Book Title: Dasa Prakirnaka Sutra Agam Guna Manjusha
Author(s): Gunsagarsuri
Publisher: Jina Goyam Guna Sarvoday Trust Mumbai
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री दश प्रकीर्णक सूत्र ॥ श्री आगम-गुण-मञ्जूषा ॥ ।। श्री भागम-गुण-मंभूषा ।। II Sri Agama Guna Manjusa II (सचित्र) प्रेरक-संपादक अचलगच्छाधिपति प.पू. आ. भ. स्व. श्री गुणसागर सूरीश्वरजी म.सा. Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ HOROS555555555555555555555555555 ४५ आगमो का संक्षिप्त परिचय 555555555555555555555555555QUOTE | ४५ आगमो का संक्षिप्त परिचय | ११ अंगसूत्र के जीवन चरित्र है, धर्मकथानुयोग के साथ चरणकरणानुयोग भी इस सूत्र मे सामील है । इसमे ८०० से ज्यादा श्लोक है। श्री आचारांग सूत्र :- इस सूत्र मे साधु और श्रावक के उत्तम आचारो का सुंदर वर्णन है । इनके दो श्रुतस्कंध और कुल २५ अध्ययन है। द्रव्यानुयोग, गणितानुयोग, श्री अन्तकृद्दशांग सूत्र :- यह मुख्यत: धर्मकथानुयोग मे रचित है। इस सूत्र में श्री धर्मकथानुयोग और चरणकरणानुयोगोमे से मुख्य चौथा अनुयोग है। उपलब्ध श्लोको शत्रुजयतीर्थ के उपर अनशन की आराधना करके मोक्ष मे जानेवाले उत्तम जीवो के छोटे छोटे चरित्र दिए हए है। फिलाल ८०० श्लोको मे ही ग्रंथ की समाप्ति हो जाती 5 कि संख्या २५०० एवं दो चुलिका विद्यमान है। है। श्री सूत्रकृतांग सूत्र :- श्री सुयगडांग नाम से भी प्रसिद्ध इस सूत्र मे दो श्रुतस्कंध और २३ अध्ययन के साथ कुलमिला के २००० श्लोक वर्तमान में विद्यमान है । १८० श्री अनुत्तरोपपातिक दशांग सूत्र :- अंत समय मे चारित्र की आराधना करके क्रियावादी, ८४ अक्रियावादी, ६७ अज्ञानवादी अपरंच द्रव्यानुयोग इस आगम का अनुत्तर विमानवासी देव बनकर दूसरे भव मे फीर से चारित्र लेकर मुक्तिपद को प्राप्त मुख्य विषय रहा है। करने वाले महान् श्रावको के जीवनचरित्र है इसलीए मुख्यतया धर्मकथानुयोगवाला यह ग्रंथ २०० श्लोक प्रमाणका है। श्री स्थानांग सूत्र :- इस सूत्र ने मुख्य गणितानुयोग से लेकर चारो अनुयोंगो कि बाते आती है। एक अंक से लेकर दस अंको तक मे कितनी वस्तुओं है इनका रोचक वर्णन श्री प्रश्नव्याकरण सूत्र :- इस सूत्र मे मुख्यविषय चरणकरणानुयोग है। इस आगम है, ऐसे देखा जाय तो यह आगम की शैली विशिष्ट है और लगभग ७६०० श्लोक है। में देव-विद्याघर-साधु-साध्वी श्रावकादि ने पुछे हुए प्रश्नों का उत्तर प्रभु ने कैसे दिया इसका वर्णन है । जो नंदिसूत्र मे आश्रव-संवरद्वार है ठीक उसी तरह का वर्णन इस सूत्र श्री समवायांग सूत्र :- यह सूत्र भी ठाणांगसूत्र की भांति कराता है । यह भी मे भी है । कुलमिला के इसके २०० श्लोक है। संग्रहग्रंथ है । एक से सो तक कौन कौन सी चीजे है उनका उल्लेख है। सो के बाद देढसो, दोसो, तीनसो, चारसो, पांचसो और दोहजार से लेकर कोटाकोटी तक ११) श्री विपाक सूत्र :- इस अंग मे २ श्रुतस्कंध है पहला दुःखविपाक और दूसरा कौनसे कौनसे पदार्थ है उनका वर्णन है। यह आगमग्रंथ लगभग १६०० श्लोक प्रमाण सुखविपाक, पहेले में १० पापीओं के और दूसरे में १० धर्मीओ के द्रष्टांत है मुख्यतया मे उपलब्ध है। धर्मकथानुयोग रहा है । १२०० श्लोक प्रमाण का यह अंगसूत्र है। श्री व्याख्याप्रज्ञप्ति सूत्र (भगवती सूत्र) :- यह सबसे बडा सूत्र है, इसमे ४२ १२ उपांग सूत्र शतक है, इनमे भी उपविभाग है, १९२५ उद्देश है। इस आगमग्रंथ मे प्रभु महावीर के प्रथम शिष्य श्री गौतमस्वामी गणधरादि ने पुछे हुए प्रश्नो का प्रभु वीर ने समाधान १) श्री औपपातिक सूत्र :- यह आगम आचारांग सूत्र का उपांग है । इस मे चंपानगरी किया है। प्रश्नोत्तर संकलन से इस ग्रंथ की रचना हुइ है। चारो अनुयोगो कि बाते का वर्णन १२ प्रकार के तपों का विस्तार कोणिक का जुलुस अम्बडपरिव्राजक के ७०० शिष्यो की बाते है। १५०० श्लोक प्रमाण का यह ग्रंथ है। अलग अलग शतको मे वर्णित है। अगर संक्षेप मे कहना हो तो श्री भगवतीसूत्र रत्नो का खजाना है। यह आगम १५००० से भी अधिक संकलित श्लोको मे उपलब्ध है। श्री राजप्रश्नीय सूत्र :- यह आगम सुयगडांगसूत्र का उपांग है। इसमें प्रदेशीराजा का ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र :- यह सूत्र धर्मकथानुयोग से है। पहले इसमे साडेतीन करोड अधिकार सूर्याभदेव के जरीए जिनप्रतिमाओं की पूजा का वर्णन है। २००० श्लोको से भी अधिक प्रमाण का ग्रंथ है। कथाओ थी अब ६००० श्लोको मे उन्नीस कथाओं उपलब्ध है। १७) श्री उपासकदशांग सूत्र :- इसमें बाराह व्रतो का वर्णन आता है और १० महाश्रावको Gorak45555555555555555555555555555 श्री आगमगुणमजूषा G555555555555555555555555555555ory OG5555555555555555555555555555555555555555555555553535959595959OLICE Gan Education Interna rnww.iainelibrary.orp) Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ %。 %%%%%%85 २) त्रास %%%%%%%%%%% doOKHAR153835555555555555555555345555555555555555555555555ODXOS KAROKKAXXE E EEEE994%953589 ४५ आगमो का संक्षिप्त परिचय 985555359999999455889 श्री जीवाजीवाभिगम सूत्र :- यह ठाणांगसूत्र का उपांग है । जीव और अजीव के दश प्रकीर्णक सूत्र बारे मे अच्छा विश्लेषण किया है। इसके अलावा जम्बुद्विप की जगती एवं विजयदेव ने कि हुइ पूजा की विधि सविस्तर बताइ है। फिलाल जिज्ञासु ४ प्रकरण, क्षेत्रसमासादि श्री चतुशरण प्रकीर्णक सूत्र :- इस पयन्ने में अरिहन्त, सिद्ध, साधु और गच्छधर्म जो पढ़ते है वह सभी ग्रंथे जीवाभिगम अपरग्च पनवणासूत्र के ही पदार्थ है । यह के आचार के स्वरूप का वर्णन एवं चारों शरण की स्वीकृति है। आगम सूत्र ४७०० श्लोक प्रमाण का है। श्री प्रज्ञापना सूत्र- यह आगम समवायांग सूत्र का उपांग है । इसमे ३६ पदो का वर्णन श्री आतुर प्रत्याख्यान प्रकीर्णक सूत्र :- इस आगम का विषय है अंतिम आराधना है। प्रायः ८००० श्लोक प्रमाण का यह सूत्र है। और मृत्युसुधार ५) श्री सुर्यप्रज्ञप्ति सूत्र : श्री चन्द्रप्रज्ञप्तिसूत्र :- इस दो आगमो मे गणितानुयोग मुख्य विषय रहा है। सूर्य, ३) श्री भक्तपरिज्ञा प्रकीर्णक सूत्र :- इस पयन्ने में पंडित मृत्यु के तीन प्रकार (१) चन्द्र, ग्रहादि की गति, दिनमान ऋतु अयनादि का वर्णन है, दोनो आगमो मे २२००, भक्त परिज्ञा मरण (२) इंगिनी मरण (३) पादोपगमन मरण इत्यादि का वर्णन है। २२०० श्लोक है। श्री जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र :- यह आगम भी अगले दो आगमों की तरह गणितानुयोग ६) श्री संस्तारक प्रकीर्णक सूत्र :- नामानुसार इस पयन्ने में संथारा की महिमा का वर्णन मे है। यह ग्रंथ नाम के मुताबित जंबूद्विप का सविस्तर वर्णन है। ६ आरे के स्वरूप है। इन चारों पयन्ने पठन के अधिकारी श्रावक भी है। बताया है। ४५०० श्लोक प्रमाण का यह ग्रंथ है। श्री तंदुल वैचारिक प्रकीर्णक सूत्र :- इस पयन्ने को पूर्वाचार्यगण वैराग्य रस के श्री निरयावली सूत्र :- इन आगम ग्रंथो में हाथी और हारादि के कारण नानाजी का समुद्र के नाम से चीन्हित करते है । १०० वर्षों में जीवात्मा कितना खानपान करे दोहित्र के साथ जो भयंकर युद्ध हुआ उस मे श्रेणिक राजा के १० पुत्र मरकर नरक मे इसकी विस्तृत जानकारी दी गई है। धर्म की आराधना ही मानव मन की सफलता है। गये उसका वर्णन है। ऐसी बातों से गुंफित यह वैराग्यमय कृति है। श्री कल्पावतंसक सूत्र :- इसमें पद्यकुमार और श्रेणिकपुत्र कालकुमार इत्यादि १० भाइओं के १० पुत्रों का जीवन चरित्र है। ८) श्री चन्दाविजय प्रकीर्णक सूत्र :- मृत्यु सुधार हेतु कैसी आराधना हो इसे इस पयन्ने । १०) श्री पुष्पिका उपांग सूत्र :- इसमें १० अध्ययन है । चन्द्र, सूर्य, शुक्र, बहुपुत्रिका में समजाया गया है। देवी, पूर्णभद्र, माणिभद्र, दत्त, शील, जल, अणाढ्य श्रावक के अधिकार है। ११) श्री पुष्पचुलीका सूत्र :- इसमें श्रीदेवी आदि १० देवीओ का पूर्वभव का वर्णन है। ९) श्री देवेन्द्र-स्तव प्रकीर्णक सूत्र :- इन्द्र द्वारा परमात्मा की स्तुति एवं इन्द्र संबधित ई श्री वृष्णिदशा सूत्र :- यादववंश के राजा अंधकवृष्णि के समुद्रादि १०पुत्र, १० मे अन्य बातों का वर्णन है। पुत्र वासुदेव के पुत्र बलभद्रजी, निषधकुमार इत्यादि १२ कथाएं है। अंतके पांचो उपांगो को निरियावली पञ्चक भी कहते है। १०A) श्री मरणसमाथि प्रकीर्णक सूत्र :- मृत्यु संबधित आठ प्रकरणों के सार एवं अंतिम आराधना का विस्तृत वर्णन इस पयन्ने में है। %%%%% %%% %%%% %% %%%% %%%% %%%%% १०B) श्री महाप्रत्याख्यान प्रकीर्णक सूत्र :- इस पयन्ने में साधु के अंतिम समय में किए जाने योग्य पयन्ना एवं विविध आत्महितकारी उपयोगी बातों का विस्तृत वर्णन है। (GainEducation-international 2010-03 VOON N54555554454549 श्री आगमगुणमजूषा E f54 www.dainelibrary.00) $$# KOR Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 乐乐乐乐玩玩乐乐听听听听听听圳坂圳乐乐听听听听的 १०८) श्री गणिविद्या प्रकीर्णक सूत्र :- इस पयन्ने में ज्योतिष संबधित बड़े ग्रंथो का सार है। ३) उपरोक्त दसों पयन्नों का परिमाण लगभग २५०० श्लोकों में बध्य हे। इसके अलावा २२ अन्य पयन्ना भी उपलब्ध हैं। और दस पयन्नों में चंदाविजय पयन्नो के स्थान पर गच्छाचार पयन्ना को गिनते हैं। श्री नियुक्ति सूत्र :- चरण सत्तरी-करण सत्तरी इत्यादि का वर्णन इस आगम ग्रन्थ में ७ है। पिंडनियुक्ति भी कई लोग ओघ नियुक्ति के साथ मानते हैं अन्य कई लोग इसे अलग आगम की मान्यता देते हैं । पिंडनियुक्ति में आहार प्राप्ति की रीत बताइ हें। ४२ दोष कैसे दूर हों और आहार करने के छह कारण और आहार न करने के छह कारण इत्यादि बातें हैं। छह छेद सूत्र श्री आवश्यक सूत्र :- छह अध्ययन के इस सूत्र का उपयोग चतुर्विध संघ में छोट बडे सभी को है । प्रत्येक साधु साध्वी, श्रावक-श्राविका के द्वारा अवश्य प्रतिदिन प्रात: एवं सायं करने योग्य क्रिया (प्रतिक्रमण आवश्यक) इस प्रकार हैं : (१) सामायिक (२) चतुर्विंशति (३) वंदन (४) प्रतिक्रमण (५) कार्योत्सर्ग (६) पच्चक्खाण (१) निशिथ सूत्र (२) महानिशिथ सूत्र (३) व्यवहार सूत्र (४) जीतकल्प सूत्र (५) पंचकल्प सूत्र (६) दशा श्रुतस्कंध सूत्र इन छेद सूत्र ग्रन्थों में उत्सर्ग, अपवाद और आलोचना की गंभीर चर्चा है । अति गंभीर केवल आत्मार्थ, भवभीरू, संयम में परिणत, जयणावंत, सूक्ष्म दष्टि से द्रव्यक्षेत्रादिक विचार धर्मदष्टि असे करने वाले, प्रतिपल छहकाया के जीवों की रक्षा हेतु चिंतन करने वाले, गीतार्थ, परंपरागत क उत्तम साधु, समाचारी पालक, सर्वजीवो के सच्चे हित की चिंता करने वाले ऐसे उत्तम मुनिवर जिन्होंने गुरु महाराज की निश्रा में योगद्वहन इत्यादि करके विशेष योग्यता अर्जित की हो ऐसे * मुनिवरों को ही इन ग्रन्थों के अध्ययन पठन का अधिकार है। दो चूलिकाए १) श्री नंदी सूत्र :- ७०० श्लोक के इस आगम ग्रंन्थ में परमात्मा महावीर की स्तुति, संघ की अनेक उपमाए, २४ तीर्थकरों के नाम ग्यारह गणधरों के नाम, स्थविरावली और पांच ज्ञान का विस्तृत वर्णन है। चार मूल सूत्र श्री दशवकालिक सूत्र :- पंचम काल के साधु साध्वीओं के लिए यह आगमग्रन्थ अमृत सरोवर सरीखा है। इसमें दश अध्ययन हैं तथा अन्त में दो चूलिकाए रतिवाक्या व, विवित्त चरिया नाम से दी हैं । इन चूलिकाओं के बारे में कहा जाता है कि श्री स्थूलभद्रस्वामी की बहन यक्षासाध्वीजी महाविदेहक्षेत्र में से श्री सीमंधर स्वामी से चार चूलिकाए लाइ थी। उनमें से दो चूलिकाएं इस ग्रंथ में दी हैं। यह आगम ७०० श्लोक प्रमाण का है। श्री अनुयोगद्वार सूत्र :- २००० श्लोकों के इस ग्रन्थ में निश्चय एवं व्यवहार के आलंबन द्वारा आराधना के मार्ग पर चलने की शिक्षा दी गइ है । अनुयोग याने शास्त्र की व्याख्या जिसके चार द्वार है (१) उत्क्रम (२) निक्षेप (३) अनुगम (४) नय यह आगम सब आगमों की चावी है। आगम पढने वाले को प्रथम इस आगम से शुरुआत करनी पड़ती है। यह आगम मुखपाठ करने जैसा है। ॥ इति शम्॥ श्री उत्तराध्ययन सूत्र :- परम कृपालु श्री महावीरभगवान के अंतिम समय के उपदेश इस सूत्र में हैं । वैराग्य की बातें और मुनिवरों के उच्च आचारों का वर्णन इस आगम ग्रंथ में ३६ अध्ययनों में लगभग २००० श्लोकों द्वारा प्रस्तुत हैं। ) Gain Education International 2010_03 Mora :58498499934555555555; आगमगुणमजूषा-5555555555555555555555555 ) Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ XOX ¶¶¶¶¶¶¶¶¶¶¶¶¶¶¶¶¶KK Introduction 45 Agamas, a short sketch YURALSEA PERLA RADIO Quan Bài 3 Bà Là Là Là Là Là Là Là Là Là Là Là Là Là Là Là Là 35 3 3 20 It is of the size of around 800 Ślokas. (8) Antagaḍa-daśānga-sutra: It deals mainly with the teaching of the religious discourses. It contains brief life-sketches of the highly spiritual souls who are born to liberate and those who are liberating ones: they are Andhaka Vṛṣṇi, Gautama and other 9 sons of queen Dharini, 8 princes like Akṣobhakumāra, 6 sons of Devaki, Gajasukumara, Yadava princes like Jali, Mayāli, Vasudeva Kṛṣṇa, 8 queens like Rukmiņi. It is available of the size of 800 Ślokas. (9) Anuttarovavayi-daśānga-sūtra : It deals with the teaching of the religious discourses. It contains the life-sketches of those who practise the path of religious conduct, reach the Anuttara Vimāna, from there they drop in this world and attain Liberation in the next birth. Such souls are Abhayakumara and other 9 princes of king Śrenika, Dirghasena and other 11 sons, Dhanna Apagara, etc. It is of the size of 200 Ślokas. I Eleven Angas: (1) Acărănga-sutra: It deals with the religious conduct of the monks and the Jain householders. It consists of 02 Parts of learning, 25 lessons and among the four teachings on entity, calculation, religious discourse and the ways of conduct, the teaching of the ways of conduct is the main topic here. The Agama is of the size of 2500 Ślokas. (2) Suyagaḍānga-sutra: It is also known as Sūtra-Kṛtānga. It's two parts of learning consist of 23 lessons. It discusses at length views of 363 doctrine-holders. Among them are 180 ritualists, 84 nonritualists, 67 agnostics and 32 restraint-propounders, though it's main area of discussion is the teaching of entity. It is available in the size of 2000 Ślokas. (3) Thapanga-sutra: It begins with the teaching of calculation mainly and discusses other three teachings subordinately. It introduces the topic of one dealing with the single objects and ends with the topic of eight objects. It is of the size of 7600 Slokas. (4) Samaväyänga-sutra: This is an encompendium, introducing 01 to 100 objects, then 150, 200 to 500 and 2000 to crores and crores of objects. It contains the text of size of 1600 slokas. (5) Vyakhyā-prajñapti-sūtra : It is also known as Bhagavati-sūtra. It is the largest of all the Angas. It contains 41 centuries with subsections. It consists of 1925 topics. It depicts the questions of Gautama Ganadhara and answers of Lord Mahavira. It discusses the four teachings in the centuries. This Agama is really a treasure of gems. It is of the size of more than 15000 Ślokas. (6) Jäätädharma-Kathānga-sutra: It is of the form of the teaching of the religious discourses. Previously it contained three and a half crores of discourses, but at present there are 19 religious discourses. It is of the size of 6000 Ślokas. SEVEN A (7) Upāsaka-daśānga-sutra: It deals with 12 vows, life-sketches of 10 great Jain householders and of Lord Mahāvīra, too. This deals with the teaching of the religious discourses and the ways of conduct. (10) Praśna-vyākaraṇa-sūtra: It deals mainly with the teaching of the ways of conduct. As per the remark of the Nandi-satra, it contained previously Lord Mahavira's answers to the questions put by gods, Vidyadharas, monks, nuns and the Jain householders. At present it contains the description of the ways leading to transgression and the self-control. It is of the size of 200 Ślokas. Vipaka-sūtranga-sutra: It consists of 2 parts of learning. The first part is called the Fruition of miseries and depicts the life of 10 sinful souls, while the second part called the Fruition of happiness narrates illustrations of 10 meritorious souls. It is available of the size of 1200 Ślokas. (11) II Twelve Upangas (1) Uvavayi-sutra: It is a subservient text to the Acaranga-sutra. It deals with the description of Campă city, 12 types of austerity, procession-arrival of Konika's marriage, 700 disciples of the monk Ambaḍa. It is of the size of 1000 slokas. (2) Rayapaseni-sutra: It is a subservient text to Suyagaḍanga-sutra. It depicts king Pradesi's jurisdiction, god Suryabha worshipping the Jina idols, etc. It is of the size of 2000 Ślokas. www.jainelibrary Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ DEFFFFFFFFFFFFFFFFFFFhible Gamin nh* HIFThe ha EEEEEEEEEEEE开F听听听听听听听听明明Ow (3) Jivābhigama-sutra : It is a subservient text to Thāṇānga-sūtra. It one Vasudeva, his son Balabhadra and his son Nişadha. deals with the wisdom regarding the self and the non-self, the Jambo continent and its areas, etc. and the detailed description of the III Ten Payanna-sutras : veneration offered by god Vijaya. The four chapters on areas, society, (1) Aurapaccakhāņa-sūtra : It deals with the final religious practice etc. published recently are composed on the line of the topics of this and the way of improving (the life so that the) death (may be Sutra and of the Pannavaņa-sutra. It is of the size of 4700 Slokas. improved). Pannavaņā-sutra : It is a subservient text to the Samavāyānga- (2) Bhattaparinna-sutra : It describes (1) three types of Pandita death, sätra. It describes 36 steps or topics and it is of the size of 8000 (2) knowledge, (3) Ingini devotee ślokas. (4) Pādapopagamana, etc. (5) Sürya-prajfapti-sutra and (4) Santhäraga-payannā-sutra : It extols the Samstäraka. Candra-prajñapti-sätra : These two falls under the teaching of the calculation. They depict the solar and the lunar transit, the ** These four payannás can also be learnt and recited by the Jain movement of planets, the variations in the length of a day, seasons, householders. ** northward and the southward solstices, etc. Each one of these Āgamas are of the size of 2200 Slokas. (5) Tandula-viyaliya-payanna-sūtra : The ancient preceptors call this Jambadvipa-prajñapti-sutra : It mainly deals with the teaching Payanna-sutra as an ocean of the sentiment of detachment. It of the calculations. As it's name indicates, it describes at length the describes what amount of food an individual soul will eat in his life objects of the Jambu continent, the form and nature of 06 corners of 100 years, the human life can be justified by way of practising a (ära). It is available in the size of 4500 Slokas. religious life. Nirayávali-pacaka : (6) Candāvijaya-payannā-sūtra : It mainly deals with the religious (8) Nirayávali-sütra : It depicts the war between the grandfather and practice that improves one's death. the daughter's son, caused of a necklace and the elephant, the death (7) Devendrathui-payanna-sutra : It presents the hymns to the Lord of king Greñika's 10 sons who attained hell after death. This war is sung by Indras and also furnishes important details on those Indras. designated as the most dreadful war of the Downward (avasarpini) (8) Maranasamadhi-payanna-sutra : It describes at length the final age. religious practice and gives the summary of the 08 chapters dealing (9) Kalpāvatamsaka-sutra : It deals with the life-sketches of with death. Kalakumara and other 09 princes of king Sreņika, the life-sketch of (9) Mahäpaccakhāņa-payanna-sutra : It deals specially with what a Padamakumpra and others. monk should practise at the time of death and gives various beneficial (10) Pupphiya-upanga-sutra : It consists of 10 lessons that covers the informations. topics of the Moon-god, Sun-god, Venus, queen Bahuputrikā, (10) Gaņivijaya-payanna-sūtra : It gives the summary of some treatise Purnabhadra, Manibhadra, Datta, sila, Bala and Aņāddhiya. on astrology (11) Pupphacultya-upanga-sutra : It depicts previous births of the 10 These 10 Payannās are of the size of 2500 ślokas. queens like Sridevi and others. Besides about 22 Payannās are known and even for these above (12) Vahnidaśa-upanga sätra : It contains 10 stories of Yadu king 10 also there is a difference of opinion about their names. The Gacchācāra Andhakavrşni, his 10 princes named Samudra and others, the tenth is taken, by some, in place of the Candāvijaya of the 10 Payannās. 明明明明明明乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐国乐乐乐乐手乐乐乐乐乐明與乐乐乐乐乐乐乐乐FFFF乐乐乐明 XOXOFF $ farmark ** F YOX Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ YOKOK YU BALLU BURU VERLO PLA Xoxo (1) (2) IV Six Cheda-sūtras (1) Vyavahāra-sūtra, (2) Nisītha-Sutra, (3) Mahānisitha-sūtra, (4) Pancakalpa-satra, (5) Daśāśruta-skandha-Sotra and (6) Bhatkalpa-sutra. These Chedasätras deal with the rules, exceptions and vows. The study of these is restricted only to those best monks who are (1) serene, (2) introvert, (3) fearing from the worldly existence, (4) exalted in restraint, (5) self-controlled, (6) rightfully descerning the subtlety of entity, territories, etc. (7) pondering over continuously the protection of the six-limbed souls, (8) praiseworthy, (9) exalted in keeping the tradition, (10) observing good religious conduct, (11) beneficial to all the beings and (12) Who have paved the path of Yoga under the guidance of their master. VI Two Colikas Nandi-sutra : It contains hymn to Lord Mahavira, numerous similies for the religious constituency, name-list of 24 Tirtharkaras and 11 Ganadharas, list of Sthaviras and the fivefold knowledge. It is available in the size of around 700 Slokas. Anuyogadvāra-sutra : Though it comes last in the serial order of the 45 Ágamas, the learner needs it first. It is designated as the key to all the Agamas. The term Anuyoga means explanatory device which is of four types: (1) Statement of proposition to be proved, (2) logical argument, (3) statement of accordance and (4) conclusion. * It teaches to pave the righteous path with the support of firm resolve and wordly involvements. It is of the size of 2000 ślokas. ** ********* V Four Molas atras (1) Dajavaikalika-sutra : It is compared with a lake of nectar for the monks and nuns established in the fifth stage. It consists of 10 lessons and ends with 02 Colikas called Rativakya and Vivittacariya. It is said that monk Sthūlabhadra's sister nun Yakşă approached Simandhara Svāmi in the Mahavideha region and received four Calikas. Here are incorporated two of them. (2) Uttaradhyayana-sutra : It incorporates the last sermons of Lord Mahavira. In 36 lessons it describes detachment, the conduct of monks and so on. It is available in the size of 2000 Slokas. . (3) Anuyogadvara-sutra: It discusses 17 topics on conduct, behaviour, etc. Some combine Piryaniryukti with it, while others take it as a separate Agama. Pindaniryukti deals with the method of receiving food (bhiksă or gocari), avoidance of 42 faults and to receive food, 06 reasons of taking food, 06 reasons for avoiding food, etc. Avašyaka-sútra: It is the most useful Agama for all the four groups of the Jain religious constituency. It consists of 06 lessons. It describes 06 obligatory duties of monks, nuns, house-holders and housewives. They are: (1) Samayika, (2) Caturvimšatistava, (3) Vandana, (4) Pratikramana, (5) Kāyotsarga and (6) Paccakhana. 明明明明明明明明明與乐乐乐为历历明明明明明明明明兵兵兵兵兵兵兵兵乐乐乐乐玩玩乐乐明步兵兵玩乐乐乐恩 * O YOK LOXOV L FT STATUTEUT- O 20:10 03 www.ainelibrary.org Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ OFFFFFMMMMMMMMMMMMMMMF 5 સરળ ગુજરાતી ભાવાર્થ | k kkkkkkkkkkkkkkkkkkkk OX જ ૩૦૭ જે ૧૩૮ 6 نه * ૪ 6 و મું શું الله ISO乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐OSTC આગમ - ૨૪ થી ૩૩ ૩. ચંદાવિજય અધ્યયન - ચરણાનુયોગમય દસ પ્રકીર્ણક - ૨૪ થી ૩૩ આ પ્રકીર્ણકમાં આરંભે સિદ્ધ ભગવંતો તેમજ અરિહંત પરમાત્માને નમસ્કાર કરીને વિનય વગેરેને મોક્ષમાર્ગના દર્શક જિનાગમોના સાર તરીકે બતાવીને પછીની ગાથાઓમાં પ્રકીર્ણક ગાથા વિનયના ગુણો, આચાર્યના ગુણો, શિષ્યના ગુણો તેમજ તેની પરીક્ષા તેમજ, વિનયનિગ્રહ } દેવેન્દ્રસ્તવ ગુણો અને તેના વિરોષ લાભો જ્ઞાન ગુણને ચારિત્રનો હેતુ જણાવી જ્ઞાન ગુણવિરો જ્ઞાન તંદુલ વૈચારિક ગુણનો મહિમા બતાવીને સમ્યકકિયા અને ચારિત્ર શુદ્ધિ તેમજ તે પછીની ગાથાઓમાં ચંદાવિજય ૧૩૭ મરણગુણ વિષયક વર્ણનમાં સમ્યકત્વ, ચારિત્રશુદ્ધિ અને સમ્યગુ જ્ઞાનની પ્રશંસા કરીને ગણિવિદ્યા અંતે બે ગાથાઓમાં ઉપરોક્ત ગુણોને આચારામાં મૂકવાથી મુક્તિ પદ્ધ મળે છે એમ મરણસમાધિ ૬૬૩ ઉપસંહાર કર્યો છે. આતુર પ્રત્યાખ્યાન ૪. ગણિવિદ્યા પ્રકીર્ણક - આમાં તિથિ, નક્ષત્ર વગેરે નવ પ્રકારના બળ, તિથિઓના મહાપ્રત્યાખ્યાન ૧૪૭ નામ, દીક્ષા વગેરેમાં ગ્રાહ્ય-નિષિદ્ધ તિથિઓ તેમજ જ્ઞાનવૃદ્ધિ, લોચ, ગણિ-વાચકપદ, કુ સંસ્તારક ૧૨૩ સ્થિરકાર્ય-શીર્ઘકાર્ય સંપાદન, તપારંભ, મુદ્દકાર્ય- સંઘકાય વગેરે માટે શ્રેષ્ઠ નક્ષત્રોના વર્ણન ચતુરશરણ પછી છાયા-મુહૂર્ત, ત્રણ પ્રકારના શુકન અને નિમિત્તના નિરૂપણને અંતે નવ બળોમાં ૧૦. A ભક્તપરિક્ષા ૧૭૨ ઉત્તરોત્તર બલવત્તાના વિધાનથી ઉપસંહાર કરવામાં આવ્યો છે. ૧૦, B ગચ્છાચાર ૧૩૭ ૫. મરણસમાધિ પ્રકીર્ણક - આમાં મંગલાચરણ અને અભ્યઘત મરણના કથન પછી ત્રણ પ્રકારની આરાધના, આહાર ગ્રહણ- અગ્રહણના છે કારણો, પંડિત-મરણ માટે ૧. દેવેન્દ્રસ્તવ પ્રકીર્ણક - આમાં જિનવંદના પછી પતિ-પત્ની દ્વારા ભગવાન મહાવીરની ઉપદેશ, પાંચ સંક્ષિણ ભાવનાઓનો ત્યાગ, આલોચના વગેરે ૧૪ પ્રકારના વિધિ, સ્તુતિ અને ૩૨ ઈન્દ્રો વિષે છ પ્રશ્નોના ઉત્તરો છે, ૨૦ ભવનેદ્રો અને ૧૨ દેવેન્દ્રોની સ્થિતિ ઉપસ્થાપનાના ૧૦ સ્થાન, ૧૨ પ્રકારના તપનું આચરણ, નિત્યભોજી શાનીની અધિક તેમજ અધિકાર, ભવનો તથા વિમાનોની લંબાઈ, પહોળાઈ, ઊંચાઈ વગેરે, અવધિજ્ઞાનનું નિર્જરા, જ્ઞાનમહિમા, સંલેખનાના બે ભેદ, આલોચના વગેરેના વર્ણનને અંતે આ લોકમાં ક્ષેત્ર તેમજ ભવનપતિદેવોનું વર્ણન છે. સર્વત્ર સર્વયોનિઓમાં જન્મ-મરણની વાતથી ઉપસંહાર કરવામાં આવ્યો છે. તે પછી આઠ વ્યંતર દેવો અને પાંચ જ્યોતિષી દેવો તથા દેવલોક, રૈવેયક અનુત્તર ૬. આતુર - પ્રત્યાખ્યાન પ્રકીર્ણક - આમાં બાલ પંડિત મરણની વ્યાખ્યા, દેશવિરતિ, દેવો વગેરેની સ્થિતિ, વિમાનો વગેરેના ઉપર પ્રમાણે વર્ણન છે. વળી દેવતાઓમાં લેશ્યા. પાંચ અણુવ્રત, ત્રણ ગુણવ્રત, ચાર શિક્ષાવ્રત, સંલેખના, જિનવંદના, ગણધર-વંદના, કે એની અવગાહનાં, ગંધ વગેરે વર્ણનના અંતે ઈષપ્રાગભારાના વર્ણનમાં સિદ્ધોનું વર્ણન છે. ૧૮ પાપોનો ત્યાગ, ત્રણ પ્રકારના મરણ, બોધિ-દુર્લભતા, બોધિ- સુલભતા વગેરે વર્ણન ૨, તદુલ વેચારિક પ્રકીર્ણક - આમાં ભગવાન મહાવીરની વંદના પછી ૧૦૦ વર્ષની પછી મુક્ત થવાની યોગ્યતાનું વર્ણન છે. આયુવાળાના૧૦ વિભાગો, ગર્ભસ્થ જીવોના દિવસ-રાત, મુહર્ત વગેરે, તિર્યંચોના ઉત્કૃષ્ઠ ૭. મહાપ્રત્યાખ્યાન પ્રકીર્ણક - આમાં અરિહંત, સિદ્ધ અને સંયતને વંદના, સર્વવિરતિ, ગર્ભસ્થિતિ કાળ, ગર્ભસ્થ જીવની નરકગતિ વગેરે, ગર્ભાવસ્થા, ત્રણ પ્રકારે પ્રસવ, ગર્ભસ્થ ક્ષમાયાચના, પ્રતિકમણ, પંચમહાવ્રત રક્ષા, કર્મક્ષય, ચાર પ્રકારની આરાધના, ધીરજીવની ૧૦ દશાઓ, અનુક્રમે (૧) બાળદશા, (૨) કીડા દશા, (૩) મંદા દશા (૪) અધીરનું મૃત્યુ, જધન્ય-ઉત્કૃષ્ટ - સમ્યફ આરાધનાનું ફળ વગેરે વર્ણવવામાં આવ્યાં છે. બલા દશા (૫) પ્રજ્ઞા દશા (૬) હાયની દશા (૭) પ્રપંચી દશા (૮) પ્રામ્ભારા દશા, રા થા. ૮. સંસ્મારક પ્રકીર્ણક - આમાં પ્રશસ્ત-અપ્રરાસ્ત, અનશન (સંસ્તારક), યથાર્થ ૪ (૯) ઉન્મુખી દશા અને (૧૦) શાયની દશા - નું વર્ણન, ધર્માચરણ અને અપ્રમાદના અનશન, તેનો મહિમા, અનુમોદના, લાભો વગેરે બતાવીને ભૂતકાળમાં અનશન કરનારા રે ઉપદેશો, અંગોપાંગનું પ્રમાણ વગેરે વર્ણન કરીને અંતે ધર્મનું ફળ બતાવ્યું છે. મહાત્માઓનાં સંક્ષિપ્ત જીવનચરિત્ર વર્ણવીને, અનશનથી કર્મક્ષય, મોક્ષ વગેરે મહિમા 5 બતાવ્યો છે. GO乐乐乐乐乐乐乐听听听听听听听听听听听乐听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听乐2.2 Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ %%%%% %%%%%%%%%%%%%%%%%%%%%%% read muld 155%% %%%%%%%% %%%%%% ૯.રાપનુ બાંધ્યયન (અનુસરણ પ્રક)- આમાં છ આવરયક, સામાયિક આવક દ્વારા ચારિત્ર સુદ્ધિ, ચતુર્વિસતિ જિન-સ્તવદ્વારા દર્શન શુદ્ધિ, વંદના આવશ્યક દ્વારા જ્ઞાનશુદ્ધિ, પ્રતિક્રમણ દ્વારા જ્ઞાન, દર્શન, અને ચારિત્રની શુદ્ધિ, કાયોત્સર્ગ દ્વારા તપશુદ્ધિ, પચ્ચખાણ દ્વાર વીર્યશુદ્ધિ, ૧૪ સ્વપ્નોની ગણના, ત્રણ કર્તવ્યો, ચાર શરણા (ચતુરારણા) અહંતુ - સિદ્ધ – સાધુ - ધર્મ, દુષ્કૃત નિંદાને સુકૃત અનુમોદના ના વિષયો વર્ણિત છે. ૧૦. ભક્તપરિણા પ્રકીર્ણક - આમાં ભગવાન મહાવીરની વંદના અને જિન શાસનની સ્તુતિ પછી ભક્તપરિક્ષાના બે ભેદ, તેનું કથન અને ઉપાદેયતા વગેરે વર્ણન પછી સુખવિવેચન, શીતલ ક્વાથપાન, મધુર વિરેચન, ચાર પ્રકારના પ્રશસ્ત રાગ, દર્શનભ્રષ્ટ અને ચારિત્રભ્રષ્ટમાં અંતર, નવકાર મંત્ર આરાધનાફળ, જ્ઞાનમહિમા, પાંચ મહાવ્રતો, સાધકની ચાર કામનાઓ વગેરે વર્ણનો પછી અંતે ભક્ત પરિક્ષાનું ફળ વગેરે વર્ણન છે. ૧૦. ગચ્છાચાર પ્રકીર્ણક - આમાં ભગવાન મહાવીરની વંદના પછી ઉન્માર્ગ ગામીઓનું ભવભ્રમણ, શ્રેષ્ઠ ગચ્છ તેમજ શ્રેષ્ઠ-નિકૃષ્ટ આચાર્ય અને શિષ્યના લક્ષણો, આહાર ગ્રહણના છ કારણો, શ્રેષ્ઠ મુનિના લક્ષણ, મૂલગુણ ભ્રષ્ટ મુનિના લક્ષણો, શ્રેષ્ઠ-નિકૃષ્ટ ગચ્છ તેમજ શ્રેષ-નિકૃષ્ટ સાધ્વીના લક્ષણો વગેરે વર્ણન છે. 明军军乐乐乐玩玩乐乐乐乐乐乐乐乐乐明明明明明明明明明明明明明明明明明历历历历历历历明明纸$50元 OC8贝贝贝贝贝贝贝贝贝听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听乐历历明明明明明明明乐乐乐乐FCC B iwi M F T M F KAFFFF #ી માગમગુળમંજૂવા જ FકK MKK FKyFFFFFFFFF % % 9 203 Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२४-३३) दस पहनयसत्तेसु १ देविंदत्थओ फ्र सिरि सहदेव सामिस्स णमो । सिरि गोडी- जिराउला सव्वोदयपासणाहाणं णमो । नमोऽत्थुणं समणस्स भगवओ महइ महावीर वज्रमाण सामिस्स । सिरि गोयम - सोहम्माइ सव्व गणहराणं णमो । सिरि सुगुरु देवाणं णमो 555१ सिरिइसिवालियथेरविरइओ देविंदत्थओ [गा. १-३ पत्थावणा] १. अमर-नरवंदिए वंदिऊण उसभाइए जिणवरिंदे। वीरवरपच्छिमंते तेलोक्कगुरु गुणाइने ॥१॥ २. कोइ पढमे पओसम्मि सावओ समयनिच्छयविहिण्णू । वन्नेइ थयमुयारं जियमाणे वद्धमाणम्मि ||२|| ३. तस्स थुणंतस्स जिणं सामइयकडा पिया सुहनिसन्ना। पंजलिउडा अभिमुही सुणइ थयं वद्धमाणस्स ॥ ३॥ [गा. ४-६. वद्धमाणजित्थवो] ४. इंदविलयाहिं तिलयरयणंकिए लक्खणंकिए सिरसा। पाए अवगयमाणस्स वंदिमो वद्धमाणस्स || ४ || ५. विणयपणएहि सिढिलमउडेहिं अपडिय(?म) जसस्स देवेहिं । पाया पसंतरोसस्स वंदिया वद्धमाणस्स || ५ || ६. बत्तीस देविंदा जस्स गुणेहिं उवहम्मिया बाढं । तो तस्स चिय च्छेयं पायच्छायं उवेहामो।।६।। [गा. ७-११. बत्तीसदेविंदसरूवाइविसया पुच्छा] ७. 'बत्तीसं देविंद' त्ति भणियमित्तम्मि सा पियं भणइ । अंतरभासं ताहे (?ता हं) काहामी कोउहल्लेणं ॥७॥ ८. कयरे ते बत्तीसे देविंदा ? को व कत्थ परिवसइ ? । केवइया कस्स ठिई ? को भवणपरिग्गहो कस्स ? ॥८॥ ९. केवइया व विमाणा ? भवणा ? नगरा व हुंति केवइया ? | पुढवीण व बाहल्लं ? उच्चत्त ? विमाणवन्नो वा ? || ९ || १०. के केणाऽऽहारंति व कालेणुक्कोस मज्झिम जहण्णं ? । उस्सासो निस्सासो ओहीविसओ व को केसि ? ।।१०।। ११. विणओवयारउवहम्मियाइ हासरसमुव्वहंतीए । पडिपुच्छिओ पियाए भाइ, सुयणु ! तं निसामेह ॥ ११॥ [ गा. १२-३०९. बत्तीसदेविंदसरूवाइविसयं उत्तरं ] १२. सुयणाणसागराओ सुणिउं पडिपुच्छणीइ जं लद्धं । सुण वागरणावलियं नामावलियाई इंदाणं ॥ १२ ॥ १३. सुण वागरणावलियं रयणं व पणामियं च वीरेहिं । तारावलि व्व धवलं हियएण पसन्नचित्तेणं ॥ १३॥ [ गा. १४-६६. भवणवइदेवाहिगारो ] १४. रयणप्पभापुढवीनिकुडवासी सुतणु ! तेउलेसागा। वीसं विकसियनयणा भवणवई मे निसामेह ॥ १४ ॥ [ गा. १५-२०. वीस भवणवइइंदा] १५. दो भवणवईइंदा चमरे १ वइरोयणे २ य असुराणं १ । दो नागकुमारिंदा धरणे ३ तह भूयणंदे ४ य २ || १५|| १६. दो सुयणु ! सुवण्णिंदा वेणूदेवे ५ य वेणुदाली ६ य ३ । दो दीव कुमारिंदा पुण्णे ७ य तहा वसिट्ठे ८ य ४ ॥ १६ ॥ १७. दो उदहिकुमारिंदा जलकंते ९ जलपभे १० य नामेणं ५ | अमियगइ ११ अमियवाहण १२ दिसाकुमाराण दो इंदा ६ || १७|| १८. दो वाउकुमारिंदा वेलंब १३ पभंजणे १४ य नामेणं ७ । दो थणियकुमारिंदा घोसे १५ य तहा महाघोसे १६ |८||१८|| १९. दो विज्जुकुमारिंदा हरिकंत १७ हरिस्सहे १८ य नामेणं ९ । अग्गिसिह १९ अग्गिमाणव २० हुयासणवई वि दो इंदा १० ||१९|| २०. एए वियसियनयणे ! वीसं वियसियजसा मए कहिया । भवणवरसुहनिसन्ने, सुण भवणपरिग्गहमिमेसिं ।।२०।। [गा. २१-२७. भवणवइइंदाणं भवणसंखा ] २१. चमर - वइरोययाणं असुरिंदाणं महाणुभागाणं । तेसिं भवणवराणं चउसट्ठिमहे सयसहस्सा ॥२१॥ २२. नागकुमारिंदाणं भूयाणंद- धरणाण दोण्हं पि । तेसिं भवणवराणं चुलसीइमहे सयसहस्सा ॥ २२॥ २३. दो सयणु ! सुवण्णिंदा वेणूदेवे य वेणुदालीय । तेसिं भवणवराणं बावर मो सयसहस्सा ||२३|| २४. वाउकुमारिंदाणं वेलंब - पभंजणाण दोण्हं पि । तेसिं भवणवराणं छन्नवइमहे सयसहस्सा ||२४|| २५. चोवट्ठी असुराणं, चुलसीई चेव होइ नागाणं। बावत्तरी सुवण्णाण, वाउकुमराण छन्नउई ||२५|| २६. दीव - दिसा - उदहीणं विज्जुकुमारिंद धणिय- मग्गीणं । छण्हं पि जुवलयाणं छावत्तरि मो सयसहस्सा ||२६|| २७. एक्क्कम्मि य जुयले नियमा छावत्तरिं सयसहस्सा। सुंदरि ! लीलाए ठिए ! ठिईविसेसं निसामेहि ॥ २७॥ [ गा. २८-३१. भवणवईइंदाणं ठिई आउयं च ] २८. चमरस्स सागरोवम सुंदरि ! उक्कोसिया ठिई भणिया । साहीया बोद्धव्वा बलिस्स वइरोयणिंदस्स ॥२८॥ २९. जे दाहिणाण इंदा चमरं मोत्तूण सेसया भणिया । पलिओवमं दिवङ्कं ठिई उ उक्कोसिया तेसिं ॥ २९ ॥ ३०. जे उत्तरेण इंदा बलिं पमोत्तूण सेसया भणिया । पलिओवमाई दोण्णि उ सूणाई ठिई तेसिं ||३०|| ३१. एसो वि ठिइविसेसो सुंदररूवे ! विसिहरूवाणं । भोमिज्जसुरवराणं सुण अणुभागे सुनयराणं ||३१|| [गा. ३२-३८. भवणवईणं सौन्य :- अं. सौ. हीयाजेन प्रहीपलाई खेल. गडा नाना लाडीया (६२छ) ह. गुएापंतीजेन विशन - घाटकोपर KO卐卐卐卐卐卐 in Education International 2010_03 COLE LE LE LE LE LE LELELELELELELTETI [3] www.jainelibrary. Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Fox95555555555555 (२४-३३) दस पइन्नयसुत्तेस - १ देविदत्थओ [२] 555555555E XOR CSC5乐乐乐乐乐乐乐乐$$$$$$$ $$$$$$$$$$$$$$$$$ ठाणं, भवणाणं आगारोच्चत्ताइ ] ३२. जोयणसहस्समेगं ओगाहित्तूण भवण-नगराई । रयणप्पभाइ सव्वे एक्कारस जोयणसहस्से ।।३२।। ३३. अंतो चउरंसा खलु, अहियमणोहरसहावरमणिज्जा । बाहिरओ चिय वट्टा, निम्मलवइरामया सव्वे ॥३३॥ ३४. उक्किन्नंतरफलिहा अभितरओ उ भवणवासीणं । भवण-नगरा विरायंति कणगसुसिलिट्ठपागारा ||३४|| ३५. वरपउमकण्णियासंठिएहिं हिट्ठा सहावलटेहिं । सोहिति पइट्ठाणेहिं विविहमणिभत्तिचित्तेहिं ॥३५॥ ३६. चंदणपयट्ठिएहि य आसत्तोसत्तमल्ल-दामेहिं । दारेहिं पुरवरा ते पडागमालाउला रम्मा॥३६।। ३७. अद्वैव जोयणाई उव्विद्धा होति ते दुवारवरा । धूमघडियाउलाई कंचणघंटापिणद्धाणि ॥३७।। ३८. जहिं देवा भवणवई वरतरुणीगीय-वाइयरवेणं । निच्चसुहिया पमुइया गयं पि कालं न याणंति ।।३८।। [गा. ३९-४२. दक्षिणोत्तरभवणवइइंदाणं भवणसंखा] ३९. चमरे धरणे तह वेणुदेव पुण्णे य होइ जलकंते । अमियगई वेलंबे घोसे य हरी य अग्गिसिहे ।।३९|| ४०. कणग-मणि-रयणथूभियरम्माइं सवेइयाई भवणाई। एएसिं दाहिणओ, सेसाणं उत्तरे पासे॥४०॥४१. चउतीसा चोयला अठ्ठत्तीसं च सयसहस्साई। चत्ता पन्नासा खलु दाहिणओ हुंति भवणाई॥४१|| ४२. तीसा चत्तालीसा चउतीसं चेव सयसहस्साई। छत्तीसा छायाला उत्तरओ हुंति भवणाई ॥४२॥ [गा. ४३-४५. भवणवईणं परिवारो] ४३. भवण-विमाणवईणं तायत्तीसा य लोगपाला य । सव्वेसि तिन्नि परिसा, सामाण चउग्गुणाऽऽयरक्खा उ ॥४३॥ ४४. चउसट्ठी सट्ठी खलु छच्च सहस्सा तहेव चत्तारि । भवणवइ- वाणमंतर-जोइसियाणं च सामाणा ॥४४॥ ४५. पंचऽग्गमहीसीओ चमर-बलीणं हवंति नायव्वा । सेसयभवणिंदाणं छच्चेव य अग्गमहिसीओ॥४५|| [गा. ४६-५०. भवणवईणं आवासा उप्पायपव्वया य] ४६. दो चेव जंबुदीवे, चत्तारि य माणुसुत्तरे सेले। छ च्चाऽरुणे समुद्दे, अट्ठय अरुणम्मि दीवम्मि॥४६।। ४७. जन्नामए समुद्दे के दीवे वा जम्मि होति आवासा । तन्नामए समुद्दे दीवे वा तेसि उप्पाया ।।४७|| ४८. असुराणं नागाणं उदहिकुमाराण हुंति आवासा । अरूणवरम्मि समुद्दे तत्थेव य तेसि उप्पाया ॥४८॥ ४९.दीव-दिसा-अग्गीणं थणियकुमाराण होति आवासा । अरुणवरे दीवम्मि य, तत्थेव य तेसि उप्पाया ॥४९|| ५०. वाउ-सुवण्णिदाणं एएसिं . # माणुसुत्तरे सेले । हरिणो हरिस्सहस्स य विज्जुप्पभ-मालवंतेसु॥५०॥ [गा.५१-६६. भवणवईणं बल-वीरिय-परक्कमा] ५१. एएसिं देवाणं बल-विरिय-परक्कमो उजो जस्स । ते सुंदरि ! वण्णे हं जहक्कम आणुपुव्वीए॥५१॥ ५२. जाव य जंबुद्दीवो जाव य चमरस्स चमरचंचा उ। असुरेहिं असुरकण्णाहिं अत्थि विसओ भरेतुं जे॥५२॥ ५३. तं चेव समइरेगं बलिस्स वइरोयणस्स बोद्धव्वं । असुरेहिं असुरकण्णाहिं तस्स विसओ भरेउं जे॥५३॥ ५४. धरणो वि नागराया जंबुद्दीवं फडाइ छाइज़्जा। तं चेव समइरेगं भूयाणंदे वि बोद्धव्वं ॥५४॥ ५५. गरुलिंद वेणुदेवो जंबुद्दीवं छएज्ज पक्खेणं । तं चेव समइरेगं वेणूदालिम्मि बोद्धव्वं ॥५५॥ ५६. पुण्णो वि जंबुदीवं पाणितलेणं छएज्ज एक्केणं । तं चेव समइरेगं हवइ वसिढे वि बोद्धव्वं ।।५६।। ५७. एक्काए जलुम्मीए जंबुद्दीवं भरेज जलकंतो। तं चेव समइरेगं जलप्पभे होइ बोद्धव्वं ॥५७।। ५८. अमियगइस्स वि विसओ जंबुद्दीवं तु पायपण्हीए। कंपेज निरवसेसं, इयरो पुण तं समइरेगं ॥५८॥ ५९. एक्काए वायगुंजाए जंबुदीवं भरेज्ज वेलंबो। तं चेव समइरेगं पभंजणे होइ बोद्धव्वं ॥५९|| ६०. घोंसो वि जंबुदीवं सुंदरि ! एक्केण थणियसद्देणं । बहिरीकरिज्ज सव्वं, इयरो पुण तं समइरेगं ॥६०॥६१. एक्काए विज्जुयाए जंबुद्दीवं हरी पयासेज्जा । तं चेव समइरेगं हरिस्सहे होइ बोद्धव्वं ॥६१।। ६२. एक्काए अग्गिजालाए जंबुदीवं डहेज्ज अग्गिसिहो । तं चेव समइरेगं माणवए होइ बोद्धव्वं ॥६२।। ६३. तिरियं तु असंखेज्जा दीव-दमुद्दा सएहिं रूवेहिं । अवगाढा उ करिज्जा सुंदरि ! एएसि एगयरो॥६३॥ ६४. पभू अन्नयरो इंदो जंबुद्दीवं तु वामहत्थेणं । छत्तं जहा धरेज्जा अयत्तओ मंदरं घित्तुं ॥६४|| ६५. जंबुद्दीवं काऊण छत्तयं, मंदरं च से दंडं । पभू अन्नयरो इंदो, एसो तेसिं बलविसेसो ॐ ॥६५॥ ६६. एसा भवणवईणं भवणठिई वन्निया समासेणं । सुण वाणमंतराणं भवणठिई आणुपुव्वीए॥६६।। [गा. ६७-८०. वाणमंतरदेवाहिगारो] [गा. ६७-६८. प्र वाणमंतराणं अट्ठ भेया] ६७. पिसाय १ भूया २ जक्खा ३ य रक्खसा ४ किन्नरा ५ य किंपुरिसा ६ । महोरगा ७ य गंधव्वा ८ अट्ठविहा वाणमंतरिया ।।६७|| ६८. एते उ समासेणं कहिया भे वाणमंतरा देवा । पत्तेयं पि य वोच्छं सोलस इंदे महिड्डीए।।६८|| [गा. ६९-७०. वाणमंतराणं सोलस इंदा] ६९. काले १ य महाकाले २२।१ सुरूव ३ पडिरूव ४२ पुन्नभद्दे ५ य। अमरवइ माणिभद्दे ६।३ भीमे ७य तहा महाभीमे ८।४॥६९।। ७० किन्नर ९ किंपुरिसे १० खलु ५ सप्पुरिसे ११ चेव तह Koro 5 श्री आगमगुणमजूषा - १२८६ | 5555555555555555555#$OROR ONE明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明听听听听听听听听听听听听听听听听听QLO 明明明明明明明明明明明明明6C Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ roz955555555555555 (२४-३३) दस पइन्नयसुत्तेसु - १ देविदत्यओ [३] 3555555555555555QUOR 5555FQOXON 乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐纸美乐乐国乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐明步乐乐乐乐乐乐乐乐乐 महापुरिसे १२।६। अइकाय १३ महाकाए १४१७ गीयरई १५ चेव गीयजसे १६॥८॥७०॥ [वाणमंतराणं अवंतरभेया अट्ट] [अणपन्नी १ पणपन्नी २ इसिवाइय ३८ भूयवाइए ४ चेव । कंदी ५य महाकंदी ६ कोहंडे ७ चेव पयए८ य ।। [गा.७१-७२. वाणमंतराणं अट्ठण्हमवंतरभेयाणं सोस इंद] ७१.सन्निहिए १ सामाणे २१धाय ३ विधाए ४२ इसी ५ य इसिवाले ६।३ । इस्सर ७ महिस्सरे या ८।४ हवइ सुवच्छे ९ विसाले य १०॥५॥७१|| ७२. हासे ११ हासरई वि य १६ सेए य १३ तहा भवे महासेए १४१७ । पयए १५ पययवई वि य १६६८ नेयव्वा आणुपुव्वीए ॥७२॥ [गा. ७३-८०. वंतर-वाणमंतराणं भवण-ठाण-ठिइआइ] ७३. उड्डमहे तिरियम्मिय वसहिं उववेति वंतरा देवा । भवणा पुणऽण्ह रयणप्पभाए उवरिल्लए कंडे।।७३|| ७४. एक्केक्कम्मिय जुयले नियमा भवणा वरा असंखेज्जा । संखिज्जवित्थडा पुण, नवरं एतऽत्थ नाणत्तं ॥७४।। ७५. जंबुद्दीवसमा खलु उक्कोसेणं भवंति भवणवरा । खड्डा खेत्तसमा वि य विदेहसमया य मज्झिमया ॥७५।। ७६. जहिं देवा वंतरिया वरतरुणीगीय-वाइयरवेणं । निच्चसुहिया पमुइया गयं पि कालं न याणंति ॥७६|| ७७. काले सुरूव पुण्णे भीमे तह किन्नरे य सप्पुरिसे । अइकाए गीयरई अद्वैते होति दाहिणओ ॥७७|| ७८. मणि-कणग-रयणधूमिय जंबूणयवेड्याइं भवणाई । एएसिं दाहिणओ, सेसाणं उत्तरे पासे ॥७८।। ७९. दसवाससहस्साई ठिई जहन्ना उ वंतरसुराणं । पलिओवमं तु एक्कं ठिई उ उक्कोसिया तेसिं ॥७९।। ८०. एसा वंतरियाणं भवणठिई वन्निया समासेणं । सुण जोइसालयाणं आवासविहिं सुरवराणं ।।८०॥ [गा. ८१-१६१. जोइसियदेवाहिगारो] [गा. ८१. पंचविहा जोईसियदेवा ] ८१. चंदा १ सूरा २ तारागणा ३ य नक्खत्त ४ गहगणसम्मग्गा ५। पंचविहा जोइसिया, ठिई वियारी य ते भणिया।।८१|| [गा. ८२-९३. जोइसियदेवाणं ठाणाइं विमाणसंखा, विमाणाणं आयामबाहल्लपरिरयाइ विमाणवाहगअभिओगा देवा य ] ८२. अद्धकविट्ठगसंठाणसंठिया फाल्लियामया रम्मा। जोइसियाण विमाणा तिरियंलोए असंखेज्जा ॥८२॥ ८३. धरणियलाओ समाओ सत्तहिं नउएहिं जोयणसएहिं । हेट्ठिल्लो होइ तलो, सूरो पुण अट्ठहिं सएहिं ॥८३।। ८४. अट्ठसए आसीए चंदो तह चेव होइ उवरितले । एगं दसुत्तरसयं बाहल्लं जोइसस्स भवे ॥८४॥ ८५. एगट्ठिभाग काऊण जोयणं तस्स भागछप्पण्णं । चंदपरिमंडलं खलु, अडयालीसा य सूरस्स ॥८५॥ ८६. जहिं देवा जोइसिया वरतरुणी-गीयवाइयरवेणं । निच्चसुहिया पमुइया गयं पि कालं न याणंति ।।८६।। ८७. छप्पन्नं खलु भागा विच्छिन्नं चंदमंडलं होइ । अडवीसं च कलाओ बाहल्लं तस्स बोद्धव्वं ॥८७॥ ८८. अडयालीसं भागा विच्छिन्नं सूरमंडलं होइ । चउवीसं च कलाओ बाहल्लं तस्स बोद्धव्वं ।।८८।। ८९. अद्धजोयणिया उ गहा, तस्सऽद्धं चेव नक्खत्ता । नक्खत्तद्धे तारा, तस्सऽद्धं चेव बाहल्लं ॥८९।। ९०. जोयणमद्धं तत्तो य गाउयं पंच धणुसया होति । गह-नक्खत्तगणाणं तारविमाणाण विक्खंभो ॥९१॥ ९१. जो जस्स उ विक्खंभो, तस्सऽद्धं चेव होइ बाहल्लं । तं तिगुणं सविसेसं तु परिरओ होइ बोद्धव्वो॥९१।। ९२. सोलस चेव सहस्सा अट्ठ य चउरो य दोन्नि य सहस्सा। जोइसियाण विमाणा वहति देवाऽभिओगा उ॥९२|९३. पुरओ वहंति सीहा, दाहिणओ कुंजरा महाकाया। पच्चत्थिमेण वसहा, तुरगा पुण उत्तरे पासे ॥९३|| [गा. ९४-९६. जोइसियाणं गतिपमाणं इड्डी य] ९४. चंदेहि उ सिग्घयरा सूरा, सूरेहिं तह गहा सिग्घा । पक्खत्ता उ गहेहि य, नक्खत्तेहिं तु ताराओ ||९४|| ९५. सव्वऽप्पगई चंदा, तारा पुण होति सव्वसिग्घगई। एसो गईविसेसो जोइसियाणं तु देवाणं ।।९५।। ९६. अप्पिड्डिया उ तारा, नक्खत्ता खलु तओ महिड्डिथए । नक्खत्तेहिं तु गहा, गहेहिं सूरा, तओ चंदा ॥९६|| [गा. ९७-१००. जोइसियाणं ठाणकमो अंतरमाणं च ] ९७. सव्वविभंतरऽभीई, मूलो पुण सव्वबाहिरो होइ । सव्वोवरिं च साई, भरणी पुण सव्वहिट्ठिमया ॥९७|| ९८. सव्वे गह-नक्खत्ता मज्झे खलु होति चंद-सूराणं । हिट्ठा समं च उप्पिं तारोओ चंदसूराणं ॥९८॥९९. पंचेव धुणुसयाई जहन्नयं अंतरं तु ताराणं । दो चेव गाउयाई निव्वाघाएण उक्कोसं ।।९९|| १००. दोन्नि सए छावढे जहन्नयं अंतरं तु ताराणं । बारस चेव सहस्सा दो बायाला य उक्कोसा ॥१००॥ [गा. १०१-८. तारा-चंदाणं नक्खत्त-चंदाणं नक्खत्त-सूराण य सहगतिकालमाणं] १०१. एयस्स चंदजोगो सत्तढेि 5 खंडिओ अहोरत्तो। ते इंति नव मुहुत्ता सत्तावीसं कलाओ य॥१०१||१०२. सयभिसया भरणीओ अद्दा अस्सेस साइ जेट्ठा य। एए छन्नक्खत्ता पन्नरसमुहुत्तसंजोगा २ ॥१०२।। १०३. तिन्नेव उत्तराई पुणव्वसू-रोहिणी विसाहा य । एए छ नक्खत्ता पणयालमुहुत्तसंजोगा ||१०३|| १०४. अवसेसा नक्खत्ता पनरस या होति Me05555555555555555555555555 श्री आगमगणमंजूषा - १२८७1555555555555555444444444444444444600 SQ$%$听听听听听听听听听听听劣听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听明明明明明明 (Gin Education International 2010-03 Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२४-३३) दस पन्नयसुत्तेसु १ देविदत्थओ [४] फफफफफफफ तीसइमुहुत्ता । चंदम्मि एस जोगो नक्खत्ताणं मुणेयव्वो ॥ १०४ ॥ अभिई छच्च मुहुत्ते चत्तारि य केवले अहोरत्ते । सूरेण समं वच्चइ एत्तो सेसाण वुच्छामि || १०५ || १०६. सयभिसया भरणीओ अद्दा अस्सेस साइ जेट्ठा य । वच्वंति छऽहोरत्ते एक्कावीसं मुहुत्ते य ॥१०६ ॥ १०७. तिन्नेव उत्तराई पुणव्वसू रोहिणी विसाहा य । वच्चंति मुहुत्ते तिनि चेव वीसं अहोरते || १०७ । १०८. अवसेसा नक्खत्ता पण्णरस वि सूरसहगया जंति। बारस चेव मुहुत्ते तेरस य समे अहोरते || १०८ || [गा. १०९२९. जंबुद्दीवाईसु चंद-सूर-गहाईणं संखा ] १०९. दो चंदा, दो सूरा, नक्खत्ता खलु हवंति छप्पन्ना । छावत्तरं गहसयं जंबुद्दीवे वियारी णं ॥ १०९ ॥ ११०. एक्कं च सयसहस्सं तित्तीसं खलु भवे सहस्साई । नव य सया पण्णासा तारागणकोडिकोडीणं ||११०|| [१३३९५०००००००००००००००] १११. चत्तारि चेव चंदा, चत्तारि य सूरिया लवणतोए । बारं नक्खत्तसयं गहाण तिन्नेव बावन्ना ॥ १११ ॥ ११२. दों चैव सयसहस्सा सत्तट्ठि खलु भवे सहस्सा उ । नव य सया लवणजले तारागणकोडिकोडणं ॥ ११२|| [ २६७९००००००००००००००००] ११३. चउवीसं ससि - रविणो, नक्खत्तसया य तिण्णि छत्तीसा । एक्कं च गहसहस्सं छप्पन्नं धायई संडे ||११३।। ११४. अट्ठेव सयसहस्सा तिण्णि सहस्सा य सत्त य सयाइं । धायइसंडे दीवे तारागणकोडिकोडीणं ॥ ११४॥ [८०३७००००००००००००००००] ११५. बायालीसं चंदा बायालीसं च दिणयरा दित्ता । कामोदहिम्मि एए चरंति संबद्धलेसाया ॥११५॥। ११६. नक्खत्तसहस्सं एगमेव छावत्तरं च सयमन्नं । छच्च सया छन्नउया महग्गहा तिन्नि य सहस्सा ॥ ११६ ॥ ११७. अट्ठावीसं कालोदहिम्मि बारस य सहस्साइं । नव य सया पन्नासा तारागणकोडिकोडीणं ।। ११७॥ [ २८१२९५०००००००००००००००] ११८. चोयालं चंदसयं, चोयालं चेव सूरियाण सयं । पोक्खरवम्मि एए चरंति संबद्धलेसाया ॥११८॥ ११९. चत्तारिं च सहस्सा बत्तीसं चेव होति नक्खत्ता । छच्च सया बावत्तर महग्गहा बारस सहस्सा ॥ ११९॥ १२० छन्नउइ सयसहस्सा चोयालीसं भवे सहस्साइं । चत्तारि तह सयाई तारागणकोडिकोडीणं ॥ १२०॥ [ ९६४४४००००००००००००००००] १२१. बावत्तरिं च चंदा, बावत्तरिमेव दिणयरा दित्ता । पुक्खरवरदीवड्डे चरंति एए पगासिंता ॥ १२१|| १२२. तिण्णि सया छत्तीसा छ च्च सहस्सा महग्गहाणं तु । नक्खत्ताणं तु भवे सोलाणि दुवे सहस्साणि ॥ १२२ ॥ १२३. अडयालससयसहस्सा बावीसं खलु भवे सहस्साइं । दो य सय पुक्खरदे तारागणकोडिकोडीणं ॥ १२३॥ [ ४८२२२००००००००००००००००] १२४. बत्तीसं चंदसयं १३२, बत्तीसं चेव सूरियाण सयं १३२ । सयलं मणुस्सलोयं चरंति एए पयासिंता ॥ १२४॥। १२५. एक्कारस य सहस्सा छ प्पिय सोला महग्गहसया उ ११६१६ | छ च्च सया छन्नउआ नक्खत्ता तिण्णि य सहस्सा ३६९६ || १२५|| १२६. अट्ठासीइं चत्ताई सयसस्साई मणुयलोगम्मि । सत्त य सया अणूणा तारागणकोडिकोडीणं ||१२६|| [८८४०७००००००००००००००००] १२७. एसो तारापिंडो सव्वसमासेण मणुयलोगम्मि । बहिया पुण ताराओ जिणेहिं • भणिया असंखेज्जा ॥ १२७॥। १२८. एवइयं तारग्गं जं भणियं तह य मणुयलोगम्मि । चारं कलंबुयापुप्फसंठियं जोइसं चरइ ॥ १२८॥ १२९. रवि-ससि गहनक्खत्ता एवइया आहिया मणुयलोए। जेसिं नामा- गोयं न पागया पन्नवेइति ॥ १२९ ॥ [ गा. १३०-३५. जोइसियाणं पिडगाइं पंतीओ चंदइपमाणं च] १३०. छावट्ठि पिडयाई चंदाऽऽइच्चाण मणुयलोगम्मि। दो चंदा दो सूरा य होति एक्केक्कए पिडए ॥१३०॥ १३१. छावट्ठि पिडयाइं नक्खत्ताणं तु मणुयलोगम्मि । छप्पन्नं नक्खत्ता य होति एक्क्कए पिड ॥ १३१ ॥ १३२. छीवट्ठी पिडयाइं महग्गहाणं तु मणुयलोगम्मि । छावत्तरं गहसयं च होइ एक्केक्कए पिडए ॥१३२॥ १३३. चत्तारि य पंतीओ चंदाऽऽइच्चाण मणुयलोगम्मि । छावट्ठि छावट्ठि च होइ इक्किक्किया पंती ॥ १३३ ॥ १३४. छप्पन्नं पंतीओ नक्खत्ताणं तु मणुयलोगम्मि । छावट्ठि छावट्ठि च होइ इक्किक्किया पंती ॥१३४॥। १३५. छावत्तरं गहाणं पंतिसयं होइ मणुयलोगम्मि । छावट्ठि छावट्ठि च होइ इक्किक्किया पंती ॥ १३५ ॥ [गा. १३६-४१. जोइसियाणं मंडला तावखेत्तं गइ य] १३६. ते मेरुमणुचरंती पयाहिणावत्तमंडला सव्वे । अणवट्ठिएहिं जोएहिं चंद-सूरा गहगणा य ।। १३६ ।। १३७. नक्खत्त-तारयाणं अवट्ठिया मंडला मणेयव्वा । ते वियपयाहिणावत्तमेव मेरुं अणुचरंति ॥ १३७॥ १३८. रयणियर- दिणयराणं उडुमहे एव संकमो नत्थि । मंडलसंगमणं पुण अब्भिंतर बाहिरं तिरियं ॥१३८॥ १३९. रयणियर-दिणयराणं नक्खत्ताणं च महागहाणं च । चारविसेसेण भवे सुह- दुक्खविही मणुस्साणं ॥ १३९ ॥ १४० तेसिं पविसंताणं तावक्खेत्तं तु YOYO श्री आगमगुणमजूषा १२८८ GLE 6666666666666 Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Internation20100 Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ * ૧૦ પયન્ના - દેવેન્દ્રસ્તવ : ૩ ૨ ઈન્દ્રો ભગવાન મહાવીરની સ્તુતિ કરી રહ્યા છે. ૩ ૨ ઈન્દ્રો, તેમના નિવાસસ્થાને, સ્થિતિ, ભવન, વિમાનોની લંબાઈ, પહોળાઈ, ઊંચાઈ, વર્ણ વગેરે તેમજ અવધિજ્ઞાનક્ષેત્રનું વર્ણન. * ૧૦ પવન્ની - વન્દ્રસ્તવ : ३२ इन्द्र भगवान महावीर की स्तुति कर रहे हैं। ३२ इन्द्र, उनके निवास, स्थिति, भवन, विमानों की लंबाई, चौड़ाई, ऊँचाई, वर्ण इत्यादि और उनका अवधिज्ञान क्षेत्र। * 1() Payannā-Devendrastava: 32 Indra reciting a hymn to Lord Mahāvīra. Description of 32 Indras, their residence, tenure, ruling territory, and the length, width, height and colour of their planes as well as the fixed limit of their knowledge. Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ KOKO (२४-३३) दस पन्नयसुत्तेसु १ देविदत्यओ अफ्र हुए नियमा । तेवेण कमेण पुणो परिहायइ निक्खमिंताणं ॥ १४०॥ १४१. तेसिं कलंबुयापुप्फसंठिया होति तावखेत्तमुहा । अंतो य संकुला बाहिं वित्थडा चंदसूराणं ॥ १४९॥ [गा. १४२-४६. चंदस्स हाणी वड्डी य] १४२. केणं वड्ढइ चंदो ? परिहाणी वा वि केण चंदस्स ? । कालो वा जोण्हा वा केणऽणुभावेण चंदस्स ? || १४२|| १४३. किण्हं राहुविमाणं निच्चं चंदेण होइ अविरहियं । चउरंगुलमप्पत्तं हिट्ठा चंदस्स तं चरइ || १४३|| १४४. बावट्ठि बावट्ठि दिवसे दिवसे तु सुक्क पक्खस्स । जं परिवड्डइ चंदो, खवेइ तं चेव कालेणं ॥ १४४॥। १४५. पन्नरसइभागेण य चंदं पन्नरसमेव संकमइ । पन्नरसइभागेण य पुणो वि तं चेव पक्कमइ ॥१४५॥। १४६. एवं वढ्ढइ चंदो, परिहाणी एव होइ चंदस्स । कालो वा जोण्हा वा तेणऽणुभावेण चंदस्स ॥१४६॥ [गा. १४७-४८. जोइसियाणं चर-थिरविभागो] १४७. अंतो मणुस्सखेत्ते हवंति चारोवगा य उववण्णा । पंचविहा जोइसिया चंदा सूरा गहगणा य || १४७|| १४८. तेण परं जे सेसा चंदाऽऽइच्च-गह-तार-नक्खत्ता | नत्थि गई, न वि चारो, अवट्ठिया ते मुणेयव्वा ॥ १४८॥ [गा. १४९-५८. जंबुद्दीवाईसु चंद-सूराईणं संखा अंतरं च] १४९. एए जंबुद्दीवे दुगुणा, लवणे चउग्गुणा होति । कालोयणा(?लावणगा य) तिगुणिया ससि - सूरा धायइसंडे || १४९ ॥ १५०. दो चंदा इह दीवे, चत्तारि य सागरे लवणतोए । धायइसंडे दीवे बारस चंदा य सूराय ॥ १५०॥ १५१. धायइसंडप्पभिई उद्दिट्ठा तिगुणिया भवे चंदा । आइल्लचंदसहिया अणंतराणंतरे खेत्ते ॥ १५१ ॥ १५२. रिक्ख-ग्गह-तारग्गं दीव-समुद्दे जइच्छसे नाउं । तस्स ससीहि उ गुणियं रिक्ख-ग्गह- तारयग्गं तु ॥ १५२ ॥ १५३. बहिया उ माणुसनगस्स चंद-सूराणऽवट्ठिया जोगा । चंदा अभिईजुत्ता, सूरा पुण होति पुस्सेहिं ।।१५३।। १५४. चंदाओ सुरस्स य सूरा चंदस्स अंतरं होइ । पण्णास सहस्साइं [तु] जोयणाणं अणूणाई ॥ १५४ ॥ १५५. सूरस्स य सूरस्स य ससिणो ससिणो य अंतरं होइ । बहिया उ माणुसनगस्स जोयणाणं सयसहस्सं ॥ १५५॥ १५६. सूरंतरिया चंदा, चंदंतरिया य दिणयरा दित्ता । चित्तंतरलेसागा सुहलेसा मंदलेसा य ॥ १५६ ।। १५७. अट्ठासीइं च गहा, अट्ठावीसं च होति नक्खत्ता। एगससीपरिवारो, एत्तो ताराण वोच्छामि ॥ १५७॥। १५८. छावट्ठिसहस्साई नव चेव सयाइं पंचसयराई । एगससीपरिवारो तारागणकोडिकोडीणं ॥ १५८॥ [गा. १५९-६१. जोइसिय देवाणं ठिई ] १५९. वाससहस्सं पलिओवमं च सूराण साठई भणिया १ | पलिओवम चंदाणं वाससयसहस्समब्भहियं २ ॥ १५९|| १६०. पलिओवमं गहाणं ३ नक्खत्ताणं च जाण पलियद्धं ४ । पलियचउत्थो भागो ताराण विसाठई भणिया ५ ।। १६० ।। १६१. पलिओवमऽट्टभागो ठिई जहण्णा उ जोइसगणस्स । पलिओवममुक्कोसं वाससयसहस्समब्भहियं ॥ १६ ॥ [ गा. १६२-९०. वेमाणियदेवाधिगारो] [गा. १६२-६६. कप्पवेमाणियाणं बारस इंदा] १६२. भवणवइ - वाणमंतर - जोइसवासीठिई मए कहिया । कप्पवई वि य वोच्छं बारस इंदे महिड्डीए॥१६२ ।। १६३. पढमो सोहम्मवई १ ईसाणवई उ भन्नए बीओ २ । तत्तो सणकुमारो हवइ ३ चउत्थो उ माहिंदो ४ || १६३|| १६४. पंचभओ पुण बंभो ५ छट्टो पुण लंतओत्थ देहिंदो ६ । सत्तमओ महसुक्को ७ अट्ठमओ ७ भवे सहस्सारो ८ ॥ १६४ ॥ १६५. नवमो य आणइंदो ९ दसमो पुण पाणओऽत्थ देविंदो १०। आरण एक्कारसमो ११ बारसमो अच्चुओ इंदो १२ || १६५ || १६६. एए बारस इंदा कप्पई कप्पसामिया भणिया । आणाईसरियं वा तेण परं नत्थि देवाणं ॥१६६॥ [गा. १६७-६८. गेवेज्जऽणुत्तरेसु इंदाभावो, अन्नलिंगि- दंसणवावन्नाणं गेवेज्ज पज्जंतुववायपरूवणं च] १६७. तेण परं देवगणा सयइच्छियभावणाई उववन्ना । गेविज्जेहिं न सक्का उववाओ अन्नलिंगेणं ॥ १६७॥। १६८. जे दंसणवावन्ना लिंगग्गहणं करेति सामण्णे । तेसिं पि य उववाओ उक्कोसो जाव गेवेज्जा ॥ १६८ ॥ [गा. १६९-७४. वेमाणियइंदाणं विमाणसंखा ] १६९. इत्थ किरविमाणाणं बत्तीसं वण्णिया सयसहस्सा । सोहम्मकप्पवइणो सक्कस्स महाणुभागस्स १ ॥१६९॥ १७०. ईसाणकप्पवइणो अट्ठावीसं भवे सयसहस्सा २ । बारस य सयसहस्सा कप्पम्मि सणकुमारम्मि ३ ॥१७०।। १७१. अट्ठेव सयसहस्सा माहिंदम्मि उ भवंति पम्म ४ | चार सयसहस्सा कप्पम्मि उ बंभलोगम्मि ५ || १७१ ।। १७२. इत्थ किर विमाणाणं पन्नासं लंतए सहस्साइं ६ । चत्ता य महासुक्के ७ छच्च सहस्सा सहस्सारे ८ ||१७२|| १७३. आणय पाणकप्पे चत्तारि सयाऽऽरणऽच्चुए तिन्नि ११-१२ । सत्त विमाणसयाड्रं चउसु वि एएसु कप्पेसु || १७३ || १७४. एयाई विमाणाई कहियाइं जाई जत्थ कप्पम्मिं । कप्पवईण वि सुंदरि ! ठिईविसेसे निसामेहि ॥ ९७४ ॥ [ गा. १७५- ७९. वेमाणियइंदाणं ठिई ] १७५. दो सागरोवमाइं T [५] Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२४-३३) दम पइन्नयसत्तेसु १ देविदत्थओ [६] аккккккккккеод सक्कस्स ठिई महाणुभागस्स १ । साहीया ईसाणे २ सत्तेव सणकुमारम्मि ३ ॥१७५ || १७६. माहिंदे साहियाई सत्त य ४ दस चेव बंभलोगम्मि ५ । चोद्दस लंतयकप्पे ६ सत्तरस भवे महासुक्के ७ ।। १७६ ।। १७७. कप्पम्मि सहस्सारे अट्ठारस सागरोवमाई ठिई ८ । आणय एगुणवीसा ९ वीसा पुण पाणए कप्पे १० ॥ १७७॥ १७८. पुण्णा य एकवीसा उदहिसनामाण आरणे कप्पे ११ । अह अच्चुयम्मि कप्पे बावीस सागराण ठिई १२ ।। १७८।। १७९. एसा कप्पईणं कप्पठिई वण्णिया समासेणं । गेवेज्जऽणुत्तराणं सुण अणुभागं विमाणाणं ॥ १७९॥ [गा. १८०-८३. गेवेज्जगदेवाणं नाम विमाणसंखा-ठिइआइ] १८०. तिण्णेव य गेवेज्जा हिट्ठिल्ला १ मज्झिमा २ य उवरिल्ला ३ । एक्क्कं पि य तिविहं, एवं दव होतिं गेवेज्जा ॥ १८० ॥। १८१. सुदंसणा १ अमोहा २ य सुप्पबुद्धा ३ जसोधरा ४ । वच्छा ५ सुवच्छा ६ सुमणा ७ सोमणसा ८ पियदंसणा ९ ।। १८१ ।। १८२. एक्कारसुत्तरं हेट्ठिमए, सत्तुतरं च मज्झिमए । सयमेगं उवरिमए, पंचेव अणुत्तरविमाणा ॥ १८२ ॥ १८३. हेट्ठिमगेवेज्जाणं तेवीसं सागरोवमाइं ठिई । एक्क्कमारुहिज्जा अट्ठहिं सेसेहिं नमियंगि ! || १८३ || [गा. १८४-८६. अणुत्तरदेवाणं नांम-विमाण-ठाण - ठिइआइ] १८४. विजयं १ च वे जयंत २ जयंत ३ मपराजियं ४ च बोद्धव्वं । सव्वट्टसिद्धनामं ५ होइ चउण्हं तु मज्झिमयं ॥ १८४ ॥ १८५. पुव्वेण होइ विजयं, दाहिणओ होइ वेजयंतं तु । अवरेणं तु जयंतं, अवराइयमुत्तरे पासे ॥। १८५ ।। १८६. एएसु विमाणेसु उ तेत्तीसं सागरोवमाई ठिई । सव्वट्टसिद्धनामे अजनुक्कोस तेत्तीसा || १८६ ।। [गा. १८७-८८. गेवेज्जगाऽणुत्तरदेवविमाणाण आगारो ] १८७. हेट्ठिल्ला उवरिल्ला दो दो चुवलऽद्रचंदसंठाणा । पडिपुण्णचंदसंठाणसंठिया मज्झिमा चउरो ॥ १८७॥। १८८. गेवेज्जावलिसरिस्सा गेवेज्जा तिण्णि तिण्णि आसन्ना । हुल्लुयसंठाणाई अणुत्तराई विमाणाई ॥ १८८॥ [गा. १८९-९० वेमाणियदेवविमाणाणं पइट्ठाणं ] १८९. घणउदहिपइट्ठाणा सुरभवणा दोसु होति कप्पेसुं । तिसु वाउपइट्ठाणा, तदुभयसुपइट्ठिया तिन्नि ॥ १८९॥। १९०. तेण परं उवरिमया आगासंतरपइट्ठिया सव्वे । एस पइट्ठाणविही उट्टं लोए विमाणाणं ॥ १९०॥ [ गा. १९१- २७६. देवाणं सामण्ण-विसेसओ विविहा परूवणा] [गा. १९१-९३. देवाणं लेसाओ ] १९१. किण्हानीला - काऊ - तेऊलेसा य भवण-वंतरिया । जोइस सोहम्मीसाणे तेउलेसा मणुयव्वा ॥ १९१ ।। १९२. कप्पे सणकुमारे माहिदे चेव बंभलोगे य । एएसु पम्हलेसा, तेण परं सुक्कलेसा उ ॥ १९२॥। १९३. कणगत्तयरत्ताभा सुरवसभा दोसु होति कप्पेसु । तिसु होति पम्हगोरा, तेण परं सुक्किला देवा ॥ १९३ ।। [ गा १९४-९८. देवाणं उच्चत्तं- ओगाहणा] १९४. भवणवइ वाणमंतर - जोइसिया होति सत्तरयणीया । कप्पवईण य सुंदरि ! सुण उच्चत्तं सुरवराणं ॥ १९४॥। १९५. सोहम्मे ईसाणे य सुरवरा होत सत्तरयणीया । दो दो कप्पा तुल्ला दोसु वि परिहायए रयणी ॥ १९५ ॥ १९६. गेवेज्जेसु य देवा रयणीओ दोन्नि होति उच्चा उ । रयणी पुण उच्चत्तं अणुत्तरविमाणवासीणं ।।१९६॥। १९७. कप्पाओ कप्पम्जिस्स तठई सागरोवमऽब्भहिया। उस्सेहो तस्स भवे इक्कारसभागपरिहीणो || १९७।। १९८. जो य विमाणुस्सेहो पुढवीण य जं च होइ बाहल्लं । दोण्हं पि तं पमाणं बत्तीसं जोयणसयाई ॥ १९८॥ [ गा. १९९-२०२. देवाणं पवीयारणा ] १९९. भवणवइ-वाणमंतर - जोइसिया हुंति कायपवियारा । कप्पवईण वि सुंदरि ! वोच्छं पवियारणविही उ ॥ १९९ । २००. सोहम्मीसाणेसुं च सुरवरा होति कायपवियारा। सणकुमार-माहिदेसु फासपवियारया देवा ॥ २००॥ २०१. बंभे लंतयकप्पे य सुरवरा होति रूवपवियारा । महसुक्क सहस्सारेसु सद्दपवियारया देवा ॥ २०१ ।। २०२. आणय-पाणयकप्पे आरण तह अच्चुए कप्पम्मि । देवा मणपवियारा परओ पवियारणा नत्थि ॥ २०२॥ [गा. २०३-४. देवाणं गंधो दिट्ठी य] २०३. गोसीसाऽगुरु-केययपत्ता-पुन्नाग- बउलगंधा य। चंपय-कुवलयगंधा तगरेलसुगंधगंधा य ॥२०३॥। २०४. एसा गं गंधविही उवमाए वण्णिया समासेणं । दीट्ठीए वि य तिविहा थिर सुकुमारा य फासेणं ॥२०४॥ [गा. २०५-८. आवलिय-पइण्णविमाणाणं संखा अंतरं च ] २०५. तेवीसं च विमाणा चउरासीइं च सयसहस्साइं । सत्ताणउइ सहस्सा उलोए विमाणाणं ८४९७०२३ ||२०५|| २०६. अउणाणउइ सहस्सा चउरासीइं च सयसहस्साइं । एगूणयं दिवडुं सयं च पुप्फावकिण्णाणं ८४८९१४९ ||२०६|| २०७. सत्तेव सहस्साइं सयाई चोवत्तराइं अट्ठ भवे७८७४ । आवलियाइ विमाणा, सेसा पुप्फावकिण्णाणं ॥ २०७॥ २०८. आवलियविमाणाणं तु अंतरं नियमसो असंखेज्जं । संखेज्जमसंखेज्जं भणियं पुप्फावकिन्नाणं ॥ २०८॥ [गा. २०९-१३. आवलियाइविमाणाणं आगारा कमो य २०९. आवलियाइ विमाणा वट्ठ तंसा तहेव चउरंसा । श्री आगमगुणमंजूषा - १२९० Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ HOROS5555555555 (२४-३३) दस पइन्नयसुत्नेसु - १ देविदत्थओ [७] 5555555555555552 C%听听听听听听听听听听乐乐乐乐乐乐乐乐听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听FM पुप्फावकिण्णया पुण अणेगविहरूव-संठाणा ।।२०९।। २१०. वर्ल्ड थ वलयगं पिव, तंसा सिंघाडयं पिव विमाणा । चउरंसविमाणा पुण अक्खाऽयसंठिया भणिया म ॥२१०।। २११. पढमं वट्ठविमाणं, बीय तंसं, तहेव चउरंसं । एगंतरचउरंसं, पुणो वि वढें, पुणो तंसं ॥२११॥ २१२. वर्ल्ड वट्टस्सुवरि, तंस तंसस्स उप्पिरि होइ। चउरंसे चउरंसं, उड्डू तु विमाणसेढीओ ॥२१२॥ २१३. ओलंबयरज्जूओ सव्वविमाणाण होति समियाओ। उवरिम-चरिमंताओ हेट्ठिल्लो जाव चरिमंतो ॥२१३।। [गा. २१४-१६. कप्पवइविमाणाणं सरूवं ] २१४. पागारपरिक्खित्ता वट्टविमाणा हवंति सव्वे वि । चउरंसविमाणाणं चउद्दिसिं वेइया भणिया ।।२१४।। २१५. जत्तो वट्टविमाणं तत्तो तंसस्स वेइया होइ । पागारो बोधव्वो अवसेसाणं तु पासाणं ॥२१५॥ २१६. जे पुण वट्टविमाणा एगदुवारा हवंति सव्वे वि । तिन्नि य तंसविमाणे, चत्तारि य होति चउरंसे ॥२१६॥ [गा. २१७-१८. भवणवइ-वाणमंतर-जोइसियाणं भवण-नगर-विमाणसंखा] २१७. सत्तेव य कोडीओ हवंति बावत्तरि सयसहस्सा । एसो भवणसमासो भोमेज्जाणं सुरसराणं ॥२१७||२१८. तिरिओववाइयाणं रम्मा भोमनगरा असंखेजा। तत्तो संखेजगुणा जोइसियाणं विमाणा उ॥२१८|| [गा.२१९. चउविहदेवाणं अप्पबहुत्तं] २१९. थोवा विमाणवासी, भोमेज्जा वाणमंतर मसंखा। तत्तो संखेज्जगुणा जोइसवासी भवे देवा ।।२१९।। [गा. २२०. वेमाणियदेवीणं विमाणसंखा] २२०. पत्तेयविमाणाणं देवीणं छब्भवे सयसहस्सा। सोहम्मे कप्पम्मि उ, ईसाणे होति चत्तारि ॥२२०॥ [गा. २२१-२४. अणुत्तरदेवाणं विमाणं विमाणसंखा सद्दाइअणुभागो य ] २२१. पंचेवऽणुत्तराई अणुत्तरगईहिं जाई दिट्ठाई । जत्थ अणुत्तरदेवा भोगसुहं अणुवमं पत्ता ॥२२१॥ २२२. जत्थ अणुत्तरगंधा तहेव रूवा अणुत्तरा सद्दा । अच्चित्तपोग्गलाणं रसो य फासो य गंधो य ।।२२२।। २२३. पप्फोडियकलिकलुसा पप्फोडियकमलरेणुसंकासा । वरकुसुममहूकरा इव सुहमयरंदं निघोट्टंति ॥२२३|| २२४. वरपउगब्भगोरा सव्वेते एगगब्भवसहीओ। गब्भवसहीविमुक्का सुंदरि! सुक्खं अणुहवंति ॥२२४।। [गा. २२५-३२. देवाणं आहार-ऊसासा] २२५. तेत्तीसाए सुंदरि !वाससहस्सेहिं होइ पुण्णेहि। आहारो देवाणं अणुत्तरविमाणवासीणं ॥२२५।। २२६. सोलसहि सहस्सेहिं पंचेहिं सएहिं होइ पुण्णेहिं। आहरो देवाणं मज्मिममाउं धरेताणं ॥२२६।। २२७. दस वाससहस्साई जहन्नमाउं धरंति जे सेवा । तेसिं पिय आहरो चउत्थभत्तेण बोधव्यो ।।२२७||२२८. संवच्छरस्स सुंदरि! मासाणं अद्धपंचमाणं च । उस्सासो देवाणं अणुत्तरविमाणवासीणं ।।२२८॥ २२९. अद्धट्ठमेहिं राइंदिएहिं अट्ठहि य सुतणु ! मासेहिं । उस्सासो देवाणं मज्झिममाउं धरेताणं ।।२२९।। २३०. सत्तण्डं थोवाणं पुण्णाणं पुण्णयंदसरिसमुहे ! । ऊसासो देवाणं जहन्नामाउं धरेताणं ॥२३०|| २३१. जइसागरोवमाइं जस्स ठिई तत्तिएहिं पक्खेहिं । ऊसासो देवाणं, वाससहस्सेहिं आहारो ॥२३१।। २३२. आहारो ऊसासो एसो मे वन्निओ सभासेणं । सुहुमंतरा य नाहिसि सुंदरि! अचिरेण कालेण ॥२३२।। [गा. २३३-४०. वेमाणियदेवाणं ओहिनाणविसओ] २३३. एएसिंदेवाणं विसओ ओहिस्स होइ जो जस्स । तं सुंदरि ! वण्णे हं अहक्कम आणुपुव्वीए॥२३३।। २३४. सक्कीसाणा पढमं दोच्चं च सणंकुमार-माहिंदा । तच्चं च बंभ-लंतग सुक्क-सहस्सारय चउत्थिं ॥२३४|| २३५. आणय-पाणयकप्पे देवा पासंति पंचमि पुढविं । तं चेव आरण-ऽच्चुय ओहिन्नाणेण पासंति ॥२३५|| २३६. छट्टि हिट्ठिम-मज्झिमगेवेज्जा सत्तमिं च उवरिल्ला । संभिन्नलोगनालिं पासंति अणुत्तरा देवा ॥२३६|| २३७. संखेज्जजोयणा खलु देवाणं अद्धसागरे ऊणे । तेण परमसंखेज्जा जहन्नयं पन्नवीसंतु॥२३७|| २३८. तेण परमसंखेज्जा तिरियं दीवा य सागरा चेव। बहुययरं उवरिमया, उहुं तु सकप्पथूभाई ॥२३८।। २३९. नेरइयदेव-तित्थंकराय ओहिस्सऽबाहिरा होति। पासंति सव्वओ खलु, सेसा देण पासंति॥२३९॥२४०. ओहिन्नाणे विसओ एसो मे वण्णिओ समासेणं । बाहल्लं उच्चत्तं विमाणवन्नं पुणो वोच्छं ।।२४०॥ [गा. २४१-७६. वेमाणियदेवाणं विमाण-आवास-पासाय-वय-ऊसाससरीराइवण्णणं] २४१. सत्तावीसं जोयणसयाइं पुढवीण होइ बाहल्लं । सोहम्मीसाणेसुंरयणविचित्ताय सा पुढवी॥२४१|| २४२. तत्थ विमाण बहुविहा पासाया य मणिवेइयारम्मा । वेरुलियथूभियागारयणामयदामऽलंकारा म ॥२४२।। २४३. केइत्थऽसियविमाणा अंजणधाऊसमासभावेणं । अद्दयरिठ्ठयवण्णा जत्थाऽऽवासा सुरगणाणं ।।२४३।।२४४.केइ य हरियविमाणा मेयगधाउसरिसमो सभावेणं । मोरग्गीवसवण्णा जत्थाऽऽवासा सभावेणं ॥२४४॥ २४५. दीवसिहसरिसवण्णित्थ केइ जासुमण-सूरसरिवन्ना । हिंगुलुयधाउवण्णा जत्थाऽऽवासा . . . १२९१NEncirc55555555555555555ONOR Jain Education inte n s Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२४-३३) दस पन्नयसुत्नेसु १ देविदत्थओं [4] सुरगणाणं ।।२४५॥। २४६. कोरिंटधाउवण्णऽत्थ केइ फुल्लकणियारसरिवण्णा । हालिद्दभेयवण्णा जत्थाssवासा सुरगणाणं || २४६|| २४७. अविउत्तमल्लदामा निम्मलगत्ता सुगंधनीसासा । सव्वे अवट्ठियवया सयंपभा अणिमिसऽच्छा य ॥ २४७ ॥ २४८. बावत्तरिंकलापंडिया उ देवा हवंति सव्वे वि । भवसंकमणे तेसिं पडिवाओ होइ नायव्वो ॥ २४८॥ २४९. कल्लाणफलविवागा सच्छंदविउब्वियाभरणधारी । आभरण-वसणरहिया हवंति सामावियसरीरा ||२४९ || २५०. वत्तुलसरिसवरूवा देवा एक्कम्मि ठिइविसेसम्मि । पच्चग्गहीणमहिया ओगाहण-वण्णपरिणामा ||२५०।। २५१. किण्हा नीला लोहिय हालिद्दा सुक्किला विरायंति । पंचसए उव्विद्धा पासाया तेसु कप्पेसु ॥ २५१ ॥ २५२. तत्थाऽऽसणाबहुविहा, सयणिज्जा य मणिभतिसयचित्ता । विरइयवित्थडदूसा रयणामयदामऽलंकारा॥२५२॥ २५३. छव्वीस जोयणसया पुढवीणं ताण होइ बाहल्लं । सणकुमार माहिदे रयणविचित्ता य सा पुढवी || २५३|| [२५४. तत्थ विमाण बहुविहा पासाया य मणिवेइयारम्मा । वेरुलियथूभियागा रयणामयदामऽलंकारा ।। २५४ ।। ] २५५. तत्थ य नीला लोहिय हालिद्दा सुक्किला विरायंति । छ च्च सए - उब्विद्धा पासाया तेसु कप्पेसु॥२५५॥। २५६. तत्थाऽऽसणा बहुविहा सयणिज्जा य मणिभत्तिसयचित्ता । विरइयवित्थडदुसा, रयणामयदामऽलंकारा ।। २५६ ।। २५७. पण्णावीसं जोयणसया पुढवीण होइ बाहल्लं । बंभय-लंतयकप्पे रयणविचित्ता य सा पुढवी || २५७ ॥ २५८. तत्थ विमाण बहुविहा पासाया य मणिवेइयारम्मा | वेरुलियधूभियागा रयणामयदामडलंकारा ।। २५८।। २५९. लोहिय हालिद्दा पुण सुक्किलवण्णा य ते विरायंति । सत्तसए उव्विद्धा पासाया तेसु कप्पेसु ॥ २५९ ॥ २६०. तत्थाऽऽसणा वाणिभत्तिसयचित्ता । विरइयवित्थडदूसा, रयणामयदामऽलंकारा ॥ २६०॥ २६१. चउवीस जोयणसयाइं पुढवीणं तासि होइ बाहल्लं । सुक्के य सहस्सारे रयणविचित्ता य सा पुढवी ॥ २६९॥। २६२. तत्थ विमाण बहुविहा पासाया य मणिवेइयारम्मा | वेरुलियथूभियागा, रयणामयदामऽलंकारा || २६२|| २६३. हालिद्दभेयवण्णा सुक्किलवण्णा य ते विरायंति । अट्ठसते उव्विद्धा पासाया तेसु कप्पेसु || २६३ || २६४. तत्थाऽऽसणा बहुविहा, सयणिज्जा य मणिभत्तिसयचित्ता । विरइयवित्थडदूसा, रयणामयदामऽलंकारा || २६४ || २६५. तेवीस जोयणसयाइं पुढवीणं तासि होइ बाहल्लं । आणय पाणयकप्पे आरणSच्चु रयणविचित्ता उ सा पुढवी || २६५|| २६६. तत्थ विमाणा बहुविहा पासाया य मणिवेइयारम्मा । वेरुलियधूभियागा, रयणामयदामऽलंकारा॥२६६|| २६७. संखंकसन्निकासा सव्वे दगरय- तुसारसरिवण्णा । नव य सते उव्विद्धा पासाया तेसु कप्पेसु || २६७|| २६८. तत्थाऽऽसणा बहुविहा, सयणिज्जा य मणिभत्तिसयचित्ता । विरइयवित्थडदूसा, रयणामयदामऽलंकारा || २६८ ।। २६९. बावीस जोयणसयाई पुढवीणं तासि होइ बाहल्लं । गेवेज्जविमाणेसुं, रयणविचित्ता उ सा पुढवी ॥२६९॥ २७०. तत्थ विमाणा बहुविहा, पासाया य मणिवेइयारम्मा । वेरुलियधूभियागा, रयणामयदामऽलंकारा ॥२७०॥ २७१. संखंकसन्निकासा सव्वे दगरय-तुसारसरिवण्णा । दस य सए उव्विद्धा पासाया ते विरायंति ॥ २७९ ॥ २७२. तत्थाऽऽसणा बहुविहा, सयणिज्जा य मणिभत्तिसयचित्ता । विरइयवित्थडदूसा, रयणामयदामऽलंकारा ॥ २७२॥ २७३. इगवीस जोयणसयाइं पुढवीणं तासि ओइ बाहल्लं । पंचसु अणुत्तरेसुं, रयणविचित्ता उ सा पुढवी ॥ २७३॥। २७४. तत्थ विमाणा बहुविहा, पासाया य मणिवेइयारम्मा । वरेलियथुभियागा, रयणामयदामऽलंकारा ||२७४ || २७५. संखंकसन्निकासा सव्वे दगरय- तुसारसरिवण्णा । इक्कारसउव्विद्दा, पासाया ते विरायंति ॥ २७५॥। २७६. तत्थाऽऽसणा बहुविहा, सयणिज्जा य मणिभत्तिसयचित्ता । विरंइयवित्थडदूसा, रयणामयद ॥२७६॥ [गा. २७७-८२. ईसिपब्भाराए पुढवीए ठाणं संठाणं पमाणं च] २७७. सव्वट्ठविमाणस्स उ सव्वुवरिल्लाओ थुंभियंताओ । बारसहि जोयणेहिं इसिप भारा तओ पुढवी ।।२७७।। २७८. निम्मलदगरयवण्णा तुसार गोखीर- हारसरिवण्णा । भणिया उ जिणवरेहिं उत्ताणयछत्तसंठाणा ॥ २७८ ॥ २७९. पणयालीसं आयामT वित्थडा होइ सयसहस्साइं । तं तिगुणं सविसेसं परीरओ होइ बोधव्वो ।। २७९ ।। २८०. एगा जोयणकोडी बायालीसं च सयसहस्साइं । तीसं चेव सहस्सा दो य सया अउणपन्नासा १४२३०२४९ ॥ २८०॥ २८१. खेतद्धयविच्छिन्ना अट्ठेव य जोयणाणि बाहल्लं । परिहायमाणी चरिमंते मच्छियपत्ताओ तणुययरी ॥ २८१ ।। २८२. संखंकसन्निकासा नामेण सुदंसणा अमोहा य । अज्जुणसुवण्णयमई उत्ताणयछत्तसंठाणा ॥ २८२॥ [गा. २८३-९५. सिद्धाणं ठाणं संठाणं ओगाहणा फासणा य ] ॐ ॐ ॐ श्री आगमगुणमंजूषा १२९२ फ्र Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ XOXOKKKKKK (२४-३३) दस पन्नयस॒त्तेसु १ देविंदत्थओ २ तंदुलवेयालिय [९] २८३. ईसीपब्भाराए उवरिं खलु जोयणम्मि लोगंतो । तस्सुवरिमम्मि भाए सोलसमे सिद्धमोगाढे ॥ २८३।। २८४. तत्थेते निच्चयणा अवेयणा निम्ममा असंगा य । असरा जीवघेणा पएसनिव्वत्तसंठाणा ॥ २८४ ॥ २८५. कहिं पडिहया सिद्धा ? कहिं सिद्धा पइट्टिया ? । कहिं बोदि चइत्ताणं कत्थं गंतूण सिज्झई ? || २८५ || २८६. अलोए पडिहया सिद्धा, लोयऽग्गे य पट्टिया । इहं बोदिं चइत्ताणं तत्थ गंतूण सिज्झई || २८६ ॥ २८७. जं संठाणं तु इहं भवं चयंतस्स चरिमसमयम्मि । आसीय पएसघणं तं संठाणं तहिं तस्स ॥ २८७॥ २८८. दीहं वा हुस्सं वा जं संठाणं हवेज्ज चरिमभवे । तत्तो तिभागहीणा सिद्धाणोगाहणा भणिया ॥२८८॥ २८९. तिन्नि सया तेत्तीसा धणुत्तिभागो य होइ बोद्धव्वा । एसा खलु सिद्धाणं उक्कोसोगाहणा भणिया ||२८९ ।। २९० चत्तारि य रयणीओ रयणितिभागूणिया य बोद्धव्वा । एसा खलु सिद्धाणं मज्झिमओगाहणा भणिया ॥ २९०॥ २९१. एक्का य होइ रयणी अट्ठेव य अंगुलाई साहीया। एसा खलु सिद्धाणं जहण्ण ओगाहणा भणिया ||२९१ || २९२. ओगाहणाइ सिद्धा भवत्तिभागेण हुंति परिहीणा । संठाणमणित्थंत्थं जरा-मरणविप्पमुक्काणं ॥ २९२ ॥ २९३. जत्थ य एगो सिद्धो तत्थ अणंता भवक्खयविमुक्का । अन्नोन्नसमोगाढा पुट्ठा सव्वे अलोगंते ॥ २९३॥। २९४. असरीरा जीवघणा उवउत्ता दंसणे य नाणे य । सागरमणागारं लक्खणमेयं तु सिद्धाणं ||२९४।। २९५. फुसइ अनंते सिद्धे सव्वपएसेहिं णियमसो सिद्धो । ते वि असंखेज्जगुणा देस-पएसेहिं जे पुट्ठा ॥ २९५ ॥ [गा. २९६-९७. सिद्धाणं उवओगो ] २९६. केवलनाणुवउत्ता जाणंती सव्वभावगुण भावे । पासंति सव्वओ खलु केवलदिट्ठिहऽणंताहिं ॥ २९६ ॥ २९७. नाणम्मि दंसणम्मि य इत्तो एगयरयम्मि उवउत्ता । सव्वस्स केवलिस्सा जुगवं दो नत्थि उवओगा ॥ २९७ ॥ [गा. २९८-३०६. सिद्धाणं सुहं उवमा य ] २९८. सुरगणसुहं समत्तं सव्वद्धापिंडियं तगुणं । न वि पावइ मुत्तिसुहं णंताहिं वग्गवग्गूहिं ॥२९८॥। २९९. न वि अत्थि माणुसाणं तं सोक्खं न वि य सव्वदेवाणं । जं सिद्धाणं सोक्खं अव्वाबाह उवगयाणं ||२९९|| ३००. सिद्धस्स सुहो रासी सव्वद्धापिंडिओ जइ हविज्जा । णंतगुणवग्गुभइओ सव्वागासे न माएजा || ३००|| ३०१. जह नाम कोइ मिच्छो गुणे बहुविवियाणंतो। न चएइ परिकहेउं उवमाए तहिं असंती ॥ ३०१ ।। ३०२. इअ सिद्धाणं सोक्खं अणोवमं, नत्थि तस्स ओवम्मं । किंचि विसेसेणित्तो सरिक्खमिणं सुणह वोच्छं ॥ ३०२ ॥ ३०३. जह सव्वकामगुणियं पुरिसो भोत्तूण भोयणं कोई । तण्हा-छुहाविमुक्का अच्छिज्ज जहा अमियतित्तो ॥ ३०३ ॥ ३०४. इय सव्वकालतित्ता अउलं निव्वाणमुवगया सिद्धा । सासयमव्वाबाहं चिद्वंति सुही सुहं पत्ता ॥ ३०४॥ ३०५ सिद्ध त्ति य बुद्ध त्ति य पारगय त्ति य परंपरगय त्ति । उम्मुक्ककम्मकवया अंजरा अमरा असंगा य || ३०५ || ३०६ निच्छिन्नसव्वदुक्खा जाव जरा मरण-बंधणविमुक्का सासयमव्वाबाहं अणुहुंति सुहं सयाकालं ||३०६|| [गा. ३०७-९.जिणवरीणं इड्डी] ३०७. सुरगणइड्डिसमग्गा सव्वद्धापिडिया अणंतगुणा । न वि पावे जिणइङ्किं णंतेहिं वि वग्गवग्गूहिं ||३०७ || ३०८. भवणवइ वाणमंतर जोइसवासी विमाणवासी य । सव्विह्वीपरियारो अरहंतो वंदया होति ॥ ३०८ ॥ ३०९. भवणवइ वाणमंतर जोइसवासी विमाणवासी य । इसिवालियमइमहिया करेति महिमं जिणवराणं ॥ ३०९ ॥ [गा. ३१०-११. देविंदत्थओवसंहारो तक्कारगा य] ३१०. इसिवालियस्स भदं सुरवरथयकारयस्स वी(?धी) रस्स । जेहिं सया धुव्वंता सव्वे इंदा य पवरकित्तीया । तेसिं सुराऽसुरगुरू सिद्धा सिद्धिं उवविहिंतु ॥ ३९०॥ ३११. भोमेज्ज वणयराणं जोइसियाणं विमाणवासीणं । देवनिकायाण थओ इह समत्तो अपरिसेसो ||३११ || || [देविदत्थओ समत्तो] || १ || २ तंदुलवेयालियपइण्णयं [गा. १. मंगलमभिधेयं च] ३१२. निज्जरियजरा-मरणं वंदित्ता जिणवरं महावीरं । वोच्छं पन्नगमिणं तंदुलवेयालियं नाम ॥ १॥ [गा. २-३ दाराणि] ३१३. सुणह गणिए दस दसा वासस्याउस्स जह विभज्जति । संकलिए वोगसिए जं चाऽऽउं सेसयं होइ ||२|| ३१४. जत्तियमेत्ते दिवसे जत्तिय राई मुहुत्त ऊसासे। गब्भम्मि वसइ जीवो आहारविहिं च वोच्छामि ||३|| द्वारगाथा ॥ [ गा. ४-८. गब्भवासकालपमाणं ] ३१५. दोन्नि अहोरत्तसए संपुण्णे सत्तसत्तरिं चेव । गब्भम्मि वसइ जीवो, अद्धमहोरत्तमन्नं च ॥ ४ ॥ ३१६. एए उ अहोरत्ता नियमा जीवस्स गब्भवासम्मि । हीणाऽहिया उ एत्तो उवघायवसेण जायंति ॥ ५ ॥ ३१७. अट्ठ सहस्सा तिनि उ सया मुहुत्ताण पण्णविसा य । गब्भगओ VALLELE LELE फफफफफफफफफ श्री आगमगुणमंजूषा - १२०३ Page #21 --------------------------------------------------------------------------  Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ CO乐乐明明明明明明明 乐乐乐明乐乐乐乐乐乐乐听听听听听听听听乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐听听听听听听 ROA%%%%%%%%%%%%%%明 (२४.३३) दस पइन्नयसुत्तेसु - २ तंदुलवेयालिय [११] 555555555555555OSNOR ३। कइ णं भंते ! पिउअंगा पण्णत्ता ? गोयमा ! तओ पिउअंगा पण्णत्ता, तं जहा अट्टि १ अट्ठिमिजा २ केस मंसु-रोमनहा ३ ॥२५।। [भग० श०१ उ०७सू० १६-१७] ।। [सु. २६. गब्भगयस्स जीवस्स णरएसु उप्पत्ती] ३३७. जीवे णं भंते ! गब्भगए समाणे नरएसु उववज्जिज्जा ? गोयमा ! अत्थेगइए उववज्जेज्जा अत्थेगइए नो उववजेजा। से केणतुणं भंते ! एवं वुच्चइ जीवे णं गब्भगए समाणे नरएसु अत्थेगइए उववज्जेज्जा अस्थगइए नो उववज्जेज्जा ? गोयमा ! जे णं जीवे गब्भागए समाणे सन्नी पंचिंदिए सव्वाहिं पज्जत्तीहिं पज्जत्तए वीरियलद्धीए विभंगनाणलद्धीए वेउव्विअलद्धीए वेउव्वियलद्धिपत्ते पराणीअं आगयं सोच्चा निसम्म पएसे निच्छुहइ, २ त्ती वेउब्वियसमुग्घाएणं समोहणइ, २ त्ता चाउरंगिणिं सेन्नं सन्नाहेइ, सन्नाहित्ता पराणीएण सद्धि संगाम संगामेइ, से णं जीवे अत्थकामए रज्जकामए भोगकामए कामकामए, अत्थकंखिए रज्जकंखिए भोगकंखिए कामकंखिए, अत्थपिवासिए रज्जपिवासिए भोगपिवासिए कामपिवासिए तच्चित्ते तम्मणे ' तल्लेसे तदन्झवसिए तत्तिव्वज्झवसाणे तदट्ठोवउत्ते तदप्पियकरणे तब्भावणाभाविए, एयंसि च णं अंतरंसि कालं करेज्जा नेरइएसु उवज्जेज्जा, से एएणं अटेणं गोयमा ! एवं वुच्चइ जीवे णं गब्भगए समाणे रइएसु अत्थेगइए उवज्जेज्जा, अत्थेगइए नो उववज्जेज्जा ॥२६।। [ भगवती श०१ उ०७ सूत्रं १९ ] | [सु. २७ गब्भगयस्स जीवस्स देवलोएसु उप्पत्ती ] ३३८. जीवे णं भंते ! गब्भगए समाणे देवलोएसु उववज्जेज्जा ? गोयमा ! अत्थेगइए उववजेज्जा अत्थेगइए नो उववजेज्जा । से केणद्वेणं भंते ! एवं वुच्चइ अत्थेगइए उववज्जेज्जा अत्थेगइए नो उववज्जेज्जा ? गोयमा ! जे णं जीवे गब्भगए समाणे सण्णी पंचिदिए सव्वाहिं पज्जत्तीहिं पज्जत्तए वेउब्वियलद्धीए वीरियलद्धीए ओहिनाणलद्धीए तहारूवस्स समणस्स वा माहणस्स वा अंतिए एगमवि आयरियं धम्मियं सुवयणं सोच्चा निसम्म तओ से भवइ तिव्वसंवेगसंजायसड्ढे तिव्वधम्माणुरायरत्ते, से णं जीवे धम्मकामए पुण्णकामए सग्गकामए मोक्खकामए, धम्मकंखिए पुन्नकंखिए सग्गकंखिए मोक्खकंखिए, धम्मपिवासिए पुन्नपिवासिए सग्गपिवासिए मोक्खपिवासिए, तच्चित्ते तम्मणे तल्लेसे तदज्झवसिए तत्तिव्वज्झवसाणे तदप्पियकरणे तदट्ठोवउत्ते तब्भावणाभाविए, एयंसि णं अंतरंसि कालं करेज्जा देवलोएसु उववज्जेज्जा, से एएणं अटेणं गोयमा ! एवं वुच्चइ अत्थेगइए उववज्जेज्जा अत्थेगइए नो उववज्जेज्जा ॥२७॥ भगवती श०१ उ०७ सू०२०] || [सु गा. २८-३३. गब्भगयस्स जीवस्स माउसमसहावया] [ ३३९. जीवे णं भंते ! गब्भगए समाणे उत्ताणए वा पासिल्लए वा अंबखुज्जए वा अच्छेज्ज वा चिटेज वा निसीएज्ज वा तुयट्टेज वा आसएज वा सएज्ज वा माऊए सुयमाणीए सुयइ जागरमाणीए जागरइ सुहिआए सुहिओ भवइ दुहिआए दुविओ भवइ ? हंता गोयमा ! जीवे णं गब्भगए समाणे उत्ताणए वा जाव दुक्खिआए दुक्खिओ भवइ ।।२८॥ [भगवती श० १ उ०७ सू० २१] ॥ ३४०. थिरजायं पि हु रक्खइ, सम्म सारक्खई तओ जणणी । संवाडई तुयट्टइ रक्खइ अप्पं च गब्भं च ||२९|| ३४१. अणुसुयइ सुयंतीए, जागरमाणीए जागरइ गब्भो । सुहियाए होइ सुहिओ, दुहियाए दुक्खिओ होइ |३०|| ३४२. उच्चारे पासवणे खेले सिंघाणए वि से नत्थि । अट्ठट्ठीमिंज नह-केस-मंसु-रोमेसु परिणामो॥३१|| ३४३. आहारो परिणामो उस्सासो तह य चेव नीसासो। सव्वपएसेसु भवइ, कवलाहारो य से नत्थि॥३२॥ ३४४. एवं बोदिमइगओ गब्भे संवसइ दुक्खिओ जीवो। परमतिमिसंधयारे अमेज्झभरिए पएसम्मि ॥३३॥ सु. गा. ३४-३६.पुरिसित्थि-नपुंसगाईणं उप्पत्ती] ३४५. आउसो ! तओ नवमे मासे तीए वा पडुप्पन्ने वा अणागए वा चउण्ह माया अन्नयरं पयायइ । तं जहा इत्थिं वा इत्थिरूवेणं १ पुरिसंवा पुरिसरूवेणं २ नपुंसगं वा नपुंसगरूवेणं ३ बिबं वा बिंबरूवेणं ४॥३४|| ३४६. अप्पं सुक्कं बहुं ओयं इत्थीया तत्थ जायई। अप्पं ओयं बहुं सुक्कं पुरिसो तत्थ जायई ॥३५।। ३४७. दोण्हं पि रत्त-सुक्काणं तुल्लभावे नपुंसगो। इत्थीओयसमाओगे बिंब तत्थ पजायइ ॥३६॥ [सु. ३७. गब्भस्स निक्खमणं] ३४८. अहणं पसवणकालसमयंसि सीसेण वा पाएहिं वा आगच्छइ सममागच्छइ तिरियमागच्छइ विणिघायमावज्जइ ।।३७|| [गा. ३८. उक्कोसो गब्भवासकालो ] ३४९. कोइ पुण पावकारी बारस संवच्छराइं उक्कोसं । अच्छइ उ गब्भवरसे असुइप्पभवे असुइयम्मि ॥३८॥ [गा. ३९-४४. गब्भवासस्स सरूवं विरूवया य] ३५०.जायमाणस्स जं दुक्खं मरमाणस्स वा पुणो। तेण दुक्खेण सम्मूढो जाइं सरइ नऽप्पणो ॥३९॥ ३५१. विस्सरसरं रसंतो तो सो जोणीमुहाउ निप्फिडइ । माऊए अप्पणो वि य वेयणमउलं जणेमाणो ।।४०|| ३५२. गब्भघरयम्मि जीवो ROPOS5555555555555555415EEEEEE TImmar.mahriririrainin.in O听听听听听听听听听听乐听听听听听听听听听听听听听听乐乐乐听听听听听听听听听听听听听听听乐听听听听 in Education International 2010 Forrige Personal use only 。 Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२४-३३) दम पत्रयसुत्नेसु - २ तंदुलवेयालिय [१२] कुंभीपागम्मि नरयसंकासे । वुच्छो अमेज्झमज्झे असुइप्पभवे असुइयम्मि ||४१ ॥ ३५३. पित्तस्स य सिभस्स य सुक्कस्स य सोणियस्स वि य मज्झे । मुत्तस्स पुरीसस्स य जायइ जह वच्चकिमिउ व्व ॥ ४२ ॥ ३५४. तं दाणि सोयकरणं केरिसगं होइ तस्स जीवस्स ? । सुक्क रुहिरागाराओ जस्सुप्पत्ती सरीरस्स ॥। ४३ ।। ३५५. एयारिसे सरीरे कलमलभरिए अमेज्झसंभूए । निययं विगणिज्जंतं सोयमयं केरिसं तस्स ? ॥४४॥ [ सु. गा. ४५-५८. वाससयाउगस्स कणुयंस्स दस दसाओ ] ३५६. आउसो ! एवं जायस्स जंतुस्स कमेण दस दसाओ एवमाहिज्जति । तं जहा बाला १ किड्डा २ मंदा ३ बला ४ य पन्ना ५ य हायणि ६ पवंचा ७ । पब्भारा ८. मुम्ही ९ सायणीय १० दसभा १० य कालदसा ||४५|| ३५७. जायमित्तस्स जंतुस्स जा सा पढमिया दसा । न तत्थ सुक्ख दुक्खं वा छुहं जाणंति बालया १ ||४६|| ३५८. बीयं च दसं पत्तो नाणाकीडाहिं कीडई । न य से कामभोगेसु तिव्वा उप्पज्जए मई २ || ४७|| ३५९. तइयं च दसं पत्तो पंच कामगुणो नरो । समत्थो जिउ भोगे जसे अत्थि घरे धुवा ३ || ४८|| ३६०. चउत्थी उ बला नाम जं नरो दसमस्सिओ । समत्थो बलं दरिसेउं जइ सो भवे निरुवद्दवो ४ ॥ ४९ ॥ ३६१. पंचमी उदसं पत्तो आणुपुव्वीइ जो नरो। समत्यो अत्थं विचिंतेउं कुटुंबं चामिगच्छई ५ ||५० || ३६२. छट्ठी उ हायणी नाम जं नरो दसमस्सिओ। विरज्जइ काम" भोगेसु, इंदिए य हाय ६ ॥ ५१ ॥ ३६३. सत्तमी य पवंचा उ जं नरो दसमस्सिओ । निद्रुभइ चिक्काणं खेलं खासई य खणे खणे ७ ॥ ५२ ॥ ३६४. संकुइयवलीचम्मो संपत्तो अट्ठमिं दसं । नारीणं च अणिट्ठो उ जराए परिणामिओ ८ ।। ५३ ।। ३६५. नवमी मुम्मुही नामं जं नरो दसमस्सिओ । जराघरे विणस्संते जीवो वसइ अकामओ ९॥५४॥ ३६६. हीण-भिन्नसरो दीणो विवरीओ विचित्तओ । दुब्बलो दुक्खिओ सुयइ संपत्तो दसमिं दस १० ॥ ५५ ॥ ३६७. दसगस्स उवक्खेवो, वीसइवरिसो उ गिण्हई विज्जं । भोगाय तीसगस्सा, चत्तालीसस्स विन्नाणं ॥ ५६ ॥ ३६८. पन्नासयस्स चक्खुं हायइ, सक्कियस्स बाहुबलं । सत्तरियस्स उ भोगा, आसीकस्साऽऽयविन्नाणं ||५७|| ३६९. नउई नमइ सरीरं, पुन्ने वाससए जीवियं चयइ । केत्तिओऽत्थ सुहो भागो ? दुहभागो य केत्तिओ ? ॥५८॥ [ गा. ५९-६३. दस दसासु सुहदुक्खविवेगेण धम्मसाहणोवएसो ] ३७०. जो वाससयं जीवइ सुही भोगे य भुंजई। तस्सावि सेविउं सेओ धम्मो य जिणदेसिओ ॥ ५९ ॥ ३७१. किं पुण सपच्चवाए जो न निच्चदुक्ख ? | सुट्टुयरं तेण कायव्वो धम्मो य जिणदेसिओ ||६०|| ३७२. नंदमाणो चरे धम्मं 'वरं मे लट्ठतरं भवे' । अणंदमाणो वि चरे धम्मं 'मा मे पावतरं भवे' ||६१|| ३७३. न वि जाई कुलं वा वि विज्जा वा वि सुसिक्खिया । तारे नरं व नारिं वा, सव्वं पुण्णेहिं वढई ||६२|| ३७४. पुण्णेहिं हायमाणेहिं पुरिसगारो वि हायई । पुण्णेहिं वडमाणेहिं पुरिसगारो वि वहुई || ६३ || [सु. ६४. अंतरायबहुले जीविए पुण्णकिच्चकरणोवएसो ] ३७५. पुण्णाई खलु आउसो ! किच्चाई करणिज्नाइं पीइकराई वन्नकराई धणकराई कित्तिकराई। नो य खलु आउसो ! एवं चिंतेयव्वं एसिंति खलु बहवे समया आवलिया खणा आणापाणू थोवा लवा मुहुत्ता दिवसा अहोरत्ता पक्खा मासा रिऊ अयणा संवच्छरा जुगा वाससया वाससहस्सा वाससयसहस्सा, वासकोडीओ वासकोडाकोडीओ, जत्थ णं अम्हे बहूइं सीलाई वाई गुणा वेरमणाई पच्चक्खाणाई पोसहोववासाइं पडिवज्जिस्सामो पट्ठविस्सामो करिस्सामो, ता किमत्थं आउसो ! नो एवं चिंतेयव्वं भवइ ? अंतराइयबहुले खलु अयं जीविए, इमे बहवे वाइय - पित्तिय-सिभिय-सन्निवाइया विविहा रोगायंका फुसंति जीवियं ॥ ६४ ॥ [सु. ६५-६८. जुगलिय-अरिहंत-चक्कवट्टिआईणं देहाइइड्डीओ ] ३७६. आसी य खलु आउसो ! पुव्विं मणुया ववगयरोगाऽऽयंका बहुवाससयसहस्सजीविणो । तं जहा जुयलधम्मिया अरिहंता वा चक्कवट्टी वा बलदेवा वा वासुदेवा वा चारणा विज्जाहरा || ६५ || ३७७. ते णं मणुया अणतिवरसोम- चाररूवा भोगुत्तमा भोगलक्खणधरा-सुजायसव्वंगसुंदरंगा-रत्तुप्पलपउमकर-चरणकोमलंगुलितला नग - णगर-मगर-सागर-चक्कंकधरंकलक्खणंकियतला सुपइट्टियकुम्मचारुचलणा अणुपुव्विसुजाय - पावरं - गुलिया उन्नय-तणुतंब निद्धनहा संठिय-सुसिलिट्ठ- गूढगोप्फा एणी-कुरुविंदावत्त- वट्टाणुपुव्विजंघा सामुग्गनिमग्गगूढजाणू गयससणसुजायसन्निभोरू वरवारणमत्ततुल्लविक्कमविलीसियगई सुजायवरतुरयगुज्झदेसा आइन्नहंउ व्व निरूवलेवा पमुइयवरतुरग-सीहअइरेगवट्टियकडी साहयसोणंद-मुसलदप्पण-निगरियवरकण-गच्छरुसरिसवरवरवलियमज्झा गंगावत्तपयाहिणावत्ततरंगभंगुररविकिरणतरुण-बोहयउक्कोसायतपउमगंभीर - वियडनामी उज्जुय- समसहिय सुजाय - जच्च-तणु कसिण- निद्ध फ्र HORROR श्री आगमगुणमंजूषा १२९६ TO Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२४-३३) दस पइन्नयसुत्तेसु २ तंदुलवेयालिय [१३] आएज्ज-लडह-सुकुमाल-मउय रमणिज्जरोमराइ झस-विहगसुजाय-पीणकुच्छी झसोयरा पम्हवियडनाभा संगयपासा सन्नयपासा सुंदरपासा सुजायपासा मियमाइय-पीण-रइयपासा अकरंडुयकणगरुयग-निम्मल सुजाय - निरुवहयदेहधारी पसत्थ- बत्तीसलक्खणधरा कणगसिलायलुज्जलपसत्थ-समतलउवचियवित्थिन्नपिहुलवच्छा सिरिवच्छंकियवच्छा पुरवरफलिहवट्टियभुया भुयगीसरविउलभोग आयाणफलिहउच्छूढदीहबाहू जुगसन्निभपीण रइय- पीवरपउट्ठसंठियउवचिय- घण-थिर- सुबद्ध- सुवट्ट सुसिलिट्ठ लट्ठपव्वसंधी रत्ततलोवचिय-मउय-मंसल - सुजाय लक्खणपसत्थ-अच्छिद्दजालपाणी पीवर- वट्टिय सुजायकोमलवरंगुलिया तंब - तलिण- सुइ रुइर- निद्धनक्खा चंदपाणिलेहा सूरपाणिलेहा संखपाणिलेहा चक्कपाणिलेहा सोत्थियपाणिलेहा ससि रवि-संख-चक्कसोत्थियविभत्त-सुविरइयपाणिलेहा वरमहिसवराह-सीह सद्दूल-उसभ नागवरविउल- पडिपुन्न- उन्नय-मउदक्खंधा चउरंगुलसुपमाण-कंबुवरसरिसगीवा अवट्ठियसुविभत्त-चित्तमं मंसल - संठिय-पसत्थ- सद्दूलविउलहणुया ओयवियसिलप्पवाल- बिंबफलसन्निभाधरुट्ठा पंडुरससिसगलविमल निम्मलसंख-गोखीर-कुंददगरय-मुणालियाधवलदंतसेढी अखंडदंता अफुडियदंता अविरलदंता सुनिद्धदंता सुजायदंता एगदंतसेढी विव अणेगदंता हुयवहनिद्धंत धोय-तत्ततवणि ज्जरत्ततलतालु-जीहा सारसनवथणियमहुरगंभीर - कुं चनिग्घोस दुंदुहिसरा गरुलायय उज्जु-तुंगनासा अवदारिअपुंडरीयवयणा कोकासियधवलपुंडरीयपत्तलच्छा आनामियचावरुइल-किण्ह-चिहुरराइसुसंठिय-संगय-आयय-सुजायभुमाया अल्लीण पमाणजुत्तसवणा सुसवणापीण-मंसलकवोलदेस-भागा अइरुग्गय-समग्गसुनिद्धचंदद्धसंठियनिडाला उडुवइपडिपुन्नसोमवयणा छत्तागारुत्तमंगदेसा घण-निचिय सुबद्ध-लक्खणुन्नय - कूडागार निभ- निरुवमपिंडियऽग्गसिरा हुयवहनिद्धंतधोय-तत्ततवणिज्जकेसंतके सभूमी सामली- बोंडघणनिचियच्छोडिय- मिउ-विसय- सुहुम- लक्खणपसत्थ- सुगंधि- सुंदर - भुयमोयग - भिंग- नील- कज्जलपहट्टभमरगणनिद्ध-निउरंबनिचिय कुंचिय पयाहिणावत्तमुद्धसिरया लक्खण वंजणगुणोववेया माणुम्माणपमाणपडिपुन्नसुजायसव्वंगसुंदरंगा ससिसोमागारा कंता पियदंसणा सब्भावसिंगारचारुरूवा पासाईया दरिसणिज्जा अभिरुवा पडिरूवा ||६६ || ३७८. ते णं मणुया ओहस्सरा मेहस्सरा हंसस्सरा कोंचस्सरा नंदिस्सरा नंदिघोसा सीहस्सरा सीहघोसा मंजुस्सरा मंजुघोसा सुस्सरा सुस्सरघोसा अणुलोमवाउवेगा कंकग्गहणी कवोयपरिणामा सउणिप्फोस-पिट्टंतरोरुपरिणया पउमुप्पल गंधसरिसनीसासा सुरभिवयणा छवी निरायंका उत्तम - पसत्थाऽइसेस-निरुवमत जल्लमल - कलंक सेय-रय दोसवज्जियसरीरा निरुवलेवा छायाउज्जोवियंगमंगा वज्जरिसहनारायणसंघयणा समचउरंससंठाणसंठिया छधणुसहस्साइं उड्डुं उच्चत्तेण पण्णत्ता । तेणं मणुया दो छप्पन्नपिट्ठकरंडगसया पणत् समणाउसो ! ॥६७|| ३७९. ते णं मणुया पगइभद्दया पगइविणीया पगइउवसंता पगइपयणुकोह माण- माया-लोभा मिउ-मद्दवसंपन्ना अल्लीणा भद्दया विणीया अप्पिच्छा असन्निहिसंचया अचंडा असि मसि - किसी वाणिज्जविवज्जिया विडिमंतरनिवासिणो इच्छिय- कामकामिणो गेहागाररुक्खकयनिलया पुढवि- पुप्फफलाहारा, ते मणुयगणा पण्णत्ता ॥ ६८ ॥ [ सु. गा. ६९-७५. संपइकालीणमणुयाणं देह संघयणाइहाणी धम्मियजणपसंसा य] ३८०. आसी य समणाउसो ! पुव्विं मणुयाणं छव्विहे संघयणे । तं जहा वज्जरिसहनारायसंघयणे १ रिसहनारायसंघयणे २ नारायसंघयणे ३ अर्द्धनारायसंघयणे ४ कीलियासंघयणे ५ छेवट्ठसंघयणे ६ । संपइ खलु आउसो ! मणुयाणं छेवट्ठे संघयणे वट्ट || ६९ ॥ ३८१. आसी य आउसो ! पुव्विं मणुयाणं छव्विहे संठाणे । तं जहा समचउरंसे १ नग्गोहपरिमंडले २ सादि ३ खुज्जे ४ वामणे ५ हुंडे ६ | संपइ खलु आउसो ! अणुयाणं हुंडे संठाणे वट्टइ ||७० ॥ ३८२. संघयणं संठाणं उच्चत्तं आउयं च मणुयाणं । अणुसमयं परिहायइ ओसप्पिणिकालदोसेणं ॥ ७१ ॥ ३८३. कोह - मय- माय लोभा उस्सन्नं वहुए मणुस्साणं । कूडतुल कूडमाणा तेणऽणुमाणेण सव्वं ति ॥७२॥ ३८४. विसमा अज्ज तुलाओ, विसमाणि य जणवएसु माणाणि । विसमा रायकुलाई, तेण उ विसमाई वासाई ॥ ७३ ॥ ३८५. विसमेसु य वासेसुं हुंति असाराई ओसहिबलाइं । ओसहिदुब्बल्लेण य आउं परिहायइ नराणं ॥ ७४ ॥ ३८६. एवं परिहायमाणे लोए चंदु व्व कालपक्खम्मि । जे धम्मिया मणुस्सा सुजीवियं जीवयं तेसिं ॥७५॥ [सु.गा. ७६-८१. वाससयाउयमणुयस्स वाससयविभागा आहारकरिणामाइ य ] ३८७. आउसो ! से जहानामए काइ पुरिसे पहाए कयबलिकम्मे FIFICICICICICIFICIFIC of arcur ELELELELELEL 12. Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ TOSफफफफफफफफफ55555 १२४.३३) दस पइन्नयसुत्तेसु. २ तंदुलवेयालिय [१४] IC$听听听听听听听听听听听听听明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明纸纸55CM कयकोउय-मंगल-पायच्छित्ते सिरंसिण्हाए कंठे मालकडे आविद्धमणि-सुवण्णे अहय-सुमहग्यवत्थ-परिहिए चंदणोक्किण्णगायसरीरे. सरससुरहिगंधगोसीसचंदणाणुलित्तगत्ते सुइमाला-वन्नग-विलेवणे कप्पियहारडद्धहार-तिसरय-पालंबपलंबमाणकडिसुत्तयसुकयसोहे पिणद्धगेविज्ने अंगुलेजगललियंगयललियकयाभरणे नाणामणि-कणग-रयणकडग-तुडियथंभियभुए अहियरुवसस्सिरीए कुंडलुज्जोवियाणणेमउडदित्तसिरए हारुच्छयसुकयरइयवच्छे पालंबपलंबमाण-सुकयपडउत्तरिज्जे मुद्दियापिंगलंगुलिए नाणामणिकणग-रयणविमल-महरिह-निउणोविय-मिसिमिसिंत-विरइय-सुसिलिट्ठ-विसिट्ठलट्ठ-आविद्धवीरवलए। किं बहुणा ? कप्परुक्खए चेव अलंकिय-विभूसिए सुइपए भवित्ता अम्मा-पियरो अभिवादएज्जा । तए णं तं पुरिसं अम्मा-पियरो एवं वएज्जा जाव पुत्ता ! वाससयं ति । तं पि आई तस्स नो बहुयं भवइ कम्हा ?, ॥७६॥ ३८८. वाससयं जीवंतो वीसं जुगाइं जीवइ, वीसं जुगाइं जीवंतो दो अयणसयाई जीवइ, दो अयणसयाई जीवंतो छ उउसयाइं जीवइ, छ उउसयाइं जीवंतो बारस माससयाइं जीवइ, बारस माससयाई जीवंत्तो चउवीसं पक्खसयाई जीवइ, चउवीसं पक्खसयाइं जीवंतो छत्तीसं राइंदिअसहस्साई जीवइ, छत्तीसं राइंदियसहस्साइं जीवंतो दस असीयाई मुहुत्तसयसहस्साई जीवइ, दस असीयाई मुहुत्तसयसहस्साइंजीवंतो चत्तारि ऊसासकोडिसए सत्त य कोडीओ अडयालीसंच सयसहस्साइं चत्तालीसंच ऊसाससहस्साई जीवइ, चत्तारि य ऊसासकोडिसए जाव चत्तालीसं च ऊसाससहस्साइं जीवंतो अद्धत्तेवीसं तंदुलवाहे भुंजइ ||७७||३८९. कहमाउसो! अद्धत्तेवीसं तंदुलवाहे भुंजइ ? गोयमा ! दुब्बलाए खंडियाणं बलियाए छडियाणं खइरमुसलपच्चाहयाणं ववगयतुस-कणियाणं अखंडाणं अफुडियाणं फलगसरियाणं इक्किक्कबीयाणं अद्धत्तेरसपलियाणं पत्थएणं । से वि य णं पत्थए मागहए । कल्लं पत्यो १ सायं पत्थो २। चउसट्टितंदुलसाहस्सीओ मागहओ पत्थो । बिसाहस्सिएणं कवलेणं बत्तीसं कवला पुरिसस्स आहारो, अट्ठावीसं इत्थियाए, चउवीसं पंडगस्स । एवामेव आउसो ! एयाए गणणाए दो असईओ पसई, दो पसईओ य सेझ्या होइ, चत्तारि सेइयाओ कुलओ, चत्तारि कुलया पत्थो, चत्तारि पत्था आढगं, सट्ठी आढगाणं जहन्नए कुंभे, असई आढयाणं मज्झिमे कुंभे, आगढसयं उक्कोसए कुंभे, अद्वेव य आढगसयाणि वाहे । एएणं वाहप्पमाणेणं अद्धत्तेवीसं तंदुलवाहे भुंजइ ।।७८॥ ते य गणियनिद्दिट्ठा ३९०. चत्तारि य कोडिसया सद्धिं चेव य हवंति कोडीओ। असिई च तंदुलसयसहसा हवंति त्ति मक्खायं ॥७९|| [॥ ४६०८००००००।। ] ३९१.तं एवं अद्धत्तेवीसं तंदुलवाहे भुंजतो अद्धछढे मुग्गकुंभे मुंजइ, अद्धछढे मुग्गकुंभे भुंजतो चउवीसं णेहाढगसयाई भुंजइ, चउवीसंणेहाढगसयाइं भुंजतो छत्तीसं लवणपलसहस्साई भुंजइ, छत्तीसं लवणपलसहस्साई भुंजतो छप्पडसाडगसयाई नियंसेइ, दोमासिएणं परिअट्टएणं मासिएण वा परियट्टएणं बारस पडसाडगसयाई नियंसेइ । एवामेव आउसो ! वाससयाउयस्स सव्वं गणियं तुलियं मवियं नेह-लवण-भोयण-ऽच्छारणं पि एयं गणियपमाणं दुविहं भणियं महरिसीहिं जस्सऽत्थि तस्स गणिज्जइ, जस्स नत्थि तस्स किं गणिज्जइ ? ॥८०॥ ३९२. ववहारगणिय दिटुं, सुहुमं निच्छयगयं मुणेयव्वं । जइ एयं न विएयं विसमा गणणा मुणेयव्वा ।।८१।। [गा. ८२-८६. समयाइकालपमाणसरूवं] ३९३. कालो परमनिरुद्धो अविभज्जो तं तुजाण समयं तु । समया य असंखेज्जा हवंति उस्सास-निस्सासे ।।८२।। ३९४. हट्ठस्स अणवगल्लस्स निरुवकिट्ठस्स जंतुणो । एगे ऊसास-नीसासे एस पाणु त्ति वुच्चइ ।।८३॥ ३९५. सत्त पाणूणि से थोये, सत्त थोवाणि सेलवे। लवाणं सत्तहत्तरिए एस मुहुत्ते वियाहिए॥८४॥ ३९६. एगमेगस्सणं भंते ! मुहुत्तस्स केवइया ऊसासा वियाहिया ? गोयमा ! तिन्नि सहस्सा सत्त य सयाइं तेवत्तरं च ऊसासा । एस मुहुत्तो भणिओ सव्वेहिं अणंतनाणीहिं ।८५।। ३९७. दो नालया मुहुत्तो, सद्धिं पुण नालिया अहोरत्तो । पन्नरस अहोरत्ता पक्खो, पक्खा दुवे मासो॥८६।। [गा. ८७-९२. कालपमाणनिवेययघडियाजंतविहाणविही ] ३९८. दाडिमपुप्फागारा लोहमई नालिया उ कायव्वा । तीसे तलम्मि छिदं, छिद्दपमाणं पुणो वोच्छं ॥८७|| ३९९. छण्णउइ पुच्छवाला तिवासजायाए गोति(?भि)हाणीए। अस्संवलिया उज्जुय नायव्वं नालियाछिदं ।।८८॥ ४००. अहवा उ प्र पुंछवाला दुवासजायाए गयकरेणूए। दो वाला उ अभग्गा नायव्वं नालियाछिदं ॥८९।। ४०१. अहवा सुवण्णमासा चत्तारि सुवट्टिया घणा सूइ । चउरंगुलप्पमाणा, कायव्वं नालियाछिदं ।।९०।। ४०२. उदगस्स नालियाए भवंति दो आढगा उ परिमाणं । उदगं च भाणियव्वं जारिसयं तं पुणो वोच्छं ।।९१।। ४०३. उदगं खलु Horo #5555555555555555555555 9[ श्री आगमगुणमजूषा - १२९८ #FFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFOLORY GNC明明明明明明明明明明明明明明听明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明听听听听听听听听听听心 Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२४-३३) दस पन्नयसुत्तेसु २ तंदुलवेयालिय [१५] नायव्वं, कायव्वं दूसपट्टपरिपूयं । मेहोदगं पसन्नं सारइयं वा गिरिनईए ॥ ९२॥ [गा. ९३. वरिसमज्झे मास पक्ख-राइदियपमाणं ] ४०४. बारस मासा संवच्छरो उ, पक्खा य ते चउव्वीसं । तिन्नेव य सट्टसया हवंति राईदियाणं च ॥९३॥ [ गा. ९४ ९८. राईदिय-मास वरिस - वरिससयमज्झे ऊसासमाणं ] ४०५. एगं च सयसहस्सं तेरस चेव य भवे सहस्साइं । एगं च सयं नउयं हवंति राइदिऊसासा ||१४|| ४०६. तेत्तीस सयसहस्सा पंचाणउई भवे सहस्साइं । सत्त य सया अणूणा हवंति मासेण ऊसास्त्रा || ९५|| ४०७. चत्तारि य कोडीओ सत्तेव य हुति सयसहस्साइं । अडयालीस सहस्सा चत्तारि सया य वरिसेणं ||१६|| ४०८ चत्तारि य कोडिया सत् य कोडीओ हुंति अवराओ । अडयाल सयसहस्सा चत्तालीसं सहस्सा य ।। ९७ ।। ४०९. वाससयाउस्सेए उस्सासा एत्तिया मुणेयव्वा । पिच्छह आउस्स खयं अहोनिसं झिज्नमाणस्स ॥ ९८ ॥ [ गा. ९९- १०७. आउअवेक्खाए अणिच्चयापरूवणा ] ४१०. राइदिएण तीसं तु मुहुत्ता, नव सया उमासेणं हायंति पत्ताणं, न य णं अबुहा वियाणंति ॥ ९९ ॥ ४११. तिन्नि सहस्से सगले छ च्च सए उडुवरो हरइ आउं| हेमंते गिम्हासु य वासासु य होइ नायव्वं ॥ १०० ॥ ४१२. वाससयं परमाउं तो पन्नास हरइ निद्दाए। एत्तो वीसइ हायइ बालत्ते वुड्डुभावे य ॥ १०१ ॥ ४१३. सी उण्ह-पंथगमणे खुहा पिवासा भयं च सोगे य । नाणाविहाय रोगा हवंति तीसाइ पच्छद्धे ॥ १०२ ॥ ४१४. एवं पंचासीई नट्ठा, पन्नरसमेव जीवंति । जे होति वाससइया, न य सुलहा वाससयजीवी ॥ १०३॥। ४१५. एवं निस्सारे माणुसत्तणे जीविए अहिवडते । न करेह चरणधम्मं, पच्छा पच्छाणुतप्पिहिह ॥ १०४ ॥ ४१६. घुट्ठिम्मि सयं मोहे जिणेहिं वरधम्मतित्थमग्गस्स । अत्ताणं च न याणह इह जाया कम्मभूमी ॥ १०५ ॥ ४१७. नइवेगसमं चवलं च जीवियं, जोव्वणं च कुसुमसमं । सोक्खं च जमनियत्तं तिन्नि वि तुरमाणभोज्जाई ॥ १०६ ॥ ४१८. एयं खु जरा-मरणं परिक्खिवइ वग्गुरा व मिगजूहं । न य णं पेच्छह पत्तं सम्मूढा मोहजालेणं ॥ १०७॥ [सू. १०८-१३. सरीरसरूवं ] ४१९. आउसो ! जं पि य इमं सरीरं इवं पियंकंतं मणं मणामं मणाभिरामं थेज्जं वेसासियं सम्मयं बहुमयं अणुमयं भंडकरंडगसमाणं, रयणकरंडओ विव सुसंगोवियं, चेलपेडा विव सुसंपरिवुडं, तेल्लपेडा विव सुसंगोवियं 'मा णं उण्हं मा णं सीयं मा णं खुहा मा णं पिवासा मा णं चोरा मा णं वाला मा णं दंसा मा णं मसगा मा णं वाइय- पित्तिय- सिभिय- सन्निवाइय विवा रोगायंका फुसंतु 'त्ति कट्टु । एवं पि याई अधुवं अनिययं असासयं चओवचइयं विप्पणासधम्मं, पच्छा व पुरा व अवस्स विप्पचइयव्वं ॥ १०८ ॥ ४२०. एयस्स वि याई आउसो ! अणुपुव्वेणं अट्ठारस य पिट्ठकरंडगसंधीओ, बारस पंसुलिकरंडया, छप्पंसुलिए कडाहे, बिहत्थिया कुच्छी, चउरंगुलिआ नीवा, चउपलिया जिब्भा, दुपलियाणि अच्छीणी, चउकवालं सिरं, बत्तीसं दंता, सत्तंगुलिया जीहा, अब्दुट्ठपलियं हिययं, पणुवीसं पलाई कालेज्जं । दो अंता पंचवामा पण्णत्ता, तं जहा थुल्लंते य तणुअंते य । तत्थ णं जे से धुल्लंते तेणं उच्चारे परिणमइ, तत्थ णं जे से तणुयंते तेणं से वामे पासे से सुहपरिणामे, तत्थ णं जे से तणुय॑ते॒ तेणं पासवणे परिणमइ । दो पासा पण्णत्ता, तं जहा वामे पासे दाहिणे पासे य । तत्थ णं से वामे पासे सुहपरिणामे, तत्थ णं जे से दाहिणे पासे दुहपरिणामे | आउसो ! इमम्मि सरीरए सट्टं संधिसयं, सत्तुत्तरं मम्मसयं, तिन्नि अट्ठिदामसयाई, नव ण्हारुयसयाई, सत्त सिरासयाई, पंच पेसीसयाई, नव धमणीओ, नवनउइं च रामकूवसयसहस्साइं विणा केस-मंसुणा, सह केस मंसुणा अछुट्ठाओ रोमकूवकोडीओ ॥ १०९ ॥ ४२१. आउसो ! इमम्मि सरीरए सट्टं सिरासयं नाभिप्पभवाणं उडगामिणीणं सिरमुवागयाणं जाओ रसहरणीओ त्ति वुच्वंति जाणं सि निरुवघातेणं चक्खु सोय घाण जीहाबलं भवइ, जाणं सि उवघाएणं चक्खु-सोय- घाण - जीहाबलं उवहम्मइ । आउसो ! इमम्मि सरीरए सट्टं सिरासयं नाभिप्पभवाणं अहोगामिणीणं पायतलमुगयाणं, जाणं सि निरुवघाएणं जंघाबलं हवइ, जाणं चेव से उवघाएणं सीसवेयणा अद्धसीसवेयणा मत्थसूले अच्छीणि अधिज्जति । आउसो ! इमम्मि सरीरए सट्टं सिरासयं नाभिप्पभवाणं तिरियगामिणीणं अत्थतलमुवगयाणं जाणं सि निरुवघाएणं बाहुबलं हवइ, ताणं चेव से उवघाएणं पासवेयणा पोट्टवेयणा कुच्छिवेयणा कुच्छिसूले भवइ । आउसो ! इमस्स जंतुस्स सट्टं सिरासयं नामिप्पभवाणं अहोगामिणीणं गुदपविद्वाणं, जाणं सि निरुवघाएणं मुत्त-पुरीस-वाउकम्मं पवत्तइ, ताणं चेव उवघाएणं मुत्त-पुरीस वाउनिराहेणं अरिसाओ खुब्भंति पंडुरोगो भवइ ॥ ११०॥ ४२२. आउसो ! इमस्स जंतुस्स पणवीसं सिराओ सिंगधारिणीओ, पणवीसं सिराओ पित्तधारिणीओ, दस सिराओ सुक्कधारिणोओ, सत्त सिरासयाई पुरिसस्स, YOR 5 श्री आगमगुणमंजूषा १२९९ NRO Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (GBK) (२४-३३) दस पन्नयसुतेसु २ तंदुलवेयालिय [१६] तीसूणाई इत्थीयाए, वीसूणाई पंडगस्स ॥ १११ ॥ ४२३. आउसो ! इमस्स जंतुस्स रुहिरस्स आढयं, वसाए अद्धाढयं, मत्थुलिंगस्सपत्थो, मुत्तस्स आढयं, पुरीसस्स पत्थो, पित्तस्स कुलवो, सिंभस्स कुलवो, सुक्कस्स अद्धकुलवो। जं जाहे दुद्वं भवइ तं ताहे अइप्पमाणं भवइ ॥ ११२ ॥ ४२४. पंचकोट्टे पुरिसे, उक्कोट्ठा इत्थिया । नवसोए पुरिसे, इक्कारससोया इत्थिया । पंच पेसीसयाई पुरिसस्स, तीसूणाई इत्थियाए, वीसूणाई पंडगस्स ॥११३॥ [गा. सु. ११४-१६. सरीरस्स असुंदरत्तं ] ४२५. अब्भंतरंसि कुणिमं जो (जइ) परियत्तेउ बाहिरं कुज्जा । तं असुइं दवणं सया वि जणणी दुगुंछेज्जा ॥ ११४ ॥ ४२६. माणुस्सयं सरीरं पूईयं मंससुक्क-हड्डेणं । परिसंठवियं सोभइ अच्छायण-गंध-मल्लेणं ॥ ११५ ॥ ४२७. इमं चेव य सरीरं सीसघडीमेय-मज्ज-मसं-ऽट्ठिय-मृत्थुलिंग-सोणिय वालुंडय - चम्मकोसनासिय-सिंघाणय-धीमलालयं अमणुण्णगं सीसघडीभंजियं गलंतनयणकण्णोड-गंड-तालुयं अवालुया खिल्लचिक्कणं चिलिचिलियं दंतमलमइलं बीभच्छदरिसणिज्जं असंलग- बाहुलगअंगुली अंगुट्ठग-नहसंघिसंघायसंधियमिणं बहुरसियागारं नाल-खंधच्छिरा अणेगण्हारु- बहुधमणि- संधिनद्धं पागडउदर-कवालं कक्खनिक्खुडं कक्खगकलियं दुरंतं अट्ठि-धमणिसंताणसंतयं, सव्वओ समंता परिसवंतं च रोमकूवेहिं, सयं असुई, सभावओ परमदुब्भिगंधि, कालिज्जय- अंत- पित्त-जरहियय-फोप्फस-फेफस - पिलिहोदर - गुज्झ कुणिम नवछिड्ड थिविथिविथिविंत हिययं दुरहिपित्त सिंभ मुत्तो सहायतणं सव्वतो दुरंतं- गुज्झोरु-जाणु जंघा - पायसंघाय संधियं असुइ कुणिमगंधि; एवं चितिज्जमाणं बीभच्छदरिसणिज्जं अधुवं अनिययं असासयं सडण पडण- विद्धंसणधम्मं, पच्छा व पुरा व अवस्सचइयव्वं, निच्छयओ सुजाण, एयं आइ-निहणं, एरिसं सव्वमणुयाण देहं । एस परमत्थओ सभावो ॥ ११६ ॥ । [ गा. ११७-१९. सरीरादिस्स असुभत्तं ] ४२८. सुक्कम्मि सोणियम्मि य संभूओ जणणिकुच्छिमज्झम्मि । तं चेव अमेज्झरसं नव मासे घुटिउं संतो ॥११७॥ ४२९. जोणीमुहनिप्फिडिओ थणगच्छीरेण वडिओ जाओ । पगईअमेज्झमइओ किह देहो धोइउं सक्को ? ॥ ११८ ॥ ४३०. हा ! असुइसमुप्पन्नया य, निग्गया य तेण चेव य बारेणं । सत्तया मोहपसत्तया, रमंति तत्थेव असुइदारयम्मि ॥११९॥ [गा. १२० - ५३. इत्थीसरीरनिव्वे ओवएसो] ४३१. किह ताव घरकुडीरी कईसहस्सेहिं अपरितंतेहिं । वन्निज्जइ असुइबिलं जघणं ति सकज्जमूढेहिं ? ॥१२०॥ ४३२. रागेण न जाणंती य वराया कलमलस्स निद्धमणं । ता णं परिणंदंती फुल्लं नीलुप्पलवणं व ॥ १२१ ॥ ४३३. कित्तियमित्तं वण्णे ? अमिज्झमइयम्मि वच्चसंघाए। रागो हु न कायव्वो विरागमूले सरीरम्मि ॥१२२॥। ४३४. किमिकुलसयसंकिण्णे असुइमचोक्खे असासयमसारे । सेयमलपाच्चडम्मी निव्वेयं वच्चह सरीरे ॥१२३ ॥ ४३५. दंतमल- कण्णगूहग-सिंघाणमले य लालमलबहुले। एयारिसबीभच्छे दुगुंछणिज्जम्मि को रागो ? || १२४|| ४३६. को सडणपडण-विकिरण-विद्धंसण- चयण-मरण-मरणधम्मम्मि । देहम्मि अहीलासो कुहिय कठिणकडभूयम्मि ? ॥ १२५ ॥ ४३७. काग - सुणगाण भक्खे किमिकुलभत्ते य वाहिभत्ते य । देहम्मि मच्चुभत्ते सुसाणभत्तम्मि को रागो ? ||१२६|| ४३८. असुई अमेज्झपुन्नं कुणिम- कलेवरकुडिं परिसवंति । आगंतुयसंठवियं नवछिद्दमसासयं जाण ॥१२७॥ ४३९. पेच्छसि मुहं सतिलयं सविसेसं रायएण अहरेणं । सकडक्खं सवियारं तरलच्छिं जोव्वणत्थीए ॥१२८॥ ४४०. पिच्छसि बाहिरमहं, न पिच्छसी उज्झरं कलिमलस्स । मोहेण नच्चयंतो सीसघडीकंजियं पियसि ॥ १३० ॥ ४४१. सीसघडीनिग्गालं जं निवहसी दुगुंछसी जं च । तं चैव रागरत्तो मूडो अइमुच्छिओ पियसि ॥१३०॥ ४४२. पूइयसीसकवालं पूइयनासं च पुइदेहं च । पूइयह्निविछिडं पूइयचम्मेण य पिणद्धं ॥ १३१ ॥ ४४३. अंजणगुणसुविसुद्धं ण्हाणुव्वट्टणगुणेहिं सुकुमालं । पुप्फुम्मीसियकेसं जणेइ बालस्स तं रागं ॥ १३२ ॥ ४४४. जं सीसपूरओ त्ति य पुप्फाइं भांति मंदविन्नाणा | पुप्फाई चिय ताई सीसस्स य पूरयं सुणह ॥१३३॥ ४४५. मेदो वसा य रसिया खेले सिंघाणए छुभ एयं । अह सीसपूरओ भे नियगसरीरम्मि साहीणो ॥ १३४ ॥ ४४६. सा किर दुप्पडिपूरा वच्चकुडी दुप्पया नवच्छिद्दा । उक्कडगंधविलित्ता बालजणोऽइमुच्छियं गिद्धो || १३५ || ४४७. जं पेम्मरागरत्तो अवयासेऊण गूह-मुत्तोलिं । दंतमलचिक्कणंगं सीसघडीकंजियं पयसि ॥१३६॥ ४४८. दंतमुसलेसु गहणं गयाण, मंसे य ससय-मीयाणं । वालेसु य चमरीणं, चम्म नहे दीवियाणं च ॥ १३७ ॥ ४४९. पूइयकाए य इहं चवणमुहे निच्चकालवीसत्थो । आइक्खसु सब्भावं किम्ह सि गिद्धो तुमं मूढ !? || १३८।। ४५०. दंता वि अकज्जकरा, वाला वि विवहुमाणबीभच्छा। चम्मं पि य बीभच्छं, भण फ्र श्री आगमगुणमंजूषा - १३०० फ्र 66666 Page #28 -------------------------------------------------------------------------- ________________ XT955555555555555 (२४-३३) दस पइन्नयसुत्तेसु २ तंदलवेवालिय 55555555555555eos per:05555555555555555 明明明明明明明明明明明明明明听听听听听听乐乐听听乐乐乐明明明明明明明GS訊 किम्हं सितं गओ रागं ? ||१३९।। ४५१. सिंभे पित्ते मुत्ते गृहम्मि वसाए दंतकुंडीसुं। भणसु किमत्थं तुझं असुइम्मि वि वड्डिओ रागो ? ॥१४०॥ ४५२. जंघट्ठियासु ऊरू पइट्ठिया, तट्ठिया कडीपिट्ठी । कडिपट्ठिवेढियाइं अट्ठारस पिट्ठिअट्ठीणि ॥१४१॥ ४५३. दो अच्छिअट्ठियाई, सोलस गीवट्टिया मुणेयव्वा । पिट्ठीपइट्ठियाओ बारस किल पंसुली हुंति ॥१४२।। ४५४. अट्ठियकढिणे सिर-हारुबंधणे मंस-चम्मलेवम्मि । विट्ठाकोट्ठागारे को वच्चघरोवमे रागो ? ११४३।। ४५५. जह नाम बच्चकूवो निच्च भिणिभिणिभिणतंकायकली। किमिएहिं सुलुसुलाइ सोएहि य पूइयं वहइ ॥१४४॥ ४५६. उद्धियनयणं खगमुहविकट्टियं विप्पइन्नबाहुलयं । अंतविकट्टियमालं सीसघडीपागडियघोरं ।।१४५।। ४५७. भिणिभिणिभिणंतसद्धं विसप्पियं सुलुसुलेंतमंसोड । मिसिमिसिमिसंतकिमियं थिविथिविथिवयंतबीभच्छं ॥१४६॥ ४५८. पागडियपासुलीयं विगरालं सुक्कसंधिसंघायं । पडियं निव्वेवणयं सरीरमेयारिसं जाण ॥१४७।। ४५९. वच्चाओ असुइतरे नवहिं सोणहिं परिगलंतेहिं। आमगमल्लगरूवे निव्वेयं वच्चह सरीरे ॥१४८॥ ४६० दो हत्था दो पाया सीसं उच्चंपियं कबंधम्मि । कलमलकोट्ठागारं परिवहसि दुयादुर्य वच्चं ॥१४९।। ४६१.तं च किर रूववंतं वच्वंतं रायमग्गमोइन्नं । परगंधेहिं सुगंधय मन्नतो अप्पाणो गंधं ॥१५०।। ४६२. पाडल-चंपय-मल्लिय-अगुरुय-चंदण-तुरुक्कवामीसं । गंध + समोयरंतं मन्नतो अप्पणो गंधं ॥१५१|| ४६३. सुहवाससुरहिगंधं च ते मुहं, अगुरुगंधियं अंगं । केसा ण्हाणसुगंधा, कयरो ते अप्पणो गंधो ? ॥१५२।। ४६४. अच्छिभलो कन्नमलो खेलो सिंघाणओ य पूओ य । असुई मुत्त-पुरीसो, एसो ते अप्पणो गंधो ॥१५३।। [सु. गा. १५४-६७. इत्थिसरीर-सभावाइ पडुच्च वेरग्गोवएसो] ४६५. जाओ चिय इमाओ इत्थियाओ अणेगेहिं कइवरसहस्सेहिं विविहपासपडिबद्धेहिं कामरागमोहिएहिं वन्नियाओ ताओ विय एरिसाओ, तं जहा पगविसमाओ पियरूसणाओ कतियवचडुप्परून्नातो अथक्कहसिय-भासिय-विलास-वीसंभ-पचू च्च याओ अविणयवातोलीओ मोहमहावत्तणीओ विसमाओ पियवयणवल्लरीओ कइयवपेमगिरितडीओ अवराहसहस्सघरिणीओ ४, पभवो सोगस्स, विणासो बलस्स, सूणा पुरिसाणं, नासो लज्जाए, संकरो अविणयस्स, निलओ नियडीणं १० खाणी वइरस्स, सरीरं सोगस्स, भेओ मज्जायाणं, आसओ रागस्स, निलओ दुच्चरियाणं १५, माईए सम्मोहो, खलणा नाणस्स, चलणं सीलस्स, विग्यो धम्मस्स, अरी साहूण २०, दूसणं आयारपत्ताणं, आरामो कम्मरयस्स, फलिहो मुक्खमग्गस्स, भवणं दारिद्दस्स २४॥१५४॥ ४६६. अवि आई ताओ आसीविसो विव कुवियाओ, मत्तगओ विव मयणपरव्वसाओ, वग्घी विव दुट्ठहिययाओ, तणच्छन्नकूवो विव अप्पगासहिययाओ, मायाकारओ विव उवयारसयबंधणपओत्तीओ, आयरियसविधं पिव दुग्गेज्झसब्भावाओ ३०, फुफुया विव अंतोदहणसीलाओ, नग्गयमग्गो विव अणवट्ठियचित्ताओ, अंतोदुट्ठवणो विव कुहियहिययाओ, कण्हसप्यो विव अविस्ससणिज्जाओ, संघारो विव छन्नमायाओ, संझब्भरागो विव मुहुत्तरागाओ, समुद्दवीचीओ विव चलस्सभावाओ, मच्छो विव दुप्परियत्तणसीलाओ, वानरो विव चलचित्ताओ, मच्चू विव निव्विसेसाओ ४०, कालो विव निरणुकंपाओ, वरुणो विव पासहत्थाओ, सलिलमिव निन्नगामिणीओ, किविणो विव उत्ताणहत्थाओ, नरओ विव उत्तासणिज्जाओ, खरो विव दुस्सीलाओ, दुट्ठस्सो विव दुद्दमाओ, बालो इव मुहुत्तहिययाओ, अंधकारमिव दुप्पवेसाओ, विसवल्ली विव अणल्लियणिज्जाओ ५०, दुट्ठगाहा इव वावी अणवगाहाओ, ठाणभट्ठो विव इस्सरो अप्पसंसणिज्जओ, किंपागफलमिव मुहमहुराओ, म रित्तमुट्ठी विव • नलोभणिज्जाओ, मंसपेसीगहणमिवसोवद्दवाओ, जलियचुडली विव अमुच्चमाणडहणसीलाओ, अरिद्वमिव दुल्लंघणिज्जाओ, कूडकरिसावणो विव कालविसंवायणसीलाओ, चंडसीलो विव दुक्खरक्खियाओ, अइविसायाओ६० धुगुंछियाओ दुरुवचाराओ अगंभीराओ अविस्ससणिज्जाओ अणवत्थियाओ दुक्खरक्खियाओ दुक्खपालियाओ अरतिकराओ कक्कसाओ दढवेराओ ७० रूव-सोहग्गमउम्मत्ताओ भुयगगइकुडिलहिययाओ कंतारणइट्ठाणभूयाओ कुलसयण-मित्तभेयणकारियाओ परदोसपगासियाओ कयग्घाओ बलसोहियाओ एगंतहरणकोलाओ चंचलाओ जाइयभंडोवगारो विव मुहरागविरागाओ ८०॥१५५।। GO听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听2O MOTORREEEEEEEEE9999999999 श्री आगमगुणमंजूषा-१३०१555555555555555555555555555OON Page #29 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२४-३३) दस पन्नयसुत्तेसु २ तंदुलवेयालिय, ३ चंदावेज्झयं [१८] फफफफफफफ ४६७. अवि याइं ताओ अंतरं भंगसयं, अरज्जुओ पासो, अदारुया अडवी, अणालस्सनिलओ, अइक्खा वेयरणी, अनामिओ वाही, अवियोगो विप्पलावो, अरुओ उवसग्गो, रइंवंतो चित्तंविब्भमो, सव्वंगओ दाहो ९०, अणब्भपसूया वज्जासणी, असलिलप्पवाहो समुद्दरओ ९२ || १५६|| ४६८. अवि या तासि इत्थियाणं अणेगाणि नामनिरुत्ताणि-पुरिसे कामरागप्पडिबद्धे पाणाविहेहिं उवायसयसहस्सेहिं वह बंधणमाणयंति पुरिसाणं नो अन्नो एरिसो अरी अत्थि त्ति नारीओ, तं जहा नारीसमा न नराणं अरीओ नारीओ १ । नाणाविहेहिं कम्मेहिं सिप्पयाइएहिं पुरिसे मोहंति त्ति महिलियाओ २ । पुरिसे मवे करेति त्ति पमाओ ३ । महंतं कलिं जयंति त्ति महिलियाओ ४ । पुरिसे हावभावमाइएहिं रमंति त्ति रामाओ ५ । पुरिसे अंगाणुराए करेति त्ति अंगणाओ ६ । नाणाविहेसु जुद्धभंडण - संगामाऽडवीसु मुहारणगिण्हण-सीउण्ह-दुक्ख किलेसमाइसु पुरिसे लालेति त्ति ललणाओ ७ । पुरिसे जोगे - निओएहिं वसे ठाविति त्ति जोसियाओ ८ । पुरिसे नाणाविहेहिं भावेहिं वणिति त्ति वणियाओ ९ ।। १५७।। ४६९. काइ पमत्तभावं, काई पणयं सविब्भमं, काई ससद्दं सासि व्व ववहरंति, काई सत्तु व्व, रोरो इव काई पयएसु पणमंति, काई उवणसु उवणमंति, काई कोउयनम्मं ति काउं सुकडक्खनिरिक्खिएहिं सविलासमुरेहिं उवहसिएहिं उवगूहिएहिं उवसद्देहिं गुरुगदरिसणेहिं भूमिलिहण-विलिहणेहिं च आरुहण-नट्टणेहि य बालयउवगूहणेहिं च अंगुलीफोडण - थणपीलण कडितडजायणाहिं तज्जणाहिं च ॥ १५८॥ ४७०. अवि याई ताओ पासो व ववसितुं जे, पंको व्व खुप्पि जे, मच्चु व्व. मारेउं जे अगणि व्व डहिउं जे असि व्व छिज्जिरं जे ॥ १५९ ॥ ४७१. असि-मसिसाररिच्छीणं कंतार-कवाड - चारयसमाणं । घोरनिउरंबदकंदरचलंत बीभच्छभावाणं ॥ १६०॥ ४७२. दोससयगागरीणं अजससयविसप्पमाणहिययाणं । कइयवपन्नत्तीणं ताणं अन्नायसीलाणं ॥ १६१ ।। ४७३. अन्नं रयंति, अन्नं रमंति, अन्नस्स दिति उल्लावं । अन्नो कडयंतरिओ, अन्नो य पडंतरे ठविओ ॥ १६२॥। ४७४. गंगाए वालुयं, सायरे जलं, हिमवतो य परिमाणं । उस तवस गई, गब्भुप्पत्तिं च विलया ॥ १६३ ।। ४७५. सीहे कुडुंबयारस्स पोट्टलं, कुक्कुहाइयं अस्से । जाणंति बुद्धिमंता, महिलाहिययं न जाणंति ॥१६४॥ ४७६. एरिसगुणजुत्ताणं ताणं कइ इव असंठियमणाणं । न हु भे वीससियव्वं महिलाणं जीवलोगम्मि ॥ १६५ ॥ ४७७ निद्धन्नयं च खलयं, पुप्फेहि विवज्जियं च आरामं । निद्दुद्धियं च धेणुं, लोए वि अतेल्लियं पिंडं ॥ १६६ ॥ ४७८. जेणंतरेण निमिसंति लोयणा, तक्खणं च विगसंति । तेणंतरेण हिययं चित्त ? चिंत) सहस्साउलं होइ ॥ १६७॥ [गा. १६८. उवएसाणरिहजणा ] ४७९. जड्डाणं वड्डाणं निव्विण्णाणं च निव्विसेसाणं । संसारसूयराणं कहियं पि निरत्थयं होई ॥। १६८ ।। [गा. १६९७० पुत्त-पियाईणमताणत्तं ] ४८० किं पुत्तेहिं ? पियाहि व ? अत्थेण व पिडिएण बहुएणं ? जो मरणदेस-काले न होइ आलंबणं किंचि ॥ १६९॥। ४८१. पुत्ता चयंति, मित्ता चयंति, भज्जा विणं मयं चयइ । तं मरणदेस- काले न चयइ सुबिइज्जओ धम्मो ॥ १७० ॥ [गा. १७१-७४. धम्ममाहप्पं ४८२. धम्मो ताणं, धम्मो सरणं, मेण सुचरिएण य गम्मइ अजरामरं ठाणं ॥ १७१ ॥ ४८३. पीईकरो वट्ठकरो भासकरो जसकरो रइकरो य । अभयकर निव्वुइकरो पारत्तबिइज्जओ धम्मो ॥१७२॥। ४८४. अमरवरेसु अणोवमरूवं भोगोवभोगरिद्धी य | विन्नाण-नाणमेव य लब्भइ सुकएण धम्मेणं ॥ १७३॥ ४८५. देविंद - चक्कवट्टित्तणाइं रज्जाई इच्छया भोगा । एया धम्मलाभप्फलाई, जं चावि नेव्वाणं ॥ १७४॥ [ गा. १७५-१७७ उवसंहारो ] ४८६. आहारो उस्सासो संधिछिराओ य रोमकूवाइं । पित्तं रुहिरं सुक्कं गणियं गणियप्पहाणेहिं ॥ १७५ ॥ ४८७. एयं सोउ सरीरस्स वासाणं गणियपागडमहत्थं । मोक्खपउमस्स ईहह सम्मत्तसहस्सपत्तस्स ॥ १७६ ॥ ४८८. एयं सगडसरीरं जाइ-जरा-मरण-वेयणाबहुलं । तह घत्तह काउं जे जह मुच्चह सव्वदुक्खाणं ॥ १७७॥ 5 ॥ तंदुलवेयालीपइण्णयं सम्मत्तं ॥ २२॥ ३ चंदावेझ पणयं 555 [गा. १ २. मंगलमभिधेयं च] ४८९. जगमत्थयत्ययाणं विगसियवरनाण- दंसणधराण । नाणुज्जोयगराणं लोगम्मि नमो जिणकरणं ॥१॥ ४९०. इणमो सुणह महत्थं निस्संदं मोक्खमग्गसुत्तस्स । विगहनियत्तियचित्ता, सोऊण य मा पमाइत्था ॥२॥ [गा. ३. सत्तदारनामाई ] ४९१. विषायं १ आयरियगुणे २ सीसगुणे ३ विणयनिग्गहगुणे ४ य । नाणगुणे ५ चरणगुणे ६ मरणगुणे ७ एत्थ वोच्छामि ॥ ३ ॥ ॥ दारगाहा ॥ [गा. ४-२१. विणयगुणे त्ति पढमं दारं ] YOYOR * फ्री श्री आगमगुणमंजूषा १३०२ Page #30 -------------------------------------------------------------------------- ________________ C$乐乐乐听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听明听听听听听听听听听听听听听听FSC 0555555555555555 (२४.३३) दस पइन्नयसुत्तेसु - ३ चंदावेज्झयः (१९] 55555555$$$ $QLO ४९२. जो करिभवइ मणूसो आयरियं, जत्थ सिक्खए विज्ज । तस्स गहिया वि विज्जा दुःक्खेण वि, अप्फला होइ॥४॥ ४९३. थद्धो विणयविहूणो न लभइ किंत्ति 2 जसं च लोगम्मि । जो परिभव करेई गुरुण गरुयाए कम्माणं ।।५।। ४९४. सव्वत्थ लभेज नरो विस्संभं सच्चयं च कित्तिं च । जो गुरुजणोवइ8 विज्ज विणएण गेण्हेज्नं ॥६।। ४९५. अविणीयस्स पणस्सइ, जइ वि न नस्सइ न नज्जइ गुणेहिं । विज्ज सुसिक्खिया वि हु गुरुपरिभवबुद्धिदोसेणं ॥७॥ ४९६. विज्जा मणुसरियव्वा नई दुविणीयस्स होइ दायव्वा । परिभवइ दुविणीओ तं विज्जं, तं च आयरियं ।।८॥ ४९७. विजं परिभवमाणो आयरियाणं गुणेऽपयासिंतो। रिसिघायगाण लोयं वच्चइ मिच्छत्तसंजुत्तो।।९।। ४१८. विज्जा वि होइ विलिया गहिया पुरिसेणऽभागधेज्जेण । सुकुलकुलबालिया विव असरिसपुरिसं पई पत्ता ॥१०॥ ४९९. सिक्खाहि ताव विणयं, किं ते विज्जाइ दुव्विणीयस्स ? | दुस्सिक्खिओ हु विणओ, सुलभा विज्जा विणीयस्स ॥११॥ ५००. विजं सिक्खह, विजं गुणेह, गहियं च मा पमाएह । गहिय-गुणिया हु विज्जा पालोयसुहावहा होइ ॥१२॥ ५०१. विणएण सिक्खियाणं विज्जाणं परिसमत्तसुत्ताणं । सक्का फलमणुभुत्तुं गुरुजणतुट्ठोवइट्ठाणं ॥१३॥ ५०२. दुल्लहया आयरिया विज्जाणं दायगा समत्ताणं । ववगयचउक्कसाया दुल्लहया सिक्खगा सीसा ॥१४॥ ५०३. पव्वइयस्स गिहिस्स व विणयं चेव कुसला पसंसंति । न हु पावइ अविणीओ कित्तिं च जसं च लोगम्मि॥१५॥ ५०४. जाणंता वि य विणयं केई कम्माणुभावदोसेणं । नेच्छंति पउंजित्ता अभिभूया राग-दोसेहिं ॥१६॥ ५०५. अभणंतस्स वि कस्स वि पइरइ कित्ती जसो य लोगम्मि । पुरिसस्स महिलियाए विणीयस्स दंतस्स ॥१७॥ ५०६. देति फलं विज्जाओ पुरिसाणं भागधेज्जपरियाणं । न हु भागधेज्जपरिवज्जियस्स विज्जा फलं देति ॥१८॥ ५०७. विज्जं परिभवमाणो आयरियाणं गुणेऽपयासिंतो। रिसिघायगाण लोयं वच्चइ मिच्छत्तसंजुत्तो ||१९|| ५०८. न हु सुलहा आयरिया विज्जाणं दायगा समत्ताणं । उज्जुय अपरित्तंता न हु सुलहा सिक्खगा सीसा ॥२०॥ ५०९. विणयस्स गुणविसेसा एए मए वण्णिया समासेणं । दारं १ । आयरियाणं च गुणे एगमणा मे निसामेह ॥२१॥ [गा. २२-३६. आयरियगुणे त्ति बीयं दारं ] ५१०. वोच्छं आयरियगुणे अणेगगुणसयसहस्सघारीणं । ववहारदेसगाणं सुयरयणसुसत्थवाहाणं ।।२२।। ५११. पुढवी विव सव्वसहं १ मेरु व्व अकंपिरं र ठियं धम्मे ३ | चंदं व सोमलेसं ४ तं आयरियं पसंसंति ॥२३॥ ५१२. अपरिस्साविं ५ आलोयणारिहं ६ हेउ-कारणविहन्तुं ७-८ । गंभीरं ९ दुद्धरिसं १० तं आयरियं पसंसंति ॥२४॥ .५१३. कालन्नू ११ देसन्नू १२ समयन्नू १३ अतुरियं १४ असंभंतं १५ । अणुवत्तयं १६ अमायं १७ तं आयरियं पसंसंति ॥२५|| ५१४. लोइय-वेझ्य-सामाइएसु सत्थेसु जस्स वक्खेवो १८-१९-२० । ससमय-परसमयविऊ २१-२२ तं आयरियं पसंसंति ॥२६॥ ५१५. बारसहि वि अंगेहिं सामाइयमाइपुव्वनिब्बद्धे । लद्धटुं गहियढे २३-२४ तं आयरियं पसंसंति ॥२७|| ५१६. आयरियसहस्साइं लहइय जीवो भवेहिं बहुएहिं । कम्मेसु य सिप्पेसुय अन्नेसु य धम्मचरणेसु॥२८|| ५१७. जे पुण जिणोवइटे निग्गंथे पवयणम्मि आयरिया । संसार-मोक्खमग्गस्स देसगा तेऽत्थ आयरिया २५-२६ ॥२९।। ५१८. जह दीवा दवसयं पइप्पए सो य दिप्पए दीवो। दीवसमा आयरिया दिप्पंति, परं च दीवेति ॥३०॥ ५१९. धन्ना आयरियाणं निच्चं आइच्च-चंदभूयाणं । संसारमहण्णवतारयाण पाए पणिवयंति ३०॥३१|| .५२० इहलोइयं च कित्तिं लभंति आयरियभत्तिराएणं ३१ । देवगई सुविसुद्धं ३२ धम्मे य अणुत्तरं बोहिं ३३ ॥३२॥ ५२१. देवा वि देवलोए निच्वं दिव्वोहिणा वियाणित्ता। आयरियाण सरंता आसण-सयणाणि मुच्चंति ३४ ॥३३॥ ५२२. देवा वि देवलोए निग्गंथं पवयणं अणुसरंता। अच्छरगणमज्झगया आयरिए वंदया एंति ३५॥३४॥ ५२३. छट्ठ-ऽट्ठम-दसम-दुवालसेहिं भत्तेहिं उववसंता वि। अकरेंता गुरुवयणं ते होति अणंतसंसारी ३६ ॥३५॥ ५२४. एए अन्ने य बहू आयरियाणं गुणा अपरिमेज्जा । दारं २ । सीसाण गुणविसेसे केइ समासेण वोच्छामि ॥३६॥ [गा. ३७-५३. सीसगुणे त्ति तइयं दारं ] ५२५. नीयावित्ति विणीयं ममत्तमं गुणवियाणयं सुयणं । आयरियमइवियाणिं सीसं कुसला पसंसंति ॥३७॥ ५२६.सीयसहं उण्हसह वायसहं खुह-पिवास-अरइसहं । पुढवी विवसव्वसहं सीसं कुसला पसंसंति॥३८॥ ५२७. लाभेसु अलाभेसुय अविवन्नो जस्स होइ मुहवण्णो । अप्पिच्छं संतुटुं सीसं कुसला पसंसंति ॥३९॥ ५२८. छव्विहविणयविहन्नू अज्जविओ सो 乐乐乐听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听 Horos99595555555555 श्री आगमगुणमंजूषा- 55555555555555OOK Page #31 -------------------------------------------------------------------------- ________________ goo555555555555 (२४-३३) दस पइन्नयमुत्तेस - ३ चंदावेज्झयं २०] 5 5555555555FOLX TESC乐乐明明明明明明明明明明明明明明明明明明 乐明明玩玩乐乐明明 听听听听乐乐国乐乐乐乐乐乐听听听听F505C हु वुच्चइ विणीओ । इड्डीगारवरहियं सीसं कुसला पसंसंति ॥४०॥ ५२९. दसविहवेयावच्चम्मि उज्जुयं उज्जयं च सज्झाए। सव्वावासगजुत्तं सीसं कुसला पसंसंति ॥४१|| ५३०. आयरियवण्णवाई गणसेविं कित्तिवद्धणं धीरं । धीधणियबद्धकच्छं सीसं कुसला पसंसंति ॥४२॥ ५३१. हंतूण सव्वमाणं सीसो होऊण ताव सिक्खाहि । सीसस्स होति सीसा, न होति सीसा असीसस्स ॥४३॥ ५३२. वयणाई सुकडुयाइं पणयनिसिट्ठाइं विसहियव्वाइं । सीसेणाऽऽयरियाणं नीसेसं मग्गमाणेणं ।।४४।। ५३३. जाइ-कुल-रूव-जोव्वण-बल-विरिय-समत्तसत्तसंपन्नं । मिउ मद्दवाइमपिसुणमसढमथद्धं अलोभं च ।।४५|| ५३४. पडिपुण्णपाणि-पायं अणुलोभं निद्ध-उवचियसरीरं । गंभीर-तुंगनासं उदारदिहिँ विसालच्छं ।।४६।। ५३५. जिणसासणमणुरत्तं गुरुजणमुहपिच्छिरं च धीरं च । सद्धागुणपरिपुण्णं विकारविरयं विणयमूलं ॥४७॥ ५३६. कालन्नू देसन्नू समयन्नू सील-रूव-विणयन्नू। लोह-भय मोहरहियं जियनिद्द-परीसहं चेव ॥४८॥५३७. जइ वि सुयनाणकुसलो होइ नरो हेउ-कारणविहन्नू । अविणीयं गारवियं न तं सुयहरा पसंसंति॥४९|| रागरहियं अकंपममच्छरियमकिंचणं निउणबुद्धिं । अचवलमवंचणमइं जिणपावयणम्मि फु 9 य पगब्भं ॥१॥ ५३८. सीसं सुइमणुरत्तं निच्चं विणओवयारसंपन्नं । वाएज्ज व गुणजुत्तं पवयणसोहाकरं धीरं ॥५०॥ ५३९. एत्तो जो परिहीणो गुणेहिं गुणसयनओववेएहिं । पुत्तं पिन वाएज्जा, किं पुण सीसं गुणविहूणं ? ॥५१॥ ५४०. एसा सीसपरिक्खा कहिया निउणेत्थ सत्थउवइट्ठा । सीसो परिक्खियव्वो पारतं मग्गमाणेणं ॥५२॥ ५४१. सीसाणं गुणकित्ती एसा मे वण्णिया समासेणं । दारं ३ । विणयस्स निग्गहगुणे ओहियहियया निसामेह ॥५३|| [गा. ५४-६७. -विणयनिग्गहगुणं त्ति चउत्थं दारं ] ५४२. विणओ मोक्खद्दारं विणयं मा हू कयाइ छट्ठज्जा । अप्पसुओ वि हु पुरिसो विणएण खवेइ कम्माई ||५४|| ५४३. जो + अविणीयं विणएण जिणइ, सीलेण जिणइ निस्सीलं । सो जिणइ तिण्णि लोए, पावमपावेण सो जिणइ ॥५५॥ ५४४. जइ वि सुयनाणकुसलो होइ नरो हेउ कारणविहन्नू । अविणीयं गारवियं न तं सुयहरा पसंसंति ॥५६।। ५४५. सुबहुस्सुयं पि पुरिसं पुरिसा अप्पस्सुयं ति ठावेति । गुणहीण विणयहीणं चरित्तजोगेण ॥ पासत्थं ।।५७|| ५४६. तव-नियम-सीलकलियं, उज्जुत्तं नाण-दसण-चरित्ते । अप्पस्सुयं पि पुरिसं बहुस्सुयपयम्मि ठावेति ॥५८॥ ५४७. सम्मत्तम्मि य नाणं आयत्तं, दंसणं चरित्तम्मि । खंतिबलाओ य तवो, नियमविसेसो य विणयाओ॥५९|| ५४८. सव्वे य तवविसेसा नियमविसेसा य गुणविसेसा य । नत्थि हु विणओ जेसिं मोक्खफलं निरत्थयं तेसिं॥६०|| ५४९. पुव्विं परूविओ जिणवरेहिं विणओ अणंतनाणीहिं । सव्वासु कम्मभूमिसु निच्चं चिय मोक्खमग्गम्मि॥६१||५५०. जो विणओ तं नाणं, जं नाणं सो उवुच्चई विणओ। विणएण लहइ नाणं, नाणेण विजाणई विणयं ॥६२।५५१. सव्वो चरित्तसारो विणयम्मि पइट्ठिओ मणूसाणं । ई नहु विणयविप्पहीणं निग्गंथरिसी पसंसंति ॥६३।। ५५२. सुबहुस्सुओ वि जो खलु अविणीओ मंदसद्ध-संवेगो । नाराहेइ चरित्तं, चरित्तभट्ठो भमइ जीवो ॥६४॥ ५५३. थोवेणं वि संतुट्ठो सुएण जो विणयकरणसंजुत्तो। पंचमहव्वयजुत्तो गुत्तो आराहओ होइ ।।६५।। ५५४. बहुयं पि सुयमहीयं किं काही विणयविप्पहीणस्स ? | अंधस्स जह पलिता दीवसयसहस्सकोडी वि ॥६६।। ५५५. विणयस्स गुणविसेसा ए, कए वणिया समासेणं । दार ४ । नाणस्स गुणविसेसा ओहियकण्णा निसामेह ॥६७|| [गा. ६८-९९. नाणगुणे त्ति पंचमं दारं] ५५६. न हु सक्का नाउं जे नाणं जिणदेसियं महाविसयं । ते धन्ना जे पुरिसा नाणी य चरित्तमंता य॥६८|| ५५७. सक्का सुएण णाउं उड्डे च अहं च तिरियलोयं च । ससुराऽसुरं समणुयं सगरुल-भुयगं सगंधव्वं ।।६९।। ५५८. जाणंति बंध-मोक्खं जीवाऽजीवे य पुण्ण-पावे य। आसव संवर निज्जर तो किर नाणं चरणहेउं॥७०॥ ५५९. नायाणं दोसाणं विवज्जणा, सेवणा गुणाणं च । धम्मस्स साहणाइं दोन्नि वि किरे नाणसिद्धाइं॥७१॥ ५६०. नाणी वि अवÈतो गुणेसु, दोसे य ते अवज्जितो । दोसाणं च न मुच्चइ तेसिन वि ते गुणे लहइ॥७२॥ ५६१. नाणेण विणा करणं, करणेण विणा न तारयं नाण । भवसंसारसमुदं नाणी करणट्ठिओ तरइ ॥७३।। ५६२. अस्संजमेण बद्धं अन्नाणेण य भवेहिं बहुएहिं । कम्ममलं सुभमसुभंकरणेण दढो धुणइ नाणी ।।७४॥ ५६३. सत्येण विणा जोहो, जोहेण विणा य जरिसं सत्थं । नाणेण विणा करणं, करणेण विणा तहा नाणं ।।७५।। ५६४. नादंसणिस्स नाणं, न वि अन्नाणिस्स होति करणगुणा । अगुणस्स नत्थि मोक्खो, नत्थि अमुत्तस्स नेव्वाणं ।।७६।। ५६५. जं नाणं तं करणं, जं करणं पक्यणस्स सो सारो। जो पवयणस्स सारो सो परमत्थो 3.OF听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听$$$$23 in Education International_201003 Page #32 -------------------------------------------------------------------------- ________________ raO55555555555555 (२४-३३) दस पइन्नयसुत्तेसु-३ चंदावेज्झयं [२१] 5555555555555555ONORY त्ति नायव्वो ॥७७।। ५६६. परमत्थगहियसारा बंधं मोक्खं च ते वियाणंता । नाऊण बंध-मोक्खं खवेति पोराणयं कम्मं ॥७८॥ ५६७. नाणेण होइ करणं, करणं * नाणेण फासिय होइ । दोण्हं पि समाओगे होइ विसोही चरित्तस्स ।।७९।। ५६८. नाणं पगासगं, सोहओ तवो, संजमो य गुत्तिकरो। तिण्हं पि समाओगे मोक्खो जिणसासणे भणिओ ॥८०॥ ५६९. किं एत्तो लट्ठवरं अच्छेरतरं च सुंदरतरं च ?। चंदमिव सव्वलोगा बहुस्सुयमुहं पलोएतिं ।।८१।। ५७०, चंदाओ नीइ जोण्हा बहुस्सुयमुहाओ नीइ जिणवयणं । जं सोऊण मणूसा तरंति संसारकंतारं ।।८२।। ५७१. सूइ जहा ससुत्ता न नस्सई कयवरम्मि पडिया पि । जीवो तहा ससुत्तो न नस्सइ गओ वि संसारे ।।८३।। ५७२. सूई जहा असुत्ता नासइ सुत्ते अदिस्समाणम्मि। जीवो तहा असुत्तो नासइ मिच्छत्तसंजुत्तो॥८४।। ५७३. परमत्थम्मि सुदिवे # अविणढेसु तव-संजमगुणेसु । लब्भइ गई विसिट्ठा सरीरसारे विणढे वि ॥८५।। ५७४. जह आगमेण वेज्जो जाणइ वाहिं चिगिच्छिउँ निउणो। तह आगमेण नाणी जाणइ सोहिं चरित्तस्स ॥८६॥ ५७५. जह आगमेण हीणो वेज्जो वाहिस्स न मुणइ तिगिच्छं। तह आगमपरिहीणो चरित्तसोहिं न याणाइ ।।८७।। ५७६. तम्हा तित्थयरपरूवियम्मि नाणम्मि अत्थजुत्तम्मि । उज्जओ कायव्वो नरेण मोक्खाभिकामेण ||८८|| ५७७. बारसविहम्मि वि तवे सब्भितर-बाहिरे जिणक्खाए। न वि अत्थि न वि य होही सज्झायसमं तवोकम्मं ।।८९|| ५७८. मेहा होज्जं न होज्ज व, जं मेहा उवसमेण कम्माणं । उज्जोओ कायव्वो नाणं अभिकंखमाणेणं ॥९०॥ ५७९. कम्ममसंखेजभवं खवेइ अणुसमयमेव आउत्तो । बहुभवसंचिययं पि हु सज्झाएणं खणे खवइ ।।११।। ५८०. सतिरिय-सुराऽसुर-नरो सकिन्नर-महोरगो म सगंधव्वो । सव्वो छउमत्थजणो पडिपुच्छइ केवलि लोए ।।९२॥५८१. एक्कम्मि वि जम्मि पए संवेगं वच्चए नरोऽभिक्खं । तं तस्स होइ नाणं जेण विरागत्तणमुवेइ ॥९३।। ५८२. एक्कम्मि वि जम्मि पए संवेगं वीयरागमग्गम्मि । वच्चइ नरो अभिक्खं तं मरणंते न मोत्तव्वं ||९४|| ५८३. एक्कम्मि वि जम्मि पए संवेगं कुणइ वीयरायमए। सो तेण मोहजालं खवेइ अज्झप्पजोगेणं ॥९५॥ ५८४. नहु मरणम्मि उवग्गे सक्का बारसविहो सुयक्खंधो। सव्वो अणुचिंतेउं धणियं पि समत्थचित्तेणं ॥९६|| ५८५. तम्हा एक्वं पिपयं चिंततो तम्मि देस-कालम्मि। आराहणोवउत्तो जिणेहिं आराहगो भणिओ॥९७।। ५८६. आराहणोवउत्तो सम्म काऊण सुविहिओ कालं । उक्कोसं तिण्णिभवे गंतूण, भेज्ज निव्वाणं ।।९८॥ ५८७. नाणस्स गुणविसेसा काइ मए वण्णिया समासेणं । दारं ५ । चरणस्स गुणविसेसा ओहियहियया निसामेह ॥९९|| [गा. १००-१६. चरणगुणे त्ति छठें दारं] ५८८. ते धन्ना जे धम्मं चरिउं जिणदेसियं पयत्तेणं । गिहपासबंधणाओ उम्मुक्का सव्वभावेणं ।।१००|| ५८१. भावेण अणन्नमणा जे जिणवयणं सया अणुचरंति । ते मरणम्मि उवग्गे न विसीयंती गुणसमिद्धा ॥१०१॥ ५९०. सीयंति ते मणूसा सामण्णं दुल्लहं पि लभ्रूणं। जेहडप्पा न निउत्तो दुक्खविमोक्खम्मि मग्गम्मि ॥१०२।। ५९१. दुक्खाण ते मणूसा पारं गच्छंति जे य दढधीया। भावेण अणन्नमणा पारत्तहियं गवेसेति ॥१०३|| ५९२. मग्गंती परमसुहं ते पुरिसा जे खवंति उज्जुत्ता। कोहं माणं मायं लोभं अरइं दुगुंछं च ॥१०४।। ५९३. लळूण वि माणुस्सं सुदुल्लहं जे पुणो विरोहेति । ते भिन्नपोयसंजत्तिगा व पच्छा दुही होति ॥१०५।। ५९४. लखूण वि सामण्णं पुरिसा जोगेहिं जे न हायति । ते लद्धोपोयसंजत्तिगा व पच्छा न सोयंति ॥१०६।। ५९५. न हु सुलहं माणुस्सं, लभ्रूण वि होइ दुल्लहा बोही । बोहीए वि य लंभे सामण्णं दुल्लहं होइ ॥१०७|| ५९६. सामण्णस्स वि लंभे नाणाभिगमो उ दुल्लहो हवइ । नाणम्मि वि आगमिए चरित्तसोही हवइ दुक्खं ॥१०८॥ ५९७. अत्थि पुण केइ पुरिसा सम्मत्तं नियमसो पसंसंति । केई चरित्तसोहिं नाणं च तहा पसंसंति ॥१०९|| ५९८. सम्मत्त-चरित्ताणं दोण्हं पि समागयाण संताणं । किं तत्थ गेण्हियव्वं पुरिसेणं बुद्धिमंतेणं ? ॥११०॥ ५९९. समत्तं अचरित्तस्स हवइ, जह कण्ह-सेणियाणं तु। जे पुण चरित्तमंता तेसिं नियमेण समत्तं ॥११॥६००. भट्टेण चरित्ताओ सुट्टयरं दंसणं गहेयव्वं । सिझंति चरणरहिया, दंसणरहिया न सिझंति ॥११२।। 3 ६०१. उक्कोसचरित्तो वि य पडेइ मिच्छत्तभावओ कोइ। किं पुण सम्मद्दिट्ठी सरागधम्मम्मि वटुंतो।।११३|| ६०२. अविरहिया जस्स मई पंचहिं समिईहिं तिहिं वि * गुत्तीहिं । न य कुणइ राग-दोसे तस्स चरित्तं हवइ सुद्धं ॥११४॥ ६०३. तम्हा तेसु पवत्तह कज्जेसु य उज्जमं पयत्तेणं । सम्मत्तम्मि चरित्ते नाणम्मि य मा पमाएह २ ॥११५|| ६०४. चरणस्स गुणविसेसा एएमए वणिया समासेणं । दारं ६ । मरणस्स गुरविसेसा अवहियहियया निसामेह ।।११६।। [गा. ११७-७३. मरणगुणे त्ति mov 5 55555555 श्री आगमगुणमजूषा-१३०५55555555 $$ $$$$$$$5ORK C虽明明明明明明明明明明明明纸明明明明明明明明明明明明明明明明明明明听听听听听听听听听听听听听80C GO乐乐听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听TC Page #33 -------------------------------------------------------------------------- ________________ PROO5555555555555554 (२४-३३) दस पइन्नयसुत्नेसु - ३ चंदावेज्झयं २ २ TOR C$$$$$乐乐乐明明明明明明 乐乐场乐乐明乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐听听听听听听听听听听55C सत्तमं दारं ] ६०५. जह व अनियमियतुरगे अयाणमाणो नरो समारूढो । इच्छेज्ज पराणीयं अइगंतुं जो अकयजोगो ॥११७।। ६०६. सो पुरिसो सो तुरगो पुविं अनियमियकरणजोएणं । दवण पराणीयं भज्जती दो वि संगामे॥११८॥६०७. एवमकारिजोगो पुरिसो मरणे उवट्ठिए संते। न भवइ परीसहसहो अंगेसुपरीसहनिवाए ॥११९|| ६०८. पुव्विं कारियजोगो समाहिकामो य मरणकालम्मि । भवइ य परीसहसहो विसयसुहनिवारिओ अप्पा ।। ६०९. पुव्विं कयपरिकम्मो पुरिसो मरणे उवट्ठिए संते। छिंदइ परीसहमिणं निच्छयपरसुप्पहारेणं ॥१२१|| ६१० बाहिति इंदियाई पुव्वमकारियपइन्नचारिस्स। अकयपरिकम्म जीवो मुज्झइ आराहणाकाले ॥१२२।। ६११. आगमसंजुत्तस्स वि इंदियरसलोलुयं पइट्ठस्स । जइ वि मरण समाही हवेज, न वि होज्न बहुयाणं ||१२३।। ६१२. असमत्तसुओ वि मुणी पुब्विं सुकयपरिकम्मपरिहत्थो। संजम-मरणपइन्नं सुहमव्वहिओ समाणेइ ।।१२४॥ ६१३. इंदियसुहसाउलओ घोरपरीसहपरव्वसविउत्तो। अकयपरिकम्म कीवो मुज्झइ आराहणाकाले ॥१२५|| ६१४. न चएइ किंचि काउं पुव्विं सुकयपरिकम्मबलियस्स । खोहं परीसहचमू धीबलविणिवारिया मरणे ।।१२६।। ६१५. पुव्विंकारियजोगो अणियाणो ईहिऊणमइकुसलो । सव्वत्थ अपडिबद्धो सकज्जजोगं समाणेइ ॥१२७। ६१६. उप्पीलिया सरासण गहियाउहचावनिच्छियमईओ। विधइ चंदगवेझं झायंतो अप्पणो सिक्खं ॥१२८।। ६१७. जइ वि करेइ पमायं थेवं पि य अन्नचित्तदोसेणं । तह वि य कयसंधाणो चंदगवेज्झं न विधेइ ।।१२९|| ६१८. तम्हा चंदगवेज्झस्स कारणा अप्पमाइणा निच्चं । अविरहियगुणो अप्पा कायव्वो मोक्खमग्गम्मि ॥१३०|| ६१९. सम्मत्तलद्धबुद्धिस्स चरिमसमयम्मि वट्टमाणस्स। आलोइय-निदिय-गरहियस्स मरणं हवइ सुद्धं ॥१३१।। ६२०. जे मे जाणंति जिणा अवराहे नाण-दसण-चरित्ते । ते सव्वे आलोए उवढिओ दस्सभावेणं ।।१३२।। ६२१. जो दोन्नि जीवसहिया संभइ संसारबंधणा पावा । रागं दोसं च तहा सो मरणे होइ कयजोगो ॥१३३।। ६२२. जो तिण्णि जीवसहिया दंडा मण-वयण9 कायगुत्तीओ । नाणंकुसेण गिण्हइ सो मरणे होइ कयजोगा ||१३४॥ ६२३. जो चत्तारि पसाए घोरे ससरीरसंभवे निच्वं । जिणगरहिए निरंभइ सो मरणे होइ करजोगो ॥१३५|| ६२४. जो पंच इंदियाइं सन्नाणी विसयसंपलित्ताइं । नाणंकुसेण गिण्हइ सो मरणे होइ कयजोगो ॥१३६।। ६२५. छज्जीवकायहियओ सत्तभयट्ठाणविरहिओ साहू। एगंतमद्दवमओ सो मरणे होइ कयजोगो॥१३७|| ६२६. जेण जिया अट्ठ मया गुत्तो चिय नवहिं बंभगुत्तीहिं। आउत्तो दसकज्जे सो मरणे होइ कयजोगो॥१३८।। ६२७. आसायणाविराहिओ आराहिंतो सुदुल्लहं मोक्खं । सुक्कज्झाणाभिमुहो सो मरणे होइ कयजोगो।।१३९।। ६२८. जो विसहइ बावीसं ॐ परीसहा, दुस्सहा उवस्सग्गा । सुन्ने व आउले वा सो मरणे होइ कयजोगा ॥१४०|| ६२९. धन्नाणं तु कसाया जगडिज्जंता वि परकसाएहिं । निच्छंति समुठेउं सुनिविट्ठो पंगुलो चेव ॥१४१॥ ६३०. सामण्णमणुचरंतस्स कसाया जस्स उक्कडा होति । मन्नामि उच्छुपुप्फं व निप्फलं तस्स सामण्णं ॥१४२।। ६३१. जं अज्जियं चरित्तं देसूणाए वि पुव्वकोडीए.। तं पि कसाइयमेत्तो नासेइ नरो मुहुत्तेण ॥१४३।। ६३२. जं अज्जियं च कम्मं अणंतकालं पमायदोसेणं । तं निहयराग-दोसो खवेइ पुव्वाण कोडीए॥१४४||६३३. जइ उवसंतकसाओ लहइ अणंतो पुणो वि पडिवायं । किह सक्का वीससिउं थोवे वि कसायसेसम्मि?||१४५॥ ६३४.खीणेसुजाण खेमं, जियं जिएसु, अभयं अभिहएसु। नढेसुयाविणटुं सोक्खंचजओकसायाणं॥१४६।। ६३५. धन्ना निच्चमरागा जिणवयणरया नियत्तियकसाया। निस्संगनिम्ममत्ता विहरंति जहिच्छिया साहू ॥१४७।। ६३६. धन्ना अविरहियगुणा विहरंती मोक्खमग्गमल्लीणा । इह य परत्थ य लोए जीविय-मरणे अपडिबद्धा ॥१४८॥ ६३७. मिच्छत्तं वमिऊणं सम्मत्तम्मि धणियं अहीगारो । कायन्वो बुद्धिमया मरणसमुग्घायकालम्मि ॥१४९।। ६३८. हंदि ! धणियं पि धीरा पच्छा मरणे उवट्ठिए संते। मरणसमुग्घाएणं अवसा निजंति मिच्छत्तं ॥१५०|| ६३९. तो पुव्वं तु मइमया आलोयण निंदणा गुरुसगासे । कायव्वा अणुपुव्विं पव्वज्जाईओ जं सरइ ॥१५॥ ६४०. ताहे जं देज्ज गुरु पायच्छित्तं जहारिहं जस्स । 'इच्छामि त्ति भाणिज्जा 'अहमवि नित्थारिओ तुब्भे' ॥१५२।। ६४१. परमत्थओ मुणीणं अवराहो नेव होइ कायव्वो । छलियस्स पमाएणं पच्छित्तमवस्स कायव्वं ॥१५३॥ ६४२. पच्छित्तेण विसोही पमायबहुलस्स होइ जीवस्स । तेण तयंकुसभूयं चरियव्वं चरणरक्खट्ठा OO听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听C xoro 5 55 श्री आगमगुणमजूषा - १३०६5555555555555555555555OOR Page #34 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२४-३३) दस पन्नयसुत्तेसु ३ चढावेज्झय, ४ गणिविज्जा ॥१५४॥ ६४३. न वि सुज्झति ससल्ला जह भणियं सव्वभावदंसीहिं । मरण-पुणब्भवरहिया आलोयण-निंदणा साहू ॥ १५५ ॥ ६४४. एवं ससल्लमरणं मरिऊण महब्भयम्मि संसारे । पुणरवि भमंति जीवा जम्मण-मरणाई बहुयाई ॥ १५६ ॥ ६४५. पंचसमिओ तिगुत्तो सुचिरं कालं मुणी विहरिऊणं । मरणे विराहयंतो धम्ममणाराहओ भणिओ ।।१५७ ॥ ६४६. बहुमोहो विहरित्ता पच्छिमकालम्मि संवुडो सो उ । आराहणोवउत्तो जिणेहिं आराहओ भणिओ || १५८ ।। ६४७. तो सव्वभावसुद्ध आराहणमइमुहो विसंभंतो। संथारं पडिवन्नो इमं च हियएण चिंतेज्जा ॥ १५९ ॥ ६४८. एगो मे सासओ अप्पा नाण-दंसणसंजुओ। सेसा मे बाहिरा भावा सव्वे संजोगलक्खणा ॥ १६० ।। ६४९. एक्को हं नत्थि मे कोई, नत्थि वा कस्सई अहं । न तं पेक्खामि जस्साहं, न तं पेक्खामि जो महं ॥ १६१ ।। ६५०. देवत्त आणुसत्तं तिरिक्खजोणिं तहेव नरयं च । पत्तो अनंतखुत्तो पुव्विं अन्नाणोसेणं ॥ १६२ ॥ ६५१. न य संतोसं पत्तो सएहिं कम्मेहिं दुक्खमूलेहिं । न य लद्धा परिसुद्धा बुद्धी सम्मत्तसंजुत्ता ।।१६३॥ ६५२. सुचिरं पि ते मणूसा भमंति संसारसायरे दुग्गे । जे हु करेति पमायं दुक्खविमोक्खम्मि धम्मम्मि || १६४|| ६५३. दुक्खाणा पारं गच्छति जे दढधिईया। पुव्वपुरिसाणुचिण्णं जिणवयणपहं न मुंचति ॥ १६५ || ६५४. मग्गंति परमसोक्खं ते पुरिसा जे खवंति उज्जुत्ता। कोहं माणं मायं लोभं तह राग-दोसं च || १६६ ।। ६५५. न वि माया, न वि य पिया, न बंधवा, न वि पियाई मित्ताई। पुरिसस्स मरणकाले न होति आलंबणं किंचि ॥ १६७॥ ६५६. न हिरण्ण-सुवणं वा दासी-सादं च जाण - जुग्गं च । पुरिसस्स मरणकाले न होति आलंबणं किंचि || १६८|| ६५७. आसबलं हत्थिबलं जोहबलं घणुबलं रहबलं च । पुरसस्स मरणकाले न होति आलंबणं किंचि || १६९ ।। ६५८. एवं आराहेंतो जिणोवइटुं समाहिमरणं तु । उद्धरियभावसल्लो सुज्जइ जीवो धुयकिलेसो || १७० || ६५९. जाणतेण वि जइणा वयाइयारस्स सोहणोवायं । परसक्खिया विसोही कायव्वा भावसलस्स ॥ १७१ ॥ ६६०. जह सुकुसलो वि वेज्जो अन्नस्स कहेइ अप्पणी वाहिं । सो से करइ तिगिच्छं साहू वि तहा गुरुसगासे ॥ १७२ ॥ ६६९. इत्थ समप्पइ इणमो पव्वज्जा मरणकालसमयम्मि। जो हु न मुज्झइ मरणे साहू आराहओ ओ || १७३ || दारं ७ ॥ [गा. १७४-७५. चंदावेज्झवपइन्नओवसंहारो ] ६६२. विणयं १ आयरियगुणे २ सीसगुणे ३ विणयनिग्गहगुणे ४ न्य । नाणगुणे ५ चरणगुणे ६ मरणगुण ७ विहिं च सोऊणं || १७४ || ६६३. तह घत्तह काउं जे जह मुच्चह गब्भवासवसहीणं । मरण- पुणब्भव- जम्मण-दोग्गइविणिवायगमणाणं || १७५|| 5 || इति चंदावेज्झयं पइण्णयं समत्तं ॥ ३॥ ४ गणिविज्जापइण्णयं 555 [गा. १. अभिधेयं] ६६४. वोच्छं बलाऽबलविहिं नवबलविहिमुत्तमं विउपसत्थं । जिणवयणभासियमिणं पवयणसत्थम्मि जह दिवं ॥ १॥ [ गा. २. नवदारनामाई ] ६६५ दिवस १ तिही २ नक्खत्ता ३ करणं ४ गहदिवसयं ५ मुहुत्तं च ६ । सउणबलं ७ लग्गबलं ८ निमित्तबल ९ मुत्तमं वा वि || २ || [ गा. ३. पढमं दिवसदारं] ६६६. ओया बलिया दिवसा, जुम्मा पुण दुब्बला उभयपक्खे । विवरीयं राईसु य बलाबलविहिं वियाणाहि ||३|| दारं १ | [गा. ४-१०. बीयं तिहिदारं] ६६७. पाडिवए पडिवत्ती नत्थि, विक्ती भांति बीयाए । तइयाए अत्थसिद्धी, विजयग्गा पंचमी भणिया ||४|| ६६८. जा एस सत्तमी सा उ बहुगुणा, इत्थ संसओ नत्थि । दसमीइ पत्थियाणं भवति निक्कंटया पंथा ॥५॥ ६६९. आरोग्गमविग्घं खेमियं च एक्कारसिं वियाणाहि । जे वि य हुंति अमित्ता ते तेरसिपट्टिओ जिणइ ||६|| ६७०. चाउद्दसि पन्नरसिं वज्जेज्जा अट्ठमि च नवमिं च । ' छट्ठि च चउत्थिं बारसिं च दोण्हं पि पक्खाणं ||७|| ६७१. पढमा पंचमि दसमी पन्नरसेक्कारसी वि य तहेव । एएसु य दिवसेसुं सेहनिप्फेडणं करे ॥ ८॥ ६७२. नंदा भद्दा विजया तुच्छा पुन्ना य पंचमी होइ । मासेण य छव्वारे एक्किक्काऽऽवत्तए नियए ॥ ९ ॥ ६७३. नंदे जए य पुन्ने सेहनिक्खमणं करे । नंदे भद्दे सुवद्वावे, पुन्ने अणसणं करे ।।१०।। दारं २ । [गा. ११-४१. तइयं नक्खत्तदारं ] ६७४ पुस्सऽस्सिणि मिगसिर रेवई य हत्थो तहेव चित्ता य । अणुराह जेट्ठ-मूला नव नक्खत्ता गणसिद्ध ॥११॥ ६७५. मिगसिर महा य मूलो य विसाहा तह य होइ अणुराहा। हत्थुत्तर रेवइ अस्सिणी य सवणे य नक्खत्ते ||१२|| ६७६. एएसु य अद्राणं पत्थाणं ठाणयं च कायव्वं । जइ य गहोऽत्थ न चिट्ठइ संजामुक्कं च जइ होइ ॥ १३ ॥ ६७७. उप्पन्न भत्तपाणे अद्धाणम्मि सया उ जो होइ। फल-पुप्फोवगुवेओ गओ वि खेमेण सो एइ ॐ श्री आगमगुणमंजूषा १३०७ [२३] Page #35 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Fox9555555555555555 ___ (२४-३३) दस पइन्नयसुत्तेसु.४ गणिविज्जा २४] b555%%%$$$$$$$$20 OSCF听听听听听听听听听乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐% FFFFF555555555F5FFFFFFFFFFFICE ॥१४॥ ६७८. संझागयं १ रविगयं २ विड्डेरं ३ सग्गहं ४ विलंबि ५ च । राहुयं ६ गहभिन्नं ७ च वज्जए सत्त नक्खत्ते ॥१५।। ६७९. अत्थमाणे संझागय १ रविगय जहियं ठिओ उ आइच्चो २। विड्डेरमवद्दारिय ३ सग्गह कूरग्गहठियं तु ४॥१६।। ६८०. आइच्चपिट्ठओ ऊ विलंबि ५ राहूहयं जहिं गहणं ६ । मज्झेण गहो जस्स उ गच्छइ त होइ गहभिन्नं ७॥१७।। ६८१. संझागयम्मि कलहो होइ १ विवाओ विलंबिनक्खत्ते २ । विड्डेरे परविजओ ३ आइच्चगए अनव्वाणी ४॥१८॥ ६८२. जं सग्गहम्मि कीरइ नक्खत्ते तत्थ विग्गहो होइ ५। राहुहयम्मि य मरणं ६ गहभिन्ने लोहिउग्गालो ७ ।।१९।। ६८३. संझागयं गहगयं आइच्चगयं च दुब्बलं रिक्खं। संझाऽऽइच्चविमुक्कं गहमुक्कं चेव बलियाई ।।२०।। ६८४. पुस्सो हत्थो अभीई य अस्सिणी भरणी तहा । एएसु य रिक्खेसु य पाओवगमणं करे ।।२१।। ६८५. सववणेण धणिट्ठाइ पुणवस्सू न वि करेज निक्खमणं । सयभिसय पूस बंभे विज्जारंभे पवत्तिज्जा ।।२२।। ६८६. मिगसिर अद्दा पुस्सो तिन्नि य पुव्वाइं मूलमस्सेसा । हत्थो चित्ता य तहा दस वुड्डिकराई नाणस्स ॥२३॥६८७. हत्थाइ पंच रिक्खा वत्थस्स पसत्थगा विनिद्दिठ्ठा । उत्तर तिन्नि धणिट्ठा पुणव्वसू रोहिणी पुस्सो॥२४॥६८८. पुणव्वसुणा पुस्सेणं सवणेण धणिट्ठया। एएहिं चउहिं रिक्खेहि लोयकम्माणि कारए॥२५|| ६८९. कित्तियाहिं विसाहाहिं मघाहिं भरणीहि य । एएहिं चउहिं रिक्खेहि लोयकम्माणि कारए ।।२६।। ६९०. तिहिं उत्तराहिं तह रोहिणीहिं कुज्जा उसेहनिक्खमणं । सेहोवट्ठाणं कुज्जा, अणुन्ना गणि-वायए॥२७॥ ६९१. गणसंगहणं कुज्जा, गणहरं चेव ठावए। उग्गहं वसहि ठाणं च थावराणि पवत्तए॥२८॥ ६९२. पुस्सो हत्थो अभिई य अस्सिणी य तहेव य । चत्तारि खिप्पकारीणि, कज्जारंभेसु सोहणा ।।२९।। ६९३. विज्जाणं धारणं कुज्जा, बंभजोगे य साहए। सज्झायं च अणुन्नं च उद्देसे य समुद्दिसे ॥३०।। ६९४. अणुराहा रेवई चेव चित्ता मिगसिरं तहा। मिऊणेयाणि चत्तारि, मिउकम्मं तेसु कारए॥३१।। ६९५. भिक्खाचरणमत्ताणं कुज्जा गहण धारणं । संगहोवग्गहं चेव बाल-वुड्डाण कारए॥३२॥ ६९६. अद्दा अस्सेस जेट्ठा य मूलो चेव चउत्थओ । गुरुणो कारए पडिमं, तवोकम्मं च कारए ॥३३॥ ६९७. दिव्व-माणुस-तेरिच्छे उवसग्गेऽहियासए । गुरुसु चरण-करणं उग्गहं पग्गहं करे||३४|| ६९८. महा भरणि पुव्वाणि तिन्नि उग्गा वियाहिया । एतेसु तवं कुज्जा सब्भितर-बाहिरं ॥३५॥ ६९९. तिन्नि सयाणि सट्ठाणि तवोकम्माणि आहिया । उग्गनक्खत्तजोएसुं तेसुमन्नतरे करे ॥३६।। ७००. कित्तिया य विसाहा य उम्हाणेयाणि दोन्नि उ। लिंपणं सीवणं कुज्जा संथारग्गहधारणं ॥३७॥ ७०१. उवकरण-भंडमाईणं विवायं चीवराण य । उवगरणं विभागं च आयरियाण कारए ॥३८|| ७०२. धणिट्ठा सयभिसा साई सवणो य पुणव्वसू । एएसुई गुरुसुस्सूसं चेइयाणं च पूयणं ॥३९|| ७०३. सज्झायकरणं कुज्जा, विज्जारंभे य कारए। वओअट्ठावणं कुज्जा, अणुन्नं गणि-वायए॥४०॥ ७०४. गणसंगहणं कुज्जा सेहनिक्खमणं तहा। संगहोवग्गहं कुज्जा, गणावच्छेइयं तहा।।४१|| दारं ३॥ [गा. ४२-४६. चउत्थं करणदारं] ७०५. बव बालवं च तह कोलवं च थीलोयणं गराई च । वणियं विट्ठी य तहा सुद्धपडिवए निसाईया ||४२।। ७०६. सउणि चउप्पय नागं किंथुग्धं च करणा धुवा होति । किण्हचउद्दसिरत्तिं सउणी पडिवज्जए करणं ॥४३॥ ७०७. काऊण तिहिं बिऊणं, जोण्हेगो सोहए, न पुण काले । सत्तहिं हरेज भागं जं सेसं तं भवे करणं ।।४४|| ७०८. बवे य बालवे चेव कोलवे वणिए तहा । नागे चउप्पए यावि सेहनिक्खमणं करे ॥४५|| ७०९. बवे उवट्ठावणं कुज्जा, अणुन्नं गणि-वायए। सउणिम्मि य विट्ठीए अणसणं तत्थ कारए॥४६॥ दारं ४॥ [गा. ४७-४८. पंचमं गहदिवसयदारं ] ७१०. गुरु-सुक्क-सोमदिवसे सेहनिक्खमणं करे । वओवठ्ठावणं कुज्जा, अणुन्नं गणि-वायए ।।४७|| ७११. रवि-भोमकोडदिवसे चरण-करणाणि कारए। तवोकम्माणि कारेज्जा, पाओवगमणाणि य ।।४८|| दारं ५॥ [गा. ४९.-५८. छ8 मुहुत्तदारं ] ७१२. रुद्दो उ मुहुत्ताणं आई है छन्नवत्तअंगुलच्छाओ १ । सेओ उ हवइ सट्ठी २ बारस मित्तो हवइ जुत्तो ३ ॥४९|| ७१३. छ च्चेव य आरभडो ४ सोमित्तो पंचअंगुलो होइ ५। चत्तारि य वइरज्जो ६ दो च्चेव य सावसू होइ७॥५०॥ ७१४. परिमंडलो मुहुत्तो असीवि मज्झंतिते ठिए होइ ८ । दो होइरोहणो पुण ९ बलो य चउरंगुलो होइ १०॥५१॥ ७१५. विजओ म पंचगुलिओ ११ छ च्चेव य नेरिओ हवइ जुत्तो १२ । वरुणो य हवइ बारस १३ अज्जमदीवो हवइ सट्ठी १४॥५३॥ ७१६. छन्नउइअंगुलो पुण होइ भगो सूरअत्थमणवेले NO乐听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听FFFIC 3 555555555 श्री आगमगुणमजूषा-१३०८॥5555555555555555555555555$OTOR Page #36 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२४-३३) दस पन्नयसुत्तेसु ४ गणिविज्जा, ५ मरणसमाहि [२५] १५ । एए दिवसमुहुत्ता, रत्तिमुहुत्ते अओ वुच्छं ।। ५३ । ७१७. हयई विवरीय धणो पमोयणो अज्जमा तहा सीणो । रक्खस पायावच्चा सामा बंभा बहस्सई या ॥५४॥ ७१८. विण्हु तहा पुण रित्तो रत्तिमुहुत्ता वियाहिया । दिवसमुहुत्तगईए छायामाणं मुणेयव्वं ||५५ || ७१९. मित्ते नंदे तह सुट्ठिए य अभिई चंदे तहेव य । वरुणऽग्निवेस साणे आणंदे विजइ ॥ ५६ ॥ ७२०. एतेसु मुहुत्तजोएस सेहनिक्खमणं करे। वओवट्टावणाई च अणुन्ना गणि वायए ।। ५७ ।। ७२१. बंभे वलए वाउम्मि उसभे वरुणे तहा । अणसण पाउवगमणं उत्तिमहं च कारए ||१८|| दारं ६ | [गा. ५९-६४. सत्तमं सउणबलदारं ] ७२२. पुन्नामधेज्जसउणेसुं सेहनिक्खमणं करे । थनामधेज्जसउणेसु समाहिं कारए विऊ ||५९|| ७२३. नपुंसएस सउणेसु सव्वकम्माणि वज्जए । वामिस्सेसु निमित्तेसु सव्वारंभाणि वज्जए ॥ ६० ॥ ७२४. तिरियं वाहरंतेसु अद्धाणागमणं करे। पुप्फिय-फलिए वच्छे सज्झायकरणं करे || ६१|| ७२५. दुमखंधे वाहरंतेसु वओवट्टावणं करे। गयणे वाहरंतेसु उत्तिमद्वं तु कारए ॥६२॥ ७२६. बिलमूले वाहरंतेसु ठाणं तु करिगिण्हए। उप्पायम्मि वयंतेसु सउणेसु मरणं भवे ।। ६३ ।। ७२७. पक्कमंतेसु सउणेसु हरिसं तुट्ठि च वागरे । दारं ७ । [गा. ६४-७२. अट्ठमं लग्गबलदारं] चलरासिविलग्गेसुं सेहनिक्खमणं करे ॥ ६४॥ ७२८. थिररासिविलग्गेसुं वओवट्ठावणं करे। सुयक्खंधाणुन्नाओ उद्दिसे य समुद्दि ||६५|| ७२९. बिसरीरविलग्गेसुं सज्झायकरणं करे। रविहोराविलग्गेसु सेहनिक्खमणं करे ॥६६॥ ७३०. चंदहोराविलग्गेसु सेहीणं संगह करे । सोम्मदिक्कोणलग्गेसु चरण करणं तु कार ॥६७॥ ७३१. कूरदिक्कोणलग्गेसु उत्तमद्वं तु कारए। एवं लग्गाणि जाणिज्जा दिक्कोणेसु ण संसओ ॥ ६८ ।। ७३२. सोमग्गहविलग्गेसु सेहनिक्खमणं करे। कूरग्गहविलग्गेसु उत्तमठ्ठे तु कारए ||६९ || ७३३. । राहु-केउविलग्गेसु सव्वकम्माणि वज्जए ॥ ७० ॥ ७३४. विलग्गेसु पसत्थेसु पसत्थाणि उ आरभे । अप्पसत्थेसु लग्गेसु सव्वकम्माणि वज्जए ।। ७१ ।। ७३५. एवं लग्गाणि जाणिज्जा गहाण जिणभासिए । दारं ८ । [गा. ७२-८५. नवमं निमित्तबलदारं न निमित्ता विवज्जंति, न मिच्छा रिसिभासियं ] || ७२ । ७३६. दुद्दिद्वेणं निमित्तेणं आदेसो वि विणस्सइ । सुदिट्ठेण निमित्तेणं आदेसो न विणस्स ||७३|| ७३७. जा य उप्पाइया भासा, जं च जंपंति बालया । जं चित्थीओ पभासंति, नत्थि तस्स वइकम्मो ॥ ७४ ॥ ७३८. तज्जाएण य तज्जायं, तन्निभेण य तन्निभं । तारूवेण य तारूवं, सरीसं सरिसेण निद्दिसे || ७५ || ७३९. पुंनामेसु निमित्तेसु सेहनिक्खमणं करे ।। ७६ ।। ७४०. नपुंसकनिमित्तेसु सव्वकज्जाणि वज्जए । वामिस्सेसु निमित्तेसु सव्वारंभे विवज्जए || ७७ || ७४१. निमित्ते कित्तिमे नत्थि निमित्ते भावसुज्झए । जेण सिद्धा वियाणंति निमित्तप्पायलक्खणं ॥ ७८ ॥ ७४२. निमित्तेसु पसत्थेसु दढेसु बलिएसु य । सेहनिक्खमणं कुज्जा वओवट्ठावणाणि य ।। ७९ ।। ७४३. गणसंगहणं कुज्जा, गणहरे इत्थ थावए । सुयक्खंधाऽणुन्ना उ, अणुन्ना गणि ||८०|| ७४४. निमित्तेसु [अ] पसत्थेसु सिढिलेसु अबलेसु य । सव्वकज्जाणि वज्जेज्जा अप्पसाहारणं करे || ८१|| ७४५. पसत्थेसु निमित्तेसु पसत्याणि सया(?मा)रभे। अप्पसत्थनिमित्तेसु सव्वकज्जाणि वज्जए ॥ ८२ ॥ ७४६. दिवसाओ तिही बलिया, तिहीओ बलियं तु सुव्वेई रिक्खं । नक्खत्ता करणमाहंसु, करणा गहदिणो बलि(?ली) ||८३|| ७४७. गहदिणाउ मुहुत्तो, मुहुत्ता सउणो बली । सउणा विलग्गमाहंसु, तओ निमित्तं पहाणं तु ॥८४॥ ७४८. विलग्गाओ निमित्ताओ निमित्तबलमुत्तमं । न तं संविज्जए लोए निमित्ता जं बलं भवे ॥ ८५ ॥ [गा. ८६. गणिविआपइन्नओवसंहारो ] ७४९. एसो बलाबलविही समासओ कित्तिओ सुविहिएहिं । अणुओगनाणगज्झो नायव्वो अप्पमत्तेहिं ॥ ८६॥|| 5 || गणिविज्जापइण्णं सम्मत्तं || ४ || ५ मरणसमाहिपइण्णय' अवरनामं 555 मरणविभत्तिपइण्णयं 555 [गा. १. मंगलमभिधेयं च] ७५०. तिहुयणसरारविंदं सप्पवयणरयणसागरं नमिउं । समणस्स उत्तिमट्टे मरणविहीसंगहं वोच्छं ||१|| [गा. २ ९. मरणविहिविसए सीसस्स पुच्छा ] ७५१. सुणह, सुयसारनिहसं ससमय-परसमयवायनिम्मायं । सीसो समणगुणङ्कं परिपुच्छइ वायगं कंचि ॥२॥ ७५२. अभिजाइ - सत्त - विक्कम- सुय- सील- विमुत्ति खंतिगुणकलियं । आयारविणय-मद्दव - विज्ना चरणागरमुदारं ||३|| ७५३. कित्तीकुणगब्भहरं जसखाणि तवनिहिं सुयसमिद्धं । सीलगुण-नाण- दंसण- चरित्तरयणागरं धीरं ॥४॥ ७५४. ero For Private & Personal Lise Only | Education International 2010_03 MO 45 45 श्री आगमराणसंजा 2300 Y Page #37 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२४-३३) दस पइन्नयसुत्तेसु ५ मरणसमाहि [२६] तिविहं तिकरणसुद्धं मयरहियं दुविहठाणपुणरुत्तं । विणएण कमविसुद्धं चउस्सिरं बारसावत्तं ||५|| ७५५. दुओणयं अहाजायं एवं काऊण तस्स किइकम्मं । भत्तीइ भरियहियओ हरिसवसुभिन्नरोमंचो ||६|| ७५६. उवएस हेउकुसलं तं पवयणरयणसिरिघरं भणइ । इच्छामि जाणिउं जे मरणसमाहिं समासेणं ||७|| ७५७. अब्भुज्जयं विहारं इच्छं जिणदेसियं विउपसत्थं । नाउं महापुरिसदेसियं तु अब्भुज्जयं मरणं ॥ ८ ॥ ७५८. तुब्भित्थ सामि ! सुयजलहिपारगा समणसंघनिज्जवया । तुज्झं खु पायमूले सामन्नं उज्जमिस्सामि ||९|| [गा. १०-६६१. वायगपरुविया मरणविही ] ७५९. सो भरियमहुरजलहरगंभीरसरो निसन्नओ भइ । सुण दाि धम्मवच्छल ! मरणसमाहिं समासेणं ॥ १० ॥ ७६०. सुण जह पच्छिमकाले पच्छिमतित्थयरदेसियमुयारं । पच्छा निच्छियपत्थं उवेति अब्भुज्जयं मरणं ॥११॥ ७६१. पव्वज्जाई सव्वं काऊणाऽऽलोयणं च सुविसुद्धं । दंसण-नाण- चरित्ते निस्सल्लो विहर चिरकालं ॥ १२ ॥ ७६२. आउव्वेयसमत्ती तिमिच्छए जह विसारओ विज्जो । रोगाऽऽयंका गहिउं सो निरुयं आउरं कुणइ ||१३|| [गा. १४-१५. आराहणाए भेयतिगं ] ७६३. एवं पवयण- सुयसारपारगो सो चरित्तसुद्धीए । पायच्छित्तविहिन्नू तं अणगारं विसोहेउ || १४ || ७६४. भणइ य-तिविहा भणिया सुविहिया ! आराहणा जिर्णेदेहिं । समत्तम्मि य पढमा-नाणचरित्तेहिं २-३ दो अणे ॥१५॥ [गा. १६-२०. समत्ताराहणानिरूवणं ] ७६५. सद्दहगा पत्तियगा य रोयगा जे य वीरवयणस्स । सम्मत्तमणुसरंता दंसणआराहगा होति ||१६|| ७६६. संसारसमावण्णे य छव्विहे मोक्खमस्सिए चेव । एए दुविहे जीवे आणाए सद्दहे निच्छं ||१७|| ७६७. धम्माऽधम्माऽऽगासं च पोग्गले जीवमत्थिकायं च । आणाए सद्दहंता सम्मत्ताराहगा भणिया ।। १८ । ७६८. अरहंत - सिद्ध-चेइय-गुरूसु सुय- धम्म- साहुवग्गे य । आयरिय उवज्झाए य पवयणे सव्वसंघे य ॥ १९ ॥ ७६९. एएसु भत्तित्ता पूयंता अहरुहं अणण्णमणा । सम्मत्तमणुसरंता परित्तसंसारिया होति ॥ २०॥ [गा. २१. असद्दहंतस्स बालमरणनिरूवणं ] ७७० सुविहिय ! इमं प असद्दहंतेहिं णेगजीवेहिं । बालमरणाणि तीए मयाइं काले अणंताई ॥२१॥ [ गा. २२-४४. समासओ पंडियमरणनिरूवणं ] ७७१. एगं पंडियमरणं मरिऊण पुणो बहूण मरणाणि । नमरंति अप्पमत्ता, चरित्तमाराहियं जेहिं ॥ २२॥ ७७२. दुविहम्मि अहक्खाए सुसंबुडा पुव्वसंगओमुक्का । जे उ चयंति सरीरं पंडियमरणं मयं तेहिं ।।२३।। ७७३. एयं पंडियमरणं जे धीरा उवगया उवाएणं । तस्स उवाए उ इमा परिकम्मविही उ जुंजीया ॥ २४ ॥ ७७४. जे कंस संख-ताडण - मारुय-जिय-गगणपंकय-तरुणं । सरिकप्पा, सुयकप्पियआहार-विहार- चिट्ठागा ॥२५॥ ७७५. निच्चं तिदंडविरया निगुत्तिगुत्ता तिसल्लनिसल्ला। तिविहेण अप्पमत्ता जगजीवदयावरा समणा ||२६|| ७७६. पंचमहव्वयसुत्थियसंपुण्णचरित सीलसंजुत्ता । जह, तह, मया महेसी हवंति आराहमा समणा ||२७|| इक्कं अप्पणं जाणिऊण काऊण अत्तहिययं च । तो पवरनाण- दंसण-चरित- तवसुद्विया होति ॥ २८ ॥ ७७८. परिणाम - जोगसुद्धा दोसु य दो दो निरासयं पत्ता । इहलोए परलोए जीविय - मरणासए चेव ॥२९॥ ७७९. संसारबंधणाणि य राग-दोसनियलाणि छित्तूण । सम्मदंसणसुनिसियसुतिक्खधिइमंडलग्गेणं ॥ ३० ॥ ७८०. दुप्पणिहिए य पिहिऊण तिन्नि तिहिं चेव गारवविमुक्का । कायं मणं च वायं मण वयसा कायसा चैव ॥३१॥ ७८१. तवपरसुणा य छेत्तूण तिण्णि उजुखंतिविहियनिसिएणं । दोग्गइमग्गा तरिएण मण-वयसा-कायए दंडे ||३२|| ७८२. तं नाऊण कसाए चउरो पंचहिं य पंच हंतूणं । पंचाऽऽसवे उदिण्णे पंचहि य महव्वयगुणेहिं ॥ ३३ ॥ ७८३. छज्जवनिकाए रक्खिऊण छलदोसवज्जिया जइणो । तिगलेसापरिहीणा पच्छिमलेसातिगजुया य ॥१३४॥ ७८४. इग- दुग-तिग-चउ-पण- छग-सत्त-ऽट्ठग-नवग- दसग़ठाणेसुं । असुहेसु विप्पहीणा, सुभेसु सय संठिया जे उ ॥ ३५ ॥ ७८५. वेयण१ क्याबच्चे २ इरियट्ठाए ३ य संजमट्ठाए४ । तह पाणवत्तियाए५ छट्टं पुण धम्मचिंताए६ || ३६ || ७८६. छसु ठाणेसु इमेसु उ अण्णतरे कारणे समुप्पण्णे । कडजोगी आहारं करेति जयणानिमित्तं तु ॥ ३७॥ ७८७. जोएस किलायंता सरीरसंकप्प वोढुमचयंता । अविकंथऽवज्जभीरू उवेति अब्भुज्जयं मरणं ॥ ३८ ॥ ७८८. आयंके उवसग्गे तितिक्खया बंभचेर-गुत्तीसु। पाणिदया-तवहेउं सरीरपरिहारवोच्छेओ ॥ ३९ ॥ ७८९. पडिमासु सीहनिक्कीलियासु घोरेसऽभिग्गहाईसु । छव्विह अब्भिंतरए बज्झे य तवे समणुरत्ता ॥४०॥ ७९०. अविकलसीलाऽऽयारा पडिवन्ना जे उ उत्तमं अहं । पुव्विल्लाण इमाण य भणिया आराहणा चेव ॥४१॥ ७९१. जह पुव्वद्ध्यगमणो करणविहीणो वि सागरे पोओ। तीरासन्नं पावइ रहिओ वि अवल्लागाईहिं ॥ ४२ ॥ श्री आगमणमंजूषा १३१० ॐ ॐ ॐ 1 NORO Zoo 原666666666 Page #38 -------------------------------------------------------------------------- ________________ TRO A A A A A A 555555. (२४-३३) दस पनयसुतेसु ५ मरणसमाहि [२७] T ********Y ७९२. तह सुकरणो महेसी तिकरणआराहओ धुवं होइ । अह लहइ उत्तमद्वं तं अइलाभत्तणं जाण ॥ ४३ ॥ ७९३. एस समासो भणिओ परिणामवसेण सुविहियजणस्स । इत्तो जह करणिज्जं पंडियमरणं तहा सुणह ॥ ४४ ॥ [गा. ४५-५०. पंडियमरणकरणिज्जनिरूवणं सल्लुद्धरणं च] ७९४. फासेहिं तं चरितं सव्वं सुहसीलयं पयहिऊणं । घोरं परीसहचमुं अहियासितो धिइबलेणं ॥ ४५ ॥ ७९५. सद्दे रूवे गंधे रसे य फासे य निज्जिण धिईए। सव्वेसु कसाएसु य निहंतु परमो सया होहि ||४६|| ७९६. चइऊण कसाए इंदिए य सव्वे य गारवे हंतुं । तो मलियराग-दोसो करेह आराहणासुद्धिं ॥ ४७॥ ७९७. दंसण-नाण- चरित्ते पव्वज्जाईसु जो अईयारो । तं सव्वं आलोएहि निरवसेसं पणिहियप्पा ॥ ४८ ॥ ७९८. जह कंटएण विद्धो सव्वंगे वेयणद्दिओ होइ । तह चेव उद्धियम्मि उ नीसल्लो निव्वुओ होइ ||४९|| ७९९. एवमणुद्धियदोसो माइल्लो तेण दुक्खिओ होइ । सो चेव चत्तदोसो सुविसुद्दो निव्वुओ होई ॥५०॥ [गा. ५१-५२. ससल्लनिस्सल्लमरणाणं दोस - गुणा] ८००. राग-द्दोसाभिहया ससल्लमरणं मरंति जे मूढा । ते दुक्खसल्लबहुला भमंति सासारकंतारे || ५१ ।। ८०१. जे पुण तिगारवजढा निसल्ला दंसणे चरित्ते य। विहरंति मुक्कसंगा खवेति ते सव्वदुक्खाई ॥ ५२॥ [ गा. ५३-५८. नाण- चरित्त - दंसणमाहप्पं] ८०२. सुचिरमवि संकिलिट्टं विहरंति झाण- संवरविहीणं । नाणी संवरजुत्तो जिणइ अहोरत्तमित्तेणं ॥ ५३॥ ८०३. जं निज्जरेइ कम्मं असंवुडो सुबहुणो वि कालेणं । तं संवुडो तिगुत्तो खवेइ ऊसासमित्तेणं ||५४|| ८०४. सुबहुस्सुया वि संता जे मूढा सील-संजमगुणेहिं । न करेति भावसुद्धि ते दुक्खनिभेलणा होति ॥५५॥। ८०५. जे पुण सुयसंपन्ना चरित्तदोसेहिं नोवलिप्पति । ते सुविसुद्धचरित्ता करंति दुक्खक्खयं साहू ॥५६॥ ८०६. पुव्वमकारियजोगो समाहिकामो वि मरणकालम्मि। न भवइ परीसहसहो विसयसुहपराइओ जीवो ॥५७॥। ८०७. तं एवं जाणंतो महंतरं लाहगं सुविहिएसुं । दंसण चरित्तसुद्धीइ निम्मलो विहर तं धीर ! ॥५८॥ [ गा. ५९-६५. संकिलिट्टभावणाए निसेहो पंचभेयनिरूवणं च ] ८०८. एत्थ पुण भावणाओ पंच इमा होति संकिलिट्ठाओ । आराहएण सुविहिय ! जा निच्चं वज्जणिज्जाओ || ५९ ।। ८०९. कंदप्प १ देवकिब्बिस २ अभिओगा ३ आसुरी ४ य सम्मोहा ५ । एयाओ संकिलिट्ठा, असंकिलिट्ठा हवइ छट्टा ६ || ६० ।। ८१०. कंदप्प कुक्कुयाइय दवसीलो निच्चहासणकहो उ । विम्हाविंतो य परं कंदप्पं भावणं कुणइ || ६१ ॥। ८११. नाणस्स केवलीणं धम्मायरियस्स संघ- साहूणं । माई अवण्णवाई किब्बिसियं भावणं कुणइ ||६२|| ८१२. मंताभिओग कोउग भूईकम्मं च जो जणो कुणइ । साय-रस- इड्डिहेउं अभिओगं भावणं कुणइ ||६३|| ८१३. अणुबद्धरोस - वुग्गह संसत्त तहा निमित्त डिसेवी । एएहिं कारणेहिं आसुरियं भावणं कुणइ ||६४ || ८१४. उम्मग्गदेसणा नाणदूसणा मग्गविप्पणासो य। मोहेण मोहयंतंसि भावणं जाण सम्मोह ॥६५॥ [गा. ६६-६७. असंकिलिट्टभावणासेवणानिद्देसो ] ८१५. एयाउ पंच वज्जिय इणमो छट्ठीइ विहर तं धीर ! | पंचसमिओ तिगुत्तो निस्संगो सव्वसंगे हिं ॥६६॥ ८१६. एयाए भावणाए विहर विसुद्ध दीहकालम्मि । काऊण अत्तसुद्धिं दंसण-नाणे चरित्ते य ॥६७॥ [गा. ६८-६९. पंचविहसुद्धि-विविगे पडुच्च समाहिनिरूवणं)] ८१७. पंचविहं जे सुद्धिं पंचविहविवेगसंजुयमकाउं । इह उवणमंति मरणं ते उ समाहिं न पावेति ॥ ६८ ।। ८१८. पंचविहं जे सुद्धिं पत्ता निखिलेण निच्छियमईया | पंचविहं जे सुद्धिं पत्ता निखिलेण निच्छियमईया । पंचविहं च विवेगं ते हु समाहिं परं पत्ता || ६९ || [गा. ७० ७७. बालमरणसरूवनिरूवणं] ८१९. लहिऊण वि संसारे सुदुल्लहं कह वि माणुस जम्मं । न लहंति मरणदुहलं जीवा धम्मं जिणक्खायं ॥७०॥ ८२०. किच्छा हि पावियम्मि विस कम्मसत्तिओसन्ना । सीयंति सायदुलहा पंकोसन्नो जहा नागो ॥ ७१ ॥ ८२१. जह कागणीइ हेउं मणि-रयाणाणं तु हारए कोडिं । तह सिद्धसुहपरोक्खा सज्जंति कामेसुं ।।७२।। ८२२. चोरो रक्खसपहओ अत्थत्थी हणइ पंथियं मूढो । इय लिंगी सुहरक्खसपहओ विसयाउरो धम्मं ॥ ७३॥ ८२३. तेसु वि अलपसरा अवियण्हा दुक्खिया गयमईया । समुवेति मरणकाले पगामभय-भैरवं नरयं ॥७४॥ ८२४. धम्मो न कओ साहू, न जेमिओ, न य नियंसियं सण्हं । इण्हिं परं परारु त्ति नेव पत्ताई सुक्खाई ॥ ७५॥। ८२५. साहूणं नोवकयं, परलोयत्थे य संजमो न कओ । दुहओ वि तओ विहलो अह जम्मो धम्मरुक्खाणं ॥ ७६॥ ८२६. दिक्खं मइलेमाणा मोहमहावत्तसागराभिहया । तस्स अपडिक्कमंता मरंति ते बालमरणाई ।। ७७ ।। [गा. ७८-१२४. अब्भुज्जयमरण आलोयणा-सल्लुद्धरणाइणं निरुवणं] T श्री आगमगुणमंजूषा - १३११ फफफफफफफफफफ Page #39 -------------------------------------------------------------------------- ________________ KGRO (२४-३३) दस पइन्नयसत्तेस ५ मरणसमाहि [२८] ८२७. इय अवि मोहपउत्ता मोहं मोत्तूण गुरुसगासम्मि। आलोइय निस्साल्ला मरिउं आराहगा ते वि ॥ ७८॥ ८२८. एत्थ विसेसो भण्णइ, छलणा अवि नाम होज्ज जिणकप्पे । किं पुण इयरमुणीणं ? तेण विही देसिओ इणमो ॥७९॥। ८२९. अप्पहीणा जाहे धीरा सुयसारझरियपरमत्था । तो आयरियविदिन्नं उवेति अब्भुज्जयं मरणं ।।८०।। [गा. ८१-८३. मरणविहीए चउदसठाणाई छट्टाणाई च] ८३०. आलोयणाइ १ संलेहणाइ २ खमणाइ ३ काल ४ उस्सग्गे ५ । ओगासे ६ संधारे ७ निसग्ग ८ वेरग्ग ९ मोक्खाए १० ॥८१॥ ८३१. झाणविसेसो ११ लेसा १२ सम्मत्तं १३ पायगमणयं १४ चेव । चउदसओ एस विही पढमो मरण्णम्मि नायव्वो ॥८२॥ ८३२. विणओवयार १ माणस्स भंजणा २ पूयणा गुरुजणस्स ३ । तित्थयराण य आणा ४ सुयधम्माऽऽराहणाऽकिरिया ५-६ ॥ ८३ ॥ [ गा. ८४ ९२. आयरियाणं छत्तीसगुणा ] ८३३. छत्तीसाठाणेसु य जे पवयणसारझरियपरमत्था । तेसिं पासे सोही पन्नत्ता धीरपुरिसेहिं ॥ ८४॥ ८३४. वयछक्क ६ कायछक्कं १२ बारसगं तह अप्प १३ गिहिभाणं १४ । पलियंक १५ गिहिनिसेज्जा १६ ससोभ १७ पलिमज्जणसिणाणं १८ ।। ८५ ।। ८३५. आयारखं १ च उवधार(?ण) वं २ च ववहारविहिविहन्नू ३ य | ओवीलगा य धीरा परूवणाए विहण्णू ४ य ॥ ८६ ॥ ८३६. तह य अवायविहन्नू ५ निज्जवगा ६ जिणमयम्मि गहियत्था ७ । अपरिस्साइ य तहा विस्सासरहस्सनिच्छिड्डा ८ ||८७|| ८३७. पढमं अट्ठारसगं अट्ठ य ठाणाणि एव भणियाणि । इत्तो दस ठाणाणि य जेसु उवट्टावणा भणिया ॥८८॥। ८३८. अणवट्ठतिगं पारंचिगं च तिगमेय छहि गिहीभूया ६ । जाणंति जे उ एए सुयरयणकरंडगा सूरी ॥८९॥। ८३९. सम्मद्दंसणचत्तं जे य वियाणंति आगमविहन्नू ७ । जाणंति चरित्ताओ य निग्गयं अपरिसेसाओ ८ ||१०|| ८४०. जो आरंभे वट्टइ चियत्तकिच्चो य अणणुतावी य ९ । सागो य भवे दसमो १० जेसु उवट्ठावणा भणिया ॥ ९१ ॥ ८४१. एएस विहिविहण्णू छत्तीसाठाणएस जे सूरी। ते पवयण-सुयकेऊ छत्तीसगुण त्ति नायव्वा ॥९२॥ [ गा. ९३-१२४. आयरियपामूले आलोयणाविहाणनिरूवणं] ८४२. तेसिं मेरु-महोयहि-मेयणि-ससि सूरसरिसकप्पाणं। पामूले य विसोही करणिज्जा सुविहियजणेणं ।। ९३ ।। ८४३. काइय-वाइय- माणसियसेवणं दुप्पओगसंभूयं । जो अइयारो कोई तं आलोए अगूहिंतो ।।९४।। ८४४. अमुगम्मि इओ काले अमुगत्थऽमुगेण नाम-भावेणं । जं जह निसेवियं खलु जेण य सव्वं तहाऽऽलो ॥ ९५ ॥ [गा. ९६-९९. तिविह-दुविहसल्लभेयाइनिरुवणं] ८४५. मिच्छादंसणसल्लं मायासल्लं नियाणसल्लं च । तं संखेवा दुविहं, दव्वे भावे य बोधव्वं ॥९६|| ८४६. तिविहं तु भावसल्लं दंसण-नाणे चरित्तजोगे य । सच्चित्ताऽचित्ते वि य विभीसए यावि दव्वम्मि ||१७|| ८४७. सुहुमं पि भावसल्लं अणुद्धरित्ता उ जो कुणइ कालं । लज्जाए गारवेण य न हु सो आराहओ मरणे ॥९८॥ ८४८. तिविहं पि भावसल्लं समुद्धरित्ता उ जो कुणइ कालं । पवज्जाई सम्मं, स होइ आराहओ मरणे ॥९९॥ [ गा. १००-२४. आलोयणाए वित्थरओ परूवणं] ८४९. तम्हा सुत्तर - मूलं अविकलमविविच्चुयं अणुव्विग्गो । निम्मोहियमणिगूढं सम्मं आलोयए सव्वं ॥ १०० ।। ८५०. जह बालो जंपतो कज्जमकज्जं च उज्जुयं भणइ । तं तह आलोएज्जा माया-मयविप्पमुक्को य ॥ १०१ ॥ ८५१. कयपावो वि मणूसो आलोइय निदिउं गुरुसगासे । होइ अइरेगलहुओ ओहरियभरो व्व भारवहो । १०२ ।। ८५२. लज्जाए गारवेण य जे नाऽऽलोयंति गुरुसगासम्मि । घंतं पि सुयसमिद्धा न हु ते आराहगा होति ॥१०३॥ ८५३. जह सुकुसलो वि विजो अन्नस्स कहेइ अत्तणो वाहिं । तं तह आलोयव्वं सुठु वि ववहारकुसलेणं ॥ १०४ ॥ ८५४. जं पुव्वं तं पुव्वं, जहाणुपुव्विं जहक्कमं सव्वं । आलोइज्ज सुविहिओ कम-कालविहिं अभिदंतो ॥१०५॥। ८५५. अत्तं-परजोगेहि य एवं समुवट्ठिए पओगेहिं । अमुगेहि य अमुगेहि य अमुयगसंठाण - करणेहिं ॥ १०६ ॥ ८५६. वण्णेहि य चिंधेहि य सद्दप्फरिस-रस-रूव-गंधेहिं । पडिसेवणा कया पज्जवेहिं कज्जेहिं जेहिं च ॥१०७॥। ८५७. जो जोगओ य परिणामओ य दंसण-चरित्तअइयारो । छट्टाणबाहिरो वा छट्ठाणब्भंतरो वा वि ।। १०८ ।। ८५८. तं उजुभावपरिणओ रागं दोसं च पयणु काऊणं । तिविहेण उद्धरिज्जा गुरुपामूले अगूहिंतो ||१०९|| ८५९. न वि तं सत्यं व विसं व दुप्पउत्तो व कुणइ वेयालो । जंतं व दुप्पउत्तं, सप्पो व पमाइणो कुद्धो ॥११०॥ ८६०. जं कुणइ भावसल्ल अणुद्धि उत्तिम कालम्मि। दुल्लहबोहीयत्तं अनंतसंसारियत्तं च ॥ १११ ॥। ८६१. तो उद्धरंति गारवरहिया मूलं पुणब्भवलयाणं । मिच्छादंसणसल्लं मायासल्लं नियाणं च ।।११२।। ८६२. रागेण व दोसेण व भएण हासेण तह पमाएणं। रोगेणाऽऽयंकेण व वत्तीइ पराभिओगेणं ॥ ११३॥ ८६३. गिहिविज्जापडिएण व सपक्ख ४ ॐ ॐ श्री आगमगुणमंजूषा १३१२ फ्र फफफफफफ Page #40 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२४-३३) दस पइन्नयसुत्तेसु ५ मरणसमाहि [२९] परधम्मिऔवसग्गेणं । तिरियज्जोणिगएण व दिव्व मणूसोवसग्गेणं ॥ ११४॥ ८६४. उवहीय व नियडीय व तह सावयपेल्लिएण व परेणं । अप्पाण भएण कयं परस्स छंदाणुवत्तीए ।।११५॥। ८६५. सहसक्कारमणाभोगओ य जं पवयणाहिगारेणं । सन्निकरणे विसोही पुण्णागारा य पण्णत्ता ||११६|| ८६६. उज्जुयमालोइत्ता अकरणपरिणाम- जोगपरिसुद्धो । सो पयणुएइ कम्मं, सोग्गइमग्ग अभिमुहेइ ॥११७॥ ८६७. उवही नियडिपइट्ठो सोहिं जो कुणइ सोगईकामो । माई पलिकुंचतो करेइ चुंदच्छियं मूढो ॥११८॥। ८६८. आलोयणाए दोसे दस दोग्गइवडणे परिहरंतो । तम्हा आलोएज्जा मायं मोत्तूण निस्सेसं ॥ ११९॥। ८६९. जे मे जाणंति जिणा अवराहा जेसु जेसु ठाणेसु । ते हं आलोएमी उवट्ठिओ सव्वभावेणं ॥ १२०॥ [ गा. १२१-२२. विसुद्धभावस्स आलोयग्गस्स अणाभोगे वि आराहगत्तं] ८७०. एवं उवट्ठियस्स वि आलोएउं विसुद्धभावस्स । जं किंचि वि विस्सरियं सहसक्कारेण वा चुक्कं ॥ १२१ ॥ ८७१. आराहओ तह वि सो गारव - परिकुंचणा-मयविहूणो । जिणदेसियस धीरो सद्दहगो मुत्तिमग्गस्स || १२२|| [गा. १२३-२४. आलोयणाए दस दोसा तव्वञ्जणानिरूवणं च] ८७२. आकंपण १ अणुमाणण २ जं दिनं ३ बायरं ४ च सुमुहं ५ च । छन्नं ६ सद्दाउलगं ७ बहुजण ८ अव्वत्त ९ तस्सेवी १० ।। १२३ ।। ८७३. आलोयणाए दोसे दस दुग्गइवडणे बमोत्तूणं । आलोएज्न सुविहिओ गारव-माया-मयविहूणो || १२४।। [गा. १२५-२६. आलोयगं पर आयरियाणमणुसट्ठी] ८७४. तो परियागं च बलं आगम कालं च कालकरणं च । पुरिसं जीयं च तहा खित्तं पडिसेवणविहिं च ॥ १२५॥। ८७५. जोग्गं पायच्छित्तं तस्स य दाऊण बिति आयरिया। दंसणनाण-चरित्ते तवे य कुण अप्पमायं ति ॥ १२६ ॥ [ गा. १२७२८. बज्झऽब्भंतरतवभेया] ८७६. अणसणमूणोयरिया १-२ वित्तिच्छेओ ३ रसस्स परिचाओ ४ । कायस्स परिकिलेसो ५ छट्टो संलीणया ६ चेव ॥ १२७॥ ८७७. विणए १ वेयावच्चे २ पायच्छित्ते ३ विवेग ४ सज्झाए ५ । अब्भितरं तवविहिं छट्टं झाणं वियाणाहि ६ ॥ १२८॥ [गा. १२९-४९. नाण-चरित्ताणं गुणा माहप्पं च] ८७८. बारसविहम्मि वि तवे अब्भिंतर बाहिरे कुसलदिट्ठे । न वि अत्थि न वि य होइ सज्झायसमं तवोकम्मं ॥ १२८॥ ८७९. जे पयणुभत्त-पाणा सुयहेऊ ते तवस्सिणो समए । जो य तवो सुयहीणो वाहिसमो सो छुहाहारो ॥ १३०॥। ८८०. छट्ठऽट्ठम- दसम दुवालसेहिं अबहुस्सुयस्स जा सोही । तत्तो बहुतरगुणिया हविज्ज जिमियस्स नाणिस्स ॥१३१॥। ८८१. कल्लं कल्लं पि आहरो परिमिओ य पंतो य । न य खमणो पारणए बहु- बहुयतरो बहुविहो य ॥ १३२ ॥ ८८२. एगाहेण तवस्सी व नत्थित्थ संसओ कोइ । एगाहेण सुयहरो न होइ धंतं पि तुरमाणो ॥ १३३॥ ८८३. सो नाम अणसणतवो जेण मणो मंगुलं न चिंतेइ । जेण न इंदियहाणी जेण य जोगा न हायंति ||१३४॥ ८८४. जं अन्नाणी कम्मं खवेइ बहुयाहिं वासकोडीहिं । तं नाणी तिहिं गुत्तो खवेइ ऊसासमेत्तेणं ॥१३५|| ८८५. नाणे आउत्ताणं नाणी नाणजोगजुत्ताणं । को निज्जरं तुलेज्जा चरणे य परक्कमंताणं ? || १३६ ।। ८८६. नाणेण वज्जणिज्जं वज्जिज्जइ, किज्जई य करणिज्जं । नाणी जाणइ करणं, कज्जकज् च वज्जेउं ॥ १३७॥। ८८७. नाणसहियं चरित्तं, नाणं संपायजं गुणसयाणं। एस जिणाणं आणा, नत्थि चरित्तं विणा णाणं ॥ १३८॥ ८८८. नाणं सुसिक्खियव्वं नरेण दुल्ल बोहिं । जो इच्छइ नाउं जे जीवस्स विसोहणामग्गं ॥ १३९॥। ८८९. नाणेण सव्वभावा णज्जंती सव्वजीवलोयम्मि । तम्हा नाणं कुसलेण सिक्खियव्वं पयत्तेणं ॥ १४० ॥। ८९०. न हु सक्का नासेउं नाणं अरहंतभासियं लोए । ते धन्ना जे पुरिसा नाणी य चरित्तजुत्ता य ॥ १४१ ॥ ८९१. बंधं मोक्खं गइरागइं च जीवाण जीवलोयम्मि । जाणंति सुयसमिद्धा जिणसासणचोइयविहण्णू || १४२ ।। ८९२. भद्दं सुबहुसुयाणं सव्वपयत्थेसु पुच्छणिज्जाणं । नाणेणुज्नोवयरा सिद्धिं पि सिद्धेसु॥१४३॥ ८९३. किं एत्तो लट्ठयरं अच्छेरतरं व सुंदरतरं वा ? । चंदमिव सव्वलोगा बहुस्सुयमुहं पलोयंति ॥ १४४ ॥ ८९४. चंदाउ नीइ जोण्हा, बहुस्सुयमुहाओ जिणवयणं । जं सोऊण सुविहिया तरंति संसारकंतारं ॥ १४५॥। ८९५. चउदसपुव्वधराणं ओहीनाणीण केवलीणं च । लोगत्तुमपुरिसाणं तेसिं नाणं अभिन्नाणं ॥१४६॥। ८९६. नाणेण विणा करणं न होहि, नाणं पि करणहीणं तु । नाणेण य करणेण य दोई वि दुक्खक्खयं होइ ॥ १४७॥ ८९७. दढमूलमहाणम्मि विवरगो विसु- सीलसंपणो । मा हु सुय-सीलविगला ! काहिसि माणं पवयणम्मि ॥ १४८ ॥ ८९८. तम्हा सुयम्मि जोगो कायव्वो होइ अप्पमत्तेणं । जेणऽप्पणं परं पिय दुक्खसमुद्दाओ तारेइ ॥ १४९ ॥ [ गा. १५०-५३. सम्मत्तजुत्ताणं चरण करणाणं गुणा ] ८९९. परमत्थम्मि सुदिट्ठे अविणट्ठेसु तव-संजमगुणेसु । लब्भइ गई. 99EE LEVELELELELELELELELELELELELELELEKKKKOYO प्र Page #41 -------------------------------------------------------------------------- ________________ STRO 5 5 5 5 5 5 555555555 (२४-३३) दस पइन्नयसुत्तेसु ५ मरणसमाहि [३०] विसुद्धा सरीरसारे विणट्ठम्मि || १५० || ९००. अविरहिया जस्स मई पंचहिं समिईहिं तिहि वि गुत्तीहिं । न य कुणइ राग-दोसे, तस्स चरित्तं हवइ सुद्धं ॥ १५१ ॥ ९०१. उक्कोसचरित्तो वि य परिवडई, मिच्छाभावणं कुणइ । किं पुण सम्मद्दिट्ठी सरागधम्मम्मि वट्टंतो ? || १५२ ॥ ९०२. तम्हा घत्तह दोसु वि काउं जे उज्जमं पयत्तेणं । सम्मत्तम्मि चरित्ते करणम्मि य मा पमाएह ॥ १५३ ॥ [ गा. १५४-७५. निञ्जवगा आयरिया अत्तसोही य] ९०३. जाव य सुई न नासइ, जाव य जोगा न ते पराहीणाः । सद्धा व जा न हायइ, इंदियजोगा अपरिहीणा ॥ १५४ ॥ ९०४. जाव य खेम सुभिक्खं, आयरिया जाव अत्थि निज्जवगा । इड्डीगारवरहिया नाण-चरण-दंसणम्मि रया ।। १५५ ।। ९०५. ताव खमं काउं जे सरीरनिक्खेवणं विउपसत्थं । समयपडागाहरणं सुविहियइट्टं नियमजुत्तं ॥ १५६ ॥ ९०६. हंदि ! अणिच्चा सदा सुई य जोगा य इंदियाई च । तम्हा एवं नाउं विहरह तव संजमुज्जुत्ता ॥ १५७ ॥ ९०७. ता एवं नाऊणं ओवायं नाण- दंसण- चरिते । धीरपुरिसाणुचिन्नं करेति सोहिं सुयसमिद्धा ॥। १५८।। ९०८. अब्भिंतर बाहिरियं अह ते काऊण अप्पणो सोहिं । तिविहेणं तिविहकरणं तिविहे काले वियडभावा ॥ १५९ ॥ ९०९. परिणामजोगसुद्धा उवहिविवेगं च गणविसग्गे य । सेज्जाइउवस्सयवज्जणं च विगईविवेगं च ॥ १६०॥ ९१०. उग्गम - उप्पायण - एसणाविसुद्धिं च परिहरणसुद्धिं । सन्निहिसन्निचयम्मि य तव - वेयावच्चकरणे ॥ १६१ ।। ९११. एवं करेत्तु सोहिं नवसारयसलिल-नहतलसभावा । कम-काल- दव्व-पज्जव - अत्तं परजोगकरणे य || १६२ ।। ९१२. तो ते कयसोहीय पच्छित्ते फासिए जहाथामं । पुप्फवकिन्नगग्मि य तवम्मि जुत्ता महासत्ता || १६३ ।। ९१३. तो इंदियपरिकम्मं करेति विसयसुहनिग्गहसमत्था । जयणाए अप्पमत्ता राग - दोसे पययंता ॥ १६४ ॥ ९१४. पुव्वमकारियजोगा समाहिकामा वि मरणकालम्मि । न भवंति परीसहसहा विसयसुहपमोइयऽप्पाणो ॥ १६५॥ ९१५. इंदियसुहसाउलओ घोरपरीसहपराइयपरज्झो। अकयपरिकम्म कीवो मुज्झइ आराहणाकाले ॥१६६॥ ९१६. बाहंति इंदियाई पुव्विं दुन्नियमियप्पयाराई । अकयपरिकम्म की मरणे सुयसंपत्तं पि || १६७ || ९१७. आगममयप्पभावियइंदियसुहलोलुयापइट्ठस्स । जइ वि मरणे समाही होज्ज, न सा होइ बहुयाणं ॥ १६८ ॥ ९१८. असमत्तसुओ वि मुणी पुव्विं सुकयपरिकम्मपरिहत्थो । संजम नियमपइन्नं सुहमव्वहिओ समाणेइ || १६९|| ९१९. न चयंति किंचि काउं पुव्विं सुकयपरिकम्मजोगस्स । खोहं परीसहचमू धिइबलपराइया मरणे ॥ १७०।। ९२०. तो ते वि पुव्वचरणा जयणाए जोगसंगहविहीहिं । तो ते करेति दंसण- चरित्तसुइभावणाहेउं ।। १७१।। ९२१. जा पुव्वभाविया किर होइ सुई चरण-दंसणे बहुहा । सा होइ बीयभूया कयपरिकम्मस्स मरणम्मि || १७२ || ९२२. तं फासेहि चरित्तं 乐乐乐乐乐A A A AAA) पसुहसील पोत्णं । सव्वं परीसहचमुं अहियासेंतो धिइबलेणं ॥ १७३ ॥ ९२३. सद्दे रूवे गंधे रसे य फासे य सुविहिय ! जिणेहि । सव्वेसु कसाएस य निग्गहपरमो सया होहि ॥१७४॥ ९२४. सव्वे रसे पणीए निज्जूहेऊण पंत लुक्खेहिं । अन्नयरेणुवहाणेण संलिहे अप्पगं कमसो ॥१७५॥ [ गा. १७६. दुविहा संलेहणा] ९२५. संलेहणा य दुविहा, अब्भितरिया १ य बाहिरा २ चेव । अब्भिंतरिय कसाए १ बाहिरिया होइ य सरीरे २ ॥ १७६॥ [गा. १७७-८८. बाहिरिया संलेहणा-सरीरसंलेहणा ] ९२६. उग्गम उप्पायण- एसणाविसुद्वेण अण्णं पाणेणं । मिय- विरस लुक्ख-लूहेण दुब्बलं कुणसु अप्पाणं || १७७ || ९२७. उल्लीणोल्लीणेहि य अहव न एगंतवद्धमाणेहिं । संलिह सरीरमेयं आहारविहिं पयणुयंतो ॥१७८॥ तत्तो ९२८. अणुपुव्वेणाऽऽहारं ओवट्टितो सुओवएसेणं । विविहतवोकम्मेहि य इंदियविक्कीलियाईहिं ॥ १७९ ।। ९२९. विविहाहिं एसणाहि य विविहेहि अभिग्गहेहिं उग्गेहिं । संजममविराहिंतो जहाबलं संलिह सरीरं ॥ १८०॥ ९३०. विविहाहि य पडिमाहि य बल वीरिय जइ य संपहोइ सुहं । ताओ वि न बाहिंती जहक्कमं संलिहंतम्मि ॥ १८९ ॥ ९३१. छम्मासिया जहन्ना, उक्कोसा बारसेव वरिसाइं । आयंबिलं महेसी तत्थ य उक्कोसयं बिति ॥ १८२॥। ९३२. छट्ठट्टम - दसम दुवालसेहिं भत्तेहिं चित्त-किट्ठेहिं । मिय-लहुकं आहारं करेहि आयंबिलं विहिणा ॥१८३॥ ९३३. परिवढिओवहाणो ण्हारु- छिरा- वियडपासुलि-कडीओ। संलिहियतणुसरीरो अज्झप्परओ मुणी निच्वं ॥ १८४॥ ९३४. एवं सरीरसंलेहणाविहिं बहुविहं पि फासिंतो । अज्झवसाणविसुद्धिं खणं पि तो मा माइत्था || १८५ || ९३५. अज्झवसाणविसुद्धीविवज्जिया जे तवं विगिट्ठमवि । कुव्वंति बाललेसा न होइ सावला सुद्धी || १८६ ।। ९३६. एयं सरागसंलेहणाविहिं जइ जई समायरइ । अज्झप्पसंजुयमई सो पावइ केवलं सुद्धिं ॥ १८७॥ ९३७. निखिला फासेयव्वा Yo श्री आगमगुणमंजूषा - १३१४ Page #42 -------------------------------------------------------------------------- ________________ $$ $ $$ $$$$$$ $$ $ $ $$$ XOXOF55555555555555 (२४-३३) दस पइन्नयसुत्तेसु - ५ मरणसमाहि [३१] 55%%%%%%%%%事事% सरीरसलेहणाविही एसा । एत्तो कसायजोगा अज्झप्पविहिं पर वोच्छ ॥१८८।। [गा. १८९-२०९. अब्भितरसलेहणा-अज्झप्पसलेहणा] ९३८. कोहं खमाइ, माणं मद्दवया, अज्जवेण मायं च । संतोसेण य लोभ, निज्जिण चत्तारि वि कसाए ।।१८९।। ९३९. कोहस्सव काणस्स व माया-लोभेसु वा न एएसि। वच्चइ वसं खणं पिहु दुग्गइगइवड्डणकराणं ।।१९०॥ ९४०. एवं तु कसायग्गी संतोसेणं तु विज्झवेयव्वो। राग-द्दोसपवत्ति वज्जेमाणस्स विज्झाइ ॥१९१॥९४१. जावंति केइ ठाणा उदीरगा हुंति हू कसायाणं । ते उ सया वज्जतो विमुत्तसंगो मुणी विहरे ॥१९२।। ९४२. संतोवसंत-धिइमं परीसहविहिं च समहियासंतो। निस्संगयाए सुविहिय! संलिह मोहे कसाए य॥१९३।।९४३. इट्ठाऽणिद्वेसुसया सद्द-प्फरिस-रस-रूव-गंधेहिं। सुह-दुक्खनिव्विसेसो जियसंग-परीसहो विहरे॥१९४॥९४४. समिईसु पंचसमिओ, जिणाहि तं पंच इंदिए सट्ठ । तिहिं गारवेहिं रहिओ होहि, तिगुत्तो य दंडेहिं ॥१९५॥ ९४५. सन्नासु आसवेसु य अट्टे रुद्दे य तं विसुद्धप्या | रागदोसपवंचे निज्जिण सव्वप्पणोज्जुत्तो॥१९६॥ ९४६. को दुक्खं पावेज्जा? कस्सय सुक्खेहिं विक्हओ होज्जा ? । को वन लभेज्ज मुक्खं ? राग-द्दोसा जइ न होज्जा ॥१९७|| ९४७. न वितं कुणइ अमित्तो सुट्ठ विय विराहिओ समत्थो वि । जं दो वि अनिग्गहिया करेति रागो य दोसोय ॥१९८॥ ९४८. तं मुयह राग-दोसे, सेयं चिंतेह अप्पणो निच्चं । जं तेहिं इच्छह गुणं, तं चुक्कह बहुतरं पच्छा ॥१९९||९४९. इहलोए आयासं अयसं च करेति गुणविणासं च । पसवंति य परलोए सारीरेमणोगए दुक्खे॥२००।९५०.धिद्धी! अहो! अकज्जं, जंजाणंतो विराग-दोसेहिं । फलमउलं कडुयरसं, तंचेव निसेवए जीवो॥२०१||९५१.तंजइइच्छसि गंतुतीरं भवसायरस्स घोरस्स । तो तव-संजमभंडं सुविहिय ! गिण्हाहि तूरंतो ॥२०२।। ९५२. बहुभयकरदोसाणं सम्मत्त-चरित्तगुणविणासाणं । न हु वसमागंतव्वं रागहोसाण पावाणं ||२०३||९५३. जंन लहइ सम्मत्तं, लद्रूण विजं न एइ वेरग्गं । विसयसुहेसुय रज्जइ, सो दोसो राग-दोसाणं ॥२०४||९५४. भवसयसहस्सदुलहे जम्म-जरा-मरणसागरुत्तारे । जिणवयणम्मि गुणागर ! खणमवि मा काहिसि पमायं ॥२०५।। ९५५. दव्वेहिं पज्जवेहि य ममत्तिसंगेहिं सुट्ठ वि जियप्पा । निप्पणयपेम्मरागो जइ सम्मं नेइ मुक्खत्थं ॥२०६।। ९५६. एवं कयसलेहं अभिंतर-बाहिरम्मि संलेहे । संसारमोक्खबुद्धी अनियाणो दाणि विहराहि ।।२०७।। ९५७. एवं कहिय समाही तहविहसंवेगकरणगंभीरो । आउरपच्चक्खाणं पुणरवि सीहवलोएणं ।।२०८॥ ९५८. न हु सा पुणरुत्तविही जा संवेगं करेइ भण्णंती। आउरपच्चक्खाणे तेण कहा जोइया भुज्जो ॥२०९|| [गा. २१०-५७. आउरपच्चक्खाणं] ९५९. एस करेमि पणामं तित्थयराणं अणुत्तरगईणं । सव्वेसिंच जिणाणं, सिद्धाणं संजयाणं च॥२१०॥९६०. जं किंचि वि दुच्चरियं तमहं निंदामि सव्वभावेणं । सामाइयं च तिविहं तिविहेण करेमऽणागारं ॥२११॥९६१. अब्भितरं च तह बाहिरं च उवहिं सरीरसाहारं । मण-वयण-कायतिकरणसुद्धो हं मि त्ति पकरेमि॥२१२॥ ९६२. बंध पओसं हरिसं रइमरई दीणयं भयं सोगं । राग-दोस-विसायं ५ ऊसुगभावं च पयहामि॥२१३॥९६३. रागेण व दोसेण व अहवा अकयन्नु-पडिनिवेसेणं । जो मे किंचि वि भणिओ, तमहं तिविहेण खामेमि ॥२१॥९६४. सव्वेसु यदव्वेसुंउवढिओएस निम्ममत्ताए। आलंबणं च आया दंसण-नाणे चरित्ते य॥२१५||९६५. आया पच्चक्खाणे, आया मे संजमे तवे जोगे। जिणवयणविहिविलग्गो अवसेसविहिं तु दंसे हं ॥२१६|| ९६६. मूलगुण उत्तरगुणा जे मे नाऽऽराहिया पमाएणं । ते सव्वे निंदामी पडिक्कमे आगमेस्साणं ॥२१७॥ ९६७. एगो सयंकडाइं आया मे नाण-दसणसुलक्खो । संजोगलक्खणा खलु सेसा मे बाहिरा भावा ॥२१८॥ ९६८. पत्ताणि दुहसयाई संजोगवसाणुएण जीवेणं । तम्हा अणंतदुक्खं चयामि संजोगसंबंधं ॥२१९॥९६९. अस्संजममण्णाणं मिच्छत्तं सव्वओ ममत्तं च । जीवेसु अजीवेसुय, तं निदतं च गरिहामि ॥२२०॥९७०. परिजाणे मिच्छंत्तं, सव्वं अस्संजमं अकिरियं च । सव्वं चेव ममत्तं चयामि, सव्वं च खामेमि ॥२२१॥ ९७१.जे मे जाणंति जिणा अवराहा जेसु जेसु ठाणेसु। ते हं आलोएमी उवडिओ सव्वभावेणं ॥२२२।। ९७२. उप्पन्नाऽणुप्पन्ना माया अणुमग्गओ निहंतव्वा । आलोयण-निंदण-गरिहणाहिं न पुणो त्ति या बिइयं ॥२२३|| ९७३. जह बालो जंपंतो' कज्जमकज्जं च उज्जुयं भणइ। तंतह आलोयव्वं मायं मोत्तूण निस्सेसं ॥२२४।।९७४. सुबहुं(?सुहुमं) पि भावसल्लं आलोएऊण गुरुसगासम्मि। निस्सल्लो संथारं श उवेइ आराहओ होइ ।।२२५॥ ९७५, अप्पं पि भावसल्लं जे णाऽऽलोयंति गुरुसगासम्मि । धंतं पि सुयसमिद्धा न हु ते आराहगा होति ॥२२६।। ९७६. न वि तं विसं MO599#### #555555555 श्री आगमगुणमंजूषा - १३१५ 5 5 5 9555555555555555555555; FOR $$$$ 听听听听听听听听听听听听所乐听听听听听听听听听听听听听听听听听听听兵兵兵兵步兵历兵兵兵兵听听FM %%%$ %%%% $$%%%%% $ 6$ Page #43 -------------------------------------------------------------------------- ________________ RORO355555555555 (२४-३३) दस पइन्नयसुतेसु. ५मरणसमाहि [३श 55555555555FOXOK FC$$明明听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听明明明明明明明明明明明明明明国明明明明明明明5O व सत्थं व दुप्पउत्तो व कुणइ वेयालो । जंतं व दुप्पउत्तं सप्पो व पमायओ कुविओ ॥२२७॥ ९७७. जं कुणइ भावसल्लं अणुद्धियं उत्तमट्ठकालम्मि । दुल्लहबोहीयत्तं अणंतसंसारियत्तं च ॥२२८॥९७८. तो उद्धरंति गारवरहिया मूलं पुणब्भवलयाणं । मिच्छादसणसल्लं मायासल्लं नियाणं च ॥२२९|| ७९७. कयपावो विमणूसो आलोइय निदिउं गुरुसगासे। होइ अइरेगलहुओ ओहरियभरो व्व भारवहो ॥२३०।। ९८०. तस्स य पायच्छित्तं जं मग्गविऊ गुरू उवइसंति । तं तह अणुचरियव्वं अणवत्थपसंगभीएणं ।।२३१।। ९८१. दसदोसविप्पमुक्कं तम्हा सव्वं अगृहमाणेणं । जं किंचि कयमकज्ज आलोए तं जहावत्तं ॥२३२॥ ९८२. सव्वं पाणारंभ पच्चाइक्खामि, अलियवयणं च । सव्वं अदिन्नदाणं अब्बंभ-परिग्गहं चेव ॥२३३।। ९८३. सव्वं च असण-पाणं चउव्विहं जा य बाहिरा उवही । अन्भितरं च उवहिं जावज्जीवं वोसिरामि ।।२३४॥. ९८४. कतारे दुब्भिक्खे आयके वा महया समुप्पन्ने । जं पालियं, न भग्गं, तं जाणऽणुपालणासुद्धं ॥२३५|| ९८५. रागेण व दोसेण व परिणामेव व न दूसियं जं तु । ते खलु पच्चक्खाणं भावविसुद्धं मुणेयव्वं ।।२३६।। ९८६. पीयं थणयच्छीरं सागरसलिलाओ बहुयरं होज्जा । संसारम्मि अणंते माऊणं अन्नमन्नाणं ।।२३७|| ९८७. नत्थि किर सो पएसो लोए वालग्गकोडिमेत्तो वि । संसारे संसरंतो जत्थ न जाओ मओ वा वि ॥२३८॥९८८. चुलसीई किर लोए जोणीणं पमुहसयसहस्साई । एक्केक्कम्मि य इत्तो अणंतखुत्तो समुप्पन्नो ॥२३९॥९८९. उड्डमहे तिरियम्मिय मयाणि बालमरणाणऽणंताणि । ताणि अणुसंभरंतो पंडियमरणं मरीहामि ॥२४०॥ ९९०. माया मे त्ति पिया मे भाया भज्ज त्ति पुत्त धूया य । एयाणि अतितो पंडियमरणं मरीहामि ॥२४१।। ९९१. माया-पिइ-बंधूहिं संसारत्थेहिं पूरिओ लोगो। बहुजोणिनिवासीहिं, न य ते ताणं व सरणं वा ।।२४२॥९९२. एक्को जावइ मरइ य एक्को अणुहवइ दुक्कयविवागं । एक्को अणुसरइ जिओ जर-मरण-चउग्गईगुविलं ॥२४३|| ९९३. उव्वेवणयं जम्मण-मरणं नरएसु वेयणाओ य । एयाणि संभरंतो पंडियमरणं मरीहामि ।।२४४।। ९९४. एक्वं पंडियमरणं छिंदइ जाईसयाणि बहुयाणि । तं मरणं मरियव्वं जेण मओ मुक्कओ होइ ।।२४५॥ ९९५. कइया णु तं सुमरणं पंडियमरणं जिणेहि पण्णत्तं । सुद्धो उद्धियसल्लो पाओवगमं मरीहामि ? ॥२४६।। ९९६. संसारचक्कवाले सव्वे वि य पोग्गला मए बहुसो। आहारिया य परिणामिया य न य तेसु तित्तो हं ॥२४७|| ९९७. ई आहारनिमित्तेणं मच्छा वच्चंतणुत्तरं नरयं । सच्चित्ताहारविहिं तेण उ मणसा वि निच्छामि ॥२४८॥ [गा. २४९-५४. तण्हाए दुण्णिवारया) ९९८. तण-कटेण व अग्गी लवणसमुद्दो वनइसहस्सेहिं । न इमो जीवो सक्को तिप्पेउं काम-भोगेहिं ।।२४९॥९९९. लवणयमुहसामाणो दुप्पूरो धणरओ अपरिभेजो। नहु सक्को तिप्पेउं जीवो संसारियसुहेहिं ॥२५०|| १०००. कप्पतरुसंभवेसु य देवुत्तरकुरुयसंपसूएसुं । परिभोगेण न तित्तो, न य नर-विज्जाहर-सुरेसुं ॥२५१॥ १००१. देविंदचक्कवट्टित्ताणाइं रज्जाइं उत्तमा भोगा। पत्ता अणंतखुत्तो न य ह तित्तिं गओ तेहिं॥२५२।। १००२. पय-खीरुच्छुरसेसु य साऊसु महोदहीसु बहुसो वि। उववन्नो न य तण्हा छिन्ना ते सीयलजलेहिं ॥२५३।। १००३. तिविहेण वि सुहमउलं जम्हा काम-रइ-विसयसुक्खाणं । बहुसो वि समणुभूयं, न य सुहतण्हा परिच्छिण्णा ॥२५४॥ [गा. २५५-५७. निंदणा-गरहणाइपुव्वं मरणपडिच्छणा] १००४. जा काइ पत्थणाओ कया मए राग-दोसवसएणं । पडिबंधेण बहुविहा, तं निद तं च गरिहामि ॥२५५।। १००५. हेतूण मोहजालं छेतूण य अट्ठकम्मसंकलियं । जम्मण-मरणऽरहट्टं भित्तूण भवा णु मुच्चिहिसि ॥२५६॥ १००६. पंच य महव्वयाइं तिविहं तिविहेण आरूहेऊणं । मण-वयण-कायगुत्तो सज्जो मरणं पडिच्छेज्जा ॥२५७।। [गा. २५८-६९. पंचमहव्वयरक्खा ] १००७. कोहं माणं मायं लोहं पिज तहेव दोसं च ! चइऊण अप्पमत्तो रक्खामि महव्वए पंच ॥२५८॥ १००८. कलह अब्भक्खाणं पेसुन्नं पि य परस्स परिवायं । परिवज्जितो गुत्तो रक्खामि महव्वए पंच॥२५९।। १००९. किण्हं नीलं काऊ लेसा, झाणाणि अप्पसत्थाणि । परिवज्जेतो गुत्तो रक्खामि महव्वए पंच॥२६०॥ १०१०. तेऊ पम्हं सुक्कं लेसं, झाणाणि सुप्पसत्थाणि । उवसंपन्नो जुत्तो रक्खामि महव्वए पंच ॥२६१||१०११.पंचिदियसंवरणं पंचेव निलंभिऊण कामगुणे । अच्चासायणविरओ रक्खामि महव्वए पंच ॥२६२।। सत्तभयविप्पमुक्को चत्तारि निरंभिऊण य कसाए । अट्ठमयट्ठाणजढो रक्खामि महव्वए पंच ।।२६३॥ १०१३. मणसा मणसच्चविऊ वायासच्चेण करणसच्चेण । तिविहेण अप्पमत्तो रक्खामि महव्वए पंच ।।२६४।। १०१४. एवं तिदंडविरओ तिकरणसुद्धो तिसल्लनिसल्लो । तिविहेण अप्पमत्तो रक्खामि xer5 555555555555555555 श्री आगमगुणमंजूषा - १३१६55555555555555555555555555OOK GO乐乐乐听听听听听听听听听听劣听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听乐2 Page #44 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२४-३३) दस पन्नयसुत्तेसु ५ मरणसमाहि Fron महव्वए पंच ॥ २६५॥ १०१५. सम्मत्तं समईओ गुत्तीओ भावणाओ नाणं च । उवसंपन्नो जुत्तो रक्खामि महव्वए पंच ॥ २६६ ॥ १०१६. संगं परिजाणामी, सल्लं पि य उद्धरामितिविहेणं । गुत्तीओ समिईओ मज्झं ताणं च सरणं च ॥ २६७॥ १०१७. जह खुहियचक्कवाले पोयं रयणभरियं समुद्दम्मि । निज्जामया धरेंती कयकरणा बुद्धिसंपण्णा ॥ २६८ ॥ १०१८. तवपोयं गुणभरियं परीसहुम्मीहि धणियमाइद्धं । तह आराहिंति विऊ उवएसऽवलंबगा धीरा || २६९ ।। [गा. २७०-८९. आराहणोवएसो] १०१९. जइ ताव ते सुपुरिसा आयारोवियभरा निरवयक्खा । गिरिकुहर - कंदरगया साहंति य अप्पणी अहं ॥ २७० ॥ १०२०. जइ ताव सावयाकुलगिरिकंदर-विसमदुग्ग-मग्गेसु । धिइधणियबद्धकच्छा साहंति उ उत्तिमट्ठाई ॥ २७१ ।। १०२१. किं पुण अणगारसहायगेण वेरग्गसंगहबलेणं । परलोएण ण सक्का संसारमहोदहिं तरिउं ? || २७२ ।। १०२२. जिणवयमणप्पमेयं महुरं कन्नामयं सुणेंताणं । सक्का हु साहुमज्झे साहेउं अप्पणो अहं ॥ २७३|| १०२३. धीरपुरिसपण्णत्तं सप्पुरिसनिसेवियं परमघोरं । धन्ना सिलातलगया साहिंती अप्पणो अहं ॥ २७४॥। १०२४. बाहेति इंदियाइं पुव्वमकारियपइट्ठचारिस्स । अकयपरिकम्म कीवं मरणे सुयसंपत्तं पि ॥ २७५॥। १०२५. पुव्वमकारियजोगो समाहिकामो वि मरणकालम्मि । न भवइ परीसहसहो विसयसुहपराइओ जीवो ॥ २७६ ॥ १०२६. पुव्विं कारियजोगो समाहिकामो य मरणकालम्मि। होइ उ परीसहसहो विसयसुहनिवारिओ जीवो ॥ २७७॥ १०२७. पुव्विं कारियजोगो अनियाणो ईहिऊण सुहभावो । ताहे मलियकसाओ सज्जो मरणं पडिच्छिन्ना ।। २७८।। १०२८. पावाणं पावाणं कम्माणं अप्पणो सकम्माणं । सक्का पलाइउं जे तवेण सम्मं उत्तेणं ।। २७९ ।। १०२९. इक्कं पंडियमरणं पडिवज्जइ सुपुरिसो असंभंतो। खिप्पं सो मरणाणं काहिइ अंतं अणंताणं ॥ २८०॥ १०३०. किं तं पंडियमरणं ? काणि - व लंबणाणि भणियाणि ? । एयाई नाऊणं किं आयरिया पसंसंति ? ॥२८१॥ १०३१. अणसण पाओवगमं, आलंबणं झाण-भावणाओं अ । एयाइं नाऊणं पंडियमरणं पसंसंति ॥२८२ ॥ १०३२. इंदियसुहसाउलओ घोरपरीसहपराइयपरज्झो। अकयपरिकम्म कीवो मुज्झइ आराहणाकाले || २८३|| १०३३. लज्जाए गारवे बहुस्यमण वा वि दुच्चरियं । जे न कहिति गुरुणं न हु ते आराहगा होति ॥ २८४॥ १०३४. सुज्झइ दुक्करकारी, जाणइ मग्गं ति पावए किंत्तिं । विणिगूहिंतो निंदं तम्हा आलोयणा सेया ।। २८५ ।। १०३५. अग्गिमि य उदयम्मि य पाणेसु य पाण-बीय-हरिएसुं । होइ मओ संथारो पडिवज्जइ जो असंभंतो ॥ २८६॥ १०३६. न वि कारणं तणमओ संथारो, न वि य फासुया भूमी। अप्पा खलु संथारो होइ विसुद्धो मरंतस्स ॥ २८७॥ १०३७. जिणवयणमणुगया मे होउ मई झाणजोगमल्लीणा । जह तम्मि देसकाले अगूढसल्लो चए देहं ॥ २८८॥। १०३८. जाहे होइ पमत्तो जिणवरवयणरहिओ अणायत्तो। ताहे इंदियचोरा करेंति तव संजमविलोवं ॥ २८९ ॥ [गा. २९० ९६. नाणेण आराहणा] १०३९. जिणवयणमणुगयमई जं वेलं होइ संवरपविट्ठो। अग्गी व वायसहिओ समूल-डालं डहइ कम्मं ॥ २९०॥ १०४०. जह ses वायसहिओ अग्गी हरिए वि रुक्खसंघाए। तह पुरिसकारसहिओ नाणी कम्मं खयं नेइ ॥ २९१|| १०४१. जह अग्गिम्मि वि पबले खडपूलिय खिप्पमेव झामेइ । तह नाणी विसकम्मं खवेइ ऊसासमित्तेणं ॥ २९२॥ १०४२. न हु मरणम्मि उवग्गे सक्को बारसविहो सुयक्खंधो। सव्वो अणुचिंतेउं धंतं पि समत्थचित्तेणं ॥२९३॥ १०४३. एक्कम्मि वि जम्मि पए संवेगं कुणइ वीयरागमए। वच्चइ नरो अविग्धं तं मरणं तेण मरितव्वं ॥ २९४॥ १०४४. एक्कम्मि वि जम्मि पए संवेगं कुणइ वीरागमए । सो ते मोहजालं छिंदइ अज्झप्पओगेणं ।। २९५ ।। १०४५. जेण विरागो जायइ तं तं सव्वायरेण करणिज्जं । मुच्चइ हु ससंवेगी, अनंतमोहो असंवेगी ||२९६॥ [गा. २९७-३०२. वोसिरणानिरूवणं] १०४६. धम्मं जिणपण्णत्तं सम्ममिणं सद्दहामि तिविहेणं । तस थावरभूयहियं पंथं नेव्वाणमग्गस्स ||२९७|| १०४७. समणो हं तिय पढमं, बीयं सव्वत्थ संजओ मि त्ति । सव्वं च वोसिरामी जिणेहिं जं जं पडिकं ॥ २९८ ॥। १०४८. मणसा वि चिंताणिज्जं, सव्वं भासइ भासणिज्जं च । कारण य करणिज्जं वोसिरे तिविहेण सावज्जं ॥ २९९॥ १०४९. अस्संजमवोसिरणं उवहिविवेगो तहा उवसमो य। पडिरूवजोगविणओ खंती मुत्ती विवेगो य ॥ ३०० ॥ १०५०. एयं पच्चक्खाणं आउरजण आवईसु भावेणं । अन्नतरं पडिवन्नो जंपतो पावइ समाहिं ॥ ३०१ || १०५१. मम मंगलमरिहंता सिद्धा साहू 2010 03 For Private & Personal U 55555555 श्री आगमगणसंजा கமுகககககககககககககக454 455 45 KGRO [३३] Page #45 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२४-३३) दस पइन्नयसुत्तेसु ५ मरणसमाहि [३४] सुयं च धम्मो य । तेसिं सरणोवगओ सावज्जं वोसिरामि त्ति ॥ ३०२ ॥ ★★★ इति सिरिमरणविभत्तिसुए संलेहणा सुयं समत्तं ॥ २॥ अथ आराहणासुयं लिख्यते । 2 RO5555555555 [गा. ३०३. आराहणं पइ सिद्ध-अरहंत-केवलिपयाणं माहप्पं ] १०५२. सिद्धे उवसंपन्नो अरिहंते केवली य भावेण । एत्तो एगतरेण वि पण आराहओ होइ ||३०३|| [गा. ३०४-७. वेयणाहियासणोवएसो] १०५३. समुइन्नवेयणो पुण समणो हिययम्मि किं निवेसिज्जा ? | आलंबणवक्काई झाऊण मुणी दुहं सह ॥३०४|| १०५४. नरएसऽणुत्तरेसु य अणुत्तरा वेयणाओ पत्ताओ । वट्टंतेण पमाए ताओ वि अनंतसो पत्ता ॥ ३०५ ॥ १०५५. एयं सयं कयं मे रिणं व कम्मं पुरा असायं तु । तमहं एस धुणामी मणम्मि सत्तं निवेसिज्जा || ३०६ || १०५६. नाणाविहदुक्खेहि य समुइन्नेहिं तु सम्म सहणिज्जं । न य जीवो उ अजीवो कयपुव्वो वेयणाईहिं ||३०७|| [गा. ३०८ - ९. अब्भुज्जयविहार-मरणं परुवणं ] १०५७. अब्भुज्जयं विहारं इच्छं जिणदेसियं विउपसत्थं । नाउं महापुरिससेवियं जमब्भुज्जयं मरणं ||३०८ || १०५८. जह पच्छिमम्मि काले पच्छिमत्थियरदेसियमुयारं । पच्छा निच्छयपत्थं उवेइ अब्भुज्जयं मरणं ॥ ३०९ ॥ [गा. ३१०-१७. आराहणापडागाहरणाइउवएसो ] १०५९. छत्तीसमट्टियाहि (?) य कडजोगी जोगसंगहबलेणं । उज्जमिऊणं बारसविहेण तवनियमठाणेणं ॥३१०॥ १०६०. संसाररंगमज्झे धिइबलसन्नद्धबद्धकच्छाओ । हंतूण मोहमल्लं हराहि आराणहपडागं || ३११ ॥ १०६१. पोराणयं च कम्मं खवेइ, अन्नं न बंधणाऽऽइयइ । कम्मकलंकलवल्लिं छिंदइ संथारमारूढो ॥ ३१२।। १०६२. धीरपुरिसेहिं कहियं सप्पुरिसनिसेवियं परमघोरं । उत्तिष्णो मि हु रंग हरामि आराहणपडागं ॥ ३१३॥ १०६३. धीर ! पडागाहरणं करेहि जह तम्मि देसकालम्मि । सुत्त ऽत्थमणुगुणितो धिइनिच्चलबद्धकच्छाओ || ३१४ ॥ १०६४. चत्तारि कसाए तिन्नि गारवे पंच इंदियग्गमे । जिणिउं परीसहे वि य हराहि आराहणपडागं ॥३१५॥ १०६५. न य मणसा चितिज्ज, जीवामि चिरं, मरामि व लहुं ति । जइ इच्छसि तरिउं जे संसारमहोयहिमपारं ॥ ३१६|| १०६६. जइ इच्छसि नीसरिडं सव्वेसिं चेव पावकम्माणं । जिणवयण-नाण- दंसण चरित्त-भावुज्जुओ जग्ग ॥३१७॥ [गा. ३१८२४. आराहणाए भेय-पमेया फलं च] १०७६. दंसण १ नाण २ चरित्ते ३ तवे ४ य आराहणा चउक्खधा । सा चेव होइ तिविहा उक्कोसा १ मज्झिम २ जहण्णा ३ ॥३१८॥ १०६८. आराहेऊण विऊ उक्कोसाराहणं चउक्खंधं । कम्मरयविप्पमुक्को तेणेव भवेण सिज्झेज्जा ॥ ३१९ || १०६९. आराहेऊण विऊ मज्झिमआराहणं चउक्खंधं । उक्कोसेण य चउरो भवे उ गंतूण सिज्झेज्जा ॥ ३२० ॥ १०७०. आराहेऊणविऊ जहन्नमाराहणं चउक्खंधं । सत्तऽट्टभवग्गहणे परिणामेऊण सिज्झेज्जा ॥३२१|| १०७१. धीरेण वि मरियव्वं, काउरिसेण वि अवस्स मरियव्वं । तम्हा अवस्समरणे वरं खु धीरत्तणे मरिउं ॥ ३२२ ॥ १०७२. एयं पच्चक्खाणं अणुपालेऊण सुविहिओ सम्मं । वेमाणिओ व देवो हविज्न अहवा वि सिज्झेज्जा ॥ ३२३ ॥ १०७३. एसो सवियारकओ उवक्कमो उत्तिमट्टकालम्मि । इत्तो उ पुणो वोच्छं जो उ कमो होइ अवियारे ॥३२४॥ [गा. ३२५-३४. निज्जवयाणं सरूवाइ] १०७४. साहू कयसंलेहो विजियपरीसह कसोयसंताणो । निज्जवए मग्गेज्जा सुयरयणसहस्सनिम्माए ॥३२५॥ १०७५. पंचसमिए तिगुत्ते अणिस्सिए राग-दोस-मयरहिए। कडजोगी कालण्णू नाण-चरण-दंसणसमिद्धे || ३२६|| १०७६. मरणसमाहीकुसले इंगियपत्थियसमभाववेत्तारे । ववहारविहिविष्णू अब्भुज्जयमरणसारहिणो ॥ ३२७॥ १०७७. उवएस हेऊ- कारणगुनिसढा णायकारणविहण्णू । विण्णाण-नाण-कारणोवयारसुयधारणसमत्थे ॥३२८॥ १०७८. एगंतगुणेऽरहिया बुद्धीइ चउव्विंहाइ उववेया । छंदण्णू पच्चइया पच्चक्खाणम्मि य विहण्णू || ३२९|| १०७९. दोण्हं आयरियाणं दो वेयावच्चकरणनिज्जुत्ता । पाणगवेयावच्चे तवस्सिणो व त्ति दो पत्ता ||३३०|| १०८०. उव्वत्तण- परिवत्तण-उच्चारुस्साव- करणजोगेसुं । दो वायग त्ति णिज्जा असुन्नकरणे जहनेणं ॥ ३३१|| १०८१. अस्सद्दह वियणाए पायच्छित्ते पडिक्कमणए य । जोगाऽऽयकहाजोगे पच्चक्खाणे य आयरिओ (आ) ||३३२ ।। १०८२. कप्पाsकप्पविहन्नू दुवालसंगसुयसारही सव्वं (?) । छत्तीसगुणोवेया पच्छित्तविया (सा) रया धीरा ।। ३३३ ।। १०८३. एए ते निज्जवया परिकहिया अट्ठ उत्तत्तिमम्मि । जेसिं कुणसंखाणं न समत्था पायया वोत्तुं ॥ ३३४ ॥ [गा. ३३५-६५. कसायाइखामणा सल्लुद्धरणाइनिरूवणं च] १०८४. एरिसयाण समासे YOYORY फ्र श्री आगमगुणमजूषा १३१८ Page #46 -------------------------------------------------------------------------- ________________ MOO (२४-३३) दस पइन्नयसुतेसु ५ मरणसमाहि [३५] सूरीणं पवयणप्पवाईणं । पडिवज्जिज्ज महत्थं समणो अब्भुज्जयं मरणं । १०८५. आयरिय उवज्झाए सीसे साहम्मिए कुल गणे य। जम्मि कसाओ कोइ वि सव्वे तिविहेण खामि ॥ ३३६ ॥। १०८६ सव्वस्स समणसंघस्स भगवओ अंजलि करे सीसे । सव्वं खमावइत्ता खमामि सव्वस्स अहयं पि ॥ ३३७|| १०८७. गरहित्ता अप्पा अपुणक्कारं पडिक्कमित्ताण । नाणम्मि दंसणम्मि य चरित्तजोगाइयारे य ||३३८|| १०८८. तो सीलगुणसमग्गो अणुवहयक्खो बलं च थामं च । विहरिज्ज तवसमग्गो अनियाणो आगमसहाओ || ३३९ || १०८९. तवसोसियंगमंगो संधि- सिराजालपागडसरीरो । किच्छाहि य परिहत्थो परिहरइ कलेवरं जाहे || ३४० ॥ १०९०. पच्चक्खाइ य ताहे अन्नुन्नसमाहिपत्तियं मित्ती (?) । तिविहेणाऽऽहारविहिं दियसोग्गइकाय पगईए (?) ||३४१ || १०९१. इहलोए परलोए निरासओ जीविए मरणे । सायाणुभवे भोगे जस्स य अवहट्टुणाऽऽईए || ३४२ ।। १०९२. निम्मम निरहंकारो निरासयाऽकिंचणो अपडिकम्मो । वोसट्ठनिसडुंगो चत्तचियत्तेण देहेणं ||३४३|| १०९३. तिविहेण वि सहमाणो परीसहे दूसहे य उवसग्गे । विहरेज्न विसय-तण्हारय-मलमसुभं विहुणमाणो ॥ ३४४॥ १०९४. नेहक्खए व्व दीवो जह खयमुवणेइ दीववट्टि पि । खीणाऽऽहारसिणिहो सरीरवट्टि तह खवेइ ॥ ३४५॥। १०९५. एवपरज्झो असई परक्कमे पुव्वभणियसूरिणं । पासम्मि उत्तिमट्ठे कुज्ना तो एस परिकम् || ३४६ ॥ १०९६. आगरसमुट्ठियं तह अझुसिरवाग-तण-पत्त-कडए य । कट्ठ-सिला-फलगम्मि व अणभिज्जिय निप्पकप्पम्मि ||३४७|| १०९७. निस्संधिणातणम्मि(?) व सुहपडिलेहेण जइपसत्थेणं । संथारो कायव्वो उत्तर-पुव्वस्सिरो वा वि ।। ३४८।। १०९८. दोसोऽत्थ अप्पमाणे, अणंधकारे समम्मि अणिसि । निरुवहयम्मि गुणमणे, वणम्मि गुत्ते य संथारो ॥ ३४९ ॥ १०९९. जुत्तो पमाणरइओ उभओकालपडिलेहणासुद्धो । विहिविहिओ संथारो आरुहियव्वो तिगुत्तेणं ||३५०।। ११००. आरुहियचरित्तभरो अत्तसुओ परमगुरुसगासम्मि । दव्वेसु पंज्जवेसु य खेत्ते काले य सव्वम्मि || ३५१ ॥ ११०१. एएस चेव ठाणेसु चसु सव्वो चउव्विहाहारो। तव संजमु त्ति किच्चा वोसिरियव्वो तिगुत्तेणं ॥ ३५२ ।। ११०२. अहवा समाहिहेउं कायव्वो पाणगस्स आहारो। तो पाणगं पि पच्छा वोसिरियव्वं जहाकाले ॥३५३॥ ११०३. निसिरित्ता अप्पाणं सव्वगुणसमन्नियम्मि निज्जवए । संधारसन्निविट्ठो अनियाणो चेव विहरिज्जा ॥३५४॥। ११०४. इहलो परलोए अनियाणो जीविए य मरणे य । वासी चंदणकप्पो समो य माणाऽवमाणेसु ॥ ३५५ | ११०५. अह महुरं फुडवियडं तहऽप्पसायकरणिज्जविसयक । एज्ज कहं निज्जवओ सुईसमन्नाहरणहेउं ||३५६ ।। ११०६. इहलोए परलोए नाण चरण दंसणम्मि य अवायं । दंसेइ नियाणम्मि य माया-मिच्छत्तसल्लेणं ॥ ३५७।। ११०७. बालमरणे अवायं, तह य उवायं अबालमरणम्मि उस्सास रज्जु वेहाणसे य तह गद्धपट्टे य ॥ ३५८ ॥ ११९०८. जह य अणुद्धयसल्लो ससल्लमरणेण कोइ मरिऊणं । सण-नाणविहूणो यमरति असमाहिमरणेणं ॥ ३५९ | | ११०९. जह सायरसे गिद्धा इत्थि अहंकार पावसुयमत्ता । ओसन्नबालमरणा भमंति संसारकंतारं ॥ ३६० ॥ १११०. जह मिच्छत्तससल्ला, मायासल्लेण जह ससल्लाय जह य नियाणससल्ला मरंति असमहिमरणेम || ३६१ ॥ ११११. जह वेयणावसट्टा मरंति, जह केइ इंदियवट्ट । जह य कसायवट्टा मरंति असमाहिमरणेणं ।। ३६२ ।। १११२. जह सिद्धिमग्ग दुग्गइ सग्गऽग्गलमोडणाणि (? मरणाणि । मरिऊण केइ सिद्धिं उविति सुसमाहिमरणेणं ॥ ३६३ | १११३. एवं बहुप्पयारं तु अवायं उत्तिमट्ठकालम्मि । दंसंति अवायण्णू सल्लुद्धरणे सुविहियाणं || ३६४ ॥ ११४. दितिय सिं उवएसं विहिं हं । जेण सुगईं भयंतो संसारभयद्दुओ होइ || ३६५ || [गा. ३६६ -८५. वेयणाहियासणाइनिव्वे ओवएसो ] १११५. न हु तेसु वेयणं खलु अहो! चिरं मि त्ति दारुणं दुक्खं । सहणिज्जं देहेणं, मणसा एवं विचिंतेज्जा || ३६६|| १११६. सागरतरणत्थमईइयस्स पोयस्स उज्जए धूवे। जो रज्जुमोक्खकालो न सो विलंब त्ति काव्वो || ३६७॥ १११७. तिल्लविहूणो दीवो न चिरं दिप्पइ जगम्मि पच्चक्खं । न य जलरहिओ मच्छो जियइ चिरं, नेव पउमाई || ३६८।। १११८. अन्नं इमं सरीरं, अन्नो हं, इय मणम्मि ठाविज्जा । जं सुचिरेण वि मोच्चं, देहे को तत्थ पडिबंधो ? || ३६९ ।। १११९. दूरत्थं पि विणासं अवस्सभावि उवट्ठियं जाण । जो अह वट्टइ कालो अणागओ इत्थ आसिन्हा (?) ॥ ३७० ॥ ११२०. जं सुचिरेण विं होहिइ अ णावसं तम्मि को ममीकारो ? । देहे निस्संदेहे पिए वि सुयणत्तणं नत्थि ॥ ३७१ ।। ११२१. उवलब्द्धो सिद्धिपहों, न य अणुचिण्णो पमायदोसेणं हा जीव ! अप्पवेरिय! न हु ते एयं न तिप्पिहिइ || ३७२ ।। ११२२. नत्थि य ते संघयणं, घोरा SO श्री आगमगुणमंजूषा १३१९ MONO HONDA A A A 5555555 Page #47 -------------------------------------------------------------------------- ________________ C8乐明明听听听听听听听明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明5OM PRORO5555555555555559 (२४-३३) दस पइन्नयसुत्तेसु - ५ मरणसमाहि [३६] 55555岁岁男身另$$$$ R% य परीसहा अहो ! निरया । संसारो य असारो, अइप्पमाओ य तं जीव ! ॥३७३।। ११२३. कोहाइकसाया खलु बीयं संसारभेरवहाणं । तेसु पसत्तेसु सया कत्तो सोक्खो य? मोक्खो वा ? ||३७४॥ ११२४. जाओ परव्वसेणं संसारे वेयणाओ घोराओ। पत्ताओ नारगत्ते अझुणा ताओ विचितिज्जा ||३७५।। ११२५. इण्हेिं सयवसिस्स उ निरुवमसुक्खावसाणमुहकडुयं । कल्लाणमोसहं पिव परिणामसुहं न तं दुक्ख ॥३७६|| ११२६. संबंधि-बंधवेसुयन य अणुराओ खणं पि कायब्वो। ते च्चिय होति अमित्ता, जह जणणी बंभदत्तस्स ॥३७७।। ११२७. वसिऊण वि सुहमज्झे वच्चइ एगाणिओ इमो जीवो । मोत्तूण सरीरघरं, जह कण्हो मरणकालम्मि ॥३७८।। ११२८. इण्हि व मुहुत्तेणं गोसे व सुए व अडरत्ते वा । जस्स न नज्जइ वेला, कदिवसं गच्छिई जीवो ? ||३७९।। ११२९. एवमणुचिंतयंतो भावणुभावाणुत्तसियलेसो। तद्दिवस मरिउकामो व्व होइ झाणम्मि उज्जुत्तो॥३८०॥ ११३०. नरग-तिरिक्खगईसु य माणुसदेवत्तणे वसंतेणं । जं सुहदुक्खं पत्तं, तं अणुचितिज संथारे ॥३८१|| ११३१. नरएसु वेयणाओ अणोवमा सीय-उण्हवेगाओ। कायनिमित्तं पत्ता अणंतखुत्तो बहुविहाओ ।।३८२।। ११३२. देवत्ते माणुस्से पराहिओगत्तणं उवगएणं | दुक्ख-परिक्केसविही अणंतखुत्तो समणुभूया ॥३८३॥ ११३३. भिन्निदियपंचिदियतिरिक्खकायम्मि णेगसंठाणे । जम्मण-मरणऽरहट्टं अणंतखुत्तो गओ जीवो ॥३८४|| ११३४. सुविहिय ! अईयकाले अणंतकाएसु तेण जीवेणं । जम्मण-मरणमणंतं बहुभवगहणं समणुभूयं ॥३८५।। [गा. ३८६४१०. गब्भवासाइदुक्ख-विविहजाइजम्मदुक्खनिरूवगो निव्वेओवएसो] ११३५. घोरम्मि गब्भवासे कलमल-जंबाल-असुइबीभच्छे । वसिओ अणंतखुत्तो जीवो कम्माणुभावेणं ।।३८६।। ११३६. जोणिमुहनिगच्छंतेणं संसारे इमेण जीवेणं । रसियं अइबीभच्छं कडीकडाहतरगएणं ॥३८७॥ ११३७. जं असियं बीभच्छं असुईघोरम्मि गब्भवासम्मि । तं चितिऊण सययं मुक्खम्मि मइं निवेसिज्जा ॥३८८।। ११३८. वसिऊण विमाणेसु य जीवो पसरंतमणिमऊहेसु। वसिओ पुणो वि सो च्चिय जोणिसहस्संघयारेसुं ॥३८९|| ११३९. वसिऊण देवलोए निच्चुज्जोए सयंपभे जीवो। वसइ जलवेग-कलमलविउले वलयामुहे घोरे ॥३९०॥ ११४०. वसिऊण सुर-नरीसरचामीयररिद्धिमणहरघरेसु । वसिओ नरगनिरंतरभयभेरवपंजेर जीवो ॥३९१॥११४१. वसिऊण विचित्तेसु य विमाणगण-भवणसोभसिहरेसु । वसइ तिरएसु गिरिगुविवर-महाकंदर-दरीसु ॥३९२॥ ११४२. भुत्तूण वि भोगसुहं सुर-नर-खयरेसु, पुण पमाएणं । पियइ नरएसु भेरवकलकलतउ-तंबपाणाइं ॥३९३|| ११४३. सोऊण मुइयणइवइभवे य जयसद्दमंगलरबोघं । सुणइ नरएसु दुहयरअक्कंदुद्दामसद्दाई ॥३९४।। ११४४. निहण हण गिण्ह दह पय उव्विध पविध बंधरुंधाहि। फाले लोले घोले चूरे खारेहिं से गत्तं ॥३९५॥११४५. वेयरणिखार-कलिमल-वेसल्लंकसल-करकयकुलेसु। वसिओ उनरएसु जिओ हणणघणघोरद्देसुं ॥३९६।। ११४६. तिरिएसु व भेरवसद्दपक्खपरपक्खणत्थणसएसु । वसिओ उब्वियमाणो जीवो कुडिलम्मि संसारे ॥३९७।। ११४७. मणुयत्तणे वि बहुविहविणिवायसहस्सभेसणघणम्मि । भोगपिवासाणुगओ वसिओ भयपंजरे जीवो ॥३९८॥ ११४८. वसियं दरीसु, वसियं गिरीसु, वसियं समुद्दमज्झेसु। रुक्खग्गेसु य वसियं संसारे संसरंतेणं ॥३९९॥ ११४९. पीयं थणअच्छीरं सागरसलिलाओ बहुयरं होज्जा । संसारम्मि अणंते माईणं अण्णमण्णाणं ।।४००।। ११५०. नयणोदगं पि तासिं सागरसलिलिओ बहुतरं होज्जा । गलियं रुयमाणीणं अण्णमण्णाणं ।।४०१|| [गा. ४०२-५. सरीरममत्तछेदणोवएसो] ११५१. नत्थि फु भयं मरणसम, जम्मणसरिसं न विज्जए दुक्खं । तम्हा जर-मरणकरं छिंद ममत्तं सरीराओ॥४०२।। ११५२. अन्नं इमं सरीरं अण्णो जीवो त्ति निच्छियमईओ। दुक्खपरिक्वेसकर छिंद ममत्तं सरीराओ॥४०३।। ११५३. जावइयं किंचि दुहं सारीरं माणसं च संसारे। पत्तं अणंतखुत्तो कायस्स ममत्तदोसेणं ॥४०४॥ ११५४. तम्हा सरीरमाई अन्भितर बाहिरं निरवसेसं । छिंद ममत्तं सुविहिय ! जइ इच्छसि मुच्चिउ दुहाणं ।।४०५|| [गा. ४०६-८. उवसग्गपरीसहाहियासणअसुहझावजणरागदोसनिसेहोवएसो] ११५५. सव्वे उव्वसग्ग परीसहे य तिविहेण निज्जिणाहि लहुं । एएसु निज्जिएसुं होहिसि आराहओ मरणे ॥४०६॥ ११५६. मा हुय सरीरसंताविओ य तं झाहि अट्ट-रोद्दई । सुट्ठ वि रूवियलिंगे वि अट्ट-रुद्दाणि रूवंति।।४०७।। ११५७. मित्त-सुय-बंधवाइसु इट्ठाऽणिढेसु इंदियत्थेसुं। रागो वा दोसो वा ईसि मणेणं न कायव्वो ॥४०८।। [गा. ४०९-१२. रोगायंकाहियासणोवएसो सणंकुमारचक्किउदाहरणं च ] ११५८. रोगाऽऽयंकेसु पुणो विउलासु य Mero+915555555555555555555 श्री आगमगुणमंजूषा - १३२०5555555555555555555555555$$OOR GNCO听听听听听听听听听听听听听听听乐明听听听听听听听听听听听听乐乐乐乐明明明明明明明明明明明明明明听25.7 Education International Page #48 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 乐乐乐明明明明明明贝乐 乐乐国乐明乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐所 乐乐乐乐乐乐 MOROF555555555555559 (२४-३३) दस पइन्नयसुत्तेसु. ५ मरणसमाहि (३७) 5555555555EXY वेयणासुइन्नासु। सम्मं अहियासंतो इणमो हियएण चिंतेज्जा ।।४०९॥ ११५९. बहुपलिय-सागराइं सढाणि मे नरय-तिरियजाईसुं। किं पुण सुहावसाणं इणमो सारं नरदुहं ति ।।४१०॥ ११६०: सोलस रोगायंका सहिया जह चक्किणा छउत्थेणं । वाससहस्सा सत्त उसामण्णधुरं उवगएणं ॥४११॥ ११६१. तह उत्तमट्ठकाले देहे निरवेक्खयं उवगएणं । तिलछेत्तलावगा इव आयंका विसहियव्वा उ॥४१२।। [गा. ४१३-८५. विविहोवसग्गाहियासणोवएस उदाहरणाई ] [ गा. ४१३-२५. राजावग्गहनिविण्णजिणधम्मसेट्ठिउदाहरणं ]११६२. परिव्वायगभत्तो राया पट्टीइ सेट्ठिणो मूढो । अच्चुण्हं परमन्नं दासीय सुकोवियमणुस्सा(?) ||४१३।। ११६३. साय सलिलोल्ललोहिय-मंस-वसापेसिथिग्गल धित्तुं । उप्पइया पट्ठीओ पाई जह रक्खसवहुव्व(?) ||४१४॥ ११६४. तेण य निव्वेएणं निग्गंतूणं तु सुविहियसगासे। ॐ आरुहियचरित्तभरो सीहोरसियं समारूढो॥४१५||११६५|| तम्मिय महिहरसिहरे सिलायले निम्मले महाभागो। वोसिरइ थिरपइन्नो सव्वाहारं महतणू य॥४१६॥ ११६६. तिविहोवसग्ग सहिउँ पडिमं सो अद्धमासियं धीरो । ठाइ य पुव्वाभिमुहो उत्तमधिइ-सत्तसंजुत्तो॥४१७|| ११६७. सा य पगलंतलोहिय-मेय-वसामंसलंधरा पट्ठी । खज्जइ खगेहिं दुसहनिसट्टचंचुप्पहारेहिं।।४१८॥ ११६८. मसएहि मच्छियाहि य कीडीहि य विसमसंपलग्गाहिं । खज्जतो वि न कंपइ कम्मविवागं गणेमाणो ||४१९|| ११६९. रत्तिं च पइविहसियसियालियाहिं निराणुकंपाहिं । उवसग्गिज्जइ धीरो नाणाविहरूवधाराहिं ।।४२०|| ११७०: चिंतेइ य खरकरवयअसि-पंजर-खग्ग-मोग्गर-घणाओ। इणमो न हु कट्ठयरं दुक्खं निरयग्गिदुक्खाओ।॥४२१||११७१. एवं च गओ पक्खो, बीओ पक्खो य दाहिणदिसाए। अवरेण वि पक्खो च्चिय समइक्कंतो महेसिस्स ॥४२२।। ११७२. तह उत्तरेण पक्खं भगवं अविकंपमाणसो सहइ । पडिओ य दुमासंते नमो त्ति वोत्तुं जिणिंदाणं ।।४२३|| ११९३. कंचणपुरम्मि सिट्ठी जिणधम्मो नाम सावओ आसी । तस्स इमं चरियपयं, ण उ एयं कित्तिममुणिस्स ॥४२४॥ ११७४||. जह तेण [5] वितथमुणिणा उवसग्गा परमदूसहा सहिया। तह उवसग्गा सुविहिय ! सहियव्वा उत्तिमट्ठम्मि ॥४२५|| [गा. ४२६-२७. मेयञ्जरिसिउदाहरणं] ११७५. निप्फेडियाणि दुण्णि वि सीसावेढेण जस्स अच्छीणि । न य संजमाउ चलिओ मेअज्जो मंदरगिरि व्व ॥४२६।। ११७६. जो कुंचगावराहे पाणिदया कुचगं तु नाऽऽइक्खे । जीवियमणुपेहंतं मेयजरिसिं नमसामि ||४२७|| गा. ४२८.-३१. चिलाइपुत्तोदाहरणं] ११७७. जो तिहिं पएहिं धम्मं समभिगओ संजमं समारूढो। उवसम १ विवेग २ संवर ३ चिलाइपुत्तं नमसामि॥४२८॥ ११७८. सोएहिं अइगयाओ लोहियगंधेण जस्स कीडिओ । खायंति उत्तिमंगं तं दुक्करकारयं वंदे ॥४२९।। ११७९. देहो पिपीलियाहिं चिलाइपुत्तस्स चालणि व्व कओ। तणुओ वि मणपओसो न य जाओ तस्स ताणुवरि ॥४३०।। ११८०. धीरो चिलाइपुत्तो मूइंगलियाहिं चालणी व्व कओ। न य धम्माओ चलिओ तं दुक्करकारयं वंदे ॥४३१॥ [गा. ४३२-३३. गयसुकुमालोदाहरणं] ११८१. गयसुकुमालमहेसी जह दड्डो पिइवणंसि ससुरेणं । न य धम्माओ चलिओ तं दुक्करकारयं वंदे ॥४३२।। ११८२. जह तेण सो हुयासो सम्मं अइरेकदूसहो सहिओ। तह सहियव्वो सुविहिय ! उवसग्गो देहदुक्खं च ॥४३३।। [गा. ४३४-३५. सागरचंदोदाहरणं ] ११८३. कमलामेलाहरणे सागरचंदो सुईहिं नभसेणं । आगंतूण सुरता(?)संपइ संपाइणो वारे ॥४३४।। ११८४. जा तस्स खमा तइया जो भावो जा य दुक्करा पडिमा । तं अणगार ! गुणागर ! तुम पि हियएण चिंतेहि ॥४३५॥ [गा. ४३६-४० अवंतिसुकुमालोदाहरणं] ११८५. सोऊण निसासमए नलिणिविमाणस्स वण्णणं धीरो । संभरियदेवलोओ उज्नेणि अवंतिसुकुमालो ।।४३६।। ११८६. धित्तूण समणदिक्खं नियमुज्झियसव्वदिव्वआहारो। बाहिं वंसकुडंगे पायवगमणं निवण्णो उ॥४३७।। ११८७. वोसट्ठनिसटुंगो तहिं सो भल्लुंकियाइ खइओ उ । मंदरगिरिनिक्कंप तं दुक्करकारयं वंदे ॥४३८॥ ११८८. मरणम्मि जस्स मुक्त सुकुसुमगंधोदयं च देवेहिं । अज्न वि गंधवई सा तं च कुडंगी सरहाणं ॥४३९॥ ११८९. जह तेण तत्थ मुणिणा सम्म सुमणेण इंगिणी तिण्णा। तह तरह उत्तिमढें, तं च मणे सन्निवेसेह ॥४४०॥ [गा. ४४१-४२. चंदवडिसयनिवोदाहरणं] ११९०. जो निच्छएण गिण्हइ, देहच्चाए वि नअट्ठि(?ऽद्धि)यं कुणइ । सो म साहेइ सकजं जह चंदवडिंसओ राया ।।४४१॥ ११९१. दीवाभिग्गहधारी दूसहघणविणयनिच्चलनगिंदो। जह सो तिण्णपइण्णो तह तरह तुमे पइन्नं ति ॥४४॥ गा. ४४३. दमदंतमहेसिउदाहरणं ] ११९२. जह दमदंतमहेसी पंडव-कोरवमुणी थुय-गरहिओ। आसि समो दोण्हं पि हु, एव समा होह सव्वत्थ ।।४४३।। [गा. Mode454545 5 54 श्री आगमगणमजषा-१३२१EEunururuce Lcurnanc LE LELE LELE LELE LEELCANOR Page #49 -------------------------------------------------------------------------- ________________ For55555 (२४-३३) दस पइन्नयसुत्तेसु - ५ मरणसमाहि [३८] 5 $$$$$EXY OC玩乐乐明明听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听乐乐明明明明明明明明明明明明明明明明明明网 ४४४. खंदगसीसोदाहरणं] ११९३. जह खंदगसीसेहिं सुक्कमहाझाणसंसियमणेहिं । न कओ मणप्पओसो पीलिज्जतेसु जंतम्मि ॥४४४॥ [गा. ४४५-४९. धन्नसालिभद्दोदारणं] ११९४. तह धन्न-सालिभद्दा अणगारा दो वि तवमहिड्डीया। वेभारगिरिसमीवे नालंदाए समीवम्मि।।४४५॥ ११९५. जुयलसिलासंथारे पायवगमणं उवागया जुगवं । मासं अणूणगं ते वोसट्ठनिसट्ठसव्वंगा ।।४४६|| ११९६. सीयाऽऽयवझडियंगा लग्गुद्धियमसं-हारूणि विणट्ठा । दो वि अणुत्तरवासी महेसिणो रिद्धिसंपण्णा ॥