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भगवानश्रीकुन्दकुन्द-कहानजैनशास्त्रमाला , पुष्प-नं. ५०
कर २५०० वान
भगवान महावी
नर्वाण महोत्सव
जैन बालपोथी
जीवः उपयोग लक्षणः
लेखक:
ब्र. हरिलाल जैन
सोनगढ़
प्रकाशक:
श्री दि. जैन स्वाध्यायमन्दिर ट्रस्ट
सोनगढ़ (सौराष्ट्र)
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Thanks & our request
This electronic version of the Jain Balpothi in Hindi has been produced by an Atmaarthi who does not wish to be named. The inspiration for this work is a 3 year old boy, Manas, who loves the book so much that he memorised the first two chapters. Despite his age, Manas encouraged his aunt to add various improvements to the appearance of the text while she created the electronic version.
Our request to you:
1) We have taken great care to ensure this electronic version of the Hindi Jain Balpothi is a faithful copy of the paper version. However if you find any errors please inform us on rajesh@ AtmaDharma.com so that we can make this beautiful work even more accurate.
2) Keep checking the version number of the on-line shastra so that if corrections have been made you can replace your copy with the corrected one.
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Changes
Version Date Number |002 5 June 2006
Error corrections made (thanks to Sheela Jain for proof-reading and informingus):
| Version 001
Correction (Version 002) १५. सम्यक्चारित्र line 4: जो आत्मा को । जो आत्मा को नहीं पहचाने उसके सच्चा नहीं पहचाने उसके सच्चा चारित्र होता है।
चारित्र नहीं होता। २०० श्री महावीर भगवान line 6: का नाम | का नाम त्रिशलादेवी था । उनका जन्म त्रिशलादेवी था । उनका जन्म चेत्र सुदी १३ के।
| दिन
ज्ञानी और वैरागी थे। स्वर्ग से देव
२०. श्री महावीर भगवान line8: ज्ञानी और वैरागी थे। स्र्वग से देव २०० श्री महावीर भगवान 3rd page line 7: के लिये जीवों के झुण्ड के झुण्ड आये । वंग के देव आये २०. श्री महावीर भगवान 4th page line 4: कार्तिक कृष्णा
के लिये जीवों के झुण्ड के झुण्ड आये । स्वर्ग के देव आये
| कार्तिक कृष्ण
001
27 Nov 2002 First version made available on 22nd anniversary of Gurudev Kanji
Swami's passing away
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कुल तीसवीं आवृत्ति
पाँच भाषामें कुल प्रतियाँ १५६००० वीर सं. २५१२ : माघ सुद पंचमी
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मुद्रक :
ज्ञानचन्द जैन
कहान मुद्रणालय, सोनगढ़- ३६४२५०
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जैन बालपोथी
ब्र. हरिलाल जैन
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पाठ
१
२
३
mo
४
५
७
८
९
१०
११
१२
१३
१४
विषय
जीव
शरीर
जीव और अजीव
द्रव्य-गुण-पर्याय
परीक्षा
हाँ और ना
धर्म
समझ
भगवान
गुरु
शास्त्र
अनुक्रमणिका
जैन बालकका
हालरिया
सम्यग्दर्शन
सम्यग्ज्ञान
पाठ
१५
१६
१७
१८
१९
२०
२१
२२
२३
२४
२५
२६
२७
२८
विषय
सम्यक्चारित्र
जैन
राजाकी कहानी
मुक्त और संसारी
जीव और कर्म
श्री महावीर भगवान
इतना करना
अच्छी अच्छी
शिक्षायें
कभी नहीं
धुन
वन्दन
आत्मदेव
मुझे बताओ
मेरी भावना
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* प्रकाशकीय निवेदन *
आठ-दस वर्षके बालक भी रुचि पुर्वक तत्त्वज्ञानका अभ्यास कर सकें इस हेतुसे यह "जैन बालपोथी " तैयार की गई है। बालकोंका अभ्यास करने में मन लगे ऐसे ढ़ग से इसमें छोटे-छोटे पाठों द्वारा निम्नलिखित विषयों का संकलन किया गया है --
जीव-अजीव, द्रव्य-गुण-पर्याय, धर्म, देव-गुरु-शास्त्र, पंचपरमेष्ठी, सम्यग्दर्शन-ज्ञान -चारित्र, शिकार-त्याग, जैनधर्म, मुक्त और संसारी, जीव और कर्म, भगवान महावीरका जीवनचरित्र, देवदर्शन, हिंसादि पापोंके त्यागका उपदेश, क्रोधादिके तयागका उपदेश, कीर्तन-संचय, देव-गुरु-शास्त्रको वन्दन, आत्मदेवका वर्णन और वैराग्य-भावनायें आदि।
