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जगत का कौन ?
जगत कर्ता कौन?
ये दुनिया का कोई क्रियेटर नहीं है। ये दुनिया का कोई कर्ता है नहीं। भगवान भी कर्ता नहीं और आप भी कर्ता नहीं और कर्ता बिना ये दुनिया हई भी नहीं। हम विरोधाभास बोलते है न? मगर ये समझने जैसी बात है। 'कर्ता नहीं है' याने कोई स्वतंत्र कर्ता नहीं है और कर्ता है',वो नैमित्तिक कर्ता है।
-दादाश्री
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दादा भगवान प्ररूपित
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दादा भगवान प्ररूपित
प्रकाशक : श्री अजीत सी. पटेल
महाविदेह फाउन्डेशन 5, ममतापार्क सोसायटी, नवगुजरात कॉलेज के पीछे, उस्मानपुरा, अहमदाबाद - ३८००१४, गुजरात फोन - (०७९) २७५४०४०८, २७५४३९७९ e-mail: info@dadabhagwan.org
All Rights reserved - Mr. Deepakbhai Desai Trimandir, Simandhar City, Ahmedabad-Kalol Highway, Post - Adalaj, Dist.-Gandhinagar-382421, Gujarat, India.
जगत कर्ता कौन ?
प्रथम आवृत्ति : ३००० प्रतियाँ,
मार्च, २००८
भाव मूल्य : 'परम विनय' और
'मैं कुछ भी जानता नहीं', यह भाव! द्रव्य मूल्य : १५ रुपये
लेज़र कम्पोज : दादा भगवान फाउन्डेशन, अहमदाबाद.
मुद्रक
मूल संकलन : डॉ. नीरूबहन अमीन
: महाविदेह फाउन्डेशन (प्रिन्टिंग डिवीज़न), पार्श्वनाथ चैम्बर्स, नये रिजर्व बैंक के पास, इन्कमटैक्ष, अहमदाबाद-३८००१४. फोन : (०७९) ३०००४८२३, २७५४२९६४
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त्रिमंत्र
दादा भगवान कौन? जून १९५८ की एक संध्या का करीब छ: बजे का समय, भीड़ से भरा सूरत शहर का रेल्वे स्टेशन, प्लेटफार्म नं. 3 की बेंच पर बैठे श्री अंबालाल मूलजीभाई पटेल रूपी देहमंदिर में कुदरती रूप से, अक्रम रूप में, कई जन्मों से व्यक्त होने के लिए आतुर 'दादा भगवान' पूर्ण रूप से प्रकट हुए और कुदरत ने सर्जित किया अध्यात्म का अद्भूत आश्चर्य। एक घण्टे में उनको विश्व दर्शन हुआ । 'मैं कौन हूँ? भगवान कहाँ है ? यह जगत कौन चलाता है ? कर्म क्या? मुक्ति क्या ?' इत्यादि जगत के सारे आध्यात्मिक प्रश्नों के संपूर्ण रहस्य प्रकट हुए। इस तरह कुदरत ने विश्व के सन्मुख एक अद्वितीय पूर्ण दर्शन प्रस्तुत किया और उसके माध्यम बने श्री अंबालाल मूलजीभाई पटेल, चरोतर क्षेत्र के भादरण गाँव के पाटीदार, कान्ट्रेक्ट का व्यवसाय करनेवाले, फिर भी पूर्णतया वीतराग पुरुष!
उन्हें प्राप्ति हुई, उसी प्रकार केवल दो ही घण्टों में अन्य मुमुक्षु जनों को भी वे आत्मज्ञान की प्राप्ति करवाते थे, उनके अद्भुत सिद्ध हुए ज्ञानप्रयोग से। इस मार्ग को अक्रम मार्ग कहा गया। अक्रम अर्थात बिना क्रम के, और क्रम अर्थात सीढ़ी दर सीढ़ी, क्रमानुसार ऊपर चढ़ना। अक्रम अर्थात लिफ्ट मार्ग, शॉर्ट कट। ___ दादाश्री स्वयं प्रत्येक को 'दादा भगवान कौन ?' का रहस्य बताते हुए कहते थे कि "यह दिखाई देनेवाले दादा भगवान नहीं है, वे तो 'ए. एम. पटेल' है। हम ज्ञानीपुरुष हैं और भीतर प्रकट हए हैं. वे 'दादा भगवान' हैं। दादा भगवान तो चौदह लोक के नाथ हैं। वे आप में भी हैं. सभी में हैं। आपमें अव्यक्त रूप में रहे हुए हैं और 'यहाँ' हमारे भीतर संपूर्ण रूप से व्यक्त हुए हैं। दादा भगवान को मैं भी नमस्कार करता हूँ।" ___ 'व्यापार में धर्म होना चाहिए, धर्म में व्यापार नहीं', इस सिद्धांत से उन्होंने पूरा जीवन बिताया। जीवन में कभी भी उन्होंने किसी के पास से पैसा नहीं लिया बल्कि अपने पैसों से भक्तों को यात्रा करवाते थे।
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आत्मज्ञान प्राप्ति की प्रत्यक्ष लींक 'मैं तो कुछ लोगों को अपने हाथों सिद्धि प्रदान करनेवाला हूँ। पीछे अनुगामी चाहिए कि नहीं चाहिए? पीछे लोगों को मार्ग तो चाहिए न?'
- दादाश्री परम पूजनीय दादाश्री गाँव-गाँव, देश-विदेश परिभ्रमण करके मुमुक्षु जनों को सत्संग और आत्मज्ञान की प्राप्ति करवाते थे। दादाश्री ने अपने जीवनकाल में ही पूजनीय डॉ. नीरूबहन अमीन (नीरूमाँ) को आत्मज्ञान प्राप्त करवाने की ज्ञानसिद्धि प्रदान की थी। दादाश्री के देहविलय पश्चात् नीरूमाँ वैसे ही मुमुक्षुजनों को सत्संग और आत्मज्ञान की प्राप्ति. निमित्त भाव से करवा रही थी। पूज्य दीपकभाई देसाई को भी दादाश्री ने सत्संग करने की सिद्धि प्रदान की थी। नीरूमाँ की उपस्थिति में ही उनके आशीर्वाद से पूज्य दीपकभाई देश-विदेशो में कई जगहों पर जाकर मुमुक्षुओं को आत्मज्ञान करवा रहे थे, जो नीरूमाँ के देहविलय पश्चात् जारी है। इस आत्मज्ञानप्राप्ति के बाद हजारों मुमुक्षु संसार में रहते हुए, जिम्मेदारियाँ निभाते हुए भी मुक्त रहकर आत्मरमणता का अनुभव करते हैं।
इस पुस्तिका में मुद्रित वाणी मोक्षार्थी को मार्गदर्शक के रूप में अत्यंत उपयोगी सिद्ध हो, लेकिन मोक्षप्राप्ति हेतु आत्मज्ञान पाना जरूरी है। अक्रम मार्ग के द्वारा आत्मज्ञान की प्राप्ति आज भी जारी है, इसके लिए प्रत्यक्ष आत्मज्ञानी को मिलकर आत्मज्ञान की प्राप्ति करे तभी संभव है। प्रज्वलित दीपक ही दूसरा दीपक प्रज्वलित कर सकता है।
निवेदन परम पूज्य दादा भगवान की श्रीमुख वाणी से नीकली ज्ञानवाणी जिसको ओडियो कैसेट में रिकार्ड किया गया था। उस ज्ञानवाणी को
ओडियो कैसेट में से ट्रान्स्क्राइब करके बहत सालों पहले आप्तवाणी ग्रंथ बनाया गया था। उसी ग्रंथ को फिर से संकलित करके निम्नलिखित सात छोटे-छोटे पुस्तक बनाये गये हैं। ताकि पाठक को पढ़ने में सुविधा हो।
1. ज्ञानी पुरूष की पहचान 2. कर्म का विज्ञान 3. सर्व दुःखों से मुक्ति 4. आत्मबोध 5. जगत कर्ता कौन? 6. अंत:करण का स्वरूप 7. यथार्थ धर्म
परम पूज्य दादाश्री हिन्दी में बहुत कम बोलते थे। कभी हिन्दी भाषी लोग आ जाते थे, जो गुजराती नहीं समझ पाते थे, उनके लिए दादाश्री हिन्दी बोल लेते थे। उनकी हिन्दी 'प्योर' हिन्दी नहीं है, फिर भी सुननेवाले को उनका अंतर आशय 'एक्जैक्ट' पहुँच जाता है। उनकी वाणी हृदयस्पर्शी, मर्मभेदी होने के कारण, जैसी निकली वैसी ही संकलित करके प्रस्तुत की गई है, ताकि जिज्ञासु वाचक को उनके 'डाइरेक्ट' शब्द पहुँचे। उनकी हिन्दी याने गुजराती, अंग्रेजी और हिन्दी का मिश्रण। फिर भी सुनने में, पढ़ने में बहुत मीठी लगती है, नेचरल लगती है, जीवंत लगती है। जो शब्द है, वह भाषाकीय दृष्टि से सीधेसादे हैं किन्तु 'ज्ञानीपुरुष' का 'दर्शन' निरावरण है, इसलिए उनके प्रत्येक वचन आशयपूर्ण, मार्मिक, मौलिक और सामनेवाले के व्यपोइन्ट को एक्जैक्ट समझकर निकलने के कारण श्रोता के 'दर्शन' को सुस्पष्ट खोल देते हैं और ज्ञान की अधिक ऊँचाई पर ले जाते हैं।
- डॉ. नीरबहन अमीन
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एविडन्स से चलता है। जिसको परम पूज्य दादाश्री 'व्यवस्थित शक्ति' कहते हैं।
संपादकीय अनादि काल से जगत की वास्तविकता जानने का मनुष्य का प्रयत्न है मगर वह सही जान नहीं पाया। मुख्यत: वास्तविकता में मैं कौन हूँ, इस जगत को चलानेवाला कौन है तथा इस जगत का रचयिता कौन है, यह जानना है। प्रस्तुत संकलन में सच्चा कर्ता कौन है, यह रहस्य खुल्ला किया गया है।
जगत में कोई भी स्वतंत्र कर्ता नहीं है मगर सब नैमितिक कर्ता है, सभी निमित्त है । गीता में भी भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को कहा था कि हे अर्जुन! तु इस युद्ध में निमित्त मात्र है, तु युद्ध का कर्ता नहीं है।
परम पूज्य दादाश्री ने अनेक दृष्टांत देकर नैमित्तिक कर्ता का सिद्धांत समझाया हैं। एक कप चाय बनानी हो तो? कोई बोलेगा, मैंने चाय बनायी... मगर वास्तविकता में देखने जाये तो पानी, चीनी, चाय की पत्ती, दूध, बर्तन, स्टव, दियासलाई, कप, कितनी सारी चीजें हो तब एक कप चाय बनेगी। तो किसने चा बनाई?Only Scientific Circumstantial Evidences (वैज्ञानिक सांयोगिक प्रमाण) से हुआ। यह तो अज्ञानता से, भ्रांति से अहंकार करता है कि मैंने किया। मगर सारे संयोग की वजह से कोई भी कार्य होता है।
आम तौर पर अच्छा हुआ तो 'मैंने किया' मान लेता है और बुरा हुआ तो दूसरे पर आक्षेप देता है कि इसने बिगाड़ दिया।' नहीं तो मेरी ग्रहदशा बिगड़ गई है' बोलेगा या तो भगवान ने किया ऐसा भी आक्षेप दे देता है। यह सब रोंग बिलिफें हैं। भगवान क्या पक्षपात करनेवाला है की आपका नुकशान करे?
यह दुनिया किसने बनायी ? अगर बनानेवाला होगा तो उसको किसने बनाया ? फिर उसको भी किसने बनाया? याने उसका अंत ही नहीं है। और दूसरा यह भी प्रश्न उपस्थित होता है कि. दनिया उसको बनानी ही थी, तो फिर ऐसी कैसी दुनिया बनाई कि जिसमें सभी दु:खी हैं ? किसी को भी सुख नहीं है ? उसकी मज़ा और अपनी सजा, यह कैसा न्याय ?!
इस विज्ञान ने साबित किया है कि विश्व में शाश्वत तत्त्व है। शाश्वत यानी जिसकी उत्पत्ति नहीं और जिसका विनाश भी नहीं यानी अनादिअनंत । अपने भीतरवाला आत्मा भी शाश्वत हैं। यह जगत किसी ने नहीं बनाया, उसका नाश भी नहीं है। यह जगत था, है और रहेगा। उसे बनाने की कहाँ जरूरत है ? यह विश्व स्वयंभू है और स्वयं संचालित है। भगवान ने तो इसमें कुछ नहीं किया, वह तो ज्ञाता-द्रष्टा-परमानंदी है।
इस काल में कर्ता संबंधी का सिद्धांत पहली बार विश्व को यथार्थ स्वरूप में परम पूज्य दादा भगवान ने दिया है और वह यह है कि इस दुनिया में कोई स्वतंत्र कर्ता नहीं है। इस दुनिया को रचनेवाला या चलानेवाला कोई भी नहीं है। यह जगत चलता है वह सायंटिफिक सरकमस्टेन्शियल
प्रस्तुत पुस्तिका में कर्ता का रहस्य परम पूज्य दादाश्री की सादी, सरल भाषा में हृदय में उतर जाये, इस तरह से समझाया गया है।
- डॉ. नीरुबहन अमीन के जय सच्चिदानंद
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जगत कर्ता कौन ?
