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________________ जगत कर्ता कौन ? (वास्तविक) समझना है उसको फेक्ट देते हैं। ये रिअल है, बिलकुल साइन्टिफिक है और सारे जगत के लिए है। जो चीज़ चाहिए, वो इधर से ले जाओ। हम सेन्टर में हैं। हमें किसी के साथ मतभेद नहीं है। २७ प्रश्नकर्ता: उपनिषद् में भी कहा है कि ईश्वर कर्ता नहीं है। दादाश्री : ईश्वर अगर कर्ता होता तो उसको भी कर्म बँधता । प्रश्नकर्ता : मेरे हृदय में भी ये प्रश्न बहुत चलता था कि ईश्वर कर्ता कैसे ? अब आपको मिलने से मुझे यह स्पष्ट हो गया। दादाश्री : भगवान वीतराग हैं। बड़े बड़े महात्मा लोग हमारे साथ बात करने आते हैं। उनकी 'ईश्वर कर्ता है' ऐसी बिलीफ छूटती नहीं है। तो हम उनको पूछते हैं, कि भगवान ने ये सब बनाया तो भगवान को किसने बनाया? तो फिर वो निरूत्तर हो जाते हैं। बात लोजिकल (तार्किक) है। अगर बनानेवाला है, तो उसको भी बनानेवाला चाहिए और उसको भी बनानेवाला चाहिए, वो लोजिक (तर्क) है। भगवान ने कुछ नहीं बनाया, तो फिर उस पर क्यों आरोप करते हैं? भगवान तो भगवान है, वीतराग है। The world is the puzzle itself. God has not puzzled this world at all. अगर भगवान ने ये पज़ल किया होता न, तो ये सीबीआई वालों को ऊपर भेजकर उसे पकड़कर जेल में डालना पड़ता। भगवान ने ऐसी दुनिया ही क्यों बनाई कि जिसमें सभी दुःखी हैं? भगवान ने ये पज़ल नहीं किया । God is not the creator of this world at all, only Scientific Circumstential evidence ( भगवान इस दुनिया का बिल्कुल ही कर्ता नहीं है, मात्र सायन्टिफिक सरकमस्टेन्शियल एविडन्स) है। भगवान को ये सब बनाने की कोई ज़रूरत ही नहीं है। ये जगत किसी ने बनाया ही नहीं है। क्योंकि जो जगत है, उसकी अगर बिगिनिंग (शुरूआत ) होती, तो उसका एन्ड (अंत) भी होता । मगर इस जगत कर्ता कौन ? जगत की शुरूआत है ही नहीं, वो अनादि से है और अनंत तक है। वो कभी क्रिएट (सर्जन) हुआ ही नहीं और कभी नाश भी नहीं होनेवाला, ऐसा अनादि अनंत है। प्रश्नकर्ता: मगर यह जगत विनाशी है। दादाश्री : नहीं, वो अनादि अनंत है। वो पर्मनेन्ट (अविनाशी) है। जो सनातन है उसका आदि भी नहीं होता और उसका अंत भी नहीं होता है। २८ प्रश्नकर्ता : मनुष्य के लिए तो ये जगत विनाशी है न? दादाश्री : वो ठीक बात है। वो बात रिलेटिव है। All these relatives are temporary adjustment, मगर जगत तो अनादिअनंत है। आपको कोई पर्मनेन्ट चीज़ लगती है? प्रश्नकर्ता: ऐसे देखा जाए तो सब टेम्पररी (विनाशी) ही है। दादाश्री : हाँ, टेम्पररी है, तो पर्मनेन्ट कोई चीज़ है? प्रश्नकर्ता : पर्मनेन्ट तो कुदरत ही हो सकती है। दादाश्री : कुदरत ? कुदरत तो निरंतर बदलती ही रहती है। उसकी एक अवस्था का नाश होता है, दूसरी अवस्था उत्पन्न होती है। वो कैसे पर्मनेट हो सकती है? तो फिर पर्मनेन्ट क्या होता है? प्रश्नकर्ता: वो प्रोसेस (प्रक्रिया) ही तो पर्मनेन्ट है न? दादाश्री : वो तो एक अवस्था नाश होती है, दूसरी अवस्था उत्पन्न होती है। इसमें पर्मनेन्ट कौन सी चीज़ है? प्रश्नकर्ता: जो नाश करनेवाली है और जो उत्पन्न करनेवाली चीज़ है, वो ही पर्मनेन्ट ?
SR No.009587
Book TitleJagat Karta Kaun
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherMahavideh Foundation
Publication Year2008
Total Pages27
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Akram Vigyan
File Size244 KB
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