इसके अतिरिक्त प्रत्येक पाठ में विषय के अनुसार चित्र भी दिये हैं। ध्यान रहे कि -- यह चित्र केवल दृष्टान्त रूप हैं, बालकों को पाठ का अभ्यास करने में सुगमता हो और उनका मन लगे -- इसलिये यह चित्र दिये गये हैं।
इस बालपोथी के पाठ बालकों को केवल कण्ठस्थ कराने के लिये ही नहीं है, किन्तु । बालकों को प्रत्येक पाठ का भाव समझाकर उसका अभ्यास कराना चाहिये ओर चित्रों के द्वारा विस्तारपूर्वक समझाना चाहिये। कीर्तन, देवदर्शन आदि पाठों को वाद्यों के साथ क्रियात्मक रूप में सिखाना चाहिये।
यदि प्रत्येक माता अपने बच्चे को वीर प्रभु की संतान बनाने के लिये झुले में ही उसके कानों में इन वीर-मन्त्रों को सुनाये और दूध के चूंट के साथ-साथ तत्त्व प्रेमका चूंट भी पिलाये तो बालक को प्रारम्भ से ही धर्म रस का स्वाद आने लगे और इसका जीवन धर्म-मय बन जाये। यदि एक बार बालक इस तत्त्वज्ञान में रस लेने लग जायेगा, तो फिर जैसे उससे खाये बिना नहीं रहा जाता वैसे ही धर्म-रसके बिना उसे चैन नहीं पड़ेगा और वह अपने आप रुचिपूर्वक उसका अभ्यास करने लगेगा।
अतः सभी जैन बालकों को इस बालपोथी का अभ्यास अवश्य करना चाहिये।
यह बालपोथी, जैन समाज में सर्वत्र इतनी अधिक प्रचलित है कि, हिन्दी-गुजरातीमराठी-कन्नड-अंग्रेजी ऐसी पाँच भाषा में इसकी कुल ३० आवतियों के द्वारा १,४६००० प्रतियाँ प्रकाशित हो चुकी हैं, जो कि हमारे जैन साहित्य के लिये गौरव की बात है।
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इसके हर्षोपलक्ष में, श्री अखिल भारत दि. जैन मुमुक्षु मण्डल के अध्यक्ष महोदय श्री नवनीतलाल सी. झवेरी की ओर से लेखक को सुवर्णपदक से पुरस्कृत किया गया है।
जैन बालपोथी का द्वितीय भाग भी प्रकाशित हो चुका है।
प्रसन्नता यह है कि जैन बालपोथी को समस्त जैनसमाज ने अपनाया है। ऐसे छोटे छोटे साहित्य के द्वारा बालकों को जैनधर्म का संस्कार देने की बहुत आवश्यकता
जैनं जयतु शासनम्।
वीर निवार्ण सं. २
वीर निवार्ण सं. २५१९,
दीपोत्सव
प्रकाशनसमिति श्री दि. जैन स्वा. मं. ट्रस्ट, सोनगढ़
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बालकों से
तुम
પણ બળ એવા જૈન ઉપરથ શાંચ ભાષામાં ઘેર ઘેર બાવા બાખ" હા ધર્મનો
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प्रत्यार
http://www.AtmaDharma.com
जय जिनेन्द्र
धर्मप्रेमी बालकों !
तुम वीर प्रभु की संतान हो ।
तुम्हारे हाथों में यह बालपोथी देखकर किसको आनन्द नहीं
होगा ?
तुम इसे प्रेम से पढ़ना ।
पढ़ने के लिये हमेशा पाठशाला जाना और आत्मा को समझकर
भी भगवान बनना ।
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वीर प्रभुकी हम संतान
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http://www.jainism.free-online.co.uk
वीर प्रभुकी हम संतान । धारें जिन सिद्धान्त महान । समझें पढ़ने में कल्याण । गावें गुरुवरका गुणगान ।। वीर. ।। पढ़कर बने वीर विद्धान, पावें निश्चय आतम-ज्ञान । गुरु उपकार हृदय में आन, उनको नमें सहित सम्मान ।। वीर. ।।
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१. जीव
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मैं जीव हूँ ।
मुझ में ज्ञान है।
मैं ज्ञान से जानता हूँ ।
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वह कुछ जानता नहीं है।
उसमें ज्ञान नहीं है ।
शरीर अजीव है ।
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२. शरीर
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३० जीव और अजीव
यह जीव
http://www.AtmaDharma.com
Dil
मैं दोनों को जानता हूँ
मैं जीव हूँ ।
जीव में ज्ञान है ।
मुझ में ज्ञान है ।
यह अजीव
शरीर अजीव है ।
अजीव में ज्ञान नहीं है ।
शरीर में ज्ञान नहीं है ।
मैं अपने ज्ञान से सबको जानता हूँ ।
शरीर किसी को नहीं जानता । जीव और अजीव अलग अलग हैं ।
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(४. द्रव्य-गुण--पर्याय
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जीव द्रव्य
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ज्ञान गुण
जानना पर्याय
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मैं जीव द्रव्य हूँ। ज्ञान मेरा गुण है। जानना मेरी पर्याय है । जीव-द्रव्य में ज्ञान गुण है । अजीव-द्रव्य में ज्ञान गुण नहीं है । जीव-द्रव्य जानता है ।
7/7/7/7/TITITIT/Timiy
अजीव-द्रव्य नहीं जानता ।
ΑΛΛΛΛΛΛΛΛΛΛΛΛΛΛΛΛΛΛΛΛΛΛΛΛΛΛΛΛΛΛΛΛΛΛΛΛΛΛΛΛΛΛΛΛΛΛΛΛΛΛΛΛΑΔΑ
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५. परीक्षा
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बालकों ! बताओ तुम कौन हो ? --- जीव जीव जीव । तुम्हारे में क्या है ? --- ज्ञान ज्ञान ज्ञान । तुम क्या करते हो ? --- जानते हैं जानते हैं जानते हैं । शरीर कौन है ? --- अजीव अजीव अजीव । क्या उसमें ज्ञान है ? --- ना ना ना ।। क्या वह किसी को जानता है ? --- ना ना ना । क्या शरीर तुम्हारा है ? --- ना ना ना । क्या शरीर का काम तुम करते हो ? --- ना ना ना ।
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(६. हाँ
और ना
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ttp://www.jainism.free-online.co.uk
बताओ---
तुम जीव हो ? --- हाँ हाँ हाँ ।
शरीर जीव है? --- ना ना ना । तुम्हारे में ज्ञान है ? --- हाँ हाँ हाँ । शरीर में ज्ञान है ? --- ना ना ना । तुम सबको जानते हो ? --- हाँ हाँ हाँ । शरीर कुछ जानता है ? --- ना ना ना । तुम शरीर को जानते हो ? --- हाँ हाँ हाँ । तुम शरीर का काम करते हो ? --- ना ना ना । ___तुम्हें सुखी होना है ? --- हाँ हाँ हाँ ।।
तुम्हें दुःखी होना है ? --- ना ना ना ।। तुम आत्मा को पहिचानोगे ? --- हाँ हाँ हाँ । तुम अज्ञानी रहोगे ? --- ना ना ना ।
17/7/7/7/7/7/7/7/3//2imirmir/m/7/7/7/7/2i7/7/7/7/7/7/Viriy/7/7/7/2/7/
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Zam अभ्य
७. धर्म
http://www.jainism.free-online.co.uk,
मुझे सुखी होना है ।
जो धर्म करता है वह सुखी होता है ।
जो धर्म नहीं करता वह दु:खी होता है ।
मुझे धर्म करना है ।
जीव में धर्म होता है ।
शरीरमें धर्म नहीं होता ।
_http://www.AtmaDharma.com
मैं जीव हूँ, मुझमें शरीर अजीव है, उसमें धर्म नहीं होता ।
जीव एक द्रव्य है ।
धर्म उसकी पर्याय है ।
धर्म होता है ।
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.. समझ
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ज्ञान से धर्म होता है। अज्ञान से अधर्म होता है । जिस में ज्ञान होता है वह धर्म को समझता है । जीव में ज्ञान है । जीव धर्म को समझता है । शरीर में ज्ञान नहीं है । वह धर्म नहीं समझता । मैं जीव हूँ। मुझ में ज्ञान है। मैं अपने ज्ञान से धर्म को समझता हूँ ।
...
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.
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(९. भगवान)
अरिहंत भगवान
सिद्ध भगवान
UUUUUUUUUUUUUUUUUUUUUUUUUUUUUUUUUUUUUUUUUUUUUUUUUUUUUUUUUUUUUUUUUUUUUUUUUUUUUUUUUUUUUUUUUUUUUUUUUUUUUUUUUUUUUUUUUUUUUUUUUUUUUUUUUUUUUUUUUUUUUUUUUUUUUUUUUUUUUUU
' णमो अरिहंताणं ।
णमो सिद्धाणं " धर्म अर्थात् आत्मा की समझ । जो आत्मा को समझता है वह भगवान होता है । भगवान को पूरा ज्ञान होता है । भगवान को तनिक भी राग नहीं होता । भगवान सबको जानते हैं । भगवान किसी का कुछ नहीं करते । भगवान को भूख नहीं लगती । भगवान कुछ नहीं खाते । 'अरिहंत' भगवान हैं । ‘सिद्ध' भगवान हैं । महावीर भगवान सिद्ध हैं । सीमंधर भगवान अरिहंत हैं । अरिहंतों को शरीर होता है । सिद्धों को शरीर नहीं होता । प्रतिदिन भगवान के दर्शन करना चाहिये ।।
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१०० गुरु
PHETANA.
