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एडजस्ट एवरीव्हेर
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उलटेको सुलटाये वह समकिती !
समकितीकी निशानी क्या है तब कहे कि, घरके सारे लोग आँधा कर दें फिर भी खुद कर दे । प्रत्येक बाबतमें सीधा करना वह समकितीकी निशानी है । हमने यह संसारकी बहुत सूक्ष्म खोजबीन की थी । अंतीम प्रकारकी खोजबीनके पश्चात हम यह ससब बातें बता रहे है । व्यवहारमें कैसे रहना चाहिए वह भी सिखाते है और मोक्षमें कैसे जा सकते हैं यह भी बताते है । आपक अडबने किस प्रकार कम हो यह हमारा आशय है ।
हमारी बात सामनेवालेको "एडजस्ट" होनी ही चाहिए । हमारी बात सामनेवालेको "एडजस्ट" नहीं होती तो वह हमारी ही भूल है । भूल सुधारेगी तो "एडजस्ट" होगा । वीतरागोंकी बात " एवरीव्हेर एडजस्टमेन्ट" की है ।
प्रश्नकर्ता: दादा, आपके बताए हुए इस एडजस्ट एवरीव्हेरसे तो सभी बड़े-बड़ोका हल निकल आये ऐसा है ।
दादाश्री : सभीका निकाला हो जाये, हमारा प्रत्येक शब्द जो हैं वह सभीका जलदी निकाला कर दे ऐसा है, वह अंततः मोक्षमें ले जायेगा । 'एडजस्ट एवरीव्हेर'
प्रश्नकर्ता: अभी तक सब लोग जो प्रिय होता वहाँ एडजस्ट होते थे। और आपकी बातोंसे तो ऐसा लगता है कि जो अप्रिय है वहाँ तू पहले एडजस्ट हो ले।
दादाश्री : " एवरीव्हेर एडजस्ट" होना है ।
(25) दादाका अजायब विज्ञान !
प्रश्नकर्ता: 'एडजस्टमेन्ट 'कीबात के पीछे भाव क्या है ? कहाँ तक " एडजस्टमेन्ट" लेना चाहिए ?
एडजस्ट एवरीव्हेर दादाश्री : भाव शांति का है, शांति हेतु है । अशांति पैदा नहीं होने देनेका कीमिया है । "दादा" का "एडजस्टमेन्ट "काविज्ञान है । अजायब " एडजस्टमेन्ट" है यह । और जहाँ "एडजस्ट" नहीं होते वहाँ उसका आस्वाद तो लेते ही होंगे न आप ?! डिसएडजस्टमेन्ट ही मूर्खता है । " एडजस्टमेन्ट" को हम न्याय करते है । आग्रह- दुराग्रह कुछ न्याय नहीं कहलाये । किसीभी प्रकारका आग्रह न्याय नहीं है। हम अपनी बात पर अड़े नहीं रहते । जिस पानीमें मूँग पकते हो उसमें पका लें । आखिर गट्टरके पानीसे भी पकाले ! !
२६
अभी तक एक भी मनुष्य हमसे डिसएडजस्ट नहीं हुआ है । और लोगोंको तो घरके चार सदस्य भी एडजस्ट नहीं होते है । यह एडजस्ट होना आयेगाकि नहीं आयेगा ? ऐसा आपसे हो सकेगा कि नहीं हो सकेगा ? हम जैसा देखे ऐसा तो हमें करना आयेगा कि नहीं ? यह संसारका नियम क्या है कि जैसा आप देखेंगे ऐसा तो आपको ही । उसमें कुछ सिखने जैसा नहीं रहता । क्या नहीं आयेगा ? में आपको यदि उपदेश दिया करूँ न तो वह नहीं आयेगा । लेकिन मेरा आचरण आप देखेंगे तो सहजिकता से आ जायेगा ।
यहाँ घर पर 'एडजस्ट' होना आतो नहीं है और आत्मज्ञान के शास्त्र पढ़ने बैठ जाये । अबे ! डाल चूल्हेंमें उसे । पहले "यह " सिख ले । घरमें 'एडजस्ट' होना तो जराभी नहीं आता। ऐसा है यह संसार ।
संसारमें और कुछ आये कि न आये, चला लेंगे । धंधा करना कम आता हो तो हर्ज नहीं है। लेकिन एडजस्ट होना आना चाहिए। अर्थात, तात्पर्य यह है कि एडजस्ट होना सिख लेना चाहिए । इस कालमें एडजस्ट होना नहीं आया तो मारा जायेगा । इसलिए जैसे भी हो काम निकाल लेने जैसा है ।
- जय सच्चिदानंद