४४८ उभय ग्रं. १२००. प्रतिलेखक ने ग्रन्थाग्रन्थ १२००० का उल्लेख किया है परन्तु मूल टीका दोनो मिलाकर १२०० होना चाहिये., प्र.ले.श्लो. (५५२) भग्न पृष्टि ग्रीवा, (२५.५४११.५, ८४४१). धर्मपरीक्षा कथा, गणि मानविजय, सं., पद्य, आदिः प्रणम्य प्रणितं देवं; अंतिः लभते विरक्तः पुमान्. धर्मपरीक्षा कथा-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः प्रणमीनें प्रणम्या; अंति: करवी भला पंडितै. ४२८७. महावीरजिनसत्तावीसभव स्तवन, संपूर्ण, वि. १८७८, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना., ले.स्थल. पाली, ले. मु. हेमविजय,प्र.वि. गा.८४, (२५.५४११.५, १३४२८). महावीरजिन सत्यावीसभव स्तवन, मु. लालविजय, मागु., पद्य, वि. १६६२, आदिः विमलकमलदललोयणा दिसे; अंतिः शुभविजय शिष्य जयकरो. ४२८९. चौमासीदेववन्दन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २२, जैदेना., ले. गौरीशङ्कर गोविन्दजी भट्ट, (२५४११.५, १०४३०). चौमासी देववन्दन सविधि, पं. वीरविजय, मागु., पद्य, आदिः (१) प्रथम ईरियावहि पछे (२) श्रीशद्धेश्वर ईस्वर; अंतिः जय शिव मन्दिरीई रे. ४२९०. मेरुतेरस व अक्षयतृतीया कथा, संपूर्ण, वि. १८४५, श्रेष्ठ, पृ. १०, पे. २, जैदेना., ले.स्थल. पालणपुर, (२५.५४११.५, १६-१८४३७-३९). पे. १. मेरुत्रयोदशी कथा, सं., गद्य, (पृ. १अ-६अ), आदिः प्रणम्य भारती; अंतिः स मुक्तिसाधनं भवति. पे. २. अक्षयतृतीयापर्व कथा, सं., गद्य, (पृ. ६अ-१०आ), आदिः स्वस्ति श्रीसुखदातार; अंतिः कथा निरुपितास्ति. ४२९२. पट्टावली सह टीका, संपूर्ण, वि. १८१६, श्रेष्ठ, पृ. १९, जैदेना., ले. मु. रामविजय (गुरु गणि हर्षविजय), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. मूल-गा.६२., त्रिपाठ, (२६.५४१२, १२-१४४३४-४०). पट्टावली तपागच्छीय, आ. मुनिसुन्दरसूरि, प्रा., पद्य, आदिः सिरिमन्तो सुह हेऊ; अंतिः दिन्तु सिद्धि मुहं. पट्टावली-टीका, सं., गद्य, आदिः अथ गुरुपरिपाटीकथनाय; अंतिः शिवविजयगणिलिखत्. ४२९३. चन्दगुणावली का कागद, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना., प्र.वि. गा.७१, (२४.५४१२, १२४२६). चन्दगुणावलि पत्र, मु. दीपविजय, मागु., पद्य, आदिः स्वस्ती श्रीमरुदेवी; अंतिः हवे ते फलसे आस रे. ४२९४. अनुत्तरोववाईदशाङ्ग सूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९६१, श्रेष्ठ, पृ. २१, जैदेना., ले.स्थल. नागोर, प्र.वि. मूल-ग्रं. १९२, अध्याय-३३., (२६४११.५, ५४४५). अनुत्तरौपपातिकदशाङ्गसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदिः तेणं कालेणं० नवमस्स; अंतिः कहाणं तहा णेयव्वं. अनुत्तरौपपातिकदशाङ्गसूत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः तेणं का० चोथो आरो; अंतिः तिमही ज जाणवो. ४२९५. नवतत्त्व विचार व चौदपूर्वविषयलेखनप्रमाण, संपूर्ण, वि. १९१८, श्रेष्ठ, पृ. १०, पे. २, जैदेना., ले.स्थल. अमरसशहर, ___ ले. ऋ. नेणसुख (गुरु ऋ. ख्यालीराम), (२५.५४१२, १८४३९-४७). पे. १. नवतत्त्व प्रकरण-विचार, संबद्ध, मागु., गद्य, (पृ. १-१०), आदि: नवतत्त्व नाम जीव; अंतिः एक सिद्ध अणेक सिद्ध. पे. २. १४ पूर्वविषय और लेखनप्रमाण, राज., गद्य, (पृ. १०अ-१०आ), आदिः उत्पात पुरब में सरव; अंतिः (१)परिणाम गुणै प्रयोज्य (२)प्रमाणसुं लिख्या जाइ. ४२९६." पद्मावती व पार्श्वजिन स्तोत्र, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, पे. २, जैदेना., पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., (२६४११.५, १०x२८). पे. १. पद्मावतीदेवी स्तव, सं., पद्य, (पृ. १अ-५आ, संपूर्ण), आदिः श्रीमद्गीर्वाणचक्र; अंतिः देवीपद्मावती स्तवः., पे.वि. श्लो.३३. पे. २. पार्श्वजिन अष्टक , सं., पद्य, (पृ. ५आ-६आ-, अपूर्ण), आदिः श्रीमद्देवेन्द्रवृन; अंतिः-, पे.वि. अंतिम पत्र नहीं है. श्लो.९अपूर्ण तक है. For Private And Personal Use Only Page #503 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ४४९ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ४२९७. ऋषिमण्डल स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना.,प्र.वि. श्लो.८२, ग्रं. १५०, (२४.५४१२, ११४२८). ऋषिमण्डल स्तोत्र, आ. गौतमस्वामी गणधर, सं., पद्य, आदिः आद्यन्ताक्षरसंलक्ष्य; अंतिः दोषाद् विमुञ्चति. ४२९८. दशवैकालिक सूत्र, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १७, जैदेना., पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. अध्याय-५ गा.५४ तक लिखा है., (२६४१२, ६४३७-३९). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यम्भवसूरि, प्रा., पद्य, वि. पू.४, आदिः धम्मो मङ्गलमुक्किट्ठ; अंतिः४२९९. अगुलसत्तरी का बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, जैदेना., ले. पं. केसरविजय, (२६४११.५, १२-१३५४७). अगुलसप्ततिका-बालावबोध, मागु., गद्य, आदिः उ० ऋषभदेव स्वामी ते; अंतिः परनइ गुणने अर्थि. ४३००. सीमन्धरजिनवीनती स्तवन सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८८७, श्रेष्ठ, पृ. २१, जैदेना., ले.स्थल. चांणोदनगर, ले. मु. सुखसागर (गुरु मु. रविसागर, तपा.सागरशाखा), प्र.वि. मूल-गा.१२५. ढाल-११ की गा.१ तक ही टबार्थ है., (२६.५४११.५, ४४३३). सीमन्धरजिनविनती स्तवन सवासोगाथा, उपा. यशोविजयजी गणि, मागु., पद्य, (संपूर्ण), आदिः स्वामी सीमंधर विनती; अंतिः जसविजय बुध जयकरो. सीमन्धरजिन स्तवन-टबार्थ, मागु., गद्य, (पूर्ण), आदिः हे श्रीसीमन्धरस्वामी; अंति:४३०१. मुनिपति चौपाई, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २९, जैदेना., ले. सुखदत्त बोडा, प्र.वि. ढाळ-६५, (२५४११.५, १७X५०). मुनिपति चौपाई, मु. धर्ममन्दिर, मागु., पद्य, वि. १७२५, आदिः शंखेसर सुखकरू नमतां; अंतिः नवेय निधानो रे. ४३०३. गुणठाणाद्वार व चौवीसठाणा २४द्वार, संपूर्ण, वि. १९४४, श्रेष्ठ, पृ. १८, पे. २, जैदेना., ले.स्थल. सिंघाणा नगर, ले. ऋ. रघुनाथ (गुरु मु. मङ्गलसेन),प्र.ले.पु. मध्यम, (२६४११.५, १२-२२४३५-४४). पे. १. १४ गुणठाणा २५ द्वार, मागु., गद्य, (पृ. १अ-६आ), आदिः नामद्वार लक्षणद्वार; अंतिः बहुत्व द्वार कर्यो. पे. २.२४ ठाणा २४ द्वार, मागु., गद्य, (पृ.६आ-१८आ), आदि: गइ इन्दीय काय जोय; अंतिः शरीर हेतु आहाराल्पा. ४३०४. अक्षरबावनी व सवइया, संपूर्ण, वि. १९५७, श्रेष्ठ, पृ. ६, पे. २, जैदेना., ले.स्थल. संघाणा, ले. ऋ. रघुनाथ (गुरु मु. मङ्गलसेन), (२७४१०, १५-१६४३३-३९). पे. १. अक्षरबावनी, मु. मान, प्राहिं., पद्य, (पृ. १-६), आदिः ॐकार अपार अलख्य; अंतिः बावन अक्षर बावनी गाई., पे.वि. गा.५७. पे. २. औपदेशिक पद, प्राहिं., पद्य, (पृ. ६आ), आदिः पापी कहा जोणे साध; अंतिः प्रीत भइ न भइ है. ४३०५." षष्टिशतक सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७६१, श्रेष्ठ, पृ. २९, जैदेना., प्र.वि. मूल-गा.१६२; टबार्थ-गा.१६२., प्र.ले.श्लो. (१४१) यादशं पुस्तकं कृत्वा, (२६.५४११, ३४३७). षष्टिशतक प्रकरण, श्रा. नेमिचन्द्र भाण्डागारिक, प्रा., पद्य, आदिः अरिहं देवो सुगुरू; अंति: जाणन्तु जन्तु सिव्वं. षष्टिशतक प्रकरण-टबार्थ, उपा. जयसोम, मागु., गद्य, आदिः इण संसार मांहे; अंतिः फलथी प्रार्थना जाणवी. ४३०६. दसदृष्टान्त सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदेना., ले. मु. रत्नविजय,प्र.वि. ढाळ-१०, (२५४११, १२ १३४३१). १० दृष्टान्त सज्झाय, पं. जिनविजय, मागु., पद्य, वि. १७९०, आदिः श्रीजिनवीर नमी करीजी; अंतिः घरे कोडि कल्याण. ४३०७.” वीसस्थानक क्षमाश्रमण दान विधि, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १६, जैदेना., प्र.वि. संशोधित, (२७.५४११.५, १०x२९ ३६). २० स्थानक खमासणदान विधि, मागु., गद्य, आदिः तिहां प्रथम स्थानके; अंतिः काउसग्ग णमो तित्थस्स. ४३०८. कर्मग्रन्थ ४ से ६, संपूर्ण, वि. १८८२, श्रेष्ठ, पृ. १४, पे. ४, जैदेना., ले.स्थल. राधनपुर, (२६.५४११.५, १२-१३४३५-३७). For Private And Personal Use Only Page #504 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य भाग १ - www.kobatirth.org: Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पे. १. षडशीति नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, (पृ. १आ - ६अ, संपूर्ण), आदिः नमिय जिणं जिय; अंतिः देविन्दसूरीहिं., पे.वि. गा. ८६. पे. २. शतक नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, (पृ. ६अ - १०आ, संपूर्ण), आदिः नमिय जिणं धुवबन्धोदय; अंतिः सयगमिणं आयसरणट्ठा., पे.वि. गा.१००. पे. ३. सप्ततिका कर्मग्रन्थ, प्रा., पद्य, (पृ. ३, संपूर्ण), आदि: सिद्धपएहिं महत्थं; अंतिः एगुणा होइ नउइओ., पे.वि. गा. ९३. पे. ४. जैन सामान्यकृति-पेटाङ्क बाकी, सं., प्रा.,मागु., प+ग, (पृ. १अ, अपूर्ण), आदि:-; अंति:-, पे. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. ४३१०. दशवैकालिकसूत्र, अपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, जैदेना., पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. अध्ययन- ४ अपूर्ण तक है., (२६४११.५, ११४३५). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यम्भवसूरि, प्रा., पद्य, वि. पू. ४, आदिः धम्मो मङ्गलमुक्किट्ठ; अंतिः " ४५० ४३११. प्रतिक्रमणसूत्र व स्तवन सङ्ग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, पे. ३, जैदेना., (२५.५×११, ११४३७). पे. १. साधुश्रावकप्रतिक्रमणसूत्र - स्थानकवासी, संबद्ध, प्रा.,गुज., प+ग, (पृ. १अ - ७आ), आदिः नमो अरिहन्ताणं०; अंतिः अप्पाणं वोसिरामि. पे. २. २४ जिन स्तवन, मागु, पद्य, (पृ. ७आ-८आ), आदि: पहिला वान्दु रिषभदेव अंतिः स्वामि द्यो सुखवास. पे. ३. साधारणजिन स्तवन, मागु., पद्य, (पृ. ८आ-९आ), आदिः जम्बूयद्वीप मझिसेड; अंतिः मोक्षसुख निश्चल करा., पे.वि. गा.१७. (+) ४३१२. जीवविचार व नवतत्त्व सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १४ पे. २, जैदेना. प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., ( २५X११.५, ४X३४). पे. १. पे. नाम. जीवविचार सह टबार्थ, पृ. १अ - ७आ, संपूर्ण जीवविचार प्रकरण, आ. शान्तिसूरि, प्रा., पद्य, आदिः भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंतिः रुद्दाओ सुयसमुद्दाओ.. मागु, गद्य, आदि: त्रण भुवनने विषे अंतिः थकी भणवाने अर्थे पे.वि. मूल-गा. ५३. पे. २. पे. नाम. नवतत्त्व सह टबार्थ, पृ. ७-१४आ-, पूर्ण जीवविचार प्रकरण- टवार्थ नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदिः जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंति: नवतत्त्व प्रकरण-टबार्थ" मागु, गद्य, आदि जीवतत्त्व जे मांहि अंति, पे. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. गा. १ से ५१ तक है. ४३१३. छ आराना बोल, संपूर्ण, वि. १९२० श्रेष्ठ, पृ. ७ जैदेना. ले. ऋ. हीरा. प्र. वि. ग्रं. १८० (२६४११.५, १४४३२). ६ आरा बोल, मागु., गद्य, आदि: दस कोडाकोड सागरोपमना; अंतिः धरम करसे ते सुखी थशे. For Private And Personal Use Only ४३१४. साधुप्रतिक्रमणसूत्र सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. १६वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदेना., प्र. वि. पंचपाठ, (२५४११, २-८४३४). साधुवन्दित्तुसूत्र संबद्ध, प्रा., गद्य, आदिः करेमि भन्ते० चत्तारि; अंतिः वन्दामि जिणे चउवीसं. साधुवन्दित्तुसूत्र - अवचूरि, सं., गद्य, आदिः यतस्त्र मङ्गलपूर्वक अंतिः सम्भवादित्यदोष इति. ४३१६. ईलायचीकुमार चौपाई, अपूर्ण, वि. १७७७, श्रेष्ठ, पृ. ९-१( ४ ) -८, जैदेना. ले. स्थल सिद्धपुर, ले. गणि खीमाविजय (गुरु " मु. कपूरविजय), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. ग्रं. २९९, ढाळ - १६, ( २६११.५, १३×३७). इलाचीकुमार चौपाई, मु. ज्ञानसागर, मागु., पद्य, वि. १७१९, आदि: सकल सिद्धिदाई सदा; अंतिः गुण एहवा जाणी. ४३१७." साधु वन्दना, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ८, जैदेना., प्र. वि. गा. ३७७, ढाळ - १३, संशोधित, ( २६.५x१०.५, १५४४६). साधुवन्दना, मु. श्रीदेव, मागु., पद्य, आदिः पञ्च भरत पञ्च एरवय; अंतिः मुनि ते संथुण्या .. Page #505 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ४५१ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ४३१८. भक्तामर स्तोत्र सह कथा व टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १४, जैदेना., प्र.वि. मूल-श्लो.४४. कथा अपूर्ण-४२ श्लोक तक., पंचपाठ, (२५.५४१०.५, ४-५४२६). भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुङ्गसूरि, सं., पद्य, (संपूर्ण), आदिः भक्तामरप्रणतमौलिमणि; अंतिः समुपैति लक्ष्मी. भक्तामर स्तोत्र-कथा, मागु., गद्य, (अपूर्ण), आदिः श्रीमहावीर प्रणमी; अंति: भक्तामर स्तोत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, (संपूर्ण), आदिः सेवक अमर देवता नमता; अंतिः तथा श्रीसोभा होइ. ४३१९. राजप्रश्नीयसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७९६, श्रेष्ठ, पृ. ४७, जैदेना., ले.स्थल. वेगमग्राम, ले. ऋ. किसन, प्र.वि. मूल-सूत्र-१७५, ग्रं. २१००; प्र.पु. ग्रं. २२२०., टिप्पण युक्त विशेष पाठ, प्र.ले.श्लो. (४७५) यादशं पुस्तकं दृष्ट्वा , (२४.५४११, ७X४१). राजप्रश्नीयसूत्र, प्रा., गद्य, आदिः नमो अरिहंताणं० तेणं; अंतिः सुपस्से पस्सवणा नमो. राजप्रश्नीयसूत्र-टबार्थ , मागु., गद्य, आदिः तिणि कालि तेवु थइ; अंतिः भणी नमस्कार थाओ. ४३२०." जम्बूगुणरत्नमाला, संपूर्ण, वि. १९३८, श्रेष्ठ, पृ. ३३, जैदेना., ले.स्थल. बिणोलीग्राम, ले. मु. मङ्गलसेन, प्र.वि. ढाळ ३५, ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित, (२५.५४११, १४-१६४३९-४४). जम्बूस्वामी चरित्र, श्रा. आणन्द जेठमल, गुज., पद्य, वि. १९२०, आदिः शासनपति वर्धमाननो; अंतिः सेवो थाय छे कल्याण ए. ४३२१. अक्षयतृतीया कथा, संपूर्ण, वि. १८९०, श्रेष्ठ, पृ. ७, जैदेना., ले. मु. वल्लभविजय, (२४४११, १३४३४). अक्षयतृतीयापर्व कथा, सं., गद्य, आदिः स्वस्ति श्रीसुखदातार; अंतिः कथा निरुपितास्ति. ४३२३. अभिधानचिन्तामणि नाममाला, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १९, जैदेना., प्र.वि. ग्रंथ के पन्ने के नंबर कट गए है., पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., (२५४१०.५, १०-११४२५-३०). अभिधानचिन्तामणि नाममाला, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, आदिः प्रणिपत्यार्हतः; अंति:४३२७." सिन्दूरप्रकर, अपूर्ण, वि. १८१९, श्रेष्ठ, पृ. ७-१(१)=६, जैदेना., ले. मु. मोतीचन्द, (२५.५४११, १२-१३४४६-४८). सिन्दूरप्रकर, आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य, आदिः-; अंतिः सूक्तमुक्तावलीयम्. ४३२८." षडावश्यक सह सक्षेप अक्षरार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, जैदेना., प्र.वि. पंचपाठ, संशोधित, (२६४१०.५, ५ ११४३३). श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र , संबद्ध, प्रा.,मागु., प+ग, आदिः नमो अरिहं० सव्वसाहूण; अंतिः वत्तियागारेणं वोसिरइ. श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-अक्षरार्थ, मागु., गद्य, आदिः श्रीअरिहन्तनइ; अंतिः (१)मानश्चिरं नन्द्यात् (२)तउ पुर्ण भङ्ग नही. ४३२९. भक्तामर स्तोत्र सह व्याख्या, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १४, जैदेना., प्र.वि. मूल-श्लो.४४., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-कुछ पत्र, (२६४११, १३-१४४४६). भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुङ्गसूरि, सं., पद्य, आदिः भक्तामरप्रणतमौलिमणि; अंतिः समुपैति लक्ष्मी. भक्तामर स्तोत्र-टीका, सं., गद्य, आदिः भव्यवाताब्जराजी; अंतिः विलासः पोस्फुरीति. ४३३०. शत्रुञ्जय रास, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदेना., ले. पं. भानुसुन्दर, प्र.वि. गा.११२, ढाळ-६, संशोधित, (२५४११, १३४३३). शत्रुजयतीर्थ रास, उपा. समयसुन्दर गणि, मागु., पद्य, वि. १६८२, आदिः श्रीरिसहेसर पाय नमी; अंतिः सुणतां आणन्द थाय. ४३३१. चतुःशरणप्रकीर्णक सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १७५०, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदेना., ले. मु. खीरसागर, प्र.वि. मूल-गा.६३; बालावबोध-ग्रं. ३४७., त्रिपाठ, (२६४१०.५, ४-६x४०-४३). चतुःशरण प्रकीर्णक, गणि वीरभद्र, प्रा., पद्य, आदि: सावज्ज जोग विरई; अंतिः कारणं निव्वुइ सुहाणं. चतुःशरण प्रकीर्णक-बालावबोध, मागु., गद्य, आदिः नमो अरिहन्ताण; अंतिः अनन्त सुख ते जीव लहइ. For Private And Personal Use Only Page #506 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य भाग - १ ४५२ ४३३६.” साधुप्रतिक्रमणसूत्र सह टबार्थ व त्रणमनोरथ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, पे. २, जैदेना., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२६४१०.५, १२४४०). पे. १.पे. नाम. साधुप्रतिक्रमणसूत्र सह टबार्थ, पृ. ०१अ-०५आ साधुवन्दित्तुसूत्र, संबद्ध, प्रा., गद्य, आदिः करेमि भन्ते० चत्तारि; अंतिः वन्दामि जिणे चउवीसं. साधुवन्दित्तुसूत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः वाञ्छउ निवर्तवउ; अंतिः चोउवीस तीर्थङ्करति. पे. २. तीनमनोरथ, मु. भोज, मागु., पद्य, (पृ. ५आ), आदिः श्रीठाणाअङ्गि जे; अंतिः सुविचार० जय जय कार., पे.वि. गा.७. ४३३७. अमरसेन चौपाई, संपूर्ण, वि. १७४९, श्रेष्ठ, पृ. १०, जैदेना., ले. ऋ. मनजी (गुरु ऋ. हीराचन्द), (२४.५४१०.५, १५४३९). अमरसेन चौपाई, मु. पुण्यकलश, मागु., पद्य, आदिः जिन मुख कमल विलासिनी; अंतिः अविचल सुख सोहाग. ४३३८. कर्मग्रन्थ १,२,३,५ यन्त्र, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५०-१०(२६ से ३३,४१ से ४२)=४०, पे. ४, जैदेना., प्र.वि. *पंक्ति-अक्षर अनियमित है।, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, पू.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., दशा वि. विवर्ण-पानी से अक्षरों की स्याही फैल गयी है, (२६४१२४). पे. १. कर्मविपाक नव्य कर्मग्रन्थ-यन्त्र, मु. सुमतिवर्द्धन, राज., गद्य, (पृ. १अ-८आ, संपूर्ण), आदि:#; अंतिः#. पे. २. कर्मस्तव नव्य कर्मग्रन्थ-यन्त्र, मु. सुमतिवर्द्धन, मागु., यंत्र, (पृ. ९अ-१७अ, संपूर्ण), आदि:-; अंतिःपे. ३. बन्धस्वामित्व नव्य कर्मग्रन्थ-यन्त्र, मु. सुमतिवर्द्धन, मागु., यंत्र, (पृ. १८-२५आ, संपूर्ण), आदिः#; अंतिः#. पे. ४. शतक नव्य कर्मग्रन्थ-यन्त्र, पं. सुमतिवर्धन, मागु., कोष्टक, वि. १८७५, (पृ. -३४अ-५०आ-, अपूर्ण), आदि:-; अंति:-, पे.वि. प्रारंभ, बीच व अंत के पत्र नहीं हैं. ४३३९." आवश्यकसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८८३, श्रेष्ठ, पृ. १९, जैदेना., ले.स्थल. दादरी, ले. ऋ. रतनचन्द (गुरु ऋ. हरजीमल्लजी), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. मूल-६ अध्ययन., टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२७.५४११.५, १-६४३५-४०). आवश्यकसूत्र , प्रा., प+ग, आदिः णमो अरहंताणं०; अंतिः (१)वत्तियागारेणं वोसिरइ (२)एरिसयम्मि पयइयव्वं. आवश्यकसूत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, आदि: नमो० नमस्कार होवउ; अंतिः (१)१० पचक्खाण थया (२)विसुद्धिं मुणेयव्वं. ४३४०. भक्तामर स्तोत्र की भाषा, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना., प्र.वि. गा.४९, (२५.५४१२, ११४३३-३५). भक्तामर स्तोत्र-भाषानुवाद, मु. हेमराज, मागु., पद्य, आदिः आदि पुरूष आदिस; अंतिः ते पावै शिवखेत. ४३४२. चौवीसदण्डक- २९ द्वार, संपूर्ण, वि. १९७१, श्रेष्ठ, पृ. २०, जैदेना., प्र.वि. प्र.पु. ग्रं. ४००., (२५४१२, १०४३१-३४). २४ दण्डक २९ बोल, मागु., गद्य, आदिः प्रथम नामद्वार बीजु; अंतिः अनंत गुणे अधिक जाणवा. ४३४३." भाष्यत्रय सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८४१, श्रेष्ठ, पृ. २७, जैदेना., ले. पं. ललितविजय, प्र.वि. मूल-३ भाष्य., संशोधित, (२६४१२, ४-५४३१-३३). भाष्यत्रय, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, आदिः वन्दित्तु वन्दणिज्जे; अंतिः सासयसुक्खं अणाबाहं. भाष्यत्रय-टबार्थ, मागु., गद्य, आदि: वन्दित्वा कहतां; अंति: पामस्ये आनागते. ४३४४. ढोलामारु चौपाई, अपूर्ण, वि. १८१०, श्रेष्ठ, पृ. १९-२(३ से ४)=१७, जैदेना., ले. मु. मानविजय, प्र.वि. गा.८१२, पू.वि. गा.८० से गा.१६६ तक नहीं है., (२६४१२, १८४४३-४७). ढोलामारु चौपाई, वाचक कुशललाभ, मागु., पद्य, वि. १६७७, आदिः सकल सुरासुर सामिनी; अंतिः सूणे जिम उपजि मनरङ्ग. ४३४५. दृष्टान्तशतक सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९४२, श्रेष्ठ, पृ. २१, जैदेना., ले. ऋ. रघुनाथ (गुरु मु. मङ्गलसेन), प्र.वि. मूल-श्लो.१०२., (२७.५४१२, ५-६४१७-३५). दृष्टान्तशतक, ऋ. तेजसिङ्घ, सं., पद्य, आदिः नत्वा श्रीवृषभं; अंतिः विशोध्यं वरै. For Private And Personal Use Only Page #507 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ४५३ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची दृष्टान्तशतक-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः नमस्कार करीनई श्री; अंतिः माटे विचारी करवु. ४३४६." जीवविचार सह टबार्थ व बत्तीस अनन्तकाय नाम, पूर्ण, वि. १८६८, श्रेष्ठ, पृ. ६-१(१)=५, पे. २, जैदेना., प्र.वि. संशोधित, पू.वि. गा.१ से गा.५ तक नहीं है., (२५४१२, ५४३७-४२). पे. १. पे. नाम. जीवविचार सह टबार्थ, पृ. -२-६, पूर्ण जीवविचार प्रकरण, आ. शान्तिसूरि, प्रा., पद्य, आदिः-; अंतिः रुद्दाओ सुयसमुद्दाओ. जीवविचार प्रकरण-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः-; अंतिः तेहथी उद्धर्यो.. पे.वि. मूल-गा.५१. प्रथम पत्र नहीं है. ___गा.१ से ५ नहीं है. पे. २.३२ अनन्तकाय विचार, मागु., गद्य, (पृ. ६आ, संपूर्ण), आदिः सूरणकन्द वज्रकन्द; अंतिः ते अनन्तकाय कहीइ. ४३४८." शन्त्रुजयगिरिसङ्घ स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ७, जैदेना., प्र.वि. ढाळ-६, संशोधित, (२७४११.५, १० ११४३०-३९). शत्रुजयतीर्थ सङ्घस्तवन, पं. वीरविजय, मागु., पद्य, आदिः विमलगिरी ध्यान विमल; अंतिः होजो मङ्गलिक माला रे. ४३४९." सीमन्धरजिनवीनती स्तवन, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २१, जैदेना.,प्र.वि. संशोधित, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. ढाल-१७ गा.४३ अपूर्ण तक हैं., (२६४१२, ११-१२x२७-३४). सीमन्धरजिन विज्ञप्तिस्तवन साडात्रणसोगाथा, उपा. यशोविजयजी गणि, मागु., पद्य, आदि: सीमन्धर साहिब आगइं; अंति:४३५२.” कर्मग्रन्थ १-३ सह टबार्थ व शरीरपर्याप्ति यन्त्र, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १५, पे. ४, जैदेना., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२५४११.५, ५४३९-४१). पे. १.पे. नाम. कर्मविपाक सह टबार्थ, पृ. १आ-७अ कर्मविपाक नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, आदिः सिरिवीरजिणं वन्दिय; अंतिः लिहिओ देविन्दसूरीहिं. कर्मविपाक नव्य कर्मग्रन्थ-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः श्रीवीरजिणन्द वान्दी; अंतिः अर्थ लाउ जाणिवउ., पे.वि. मूल-गा.६०. पे. २. पे. नाम. कर्मस्तव सह टबार्थ, पृ. ७आ-११आ कर्मस्तव नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, आदिः तह थुणिमो वीरजिणं; अंतिः वन्दियं नमह तं वीरं. कर्मस्तव नव्य कर्मग्रन्थ-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः तथा श्रीमहावीरनी; अंतिः नमउ अहो प्राणी., पे.वि. मूल गा.३४. पे. ३. पे. नाम. बन्धस्वामित्व सह टबार्थ, पृ. ११आ-१५ बन्धस्वामित्व नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, आदिः बन्धविहाणविमुक्कं; अंतिः नेयं कम्मत्थयं सोउं. बन्धस्वामित्व नव्य कर्मग्रन्थ-टबार्थ', मागु., गद्य, आदिः बन्धना कारणथी मूकाणा; अंतिः कर्मस्तवथी साम्भलीनइ., पे.वि. मूल-गा.२५; टबार्थ-गा.२५. पे. ४. शरीरपर्याप्ति यन्त्र, सं., यंत्र, (पृ. १अ), आदिः#; अंतिः#. ४३५३." कर्मग्रन्थ १-३ सह टबार्थ व सम्यक्त्व स्तव सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १४, पे. ४, जैदेना., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२६.५४११.५, ५-६x४७). पे. १. पे. नाम. कर्मविपाक सह टबार्थ, पृ. १अ-६अ कर्मविपाक नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, आदिः सिरिवीरजिणं वन्दिय; अंतिः लिहिओ देविन्दसूरीहिं. कर्मविपाक नव्य कर्मग्रन्थ-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः श्रीमहावीर तीर्थङ्कर; अंतिः देवेन्द्रसूरि आचार्य., पे.वि. मूल गा.५८. पे. २. पे. नाम. सम्यक्त्वपच्चीसी सह टबार्थ, पृ. ६अ-८अ For Private And Personal Use Only Page #508 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य भाग १ .. www.kobatirth.org: सम्यक्त्वपच्चीसी, प्रा., पद्य, आदि: जह सम्मत्तसरूवं; अंतिः हवेउ सम्मत्तसम्पत्ति. मूल सम्यक्त्वपच्चीसी-टबार्थ, मागु., पद्य, आदि: जिम समकितनुं स्वरुप; अंतिः हवउ समकितनी प्राप्ति, पे.वि. गा.२५ टबार्थ-गा. २५. पे. ३. पे. नाम. कर्मस्तव सह टबार्थ, पृ. ८अ - ११अ " कर्मस्तव नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि प्रा. पद्य, आदि तह थुणिमो वीरजिणं अंतिः वन्दियं नमह तं वीरं. कर्मस्तव नव्य कर्मग्रन्थ-टबार्थ, मागु, गद्य, आदि तिम स्तवीसी हुँ अंतिः ते श्रीमहावीरदेव, पे. वि. मूल-गा. ३४. पे. ४. पे नाम, बन्धस्वामित्व सह टवार्थ, पृ. ११३-१४ बन्धस्वामित्व नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, आदिः बन्धविहाणविमुक्कं; अंतिः नेयं कम्मत्थयं सोउं. बन्धस्वामित्व नव्य कर्मग्रन्थ- टवार्थ मागु गद्य, आदि: ते बन्ध तेहनउ विधान: अंतिः कर्मस्तव साम्भलीने. पे. वि. मूल-गा. २५; टबार्थ -गा. २५. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४३५५. श्रेणिकमहाराजा चौपाई, संपूर्ण, वि. १८८४, श्रेष्ठ, पृ. १७, जैदेना., ले. स्थल. स्यामली, प्र. वि. ढाळ - ३२, ( २६१२, २१२३४४८-५०), श्रेणिकराजा चौपाई, वाचक विमलकीर्ति, मागु., पद्य, वि. १७१९, आदिः जगनायक चउवीसजिण; अंति: गुणवति ते गुण गावे. ४३५६. कोणिकराजा चौपाई, संपूर्ण, वि. १९३५, श्रेष्ठ, पृ. ७, जैदेना., ले. स्थल. ऊस्यारपुर, ले. साध्वीजी पेमा सतीजी, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. ढाळ - १४, (२५.५x११.५, १५-१६×३५-३७). कोणिकराजा रास, मागु., पद्य, आदिः सुखे राज श्रेणिक; अंतिः रसाल परिग्रह एहवो ए. ४३५७. सुमङ्गलसाधुसम्बन्ध सज्झाय, संपूर्ण वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १२, जैदेना. प्र. वि. गा. १७२ (२६.५४११.५, १०-११९३० ३५). सुमङ्गलमुनि सज्झाय, मु. महिमासिङ्घ, मागु, पद्य वि. १६१९, आदि प्रणमिय श्रीसारद अंतिः वञ्छित आणन्द पाई. " ४३५८. सत्तरभेदी पूजा, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, जैदेना, (२५x११.५, १०X३७-३९). १७ भेदी पूजा, मु. साधुकीर्ति, मागु., पद्य, वि. १६१८, आदिः भाव भले भगवन्तनी; अंति: (१) सब लीला सुख साजै (२) करे साधु भक्ति कीजे. ४५४ ४३५९. श्रीपाल रास सह बालावबोध- खण्ड ४ प्रतिपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १६, जैदेना. (२५.५५११.५, १४-१५४३४-३८). " श्रीपाल रास, उपा. विनयविजय उपा. यशोविजयजी गणि, मागु., पद्य, वि. १७३८, आदि:-; अंतिः लहसे ज्ञान विशालाजी. , " श्रीपाल रास-बालावबोध*, मागु., गद्य, आदि:-; अंतिः समापती कुर्वन्ती. ४३६०. नवतत्त्व प्रकरण सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, जैदेना., ले. ऋ. सुहन्दक, प्र. वि. मूल-गा. ५४., (२६.५४११.५, ६४२८-३१). नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंतिः अणागयद्धा अणन्तगुणा. नवतत्त्व प्रकरण-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः साची वस्तुनउं स्वरूप; अंतिः अणागत काल अनन्त गुण. ४३६२.” धर्मजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ८, जैदेना., ले. स्थल. पालि, प्र. वि. मूल-गा. १३७., टिप्पण पाठ, (२५x११, १२४३१-३४). धर्मजिन स्तवन उपा. विनयविजय आधारित, मागु पद्य वि. १७१६, आदि: चिदानन्द चित चिन्ततु अंति विनयविजय रसपूर. For Private And Personal Use Only युक्त विशेष Page #509 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org: कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ४५५ ४३६३. सदोपदेशमालायां कथा सङ्ग्रह, अपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १८, जैदेना., पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., ( २६ ११, १७४५५). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir उपदेशमाला-कथा सङ्ग्रह, सं., गद्य, आदिः प्रणम्य गुरुपादाब्जं; अंति: " ४३६६.” ठाणाङ्गसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण वि. १७६६, श्रेष्ठ, पृ. १४२, जैदेना. ले. स्थल. अजमेरनगर, प्र. वि. मूल-ग्रं. ३७००, १० स्थान; प्र.पु. ग्रं. उभय-९०००., संशोधित, (२७.५X११, ७-९x४८-५१). स्थानाङ्गसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदिः सुयं मे आउस तेणं; अंतिः अणन्ता पण्णत्ता. स्थानाङ्गसूत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः श्रीसुधर्मा कहि हे; अंतिः एवं ए दस दिशि जाणवी. ४३६८. नवतत्त्व का बालावबोध, संपूर्ण, वि. १८३५, श्रेष्ठ, पृ. ३२, जैदेना., ले. स्थल. बडौदा, (२५X१०.५, २१४४४-४७). नवतत्त्व प्रकरण बालावबोध, मागु, गद्य, आदि समकित विना ज्ञान अंतिः कर्म के आधीन है. (+) ४३६९. सिद्धान्तचन्द्रिका सह सुबोधिनी वृत्ति प्रतिपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ४१, जैदेना. प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें अंतिम पत्र, संशोधित, पू.वि. क्तक्तवत्वर्थप्रक्रिया के आसपास से अन्त तक है., (२५X११, १६४४७-५४). सिद्धान्तचन्द्रिका, आ. रामाश्रम, सं., गद्य, आदि: अंतिः सिद्धिर्यथामातरादे:, ; सिद्धान्तचन्द्रिका सुबोधिनी वृत्ति, गणि सदानन्द, ४३७२. कल्याणमन्दिर स्तोत्र सह टीका, पूर्ण, वि. १७वी सं., गद्य, वि. १७९९, आदि:-; अंतिः कृदन्ते कृतवानृजम्. श्रेष्ठ, पृ. ७ जैदेना. प्र. वि. मूल-श्लो.४४ टीका ग्रं. ३४६. पू. वि. अंतिम पत्र नहीं है. गा. ४४ की टीका अपूर्ण है (२६.५००११, १७७४४८-५६). कल्याणमन्दिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकर, सं., पद्य, आदि कल्याणमन्दिरमुदारमवद; अंति:कल्याणमन्दिर स्तोत्र - सौभाग्यमञ्जरी टीका, सं. गद्य वि. १६२७, आदि: किलेति सत्ये एषः अंति:४३७३. गजसुकुमाल रास, संपूर्ण, वि. १७वी श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदेना, प्र. वि. गा.८३ (२६११, १३४२८-३४). गजसुकुमाल रास, मु. शुभवर्द्धन-शिष्य, मागु., पद्य, आदि: देस सोरठ द्वारापुरी; अंतिः भणता होइ आणन्द.. ४३७४." योगशास्त्र का बालावबोध- १ से ४ प्रकाश, संपूर्ण वि. १७वी श्रेष्ठ, पृ. ५६, जैदेना, पठ. मु. लब्धिसिद्धि ( गुरु मु. अमरसिद्धि), प्र.वि. ४प्रकाश, पदच्छेद सूचक लकीरें, संशोधित, ( २६ १०.५, १३x४५). योगशास्त्र-हिस्सा प्रकाश १ से ४ का बालावबोध, मागु., गद्य, आदिः श्रीमद्वीरं जिनं; अंतिः स्थिति विशेषे थइ. (+) ४३७५. हंसराजवच्छराज चौपाई, संपूर्ण, वि. १७९५, श्रेष्ठ, पृ. ३१, जैदेना., ले. पं. जयचन्द, प्र. वि. गा. ९०५, खण्ड-४ ढाळ४८. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२५x१०.५ १५-१६४४४-४९). हंसराजवत्सराज चौपाई, आ. जिनोदयसूरि, मागु., पद्य, वि. १६८०, आदि आदिसर आदे; अंतिः हंस अनै वच्छराज. ४३७६. दशवैकालिकसूत्र सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १८वी श्रेष्ठ, पृ. ५५, जैदेना. प्र. वि. मूल- अध्याय अध्ययन १० चूलिकार., , " पंचपाठ (२४.५४११, ८-९४३३). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यम्भवसूरि, प्रा., पद्य, वि. पू. ४, आदिः धम्मो मङ्गलमुक्किट्ठ; अंतिः (१) मुच्चइति बे (२)भविआण विबोहणट्ठाए. दशवैकालिकसूत्र सुखावबोध, मागु., गद्य, आदिः इहां प्रथम दशवैकालिक; अंतिः बुज्झववानइ अर्थइ. ४३७७. जम्बूस्वामी रास, संपूर्ण, वि. १६९६, श्रेष्ठ, पृ. ८, जैदेना., ले. स्थल. नवरंगाबाद, ले. तुलसीदास, प्र. वि. गा. १८५, (२६.५x१०.५, १२-१३x४२-४५) . जम्बूस्वामी रास, मागु., पद्य, वि. १५२२, आदिः गोयम गणहर पय नमी; अंतिः काज सरसिइ तेहना. ४३७८. ज्ञाताधर्मकथाङ्गसूत्र, संपूर्ण, वि. १६१६, श्रेष्ठ, पृ. १३६, जैदेना., ले. स्थल. दशाडानगर, प्र. वि. ग्रं. ५५००, १९अध्ययन, प्र.ले. श्लो. (४७५) यादशं पुस्तकं दृष्ट्वा (४८२) भग्न पुष्टी कटी ग्रीवा (३२३) जलात् रक्षे स्थलात् रक्षे (१३७) यावत् व्याकाशमार्गे (१३८) यावत् निश्चलमेरु श्रृंगसततं (२६.५x११, १३x४६-४९). ज्ञाताधर्मकथाङ्गसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदि: तेणं कालेणं० चम्पाए: अंतिः जाव पुरिससिहेणं. For Private And Personal Use Only Page #510 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य भाग - १ ४५६ ४३७९. शान्तिनाथ चरित्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १२४-५१(१ से ५१)=७३, जैदेना., पू.वि. बीच के पत्र हैं. प्रस्ताव-२ गा.२४२ से प्रस्ताव-३ गा.४९७ तक है. टबार्थ प्रस्ताव दो तक है., (२७.५४१२.५, ५४३७-४२). शान्तिनाथ चरित्र, सं., पद्य, आदि:-; अंतिः शान्तिनाथ चरित्र-टबार्थ, मागु., गद्य, आदि:-; अंति:४३८०." आगमसारोद्धार, संपूर्ण, वि. १८९२, श्रेष्ठ, पृ. ५६, जैदेना., ले.स्थल. विक्रमपुर, प्र.वि. संशोधित, (२५.५४१२.५, १५४३३-४२). आगमसारोद्धार , उपा. देवचन्द, मागु., गद्य, वि. १७७६, आदिः हिवै भव्यजीवने; अंतिः फली मन आस. ४३८१. सुयगडाङ्गसूत्र सह टबार्थ - श्रुतस्कन्ध १, प्रतिपूर्ण, वि. १९५८, श्रेष्ठ, पृ. ६३, जैदेना., ले.स्थल. पोसालरिणीत, ले. मु. केसरीचन्द(खरतरगच्छ), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.ले.श्लो. (१४१) यादशं पुस्तकं कृत्वा, (२४.५४१२.५, ५४४०). सूत्रकृताङ्गसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदिः बुज्झिज्ज तिउट्टेज्ज; अंति: सूत्रकृताङ्गसूत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः बुज्झि० छकायजीवना; अंति:४३८२. उत्तराध्ययनसूत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४२, जैदेना.,प्र.वि. ३६अध्ययन, संशोधित, (२४४१२.५, १७४४५-५२). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग, आदिः सञ्जोगाविप्पमुक्कस्स; अंतिः सम्मए त्ति बेमि. ४३८३. सुदर्शनसेठ सवैया, संपूर्ण, वि. १९११, श्रेष्ठ, पृ. १२, जैदेना., ले.स्थल. खेतडी, ले. ऋ. ख्यालीराम, प्र.वि. गा.१२१, (२५४१२, १५-१६४३७-४३). सुदर्शनसेठ कवित्त, मु. रुप, मागु., पद्य, आदिः वान्दु श्रीजिनवर; अंतिः तारक तिको. ४३८४.” उत्तराध्ययनसूत्र, पूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ५६-१(२)=५५, जैदेना., ले.स्थल. बिकानेर, ले. ऋ. आशाराम, प्र.वि. ३६अध्ययन, संशोधित, (२५.५४१२.५, १४-१६४३४-३८). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग, आदिः सञ्जोगाविप्पमुक्कस्स; अंतिः (१)सम्मए त्ति बेमि (२)पुत्वरिसी एव भासन्ति. ४३८६." कल्पसूत्र सह कल्पद्रुमकलिकाटीका, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १३४, जैदेना., प्र.वि. मूल-अध्याय-१०-व्याख्यान., संशोधित, (२५.५४१२, १७-२१४४०-४९). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदिः णमो अरिहन्ताणं पढमं; अंतिः उवदंसेइ त्ति बेमि. कल्पसूत्र-कल्पद्रुमकलिका टीका, गणि लक्ष्मीवल्लभ, सं., गद्य, वि. १८वी, आदिः तस्मिन्काले; अंतिः त्यग्रेतनवर्तमानयोगः. ४३८७. श्रीमती चौढालीयो व कयवना कथा, संपूर्ण, वि. १९२१, श्रेष्ठ, पृ. ५, पे. २, जैदेना., ले.स्थल. पंडी, ले. ऋ. नन्दराम, प्र.ले.पु. मध्यम, (२७४१२, १६-१८४३५-४३). पे. १. श्रीमती चौढालिया, मु. विजयहर्ष, मागु., पद्य, (पृ. १अ-३आ), आदिः ईणहीज दक्षिण भरत; अंतिः धरमसीए सफल फले अवतार., पे.वि. ढाळ-४. पे. २. कयवन्ना कथा, मागु., गद्य, (पृ. ३आ-५आ), आदिः जम्बुद्वीपइ भरत; अंतिः धर्म तिहु सेवइ. ४३८८. आचारप्रदीप, त्रुटक, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६३-२६(६ से १४,२५ से २७,३८ से ४०,४६ से ४८,५० से ५१,५५,५७ से ६०,६२)=३७, जैदेना., पू.वि. बीच-बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., (२७४१२.५, १२-१३४३७-४९). आचारप्रदीप, आ. रत्नशेखरसूरि, सं., गद्य, वि. १५१६, आदिः श्रीवर्द्धमानमनुपम; अंति:४३८९.” तेतीस बोल सङ्ग्रह, संपूर्ण, वि. १८९८, श्रेष्ठ, पृ. २१, जैदेना., ले.स्थल. रणोली, ले. ऋ. रतनचन्द (गुरु ऋ. विनयचन्द), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२६४१२, १७४३३-३६). ३३ बोल सङ्ग्रह, मागु., गद्य, आदिः सात्त भये इहलोक भय; अंतिः तो आसातना लगेजी. For Private And Personal Use Only Page #511 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org: ४५७ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ४३९०. हरिबल चौपाई, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ६९-३२ (१ से ३२ ) + १ (४३) = ३८, जैदेना., ले. मु. ज्ञानसागर, पू. वि. बीच के पत्र हैं., ( २६x१२.५, १३ - १७४३०-३४). हरिबल चौपाई, मु. लब्धिविजय, मागु., पद्य, वि. १८१०, आदि:-; अंतिः ४३९२. ज्योतिषसार, पूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १८ - १(३) १७, जैदेना., प्र. वि. * पंक्ति माहिती अनियमित है । (२६×१२.५x). ज्योतिषसार आ. नरचन्द्रसूरि सं., पद्य, आदि श्री अर्हन्तजिनं अंतिः दिनङ्करादि निशा.. ४३९३. गुणकरण्डकगुणावली रास, संपूर्ण, वि. १८५५, श्रेष्ठ, पृ. २८, जैदेना., प्र. वि. ढाळ - २७, ( २६ १२.५, ११×३२-३७). गुणकरण्डकगुणावली रास, मु. जिनहर्ष, मागु., पद्य, वि. १७५१, आदिः श्रीअरिहन्त अनन्त; अंतिः दिन दिन आणन्द. ४३९४. मनोरमा चौपाई, संपूर्ण, वि. १९४३, श्रेष्ठ, पृ. १७, जैदेना., ले. स्थल. सीघाण, ले. गुरनीजी सोनाजी, प्र. वि. ढाळ - ३१, (२६.५४१२.५. १९-२२४३६-५४). मनोरमा चौपाई, मु. रतनचन्द, मागु., पद्य, आदि: जिण चौवीसे नमुं ऋषभ : अंतिः सीलधर्म सुजे मिले. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४३९५. तप सङ्ग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १३, जैदेना., प्र. वि. पंक्ति अक्षर अनियमित है. पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., (२५)x१३x). तपावलि, मागु, गद्य, आदि पुरिमढ्ढ १ एकासणां; अंति: ४३९६. दशवैकालिकसूत्र, संपूर्ण, वि. १८८३, श्रेष्ठ, पृ. २२, जैदेना., प्र. वि. अध्याय- अध्ययन १०, ( २६१२.५, १४- १७३५-३८). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यम्भवसूरि, प्रा., पद्य, वि. पू. ४, आदिः धम्मो मङ्गलमुक्किट्ठ; अंतिः गइं त्ति बेमि (#) ४३९७. हरचन्दराजा चौपाई, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २१, जैदेना, ले. स्थल नागोर, ले. मु. मगनी ( नागोरीगच्छ), प्र. वि. ढाळ - २३, दशा वि. विवर्ण पानी से अक्षरों की स्याही फैल गयी है, (२५X१३, १३-१४९३१-३३). · हरिश्चन्द्रराजा चौपाई, मु. प्रेम, राज., पद्य, वि. १८३४, आदिः आदि जिनेसर पाय नमी; अंतिः नाम तीकारा होये... ४३९८. गीतमपृच्छा सह व्याख्या, अपूर्ण, वि. १८वी श्रेष्ठ, पृ. १९ जैदेना, प्र. वि. संशोधित टिप्पण युक्त विशेष पाठ, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. गा. २७ तक है, (२७४१३, १२४३४-३९) गीतमपृच्छा, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण तित्थनाहं: अंति: गीतमपृच्छा- टीका, मु. मतिवर्द्धन, सं., गद्य वि. १७३८ आदि नत्वा तीर्थनाथं अति: " ४३९९. मयनरेहा चौपाई, संपूर्ण, वि. १९१७, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदेना., ले. स्थल. चित्रकूट, ले. ऋ. लक्ष्मण, प्र.वि. गा.१६९, (२४४१२.५, १८-१९४२९-३४). मदनरेखा चीपाई मागु., पद्य, आदि विसन सातमो परिनारनो अंतिः वन्दण० रतनारी माला. ४४००." पडिकमणसूत्र सङ्ग्रह, संपूर्ण, वि. १९६८, श्रेष्ठ, पृ. १०, जैदेना., ले. स्थल. कानूड, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२७.५४१२.५, १०-१२४३३-३४). आवक प्रतिक्रमणसूत्र - तेरापन्थी, संबद्ध, प्रा., प+ग, वि. २०वी आदि नमो अरिहन्ताणं अंतिः दो नमुत्थुणं पढणा ; . ४४०२. शान्तिजिन कलश व अष्टप्रकारी पूजा के दोहे, संपूर्ण वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ५, पे. २ जैदेना, दशा वि. विवर्ण-पानी से- अक्षरों की स्याही फैल गयी है- अल्प, (२७.५x१२.५, ११x२४-४०). पे. १. शान्तिजिन कलश, आ. ज्ञानविमलसूरि मागु, पद्य, (पृ. १आ-४अ) आदि श्रीजयमङ्गलकृत्स्नम्: अंतिः श्री शान्तिजिन जयकार., पे.वि. गा.४६. पे. २. अष्टप्रकारी पूजा दुहा मागु., पद्य, (पृ. ४आ - ५आ), आदिः स्नात्र करता जगत; अंतिः फलं यजामहे स्वाहा, पे.वि. गा. ९. ४४०३. नेमिजिन रास, संपूर्ण, वि. १८६३, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना., ले. स्थल. बिकानेर, प्र. वि. गा. ७६, (२७१२, १८-१९४०-४२). शील रास, आ. विजयदेवसूरि मागु पद्य, आदि पहिलो प्रणाम करु: अंतिः सील अखण्डित सेवज्यो. For Private And Personal Use Only Page #512 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य भाग - १ ४५८ ४४०५. विपाकसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९७०, श्रेष्ठ, पृ. ५९, जैदेना.,प्र.वि. मूल-ग्रं. १२५०, अध्याय-२० अध्ययन., प्र.ले.श्लो. (४७५) यादशं पुस्तकं दृष्ट्वा; (१७३) जलात् रक्षै तैलात् रक्षै; (३७५) भग्न पृष्टि कटि ग्रीवा ज्ञवि, (२५४१२.५, ५-८४३५-५२). विपाकसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदिः तेणं कालेणं तेणं; अंतिः सेसं जहा आयारस्स. विपाकसूत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः अथ विपाकश्रुत किसउ; अंतिः सूत्रे कह्यो तिम. ४४०६." अनुयोगद्वारसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९३३, श्रेष्ठ, पृ. १२६, जैदेना., ले.स्थल. नागोर, ले. सिधकरण पुरोहित, प्र.वि. प्र.पु.मूल-ग्रं. २०००; प्र.पु. ग्रं. उभय-८०००., टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२५.५४१२, ६-८४३८-४५). अनुयोगद्वारसूत्र , आ. रक्षितसूरि, प्रा., प+ग, आदि: नाणं पञ्चविहं; अंतिः दुक्खक्खयट्ठाए. अनुयोगद्वारसूत्र-टबार्थ, मु. धर्मसिंह, मागु., गद्य, आदिः वन्दितु जिणवरिन्दे०; अंति: साता सुहस्स हेतवे. ४४०७. जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८५५, श्रेष्ठ, पृ. २००, जैदेना., ले.स्थल. जैपुर, ले. फकीरदास, प्र.वि. मूल-ग्रं. ४१४६, ७ वक्षस्कार; टबार्थ-ग्रं. १५०००; प्र.पु. ग्रं. उभय-१६०००., (२७४११.५, ७-८४४०-४८). जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति, प्रा., गद्य, आदिः नमो अरिहंताणं० तेणं; अंतिः उवदंसेइ त्ति बेमि. जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति-टबार्थ, मु. जीवविजय, मागु., गद्य, वि. १७७०, आदिः माहरो नमस्कार; अंतिः जम्बू प्रति कहे छे. ४४०८. नवपद पूजा, संपूर्ण, वि. १८६१, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदेना., ले.स्थल. मानुजपुर, ले. पं. पुन्यसागर, प्र.ले.पु. मध्यम, (२४.५ २६४१२, १३-१५४३८-४१). नवपद पूजा, मागु., पद्य, आदिः श्रुतधर जस समरे सदा; अंतिः तणा साधुजीवत जीवो. ४४०९. चौमासी देववन्दन, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, जैदेना., पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. अरजिन थोय तक है., (२७X१२, १२४३९-४२). चौमासी देववन्दन, पं. पदमविजय, मागु., पद्य, आदिः विमल केवलज्ञान कमला; अंति:४४१०. सुखानन्दमनोरमा चौपाई, संपूर्ण, वि. १९२३, श्रेष्ठ, पृ. १७, जैदेना., ले. मु. गुलाबचन्द, प्र.वि. ढाळ-३१, (२६.५४१२.५, २१४४२-४५). मनोरमा चौपाई, मु. रतनचन्द, मागु., पद्य, आदिः जिण चौवीसे नमुं ऋषभ; अंतिः सीलधर्म सुजे मिले. ४४१२." चीतसम्भूतिसप्त ढाल, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, जैदेना.,ले. साध्वीजी चन्दा, प्र.वि. गा.१३८, ढाळ-७, संशोधित, (२७४१२, १३-१४४२५-२८). चित्रसम्भूति रास, मागु., पद्य, आदिः चित सम्भूतनी वार्ता; अंतिः नरनारीया० सार हो. ४४१३. प्रश्नोत्तरसार्द्धशतक, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १५, जैदेना., पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. बोल-११७ तक लिखा है., (२४.५४१२.५, १४४४६-५१). प्रश्नोत्तरसार्द्धशतक, वाचक क्षमाकल्याण, मागु., गद्य, आदिः पहिलै बोलै तीर्थङ्कर; अंति:४४१४. सिन्दूरप्रकर सह बालावबोध व कथा, अपूर्ण, वि. १८५१, श्रेष्ठ, पृ. १०२-४७(१ से १८,६१ से ७८,८६ से ९६)=५५, देना., ले.स्थल. गुढानाथाजीरा, ले. मु. हर्षचन्द (गुरु ऋ. गुलाबचन्द), (२४४११.५, १३४३८). सिन्दूरप्रकर, आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य, आदि:-; अंतिः सूक्तमुक्तावलीयम्. सिन्दूरप्रकर-बालावबोध, मागु., गद्य, आदि:-; अंतिः गन्तुं न प्रभवतिती. सिन्दूरप्रकर-कथा* , मागु., गद्य, आदि:-; अंतिः४४१५. ऋषभजिन स्तवन सङ्ग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, पे. २, जैदेना., (२६.५४११.५, १२-१३४३७-४५). पे. १. आदिजिन स्तवन, मु. अमरविजय, मागु., पद्य, (पृ. १अ-२आ), आदिः गुरुचरण कमल नमी रे; अंतिः सयल सङ्घ मङ्गल करो., पे.वि. ढाळ-४. For Private And Personal Use Only Page #513 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ४५९ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची पे. २. आदिजिन स्तवन, वाचक लक्ष्मीविजय, मागु., पद्य, (पृ. २आ-५आ), आदिः सरसति लही वाणी ए; अंतिः लक्ष्मीविजय जयजय करु., पे.वि. गा.६८. ४४१६. पाक्षिकसूत्र व खामणा, संपूर्ण, वि. १६वी, मध्यम, पृ. ५, पे. २, जैदेना., (२६४१०.५, १४-१५४७२-७५). पे. १. पे. नाम. साधुपाक्षिकसूत्र, पृ. ०१अ-०५आ पाक्षिकसूत्र, प्रा., प+ग, आदिः तित्थङ्करे य तित्थे; अंतिः जेसिं सुयसायरे भत्ति. पे. २. पे. नाम. पाक्षिकक्षामणासूत्र, पृ. ०५आ-०५आ क्षामणकसूत्र, प्रा., गद्य, आदिः इच्छामि खमासमणो; अंतिः नित्थारग पारगा होह. ४४१७." उववाईसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८५४, श्रेष्ठ, पृ. ७४, जैदेना., ले.स्थल. ज्ञान, ले. ऋ. नूणा (गुरु ऋ. रामदास), प्र.वि. मूल-सूत्र-१८९, ग्रं. १६००., टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२७४११.५, ६-७४३९-४७). औपपातिकसूत्र, प्रा., प+ग, आदिः तेणं कालेणं० चम्पा०; अंतिः सुही सुहं पत्ता. औपपातिकसूत्र-टबार्थ', मागु., गद्य, आदिः चउथा आरानइ विषइ वरस; अंतिः सुख पाम्या थका. ४४१८. वहुपुत्री, चितसम्भूति सज्झाय, सती गुणमाला व नरक चौढालीयो, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, पे. ४, जैदेना., (२६.५४१२, २०-२१४६६-७३). पे. १. बहुपुत्रिक सज्झाय, राज., पद्य, (पृ. १अ-२अ), आदिः वहु पुत्रीया री; अंति: पामउ तुम सुख परम ए., पे.वि. गा.७२, ढाळ-६. पे. २. चित्रसम्भूति रास, मागु., पद्य, (पृ. २अ-४आ), आदिः चितसम्भूतिनी वार्ता; अंतिः नरनारीया० सार हो., पे.वि. ढाळ-७. पे. ३. सती गुणमाला, मागु., पद्य, (पृ. ४आ-५अ), आदिः अरिहन्त सिद्ध साधु; अंतिः नम में आणो धरछती., पे.वि. गा.४२. पे. ४. नरक चौढालिया, मु. गुणसागर, मागु., पद्य, (पृ. ५अ-५आ), आदिः आदि जिणन्द जुहारीयइ; अंतिः (१)सकल कलेस हो स्वामी (२)स्वामि समरण पाईयइ., पे.वि. गा.३१, ढाळ-४. ४४१९. जम्बूस्वामी रास, संपूर्ण, वि. १९०३, श्रेष्ठ, पृ. ४१, जैदेना., ले.स्थल. क्षपरौली, ले. ऋ. हेतराम, लिखवा. श्रा. नथु बाबा, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. ढाळ-३५; प्र.पु. मूल-ग्रं. १२९१, (२६.५४११.५, ११४३३-४२). जम्बूस्वामी रास, आ. ज्ञानविमलसूरि, मागु., पद्य, वि. १७३८, आदिः प्रणमी पास जिणन्दना; अंतिः नितु कोडि कल्याण. ४४२०. नन्दीसूत्र व अनुज्ञानन्दीसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९५२, श्रेष्ठ, पृ. ५८, पे. २, जैदेना., ले.स्थल. रिणिनगर, ले. मु. ___ मुनिलाल, (२४४१२.५, ७-२०x४०-५५). पे. १.पे. नाम. नन्दीसूत्र सह टबार्थ, पृ. १-५३अ, संपूर्ण नन्दीसूत्र, आ. देववाचक, प्रा., प+ग, आदि: जयइ जगजीवजोणीवियाणओ; अंतिः से तं परोक्खणाणं. नन्दीसूत्र-टबार्थ', मागु., गद्य, आदिः नन्दी ते आनन्दनी; अंतिः परोक्षज्ञानना भेद छइ. पे. २. पे. नाम. अनुज्ञानन्दीसूत्र सह टबार्थ, पृ. ५३अ-५८अ, अपूर्ण लघुनन्दीसूत्र-अनुज्ञानन्दीसूत्र, आ. देववाचक, प्रा., गद्य, आदिः से किं तं अणुण्णा; अंतिः वीसमणुण्णाए णामाइं. लघुनन्दीसूत्र-अनुज्ञानन्दीसूत्र-टबार्थ , मागु., गद्य, आदिः से० ते केउ कुण; अंति:-, पे.वि. अंतिम कुछेक भाग का टबार्थ लिखा नहीं है. ४४२१. नवतत्त्व का बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २४, जैदेना., पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण रूपी अजीव पदार्थ का विवरण चालु है., (२६.५४१२.५, १८-२४४४८-५७). नवतत्त्व प्रकरण-बालावबोध, मागु., गद्य, आदिः (१) उत्तराध्ययन सूत्र (२) जीवा जीवाय बन्धोय; अंति: For Private And Personal Use Only Page #514 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य भाग १ זי - " ४४२२. उबवाईसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण वि. १८वी श्रेष्ठ, पृ. ९१, जैदेना. प्र. वि. मूल-सूत्र- १८९ ग्रं. १६०० (२४.५४१२.५, ६×३९-४०). औपपातिकसूत्र, प्रा. प+ग, आदि तेणं काले० चम्पा०: अंतिः सुही सुहं पत्ता. औपपातिकसूत्र - टवार्थ मागु, गद्य, आदि: चउथा आरानइ विषइ वरस अति सुख पाम्या थका ४४२३. भक्तामर स्तोत्र सह टबार्थ व कथा, संपूर्ण, वि. १८४८, श्रेष्ठ, पृ. ११, जैदेना., ले. स्थल. सींघाणा, प्र. वि. मूल-श्लो. ४४., www.kobatirth.org: (२७४१३, ५-७०४०-४५). भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुङ्गसूरि, सं., पद्य, आदिः भक्तामरप्रणतमौलिमणि; अंतिः समुपैति लक्ष्मी. भक्तामर स्तोत्र-बालावबोध, गणि मेरुसुन्दर, मागु., गद्य, आदिः प्रणम्य श्रीमहावीरं; अंतिः राज्यादिकसम्पदा एतलइ. भक्तामर स्तोत्र-कथा*, मागु., गद्य, आदि: #; अंतिः#. (+) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४४२४. गजसुकुमाल चौपाई व पञ्चमछट्ठाआरा सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९२१, श्रेष्ठ, पृ. ९, पे. २, जैदेना., ले. स्थल. पिंड, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., (२७.५४१२, १७-१८४३७-४४). पे. १. गजसुकुमाल चौपाई, मागु., पद्य, (पृ. १अ ९अ संपूर्ण) आदि भदलपुर नामे नगर तिहा अंतिः सद्गुरु कहे साम्भलो. पे.वि. डाळ- १८. ४६० पे. २. पंचमआरा सज्झाय, मु. जिनहर्ष, मागु., पद्य, (पृ. ९आ-, अपूर्ण), आदिः वीर कहे गौतम सुणो; अंतिः-, पे.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. गा. १६ तक है. ४४२५. भक्तामर स्तोत्र की भाषा व भक्तामर स्तोत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, पे. २, जैदेना. (२६.५x११, १३ - १७४३५ (४०), पे. १. भक्तामर स्तोत्र-भाषानुवाद, मु. हेमराज, मागु., पद्य, (पृ. १अ -३आ), आदिः आदि पुरूष आदिस; अंतिः पावै शिवखेत, पे. वि. गा.४९. पे. २. भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुङ्गसूरि, सं., पद्य, (पृ. ३आ-६आ), आदिः भक्तामरप्रणतमौलिमणि; अंतिः समुपैति लक्ष्मी, पे.वि. श्लो. ४४. मूल-ग्रं. ७५१. प्र. पु. बार्थ- ग्रं. १७५१, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, ( २६ १२, ९x४६-५१). जम्बू अध्ययन प्रकीर्णक, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं० रायगिहे; अंतिः से आराहगा भणिया. जम्बू अध्ययन प्रकीर्णक-टबार्थ मागु, गद्य, आदि वर्द्धमानमानम्य अंतिः ते आराधक कह्या. . ४४२६." जम्बू अध्ययन सह टबार्थ, संपूर्ण वि. १८९१ श्रेष्ठ, पृ. २८, जैदेना, ले. स्थल, सिंघाणा, प्र. वि. मूल- २१उद्देश प्र.पु. " ४४२७. द्रव्यगुणपर्याय रास सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १८४१ श्रेष्ठ, पृ. ७३ जैदेना. ले. स्थल लींबडी, ले. मु. हस्तीसागर ( गुरु मु. विमलसागर), प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र. वि. मूल-गा. ३८४, दाळ - १७. पू. वि. कलश का बालावबोध नहीं लिखा है.. प्र.ले. श्लो. (४७५) यादशं पुस्तकं दृष्ट्वा (२६.५x१२.५, ३-४x२६-३१). " द्रव्यगुणपर्याय रास, उपा. यशोविजयजी गणि, मागु., पद्य, वि. १७२९, आदिः श्रीगुरु जितविजय; अंति: जसविजय बुध जयकरी, द्रव्यगुणपर्याय रास- बालावबोध, मागु., गद्य, आदिः इह मुचित; अंतिः कल्याणी सङ्घ छइ. ४४२८. वीसस्थानकतप स्तवन, संपूर्ण वि. १८६५, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना. ले. स्थल देवसूरी, ले. मु. जीवविजय, प्र. वि. डाळ -६, (२४.५X११.५, १३४३८). २० स्थानकतप स्तवन, मु. भाणविजय, मागु., पद्य, आदिः प्रणमु प्रेमे भारती; अंतिः ते प्राणी सुख घणो. For Private And Personal Use Only ४४२९. नेमजिन २४चौक नेमराजुल बारमासो, संपूर्ण वि. १८६२, श्रेष्ठ, पृ. १०, पे. २, जैदेना, ले. मु. जीवविजय (गुरु गणि मानविजय, तपागच्छ), (२५४१२, १३४३२-३४) Page #515 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ४६१ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची पे. १. नेमिजिन चौवीसचोक, मु. अमृतविजय, मागु., पद्य, वि. १८३९, (पृ. १अ-७आ), आदिः सरसति चरणाम्बुज नमी; अंतिः अमृतविजये गुण गाया.,पे.वि. ढाळ-२४. पे. २. नेमराजिमती बारमास, मु. अमृतविजय, मागु., पद्य, (पृ. ८अ-१०अ), आदिः यदुपति जान लेइ आव्या; अंतिः नित भणज्यो लाल., पे.वि. ढाळ-१२. ४४३०." रामयसोरसायन चौपाई व श्लोक सङ्ग्रह, संपूर्ण, वि. १८८४, श्रेष्ठ, पृ. ७३, पे. २, जैदेना., ले.स्थल. सिंघाणा, ले. साध्वीजी सुन्दर आर्यिका, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२६.५४१२, १९४४१-५५). पे. १. रामयशोरसायन चौपाई, आ. गुणसागरसूरि, मागु., पद्य, वि. १६८०, (पृ. १अ-७३अ), आदिः मुनिसुव्रत स्वामीजी; ___ अंतिः सदा हरि बधामणी., पे.वि. अधिकार-४; प्र.पु. ग्रं.४८००. पे. २. श्लोक सङ्ग्रह जैनधार्मिक, सं.प्रा., पद्य, (पृ. ७३अ), आदिः #; अंतिः#., पे.वि. श्लो.२. ४४३१. ढालसागर, संपूर्ण, वि. १८९०, श्रेष्ठ, पृ. ४४, जैदेना.,प्र.वि. ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित, (२६.५४१२, १५४४२-४८). ढालसागर, ऋ. चोथमल, मागु., पद्य, वि. १८५६, आदिः समरु ऋषभ जिनेसरु; अंतिः मिच्छामि दुक्कडं मोय. ४४३२. बोल सङ्ग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १४, जैदेना., पू.वि. अन्त के पत्र नहीं हैं., (२६.५४१२, १४-२०७५०). ५८ बोल सङ्ग्रह, सं.,प्रा.,मागु., गद्य, आदिः एक प्रकार आविरत; अंति:४४३३." इन्द्रियपराजयशतक सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९२३, श्रेष्ठ, पृ. १३, जैदेना., ले. नागरदास, प्र.वि. मूल-गा.१०२., (२६.५४१२, ५४३३-३६). इन्द्रियपराजयशतक, प्रा., पद्य, आदिः सुच्चिअ सूरो सो चेव; अंतिः संवेग रसायणं निच्चं. इन्द्रियपराजयशतक-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः तेहिज सूर तेहिज; अंतिः संवेग रसायन नित्यं. ४४३४." बन्धसामित्व यन्त्र, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, जैदेना., प्र.वि. *पंक्ति अक्षर अनियमित है., टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२७४१२४). बन्धस्वामित्व नव्य कर्मग्रन्थ-यन्त्र, मु. सुमतिवर्द्धन, प्रा., यंत्र, आदि:#; अंतिः#. ४४३५. कायस्थिति बोल, अपूर्ण, वि. १९५२, श्रेष्ठ, पृ. ७-२(१ से २)=५, जैदेना., ले.स्थल. पाली, ले. मेदपाटी अमरदत्त ब्राह्मण, प्र.ले.पु. विस्तृत, (२६.५४१२.५, १२४३२-४४). कायस्थिति बोल, मागु., गद्य, आदि:-; अंतिः काय० साइयापज. ४४३६. कर्मविपाक सूचामात्र यन्त्र, संपूर्ण, वि. १९३०, श्रेष्ठ, पृ. ११, जैदेना., ले.स्थल. पाली, ले. पोखरदत्त ब्राह्मण, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. प्र.पु. ग्रं. ५००. *अक्षर अनियमित है., (२७.५४१२, १७४०). कर्मविपाक नव्य कर्मग्रन्थ-यन्त्र, मु. सुमतिवर्द्धन, प्रा., यंत्र, आदि:#; अंतिः#. ४४३७." चौवीसदण्डक- ३० द्वार, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १८, जैदेना., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-कुछ पत्र, (२६.५४१२, २०-२१४३९). २४ दण्डक ३० द्वार विचार, मागु., गद्य, आदिः दण्डक लेश्या ठित्ती; अंतिः सङ्ख्यातमो भाग. ४४३८. उपासकदशाङ्ग सूत्र सह टबार्थ श्रुतस्कन्ध-१, प्रतिपूर्ण, वि. १७७६, श्रेष्ठ, पृ. ५८, जैदेना., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-कुछ पत्र, (२६४१२, ६-७४३३-३४). उपासकदशाङ्गसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदिः तेणं० चंपा नामं नयरी; अंतिः उपासकदशाङ्गसूत्र-टबार्थ, मु. हर्षवल्लभ , मागु., गद्य, वि. १६९३, आदिः तेणे काले चउथा; अंतिः४४३९. चर्चा सङ्ग्रह, संपूर्ण, वि. १९०३, श्रेष्ठ, पृ. ५१, देना., ले.