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(१८. मुक्त और संसारी)
मुक्त
संसारी
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044
का
નારી છે
અરેહતો
।
जीव दो तरह के हैं---एक मुक्त और दूसरे संसारी । मुक्त जीव शुद्ध हैं, संसारी जीव अशुद्ध हैं । मुक्त जीव मोक्षमें रहते हैं, वे पूरे सुखी हैं । उनके राग-द्वेष नहीं होते, उनके जन्म-मरण नहीं होते । वे कभी संसारमें नहीं आते, वे दूसरोंका कुछ नहीं करते ।
सिद्ध भगवान मुक्त जीव हैं ।
अरिहंत भगवान भी जीवनमुक्त हैं ।
संसारी जीवों को जन्म-मरण होते हैं । स्वर्ग के जीव संसारी हैं, नरक के जीव संसारी हैं । तिर्यंच के जीव संसारी हैं, मनुष्य के जीव भी संसारी हैं । संसारी जीव दुःखी हैं; मुक्त जीव सुखी हैं । आत्मा को न पहिचाने तब तक जीव संसार में रुलता है । यदि आत्मा को पहिचाने तो अवश्य मुक्ति पाता है।
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