Puzzle some at atafadhal
दादाश्री : इस जगत के क्रिएटर ( रचयिता) को कभी देखा था? प्रश्नकर्ता: फोटो में देखे हैं।
दादाश्री : इस जगत के क्रिएटर को? क्रिएटर का फोटो नहीं होता है। फोटो तो, कोई आदमी इधर है, जिसको सब लोग बोलें कि 'ये भगवान हो गया', तो उसका फोटो होता है। क्रिएटर तो बड़ी चीज़ है।
प्रश्नकर्ता : तो हमें यह समझ लेना कि यह सब मिथ्या है? दादाश्री : मिथ्या तो नहीं है। मिथ्या तो किसे बोला जाता है। कि इधर जल नहीं है, मगर जल दिखता है। ऐसा ये जगत मिथ्या नहीं है। जगत भी करेक्ट (सच) है और आत्मा भी करेक्ट है। The World is correct by relative viewpoint & Atma is correct by real viewpoint आपको समझ में आया न?
प्रश्नकर्ता: रिअल (Real) और रिलेटिव ( relative) का क्या भेद है?
दादाश्री : रिअल है, उसको किसी चीज़ का आधार ही नहीं चाहिए। वो अपने खुद के आधार से रहता है। दूसरे के आधार से है, वो सब रिलेटिव है। एक दूसरे के आधार से रिलेटिव रहा है। AII these relatives are temporary adjustments & real is permanent.
जगत कर्ता कौन ?
प्रश्नकर्ता : जब तक आत्मा है, तब तक मालूम होता है कि आदमी जिंदा है। मगर आदमी का अंत ( end) तो है भी नहीं न, आखिर तक ?
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दादाश्री : आदमी का end नहीं? तो ये गधों का, कुत्तों का सबका end है?
प्रश्नकर्ता: किसी का अंत नहीं होता है।
दादाश्री : तो ये पज़ल, पजल ही रहेगा? पज़ल सोल्व नहीं हो पाएगा? अगर किसी का अंत नहीं तो ये पज़ल सोल्व नहीं हो सकता । आपको कभी पज़ल खड़ा नहीं हुआ?
प्रश्नकर्ता: हाँ, जाता है।
दादाश्री : तो इस पज़ल का अंत कभी नहीं आएगा? देखो, बात ऐसी है, पज़ल शब्द ही ऐसा है कि वो स्वयं समाधान लेकर ही आया है। नहीं तो पज़ल शब्द ही नहीं रहेगा। पहले सोल्युशन (समाधान) होता है, तो ही पज़ल नाम पड़ेगा। इसमें आपको समझ में नहीं आती ऐसी कोई चीज़ है? आपको समझने का विचार है मगर समझ में नहीं आती तो ऐसी सब बातें 'ज्ञानी पुरुष' को पूछ लेना। 'ज्ञानी पुरुष' सब कुछ जानते हैं, जगत की सब चीजें वो जानते हैं।
प्रश्नकर्ता : ये जगत जिसने बनाया? वो साकार है या निराकार
है?
दादाश्री : देखो न, जिसने जगत (world) बनाया है, वो साकार भी नहीं है और निराकार भी नहीं है। 'The world is the puzzle itself'.
प्रश्नकर्ता: तो ये ईश्वर ही कराता है?
दादाश्री : ईश्वर नहीं कराता है। ईश्वर इसमें हाथ ही नहीं
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जगत कर्ता कौन?
जगत कर्ता कौन?
अभी तो तुम बोलते हो कि मैं चलाता हूँ, मैंने ये किया, मगर तुम्हारा कौन चलाता है?
डालता। ईश्वर हाथ डाले तो उसकी जिम्मेदारी, फिर अपनी जिम्मेदारी कुछ नहीं है, फिर हम छूट गए। वो जो दूसरी शक्ति काम करती है, वो हम बता देते हैं। भगवान तो भगवान ही है। भगवान ने तो कभी संसार में हाथ ही नहीं डाला। वो तो संसार कैसे चल रहा है, वो सब देखते रहते और खुद परमानंद में रहते हैं।
दुनियादारी में बात करते हैं कि ये सब भगवान ने बनाया है और दूसरी ओर बोलते हैं कि मोक्ष भी है। याने मोक्ष भी जा सकते हैं। अरे, मोक्ष और भगवान ने सब बनाया, ये दो विरोधाभासी बातें हैं। यदि मोक्ष होता है, तो भगवान की ज़रूरत नहीं और भगवान बनाता है तो मोक्ष की ज़रूरत नहीं। मोक्ष और भगवान दोनों साथ नहीं हो सकते। यदि भगवान ने सब बनाया, तो वो अपना ऊपरी (मालिक) हो गया। मगर ऐसा नहीं है। अपना अन्डरहेन्ड (अपने हाथ नीचे काम करनेवाला) भी कोई नहीं है और अपना ऊपरी (मालिक) भी कोई नहीं है। तो फिर यह दुनिया किसने बनाई? रचयिता (क्रिएटर) के बिना तो होता ही नहीं न?
प्रश्नकर्ता : वैसे तो हमारा भगवान चलाता है।
दादाश्री : भगवान करते हैं, तो आप क्यों करते हैं? जो भगवान करते हैं तो आप कर्ता पद छोड़ दो और आप जो करते हैं तो भगवान की बात छोड दो। भगवान ने बोला है कि हम कर्ता नहीं हैं, सब जीव कर्ता है। गाय-भैंस सब कुछ अपना खुद का करते हैं, क्योंकि उनको दिमाग दिया है। वो दिमाग से चलते हैं। सब जीव को दिमाग दिया है। जैसा दिमाग इसको चलाता है, ऐसे चलते हैं, बस! भगवान इसमें हाथ ही नहीं डालते हैं। भगवान तो आपको प्रकाश देंगे, दूसरा कुछ नहीं। दूसरी माथापच्ची तुम करो। दिमाग तो दिया है सबको। गाय, बकरी, भैंस सबको दिमाग दिया है। वो नीचे उतरते हैं, ऊपर चढ़ते है, वो दिमाग से चलता है, भगवान चलाता नहीं।
प्रश्नकर्ता : अपने हिन्दुस्तान में लोग उसे 'भगवान' कहते हैं और सब वैज्ञानिक (साइन्टिस्ट) उसे कुदरत (nature) कहते हैं। मगर कोई शक्ति ज़रूर है कि जो ये सब संचालन (control) कर रही है।
दादाश्री : कंट्रोल तो कोई करता ही नहीं। ये तो खाली कम्प्युटर है। वो कम्प्युटर ही जगत को चलाता है।
प्रश्नकर्ता : कम्प्युटर को कौन चलाता है?
दादाश्री : उसको चलाने की कोई जरूरत ही नहीं है। ऐसे ही चलता है। ये सबका दिमाग है, वो छोटा कम्प्युटर है और जो जगत को चलाता है वो बड़ा कम्प्युटर है। छोटे कम्प्युटर से सब हिसाब बड़े कम्प्युटर में चला जाता है।
वे scientist (वैज्ञानिक) लोग हमें बोलते हैं कि God is not creator of this world, (भगवान इस जगत का रचयिता नहीं है) ऐसा हमें लगता है। क्योंकि ऐसा research (संशोधन) हो गया है कि हम कुछ कर सकते हैं। तो हमने बोल दिया कि 'आप कुछ कर सकते हैं मगर कहाँ तक? इसकी limit (सीमा) है। क्या है? कि दिमाग लगाए वहाँ तक।' बुद्धि से कोई ज्यादा आगे नहीं जा सकता। बुद्धि से चलता है। इधर भगवान का कोई हाथ नहीं है। देखो न, दुनिया के मनुष्य मानते हैं कि भगवान ने सब बनाया है। ऐसा सब लोग, बच्चे भी जानते हैं। वो बात सच्ची नहीं है, वास्तविक नहीं है। वो लौकिक बात है। लौकिक सामान्य लोगों के लिए है। मगर पता करना चाहिए कि फिर सच्ची बात क्या है? वो तो पता करना चाहिए न?!
आपको वास्तविक नहीं चाहिए और viewpoint (दृष्टिकोण) की बात जानना हो तो वो भी बता देंगे कि भगवान ने ही सब बनाया
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जगत कर्ता कौन?
है और भगवान ही सब चलाता है और आपको क्या करना वो भी बता देंगे कि कुछ खराब हुआ तो भगवान की मर्जी बोल दो। नुकसान हुआ तो भी भगवान की मर्जी और फायदा हुआ तो भी भगवान की मर्जी । बच्चे का जन्म हुआ तो भी भगवान की मर्जी (इच्छा) और बच्चा चला गया तो भी भगवान की मर्जी। ऐसा सब बोलोगे तो आपकी life (जीवन)अच्छी जाएगी। ये रिलेटिव बात बोलते हैं। वो रिअल बात, वास्तविक बात तो नहीं समझ में आ पाएगी, इसलिए ये बात बोलते है। इतनी बात समझ गए कि जो कुछ हुआ वो सब भगवान की मर्जी, तो बहुत हो गया।
Creation का कर्ता कौन? आप अध्यात्म संबंध में सारे प्रश्न पूछ सकते हैं। उन सबका solution (समाधान) मिल जाएगा। आपको पज़ल नहीं होता है? हर रोज पूरा दिन सब लोगों को पज़ल ही होता है। ये पज़ल में ही सब लोग dissolve हो गए हैं (उलझ गए हैं)। आपको कुछ पूछना हो तो पूछना, तो हम सब सोल्युशन देंगे। यह world itself puzzle (जगत स्वयं पहेलीरूप) हो गया है। हमने इस पज़ल का सोल्युशन किया है और आपको भी सोल्व कर देंगे।
प्रश्नकर्ता : तो फिर हम क्रिएशन के लिए वापिस सोचें कि आखिर क्रिएशन कहाँ से हुआ? तो वो कौन से तत्त्वों से इसका क्रिएशन हुआ?
दादाश्री : वो मैंने एक ही बात बताई कि only scientific circumstantial evidence से यह जगत खड़ा हो गया है। Scientific याने गुह्य ! गुह्य एविडन्स, गुह्य संयोगों से, जो अपनी समझ में भी नहीं आएँ, ऐसे संयोगो से ये सब हो गया है। आप इधर हमको आज मिले तो आपको क्या लगता है? कि हम वहाँ गए और हमको 'ज्ञानी पुरुष' मिले। दो ही बात आप बोलेंगे। मगर उसके पीछे तो hundred बात (बहुत सारे संयोग) हैं। आप तो खाली अहंकार करते हैं, 'हम गए।'
प्रश्नकर्ता : तो फिर अहंकार नहीं करना हो तो ऐसे बोलें कि भगवान की इच्छा थी।
दादाश्री : नहीं, वो भगवान की इच्छा नहीं थी। ऐसे भगवान इच्छावाला हो, तो भगवान भिखारी बोला जाता। भगवान तो भगवान हैं, वीतराग हैं। उसको कोई इच्छा नहीं होती। भगवान के पास कोई चीज़ की कमी नहीं है।
जगत चलाने में इच्छा किसकी?
God is in every creature whether visible or invisible, not in creation. भगवान क्रिएचर (creature) में है, क्रिएशन (creation) में नहीं है।
प्रश्नकर्ता : एक विचार ऐसा है कि भगवान की इच्छा के बगैर एक पत्ता भी नहीं हिलता।
प्रश्नकर्ता : क्रिएशन कहाँ से आया?
दादाश्री : क्रिएशन तो आदमी के egoism (अहंकार) से उत्पन्न हुआ है। सब कुछ अहंकार से उत्पन्न हुआ है, कोई बनानेवाला नहीं है। जगत में छ: सनातन तत्त्व हैं, इनके विशेष परिणाम से ये जगत खड़ा हो गया है।
दादाश्री : तो चोर चोरी करता है वो भी भगवान की इच्छा से करता है? भगवान की मर्जी के बिना ये सब हिलता ही है न? पत्ता तो क्या ये पेड़ भी हिलते हैं। अरे, ये भूकंप भी होता है। ये सब क्या भगवान की मर्जी से होता है?
प्रश्नकर्ता : जितना अच्छा होता है वो सिर्फ भगवान की इच्छा से होता है। बुरा होता है तो, उसमें भगवान की इच्छा नहीं रहती उसमें।
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दादाश्री : तो बुरा किसका है?
