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________________ जगत कर्ता कौन? जगत कर्ता कौन? बाबा, भगवान ऐसी प्रेरणा करनेवाला ही नहीं है। वो इसमें हाथ नहीं डालता। व्यवहार-जगत् में, अपनी सत्ता कितनी? दादाश्री : हाँ, ये आपके हाथ में नहीं है। तो आपके हाथ में क्या हैं? आप तो खाली अहंकार करते हैं कि, 'मैंने ये किया, मैं सो गया।' फिर कभी बोलते हैं कि 'हमको आज तो नींद ही नहीं आई।' ये सब विरोधाभास है। 'हम सुबह में जल्दी उठते हैं,' कहते हैं, तो फिर घड़ी क्यों रखते हैं? और बोलते हैं, 'हमने खाया।' ओहोहो! बड़ा खानेवाला आया!!! वो तो दांत चबाते हैं, जीभ स्वाद लेती है और ये हाथ काम करते हैं, वो सब मिकानिकली (यंत्रवत्) हो जाता है। तुम तो खाली अहंकार करते हो। प्रश्नकर्ता : मैं क्या करता हूँ फिर? दादाश्री : आप कुछ नहीं करते हैं। आप काम में खराबी ही करते हैं (अहंकार करके)। तुम्हारी इच्छा नहीं हो तो भी तुम कर्म बाँधते हो। क्योंकि आप ऐसा मानते हैं कि 'मैं कर्ता हैं और ये हमने किया, ये हमने किया।' प्रश्नकर्ता : जो आदमी सबसे पहले जन्मा, उसको तो कोई कर्म नहीं न? दादाश्री : कोई पहले जन्मा ही नहीं। इस जगत में पहले-पीछे कोई चीज़ है ही नहीं। सर्कल (गोल) है, उसमें कौन पहले? इसमें कोई पहला नहीं, आदि नहीं, अंत नहीं। सब अनादि-अनंत है। कोई पहले जन्मा है, वो बुद्धि की बात है। बुद्धि से सोल्व ही नहीं होता है, ज्ञान से सोल्युशन आता है। छ: तत्त्व अविनाशी हैं। इन छ: तत्त्वों का निरंतर समसरण होता है, यानी परिवर्तन होता है। इससे सब अवस्थाएँ खड़ी हो जाती हैं और सब अवस्थाएँ विनाशी हैं। अनंत शक्तिवाला, बंधन में ये सब मिकानिकल (यंत्रवत्) होता है। शादी भी करता है, वो मिकानिकल हो जाती है। लड़का भी होता है, वो मिकानिकल होता है। आप खुद कौन हैं, यह रीअलाइज़ (साक्षात्कार) हो जाये, फिर आप मिकानिकल नहीं रहोगे। आप खुद करते हैं या भगवान करवाता हैं, उसकी तो तलाश करनी चाहिए न? आप जो खुद करते हैं, तो आपकी मर्जी के मुताबिक हरेक चीज़ हो सकती है? ऐसा १००% (शत प्रतिशत) हो सकता है? प्रश्नकर्ता : १००% तो नहीं होता है। दादाश्री : हाँ, तो आप खुद कर्ता नहीं हैं। मगर आपको ऐसा लगता है कि मैं ही कर्ता हूँ। प्रश्नकर्ता : भगवान करवाता है। दादाश्री : नहीं, ये भगवान भी नहीं कराता है। अगर भगवान करवाए तो, चोर लोग बोलते हैं, 'हमको भगवान प्रेरणा करता है।' अरे सायन्टिफिक सरकमस्टेन्शियल एविडन्स याने क्या? समय, स्पेस (जगह), कर्म का फल, ये सब इकट्ठा हो जाएँ तब फाँसी की सजा हो जाती है। सजा देना जज (न्यायाधीश) के हाथ में नहीं है। कोई आदमी ऐसा जन्मा नहीं कि जिसके हाथ में स्वतंत्र शक्ति हो, क्योंकि सब परशक्ति है। कदरत अपने फेवर (पक्ष) में है तो आप मान लेते हैं, 'हमने किया, हम कर्ता हैं।' जहाँ करने का होता है, वहाँ भ्रांति बढ़ती है। फिर जो कुछ भी करता है उससे भ्रांति और बढ़ जाती है। 'ज्ञानी पुरुष' मिले तो करने का कुछ नहीं है। करने से भ्रांति बढ़ जाती है। जप करोगे तो भ्रांति बढ़ जाती है। तप करोगे तो भ्रांति बढ़ जाती है, उपवास करोगे तो भ्रांति बढ़ जाती है। पुस्तक पढ़ा करें तो भ्रांति बढ़ जाती है। हमने ये किया,
SR No.009587
Book TitleJagat Karta Kaun
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherMahavideh Foundation
Publication Year2008
Total Pages27
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Akram Vigyan
File Size244 KB
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