________________
संपादकीय जीवन में प्रत्येक अवसर पर समझकर हम अपने आप ही सामनेवाले को एकजस्ट (अनुकूल) नहीं होते रहेंगे तो भयानक टकराव होता ही रहेगा । जीवन विषमय व्यतीत होगा और अंततः संसार तो जबरदस्ती हमारे पास एडजस्टमेन्ट (अनुकूलन) लिवायेगा ही । यहाँ-वहाँ, इच्छा अनिच्छासे भी हमें सामने चलकर एडडस्ट होनाही होगा फिर समझ-बझकर क्यों नहीं एडजस्ट होवे कि जिससे अनेकानेक टकराव टाल सकेंगे। और सुख-शांति स्थापीत होगी।
'दादा भगवान कौन ? जून उन्नीस सौ अट्ठावन की वह साँझका करीब छह बजेका समय, भीड़से धमधमाता सूरतका स्टेशन, प्लेटफार्म नं. ३ परकी रेल्वे की बेंच पर बैठे अंबालाल मूलजीभाई पटेल रूपी मंदिर में कुदरत के क्रमानुसार अक्रम रूपमें कई जन्मोंसे व्यक्त होने के लिए आतुर "दादा भगवान" पूर्णरूपसे प्रकट हुए ! और कुदरतने प्रस्तुत किया अध्यात्मका अद्भुत आश्चर्य ! एक घण्टे में विश्व दर्शन प्राप्त हुआ।"हम कौन ? भगवान कौन ? जगत् कौन चलाता है ? कर्म क्या ? मुक्ति क्या ? इत्यादी." जगत के सारे आध्यात्मिक प्रश्नों का संपूर्ण रहस्य प्रकट हुआ। इस तरह कुदरतने विश्वमें चरनोंमें एक अजोड पूर्ण दर्शन प्रस्तुत किया और उसके माध्यम बने श्री अंभालाल मूलजीभाई पटेल, चरुतर के भादरण गाँवके पाटीदार कोन्ट्रेक्टका व्यवसाय करनेवाले, फिर भी पूर्णतया वीतराग पुरुष !
उन्हें प्राप्ति हुई उसी प्रकार केवल दो ही घण्टों में अन्यों को भीवे प्राप्ति कराते थे, अपने अद्भूत सिद्ध हुए ज्ञान प्रयोग से । उसे अक्रममार्ग कहा । अक्रम अर्थात बिना क्रमके और क्रम अर्थात सीढ़ी दर सीढ़ी क्रमानुसार उपर चढ़ना । अक्रम अर्थात लिफट मार्ग ! शॉर्टक्ट !
आपश्री स्वयं प्रत्येक को "दादा भगवान कौन ।" का रहस्य बताते हुए कहते थे कि "यह दिखाई देते है वे "दादा भगवान " नहीं हो सकते । यह दिखाई देनेवाले है वे तो "ए, एम. पटेल" हैं । हम ज्ञानी पुरुष हैं । और भीतर। प्रकट हुए हैं वे "दादा भगवान" है । दादा भगवान तो चौदह लोक के नाथ है, वे आपमें भी है । सभीमें भी है । आप में अव्यक्त रूपमें रहते है अऔ "यहाँ संपूर्ण रूपसे व्यक्त हुए है । मैं खुद भगवान नहीं हूँ । मेरे भीतर प्रकट हुए दादा भगवानको मैं भी नमस्कार करता हूँ।"
"व्यापार में धर्म होना चाहिए, धर्म में व्यापार नहीं होना चाहिए।" इस सिद्धांतसे वे सारा जीवन जी गये । जीवन में कभी भी उन्होंने किसीके पास से पैसा नहीं लिया । उल्टे धंधेकी अतिरिक्त कमाई से भक्तों को यात्रा कखाते थे !
परम पूजनीय दादाश्री गाँव गाँव देश-विदेश परिभ्रमण करके मोक्षर्थी जीवों को सत्संग और स्वरूप ज्ञानकी प्राप्ति करवाते थे । आपश्रीने अपनी हयात में ही पूजनीय डॉ. नीरूबहन अमीनको स्वरूपज्ञान प्राप्ति करनाने की ज्ञान सिद्धि अर्पित की है । दादाश्री के देह विलय पश्चात आज भी पूजनीय डॉ. नीरूबहन अमीन गाँव-गाँव, देश-विदेश जाकर मोक्षार्थी जीवोंको सत्संग और स्वरूपज्ञानकी प्राप्ति निमित्त भावसे करा रही है । जिसका लाभ हजारो मोक्षार्थी लेकर धन्यताका अनुभव करते है।
लाइफ इझ नथिंग बट एडजस्टमेन्ट (जीवन अनुकूलनके सिवा और कुछ भी नहीं !) जन्म से मृत्यु तक एडजस्टमेन्टस लेने होंगे। फिर रोकर लें या हँसकर ! पढ़ाई पसंद हो या नहीं हो पर एडस्ट होकर पढ़ना ही होगा ! ब्याहते समय शायद खुशी-खुशी ब्याहें मगर ब्याहनेके बाद सारा जीवन पतिपत्नीको परस्पारिक एडजस्टमेन्टस लेनी ही होंगे । दो भिन्न प्रकतियों को सारा जीवन साथ रहे कर, जो पाला पडा हो उसे निभाना पड़ता है । इसमें एक-दूसरोंको सारा जीवन पूर्णतया एडजस्ट होकर रहें ऐसे कितने पुण्यवंत होंगे इस कालमें ? अरे, रामचंद्रजी और सीताजीको भी कई बार डिसएडजस्टमेन्ट (प्रतिकूलन) नहीं हुए थे ? स्वर्णमृग, अग्निपरीक्षा और सगर्भा होते हुए भी बनवास ? उन्होंने कैसे कैसे एडजस्टमेन्ट लिये होंगे?
माता-पिता और संतानो में पग पग पर क्या एडजस्टमेन्टस नहीं लेने पडते? यदि समझदारी से एडजस्ट हो जायें तो शांति रहेगी और कर्म नहीं बँधेगे। परिवार में, मित्रो के साथ, धंधेमें, बॉसके साथ, व्यापारी या दलाल के साथ, तेजी मंदी में सभी जगह यदि हम एडजस्टमेन्ट नहीं ले तो दुःखका पारावार रहेगा क्या?
इसलिए "एडजस्ट एवरीव्हेर" (सर्वत : समानुकूलन) की मास्टर की (सब ताले की चाबी) लेकर जो मनुष्य जीवन व्यतीत करेगा उसके जीवनका कोई ताला नहीं खूले ऐसा नहीं होगा । ज्ञानी पुरुष पूजनीय दादाश्रीका स्वर्णी सूत्र “एडजस्ट एवरीव्हेर" जीवन में आत्मसात करलें तो संसार सुखमय हो जाये !
- डॉ. नीरूबहन अमीन के जय सच्चिदानंद ।