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‘णमो आइरियाणं। णमो उवज्झायाणं। णमो लोए सव्वसाहूणं ' इधर एक मुनि हैं । मुनि हमारे गुरु हैं । वे आत्मा के ध्यान में बैठे हैं । पास में कमण्डल और पीछी है । सच्चे मुनि को आत्मज्ञान होता है । कुन्दकुन्द मुनि आचार्य थे। आचार्य भी मुनि हैं, उपाध्याय भी मुनि हैं, साधु भी मुनि हैं । सब मुनि हमारे गुरु हैं । गुरु हम को धर्म का उपदेश देते हैं । सदा गुरु के दर्शन , विनय और भक्ति करना ।
Timiy/7/7/2i7/7/7/7//
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( ११. शास्त्र
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मर
मैं ज्ञायक हँ
यह समयसार है। वह एक शास्त्र है। शास्त्र आत्मा को समझाते हैं । ज्ञानी जिसकी रचना करें वह शास्त्र है । शास्त्र से आत्मा की पहिचान होती है । शास्त्र में ज्ञान नहीं है। वह कुछ जानता नहीं है। जीव में ज्ञान है । वह सब कुछ जानता है । समयसार शास्त्र बहुत अच्छा है । इससे आत्मा का ज्ञान होता है । कुन्दकुन्द आचार्य ने इसकी रचना की है । सदा शास्त्र का दर्शन और स्वाध्याय करना चाहिये ।
शास्त्र को जिनवाणी कहते हैं ।
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MAIN
जैन बालककी लोरी
ttp://www.jainism.free-online.co.uk
Inita
mabhama.com
'अरिहंत' पिताजी तेरे, ‘जिनवाणी' माता तेरी,
मेरे भैया ! ‘अरिहंत' सहज है होना ।
tp://www.jainism.free-online.cook
'प्रभु सिद्ध' पिताजी तेरे, 'जिनवाणी' माता तेरी,
मेरे भैया ! ‘प्रभु सिद्ध' सहज है होना ।
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'आचार्य' पिताजी तेरे, 'जिनवाणी' माता तेरी,
मेरे भैया ! 'आचार्य' सहज है होना ।
'उपाध्याय' पिताजी तेरे, 'जिनवाणी' माता तेरी,
मेरे भैया ! 'उपाध्याय' सहज है होना ।
IMAHARBAR
'मुनिराज' पिताजी तेरे, 'जिनवाणी' माता तेरी,
मेरे भैया ! 'मुनिराज' सहज है होना ।
'जिनशासन' धर्म तुम्हारो, निज आतमको संभारो,
मेरे भैया ! 'जिन धर्म' सहज समझना।
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(१३० सम्यग्दर्शन
= मैं यही हूँ
,
सार __सम्यग्दृष्टि बालक
चैतन्यस्वभाव आतमा
http://www.Atmabharma.com
सम्यग्दर्शन अर्थात् सच्ची श्रद्धा । सच्ची श्रद्धा अर्थात् आत्माका विश्वास।
अपना आत्मा पूरा है, अपना आत्मा भगवान है । अपने आत्माका विश्वास करे तो सम्यग्दर्शन होवे ।
सम्यग्दर्शन हो तो अवश्य मोक्ष हो । सम्यग्दर्शन धर्म का मूल है ।
सम्यग्दर्शन प्रत्येक जीव के लिये बहुत आवश्यक है । सम्यग्दर्शन के बिना ही जीव संसार में भटकता है । सम्यग्दर्शन के बिना कभी भी धर्म नहीं होता । आत्मा की सच्ची श्रद्धा ही सबसे पहला धर्म है । आत्मा की झूठी श्रद्धा ही सबसे बड़ा पाप है ।
सबसे पहले क्या करोगे ? 'सम्यग्दर्शन का अभ्यास ।'
TimiluuuuuuuuuuuuuuuuuuuuuuuuuuuuuuuuuuuuuuuuuuuuuuuuuuuuuuuuuuuuuuuuuuuuuuuuuuuuuuuuuuuuuuuN
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( १४. सम्यग्ज्ञान )
us
शरीर
चैतन्यस्वरूपी
आत्मा
सम्यग्ज्ञानी बालक
http://www.AtmaDharma.com__
सम्यग्ज्ञान अर्थात् सच्ची समझ । सच्ची समझ अर्थात् आत्मा की पहिचान ।
* आत्मा ज्ञानवाला है, आत्मा शरीर से अलग है, जीवको राग होता है वह उसका गुण नहीं है।'
-- ऐसा समझे तो सच्चा ज्ञान हो । सच्चा ज्ञान हो तब झूठा ज्ञान हटे । सच्चा ज्ञान हो तब सुख प्रगटे । सच्चा ज्ञान हो तब धर्म हो । सच्चा ज्ञान हो तब संसार छूटे । सच्चा ज्ञान हो तब आप भगवान हो । सच्चा ज्ञान ही सब से पहला धर्म है । अज्ञान ही सबसे बड़ा पाप है ।
तुम क्या करोगे? 'आत्मा का सच्चा ज्ञान करेंगे; अज्ञान का नाश करेंगे।'
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(१५. सम्यक्चारित्र)
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सम्यक्चारित्र अर्थात् सच्चा आचरण ! आत्मा को पहचान कर उसमें रहना सो सम्यक्चारित्र है । जो आत्मा को पहचाने उसके ही सच्चा चारित्र होता है । जो आत्मा को नहीं पहचाने उसके सच्चा चारित्र नहीं होता। सम्यक्चारित्र सम-भाव है । सम्यक्चारित्र शान्ति है ।
सम्यक्चारित्र धर्म है। जिसके सम्यक्चारित्र हो उसे मुनि कहा जाता है ।
सम्यक्चारित्र से शीघ्र मोक्ष होता है । पहले सम्यकदर्शन और सम्यग्ज्ञान , पीछे सम्यक्चारित्र। सम्यकदर्शन,सम्यग्ज्ञान और सम्यक्चारित्र,तीनों मिलकर मोक्षका मार्ग है, और किसी तरह से भी मोक्ष नहीं होता ।
