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________________ जगत कर्ता कौन? ____३७ जगत कर्ता कौन? ना मानो मगर साक्षात्कार नहीं किया वहाँ तक जिम्मेदारी तुम्हारी ही है। केवल आत्मा ही जानना है। आत्मा का ज्ञान न हो वहाँ तक सब अटपटा लगेगा और आत्मा का ज्ञान हो गया तो अटपटा सब चला जाएगा। यह सारा बोझा ही अटपटेपन का है। Self realisation (आत्मसाक्षात्कार) हो गया कि सारे पज़ल सोल्व हो जाते हैं। When this puzzle ends, then no puzzle and there is the Soul (जब यह पज़ल सोल्व हो जायेगा, तब दूसरा कोई पज़ल नहीं रहेगा, वहीं आत्मा है)। प्रश्नकर्ता : आपने पज़ल का अंत बता दिया तो इस पज़ल की आदि कहाँ से है? दादाश्री : There is no begining and no end of this puzzle. Where there is a begining, there is a end! (544 पज़ल की न तो शुरूआत है, न ही अंत है। जहाँ शुरूआत होती है, वहाँ अंत होता है।) प्रश्नकर्ता : तो कौन करवाता है? दादाश्री : वह शक्ति है। एक बड़े कम्प्यूटर की माफिक है। जिसको शास्त्र की भाषा में समष्टि बोलते हैं। किसी एक आदमी का खुद का कम्प्यूटर है, वो व्यष्टि रूप है और सभी जीवों का कम्बाइन्ड (मिला जुला) कम्प्यूटर समष्टि रूप है। इसीसे सब व्यवहार चल रहा है। इसको हम सायन्टिफिक सरकमस्टेन्शियल एविडन्स (व्यवस्थित शक्ति) बोलते हैं। जो हर रोज सूर्य, चंद्र, तारे सबको व्यवस्थित ही रखती है। प्रश्नकर्ता : जो शक्ति चलाती है, वो कहाँ से आती है? दादाश्री : वो कुदरती शक्ति है, भगवान की शक्ति नहीं है। ये बहुत बड़ी बात है, समझ में आए ऐसी बात नहीं है। ये एटम बॉम्ब (अणु बम) बनाया है, वो अणु में से बनाया है, तो अणु में कितनी शक्ति है? प्रश्नकर्ता : बहुत शक्ति है। दादाश्री : ऐसी शक्ति । बहुत शक्तिवाले ने इस भगवान को दुःख दिया है। भगवान की शक्ति इससे भी ज्यादा है। फिर भगवान खुद की शक्ति से छूटता है। प्रश्नकर्ता : भगवान की शक्ति के ऊपर ये कौन सी शक्ति है? दादाश्री : किसकी? ऊपर कोई शक्ति नहीं। भगवान की शक्ति बहुत ज्यादा, सबसे ज्यादा है। और जो अनात्मा (पुद्गल) है, उसकी भी शक्ति बहुत है। प्रश्नकर्ता : ये शक्ति भगवान से भी ऊपर है? दादाश्री : नहीं, भगवान का कोई ऊपरी (मालिक) नहीं है। मगर वो (अनात्मा की) शक्ति बहुत राक्षसी शक्ति है, उस शक्ति से तो भगवान खुद ही बंधा हुआ है। अब भगवान छूटना चाहता है, मगर वो छूट नहीं सकता। फिर इसका रस्ता क्या बताया कि जो मुक्त हो गया है, उसकी मदद से मुक्त हो सकता है। प्रश्नकर्ता : लेकिन जो मुक्त हुआ है, उसको किसने मुक्त किया? दादाश्री : वो समय ने किया है। उसका समय हो गया इसलिए मुक्त हो गया। सब जीवों का समय आएगा तब मुक्त हो जाएँगे। ये संसार जेल (कारागार) है। भगवान संसार रूपी जेल में रहे हैं, मुद्दत पूरी हो जाएगी तो मुक्त हो जाएँगे। मगर मुद्दत पूरी होने से पहले, उसको मुक्तपुरुष (जो सांसारिक, विनाशी बंधनो से मुक्त हुए हो) के दर्शन हो जाएंगे और वहाँ से मुक्ति हो जाएगी। इसमें मुक्तपुरुष निमित्त हैं। इस निमित्त से वो मुक्त हो जाते हैं।
SR No.009587
Book TitleJagat Karta Kaun
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherMahavideh Foundation
Publication Year2008
Total Pages27
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Akram Vigyan
File Size244 KB
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