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________________ जगत कर्ता कौन? जगत कर्ता कौन? प्रश्नकर्ता : अगर सही प्रयत्न करूं तो आ जाती है। दादाश्री : इस दुनिया में कोई ऐसा आदमी जन्मा नहीं है कि संडास जाने की उसकी स्वतंत्र शक्ति हो। सब लोग भ्रांति से बोलते हैं, मैंने ये किया, मैंने ये किया। वो सब भ्रांति है, सच्ची बात नहीं है। सच्ची बात समझनी चाहिए। वो कैसे समझ में आएगी? वो किसी व्युपोइन्ट से समझ में नहीं आएगी। 'ये मैं हूँ, ये मैंने किया', वो सब अहंकार है और करनेवाला दूसरा है। भगवान भी नहीं करता है और आप भी नहीं करते हैं। वो जानना है तो वास्तविक आपको बोलूं, नहीं तो आप जो जानते हैं वो ही बोलूं कि भगवान भी करता है और आप भी करते हैं। प्रश्नकर्ता : नहीं, हम तो कुछ नहीं करते। दादाश्री : तो आपका धंधा आप खुद नहीं करते, तो कौन करता हिन्दू धर्मवाला भी बोलता है कि 'मैंने किया', मुस्लिम धर्मवाला भी बोलता है कि 'मैंने किया', जैन लोग भी बोलते है, 'मैंने किया। सब लोग 'मैंने किया' बोलते है। वो बात वास्तविक नहीं है। इधर कभी सुनी नहीं, कोई पुस्तक में लिखी नहीं, ऐसी नई चीज़ है। पहले कभी नहीं हुआ है, ऐसा हुआ है। दस लाख साल में कभी हुई नहीं ऐसी चीज़ है। सब लोगों ने अभी तक यही कहा है कि, 'ये करो, ये करो, ये करो' मगर जिधर 'करने' का है वहाँ मोक्ष नहीं है और जहाँ मोक्ष है, वहाँ करने का कुछ भी नहीं। तुम क्या करते हो? पूरा दिन तुम कुछ मेहनत करते हो? प्रश्नकर्ता : मेहनत तो करते हैं न? दादाश्री : क्या मेहनत करते हो? कोई मेहनत करता ही नहीं है। तो क्या करता है? खाली अहंकार करते हैं कि 'ये मैंने किया।' मेहनत तो बैल करता है। कोई आदमी मेहनत करता है? तुमने देखा प्रश्नकर्ता : मगर हम तो क्या है कि भगवान के हाथ के खिलौने हैं, वो जैसा चाहे वैसा करवाएँ। प्रश्नकर्ता : फिर यह ऑफिस में जाते हैं, काम करते हैं वह क्या दादाश्री : नहीं, नहीं, you are not Toys of God ! (आप भगवान के खिलौने नहीं हैं।) दादाश्री : ये तो रोंग बिलीफ है कि 'मैं करता हूँ।' ये तो ऑटोमेटिक (अपने आप) हो जाता है। संडास आप करते हो कि ऐसे ही हो जाता है?! लोग बोलते हैं कि 'मैं संडास गया था।' नींद आप लेते हैं कि ऐसे आ जाती है? प्रश्नकर्ता : वैसे ही आ जाती है। प्रश्नकर्ता : फिर क्या हैं? arcraft: you yourself is God! You don't know your ability, your knowledge!! वो कुछ जानते नहीं हो, इसलिए आप 'मैं भगवान का टोय (खिलौना) हूँ' बोलते हैं। सच्ची फिलॉसोफि (तत्त्वज्ञान) समझो तो ये फिलॉसोफि बहुत गूढ़ है। दादाश्री: तो उठने का हो तब आप उठते हैं कि कोई उठाता प्रश्नकर्ता : वैसे ही उठ जाते हैं।
SR No.009587
Book TitleJagat Karta Kaun
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherMahavideh Foundation
Publication Year2008
Total Pages27
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Akram Vigyan
File Size244 KB
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