४४७॥ ११९७. अच्छेरयं च लोए ताण तहिं देवयाणुभावेणं । अज्ज वि अट्ठिनिवेसं पंके व्व सनामगा हत्थी॥४४८|| ११९८. जह ते समंसचम्मे ॥ उवलविलग्गे वि णो सयं चलिया। तह अहियासेयव्वं गमणे थेवं पिमं दुक्खं ।।४४९|| [गा. ४५०-६५. पंचपंडवोदाहरणं ] ११९९. अयलग्गामकुंडुबिय सुरइसयदेवसुमणयसुभद्दा । सत्थेसु गया खमगं गिरिगुहनिलयं णियच्छी य ।।४५०|| १२००. ते तं तवोकिलंतं वीसामेऊण विणयपुव्वागं । उवलद्धपुण्ण-पावा फासुयसुमहं करेसी य ।।४५१।। १२०१. सुगहियसावगधम्मा जिणमहिमाणेसु जणियसोहग्गा । जसहरमुणिणो पासे निक्खंता तिव्वसंवेगा ।।४५२।। १२०२. सुगहियजिणवयणामयपरिपुट्ठा सीलसुरहिगंधड्डा । विहरिय गुरुस्सगासे जिणवरवसुपुज्जतित्थम्मि ।।४५३।। १२०३. कणगावलि-मुत्तावलि-रयणावलि सीहकीलियकिलंता । काही य ससंवेगा आयंबिलवडड्डमाणं च ।।४५४|| १२०४. आसरिया य मणोहरसिहरंतरसंचरंतपुक्खरयं । आइक रचलणपंक यसिरसेवियमालहिमवंतं ॥४५५।। १२०५. रमणिज्जहरय-तरुवर-परहूअ-सिहि- भमरमहुयरिविलोले । अमरगिरिविसयमणहरनिणवयणसुकाणणुद्देसे ॥४५६|| १२०६. तम्मि सिलायलपुहवी पंच वि देहट्ठिईसुमुणियत्था। कालगया उववण्णा पंच वि अपराजियविमाणे ।।४५७|| १२०७. ताओ चइऊण इहं भारहवासे असेसरिउदमणा । पंडुनराहिवतणया जाया जयलच्छिभत्तारा ॥४५८|| १२०८. ते कण्हमरणदूसहदुक्खसमुप्पन्न तिव्वसंवेगा। सुट्ठियथेरसगासे निक्खंता खायकित्तीया॥४५९|| १२०९. जिट्ठो चउदसपुव्वी चउरो एक्कारसंगवी आसी। विहरिय गुरुस्सगासेजसपडहभरंतजियलोया ॥४६०|| १२१०. ते विहरिऊण विहिणा नवरि सुटुं कमेण संपत्ता । सोउं जिणनिव्वाणं भत्तपरिन्नं करेसी य । १२११. घोराभिग्गहधारी भीमों कुंतग्गगहियभिक्खाओ। सेत्तुजसेलसिहरो पाओवगओ गयभवोघो॥४६२।। १२१२. पुव्वविराहियवंतरउवसग्गसहस्समारुयनगिंदो। अविकंपो आसि मुणी भाईणं एक्कपासम्मि ॥४६३|| १२१३. दो मासे संपुन्ने सम्मं धिइधणियबद्धकच्छाओ। ताव उवसग्गिओ सो जाव उ परिणेव्वुओ भगवं ॥४६४।। १२१४. सेसा वि पंडुपुत्ता पाओवगया उ निव्वुया सव्वे । एवं धिइसंपन्ना अण्णे वि दुहाओ मुच्चंति ।।४६५।। [गा. ४६६ दंडअणगारोदाहरणं] १२१५. दंडो वि य अणगारो आयावणभूमिसंठिओ वीरो। सहिऊण बाणघायं सम्मं परिनिव्वुओ भगवं ॥४६६|| [गा. ४६७-६८. सुकोसलमुणिउदाहरणं] १२१६. सेलम्मि चित्तकूडे सुकोसलो सुट्ठिओ उपडिमाए। नियगजणणीए खइओ वग्घीभावं उवगयाए।।४६७|| १२१७. कडिमोवगओ य मुणी लंबेसु ठिओ बहूस ठाणेसुं। तह वि य अकलुणभावो, साहुखमा सव्वसाहूणं ।।४६८|| [गा. ४६९-७४. वइररिसिउदाहरणं रहावत्तनग-कुंजरावत्तनगनामहेऊय] १२१८. पंचसयपरिवुडप्पा वइररिसी पव्वए रहावत्ते। भोत्तूण खुड्डगं किर अन्नं गिरिमस्सिओ सुजसो॥४६९।। १२१९. तत्थ यसो उवलतले एगागी धीरनिच्छयमईओ। वोसिरिऊण सरीरं उण्हम्मि ठिओ वियप्पाणो ।।४७०|| १२२०. तो सो अइसुकुमालो दिणयरकिरणग्गितावियसरीरो। हविपिंडु व्व विलीणो उववण्णो देवलोयम्मि ॥४७१|| १२२१. तस्स य सरीरपूयं कासी य रहेहि लोगपाला उ। तेण रहावत्तगिरी अज्ज वि सो विस्सुओ लोए ।।४७२।। १२२२. भगवं पि वइरसामी बिईयगिरिदेवयाइ कयपूओ । संपूइओऽत्थ मरणे कुंजरभरिएण सक्केणं ।।४७३|| १२२३. पूइयसुविहियदेहो पयाहिणं कुंजरेण तं सेलं । कासी य सुरवरिंदो तम्हा सो कुंजरावत्तो ॥४७४।। [गा. ४७५-७८. अरहन्नयउदाहरणं] १२२४. तत्तो य जोगसंगहउवहाणक्खाणयम्मि कोसंबी । रोहगमवंतिसेणो रुज्झेइ मणिप्पभो भासा ।।४७५|| १२२५. धम्मवसुसीजुयलं धम्मजसे तत्थ रण्णदेसम्मि । भत्तं पच्चक्खायइ सेलम्मि उ वच्छगातीरे ॥४७६।। १२२६. निम्मम निरहंकारो एगागी सेलकंदरसिलाए । कासी य उत्तम४, सो भावो सव्ववाहूणं ॥४७७|| १२२७. २ उण्हम्मि सिलावटे जह तं अरहण्णएण सुकुमालं । वग्धारियं सरीरं, अणुचितेज्जा तमुच्छाहं ।।४७८।। [गा. ४७९. चाणक्कोदारहरणं] १२२८. गोब्बर पाओवगओ MOROS999999999999999995श्री आगमगुणमंजूषा - १३२२ 49545555O OR OMC明听听听听听听听听听乐乐听听听听听听听听听听听听听听听听听听听明明明明明明明明乐明明明明明明明明$2CM Page #50 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२४-३३) दस पइन्नयसुत्तेसु - ५ मरणसमाहि [३९] 15555555543333Sexeg 乐听听听乐乐坂乐乐乐乐乐明明明明明明明明劣乐乐听听听听听听听听乐乐乐听听听乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐 र सुबुद्धिणा णिग्घिणेण चाणक्को । दड्डो न य संचलिओ, सा हु धिई चिंतणिज्जा उ॥४७९॥ [गा. ४८०-८५. परीसहाहियासणे इलापुत्तदिटुंतसूयणापुव्वं उवएसो] १२२९. जह सो वसिपएसी वोसट्ठ-निसिट्ठ-चत्तदेहाओ। वंसीपत्तेहिं विणिग्गएहिं आगासमुक्खित्तो ।।४८०|| १२३०. जह सा बत्तीसघडा वोसट्ठ-निसठ्ठचतदेहागा। धीरा वाएण उदीरिएण विगलिम्मि ओलाइया ।।४८१|| १२३१. जंतेण करकएण व सत्थेहिं व सावएहिं विविहेहिं । देहे विद्धंसते ईसिं पि अकंपणा समणा ।।४८२।। १२३२. पडिणीययाइ केई चम्मसे खीलएहिं निहणित्ता । महु-घयमक्खियदेहं पिवीलियाणं तु देज्जा हि॥४८३।। १२३३. जेण विरागो जायइ तं तं सव्वायरेण करणिज्जं । मुच्चइ हु ससंवेगो, इत्थ इलापुत्तदिटुंतो।।४८४।। १२३४. समुइण्णेसु य सुविहिय ! घोरेसु परीसहेसु सहणेणं । सो अत्थो सरणिज्जो जो बीए उत्तरज्झयणे ।।४८५॥ [गा. ४८६-५०३. बावीसपरीसहे पडुच्च पिहप्पिहं बावीसइदिटुंतनिद्देसो] १२३५. उज्जेणि हत्थिमित्तो सत्थसमग्गो वणम्मि कट्टेणं । पायहरो संवरणं चेल्लग 'भिक्खावण' सुरेसुं १ ॥४८६।। १२३६. तत्थेव य धणमित्तो चेल्लगमरणं नईइ 'तण्हाए'। नित्थिण्णेसुऽणज्जंत विटियविस्सारणं कासि २॥४८७|| १२३७. मुणिचंदेण विदिण्णस्स रायगिहि परीसहो महाघोरो । जत्तो हरिवंसविहसणस्स वोच्छं जिणिदस्स ।।४८८।। १२३८. रायगिहनिग्गया खलु पडिमापडिवन्नागा मुणी चउरो । 'सीय विहूय कमेणं पहरे पहरे गया सिद्धिं ३ ॥४८९।। १२३९. 'उसिणे' तगरऽरहन्नग ४ चंपा ‘मसएसु' सुमणभद्दरिसी ५ । खमसमणरक्खियपिओ 'अचेलयत्ते' य उज्जेणी ६ ।।४९०|| १२४०. 'अरईय' जाइ मूयक हू भव्वो य दुलहबोहीओ । कोसंबीए कहिओ ७ इत्थिगए' थूलभद्दरिसी ८।४९१ ॥ १२४१. कुल्लइरम्मिय दत्तो 'चरियाई परीसहे समक्खाओ। सिट्ठिसुयतिगिच्छणणं अंगुलि दीवो य वासम्मि ९॥४९२।।१२४२. गयपुर कुरुदत्तसुओ 'निसीहिया' अडविदेस पडिमाए । गावि कुढएण दड्डो, गयसुकुमालो जहा भगवं १०॥४९३।। १२४३. दो अणगारा धिज्जाइयाइ कोसंबि सोमदत्ताई। पाओवगया ण दिणे 'सिज्जाए' सागरे छूढा ११॥४९४॥ १२४४. महुराइ महुरखमओ 'अक्कोसपरीसहे' उ सविसेसो। बीओ रायगिहम्मि उ अज्जुणमालारदिर्सेतो १२ ।।४९५।। १२४५. कुंभारकडे नगरे खंदगसीसाण जंतपीलणया । एवं 'वहे' कहिज्जइ जह सहियं तस्स सीसेहिं १३ ॥४९६|| १२४६. तह 'जायण' नेणवुत्तं(? जुतं)गीए संपट्ठियस्स समुयाणं १४ । तत्तो 'अलाभगम्मि' उ जह कोहं निज्जिणे कण्हो ॥४९७१ १२४७. किसिपारासर ढंढो बीयं तु 'अलाभगे' उदाहरणं १५ । कण्हं च लद्धमन्नं चइऊण खमन्निओ सिद्धो ॥४९८।। १२४८. महुरा जियसुत्तसुओ अणगारो कालवेसिओ ‘रोगे' । मोग्गल्लसेलसिहरे खइओ किर सुरसियालेणं १६ ॥४९९|| १२४९. सावत्थी जियसत्तूतणओ निक्खमण पडिम 'तणफासे' । चारिय पधिय विकंतण कुसलेसण कड्डणा सहणं १७॥५००॥ १२५०. चंपा सुणंदगं चिय साहुदुगुंछाइ 'जल्ल' खउरंगे । कोसंबिजम्म निक्खमण वेयणं साहुपडिमाए १८ ॥५०१।। १२५१. महुराइ इंददत्तो 'सक्कारा' पायछेयणे सड्डो १९ । ‘पन्नाइ' अज्जकालग सागरखमणो य दिट्ठतो २०॥५०२।। १२५२. 'नाणे' असगडताओ, खंभगनिधि अणहियासणे भद्दो २१ । 'दसणपरीसहम्मि' उ असाढभूई उ आयरिया २२ ॥५०३|| [गा. ५०४-६. परीसहाहियासणोवएसो] १२५३. चरियाए मरणम्मि उ समुइण्णपरीसहो मुणी एवं । भावेज निउणजिणमयउवएससुईए अप्पाणं ॥५०४ ॥ १२५४. उम्मग्गसंपयायं मणहत्थिं विसयसुमरियमणंतं । नाणंकुसेण धीरा धरेइ दित्तं पिव गइंदं ॥५०५|| १२५५. एए उ अहासूरा, महिड्डिओ को व भाणिउं सत्तो? । किं वातिमूवमाए जिण-गणधर-थेरचरिएसु? ॥५०६|| [गा. ५०७-२४. धम्माणुपालणे तिरिक्खजोणियाणमुदाहरणाइं] १२५६. किं चित्तं जइ नाणी सम्मद्दिट्टी करेति उच्छाहं ? । तिरिएहि वि दुरणुचरो केहि वि अणुपालिओ धम्मो ॥५०७।। १२५७. अरुणसिहं दवणं मच्छो सण्णी महासमुद्दम्मि । हा ! ण गहिओ त्ति काले झस त्ति संवेगमावण्णो॥५०८।। १२५८. अप्पाणं निदंतो उत्तरिऊणं महन्नवजलाओ। सावज्जजोगविरओ भत्तपरिणं करेसी य ।।५०९|| १२५९. ॐ खगतुंडभिन्नदेहो दूसहसूरग्गितावियसरीरो। कालं काऊण सुरो उववन्नो, एवं सहणिज्जं ॥५१०॥ १२६०. सो वाणरजूहवई कंतारे सुविहियाणुकंपाए। भासुरवरबोदिधरो देवो वेमाणिओ जाओ ॥५११॥ १२६१. तं सीह-सेण-गयवरचरियं सोऊण दुक्करं रण्णे । को हु णु तवे पमायं करेज जाओ मणुस्सेसुं ? ॥५१२।। १२६२. भुयगपुरोहियडक्को राया मरिऊण सल्लइवणम्मि । सुपसत्थगंधहत्थी बहुभयगयभेलणो जाओ ।।५१३।। १२६३. सो सीहचंदमुणिवरपडिमापडिबोहिओ सुसंवेगो। PRO05555555555555555555555555 श्री आगमगणमंजषा - १३२३॥44444444424NELEMEE E EEERNOR QQ明明听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听明明乐明听$23 (Oin Education International 2010-03 Page #51 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२४-३३) दस पन्नयसुत्तेसु ५ मरणसमाहि [४०] फ्र फ पाणवहाऽलिय-चोरिय-अब्बंभ-परिग्गहनियत्तो ॥ ४१४।। १२६४. राग-द्दोसनियत्तो छट्ठक्खमणस्स पारणे ताहे । असिऊण पंडुपत्ते आयवतत्तं जलं पासी ॥५१५॥ १२६५. खमगत्तणनिम्मंसो धवणि-सिरोजालसंतयसरीरो । विहरिय अप्पप्पाणो मुणिउवएसं विचिंततो ||१६|| १२६६. सो अन्नया णिदाहे पंकोसन्नो घणं निरुच्छाहो। चिरवेरिएण दट्ठो कुक्कुडसप्पेण घोरेण ॥ ५१७।। १२६७. जिणवयणमणुगुणितो ताहे सव्वं चउव्विहाहारं । वोसिरिऊण गइंदो भावेण जिणे नमंसी य ॥५१८|| १२६८. तत्थ य वणयर- सुरवरविम्हियकीरंतपूय-सक्कारो । मज्झत्थो आसी किर कलहेसु य जज्जरिज्जतो || ५१९ ॥ १२६९. सम्मं सहिऊण तओ कालगओ सत्तमम्मि कप्पम्मि । सिरितिलयम्मि विमाणे उक्कोसठिई सुरो जाओ ।। ५२० ।। १२७०. सुयदिट्ठिवायकहियं एयं अक्खाणयं निसामेत्ता । पंडियमरणम्मि मइं दढं निवेसेज्ज भावेणं ॥ ५२१ ॥ १२७१. जिणवयणमणुस्सट्ठा दो वि भुयंगा महाविसा घोरा । कासी य कोसियासयतणूसु भत्तं मुइंगाणं || ५२२|| १२७२. एगो विमाणवासी जाओ वरविज्जपंजरसरीरो। बीओ उ नंदणकुले बलो त्ति जक्खो महिडीओ || ५२३|| १२७३. हिमचूलसुरुप्पत्ती भद्दगमहिसो य थूलभद्दो य । वेरोवसमे कहणा सुरभावे दंसणे खमणा || ५२४ || [गा. ५२५-२६. तिविहोसग्गाहियासणविसइयं इंगिणिपाओवगमणपडिवण्णसाहुनिरूवणं ] १२७४. बावीस माणुपुव्विं तिरिक्ख मणुया वि भेसणट्ठाए। विसयाणुकंपरक्खण करेज्ज देवा उ उवसग्गं ॥ ५२५ || १२७५. संघयण धिईजुत्तो नव-दसपुव्वी सुएण अंगा वा । इंगिणि-पाओवगमं पडिवज्जइ एरिसो साहू || ५२६ || [गा. ५२७. पाओवगमणमरणस्स भेयजुयं १२७६. निच्चलनिप्प डिकम्मो निक्खिवए जं जहिं जहा अंगं । एवं पाओवगमं, सनिहारिं१वा अनीहारिं२ || ५२७|| [गा. ५२८ ५० पाओवगमणमरणसरूवनिरूवणं] १२७७ पाओवगमं भणियं, सम-विसमे पायवो व्व जह पडिओ | नवरं परप्पओगा कंपेज्ज जहा फल तरु व्व ॥ ५२८।। १२७८. तस-पाण- बीयरहिए वित्थिण्णवियार थंडिलविसुद्धे । एते निद्दोसे उवेति अब्भुज्जयं मरणं ||५२९|| १२७९. पुव्वभवियवेरेणं देवो साहरइ को वि पायाले । मा सो चरिमसरीरो न वेयणं किंचि पाविज्जा || ५३०|| १२८०. उप्पन्ने उवसग्गे दिव्वे माणुस्सए तिरिक्खे य । सव्वे पराजिणित्ता पाओवगया पविहरंति || ५३१|| १२८१. जह नाम असी कोसो अन्नो कोसो असी वि खलु अन्नो । इय मे अन्नो जीवो अन्नो देहो ि मन्नेज्जा ।।५३२।। १२८२. पुव्वाऽवर - दाहिण- उत्तरेण वाएहिं आवडंतेहिं । जह न वि कंपइ मेरू तह झाणाओ न वि चलंति || ५३३ ।। १२८३. पढमम्मि य संघयणे वट्टंते सेलकुड्डसामणे । तेसिं पि य वोच्छेओ चोद्दसपुव्वीण वोच्छेए || ५३४|| १२८४. पुवि - दग अगणि मारुय तरुमाइ तसेसु कोइ साहरइ । वोस - चत्तदेह अयं तं परिक्खिज्जा ।। ५३५।। १२८५. देवो नेहेण णए देवागमणं व इंदगमणं वा । जहियं इट्ठा कंता सव्वसुहा होति सुहभावा ॥ ५३६ ।। १२८६. उवसग्गे तिविहे वि अणुकूले चेव तह य पडिकूले । सम्मं अहियासेंतो कम्मक्खयकारओ होइ ॥ ५३७|| १२८७. एयं पाओवगमं इंगिणि पडिकम्म वण्णियं सुत्ते । तित्थयरगणहरेहि य साहूहि य सेवियमुयारं ॥ ५३८ ॥ १२८८. सव्वे सव्वद्धाए सव्वन्नू सव्वकम्मभूमीसु । सव्वगुरू सव्वहिया सव्वे मेरूसु अहिसित्ता ॥ ५३९ ॥ १२८९. 'सव्वाहि विलीहिं सव्वे वि परीसहे पराइत्ता । सव्वे वि य तित्थयरा पाओवगया उ सिद्धिगया || ५४०|| १२९०. अवसेसा अणगारा तीय- पडुप्पन्न - Sणागया सव्वे । केई पाओवगया पच्चक्खाणिगिणिं केई || ५४१ ।। १२९१. सव्वा वि य अज्जाओ सव्वे वि य पढमसंघयणवज्जा। सव्वे य देसविरया पच्चक्खाणेण य मरंति ॥५४२|| १२९२. सव्वसुहप्पभवाओ जीवियसाराओ सव्वजणगाओ। आहाराओ रयणं न विज्जए उत्तमं लोए ।। ५४२।। १२९३. विग्गहगए य सिद्धे मुत्तुं लोगम्मि जत्तिया जीवा । सव्वे सव्वावत्थं आहारे होति आउत्ता ||५४४ ॥ १२९४. तं तारिसगं रयणं सारं जं सव्वलोयरयणाणं । सव्वं परिच्चइत्ता पाओवगया विहरंति ।।५४५।। १२९५. एयं पाओवगमं निप्पडिकम्मं जिणेहिं पन्नत्तं । तं सोऊणं खमओ ववसायपरक्कमं कुणइ || ५४६ || १२९६. धीरपुरिसपण्णत्ते सप्पुरिसनिसेविए परमरम्मे । धण्णा सिलायलगया निरावयक्खा णिवज्जंति || ५४७।। १२९७. सुव्वंति य अणगारा घोरासु भयाणियासु अडवीसुं । गिरिकुहर-कंदरासु य विजणेसु य रुक्खहेद्वेसुं ||५४८|| १२९८. धीधणियबद्धकच्छा भीया जर मरण- जम्मणसयाणं । सेलसिलासयणत्था साहंति य उत्तिमट्ठाई ॥ ५४९ || १२९९. दीवोदहिरण्णेसु य खयरावहियासु पुणरवि य तासु । कमलसिरीमहिलादिसु भत्तपरिन्ना क्या थी || ५५० || [गा. ५५१-५२. विसमट्ठाणट्ठियआराहगमुणिअवेक्खाए श्री आगमगुणमंजूषा - १३२४ Page #52 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 95555555555555555 (२४.३३) दस पइन्नयसुत्तेसु - ५ मरणसमाहि [४१] $ $$$$$ $$$$$ 2 3 OLICKF听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听乐乐5C 2 वसहिट्ठियमुणीणमाराहणाणुकूलत्तनिरूवणं] १३००. जइ ताव सावयाकुलगिरिकंदर-विसमकडगदुग्गासुं । साहिति उत्तिमट्ठ धिइधणियसहायगा धीरा ॥५५१।। १३०१. किं पुण अणगारसहायगेण अण्णुण्णसंगहबलेणं । परलोए य न सक्का साहेउं अप्पणो अट्ठ ? ॥५५२|| [गा. ५५३-६९. उवसग्ग-महब्भयपसंगे अणुचिंतणानिरूवणं] १३०२. समुइन्नेसुय सुविहिय ! उवसग्ग-महब्भएसु विविहेसुं। हियएण चिंतणिज्ज रयणनिही एस उवसग्गो॥५५३।। १३०३. किं जायं जइ मरणं अहं च एगाणिओ इहं पाणी ? । वसिओ हं तिरियत्ते बहुसो एगागिओ रण्णे ॥५५४|| १३०४. वसिऊण वि जणमज्झे वच्चइ एगाणिओ इमो जीवो । मोत्तूण सरीरघरं मच्चुमुहा कड्ढिओ संतो॥५५५|| १३०५. जह बीहंति उ जीवा विविहाण बिहीसियाण एगागी। तह संसारगएहिं जीवेहिं बिहेसिया अन्ने ।।५५६।। १३०६. सावयभयाभिभूओ बहूसु अडवीसु निरभिरामासु । सुरहि-हरिण-माहिस-सूयरकरझोडियरुक्खछायासु॥५५७।। १३०७. गय-गवय-खग्ग-गंडय-वग्घ-तरच्छऽच्छभल्लचरियासु । भल्लुंकि-कंक-दीविय-संबरसब्भावकिण्णासुं ॥५५८|| १३०८. मत्तगइंदनिवाडियभिल्ल-पुलिंदावकुंडियवणासुं । वसिओ हं तिरियत्ते भीसणसंसारचारम्मि ॥५५१|| १३०९. कत्थइ मुद्धमिगत्ते बहुसो अडवीसु पयइविसमासु । वग्घमुहावडिएणं रसियं अइभीयहियएणं ॥५६०।। १३१०. कत्थइ अइदुप्पिक्खो भीसण-विगराल-घोरवयणो हं | आसि अहं चिय वग्यो रुरु-महिस-वराहविद्दवओ॥५६१।। १३११. कत्थइ दुविहिएहिं रक्खस-वेयाल-भूयरूवेहिं। छलिओ, वहिओय अहं मणुस्सजम्मम्मि निस्सारो॥५६२।। १३१२. पयइकुडिलम्मि कत्थइ संसारे पाविऊण भूयत्तं । बहुसो उब्वियमाणा मए वि बीहाविया सत्ता ॥५६३॥ १३१३. विरसं आरसमाणो कत्थई रण्णेसु घाइओ अयं । सावयगहणम्मि वणे भयभीरू खुभियचित्तो हं॥५६४॥ १३१४. पत्तं विचित्त-विरसं दुक्खं संसारसागरगतेणं । रसियं च असरणेणं कयंतदंतंतरगतेणं ॥५६५।। १३१५. तइया कीस न हायइ जीवो जइया सुसाणकरिविद्धं । भल्लुंकि-कंक-वायससएसु ढोकिज्जए देहं ।।५६६।। १३१६. ता तं निजिणिऊणं देहं मोत्तूण वच्चए जीवो। सो जीवो अविणासी भणिओ तेलुक्कदंसीहिं॥५६७|| १३१७. तं जइ ताव न मुच्चइ जीवो मरणस्स उब्वियंतो वि । तम्हा मज्झ न जुज्जइ दाऊण भयस्स अप्पाणं ॥५६८॥ १३१८. एवमणुचिंतयंता सुविहिय ! जर-मरणभावियमईया । पावंति कयपयत्ता मरणसमाहिं महाभागा ॥५६९|| [गा. ५७०-६४०. दुवालसण्हं भावणाणं वित्थरओ निरुवणं] १३१९. एवं भावियचित्तो संथारवरम्मि सुविहिय ! सया वि। भावेहि भावणाओ बारस जिणवयणदिट्ठाओ॥५७०||१३२०. अह इत्तो चउरंगे चउत्थमंगं सुसाहुधम्मम्मि । वन्नेइ भावणाओ बारसिमा बारसंगविऊ॥५७१|| १३२१. समणेण सावएणय जाओ निच्चं पि भावणिज्जाओ। दढसंवेगकरीओ विसेसओ उत्तिमट्ठम्मि॥५७२।। १३२२. पढमं अणिच्चभावं १ असरणयं २ एगयं ३ च अन्नत्तं ४। संसार५मसुभया६ विय विविहं लोगस्सहावं७ च॥५७३।१३२३. कम्मस्स आसवं ८ संवरं ९ च निज्जरण १० मुत्तमेय गुणे ११ । जिणसासणम्मि बोहिं च दुल्लहं १२ चिंतए मइमं ॥५७४|| १३२४. सव्वट्ठाणाई असासयाइं इह चेव देवलोगे य । सुर-असुर-नराइणं रिद्धिविसेसा सुहाई वा ॥५७५|| १३२५. माया-पिईहिं सहवड्डिएहिं मित्तेहिं पुत्त-दारेहिं । एगयओ सहवासो पीई पणओ वि य अणिच्चो ।।५७६|| १३२६. भवणेहिं उववणेहि य सयणाऽऽसण-जाणवाहणाईहिं। संजोगो वि अणिच्चो तह परलोगो वि सह तेहिं ॥५७७।१३२७. बल-विरिय-रूव-जोव्वणसामग्गी सुभगया वपूसोभा। देहस्स य आरूग्गं असासयं जीवियं चेव १ ॥५७८॥ १३२८. जम्म-जरा-मरणभए अभिहुए विविहवाहिसंतत्ते । लोगम्मि नत्थि सरणं जिणिंदवरसासणं मुत्तुं ॥५७९॥ १३२९. आसेहि य हत्थीहि य पव्वयमित्तेहिं निच्चमित्तेहिं । सावरण-पहरणेहि य बलमयभत्तेहिं जोहेहिं ॥५८०।। १३३०. महया भडचङगरपहकरेण अवि चक्कवट्टिणा मच्चू । न य जियपुव्वो केणइ नीइबलेणावि लोगम्मि ॥५८१।। १३३१. विविहेहि मंगलेहि य विना-मंतोसहीपओगेहिं । न वि सक्का ताएउं मरणा ण विरुण्ण-सोएहिं ॥५८२॥ ॥ * १३३२. पुत्तो मित्ता य पिया सयणो बंधवजणो य अत्थो य । न समत्था ताएउ मरणा सिंदा वि देवगणा २॥५८३।। १३३३. सयणस्स वि मज्झगओ रोगभिहओ किलिस्सइ इहेगो। सयणो वि य से रोगंन विरिंचइ, नेव नासेइ॥५८४॥ १३३४. मज्झम्मि बंधवाणं इक्को मरइ कलुणं रुयंताणं । न यणं अन्नेति तओ बंधुजणो नेव दाराई ॥५८५|| १३३५. इक्को करेइ कम्मं, फलमवि तस्सेक्कओ समणुहवइ । इक्को जायइ मरइ य, परलोयं इक्कओ जाइ ॥५८६।। १३३६. पत्तेयं पत्तेयं नियगं SzO5听听听听听听听听听听听听听听听听听听听折听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听23 Page #53 -------------------------------------------------------------------------- ________________ sex 乐乐乐乐明明明明明明明明明明明明明明明明明玩乐乐听听听听听听听听听听听娱乐乐乐乐乐听听听听C SRS5555%%%%%%%%%% (२४.३३) दस पइन्नयसुत्तेसु-५मरणसमाहि शि 步步步五步步步步步步步步步 कम्मफलमणुहवंताणं । को कस्स जए सयणो? को कस्स व परजणो भणिओ? ॥५८७|| १३३७. को केण समं जायइ ? को केण समं च परभवं जाइ ? । को वा करेइ किंची? कस्स व को कं नियत्तेइ ? ॥५८८॥ १३३८. अणुसोयइ अण्णजणं अन्नभवंतरगयं तु बालजणो। न वि सोयइ अप्पाणं किलिस्समाणं भवसमुद्दे ३ ॥५८९।। १३३९. अन्नं इमं सरीरं, अन्नो हं, बंधवा विमे अन्ने । एवं नाऊण खमं, कुसलस्स न तं खमं काउं ४ ॥५९०।। १३४०. हा ! जह मोहियमइणा सुग्गइमग्गं अजाणमाणेणं । भीमे भवकंतारे सुचिरं भमियं भयकरम्मि ।।५९१।। १३४१. जोणिसयसहस्सेसुय असइं जायं मयं वऽणेगासु । संजोग-विप्पओगा पत्ता, दुक्खाणि य बहूणि ।।५९२।। १३४२. सग्गेसु य नरगेसु य माणुस्से तह तिरिक्खजोणीसुं। जायं मयं च बहुसो संसारे संसरंतेण ५॥५९३|| १३४३. निब्भच्छणाऽवमाणण वह बंधण रुंधणा धणविणासो। णेगा य रोग-सोगा पत्ता जाईसहस्सेसुं ॥५९४।। १३४४. सो नत्थि इहोगासो लोए वालग्गकोडिमित्तो वि । जम्मण-मरणा बाहा अणेगसो जत्थ न य पत्ता ॥५९५।। १३४५. सव्वाणि सव्वलोए रूवी दव्वाणि पत्तपुव्वाणि । देहोवक्खर-परिभोगयाइदुक्खेसु य बहूसुं ।।५९६॥ १३४६. संबंधिबंधवत्ते सव्वे जीवा अणेगसो मज्झं । विविहवह-वेरजणया दासा सामी य मे आसी ६॥५९७।। १३४७. लोगसहवो धी धी ! जत्थ व माया मया हवइ धूया । पुत्तो वि य होइ पिया, पिया वि पुत्तत्तणमुवेइ ।।५९८॥ १३४८. जत्थ पियपुत्तगस्स वि माया छाया भवंतरगयस्स । तुट्ठा खायइ मंसं, इत्तो मि कट्ठयरमन्नं ? ||५९९।। १३४९. धी ! संसारो, जहियं जुवाणओ परमरूवगव्वियओ । मरिऊण जायइ किमी तत्थेव कलेवरे नियए ७॥६००॥ १३५०. बहुसो अणुभूयाइं अईयकालम्मि सव्वदुक्खाई। पाविहिइ पुणो दुक्खं न करेहिइ जो जणो धम्मं ॥६०१॥ १३५१. धम्मेण विणा जिणदेसिएण नऽन्नत्थ अस्थि किंचि सुहं । ठाणं वा कज्जं वा सदेवमणुयाऽसुरे लोए ॥६०२॥ १३५२. धम्म अत्थं कामं जाणि य कज्जाणि तिन्नि मिच्छति । जं तत्थ धम्मकज्जं तं सुभभियराणि असुभाणि १॥६०३।। १३५३. आयास-किलेसाणं वेराणं आगरो भयकरो य । बहुदुक्ख-दुग्गइकरो अत्थो मूलं अणत्थाणं २॥६०४॥ १३५४. किच्छाहि पाविउ जे पत्ता बहुभय-किलेसदोसकरा। तक्खणसुहा बहुदुहा संसारविवद्धणा कामा ३॥६०५|| १३५५. नत्थि इह संसारे ठाणं किंचि निरुवढुयं नाम । ससुराऽसुरेसुमणुए नरएसु तिरिक्खजोणीसु ॥६०६|| १३५६. बहुदुक्खपीलियाणं मइमूढाणं अणप्पवसगाणं । तिरियाणं नत्थि सुहं, नेरइयाणं कओ चेव ? ||६०७॥ १३५७. ह्यगब्भवास-जम्मण-वाहिजरा-मरण-रोग-सोगेहि। अभिभूए माणुस्से बहुदोसेहिन सुहमत्थि॥६०८||१३५८. मंस-ऽट्ठियसंघाए मुत्त-पुरीसभरिए नवच्छिड्डे। असुइं परिस्सवंते, सुहं सरीरम्मि किं अत्थि ? ॥६०९॥ १३५९. इट्ठजणविप्पओगो, चवणभयं चेव देवलोगाओ। एयारिसाणि सग्गे देवा वि दुहाणि पाविति ॥६१०॥ १३६०. ईसा-विसाय-मयकोह-लोह-दोसेहिं एवमाईहिं । देवा वि समभिभूया, तेसु वि य कओ सुहं अत्थि ? ||६११।। १३६१. एरिसयदोसपुण्णे खुत्तो संसारसायरे जीवो । जं अइचिरं किलिस्सइ तं आसवहेउअं सव्वं ॥६१२।। १६२. राग-दोसपसत्तो इंदियवसओ करेइ कम्माइं। आसवदारेहिं अवंगुएहिं तिविहेण करणेणं ॥६१३|| १३६३. धिद्धी ! मोहो, जेणिह हियकामोखलु सपावमायरइ। नहुपावं हवइ हियं, विसंजहा जीवियत्थिस्स॥६१४|| १३६४. रागस्सयदोसस्सय धिरत्थु ! जं नाम सद्दहतो वि।पावेसु कुणइ भावं आउरविज्जु व्व अहिएसुं ॥६१५॥ १३६५. लोभेण अणप्पज्झो कजं न गणेइ आयअहियं पि । अइलोहेण विणस्सइ मच्छु व्व जहा गलं गिलिओ ॥६१६।। १३६६. धम्मं अत्थं कामं तिण्णि वि कुद्धो जणो परिच्चयइ । ताई करेइ जेहि उ किलिस्सइ इहं परभवे य ।।६१७॥ १३६७. हुंति अजुत्तस्स विणावगाणि पंचिदियाणि पुरिसस्स। उरगा इव उग्गविसा गहिया मंतोसहीहि विणा ॥६१८॥ १३६८. आसवदारेहिं सया हिंसाईएहिं कम्ममासवइ । जह नावइ विणासो छिद्देहि जलं उयहिमज्झे ।।६१९।। १३६९. कम्मासवदाराइं निलंभियव्वइं इंदियाइं च । हंतव्वा य कसाया तिविहं तिविहेण मोक्खत्थं ८ ॥६२० ॥१३७०. निग्गहियकसाएहिं हु] आसवा मूलओ हया होति । अहियाहारे मुक्के रोगा इव आउरजणस्स ॥६२१||१३७१. नाणेण य झाणेण य तवोबलेण य बला निसंभंति । इंदियविसय-कसाया धरिया तुरगा वरज्जूहिं॥६२२।। १३७२. हुंति गुणकारगाई सुयरजूहिं धणियं नियमियाइं। नियगाणि इंदियाइं जइणो तुरगा इव सुदंता ।।६२३|| १३७३. मण-वयण कायजोगाजे भणिया करणसण्णिया तिण्णि । ते जुत्तस्स गुणकरा होति, अजुत्तस्स दोसकरा॥६२४।।१३७४. जो सम्भूयाइं पासइ भूए य अप्पभूएय कम्ममलेण Roof श्री आगमगुणमंजूषा - १३२६ $5555555$ FORORE Page #54 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२४-३३) दस पइन्नयसुत्तेसु ५ मरणसमाहि [४३] लिप्सो संवरियाssसवदुवारो ९ ॥ ६२५ ॥ १३७५. धण्णा सत्तहियाइं मुणेति, धण्णा करेति मुणियाई । धण्णा सुग्गइमग्गं मरंति, धण्णा गया सिद्धिं ॥ ६२६ ॥ १३७६. धण्णा कलत्तनियलेहिं विप्पमुक्का सुसत्तसंजुत्ता। वारीओ व गयवरा घरवारीओ विनिप्फिडिया ||६२७|| १३७७. धण्णा न करंति नवं संजमजोगे हिं कम्ममट्ठविहं । तवसलिलेणं मुणिणो घोयंति पुराणयं कम्मं ॥ ६२८ ।। १३७८. नाणमयवायसहिओ सीलुज्जलिओ तवोमओ अग्गी । संसारकरणबीयं दहइ दवग्गी व तणरासिं ॥ ६२९॥ १३७९. इणमो सुगइगइपहो सुदेसिओ उक्खिओ जिणवरेहिं । ते धन्ना जे एवं पह्मणवज्जं पवज्ज॑ति १० ||६३०|| १३८०. जाहे य पावियव्वं इहपरलोए य होइ कल्लाणं । ता एयं जिणकहियं पडिवज्जइ भावओ धम्मं ॥६३९॥ १३८१. जह जह दोसोवरमो, जह जह विसएसु होइ वेरग्गं । तह तह विण्णायव्वं आसन्नं पयं परमं ११ ॥६३२ ॥ १३८२. दुग्गे भवकंतारे भममाणेहिं सुचिरं पणट्ठेहिं । दिट्ठोजिणोवदिट्ठो सोग्गइमग्गो कह वि लद्धो || ६३३|| १३८३. माणुस्स-देसकुल-काल-जाइ-इंदियबलोवयाणं च । विन्नाणं सुद्धा दंसणं च दुलहं सुसाहूणं ॥ ६३४ ॥ १३८४. पत्तेसु वि एएसुं मोहस्सुदएण दुल्लहो सुपहो । कुपहबहुयत्तणेण य विसयसुहाणं च लोभेणं ||६३५|| सो य पहो उवलद्धो जस्स जए बाहिरो जणो बहुओ। संपत्ति च्चिय न चिरं, तम्हा न खमो पमाओ भे ||६३६|| १३८६. जह जह ढप्पणी समणो वेरग्गभावणं कुणइ । तह तह असुभं आयवहयं व सीयं खयमुवेइ ||६३७|| १३८७. एगअहोरत्तेण वि दढपरिणामा अणुत्तरं जंति । कंडरिओ पोंडरओ अरगई- उगमणेस १२ ॥६३८ ॥ १३८८. बारस वि भावणाओ एवं संखेवओ एवं संखेवओ समत्ताओ । भावेमाणो जीवो जाओ समुवेइ वेरग्गं ॥६३९॥ १३८९. भाविज्ज भावणाओ, पालिज्ज वयाई रयणसरिसाई। पडिपुण्णपावखमणे अइरा सिद्धिं पि पाविहिसि ॥६४०|| [गा. ६४१-५९. निव्वे ओवएसपुव्वयं पंडियमरणनिरूवणं ] १३९०. कत्थइ सुहं सुरसमं, कत्थइ निरओवमं हवइ दुक्खं । कत्थइ तिरियसरिच्छं, माणुसजाइ बहुविचित्ता ॥ ६४१|| १३९९. दहूण वि अप्पसु माणुस्सं गदोससंजुत्तं । सुठु वि हियमुवइट्ठे कज्जं न मुणेइ मूढजणो ||६४२|| १३९२. जह नाम पट्टणगओ संते मुल्लम्मि मूढभावेणं । न लहंति नरा लाह माणुसभावं तहा पत्ता ॥६४३ ॥ १३९३. संपत्ते बल - विरिए सब्भावपरिक्खणं अजाणंता। न लहंति बोहिलाभं दुग्गइमग्गं च पार्वति ||६४४|| १३९४. अम्मापियरो भाया भज्जा पुत्ता सरीर अत्यो य । भवसागरम्मि घोरे न हुंति ताणं च सरणं च ॥ ६४५ ॥ १३९५. न वि माया, न वि य पिया, न पुत्त- दारा, न बंधु । न विधणं, न वि दुक्खमुइन्नं उवसमेति ||६४६ ।। १३९६. जझ्या सयणिज्जगओ दुक्खत्तो सयण-बंधुपरिहीणो। उव्वत्तइ परियत्तइ उग्गो जह अग्गिमज्झम्मि ||६४७।। १३९७. असुइ सरीर रोगा जम्मणसयसाहणं छुहर तण्हा । उण्हं सीयं वाओ पहाभिघाया य णेगविहा || ६४८ ।। १३९८. सोग जरामरणाई परिस्समो दीणया य दारिदं । तह य पियविप्पओगा अप्पियजणसंपओगा य ॥ ६४९ | १३९९. एयाणि य अण्णाणि य माणुस्से बहुविहाणि दुक्खाणि । पंच्चक्खं, पिक्खंतो, को न मरइ तं विचिंततो ? ॥६५०॥। १४००. लद्धूण वि माणुस्सं सुदुल्लहं केइ कम्मदोसेणं । साया सुहमणुरत्ता मरणसमुद्देऽवगाहिति ॥६५१॥ १४०१. तेण उ इहलोगसुहं मोत्तूणं माणसंसियमईओ । चिरतिक्खमरणभीरू लोगसुईकरणदोगुंछी ||६५२ || १४०२. दारिद्द- दुक्ख-वेयण- बहुविहसीउण्ह-खु प्पिवासाणं । अरइ-भय- सोग सामिय-तक्कर- दुब्मिक्खमरणाई ||६५३ || १४०३. एएसि तु दुहाणं जं पडिवक्खं सुहं ति तं लोए। जं पुण अच्वंतसुहं तस्स परोक्खा सया लोया ||६५४|| १४०४. जस्स न छूहा, ण तण्हा, न य सीउण्हं, न दुक्खमुक्किडं । न य असुइयं सरीरं, तस्सऽसणाईसु किं कज्जं ? ||६५५|| १५०५. जह निंबदुमुप्पन्नो कीडो कडुयं पि मन्नएमहुरं । तह मोक्खसुहपरोक्खा संसारदुहं सुहं बिति ॥ ५५६ ।। १४०६. जे कडुयदुमुप्पन्ना कीडा वरकप्पपायवपरोक्खा । तेसिं विसालवल्लीविसं व सग्गो य मोक्खो य ॥ ६५७ ।। १४०७. तह परतित्थियकीडा विसयविसंकुरविमूढदिट्ठीया। जिणसासणकप्पतरुवरपारोक्खरसा किलिस्संति ॥६५८|| १४०८. तम्हा सोक्खमहातरुसासयसिवफलसोक्खत्तेणं । मोत्तूण लोगसण्णं पंडियमरणेण मरियव्वं ॥ ६५९ || [गा. ६६०. ६१. धम्मसुक्कज्झाणमाहप्पनिरूवणं] १४०९. जिणमयभावियचित्तो लोगसुईमलविरेणं काउं । धम्मम्मि तओ झाणे सुक्के य महं निवेसेह ||६६०|| १४१०. सुण जह जिणवयणामयभावियहियएण झाणवावारो। करणिज्नो समणेणं, जं झाणं जेसु झायव्वं ॥ ६६१ || || इति संलेहणासुयं ॥ ११ मरणविहिपंचमो उद्देसो KGRO सम्मत्तो ॥ ॥ मरणविभत्तिपइन्नयं समत्तं ||५॥ फ्र 演 श्री आगमगुणमंजूषा - १३२७OYOR Page #55 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 945 5 555555 (२४-३३) दस पइन्नयसुत्तेसु. ६ आउर पच्चक्खाणं (A) [४४] OE编听听听听乐乐乐听听听听听听听听 HOTO乐乐乐乐乐明明乐乐乐乐乐乐乐听听听听听听听听听听听听听听听乐乐乐乐历乐乐乐乐乐乐乐明明明明明明明明OM ६ आउरपच्चक्खाणं A [गा. १-५ पंचमंगलसुमरणपुव्वं पाववोसिरणं] १४११. अरहंता मंगलं मज्झ, अरहंता मज्झ देवया । अरहते कित्तइत्ताणं वोसिरामि त्ति पावगं ॥१॥ १४१२. सिद्धा य मंगलं मज्झ, सिद्धा य मज्झ देवया। सिद्धे य कित्तइत्ताणं वोसिरामि त्ति पावगं ॥२॥ १४१३. आयरिया की मंगलं मज्झ, आयरिया मज्झ देवया। आयरिए कित्तइत्ताणं वोसिरामि त्ति पावगं ॥३॥१४१४. उज्झाया मंगलं मज्झ, उज्झाया मज्झ देवया। उज्झाए कित्तइत्ताणं वोसिरामि त्ति पावगं ॥४॥ १४१५. साहवो मंगलं मज्झ, साहवो मज्झ देवया । साहवो कित्तइत्ताणं वोसिरामि त्ति पावगं ॥५॥ [गा. ६-८. अरहंताईणं खामणाङ १४१६. अरहंत-सिद्ध-पवयण-आयरिए गणहरे महिड्डए। जं आसाइया तिविहेणं खामेमो सव्वभावेणं ॥६॥ १४१७. साहूण साहुणीण य सावय-सावीण चउविहो संघो । जं मण-वय-काएहिं आसाइय तं पि खामेमि ॥७॥ १४१८. खामेमि सव्वे जीवे, सव्वेजीवा खमंतु मे। मित्ती मे सव्वभूएसु, वेरं मझं न केणइ ॥८॥ [गा. ९. उत्तिमट्ठाराहणा] १४१९. नमो समणस्स भगवओ महइ-महावीर-वद्धमाणसामिस्स । उत्तिमढे गयमणो पच्चक्खामि त्ति पावगं ||९|| [सु. १०. अट्ठारसपावट्ठाणवोसिरणं] १४२०. सव्वं पाणाइवायं १ सव्वं मुसावायं २ सव्वं अदिन्नादाणं ३ सव्वं मेहुणं ४ सव्वं परिग्गहं ५ सव्वं कोहं माणं ७ सव्वं माय ८ सव्वं लोभं ९ सव्वं पेज्नं १० दोसं ११ कलह १२ अब्भक्खाणं १३ अरइरई १४ पेसुन्नं १५ परपरिवायं १६ मायामोसं १७ मिच्छादसणसल्लं १८, इच्चेइयाइं अट्ठारस पावट्ठाणाइं जावज्जीवाए तिविहं तिविहेणं, मणेणं वायाए काएणं, न करेमि न कारवेमि करतं पि अन्नं न समणुजाणामि, अईयं निंदामि, पडुप्पन्नं संवरेमि, अणागयं पच्चक्खामि, तं जहा अरहंतसक्खियं सिद्धसक्खियं साहुसक्खियं देवसक्खियं अप्पसक्खियं सव्वसमाहिवत्तिगारेणं वोसिरामि ॥१०॥ [सु. ११. गा. १२. सरीराइवोसरिरणा] १४२१. जं पिय इमं सरीरं इ8 कंतं पियं मणुन्नं मणामं नामधिज्जं सेवासियं अणुमयं बहुमयं भंडकरंडगसमाणं रयणकरंडगभूयं उवहि व्व सुरक्खियं मा णं सीयं, मा णं उण्हं, मा णं खुहा, मा णं पिवासा, माणं दंसा, मा णं मसगा, मा णं चोरा, माणं वाला, मा णं वाइय-पित्तिय-सिभिय-सन्निवाइया विविहा रोगायंका यफुसंतु, इमं पिसरीरं अपच्छिमेहिं ऊसास-नीसासेहिं जावज्जीवाए वोसिरामि त्ति कट्टजे केइ उवसग्गा दिव्वा वा माणुस्सा वा तिरिक्खजोणिया वा ते सव्वे सम्म सहियव्वा खमियव्वा अहियासियव्वा तितिक्खियव्व त्ति कट्ट ||११|| १४२२. आहारं उवहिं देहं पुब्विं दुच्चिन्नाणि य । अपच्छिमऊसासनीसासेहिं सव्वं तिविहेण वोसिरे ॥१२|| [गा. १३-१४. अपच्छिमसागार-निरागारपच्चक्खाणं ] १४२३. इच्चेइयं निरागारं पच्चक्खाणं तु कित्तियं । कालस्स परिमाणेणं सागरं तं वियाहियं ॥१३|| १४२४. भावेइ भावियप्पा अणिच्चयाईओ भावणा सव्वा । खामेइ सव्वसत्ते खमइ यसो सव्वसत्ताणं १४॥ [गा. १५-२७. सव्वजीवखामणा] १४२५. संसारम्मि अणते परिभमाणेण विविहजाईसु। पुढवित्तमुगएणं जे दूमिया ते विखामेमि||१५||१४२६. संसारम्मि अणते परिभममाणेण विविहजाईसु । आउत्तमुवगएणं जे दूमिया ते वि खामेमि ।।१६।। १४२७. संसारम्मि अणंते परिभममाणेण विविहजाईसु । तेउत्तमुवगएणं जे दुमिया ते वि खामेमि ॥१७॥ १४२८. संसारम्मि अणंते परिभममाणेण विविहजाईसु । वाउत्तमुवगएणं जे दूमिया ते वि खामेमि ॥१८॥ १४२९. संसारम्मि अणते परिभममाणेण विविहजाईसु । वणस्सइत्तमुवगएणं जे दूमिया ते वि खामेमि ||१९|| १४३०. संसारम्मि अणते परिभममाणेण विविहजाईसु । विगलत्तमुवएणं जे दूमिया ते वि खामेमि ॥२०॥ १४३१.संसारम्मि अणते परिभममाणेण विविहजाईसु । नरयत्तमुवगएणं जे दूमिया ते विखामेमि ||२१|| १४३२. संसारम्मि अणंते परिभममाणेण विविहजाईसु । तिरियत्तमुवगएणं जे दूमिया ते वि खामेमि ||२२|| १४३३. संसारम्मि अणते परिभममाणेण विविहजाईसु। मणुयत्तमुवगएणं जे दूमिया ते विखामेमि ॥२३॥ १४३४. संसारम्मि अणंते परिभममाणेण विविहजाईसु । देवत्तमुवगएणं जे दूमिया ते वि खामेमि ॥२४॥ १४३५. इय एग दो य तिण्णि य चउरो पंचिदियत्तजुत्तेणं । नाणाविहनारय-तिरिय-मणुय-देवत्तपत्तेणं ||२५|| १४३६. मणसा वयसा काएण दूमिया जे मएऽत्थ संसारे । खामेमि अहं सव्वे, मज्झ वि य के खमंतु ते सव्वे ॥२६|| १४३७. वोलीणाणागय-वट्टमाणकालेसु तिसु वि सत्ताणं । जं मण-वइ-काएहिं खामे हं तमिह दुच्चरियं ॥२७|| [गा. २८-३०. अत्ताणुसट्ठी] २.१४३८. एको हं नत्थि मे कोइ, न याहमवि कस्सई । एवं अदीणमणसो अत्ताणमणुसासए ।।२८॥ १४३९. एगो मे सासओ अप्पा नाण-दसणसंजुओ। सेसा मे ही MOTKORE5 9 999999999359545श्री आगमगुणमंजूषा - १३२८15 5 5555415595450518655555555OOR GO乐乐乐玩玩乐乐乐玩玩乐乐安乐乐明明听听听听听乐听听听听听听听听听听听听听听听乐听听听听听听听听听FOX Page #56 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ORO5% %%%%%%%%%明 (२४-३३) दस पइन्नयसुत्तेसु- आउर पच्चक्खाणं (B) [१५] %%%%%%%%%%% OISO明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明乐乐乐乐乐玩玩乐乐乐玩玩乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐听听FOO迅 र बाहिराभावा सव्वे संजोगलक्खणा ॥२९॥ १४४०. संजोगमूला जीवेणं पत्ता दुक्खपरंपरा । तम्हा संजोगसंबंधं सव्वं तिविहेण वोसिरे ॥३०॥ **|आउरपच्चक्खाणं ॥६॥★★★卐 आउरपच्चक्खाणं 5 B [गा. १उवुगधाओ ] १४४१. कुससत्थरे निसन्नो भावेण निहित्तनमियकरकमलो। आउरपच्चक्खाणं एरिसयं नवरि जंपतो ॥१॥ [गा. २-३. अविरइपच्चणं ] १४४२. सव्वं पाणरंभं अलीयवयणं अदत्तदाणं च। राईभोयणविरई [अब्बंभ-परिग्गहाओ य |२| १४४३. सयणेसु परजणेसुय पुत्त-कलत्तेसुपरजणे चेव । स-परजणम्मि ममत्तं पच्चक्खायं मए सव्वं ||३|| [गा. ४-५. मिच्छादुक्कडं] १४४४. नरयम्मि वि नेरइया, तिरिया तिरियत्तणम्मि जे केइ। दुक्खेण मए ठविया मिच्छा मिह दुक्कडं तस्स ॥४||१४४५. देवत्तणम्मि देवा, मणुया मणुयत्तणम्मि जे केइ । दुक्खेण मए ठविया मिच्छा मिह दुक्कडं तस्स ||५|| [गा. ६-१३. ममत्तच्चाओ] १४४६. देवत्तणम्मि बहुसो रणंतरसणाओ गुरुनियंबाओ। मुक्काओ अच्छराओ, मारज्जसुअसुइनारीसु॥६॥ १४४७. वज्जेंदनील-मरगयसमप्पहंसासयंवरं भवणं । मुक्कं सग्गम्मितए, वोसिर जरकडणिकयमेयं ॥७॥ १४४८. नाणामणि-मोत्तियसंकुलाओ आबद्धइंदधणुयाओ । रयणाणं रासीओ मोत्तुं मा रएज्ज विभवेसु ।।८।। १४४९. जे केइ देवदुसे दिव्वं मे(?) दिव्वदेसरिसिल्ले । मुत्तूण तुमं तइया संपइ मा सुमर कंथइयं ।।९।। १४५०. वररयणनिम्मियं पिव कणयमयं कुसुमरेणसुकुमालं । चइऊण त्थ देहं कुण जरदेहम्मि मा मुच्छं ॥१०॥ १४५१. देहं असुइ दुगंधं भरियं पुण पित्त-सुक्क-रुहिराणं । रे जीव ! इमस्स तुम मा उवीरें कुणसु पडिबंधं ॥११॥ १४५२. मा कुणसुतं नियाणं सग्गे किर एरिसीओ रिद्धीओ। मा चितेहिं सुपरिस ! होइ सयां नेव जंजोगं (?) ॥१२॥ १४५३. पुनं पावं च दुवे वच्चइ जीवेण णवरि सह एयं । जं पुण इमं सरीरं कत्तोतं चलइ ठाणाओ ? ॥१३॥ [गा. १४-१८. देहस्स उवालंभो] १४५४. मा मे छुहा भविस्सइ इमस्स देहस्स संबंलं बूढं । तेणं चिय देह ! तुम खल ! गहिओ किंन सुकएणं? ॥१४॥ १४५५. मा मे तण्हा होही मरुत्थलीसुं पिपाणियं वूढं । तेणं चिय देह! तुम खल ! गहिओ किं न सुकएणं ? ॥१५॥ १४५६. मा मे उण्हं होही इमस्स देहस्स छत्तय धरियं । तेणं चिय देह ! तुमं खल ! गहिओ किं न सुकएणं ? ॥१६।। १४५७. मा मे सीयं होही पावरियं वत्थ-कंबलसएहि । वच्चंते पुण जीवे खलस्स कथं पिनो चलियं ॥१७॥ १४५८. बहुलालियस्स बहुपालियस्सतह सुरहिगंध-मल्लस्स। खल देह ! तुज्झ जुत्तं पयं पिनो देसि गंतव्वे॥१८॥ [गा. १९२५. सुहभावणा ] १४५९. सारीर-मणसेहिं दुक्खेहिं अभिडुयम्मि संसारे । सुलहमिणं जं दुक्खं, दुलहा सद्धम्मपडिवत्ती ॥१९॥ १४६०. धन्नो हं जेण मए अणोरपारस्मि भवसमुद्दम्मि । नटुं(?लद्धं) जिणिंदपोयं जं दुलभं भवसएहिं पि ॥२०॥ १४६१. तिरियत्तणम्मि बहुसो पत्ताओ तुमे अणेगवियणाओ । ता ताई संभरंतो विसहेजसु वेयणं एयं ॥२१॥ १४६२. नरयम्मि वि जीव ! तुमे नाणादुक्खाई जाइं सहियाइय । इण्डिं ताई सरेत्तुं विसहेजसु वेयणं एयं ॥२२॥ १४६३. एसो(?एवं) सुहपरिणामो चाणक्को पयहिऊण नियदेहं । उववन्नो सुरलोए, पच्चक्खायं मए सव्वं ॥२३|| १४६४. जाव न मुंचामि लहुँ पाणेहिं एत्थ जाव संदेहो। ताव इमं जिणवयणं सरामि सोमं मणं काउं॥२४॥ १४६५. तम्हा पुरिसेण सया अप्पहियं चेव होइ कायव्वं । मरणम्मि समावन्ने संपइ सुमरामि अरहता ॥२५|| [गा. २६-३४. अरहताइसुमरण-पावट्ठाणपच्चक्खाणमिच्छादुक्कडाइयं] १४६६. नमो अरहताणं, सिद्धाण नमोय सुहसमिद्धाणं। आयरिउवझायाणं नमो, नमोसव्वसाहणं ॥२६|| १४६७. हिंसा-ऽलिय-चोरिक्के मेहुण्ण परिग्गहे य निसिभते । पच्चक्खामि य मरणे विविहं आहार-पाणाणं ॥२७|| १४६८. परमत्थो तं न सरिमो संथारो नेय फासुया भूमी। हिययं जस्स विसुद्धं तस्सेव य होइ संथारो॥२८॥ १४६९. एक्को जायइ जीवो, मरई उप्पज्जएतहा एक्को । संसारे भमइ एक्को, एक्को च्चिय पावई सिद्धिं ॥२९॥ १४७०. नाणम्मि दंसणम्मिय तहा चरित्तम्मि सासओ अप्पा । अवसेसा दुब्भावा वोसिरिया ते मए सव्वे ॥३०॥ १४७१.जे मे जाणंति जिणा अवराहा तेसु तेसु ठाणेसु। ते हं आलोएमि उवढिओ सव्वभावेणं ॥३१॥ १४७२. छउमत्थो मूढमणो केतियमेत्तं च संभरइ जीवो। जन वि सुमरेमि अहं मिच्छा मिह दुक्कडं तस्स ई ॥३२॥ १४७३. जइ मे होज पमाओ इमस्स देहस्सिमाए रयणीए । आहारं उवहिं देहं पुव्विं दुच्चिन्नाणि य ॥३३॥ १४७४. .......... पुव्विं दुच्चिन्नाणि य । * अपच्छिम्मि ऊसासे सव्वं तिविहेण वोसिरामि ॥३४॥★★★॥ आउरपच्चक्खाणं समत्तं ॥★★★ ॥ zoo5555555555555555555555555 श्री आगमगणमंजषा - 2075555555555555555555555555Yox Gin Educalon International For PrivatesPel ww.jainelibrary. Page #57 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२४-३३) दस पन्त्रयसुत्तेसु 9 महापच्चक्खाणं 5 महापच्चक्खाणपइण्णयं 55 [गा. १-२. मगंलमभिधेयं च] १४७५. एस करेमि पणामं तित्थयराणं अणुत्तरगईणं । सव्वेसिं च जिणाणं सिद्धाणं संजयाणं च || १ || १४७६. सव्वदुक्खप्पहीणाणं सिद्धाणं अरहओ नमो । सद्दहे जिणपन्नत्तं पच्चक्खामि य पावगं ॥२॥ [ गा. ३-५. विविहा वोसिरणा] १४७७. जं किंचि वि दुच्चरियं तमहं निंदामि सव्वभावेणं । सामाइयं च तिविहं करेमि सव्वं निरागारं ॥ ३॥। १४७८. बाहिरऽब्भंतरं उवहिं सरीरादि सभोयणं । मणसा वय काएणं सव्वं तिविहेण वोसिरे ||४|| १४७९. रागं बंध पओसं च हरिसं दीणभावयं । उस्सुगत्तं सोगं रइमरडं च वोसिरे ॥ ५॥ [गा. ६-७ सव्वजीवखामणा] १४८०. रोसेण पडिनिवेसेण अकयण्णुयया तहेव सढयाए । जो मे किंचि वि भणिओ तमहं तिविहेण खामेमि || ६ || १४८१. खामेमि सव्वजीवे सव्वे जीवा खमंतु मे । आसवे वोसिरित्ताणं समाहिं पडिसंघए ॥ ७॥ [गा. ८. निंदणा- गरहणा - आलोयणाओ ] १४८२. निंदामि निंदणिज्जं गरहामि य जं च मे गरहणिज्जं । आलोएमि य सव्वं जिणेहिं जं जं च पडिकुडं ॥८॥ [ गा. ९-११. ममत्तछेयणं आयधम्मसरूवं च ] १४८३. उवही सरीरगं चेव आहारं च चउव्विहं । ममत्तं सव्वदव्वेसु परिजाणामि केवलं ॥९॥ १४८४. ममत्तं परिजाणामि निम्ममत्ते उवट्ठिओ । आलंबणं च मे आया अवसेसं च वोसिरे ॥१०॥ १४८५. आया मज्झं नाणे आया मे दंसणे चरित्ते य । आया पच्चक्खाणे आया मे संजमे जोगे ॥ ११ ॥ [ गा. १२. मूलत्तरगुणाराहणापुव्वं निंदणाइपरूवणं १४८६. मूलगुणे उत्तरगुणे जे मे नाऽऽराहिया पमाएणं । ते सव्वे निंदामिं पडिक्कमे आगमिस्साणं ||१२|| [गा. १३-१६. एगत्तभावणा] १४८७. एक्को हं नत्थि मे कोई, न चाहमवि कस्सई । एवं अदीणमणसो अप्पाणमणुसास ॥१३॥ १४८८. एक्को उप्पज्जए जीवो, एक्को चेव विवज्जई । एक्स्स होइ मरणं एक्को सिज्झइ नीरओ ॥ १४ ॥ १४८९. एक्को करेइ कम्मं, फलमवि तस्सेक्कओ समणुहवइ । एक्को जायइ मरइ य, परलोयं एक्कओ जाइ ॥ १५ || १४९०. एक्को मे सासओ अप्पा नाण- दंसणलक्खणो । सेसा मे बाहिरा भावा सव्वे संजोगलक्खणा ||१६|| [गा. १७. संजोगसंबंधवोसिरणा] १४९१. संजोगमूला जीवेणं पत्ता दुक्खपरंपरा । तम्हा संजोगसंबंध सव्वं तिविहेण वोसिरे || १७|| [गा. १८-१९ असंजमाईणं निंदणा मिच्छत्तचागो य] १४९२. अस्संजममण्णाणं मिच्छत्तं सव्वओ वि य ममत्तं । जीवेसु अजीवेसु य तं निंदे तं च गरिहामि ॥ १८ ॥ १४९३. मिच्छंत्तं परिजाणामि सव्वं अस्संजमं अलीयं च । सव्वत्तो य ममत्तं चयामि सव्वं च खामेमि ||१९|| [गा. २०. अण्णायावराहालोयणा ] १४९४. जे मे जाणंति जिणा अवराहा जेसु जेसु ठाणेसु । ते हं आलोएमी उवडिओ सव्वभावे णं ॥ २०॥ [गा. २१. मायानिहणणोवसएसो ] १४९५. उप्पन्नाऽणुप्पन्ना माया अणुमग्गओ निहंतव्वा । आलोयण- निंदण गरिहणाहिं न पुण त्ति या बीयं । २१|| [गा. २२-२३. आलोयगस्स सरूवं मोक्खगामित्तं च] १४९६. जह बालो जंपतो मनं च उज्जु भणइ । तं तह आलोइज्जा माया-मयविप्पमुक्को उ ||२२|| १४९७. सोही उज्जुयभूयस्स धम्मो सुद्धस्स चिट्ठई । निव्वाणं परमं जाइ घयसित्ते व पावए ॥२३॥ [गा. २४-२९. सल्लुद्धरणपरूवणा] १४९८. न हु सिज्झई ससल्लो जह भणियं सासणे धुयरयाणं । उद्धरियसव्वसल्लो सिज्झइ जीवो धुकलेसो | २४|| १४९९. सुबहुं पि भावसल्लं जे आलोयंति कुरुसगासम्मि । निसल्ला संघारगमुवंति आराहगा होति ||२५|| १४६६. अप्पं पि भावसल्लं जे णाऽऽलोयंति गुरुसगासम्मि । धंतं पि सुयसमिद्धा न हु ते आराहगा होति ||२६|| १४६७. न वि तं सत्यं व विसं व दुप्पउत्तो व कुणइ वेयलो । जंतं व दुप्पउत्तं सप्पो व पमायओ कुद्धो ॥