स्थल. लसकर, ले. सोभाचन्द, (२५४१२.५, १५-२१४३४-४४). भिखमपन्थी मतखण्डन चर्चा, प्रा.,मागु., गद्य, आदिः केइ एक क्रिया वादी; अंतिः प्रतिबोधणे वास्ते. For Private And Personal Use Only Page #516 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य भाग - १ ४६२ ४४४२. अनुत्तरोववाईदशाङ्ग सूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८२८, श्रेष्ठ, पृ. ११, जैदेना., ले.स्थल. मांडवीबंदर, ले. ऋ. लालजी, प्र.वि. मूल-ग्रं. १९२, अध्याय-३३; प्र.पु. मूल-ग्रं. २२५. प्र.पु. टबार्थ-ग्रं. ३००., (२६.५४११.५, ६-७४४४-४५). अनुत्तरौपपातिकदशाङ्गसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदिः तेणं कालेणं० नवमस्स; अंतिः जहा धम्मकहा णेयव्वा. अनुत्तरौपपातिकदशाङ्गसूत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः ते काल चउथाआराने; अंतिः परि तिमज जाणिवा. ४४४३. कयवन्ना रास, संपूर्ण, वि. १७६६, श्रेष्ठ, पृ. १७, जैदेना., ले.स्थल. सावोरग्राम, ले. मु. आसकर्ण, प्र.वि. गा.५५५, ढाळ ३१, (२६४११.५, १६-१८४४३-४९). कयवन्ना चौपाई, मु. जयतसी, मागु., पद्य, वि. १७२१, आदिः स्वस्ति श्रीसुख; अंतिः धरम करण मन उलसै छै. ४४४४." सूयगडाङ्ग सूत्र सह टबार्थ श्रुतस्कन्ध-२, प्रतिपूर्ण, वि. १८३८, श्रेष्ठ, पृ. १००, जैदेना., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२७४११.५, ४-७४३१-४१). सूत्रकृताङ्गसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदि:-: अंतिः विहरति त्ति बेमि. सूत्रकृताङ्गसूत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, आदि:-: अंतिः विहरवा इच्छउ छउ. ४४४६. सन्थारापयन्नासूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७९१, श्रेष्ठ, प्र. ६, जैदेना., ले.स्थल. रूपनगर, ले. सुगण, प्र.वि. मूल गा.१२१., संशोधित, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२५४११, ९x४५-५०). संस्तारक प्रकीर्णक, गणि वीरभद्र, प्रा., पद्य, आदिः काऊण नमुक्कारं जिणवर; अंतिः सङ्कमणं सया दिन्तु. संस्तारक प्रकीर्णक-बालावबोध, मागु., गद्य, आदिः इहां सघलाइ शास्त्रना; अंतिः अमरपद० प्रीतिदान देउ. ४४४७." नन्दीसूत्र, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २४, जैदेना., प्र.वि. संशोधित, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., (२४.५४१२, ११ १२४३३-३४). नन्दीसूत्र, आ. देववाचक, प्रा., प+ग, आदिः जयइ जगजीवजोणीवियाणओ; अंतिः४४४९. अञ्जनासती रास, अपूर्ण, वि. १९१८, श्रेष्ठ, पृ. २१-३(४,६,१०)=१८, जैदेना., प्र.वि. गा.१५५, (२५४१२, १४४२६-२८). अंजनासुन्दरी रास, मागु., पद्य, आदिः पहिलु कडाइ इहो; अंतिः माततो सतीने सिरो. ४४५०. नरपतिजयचर्या, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, जैदेना., पू.वि. प्रारंभ के पत्र हैं. अध्याय-२ की गा.१०८ तक के है., (२४.५४१२, १२४३६-४५). नरपतिजयचर्या, नरपति, सं., प+ग, वि. १२३२, आदिः अव्यक्तमव्ययं शान्तं; अंति:४४५२." भयहर स्तोत्र व अजितशान्ति स्तव, संपूर्ण, वि. १९०१, श्रेष्ठ, पृ. ७, पे. २, जैदेना., (२४४१२, ९-११४२६-३०). पे. १. नमिऊण स्तोत्र, आ. मानतुङ्गसूरि, प्रा., पद्य, (पृ. १अ-२आ), आदि: नमिऊण पणयसुरगण; अंतिः नासइ तस्स दूरेण., पे.वि. गा.२५. पे. २.पे. नाम. अजितशान्ति स्तव, पृ. ०२आ-०७आ अजितशान्ति स्तव , आ. नन्दिषेणसूरि, प्रा., पद्य, आदिः अजियं जिय सव्वभयं; अंतिः जिणवयणे आयरं कुणह., पे.वि. गा.४३. ४४५३." अञ्जनासती रास, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १६, जैदेना., पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., (२४४११.५, १२-१६४२९ ३७). अंजनासुन्दरी रास, मु. पुण्यसागर, मागु., पद्य, वि. १६८९, आदिः गणधर गौतम प्रमुख; अंतिः४४५५.” अणुत्तरउवाई सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९७२, श्रेष्ठ, पृ. ३०, जैदेना.,ले. मु. वीरभाण-शिष्य (गुरु मु. वीरभाण), प्र.वि. मूल-ग्रं. १९२, अध्याय-३३. लोगीरामसाधु की छावणी में लिखी., टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२५४१०.५, ४४३३). अनुत्तरौपपातिकदशाङ्गसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदिः तेणं कालेणं० नवमस्स; अंतिः कहाणं तहा णेयव्वं. अनुत्तरौपपातिकदशाङ्गसूत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः तेणं का० चोथो आरो; अंतिः तिमही ज जाणवो. For Private And Personal Use Only Page #517 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org: ४६३ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ४४५६. चेतन चरित्र, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, जैदेना., प्र. वि. गा.२५०, ढाळ- १४, (२५.५x११.५, १८×३९-४३). चेतन चरित्र. मु. भावसिङ्घ, प्राहिं, पद्य, आदि प्रथम जपत जिनराज अंतिः सिद्धगति जाइ प्राणी. ४४६०. आषाढभूति चौपाई, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदेना., प्र. वि. गा. २१८, ग्रं. ३५१, ढाळ - १६, ( २६११.५, १८x४२ ४९). 1 आषाढाभूति चीपाई मु. ज्ञानसागर मागु, पद्य वि. १७२४, आदि: सकल ऋद्धि समृद्धिकर अंतिः होज्यो इम कल्याणो रे. ४४६१. आनन्द श्रावक सन्धि, संपूर्ण, वि. १७२०, श्रेष्ठ, पृ. ९, जैदेना., प्र. वि. गा. २५२, ढाळ - १५, (२५.५११, १५४४७-५२). आनन्दश्रावक सन्धि, पाठक श्रीसार, मागु., पद्य, वि. १६८४, आदिः वर्द्धमान जिनवर चरण; अंतिः पभणइ मुनि श्रीसार. ४४६२. शालिभद्र चौपाई, संपूर्ण वि. १८२९, श्रेष्ठ, पृ. १७, जैदेना, प्र. वि. डाळ- २९, (२५४११.५, १६-१८४४१). शालिभद्र चौपाई, मु. मतिसार मागु पद्य वि. १६७८ आदि सासननायक समरिये अंतिः मनवंछित फल लहिरयैजी. ४४६३. शम्बप्रजुन चौपाई ( शाम्बप्रद्युम्न), संपूर्ण, वि. १७८६, श्रेष्ठ, पृ. ३७, जैदेना., ले. स्थल. जीहानावादनगर, ले. ऋ. ऋषिराज, प्र. वि. गा. १०००, ग्रं. ८००, दाळ-२२ (२६४११.५, १०x३०-३४). साम्बप्रद्युम्न प्रबन्ध उपा. समयसुन्दर गणि, मागु, पद्य वि. १६५९ आदिः श्रीनेमीसर गुणनिलउ: अंतिः सङ्घ सुजस जगीस ए. . (+) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४४६५." उत्तराध्ययनसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८२९, श्रेष्ठ, पृ. १३४, जैदेना., ले. स्थल. तोस्यामनगर, ले. लक्षजी, प्र. वि. मूल-३६अध्ययन. टबार्थ लेखनसंवत् - १८३२., पदच्छेद सूचक लकीरें टिप्पण युक्त विशेष पाठ, ( २६११, ६x४२ - ५० ). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा. प+ग, आदिः सञ्जोगाविप्यमुक्कस्स अंतिः सम्मए ति बेगि उत्तराध्ययन सूत्र - टबार्थ *, मागु., गद्य, आदि: (१) उत्तराध्ययननो ए अर्थ (२) बाह्य अभ्यन्तर संजोग; अंतिः छं. तुज ४४६६. भववैराग्यशतक व गौतम कुलक सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८५०, श्रेष्ठ, पृ. ६, पे. २, जैदेना., (२८x१२, ७-९५७-६०). पे. १. पे. नाम. भववैराग्यशतक सह टबार्थ, पृ. १अ-५आ वैराग्यशतक, प्रा., पद्य, आदि: संसारंमि असारे नत्थि; अंतिः लहइ जिउ सासयं ठाणं. पे.वि. ; वैराग्यशतक- टवार्थ, मागु, गद्य, आदि: संसार असारमाहि नथी अंतिः जीव शाश्वतुं ठाम, पे. वि. मूल-गा. १०४. पे. २. पे नाम, गौतम कुलक सह टवार्थ, पृ. ५आ-६आ गीतम कुलक, प्रा., पद्य, आदिः लुद्धा नरा अत्थपरा: अंतिः सुहं लहन्ति. गीतम कुलक-टबार्थ, मागु, गद्य, आदि लोभिया मनुष्य अर्थने अंति जीव सुख पामइ पे.वि. मूल-गा. २० बालावबोध टबार्थ पद्धति से लिखा गया है. . For Private And Personal Use Only प्रते हुं ४४६७. शालिभद्र चौपाई, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १८, जैदेना., प्र. वि. ढाळ - २९, (२८x१२, १५४४३). शालिभद्र चौपाई, मु. मतिसार, मागु, पद्य वि. १६७८ आदि सासणनायक समरीयइ अंतिः फल लहिस्यइजी. ४४६९. गुणावली कथा, आषाढभूति चौपाई, कृष्णबलभद्र व नेमराजुल सज्झाय, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. ८ पे ४. जैदेना., ( २६११, २० - २१X५२ - ५८ ) . पे. १. गुणावलि रास, मु. ज्ञानमेरु, मागु, पद्य, वि. १६७६ (पृ. १४-४अ), आदि: प्रणमुं चउवी से अंति: मनवछित पावन्त, पे.वि. ढाळ-१६. पे. २. आषाढाभूति चौपाई, मु. ज्ञानसागर, मागु पद्य वि. १७२४, (पृ. ४अ- ८अ ), आदि सकल ऋद्धि समृद्धिकर " . अंतिः होज्यो इम कल्याणो रे, पे. वि. परिमाण - गा. ३५१. गा. २१८, ग्रं. ३५१, ढाळ - १६. Page #518 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य भाग - १ ४६४ पे. ३. कृष्णबलराम सज्झाय, मागु., पद्य, (पृ. ८अ-८आ), आदिः एस्युं आज अवोलणो; अंतिः जस वर्द्धमान रे., पे.वि. गा.२०. पे. ४. नेमराजिमती सज्झाय, मागु., पद्य, (पृ. ८आ), आदिः समुद्रविजय को लाडलो; अंतिः मुक्ति मइ रे., पे.वि. गा.८. ४४७१." भक्तामर स्तोत्र सह टबार्थ व कथा, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १४, जैदेना.,प्र.वि. मूल-श्लो.४४. कथा अपूर्ण श्लो.४१ तक ही है।, पंचपाठ, (२५.५४११.५, २-५४२२-२७). भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुङ्गसूरि, सं., पद्य, (संपूर्ण), आदिः भक्तामरप्रणतमौलिमणि; अंति: समुपैति लक्ष्मी. भक्तामर स्तोत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, (संपूर्ण), आदिः सेवक अमर देवता नमता; अंतिः तथा श्रीसोभा होइ. भक्तामर स्तोत्र-कथा, मागु., गद्य, (अपूर्ण), आदिः श्रीमहावीर प्रणमी; अंति:४४७३. शालिभद्र चौपाई, संपूर्ण, वि. १८४१, मध्यम, पृ. २४, जैदेना., ले.स्थल. सोजत, ले. मु. दानविजय, प्र.वि. ढाळ-२९, (२५.५४११, ११४४१-४८). शालिभद्र चौपाई, मु. मतिसार, मागु., पद्य, वि. १६७८, आदिः सासननायक समरियै; अंतिः फल लहिस्यइजी. ४४७४. चौवीसदण्डक २९ द्वार मोहमदनदासी श्लोक, संपूर्ण, वि. १६८५, जीर्ण, पृ. ७, पे. २, जैदेना., (२४.५४१०.५, १४ १५४५१-५३). पे. १.२४ दण्डक २९ बोल, मागु., गद्य, (पृ. १-७), आदिः प्रथम नामद्वार बीजु; अंतिः अनंत गुणे अधिक जाणवा., पे.वि. ग्रं.३००. पे. २. अजैन सुभाषित *, सं., पद्य, (पृ. ७आ), आदिः#; अंतिः#. ४४७५. शालिभद्र चौपाई व औषध सङ्ग्रह, पूर्ण, वि. १७८२, श्रेष्ठ, पृ. २४-१(१)=२३, पे. २, जैदेना., ले.स्थल. पीपलदाग्राम, ले. मु. गङ्गविमल (गुरु मु. मुक्तिविमल), प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र.ले.श्लो. (४७५) यादशं पुस्तकं दृष्ट्वा , (२५४११, १२ १३४३३-३५). पे. १. शालिभद्र चौपाई, मु. मतिसार, मागु., पद्य, वि. १६७८, (पृ. -२-२४, पूर्ण), आदि:-; अंतिः फल लहिस्यइजी., ___ पे.वि. प्रथम पत्र नहीं है. गा.१ से १० नहीं है.. पे. २. औषध सङ्ग्रह', मागु., गद्य, (पृ. २४आ, संपूर्ण), आदि: #; अंतिः#. ४४७६." क्षेत्रसमास सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ११, जैदेना., ले.स्थल. सारंगपुर, प्र.वि. संक्षेप-गा.११३., पदच्छेद सूचक लकीरें-मूल पाठ, (२५.५४११, ६४३६-४०). बृहत्क्षेत्रसमास-सक्षेप जम्बूद्वीप प्रकरण , आ. जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण, संक्षेप, प्रा., पद्य, आदिः नमिऊणसजलजलहर; अंतिः लोगो चउदसरज्जुओ. बृहत्क्षेत्रसमास-सक्षेप जम्बूद्वीप प्रकरण का टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः नमस्कार करीनि पाणी; अंतिः चउद राजनो लोक जाणवो. ४४७७. धर्मबावनी व गाथा, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, पे. २, जैदेना., (२५४१०.५, १५-१७४३८-४३). पे. १. धर्मबावनी, मु. धर्मवर्धन, प्राहिं., पद्य, वि. १७२५, (पृ. १-५), आदिः ॐकार उदार अगम अपार; अंतिः नाम धर्मबावनी., पे.वि. गा.५७पद. पे. २. जैन गाथा *, मागु., पद्य, (पृ. ५आ), आदि:-; अंति:४४७८. चौवीसदण्डक ओगणतीसद्वार विचार, संपूर्ण, वि. १६८६, श्रेष्ठ, पृ. १२, जैदेना., ले.स्थल. आगराख्यपुर, ले. मु. कोका, प्र.वि. ग्रं. ३००. प्रथम दोनो पत्र चिपके हुए है., (२२.५४१०.५, १३-१४४२९-३२). २४ दण्डक २९ बोल, मागु., गद्य, आदिः प्रथम नामद्वार बीजु; अंतिः अनंत गुणे अधिक जाणवा. ४४७९. नाममाला धनञ्जय व अनेकार्थनाममाला, अपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, पे. २, जैदेना., पू.वि. अन्त के पत्र नहीं हैं., (२५.५४१०.५, १४-१५४५०-५५). For Private And Personal Use Only Page #519 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ४६५ www.kobatirth.org: कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची पे. १. नाममाला, जैनकवि धनञ्जय, सं., पद्य, (पृ. १-६आ, संपूर्ण), आदि: तन्नमामि परं; अंतिः शब्दाः समुत्पीडिताः., पे.वि. श्लो. २०४. पे. २. अनेकार्थनाममाला, जैनकवि धनञ्जय, सं., पद्य, (पृ. ६आ, अपूर्ण), आदि गम्भीरं रुचिरं चित्र अंति:-, पे. वि. अंत के पत्र नहीं है, श्लो १२ अपूर्ण तक है. ४४८०. बृहच्छान्ति, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना., (२५x१०, ८- ९x२७-२८). बृहत्शान्ति स्तोत्र- तपागच्छीय, सं., गद्य, आदि भो भो भव्याः श्रृणुत; अंति जैन जयति शासनम्. ४४८१. उत्तराध्ययनसूत्र, अपूर्ण, वि. १८वी श्रेष्ठ, पृ. १८, जैदेना, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. अध्याय- १६ के प्रारंभ का भाग तक है., ( २४.५x११, १५X३४-४३). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा. प+ग, आदिः सञ्जोगाविष्यमुक्कस्स; अंति: ४४८२. चतुर्मासत्रय व्याख्यान, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १४ जैदेना. (२४.५४१०५, १०-१२४३६-४७). , चातुर्मासिकत्रय व्याख्यान, पाठक क्षमाकल्याण, सं., गद्य अंतिः सर्वेष्टार्थसिद्धिः " Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४४८३. जम्बू अध्ययन, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, जैदेना., पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., (२५x११, ५×३७). जम्बूअध्ययन प्रकीर्णक, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेनं० रायगिहे अंति: . " ४४८५. श्राद्धप्रतिक्रमणसूत्रसङ्ग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ११, जैदेना, प्र. वि. प्रत्येक सूत्र के लघु-गुरु सर्व अक्षरों की सङ्ख्या दी गयी है ।, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., ( २६११, ११४३७-४२). आवक प्रतिक्रमणसूत्र संबद्ध प्रा. मागु, प+ग, आदि नमो अरिहं० सव्वसाहूण; अंति: ४४८६. शीयल रास, संपूर्ण वि. १७१८, श्रेष्ठ, पृ. १०, जैदेना. ले. स्थल सन्मानपुर प्र. वि. गा. ७४ ग्रं. २५१ (२६४१०.५, १२४३१-३७). शील रास, आ. विजयदेवसूरि, मागु., पद्य, आदिः पहिलुं प्रणाम करूं; अंतिः श्रीविजयदेवसूरि. ४४८७. अमरकुमार रास, संपूर्ण, वि. १७३९, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदेना., ले. स्थल. नवलखी, ले. पं. दानचन्द्र, प्र. वि. ढाळ - १८, (२६.५४११.५, १९-२०x६२-६४ ). अमरकुमार रास, गणि लक्ष्मीवल्लभ, मागु., पद्य, आदिः आदीसर प्रथम जिन; अंतिः दान भणी मति दीपइ. ४४८९. चेतन वृत्र, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १०, जैदेना. प्र. वि. गा.२९३ (२६४११.५, १४-१६४४२-४७). 1 चेतन वृतान्त, श्रा. भगवतीदास मागु, पद्य, वि. १७३६, आदि जिनचरण प्रणाम करि अंति: भगवतीदास० कही अनादि.. ४४९०. स्नात्रपूजा, स्तुति सङ्ग्रह, नमस्कार श्लोक, संपूर्ण, वि. १७८१, श्रेष्ठ, पृ. ५, पे. ५, जैदेना., ले. स्थल. पोसालबडीताजपुरी, ले. गणि रामसागर, (२७११, १३ - १६३९-४५). पे. १. स्नात्रपूजा सङ्ग्रह मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, सं., प्रा., मागु प+ग, (पृ. १अ ५अ ), आदि (१) मुक्तालङ्कार विकार (२) प्रथम उपगरण मेलवा; अंतिः यथाशक्ति भक्ति करवी. पे. २. पद्मप्रभजिन स्तुति, मु. प्रीतिविजय, मागु, पद्य, (पृ. ५अ), आदि: जम्बू भरतपुरमा पद्म: अंतिः कहइ देयो मुज मनरङ्ग, पे. वि. गा. ४. पे. ३. नेमिजिन स्तुति, मु. प्रीतिविजय, मागु., पद्य, (पृ. ५अ - ५आ), आदिः गिरिनारि विभूषण निर; अंतिः सुख सम्पद में पाई. पं.वि. गा.४. पे. ४. अनागतचौवीसजिन नमस्कार, मु. विनितविजय, मागु., पद्य, (पृ. ५आ), आदिः पदमनाभि जिन प्रणमीइं; अंतिः नीत नमइ निसदीस., पे.वि. गा.२. पे. ५. जैन गाथा *, मागु., पद्य, (पृ. ५आ), आदि:-; अंतिः (+) ४४९१. कल्पसूत्र सह टबार्थ- व्याख्यान १ से ७, प्रतिपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १५३, जैदेना., प्र. वि. टीका से उद्धृत For Private And Personal Use Only Page #520 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य भाग - १ ४६६ प्रसंगोपयुक्त संस्कृत कथाएँ और उसका टबार्थ भी लिखा है., संशोधित, पू.वि. ऋषभचरित्र तक है., (२५.५४११, ६४४३-४५). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदिः णमो अरिहन्ताणं० पढम; अंति: कल्पसूत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः अरिहन्तनइ माहरो; अंतिः४४९३. अन्तसमाधि, संपूर्ण, वि. १९१८, श्रेष्ठ, पृ. ७, जैदेना., ले.स्थल. अमसुनग्राम, ले. ऋ. नेणसुख (गुरु ऋ. ख्यालीराम), प्र.ले.पु. मध्यम, (२६४१२, १८४४१-४५). अन्तसमाधि, प्राहिं., गद्य, आदिः हे भव्य तुं सुण; अंतिः महिमा वचन अगोचर है. ४४९५. पट्टावली, संपूर्ण, वि. १८९९, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना., (२५.५४१२.५, १४-१६४३३). पट्टावली तपागच्छीय, मागु., पद्य, आदिः श्रीवर्द्धमान; अंतिः (१)श्रीविजयधर्मसूरि (२)गुरु परम्परा वखाणवी. ४४९६. कल्पसूत्र सह बालावबोध- पट्टावली, प्रतिपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १३, जैदेना., प्र.वि. प्रथम दो पत्र में टबार्थ भी लिखा है., पू.वि. स्थविरावली मात्र., (२४.५४१२, २०४४४-४६). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि:-; अंति: कल्पसूत्र-बालावबोध*, मागु.,राज., गद्य, आदि:-; अंति:४४९७. देवसेणा, चन्दनबाला चौपाई, आषाढभूति ढालीया, संपूर्ण, वि. १९४७, श्रेष्ठ, पृ. ११, पे. ४, जैदेना., ले.स्थल. देवल्या, ले. मु. धनराज, (२४.५४१२, १८४३६-४०). पे. १. देवसेना चौपाई, मु. खुशालचन्द्र, मागु., पद्य, वि. १८९८, (पृ. १अ-४आ), आदिः दान शील तप भावना; अंतिः ___भाखी० गुणगाया., पे.वि. ढाळ-९. पे. २. चन्दनबाला चौपाई, मु. रतनचन्द, मागु., पद्य, (पृ. ४आ-७आ), आदि: फणीमणीमण्डित निलतन; अंतिः अखण्ड सुख निरखे रे., पे.वि. ढाळ-१४. पे. ३. आषाढाभूति ढालिया, मु. रतनचन्द, मागु., पद्य, वि. १८८३, (पृ. ७आ-९आ), आदि: गौतम गुणधर गुणनीलो; अंतिः मोहनी पासी रे लोय., पे.वि. ढाळ-९. पे. ४. आषाढाभूति पंचढालिया, ऋ. रायचन्द, मागु., पद्य, वि. १८३६, (पृ. ९आ-११आ), आदिः दरसण परिसोह बावीसमो; अंतिः रायचन्द करि उपगार हो., पे.वि. ढाळ-५. ४४९८. शालिभद्र चौपाई, संपूर्ण, वि. १८१८, श्रेष्ठ, पृ. २७, जैदेना., ले.स्थल. सेवरीया, ले. मु. रूपचन्द, प्र.वि. ढाळ-२९, (२५x१२, १३४२९-३२). शालिभद्र चौपाई, मु. मतिसार, मागु., पद्य, वि. १६७८, आदिः सासननायक समरियै; अंति: मनवञ्छित सुख पावेजी. ४४९९." अनुत्तरोववाईदशाङ्ग सूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २०, जैदेना., प्र.वि. संशोधित, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., (२७.५४१२.५, ५४१९-२४). अनुत्तरौपपातिकदशाङ्गसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदिः तेणं कालेणं० नवमस्स; अंति:४५००. पुद्गल गीता, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना., प्र.वि. गा.१०८, (२६.५४१२.५, १३-१४४४०). पुदगल गीता, मु. चिदानन्द, प्राहिं., पद्य, आदिः सन्तो देखिये बे परगट; अंतिः चिदानन्द सुखकारी. ४५०२. रात्रिभोजन चौपाई, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १२-५(१ से ५)=७, जैदेना., (२६.५४१२.५, १७-१८४३५-३६). रात्रिभोजन चौपाई, उपा. पद्म, मागु., पद्य, वि. १७२२, आदि:-; अंतिः सकल चिर नन्देजी. ४५०३. वीरजिन विज्ञप्ति स्तवन व जिनप्रतिमा स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १३, पे. २, जैदेना., (२६४१३, ११-१२४२६ ३२). पे. १. महावीरजिन स्तवन-स्थापनानिक्षेपप्रमाण पञ्चाङ्गीगर्भित, उपा. यशोविजयजी गणि, मागु., पद्य, वि. १७३३, (पृ. १अ-११आ), आदिः प्रणमी श्रीगुरुना; अंतिः आणा सिर वहेस्येजी., पे.वि. ग्रं.२२८, ढाळ-७. For Private And Personal Use Only Page #521 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ४६७ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची पे. २. जिनप्रतिमा स्तवन, मु. मानविजय, मागु, पद्य, (पृ. ११आ-१३अ), आदि: जिन जिन प्रतिमा वन्द : अंतिः नामे सुगुरुने सीस, पै. वि. गा.२१, डाळ २. ४५०४. चर्चा स्वाध्याय, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १३. जैदेना. प्र. वि. गा.१३६. (२७.५४१२.५, ८-९५३६-३७). , " चर्चा सज्झाय-मूर्तिपूजानिरसन, ऋ. तिलोक, प्राहिं., पद्य, वि. १९३२, आदिः समगत समगत सब कहे; अंतिः भव लहीये भवपार ए. www.kobatirth.org: ४५०५. नमिराय कथा व हरकेसी चौपाई, संपूर्ण, वि. १९७१, श्रेष्ठ, पृ. १२, पे. २, जैदेना., ले. स्थल. लिसाडग्राम, (२७.५X१२.५, १४-१६४३६-४१ ) . पे. १. नमिराजर्षि कथा, मागु., पद्य, (पृ. १आ-७आ), आदि: हिवे नमीरायनी वारता; अंतिः धन नमीराय ऋषी सरुधे., पे.वि. ढाळ - १०. पे. २. हरिकेशीमुनि चौपाई, ऋ रायचन्द, मागु, पद्य वि. १८२८ (पृ. ७आ-१२अ ) आदि अरिहन्त सिद्धने; अंति मारग मुन दाखियो रे, पे.वि. ढाळ - १०. . Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४५०६. जम्बूअध्ययन सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९३४ श्रेष्ठ, पृ. ३९, जैदेना., ले. स्थल. नरौतासगढ़, ले. आत्माराम,. २१उद्देश. प्र. पु. सर्वग्रं. २००० (२७४१२.५. ८४३६-४४). जम्बू अध्ययन प्रकीर्णक, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं० रायगिहे अंति से आराहगा भणिया, जम्बू अध्ययन प्रकीर्णक-टबार्थ, मागु., गद्य, आदि: (१) ते काल चउथो आरो (२) वर्द्धमानमानम्य; अंतिः ते आराधक कह्या. , ४५०७. चौवीसदण्डक, तेवीसपदवी विचार, कुलकोडी व यन्त्र सङ्ग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १० पे ४ जैदेना., (२४.५४१२.५. १९-२०x४०-४२). पे. १. २४ दण्डक २६ द्वार विचार, मागु., गद्य, (पृ. १-१०), आदि: प्रथम २४ दण्डकनाम; अंतिः जोग मन टल्या. ' पे. २. २३ पदवी विचार मागु, गद्य (पृ. १०अ १०आ), आदि तेवीस पदवी पणवणा अंति: मण्डलीक पदवी पावे. पे. ३. कुलकोटि विचार, मागु., गद्य, (पृ. १०आ), आदिः नारकीनी २५ लाख; अंतिः मनुष्यनी १२ लाख कही. पे. ४. जैन यन्त्रसङ्ग्रह * मागु, यंत्र, (पृ. १०आ), आदि: #; अंतिः #. ४५०८. अध्यात्म गीता, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १७, जैदेना. प्र. वि. गा.२४२. ग्रं. ३३०, बाळ-९ (२६१३, ११x२४-३०). . अध्यात्मगीता उपा. विनयविजय मागु पद्य वि. १७उ, आदि. इष्टदेव प्रणमी करी अंतिः जोतसुं जोत मिलाय. J " " प्र. वि. मूल ४५०९. मयणरेहा रास, संपूर्ण वि. १९५३, श्रेष्ठ, पृ. ५. जैदेना. ले. स्थल नारनील, ले. मु. मङ्गलसेन, प्र.ले.पु. मध्यम. प्र. वि. गा. १८८, ( २६४१२.५. २०-२१४४२). मदनरेखा रास, मागु., पद्य, आदि: जूआ मांस दारु तणी; अंतिः हीर सेवग चितलायो रे. ४५१०. अठारसहस शीलाङ्गरथ व यन्त्र, संपूर्ण वि. १९४१ श्रेष्ठ, पृ. १०, पे. २, जैदेना. ले. स्थल. पाली ले अमरदत्त . ब्राह्मण, पठ. श्रा. तेजमाल पोरवाल, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. *पंक्ति अक्षर अनियमित है., ( २७ १२.५x). पे. १. १८ हजार शीलाङ्गरथ, मागु, पद्य, (पृ. १-१०अ ), आदि जे नो करन्ति मणसा अंतिः अद्वाइयं दसहा. पे. २.१८ हजार शीलाङ्गरथ-यन्त्र मागु. कोष्टक, (पृ. १-१०अ ) आदि-: अंति: (+) ४५११. श्रीपाल रास सह टबार्थ - खण्ड ४, प्रतिपूर्ण, वि. १८७२, श्रेष्ठ, पृ. ५७, जैदेना., ले. मु. हर्षसागर, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, पू.वि. मात्र चौथा खण्ड है., (२७x१२.५-१३, ५-९×२८). श्रीपाल रास, उपा. विनयविजय उपा. यशोविजयजी गणि, मागु., पद्य, वि. १७३८, आदि:-; अंतिः लहसे ज्ञान विशालाजी. For Private And Personal Use Only श्रीपाल रास-टवार्थ मागु., गद्य, आदि:-: अंतिः उत्कण्ठा सम्पूर्ण थई. ४५१२. अनुयोगद्वारसूत्र, संपूर्ण वि. १९०६, श्रेष्ठ, पृ. ८१+२ (३६,६८ ) -८३, जैदेना. ले. स्थल बिनोली, ले. ऋ. शोभाराम (गुरु Page #522 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य भाग १ - ४६८ मु. डालूराम ), प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र. वि. गा. १६०४ प्र.पु. ग्रं. २००५, पदच्छेद सूचक लकीरें, प्र.ले. श्लो. (१४१) यादर्श पुस्तकं कृत्वा ; (१४३) भग्न पृष्टि कटी ग्रीवा, ( २६.५X१२.५, ५-७४०-४५). अनुयोगद्वारसूत्र आ. रक्षितसूरि प्रा. प+ग, आदि नाणं पञ्चविह अंतिः साहू से तं नए. " " " www.kobatirth.org: ४५१३. बासठिया व चौदगुणठाणा यन्त्र, संपूर्ण, वि. १९५२, श्रेष्ठ, पृ. ५, पे. २, जैदेना., ले. स्थल. पाली, ले. अमरदत्त ब्राह्मण, प्र. वि. पंक्ति अक्षर अनियमित है (२७५१२.५४). पे. १. ६२ मार्गणा यन्त्र, प्रा. मागु., पद्य, (पृ. १आ-५अ), आदिः #; अंतिः#. पे. २. १४ गुणठाणा यन्त्र, मागु, यंत्र, (पृ. ५अ - ५आ), आदि: #; अंतिः #. ४५१४. चारगोला, सागरराय चौढालियो व तीतरतीतरी सज्झाय, संपूर्ण वि. १९५९, श्रेष्ठ, पृ. ७, पे. ३, जैदेना. ले. स्थल. वामडोली, ले. ऋ. श्रीचन्दजी (गुरु ॠ. रघुनाथ), प्र.ले.पु. मध्यम, (२७१२.५, १२-१३X२४-३१). पे. १. ४ गोला चौढालिया, मु. धनिदास, मागु, पद्य वि. १९०७ (पृ. १अ ५अ) आदि शान्तिनाथजी सोलमा; अंतिः शुभ भावकुं राख्यो, पे.वि. ढाळ - ४. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पे. २. सागरचन्द्र चौढालिया ऋ रतनचन्द, मागु पद्य वि. १८९८ (पृ. ५अ-७अ) आदि सागररायनी वारता कहुं अंतिः धर्म विरत सेवज्यो, पे.वि. ढाल -४. पे. ३. तीतरतीतरी सज्झाय, वसतीराम, मागु., पद्य, (पृ. ७अ-७आ), आदि: एक समो भई घर से अंतिः प्यारे मै बुझुंगा तो, पे.वि.गा. ४. ४५१६. चौवीसदण्डक ३० द्वार विचार, पूर्ण, वि. १९४३, श्रेष्ठ, पृ. १९ - १ (१) = १८, जैदेना., (२५.५X१२.५, ११४३३). २४ दण्डक ३० द्वार विचार मागु, गद्य (अपूर्ण) आदि-: अंति: जीव अनन्तगुणा अधिक. ४५१८. श्रीपाल रास सह टबार्थ- खण्ड ४, प्रतिपूर्ण, वि. १८६२, श्रेष्ठ, पृ. ४५, जैदेना., ले. स्थल. कोठ, ले. पं. राजविजय, पू. वि. मात्र चतुर्थ खण्ड है., ( २६४१२, ६४३३-३५) (+) " श्रीपाल रास उपा. विनयविजय उपा यशोविजयजी गणि, मागु पद्य वि. १७३८, ( प्रतिपूर्ण), आदि-: अंति: लहसे ज्ञान विशालाजी. श्रीपाल रास-टबार्थ *, मागु., गद्य, (प्रतिअपूर्ण), आदि:-; अंति: ४५१९. स्थम्भणपार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण वि. १९५१ श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदेना. प्र. वि. गा. १८ (२४४१२.५ ९५२७) " " पार्श्वजिन स्तवन-स्तम्भन, वाचक कुशललाभ, मागु., पद्य, आदिः प्रभु प्रणमुं रे; अंतिः जाणी कुसललाभ पजंपये.. " 7 ४५२२. कल्याणमन्दिर स्तोत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ९ - २ (५ से ६ ) - ७, जैदेना., प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, पृ. वि. बीच के व अंतिम पत्र नहीं हैं. गा. ४४वीं नहीं है. (२५४११.५, ४-५४३१). कल्याणमन्दिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकर, सं., पद्य, आदिः कल्याणमन्दिरमुदारमवद; अंति: कल्याणमन्दिर स्तोत्र - टवार्थ मागु, गद्य, आदि कल्याण क० मङ्गलिक: अंति: ४५२३. बासठमार्गणाद्वार विचार सह यन्त्र, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ७, पे. २, जैदेना., पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. यन्त्र में . १२ मार्गणा तक ही उपलब्ध है. (२६४१२ १२४३८-४२). पे. १.६२ मार्गणाद्वार विचार माग गद्य (पृ. १-७अ संपूर्ण), आदि (१) नमिउं अरिहन्ताई बोले (२) गई इन्द्रिय काय जोए अंतिः ज्ञान ए विना हुवइ. पे. २. पे. नाम. ६२ मार्गणा यन्त्र, पृ. ७आ-, अपूर्ण ६२ मार्गणा यन्त्र, प्रा. मागु., पद्य, आदि:-; अंति:-, पे.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. (+) ४५२४. नवतत्त्व सह टबार्थ, संपूर्ण वि. १८६१ श्रेष्ठ, पृ. १२, जैदेना, प्र. वि. मूल-गा. ४७, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, ( २५x१२. ३X२८-३१). नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि जीवाजीवा पुण्णं पावा अंतिः बोहिय इक्कणिक्काय. For Private And Personal Use Only Page #523 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ४६९ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची नवतत्त्व प्रकरण-टबार्थ, गणि शिवनिधान, मागु., गद्य, आदिः जेह नमुं जे माहिलो; अंतिः अनेक घणा ए सिद्ध. ४५२५. कल्पसूत्र सह कल्पद्रुमकलिकाटीका, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदेना., पू.वि. प्रारंभ के पत्र हैं. मूलसूत्र प्रारंभ तक है., (२६४१२, १८४४४-४७).. कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि:-; अंति: कल्पसूत्र-कल्पद्रुमकलिका टीका, गणि लक्ष्मीवल्लभ, सं., गद्य, वि. १८वी, आदिः-; अंतिः४५२६." नय अधिकारे- तत्त्वार्थसूत्र की सर्वार्थसिद्धिवचनिका टीका का नयअधिकार नामक हिस्सा- प्रथम अध्याये सह टीका, संपूर्ण, वि. १८८२, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदेना., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-कुछ पत्र, दशा वि. विवर्ण-पानी से अक्षरों की स्याही फैल गयी है, (२४.५४१२, ३०-३१४४२-५१). तत्त्वार्थाधिगमसूत्र-नयअधिकार, वाचक उमास्वाति, सं., पद्य, आदिः नैगमसङ्ग्रहव्यवहार; अंतिः समभिरूदैवम्भूता नयाः. तत्त्वार्थाधिगमसूत्र-हिस्सा नय अधिकार की-सर्वार्थसिद्धि टीका , आ. पूज्यपाद स्वामी (दि.), सं., गद्य, आदिः नैगम १ सङ्ग्रह २; अंतिः तिनि कुं जु अनन्ता. ४५२७. प्रतिक्रमण विधि सङ्ग्रह, संपूर्ण, वि. १८१३, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना., ले.स्थल. गढबोरग्राम, ले. उपा. नरसिङ्घदास(चन्द्रगच्छ), (२५४११.५, १३४३७-३९).. प्रतिक्रमणविधि सङ्ग्रह-तपागच्छीय, संबद्ध, गुज.,मागु.,प्रा., गद्य, आदिः#; अंतिः#. ४५२९. पासाकेवली व गर्भज्ञानादि शकुन सङ्ग्रह, संपूर्ण, वि. १८४९, श्रेष्ठ, पृ. ८, पे. २, देना., (२५४११.५, १३४३५-३६). पे. १. पाशाकेवली-पाशाकेवलीभाषा', आधारित, मागु., गद्य, (पृ. १-८), आदिः (१) ॐ नमो भगवति (२) १११ उत्तम थानिकलाभ; अंतिः कार्य सिद्धि हुवै. पे. २. सामुद्रिक, शकुन, निमित्तादि सङ्ग्रह', सं.,मागु., प+ग, (पृ. ८आ), आदिः#; अंतिः#. ४५३१. पासाकेवली, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १३, जैदेना., प्र.वि. ४ प्रकरण, (२४४१२, ८४२८-३०). पाशाकेवली-पाशाकेवली भाषा, आधारित, प्राहिं., गद्य, आदिः अवजद ए च्यार अक्षर; अंतिः तेरा काम सच रैगा सही. ४५३२." उपासकदशाङ्गसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८४७, जीर्ण, पृ. ७४-३(१०,३८,४७)=७१, जैदेना., ले.स्थल. देवास, प्र.वि. मूल-ग्रं. ८१२, अध्याय-१०., (२७४११.५, ५४३६-३९). उपासकदशाङ्गसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदिः तेणं० चंपा नामं नयरी; अंतिः दस अज्झयणा सममत्ताउ. उपासकदशाङ्गसूत्र-टबार्थ, मागु., पद्य, आदिः ते० कालने विषे ते०; अंति: दस अध्यन समत्तं. ४५३४. गोडीपार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ८, जैदेना., प्र.वि. ढाळ-८, (२६.५४१२, १०-११४२९-३३). पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. अनोपचन्द, मागु., पद्य, वि. १८२५, आदिः जिन वदन निवासनी श्री; अंतिः धवलधींग गौडीधणी. ४५३५. ज्ञानपञ्चमी देववन्दन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ९, जैदेना., (२५४११.५, १३४३५-४०). ज्ञानपंचमीपर्व देववन्दन, आ. लक्ष्मीसूरि, मागु., पद्य, आदिः श्रीसौभाग्यपञ्चमी; अंतिः विजयलक्ष्मी शुभ हेज. ४५३६. सामायिक लेवापारवा विधि, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना., दशा वि. विवर्ण-पानी से अक्षरों की स्याही फैल गयी है-अल्प, (२४.५४११.५, १०४३२). प्रतिक्रमणविधि , संबद्ध, प्रा.,मागु., गद्य, आदिः#; अंतिः#. ४५३७. जैनेन्द्र व्याकरण-स्यादिसन्धि, प्रतिपूर्ण, वि. १९०६, श्रेष्ठ, पृ. २१, जैदेना., प्र.वि. पंचपाठ-अंतिम कुछ पत्र, अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-प्रारंभिक पत्र, दशा वि. विवर्ण-अक्षरों की स्याही फैल गयी है, (२४.५४११.५, १२४३२). जैनेन्द्र व्याकरण, सं., गद्य, आदिः- अंति:४५३८." शीलोपदेशमाला का बालावबोध-कथा, प्रतिपूर्ण, वि. १८७५, श्रेष्ठ, पृ. १७, जैदेना., ले.स्थल. हैदराबाद, ले. पं. For Private And Personal Use Only Page #524 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य भाग १ - www.kobatirth.org: ४७० नथमल, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, पू.वि. नारद की कथा से लेकर आर्द्रकुमार तक कथा है. प्र. ले. श्लो. (५०६ ) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा (२४४११.५ १८ २०x३१-३५) शीलोपदेशमाला-बालावबोध + कथा, गणि मेरुसुन्दर, मागु., गद्य, वि. १५५१, आदि:-; अंति: ४५३९.*" नवतत्त्व सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ८, जैदेना., ले. मु. मलूकरत्न ( गुरु मु. रत्नचन्द), प्र. वि. मूलगा. ४८., टिप्पण युक्त विशेष पाठ, ( २४.५x११.५, ४X३५-३७ ) . नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंतिः बोहिय इक्कणिक्काय, नवतत्त्व प्रकरण-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः साचा वस्तुनो स्वरूप; अंतिः सिद्ध ऋषभदेव प्रमुख. (+) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४५४१. दीपावली कल्प सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८२३, श्रेष्ठ, पृ. २९ जैदेना. ले. स्थल प्रांगधानगर, ले. मु. राजरत्न (गुरु पं. मलूकरत्न), प्र. वि. मूल - श्लो. ४४३, ग्रं. १५०० प्रथम पत्र दीमकभक्षित होने से टबा का आदिवाक्य नहीं भरा है., टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२७४१२, ६x४७). दीपावलीपर्व कल्प, आ. जिनसुन्दरसूरि, सं., पद्य, वि. १४८३, आदिः श्रीवर्द्धमानमाङ्गल; अंतिः चन्द्रार्कजगत्त्रये. दीपावलीपर्व कल्प-टवार्थ, गणि सुखसागर, मागु, गद्य वि. १७६३, आदि # अंतिः महीधर० ए चरीत्र. ४५४२. हरिबल चौपाई, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २५, जैदेना. ले. पं. लक्ष्मीविजय ( तपगच्छ ). प्र. वि. गा.८८४, ढाळ-३५, (२६×११, १७५०-५२). हरिबल रास, मु. जितविजय, मागु., पद्य, आदि: सुखदाई समरु सदा; अंतिः पूरे शङ्खेसर आसो रे. ४५४५." ललिताङ्गकुमार कथा व ज्योतिष, अपूर्ण, वि. १९४२, श्रेष्ठ, पृ. १२५(१ से ४, ११) ७ पे २, जैदेना, ले. स्थल. नवासेर, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-बीच के कुछ पत्र, पू. वि. बीच-बीच के पत्र हैं. (२६.५X११.५, ११-१२४३२३४). " पे. १. ललिताङ्गकुमार कथा, मागु., गद्य, (पृ. -५-१२), आदि:-: अंतिः प्रसादे जीव सुख पावे., पे. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. पे. २. ज्योतिष अपूर्ण ग्रन्थ, सं., प्रा.,मागु, प+ग, (पृ. १२आ-), आदि:-; अंति:-, पे. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. ४५४६. " लघुक्षेत्रसमास, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १३, जैदेना. प्र. वि. २६७ के आगे गाथा क्रमांक नहीं दीया गया है., " संशोधित, ( २४ ११.५, १३४३९-४१ ). (+) लघुक्षेत्रसमास प्रकरण आ. रत्नशेखरसूरि प्रा. पद्य वि. १५वी आदि वीरं जयसेहरपय अंतिः कुसलरङ्गमयं पसिद्धं. ४५४७." श्रेणिकअभयकुमारसम्बन्धे पञ्चसाधु चौपाई, संपूर्ण वि. १८८३, श्रेष्ठ, पृ. १७, जैदेना. ले. स्थल, मेदनीपुर, ले. मु. मालचन्द्र, प्र. वि. डाळ- १३ संशोधित, (२५x११, १०४३४). पंचसाधु चौपाई-अभयकुमारसम्बन्धे, उपा. कीर्तिसुन्दर, मागु., पद्य, वि. १७५९, आदि: जग गुरु प्रणमु वीर; अंतिः सद्ध उदय सुखकार. ४५४८." कथा सङ्ग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १०, जैदेना, प्र. वि. अक्षर अवाच्य, ( २४४११, १३-१५४३७-३९). कथा सङ्ग्रह, मु. मेरुसुन्दर, संबद्ध, मागु., गद्य, आदि: पोतनपुर नगरि नर; अंतिः भव संसारमांहि भमिओ. ४५४९. हमीनाममाला का बीजक, संपूर्ण वि. १६६१ श्रेष्ठ, पृ. २५, जैदेना. ले. मु. हर्षाक (गुरु मु. रत्नसागर, खरतरगच्छ ), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. ग्रं. १०५०, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, संशोधित, (२५.५x११, १८-२१x४६). अभिधानचिन्तामणि नाममाला - बीजक, गणि शुभविजय, मागु., गद्य, आदिः प्रणम्य श्रीगुरू; अंतिः नमस्कारना नाम.. ४५५२." श्राद्धप्रतिक्रमणसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १५७६, श्रेष्ठ, पृ. १३, जैदेना. ले. स्थल. काटापल्ली ग्राम प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ - कुछ पत्र, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., ( २६११, ८-९x४०-४१). श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र संबद्ध, प्रा. मागु प+ग, आदि नमो अरिहं० सव्वसाहूण: अंति: For Private And Personal Use Only Page #525 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ४७१ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः अरिहन्तनइ नमस्कारहुओ; अंति:४५५३. शालिभद्र चौपाई, संपूर्ण, वि. १८५६, श्रेष्ठ, पृ. १५, जैदेना., ले.स्थल. टांडाग्राम, ले. पं. माणकचन्द,प्र.वि. ढाळ-२९, (२६४११, १५४४६-४८). शालिभद्र चौपाई, मु. मतिसार, मागु., पद्य, वि. १६७८, आदिः सासणनायक समरीयइ; अंतिः मनवंछित फल लहिस्यैजी. ४५५४. चउशरण पयन्ना, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, प्र. १२, जैदेना., प्र.वि. गा.६३, (२६४११, ४४२७-३२). चतुःशरण प्रकीर्णक, गणि वीरभद्र, प्रा., पद्य, आदिः सावज्ज जोग विरई; अंतिः कारणं निव्वुइ सुहाणं. ४५५५. मौनएकादशी कथा सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना., (२५.५४११, ६४३६). मौनएकादशीपर्व कथा, सं., गद्य, आदिः वर्द्धमानं जिनं; अंतिः एकादशीमाराध्य समभवत्. मौनएकादशीपर्व कथा-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः श्रीवर्द्धमानस्वामी; अंतिः जाये भव्यजीवे आरा. ४५५७." भक्तामर स्तोत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ९, जैदेना., प्र.वि. मूल-श्लो.४४., संशोधित, पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न, अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२५४१०.५, ५४२९-३१). भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुङ्गसूरि, सं., पद्य, आदिः भक्तामरप्रणतमौलिमणि; अंतिः समुपैति लक्ष्मी. भक्तामर स्तोत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः भक्त जे अमर देवता; अंतिः करी प्रगटपणइ काउ. ४५५८. प्रतिक्रमणसूत्र सङ्ग्रह विधिसहित -अञ्चलगच्छीय, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३८, जैदेना.,प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-बीच के कुछ पत्र, संशोधित, (२४४१०.५, १०४२८-३०). पंचप्रतिक्रमणसूत्र-अञ्चलगच्छीय, संबद्ध, प्रा.,सं.,गुज., प+ग, आदिः प्रथम सन्ध्या समये; अंतिः#. ४५६०. षडशीति कर्मग्रन्थ, संपूर्ण, वि. १६वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, जैदेना., प्र.वि. गा.८६, (२६४१०.५, ८-९४३०-३५). षडशीति नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, आदिः नमिय जिणं जिय; अंतिः देविन्दसूरीहिं. ४५६१. उपदेशरत्नमाला सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १६९५, श्रेष्ठ, पृ. ७, जैदेना., प्र.वि. मूल-गा.२५., (२६x११, ९४३३-३५). उपदेशरत्नमाला, आ. पद्मजिनेश्वरसूरि, प्रा., पद्य, आदिः उवएसरयणकोसं नासि; अंतिः विउलं उवएसमालमिणं. उपदेशरत्नमाला-बालावबोध, मागु., गद्य, आदिः श्रीमहावीर चउवीसमुं: अंतिः मुक्ति पामइ सुखी थाइ. ४५६२. शालिभद्र चौपाई, अपूर्ण, वि. १८४२, श्रेष्ठ, पृ. २८-२(१ से २)=२६, जैदेना., ले.स्थल. पीही, ले. ऋ. नोलराय, (२५.५४१०.५, ११४३१-३८). शालिभद्र चौपाई, मु. मतिसार, मागु., पद्य, वि. १६७८, आदि:-; अंतिः मनवंछित फल लहिस्यैजी. ४५६३. आचाराङ्गसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ८१-१(१)=८०, जैदेना., पू.वि. प्रथम एक व अंत के पत्र नहीं हैं., (२५४१२.५, ५४३२-३८). आचाराङ्गसूत्र , आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदिः सुयं मे आउसं० इह; अंति: आचाराङ्गसूत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः श्रीभगवन्त; अंति:४५६४. जीवाभिगमसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८१४, श्रेष्ठ, पृ. २१५, जैदेना., ले.स्थल. रमणीकनगर, ले. पं. लब्धिकमल (गुरु पं. माणिक्यराज): खुश्यालचन्द; महेशदास; दीपचन्द, प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र.वि. मूल-१० प्रतिपत्ति; प्र.पु. मूल ग्रं. ४७५०., (२५४११, ७४४६-५४). जीवाभिगमसूत्र, प्रा., गद्य, आदिः (१) णमो उसभादियाणं (२) इह खलु जिणमयं० जीवा; अंतिः सेत्तं सव्वजीवाभिगमे. जीवाभिगमसूत्र-टबार्थ, मु. धनविमल, मागु., गद्य, आदिः (१) श्रीशान्तिनाथमानम्य (२) नमस्कार हुवो माहरु; अंतिः जीव, अभिगम कर्दा. ४५६६. लघुशान्ति सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना., प्र.वि. मूल-श्लो.१७., संशोधित, त्रिपाठ, पदच्छेद सूचक लकीरें, टिप्पण युक्त विशेष पाठ-प्रारंभिक पत्र, (२५.५४१०.५, २४२९-३४). For Private And Personal Use Only Page #526 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org: हस्तलिखित जैन साहित्य भाग १ लघुशान्ति, आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, आदि शान्ति शान्ति अतिः सूरि : श्रीमानदेवश्च लघुशान्ति- बालावबोध, गणि दयाकीर्ति वाचक, मागु., गद्य, आदिः श्रीमानदेवाचार्य; अंति: ( १ ) तेहनउ पद स्थानक पामइ (२) दयाकीर्तिगणिना. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir , ४५६८." कायट्ठिइ स्तोत्र व कर्मप्रकृतिपञ्चविंशतिका सह टबार्थ, संपूर्ण वि. १७वी, मध्यम, पृ. ७, पे. २, जैदेना. ले. स्थल. मसुपुरनगर, ले. ऋ. केशव, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२५११, ५X३७). पे. १. पे नाम. कायट्ठिइ स्तोत्र सह टवार्थ, पृ. १आ-४आ कायस्थिति प्रकरण, आ. कुलमण्डनसूरि, प्रा., पद्य, आदि: जह तुहदंसणरहिओ; अंतिः अकायपयसम्पयं देसु. कार्यस्थिति प्रकरण-टवार्थ मागु, गद्य, आदि हे जिन ताहरा दर्शनथी अंतिः मोक्षपद शीघ्र दइ., पे. वि. मूलगा.२४. जसवन्तजी द्वारा मसुपुरनगर में टबार्थ लेखन हुआ है.. पे. २. पे. नाम कर्मप्रकृतिपञ्चविंशतिका सह टबार्थ, पृ. ४आ-७आ पे.वि. मूल कर्मप्रकृतिपञ्चविंशतिका, प्रा., पद्य, आदि: मूलपगइ अट्ठविहं नाणा; अंतिः सुद्धं काऊण भणियव्वं. कर्मप्रकृतिपञ्चविंशतिका-टबार्थ *, मागु., गद्य, आदि: मूल कर्मनी प्रकृति; अंतिः करीने पण्डित भण., पे.वि. गा.२५, ग्रं. १२५. ४७२ ४५६९.* शीलोपदेशमाला सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २०, जैदेना., प्र. वि. संशोधित, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. गा.२५ तक व्याख्या अधूरी है. (२५.५४११, १३४४२-४४). " शीलोपदेशमाला, आ. जयकीर्तिसूरि, प्रा., पद्य, आदिः आबालबम्भयारिं; अंतिः शीलोपदेशमाला - बालावबोध+ कथा, गणि मेरुसुन्दर मागु, गद्य वि. १५५१, आदि (१) श्रीवामेयममेय (२) आबाल ब्रह्मचारी; अंति: ४५७१. दृष्टान्त कथा सङ्ग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २७, जैदेना., ( २६११.५, १२-१३३५-३८). दानादि विषयक दृष्टान्तकथा सङ्ग्रह, प्रा. सं., गद्य, आदि वसही १ सयणा २ सण ३: अंतिः छटादाने निरोगाः, ४५७२. सुरसुन्दरी चौपाई, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १७, जैदेना, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. खंड-३ की दाल ७ की गा४ तक है., ( २६४१०.५, १३४३९). " सुरसुन्दरी चौपाई, मु. धर्मवर्धन, मागु, पद्य, वि. १७३६, आदि सासण जेहनउ सलहिया: अंतिः ४५७५. नवतत्त्व सह बालावबोध व सवैया, संपूर्ण, वि. १८१७, श्रेष्ठ, पृ. १९ पे. २ जैदेना ले. स्थल. कृष्णगढ, ले. ऋ " चिमनराम, ( २५x१०.५, १५x५४). पे. १. पे. नाम. नवतत्त्व प्रकरण सह बालावबोध, पृ. १-१९ ; नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदिः जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंतिः बोहिय इक्कणिक्काय. नवतत्त्व प्रकरण बालावबोध, मु. मतिचन्द्र, मागु, गद्य, आदि जिनमती जीवाने पदार्थ अंतिः बिहु बराबर पणे छै. पे.वि. मूल-गा. ५१. .. पे. २. सवैया सङ्ग्रह*, मागु., पद्य, (पृ. १९अ), आदिः #; अंतिः #., पे.वि. गा.१. , ४५७६." श्राद्ध आलोयणा, मङ्गल स्तोत्र व चत्तारिअट्ठदसदोयपदविचारगर्भित सर्वतीर्थङ्कराणां बृहत्स्तवन, संपूर्ण, वि. १८७३, श्रेष्ठ, पृ. ६, पे. ३, जैदेना. ले. स्थल, योधनयर, ले. पं. मोहन प्र. वि. संशोधित (२४.५x१०.५, २१-२२४४९). पे. १. आलोयणा विधि, मु. क्षमाकल्याण, मागु. सं., गद्य (पृ. १अ-६अ ) आदि स्मारं स्मारं अंतिः आलोयणतप फेर दीजे. P पे. २. पे नाम मङ्गल स्तोत्र, पृ. ६अ शाश्वताशाश्वतजिन स्तवन, आ. धर्मसूरि सं, पद्य, आदि नित्ये श्रीभुवनाधि; अंतिः श्रीधर्मसूरिभिः, पे.वि. श्लो. १५ For Private And Personal Use Only Page #527 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org: . ४७३ पे. ३. पे. नाम. चत्तारिअट्ठदोयपदविचारगर्भित सर्वतीर्थङ्कराणां बृहत् स्तवन, पृ. ६आ अष्टापदतीर्थ स्तवन, उपा. समयसुन्दर गणि, मागु पद्य, आदि: जिणवर भक्ति: अंतिः नित करे परणाम ए. पे.वि. गा.१७. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४५७८. सङ्ग्रहणीसूत्र व ज्योतिषचक्र अन्तरमान, संपूर्ण, वि. १८१०, श्रेष्ठ, पृ. १३, पे. २, जैदेना., ले. स्थल. जगत्वाणी, ले. ऋ. खुष्याल जती प्र.ले. श्लो. (४४०) तैलाद् रक्षेद् जलाद् रक्षेद् (२४.५४१०.५, १४-१५४३८-४०). कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची पे. १. बृहत्सङ्ग्रहणी, आ. चन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, (पृ. १-१३), आदिः नमिउं अरिहन्ताइं; अंतिः जा वीरजिण तित्थं., पे.वि. गा. ३१७. पे. २. ज्योतिष *, सं., मागु., पद्य, (पृ. १३आ), आदिः #; अंतिः #. ४५८१. वीरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, जैदेना., प्र. वि. ग्रं. २२८, ढाळ - ७, ( २४.५X१०, १२X४१-४६). महावीरजिन स्तवन-स्थापनानिक्षेपप्रमाण पञ्चाङ्गीगर्भित, उपा. यशोविजयजी गणि, मागु., पद्य, वि. १७३३, आदिः प्रणमी श्रीगुरुना अतिः आणा सिर वहेस्येजी. ४५८२.” प्रश्नव्याकरणसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७१७, श्रेष्ठ, पृ. ८६, जैदेना., ले. पं. समयनिधान, प्र. वि. मूल- अध्याय-१०; प्र. पु. मूल ग्रं. १४५०. प्र. पु. बार्थ ग्रं. ५५५०, संशोधित, पदच्छेद सूचक लकीरें मूल पाठ टिप्पण युक्त विशेष पाठ, प्र.ले. श्लो. (८७) सर्वमंगल मांगल्यं, ( २६५११.५, ६४३७-४३). - प्रश्नव्याकरणसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी प्रा. प+ग, आदि: जम्बू इणमो अण्डयसंवर: अंतिः सरीरधरे भविस्सइति. " "" प्रश्नव्याकरणसूत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः श्रीसुधर्मास्वामी; अंतिः जाइ शाश्वत सुख पाम . ४५८३. सूर्यप्रज्ञप्तिसूत्र, पूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ८३-३ (१ से ३ ) -८०, जैदेना. प्र. वि. २० प्राभृत, पू. वि. चतुर्थ पत्र जीर्ण है.. " (२७११, ११- १२X४१-४६). सूर्यप्रज्ञप्ति, प्रा., गद्य, आदि-: अंति: सोक्खुप्पाए सदापाए. ४५८४. कल्पसूत्र सह टवार्थ व व्याख्यान+कथा संपूर्ण वि. १८९८, श्रेष्ठ, पृ. १४१, जैदेना. ले. स्थल दादरीशहर, ले. " " साध्वीजी सुन्दरजी, प्र. वि. मूल-९- व्याख्यान., पदच्छेद सूचक लकीरें (२४१२, ६- २०x४०-४५). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी प्रा. गद्य, आदि णमो अरिहन्ताणं० पढमं अंतिः उवदंसेइ त्ति बेमि " कल्पसूत्र-टबार्थ*, मागु., गद्य, आदि: (१) श्रीजिनशासननो सार (२) ते० तिण कालेइ तिण; अंतिः सुधर्मा गणधरे को. कल्पसूत्र - व्याख्यान + कथा*, मागु., गद्य, आदि: #; अंतिः #. ४५८६. कयवन्ना चौपाई, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. २८, जैदेना. ले. स्थल, रायपुरनगर, ले. ऋ. हुकमचन्द, प्र. वि. गा. ५५५, . ढाळ - ३१, (२४.५X१०.५, १३४३५-३९). कयवन्ना चौपाई, मु. जयतसी, मागु., पद्य, वि. १७२१, आदि: स्वस्ति श्रीसुख; अंतिः धरम करण मन उलसै छै. , ४५८८. दशार्णभद्र चौपाई, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १९, जैदेना, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., (२५.५x१०.५, १४४४७-५१). दशार्णभद्रराजा चौपाई, ऋ. दौलत, मागु., पद्य, आदिः स्वस्ति श्रीआदीसरा ; अंतिः ४५८९.* ज्ञाताधर्मकथाङ्गसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २९६, जैदेना., प्र. वि. मूल-ग्रं. ५५००, १९ अध्ययन. प्र. पु. बार्थ ग्रं. १४५०० संशोधित टिप्पण युक्त विशेष पाठ-कुछ पत्र (२५.५४१०५ ७४३९-४२). , ज्ञाताधर्मकथाङ्गसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदिः तेणं कालेणं० चम्पाए: अंतिः जाव पुरिससिहेणं. ज्ञाताधर्मकथाङ्गसूत्र-टबार्थ, गणि प्रेमजी, मागु., गद्य, वि. १६९९, आदिः प्रणम्य श्रीमहावीरं; अंतिः धर्मकथा समाप्त For Private And Personal Use Only हुई. ४५९०.” दशवैकालिकसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७३९, श्रेष्ठ, पृ. ६१, जैदेना., ले. स्थल. विक्रमनगर, ले. मु. मुकन्द (गुरु पं. साधुनिधान गणि) पं. सौभाग्य मुनि (गुरु पं. साधुनिधान गणि), प्र.ले.पु. मध्यम प्र. वि. मूल-अध्याय अध्ययन १० चूलिकार: प्र.पु. मूल ग्रं. ७०० प्र. पु. बार्थ ग्रं. १०७७५. मूल प्रतिलेखक- पं. मुकंद, टबार्थ प्रतिलेखक- पं. Page #528 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org: हस्तलिखित जैन साहित्य भाग १ ४७४ . सौभाग्य मुनि विक्रमनगर का दुसरा नाम वीकानेर है, पदच्छेद सूचक लकीरें संशोधित पू. वि. अंतिम पत्र के दुसरे भाग पर कागज चीपकाने से पाठ अधुरा है., प्र.ले. श्लो. (५०९) यादृशं पुस्तके दृष्टं (२४४१०.५, ५-७×३८-४०). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यम्भवसूरि, प्रा., पद्य, वि. पू. ४, आदिः धम्मो मङ्गलमुक्किट्ठ; अंतिः (१) मुच्चइति बेमि (२) आलणा सङ्घे. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir दशवैकालिकसूत्र - टबार्थ *, मागु., गद्य, आदिः धर्म उत्कृष्टओ; अंति: (१) र्वधरकृत सूत्र कहीयइ ( २ ) कहइ शिष्य साम्भलि. ४५९३." आचाराङ्गसूत्र संपूर्ण वि. १७वी श्रेष्ठ, पृ. ७४, जैदेना. प्र. वि. २५ अध्ययन प्र. पु. ग्रं. २५२५ संशोधित, ( २६४१०.५, " " १३-१४४४४-५१). आचाराङ्गसूत्र आ. सुधर्मास्वामी प्रा. प+ग, आदि सूर्य मे आउसं० इह अंतिः विमुच्चति त्ति बेमि , ; (+) ४५९४. उत्तराध्ययनसूत्र, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ५५, जैदेना, प्र. वि. ३६ अध्ययन, संशोधित (२६९११, १५-१६९४०-४३). उत्तराध्ययन सूत्र. मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा. प+ग, आदिः सञ्जोगाविष्यमुक्कस्स अंतिः (१) सम्मए त्ति बेमि ( २ ) पुव्वरिसी एव भासन्ति ; " (+) ४५९५." गजसुकुमाल चौपाई, संपूर्ण, वि. १८वी श्रेष्ठ, पृ. ३५, जैदेना. प्र. वि. डाळ- ३४ (२५५११, ११४३९-४३). गजसुकुमाल चौपाई, मु. भुवनकीर्ति, मागु., पद्य, आदिः त्रिभुवनपति: अंतिः सुकमाल मुनिनो रास ए. ४५९६. साधु वन्दना, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १४, जैदेना., ले. स्थल. खंभात, ले. मु. लचिनिधान, प्र. वि. गा. ५९३, ढाळ - १८, (२५.५४११, १७४४८-६३). साधुवन्दना, उपा. समयसुन्दर गणि, मागु, पद्य वि. १६९७ आदि शान्तिनाथ जिन अंतिः सुगुरू प्रासादो. ४५९७." स्तवनचौवीसी, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ८ जैदेना. प्र. वि. ग्रं. २३०, दशा वि. विवर्ण पानी से अक्षरों की स्याही फैल गयी है- अल्प, (२५x११, १३-१४X३७-४२). स्तवनचौवीसी, उपा. यशोविजयजी गणि, मागु., पद्य, आदिः ऋषभदेव नित वन्दीये; अंतिः निज भजनमां दास राखो. ४५९८. वीसस्थानक स्तवन सङ्क्षिप्तपूजा विधि, संपूर्ण वि. १९१५, श्रेष्ठ, पृ. ११, पे. २, जैदेना ले, गणि खन्तिविजय, (२५४११.५, ११-१३४३३-४३). पे. १२० स्थानक पूजा, आ. लक्ष्मीसूरि, मागु पद्य वि. १८४५ (पृ. १-११आ), आदि: श्रीशङ्खेश्वर पासजी अंति भौ सयल सङ्घ जयकरू., पे.वि. ढाळ-२०. पे. २.२० स्थानकपूजा विधि, मागु, गद्य, (पृ. ११आ) आदि वीस स्थानक तप माडता अंति पूजे सङ्क्षिप्तविधि ४५९९." शीलोपदेशमाला व गौतमपृच्छा अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १०-४(१ से ४ ) -६, पे. २ जैदेना. प्र. वि. संशोधित, दशा वि. विवर्ण अक्षरों की स्याही फैल गयी है, अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं. (२४४११, १५-१६४३५३९). पे. १. शीलोपदेशमाला, आ. जयकीर्तिसूरि प्रा. पद्य (पृ. ५अ - ८आ, संपूर्ण), आदि आबालबम्भयारिं नेमि: अंतिः आराहिय लहइ बोहिफलं, पे.वि. गा. ११५. पे. २. गीतमपृच्छा, प्रा., पद्य, (पृ. ८आ-१०आ, संपूर्ण) आदि नमिऊण तित्थनाहं अंति: गोयमपुच्छा महत्थावि., पे. वि. गा. ६५. ४६००. दसपच्चक्खाणसूत्र, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना., ले. स्थल. सोजतनगर, ले. पं. सरूपविजय, प्र.ले.पु. मध्यम, . (२६.५४११, १०x२७-३१). प्रत्याख्यानसूत्र, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदिः गंठसिय मुट्ठिसय; अंतिः वत्तियागारेणं वोसिरइ. For Private And Personal Use Only Page #529 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ४७५ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ४६०१. रोहिणीतप स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना., ले.स्थल. पालीनगर, ले. मु. सरूपविजय, प्र.वि. गा.३२, (२६.५४११, ९-१०x२४-२६). रोहिणीतप स्तवन, मु. श्रीसार, मागु., पद्य, वि. १७२०, आदिः सासण देवता सामणीए; अंतिः सकल मन आस्या फली. ४६०२. श्रीपाल रास-खण्ड १, प्रतिपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३८, जैदेना., (२५.५४११, १०-११४२९-३०). श्रीपाल रास, उपा. विनयविजय , उपा. यशोविजयजी गणि, मागु., पद्य, वि. १७३८, आदिः कल्पवेल कवियण तणी; अंति:४६०३. नर्मदासुन्दरी रास, संपूर्ण, वि. १८४५, श्रेष्ठ, पृ. ८७-१(२७+२८)+१(२१)=८७, जैदेना., ले.स्थल. विसलनगर, प्र.वि. गा.१४५४, ग्रं. १४६६, ढाळ-६३, संशोधित, दशा वि. विवर्ण-पानी से अक्षरों की स्याही फैल गयी है-अंत के कुछ पत्र, प्र.ले.श्लो. (४७५) यादशं पुस्तकं दृष्ट्वा , (२५.५४११, ११-१२४३१-३६). नर्मदासुन्दरी रास, मु. मोहनविजय, मागु., पद्य, वि. १७५४, आदिः प्रभुचरणाम्बुजरजतणी; अंतिः मोहन वचन विलासजी. ४६०४. आदिजिन चरित्र, अपूर्ण, वि. १८७४, श्रेष्ठ, पृ. २५-३(१ से २,५)=२२, देना., ले.स्थल. सयरत्तणद्र, (२७.५४११, १४ १६x४०-४३). आदिजिन चौपाई, ऋ. रायचन्द, मागु., पद्य, वि. १८४०, आदिः-; अंतिः ऋषभ चरीत टकसाल ए. ४६०६. परदेशीराजा कथा, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १२०-८८(१ से ७३,१०२ से ११५,११९)=३२, जैदेना., (२५४११, १३ १८x२८-४४). प्रदेशीराजा कथा, मागु., गद्य, आदि:-; अंतिः भावता थका विचरइ. ४६०८." नवतत्त्व प्रकरण सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, जैदेना., प्र.वि. मूल-गा.३३., पदच्छेद सूचक लकीरें-कुछ पत्र, (२४.५४१०.५, ३४२५-२८). नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदिः जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंतिः समत्तं निच्चलं तस्स. नवतत्त्व प्रकरण-टबार्थ , मागु., गद्य, आदिः जीवनइ दस प्राण धरइ; अंतिः समकित थिरपणुं जाणीइ. ४६०९. गौतमपृच्छा चौपाई, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ७, जैदेना.,प्र.वि. गा.१२१, दशा वि. विवर्ण-पानी से अक्षरों की स्याही फैल गयी है, (२६४११.५, ११४३८-४०). गौतमपृच्छा चौपाई, मु. लावण्यसमय, मागु., पद्य, वि. १५४५, आदिः सकल मनोरथ पूरवइ; अंतिः जे जिनवचने वसिउ. ४६१०. नववाड स्वाध्याय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना., प्र.वि. गा.९७, ढाळ-११, संशोधित, (२५.५४११.५, १३४३७). नववाडी सज्झाय, मु. जिनहर्ष, मागु., पद्य, वि. १७२९, आदिः श्रीनेमीसर चरणयुग; अंतिः हो जुगति नववाडि. ४६११. दशवैकालिकसूत्र सह टबार्थ व आदिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १८७४, श्रेष्ठ, पृ. ५२, पे. २, जैदेना., ले.