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दादा भगवान प्रापित
एडजस्ट एवरीव्हेयर
एडजस्ट एवरीव्हेयर संसार में और कुछ नहीं आता है, तो उसमें कोई हर्ज नहीं है, मगर 'एडजस्ट' होना तो आना ही चाहिए। सामनेवाला 'डिस्एडजस्ट' होता रहे और हमें एडजस्ट होना आता है, तो हमें कोई दुःख नहीं होगा। इसलिए सभी के साथ 'एडजस्टमेन्ट' हो, वही सबसे बड़ा धर्म है। इस काल में तो लोगों की प्रकृतियाँ भिन्न भिन्न होती है, इसलिए 'एडजस्ट' हुए बगैर कैसे चलेगा?
हमने इस संसार की बहुत सूक्ष्म खोज की थी। अंतिम प्रकार की खोज के बाद हम यह सब बातें आपको बता रहे हैं। व्यवहार में कैसे रहना यह भी समझाते हैं और मोक्ष में कैसे जायें, यह भी बता रहे हैं । आपकी मुश्किलें किस तरह कम हों, यही हमारा ध्येय है।
- दादाश्री
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दादा भगवान कथित
प्रकाशक : दादा भगवान फाउन्डेशन की ओर से
श्री अजीत सी. पटेल 5, ममतापार्क सोसायटी, नवगुजरात कोलेज के पीछे, उस्मानपुरा, अहमदाबाद - 380014 फोन - 7540408, 7543979 E-Mail : dimple@ad1.vsnl.net.in
संपादक के आधीन
एडजस्ट एवरीव्हेर
आवृति : प्रत 3000,
जनवरी, 2001
भाव मूल्य : 'परम विनय'
और 'मैं कुछ भी जानता नहीं', यह भाव!
द्रव्य मूल्य : ५.०० रुपये (राहत दर पर)
लेसर कम्पोझ : दादा भगवान फाउन्डेशन, अहमदाबाद
संकलना : डॉ. नीरुबहन अमीन
मुद्रक
: महाविदेह फाउन्डेशन (प्रीन्टींग डीवीझन),
धोबीघाट, दूधेश्वर, अहमदाबाद-३८० ००४. फोन : 5629197
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ત્રિમંત્ર
( દાદા ભગવાન ફાઉન્ડેશનના પ્રકાશનો ૧. ભોગવે તેની ભૂલ (ગુ, અં, હિ.) ૧૯. સમજથી પ્રાપ્ત બ્રહ્મચર્ય (ગ્રં, સં.) ૨. બન્યું તે ન્યાય (ગુ., અંગ, હિ.) ૨૦. વાણીનો સિદ્ધાંત (ગ્રં, સં.)
એડજસ્ટ એવરીવ્હેર (ગુ, એ., હિ.) ૨૧. કર્મનું વિજ્ઞાન ૪. અથડામણ ટાળો (ગુ, અં., હિ.) ૨૨. પાપ-પુણ્ય ૫. ચિંતા (ગુ, અં.)
૨૩. સત્ય-અસત્યના રહસ્યો ૬. ક્રોધ (ગુ, અં)
૨૪. અહિંસા માનવધર્મ
૨૫. પ્રેમ સેવા-પરોપકાર
૨૬. ચમત્કાર ૯. હું કોણ છું ?
૨૭. વાણી, વ્યવહારમાં... ૧૦. ત્રિમંત્ર
૨૮. નિજદોષ દર્શનથી, નિર્દોષ ૧૧. દાન
૨૯. ગુરુ-શિષ્ય ૧૨. મૃત્યુ સમયે, પહેલાં અને પછી ૩૦. આપ્તવાણી - ૧ થી ૧૨ ૧૩. ભાવના સુધારે ભવોભવ (ગુ..અં.) ૩૧. આપ્તસૂત્ર - ૧ થી ૫ ૧૪. વર્તમાન તીર્થકર શ્રી સીમંધર સ્વામી ૩૨. Harmony in Marriage (ગુજરાતી, હિન્દી)
33. Generation Gap ૧૫. પૈસાનો વ્યવહાર (ગ્રં., સં.) ૩૪. Who am I? ૧૬. પતિ-પત્નીનો દિવ્ય વ્યવહાર (.સં.) ૩૫. Ultimate Knowledge ૧૭. માબાપ છોકરાંનો વ્યવહાર , સં.) ૩૬. ટ્રાદ્દા માવાન 1 આત્મવિજ્ઞાન ૧૮. પ્રતિક્રમણ (ગ્રંથ, સંક્ષિપ્ત) ૩૭. “દાદાવાણી’ મેગેઝીન-દર મહિને...
(ગુ. ગુજરાતી, હિ.હિન્દી, અં. અંગ્રેજી, ગ્રં.-ગ્રંથ, સં.સંક્ષિપ્ત)
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संपादकीय जीवन में प्रत्येक अवसर पर समझकर हम अपने आप ही सामनेवाले को एकजस्ट (अनुकूल) नहीं होते रहेंगे तो भयानक टकराव होता ही रहेगा । जीवन विषमय व्यतीत होगा और अंततः संसार तो जबरदस्ती हमारे पास एडजस्टमेन्ट (अनुकूलन) लिवायेगा ही । यहाँ-वहाँ, इच्छा अनिच्छासे भी हमें सामने चलकर एडडस्ट होनाही होगा फिर समझ-बझकर क्यों नहीं एडजस्ट होवे कि जिससे अनेकानेक टकराव टाल सकेंगे। और सुख-शांति स्थापीत होगी।
'दादा भगवान कौन ? जून उन्नीस सौ अट्ठावन की वह साँझका करीब छह बजेका समय, भीड़से धमधमाता सूरतका स्टेशन, प्लेटफार्म नं. ३ परकी रेल्वे की बेंच पर बैठे अंबालाल मूलजीभाई पटेल रूपी मंदिर में कुदरत के क्रमानुसार अक्रम रूपमें कई जन्मोंसे व्यक्त होने के लिए आतुर "दादा भगवान" पूर्णरूपसे प्रकट हुए ! और कुदरतने प्रस्तुत किया अध्यात्मका अद्भुत आश्चर्य ! एक घण्टे में विश्व दर्शन प्राप्त हुआ।"हम कौन ? भगवान कौन ? जगत् कौन चलाता है ? कर्म क्या ? मुक्ति क्या ? इत्यादी." जगत के सारे आध्यात्मिक प्रश्नों का संपूर्ण रहस्य प्रकट हुआ। इस तरह कुदरतने विश्वमें चरनोंमें एक अजोड पूर्ण दर्शन प्रस्तुत किया और उसके माध्यम बने श्री अंभालाल मूलजीभाई पटेल, चरुतर के भादरण गाँवके पाटीदार कोन्ट्रेक्टका व्यवसाय करनेवाले, फिर भी पूर्णतया वीतराग पुरुष !
उन्हें प्राप्ति हुई उसी प्रकार केवल दो ही घण्टों में अन्यों को भीवे प्राप्ति कराते थे, अपने अद्भूत सिद्ध हुए ज्ञान प्रयोग से । उसे अक्रममार्ग कहा । अक्रम अर्थात बिना क्रमके और क्रम अर्थात सीढ़ी दर सीढ़ी क्रमानुसार उपर चढ़ना । अक्रम अर्थात लिफट मार्ग ! शॉर्टक्ट !
आपश्री स्वयं प्रत्येक को "दादा भगवान कौन ।" का रहस्य बताते हुए कहते थे कि "यह दिखाई देते है वे "दादा भगवान " नहीं हो सकते । यह दिखाई देनेवाले है वे तो "ए, एम. पटेल" हैं । हम ज्ञानी पुरुष हैं । और भीतर। प्रकट हुए हैं वे "दादा भगवान" है । दादा भगवान तो चौदह लोक के नाथ है, वे आपमें भी है । सभीमें भी है । आप में अव्यक्त रूपमें रहते है अऔ "यहाँ संपूर्ण रूपसे व्यक्त हुए है । मैं खुद भगवान नहीं हूँ । मेरे भीतर प्रकट हुए दादा भगवानको मैं भी नमस्कार करता हूँ।"
"व्यापार में धर्म होना चाहिए, धर्म में व्यापार नहीं होना चाहिए।" इस सिद्धांतसे वे सारा जीवन जी गये । जीवन में कभी भी उन्होंने किसीके पास से पैसा नहीं लिया । उल्टे धंधेकी अतिरिक्त कमाई से भक्तों को यात्रा कखाते थे !
परम पूजनीय दादाश्री गाँव गाँव देश-विदेश परिभ्रमण करके मोक्षर्थी जीवों को सत्संग और स्वरूप ज्ञानकी प्राप्ति करवाते थे । आपश्रीने अपनी हयात में ही पूजनीय डॉ. नीरूबहन अमीनको स्वरूपज्ञान प्राप्ति करनाने की ज्ञान सिद्धि अर्पित की है । दादाश्री के देह विलय पश्चात आज भी पूजनीय डॉ. नीरूबहन अमीन गाँव-गाँव, देश-विदेश जाकर मोक्षार्थी जीवोंको सत्संग और स्वरूपज्ञानकी प्राप्ति निमित्त भावसे करा रही है । जिसका लाभ हजारो मोक्षार्थी लेकर धन्यताका अनुभव करते है।
लाइफ इझ नथिंग बट एडजस्टमेन्ट (जीवन अनुकूलनके सिवा और कुछ भी नहीं !) जन्म से मृत्यु तक एडजस्टमेन्टस लेने होंगे। फिर रोकर लें या हँसकर ! पढ़ाई पसंद हो या नहीं हो पर एडस्ट होकर पढ़ना ही होगा ! ब्याहते समय शायद खुशी-खुशी ब्याहें मगर ब्याहनेके बाद सारा जीवन पतिपत्नीको परस्पारिक एडजस्टमेन्टस लेनी ही होंगे । दो भिन्न प्रकतियों को सारा जीवन साथ रहे कर, जो पाला पडा हो उसे निभाना पड़ता है । इसमें एक-दूसरोंको सारा जीवन पूर्णतया एडजस्ट होकर रहें ऐसे कितने पुण्यवंत होंगे इस कालमें ? अरे, रामचंद्रजी और सीताजीको भी कई बार डिसएडजस्टमेन्ट (प्रतिकूलन) नहीं हुए थे ? स्वर्णमृग, अग्निपरीक्षा और सगर्भा होते हुए भी बनवास ? उन्होंने कैसे कैसे एडजस्टमेन्ट लिये होंगे?
