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उनको आत्माकी पहिचान तो थी ही। मुनि होने के बाद । आत्मा का ध्यान करने लगे। आत्मा के ध्यान से उनके ज्ञान की शुद्धता बढ़ने लगी और राग छूटने लगा । ऐसा करते करते सम्पूर्ण राग का नाश हो गया और पूर्ण ज्ञान प्रगट हुआ। इससे वे भगवान हुए, अरिहंत हुए।
इसके बाद उनका धर्मोपदेश होने लगा। उपदेश सुनने । के लिये जीवों के झुण्ड के झुण्ड आये । स्वर्ग के देव आये
और बड़े बड़े राजा आये। आठ वर्ष के बालक भी आये और उन्होंने आत्मा को समझा । जंगल से सिंह आये, भालू आये, हाथी आये, बन्दर आये
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बड़े बड़े सर्प आये और छोटे छोटे मेंढ़क भी आये। और उन्होंने आत्मा को समझा।
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