प्रश्नकर्ता : वो अपने मन में ऐसी शंका आती है इसलिए ऐसा मानने का होता है।
दादाश्री : देखो, भगवान किधर रहते हैं वो आप जानते नहीं, भगवान क्या करते हैं वो आप जानते नहीं ओर आप बोलते हैं कि भगवान की इच्छा के बिना एक पत्ता भी नहीं हिलता। ये सब पत्ते हिलते हैं, वो क्या सब भगवान की इच्छा के विरुद्ध ही हिलते हैं? भगवान को ऐसी कोई इच्छा नहीं हैं। इच्छावाले को भगवान ही नहीं बोला जाता। भगवान निरीच्छक रहते है। हम 'ज्ञानी पुरुष' भी निरीच्छक हैं तो भगवान तो कैसे निरीच्छक होंगे! भगवान की इच्छा के बिना पत्ता भी नहीं हिलता, वो बात आपके लिए सच है और दुनिया के लिए भी सच है। मगर उससे आगे जाएँगे तो वहाँ ये सब बातें गलत साबित होंगी। सच्ची बात तो कुछ और ही है। वो सच्ची बात पस्तकों में नहीं समा सकती। वो तो अवर्णनीय है, अव्यक्त है। ये सब लोग क्या बोलते हैं? पैसा कमाया तो हमने कमाया और नुकसान हुआ तो भगवान ने कर दिया, ऐसा बोलते हैं। नुकसान के लिए ऐसा नहीं बोलते है कि 'मैंने नुकसान किया है।''भगवान ने हमारा बिगाड़ा, हमारा भागीदार अच्छा नहीं,' ऐसा बोलते हैं। नहीं तो बोलेंगे, 'हमारे ग्रह अच्छे नहीं हैं, हमारे लड़के की शादी की तो बहु हमारे यहाँ आई, उस दिन से हम सब दु:खी दु:खी हो गए, उसके कदम अच्छे नहीं है।'
भी ऐसे बोलते हैं कि भगवान ने हमको प्रेरणा दी है। भगवान जो चोरी करने की प्रेरणा करता हो तो वो भगवान हो ही नहीं सकता। दान देने की प्रेरणा करता है तो वो भगवान नहीं हो सकता। क्या चोरी करने की प्रेरणा, दान करने की प्रेरणा करता है वो भगवान बोला जाता है? कराता है वो भगवान बोला जाता है? पर लोगों ने भगवान को प्रेरक कहा।
लोगों ने तो तरह-तरह का भगवान को कहा। किसी ने कर्म का फल देनेवाला कहा। कर्म करता हूँ मैं और फल भगवान दे? नहीं तो, अच्छा किया तो भगवान ने किया और बुरा किया तो भी भगवान ने किया, ऐसा बोल दो।
प्रश्नकर्ता : मगर मैं ऐसे कहता हूँ कि अच्छा तो भगवान कराता है और बुरा शैतान कराता है।
दादाश्री : कोई शैतान दुनिया में है ही नहीं। दो प्रकार की बुद्धि होती है। एक सद्बुद्धि होती है और एक कुबुद्धि होती है। कुबुद्धि को शैतान बोलते हैं और सद्बुद्धि को भगवान बोलते है।
प्रश्नकर्ता : बिलकुल ठीक बात है।
कितने कितने आक्षेप करते हैं! फिर दुबारा मनुष्य का जन्म भी नहीं मिले ऐसा आक्षेप करते हैं। ऐसा नहीं होना चाहिए। किसी के ऊपर आक्षेप नहीं होना चाहिए। किसी को दु:ख नहीं होना चाहिए। पुण्य का उदय होता है, तब आप कुछ भी करो तो अच्छा-अच्छा होगा ही और पाप का उदय आए तब अच्छा करो तो भी खराब हो जाएगा।
दादाश्री : हाँ, भगवान कुछ करता नहीं है। भगवान तो वीतराग है। भगवान इसमें हाथ ही डालता नहीं। सिर्फ उसकी हाज़िरी से सब चल रहा है। वो हाज़िर नहीं होता तो नहीं चलता। इस शरीर में उसकी हाज़िरी (presence) है, तो ये सब चल रहा है। वो कुछ नहीं करता। वो तो light (प्रकाश) ही देता है। जिसको चोरी करना है उसको भी प्रकाश देता है और जिसको दान देने का है उसको भी प्रकाश देता है। भगवान दूसरा कुछ नहीं करता है।
भगवान, इच्छाशक्तिवाला? हमको किसी चीज़ की ज़रूरत नहीं। हमने कोई चीज़ की इच्छा
भगवान ऐसा प्रेरक नहीं होता। जो भगवान प्रेरक हों तो चोर लोग
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जगत कर्ता कौन ?
नहीं की है, मगर हमारे पास सब चीज़ अपने आप आ जाती है।
प्रश्नकर्ता: वो भी करके देखा कि किसी चीज़ की इच्छा नहीं करना तो वो खुद ही चली आएगी, फिर भी नहीं आती।
दादाश्री : हाँ, वह इसलिए कि क्रेडिट साइड (पुण्य का खाता)में कुछ तो होना चाहिए न? हम इच्छा नहीं करते हैं तो भी सब आता है, तो हमारी क्रेडिट साइड (पुण्याई) कितनी बड़ी है !
इच्छा करनेवाले को शास्त्र क्या बोलता है? उसको भिखारी बोलता है। कितने मनुष्य पैसों के भिखारी हैं, कितने स्त्री-विषय के भिखारी हैं, कितने मान के भिखारी हैं, कितने कीर्ति के भिखारी हैं, कोई मंदिर बनाने का भिखारी है। सब भीख, भीख, भीख ही है।
हमें किसी प्रकार की भीख नहीं, तो सारे जगत की लगाम हमारे पास है। जिसे किसी प्रकार की भी इच्छा नहीं है, उसे वो पद मिल जाता है। जो पद हमें मिला है, वो पद आपको भी मिल सकता है। मगर भीखवाले को नहीं मिलता।
प्रश्नकर्ता: हम भीख माँगें तो भी हमें नहीं मिले हमें ?
दादाश्री : हाँ, इसके लिए आपकी क्रेडिट साइड नहीं है। पहले क्रेडिट साइड चाहिए। जितना क्रेडिट है, इतनी आपको कोई तकलीफ नहीं है। भगवान को इच्छा नहीं रहती। भगवान तो भगवान है।
प्रश्नकर्ता: तो इच्छाशक्ति, क्रियाशक्ति, ज्ञानशक्ति वो किसकी
है?
दादाश्री : वो सब भगवान की नहीं है। ये कोई शक्ति भगवान में नहीं है। भगवान में इच्छाशक्ति भी नहीं है, क्रियाशक्ति भी नहीं और ज्ञानशक्ति भी नहीं है। तीनों शक्तियाँ भगवान में नहीं है। भगवान तो खाली विज्ञानशक्ति है, बस !
जगत कर्ता कौन ?
अंत, दुनिया का या 'व्यवहार' का? प्रश्नकर्ता : यह दुनिया कैसे पैदा हुई? सबसे पहले क्या पैदा हुआ था?
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दादाश्री : पहला कोई था ही नहीं। ऐसे ही चल रहा था, अनादि से चल रहा है। पहला ऐसा कोई था ही नहीं। जो पहले है, उसका अंत भी होता है। दुनिया का आदि भी नहीं और अंत भी नहीं ।
प्रश्नकर्ता : जैसे जो चीज़ पैदा हुई तो उसका बीज तो पहले मौजूद होगा न दुनिया में?
दादाश्री : वो बात बुद्धिजन्य है, ज्ञानजन्य नहीं है। खुदा के ज्ञान में कोई पहला था ही नहीं ।
प्रश्नकर्ता: मगर खुदा ने मिट्टी, पानी, आग और हवा ये चारों मिलाकर इन्सान पैदा किया है न?
दादाश्री : नहीं, खुदा ऐसे बनाए तो वो तो मजदूर हो गया, फिर मजदूर में और उनमें क्या फर्क ? औलिया भी मजदूरी नहीं करता है।
प्रश्नकर्ता : तो फिर ये दुनिया क्या है?
दादाश्री : आप किसे दुनिया बोलते हैं? आँख से दिखाई देता है, कान से सुनाई देता है, नाक से, जीभ से और स्पर्श से, आपकी पाँच इन्द्रियों से आपको जो अनुभव होता है, उसे आप दुनिया बोलते हैं? वो सब रिलेटिव है और All these relatives are temporary adjustments.
प्रश्नकर्ता : इस दुनिया का अंत है क्या?
दादाश्री : नहीं, इस दुनिया का अंत कभी नहीं आनेवाला। मगर आप समसरण मार्ग में चल रहे हैं, उसका अंत आ जाएगा। जितना
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जगत कर्ता कौन?
जगत कर्ता कौन?
दुर्घटना क्या है? प्रश्नकर्ता : अगर भगवान की इच्छा मान ली तो दुर्घटना जैसा कुछ नहीं है।
दादाश्री : हाँ, मगर दुर्घटना होती हैं?
इस जगत में कभी दुर्घटना होती ही नहीं। दुर्घटना होती हैं, वैसा नहीं समझनेवाला छोटा आदमी बोलता है। मगर बड़ा समझवाला आदमी नहीं बोलता है कि 'अरे, दुर्घटना हो गई !!' जो कच्ची समझवाला है, वो बोलता कि ये दुर्घटना है, मगर सच्ची समझवाला तो कभी नहीं बोलेगा। दुर्घटना तो कभी होता ही नहीं। आपको क्या लगता है, दुर्घटना होता है कभी?
माइल आप चलते है, इतना माइल कम हो जाता है और इसका अंत भी है।
प्रश्नकर्ता : वो अंत में क्या है?
दादाश्री : अंत में आप पर्मनेन्ट (अविनाशी) हो सकते हैं। अभी तो आप टेम्पररी (विनाशी) हैं, क्योंकि 'मैं रविन्द्र हूँ, मैं डॉक्टर हूँ' ऐसी सब आपको रोंग बिलिफ (गलत मान्यता) है।
प्रश्नकर्ता : मृत्यु के बाद कहाँ जाते हैं?
दादाश्री : इधर अभी ग्यारहवें माइल पर हैं, वो बारहवें माइल पर जाता है। इधर दसवें माइल पर है, वो ग्यारहवें माइल पर जाता है। कोई दूसरी जगह पर नहीं जाता, वो ही रास्ता है। जितना रास्ता उसने पार किया, उतना आगे चला जाता है। वो आगे ही बढ़ता है। जब यह रास्ता परा होता है, तब वो स्वतंत्र हो जाता है। तब तक स्वतंत्र नहीं है, परवश ही रहता है।
आपका बोस (मालिक) है? बोस है तब तक ज़िन्दगी में कितनी तकलीफ रहती है? कितनी परवशता रहती है?
प्रश्नकर्ता : पसंद तो नहीं है।
दादाश्री : हाँ, तो इन्डिपेन्डन्ट लाइफ (स्वतंत्र जिन्दगी)चाहिए। यह जगत किसी ने बनाया नहीं है। The world is the puzzle itself. God has not puzzled this world at all ! खुद ही, स्वयं पहेली बन गया है। आपको पज़ल होता है या नहीं? कोई बोले कि 'रविन्द्र अच्छा आदमी नहीं है।' इतना सुनते ही आपको कुछ पज़ल हो जाता है?
दुर्घटना किसे बोलते हैं ? An incident has so many causes and An accident has too many causes. तो दुर्घटना (आमतौर पर) कभी होती ही नहीं। दुर्घटना है उसके तो कॉज़िज़ (कारण) ज्यादा रहते हैं और 'इन्सिडन्ट' है उसके कम कॉज़िज़ रहते है। पूरा दिन इन्सिडन्ट ही रहता है। कभी कभी ज्यादा कॉज़िज़ होते हैं उसको एक्सिडन्ट बोलते हैं।
बम्बई में हाइ-वे क्रोस करते समय किसी आदमी के सामने गाड़ी आ जाए तो गाड़ीवाला ड्राइवर क्या बोलेगा कि हमने कोशिश करके इसे बचा दिया। मगर वो आदमी बोलता है कि नहीं. मैं ही ऐसा कूदा कि बच गया। ये दोनों बातें गलत हैं। थोड़ा आगे जाने पर वही ड्राइवर दूसरे आदमी की टांग तोड देता है। ऐसा कैसा बचानेवाला आया!!!
प्रश्नकर्ता : होता है।
दादाश्री : क्यों पज़ल होता है? क्योंकि यह जगत खुद पज़ल (पहेली) है।
(आमतौर पर) एक्सिडन्ट कभी होता ही नहीं। ये तो लोगों को पता नहीं चलता इसलिए बोलते हैं कि ये एक्सिडन्ट हो गया। सारा दिन इन्सिडन्ट (घटना) ही होते हैं।
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जगत कर्ता कौन?
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बदलाव नहीं होगा।
प्रश्नकर्ता : अभी एर इन्डिया (Air India) का प्लेन (विमान) गिर गया, उसमें २१५ आदमी मर गए तो उसमें भी कुछ प्लानिंग होगा?
यह दुनिया, योजनाबद्ध या एक्सिडन्ट ?
मनुष्य कितना भी अहंकार करे, मगर नेचर (प्रकृति) का जो प्लानिंग (योजना) है, उसको बदलनेवाला कोई नहीं। जो प्लानिंग बदल सके तो दुनिया में एक भी लेडी (स्त्री) नहीं रहेगी। सभी स्त्रियाँ पुरुष हो जाये। मगर किसी के हाथ में कुछ भी नहीं है।
जो नेचर का प्लानिंग है न, उसी प्लानिंग के हिसाब से सब होता है। नेचर का प्लानिंग क्या चीज़ है कि हिन्दुस्तान में इतनी औरतें चाहिए, इतने आदमी चाहिए, इतने बाल काटनेवाले चाहिए, इतने बढ़ई चाहिए, इतने लौहार चाहिए। हरेक चीज़ का ऐसा प्रमाण प्लानिंग में है। वो कोई नहीं बदल सकता।
प्रश्नकर्ता : ये कौन डिसाइड (निर्णय) करता है?
दादाश्री : हाँ, सब प्लानिंग ही है। प्लानिंग के बाहर कुछ चलता ही नहीं। प्लानिंग के बाहर कोई चीज़ नहीं होती। एक्जेक्ट प्लानिंग है ! ऐसा एक्सिडन्ट देखकर मनुष्यों को आश्चर्य होता है कि, ये क्या हुआ, ये क्या हो गया? मगर जानवरों को कोई आश्चर्य नहीं होता। कितनी ही गायें देखती हैं, गधे देखते है, लेकिन उनको कोई आश्चर्य नहीं होता। सब चलता रहता हैं। गाय, गधा, ये सब मानते हैं कि कुदरत की प्लानिंग के मुताबिक़ हुआ है, इसमें क्या देखना!