माता-पिता और संतानो में पग पग पर क्या एडजस्टमेन्टस नहीं लेने पडते? यदि समझदारी से एडजस्ट हो जायें तो शांति रहेगी और कर्म नहीं बँधेगे। परिवार में, मित्रो के साथ, धंधेमें, बॉसके साथ, व्यापारी या दलाल के साथ, तेजी मंदी में सभी जगह यदि हम एडजस्टमेन्ट नहीं ले तो दुःखका पारावार रहेगा क्या?
इसलिए "एडजस्ट एवरीव्हेर" (सर्वत : समानुकूलन) की मास्टर की (सब ताले की चाबी) लेकर जो मनुष्य जीवन व्यतीत करेगा उसके जीवनका कोई ताला नहीं खूले ऐसा नहीं होगा । ज्ञानी पुरुष पूजनीय दादाश्रीका स्वर्णी सूत्र “एडजस्ट एवरीव्हेर" जीवन में आत्मसात करलें तो संसार सुखमय हो जाये !
- डॉ. नीरूबहन अमीन के जय सच्चिदानंद ।
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एडजस्ट एवरीव्हेर!
(सर्वत : समानुकूलन)
पचायें एक ही शब्द ! प्रश्नकर्ता : अब तो जीवनमें शांति का सरल मार्ग चाहते हैं ।
दादाश्री : एक ही शब्द जीवन में उतारोगे ? उतारोगे, बराबर एक्सेक्ट (पूर्णतया)?
प्रश्नकर्ता : एकझेक्ट, हाँ।
दादाश्री : एडजस्ट एवरीव्हेर (सर्वत : समानुकूलन) इतना ही शब्द यदि आप जीवनमें उतार ले तो बहुत हो गया । आपको शांति अपने आप प्राप्त होगी । पहले हैं तो छह महीनों तक अडचनें आयेंगी, बादमें अपने आप ही शांति हो जायेगी । देरसे शुरूआत करने की वजह से पहले छह महीनो तक पिछले रिएकशन (प्रतिक्रियाएँ) आयेगे । इसलिए "एडजस्ट एवरीव्हेर" इस कलयुग के ऐसे भयावह कालमें यदि एडजस्ट (अनुकूल) नहीं हुए न, तो ख़तम हो जाओगे !
संसार में और कुछ नहीं आये तो हर्ज नहीं पर एडजस्ट होना तो आना ही चाहिए । सामनेवाला "डिसएजस्ट" (प्रतिकूल) होता रहे और हम एडजस्ट होते रहे तो संसार सागर तैरकर पार उतर जाओगे । दसरोंको अनुकूल होना आया उसे कोई दुःख ही नहीं रहेगा । एडजस्ट एवरीव्हेर । प्रत्येक के साथ एडजस्टमेन्ट होना यही सबसे बड़ा धर्म है इस कालमें तो
एडजस्ट एवरीव्हेर प्रकृतियाँ भिन्न-भिन्न होती है इसलिए बिना एडजस्ट हुए कैसे चलेगा ?
२ बखेड़ा मते करें, एडजस्ट होइए ! संसार माने ही समसरन मार्ग, इसलिए निरंतर परिवर्तन होता ही रहेगा । तब ये बूढ़ौ पुराने जमानेसे ही लिपटे रहतें हैं । अबे जमाने के साथ चल, वर्ना मार खाते-खाते मर जायेगा ! जमानेके अनुसार एडजस्टमेन्ट लेना होगा । मेरा तो चोरके साथ, यदि हम बात करें तो उसे भी लगे कि ये करुणावाले हैं । हम चोरसे "तू गलत है । " ऐसा नहीं कहें, क्योंकि वह उसका "व्यु पोइन्ट" (द्रष्टि-बिन्दु) है । तब लोग उसे "नालायक" कहकर गालियाँ दें । तब क्या ये वकील झूढे नहीं है ? "बिलकुल झूढा केस जीतवा दूँगा" ऐसा कहें क्या वे ठग नहीं कहलायेंगे? चोर को लुच्चा कहें और बिलकुल झुठे केसको सच्चा कहें, उसका संसारमें विश्वास कैसे कर सकते हैं ? फिर भी उनका भी चलता है न ? किसीको भी हम खोटा नहीं करते । वह अपने "व्युपोइन्ट"से करेक्ट (सही) ही है । लेकिन उसे सच बात समझायें कि यह तू चोरी करता है उसका फल तुझे क्या मिलेगा।
ये भूडढ़े घरमें घुसने पर कहेंगे "यह लोहेकी अलमारी ?" यह रेडियो ? यह ऐसा क्यों ? तैसा क्यों ? ऐसे बखेड़ा करेंगे । अबे, किसी जवानसे दोस्ती कर ले । यह तो युग बदलता ही रहेगा । इसके बगैर ये जीयें कैसे ? कुछ नया देखा कि मोह होगा । नवीन नहीं होगा तो जीएँगे किस तरह ? ऐसा नवीन तो अनंत आया और गया, उसमें आपको बखेड़ा नहीं करना चाहिए । आपको अनुकूल नहीं आये तो आप मत करें । यह आइस्क्रीम हमसे नहीं कहती कि मुझसे दूर रहो । हमें नही खाना हो तो नहीं खयें । यह तो बूडढे उस पर चिढ़ते रहें । ये मतभेद तो युग परिवर्तन के हैं । ये बच्चे तो जमानेके अनुसार चलेंगे । मोह के कारन नया-नया उत्पन्न होगा और नया-नया ही देखने में आयेगी । यह संसार उलटा हो रहा है कि सुलटा यह हमने बुद्धिसे बचपन में ही सोच रखा था, और यह भी समझ लिया था कि किसीकी सत्ता ही नहीं है. इस संसारके परिवर्तन
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एडजस्ट एवरीव्हेर की । फिरभी हम क्या करते हैं कि जमाने के अनुसार एडजस्ट होइये ।
३) लडका नयी टोपी पहनकर आये तब ऐसा नहीं कहना चाहिए कि, यह ऐसा कहाँसे लाया ? उसके बजाय एडजस्ट होकर पूछे कि. इतनी अच्छी टोपी कहाँसे लाया ? कितने में लाया ? बहुत सस्तेमें मिल गई? इस प्रकार एडजस्ट हो जायें.
हमारा धर्म क्या कहता है कि असुविधा में सुविधा देखिए । रातमें मुझे विचार आया कि, "यह चद्दर मैली है ।" पर फिर एडजस्टमेन्ट ले लिया कि वह इतनी मुलायम महसूस होगी कि बात ही तम पूछे उसकी । पंचेन्द्रिय ज्ञान असुविधा दिखायें और आत्मज्ञान सुविधा दिखाये । इसलिए आत्मा में ही रहें ।
गंधीलेके साथ एडजस्टमेन्ट ।
यह बांद्राकी खाड़ी बू मारे तो उसके साथ क्या लड़ने जायेंगे? इसी प्रकार ये मनुष्य बू मारते है, उनको कुछ करने कैसे जाये ? बू मारे वे सभी खाडियाँ कहलाये और सुगंध फैलाये वे बाग़ कहलाये । जो जो बू मारते है वे सभी कहते है कि "आप हमारे साथ वीतराग रहे !"
यह तो अच्छा-बुरा कहने से भूत परेशान करते है । हमें तो दोनों को समान कर देना है । इसे अच्छा कहा इसलिए वह बुरा हुआ, इस कारण वह परेशान करे । लेकिन दोनोका"मिश्चर" कर डाले इससे फिर असर नहीं रहता । "एडजस्ट एवरीव्हेर" की हमने खोज-बीन की है । सच बोल रहा हो उसके साथ और झूढ बोल रहा हो उसके साथ भी "एडजस्ट" हो जा । हमसे कोई कहे कि "आपमें अक्ल नहीं है।" तब हम तुरन्त उससे एडजस्ट होकर कहें कि, "वह तो पहले से ही नहीं थी । आज त कहाँ से खोजने आया ? तुझे तो आज मालूम हुआ, पर मैं तो बचपनसे ही जानता हूँ यह ।" ऐसा कहें इसलिए झंझट मीटे न ? फिर से वह हमारे पास अक्ल खोजने नहीं आयेगा । ऐसा नहीं करें तो अपने घर कब पहुँचते ?
एडजस्ट एवरीव्हेर पत्नीके साथ एडजस्टमेन्ट ! प्रश्रकर्ता : वह एडजस्ट कैसे होना, यह जरा समझाइए ।
दादाश्री : हमें किसी कारण वश देर हो गई, अब वाइफने (पत्नी) सामना किया और उलटा-सुलटा बोलने लगी. "इतनी देर गये आते हो? मुझसे गवारा नहीं होगा, और ऐसा-वैसा वगैरह," उसका दिमाग हट गया । तब हम कहेंगे कि "हाँ यह बात तेरी सही है, अब तू कहती हो तो वापस चला जाऊँ और कहे तो अंदर आकर बैहूँ ।" तब कहे, "नहीं वापस मत जाना, यहाँ सो जाओ चूपचाप ।" लेकिन फिर पूछे, "गर तू कहे तो खाऊँ वर्ना मैं तो सो जाता हूँ।" तब कहें, "नहीं खाले ।" तब हम उसका कहा मानकर खालें । अर्थात एडजस्ट हो गये । फिर सुबहमें फर्स्ट क्लास चाय देवे और अगर उसे धमकायी उपरे नो, चायका कप बिगड़कर देगी और तीन दिन तक जारी रहेगा वही सिलसिला ।
खायें खीचडी या हॉटेल के पीझा? एडजस्ट होना नहीं आया तो लोग क्या करेंगे ? वाइफ के साथ झगड़ा करेंगे क्या ?
प्रश्नकर्ता : हाँ ।
दादाश्री: ऐसा ?! क्या बाँटने के लिए? वाइफके साथ क्या बाँटोगे ? मिल्कियत तो साझेदारी में है ।
प्रश्रकर्ता : पतिके गुलाब जामुन खाने हो और बीबी खीचड़ी पकायेगी इसलिए फिर झगड़ा होता है ।
दादाश्री : झगड़ा करने के बाद वह क्या गुलाबजामुन लायेगी ? बाद में खीचडी ही खानी पड़ेगी !
