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________________ जगत कर्ता कौन? जगत कर्ता कौन? तो जगत का कर्ता, है या नहीं ? इस दुनिया का कर्ता कोई है ही नहीं, और कर्ता के बिना दुनिया हुई नहीं! ये जगत किसने बनाया? प्रश्नकर्ता : हमें मालूम नहीं, वो ही जानने की कोशिश कर रहे दादाश्री : हाँ, सब लोग जानने की कोशिश करते हैं, मगर कोई नहीं जानता। The world is the puzzle itself. भगवान ने ये पज़ल नहीं किया है। भगवान तो परमानंदी और परम ज्योतिस्वरूप है। प्रश्नकर्ता : तो खुद ने ही पज़ल किया है? दादाश्री : नहीं, खुद क्या पज़ल करनेवाला है? इस दुनिया का कोई क्रिएटर नहीं है। इस दुनिया का कर्ता कोई नहीं है। भगवान भी कर्ता नहीं है और आप भी कर्ता नहीं है और बिना कर्ता ये दुनिया बनी भी नहीं। हम विरोधाभासी बात बोलते हैं न? मगर ये समझने जैसी बात है। 'कर्ता नहीं है' याने कोई स्वतंत्र कर्ता नहीं है। और 'कर्ता है वो नैमित्तिक कर्ता है। मर्जी नहीं है, जिम्मेदारी नहीं है। ऐसे ही ये नैमित्तिक कर्ता है। कर्ता तो है मगर नैमित्तिक कर्ता हैं। The world is the puzzle itself, God has not puzzled this world at all. only scientific circumstantial evidences है। आपने समुद्र का किनारा देखा है? समुद्र के किनारे से थोड़ी दूर आपका बंगला हो, बंगले के कम्पाउन्ड (आँगन) में आपने लोहे की दो सलाखें रखी। बारह महीनों के बाद आप गए, तो लोहे को कुछ हो जाएगा? उसको रस्टि (मुर्चा लगा हुआ) किसने किया? समुद्र ने किया? खारी हवा ने किया? लोहे की इच्छा है? खारी हवा बोलेगी कि हमारी इच्छा नहीं है, मैंने तो ऐसा कुछ किया नहीं है। समुद्र को पूछेगे तो, वो तो अपने खुद के क्षेत्र में रमण कर रहा है। लोहे की भूल है क्या? लोहे को दूसरी जगह पर रखो तो कुछ नहीं होता था। तो क्या बात है? मात्र सायन्टिफिक सरकमस्टेन्शियल एविडन्स है। इसमें भगवान कुछ करता ही नहीं। भगवान क्या करता है? भगवान तो, आपको प्रकाश देता है। वो चोर को भी प्रकाश देता है और पुलिस को भी प्रकाश देता है। भगवान क्या बोलता है, 'तुम जो करते हैं वो तुम्हारी जिम्मेदारी पर करते हो, हम तो प्रकाश देते हैं।' खुद कर्ता होता तो मोक्ष में नहीं जाता, छूटता ही नहीं। नैमित्तिक कर्ता है, इसलिए छूट जाता है। स्वतंत्र कर्ता होता तो वो दुनिया का मालिक हो जाता था कि 'हमने ये दुनिया बनाई है, तो हम मालिक हैं।' मगर किसी को संडास जाने की खुद की ताकत नहीं है, तो मालिक कहाँ से हो गया?! कोई मालिक नहीं है। नैमित्तिक कर्ता किसे कहते हैं कि इस डॉक्टर का धक्का आपको लग गया और आपका धक्का ये भाई को लग गया और ये भाई गिर पड़ा। उसका पाँव टूट गया, तो ये भाई तुमको बोलेगा, 'तुमने हमारा पाँव तोड़ दिया। मगर आप जानते हैं, तुमको इस डॉक्टर का धक्का लगा था। इसमें आपकी कोई प्रश्नकर्ता : ये सायन्टिफिक सरकमस्टेन्शियल एविडन्स है, वह कैसे हुए? उसे किसने तैयार किया? दादाश्री : कोई तैयार करनेवाला नहीं है। वो अपने आप हो जाता है। वो कम्प्यूटर के जैसे चलता है। पूर्वजन्म का कर्म है, वो फीड हुआ है और अब जो फल मिला वो कम्प्यूटर जैसी शक्ति है वो फल देती है, जिसे 'व्यवस्थित' शक्ति कहते है। जिसे शास्त्रकारों ने 'समष्टि' कहा है। अंग्रेजी में उसे Scientific Circumstantial Evidence (सायन्टिफिक सरकमस्टेन्शियल एविडन्स ) बोलते हैं। जय सच्चिदानंद
SR No.009587
Book TitleJagat Karta Kaun
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherMahavideh Foundation
Publication Year2008
Total Pages27
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Akram Vigyan
File Size244 KB
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