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________________ जगत कर्ता कौन ? २१ हमने वो किया, वो सब भ्रांति है। 'ज्ञानी पुरुष' की कृपा मिल गई तो 'करने' का कुछ नहीं, फिर सब सहज होता है। कोई आदमी खाना खा सकता ही नहीं। केवल अहंकार करता है कि मैंने खाना खाया। फिर बीमार क्यों हो जाता है? बीमार हो गया तब क्यों नहीं खा सकता? तो पहले भी खाने का प्रयत्न तुम्हारा था ? पहले खाते थे और अभी क्यों नहीं खाता हैं? ऐसा कभी विचार ही नहीं किया? ये सब नेचर (कुदरत ) ही चलाती है, भगवान नहीं चलाता। रात को जब सो जाते हैं तब भी दुनिया चल रही होती है। दुनिया एक मिनिट भी खड़ी नहीं रहती। कोई आदमी दारू पी के गिर जाता है, तो भी दुनिया चल रही होती है। कभी आपने ब्रान्डी पी थी ? प्रश्नकर्ता: हाँ। दादाश्री : उस टाइम भी संसार चलता रहता है, खड़ा नहीं रहता। आप दारू पी के दिमाग में किसी भी मस्ती में हैं, मगर दुनिया चल रही होती है, वो रूक नहीं जाती। संसार का व्यवहार तुम्हारे जन्म के पहले भी चलता था और तुम्हारे मरने के बाद भी चलेगा। संसार व्यवहार तो सापेक्ष है। लोग क्या बोलते हैं कि, 'हम नहीं होते तो क्या होता? दुनिया ऐसी हो जाती। ' वो बॉदरेशन (झंझट) छोड़ दो। वो सब अहंकार का बॉदरेशन है। हम ऐसा करते हैं, हमने बच्चों को बड़ा किया, हम बच्चों को पढ़ाते हैं, हमने ये किया, हमने वो किया, वो सब अहंकार है। एक आदमी ने गाय मारने का विचार किया और एक आदमी ने गाय छुड़ाने का विचार किया तो भगवान के वहाँ कौन से आदमी की कीमत है? भगवान क्या बोलते हैं कि 'यहाँ किसी की कीमत नहीं है। तुम मारने का अहंकार करते हो, वो बचाने का अहंकार करता है। हमारे यहाँ अहंकारवाला नहीं चलेगा।' अहंकार नहीं करना चाहिए कि 'मैंने ये त्यागा।' अनंत जन्मो से वो ही करता है न? इससे फायदा क्या है? जगत कर्ता कौन ? रिलेटिव फायदा है। मनुष्य में से देवगति में जाता है। मगर रिअल फायदा नहीं मिलेगा। रिअल फायदा तो मुक्तपुरुष मिल जाए, मोक्षदाता पुरुष मिल जाए और मोक्ष का दान मिले तो काम होगा। २२ एक ब्राह्मण के दो लड़के थे। एक तीन साल का और एक डेढ़ साल का । वह ब्राह्मण मर गया और उसकी औरत भी मर गई। गाँव में दूसरा ब्राह्मण उन लड़कों को लेने को तैयार नहीं हुआ। गाँव में एक क्षत्रिय था, उसको लड़का नहीं था। वो बोलने लगा कि 'हमें एक लड़का दे दो।' तो गाँववालों ने बड़ा लड़का दे दिया। दूसरे डेढ़ साल के लड़के को कोई लेने को तैयार नहीं हुआ। फिर एक हरिजन बोला कि 'मेरे को लड़का नहीं है, तो हमें दे दो तो बहुत मेहरबानी!' तो गाँववालों ने विचार किया कि ये बिचारा मर जाएगा, इससे हरिजन के वहाँ जाए तो ठीक है। जिन्दा तो रहेगा। तो दूसरे लड़के को हरिजन ले गया। दोनों लड़के बड़े होने लगे। क्षत्रिय के पासवाला बीस साल का हुआ तो हरिजन के पासवाला अट्ठारह साल का हो गया। हरिजनवाला लड़का क्या करता था? दारू बनाता था, दारू पीता भी था और दारू बेचता भी था । क्षत्रिय के पास जो लड़का था उसको समझ में आ गया कि दारू पीना खराब है, ये अच्छी चीज़ नहीं है। दोनों ही भाई ब्राह्मण थे। मगर एक को हरिजन का संजोग मिल गया, दूसरे को क्षत्रिय का अच्छा संजोग मिल गया। किसी ने भगवान को पूछा कि इन दोनों में कौन सा अच्छा है? तो भगवान ने बोल दिया कि 'दारू नहीं पीने का अहंकार करता है और दूसरा दारू पीने का अहंकार करता है। मोक्ष के लिए दोनों काम के नहीं है। अपनी जिम्मेदारी पर करते हैं। जो पीने का अहंकार करता है उसकी अपनी जिम्मेदारी है। नहीं पीने का अहंकार करता है उसकी भी अपनी जिम्मेदारी है।' सच्ची बात का समाधान ज़रूर होना चाहिए। फिर शंका नहीं रहेगी।
SR No.009587
Book TitleJagat Karta Kaun
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherMahavideh Foundation
Publication Year2008
Total Pages27
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Akram Vigyan
File Size244 KB
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