प्रश्रकर्ता : फिर हॉटेलमेंसे बाहरसे पीझा मँगायेंगे ।
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एडजस्ट एवरीव्हेर दादाश्री: वह पहले कहें कि, आज प्याज के पकौडे, लडडु सब्जी सब बनाओ तब हम एडजस्ट हो जायें और आप कहें कि आज जल्दी सो जाना है तो उन्हें एडजस्ट हो जाना चाहिए । आपको किसी दोस्तके यहाँ जाना हो तब भी मुलत्वी करके जल्दी सो जायें । क्योंकि दोस्तके साथ अँझट होगी तो देखा जायेगा, लेकिन पहले यहाँ घरपे नहीं होने दे। यह दोस्तके साथ निभाने के लिए घरमें झंझट करें, ऐसा नहीं होना चाहिए । अर्थात वे पहले बोले तो हमें एडजस्ट हो जाना है ।
प्रश्नकर्ता : लेकिन उन्हें आठ बजे कहीं मिटिंगमें जाना हो और बहन कहे कि, "अब सो जाइए." तब फिर वे क्या करें?
एडजस्ट एवरीव्हेर
दादाश्री : ऐसा ?! अर्थात वह भी रहा और वह भी रहा । पीझा आ जाये नहीं ?! लेकिन हमारा भाव तो जाता रहा न ? उसके बजाय हमने वाइफसे कहा हो कि, "तुम्हे अनुकूल हो वह बनाओ।" उसे भी किसी दिन भाव तो होगा न । वह खाना नहीं खायेगी ? तब हम कहें, "तुम्हें अनुकूल आये । वह बनाना ।" तब वह कहेगी, "नहीं, आपको अनुकूल हो वह बनाना है ।" तब हम कहें कि, "गुलाब जामुन बनाओ।" अगर हमने पहले से ही गुलाब जामुन बनाने को कहा तो वह टेढा बोलेगी, "नहीं, मैं तो खचड़ी पकाऊँगी ।"
प्रश्नकर्ता : ऐसे मतभेद मिटाने का आप क्या रास्ता दिखाते हैं ?
दादाश्री : मैं तो यही रास्ता दिखाता है कि, "एडजस्ट एवरीव्हेर" वह कहे कि, "खीचड़ी बनानी है।" तो हमे 'एडजस्ट' हो, जायें । और आप कहें कि, "नहीं, अभी हमें बाहर जाना है, सतसंगमें जाना है ।" तो उसे 'एडजस्ट' हो जाना चाहिए । जो पहले कहे उसे हम एडजस्ट हो जायें।
प्रश्रकर्ता : तब पहले बोलने के लिए झगड़े होंगे।
दादाश्री : हाँ, ऐसा करना । झगड़े करना, मगर उसे 'एडजस्ट' हो जाना । क्योंकि आपके हाथमें सत्ता नहीं है । वह सत्ता किसके हाथमें है यह मैं जानता हूँ । इसलिए इसमें 'एडजस्ट' हो जाने में कोई हर्ज है भैया?
प्रश्नकर्ता : नहीं, तनिक भी नहीं । दादाश्री : बहनजी, आपको हर्ज है ? प्रश्नकर्ता : नहीं।
दादाश्री : तब फिर उसका निकाला कर दिजीए न । "एडजस्ट एवरीव्हेर" हर्ज है इसमें कोई ?
प्रश्नकर्ता : नहीं, तनिक भी नहीं ।
दादाश्री : ऐसी कल्पनाएँ नहीं करनेकी । कुदरती कानून ऐसा है कि "व्होर धेर एस ए वील, धेर इझ एवे" (मनके हारे है मनके जीते जीत ।) कल्पाना करोंगे तो बिगड़ेता है । इसी लिए एक पस्तक में लिखा. हैं "व्हेर धेर इझ ए वील, धेर इझ ए वे" समझ में आया न? इतनी मेरी आज्ञाका पालन करोगे तो बहुत हो गया । पालोगे ? ऐसा ?
प्रश्रकर्ता : हाँ, जी।
दादाश्री : ला प्रोमिस (वचन) दे । खरे । इसे कहते हैं शूरवीर । प्रोमिस (वचन) दिया ।
खाने में एडजस्टमेन्ट ! व्यवहार निभाया किसे कहेंगे कि जो "एडजस्ट एवरीव्हेर" हुआ ! अब डेवलमेन्ट (विकास) का जमाना आया है । मतभेद नहीं होने दे । इसलिए मैंने शब्द दिया है अब लोगोंको, "एडजस्ट एवरीव्हेर"। एडजस्ट, एडजस्ट, एडजस्ट । कढ़ी मे नमक ज्यादा हो गया हो तो समझ लेना कि एडजस्टमेन्ट, दादाने कहा है, वह कढ़ी फिर थोडीसी चख लेना । हाँ, कुछ अचार याद आये तो फिर मँगा लेना कि अचार ले आइए । लेकिन झगड़ा नहीं, घरमें झगड़ा नहीं होता । खुद मुसीबतमें होत तब वहाँ अपने को
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एडजस्ट एवरीव्हेर
एडजस्ट कर ले, तब भी संसार सुंदर लगता है।
नहीं रुचे फिर भी निभायें !
एडजस्टमेन्ट तो हर एकके साथ, तुझसे जो जो डिसएडजस्ट होने आये उसको तू एडजस्ट हो जा । दैनिक जीवन में यदि सास- बहू के बीच या देवरानी-जेठानीके बीच डिसएडजस्टमेन्ट होता हो तो जिसे इस संसारकी परंपरा से छूटना हो उसे एडजस्ट हो जाना ही चाहिए । पति-पत्नीमें भी यदि एक चीर फाड करता हो तो दूसरे को जोड लेना चाहिए । तब ही संबंध निभेगा और शांति रहेगी । जिसे एडजस्टमेन्ट लेना नहीं आता उसे लोग मेन्टल (पगला) कहते हैं । यह रिलेटीव (सापेक्ष) सत्यमें आग्रह, जिद की जरा-सी भी जरूरत नहीं है। मनुष्य कौन कहलाये । एवरीव्हेर एडजस्टेबल । चोर के साथ भी एडजस्ट हो जाना चाहिए ।
सुधारें या एडजस्ट हो जायें ?
हर बातमें हम सामनेवाले से एडजस्ट हो जाये तो कितनी सहूतियत हो जाये । हमें साथमें क्या ले जाना है ? कोई कहेगाकि, “भैया उसे सीधी कर दो।" " अरे, उसे सीधी करने जायेगा तो तू टेढ़ाहो जायेगा ।" इसलिए वाईफको सीधी करने तम बैठना, जैसी भी हो उसे करेक्ट (सही) कहें। हमारा उसके साथ सदाका लेन-देन हो तो अलग बात है, यह तो एक अवतारके बाद कहीं की कहीं खो जायेगी । दोनोका मृत्यु काल अलग, दोनों के कर्म अलग ! कुछ लेना कुछ देना नहीं ! क्या मालूम यहाँ से वह किसके यहाँ जायेगी ? हम सीधी करे और अगले जनम जाये किसी और के भागमें ?
इसलिए न तो आप उसे सीधी करे या नतो वह आपको सीधा करें, जैसा मिला सोने के समान । प्रकृति किसीकी कभी सीधी नहीं हो सकती। कुत्ते की दुम टेढ़ी की टेढ़ी ही रहेगी । इसलिए हम जाग्रत रहें । जैसी हो वैसी ठीक है, "एडजस्ट एवरीव्हेर"
एडजस्ट एवरीव्हेर
पत्नी तो है 'काउन्टर वेइट' प्रश्नकर्ता : मैं “वाईफ के साथ एडजस्ट होने की बहुत कोशिश करता हूँ, लेकिन होता नहीं है ।"
दादाश्री : सभी हिसाबके अनुसार है ! उलटे पेच औरउलटी चाकी वहाँ सीधी चाकी घुमाने से कैसे काम चलेगा ? आपको ऐसा होगा कि यह स्त्री जाति ऐसी क्यों है ? लेकिन स्त्री जाति तो आपका "काउन्टर वेईट" है । जितने हम दोषित उतनी वह टेढ़ी, इसलिए तो सब व्यवस्थित है, ऐसा हमने कहा है न ?
प्रश्नकर्ता: सभी हमें सीधा करने आयें है ऐसा लगता है ।
दादाश्री : वह तो आपको सीधा करना ही चाहिए। सीधे हुए बगैर दुनिया चलती नहीं है न ? सीधा नहीं होगा तो फिर बाप कैसे बनेगा ? सीधा होने पर ही बाप होगा । स्त्री जाति गोया ऐसी है कि वह नहीं बदलेगी, इसलिए हमें बदलना होगा। वह सहज जाति है, वह बदले ऐसी नहीं है ।
वाइफ वह क्या चीज़ है ?
प्रश्नकर्ता: आप कहिए ।
दादाश्री : वाइफ इस धी काउन्ट वेईट ऑफ मेन (स्त्री पुरुषकी समतुला का तौल है) वह काउन्टर वेईट यदि नहीं होता तो मनुष्य लुढ़क
जाता ।
प्रश्नकर्ता : यह समझ में नहीं आया ।
दादाश्री : यह इंजनमें काउन्टर वेईट रखा जाता है, वर्ना इंजन चलते चलते लुढ़क जाये । इस तरह मनुष्यका काउन्टर वेईट स्त्री है । स्त्री होगी तो लुढ़केगा नहीं । वर्ना दौड़-धूप करते कोई ठिकाना नहीं रहता, आज
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एडजस्ट एवरीव्हेर यहाँ होता तो कल कहाँ से कहाँ निकल जाता । वह स्त्री होने से वापस घर आता है । वर्ना यह आता क्या ?।
एडजस्ट एवरीव्हेर मानने पर सारी जिन्दगी भूखों मरेगा और एक दिन थालीमें 'पोईझन' (जहर) आ गिरेगा! साहजिकता से जो चलता है उसे चलने दो न ! यह तो कलयुग है । वातावरण ही कैसा है ?! इसलिए बीबी कहे कि, 'आप नालायक है ।' तो कहना, “बहुत अच्छे ।"
(10) टेढोंके साथ एडजस्ट होइए ! प्रश्नकर्ता : व्यवहारमें रहना है इसलिए 'एडजस्टमेन्ट' एक पक्षीय तो नहीं होना चाहिए न ?