ज्योतिषज्ञान की सच्चाई
दादाश्री : only scientific circumstantial evidence (सिर्फ वैज्ञानिक सांयोगिक प्रमाण) हैं। हिन्दुस्तान में इतने सैनिक चाहिए, इतना पुलिसवाला चाहिए, नहीं तो पुलिस की नौकरी कोई करे ही नहीं। इतने मकान बनानेवाले चाहिए, इतने वकील चाहिए, इतने डॉक्टर चाहिए। डॉक्टर की कमाई बहुत अच्छी है, तो सब आदमी डॉक्टर हो जाते। मगर सब आदमी doctor नहीं बन सकते। जो कुदरत के प्लानिंग में नहीं है, वो कोई करनेवाला ही नहीं। कुदरत की प्लानिंग में कोई परिवर्तन नहीं कर सकता। खुद भगवान भी परिवर्तन नहीं कर सकता। प्लानिंग याने प्लानिंग !! उस प्लानिंग में सब कुछ है। कुदरत का प्लानिंग ऐसा है कि दुनिया में हरेक चीज़ है। मगर अपना प्रारब्ध नहीं है, तो नहीं मिलती है। नहीं तो हरेक चीज, जितनी तुम्हारी है उतनी चीजें इधर ही हैं। कुदरत का प्लानिंग बहुत अच्छा है। उसमें कभी कोई बढ़ौतरी नहीं करनेवाला और उस प्लानिंग में ही रहना पड़ता है। मगर अहंकार किया, उसका दु:ख होता है। जो अहंकार करता है, उसके बदले में उसको दु:ख आता है। तो भी प्लानिंग में तो कोई भी
__ प्रश्नकर्ता : आप कृपा करें तो मुझे ज्योतिष का अर्थ क्या है वो समझना था।
दादाश्री : इस दुनिया को भगवान नहीं चलाता, दूसरी शक्ति चलाती है। इसलिए अपना ज्योतिषज्ञान करेक्ट (सही) है। अगर भगवान चलाता होता और किसी आदमी ने बहुत भक्ति की होती तो ज्योतिष गलत साबित हो जाता। ज्योतिष तो बिलकुल सही है, मगर जाननेवालों की कमी है। वे पूरा-पूरा जानते नहीं है। सब भावाभाव जो है न, वो सब इनको समझ में नहीं आता है। स्पष्टतया समझ में नहीं आता है। नहीं तो ज्योतिष तो सही ही है, वो तो विज्ञान
है।
समस्त दुनिया के सब लोग 'लट्ट' (Top) हैं। वो खुद कोई कर्म बाँध सकता ही नहीं। खुद कर्म बाँधे, तो ऐसा नहीं बाँधेगा। उसके पीछे निमित्त है। इस जगत में संडास जाने की (स्वतंत्र) शक्ति किसी
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जगत कर्ता कौन?
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को भी नहीं है। जब उसका बन्द हो जाएगा तो मालूम हो कि अपनी खुद की शक्ति नहीं थी। उसमें डॉक्टर की ज़रूरत पड़ती है।
प्रश्नकर्ता : मैं ऐसा समझता हूँ कि दूसरी शक्ति जो चलाती है, वह ग्रहमान शक्ति है?
दादाश्री : ये सब पार्लियामेन्टवाली शक्ति चलाती है। आत्मा की हाज़िरी से ये पार्लियामेन्ट (अपने भीतर की संसद) चल रही है। पार्लियामेन्ट में उसका केस (मकदमा) जाता है कि, 'इस आदमी के हाथ से नैमित्तिक कर्म ऐसा हो गया है।' फिर पार्लियामेन्ट में उसका केस चलता है। पार्लियामेन्ट जो फैसला करती है, वैसा उसको फल मिलता है।
हकीकत में ग्रहमान शक्ति चलाती है, ये बात भी सही नहीं है। मगर जो शक्ति चलाती है, वो तो दूसरी शक्ति है। ग्रहमान तो उस शक्ति के अधिकार से चलता है। पार्लियामेन्ट से जैसे आर्डर order (आदेश) होता है, वैसे ही इधर कलेक्टर (जिलाधिकारी) काम करता है, वैसा ही वो सब ग्रह काम करते हैं। देखो न, हमारे सब ग्रह चले गए हैं, इसलिए हमारे यहाँ ग्रहों की सर्विस (सेवा) ही नहीं है। फिर हमको कोई ग्रह स्पर्श नहीं करते, मगर वो शक्ति हमको स्पर्श करती है। ग्रह का हमारे पर अधिकार नहीं है। हम पर उस दुसरी शक्ति का डिरेक्ट (सीधा) अधिकार है, बीच में इन ग्रहों का अधिकार नहीं है। आपके अंदर, सबके अंदर ग्रह रहते हैं। हमें कोई ग्रह है ही नहीं। हमको दुराग्रह नहीं, मताग्रह नहीं, हठाग्रह नहीं, कदाग्रह नहीं। हमको नव ग्रह में से कोई ग्रह नहीं रहता। हम पर सभी ग्रह राजी रहते हैं। वो सब हमारे साथ मित्र के माफिक रहते हैं।
डेबिट (बुरा फल) नहीं होती है। उधर बहुत इन्द्रियसुख है, मगर सनातन सुख नहीं है।
प्रश्नकर्ता : हमको तो सच्चा सुख चाहिए?
दादाश्री : सच्चा सुख तो, Self realization (आत्मसाक्षात्कार) हो जाए तब मिलता है, सनातन सुख मिलता है।
आप क्या कर सकते हो ? आप सुबह में नींद में से उठते हैं, फिर क्या क्या करते हैं?
प्रश्नकर्ता : उठने के बाद नहाना, नाश्ता-पानी फिर सब कामकाज़ करना ही पड़ता है न?
दादाश्री : तो वो सब काम सारा दिन आप ही करते हैं? प्रश्नकर्ता : हाँ, करना तो पड़ेगा ही ना? दादाश्री : नहीं, आप करते हो कि करना पड़ता है? प्रश्नकर्ता : मैं ही करता हूँ।
दादाश्री : मगर आप ही करते हैं कि दूसरा कोई करवाता है आपके पास?
प्रश्नकर्ता : कोई नहीं करवाता।
दादाश्री : तो आप ही करते हो? तो कभी तबीयत खराब हो जाए तो संडास बंद हो जाता है, तो फिर आप कर सकते हो?
प्रश्नकर्ता : सब ग्रह, तारा ये क्या हैं?
प्रश्नकर्ता : वो तो शरीर की चीज़ है और शरीर पर उतना कंट्रोल (नियंत्रण) रहना बहुत मुश्किल चीज़ है।
दादाश्री : शरीर पर कंट्रोल नहीं है? चलो जाने दो, मगर नींद कभी नहीं आती तो आप प्रयत्न करते हैं तो नींद आ जाती है?
दादाश्री : वो सब देवलोक हैं। उसको ज्योतिष्क देव बोला जाता है। देवगति में सारी जिन्दगी क्रेडिट (अच्छा फल) ही मिलती है, उधर
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जगत कर्ता कौन?
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प्रश्नकर्ता : अगर सही प्रयत्न करूं तो आ जाती है।
दादाश्री : इस दुनिया में कोई ऐसा आदमी जन्मा नहीं है कि संडास जाने की उसकी स्वतंत्र शक्ति हो। सब लोग भ्रांति से बोलते हैं, मैंने ये किया, मैंने ये किया। वो सब भ्रांति है, सच्ची बात नहीं है। सच्ची बात समझनी चाहिए। वो कैसे समझ में आएगी? वो किसी व्युपोइन्ट से समझ में नहीं आएगी।
'ये मैं हूँ, ये मैंने किया', वो सब अहंकार है और करनेवाला दूसरा है। भगवान भी नहीं करता है और आप भी नहीं करते हैं। वो जानना है तो वास्तविक आपको बोलूं, नहीं तो आप जो जानते हैं वो ही बोलूं कि भगवान भी करता है और आप भी करते हैं।
प्रश्नकर्ता : नहीं, हम तो कुछ नहीं करते। दादाश्री : तो आपका धंधा आप खुद नहीं करते, तो कौन करता
हिन्दू धर्मवाला भी बोलता है कि 'मैंने किया', मुस्लिम धर्मवाला भी बोलता है कि 'मैंने किया', जैन लोग भी बोलते है, 'मैंने किया। सब लोग 'मैंने किया' बोलते है। वो बात वास्तविक नहीं है।
इधर कभी सुनी नहीं, कोई पुस्तक में लिखी नहीं, ऐसी नई चीज़ है। पहले कभी नहीं हुआ है, ऐसा हुआ है। दस लाख साल में कभी हुई नहीं ऐसी चीज़ है। सब लोगों ने अभी तक यही कहा है कि, 'ये करो, ये करो, ये करो' मगर जिधर 'करने' का है वहाँ मोक्ष नहीं है और जहाँ मोक्ष है, वहाँ करने का कुछ भी नहीं।
तुम क्या करते हो? पूरा दिन तुम कुछ मेहनत करते हो? प्रश्नकर्ता : मेहनत तो करते हैं न?
दादाश्री : क्या मेहनत करते हो? कोई मेहनत करता ही नहीं है। तो क्या करता है? खाली अहंकार करते हैं कि 'ये मैंने किया।' मेहनत तो बैल करता है। कोई आदमी मेहनत करता है? तुमने देखा
प्रश्नकर्ता : मगर हम तो क्या है कि भगवान के हाथ के खिलौने हैं, वो जैसा चाहे वैसा करवाएँ।
प्रश्नकर्ता : फिर यह ऑफिस में जाते हैं, काम करते हैं वह क्या
दादाश्री : नहीं, नहीं, you are not Toys of God ! (आप भगवान के खिलौने नहीं हैं।)
दादाश्री : ये तो रोंग बिलीफ है कि 'मैं करता हूँ।' ये तो ऑटोमेटिक (अपने आप) हो जाता है। संडास आप करते हो कि ऐसे ही हो जाता है?! लोग बोलते हैं कि 'मैं संडास गया था।' नींद आप लेते हैं कि ऐसे आ जाती है?
प्रश्नकर्ता : वैसे ही आ जाती है।
प्रश्नकर्ता : फिर क्या हैं?
arcraft: you yourself is God! You don't know your ability, your knowledge!! वो कुछ जानते नहीं हो, इसलिए आप 'मैं भगवान का टोय (खिलौना) हूँ' बोलते हैं।
सच्ची फिलॉसोफि (तत्त्वज्ञान) समझो तो ये फिलॉसोफि बहुत गूढ़ है।
दादाश्री: तो उठने का हो तब आप उठते हैं कि कोई उठाता
प्रश्नकर्ता : वैसे ही उठ जाते हैं।
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बाबा, भगवान ऐसी प्रेरणा करनेवाला ही नहीं है। वो इसमें हाथ नहीं डालता।
व्यवहार-जगत् में, अपनी सत्ता कितनी?
दादाश्री : हाँ, ये आपके हाथ में नहीं है। तो आपके हाथ में क्या हैं? आप तो खाली अहंकार करते हैं कि, 'मैंने ये किया, मैं सो गया।' फिर कभी बोलते हैं कि 'हमको आज तो नींद ही नहीं आई।' ये सब विरोधाभास है। 'हम सुबह में जल्दी उठते हैं,' कहते हैं, तो फिर घड़ी क्यों रखते हैं? और बोलते हैं, 'हमने खाया।' ओहोहो! बड़ा खानेवाला आया!!! वो तो दांत चबाते हैं, जीभ स्वाद लेती है और ये हाथ काम करते हैं, वो सब मिकानिकली (यंत्रवत्) हो जाता है। तुम तो खाली अहंकार करते हो।
प्रश्नकर्ता : मैं क्या करता हूँ फिर?
दादाश्री : आप कुछ नहीं करते हैं। आप काम में खराबी ही करते हैं (अहंकार करके)।
तुम्हारी इच्छा नहीं हो तो भी तुम कर्म बाँधते हो। क्योंकि आप ऐसा मानते हैं कि 'मैं कर्ता हैं और ये हमने किया, ये हमने किया।'
प्रश्नकर्ता : जो आदमी सबसे पहले जन्मा, उसको तो कोई कर्म नहीं न?
दादाश्री : कोई पहले जन्मा ही नहीं। इस जगत में पहले-पीछे कोई चीज़ है ही नहीं। सर्कल (गोल) है, उसमें कौन पहले? इसमें कोई पहला नहीं, आदि नहीं, अंत नहीं। सब अनादि-अनंत है। कोई पहले जन्मा है, वो बुद्धि की बात है। बुद्धि से सोल्व ही नहीं होता है, ज्ञान से सोल्युशन आता है। छ: तत्त्व अविनाशी हैं। इन छ: तत्त्वों का निरंतर समसरण होता है, यानी परिवर्तन होता है। इससे सब अवस्थाएँ खड़ी हो जाती हैं और सब अवस्थाएँ विनाशी हैं।
अनंत शक्तिवाला, बंधन में ये सब मिकानिकल (यंत्रवत्) होता है। शादी भी करता है, वो मिकानिकल हो जाती है। लड़का भी होता है, वो मिकानिकल होता है। आप खुद कौन हैं, यह रीअलाइज़ (साक्षात्कार) हो जाये, फिर आप मिकानिकल नहीं रहोगे। आप खुद करते हैं या भगवान करवाता हैं, उसकी तो तलाश करनी चाहिए न? आप जो खुद करते हैं, तो आपकी मर्जी के मुताबिक हरेक चीज़ हो सकती है? ऐसा १००% (शत प्रतिशत) हो सकता है?
प्रश्नकर्ता : १००% तो नहीं होता है।
दादाश्री : हाँ, तो आप खुद कर्ता नहीं हैं। मगर आपको ऐसा लगता है कि मैं ही कर्ता हूँ।
प्रश्नकर्ता : भगवान करवाता है।
दादाश्री : नहीं, ये भगवान भी नहीं कराता है। अगर भगवान करवाए तो, चोर लोग बोलते हैं, 'हमको भगवान प्रेरणा करता है।' अरे
सायन्टिफिक सरकमस्टेन्शियल एविडन्स याने क्या? समय, स्पेस (जगह), कर्म का फल, ये सब इकट्ठा हो जाएँ तब फाँसी की सजा हो जाती है। सजा देना जज (न्यायाधीश) के हाथ में नहीं है। कोई आदमी ऐसा जन्मा नहीं कि जिसके हाथ में स्वतंत्र शक्ति हो, क्योंकि सब परशक्ति है। कदरत अपने फेवर (पक्ष) में है तो आप मान लेते हैं, 'हमने किया, हम कर्ता हैं।'
जहाँ करने का होता है, वहाँ भ्रांति बढ़ती है। फिर जो कुछ भी करता है उससे भ्रांति और बढ़ जाती है। 'ज्ञानी पुरुष' मिले तो करने का कुछ नहीं है। करने से भ्रांति बढ़ जाती है। जप करोगे तो भ्रांति बढ़ जाती है। तप करोगे तो भ्रांति बढ़ जाती है, उपवास करोगे तो भ्रांति बढ़ जाती है। पुस्तक पढ़ा करें तो भ्रांति बढ़ जाती है। हमने ये किया,
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जगत कर्ता कौन ?