२७॥ १४६८. जं कुणइ भावसल्लं अणुद्धियं उत्तिमट्टकालम्मि। दुल्लंभबोहियत्तं अणंतसंसारियत्तं च ॥ २८ ॥ १५००. तो उद्धरंति गारवरहिया मूलं पुणभवलयाणं । मिच्छादंसणसल्लं मायासल्लं नियाणं च ॥ २९ ॥ [ गा. ३०. आलोयणाफलं ] १५०१. कयपवों वि मणूसो आलोइय निदिउं गुरुसगासे । होइ अइरेगलहुओ ओहरियभरु व्व भारवहो ||३०|| [गा. ३१-३२. पायच्छित्ताणुसरणपरूवणा] १५०२. तस्स य पायच्छित्तं जं मग्गविऊ गुरू उवइसंति । तं तह असरियव्वं अणवत्थपसंगभीएणं ||३१|| १५०३. दसदोसविप्पमुक्कं तम्हा सव्वं अगूहमाणेणं । जं किंपिं कयमकज्जं तं जहवत्तं कहेयव्वं ॥ ३२॥ [गा. ३३-३४. पाणवहाइपच्चक्खाणं असणाइवोसिरणा य] १५०४. सव्वं पाणारंभं पच्चक्खामी य अलियवयणं च । सव्वमद्दिन्नादाणं अब्बंभ परिग्गहं चेव ||३३|| १५०५. सव्वं पि असण पाणं चउव्विहं जो य बाहिरो उवही । अब्भिंतरं च उवहिं सव्वं तिविहेण वोसिरे ॥ ३४ ॥ [ गा. ३५-३६. पालणासुद्ध-भावसुद्धपच्चक्खाणसरूवं] १५०६. XCK श्री आगमगुणमंजूषा १३३० [४६] 5 5 5 5 5 $$$$$$$$ Page #58 -------------------------------------------------------------------------- ________________ AGRO55555555555559 (२४-३३) दस पइन्नयसुत्तेसु -महापचक्खाणं [१७] $$ %%%% %% %% %% %% % % C%乐乐乐乐乐国乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐玩玩乐乐乐乐乐乐乐乐明明听听听听听听听听听听听GO कंतारे दुब्भिक्खे आयंके वा महया समुप्पन्ने । जं पालियं, न भग्गं तं जाणसु पालणासुद्धं ॥३५॥ १५०७. रागेण व दोसेण व परिणामेण व न दूसियं जं तु । तं खलु पच्चक्खाणं भावविसुद्धं मुणेयव्वं ॥३६।। [गा. ३७-४०. निव्वेओवएसो ] १५०८. पीयं थणयच्छीरं सागरसलिलाउ बहुतरं होज्जा | संसारम्मि अणंते माईणं अन्नमन्नाणं ॥३७।। १५०९. बहुसो वि एव रुण्णं पुणो पुणो तासु तासु जाईसु । नयणोदयं पिजाणसु बहुययरं सागरजलाओ ॥३८॥ १५१०. नत्थि किर सो पएसो लोए वालग्गकोडिमित्तो वि । संसारे संसरंतो जत्थ न जाओ मओ वा वि ॥३९॥ १५११. चुलसीई किल लोए जोणीणं पमुहसयसहस्साई । एक्केक्कम्मि य एत्तो अणंतखुत्तो समुप्पन्नो ।।४०|| [गा. ४१-५०. पंडियमरणपरूवणा] १५१२. उड्डमहे तिरियम्मि य मयाइं बहुयाई बालमरणाई। तो ताइं संभरंतो पंडियमरणं मरीहामि ॥४१।। १५१३. माया मि त्ति पिया मे भाया भगिणी य पुत्त धीया य । एयाई संभरंतो पंडियमरणं मरीहामि ॥४२॥ १५१४. माया-पिई-बंधूहि संसारत्थेहि पूरिओ लोगो । बहुजोणिवासिएणं न य ते ताणं च सरणं च ।।४३।। १५१५. एक्को करेइ कम्मं एक्को अणुहवइ दुक्कयविवागं । एक्को संसरइ जिओ जर-मरणचउग्गईगुविलं ॥४४॥ १५१६. उव्वेयणयं जम्मण-मरणं नरएसु वेयणाओ वो । एयाइं संभरंतो पंडियमरणंमरीहामि ॥४५॥ १५१७. उव्वेयणयं जम्मण-मरण तिरिएसु वेयणाओ वा । एयाई संभरंतो पंडियमररणं मरीहामि॥४६॥ १५१८. उव्वेयणयं जम्मणं-मरणं मणुएसु वेयणाओ वा । एयाई संभरंतो पंडियमरणं मरीहामि ॥४८|| १५१९. एक्वं पंडियमरणं छिंदइ जाईसयाईमहुयाई । तं मरणं मरियव्वं जेण मओ सुम्मओ होइ ॥४९|| १५२०. कइया णु तं सुमरणं पंडियमरणं जिणेहिं पन्नत्तं । सुद्धोउद्धियसल्लोपाओवगओमरीहामि? ||५०|| [गा.५१-६७. निव्वेओवएसो] १५२१. भवसंसारे सव्वे चउविहे पोग्गला मए बद्धा । परिणामपसंगणं अट्ठविहे कम्मसंघाए॥५१॥ १५२२. संसारचक्कवाले सव्वे ते पोग्गला मए बहुसो। आहारिया य परिणामिया यन य हंगओ तित्तिं॥५२॥ १५२३. आहारनिनित्तागं अयं सव्वेसु नरयलोएसु। उववण्णो मि सुबहुसो सव्वासु य मिच्छजाईसु॥५३|| १५२४. आहारनिमित्तागं मच्छा गच्छंति दारुणे नरए। सच्चित्तो आहारोन खमो मणसा वि पत्थेउं॥५४॥ १५२५. तण-कट्ठण व अग्गी लवणजलो वा नईसहस्सेहि। न इमो जीवो सक्को तिप्पेउं काम-भोगेहिं॥५५॥ १५२६. तण-कटेण व अग्गी लवणजलो वा नईसहस्सेहि। न इमो जीवो सक्को तिप्पेउं अत्थसारेणं ॥५६॥ १५२७. तण-कट्टेण व अग्गी लवणजलो वा नईसहस्सेहि। न इमोजीवो सक्को तिप्पेउं भोयणविहीए ॥५७|| १५२८. वलयामुहसामाणो दुप्पारो व णरओ अपरिमेज्जो । न इमो जीवो सक्को तिप्पेउं गंध-मल्लेहिं ॥५८॥ १५२९. अवियण्होऽयं जीवो अईयकालम्मि आगमिस्साए। सहाण य रूवाण य गंधाण रसाण फासाणं ॥५९॥ १५३०. कप्पतरुसंभवेसू देवुत्तरकुरवसंपसूएसु। उववाए ण य तित्तो, न य नरविज्जाहर-सुरेसु॥६०।। १५३१. खइएण व पीएण व न य एसो ताइओ हवइ अप्पा । जइ दुग्गई न वच्चइ तो नूणं ताइओ होइ ।।६१।। १५३२. देविंद-चक्कवट्टित्तणाई रज्जाई उत्तमा भोगा । पत्ता अणंतखुत्तो न य ह तित्तिं गओ तेहिं ।।६२।। १५३३. खीरधगुच्छुरसेसुं साऊसु महोदहीसु बहुसो वि । उववण्णो ण तण्हा चिन्ना मे सीयलजलेणं ।।६३।। १५३४. तिविहेण य सुहमउलं तम्हा कामरइविसयसोक्खाणं । बहुसो सुहमणुभूयं न य सुहतण्हा परिच्छिण्णा ॥६४|| १५३५. जा काइ पत्थणाओ कया मए राग-दोसवसएणं । पडिबंधेण बहुविहं तं निदे तं च गरिहामि ॥६५॥१५३६. हंतूण मोहजालं छेत्तूण य अट्ठकम्मसंकलियं । जम्मण-मरणरहट्ट भेत्तुण भवाओ मुच्चिहिसि ॥६६॥ १५३७. पंच य महव्वयाइं तिविहं तिविहेण आरुहेऊणं । मण-वयण-कायगुत्तो सज्जो मरणं पडिच्छिज्जा ||६७|| [गा.६८-७६. पंचमहव्वयरक्खापरूवणा] १५३८. कोहं माणं मायं लोहं पिज्जं तहेय दोसं च । चइऊण अप्पमत्तो रक्खामि महव्वए पंच ॥६८॥ १५३९. कलहं अब्भक्खाणं पेसुण्णं पि य परस्स परिवायं । परिवजंतो गुत्तो रक्खामि महव्वए पंच ||६९॥ १५४०. पंचेंदियसंवरणं पंचेव निरूंभिऊण कामगुणे । अच्चासातणभीओ रक्खामि महव्वए पंच ॥७०॥ १५४१. किण्हा नीला काऊ लेसा झाणाई अट्ट-रोदाई । परिवज्जितो गुत्तो रक्खामि महव्वए पंच ७१।। १५४२. ताऊ पम्हा सुक्का लेसा झाणाई धम्म-सुक्काई । उवसंपन्नो जुत्तो रक्खामि महव्वए पंच ॥७२॥१५४३. मणसा मणसच्चविऊ वायासच्चेण करणसच्चेण । तिविहेण वि सच्चविऊ रक्खामि महव्वए पंच ॥७३॥ १५४४. सत्तभयविप्पमुक्को चत्तारि निलंभिऊणय कसाए । अट्ठमयट्ठाणजढो रक्खामि महव्वए पंच [७४॥ १५४५. गुत्तीओ समिई-भावणाओ pro4555555555555555 श्री आगमगुणमजूषा - १३३१ 555555EEEEEEEEEEE E GLOR Page #59 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (GKO卐卐卐卐卐卐五五五五五五五五五 (२४-३३) दस पन्नयसुत्तेसु महापच्चक्खाणं [४८] नाणं च दंसणं चेव । उवसंपन्नो जुत्तो रक्खामि महव्वए पंच ||७५ || १५४६. एवं तिदंडविरओ तिकरणसुद्धा तिसल्लनिस्सल्लो। तिविहेण अप्पमत्तो रक्खामि महव्वए पंच ॥७६॥ [गा. ७७. गुत्ति - समइपाहण्णपरूवणा] १५४७. संगं परिजाणामिं सल्लं तिविहेण उद्धरेऊणं । गुत्तीओ समिईओ मज्झं ताणं च सरणं च ॥७७॥ [गा. ७८-७९. तवमाहप्पं ] १५४८. जह खुहियचक्कवाले पोयं रयणभरियं समुद्दम्मि । निज्जामगा धरेंती कयकरणा बुद्धिसंपण्णा ।। ७८ ।। १५४९. तवपोयं भरियं परीसम्मीहि खुहिउमारदं । तह आराहिंति विऊ उवएसऽवलंबगा धीरा ॥ ७९ ॥ [गा. ८०-८४. अप्पट्टसाहणपरूवणा] १५५०. जइ ताव ते सुपुरिसा आयारोवियभरा निरवयक्खा । पब्भार-कंधरगया साहिंती अप्पणो अहं ॥ ८० ॥ १५५१. जइ ताव ते सुपुरिसा गिरिकंदर - कडग- विसम- दुग्गेसु । धिइधणियबद्धकच्छा साहिंती अप्पणो अहं ॥ ८१ ॥ १५५२. किं पुण अणगारसहायगेण अण्णोण्णसंगहबलेणं । परलोएणं सक्का साहेउं अप्पणो अहं ? ॥ ८२ ॥ १५५३. जिणवयणमप्पमेयं महुरं कण्णाहुइं सुणंतेणं। सक्का हु साहुमज्झे साहेउं अप्पणो अहं ॥ ८३ ॥ १५५४. धीरपुरिसपण्णत्तं सप्पुरिसनिविसेयं परमघोरं । धन्ना सिलायलगया हं अप्पणो अहं ॥८४॥ [गा. ८५-८९. अकारियजोग हाणि - गुणपरूवणा] १५५५. बाहिति इंदियाई पुव्वमकारियपइण्णचारीणं । अकयपरिकम्म कीवा कारियजोगाणं मरणे सुयसंपयामि ॥ ८५|| १५५६. पुव्वमकारियजोगो समाहिकामो य मरणकालम्मि । न भवइ परीसहसहो विसयसुहसमुइओ अप्पा ||८६|| १५५७. पुव्विं कारियजोगो सामाहिकामो य मरणकालम्मि । स भवइ परीसहसहो विसयसुहनिवारिओ अप्पा ॥८७॥ १५५८. पुव्विं कारियजोगो अनियाणो ईहिऊण मइपुव्वं । ताहे मलियकसाओ सज्जो मरणं पडिच्छेज्ना ॥८८॥। १५५९. पावाणं पावाणं कम्माणं अप्पणो सकम्माणं । सक्का पलाइउं जे तवेण सम्मं पउत्तेणं ॥८९॥ [गा. ९१९२. पंडियमरणपरूवणा] १५६०. एक्कं पडियमरणं पडिवज्जिय सुपुरिसो असंभंतो । खिप्पं सो मरणाणं काही अंतं अणंताणं ॥ ९० ॥ १५६१. किं तं पंडियमरणं ? काण व आलंबणाणि भणियाणि ? । एयाई नाऊणं किं आयरिया पसंसंति ? || ११ || १५६२. अणसण पाओवगमं आलंबण झाण भावणाओ य । एयाइं नाऊ पंडियमरणं पसंसंति ॥९२॥ [ गा. ९३-९४. अणाहारगसरूवं] १५६३. इंदियसुहसाउलओ घोरपरीसहपराइयपरज्झो। अकयपरिकम्म कीवो मुज्झइ आराहणाकाले ॥९३॥ १५६४. लज्जाइ गारवेण य बहुस्सुयमएण वा वि दुच्चरियं । जे न कहिंति गुरूणं न हु ते आराहगा होति ।। ९४ ।। [गा. ९५. आराहणामाहप्पं ] १५६५. सुज्झइ दुक्करकारी, जाणइ मग्गं ति पावए कित्तिं । विणिगूहिंतो जिंदइ, तम्हा आराहणा सेया ॥ ९५ ॥ [ गा. ९६. विसुद्धमणापाहण्णं ] १५६६. न वि कारणं तणमओ संथारो, न वियफासुया भूमी । अप्पा खलु संथारो होइ विसुद्धो मणो जस्स || ९६ || [गा. ९७-९८. पमायदोसपरूवणा ] १५६७. जिणवयणअणुगया मे होउ मई झाणजोगमल्लीणा । जह तम्मि देसकाले अमूढसन्नो चयइ देहं ||१७|| १५६८. जाहे होइ पमत्तो जिणवरवयणरहिओ अणाउत्तो। ताहे इंदियचोरा करिति तवसंजमविलोमं ॥९८॥ [ गा. ९९-१००. संवरमाहप्पं ] १५६९. जिणवयणमणुगयमई जं वेलं होइ संवरपविट्ठो । अग्गी व वाउसहिओ समूलडालं डहइ कम्मं ॥ ९९ ॥ १५७०. जह डहइ वाउसहिओ अग्गी रुक्खे वि हरियवणसंडे । तह पुरिसकारसहिओ नाणी कम्मं खयं ई ॥ १०० ॥ [ गा. १०१ ६. नाणपाहण्णपरूवणा] १५७१. जं अन्णी कम्मं खवेइ बहुयाहिं वासकोडीहिं । तं नाणी तिहिं गुत्तो खवेइ ऊसासमित्तेणं ॥ १०१ ॥ १५७२. न हु मरणम्मि उवग्गे सक्का बारसविह सुयक्खंधो। सव्वो अणुचिंतेउं धंतं पि समत्थचित्तेणं ॥ १०२ ॥ १५७३. एक्काम्मि वि जम्मि पए संवेगं कुणइ वीयरायमए । तं तस्स होइ नाणं जेण विरागत्तणमुवेइ ॥१०३॥ १५७४. एक्काम्मि वि जम्मि पए संवेगं कुणइ वीयरायमए । सो तेण मोहजालं छिंदइ अज्झप्पयोगेणं ॥ १०४ ॥ १५७५. एक्काम्मि वि जम्मि पए संवेगं कुणइ वीयरायमए । वच्चइ नरो अभिक्खं तं मरणं तेण मरियव्वं ॥ १०५ ॥ १५७६. जेण विरागो जायइ तं तं सव्वायरेण कायव्वं । मुच्चइ हु ससंवेगी, अनंतओ हो असंवेगी ॥ १०६॥ [गा. १०७. जिणधम्मसद्दहणा] १५७७. धम्मं जिणपन्नत्तं सम्ममिणं सद्दहामि तिविहेणं । तस थावरभूयहियं पंथं नेव्वाणगमणस्स ॥ १०७॥ [गा. १०८ - १०. विविहवोसरणापरूवणा] १५७८. समणो मि त्तिय पढमं, बीयं सव्वत्थ संजओ मि त्ति । सव्वं च वोसिरामि जिणेहिं जं जं च पडिकुट्टं ॥ १०८॥। १५७९. उवही सरीरगं चेव आहारं च चउव्विहं । मणसा वय कारणं वोसिरामि त्ति भावओ ||१०९|| १५८०. मणसा अचिंतणिज्जं सव्वं भासाय भासणिज्जं काएण अकरणिज्ज HO श्री आगमगुणमंजूषा - १३३२ 出 2200 Page #60 -------------------------------------------------------------------------- ________________ FOR555555555555555 (२४-३३) दस पइन्नयसुत्तेसु-समहापच्चक्खाणं, (संधारग पइण्णय (४९] 99999999980SROINONE GO乐乐乐国历历乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐兵兵兵兵兵乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐玩乐乐蛋兵历兵兵兵兵兵乐乐86CM सव्वं तिविहेण वोसिरे॥११०॥ [गा. १११-१२. पच्चक्खाणेण समाहिलंभो] १५८१. अस्संजमवोगसणं उवहि विवेगकरणं उवसमो य । पडिरूयजोगविरओ खंती मुत्ती विवेगो य] ॥१११॥ १५८२. एयं पच्चक्खाणं आउरजणआवईसु भावेण । अण्णयरं पडिवण्णो जपतो पावइ समाहिं ॥११२|| [गा. ११३-२०. अरहंताइएगपयसरणगहणेण वि वोसिरणाए आराहगत्तं १५८३. एयंसि निमित्तम्मी पच्चक्खाऊण जइ करे कालं । तो पच्चखाइयव्वं इमेण एक्केण वि पएणं ॥११३|| १५८४. मम मंगलमरिहंता सिद्धा साहू सुयं च धम्मो य । तेसिं सरणोवगओ सावज वोसिरामि त्ति ॥११४॥१५८५. अरहंता मंगलं मज्झ, अरहंता मज्झ देवया। अरहते कित्तइत्ताणं वोसिरामि त्ति पावगं ॥११५॥ १५८६. सिद्धा य मंगलं मज्झ, सिद्धा य मज्झ देवया । सिद्धे य कित्तइत्ताणं वोसिरामि त्ति पावगं ॥११६।। १५८७. आयरिया मंगलं मज्झ, आयरिया मज्झ देवया । आयरिए कित्तइत्ताणं वोसिरामि त्ति पावगं ॥११७।। १५८८. उज्झाया मंगलं मज्झ, उज्झाया मज्झ देवया। उज्झाए कित्तइत्ताणं वोसिरामि त्ति पावगं ॥११८॥ १५८९. साहू य मंगल मज्झ, साहू य मज्झ देवया । साहू य कित्तइत्ताणं वोसिरामि त्ति पावगं ॥११९|| १५९०. सिद्धे उवसंपण्णो अरहते केवलि त्ति भावेणं । एत्तो एगयरेण वि पएण आराहओ होइ ।।१२०॥ [गा. १२१-२५. वेयणाहियसणोवएसो ] १५९१. समुइण्णवेयणो पुण समणो हियएण किं पि चितिज्ञा। आलंबणाईकाई काऊण मुणी दुहं सहइ ? ||१२१||१५९२. वेयणासु उइन्सु किं मे सत्तं निवेयए। किंचाऽऽलंबणं किच्चा तं दुक्खमहियासए ।।१२२।। १५९३. अणुत्तरेसु नरएसु वेयणाओ अणुत्तरा । पमाए वट्टमाणेणं मए पत्ता अणंतसो॥१२३।। १५९४. मए कयं इमं कम्मं मए पत्तं अणंतसो ||१२४|| १५९५. ताहिं दुक्खविवागाहि उवचिण्णाहिं तहिं तहिं । न य जीवो अजीवो उ कयपुव्वो उ चिंतए ॥१२५|| [गा. १२६-२७. अब्भुज्जयमरणपरूवणा] १५९६. अब्भुज्जयं विहारं इत्थं जिणएसियं विउपसत्थं । नाउं महापुरिससेवियं च अब्भुज्जयं मरणं ।।१२६।। १५९७. जह पच्छिमम्मि काले पच्छिमतित्थयरदेसिमुयारं। पच्छा निच्छयपत्थं उवेमि अब्भुज्जयं मरणं ॥१२७॥ [गा.१२८-३४. आराहणपडागाहराणपरूवणा] १५९८. बत्तीसमंडियाहिं . कडजोगी जोगसंगहबलेणं । उज्जमिऊण य बारसविहेण तवणेहपाणेणं ।।१२८॥१५९९. संसाररंगमज्झे धिइबलववसायबद्धकच्छाओ। हंतूण मोहमल्लं हराहि आराहणपडागं ॥१२९|| १६००.पोराणगं च कम्मं खवेइ अन्नं नवं च न चिणाइ । कम्मकलंकलवल्लिं दिइ संथारमारूढो॥१३०|| १६०१. आराहणोवउत्तो सम्म काऊण सुविहिओ कालं । उक्कोसं तिन्नि भवे गंतूण लभेज्न नेव्वाणं ॥१३१|| १६०२. धीरपुरिसपन्नत्तं सप्पुरिसनिवियं परमघोरं । ओइण्णो हु सि रंगं हरसु पडायं म अविग्घेणं ॥१३२।। १६०३. धीर! पडागाहरणं करेड जह तम्मि देसकालम्मि। सुत्त-ऽत्थमणुगुणंतो धिइनिच्चलबद्धकच्छाओ॥१३३।। १६०४. चत्तारि कसाए म तिन्नि गारवे पंच इंदियग्गामे। हंता परीसहचमू हराहि आराहणपडागं ॥१३४॥ [गा. १३५-३६. संसारतरण-कम्मनित्थरणोवएसो] १६०५. मा य बहुं चिंतिज्जा जीवामि चिरं मरामि व लहुँ' तिःजइ इच्छसि तरिउंजे संसारमहोयहिमपारं ॥१३५॥ १६०६. जइ इच्छसि नित्थरिउंसव्वेसिंचेव पावकम्माणं । जिणवयण-नाणदसण-चरित्तभावुज्जुओ जग्ग ।।१३६।। [गा.१३७-३९. आराहणाए भेया तप्फलं च] १६०७. दंसण-नाण-चरित्ते तवे य आराहणा चउक्खंधा । सा चेव होइ तिविहा उक्कोसा १ मज्झिम २ जहन्ना ३ ॥१३७॥ १६०८. आराहेऊण विऊ उक्कोसाराहणं चउक्खंधं । कम्मरयविप्पमुक्को तेणेव भवेण सिज्झेज्जा ॥१३८|| १६०९. आराहेऊण विऊ जहन्नमाराहणं चउक्खंघं । सत्तऽभवग्गहणे परिणामेऊण सिज्झेज्जा ॥१३९|| [गा. १४०. सव्वजीवखामणा ] १६१०. सम्म मे सव्वभूएसु, वेरं मज्झ न केणइ । खामेमि सव्वजीवे, खमामऽहं सव्वजीवाणं ॥१४०॥ [गा. १४१. धीरमरणपसंसा] १६११. धीरेण वि मरियव्वं काउरिसेण वि अवस्स मरियव्वं । दोण्हं पि य मरणाणं वरं खु धीरत्तणे मरिउं.।।१४१|| [गा. १४२. पच्चक्खाणपालणाफलं] १६१२. एयं पच्चक्खाणं अणुपालेऊण सुविहिओ सम्मं । वेमाणिओ व देवो अविज्ज अहवा वि सिज्झेज्जा ॥१४२||***॥ महापच्चक्खाणपइण्णयं सम्मत्तं ॥७॥*** . जम८.संथारगपइण्णयंक गा. १-३०. मंगलं संथारगस्स य गुणा] १६१३. काऊण नमोक्कारं जिणवरवसहस्स वद्धमाणस्स । संथारम्मि निबद्धं गुणपरिवाडि निसामेह ॥१॥१६१४. एस किराऽऽराहणया, एस किर मणोरहो सुविहियाणं । एस किर पच्छिमते पडागहरणं सुविहियाणं ।।२।।१६१५. भूईगहणं MOV $$55555555555555555555 श्री आगमगुणमंजूषा - १३३३॥5555555555555555555555555OOR 另垢乐明乐乐乐乐乐听听听听听听听听听听听听听听听乐明明明明明明明听听听听听乐乐乐听听听听听听听听听C瓜 Page #61 -------------------------------------------------------------------------- ________________ KORE5555555 (२४-३३) दस पइन्नयसुत्तेसु-८ संधारग पइण्ण्यं ५०] 5555555555当55000 जह नक्कयाण, अवमाणणं च वज्झाणं । मल्लाणं च पडागा, तह संथारो सुविहियाणं ॥३॥ १६१६. वेरुलिओ व्व मणीणं, गोसीसं चंदणं व गंधाणं । जह व रयणेसु वइरं, तह संथारो सुविहियाणं ॥४॥ १६१७. पुरिसवरपुंडरीओ अरिहा इव सव्वपुरिससीहाणं । महिलाण भगवईओ जिणजणणीओ जयम्मि जहा ॥५॥ १६१८. वंसाणं जिणवंसो, सव्वकुलाणं च सावयकुलाई । सिद्दिगइ व्व गईणं, मुत्तिसुहं सव्वसोक्खाणं ॥६॥ १६१९. धम्माणं च अहिंसा, जणवयवयणाण साहुवयणाई। जिणवयणं च सुईणं, सुद्धीणं दंसणं च जहा ॥७॥ १६२०. कल्लाणं अब्भुदओ देवाण वि दुल्लहं तिहुयणम्मि । बत्तीसं देविंदा जंतं झायंति एगमणा ।।८॥ १६२१. लद्धं तु तए एयं पंडियमरणं तु जिणवरक्खायं । हंतूण कम्ममल्लं सिद्धिपडागा तुमे लद्धा ।।९।। १६२२. झाणाण परमसुक्कं, नाणाणं केवलं जहा नाणं । परिनिव्वाणं च जहा कमेण भणियं जिणवरेहिं ॥१०॥ १६२३. सव्वुत्तमलाभाणं सामन्नं चेव लाभ मन्नंति । परमत्तम त्थियरो, परमगइ परमसिद्धि त्ति ॥११|| १६२४. मूलं तह संजमो वा परलोगरयाण किट्टकम्माणं । सव्वुत्तमं पहाणं सामन्नं चेव मन्नंति ॥१२॥ १६२५. लेसणा सुक्कलेसा, नियमाणं बंभचेरवासो य । गुत्ती-समिइगुणाणं मूलं तह संजमो चेव ॥१३॥ १६२६. सव्वुत्तमतित्थाणं तित्थयरपयासियं जहा त्थिं । अभिसेउ व्व सुराणं, तह संथारो सुविहियाणं ॥१४॥ १६२७. सियकमल-कलससुत्थिय-नंदावत्त-वरमल्लदामाणं । तेसि पि मंगलाणं संथारो मगलं पढमं ॥१५॥ १६२८. तवअग्गि-नियमसुरा जिणवरनाणा विसुद्धपच्छयणा । जे निव्वहंति पुरिसा संथारगइंदमारूढा ॥१६॥ १६२९. परमट्ठो परमउलं परमाययणं ति परमकप्पो त्ति। परमुत्तम तित्थयरो, परमगई परमसिद्धी ति॥१७॥ १६३०. ता एवं तुमे लद्धं जिणवयणामयविभूसियं देहं धम्मरयणस्सिया ते पडिया भवणम्मि वसुहारा ॥१८॥ १६३१. पत्ता उत्तमसुपुरिस !(?उ तुमे सुपुरिस) कल्लाणपरंपरा परमदिव्वा। पावयण साहुधारं कयं च ते अज्ज सुप्पुरिसा ! ॥१९॥ १६३२. सम्मत्त-नाण-दसणवररयणा नाणतेयसंजुत्ता । जारित्तसुद्धसीला तिरयणमाला तुमे लद्धा ॥२०॥ १६३३. सुविहियगुणवित्थारं संथारं जे लहंति सप्पुरिसा। तेसि जियलोयसारं रयणाहरणं कयं होइ ॥२१॥ १६३४. तं तित्थ तुमे लद्धं, जं पवरं सव्वजीवलोगम्मि। ण्हाया जत्थ मुणिवरा निव्वाणमणुत्तरं पत्ता ॥२२॥ १६३५. आसव संवर निज्जर तिन्नि वि अत्था समाहिया जत्थ । तं तित्थं ति भणंता सीलव्वबद्धसोवाणा ॥२३॥ १६३६. भंजिय परीसह चमु उत्तमसंजमबलेण संजुत्ता। भंजंति कम्मरहिया निव्वाणमणुत्तरं रज ॥२४॥ १६३७. तिहुयणरज्जसमाहिं पत्तो सि तुमं हि समयकप्पम्मि । रज्जाभिसेयमउलं विउलफलं लोइ विहरंति ॥२५॥ १६३८. अभिनंदइ मे हिययं, तुब्भे मोक्खस्स साहणोवाओ। जं जद्धों संथारो सुविहियपरमत्थनित्थारो॥२६॥ १६३९. देवा वि देवलोए भुजंता बहुविहाई भोगाई। संथारं चिंतंतो आसण-सयणाई मुंचति॥२७।। १६४०. चंदोव्व पिच्छणिज्जो, सूरो इव तेयसा उदिप्पंतो। धणवंतो गुणवंतो हिमवंतमहंतविक्खाओ॥२८॥१६४१. गुत्ती-समिइउवेओ संजम-तव-नियम-जोगजुत्तमणो । समणो समाहियमणो दसण-नाणे अणन्नमणो ||२९|| १६४२. मेरु व्व पव्वयाणं, सयंभुरमणु व्व चेव उदहीणं । चंदो इव ताराणं, तह संथारो सुविहियाणं ॥३०॥ [गा. ३१-४३. संथारगसरूवं] १६४३. भण केरिसस्स भणिओ संथारो? केरिसे व अवगासे ? । सुक्खं पि तस्स करणं, एयं ता इच्छिमो नाउं ।।३१॥ १६४४. हायंति जस्स जोगा, जराइविविहा य हुंति आयंका । आरुहइ य संथारं सुविसुद्धो तस्स संथारो॥३२।। १६४५. जो गारवेण मत्तो नेच्छई आलोयणं गुरुसगासे । आरुहइ य संथारं, अविसुद्धो तस्स संथारो॥३३॥ १६४६. जो पुण पत्तब्भूओ करेइ आलोयणं गुरुसगासे। आरुहइ य संथारं सुविसुद्धोतस्स संथारो॥३४॥१६४७. जो पुण दंसणमइलो सिढिलचरित्तो करेइ सामन्नं । आरुहइ य संथारं अविसुद्धो तस्स संथारो॥३५।। १६४८. जो पुण दसंणसुद्धो आयचरित्तो करेइ सामन्न | आरुहइ य संथारं सुविसुद्धो तस्स संथारो ॥३६॥ १६४९. जो रागदोसरहिओ तिगुत्तिगुत्तो तिसल्ल-मयरहिओ। आरुहइ य संथारं सुविसुद्धो तस्स संथारो॥३७॥ १६५०. प्रतिहिं गारवेहिं रहिओ तिदंडपडिमोयगो पहियकित्ती । आरुहइ य संथारं सुविसुद्धो तस्स संथारो ॥३८॥ १६५१. चउविहकसायमहणो चउहिं विकहाहिं विरहिओ के निच्चं । आरुहइ य संथारं सुविसुद्धो तस्स संथारो॥३९॥ १६५२. पंचमहव्वयकलिओ पंचसु समिईसु सुमाउत्तो । आरुहइ य संथारं सुविसुद्धो तस्स संथारो २ ॥४०॥ १६५३. छक्काया पडिविरओ सत्तभयट्ठाणविरहियमईओ। आरुहइ य संथारं, सुविसुद्धो तस्स संथारो ॥४१॥ १६५४. अट्ठमयट्ठाणजढो कम्मट्ठविहस्स KKAKIKKKKsxxxsssss88999श्री आगमगुणमंजूषा-१३३४15909555555555 5555OPIOR 玩玉五五五五五五开为乐乐听听听听听听乐乐乐国乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐明乐乐乐乐乐乐乐乐乐 SO乐乐乐乐明明明明明明明明明明明明明明明听听听听听听听听听听听听听乐垢乐乐乐乐乐听听乐乐听听听听2CM Page #62 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (GK9 *(२४-३३) दस पश्चयसुते संधारण पइण्णय [५१) 廣編卐CTOR खवणउत्ति । आरुहइ य संथारं, सुविसुद्धो तस्स संथारो ॥४२॥ १६५५. नव बंभचेरगुत्तो, उज्जुत्तो दसविहे समणधम्मे। आरुहइ य संथारं, सुविसुद्धो तस्स संथारो ||४३|| [गा. ४४-५४. संथारगस्स लाभो सोक्खं च] १६५६. जुत्तस्स उत्तमट्ठे मलियकसायस्स निव्वियारस्स । भण केरिसो उ लाभो संथारगयस्स खमगस्स ? ||४४|| १६५७. जुत्तस्स उत्तमट्ठे मलियकसायस्स निव्वियारस्स । भण केरिसं च सोक्खं संथारगयस्स खमगस्स ? ||४५ || १६५८. पढमिल्लुगम्मि दिवसे संथारगयस्स जो हवइ लाभो । को दाणि तस्स सक्का काउं अग्घं अणग्घस्स ? ४६ ॥ १६५९. जो संखिवज्जभवट्ठि सव्वं पि खवेइ सो तहिं कम्मं । अणुसमयं साहु साहू त्तहिं समए || ४७|| १६६०. तणसंथारनिसन्नो वि मुणिवरो भट्टराग-मय-मोहो । जं पावइ मुत्तिसुहं, कत्तो तं चक्कवट्टी वि ? ॥४८॥ १६६१. तिप्रसनायम्मिवि न सा रई जह महत्यवित्थारे । जिणवयणम्मि विसाले हेउसहस्सोवगूढम्मि ||४९|| १६६२. जं राग-दोसमइयं, सोक्खं जं होइ विसयमइयं च । अणुहवइ चक्कवट्टी, न होइ तं वीयरागस्स ॥५०॥ १६६३. मा होह वासगणया, न तत्थ वासाणि परिगणिज्जंति । बहवे गच्छं वुत्था जम्मण-मरणं च ते खुत्ता ||५१|| १६६४. पच्छा वि ते पयाया खिप्पं काहिंति अप्पणो पत्थं । जे तच्छिमम्मि काले मरंति संथारमारूढा ||१२|| १६६५. न वि कारणं तणमओ संथारो न वि फाया भूमी । अप्पा खलु संथारो विसुद्धे हवइ विसुद्धे चरित्तम्मि ||१३|| १६६६. निच्चं पि तस्स भावुज्नुयस्स जत्थ व जहिं व संथारो । जो होइ अहक्खाओ 1 विहारमब्भुट्ठिओ लूहो || ५४ || १६६७. वासारत्तम्मि तवं चित्त-विचित्ताइ सुठु काऊणं | हेमंते संथारं आरुहई सव्वसत्तेणं ॥ ५५॥ [गा. ५६-८७. पडिवन्नसंथारगाणमुदाहरणाई] १६६८. आसीय पोयणपुरे अज्जा नामेण पुप्फचूल त्ति। तीसे धम्मायरिओ पविस्सुओ अन्नियापुत्तो ॥ ५६ ॥ १६६९. सो गंगमुत्तरंतो सहसा उस्सारिओ य नावाए। पडिवन्न उत्तमहं तेण वि आराहियं मरणं ॥ ५७|| १६७०. पंचमहव्वयकलिया पंचसया अज्जया सुपुरिसाणं । नयरम्मि कुंभकारे कडगम्मि निवेसिया तइया ॥ ५८॥। १६७१. पंच सया एगूणा वायम्मि पराजिएण रुट्ठेण। जंतम्मि पावमइणा छुन्ना छन्नेण कम्मेणं ॥ ५९|| १६७२. निम्मम-निरहंकारा निययसरीरे वि अप्पडीबद्धा । ते वि तह छुज्जमाणा पडिवन्ना उत्तमं अट्ठ ॥६०॥ १६७३. दंडोति विस्सुयजसो पडिमादसधारओ ठिओ पडिमं । जउणावंके नयरे सरेहिं विद्धो सयंगीओ ॥ ६१ ॥ १६७४. जिणवयणनिच्छियमई निययसरीरे वि अप्पडीबद्धो । सो वि तहविज्झमाणो पडिवन्नो उत्तिमं अहं ॥६२॥ १६७५. आसी सुकोसलरिसी चाउम्मासस्स पारणादिवसे । ओरुहमाणो उ नगा खड़ओ छायाइ वग्घीए ||६३|| १६७६. धीधणियबद्धकच्छो पच्चक्खाणम्मि सुटु उवउत्तो। सो वि तहखज्नमाणो पडिवन्नो उत्तमं अहं ॥ ६४ ॥ १६७७. उज्जेणीनयरीए अवंतिनामेण विस्सुओ आसी। पाओवगमनिवन्नो सुसाणमज्झिम्मि एगंते ।।६५।। १६७८. तिन्नि रयणीओ खइओ, भल्लुंकी रुट्ठिया विकडुंती । सो वि तहखज्जमाणो पडिवन्नो उत्तमं अट्ठ ||६६|| १६७९. जल्ल-मल-पंकधारी आहारो सीलसंजमकुणाणं । अरण उ गीओ कत्तिअज्जो सरवणम्मि ॥६७॥ १६८०. रोहीडगम्मि नयरे आहारं फासूयं गवेसंतो । कोवेण खत्तिएण य भिन्नो सत्तिप्पहारेणं ॥६८॥ १६८१. एतणावा विच्छिन्ने थंडिले चइअ देहं । सो वि हि भिन्नदेहो पडिवन्नो उत्तमं अहं ॥ ६९ ॥ १६८२. पाडलिपुत्तम्मि पुरे चंदगपुत्तस्स चेव आसीय । नामेण धम्मसीहो चंदसिरिं सो पयहिऊणं ॥ ७० ॥ १६८३. कोल्लयरम्मि पुरवरे अह सो अब्भुट्ठिओ, ठिओ धम्मे । कासीय गिद्धपङ्कं पच्चक्खाणं विगयसोगो ॥ ७१ ॥ १६८४. अह सो वि चत्तदेहो तिरियसहस्सेहिं खज्जमाणोय । सो वि तहखज्जमाणो पडिवन्नो उत्तमं अहं ॥ ७२ ॥ १६८५. पाडलिपुत्तम्मि पुरे चाणक्को नामविस्सुओ आसी । सव्वारंभनियत्तो इंगिणिमरणं अह निवन्नो || ७३|| १६८६. अणुलोमपूयणाए अह से सत्तुंजओ डहइ देहं । सो वि तहडज्झमाणो पडिवन्नो उत्तमं अहं ॥ ७४ ॥ १६८७. कायंदीन या नामेण अमयधोसो त्ति । तो सो सुयस्स रज्जं दाऊणं अह चरे धम्मं || ७५ || १६८८. आहिडिऊण वसुहं सुत्तऽत्थविसारओ सुयरहस्सो । कायंदी चेव पुरी अह सो पत्तो विगयसोगो ॥ ७६ ॥। १६८९. नामेण चंडवेगो, अह सो पडिछिंदई तयं देहं । सो वि तहछिज्जमाणो पडिवन्नो उत्तमं अहं ॥७७॥। १६९०. कोसंबीनटरीए ललियघडा नाम विस्सुया आसि । पाओवगमनिवन्ना बत्तीसं ते सुयरहस्सा ॥७८॥ १६९१. जलमज्झे ओगाढा नईइ पूरेण निम्ममसरीरा। तह वि हु जलदहमज्झे पडिवन्ना उत्तमं अहं ॥ ७९ ॥ १६९२. आसी कुणालनयरे राया नामेण वेसमणदासो। तस्स अमच्चो रिट्ठो मिच्छद्दिट्ठी पडिनिविट्ठो ॥ ८० ॥ १६९३. तत्थ य मुणिवरवसहो गणिपिडगधरो HONOR 55 श्री आगमगुणमंजूषा १३३५ Page #63 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 出版 (२४-३३) दस पइन्नयसुत्तेसु ८ संधारण पइण्णयं [५२] 可用555.com तहाऽऽसि आयरिओ | नामेण उसहसेणो सुयसागरपारगो धीरो ||८१|| १६९४. तस्साऽऽसी य गणहरो नाणासत्यत्थगहियपेयालो । नामेण सीहसेणो वायम्मि पराजिओ रुट्ठो ॥ ८२ ॥ १६९५. अह सो निराणुकंपो अग्गिं दाऊण सुविहियपसंते। सो वि तहडज्झमाणो पडिवन्नो उत्तमं अहं ॥ ८३ ॥ १६९६. कुरुदत्तो वि कुमारो बिलिफालि व्व अग्गिणा दड्ढो । सो वि तहडज्झमाणो पडिवन्नो उत्तमं अहं ॥८४॥। १६९७. आसी चिलोइपुत्तो मूइंगुलियाहिं चालणि व्व कओ । सो वि तहखज्नमाणो पडिवन्नो उत्तमं अहं ॥८५॥। १६९८. आसी गयसुकुमालो अल्लयचम्मं व कीलयसएहिं । धरणियले उव्विद्धो तेण वि आराहिंयं मरणं ॥ ८६ ॥ १६९९. मंखलिणा वि अरहओ सीसा तेयस्स उवगया दड्ढा । ते वि तहडज्झमाणा पडिवन्ना उत्तमं अहं ॥८७॥ [गा. ८८-१२२. पडिवन्नसंथारगस्स खामणा भावणा य ] १७००. परिजाणाई तिगुत्तो जावज्जीवाए सव्वमाहारं । संघसमवायमज्झे सागरं गुरुनिओगेणं ॥ ८८॥ १७०१. अहवा समाहिहेउं करेइ सो पाणगस्स आहारं । तो पागणं पि पच्छा वोसिरइ मुणी जहाकालं ॥८९॥ १७०२. खामेइ सव्वसंघं संवेगं सेसगाण कुणमाणो । मण वइजोगेहिं पुरा कय कारिय- अणुमए वा वि ॥९०॥ १७०३. सव्वे अवराहपए एस खमावेमि अज्ज निस्सल्लो । अम्मा-पिउणो सरिसा सव्वे वि खमंतु मे जीवा ॥ ९१ ॥ १७०४. धीरपुरिसपण्णत्तं सप्पुरिसनिसेवियं परमघोरं । घन्ना सिलायलगया साहंती उत्तमं अहं ॥ ९२ ॥ १७०५. नरयगई- तिरियगई - माणुस - देवत्तणे वसंतेणं । जं पत्तं सुहं- दुक्खं तं अणुचिंते अणन्नमणो ||९३|| १७०६. नरएसु वेयणाओ अणोवमाओ असायबहुलाओ । कायनिमित्तं पत्तो अनंतखुत्तो बहुविहाओ || ९४ || १७०७. देवत्ते मणुयत्ते पराभिओगत्तणं उवगएणं । दुक्खपरिकिलेसकरी अणंतखुत्तो समणुभूओ या? ॥ ९५|| १७०८. तिरिअगईअणुपत्तो भीममहावेयणा अणोरपरा । जम्मण-मरणऽरहट्टे अणंतखुत्तो परिब्भमिओ ॥९६॥ १७०९. सुविहिय! अईयकाले अनंतकालं तु आगय-गएणं । जम्मण-मरणमणंतं अनंतखुत्तो समणुभूयं ॥ ९७ ॥ १७१०. नत्थि भयं मरणसमं, जम्मणसरिसं न विज्जए दुक्खं । जम्मण- मरणायकं छिद ममत्तं सरीराओ ॥९८॥ १७११. अन्नं इमं सरीरं अन्नो जीवो त्ति निच्छयमईओ । दुक्खपरिकिलेसकरं छिंद ममत्तं सरीरओ ॥९९॥ १७१२. जावंति केइ दुक्खा सारीरा माणसा व संसारे । पत्तो अनंतखुत्तो कायस्स ममत्तदोसेणं ॥ १००॥ १७१३. तम्हा सरीरमाई सब्भिंतरबाहिरं निरवसेसं । छिंद ममत्तं सुविहिय ! जइ इच्छसि उत्तिमं अहं ॥ १०१ ॥ १७१४. जगआहारो संघो सव्वो मह खमउ निरवसेसं पि । अहमवि खमामि सुद्धो गुणसंघायस्स संघस्स॥१०२॥ १७१५. आयरिय उवज्झाए सीसे साहम्मिए कुल गणे य । जे मे केइ कसाया सव्वे तिविहेण खामेमि ॥ १०३ ॥ १७१६. सव्वस्स समणसंघस्स भगवओ अंजलि करिय सीसे । सव्वं खमावइत्ता अहमवि खामेमि सव्वस्स || १०४ ॥ १७१७. सव्वस्स जीवरासिस्स भावओ धम्मनिहियनियचित्तो । सव्वं खमावइत्ता अहयं पि खमामि सव्वेसिं ॥ १०५ ॥ १७१८. इय खामियाइयारो अणुत्तरं तवसमाहिमारूढो । पप्फोडिंतो विहरइ बहुभवबाहाकरं कम्मं ॥ १०६॥ १७१९. जं बद्धमसंखिज्जाहिं असुभभवसयसहस्सकोडीहिं । एगसमएण विहुणइ संथारं आरुहंतो उ ॥ १०७॥ १७२०. इय तहविहारिणो से विग्घररी वेयणा समुट्ठेइ । तीसे विज्झवणाए अणुसट्ठि दिंती निज्जवया ॥ १०८ ॥ १७२१. जइ ताव ते मुणिवरा आरोवियवित्थरा अपरिकम्मा । गिरिपब्भारविलग्गा बहुसावयसंकडं भीमं ॥१०९॥ १७२२. धीधणियबद्धकच्छा अणुत्तरविहारिणो समक्खाया। सावयदाढगया वि हु साहंती उत्तमं अट्ठ ॥ ११०॥ १७२३. किं पुण अणगारसहायगेहिं धीरेहिं संगयमणेहिं । न हु नित्थरिज्जइ इमो संथारो उत्तिमट्ठम्मि १ ॥ १११ ॥। १७२४. उच्छूढसरीरघरा अन्नो जीवो सरीरमन्नं ति । धम्मस्स कारणे सुविहिया सरीरं पिछडुंति ||११२|| १७२५. पोराणिय-पच्चुप्पन्निया उ अहियासिऊण वियणाओ । कम्मकलंकलवल्ली विहुणइ संथारमारूढो ॥ ११३ ॥ १७२६. जं अन्नाणी कम्म खवेइ अहुयाहिं वासकोडीहिं । तं नाणी तिहिं गुत्तो खवेइ ऊसासमेत्तेणं ॥ ११४ ॥ १७२७. अट्ठविहकम्ममूलं बहुएहिं भवेहिं संचियं पावं । तं नाणी तिहिं गुत्तो खवे ऊसासमित्तेणं ॥११५|| १७२८. एव मरिऊण धीरा संथारम्मि उ गुरूपसत्थम्मि । तइयभवेण व तेण व सिज्जिज्जा खीणकम्मरया ॥ ११६ ॥ १७२९. गुत्तीसमिइगुणड्डो संजम-तव-नियमकयमउडो । सम्मत्त-नाण- दंसणतिरयणसंपावियमहग्घो ॥११७॥ १७३०. संघो सइंदयाणं सदेव मणुयाऽसुरम्मि लोगम्मि | दुल्लहतरो विसुद्धो, सुविसुद्ध सो महामउडो ॥ ११८ ॥ १७३१. डज्झतेण वि गिम्हे कालसिलाए कवल्लिभ्याए । सूरणे व चंदेण व किरणसहस्सा पयंडेण ॥ ११९॥ १७३२. HONOR श्री आगमगुणमंजूषा १३३६ SOOR Page #64 -------------------------------------------------------------------------- ________________ #5555555555 (२४-३३) दस पइन्नयसुत्तेसु- संधारग पइण्णय, एकुसलाणुबंधि अन्झयणं [५३] 9 999999OoY C8乐乐玩乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐玩玩乐乐乐乐乐玩玩乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐明明FSC双 लोगविजयं करितेण तेण झाणोवओगचित्तेणं । परिसुद्धनाण-दसणविभूइमंतेण चित्तेण ॥१२०।। १७३३. चंदगविज्झं लद्धं केवलसरिसं समाओऽपरिहीणं । उत्तमलेसाणुगओ पडिवन्नो उत्तमं अढें ॥१२१॥ १७३४. एवं मए अभिथुया संथारगइंदखंधमारूढा । सुसमणनरिंदचंदा सुहसंकमणं ममं दिंतु ॥१२२। ।। [संथारगपइण्णयं सम्मत्तं ॥८॥ सिरिवीरभदायरियविरइयं चउसरणपइण्णयावरणामयं कुसलाणुबंधिअज्झयणंमागा. १. आवस्सयछक्कस्स संखेवेणं अत्थाहिगारा]ई १७३५. सावज्जजोगविरई १ उक्त्तिण २ कुणबओ य पडिवत्ती ३ । खलिवस्स निंदणा ४ वणतिगिच्छ ५ गुणधारणा ६ चेव ॥१॥ [गा. २-७. आवस्सयउक्कस्स वित्थरेणं अत्थाहिगारा] १७३६. चारित्तस्स विसोही कीरइ सामाइएण किल इहई। सावज्जेयरजोगाण वज्जणाऽऽसेवणत्तणओ१॥२॥ १७३७. दसणयारविसोही चउवीसायत्थएण कज्जइ य । अच्चब्भुयगुणकित्तणरूवेणं जिणवरिंदाणं २ ॥३॥ १७३८. नाणाईया उ गुणा, तस्संपन्नपडिवत्तिकरणाओ। वंदणएणं विहिणा कीरइ सोही उतेसितु ३३ ॥४॥ १७३९. खलियस्सयतेसि पुणो विहिणा जं निंदणाइपडिकमणं । तेण पडिक्कमणेणं तेसिंपिय कीरए सोही ४॥५॥१७४०. चरणाइयाइयाणं जहक्कम वणतिगिच्छरूवेणं । पडिकमणासुद्धाणं सोही तह काउसग्गेणं ५॥६॥ १७४१. गुणधारणरूवेणं पच्चक्खाणेण तवइयारस्स। विरियायारस्स पुणो सव्वेहि वि कीरए सोही ६ ॥७|| [गा. ८. चोइस सुमिणाणि] १७४२. गय १ वसह २ सीह ३ अभिसेय ४ दाम ५ ससि ६ दिणयरं ७ झयं ८ कुंभं ९ । पउमसर १० सागर ११ विमाण-भवण १२ रयणुच्चय १३ सिहिं च १४ ||८|| [गा. ९. मंगलं ] १७४३. अमरिंद-नरिंद-मुणिंदवंदियं वंदिउं महावीरं । कुसलाणुबंधि बंधुरमज्झयणं म कित्तइस्सामि ॥९॥ [गा. १०. अत्थाहिगारा] १७४४. चउसरणगमण १ दुक्कडगरिहा २ सुकडाणुमोयणा ३ चेव । एस गणो अणवरयं कायव्वो कुसलहेउ त्ति ॥१०|| [गा. ११.१ चउसरणगमणं ] १७४५. अरिहंत १ सिद्ध २ साहू ३ केवलिकहिओ सुहावहो धम्मो ४ । एए चउरो चउगइहरणा सरणं लहइ धन्नो ॥११॥ [गा. १२-२२. अरिहंता सरणं] ११ १७४६. अह सो जिणभत्तिभरुच्छरंतरोमंचकंचुयकरालो। पहरिसपणउम्मीसं सीसम्मि कयंजली भणइ ॥१२॥ १७४७. राग-द्दोसारीणं हंता कम्मट्ठगाइअरिहंता । विसय-कसायारीणं अरिहंता इंतु मे सरणं ।।१३।। १७४८. रायसिरिमवकमिता तव-चरणं दुच्चरं अणुचरिता। केवलसिरिमरिहंता अरिहंता इंतु मे सरणं ॥१४॥ १७४९. थुइ-वंदणमरिहंता अमरिंद-नरिंदपूयमरिहता। सासयसुहमरहंता अरिहंता हुंतु मे सरणं ॥१५॥ १७५०. परमणगयं मुणिता जोइंद-महिंदझाणमरिहंता । धम्मकहं अरिहंता अरिहंता इंतु मे सरणं ||१६|| १७५१. सव्वजियाणमहिंसं अरिहंता सच्चवयणमरिहंता । बंभव्वयमरिहंता अरिहंता हुंतु मे सरणं ।।१७।। १७५२. ओसरणमवसरिति चउतीसं अइसए निसेविता । धम्मकहं च कहिंता अरिहंता इंतु मे सरणं ॥१८॥ १७५३. ॥ एगाइ गिराणेगे संदेहे देहिणं समं छित्ता । तिहुयणमणुसासिता अरिहंता इंतु मे सरणं ॥१९|| १७५४. वयणामएण भुवणं निव्वाविंता गुणेसुठाविता। जियलोयमुद्धरिता अरिहंता हुँतु मे सरणं ।।२०।। १७५५. अच्चन्भुयगुणवंते नियजसससहरपसाहियदियते। निययमणाइअणते पडिवन्नो सरणमरिहते ॥२१॥ १७५६. उज्झियजरमरणाणं समत्तदुक्खत्तसत्तसरणाणं । तिहुयणजणसुहयाणं अरिहंताणं नमो ताणं ।।२२।। [गा. २३-२९. सिद्धा सरणं] २ १७५७. अरिहंतसरणमलसुद्धिलद्धसुविसुद्धसिद्धबहुमाणो। पणयसिररइयकरकमलसेहरो सहरिसं भणइ ॥२३॥ १७५८. कम्मट्ठक्खयसिद्धा साहावियनाण-दसणसमिद्धा । सव्वट्ठलद्धिसिदित सिद्धा हुतु मे सरणं ॥२४॥ १७५९. तियलोयमत्थयत्था परमपयत्था अचिंतसामत्था । मंगलसिद्धिपयत्था सिद्धा सरणं सुहपसत्था ॥२५॥ १७६०. मूलुक्खयपडिवक्खा अमूढलक्खा सजोगिपच्चक्खा । साहावियत्तसुक्खा सिद्धा सरणं परमसुक्खा ||२६।। १७६१. पडिपिल्लियपडिणीया समग्गझाणग्गिदड्डभवबीय । जोईसरसरणीया सिद्धा सरणं सुमरणीया ॥२७॥ १७६२. पावियपरमाणंदा गुणनीसंदा विदिण्णभवकंदा। लहुईकयरवि-चंदा सिद्धा सरणं खवियदंदा ॥२८॥ १७६३. उवलद्धपरमबंभा दुल्लहलंभाविमुक्कसंरंभा । भुवणघरधरणखंभा सिद्धा सरणं निरारंभा ।।२९।। [ गा. ३०-४०. साहू सरणं ३] १७६४. सिद्धसरणेण नवबंभहेउसाहुगुणजणियअणुराओ । मेइणिमिलंतसुपसत्थमत्थओ तत्थिमं भणइ ॥३०॥ १७६५. जियलोयबंधुणो कुगइसिंधुणो पारगा RO0555555555555555555555 श्री आगमगणमंजषा - १३३0444444444EEEEEEEncircriyer hr Prana 明明明听听听听听听听听听听听听听听听乐听听乐乐乐乐乐垢乐乐乐乐乐乐乐玩乐乐乐听听听听听乐听听听听 Page #65 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ROR $$$$$$$$$$ (२४-३३) दस पइन्नयसुत्तेसु - TAकुसलाणुबंधि अज्झयणं, चउसरण पइन्नय B[५४] Rom महाभागा । नाणाइएहिं सिवसुक्खसाहगा साहुणो सरणं ॥३१॥ १७६६. केवलिणो परमोही विउलमई सुयहरा जिणमयम्मि। आयरिय उवज्झाया ते सव्वे साहुणो सरणं ॥३२॥ १७६७. चउदस-दस-नवपुव्वी दुवालसिक्कारसंगिणोजेय। जिणकऽहालंदिय परिहारविसुद्धि साहूय।३३॥ १७६८. खीरासव महुआसव संभिन्नस्सोय कुट्ठबुद्धी य। चारण-वेउब्वि-पयाणुसारिणो साहुणो सरणं ।।३४|| १७६९. उज्झियवइर-विरोहा निच्चमदोहा पसंतमुहसोहा । अभिमयगुणसंदोहा हयमोहा साहुणो सरणं ॥३५॥ १७७०. खंडियसिणेहदामा अकामधामा निकामसुहकामा । सुप्पुरिसमणभिरामा आयारामा मुणी सरणं ॥३६|| १७७१. मिल्हियविसय-कसाया उज्झियघर-घरणिसंगसुह-साया। अकलियहरिस-विसाया साहू सरणं विहुयसोया॥३७|| १७७२. हिंसाइदोससुन्ना कयकारुन्ना सयंभुरुप्पन्ना। अजराऽमरपहखुन्ना साहू सरणं सुकयपुन्ना॥३८॥ १७७३. कामविडंबणचुक्का कलिमलमुक्का विविक्कचोरिक्का । पावरयसुरयरिक्का साहू गुणरयणचच्चिक्का ॥३९।। १७७४. साहुत्तसुट्ठिया जं आयरियाई तओ य ते साहू । साहुभणिएण गहिया ते तम्हा साहुणो सरणं ॥४०|| [गा. ४१-४८. केवलिकहिओ धम्मो सरणं] ४ १७७५. पडिवन्नसाहुसरणो सरणं काउं पुणो वि जिणधम्मं । पहरिसरोमंचपवंचकंचुयंचियतणू भणइ॥४१॥ १७७६. पवरसुकएहि पत्तं पत्तेहि वि नवरि केहि वि न पत्तं । तं केवलिपन्नत्तं धम्म सरणं पवन्नो हं॥४२॥ १७७७. पत्तेण अपत्तेण य पत्ताणि यजेण नर-सुरसुहाइं। मोक्खसुहं पिय पत्तेण नवरि धम्मो समेसरणं ।।४३।। १७७८. निद्दलियकलुसकम्मो कयसुहजम्मो खलीकयकुहम्मो । पमुहपरिणामरम्मो सरणं मे होउ जिणधम्मो ॥४४॥ १७७९. कालत्तए वि न मयं जम्मण-जर-मरण-वाहिसयसमयं । अमयं व बहुमयं जिणमयं च सरणं पवन्नो हैं ॥४५॥ १७८०. पसमियकामपमोहं दिऽदिढेसु न कलियविरोहं । सिवसुहफलयममोहं धम्म सरणं पवन्नो हं ॥४६॥ १७८१. नरयगइगमणरोहं गुणसंदोह पवाइनिक्खोहं । निहणियवम्महजोहं धम्म सरणं पवन्नो हं ॥४७|| १७८२. भासुरसुवन्नसुंदररयणालंकारगारवमहग्धं । निहिमिव दोगच्चहरं धम्मं जिणदेसियं वंदे ॥४८॥ [ गा. ४९-५४. २ दुक्कड गरिहा] १७८३. चउसरणगमणसंचियसुचरियरोमंचअचियसरीरो । कयदचक्कडगरिहाऽसुहकम्मक्खकंखिरो भणइ ॥४९॥ १७८४. इहभवियमन्नभवियं मिच्छत्तपवत्तणं जमहिगरणं । जिणपवयणपडिकुटुं दु8 गरिहामि तं पावं ॥५०॥ १७८५. मिच्छत्ततमंधेणं अरिहंताइसु अवन्नवयणं जं । अन्नाणेण विरइयं इण्हिं गरिहामि तं पावं ॥५१।। १७८६. सुय-धम्म-संघ-साहुसु पावं पडिणीययाए जंई रइयं । अन्नेसु य पावेसु इण्हिं गरिहामि तं पावं ॥५२॥ १७८७. अन्नेसु य जीवेसुं मित्ती-करुणाइ गोयरेसु कयं । परियावणाइ दुक्खं इण्डिं गरिहामि तं पावं ॥५३॥ १७८८.जं मण-वय-काएहिं कय-कारिय-अणुमईहिं आयरियं । धम्मविरुद्धमसुई सव्वं गरिहामि तं पावं ।।५४।। [गा.५५-५८. ३ सुकडाणुमोयणा] १७८९. अह सो दुक्कडगरिहादलिउक्कडदुक्कडोफुडंभणइ । सुकडाणुरायसमुइन्नपुन्नपुलयं कुरकरालो ।।५५।। १७९०. अरिहत्तं अरिहंतेसु, जं च सिद्धत्तणं च सिद्धेसु । आयारं आयरिए, उज्झायत्तं उवज्झाए॥५६॥ १७९१. साहूण साहुचरियं च, देसविरइं च सावयजणाणं । अणुमन्ने सव्वेसिं, सम्मत्तं सम्मदिट्ठीणं ।।५७।। १७९२: अहवा सव्वं चिय वीयरायवयणाणुसारि जं सुकडं । कालत्तए वि तिविहं अणुमोएमो तयं सव्वं ॥५८॥ [गा. ५९-६३. चउसरणगमणाईणं फलं ] १७९३. सुहपरिणामो निच्चं चउसरणगमाइ आयरं जीवो । कुसलपयडीओ बंधइ, बद्धाउ सुहाणुबंधाओ॥५९|| १७९४. मंदणुभावा बद्धा तिव्वणुभावाओ कुणइ ता चेव । असुहाओ निरणुबंधाओ कुणइ, तिव्वाओ मंदाओ॥६०॥ १७९५. ता एवं कायव्वं बुहेहि निच्वं पि संकिलेसम्मि । होइ तिकालं सम्मं असंकिलेसम्मि सुकयफलं ॥६१।। १७९६. चउरंगो जिणधम्मो न कओ, चउरंगसरणमवि न कयं । चउरंगभवच्छे ओ न कओ, हा ! हारिओ जम्मो ॥६२॥ १७९७. इय जीव ! पमायमहारिवीरभदंतमेयमज्झयणं । झाएसु तिसंझमवंझकारणं निव्वइसुहाणं ॥६३|| ***॥ इति कुसलाणुबंधज्झयणठ सम्मत्तं ॥ . ज चउसरणपइन्नयं गा .१ अत्थाहिगरा] १७९८. चउसरणगमण १ दुक्कडगरिहा २ सुकडाणुमोयणा ३ चेव । एस गणो अणवरयं कायव्वो कुसलहेउ त्ति ॥१॥ [गा. २-६.१ चउसरणगमणं] १७९९. परिहीण राग-दोसा सव्वण्णू तियसनाहकयपूया । तिहुयणमंगलनिलया अरहंता मज्झ ते सरणं ५ ॥२।१८००. निट्ठवियअट्ठकम्मा कयकिच्चा सासयं सुहं पत्ता । तियलोयमत्थायत्था सिद्धा सरणं महं इण्डिं ॥३।। १८०१. पंचमहव्वयजुत्ता समतिण-मणि-लिट्ठxerc#5555555555555555555 श्री आगमगुणमंजूषा - १३३८ 55555555555555555555555FOTOK ONO玩玩乐乐听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听明明明明明明明明明明明明纸听听听听听听听听FM Page #66 -------------------------------------------------------------------------- ________________ PROOF54455555555555(२४-३३) दस पइन्नयसुतेसु -30चउसरण पइन्नयं, १० मत परिना पइन्नयA (५५]555555459999 RExog 2 कंचणा विरया । सुग्गिहियनामधेया साहू सरणं महं निच्चं ॥४॥ १८०२. कम्मविसपरममंतो, निलओ कल्लाण-अइसयाईणं । संसारजलहिपोओ सरणं मे होउ जिणधम्मो॥५॥१८०३. इय चउसरणगओ हं सम्मं निंदामि दुक्कडं इण्डिं। सुकडं अणुमोएमो सव्वं चिय ताण पच्चक्खं ॥६॥ [गा. ७-१७. २ दुक्कडगरिहा] १८०४. संसारम्मि अणंते अणाइमिच्छत्तमोहमूढेणं । जं जं कयं कुतित्थं तं तं तिविहेण वोसिरियं ॥७॥ १८०५. जं मग्गो अवलविओ, जं च कुमग्गो य देसिओ लोए । जं कम्मबंधहेऊ संजायं तं पि निंदामि ||८|| १८०६. जं जीवघायजणयं अहिगरणं कह वि किं पि मे रइयं । तं तिविहं तिविहेणं वोसिरियं अज्ज मे सव्वं ॥९॥ १८०७. जा मे वयरपरंपर कसायकलुसेण असुहलेसणं । जीवाणं कहवि कया सा वि य मे सव्वहा चत्ता ॥१०॥ १८०८. जं पि सरीरं इ8 कुडुंब उवगरण रूव विन्नाणं । जीवोवघायजणयं संजयं तं पि निंदामि ॥११॥ १८०९. गहिऊण य मुक्काइं जम्मण-मरणेहिं जाई देहाई । पावेसु पसत्ताई तिविहेणं ताई चत्ताई ||१२|| १८१०. आवज्जिऊण धरिओ अत्थो जो लोह-मोहमूढेणं । असुहट्ठाणपउत्तो मण-वय-काएहिं सोचत्तो ॥१३॥ १८११. जाई चियगेह-कुडुंबयाई हिययस्स अइवइट्ठाई। जम्मे जम्मे चत्ताइं वोसिरियाई मए ताई ॥१४॥ १८१२. अहिगरणाइं जाइं हल-उक्खल-सत्थ-जंतामाईणि । करणाईहिं कयाइं परिहरियाई मए ताई ॥१५॥ १८१३. मिच्छत्तभावगाई जाई कुसत्थाई पावजणगाई। कुग्गहकराई लोए निंदामि य ताई सव्वाई ॥१६॥ १८१४. अन्नं पि य जं किंचि वि अन्नाण-पमाय-दोसमूढेणं । पावं पावेण कयं तं पिहु तिविहेण पडिकंतं ॥१७॥ [गा. १८-२६.३ सुकडाणुमोयणा] १८१५. जं पुण देहं सयणं वावारं दविण नाण कोसल्लं । वट्टइ सुहम्मि ठाणे, तं सव्वं अणुमयं मज्झ ।।१८।। १८१६. जं चिय कयं सुतित्थं, संत(?ता)ईदसणा सुहं किच्चं | जीवाणं सुहजणयं, तिविहेणं बहुमयं तं पि॥१९॥ १८१७. गुणपगरिसं जिणाणं, परोवयारंच धम्मकहणेणं । मोहजएणं नाणं, अणुमोएमो यतिविहेणं ॥२०॥१८१८. सिद्धाणं सिद्धभावं, असेसकम्मक्खएण सुहभावं । दंसण-नाणसहावं, अणुमोएमो य तिविहेणं ॥२१॥ १८१९. आयरियाणाऽऽयारं पंचपयारं च जणियकल्लाणं । अणुओगमागमाणं, अणुमोएमो य तिविहेणं ।।२२।। १८२०. उज्झायाणऽज्झयणं आगमदाणेण दिण्णमग्गाणं । उवयारवावडाणं, अणुमोएमो उ तिविहेणं ॥२३॥ १८२१. साहूण साहुकिरियं मुक्खसुहाणिक्कसाहणोवायं । समभावभावियाणं, अणुमोएभो उत्तिविहेणं ||२४|| १८२२. सावयगणाण सम्मं वयगहणं धम्मसवण-दाणाई। अन्नं पि धम्मकिच्चं, तं सव्वं अणुमयं मज्झ ॥२५॥ १८२३. अन्नेसिं सत्ताणं भव्वत्ताए उ होइ कम्माणं । मग्गाणुरूवकिरिय, तं सव्वं अणुमय मज्झ॥२६|| [गा. २७. उवसंहारो] १८२४. एसो चउसरणाई जस्स मणे संठिओ सयाकालं । सो इह-परलोटदुहं लंघेउं लहइ कल्लाणं ॥२७॥9॥ [चउसरणपइण्णयं सम्मत्तं] 19 ॥ १२ सिरिवीरभदायरियविरइयं भत्तपरिन्पइन्नयं गा . १-२. मंगलमभिधेयं च] १८२५. नमिऊण महाइसयं महाणुभावं मुणिं महावीरं । भणिमो भत्तपरिण्णं नियभरणट्ठा परट्ठा य॥१॥१८२६. भवगहणभमणरीणा लहंति निव्वुइसुहं जमल्लीणा। तं कप्पंदुमकाणणसुयं जिणासासणं जयइ॥२॥ [गा. ३-४. नाणमाहप्पं] १८२७. मणुयत्तं जिणयणं च दुल्लहं पाविऊण सप्पुरिसा! । सासयसुहिक्करसिएहि नाणवसिएहिं होयव्वं ।।३।। १८२८. जं अज्ज सुहं भविणो संभरणीयं तयं भवे कल्लं । मग्गंति निरुवसगं अपवग्गसुहं बुहा तेणं ॥४॥ [गा. ५. असासयसोक्खस्स निप्फलत्तं] १८२९. नर-विबुहेसरसोक्खं दुक्ख परमत्थो में तयं बिति । परिणामदारुणमसासयं चजंता अलं तेण॥५॥ [गा. ६-७. जिणाणाराहणाए सासयसोक्खं] १८३०. जं सासयसुहसाहणमाणौराहणं जिणिंदाणं । ता तीए जझ्यव्वं जिणवयणविसुबुद्धीहिं|६|| १८३१. तं नाण-दसणाणं चारित्त-तवाण जिणपणीयाणं । जं आराहणमिणमो आणा आराहणं बिति ॥७॥ [गा. ८-९. अब्भुज्जयमरणस्स भेयतिगं] १८३२. पव्वज्जाए अब्भुज्जओ वि आराहओ अहासुत्तं । अब्भुज्जयमरणेणं अविगलमाराहणं लहइ ॥८॥ १८३३. तं ब्भुज्जयमरणं अमरणधम्मेहिं वन्नियं तिविहिं। भत्तपरिन्ना १ इंगिणि २ पाओवगमं ३ च धीरेहिं ।।९।। [गा.१०-११. भत्तपरिन्नामरणस्स भेयजुयं] १८३४. भत्तपरिन्नामरणं दुविहं सवियार मो१ अवीआरं । सपरक्कमस्स मुणिणो संलिहियतणुस्स सवियारं १॥१०॥ १८३५. अपरक्कमस्स काले अपहुप्पंतम्मि जंतमवियारं २ । तमहं भत्तपरिन्नं जहापरिन्नं भणिस्सामि ॥११॥ [गा. १२-१९. भत्तपरिन्नयस्स जइणो गुरुं पइ विन्नत्ती, गुरुणो आलोयणोवएसो य ] १८३६. reO55555555555555555555 श्री आगमगुणमंजूषा - १३३९55555555555555555555599FOOR 明明明明明明听听听听听听听听听听听听听明明明明明明明听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听2AC Page #67 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 195555555555555555 (२४-३३) दस पइन्नयसुत्तेसु - १. मत्त परिन्ना पइन्नयं A [५६] 55555555岁男%% HOUSCF听听听听听听听听听听听听听听听听听听听乐乐乐乐听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听FGO धिइबलवियलाणमकालमच्चुकलियाणमकयकरणाणं । निरवज्जमज्जकालियजईण जोग्गं निरुवसग्गं ।।१२।। १८३७. पसमसुहसप्पिवासो असोय-हासो सजीवियनिरासो । विसयसुहविगयरागो धम्मज्जमजायसंवेगो॥१३।। १८३८. निच्छियमरणावत्थो वाहिग्घत्थो जई गिहत्थो वा । भविओ भत्तपरिन्नाइ नायसंसारनेग्गुन्नो ॥१४॥ १८३९. पच्छायावपरद्धो पियधम्मो दोसदूसणसयण्हो । अरिहइ पासत्थाई वि दोसदोसिल्लकलिओ वि॥१५॥ १८४०. वाहि-जरमरणमयरो निरंतरुप्पत्तिनीरनिउरंबो । परिणामदारुणदुहो अहो ! दुरंतो भवसमुद्दो ।।१६।। १८४१. इय कलिऊण सहरिसं गुरुपामूलेऽमिगम्म विणएणं । भालयलमिलियकरकमलसेहरो वंदिउंभणइ ॥१७॥ १८४२. आरुहिउमहं सुपुरिस ! भत्तपरिन्नापसत्थबोहित्थं । निज्जामएण गुरुणा इच्छामि भवन्नवं तरिउं॥१८॥ १८४३. कारुन्नामयनीसंदसुदरो सोवि गुरू भणइ। आलोयण-वय-खामणपुरस्संरंतंपवज्जेसु॥१९॥ [गा. २०-२३. भत्तपरिन्नयस्सजइणो आलोयणा पायच्छिइकरणं य] १८४४. 'इच्छामो' त्ति भणित्ता भत्ती-बहुमाणसुद्धसंकप्पो । गुरुणो विगयावाए पाए अभिवंदिउं विहिणा ||२०|| १८४५. सल्लं उद्धरिउमणो संवेगुव्वेयतिव्वसद्धाओ। जं कुणइ सुद्धिहेउंसो तेणाऽऽराहओ होइ॥२१॥१८४६. अह सो आलोयणदोसवज्जियं उज्जुयं जहाऽऽयरियं । बालु व्व बालकालाउ देइ आलोयणं सम्मं॥२२॥१८५१. ठविए पायच्छिंत्तेगणिणा गणिसंपयासमग्गेणं । सम्ममणुमन्निय तवं अपावभावो पुणो भणइ ||२३|| [गा. २४-२८. भत्तपरिन्नयम्मि जइम्मी गुरुणा पंचमहव्वयारोवणं] १८४७. दारुणदुहजलयरनियरभीमभवजलहितारसमत्थे। निप्पच्चवायपोए महव्वए अम्ह उक्खिवसु॥२४|| १८४८. जइ विस खंडियचंडो अक्खंडमहव्वओ जई जई वि । पव्वज्जउवट्ठावणमुट्ठावणमरिहइ तहा वि ॥२५|| १८४९. पहुणो सुकयाणत्तिं मिच्चा पच्चप्पिणंति जह विहिणा । जावज्जीवपइण्णाणत्तिं गुरुणो तहा सो वि ॥२६।। १८५०. जो साइयारचरणो आउट्टियदंडखंडियवओ वा । तह तस्स वि सम्ममुवट्ठियस्स उट्ठाणा भणिया ॥२७॥ १८५१. तत्तो तस्स महव्वपव्वयभारोमंतसीसस्स। सीसस्स समारोवइ सुगुरू वि महव्वए विहिणा ॥२८॥ [गा. २९-३३. भत्तपरिन्नयस्स देसविरयस्स आयरणा, तम्मि य गुरुणा सामाइयारोवणं ] १८५२. अह होज्ज देसविरओ सम्मत्तरओ रओ य जिणधम्मे । तस्स वि अणुव्वयाइं आरोविज्जति सुद्धाई ॥२९|| १८५३. अनियाणोदारमणो हरिसवसविसठ्ठकंटयकरालो। पूएइ गुरुं संघं साहम्मियमायभत्तीए॥३०॥ १८५४. नियदव्वमउव्वजिणिंदभवण-जिणबिंब-वरपइट्ठासु। वियरइ पसत्थपुत्थय-सुतित्थ-तित्थयरपूयासु॥३१॥ १८५५. जइ सो वि सव्वविरईकयाणुराओ विसुद्धमइ-काओ। छिन्नसयणाणुराओ विसयविसाओ विरत्तो य॥३२॥ १८५६. संथारयपव्वजं पवज्जई सो वि नियमनिरवज्ज । सव्वविरईपहाणं सामइयचरित्तमारुहइ ॥३३|| [गा. ३४-४७. भत्तपरिन्नयस्स आयरणा] १८५७. अह सोसामइयधरो१पडिवन्नमहव्वओय जो साहू २देसविरओय ३ चरिमं पच्चक्खामि त्ति निच्छइओ॥३४॥ १८५८. गुरुगुणगुरुणो गुरुणोपयपंकयनमियमत्थओ भणइ । भयवं ! भत्तपरिन्नं तुम्हाणुमयं पवज्जामि ॥३५॥ १८५९. आराहणाए खमें तस्सेव य अप्पणो य गणिवसहो । दिव्वेण निमित्तेणं पडिलेहइ इहरहा दोसा ॥३६॥ १८६०. तत्तो भवचरिमं सो पच्चक्खाहित्ति तिविहमाहारं । उक्कोसियाणि सव्वाणि तस्स दव्वाणि दंसेज्जा॥३७॥ १८६१. पासित्तु ताई कोइ तीरं पत्तस्सिमेहिं किं मज्झं ? । देसं च कोइ भोच्चा संवेगगओ विचितेइ ॥३८॥ १८६२. किं च तं नोवभुत्तं मे परिणामासुई सुइं ? । दिट्ठसारो सुहं झाइ चोयणेसाऽवसीओ ॥३९॥ १८६३. उयरमलसोहणट्ठा समाहिपाणं मणुन्नमेसो वि | महुरं पज्जेयव्वो मंदं च विरेयणं खमओ ॥४०॥ १८६४. एल-तय-नाग-केसर-तमालपत्तं ससक्कर दुद्धं । पाऊण कढियसीयल समाहिपाणं तओ पच्छा॥४१॥१८६५. महुरविरेअणमेसो कायव्वो फोप्फलाइदव्वेहि। निव्वाविओय अग्गी समाहिमेसो सुहं लहइ ॥४२॥ १८६६. जावजीवं तिविहं आहारं वोसिरीइही खवगो। निज्जवगो आयरिओ संघस्स निवेयणं कुणइ ॥४३|| १८६७. आराहणपच्चइयं खमगस्सय निरुवसग्गपच्चइयं । तो उवस्सग्गो संघेण होइ सव्वेण कायव्वो ॥४४|| १८६८. पच्चक्खाविति तओ तं ते खमयं चउव्विहाहारं । संघसमुदायमज्झे चिइवंदणपुव्वयं विहिणा ॥४५॥ १८६९. अहवा समाहिहेउं सागारं चयइ तिविहमाहारं । तो पाणयं पि पच्छा वोसिरियव्वं जहाकालं ।।४६।। १८७०. तो सो नमंतसिरसंवडंतकरकमलसेहरो १ विहिणा । खामइ सव्वसंघं संवेगं संजणेमाणो ॥४७|| [गा. ४८-५२. भत्तपरिन्नयस्स खामणाइ] १८७१. आयरिय उवज्झाए सीसे साहम्मिए कुल गणे य। जे मे Yeso5555555555555555555555 श्री आगमगुणमंजूषा-१३४०5555555555555555555 5 OR O乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐玩玩乐乐乐听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听乐兵兵步兵乐乐屬 Page #68 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२४-३३) दस पन्नयसुत्तेसु १२ भत्त परित्रा पइन्नयं A [ ५७ ] केइ कसाया सव्वे तिविहेण खामेमि ॥ ४८ ॥ १८७२. सव्वे अवराहपए खामेमि अहं, खमेर मे भयवं । अहमवि खमामि सुद्धो गुणसंघायस्स संघस्स ॥४९॥ १८७३. इय वंदण खामण गरिहणाहिं भवसयसमज्जियं कम्मं । उवणषइ खणेण खयं मियावई रायपत्ति व्व ॥ ५०|| १८७४ अह तस्स महव्वयसुट्ठियस्स जिणवयणभावियमइस्स | पच्चक्खायाहारस्स तिव्वसंवेगसुहयस्स ॥५१॥ १८७५. आराहणलाभाओ कयत्थमप्पाणयं मुणंतस्स । कलुसकलतरणलट्ठि अणुसट्ठि | गणिवसो ||५२ || [गा. ५३ - १५३. भत्तपरिन्नयं पइ गुरुणो वित्रओ अणुसट्ठी ] १८७६. कुग्गहपरूढमूलं मूला उच्छिंद वच्छ ! मिच्छत्तं । भावेसु परमतत्तं सम्मत्तं सुत्तनी ॥५३॥। १८७७. भत्तिं च कुणसु तिव्वं गुणाणुराएण वीयरायाणं । तह पंचनमोक्कारे पवयणसारे रई कुणसु || ५४|| १८७८. सुविहियनिज्झाए सज्झाए उज्जओ सया होसु । निच्चं पंचमहव्वयरक्खं कुण आयपच्चक्खं || ५५ || १८७९. उज्झसु नियाणसल्लं मोहमहल्लं सुकम्मनिस्सल्लं । दमसु य मुणिंदसंदोहनिदिए इंदिमयंदे || ५६ || १८८०. निव्वाणसुहावाए विइन्नरयाइदारुणावाए। हणसु कसायपिसाए विसयतिसाए सइसहाए ॥ ५७ ॥ १८८१. काले अपहुप्पंते सामन्ने सावसेसिए इणिंह । मोहमहारिउदारणअसिलसिणसु अणुसहिं ॥ ५८॥ १८८२. संसारमूलबीयं मिच्छत्तं सव्वहा विवज्जेहि । सम्मत्ते दढचित्तो होसु नमोक्कारकुसलो य ||५९ || १८८३. मगतिण्हियाहि तोयं मन्नंति नरा जहा सतण्हाए। सोक्खाइं कुहम्मा तहेव मिच्छत्तमूमणा ||६०|| १८८४. न वि तं करेइ अग्गी विसं नेय किण्हसप्पो वि । जं कुणइ महादोसं तिव्वं जीवस्स मिच्छत्तंं ॥६१ || १८८५. पावइ इहवे वसणं तुरुमिणिदत्तो व्व दारुणं पुरिसो। मिच्छत्तमोहियमणो साहुपओसाइपावाओ ||६२ ।। १८८६. मा कासि तं पमायं सम्मत्ते सव्वदुक्खनासणए। जं सम्मत्तपइट्ठाई नाण-तव-विरिय चरणाई ॥ ६३ ॥ १८८७. भावाणुरायपेम्माणुराय-सुगुणाणुरायरत्तो य । धम्माणुरायरत्तो य होसु जिणसासणे निच्चं ॥ ६४ ॥ १८८८. दंसणभट्ठो, न हु भट्ठो होइ चरणपब्भट्ठो । दंसणमणुपत्तस्स उ परियडणं नत्थि संसारे ॥ ६५॥ १८८९. दंसणभट्ठो भट्ठो, दंसणभट्ठस्स नत्थि निव्वाणं । सिज्झति चरणरहिया, दंसणरहिया न सिज्झति ||६६ || १८९०. सुद्धे सम्म अविरओ वि अज्ने तित्थयरनामं । जह आगमेसिभद्दा हरिकुलपहु-सेणियाईया ॥ ६७॥ १८९१. कल्लणपरंपरयं लहंति जीवा विसुद्धसम्मत्ता | सम्मदंसणरयणं नऽग्घइ ससुरासुरे लोए ।। ६८ ।। १८९२. तेलोक्कस्स पहुत्तं लद्धूण वि परिवडंति कालेणं । सम्मत्तं पुण लद्धं अक्खयसोक्खं लहइ मोक्खं ॥ ६९॥ १८९३. अरिहंतसिद्ध-चेइय-पवयण-आयरिय सव्वसाहूसुं । तिव्वं करेसु भत्तिं तिगरणसुद्धेण भावेणं ॥ ७० ॥ १८९४. एगा वि समत्था जिणभत्ती दुग्गइं निवारेउं । दुलहाई लहावेउं आसिद्धिपरंपरसुहाई ॥ ७१ ॥ १९९५. विज्ना विभत्तिमंतस्स सिद्धिमुवयाइ होइ फलया य। किं पुण निव्वुइविज्जा सिज्झिहिइ अभित्तिमंतस्स ? ||७२ || १९९६. सिं आराहणनायगाण न करिज्ज जो नरो भत्तिं । धणियं पि उज्जमंतो सालिं सो ऊसरे ववइ ||७३|| १९९७. बीएण विणा सस्सं इच्छइ सो वासमब्भरण विणा । आराहणमिच्छंतो आराहयभत्तिमकरंतो ॥ ७४ ॥ १९९८. उत्तमकुलसंपत्तिं सुहनिप्फत्तिं च कुणइ जिणभत्ती । मणियारसेट्ठिजीवस्स दधुरस्सेव रायगिहे ॥ ७५ ॥ १९९९. आराहणापुरस्सरमणन्नहियओ विसुद्धलेसाओ। संसारक्खयकरणं तं मा मुच्ची नमोक्कारं ||७६ || २०००. अरिहंतनमुक्कारो एक्को वि हवेज्ज जो मरणकाले । सो जिणवरेहिं दिट्ठो संसारुच्छेयणसमत्यो ॥७७॥ २००१. मिंठो किलिट्ठकम्मो 'नमो जिणाणं' ति सुकयपणिहाणो । कमलदलक्खो जक्खो जाओ चोरो त्ति सूलिहओ ॥७८॥। २००२. भावनमुक्कारविवज्जियाइं जीवेण अकयकरणाई । गहियाणि य मुक्काणि य अणंतसो दव्वलिंगाई || ७९|| २००३. आराहणापडागागहणे अत्थो भवे नमोक्कारो । तह सुगइमग्गगमणे रहु व्व जीवस्स अपडिहओ ॥८०॥ २००४. अन्नाणी वि य गोवो आराहित्ता मओ नमुक्कारं । चंपाए सेट्ठिसुओ सुदंसण विस्सुओ जाओ ॥८१॥। २००५. विज्जा जहा पिसायं सुट्ठवउत्ता करेइ पुरिसवसं । नाणं हिययपिसायं सुट्टुवउत्तं तह करेइ ॥ ८२॥ २००६. उवसमइ किण्हसप्पो जह मंत विहिणा पउत्तेणं । तह हिययकिण्हसप्पो सुट्ठवउत्तेण नाणेणं ॥ ८३|| २००७. जह मक्कडओ खणमवि मज्झत्थो अच्छिउं न सक्केइ । तह खणमवि मज्झत्थो विसएहिं विणा होणो ||८४|| २००८. तम्हा स उट्ठिउमणो मणमक्कडओ जिणोवएसेणं। काउं सुत्तनिबद्धो रामेयव्वो सुहज्झाणे ॥८५॥ २००९. सूई जहा ससुत्ता न नस्स कवरम्मि पडिया वि। जीवो वि तह ससुत्ता न नस्सइ गओ वि संसारे ||८६|| २०१०. खंडसिलोगेहि जवो जड़ ता मरणाउ रक्खिओ राया । पत्तो य श्री आगमगुणमंजूषा - १३४१ 52 KORO 原 Page #69 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 乐乐乐用乐乐出版 (२४-३३) दस पइन्नयसुत्तेसु १० भत्त परिन्ना पइन्नयं A [ ५८ ] HA 5 5 4 5 ! सुसामन्नं किं पुण जिणवुत्तसुत्तेणं ॥ ८७॥। २०११. अहवा चिलाइपुत्तो पत्तो नाणं तहाऽमरत्तं च । उवसम-विवेग-संवरपयसुमरणमेत्तसुयनाणो ||८८|| २०१२. परिहर छज्जीववहं सम्मं मण-वयण- कायजोगेहिं । जीवविसेसं नाउं जावज्जीवं पयत्तेणं ॥ ८९ ॥ २०१३. जह ते न पियं दुक्खं जाणिय एमेव सव्वजीवाणं । सव्वायरमुवउत्तो अत्तोवम्मेण कुणसु दयं ॥९०॥ २०१४. तुंगं न मंदराओ, आगासाओ विसालयं नत्थि । जह, तह जयम्मि जाणसु धम्ममहिंसासमं नत्थि ॥ ९१ ॥ २०१५. सव्वे वि य संबंधा पत्ता जीवेण सव्वजीवेहिं । तो मारंतो जीवे मारइ संबंधिणो सव्वे ||१२|| २०१६. जीववहो अप्पवहो, जीवदया अप्पणो दया होइ। ता सव्वजीवहिंसा परिचत्ता अत्तकामेहिं ॥९३ || २०१७. जावइयाई दुक्खाई होति चउगइगयस्स जीवस्स । सव्वाइं ताइं हिसाफलाई निउणं वियाणाहि ॥९४|| २०१८. जं किंचि सुहमुयारं पहुत्तणं पयसुंदरं जं च । आरोग्गं सोहग्गं तं तमहिंसाफलं सव्वं ॥ ९५|| २०१९. पाणो वि पाडिहेरं पत्तो छू वि सुंसुमारदहे । एगेणवि एगदिणऽज्जिएणऽहिंसावयगुणेणं ||१६|| २०२०. परिहर असच्चवयणं सव्वं पि चउव्विहं पयत्तेणं । संजमवंता वि जओ भासादोसेण लिप्पंति ||१७|| २०२१. हासेण व कोहेण व लोहेण भएण वा वि तमसच्चं । मा भणसु मणसु सच्चं, जीवहियत्थं पसत्थमिणं ॥ ९८|| २०२२. विस्ससणिज्नो माया व होइ पुज्जो गुरु व्व लोयस्स । सयणु व्व सच्चवाई पुरिसो सव्वस्स होइ पिओ ||१९|| २०२३. होउ व जडी सिहंडी मुडी वा वक्कली व नग्गो वा । लोए असच्चवाई भन्नइ पासंडचंडालो ॥१००॥ २०२४. अलियं स पि भणियं विहणइ बहुयाई सच्चवयणाई । पडिओ नरयमीवसू एक्केण असच्चवयणेणं ।। १०१ ।। २०२५ मा कुणसु धीर ! बुद्धिं अप्पं व बहुं व परधणं घेत्तुं । दंतंतरसोहणयं किलिंचमित्तं पि अविदिन्नं ॥ १०२ ॥ २०२६. जो पुण अत्थं अवहरइ तस्स सो जीवियं पि अवहरइ । जं सो अत्थकएणं उज्झइ जीयं, न उण अत्थं ॥१०३॥। २०२७. तो जीवदयापरमं धम्मं गहिऊण गिण्ह माऽदिन्नं । जिण गणहरपडिसिद्धं लोगविरुद्धं अहम्मं च ॥ १०४ ॥ २०२८. चोरो परलोगम्मि वि नारय-तिरिएसु लहइ दुक्खाई । मणुयत्तणे वि दीणो दारिद्दोवद्दुओ होइ || १०५ || २०२९. चोरिक्कनिवित्तीए सावयपुत्तो जहा सुहं लहई | किढिमोरपिच्छचित्तयगोट्ठिचोराण चलणेसु ॥ १०६ ॥। २०३०. रक्खाहि बंभचेर च बंभगुत्तीहिं नवहिं परिसुद्धं । निच्चं जिणाहि कामं दोसपकामं वियाणित्ता ||१०७|| २०३१. जावइओ किर दोसा इह-परलोए दुहवहा होति । आवहइ ते उ सव्वे मेहुणसन्ना मणूसस्स || १०८|| २०३२. रइ- अरइतरलजीहाजुएण संकप्पउब्भडफणेणं । विसयबिलवासिणा मयमुहेण बिब्बोयरोसेण || १०९ || २०३३. कामभुयगेण दट्ठा लज्जानिम्मोयदप्पदाढेणं । नासंति नरा अवसा दुस्सहदुक्खावहविसेणं ॥११०|| २०३४. लल्लक्कनिरयवियणाउ घोरसंसारसायरुव्वहणं । संगच्छइ न य पिच्छइ तुच्छत्तं कामियसुहस्स ॥१११|| २०३५. वम्महसरसयविद्धो गिद्धो वणिउ व्व रायपत्तीए । पाउक्खालयगेहे दुग्गंधेऽणेगसो वसिओ ॥ ११२ ॥। २०३६. कामासत्तो न मुणइ गम्माऽगम्मं पि वेसियाणो व्व । सेट्ठी कुबेरदत्तो निययसुयासुरयरइरत्तो ॥ ११३॥। २०३७. पडिपिल्लिय कामकलिं कामग्घत्यासु मुयसु अणुबंधं । महिलासु दोसविसवल्लरीसु पयइं नियच्छंतो ॥११४॥। २०३८. महिला लं सवंसं पई मायरं च पियरं च । विसयंधा अगणंती दुक्खसमुद्दम्मि पाडेइ ॥ ११५ ॥ २०३९. नीयंगमाहिं सुपओहराहिं उप्पित्थमंथरगईहिं । महिलाहिं निन्नयाहि व गिरिवरगरूया वि भिज्नंति ॥ ११६ ॥। २०४०. सुट्ट वि जियासु सुठु वि पियासु सु वि परूढपेमासु । महिलासु भुयंगीसु व वीसंभं नाम को कुण ? ||११७|| २०४१. वीसंभनिब्भरं पि हु उवयारपरं परूढपणयं पि । कयविप्पियं पियं झत्ति निति निणं हयासाओ ॥११८॥। २०४२. रमणीयदंसणाओ सोमालंगीओ गुणनिबद्धाओ । नवमालइमालाओ व हरंति हिययं महिलियाओ ॥ ११९ ॥ २०४३. किंतु महिलाण तासिं दंसणसुंदेरजणियमोहणं । आलिंगणमइरा देइ वज्झमालाण व विणासं ॥ १२० ।। २०४४. रमणीय दंसणं चेव सुंदरं, होउं संगमसुहेणं। गंधो च्चिय सुरहो मालईइ, मलणं पुण विणासो ॥ १२१ ॥ २०४५. साकेयपुराहिवई देवरई रज्जसोक्खपब्भट्ठो । पंगुलहेउं छूढो वूढो य नईइ देवी ॥ १२२ ॥ २०४६. सोयसरी दुरियदरी कवडकुडी महिलिया किलेसकरी । वइरविरोयणअरणी दुक्खखणी सुक्खपडिवक्खा || १२३|| २०४७. अमुणियमणपरिकम्मो सम्मं को नाम नासिउं तरइ । वम्महसरपसरोहे दिट्ठिच्छोहे मयच्छीण ? ॥ १२४ ॥ २०४८ घणमालाओ व दूरन्नमंतसुपओहाराओ वहुंति । मोहविसं महिलाओ आलक्कविसं व पुरिसस्स ॥१२५ || २०४९. परिहरसु तओ तासिं दिट्ठि YOYO श्री आगमगुणमंजूषा १३४२ Page #70 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२४-३३) दस पइन्नयसुत्तेसु १२ भत्त परिन्ना पइन्नयं A [ ५९ ] 20 दिट्ठिविसस्स व अहिस्स । जं रमणिनयणबाणा चरित्तपाणे विणासेति ॥ १२६ || २०५०. महिलासंसग्गीए अग्गीइ व जं च अप्पसारस्स । मयणं व मणो मुणिणो वि हंत ! सिग्घं चिय विलाइ || १२७|| २०५१. जइ वि परिचत्तसंगो तवतणुयंगो तहा वि परिवडइ । महिलासंसग्गीए कोसाभवणूसिय व्व रिसी ॥१२८॥ २०५२. सिंगारतरंगाए विलासवेलाए जोव्वणजलाए । पहसियफेणाए मुणी नारिनईए न वुज्झति ॥ १२९ ॥ २०५३. विसयजलं मोहकलं विलास-बिब्बोयजलयराइन्नं । मयमयरं उत्तिन्ना तारुन्नमहन्नवं धीरा || १३०|| २०५४. अभिंतर - बाहिरए सव्वे गंथे तुमं विवज्जेहि । कय-कारियऽणुमईहिं काय मणो-वायजोगेहिं ॥१३१॥ २०५५. संगनिमित्तं मारेइ, भणइ अलियं, करेइ चोरिक्कं । सेवइ मेहुण, मुच्छं अप्परिमाणं कुणइ जीवो ॥ १३२॥। २०५६. संगो महाभयं जं विडिओ संणं । पुत्ते हि अत्थम्मि मणिवई कुंचिएण जहा ॥ १३३ || २०५७. सव्वग्गंथविमुक्का सीईभूओ पसंतचित्तो य । जं पावइ मुत्तिसुहं न चक्कवट्टी वि तं लहइ ॥१३४|| २०५८. निस्सल्लस्सेह महव्वयाई अक्खंड- निव्व णगुणाई । उवहम्मंति य ताइं नियाणसल्लेण मुणिणो वि ॥ १३५ ॥ २०५९. अह राग-दोसगब्भं मोहग्गमं च तं भवे तिविहं । धम्मत्थं हीणकुलाइपत्थणं मोहगब्भं तं ॥ १३६ ॥ २०६०. रागेण गंगदत्तो, दोसेणं विस्समूइमाईया। मोहेण चंडपिंगलमाईया होति दिट्टंता ॥१३७॥ २०६१. अगणिय जो मुक्खसुहं कुणइ नियाणं असारसुहहेउं । सो कायमणिकएणं वेरुलियमणिं पणासेइ ॥ १३८॥। २०६२. दुक्खक्खय कम्मक्खय समाहिमरणं च बोहिलाभो य । एयं पत्थेयव्वं, न पत्थणिज्जं तओ अन्नं ॥ १३९ ॥ २०६३. अज्झियनियाणसल्लो निसिमत्तनियत्ति समइ-गुत्तीहिं। पंचमहव्वयरक्खं कयसिवसोक्खं पसाहेइ ॥१४०|| २०६४. इंदियविसयपसत्ता पडंति संसारसावरे जीवा । पक्खि व्व छिन्नपक्खा सुसीलगुणपेहुणविहुणा ॥ १४१ ॥ २०६५. न लहइ जहा लिहंतो हिल्लियं अट्ठियं रसं सुणओ। सो सइतालुयरसियं विलिहंतो मन्नए सोक्खं ॥ १४२॥ २०६५. महिलापसंगसेवी न लहइ किंचि वि सुहं तहा पुरिसो । सो मन्नए वराओ सयकायपरिस्समं सोक्खं ॥ १४३ ॥ २०६६. सुडुवि मग्गिज्जतो कत्थ वि कयलीइ नत्थि जह सारो । इंदियविसएस तहा नत्थि सुहं सुठु वि गविट्टं ||१४४|| २०६७. सोएण पवसियपिया, चक्खूराएण माहुरो वणिओ । घाणेण रायपुत्तो निहओ, जीहाए सोदासो ॥ १४५ ॥ २०६८. फासिदिएण दिट्ठो नट्ठो सोमालिया महीपालो । एक्केक्केण वि निहया, किं पुण जे पंचसु पसत्ता ? || १४६|| २०६९. विसयाविक्खो निवडइ, निरविक्खो तरइ दुत्तरभवोहं । देवीदीवसमागयभाउयजुयलं व भणियं च ॥ १४७ ॥ २०७०. छलिया अवयक्खता निरावयक्खा गया अविग्घेणं । तम्हा पवयणसारे निरावयक्खेण होयव्वं ॥ १४८|| २०७१. विसए अवयक्खता पडंति संसारसागरे घोरे | विसएसु निरवयक्खा तरंति संसारकंतारं ॥ १४९ ॥ २०७२. ता धीर ! घीबलेणं दुर्द्दते दमसु इंदियमइंदे । तेणक्खयपडिवक्खो हराहि आराहणपडागं ||१५०|| २०७३. कोहाईण विवाजं नाऊण य तेसि निग्गहेण गुणं । निग्गिण्ह तेण सुपुरिस ! कसायकलिणो पयत्तेणं ॥ १५१ ॥ २०७४. जं अइतिक्खं दुक्खं जंच सुहं उत्तिमं तिलोईए । तं जाण कसायाणं वुड्डि-क्खयहेउयं सव्वं ॥ १५२॥। २०७५. कोहेण नंदमाई निहया, माणेण फरुसरामाई। मायाइ पंडरज्जा, लोहेणं लोहनंदाई || १५३॥ [ गा. १५४-५५. भत्तपरिन्नयस्स गुरुअणुसट्ठिपडिवत्ती] २०७६. इय उवएसामयपाणएण पल्हाइयम्मि । चित्तम्मिजाओ सुनिव्वुओ सो पाऊण व पाणियं तिसिओ ॥ १५४॥ २०७७. 'इच्छामो अणुसट्ठि भंते! भवपंकतरणदढलट्ठि । जं जह वृत्तं तं तह करेमि' विणओणओ भणइ ॥ १५५ ॥ [ गा. १५६-७१. वियणाघत्थं भत्तपरिन्नयं पर गुरूवएसो ] २०७८. जइ कह वि असुहकम्मोदएण देहम्मि संभवे वियणा । अहवा तण्हाईया परीसहा से उदीरिज्जा ॥१५६॥ २०७९. निद्धं महुरं पल्हायणिज्ज हिययंगमं अणलियं च । तो सेहावेयव्वो सो खवओ पन्नवंतेणं ॥ १५७ ॥ २०८०. संभरसु सुयण ! जं तं मज्झम्मि चउव्विहस्स संघस्स । वूढा महापइन्ना 'अहयं आराहइस्सामि' || १५८ || २०८१. अरिहंत - सिद्ध-केवलिपच्चक्खं सव्वसंघसक्खिस्स । पच्चक्खाणस्स कयस्स भंजणं नाम को कुणइ ? ॥१५९॥। २०८२. भालुंकीए करुणं खज्जंतो घोरवेयणत्तो वि । आराहणं पवन्नो झाणेण अवंतिसुकुमालो ।। १६० ।। २०८३. मुग्गिल्लगिरिम्मि सुकोसलो वि सिद्धत्थदइयओ भयवं । वग्घीए खज्जंतो पडिवन्नो उत्तमं अहं ॥ १६१ ॥ २०८४. गोठ्ठे पाओवगओ सुबंधुणा गोमए पलिवियम्मि। डज्झंतो चाणक्को पडिवन्नो उत्तमं अहं ॥ १६२ || २०८५. रोहीडगम्मि सत्तीहओ वि कुंचेण अग्गिनिवदइओ । तं वेयणमहियासिय पडिवन्नो उत्तमं अहं ॥। १६३।। २०८६. अवलंबिऊण सत्तं तुमं पि ॐ श्री आगमगुणमंजूषा १३४३ Page #71 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 05555555555555(२४-३३) दस पइन्नयसुत्तेसु - १० भत्त परिन्ना पइन्नयं,१२ गच्छायार पइण्णय ६०]555555599999Roy रता धीर ! धीरयं कुणसु । भावेसु य नेगुन्नं संसारमहासमुद्दस्स ॥१६४॥२०८७. जम्म-जरा-मरणजलो अणाइमं वसणसावयाइन्नो । जीवाण दुक्खहेऊ कट्ठ रोदो भवसमुद्दो ॥१६५।। २०८८. धन्नो हं जेण मए अणोरपारम्मि भवसमुद्दम्मि । भवसयसहस्सदुलह लद्धं सद्धम्मजाणमिणं ॥१६६|| २०८९. एअस्स पभावेणं 卐 पालिज्जतस्स सइपयत्तेणं । जम्मंतरे वि जीवा पावंति न दुक्ख-दोगच्वं ॥१६७|| २०९०. चिंतामणी अउव्वो एयमपुव्वो य कप्परुक्खो त्ति । एयं परमो मंतो, एयं परमामयं इत॥१६८।।२०९१. अह मणिमंदिरसुदरफुरंतजिणनिरंजणुज्जोओ। पंचनमोक्कारसमे पाणे पणओ विसज्जेइ ॥१६९||२०९२. परिणामविसुद्धीए सोहम्मे सुरवरोमहिड्डीओ। आराहिऊण जायइ भत्तपरिन्नं जहन्नं सो॥१७०॥२०९३. उक्कोसेण गिहत्थो अच्चुयकप्पम्मि जायए अमरो। निव्वाणसुहं पावइ साहू सव्वट्ठसिद्धिं वा ॥१७१|| [गा. १७२-७३. भत्तपरिन्नापइन्नययमाइप्पं अंतिममंगलं च ] २०९४. इय जोइसरजिणवीरभद्दमणियाणुसारिणीमिणमो । भत्तपरिन्नं धन्ना पढति निसुणंति भावेति ।।१७२।। २०९५. सत्तरियं जिणाण व गाहाणं समयखित्तपन्नत्तं । आराहतो विहिणा सासयसोक्खं लहइ मोक्खं ।।१७३।। ★★★भत्तपरिन्नापइण्णयं सम्मत्तं ★★★।।१०। १३ गच्छायारपइण्णयंप्रका[गा. १. मंगलमभिधेयं च]२०९६. नमिऊणमहावीरंतियसिंदनमंसियं महाभागं। गच्छायारं किंची उद्धरिमोसुयसमुद्दाओ ||१|| [गा. २. उम्मग्गगामिगच्छसंवासे हाणी] २०९७. अत्येगे गोयमा ! पाणी जे उम्मग्गपइट्ठिए । गच्छम्मि संवसित्ताणं भमई भवपरंपरं ||२|| [गा. ३-६. सदायारगच्छसंवासे गुणइ] २०९८. जामद्धं जाम दिण पक्खं मासं संवच्छरं पि वा। सम्मग्गपट्ठिएगच्छे संवसमाणस्स गोयमा!||३||२०९९. लीलाअलसमाणस्स निरुच्छाहस्स वीमाणं । पक्खोविक्खाइ अन्नेसिं महाणुभागाण साहुणं ॥४॥ २१००. उज्जमं सव्वथामेसु घोर-वीरतवाइयं । लज्जं संकं अइक्कम्म तस्स विरियं समुच्छले॥५॥२१०१. वीरिएणं तु जीवस्स समुच्छलिएण गोयमा!। जम्मंतकरकए पावे पाणी मुहुत्तेण निड्डहे ॥६॥ [गा. ७-४० आयरियसरूववण्णणाहिगारो] २१०२. तम्हा निउणं निहालेउं गच्छं सम्मग्गपट्ठियं । वसेज्न तत्थ आजम्मं गोयमा ! संजए मुणी ॥७॥ २१०३. मेडी आलंवणं खंभं दिट्ठी जाणं सुउत्तमं । सूरी जं होइ गच्छस्स तम्हा तं तु परिक्खए ।।८।२१०४. भयवं! केहिं लिंगेहिं सूरिं उम्मग्गपट्ठियं । वियाणिज्जा छउमत्थे मुणी? तं मे निसामय ॥९॥२१०५. सच्छंदयारि दुस्सीलं, आरंभेसु पवत्तयं । पीढयाइपडीबद्धं, आउक्कायविहिंसगं ॥१०॥ २१०६. मूलुत्तरगुणब्भर्ट्स, सामायारीविराहयं । अदिन्नालोयणं निच्चं, निच्चं विगहपरायणं ॥१२॥२१०७. छत्तीसगुणसमन्नागएण तेण वि अवस्स दायव्वा । परसक्खिया विसोही सुट्ठ वि ववहारकुसलेणं ।।१२।। २१०८. जह सुकुसलो वि विज्जो अन्नस्स कहेइ अत्तणो वाहिं। विज्जुवएसं सुच्चा पच्छा सो कम्ममायरइ॥१३||२१०९. देसंखेतं तु जाणित्ता वत्थं पत्तं उवस्सयं। संगहे साहुवग्गं च, सुत्तत्थं च निहालई ॥१४॥ २११०. संगहोवग्गहं विहिणा न करेइ य जो गणी । समणं समणिं तु दिक्खित्ता सामायारिं न गाहए ॥१५॥२१११. बाणं जो उ सीसाणं जीहाए उवलिंपए। न सम्ममग्गं गाहेइ सो सूरी जाण वेरिओ॥१६||२११२. जीहाए विलिहंतो न भद्दओ साराणा जहिं नत्थि । डंडेण वि ताडंतो स भद्दओ सारणा जत्थ ॥१७॥ २११३. सीसो विवेरिओ सो उजो गुरुंन विबोहए। पमायमइराघत्थं सामायारीविराहयं ॥१८॥२११४. तुम्हारिसा वि मुणिवर ! पमायवसगा हवंति जइ पुरिसा। तो को अन्नो अम्हं आलंबण होज्ज संसारे? ॥१९॥ २११५. नाणम्मि दंसणम्मि य चरणम्मि य तिसु वि समयसारेसु। चोएइ जो ठवेउं गणमप्पाणं च सो य गणी ॥२०॥ २११६. पिंडं उवहिं सेज्जं उग्गमउप्पायणेसणासुद्धं । चारित्तरक्खणट्ठा सोहिंतो होइ सचरित्ती॥२१॥२११७. अप्परिसावी सम्म समपासी चेव ओइ कज्जेसु । सो रक्खइ चक्टुं पिव सबाल-वुड्डउलं गच्छं ।।२२।। २११८. सीयावेइ विहारं सुहसीलगुणेहिं जो अबुद्धीओ । सो नवरि लिंगधारी संजमजोएण निस्सारो ।।२३।। २११९. कुल गाम नगर रज्जं पयहिय जो तेसु कुणइ हु ममत्तं । सो नवरि लिंगधारी संजमजोएण निस्सारो ॥२४॥ २१२०. विहिणा जो उ चोएइ, सुत्तं अत्थं च गाहए । सो धण्णो, सो य पुण्णो य, स बंधू मोक्खदायगो ॥२५|| २१२१. स एव भव्वसत्ताणं चक्खुब्भूए वियाहिए । दंसेइ जो जिणुद्दिढ़ अणुट्ठाणं जहट्ठियं ॥२६।। २१२२. शतित्थयरसमो सूरी सम्मं जो जिणमयं पयासेइ । आणं अइक्कमंतो सो काउरिसो, न सप्पुरिसो॥२७।। २१२३. भट्ठायारो सूरी १ भट्ठायाराणुवेक्खओ सूरी २। ROO 9 5 55555 श्री आगमगुणमंजूषा - १३४४ 595555555555555555555555550 CC乐乐听听听听听听听听听乐乐乐乐乐乐乐乐玩玩乐乐乐明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明6S O乐乐听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听乐乐听听听听听听听听听听听听听听听 Page #72 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 95555555555555555555H (२४-३३) दस पइन्नयसुत्तेसु. १०गच्छायार पइण्णय 8 [६१] 99999999EOXOY Yor(C%%%%%%%%%%%%%%%%%%%%%%%%%%%%%%% उमकमग्गठिओ सूरी ३ तिन्नि वि मग्गं पणासंति ॥२८॥ २१२४. उम्मग्गठिए सम्मग्गनासए जो य सेवए सूरी। नियमेणं सो गोयम ! अप्पं पाडेइ संसारे॥२९॥ २१२५. उम्मग्गठिओ एक्को वि नासए भव्वसत्तसंघाए । तम्मग्गमणुसरंते जह कुत्तारो नरो होइ ॥३०॥ २१२६. उम्मग्गमग्गसंपट्ठियाण सूरीण गोयमा ! Yणं । संसारो य अणंतो होइ य सम्मग्गनासीणं ॥३१॥ २१२७. सुद्धं सुसाहुमग्गं कहमाणो ठवइ तइपक्खम्मि । अप्पाणं, इयरो पुण गिहत्यधम्माओ चुक्को त्ति ॥३२॥ २१२८. जइ विन सक्कं काउं सम्मं जिणभासियं अणुट्ठाणं । तो सम्म भासिज्जा जह भणियं खीणरागेहिं॥३३॥ २१२९. ओसन्नो वि विहारे कम्मं सोहेइ सुलभबोही य । चरण-करणं विसुद्धं उववूहितो परूवितो ॥३४॥ २१३०. सम्मग्गमग्गसंपट्ठियाण साहूण कुणइ वच्छल्लं । ओसह-भेसज्जेहि य सयमन्नेणं तु कारेई ॥३५॥ २१३१. भूए अत्थि भविस्संति केइ तेल्लोक्कनमंसणीयकमजुयले । जेसिं परहियकरणेक्कबद्धलक्खाण वोलिही कालो ॥३६|| २१३२. तीयाणागयकाले केई होहिति गोयमा ! सूरी । जेसिं नामग्गहणे वि होज्ज नियमेण पच्छित्तं ॥३७।। जओ २१३३. सइरीभवंति अणवेक्खयाइ, जह मिच्च-वाहणा लोए। पडिपुच्छ सोहि चोयण, तम्हा उगुरू सया भयई॥३८॥२१३४. जो उप्पमायदोसेणं, आलस्सेणं तहेव य। सीसवगंन चोएइ, तेण आणा विराहिया॥३९॥२१३५. संखेवेणं मए सोम्म ! वण्णियं गुरुलक्खणं । गच्छस्स लक्खणं धीर ! संखेवेणं निसामय ॥४०|| [गा. ४१-१०६. साहुसरूववण्णणाहिगारो] २१३६. गीयत्थे जे सुसंविम्गे अणालस्सी दडव्वए। अखलियचरित्ते सययं राग-द्दोवविवज्जिए॥४१॥ २१३७. निट्ठवियअट्ठमय ठाणे समियकसाए जिंइदिए। विहरिज्जा तेण सद्धिं तु छउमत्थेण वि केवली ॥४२॥ २१३८. जे अणहियपरमत्थे गोयमा ! संजए भवे । तम्हा ते विवज्जेज्जा दोग्गईपंथदायगे ॥४३॥ २१३९. गीयत्थस्स वयणेणं विसं हालहलं पिबे | निम्विकप्पोय भक्खेज्जा तक्खणा जं समुद्दवे ॥४४॥२१४०. परमत्थाओ विसंणोतं, अमयरसायणं खुतं । निविग्धं जनतं मारे, मओ विसोअमयस्समो॥४५॥ २१४१. अगीयत्थस्स वयणेणं अमयं पि न घुटए। जेण नो तं भवे अमयं, जं अगीयत्थदेसियं ॥४६।।२१४२. परमत्थओन तं अमयं विसं हालाहलं खुतं । न तेण अजरामरो हुज्जा, तक्खणा निहणं वए ॥४७|| २१४३. अगीयत्थ-कुसीलेहिं संगं तिविहेण वोसिरे। मुक्खमग्गस्सिमे विग्घे, पहम्मी तेणगे जहा ॥४८॥ २१४४. पज्जलियं हुयवहं दुटुं निस्संको तत्थ पविसिउं। अत्ताणं निद्दहिज्जाहि, नो कुसीलस्स अल्लिए॥४९||२१४५. पजलंति जत्थ धगधगधगस्स गुरुणा वि चोइए सीसे । राग-द्दोसेण वि अणुसएण, तं गोयम ! न गच्छं ॥५०॥ २१४६. गच्छो महाणुभावो, तत्थ वसंताण निज्जरा विउला । सारण-वारण-चोयणमाईहिं नई दोसपडिवत्ती॥५१||२१४७. गुरुणो छंदणुवित्ती, सुविणीए जियपरीसहे धीरे।ण विथद्दे, ण विलुद्धे, ण वि गारविए विगहसीले॥५२।। २१४८. खते दंते गुत्ते मुत्ते. ' वेरग्गमग्गमल्लीणे । दसविहसामायारी-आवस्सग-संजमुज्जुत्ते ॥५३|| २१४९. खर-फरुस-कक्कसाए अणिट्ठदुट्ठाए निट्ठरगिराए। निब्भच्छण-निद्धाडणमाईहिं नई जे पउस्संति॥५४॥२१५०. जे यन अकित्तिजणए नाजसजणए नऽकज्जकारी यानपवयणुड्डाहकरे कंठग्गयपाणसेसे वि॥५५॥२१५१.गुरुणा कज्जमकज्जे खरकक्कस-दुट्ठ-निहरगिराए । भणिए तह त्ति सीसा भणंति, तं गोयमा ! गच्छं ॥५६॥ २१५२. दूरुज्झिय पत्ताइसु ममत्तए, निप्पिहे सरीरे वि । जायमजायाहारे बायालीसेसणाकुसले ॥५७।। २१५३. तं पि न रूव-रसत्थं, न य वण्णत्थं, न चेव दप्पत्थं । संजमभरवहणत्थंअक्खोवंगं व वहणत्थं ॥५८।। २१५४. वेयण १ वेयावच्चे २ इरियट्ठाए ३ य संजमट्ठाए ४ । तह पाणवत्तियाए ५ छ8 पुण धम्मचिंताए ६ ॥५९।। २१५५. जत्थ य जेट्ठ-कणिट्ठो जाणिज्जइ जेट्ठवियण-बहुमाणा। दिवसेण वि जो जेट्ठो न हीलिज्जइ, सगोयमा ! गच्छो ॥६०॥२१५६. जत्थ य अज्जाकप्पं पाणच्चाए विरारदुब्भिक्खे। न य परिभुंजइ सहसा, गोयम ! गच्छं तयं भणियं ॥६१॥ २१५७. जत्थ य अज्जाहि समं थेरा वि न उल्लविति गयदसणा । न य झायंतित्थीणं अंगोवगाई, तं गच्छं ॥६२।। २१५८. वज्जेह अप्पमत्ता अज्जासंसम्गि अग्गि-विससरिसी। अज्जाणुचरोसाहूलहइ अकित्तिंखु अचिरेण ॥६॥२१५९. थेरस्सतवस्सिस्सव बहुस्सुयस्सवपमाणभूयस्स। अज्जासंसग्गीए जणजपणयं हवेज्जा हि॥६४॥२१६०. किं पुण तरुणो अबहुस्सओयण य विहु विगिट्ठतवचरणो। अज्जासंसग्गीए जणजपणयं न पावेज्जा ? ॥६५॥२१६१. जइ श विसयं थिरचित्तो तहा वि संसग्गिलद्धपसराए। अग्गिसमीवे व घयं विलिज्ज चित्तं खुअज्जाए।।६६।। २१६२. सव्वत्थ इत्थिवग्गम्मि अप्पमत्तोसया अवीसत्थो॥ words #55555555555555555555[ श्री आगमगुणमंजूषा - १३४५)5555555555555555555555#FOOK Page #73 -------------------------------------------------------------------------- ________________ OAD%%%%%%%% %%% (२४-३३) दस पइन्नयसुत्तेसु. १५गच्छायार पइण्णय [६२] 5 %%%%%%%%%%% % AGR95555555555555555555555555555FFFFFFFFFFFFFFFFFFQOTORY नित्थरइ बंभचेरं, तब्विवरीओ न नित्थरइ ॥६७|| २१६३. सव्वत्थेसु विमुत्तो साहू सव्वत्थ होइ अप्पवसो। सो होइ अणप्पवसो अज्जाणं अणुचरंतो उ॥६८|| २१६४. खेलपडियमप्पाणं न तरइ जह मच्छिया विमोएउं। अज्जाणुचरो साहू न तरइ अप्पं विमोएउं॥६९।। २१६५. साहुस्स नत्थि लोळ अज्जासरिसी हु बंधणे उवमा। धमेण सह ठवेंतोन यसरिसो जाणगसिलेसो॥७०॥ २१६६. वायामित्तेण वि जत्थ भट्टचरियस्स निग्गहं विहिणा । बहुलद्धिजुयस्सा वी कीरइ गुरुणा, तयं ॥ गच्छं ॥७१॥ २१६७. जत्थ य सन्निहि-उक्खड-आहडमाईण नामगहणे वि । पूईकम्मा भीया आउत्ता कप्प-तिप्पेसु ॥७२॥ २१६८. मउए निहुयसहावे हासदवविवज्जिए विगहमुक्के । असमंजसमकरिते गोयरभूमऽट्ठ विहरंति ॥७३|| २१६९. मुणिणं नाणाभिग्गह-दुक्करपच्छित्तमणुचरंताणं। जायइ चित्तचमक्कं देविंदाणं पि, तं' गच्छं ।।७४॥२१७०. पुढवि-दग-अगणि-वाऊ-वणप्फई तह तसाण विविहाणं । मरणंते विन पीडा कीरइ मणसा, तयं गच्छं ॥७५॥२१७१. खजूरित्तमुजेण जो पमज्जे उवस्सयं । नो दया तस्स जीवेसु, सम्मं जाणाहि गोयमा ! |७६||२१७२. जत्थ य बाहिरपाणियबिंदूमित्तं पि गिम्हमाईसु। तण्हासोसियपाणा मरणे वि मुणी न गिण्हति ॥७७|| २१७३. इच्छिज्जइ जत्थ सया बीयपएणावि फासुयं उदयं । आगमविहिणा निउणं, गोयम ! गच्छं तयं भणियं ॥७८||२१७४. जत्थ य सूल विसूइय अन्नयरे वा विचित्तमायके । उप्पन्ने जलणुज्जालणाइ न करेइ, तं गच्छं ॥७९॥ २१७५. बीयपएणं सारूविगाइ-सड्ढाइमाइएहिं च । कारिती जयणाए, गोयम! गच्छं तयं भणियं ॥८०॥ २१७६. पुप्फाणं बीयाणं तयमाईणं च विविहदव्वाणं । संघट्टण परियावण जत्थ न कुज्जा, तयं गच्छं ।।८१|| २१७७. हासं खेड्डा कंदप्पं नाहियवायं न कीरए जत्थ। धावण-डेवण-लंघण-ममकाराऽवण्णउच्चारणं ।।८।२१७८. जत्थित्थीकरफरिसं अंतरिय कारणे वि उप्पन्ने । दिट्ठीविस-दित्तग्गी-विसं ववज्जिज्जएगच्छे।।८३||२१७९. बालाए वुड्डाए नत्तुय दुहियाएअहव भइणीए।नय कीरइतणुफरिसं, गोयम ! गच्छंतयं भणियं ॥८४॥२१८०.जत्थित्थीकरफरिसं लिंगी अरिहा विसयमवि करेजा। तं निच्छयओ गोयम ! जाणेज्जा मूलगुणभट्ठ।८५|| २१८१. कीरइ बीयपएणं सुत्तमभणियं न जत्थ विहिणा उ। उपन्ने पुण कज्ने दिक्खाआयंकमाईए॥८६॥२१८२. मूलगुणेहि विमुक्कं बहुगुणकलियं पिलद्धिसंपण्णं । उत्तमकुले विजायं निद्धाडिज्जइ, तयं गच्छं।८७||२१८३. जत्थ हिरण्णसुवण्णे धण-धण्णे कंस-तंब-फलिहाणं । सयणाण आसणाण यझुसिराणं चेव परिभोगो॥८८||२१८४. जत्थय वारडियाणं तत्तडियाणंच तह य परिभोगो। मोत्तुं सुक्किलवत्थं, का मेरा तत्थ गच्छम्मि? ॥८९॥२१८५. जत्थ हिरण्ण-सुवण्णं हत्थेण पराणगं पिनो छिप्पे। कारणसमप्पियं पिहु निमिस-खणद्धं पि, तं गच्छं॥९०॥ २१८६. जत्थ य अज्जालद्धं पडिगहमाई वि विविमुवगरणं । परिभुज्जइ साहूहि, तंगोयम ! केरिसं गच्छं? ॥९१||२१८७. अइदुल्लहमेसज्ज बल-बुद्धिविवड्डणं पि पुट्टिकरं। अज्जालद्धं भुंजइ, का मेरा त्थ गच्छम्मि?॥९२॥२१८८. एगो एगित्थिए सद्धिं जत्थ चिट्ठिज्ज गोयमा ! ।। संजईय विसेसेणं निम्मेरं तं तु भासिमो॥१३॥ २१८९. दढचारित्तं मुत्तं आइज्जं मयहरं च गुणरासिं । एक्को अज्झावेई, तमणायारं, न तं गच्छं ॥९४॥२१९०. घणगज्जिय-हयकुहियं-विजूदुग्गेज्झगूढहिययाओ। अज्जा अवारियाओ, इत्थीरज, न तंम गच्छं ॥९५॥ २१९१. जत्थ समुद्देसकाले साहूणं मंडलीए अज्जाओ। गोयम ! ठवेति पाए, इत्थीरज्ज, न तं गच्छं ॥१६॥ २१९२. जत्थ मुणीण कसाए जगडिज्जंता वि परकसाएहिं । निच्छंति समुढेउं सुनिविट्ठो पंगुलो चेव ॥९७||२१९३. धम्मतरायभीए भीए संसारगब्भवसहीणं । न उईरति कसाए मुणी मुणीणं, तयं गच्छं ॥९८॥ २१९४. कारणमकारणेणं अह कह वि मुणीण उट्ठहि कसाए । उदिए वि जत्थ रुंभहि खामिज्जहि जत्थ, तं गच्छं ॥९९|| २१९५. सील-तव-दाण-भावणचउविधम्मंतरायभयभीए। जत्थ बहू गीयत्थे, गोयम ! गच्छं तयं भणियं ॥१००||२१९६. जत्थ य गोयम ! पंचण्ह कह विसूणाण एक्कमवि होज्जा । तं गच्छं तिविहेणं वोसिरिय वएज्ज अन्नत्थ ॥१०१॥ २१९७. सूणारंभपवत्तं गच्छं वैसुज्जलं ने सेविज्जा । जं चारित्तगुणेहिं तु उज्जलं तं तु सेविज्जा ॥१०२॥ २१९८. जत्थ य मुणिणो कय-विक्कयाई कुव्वंति संजमुब्मट्ठा । तं गच्छं गुणसायर ! विसं व दूरं परिहरिज्जा ॥१०३॥ २१९९. आरंभेसु पसत्ता सिद्धंतपरम्मुहा विसयगिद्धा । मोत्तुं मुणिणो गोयम ! वसेज मज्झे सुविवियाणं ॥१०४।। २२००. तम्हा सम्म निहालेउं गच्छं सम्मग्गपट्ठियं । वसेज्ज पक्ख मासंवा 9 जावज्जीवं तु गोयमा ! ॥१०५॥ २२०१. खुवो वुड्डो तहा सेहो जत्थ रक्खे उवस्सयं । तरुणो वा जत्थ एगागी, का मेरा त्थ भासिमो? ॥१०६|| [गा. १०७-३४. Keros555555555555555555555 श्री आगमगुणभजूषा - १३४६ 455555555555555555555555 HOROR C乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐听听听听听听听听乐乐乐FFFF明明玩乐乐玩玩玩乐乐乐乐听听FFFFFFFQX Page #74 -------------------------------------------------------------------------- ________________ +959 (25-331 दस पडन्नयसत्तेस- १गच्छायार पडण्णय B (24-33) दस पइन्नयसुत्तेसु. 17 गच्छायार पइण्णय 8 [63] E EEEEEEEEOSory HOTO乐乐乐国乐乐乐乐玩乐乐玩玩乐乐国乐乐乐乐乐乐乐玩玩乐乐乐与乐与乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐玩FM अज्नासरूववण्णणाहिगारो 2202. जत्थ य एगा खुडी एगा तरुणी उ रक्खए क्सहिं। गोयम ! तत्थ विहारे का सुद्धी बंभचेरस्स?॥१०७॥ 2203. जत्थ य, उवस्सयाओ पाहिं गच्छे दुहत्थमेत्तं पि। एगा रत्तिं समणी, का मेरा तत्थ गच्छस्स?॥१०८॥२२०४. जत्थयएगा समणी एगो समणो यजंपए सोम! नियबंधुणा विसद्धिं, तं गच्छं गच्छगुणहीणं॥१०९|| 2205. जत्थ जयार-मयारं समणी जंपइ गिहत्थपच्चक्खं। पच्चक्खं ससारे अज्जा पक्खिवइ अप्पाणं // 110 // 2206. जत्थय गिहत्थभासाहिं भासए अज्जिया सुरुठ्ठा वि। तं गच्छंगुणसायरे! समणगुणविवज्जियं जाण॥११॥२२०७. गणिगोयम! जाउचियंसेयं वत्थं विवज्जिउं। सेवए चित्तरूवाणि, न सा अज्जा वियाहिया // 112 / / 2208. सीवणं तुन्नणं भरणं गिहत्थाणं तु जा करे। तिल्लउव्वट्ठणं वा वि अप्पणो य परस्स य॥११॥ 2209. गच्छइ सविलासगई सयणीयं तूलियं सबिब्बोयं / उव्वट्टेइ सरीरं सिणाणमाईणि जा कुणइ॥११४॥२२१०. गेहेसु गिहत्थाणं गंतूण कहा कहइ काहीया। तरुणाइ अहिवडते अणुजाणे, सा इ पडिणीया // 115 // 2211. वुड्डाणं तरुणाणं रत्तिं अज्जा कहेइ जा धम्मं | सा गणिणी गुणसायर ! पडणीया होइ गच्छस्स // 116 // 2212. जत्थ य समणीणमसंखडाइ गच्छम्मि नेव जायंति / तं गच्छं गच्छवरं, गिहत्भासोओ नो जत्थ // 117|| 2213. जो जत्तो वा जाओ नाऽऽलोयइ दिवस पक्खियं वा वि॥ सच्छंदा समणीओ मयहरियाए न ठायंति // 118 // 2214. विंटलियाणि पउंजंति, गिलाण-सेहीण नेय तप्पंति / अणगाढे आगाढं करेंति, आगाढि अणगाढं // 119||2215. अजयणाए पकुव्वंति पाहुणगाण अवच्छला। चित्तलयाणि य सेवंति, चित्ता रयहरणे तहा॥१२०॥ 2216. गइ-विन्भमाइएहिं आगार विगार तह पगासिति / जह वुड्डाण वि मोहो समुईरइ, किं नु तरुणाणं ? // 121 // 2217. बहुसो उच्छोलिंती मुह-नयणे हत्थ-पाय-कक्खाओ। गिण्हेइ रागमंडल सोइंदिय तह य कब्बडे // 122 // 2218. जत्थ य थेरी तरुणी थेरी तरुणी य अंतरे सुयइ / गोयम ! तं गच्छवरं वरनाण-चरित्तआहारं॥१२३|| 2219. धोइंति कंठियाओ पोइंति य तह य दिति पोत्ताणि / गिहकज्जचिंतगीओ, नहु अज्जा गोयमा ! ताओ॥१२४॥ 2220. खर-घोडाइट्ठाणे वयंति, ते वा वित्थ वच्चंति। वेसत्थीसंसग्गी उवस्सयाओ समीवम्मि॥१२५।। 2221. छक्कायमुक्कजोगा, धम्मकहा विगह पेसण गिहीणं / गिहिनिस्सेज्जं वाहिति संथवं तह करतीओ॥१२६॥ 2222. समा सीस-पडिच्छीणं चोयणासु अणालसा / गणिणी गुणसंपण्णा पसत्थपरिसाणुगा // 127 / / 2223. संविग्गा भीयपरिसा य उग्गदंडा य कारणे / सज्झाय-ज्झाणजुत्ता य संगहे य विसारया॥१२८।। 2224. जत्थुत्तर-पडिउत्तरवडिया अज्जाओ साहुणा सद्धिं / पलवंति सुरुठ्ठावी, गोयम ! किं तेण गच्छेण ? // 129 // 2225. जत्थ य गच्छे गोयम ! उप्पण्णे कारणम्मि अज्जाओ। गणिणीपिट्ठिठियाओ भासंती मउयसद्देणं // 130 / / 2226. माऊए दुहियाए सुण्हाए अहव भइणिमाइणं / जत्थ न अज्जा अक्खइ गुत्तिविभेयं, तयं गच्छं॥१३१॥ 2227. दंसणइयार कुणई, चरित्तनासं, जणेइ मिच्छत्तं / दोण्ह वि वग्गाणऽज्जा विहारमेयं करेमाणी // 132 // 2228. तम्मूलं संसार जणेइ अज्जा वि गोयमा ! नूणं / तम्हा धम्मुवएसं मोत्तुं अन्नं न भासिज्जा // 133 / / 2229. मासे मासे उ जा अज्जा एगसित्थेण पारए। कलहइ गिहत्थभासाहिं, सव्वं तीए निरत्थयं / / 134|| [गा. 135-37. गंथसमत्ती] 2230. महानिसीह-कप्पाओववहाराओ तहेव य। साहु -साहुणिअट्ठाए गच्छायारं समुद्धियं // 135 / 2231. पढंतु साहुणो एयं असज्झायं विवज्जिउं / उत्तमं सुयनिस्संदं गच्छायारं सुउत्तमं / / 136 / / 2232. गच्छायारं सुणित्ताणं पढित्ता भिक्खु भिक्खुणी / कुणंतु जं जहा भणियं इच्छंता हियमप्पओ॥१३७॥ [ / गच्छायारं सम्मत्तं // 1 // ] GO步兵军乐乐乐国纸與與與與明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明乐乐乐乐乐场乐乐乐明明明明 OnEducation International 2010_03 For Prvate & Personal Use Only www.jainelibrary.oto