दादाश्री : व्यवहार तो किस का नाम कि, 'सभी घरोंमें झगडे होते है । उसका व्यवहार सर्वोत्तम कहलाये । जिसके साथ प्रतिकूलता है वहीं शक्तियाँ प्राप्त करनी है । अनुकूल है वहाँ तो शक्ति है ही । प्रतिकूलता वह तो हमारी कमजोरी है
प्रश्रकर्ता : नहीं आता । दादाश्री : वह काउन्टर वेईट है उसका ।
(9) टकराव आखिर अंतवाले ! प्रश्नकर्ता : दोपहर फिर सुबह हुए टकराव मूल जायें और शामको फिर नये होते है।
दादाश्री : वह हमें मालूम है, टकराव किस ताक़तसे होते है । वह उलटा बोलती है, उसमें कौनसी ताकत काम कर रही है ? बौलनेक बाद फिर "एडजस्ट" होते है, यह सब ज्ञानसे समझ में आता है, फिर भी संसारमें "एडजस्ट" होना है । क्योंकि प्रत्येक चीज़ "एण्डवाली" (अंतवाली) होती है । और मानों वह लम्बें अरसे तक चलती रहे तो भी अप उसकी 'हेल्प' (मदद) नहीं है और सामनेवाले का भी नुकशान होता है ।
वर्ना प्रार्थनाका 'एडजस्टमेन्ट '! प्रश्नकर्ता : सामनेवाालेको समझानेके लिए मैंने अपना पुरुषार्थ किया, फिर वह समझे नासमझे वह उसका पुरुषार्थ ?
दादाश्री : हम उसे समझायें उतनी ही जिम्मेदारी है अपनी । फिर वह नहीं समझे तो उसका इलाज नहीं है । फिर हम इतना कहें कि."दादा भगवान ! इसे सद्बुद्धि दीजिए।" एतना कहना चाहिए । कुछ उसे हवामें बटकता थोड़े रख सकते है । गप नहीं, यह "दादा" का "एडजस्टेमेन्ट" का विज्ञान है, अजायब "एडजस्टेमेन्ट" है यह । और जहाँ “एडजस्ट" नहीं हो ते वहाँ उसकी लहेज़त तो आता ही होगी आपको ? यह "डिसएडजस्टमेन्ट" (प्रतिकूलन) ही मूर्खता है । क्योंकि वह समझे कि मैं अपना स्वामीत्व नहीं छोडूंगा और मेरा ही चलन होना चाहिए । ऐसा
मुजे सबके साथ क्यों अनुकूलता रहती है । जितने "एडजस्टमेन्टस" लोगे उतनी शक्तियाँ बढ़ेगी और अशक्तियों का क्षय होगा । सच्ची समझ तो तभी आयेगी जब दूसरी सभी उलटी समझको ताला लग जायेगा ।
नरम स्वभाववालोंके साथ तो हर कोई एडजस्ट होगा मगर टेढ़े. टाँग अड़ानेवाले - गर्म मिज़ाज लोगोंके साथ, सभीके साथ एडजस्ट होना आया तो काम बन गया । कितना ही नंगा-लुच्चा मनुष्य क्यों न हो पर उसके साथ "एडजस्ट" होना आ जाये, दिमाग़ चीज हमें 'फिट' (अनकल) नहीं होगा, हम उसे 'फिट' (अनुकूल) हो जायें तो दुनिया सुंदर है । और उसे 'फीट' (अनुकूल) करने गयेतो दुनिया टेढ़ी है । इसलिए 'एडजस्ट एवरी व्यर' हम उसे 'फीट' हो जाये तो कोई हर्ज नहीं है।
डोन्ट सी लॉज, सेटल!
"ज्ञानी" तो सामनेवाला टेढ़ा होने पर भी उसके साथ "एडजस्ट" हो जाये, 'ज्ञानी पुरुष' को देखकर उसका अनुसरण करे तो सभी तरहके
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एडजस्ट एवरीव्हेर
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एडजस्टमेन्ट लेना आ जाये । इसके पिछे का सायन्स क्या कहता है कि वीतराग हो जाइए, राग-द्वेष मत कीजिए। यह तो भीतर थोड़ी आसक्ति रह जाती है, इसलिए मार पड़ती है । इस व्यवहारमें एस पक्षीय - नि:स्पृह हो गये हो वे टेढ़े कहलाये । हमें जरूरत होने पर सामनेवला टेढ़ा होयफिर भी उसे मना लेना चाहिए । यह स्टेशन पर मज़दूरकी ज़रूरत हो और वह आनाकानी करता है फिर भीउसे चार आने कम-ज्यादा करके मना लेना होगा और (11) नहीं मनायेंगे तो वहबेग हमारे सिर पर ही थोपेगा न ?
"डॉन्ट सी लॉज प्लीझ सेटल" (कानून मत देखो, कृपया समाधान करो) सामनेवाले से "सेटलमेन्ट" (समाधान) लेनेको कहूं, "आप ऐसा करें, वैसा करें ऐसा कहनेके लिए वक्त ही कहाँ होगा ? सामनेवालेकी सौ भूले होने पर भी हमें तोहमारी ही भूल है कहकर आगे बढ़ जान है । इस कालमें लॉ" (कानून) कहीं देखा जाता है ? यह तो आखिरी हद तक आ गया है । जहाँ देखे वहाँ दौड़-धूप, भागम्भाग ! लोग उलझनमें पड़े है !! घर जाने पर वाईफ की फ़रियादे, बच्चोंकी फ़रयादे, नौकरी पर जायें तो शेदजी की फ़॥ यादें, बच्चोंकी फ़रियादे, नौकरी पर जायें तो शेठजी की फ़रियादें, रेलमें जायें तो भीड़में घक्के खायें ! कहीं भी चैन नहीं । चैन तो आना चाहिए न ? कोई लड़ने पर उतारु होजा ये तो हमें उस पर दया आनी चाहिए कि अहह, इसे कितना तनाव होगा कि लड़ने पर आमादा है! अकुलायें वे सभी कमज़ोर है ।'
फरियाद ? नहीं एडजस्ट !
ऐसा है न, घरमें भी 'एडजस्ट' होते आना चाहिए । हम सत्संग में से देरसे घर लौटें तो घरवाले क्या कहेंगे ? " थोडी बहुत वक्तकी पाबंदी तो होनी चाहिए न ?” तब हम जल्दी घर जायें तो उसमें क्या गलत है ? उस बैल का नहीं चलने पर आरी चुभोते, है अगर वह आगे चलता रहेगा तो कोई उसे आरी नहीं चुभायेगा न! वर्ना आरी चुभानेके बाद आगे तो चलना ही होगा न ? आपने देखा है ऐसा ? आरी जिसमें आगे कील होती
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एडजस्ट एवरीव्हेर हैउसे चुभाते है, अबोल प्राणी क्या करे ? किससे फ़रियाद करेगा वह ?
इन लोगोको यदि आरी चुभोदे तो उन्हें बचाने लोग निकल आयेंगे
। वह अबोल जानवर किसे फ़रियाद करेगा ? अब उसे ऐसा मार खानेका क्यों कर हुआ ? क्योंकि पिछले जनममें बहुत फ़रियादे की थी । उसका यह परिणाम आया है । उस दिन सत्तामें आया था तब फ़रियाद ही किया करता था । अब सत्तामें नहीं है इसलिए बिना फ़रियाद सहना है । इसलिए अब 'प्लस - माईन्स' कर डालें । इसके बजाय फ़रियादी ही नहीं हो, उसमें क्या गलत है ? फरियादी होंगेतो मुजरिम होने का वक्त आयेगा न ? हमें तो मुजरिम ( 12 ) भी नहीं होना है और फ़रियादी भी नहीं बनना है । सामनेवाला गाली देगया, उसे जमा ले लेना है, फ़रियादी होना ही नहीं न । आपको क्या लगता है ? फ़रियादी बनना ठीक है ? लेकिन उसके बजाय पहले से ही "एडजस्ट" हो जायें, उसमें क्या गलत है ?
उलटा बोलनेका इलाज !
व्यवहारमें एडजस्टमेन्ट लेना, उसे इस कालमें ज्ञान कहा है । हाँ, एडजस्टमेन्ट ले । एडजस्टमेन्ट टूट रहा हो तब भी एडजस्टहो जायें । हमने किसीको भला-बुरा कह दिया । अब बोलना यह हमारे बसमें नहीं है। आप बोल दें, कि नहीं बोलते कभी ? बोल देनेके बाद तुरन्त हमें मालूम हो जायेगा कि गलती हो गई है। मालूम हुए बगैर नहीं रहता, पर उस समय हम फिर एडजस्ट करने नहीं जाते है ? उसके बाद तुरन्त उसे जाकर कहना चाहिए कि, "भैया, मैंने उस वक्त भला बुरा कह दिया, मेरी भूल हो हो गई, मुझे क्षमा करें " ! बस हो गया एडजस्ट । हर्ज है इसमें कोई ? प्रश्नकर्ता: नहीं, कोई हर्ज नहीं ।
हर जगह एडजस्टमेन्ट ले सकते हैं!
प्रश्नकर्ता: कई बार ऐसा होता है कि एक ही बात के लिए एक समयपर दो व्यक्तियों के साथ 'एडजस्टमेन्ट' लेना हो तो उस समय सब
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एडजस्ट एवरीव्हेर जगह कैसे पहुँच पायें ?