स्थल. बडोतनगर, ले. मु. तुलसीराम (गुरु मु. लूणकरण), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-मूल पाठ, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२४.५४११, ५४४३-५३). पे. १. पे. नाम. दशवैकालिकसूत्र सह टबार्थ, पृ. १-५२ दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यम्भवसूरि, प्रा., पद्य, वि. पू.४, आदिः धम्मो मङ्गलमुक्किट्ठ; अंतिः (१)निच्चला होसु (२)आलणा सो. दशवैकालिकसूत्र-टबार्थ , मागु., गद्य, आदिः (१) प्रणम्य श्रीमहावीरं (२) ध० दुर्गत पडता जीवनइ; अंतिः (१)करी ए सत्य वात (२)सुधर्मास्वामी कहइ छइ., पे.वि. मूल-अध्याय-अध्ययन१०चूलिका२. पे. २. आदिजिन स्तवन, आ. जिनरङ्गसूरि, प्राहिं., पद्य, (पृ. ५२अ), आदिः रिषभ जिणेसर भेटीयेजी; अंति: नाभ नरेसर नन्द., पे.वि. गा.५. For Private And Personal Use Only Page #530 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य भाग - १ ४७६ ४६१२." योगशास्त्र, अपूर्ण, वि. १७५१, श्रेष्ठ, पृ. ४५-३(१ से ३) ४२, जैदेना., प्र.वि. १२प्रकाश, पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न-प्रारंभिक पत्र, संशोधित, पू.वि. प्रकाश-१ नहीं है., (२६४११.५, ११४३७-४३). योगशास्त्र, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, आदि:-; अंतिः श्रीहेमचन्द्रेण सा. ४६१४." श्राद्धप्रतिक्रमणसूत्र सङ्ग्रह-तपागच्छीय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १७, जैदेना., प्र.वि. संशोधित, (२५.५४११.५, १०४३२). देवसिराईप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,सं.,मागु., प+ग, आदिः नमो अरिहन्ताणं; अंतिः जैनं जयति शासनम्. ४६१५.” उववाईसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४५-१(१)=४४, जैदेना., प्र.वि. प्रारंभ के पत्रों में ही टबार्थ लिखा __ है., संशोधित, पू.वि. प्रथम व अंतिम पत्र नहीं हैं., (२६.५४११.५, ४४३०-३२). औपपातिकसूत्र, प्रा., प+ग, आदि:-; अंति: औपपातिकसूत्र-टबार्थ , मागु., गद्य, आदिः-; अंति:४६१६. नवतत्त्व का बालावबोध व जम्बूद्वीप वर्णन, अपूर्ण, वि. १७४२, श्रेष्ठ, पृ. १४-१(१)=१३, पे. २, जैदेना., ले.स्थल. सिद्धपुर, ले. मु. इन्द्रसागर (गुरु उपा. रत्नसागर, तपगच्छ), पू.वि. प्रारंभ व अंत के पत्र नहीं हैं., (२४.५४११, १५४४४-४८). पे. १. नवतत्त्व प्रकरण-बालावबोध, आ. सोमसुन्दरसूरि, मागु., गद्य, (पृ. -२अ-१४अ), आदि:-; अंतिः अर्द्धमाहि मोक्ष जाइ., पे.वि. प्रथम पत्र नहीं है. पे. २. लघुसङ्ग्रहणी-खण्डाजोयण बोल', संबद्ध, मागु., गद्य, (पृ. १४अ-१४आ-), आदिः जम्बुद्वीप पहिलपणि; अंतिः-, पे.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. ४६१७." दशवैकालीकसूत्र गीत, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदेना., ले. श्रा. दीपाभाई, प्र.वि. अध्याय-१०अध्ययन, संशोधित, (२६४११, ११४३५-४२). दशवैकालिकसूत्र-सज्झाय , मु. जैतसी, संबद्ध, मागु., पद्य, वि. १७१७, आदिः धर्ममङ्गल महिमा; अंतिः सदाजी जयतसी जयजय रंग. ४६१८. नर्मदासुन्दरी रास, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २६, जैदेना., पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. ढाल-२५ तक हैं., (२६४११.५, १३-१४४३६-३८). नर्मदासुन्दरी रास, मु. मोहनविजय, मागु., पद्य, वि. १७५४, आदिः प्रभुचरणाम्बुजरजतणी; अंति:४६१९. शालीभद्र श्लोक, संपूर्ण, वि. १९२०, श्रेष्ठ, पृ. १०, जैदेना., ले.स्थल. सोजत, ले. मु. लक्ष्मणसागर, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. गा.१४७, प्र.ले.श्लो. (४७५) यादशं पुस्तकं दृष्ट्वा ; (१४४) कर गावड कर बेवडी, (२५४११.५, १४४३२-३४). शालिभद्र शलोको, गणि कनकप्रिय, मागु., पद्य, वि. १७८१, आदिः सरसती सामण समरु; अंतिः सिद्ध मुनी गाया. ४६२१.” लघुक्षेत्रसमास सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ३४, जैदेना., प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. मूल-गा.२६५., संशोधित, (२५४११.५, ४-५४३७-३९). लघुक्षेत्रसमास प्रकरण, आ. रत्नशेखरसूरि , प्रा., पद्य, वि. १५वी, आदिः वीरं जयसेहरपय; अंतिः कुसलरङ्गमयं पसिद्धं. लघुक्षेत्रसमास-बालावबोध , आ. पार्श्वचन्द्रसूरि, मागु., गद्य, आदिः वीर श्रीमहावीर केहवउ; अंति: मासविवरण: सङ्क्षपतः. ४६२२. पासाकेवली सकुनावली, संपूर्ण, वि. १९४७, श्रेष्ठ, पृ. १३, जैदेना., ले.स्थल. जोधपुर, ले. खुपोलर दुवे, पठ. मुगीलाल दवे, राज्यकाल- राजा यशवन्तसिङ्घ, प्र.ले.पु. मध्यम, (२६४११, ८४३०-३१). पाशाकेवली-पाशाकेवलीभाषा* , आधारित, मागु., गद्य, आदिः (१) १११ उत्तम थानक लाभ (२) ॐ नमो भगवति; अंतिः सही सत्य कर मानजै. For Private And Personal Use Only Page #531 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org: कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ४७७ ४६२३. प्रज्ञाप्रकाशषट्त्रिंशिका सह टवार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदेना ले. ऋ. केशव, प्र. वि. मूल-श्लो. ३७, (२५४११.५, ५४३१-३६). प्रज्ञाप्रकाशषट्त्रिंशिका, आ. रूपसिंह, सं., पद्य, आदि प्रज्ञाप्रकाशाय नवीन अंतिः मयका प्रणीता. प्रज्ञाप्रकाशषट्त्रिंशिका टवार्थ मागु, गद्य, आदि: प्रज्ञा क० बुद्धि: अंति: तेहना प्रकाशनइ अर्थइ. · Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४६२५. पाक्षिक अतिचार, पाक्षिकसूत्र व पाक्षिकखामणा, संपूर्ण वि. १७७३, श्रेष्ठ, पृ. ९, पे. ३. जैदेना, ले. स्थल, कृष्णगढ़, ले. पं. दिव्यसागर, (२५.५४११, १५-१६४३९-४१). पे. १. ये नाम साधुपाक्षिकादि अतिचार, पृ. ०१-०३अ साधुपाक्षिक अतिचार घे.मू. पू. संबद्ध, मागु. प्रा. गद्य, आदि: नाणम्मि दंसणम्मि०: अंतिः अनेरो जे कोई अतिचार, पे. २. पे. नाम. साधुपाक्षिकसूत्र, पृ. ०३अ ०९अ पाक्षिकसूत्र, प्रा., प+ग, आदिः तित्थङ्करे य तित्थे; अंतिः मिच्छामि दुक्कडं. पे. ३. पे. नाम. साधुपाक्षिकक्षामणासूत्र, पृ. ०८अ - ०८आ क्षामणकसूत्र, प्रा., गद्य, आदि: इच्छामि खमासमणो; अंतिः नित्थारग पारगा होह. ४६२६.” नारचन्द्र ज्योतिष सह टिप्पण, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १५, जैदेना., प्र. वि. संशोधित, (२५.५X११.५, १४-१६४३९ ४३). ज्योतिषसार, आ. नरचन्द्रसूरि, सं., पद्य, आदिः श्रीअर्हन्तजिनं; अंतिः#. ज्योतिषसार- यन्त्रकोद्धार टिप्पण, आ. सागरचन्द्रसूरि, सं., गद्य, आदि: सरस्वतीं नमस्कृत्य; अंतिः टिप्पनम्. (+) (+8) ४६२९. धर्मध्यान लक्षण, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ६. जैदेना, दशा वि. विवर्ण-पानी से अक्षरों की स्याही फैल गयी है अधिक, (२५.५x११, ११४३१-३३). धर्मध्यान लक्षण, मागु, गद्य, आदि धम्मेज्झाणे चचविहे अंतिः धरम ध्यान चाइई. ४६३०.” आलोचनकर्तव्यकाव्यपञ्चविंशति सह टवार्थ, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ५. जैदेना. ले. स्थल राजनगर, प्र. वि. " संशोधित, (२५.५x१०.५, ४-५x२७-२९). रत्नाकरपच्चीसी, आ. रत्नाकरसूरि, सं., पद्य, आदिः श्रेयः श्रियां मङ्गल; अंतिः श्रेयस्करं प्रार्थये. रत्नाकरपच्चीसी-टवार्थ मागु, गद्य, आदि: अहो कल्याणक लक्ष्मी: अंतिः करी प्रार्थउ मागउ. ४६३१.” भक्तामर स्तोत्र सह टवार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी श्रेष्ठ, पृ. ११-३ ( ३ से ४८ ) -८, जैदेना, प्र. वि. संशोधित, पदच्छेद सूचक लकीरें मूल पाठ, पू.वि. बीच-बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., ( २६४११.५, ३-४X३०-३१). भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुङ्गसूरि, सं., पद्य, आदिः भक्तामरप्रणतमौलिमणि; अंतिः भक्तामर स्तोत्र- टवार्थ मागु, गद्य, आदि (१) प्रणम्य प्रथमदेव (२) श्रीतीर्थङ्कर देवना; अंतिः४६३२.” आचाराङ्गसूत्र, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ७२, जैदेना., प्र. वि. २५अध्ययन प्र. पु. ग्रं. २६०० अंत में नियुक्ति के कुछेक अंश लिखे है., संशोधित, ( २७ ११, १३x४६-५१). आचाराङ्गसूत्र · आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदिः सुयं मे आउसं० इह; अंतिः विमुच्चति त्ति बेमि ४६३३." स्तुतिचौवीसी, गौतम स्तुति, ग्रहशान्ति स्तोत्र व शत्रुञ्जय स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ५, पे. ४, जैदेना., ले. स्थल. वडग्राम, ले. मु. नित्यसागर, प्र. वि. संशोधित, (२५x११, १५X४०-४४). पे. १ स्तुतिचतुर्विंशतिका, मु. शोभनमुनि सं., पद्य, (पृ. १अ- ५अ ) आदि भव्याम्भोजविबोधनैक: अंतिः हारतारा बलक्षेमदा., पे.वि. २४ स्तुतिजोडा, श्लो. ९६. पे. २. गौतमस्वामी स्तुति, मागु., पद्य, (पृ. ५अ - ५अ ), आदिः सकललब्धिपदं विपदापहं; अंतिः फलं श्रुतदेवता., पे.वि. गा. ४. For Private And Personal Use Only Page #532 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य भाग - १ ४७८ पे. ३. ग्रहशान्ति स्तोत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, सं., पद्य, (पृ. ५अ-५आ), आदि: जगद्गुरुं नमस्कृत्य; अंतिः शान्तिविधि श्रुतम्., पे.वि. श्लो.११. पे. ४. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मागु., पद्य, (पृ. ५आ-५आ), आदिः तीरथ बारु ए तीरथ; अंतिः धरम सरम घरि आवै रे., पे.वि. गा.७. ४६३४." भवनद्वार विचार, संपूर्ण, वि. १९३६, श्रेष्ठ, पृ. ३७, जैदेना., ले.स्थल. लसकर, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-कुछ पत्र, (२४.५४११.५, १७-१९४६१-६३). नारकीभवनद्वार विचार, मागु., गद्य, आदिः सर्व सातेही नरकना; अंतिः नही जन्म ही एव. ४६३७. पाशककेवली, संपूर्ण, वि. १८४२, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना., ले.स्थल. राजपुरा, पठ. पं. चैनरूप, प्र.वि. श्लो.१८६, दशा वि. अक्षर फीके पड गये हैं-प्रथम पत्र, (२५.५४१०.५, १६४५१-५३). पाशाकेवली, ऋ. गर्ग, सं., पद्य, आदिः ॐ नमो भगवती; अंतिः कुलीनाय हितात्मने. ४६४०." दशवैकालिकसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५३-१(१)-५२, जैदेना., प्र.वि. मूल-अध्याय अध्ययन१०चूलिकार. पन्ने का नम्बर गलत है।, संशोधित, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, पदच्छेद सूचक लकीरें-मूल पाठ, (२६.५४११, ४-६४३५-४१). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यम्भवसूरि, प्रा., पद्य, वि. पू.४, आदिः धम्मो मङ्गलमुक्किट्ठ; अंतिः (१)मुच्चइ त्ति बेमि (२)आलणा सचे. दशवैकालिकसूत्र-टबार्थ , मागु., गद्य, आदिः धम्मो० दुर्गति पडता; अंतिः छूटै इ० इम कही. ४६४१. दशवैकालिकसूत्र गीत, संपूर्ण, वि. १८९९, श्रेष्ठ, प्र. ७, जैदेना., ले.स्थल. हरिदुर्ग, ले. पं. धीरविजय, (२४.५४११.५, १०४३२-३५). दशवैकालिकसूत्र-सज्झाय, मु. जैतसी, संबद्ध, मागु., पद्य, वि. १७१७, आदिः धर्ममङ्गल महिमा; अंतिः सदाजी जयतसी जयजय रंग. ४६४२. निरयावलियादिपञ्चोपाङ्गसूत्र व अङ्गउपाङ्गनाम, पूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३२-१(३१)=३१, पे. ६, जैदेना., प्र.वि. सर्वग्रं. १०५०., संशोधित, पदच्छेद सूचक लकीरें, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२६.५४११.५, १२-१४४३८-४७). पे. १. कल्पिकासूत्र, प्रा., गद्य, (पृ. १अ-१३अ, संपूर्ण), आदिः तेणं कालेणं तेणं०; अंतिः वरं मायातो सरिसणामाओ., पे.वि. १० अध्ययन. पे. २. कल्पावतंसिकासूत्र, प्रा., गद्य, (पृ. १३अ-१४अ, संपूर्ण), आदिः जति णं भंते समणेणं; अंतिः वा महाविदेहे सिद्धे., पे.वि. १० अध्ययन. पे. ३. पुष्पिकासूत्र, प्रा., गद्य, (पृ. १४अ-२६अ, संपूर्ण), आदिः जति णं भंते समणेणं०; अंतिः चेइयाइं जहा संगहणीए. पे. ४. पुष्पचूलिकासूत्र, प्रा., गद्य, (पृ. २६अ-२८अ, संपूर्ण), आदिः जइ णं भंते समणेणं०; अंतिः हे वासे सिज्झिहिंति., पे.वि. १० अध्ययन. पे. ५. वृष्णिदशासूत्र, प्रा., गद्य, (पृ. २८अ-३२, अपूर्ण), आदिः जइ णं भंते० पंचमस्स; अंति: मइरित्त एक्कारससु वि., पे.वि. १२ अध्ययन. बीच का एक पत्र नहीं है. पे. ६. अंगोपांग नाम, मागु., गद्य, (पृ. ३२अ, संपूर्ण), आदिः#; अंति: #. ४६४३. मदनकुमार चरित्र, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५४, जैदेना., प्र.वि. खण्ड-५, (२५४११.५, १७-१९४४६-५०). मदनकुमार चरित्र, ऋ. चौथमल, मागु., पद्य, वि. १९८०, आदिः जिन शान्ति जिनेश्वरु; अंतिः पूरण सुनो सञ्जन. ४६४५. नवतत्त्व प्रकरण का बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २८, जैदेना., प्र.वि. प्र.पु. बालावबोध ग्रं. १८०४., (२५४११.५, १८४५६-६४). For Private And Personal Use Only Page #533 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ४७९ www.kobatirth.org: Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची नवतत्त्व प्रकरण-बालावबोध, मागु., गद्य, आदिः (१) उत्तराध्ययन सूत्र ( २ ) जीवा जीवाय बन्धोय; अंतिः एक जातियो मिलै तो. , " ४६४६.” दशाश्रुतस्कन्ध सह टबार्थ, संपूर्ण वि. १७८३, श्रेष्ठ, पृ. ६३, जैदेना. प्र. वि. मूल १० दशा, संशोधित टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२५.५४११.५, ४-६४४३-४९) · दशाश्रुतस्कन्धसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., पद्य, आदिः सुयं मे आउसं तेण०: अंति: उवदंसेइ त्ति बेमि दशाश्रुतस्कन्धसूत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, आदि: श्रीदशाश्रुतस्कंध; अंतिः अधिकार कहुं हुं हुं. ४६४७. समयसार नाटक की भाषा व तेरदुर्लभगुण श्लोक, संपूर्ण, वि. १८६९, श्रेष्ठ, पृ. ५७, पे. २, जैदेना., ले. स्थल. हांसीनगर, ले. मु. फतेचन्द (गुरु गणि विजय), प्र.ले.पु. मध्यम, (२५.५x११.५, १३-१५X३६-४५). " पे. १. समयसार नाटक -पद्यानुवाद, आ. बनारसीदास, प्राहिं, पद्य वि. १६९३ (पृ. १आ-५७अ), आदि: करम भरम जग तिमिर अंतिः नाममइ परमारथ विरतन्त. पे. २. १३ दुर्लभगुण श्लोक, सं., पद्य, (पृ. ५७आ), आदि: मानुष्यंकर वंसजत्व; अंतिः संसारिणां दुर्लभाः., पे.वि. श्लो. १. ४६४८. गजसुकुमाल रास, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदेना., प्र. वि. गा. ९१, ( २६ ११.५, १३×३१). गजसुकुमाल रास, मु. शुभवर्द्धन - शिष्य, मागु., पद्य, आदि: देस सोरठ द्वारापुरी; अंतिः अविचल सम्पदा थाइ ४६४९.” सीतासती चौपाई, संपूर्ण, वि. १८३३, श्रेष्ठ, पृ. २८, जैदेना., प्र. वि. गा.८०६, संशोधित, (२७११.५, १७- १९३९-४४). सीतासती चौपाई, मागु., पद्य, वि. १६२८, आदिः सकल मनोरथ सिद्ध करी; अंतिः सिद्धि सिवपुर दीओ. ४६५०. कयवन्ना चौपाई, संपूर्ण, वि. १८७३, श्रेष्ठ, पृ. २२, जैदेना., ले. स्थल. बीनोली, ले. मु. तुलसीराम (गुरु मु. लूणकरण), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. गा. ५५५, ढाळ - ३१, ( २६×११.५, १५X३५-३६). कयवन्ना चौपाई, मु. जयतसी, मागु., पद्य, वि. १७२१, आदि: स्वस्ति श्रीसुख; अंतिः धरम करण मन उलसै छै. ४६५१. चौवीसदण्डक ओगणतीसद्वार विचार, संपूर्ण, वि. १९२७, श्रेष्ठ, पृ. १२, जैदेना. ले. स्थल पाली, ले. अमरदत्त ब्राह्मण, प्र. वि. ग्रं. ३१० (२६.५x११.५. ११४३६-४५). २४ दण्डक २९ बोल, मागु., गद्य, आदिः प्रथम नामद्वार बीजु: अंतिः अनंत गुणे अधिक जाणवा. (+) ४६५२. इगुणतीसीभावना सह टदार्थ, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ५. जैदेना. प्र. वि. मूल-गा. ३०. अंतिम गाथा का टबार्थ नहीं , लिखा है, संशोधित, पदच्छेद सुचक लकीरें मूल पाठ (२६.५४१२, ४४३२-३५). · एगूणतीसी भावना, प्रा., पद्य, आदिः संसारम्मि असारे; अंतिः अयाणमाणावि न बब्भंति. संसार किदृशे नास्ति अंतिः #. एगुणतीसी भावना- टवार्थ, सं., गद्य, आदि: " ४६५३. चिहुंगति वेलि संपूर्ण वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १५, जैदेना, ले. स्थल औरंगाबाद, प्र. वि. गा.१३५ (२६.५०१२ ७०४२३-२६)४ गति वेलि मागु, पद्य, आदि देवदया पर नमीय; अंतिः हुं वाञ्छु गुणठाण. (+) ४६५४. कर्मग्रन्थ ५ यन्त्र, संपूर्ण वि. १९३० श्रेष्ठ, पृ. २४, जैदेना. ले. स्थल पाली ले पोखरदत्त ब्राह्मण, प्र. वि. ग्रं. ९००. *पंक्ति-अक्षर अनियमित है, संशोधित (२७०४१२, १६-१७०९४८-५०). शतक नव्य कर्मग्रन्थ-यन्त्र, पं. सुमतिवर्धन, मागु., कोष्टक, वि. १८७५, आदि: श्रीजिन प्रते; अंति: (१) कृष्णगढे सुभ वास (२) देवेन्द्रसूरि लिख्यो. ४६५५. अध्यात्मगीता सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९२४, श्रेष्ठ, पृ. १३, जैदेना., ले. स्थल. धोराजी, ले. मु. पद्मचन्दजी (गुरु पं. मेत्तिचन्द्र), प्र. वि. मूल - गा.४९, (२७४१२, १४x२९-३५). अध्यात्मगीता, गणि देवचन्द्र, मागु., पद्य, आदिः प्रणमिए विश्वहित; अंतिः मुनि सुप्रतिता.. अध्यात्मगीता-बालावबोध, मागु., गद्य, आदिः प्रणमीये क० भक्ति; अंति: प्रतीत कीर्णहार छै. For Private And Personal Use Only ४६५६." सीलप्रबन्ध सीतासती चउपई, संपूर्ण वि. १८६९, श्रेष्ठ, पृ. २४, जैदेना, प्र. वि. गा.८०६, संशोधित टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२७.५४१२, १८x४२-५२). Page #534 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य भाग - १ www.kobatirth.org: · सीतासती चौपाई, मागु., पद्य, वि. १६२८, आदिः सकल मनोरथ सिद्ध करी; अंतिः सिद्धि सिवपुर दीओ.. ४६५८.” सूयगडाङ्गसूत्र सह टबार्थ - श्रुतस्कन्ध १, प्रतिपूर्ण, वि. १८८८, श्रेष्ठ, पृ. ४७, जैदेना., ले. मु. तुलसीराम (गुरु पण्डित देवकरण), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. प्र.पु. मूल अंश अध्ययन- १६. टिप्पण युक्त विशेष पाठ (२६.५४१२, ५-६०४८-५१)सूत्रकृताङ्गसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदि: बुज्झिज्ज तिउट्टेज्ज; अंति: सूत्रकृतागसूत्र- टबार्थ मागु, गद्य, आदि (१) बुझि नइ छकाय स्वरूप (२) प्रथम श्रीआचाराङ्ग: अंति: ४६५९. हंसराजवच्छराज चौपाई, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १३, जैदेना., पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., ( २६.५x१२, १३ १४४३३-३७). हंसराजवत्सराज चौपाई आ जिनोदयसूरि मागु पद्य वि. १६८०, आदि आदिसर आदे अंति " ; " ४६६१.” आचाराङ्गसूत्र सह टबार्थ श्रुतस्कन्ध १ प्रतिअपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १०३-२(१ से २) १०१, जैदेना. प्र. वि. प्र. पु. " आचाराङ्गसूत्र आ. सुधर्मास्वामी प्रा. प+ग, (प्रतिपूर्ण) आदि सुयं मे आउसं० इह अंति:आचाराङ्गसूत्र- टबार्थ, मागु., गद्य, (प्रतिअपूर्ण), आदि: सु० एहवउ साम्भलउ; अंति: " Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मूल अंश-अध्ययन-८. पत्रांक-३ से प्रारंभ हुआ है परंतु पाठ संपूर्ण है, संशोधित टिप्पण युक्त विशेष पाठ-कुछ पत्र, पू.वि. अध्ययन- १ उद्देश- ४ तक ही टबार्थ लिखा है, (२८x११.५, ४X३४-३७). ४८० ४६६२." पाण्डव चरित्र, पूर्ण, वि. १६८३, श्रेष्ठ, पृ. ५९ - १ (१५) + १ (५४) - ५९, जैदेना. प्र. वि. खण्ड -१८ संशोधित, ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित पू. वि. गाथ-८१९ से ८९९ तक नहीं हैं., प्र.ले. श्लो. (४७५) यादर्श पुस्तकं दृष्ट्वा, (२८४११.५, १९-२६४७२-७८). ; पाण्डव चरित्र, आ. जिनरत्नसूरिजी मागु, पद्य वि. १६६९, आदि जिण चउवीस नमूं चरण अंतिः सुरगिरि रवि चन्द. (+) " ४६६४. भगवतीसूत्र का सारसङ्क्षेप, अपूर्ण, वि. १७वी श्रेष्ठ, पृ. १७, जैदेना. प्र. वि. संशोधित टिप्पण युक्त विशेष पाठ, " पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. शतक - १२ तक है., ( २६११, ३५४७५-८८). भगवतीसूत्र-सारसङ्क्षेप, संक्षेप, मागु., गद्य, आदिः श्रीभगवतीसूत्र रूपीउ; अंतिः ., ४६६५." उपासकदशाद्गसूत्र सह टवार्थ व दशश्रावकवर्णन यन्त्र, संपूर्ण वि. १९०३ श्रेष्ठ, पृ. ५७, पे. २. जैदेना. ले. स्थल. संघाणा, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, ( २६१२, ६-७x४४). ४६६६. भगवतीसूत्र के यन्त्र, संपूर्ण, वि. १७६३, श्रेष्ठ, पृ. ७१, जैदेना., ले. ऋ. वाघजी, (२८x१२, ३४x२३). भगवतीसूत्र- यन्त्र, मागु, यंत्र, आदि: #; अंतिः #. पे. १. पे. नाम. उवासगदसा सह टबार्थ, पृ. १-५७ उपासकदशाङ्गसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी प्रा. प+ग, आदि: तेणं० चंपा नाम नयरी अंतिः दिवसेसु अङ्गं तहेव. उपासकदशाङ्गसूत्र-टबार्थ, मागु., पद्य, आदिः तिण काल विषइ अवसर्पि; अंतिः तु प्रतइ कहुं छं. पे. २. आनन्दादिदशश्रावक नामादिविवरण यन्त्र, प्रा., मागु., कोष्टक, (पृ. ५७अ), आदि: #; अंतिः #. " J ४६६७." भगवतीसूत्र की उद्धरण कथा शतक २ से शतक २० के उद्देशा ९ तक प्रतिअपूर्ण, वि. १६वी श्रेष्ठ, पृ. १०८-२५(५० से ६७,८९ से १५) = ८३, जैदेना. प्र. वि. यत्र तत्र मा.गु. में टिप्पणक हैं, संशोधित टिप्पण युक्त विशेष पाठ, पदच्छेद सूचक लकीरें, पू. वि. शतक-२ से २० वे शतक के उद्देशा-९ तक है., (२५४११, ११०४०). भगवती सूत्र कथा सङ्ग्रह प्रा., गद्य, आदि:-: अंतिः ४६६८. प्रश्नव्याकरणसूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ११, जैदेना, पू. वि. प्रारंभ के पत्र हैं., ( २६११, ९-११३३-४५). प्रश्नव्याकरणसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी प्रा. प+ग, आदि जम्बू इणमो अण्हयसंवर: अंति: For Private And Personal Use Only " ४६६९." समवसरणशतक सह टवार्थ भगवतीसूत्रे संपूर्ण वि. १९०२ श्रेष्ठ, पृ. २०, जैदेना. ले. स्थल. सींघाणा ले. मु. महाचन्द (गुरु मु. तुलसीराम), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. संशोधित, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२६×१२, ५-८×३५-४४). Page #535 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ४८१ (+) www.kobatirth.org: भगवतीसूत्र-हिस्सा समवसरण शतक, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदिः णमो सुयदेवयाए भगवईए; अंतिः एक्कारस्सवि उद्देशगा. भगवतीसूत्र - हिस्सा समवसरणशतक का टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः न० नमस्कार हुवो; अंतिः समवसरण पूरो थयो . ४६७०.” सूत्रकृताङ्गसूत्र सह बालावबोध - श्रुतस्कन्ध २, प्रतिअपूर्ण, वि. १६वी, श्रेष्ठ, पृ. ६८, जैदेना., प्र. वि. संशोधित, पंचपाठ, पदच्छेद सूचक लकीरें मूल पाठ, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., ( २६११, १५-१७X३०-३९). सूत्रकृतागसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी प्रा. प+ग, आदि अंति ; · " सूत्रकृतागसूत्र- वालावबोध' माग गद्य, आदि:-: अंति: · Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir , (+) कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ४६७१. कल्पसूत्र की पीठिका सह टबार्थ, संपूर्ण वि. १९१०, श्रेष्ठ, पृ. २०-१ (१) १९, जैदेना ले. पं. मनरूपसागर, प्र. वि. पत्रांक-१ की जगह २ का उल्लेख है., संशोधित, ( २६.५x११.५, ५x२८). कल्पसूत्र पीठिका, संबद्ध, सं., गद्य, आदि: श्रीकल्पः सहकार एष: अंतिः जो गुणई भत्तिजुत्तो. कल्पसूत्र - पीठिका का टबार्थ, मागु, गद्य, आदि: श्रीकल्पसूत्र आम्र; अंतिः मोक्ष जाइ निसन्देह, ४६७२. कल्पसूत्र सह टबार्थ व व्याख्यान+कथा, अपूर्ण, वि. १८६२, श्रेष्ठ, पृ. २२-३ (१० से १२ ) = १९, जैदेना., ले. स्थल. सुभटपुर, ले. नन्दराम पठ ऋ खुस्यालचन्द, पू. वि. प्रारंभ के पत्र हैं. पीठीका भाग सम्पूर्ण हैं. कल्पसूत्रारम्भ के " प्रायः दो पत्र जितना पाठ नहीं हैं, फिर भी पत्र क्रमश: है (२५४१०.५, १०x३०-३८). कल्पसूत्र, आ. भद्रवाहस्वामी, प्रा., गद्य, आदि-: अंति कल्पसूत्र - टबार्थ *, मागु., गद्य, आदि:-; अंति: कल्पसूत्र - व्याख्यान+ कथा मागु, गद्य, आदिः श्रीवर्द्धमानं जिनं अंति: " ४६७३. उत्तराध्ययनसूत्र सह नियुक्ति व टीका, पूर्ण, वि. १६वी श्रेष्ठ, पृ. १८७-१(१) - १८६, जैदेना. प्र. वि. सुंदर प्रति. पू. वि. प्रथम व अंतिम पत्र नहीं हैं. (२६.५०११, १५९५५). उत्तराध्ययनसूत्र. मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग, आदि: अंति: उत्तराध्ययनसूत्र- नियुक्ति, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., पद्य, आदि:-; अंति: उत्तराध्ययनसूत्र- टीका सं. गद्य, आदि: अंतिः " " ४६७४." कल्पसूत्र सह स्वार्थ, पूर्ण, वि. १८वी श्रेष्ठ, पृ. १०६-४(१ से ४ ) = १०२, जैदेना. प्र. वि. मूल - ९ - व्याख्यान, पदच्छेद " सूचक लकीरें (२६४११ ६×३२-३४). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी प्रा. गद्य, आदि-: अंतिः उवदंसेइ त्ति बेगि 1 " कल्पसूत्र - टबार्थ *, मागु., गद्य, आदि:-; अंतिः सुधर्मा गणधरे कह्यो. (+) ४६७५. नन्दीसूत्र के जन्त्र बोल, संपूर्ण, वि. १८९१, श्रेष्ठ, पृ. ८, जैदेना., ले. स्थल. सिंघाणा, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२६४१२, २८-३०४५४-५०) नन्दीसूत्र-यन्त्र बोल, संबद्ध, मागु, गद्य, आदि नन्दी क० आनन्दनो अंतिः तदेत ते परोक्ष. ४६७६. उत्तराध्ययनसूत्र- अध्ययन- १०, ३६ व वीरजिन स्तुति, प्रतिपूर्ण, वि. १८९२, श्रेष्ठ, पृ. १४, पे. २, जैदेना., ले. साध्वीजी सू, पठ. साध्वीजी रूपा, (२५x११.५, १२-१३X३२-३५). पे. १. पे. नाम. उत्तराध्ययनसूत्र अध्ययन- ३६, पृ. १-१२अ १२अ - १४आ, प्रतिपूर्ण ; उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग, आदि अति सम्मए ति बेमि., पे. वि. अध्ययन- १० वा और ३६ वा दो है. For Private And Personal Use Only पे. २. महावीरजिन स्तुति, सं., प्रा.,मागु., पद्य, (पृ. १२आ, संपूर्ण), आदिः पञ्चमहव्वयसव्वयमूलं; अंतिः न चलन्ति धर्म., पे.वि. गा.११. Page #536 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य भाग - १ ४८२ ४६७७. नन्दीसूत्र, पूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १८-१(१)=१७, जैदेना., पू.वि. गा.१ से १५ तक नहीं हैं., (२५.५४१२, १५४३४ ३६). नन्दीसूत्र, आ. देववाचक, प्रा., प+ग, आदिः-; अंतिः से त्तं परोक्खणाणं. ४६७८. उत्तराध्ययनसूत्र के कथासङ्ग्रह का अनुवाद, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १४, जैदेना., पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. आर्यरक्षितसूरि दृष्टान्त तक है., (२७ ११.५, १२४३५). उत्तराध्ययनसूत्र-कथासङ्ग्रह का अनुवाद, मागु., गद्य, आदिः प्रणम्य श्रीमहावीरं; अंति:४६७९. आवश्यकसूत्र सह वन्दारु वृत्ति, अपूर्ण, वि. १६वी, श्रेष्ठ, पृ. ७१, जैदेना., पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. , (२५.५४११, १५४३७-४०). आवश्यकसूत्र , प्रा., प+ग, आदिः णमो अरहंताणं०; अंति: श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-वन्दारू टीका, आ. देवेन्द्रसूरि, सं., गद्य, आदिः वृन्दारुवृन्दारक; अंति:४६८०." षडावश्यकसूत्र का कथासङ्ग्रह, संपूर्ण, वि. १६वी, श्रेष्ठ, पृ. २३, जैदेना., ले.स्थल. पीपापुरु, ले. यति श्यामजी, प्र.वि. संशोधित, (२७४१२, १७४५१-५३). आवश्यकसूत्र-कथा सङ्ग्रह, सं., गद्य, आदिः नवकार इक्कखरेणं; अंतिः चन्द्रवत् फलम्. ४६८१. बोल सङ्ग्रह, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३४-१(१)=३३, जैदेना., पू.वि. प्रारंभ व अंत के पत्र नहीं हैं., (२४.५४११, १४-१५४४५). बोल सङ्ग्रह*, सं.,प्रा.,मागु., गद्य, आदि:-; अंति:४६८२. बोल सङ्ग्रह, संपूर्ण, वि. १८४१, श्रेष्ठ, पृ. ८, जैदेना., ले.स्थल. लेंचग्राम, ले. पं. गुलाबचन्द, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. *अक्षर अनियमित है., (२६४१२, १५४०). ५८ बोल सङ्ग्रह, सं.,प्रा.,मागु., गद्य, आदिः शरीर ५ औदारीक १; अंतिः आयुष्य ३३ सागरोपम. ४६८३. दोधक काव्य, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना., प्र.वि. गा.१०७, (२७४१२, ११-१२४३८-४१). दोधक काव्य, मागु., पद्य, आदिः सकल शास्त्रि जे; अंतिः घटे इक तिल मात्र. ४६८४." आदिजिनविनती स्तवन सह टबार्थ- दण्डक स्तव, संपूर्ण, वि. १७५५, श्रेष्ठ, पृ. ७, जैदेना., ले. ऋ. बंशी, प्र.वि. मूल गा.२१., टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२७४११.५, ४४३७-४२). आदिजिन स्तवन-विज्ञप्तिविचारगर्भित, गणि विजयतिलक, मागु., पद्य, आदिः पहिलो पणमिय देव; अंतिः विजयतिलय निरञ्जणो. आदिजिन स्तवन-विज्ञप्तिविचारगर्भित-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः प्रथम देव आदीश्वरनै; अंतिः हेतु तिसही बोलतां. ४६८५. योगशास्त्र, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, जैदेना., प्र.वि. संशोधित, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्रकाश-२ का श्लो.१११ तक है., (२५.५४१२, ११४३१-३३). योगशास्त्र, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, आदिः नमो दुर्वाररागादि; अंति:४६८६. तत्त्व सङ्ग्रह, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १७-६(१ से ५,१२)=११, जैदेना., पू.वि. प्रारंभ, बीच व अंत के पत्र नहीं हैं. , (२५.५४११, ११-१२४४०-४९). तत्त्वसङ्ग्रह', मागु., गद्य, आदि:-; अंतिः४६८७." जिनप्रतिमापूजासिद्धि, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २८, जैदेना., पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., दशा वि. विवर्ण अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जीवातकृत छिद्र युक्त, (२५४११.५, १२-१५४४५-५१). जिनप्रतिमापूजासिद्धि, मागु., गद्य, (संपूर्ण), आदिः पुष्पादि किसी रीतिइ; अंति: सत्तर भेद पूजा कीधी. ४६८८. दृष्टान्त सङ्ग्रह, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना., (२५.५४११.५, २३-२७४४०-५१). दृष्टान्त सङ्ग्रह, मागु., गद्य, आदिः वित्तेणं० वित्तते; अंति: पाली मोक्ष गया. For Private And Personal Use Only Page #537 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ४८३ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ४६८९. समाधितन्त्रे अट्ठावीसलब्धि वर्णन, संपूर्ण, वि. १८९०, श्रेष्ठ, पृ. २२, जैदेना., ले.स्थल. राजनगर, (२६.५४१२, १३४२९-३२). २८ लब्धि वर्णन, मागु., गद्य, आदिः इणी प्रकारे आपणो; अंतिः सूत्रनो अर्थ देखी. ४६९०. न्यायप्रवेशक की शिष्यहिता व्याख्या न्याय श्लोक, संपूर्ण, वि. १९२०, श्रेष्ठ, पृ. १८-१(१०)+१(९)=१८, जैदेना., ले.स्थल. जयनगर, ले. देवकृष्ण जोसी,प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. अंत में न्याय संबंधी ४ श्लोक है., (२५.५४१२, १३४४५-४७). न्यायप्रवेशसूत्र-शिष्यहिता वृत्ति, आ. हरिभद्रसूरि, सं., गद्य, आदिः सम्यग्ज्ञानस्य; अंतिः संलभतां जनस्तेन. ०६९१. चावासदण्डक-३० बाल आदि सङ्ग्रह, संपूर्ण, वि. १७५७, श्रेष्ठ, पृ. २०, पे. १०, जैदेना., ले. मु. नेमिविजय, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२६४११.५, २१४४८-५३). पे. १. पे. नाम. ३० बोलना २४ दण्डक, पृ. १-१४ २४ दण्डक ३० द्वार विचार, मागु., गद्य, आदिः दण्डक लेश्या ठित्ती; अंतिः निरन्तरदार समत्तं. पे. २. शाश्वतप्रतिमा वर्णन, प्रा., पद्य, (पृ. १४आ-१५अ), आदिः चत्तारिअठ्ठदसदोइ; अंतिः समकाल उप्पन्न वंदामि. पे. ३. नवकारमन्त्र-बालावबोध, मागु., गद्य, (पृ. १५अ-१७आ), आदिः बारसगुण अरिहन्ता; अंतिः सुश्रावक सुश्राविका. पे. ४. देवताओं की गति आगति, मागु., गद्य, (पृ. १७आ), आदिः च्यार निकाय ना देवता; अंतिः दण्डकमांहे देवता जाइ. पे. ५. आगमों में जिनप्रतिमा के आलापक, प्रा.,मागु., गद्य, (पृ. १७आ-१८आ), आदिः उववाई माहे अम्बडने; अंतिः सिद्धान्त जाणवा., पे.वि. ४५ आगमादि अन्य विषयों का भी वर्णन है. पे. ६. अरिहन्त चौतीसअतिशय, मागु., गद्य, (पृ. १८आ-१९अ), आदिः नमो अरिहन्ताणं; अंति: गुण अरिहन्तना कहीइ. पे. ७. सिद्धपद के आठगुण, मागु., गद्य, (पृ. १९अ), आदि: नमो सिद्धाणं सिद्ध; अंति: तेजे करी सिद्ध सोभे. पे. ८. अरिहन्तवाणी के पैंतीसगुण, सं.,मागु., गद्य, (पृ. १९अ), आदिः संस्कारत्वं संस्कृत; अंति: अविछिन्न वचन कहे. पे. ९. अरिहन्त चौतीसअतिशय, मागु., गद्य, (पृ. १९आ-२०अ), आदिः चोतीसा बुद्धातिसया; अंतिः क्षिप्रमेव उपशमे. पे. १०. पे. नाम. गर्भ होने का उपाय, पृ. २०आ गर्भधारण औषध, मागु., गद्य, आदिः मोरसीखा १ राजहंस; अंतिः ३ सन्तान थाय. ४६९३. उपदेशसप्ततिका सह स्वोपज्ञ टीका, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, जैदेना., पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. गा.२ की आंशिक टीका तक है., (२६४११.५, १५४४०). उपदेशसप्ततिका, वाचक क्षेमराज, प्रा., पद्य, वि. १५४७, आदिः तित्थङ्कराणं; अंति:उपदेशसप्ततिका-स्वोपज्ञ टीका, वाचक क्षेमराज, सं., गद्य, वि. १५४७, आदिः (१) विश्वाभीष्टविशिष्ट (२) अहो भव्या यूयं; अंति:४६९४. सम्यक्त्व रास सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ३३-१(३)=३२, जैदेना., प्र.वि. त्रिपाठ-अंतिम कुछ पत्र, त्रिपाठ-प्रारंभिक पत्र, पू.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., (२५.५४११.५, १२-१४४४५). सम्यक्त्व रास, मागु., पद्य, आदिः प्रणमी पद जिनवर तणा; अंति: सम्यक्त्व रास-बालावबोध, मागु., गद्य, आदिः प्रणम्य परमानन्ददायक; अंति:४६९५.” अष्टप्रवचनमाता की कथाएँ, संपूर्ण, वि. १६वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदेना., प्र.वि. प्र.पु. ग्रं. २००., संशोधित, (२६४११, १३४४२). अष्टप्रवचनमाला कथा सङ्ग्रह, सं., पद्य, आदिः साधुभिः प्रतिपाल्येय; अंतिः सदान्यैरपि कायगुप्ति. ४६९६. सङ्ख्याभेद विचार- अनुयोगद्वारसूत्र अन्तर्गत, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ६-१(१)=५, जैदेना., प्र.वि. प्रथम पेज नंबर गलत लिखा है(१ नंबर है.), (२६४११, १३४४४). For Private And Personal Use Only Page #538 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य भाग - १ ४८४ सङ्ख्याभेद विचार, मु. पार्श्वचन्द्र, मागु., गद्य, आदिः (१) हिवं गण सङ्ख्याना (२) गुरु समीप विनय करी; अंतिः बुद्ध्यै पासचन्देण. ४६९८.” स्तवनचौवीसी सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १६, जैदेना.,प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. स्तवन-२० तक लिखे हैं. २१वे की पूर्व भूमिका मे षड्दर्शन वर्णन., (२७४११, ५४४५-४६). स्तवनचौवीसी, मु. आनन्दघन, मागु., पद्य, वि. १८पू, आदिः ऋषभ जिनेश्वर प्रीतम; अंति: स्तवनचौवीसी-टबार्थ, आ. ज्ञानविमलसूरि, मागु., गद्य, आदिः चिदानन्दमय जिनवरु; अंति:४६९९. भक्तामर स्तोत्र सह बालावबोध व कथा, पूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३५, जैदेना., प्र.वि. मूल-श्लो.४४., अक्षर-दुर्वाच्य शुरुआत व अंत के कुछ पत्र, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. अन्तिम गाथा का अर्थ अपूर्ण है., (२६४११.५, १२४२९-४५). भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुङ्गसूरि, सं., पद्य, (संपूर्ण), आदिः भक्तामरप्रणतमौलिमणि; अंतिः समुपैति लक्ष्मी. भक्तामर स्तोत्र-वार्तिक, मागु., गद्य, (पूर्ण), आदिः वरदां शारदां नत्वा; अंति: भक्तामर स्तोत्र-कथा* , मागु., गद्य, (पूर्ण), आदिः-; अंतिः४७००. पार्श्व, नेमि, शान्ति व ऋषभजिन स्तोत्र सङ्ग्रह, संपूर्ण, वि. १८६३, श्रेष्ठ, पृ. ५, पे. ४, जैदेना., ले. पं. राजविजय (गुरु पं. गुलालविजय),प्र.ले.पु. मध्यम, (२५.५४११, ११४४०). पे. १. पार्श्वजिन स्तोत्र, सं., पद्य, (पृ. १-३अ), आदिः पार्श्वनाथ नमस्तुभ्य; अंतिः सततमहं नमस्करोमि., पे.वि. श्लो.४९. पे. २. पे. नाम. नेमनाथ नमस्कार, पृ. ३आ-४अ नेमिजिन नमस्कार, सं., पद्य, आदिः नेमिर्विशालनयनो; अंतिः भावतोहं नमामि., पे.वि. श्लो.१२. पे. ३. पे. नाम. शान्तिनाथजी नमस्कार, पृ. ४ शान्तिजिन नमस्कार, सं., पद्य, आदिः श्रीमते शान्तिनाथाय; अंतिः इव शाश्वतीम्., पे.वि. श्लो.१३. पे. ४. पे. नाम. ऋषभदेवजी नमस्कार, पृ. ४आ-५आ आदिजिन नमस्कार, सं., पद्य, आदिः श्रियं दिशतु वो देवः; अंतिः साक्षात् सुरद्रुमम्., पे.वि. श्लो.१८. ४७०१. भक्तामर स्तोत्र की टीका (अन्वय), संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना., (२५.५४११, १३४३८). भक्तामर स्तोत्र-टीका, सं., गद्य, आदिः किल इति सत्ये अहं; अंतिः विचित्रपुष्पाम्. ४७०२. अनुयोग विधि, संपूर्ण, वि. १७पू, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदेना., (२६x१२.५, १३४३९-४२). अनुयोग विधि, सं.,प्रा.,मागु., पद्य, आदिः वसतिशोधन प्रमार्जन; अंतिः जिणाय नवकारउ धणियम्. ४७०३." प्रतिष्ठाविधि सङ्ग्रह, पूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १५-१(१)=१४, जैदेना., प्र.वि. संशोधित, (२५४११.५, २०४५७-६५). प्रतिष्ठाविधि सङ्ग्रह, सं.,मागु., गद्य, आदि:-; अंति: गच्छ गच्छ स्वाहा. ४७०४. कथा सङ्ग्रह व दशाश्रुतस्कन्ध का टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १०, पे. २, जैदेना., (२५.५४११, २४४६१). पे. १. कथा सङ्ग्रह, मागु., पद्य, (पृ. १-१०, संपूर्ण), आदिः कोडी सएहं धन; अंतिः इम मत्सर न करवो., पे.वि. २३ कथा. पे. २. पे. नाम. दशाश्रुतस्कन्ध के टबार्थ का मङ्गलाचरण, पृ. १०आ-१०आ, प्रतिपूर्ण दशाश्रुतस्कन्धसूत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः वर्द्धमानं जिनं; अंतिः-, पे.वि. टबार्थ का मंगलाचरण सामान्य प्रारंभ मात्र लिखा है. ४७०५. श्रीपालनरेन्द्र कथा सिद्धचक्रमाहात्म्ययुता, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४९-४(१ से ४)=४५, जैदेना.,प्र.वि. गा.१३४८, (२५४११.५, १२४४७). सिरिसिरिवाल कहा, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., पद्य, वि. १४२८, आदि:-; अंतिः वाइज्जन्ता कहा एसा. For Private And Personal Use Only Page #539 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ४८५ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ४७०६. जैन कथा सङ्ग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४६+२(८ से ९)=४८, जैदेना., पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., (२५.५४१२, १५४३०-४०). कथा सङ्ग्रह** , सं.,प्रा.,मागु., पद्य, आदिः हिवे छ आरानुं नाम; अंति:४७०७. महाबलमलयासुन्दरी रास, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ७८, जैदेना., पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. गा.१००५ तक हैं., (२५.५४११, १७४५३-५६). महाबलमलयासुन्दरी रास, मु. जिनहर्ष, मागु., पद्य, वि. १७५१, आदिः श्रीशान्तिसर सोलमो; अंति:४७१४. सिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासन-स्वोपज्ञ लघुवृत्ति के आख्यातवृत्ति की अवचूर्णिका, संपूर्ण, वि. १६पू, श्रेष्ठ, पृ. ३१, जैदेना., (२६.५४११, १९४७०-७५). सिद्धहेमशब्दानुशासन-स्वोपज्ञ लघुवृत्ति के आख्यातवृत्ति की अवचूरि, सं., गद्य, आदिः वृधूड वृद्धौ वृध; अंतिः एदैतोयाय अय्. ४७२३.” शब्दसंचय, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, जैदेना., प्र.वि. संशोधित, (२६४११, १७४४२-४५). शब्दसंचय, सं., गद्य, आदिः शब्दाम्भोधिसमुल्लासर; अंतिः नदीवत् एवमन्येपि. ४७२४." सिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशाने धातुपाठ सह टीका, संपूर्ण, वि. १६वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, जैदेना., प्र.वि. ग्रं. ३००., संशोधित, पंचपाठ, अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ, दशा वि. अक्षर फीके पड गये हैं, (२६x११, १३-१४४४४-४६). सिद्धहेमशब्दानुशासन-हैमधातुपाठ, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, संबद्ध, सं., गद्य, वि. ११९३, आदि: भू सत्तायां ___पां पाने; अंतिः बहुलमेतन्निदर्शनम्.. सिद्धहेमशब्दानुशासन-हैमधातुपाठ की अवचूरि, सं., गद्य, आदिः इह पूर्वाचार्य; अंतिः स्वार्थे सिद्धम्. ४७२५. छन्दोनुशासन सह स्वोपज्ञ टीका, संपूर्ण, वि. १६५३, श्रेष्ठ, पृ. ७९, जैदेना., ले. गणि संवेगकीर्ति, प्र.वि. मूल-अध्याय ८. प्र.पु. सर्वग्रं. २९९९., (२६४११, १५४४०-४५). छन्दोनुशासन, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., गद्य, आदिः वाचं ध्यात्वार्हती; अंतिः द्विघ्नानेकाध्वयोगः. छन्दोनुशासन-स्वोपज्ञ वृत्ति, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., गद्य, आदिः शब्दानुशासनविरचना; अंतिः त्वस्माभिरुक्तः. ४७३३. ग्रहभावप्रकाश सह टीका, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, पे. २, जैदेना., पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., (२७.५४१२, २२४५३-५९). पे. १. पे. नाम. भुवनदीपक सह भाषाटीका, पृ. १-९आ, संपूर्ण भुवनदीपक, आ. पद्मप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३पू, आदिः सारस्वतं नमस्कृत्य; अंतिः श्रीपद्मप्रभुसूरिभिः. भुवनदीपक-बालावबोध', मागु., गद्य, आदिः सरस्वती नाम जो देवी; अंतिः विचरता छता उद्धारइ., पे.वि. मूल ___ श्लो.१८१. पे. २. पे. नाम. गर्भज्ञान, राशीश आदि, पृ. ९आ-, अपूर्ण ___ ज्योतिष अपूर्ण ग्रन्थ, सं.,प्रा.,मागु., प+ग, आदि:-; अंतिः-, पे.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. ४७३९. कल्पसूत्र का व्याख्यान+कथा, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना., पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. पीठिका भाग अपूर्ण तक है., (२३.५४१४.५, १७४३९). कल्पसूत्र-व्याख्यान+कथा, मु. हेमविमलसूरि-शिष्य, मागु., गद्य, आदिः सकलार्थसिद्धिजननी; अंति:४७४०. कल्पसूत्र सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १७, जैदेना.,पू.वि. प्रारंभ के पत्र हैं. पीठिका भाग तक है., (२६४१३, १०-१३४२१-२३). कल्पसूत्र-बालावबोध', मागु.,राज., गद्य, आदिः अर्हन्त भगवन्त; अंति:४७४१. जिनप्रतिमा छूटक आलावा, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १०, जैदेना.,प्र.वि. संशोधित, (२५४१२, १२-१३४३०-३२). For Private And Personal Use Only Page #540 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org: हस्तलिखित जैन साहित्य भाग १ आगमों में जिनप्रतिमा के आलापक, प्रा. मागु., गद्य, आदि: तेणं कालेणं तेणं; अंतिः अतिशये तलतुं नथी छे. ४७४२. आगमसारोद्धार, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १६, जैदेना., पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., ( २६१२, १७५१-५५). आगमसारोद्धार, उपा. देवचन्द, मागु., गद्य, वि. १७७६, आदिः हिवै भव्यजीवने; अंति: (+) " ४७४३. सम्यक्त्वसप्ततिका सह वृत्ति, अपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ३९ -१३ (१ से १३ ) - २६, जैदेना. प्र. वि. संशोधित पू.वि. बीच के पत्र हैं. (२६.५x१२.५. १५४४७-४९). सम्यक्त्वसप्ततिका, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि:-; अंतिः सम्यक्त्वसप्ततिका-टीका, आ. सङ्घतिलकसूरि, सं., प+ग, वि. १४२२, आदि:-; अंतिः Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४७४४.” कर्मग्रन्थ ४, ५, ६ सह टीका, अपूर्ण, वि. १६वी, श्रेष्ठ, पृ. २६३ - ११२ (१ से ११२ ) = १५१, पे. ३, जैदेना., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि 'सूचक चिह्न, संशोधित, पृ. वि. कर्मग्रन्थ-४ की गा७४ से अन्त तक हैं., (२८.५०१३, १५×६५). पे. १. पे नाम षडशीति सह स्वोपज्ञ टीका, पृ. ११३ ११९अ अपूर्ण षडशीति नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि प्रा., पद्य, आदि:- अंति देविन्दसूरीहिं. षडशीति नव्य कर्मग्रन्थ-स्वोपज्ञ सुखबोधा टीका, आ. देवेन्द्रसूरि, सं., गद्य, आदि:-; अंति क्रमकमलचञ्चरीकैरिति, पं.वि. मूल-गा. ८६. प्र. पु. टीका ग्रं. ३८००. अंत के पत्र हैं. गा. ७४ से है. पे. २. पे. नाम. शतक कर्मग्रन्थ सह स्वोपज्ञ टीका, पृ. ११९अ - १९६, संपूर्ण शतक नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, आदिः नमिय जिणं धुवबन्धोदय; अंतिः सयगमिणं आयसरणट्ठा. शतक नव्य कर्मग्रन्थ-स्वोपज्ञ टीका, आ. देवेन्द्रसूरि, सं., गद्य, आदिः यो विश्वविश्वभविनां; अंतिः (१) स्मृतिनिमित्तमिति (२) सर्वोपि तेन जनः ., पं. वि. मूल-गा. १०० टीका ग्रं. ४३४०. , ' " पे. ३. पे नाम, सप्ततिका कर्मग्रन्थ सह टीका, पृ. १९७-२६३, संपूर्ण सप्ततिका कर्मग्रन्थ, प्रा., पद्य, आदिः सिद्धपएहिं महत्थं; अंतिः पूरेऊणं परिकहन्तु. सप्ततिका कर्मग्रन्थ- टीका आ. मलयगिरिसूरि सं. गद्य, आदि (१) अशेषकर्माशतमःसमूह ( २ ) इह यत् शास्त्रं " , अंतिः (१) शिष्येभ्यः कथयन्तु (२) धर्मं परममङ्गलम्., पे.वि. मूल-गा. ८९; टीका- ग्रं.३८८०. ४८६ ४७४५. तत्त्व सङ्ग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २६, जैदेना., (२८x१२.५, १९×३१-३९). गन्ध; अंतिः प्रमाण थाय ते जाणवुं. तत्त्व सङ्ग्रह, मागु., गद्य, आदिः एक वर्ण बीजो ४७४६. उपदेश व्याख्यान व पट्टावली, संपूर्ण, वि. , १९वी श्रेष्ठ, पृ. १२, पे. २, जैदेना. (२६.५x१३, १२X४०). पे. १. औपदेशिक व्याख्यान, मागु., गद्य, (पृ. १-१०), आदि: णमो अरिहन्ताणं; अंतिः निरञ्जन भगवन्त थया... पे. २. पट्टावली लोङ्कागच्छीय, मागु, गद्य (पृ. १०आ - १२आ), आदि (१) हिये अनुक्रमै पाट (२) हियै " श्रीमहावीरजीने; अंतिः पिता जीवादै माता. ४७४७ स्थापना निक्षेप आदि चर्चा सग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ११, जैदेना, (२८४१३, १९-२०४३९-४४) , चर्चा सङ्ग्रह स्थानकवासीमतमण्डन हिन्दी गद्य आदि अगर कितनेक वादी अंतिः शुद्ध अर्थ होता है. '. " For Private And Personal Use Only ४७४८." उत्तमकुमार कथा, संपूर्ण, वि. १९६४, श्रेष्ठ, पृ. ८, जैदेना., ले. स्थल. जोधपुर, ले. बालाराम ललितराम, प्र. वि. ग्रं. ५२५, संशोधित, (२७४१२.५, १७४५८-६१). उत्तमकुमार कथा, मागु., गद्य, आदि: अरथ जेणे स्वायते; अंतिः तो साधी सकीए. ४७४९. शातवाहननृप कथा संपूर्ण वि. १९६१ श्रेष्ठ, पृ. ५९. जैवेना. ले. स्थल जोधपुर, प्र. वि. श्लो. १७२३ नं. १८००. किसी प्राचीन आदर्श प्रत पर से लिखी जाने की संभावना है. अन्तिम पंक्ति अस्पष्ट है., ( २४x१२.५, १३-१४X३४-३६). सातवाहननृप कथा, गणि शुभशील, सं., पद्य, आदि: श्रीआदिनाथप्रभृतीन अंतिः प्रमाणस० मष्कात. Page #541 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ४८७ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ४७५४. रघुवंश सह टिप्पण-सर्ग ३ से ६, प्रतिपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३५, जैदेना., (२४x१२, १७-१८४३६-४५). रघुवंश, कालिदास, सं., पद्य, आदि:-; अंति: रघुवंश-टिप्पण, गणि क्षेमहंस, सं., गद्य, आदि:-; अंति:४७६६. योगचिन्तामणि, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५३, जैदेना., पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. अध्याय-३ चालु है., (३०.५४१४.५, ६४३०). योगचिन्तामणि, आ. हर्षकीर्तिसूरि, सं., पद्य, वि. १७वी, आदिः यत्र वित्रासमायान्ति; अंति:४७७५. दशवैकालिकसूत्र, संपूर्ण, वि. १९०७, श्रेष्ठ, पृ. १८, जैदेना., ले.स्थल. सरपतैगढ, ले. साध्वीजी छोटा सती, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. १०अध्ययनरचूलिका, (२८x१४, १८-२०४३२-३६). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यम्भवसूरि, प्रा., पद्य, वि. पू.४, आदिः धम्मो मङ्गलमुक्किट्ठ; अंति: गई त्ति बेमि. ४७७६. सकलार्हत् स्तोत्र व पाक्षिक अतिचार व पाक्षिकसूत्र, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, पे. ३, जैदेना., पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., (२८x१३, ११४२७-३५). पे. १. सकलार्हत् स्तोत्र, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, (पृ. १-२, संपूर्ण), आदिः सकलार्हत्प्रतिष्ठानम; __ अंतिः कुर्वन्तु वो मङ्गलम्., पे.वि. श्लो.३३. पे. २. पे. नाम. साधुपाक्षिक अतिचार, प्र. ०३अ-०६आ, संपूर्ण साधुपाक्षिकअतिचार श्वे.मू.पू., संबद्ध, मागु.,प्रा., गद्य, आदिः नाणम्मि दंसणम्मि०; अंतिः अनेरो जे कोई अतिचार. पे. ३. पे. नाम. साधुपाक्षिकसूत्र, पृ. ०६आ-०६आ, अपूर्ण पाक्षिकसूत्र, प्रा., प+ग, आदिः तित्थङ्करे य तित्थे; अंतिः-, पे.वि. प्रारंभिक आलापक है. ४७७७. अष्टढाल चौपाई, संपूर्ण, वि. १९५३, श्रेष्ठ, पृ. ८, जैदेना., ले.स्थल. सिंघाणा, प्र.वि. ढाळ-७, (२८x१३.५, १३-१७४३३ ३५). गुणमाला रास, मु. विनयचन्द, मागु., पद्य, वि. १८८५, आदिः सरस्वती माता आदे; अंतिः सतीगुण सुख भासीये. ४७७९." श्राद्धपाक्षिक अतिचार, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १०, जैदेना.,प्र.वि. संशोधित, (२७.५४१३, १२४३१-३२). श्रावकपाक्षिकअतिचार-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मागु., गद्य, आदिः नाणम्मि दंसणम्मि०; अंतिः मिच्छामि दुक्कडम्. ४७८०. कल्पसूत्र सह कल्पसुबोधिका टीका, संपूर्ण, वि. १८४९, श्रेष्ठ, पृ. १५०, जैदेना., ले.स्थल. पालिताणा, प्र.वि. मूल-ग्रं. १२१६, ९-व्याख्यान., त्रिपाठ, (२८x१३x-४८). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदिः णमो अरिहन्ताणं० पढमं; अंतिः उवदंसेइ त्ति बेमि. कल्पसूत्र-सुबोधिका टीका, उपा. विनयविजय , सं., गद्य, वि. १६९६, आदिः प्रणम्य परमश्रेयस्कर; अंतिः विद्वज्जनराश्रिता. ४७८१. जीवाभिगमसूत्र सह टबार्थ व बीजक, संपूर्ण, वि. १८४५, श्रेष्ठ, पृ. २०१, जैदेना., प्र.वि. मूल-१० प्रतिपत्ति., (२८.५४१३, ६x६१-६९). जीवाभिगमसूत्र, प्रा., गद्य, आदि: णमो उसभादियाणं; अंतिः सेत्तं सव्वजीवाभिगमे. जीवाभिगमसूत्र-टबार्थ, मु. जिनविजय, मागु., गद्य, वि. १७७२, आदिः प्रणम्य ज्ञानविज्ञान; अंतिः अभिगम सम्पूर्ण थयो. ४७८२. अध्यात्मगीता सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १८८२, श्रेष्ठ, पृ. ६४, जैदेना., ले.स्थल. पाली, प्र.वि. मूल-गा.४९; बालावबोध-ग्रं. १२५०., (२७४१३, ११४२६-२९). अध्यात्मगीता, गणि देवचन्द्र, मागु., पद्य, आदिः प्रणमियै विश्वहित; अंतिः मुनि सुप्रतिता. अध्यात्मगीता-बालावबोध, मु. अमीकुंयरजी, मागु., गद्य, वि. १८८२, आदिः संवेगी सिरदार; अंतिः तसघर लछि लीला करै. For Private And Personal Use Only Page #542 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य भाग - १ ४८८ ४७८८. खण्डाजोयण विचार, संपूर्ण, वि. १९०६, श्रेष्ठ, पृ. १२, जैदेना., ले.स्थल. पाली, प्र.ले.श्लो. (४७५) यादशं पुस्तकं दृष्ट्वा , (२७७१३, ११४२३-२८). लघुसङ्ग्रहणी-खण्डाजोयण बोल*, संबद्ध, मागु., गद्य, आदिः जम्बुद्वीप एक लाख; अंतिः द्वीप परद्वीप जाणवा. ४७८९. मदनरेखा चौपाई, संपूर्ण, वि. १९०७, श्रेष्ठ, प्र. ६, जैदेना., ले.स्थल. छोटा फतेगढ, (२८x१३, १५-२०४३०-३७). ___ मदनरेखा चौपाई, मागु., पद्य, आदिः वापै सु आपै धनन्नी; अंतिः राजवीयानइ राज पियारो. ४७९१. मैणरेहा चौपाई, संपूर्ण, वि. १९५३, श्रेष्ठ, पृ. ७, जैदेना., ले.स्थल. सिंघाणा, ले. जोराजी, (२७.५४१३, १४-२०४३२ ३७). मदनरेखा रास, मागु., पद्य, आदिः जूआ मांस दारु थकी; अंतिः हीर सेवग चितलायो रे. ४७९२. कल्पसूत्र सह सुबोधिका वृत्ति, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४१, जैदेना.,प्र.वि. मूल-९-व्याख्यान., अक्षर-दुर्वाच्य, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२८.५४१३, २१-२२४५०-५१). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदिः णमो अरिहन्ताणं पढमं; अंतिः उवदंसेइ त्ति बेमि. कल्पसूत्र-सुबोधिका टीका, उपा. विनयविजय , सं., गद्य, वि. १६९६, आदिः प्रणम्य परमश्रेयस्कर; अंतिः विद्वज्जनराश्रिता. ४७९३." मार्गशीर्षशुक्लएकादशी कथा, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १७, जैदेना., प्र.वि. संशोधित, प्र.ले.श्लो. (४७५) यादशं पुस्तकं दृष्ट्वा , (२७.५४१४, १५४३८). मौनएकादशीपर्व कथा, सं., गद्य, आदिः शान्तीशं शान्ति; अंतिः सोद्यमानसमा भवति. ४७९४. चातुर्मासिक व्याख्यान, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ११, जैदेना.,प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न, संशोधित, (२७.५४१४, १५४४३-४५). चातुर्मासिकत्रय व्याख्यान, पाठक क्षमाकल्याण, सं., गद्य, आदि: स्मारं स्मारं स्फुरद; अंतिः व्याख्यानमाख्यानभृत्. ४७९७. खण्डाजोयण विचार, पन्द्रहतिथि व सातवार सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९१८, श्रेष्ठ, पृ. ६, पे. ३, जैदेना., ले.स्थल. अंवरसर, (२४४१२.५, १५-१७४३५-३७). पे. १. लघुसङ्ग्रहणी-खण्डाजोयण बोल', संबद्ध, मागु., गद्य, (पृ. १अ-५आ), आदिः खण्डा १ जोयण २ वास; अंतिः उत्तरनी १४५६०९०. पे. २.१५ तिथि सज्झाय, मु. धनसीराम, मागु., पद्य, वि. १९१०, (पृ. ५आ-६अ), आदि: पनरा तिथि में धरम; अंतिः वार शनिश्चर वारोजी., पे.वि. गा.१८. पे. ३.७ वार सज्झाय, धनदास, मागु., पद्य, (पृ. ६आ), आदिः अतवारने आतम सुधकर; अंतिः पावो भवपारो रे., पे.वि. गा.८. ४७९८. दानशीलतपभावना रास, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, जैदेना., ले. मु. हीराचन्द, (२४४१३.५, १४४२०-२१). दानशीलतपभावना संवाद, उपा. समयसुन्दर गणि, मागु., पद्य, वि. १६६२, आदिः प्रथम जिनेसर पाय; अंतिः समृद्धि सुप्रसादो रे. ४८०४. पुन्यप्रकाश स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, जैदेना., प्र.वि. गा.१०२, ढाळ-८, (२५.५४१३, १२४२३-३०). पुण्यप्रकाश स्तवन, उपा. विनयविजय , मागु., पद्य, वि. १७२९, आदिः सकल सिद्धिदायक; अंतिः नामे पुण्यप्रकाश ए. ४८०५. कल्याणमन्दिर स्तोत्र सह टीका, अजीवभेद, ध्यानवर्णन व वीसस्थानक नाम, संपूर्ण, वि. १९४०, श्रेष्ठ, पृ. १४, पे. ४, जैदेना., ले.स्थल. सवाईजयपुर, ले. पं. मयाचन्द, प्र.वि. त्रिपाठ, (२६x१३.५, १४-१६x४५-५०). पे. १.पे. नाम. कल्याणमन्दिर स्तोत्र सह टीका, पृ. २१-१४अ कल्याणमन्दिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकर, सं., पद्य, आदिः कल्याणमन्दिरमुदारमवद; अंतिः मोक्षं प्रपद्यन्ते. For Private And Personal Use Only Page #543 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ४८९ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची कल्याणमन्दिर स्तोत्र-टीका, पाठक हर्षकीर्ति, सं., गद्य, आदिः श्रीमत्पार्श्वजिनं; अंतिः द्विशोध्यं विचक्षणैः., पे.वि. मूल-श्लो.४४. पे. २. अजीवतत्त्व भेद, मागु., गद्य, (पृ. १४आ), आदिः धर्मास्तिकायना गुण; अंतिः आकाशास्तिकाय. पे. ३.४ ध्यान वर्णन, प्राहिं., गद्य, (पृ. १४आ), आदिः ध्यान चार भगवन्त; अंतिः ध्यान सो पावे. पे. ४.२० स्थानक नाम, प्रा., पद्य, (पृ. १४आ), आदिः नमो अरिहन्ताणं० नमो; अंति: नाणस्स नमो तित्थस्स. ४८०७. प्रदेशीराजा चरित्र, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २१, जैदेना., पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. सर्ग-३ की गा.९२ तक हैं., (२६.५४१३, १३-१५४४७-४८). प्रदेशीराजा चरित्र, सं., पद्य, आदिः श्रीनाभिभूपकुले; अंति:४८०८. मानतुङ्गमानवती चौपाई, संपूर्ण, वि. १९३०, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना., ले.स्थल. बदरषाग्राम, ले. श्रा. गुलाबचन्द, प्र.वि. ढाळ-८, (२६.५४१२.५, १९x४४). मानतुङ्गमानवती रास, अनुपचन्द-शिष्य , मागु., पद्य, वि. १८७०, आदिः श्रीजिनशान्ति जिनेसर; अंतिः प्रसादे० जयनगरे कही. ४८०९. भुवनदीपक सह बालावबोध व साहित्यिक दोहा, संपूर्ण, वि. १८५१, श्रेष्ठ, पृ. ९, पे. २, जैदेना., ले.स्थल. रीगणोद, ले. मु. राजाराम, (२८x१३, १६x४२-४६). पे. १. पे. नाम. भुवनदीपक सह बालावबोध, पृ. १-९ भुवनदीपक, आ. पद्मप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३पू, आदिः सारस्वतं नमस्कृत्य; अंतिः वाच्योष्णमस्थेपि च. भुवनदीपक-बालावबोध, मागु., गद्य, आदिः सरस्वती नै नमस्कार; अंतिः वेला पीडा कहिवो., पे.वि. मूल श्लो.१३५. पे. २. दुहा सङ्ग्रह' , मागु.,प्रा.,सं., पद्य, (पृ. ९आ), आदिः#; अंतिः#. ४८११. अञ्जनासती रास, संपूर्ण, वि. १९४६, श्रेष्ठ, पृ. १९, जैदेना., प्र.वि. गा.६३२, खण्ड-३, (२६.५४१३, १७-१९४३४). अंजनासुन्दरी रास, मु. पुण्यसागर, मागु., पद्य, वि. १६८९, आदिः गणधर गौतम प्रमुख; अंतिः सती ए सीरोमण गाई ४८१५. श्रावक पाक्षिक अतिचार, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, जैदेना., (२५४१३.५, १४४३०-३३). श्रावकपाक्षिकअतिचार-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मागु., गद्य, आदिः नाणम्मि दंसणम्मि०; अंतिः मिच्छामि दुक्कडम्. ४८१६. नवतत्त्व प्रकरण का बालावबोध, संपूर्ण, वि. १८६९, श्रेष्ठ, पृ. २०, जैदेना., ले.स्थल. नवानगर, (२४.५४१३, १३ १५४३५). नवतत्त्व प्रकरण-बालावबोध, मागु., गद्य, आदिः हवे नवतत्त्वनां नाम; अंतिः अजीव ते मिश्र कहिइं. ४८१७. चौमासी देववन्दन, पूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १९-२(१६ से १७)=१७, जैदेना., (२५४१३.५, १२४३२). चौमासी देववन्दन, पं. पद्मविजय, मागु., पद्य, आदिः विमल केवलज्ञान कमला; अंतिः पास सामलनु चेई रे. ४८१८. महावीरजिन पञ्चकल्याणक स्तवन, संपूर्ण, वि. १९४२, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना., ले.स्थल. वीरमगाम, प्र.वि. गा.५६, ढाळ ३, (२५.