Book Title: Aagam Manjusha 43 Mulsuttam Mool 04 Uttarjjhayanam
Author(s): Anandsagarsuri, Sagaranandsuri
Publisher: Deepratnasagar
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नमो नमो निम्मलदंसणस्स पूज्य आनंद-क्षमा-ललित-सुशील सुधर्मसागर गुरुभ्यो नमः On Line – आगममंजूषा [४३] उत्तरज्झयणं * संकलन एवं प्रस्तुतकर्ता * मुनि दीपरत्नसागर [le.com. M.Ed., Ph.D.J Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ || किंचित् प्रास्ताविकम् || ये आगम-मंजूषा का संपादन आजसे ७० वर्ष पूर्व अर्थात् वीर संवत २४६८, विक्रम संवत-१९९८, ई.स.1942 के दौरान हुआ था, जिनका संपादन पूज्य आगमोद्धारक आचार्यश्री आनंदसागरसरिजी म.सा.ने किया था| आज तक उन्ही के प्रस्थापित-मार्ग की रोशनी में सब अपनी-अपनी दिशाएँ ढूंढते आगे बढ़ रहे हैं। हम ७० साल के बाद आज ई.स.-2012,विक्रम संवत-२०६८,वीर संवत-२५३८ में वो ही आगम-मंजूषा को कुछ उपयोगी परिवर्तनों के साथ इंटरनेट के माध्यम से सर्वथा सर्वप्रथम “ OnLine-आगममंजूषा ” नाम से प्रस्तुत कर रहे हैं। * मूल आगम-मंजूषा के संपादन की किंचित् भिन्नता का स्वीकार * [१]आवश्यक सूत्र-(आगम-४०) में केवल मूल सूत्र नहीं है, मूल सूत्रों के साथ नियुक्ति भी सामिल की गई है। [२]जीतकल्प सूत्र-(आगम-३८) में भी केवल मूल सूत्र नहीं है, मूलसूत्रों के साथ भाष्य भी सामिल किया है। [३]जीतकल्प सूत्र-(आगम-३८) का वैकल्पिक सूत्र जो “पंचकल्प” है, उनके भाष्य को यहाँ सामिल किया गया tic [४] “ओघनियुक्ति”-(आगम-४१) के वैकल्पिक आगम “पिंडनियुक्ति” को यहाँ समाविष्ट तो किया है, लेकिन उनका मुद्रण-स्थान बदल गया है। [५] “कल्प(बारसा)सूत्र” को भी मूल आगममंजूषा में सामिल किया गया है। -मुनि दीपरत्नसागर मुनि दीपरतसागर : Address: Mnui Deepratnasagar, MangalDeep society, Opp.DholeshwarMandir, POST:- THANGADH Dist.surendranagar. Mobile:-9825967397 jainmunideepratnasagar@gmail.com Online-आगममंजूषा Date:-12/11/2012 Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ संजोगा विप्पमुकस्स, अणगाररस मिक्सुणा।विणयपाका रस्स भिक्खुणो। विणयं पाउकरिस्सामि, आणुपुर्वि सुणेह में ॥१॥ आणानिसयरे, गुरूणमुबबायकारए। इंगियागारसंपन्न, श्रीउत्तराध्ययनानिः से विणीएत्ति बुच्चइ ॥२॥ आणाऽनिदेसकरे, गुरुणमणुववायकारए। पडिणीए असंबुद्धे, अविणीएत्ति वुचई ॥३॥ जहा सुणी पूइकण्णी, णिकसिज्जा सबसो। एवं दुस्सीलपडिणीए, मुहरी निकसिज्जइ ॥४॥ कणकुंडगं जहि(चइ)त्ताणं, विट्ठ मुंजइ सूयरो। एवं सीलं जहित्ताणं, दुस्सीले रमइ मिए ॥५॥ सुणियाऽभावं साणस्स, सूयरस्स नरस्स या विणए ठविज अप्पाणं, इच्छंतो हियमप्पणो ॥६॥ तम्हा विणयमेसिजा, सील पडिलमे जओ। बुद्धउ(बु)त्ते नियागट्ठी, न निक्कसिज्जइ कण्हुइ ॥ ७॥ णिसंते सिया अमुहरी, बुद्धाणमंतिए सया। अट्टजुत्ताणि सिक्खिज्जा, निरट्ठाणि उ (वि) बजए ॥८॥ अणुसासिओ न कुपिज्जा, खंति सेवेज पंडिए। बाले (खुड्डे)हिं सह संसम्गि, हासं कीहुंच बजए॥९॥ मा य चंडालियं कासी, बहुयं मा य आलवे। कालेण य अहि जित्ता, तत्तो झाइज इकओ॥१०॥ आहश्च चंडालियं कटु, न निण्हइज्ज कण्हुइ । कडं कडंति भासिज्जा, अकर्ड नोकडंति य ॥१॥मा गलियस्सेव कसं, बयणमिच्छे पुणो पुणो। कसं व दळुमाइन्ने, पावगं परिवजह(ए)॥२॥ अणासवा थूलवया कुसीला, मिउंपि चंडं पकरंति सीसा। चित्ताणुया लहु दक्खोववेया, पसायए ते हु दुरासयपि ॥३॥णापुट्ठो वागरे किंचि, पुट्ठो वा नालियं वए। कोहं असचं कुचिजा, धारिना पियमप्पियं ॥४॥ अप्पामेव दमेयच्यो, अप्पा हु खलु दुद्दमो। अप्पा दंतो सुही होइ, अस्सि लोए परस्थ य.॥५॥ वरं मे अप्पा दंतो, संजमेणं तवेण य। माऽहं परेहि दम्मतो, पंधणेहिं बहेहि य॥६॥ पडिणीयं च बुद्धाणं, वाया अदुव कम्मुणा। आवि वा जइबा रहस्से, नेव कुजा कयाइवि ॥७॥ण पक्खओ ण पुरओ, व किच्चाण पिट्ठओ। न जुंजे उरुणा ऊर्फ, सयणे ण पडिस्सुणे ॥८॥नेव पल्हत्थियं कुजा, पक्खपिंड व संजए।पाए पसारिए वावि, न चिट्टे गुरुणतिए॥९॥ आयरिएहिं वाहितो(हितो), तुसिणीओण कयाइवि। पसायट्ठी नियागट्टी, उवचिढे गुरुं सया ॥२०॥ आलबते लवंते वा, ण णिसीजा कयाइबि । चइत्ता आसणं धीरो, जओ जत्तं पडिस्पुणे ॥१॥ आसणगओ ण पुच्छिजा, णेव सिज्जागओ कया। आगम्मुक्कुडुओ संतो, पुच्छिज्जा पंजलीगडे ॥२॥ एवं विणयजुत्तस्स, सुत्नं अत्थं तदुभयं । पुच्छमाणस्स सिस्सस्स, वागरिज जहासुयं ॥३॥ मुसं परिहरे भिक्खू, न य ओहारिणीं वए। भासादोसं परिहरे, मायं च वजए संया ॥४॥ण लविज पुट्ठो सावज, न निरटुं न मम्मयं। अप्पणट्ठा परट्ठा वा, उभयस्संतरेण वा ॥५॥ समरेसु अगारेसुं, गिहसंधिसु य महापहेसु। एगो एगित्थीए सद्धिं, नेव चिढ़े न संलवे ॥६॥ जं मे बुद्धाऽणुसासंति, सीएण (सीलेण) फरसेण वा। मम लाभुत्ति पेहाए, पयओ य (त) पडिस्सुणे ॥७॥ अणुसासणमोवायं, दुकडस्स य पेर(म० चोय)णं । हियं तं मन्मए पन्नो, १२७० उत्तराध्ययनानि मूलसूत्र अ.-१ मुनि दीपरत्नसागर Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वेस्सं भवइ असाहुणो ॥ ८॥ हियं विगयभया बुद्धा, फरुसमप्पऽणुसासणं । वेस्सं तं होइ मूढाणं, खंतिसुद्धि( सोहि)करं पयं ॥ ९॥ आसणे उवचिडिजा, अनुचेऽकुकुए(अकुए) थिरे। अप्पत्याई निरुत्थाई, निसीजा अप्पकुकुई ॥३०॥ कालेण णिक्समे भिक्स, कालेण य पडिकमे। अकालं च विवजित्ता, काले कालं समायरे ॥१॥ परिवाडिए ण चिट्ठिजा, भिक्खू दत्तेसणं चरे। पडिरूवेण एसित्ता, मियं कालेण भक्खए ॥२॥ नाइदूरे अणासण्णे, नऽन्नेसिं चक्षुफासओ। एगो चिटुंब भत्तटुं (ट्टी), लंपित्ता तं नऽइकमे ॥३॥ नाइउने नाइनीए (व नीए वा), नासन्ने नाइदूरओ। फासुयं परकडं पिंडं, पडिगाहिज संजए॥४॥ अप्पपाणेऽप्पचीएवा, पडिच्छन्ने य संवुडे। समयं संजओ भुंजे, जयं अप्परिसाडियं ॥५॥ मुकद्दति मुपति, मुछिन्नं मुहडे मडे। सुनिट्ठिए सुलवित्ति, सावजं वजए मुणी ॥६॥ रमए पंडिए सासं, हयं भई व बाहए। चालं सम्मइ सासंतो. गलिअस्सभि(स्स)व वाहए ॥७॥ खड्डयाहिं चवेडाहिं, अकोसेहिं बहेहि य (प० खड्ड्या मे चवेडा मे, अकोसा य वहा य मे)। कडाणमणुसासंत(संतो), पाचदिहित्ति मन्नइ ॥८॥ पुत्तो मे भाय नाइत्ति. साह कढाण मन्नइ । पावदिट्ठी 3 अप्पाणं, सास दास व मन्नइ ॥९॥ण कोवए आयरियं, अप्पाणंपिण कोबए। बुद्धोवघाई न सिया, न सिया तोत्तगवेसए ॥४०॥ आयरियं कुवियं नचा. पत्तिएणं पसायए। विज्झविजा पंजलिउडे, वएजा न पुणोति य ॥१॥ धम्मजियं च बवहारं, बुद्धहाऽऽयरियं सया। तमायरंतो ववहारं (मेहाची), गरहं नाभिगच्छद ॥२॥ मणो गयं (रुई) वकगर्य, जाणित्ताऽऽयरियस्स उात परिगिज्झ वायाए, कम्मुणा उपवायए॥३॥ वित्ते अचोइए खिप्पं (निबं),खिप्पं हवइ मुचोयए (पसने थाम करे)। जहोवइई सुकर्ड, किचाई कुबई सया ॥४॥णचा णमद मेहाची, लोए कित्ती य (सि) जायड़। किचाणं सरणं होइ. भूयाणं जगई जहा ॥५॥ पुजा जस्स पसीयंति, संबुदा पुत्रसंधुया। पस(संप)मा लंभइस्संति, विउलं अट्ठियं सुयं ॥ ६॥ स पुजसत्ये सुविनीयसंसए, मणिच्छियं (मणोरुई) संपयमुत्तमं गया (चिट्ठइ कम्मसंपर्य)। तबोसमायारीसमाहिसंवुडे, महजुई पंच वयाई पालिया ॥ ७॥ सदेवगंधामणुस्सपूइए, पइनु देहं मलपंकपुषयं । सिद्ध वा हवइ सासए, देवे वा अप्परए महिड्ढिए॥८॥ तिमि, विणयज्झयण १॥ सुर्य मे आउसंतेणं भगवया एवमक्खायं इह खल चावीस परीसहा समणेण भगवया महावीरेणं कासवेणं पवेइया जे भिक्खू सुच्चा नचा जिचा अभिभूय भिक्खायरियाए परिवयंतो पुट्ठो नो विनिहनेजा, कयरे ते खलु बाबीसं प० जे०?, इमे खलु ते बावीसं प० जे० तंजहा-दिगिछापरीसहे पिवासापरीसहे सीयपरीसहे उसिणपरीसहे समसगपरीसहे अचेलपरीसहे अरबपरीसहे इत्थीपरीसहे चरियाप. रीसहे निसीहियापरीसहे सिजापरीसहे १० अकोसपरीसहे वहपरीसहे जायणापरीसहे अलाभपरीसहे रोगपरीसहे तणफासपरीसहे जाउपरीसहे सकारपुरकारपरीसहे पण्णापरीसहे अनाणपरीसहे सण (सम्मत्त)परीसहे २२।१। 'परीसहाणं पविभत्ती, कासवेणं पवेइया। ते(न) भे उदाहरिस्सामि, आणुपुषि मुह मे ॥९॥ दिगिंछापरिगते देहे (छापरियायेणं), नवस्सी भिक्षु थामवं। न छिदे न छिदावए, न पए न पयावए ॥५०॥ कालीपत्रंगसंकासे, किसे धमणिसंतए। मन(माय)मोऽसणपाणस्स, अदीणमणसो चरे॥१॥ तओ पुट्ठो पियांसाए, दुगुंछी लज(ब)संजमे। सीओदगंण सेवेजा, वियहस्सेसणं चरे॥२॥ छिन्नाचाए पंथेसुं, आउरे सुपियासिए । परिमुकमुहेऽदीणे, सातो य परिषए (नं तितिक्खे परीसह)॥३॥ चरनं विरयं लूह, सीयं फुसइ एगया। नाइवेलं विहमिजा, पावदिट्ठी विनइ (मुणी गच्छे, सोचाणं जिणसासणं)॥६॥ण में णिवारणं अस्थि, उवित्ताणं न विजाइ। अहं तु अगि सेवामि, इइ भिक्खून चिंतए॥५॥ उसिणपरितावेण, परिदाहेण तजिओ। प्रिंसु वा परितावेणं, सायं ण परिदेवए॥६॥ उहाहिततो मेहावी, सिणाणं नाभि (णोवि) पत्थए। गायन परिसि.स चेजा, न विजि(वीइ)जा य अप्पयं ॥ ७॥ पुट्ठो य समसएहिं, समरे व महामुणी। नागो संगामसीसे व, सूरे अभिभचे परं ॥८॥ण संतसे ण पारिजा, मणपि णो पाउस्सए। उबेहे | नो हणे पाणे, मुंजते मंससोणिए ॥९॥ परिजनेहिं यस्येहि, होक्खामिनि अचेलए । अदुवा सचेलए होक्खं. इइ भिक्खू न चिनए ॥६०॥ एगया अबेलए (अचेलए सर्य) होइ सचेले. यावि एगया। एवं धम्महियं णचा, नाणी णो परिदेवए॥१॥गामाणुगारीयंतं. अणगारमकिंचगं। अरई अणुप्पबिसे, निनिक्से परीसह ॥२॥ अरई पिट्ठओ किया, विरओ आयरक्खिए। धम्मारामे निरारंभे, उपसंते मुणी चरे ॥३॥ संगो एस मणुस्साणं जाओ लोगसि इन्धिओ। जस्स एया परिणाया, सुकर्ड () तस्स सामणं ॥४॥ एवमादाय मेहावी, पंकभूयाउ इस्थिओ (जहा एया लहुस्सगं)। न ताहिं विणिहष्णिजा, चरे अत्तगवेसए॥५॥ एग एव चरे लाटे. अभिभूय परीसहे। गामे वा नगरे वापि, णिगमे या रायहाणिए ॥६॥ असमाणो चरे भिक्खू, नेव कुजा परिम्गहं । असंसत्तो गिहत्येहि. अनिकेओ परिवए ॥ ७॥ सुसाणे सुनगारे वा. रुकखमूले य एगओ। अकुकुए निसीएजा, न य विनासए परं ॥८॥ तत्थ से चिट्ठमाणस्स. उपसग्गेऽभिधारए (उपसग्गभयं भवे)। संकाभीओ न गच्छेजा. उहिना अण्णमासणं ॥९॥ उचावयाहि सिजाहि. नवस्सी भिक्खु थामवं। णाइवेलं विहण्णिजा, १२७१ उत्तराध्ययनानि मूलमूत्र अन्स -२ मुनि दीपरनसागर Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पावदिट्टी विण ॥ ७० ॥ परिकुवस्सयं लबुं कलाणं अदुव पावर्ग किमेगरायं करिस्सइ १, एवं तत्यऽहियासए ॥ १ ॥ अकोसेज परो भिक्खु, न तेसिं पर संजले सरिसो होइ बालाणं, तम्हा भिक्खू न संजले ॥ २ ॥ सोचाणं फस्सा मासा, दारुणे गामकंटए। तुसिणीओ उवेक्खिजा, ण ताओ मणसीकरे ॥ ३ ॥ हओ ण संजले भिक्खू, मणपि णो पउस्सए । तितिक्खं परमं णच्चा, भिक्खुधम्मंमि चितए ॥ ४ ॥ समणं संजयं दंतं, हणिजा कोऽवि कत्यवि । नत्थि जीवस्स नामुत्ति, न य पेहे असाधुयं ( एवं पेहिज्ज संजतो ) ॥ ५ ॥ दुक खलु भो! णिचं, अणगारस्स भिक्खुणो। सङ्घ से जाइयं होइ, नत्थि किंचि अजाइयं ॥ ६ ॥ गोयरग्गपविट्ठस्स, हत्ये नो सुप्पसारए। सेजो अगारवासोत्ति, इइ भिक्खू न चिंतए ॥ ७ ॥ परेसु गासमेसिज्जा, भोयणे परिणिट्टिए। लदे पिंडे आहारिजा, अलबे नाणुतप्पए (नाणुतप्पिज पंडिए) ॥ ८ ॥ अजेवाहं ण लब्भामि, अवि लाभो सुए सिया। जो एवं पडिसंचिक्खे, अलाभो तं न तज्जए ॥ ९ ॥ णच्चा उप्पइयं दुक्खं, बेदणाए दुहट्टिी(हि)ए। अदीणो ठावए पण्णं पुढो तस्थऽहियासए ॥ ८० ॥ तेगिच्छं नाभिनंदिना, संचिक्खऽत्तगवेसए। एयं खु तस्स सामण्णं, जं न कुजा न कारवे ॥ १ ॥ अचेलगस्स लुहस्स, संजयस्स तवरिसणो। तणेसु सुयमाणस्स, हुजा गायविराहणा ॥ २॥ आयवस्स निवाएणं, तिदु (अउ)ला हवइ वेयणा । एयं णच्चा न सेर्वति, तंतयं (तंतुजं) तणतजिया ॥३॥ किलिन्नगाए मेहावी, पंकेणं व रण वा घिसु वा परितावेणं, सायं नो परिदेव ॥४॥ वेएज निजरापेही, आरियं धम्मणुत्तरं । जाव सरीरभेओति, जलं कारण धारए ॥ ५॥ अभिवादणं अम्भुद्वाणं, सामी कुजा निमंतणं जे ताई पडिसेवंति न तेर्सि पीहए मुणी ॥ ६ ॥ अणुकसाई अपिच्छे अण्णाएसी अलोलुए। रसेसु नाणुगिज्झिना, नाणुतपिज पण्णवं ॥ ७ ॥ से नूणं मए पुर्व, कम्माऽणाणफला कडा जेणाहं नाभिजाणामि, पुट्टो केणइ कण्डुई ॥ ८॥ अह पच्छा उइज्जति, कम्माऽणाणला कड़ा। एवमासासिजऽप्पाणं, णच्चा कम्मविवागयं ॥ ९ ॥ निरट्ठगं मि विरओ, मेहुणाओ सुसंबुडो जो सक्खं नाभिजाणामि, धम्मं कलाण पावगं ॥ ९० ॥ तवोवहाणमायाय, पडिमं पडिवज्जिया (जओ)। एवंपि मे विहरओ, छउमं ण णियदृति ॥ १ ॥ णत्थि पूर्ण परे लोए, इड्टी वाचि तवरिसणो अदुवा वंचिओ मित्ति, इइ भिक्खू ण चितए ॥ २ ॥ अभू जिणा अस्थि जिणा, अदुवावि भविस्सइ। मुसं ते एवमाहंसु, इति भिक्खु न चितए ॥ ३ ॥ एए परीसहा सडे, कासत्रेण पवेइया । जे भिक्खु ण विहण्णिजा, पुट्टो केणइ कण्हुइ ॥ ९४ ॥ ि बेमि । परीसहज्झयणं २ ॥ चत्तारि परमंगाणि, दुलहाणिह जंतुणो । माणुसतं सुई सदा, संजमंमि ये वीरियं ॥ ९५ ॥ समावण्णाण संसारे, णाणागोत्तासु जाइसु । कम्मा णाणाविहा कटु, पुढो विस्संभिया पया ॥ ६ ॥ एगया देवलोंएस. नरएसुवि एगया। एगया आसुरे काये, आहाकम्मेहिं गच्छ ॥ ७॥ एगया खत्तिओ होइ, तओ चंडालबुकसो तओ की डपयंगो य, तओ कुंथू पिबीलिया ॥ ८ ॥ एवमावट्टजोणीसु, पाणिणो कम्मकिविता । ण णिविनंति संसारे, सङ्घट्टेस ( इ इ )व खत्तिया ॥ ९॥ कम्मसंगेहिं संमूढा, दुक्खिया बहुवेयणा। अमाणुसासु जोणीसु, विणिहम्मति पाणिणो ॥ १०० ॥ कम्माणं तु पहाणाए, आणुपुत्री कथाइ उ जीवा सोहिमणुप्पत्ता, आययंति (जायन्ते) मणुस्सर्वं ॥ १ ॥ माणुस्सं विग्गल, सुती धम्मस्स दुलहा जं सोच्चा पडिवजंति, तवं संतिमहिंसयं ॥ २ ॥ आहच्च सवर्ण लदधुं सदा परमदुहा। सोच्चा णेयाउयं मग्गं, पहवे परिभस्सइ ॥ ३ ॥ सुई च लधुं सद्धं च वीरियं पुण दुलई । बहवे रोयमाणावि, णो य णं पडिवजइ ॥ ४ ॥ माणुसत्तमि आयाओ, जो धम्मं सोच सदहे। तबस्सी वीरियं लधुं संवुडो निधुणे रयं ॥ ५ ॥ सोही उज्जुभूयस्स, धम्मो सुद्धस्स चिति णिवाणं परमं जाइ, घयसित्तेव पावए ॥ ६ ॥ विगिंच कम्मुणो हेउं, जसं संचिणु संतिए। पाढवं सरीरं हिचा उर्दू पकमती दिसं ॥ ७ ॥ विसालिसेहिं सीलेहिं, जक्खा उत्तरउत्तरा महासुका व दिपंता, मन्त्रंता अपुणोश्चयं ॥ ८ ॥ अप्पिया देवकामार्ण, कामरूवविउडिणो उड़ढं कप्पेसु चिर्द्धति, पुवा वाससया बहू ॥ ९ ॥ तत्थ तिच्या जहा ठाणं, जक्खा आउक्साए चुया उवैति माणुस जोणि से दसंगेऽभिजाय ॥ ११० ॥ वित्तंवत्यु हिरण्णं च पसवो दासपोस्सं चत्तारि कामखंधाणि तत्थ से उपजइ ॥ १ ॥ मित्तवं नाइव होइ, उच्चागोत्ते य वण्णवं अप्पायंके महापसे, अभिजायजसोचले ॥ २ ॥ भोबा माणुस्सए भोए, अप्पडिरूवे अहाउयं पुर्वि चिसुद्धसद्धम्मे, केवलं बोहि बुज्झिया ॥ ३ ॥ चउरंग दुलर्भ मच्चा, संजमं पडिवज्जिया तवसा धुतकम्मंसे, सिद्धे भवति सासए ॥ ४ ॥ चाउरंगिज्जज्झयणं ३ ॥ असंवयं जीविय मा पमायए, जरोवणीयस्स हु नस्थि नाणं एवं (ण) वियाणाहि जणे पमत्ते, कन्नू विहिंसा अजया गहिंति ॥ ५ ॥ जे पावकम्मेहिं धणं मणुस्सा, समाययंनी अमति गहाय पहाय ते पासपयहिए नरे. वेराणुबद्धा नरयं उदेति ॥ ६ ॥ तेणे जहा संधिमुहे गहीए. सकम्मुणा किच्चइ पावकारी एवं पया पिच्छ (च) इहं च लोए, कडाण कम्माण न मोक्खो अस्थि ॥ ७॥ संसारमावन्न परस्स अड्डा, साहारणं जंच करेनि कम्मं । कम्मस्स ते तस्स उ वेयकाले न बंधवा बंधवयं उर्वेति ॥ ८ ॥ वित्तेण ताणं न लमे पमत्ते, इममि लोए अदुवा परत्य दीवप्पणट्टे व अर्णतमोहे, नेयाउयं दमदमेव ॥ ९ ॥ (३१८) १२७२ उत्तराध्ययनानि मूलसूत्र, अन्त्सरणे-४ 1 मुनि दीपरत्नसागर Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ व सुत्तेसु आची पडिबुद्धजीवी, नो विस्ससे पंडियआसुप्पन्ने । घोरा मुहुत्ता अबलं सरीरं, भारंडपक्रसीव चरऽपमत्तो ॥१२०॥ चरे पयाई परिसंकमाणो, जंकिंचि पास इह मनमाणो । लामंतरे जीविय वृहइत्ता, पच्छा परिण्णायम: लावधंसी ॥१॥ छंदणिरोहेण उवेति मुक्खें, आसे जहा सिक्खियवम्मधारी। पुवाई वासाई चरऽप्पमत्तो, तम्हा मुणी खिष्पमुवेति मुक्खं ॥२॥ स पुष्वमेवं ण लमेज पच्छा, एसोवमा सासयवाइयाणं । विसीदति सिढिले आउयंमि, कालोचणीए सरीरस्स भेए ॥३॥ खिप्पं न सकेन विवेगमेडं, तम्हा समुट्ठाय पहाय कामे। समेच्च लोज (लाभ) समता महेसी, आयाणरक्खी चरमप्पमत्तो ॥४॥ मुहूं मुहं मोहगुणे जयंत, अणेगरूवा समणं चरंतं । फासा फुसंति असमंजसं च, ण तेसु भिक्खू मणसा पउस्से ॥५॥ मंदा य फासा बहुलोभणिज्जा, तहप्पगारेसु मर्ण ण कुजा। रक्खेन कोहं विणएन माणं, मायण सेवेज पहिज लोहं ॥ ६॥ जे संखया तुच्छपरप्पवादी. ते पेजदोसाणुगया परमा। एए अहम्मुत्ति दुगुंछमाणो, कंखे गुणे जाव सरीरभेए॥१२॥ त्ति चेमि, असंखिजजायणं ४॥ अण्णवंसि महोहंसि, एगे तरइ दुरुतरं । तत्य एगे महापण्णे, इमं पण्हमुदाहरे॥८॥संतिमेय (ए) दुवे ठाणा, अक्खाया मारणंतिया। अकाममरणं चेव, सकाममरणं तहा॥९॥ पालाणं अकामंतु, मरणं असतिं भवे। पंडियाणं सकामंतु, उक्कोसेण सतिं भवे॥१३०॥ तत्थिमं पढमं ठाणं, महावीरेण देसियं । कामगिद्धे जहा बाले, भिसं कुराणि कुवति ॥१॥जे गिद्धे कामभोगेसु, एगे कूडाय गच्छइ । न मे दिट्टे परे लोए, चक्खुदिट्ठा इमा रती ॥२॥ हत्यागया इमे कामा, कालिया जे अणागया । को जाणइ परे लोए, अस्थि वा नत्थि वा पुणो ? ॥३॥ जणेण सर्दि होक्लामि. इति वाले पगभइ। कामभोगाणुरागेणं, केसं संपडिकनाइ ॥४॥ तओ (तउ से) दंड समारमति, तसेसु थावरेसु य। अट्ठाए य अणट्ठाए, भूयगाम विहिंसइ ॥५॥ हिंसे चाले मुसाबाई. माइले पिसुणे सढे। मुंजमाणे सुरं मंस, सेयमेयंति मन्नइ॥६॥ कायसा वयसा मत्ते, वित्ते गिद्धे य इस्थिसु। दुहओ मलं संचिणइ, सिसुनागुव मट्टियं ॥ ७॥ तओ पुट्टो आयंकेण, गिलाणो परितप्पति। पभीओ पस्लोगस्स, कम्माणुप्पेही अप्पणो ॥८॥ सुया मे णरए ठाणा, असीलार्ण च जागती। बालाणं करकम्माण, पगाढा जत्थ वेयणा ॥९॥ तत्थोववाइयं ठाणं, जहा मे तमणुस्सुयं । आहाकम्मेहिं गच्छन्तो, सो पच्छा परितप्पति ॥ १४ ॥ जहा सागडिओ जाणं, सम्मं हिच्चा महापहं । विसमं मग्गमोतिण्णो(गाढो), अक्खे भग्गमि सोयइ ॥१॥ एवं धम्म विउक्म्म, अहम्मं पडिवज्जिया। बाले मच्चमुहं पत्ते, अक्खे भग्गेव सोयइ ॥२॥ तओ से मरणंतंमि, चाले संतस्सई भया। अकाममरणं मरई, धुत्ते वा कलिणा जिए॥३॥ एयं अकाममरणं, बालाण तु पवइय। इत्ता सकाममरण, पडियाण सुणहम॥४॥मरणापसपुण्णाणं, जहा मतमणुस्सुयाविप्पसण्णमणाघाय, सजयाण बुसामआ॥णान इमसवसुभिक्खूसु,ण इम सर्वसुगारिसुनाणासीला य गारस्था, य भिकरणो॥६॥ संति एगेहिं भिकखहिं, गारत्था संजमत्तरा। गारत्थेहि य सहि. साहवो संजमत्तरा ॥ ७॥ चीराजिणं निगिणिर्ण, जडी संघाडि मंडिण। एयाईपि न तायंति. दुस्सीलं परियागतं ॥८॥ पिंडोलए परस्सीलो. नरगाओ न मुबइ। भिक्खाए वा गिहत्थे वा, सुपए कमती दिवं ॥९॥ अगारिसामाइयंगाई, सड्ढी काएण फासए। पोसहं दुहओ पक्खं, एगराई न हाबए ॥१५०॥ एवं सिक्खासमावो, गिहवासेऽवि मुवओ। मुञ्चति छवि पत्राओ, गच्छे जक्खसलोगयं ॥१॥ अह जे संखुढे भिक्खू, दुण्हमेग(मण्ण)यरे सिया। सादुक्खपहीणे वा, देवे वावि महिड्ढिए ॥२॥ उत्तराई विमोहाई, जुइमंताणुपुत्रसो। समाइण्णाई जखेहि, आवासाई जसंसिणो ॥३॥ दीहाउया दित्तिमंत्ता(इढिमंता), समिद्धा कामरूविणो। अहुणोववन्नसंकासा, भुजो अधिमालिप्पभा॥४॥ ताणि ठाणाई गच्छंति. सिक्खित्ता संजमं तवं । भिक्खाए वा गिहत्ये वा, जे संनि परिनिडा ॥५॥ नेसि मुचा सपुजाणं, संजयाणं कुसीमओ। ण संतसंति मरणंते, सीलवंता बहुस्सुआ॥६॥ तुलिया विसेसमायाय, दयाधम्मस्स खंतिए। विप्पसीइज मेधावी. तहाभूएण अप्पणा ॥७॥ तओ काले अभिप्पए, सड्ढी तालिसमंतिए। विणएज लोमहरिसं, भेयं देहस्स कंखए॥८॥अह कालंमिसंपत्ते, आघायाय समुच्छयं । सकाममरणं मरति, तिण्हमनयरं मुणी ॥१५९॥ त्ति बेमि, अकाममरणिजऽज्झयण ५॥ जावंतऽविजा पुरिसा, सधे ते दुक्खसंभवा (ने सच्चे दुक्खमज्जिया)। लप्पनि बहुसो मूढा, संसारंमि अणंतए॥१६०॥ समिक्ख पंडिए तम्हा (तम्हा समिक्ख मेहावी), पास जाइपहे बहू। अप्पणा (अत्तट्टा) सचमेसेजा, मिनि भूएहि कप्पए ॥१॥ माया पिया ण्हसा भाया, भजा पुना य ओरसा। नालं ने मम ताणाय, लुप्पंतस्स सकम्मुणा ॥२॥ एयम९ सपेहाए, पासे समियदसणे। छिंद गेहि सिहं च, ण कंखे पुत्रसंथचं ॥३॥ गवासं मणिकुंडलं. पसवो दासपोरस । सवमेयं चइनाणं, कामरूवी भविस्ससि ॥४॥ थावर जंगमं चेव, धर्ण धणं उवक्खरं । पच्चमाणस्स कम्मेहि, नालं दुक्खाउ मोयणे ॥५॥ अम्भत्थं सबओ सर्व, दिस्स पाणे पियाय(उ)ए। न हणे पाणिणो पाणं, भयवेराओ उवरए॥६॥आयाणं नस्यं दिस्स, नायइज नणामवि । दोगुंछी अपणो च ।।दा भर्णता अकरिता य. पंधमोक्खपइण्णिणो । बायाचिरियमनणं, समासासेंनि अप्पगं ॥५॥न चित्ता तायए भासा, कओ विजाणुसासणं । विसण्णा पावकम्मे (किच्चे)हिं. चाला पंडियमाणिणो ॥१७॥ जे केइ सरीरे सत्ता, वण्णे रूबे य सबसो। मणसा कायवक्केणं (क्यसा चेव), सधे ने दुक्खसंभवा ॥१॥ आवण्णा दीह. मदाणं, संसारंमि अणतए। तम्हा सबदिस पस्सं (पप्प), अप्पमत्तो परिवए ॥२॥ चहिया उड्ढमायाय, नाचकखे कयाइवि। पुछकम्मक्खयहाए. इमं देहमुदाहरे ॥३॥ विवि(गि)म कम्मणो हेर्ड, कालकरखी परित्रए । मायं पिंटम्स पाणस्स, कई लघृण भक्खए॥४॥ सन्निहिं च न कुविजा, लेवमायाय संजए। पक्खी पत्तं समायाय, निरवेक्खो परिवए ॥५॥ एसणासमिओ लजू, गामे अनियओ चरे। अप्पमनो पमनेहि, पिंटवानं गवेसए ॥६॥ एवं से उयाहु अणुत्तरनाणी अणुत्तरदंसी अणुत्तरनाणदसणधरे। अरहाणायपुत्ते भयवं वेसालीए वियाहिए (एवं से उदाहु अरिहा पासे पुरिसादाणीए भगवं वेसालीए चुढे परिणिवए)।१७७॥ ति चेमि, खुड्डागनियंठिजऽज्झयणं ६॥ जहाऽऽएस समुहिस्स, कोइ पोसेज एलयं। ओयणं जवसं देजा, पोसेजावि सयंगणे ॥८॥ तओ स पुढे परिपूढे, जायमेदे महोयरे। पीणिए विपुले देहे, आदेसं परिकखए ॥९॥ जावन (ब) एजति (एइ) आएसो, नाव जीवनि सेऽवही। अह ८१२७३ उत्तराध्ययनानि मूलसूत्र, अज्म -3 मुनि दीपरतसागर Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पत्तमि आएसे. सीसं छेत्तण भजति ॥ १८० ॥ जहा खलु से ओरम्भे, आएसाए समीहिए। एवं बाले अहम्मिटे, ईहति निरयाउयं ॥ १॥हिंसे (कोही) पाले मुसाबाई, अदाणमि विलोवए। अण्णदत्तहरे तेणे(बालो), माई कण्हरेस सढे ॥२॥ इत्थीविसयगिद्धे य, महारंभपरिग्गहे । भुंजमाणे सुरं मंसं, परिपूढे परंदमे ॥३॥ अयकक्करभोई य, तुंदिले चियलोहिए। आउयं नरए से, जहाऽऽएसंच एलए॥४॥ आसणं सयणं जाणं, वित्ते कामाणि (मे य) मुंजिया। दुस्साहडं धर्ण हिचा, पहुं संचिणिया रयं ॥५॥ ततो कम्मगुरू जंतू, पच्चुप्पण्णपरायणे। अएक आगयाऽऽएसे (कंखे), मरणतमि सोयति ॥ ६॥ तो आउ परिक्सी, चुत(ओ)देहा चिहिंसगा। आसुरियं दिसं वाला, गच्छंति अवसा तमं ॥ ७॥ जहा कागिणीए हेर्ड, सहस्सं हारए नरो। अपत्थं अंपगं भोच्चा, राया रजंतु हारए॥८॥ एवं माणुस्सगा कामा, देवकामाण अंतिए। सहस्सगुणिया भुजो, आउं कामा य दिविया ॥९॥ अणेग वा. सा नउया, जा सा पण्णवओ ठिई। जाई जीयंति (हारेति) दुम्मेहा, जाण(ऊणे)वाससयाउए ॥१९०॥ जहा य तिष्णि बणिया, मूलं घेत्तृण निग्गया। एगोऽत्य लभते लाभ, एगो मूलेण आगओ॥१॥ एगो मूलंपि हारित्ता, आगो तत्थ वाणिओ। ववहारे उवमा एसा, एवं धम्मेवि जाणह ॥२॥ माणुसत्तं भवे मूलं, लाभो देवगई मवे। मूलच्छेएण जीवाणं, नरगतिरिक्खत्तर्ण धुर्व ॥३॥ दुहओ गती बालस्स, आवती वहमूलिया। देवत्तं माणुसत्तं च, जं जिए लोलुआसदे ॥४॥ ततो जिए सई होइ, दुविहं दुग्गतिं गते। दुलहा तस्स उम्मजा, अदाए सुचिरादवि ॥५॥ एवं जियं सहाए, तुलिया बालं च पंडिय। मूलियं ते पविस्संति, माणुसं जोणिमिति जे ॥६॥ वेमायाहिं सिक्खाहिं, जे नरा गिहि सुचया। उचिंति माणुसं जोणी, कम्मसच्चा(त्ता) पाणिणो ॥७॥ जेसिं तु विउला सिक्खा, मूलियते अतिच्छिया (अतिहिया)। सीलबंता सविसेसा, अहीणा जंति देवयं ॥८॥ एवं अदीण भिक्खुं, अगारि च विजाणिया। कहन जिच्चमेलिकखं, जिच्चमाणो न संविदे ॥९॥ जहा कुसग्गे उदयं, समुद्रण समं मिणे। एवं माणुस्सगा कामा, देवकामाण अंतिए ॥२०॥ कुसम्गमित्ता इमे कामा, समिरुदमि आउए। कस्स हेउं पुरा काउं, जोगक्खेमं न संविदे? ॥१॥ इह कामानियद्गुस्स, अत्तट्टे अवरज्झति। सुच्चा (पत्तो) नेयाउयं मम्गं, जं भुजो परिभस्सति ॥२॥ इह कामा नियहस्स, अत्तट्टे नावरजाति। पूतिदेहनिरोहेणं, भवे देवेत्ति मे सुयं ॥३॥ इड्ढी जुनी जसो वचो, आई सुहमणुत्तरे। भुजो जत्य मणुस्सेसुं, तस्य से उपक्जति ॥४॥ चालस्स पस्स बालत्तं, अहम्मं पडिवजिआ (णो)। चिच्चा धम्मं अहम्मिड्ढे, नरएसूबवजह ॥५॥ धीरस्स पस्स धीरत्तं, सबधम्माणुवत्तिणो। चिच्चा अधम्म धम्मिहे, देवेसु उपवजह ॥६॥तुलिआण पालभावं, अबालं चेच पंडिए। चइऊण बालभावं, अचाल सेवए मुणी ॥२०७॥ ति मि, एलबजऽजायणं ७ ॥ अधुवे असासयंमि (अधुवंमि मोहगहणए), संसारंमि दुक्खपउराए। किं नाम होजतं कम्मयं?, जेणाहं दुग्गई न गच्छेजा (ईतो मुवेजा) ॥८॥ विजहित्तु पुत्रसंजोगं, न सिहं कहिंचि कुविजा। असिणेह सिणेहकरेहि. दोसपउसे(ए)हिं मुबई भिक्खू ॥९॥ तो नाणदसणसमग्गो, हियनिस्सेसाए य सबजीवाणं। तेसिं विमोक्खणहाएं, भासइ मुणिवरो विगयमोहो ॥२१०॥ सर्व गंथं कलहं च, विप्पजहे तहाविहं (हो) भिक्खू। सबेसु कामजाएम, पासमाणो न लिप्पई ताई ॥१॥ भोगामिसदोसविसमे, हियनिस्से. यसबुद्धिवोचल्थे । वाले य मंदए मूढे, बजाए मछिपाच खेलमि ॥२॥ दुप्परिचया इमे कामा, नो सुजहा अधीरपुरिसेहिं । अह संति मुच्या साहू, जे तरंति अतरं वणियाच (पणियाय समुई) ॥३॥ समणा मु एगे वदमाणा, पाणवह मिया अजाणता। मंदा निरयं गच्छति, पाला पावियाहिं विट्ठीहिं ॥४॥ नहु पाणवह अणुजाणे, मुच्चेज कयाइ सबदुकखाणं। एवमारिएहिमक्खाय, जेहिं इमो साहुधम्मो पत्तो ॥५॥ पाणे य नाइवाइजा, से समियत्ति एहि भएहि. तसनामेहिं थावरेहिं च (जगनिस्सियाणं भूयाण, तसाणं थावराण य)।नो तेसिमारभे दंड, मणसावयसाकायसा चेव ॥ ७॥ PO मुद्देसणा उणच्चाणं, तत्थ ठवेज भिक्खू अप्पाण। जानाए पासमेसिजा, रसगिद्धे न सिया भिक्खाए ॥८॥ पंताणि चेव सेविजा, सीयपिंड पुराणकुम्मास । अदु पुकसं पुलागं पा, जवणट्ठाए निसेव(एव)ए मंथु ॥९॥ जे लकवणं च सुविणं च, अंगविजं च जे पउंजंति। न हु ते समणा बुख्यंति, एवं आयरिएहिं अक्खायं ॥२२०॥ इह जीवियं अनियमित्ता, पम्भट्ठा समाहिजोगेहिं । ते कामभोगरसगिद्धा, उपक्जति आसुरे काए ॥१॥ ननोऽविय उद्दिता, संसारं बहुं (अणु) परियति । बहुकम्मलेवलित्ताणं, बोही होइ (जत्थ) सुदुलहा तेसि ॥२॥ कसिणपि जो इमं लोयं, पडिपुत्रं दलेज एगस्स। तेणावि से ण संतुस्से (तुसेजा), इइ दुप्पूरए इमे आया ॥३॥ जहा लाभो नहा लोभो, लाभा लोभो पवड्दति। दोमासकर्य कर्ज, कोडीएविन निट्ठियं ॥४॥ नो रक्खसीसु गिज्झेजा, गंडवच्छासु णेगचित्तासु । जाओ पुरिसं पलोभित्ता, खेतति जहा व दासेहि ॥५॥ नारीसु नो पगिजिमजा, इत्थीविप्पजहे A अणगारा धम्म च पसल णच्चा, तत्व ठवज भिक्खु अप्पाणं ॥६॥ इह एस धम्मे अक्लाए, कविलेणं च विसुदपणेणं । तरिहिति जे उ काहिति, तेहि आराहिया दुवेदोगु॥२२॥लिमि, काबिलिजायण दा चहऊण देव लोगाओ उपवन्नो माणुसंमि योगमि। उपसंतमोहणिजो सरती पोराणियं जाई ॥८॥ जाई सरिनु भयवं सहसंबुद्धो अणुत्तरे धम्मे। पुतं ठविनु रज अभिनिकसमनि नमी राया ॥९॥ सो देवलोगसरिसे अंने उस्वरगनो बरे भोए। भुजित्नु गमी राया बुदो भोगे परिच्चयइ ॥२३०॥ मिहिलं सपुरजणवयं बलमारोहं च परिवणं सवं। चेच्चा अभिनिक्लंटो एगंतमहिडिओ भयवं ॥१॥ कोलाहलगम्भून आसी मिहिलाए पश्यनंमि। नइया रायरिसिम्मि नमिम्मि अभिनिक्खमंतंमि ॥२॥ अम्भुट्टियं रायरिसिं, पाजाठाणमुत्तमं । सको माहणावेणं, इमं वयणमञ्चवी ॥३॥ किनु भो अज मिहिलाए, कोलाहलगसंकुला। सुति दारुणा सहा, पासाएम गिहेमु अ? ॥४॥एयम? निसामिना, इसवी ॥५॥मिडिलाए चेडए वच्छे. सीतच्छाए मणोरमे। पत्तपफफलोवेते. बहणं चहगणे सता॥६॥ बाएण हीरमाणमि. चेहयमि मणोरमे। दहिया असरणा अना, एए कंदति भो ! खगा ॥७॥ एवमटुं निसामित्ता० देविंदो०॥८॥ एस अग्गीय बाओ य, एवं डझति मंदिरं। भगवं ! अंतेउस्तेणं, कीस णं नावपि(य)क्खह? ॥९॥ एय०२४०॥ मुहं वसामो जीवामो, जेसि मो नस्थि किंवणं । मिहिलाए १२७४ उत्तराध्ययनानि मूलसूत्र, असम-5 मुनि दीपरनसागर Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ इज्झमाणीए. न मे इज्झइ किंचण ॥१॥चत्तपुत्तकलत्तस्स, निघावारस्स भिक्खुणो। पियं न विजई किंचि, अप्पियंपि न विजइ ॥२॥ बहुं सु मणिणो भई, अणगारस्स भिक्खुणो। सबतो चिप्पमुक्कस्स, एगंतमणुपस्सओ ॥३॥ ॥ एय०४॥ पागारं कारइत्ताणं, गोपुरऽट्टालगाणि य। उस्सूलए सयग्धी य, ततो गच्छसि खत्तिया॥५॥ एय०॥६॥ सद्धं णगरि किच्चा, तवसंवरमगलं। खंतिं निउणपागारं, तिगुत्तं दुष्पधंसयं ॥७॥धणुं परकम किच्चा, जीवं च इरियं सदा। धिई च केयणं किच्चा, सच्चेणं परिमंथए ॥८॥ तवनारायजुत्तेणं, भेत्तूणं कम्मकंचुआं । मुणी विगयसंगामो, भवाओ परिमुञ्चति ॥९॥ एयः॥२५० ॥ पासाए कारइत्ताणं, वड्ढमाणगिहाणि य । वालम्गपोइयाओ य, तओ॥१॥ एयः॥२॥ संसयं खलु सो कुणइ, जो मम्गे कुणई घरं । जत्येव गंतुमिच्छेजा, तत्थ कुविज सासयं ॥३॥एय०॥४॥ आमोसे लोमहारे य, गंठिभेए य तकरे । णगरस्स खेमं काऊणं, तनो० ॥५॥ एय॥६॥ असई तु मणुस्सेहि. मिच्छादडो पउंजइ । अकारिणोऽत्य बझंति, मुच्चई कारओ जणो॥