एडजस्ट एवरीव्हेर वाइफने भोजन पकाया हो उसमें भूल निकाले वह ब्लन्डर्स (बडी भूल) नहीं करते ऐसा । मानो खुदसे गलती होती ही नहीं हो ऐसे बात करता है । हाउ टु एडजस्ट ? (अनुकूल कैसे बनें ?) एडजस्टमेन्ट लेनाच चाहिए । जिसके साथ आजीवन गुजारा करना है उसके साथ एडजस्टमेन्ट नहीं लेना चाहिए क्या ? हमसे किसीको दुःख पहुँचे वह भगवान महावीरका धर्म कैसे कहलायेगा ? और घरके मनुष्यको तो क़तई द:ख नहीं होना चाहिए।
दादाश्री : दोनोके साथ ले सकते है । अरे सात जगह पर लेना हो तो भी ले सकते हैं । एक पूछे, "मेरा क्या किया ?" तब कहे, "हाँ, साहब आपके कहने के मताबिक करेंगे ।" दुसरेको भी वही जबाब, "आप कहेंगे वैसा करेंगे।""व्यवस्थित" के बाहर कुछ होने वाला नहीं है। इसलिए किसी भीतरह झगड़ा नहीं होने दें । प्रमुख बात “एडजस्टमेन्ट" है । "हाँ" से मुक्ति है । हमने "हा" कह फिरभी "व्यवस्थित" के बाहर कुछ होनेवाला है । लेकिन "नहीं" कहा तो महा उपाधि !
घरमें पति-पत्नी दोनों निश्चय करें कि हमें 'एडजस्ट' होना हैं तो दोनोकी समस्या हल हो जाये । वह ज्यादा खींचे तो हमारे एडजस्ट हो जाने पर हल निकल आयेगा । एक आदमीका हाथ दु:खता था, पर वह दूसरोंको नहीं बताता था और दूसरे हाथसे हाथ मिलाकर 'एडजस्ट' किया । इस प्रकार 'एडजस्ट' हो जायें तो हल निकल आये । यह "एडजस्ट एवरीव्हेर" नहीं होने पर पागलकी तरह सामनेवालोंको छेडते रहोगे, इसी वजहसे पागल हुए हैं । इस कुत्तेको एकबार छेडें दोबार, तीनबार छेडें वहाँ तक वह हमारी आबरू रखेगा पर फिर बार बार छेडने पर वही भी काट लेगा । वह भी समझ जायेगा कि यह रोजाना छेडता है इसलिए नालायक है, नंगा है । यह समझने जैसा है । जरासीभी झंझट ही करनेकी नहीं है, "एडजस्ट एवरीव्हेर" ।
जिसे 'एडजस्ट' होनेकी कला आ गई, उह दुनियासे मोक्षकी और मुड गया ? 'एडज्ट' हुआ उसका नाम ज्ञान । जो 'एडजस्टमेन्ट' सिख गया वह पार लग गया । भुगतना है वहतो भुगतना ही पड़ेगा लेकिन 'एडजस्टमेन्ट'
आ गया उसे अड़चन नहीं होगी. हिसाब चुकता हो जायेगा । जब लुटेरे मिल जायें उनके साथ डिसएडजस्ट होने पर वे मारेंगो । उसके बजाय हम तय करें कि वहाँ 'एडजस्ट' होकर काम लेना है । फिर उनसे पूछे कि, "भैया, तेरी क्या इच्छा है ? हम तो यात्रा पर निकले है।" उनको 'एडजस्ट' हो जायें।
प्रकृतिका सायन्स जानिए ! (घर एक बगीचा)
एक भाई मुझसे कहने लगा कि, "दादा, मेरी बीबी घरमें ऐसा करती है और वैसा करती है ।" तब मैंने उसे कहा कि बहने से पूछेगे तो वह क्या कहेगी कि मेरा पति ऐसा है बिना अक्लका । अब इसमें आप अपना अकेलेका न्याय क्यों खोजते है ? तब उस भाईने कहा कि. "मेरा तो घर ही बिगड़ गया है, बच्चे बिगड़ गये है, बीवी बिगड गई है ।" मैंने कहा, "कुछ बिगड़ा नहीं है ।" आपको वह देखना नहीं आता है । आपको अपना घर देखते आना चाहिए, प्रत्येककी प्रकृति पहचान होनी चाहिए ।
ऐसा है न, घरमें एडजस्टमेन्ट नहीं होनेकी वजह क्या है ? परिवार में ज्यादा सदस्य होनेसे सबके साथ मेल नहीं रहता । बातका बतंगड हो जाता है फिर । वह किसलिए? मनुष्योंका स्वभाव एक सा नहीं होता है । युगके अनुसार स्वभाव हो जाता है । सत्यगमें आपसी मेल होता है, घरमें सौ सदस्य होने पर भी दादाजी कुछ कहें तो उन्हें इतनी बड़ी बड़ी गालियाँ सुनायेंगे, बाप कुछ कहेगा तो बापका भी वही हाल होगा । ___अब मनुष्य तो मनुष्य ही है लेकिन आपको पहचानना नहीं आता है । घरमें पचास मनुष्य हो पर हमें पहचान नहीं हुई इसलिए बखेडा खड़ा होता रहेता है । उन्हें पहचानना तो चाहिए न । घरमें एक व्यक्ति किचकिच किया करे तो वह उसका स्वभाव ही हा । इसलिए हमें एक बार समझ लेना चाहिए कि यह ऐसा है। आप पहचान सकते हैं कि यह ऐसा
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एडजस्ट एवरीव्हेर उनको अहंकार है । मुझे अहंकार नहीं है, इसलिए मुझे सारे संसार के साथ मतभेद ही नहीं होता है । मुझे देखना आता है कि यह गुलाब है, यह मोगरा है, यह धतूरा है, यह कडूबी कुंदरूका फूल है । ऐसा सब मैं पहचानता हूँ फिर । अर्थात उधान के जैसा हो गया है । यह तो तारिफ़के लायक हुआ न? आपको क्या लगता है ?
प्रश्नकर्ता : बराबर है।
एडजस्ट एवरीव्हेर है ? फिर उसमें आगे तलाश करनेकी जरूरत है क्या ? हम पहचान जाये फिर तलाश करनी नहीं पडेगी । किसीको रात देरसे सोनेकी आदत हो और किसीको जल्दी सोनेकी आदत होती है, उन दोनो का मेल कैसे होगा ?
और परिवारमें सभी साथ रहते हो तो क्या होगा? घरमें कोई ऐसा कहनेवाला भी निकले कि आप कमअक्ल हैं । तब हम समझ ले कि यह ऐसा ही बोलनेवाला है । इसलिए हमें एडजस्ट हो जाना है । इसके बजाय हम प्रत्युत्तर दें तो थक जायेंगे हम । क्योंकि वह हमसे टकराया लेकिन हम टकरायेंगे तो हमारे आँखे नहीं यह निश्चय हो गया न ? मै यह विज्ञान समझाना चाहता हूँकि प्रकृतिका सायन्स (विज्ञान) जानिए । बाकी आत्मा अलग वस्तु है ।
भिन्न, उधानके फूलोंके रंग-सुगंध ! आपका घर तो उधान है । सत्युग, द्वापर और त्रेतायुगमें घर खेतोंके समान होते थे । किसी खेतमें निरे गुलाब ही, किसी खेतमें निरे चंपे ही चंपे । अब उधान जैसा हो गया है । इसलिए हमें यह मोगरा है या गुलाब ऐसी तलाश नहीं करनी चाहिए ? सत्युगमें क्या था कि एक घरमें एक गुलाब होता तो सभी गुलाब होते और दूसरे घरमें एक मोगरा होता तो घरके सार मोगरे के समान होते, ऐसा था । एक परिवारके सभी गुलाबके, पौधे, एक खेतकी तरह इसलिए हर्ज ही होता और आज तो उधान हो गये है । एक घरमें एक गुलाब जैसा, एक मोगरे जैसा, इसलिए गुलाब चिल्लाये कि तू मेरे जैसा क्यों नहीं है ? तब मोगरा कहेगा कि तुझमें तो निरे काँटे है । अब गुलाब होगा तो काँटे तो होंगे ही, मोगरे के काँटे नहीं होते । अब गुलाब होगा तो काँटे तो होंगे ही, मोगरे के काँटे नहीं होते । मोगरे का फूल श्वेत होगा । गुलाबका फूल गुलाबी होगा, लाल होगा । हाल कलयुगमें एक ही घरमें अलग-अलग पौधे होंगे । इसलिए घर उधान रूप हो गया है । पर यह तो देखना नहीं आता, उसका क्या करें ? उकसा दःख ही होगा न और जगतके पास यह देखनेका द्रष्टि नहीं हो । बाकी, कोई बुरा होता ही नहीं है । यह मतभेद तो खुद के अहंकारकी वजहसे है । जिन्हे देखना नहीं आता,
दादाश्री : ऐसा है न प्रकृतिमें परिवर्तन नहीं होगा । और (16) वह तो वहा का वही माल, उसमें फर्क नी होगा । हमने प्रत्येक प्रकृतिको पहचान लिया है, तुरन्त पहचान लें, इसलिए हम हरएकके साथ उसकी प्रकृतिके अनुसार पेश आयें । यह सूर्य के साथ हम दोपहर बारह बजे मित्राचारी करें तो क्या होगा ? इस प्रकार हम समझ ले कि यह ग्रीण्मका सूर्य है, यह जाडे का सूर्य है, ऐसा सब समझ लें तो फिर तकलीफ होगी?
हम प्रकृतिको पहचानते हैं इसलिए आप टकराना चाहें तो भी मैं टकराने नहीं दूंगा, मैं बाज पर हो जाऊँगा । वर्ना दोनोका एक्सीडन्ट (अकस्मात) हो जाये और दोनोके स्पेर पार्टस टूट जाये । गर बम्पर टूट गया तो भीतर बैठे हुएकी क्या हालत हो जायेगी ? बोठनेवालोंकी तो दुर्दशा हो जायेगी न ! इसलिए प्रकृति पहचानिए । सभी घरवालोंकी प्रकृति पहचान लेनी है।
प्रकृति सि कलयुगमें खेत समान नहीं है, उधान के समान है । एक चंपा, एक गुलाब, मोगरा, चमेली वगैरह । इसलिए सभी फूल लड़ते है । एक कहेगा मेरा ऐसा है तो दूसरा बोलेगा मेरा ऐसा है । तब एक कहेगा तेरेमें काँटे है, फूट तेरे साथ कौन खड़ा रहेगा ? ऐसे झगड़े चलते रहते है।
काउन्टर पुलीकी करामात ! हम पहले अपना अभिप्राय प्रदर्शित नहीं करें । सामनेवालेसे पूछे कि इसके बारेमें आप क्या कहना चाहते है ? सामनेवाला बात पर अड़ा रहे
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एडजस्ट एवरीव्हेर तो मैं अपनी बात छोड देता हूँ । हमें तो यही देखना चाहिए, कैसे भी हो, सामनेवालेको दुःख नहीं होना चाहिए । हमारा अभिप्राय सामनेवाले पर थोपना नहीं चाहिए । सामनेवाले का अभिप्राय हमें लेना चाहिए । हम तो सभी के अभिप्राय स्वीकार करके "ज्ञानी" हुए है । मैं अपना अभिप्राय किसी पर थोपने जाऊँगा तो मैं ही कच्चा पड़ जाऊँगा? हमारे अभिप्रायसे किसीको दुःख नहीं होना चाहिए ।
आपके "रिवोल्यशन" (विचारकी गति) अटढारसौ के हो और सामनेवाले के छहसौ के हो और आप अपना अभिप्राय उर पर दें, तो उसका इंजन टूट जायेगा । उसके सारे गीयर बदलने पड़ेगे ।
प्रश्नकर्ता : "रिवोल्युशन" माने क्या ?