५४१४, ११४२७-२९). महावीरजिन स्तवन-पञ्चकल्याणक, मु. रामविजय, मागु., पद्य, वि. १७७३, आदिः शासननायक शिवकरण; अंतिः नामे लही अधिक जगीस ए. ४८१९. द्वादशव्रतजिन पूजा, संपूर्ण, वि. १९१३, श्रेष्ठ, पृ. १०, जैदेना., प्र.वि. गा.१२४, (२६x१४, ११४३३-३७). १२ व्रत पूजा विधि, मु. वीरविजय, मागु., पद्य, वि. १८८७, आदिः उच्चैर्गुणैर्यस्य; अंतिः जग पडह वजायो रे. ४८२०. जिनसहस्त्रनाम स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९३१, श्रेष्ठ, पृ. १०, जैदेना., प्र.वि. श्लो.१४३, टिप्पण युक्त विशेष पाठ-कुछ पत्र, (२७४१३, १०x२७). For Private And Personal Use Only Page #544 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य भाग - १ ४९० जिनसहस्रनाम स्तोत्र, श्रा. आशाधर, सं., पद्य, वि. १२८७, आदिः प्रभो भवाङ्गभोगेषु; अंतिः जिनायते. ४८२१. जिनशिखर रास, संपूर्ण, वि. १९११, श्रेष्ठ, पृ. १३, जैदेना., ले.स्थल. अजमेर, (२७x१४, १२४२९-३२). सम्मेतशिखरतीर्थ रास, मु. सत्यरत्न, मागु., पद्य, वि. १८८०, आदिः अजितादिक प्रभु पाय; अंतिः ए भवपार उतार. ४८२३. श्रावकाचार, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १७०-२(७६ से ७७)=१६८, देना.,प्र.वि. २४ अधिकार; प्र.पु. मूलगा.२२५९. भूल से पत्रांक- ७६ व ७७ का पृष्ठांकन नहीं हुआ है. पाठ संपूर्ण है., (२७४१४, ११४२९). श्रावकाचार, श्रा. बुलाकीदास, प्राहिं., पद्य, आदिः (१) सिद्धं सम्पूर्ण (२) विजयानन्दन गुणनीलोजी; अंतिः भव्यन कौ आधार. ४८२६. ज्ञाताधर्मकथाङ्ग की टीका, संपूर्ण, वि. १८७१, श्रेष्ठ, पृ. १२४, जैदेना., ले.स्थल. आग्रा, ले. ऋ. शम्भुराम महात्मा, (२७४१३, १२४४३). ज्ञाताधर्मकथाङ्गसूत्र-टीका, आ. अभयदेवसूरि , सं., गद्य, वि. ११२०, आदि: नत्वा श्रीमन्महावीरं; अंतिः धर्मकथाप्रदेशटीकेति. ४८२७. महादेवी सारणी सह टीका, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३६, जैदेना., प्र.वि. मूल-श्लो.३०., (२७.५४१३, १२४३१-३४). महादेवी सूत्र, महादेव, सं., पद्य, आदिः सिद्धिं करोति राज; अंतिः नित्यं विधुन्तुदः. महादेवी सूत्र-दीपिका टीका, वाचक धनराज, सं., गद्य, वि. १६९२, आदिः श्रीनाभेयं जिनं; अंतिः कालिकः सूर्यकार्यः. ४८२८. कल्याणमन्दिर स्तोत्र सह टीका व टीकार्थ(भाषा), संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २३, जैदेना., प्र.वि. मूल-श्लो.४४., (२६.५४१३, १०४३८). कल्याणमन्दिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकर, सं., पद्य, आदिः कल्याणमन्दिरमुदारमवद; अंतिः मोक्षं प्रपद्यन्ते. कल्याणमन्दिर स्तोत्र-टीका, सं., पद्य, आदिः तस्य तीर्थेश्वरस्य; अंतिः विगलित मलनिचयः. कल्याणमन्दिर स्तोत्र-टीका का अर्थ, श्रा. अखैराज श्रीमाल, प्राहिं., गद्य, आदिः तेजु है श्रीपार्श्व; अंतिः (१)करी जथा प्रति जोइ (२)ते भव्य ऐसे है. ४८२९. आगमसारोद्धार, संपूर्ण, वि. १९२१, श्रेष्ठ, पृ. ६९, जैदेना., ले.स्थल. राजनगर, ले. बालगिरजी, (२७७१३, १२४३५ ३७). आगमसारोद्धार, उपा. देवचन्द, मागु., गद्य, वि. १७७६, आदिः हिवै भव्यजीवने; अंतिः (१)ते लहिसी शिवपन्थ (२)फली मन आस. ४८३०. उपदेशप्रासाद सह टबार्थ-स्तम्भ ८, प्रतिपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५४, जैदेना., (२६४१२.५, ६४३८). उपदेशप्रासाद, आ. लक्ष्मीसूरि, सं., प+ग, वि. १८४३, आदि:-; अंति: उपदेशप्रासाद-टबार्थ, मागु., गद्य, आदि:-; अंति:४८३२." विंशतिस्थानक विचार व कथा सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २८४-१(१७३)=२८३, जैदेना., प्र.वि. संशोधित, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., (२७४१२.५, ६४२७). विचारामृतसार सङ्ग्रह, गणि जिनहर्ष, सं., पद्य, वि. १५०२, आदिः श्रीभूर्भुवः स्वस्र; अंति: विचारामृतसार सङ्ग्रह-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः प्रणाम माहरो; अंति:४८३३." बारव्रत टीप, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १२९, जैदेना., ले. मु. दोलतविमल, प्र.वि. अक्षर-अवाच्य, दशा वि. विवर्ण ___पानी से अक्षरों की स्याही फैल गयी है-अल्प, (२७४१३, ११४३३-३६). १२ व्रत टीप, मु. उद्योतसागर, मागु., गद्य, आदिः सदा सिद्ध भगवन्तने; अंतिः सौ सिज्झाय तप कहावे. ४८५१. विचारसार प्रकरण सह बालावबोध, पूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ७८-५(१ से ३,२७+२८,४१+४२)=७३, जैदेना., प्र.वि. मूल-श्लो.२०७., (३०.५४१४, ११-१२४४०). विचारसार प्रकरण, गणि देवचन्द्र, सं., पद्य, वि. १७९६, आदि:-; अंतिः देवचन्देणनाणट्ठम्. For Private And Personal Use Only Page #545 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ४९१ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची विचारसार प्रकरण-बालावबोध, मागु., गद्य, आदि:-; अंतिः मङ्गल जिनशासन छे. ४८६२. कर्मग्रन्थ १-६ सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८४८, श्रेष्ठ, पृ. ९१, पे. ६, जैदेना., ले.स्थल. नागपुर, ले. पं. माणिक्यहर्ष मुनि, (२८x१२.५, ४४३२-३४). पे. १. पे. नाम. कर्मविपाक सह टबार्थ, पृ. १-१४आ कर्मविपाक नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, आदिः सिरिवीरजिणं वन्दिय; अंतिः लिहिओ देविन्दसूरीहिं. कर्मविपाक नव्य कर्मग्रन्थ-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः श्रीमहावीरस्वामीने; अंतिः लिख्यो देवेन्द्रसूरि., पे.वि. मूल गा.६०. पे. २. पे. नाम. कर्मस्तव सह टबार्थ, पृ. १४आ-२२अ कर्मस्तव नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, आदिः तह थुणिमो वीरजिणं; अंतिः वन्दियं नमह तं वीरं. कर्मस्तव नव्य कर्मग्रन्थ-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः श्रीमहावीरदेवे गुण; अंतिः वीर प्रते वांदूं छु., पे.वि. मूल गा.३४. पे. ३. पे. नाम. बन्धस्वामित्व सह टबार्थ, पृ. २२अ-२९आ बन्धस्वामित्व नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, आदिः बन्धविहाणविमुक्कं; अंतिः नेयं कम्मत्थयं सोउं. बन्धस्वामित्व नव्य कर्मग्रन्थ-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः कर्मबन्धना प्रकार; अंतिः थइये ते उपाय करवो., पे.वि. मूल-गा.२५. पे. ४. पे. नाम. षडशीती सह टबार्थ, पृ. २९आ-४८आ षडशीति नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, आदिः नमिय जिणं जिय; अंतिः देविन्दसूरीहिं. षडशीति नव्य कर्मग्रन्थ-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः वीतरागदेवनइ नमस्करी; अंतिः आचार्य ग्यान हेतु., पे.वि. मूल-गा.८६. दो पत्र आमनेसामने चिपके होने से अंतिम वाक्य नहीं भरा है. पे. ५. पे. नाम. शतक सह टबार्थ, पृ. ४९अ-७०आ शतक नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, आदिः नमिय जिणं धुवबन्धोदय; अंति: सयगमिणं आयसरणट्ठा. शतक नव्य कर्मग्रन्थ-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः प्रणमामि जिन प्रति; अंतिः पोताने भणवाने अर्थे., पे.वि. मूल गा.१००. पे. ६. पे. नाम. सप्ततिका सह टबार्थ, पृ. ७०आ-९१अ सप्ततिका कर्मग्रन्थ, प्रा., पद्य, आदिः सिद्धपएहिं महत्थं; अंतिः एगुणा होइ नउइओ. सप्ततिका कर्मग्रन्थ-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः सिद्ध निश्चल पद छइ; अंतिः उणी नेउ गाथा होइ., पे.वि. मूल गा.९३. ४८६४.” सङ्ग्रहणी-त्रैलोक्यदीपिका सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ७६, जैदेना.,प्र.वि. मूल-गा.४५५., संशोधित, (२८x१२.५, ४४३५-३८). बृहत्सङ्ग्रहणी, आ. चन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदिः नमिउं अरिहन्ताइं; अंतिः जा वीरजिण तित्थं. बृहत्सङ्ग्रहणी-टबार्थ, मागु., पद्य, आदि: नमि० अरिहन्त १ सिद्ध; अंति: जयवन्ताद्विवरतो. ४८६५. वृद्धसङ्ग्रहणी सह टबार्थ (त्रैलोक्यदीपिका), संपूर्ण, वि. १९५२, जीर्ण, पृ. ८७, जैदेना., ले.स्थल. सरसपुरा, ले. ऋ. मोतीचन्द, प्र.वि. मूल-गा.४२०., प्र.ले.श्लो. (१४१) यादशं पुस्तकं कृत्वा, (२७.५४१३.५, ४४३०-३५). बृहत्सङ्ग्रहणी, आ. चन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदिः नमिउं अरिहन्ताइं; अंतिः जा वीरजिण तित्थं. बृहत्सङ्ग्रहणी-टबार्थ , मु. धर्ममेरु, मागु., गद्य, आदि: नमस्कार करीने; अंतिः तां लगें जयवन्त थाओ. ४८६६." श्राद्धविधि प्रकरण सह विधिकौमुदी टीका, मूल व टीका का टबार्थ, पूर्ण, वि. १८४९, श्रेष्ठ, पृ. ३७७-१(१)=३७६, For Private And Personal Use Only Page #546 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य भाग - १ ४९२ जैदेना., ले. मु. धर्मविजय (गुरु मु. मोहनविजय), गच्छा. आ. जिनेन्द्रसूरि, ले. पं. कनकविजय गणि (गुरु पं. शुभविजय गणि), प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र.वि. गणि कनकविजय ने १८५० में टबार्थ लिखा., पदच्छेद सूचक लकीरें-मूल पाठ-कुछ पत्र, प्र.ले.श्लो. (५७०) यावच्चन्द्रो मेरु; (१७) जलाद्रक्षे तैलाद्रक्षे; (५०६) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा ; (५७१) लेखणा पुस्तका राम्मा; (५७२) यदक्षरपदभ्रष्टं; (४६९) भग्न पृष्टि कटी ग्रीवा, (२७४१२, ६x४९-५१). श्राद्धविधि प्रकरण, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., पद्य, आदि:-; अंतिः लहुं लहन्ति धुवं. श्राद्धविधि प्रकरण-स्वोपज्ञ विधिकौमुदी टीका, आ. रत्नशेखरसूरि, सं., पद्य, वि. १५०६, आदि:-; अंति: जयदायिनी कृतिनाम्. श्राद्धविधि प्रकरण-टबार्थ #, मु. उत्तमविजय, मागु., गद्य, वि. १८२४, आदि:-; अंतिः यत्नेन परिपालयेत्. श्राद्धविधि प्रकरण-स्वोपज्ञ विधिकौमुदीटीका का टबार्थ # , मु. उत्तमविजय, मागु., गद्य, आदि:-; अंतिः४८६७. उपासगदशाङ्गसूत्र सह टबार्थ-श्रुतस्कन्ध १, प्रतिपूर्ण, वि. १९३९, मध्यम, पृ. ६३, जैदेना., ले.स्थल. गोला, (२७.५४१३, ६४३४-४३). उपासकदशाङ्गसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदिः तेणं० चंपा नामं नयरी; अंति: उपासकदशाङ्गसूत्र-टबार्थ, मु. हर्षवल्लभ, मागु., गद्य, वि. १६९३, आदिः तेणे काले चउथा; अंति:४८६८. उपदेशरसाल सह टबार्थ-२ से ४ वर्ग, प्रतिपूर्ण, वि. १८९१, श्रेष्ठ, पृ. १०७, जैदेना., ले.स्थल. चूंडा, ले. मु. अजातविजय (गुरु मु. गुलाबविजय), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.ले.श्लो. (१४१) यादशं पुस्तकं कृत्वा, (२७.५४१३, १४४४१). सूक्तमुक्तावली, सं., पद्य, आदिः-; अंतिः मतिगम्यं विचारणीयम्. सूक्तमुक्तावली-टबार्थ, मागु., गद्य, आदि:-; अंतिः जे विचारी लेज्यौ. ४८७२." उपदेशमाला सह टबार्थ व कथा, संपूर्ण, वि. १८४०, श्रेष्ठ, पृ. १७९, जैदेना., ले.स्थल. पाटडीग्राम, ले. मु. धीरवर्द्धन (गुरु पं. जीतवर्द्धन), प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र.वि. मूल-गा.५४४., अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-प्रारंभिक पत्र, (२५४१२, ५ १५४३८-४३). उपदेशमाला , गणि धर्मदास, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण जिणवरिन्दे; अंतिः वयण विणिग्गया वाणी. उपदेशमाला-बालावबोध, मु. वृद्धिविजय, मागु., गद्य, वि. १७१३, आदिः नमस्कार करी नइ; अंतिः देवता ते पण सांभले. ४८७४." ज्ञाताधर्मकथाङ्गसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १७९७, मध्यम, पृ. ४६८-२०८(१ से २०७,४५७)+१(३६७)=२६१, जैदेना., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-कुछ पत्र, पू.वि. अध्याय-१ से ७ तक नहीं हैं. कई जगह टबार्थ नहीं हैं., (२६४११.५, ६x४०-४३). ज्ञाताधर्मकथाङ्गसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदि:-; अंति: ज्ञाताधर्मकथाङ्गसूत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, आदि:-: अंति:४८७५. शीलोपदेशमाला सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १६४५, श्रेष्ठ, पृ. २१८, जैदेना., ले. मु. वाघा (गुरु मु. क्षेमसागर, उकेसगच्छ),प्र.वि. मूल-गा.११५; बालावबोध-ग्रं. ६५००., (२५.५४११, ११-१२४३४). शीलोपदेशमाला, आ. जयकीर्तिसूरि, प्रा., पद्य, आदिः आबालबम्भयारिं; अंतिः आराहिय लहह बोहिसुहं. शीलोपदेशमाला-बालावबोध+कथा, गणि मेरुसुन्दर, मागु., गद्य, वि. १५५१, आदिः श्रीवामेयममेय; अंतिः मोक्षफल पणि पामउ. ४८७७.” भरहेसर सज्झाय सटीक सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८३५, मध्यम, पृ. ७१३, जैदेना., ले.स्थल. श्रीगोतरका, प्र.वि. मूल गा.१३. पत्र चिपके होने क्रम अव्यवस्थित है।, अक्षर-अवाच्य, (२६४१२, ६४३९-४१).. भरहेसर सज्झाय , संबद्ध, प्रा., पद्य, आदिः भरहेसर बाहुबली; अंति: जस पडहो तिहुयणे सयले. भरहेसर सज्झाय-वृत्ति, गणि शुभशील, सं., गद्य, वि. १५०९, आदिः युगादौ व्यवहारावा; अंतिः तमोर्हदादिसाक्षिकम्. For Private And Personal Use Only Page #547 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ४९३ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची भरहेसर सज्झाय-टीका का टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः युगने आदे व्यवहार; अंतिः अरिहन्तनि साखी. ४८७८. आयुर्वेदसार सङ्ग्रह, अपूर्ण, वि. १७४१, मध्यम, पृ. ४८६-५१(१,७ से ५२,११४ से ११७)=४३५, जैदेना., ले.स्थल. लाहोर, प्र.वि. अन्त में विषयसूची दी गयी है., प्र.ले.श्लो. (५०९) यादृशं पुस्तके दृष्टं, (२५.५४११, १३४३७-४१). आयुर्वेदसार सङ्ग्रह, मु. मानजी, सं., गद्य, आदि:-; अंतिः नित्यं गुणग्राहिणः. ४८८०. प्रमाणनयतत्त्वालङ्कार की रत्नाकरावतारिका लघुटीका, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १३८, जैदेना., प्र.वि. ग्रं. ५०००, (२६.५४११.५, १३४४७). प्रमाणनयतत्त्वालोकालङ्कार-स्याद्वादरत्नाकरटीका की रत्नाकरावतारिका टीका, आ. रत्नप्रभसूरि, सं., गद्य, आदिः सिद्धये वर्द्धमान; अंतिः रसर्पन्ति प्रजल्पतः. ४८८१.” विक्रम चरित्र, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १०२+१(८७)=१०३, जैदेना., प्र.वि. ग्रं. ३१६०, ढाळ-७५. शायद अन्तिम गाथा अधूरी लिखी हैं।, दशा वि. अक्षर फीके पड गये हैं, (२६.५४११.५, १३४३२). विक्रमराजा चौपई, गणि लक्ष्मीवल्लभ, मागु., पद्य, वि. १७२८, आदिः प्रणमु पास जिणन्द; अंति:४८८२." आचाराङ्गसूत्र सह टबार्थ-श्रुतस्कन्ध १, प्रतिपूर्ण, वि. १७६८, श्रेष्ठ, पृ. ७३, जैदेना., प्र.वि. प्र.पु. मूल-ग्रं. ८००. प्र.पु. टबार्थ-ग्रं. २२०१., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-कुछ पत्र, प्र.ले.श्लो. (१४१) यादशं पुस्तकं कृत्वा, (२६४११.५, ४-५४४५४७). आचाराङ्गसूत्र , आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदिः सुयं मे आउसं० इह; अंति: आचाराङ्गसूत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः नत्वा श्रीमहावीरं; अंति:४८८५. उपाशकदशाङ्गसूत्र सह टबार्थ व वर्द्धमानदेशना, पूर्ण, वि. १९२०, श्रेष्ठ, पृ. १८३-२(२५,१३०)+३(५६,९३, १२२)=१८४, जैदेना., ले.स्थल. पाली, ले. मु. विनयविजय, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. मूल-ग्रं. ९१२, अध्याय-१०; प्र.पु. सर्वसंख्या७५७८., (२६.५४१२.५, १५४३४-३८). उपासकदशाङ्गसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदिः तेणं० चंपा नामं नयरी; अंतिः विदेहम्मि सिज्झिहिइ. उपासकदशाङ्गसूत्र-टबार्थ, मु. हर्षवल्लभ, मागु., गद्य, वि. १६९३, आदिः (१) तेणे काले चउथा (२) प्रणम्य श्रीमहावीरं; अंतिः अध्ययन सम्पूर्ण थयो. ४८८६. जीवन्धर चरित्र की भाषा, अपूर्ण, वि. १८९६, श्रेष्ठ, पृ. २१०-२८(१ से २८)=१८२, जैदेना., ले.स्थल. सवाईजोधपुर, पू.वि. सर्ग-२ की गा.६ तक नहीं हैं., (२७४१२, ७४२९-३१). जीवन्धर चरित्र-टबार्थ, श्रा. नथमल विलाला, मागु., पद्य, आदि:-; अंतिः दोय मूलग्रन्थ० अवलोप. ४८८८.” सारस्वतीप्रक्रिया की चन्द्रकीर्ति व्याख्या, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ११९, जैदेना.,प्र.वि. संशोधित, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., (२८x१२.५, ८-९४३०-३८). सारस्वत व्याकरण-दीपिका टीका, आ. चन्द्रकीर्तिसूरि, सं., गद्य, वि. १६६४, आदिः नमोस्तु सर्वकल्याण; अंति:४८९२. प्रतिष्ठाविधि व समवसरण स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९७२, श्रेष्ठ, पृ. ४४, पे. २, जैदेना., ले.स्थल. पालिताणा, ले. श्रा. हरिचन्द जयचन्द गान्धी, प्र.ले.श्लो. (५०१) भग्न दृष्टि कटि ग्रीवा; (१४१) यादशं पुस्तकं कृत्वा, (२७४१३, १२४३० ४०). पे. १. प्रतिष्ठाविधि सङ्ग्रह, सं.,मागु., पद्य, (पृ. १आ-४३अ), आदिः प्रणम्य पार्श्व; अंतिः तिणे विसर्जन करीइ. पे. २. समवसरण स्तव, आ. धर्मघोषसूरि , प्रा., पद्य, (पृ. ४३अ-४४आ), आदिः थुणिमो केवलीवत्थं; अंतिः कुणउ सुपयत्थं., पे.वि. गा.२४. ४८९३. प्रतिष्ठाविधि सङ्ग्रह, संपूर्ण, वि. १९०४, श्रेष्ठ, पृ. २७, जैदेना., ले.स्थल. पादलिप्तपुरनगर, ले. श्रा. हरिचन्द जयचन्द गान्धी, (२७४१२, १४४४३-४५). प्रतिष्ठा विधि, सं.,मागु., गद्य, आदिः पूर्वोक्त शुभ दिवसे; अंतिः करे सामि भक्ति करे. For Private And Personal Use Only Page #548 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य भाग - १ ४९४ ४८९४." राजप्रश्नीयसूत्र सह टबार्थ, पूर्ण, वि. १९१२, श्रेष्ठ, पृ. ११९-१(१०३)=११८, जैदेना., प्र.वि. मूल-सूत्र-१७५., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-कुछ पत्र, (२४.५४१२.५, ७-८४३६). राजप्रश्नीयसूत्र, प्रा., गद्य, आदि: नमो अरिहंताणं० तेणं; अंति: सुपस्से पस्सवणा नमो. राजप्रश्नीयसूत्र-टबार्थ, वाचक मेघराजजी, मागु., गद्य, आदिः देवदेवं जिनं नत्वा; अंतिः तेह भणी नमस्कार थाओ. ४८९६. श्रीपाल रास सह टबार्थ-खण्ड ४, प्रतिपूर्ण, वि. १८८५, मध्यम, पृ. ६४, जैदेना.,पू.वि. टबार्थ अंत मे लिखा नहीं है., (२८.५४१२.५, १३-१५४२८-३३). श्रीपाल रास, उपा. विनयविजय , उपा. यशोविजयजी गणि, मागु., पद्य, वि. १७३८, (प्रतिपूर्ण), आदि:-; अंतिः लहसे ज्ञान विशालाजी. श्रीपाल रास-टबार्थ', मागु., गद्य, (प्रतिअपूर्ण), आदि:-; अंति:४८९७." रूपसेनकनकावती चरित्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८५७, श्रेष्ठ, पृ. ७६+२(२२,३०)=७८, जैदेना., प्र.वि. मूल-ग्रं. १५३०; टबार्थ-ग्रं. २३४०., संशोधित, टिप्पण युक्त विशेष पाठ-कुछ पत्र, (२५.५४१२, ६x४१-४३). रूपसेनकनकावती चरित्र, आ. जिनसूरि, सं., पद्य, आदिः श्रीमन्तं विदुरं; अंतिः सुकृताय कृता कथा. रूपसेनकनकावती चरित्र-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः सकल प्रति; अंतिः कथा सुत्रे किधि. ४८९९." प्रश्नव्याकरणसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ११२, जैदेना., प्र.वि. मूल-अध्याय-१०; प्र.पु. मूल-ग्रं. १२५०., संशोधित, टिप्पण युक्त विशेष पाठ-कुछ पत्र, (२६४११, ५४३५-४०). प्रश्नव्याकरणसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदि: जंबू अपरिग्गहो; अंतिः अङ्गं जहा आयारस्स. प्रश्नव्याकरणसूत्र-बालावबोध, आ. पार्श्वचन्द्रसूरि, मागु., गद्य, आदिः अहो जम्बू इणमो कहता; अंतिः जाई अनन्तसुख पामे. ४९०२. रूपसेन रास, संपूर्ण, वि. १८१४, श्रेष्ठ, पृ. ६१, जैदेना., ले.स्थल. अथीरग्राम, ले. ऋ. जीवणजी (गुरु ऋ. इन्द्रजी), प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र.वि. गा.२९४५, ढाळ-७५, (२६४११.५, १७४४२). रूपसेन रास, ऋ. महानन्द, मागु., पद्य, आदिः ऋषभादिक नित्य नमुं; अंतिः थाये परम मङ्गल पावए. ४९०४. जम्बूकुमार रास, संपूर्ण, वि. १७९९, श्रेष्ठ, पृ. २१, जैदेना., ले. श्रा. फतेचन्द सूरसिङ्घ सङ्घवी, प्र.वि. गा.६०८, ग्रं. १०३५, ढाळ-३५, (२६x११.५, १४४५९-६१). जम्बूस्वामी रास, आ. ज्ञानविमलसूरि, मागु., पद्य, वि. १७३८, आदिः प्रणमी पास जिणन्दना; अंतिः नितु कोडि कल्याण. ४९०५.” राजप्रश्नीयसूत्र सह टिप्पण, संपूर्ण, वि. १७३७, श्रेष्ठ, प्र. ६५, जैदेना., ले. मु. रत्नहर्ष (गुरु वाचक रत्नसार, खरतरगच्छ), प्र.वि. प्र.पु. मूल-ग्रं. २१०९., संशोधित, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२६४११, १३४३९). राजप्रश्नीयसूत्र, प्रा., गद्य, आदिः नमो अरिहंताणं० तेणं; अंतिः सुपस्से पस्सवणा नमो. राजप्रश्नीयसूत्र-टिप्पण* , मागु., गद्य, आदि:-; अंति:४९०७. योगचिन्तामणी व जैनेतर सामान्यकृति, संपूर्ण, वि. १७३८, श्रेष्ठ, पृ. ४८, पे. २, जैदेना., ले.स्थल. नारायणनगर, (२५.५४१०.५, १५४४९-५३). पे. १. योगचिन्तामणि, आ. हर्षकीर्तिसूरि, सं., पद्य, वि. १७वी, (पृ. १-४८), आदिः यत्र वित्रासमायान्ति; अंतिः सप्तमको मिश्रकाध्याय., पे.वि. अध्याय-७. पे. २. जैनेतर सामान्यकृति पेटाक बाकी*, सं.,प्रा.,मागु., प+ग, (पृ. ४८आ), आदि:-; अंति:४९०८." महिपाल कथा, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ८२, जैदेना., प्र.वि. प्र.पु. ग्रं. २०००., संशोधित, पदच्छेद सूचक लकीरें, प्र.ले.श्लो. (१५०) यावच्चन्द्र दिवाकरा वनुदितं, (२५.५४१०, ११४४०). महिपालराजा कथा, गणि वीरदेव, प्रा., पद्य, आदिः नमिऊण रिसहनाहं केवल; अंतिः निययगुरूणं पसाएण. For Private And Personal Use Only Page #549 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ४९५ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ४९१०. पुन्यविलास रास, संपूर्ण, वि. १८३९, श्रेष्ठ, पृ. १३३, जैदेना., ले.स्थल. पुगलग्राम, ले. मु. किरतविजय (गुरु मु. हर्षसेन, खरतरगच्छ), प्र.वि. प्र.पु. ग्रं. ३४००., (२५.५४१०.५, १५४३४-३७). २० स्थानकविचारसार रास, मु. जिनहर्ष, मागु., पद्य, वि. १७४८, आदिः सकलसिद्धि; अंतिः कहे जिनहर्ष मलावो रे. ४९१६. लघुसङ्ग्रहणी सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८६०, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना., ले. गणि रङ्गविजय, प्र.वि. मूल-गा.३०., (२६४१२, ४४४०). लघुसङ्ग्रहणी, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदिः नमिय जिणं सव्वन्नु; अंति: रईया हरिभद्दसूरिहिं. लघुसङ्ग्रहणी-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः नमीय कहेता नमस्कार; अंतिः रची हरिभद्रसूरिइ. ४९१७.” आठकर्म १५८ प्रकृति विचार, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदेना., (२५.५४११.५, १२४४२). ८ कर्म १५८ प्रकृति विचार, मागु., गद्य, आदिः ज्ञानावरणी कर्मना ५; अंतिः तेजस कार्मण बन्धन २. ४९१८. पार्श्वजिन श्लोक, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदेना.,प्र.वि. गा.५६, (२५४११.५, ९४३४). पार्श्वजिन सलोको, श्रा. जोरावरमल पञ्चोली, राज., पद्य, वि. १८५१, आदिः प्रणमुं परमातम अविचल; अंतिः राज रो अन्तरजामी. ४९१९. गौतमपृच्छा सह टबार्थ व कथा, पूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १५, जैदेना., पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. गा.६२ तक हैं., (२५.५४११.५, ३१४५४-५७). गौतमपृच्छा, प्रा., पद्य, आदिः नमिऊण तित्थनाहं; अंति:गौतमपृच्छा-टबार्थ मागु., गद्य, आदिः नमीने श्रीमहावीर; अंति: गौतमपृच्छा-कथा सङ्ग्रह', मागु., गद्य, आदिः वसन्तपुर नगरने विषे; अंति:४९२४. ज्ञानपञ्चमी देववन्दन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, जैदेना.,प्र.ले.श्लो. (१२२) जब लग मेरु स्थिर रहें, (२७.५४१२, १२४४२). ज्ञानपंचमीपर्व देववन्दन, आ. लक्ष्मीसूरि, मागु., पद्य, आदिः (१) श्रीसौभाग्यपञ्चमी (२) प्रथम बाजठ उपरि तथा; अंतिः विजयलक्ष्मी शुभ हेज. ४९२५. प्रवचनमाता सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना., ले. अमथालाल भोजक, प्र.वि. ढाळ-९, (२६४१२.५, १३४३५-४१). अष्टप्रवचनमाता सज्झाय, मु. रूपविजय, मागु., पद्य, आदिः वजन वदन वागेश्वरी; अंतिः चित्त प्रसन्ने रे. ४९२६. वीसस्थानक पूजा, संपूर्ण, वि. १९११, श्रेष्ठ, पृ. १८, जैदेना., ले.स्थल. पालिताणा, ले. श्रा. जीवराज कपासी, प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र.वि. ढाळ-२०, टिप्पण युक्त विशेष पाठ-कुछ पत्र, (२४.५४१२.५, १०x२४). २० स्थानक पूजा, आ. लक्ष्मीसूरि, मागु., पद्य, वि. १८४५, आदिः श्रीशद्धेश्वर पासजी; अंतिः पभणै सयल सङ्घ जयकरू. ४९२७. वीसस्थानक पूजा, संपूर्ण, वि. १९१४, श्रेष्ठ, पृ. ११, जैदेना., प्र.वि. ढाळ-२०, (२४.५४१२.५, ११४३८-४०). २० स्थानक पूजा, आ. लक्ष्मीसूरि, मागु., पद्य, वि. १८४५, आदिः श्रीशद्धेश्वर पासजी; अंतिः पभणै सयल सङ्घ जयकरू. ४९२८. बहोत्तरी पद सङ्ग्रह, संपूर्ण, वि. १९७७, श्रेष्ठ, पृ. १८, जैदेना., ले. गौरीशङ्कर गोविन्दजी भट्ट, प्र.वि. अध्याय-७२, (२६.५४१२.५, ११४३६-४०). चिदानन्दबहोत्तरी, मु. चिदानन्द, मागु., पद्य, आदिः पिया परघर मत जावो; अंतिः सङ्घने सासनदेव सहाई. ४९३०." नवाणुप्रकारी पूजा, संपूर्ण, वि. १८८४, श्रेष्ठ, पृ. ७, जैदेना., ले.स्थल. सिद्धगिरि, ले. पं. उत्तमविजय, प्र.वि. ढाळ-११, ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित, (२६४१२.५, १२४३२-३४). For Private And Personal Use Only Page #550 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य भाग १ - ४९६ ९९ प्रकारी पूजा, पं. वीरविजय, मागु पद्य वि. १८८४ आदि: श्रीशङ्खेश्वर पासजी अंति आतम आपद आप ठरायो रे. " ४९३१. उत्तराध्ययनसूत्र, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना., पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. अध्याय-८ से १९ तक है., (२६४१२.५ १६ १७४५०-५५). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा. प+ग, आदिः सञ्जोगाविप्पमुक्कस्स; अंति: " www.kobatirth.org: ४९३२. वृद्धदण्डकसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ७, जैदेना., पू. वि. प्रारंभ के पत्र हैं. गा. २३ तक है., (२६.५x१२.५, ३- २६x४३-४८). , दण्डक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, आदिः नमिउं चउवीस; अंति: दण्डक प्रकरण-टबार्थ*, मागु., गद्य, आदिः नमिउं क० नमस्कार; अंतिः Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४९३५. नवतत्त्व विचार, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १३, जैदेना., (२६×१२.५, १४-१५X३८). नवतत्त्व प्रकरण-विचार, संबद्ध, मागु., गद्य, आदि: नवतत्त्व नाम जीव; अंतिः एक सिद्ध अणेक सिद्ध ४९३६. कल्याणमन्दिर स्तोत्र, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ५. जैदेना. प्र. वि. एलो.४४ (२६१२.५, ९४२८-३१). कल्याणमन्दिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकर, सं., पद्य, आदि कल्याणमन्दिरमुदारमवद: अंतिः मोक्षं प्रपद्यन्ते. " (+) ४९३७. कर्मग्रन्थ - २ यन्त्र, संपूर्ण वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ९, जैदेना, प्र. वि. पंक्ति-अक्षर अनियमित है. टिप्पण युक्त विशेष पाठ , · कुछ पत्र (२५x१२.५४). , कर्मस्तव नव्य कर्मग्रन्थ- यन्त्र, मु. सुमतिवर्द्धन, मागु, यंत्र, आदिः बन्ध प्रकृतिओ छे; अंतिः १३ अथवा १२ विच्छेद.. (+) ४९३९. जीवविचार सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९४०, श्रेष्ठ, पृ. १९, जैदेना., ले. स्थल. स्थंभनपुर, प्र. वि. मूल-गा. ५१, (२७४१२, ३X१८). जीवविचार प्रकरण, आ. शान्तिसूरि, प्रा., पद्य, आदिः भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंतिः रुद्दाओ सुयसमुद्दाओ. मागु, गद्य, आदि: त्रिण भुवन स्वर्ग: अंतिः सूत्र समुद्र थकी. जीवविचार प्रकरण- टवार्थ ४९४२. प्रतिष्ठाकल्प स्तवन, संपूर्ण वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १२, जैदेना ले. मु. रङ्ग, प्र. वि. ग्रं. ३७५ ढाळ-१९ (२७४१३, १३ 1 " " १४४४१). पार्श्वजिन स्तवन- शङ्खश्वर, मु. रङ्गविजय, मागु, पद्य, आदि (१) स्वस्ति श्रीदायक (२) श्रीमद्यादेव सैनिक: अंतिः सदा रङ्गविजय लहे. ४९४३. भववैराग्यशतक सह टबार्थ, संपूर्ण वि. १९२१ श्रेष्ठ, पृ. १४ जैदेना. प्र. वि. मूल-गा. १०४ प्र.पु.नं. २७५. (२७४१३, " ५-६x३०-३२), वैराग्यशतक, प्रा., पद्य, आदि: संसारंमि असारे नत्थि; अंतिः लहइ जिउ सासयं ठाणं. वैराग्यशतक-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः संसार असारमाहि नथी; अंतिः जीव शाश्वतुं ठाम. ४९४४. साधुप्रतिक्रमणसूत्र सह टवार्थ, संपूर्ण वि. १९५०, श्रेष्ठ, पृ. १४ जैदेना. ले. स्थल पालिताणा ले. मु. हर्षचन्द गोर्जी ( गुरु मु. हीराचन्द गोर्जी, खरतरगच्छ ), प्र. वि. संबद्ध - सूत्र - २१, (२८x१३, ४-१६x२८-३३). साधुवन्दित्तुसूत्र संबद्ध, प्रा. गद्य, आदि: चत्तारि मङ्गलं अंतिः वन्दामि जिणे चउवीसं. " साधुवन्दित्तुसूत्र - टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः चार बोल तेम मङ्गलिक; अंतिः सर्व साधु प्रतइ. , ४९४५. नवपद पूजा, संपूर्ण, वि. १९१७, श्रेष्ठ, पृ. ७, जैदेना., ले. स्थल. गनगर, प्र. वि. ढाळ - १२, प्र.ले. श्लो. (१४१) यादशं पुस्तकं कृत्वा, ( २६.५४१३, ११९३८-४२). नवपद पूजा, उपा. यशोविजयजी गणि, प्रा. सं., मागु., पद्य, आदिः उपन्नसन्नाणमहोमयाणं; अंतिः कोई नये न अधूरी रे.. ४९४६. पञ्चसन्धि व होली पद, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ८, पे. २, देना. (२६.५X१३, ११४३०-३६). " पे. १. सारस्वत व्याकरण आ. अनुभूतिस्वरूप सं., गद्य (पृ. १८) आदि प्रणम्य परमात्मानं अंतिः मयूररत्नमरादिषु. . For Private And Personal Use Only Page #551 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ४९७ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची पे. २. होरी पद, राज., पद्य, (पृ. ८आ), आदि: गेहरीया होली तणा; अंतिः दाजे ज्यारी देह., पे.वि. बाल में लिखा गया ४९४७." स्तवनचौवीसी सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३५, जैदेना., प्र.वि. मूल-अध्याय-२४ स्तवन; टबार्थ-ग्रं. ८२८., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-कुछ पत्र, (२७४१२.५, ४४३६-३८). स्तवनचौवीसी, मु. आनन्दघन, मागु., पद्य, वि. १८पू, आदिः ऋषभ जिनेश्वर प्रीतम; अंतिः अनन्त सुखनो सदा रे. स्तवनचौवीसी-टबार्थ, आ. ज्ञानविमलसूरि, मागु., गद्य, आदिः चिदानन्दमय जिनवरु; अंतिः अनन्त सुखरा सदाई छे. ४९४८. अढारपापस्थानक स्वाध्याय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ११, जैदेना., प्र.वि. ढाळ-१८, संशोधित, (२५.५४१३, १४४२४-२६). १८ पापस्थानक निवारण सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मागु., पद्य, आदिः पापस्थानक पहिलं; अंतिः वाचकजस इम भाखेजी. ४९४९. जीवविचार स्तवन, स्थुलीभद्र सज्झाय व ऋषभजिन लावणी, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १०, पे. ३, जैदेना., ले.स्थल. शत्रुजय, (२५.५४१३, ११४२२-२६). पे. १. जीवविचार स्तवन, मु. वृद्धिविजय, मागु., पद्य, वि. १७१२, (पृ. १अ-९अ), आदिः श्रीसरसती रे वरसती; अंतिः विजय पभणे आनन्दकारी., पे.वि. गा.७९. पे. २. स्थूलिभद्र सज्झाय, मु. खुशालविजय, मागु., पद्य, (पृ. ९अ-१०अ), आदिः एक दिन वेस्या मन; अंतिः कहे सिद्धा काज रे., पे.वि. गा.१५. पे. ३. आदिजिन लावणी-केसरीयाजी, प्राहिं., पद्य, (पृ. १०अ-१०आ), आदिः सुनीओ बात सदासीवजी; अंतिः देख तमासा फजरु मे., पे.वि. गा.७. ४९५०. चौमासी देववन्दन, संपूर्ण, वि. १९११, श्रेष्ठ, पृ. २१, जैदेना., ले. बालगिरि बावा, (२७४१३, १०x३०). चौमासी देववन्दन, पं. पद्मविजय, मागु., पद्य, आदिः विमल केवलज्ञान कमला; अंतिः पास सामलनु चेई रे. ४९५२. कल्याणमन्दिर स्तोत्र का अन्वय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना., प्र.वि. श्लो.४४, (२५.५४१३.५, ११-१२४३३). कल्याणमन्दिर स्तोत्र-अन्वय, सं., पद्य, आदिः किलेति सत्ये तस्य; अंतिः विगलितमलनिचया. ४९५५." नवतत्त्व स्तवन, संपूर्ण, वि. १८७७, श्रेष्ठ, पृ. १०, जैदेना., ले.स्थल. बम्बई, प्र.वि. ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित, (२७४१२.५, ११४३०-३२). नवतत्त्व स्तवन, मु. विवेकविजय, मागु., पद्य, वि. १८७२, आदिः सरस्वतीनें प्रणमुं; अंतिः विवेक लहे आणन्द ए. ४९५६. जम्बूपृच्छा रास, संपूर्ण, वि. १९१७, श्रेष्ठ, पृ. १५, जैदेना., ले. गौरीशङ्कर गोविन्दजी भट्ट,प्र.वि. ढाळ-१३, (२६४१३.५, १२४३२-३६). जम्बूपृच्छा, मु. वीरजी, मागु., पद्य, वि. १७२८, आदिः सकल पदारथ सरवदा पुरे; अंतिः वीरजी मुनि सुखकारी. ४९५७. ज्योतिषसार, संपूर्ण, वि. १९५२, श्रेष्ठ, पृ. १२, जैदेना., ले.स्थल. सिरदार शहर, ले. ऋ. केसरीचन्द, (२६४१२.५, १३४३०). ज्योतिषसार, आ. नरचन्द्रसूरि, सं., पद्य, आदिः श्रीअर्हन्तजिनं; अंतिः षण्मासेमर्ण ध्रुवम्. ४९५९. उपदेशप्रासाद सह टबार्थ-स्तम्भ ८, प्रतिअपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १९, देना., प्र.वि. टबार्थ पृष्ठ ११A तक हैं।,, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. टबार्थ पृष्ट ११A तक लिखा है., (२६.५४१३, ६४३९). उपदेशप्रासाद, आ. लक्ष्मीसुरि, सं., प+ग, वि. १८४३, आदि:-; अंति: उपदेशप्रासाद-टबार्थ, मागु., गद्य, आदि:-; अंति:४९६१. कृपारस कोश, संपूर्ण, वि. १९६७, जीर्ण, पृ. ६, जैदेना., ले. प्रह्लाद मोहनलाल ब्राह्मण, प्र.वि. श्लो.१२८, (२८x१२.५, १३४४५). For Private And Personal Use Only Page #552 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य भाग - १ ४९८ कृपारस कोश, उपा. शान्तिचन्द्र, सं., पद्य, आदिः येनादर्शि जगत्करामलक; अंतिः हृदि धारणीयः. ४९६२. उपदेशबावनी, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, जैदेना.,प्र.वि. गा.६१, (२८x१२.५, १३४४७). किसनबावनी, वाचक किशन, प्राहिं., पद्य, वि. १७६७, आदिः ॐकार अमर अमार अज; अंतिः कीनी उपदेश बावनी. ४९६३. सत्ताणूं दोहरा, संपूर्ण, वि. १८३६, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना., प्र.वि. गा.९७, (२८x१२.५, १२४३६). सम्बोधसत्तरि दोहरा, मु. वीरचन्द, मागु., पद्य, आदिः परमपुरुष पद मन धरी; अंतिः भावना पामीए परमानन्द. ४९६४. उपदेशरशाल सह टबार्थ व कथा, प्रतिअपूर्ण, वि. १९११, श्रेष्ठ, पृ. २५, जैदेना., ले. गणि खन्तिविजय, प्र.वि. प्रति.वर्ष १९१० भी प्रत में मिलता है., पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. वर्ग-२ तक है., (२७.५४१३, ४-१४४४३-४९). उपदेशरसाल, सं., पद्य, आदि:-: अंति:उपदेशरसाल-टबार्थ, मागु., गद्य, आदि:-; अंति: उपदेशरसाल-कथा* , मागु., गद्य, आदि:-; अंति:४९६८. थोकडा सङ्ग्रह, संपूर्ण, वि. १९६४, श्रेष्ठ, प्र. १७, जैदेना., ले. साध्वीजी गणेशी, प्र.वि. *पंक्ति-अक्षर अनियमित है., (२६.५४१३x). थोकडा सङ्ग्रह', मागु., कोष्टक, आदिः#; अंति:#. ४९७०. दशवैकालिकाध्ययन का लेशार्थप्रकाशक स्वाध्याय, संपूर्ण, वि. १९०३, श्रेष्ठ, पृ. ७, जैदेना., ले.स्थल. पेथापुर, ले. ऋ. खेमचन्द, प्र.वि. ११सज्झाय, (२७.५४१३, १३४३४). दशवैकालिकसूत्र-सज्झाय , मु. वृद्धिविजय, संबद्ध, मागु., पद्य, आदिः श्रीगुरूपदपंकज नमीजी; अंति: गायो सकल जगीसे रे. ४९७१. शत्रुञ्ज उद्धार, संपूर्ण, वि. १९५४, जीर्ण, पृ. ५, जैदेना., ले.स्थल. पेथापुर, ले. हरीराम, प्र.वि. गा.१२०, ग्रं. १७०, ढाळ-१२, (२७.५४१२.५, १७४३६-३९). शत्रुजयतीर्थउद्धार रास, मु. नयसुन्दर, मागु., पद्य, वि. १६३८, आदिः विमल गिरिवर विमल; अंतिः देही दरीसण जय करूं. ४९७२." प्रतिक्रमणसूत्र सङ्ग्रह सह विधि, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३६-२५(१ से २५)=११, जैदेना., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-कुछ पत्र, (२६.५४१३, १३४३६). प्रतिक्रमणसूत्र सङ्ग्रह-श्वे.मू.पू.*, संबद्ध, प्रा.,सं.,मागु., प+ग, आदि:-; अंतिः जैन जयति शासनम्. ४९७६. पासाकेवली, संपूर्ण, वि. १९२३, श्रेष्ठ, पृ. ८, जैदेना., ले.स्थल. आग्रानगर, ले. मु. प्रेमसागर, प्र.वि. श्लो.१७०, (२६x१३.५, ११४३५). पाशाकेवली, ऋ. गर्ग, सं., पद्य, आदिः ॐ नमो भगवती; अंतिः तया पाशकढालनम्. ४९७९. पञ्चकल्याणक पूजा, संपूर्ण, वि. १९३२, श्रेष्ठ, पृ. ७, जैदेना., ले.स्थल. बानाअमल, प्र.वि. ढाळ-८, (२५.५४१३.५, १४४३४-३८). पंचकल्याणक पूजा-पार्श्वजिन, पं. वीरविजय, मागु., पद्य, वि. १८८९, आदिः शद्धेश्वर साहिबो; अंतिः दायो सहायो ४९८१. वीसविहरमानजिन चैत्यवन्दन, सिद्धाचल स्तव, जिनप्रतिमावर्णन स्तुति व देवगुरुधर्मनिरूपण, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, पे. ४, जैदेना., पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., (२५.५४१३.५, १३४४१). पे. १. विहरमान २० जिन चैत्यवन्दन, सं., पद्य, (पृ. १अ-१अ, संपूर्ण), आदिः सीमन्धरं स्तौमि; अंतिः वन्दे विंशतिरर्हताम्., पे.वि. श्लो.३. पे. २. शत्रुजयतीर्थ स्तव, सं., पद्य, (पृ. १अ-१अ, संपूर्ण), आदिः धरणेन्द्रप्रमुखानागा; अंतिः लप्स्यते फलमुत्तमम्., पे.वि. श्लो.१३. For Private And Personal Use Only Page #553 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ४९९ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची पे. ३. जिनप्रतिमावर्णन स्तुति, सं., पद्य, (पृ. १आ-१आ, अपूर्ण), आदिः ऐन्द्रश्रेणीनताप; अंतिः-,पे.वि. पत्रांक-१ किसी अन्य प्रत के होने की संभावना है. पर, एक ही प्रतिलेखक के द्वारा लिखा हुआ है. पे. ४. देवगुरुधर्म निरूपण, सं., गद्य, (पृ. २अ-५आ, अपूर्ण), आदिः वैशाख्य सितषष्टयां; अंतिः-, पे.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. ४९८२. श्रावक पाक्षिक अतिचार, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १९, जैदेना., (२४४१३.५, ६-९x१४-२४). श्रावकपाक्षिकअतिचार-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मागु., गद्य, आदिः नाणम्मि दंसणम्मि०; अंतिः मिच्छामि दुक्कडम्. ४९८४." आरम्भसिद्धि व ज्योतिष श्लोक, संपूर्ण, वि. १९४३, श्रेष्ठ, पृ. २५, पे. २, जैदेना., ले. भुरालाल ब्राह्मण, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२५.५४१३.५, १२४४०). पे. १. आरम्भसिद्धि, आ. उदयप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३वी, (पृ. १-२५), आदिः राशिप्रभेद सञ्ज्ञा; अंतिः प्रथयन्ति लक्ष्मीम., पे.वि. अध्याय-५विमर्श. पे. २. ज्योतिष*, सं.,मागु., पद्य, (पृ. २५अ-२५आ), आदिः#; अंति:#. ४९८५." जिनचैत्ये बिम्बप्रवेश विधि, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १२, जैदेना., प्र.वि. संशोधित, (२६४१२, १३४३०-३४). प्रतिष्ठा विधि, सं.,मागु., गद्य, आदिः हिवे पूर्वोक्त भला; अंतिः करे सामि भक्ति करे. ४९८७. सीमन्धरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, जैदेना., प्र.वि. ढाल-११, गा.१२५, (२६४१३.५, ११४३२-३५). सीमन्धरजिनविनती स्तवन सवासोगाथा, उपा. यशोविजयजी गणि, मागु., पद्य, आदिः स्वामी सीमंधर विनती; अंतिः जसविजय बुध जयकरो. ४९८८. दसदृष्टान्त सज्झाय, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १३-२(१ से २)=११, देना., पू.वि. प्रारंभ व अंत के पत्र नहीं हैं., (२६४११.५, १३४३९). १० दृष्टान्त सज्झाय, आ. ज्ञानविमलसूरि, मागु., पद्य, आदि:-; अंति:४९९०." नवपद पूजा, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ११, जैदेना., पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., दशा वि. विवर्ण-पानी से अक्षरों की स्याही फैल गयी है-अंतिम पत्र, (२६४१४, १०x२६). नवपद उलाळा, गणि देवचन्द्र, मागु., पद्य, वि. १८वी, आदिः तीर्थपति अरिहा नमुं; अंति:४९९२. भक्तामर स्तोत्र सह बालावबोध व कथा, पूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १९, जैदेना., प्र.वि. मूल-श्लो.४४., पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है. श्लो.४४ का बालावबोध अपूर्ण है., (२५.५४११.५, १३४४४-४९). भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुङ्गसूरि, सं., पद्य, (संपूर्ण), आदिः भक्तामरप्रणतमौलिमणि; अंतिः समुपैति लक्ष्मी. भक्तामर स्तोत्र-बालावबोध, गणि मेरुसुन्दर, मागु., गद्य, (पूर्ण), आदिः प्रणम्य श्रीमहावीरं; अंति: भक्तामर स्तोत्र-कथा , मागु., गद्य, (पूर्ण), आदिः श्रीमहावीर प्रणमी; अंति:४९९३. चौवीसजिन दोहरा व सामान्यजिन सवैया, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, पे. २, जैदेना., पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., (२५४१०.५, १२-१३४४०-४५). पे. १.२४ जिन दोहरा, मागु., पद्य, (पृ. १अ-३अ, संपूर्ण), आदिः आदिनाथ अरिहन्त; अंतिः ते पावे शिवस्थान., पे.वि. गा.२४ दुहा. पे. २. साधारणजिन सवैया, मागु., पद्य, (पृ. ३अ-५अ, अपूर्ण), आदिः आदी को रायजु आदि; अंतिः-,पे.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. ४९९५. कूर्मापुत्र चरित्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८९६, श्रेष्ठ, पृ. २३, जैदेना.,ले. पं. माणिक्यचन्द्र (गुरु मु. दयाचन्द), प्र.वि. मूल-गा.१९८., संशोधित, पदच्छेद सूचक लकीरें, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, प्र.ले.श्लो. (१३५) जिहां द्रुसायर चंद रवि; (५५५) अष्टा दश सते वर्षे, (२७.५४१३.५, ५४४५). कुम्मापुत्त चरिअं, मु. माणिक्यविमल, प्रा., पद्य, आदिः नमिऊण वद्धमाणं; अंतिः जिन माणिक्यसीस० जयओ. For Private And Personal Use Only Page #554 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य भाग १ - www.kobatirth.org: Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कुम्मापुत्त चरिअंटवार्थ, मागु, गद्य, आदि: प्रथम ग्रन्थे धुरे अंतिः परम आनन्दसुखने पामो. ४९९६. पट्टावली सह वृत्ति, संपूर्ण वि. १९६४ श्रेष्ठ, पृ. २३ जैदेना, ले. स्थल सिद्धक्षेत्र, ले. लालजी लहीया, प्र. वि. मूल गा. ६२. त्रिपाठ, (२८x१३, १३-१४४४१-४७). पट्टावली तपागच्छीय आ. मुनिसुन्दरसूरि प्रा. पद्य, आदि सिरिमन्तो सुह हेऊ अंति दिन्तु सिद्धि मुहं. " पट्टावली-टीका, सं., गद्य, आदिः अथ गुरुपरिपाटीकथनाय; अंतिः शिवविजयगणिलिखत्. ४९९७. आत्मप्रतिबोध सह टवार्थ, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना. प्र. वि. मूल श्लो. ४२ (२७.५४१३, ६४३३). आत्मप्रतिबोध, सं., पद्य, आदि महतामपि अभिदानानां अंतिः पुनर्जन्मो न विद्यते आत्मप्रतिबोध-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः मोटा जे दान दीधां; अंतिः संसारमांहि फरवउ नहि. ४९९८. आबु कल्प, संपूर्ण, वि. १९४३, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना., ले. स्थल. पाटडी, ले. हरजीवन प्रेमचन्द भोजक, (२६.५x१४, १५ १६४३८-४०). अर्बुदगिरितीर्थ कल्प, मागु., गद्य, आदि: अरबुदाचल उपरे पछीम; अंतिः माहाबुद्धिवन्त था. ४९९९. वीसस्थानक पूजा, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १२, जैदेना., ले. मोतिचन्द डुगरसी, प्र. वि. ढाळ - २०, ( २४.५x१४.५, १२४३६). २० स्थानक पूजा, आ. लक्ष्मीसूरि, मागु., पद्य, वि. १८४५, आदिः श्रीशङ्खश्वर पासजी ; अंतिः पभणै सयल सङ्घ जयकरू. ५०० ५०००. महावीरजिन स्तवन, संपूर्ण वि. १९३५ श्रेष्ठ, पृ. ९, जैदेना. ले. गणेश व्यास, प्र. वि. गा. १२५. ढाळ- १० (२६.५४१३. " १३४३०-३५). महावीरजिन स्तवन, मु. गुणहर्ष, मागु., पद्य, आदिः श्रमण सङ्घ तिलकोपमं; अंतिः श्रीगुणहर्ष वधामणे. ५००१. जीवविचार सह बालावबोध, पूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १६, जैदेना., प्र. वि. मूल-गा. ५१. पत्रांक- १अ पर बृहत्संग्रहणी की , ३ गाथाएँ लिखी है. पू. वि. अंतिम पत्र नहीं है. मात्र गा. ५१ का बालावबोध नहीं है., ( २६११, ११४३४-३६). जीवविचार प्रकरण, आ. शान्तिसूरि, प्रा., पद्य, आदिः भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंतिः रुद्दाओ सुयसमुद्दाओ. जीवविचार प्रकरण-बालावबोध, मागु., गद्य, आदि: भुवनमाहि मिथ्यात्व; अंतिः ५००२. अष्टप्रकारी पूजा, संपूर्ण, वि. १८वी श्रेष्ठ, पृ. ७+१(३) ८, जैदेना ले. स्थल. पालिताणा ले. मु. केसवी, प्र. वि. दाळ ९. (२६.५४१३, ११x२८). ८ प्रकारी पूजा, मु. देवविजय, मागु., पद्य, वि. १८२१, आदि: अजर अमर निकलङ्क जे; अंतिः मोक्षं हि वीराः .. ५००३. विचारषट्त्रिंशिका सह टबार्थ, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ७ जैदेना. प्र. वि. मूल-गा. ४५. प्र. ले. श्लो. (५५०) उजल खेडु सरस बीइं, (२५.५X१०.५, ४X३७-४१). दण्डक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, आदि नमिउं चउवीस अंतिः एसा विनति अप्पहिआ. दण्डक प्रकरण-टबार्थ* मागु., पद्य, आदिः नमस्कार करीने चोवीस; अंतिः अर्थे लिखी छे. ५००४. परदेशीराय रास, संपूर्ण, वि. १६४३, श्रेष्ठ, पृ. ८, जैदेना., ले. स्थल. उमयापुर, ले. मु. देवरत्न, प्र. वि. गा. २६१, ग्रं. ३०० (२५.५४१०.५. १५-१६४४२-४५). प्रदेशीराजा रास, मु. सहजसुन्दर मागु, पद्य, आदि त्रिभोवन नयणानन्दकर अंतिः सफल फलइ संसारि ५००५. कर्मग्रन्थ ४, ५, ६, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २२-९ (१ से ९) १३ पे ३ जैदेना ले. स्थल, राधनपुर, ले. मु. , माणचन्द, पृ. वि. कर्मग्रन्थ-४ की गा.४३ तक नहीं हैं. (२६.५x१२.५ १२४४०-४३ ). पे. १. षडशीति नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, (पृ. १०अ - १२अ, अपूर्ण), आदि:-; अंतिः देविन्दसूरीहिं., पे. वि. गा. ८६. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. ४ था कर्मग्रन्थ की ४४ वी गाथा से है. For Private And Personal Use Only Page #555 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ५०१ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची पे. २. शतक नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, (पृ. १२अ-१७आ, संपूर्ण), आदिः नमिय जिणं धुवबन्धोदय; ___ अंति: सयगमिणं आयसरणट्ठा., पे.वि. गा.१००. पे. ३. सप्ततिका कर्मग्रन्थ, प्रा., पद्य, (पृ. १७आ-२२, संपूर्ण), आदिः सिद्धपएहिं महत्थं; अंतिः एगुणा होइ नउइओ., पे.वि. गा.९०. ५००६. नवस्मरण, प्रतिपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, प्र. १५, जैदेना., पृ.वि. ७- स्मरण ही हैं. कल्याणमन्दिर, तिजयपहुत्त नहीं हैं., (२४.५४१२.५, ११४२८). नवस्मरण, आ. अनेक श्रुतस्थविर, प्रा.,सं., प+ग, आदिः नमो अरिहन्ताणं० हवइ; अंतिः जैनं जयति शासनम्. ५००७. उपदेशबावनी सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २६, जैदेना., प्र.वि. मूल-गा.६२., (२६.५४११, ५४३०-३२). किसनबावनी, वाचक किशन, प्राहिं., पद्य, वि. १७६७, आदिः ॐकार अमर अमार; अंति: कीनी उपदेश बावनी. उपदेशबावनी-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः ॐकार पद पंचने; अंतिः उपदेश वाचना की. ५०११." औपपातिकसूत्र सह टिप्पण व दशाश्रुतस्कन्धसूत्र, संपूर्ण, वि. १९३४, श्रेष्ठ, पृ. १३, पे. २, जैदेना., ले.स्थल. हरसाला, प्र.वि. संशोधित, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२७X१२.५, ३०-३१४७४-८२). पे. १. पे. नाम. औपपातिकसूत्र सह विषमपद टिप्पण, पृ. १अ-९अ औपपातिकसूत्र, प्रा., प+ग, आदिः तेणं कालेणं० चम्पा०; अंतिः सुही सुहं पत्ता. औपपातिकसूत्र-विषमपद टिप्पण, सं.,मागु., गद्य, आदिः#; अंतिः#., पे.वि. मूल-सूत्र-१८९, ग्रं.१६००. पे. २. दशाश्रुतस्कन्धसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., पद्य, (पृ. ९अ-१३अ), आदिः नमो अरिहंताणं० हवइ; अंतिः उवदंसेइ त्ति बेमि., पे.वि. ग्रं.१३८०, १० दशा. ५०१३. मेतारजमुनि व विनयआराधना चौढालीयो, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, पे. २, जैदेना., (२६४१२.५, ३१४३७). पे. १. मेतारजमुनि चौढालिया, ऋ. तिलोक, मागु., पद्य, वि. १९३९, (पृ. १अ-३अ), आदिः जिन समरु भावसुं; अंतिः __तस घर मङ्गल होय., पे.वि. ढाळ-४. पे. २. विनय चौढालिया, ऋ. तिलोक, मागु., पद्य, वि. १९३६, (पृ. ३अ-६अ), आदिः श्रीजिनराज प्ररुपीयो; अंतिः आराध्या सीव जाइये., पे.वि. मूल ढाल-४, सर्व गा.१११. ५०१४. कुमारपाल रास, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३२-१(३०)+१(३१)=३२, जैदेना., पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. गा.१०३५ तक है., (२५.५४१२, १५-१६x४२-५१). कुमारपाल रास, कवि ऋषभदास सङ्घवी, मागु., पद्य, वि. १६७०, आदिः सकल सिद्ध चरणे नमुं; अंति:५०१५. सातबोल अर्थ, संपूर्ण, वि. १९६७, श्रेष्ठ, पृ. ७, जैदेना., ले.स्थल. खेवालीया-मोरबी, ले. जेशङ्कर दयाल पण्ड्या , (२५.५४१२, ११४२७-३०). साधुसाध्वीआचार सातबोल विचार, आ. हीरविजयसूरि, मागु., गद्य, वि. १६४६, आदिः (१) सं.१६४६ वर्षे (२) समस्त साधु साध्वी; अंतिः रुडी पेरे पालवी. ५०१६. श्राद्धराईप्रतिक्रमणसूत्र सङ्ग्रह सह विधि, संपूर्ण, वि. १९ , श्रेष्ठ, पृ. ७, जैदेना.,प्र.वि. संशोधित, (२५४१२, १३४३५ ४१). राईप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,सं.,गुज., प+ग, आदिः#; अंतिः#. ५०१७. सिद्धाचल रास, संपूर्ण, वि. १८९५, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदेना., प्र.वि. गा.११२, ढाळ-६, (२५.५४१२, १३४३०). शत्रुजयतीर्थ रास, उपा. समयसुन्दर गणि, मागु., पद्य, वि. १६८२, आदिः (१) श्रीरिसहेसर पाय नमी; अंतिः सुणतां आणन्द थाय. ५०२०." वीरजिन स्तवन व दुहा सङ्ग्रह, अपूर्ण, वि. १९०७, श्रेष्ठ, पृ. ७, पे. २, जैदेना., ले.स्थल. बम्बई, ले. गणि खन्तिविजय,प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., (२५.५४१२, १२४४०-४३). For Private And Personal Use Only Page #556 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य भाग १ ५०२ पे. १. महावीरजिन स्तवन- स्थापनानिक्षेपप्रमाण पञ्चाङ्गीगर्भित, उपा. यशोविजयजी गणि, मागु., पद्य, वि. १७३३, (पृ. १–७, संपूर्ण), आदिः प्रणमी श्रीगुरुना; अंतिः आणा सिर वहेस्येजी., पे.वि. ग्रं. २२८, ढाळ-७. www.kobatirth.org: पे. २. औपदेशिक दूहा सङ्ग्रह, मागु., पद्य, (पृ. ७आ-, अपूर्ण), आदिः लगे भुख ज्वर के गये; अंतिः-, पे.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. गा. १ से ६ तक है. ५०२१. गौतमस्वामीअष्टक व रत्नाकरपचीसी सह टवार्थ, संपूर्ण वि. १८९९, श्रेष्ठ, पृ. ७, पे. २, जैदेना., ले. मु. देवचन्द, ( २४ ११.५, ४-५x२५-३० ). पे. १. पे. नाम. गौतमस्वामीअष्टक सह टबार्थ, पृ. १अ - २आ गौतमस्वामी स्तव, आ. देवानन्दसूरि ?, सं., पद्य, आदि: इन्द्रभूतिं वसुभूति; अंतिः लभन्ते नितरां क्रमेण. गीतमस्वामी स्तव-टबार्थ, मागु, गद्य, आदि: महावीरना प्रथम गणधर अंतिः एतले मुझ जाई. पे.वि. मूलश्लो. १०. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पे. २. पे नाम, रत्नाकरपचीसी सह टवार्थ, पृ. २आ-७आ रत्नाकरपच्चीसी आ. रत्नाकरसूरि सं., पद्य, आदिः श्रेयः श्रियां मङ्गल अंतिः श्रेयस्करं प्रार्थये. रत्नाकरपच्चीसी-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः अहो कल्याणलक्ष्मीनी; अंतिः मागं तुझ पासइ., पे.वि. मूल - श्लो. २५. ५०२२. सङ्घमाला, दीक्षा विधि व वर्द्धमानविद्या मन्त्र, संपूर्ण, वि. १९६७, श्रेष्ठ, पृ. ५, पे. ३, जैदेना., ले. स्थल. पालिताणा, ले. करमसी रामजी लहिया (२६४१२५ १२४२९-३५). ' पे. १. सङ्घमालापरिधापन विधि, सं., प्रा., मागु., पद्य, (पृ. १अ - ४अ), आदि: मालारोपण मुहूर्त्त; अंतिः धर्मदेशना दिइं. पे. २. दीक्षा विधि, सं., प्रा., मागु., गद्य, (पृ. ४-५ अ ), आदि: पूर्व शुभवेलायां वे; अंतिः पछे नाम थापना कीजे.. पे. ३. वर्द्धमानविद्या मन्त्र, प्रा., गद्य (पृ. ५अ-५आ) आदि ॐ ह्रीं नमो: अंतिः ठः ठः ठः स्वाहा. ५०२४. चौरासीगच्छ पट्टावली, संपूर्ण, वि. १९१४, श्रेष्ठ, पृ. ३२, जैदेना., ले. स्थल. पेथापुर, ले. मु. जवरसागर (गुरु मु. गौतमसागर, सागरगच्छ ), प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र. वि. ६५ मी पाट तक लिखा है, (२७x१२.५, १५X३८-४२). पट्टावली तपागच्छीय, मागु., गद्य, आदिः श्रीवर्द्धमानस्वामी; अंतिः नगरे दिवं गता. ५०२५. पञ्चमी स्तवन, संपूर्ण, वि. १९०९ श्रेष्ठ, पृ. ५. जैदेना. प्र. वि. गा.४३ (२८.५४१२ ९४३१). " सौभाग्यपञ्चमीपर्व स्तवन. मु. गुणविजय, मागु, पद्य, आदिः प्रणमी पास जिणेसर: अंति: गुणविजय रङ्गे गुणि. ५०२६. अध्यात्मबिन्दु सह स्वोपज्ञ व्याख्या - प्रथम द्वात्रिंशिका, संपूर्ण, वि. १९६०, श्रेष्ठ, पृ. २०, जैदेना., ले. बंशीधर, प्र. वि. मूल - श्लो. ३२. प्रथम द्वात्रिंशिका, त्रिपाठ, (३०x११.५, १X५४). , अध्यात्मबिन्दुद्वात्रिंशिका, मु. हर्षवर्द्धन, सं., पद्य, आदिः ब्रूमः किमध्यात्म; अंतिः आत्मस्वरुपः. अध्यात्मबिन्दुद्वात्रिंशिका - स्वोपज्ञ व्याख्या, मु. हर्षवर्द्धन, सं., गद्य, आदिः वयमध्यात्ममहत्वं; अंतिः ज्ञानं न सिद्ध्येत. ५०२७. महावीरजिन पञ्चकल्याणक पूजा संपूर्ण, वि. १८वी श्रेष्ठ, पृ. १४ जैदेना, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें (२७०४१२, ११×३६-३९). (+) महावीरजिन पञ्चकल्याणक पूजा, आ. माणकसिंहरि मागु पद्य वि. १९७६ आदि परमधरम पूरणकला; अंति ऊच्छवरङ्ग वधायो रे. ५०२९. बारव्रतपूजा विधि सहित, संपूर्ण, वि. १९०४ श्रेष्ठ, पृ. ८, जैदेना., प्र. वि. गा. १२४, (२७४११.५, १२-१३३६-४०). १२ व्रत पूजा विधि, मु. वीरविजय, मागु., पद्य, वि. १८८७, आदिः उच्चैर्गुणैर्यस्य; अंतिः जग पडह वजायो रे. ५०३०. चौवीसठाणा यन्त्र, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, जैदेना., प्र. वि. *पंक्ति - अक्षर अनियमित है., ( २६.५X११.५४). २४ स्थानक यन्त्र, प्रा. मागु. कोष्टक, आदि में अंतिः # ५०३२. जीवविचार सह टबार्थ, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदेना, प्र. वि. मूल-गा. ५१, पदच्छेद सूचक लकीरें, (२६.५X११.५, ५x४१-४७). For Private And Personal Use Only Page #557 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ५०३ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची जीवविचार प्रकरण, आ. शान्तिसूरि, प्रा., पद्य, आदिः भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंतिः रुद्दाओ सुयसमुद्दाओ. जीवविचार प्रकरण-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः त्रिभुवनने विषइ; अंतिः सिद्धान्तसमुद्र थको. ५०३३. ज्ञानपञ्चमीतपउच्चारण विधि, संपूर्ण, वि. १८७८, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना., ले. पानाचन्द, (२७.५४११.५, ९-१०४३३). ज्ञानपंचमीतपउच्चरावण विधि, प्रा.,सं.,मागु., पद्य, आदिः तिहां प्रथम खमा; अंतिः तो मिच्छामि दुक्कड. ५०३४. चिदानन्दबोहतरी, संपूर्ण, वि. १९३६, श्रेष्ठ, पृ. ९, जैदेना., ले.स्थल. कपडवांन, ले. अमृतलाल गुलाबचन्द भोजक, लिखवा. मु. राजविजय, प्र.वि. अध्याय-७०, (२७४१२, १४४५५-५७). चिदानन्दबहोत्तरी, मु. चिदानन्द, मागु., पद्य, आदिः पिया परघर मत जावो; अंतिः सङ्घने सासनदेव सहाई. ५०३५. सिद्धाचल रास, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, जैदेना., प्र.वि. गा.११२, ढाळ-६, (२५.५४१२.५, ९४३४). शत्रुजयतीर्थ रास, उपा. समयसुन्दर गणि, मागु., पद्य, वि. १६८२, आदिः श्रीरिसहेसर पाय नमी; अंतिः सुणतां आणन्द थाय. ५०३६. अष्टाह्निकाधुराख्यान सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३२, जैदेना., ले.स्थल. विसनगर, ले. तलजाराम बारोट, पठ. मु. गौतमविजय, (२६.५४१२, ४४२६). अष्टाह्निकाधुराख्यान, आ. भावप्रभसूरि, सं., गद्य, आदिः नत्वा गुरुं गिरं; अंतिः पुण्यवृद्धये. अष्टाह्निकाधुराख्यान-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः नत्वा केहेन्ता नमु; अंतिः पुन्यने वृद्ध भणी. ५०३८. साधुमर्यादा पट्टक, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना., (२७४१२.५, १२४४३). साधुमर्यादापट्टक, आ. देवसूरि, मागु., गद्य, वि. १६७७, आदि: सं.१६७७ वर्षे वैशाख; अंतिः मूक, ए मर्यादा. ५०४०. पूजा प्रकरण सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, जैदेना., प्र.वि. मूल-गा.५६., (२७४१२.५, ५४४५). पूजा प्रकरण, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., पद्य, आदिः सिरिवद्धमाणतित्था; अंतिः अप्पवगाफलो एसो. पूजा प्रकरण-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः वर्द्धश्चासौमानश्च; अंतिः फल देनार जाणवो. ५०४१. तत्त्वार्थाधिगमसूत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, जैदेना., प्र.वि. श्लो.१९८, अध्याय-१०, (२७४१२.५, १४४३८). तत्त्वार्थाधिगमसूत्र, वाचक उमास्वाति, सं., प+ग, आदिः सम्यग्दर्शनज्ञान; अंतिः ल्पबहुत्वत्तः साध्या. ५०४२. षोडशस्वप्न विचार व दीपोत्सव कल्प सह टबार्थ, पूर्ण, वि. १८१५, श्रेष्ठ, पृ. १३-१(३)=१२, पे. २, जैदेना., ले.स्थल. विक्रमपुर, ले. पं. ईश्वरसागर, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-क्रियापद संकेत, (२४.५४१०.५, ७X४४-४६). पे. १. पे. नाम. षोडशस्वप्न विचार सह टबार्थ, पृ. १-४आ, पूर्ण १६ स्वप्न विचार, प्रा., पद्य, आदिः उप्पायविगमधुवमयमसेस; अंति:१६ स्वप्न विचार-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः उप्पन्नेवा सर्व; अंतिः-, पे.वि. मूल-गा.४४. बीच का एक पत्र नहीं है. गा.१६ से ३० तक नहीं है. पे. २. पे. नाम. दीपावली कल्प सह टबार्थ, पृ. ५अ-१३आ, संपूर्ण दीपावलीपर्व कल्प, प्रा., पद्य, आदिः तेणं कालेणं तेणं; अंतिः सोहियव्वो सुयहरेहिं. दीपावलीपर्व कल्प-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः पर्यन्त ते समय जिहां; अंतिः सोधवउ श्रुतधारीइं.,पे.