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जगत कर्ता कौन?
जगत कर्ता कौन?
इकट्ठा करना ही इसका काम है, उसका दूसरा कोई काम नहीं है। जैसे वो बड़ा कम्प्यूटर होता है न, वैसा ही उसका काम है।
प्रश्नकर्ता : ये कम्प्यूटर की बात समझ में नहीं आई।
दादाश्री : समझ लो, तुमने विचार किया कि मंदिर बनाने की ज़रूरत है। इधर तुमने ये विचार किया, वो विचार बड़ा कम्प्यूटर में, जो 'व्यवस्थित शक्ति' है, उसमें दर्ज हो जाता है। तुमने विचार किया था, वो कोज़ (कारण) है, वो कोज़ 'व्यवस्थित शक्ति' में चला जाता है। 'व्यवस्थित शक्ति' इसकी इफेक्ट (परिणाम) के रूप में सारे संयोग इकट्ठे कर देती है। फिर आपको इसका फल मिलता है। फिर आप मंदिर बना देते हैं। आप तो अहंकार से बोलते हैं, 'ये मैंने किया', मगर वो सब 'व्यवस्थित शक्ति' ही चलाती है।
इस तरह जो परिणाम आता है, वो 'व्यवस्थित शक्ति' का काम हैं, ऐसा हम ज्ञान में देखकर बोलते हैं। 'व्यवस्थित शक्ति' एक्जेक्ट (यथार्थ) बात है। ये हमारी लाखों जन्मों की शोध है।
है। मगर पूरा पूरा फायदा तो भगवान को पहचानने से होता है। यथार्थ रूप से भगवान कौन है, ये जानना चाहिए।
परोक्ष भगवान की भजना करें तो भी फायदा मिलता है। कछ न कुछ तो करना ही चाहिए। उससे light' (प्रकाश) रहती है, सद्बुद्धि रहती है, नहीं तो वो भी चली जाती है।
प्रश्नकर्ता : 'व्यवस्थित शक्ति' की अपने पर कृपा रहे, उसके लिए क्या करना चाहिए?
दादाश्री : दुनिया में और कोई कृपा रखनेवाला है ही नहीं। तुम्हारे अंदर जो भगवान है, उसी की कृपा होती है। दूसरा कोई कृपा रखनेवाला है ही नहीं।
'व्यवस्थित' का एक्जेक्ट स्वरूप संक्षिप्त में बता दूँ।
देखो न, ड्रामा होता है, तो उसका रिहर्सल पहले होता है, फिर ड्रामा होता है। उस समय कोई विचार करने की जरूरत नहीं है, क्योंकि रिहर्सल हो गया है। ऐसा ही होगा। वो 'व्यवस्थित' ही है। जिसका रिहर्सल आपने देखा है, उसका अभी ड्रामा हो जाएगा तो वो 'व्यवस्थित' ही है। इसमें बदलाव नहीं है। जैसा रिहर्सल किया है ऐसा ही अभी हो जाएगा। पिछले जन्म में जैसा उसका रिहर्सल होता है. फिर इस जन्म में ऐसा उसका 'व्यवस्थित' हो जाता है। फिर 'व्यवस्थित' में वो चलता है। पिछले जन्म में जो रिहर्सल होता है वो 'अवस्थित' रूप में होता है और वो अवस्थित जब फल देने को तैयार होता है, तब वो 'व्यवस्थित' होता है। तो इसमें जन्म से मृत्यु तक कुछ परिवर्तन (change) नहीं होनेवाला।
प्रश्नकर्ता : जो कुदरत के लॉ (नियम) हैं. वो ही 'व्यवस्थित' के लॉ हैं या वो ही 'व्यवस्थित' है? दोनों एक ही हैं या अलग-अलग?
दादाश्री : कुदरत का कायदा बिलकुल नियम में है। और
प्रश्नकर्ता : 'व्यवस्थित शक्ति' को भगवान कह सकते हैं?
दादाश्री : नहीं, 'व्यवस्थित शक्ति' को भगवान बोलने से क्या फायदा? इस टेपरिकार्ड को भगवान बोलें तो क्या फायदा? भगवान को भगवान बोलना चाहिए, और टेपरिकार्ड को टेपरिकार्ड बोलना चाहिए। जिधर भगवान नहीं है, वहाँ भगवान का आरोपण करने से क्या फायदा? मगर सारा जगत् 'व्यवस्थित शक्ति' को ही भगवान बोलता है।
__ 'व्यवस्थित' को यदि भगवान बोलें तो उस लेटर (पत्र) को 'व्यवस्थित' स्वीकार नहीं करता, क्योंकि उस पर पता भगवान का है।
और 'व्यवस्थित' खुद भगवान नहीं है, तो वहाँ से लेटर वापस आकर भगवान के पास जाता है। ऐसे अपनी अरजी भगवान के पास ही जाती है। इससे फायदा मिलता है। ऐसे प्रार्थना करने से परोक्ष फायदा मिलता