२१
हमने वो किया, वो सब भ्रांति है। 'ज्ञानी पुरुष' की कृपा मिल गई तो 'करने' का कुछ नहीं, फिर सब सहज होता है।
कोई आदमी खाना खा सकता ही नहीं। केवल अहंकार करता है कि मैंने खाना खाया। फिर बीमार क्यों हो जाता है? बीमार हो गया तब क्यों नहीं खा सकता? तो पहले भी खाने का प्रयत्न तुम्हारा था ? पहले खाते थे और अभी क्यों नहीं खाता हैं? ऐसा कभी विचार ही नहीं किया? ये सब नेचर (कुदरत ) ही चलाती है, भगवान नहीं चलाता। रात को जब सो जाते हैं तब भी दुनिया चल रही होती है। दुनिया एक मिनिट भी खड़ी नहीं रहती। कोई आदमी दारू पी के गिर जाता है, तो भी दुनिया चल रही होती है। कभी आपने ब्रान्डी पी थी ? प्रश्नकर्ता: हाँ।
दादाश्री : उस टाइम भी संसार चलता रहता है, खड़ा नहीं रहता। आप दारू पी के दिमाग में किसी भी मस्ती में हैं, मगर दुनिया चल रही होती है, वो रूक नहीं जाती।
संसार का व्यवहार तुम्हारे जन्म के पहले भी चलता था और तुम्हारे मरने के बाद भी चलेगा। संसार व्यवहार तो सापेक्ष है। लोग क्या बोलते हैं कि, 'हम नहीं होते तो क्या होता? दुनिया ऐसी हो जाती। '
वो बॉदरेशन (झंझट) छोड़ दो। वो सब अहंकार का बॉदरेशन है। हम ऐसा करते हैं, हमने बच्चों को बड़ा किया, हम बच्चों को पढ़ाते हैं, हमने ये किया, हमने वो किया, वो सब अहंकार है। एक आदमी ने गाय मारने का विचार किया और एक आदमी ने गाय छुड़ाने का विचार किया तो भगवान के वहाँ कौन से आदमी की कीमत है? भगवान क्या बोलते हैं कि 'यहाँ किसी की कीमत नहीं है। तुम मारने का अहंकार करते हो, वो बचाने का अहंकार करता है। हमारे यहाँ अहंकारवाला नहीं चलेगा।' अहंकार नहीं करना चाहिए कि 'मैंने ये त्यागा।' अनंत जन्मो से वो ही करता है न? इससे फायदा क्या है?
जगत कर्ता कौन ? रिलेटिव फायदा है। मनुष्य में से देवगति में जाता है। मगर रिअल फायदा नहीं मिलेगा। रिअल फायदा तो मुक्तपुरुष मिल जाए, मोक्षदाता पुरुष मिल जाए और मोक्ष का दान मिले तो काम होगा।
२२
एक ब्राह्मण के दो लड़के थे। एक तीन साल का और एक डेढ़ साल का । वह ब्राह्मण मर गया और उसकी औरत भी मर गई। गाँव में दूसरा ब्राह्मण उन लड़कों को लेने को तैयार नहीं हुआ। गाँव में एक क्षत्रिय था, उसको लड़का नहीं था। वो बोलने लगा कि 'हमें एक लड़का दे दो।' तो गाँववालों ने बड़ा लड़का दे दिया। दूसरे डेढ़ साल के लड़के को कोई लेने को तैयार नहीं हुआ। फिर एक हरिजन बोला कि 'मेरे को लड़का नहीं है, तो हमें दे दो तो बहुत मेहरबानी!' तो गाँववालों ने विचार किया कि ये बिचारा मर जाएगा, इससे हरिजन के वहाँ जाए तो ठीक है। जिन्दा तो रहेगा। तो दूसरे लड़के को हरिजन ले गया।
दोनों लड़के बड़े होने लगे। क्षत्रिय के पासवाला बीस साल का हुआ तो हरिजन के पासवाला अट्ठारह साल का हो गया। हरिजनवाला लड़का क्या करता था? दारू बनाता था, दारू पीता भी था और दारू बेचता भी था । क्षत्रिय के पास जो लड़का था उसको समझ में आ गया कि दारू पीना खराब है, ये अच्छी चीज़ नहीं है। दोनों ही भाई ब्राह्मण थे। मगर एक को हरिजन का संजोग मिल गया, दूसरे को क्षत्रिय का अच्छा संजोग मिल गया। किसी ने भगवान को पूछा कि इन दोनों में कौन सा अच्छा है? तो भगवान ने बोल दिया कि 'दारू नहीं पीने का अहंकार करता है और दूसरा दारू पीने का अहंकार करता है। मोक्ष के लिए दोनों काम के नहीं है। अपनी जिम्मेदारी पर करते हैं। जो पीने का अहंकार करता है उसकी अपनी जिम्मेदारी है। नहीं पीने का अहंकार करता है उसकी भी अपनी जिम्मेदारी है।'
सच्ची बात का समाधान ज़रूर होना चाहिए। फिर शंका नहीं रहेगी।
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हम बोलते हैं कि ये सब मात्र सायन्टिफिक सरकमस्टेन्शियल एविडन्स हैं। भगवान को कुछ करना नहीं पड़ता। ऐसे ही संजोग मिल जाते हैं और काम हो जाता है। सायन्टिफिक (वैज्ञानिक तरीके से ही होता है पर आदमी बोलता है कि 'मैंने ये किया, मैंने वो किया', वो खाली अहंकार है।
प्रश्नकर्ता : वह ठीक है कि अहंकार नहीं होना चाहिए, मगर कुछ प्रवृत्ति तो करनी ही पड़ेगी न? बगैर किए कुछ होगा ही नहीं।
दादाश्री : प्रवृत्ति तो दूसरी शक्ति तुम्हारे पास करवाती है। आपको इसमें अहंकार करने की कोई जरूरत नहीं है। वो शक्ति ही सब करवाती है। आपको देखने की ज़रूरत है कि क्या हो रहा है। ये रविन्द्र क्या कर रहा है वो आपको देखने की ज़रूरत है। काम सब करने का, और बोलने का भी कि 'ये मैंने किया लेकिन ड्रामेटिक (नाटकीय) बोलने का। मगर बिलीफ (मान्यता) में नहीं होना चाहिए कि 'ये मैंने किया।' ये बिलीफ में रहता है कि 'ये मैंने किया' वो ही गलती है। जैसे डामा (नाटक) में भर्तृहरि का अभिनय करता है। मगर वो अंदर जानता है कि मैं लक्ष्मीचंद हूँ। वो यह नहीं भूलता। वो जानता है कि, 'मैं लक्ष्मीचंद हूँ', इसलिए भर्तृहरि के नाटक में उसको रागद्वेष नहीं होता। ऐसा खुद को पहचान लिया, फिर राग-द्वेष नहीं होता। ये सब नाटक ही है। खुद पर्मनेन्ट (अविनाशी) है और ड्रामा (अभिनय) करते है। इधर इसका लड़का हो के आया, वो ड्रामा पूरा हो जाएगा, फिर दूसरे के वहाँ ड्रामा करेगा, फिर तीसरे के वहाँ ड्रामा करेगा। The world is the drama itself. समझ गए न? अभी आप रविन्द्र का ड्रामा करते हैं। इस ड्रामा में मारने का, मार खाने का, रोने का, सब कुछ करना, मगर राग-द्वेष नहीं करना। ऐसे वैसे सब बात करने का मगर सुपरफ्ल्युअस (दिखावे जैसा), पीछे कुछ नहीं, ऐसा रहने का। ये ड्रामा है, इसका रिहर्सल (पूर्वाभ्यास) भी हो गया है। आप इसमें नया कुछ करते ही नहीं।
जगत कर्ता - वास्तव में कौन ? ये शास्त्र के बाहर की बातें हैं। हमें दो तरह की बातें करनी पड़ती हैं। आप जैसा बहुत विचारशील आदमी हो, वह पूछे कि 'ये दुनिया किसने बनाई?' तो हम बोलेंगे कि 'God is not the creator of this world at all !' (भगवान इस दुनिया का रचयिता बिल्कुल ही नहीं है।) मगर आम लोग हमें पूछे, और बड़ी सभा में ऐसा पूछे तो हम ऐसा बोलेंगे कि God is the creator (भगवान रचयिता है)। क्योंकि वो फेक्ट (तथ्य) उनकी समझ में नहीं आएगी। जो बात उनकी समझ में आए वो ही बात बोलो। उनको समझ में नहीं आये ऐसी बात बोलेंगे तो उनका अवलंबन टूट जाएगा और बिना अवलंबन आदमी जिन्दा नहीं रह सकता।
God is the creator of this world (भगवान इस दुनिया का रचयिता है)यह बात भ्रांत भाषा में सही है, उस व्युपोइन्ट (दृष्टिकोण) से सही है।
व्युपोइन्टवाला हो तो उनका प्रारब्ध हम देख लेते हैं कि इनके प्रारब्ध में ये हमारी फेक्ट (यथार्थ) चीज़ नहीं है, तो हम उनके व्युपोइन्ट के मुताबिक ही सब हेल्प (मदद) देते हैं। तो इससे वो आगे बढ़ते हैं।
भगवान ने ये दुनिया बनाई ये बात रिअल नहीं है। वो सब रिलेटिव है। रिलेटिव की ओर तो अनंत बार गया, मगर अपना काम संतोषकारक कभी नहीं हुआ। उसके लिए रिअल के पास ही जाना पड़ेगा।
आप जो जानते हैं उसके आगे भी जानना तो पड़ेगा न? अभी दुनिया में जो ज्ञान चल रहा है, उसको आपने मान लिया है कि वो ही सच्चा ज्ञान है. मगर वो तो लौकिक ज्ञान है। इससे बहुत आगे जाना पड़ेगा।
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जगत कर्ता कौन ?
जगत कर्ता कौन?
प्रश्नकर्ता : इतनी बड़ी दुनिया, इतना बड़ा कारोबार भगवान के बिना और कौन बना सकता है?
दादाश्री : उसके पास कोई दूसरा धंधा नहीं था, इसलिए बनाया लगता है!!!
प्रश्नकर्ता : जिसने भी बनाया है. उसने सोच समझकर बनाया लगता है।
दादाश्री : क्यों? उसके लड़के की शादी करने के लिए लड़की नहीं मिलती थी, इसलिए उसने ये ब्रह्मांड बना दिया?
प्रश्नकर्ता : तो फिर इसका क्रिएटर कौन है?
दादाश्री : क्रिएटर (रचयिता) का अर्थ कुम्हार होता है। कुम्हार याने प्रजापति, जो मिट्टी के बर्तन बनाता है। भगवान कुम्हार नहीं है, भगवान तो भगवान ही है। फोरिनवाले (विदेशी) सब लोग मानते हैं कि God is the creator of this world (भगवान ही इस दुनिया का बनानेवाला है), मुस्लिम लोग बोलते हैं कि अल्लाह ने यह दुनिया बनाई, हिन्दू लोग बोलते हैं कि भगवान ने सब बनाया है। फोरिन के साइन्टिस्ट (वैज्ञानिक) हमें मिलते हैं, उन्हें हम बताते हैं कि God is the creator of this world is correct by Christian's viewpoint, by Hindu's viewpoint, by Muslim's viewpoint, but not by fact. By fact, Only Scientific Circumstantial Evidence | यदि आपको फेक्ट जानने का विचार हो. तो मेरे पास आना, अन्यथा आपको संतोष ही है न? क्या लगता है आपको?
डिग्रीयाँ है। कोई धर्म ६० डिग्री पर है, कोई १२० डिग्री पर है, कोई १८० डिग्री पर है। ऐसे हर एक का व्युपोइन्ट अलग अलग है। और १४० डिग्रीवाला जो व्युपोइन्ट है वो जो देखता है, उससे २०० डिग्रीवाला भिन्न देखता है। १४० डिग्रीवाला, २०० डिग्रीवाले को बोलता है, कि तुम गलत हो और २०० डिग्रीवाले को गलत बोलता है। हम क्या बोलते हैं कि २०० डिग्रीवाला १४० डिग्री पर आ जाए
और १४० डिग्रीवाला २०० डिग्री पर चला जाए। फिर वह स्थान देखकर बोलो। तो दोनो बोलेंगे कि नहीं, यह सच बात है। तुम्हारी समझ में आ गया न? मगर पूरा तो ३६० डिग्रीवाला व्युपोइन्ट है। तो जिसका जो व्युपोइन्ट है, वो उस व्युपोइन्ट से ही बोलता है, कि हमारी बात ही सच है। व्युपोइन्ट कभी कम्प्लिट (संपूर्ण) सच नहीं होता।
एक क्रिस्टिअन व्युपोइन्ट है, एक मुस्लिम व्युपोइन्ट है, एक हिन्दू व्युपोइन्ट है, एक जैन व्युपोइन्ट है, मगर ये सभी व्युपोइन्ट हैं। सब एक ही बात बताना चाहते हैं। सेन्टर को जानने की, वो ही सबकी इच्छा है। मगर वो सेन्टर की बात अपने व्युपोइन्ट से देखते हैं और बोलते हैं। सब धर्म अलग-अलग डिग्री पर हैं, इसलिए सब लोगों में झगड़ा है। मगर खुदा के वहाँ झगड़ा नहीं है। खुदा के वहाँ तो क्या है, एक ही बात जानने के लिए सबका व्युपोइन्ट अलग है। लोग बोलते है, ये दुनिया भगवान ने बनाई, God is the creator of this world! ये बात तुम्हारे व्युपोइन्ट से सही है मगर फेक्ट (वास्तविकता) से 100% (शत प्रतिशत) गलत है। फेक्ट हमेशा सैद्धांतिक रहता है और व्यूपोइन्ट भिन्न होते हैं। फेक्ट में मात्र सायन्टिफिक सरकमस्टेन्शियल एविडन्स हैं।
प्रश्नकर्ता : सभी धर्मों का ध्येय तो एक ही है, फिर भी ओपिनियन्स (विचारधारा) अलग अलग क्यों हैं? और सभी 'हमारा ही सच है' ऐसे क्यों बताते हैं?
