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एडजस्ट एवरीव्हेर "एडजस्ट एवरीव्हेर"! कोई आपको मारे तो भी आप उसे 'एडजस्ट' हो जायें ।
हम यह सरल और सीधै रास्ता दिखा देते हैं । और यह टकराव थोड़े रोजाना होते है ? वह तो जब हमारे कर्मोका उदय होता है तब होते है, उतना समय हमें 'एडजस्ट' होना है । घरमें पत्नीके साथ झगड़ा हुआ हो तो उसके बाद उसे हॉटल ले जाकर उसकी पसंदकी डीश खिलाकर खुश कर दें । अब तनाव नहीं रहना चाहिए ।
संसारकी कोई चीज हमें फिट (अनुकल) नहीं होगी । हम उसे फिट हों जायें तो यह दुनिया मजेदार है और अगर उसे फिट करने गये तो दुनिया टेढी है। इसलिए एडजस्ट एवरीव्हेर । हम उसमें फिट हो गये तो कोई हर्ज नहीं है ।
दादा पूर्णत : एडजस्टेबल ! एक बार कढ़ी अच्छी बनीथी मगर नमक जरा ज्यादा था । मझें लगाकि नमक जरा ज्यादा है मगर थोड़ी खानी तो चाहिएन। इसलिए हीराबा के भीतर जाते ही मैंने उसमें थोड़ा पानी मिला दिया । उकने वह देख लिया, उसने कहा, "यह क्या किया ?" मैंने कहा, "आप स्टोव्ह पर रखकर पानी डालती है मैं यहाँ नीचे डालतै हूँ।" तब कहे, "हम तो पानी डालकर उबालते है ।" मैंने कहा, "मेरे लिए दोनों बराबर है ।" मुझे खानेसे मतलब टप-टप से क्या ?।
ग्यारह बजें आप मुझसे कहें कि, "आपको भोजन ले लेना होगा।" मैं कहूँ कि, "थोड़ी देरके बाद लूँ तो नहीं चलेगा ?" तब आप कहें कि,"नहीं भोजन लें ले । तो काम पूरा हो जाये ।" तो मैं तुरन्त भोजन लेने बैठ जाऊँगा । मैं आपको 'एडजस्ट' हो जाऊँगा ।
जो थाली आयी हो वह खा लेना । जो सामने आयावह संयोग है और भगवानने बताया है कि संयोगको गर धक्का दिया तो वह धक्का तुझे
एडजस्ट एवरीव्हेर ही लगेगा । इसलिए हमारी थालीमें हमें नहीं रूचती चीज़े रखी हो फिर भी उसमें से दो चीज हम खा लेते हैं । नहीं खाने पर दो व्यक्तियों से झगड़ा मोल लेना पड़ेगा एक तो जिसने पकाया है उसके साथ झंझट होगी, अनादर होगा और दूसरे खानेकी चीज़के साथ । खानेकी चीज़ क्या कहेंगी? कि, "मैंने क्या गुनाह किया है ? मैं सामने चलकर तेरे पास आई हूँ और तू मेरा अनादर क्यों करता है ? तुझे ठीक लगे उतना ले,मगर मेरा अनादर मत करना ।" अब हमें उसका आदर नहीं करना चाहिए क्या ? हमें तो नहीं रुचती चीज़ परोसे तब भी हम उसका सम्मान करते हैं । क्योंकि एक तो कोई यु ही मिलता नहीं, और गर मिल जाये तो उसका सम्मान करना चाहिए । कोई चीज़ आपको खानेको दी और आपने उसमें दोष निकाला तो पहले तो सोचें कि इसमें सुख घटेगा या बढ़ेगा?
जिससे सुख घटता हो ऐसा व्यापार ही नहीं करना चाहिए न ? मैं तो कई बार मेरी रूचिकी सब्जी नहीं होती फिर भी खा लेता हूँ और उपरसे तारीफ भी करूँ कि आज सब्जी मजेदार बनी है ।
अरे, कई बार तो चायमें शक्कर नहीं होने पर भी हमने फरियाद नहीं की । इस पर लोग कहते, "ऐसा करेंगे न तो घरमें सब बिगड़ जायेगा ।" मैं कहता, "आप फल देखना क्या होता है ।" तब फिर दूसरे दिन सुनमें आता कि, "कल चायमें सक्कर नहीं थी, फिर भी आपने हमें बताया क्यों नहीं ?" मैंने कहा कि, "मुझे कहने की क्या जरूरतथी तुम्हें मालूम हो ही जाता । तुम नहीं पीती तो मेरे क (22) कहनेकी जरूरत रहती । तुम पीती होन, फिर मुझे क्यों कहना चाहिए ?"!
प्रश्रकर्ता : पर पल-पल कितनी जागृति रखनी पडती है।
दादाश्री : प्रत्येक पल, चौबीसों घण्टे जागृति, उसके बाद यह 'ज्ञान' शुरू हुआ था । यह "ज्ञान" यूँ ही नहीं हुआ । अर्थात इस प्रकार से सब"एडजस्टमेन्ट" लिये थे । बन पडे उतना क्लेष नहीं होने दिया ।