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________________ १ एडजस्ट एवरीव्हेर उनको अहंकार है । मुझे अहंकार नहीं है, इसलिए मुझे सारे संसार के साथ मतभेद ही नहीं होता है । मुझे देखना आता है कि यह गुलाब है, यह मोगरा है, यह धतूरा है, यह कडूबी कुंदरूका फूल है । ऐसा सब मैं पहचानता हूँ फिर । अर्थात उधान के जैसा हो गया है । यह तो तारिफ़के लायक हुआ न? आपको क्या लगता है ? प्रश्नकर्ता : बराबर है। एडजस्ट एवरीव्हेर है ? फिर उसमें आगे तलाश करनेकी जरूरत है क्या ? हम पहचान जाये फिर तलाश करनी नहीं पडेगी । किसीको रात देरसे सोनेकी आदत हो और किसीको जल्दी सोनेकी आदत होती है, उन दोनो का मेल कैसे होगा ? और परिवारमें सभी साथ रहते हो तो क्या होगा? घरमें कोई ऐसा कहनेवाला भी निकले कि आप कमअक्ल हैं । तब हम समझ ले कि यह ऐसा ही बोलनेवाला है । इसलिए हमें एडजस्ट हो जाना है । इसके बजाय हम प्रत्युत्तर दें तो थक जायेंगे हम । क्योंकि वह हमसे टकराया लेकिन हम टकरायेंगे तो हमारे आँखे नहीं यह निश्चय हो गया न ? मै यह विज्ञान समझाना चाहता हूँकि प्रकृतिका सायन्स (विज्ञान) जानिए । बाकी आत्मा अलग वस्तु है । भिन्न, उधानके फूलोंके रंग-सुगंध ! आपका घर तो उधान है । सत्युग, द्वापर और त्रेतायुगमें घर खेतोंके समान होते थे । किसी खेतमें निरे गुलाब ही, किसी खेतमें निरे चंपे ही चंपे । अब उधान जैसा हो गया है । इसलिए हमें यह मोगरा है या गुलाब ऐसी तलाश नहीं करनी चाहिए ? सत्युगमें क्या था कि एक घरमें एक गुलाब होता तो सभी गुलाब होते और दूसरे घरमें एक मोगरा होता तो घरके सार मोगरे के समान होते, ऐसा था । एक परिवारके सभी गुलाबके, पौधे, एक खेतकी तरह इसलिए हर्ज ही होता और आज तो उधान हो गये है । एक घरमें एक गुलाब जैसा, एक मोगरे जैसा, इसलिए गुलाब चिल्लाये कि तू मेरे जैसा क्यों नहीं है ? तब मोगरा कहेगा कि तुझमें तो निरे काँटे है । अब गुलाब होगा तो काँटे तो होंगे ही, मोगरे के काँटे नहीं होते । अब गुलाब होगा तो काँटे तो होंगे ही, मोगरे के काँटे नहीं होते । मोगरे का फूल श्वेत होगा । गुलाबका फूल गुलाबी होगा, लाल होगा । हाल कलयुगमें एक ही घरमें अलग-अलग पौधे होंगे । इसलिए घर उधान रूप हो गया है । पर यह तो देखना नहीं आता, उसका क्या करें ? उकसा दःख ही होगा न और जगतके पास यह देखनेका द्रष्टि नहीं हो । बाकी, कोई बुरा होता ही नहीं है । यह मतभेद तो खुद के अहंकारकी वजहसे है । जिन्हे देखना नहीं आता, दादाश्री : ऐसा है न प्रकृतिमें परिवर्तन नहीं होगा । और (16) वह तो वहा का वही माल, उसमें फर्क नी होगा । हमने प्रत्येक प्रकृतिको पहचान लिया है, तुरन्त पहचान लें, इसलिए हम हरएकके साथ उसकी प्रकृतिके अनुसार पेश आयें । यह सूर्य के साथ हम दोपहर बारह बजे मित्राचारी करें तो क्या होगा ? इस प्रकार हम समझ ले कि यह ग्रीण्मका सूर्य है, यह जाडे का सूर्य है, ऐसा सब समझ लें तो फिर तकलीफ होगी? हम प्रकृतिको पहचानते हैं इसलिए आप टकराना चाहें तो भी मैं टकराने नहीं दूंगा, मैं बाज पर हो जाऊँगा । वर्ना दोनोका एक्सीडन्ट (अकस्मात) हो जाये और दोनोके स्पेर पार्टस टूट जाये । गर बम्पर टूट गया तो भीतर बैठे हुएकी क्या हालत हो जायेगी ? बोठनेवालोंकी तो दुर्दशा हो जायेगी न ! इसलिए प्रकृति पहचानिए । सभी घरवालोंकी प्रकृति पहचान लेनी है। प्रकृति सि कलयुगमें खेत समान नहीं है, उधान के समान है । एक चंपा, एक गुलाब, मोगरा, चमेली वगैरह । इसलिए सभी फूल लड़ते है । एक कहेगा मेरा ऐसा है तो दूसरा बोलेगा मेरा ऐसा है । तब एक कहेगा तेरेमें काँटे है, फूट तेरे साथ कौन खड़ा रहेगा ? ऐसे झगड़े चलते रहते है। काउन्टर पुलीकी करामात ! हम पहले अपना अभिप्राय प्रदर्शित नहीं करें । सामनेवालेसे पूछे कि इसके बारेमें आप क्या कहना चाहते है ? सामनेवाला बात पर अड़ा रहे
SR No.009572
Book TitleAdjust Everywhere
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherMahavideh Foundation
Publication Year
Total Pages18
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Akram Vigyan
File Size291 KB
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