किसी का व्युपोइन्ट तोड़ना नहीं चाहिए। जहाँ तक फेक्ट समझ में नहीं आए, वहाँ तक उनको व्युपोइन्ट में ही रखना चाहिए और उसके लिए ही मदद करनी चाहिए। हम ऐसा ही करते हैं। उनके व्युपोइन्ट में ही मदद करते हैं। इससे वो आगे बढ़ सकते हैं। और जिसको फेक्ट
दादाश्री : इस सर्कल में यह सेन्टर (केन्द्रबिन्दु) है और ये ३६०
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(वास्तविक) समझना है उसको फेक्ट देते हैं। ये रिअल है, बिलकुल साइन्टिफिक है और सारे जगत के लिए है। जो चीज़ चाहिए, वो इधर से ले जाओ। हम सेन्टर में हैं। हमें किसी के साथ मतभेद नहीं है।
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प्रश्नकर्ता: उपनिषद् में भी कहा है कि ईश्वर कर्ता नहीं है। दादाश्री : ईश्वर अगर कर्ता होता तो उसको भी कर्म बँधता । प्रश्नकर्ता : मेरे हृदय में भी ये प्रश्न बहुत चलता था कि ईश्वर कर्ता कैसे ? अब आपको मिलने से मुझे यह स्पष्ट हो गया।
दादाश्री : भगवान वीतराग हैं। बड़े बड़े महात्मा लोग हमारे साथ बात करने आते हैं। उनकी 'ईश्वर कर्ता है' ऐसी बिलीफ छूटती नहीं है। तो हम उनको पूछते हैं, कि भगवान ने ये सब बनाया तो भगवान को किसने बनाया? तो फिर वो निरूत्तर हो जाते हैं। बात लोजिकल (तार्किक) है। अगर बनानेवाला है, तो उसको भी बनानेवाला चाहिए और उसको भी बनानेवाला चाहिए, वो लोजिक (तर्क) है।
भगवान ने कुछ नहीं बनाया, तो फिर उस पर क्यों आरोप करते हैं? भगवान तो भगवान है, वीतराग है। The world is the puzzle itself. God has not puzzled this world at all. अगर भगवान ने ये पज़ल किया होता न, तो ये सीबीआई वालों को ऊपर भेजकर उसे पकड़कर जेल में डालना पड़ता। भगवान ने ऐसी दुनिया ही क्यों बनाई कि जिसमें सभी दुःखी हैं? भगवान ने ये पज़ल नहीं किया ।
God is not the creator of this world at all, only Scientific Circumstential evidence ( भगवान इस दुनिया का बिल्कुल ही कर्ता नहीं है, मात्र सायन्टिफिक सरकमस्टेन्शियल एविडन्स) है। भगवान को ये सब बनाने की कोई ज़रूरत ही नहीं है। ये जगत किसी ने बनाया ही नहीं है। क्योंकि जो जगत है, उसकी अगर बिगिनिंग (शुरूआत ) होती, तो उसका एन्ड (अंत) भी होता । मगर इस
जगत कर्ता कौन ? जगत की शुरूआत है ही नहीं, वो अनादि से है और अनंत तक है। वो कभी क्रिएट (सर्जन) हुआ ही नहीं और कभी नाश भी नहीं होनेवाला, ऐसा अनादि अनंत है।
प्रश्नकर्ता: मगर यह जगत विनाशी है।
दादाश्री : नहीं, वो अनादि अनंत है। वो पर्मनेन्ट (अविनाशी) है। जो सनातन है उसका आदि भी नहीं होता और उसका अंत भी नहीं होता है।
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प्रश्नकर्ता : मनुष्य के लिए तो ये जगत विनाशी है न?
दादाश्री : वो ठीक बात है। वो बात रिलेटिव है। All these relatives are temporary adjustment, मगर जगत तो अनादिअनंत है।
आपको कोई पर्मनेन्ट चीज़ लगती है?
प्रश्नकर्ता: ऐसे देखा जाए तो सब टेम्पररी (विनाशी) ही है। दादाश्री : हाँ, टेम्पररी है, तो पर्मनेन्ट कोई चीज़ है? प्रश्नकर्ता : पर्मनेन्ट तो कुदरत ही हो सकती है।
दादाश्री : कुदरत ? कुदरत तो निरंतर बदलती ही रहती है। उसकी एक अवस्था का नाश होता है, दूसरी अवस्था उत्पन्न होती है। वो कैसे पर्मनेट हो सकती है? तो फिर पर्मनेन्ट क्या होता है?
प्रश्नकर्ता: वो प्रोसेस (प्रक्रिया) ही तो पर्मनेन्ट है न?
दादाश्री : वो तो एक अवस्था नाश होती है, दूसरी अवस्था उत्पन्न होती है। इसमें पर्मनेन्ट कौन सी चीज़ है?
प्रश्नकर्ता: जो नाश करनेवाली है और जो उत्पन्न करनेवाली चीज़ है, वो ही पर्मनेन्ट ?
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दादाश्री : नाश करनेवाला कौन है? प्रश्नकर्ता : सब कुदरत है। दादाश्री : आपने कुदरत की डेफिनेशन (परिभाषा) सही नहीं दी।
प्रश्नकर्ता : वो ही तो नोलेज (ज्ञान) है। कुदरत की डेफिनेशन का ज्ञान है, तो आदमी को सब कुछ पता चल जाएगा कि यह कुदरत क्या चीज़ है!
दादाश्री : खाना खाकर तुम सो जाते हो, फिर अंदर कौन चलाता है? इसमें बाइल (पित्त), पाचकरस वो सब तुम डालते हो? और चौबीस घंटे में भोजन का ब्लड (खून) बन जाता है, वो कौन बनाता है? यूरिन (पेशाब) कौन बनाता है? वो सब पृथक्करण हो जाता है, तो वो सब पृथक कौन करता है? वो क्या भगवान करने आते हैं? वो कौन करता है? वो किसी को करना पड़ता ही नहीं। ऐसे ही जगत चल रहा है, कुदरत से ही चल रहा है।
प्रश्नकर्ता : कुदरत कौन है?
दादाश्री : कुदरत याने सायन्टिफिक सरकमस्टेन्शियल एविडन्स है। आप इधर कैसे आया? कितने सारे सायन्टिफिक सरकमस्टेन्शियल एविडन्स मिलते है तब काम होता है।
2H (हाइड्रोजन) और एक 0 (ओक्सिजन) साइन्टिस्ट को देते हैं, तो वो बोलता है कि हम इसका पानी बना देंगे। हम बोलेंगे, क्या आप पानी का मेकर (बनानेवाले) है? तो बोलेगा, 'हाँजी, हमको 2 H और एक 0 दे दो, तो हम पानी बना देगा।' वहाँ तक तो मेकर बोला जाता है। फिर अपने पास 2 H खतम हो गया, one H ही है
और 20 है तो उसका पानी बना दो बोले, तो वो क्या बोलेगा कि, 'इसका नहीं बन सकता।' तो तुम क्या बनानेवाले हो? 26 और 0 इकट्ठा हो गया तो पानी बन जाता है। ऊपर से बरसात का पानी गिरता
है न, उसमें कोई देव कुछ नहीं करते। वो खुद ही ऐसे संयोग इकट्ठा हो जाते हैं और पानी गिरता है। इसमें बनानेवाले (मेकर) की कोई जरूरत नहीं है। वो सायन्टिफिक सरकमस्टेन्शियल एविडन्स हैं।
___ एक आदमी अभी जिंदा है। किसी ऐसी दवा का डोज (औषधि की मात्रा) उसको पिलाया तो मर जाता है, तो किसने मार दिया? भगवान ने मार दिया? किसी आदमी ने मार दिया?
प्रश्नकर्ता : पोस्टमॉर्टम (मृत्यु के बाद की डॉक्टरी जाँच) करना चाहिए।
दादाश्री : हाँ, पोस्टमॉर्टम से सच्ची बात मालूम हो जाती है कि क्या हो गया है। क्या मालूम होगा कि किसी चीज़ से, दवा से मर गया है। ऐसे सरकमस्टेन्शियल एविडन्स बन गए हैं कि जिससे वो मर गया है। इसको इतना ज़हर (poison) दे दिया कि जहर ही मारता है। भगवान भी मारता नहीं और जहर देनेवाला भी नहीं मारता है। ज़हर देनेवाले ने जहर दिया और वमन हो गया तो ज़हर निकल गया, तो नहीं मरेगा। जहर देनेवाला यदि मारनेवाला होता तो वह आदमी जरूर मर जाता, मगर जहर ही मारता है। भगवान इसमें हाथ डालता ही नहीं।
यह विज्ञान मात्र है। आपकी बोडी (शरीर) कैसे बनी, वो भी विज्ञान मात्र है। ये जगत ऐसे ही विज्ञान से चल रहा है। ये बोडी भी ऐसे ही विज्ञान से ही उत्पन्न होती है। इसमें कोई ब्रह्मा की जरूरत नहीं, विष्णु की जरूर नहीं, शिव की जरूरत नहीं है। भगवान ये बोडी नहीं बनाते है, मगर भगवान की हाजिरी (presence) होनी चाहिए। भगवान है तो होता है, वर्ना नहीं होता।
प्रश्नकर्ता : इस सायन्टिफिक सरकमस्टेन्शियल एविडन्स (Scientfic Circumstantial evidence) को जरा विस्तार से समझाइये।
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दादाश्री : दूसरा आपके पास कुछ चारा नहीं है। तो ये मतभेद कौन कराता है?
प्रश्नकर्ता : कोई इस शक्ति को भगवान कहता है, कोई कुदरत कहता है, कोई अदृश्य शक्ति कहता है लेकिन कोई उसका नाम नहीं बताता।
दादाश्री : हाँ, आप हमें मिलने कैसे आएँ? तो आपको जितना दिखता है (मालूम है), उतना बोलते हैं कि मुझे इस 'भाई' ने बताया कि 'ज्ञानीपुरुष' यहाँ आनेवाले हैं। उस बात से आपने विचार किया कि 'चलो, आज जाएँगे।' आप यहाँ आये, मैं बाहर जानेवाला था मगर नहीं गया। आपको दर्शन हो गए। इसके पीछे कितने कोजीज (कारण) हैं। जो दिखते हैं इतने ही कोज़ीज़ नहीं हैं, बहुत कोज़ीज़ हैं। इसमें से एक कोज़ नहीं मिले, तो काम नहीं होता। आपको मालूम नहीं है कि ये किन कोज़ीज़ से हुआ है। इन कोज़ीज़ को साइन्टिफिक इसलिए कहा कि इसमें बहुत गुह्य कोज़ीज़ हैं। आपको थोड़ा समझ में आया?
प्रश्नकर्ता : हाँ।
दादाश्री: लोग बोलते हैं कि भगवान ने हमारे लड़के को मार दिया, हमारा बहुत नुकसान कर दिया। ये सब गलत बात है। ऐसा नहीं बोलना चाहिए। भगवान तो भगवान ही है!!! कभी उसने कोई गुनाह नहीं किया।
दादाश्री : वो एक ही शक्ति है। उसी के आधार से सब चलता है। दूसरा कोई मेनेजर (प्रबंधक) नहीं है। और ये शक्ति भी कम्प्यूटर के जैसी है। उसमें चेतन नहीं है। इसमें चेतन होता तो भगवान पर ही आरोप लगता कि वो ही चलाता है। उस शक्ति से सब कुछ चलता हैं। आपको वास्तविकता जानने का विचार है?
प्रश्नकर्ता : हाँ, वास्तविक ही चाहिए।
दादाश्री : By Fact the god is not creator of this world at all. Only Scientific Circumstantial evidence
आप अपनी औरत के साथ टेबल पर आराम से खाना खा रहे हों, फिर पाँच मिनिट के बाद कोई मतभेद हो जाता है, तो वह मतभेद किसने करवाया? आपको पूछे कि, 'तुम्हारी मर्जी थी? तुम्हारी मर्जी से मतभेद हुआ?' तो आप ना बोलेंगे। औरत को पूछेगे तो वो भी ना बोलेगी। तो फिर ये मतभेद किसने करवाया?
प्रश्नकर्ता : रिलेटिव केरेक्टर (व्यावहारिक चरित्र), मन, टेम्परामेन्ट (स्वभाव) इन सब पर आधारित है।
दादाश्री : वो तो सब विजिबल कोज़ीज़ (दिखाई देनेवाले कारण) हैं। सच्चे कारण (Real causes) चाहिए। विजिबल कोज़ तो आँख से देखा जाता है, कान से सुनाई देता है, वो है।
प्रश्नकर्ता : साइन्टिस्ट के तरीके से तो हमें विजिबल कोजीज़ ही देखने पड़ते है न?