वि. मूल ___ गा.१३६. प्रतिलेखक द्वारा पत्रांक १२ की जगह भूल से १३ लिखा गया है वस्तुतः पाठ क्रमशः है. ५०४४. गौतमस्वामी रास, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना., ले.स्थल. सुरतबंदर, प्र.वि. गा.४९, (२५.५४११.५, ११ १२४३४). गौतमस्वामी रास, आ. विजयभद्रसूरि, मागु., पद्य, आदिः वीर जिणेसर चरण कमल; अंतिः (१)गुरु ईम भणै ए (२)जीम साखा विस्तरे ए. ५०४५. स्तुतिचौवीसी, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना., प्र.वि. २४ स्तुतिजोडा, श्लो.९६, (२६४११, १३-१५४४३-४९). स्तुतिचतुर्विंशतिका, मु. शोभनमुनि, सं., पद्य, आदिः भव्याम्भोजविबोधनैक; अंतिः (१)हारतारा बलक्षेमदा. For Private And Personal Use Only Page #558 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य भाग - १ ५०४ ५०४६. स्थुलिभद्र की कथा- शील कुलक बालावबोधे, संपूर्ण, वि. १९२४, श्रेष्ठ, पृ. ८, जैदेना., ले.स्थल. लिंबडी, प्र.वि. द्विपाठ, (२५.५४११.५, १२४३६-३९). स्थूलिभद्र कथा, मागु., गद्य, आदिः हरिहर बम्भ पुरन्दर; अंतिः अणसण लेई स्वर्गे गया. ५०४७. स्तवनचौवीसी व सिद्धचक्र स्तुति, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ८,पे. २, जैदेना., (२५.५४११.५, १४४३४-४०). पे. १. स्तवनचौवीसी, पं. जिनविजय, मागु., पद्य, वि. १८वी, (पृ. १-८), आदिः नाभिनरेसर नन्दना हो; अंतिः सेवक जिन सुखदाया रे., पे.वि. ढाळ-२४ स्तवन. पे. २. सिद्धचक्र स्तुति, पं. जिनविजय, मागु., पद्य, वि. १८वी, (पृ. ८अ-८आ), आदिः वीर जिनेसर भुवन; अंतिः जिन महिमा भासैजी., पे.वि. गा.४. ५०४८. वसुधारा स्तोत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदेना., (२७४१२, १३-१४४३७-४०). वसुधारा, सं., गद्य, आदिः संसारद्वयदैन्यस्य; अंतिः भाषितमभ्यनन्दन्निति. ५०४९. चारनिक्षेप विचार, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १२-१(११)=११, जैदेना., पू.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं. पाठ-५१ अपूर्ण तक है., (२५.५४१२, १५४४०-४५). ४ निक्षेप विचार, मागु., गद्य, आदिः पिस्तालीस आगमने साखे; अंति:५०५०. स्तवनचौवीसी, संपूर्ण, वि. १८९६, श्रेष्ठ, पृ. १३, जैदेना., ले.स्थल. वीरपुर, ले. पं. शिवचन्द(पार्श्वचन्द्रसूरी गच्छ), प्र.वि. अध्याय-२४ स्तवन, (२६.५४१२, १२४३६-३९). स्तवनचौवीसी, मु. आनन्दघन, मागु., पद्य, वि. १८पू, आदिः ऋषभ जिनेश्वर प्रीतम; अंतिः आनन्दघन प्रभु जाग रे. ५०५१. दिवाली देववन्दन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना., (२६४११.५, ११४३३). दीपावलीपर्व चैत्यवन्दन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मागु., पद्य, आदिः वीर जिनवर वीर जिनवर; अंतिः प्रगटे सकल गुण खाण. ५०५२. स्तवनचौवीसी सह टबार्थ, पूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३९-१(३०)=३८, जैदेना., प्र.वि. मूल-अध्याय-२४ स्तवन., (२६४११.५, ४४३१). स्तवनचौवीसी, मु. आनन्दघन, मागु., पद्य, वि. १८पू, आदिः ऋषभ जिनेश्वर प्रीतम; अंतिः (१)अनन्त सुखनो सदा रे (२)अखय सम्पद अतिघणी. स्तवनचौवीसी-टबार्थ, आ. ज्ञानविमलसूरि, मागु., गद्य, आदिः ऋषभ क० शोभे एहवो; अंतिः आप सरुपइ भोक्ता छो. ५०५३. दीक्षा विधि, श्लोक व दीक्षाना १८ दोष, संपूर्ण, वि. १९६३, श्रेष्ठ, पृ. ५, पे. ३, जैदेना., ले.स्थल. जोधपुर, ले. वीरचन्द व्यास, (२६.५४१२, ११४३५). पे. १. दीक्षा विधि, सं.,प्रा.,मागु., गद्य, (पृ. १-५), आदिः पुच्छा वासे चिइ वेस; अंतिः बांधी एक गणवी. पे. २.४ दुर्लभता श्लोक, प्रा., पद्य, (पृ. ५अ), आदिः चत्तारि परमङ्गाणी; अंतिः संयमम्मि विरियं., पे.वि. गा.१. पे. ३. दीक्षा के अट्ठारह दोष, मागु., गद्य, (पृ. ५आ), आदिः आठ वरसना बालक; अंतिः तो दिक्षा दिधि सूझै. ५०५४. मानतुङ्गमानवती रास, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५१+१(४२)=५२, जैदेना., ले. रामचन्द, प्र.वि. गा.१०१५, ढाळ-४७, (२५.५४११.५, १३-१४४२९-३३). मानतुङ्गमानवती रास, मु. मोहनविजय, मागु., पद्य, वि. १७६०, आदिः ऋषभजिणन्द पदाम्बुजे; अंतिः घरघर मङ्गलमाल हे. ५०५५. वीसस्थानकतपविधि स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना., प्र.वि. ढाळ-६, (२६.५४११.५, १४-१५४४०-४६). २० स्थानकतप स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मागु., पद्य, वि. १७६६, आदिः जिनमुखपंकज वासिनी; अंतिः नितुनितु मङ्गल चारजी. For Private And Personal Use Only Page #559 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org: कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ५०५ ५०५६. आठकर्म विचार व नववाड सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९१४, श्रेष्ठ, पृ. ६, पे. २, जैदेना., ले. स्थल. फलोधी, ले. पं. गुलाबसुन्दर, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं.. (२५.५४११.५ १३४३१-३९). पे. १.८ कर्म १५८ प्रकृति विचार, मागु., गद्य, (पृ. १-६, संपूर्ण), आदिः आठकर्मना नाम पहिलो; अंतिः जीव मुक्ति पुहचै. पे. २. नववाडी सज्झाय, मु. जिनहर्ष, मागु., पद्य, वि. १७२९, (पृ. ६आ-, अपूर्ण), आदि: श्रीनेमीसर चरण युग; अंतिः -, पे. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. ढाल - १ गा. ४ तक है. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५०५७. गणधरवाद, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना., ले. मु. जीवणविजय, (१५X११.५, १५X३३). कल्पसूत्र - कल्पसुबोधिका टीका का हिस्सा गणधरवाद वक्तव्यता, उपा. विनयविजय, सं., गद्य, आदिः वेदपदानि च विज्ञान; अंतिः इत्येकादशम गणधरः. " ५०५८.” नवस्मरण, प्रतिपूर्ण, वि. १७९७, श्रेष्ठ, पृ. ८, जैदेना., ले. स्थल. सूरसंघ, ले. श्रा. फतेचन्द सूरसिङ्घ सङ्घवी, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें, पू. वि. कल्याममन्दिर स्तोत्र नहीं है., (२५.५x११.५, १३४४७-५२). नवस्मरण, आ. अनेक श्रुतस्थविर, प्रा. सं., प+ग, आदिः नमो अरिहन्ताणं० हवइ; अंतिः जैनं जयति शासनम् . (+8) ५०५९. युगादीश्वर स्तोत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना., ले. स्थल. सुरत, प्र. वि. मूल - श्लो. २५., पदच्छेद सूचक लकीरें संधि सुचक चिह्न क्रियापद संकेत, दशा वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं. (२६४११.५, ४X३२-३५). रत्नाकरपच्चीसी, आ. रत्नाकरसूरि सं., पद्य, आदिः श्रेयः श्रियां मङ्गल अतिः श्रेयस्कर प्रार्थये. 1 योगचिन्तामणि- टवार्थ, मागु, गद्य, आदिः श्रेयः कहतां कल्याण: अंतिः समकित आपज्यो. ५०६०. स्तुतिचौवीसी, पूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ११ - १ (१०) = १०, जैदेना., ले. मु. भाणसागर, प्र. वि. २४ स्तुतिजोडा, श्लो. ९६, " (२५.५०११, ९४३४). स्तुतिचतुर्विंशतिका, मु. शोभनमुनि, सं., पद्य, आदिः भव्याम्भोजविबोधनैक; अंतिः हारतारा बलक्षेमदा. ५०६२. श्राद्धपाक्षिक अतिचार व अतिचार गाथाष्टक, संपूर्ण, वि. १८४६, श्रेष्ठ, पृ. ८, पे. २, जैदेना., ले. स्थल. वीरपुर, ले. पं. नायक विजय, ( २६ ११.५, १२-१३X३६). पे. १. अतिचार गाथा संबद्ध, प्रा., पद्य, (पृ. ८आ), आदि नाणम्मि दंसणम्मिअ अंतिः नायवो विरियायारो, पे.वि. मूल गा. ८. पे. २. पे. नाम श्राद्धपाक्षिक अतिचार, पृ. ०१-०८अ श्रावक पाक्षिक अतिचार तपागच्छीय ; संबद्ध प्रा. मागु, गद्य, आदि: नाणम्मि दंसणम्मि० अंतिः मिच्छामि दुक्कडम्. ५०६३. जिनप्रतिमा अधिकार, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना., (२५×११, १२-१३×३९-४०). " जिनप्रतिमा अधिकार प्रा. मागु, गद्य, आदि जे कोई मूढमति उथापै: अंतिः इत्यादि पाठ जाणवो. ५०६४. जीवविचार प्रकरण सह टवार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १२, जैदेना.. पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. गा.४५ तक है... (२४.५४१८, ३x२५). जीवविचार प्रकरण आ. शान्तिसूरि प्रा. पद्य, आदि: भुवणपईवं वीरं नमिऊण : अंति: जीवविचार प्रकरण-टबार्थ *, मागु., गद्य, आदिः त्रिण भुवननइ विषइ; अंतिः ५०६५. शान्तिजिन विवाहलो, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १४ जैदेना. प्र. वि. डाळ- ४४ (२४.५४११.५, १३-१५४४१). शान्तिजिन विवाहलो, मु. ब्रह्म मागु पद्य, आदि आराधुं भावे शान्ति अंतिः आणी रे जगे गुरु गाई. , ५०६६.” वर्द्धमानजिननाम स्तोत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना., प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें, (२६.५x११, ९×३१ ३६). शक्रस्तव आ. सिद्धसेनदिवाकर, सं., प+ग, आदिः ॐ नमोर्हते परमात्म: अंतिः लिलेखे सम्पदां पदम्. For Private And Personal Use Only Page #560 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org: हस्तलिखित जैन साहित्य भाग १ ५०६७. नेमिजिन वारमासो, संपूर्ण वि. १६७६, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना. प्र. वि. गा. २३ (२५.५४११, ११४२७-३०). नेमिजिन वारमासो, मु. सोमप्रभ मागु, पद्य, आदि: गगनि सङ्घनघोर अंतिः सोमप्रभु घरि आयउ ५०६८. कायस्थिति सह टबार्थ व साधुकालधर्म विधि, संपूर्ण, वि. १९वी, जीर्ण, पृ. ७, पे. २, जैदेना., ( २६x११, ३x२७). पे. १. पे नाम, कार्यस्थिति प्रकरण सह टबार्थ, पृ. १७ कार्यस्थिति प्रकरण, आ. कुलमण्डनसूरि, प्रा. पद्य, आदि जह तुहदंसणरहिओ अंतिः अकायपयसम्पयं देसु. .पे.वि. मूल-गा. २४. .. कायस्थिति प्रकरण-टबार्थ *, मागु., गद्य, आदि: जिम ताहरे दर्शनइ; अंतिः सम्पदा प्रतई आपि., पे. २. साधुकालधर्म विधि श्वे. मू. पू., मागु., गद्य, (पृ. १अ ), आदिः सोनावाणी क० काम्बली; अंतिः पश्चात् धर्मोपदेश. ५०६९. बारव्रत टीप, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना, (२५.५x११, ११४३९). १२ व्रत टीप, गणि उदयसागर, राज, गद्य, आदिः प्रथम समकित को अंतिः लाडू का त्याग. ५०७०. आठकर्म की १५८ प्रकृति विचार, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना. (२६.५४११, १३४४६). ८ कर्म १५८ प्रकृति विचार, मागु., गद्य, आदिः आठ कर्म ते केहा; अंतिः दान देवो दया पालवी. ५०७१. पाञ्चज्ञान विचार, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना. (२४.५X११, १५X४०-४५). ५ ज्ञान विचार, मागु., गद्य, आदि मतिज्ञान श्रुतज्ञान अंति कोइ आवर्ण नथी छइ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir " , ५०७२. वसुधारा स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १८८४, श्रेष्ठ, पृ. ७, जैदेना., ले. स्थल. मुडारा, ले. मु. तिर्थसागर, प्र.ले. श्लो. (५०९) यादृशं पुस्तके दृष्टं, ( २६ ११, ११-१२X३५). वसुधारा, सं., गद्य, आदि: संसारद्वयदैन्यस्य अंतिः भाषितमभ्यनन्दन्निति, ५०७३. शत्रुञ्जय उद्धार, संपूर्ण, वि. १८५०, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना., ले. स्थल. विक्रमपुर, प्र. वि. गा.१२०, ढाळ-१२, (२५.५x११, १४४४३). शत्रुंजयतीर्थउद्धार रास, मु. नयसुन्दर, मागु, पद्य, वि. १६३८ आदि विमल गिरिवर विमल अंतिः दरिशन जयकरो. ५०७४. पञ्चपरमेष्टी गुण, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना, पठ. मु. राजविजय (गुरु पं. रूचिविजय), (२६×११.५, " १५X४२). पंचपरमेष्ठि गुण मागु, गद्य, आदि बारगुण अरिहन्ता अंतिः २७ गुण साधुना छै " ५०६ ५०७५." गुणावली रास, संपूर्ण, वि. १८वी श्रेष्ठ, पृ. ८ जैदेना. ले. मु. तिलकसागर, प्र. वि. ढाळ- १६, पदच्छेद सूचक लकीरें, " (२४.५X११, १५X३५-३८). गुणावलि रास, मु. ज्ञानमेरु, मागु., पद्य, वि. १६७६, आदि: प्रणमुं चउवीसे; अंतिः मनवञ्छित पावन्त. " ५०७७." सङ्घपट्ट प्रकरण सह टबार्थ, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ७ जैदेना, प्र. वि. मूल- श्लो. ४० टबार्थ मात्र प्रथमपृष्ठ गाथा २ तक लिखा है., पदच्छेद सूचक लकीरें संधि सूचक चिह्न-वचन विभक्ति संकेत (२६४११.५ ५४४४-५०% सङ्घपट्टक, आ. जिनवल्लभसूरि, सं., पद्य, (संपूर्ण), आदि: वह्निज्वालावलीढं; अंतिः पीत्थं कदर्थ्यामहे. सङ्घपट्टक-टवार्थ, सं. गद्य (अपूर्ण), आदि: वहिन विश्वानरनी अंतिः For Private And Personal Use Only ५०७९." सङ्क्षेपपूजाकर्णिकातिधारा व दशलाक्षणिक पूजा विधि, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ९ पे. २, जैदेना. प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, पदच्छेद सूचक लकीरें (२५४११.५ ९४३९) पे. १. सङ्क्षेपपूजाकर्णिका, सं., पद्य, (पृ. १आ-२ आ), आदिः श्रीमत्सर्वज्ञदेवस्य; अंतिः (१) जयमालां पठेत् (२) निर्वपामि स्वाहा, पे.वि. श्लो. १०. पे. २. १० लाक्षणिक पूजा विधि, पण्डित भावशर्म, सं., पद्य, (पृ. २आ - ९आ), आदिः वार्भिर्वारितसन्तापै; अंतिः निर्वपामीति स्वाहा. Page #561 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org: कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ५०७ ५०८०.' षष्टिशत सह सङ्क्षिप्त टिप्पण, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना., प्र. वि. मूल-गा. १६१; टिप्पण - श्लो. १६०., पदच्छेद सूचक लकीरें संधि सूचक चिह्न वचन विभक्ति संकेत, पंचपाठ (२६४११, १३-१४४४८-५४). षष्टिशतक प्रकरण, श्रा. नेमिचन्द्र भाण्डागारिक, प्रा., पद्य, आदिः अरिहं देवो सुगुरू; अंतिः जिणंतु जन्तु सिवं. षष्टिशतक प्रकरण- टिप्पण, सं., गद्य, आदि: सर्वज्ञदेवाः सुसाधु अतिः भवति मनुष्यत्वम्. ५०८१. पर्यन्ताराधना सह टबार्थ, संपूर्ण वि. १८वी श्रेष्ठ, पृ. ७ जैदेना. प्र. वि. मूल-गा. ७०, ( २५४११.५, ६४३०-३५). पर्यन्ताराधना, आ. सोमसूरि, प्रा., पद्य, आदिः नमिउण भणइ; अंतिः लहन्ति ते सासयं ठाणं. " पर्यन्ताराधना-टबार्थ*, मागु., गद्य, आदि: नमस्कार करीनइं; अंति: ( १ ) ते शाश्वतासुख जीव (२) लहइं ते शाश्वता सुख. ५०८२." सिन्दूरप्रकरण, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, जैदेना, पठ. मु. लब्धिमण्डन (गुरु पं. लक्ष्मीमण्डन), प्र. वि. श्लो. ९७, पदच्छेद सूचक लकीरें - संधि सूचक चिह्न, (२५X११, १३x४५). सिन्दूरप्रकर, आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य, आदि: सिंदूरप्रकरस्तपः; अंतिः शमेति नाशम् . Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir " ५०८३.” नवतत्व सह टवार्थ, संपूर्ण वि. १८६२ श्रेष्ठ, पृ. १५, जैदेना. ले. ऋ. जीवणदास, प्र. वि. मूल-गा. ५१, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, पदच्छेद सूचक लकीरें संधि सुचक चिह्न वचन विभक्ति संकेत क्रियापद संकेत, अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ, ( २६५११, ३x२४). - नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंतिः अणन्तभागो य सिद्धिगओ. नवतत्त्व प्रकरण-टबार्थ, राज, गद्य, आदि जीवतत्त्व अजीवतत्त्व अंतिः सिद्ध के बीच जीव है. ५०८४. अजितशान्ति सह टबार्थ, संपूर्ण वि. १७१०, श्रेष्ठ, पृ. ७, जैदेना. ले. स्थल. राजापुरबंदिर, ले. गणि जसविमल (गुरु पं. सोमविमल, वृद्धिशाखा), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. मूल - गा.४०, ( २६ १०.५, ५X३९-४३). अजितशान्ति स्तव आ. नन्दिषेणसूरि प्रा. पद्य, आदि अजियं जिय सव्वमयं अंतिः जिणवयणे आयरं कुणह ; " , " अजितशान्ति स्तव-टबार्थ, मागु., गद्य, आदि: अजितनाथ जीता छइ सर्व; अंतिः वचननदं विषई आदर करो. ५०८५. पार्श्वजिन स्तोत्र सह टीका ( मन्त्रीषध विदर्मित), संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. ५, जैदेना, प्र. वि. मूल-गा. ३५: टीका श्लो. ३५. त्रिपाठ, (२५४११, ६-८४३४-३६). " पार्श्वजिन स्तोत्र-देलवाडा, प्रा., पद्य, आदिः जय सुरअसुरनरिन्द; अंतिः ते स्तोत्रमेतत्. " पार्श्वजिन स्तोत्र-देलउत्ला अवचूरि, सं. मागु, गद्य, आदि: (१) कियदनुभूतमन्त्रयन्त (२) ॐनमोकोइल्लवीर: अंति लोकोनुयायी भवति. , ५०८६.” ऋषिमण्डल स्तोत्र सह टबार्थ, पूर्ण, वि. १६१२, श्रेष्ठ, पृ. २४ - १ (१४) = २३, जैदेना., ले. गणि आनन्दशोभा (गुरु गणि विनयप्रमोद, तपगच्छ), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. मूल-गा. २१२., पदच्छेद सूचक लकीरें, ( २६.५x११, १३x४०-४३). ऋषिमण्डल प्रकरण, आ. धर्मघोषसूरि, प्रा., पद्य, वि १४वी, (संपूर्ण), आदिः भत्तिब्भरनमिरसुरवर; अंतिः सो लहइ सिद्धिसुहं. ऋषिमण्डल प्रकरण-टबार्थ, मागु., गद्य, (संपूर्ण), आदि: भक्ति घणी करी नम्या; अंतिः मुक्तिसुख लहिइ पामइ. ५०८७. कर्मग्रन्थ २-३ सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ११, पे. २, जैदेना., ( २६ ११, १५-१६x४२-४५). पे. १. पे नाम कर्मस्तव सह वालावबोध, पृ. १-५आ . कर्मस्तव नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, आदिः तह थुणिमो वीरजिणं; अंतिः वन्दियं नमह तं वीरं . कर्मस्तव नव्य कर्मग्रन्थ- बालावबोध' मागु, गद्य, आदि हिव कर्मस्तवनउ अंति एवं सम्भविनो ज्ञेया., पं.वि. मूल-गा. ३४. पे. २. पे. नाम. बन्धस्वामित्व सह बालावबोध, प्र. ५आ-११ बन्धस्वामित्व नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, आदिः बन्धविहाणविमुक्कं; अंतिः नेयं कम्मत्थयं सोउं. बन्धस्वामित्व नव्य कर्मग्रन्थ- बालावबोध *, मागु., गद्य, आदिः बन्धसामित्त विचार जे; अंतिः बन्धसामित्व जाणिवर. For Private And Personal Use Only Page #562 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य भाग १ - ५०८ ५०८८. गीत सङ्ग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ८ जैदेना. पु. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. गीत- ४९वाँ अपूर्ण तक हैं., ( २६४११, १४४४१-४४). आनन्दघनबहत्तरी, मु. आनन्दघन, प्राहिं, पद्य, आदि: क्या सोवे उठि जागि; अंतिः ५०८९. ईलापुत्र चौपाई, अपूर्ण, वि. १७वी श्रेष्ठ, पृ. ९-२(६ से ७) =७, जैदेना, ले स्थल स्थंमनतीर्थ, प्र. वि. ग्रं. २५९ ढाळ-१६, (२५४१०.५. १३४४१-४३). " इलाचीकुमार चौपाई, मु. ज्ञानसागर, मागु पद्य वि. १७१९ आदि सकल सिद्धिदाई सदा अति ज्ञान दर्शन अजूआले. (+) ५०९०. चतुःशरण प्रकीर्णक सह टबार्थ (पयन्ना) संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना, प्र. वि. मूल-गा. ६४., टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२५x१०.५, ७४३९-४२). www.kobatirth.org: . चतुःशरण प्रकीर्णक, गणि वीरभद्र, प्रा., पद्य, आदिः सावज्ज जोग विरई; अंतिः कारणं निव्वुइ सुहाणं. चतुःशरण प्रकीर्णक-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः चउसरण पइनाना; अंतिः ए चउसरण अध्ययन गणीवर. ५०९१. पट्टावली सह टीका, अपूर्ण, वि. १८वी श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना, प्र. वि. श्रीगजसोमसूरि पाट-६४ तक, टिप्पण युक्त विशेष पाठ- कुछ पत्र, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण पाट ५८ तक लिखा है., ( २६४११, १६-१७X५२). पट्टावली, प्राहिं., गद्य, आदिः वर्द्धमानस्वामी श्री अंति: पट्टावली - टीका, सं., गद्य, आदि:-; अंति: 1 , Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५०९२." नवतत्त्व सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ७, जैदेना., पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. गा. १ से ४ मूल व बालावबोध अपूर्ण हैं., दशा वि. विवर्ण-पानी से अक्षरों की स्याही फैल गयी है, ( २४४११, १३-१४४४१). नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंति: नवतत्त्व प्रकरण-बालावबोध*, मागु., गद्य, आदिः सम्यक्दृष्टि जीवनइ; अंतिः ५०९३. सिन्दूरप्रकर सह टीका + कथा, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ११, जैदेना., पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. गा.६८ तक हैं, (२५४१०.५, १९४५३-५५). सिन्दूरप्रकर, आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य, आदिः सिंदूरप्रकरस्तपः; अंतिः सिन्दूरप्रकर- बालावबोध व कथा पाठक राजशील, सं., मागु, गद्य, आदि: शारदाचरणयुग्ममतीतपाप अंति: ५०९४. कल्प माण्डणी, संपूर्ण, वि. १५९६, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना, (२७४११, ९३४ ) . कल्पसूत्र - माण्डणी, मागु., प्रा., गद्य, आदिः ए नाणं पञ्चविहं; अंतिः तेणं कालेणमित्यादि. ५०९६. नवतत्त्व, संपूर्ण, वि. १९४५, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना ले. तेजशङ्कर मुलजी ब्राह्मण, प्र. वि. गा.५८ (२६४११, ८४२९). "" नवतत्त्व प्रकरण, आ. मणिरत्नसूरि, प्रा., पद्य, आदिः जीवाजीवापुन्नं पावा; अंतिः लिहिओ मणिरयणसूरिहिं. " ५०९७.” सम्यक्त्वसित्तरी सह टवार्थ, संपूर्ण वि. १८वी, जीर्ण, पृ. ७, जैदेना. प्र. वि. मूल गा. 30., पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि " सूचक चिह्न, ( २५x११, ५X३२-३७). सम्यक्त्वसप्ततिका, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: दंसणसुद्धिपयासं; अंतिः दंसणसुद्धिं धुवं लहइ. सम्यक्त्वसप्ततिका-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः सम्यक निर्मलाईनइ; अंतिः निश्चई हुइ लहइ. ५०९८. स्नात्रपूजा-विधि सहित, पूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ९- १ ( ८ ) = ८, जैदेना., (२५x११, १०X२८-३१). " स्नात्र पूजा, मु. नगविजय, मागु पद्य, आदिः सद्ध्यानविज्ञानघन अंतिः ज्यं रविचन्दो रे. ५१००. पाक्षिकसूत्र व खामणा, संपूर्ण, वि. १८१२, श्रेष्ठ, पृ. १०, पे. २, जैदेना, पठ. गणि रविविजय (गुरु पं. प्रमोदविजय, तपागच्छ), (२५.५x११, १३-१४४३४). पे. १. पाक्षिकसूत्र, प्रा. प+ग, (पृ. ०१-१०अ ), आदि तित्थङ्करे य तित्थे अंतिः जेर्सि सुयसायरे भति " पे. २. पे नाम पाक्षिकक्षामणासूत्र, पृ. १०अ १० आ For Private And Personal Use Only Page #563 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ५०९ www.kobatirth.org: Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir क्षामणकसूत्र, प्रा., गद्य, आदि: इच्छामि खमासमणो: अंतिः नित्थारग पारगा होह.. ५१०१. पद सङ्ग्रह सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १६, जैदेना., ( २४.५x१२, ४X३१-३४). आध्यात्मिक पद सङ्ग्रह, मु. आनन्दघन, मागु., पद्य, आदिः नाथ निहारो आप मतासी; अंतिः विलासी प्रगटै कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची आतमराम. आध्यात्मिक पद सङ्ग्रह - बालावबोध, मागु, गद्य आदि श्रद्धानो चेतथी वचन अंतिः नाम प्रत्यक्ष थाय. ५१०२. स्नात्रपूजा व सीमन्धरजिन चैत्यवन्दन, संपूर्ण वि. १९२३ श्रेष्ठ, पृ. ८ पे. २, जैदेना. ले. मु. रूपविजय, ( २६११.५, ९-१०X३१-३३). पे. १. स्नात्र पूजा, श्रा. वछ भण्डारी, मागु., पद्य, (पृ. १-८), आदि: (१) मुक्तालङ्कारहारविकार (२) पवित्र उदक; अंतिः (१) जयोजयो भगवन्तजी (२) भगत वन्दना निहालुं. पे. २. सीमन्धरजिन चैत्यवन्दन, मु. कान्तिविजय, मागु, पद्य, (पृ. ८आ) आदि श्रीसीमन्धर जिन अति भगते वे कर जोड., पे.वि. गा. ५. ५१०८. चौदगुणठाणा ४१ द्वार, संपूर्ण वि. १९४८ १४ गुणठाणा ४१ द्वार, मागु., गद्य, आदि: असङ्ख्यातगुणा अधिक. " ५१०३. स्तुतिचीवीसी- चतुर्विंशतिजिन स्तुति, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदेना. प्र. वि. श्लो. ७७ (२६×११.५, १०४४३). स्तुतिचौवीसी, वाचक क्षमाकल्याण, सं., पद्य, वि. १९वी आदिः सद्भक्त्यानतमौलि; अंतिः सा जयतादजस्रम्. ५१०४. चौवीसदण्डक २९ द्वार, संपूर्ण वि. १९३९ श्रेष्ठ, पृ. १३, जैदेना. ले. स्थल स्थंभपुर, ले. शिवलाल व्यास, (२५४११.५, " ११४३५). २४ दण्डक २९ बोल, मागु., गद्य, आदि: प्रथम नामद्वार बीजु; अंतिः अनंत गुणे अधिक जाणवा.. ५१०५. कायस्थिति सह टवार्थ, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदेना, प्र. वि. मूल-गा. २४ (२४.५०१२, ४x२७-२९). कायस्थिति प्रकरण आ. कुलमण्डनसूरि प्रा. पद्य, आदि जह तुहदंसणरहिओ अंतिः अकायपयसम्पयं देसु. , . कायस्थिति प्रकरण-टबार्थ *, मागु., गद्य, आदि: जिम ताहरे दर्शनइ; अंतिः सम्पदा प्रतई आपि. ५१०६.' सम्बोधसत्तरी सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९२३, श्रेष्ठ, पृ. १०, जैदेना., ले. स्थल. राजनगर, ले. खेमचन्द, प्र. वि. मूल गा.१२५+२; टबार्थ-गा.८०., पदच्छेद सूचक लकीरें (२६.५x१२, ५३४). सम्बोधसप्ततिका, आ. जयशेखरसूरि, प्रा., पद्य, आदिः नमिऊण तिलोअगुरुं; अंतिः लहई नत्थि सन्देहो. सम्बोधसप्ततिका-टबार्थ, मागु., गद्य, आदि: नमोनि त्रिलोक्यनओ; अंतिः जयशेखर० नवि सन्देह. श्रेष्ठ, पृ. ९, जैदेना, (२७४१२, १३४४६). (१) नाम लक्खण ठिइ अन्तर (२) प्रथम नाम द्वार कहे ; अंतिः ५१०९. वीसस्थानक पूजा विधि, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १६, जैदेना. प्र. वि. डाळ-२१ (२७८१२, १२०४१). " २० स्थानक पूजा, पं. रूपविजय, मागु., पद्य, वि. १८८३, आदि: सुरपति श्रीपति नरपति; अंतिः रुपविजय सुहङ्करो . ५११०. नवाणुप्रकारी पूजा व पञ्चमी स्तवन, संपूर्ण, वि. १८९२, श्रेष्ठ, पृ. ६, पे. २, जैदेना., ले. स्थल. राधनपुर, ( २४ १२, १४X३६-३८). पे. १. ९९ प्रकारी पूजा, पं. वीरविजय, मागु., पद्य, वि. १८८४, (पृ. १-६), आदि: श्रीशङ्खेश्वर पासजी; अंतिः आतम आपद आप ठरायो रे, पे.वि. ढाळ - ११. पे. २. सौभाग्यपञ्चमीपर्व स्तवन, मु. दीपविजय, मागु, पद्य, (पृ. ६अ ), आदि: कार्तिक शुद पञ्चम: अंतिः ए तप सुरतरु कन्द रे, पे.वि. गा. ७. For Private And Personal Use Only ५१११." दानशीलतपभावना कुलक सह टवार्थ, संपूर्ण, वि. १६८२ मध्यम, पृ. ७ जैदेना. प्र. वि. मुलगा. ४९., पदच्छेद सूचक लकीरें (२६४११.५ ६४३१-३५). दानशीलतपभावना कुलक, मु. अशोकमुनि, प्रा., पद्य, आदि: देवाहिदेवं नमिऊण अंतिः सूरि खमउ तेणं. Page #564 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य भाग १ - www.kobatirth.org: दानशीलतपभावना कुलक-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः देवाधिदेवनइं नमस्कार; अंतिः ते खमज्यो सूरी अपराध. ५११२. सिन्दूरप्रकरण, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ११, जैदेना., प्र. वि. श्लो. १००, ( २५.५x१२, १२x२९). सिन्दूरप्रकर, आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य, आदिः सिंदूरप्रकरस्तपः; अंतिः सूक्तमुक्तावलीयम्. (+) ५११३. नवतत्त्व सह टबार्थ, संपूर्ण वि. १८७०, श्रेष्ठ, पृ. १०, जैदेना, प्र. वि. मूल-गा.४८ टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२५.५X११.५, ४X३१-३५). नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि जीवाजीवा पुण्णं पावा अंतिः बोहिय इक्कणिक्काय. नवतत्त्व प्रकरण-टवार्थ मागु, गद्य, आदिः यथाभूत साची वस्तुनो अंतिः ऋषभदेव प्रमुख. i " 1 Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (+) ५११६. योगदृष्टि सज्झाय सह बालावबोध, संपूर्ण वि. १८९६, श्रेष्ठ, पृ. ३७, जैदेना. ले. स्थल अजमेर, प्र. वि. मूल-गा ८४, ढाळ ८. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-कुछ पत्र, दशा वि. अक्षर फीके पड गये हैं. (२५.५४१२ ३-११x२९-३३). योगदृष्टि सज्झाय उपा. यशोविजयजी गणि, मागु, पद्य, आदि शिवसुख कारण उपदेशी अंतिः वाचक जशने P वयणेजी. योगदृष्टि सज्झाय-बालावबोध, आ. ज्ञानविमलसूरि, मागु., गद्य, आदि: (१) ऐन्द्र श्रेणिनतम् (२) इन्द्रना समुदाय छे; अंतिः संसार भावथी मुकाज्यो. ५११७. चौवीसदण्डक २९ द्वार पूर्ण वि. १७६२, श्रेष्ठ, पृ. ८-१ (७) ७ जैदेना. ले. स्थल द्वीपबंदर, ले. मु. दीपकुशल (गुरु मु. अमृतकुशल ), ( २६११.५, १४४५०-५३). २४ दण्डक २९ बोल, मागु गद्य, आदि प्रथम नामद्वार बीजु अंतिः अनंत गुणे अधिक जाणवा ५१० (′′) ५१२०. धूर्त्ताख्यान का बालावबोध, पूर्ण, वि. १८७२ श्रेष्ठ, पृ. १७-१ (१) - १६, जैदेना., ले. स्थल दुबाही ले पारस, दशा वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है अल्प, (२७.५४१२, १३-१४४३८-४१). धूर्ताख्यान- बालावबोध, मागु., गद्य, आदि:-; अंतिः अनुमोदवां ध्यावां. ५१२२. प्रतिक्रमणसूत्र सङ्ग्रह- तपागच्छ, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, जैदेना., पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. नवकार से जगचिंतामणी गा. २ तक है. (२४.५४१२.५, ४x२३-२५). " चैत्यवन्दनसूत्र, प्रा., सं., प+ग, आदि:-; अंतिः ५१२३. पञ्चज्ञान पूजा, संपूर्ण, वि. १९१६, श्रेष्ठ, पृ. ७, जैदेना. ले. स्थल पालिताणा ले. गौरीशङ्कर गोविन्दजी भट्ट, " · (२७४१२, १०x३६-३८). ज्ञानपंचमीपर्व पूजा, पं. रूपविजय, मागु., पद्य, वि. १८८७, आदिः सकल कुशल कमलावली; अंतिः रूपविजय गुण गाया रे. ५१२४. पाञ्च बोल, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १२, जैदेना., ( २६ १२.५, १२X४३). देवनारक के पांचबोल सोलहद्वार विचार मागु., गद्य, आदि पहिलो नारकीनो द्वार अंतिः वैमानिक विचरे छे. (+) ५१२५. नवपद पूजा, गाथा व दानप्रभाव श्लोक, संपूर्ण वि. १९१४, श्रेष्ठ, पृ. ५. पे ३ जैदेना. प्र. वि. संशोधित, (२७.५५१२, १३४३४-३७). पे. १. नवपद पूजा, पं. पद्मविजय, मागु., पद्य, वि. १८३८, (पृ. १-५), आदिः श्रुतदायक श्रुतदेवता; अंतिः पद्मविजय गुण गायो पे. २. जैन गाथा *, प्रा., पद्य, (पृ. १अ ), आदि: #; अंतिः #., पे. वि. परिमाण गा .२ . पे. ३. पे. नाम. दानप्रभाव श्लोक, पृ. १अ श्लोक सं., पद्य, आदि; अंतिः #, पे.वि. परिमाण श्लो. १. ५१२६." आनन्दघनकृत चतुर्विंशति स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १८, जैदेना., प्र. वि. अध्याय- २४ स्तवन, संशोधित, (२६.५x१२, १०x२५-२७). For Private And Personal Use Only Page #565 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ५११ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची स्तवनचौवीसी, मु. आनन्दघन, मागु., पद्य, वि. १८पू, आदिः ऋषभ जिनेश्वर प्रीतम; अंतिः आतम रूप अनूप. ५१२७." वीसथानक पूजा, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १०, जैदेना., प्र.वि. ढाळ-२०; प्र.पु. मूल-ग्रं. २७५, संशोधित, (२६४१२.५, १३४३२-३६). २० स्थानक पूजा, आ. लक्ष्मीसूरि, मागु., पद्य, वि. १८४५, आदिः श्रीशङ्ख्सर पासजी; अंतिः सयल सङ्घ मङ्गल करो. ५१२८. नन्दीश्वरद्वीप पूजा व ऋषभजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १०, पे. २, जैदेना., प्र.वि. संशोधित, (२७४१२, १०४३६-४०). पे. १. नन्दीश्वरद्वीप पूजा, मु. धर्मचन्द्र, मागु., पद्य, वि. १८९६, (पृ. १-१०), आदिः प्रणमुं शान्ति; अंतिः सङ्घ सकल हरखायो रे., पे.वि. ढाळ-१२. पे. २. आदिजिन स्तवन, मु. धर्मचन्द्र, मागु., पद्य, (पृ. १०अ-१०आ), आदिः ऋषभ जिनेन्द्र जगत; अंतिः चन्द्रने तारो उपगारी., पे.वि. गा.५. ५१२९. कल्याणमन्दिर स्तोत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १२, जैदेना., प्र.वि. मूल-श्लो.४४., (२६४११, ३४४०). कल्याणमन्दिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकर, सं., पद्य, आदिः कल्याणमन्दिरमुदारमवद; अंतिः मोक्षं प्रपद्यन्ते. कल्याणमन्दिर स्तोत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, आदि: कल्याण कहीयइं श्रेय; अंतिः मुक्तिना सुख पामइ. ५१३०. सीमन्धरजिन स्नेह लेख पत्रिका, संपूर्ण, वि. १८९९, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना., ले.स्थल. स्याणानगर, ले. पं. उत्तम, (२५.५४११, ११४३०-३५). सीमन्धरजिन स्तवन-विज्ञप्ति, कवि कमलविजय, मागु., पद्य, वि. १६८२, आदिः स्वस्ति श्री; अंतिः देउ मे भदं. ५१३१. वैराग्यशतक, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, जैदेना., ले.स्थल. अहमदाबाद, प्र.वि. गा.१०४. लुङ्कागच्छ- साङ्कडी शेरी- जती की पोल मध्ये।, (२५.५४११, ११४३०-३२). वैराग्यशतक, प्रा., पद्य, आदिः संसारंमि असारे नत्थि; अंतिः लहइ जिउ सासयं ठाणं. ५१३२." षष्टशतक सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १६, जैदेना.,प्र.वि. मूल-गा.१६१. बालावबोध गाथा १४९ तक हैं।, पदच्छेद सूचक लकीरें, त्रिपाठ, (२५४११, ७-९४२८). षष्टिशतक प्रकरण, श्रा. नेमिचन्द्र भाण्डागारिक, प्रा., पद्य, (संपूर्ण), आदिः अरिहं देवो सुगुरू; अंतिः जिणंतु जन्तु सिवं. षष्टिशतक प्रकरण-बालावबोध, मागु., गद्य, (पूर्ण), आदिः (१) अरिहन्त क० वीतरागदेव (२) नेमिचन्द भण्डारी; अंति:५१३३. वैराग्यशतक, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना.,प्र.वि. गा.१०४, (२६x१०.५, ११४४४). वैराग्यशतक, प्रा., पद्य, आदि: संसारंमि असारे नत्थि; अंतिः लहइ जिउ सासयं ठाणं. ५१३४. प्रतिक्रमणसूत्र सङ्ग्रह सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदेना., प्र.वि. बीच के सूत्रो का संग्रह होने से आदि-अंतिम वाक्य नही भरा है., (२५.५४१०.५, ८४४२-४७). साधुश्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-स्थानकवासी, संबद्ध, प्रा.,गुज., प+ग, आदिः#; अंतिः#. साधुश्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-स्थानकवासी-टबार्थ', मागु., गद्य, आदिः#; अंतिः#. ५१३५. उपदेशश्रेणी, पूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ६-१(१)=५, जैदेना., ले. साध्वीजी संयमलक्ष्मी (गुरु गणि सौभाग्यसुन्दर), प्र.वि. पंचपाठ, (२६४११, १५-१६x४६-४९). उपदेशश्रेणी, सं., पद्य, आदि:-; अंतिः न्यायधौधुरन्धरौ. ५१३७." गौतमपृच्छा सह टबार्थ व कथा, अपूर्ण, वि. १७वी, जीर्ण, पृ. २१, जैदेना., प्र.वि. अक्षर-दुर्वाच्य, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. गा.३४ तक है., (२५४११.५, १२४३५). गौतमपृच्छा, प्रा., पद्य, आदिः नमिऊण तित्थनाहं; अंति: For Private And Personal Use Only Page #566 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य भाग १ www.kobatirth.org: Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गीतमपृच्छा-टवार्थ, मागु, गद्य, आदि:-: अंति: गौतमपृच्छा-कथा सङ्ग्रह *, मागु., गद्य, आदि : -; अंति: ५१३८.' पर्यन्ताराधना सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदेना., ले. गणि लावण्यसागर, प्र. वि. मूल-गा. ७०., टिप्पण युक्त विशेष पाठ - कुछ पत्र, (२५.५X११, ६x४०). पर्यन्ताराधना आ. सोमसूरि, प्रा., पद्य, आदि नमिउण भणइ अंतिः ते सासयं सुक्खं. पर्यन्ताराधना-टबार्थ *, मागु., गद्य, आदिः श्रीमहावीर नमस्करी; अंतिः लहइं ते शाश्वता सुख. ५१२ ५१४०. सिंहासनबत्रीसी चौपाई, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ४९, जैदेना., ले. मु. ज्ञानविजय (गुरु पं. लावण्यविजय), प्र. वि. गा. २४३०, प्र.ले. श्लो. (५०९) यादृशं पुस्तके दृष्टं, (२५.५x११, १९४८-५९). सिंहासनबत्रीसी चौपाई, पं. हीरकलश, मागु., पद्य, वि. १६३६, आदिः आराहि श्रीरिषभप्रभुः अंतिः रिद्धि पाइ बहु परइ. ५१४१. सुव्रतश्रेष्ठि कथा सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९०८, श्रेष्ठ, पृ. २१, जैदेना., ले. स्थल. वडगांमनगर, ले. अमौलक वखतराम भोजक, पठ. पं. सुखविजय, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. मूल - श्लो. २०१, (२५X११.५, ५X३७). वचन मौनएकादशीपर्व कथा, मु. रविसागर, सं., पद्य, वि. १६५७, आदि: प्रणम्य ऋषभदेवं; अंतिः तद विधीयताम् . मी एकादशीपर्व कथा-टवार्थ मागु, गद्य, आदि: पार्श्वदेवं नमस्कृतः अंतिः धर्म प्रतइ निपजावी. ५१४२.*) नवस्मरण व दुहा सङ्ग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १४, पे. २, जैदेना., प्र. वि. प्रथम पत्र नया बदला है., विभक्ति संकेत-संधि सूचक चिह्न, अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ -अंतिम कुछ पत्र, (२५.५x११, १०-११४३५-३८). पे. १. नवस्मरण, आ. अनेक श्रुतस्थविर, प्रा., सं., प+ग, (पृ. १-१४), आदिः नमो अरिहन्ताणं० हवइ: अंति: जैनं जयति शासनम्., पे.वि. कल्याणमंदिर स्तोत्र नहीं है. पे. २. दुहा सङ्ग्रह *, मागु., प्रा., सं., पद्य, (पृ. १४अ), आदि: #; अंतिः #., पे.वि. गा. ६. ५१४३.” अध्यात्मबिन्दु सह स्वोपज्ञटीका, संपूर्ण, वि. १९५१, श्रेष्ठ, पृ. २५, जैदेना., प्र. वि. मूल-श्लो. ३२., संशोधित, (२६११.५, १४४४०-४४). अध्यात्मबिन्दुद्वात्रिंशिका, मु. हर्षवर्द्धन, सं., पद्य, आदिः ब्रूमः किमध्यात्म; अंतिः आत्मस्वरुपः. अध्यात्मबिन्दुद्वात्रिंशिका - स्वोपज्ञ व्याख्या, मु. हर्षवर्द्धन, सं., गद्य, आदि: (१) वयमध्यात्ममहत्वं (२) अनन्तविज्ञानविभूति; अंतिः ज्ञानं न सिद्ध्येत. For Private And Personal Use Only ५१४४. पाक्षिकसूत्र व खामणा, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १२, पे. २, जैदेना, (२७.५x११.५, १०x३३-३८). पे. १. पे. नाम. पाक्षिकसूत्र, पृ. ०१अ - ११आ पाक्षिकसूत्र प्रा. प+ग, आदि तित्थङ्करे व तित्थे अंतिः जेर्सि सुयसायरे भत्ति. पे. २. पे नाम पाक्षिकक्षामणासूत्र, पृ. १२-१२आ क्षामणकसूत्र, प्रा., गद्य, आदि: इच्छामि खमासमणो; अंतिः नित्थारग पारगा होह.. ५१४५." रत्नसञ्चय सह टबार्थ, श्लोक व कलश विचार, पूर्ण, वि. १८७२, श्रेष्ठ, पृ. ३९ - १ (१) = ३८, पे. २, जैदेना., ले. पं. रामविजय (गुरु पं. रङ्गविजय) प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, पू. वि. गा.९ तक नहीं हैं., ( २६.५५११, ७४३४-३७). पे. १. पे. नाम. रत्नसञ्चय सह टबार्थ, पृ. २-३९, पूर्ण रत्नसंचय, आ. हर्षनिधानसूरि प्रा. पद्य, आदि अंतिः गाहा आगमे भणिया रत्नसंचय-टबार्थ, मागु., गद्य, आदि:-; अंतिः सात धनुष देहनो मान., पे.वि. मूल - गा. ५४७. प्रथम पत्र नहीं है. गा. १ से १८ नहीं है. " " पे. २. कलश विचार, सं., गद्य, (पृ. ३९अ, संपूर्ण), आदि: नेमीवयणेण जत्नागए; अंतिः इगकोडि सट्ठिलखा. Page #567 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ५१३ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ५१४७. वीसस्थानक पूजा, संपूर्ण, वि. १९२८, श्रेष्ठ, पृ. १०, जैदेना., ले.स्थल. वडनगर, ले. वसन्तराम पानाचन्द भोजक, प्र.वि. ढाळ-२०, (२६.५४११.५, ११-१२४४४-४७). २० स्थानक पूजा, आ. लक्ष्मीसूरि, मागु., पद्य, वि. १८४५, आदिः श्रीशद्धेश्वर पासजी; अंतिः पभणै सयल सङ्घ जयकरू. ५१४८." जम्बूद्वीपसङ्ग्रहणी सह टबार्थ (विस्तृत), संपूर्ण, वि. १८३१, श्रेष्ठ, पृ. ८, जैदेना., प्र.वि. मूल-गा.३१., टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२६४११.५, ३४३७-४०). लघुसङ्ग्रहणी, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदिः नमिय जिणं सव्वन्द्वं; अंतिः रईया हरिभद्दसूरिहिं. लघुसङ्ग्रहणी-टबार्थ , मागु., गद्य, आदिः नमिय क० नमस्कार करी; अंतिः आचार्ये कह्यो. ५१५०.” अन्तगडदशाङ्गसूत्र, अपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ३०, जैदेना., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. , (२५.५४११.५, ८-९४३५-३७). अन्तकृद्दशाङ्गसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदिः तेणं कालेणं० चम्पा०; अंतिः५१५२. भववैराग्यशतक सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १६८४, श्रेष्ठ, पृ. ११, जैदेना.,प्र.वि. मूल-गा.१०४., (२६४११, ६४३४-३६). वैराग्यशतक, प्रा., पद्य, आदिः संसारंमि असारे नत्थि; अंतिः लहइ जिउ सासयं ठाणं. वैराग्यशतक-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः संसार असारमाहि नथी; अंतिः जीव शाश्वतुं ठाम. ५१५४. सूयगडाङ्गसूत्र, अपूर्ण, वि. १६वी, श्रेष्ठ, पृ. ३५-१३(१ से १३)=२२, जैदेना., ले. उपा. विजयहंस (गुरु आ. माणेक्यकुञ्जरसूरि, अञ्चलगच्छ), पठ. मु. हर्षलाभ (गुरु गणि पुण्यप्रभ, अञ्चलगच्छ).प्र.वि. ग्रं. २२००, पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न-वचन विभक्ति संकेत-क्रियापद संकेत, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, पू.वि. श्रुतस्कंध-१ अध्याय १ से १५ तक नहीं है., (२६४११, १८४५९-६१). सूत्रकृताङ्गसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदि:-; अंतिः विहरति त्ति बेमि. ५१५५. आराधनापताका, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. २५, जैदेना., प्र.वि. गा.९३२, (२५४११, १६४५२-५६). आराधनापताका, प्रा., पद्य, आदिः पणमिर नरिन्ददेविन्द; अंतिः हेउं सेवह आराहणाअमयं. ५१५६. उपदेशमाला, पूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १८-२(४,६)=१६, जैदेना., प्र.वि. गा.५४४, (२६४११, १३४४८). उपदेशमाला, गणि धर्मदास, प्रा., पद्य, आदिः (१) नमिऊण जिणवरिन्दे (२) जगचूडामणिभूओ उसभो; अंतिः वयण विणिग्गया वाणी. ५१५७. नवतत्त्व विचार व आठसौ बोल की बन्धी, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ११, पे. २, जैदेना., (२६.५४११, १६४३५-४४). पे. १. नवतत्त्व प्रकरण-विचार, संबद्ध, मागु., गद्य, (पृ. १-११), आदि: जीवतत्त्व १ अजीव; अंतिः एकसिद्धा अणेगसिद्दा. पे. २.८०० बोल बन्धी, मागु., गद्य, (पृ. ११आ), आदिः भागा ४ का नाम; अंतिः २०० वेदतो वेदै. ५१५८. पर्यन्ताराधना सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, जैदेना., प्र.वि. मूल-गा.७०., (२५.५४११, ५४३२). पर्यन्ताराधना, आ. सोमसूरि, प्रा., पद्य, आदिः नमिउण भणइ; अंतिः ते सासयं सुक्खं. पर्यन्ताराधना-टबार्थ , मागु., गद्य, आदिः नमस्कार करीनइं; अंतिः लहई ते शाश्वता सुख. ५१५९. कयवन्ना चौपाई, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १७, जैदेना., ले.स्थल. पट्टणानगरे,ले. मु. मेघमुनि, प्र.वि. गा.५५५, ढाळ-३१, (२६४११, १३४५४-६०).. कयवन्ना चौपाई, मु. जयतसी, मागु., पद्य, वि. १७२१, आदिः स्वस्ति श्रीसुख; अंतिः धरमकरण मन उलसेजी. ५१६०. स्तवनचौवीसी, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १०-१(५)=९, जैदेना., प्र.वि. अध्याय-२४ स्तवन, पू.वि. स्तवन १३ गा.५ से स्तवन १६ गा.३ तक नहीं हैं., (२५.५४११.५, १३४४३-४६). स्तवनचौवीसी, मु. आनन्दघन, मागु., पद्य, वि. १८पू, आदिः ऋषभ जिनेश्वर प्रीतम; अंतिः आनन्दघन प्रभु जाग रे. For Private And Personal Use Only Page #568 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य भाग - १ ५१४ ५१६१. सत्तरभेदी पूजा, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, जैदेना., प्र.वि. गा.१०८, ढाळ-१७; प्र.पु. मूल-ग्रं. १४४, (२६४११.५, ९४३१-३३). १७ भेदी पूजा, उपा. सकलचन्द्रगणि, मागु., पद्य, आदिः अरिहन्त मुखपङ्कज; अंतिः सकल थुणियो रे. ५१६२. नन्दीश्वरदीप पूजा, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १३, जैदेना., प्र.वि. ढाळ-१२; प्र.पु. मूल-ग्रं. २००, (२६४११.५, ९४३३ ३६). नन्दीश्वरद्वीप पूजा, मु. धर्मचन्द्र, मागु., पद्य, वि. १८९६, आदिः प्रणमुं शान्ति; अंतिः चन्द्रने तारो उपगारी. ५१६४. आनन्दघनबोहत्तरी (पद सङ्ग्रह), संपूर्ण, वि. १९१७, श्रेष्ठ, पृ. १४, जैदेना., ले.स्थल. बम्बई, ले. चतुर्भुज ब्राह्मण, प्र.वि. प्र.पु. ८२ पद., (२६.५४११.५, १२४४३-४६). आनन्दघनबहत्तरी, मु. आनन्दघन, प्राहिं., पद्य, आदि: क्यारे मुनें मिल से; अंतिः नाभ आनन्दघन. ५१६६. उपदेशमाला की टीका की पीठिका, प्रतिपूर्ण, वि. १९६८, श्रेष्ठ, पृ. १३, जैदेना., ले.स्थल. नागनेश, ले. मोहनलाल लहिया, पठ. मु. विनयविजय, प्र.ले.पु. मध्यम, (२६४११, १४४४८-५२). उपदेशमाला-वृत्ति, गणि रामविजय, सं., गद्य, वि. १७८१, आदिः श्रेयस्करं कामित; अंतिः५१६७. उपदेशप्रसाद का व्याख्यान, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६६, जैदेना., पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. स्थम्भ-३ व्याख्यान ४१ तक लिखा हैं., (२६x११, १४४४८-५०). उपदेशप्रासाद, आ. लक्ष्मीसूरि, सं., प+ग, वि. १८४३, आदिः स्वस्ति श्रीदो नाभि; अंति:५१६८. स्नात्रपूजाकरण विधि, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदेना., (२५४११, १०x४०-४६). स्नात्र पूजा, आ. मङ्गलसूरि, मागु., पद्य, वि. १३वी, आदिः मुक्तालङ्कारविकारसार; अंतिः भविया पुजो एह ज देव. ५१६९. दीपावलीपर्व महोत्सवमहिमा स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, जैदेना., प्र.वि. गा.१२५, ढाळ-१०, (२५४११.५, १०x४५). महावीरजिन स्तवन, मु. गुणहर्ष, मागु., पद्य, आदिः श्रमण सङ्घ तिलकोपमं; अंतिः श्रीगुणहर्ष वधामणे. ५१७०." अभिधानचिन्तामणी नाममाला, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ५४-१३(१ से ९,११ से १४)=४१, जैदेना.,प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-वचन विभक्ति संकेत-प्रथम पत्र, (२६.५४११, १३४३५-३८). अभिधानचिन्तामणि नाममाला, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, आदि:-: अंतिः रोषोक्तावु नतौ नमः. ५१७२. सिद्धहेमचन्द्राभिधानशब्दानुशासन सह स्वोपज्ञवृत्ति-सर्ग ८, प्रतिपूर्ण, वि. १४९०, श्रेष्ठ, पृ. २६, जैदेना., (२६४११, २० २२४६८-७३). सिद्धहेमशब्दानुशासन, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., गद्य, वि. ११९३, आदि:-; अंति:सिद्धहेमशब्दानुशासन-स्वोपज्ञ तत्त्वप्रकाशिका बृहद्धृत्ति, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., गद्य, वि. ११९३, आदि:-; अंतिः५१७४. पञ्चनिर्ग्रन्थी व नयविचार सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७२९, श्रेष्ठ, पृ. १२, पे. २, जैदेना., ले.स्थल. कालूपूर, ले. पं. रत्नविजय (गुरु गणि भाणविजय), प्र.ले.पु. मध्यम, (२४४११, ७x३१-३४). पे. १. पे. नाम. पञ्चनिर्ग्रन्थी प्रकरण सह, पृ. १-१२अ भगवतीसूत्र-अभयदेवीय टीका का हिस्सा पञ्चनिर्ग्रन्थी प्रकरण, आ. अभयदेवसूरि , प्रा., पद्य, वि. ११२८, आदिः (१) पन्नवण वेय रागे कप्प (२) नमिऊणमहावीरं भव्व; अंतिः रइया भावत्थसरणत्थं. पंचनिर्ग्रन्थी प्रकरण-टबार्थ, उपा. यशोविजयजी गणि, मागु., गद्य, वि. १८वी, आदिः नयविजयगुरुणां; अंतिः किङ्किणीका भवत्येषा., पे.वि. हिस्सा-गा.१०६; टबार्थ-ग्रं.३५५; प्र.पु. सर्वग्रं.५१५. पे. २. पे. नाम. नयविचार सह टबार्थ, पृ. १२अ-१२आ नय विचार, प्रा., पद्य, आदिः छन्नन्तह पञ्चन्नं; अंतिः चियय पच्छयम्बिन्ति. For Private And Personal Use Only Page #569 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ५१५ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची नयविचार-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः निगम सङ्ग्रह व्यवहार; अंतिः अति गम्भीर छे जाणवो., पे.वि. मूल-गा.४. ५१७५. पञ्चनिर्ग्रन्थी सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९२६, श्रेष्ठ, पृ. २१, जैदेना., ले.स्थल. भावनगर, ले. गोपाल वेलजी दवे, प्र.वि. हिस्सा-गा.१०६; टबार्थ-ग्रं. ३५५., पदच्छेद सूचक लकीरें-वचन विभक्ति संकेत, (२६.५४११.५, ४४२९-३१). भगवतीसूत्र-अभयदेवीय टीका का हिस्सा पञ्चनिर्ग्रन्थी प्रकरण, आ. अभयदेवसूरि , प्रा., पद्य, वि. ११२८, आदिः (१) पन्नवण वेय रागे कप्प (२) नमिऊणमहावीरं भव्व; अंतिः रइया भावत्थसरणत्थं. पंचनिर्ग्रन्थी प्रकरण-टबार्थ, उपा. यशोविजयजी गणि, मागु., गद्य, वि. १८वी, आदिः नमीनई श्रीमहावीर; अंतिः सम्भारवानइ अर्थइ. ५१७६. निगोदषट्त्रिंशिका सह वृत्ति, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना., प्र.वि. हिस्सा-गा.३६., (२६.५४१०.५, १९४५६ ५९). भगवतीसूत्र-अभयदेवीय टीका का हिस्सानिगोदषट्त्रिंशिका प्रकरण, प्रा., पद्य, आदिः लोगस्सणम्भन्तेएगम्मि; अंतिः ते अणन्ता असङ्खा वा. भगवतीसूत्र-टीका के हिस्सा-निगोदषट्त्रिंशिका प्रकरण की टीका, आ. रत्नसिंहसूरि, सं., गद्य, आदिः अथ पंचमांग; अंतिः प्यसङ्ख्येया अवसेयाः. ५१७७.” अन्तगडदशाङ्गसूत्र सह टबार्थ (अष्टम अङ्ग), पूर्ण, वि. १७८६, जीर्ण, पृ. ५२-१(४४)=५१, जैदेना., ले.स्थल. पीपापुर, ले. ऋ. हरीचन्द्र, प्र.वि. मूल-ग्रं. ८९९, अध्याय-९२., पदच्छेद सूचक लकीरें, (२७४११, ६x४४-५०). अन्तकृद्दशाङ्गसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदिः तेणं कालेणं० चम्पा०; अंतिः अयमढे पण्णत्ते. अन्तकृद्दशाङ्गसूत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः ते० तेणे काले चउथो; अंतिः धर्मकथानी परइ जाणवो. ५१७८. षट्पर्वमहिमा स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना., (२४.५४११, ९४४२).. महावीरजिन स्तवन-षटपर्व, पं. पद्मविजय, मागु., पद्य, वि. १८३०, आदिः गुरु पद पङ्कज नमी; अंति: नाम खटपर्वी धर्यो. ५१७९. स्तवन चौवीसी, पूर्ण, वि. १७२६, श्रेष्ठ, पृ. ११-१(३)=१०, जैदेना., पू.वि. बीच में एक पत्र नहीं है. स्तवन ५ गाथा २ से स्तवन ८ गाथा ३ तक नहीं है., (२४.५४१०.५, ११४३२). स्तवनचौवीसी, मु. धीरविजय, मागु., पद्य, आदिः विमलाचल रलिआमणो रे; अंतिः धीरने हो सुखदाय. ५१८१. शत्रुञ्जय रास व महावीरजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, पे. २, जैदेना., पू.वि. प्रथम एक व अंत के पत्र नहीं हैं., (२४४११, ११४२८-३१). पे. १. शत्रुजयतीर्थ रास, उपा. समयसुन्दर गणि, मागु., पद्य, वि. १६८२, (पृ. -२-७), आदि:-; अंतिः सुणतां आणन्द थाय., पे.वि. प्रथम पत्र नहीं है. ढाल-२ की गाथा २ तक नही है. पे. २. महावीरजिनविनती स्तवन, उपा. समयसुन्दर गणि, मागु., पद्य, (पृ. ७अ-७आ-), आदिः वीर सुणो मोरी विनती; अंति:-, पे.वि. अंतिम पत्र नहीं है. १ से ७ गाथा तक नहीं है. ५१८२. स्तवनवीसी व चौवीसी, संपूर्ण, वि. १८८५, श्रेष्ठ, पृ. १७, पे. २, जैदेना., ले.स्थल. लिंबडी, ले. मु. दानविजय, (२६४११, १४४४२). पे. १. विहरमानजिन स्तवनवीसी, गणि देवचन्द्र, मागु., पद्य, (पृ. १अ-९अ), आदिः श्रीसीमन्धर जिनवर; अंतिः सुजस महोदय वृन्दो रे., पे.वि. २०स्तवन. पे. २. स्तवनचौवीसी, मु. मोहनविजय, मागु., पद्य, (पृ. ९अ-१७), आदिः बालपणे आपण ससनेही; अंतिः वसीओ तु वीसवावीस., पे.वि. अध्याय-२४ स्तवन. ५१८३. कालसत्तरि सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ९-१(१)=८, जैदेना., प्र.वि. मूल-गा.७४., पू.वि. गा.६ तक नहीं हैं., (२४x१०.५, ५-६४३३-३६). For Private And Personal Use Only Page #570 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य भाग - १ ५१६ कालसप्ततिका, आ. धर्मघोषसूरि , प्रा., पद्य, आदि:-; अंतिः कालसरूवं किमवि भणियं. कालसप्ततिका-टबार्थ, मागु., गद्य, आदि:-; अंतिः सरुप कांइक ए कहिउ. ५१८४. सिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासन सह स्वोपज्ञ लघुवृत्ति-आख्यातवृत्ति, प्रतिपूर्ण, वि. १६वी, मध्यम, पृ. २३, जैदेना., प्र.वि. प्र.पु. सर्वश्लो.१०२५., पदच्छेद सूचक लकीरें, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, संशोधित, पू.वि. अध्याय-३ पाद-३ से चौथा अध्याय पर्यन्त., (२६४१०.५, १५४४८-५२). सिद्धहेमशब्दानुशासन, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., गद्य, वि. ११९३, आदि:-; अंतिः सिद्धहेमशब्दानुशासन-स्वोपज्ञ लघुवृत्ति, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., गद्य, आदि:-; अंति:५१८५.” अभिधानचिन्तामणि नाममाला सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. १५२०, श्रेष्ठ, पृ. ४०, जैदेना., ले. पांचा, प्र.वि. मूल-६ कांड; प्र.पु. मूलग्रं. १५९२; अवचूरि-ग्रन्थाग्रन्थ-२७००., पदच्छेद सूचक लकीरें-पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्नवचन विभक्ति संकेत, पंचपाठ, (२६४१०.५, १५४४१-४७). अभिधानचिन्तामणि नाममाला, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, आदिः प्रणिपत्यार्हतः; अंतिः रोषोक्तावु नतौ नमः. अभिधानचिन्तामणि नाममाला-अवचूरि*, मु. साधुरत्न, सं., गद्य, आदिः सिद्धं प्रतिष्ठा; अंतिः श्चेति मङ्गलार्थः. ५१८६." अभिधानचिन्तामणी नाममाला व ग्रन्थसूचि, संपूर्ण, वि. १६वी, श्रेष्ठ, पृ. २१, पे. २, जैदेना., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न-वचन विभक्ति संकेत-क्रियापद संकेत, (२६x१०.५, २०-२४४६५-६८). पे. १. अभिधानचिन्तामणि नाममाला, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, (पृ. १-२१), आदिः प्रणिपत्यार्हतः; ___ अंतिः रोषोक्तावु नतौ नमः., पे.वि. ६ कांड. पे. २. ग्रन्थसूचि* , मागु., गद्य, (पृ. २१आ), आदिः ४ पानां लिङ्गना १५; अंति: #. ५१८७. खण्डाजोडण व अढीद्वीप विचार, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १२, पे. २, जैदेना., (२४.५४१०.५, १३४४४-५०). पे. १. लघुसङ्ग्रहणी-खण्डाजोयण बोल*, संबद्ध, मागु., गद्य, (पृ. १-१२), आदिः लाख जोयणनो; अंतिः रोहितानी परै जाणवी. पे. २. ढाईद्वीप विचार, मागु., गद्य, (पृ. ११आ-१२अ), आदिः खण्डा ८ हजार ५५०; अंतिः सनीसर ९०० सनीसर. ५१८८. श्रावक आलोचना सङ्ग्रह, संपूर्ण, वि. १८८१, श्रेष्ठ, पृ. १०, जैदेना., ले.स्थल. स्वर्णगिरि-जालो, ले. पं. डुङ्गरविजय, (२६.५४१०.५, १२४४५). आलोयणा विचार, सं.,प्रा.,मागु., प+ग, आदिः (१) प्रथमं मुहूर्तं; अंतिः सज्झाये उपवास १. ५१८९. सम्यक्त्वकौमुदी, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. २८, जैदेना., ले.स्थल. राजनगर, ले. आ. धर्ममूर्तिसूरि, प्र.वि. ग्रं. ७९७, (२६x१०.५, ११४४६-४८). सम्यक्त्वकौमुदी, आ. जयशेखरसूरि, सं., गद्य, वि. १४५७, आदिः श्रीवर्द्धमानमानम्य; अंतिः कथां सम्यक्त्वकौमुदी. ५१९०. ज्योतिषसार, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना., पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. गा.२९ तक है., (२५४१०.५, ५४३४). ज्योतिषसार, आ. नरचन्द्रसूरि, सं., पद्य, आदिः श्रीअर्हन्तजिनं; अंति:५१९३. अठोत्तरिस्नात्र विधि, संपूर्ण, वि. १८१२, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना., (२५४१०, १०४३५-३८). अष्टोत्तरीस्नात्र विधि, सं.,मागु., गद्य, आदिः तथा प्रथम उपरण मेलवा; अंतिः कुंभमध्ये लिखनमन्त्र. ५१९४." एकवीसीठाणा प्रकरण सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदेना., प्र.वि. मूल-गा.७१., पदच्छेद सूचक लकीरें, टिप्पण युक्त विशेष पाठ-कुछ पत्र, (२५४१०.५, ६x४३). एकविंशतिस्थान प्रकरण, आ. सिद्धसेनसूरि, प्रा., पद्य, आदिः चवण विमाणा नयरी; अंतिः असेस साहारणा भणिया. एकविंशतिस्थान प्रकरण-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः चव्या वीमानथी तेहनउ; अंतिः समय साधारणइ कह्या. For Private And Personal Use Only Page #571 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ५१७ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ५१९५. आदिजिन विवाहलो व दुहा सङ्ग्रह, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १३, पे. ३, जैदेना., ले.स्थल. अलवर, प्र.ले.श्लो. (५१०) यादृसं पुस्तकं दृष्टवा, (२५४१०.५, १४४३४-३९). पे. १. आदिजिन विवाहलो, मागु., पद्य, (पृ. १-१३), आदिः सासनदेवीय पाय; अंतिः सेवक मुखि सदा., पे.वि. श्रेष्ठ दशा वि. किनारी जीर्ण प्राय. श्लोक १. गा.२४३, ढाळ-४४. पे. २. जैन दुहा सङ्ग्रह', सं.,प्रा.,मागु., प+ग, (पृ. १३अ), आदिः#; अंतिः#. पे. ३. जैन गाथा *, प्रा., पद्य, (पृ. १३आ), आदिः#; अंतिः#. ५१९६. भववैराग्यशतक, संपूर्ण, वि. १६वी, मध्यम, पृ. ५, जैदेना., प्र.वि. गा.१०४, (२६४१०, ११४४४). वैराग्यशतक, प्रा., पद्य, आदिः संसारंमि असारे नत्थि; अंतिः लहइ जिउ सासयं ठाणं. ५१९७. नेमिजिन छन्द, अपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, प्र. ६, जैदेना., पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. गा.९० तक हैं., (२६.५४१०.५, ११४४३-५५). नेमिजिन रास, मु. लावण्यसमय, मागु., पद्य, वि. १५४६, आदिः स्मृत्वा श्रीशारदौ; अंतिः५१९८.” अजितशान्ति स्तव सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, जैदेना., प्र.वि. मूल-गा.४०., पदच्छेद सूचक लकीरें, (२५.५४१०.५, १३४४३-४७). अजितशान्ति स्तव , आ. नन्दिषेणसूरि, प्रा., पद्य, आदिः अजियं जिय सव्वभयं; अंतिः जिणवयणे आयरं कुणह. अजितशान्ति स्तव-बालावबोध, मागु., गद्य, आदिः अजिअं अजितनाथ किसउ; अंतिः आयरं आदरं कुणह करउ. ५१९९. उपदेशरत्नकोश सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदेना., प्र.वि. मूल-गा.२५., (२५४१०.५, ९४३८). उपदेशरत्नमाला, आ. पद्मजिनेश्वरसूरि, प्रा., पद्य, आदिः उवएसरयणकोसं नासि; अंतिः विउलं उवएसमालमिणं. उपदेशरत्नमाला-बालावबोध, मागु., गद्य, आदिः श्रीमहावीर चउवीसमुं; अंतिः मुक्ति पामइ सुखी थाइ. ५२००. उपदेशमाला, संपूर्ण, वि. १७७६, श्रेष्ठ, प्र. २१, जैदेना., ले.स्थल. दियोदरनगर, ले. गणि भावविमल, प्र.वि. गा.५४१, (२५.५४१०.५, १२-१३४३६-४३). उपदेशमाला, गणि धर्मदास, प्रा., पद्य, आदिः (१) नमिऊण जिणवरिन्दे (२) जगचूडामणिभूओ उसभो; अंतिः वयण विणिग्गया वाणी. ५२०१. सिन्दूरप्रकरण व श्लोक सङ्ग्रह, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ६, पे. २, जैदेना., प्र.वि. वचन विभक्ति संकेत, अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ, (२५४१०, १४४४९-५२). पे. १.सिन्दूरप्रकर, आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य, (पृ. १-६), आदिः सिंदूरप्रकरस्तपः; अंति: सूक्तमुक्तावलीयम्., पे.वि. श्लो.१००. पे. २. जैन श्लोक *, सं., पद्य, (पृ. ६आ), आदिः#; अंतिः#., पे.