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(१३० सम्यग्दर्शन
= मैं यही हूँ
,
सार __सम्यग्दृष्टि बालक
चैतन्यस्वभाव आतमा
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सम्यग्दर्शन अर्थात् सच्ची श्रद्धा । सच्ची श्रद्धा अर्थात् आत्माका विश्वास।
अपना आत्मा पूरा है, अपना आत्मा भगवान है । अपने आत्माका विश्वास करे तो सम्यग्दर्शन होवे ।
सम्यग्दर्शन हो तो अवश्य मोक्ष हो । सम्यग्दर्शन धर्म का मूल है ।
सम्यग्दर्शन प्रत्येक जीव के लिये बहुत आवश्यक है । सम्यग्दर्शन के बिना ही जीव संसार में भटकता है । सम्यग्दर्शन के बिना कभी भी धर्म नहीं होता । आत्मा की सच्ची श्रद्धा ही सबसे पहला धर्म है । आत्मा की झूठी श्रद्धा ही सबसे बड़ा पाप है ।
सबसे पहले क्या करोगे ? 'सम्यग्दर्शन का अभ्यास ।'
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