SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 17
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जगत कर्ता कौन? जगत कर्ता कौन? हम बोलते हैं कि ये सब मात्र सायन्टिफिक सरकमस्टेन्शियल एविडन्स हैं। भगवान को कुछ करना नहीं पड़ता। ऐसे ही संजोग मिल जाते हैं और काम हो जाता है। सायन्टिफिक (वैज्ञानिक तरीके से ही होता है पर आदमी बोलता है कि 'मैंने ये किया, मैंने वो किया', वो खाली अहंकार है। प्रश्नकर्ता : वह ठीक है कि अहंकार नहीं होना चाहिए, मगर कुछ प्रवृत्ति तो करनी ही पड़ेगी न? बगैर किए कुछ होगा ही नहीं। दादाश्री : प्रवृत्ति तो दूसरी शक्ति तुम्हारे पास करवाती है। आपको इसमें अहंकार करने की कोई जरूरत नहीं है। वो शक्ति ही सब करवाती है। आपको देखने की ज़रूरत है कि क्या हो रहा है। ये रविन्द्र क्या कर रहा है वो आपको देखने की ज़रूरत है। काम सब करने का, और बोलने का भी कि 'ये मैंने किया लेकिन ड्रामेटिक (नाटकीय) बोलने का। मगर बिलीफ (मान्यता) में नहीं होना चाहिए कि 'ये मैंने किया।' ये बिलीफ में रहता है कि 'ये मैंने किया' वो ही गलती है। जैसे डामा (नाटक) में भर्तृहरि का अभिनय करता है। मगर वो अंदर जानता है कि मैं लक्ष्मीचंद हूँ। वो यह नहीं भूलता। वो जानता है कि, 'मैं लक्ष्मीचंद हूँ', इसलिए भर्तृहरि के नाटक में उसको रागद्वेष नहीं होता। ऐसा खुद को पहचान लिया, फिर राग-द्वेष नहीं होता। ये सब नाटक ही है। खुद पर्मनेन्ट (अविनाशी) है और ड्रामा (अभिनय) करते है। इधर इसका लड़का हो के आया, वो ड्रामा पूरा हो जाएगा, फिर दूसरे के वहाँ ड्रामा करेगा, फिर तीसरे के वहाँ ड्रामा करेगा। The world is the drama itself. समझ गए न? अभी आप रविन्द्र का ड्रामा करते हैं। इस ड्रामा में मारने का, मार खाने का, रोने का, सब कुछ करना, मगर राग-द्वेष नहीं करना। ऐसे वैसे सब बात करने का मगर सुपरफ्ल्युअस (दिखावे जैसा), पीछे कुछ नहीं, ऐसा रहने का। ये ड्रामा है, इसका रिहर्सल (पूर्वाभ्यास) भी हो गया है। आप इसमें नया कुछ करते ही नहीं। जगत कर्ता - वास्तव में कौन ? ये शास्त्र के बाहर की बातें हैं। हमें दो तरह की बातें करनी पड़ती हैं। आप जैसा बहुत विचारशील आदमी हो, वह पूछे कि 'ये दुनिया किसने बनाई?' तो हम बोलेंगे कि 'God is not the creator of this world at all !' (भगवान इस दुनिया का रचयिता बिल्कुल ही नहीं है।) मगर आम लोग हमें पूछे, और बड़ी सभा में ऐसा पूछे तो हम ऐसा बोलेंगे कि God is the creator (भगवान रचयिता है)। क्योंकि वो फेक्ट (तथ्य) उनकी समझ में नहीं आएगी। जो बात उनकी समझ में आए वो ही बात बोलो। उनको समझ में नहीं आये ऐसी बात बोलेंगे तो उनका अवलंबन टूट जाएगा और बिना अवलंबन आदमी जिन्दा नहीं रह सकता। God is the creator of this world (भगवान इस दुनिया का रचयिता है)यह बात भ्रांत भाषा में सही है, उस व्युपोइन्ट (दृष्टिकोण) से सही है। व्युपोइन्टवाला हो तो उनका प्रारब्ध हम देख लेते हैं कि इनके प्रारब्ध में ये हमारी फेक्ट (यथार्थ) चीज़ नहीं है, तो हम उनके व्युपोइन्ट के मुताबिक ही सब हेल्प (मदद) देते हैं। तो इससे वो आगे बढ़ते हैं। भगवान ने ये दुनिया बनाई ये बात रिअल नहीं है। वो सब रिलेटिव है। रिलेटिव की ओर तो अनंत बार गया, मगर अपना काम संतोषकारक कभी नहीं हुआ। उसके लिए रिअल के पास ही जाना पड़ेगा। आप जो जानते हैं उसके आगे भी जानना तो पड़ेगा न? अभी दुनिया में जो ज्ञान चल रहा है, उसको आपने मान लिया है कि वो ही सच्चा ज्ञान है. मगर वो तो लौकिक ज्ञान है। इससे बहुत आगे जाना पड़ेगा।
SR No.009587
Book TitleJagat Karta Kaun
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherMahavideh Foundation
Publication Year2008
Total Pages27
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Akram Vigyan
File Size244 KB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy