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________________ एडजस्ट एवरीव्हेर प्रश्नकर्ता : उसमें पुरुषार्थ चाहिए । दादाश्री : कोई पुरुषार्थ नहीं चाहिए । मेरी आज्ञाका पालन करे कि दादाने कहा है कि "एडजस्ट एवरीव्हेर" फिर 'एडजस्ट' होता रहे । बीवी कहे कि, "तुम चोर हो" तो कहना कि "यु आर करेक्ट" (तूम सच कहती हो) बीवी साड़ी लानेको कहे, डेढ़सौकी, तो हम पच्चीस ज्यादा दें। फिर छह महीने तक चलना रहे सब ठीक-ठाक! ऐसा है, ब्रह्माके एक दिन जितनी हमारी जिन्दगी । ब्रह्माका एक दिन जीना और यह क्या धाँधल ? यदि ब्रह्माके सौ साल जाना हो तो हम कहेंगे कि, "ठीक है, क्यों कर एडजस्ट होना ?""दावा दायर कर" कहेंगे । लेकिन जिसे जल्दी समाप्त करना हो उसे क्या करना चाहिए? 'एडजस्ट' हो जाये कि फिर "दावादायर कर" कहें ? मगर यह तो एक निदकी ही बात है, यह जल्दी समाप्ति करनी है । जो कार्य जल्दी पूरा करना हो तो क्या करना होगा ?"एडजस्ट" होकर छोटा करदेना चाहिए वर्ना बढ़ता ही जाये, बढ़ता जाये कि नहीं ? बीबी के साथ लड़नेके बाद रातको नींद आयेगी (19) क्या ? और सुबह नाश्ता भी नहीं मिलेगा ठीक से। एडजस्ट एवरीव्हेर प्रश्नकर्ता : आप ऐसा कहना चाहते हैं कि बीवी को बाईसौकी साड़ी दिलवानी चाहिए ? दादाश्री : दिलवाना या नहीं दिलवाना यह आप पर निर्भर करता है। रूठकर हररोज रात को "खाना नहीं पकाऊँगी" कहेगी । तब क्या करें हम? बाबची कहाँसे ले आयें ? इसलिए फिर फर्ज करके भी दिलवानी पड़ेगी न ? हमे कुछ ऐसा करना चाहिए कि वह खुदभी चाहें तो साडी नहीं ला सकती । यदि आप आठसौ पाउन्ड माहवार कमाते हैं, तो उसमेंसे सौ पाउन्ड जेबखर्च के रखकर सातसौ पाउन्ड घर चलानेके लिए उसे दे दे । क्या फिर वह हमसे कहेगी कि साडी दिलवाईए ? कभी मझाकमें ऐसा कहेंबी कि "वहाँ साडी बहुत अच्छीथी तुम लाती क्यों नहीं ? " अब उसका प्रबंध उसे खुद करना होगा । यह तो प्रबंध हमें करना हो तो हम पर जोर चलाती । यह सभी कला ज्ञान होनेसे पूर्व मैंने सिखीथी । बादमें ज्ञानी हुआ । सभी कला मेरे पास आई तब मुझे ज्ञान हुआ है । अब बोलिए, यह कला आत्मसात नहीं है इसलिए ही यह दुःख है न! आपको क्या लगता अपनाइए ज्ञानीकी ज्ञान कला ! अब किसी दिन वाइफ कहेगी, "मुझे वह साड़ी नहीं दिलवाओगे ? मुझे वह साडी दिलवानी ही होगी ।" तब पति पूछेगा, "कितनी किंमतकी देखी थी तूने ?" तब कहेगी, "बाईससौकी है ज्यादा नहीं ।" तब वह कहेगा, "तुम बाईस सौ करती हो पर मैं अभी रूपये लाऊँगा कहाँसे ? अभी पैसोका मेल नहीं है. दो सौ तीन सौकी होती तो दिलवा देता, पर तुम बाईस सौ कहती हो ।" उसने रूढकर मुँह बना लिया । अब क्या दशा होगी फिर । मनमें ऐसा हो कि भाड़में जाये इससे तो शादी नहीं की होती तो अच्छा था । ब्याहने बाद पछताने पर क्या हो सकता है। अर्थात ऐसे (२०) प्रश्नकर्ता : हाँ, बराबर है । दादाश्री: आपकी समझमें आया न? इसमें कसर हमारा ही है न? कला नहीं है न! कला सिखनेकी ज़रूरत है। आप बोले नहीं ?! क्लेशका मूल कारण : अज्ञानता ! प्रश्रकर्ता : लेकिन क्लेश होनेका कारण क्या है ? स्वभाव भिन्न हो इससे? दादाश्री : अज्ञानता की वजहसे । संसार उसका नाम है कि किसीका स्वभाव किसीसे मिलेगा ही नहीं । इस 'ज्ञान' प्राप्तिका एक ही मार्ग है,
SR No.009572
Book TitleAdjust Everywhere
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherMahavideh Foundation
Publication Year
Total Pages18
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Akram Vigyan
File Size291 KB
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