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________________ एडजस्ट एवरीव्हेर दादाश्री: वह पहले कहें कि, आज प्याज के पकौडे, लडडु सब्जी सब बनाओ तब हम एडजस्ट हो जायें और आप कहें कि आज जल्दी सो जाना है तो उन्हें एडजस्ट हो जाना चाहिए । आपको किसी दोस्तके यहाँ जाना हो तब भी मुलत्वी करके जल्दी सो जायें । क्योंकि दोस्तके साथ अँझट होगी तो देखा जायेगा, लेकिन पहले यहाँ घरपे नहीं होने दे। यह दोस्तके साथ निभाने के लिए घरमें झंझट करें, ऐसा नहीं होना चाहिए । अर्थात वे पहले बोले तो हमें एडजस्ट हो जाना है । प्रश्नकर्ता : लेकिन उन्हें आठ बजे कहीं मिटिंगमें जाना हो और बहन कहे कि, "अब सो जाइए." तब फिर वे क्या करें? एडजस्ट एवरीव्हेर दादाश्री : ऐसा ?! अर्थात वह भी रहा और वह भी रहा । पीझा आ जाये नहीं ?! लेकिन हमारा भाव तो जाता रहा न ? उसके बजाय हमने वाइफसे कहा हो कि, "तुम्हे अनुकूल हो वह बनाओ।" उसे भी किसी दिन भाव तो होगा न । वह खाना नहीं खायेगी ? तब हम कहें, "तुम्हें अनुकूल आये । वह बनाना ।" तब वह कहेगी, "नहीं, आपको अनुकूल हो वह बनाना है ।" तब हम कहें कि, "गुलाब जामुन बनाओ।" अगर हमने पहले से ही गुलाब जामुन बनाने को कहा तो वह टेढा बोलेगी, "नहीं, मैं तो खचड़ी पकाऊँगी ।" प्रश्नकर्ता : ऐसे मतभेद मिटाने का आप क्या रास्ता दिखाते हैं ? दादाश्री : मैं तो यही रास्ता दिखाता है कि, "एडजस्ट एवरीव्हेर" वह कहे कि, "खीचड़ी बनानी है।" तो हमे 'एडजस्ट' हो, जायें । और आप कहें कि, "नहीं, अभी हमें बाहर जाना है, सतसंगमें जाना है ।" तो उसे 'एडजस्ट' हो जाना चाहिए । जो पहले कहे उसे हम एडजस्ट हो जायें। प्रश्रकर्ता : तब पहले बोलने के लिए झगड़े होंगे। दादाश्री : हाँ, ऐसा करना । झगड़े करना, मगर उसे 'एडजस्ट' हो जाना । क्योंकि आपके हाथमें सत्ता नहीं है । वह सत्ता किसके हाथमें है यह मैं जानता हूँ । इसलिए इसमें 'एडजस्ट' हो जाने में कोई हर्ज है भैया? प्रश्नकर्ता : नहीं, तनिक भी नहीं । दादाश्री : बहनजी, आपको हर्ज है ? प्रश्नकर्ता : नहीं। दादाश्री : तब फिर उसका निकाला कर दिजीए न । "एडजस्ट एवरीव्हेर" हर्ज है इसमें कोई ? प्रश्नकर्ता : नहीं, तनिक भी नहीं । दादाश्री : ऐसी कल्पनाएँ नहीं करनेकी । कुदरती कानून ऐसा है कि "व्होर धेर एस ए वील, धेर इझ एवे" (मनके हारे है मनके जीते जीत ।) कल्पाना करोंगे तो बिगड़ेता है । इसी लिए एक पस्तक में लिखा. हैं "व्हेर धेर इझ ए वील, धेर इझ ए वे" समझ में आया न? इतनी मेरी आज्ञाका पालन करोगे तो बहुत हो गया । पालोगे ? ऐसा ? प्रश्रकर्ता : हाँ, जी। दादाश्री : ला प्रोमिस (वचन) दे । खरे । इसे कहते हैं शूरवीर । प्रोमिस (वचन) दिया । खाने में एडजस्टमेन्ट ! व्यवहार निभाया किसे कहेंगे कि जो "एडजस्ट एवरीव्हेर" हुआ ! अब डेवलमेन्ट (विकास) का जमाना आया है । मतभेद नहीं होने दे । इसलिए मैंने शब्द दिया है अब लोगोंको, "एडजस्ट एवरीव्हेर"। एडजस्ट, एडजस्ट, एडजस्ट । कढ़ी मे नमक ज्यादा हो गया हो तो समझ लेना कि एडजस्टमेन्ट, दादाने कहा है, वह कढ़ी फिर थोडीसी चख लेना । हाँ, कुछ अचार याद आये तो फिर मँगा लेना कि अचार ले आइए । लेकिन झगड़ा नहीं, घरमें झगड़ा नहीं होता । खुद मुसीबतमें होत तब वहाँ अपने को
SR No.009572
Book TitleAdjust Everywhere
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherMahavideh Foundation
Publication Year
Total Pages18
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Akram Vigyan
File Size291 KB
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