वि. ३+१. ५२०२. नवकार सह बालावबोध व श्राद्धपाक्षिक अतिचार, संपूर्ण, वि. १७६८, मध्यम, पृ. १४, पे. २, जैदेना., दशा वि. चिपके पत्र अलग करते वक्त विशीर्ण-अल्प, विवर्ण-पानी से अक्षरों की स्याही फैल गयी है-अल्प, खंडित भाग पर कागज चिपकाए हुए हैं-प्रथम व अंतिम पत्र, (२५x१०.५, १३४३६). पे. १.पे. नाम. नवकारमन्त्र सह बालावबोध, पृ. १-७आ नमस्कार महामन्त्र, प्रा., पद्य, आदिः नमो अरिहन्ताणं नमो; अंतिः पढमं हवई मङ्गलम्. नमस्कारमहामन्त्र-बालावबोध', मागु., गद्य, आदिः माहरो नमस्कार; अंतिः ए अष्टभङ्गी जाणवा. पे. २. पे. नाम. अतिचार, पृ. ७आ-१४ श्रावकपाक्षिकअतिचार-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मागु., गद्य, आदि: विशेषतः श्रावक तणआइ; अंतिः मिच्छामि दुक्कडम्. ५२०३. कल्याणमन्दिर स्तोत्र सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १७११, श्रेष्ठ, पृ. १३, जैदेना., ले.स्थल. लांबीयानगर, ले. मु. For Private And Personal Use Only Page #572 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य भाग - १ ५१८ सौभाग्यविजय (गुरु मु. गुणविजय), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. मूल-श्लो.४४., प्र.ले.श्लो. (५०६) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा , (२५.५४१०.५, ३४३३-३६). कल्याणमन्दिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकर, सं., पद्य, आदिः कल्याणमन्दिरमुदारमवद; अंति: मोक्षं प्रपद्यन्ते. कल्याणमन्दिर स्तोत्र-बालावबोध, मु. उदयहर्ष, मागु., गद्य, आदिः प्रथम मङ्गलीक भणी; अंतिः उदयहर्षेण साधुना. ५२०५. नवतत्त्व सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १६९६, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदेना., ले.स्थल. आसपुरनगर, ले. मु. कुंअरविजय (गुरु मु. जयविजय), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. मूल-गा.४७., (२६४१०.५, ५४४०). नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंतिः अणागयद्धा अणन्तगुणा. नवतत्त्व प्रकरण-टबार्थ, राज., गद्य, आदिः जीवतत्त्व अजीवतत्त्व; अंतिः बे भेदे एवं १३२. ५२०६. सङ्ग्रहणीसूत्र, अपूर्ण, वि. १८०६, श्रेष्ठ, पृ. १९-२(१ से २)=१७, जैदेना., पठ. मु. पद्मविजय,प्र.वि. गा.३३९, पू.वि. गा.२३ तक नहीं है., (२५४१०.५, ११४४०). बृहत्सङ्ग्रहणी, आ. चन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदिः-; अंतिः जा वीरजिण तित्थं. ५२०७. बप्पभट्टसूरि चरित्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३२+१(२८)=३३, जैदेना., (२६४११, ९४३३-३८). बप्पभट्टसूरि चरित्र, सं., गद्य, आदिः गुर्जरदेशे पाटलिपुरे; अंतिः पुरुषैरेवं भाव्यम्. ५२०८. शालिभद्र चौपाई व जीभवर्णन श्लोक, संपूर्ण, वि. १८१८, श्रेष्ठ, पृ. १७, पे. २, जैदेना., ले.स्थल. गरवाडा, ले. ऋ. सांवलदास (गुरु ऋ. गुलाबचन्द): ऋ. राजसी, प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र.ले.श्लो. (५०६) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा , (२५४११.५, १५४३९-४१). पे. १. शालिभद्रधन्ना चौपाई, आ. जिनसिंहसूरि, मागु., पद्य, वि. १६७८, (पृ. १-१७), आदिः शासण नायक समरीये; अंति: मनवञ्छित फल लहस्येजी., पे.वि. ढाळ-२९. पे. २. वचनलाभहानी श्लोक, मागु., पद्य, (पृ. १७आ), आदिः जीभ सयण सम्पजै जीभ; अंतिः वयण जास इमृत वसै., पे.वि. गा.२. ५२०९.” दीपावली कल्प सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८९५, श्रेष्ठ, पृ. ६१, जैदेना., ले.स्थल. घाणेरावनगर, ले. मु. रङ्गसागर (गुरु पं. सरूपसागर), प्र.वि. मूल-श्लो.४३७., पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिन-क्रियापद संकेत, प्र.ले.श्लो. (५५३) आद्रिसां पूस्तकं द्रिष्टा, (२४.५४११, ४४३३-३६). दीपावलीपर्व कल्प, आ. जिनसुन्दरसूरि, सं., पद्य, वि. १४८३, आदिः श्रीवर्द्धमानमाङ्गल; अंतिः चन्द्रार्कजगत्त्रये. दीपावलीपर्व कल्प-टबार्थ, गणि सुखसागर, मागु., गद्य, वि. १७६३, आदिः अहँ नत्वाल्प; अंतिः प्रवर्तो प्रतपो. ५२१२. वछराजहंसराज चौपाई, संपूर्ण, वि. १७६२, मध्यम, पृ. ३९, जैदेना., ले.स्थल. आणंदपुर, प्र.वि. गा.९०५, खण्ड-४/ढाळ ४८, (२६.५४१०.५, १२-१५४३६-४१). हंसराजवत्सराज चौपाई, आ. जिनोदयसूरि, मागु., पद्य, वि. १६८०, आदिः आदिसर आदे; अंतिः दिनदिन हुयै जयजयकार. ५२१३. ढोलामारुवणी चौपई, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २४, जैदेना.,प्र.वि. गा.१११५. उद्धरणरूप दोहे, श्लोक, गाथा की __ संख्याएँ भी सम्मिलित है., (२७४११, १७४५४-५९). ढोलामारु चौपाई, वाचक कुशललाभ, मागु., पद्य, वि. १६७७, आदिः सकल सुरासुर सामिनी; अंतिः पामै सुख संसार. ५२१४. प्रतिमाजी रा छूटक आलोवा सङ्ग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २२, जैदेना., (२६.५४११, १३-१५४४२-४४). आगमों में जिनप्रतिमा के आलापक, प्रा.,मागु., गद्य, आदिः (१) तेणं कालेणं तेणं (२) ए रीते समस्त श्रावक; अंतिः पिण द्रव्य मन नथी. ५२१५." क्षेत्रसमास सह बालावबोध, पूर्ण, वि. १६०२, श्रेष्ठ, पृ. १३८-६(१,५६ से ६०)=१३२, जैदेना., प्र.वि. मूल-गा.२६३. प्र.पु. उभय ग्रन्थाग्रन्थ-४८६७., संशोधित, (२६४११, १२-१३४३७-४३). For Private And Personal Use Only Page #573 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ५१९ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची लघुक्षेत्रसमास प्रकरण, आ. रत्नशेखरसूरि , प्रा., पद्य, वि. १५वी, आदि:-; अंतिः कुसलरङ्गमयं पसिद्धं. लघुक्षेत्रसमास-बालावबोध , पं. दयासिंह, मागु., गद्य, वि. १५२९, आदि:-; अंतिः लगें विस्तरउ. ५२१६. उपदेशमाला सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ४३-५(१,११,१३,२०,३४)=३८, जैदेना., प्र.वि. मूल-गा.५४४., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-कुछ पत्र, दशा वि. अक्षर फीके पड गये हैं, (२५.५४११.५, ६x२३-४५). उपदेशमाला, गणि धर्मदास, प्रा., पद्य, आदि:-; अंतिः वयण विणिग्गया वाणी. उपदेशमाला-टबार्थ, मागु., गद्य, आदि:-; अंतिः देवता तेसां सहउं. ५२१७. श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र सङ्ग्रह सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १८०८, श्रेष्ठ, पृ. ४२-४(३८ से ४१)=३८, जैदेना., ले. मु. शुभविजय, (२५४१०.५, १३-१४४३८). श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र , संबद्ध, प्रा.,मागु., प+ग, आदि: नमो अरिहं० सव्वसाहूण; अंतिः वन्दामि जिणे चउवीसं. श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-बालावबोध*, मागु., गद्य, आदिः पहिलं सकल मङ्गलिक; अंतिः तीर्थङ्कर वान्दु छु. ५२१८. उत्तराध्ययनसूत्र सह अर्थ व कथा-अध्ययन १ से २४, प्रतिपूर्ण, वि. १७९६, श्रेष्ठ, पृ. १०८+१(९८)=१०९, जैदेना., ले.स्थल. तोलीयासरग्राम, ले. मु. कीर्तिहर्ष (गुरु गणि कीर्तिविजय, खरतरगच्छ),प्र.ले.पु. मध्यम,प्र.वि. प्र.पु. सर्वग्रं. ४५००., पदच्छेद सूचक लकीरें-प्रारंभिक पत्र, प्र.ले.श्लो. (५३२) तिलात् रक्षे जला रक्षेत्, (२६.५४११, ११-१४४३६ ४३). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग, आदिः सञ्जोगाविप्पमुक्कस्स; अंतिःउत्तराध्ययनसूत्र-अर्थ, मागु., गद्य, आदिः भिक्षु महात्मानै; अंति: उत्तराध्ययनसूत्र-कथा सङ्ग्रह*, मागु., गद्य, आदि:-; अंति:५२१९. सिन्दूरप्रकरण सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. १६४५, श्रेष्ठ, पृ. २१, जैदेना., ले.स्थल. वटपद्नगर, प्र.वि. मूल-श्लो.१००., पंचपाठ, (२५.५४१०.५, ७-८x२४-२६). सिन्दूरप्रकर, आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य, आदिः सिंदूरप्रकरस्तपः; अंतिः शमेति नाशम्. सिन्दूरप्रकर-टीका, सं., गद्य, आदिः पार्श्वप्रभोः क्रमयो; अंतिः ज्ञानगुणारतनोतुः. ५२२०. दौपती चौपाई, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ४०, जैदेना., प्र.वि. ढाळ-३९, (२६४१२.५, १५-१६४३९-४१). द्रौपदी चौपाई, वाचक कनककीर्ति, मागु., पद्य, वि. १६९३, आदिः पुरिसादाणी पासजिण; अंतिः कनककीरति सुखकार. ५२२१. मदनसेन चौपाई, संपूर्ण, वि. १९३१, श्रेष्ठ, पृ. ४२, जैदेना., ले. लक्ष्मीनारायण, प्र.वि. ढाळ-३१, (२५.५४११.५, १३४३२). मदनसेन चौपाई, ऋ. सांवत, मागु., पद्य, वि. १८९८, आदिः प्रथम नमी भगवन्तनै; अंतिः दुरगति दुर नसाइयै. ५२२२. नवस्मरण सह टबार्थ, प्रतिपूर्ण, वि. १९०३, श्रेष्ठ, पृ. २५, जैदेना., ले.स्थल. राजनगर, पू.वि. कल्याणमन्दिर नहीं है., (२६४११, ५७३७-३९). नवस्मरण, आ. अनेक श्रुतस्थविर, प्रा.,सं., प+ग, आदि: नमो अरिहन्ताणं० हवइ; अंतिः जैनं जयति शासनम्. नवस्मरण-टबार्थ, मागु., गद्य, आदि: माहरो नमस्कार; अंतिः सदाकाल मङ्गलिक हो. ५२२३. गुणस्थानक्रमारोह सह टीका, संपूर्ण, वि. १७१८, श्रेष्ठ, पृ. २२, जैदेना., ले. मु. रामसुन्दर, प्र.वि. मूल-श्लो.१४१., त्रिपाठ, (२४.५४११, १५-१७४४७-४८). गुणस्थानक्रमारोह, आ. रत्नशेखरसूरि, सं., पद्य, वि. १४४७, आदि: गुणस्थानक्रमारोह; अंतिः रत्नशेखरसूरिभिः. गुणस्थानक्रमारोह-स्वोपज्ञ टीका, आ. रत्नशेखरसूरि, सं., गद्य, वि. १४४७, आदिः अर्ह पदं हृदि; अंतिः प्रकटित इत्यर्थः. ५२२४. साधुपाक्षिक अतिचार, संपूर्ण, वि. १८७२, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना., (२६४११, ८-९४२९-३१). For Private And Personal Use Only Page #574 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य भाग १ - www.kobatirth.org: Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir · साधुपाक्षिक अतिचार श्वे. मू. पू. संबद्ध, मागु., प्रा., गद्य, आदि: नाणम्मि दंसणम्मि०: अंतिः अनेरो जे कोई अतिचार. ५२२५. ऋषभजिन चरित्र, पूर्ण, वि. १८वी श्रेष्ठ, पृ. २८, जैदेना, पृ.वि. अंतिम पत्र नहीं है. ढाल ४६ तक है., (२७४१०.५, १५X३६). आदिजिन चौपाई, ऋ. रायचन्द, मागु., पद्य, वि. १८४०, आदि: अरिहन्त सिद्धनै; अंतिः ५२२६. पद सङ्ग्रह, संपूर्ण, वि. १८६८, श्रेष्ठ, पृ. १८, जैदेना. ले. पं. मानहंस (२६४११, १०४३४-३८). " औपदेशिक पद सङ्ग्रह, मु. ज्ञानसार, प्राहिं., पद्य, आदि: कहा भरोसा तन का औधू; अंतिः जनम मरण भवपासा. ५२२७. हंसराजवच्छराज चौपाई, अपूर्ण, वि. १८६४, श्रेष्ठ, पृ. ४२-७(१ से ३,३८ से ४१ ) = ३५, जैदेना., ले. स्थल कसनगढ़, ले. साध्वीजी रतु (गुरु साध्वीजी बुदजी), प्र.ले.पु. मध्यम प्र. वि. खण्ड-४ (२६.५४११, १३-१४४३१-३५), हंसराजवत्सराज चौपाई, आ. जिनोदयसूरि, मागु., पद्य, वि. १६८०, आदि:-; अंतिः पुन्ये लील विलास. ५२२९. पर्यन्त आराधना, संपूर्ण वि. १७१७, श्रेष्ठ, पृ. ५. जैदेना. ले. स्थल, भुजनगर, प्र. वि. प्र.पु. ग.११५ (२५.५४११, १४ १७५४५-५०). पर्यन्ताराधना, प्रा.,मागु., प+ग, आदिः प्रथम इरियावही; अंतिः नायव्वो वीरियायारो. " ५२३०. बासठाको जन्त्र (६२ बोल), संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना., ( २६ ११, १३x४१). ६२ मार्गणाद्वार विचार, मागु, गद्य, आदि गइ इन्दि काए जोए अंतिः बादिबाकी लेस्या सतोक, ५२३१. इकवीसठाणा सह टबार्थ व श्लोक, संपूर्ण, वि. १६९१, मध्यम, पृ. ५, पे. २, देना, पठ. साध्वीजी रम्भा, प्र.ले.पु. मध्यम, (२५.५x११, ७-८x४१-४५) . पे. १. पे नाम. एकविंशतिस्थान प्रकरण सह टवार्थ, पृ. १-५ एकविंशतिस्थान प्रकरण आ. सिद्धसेनसूरि प्रा. पद्य आदि चवण विमाणा नयरी; अंतिः असेस साहारणा भणिया, एकविंशतिस्थान प्रकरण-टबार्थ, मागु., गद्य, आदि: जिहां थका चव्या ते; अंतिः समय साधारणइ कह्या., पे.वि. मूल-गा. ६६. पे. २. समोसरणविचार गाथा, प्रा., पद्य, (पृ. ५आ), आदि: नागेसु उसभवैया; अंतिः समोसरणं परमाणे., पे.वि. गा.४. ५२३२. भक्तामर स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना., प्र. वि. श्लो. ४४+४, (२५x११.५, ११×२८-३१). भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुङ्गसूरि, सं., पद्य, आदिः भक्तामरप्रणतमौलिमणि; अंतिः समुपैति लक्ष्मी. (+) " ५२३४. गुणकरण्डगुणावली चौपाई, संपूर्ण वि. १८४६ श्रेष्ठ, पृ. २७, जैदेना ले. स्थल, सोजत, ले. मु. नथमल, प्र. वि. गा.१६०३, ढाळ-२७, संशोधित, (२७x११, ११-१३४३३-३५). ५२० ; गुणकरण्डकगुणावलि चौपाई . दीपमुनि, मागु, पद्य वि. १७५४ आदि सम्पति सुखदायक सरस अंतिः सम्पति जस थावेजी ५२३५. सिन्दूरप्रकरण सह वृत्ति, संपूर्ण वि. १८वी श्रेष्ठ, पृ. ३२, जैदेना. ले. गणि माणिक्यविजय, प्र. वि. मूल श्लो. १००., " (२६४११.५, १५४३६-४०). For Private And Personal Use Only सिन्दूरप्रकर, आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य, आदि सिंदुरप्रकरस्तपः अंतिः सूक्तमुक्तावलीयम्. सिन्दूरप्रकर-टीका, आ. हर्षकीर्तिसूरि, सं., गद्य, वि. १६५५, आदिः श्रीमत्पार्श्वजिनं; अंतिः व्यरचि कृति. ५२३६. जम्बूद्वीप प्रकरण सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, जैदेना., पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. गा. १२५ तक है., (२४.५X११.५, ७x४६-४८). , बृहत्क्षेत्रसमास-सङ्क्षेप जम्बूद्वीप प्रकरण आ. जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण, संक्षेप, प्रा., पद्य, आदिः नमिऊणसजलजलहर अंति:बृहत्क्षेत्रसमास-सङ्क्षेप जम्बूद्वीप प्रकरण का टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः नमीनें जलसहित मेघ; अंति: Page #575 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ५२१ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ५२३७. पाक्षिकसूत्र, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १०, जैदेना., (२६x१०.५, १३४३९-४१). पाक्षिकसूत्र, प्रा., प+ग, आदिः तित्थङ्करे य तित्थे; अंतिः जेसिं सुयसायरे भत्ति. ५२३८. भक्तामर स्तोत्र, लघुशान्ति व कल्याणमन्दिर स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १८, पे. ३, जैदेना., (२७.५४११.५, ५४३०-३७). पे. १. भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुङ्गसूरि, सं., पद्य, (पृ. १अ-८आ), आदि: भक्तामरप्रणतमौलिमणि; अंतिः समुपैति लक्ष्मी., पे.वि. श्लो.४४+४. पे. २. लघुशान्ति, आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, (पृ. ८आ-१०आ), आदिः शान्तिं शान्ति; अंतिः (१)सूरिः श्रीमानदेवश्च (२)जैनं जयति शासनम्., पे.वि. श्लो.१९. पे. ३. कल्याणमन्दिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकर, सं., पद्य, (पृ. ११अ-१८अ), आदिः कल्याणमन्दिरमुदारमवद; अंतिः मोक्षं प्रपद्यन्ते., पे.वि. श्लो.४४. ५२३९. षष्टिशतक सह बालावबोध, पूर्ण, वि. १५७१, श्रेष्ठ, पृ. ३१-२(२०,२७)=२९, जैदेना., ले.स्थल. गंधारमंदिर, ले. गणि हर्षराज (गुरु गणि लावण्यभद्र), प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र.वि. मूल-गा.१६१., (२६४११, १२-१३४४५-४८). षष्टिशतक प्रकरण, श्रा. नेमिचन्द्र भाण्डागारिक, प्रा., पद्य, आदिः अरिहं देवो सुगुरू; अंतिः जाणन्तु जन्तु सिव्वं. षष्टिशतक प्रकरण-बालावबोध, आ. सोमसुन्दरसूरि, मागु., गद्य, वि. १४९६, आदिः (१) नात्रोक्तमेलोन (२) नेमिचन्द्र भण्डारी; अंतिः व्याख्या चिरं नन्दतु. ५२४०. अनुयोगद्वारसूत्र, संपूर्ण, वि. १६४८, श्रेष्ठ, पृ. ६४, जैदेना.,प्र.वि. प्र.पु. ग्रं. १४००., (२६४११, ११४३५-४०). अनुयोगद्वारसूत्र , आ. रक्षितसूरि, प्रा., प+ग, आदिः नाणं पञ्चविहं; अंतिः साहू से तं नए. ५२४१. सिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासन सह स्वोपज्ञ लघुवृत्ति व टिप्पणक-अध्याय १ से ४, प्रतिअपूर्ण, वि. १६वी, श्रेष्ठ, पृ. ५४-७(१ से ५,११,५३)=४७, जैदेना., प्र.वि. पंचपाठ, (२६४११.५, १५-१८४५३-५६). सिद्धहेमशब्दानुशासन, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., गद्य, वि. ११९३, आदिः-; अंतिःसिद्धहेमशब्दानुशासन-स्वोपज्ञ लघुवृत्ति, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., गद्य, आदि:-; अंतिः सिद्धहेमशब्दानुशासन-स्वोपज्ञ लघुवृत्ति का टिप्पण', सं., गद्य, आदि:-; अंति:५२४२. पार्श्वजिन व नेमिजिन चरित्र, अपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ८-२(२ से ३)-६, पे. २, जैदेना., पू.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., (२६४११, १५४४०-५०). पे. १. पार्श्वजिन दशभवसङ्क्षिप्तवर्णन*, सं., गद्य, (पृ. १अ-१आ-), आदि: पासे नामन्ति; अंतिः-, पे.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. पे. २. नेमिजिन चरित्र, सं., गद्य, (पृ. -४अ-८आ-), आदि:-; अंतिः-, पे.वि. बीच के पत्र हैं. ५२४३. भक्तामर स्तोत्र की विषमपद अवचूरि, संपूर्ण, वि. १५०५, श्रेष्ठ, पृ. २३, जैदेना., ले.स्थल. अहिमदनगर, ले. श्रा. झाईआक, प्र.वि. श्लो.४४, प्र.ले.श्लो. (४९९) यादृशं पुस्तके दृष्टं, (२६.५४११.५, १४-१७४३६-४०). भक्तामर स्तोत्र-गुणाकरीय टीका, आ. गुणाकरसूरि, सं., गद्य, वि. १४२६, आदिः पूजाज्ञानवचोपायापगमा; अंतिः अवचूरिलिखितेति. ५२४४. नरकगति भवनद्वार वर्णन, अपूर्ण, वि. १६०९, श्रेष्ठ, पृ. २६-५(१ से ५)=२१, जैदेना., ले.स्थल. आमेट, ले. मु. अचलाक (गुरु ऋ. अमरचन्द, तपागच्छ), प्र.ले.पु. मध्यम, पू.वि. गा.६६ तक नहीं है., (२५.५४११.५, ९-१०४३०-३३). नरकभवनद्वार वर्णन, मागु., पद्य, आदि:-; अंतिः पाथडि पाथडिए आतरउ. ५२४५.” विपाकसूत्र सह शब्दार्थ व वैदकशास्त्र के आठ प्रकार, संपूर्ण, वि. १६वी, श्रेष्ठ, पृ. ४४, पे. २, जैदेना.,प्र.वि. पंचपाठ, पदच्छेद सूचक लकीरें, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२७४११, ११४४३-४५). For Private And Personal Use Only Page #576 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य भाग - १ ५२२ पे. १. पे. नाम. विपाकसूत्र सह शब्दार्थ, पृ. १-४४ विपाकसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदिः तेणं कालेणं तेणं; अंतिः सेसं जहा आयारस्स. विपाकसूत्र-शब्दार्थ, मागु., गद्य, आदिः विपचन विपाक शुभाशुभ; अंतिः संसार परतक्ष थउ., पे.वि. मूल-ग्रं.१२५०, अध्याय-२० अध्ययन. पे. २. वैद्यकशास्त्र के ८ प्रकार, मागु., गद्य, (पृ. ४४अ), आदिः कण कनकरथ नामा राजा; अंतिः वेत्ता यशस्वी. ५२४६. भक्तामर स्तोत्र सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ३२, जैदेना.,प्र.वि. मूल-श्लो.४४., (२६.५४११.५, १२ १५४३५-३९). भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुङ्गसूरि, सं., पद्य, आदिः भक्तामरप्रणतमौलिमणि; अंतिः समुपैति लक्ष्मी. भक्तामर स्तोत्र-बालावबोध, मु. शुभवर्द्धन, मागु., गद्य, वि. १२०२, आदिः श्रीमदादिजिनं नत्वा; अंतिः तेह प्रति आश्रिइ. ५२४७. दीपावली कल्प सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २५, जैदेना., प्र.वि. मूल-गा.१३७., (२६.५४१२, ५४२५-३२). दीपावलीपर्व कल्प, प्रा., पद्य, आदिः उप्पायविगमधुवमयमसेस; अंतिः सोहेयव्वो सुअधरेहिं. दीपावलीपर्व कल्प-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः उप्पन्नेवा सर्व अंति: मन मैं ठामै जावै. ५२४८. हरिबल रास, संपूर्ण, वि. १८५२, श्रेष्ठ, पृ. ८५, जैदेना., ले.स्थल. भावनगर, ले. मु. हीरा, प्र.वि. ४ उल्लास/२५ ढाल, (२६.५४११.५, १४-१५४३५-४३). हरिबल चौपाई, मु. लब्धिविजय, मागु., पद्य, वि. १८१०, आदिः प्रथम धराधव जगधणी; अंतिः वाचाए फलज्यो रे. ५२५०." कर्मग्रन्थ १-४ सह टबार्थ व पच्चक्खाणआगारसङ्ख्या गाथा, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ३५, पे. ५, जैदेना., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२५४११, ४-५४३१-३५). पे. १. पे. नाम. कर्मविपाक सह टबार्थ, पृ. १-१०अ कर्मविपाक नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, आदिः सिरिवीरजिणं वन्दिय; अंतिः लिहिओ देविन्दसूरीहिं. कर्मविपाक नव्य कर्मग्रन्थ-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः एहवा श्रीमहावीर ३४; अंतिः देवेन्द्रसूरीश्वरइं., पे.वि. मूल गा.६१. पे. २. पे. नाम. कर्मस्तव सह टबार्थ, पृ. १०अ-१५आ कर्मस्तव नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, आदिः तह थुणिमो वीरजिणं; अंतिः वन्दियं नमह तं वीरं. कर्मस्तव नव्य कर्मग्रन्थ-टबार्थ , मागु., गद्य, आदिः तह तिम थवु छउं मन; अंतिः वीर भणी वान्दु छउं., पे.वि. मूल-गा.३४. पे. ३. पे. नाम. बन्धस्वामित्व सह टबार्थ, पृ. १५-२०अ बन्धस्वामित्व नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, आदिः बन्धविहाणविमुक्कं; अंति: नेयं कम्मत्थयं सोउं. बन्धस्वामित्व नव्य कर्मग्रन्थ-टबार्थ', मागु., गद्य, आदिः बन्ध कर्मनो बन्ध; अंतिः भणीने पछे ए भणज्यो., पे.वि. मूल-गा.२५. पे. ४. पे. नाम. षडशीति सह टबार्थ, पृ. २०अ-३५आ षडशीति नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, आदिः नमिय जिणं जिय; अंति: देविन्दसूरीहिं. षडशीति नव्य कर्मग्रन्थ-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः वीतरागदेवनइ नमस्करी; अंतिः आचार्य ग्यान हेतु., पे.वि. मूल-गा.८६. पे. ५. प्रत्याख्यान आगारसङ्ख्या गाथा, संबद्ध, प्रा., पद्य, (पृ. ३५आ), आदिः दो चेव नम्मोकारे; अंतिः सेसेसु चत्तारि. ५२५१. उपासगदशाङ्गसूत्र सह टबार्थ, पूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६७-१(१)-६६, जैदेना.,प्र.वि. मूल-अध्याय-१०., पू.वि. प्रथम व अंतिम पत्र नहीं हैं. प्रतिलेखन पुष्पिका का नहीं हैं. , (२७४११, ६-७४३२-३४). उपासकदशाङ्गसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदि:-; अंतिः पन्नत्ते त्ति बेमि. For Private And Personal Use Only Page #577 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ५२३ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची उपासकदशाङ्गसूत्र-टबार्थ, मागु., पद्य, आदि:-; अंतिः उसा मनथी नथी कहिउ. ५२५२. समवायाङ्गसूत्र सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. १६९९, श्रेष्ठ, पृ. ५२, जैदेना., ले.स्थल. मुलताणनगर, ले. मु. हर्षोदय (गुरु पं. सोम, तपागच्छ), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. मूल-सूत्र-१५९, ग्रं. १६६७, १०३अध्ययन; अवचूरि-श्लो.१६६०. अवचूरिकार के हस्ताक्षर से लिखित. बाद में लिखे गये प्रथम दो पत्र में अवचूरि नहीं है., कर्ता के हस्ताक्षर से लिखित प्रत-टबार्थादि, संशोधित, पंचपाठ, अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-कुछ पत्र, (२६४११, १४-१५४३४-४३). समवायाङ्गसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदिः सुयं मे० इह खलु; अंतिः अज्झयणन्ति त्तिबेमि. समवायाङ्गसूत्र-अवचूरि, मु. हर्षोदय, सं., गद्य, वि. १६९९, आदिः#; अंतिः समीपे पारम्पर्य इति. ५२५३. सारस्वतीप्रक्रिया सह चन्द्रकीर्ति टीका, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ४८, जैदेना., पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., (२६.५४११.५, १६-१८४४५-६१). सारस्वत व्याकरण, आ. अनुभूतिस्वरूप, सं., गद्य, आदिः प्रणम्य परमात्मानं; अंति: सारस्वत व्याकरण-दीपिका टीका, आ. चन्द्रकीर्तिसूरि, सं., गद्य, वि. १६६४, आदिः नमोस्तु सर्वकल्याण; अंति:५२५४.” पार्श्वजिन चरित्र, संपूर्ण, वि. १६वी, मध्यम, पृ. ८६, जैदेना.,प्र.वि. सर्ग-८, दशा वि. विवर्ण-पानी से अक्षरों की स्याही फैल गयी है, प्र.ले.श्लो. (३६७) अक्षरमात्रपदस्वरहीनं, (२७.५४११, १७-२१४६५-६९). पार्श्वजिन चरित्र, आ. भावदेवसूरि, सं., पद्य, वि. १३१२, आदि: नाभेयाय नमस्तस्मै; अंतिः (१)शुभभावलक्ष्मीम् (२)ह्यति शास्त्रसमुद्रे. ५२५५." रघुवंश की शिशुबोधिनी अवचूरि, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ८६, जैदेना., ले. वाचक रत्नविशाल, पठ. मु. लब्धिविजय, प्र.वि. ग्रं. २०००, सर्ग-१९, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२६४११, १६-२७४४९-५६). रघुवंश-शिशुबोधिनी टीका, आ. गुणरत्नसूरि, सं., गद्य, आदिः पार्वती च परमेश्वर; अंतिः राज्ञी सुशुभे. ५२५६.” दशवैकालिकसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७१८, श्रेष्ठ, पृ. ६१, जैदेना., ले.स्थल. महाजननगर, ले. मु. भुवनसार (गुरु गणि धर्मकीर्ति), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. मूल-अध्याय-अध्ययन१०चूलिकार. प्र.पु. सर्वग्रंथाग्रन्थ-२५००., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-कुछ पत्र, (२५४११, ५४३७-३९). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यम्भवसूरि, प्रा., पद्य, वि. पू.४, आदिः धम्मो मङ्गलमुक्किट्ठ; अंतिः (१)मुच्चइ त्ति बेमि (२)कहणा पवियालणा सो. दशवैकालिकसूत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः श्रीजिनधर्म उत्कृष्ट; अंतिः पुत्रना राग भणी. ५२५८." भगवतीसूत्र आलावा, संपूर्ण, वि. १६वी, मध्यम, पृ. ५५, जैदेना., दशा वि. विवर्ण-पानी से अक्षरों की स्याही फैल गयी है, हानिकारक स्याही, (२६४११, १५४४१-४३). भगवतीसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदिः तेणं कालेणं; अंतिः समठे० सेवं भन्ते. ५२५९." सूयगडाङ्गसूत्र सह टबार्थ-श्रुतस्कन्ध १, प्रतिपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ७९, जैदेना., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२५४११, ३-५४३२-३५). सूत्रकृताङ्गसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदिः बुज्झिज्ज तिउट्टेज्ज; अंतिः सूत्रकृताङ्गसूत्र-बालावबोध, आ. पार्श्वचन्द्रसूरि, मागु., गद्य, आदिः एक दर्शनीनि केवल; अंति:५२६०." भगवतीसूत्र, अपूर्ण, वि. १६वी, श्रेष्ठ, पृ. ३२१-२(१,११९)+१(२९८) ३२०, जैदेना., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न-वचन विभक्ति संकेत, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, संशोधित, पू.वि. प्रथम एक, बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., (२६४११, १५४४३-५६). भगवतीसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि:-; अंति:५२६१. विक्रमसेन चौपाई व श्लोक, अपूर्ण, वि. १८७९, श्रेष्ठ, पृ. ५९-२९(१ से २९)=३०, पे. २, जैदेना., ले.स्थल. पोटली..ग्राम, ले. मु. नेणचन्द (गुरु मु. किशनजी, खरतरगच्छ), प्र.ले.पु. विस्तृत, (२६.५४११.५, ११-१२४३४-४०). For Private And Personal Use Only Page #578 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य भाग - १ ५२४ पे. १. विक्रमसेनराजा चौपाई, मु. मानसागर, मागु., पद्य, वि. १७२४, (पृ. -३०-५९, अपूर्ण), आदि:-; अंतिः दिनदिन दोलति पाईजी., पे.वि. गा.११६२, ढाळ-५२. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. गा.४८९ से है. पे. २. जैन श्लोक *, सं., पद्य, (पृ. ५९आ, संपूर्ण), आदिः#; अंति:#., पे.वि. श्लो.२. ५२६३. मौनएकादशी कथा सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १२, जैदेना., ले. ऋ. जयानन्द, प्र.वि. मूल-श्लो.१६३., (२५४१२, ५४३७-४०). मौनएकादशीपर्व कथा, आ. सौभाग्यनन्दिसूरि, सं., पद्य, वि. १५७६, आदिः अन्यदा नेमिरीशाने; अंति: हम्मीरपुरसंश्रितैः. मौनएकादशीपर्व कथा-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः मौनएकादशीपर्वस्य; अंतिः हमीरपुरने विषे रहीने. ५२६४. चउशरण, चाररत्न, इकवीसप्रकार के पानी सह टबार्थ व श्लोक, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ५-१(२)=४, पे. ४, जैदेना., (२५.५४११, ७४४२-४८). पे. १.पे. नाम. चतुःशरण प्रकीर्णक सह टबार्थ, पृ. १-५, अपूर्ण चतुःशरण प्रकीर्णक, गणि वीरभद्र, प्रा., पद्य, आदिः सावज्ज जोग विरई; अंतिः कारणं निव्वुइ सुहाणं. चतुःशरण प्रकीर्णक-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः सावध योग क० पाप; अंतिः मोक्षना सुखनुं हेतु., पे.वि. मूल गा.६३. बीच का एक पत्र नहीं है. गा.१५ से २९ नहीं है. पे. २. पे. नाम. चाररत्नश्लोक सह टबार्थ, पृ. ५अ, संपूर्ण ४ रत्न श्लोक, प्रा., पद्य, आदि: जीवदया जिणधम्मो; अंतिः विना न पामन्ति. ४ रत्न श्लोक-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः जीवनी दया श्रीजिन; अंतिः विना पामवा दोहिलो., पे.वि. मूल-गा.१. पे. ३.पे. नाम. एकवीसप्रकार के पानी सह टबार्थ, पृ. ५आ, संपूर्ण २१ प्रकार के पानी, प्रा., पद्य, आदिः उस्सेयम संसेयम उदल; अंतिः जलाइं पढमङ्गे भणिया.. २१ प्रकार के पानी-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः पीठानो धवण ते पाणी; अंति: पाणी आम्बिलवाणी., पे.वि. मूल गा.२. पे. ४. जैन गाथा *, प्रा., पद्य, (पृ. ५आ, अपूर्ण), आदिः-; अंति:-, पे.वि. गा.२. ५२६५. प्रश्नोत्तर समुच्चय सह बीजक, संपूर्ण, वि. १८३२, श्रेष्ठ, पृ. ३७, जैदेना., ले.स्थल. वाराहीनगर, प्र.वि. मूल-४प्रकाश., (२६.५४१२, १६-१७४४७-५३). हीरप्रश्न , उपा. कीर्तिविजय , सं., गद्य, वि. १६५३, आदिः स्वस्ति श्रियो निदान; अंतिः तु तत्वविद्वेद्यमिति. हीरप्रश्न-बीजक, सं., गद्य, आदिः जेसलमेरुसङ्घकृत; अंतिः को हेतुरिति प्रश्नः. ५२६७. श्रीपाल रास, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १४८-१००(१ से १००)=४८, जैदेना., ले.स्थल. वटपद्र, ले. मु. भक्तिविजय, प्र.वि. खण्ड-४, ढाळ ४१, गा.१२३६, पू.वि. प्रारंभ से गा.७३ तक नहीं हैं., (२४.५४१२, ५-११४२४-२६). श्रीपाल रास , उपा. विनयविजय , उपा. यशोविजयजी गणि, मागु., पद्य, वि. १७३८, आदि:-; अंतिः लहसे ज्ञान विशालाजी. ५२६८. जम्बूअध्ययन सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८८०, श्रेष्ठ, पृ. ५९+१(२०)=६०, जैदेना., ले. ऋ. माणकचन्द (गुरु ऋ. अणदाजी, खरतरगच्छ), प्र.ले.पु. विस्तृत,प्र.वि. मूल-२१उद्देश., (२५.५४१२, ४-६x२९-३४). जम्बूअध्ययन प्रकीर्णक, प्रा., गद्य, आदिः तेणं कालेणं० रायगिहे; अंतिः से आराहगा भणिया. जम्बूअध्ययन प्रकीर्णक-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः ते कालने विषई ते; अंतिः शाता भवोभवै पामस्यै. ५२७०. उत्तमकुमार चरित्र, संपूर्ण, वि. १८५८, श्रेष्ठ, पृ. ३०, जैदेना., ले.स्थल. जगतारणी, ले. पं. मुक्तिधर्म, (२६४१२, ७४२७ ३५). उत्तमकुमार चरित्र, सं., गद्य, आदिः परमेष्ठिं जिनान; अंतिः मुक्तिं प्राप्स्यसि. For Private And Personal Use Only Page #579 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ५२५ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ५२७१. दशवैकालिकसूत्र स्वाध्याय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, जैदेना., ले. श्रा. मोतीचन्द, प्र.वि. ११सज्झाय, (२४.५४१२, १२४३२-३४). दशवैकालिकसूत्र-सज्झाय, मु. वृद्धिविजय, संबद्ध, मागु., पद्य, आदिः श्रीगुरूपदपंकज नमीजी; अंति: गायो सकल जगीसे रे. ५२७३.” कर्मग्रन्थ १५ सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९५७, श्रेष्ठ, पृ. ४१, पे. ५, जैदेना., ले. मु. रत्नविजय, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२६४११.५, ५-६४४६-४९). पे. १. पे. नाम. कर्मविपाक सह टबार्थ, पृ. १-७आ कर्मविपाक नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, आदिः सिरिवीरजिणं वन्दिय; अंतिः लिहिओ देविन्दसृरीहिं. कर्मविपाक नव्य कर्मग्रन्थ-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः श्रीवीरजिन वान्दीनइ; अंतिः श्रीदेविन्दसूरि., पे.वि. मूल गा.६०. पे. २. पे. नाम. कर्मस्तव सह टबार्थ, पृ. ७आ-१२आ कर्मस्तव नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, आदिः तह थुणिमो वीरजिणं; अंतिः वन्दियं नमह तं वीरं. कर्मस्तव नव्य कर्मग्रन्थ-टबार्थ', मागु., गद्य, आदिः तिम श्रीमहावीर प्रतइ; अंतिः नमउ ते महावीर., पे.वि. मूल गा.३४. पे. ३.पे. नाम. बन्धस्वामित्व सह टबार्थ, पृ. १२आ-१८अ बन्धस्वामित्व नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, आदिः बन्धविहाणविमुक्कं; अंतिः नेयं कम्मत्थयं सोउं. बन्धस्वामित्व नव्य कर्मग्रन्थ-टबार्थ', मागु., गद्य, आदिः विधनुं नीपजावि; अंतिः कर्मस्तवथी साम्भलीनइ., पे.वि. मूल-गा.२५. पे. ४. पे. नाम. षडशीति सह टबार्थ, पृ. १८अ-२९आ षडशीति नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिय जिणं जिय; अंतिः देविन्दसूरीहिं. षडशीति नव्य कर्मग्रन्थ-टबार्थ, मागु., गद्य, आदि: वीतरागदेवनइ नमस्करी; अंतिः देवेन्द्रसूरिहिं., पे.वि. मूल गा.८६. पे. ५.पे. नाम. शतकनामा सह टबार्थ, पृ. २९आ-४१ शतक नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, आदिः नमिय जिणं धुवबन्धोदय; अंतिः सयगमिणं आयसरणट्ठा. शतक नव्य कर्मग्रन्थ-टबार्थ, मागु., गद्य, आदि: नमस्कार करिनइ; अंतिः सम्भारवानइ अर्थइ., पे.वि. मूल गा.१००. ५२७४. दशवैकालिकसूत्र सह टबार्थ, पूर्ण, वि. १७२४, श्रेष्ठ, पृ. ५८-१(५४)=५७, जैदेना., ले.स्थल. मार्तंडपुर, प्र.वि. मूल अध्याय-अध्ययन१०. प्र.पु. सर्वग्रं. ३०००., (२५.५४११.५, ४-५४३२-३४). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यम्भवसूरि, प्रा., पद्य, वि. पू.४, आदिः धम्मो मङ्गलमुक्किट्ठ; अंति: गई त्ति बेमि. दशवैकालिकसूत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः धर्मरुपीउं मङ्गलीक; अंतिः श्रीगुरुइ शिष्यनइ. ५२७५. दशवैकालिकसूत्र सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १६५६, श्रेष्ठ, पृ. ५६-७(१ से ७)=४९, जैदेना., ले.स्थल. मोरबी, ले. ऋ. रूपा, प्र.वि. मूल-अध्याय-अध्ययन१०., पंचपाठ, (२५.५४११, २-७४२५-३०). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यम्भवसूरि, प्रा., पद्य, वि. पू.४, आदि:-; अंतिः गई त्ति बेमि. दशवैकालिकसूत्र-बालावबोध, उपा. राजहंस, मागु., गद्य, आदिः- अंतिः आगलि इम कहिउ. ५२७६." उत्तराध्ययनसूत्र, संपूर्ण, वि. १६वी, श्रेष्ठ, प्र. ९५, जैदेना.,प्र.वि. ३६अध्ययन., संशोधित, (२६४११, १०४३५-३७). For Private And Personal Use Only Page #580 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य भाग - १ ५२६ उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध , प्रा., प+ग, आदिः सञ्जोगाविप्पमुक्कस्स; अंतिः (१)सम्मए त्ति बेमि (२)पुव्वरिसी एव भासन्ति. ५२७८.." षडावश्यकसूत्र का बालावबोध, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ४६, जैदेना., प्र.वि. ऋषि चांपा योग्य., पदच्छेद सूचक लकीरें-प्रारंभिक पत्र, (२६x११, ११४४२-४६). श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-खरतरगच्छीय-बालावबोध, मागु., गद्य, आदिः शिवाय श्रीमहावीरः; अंतिः जिननई वांदु नमस्करउ. ५२८१. वासुपूज्यजिन पुण्यप्रकाश, संपूर्ण, वि. १७३७, श्रेष्ठ, पृ. ३०, जैदेना., प्र.वि. गा.४५६, ढाळ-६१, (२४.५४११, ११४३१ ३४). वासुपूज्यजिन पुण्यप्रकाश रास, उपा. सकलचन्द्रगणि, मागु., पद्य, आदिः ऋषभ अजित संभव जिनो; अंतिः सङ्घ सुखविजय लहो. ५२८२. सीताराम चौपाई, संपूर्ण, वि. १६९७, श्रेष्ठ, पृ. ८८, जैदेना., ले.स्थल. बेनातट, ले. पं. रूपराज, प्र.वि. गा.२४१२, खण्ड-९; प्र.पु. मूल-ग्रं. ३०००, (२५.५४१०.५, १५-१७४३७-४१). सीताराम चौपाई, उपा. समयसुन्दर गणि, मागु., पद्य, वि. १७उ., आदिः स्वस्ति श्रीसुखसंपदा; अंतिः कोडी कल्याणो ५२८३. उववाईसूत्र सह वृत्ति, संपूर्ण, वि. १६वी, श्रेष्ठ, पृ. ५७, जैदेना., प्र.वि. मूल-सूत्र-१८९; प्र.पु. मूल-ग्रं. १२५०., पंचपाठ, (२६४११, ४-१२४३३-३६). औपपातिकसूत्र, प्रा., प+ग, आदिः तेणं कालेणं० चम्पा०; अंतिः सुही सुहं पत्ता. औपपातिकसूत्र-टीका, आ. अभयदेवसूरि , सं., गद्य, आदिः श्रीवर्द्धमानमानम्य; अंतिः संशोधिता चेयम्. ५२८४. उत्तराध्ययनसूत्र सह टबार्थ व कथा, अपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. २३, जैदेना., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. अध्ययन-२ अपूर्ण तक लिखा हैं., (२६४११, ५-१४४३१-५७). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध , प्रा., प+ग, आदिः सञ्जोगाविप्पमुक्कस्स; अंतिःउत्तराध्ययनसूत्र-टबार्थ+कथा सङ्ग्रह, मु. पार्श्वचन्द्रसूरि-शिष्य, मागु., गद्य, आदिः पूर्वसंजोग मातापिता; अंति: उत्तराध्ययनसूत्र-कथा सङ्ग्रह, पं. पद्मसागर, सं., गद्य, वि. १६५७, आदिः प्रणम्य श्रीमहावीरं; अंतिः५२८५.” आचाराङ्गसूत्र सह टबार्थ-श्रुतस्कन्ध २, प्रतिपूर्ण, वि. १८२८, श्रेष्ठ, पृ. १२२, जैदेना., ले. रामधेइ सगरु, प्र.वि. प्र.पु. मूल-ग्रं. २६५४., टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२५.५४११, ६-८४३६-३८).. आचाराङ्गसूत्र , आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदि:-; अंतिः विमुच्चति त्ति बेमि. आचाराङ्गसूत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, आदि:-; अंतिः होइ एम कहुं छु. ५२८६. गोराबादल चौपाई, संपूर्ण, वि. १७७६, श्रेष्ठ, पृ. २४, जैदेना., ले.स्थल. कोठा, ले. पण्डित श्रीसागर, प्र.वि. गा.९१७, (२६४११, १४-१६x४७-५५). गोराबादल चौपाई, आ. हेमरत्नसूरि, मागु., पद्य, वि. १६४७, आदिः सकल सुख दायक सदा; अंतिः कुम्भलमेर मझार. ५२८७." दशवैकालिकसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९४६, श्रेष्ठ, पृ. ८५, जैदेना., प्र.वि. मूल-अध्याय-अध्ययन१०चूलिकार., पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न, (२५४११, ४४२९-३३). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यम्भवसूरि, प्रा., पद्य, वि. पू.४, आदिः धम्मो मङ्गलमुक्किट्ठ; अंतिः गई त्ति बेमि. दशवैकालिकसूत्र-टबार्थ , मागु., गद्य, आदिः ध० जीवनइ दुर्गति; अंतिः प्ररुप्यो. ५२८८. जीवाभिगमसूत्र, अपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ८५, जैदेना., पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. गा.१६७ अपूर्ण तक है., (२५.५४११, ११४३७-३९). जीवाभिगमसूत्र, प्रा., गद्य, आदिः णमो उसमादियाणं; अंति: For Private And Personal Use Only Page #581 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ५२७ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ५२८९." इकवीसठाणा सह टवार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी श्रेष्ठ, पृ. ७, जैदेना. प्र. वि. मूल-गा. ७०. अंतिमगाथा के दो पाद का बार्थ नहीं लिखा है., संशोधित, (२७४१०.५, ६४३३-४१ ) . एकविंशतिस्थान प्रकरण, आ. सिद्धसेनसूरि, प्रा., पद्य, आदि: चवण विमाणा नयरी; अंतिः असेस साहारणा भणिया एकविंशतिस्थान प्रकरण- टवार्थ मागु, गद्य, आदि च्यवन विमान कहिस्यचं; अंति: ५२९०. विपाकसूत्र, संपूर्ण, वि. १६वी, श्रेष्ठ, पृ. ३४, जैदेना., प्र. वि. प्र. पु. ग्रं. १२१६. प्रत के अन्त में प्रतिलेखन वर्ष १११२ का उल्लेख है पर लिखावट से प्रत १६वी तथा १११२ की नकल होने की संभावना है. (२६४११, १३x४६-५१)विपाकसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं तेणं; अंतिः सेसं जहा आयारस्स. " , ५२९१.” भाष्यत्रय सह विवरण, संपूर्ण, वि. १८४५, श्रेष्ठ, पृ. २४, जैदेना., ले. मु. न्यायविशाल, प्र. वि. मूल- ३ भाष्य., दशा वि. अक्षर फीके पड गये हैं. (२६.५४११, १५४३५-४१). भाष्यत्रय, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, आदिः वन्दित्तु वन्दणिज्जे; अंतिः सासयसुक्खं अणाबा... भाष्यत्रय-विवरण, मु. धर्मरत्नसूरि-शिष्य मागु, गद्य, आदिः श्रीमद्वीरजिनस्वामी अंति: पामइ छइ पामिस्यइ. १६८५, श्रेष्ठ, पृ. २२, जैदेना, (२५x११, ६x२८-३८). ५२९२. षडावश्यकसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. आवक प्रतिक्रमणसूत्र संबद्ध, प्रा. मागु " प+ग, आदि नमो अरिहं० सव्वसाहूण अंतिः मिच्छामि दुक्कडम्. श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, आदि: माहरु नमस्कार; अंतिः ए माहरा पाप जाओ. www.kobatirth.org: , Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५२९३.” सङ्ग्रहणी प्रकरण सह टवार्थ, संपूर्ण वि. १८२३, श्रेष्ठ, पृ. ८१, जैदेना. ले. स्थल मेदनीपुर, ले. आ. जिनसम्भवसूरि, राज्यकाल राजा विजयसिङ्घ, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. मूल-गा. ३९३, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, पदच्छेद सूचक लकीरें संधि सुचक चिहन (२५४१०.५, ४-६५३२-३४) बृहत्सङ्ग्रहणी, आ. चन्द्रसूरि प्रा. पद्य वि. १२वी आदि नमिउं अरिहन्ताई अंतिः जा वीरजिण तित्यं 1 "" · बृहत्सङ्ग्रहणी-टबार्थ, मु. धर्ममेरु, मागु., गद्य, आदिः नमस्कार करीने; अंतिः संसारीक सर्वसुख पामै. ५२९८. केशीप्रदेशी चौपाई, संपूर्ण वि. १७५४, श्रेष्ठ, पृ. १४ जैदेना., ले. स्थल फलवर्द्धिनगर, ले. मु. विनीतसागर (गुरु मु. भावसागर), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. ढाळ - ४१, (२५x१०.५, १८-२०x४९-५४). केशीगणधर चौपाई, मु. ज्ञानचन्द, मागु., पद्य, वि. १८वी, आदिः प्रणमी श्रीअरिहंत; अंतिः पामे शिवसुख सार. ५३०१. महादेवी सारणी सह दीपिका वृत्ति, संपूर्ण, वि. १८२९, श्रेष्ठ, पृ. ३३, देना, प्र. वि. मूल- श्लो. ४३. (२६४११, १५४५६). महादेवी सूत्र, महादेव, सं., पद्य, आदिः सिद्धिं करोति राज; अंतिः तज्जेति०. " महादेवी सूत्र- दीपिका टीका, वाचक धनराज, सं., गद्य, वि. १६९२, आदिः श्रीनाभेयं जिनं; अंति: (१) सम्यगर्थो विचार्यः (२) नाधार्या गुरो भावितः " ; ५३०२. सतरभेद पूजाविध, संपूर्ण, वि. १८५०, श्रेष्ठ, पृ. ९, जैदेना., ले. मु. इन्द्रविजय, ( २५x११, १०X३१-३४). १७ भेदी पूजा, मु. साधुकीर्ति मागु पद्य वि. १६१८ आदि भाव भले भगवन्तनी अंतिः सब लीला सुख साजै. ५३०३. सौभाग्यपञ्चमी कथा संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १०, जैदेना ले. मु. अभयसुन्दर, (२५४११, ११४२९-३४). सं., पद्य, वि. १६५५, आदि: (१) श्रीमत्पार्श्व (२) श्रीपार्श्वनाथ प्रतइ; अंतिः " ज्ञानपंचमीपर्व कथा, गणि कनककुशल, वार्त्तिकमातनोत्. ५३०६. आत्मशिक्ष्याप्रतिबोध भावना, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदेना., पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. गा.९९ तक हैं., ( २४.५X११, ११४३२). आत्मशिक्षा भावना प्राहिं, पद्य, आदि: श्रीजिनवर मुखवासिनी अंति " ५३०७. अध्यात्ममतपरीक्षा सह छाय व स्वोपज्ञ टीका, संपूर्ण, वि. १७०५, श्रेष्ठ, पृ. १००, जैदेना, प्र. वि. मूल-गा. १८४ अनुवाद- श्लो. १८४ (२५९११.५, १५४४४-४६). अध्यात्ममतपरीक्षा, उपा. यशोविजयजी गणि, प्रा., पद्य, आदिः पणमिय पासजिणिन्द; अंतिः गीयत्था विसेसविऊ. For Private And Personal Use Only Page #582 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य भाग १ - , www.kobatirth.org: अध्यात्ममतपरीक्षा- छाया, सं., पद्य, आदिः प्रणम्य पार्श्वजिनेन: अंतिः गीतार्था विशेषविदः, अध्यात्ममतपरीक्षा-स्वोपज्ञ टीका, उपा. यशोविजयजी गणि, सं., गद्य, आदि ऐंकारकलितरूपां अंतिः सतां प्रीतिकृत्. ५३०८. नलदवदन्ती चौपाई, संपूर्ण वि. १८५३, श्रेष्ठ, पृ. ३३. जैदेना, ले स्थल वागरली, ले. पं. धनरूप, प्र. वि. गा. ९३१, ग्रं. १३५०, ६ खंड / ३९ ढाल, ( २६ ११.५, ९-१५X३९-४१). नलदमयन्ती रास, उपा. समयसुन्दर गणि, मागु, पद्य वि. १६७३ आदि सीमन्धरस्वामी प्रमुख अंतिः चतुर माणस चित्त वसी. ५३०९. रत्नसञ्चय सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९५०, श्रेष्ठ, पृ. ५३, जैदेना., ले. स्थल. मांगरोल, ले. जयानन्द वसनजी जोशी, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. मूल-गा. ५४७., प्र.ले. श्लो. (५०६) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, (२७१२, ६३२-३६). रत्नसंचय आ. हर्षनिघानसूरि, प्रा., पद्य, आदि नमिऊण जिणवरिन्दे अतिः गाहा आगमे भणिया, रत्नसंचय-टवार्थ मागु, गद्य, आदि: महावीरने नमीने उपगार अंतिः सात धनुष देहनो मान. ५३११. नारचन्द्र ज्योतिष सह यन्त्रकोद्धार टिप्पण- १ से २ प्रकरण, प्रतिपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३३, जैदेना., ले. मु. ठाकुरसी, प्र. वि. प्र. पु. टिप्पण-ग्रं. ५०० (२७४११.५, १०-१३४४४-५१). ज्योतिषसार, आ. नरचन्द्रसूरि, सं., पद्य, आदिः श्रीअर्हन्तजिनं; अंतिः ज्योतिषसार यन्त्रकोद्धार टिप्पण, आ. सागरचन्द्रसूरि सं. गद्य, आदि:-: अंति: , " ५३१३. वसुधारा स्तोत्र, संपूर्ण वि. १९१२, श्रेष्ठ, पृ. १६, जैदेना. ले. स्थल, राजनगर, ले. मु. जयसागर प्र.ले.पु. मध्यम, " प्र.ले. श्लो. (४६९ ) भग्न पृष्टि कटी ग्रीवा, (२९x११.५, ७२१-२९). वसुधारा, सं., गद्य, आदि: संसारद्वयदैन्यस्य; अंतिः कामितावाप्तिर्भवति. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 1 " ५३१४. भीमसेनहरीसेण चरित्र, संपूर्ण, वि. १९६८, श्रेष्ठ, पृ. २८, जैदेना., प्र.वि. ढाळ-८, (२७x११.५, ९-१५X३३-३५). भीमसेनहरिषेण चरित्र, मु. अमोलकऋषि, मागु, पद्य वि. १८५६, आदि जगनायक जिनरायजी सब अंति: लग रबी इन्द्र मही. ५३१७. प्रतिष्ठा विधि, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ३०, जैदेना. (२६४११.५, १३४४२-४४ ). प्रतिष्ठा विधि सङ्ग्रह, सं. मागु., गद्य, आदिः प्रणम्य स्वस्ति; अंतिः विसर्जन मन्त्र. " " ५३१८." सङ्ग्रहणी सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी श्रेष्ठ, पृ. १६, जैदेना. प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें संधि सूचक चिह्नगा. २३० तक है., ( २६ ११.५, ८-९×३४-३६). बृहत्सङ्ग्रहणी, आ. चन्द्रसूरि, प्रा., पद्य वि. १२वी आदिः नमिउं अरिहन्ताइं; अंतिः वचन विभक्ति संकेत, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. 1 बृहत्सङ्ग्रहणी-टवार्थ मागु, गद्य, आदि 1 नमिउं क० नमस्कार अति: ५२८ ५३१९. अन्तगडदशाङ्गसूत्र सह टवार्थ अष्टम अङ्ग, संपूर्ण वि. १८६३ श्रेष्ठ, पृ. ४६, जैदेना. ले. स्थल. वडलूग्राम, प्र. वि. प्र.पु. सर्व २४७५ (२५.५४११. ६x४६-४९) अन्तकृद्दशाङ्गसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, (प्रतिपूर्ण), आदि: तेणं कालेणं० चम्पा०; अंतिः अयमट्ठे पण्णत्ते. अन्तकृद्दशाङ्गसूत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, (प्रतिपूर्ण), आदि: तेणे काले चउथो; अंतिः धर्मकथामाहि छे तिम For Private And Personal Use Only " ५३२०. गौतमस्वामी रास व शनीश्चर स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ६, पे. २, जैदेना., (२५×११.५, ११×२७-२८). पे. १. गौतमस्वामी रास उपा. विनयप्रभ मागु., पद्य वि. १४१२ (पृ. १-६), आदि वीर जिणेसर चरण कमल अंतिः · " नित मङ्गल जय करो ए., पे.वि. गा. ४८. पे. २. शनिश्चर स्तोत्र, सं., पद्य, (पृ. ६आ), आदिः यत्पुरा राज्यभ्रष्टा अंतिः न भवन्ति कदाचन, पे.वि. श्लो. ६. ५३२१. कयवन्नाश्रेष्ठि चौपाई, संपूर्ण, वि. १८१०, श्रेष्ठ, पृ. २४, जैदेना., ले. स्थल. देयांग्राम, प्र. वि. गा. ५५५, ढाळ-३१, प्र.पु. मूल ग्रं. ५०३. प्रथम पत्र नया है (२४२११.५. १३-१४४३६-३८). कयवन्ना चौपाई, मु. जयतसी, मागु., पद्य, वि. १७२१, आदिः स्वस्ति श्रीसुख; अंतिः धरमकरण मन उलसेजी. Page #583 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org: ५२९ ५३२२. पर्युषणअष्टानिका व्याख्यान, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ११, जैदेना. (२४.५४११.५ १३४४५-५१). अष्टानिकापर्व व्याख्यान, वाचक क्षमाकल्याण, सं. गद्य वि. १८६०, आदि शान्तीशं शान्ति: अंतिः विलोक्य तत्. ५३२३. अमरदत्त चौपाई, संपूर्ण वि. १९२३ श्रेष्ठ, पृ. ४२, जैदेना., ले. ॠ रत्नाजी पठ. मेघजी (गुरु . रत्नाजी), प्र. वि. गा.७९३, ४ खंड / ३४ ढाल, (२५x११.५, १२-१५X३४-३८). अमरदत्त चौपाई, मागु., पद्य, आदि: पहिलु प्रणमुं शारदा; अंतिः हो दातार बहु परे.. ५३२७. महावीरजिन उपसर्ग, संपूर्ण वि. १८वी महावीरजिन उपसर्ग, मागु, गद्य, आदि ५३२४. तेजसार रास, संपूर्ण वि. १८४४, श्रेष्ठ, पृ. २०, जैदेना, ले. स्थल, गोंडल, ले. मु. प्रेमजी (गुरु मु. मनजी), पठ, ऋ. लवजी, प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र. वि. गा. ४०८, ( २६.५×११.५, १३×३६-४०). तेजसार रास, वाचक कुशललाभ, मागु., पद्य, वि. १६२४, आदिः श्रीसिद्धारथ कुलतिलो; अंतिः तेहना सहु मनोरथ फलइ. ५३२५. देवकी रास, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ९, जैदेना., ( २५x११.५, ९४२९-३१). गजसुकुमाल रास, मु. शुभवर्द्धन - शिष्य, मागु., पद्य, आदि: देस सोरठउ द्वारिका; अंतिः सिद्धिनइ नामुं सीस. ५३२६. नागोरीलुङ्कागच्छीय पट्टावली, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ५. जैदेना. (२६४११, १२४३५-४०). पट्टावली नागोरीलुङ्कागच्छीय, मागु, गद्य, आदिः श्रमण भगवन्त: अंति: अनेक साधु प्रमुख थया. . श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदेना, ( २६४११, १७४४३-४४). क्षत्रियकुण्ड ग्राम: अंतिः केवलज्ञान उपनउ. ५३२८. प्रश्नचिन्तामणि, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ६६, जैदेना., (२५X११.५, १२x४१). , प्रश्नचिन्तामणि, गणि वीरविजय, सं., गद्य वि. १८६८ आदि पुष्टेन्दीवरपीवर अंतिः नन्दन्तु चोत्तमाः · Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची -. ५३३०. गौतमपृच्छा सह व्याख्या, संपूर्ण, वि. १८३१, श्रेष्ठ, पृ. ४६, जैदेना., ले. स्थल. खेमगुढा, ले. मु. मलुकचन्द (गुरु ऋ आणन्दजस), प्र.ले.पु. विस्तृत प्र. वि. मूल-गा. ६२. प्र. पु. टीका ग्रं. १६८५. प्र.ले. श्लो. (५१०) यादृसं पुस्तकं दृष्टवा, (२६४११.५, १५-१८४३६-३९). 7 " गौतमपृच्छा, प्रा., पद्य, आदिः नमिऊण तित्थनाहं; अंतिः पावए पुरिसो. गौतमपृच्छा- टीका, मु. मतिवर्द्धन, सं., गद्य, वि. १७३८, आदिः (१) वीरजिनं प्रणम्यादौ (२) नत्वा तीर्थनाथं जानं; अंतिः नगर्यां च शुभे दिने. ५३३१. पञ्चकल्पसूत्र, संपूर्ण, वि. १८वी श्रेष्ठ, पृ. १०, जैदेना, (२७४१२, १५४४०-४३). बृहत्कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदिः नो कप्पइ निग्गंथाण; अंतिः कप्पट्ठिई तिबेमि. ५३३२. पञ्चइन्द्रीय चौपाई, स्वाध्याय व श्लोक, संपूर्ण वि. १८वी श्रेष्ठ, पृ. ६, पे. ३, जैदेना. (२६.५४१२ १२ १३४३६-४०)पे. १.५ इन्द्रिय चौपाई, प्राहिं., पद्य, वि. १७५१, (पृ. १-६), आदि: प्रथम प्रणमी जिनदेव; अंतिः वसै सबकुं मङ्गल होई. पे.वि. बाळ ६. For Private And Personal Use Only पे. २. दानशीलतपभावना सज्झाय प्राहिं, पद्य, (पृ. ६आ), आदि जैनधर्म सब धर्ममैय: अंतिः दान सिल तप भाव.. पे.वि. गा.६. पे. ३. जैन श्लोक *, सं., पद्य, (पृ. ६आ), आदिः #; अंतिः #., पे.वि. श्लो. १. ५३३३.” अन्तगडदशाङ्गसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १७वी श्रेष्ठ, पृ. ३९, जैदेना. प्र. वि. प्रथम पत्र बदला हुआ हैं, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, पू. वि. प्रारंभ के पत्र हैं., (२७.५X११.५, ७x४५-४९). अन्तकृद्दशाङ्गसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं० चम्पा०; अंतिः अन्तकृद्दशाङ्गसूत्र- टबार्थ, मागु, गद्य, आदि: तेणि कालि चउथइ: अंतिः ५३३४. कल्याणमन्दिर स्तोत्र सह टवार्थ ( वार्तिक), संपूर्ण वि. १८६९, मध्यम, पृ. ५, जैदेना. ले. स्थल. नारनवलनगर, ले. Page #584 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य भाग - १ ५३० लखजी, प्र.वि. मूल-श्लो.४४. प्रथम पत्र का उपरी भाग टुटा होने से टबा का आदिवाक्य नही भरा है., पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न, (२६४११.५, ६४५४). कल्याणमन्दिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकर, सं., पद्य, आदिः कल्याणमन्दिरमुदारमवद; अंतिः मोक्षं प्रपद्यन्ते. कल्याणमन्दिर स्तोत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः (१) कवीशं सद्गुरूं नत्वा (२) क० समस्त जे कल्याण; अंति: पामइ ते लहइ. ५३३५." भक्तामर स्तोत्र सह बालावबोध (वार्तिक), संपूर्ण, वि. १८६९, जीर्ण, पृ. ७, जैदेना., ले.स्थल. नारनवल, ले. लखजी, प्र.वि. मूल-श्लो.४४., (२६.५४११.५, ३-४४५५-५७). भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुङ्गसूरि, सं., पद्य, आदिः भक्तामरप्रणतमौलिमणि; अंतिः समुपैति लक्ष्मी. भक्तामर स्तोत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः प्रणम्य प्रथमदेवं; अंतिः आवइ ज कुण लक्ष्मी. भक्तामर स्तोत्र-बालावबोध, गणि मेरुसुन्दर, मागु., गद्य, आदिः प्रणम्य श्रीमहावीरं; अंति: ए अठावीसमी कथा. ५३३६. उपासगदशाङ्गसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८४७, मध्यम, पृ. ३९, जैदेना., ले.स्थल. खरड, ले. मु. कुस्यालराय (गुरु मु. रामचन्द्रजी), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. मूल-अध्याय-१०. प्र.पु. टबार्थ-ग्रं. १०००., टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२६.५४११.५, ८४४२-४४). उपासकदशाङ्गसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदिः तेणं० चंपा नामं नयरी; अंतिः विदेहम्मि सिज्झिहिइ. उपासकदशाङ्गसूत्र-टबार्थ, मागु., पद्य, आदिः ते० तिणै कालइ; अंतिः दिवसे श्रुताङ्ग तिमज. ५३३७.” पण्णवणासूत्र सह पर्याय, संपूर्ण, वि. १७६३, श्रेष्ठ, पृ. १०९, जैदेना., प्र.वि. मूल-सूत्र-२१७६, ग्रं. ७७८७, अध्याय-३६ पद., पंचपाठ, दशा वि. विवर्ण-पानी से अक्षरों की स्याही फैल गयी है, बटकने योग्य, प्र.ले.श्लो. (४९९) यादृशं पुस्तके दृष्टं; (४८२) भग्न पुष्टी कटी ग्रीवा, (२७.५४११.५, १६-१९४५७-६७). प्रज्ञापनासूत्र, वाचक श्यामाचार्य, प्रा., गद्य, आदिः नमो अरिहन्ताणं; अंतिः सुही सुहं पत्ता. प्रज्ञापनासूत्र-पर्याय, संबद्ध, मागु., गद्य, आदिः व्यपगत छइ जरमरण; अंतिः सुख पाम्या थका. ५३३८. उत्तराध्ययनसूत्र, संपूर्ण, वि. १९४०, श्रेष्ठ, पृ. ४९, जैदेना., ले.स्थल. दादरी, ले. मु. मङ्गलसेन (गुरु ऋ. ख्यालीराम), प्र.वि. ३६अध्ययन, (२७.५४११.५, १६-१८४४०-४१). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध , प्रा., प+ग, आदिः सञ्जोगाविप्पमुक्कस्स; अंतिः सम्मए त्ति बेमि. ५३३९. गौतमपृच्छा सह टबार्थ व कथा, संपूर्ण, वि. १८३८, श्रेष्ठ, पृ. ३२, जैदेना., ले.स्थल. कांधला, प्र.वि. मूल-गा.६४. प्र.पु. कथा-३६., (२६४११.५, १५-१८४४१). गौतमपृच्छा, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण तित्थनाहं; अंति: गोयमपुच्छा महत्थावि. गौतमपृच्छा-टबार्थ, आ. मुनिसुन्दरसूरि, मागु., गद्य, आदिः नमस्कार करीनै; अंतिः (१)ईण माहीजि जाणिवा (२)कह्यौ महा अरथ. गौतमपृच्छा-कथा सङ्ग्रह', मागु., गद्य, आदिः (१) वसन्तपुर नगरने विषे (२) एकै गामै एक वाणीयो; अंतिः सिद्धि उपना एकावतारी. ५३४०. निर्यावलियादिपञ्चोपाङ्गसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८८४, श्रेष्ठ, पृ. ६४, पे. ५, जैदेना., ले.स्थल. सिंघाणा, ले. साध्वीजी सुन्दर आर्या, प्र.ले.श्लो. (५२६) भग्नि मुष्टि कटी ग्रीवा; (४४०) तैलाद् रक्षेद् जलाद् रक्षेद्; (५६९) यावचन्द्र रवी लोके, (२६४१२.५, ७४४१-४३). पे. १. पे. नाम. कल्पिकासूत्र सह टबार्थ, पृ. ०१आ-२५आ कल्पिकासूत्र, प्रा., गद्य, आदिः तेणं कालेणं तेणं०; अंतिः वरं मायातो सरिसणामाओ. कल्पिकासूत्र-टबार्थ, मु. उत्तम, मागु., गद्य, आदिः तेणि कालि तेणि; अंतिः श्चोक्तो हि मुदा., पे.वि. मूल-अध्याय१० अध्ययन. For Private And Personal Use Only Page #585 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ५३१ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची पे. २. पे. नाम. कल्पावतंसिकासूत्र सह टबार्थ, पृ. २५आ-२८अ कल्पावतंसिकासूत्र, प्रा., गद्य, आदिः जइ णं भन्ते समणेणं०; अंतिः वा महाविदेहे सिद्धे. कल्पावतंसिकासूत्र-टबार्थ, मु. उत्तम, मागु., गद्य, आदिः जउ हे पूज्य० कप्प; अंतिः वर्गः प्रोक्तः., पे.वि. मूल अध्याय-१० अध्ययन. पे. ३.पे. नाम. पुष्पिकासूत्र सह टबार्थ, पृ. २८अ-५३अ पुष्पिकासूत्र, प्रा., गद्य, आदिः जइ णं भन्ते समणेणं०; अंतिः चेइयाइं जहा संगहणीए. पुष्पिकासूत्र-टबार्थ, मु. उत्तम, मागु., गद्य, आदि: जउ हे पूज्य० त्रीजा; अंतिः तृतीयोवर्गः समाप्तः., पे.वि. मूल अध्याय-१० अध्ययन. पे. ४. पे. नाम. पुष्पचूलिकासूत्र सह टबार्थ, पृ. ५३अ-५७अ पुष्पचूलिकासूत्र, प्रा., गद्य, आदि: जइ णं भंते समणेणं०; अंतिः हे वासे सिज्झिहिंति. पुष्पचूलिकासूत्र-टबार्थ, मु. उत्तम, मागु., गद्य, आदिः जउ हे पूज्य० दस; अंतिः वर्गः सम्पूर्ण., पे.वि. मूल-अध्याय १० अध्ययन. पे. ५. पे. नाम. वृष्णिदशासूत्र सह टबार्थ, पृ. ५७अ-६४अ वृष्णिदशासूत्र, प्रा., गद्य, आदिः जइ णं भंते० पंचमस्स; अंतिः मइरित्त एक्कारससु वि. वृष्णिदशासूत्र-टबार्थ, मु. उत्तम, मागु., गद्य, आदिः जउ हे पूज्य० पाञ्चमा; अंतिः बारइं उद्देशा कह्या., पे.वि. मूल-अध्याय-१२ अध्ययन. ५३४१. उपदेशमाला सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८७७, श्रेष्ठ, पृ. ७५, जैदेना., ले.स्थल. पाडलिपुर, ले. पण्डित मोजीराम, प्र.वि. मूल-गा.५४४., (२४४१२, ६-१३४३४-३७). उपदेशमाला, गणि धर्मदास, प्रा., पद्य, आदिः (१) नमिऊण जिणवरिन्दे (२) जगचूडामणिभूओ उसभो; अंतिः वयण विणिग्गया वाणी. उपदेशमाला-टबार्थ, मागु., गद्य, आदि: नमस्कार करीने; अंतिः वचन थकी नीकली वांणी. ५३४३. दशवैकालिकसूत्र, संपूर्ण, वि. १८७२, श्रेष्ठ, पृ. १७, जैदेना., ले.स्थल. सरवाड, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. अध्याय अध्ययन१०., (२७X१२, १६४३५-३९). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यम्भवसूरि, प्रा., पद्य, वि. पू.४, आदिः धम्मो मङ्गलमुक्किट्ठ; अंतिः गई त्ति बेमि. ५३४४. अक्षयनिधितप विधि, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, जैदेना., (२७.५४१२.५, ८४३२-३५). अक्षयनिधितप विधि, मागु., पद्य, आदिः प्रथम इरियावही कहेवी; अंतिः इम चार वर्ष कर. ५३४५. चौवीसदण्डक के छवीसद्वार, संपूर्ण, वि. १९०२, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदेना., ले.स्थल. खेतडी, ले. शोभाराम, प्र.ले.श्लो. (५१०) यादृसं पुस्तकं दृष्टवा, (२७४१२.५, १८-१९४४६-५३). २४ दण्डक २६ द्वार विचार, मागु., गद्य, आदिः सात नारकी का १ दन्डक; अंतिः सिद्धो में २ उपयोग. ५३४६. नवतत्त्व के २४ भेद, संपूर्ण, वि. १९०७, श्रेष्ठ, पृ. ३५, जैदेना., ले.स्थल. बडवतशहर, ले. ऋ. मनोहरदास, (२६४१२.५, २०४४८-५४). नवतत्त्व प्रकरण-चौवीस भेद, संबद्ध, मागु., गद्य, आदिः नवपदार्थना द्वार २४; अंतिः तत्व केवली गम्य छै. ५३४८. होलीका कथा सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ९, जैदेना., ले.स्थल. आऊआ, ले. पं. विनोदसागर, प्र.वि. मूल-श्लो.१३९., (२७४१२.५, ७४४०-४२). होलीरजपर्व प्रबन्ध, गणि फतेन्द्रसागर, सं., पद्य, वि. १८२२, आदिः सुरासुरनतक्रमं; अंतिः चितोचितचरित्तं होली. होलिकापर्व कथा-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः श्रीवर्धमानस्वामी; अंतिः होलीरज पर्व लिख्यौ. For Private And Personal Use Only Page #586 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य भाग - १ ५३२ ५३४९. भरतमहाराजा चौपाई, संपूर्ण, वि. १९८६, श्रेष्ठ, पृ. १६, जैदेना., ले.स्थल. नालागढ, ले. मु. कुसार, प्र.वि. ढाळ-३२, (२७.५४१३, ११-१७४५०-५४). भरतचक्रवर्ति चौपाई, कवि नन्दलाल, प्राहिं., पद्य, वि. १८७७, आदिः सुमरुं जिण चौवीसने; अंतिः सुफल होवे अवतार. ५३५०. अणुत्तरोववाईदशाङ्गसूत्र सह टबार्थ-अङ्ग ९, संपूर्ण, वि. १९४४, श्रेष्ठ, पृ. १८, जैदेना., ले.स्थल. काणुंडग्राम, ले. मु. मङ्गलसेन, प्र.वि. मूल-ग्रं. १९२. अंतिम ४-५ पंक्तिओ का टबार्थ नहीं लिखा है., (२६.५४३, ६४३६). अनुत्तरौपपातिकदशाङ्गसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदिः तेणं कालेणं० नवमस्स; अंतिः कहाणं तहा णेयव्वं. अनुत्तरौपपातिकदशाङ्गसूत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः ते काल चउथाआराने; अंति:#. ५३५१. सङ्ग्रहणीसूत्र, संपूर्ण, वि. १९१२, श्रेष्ठ, पृ. १६, जैदेना., ले.स्थल. बम्बई, ले. चतुर्भुज औदीच्य, प्र.वि. गा.३४९, (२७.५४१३, ११४४३-४४). बृहत्सङ्ग्रहणी, आ. चन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदिः नमिउं अरिहन्ताइं; अंतिः जा वीरजिण तित्थं. ५३५२. स्थानकवासी श्राद्धप्रतिक्रमणसूत्र सङ्ग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १०, जैदेना., प्र.वि. सविधि श्राद्धप्रतिक्रमण., (२७४१३, १३-१४४२४-२९). साधुश्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-स्थानकवासी, संबद्ध, प्रा.,गुज., प+ग, आदिः नमो अरिहन्ताणं; अंतिः अप्पाणं वोसिरामि. ५३५३." नवतत्त्व सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८७६, जीर्ण, पृ. ८, जैदेना., ले.स्थल. राधिकापुर, ले. मु. रामविजय, प्र.वि. मूल गा.५३. अंतिम दो गाथाओं का टबार्थ नहीं लिखा है., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-कुछ पत्र, (२६४१२.५, ४४४०). नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, (संपूर्ण), आदिः जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंतिः लहिओ श्रीधम्मसुरिहिं. नवतत्त्व प्रकरण-टबार्थ, राज., गद्य, (पूर्ण), आदि:-; अंति:५३५४. पद सङ्ग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदेना., प्र.वि. प्र.पु. गा.१५०., (२६.५४१३.५, ११४३५-३७). औपदेशिक पद सङ्ग्रह, मु. ज्ञानसार, प्राहिं., पद्य, आदिः कहा भरोसा तन का औधू; अंतिः हिल मील प्रीत बढाई. श सह टबार्थ व रास, संपूर्ण, वि. १९५४, श्रेष्ठ, पृ. ४१, जैदेना., ले.स्थल. काणुडनगर, ले. मु. मङ्गलसेन, प्र.वि. मूल-गा.३७., (२६.५४१३, १२-१८४३६-४१). लब्धिप्रकाश, कवि नन्दलाल, प्रा., पद्य, वि. १९०३, आदिः नमिऊण महावीरं; अंतिः मिच्छामि दुक्कडम्. लब्धिप्रकाश-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः नमस्कार करीने; अंतिः पाप मिथ्या करुं छु. लब्धिप्रकाश-रास, मु. नन्दलालशिष्य, संबद्ध, मागु., पद्य, वि. १९०३, आदिः रामचन्द्र बनवास में; अंतिः ग्रन्थ भयो छे पूर्ण. ५३५७. द्रौपती रास, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३१, जैदेना., प्र.वि. ढाळ-३०, (२६४१२.५, १५-१६४३६-३८). द्रौपदी रास, राज., पद्य, आदिः तीर भवन त्यारक जगत्त; अंतिः धर्मरा फल रुडा. ५३५८." चन्द चरित्र, संपूर्ण, वि. १८८१, श्रेष्ठ, पृ. ४६, जैदेना., ले.स्थल. रोहतग, ले. मु. कन्हीराम-शिष्य (गुरु मु. कन्हीराम), प्र.वि. गा.२६७९, ढाळ-१०८, उल्लास-४, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२७४१२.५, २४-२७X४८-४९). चन्द्रराजा रास, मु. मोहनविजय, मागु., पद्य, वि. १७८३, आदिः प्रथम धराधव तीम; अंतिः वर्णव्या गुण चन्दना ५३५९. भक्तामर स्तोत्र सह वृत्ति, संपूर्ण, वि. १८१९, श्रेष्ठ, पृ. ५९, जैदेना., ले.स्थल. अर्गलपुर, प्र.वि. मूल-श्लो.४४; टीका-ग्रं. १५७२., (२६.५४१२.५, ११-०४३९-४२). भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुङ्गसूरि, सं., पद्य, आदिः भक्तामरप्रणतमौलिमणि; अंतिः समुपैति लक्ष्मी. भक्तामर स्तोत्र-गुणाकरीय टीका, आ. गुणाकरसूरि, सं., गद्य, वि. १४२६, आदिः पूजाज्ञानवचोपायापगमा; अंति: मतिः० प्रायशः सन्ति. ५३६०. नयचक्र सह स्वोपज्ञ बालावबोध, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ४५, जैदेना., (२५.५४१२.५, ९-११४३७-४४). नयचक्रसार, गणि देवचन्द्र, सं., गद्य, वि. १८वी, आदिः प्रणम्यपरमब्रह्म; अंतिः राजसारामुनीन्द्राः. For Private And Personal Use Only Page #587 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ५३३ www.kobatirth.org: कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची नयचक्रसार- स्वोपज्ञ बालावबोध, गणि देवचन्द्र मागु, गद्य वि. १८वी, आदि (१) प्रणम्य परमब्रह्म (२) श्रीजिनागमने विषे; अंति: (१) परम्पराने संभारु छु (२) कृति भणता परमानन्द. " ५३६१. यतिदिनचर्या सह अवचूरि, संपूर्ण वि. १९५२ श्रेष्ठ, पृ. ५४ जैदेना., ले. स्थल नागोर, ले. जीवराज, प्र. वि. मूल गा. १५४. त्रिपाठ, (२७.५x१२.५, १२ - १३४३६-४३). यतिदिनचर्या, आ. भावदेवसूरि, प्रा. पद्य, आदि वीरं नमिऊण जिणं अंतिः एसा थोवमइजइजोग्गा. यतिदिनचर्या - अवचूरि, मु. मतिसागर, सं., गद्य, आदि: (१) प्रणम्य जगदानन्दं (२) अहं सामाचारी; ; अंतिः स्तोकमतियतियोग्या. ५३६२. बारव्रत भाषा संपूर्ण, वि. १८८८, श्रेष्ठ, पृ. ७३, जैदेना ले. स्थल, पालीनगर, ले. साध्वीजी अमरु, (२५.५४१२, १८ " " " Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २०X३७-४१). १२ व्रत टीप, गणि उदयसागर, राज, गद्य, आदि सदा सिद्ध भगवान के अंतिः वीर्य तपातिचार कहीये. " " ५३६३. द्रौपदी चौपाई, संपूर्ण, वि. १८४८, श्रेष्ठ, पृ. ४४, जैदेना., ले. स्थल. पोटलानगर, ले. मु. दोलतराम (गुरु मु. हीरानन्द, खरतरगच्छ ), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. ढाळ - ३९; प्र.पु. मूल - ग्रं. १५०१ (२६१२.५, १३ - १६३७-४५). द्रौपदी चौपाई. वाचक कनककीर्ति मागु पद्य वि. १६९३, आदि: पुरिसादाणी पासजिण अंतिः कनककीरति सुखकार. ५३६४. श्रीपाल रास सह बालावबोध, पूर्ण, वि. १८५४ श्रेष्ठ, पृ. ८२-२ (१ से २) -८०, जैदेना. ले. गणि जयविजय (गुरु मु. मोतीविजय), प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र. वि. मूल-गा. १८२५, खण्ड-४, ढाळ ४१. पू. वि. प्रथम दो व अंतिम पत्र नही हैं.. प्रतिलेखन पुष्पिका अधुरी है., प्र.ले. श्लो. (५९) अपरं पुस्तकं वीक्ष्य: (५६८ ) यन्मात्राक्षरपादबिन्दुगलिते, (२७x१२.५, १०-११४३३-३८). श्रीपाल रास, उपा. विनयविजय, उपा. यशोविजयजी गणि, मागु., पद्य, वि. १७३८, आदि:-; अंतिः च्यार खण्ड सुहायाजी. श्रीपाल रास- बालावबोध *, मागु., गद्य, आदि:-; अंति: ५३६५. पाक्षिकसूत्र, खामणा सह टबार्थ व पाक्षिक स्तुति, संपूर्ण वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. २३, पं. ३, जैदेना. (२८४१३.५, ४० ५X३१-३४) पे. १. पाक्षिक स्तुति, आ. बालचन्द्रसूरि, सं., पद्य, (पृ. २२आ-२३अ), आदिः स्नातस्याप्रतिमस्य; अंतिः कार्येषु सिद्धिम्, पे.वि.श्लो. ४. पे. २. पे नाम पाक्षिकसूत्र सह टवार्थ, पृ. ०१-२०अ पाक्षिकसूत्र, प्रा., प+ग, आदि तित्थङ्करे य तिथे अंतिः जेर्सि सुयसायरे भत्ति. पाक्षिकसूत्र - टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः तीर्थङ्कर प्रते; अंतिः मिथ्या विफल होज्यो. पे. ३. पे नाम, पाक्षिकक्षामणासूत्र सह टवार्थ, पृ. २०अ २२आ क्षामणकसूत्र, प्रा., गद्य, आदि: इच्छामि खमासमणो; अंतिः नित्थारग पारगा होह. क्षामणकसूत्र - टवार्थ, मागु, गद्य, आदि. इच्छं हुं वाञ्छु: अंतिः शिष्याभूत जाणवा. ५३६६. तत्त्वार्थसूत्र सह भाष्य, वृत्ति व सम्बन्धकारिका सह टीका, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ४१-१५ (१,२६ से ३९ ) =२६, पे. २. जैदेना.. पू. वि. प्रथम एक बीच व अंत के पत्र नहीं हैं. (२६४१३-५, १५४३९-४३) " , . For Private And Personal Use Only पे. १. पे नाम तत्त्वार्थसूत्र की आद्यसम्बन्धकारिका सह टीका, पृ. २- १४आ तत्त्वार्थाधिगमसूत्र - सम्बन्धकारिका आदि, वाचक उमास्वाति संबद्ध सं., पद्य, आदि अंतिः मार्ग प्रवक्षामि. Page #588 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य भाग १ .. www.kobatirth.org: ५३४ तत्त्वार्थाधिगमसूत्र - आद्य सम्बन्धकारिका की टीका आ. देवगुप्तसूरि, सं., गद्य, आदि अंतिः धर्मार्थिना मता.. ये. वि. संबद्ध श्लो. ३१. प्रथम पत्र नहीं है. पे. २. पे नाम तत्त्वार्थसूत्र सह भाष्य व टीका, पृ. १४आ-४१ तत्त्वार्थाधिगमसूत्र, वाचक उमास्वाति, सं., प+ग, आदिः सम्यग्दर्शनज्ञान; अंतिः तत्त्वार्थाधिगमसूत्र- स्वोपज्ञ भाष्य वाचक उमास्वाति सं. गद्य, आदि: सम्यग्दर्शनं सम्यग्ज: अंतिः " 7 " " तत्त्वार्थाधिगमसूत्र- टीका #, गणि सिद्धसेन, सं., गद्य, आदि: (१) जैनेन्द्रशासनसमुद्रम (२) इदमाद्यमनवद्यं मुक्त; अंति:-, पे.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं. ५३६७.” कयवन्ना चौपाई व श्लोक, अपूर्ण, वि. १८३३, श्रेष्ठ, पृ. २१-२ (१ से २) = १९, पे. २, जैदेना., ले. साध्वीजी सोनीजी ( गुरु मु. तुलसीराम), प्र.ले.पु. विस्तृत, दशा वि. अक्षर फीके पड़ गये हैं, (२७.५X१३.५, १२-१७X३४-३८). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पे. १. कयवन्ना चौपाई, मु. जयतसी, मागु., पद्य, वि. १७२१, (पृ. -३-२१), आदि:-; अंतिः धरम करण मन उलसै छै., पे. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. ढाल ४ तक नहीं है. पे. २. जैन श्लोक *, सं., पद्य, (पृ. २१आ-), आदि:-; अंति:-, पे.वि. अंतिम पत्र नहीं है. ५३६८. रामायण (रामजसो रसायण) संपूर्ण, वि. १९२९ श्रेष्ठ, पृ. ७१-१ (३३)+१ (५७)-७१, जैदेना., ले. स्थल ऊताणा, ले. मु. गुलाबचन्द, प्र. वि. अध्याय- ४ अधिकार / ६२बाल, (२८x१३, १९४४५-४६). रामयशोरसायन रास, मु. केशराज, मागु., पद्य, वि. १६८३, आदिः श्रीमुनिसुव्रतस्वामी; अंतिः सदा हरख वधामणी.. ५३६९. उत्तमकुमार चौपाई, पूर्ण, वि. १८वी श्रेष्ठ, पृ. ४३, जैदेना. प्र. वि. ग्रं. १६३६ ढाळ ५१. पू. वि. अंतिम पत्र नहीं है. मात्र " " अंतिम गा. १ नहीं है., (२५.५४१२.५, १५-१६४३५-३७). उत्तमकुमार चौपाई, मु. तत्त्वहंस, मागु., पद्य, वि. १७३१, आदि: सरसति सामण पय नमी; अंतिः ५३७०. कयवन्नाश्रेष्ठी चौपाई, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २५, जैदेना., प्र. वि. गा. ५५५, ढाळ - ३१, (२७.५X१२.५, १२-१३x२९ " ४५). कयवन्ना चौपाई, मु. जयतसी, मागु., पद्य, वि. १७२१, आदिः स्वस्ति श्रीसुख; अंतिः धरमकरण मन उलसेजी. ५३७१.” पाक्षिकसूत्र सह टबार्थ व पाक्षिकखामणा, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २४, पे. २, जैदेना., प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२७.५४१३ ४x२५-३२). पे. १. पे नाम, पाक्षिकसूत्र सह टवार्थ, पृ. ०१आ-२४अ पाक्षिकसूत्र, प्रा., प+ग, आदिः तित्थङ्करे य तित्थे; अंतिः जेसिं सुयसायरे भत्ति. पाक्षिकसूत्र - टबार्थ, मागु., गद्य, आदि: तीर्थङ्कर प्रते; अंतिः मिथ्या विफल होज्यो. पे. २. पे नाम. पाक्षिकक्षामणासूत्र, पृ. २४अ-२४आ " क्षामणकसूत्र, प्रा., गद्य, आदि: इच्छामि खमासमणो; अंतिः नित्थारग पारगा होह. ५३७२. छ कायजीव व चौरासीलाखजीवयोनी विगत, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ५, पे. २, जैदेना. (२७.५०१३, १०-१२४२९ ३३). पे. १.६ कायजीव, प्रा.,मागु., गद्य, (पृ. १-५), आदिः पहिली प्रथविकाय बीजी; अंतिः मिच्छामि दुक्कडं. पे. २.८४ लाख जीवयोनि विचार, मागु., गद्य, (पृ. ५आ), आदि: बावन लाख साधारण; अंति: मिच्छामि दुक्कडं. ५३७३.' अष्टाह्निका व्याख्यान, संपूर्ण, वि. १८८७, श्रेष्ठ, पृ. १३, जैदेना., ले. स्थल. भट्टपुर, ले. मु. विनयचन्द्र, प्र. वि. ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित, (२७.५४१३, १२४३७-४४). " अष्टानिकापर्व व्याख्यान वाचक क्षमाकल्याण, सं. गद्य वि. १८६० आदि शान्तीशं शान्ति: अंतिः विलोक्य तत्. ५३७५. धर्मसङ्ग्रह सह टीका पूर्वार्द्ध प्रतिपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २०६, जैदेना. ले. स्थल. जीजुवाडा, ले. बोधालाल, (२७१२.५, १०- १२X३६-४०). For Private And Personal Use Only a וי Page #589 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ५३५ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची धर्मसङ्ग्रहणी, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण वीयरागं; अंति: धर्मसङ्ग्रहणी-टीका, आ. मलयगिरिसूरि , सं., गद्य, आदिः यथास्थिताशेषपदार्थ; अंति:५३७६." नन्दीसूत्र सह बालावबोध, पूर्ण, वि. १८८६, मध्यम, पृ. ९२-३(४,४८ से ४९)=८९, जैदेना., ले.स्थल. कृष्णगढ, ले. ऋ. हिन्दुमल्ल, प्र.वि. मूल-गा.७००., अक्षर-दुर्वाच्य, दशा वि. विवर्ण-पानी से अक्षरों की स्याही फैल गयी है, चिपके पत्र अलग करते वक्त स्याही उखडी हुई, फफूंदग्रस्त, चिपके पत्र अलग करते वक्त विशीर्ण, (२६४१२.५, ५-१५४३९ ४३). नन्दीसूत्र, आ. देववाचक, प्रा., प+ग, आदिः जयइ जगजीवजोणीवियाणओ; अंतिः से तं परोक्खणाणं. नन्दीसूत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः नन्दीत आणन्द; अंतिः परोक्षज्ञानना भेद छइ. ५३७७. श्राद्धप्रतिक्रमणसूत्र सङ्ग्रह, संपूर्ण, वि. १८८९, श्रेष्ठ, पृ. २०, जैदेना., ले.स्थल. पाली, ले. मु. हीरविजय, दशा वि. विवर्ण-पानी से अक्षरों की स्याही फैल गयी है, मूषक भक्षित-अल्प, (२५४१३, १३५२५-३०). पंचप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,सं.,मागु., पद्य, आदिः नमो अरिहन्ताणं; अंतिः कार्येषु सिद्धिम्. ५३७८. पाक्षिकसूत्र व खामणा, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, पे. २, जैदेना., (२५.५४१३, ७-१४४३८-४१). पे. १. पे. नाम. पाक्षिकसूत्र, पृ. ०१अ-०९अ पाक्षिकसूत्र, प्रा., प+ग, आदिः तित्थङ्करे य तित्थे; अंतिः जेसिं सुयसायरे भत्ति. पे. २.पे. नाम. पाक्षिकक्षामणासूत्र, पृ. ०९अ-०९आ क्षामणकसूत्र, प्रा., गद्य, आदिः इच्छामि खमासमणो; अंतिः नित्थारग पारगा होह. ५३७९. गौतमपृच्छा सह टबार्थ व कथा, पूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २८-१(४)=२७, जैदेना., प्र.वि. मूल-गा.६५. प्र.पु. सर्वग्रं. ११५१., (२६४१२.५, ५-१७४२७-३२). गौतमपृच्छा, प्रा., पद्य, (संपूर्ण), आदिः नमिऊण तित्थनाहं; अंति: गोयमपुच्छा महत्थावि. गौतमपृच्छा-टबार्थ, आ. मुनिसुन्दरसूरि, मागु., गद्य, (संपूर्ण), आदि: नमस्कार करीनै; अंतिः ते मोटा अर्थ ते पिण. गौतमपृच्छा-कथा सङ्ग्रह' , मागु., गद्य, (संपूर्ण), आदिः एकै गामै एक वाणीयो; अंतिः तरीनै मुक्त लीजै.. ५३८१.” अध्यात्मकल्पद्रुम सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९१५, श्रेष्ठ, पृ. १३६, जैदेना., ले. बालगिर बाबा, प्र.वि. मूल श्लो.२७२, १६अधिकार. श्लोक १२७,८७., त्रिपाठ, पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न, (२६.५४१३, ९१०४३७-४०). अध्यात्मकल्पद्रुम, आ. मुनिसुन्दरसूरि, सं., पद्य, आदि: जयश्रीरान्तरारीणां०; अंतिः जयश्रिया शिवश्रीः. अध्यात्मकल्पद्रुम-बालावबोध, मु. हंसरत्न, मागु., गद्य, आदिः श्रीशद्धेश्वरपार्श्व; अंतिः चिरं जयतात. ५३८२. जिनबिम्बप्रवेश-प्रतिष्ठा आदि मुहूर्त सङ्ग्रह, पूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४०-२(३६ से ३७)+१(२७)=३९, जैदेना., (२७.५४१२.५, १२-१३४३८-४०). प्रतिष्ठा विधि सङ्ग्रह, सं.,मागु., गद्य, (संपूर्ण), आदिः (१) प्रणम्य स्वस्ति (२) तिहां प्रथम भव्य; अंतिः चिन्ता करवी नही. ५३८३. योगशास्त्र प्रकाश-२ श्लोक १२ सह शतार्थ विवरण, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ४९, जैदेना.,प्र.वि. मूल अंश-श्लो.१; टीका-सूत्र-१०६विव., (२७.५४१३, १३४४१-४४). योगशास्त्र-हिस्सा परिग्रहारम्भ श्लोक, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, आदिः परिग्रहारम्भमग्नास्त; अंतिः परमीश्वरीकर्तुमीश्वर. योगशास्त्र-हिस्सा परिग्रहारम्भ श्लोक का शतार्थ विवरण, गणि मानसागर, सं., गद्य, वि. १७वी, आदिः (१) प्रणम्य परमप्रीत्या (२) हंभारम्भेगोरितिनाम; अंतिः (१)कथमिति सम्भवेव्ययः (२)शतार्थीमिमाममलाम्. For Private And Personal Use Only Page #590 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य भाग १ - www.kobatirth.org: ५३८४. गौतमपृच्छा सह बालावबोध, संपूर्ण वि. १९२४, श्रेष्ठ, पृ. ५२, जैदेना. प्र. वि. मुलगा. ६४: प्र.पु. संख्या १६०० " (२७४१३, १२-१३४३२-३४). गीतमपृच्छा, प्रा., पद्य, आदिः नमिऊण तित्थनाहं अंति: गोयमपुच्छा महत्थावि. गौतमपृच्छा-बालावबोध*, मागु., पद्य, आदि: तीर्थनाथ श्रीमहावीर; अंतिः अडतालीस बोल कह्या. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५३८६. मुनिपति चौपाई, संपूर्ण, वि. १८९१, श्रेष्ठ, पृ. ३१, जैदेना., ले. स्थल. हरिदुर्ग, ले. पं. हमीरविजय (गुरु मु. रत्नविजय), प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र. वि. ढाळ -६५, (२९x१३, १६४४७-५२). मुनिपति चौपाई, मु. धर्ममन्दिर, मागु., पद्य, वि. १७२५, आदि: शंखेसर सुखकरू नमतां; अंतिः नवेय निधानो रे.. ५३८७. भद्रबाहुनिमित्तसंहिता, संपूर्ण, वि. १९६२, श्रेष्ठ, पृ. ५५, जैदेना., ले. स्थल. बम्बई, ले. हीरालाल ओझा, प्र.वि. अध्याय२८, प्र.ले. श्लो. (५०६) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, (२७.५x१३, १२-१३४३८-४० ) . भद्रबाहुसंहिता, आ. भद्रबाहुस्वामी, सं., पद्य, आदिः मगधेषु पुरं ख्यातं; अंतिः यशोवादं जगत्यपि. ५३८८. शान्तिस्नात्र विधि, संपूर्ण, वि. १९६२, श्रेष्ठ, पृ. १३, जैदेना., ले. स्थल. गुलालवाडी - बम्बई, ले. हरगोविन्द, (२९x१३.५, १२X३३-३५). शान्तिस्नात्र विधि, मु. सकलचन्द, सं. मागु, पद्य, आदि अथ प्रतिष्ठा वा अंतिः वाजा वागते धारा देवी. ५३९२. नवतत्त्व का बालावबोध, अपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ३६-४ (१ से ४ ) = ३२, जैदेना. (२६४१२.५, ८x२६-३०). नवतत्त्व प्रकरण-बालावबोध, मागु., गद्य, आदि:-: अंतिः अजीव ते मिश्र कहिइं. , ५३९३. कर्मग्रन्थ १-४ सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ४८, पे. ४, जैदेना., ( २६ १३, १३-१५x२७-४०). पे. १. पे नाम कर्मविपाक नव्य सह वालावबोध, पृ. १-१३आ ५३६ गा.६०. पे. २. पे. नाम. कर्मस्तव सह बालावबोध' पृ. १३आ-२०आ कर्मविपाक नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि प्रा. पद्य आदि सिरिवीरजिणं वन्दिय अंतिः लिहिओ देविन्दसूरीहिं... " .. " कर्मविपाक नव्य कर्मग्रन्थ- बालावबोध *, मागु., गद्य, आदिः ज्ञान अतिसय; अंतिः देवेन्द्रसूरिजीये., पे. वि. मूल कर्मस्तव नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: तह थुणिमो वीरजिणं; अंतिः वन्दियं नमह तं वीरं .. कर्मस्तव नव्य कर्मग्रन्थ - बालावबोध *, मागु, गद्य, आदिः तिम ज स्तवुं छं: अंतिः सूरि ते सुचव्यु., पे.वि. मूल गा. ३४. पे. ३. पे नाम, बन्धस्वामित्व सह बालावबोध, पृ. २०आ-२६आ बन्धस्वामित्व नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, आदिः बन्धविहाणविमुक्कं; अंतिः नेयं कम्मत्थयं सोउं. बन्धस्वामित्व नव्य कर्मग्रन्थ- बालावबोध *, मागु., गद्य, आदिः कर्म बन्धना प्रकारथी; अंतिः केता रच्यो छे जाणजो., ये.वि. मूल-गा. २५. पे. ४. पे नाम षडशीति सह बालावबोध, पृ. २६आ-४८ षडशीति नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि प्रा. पद्य, आदि नमिय जिणं जिय अंतिः देविन्दसूरीहिं. षडशीति नव्य कर्मग्रन्थ- बालावबोध, मागु, गद्य, आदि: वीतरागदेव नमस्करी: अंति: देवेन्द्रसूरिहिं. पे.वि. मूल गा. ८६. For Private And Personal Use Only ५३९५. श्रीपाल रास- खण्ड १ से ३, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ९५, जैदेना., पू. वि. प्रतिलेखकद्वारा अपूर्ण. खण्ड-४ की प्रथम " दो गाथा तक लिखा हैं, (२५.५x१२, ६३१-३३). श्रीपाल रास, उपा. विनयविजय उपा. यशोविजयजी गणि, मागु., पद्य, वि. १७३८, ( प्रतिपूर्ण), आदिः कल्पवेल कवियण तणी: अंति: Page #591 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ५३७ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ५३९६. आगमसारोद्धार, संपूर्ण, वि. १८८३, श्रेष्ठ, पृ. ४७, जैदेना., ले.स्थल. दैत्यारिदुर्ग, ले. मु. वीरचन्द्र, प्र.वि. प्र.पु. श्लोक संख्या -२०००., (२६४१२, १३४४९-५३). आगमसारोद्धार, उपा. देवचन्द, मागु., गद्य, वि. १७७६, आदिः (१) प्रथम भव्य जीवनै (२) तिहां प्रथम जीव; अंतिः फली मन आस. ५३९७." दशवैकालिकसूत्र सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६०, जैदेना., प्र.वि. मूल-अध्याय-अध्ययन१०., टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२५.५४१२, ६४२७-३०). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यम्भवसूरि, प्रा., पद्य, वि. पू.४, आदिः धम्मो मङ्गलमुक्किट्ठ; अंति: गई त्ति बेमि. दशवैकालिकसूत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः प्रणम्य श्रीमहावीरं; अंतिः जम्बू प्रते केता हवा. ५३९८. दशवैकालिकसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ८३+१(४९)=८४, जैदेना., प्र.वि. मूल-अध्याय-अध्ययन१०., (२५४१२, ४४३१-३५). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यम्भवसूरि, प्रा., पद्य, वि. पू.४, आदिः धम्मो मङ्गलमुक्किट्ठ; अंति: गई त्ति बेमि. दशवैकालिकसूत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः ध० धर्म म० मङ्गलीक; अंति: मोक्ष गति हउइ कहउ. ५३९९. पर्युषणअष्टाह्निका व्याख्यान, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३३, जैदेना., (२६४१२.५, १३४४१-४२). पर्युषणाष्टाह्निका व्याख्यान-बालावबोध, मागु., गद्य, आदिः (१) श्रीपार्श्वनाथ भगवन (२) स्मृत्वा पार्श्व; अंतिः मङ्गलीक माला सम्पजौ. ५४००." उपदेशमाला सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ८९, जैदेना.,प्र.वि. मूल-गा.५४४., टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२६४१२, ९-१३४३३-३६). उपदेशमाला, गणि धर्मदास, प्रा., पद्य, आदिः (१) नमिऊण जिणवरिन्दे (२) जगचूडामणिभूओ उसभो; अंतिः वयण विणिग्गया वाणी. उपदेशमाला-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः नमस्कार करीने; अंतिः वचन थकी नीकली वांणी. ५४०३. सिद्धान्तचन्द्रिका की सुबोधिका व्याख्या- आख्यात काण्ड, प्रतिपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ८५, जैदेना., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, पदच्छेद सूचक लकीरें, संशोधित, पू.वि. आख्यातप्रक्रिया हैं., (२५.५४१२, १२-१४४३१-३५). सिद्धान्तचन्द्रिका-सुबोधिनी वृत्ति, गणि सदानन्द, सं., गद्य, वि. १७९९, आदि:-; अंति:५४०४. महावीरजिन स्तव सङ्ग्रह व दीपावली स्तुति, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, पे. ३, जैदेना., ले. गणि देवसागर, (२४.५४१२, ८४३२-३४). पे. १. दुरियरयसमीर स्तोत्र, आ. जिनवल्लभसूरि, प्रा., पद्य, (पृ. १आ-४आ), आदिः दुरिअरयसमीरं मोह; अंतिः सया पायप्पणामो तुह., पे.वि. गा.७६, ढाळ-८. पे. २. महावीरजिन वृद्धस्तवन, आ. अभयसूरि, प्रा., पद्य, (पृ. ४आ-६अ), आदिः जइ जास मणे भगवं; अंतिः पढह कय अभयसूरीहि., पे.वि. गा.२२. पे. ३. दीपावलीपर्व स्तुति, आ. जिनचन्द्रसूरि, सं., पद्य, (पृ. ६अ-६आ), आदिः पापायां पुरि; अंतिः शार्दूलविक्रीडितम्., पे.वि. श्लो.४. ५४०६. सिद्धान्तचन्द्रिका की कृत्प्रकाशिका वृत्ति- उत्तरार्द्ध, प्रतिपूर्ण, वि. १८६६, श्रेष्ठ, पृ. ८५, जैदेना., ले.स्थल. विक्रमपुर, ले. ऋ. लालचन्द (गुरु ऋ. रूपचन्द), प्र.ले.पु. मध्यम, (२५.५४१२, १२-१४४३७-३९). सिद्धान्तचन्द्रिका-सुबोधिनी वृत्ति, गणि सदानन्द, सं., गद्य, वि. १७९९, आदि:-; अंतिः सदानन्देन निर्मिता. ५४०७. चन्दराजा चौपाई (चन्द प्रेमला), संपूर्ण, वि. १८३०, श्रेष्ठ, पृ. २६, जैदेना., ले. मु. लक्ष्मीचन्द, प्र.वि. गा.९९९; प्र.पु. मूल-ग्रं. १२००, (२६४१२, १६-१८४३४-४३). For Private And Personal Use Only Page #592 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य भाग - १ ५३८ चन्द्रराजा चौपाई, उपा. विजयमुनि-शिष्य, मागु., पद्य, वि. १६८९, आदिः श्रीसुखदायक जिनवलं; अंतिः जगमाहि गुण विलासो. ५४१३." द्रव्यसङ्ग्रह सह वृत्ति व हितशिक्षाबत्तीसी, संपूर्ण, वि. १८७६, श्रेष्ठ, प्र. ४७, पे. २, जैदेना., ले.स्थल. नागोरनगर, ले. पं. मोहन, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न-वचन विभक्ति संकेत, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२५.५४१२.५, १३-१९४४२-४८). पे. १.पे. नाम. द्रव्यसङ्ग्रह सह टीका, पृ. १-४७अ द्रव्यसङ्ग्रह, मु. नेमिचन्द्र सिद्धान्त चक्रवर्ती, प्रा., पद्य, आदिः प्रणम्य परमात्मानं; अंति: मुणिणा भणियं जं. द्रव्यसङ्ग्रह-वृत्ति, आ. ब्रह्मदेव, सं., गद्य, आदिः तत्रादौ जीवमजीवं; अंतिः क्रियाकारक सम्बन्ध., पे.वि. प्र.पु. मूल-ग्रं.२७००. पे. २. हितशिक्षाबत्रीसी, वाचक क्षमाकल्याण, मागु., पद्य, वि. १९वी, (पृ. ४७अ-४७आ), आदिः सकल विमल गुन कलित; अंतिः प्रगटै ग्यानानन्द., पे.वि. गा.३३. ५४१४. साधुआचार के अठोत्तरबोल, संपूर्ण, वि. १९४८, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना., ले.स्थल. खंभात, ले. छबील वीरचन्दजी व्यास, प्र.वि. श्लो.१८० बोल, (२६.५४१२, १३४४४-४६). साधुआचार १०८ बोल, राज., प+ग, आदि: जति थइनै आधाकर्मी; अंतिः तो चोमासीकनो प्रा. ५४१५. साधुप्रतिक्रमणसूत्र सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १८, जैदेना., प्र.वि. संबद्ध-सूत्र-२१., त्रिपाठ, (२७४१२.५, १-३४३७-४१). साधुवन्दित्तुसूत्र, संबद्ध, प्रा., गद्य, आदिः करेमि भन्ते० चत्तारि; अंतिः वन्दामि जिणे चउवीसं. साधुवन्दित्तुसूत्र-बालावबोध, मागु., गद्य, आदिः निवर्तवा वाञ्छुउ; अंतिः चोवीस तीर्थंकर वांदउ. ५४१६. चौवीसदण्डक २९ द्वार, संपूर्ण, वि. १९६७, श्रेष्ठ, पृ. १३, जैदेना.,ले.स्थल. स्थंभनपुरनगर, ले. साध्वीजी सौभाग्यश्रीजी, (२७.५४१२.५, १०४३८-४०). २४ दण्डक २९ बोल, मागु., गद्य, आदिः प्रथम नामद्वार बीजु; अंतिः अनंत गुणे अधिक जाणवा. ५४१७. सिद्धाचल १०८ खमासमण दुहा, संपूर्ण, वि. १९४२, श्रेष्ठ, पृ. ६, पे. २, जैदेना., ले.स्थल. सिद्धक्षेत्र, ले. हठिसिङ्ग मानसिङ्ग बारोट, प्र.ले.पु. मध्यम, (२५.५४१२.५, १२-१३४३३-३६). पे. १. शत्रुजयतीर्थ १०८ खमासमण दूहा, मु. कल्याणसागरसूरि-शिष्य , गुज., पद्य, (पृ. १-५), आदिः सिद्धाचल समरो सदा; अंतिः जय जय सिद्धगिरी., पे.वि. गा.११४. पे. २. शत्रुजयतीर्थ माहात्म्य, मागु., गद्य, (पृ. ६), आदिः एह रीते श्रीसिद्धाचल; अंतिः पामीने वली कैइ पामसे. ५४१८. न्यायार्थमञ्जुषिका, संपूर्ण, वि. १९५०, श्रेष्ठ, पृ. २५, जैदेना., प्र.वि. टीका-श्लो.१४००., (२७४१२.५, १७४४९-५३). न्यायसङ्ग्रह-न्यायार्थमञ्जूषा टीका का न्यास #, गणि हेमहंस, संबद्ध, सं., गद्य, आदिः श्रीजिनवरगणधर; अंतिः सर्वापि श्रृङ्गारिता. ५४१९. चौमासी देववन्दन, संपूर्ण, वि. १८७६, श्रेष्ठ, पृ. १४, जैदेना., ले.स्थल. पालनपुर, ले. पं. विमलसौभाग्य, पठ. मु. __ जैनेन्द्रसौभाग्य (गुरु मु. सौभाग्यविमल), (२४x१२.५, १२-१३४३५-३९). चौमासी देववन्दन, मागु.,प्रा., प+ग, आदिः#; अंतिः#. ५४२०. उत्तराध्ययनसूत्र, संपूर्ण, वि. १९६४, श्रेष्ठ, पृ. ६७, जैदेना., प्र.वि. ३६अध्ययन, (२५.५४१२.५, १४-१५४३२-३७). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग, आदिः सञ्जोगाविप्पमुक्कस्स; अंतिः सम्मए त्ति बेमि. ५४२१. अन्तगडदशाङ्गसूत्र सह वृत्ति, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३२, जैदेना., प्र.वि. मूल-ग्रं. ८९९, अध्याय-९२., द्विपाठ, (२७.५४१२.५, १२-१४४४१-४६). अन्तकृद्दशाङ्गसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदिः तेणं कालेणं० चम्पा०; अंतिः अयमढे पण्णत्ते. For Private And Personal Use Only Page #593 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org: ५३९ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची अन्तकृद्दशाङ्गसूत्र- - टीका, आ. अभयदेवसूरि, सं., गद्य, आदि: अथान्तकृतदशासु किमपि ; अंतिः ननु विधीयतां सर्वतः. ५४२२ प्रतिष्ठा विधि, संपूर्ण वि. १९७९, श्रेष्ठ, पृ. २६, जैदेना. ले. स्थल, मुम्बई, ले. ठकरलालजी शवजी, (२७४१२.५. १०X३७-४८), प्रतिष्ठा विधि, सं. प्रा. गद्य, आदि: मूलगुरुंमिपुरन्दरप्त अंतिः ण्याचार्यकुर्यात्. " Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५४२३." उववाईसूत्र सह टबार्थ - उपाङ्ग १, पूर्ण, वि. १८८१, श्रेष्ठ, पृ. ४५ - २ ( ९ से १० ) = ४३, जैदेना., ले. मु. रतनचन्द्र (गुरु मु. हरजीमल्लिस्वामी), प्र. वि. मूल सूत्र- १८९ प्र.पु. उभयनं ७००० टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२८४१२, ७- ८४६२६४). औपपातिकसूत्र, प्रा., प+ग, आदि: तेणं कालेणं० चम्पा०; अंतिः सुही सुहं पत्ता. औपपातिकसूत्र - टबार्थ, आ. पार्श्वचन्द्रसूरि, मागु., गद्य, आदिः वन्दित्वा श्रीजिनं; अंतिः सुख पाया था. ५४२४. अमरसेनवयरसेन कथा, संपूर्ण, वि. १९७१ श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदेना. ले. स्थल भूजनगर, ले. मु. सुमतिविजय (२६४१२.५, " १३४५०-५५). अमरसेनवज्रसेन कथा, सं., गद्य, आदि दानं सुपात्रे विशदं अंतिः भवे सिद्धिं यास्यतः ५४२५. सिद्धान्तसारोद्धार सङ्ग्रह, संपूर्ण वि. १८५६, श्रेष्ठ, पृ. २८, जैदेना. ले. स्थल. तांडा, ले. पं. धनरूप, ( २६५१२.५, १६x४४-४६). सिद्धान्तसारोद्धार मागु, गद्य, आदि: सात कारणें गुरु अंतिः दुक्कडं दीजै. ; ५४२६. साधु समाचारि, संपूर्ण वि. १९०२ श्रेष्ठ, पृ. २१, जैदेना, ले. जीवराव (२५.५x१२.५ ११५२८-३३). साधुसमाचारी खरतरगच्छीय, सं., गद्य, आदिः प्रथम जिनचरित्रं; अंतिः श्रीजिनदत्तसूरिः. (+) ५४२७. सुव्रतश्रेष्ठि कथानक सह टवार्थ, संपूर्ण वि. १९१८, श्रेष्ठ, पृ. २३ जैदेना. ले. स्थल. अहमदनगर, ले. मु. शिवचन्द ( गुरु मु. विजयचन्द) प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. मुल- श्लो. २०१, संशोधित, (२७४१२.५, ५०३१-३३). मौनएकादशीपर्व कथा, मु. रविसागर, सं., पद्य, वि. १६५७, आदिः प्रणम्य ऋषभदेवं; अंतिः सागरशररसशशिप्रमिते. मौनएकादशीपर्व कथा-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः (१) पार्श्वदेवं नमस्कृत (२) प्रणम्य क० नमस्कार; अंतिः विषै ए जोडी छँ ५४२८. सत्तरभेदीपूजा सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १६, जैदेना., प्र. वि. मूल-गा.१०८, ढाळ - १७, प्र.पु. मूल-ग्रं. ५०५., टिप्पण युक्त विशेष पाठ - कुछ पत्र, ( २६×१२.५, ५×३४-३७). १७ भेदी पूजा, उपा. सकलचन्द्रगणि, मागु., पद्य, आदि: अरिहन्त मुखपङ्कज; अंतिः सकल थुणियो रे.. १७ भेदी पूजा-टबार्थ, मु. सुखसागर, मागु., गद्य, आदि: (१) हवें स्नान कर्या (२) श्रीअरिहन्त जिनेश्वर; अंति: गणि० ए उद्यम कीधो छे. ५४२९. दशवैकालिकसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९६१, श्रेष्ठ, पृ. ८४, जैदेना, प्र. वि. मूल- अध्याय - अध्ययन १०, ( २७X१२, ४X३२-३४). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यम्भवसूरि, प्रा., पद्य, वि. पू. ४, आदिः धम्मो मङ्गलमुक्किट्ठ; अंतिः गइं त्ति बेमि दशवैकालिकसूत्र-टबार्थ*, मागु., गद्य, आदिः ध० जीवनइ दुर्गति; अंतिः प्ररूप्यो तिम. ५४३०.” कर्मग्रन्थ १-५ सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३७ - १(१ ) = ३६, पे. ५, जैदेना., प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठकुछ पत्र, पू. वि. प्रथम एक व अंत के पत्र नहीं हैं. कर्मग्रन्थ -१ की गा.५ से कर्मग्रन्थ-५ गाथा २७ तक हैं. (२५.५X११.५, ४-५X४०-४२). पे. १. पे नाम कर्मविपाक नव्य सह टवार्थ, पृ. २-९आ, अपूर्ण कर्मविपाक नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: अंति: कर्मविपाक नव्य कर्मग्रन्थ-टबार्थ, मु. धनविजय, मागु, गद्य वि. १७वी आदि अंतिः ए कर्मग्रन्थ लिख्यो, For Private And Personal Use Only Page #594 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य भाग - १ www.kobatirth.org: पे. वि. मूल-गा. ६०. प्रथम पत्र नहीं है. गा. १ से ४ नही हैं. पे. २. पे. नाम. कर्मस्तव सह टबार्थ, पृ. ९आ - १५अ, संपूर्ण कर्मस्तव नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: तह थुणिमो वीरजिणं; अंतिः वन्दियं नमह तं वीरं .. कर्मस्तव नव्य कर्मग्रन्थ-टबार्थ, मु. धनविजय, मागु., गद्य, आदिः तिम हुं स्तवं छं; अंतिः श्रीमहावीर प्रतिइं., पे. वि. मूल-गा.३४. पे.वि. पे. ३. पे. नाम. बन्धस्वामित्व सह टबार्थ, पृ. १५अ - २०अ, संपूर्ण बन्धस्वामित्व नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, आदिः बन्धविहाणविमुक्कं; अंतिः नेयं कम्मत्थयं सोउं. बन्धस्वामित्व नव्य कर्मग्रन्थ- टवार्थ, मु. धनविजय, मागु, गद्य, आदि कर्मबन्धथी मुकाणचं अंतिः कर्मस्तव साम्मली., पे. वि. मूल-गा. २५. पे. ४. पे. नाम. षडशीति सह टबार्थ, पृ. २०आ - ३३आ, संपूर्ण षडशीति नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिय जिणं जिय; अंतिः देविन्दसूरीहिं. षडशीति नव्य कर्मग्रन्थ-टवार्थ, मु. धनविजय, मागु, गद्य, आदि वान्दीनइ तीर्थङ्कर अंतिः श्रीतपागच्छ नायकइ., पे.वि. .पे.वि. मूल-गा. ८६. पे. ५. पे. नाम. शतक सह टबार्थ, पृ. ३३आ-३७- अपूर्ण Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir शतक नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, आदिः नमिय जिणं धुवबन्धोदय; अंतिः शतक नव्य कर्मग्रन्थ-टबार्थ, उपा. धनविजय, मागु., गद्य, आदिः ध्रुवबन्धी प्रकृति; अंति:-, पे.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. गा. २७ तक है . सूत्रकृतागसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी प्रा. प+ग, आदि बुज्झिज्ज तिउटेज्ज: अंति: " सूत्रकृताङ्गसूत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, आदि: बुज्झि० छकायजीवना; अंतिः ५४० (+) ५४३१. सुयगडाङ्गसूत्र सह टबार्थ श्रुतस्कन्ध १ प्रतिअपूर्ण वि. १६६७, श्रेष्ठ, पृ. ६१-१८ (१० से १५.२१ से ३१,४८ ) ४३, जैदेना., ले. स्थल. रायपुर, ले. ऋ. भाणा, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२५.५x१२, ६-८x२२२४). · ५४३३. श्रीपाल रास, संपूर्ण, वि. १८०३, श्रेष्ठ, पृ. ५९, जैदेना., ले. स्थल. राजनगर, प्र. वि. गा. १८२५, खण्ड-४, ढाळ ४१ प्र.पु. मूल- सर्व गा. १२३६. ग्रं. श्लो. १८५४, प्र.ले. श्लो. (५०६) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा (२६४१२, ९-११४४३-४५). श्रीपाल रास, उपा. विनयविजय उपा. यशोविजयजी गणि, मागु., पद्य, वि. १७३८, आदिः कल्पवेल कवियण तणी; अंतिः लहसे ज्ञान विशालाजी. .. ५४३४." दशाश्रुतस्कन्धसूत्र, संपूर्ण वि. १५९१ मध्यम, पृ. ७९, जैदेना. ले. पीताम्बर ब्राह्मण, प्र. वि. १० दशा, पदच्छेद सूचक लकीरें वचन विभक्ति संकेत, टिप्पण युक्त विशेष पाठ-कुछ पत्र, प्र.ले. श्लो. (५०६) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा (२४.५४१२, ११४३३-३८), दशाश्रुतस्कन्धसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., पद्य, आदि (१) नमो अरिहंताणं० हवइ (२) सुयं मे आउस तेण०: अंति उवदंसेइ ति बेगि ५४३५. भुवनभानुकेवली चरित्र का बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९०६, श्रेष्ठ, पृ. १२४, जैदेना., ले. स्थल. जोधपुर, ले. साध्वीजी केशर श्री ( खरतरगच्छ ), ( २४४१२, १२-१३४३४-३५). For Private And Personal Use Only भुवनभानुकेवली चरित्र - बालावबोध, मु. हरिकलश, मागु., गद्य, आदि: सिरिवीरं नमीअ जिणं; अंति: ज्ञानवृद्धि हुई. ५४३७. श्रीपाल रास, अपूर्ण, वि. १८वी श्रेष्ठ, पृ. ८१-४ (१ से ४) ७७, जैदेना. पू. वि. प्रारंभ व अंत के पत्र नहीं हैं. गा६३ से खंड- ४ ढाल - १२ गा.१५ अपूर्ण तक है., (२५x११.५, १२-१३x२८-२९). Page #595 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ५४१ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची श्रीपाल रास, उपा. विनयविजय , उपा. यशोविजयजी गणि, मागु., पद्य, वि. १७३८, आदि:-; अंति:५४३८. सम्बोधसत्तरी, संपूर्ण, वि. १७९७, श्रेष्ठ, पृ. २०, जैदेना., ले.स्थल. आऊआ, प्र.वि. गा.१२५+२, (२६.५४११.५, ३४२८ २९). सम्बोधसप्ततिका, आ. जयशेखरसूरि, प्रा., पद्य, आदिः नमिऊण तिलोअगुरुं; अंतिः लहई नत्थि सन्देहो. ५४३९.” लीलावती चौपाई, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २९, जैदेना., पू.वि. अन्त के पत्र नहीं हैं. ढाल-२५ गा.८ अपूर्ण तक है., दशा वि. अक्षर फीके पड गये हैं, (२६.५४११.५, ११-१२४३६-४१). विक्रमसेनराजा चौपाई, मु. मानसागर, मागु., पद्य, वि. १७२४, आदिः सुखदाता सङ्खश्वरो; अंतिः५४४०. समवायाङ्गसूत्र, संपूर्ण, वि. १६वी, श्रेष्ठ, पृ. २८, जैदेना., ले.स्थल. वीरमपुर, ले. उपा. कनकशेखर, प्र.वि. सूत्र-१५९, ग्रं. १६६७, १०३अध्ययन, (२७४११.५, १८-१९४५५-५७). समवायाङ्गसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदिः सुयं मे० इह खलु; अंतिः अज्झयणन्ति त्तिबेमि. ५४४१. गौराबादल चौपाई, संपूर्ण, वि. १७५१, श्रेष्ठ, पृ. ४१, जैदेना., ले. चन्द्र, प्र.वि. गा.७५५, (२७४११.५, १३-१४४३३-३६). गोराबादल चौपाई, आ. हेमरत्नसूरि, मागु., पद्य, वि. १६४७, आदिः सुख सम्पत्ति दायक; अंतिः वरमाला ले लखमी वरेइ. ५४४२. पाक्षिकसूत्रसङ्ग्रह, नवस्मरण व दण्डकप्रकरण, पूर्ण, वि. १८५६, श्रेष्ठ, पृ. ७१-२(३५,६०)=६९, पे. ९, जैदेना., ले. मु. नैणसुख (गुरु उपा. खेमरत्न, चन्द्रगच्छ), प्र.ले.पु. मध्यम, (२७.५४११.५, ५४३५-४०). पे. १. पे. नाम. साधुपाक्षिकसूत्र, पृ. ०१अ-२७आ, संपूर्ण पाक्षिकसूत्र, प्रा., प+ग, आदिः तित्थङ्करे य तित्थे; अंतिः जेसिं सुयसायरे भत्ति. पे. २. पे. नाम. साधुपाक्षिकादिक्षामणासूत्र, पृ. २७आ-२९अ, संपूर्ण क्षामणकसूत्र, प्रा., गद्य, आदिः इच्छामि खमासमणो; अंतिः नित्थारग पारगा होह. पे. ३. पाक्षिकचौमासीसंवत्सरीतप आलापक, संबद्ध, प्रा.,मागु., गद्य, (पृ. २९अ-२९आ, संपूर्ण), आदिः (१) इच्छाकारेण सन्दिसह (२) अट्ठम भक्तेणं ३; अंतिः छ सहस्र सज्झाय. पे. ४. पे. नाम. श्राद्धप्रतिक्रमणसूत्र सङ्ग्रह, पृ. ३१अ-४९अ, पूर्ण श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र , संबद्ध, प्रा.,मागु., प+ग, आदि: नमो अरिहं० सव्वसाहूण; अंतिः वन्दामि जिणे चउवीसं., पे.वि. बीच का एक पत्र नहीं है. पे. ५.बृहत्शान्ति स्तोत्र-तपागच्छीय, सं., गद्य, (पृ. ४९आ-४३आ, संपूर्ण), आदिः भो भो भव्याः श्रृणुत; अंतिः सिवं भवन्तु स्वाहा. पे. ६. अजितशान्ति स्तव , आ. नन्दिषेणसूरि, प्रा., पद्य, (पृ. ४३आ-६१आ, पूर्ण), आदिः अजियं जिय सव्वभयं; अंतिः जिणवयणे आयरं कुणह., पे.वि. गा.४५. बीच का एक पत्र नहीं है. पे. ७. तिजयपहुत्त स्तोत्र, प्रा., पद्य, (पृ.६२-६३आ, संपूर्ण), आदिः तिजयपहुत्तपयासय अठ्ठ; अंतिः निच्चमच्चेह., पे.वि. गा.१४. पे. ८. नमिऊण स्तोत्र, आ. मानतुङ्गसूरि, प्रा., पद्य, (पृ. ६३आ-६६आ, संपूर्ण), आदिः नमिऊण पणयसुरगण; अंतिः नासइ तस्स दूरेण., पे.वि. गा.२४. पे. ९. दण्डक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, (पृ. ६६आ-७१, संपूर्ण), आदि: नमिउं चउवीस; अंतिः एसा विनत्ति अप्पहिआ.,पे.वि. गा.३९. ५४४३. स्तवनचौवीसी सह बालावबोध, प्रतिपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ६६, जैदेना., प्र.वि. त्रिपाठ, पू.वि. आदिजिन स्तवन से वासुपूज्यजिन तक हैं., (२७४११.५, ११-१३४४४-४८). स्तवनचौवीसी, गणि देवचन्द्र, मागु., पद्य, वि. १८वी, आदिः ऋषभ जिणिन्दसु; अंतिः For Private And Personal Use Only Page #596 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य भाग - १ www.kobatirth.org: स्तवन चौवीसी- बालावबोध, मागु, गद्य, आदि (१) श्रीआदिनाथ प्रमुख (२) तेम संसारी जीव देव अंतिः५४४४. साधुप्रतिक्रमणसूत्र, संपूर्ण, वि. १८वी श्रेष्ठ, पृ. ५. जैदेना. प्र. वि. सूत्र - २१ (२४४१२, ९४२८-३०). साधुवन्दित्तुसूत्र संबद्ध, प्रा., गद्य, आदिः करेमि भन्ते० चत्तारि; अंतिः वन्दामि जिणे चउवीसं. ५४४५. साधुप्रतिक्रमणसूत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, जैदेना., प्र. वि. सूत्र - २१, (२५X११.५, ७X२०-२२). साधुवन्दित्तुसूत्र संबद्ध, प्रा., गद्य, आदिः करेमि भन्ते० चत्तारि; अंतिः वन्दामि जिणे चउवीसं. ५४४६. आचारदिनकर, संपूर्ण, वि. १८७८, श्रेष्ठ, पृ. ४७, जैदेना., ले. स्थल. लखनउ, ले. पं. अमरविजय, प्र. वि. ३६ उदय, प्र.ले.श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्टं; ( ४८७) लेखनी पुस्तिका रमा, ( २४.५X११.५, १०-११४३८-४४). आचारदिनकर, आ. वर्द्धमानसूरि, सं., प+ग, आदिः तत्रादी गुरुगृह्य अंति प्रमाण कार्य उत्तमे. सम्यक्त्वकौमुदी कथानक, सं., गद्य, आदि श्रीवर्द्धमानमानम्य: अंतिः स्वर्गमश्नुते. सम्यक्त्वकौमुदी कथानक-टवार्थ मागु, गद्य, आदि श्रीवर्द्धमान अंतिः ते नर मोक्षसुख पाये. " (+) ५४४७. सम्यक्त्वकौमुदी सह टवार्थ (कथानक), संपूर्ण, वि. १८१०, श्रेष्ठ, पृ. ९१, जैदेना, ले. स्थल अगरवगरी, ले. गणि देवेन्द्रविजय, प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, प्र.ले. श्लो. (५०६) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा (५६०) जलात् रक्षेत् थलात् रक्षे (२६.५४११.५, ६-७०४३४-३७). 1 Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अनुयोगद्वारसूत्र आ. रक्षितसूरि, प्रा., प+ग, आदि: नाणं पञ्चविहं; अंतिः दुक्खक्खयट्ठाए. 1 ५४४९. बासठिमार्गणा-बन्ध स्वामी, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदेना. (२५.५४११, १४४२९). ६२ मार्गणा विचार, मागु., गद्य, आदिः ग्यानावरणी कर्मनी; अंतिः छइ १४ मो अबन्ध छै. ५४५०. अनुयोगद्वारसूत्र, संपूर्ण, वि. १६वी, श्रेष्ठ, पृ. ७५, जैदेना., प्र. वि. गा. १६०४: प्र. पु. मूल-ग्रं. २००० (२६११.५, ११४३९ ४५) ५४२ ५४५२.” अन्तगडदशाङ्गसूत्र, संपूर्ण, वि. १७९८, श्रेष्ठ, पृ. २२, जैदेना., ले. स्थल. भुजनगर, ले. मु. जसविजय (गुरु मु. जीवविजय, तपागच्छ), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. अध्याय - ९२, संशोधित टिप्पण युक्त विशेष पाठ-कुछ पत्र, (२६.५x१२, ८-१५X३६-४०). अन्तकृदशाङ्गसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी प्रा. गद्य, आदि: तेणं कालेणं० चम्पा०: अंतिः अयमट्ठे पण्णत्ते. ५४५३.” भावसङ्ग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ४१, पे. ६, जैदेना., ले. मु. भद्रकीर्त्ति, प्र. वि. दिगम्बरीय ग्रन्थ, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, त्रिपाठ, पदच्छेद सूचक लकीरें संधि सूचक चिह्न वचन विभक्ति संकेत, अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ, ( २८.५X११.५, ९४३८). • , , पे. १ आखवत्रिभङ्गी, मु. श्रुतमुनि, प्रा., पद्य वि. १४वी (पृ. १-८अ संपूर्ण ) आदि पणमिय सुरिन्दपूजियपय: अंतिः सो बालिन्दो चिरं जयऊ., पे. वि. गा.६२. पे. ३. उदयत्रिमङ्गी, मु. नेमिचन्द्र सिद्धान्त चक्रवर्ती प्रा. पद्य (पृ. १२आ-२१अ संपूर्ण), आदि: , " पञ्चणवदोणिअठ्ठावीस अंतिः च्चिय नेमिचंदेण, पे.वि. ३ त्रिभंगी, गा. ७३. पे. २. बन्धत्रिभङ्गी, मु. नेमिचन्दजिन, प्रा., पद्य, (पृ. ८आ-१२अ संपूर्ण) आदि णमिऊण नेमिचन्दं अंतिः बन्धसंतो अणन्तो य पे.वि. ३ त्रिभंगी, गा. ४२. पे. ४. सत्तात्रिभङ्गी, मु. नेमिचन्दजिन, प्रा., पद्य, (पृ. २१अ - २४आ, संपूर्ण), आदिः पञ्चणवदोणिअट्ठावीसं; अंतिः सिद्धि समाहिं च पे.वि. ३ त्रिभंगी, गा.३५. पे. ५. विशेषसत्तात्रिभङ्गी, मु. नेमिचन्दजिन प्रा., पद्य, (पृ. २५आ-२८आ, पूर्ण), आदि-: अंतिः साहियं सम्मं., पे. वि. गा. ४१. पृष्ठ २५अ प्रतिलेखक द्वारा नहीं लिखा है. गा.९ अपूर्ण तक नही है. For Private And Personal Use Only पे. ६. भावत्रिभङ्गी, मु. श्रुतमुनि, प्रा., पद्य, वि. १४वी (पृ. २८अ - ४१, संपूर्ण), आदिः खवियघणघाइकम्मे; अंतिः पुण्णा दुगुणपुण्णा, पे.वि. गा. ११७. गा. ४४ + ७३ = ११७. Page #597 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ५४३ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ५४५४. कर्मग्रन्थसत्तरी सह बालाबोध, संपूर्ण, वि. १७८४, श्रेष्ठ, प्र. ७४, जैदेना., ले.स्थल. खंभात, अन्य- आ. शिवचन्दसूरी(खरतरगच्छ), प्र.वि. मूल-गा.९३. प्रति.पुष्पिका अंतर्गत मूलसूत्र के कर्तारूप में तपागच्छीय देवेन्द्रसूरि लिखा है., (२६४१२, १२-१३४३८-४६). सप्ततिका कर्मग्रन्थ, प्रा., पद्य, आदिः सिद्धपएहिं महत्थं; अंतिः एगुणा होइ नउइओ. सप्ततिका-बालावबोध, मागु., गद्य, आदिः ए गाथाने विषै च्यार; अंतिः नेऊ गाथा होइ. ५४५५. सग्रहणीसूत्र, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २७, जैदेना.,प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-वचन विभक्ति संकेत, अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ, पू.वि. अन्त के पत्र नहीं हैं. गा.१७२ तक है।, (२७X११.५, ४-५४३८-४०). बृहत्सङ्ग्रहणी, आ. चन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदिः नमिउं अरिहन्ताइं; अंति:५४५६. विपाकसूत्र- एकादशाङ्ग, संपूर्ण, वि. १६वी, श्रेष्ठ, प्र. ४४, जैदेना., प्र.वि. अध्याय-२० अध्ययन, वचन विभक्ति संकेत, (२६४१०.५, ६-११४३६-६९). विपाकसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदिः तेणं कालेणं तेणं; अंतिः सेसं जहा आयारस्स. ५४५७. चन्दपन्नतिसूत्र, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ४३, जैदेना., प्र.वि. २० प्राभृत, पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न, पंचपाठ-प्रारंभिक पत्र, (२७.५४१२, १४४४५-४९). चन्द्रप्रज्ञप्ति, प्रा., पद्य, आदि: जयति णवरलिण कुवलय; अंतिः अविणीएसु दायव्वं. ५४५८." सूयगडाङ्गसूत्र सह टबार्थ- प्रथम श्रुतस्कन्ध, प्रतिअपूर्ण, वि. १७८१, श्रेष्ठ, पृ. ७५, जैदेना., प्र.वि. मूल प्रथमश्रुतस्कध., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-कुछ पत्र, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., (२७.५४११.५, ४-५४३८-४०). सूत्रकृताङ्गसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, (प्रतिपूर्ण), आदिः बुज्झिज्ज तिउट्टेज्ज; अंति: सूत्रकृताङ्गसूत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, (प्रतिपूर्ण), आदिः प्रणम्य महावीरं; अंति:५४५९.” सङ्ग्रहणीसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८२२, श्रेष्ठ, पृ. ७१, जैदेना., ले.स्थल. सुघदंती, ले. मु. मलुकचन्द (गुरु ऋ. आणन्दजस), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. मूल-गा.४००., टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२५.५४११.५, ४४३५-३९). बृहत्सङ्ग्रहणी, आ. चन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदिः नमिउं अरिहन्ताइं; अंतिः जा वीरजिण तित्थं. बृहत्सङ्ग्रहणी-टबार्थ, ऋ. वच्छराज, मागु., गद्य, आदिः (१) लेलिख्यते टबार्थोयं (२) नमिउ क० वांदीनइ; अंतिः (१)प्रवर्तइ तां लगी (२)प्रवर्ते तां लगी. ५४६०.” सङ्घपट्टक सह अवचूरि, पूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १२-१(१)=११, जैदेना., प्र.वि. मूल-श्लो.४०., संशोधित, पदच्छेद सूचक लकीरें, अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ, त्रिपाठ, पदच्छेद सूचक लकीरें-वचन विभक्ति संकेत, अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-कुछ पत्र, पू.वि. प्रारंभिक २ गाथाएँ अनुपलब्ध है., (२६४११.५, ४-५४३७-४५). सङ्घपट्टक, आ. जिनवल्लभसूरि, सं., पद्य, आदि:-; अंतिः पीत्थं कदOमहे. सङ्घपट्टक-अवचूरि, गणि साधुकीर्ति, सं., गद्य, वि. १६१९, आदि:-; अंतिः (१)रहस्यमिति काव्यार्थः (२)समस्तमुदायिनी भवतु. ५४६१." प्रश्नव्याकरणसूत्र सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ६५, जैदेना., प्र.वि. पंचपाठ, पदच्छेद सूचक लकीरें, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. चतुर्थद्वार संपूर्ण तक लिखा है., (२६४११, ५-८४३३-३८). प्रश्नव्याकरणसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदिः जम्बू इणमो अण्हयसंवर; अंतिः प्रश्नव्याकरणसूत्र-बालावबोध, आ. पार्श्वचन्द्रसूरि, मागु., गद्य, आदिः अहो जम्बू इणमो कहतां; अंति:५४६२. विद्यालय सह छाया, संपूर्ण, वि. १७३३, श्रेष्ठ, पृ. ७६, जैदेना., ले.स्थल. दधालियानगर, ले. पं. धीरविमल, प्र.वि. मूल-ग्रं. ३०००., त्रिपाठ, टिप्पण युक्त विशेष पाठ-कुछ पत्र, (२६x११, १३-१५४४२-४५). वज्जालग्गं, मु. जगवल्लभ, प्रा., पद्य, आदिः सव्वण्ण वयण पङ्कयणि; अंतिः लहइ सो पुरिसो. वज्जालग्ग-छाया, सं., गद्य, आदिः प्राकृतसुभाषितवल्या; अंतिः पुरुष इति भद्रम्. For Private And Personal Use Only Page #598 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य भाग - १ ५४४ ५४६४. ज्योतिषसार सङ्ग्रह सह टिप्पणक, संपूर्ण, वि. १७६२, श्रेष्ठ, पृ. ४८, जैदेना., ले. मु. हर्षविजय (गुरु गणि देवविजय), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. मूल-श्लो.३२५., (२५.५४११.५, १५-१७४३८-४२). ज्योतिषसार, आ. नरचन्द्रसूरि, सं., पद्य, आदिः श्रीअर्हन्तजिनं; अंतिः चंद्राख्यः सुधीप्रवर. ज्योतिषसार-यन्त्रकोद्धार टिप्पण, आ. सागरचन्द्रसूरि, सं., गद्य, आदिः (१) सरस्वतीं नमस्कृत्य (२) प्रणम्य केवलज्योति; अंतिः आरोहण मुहूर्त्तम्. ५४६५. वीसस्थानक पूजा, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १२, जैदेना., प्र.वि. ढाळ-२० ढाल, (२६४११.५, ६-९४२४-२६). २० स्थानक पूजा, आ. जिनहर्षसूरि, मागु., पद्य, वि. १८७८, आदिः सुख सम्पति दायक सदा; अंतिः (१)तणी रचना करी (२)वरणी किण विध जाय रे. ५४६६. यतिधर्म सज्झाय (दशविध), संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, जैदेना., प्र.वि. गा.१३६, ढाळ-११; प्र.पु. मूल-गा.२३५, (२५.५४११.५, १४-१५४४०-४३). १० विधयतिधर्म सज्झाय, आ. ज्ञानविमलसूरि, मागु., पद्य, आदिः सुकृत लत्ता वन; अंतिः सुजस लीला अनुभवइ. ५४६७." नवतत्त्व प्रकरण सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २१, जैदेना., प्र.वि. मूल-गा.५५., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-कुछ पत्र, (२५४११, ११-१२४३६-३८). नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदिः जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंतिः बोहिय इक्कणिक्काय. नवतत्त्व प्रकरण-बालावबोध', मागु., गद्य, आदिः जीवतत्व प्राण चैतना; अंतिः सिद्ध ऋषभदेव वारे. ५४६८. जम्बूअध्ययन सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७८७, श्रेष्ठ, पृ. ४४, जैदेना., ले.स्थल. सादडी, ले. ऋ. लालचन्द, प्र.वि. मूल २१उद्देश., (२४.५४११, ७X३८-४१). जम्बूअध्ययन प्रकीर्णक, प्रा., गद्य, आदिः तेणं कालेणं० रायगिहे; अंतिः से आराहगा भणिया. जम्बूअध्ययन प्रकीर्णक-टबार्थ, उपा. पद्मसुन्दर, मागु., गद्य, आदिः ते कालनि विषइ ते; अंतिः (१)आराधक जीव कह्या (२)एकविसमो उद्देशो. ५४६९. मानतुङ्गमानवती रास, संपूर्ण, वि. १८६१, श्रेष्ठ, पृ. ४६, जैदेना., ले.स्थल. सादडीनगर, ले. मु. बुद्धिसागर (गुरु गणि चतुरसागर), प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र.वि. गा.१०१५, ढाळ-४७; प्र.पु. मूल-ढाल-४७, (२५.५४११, १३-१६४३६-४२). मानतुङ्गमानवती रास, मु. मोहनविजय, मागु., पद्य, वि. १७६०, आदिः ऋषभजिणन्द पदाम्बुजे; अंतिः घरघर मङ्गलमाल हे. ५४७१. भुवनभानुकेवली चरित्र का बालावबोध, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ७३, जैदेना., पठ. ऋ. जयमल, (२६४१०.५, ___ १३४५०-५२). भुवनभानुकेवली चरित्र-बालावबोध, मु. हरिकलश, मागु., गद्य, आदिः सिरिवीरं नमीअ जिणं; अंतिः ज्ञानवृद्धि हुई. ५४७३. कर्मविपाक सह स्वोपज्ञ टीका, अपूर्ण, वि. १६वी, श्रेष्ठ, पृ. ३४, जैदेना., पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. गाथा ४९ तक है., (२६.५४११, १५४५०-५४). कर्मविपाक नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, आदिः सिरिवीरजिणं वन्दिय; अंति: कर्मविपाक नव्य कर्मग्रन्थ-स्वोपज्ञ सुबोधा टीका, आ. देवेन्द्रसूरि, सं., गद्य, आदिः दिनेशवद्ध्यानवरप्रता; अंति:५४७४. सूयगडाङ्गसूत्र सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ४५, जैदेना., प्र.वि. पंचपाठ, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्रथम श्रुतस्कंध अध्ययन-१३ गा.४ अपूर्ण तक है., (२६.५४११, ७-९४३०-३३). सूत्रकृताङ्गसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदिः बुज्झिज्ज तिउट्टेज्ज; अंति: सूत्रकृताङ्गसूत्र-बालावबोध, मागु., गद्य, आदिः बुज्झ० ज्ञान छकायनु; अंति:५४७६. शत्रुञ्जयउद्धार, संपूर्ण, वि. १८६३, मध्यम, पृ. ६, जैदेना., ले. मु. भावविजय (गुरु पं. गङ्गविजय), प्र.वि. गा.१२०, ढाळ-१२, (२४.५४११.५, १५-१६४३०-३४). For Private And Personal Use Only Page #599 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ५४५ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची शत्रुजयतीर्थउद्धार रास, मु. नयसुन्दर, मागु., पद्य, वि. १६३८, आदिः विमल गिरिवर विमल; अंतिः दरिशन जयकरो. ५४७७. उपसर्गहर स्तोत्र सह टीका व स्तोत्रोपरि कथा, संपूर्ण, वि. १८६६, श्रेष्ठ, पृ. ३२-१(१५)=३१, पे. २, जैदेना., प्र.वि. सर्वग्रं. १०७५.,प्र.ले.श्लो. (५०६) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा ; (४६९) भग्न पृष्टि कटी ग्रीवा, (२६.५४११.५, १२-१३४३९ पे. १. पे. नाम. उपसर्गहरस्तोत्र की बृहत् टीका, पृ. ०१आ-२९आ उवसग्गहर स्तोत्र-गाथा ०५ की प्रियङ्करनृप कथा, मु. जिनसूर मुनि, सं.,प्रा., गद्य, वि. १६वी, आदिः वंशाब्जश्रीकरोहंसो; अंतिः द्वितीयस्मरणम्. पे. २. पे. नाम. उवसग्गहर स्तोत्र-गाथा ०५ सह लघुटीका, पृ. ३०अ-३२आ उवसग्गहर स्तोत्र-गाथा ०५, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., पद्य, आदिः उवसग्गहरं पासं पास; अंतिः भवे पास जिणचन्द. उवसग्गहर स्तोत्र-गाथा ०५ की लघुटीका, सं., गद्य, आदिः अहं पार्श्व; अंतिः द्वितीयं स्मरणम्., पे.वि. मूल-गा.५. ५४७८. दण्डक प्रकरण सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, जैदेना., प्र.वि. मूल-गा.३९., (२६४११, ४४३०-३३). दण्डक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, आदिः नमिउं चउवीस; अंतिः एसा विनत्ति अप्पहिआ. दण्डक प्रकरण-टबार्थ, राज., गद्य, आदिः नमिउं कहितां नमस्कार; अंतिः हितकारी पणइ जाणीनइ. ५४७९." कल्पसूत्र वाचना २ का बालावबोध, प्रतिपूर्ण, वि. १८७९, श्रेष्ठ, पृ. १९, जैदेना., ले.स्थल. नागपुर, ले. पं. मतिमन्दिर, प्र.वि. प्रतिकात्मक सूत्रपाठ है., दशा वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है-अल्प, (२४४१०.५, १३४४३-४६). कल्पसूत्र-बालावबोध', मागु.,राज., गद्य, आदिः- अंति:५४८०. दशवैकालिकसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १७८०, श्रेष्ठ, पृ. ४८-४३(१ से ४३)=५, जैदेना., ले.स्थल. डेहरनगर, प्र.वि. मूल-१०अध्ययनरचूलिका., पू.वि. अध्ययन १ से १० तक नहीं हैं. अन्त के पाञ्च पत्र हैं., (२६.५४१०.५, १८४४४ ७०). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यम्भवसूरि, प्रा., पद्य, वि. पू.