(१७) दादाश्री : यह सोचनेकी स्पीड (गति) जो है वह हर एककी अलग-अलग होती है । कुछ हुआ हो तो वह एक मिनटमें तो बहुत सी बातें दिखा दे, उसके सारे पर्याय "एटए-टाइम" (एक ही समयमें) दिखा दे । ये बड़े-बड़े प्रेसिडन्टोंको मिनट के बारह सौ "रिवोल्यूशन" फिरते है, तब हमारे पाँच हजार है. भगवान महावीरको लाख रिवोल्युशन फिरते थे ।
यह मतभेद होनेकी वजह क्या है ? आपकी पत्नीके सौ रिवोल्युशन' हो और आपके पाँचसो 'रिवोव्युशन' होनेसे आपको बिचमें "काउन्टर पुली" डालना नहीं आता इसलिए चकमक झरेगी और झगड़े होंगे । अरे! कभी कभी तो इंजन भी टूट जाता है । "रिवोल्युशन" समझे आप ? इस मझदूरसे आप बात करेंगे तो आपकी बात उसे पहुँचेगी नहीं । उसके 'रिवोल्युशन' पचास और आपके पाँचसो होंगे । किसीके हजार होते है, किसीके बारह सौ होते है, जैसा जिसका डेवलपमेन्ट (विकास) होगा, उसके अनुसार 'रिवोल्युशन' होंगे । बीचमें "काउन्टर पुली" माने आपको बीचमें पट्टा देकर आपके रिवाल्युशन घटाने होंगे । मैं हरएक मनुष्यके साथ "काउन्टर पुली" डाल देता हूँ । एक अहंकार निकाल देनेसे ही कुछ
एडजस्ट एवरीव्हेर होनेवाला नहीं है . "काउन्टर पुली" भी हरएक के साथ डालनी पडती है । इसी कारण हमारा किसीसे मतभेद ही नहीं होता है न । मैं समझ लूँ कि यह भाईके इतने ही 'रिवोल्युशन' है, इसलिए उसके अनुसार मैं 'काउन्टर पुली' लगा दूँ । हमारी तो छोटे बच्चेके साथ भी बहुत जमती है । क्योंकि मैं उसके साथ चालीसे रिवोल्युशन लगा कर बात करता हूँ, इससे मेरी बात उसको पहुँचती है, वर्ना मशीन टूट जाती।
प्रश्नकर्ता : कोई भी, सामने वाले के लेवल पर आयेगा तभी बात होगी?
दादाश्री : हाँ, उसके रिवोल्युशनपर आयेगा तो ही बात होगी । यह आपके साथ बात-चीत करते हमारे रिवोल्युशन कहीसे कहीं तक घुम आये ! सारी दुनिया घुम आये! काउन्टर पुली डालना आपको नहीं आता, उसमें कम 'रिवोल्युशन'वाले इंजन का क्या दोष ? वह तो आपका दोष कि 'काउन्टर पुली' डालना नहीं आया!
सिखे फ्युझ डालना! इतना ही पहचानना है कि यह 'मशीनरी' कैसी है, उसका 'फ्युस' उड़ जाने पर उसे किस प्रकार बिठाना है । सामनेवालेकी प्रकृतिसे 'एडजस्ट' होते आना चाहिए । हमारे तो सामनेवालेका 'फ्युझ' यदि उड़ जाये तब भी हमारा एडजस्टमेन्ट होता है। पर सामनेवालेका 'एडजस्टमेन्ट' टूटने पर क्या होगा ? "फ्यझ" गया । इसलिए फिर वह दीवारसे टकरायेगा, दरवाजेसे टकरायेगा, लेकिन तार टूटा नहीं है, इससे अगर कोई फ्युझ डाल देगातो फिर सब ठीक हो जायेगा, वर्ना वहाँ तक वह उलझन में रहेगा ।
आयु छोटी और घाँघल बड़ी ! सबसे बड़ा दुःख क्या है ? "डिसएडजस्टमेन्ट", वहाँ "एडजस्ट एवरीव्हेर" कर लें तो क्या हर्ज है ?
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एडजस्ट एवरीव्हेर
प्रश्नकर्ता : उसमें पुरुषार्थ चाहिए ।
दादाश्री : कोई पुरुषार्थ नहीं चाहिए । मेरी आज्ञाका पालन करे कि दादाने कहा है कि "एडजस्ट एवरीव्हेर" फिर 'एडजस्ट' होता रहे । बीवी कहे कि, "तुम चोर हो" तो कहना कि "यु आर करेक्ट" (तूम सच कहती हो) बीवी साड़ी लानेको कहे, डेढ़सौकी, तो हम पच्चीस ज्यादा दें। फिर छह महीने तक चलना रहे सब ठीक-ठाक!
ऐसा है, ब्रह्माके एक दिन जितनी हमारी जिन्दगी । ब्रह्माका एक दिन जीना और यह क्या धाँधल ? यदि ब्रह्माके सौ साल जाना हो तो हम कहेंगे कि, "ठीक है, क्यों कर एडजस्ट होना ?""दावा दायर कर" कहेंगे । लेकिन जिसे जल्दी समाप्त करना हो उसे क्या करना चाहिए? 'एडजस्ट' हो जाये कि फिर "दावादायर कर" कहें ? मगर यह तो एक निदकी ही बात है, यह जल्दी समाप्ति करनी है । जो कार्य जल्दी पूरा करना हो तो क्या करना होगा ?"एडजस्ट" होकर छोटा करदेना चाहिए वर्ना बढ़ता ही जाये, बढ़ता जाये कि नहीं ? बीबी के साथ लड़नेके बाद रातको नींद आयेगी (19) क्या ? और सुबह नाश्ता भी नहीं मिलेगा ठीक से।
एडजस्ट एवरीव्हेर प्रश्नकर्ता : आप ऐसा कहना चाहते हैं कि बीवी को बाईसौकी साड़ी दिलवानी चाहिए ?
दादाश्री : दिलवाना या नहीं दिलवाना यह आप पर निर्भर करता है। रूठकर हररोज रात को "खाना नहीं पकाऊँगी" कहेगी । तब क्या करें हम? बाबची कहाँसे ले आयें ? इसलिए फिर फर्ज करके भी दिलवानी पड़ेगी न ?
हमे कुछ ऐसा करना चाहिए कि वह खुदभी चाहें तो साडी नहीं ला सकती । यदि आप आठसौ पाउन्ड माहवार कमाते हैं, तो उसमेंसे सौ पाउन्ड जेबखर्च के रखकर सातसौ पाउन्ड घर चलानेके लिए उसे दे दे । क्या फिर वह हमसे कहेगी कि साडी दिलवाईए ? कभी मझाकमें ऐसा कहेंबी कि "वहाँ साडी बहुत अच्छीथी तुम लाती क्यों नहीं ? " अब उसका प्रबंध उसे खुद करना होगा । यह तो प्रबंध हमें करना हो तो हम पर जोर चलाती । यह सभी कला ज्ञान होनेसे पूर्व मैंने सिखीथी । बादमें ज्ञानी हुआ । सभी कला मेरे पास आई तब मुझे ज्ञान हुआ है । अब बोलिए, यह कला आत्मसात नहीं है इसलिए ही यह दुःख है न! आपको क्या लगता
अपनाइए ज्ञानीकी ज्ञान कला !
अब किसी दिन वाइफ कहेगी, "मुझे वह साड़ी नहीं दिलवाओगे ? मुझे वह साडी दिलवानी ही होगी ।" तब पति पूछेगा, "कितनी किंमतकी देखी थी तूने ?" तब कहेगी, "बाईससौकी है ज्यादा नहीं ।" तब वह कहेगा, "तुम बाईस सौ करती हो पर मैं अभी रूपये लाऊँगा कहाँसे ? अभी पैसोका मेल नहीं है. दो सौ तीन सौकी होती तो दिलवा देता, पर तुम बाईस सौ कहती हो ।" उसने रूढकर मुँह बना लिया । अब क्या दशा होगी फिर । मनमें ऐसा हो कि भाड़में जाये इससे तो शादी नहीं की होती तो अच्छा था । ब्याहने बाद पछताने पर क्या हो सकता है। अर्थात ऐसे
(२०) प्रश्नकर्ता : हाँ, बराबर है ।
दादाश्री: आपकी समझमें आया न? इसमें कसर हमारा ही है न? कला नहीं है न! कला सिखनेकी ज़रूरत है। आप बोले नहीं ?!
क्लेशका मूल कारण : अज्ञानता ! प्रश्रकर्ता : लेकिन क्लेश होनेका कारण क्या है ? स्वभाव भिन्न हो इससे?