बालकों ! तुम भी आत्मा की पहचान करके
सम्यक्चारित्रकी भावना करो।
ܙܙܙܙܙܙܙܙܙܙܙܙܙܙܙܙܙܙܙܙܙܙ
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१६. जैन
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अहिंसा परमो धर्मः। मान्य
जैन जयतु शासनम
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जैन अर्थात् जीतने वाला
जैनधर्म अर्थात् आत्मा का स्वभाव ।
जो आतमा को पहचाने सो जैन कहलाये ।। आत्माको पहचान कर जो अज्ञान को जीते सो जैन । आत्माके वीतराग-भावसे जो राग-द्वेषको जीते सो जैन । जिसने राग-द्वेषको दूर किया है वह जिनदेव है । जिनदेव ही सच्चे भगवान हैं।
भगवान सर्वज्ञ हैं, भगवान वीतराग हैं । जैन मांस नहीं खाते । जैन मधु (शहद) नहीं खाते । जैन मदिरा नहीं पीते । जैन अण्डा नहीं खाते ।
जैन धर्म अनेकांतवादी है
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(१७. राजा की कहानी)
एक था राजा । वह जंगलमें शिकार करने गया । जंगल में एक मुनिराज थे । राजा ने उनको नमस्कार किया ।
मुनिराजने कहा – 'हे राजन् ! शिकार करनेसे पाप होता है। पापसे जीव नरकमें जाता है; वहाँ वह बहुत दुःखी होता है ।'
900
यह सुन कर राजा रो पड़ा; और मुनिराज से पूछा--'प्रभो ! मेरा पाप कैसे दूर हो और। मैं कैसे सुखी होऊँ ?' ।
RECE htrwww.sairiam.frrr-online..
___ मुनिराजने कहा --' हे राजन् ! सुख तेरे आत्मा में ही है। तू शिकार करना छोड़ दे और आत्मा की पहचान कर, इससे तू सुखी होगा।
इसके बाद राजा ने शिकार करना छोड़ दिया और मुनिराज के पास रहकर आत्मा की पहचान की तथा सुखी हुआ । अन्त में वह संसार से छूटकर मोक्ष में गया ।
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बालकों! पाप छोड़ो, आत्माको समझो तो सुखी होओगे।
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(१८. मुक्त और संसारी)
मुक्त
संसारी
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जीव दो तरह के हैं---एक मुक्त और दूसरे संसारी । मुक्त जीव शुद्ध हैं, संसारी जीव अशुद्ध हैं । मुक्त जीव मोक्षमें रहते हैं, वे पूरे सुखी हैं । उनके राग-द्वेष नहीं होते, उनके जन्म-मरण नहीं होते । वे कभी संसारमें नहीं आते, वे दूसरोंका कुछ नहीं करते ।
सिद्ध भगवान मुक्त जीव हैं ।
अरिहंत भगवान भी जीवनमुक्त हैं ।
संसारी जीवों को जन्म-मरण होते हैं । स्वर्ग के जीव संसारी हैं, नरक के जीव संसारी हैं । तिर्यंच के जीव संसारी हैं, मनुष्य के जीव भी संसारी हैं । संसारी जीव दुःखी हैं; मुक्त जीव सुखी हैं । आत्मा को न पहिचाने तब तक जीव संसार में रुलता है । यदि आत्मा को पहिचाने तो अवश्य मुक्ति पाता है।
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( १९. जीव और कर्म )
कर्म अजीव हैं। कर्म में ज्ञान नहीं है। जीव में ज्ञान है। जीव और कर्म अलग हैं । जीव में कर्म नहीं हैं । कर्म में जीव नहीं हैं ।
जीव अज्ञान से हैरान होता है । कर्म जीव को हैरान नहीं करते । जीव अपनी भूलसे दुःखी होता है । कर्म जीव को दुःखी नहीं करते ।
जीव की पहचान करना चाहिये । कर्म का दोष नहीं निकालना चाहिये । जीव को पहचानना धर्म है । कर्म का दोष निकालना अधर्म है ।।
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२०० श्री महावीर भगवान
क्या तुम भगवान महावीर को पहिचानते हो? जैसे तुम आत्मा हो वैसे भगवान महावीर भी एक आत्मा है। उन्होंने आत्मा की पहिचान की और राग-द्वेष को दूर किया । इसी से वे भगवान हुए। यदि तुम ऐसा करोगे तो तुम भी भगवान हो जाओगे ।
'महावीर' के पिताजीका नाम सिद्धार्थ राजा और माता का नाम त्रिशलादेवी था । उनका जन्म चैत्र सुदी १३ के दिन वैशाली के कुण्डलपुरमें हुआ था। जन्मसे ही वे महान आत्मज्ञानी और वैरागी थे । स्वर्ग से देव उनकी सेवा करने आते थे और छोटे छोटे बालकों का रूप धारण कर उनके साथ खेलते थे।
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खेलते हुए एक दिन एक देव ने बड़े सर्प का रूप बनाया और बालकों को डराने लगा, किन्तु महावीर ने उसे उठाकर दूर फेंक दिया ।
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फिर, एक बार राजा का हाथी पागल होकर भागा और लोगों को परेशान करने लगा, तब बालक महावीर ने आकर उसे शांत कर दिया।