४, आदि:-; अंतिः (१)मुच्चइ त्ति बेमि (२)आलणा सो. दशवैकालिकसूत्र-टबार्थ', मागु., गद्य, आदि:-; अंतिः एहवो नाम शास्त्ररो. ५४८२. समयसार नाटक, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २७, जैदेना., पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. गा.३०१ तक., (२५.५४११.५, १३४४२-५१). समयसार नाटक-पद्यानुवाद, श्रा. बनारसीदास, प्राहिं., पद्य, वि. १६९३, आदिः करम भरम जग तिमिर; अंति:५४८३. शालीभद्र चौपाई, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १५-७(१ से ६,८)=८, जैदेना., पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं. ढाल-६ गा.४ से ढाल-१६ दुहा-२ तक है., (२६४११, १०४३१-३६). शालिभद्रधन्ना चौपाई, आ. जिनसिंहसूरि, मागु., पद्य, वि. १६७८, आदि:-: अंति:५४८४. रत्नचूड चौपाई, संपूर्ण, वि. १७७१, श्रेष्ठ, पृ. २५, जैदेना., ले.स्थल. राजनगर, प्र.वि. गा.३४४, (२५.५४११, १०४३० ३३). रत्नचूड चौपाई, मु. रत्नसिंहसूरि-शिष्य, मागु., पद्य, वि. १५०९, आदि: सरसति देवी पाय नमी; अंतिः वाधइ बहू घरि रिद्धि. ५४८६. अञ्जनासती रास, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १८, जैदेना., प्र.वि. गा.१६५, ढाळ-१७, (२६४११, १३-१४४३५-३८). अंजनासुन्दरी रास, मागु., पद्य, आदिः शील समो वड को नही; अंतिः भार्या जगतनी माय तो. ५४८७. मेरुत्रयोदशी व्याख्यान, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, जैदेना., (२५४१०.५, ११४३४-३५). For Private And Personal Use Only Page #600 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य भाग - १ ५४६ मेरुत्रयोदशी व्याख्यान, पाठक क्षमाकल्याण, सं., गद्य, वि. १८६०, आदि: मारुदेवं जिनं नत्वा; अंतिः शिष्यैरामोदतस्त्वदः. ५४८९. प्रतिक्रमणसूत्र, स्तोत्र, स्तुति, व प्रकरण आदि सङ्ग्रह, अपूर्ण, वि. १८१३, श्रेष्ठ, पृ. ५७-१३(१ से १३)=४४, पे. ६३, जैदेना., ले.स्थल. योधपुर, (२४.५४१०.५, १३४३५-४०). पे. १. जयतिहुअण स्तोत्र, आ. अभयदेवसूरि , प्रा., पद्य, (पृ. १४आ-१७अ, संपूर्ण), आदिः जयतिहुयणवर कप्परुक्ख; अंतिः विण्णवइ अणिन्दिय., पे.वि. गा.३०, ग्रं.२५४. पे. २. सप्तस्मरण-खरतरगच्छीय, मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा., पद्य, (पृ. १७अ-२४आ, संपूर्ण), आदिः अजिअं जिअ सव्वभयं; अंतिः भवे पास जिणचन्द., पे.वि. ७ स्मरण. पे. ३. लघुशान्ति, आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, (पृ. २४आ-२५अ, संपूर्ण), आदिः शान्तिं शान्ति; अंतिः सूरिः श्रीमानदेवश्च., पे.वि. श्लो.१७. पे. ४. नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, (पृ. २५अ-२७अ, संपूर्ण), आदि: जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंतिः बोहिय इक्कणिक्काय., पे.वि. गा.४९. पे. ५. जीवविचार प्रकरण, आ. शान्तिसूरि, प्रा., पद्य, (पृ. २७अ-२९आ, संपूर्ण), आदिः भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंतिः रुद्दाओ सुयसमुद्दाओ., पे.वि. गा.५१. पे. ६. दण्डक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, (पृ. २५अ-३१अ, संपूर्ण), आदिः नमिउं चउवीस; अंतिः एसा विनत्ति अप्पहिआ., पे.वि. गा.३८. पे. ७. महावीरजिन स्तवन, आ. जिनवल्लभसूरि, सं., पद्य, (पृ. ३१अ-३३अ, संपूर्ण), आदिः भावारिवारणनिवारणदारु; अंतिः दृष्टिं दयालो मयि., पे.वि. श्लो.३०. पे. ८. दुरियरयसमीर स्तोत्र, आ. जिनवल्लभसूरि, प्रा., पद्य, (पृ. ३३अ-३५अ, संपूर्ण), आदिः दुरिअरयसमीरं मोह; अंतिः सया पायप्पणामो तुह., पे.वि. गा.४४. पे. ९. भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुङ्गसूरि, सं., पद्य, (पृ. ३५अ-३७आ, संपूर्ण), आदिः भक्तामरप्रणतमौलिमणि; अंतिः समुपैति लक्ष्मी., पे.वि. श्लो.४४. पे. १०. कल्याणमन्दिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकर, सं., पद्य, (पृ. ३७आ-४०अ, संपूर्ण), आदि: कल्याणमन्दिरमुदारमवद; अंतिः मोक्षं प्रपद्यन्ते., पे.वि. श्लो.४४. पे. ११. तिजयपहुत्त स्तोत्र, प्रा., पद्य, (पृ. ४०अ-४०आ, संपूर्ण), आदिः तिजयपहुत्तपयासय अठ्ठ; अंतिः निच्चमच्चेह., पे.वि. गा.१४. पे. १२. पार्श्वजिन स्तोत्र-नवग्रहगर्भित, आ. जिनप्रभसूरि, प्रा., पद्य, (पृ. ४०आ-४१अ, संपूर्ण), आदिः दोसावहारदक्खो नालिया; अंति: गहा न पीडन्ति., पे.वि. गा.१०. पे. १३.बृहस्पति स्तोत्र, सं., पद्य, (पृ. ४१अ-४१आ, संपूर्ण), आदिः ॐ बृहस्पतिः; अंति: सुप्रति सुप्रजायते., पे.वि. श्लो .५. पे. १४. शनिश्चर स्तोत्र, सं., पद्य, (पृ. ४१अ-४१अ, संपूर्ण), आदिः यत्पुरा राज्यभ्रष्टा; अंतिः न भवन्ति कदाचन., पे.वि. श्लो.१०. पे. १५. पार्श्वजिन स्तुति, सं., पद्य, (पृ. ४१आ-४२अ, संपूर्ण), आदिः हर्षनतासुरनिर्जरलोकं; अंतिः शस्त निजाघः., पे.वि. श्लो .४. पे. १६. पार्श्वजिन स्तुति, सं., पद्य, (पृ. ४२अ-४२अ, संपूर्ण), आदिः श्रीसर्वज्ञं ज्योति; अंतिः वृद्धिं वैदुष्यम्., पे.वि. श्लो .४. पे. १७. महावीरजिन स्तुति, सं., पद्य, (पृ. ४२अ-४२अ, संपूर्ण), आदिः वीरं देवं नित्यं; अंतिः देवी दद्यात्सौख्यम्., पे.वि. श्लो .१. For Private And Personal Use Only Page #601 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ५४७ www.kobatirth.org: कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची पे. १८. साधारणजिन स्तुति, सं., पद्य, (पृ. ४२अ-४२अ संपूर्ण) आदि श्रीतीर्थराजपदपद्म: अंतिः दाता दधतां शिवं व., पे.वि. श्लो. १. · पे. १९. साधारणजिन स्तुति, सं., पद्य, (पृ. ४२अ - ४२आ, संपूर्ण), आदि: अविरलकमलगवलमुक्ताफल; अंतिः देवी श्रुतोच्चयम्., पे.वि. श्लो. ४. . पे. २०. शत्रुंजयतीर्थ स्तुति, आ. नन्दसूरि मागु, पद्य, (पृ. ४२-४३-अ, संपूर्ण), आदि: श्रीशत्रुञ्जमण्डण अंतिः तुम्ह पाय सेवता., पे.वि. गा. ४. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पे. २१. विहरमान २० जिन स्तुति, मागु., पद्य, (पृ. ४३अ - ४३अ, संपूर्ण ), आदि: पञ्चविदेह विषय; अंतिः जण मनवाञ्छित सारै पे.वि. गा.४. पे. २२. साधारणजिन स्तुति, मु. कवियण, मागु., पद्य, (पृ. ४३ - ४३आ, संपूर्ण), आदिः चम्पक केतकी पाडल; अंतिः जो तुसे देवी अम्बाई, पे.वि. गा.४. पे. २३. ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, सं., पद्य, (पृ. ४३ आ - ४४अ, संपूर्ण), आदिः पञ्चानन्तक सुप्रपञ्च; अंतिः सिद्धायिका त्रायिका, पे.वि. श्लो. ४. पे. २४. पंचतीर्थ स्तुति, सं., पद्य, (पृ. ४४अ-४४अ संपूर्ण), आदि: श्रीशत्रुञ्जयमुख्य अंतिः तेषां तु भद्रङ्कराः, पे. वि. श्लो. ४. पे. २५. बीजतिथि स्तुति, प्रा., पद्य, (पृ. ४४अ - ४४आ, संपूर्ण ), आदिः महीमण्डणं; अंतिः देहि मे सुद्धनाणं., पे.वि. गा. ४. पे. २६. आदिजिन स्तुति, सं., पद्य, (पृ. ४४-४४आ, संपूर्ण), आदिः युगादिपुरुषेन्द्राय; अंतिः कूष्माण्डी कमलेक्षणा., पे.वि. श्लो. ४. पे. २७. आदिजिन स्तुति-अर्बुदगिरिमण्डन, अप, पद्य, (पृ. ४४आ-४४आ, संपूर्ण), आदि: वरमुक्तियहार सुतार; अंति सुहाणि कुणे सुसया, पे.वि.गा. ४. पे. २८. पार्श्वजिन स्तुति - जेसलमेर, सं., पद्य, (पृ. ४४-४५अ, संपूर्ण), आदिः शमदमोत्तमवस्तुमहापणं; अंतिः सा जिनशासनदेवता, पे.वि. श्लो. ४. " पे. २९. महावीरजिन स्तुति, सं., पद्य, (पृ. ४५अ - ४५अ, संपूर्ण), आदिः यदंहिनमनादेव देहिन: अंतिः नित्यं मम मङ्गलेभ्या, पे.वि. श्लो. ४. पे. ३०. २४ दण्डक स्तुति, आ. जिनेश्वरसूरि, सं., पद्य, (पृ. ४५अ - ४६अ, संपूर्ण), आदि: रुचितरुचिमहामणि; अंतिः दद्यादलं भारती भारती. पे.वि. श्लो. ४. पे. ३१. पार्श्वजिन स्तुति, आ. जिनकुशलसूरि, सं., पद्य, (पृ. ४६अ - ४६अ, संपूर्ण), आदिः दें दें कि धप; अंतिः दिशतु शासनदेवता. पे. वि. श्लो.४. पे. ३२. महावीरजिन स्तुति, सं., पद्य, (पृ. ४६अ - ४६आ, संपूर्ण) आदि पापा धाधानि धाधा: अंतिः पात्वसी वर्द्धमानः, पे.वि. श्लो. ४. पे. ३३. महावीरजिन स्तुति, मागु., पद्य, (पृ. ४६-४७अ, संपूर्ण), आदिः बालपणे डाबो पाय; अंतिः काज चढइ प्रमाणइ., पे.वि. गा.४. पे. ३४. सरस्वतीदेवी एकविंशतिनाम स्तुति, सं., पद्य, (पृ. ४७अ-४७अ, संपूर्ण), आदिः वाग्देवी वरदायिका; अंतिः लक्ष्मी च चन्द्रानना, पे.वि. श्लो. १. पे. ३५. सन्थारापोरसीसूत्र, प्रा., पद्य, (पृ. ४७अ - ४८अ, संपूर्ण), आदिः निसिही निसिही निसीहि; अंतिः वन्दामि जिणे चउवीसं., पे.वि. गा.१४. " पे. ३६. पौषध सझाय खरतरगच्छीय, प्रा. पद्य (पृ. ४८अ ४९अ, संपूर्ण) आदि जगचूडामणिभूओ उसभो; अंतिः उप्पन्नं केवलं नाणं., पे.वि. गा. ३३. For Private And Personal Use Only , Page #602 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य भाग - १ ५४८ पे. ३७. आदिजिन स्तुति, सं., पद्य, (पृ. ४९अ-४९आ, संपूर्ण), आदि: जय जय जगदानन्दन जय; अंतिः भगवते ऋषभाय ___ नमोनमः., पे.वि. श्लो.५.. पे. ३८. शान्तिजिन स्तुति, सं., पद्य, (पृ. ४९आ-४९आ, संपूर्ण), आदिः किं कल्पद्रमसेवया; अंतिः सेव्यतां शान्तिरेकशः., पे.वि. श्लो.५. पे. ३९. नेमिजिन स्तोत्र, सं., पद्य, (पृ. ४९आ-५०अ, संपूर्ण), आदि: परमान्नं क्षुधार्तेन; अंतिः कथं धन्यतमो न गण्यः., पे.वि. श्लो.५. पे. ४०. पार्श्वजिन स्तुति, सं., पद्य, (पृ. ५०अ-५०अ, संपूर्ण), आदिः अभिनवमङ्गलमालाकरणं; अंतिः बासुरा पुण्य भासुरा., पे.वि. श्लो.५. पे. ४१. महावीरजिन स्तवन, सं., पद्य, (पृ. ५०अ-५०आ, संपूर्ण), आदिः कनकाचलमिव धीरं; अंतिः बोधिलाभाय सन्तु., पे.वि. श्लो.६. पे. ४२. आदिजिन स्तुति, सं., पद्य, (पृ. ५०आ-५०आ, संपूर्ण), आदिः श्रियं दिशतु वो देवः; अंतिः ऋषभं जिनोत्तमम्., पे.वि. श्लो.१. पे. ४३. शान्तिजिन स्तुति, सं., पद्य, (पृ. ५०आ-५०आ, संपूर्ण), आदिः शान्तिः शान्तिकरः; अंतिः ग्रहणं जयति शान्तेः., पे.वि. श्लो.२. पे. ४४. नेमिजिन स्तुति, सं., पद्य, (पृ. ५०आ-५०आ, संपूर्ण), आदि: नेमि विशाल नयनो; अंति: नेमये रिष्ट नेमये., पे.वि. श्लो.३. पे. ४५. पार्श्वजिन स्तुति, सं., पद्य, (पृ. ५०आ-५०आ, संपूर्ण), आदिः पार्श्वः पातु नतांगि; अंतिः प्रयच्छ प्रभो., पे.वि. श्लो.१. पे. ४६. महावीरजिन स्तुति, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, (पृ. ५०आ-५१अ, संपूर्ण), आदिः वीरः सर्वसुरासुरेन्द; अंतिः श्रीवीर भद्रं दिश., पे.वि. श्लो.१. पे. ४७. शान्तिजिन स्तुति, सं., पद्य, (पृ. ५१अ-५१अ, संपूर्ण), आदिः अं ह्री कूर्म युगं; अंतिः शकुनानी० जिनम्., पे.वि. श्लो .१. पे. ४८. प्रार्थना स्तुति, सं., पद्य, (पृ. ५१अ-५१अ, संपूर्ण), आदिः दर्शनं देवदेवस्य; अंतिः कुर्वतु वो मङ्गलम्., पे.वि. श्लो.६. पे. ४९. पार्श्वजिन स्तवन-स्तम्भन, सं., पद्य, (पृ. ५१अ-५१आ, संपूर्ण), आदिः श्रीसेढीतटिनीतटे; अंतिः सदा ध्यायामि ____ मानसे., पे.वि. श्लो.३. पे. ५०. पार्श्वजिन स्तुति, प्रा., पद्य, (पृ. ५१आ-५१आ, संपूर्ण), आदिः चउक्कसायपडि; अंतिः पासु पयच्छउ वञ्छिउ., पे.वि. गा.२. पे. ५१. साधारणजिन स्तुति, सं., पद्य, (पृ. ५१आ-५१आ, संपूर्ण), आदिः केवलचन्द्रस्य; अंतिः भाजो हि जिनाभिषेकः., पे.वि. श्लो.४. पे. ५२. साधारणजिन स्तुति, सं., पद्य, (पृ. ५१आ-५२अ, संपूर्ण), आदि: नमोदुर्वाररागादिवैरि; अंति: जय भयधनवनदहन., पे.वि. श्लो.४. पे. ५३. आदिजिन नमस्कार, सं., पद्य, (पृ. ५२अ-५२अ, संपूर्ण), आदिः वन्दे देवाधिदेवं तं; अंति: नाथ मम भूया भवे भवे., पे.वि. श्लो.३. पे. ५४. शान्तिजिन स्तोत्र, सं., पद्य, (पृ. ५२अ-५२अ, संपूर्ण), आदिः शान्तये शान्तिकामाय; अंतिः पापशान्तिर्भवेदपि., पे.वि. श्लो.३. पे. ५५. पार्श्वजिन स्तोत्र, अप., पद्य, (पृ. ५२अ-५२अ, संपूर्ण), आदिः अमरतरु कामधेनु: अंतिः सिद्धिं कुणसु पहुपास., पे.वि. अध्याय १ से ३ गाथा ५+११+१५ गा.३. For Private And Personal Use Only Page #603 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org: Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५४९ पे. ५६. पे. नाम. दशवैकालिकसूत्र का हिस्सा प्रथम अध्ययन, पृ. ५२अ - ५३आ, संपूर्ण दशवैकालिकसूत्र - हिस्सा प्रथम अध्ययन, आ. शय्यम्भवसूरि प्रा. पद्य, आदि धम्मो मङ्गलमुक्किट्ठ; अंतिः , " साहु तिबेमि., पे.वि. गा. ५. " पे. ५७. महावीरजिन वृद्धस्तवन, आ. अभयसूरि, प्रा. पद्य, (पृ. ५३आ-५४अ, संपूर्ण), आदि जय जासमणे भयवं अंति पढइ कहइ अभयसूरीहि., पे. वि. गा. २४. पे. ५८. पार्श्वजिन स्तोत्र, मु. जयसागर सं., पद्य, (पृ. ५४अ- ५४आ, संपूर्ण), आदि धर्ममहारथसारथिसारं अंतिः यूयमखण्डम्., पे.वि. श्लो. ५. पे. ५९. पार्श्वजिन स्तवन- करटक, सं., पद्य, (पृ. ५४-५५अ संपूर्ण), आदि आनन्दभंदकुमुदाकर अंतिः यदि मेरुधीरम्., पे.वि. श्लो. ५. पे. ६०. शारदाष्टक, आ. जिनप्रभसूरि, सं., पद्य, (पृ. ५५अ-५५अ, संपूर्ण ), आदिः ॐ नमस्त्रिदशवन्दित; अंतिः तेषां मधुरोज्वलागिरः, पे.वि. श्लो. ९. कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची पे. ६१. सरस्वतीदेवी स्तोत्र, मु. मलयकीर्तिविजय, सं., पद्य, (पृ. ५५अ-५५आ, संपूर्ण), आदि जलधिनन्दनचन्दनः अंतिः कल्पलताफलमस्तुते., पे.वि. श्लो. ९. पे. ६२. सरस्वतीदेवी स्तोत्र सं., पद्य, (पृ. ५५आ-५६अ, संपूर्ण) आदि राजते श्रीमतीदेवता अंति मेधामास्वयति विभवेन., पे. वि. श्लो. ९. पे. ६३. पार्श्वजिन स्तोत्र - चिन्तामणि, सं., पद्य, (पृ. ५६-५७अ, संपूर्ण), आदिः किं कर्पूरमयं सुधारस; अंतिः बोधिबीजं ददातु पं.वि. श्लो. ११. ५४९०. प्रतिक्रमणसूत्र, स्तुति, स्तोत्र, प्रकरण व आदि सङ्ग्रह, संपूर्ण, वि. १८७१, श्रेष्ठ, पृ. ६०+१ (४३) = ६१, पे. ७५, जैदेना., ले. स्थल. मिरजापुर, ( २६ ११, ११४४३-५०). पे. १. श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र - खरतरगच्छीय, संबद्ध, प्रा. सं., मागु., प+ग, (पृ. १अ - १४अ), आदि: णमो अरिहन्ताणं; अंतिः (१) संघस्स समुनइ निमित्त (२) वन्दामि जिणे चउवीसं. पे. २. पे. नाम. दशपच्चक्खाण विचार, पृ. १४-१५आ प्रत्याख्यानसूत्र, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदिः उग्गए सूरे नमुक्कार; अंतिः विचार शास्त्र मा छे. पे. ३. पे. नाम. सीमन्धरस्वामि स्तुति, पृ. १५-१६ अ बीजतिथि स्तुति, प्रा., पद्य, आदिः महीमण्डणं; अंतिः देहि मे सुद्धनाणं. पे. ४. ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, सं., पद्य, (पृ. १६अ - १६अ ), आदि: पञ्चानन्तक सुप्रपञ्च: अंतिः सिद्धायिका त्रायिका, पे.वि. श्लो. ४. पे. ५. विहरमान २० जिन स्तुति, मागु., पद्य, (पृ. १६अ - १६आ), आदि: पञ्चविदेह विषय: अंतिः जण मनवञ्छित सारै ., पे.वि. गा. ४. पे. ६. पार्श्वजिन स्तुति- जेसलमेर, सं., पद्य, (पृ. १६आ - १६आ) आदि शमदमोत्तमवस्तुमहापणं अंतिः सा जिनशासनदेवता., पे.वि. श्लो. ४. पे. ७. पार्श्वजिन स्तुति, सं., पद्य, (पृ. १६आ - १६आ), आदि: श्रीसर्वज्ञं ज्योति; अंतिः वृद्धिं वैदुष्यम्., पे.वि. श्लो. ४. पे. ८. पार्श्वजिन स्तुति, सं., पद्य, (पृ. १६आ-१७अ ), आदि: हर्षनतासुरनिर्जरलोकं अंतिः शस्त निजाघ, पे.वि. श्लो.४. पे ९ महावीरजिन स्तुति, सं., पद्य, (पृ. १७अ १७अ) आदि यदंहिनमनादेव देहिन: अंतिः नित्यं मम मङ्गलेभ्यः... पे.वि. श्लो४. For Private And Personal Use Only पे. १०. महावीरजिन स्तुति, मागु, पद्य, (पृ. १७-१७आ), आदि बालपणे डाबो पाय अंतिः मेले मुक्ति साथ.. पे.वि. गा. ४. Page #604 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org: Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य भाग १ ५५० पे. ११. साधारणजिन स्तुति, सं., पद्य, (पृ. १७आ-१७आ), आदि अविरलकमलगवलमुक्ताफल; अंतिः देवी श्रुतोच्चयम्.. पे.वि. श्लो.४. पे. १२. आदिजिन स्तुति-अर्बुदगिरिमण्डन, अप., पद्य, (पृ. १७आ - १८अ ), आदिः वरमुक्तियहार सुतार; अंति: सुहाणि कुणे सुसया., पे.वि. गा. ४. पे. १३. २४ जिन स्तुति, अप., पद्य, (पृ. १८अ - १८अ ), आदि: भरहेसर कारियदेवहरे; अंतिः विगणंतु अणंतदहंसगुणा., पे.वि. गा.२. पे. १४. पे नाम वीरजिन स्तुति, पृ. १८अ १८अ महावीरजिन स्तुति, सं., पद्य, आदिः वीरं देवं नित्यं; अंतिः देवी दद्यात्सौख्यम्., पे.वि. श्लो. १. पे. १५. अष्टमीतिथि स्तुति, आ. जिनसुखसूरि, मागु., पद्य, (पृ. १८अ - १८अ ), आदिः चोवीसे जिनवर प्रणमुं; अंतिः जीवित जनम प्रमाण., पे.वि. गा. ४. पे. १६. अष्टमीतिथि स्तुति, अप., पद्य, (पृ. १८अ - १८आ), आदि: महामङ्गलं अष्ट सोहै; अंतिः विहसन्ति कल्याणदाता, पे.वि. गा.४. पे. १७. अष्टमीतिथि स्तुति, मागु., पद्य, (पृ. १८ आ - १८आ), आदिः अष्टमी अष्ट परमाद; अंतिः तस विघन दूरे हरे., पे.वि. गा. ४. पे. १८. पे नाम मौनेकादशी स्तुति, पृ. १८-१९अ मौनएकादशीपर्व स्तुति, सं., पद्य, आदि: अरस्य प्रवज्या अंतिः विपदः पञ्चकमदा पे. वि श्लो. ४. पे. १९. पे. नाम. मौनैकादशी स्तुति, पृ. १९अ - १९अ " मीनएकादशीपर्व स्तुति, सं., पद्य, आदि दीक्षा श्रीअरनाथकस्य अंतिः ज्ञानस्य लाभं सदा पे. वि. श्लो. ४. पे. २०. पे. नाम. चतुर्विंशतिजिन स्तुति, पृ. १९-१९आ नेमिजिन स्तुति, आ. जिनलाभसूरि, मागु., पद्य, आदिः गिरनार सिहरि पर; अंतिः आस फले सुजगीस., पे.वि. गा. ४. पे. २१. पे. नाम. नेमिनाथ स्तुति, पृ. १९आ-२०अ साधारणजिन स्तुति, मु. कवियण, मागु., पद्य, आदिः चम्पक केतकी पाडल; अंतिः जो तुंसे देवी अम्बाई., पे.वि. गा.४. पे. २२. पे. नाम. पार्श्व स्तुति, पृ. २०अ २०अ पार्श्वजिन स्तुति, आ. जिनभक्तिसूरि, मागु., पद्य, आदि: अश्वसेन नरेसर; अंतिः कलत्र बहु वित्त. पे. २३. पे. नाम. दण्डक स्तुति, पृ. २०अ २०आ २४ दण्डक स्तुति, आ. जिनेश्वरसूरि, सं., पद्य, आदि: रुचितरुचिमहामणि; अंतिः दद्यादलं भारती भारती., पे.वि. श्लो. ४. पे. २४. पे. नाम जिनकुशलसूरिकृत स्तुति, पृ. २१अ-२१अ पार्श्वजिन स्तुति, आ. जिनकुशलसूरि, सं., पद्य, आदिः दें दें कि धप; अंतिः दिशतु शासनदेवता., पे.वि. श्लो. ४. पे. २५. पे नाम, ऋषभजिन स्तुति, पृ. २१अ-२१आ आदिजिन स्तुति, सं., पद्य, आदिः ऋषभनाथ भनाथनिभानन; अंतिः तनुभातनु भारती, पे.वि. श्लो. ४. पे. २६. पे. नाम. जिन स्तुति, पृ. २१आ-२१आ आदिजिन स्तुति, सं., पद्य, आदिः युगादिपुरुषेन्द्राय; अंतिः कूष्माण्डी कमलेक्षणा., पे.वि. श्लो. ४. पे. २७. दीपावलीपर्व स्तुति, आ. जिनचन्द्रसूरि, सं., पद्य, (पृ. २१आ-२२अ ), आदिः पापायां पुरि; अंतिः शार्दूलविक्रीडितम् पं.वि. श्लो. ४. पे. २८. शान्तिजिन स्तुति, सं., पद्य, (पृ. २२अ - २२अ) आदि देवदेवाधिपैः सर्वतो अंतिः यच्छताद्वस्सदा., पं.वि. श्लो. ४. For Private And Personal Use Only Page #605 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ५५१ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची पे. २९. महावीरजिन स्तुति, आ. जिनलाभसूरि, मागु., पद्य, (पृ. २२अ-२२आ), आदिः मूरति मनमोहन कञ्चन; अंतिः इम श्रीजिनलाभसूरिन्द., पे.वि. गा.४. पे. ३०. पे. नाम. जिन स्तुति, पृ. २२आ-२२आ शत्रुजयतीर्थ स्तुति, सं., पद्य, आदिः श्रीशेत्रुञ्जयमुख्य; अंतिः ते सन्तु भद्रङ्कराः., पे.वि. श्लो.४. पे. ३१. पे. नाम. नेमिनाथजी स्तुति, पृ. २२आ-२३अ नेमिजिन स्तुति, मागु., पद्य, आदिः सुरअसुरवन्दितपाय; अंतिः करो ते अम्बा देवीए., पे.वि. गा.४. पे. ३२. सिद्धचक्र स्तुति, आ. जिनलाभसूरि, मागु., पद्य, (पृ. २३अ-२३आ), आदिः निरुपम सुखदायक जगनाय; अंतिः श्रीजिनलाभसूरिन्दाजी., पे.वि. गा.४. पे. ३३. पर्युषणपर्व स्तुति, आ. जिनलाभसूरि, मागु., पद्य, (पृ. २३आ-२३आ), आदिः वलि वलि हुं ध्यावू; अंतिः कहै जिनलाभसुरीन्द. पे. ३४. पे. नाम. पारणा स्तुति, पृ. २३आ-२३आ महावीरजिन पारणा स्तुति, सं., पद्य, आदिः यत्पारणासु प्रथमासु; अंतिः तु मम प्रमोदम्., पे.वि. श्लो.४. पे. ३५. पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तुति, पृ. २४अ-२४अ २४ जिन स्तुति, आ. जिनकुशलसूरि, सं., पद्य, आदिः नाभेयाजितवासुपूज्य; अंतिः प्रयच्छन्तु नः., पे.वि. श्लो.४. पे. ३६. पे. नाम. स्तम्भनकतीर्थराज श्रीपार्श्वनाथ स्तवन, पृ. २४अ-२६आ तिहअण स्तोत्र, आ. अभयदेवसरि , प्रा., पद्य, आदिः जयतियणवर कप्परुक्ख; अंतिः विण्णवइ अणिन्दिय पे. ३७. सप्तस्मरण-खरतरगच्छीय, मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा., पद्य, (पृ. २६आ-३३आ), आदिः अजिअं जिअ सव्वभयं; अंतिः भवे पास जिणचन्द., पे.वि. ७ स्मरण. सप्तमस्मरणरूप उवसग्गहरंस्तोत्र प्रतीकमात्र है. पे. ३८. दुरियरयसमीर स्तोत्र, आ. जिनवल्लभसूरि, प्रा., पद्य, (पृ. ३३आ-३५आ), आदिः दुरिअरयसमीरं मोह; अंतिः सया पायप्पणामो तुह., पे.वि. गा.४४. पे. ३९. महावीरजिन स्तवन, आ. जिनवल्लभसूरि, सं., पद्य, (पृ. ३५आ-३७अ), आदि: भावारिवारणनिवारणदारु; अंतिः दृष्टिं दयालो मयि., पे.वि. श्लो.३०. पे. ४०. कल्याणमन्दिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकर, सं., पद्य, (पृ. ३७अ-३९आ), आदिः कल्याणमन्दिरमुदारमवद; अंतिः मोक्षं प्रपद्यन्ते., पे.वि. श्लो.४४. पे. ४१. भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुङ्गसूरि, सं., पद्य, (पृ. ३९आ-४१अ), आदिः भक्तामरप्रणतमौलिमणि; अंतिः समुपैति लक्ष्मी., पे.वि. श्लो.४४. पे. ४२. पे. नाम. लघुशान्ति स्तवन, पृ. ४२आ-४३अ लघुशान्ति, आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, आदिः शान्तिं शान्ति; अंतिः सूरिः श्रीमानदेवश्च., पे.वि. श्लो.१९. पे. ४३. पे. नाम. सप्तत्युत्तरशतजिनचक्र स्तोत्र, पृ. ४३अ-४३आ तिजयपहुत्त स्तोत्र, प्रा., पद्य, आदिः तिजयपहुत्तपयासय अठ्ठ; अंतिः निच्चमच्चेह., पे.वि. गा.१४. पे. ४४.पे. नाम. नवग्रह स्तुतिगर्भित पार्श्वजिन स्तोत्र, पृ. ४३आ-४४अ पार्श्वजिन स्तोत्र-नवग्रहगर्भित, आ. जिनप्रभसूरि, प्रा., पद्य, आदिः दोसावहारदक्खो नालिया; अंति: गहा न पीडन्ति., पे.वि. गा.१०. पे. ४५. जीवविचार प्रकरण, आ. शान्तिसूरि, प्रा., पद्य, (पृ. ४३अ-४५अ), आदि: भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंतिः रुद्दाओ सुयसमुद्दाओ., पे.वि. गा.५१. पे. ४६. नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, (पृ. ४५अ-४७अ), आदिः जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंतिः बोहिय इक्कणिक्काय., पे.वि. गा.४९. पे. ४७. पे. नाम. चतुर्विंशतिदण्डक स्तवन, पृ. ४७अ-४८आ For Private And Personal Use Only Page #606 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य भाग - ५५२ दण्डक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, आदिः नमिउं चउवीस; अंतिः एसा विनत्ति अप्पहिआ., पे. वि. गा. ४०. पे. ४८. बृहत्शान्ति स्तोत्र - खरतरगच्छीय, सं. पद्य, (पृ. ४८आ-५०आ), आदि भो भो भव्या श्रृणुत अतिः पूज्यमाने जिनेश्वरे. www.kobatirth.org: १ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पे. ४९. आदिजिन नमस्कार, सं., पद्य, (पृ. ५०-५० आ ) आदि वन्दे देवाधिदेवं तं अंतिः नाथ मम भूया भवे भवे, पे.वि. श्लो. ३. पे. ५०. पार्श्वजिन स्तोत्र अप., पद्य, (पृ. ५०आ-५१) आदि अमरतरु कामधेनु अंतिः सिद्धिं कुणसु पहुपास., पे. वि. गा.३. पे. ५१ पार्श्वजिन स्तोत्र वाराणसी, प्रा. पद्य (पृ. ५१-५१अ) आदि चित्तबहुलाइ चविजं अंतिः विहुयसे बोहिलाभम्मि, पे.वि. गा. ३. पे. ५२. शान्तिजिन स्तुति, सं., पद्य, (पृ. ५१-५१अ ), आदि अं ही कुर्म युगं: अंतिः शकुनानी० [जिनम्, पे. वि. श्लो. १. पे. ५३. सरस्वतीदेवी स्तोत्र, सं., पद्य, (पृ. ५१अ - ५१आ), आदिः सर्वारिष्टप्रणाशाय; अंतिः नरपते सिध्यतु स ते., श्लो. ९. पे.वि. पे. ५४. सुपात्रदानफल स्तोत्र प्रा. पद्य (पृ. ५१आ-५१आ) आदि उसभस्सय पारणए अंतिः चवदेसे बावन्न.., पं.वि. , " . गा.६ . पे. ५५. तीर्थवन्दना चैत्यवन्दन, सं., पद्य, (पृ. ५१आ - ५२अ ), आदि: सद्भक्त्या देवलोके; अंतिः सततं चित्तमानन्दकारि., पे.चि. श्लो. १०. पे. ५६. पे नाम अष्टोत्तरशत पार्श्वनाथ स्तोत्र, पृ. ५२आ-५३अ पार्श्वजिन अष्टोत्तरशतनाम स्तोत्र, मु. क्षेमराज, सं., पद्य, आदि सिद्धक्षेत्र गोपाचल अंतिः सुप्रतीतम्, पे.वि. श्लो. १३ पे. ५७. पे नाम पार्श्वनाथ स्तोत्र, पृ. ५३१-५३आ पार्श्वजिन स्तोत्र, मु. कुशल, सं., पद्य, आदि ॐ ह्रीं श्रीं धरणो अंतिः नमामः कुशलं लभामः, पे.वि. श्लो. ५. पे. ५८. पे नाम प्रभाविक पार्श्वनाथ स्तोत्र, पृ. ५३आ-५३आ पार्श्वजिन स्तव-फलोधी, आ. जिनदत्तसूरि, प्रा., पद्य, आदिः ॐ मम हरओ जरं मम; अंतिः कुणउ पास जिणो., पे.वि. गा. ३. पे. ५९. पे. नाम. पार्श्वनाथस्य लघु स्तवन, पृ. ५३आ-५३आ पार्श्वजिन लघुस्तवन-गोडीजी, मागु., पद्य, आदिः नमे सुरासुरकोडि जोडी; अंतिः पासजिणो वञ्छिअं कुणह., पे.वि. गा.६. पे. ६०. ये नाम. पार्श्वनाथ लघु स्तोत्र, पृ. ५३आ- ५४अ पार्श्वजिन चैत्यवन्दन, सं., पद्य, आदिः ॐ नमः पार्श्वनाथाय; अंतिः मे वाञ्छितं नाथ., पे.वि. श्लो. ५. पे. ६१. पे. नाम ऋषभ स्तुति, पृ. ५४अ - ५४अ आदिजिन स्तुति, सं., पद्य, आदिः जय जय जगदानन्दन जय; अंतिः भगवते ऋषभाय नमोनमः, पे. वि. श्लो. ५. पे. ६२. शान्तिजिन स्तुति, सं., पद्य, (पृ. ५४अ ५४आ), आदिः किं कल्पद्रमसेवया अंतिः सेव्यतां शान्तिरेकशः, पे.वि. श्लो. ५. पे. ६३. पे. नाम. नेमीश्वर स्तुति, पृ. ५४आ-५४आ नेमिजिन स्तोत्र, सं., पद्य, आदिः परमान्नं क्षुधार्तेन; अंतिः कथं धन्यतमो न गण्यः, पे.वि. श्लो. ५. पे. ६४. पे नाम पार्श्वनाथ स्तोत्र, पृ. ५४आ-५४आ पार्श्वजिन स्तुति, सं., पद्य, आदिः अभिनवमङ्गलमालाकरणं; अंतिः बासुरा पुण्य भासुरा., पे.वि. श्लो. ५. पे. ६५. पे. नाम. पञ्चतीर्थी बृहत् स्तवन, पृ. ५४-५५ For Private And Personal Use Only Page #607 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ५५३ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची महावीरजिन स्तवन, सं., पद्य, आदिः कनकाचलमिव धीरं; अंतिः बोधिलाभाय सन्तु., पे.वि. श्लो.६. पे. ६६. महावीरजिन वृद्धस्तवन, आ. अभयसूरि, प्रा., पद्य, (पृ. ५५अ-५५आ), आदि: जइज्जा समणे भयवं; अंतिः पढउ कयं अभयसूरीहिं., पे.वि. गा.२२. पे. ६७.पे. नाम. पार्श्वजिन लघु स्तवन, पृ. ५६अ-५६अ पार्श्वजिन स्तोत्र, मु. जयसागर, सं., पद्य, आदिः धर्ममहारथसारथिसारं; अंतिः यूयमखण्डम्., पे.वि. श्लो.५. पे. ६८. पार्श्वजिन स्तवन-करहेटक, सं., पद्य, (पृ. ५६अ-५६आ), आदिः आनन्दभंदकुमुदाकर; अंतिः यदि मेरुधीरम्., पे.वि. श्लो.५. पे. ६९. पार्श्वजिन स्तवन-श्रृङ्खलाबन्ध, मु. जैनचन्द्र, सं., पद्य, (पृ. ५६आ-५६आ), आदिः सर्वदेवसेवितपदपद्म; अंतिः मुक्तालतावाङ्मुदे., पे.वि. श्लो.७. पे. ७०. पार्श्वजिन स्तवन, मु. लक्ष्मीवल्लभ, सं., पद्य, (पृ. ५६आ-५७अ), आदिः सदानीलगात्रं; अंतिः वल्लभः सर्वदास्यात्., पे.वि. श्लो.७. पे. ७१. जिनकुशलसूरि अष्टक , मु. रत्नसोम, सं., पद्य, (पृ. ५७अ-५७आ), आदिः देवराजपुरमण्डनमाप्त; अंतिः रत्नसोम समसद्यशोभरम्., पे.वि. श्लो.९. पे. ७२. पंचपरमेष्ठिमन्त्र स्तोत्र, आ. जिनवल्लभसूरि, राज., पद्य, (पृ. ५७आ-५९अ), आदिः किं कप्पतरु रे अयाण; अंतिः सेवा देज्यो नित्त., पे.वि. गा.२६. पे. ७३. गौतमस्वामी स्तव, आ. देवानन्दसूरि?, सं., पद्य, (पृ. ५९अ-५९अ), आदिः इन्द्रभूतिं वसुभूति; अंतिः लभन्ते नितरां क्रमेण., पे.वि. श्लो.९. पे. ७४. पंचपरमेष्ठि स्तोत्र, प्रा., पद्य, (पृ. ५९अ-५९आ), आदिः परमेष्ठिमन्तसारं; अंति: आरुग्गं देह सुहपन्नो., पे.वि. गा.७. पे. ७५. पे. नाम. आत्मरक्षाकर पञ्चपरमेष्टि स्तोत्र, पृ. ५९आ-५९आ वज्रपंजर स्तोत्र, सं.प्रा., पद्य, आदिः ॐ परमेष्ठि नमस्कारं; अंतिः राधिश्चापि कदाचन., पे.वि. श्लो.८. ५४९१. विपाकसूत्र - सुखविपाक- इक्कारसमअङ्ग, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६-१(५)=५, जैदेना., प्र.वि. पत्रांक नंबर बाद में हाथ से सुधारा हुआ है., पू.वि. पत्र नं ५ अध्ययन २ अपूर्ण से अध्ययन ९ अपूर्ण तक नहीं है., (२५४११, १२४३८ ४२). विपाकसूत्र-हिस्सा सुखविपाक द्वितीयश्रुतस्कन्ध, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदिः तेणं कालेणं तेणं; अंतिः सेसं जहा आयारस्स. ५४९२. उत्तराध्ययनसूत्र, संपूर्ण, वि. १६वी, श्रेष्ठ, पृ. १०६+१(९४)=१०७, जैदेना.,प्र.वि. ३६अध्ययन, (२६.५४१०.५, ९-१०x२९ ३६). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग, आदिः सञ्जोगाविप्पमुक्कस्स; अंतिः (१)सम्मए त्ति बेमि (२)पुव्वरिसी एव भासन्ति. ५४९३. सम्यक्त्वकौमुदी, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५५, जैदेना., (२६x११, ११४३६-४१). सम्यक्त्वकौमुदी कथानक, सं., गद्य, आदिः श्रीवर्द्धमानमानम्य; अंतिः स्वर्गमश्नुते. ५४९४. नन्दीसूत्र सह टबार्थ व कथा, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १६४, जैदेना., अन्य- श्रा. वजेसङ्ग भीमजी, प्र.वि. मूल गा.७००., (२६४११, ४-१४४२६-३४). नन्दीसूत्र, आ. देववाचक, प्रा., प+ग, आदि: जयइ जगजीवजोणीवियाणओ; अंतिः से तं परोक्खणाणं. नन्दीसूत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः श्रीमहावीरदेवने; अंतिः परोक्षज्ञानना भेद छइ. नन्दीसूत्र-कथा सङ्ग्रह', मागु., गद्य, आदिः नन्दनं नन्दि प्रमोदो; अंति:#. For Private And Personal Use Only Page #608 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य भाग - १ ५५४ ५४९५." विपाकसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८७५, श्रेष्ठ, पृ. २१५, जैदेना., ले.स्थल. भुज-कच्छ, ले. खीमजी छगनजी, प्र.वि. मूल-ग्रं. १२५०, अध्याय-२० अध्ययन. ग्रं.ग्रं.५००० (मू+ट.), पदच्छेद सूचक लकीरें, (२५४११.५, ३-४४२५-३०). विपाकसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदिः तेणं कालेणं तेणं; अंतिः सेसं जहा आयारस्स. विपाकसूत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः अथविपाकश्रुतमिति कः; अंतिः करी सम्पूर्ण थयो. ५४९६. ज्ञाताधर्मकथाङ्गसूत्र, अपूर्ण, वि. १६८४, श्रेष्ठ, पृ. २०५-३१(६० से ८०,१४८ से १४९,१७४ से १८०,१८६)=१७४, जैदेना., ले. गणि राजकुशल (गुरु गणि दानकुशल, तपागच्छ), प्र.ले.पु. मध्यम, (२६४११, ११४३६-४२). ज्ञाताधर्मकथाङ्गसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदि: तेणं कालेणं० चम्पाए; अंतिः अयमढे पन्नत्ते. ५४९७." ठाणाङ्गसूत्र, संपूर्ण, वि. १६७५, श्रेष्ठ, पृ. ८६, जैदेना., ले. पं. धर्मचन्द्र, प्र.वि. १०स्थान, पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न-वचन विभक्ति संकेत, संशोधित, (२६.५४११.५, १५४४२-४८). स्थानाङ्गसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदिः सुयं मे आउसं तेणं; अंतिः अणन्ता पण्णत्ता. ५४९८." शीलोपदेशमाला सह वृत्ति (गाथार्थ व कथा), अपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १९२-२(१,१७)+२(७६,१७४)=१९२, जैदेना., प्र.वि. संशोधित, पू.वि. प्रथम एक, बीच व अंत के पत्र नहीं हैं. , (२६.५४११, १२-१३४३६-४५). शीलोपदेशमाला, आ. जयकीर्तिसूरि, प्रा., पद्य, आदि:-; अंति: शीलोपदेशमाला--वृत्ति, सं., गद्य, आदि:-; अंति:५४९९. उपदेशमाला सह टबार्थ व कथा, संपूर्ण, वि. १७८६, श्रेष्ठ, पृ. १६५+१(३)=१६६, जैदेना., ले.स्थल. पाटण, ले. मु. हेतविजय (गुरु मु. हस्तिविजय),प्र.ले.पु. मध्यम,प्र.वि. मूल-गा.५४४. प्र.पु. सर्वग्रं. ७०००.,प्र.ले.श्लो. (५०६) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा ; (४४०) तैलाद् रक्षेद् जलाद् रक्षेद्, (२६४११.५, ३-१७४३५-४२). उपदेशमाला , गणि धर्मदास, प्रा., पद्य, आदिः (१) नमिऊण जिणवरिन्दे (२) जगचूडामणिभूओ उसभो; अंति: वयण विणिग्गया वाणी. उपदेशमाला-बालावबोध, मु. वृद्धिविजय, मागु., गद्य, वि. १७१३, आदिः (१) प्रणम्य श्रीमहावीरं (२) नमिउण कहितां नमस्कार; अंतिः (१)वाणी श्रुतदेवता ने (२)वाणी श्रुतदेवता ते. ५५००. शीलोपदेशमाला सह वृत्ति, संपूर्ण, वि. १६वी, मध्यम, पृ. १७५, जैदेना., प्र.वि. मूल-गा.११५., (२६४११.५, १३४४५-५२). शीलोपदेशमाला, आ. जयकीर्तिसूरि, प्रा., पद्य, आदिः आबालबम्भयारिं; अंतिः आराहिय लहह बोहिसुहं. शीलोपदेशमाला-शीलतरङ्गिणी वृत्ति, आ. सोमतिलकसूरि, सं., गद्य, आदिः यस्योपदेशसमये; अंति: समग्रमङ्गलमूलं च. ५५०१." विपाकसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८७०, श्रेष्ठ, पृ. १५३, जैदेना., ले.स्थल. जेतपुर, प्र.वि. मूल-अध्याय-२० अध्ययन., पदच्छेद सूचक लकीरें, (२७४११.५, ५४२५-३४). विपाकसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदिः तेणं कालेणं तेणं; अंतिः सेसं जहा आयारस्स. विपाकसूत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः (१) अथ विपाक सूत्रनो (२) ते काल तेस० समे; अंतिः सूत्रे कह्यो तिम. ५५०४. आचाराङ्गसूत्र, संपूर्ण, वि. १६वी, श्रेष्ठ, पृ. ६७, जैदेना., प्र.वि. ग्रं. २६४४, २५अध्ययन, (२५.५४११.५, १३४४५-४९). आचाराङ्गसूत्र , आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदिः सुयं मे आउसं० इह; अंतिः विमुच्चति त्ति बेमि. ५५०५. आवश्यकसूत्र सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ६६-१(५२)=६५, जैदेना., पू.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं. वंदित्तुसूत्र गा.२६ तक., (२६४११, १५-१६४३३-४०). आवश्यकसूत्र , प्रा., प+ग, आदिः णमो अरहंताणं०; अंति:श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय-बालावबोध, पं. हेमहंस गणि, मागु., गद्य, वि. १५०१, आदिः (१) श्रेयांसि श्रीमहावीर (२) नमो अर्हद्भ्यः ; अंति: For Private And Personal Use Only Page #609 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ५५५ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ५५०६. प्रश्नव्याकरण सह टबार्थ - श्रुतस्कन्ध २, प्रतिअपूर्ण, वि. १८६७, श्रेष्ठ, पृ. ७१-१(७०)=७०, जैदेना., ले. मु. हीराचन्द महात्मा, (२६x११.५, ४४२५-३१). प्रश्नव्याकरणसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदि:-; अंतिः शरीरधरे भविस्सत्तीति. प्रश्नव्याकरणसूत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, आदि:-; अंतिः अनन्ता सुख पामइ. ५५०९. अभिधानचिन्तामणि नाममाला, अपूर्ण, वि. १६वी, मध्यम, पृ. ३३-९(१ से ८,३०)=२४, जैदेना., पू.वि. बीच बीच के पत्र हैं. कांड-३ श्लो.६ से कांड-५ श्लो.१५३ तक है., (२६.५४११, १५४५३-६२). अभिधानचिन्तामणि नाममाला, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, आदि:-; अंति:५५१०. अजापुत्र चौपाई, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. २०, जैदेना., प्र.वि. गा.४६९, खण्ड-४; प्र.पु. मूल-ग्रं. ६५०, (२६x११, १३४४३-४९). अजापुत्र चौपाई, मु. धर्महंस, मागु., पद्य, वि. १५६१, आदिः गौतम गणधर पय नमी; अंतिः घरि कमला द्ये केलि. ५५११. भक्तामर स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १७७३, मध्यम, पृ. ५, जैदेना., ले.स्थल. उदयपुर, ले. मु. कल्याणविजय यति, प्र.वि. श्लो.४४+४, (२५४११, १०४३६). भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुङ्गसूरि, सं., पद्य, आदिः भक्तामरप्रणतमौलिमणि; अंतिः समुपैति लक्ष्मी. ५५१३. मुनिपति रास, संपूर्ण, वि. १६६५, श्रेष्ठ, पृ. २३, जैदेना., ले.स्थल. आदेहीपाटरी, ले. धूला, प्र.वि. गा.६०६, (२६४११, १५४४२-४७). मुनिपति चौपाई, मु. सिंहकुल, मागु., पद्य, वि. १५५०, आदिः गोयम गणहर गोयम गणहर; अंतिः सुणतां हर्ष अपार. ५५१५. उत्तराध्ययनसूत्र सह टबार्थ व कथा, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, जैदेना., पू.वि. प्रारंभ के पत्र हैं. प्रथम अध्ययन गा.४० तक है., (२६.५४१०.५, १३-१६४५६-५८). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध , प्रा., प+ग, आदिः सञ्जोगाविप्पमुक्कस्स; अंति: उत्तराध्ययनसूत्र-टबार्थ+कथा सङ्ग्रह, मु. पार्श्वचन्द्रसूरि-शिष्य, मागु., गद्य, आदिः पूर्वसंजोग मातापिता; अंति:५५१६. कल्याणमन्दिर स्तोत्र सह वृत्ति, संपूर्ण, वि. १६वी, श्रेष्ठ, पृ. ११, जैदेना., प्र.वि. मूल-श्लो.४४., (२६४११, १३४५६). कल्याणमन्दिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकर, सं., पद्य, आदिः कल्याणमन्दिरमुदारमवद; अंतिः मोक्षं प्रपद्यन्ते. कल्याणमन्दिर स्तोत्र-सौभाग्यमञ्जरी टीका, सं., गद्य, वि. १६२७, आदिः (१) किलेति सत्ये एषः (२) भास्वद्रत्नगभस्तिभि; अंतिः मलनिचयाः पापरहिताः. ५५१७. नवतत्त्व सह बालावबोध व कुण्डली, संपूर्ण, वि. १६वी, श्रेष्ठ, पृ. २१, पे. २, जैदेना., (२४.५४१२, १३४४८). पे. १.पे. नाम. नवतत्त्वप्रकरण सह बालावबोध, पृ. १-५१ नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदिः जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंतिः समत्तं निच्चलं तस्स. नवतत्त्व प्रकरण-बालावबोध', मागु., गद्य, आदिः यथा यथास्थित साचउं; अंतिः जिमाहि मोक्षइ जाइ., पे.वि. मूल गा.३३. पे. २. ज्योतिष कुण्डली, प्रा.,मागु., कुंडली, (पृ. १अ), आदिः#; अंतिः#. ५५१८. भक्तामर स्तोत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८०८, श्रेष्ठ, पृ. १२, जैदेना., ले.स्थल. आऊआनगर, ले. ऋ. देवीचन्द (गुरु ऋ. रामचन्द), प्र.ले.पु. विस्तृत,प्र.वि. मूल-श्लो.४४+४., पदच्छेद सूचक लकीरें-वचन विभक्ति संकेत, दशा वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है-अल्प, (२५.५४११, ४४२६-३०). भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुङ्गसूरि, सं., पद्य, आदिः भक्तामरप्रणतमौलिमणि; अंतिः समुपैति लक्ष्मी. भक्तामर स्तोत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः भक्त जे अमरदेवता; अंतिः शोभा छै तिका. ५५२०. लीलावती रास, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २०, जैदेना., पू.वि. अन्त के पत्र नहीं हैं. ढाल-१६ तक हैं., (२६४११, १० १२४२३-३५). For Private And Personal Use Only Page #610 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य भाग - १ ५५६ विक्रमसेनराजा चौपाई, मु. मानसागर , मागु., पद्य, वि. १७२४, आदिः सुखदाता सवेश्वरो; अंतिः५५२५." पुरन्दरकुमार चौपाई, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, जैदेना., प्र.वि. गा.३७६, ढाळ-१२, पदच्छेद सूचक लकीरें, (२७.५४११, १७-१८४५३-५६). पुरन्दरकुमार रास, वाचक मालदेव, मागु., पद्य, आदिः वरदाई श्रुतदेवता; अंतिः मिच्छामि दुक्कडं दीय. ५५२६." कालज्ञान व मूत्रपरीक्षा, अपूर्ण, वि. १७९१, मध्यम, पृ. २४-१६(१ से १६)=८, पे. २, जैदेना., ले.स्थल. देवसूरि, ले. मु. प्रेमराज (गुरु मु. माणेकराज, अञ्चलगच्छ), दशा वि. किनारी खंडित है, विवर्ण-पानी से अक्षरों की स्याही फैल गयी है-अल्प, (२५.५४११, १५४४०-४४). पे. १. कालज्ञान, शम्भूनाथ, सं., पद्य, (पृ. -१७अ-२३अ, अपूर्ण), आदि:-; अंतिः निंबाय तस्मै नमः., पे.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. पे. २. मूत्रपरीक्षा, सं., पद्य, (पृ. २३आ-२४आ, संपूर्ण), आदिः श्रीमत्पार्श्वभिधं; अंतिः शास्त्रदृष्ट्वा परम्., पे.वि. श्लो.५०. ५५२७. श्राद्धप्रतिक्रमणसूत्र सङ्ग्रह सह वृत्ति, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १७३, जैदेना., ले.स्थल. ब्रह्माण, प्र.वि. गा.५०; प्र.पु. सर्व ग्रं. ६६४४; टीका-अध्याय-५ अधिकार, (२६.५४११, १५४४१-४८). वन्दित्तुसूत्र, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: वन्दित्तु सव्वसिद्धे; अंतिः वन्दामि जिणे चउवीसं. वन्दित्तुसूत्र-अर्थदीपिका टीका, आ. रत्नशेखरसूरि, सं., गद्य, वि. १४९६, आदि: जयति सततोदयश्रीः; अंतिः जीयादियं च चिरम्. ५५२८." शान्तिनाथ चरित्र, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १६७, जैदेना., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें, संशोधित, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., (२६४११.५, १४-१६४३२-३९). शान्तिजिन चरित्र, आ. भावचन्द्रसूरि, सं., गद्य, वि. १५३५, आदिः (१) प्रणिपत्यार्हतः (२) सर्वे संसारिणो जीवा; अंति:५५२९." सन्दोह दोहावली, संपूर्ण, वि. १६वी, मध्यम, पृ. ७, जैदेना., प्र.वि. गा.१५०, पदच्छेद सूचक लकीरें, (२६.५४१०.५, ११४३९-४५). सन्देहदोलावली प्रकरण, आ. जिनदत्तसूरि, प्रा., पद्य, आदिः पडिबिम्बिय पणय जयं; अंतिः जिणवल्लहसूरिसीसेण. ५५३०." प्रवचनसारोद्धार, अपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ६५-५(१ से ५)=६०, जैदेना., प्र.वि. संशोधित, पदच्छेद सूचक लकीरें वचन विभक्ति संकेत, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., (२६४११, १३-१४४३६-४२). प्रवचनसारोद्धार, आ. नेमिचन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि:-; अंति: नन्दउ बहु पढिज्जन्तो. ५५३१.” दशवैकालिकसूत्र, संपूर्ण, वि. १६५०, मध्यम, पृ. १६, जैदेना., ले. मु. प्रेमसागर (गुरु पं. हाथी, तपागच्छ), प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र.वि. अध्याय-अध्ययन१०चूलिकार, दशा वि. विवर्ण-पानी से अक्षरों की स्याही फैल गयी है, (२६४११, १७४३५-४३). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यम्भवसूरि, प्रा., पद्य, वि. पू.४, आदिः धम्मो मङ्गलमुक्किट्ठ; अंतिः (१)मुच्चइ त्ति बेमि (२)आलणा सो. ५५३२. योगशास्त्र सह अवचूरि- १ से ४ प्रकाश, प्रतिअपूर्ण, वि. १५वी, श्रेष्ठ, पृ. ३२-१(३०)=३१, जैदेना., प्र.वि. पंचपाठ, पू.वि. प्रकाश १ से ४ तक है., (२७४११.५, ५-१३४३०-३५). योगशास्त्र, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, आदि: नमो दुर्वाररागादि; अंति: योगशास्त्र-स्वोपज्ञ वृत्ति, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., गद्य, आदिः प्रणम्य सिद्धाद्भुत; अंति:५५३३." श्राद्धप्रतिक्रमणसूत्र सङ्ग्रह सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १६, जैदेना., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-कुछ पत्र, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. करेमिभंतेसूत्र तक है., (२५.५४११.५, ४४२७-२९). श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र , संबद्ध, प्रा.,मागु., प+ग, आदिः नमो अरिहं० सव्वसाहूण; अंति:श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः माहरउ नमस्कार; अंति: For Private And Personal Use Only Page #611 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ५५७ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ५५३४. अध्यात्मसारमाला व अध्यात्मवाणी सज्झाय, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, पे. २, जैदेना., पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., (२६.५४११.५, १३४३२-३६). पे. १. अध्यात्मसारमाला, कवि नेमिदास रामजी शाह कवि, मागु., पद्य, वि. १७६५, (पृ. १-७, संपूर्ण), आदिः श्रीजिनवाणी निउ नमी; अंतिः अचल अनुभव अनुभवो., पे.वि. गा.१०८. पे. २. अध्यात्मवाणी सज्झाय, मु. ज्ञानविमल, मागु., पद्य, (पृ. ७आ-, अपूर्ण), आदिः ए अध्यातमनी वाणी; अंतिः-, पे.वि. अंतिम पत्र नहीं है. गा.६ तक है. ५५३५. उत्तराध्ययनसूत्र सह टबार्थ व कथा, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३२-२(१ से २)=३०, जैदेना.. पू.वि. बीच के पत्र हैं. प्रथम अध्ययन गा.४ से द्वितीय अध्ययन गा.४५ तक है., (२४.५४११.५, २-१५४३४-४४). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध , प्रा., प+ग, आदि:-; अंति:उत्तराध्ययनसूत्र-टबार्थ+कथा* , मागु., गद्य, आदि:-; अंति: उत्तराध्ययनसूत्र-कथा सङ्ग्रह', मागु., गद्य, आदि:-; अंति:५५३६. पुण्याद्यनरेश रास, संपूर्ण, वि. १६वी, मध्यम, पृ. ६, जैदेना., प्र.वि. ढाळ-५, (२६x११, १३४४३-५०). पुण्याद्यनरेश रास, मु. अमर, मागु., पद्य, आदिः वन्दिय वासुपूज्य; अंतिः जिनशासन हुं पामी. ५५३७. योगशास्त्र - प्रकाश १ से ४, प्रतिअपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १५-६(१ से ६)=९, जैदेना., ले. मु. गुणवर्द्धन, पू.वि. प्रकाश २ गाथा ७७ तक नहीं हैं., (२७४११, १५-१७४४०-४३). योगशास्त्र, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, आदि:-; अंति:५५३८. विवेकविलास सह टीका, अपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. २२-१(१)=२१, जैदेना., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, पू.वि. प्रथम व अंतिम पत्र नहीं हैं. प्रथम पत्र गा.१ से ६ तक व अंत के पत्र उल्लास ५ गा-३ के बाद नहीं हैं., (२७४११, १५४५५-५८). विवेकविलास, आ. जिनदत्तसूरि, सं., पद्य, आदि:-; अंति: विवेकविलास-टीका, सं., गद्य, आदि:-; अंति:५५३९. कल्पसूत्र सह टबार्थ व व्याख्यान+कथा, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ११, जैदेना.,प्र.वि. द्विपाठ, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, पू.वि. प्रारंभ के पत्र हैं. कार्तिक श्रेष्ठि कथा तक है., (२७४११.५, ६-१६४३८-४८). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदिः णमो अरिहन्ताणं० पढमं; अंति:कल्पसूत्र-टबार्थ', मागु., गद्य, आदिः अरिहन्तनइ माहरो; अंति: कल्पसूत्र-व्याख्यान+कथा* , मागु., गद्य, आदिः-; अंति:५५४०. चित्रसेनपद्मावती कथा, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १९, जैदेना., ले. मु. हेतविजय (गुरु मु. हस्तिविजय), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. श्लो.१२३२; प्र.पु. ग्रं. ५०९, (२६.५४११.५, ११-१६४२७-३५). चित्रसेनपद्मावती चरित्र, पाठक राजवल्लभ, सं., पद्य, वि. १५२४, आदिः नत्वा जिनपतिमाद्यं; अंतिः कथां पाठकराजवल्लभः. ५५४१. रिषभदेव धवलबन्ध, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २२, जैदेना., प्र.वि. गा.२४३, ढाळ-४४, (२७ ११.५, ८-९४२७-३४). आदिजिन विवाहलो, मागु., पद्य, आदिः सासनदेवीय पाय; अंतिः सेवक इम मुदा. ५५४२. दशवैकालिकसूत्र, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १५, जैदेना., प्र.वि. अध्याय-अध्ययन१०, (२५.५४११.५, १६x४७-५३). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यम्भवसूरि, प्रा., पद्य, वि. पू.४, आदिः धम्मो मङ्गलमुक्किट्ठ; अंतिः गई त्ति बेमि. ५५४३. दशवैकालिकसूत्र - अध्ययन १-४, प्रतिपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १०, जैदेना., (२६४११.५, ११-१२४२४-३२). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यम्भवसूरि, प्रा., पद्य, वि. पू.४, आदिः धम्मो मङ्गलमुक्किट्ठ; अंति: For Private And Personal Use Only Page #612 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य भाग - १ ५५८ ५५४४. शान्तिनाथ चरित्र, पूर्ण, वि. १९८२, श्रेष्ठ, पृ. १७-१(१५)=१६, जैदेना., ले.स्थल. नागोर, ले. वल्लभ जोषी, पू.वि. बीच ___ में एक पत्र नहीं है., (२५.५४११.५, १४४४६-५०). शान्तिजिन चरित्र, मागु., गद्य, आदिः एहज भरतक्षेत्रने; अंतिः प्रतें भजतो हुवो. ५५४५. साधुवन्दना व श्लोक, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १९, पे. २, जैदेना., (२६४११.५, ११-१२४३१-३८). पे. १. साधुवन्दना, वाचक राजसागर, मागु., पद्य, वि. १६८१, (पृ. १-१९), आदिः समरविसहि गुरुराय; अंतिः तासु घरि ___अफलां फलइ., पे.वि. गा.३३६. पे. २. जैन श्लोक *, सं., पद्य, (पृ. १९आ), आदि:#; अंतिः#., पे.वि. श्लो.१. ५५४६. कर्मस्थिति विचार (आठ कर्म- १५८ उत्तर प्रकृत्ति विचार), संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदेना., (२६.५४११.५, ९ १०४३२-३४). ८ कर्म १५८ प्रकृति विचार, मागु., गद्य, आदिः णाणवणिज्जस्सणं भन्ते; अंतिः उछा जाणिवीइ. ५५४७. समकितसत्तरी प्रकरण व विचारसत्तरी प्रकरण, संपूर्ण, वि. १६४७, श्रेष्ठ, पृ. ६, पे. २, जैदेना., ले.स्थल. दीव, ले. मु. रत्नमूर्ति (गुरु वाचक सोममूर्ति), (२६.५४११.५, १३४३९-४५). पे. १. सम्यक्त्वसप्ततिका, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा., पद्य, (पृ. १अ-३आ), आदिः दंसणसुद्धिपयासं; अंतिः दंसणसुद्धिं धुवं लहइ., पे.वि. गा.७०. पे. २. विचारसप्ततिका, आ. महेन्द्रसिंहसूरि, प्रा., पद्य, (पृ. ३आ-६आ), आदिः पडिमा मिच्छा कोडी; अंति: सिवपासाए सया वसह., पे.वि. गा.७५. ५५४८." षष्टिशत प्रकरण, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, जैदेना., प्र.वि. गा.१६१, पदच्छेद सूचक लकीरें-कुछ पत्र, (२६.५४११.५, १२४३८-४२). षष्टिशतक प्रकरण, श्रा. नेमिचन्द्र भाण्डागारिक, प्रा., पद्य, आदिः अरिहं देवो सुगुरू; अंतिः जाणन्तु जन्तु सिव्वं. ५५४९." सिन्दूरप्रकरण व सुभाषित सङ्ग्रह, संपूर्ण, वि. १६वी, मध्यम, पृ. ६, पे. २, जैदेना., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें संधि सूचक चिह्न-वचन विभक्ति संकेत, दशा वि. हानिकारक स्याही-अक्षरों की स्याही फैल गयी है-अल्प, (२७४११.५, १५-१६४३९-४२). पे. १. सिन्दूरप्रकर, आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य, (पृ. १-६), आदिः सिंदूरप्रकरस्तपः; अंतिः सूक्तमुक्तावलीयम्., पे.वि. श्लो.१००. पे. २. जैन सुभाषित *, सं., पद्य, (पृ. ६आ), आदिः#; अंतिः#., पे.वि. श्लो.२०. ५५५०. सङ्ग्रहणीसूत्र सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १६वी, श्रेष्ठ, पृ. ५०, जैदेना., प्र.वि. मूल-गा.३४९; प्र.पु. ग्रं. २०००., प्र.ले.श्लो. (५४३) भग्र प्रष्टि कटि ग्रीवा, (२६४११.५, १३४४१-४९). बृहत्सङ्ग्रहणी, आ. चन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदिः नमिउं अरिहन्ताइं; अंतिः जा वीरजिण तित्थं. बृहत्सङ्ग्रहणी-बालावबोध, गणि दयासिंह, मागु., गद्य, वि. १४९७, आदिः (१) नत्वा श्रीवीरजिनं (२) श्रीमहावीर चोवीसमो; अंतिः लवलेश जाणिवानइ. ५५५१. पाखीसूत्र व खामणां, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १६, पे. २, जैदेना., ले. मु. चतुरविजय, (२६.५४११.५, ११४३१-३५). पे. १. पे. नाम, पाक्षिकसूत्र, पृ. ०१अ-१५आ पाक्षिकसूत्र, प्रा., प+ग, आदिः तित्थङ्करे य तित्थे; अंतिः जेसिं सुयसायरे भत्ति. पे. २. पे. नाम. पाक्षिकक्षामणासूत्र, पृ. १५आ-१६आ क्षामणकसूत्र, प्रा., गद्य, आदिः इच्छामि खमासमणो; अंतिः नित्थारग पारगा होह. ५५५२. भुवनदीपक, षट्पञ्चाशिका व ज्योतिष सङ्ग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ११, पे. ३, जैदेना., (२४x१०.५, १३ १५४३३-३९). For Private And Personal Use Only Page #613 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ५५९ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची पे. १. भुवनदीपक, आ. पद्मप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३पू, (पृ. १अ-९अ), आदिः सारस्वतं नमस्कृत्य; अंतिः श्रीपद्मप्रभुसूरिभिः., पे.वि. श्लो.२११. पे. २. षट्पञ्चाशिका, आ. पृथुयशा, सं., पद्य, (पृ. ९अ-११अ), आदिः प्रणिपत्य रविं; अंतिः तः सवाच्यः पितातस्यः., पे.वि. श्लो.५९, अध्याय-७. पे. ३. ज्योतिष*, सं.,मागु., पद्य, (पृ. ११अ-११आ), आदि: #; अंति: #. ५५५४. पाक्षिकसूत्र, खामणा व नमस्कार, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ८, पे. ३, जैदेना., ले. मु. हर्षविजय, (२६.५४१२, १८x२७-३४). पे. १. सकलार्हत् स्तोत्र, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, (पृ. ८), आदिः सकलार्हत्प्रतिष्ठानम; अंतिः मरालायार्हते नमः., पे.वि. श्लो.२७. पे. २. पे. नाम. पाक्षिकसूत्र, पृ. ०१अ-०७आ पाक्षिकसूत्र, प्रा., प+ग, आदिः तित्थङ्करे य तित्थे; अंतिः जेसिं सुयसायरे भत्ति. पे. ३. पे. नाम, पाक्षिकक्षामणासूत्र, पृ. ०७आ-०८अ क्षामणकसूत्र, प्रा., गद्य, आदिः इच्छामि खमासमणो; अंतिः नित्थारग पारगा होह. ५५५५. गुणरत्नाकर- प्रथम प्रकाश, प्रतिपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २०, जैदेना., (२६४११.५, १७४४३-४८). सुभाषित श्लोक सङ्ग्रह', सं.,प्रा.,मागु., पद्य, आदिः सकल कुशल वल्ली; अंति:५५५६. पार्श्वजिन, नेमिजिन श्लोक व पद सङ्ग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, पे. ४, जैदेना., प्र.वि. प्रथम दो पत्र नये लिखकर पूर्ण किया हैं।, पू.वि. अन्त के पत्र नहीं हैं., (२५.५४१२, १४४२८-३१). पे. १. पार्श्वजिन सलोको, श्रा. जोरावरमल पञ्चोली, राज., पद्य, वि. १८५३, (पृ. १आ-५अ, संपूर्ण), आदिः प्रणमूं परमारथ अवचल; अंतिः लीला मन वञ्छित पावै., पे.वि. गा.५९. पे. २. नेमिजिन श्लोक, मु. कुसलविनय, मागु., पद्य, (पृ. ५अ-६अ, संपूर्ण), आदिः समरु गणपतिनै सारिद; अंतिः आणन्द सदा सुजगीसो., पे.वि. गा.१९. पे. ३. औपदेशिक पद, कवि व्यास, प्राहिं., पद्य, (पृ. ६अ-६आ, संपूर्ण), आदिः कलियुग के यार का; अंतिः भरोसा न कीयीयै. पे. ४. औपदेशिक पद, मागु., पद्य, (पृ. ६आ-, अपूर्ण), आदिः भ्रूहन की कस काम; अंतिः-, पे.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. गा.३ तक है. ५५६०. चतुर्मासिकत्रय व्याख्यान, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, जैदेना.,प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न-वचन विभक्ति संकेत-क्रियापद संकेत, (२५.५४१२, १७४४१-४८). चातुर्मासिकत्रय व्याख्यान, पाठक क्षमाकल्याण, सं., गद्य, आदिः स्मारं स्मारं; अंतिः सर्वेष्टार्थसिद्धिः. ५५६१. योग विधि, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३२-१(१)=३१, जैदेना., पू.वि. बीच के पत्र हैं., (२५४१२, १४४३८-३९). योग विधि, प्रा.,सं., गद्य, आदिः-; अंतिः५५६२. सिन्दूरप्रकरण, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १२, जैदेना.,प्र.वि. श्लो.१००, टिप्पण युक्त विशेष पाठ-कुछ पत्र, (२७४१२, १०-१३४२७-३०). सिन्दूरप्रकर, आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य, आदिः सिंदूरप्रकरस्तपः; अंतिः सूक्तमुक्तावलीयम्. ५५६९." भगवतीसूत्र सह टबार्थ, त्रुटक, वि. १८वी, श्रेष्ठ, प्र. ५७५-४९८(३ से २७९,२८९ से ३४६,३४९,३६६ से ३८४,३८६ से ४६५,४६८ से ५३०)+२(२८३,३८५)=७९, जैदेना., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, पू.वि. बीच-बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., (२५.५४१२.५, ७X४१). भगवतीसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदिः नमो अरहन्ताणं; अंति:भगवतीसूत्र-टबार्थ, गणि मेघराज, मागु., गद्य, आदि: देवदेवं जिनं नत्वा; अंति: For Private And Personal Use Only Page #614 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य भाग - १ ५६० ५५७०. बावनी, संपूर्ण, वि. १८९२, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदेना., ले.स्थल. डीसानगर, ले. मु. कस्तूरविजय (गुरु मु. मोहनविजय), प्र.वि. गा.५६, (२७.५४१२.५, १३-१४४३७-४०). अक्षरबावनी, उपा. क्षमालाभ, राज.,प्राहिं., पद्य, वि. १८८०, आदिः ॐ आदि अजित सम्भवसुं; अंतिः सुख अनन्त सदाई. ५५७८. नमस्कार माहात्म्य द्रष्टान्त कथा सङ्ग्रह व नमस्कारफल, संपूर्ण, वि. १८९१, श्रेष्ठ, पृ. ५, पे. २, जैदेना., (२६४१२, १७४४३). पे. १. नमस्कारमहामन्त्रमाहात्म्य कथा सङ्ग्रह, सं., पद्य, (पृ. १-५), आदिः परत्रापि हि लभ्यन्ते; अंतिः ग्रंथांतरतोवगन्तव्या. पे. २. नमस्कारमहामन्त्र गुणनफल गाथा, सं.,प्रा., पद्य, (पृ. ५अ), आदिः नमस्कारस्य एकाक्षरं; अंतिः सो पावइ सासयठाणं. ५५८०. कल्पसूत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५२, जैदेना., प्र.वि. ग्रं. १२१६, ९-व्याख्यान, (२६४१२, ११४४०). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदिः तेणं कालेणं० समणे; अंतिः उवदंसेइ त्ति बेमि. ५५८३." चातुर्मासिकत्रय व्याख्यान व पोषदशमी कथा, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १०, पे. २, जैदेना., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., (२६.५४१२, १५४४२). पे. १. चातुर्मासिकत्रय व्याख्यान, पाठक क्षमाकल्याण, सं., गद्य, (पृ. १-१०, संपूर्ण), आदिः स्मारं स्मारं; अंतिः सर्वेष्टार्था सिद्धि. पे. २. पौषदशमीपर्व कथा, मु. जिनेन्द्रसागर, सं., पद्य, (पृ. १०आ-, अपूर्ण), आदिः ध्यात्वा वामेयमर्हन; अंतिः-, पे.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. श्लो.४ तक हैं. ५५८४.” कल्पसूत्र सह बालावबोध- वाचना १०,११, प्रतिपूर्ण, वि. १९४०, श्रेष्ठ, पृ. ४५, जैदेना., प्र.वि. दोनों वाञ्चना के अन्त में सङ्क्षिप्त खरतरगच्छीय पट्टावली हैं।, पदच्छेद सूचक लकीरें, (२५.५४१२, १३४३२). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि:-; अंति: कल्पसूत्र-बालावबोध*, मागु.,राज., गद्य, आदि:-; अंति:५५८५. अमरगुप्त चरित्र, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. २४, जैदेना., प्र.वि. ३ उल्लास, (२७४१२, ११४३३-३७). अमरगुप्त चरित्र, मु. अमृतरङ्ग, मागु., पद्य, वि. १६९७, आदिः ऋषभादिक चउवीस जिन; अंतिः सेवक कल्याण थायजी. ।। इति श्री कैलासश्रुतसागरे हस्तप्रतविभागे जैनसाहित्ये प्रथमः खंडः || ए For Private And Personal Use Only Page #615 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.oro Atharva Shri Kailassagarsun yanmandir न आराधना महावीर कोबा. श्री 卐 तु विद्या 'आचार्य श्री कैलाससाणारसूरि जानमदिर कोबा तीर्थ Concept: BIJAL GRAPHICS-2112392 Fare Private And Personal use only