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कम्प्यूटर पर सूचीकरण यहाँ का एक बहुत बड़ा महत्वाकांक्षी कार्य है. इस कार्य को २१ कम्प्यूटरों पर कम्प्यूटर के उपयोग के लिए विशेष रूप से प्रशिक्षित किए गए आठ पण्डितों तथा अन्य अनेक सह कार्यकरों के सहयोग से किया जा रहा है. __इस परियोजना की सब से बड़ी विशेषता है, ग्रंथों की सूचना पद्धति. अन्य सभी ग्रन्थालयों में अपनायी गई मुख्यतः प्रकाशन और पुस्तक इन दो स्तरों पर ही आधारित द्विस्तरीय पद्धति के स्थान पर यहाँ बहुस्तरीय सूचना पद्धति विकसित की गई है. जिसे कृति, विद्वान, प्रत व प्रकाशन इत्यादि भागों में विभक्त कर बहुआयामी बनाया गया है. ग्रन्थालय सूचना पद्धति में कृति की विभावना स्वतः में अनूठी एवं बहूपयोगी सिद्ध हुई है. कृति को हस्तलिखित प्रतों तथा प्रकाशनों के साथ संयोजित किया गया है, जिससे कोई भी कृति चाहे छोटी से छोटी अर्थात् १ श्लोक या गाथा वाली भी क्यों न हो उससे संबन्धित सभी प्रतों व सभी मुद्रित प्रकाशनों की सूचनाएँ एक साथ मिल जाती हैं. इसी तरह व्यक्ति - विद्वान का भी कृति सर्जक, हस्तप्रत प्रतिलेखक आदि व प्रकाशन, सामयिक के संपादक, संकलनकार, संशोधक, संयोजक, प्रेरक एवं प्राचीन मूर्ति आदि के प्रतिष्ठापक, भरवानेवाले इत्यादि आयामों में एकीकृत परिचय रखा गया है. इस प्रकार प्रत, पुस्तक, कृति, प्रकाशन, सामयिक व एक अंश में संग्रहालयगत पुरासामग्री इन सभी का अपने-अपने स्थान पर महत्व कायम रखा गया है, जिसके अन्तर्गत सभी प्रकार की विशद् सूचनाएँ कम्प्यूटर पर उपलब्ध हो जाती हैं.
सचीकरण के कार्य हेत ग्रन्थालय विज्ञान की किसी प्रस्थापित प्रणाली के अनुसार नहीं वरन अनुभवों के आधार पर भारतीय साहित्य की लाक्षणिकताओं के अनुरूप बहुजनोपयोगी तर्कसंगत सूचीकरण प्रणाली विकसित की गई है एवं तदनुरूप विशेष कम्प्यूटर प्रोग्राम तैयार किया गया है, जिसके अन्तर्गत उपरोक्त सभी प्रकार की सूक्ष्मतम जानकारी मात्र यहीं पर पहली बार कम्प्यूटर में प्रविष्ट की जा रही है.
सूचीकरण व संपादन के दौरान स्पष्ट हुए नियमों और तर्कों - Logics के आधार से कम्प्यूटर प्रोग्राम को और अधिक कार्यक्षम बनाने का कार्य भी साथ ही चलता रहता है. जिससे भविष्य में सूचनाओं की प्रविष्टि सरल बन जाय व क्षतियुक्त सूचनाएँ कम्प्यूटर या तो स्वीकारे ही नहीं या संभवित भूल की ओर ध्यान आकृष्ट कर दें.
बरसों के इन सब अनुभवों व सज्जता के आधार पर सूचीकरण संबंधी यह कम्प्यूटर प्रोग्राम कम्प्यूटर विज्ञान में विकसित नवीनतम तकनीकों का महत्तम उपयोग करते हुए संपूर्ण नए सिरे से पुनः बनाया जा रहा है कि जिससे इन सूचनाओं को महत्तम तर्कसंगत एवं उपयोगी तरीके से संगृहीत किया जा सकें, सूचनाओं की प्रविष्टि ज्यादा सरलता व तीव्रता से शुद्धिपूर्वक हो सकें व सूचनाओं की प्राप्ति भी व्यापक फलक पर एवं कहीं ज्यादा सटीक व आसान बनें.
अभी तक विगत एक दशक में अनेकविध अन्य प्रवृत्तियों के साथ-साथ लगभग ८४,००० हस्तलिखित प्रतियों तथा १,०८,७३० से ज्यादा मुद्रित ग्रंथों की सूचनाएँ विविध स्तरों पर कम्प्यूटरीकृत की जा चुकी हैं. इन सूचनाओं के संपादित हो जाने पर इन्हें महत्तम शुद्ध रूप से प्रकाशित स्वरूप में उपलब्ध करने की योजना है. इसी बहुजनोपयोगी भावना के अन्तर्गत हस्तप्रतों के विस्तृत सूची प्रकाशन परियोजना के तहत प्रथम भाग का प्रकाशन आपके कर कमलों में सादर प्रस्तुत है. हस्तप्रत सूची प्रकाशन परियोजना की संभावित रूपरेखा पृष्ठ २२ पर दी गई हैं.
इस सूची के निर्माण में बहुत सी विभावनाएँ व तदनुरूप नियमावली सर्वप्रथम उपस्थित की गई हैं तो कुछ एक में परिष्कार, परिवर्धन भी किया गया है. कुछ एक खास अर्थों में रूढ़ की गई है. यह सब आवश्यकता व उपयोगिता ज्यूं-ज्यूं प्रसंगानुसार ध्यान में आती गई त्यूं-त्यूं क्रमशः अनेक उथल-पाथलों के साथ हुआ है. इनमें से 'कृति', 'कृति आदि के नाम', 'पेटा-कृति' आदि मुख्य विभावनाओं का परिचय इस प्रस्तावना के बाद के पृष्ठों में इस सूचीपत्र के योग्य विस्तार के साथ दिया गया है. पूर्व की विभावनाओं में आगे चल कर परिवर्तन/परिष्कार भी हुआ है. इन सबकी असर जिन प्रतों की सूची पहले से ही बन चुकी हों उन पर भी पड़ती थी. बाद की प्रतों की सूची में तो यह सभी सुधार अपेक्षाकृत अपेक्षित रूप से आया ही है परंतु पूर्वनिर्मित सूची में प्रयासों के बावजूद भी क्षतियाँ रह गई हों यह संभव है- क्षमस्व!
श्रुतभक्ति का यह सब कार्य करने के बाद सबसे ज्यादा प्रसन्नता व सार्थकता की अनुभूति तब होती है जब गुणवान सक्षम गुरू भगवंतों आदि को उनके बरसों से अपेक्षित ग्रंथ यहाँ से सहज ही मिल जाते हैं और उनके अंतस्थल के हर्षोद्गार भरे आशीर्वचन मिलते हैं. वह घड़ी संस्था व संस्था के अधिष्ठाताओं एवं कार्यकर्ताओं के लिए सबसे धन्य होती है.
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