प्रश्नकर्ता : Who generated these evidences (ये संयोग कौन पैदा करता है)?
दादाश्री : हाँ, वो एक शक्ति है, जो सब संयोग इकट्ठा (evidences generate) करती है।
प्रश्नकर्ता : वो शक्ति क्या है?
दादाश्री : हमने उसका नाम 'व्यवस्थित शक्ति' दिया है। वो 'व्यवस्थित शक्ति'. इस दुनिया को व्यवस्थित (सुचारु रूप से) ही रखती है। सूर्य, चंद्र, तारे सबको व्यवस्थित रखती है। अनादि काल से व्यवस्थित ही रखती है। सब जीवों का आना-जाना, आपका संसार भी वो शक्ति ही चलाती है, निरंतर! जीवमात्र का सब 'व्यवस्थित शक्ति' ही चलाती है। हर रोज वो ही शक्ति काम करती है। सारे संयोग
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इकट्ठा करना ही इसका काम है, उसका दूसरा कोई काम नहीं है। जैसे वो बड़ा कम्प्यूटर होता है न, वैसा ही उसका काम है।
प्रश्नकर्ता : ये कम्प्यूटर की बात समझ में नहीं आई।
दादाश्री : समझ लो, तुमने विचार किया कि मंदिर बनाने की ज़रूरत है। इधर तुमने ये विचार किया, वो विचार बड़ा कम्प्यूटर में, जो 'व्यवस्थित शक्ति' है, उसमें दर्ज हो जाता है। तुमने विचार किया था, वो कोज़ (कारण) है, वो कोज़ 'व्यवस्थित शक्ति' में चला जाता है। 'व्यवस्थित शक्ति' इसकी इफेक्ट (परिणाम) के रूप में सारे संयोग इकट्ठे कर देती है। फिर आपको इसका फल मिलता है। फिर आप मंदिर बना देते हैं। आप तो अहंकार से बोलते हैं, 'ये मैंने किया', मगर वो सब 'व्यवस्थित शक्ति' ही चलाती है।
इस तरह जो परिणाम आता है, वो 'व्यवस्थित शक्ति' का काम हैं, ऐसा हम ज्ञान में देखकर बोलते हैं। 'व्यवस्थित शक्ति' एक्जेक्ट (यथार्थ) बात है। ये हमारी लाखों जन्मों की शोध है।
है। मगर पूरा पूरा फायदा तो भगवान को पहचानने से होता है। यथार्थ रूप से भगवान कौन है, ये जानना चाहिए।
परोक्ष भगवान की भजना करें तो भी फायदा मिलता है। कछ न कुछ तो करना ही चाहिए। उससे light' (प्रकाश) रहती है, सद्बुद्धि रहती है, नहीं तो वो भी चली जाती है।
प्रश्नकर्ता : 'व्यवस्थित शक्ति' की अपने पर कृपा रहे, उसके लिए क्या करना चाहिए?
दादाश्री : दुनिया में और कोई कृपा रखनेवाला है ही नहीं। तुम्हारे अंदर जो भगवान है, उसी की कृपा होती है। दूसरा कोई कृपा रखनेवाला है ही नहीं।
'व्यवस्थित' का एक्जेक्ट स्वरूप संक्षिप्त में बता दूँ।
देखो न, ड्रामा होता है, तो उसका रिहर्सल पहले होता है, फिर ड्रामा होता है। उस समय कोई विचार करने की जरूरत नहीं है, क्योंकि रिहर्सल हो गया है। ऐसा ही होगा। वो 'व्यवस्थित' ही है। जिसका रिहर्सल आपने देखा है, उसका अभी ड्रामा हो जाएगा तो वो 'व्यवस्थित' ही है। इसमें बदलाव नहीं है। जैसा रिहर्सल किया है ऐसा ही अभी हो जाएगा। पिछले जन्म में जैसा उसका रिहर्सल होता है. फिर इस जन्म में ऐसा उसका 'व्यवस्थित' हो जाता है। फिर 'व्यवस्थित' में वो चलता है। पिछले जन्म में जो रिहर्सल होता है वो 'अवस्थित' रूप में होता है और वो अवस्थित जब फल देने को तैयार होता है, तब वो 'व्यवस्थित' होता है। तो इसमें जन्म से मृत्यु तक कुछ परिवर्तन (change) नहीं होनेवाला।
प्रश्नकर्ता : जो कुदरत के लॉ (नियम) हैं. वो ही 'व्यवस्थित' के लॉ हैं या वो ही 'व्यवस्थित' है? दोनों एक ही हैं या अलग-अलग?
दादाश्री : कुदरत का कायदा बिलकुल नियम में है। और
प्रश्नकर्ता : 'व्यवस्थित शक्ति' को भगवान कह सकते हैं?
दादाश्री : नहीं, 'व्यवस्थित शक्ति' को भगवान बोलने से क्या फायदा? इस टेपरिकार्ड को भगवान बोलें तो क्या फायदा? भगवान को भगवान बोलना चाहिए, और टेपरिकार्ड को टेपरिकार्ड बोलना चाहिए। जिधर भगवान नहीं है, वहाँ भगवान का आरोपण करने से क्या फायदा? मगर सारा जगत् 'व्यवस्थित शक्ति' को ही भगवान बोलता है।
__ 'व्यवस्थित' को यदि भगवान बोलें तो उस लेटर (पत्र) को 'व्यवस्थित' स्वीकार नहीं करता, क्योंकि उस पर पता भगवान का है।
और 'व्यवस्थित' खुद भगवान नहीं है, तो वहाँ से लेटर वापस आकर भगवान के पास जाता है। ऐसे अपनी अरजी भगवान के पास ही जाती है। इससे फायदा मिलता है। ऐसे प्रार्थना करने से परोक्ष फायदा मिलता
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'व्यवस्थित' तो जो सब जीव मात्र है, वे सब 'व्यवस्थित' में है। वो क्या हो जाएगा, क्या नहीं, सब उसका पहले से हिसाब आ गया है। कुदरत के नियम उसमें सहायता करते हैं। 'व्यवस्थित' तो पिछले जन्म से, जन्म से मृत्यु तक की यह फिल्म हो गई है। ये ग्लास (काँच) फूट गया तो वो ग्लास तो पहले से टूट गया है, मगर अभी ये दीखता है। ऐसा ये जगत है कि एक परमाणु भी कभी बढ़ता नहीं, कभी कम होता नहीं। अविनाशी में सब चीज़ ऐसी ही रहती है। और सब कुछ होता है वो विनाशी में होता है। अवस्थाएँ सब विनाशी है और विनाशी में देखने में आता है कि वो मर गया। मगर अविनाशी में कोई मरता ही नहीं है। ये मर गया, ऐसा हो गया, वैसा हो गया, वो सब रोंग बिलीफ में है, राइट बिलीफ में ऐसा होता ही नहीं।
अहंकार ही संसार है। अहंकार और ममता चले जाएँ तो फिर मोक्ष हो जाता है। जन्म से मृत्यु तक जो भी कुछ होता है, जो जो अवस्थाएँ होती है, पढ़ने की, खेलने की, बीमारी की, नौकरी करता है, शादी करता है, ब्रह्मचर्य आश्रम, संन्यास आश्रम, वो सब डिस्चार्ज ही है। अंदर नया चार्ज नहीं हो, तो आगे का जन्म बंद हो जाता है, मगर जो डिस्चार्ज है वह तो डिस्चार्ज ही रहता है। चार्ज करनेवाला अहंकार और ममता चले जाएँ, तो डिस्चार्ज तो पूरा अच्छी तरह से हो जाता है और मोक्ष हो जाता है।
आचरण डिस्चार्ज है। आचरण जो होता है, आचार है वो डिस्चार्ज है और चार्ज जब बंद हो जाए तो फिर डिस्चार्ज सब खत्म हो जाएगा। तो पहले क्या करना है?
प्रश्नकर्ता : चार्ज बंद करना है। दादाश्री : तो आपको कर्म का बंध होता है कि नहीं?
प्रश्नकर्ता : आप कहते हैं कि 'सब चीज़ों का निर्माण हो चुका है, निश्चित है', तो वह क्या है?
प्रश्नकर्ता : वो तो होता है।
दादाश्री : जो निर्माण हुआ (बन चुका) है वो सायन्टिफिक सरकमस्टेन्शियल एविडन्स (व्यवस्थित) है और नहीं निर्माण हुआ (अब तक नहीं बना) वो सायन्टिफिक सरकमस्टेन्शियल एविडन्स (व्यवस्थित) नहीं है। जो डिस्चार्ज हुआ है, वो निर्माण हुआ है, वो सायन्टिफिक सरकमस्टेन्शियल एविडन्स है। अभी आप इधर सत्संग में आए वो डिस्चार्ज है, व्यापार किया वो डिस्चार्ज (कर्मफल) है, नींद ले वह भी डिस्चार्ज है. परा दिन सब डिस्चार्ज ही है। हमारे साथ बात करते हैं वो भी डिस्चार्ज ही है। और डिस्चार्ज सब निर्माण हो गया है और (नया) चार्ज है वो (अभी तक) निर्माण नहीं हुआ है। चार्ज अपने हाथ में है।
जगत केवल निर्माण नहीं है। चार्ज भी है और डिस्चार्ज भी है। वो डिस्चार्ज ही सब निर्माण हो गया है। जो बेटरी डिस्चार्ज होती है, वो निर्माण हो गया है। जैसे चार्ज हुई थी, वैसे ही डिस्चार्ज हो जायेगी।
दादाश्री : देखो न, जब तुम बोलते हो कि 'ये मैंने किया।' तब चार्ज होता है। मैं भी बोलता हूँ कि ये मैंने किया मगर में नाटकीय बोलता हूँ और तुम सचमुच बोलते हो।
प्रश्नकर्ता : मगर मैंने किया, मैं कर्ता हूँ ऐसा मुझे कभी नहीं लगता।
दादाश्री : तो आप कौन है? प्रश्नकर्ता : उसकी खोज में हूँ।
दादाश्री : तो फिर तुम खुद कर्ता हो। अभी तो तुमको 'मैंने किया' उसकी जिम्मेदारी लगती है। मगर जब तुमको Self realise (आत्मसाक्षात्कार) हो जाएगा फिर तुम्हारी जिम्मेदारी नहीं। तुम मानो या
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ना मानो मगर साक्षात्कार नहीं किया वहाँ तक जिम्मेदारी तुम्हारी ही है।
केवल आत्मा ही जानना है। आत्मा का ज्ञान न हो वहाँ तक सब अटपटा लगेगा और आत्मा का ज्ञान हो गया तो अटपटा सब चला जाएगा। यह सारा बोझा ही अटपटेपन का है। Self realisation (आत्मसाक्षात्कार) हो गया कि सारे पज़ल सोल्व हो जाते हैं। When this puzzle ends, then no puzzle and there is the Soul (जब यह पज़ल सोल्व हो जायेगा, तब दूसरा कोई पज़ल नहीं रहेगा, वहीं आत्मा है)।
प्रश्नकर्ता : आपने पज़ल का अंत बता दिया तो इस पज़ल की आदि कहाँ से है?
दादाश्री : There is no begining and no end of this puzzle. Where there is a begining, there is a end! (544 पज़ल की न तो शुरूआत है, न ही अंत है। जहाँ शुरूआत होती है, वहाँ अंत होता है।)
प्रश्नकर्ता : तो कौन करवाता है?
दादाश्री : वह शक्ति है। एक बड़े कम्प्यूटर की माफिक है। जिसको शास्त्र की भाषा में समष्टि बोलते हैं। किसी एक आदमी का खुद का कम्प्यूटर है, वो व्यष्टि रूप है और सभी जीवों का कम्बाइन्ड (मिला जुला) कम्प्यूटर समष्टि रूप है। इसीसे सब व्यवहार चल रहा है। इसको हम सायन्टिफिक सरकमस्टेन्शियल एविडन्स (व्यवस्थित शक्ति) बोलते हैं। जो हर रोज सूर्य, चंद्र, तारे सबको व्यवस्थित ही रखती है।
प्रश्नकर्ता : जो शक्ति चलाती है, वो कहाँ से आती है?
दादाश्री : वो कुदरती शक्ति है, भगवान की शक्ति नहीं है। ये बहुत बड़ी बात है, समझ में आए ऐसी बात नहीं है। ये एटम बॉम्ब
(अणु बम) बनाया है, वो अणु में से बनाया है, तो अणु में कितनी शक्ति है?
प्रश्नकर्ता : बहुत शक्ति है।
दादाश्री : ऐसी शक्ति । बहुत शक्तिवाले ने इस भगवान को दुःख दिया है। भगवान की शक्ति इससे भी ज्यादा है। फिर भगवान खुद की शक्ति से छूटता है।
प्रश्नकर्ता : भगवान की शक्ति के ऊपर ये कौन सी शक्ति है?
दादाश्री : किसकी? ऊपर कोई शक्ति नहीं। भगवान की शक्ति बहुत ज्यादा, सबसे ज्यादा है। और जो अनात्मा (पुद्गल) है, उसकी भी शक्ति बहुत है।
प्रश्नकर्ता : ये शक्ति भगवान से भी ऊपर है?
दादाश्री : नहीं, भगवान का कोई ऊपरी (मालिक) नहीं है। मगर वो (अनात्मा की) शक्ति बहुत राक्षसी शक्ति है, उस शक्ति से तो भगवान खुद ही बंधा हुआ है। अब भगवान छूटना चाहता है, मगर वो छूट नहीं सकता। फिर इसका रस्ता क्या बताया कि जो मुक्त हो गया है, उसकी मदद से मुक्त हो सकता है।
प्रश्नकर्ता : लेकिन जो मुक्त हुआ है, उसको किसने मुक्त किया?