दादाश्री : अज्ञानता की वजहसे । संसार उसका नाम है कि किसीका स्वभाव किसीसे मिलेगा ही नहीं । इस 'ज्ञान' प्राप्तिका एक ही मार्ग है,
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एडजस्ट एवरीव्हेर "एडजस्ट एवरीव्हेर"! कोई आपको मारे तो भी आप उसे 'एडजस्ट' हो जायें ।
हम यह सरल और सीधै रास्ता दिखा देते हैं । और यह टकराव थोड़े रोजाना होते है ? वह तो जब हमारे कर्मोका उदय होता है तब होते है, उतना समय हमें 'एडजस्ट' होना है । घरमें पत्नीके साथ झगड़ा हुआ हो तो उसके बाद उसे हॉटल ले जाकर उसकी पसंदकी डीश खिलाकर खुश कर दें । अब तनाव नहीं रहना चाहिए ।
संसारकी कोई चीज हमें फिट (अनुकल) नहीं होगी । हम उसे फिट हों जायें तो यह दुनिया मजेदार है और अगर उसे फिट करने गये तो दुनिया टेढी है। इसलिए एडजस्ट एवरीव्हेर । हम उसमें फिट हो गये तो कोई हर्ज नहीं है ।
दादा पूर्णत : एडजस्टेबल ! एक बार कढ़ी अच्छी बनीथी मगर नमक जरा ज्यादा था । मझें लगाकि नमक जरा ज्यादा है मगर थोड़ी खानी तो चाहिएन। इसलिए हीराबा के भीतर जाते ही मैंने उसमें थोड़ा पानी मिला दिया । उकने वह देख लिया, उसने कहा, "यह क्या किया ?" मैंने कहा, "आप स्टोव्ह पर रखकर पानी डालती है मैं यहाँ नीचे डालतै हूँ।" तब कहे, "हम तो पानी डालकर उबालते है ।" मैंने कहा, "मेरे लिए दोनों बराबर है ।" मुझे खानेसे मतलब टप-टप से क्या ?।
ग्यारह बजें आप मुझसे कहें कि, "आपको भोजन ले लेना होगा।" मैं कहूँ कि, "थोड़ी देरके बाद लूँ तो नहीं चलेगा ?" तब आप कहें कि,"नहीं भोजन लें ले । तो काम पूरा हो जाये ।" तो मैं तुरन्त भोजन लेने बैठ जाऊँगा । मैं आपको 'एडजस्ट' हो जाऊँगा ।
जो थाली आयी हो वह खा लेना । जो सामने आयावह संयोग है और भगवानने बताया है कि संयोगको गर धक्का दिया तो वह धक्का तुझे
एडजस्ट एवरीव्हेर ही लगेगा । इसलिए हमारी थालीमें हमें नहीं रूचती चीज़े रखी हो फिर भी उसमें से दो चीज हम खा लेते हैं । नहीं खाने पर दो व्यक्तियों से झगड़ा मोल लेना पड़ेगा एक तो जिसने पकाया है उसके साथ झंझट होगी, अनादर होगा और दूसरे खानेकी चीज़के साथ । खानेकी चीज़ क्या कहेंगी? कि, "मैंने क्या गुनाह किया है ? मैं सामने चलकर तेरे पास आई हूँ और तू मेरा अनादर क्यों करता है ? तुझे ठीक लगे उतना ले,मगर मेरा अनादर मत करना ।" अब हमें उसका आदर नहीं करना चाहिए क्या ? हमें तो नहीं रुचती चीज़ परोसे तब भी हम उसका सम्मान करते हैं । क्योंकि एक तो कोई यु ही मिलता नहीं, और गर मिल जाये तो उसका सम्मान करना चाहिए । कोई चीज़ आपको खानेको दी और आपने उसमें दोष निकाला तो पहले तो सोचें कि इसमें सुख घटेगा या बढ़ेगा?
जिससे सुख घटता हो ऐसा व्यापार ही नहीं करना चाहिए न ? मैं तो कई बार मेरी रूचिकी सब्जी नहीं होती फिर भी खा लेता हूँ और उपरसे तारीफ भी करूँ कि आज सब्जी मजेदार बनी है ।
अरे, कई बार तो चायमें शक्कर नहीं होने पर भी हमने फरियाद नहीं की । इस पर लोग कहते, "ऐसा करेंगे न तो घरमें सब बिगड़ जायेगा ।" मैं कहता, "आप फल देखना क्या होता है ।" तब फिर दूसरे दिन सुनमें आता कि, "कल चायमें सक्कर नहीं थी, फिर भी आपने हमें बताया क्यों नहीं ?" मैंने कहा कि, "मुझे कहने की क्या जरूरतथी तुम्हें मालूम हो ही जाता । तुम नहीं पीती तो मेरे क (22) कहनेकी जरूरत रहती । तुम पीती होन, फिर मुझे क्यों कहना चाहिए ?"!
प्रश्रकर्ता : पर पल-पल कितनी जागृति रखनी पडती है।
दादाश्री : प्रत्येक पल, चौबीसों घण्टे जागृति, उसके बाद यह 'ज्ञान' शुरू हुआ था । यह "ज्ञान" यूँ ही नहीं हुआ । अर्थात इस प्रकार से सब"एडजस्टमेन्ट" लिये थे । बन पडे उतना क्लेष नहीं होने दिया ।
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एडजस्ट एवरीव्हेर
एक बार हम नहाने गये तब गिलास ही नहीं रखा था । अब यदि हम एडजस्ट नहीं करें तो ज्ञानी काहेके ? हाथ डाला तो पानी बहुत गरम था, नल खोला तो टॅकी खाली थी । फिर हम तो आहिस्ता-आहिस्ता हाथसे चुपड़-चुपड कर ठंडा करके नहाये । सब महात्मा आपसमें कहते, "आज दादाने नहानेमें बडी देर कर दी" तब क्या करें? पानी ठंडा होतब नहा सकेंन? हम किसीसे भी "यह लाइए और वह लाइए।" एसा नहीं कहेंगे । एडजस्ट हो जायेंगे। एडजस्ट होना यही धर्म है । इस दुनियामें तो प्लस-माईनस का एडजस्टमेन्ट करना होता है। माईनस हो वहाँ प्लस औ प्लसहो वहाँ माईनस करना चाहिए । हम तो हमारे सयानेपन को भी यदि कोई पागलपन कहे तो हम कहेंगे,"हाँ, बराबर है ।" तुरन्त उसे माईनस कर देंगे।
एडजस्ट एवरीव्हेर ये दादा भी कंजूस है, किफ़ायती भी है और उदार भी हैं । पूर्णतया उदार है । फिर भी "कम्पलीट एडजस्टेबल" (संपूर्ण अनुकूलतावाले) हैं । दूसरोंके लिए उदार, खुदके लिए किफायती और उपदेशके लिए निपुण, इसलिए सामनेवालेको हमारा निपुणतापूर्ण कारबार देखनेमें आये । हमारी इकोनोमी (किफायत) एडजस्टेबल होगी, टोपमोस्ट (सर्वोतम) होगी । हम तो पानीका उपयोग भी किफायतसे करेंगे । हमारे प्राकृत गुन सहज भावसे होंगे।
वर्ना व्यवहारकी गुत्थी रास्ता रोकेगी ! पहले यह व्यवहार सिखना है । व्यवहारकी समझ नहीं होनेसे लोग कई प्रकारके मार खाते है ।
प्रश्नकर्ता : अध्यात्म संबंधी आपकी बातके बारेमें तो कुछ कहना नहीं पडता । मगर व्यवहारमें आपकी बात 'टॉप' की बात है ।।
अर्थात जिसे एडजस्ट होना नहीं आया उस मनुष्यको मनुष्य कैसे कहेंगे ? जिस घरमें संयोगवश होकर एडजस्ट हो जाते है वहाँ कोईभी झंझट नहीं होगी । हम भी हीराबासे एडजस्ट होते आये थेन ! उसका लाभ नहीं और उपरसे बैर बँधे सो अलग । क्योंकि प्रत्येक जीव स्वतंत्र है और खुद सुखकी तलाशमें आया है । वह दसरोंको सुख देने नहीं आया । अब उसे सुखके बजाय दुःख मिलेगा । तो फिर बैर ही बाँधेगा, फिर वह बीवी हो या लड़का हो ।
प्रश्नकर्ता : सुख खोजने आये पर दुऋख मिले इससे फिर बैर बाँधे?
दादाश्री : हाँ, वह तो भाई हो या पिता हो पर भीतर अंदरसे उस बातका बैर बाँधेगा । यह दुनिया सारी ऐसी है, बैर बाँधनेवाली! स्वधर्ममें बेर किसीसे नहीं होता ।
प्रत्येक व्यक्तिके जिवनमें अमुक प्रिन्सिपल (सिद्धांत) होने ही चाहिए । फिर भी संयोगानुसार वर्तन करना चाहिए । संयोगोसे एडजस्ट हो जाये उसका नाम मनुष्य । यदि प्रत्येक संयोगमें एडजस्टमेन्ट लेना आ जाये तो अंतत: मोक्षमें पहुँच सके ऐसा अजीब हथियार है ।
दादाश्री: ऐसा है न, कि व्यवहारमें 'टॉप' (उत्तम)की समझके बिना कोई मोक्षमें गया ही नहीं है । कितना भी किंमती, बारह लाखका आत्मज्ञान हो मगर व्यवहार छोड़ेगा कुछ ?! व्यवहार नहीं छोड़ता, तो आप क्या करेंगे? आप शुद्धात्मा है ही, मगर व्यवहार छोड़े तब न ? आप व्यवहारको उलझाते रहते हैं । झटपटहल निकालिए न ?
इस भाईसे कहा हो कि, "जाओ, दकान परसे आईसक्रिम ले आओ।" लेकिन आधे रास्तेसे वापस आये । हम पछे, "क्यों वापस आया ?" तो वह कहेगा कि, "रास्तेमें गधा मिला उपशकुन हुए इसलिए!!" अब उसे ऐसा उलटा ज्ञान हुआ है, वहहमें निकालना होगा न ? उसे समझाना होगा कि "भाई गधेमें भी भगवान बसते है इसलिए अपशुकन जैसा कुछ नहीं है । तू गधेका तिरस्कार करगा तो उसके भीतरके भगवानको पहुँचेगा। तुझे इसका भारी दोष लगेगा । फिर ऐसा नहीं होना चाहिए।" इस प्रकार उलटे ज्ञानकी वजहसे लोग एडजस्ट नहीं हो पाते हैं ।
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एडजस्ट एवरीव्हेर
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उलटेको सुलटाये वह समकिती !