७॥ एय०॥८॥जे केइ पत्थिवा तुम्भ, नानमंति नराहिवा! । बसे ते ठावइत्ताणं, तओ०॥९॥एयः॥२६॥ जो सहस्सं सहस्साणं, संगामे दुजए जिणे। एगं जिणेज अप्पाणं, एस से परमो जओ॥१॥ अप्पाणमेव जुज्झाहि, किं ते जुज्झेण वज्झओ ?। अप्पणामेव अप्पाणं, जिणित्ता सुहमेहति ॥२॥ पंचिंदियाणि कोहं माणं मायं नहेब लोहं च । दुयं चेव अप्पाणं. सवमप्पे जिए जितं ॥३॥एय०॥४॥ जइत्ता विउले जने, भोइत्ता समणमाहणे। दच्चा जच्चा य भोच्चा य, ततो०॥५॥ एवं०॥६॥ जो सहस्सं सहस्साणं, मासे मासे गवं दए। तस्सावि संजमो सेओ, अदिनस्सबि किंचण ॥७॥एयः॥८॥ घोरासमं चइत्ताणं, अन्नं पत्थेसि आसमं । इहेब पोसहरओ, भवाहि मणुयाहिवा! ॥९॥एयः॥२७०॥ मासे मासे उ जो बालो, कुसम्गेणं तु भुंजइन सो मुक्खा(यक्खायधम्मस्स, कलं अग्घड सोलसि ॥१॥ ॥ एयः॥२॥ हिरणं सुवर्ण मणिमोत्तं, कंसं दूसं च वाहणं (सवाहणं)। कोसं चबड्डइत्ताण, तओ०॥३॥ एय०॥४॥ सुवण्णरूप्पस्स य पञ्चया भवे, सिया हु केलाससमा असंखया। नरस्स लुद्धस्स न तेहिं किंचि, इच्छा हु आगाससमा अणतया॥५॥ पुढवी साली जवा चेव, हिरण्णं पसुभिस्सह । पडिपुन्नं नालमेगस्स, इइविज्जा तवं चरे॥६॥ एय०॥७॥ अच्छेरगमभुदए, भोए जहित्तु (चयसि) पत्थिया (खत्तिया)! असंते कामे पत्थेसि, संकप्पेण विहम्मसि ॥८॥ एयः॥९॥ सर्ल्ड कामा विसं कामा, कामा आसीविसोपमा। कामे पत्थेमाणा, अकामा जंति दुग्गई ॥२८०॥ अहे वयइ कोहेणं, माणेणं अहमा गई।माया गइपडिग्घाओ, लोहाओ दुहओ भयं ॥१॥ अवउज्झिऊण माह. णरूवं विउरुविऊण इंदत्तं । वंदति अभित्थुर्णतो इमाहिं महुराहिं वग्गृहि ॥२॥ अहो ते णिजिओ कोहो, अहो माणो पराइओ। अहो ते णिरकिया माया, अहो लोभो वसीकओ ॥३॥ अहो ते अज्जवं साहू, अहो ते साहु ! महवं । अहो ते उत्तमा खंती. अहो ते मुत्ति उत्तमा ॥४॥ इहं सि उत्तमो भंते!, पेच्चा होहिसि उत्तमो। लोगुत्तमुत्तमं ठाणं, सिद्धिं गच्छसि नीरओ॥५॥ एवं अभित्थुर्णतो रायरिसिं उत्तमाएं सद्धाए। पायाहिणं करेंतो पुणो पुणो वंदनी सको ॥६॥ तो वंदिऊण पाए चकंकुसलक्खिए मुणिवरस्स। आगासेणुप्पतिओ ललियचबलकुंडलतिरीडी ॥७॥णमी णमेइ अप्पाणं, सक्खं सक्केण चोइओ। चइऊण गेहं वइदेही, सामण्णं पजुवडिओ॥८॥ एवं करिति संबुद्धा, पंडिया पवियक्खणा । विणियटुंति भोगेसु, जहा से णमिरायरिसि॥९॥त्ति बेमि, णमिपञ्चज्जऽज्झयणं ९॥ दुमपत्तए पंडुयए जहा, निवडइ राइगणाण अच्चए। एवं मणुयाण जीवियं, समयं गोयम ! मा पमायए ॥२९० ॥ कुसग्गे जह ओसबिंदुए, थोवं चिट्ठति लंबमाणए। एवं मणुयाण जीवियं, समय० ॥१॥ इइ इत्तरियमि आउए, जीवितए बहुपञ्चवायए (एवं मणुयाण जीविए, एसरिए बहुपचवायए)। विहुणाहि स्यं पुराकडं, समयं ॥२॥ दुलहे खल माणुसे भवे, चिरकालेणवि सबपाणिणं । गाढा य विवाग कम्मुणो, समयं०॥३॥ पुढवीकायमइगओ, उक्कोसं जीवो य संवसे। कालं संखातीयं, समय० ॥४॥ आउकायम०॥५॥ तेउक्कायः॥६॥ वाउकायः ॥ ७॥ वणस्सइकाय। कालमणंतदुरंतं, समयं ॥८॥ बेइंदियकायकालं संखिजसण्णियं, समय० ॥९॥ तेइंदिय०॥३०॥ चरिंदिय० ॥१॥ पंचिंदियकायमगओ। सत्तभवग्गहणे, समय० ॥२॥ देवे णेरइए य अइगओका एकेकभवम्गहणे, समयंक ॥३॥ एवं भवसंसारे संसरति सुभासुभेहि कम्मेहिं । जीवो पमायबहुलो, समयं ॥४॥लणऽबि माणुसत्तर्ण, आरियत्तणं पुणरावि दुइभ। बहवे दसुया मिलक्सुया, समय० ॥५॥ लतधणऽवि आरियत्तणं, अहीणपंचिदियया। हदाइहा। विगलिंदियता दीसह, समयं॥६॥ अहीणपंचिंदियत्तंपि से लहे, उत्तमधम्मसुती हु दुलहा। मिच्छत्तनिसेवए जणे, समयं०॥ ७॥ लधुणवि उत्तम सुई, सहहणा पुणरावि दुडहा। मिच्छत्त, समयं ॥८॥ धम्मपि हु सरहनया, दुइभया काएण फासया। इह कामगुणेहि मुच्छिया, समयं ॥९॥ परिजूरइ ते सरीरय, केसा पंडुरगा (य) भवंति ते। से सोयवले य हायइ, समयं ॥३१०॥ परि०। चक्खुबले० ॥१॥परिका घाणचन्द्र० ॥२॥ परि जिब्भ(रसण)चले०॥३॥० फासबले०॥४॥ सबमले० ॥५॥ अरई गंडं विसूइया, आयंका विविहा फुसंति ते। बिहडइ विवंसइ ते सरीरय, समयं०॥६॥ बुझ्छिद सिणेहमप्पणो, कुमुयं सारइयं व पाणियं से सबसिणेहवजिए, समयं ॥ ७॥ चिच्चाण धणं च भारिय, पवइओ हि सि अणगारिय। मा वंतं पुणोवि आविए. समय० ॥८॥ अवउज्झिय मित्तचंधवं, बिउलं चेव धणोहसंचयं। मा त बिइयं गवेसए, समयं ॥९॥ण हु जिणे अज दीसइ, बहुमए दीसइ मम्गदेसिए। संपइ नेआउए पहे, समयं ॥३२०॥ अवसोहिय कंटगापह, ओइन्नोऽसि पहं महालयं । गच्छसि मगं विसोहिया, समय० ॥१॥ अबले जह भारवाहए, मा मग्गे विसमेऽवगाहिया। पच्छा पच्छाणुतावए. समयं ॥२॥ तिष्णो हु सि अण्णवं महं, किं पुण चिट्ठसि तीरमागओ?। अभितुर पारं गमित्तए, समयं०॥३॥ अकलेवरसेणिमूसिया, सिदि गोयम! लोयं (य) गच्छसि। खेमं च सिवं अणुत्तरं, समयं ॥४॥ बुद्धे परिः णिवुए चरे, गामगए नगरे व संजए। संतिमगं च बूहए, समयं गोयम! मा पमाए ॥५॥ बुद्धस्स निसम्म भासियं, सुकहियमट्ठपदोक्सोहिय। रागं दोसं च छिंदिया, सिद्धिगई गए गोयमे ॥३२६॥ नि मि, दुमपत्तयज्झयणं१०॥ संजोगा विप्पमुक्कस्स, अणगारस्स भिक्खुणो। आयारं पाउकरिस्सामि, आणुपुत्विं सुणेह मे ॥७॥जे यावि होइ निधिजे, थद्धे लुबे अनिम्गहे। अभिक्खणं उल्लुबई, अविणीए अबहुस्सुए ॥८॥ अह पंचहिं ठाणेहि, जेहिं सिक्खा १२७५ उत्तराध्ययनानि मूलमूत्रं, अन्य - मुनि दीपरत्नसागर Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ण लभड़। यंभा कोहा पमाएणं, रा(रो)गेणालस्सएण य॥९॥ अह अहहिं ठाणेहि, सिक्खासीलेत्ति बुचइ।अहस्सिरे सयाईते, न य मम्ममुयाहरे॥३३॥नासीले ण विसीले, ण सिया अइलोलए। अकोहणे सचरए. सिक्खासीलेत्ति चुच्चइ ॥१॥ अह चोदसहि ठाणेहि, वहमाणो उ संजए। अविणीए पुचती सो उ, णिशाणं च ण गच्छइ ॥२॥ अभिक्खणं कोही भवइ, पर्वधं च पकुवा। मित्तिजमाणो वमति, सुर्य लड़धूण मज्जइ ॥३॥ अपि पावपरिक्खेवी, अचि मिनेसु कुष्पति। सुप्पियस्सावि मित्तस्स, रहे भासह पाचगं ॥४॥ पइण्णवाई दुहिले, यडे लदे अनिग्गहे। असंविभागी अचियत्ते, अविणीएत्ति पुचइ ॥५॥ अह पचरसहिं ठाणेहि. सुषिणीएत्ति बुबइ। नीयाचित्ती अचवले, अमाई अकुऊहले ॥६॥ अप्पं च अहिक्खिवति, पर्वधं च ण कुबइ। मित्तिजमाणो भजति, सुयं लडुं न मजति ॥ ७॥ न य पावपरिक्खेवी, न य मित्तेसु कुष्पति। अप्पियस्सावि मित्तस्स, रहे कलाण भासइ ॥८॥ कलहडमरवजए, बुद्ध (अ) अभिआइए। हिरिमं पडिसलीणो, सुपिणीएत्ति पुचड़ ॥९॥ बसे गुरुकुले निचं, जोगवं उपहाण । पियंकरे पियंचाई, से सिक्ख लधुमरिहति ॥३४०॥ जहा संखमि पर्य निहियं, दुहओवि चिरायइ। एवं बहुस्सुए भिक्खू, धम्मो कित्ती तहा सुर्य ॥१॥ जहा से कंचोयाण, आइने कथए सिया। आसे जवेण पवरे, एवं हवइ बहुस्सुए॥२॥ जहाऽऽइनसमारुडे, खरे ददपरकमे। उभो नंदिघोसेणं, एवं०॥३॥ जहा करेणुपरिकिषणे, कुंजरे सहिहायणे । बलवंते अप्पडिहए,०॥४॥ जहा से तिक्ससिंगे, जायक्वंधे पिरायइ । वसमे जूहाहिवती,०॥५॥ जहा से तिक्खदाढे, ओदग्गे दुष्पहंसए । सीहे मियाण पवरे,०॥६॥ जहा से वासुदेवे, संखचक्रगदाधरे। अप्पडिहयचले जोहे.॥॥ जहा से चाउरते, चकवट्टी महिहिढए। चोदसरयणाहिबई,०॥८॥ जहा से सहस्सक्खे, वजपाणी पुरंदरे । सके देवाहिवई,०॥९॥ जहा से तिमिरविसे, उत्तिटुंति दिवागरे। जलते इव तेएणं, ॥३५०॥ जहा से उडुबई चंदे. नक्खत्तपरिवारिए। पडिपुण्णे पुण्णिमासीए, ॥१॥ जहा से सामाइयाण(सामाइयंगाणं), कोट्ठागारे सुरक्खिए। नाणाधणपडिप्पुण्णे,०॥२॥ जहा सा दुमाण पवरा, जंचूनाम सुदंसणा । अणाढियस्स देवस्स. ॥३॥ जहा सा नईण पवरा, सलिला सागरंगमा। सीया नीलवंतपव(म)हा, ॥४॥ जहा से नगाण पवरे, सुमहं मंदरे गिरी। नाणोसहीपजलिए,०॥५॥ जहा से सयंभूरमणे, उदही अक्खओदए। नाणारयणपडिपुण्णे, एवं भवइ बहुस्सुए ॥६॥ समुहगंभीरसमा दुरासया, अचकिया केणइ दुप्पहंसया। सुयस्स पुण्णा विउलस्स ताइणो,खवेतु कम्मं गहमुत्तमं गया।आतम्हा सुयमहिडेजा, उत्तमहगवेसए। जेणऽपाणं परं चेव, सिदि संपाउणिज्जासि ॥३५८॥त्ति बेमि, बहस्मयपयज्झयणं ११॥ सोबागकलसंभओ. ग(अत्तरचरो मणी। हरिएसचलो नाम, आसि भिक्खू जिईदिओ ॥९॥ इरिएसणभासाए, उचारसमिइंसु य। जओ आयाणणिक्खेवे, संजओ सुसमाहिओ ॥३६०॥ मणगुत्ता वयगुत्तो, कायगुत्तो जिइंदिओ। भिक्खडा भइनमि, जयवाडमुवडिओ ॥१॥ तं पासिऊणमिजतं, तवेण परिसोसियं। पंतोवहिउवगरणं, उवहसंति अणारिया ॥२॥ जाइमयं पडियदा, हिंसगा अजिइंदिया। अबभचारिणो बाला, इमं वयणमब्बची ॥३॥ कयरे(को रे) आगच्छई दित्तकवे, काले विकराले फुकनासे। ओमचेलए पंसुपिसायभूए, संकरसं परिहरिय कंठे ॥४॥ कयरे (कोरे) तुम इय अदंसणिजे ,काएप आसाएँ इहमागओऽसि ?। ओमचेलगा पंसुपिसायभूया, गच्छ क्खलाहि किमिहं ठिओऽसि ॥५॥ जक्खो तहिं तिंदुयरुत्ववासी, अणुकंपओ तस्स महामुणिस्स। पच्छायइना नियगं सरीरं, हमाई क्यणाई उदाहरित्या ॥६॥ समणो अहं संजउ भयारी, विरओ घणपयण(सयण) परिग्गहाओ। परप्पवित्तस्स उमिक्खकाले, अनस्स अट्ठा इय(ह)मागओ मि॥आवियरिजइ खज्जइ भुजई य, असं पसू(भूयं भवयाणमेयं । जाणाहि मे जाय(ण)जीवि(क)णुत्ति, सेसावसेसं यहओ (ऊ) नयस्सी ॥८॥ उबक्खई भोयण माहणाणं, अत्तट्टियं सिदमिहेगपक्खं । न ऊ व(उच) यं एरिसमसपाणं, दाहामु तुझं किमिहं ठिओऽसि ॥९॥ बलेसुबीयाई वयंति कासया, तहेच निमेसु य आससाए। एयाइ सदाइ दलाह मझ, आराहए(हा) पुण्णमिणं खु खिनं ॥४७॥ खिलाणि अम्हं विइयाणि लोए, जहिं पकिन्ना विरुहति पुण्णा । जे माहणा जाइविजोक्वेया, ताई तु खित्ताई सुपेसलाई ॥१॥ कोहो य माणो य वहो य जेसि, मोसं अदत्तं च परिग्गहं च। ते माहणा जाइविजाविही(ह)णा, ताई तु खित्ताई सुपावयाई ॥२॥ तुभित्य भो.! भारहरा गिराणं, अटुं न याणाह अहिज बेए। उच्चावयाई मुणिणो चरंति, ताई तु खिलाई सुपेसलाई ॥३॥ अज्मावयाणं पडिकलभासी, पभाससे कि सगासि अम्हं?। एवं विणस्सउ अन्नपाणं, न यण दाहामु तुम नियंठा ! ॥४॥ समिईहिं मन सुसमाहियस्स, गुत्तीहिं गुत्तस्स जिइंदियस्स। जद मे न दाहित्य अहेसणिज्ज, किमज जमाण लभित्थ लाभं? ॥५॥ के इत्थ खना उपजोइया बा, अज्झाचया वा सह खंडिएहिं ?। एवं सु दंडेण फलेण हता, कंठमि पितृण खलिज जो णं ॥६॥ अज्झावयाणं वयणं सुणिना, उदाइया नत्य बहु कुमारा। दंडेहिं वित्तेहि कसेहिं चेत्र, समागया नं इसि (मुणि) नालयंनि ॥ ७॥रण्णो तहिं कोसलियस धूया, भदत्ति नामेण अणिदियंगी। तं पासिया संजय हम्ममाणं, कुडे कुमारे परिनिवेइ ॥८॥ देवाभिओगेण निओइएणं, दिशा मुरण्णा मणसा न झाया। नरिददेविंदऽभिवदिएण, जेणामि चंता इसिणा स एसो ॥९॥ एसो हुसो उम्गतबो महापा, जिइंदिओ संजओं बंभयारी। जो मे नया निच्छई दिजमाणी, पिउणा सयं कोसलिएण रण्णा ॥ ३८०॥ महाजसो एस महाणुभागो, घोरवओ घोरपरकमो य। मा एयं हीन्ह अहीलणिजं, मा सो तेएण मे निदहिजा ॥१॥ एयाई तीसे वयणाई सुचा, पत्तीइ भदाइ सुभासियाई। इसिस्स वेयावडियट्टयाए, जक्खा कुमारे विणिचारयति ॥२॥ते पोररूवा ठिब अंतरिक्खे, अमुरा नहिं ने जणं तालयंति । ते भिन्नदेहे रहिरं वर्मते, पासिनु भदा इणमाहु भुजो॥३॥ गिरि नहेहिं खणह, अयं दंतेहिं खायह। जायतेयं पायेहि हणह, जं भिक्खं अवमन्नह ॥४॥ आसीविसो उम्णतयो महेसी, घोरवओ घोरपरकमो य। अगणि व पक्खंद पयंगसेणा, जे भिक्खं भत्तकाले बहेह ॥५॥ सीसेण एवं सरणं उबेह, समागया सवजणेण तुम्हे । जइ इच्छह जीवियं वा धणं वा, टोगपि एसो कुवित्रो इहिजा ॥६॥ अबहेडिय (आरडिए) पिट्ठिसउत्तमंगे, पसारियाचाहु अकम्मचिट्ठ। निम्भेरियच्छे सहिरं वर्मते, उड्ढंमुहे निग्गयजीहनित्ते ॥ ७॥ ते पासिया खंडिय कट्टभूए, विमणो वि(व)समो अह माहणो सो। इसि पसाएर सभारियाओ, हीलं च निंदं च समाह भने ! ॥८॥ (३१९) १२७६ उत्तराध्ययनानि मूलमूत्र, अजल -२२ मुनि दीपरत्नसागर -- - 28, Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बालेहिं मूढेहिं अयाणएहिं जं हीलिया तस्स खमाह भंते! । महप्पसाया इसि ( मुणि)णो हवंति, न हु मुणी कोवपरा हवंति ॥९॥ पुत्रिं च इष्टि च अणागयं च (पच्छा व तहेव मज्झे). मणप्पओसो न मे अस्थि कोइ । जक्खा हु वेयाबडियं करेंति, जम्हा हु एए निहया कुमारा ॥ ३९० ॥ अत्थं च धम्मं च वियाणमाणा, तुच्भे नवि कुप्पह भूइपन्ना । तुब्भं तु पाए सरणं उबेमो. समागया सङ्घजणेण अम्हे ॥१॥ अच्चे ते महाभागा . न ते किंचन ना(चिन अ )चिमो । भुजाहि सालिमं कुरं, नाणावंजणसंजयं ॥ २ ॥ इमं च मे अस्थि पभूयमन्नं तं भुंजसू अम्ह अणुग्गहट्टा । वाढंति पडिच्छइ भत्तपाणं. मासस्स ऊ पारणए महप्पा ॥ ३ ॥ तहियं गंधोदयपुष्पवासं. दिवा तहिं वसुहारा य बुड्डा पहया दुंदुहीओ सुरेहिं, आगासे अहोदाणं च घुटं ॥ ४ ॥ सक्खं खुदीसह नवोविसेसो, न दीसई जाइविसेस कोई सोवागपुत्तं हरिएससाहूं. जस्सेरिसा इड्ढि महाणुभागा ॥१५॥ किं माहणा! जोइ समारभंता, उदएण सोहिं बहिया मिगा ? । जं मग्गहा बाहिरियं विसोहिं, न तं सुदिनं कुसला वयंति ॥ ६ ॥ कुसं च जूयं तणकट्टमरिंग, सायं च पायं उदयं फुर्सता पाणाई भूयाई विडयंता, भुज्जोऽचि मंदा! पकरेह पायें ॥ ७ ॥ कहं चरे भिक्खु ! वयं जयामो ?, पाचाई कम्माई पणुयामो। अक्खाहि णे संजय जक्खपूइआ, कहं सुजई कुसला वयंति ? ॥ ८ ॥ छज्जीवकाए असमारभंता. मोसं अदत्तं च असेवमाणा । परिग्गहं इत्थिउ माणमायं एवं परित्राय चरंति दंता ॥ ९ ॥ संबुडा पंचहि संबहिं, इह जीवियं अणवकखमाणो वोसट्टकाओ सुइचत्तदेहो, महाजयं जयई जन्नसिद्धं ॥ ४०० ॥ के ते जोई के व ते जोइठाणा ?, का ते सूया किं च ते कारिसंग ? एहा य ते कयरा संति भिक्खु ! कयरेण होमेण गुणासि जोई ? ॥ १ ॥ तवो जोई जीवो जोइठाणं, जोगा सुया सरीरं कारिसंगं कम्म एहा संजमजोग संती, होमं हुणामी इसिणं पसत्यं ॥ २ ॥ के ते हरए के य ते संतितित्थे ?, कहसि व्हाओ व स्यं जहासि ? | आयकख संजय जखपूइया! इच्छामु नाउं भवओ सगासे ॥ ३ ॥ धम्मे हरए चंभे संतितित्ये, अणाविले अत्तपसन्नलेसे । जहिंसि व्हाओ विमलो विसुद्धो, सुसीइओ (सुसीलभूओ) पजहामि दोसं ॥ ४ ॥ एवं सिणाणं कुसलेण दिई, महासिणाणं इसिणं पत्थं । जहिंसि व्हाया विमला विसुद्धा, महारिसी उत्तमं ठाणं पत्ति ॥४०५॥ त्ति बेमि, हरिएसज्झयणं १२ ॥ जाईपराजिओ खलु कासि नियाणं तु हत्यिणपुरंमि। चुलणीइ भदत्तो उवचनो नलिण (पउम )माओ ॥ ६ ॥ कंपिल्ले संभूतो चित्तो पुण जाओ पुरिमतालमि। सिट्टिकुलंमि विसाले धम्मं सोऊण पवइओ ॥ ७ ॥ कंपिडंमि य नयरे समागया दोऽवि चित्तसंभूया सुहदुक्खफलविचागं कहिंति ते इकमिकस्स ॥ ८ ॥ चकवट्टी महिइडीओ, भदत्तो महायसो भायरं बहुमाणेण, इमं वयणमच्चवी ॥ ९ ॥ आसिमो भायरा दोऽवि, अन्नमन्नवसाणुगा अन्नमन्नमणुरत्ता, अन्नमनहिएसिणो ॥ ४१० ॥ दासा दसन्नये आसी, मिआ कालिंजरे नगे हंसा मयंगतीराए, सोत्रागा कासिभूमिए ॥ १ ॥ देवा य देवलोगंमि, आसि अम्हे महिडिडआ । इमा णो (भे) छट्टिया जाई, अन्नमन्नेण जा विणा ॥ २ ॥ कम्मा नियाणप्पगडा, तुमे राय ! विचितिया। तेसिं फलविवागेणं, विप्पओगमुवागया ॥ ३ ॥ सचसो अप्पगडा, कम्मा मए पुरा कडा ते अज परिभुंजामी, किं नु चित्तेवि से तहा ? ॥ ४ ॥ स सुचिष्णं सफलं नराणं, कडाण कम्माण न मुक्यु अस्थि । अत्थेहि कामेहि य उत्तमेहिं आया ममं पुण्णफलोववेओ ॥ ५ ॥ जाहि संभूय! महाणुभागं, महिड्ढियं पुण्णफलोववेयं चित्तंपि जाणाहि तहेव रायं ! इड्ढी जुई तस्सवि अप्पभूआ || ६ || महत्वरूवा वयणप्पभूया. गाहाणुगीया नरसंघमज्झे। जं भिक्खुणो सीलगुणोवचेया, इहऽजयंते समणोऽम्हि जाओ ॥ ७ ॥ उच्चोअए महुकक्के य बंभे, पवेइया आवसहा य (इ) रम्मा इमं सिंहं वि (चि) तणप्पभूयं, पसाहि पंचालगुणोवधेयं ॥ ८ ॥ नहेहि गीएहि य वाइएहि, नारीजणाहि परिवारयंतो ( पवियारियंतो) भुंजाहि भोगाई इमाई भिक्खू, मम रोअई पवजा हु दुक्खं ॥ ९॥ तं पुचनेहेण कयाणुरागं, नराहित्रं कामगुणेसु गिद्धं धम्मस्सिओ तस्स हियाणुपेही, चित्तो इमं वयणमुदाहरित्या ॥ ४२० ॥ स विलवियं गीयं सङ्घ नहं विडंबणा सङ्के भरणा भारा, सकामा दुहावहा ॥ १ ॥ बालाभिरामेसु दुहावहेसु न तं सुहं कामगुणेसु रायं विरत्तकामाण तबोधणाणं, जं भिक्खुणं सीलगुणे स्याणं ॥ २ ॥ नरिंदजाई अहमा नराणं, सोवागजाई दुहओ गयाणं जहिं वयं सजणस्स वेसा, वसी अ सोवागनिबेसणेसु ॥ ३ ॥ तीसे अ जाईइ उ पावियाए, वुच्छा मु सोवागनिवेसणेसु । सङ्घस्स लोगस्स दुर्गुछणिज्जा, इहं तु कम्माई पुरेकडाई ॥ ४ ॥ सो दाणि सिं राय महाणुभागो, महिडिओ पुण्णफलोव ओ। चतु भोगाई असासयाई, आयाणहेउं अभिनिक्खमाहि (मेवा अणुचिंतयाही) ॥ ५ ॥ इह जीविए राय ! असासयंमि, धणियं तु पुण्णाइँ अकुश्माणो से सोअई मन्चमुहोबणीए, धम्मं अकाऊण परंमि लोगे ॥ ६ ॥ जहेह सीहो व मियं गहाय, मच्चू नरं नेइ हु अंतकाले। न तस्स माया व पिया व भाया, कालंमि तम्मंसहरा भवति ॥ ७ ॥ न तस्स दुक्खं विभयंति नायओ, न मित्तवग्गा न सुआ न बंधवा इको सयं पचणुहोइ दुक्खं, कतारमेवं अणुजाइकम्मं ॥ ८ ॥ चिचादुपयं च चउप्पयं च खित्तं सिंहं घणघण्णं च सर्व्वं । कम्मप्पचीओ अवसो पयाई, परं भवं सुंदर पावगं वा ॥ ९ ॥ तं इकगं तुच्छसरीरगं से, चिडंगयं दहिउं पावगेणं । भज्जा य पुत्ताविय नायओ अ, दायारमन्नं अणुसंकमंति ॥ ४३० ॥ उवणिजई जीवियमप्पमायं. वण्णं जरा हरड़ नरस्स रायं। पंचालाया! वयणं सुणाहि मा कासि कम्माई महालयाई ॥१॥ अपि जाणामि जहेह साहु (जो एन्थ सारो), जं मे तुमं साहसि चकमेयं भोगा इमे संगकरा भवति, जे दुज्जया अजो ! अम्हारिसेहिं ॥ २ ॥ हथिणपुरंमि चित्ता ! दट्ठूणं नरवई महिड्डीयं कामभोगेसु गिद्धेणं, नियाणमसुभं कई ॥ ३ ॥ नम्स मे अप्पडितम्स, इमं एयारिसं फलं । जाणमाणोऽवि जं धम्मं, | भो मुच्छ ॥ ४ ॥ नागो जहा पंकजलावसन्नो दद् थलं नाभिसमेइ तीरं । एवं वयं कामगुणेसु गिद्धा, न भिक्खुणो मग्गमणुश्यामो ॥ ५ ॥ अच्चेइ कालो तूरंनि राइओ, न यावि भोगा पुरिसाण निचा उचिच भोगा पुरिसं चर्यति दुमं जहा खीणफलं व पक्खी ॥ ६ ॥ जई (तं) सि भोगे चइउं असत्तो, अजाई कम्माई करेहि रायं ! धम्मे ठिओ सङ्घपयाणुकंपी, तं होहिसि देवो इओ विउशी ॥ ७॥ न तुज्झ भोगे चइऊण बुद्धी, गिदो सि आरं भपरिग्गहेसुं। मोहं कओ इत्तिउ विप्पलावो, गच्छामि रायं आमंतिओऽसि ॥ ८ ॥ पंचालरायाऽविय बंभदत्तो, साहुस्स तस्स वयणं अकाउं। अणुत्तरे भुंजिय कामभोगे, अणुतरे सो नरए पविडो ॥ ९ ॥ चिनोऽवि कामेहिं चिर१२७७ उत्तराध्ययनानि मूलमूत्रं असणं- १२ मुनि दीपरत्नसागर Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तकामो, उदत्तचारित्ततवो महेसी। अणुत्तरं संजम पालइत्ता, अणुत्तरं सिदिगई गओ ॥४४॥ त्ति बेमि, चित्तसंभूइजमवणं १३॥ देवा भपित्ताण पुरे भवमी, केई या एगरिमाणवासी । पुरे पुराणे इसुयारनामे, खाए समिदे | सुरलोगरम्मे ॥१॥ सकम्मसेसेण पुराकएणं, कुलेसु उम्गे (सु दत्ते) सुय ते पसूआ। निधिष्णसंसारभया जहाय, जिणिंदमयं सरणं पवना ॥२॥ पुमत्तमागम्म कुमार दोऽपि, पुरोहिजो तस्स जसा य पत्ती। विसालकित्ती य तहे. सुआरो, रायऽत्य देवी कमलावई य ॥३॥ जाईजरामचुभयाभिभूया (ए), यहिंविहाराभिणिविट्ठचित्ता। संसारचकस्स विमुक्खणडा, बठूण ते कामगुणे विरत्ता ॥४॥ पियपुत्तगा दुधिवि माहणस्स, सकम्मसीलस्स पुरोहियस्स। सरितु पोराणिय तत्थ जाई, तहा सुचिणं तव संजमं च ॥५॥ ते कामभोगेसु असज्जमाणा, माणुस्सएसुंजे यावि दिव्वा । मुक्ताभिकसी अभिजायसदा, तातं उपागम्म इमं उदाहु ॥६॥ असासयं बढ़ इमं विहारं, बहुअंतरायं न य दीहमाउं। तम्हा गिहंसी न रई लभामो, आमंतयामो चरिसामु मोणं ॥७॥ अह तायो तत्य मुणीण तेसिं, तबस्स वाघायकर वयासी। इमं वयं वेयविओ वयंति, जहा न होई असुआण लोगो ॥ ८॥ अहिज वेए परिविस्स विप्पे, पुत्ते परिट्टप्प गिहंसि जाया (ए)!। भुवाण भोए सह इस्थियाहिं, आरण्णगा होह मुणी पसत्था ॥९॥ सोअग्गिणा आयगुर्णिधणेणं, मोहानिला पजलणाहिएण। संत(स)त्तभावं परितप्पमार्ण, लोलु (लाल)पमाणं बहुहा पहुं च॥४५॥ पुरोहियं तं कमसोऽणुणतं, निमंतयंतं च सुए धणेणं । जहकर्म कामगुणेहिं चेव, कुमारगा ते पसमिक्स वकं ॥१॥ वेआ अधीआ न भवति ताणे, भुत्ता दिया निति तमं तमेणं। जाया य पुत्ता न हबंति ताणं, को नाम ते अणुमनिज एवं? ॥२॥ खणमित्तसुक्खा पहुकालबुक्खा, पगामदुक्खा अणिगामसुक्खा। संसारमुक्खस्स विपक्खभूजा, खाणी अणत्याण उ कामभोगा ॥३॥ परिवर्यते अनियत्तकामे, अहो य राओ परितप्पमाणे। अन्नप्पमत्ते घणमेसमाणे, पप्पुत्ति मछु पुरिसो जरं च ॥४॥ इमं च मे अस्थि इमं चनत्थि, इमं च मे किच इमं अकिच। त एवमेवं लालप्पमाणं, हरा हर्रतित्ति कह पमाओ? ॥५॥ धर्ण पभूयं सह इत्थियाहिं, सयणा तहा कामगुणा पगामा। तवं कए तप्पइ जस्स लोगो, तं सच साहीणमिहेव तुज्यं ॥६॥ धणेण किंधम्मधुराहिगारे ?, सयणेण वा कामगुणेहिं वेव।समणा भविस्सामु गुणोहधारी, बहिविहारा अभिगम्म भिक्ख ॥ ॥ जहा य अग्गी अरणीउऽसंतो, खीरे घयं तिल्लमहा तिलेसु । एमेव जाया सरीरंमिसत्ता, संमुच्छईनासह नावचिढे ॥८॥ नो इंदियग्गिा अमुत्तभावा, अमुत्तभावा चिय होइ निचो। अज्झत्यहेउं निययऽस्स चो, संसारहेउंचवयंतिपंच॥९॥जहा वयं धम्ममजाणमाणा, पावं पुरा कम्म. मकासि मोहा।ओरुज्झमाणा परिरक्खयंता, तंणेव भुजोऽविसमायरामो ॥४६०॥ अम्भाहयंमि लोगमि, सबओ परिवारिए। अमोहाहिं पड़तीहि, गिहंसि नरई लभे॥१॥ केण अभाहओ लोओ, केण वा परिवारिओ ?1 का वा अमोहा वुत्ता ?, जाया ! चिंतावरो हुमि॥२॥ मखुणाऽम्भाहओ लोओ, जराए परिवारिओ।अमोहारयणी वुत्ता, एवं ताय ! वियाणह ॥३॥ जा जा पाइ रयणी, न सा पडिनियत्तई। अहम्मं कुणमाणस्स, अहला जति राइओ॥४॥ जा जा वचाइ स्यणी, न सा पडिनियत्तई।धमं तु कुणमाणस्स, सफला जंति राइओ॥५॥एगओ संवसित्ताणं, वुहोसम्मत्तसंजुया पच्छा जाया गमिस्सामो, मिक्खमाणा कुले कुले॥६॥ जस्सऽस्थि मखुणा सक्सं, जस्स वऽस्थि पलायणं । जो जाणइ नमरिस्सामि,सो हु कंखे सुए सिया ॥७॥ अजेवधम्म पडिपज्जयामो, जहिं पवना न पुणभवामो। अणागयं नेव य अस्थि किंची, सद्धाखमं नो विणइनुरागं॥८॥पहीणपुत्तस्स हुनरिय वासो, वासिटि ! भिक्खायरियाइ कालो । साहाहिं रुक्खो रहई समाहि, छिचाहिं साहाहिं तमेव खाणु ॥९॥ पंखाविहणा व जहेव पक्खी, भिवधिहूणो व रणे नरिंदो। विवनसारो वणिउन पोए, पहीणपुत्तो मि तहा अहंपि ॥४७०॥ सुसभिया कामगुणा इमे ते, संपिंडिया अग्गरसा पभूया। मुंजासु ता कामगुणे पगाम, पच्छा गमिस्सामुपहाणमम् ॥१॥ भुत्ता रसा भोइ ! जहाइ णे वओ, न जीवियट्ठा पजहामि भोए । लाभ अलाभच सुहं चतुक्ख, संचिक्खमाणो परिसामि मोणं ॥२॥ मा हु तुमं सोदरियाण संभरे, जुन्चो व हंसो पडिसोयगामी। जाहि भोगाईमएसमाणं, दुक्खं सुभिक्खायरिया विहारो॥३॥जहाय भोई(भोगा)! तणुयं भुयंगे, निम्मोअणि हिच पलाइ मुत्तो।एमए जाया पजहंति भोए, तेऽहं कहनाणुगमिस्समिको? ॥४॥ छिदित्तु जालं अचलं व रोहिया, मच्छा जहा कामगुणे पहाय। धोरेयसीला तवसा उदारा, धीरा हु भिक्खायरियं चरंति ॥५॥ नहेव कुंचा समहकमंता, तयाणि जालाणि दलितु हंसा। पलिंति पुत्ताय पई यमजसं, तेऽहं कहं नाण-- गमिस्समिका ॥६॥ पुरोहियं तं समुयं सदारं, सुचाऽभिनिक्सम्म पहाय भोए। कुहुंचसारं विउलुत्तमं तं, रायं अभिक्खं समुदाय देवी ॥७॥ बतासी पुरिसो राय!, न सो होइ पसंसिओ। माहणेण परिवर्त, धणं आदाउमिच्छसि ॥८॥ सर्व जगं जइ तुह, सचं वावि धणं भवे। सचंपि ते अपजतं, नेव ताणाय तं तव ॥९॥ मरिहिसि राय ! जया तया वा, मणोरमे कामगुणे पहाय। इको हु धम्मो नरदेव ! नाणं, न विजई अभ(ज)मिहेह किंचि ॥४८॥ नाहं रमे पक्खिणि पंजरे वा, संताणछिन्मा चरिसामि मोणं। अकिंचणा उजुकडा निरामिसा, परिग्गहारंभनियत्तऽदोसा ॥१॥ दवग्गिणा जहा रणे, इज्झमाणेसुं जंतुसु। अखे सना पमोयंति, रागहोसवसं गया ॥२॥ एवमेव वयं मूढा, कामभोगेसु मुच्छिया। डज्झमाणं न बुज्झामो, रागदोसग्गिणा जगं ॥३॥ भोगे भुच्चा बमित्ता य, लहुभूयविहारिणो। आमोअमाणा गच्छंति, दिया कामकमा इव ॥४॥ इमे य बद्धा फंदंति, मम हत्थऽजमागया। वयं च सत्ता कामेसु. भविस्सामो जहा इमे ॥५॥ सामिसं कुललं दिस्सा, बज्झमाणं निरामिसं। आमिसं सचमुज्झित्ता, विहरिस्सामो निरामिसा ॥६॥ गिडोक्मे य नचाणं, कामे संसारवड्ढणे। उरगो सुवण्णपासिच, संकमाणो नणुं चरे ॥ ॥ नागुश्व बंधणं छित्ता, अप्पणो वसहि वए। एवं पत्थं (इति एत्यं) महाराय !, उसुआरित्ति मे सुर्य ॥८॥ चइत्ता विपुलं रजं, कामभोगे अदुबए। निश्चिसया निरामिसा, निहा निप्परिग्गहा ॥९॥ सम्मं धम्म बियाणिना, चिच्चा कामगुणे चरे। तवं पगिज्झऽहक्खायं, पोरं घोरपरकमा ॥४९०॥ एवं ते कमसो मुद्दा, सब्वे धम्मपरायणा। जम्ममच्चुभउब्बिग्गा, दुक्खस्संतगवेसिणो ॥१॥ सासणि विगयमोहाणं, पुष्यि भावणभाविया। अचिरेणेव कालेणं, दक्ससंतमवागया ॥२॥राया सह देवीए, माहणो उ पुरोहिओ। माहणी दारगा चेच, सब्वे ते परिनिबुडि ॥४९॥ त्ति बेमि. उसयारिजायणं १४॥ मोर्ण परिस्सामि समिश्च धम्म, सहिए उज्जकडे नियाणछिने। संथर्व जहिज | १२७८ उत्तराध्ययनानि मूलसूत्र, Har-2 मुनि दीपरनसागर Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अकामकामे, अन्नायएसी परिव्वए जे स भिक्खू ॥४॥राओवरयं चरिज लाढे, विरए वेदवियाऽऽयरक्खिए। पन्ने अभिभूय सव्वदंसी, जे कम्हिवि न मुच्छिए स भिख् ॥५॥ अक्कोसवहं विदित्तु धीरे, मुणी चरे लाढे निञ्चमायगुत्ते। अब्बग्गमणे असंपहिढे, जो कसिणं अहिआसए स भिक्खू ॥६॥ पंत सयणासणं भइत्ता, सीउण्हं विविहं च दंसमसगं। अव्वग्गमणे असंपहिहे, जो कसिणं अहिआसए स भिक्खू ॥७॥नो सकियमिच्छई न पूअं, नोविय वंदणगं कुओ पसंसं ?। से संजए सुब्बए तवस्सी, सहिए आयगवेसएस भिक्खू ॥८॥ जेण पुणो जहाइ जीवियं, मोहं वा कसिणं नियच्छई । नरनारि पयहे सया तवस्सी, न य कोऊहलं उवेइ स भिक्खू ॥९॥ छिन्नं सरं भोमं अंत. लिक्खं, सुविणं लकखणं दंडं वत्थुविज । अंगविगारं सरस्स विजयं, जो विजाहिं न जीवई स भिक्खू ॥५००॥ मंतं मूलं विविहं विजचिंतं. वमणविरेयणधूमनित्तसिणाणं । आउरे सरणं तिगिच्छियं च तं परिन्नाय परिवए स भिक्खू ॥१॥ खत्तियगण उग्गरायपुत्ता, माहणभोई य विविहा सिप्पिणो। नो तेसिं वयइ सिलोगपूर्ज, तं परिन्नाय परिचए स भिक्खू ॥२॥ गिहिणो जे पवइएण दिट्ठा, अप्पवइएण व संथुया हविजा। तेसिं इहलोयफलट्टयाए, जो संथवं न करेइ स भिक्खू ॥३॥ सयणासणपाणभोयणं, विविहं खाइमसाइमं परेसिं। अदए पडिसेहिए नियंठे, जे तत्थ ण पओसई स भिक्खू ॥४॥ जंकिंचाहारपाणगं विविहं, खाइमसाइमं परेसिं लटुं। जो तं तिविहेण नाणुकपे, मणवयकायसुसंबुडे जे स भिक्खू ॥५॥ आयामगं चेव जवोदणं च, सीयं सोवीर जवोदगं च । नो हीलए पिंडं नीरसं तु, पंतकुलाणि परिव्यए जे स भिक्खू ॥६॥ सदा विविहा भवंति लोए, दिव्या माणुसया तहा तिरिच्छा। भीमा भयभेरवा उराला, जो सुच्चा ण बिहिजई स भिक्खू ॥७॥ वायं विविहं समिच्च लोए, सहिए खेयाणुगए अ कोवियप्पा। पन्ने अभिभूय सव्वदंसी, उवसंते अविहेडए स भिक्खू ॥८॥ असिप्पजीवी अगिहे अमिते, जिइंदिओ सबओ विष्पमुक्के । अणुकसाई लहु अप्पभक्खी, चिचा गिह एगचरे स भिक्खू ॥५०९॥ सभिक्खुअज्झयणं १५॥ सुअं मे आउसं! तेणं भगवया एवमक्खायं-इह खलु थेरेहिं भगवंतेहिं दस बंभचेरसमाहिठाणा पनत्ता जे भिक्खू सुच्चा निसम्म संजमबहुले संवरत्रहुले गुत्ते गुतिदिए गुत्तर्वभयारीसया अप्पमते विहरिजा।२। कयरे खलु थेरेहिं भगवतेहिं दसबंभचेरसमाहिट्ठाणा पन्नत्ता?, इमे खलु ते जाव विहरिजा, तंजहा-विवित्ताई सयणासणाई सेक्जिा से निम्गंथे, नो इत्थीपसुपंडगसंसत्ताई सयणासणाई सेवित्ता हवद से निम्गंथे, त कहं इति चेदायरियाह-निग्गंथस्स खलु इस्थिपसुपंडगसंसत्ताई सयणासणाई सेवमाणस्स भयारिस्स घंभचेरे संका वा कंखा वा वितिगिच्छा वा समुष्प जिजा, भेयं वा लभिजा, उम्मायं वा पाउणिजा, दीहकालियं वा रोगायकं हविजा, केवलिपन्नत्ताओ धम्माओ वा मंसिजा, तम्हा नो इस्थिपसुपंडगसंसत्ताई सयणासणाई सेवित्ता हवइ से निम्नथे ।३। नो इत्थीणं कहं कहिना बहिबई से निग्गंथे, तं कहमिति चेदायरियाऽऽह-निग्गंथस्स खलु इत्थीणं कहं कहेमाणस्स भयारिस्स० मंसिज्जा तम्हा नो इत्थीणं कहं कहिना ४ानो इत्थीहिं सदि संनिसिज्जागए विहरित्ता हवइ से निग्गंथे, तं कहं इति चेदायरियाऽऽह-निम्गंथस्स खलु इत्थीहिं सहिं संनिसिजागयस्स घंभचेरे भंसिज्जा, तम्हा खलु नो निग्गंथे इत्थीहिं सदिं संनिसिजागए विहरइ । ५। नो इत्थीणं इंदियाई मणोहराई मणोरमाई आलोइत्ता निझाइना हवइ से निग्गथे, तं कहं इति चेदायरियाऽऽह-निग्गंथस्स खलु इत्थीणं इंदियाई मणोहराई मणोरमाई जाच निज्झाएमाणस्स भचेरे० मंसिजा, तम्हा खलु निग्गथे नो इत्थीणं इंदियाई निज्झाइजा।६। नो निग्गंथे इत्थीणं कुडं. | तरंसि वा दूसंतरंसि वा भित्तिअंतरंसि वा कूइयसई वा रुदयसई वा गीयसई वा हसियसई वा थणियसई वा कैदियसई चा विलवियसई वा सुणित्ता हवद से निम्गथे, तं कहं इति चेदायरियाऽऽह-इत्थीणं कुड्डंतरंसि वा दूसंतरसि वा भित्तिअंतरसि वा जाव विलावियसई वा सुणमाणस्स भयारिस्स जाव भंसिजा, तम्हा खलु निग्गथे नो इत्यीणं कुड्डतरंसि वा जाव सुणेमाणे विहरिजा।७। नो निगथे पुश्वरयं पुत्रकीलियं अणुसरित्ता हवइ, तं कहं इति चेदायरियाऽऽह-निम्गंधस्स खलु इत्थीर्ण पुवरयं पुत्रकीलियं अणुसरमाणस्स बंभयारिस्स बंभचेरे भसिज्जा, तम्हा खलु नो निम्मंथे इत्थीणं पुश्वरयं पुत्रकीलियं अणुसस्जिा।८ानो निग्मांधे पणीय आहारं आहारिना हबद से निम्गथे, ने कहं इति चेदायरियाऽऽह-निग्गंधस्स णं पणीयं पाणभोयणं आहारेमाणस्स बंभयारिस्स भंसेजा, तम्हा खलु नो निग्गंधे पणीयं आहारं आहारिजा।।