दादाश्री : वो समय ने किया है। उसका समय हो गया इसलिए मुक्त हो गया। सब जीवों का समय आएगा तब मुक्त हो जाएँगे। ये संसार जेल (कारागार) है। भगवान संसार रूपी जेल में रहे हैं, मुद्दत पूरी हो जाएगी तो मुक्त हो जाएँगे। मगर मुद्दत पूरी होने से पहले, उसको मुक्तपुरुष (जो सांसारिक, विनाशी बंधनो से मुक्त हुए हो) के दर्शन हो जाएंगे और वहाँ से मुक्ति हो जाएगी। इसमें मुक्तपुरुष निमित्त हैं। इस निमित्त से वो मुक्त हो जाते हैं।
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जगत कर्ता कौन?
तो जगत का कर्ता, है या नहीं ? इस दुनिया का कर्ता कोई है ही नहीं, और कर्ता के बिना दुनिया हुई नहीं!
ये जगत किसने बनाया? प्रश्नकर्ता : हमें मालूम नहीं, वो ही जानने की कोशिश कर रहे
दादाश्री : हाँ, सब लोग जानने की कोशिश करते हैं, मगर कोई नहीं जानता। The world is the puzzle itself. भगवान ने ये पज़ल नहीं किया है। भगवान तो परमानंदी और परम ज्योतिस्वरूप है।
प्रश्नकर्ता : तो खुद ने ही पज़ल किया है?
दादाश्री : नहीं, खुद क्या पज़ल करनेवाला है? इस दुनिया का कोई क्रिएटर नहीं है। इस दुनिया का कर्ता कोई नहीं है। भगवान भी कर्ता नहीं है और आप भी कर्ता नहीं है और बिना कर्ता ये दुनिया बनी भी नहीं। हम विरोधाभासी बात बोलते हैं न? मगर ये समझने जैसी बात है। 'कर्ता नहीं है' याने कोई स्वतंत्र कर्ता नहीं है। और 'कर्ता है वो नैमित्तिक कर्ता है।
मर्जी नहीं है, जिम्मेदारी नहीं है। ऐसे ही ये नैमित्तिक कर्ता है। कर्ता तो है मगर नैमित्तिक कर्ता हैं। The world is the puzzle itself, God has not puzzled this world at all. only scientific circumstantial evidences है।
आपने समुद्र का किनारा देखा है? समुद्र के किनारे से थोड़ी दूर आपका बंगला हो, बंगले के कम्पाउन्ड (आँगन) में आपने लोहे की दो सलाखें रखी। बारह महीनों के बाद आप गए, तो लोहे को कुछ हो जाएगा? उसको रस्टि (मुर्चा लगा हुआ) किसने किया? समुद्र ने किया? खारी हवा ने किया? लोहे की इच्छा है? खारी हवा बोलेगी कि हमारी इच्छा नहीं है, मैंने तो ऐसा कुछ किया नहीं है। समुद्र को पूछेगे तो, वो तो अपने खुद के क्षेत्र में रमण कर रहा है। लोहे की भूल है क्या? लोहे को दूसरी जगह पर रखो तो कुछ नहीं होता था। तो क्या बात है? मात्र सायन्टिफिक सरकमस्टेन्शियल एविडन्स है। इसमें भगवान कुछ करता ही नहीं। भगवान क्या करता है? भगवान तो, आपको प्रकाश देता है। वो चोर को भी प्रकाश देता है और पुलिस को भी प्रकाश देता है। भगवान क्या बोलता है, 'तुम जो करते हैं वो तुम्हारी जिम्मेदारी पर करते हो, हम तो प्रकाश देते हैं।'
खुद कर्ता होता तो मोक्ष में नहीं जाता, छूटता ही नहीं। नैमित्तिक कर्ता है, इसलिए छूट जाता है। स्वतंत्र कर्ता होता तो वो दुनिया का मालिक हो जाता था कि 'हमने ये दुनिया बनाई है, तो हम मालिक हैं।' मगर किसी को संडास जाने की खुद की ताकत नहीं है, तो मालिक कहाँ से हो गया?! कोई मालिक नहीं है। नैमित्तिक कर्ता किसे कहते हैं कि इस डॉक्टर का धक्का आपको लग गया और आपका धक्का ये भाई को लग गया और ये भाई गिर पड़ा। उसका पाँव टूट गया, तो ये भाई तुमको बोलेगा, 'तुमने हमारा पाँव तोड़ दिया। मगर आप जानते हैं, तुमको इस डॉक्टर का धक्का लगा था। इसमें आपकी कोई
प्रश्नकर्ता : ये सायन्टिफिक सरकमस्टेन्शियल एविडन्स है, वह कैसे हुए? उसे किसने तैयार किया?
दादाश्री : कोई तैयार करनेवाला नहीं है। वो अपने आप हो जाता है। वो कम्प्यूटर के जैसे चलता है। पूर्वजन्म का कर्म है, वो फीड हुआ है और अब जो फल मिला वो कम्प्यूटर जैसी शक्ति है वो फल देती है, जिसे 'व्यवस्थित' शक्ति कहते है। जिसे शास्त्रकारों ने 'समष्टि' कहा है। अंग्रेजी में उसे Scientific Circumstantial Evidence (सायन्टिफिक सरकमस्टेन्शियल एविडन्स ) बोलते हैं।
जय सच्चिदानंद
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समरसी आहार लेने की परम शक्ति दो। ८. हे दादा भगवान ! मुझे किसी भी देहधारी जीवात्मा का प्रत्यक्ष अथवा परोक्ष, जीवित अथवा मृत, किसी का किंचित्मात्र भी अवर्णवाद, अपराध, अविनय न किया जाये, न करवाया जाये या कर्ता के प्रति अनुमोदना न
की जायें, ऐसी परम शक्ति दो। ९. हे दादा भगवान ! मुझे जगत कल्याण करने में निमित्त बनने की परम
शक्ति दो, शक्ति दो, शक्ति दो। (इतना आप दादा भगवान से माँगा करें। यह प्रतिदिन यंत्रवत् पढ़ने की चीज़ नहीं है, हृदय में रखने की चीज़ है। यह प्रतिदिन उपयोगपूर्वक भावना करने की चीज़ है। इतने पाठ में समस्त शास्त्रों का सार आ जाता है।)
नौ कलमें १. हे दादा भगवान ! मुझे किसी भी देहधारी जीवात्मा का किंचित्मात्र भी
अहम् न दुभे (दु:खे), न दुभाया (दुःखाया) जाये या दुभाने (दु:खाने) के प्रति अनुमोदना न की जाये, ऐसी परम शक्ति दो। मुझे किसी देहधारी जीवात्मा का किंचित्मात्र भी अहम् न दुभे, ऐसी स्याद्वाद वाणी, स्याद्वाद वर्तन और स्यावाद मनन करने की परम
शक्ति दो। २. हे दादा भगवान ! मुझे किसी भी धर्म का किंचित्मात्र भी प्रमाण न दुभे, न दुभाया जाये या दुभाने के प्रति अनुमोदना न की जाये, ऐसी परम शक्ति दो। मुझे किसी भी धर्म का किंचितमात्र भी प्रमाण न दुभाया जाये ऐसी स्याद्वाद वाणी, स्याद्वाद वर्तन और स्याद्वाद मनन करने की परम
शक्ति दो। ३. हे दादा भगवान ! मुझे किसी भी देहधारी उपदेशक साध. साध्वी या
आचार्य का अवर्णवाद, अपराध, अविनय न करने की परम शक्ति दो। ४. हे दादा भगवान ! मुझे किसी भी देहधारी जीवात्मा के प्रति किंचितमात्र भी
अभाव, तिरस्कार कभी भी न किया जाये, न करवाया जाये या कर्ता के प्रति न अनुमोदित किया जाये, ऐसी परम शक्ति दो। ५. हे दादा भगवान ! मुझे किसी भी देहधारी जीवात्मा के साथ कभी भी
कठोर भाषा, तंतीली भाषा न बोली जाये, न बुलवाई जाये या बोलने के प्रति अनुमोदना न की जाये, ऐसी परम शक्ति दो। कोई कठोर भाषा, तंतीली भाषा बोलें तो मुझे मृदु-ऋजु भाषा बोलने की
शक्ति दो। ६. हे दादा भगवान ! मुझे किसी भी देहधारी जीवात्मा के प्रति स्त्री, पुरुष या
नपुंसक, कोई भी लिंगधारी हो, तो उसके संबंध में किचिंतमात्र भी विषय-विकार संबंधी दोष, इच्छाएँ, चेष्टाएँ या विचार संबंधी दोष न किये जायें, न करवाये जायें या कर्ता के प्रति अनुमोदना न की जाये, ऐसी परम शक्ति दो। मुझे निरंतर निर्विकार रहने की परम शक्ति दो। ७. हे दादा भगवान ! मुझे किसी भी रस में लुब्धता न हो ऐसी शक्ति दो।
शुद्धात्मा के प्रति प्रार्थना
(प्रतिदिन एक बार बोलें) हे अंतर्यामी परमात्मा ! आप प्रत्येक जीवमात्र में बिराजमान हो, वैसे ही मुझ में भी बिराजमान हो। आपका स्वरूप ही मेरा स्वरूप है। मेरा स्वरूप शुद्धात्मा है।
हे शुद्धात्मा भगवान ! मैं आपको अभेद भाव से अत्यंत भक्तिपूर्वक नमस्कार करता हूँ।
अज्ञानतावश मैंने जो जो ** दोष किये हैं, उन सभी दोषों को आपके समक्ष जाहिर करता हूँ। उनका हृदयपूर्वक बहुत पश्चाताप करता हूँ और आपसे क्षमा याचना करता हूँ। हे प्रभु ! मुझे क्षमा करो, क्षमा करो, क्षमा करो और फिर से ऐसे दोष नहीं करूँ, ऐसी आप मुझे शक्ति दो, शक्ति दो, शक्ति दो।
हे शुद्धात्मा भगवान! आप ऐसी कृपा करो कि हमें भेदभाव छूट जाये और अभेद स्वरूप प्राप्त हो। हम आप में अभेद स्वरूप से तन्मयाकार रहें। ** जो जो दोष हुए हों, वे मन में जाहिर करें।
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________________ ( दादा भगवान फाउन्डेशन के द्वारा प्रकाशित पुस्तकें हिन्दी 1. ज्ञानी पुरूष की पहचान 10. हुआ सो न्याय 2. सर्व दुःखों से मुक्ति 11. चिंता 3. कर्म का विज्ञान 12. क्रोध 4. आत्मबोध 13. प्रतिक्रमण 5. मैं कौन हूँ? 14. दादा भगवान कौन? 6. वर्तमान तीर्थकर श्री सीमंधर स्वामी 15. पैसों का व्यवहार 7. भूगते उसी की भूल 16. जगत कर्ता कौन ? 8. एडजस्ट एवरीव्हेयर 17. अंत:करण का स्वरूप 9. टकराव टालिए English 1. Adjust Everywhere 15. Money 2. The Fault of the Sufferer 16. Celibacy : Brahmcharya 3. Whatever has happened is Justice 17. Harmony in Marriage Avoid Clashes 18. Pratikraman 5. Anger 19. Flawless Vision 6. Worries 20. Generation Gap 7. The Essence of All Religion 21. Apatvani-1 8. Shree Simandhar Swami 22. Apatvani-2 9. Pure Love 23. Apatvani-9 10. Death : Before, During & After... 24. Noble Use of Money 11. Gnani Purush Shri A.M.Patel 25. Life Without Conflict 12. Who Am I? 26. Science in Speech 13. The Science of Karma 27. Trimantra 14. Ahimsa (Non-violence) * दादा भगवान फाउन्डेशन के द्वारा गुजराती भाषा में भी बहुत सारी पुस्तकें प्रकाशित हुई है। वेबसाइट www.dadabhagwan.org पर से भी आप ये सभी पुस्तकें प्राप्त कर सकते हैं। दादा भगवान फाउन्डेशन के द्वारा हर महीने हिन्दी, गुजराती तथा अंग्रेजी भाषा में दादावाणी मेगेज़ीन प्रकाशित होता है। प्राप्तिस्थान दादा भगवान परिवार अडालज : त्रिमंदिर संकुल, सीमंधर सीटी, अहमदाबाद- कलोल हाईवे, पोस्ट : अडालज, जि. गांधीनगर, गुजरात - 382421. फोन : (079) 3983 0100 E-mail : info@dadabhagwan.org अहमदाबाद : दादा दर्शन, 5, ममतापार्क सोसायटी, नवगुजरात कॉलेज के पीछे, उस्मानपुरा, अहमदाबाद-३८००१४. फोन : (079)27540408, 27543979 राजकोट : त्रिमंदिर, अहमदाबाद-राजकोट हाई वे. तरघडीया चोकडी. पोस्ट : मालियासण, जी. राजकोट. फोन : 99243 43416 मुंबई : श्री मेघेश छेडा, फोन : (022) 24113875 बेंग्लोर : श्री अशोक जैन, 9341948509 कोलकत्ता : श्री शशीकांत कामदार, 033-32933885 U.S.A. : Dada Bhagwan Vignan Institue : Dr. Bachu Amin, 100, SW Redbud Lane, Topeka, Kansas 66606. Tel : 785-271-0869, E-mail : bamin@cox.net Dr. Shirish Patel, 2659, Raven Circle, Corona, CA 92882 Tel. : 951-734-4715, E-mail : shirishpatel@sbcglobal.net U.K. : Dada Centre, 236, Kingsbury Road, (Above Kingsbury Printers), Kingsbury, London, NW9 OBH Tel. : 07956476253, E-mail: dadabhagwan_uk@yahoo.com Canada : Dinesh Patel, 4, Halesia Drive, Etobicock, Toronto, M9W6B7. Tel. : 4166753543 E-mail: ashadinsha@yahoo.ca Website : www.dadabhagwan.org, www.dadashri.org