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( १४. सम्यग्ज्ञान )
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शरीर
चैतन्यस्वरूपी
आत्मा
सम्यग्ज्ञानी बालक
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सम्यग्ज्ञान अर्थात् सच्ची समझ । सच्ची समझ अर्थात् आत्मा की पहिचान ।
* आत्मा ज्ञानवाला है, आत्मा शरीर से अलग है, जीवको राग होता है वह उसका गुण नहीं है।'
-- ऐसा समझे तो सच्चा ज्ञान हो । सच्चा ज्ञान हो तब झूठा ज्ञान हटे । सच्चा ज्ञान हो तब सुख प्रगटे । सच्चा ज्ञान हो तब धर्म हो । सच्चा ज्ञान हो तब संसार छूटे । सच्चा ज्ञान हो तब आप भगवान हो । सच्चा ज्ञान ही सब से पहला धर्म है । अज्ञान ही सबसे बड़ा पाप है ।
तुम क्या करोगे? 'आत्मा का सच्चा ज्ञान करेंगे; अज्ञान का नाश करेंगे।'
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