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राजकुमार महावीर जब बड़े हुए तब एक बार उनको अपने पूर्वभव का ज्ञान हुआ।
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पूर्वभव का ज्ञान होते ही उनको बहुत वैराग्य जागृत हुआ, जिससे वे दीक्षा लेकर मुनि हो गये।
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उनको आत्माकी पहिचान तो थी ही। मुनि होने के बाद । आत्मा का ध्यान करने लगे। आत्मा के ध्यान से उनके ज्ञान की शुद्धता बढ़ने लगी और राग छूटने लगा । ऐसा करते करते सम्पूर्ण राग का नाश हो गया और पूर्ण ज्ञान प्रगट हुआ। इससे वे भगवान हुए, अरिहंत हुए।
इसके बाद उनका धर्मोपदेश होने लगा। उपदेश सुनने । के लिये जीवों के झुण्ड के झुण्ड आये । स्वर्ग के देव आये
और बड़े बड़े राजा आये। आठ वर्ष के बालक भी आये और उन्होंने आत्मा को समझा । जंगल से सिंह आये, भालू आये, हाथी आये, बन्दर आये
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बड़े बड़े सर्प आये और छोटे छोटे मेंढ़क भी आये। और उन्होंने आत्मा को समझा।
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महावीर भगवान ने बहुत वर्षों तक धर्मका उपदेश देकर जैनधर्म का बहुत प्रसार किया । अन्तमें वे पावापुरी से मोक्ष पधारे । पहले वे अरिहन्त थे । अब सिद्ध हो गये ।
कार्तिक कृष्ण अमावसके प्रातः काल में वे मोक्ष पधारे। अत: उस दिन सर्वत्र दीपावली महोत्सव मनाया जाता है ।
इस समय महावीर भगवान मोक्ष में विराजमान हैं, वहाँ वे पूर्ण आनन्द में हैं।
बालकों ! महावीर भगवान की तरह तुम भी आत्मा को पहिचानो, राग-द्वेष को त्यागो और मोक्ष को प्राप्त करो।
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( २१० इतना करना )
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बालकों ! सवेरे जल्दी उठना । उठकर आत्मा का विचार करना । प्रभुका स्मरण करना और नमस्कार मंत्र बोलना । फिर स्वच्छ वस्त्र पहिनकर जिनमंदिर जाना । जिनमंदिर जाकर भगवान के दर्शन करना । इसके बाद शास्त्रजी को वंदन करना ,
और उनका पठन करना । फिर गुरुजी के दर्शन करना , उनका उपदेश सुनना, और सुनकर विचार करना । हर रोज इतना करना । ऐसा करने से तुम्हारा जीवन पवित्र होगा ।
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२२. अच्छी अच्छी शिक्षायें
- नाम
सु
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१० ) आत्मदेव को कभी न भूलना, हिंसा कभी नहीं करना 11
२०) सिद्ध प्रभूको कभी न भूलना,
झूठी बात कभी नहीं करना ।।
३० ) गुरुकी स्तुति करना न भूलना,
चोरी कभी नहीं करना ।। ४.) शास्त्र जहाँ तहाँ कभी न रखना,
रात्रिभोजन कभी न करना ।।
संतोषी रहना, ममता कभी नहीं करना ।।
५०) सदा शान्त,
६०) इन बातों को जरूर मानना,
इतना तू अवश्य करना ।।
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(२३० कभी
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कभी धर्म छोड़ना नहीं । कभी क्रोध करना नहीं । कभी हठ करना नहीं । कभी कपट करना नहीं । कभी लालच करना कभी दया छोड़ना नहीं । कभी भय करना नहीं । कभी प्रमाद करना नहीं । कभी जुआ खेलना नहीं । कभी अन्याय करना नहीं । कभी निंदा करना नहीं । कभी दोष छिपाना नहीं ।
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२४. धन
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१. सहजानंदी शुद्ध स्वरूपी, अविनाशी मैं आत्मस्वरूप ।।
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२. हम हैं जिनवर की संतान , सदा करेंगे आतमज्ञान ।।
'
३. देव हमारे श्री अरहंत, गुरु हमारे निर्ग्रन्थ सन्त ।।
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४. अरिहंत की जय ... जिनवाणी की जय।
गुरुदेव की जय . . . जिनधर्म की जय।
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५. देह मरे भले, मैं नहीं मरता,
अजर-अमर मैं आत्मस्वरूप ।।
६. ' आत्म-भावना करते
करते होता केवलज्ञान ।'
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(२५० वंदन)
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१ वंदन हमारा प्रभुजी तुम को।
वंदन हमारा गुरुजी तुम को। वंदन ।। २ वंदन हमारा सिद्ध प्रभू को।
वंदन हमारा अरिहंत देव को। वंदन ।। ३ वंदन हमारा साधु भगवंत को।
वंदन हमारा धर्म - शास्त्र को। वंदन ।। ४ वंदन हमारा सभी ज्ञानी को।