समकितीकी निशानी क्या है तब कहे कि, घरके सारे लोग आँधा कर दें फिर भी खुद कर दे । प्रत्येक बाबतमें सीधा करना वह समकितीकी निशानी है । हमने यह संसारकी बहुत सूक्ष्म खोजबीन की थी । अंतीम प्रकारकी खोजबीनके पश्चात हम यह ससब बातें बता रहे है । व्यवहारमें कैसे रहना चाहिए वह भी सिखाते है और मोक्षमें कैसे जा सकते हैं यह भी बताते है । आपक अडबने किस प्रकार कम हो यह हमारा आशय है ।
हमारी बात सामनेवालेको "एडजस्ट" होनी ही चाहिए । हमारी बात सामनेवालेको "एडजस्ट" नहीं होती तो वह हमारी ही भूल है । भूल सुधारेगी तो "एडजस्ट" होगा । वीतरागोंकी बात " एवरीव्हेर एडजस्टमेन्ट" की है ।
प्रश्नकर्ता: दादा, आपके बताए हुए इस एडजस्ट एवरीव्हेरसे तो सभी बड़े-बड़ोका हल निकल आये ऐसा है ।
दादाश्री : सभीका निकाला हो जाये, हमारा प्रत्येक शब्द जो हैं वह सभीका जलदी निकाला कर दे ऐसा है, वह अंततः मोक्षमें ले जायेगा । 'एडजस्ट एवरीव्हेर'
प्रश्नकर्ता: अभी तक सब लोग जो प्रिय होता वहाँ एडजस्ट होते थे। और आपकी बातोंसे तो ऐसा लगता है कि जो अप्रिय है वहाँ तू पहले एडजस्ट हो ले।
दादाश्री : " एवरीव्हेर एडजस्ट" होना है ।
(25) दादाका अजायब विज्ञान !
प्रश्नकर्ता: 'एडजस्टमेन्ट 'कीबात के पीछे भाव क्या है ? कहाँ तक " एडजस्टमेन्ट" लेना चाहिए ?
एडजस्ट एवरीव्हेर दादाश्री : भाव शांति का है, शांति हेतु है । अशांति पैदा नहीं होने देनेका कीमिया है । "दादा" का "एडजस्टमेन्ट "काविज्ञान है । अजायब " एडजस्टमेन्ट" है यह । और जहाँ "एडजस्ट" नहीं होते वहाँ उसका आस्वाद तो लेते ही होंगे न आप ?! डिसएडजस्टमेन्ट ही मूर्खता है । " एडजस्टमेन्ट" को हम न्याय करते है । आग्रह- दुराग्रह कुछ न्याय नहीं कहलाये । किसीभी प्रकारका आग्रह न्याय नहीं है। हम अपनी बात पर अड़े नहीं रहते । जिस पानीमें मूँग पकते हो उसमें पका लें । आखिर गट्टरके पानीसे भी पकाले ! !
२६
अभी तक एक भी मनुष्य हमसे डिसएडजस्ट नहीं हुआ है । और लोगोंको तो घरके चार सदस्य भी एडजस्ट नहीं होते है । यह एडजस्ट होना आयेगाकि नहीं आयेगा ? ऐसा आपसे हो सकेगा कि नहीं हो सकेगा ? हम जैसा देखे ऐसा तो हमें करना आयेगा कि नहीं ? यह संसारका नियम क्या है कि जैसा आप देखेंगे ऐसा तो आपको ही । उसमें कुछ सिखने जैसा नहीं रहता । क्या नहीं आयेगा ? में आपको यदि उपदेश दिया करूँ न तो वह नहीं आयेगा । लेकिन मेरा आचरण आप देखेंगे तो सहजिकता से आ जायेगा ।
यहाँ घर पर 'एडजस्ट' होना आतो नहीं है और आत्मज्ञान के शास्त्र पढ़ने बैठ जाये । अबे ! डाल चूल्हेंमें उसे । पहले "यह " सिख ले । घरमें 'एडजस्ट' होना तो जराभी नहीं आता। ऐसा है यह संसार ।
संसारमें और कुछ आये कि न आये, चला लेंगे । धंधा करना कम आता हो तो हर्ज नहीं है। लेकिन एडजस्ट होना आना चाहिए। अर्थात, तात्पर्य यह है कि एडजस्ट होना सिख लेना चाहिए । इस कालमें एडजस्ट होना नहीं आया तो मारा जायेगा । इसलिए जैसे भी हो काम निकाल लेने जैसा है ।
- जय सच्चिदानंद
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________________ संपादकीय जीवन में प्रत्येक अवसर पर समझकर हम अपने आप ही सामनेवाले को एकजस्ट (अनुकूल) नहीं होते रहेंगे तो भयानक टकराव होता ही रहेगा / जीवन विषमय व्यतीत होगा और अंततः संसार तो जबरदस्ती हमारे पास एडजस्टमेन्ट (अनुकूलन) लिवायेगा ही / यहाँ-वहाँ, इच्छा अनिच्छासे भी हमें सामने चलकर एडडस्ट होनाही होगा फिर समझ-बुझकर क्यों नहीं एडजस्ट होवे कि जिससे अनेकानेक टकराव टाल सकेंगे। और सुख-शांति स्थापीत होगी। लाइफ इझ नथिंग बट एडजस्टमेन्ट (जीवन अनकलनके सिवा और कुछ भी नहीं !) जन्म से मृत्यु तक एडजस्टमेन्टस लेने होंगे। फिर रोकर लें या हंसकर ! पढ़ाई पसंद हो या नहीं हो पर एडस्ट होकर पढ़ना ही होगा ! ब्याहते समय शायद खुशी-खुशी ब्याहें मगर ब्याहनेके बाद सारा जीवन पतिपत्नीको परस्पारिक एडजस्टमेन्टस लेनी ही होंगे / दो भिन्न प्रकृतियों को सारा जीवन साथ रहे कर, जो पाला पडा हो उसे निभाना पड़ता है / इसमें एक-दूसरोंको सारा जीवन पूर्णतया एडजस्ट होकर रहे ऐसे कितने पुण्यवंत होंगे इस कालमें ? अरे, रामचंद्रजी और सीताजीको भी कई बार डिसएडजस्टमेन्ट (प्रतिकूलन) नहीं हुए थे ? स्वर्णमृग, अग्निपरीक्षा और सगर्भा होते हुए भी बनवास ? उन्होंने कैसे कैसे एडजस्टमेन्ट लिये होंगे? प्राप्तिस्थान अहमदाबाद : श्री दीपकभाई देसाई, दादा दर्शन, 5, ममतापार्क सोसायटी. नवगुजरात कॉलेज के पीछे, उस्मानपुरा, अहमदाबाद-३८००१४. फोनः 7540408,7543979, E-mail : dadaniru@vsnl.com मुंबई : डॉ. नीरुबहन अमीन, बी-904, नवीनआशा एपार्टमेन्ट, दादासाहेब फालके रोड, दादर (से.रे.), मुंबई-४०००१४ फोन : 4137616, मोबाईल : 9820-153953 वडोदरा: श्री धीरजभाई पटेल, सी-१७, पल्लवपार्क सोसायटी, वी.आई.पी.रोड, कारेलीबाग, वडोदरा. फोन:०२६५-४४१६२७ श्री विठ्ठलभाई पटेल, विदेहधाम, 35, शांतिवन सोसायटी, लंबे हनुमान रोड, सुरत. फोन : 0261-8544964 राजकोट: श्री रूपेश महेता, ए-3, नंदनवन एपार्टमेन्ट, गुजरात समाचार प्रेस के सामने, K.S.V.गृह रोड, राजकोट फोन:०२८१-२३४५९७ दिल्ही : जसवंतभाई शाह, ए-24, गुजरात एपार्टमेन्ट, पीतमपुरा, परवाना रोड, दिल्ही. फोन : 011-7023890 चेन्नाई: अजितभाई सी, पटेल, 9, मनोहर एवन्य. एगमोर, चेन्नाई-८ फोन : 044-8261243/1369, Email : torino@md3.vsnl.net.in U.S.A.: Dada Bhagwan Vignan Institue : Dr. Bachu Amin, 902 SW Mifflin Rd, Topeka, Kansas 66606. Tel : (785) 271-0869, Fax : (785) 271-8641 E-mail : shuddha@kscable.com, bamin @kscable.com Dr. Shirish Patel, 2659, Raven Circle, Corona, CA 92882 Tel. : 909-734-4715, E-mail : shirishpatel@mediaone.net U.K.: Mr. Maganbhai Patel, 2, Winifred Terrace, Enfield. Great Cambridge Road, London, Middlesex, ENI IHH, U.K. Tel: 020-8245-1751 Mr. Ramesh Patel, 636, Kenton Road, Kenton Harrow. Tel.:020-8204-0746, E-mail: dadabhagwan_uk@yahoo.com Canada: Mr. Bipin Purohit, 151, Trillium Road, Dollard DES Ormeaux, Quebec H9B 1T3, CANADA. Tel. : 514-421-0522, E-mail : bipin@cae.ca Africa: Mr. Manu Savla, PISU & Co.. Box No. 18219. Nairobi. Kenya. Tel : (R)254-2-744943 (0) 254-2-554836 Fax : 254-2-545237, E-mail : pisu@formnet.com Internet website: www.dadabhagwan.org, www.dadashri.org माता-पिता और संतानो में पग पग पर क्या एडजस्टमेन्टस नहीं लेने पडते? यदि समझदारी से एडजस्ट हो जायें तो शांति रहेगी और कर्म नहीं बँधेगे। परिवार में, मित्रो के साथ, धंधे में, बॉसके साथ, व्यापारी या दलाल के साथ, तेजी मंदी में सभी जगह यदि हम एडजस्टमेन्ट नहीं ले तो दु:खका पारावार रहेगा क्या? इसलिए एडजस्ट एवरीव्हेर" (सर्वत : समानुकूलन) की मास्टर की (सब ताले की चाबी) लेकर जो मनुष्य जीवन व्यतीत करेगा उसके जीवनका कोई ताला नहीं खूले ऐसा नहीं होगा / ज्ञानी पुरुष पूजनीय दादाश्रीका स्वर्णी सूत्र "एडजस्ट एवरीव्हेर" जीवन में आत्मसात करलें तो संसार सुखमय हो जाये ! - डॉ. नीरूबहन अमीन के जय सच्चिदानंद /