वंदन हमारा चैतन्य - देव को। वंदन।। ५ वंदन हमारा आत्म - स्वभाव को।
वंदन हमारा आत्म - प्रभु को। वंदन ।।
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२६० आत्मदेव
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वही
१ मुझे देखना आतम देव कैसा है ? देव
क्या करता है? मुझे देखना.।। २ वही देवाधिदेव, वही भगवान जो,
परमेश्वर कैसा है ? मुझे देखना.।। ३ जाने सभी विश्व, झलके सभी जहाँ,
दर्पण समान देव कैसा है ? मुझे देखना।। ४ न्यारा है विश्व से, न्यारा है देह से,
आनन्द से एकमेक कैसा है? मुझे देखना.।। ५ जन्मे मरे नहीं, राजा या रंक नहीं, ___सागर आनन्द का कैसा है? मुझे देखना.।। ६ आँखों दिखे नहीं, कानों सुनू नहीं,
ज्ञान में समाय, वह कैसा है? मुझे देखना.।।
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(२७. मुझे बताओ)
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बताओ, आत्मा कैसा है? कैसा है, कहाँ रहता है ? मुझे।। जाने सभी देखे सभी को,
वह आत्मा कैसा है? मुझे ।। ३ आप ही प्रभू है, आप ही सिद्ध है,
आप ही ज्ञान का दरिया है।। मुझे ।। ४ भिन्न शरीर से, भिन्न वचन से
तो भी आनंद से भरिया है।। मुझे।। ५ जन्म बिना का, मरण बिना का,
वह राग बिना का, कैसा है? मुझे ।। ६ जो दीखे न आँखसे, दिखे जो ज्ञान से,
मुझे मेरे जीव को देखना है।। मुझे ।।
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२८. मेरी भावना
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दर्शन
१ मुझे प्रभूका मुझे आत्माका दर्शन
सेवा
२ मुझे ज्ञानीकी मुझे समझ
सच्ची शास्त्रका करना है।
३ मुझे पठन मुझे मोह
अंधेरा
४ मुझे वैराग्य
मुझे संग मुनि ५ मुझे संसार मुझे झटपट
सच्चा
का
से पार
मोक्ष में
करना 1
करना है ।। मुझे ।।
करनी है।
करनी है। मुझे ।।
हरना है ।। मुझे ।।
करना है।
करना है।। मुझे॰।। होना है।
जाना है ।। मुझे ० ।।
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जैन बालपोथीके प्रश्न
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बालकों , तुमने यह जैन बालपोथी पढ़ ली है; अब नीचे दिये हुए प्रश्नों के उत्तर ढूँढ़ो। इससे तुम्हारा अभ्यास पक्का होगा और तुम्हें आनन्द आयेगा। यह प्रश्न परीक्षा में तथा बालकों को एक दूसरे के साथ प्रश्नोत्तर करने में उपयोगी होंगे।
१. मैं कौन हूँ? २० मुझमें क्या है ? ३. हम किसकी संतान हैं ? ४. तुम्हें क्या पढ़ना अच्छा लगता है ? ५. तुम बड़े होकर क्या करोगे ? ६. तुम जीव हो या शरीर ? ७. ज्ञान जीव में होता है या शरीर में ? ८. जीव और शरीर में क्या अन्तर है ? ९. जीव और शरीर एक हैं या भिन्न ? १०. तुम किससे जानते हो ? ११. आँखके बिना देखा जा सकता है क्या ? १२. शरीर किसको जानता है ? १३. तुम कौन से द्रव्य हो ?----जीव या अजीव ? १४. तुममें कौन सा गुण है ? १५. जानना वह किसकी पर्याय है ? १६. जीव द्रव्य और अजीव द्रव्य दोनों में क्या अन्तर है ? १७. शरीर कौन है ?
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१८. तुम कौन हो? १९. क्या जीव शरीर से काम करता है ? २०. क्या जीव शरीर को जानता है ? २१. क्या शरीर में ज्ञान होता है ? २२. सुखी होने के लिये तुम क्या करोगे ? २३. धर्म करने से क्या होता है ? २४. आत्माको पहिचाने बिना सुख होता है या नहीं ? २५० पैसे से सुख मिलता है या नहीं ? २६. धर्म न करे तो जीव को क्या हो ? २७. धर्म जीव में होता है या शरीर में ? २८. धर्म वह द्रव्य है या पर्याय ? २९. धर्म किसकी पर्याय है ? ३०. तुम किस प्रकार धर्म करोगे ? ३१. धर्म किसमें होता है ? ३२. धर्म किससे होता है ? ३३. धर्म किसे कहते हैं ? ३४. भगवान होना हो तो क्या करना ? ३५. भगवान को क्या होता है ? और क्या नहीं होता? ३६. क्या भगवान कुछ खाते हैं ? ३७. अरिहंत और सिद्धमें क्या अन्तर है? ३८. महावीर भगवान इस समय सिद्ध हैं या अरिहंत ? ३९. इस समय जो अरिहंत हों ऐसे भगवान का क्या नाम है ? ४०. नमस्कार मंत्र शुद्ध एवं सुन्दर अक्षरों में लिखो ? ४१. जंगल में कौन ध्यान में बैठे हैं ? ४२. अपने गुरु कौन हैं ? ४३० गुरु के पाठ में एक आचार्य का नाम लिखा है वे कौन हैं ? ४४. एक महान शास्त्र का नाम लिखो। ४५. शास्त्र हमें क्या समझाते हैं ? ४६. ज्ञान शास्त्र में होता है या जीव में ? ४७. तुमने कभी समयसार शास्त्र को हाथमें लेकर देखा है ? ४८. शास्त्र किसे कहते हैं ?
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४९. समयसार - शास्त्र की रचना किसने की ? ५०० एक माता अपने बालकके लिये कैसी लोरी गाती है ? ५९. अपनी धार्मिक माता कौन है ?
५२. आत्मा की सच्ची श्रद्धा को क्या कहते हैं ?
५३. सम्यग्दर्शन हो उसे क्या मिलता है ?
५४. धर्मका मूल क्या है ?
५५० जीव संसार में क्यों भटक रहा है ? ५६. सबसे पहला धर्म कौनसा ?
५७. सबसे बड़ा पाप क्या ?
५८. सम्यग्ज्ञान किसे कहते हैं ?
५९. सम्यग्ज्ञान से अपना आत्मा कैसे समझमें आता है ?
६०. जिसे सच्चा चरित्र हो उसे क्या कहते हैं ?
६९. कौन-सी तीन वस्तुओं की एकता से मोक्षमार्ग होता है ?
६२० आत्मा को पहिचाने बिना मोक्ष होता है कि नहीं ?
६३. सच्चा चारित्र और मुनिदशा किसे हो सकती है ?
६४. जैन किसे कहते हैं ?
६५० जिसने राग-द्वेष को दूर कर दिया उसे क्या कहते हैं ? ६६. जिनदेव कैसे हैं ?
६७. एक था राजा; वह किसलिये रो पड़ा ?
६८. सुखी होने के लिये मुनि ने राजा को क्या उपाय बतलाया ?
६९. जीव दो प्रकार के हैं
वे कौन-कौन से ?
७०. स्वग के जीव संसारी हैं या मुक्त ?
७९. जीव कब तक संसार में भटकता है ? ७२० मुक्त होने के लिये जीव को क्या करना चाहिये ? ७३० कर्म जीव है या अजीव ? ७४. क्या जीव में कर्म हैं ?
७५० जीव किससे दुःखी होता है ? - अज्ञान से या कर्म से ? ७६. महावीर ने क्या किया कि जिससे वह भगवान हुए ? ७७. महावीर भगवान का जन्म दिन कौन सा है ? और उनकी माताजी का नाम क्या ?
७८० पूर्वभव का ज्ञान होने पर भगवान ने क्या किया ?
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७९. मुनि होने के बाद भगवान क्या करते थे ? ८०. भगवान का उपदेश सुनने के लिये कौन-कौन आया ? ८१. महावीर भगवान कहाँ से मोक्ष गये? ८२० इस समय महावीर भगवान अरिहंत हैं या सिद्ध ? ८३० वे इस समय कहाँ रहते होंगे ? ८४. सवेरे जल्दी उठकर तुम क्या करोगे ? ८५. अपने को प्रतिदिन क्या-क्या करना चाहिये ? ८६० एक माता अपने बालक को अच्छी-अच्छी शिक्षाएँ देती
है, उसमें सबसे पहले क्या कहती है ? ८७. क्या हम जैन लोग रात्रि भोजन करेंगे ? ८८. तुम प्रतिदिन क्या करोगे ? ८९० तुम कभी क्या नहीं करोगे? ९०० आत्म-भावना भाने से क्या मिलता है ? ९१. 'सहजानन्दी शुद्ध स्वरूपी अविनाशी'--यह कौन है ? ९२. हमारे देव कौन हैं ? ९३० देह और जीव में अमर कौन हैं ? ९४. 'वन्दन हमारा'०००में तुम किस-किसको वन्दन करते हो ? ९५० आत्मदेव कैसा है ? [ पाठ २६ की कविता] ९६० एक बालक क्या देखना चाहता है ? ९७. आत्मा आँखसे दिखायी देता है या नहीं? ९८० आत्मा किससे दिखायी देता है ? ९९. जन्म बिनाका, मरण बिनाका ०००d[ आगे क्या है ? ] १००० आप ही प्रभु हैं, आप ही सिद्ध००००० [ पूर्ण कीजिये] १०१. तुम्हें किसका दर्शन करना है ? १०२० तुम्हें किसकी सेवा करनी है ? १०३० तुम्हें क्या करना अच्छा लगता है ? १०४. तुम्हें किससे छूटना है ? १०५० तुम्हें झट-झट कहाँ जाना है ? १०६० तुम प्रतिदिन धर्म का अध्ययन करते हो या नहीं ? १०७. तुम्हारी माता तुम्हें धर्मकी कहानियाँ सुनाती हैं या नहीं ? १०८. तुम प्रतिदिन भगवान का दर्शन करते हो या नहीं ?
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________________ Version 002: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates 109. 'वीर प्रभु की हम संतान'---- यह गीत तुम्हें आता है ? 1100 पंचरंगी जैन ध्वज का चित्र बनाओ! [ पाठ 16 ] 111. क्या अब इस बालपोथी का दूसरा भाग भी तुम पढ़ोगे? / / जयजिनेन्द्र।। Please inform us of any errors on rajesh@AtmaDharma.com