नो अइमायाए पाणभोयणं आहारित्ता हवइ से निग्गंथे, न कहं इनि चेदायरियाऽऽह| अइमायाए पाणभोयणं आहारेमाणस्स भयारिस्स भंसेजा,तम्हा खलु नो निमांथे अइमायाए पाणभोयणं भुंजिजा।१०ानो विभूसाणुवाई हवइसे निरगंथे, तं कहं इति चेदायरियाऽऽह-विभूसावनिए विभूसियसरीरे इत्थिजणस्स अभिलसणिजे हवइ, तओणं तस्स इत्थिजणेणं अभिलसिज्जमाणस्स बंभयारिस्सभसिज्जा, तम्हा खलु नो निग्गंथे विभूसाणुवाई सिया।१शनो सहरूवरसगंधफासाणुवाई हवइ से निरगंथे, ते कहं इति चेदायरियाऽऽह-निग्गंथस्स खलु सहरूवरसगंधफासाणुवाइयस्स भयारिस्स० लभिज्जा उम्मायं वा पाउणिज्जा दीहकालियं वा रोगार्यकं हविज्जा केवलिपन्नत्ताओ धम्माओ वा भंसिजा, तम्हा खलु नो निरगंथे सहरूबरसगंधफासाणुवाई हवइसे निम्नथे, दसमे बंभचेरसमाहिठाणे हवइ।१२। भवन्ति य एत्य सिलोगा-'तंजहा-जं विवित्तमणाइन, रहियं थीजणेण या बंभचेरस्स रक्खडा, आलयं तु निसेवए॥५१०॥मणपल्हायजणणी, कामरागविवड्दणी। बंभचेररओ भिक्खू, श्रीकहं तु विक्जए॥१॥समंच संथवं थीहि, संकहं च अभिक्खणं । चंभचेररओ भिक्खू, निच्चसो परिवजए| अंगपञ्चंगसंठाणं, चारवियपेहियं । चंभचेररओ थीणं, सोअगिझं विवजए॥३॥ कुइयं रुइअंगीयं, हसियं थणियं कंदियं । भचेररओ थीणं, सोअगिझं विवजए॥४॥हासं खिड्ड रई दप्पं, सहसावत्तासियाणि या बंभचेररओ थीणं, नाणुचिंते कयाइवि॥५॥पणीयं भत्तपाणं च, खिप्पं मयविवड्ढण । भचेररओ भिक्खू, निचसो परिवजए॥६॥धम्मलद्ध(म्म ल ) मियं काले, जनन्थ पणिहाणवं । णाइमत्तं तु जिजा, चंभचेररओसया॥७॥ विभूसं परिवजिजा,सरीरपरिमंडणं। भचेररओ भिक्खू, सिंगारत्थंनधारए॥८॥ सद्दे रुवेय गंधेय, रसे फासे तहेव या पंचविहे कामगुणे, निचसो परिवजए॥९॥ आलओ धीजणाइन्नो, थीकहा यमणोरमा। संधबो चेव नारीणं, तासिं इंदियदरिसणं ॥५२०॥ कुइयं कइयं गीर्य, हसियं भुत्तासियाणि यापणीयं भत्तपाणं च, अइमायं पाणभोयणं ॥१॥ गत्तभूसणमिटुंच, कामभोगा य दुजया। नरस्सऽनगवेसिस्सा, १२७९ उत्तराध्ययनानि मूलसूत्र, मन्का मुनि दीपरनसागर Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विसं तालउडं जहा ॥२॥ दुजए कामभोगे य, निच्चसो परिवजए। संकठाणाणि सवाणि, वजिजा पणिहाण ॥३॥ धम्मारामे चरे भिक्खू, चिईमं धम्मसारही। धम्मारामरए दंते. बंभचेरसमाहिए ॥४॥ देवदाणवगंधवा, जक्खरक्खसकिन्नरा। भयारिं नमसंति, दुकरं जे करंतितं (ते)॥५॥ एस धम्मे धुवे नियए, सासए जिणदेसिए। सिद्धा सिझंति चाणेणं, सिज्झिस्संति वहाऽवरे ॥५२६॥ त्ति मि. भचेरसमाहिठाणऽज्झयण १६॥ जे केइ उ (जे के इमे) पवइए नियंठे, धर्म सुणित्ता विणओववन्ने । सुदाइहं लहिउँ बोहिलाभ, विहरिज पच्छा य जहामुहं तु ॥७॥ सिजा दढा पाउरणं मि अस्थि, उप्पजई भुत्तु सहेब पाउँ । जाणामि जं वद आउसुत्ति !, किं नाम काहामि सुएण? भंते ! ॥८॥ जे केई उ पाइए, निदासीले पगामसो। भुचा पिचा सुहं सुअई, पावसमणित्ति बुचई ॥९॥आयरियउवज्झाएहि, सुजं विणर्य च गाहिए। ते चेत्र सिंसई पाले. पावसमणित्ति दुबई ॥५३०॥ आयरियउव. ज्झायाणं, सम्मं नो पडितप्पई। अप्पडिपूअए थडे, पावसमणित्ति बुचई ॥१॥ संमहमाणे पाणाणि, चीयाणि हरियाणि य। असंजए संजय मन्त्रमाणे, पावसमणित्ति वुचई ॥२॥ संथारं फलग पीढं, निसिज पायकंबलं । अप्पमजियमारहई, पावसमणित्ति वुच्चाई ॥३॥ दवदवस्स चरई, पमते अ अभिक्खणं। उधणे य चंडे य, पारसमणित्ति बुच्चई ॥४॥ पडिलेहेइ पमत्तो, अक्उज्झइ पायर्कचलं। पडिलेहाअणाउत्ते, पावसमणित्ति वुच्चई ॥५॥ पडिलेहेइ पमत्ते, से किंचि हु निसामिआ। गुरुं परिभाषए निच्च, पावसमणित्ति वुच्चई ॥६॥ बहुमाई पमुहरी, थदे लुदे अणिग्गहे। असंविभागी अचियत्ते, पावसमणित्ति वुच्चई ॥ ७॥ विवायं च उदीरेइ, अधम्मे अत्तपण्हहा। बुग्गहे कलहे रत्ते, पावसमणिनि वुच्चई ॥८॥ अथिरासणे कुकुईए, जत्थ तत्थ निसीअई। आसणमि अणाउत्ते, पावसमणित्ति वुच्चई ॥९॥ ससरक्खपाओ सुअई, सिजन पडिलेहइ। संधारए अणाउत्तो, पावसमणित्ति वुच्चई ॥५४०॥ दुखदहीविगईओ, आहारह अभिक्खणं । अरए य तवोकम्मे, पावसमणित्ति वुचई ॥१॥ अत्यंतमि य सूरंमि, आहारेइ अभिक्खणं। चोइओ पडिचोएइ. पावसमणिति पुचई ॥२॥ आयरियपरिचाई, परपासंडसेवए। गाणंगणिए दुम्भूए, पावसमणिनि वुच्चई ॥३॥ सयं गेहं परिच्चज, परमेहसि वावरे (ववहरे)। निमित्तेण य ववहरई, पावसमणित्ति वुच्चई ॥४॥ संनाइपिंड जेमेइ, निच्छई सामुदाणियं। गिहिनिसिज च वाहेइ. पावसमणित्ति बुचई ॥५॥ एयारिसे पंच कुसीलसंवुडे, रूर्वधरे मुणिपवराण हिडिमे। अयंसि लोए विसमे व गरहिए, न से इहं नेव परत्थलोए॥६॥ जे बज एए उ सदा उ दोसे, से सुत्रए होइ मुणीण मज्झे। अयंसि लोए अमयं व पूइए, आराहए दुहओ लोगमिणं ॥५४७॥ ति पेमि, पावसमणिजऽज्झयण १७॥ कपिले नयरे राया, उदिनचलवाहणे । नामेणं संजओ नाम, मिग उवनिम्गए ॥८॥ हयाणीए गयाणीए, रहाणीए तहेव या पायताणीए महया, सबओ । उज्जाणे, अणगारे तबोधणे। सज्झायझाणजत्तो, धम्मज्झाणं लियाय ॥१॥ अफोरमंडवंमी. झायर्ड झवियासवे। तस्सागए मिए पासं, बहेद से नराहिवे ॥२॥ अह आसगओ राया, खिप्पमागम्म सो तहिं। हए मिए उ पासित्ता, अणगारं तत्थ पासई ॥३॥ अह राया तत्थ संभंतो, अणगारो मणाऽऽहओ। मए उ मंदपुण्णेणं, रसगिद्धेण घंतुणा ॥ ४॥ आसं विसजइताणं, अणगारस्स सो निवो। विणएणं वंदई पाए, भगवं ! इत्य मे खमे ॥५॥ अह मोणेण सो भगवं, अणगारो झाणमस्सिओ। रायाण न पडिमतेइ नओ राया भयदुओ॥६॥ संजओ अहमस्सीति, भगवं ! वाहराहि मे। कुदे तेएण अणगारे, दहिजा नरकोडिओ ॥ ७॥ अभओ पत्थिवा! तुझं, अभयदाया भवाहि य । अणिचे जीवलोगमि. किं हिंसाए पसजसि ? ॥८॥ जया(हा) सवं परिचज, गंतवमवसस्स ने। अणिच्चे जीवलोगंमि, किरजंमि पसजसि? ॥९॥ जीवियं चेव रुवं च, विजुसंपायचंचलं। जत्थ तं मुज्झसी राय!, पिच्चत्वं नावचुज्झसी ॥५६०॥ दाराणि य सुया चेव, मित्ता य नह पंधवा। जीवंतमणुजीवंति, मयं नाणुवयंनि य॥१॥नीहरंति मयं पुत्ता, पियरं परमक्खिया। पियरो य तहा पुत्ते, बंधू रायं ! तवं चरे ॥२॥ तओ तेणऽजिए दवे, दारे य परिरक्खिए। कीलनऽन्ने नरा रायं !, हट्टतुट्ठमलंकिया ॥३॥ तेणावि जं कयं कम्म, मुहं वा जइबा दुई। कम्मुणा तेण संजुत्तो, गच्छइ उ पर भवं ॥४॥ सोऊण तस्स सो धम्म, अणगारस्स अंतिए। मया संवेगनिश्वेयं, समावनो नराहिवो ॥५॥ संजओ चइउं रज, निक्खतो जिणसासणे। गहभालिरस भगवओ, अणगारस्स अंनिए ॥६॥ चिच्चा रहूं पाइओ, सत्तिओ परिभासई। जहा ते दीसई रूवं. पसन्नं ते तहा मणो ॥७॥ किनामे किंगुत्ते, कस्सट्टाएव माहणे ?। कहं पटियरसी चुढे ?, कहं विणीयनि बुञ्चसि ? ॥८॥ संजओ नाम नामेणं, नहा गुनेण गोयमो। गहभाली ममायरिया, विजाचरणपारगा॥९॥ किरियं अकिरिअं विणयं, अन्नाणं च महामुणी:। एएहिं चउहि ठाणेहि. मेअन्ने किं पभासई ? ॥५७०॥ इइ पाउकरे बुद्धे, नायए परिनिघुडे। विजाचरणसंपन्ने, सच्चे RI सबपरकमे ॥१॥ पडति नरए घार, जेनरा पावकारिणो। दिसंच गई गच्छति, चरित्ता धम्ममारियं ॥२॥ मायाबुइयमेयं तु, मुसा भासा निरस्थिया। संजममाणोऽवि अहं. यसामि इरियामि य ॥३॥ सोने दिही अणारिया। विजमाणे परे लोए, सम्मं जाणामि अप्पगं ॥४॥ अहमासी महापाणे, जुइमं वरिसस ओचमे। जा सा पाली महापाली, दिशा परिससओवमा ॥५॥ से चुए भलोगाओं, माणुस भयमागए। अप्पणो य परेसिं च, आउं जाणे जहा तहा ॥६॥ नाणा रुदं च छंदं च. परिवजिज संजओ। अणट्ठा जे य सवत्था. इइ विजामणुसंचरे ॥ ७॥ पडिकमामि पसिणाणं, परमतेहि या पुणो । अहो उदिओ अहोराय, इह विजा तवं चरे ॥८॥ जंच में पुच्छसी काले, सम्म सुद्धेण (बुदेण) चेयसा। ताई पाउकरे युद्धे. तं नाणं जिणसासणे ॥९॥ किरियं चरोअए धीरो. अकिरियं परिवजए। दिट्ठीए दिविसंपनो, धम्मं चरस बरं ॥५८०॥ एवं पुण्ण(ण)पर्य सुचा, अन्धधम्मोवसोहियं। भरहोऽपि भारहं वासं, चिया कामाई पाए॥१॥ सगरोऽवि सागरतं. भरहवासं नराहियो। इस्सरियं केवलं हिच्चा, दयाए परिनिबुडे ॥२॥ चाइना भारह वासं, पायही महिड्दिनो। परजमम्भवगओ, मघवं नाम महाजसो ॥३॥ सर्णकुमारो मणुस्सिदो, चकवट्ठी महिदिओ। पुतं रजे ठवित्ताणं, सोऽपि राया तवं चरेसाचइत्ता भारहं वासं. चकवट्टी महिदिओ।संती संनिकरो टोए. पत्तो गइमणुनरे ।।५॥ इखागरायवसहो. कुंथ नाम नरेसरो। (३२०) १२८० उत्तराध्ययनानि मूलसूत्रं, अन्य -१८ मुनि दीपरत्नसागर Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विक्खायकित्ती थिइम(भययं), मुक्खं गओ अणु(पत्तो गइमणु)त्तरं ॥६॥ सागरंत जहित्ताणं, भरहवासं नरे(नरवरी)सरो। अरोय अस्य(सं)पत्तो, पत्तो गइमणुत्तरं ॥७॥ चइत्ता भारहं वासं, चकवट्ठी महिड्ढिओ। चिचा य उत्तमे भोए, महापउमो दमं चरे॥८॥ एगच्छत्तं पसाहित्ता, महिं माणनिसूरणो। हरिसेणो मणुस्सिदो, पत्तो गइमणुत्तरं ॥९॥ अन्निओ रायसहस्सेहि, सुपरिचाई दमं चरे। जयनामो जिणक्खाय(ओ), पत्तो गइमणुनरं ॥५९०॥ दसण्णरजं मुइयं, चइत्ताणं मुणी चरे । दसण्णभदो निक्खतो, सक्खं सक्केण चोइओ॥१॥ नमी नमेइ अप्पाणं, सक्खं सकेण चोइओ। जहित्ता रज्ज(चइऊण देह) बइदेही, सामन्ने पजुवडिओ । (१ पक्षिप्ता)। करकंडू कलिंगाणं (गेसु), पंचालाण(लेसु) य दुम्मुहो । णमी राया विदेहाणं(हेसु), गंधाराण(रेसु) य नगई ॥२॥ एए नरिंदवसभा, निक्खंता जिणसासणे । पुत्ते रजे ठवित्ताणं, सामन्ने फजुवडिआ॥३॥ सोवीररायवसभो, चइताण मुणी चरे। उद्दायणो पत्रइओ, पत्तो गइमणुत्तरं ॥४॥ तहेव कासिरायावि, सेओ सच्चपरकमो। कामभोगे परिचज्ज, पहणे कम्ममहावर्ण ॥५॥ तहेव विजओ राया, अणट्टा (आणट्ठा) कित्तिपत्रए। रज्जं तु गुणसमिद्ध. पयहित्तु महायसो ॥६॥ नहेबुग्गं नवं किच्चा, अव(स)क्खित्तेण चेयसा । महाबलो रायरिसी, अद्दा (आदा) य सिरसा (सो) सिरं (रि) ॥७॥ कहं धीरो अहेऊहिं, उम्मत्तोब महिं चरे?। एए विसेसमादाय, सूरा दढपरकमा ॥८॥ अच्र्चतनियाणक्खमा, एसा (सबा) मे भासिया वई । अतरिंसु तरंतेगे (पुणे), तरिस्संति अणागया ॥९॥ कहं धीरे अहेऊहिं. अहायं परियाबसे। सबसंगविणिम्मुक्को, सिद्धे भवद नीरए॥६००॥ ति बेमि, संजइज्ज १८॥ सुग्गीवे नयरे रम्मे, काणणुजाणसाहिए। राया बलभदुत्ति, मिया तस्सऽग्गमाहिसी ॥१॥ तेसिं पुत्ते बलसिरी, मियापुत्तत्ति विस्सुए। अम्मापिऊहिं दइए, जुवराया दमीसरे ॥२॥ नंदणे सो उ पासाए, कीलए सह इस्थिहिं । देवो दोगुंदगो चेव, निच्चं मुइयमाणसो ॥३॥ मणिरयणकुट्टिमतले, पासायालोअणे ठिओ। आलोएड नगरस्स, चउक्कतियचच्चरे ॥४॥ अह तत्य अइच्छंतं, पासई समणसंजय। तवनियमसंजमधर, सीलद गुणआगरं ॥५॥तं पेहई मियापुत्ते, दिट्टीए अणिमि साइ 3। कहिं मन्नेरिसं रूवं, दिट्टपुत्र मए पुरा ? ॥६॥ साहुस्स दरिसणे तस्स, अज्झवसाणंमि सोहणे। मोहं गयस्स संतस्स, जाईसरणं समुप्पन्नं ॥७॥ देवलोगचुओ संतो, माणुसं भवमागओ। सन्निनाणे समुष्पन्ने, जाई सरइ 7- पुराणयं ॥२०॥ जाईसरणे समुप्पण्णे, मियापुत्ते महिडिढए। सरड पोराणिजाई. सामण्णं च पराकयं ॥८॥ इढए। सरह पौराणिों जाई, सामण्णं च पुराकयं ॥८॥ विसएसु अरनंतो, रज्जतो संजमंमिय। अम्मापियरं उवागम्म, इमं वयणमन्चवी ॥९॥ मुआणि मे पंच महावयाणि, नरएमु दुक्खं च तिरिक्खजोणिसु। निविणकामो मि महण्णवाओ, अणुजाणह पञ्चइस्सामि अम्मो! ॥६१०॥ अम्मताय ! मए भोगा, भुत्ता विसफलोचमा। पच्छा कडुयविवागा, अणुधंधदुहावहा ॥१॥ इमं सरीरं अणिचं, असुई असुइसंभवं । असासयावासमिणं, दुक्खकेसाण भायणं ॥२॥ असासए सरीरंमि, रई नोबलभामऽहं । पच्छा पुरा व चइयवे, फेणचुन्चुयसंनिभे॥३॥माणुस्सत्ते असारंमि, वाहीरोगाण आलए। जरामरणघत्यंमि, खणंपि न रमामऽहं | ॥४॥ जम्म दुक्खं जरा दुक्ख, रोगा य भरणाणि य। अहो दुक्खो हु संसारो, जत्थ कीसंति जंतुणो ॥५॥ खित्तं वत्थु हिरण्णं च, पुत्तदारं च बंधवा। चइत्ताण इमं देहं. गंतवमवसस्स मे ॥६॥ जह किंपागफन्लाणं, परिणामो न सुदरो। एवं भुत्ताण भोगाणं, परिणामो न सुंदरो॥७॥ अदाणं जो महंतं तु, अपाहेजो पञ्चज(ढ)ई। गच्छंतो से दुही होइ, छुहातहाइपीडिओ ॥८॥ एवं धम्म अकाऊणं, जो गच्छइ परं भव । गच्छंतो से दुही होई. वाहिरोगेहि पीडिओ ॥५॥ अद्धाणं जो महंतं तु, सपाहेजो पवजई । गच्छंतो से सुही होइ, छुहातण्हाविवजिओ ॥६२०॥ एवं धम्मपि काऊणं, जो गच्छइ परं भवं । गच्छंते से सुही होइ, अप्पकम्मे अवेयणे ॥१॥ जहा गेहे पलिनंमि, नस्स गेहम्स जो पह। सारभंडाणि नीणेद, असारं अवउज्झइ ॥२॥ एवं लोए पलित्तंमि, जराए मरणेण य। अप्पाणं तारइस्सामि, तुन्भेहि अणुमनिओ ॥३॥ तं चिंतऽम्मापियरो, सामन्नं पुन! दुल्चरं । गुणाणं तु सहम्साणि, धारेयवाई भिक्खुणा ॥४॥ समया सत्रभूएसु, सन्तुमित्तेसु वा जगे। पाणाइवायविरई, जाक्जीवाय दुकरं ॥५॥ निच्चकालऽप्पमत्तेणं, मुसावायविवजणं। भासियवं हियं सच्चं, निच्चाउनेण दुकर ॥ ६॥ दंतसोहणमाइस्स, अदत्तम्स विवजणं। अणवजेसणिजस्स. गिण्हणा अवि दुकरं ॥ ७॥ विरई अचंभचेरस्स, कामभोगरसन्नुणा। उम्गं महत्वयं चंभ, धारेयचं सुदुकरं ॥८॥धणधन्नपेसवग्गेसु, परिग्गहविवजणं। सवारंभपरिचागो, निम्ममनं सुदुकरं ॥९॥ चरबिहेऽपि आहारे. राईभोयणवजणा। संनिहीसंचओ चेव, बजेयत्रो सुदुकरं ॥६३०॥ छुहा तण्हा य सीउण्हं, दसमसगा य वेयणा । अक्कोसा दुक्खसिज्जा य, तणफासा जालमेव य ॥१॥ तारणा तज्जणा चेव, वहबंधपरीसहा। दुक्खं भिक्खायरिया, जायणा य अलाभया ॥२॥ काबोया जा इमा वित्ती, केसलोओ य दारुणो। दुक्खं बंभवयं घोरं, धारेउं अमहप्पणो ॥३॥ सुहोइओ तुम पुत्ता !, सुकुमालो सुमजिओ। न हुसी पभू तुमं पुना!, सामन्त्रमणुपाटिया | ॥४॥ जावजीवमविस्सामो. गुणाणं तु महन्भरो। गरुओ लोहमारव, जो पुत्ता ! होइ दुघहो ॥५॥ आगासे गंगसोउन, पडिसोउन दुत्तरो। बाहाहिं सागरो चेव, तरियो य गुणोयही॥ ६॥ वालुयाककले चेव, निरम्साए उ संजमे। असिधारागमणं चेव, दुकरं चरिउं तवो ॥७॥ अहीवेगंतदिट्टीए, चरिते पुत्त ! दुचरे। जवा लोहमया चेव, चावेयवा सुदुक्करं ॥८॥ जहा अग्गिसिहा दित्ता, पाउं होइ सुदुकरं। तह दुकरं करेउं जे, तारुण्णे समणनणं ॥५॥ जहा दुक्खं भरेउं जे. होइ वायस्स कुत्थलो। तहा दुक्खं करेउं जे, कीवेणं समणत्तणं ॥ ६४०॥ जहा तुलाए तोलेउं, दुक्करं मंदरो गिरी। तहा णिहुअणीसंके, दुकरं समणनणं ॥१॥ जहा भुयाहिं नरिउं, दुकरं रयणायरो। नहा अणुवसं. तेणं, दुकरं दमसायरो ॥२॥ भुंज माणुस्सए भोए, पंचलक्खणए तुम। भुत्तभोगी तओ जाया ! पच्छा धम्मं चरिस्ससि ॥३॥ सो (तो)वेअम्मापियरे. एवमेयं जहाफुडं । इहलोगे निप्पिवासस्स, नस्थि किंचिवि दुकरं ॥४॥ सारीरमाणसा चेव. वेयणा उ अणंतसो। मए सोढाओ(ई) भीमाओ(इं), असइं दुक्खभयाणि य ॥५॥ जरामरणकंतारे, चाउरते भयागरे। मया सोढाणि भीमाई, जम्माई मरणाणि य॥६॥ जहा इहं अगणी उण्हो, इनोऽणंतगुणो नहिं। नरएसु वेयणा उण्हा. अस्साया वेइया मए॥७॥ जहा इह इमं सीयं, इत्तोऽर्णतगुणं(णा) तहिं। नरएसु वेयणा सीया, अस्साया बेइया मए ॥८॥ कंदतो कंदुकुंभीसु, उद्धपाओ अहोसिरो। ड्यासणे जलंमि, पापुचो अणेनसो १२८१ उनराध्ययनानि मूलमूत्र, Murarii-28 मुनि दीपरत्नसागर | Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥९॥ महादवम्गिसंकासे, मरुमि वइस्चालुए। कालंचवालुआए उ, दइदपुश्वी अणंतसो ॥ ६५०॥ रसंतो कंदुकुंभीसु, उद्धं बद्धो अबंधवो । करवत्तकरकयाईहिं. छिन्नपुवो अणंतसो ॥ १॥ अइतिक्सकंटगाइण्णे. तुंगे सिंचलिपायवे। खेवियं पासबदेणं, कड्ढोकड्दाहिं दुकरं ॥२॥ महाजंतेसु उच्छ्वा , आरसंतो सुभेरवं। पीलिओ मि सकम्मेहि, पावकम्मो अर्णतसो ॥३॥ कुवंतो कोलमुणएहि. सामेहिं सबलेहि य। पाडिओ फालिओ छिनो. विष्फुरंतो अणेगसो ॥४॥ असी(अरसा)हिं अयसिवण्णेहि, भडीहिं पट्टिसेहिय। छिनो भिन्नो विभिन्नो य, उववनो(उइण्णो) पावकम्मुणा ॥५॥ अवसो लोहरहे जुत्तो, जलंते(त) समिलाजुए। चोइओ तुत्तजुत्तेहि.रुज्झो वा जह पाडिओ ॥६॥ हुआसणे जलंतंमि, चिआसु महिसोविव । ददो पको य अवसो, पावकम्मेहिं पाविओ ॥७॥ बला संडासतुंडेहिं, लोहतुंडेहिं पक्खिहिं। बिलुतो बिलवंतोऽहं. ढंकगिदेहिंऽणतसो ॥८॥ तण्हाकिलंतो धावतो. पत्तो देयरणिं नई। जलं पाहंति चिंततो, खुरधाराहिं विवाइओ॥९॥ उण्हाभितत्तो संपत्तो, असिपत्तं महावणं। असिपत्तेहिं पडतेहिं, छिन्नपुचो अणेगसो ॥६६०॥ मुग्गरेहिं मुसुंढीहिं. सूलेहिं मुसलेहि य। गयासंभग्गगत्तेहि. पत्नं दुक्खं अणंतसो ॥१॥ खुरेहि तिक्खधाराहि, छुरियाहिं कप्पणीहि य। कपिओ फालिओ छिन्नो, उकित्तोय अणेगसो ॥२॥ पासेहिं कूडजालेहि, मिओ वा अवसो अहं । वा(ग)हिओ बदरुद्धोय. विवसो चेव विवाइओ ॥३॥ गलेहि मगरजालेहि. वच्छोवा अवसो अहं । उडिओ फालिओ गहिओ, मारिओ य अर्णतसो॥४॥ विदसएहिं जालेहि, लिप्पाहिं सउणोविव । गहिओ लग्गो य बहो य, मारिओ य अर्णतसो ॥५॥ कुहाडपरसुमाईहिं. वड्ढईहिं दुमोविव । कुट्टिओ फालिओ छिन्नो, नच्छिओ य अणंतसो ॥६॥ चवेडमुढिमाईहिं, कुमारेहिं अयंपिव । ताडिओ कुट्टिओ भिन्नो, चुषिणओ य अर्णतसो ॥७॥ तत्ताई तंबलोहाई, तउआई सीसगाणि य। पाइओ कलकलंताई, आरसंतो सुभेखे ॥८॥ तुह प्पियाई मंसाई. खंडाई सुङगाणि याखाविओ मि समसाई, अग्गिवण्णाई णेगसो ॥९॥ तुहं पिया सुरा सीहू, मेरओ य महूणि य। पजिओ मि जलंतीओ, वसाओ हिराणि य॥६७०॥ निच भीएण नत्थेणं, दुहिएण वहिए | परमा दहसंबद्धा, वेयणा बेइया मए॥१॥ तिवचंडप्पगाढाओ, घोराओ अइदुस्सहा। महम्भयाओ (महालयाओ) भीमाओ, नरएK वेइया मए ॥२॥ जारिसा माणुसे लोए. ताया! दीसंति वेयणा । इत्तो अणंतगणिया, नरएम दुक्खयणा ॥३॥ सवभवेसु अस्साया, वेयणा येइया मए। निमिसंतरमित्तंपि, जं साया नस्थि वेयणा ॥४॥ तं चिंतऽम्मापियरो, छंदणं पुत्त! पचया नवरं पुण सामण्णे, दुक्खं निप्पढिकम्मया ॥५॥सो चिंतऽम्मापियरो!, एवमेयं जहाफुडं। परिकम्मं को कुणई, अरने मिगपक्विर्ण ? ॥६॥ एगम्भूओ अरने वा, जहा उ चरई मिगो। एवं धम्म चरिस्सामि, संजमेण तवेण य॥७॥ जया मिगस्स आर्यको, महारणमि जायई। अच्छंतं रुक्समूलंमि, कोण ताहे चिगिच्छई॥८॥को वा से ओसहं देइ, को वा से पुच्छई सुहं । को से भत्तं व पाणं वा, आहरितु पणामई ? ॥९॥ जया य से सुही होइ. तया गच्छइ गोअरं। भत्तपाणस्स अट्टाए, वाराणि सराणि य ॥६८०॥ खाइना पाणियं पाउं, वाढरेहिं सरेहि य। मिगचारियं चरित्ताणं, गच्छई मिगचारियं ॥१॥ एवं समुट्ठिए भिक्खू, एवमेव अणेगए (अणिएयणे)। मिगचारियं चरिताणं, उड्दै पकमई दिसं ॥२॥ जहा मिए एग अणेगचारी, अणेगवासे घुवगोअरे य। एवं मुणी गोयरियं पबिढे, नो हीलए नोविय खिसइज्जा ॥३॥ मिगचारियं चरिस्सामि, एवं पुत्ता! जहासुह। अम्मापिऊहिंऽणुष्णाओ, जहाइ उबहि तओ॥४॥ मिगचारियं चरिस्सामो. सवदुक्सविमुक्खणिं । तुम्भेहि अम्ब!ऽणुण्णाओ, गच्छ पुत्त ! जहासह ॥५॥ एवं सी अम्मापियर, अणुमाणित्ताण बहुविह। ममत्तं जिंदई ताहे, महानागुष कंचुर्य ॥६॥ इदी वितं च मिले य, पुत्तदारं च नायओ। रेणुयं व पडेलम्ग, निडुणिनाण निग्गओ ॥७॥ पंचमहरयजुत्तो पंचसमिओ तिगुत्तिगुत्तो य। सम्भितरचाहिरिए नवोकम्मंमि उजुओ ॥८॥ निम्ममो निरहंकारो, निस्संगो चत्तगारवो। समो य सबभूएसु, तसेसु थावरेसु य॥९॥ लाभालाभे सुहे दुक्खे, जीविए मरणे नहा। समों निंदापसंसासु, नहा माणापमाणओ ॥६९०॥ गारवेसु कसाएसु, दंडसडभएसुय। नियत्तो हाससोगाओ, अनियाणो अबंधणो ॥१॥ अणिस्सिओ इहं लोए, परलोए अणिस्सिओ। वासीचंदणकप्पो य, असणे - अणसणे नहा ॥२॥ अप्पसत्यहि दारहि, सबओ पिहियासयो। अज्झप्पहाणजोगेहि, पसत्थदमसासणो ॥३॥ एवं नाणण चर पहियासयो। अझप्पझाणजोगेहिं. पसत्थदमसासणो॥३॥ एवं नाणेण चरणेण, दंसणेण तवेण य। भावणाहिं विसुबाहि. सम्मं भाविन अप्पयं ॥४॥बहयाणि उवासाणि, सामन्नमणुपालिया। मासिएण उ भत्तेणं, सिद्धिं पत्तो अणुत्तरं ॥५॥ एवं करति संबुद्धा (संपन्ना), पंडिया पवियक्खणा। विणियटुंति भोगेसु, मियापुत्ते जहामिसी ॥६॥ महप्पभावस्स महाजमस्स, मियाइपुनस्स निसम्म भा. सियं । नवप्पहाणं चरियं च उत्तम, गइप्पहाणं च तिलोअविस्मुतं ॥७॥ वियाणिया दुक्खचिवड्ढणं धणं, ममत्तबंधं च महाभयावह। सुहावहं धम्मधुरं अणुनरं, धारेह निमाणगुणावहं महं ॥९८॥ मिगापुत्तिज ११॥ सिद्धाणं नमो किचा, संजयाणं च भावओ। अत्यधम्मगई तच्चं, अणुसिद्धिं सुणेह मे ॥९॥ पभूयरयणो राया, सेणिओ मगहाहियो। विहारजत्तं निजाओ, मंडिकुञ्छिसि चेहए ॥७००॥ नाणादुमलयाइसं. नाणापक्खिनिसेवियं। नाणाकुसुमसंकणं, उजाणं नंदगोवमं ॥१॥ तत्थ सो पासए साहुँ, संजयं सुसमाहियं। निसन्नं रुक्तमूलंमि, मुकुमालं सुहोइयं ॥२॥ तस्स रूवं तु पासित्ता, राइणो संमि संजए। अञ्चंतपरमो आसी, अउलो रूवविम्हओ॥३॥ अहो बन्नो अहो रूवं, अहो अजस्स सोमया। अहो खंती अहो मुत्ती, अहो भोगे असंगया ॥४॥ तस्स पाए उ बंदित्ता, काऊण य पयाहिणं । नाइदूरमणासन्ने, पंजली परिपुच्छई ॥५॥ तरुणोऽसि अजो! पत्रइओ, भोगकालंमि संजया!। उपट्टिओऽसि सामन्ने. एअमट्टै सुणेमु ता ॥६॥ अणाहो मि महाराय !, नाहो मज्झन विजई। अणुकंपयं सुहिं वावि, कंची नाहि तु(मिस) मेमऽहं ॥ ७॥ तो सो पहसिओ राया, सेणिो मगहाहियो। एवं ने इढिमतस्स, कहं नाहो न विनई? ॥८॥ होमि नाहो भयंताणं, भोगे मुंजाहि संजया!। भित्तनाईपरिखुडो, माणुस्सं खु सुदुलहं ॥९॥ अप्पणावि अणाहोऽसि, सेणिया! मगहाहिवा। अप्पणा अणाहो संतो, कह (म्स)नाहो भविम्ससि? ॥७१०॥ एवं वुत्तो नरिंदो सो, सुसंभंतो सुविम्हिओ। वयणं अस्सुअपुर, साहुणा विम्हयं निओ ॥१॥ अस्ला हत्थी मणुस्सा मे, पुरं अंतेउरं च मे। भुंजामि माणुसे भोए, आणा इस्सरियं च मे ॥२॥ एरिसे संपयम्ग( यायं )मि, - १२८२ उत्तराध्ययनानि मूलमूत्रं, असा -२० मुनि दीपरनसागर Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ TONK सबकामसमप्पिओ। कहं अणाहो भवई ?, मा हुभंते ! (भंते !मा हु) मुसं वए ॥३॥ न तुम जाणसि(णे अ) नाहस्स, अत्थं पुच्छ(त्य)च पस्थिवा!। जहा अणाहो भवई(सि), सणाहो वा नराहिव! ॥४॥ सुणेहि मे महारायं!, अव्वक्खित्तेण चेयसा। जहा अणाहो भवई, जहा मेज पवत्तियं ॥५॥ कोसंघीनाम नयरी, पुराणपुरभेयिणी (नगराण पुडभेयणी)। तत्थ आसी पिया मझ, पभूयधणसंचओ ॥६॥ पढमे वए महारार्य!, अउला मे अच्छिवेयणा । अहुत्या तिउलो दाहो, सवगत्तेसु पस्थिवा! ॥ ७॥ सत्थं जहा परमतिक्वं, सरीरविवरंतरे। पविसिज अरी कुद्धो, एवं मे अच्छिवेयणा ॥८॥ तिनं मे अंतरिच्छंच, उत्तिमंगं च पीडई। इंदासणिसमा घोरा, वेयणा परमदारुणा ॥९॥ उव. ट्टिया मे आयरिया, विज्जामंतचिगिच्छगा। अबीआ सस्थकुसला (नानासत्यकुसला), मंतमूलविसारया ॥७२०॥ ते मे तिगिच्छ कुवंति, चाउप्पायं जहाहियं। न य मे दुक्खा विमोयंति, एसा मज्झ अणाया॥१॥पिया मे सबसारंपि, दिजाहि मम कारणा। न य दुक्खा विमोयेति, एसा मा अणाहया ॥२॥ माया (वि) मे महाराय !, पुत्तसोगदुहदिया। न य दुक्खा विमोयेति, एसा मज्झ अणाया ॥३॥ भायरा मे महाराय !, सगा जिद्रुकणिट्ठगा। न य दुक्खा विमोयंति, एसा मज्झ अणाहया ॥४॥ भइणीओ मे महाराय !, सगा जिट्ठकणिट्ठगा। न य दुक्खा विमोयंति, एसा मज्झ अणाया ॥५॥ भारिया मे महाराय!, अणुरत्तमणुपया। अंसुपुनेहिं नयणेहि, उरं मे परिसिंचई ॥६॥ अर्ज पाणं च पहाणं च (तारिस रोगमावण्णे), गंधमल्लविलेवर्ण। मए नायमनायं वा,सावाला नोव जई॥७॥ खणंपि मे महाराय!, पासाओ मल्लविलवणं। मए नायमनायं वा, सापाला नाव जई॥७॥ खणांप में महाराय!, पासाओविन फिट्टई। न य दुक्खा विमोएड. एसा मा अणाहया ॥८॥ तओऽहं एवमासु, दुक्खमाहु पुणो पुणो। बेयणा अणुहविउं जे, संसारंमि अणंतए ॥९॥ सयं च जइ मुंचिज्जा, वेयणा विउला इओ। खंतो दंतो निरारंभो, पाइए अणगारियं ।। ७३०॥ एवं व चिंतदत्ताणं, पासुत्तो मि नराहिवा!। परियत्ततीइ राईए, वेयणा मे खयं गया ॥१॥ तओ का पभायंमि, आउच्छिताण पंधवे। खंतो दंतो निरारंभो, पवइओ अणगारियं ॥२॥ ततोऽहं नाहो जाओ, अप्पणो अ परस्स य। सधेसि चेव भूयाणं, तसाणं थावराण य ॥३॥ अप्पा नई वेयरणी, अप्पा मे कूडसामली। अप्पा कामदुहा घेणू, अप्पा मे नंदणं वर्ण ॥४॥ अप्पा कत्ता विकत्ता य, दुहाण य सुहाण य। अप्पा मित्तममित्तं च, दुप्पट्ठियमुपट्टिओ ॥५॥ इमा हु अन्नावि अणाहया निवा !, तामेगचित्तो निहुओ मुणेहि मे। नियंठधम्म लहियाणवी जहा, सीयंति एगे बहुकायरा नरा॥६॥ जे पवइत्ताण महब्बयाई, सम्म (च)नो फासयई पमाया। अणिग्गहप्पा य रसेसु गिडे, न मूलओ जिंदा बंधणं से ॥७॥ आउनया जस्स य नस्थि कावि, इरियाइ भासाइ तहेसणाए। आयाणनिक्खेबदुगुंछणाए, न वीरजायं अणुजाइ मग ॥८॥ चिरंपि से मुंडई भवित्ता, अथिरखए तवनियमेहिं भट्टे। चिरपि अप्पाण किलेसइत्ता, न पारए होइ हु संपराए॥९॥ पुढेव(पोडार) मुट्टी जह से असारे, अयंतिते कूडकहावणे य । राडामणी बेचलियप्पगासे, अमहग्घए होइ हु जाणएस ॥७४०॥ कुसीललिंग इह धारइत्ता, इसिज्झयं जीविय वूहइत्ता। असंजए संजय लप्प(लाभ)माणे, विणिघायमागच्छइ से चिरपि ॥१॥ विसं तु पीयं जह कालकूड, हणाइ सत्यं जह कुम्गही। एमेव धम्मो विसओववो, हणाइ वेयाल इवाविवनो(पंधणो)॥२॥जो लक्वर्ण सुविण पउंजमाणो, निमित्तकोऊहलसंपगाढे। कुहेडविजासबदारजीवी, न गच्छई सरणं तंमि काले ॥३॥ तमंतमेणेव उसे असीले, सया दुही विपरियासुवेइ । संघावई नरगतिरिक्खजोणी, मोणं विराहित्तु असाहुरूवे ॥४॥ उद्देसियं कीयगडं नियागं, न मुबई किंचि अणेसणिज । अग्गीविवा सबभक्खी भवित्ता, इओ चुओ गच्छइ कटु पावं ॥५॥न तं अरी कंठ छित्ता करेइ, जं से करे अप्पणिया दुरप्पा। से नाहिई मञ्चमुहं तु पत्ते, पच्छाणुतावेण याविहणा ॥६॥ निरत्थया नग्गरुई उ तस्स, जे उत्तमट्टे विषयासमेइ। इमेवि से नस्थि परेवि लोए, दुहओऽवि से झिज्झइ तत्थ लोए ॥७॥ एमेवऽहाछंदकुसीलरूवे, मगं विराहित्तु जिणुत्तमाण। कुरीविवा भोगरसाणुगिडा, निरहसोया परितावमेइ ॥८॥ सुचाण मेहावि मुभासियं इम, अणुसासणं नाणगुणोववेयं । मगं कुसीलाण जहाय सर्व, महानिर्यठाण वए पहेणं ॥९॥ चरित्तमायारगुणनिए तओ. अणत्तरं संजम पालियाणं। निरासवे संखवियाण कम्म. उवेड ठाणं विलउत्तम धर्व ॥७५०॥ एवम्गर्दतेऽवि महातबोधणे, महामुणी महापडणे महायसे। महानियंठिजमिण महासुर्य, से काहए महया वित्थरेणं ॥१॥ तुट्ठो य सेणिओराया, इणमुदाहु कयंजली। अणाहयं जहाभूर्य, सुतु मे उबदसियं ॥२॥ तुज्ा मुलई खुमणुस्स जम्म, लाभा सुलद्धा य तुमे महेसी!! तुम्भे सणाहा य सबंधवा य, भे ठिया मम्गि जिणुनमाणं ॥३॥ तंसि नाहो अणाहाणं, सबभूयाण संजया !। खामेमि ते महाभाग!, इच्छामि अणुसासिउं ॥४॥ पुच्छिऊण मए तुर्भ, झाणविग्यो य जंकओ। निमंतिया य भोगेहि, तं सर्व मरिसेहि मे ॥५॥ एवं धुणित्ताण से रायसीहो, अणगारसीहं परमाइ भत्तिए। सओरोहो य सपरियणो (सबंधवो य), धम्माणुरनो विमरेण चेयसा ॥६॥ ऊससियरोमकूवो, काऊण य पयाहिणं । अभिवदिऊण सिरसा, अइयाओ नराहिवो ॥७॥ इयरोऽवि गुणसमिदो तिगुत्तिगुत्तो तिदंडविरओ य। विहगइव विप्पमुक्को विहरइ वसुहं विगयमोहु ॥७५८॥ नि बेमि, महानियंठिजं २०॥ चंपाए पालिए नाम, सावए आसि वाणिए। महावीरस्स भगवओ, सीसो सो उ महप्पणो ॥९॥ निगथे पावयणे, सावए से विकोविए। पोएण ववहरते, पिहुंडं नयरमागए ॥७६०॥ पिहुंडे ववहरंतम्स, बाणिओ देह धूअरं । नं ससनं पइगिज्म, सदे. समह पथिओ॥१॥ अह पालियस्स घरणी, समुईमि पसवइ । अह दारए तहिं जाए, समुहपालित्ति नामए ॥२॥ खेमेण आगए चंप, सावए वाणिए घरं। संवड्ढई घरे तस्स, दारए से महोइए ॥३॥ बावनरीकलाओ य, सिक्खिए (जाए य) नीइकोविए। जुवणेण य अस्फु(संप)गणे, सुरूवे पियदसणे ॥४॥ तस्स रुववई भज्ज, पिया आणेइ रूविणिं । पासाए कीलए सम्मे, देवो दोगुंदगो जहा ॥५॥ अह अन्नया कयाई, पासायान्टोअणे ठिओ। वज्झमडणसोभार्ग, वझं पासइ बज्झगं ॥६॥ तं पासिऊण संविग्गो, समुहपालो इणमब्बवी। अहो असुहाण कम्माणं, निजाणं पावर्ग इमं ॥ ७॥ संबुद्धो सो तहिं भयर्व, परमं संवेगमागओ। आपुन्छऽम्मापियरो, पवए अणगारियं ॥८॥ जहिज सगंथ (तु संगं च) महाकिलेस, महंतमोहं कसिणं भयाणगं। परियायधम्म चऽभिरोअज्जा , बयाणि सीलाणि परीसहे य॥९॥ अहिंस सर्वच अनेणगं च, तनो अचंभ (अचंभ) अपरिम्गहं च। पडिवजिया पंच मह. १२८३ उत्तराध्ययनानि मूलसूत्र, सर्ग-२१ मुनि दीपरत्नसागर Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रयाणि चरिज धम्म जिणदेसियं विऊ ॥७७०॥ सवेहि भएहिं दयाणकंपी, खंतिकसमे संजयभयारी। साक्जजोगे परिवजयंतो, परिज भिक्खू सुसमाहिइंदिए ॥१॥ कालेण कालं विहरिज रहे. बलाचलं जाणिय अप्पणो य। सीहोव सहेण न संतसिज्जा, वइ जोग मुच्चा न असम्भमाहू ॥२॥ उबेहमाणो उ परिवइजा, पियमप्पियं सब तितिक्खइजा। न सब सम्बत्यऽभिरोअइजा, न यावि पूर्व गरिहं च संजए॥३॥ अणेगलंदामिह माणवेहि. जे भावो से पकरेइ भिक्स। भयभेखा नन्थ उई(क)ति भीमा, दिवा मणुस्सा अदुवा तिरिच्छा ॥४॥ परीसहा दुबिसहा अणेगे, सीयंति जत्था पहुकायरा नरा। से तत्थ पत्ते न बहिज पंडिए. संगामसीसेइव नागराया ॥५॥ सीओसिणा दंसमसगा य फासा, आर्यका विविहा फुसंति देहं । अकुकुओ(अककरे) तत्थऽहियासइजा, स्याई खबिज पुराकडाई॥६॥ पहाय रागं च तहेव दोसं. मोहं च भिक्खू सययं वियक्खणे। मेरुन वाएण अकंपमाणे. परीसहे आयगुने सहिजा ॥७॥ अणुनए नावणए महेसी, न यावि पूर्य गरिहं च संजए। से उजुभावं पडिक्ज संजए, निवाणमग्गं विरए उबेइ ॥ ८॥ अरइरइसहे पहीणसंथवे. विरए आयहिए पहाणवं। परमट्ठपएहि चिट्टई, छिन्नसोए अममे अ. किंचणे ॥९॥ विविनलयणाई भइज्ज ताई. निरोवलेवाई असंथडाईं। इसीहिं चिनाई महायसेहिं, काएण फासिज परीसहाई ॥७८०॥ सण(स)णाणनाणोवगए महेसी. अणुत्तरं चरियं धम्मसंचयं । अ(ग)णुत्तरे नाणधरे जसंसी. ओमासई सूरिए बईतरिक्खे ॥१॥ दुविहं खदेऊण य पुनपावं, निरंज(ग)णे सबओ विप्पमुके। तरिता समुई व महाभवोहं, समुद्दपाले अपुणागर्म गए ॥७८२॥ त्ति बेमि, समुद्दपालिनं २१॥ सोरियपुरंमि नयरे, आसि राया मह. ड्डिए । वमुदेवत्तिनामेणं, रायलक्खणसंजुए ॥३॥ तस्स भजा दुवे आसि, रोहिणी देवई नहा। तासि दुण्हपि दो पुत्ता, इट्टा (जे) रामकेसवा ॥४॥ सोरियपुरंमि नयरे, आसि राया महड्ढिए। समुदविजये नाम. रायलकखणसंजुए ॥५॥ नस्स भजा सिया नामं.नीसे पुत्ता महायसो। भयवं अरिद्रुनेमिति, लांगनाहे दमीसरे ॥६॥ सोऽरिटुनेमिनामोअ, लक्खणस्सरसंजुओ। अट्ठसहस्सलक्खणधरो. गोयमो कालगच्छवी॥७॥ यजरिसहसंघयणो. समचउसो झसोदरी। नस्स राईमई कनं, भज जायइ केसवो॥८॥ अहसा रायवरकन्ना, मुसीन्य चारुपेहिणी। सवलक्षणसंपना, विजसोआमणिप्पभा॥९॥ अहाह जणओ तीसे. वासुदेवं महडिटयं । इहागच्छउ कमरो. जा से | कन्नं ददामऽहं ॥ ७९० ॥ सवोसहीहिं हविओ, कयकोऊयमंगलो। दिवजुयलपरिहिओ, आभरणेहि विभूसिओ ॥१॥ मत्तं च गंधहत्यि च, वासुदेवस्स जिट्टयं। आरुढो सोहई अहियं. सिरे चूडामणी जहा ॥२॥ अह उसिएण छनेण, चामराहिय सोहिओ। दसारचक्केण तओ, साओ परिवारिए ॥३॥ चाउरंगिणीए सेणाए, रइयाए जहकर्म। तुडियार्ण सन्निनाएकं, दिवेणं गगणं फुसे ॥४॥एयारिसीइइइडीए. जुईए उत्तमाइ य। नियगाओ भवणाओ.. निजाओ वहिपुंगवो ॥५॥ अह सो नत्थ निर्जतो, दिस्स पाणे भयदुए। वाडेहिं पंजरेहिं च, संनिरुबे(बढे) सुदक्खिए॥६॥जीवियं तु संपत्ते, मंसट्ठा भक्खियबए। पासित्ता से महापण्णे, सारहिं इणमचवी॥ ७॥ कस्स अट्ठा इमे पाणा, एए सवे (चहापाणे) सुहेसिणो । वाडेहिं पंजरेहिं च, संनिरुदाय अच्छहि ?॥८॥ अहसारही तओ भणइ. एए भद्दा उ पाणिणो। तुझं विधाहकजमि, भोआयेउं बहुं जणं ॥९॥ सोऊण तस्स वयणं, घटूपाणिविणासणं। चितेइ से महापने, साणुकोसे जिए हिओ।।८००॥ जद मज्न कारणा एए. हम्मति सुबह जिया। न मे एवं तु निस्सेस, परलोंगे भविस्सई ॥१॥ सो कुंडलाण जुयलं. सुत्तगं च महायसो। आभरणाणि य सवाणि, सारहिस्सा पणामई ॥२॥ मणपरिणामो अकओ देश य जहोइयं समोइन्ना। सविड्ढीइ सपरिसा निक्खमणं नम्स काउंजे ॥३॥ देवमणुस्सपरिवुटो सिबियारयणं तओ समारुटो। निक्ख मिय बारगाओ खवयंमि ठिओ भय ॥४॥ उज्जाणे संपत्तो ओइन्नो उत्नमाउ सीयाओ। साहस्सीए परिखुडो अह निस्समइ उ चित्ताहिं ॥५॥ अह सो सुगंधगंधिए. तुरियं मउअकुंचिए। सयमेवढुंचई केसे. पंचऽट्टी(हा)हिं समाहिओ ॥६॥ वासुदेवो अणं भणई, उनकेसं जिइंदियं । इच्छियमणोरहे तुरियं, पावसू तं दमीसरा ॥७॥ नाणेणं दंसणेणं च, चरितणं तवेण या खंतीए मुनीए. बदमाणो भवाहि य ॥८॥ एवं ते रामकेसवा, दसारा य बढ़ जणा। अरिट्टनेमि दिना, अइगया चारगाउरि ॥९॥ सोऊण रायकन्ना, पाजं सा जिणस्स उ। णीहासा उ निराणंदा. सोगेण उ समुच्छिया ॥८१०॥ राईमई विचितेइ. धिरत्धुं मम जीवियं । जाऽहं तेणं परिचत्ता. सेयं पव्वदउँ मम ॥१॥ अह सा भमरसंनिभे, कुयफणगप्पसाहिए। सयमेव - लंचई केसे. घिहमनी क्वस्सिया ॥२॥ वासुदेवो अणं भणइ. लत्तकेसि जिईदियं । संसारसागरं पोरं, तर कन्ने ! लहुं लहुं ॥३॥ सा पव्वइया संती. पचायेसी नहिं बहूं। सयर्ण परियणं चेच, सीरवंता बदम्मुआ गिरि खवयंजंती. वासेणोडा उअंतरा। वासंते अंधयारमि. अंतो लयणस्स सा ठिया ॥५॥ चीयराणि पिसारंनी. जहा जायनि पासिया। रहनेमी भम्गचित्तो. पच्छा दिवोत्रतीइवि॥६॥ भीया य सा नहिं बटलं. एगते संजय तयं। चाहा काउ संगफं. वेवमाणी निसीयई॥ ७॥ अह सोऽपि रायपुनो. समुहविजयंगओ। भीयं पवेविरं दहूं. इमं वकमुदाहरे ॥८॥ रहनेमी अहं भदे!. सुरुवे! चारुभासिणी। मर्म भयाहि मुअणु!,न ने पीला भविस्सई॥९॥ एहिता भुजिमो भोगे, माणुस्सं ख मुदलहं। भुनभोगा पुणो पच्छा. जिणमगं चरिस्सिमो ॥८२०॥ दठूण रहनेमि तं. भग्गुजोयपराइयं। राईमई असंभंना. अप्पाणं संवरे ताहि ॥१॥ अहसा रायवरकन्ना, सुट्टिया नियमवए। जाई कुलंच सीरं च.स्खमाणी तयं वदे ॥२॥ जइऽसि रुपेण पेसमणो. ललिएण नलकूबरो। नहावि ते न इच्छामि, जइऽसि सक्खं पुरंदरो॥३॥ धिरस्थुन जसाकामी, जो नं जीवियकारणा । बन इच्छसि आवेडं, सेयं ने मरणं भये ॥४॥ अहं च भोगराबस्स, तं चऽसि अंधगवहिणो। मा कुले गन्धणा होमो. संजमं निहुओ चर ॥५॥ जइ नं काहिसि भावं, जा जा दिच्छसि नारित्रो। वायाविन हडो. अट्टिअप्पा भविम्ससि ॥ ६॥ गोवालो भंड(द)वान्टो वा. जहा तब णिस्सरो। एवं अणीसरो तंपि. सामन्जस्स भविस्ससि ॥ ७॥ तीसे सो वयर्ण गुथा. संजईए मुभासियं। अंकुसेण जहा नागो. धम्मे संपडिवाइओ॥८॥ मणगुत्तो वयगुनो, कायगुनो जिईदिओ। सामनं निचलं फासे, जावजीवं दढवओ॥९॥ उम्गंतवं चरित्ताणं, जाया दुनिवि केवली। सर्व कम्मं सवित्ताणं, सिद्धि पत्ता अणुत्तरं ॥४३॥ एवं करति संचुदा.पंडिया पचियाखणा । चिनियनि भोगमु.जहा सो पुरुसोनमो ॥४३१॥ नि चमि, रहने-(३२१) १२८४ उत्तराध्ययनानि मूलमूत्रं सम-२२ मुनि दीपरनसागर Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मिजं २२॥ जिणे पासिनि नामेणं, अरहा लोगपुइए । संवृद्धप्पा य सबन्नू, धम्मतित्थयरे जिणे (अरिहा लोयविस्सुए। सबन्नु सबदसी य, धम्मतित्यस्स देसए)॥२॥ तस्स लोगपईवस्स, आसि सीसे महायसे। केसी कुमारसमणे. विजाचरणपारगे ॥३॥ ओहिनाणसुए युद्धे, सीससंघसमाउले । गामाणुगामं रीयंते, सेऽचि सावस्थि(सावत्थिनयरि)मागए ॥४॥ तिंदुयं नाम उज्जाणं, तमि नयरमंडले। फासुएसिज्जसंधारे, तत्थ वासमुबागए ॥५॥ अह तेणेव कालेणं, धम्मनित्थयरे जिणे। भयवं बद्धमाणुत्ति, सबलोगमि विस्सुए ॥६॥ तस्स लोगपईवस्स, आसि सीसे महायसे । भयर्व गोयमे नाम, किजाचरणपारगे ॥७॥ वारसंगविऊ बुद्धे, सीससंघसमाउले। गामाणुगाम रीयंते. सेऽवि सावत्थिमागए ॥८॥ कुट्टगं नाम उजाणं, तंमि नयरमंडले। फासुएसिजसंथारे, तत्थ वासमुवागए॥९॥ केसीकुमारसमणे, गोयमे अमहायसे। उभओऽवि तत्य विहरिसु. अहीणा सुसमाहिया॥८४०॥ उभओ सीससंघाणं, संजयाणं तवम्सिणं । नत्थ चिंता समुष्पन्ना, गुणवंताण ताइणं ॥१॥ केरिसो वा इमो धम्मो, इमो धम्मो व केरिसो ?। आयारधम्मप्पणिही, इमा वा सा व केरिसी ? ॥२॥ चाउजामो अ जो धम्मो. जो इमो पंचसिक्खिओ। देसिओ बदमाणेणं, पासेण य महामुणी ॥३॥ अचेलगो अ जो धम्मो, जो इमो संतरुत्तरो। एगकजपवन्नाणं विसेसे किं नु कारणं? ॥४॥ अह ते तत्थ सीसाणं, विण्णाय पवियक्कियं । समागमे कयमई. उभओ केसिगोयमा ॥५॥ गोअमो पडिरूवन्नू, सीससंघसमाउले। जिट्टू कुलमविक्खतो, तिदुयं वणमागओ॥६॥ केसी कुमारसमणे, गोअमं दिस्समागयं। पडिरूवं पडिवत्ति, सम्म संपडिवज्जई ॥७॥ पलालं. फासुअंतस्थ, पंचर्भ कुसतणाणि या गोय. मम्स निसिज्जाए. खिप्पं संपणामए॥८॥ केसी कुमारसमणे, गोयमे य महायसे। उभओ निसन्ना सोहंति, चंदसूरसमप्पहा ॥९॥ समागया बहू तत्थ, पासंडा कोउगासिया (मिगा)। गिहत्याण अणेगाओ, साहस्सीओ समागया ॥८५०॥ देवदाणवगंधवा, जक्खरक्खसकिनरा। अहिस्साण य भूयाणं, आसि तत्थ समागमो॥१॥ पुच्छामि ते महाभाग !, केसी गोयममञ्चवी। तओ केसि बुर्वतं तु. गोयमो इणमञ्चवी ॥२॥ पुच्छ भंते ! जहिन्छ ते. केसि गोयममच्चची। नओ केसी अणन्नाए, गोयमं इणमञ्चवी ॥३॥ चाउज्जामो य जो धम्मो, जो इमो पंचसिक्खिओ। देसिओ बदमाणेणं, पासेण य महामुणी ॥४॥ एगकजपवन्नाणं, विसेसे किं नु कारण? धम्मे दुबिहे मेहावी. कहं विप्पचओन ने?॥५॥तओ केसि बुवंतं तु, गोयमो इणमबबी। पन्ना समिक्खए धम्म,तत्तं तत्तविणिच्छियं॥६॥ पुरिमा उजुजड्डा उ. वक(क)जड्डा य पचिदमा। मज्झिमा उजुपन्ना उ, नेण धम्मे दुहा कए॥ ॥ पुरिमाणं दुविसुज्झो उ, चरिमाणं दुरणुपालओ, कप्पो मज्झिमगाणं तु, सुविसुज्झो सुपालओ॥८॥ साहु गोयम ! पन्ना ते(पण्णाए). छिन्नो मे संसओ इमो । अन्नोवि संसओ मज्झं, मे कहसु गोयमा ! ॥९॥ अचेलओ य जो पासेण य महामणी(जसा)॥८६०॥ एगकजपवनाणं. विसेसे किन कारण? लिंगे दुविहे मेहावी.. कहं विप्पचओ न ते॥१॥ केसि एवं वाणं तु. गोयमो इणमजची। न्नाणेण समागम्म, धम्मसाहणमिच्छियं ॥२॥ पचयत्थं च लोगस्स, नाणाविहविकप्पणं । जत्तत्थं गहणथं च, लोगे लिंगपओअणं ॥३॥ अ(इ)ह भवे पइना उ. मुक्खसम्भूयसाहणा। नाणं च दंसणं चेत्र, चरिनं चेव निच्छए | ॥४॥ साहु गोयम ! पन्ना ते, छिन्नो मे संसओ इमो। अन्नोऽवि संसओ मझ, तं मे कहसु गोयमा ! ॥५॥ अणेगाण सहस्साणं, मझं चिट्ठसि गोयमा ! । ते य ने अभिगच्छंति, कह ने निजिया तुमे ? ॥६॥ एगे जिए जिया पंच, पंच जिए जिया दस । दसहा उ जिणित्ताणं, सवसत्तू जिणामऽहं ॥ ७॥ सत्तू य इइ के बुने?, केसी गोयममच्चवी। तओ केसी चुवतं तु, गोयमा इणमञ्चची ॥८॥ एगप्पे अजिए सनु, कसाया इंदियाणि य। ने जिणिनु जहानायं, विहरामि जहं मुणी! ॥९॥ साहु गोयम ! पन्नाते, छिन्नो मे संसओ इमो। अन्नोऽवि संसओ मज्झं, तं मे कहसु गोयमा! ॥८७०॥ दीसंति बहवे लोए, पासबद्धा सरीरिणो । मुकपासा लहष्भूओ. कह ने विहरसी मणी ! ॥१॥ ते पासे सबसो छित्ता, निहंतूण उवायओ। मुक्कपासो लहुभूओ, विहामि अहं मुणी ! ॥२॥ पासा य इइ के वुत्ता?, केसी गोयममधवी। केसि एवं चुर्वनं तु, गोयमो इणमञ्चवी ॥३॥ रागहोसादओ निवा, नेहपासा भयंकरा। ते छिदिनु जहानायं, विहरामि जहकमं ॥४॥ साहु गोयम ! पन्ना ते, छिन्नो मे संसओ इमो। अन्नोऽपि संसओ मज्झ, तं मे कहसु गोयमा ! ॥५॥ अंतो हिअयसंभूया, टया चिट्टइ गोयमा!। फन्लेड विसभक्खीणं, सा उ उद्धरिया कह ? ॥६॥ तं लयं सवसो छित्ता, उद्धरित्ता समूलियं। विहरामि जहानायं, मुक्को मि विसभक्खणं ॥ ७॥ लया य इति का वुत्ता ?, केसी०॥८॥ भवतण्हा लया बुना, भीमा भीमफयोदया। नमुच्छिनु जहानायं, विहरामि महामुणी ! ॥९॥ साहु गोयम! पन्ना ते, छिन्नो मे संसओ इमो। अन्नोऽवि संसओ मझ, तं मे कहसु गोयमा ! ॥ ८८०॥ संपजलिया घोरा, अग्गी चिट्ठइ गोयमा!। जे डहति(जा डहेनि) सरीरस्था, कहं विज्झाविया तुमे ? ॥१॥ पसूयाओ, गिज्झ वारि जलुत्तम। सिंचामि सययं तेउं, सित्ता नो व डहति मे ॥२॥ अग्गी य इइ के कुत्ते?, केसी० ॥३॥ कसाया अग्गिणो वृत्ता, सुअसीरतबो जलं। मुयधाराभिय मयधाराभिहया संना, भिन्नाहुनडहनिम॥४॥ साहु गोयम ! पन्ना ते, छिन्नो मे संसओ इमो। अन्नोऽवि संसओ मझ, तं मे कहसु गोयमा ! ॥५॥ अयं साहस्सिओ भीमो, दुट्ठस्सो परिधावई। जसि गोयम ! आरुढो, कहं नेण न हीरसि ? ॥ ६॥ पहावनं निगिण्हामि, मुयरस्सीसमाहिय। न मे गच्छइ उम्मगं. मग्गं च पडिवजइ ॥७॥ अस्से अ इइ के बुत्ते ?. केसी गोयममञ्चची। तओ केसि बुर्वतं तु, गोयमो इणमच्चवी ॥८॥ मणो साहस्सिओ भीमो, दुगुस्सो परिधावइ। नं सम्मं तु निगिण्हामि, धम्मसिक्खाइ कंथगं ॥९॥ साहु गोयम ! पन्ना ते, छिन्नो मे संसओ इमो। अन्नोऽवि संसओ मज्झ, तं मे कहसु गोयमा ! ॥८९०॥ कुष्पहा बहवे लोए, जेसि नासंनि जनबो। अदाणे कह बटुंतो, नं न नाससि गोयमा!? ॥१॥जे मोण गच्छति. जे अ उम्मम्गपट्टिया। ते सव्वे विइया मज्झं, तो न नस्सामऽहं मुणी ! ॥२॥ मग्गे अइति के बुने?, केसी गोयम ॥३॥ कुपवयणपासंडी, सो उम्मम्गपट्टिया। सम्मम् तु जिणक्खाय, एस मग हि उनमे ॥४॥ साहु गोयम ! पन्ना ते, छिन्नो मे संसओ इमो। अन्नोऽपि संसओ मझ, तं मे कहसु गोयमा ! ॥५॥ महाउदगवेगेणं, बुज्झमाणाण पाणिणं । सरणं गई पहई च, दीवं कं मनसी ? मुणी ! ॥६॥ अन्थि एगो महादीयो, वारिमझे १२८५ उत्तराध्ययनानि मूलमूत्र , अन्सय-२३ मुनि दीपरत्नसागर Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 4 1 1 महालओ। महाउदगवेगस्स, गई तत्थ न विजई ॥ ७ ॥ दीवे अ इइ के बुत्ते ?, केसी गोयममच्चवी तओ केसिं बुवतं तु गोयमो इणमच्चवी ॥ ८ ॥ जरामरणवेगेणं. बुज्झमाणाण पाणिणं धम्मो दीवो पट्टा य. गई सरणमुत्तमं ॥ ९ ॥ साहू गोयम ! पन्ना ते, छिन्नो मे संसओ इमो अन्नोऽचि संसओ मज्झ तं मे कहसु गोयमा ! ॥ ९०० ॥ अन्नवंसि महोहंसि, नावा विपरिधावई। जंसि गोयममारूढो, कहं पारं गमिस्ससी १ ॥ १ ॥ जा उ अस्साविणी नावा, नसा पारस्त गामिणी । जा निरस्साविणी नावा, सा उ पारस्स गामिणी ॥ २ ॥ नावा अ इइ का वृत्ता ?, केसी गोयममच्चची । तओ केसिं बुवतं तु गोयमो इणमच्चवी ॥ ३ ॥ सरीरमाहु नावत्ति, जीवो बुच्चइ नाविओ। संसारो अन्नको वृत्तो. जं तरंनि महेसिणो ॥ ४ ॥ साहु गोयम ! पन्ना ते, छिन्नो मे संसओ इमो अन्नोऽवि संसओ मज्झं तं मे कहसु गोयमा ! ॥५॥ अंधयारे तमे घोरे, चिति पाणिणो बहू को करिस्सइ उज्जोयं ?. सबलोगंमि पाणिणं ॥ ६ ॥ उग्गओ विमलो भाणू, सबलोगपभंकरो। सो करिस्सइ उज्जोयं, सबलोगंमि पाणिणं ॥ ७ ॥ भाणू अ इति के वृत्ते ?. केसी गोयमः ॥ ८ ॥ उग्गओ खीणसंसारो, लबण्णू जिणभक्खरो सो करिस्सइ उज्जोयं सव्वलोगंमि पाणिणं ॥ ९ ॥ साहु गोयम! पन्ना ते, छिन्नो मे संसओ इमो अन्नोऽवि संसओ मज्झ तं मे कहसु गोयमा ! ॥ ९१०॥ सारीरमाणसे दुक्खे, बज्झ (पच ) माणाण पाणिणं । खेमं सिवं अणाचाहं ठाणं कि मन्नसी ? मुणी ! ॥ १ ॥ अस्थि एवं धुवं ठाणं, लोगग्गंमि दुरारुहं । जत्थ नत्थि जरा मचू, वाहिणो वेयणा तहा ॥ २ ॥ ठाणे अ इइ के बुत्ते ?. केसी० ॥ ३ ॥ निव्वाणंति अबार्हति, सिद्धी लोगग्गमेव य खेमं सिवं अणाचाहं जं तरंति महेसिणो ॥ ४ ॥ तं ठाणं सासयं वासं लोगग्गंमि दुराम्हं । जं संपत्ता न सोयंति, भवोहंतकरा मुणी ॥ ५ ॥ साहु गोयम ! पन्ना ते, छिन्नो मे संसओ इमो नमो ते संसयाईय! सव्वसुतमहोयही ॥ ६ ॥ एवं तु संसए छिन्ने केसी घोरपरकमे अभिवंदित्ता सिरसा, गोयमं तु महायसं ॥ ७॥ पंचमहव्वयं धम्मं, पडिवजइ भावओ पुरिमस्स पच्छिमंमी, मग्गे तत्थ सुहावहे ॥ ८ ॥ केसीगोअमओ निचं तंमि आसि समागमे। मुयसीलसमुक्करिसो, महत्यत्यविणिच्छओ ॥ ९ ॥ तोसिया परिसा सब्वा, सम्मग्गं समुवट्टिया। संध्या ते पसीयंतु, भयवं केसीगोयम् ॥ ९२० ॥ त्ति बेमि, केसिगोयमिजं २३ ॥ अट्टप्पवयणमायाओ समिई गुनी तहेब य। पंचैव य समिईओ, तओ गुत्तीउ आहिया ॥ १ ॥ इरियाभासेसणाऽऽदाणे, उच्चारे समिई इय। मणगुनी वयगुत्ती, कायगुती उ अट्टमा ॥ २ ॥ एयाओ अट्ट समिईओ, समासेण वियाहिया दुवालसंग जिणक्खायं. मायं जत्थ उ पत्रयणं ॥ ३ ॥ आलंबणेण कालेनं मग्गेण जयणाइ य चउकारणपरिसुद्धं, संजए इरियं रिए ॥ ४ ॥ तत्थ आळंबणं नाणं, दंसणं चरणं तहा। कालेय दिवसे वृत्ते, मग्गे उप्पवजिए ॥ ५॥ दबओ खित्तओ चेव कालओ भावओ तहा। जयणा चउत्रिहा वृत्ता तं में कित्तयओ सुण ॥ ६ ॥ दवओ चक्म्वुसा पेहे. जुगमित्तं च खिनओ। कालओ जाव रीइजा, उपउत्तो य भावओ ॥ ७ ॥ इंदियत्थे विवजित्ता, सज्झायं चैव पंचहा तम्मुक्ती तप्पुरकारे, उवडते रियं रिए ॥ ८ ॥ कोहे माणे य माया य. लोभे य उपउत्तया हासमय (तत्र भय) मोहरिए, बिगहासु (विगहा य) तहेव य ॥ ९ ॥ एवाई अड्ड ठाणाई, परिवजित्तु संजओ असावलं मियं काले, भासं भासिज पन्नवं ॥ ९३० ॥ गवेस नाए महणेय (णेणं). परिभोगेसणाणि य (य जा)। आहारोवहि सिजाए (आहारमुबहि सेज्जं च). एए निन्नि विसोहए (हिया) ॥ १ ॥ उग्गमुष्यायणं पढमे, बीए सोहिज एसणं परिभोगंमि चउकं विसोहिज जयं जई ॥ २ ॥ ओहो यहोवग्गहियं मंडयं दुविहं मुणी गिव्हंतो निक्खिवंतो य, पउंजिल इमं विहिं ॥ ३ ॥ चक्सा पडिलेहित्ता, पमजिल जयं जई आदिए निक्खिविजा वा दुहओऽवि समिए सया ॥ ४ ॥ उच्चारं पासवणं, खेळ सिंघाण जहिये। आहार उबहिं देहं अन्नं वाचि नहाविहं ॥५॥ अणावायमसंलोए, अणावाए चैव होइ संलोए। आवायमसंलोए, आवाए चैव संलोए ॥ ६ ॥ अणावायमसंलोए, परस्सऽणुवघाइए। समे अज्झसिरे वावि, अचिरकालकर्यमिय ॥ ७॥ विच्छिन्ने दूरमोगाडे, णासन्ने चिलवज्जिए। नसपात्रीयरहिए, उच्चाराईणि बोसिरे ॥ ८ ॥ एयाओ पंच समिईओ, समासेण वियाहिया इत्तो उ तओं गुत्तीओ, वृच्छामि अणुपुच्वसो ॥ ९ ॥ सच्चा तहेब मोसा य. सच्चामोसा तब य चन्थी असन्वमोसा य, मणगुत्ती चउडिहा ॥ ९४० ॥ संरंभसमारंभ, आरंभ य तहेव य। मणं पवट्टमाणं तु नियत्तिज जयं जई ॥ १॥ सच्चा० । वयं० ॥२॥ संरं । वयं ० ॥ ३ ॥ ठाणे निसीयणे चैव तहेव य तुयट्टणे उघणे पघणे इंदियाण य जुंजणे ॥ ४ ॥ संर०॥ कार्य० ॥ ५ ॥ एयाओ पंच समि ईओ. चरणस्स य पवत्तणे गुत्ती नियत्तणेऽवृत्ता, असुभत्थेसु य सव्वसो ॥ ६ ॥ एया पवयणमाया, जे सम्मं जायरे मुणी सो खिप्यं सव्वसंसारा. विष्पमुचद पंडिए ॥ ९४७ ॥ नि बेमि. पवयणमायरज्झयणं २४ ॥ माणकुलसंभूओ. आसी विप्पो महायसो जायाई जमजन्नमि, जयघोसत्ति नामओ ॥ ८ ॥ इंदियग्गामनिग्गाही मग्गगामी महामुनी गामाणुगामं रीयंते पत्तो वागारसि पुरिं ॥ ९ ॥ वाणारसीइ बहिया, उज्जाणंमि मणोरमे। फामुएसिजसं थार, तत्थ वासमुवाए ॥ ९५०॥ अह तेणेव काले पुरीए तत्थ माणे विजयघोसत्ति नामेणं, जन्नं जयइ बेयवी ॥ १॥ अह से तन्थ अणगारे. मासखमणपारणे विजयघोसम्स जन्नमि, भिक्खमडा (सट्टा ) उचट्टिए ॥ २ ॥ समुवट्टियं तहिं संतं, जायगो पडिसेहए। न हु दाहामि ते भिक्खं भिक्खु ! जायाहि अन्नओ ॥ ३ ॥ जे य बेयविऊ विप्पा, जन्नमडा य जे दिया। जोइसंगविक जे य. जे य धम्माण पारगा ॥ ४ ॥ जे समन्था समुदनुं, परं अप्पाणमेव य । तेसिमन्नमिणं देयं भो भिक्खु ! सतकामियं ॥ ५ ॥ सो तत्थ एव पडिसिद्धो जायगेण महामुणी। नवि रुट्टो नवि तुझे, उत्तमट्टगवेसओ ॥ ६॥ नऽण्ण पाणहेडं वा नवि निवारणाय वा । तेसि विमुक्खणट्टाए, इ वयणमच्यची ॥ ७ ॥ नवि जाणसि वेयमुहं. नवि जन्नाण जं मुहं नक्खत्ताणं मुहं जंच, जं च धम्माण वा मुहं ॥ ८ ॥ जे समत्थाः । न ते तुमं विजाणासि, अह जाणासि तो भाग ॥९॥ नस्सऽक्वपमुक्ख च अचयंतो नहिं दिओ। सपरिलो पंजली होउं पुच्छई तं महामुनीं ॥ ९६० ॥ वेयाणं च मुहं ब्रूहि. ब्रूहि जन्माण जं मुहं नक्खताण मुहं ब्रूहि ब्रूहि धम्माण वा मुहं ॥ १ ॥ जे समन्थाः। एवं मे संसयं स साहू ! कहय पुच्छओ ॥ २॥ अग्निमुह वैया, जन्नट्टी वेयसा मुहं । नक्खत्ताणं मुहं चंदो, धम्माणं कासवो मुहं ॥३॥ जहा चंद गहाईया, चिती पंजलीउडा। वेदमाणा नसता, उत्तमं मणहारिणो ॥ ४ ॥ अजाणगा जन्नवाई, विजामाहणसंपया। मूढा सज्झायनवसा, भास१२८६ उत्तराध्ययनानि मूलमूत्रं असणं- २५ मुनि दीपरत्नसागर Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चन्ना इवऽम्गिणो ॥५॥ जो लोए बंभणो वुत्तो, अग्गी वा महिओ जहा। सदा कुसलसंदिटुं, तं वयं चूम माहणं ॥६॥ जो न सजइ आगंतुं, पञ्वयंतो न सोअई। रमए अजवयणमि. तं०॥७॥ जायरूवं महामहूं. निदंतमलपावगं। रागहोसभयाईयं, त०॥८॥ तवस्सियं किस दंतं, अवचियमंससोणिों। मुवयं पत्तनिवाणं, तं०॥९॥ तसे पाणे वियाणित्ता, संगहेण य(स) थावरे। जो न हिंसइ तिविहेणं, त०॥९७०॥ कोहा वा जइवा हासा, लोहावा जइवा भया। मुर्स न वयई जो उ,०॥१॥ चित्तर्मतमचित्तं वा, अप्प वा जइवा पहुं।न गिण्हइ अदत्तं जो, ते॥२॥ दिवमाणुस्सतेरिन्छ, जो न सेवेइ मेहुणं। मणसा कायवकेणं. तं वयं वृम माहणे ॥३॥ (चइत्ता पुव्यसंजोग, नाइसंगे य बन्धवे। जो न सजइ एएस, तं वयं बम माहणं ॥५३॥) जहा पोम्मं जले जायं, नोबलिप्पड़ बारिणा। एवं अलितं कामेहिं. तं०॥४॥ अलोलयं महाजीविं. अणगारं अकिंचणं। असंसत्तं मिहत्येहि. तं वयं बम माहणं ॥५॥ पमुबंधा सव्ववेया, जटुं च पावकम्मुणो। न तं तायंति दुस्सीलं, कम्माणि बलवंतिह ॥ ६॥ नवि मुंडिएण समणो, न ॐकारेण यंभणो। न मुणी रण्णवासेणं, कुसचीरेण न तावसो ॥७॥ समयाए समणो होइ. बंभचेरेण भणो। नाणेण य मुणी होइ. तवेण होइ ताक्सो ॥८॥ कम्मुणा बंभणो होइ, कम्मुणा होइ खत्तिओ। वइस्सो कम्मुणा होइ, सुदो हवइ कम्मुणा ॥९॥ एए पाउकरे बुदे (पाउकरा धम्मा), जेहिं होइ सिणायओ। सबकम्मवि. जिम्मुकं, तं वयं बुम माहणं ॥९८॥ एवंगुणसमाउत्ता, जे हवंति दिउत्तमा । तेसमत्था उ उद्धर्नु, परं अप्पाणमेव य ॥१॥ एवं तु संसए छिन्ने, विजयघोसे य बंभ(माह)णे । समुदाया (संजाणं तओ तं तु. जयघोसं महामणि ॥२॥ तुट्टे य विजयघोसे, इणमुद्दाहु कयंजली। माहणतं जहाभूयं, मुट्ठ मे उवदसियं ॥३॥ तुम्भे जइया जनाणं, तुम्भे वेयविदो विऊ। जोइसंगविऊ तुम्भे, तुम्भे धम्माण पारगा ॥४॥ तुम्भे समत्था उद्ध, परं अप्पाणमेव य। तयणुग्गहं करेहऽम्हं. भिक्खू (क्खे)णं भिक्खुउत्तमा ॥५॥ न कर्ज मज्म भिक्खेणं, खिप्पं निक्खमसू दिया। मा भमिहिसि भयावत्ते, पोरे (भवायत्ते. दीहे) संसारसागरे ॥ ६॥ उक्लेवो होइ भोगेसु, अभोगी नोवलिप्पइ। भोगी भमइ संसारे, अभोगी विप्पमुबई ॥७॥ उडो सुको य दो छुढा, गोलया मट्टियामया। दोवि आवडिया कुड्डे, जो उड़ो सोऽत्थ लग्गई॥८॥ एवं लग्गति दुम्मेहा. जे नरा कामलालसा। विरत्ता उन लग्गति, जहा से मुकगोलए ॥९॥ एवं से विजयघोसे, जयघोसस्स अंतिए । अणगारस्स निक्खंतो, धम्म सु(सो)चा अणुत्तरं (ण केवलं)॥९९०॥सवित्ता पुवकम्माई, संजमेण तवेण य। जयघोसविजयघोसा, सिद्धि पत्ता अणुत्तरं ।।९५१॥ ति चेमि, जन्नइज २५॥ सामायारि पवाखामि, सबदुक्खा विमुक्वणि। जं चरित्ताण निग्गंधा (क्वंता), तिण्णा संसारसागरं ।।२।। पढमा आवस्सिया नाम, चिड़या य णिसीहिया। आपुच्छणा य तइया, चउत्थी पडिपुच्छणा ॥३॥ पंचमा उंदणा नाम, इच्छाकारो अछट्टओ। सत्तमो मिच्छकारो य, तहक्कारो य अट्ठमो ॥४॥ अम्भुट्ठाणं नवमा, दसमा उवसंपया। एसा दसंगा साहूर्ण, सामायारी पवेड्या ॥५॥ गमणे आवस्सियं कुज्जा, ठाणे कुज्जा निसीहियं । आपुच्छणा सयं उदणा दबजाएणं, इच्छकारो असारणे। मिच्छाकारो अनिंदाए, तहकारी पडिस्सुए ॥ ७॥ अम्भुट्ठाणं गुरुप्या, अच्छणे उपसंपया। एवं दुपंचसंजुत्ता (एसा दसंगा साहणं), सामायारी पवे. इया ॥८॥ विडंमि चउभागे, आइमि समुहिए। भंडयं पडिलेहिता, वंदित्ता य तओ गळं ॥९॥ पुच्छिज्जा पंजलिउडो, किं काय मए इहं । इच्छं निओइउं भंते, वेयावचे व सज्झाए ॥१०००॥ वेयावचे निउनेणं, कायामगिलायओ। सज्झाए वा निउनेणं, सबदुक्खविमुक्खणे॥१॥दिवसस्स चउरो भागे, कुजा भिक्खू वियक्खणो। तओ उत्तरगुणे कुजा, दिणभागेसु चउसुवि॥२॥ पढमं पोरिसिं सज्झायं, बीयं झाणं झियायई। तइयाए भि. क्खायरियं, पुणो चउत्थीइ सज्झायं ॥३॥ आसाढे मासे दुपया, पोसे मासे चउप्पया। चित्तासोएसु मासेसु, तिपया हवइ पोरसी ॥४॥ अंगुलं सत्तरनेणं, पक्खेणं तु दुअंगुलं । बड्ढए हायए वाचि, मासेणं चउरंगुलं ॥५॥ आसाढव. हुलपक्से भदवए कत्तिए य पोसे य। फग्गुणवइसाहेसु य नायव्वा ओमरत्ता उ॥६॥ जिवामूले आसाढ सावणे छहिं अंगुलेहि पडिलेहा। अट्ठहिं विइयतियंमी तइए दस अट्ठहिं चउत्थे॥७॥ रनिपि चउरो भाए, भिक्खू कुजा वियफ्खणी । तओ उत्तरगुणे कुजा, राईभा(भो)गेसु चउसुवि ॥८॥ पढम पोरिसि सज्झायं, वीयं झार्ण झियायई। तइयाए निदमुक्खं तु, चउत्थी भुजोवि सज्झार्य ॥९॥ जं नेइ जया रनि नक्खत्तं नमि नवउभाए। संपने चिरमिजा सज्झाय पओसकालंमि ॥१०१०॥ तम्मेव य नक्सत्ते गयण चउभाग सावसेसंमि । वेरत्तियपि कालं पडिलेहित्ता मुणी कुजा ॥१॥ पुश्विामि चउम्भागे, पडिलेहित्ताण भंडयं । गुळं बंदिनु सज्झायं, कुज्जा दुक्सविमुक्खणिं ॥२॥ पोरिसीए चउभागे, बंदित्ताण तओ गुरुं । अपडिकमित्तुं कालस्स, भायणं पडिलेहए ॥३॥ मुहपत्ति पडिलेहित्ता, पडिलेहिज गुच्छर्य । गुच्छगलाइयंगुलिओ, वत्थाई पडिलेहए॥४॥ उहढं थिरं अतुरियं पृर्षि ना वस्थमेव पडिलेहे। तो विइयं पप्फोडे तइयं च पुणो पमजिजा ॥५॥ अणचाविर्य अवलियं अणाणुबंधि अमोसलिं चेव । छप्पुरिमा नव खोडा पाणीपाणिविसोहर्ण(पमजणं)॥६॥ आरभडा सम्मदा बजेया य मोसली नइया। पफोरणा चउत्थी विक्खित्ता वेइया छट्ठा ॥७॥ पसिढिलपलबलोला एगामोसा अणेगरूवधुणा(या)। कुणति पमाणि पमार्य संकिय गणणोवर्ग कुजा ॥८॥ अणुणाइरिनपडिलेहा, अविवचासा नहेब य। पढम पयं पसन्ध, सेसाणि । उ अप्पसत्याणि ॥९॥ पडिलेहर्ण कुर्णतो मिहो कहं कुणइ जणवयकहं वा। देह व पचक्खाणं बाएइ सयं पडिच्छइ वा ॥१.२०॥ पुढवीआउकाएनेऊवाऊवणस्सइतसाणं । पडिलेहणापमनो छण्हपि विराहओ होइ॥१॥ नइयाएर पोरिसीए. भन्नं पाणं गवेसए। छहं अण्णयरागंमि, कारणमि समुहिए॥२॥ वेयण वेयावचे इरियट्ठाए य संजमट्ठाए। तह पाणवत्तियाए छ8 पुण धम्मचिनाए ॥३॥ निग्गंयो चिइमंनो निग्गंधीचि न करिज छहिं चेच । ठाणेहि नु इमेहि अणइकमणा य से होइ॥४॥आयके उपसग्गे तितिक्खया बंभचेरगुत्तीसुं। पाणिदया तवहेउं सरीरखुच्छेयणट्ठाए ॥५॥ अवसेसं भंडगं गिज्झा, चक्मुसा पडिलेहए। परमहजोअणाओ, विहार विहरे मुणी ॥६॥ चउत्थीए पोरिसीए. निक्खिवित्ताण भायणं । सज्झायं च तओ कुजा, सबभावविभावणं(दुक्सविमोक्खणं)॥७॥ पोरिसीए चउम्भाए, वंदित्ताण तओ गुरूं। पडिकमित्ता कालस्स, सिजंतु पडिलेहए ॥८॥ पासवणुचारभूमि च, पडिले. - १२८७ उनराध्ययनानि मूलमूत्र, समय-6 मुनि दीपरत्नसागर - Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ हिज जयं जई। काउस्सगं तओ कुज्जा, सबदुक्ख विमुक्खणं ॥९॥ देसियं च अईयारं, चिंतिज अणुपुश्वसो। नाणंमि दंसणे चेब, चरित्तंमि तहेव य॥१०३०॥ पारियकाउस्सम्गो, बंदित्ता य तओ गुरूं। देसियं तु अईयारं, आलोइज जहरूम ॥ १॥ पडिक्कमित्ताण निस्सडो, वंदित्ताण तओ गुरुं। काउस्सग्गं तओ कुजा, सबदुक्खविमुक्खणं ॥२॥ सिद्धार्ण संथर्व किच्चा, वंदित्ताण तओ गुरुं। थुइमंगलं च काऊणं, कालं संपडिलेहए ॥३॥ पढमं पोरिसि सज्झायं, बीयं झाणं झियायई । तइयाए निदमुक्खं तु, चउत्थी भुजोवि सज्झायं ॥४॥ पोरिसीए चउत्थीए, कालं तु पडिलेहए। सज्झायं तु तओ कुज्जा, अबोहंतो असंजए॥५॥ पोरिसीए चउब्भाए. बंदित्ताण तत्तो गुरुं। पडि. । काउस्सगं ती कुजा, सबदुक्खांवमुक्खणं ॥७॥राइय च अईयारं, चिंतिज अणुपुबसो। नाणंमि, सणंमी, चरितमि तवंमि य॥८॥ पारियकाउस्सग्गो, वंदित्ताण तओ गुरुं। राईयं तु अईयारं, आलोइज जहक्कम ॥९॥ पडिक्कमित्तु निस्सल्डो, बंदित्ताण तओ गुरूं। काउस्सगं तओ कुजा, सबदुक्खविमुक्खणं ॥१०४०॥ किं तवं पडिक्जामि?,एवं तत्थ विचिं. तए। काउस्सम्गं तु पारिता, करिजा जिणसंथवं ॥१॥ पारियकाउस्सग्गो, बंदित्ताण तओ गुरूं। तवं संपडिवजित्ता, करिज सिद्धाण संथवं ॥२॥ एसा सामायारी, समासेण वियाहिया। जं चरित्ता बहू जीवा, तित्रा संसारसागर ॥१०४३॥ ति बेमि. सामायारीअज्झयणं २६॥ थेरे गणहरे गम्गे, मुणी आसि विसारए। आइने गणिभावम्मि, समाहिं पडिसंधए॥४॥ वहणे वहमाणस्स, कंतारं अइवत्तए। जोए वहमाणस्स, संसारो अइवत्तए ॥५॥ खलुंके जो उ जोएइ, विहंमाणे किलिस्सई। असमाहिं च वेएइ, तुत्तओ य से भज्जई ॥ ६॥ एग डसइ पुच्छंमि, एग विंधइऽभिक्खण। एगो भंजइ समिलं, एगो उप्पहपट्टिओ ॥७॥ एगो पडइ पासेणं, निवेसइ निविजई। उकुहइ उप्फिडाई, सढ़े बालगवी वए॥८॥माई मुद्दण पडइ, कुद्धे गच्छह पटियहं । मयलक्खेण चिट्ठाई, वेगेण य पहावई ॥९॥ छिन्चाले छिंदई सिलिं, दुईते भंजई जुर्ग। सेऽविय सुस्सुयाइत्ता, उजुहित्ता पलायई ॥१०५०॥ खलुंका जारिसा जुजा, दुस्सीसाविहु तारिसा। जोइया धम्मजाणंमि, भजंता घिइदुब्बला ॥१॥इड्ढीगारविए एगे, एगित्थ रसगारवे । सायागारविए एगे, एगे सुचिरकोहणे ॥२॥ भिक्खाऽऽलसिए एगे एगे ओमाणभीरुए थद्धे । एगं च अणुसासमी, हेऊहिं कारणेहि य ॥३॥ सोऽवि अंतरभासिडो, दोसमेत्र पकुबई (पभासइ)। आयरियाणं तं वयणं, पडिकूलेइ अभिक्खणं ॥४॥न सा मम वियाणाइ, नवि सा मज्झ दाहिई। निग्गया होहिई मन्ने, साहू अन्नोऽत्थ वचाउ ॥५॥ पे(पो)सिया पलि.उंचंति, ते परियंति समंतओ। रायविटुिं व मचंता, करिति भिउडि मुहे ॥६॥ वाइया संगहिया चेव, भत्तपाणेहिं पोसिया। जायपक्खा जहा हंसा, पकमंति दिसोदिसिं॥७॥ अह सारही विचिंतेइ, खलंकेहिं समा गए। किं मा दुट्टसीसेहिं?, अप्पा मे अवसीअई ॥८॥ जारिसा मम सीसा उ, तारिसा गलिगदहा। गलिगदहे चइताणं, दर्द पगिण्हइ तवं ॥९॥ मिउमहवसंपन्ने, गंभीर सुसमाहिए। विहइ महिं महापा, सीईभूएण अप्पणG॥१०६०॥ ति बेमि, खलुकिज २७॥ मुक्खमम्गगई तचं (त्यं), सुणेह जिणभासियं। चउकारणसंजुतं, नाणदसणलक्षणं ॥१॥ नाणं च दंसणं चेव, चरित्नं च तवो तहा। एस मरगुत्ति पन्नत्तो, जिणेहि वरदंसिहि ॥२॥ नाणं सच दंसणं चेव, चरितं च तवो तहा। एयं मम्गमणप्पत्ता, जीवा गच्छति सुगई॥३॥ तत्थ पंचविहं नाणं, सब आभिणियोहिय। ओहियनाणं तइयं, मणनाणं च केवलं॥४॥एयं पंचविहं नाणं, दवाण यगणाण या पजवाणं च . सवेसिं, नाणं नाणीहि देसियं ॥ ५॥ गुणाणं आसओ दवं, एगदवस्सिया गुणा। लक्खणं पजवाणं तु, उभओ अस्सिया भवे ॥६॥ धम्मो अधम्मो आगासं, कालो पुग्गल जंतवो। एस लोगुत्ति पनत्तो, जिणेहिं वरदंसिहि ॥ ७॥ धम्मो अधम्मो आगासं, दवं इकिकमाहियं । अणंताणि य दवाणि, कालो पुग्गल जंतबो॥८॥ गइलक्षणो उ धम्मो, अहम्मो ठाणलक्षणो। भायणं सबदवाणं, नहं ओगाहलक्खणं ॥९॥ वत्तणालक्खणो कालो, जीवो उवओ. गलक्खणो। नाणेणं दसणेणं च, सुहेण य दुहेण य॥१०७०॥ नाणं च दंसर्ण चेव, चरितं च तबो तहा। वीरियं उवओगो य, एयं जीवस्स लक्खणं ॥१॥ सधयार उज्जोओ, पभा छायाऽऽतवृत्ति वा। वण्णरसगंधफासा, पुग्गलाणं तु लक्ख ॥२॥ एगनं च पुहुतं च, संखा संठाणमेव य। संजोगा य विभागा य, पजवाणं तु लक्खणं ॥३॥ जीवाऽजीवा य बंधो य, पुष्णं पावाऽऽसवा तहा। संवरो निजरा मुक्खो, संतेए नहिया नव ॥४॥ तहियाणं तु भावाणं, सम्भावे उवएसणं । भावेण सहहंतस्स. सम्मत्तं ति(त) वियाहियं ॥५॥ निसगुवएसरुई, आणारुइ सुत्तबीयरुइमेव । अभिगमवित्थाररुई. किरियासंखेवधम्मरुई॥६॥ भूअत्येणाहिगया जीवाऽजीवा य पुण्ण पार्य च । सहसंमुइआ आसवसंवर रोएड उ निसम्गो ॥७॥ जो जिणदिटे भावे चउबिहे सहहाइ सयमेव । एमेव नऽनहत्तिय निसरगरुइत्ति नायबो॥८॥ एए चेव उ भावे उवइढे जो परेण सदइ । छउमत्येण जिणेण य उवएससहनि नायवो ॥९॥ रागो दोसो मोहो अजाणं जस्स अवगय होइ। आणाए रोयंतो सो खलु आणाईनाम ॥१०८०॥ जो सुत्तमहिनंतो सुएण ओगाहई उसम्मनं। अंगेण बाहिरेण व सो सुत्तइति णायत्रो ॥॥ एगेण अणेगाई पयाईजो पसरई उ सम्मनं। उदया तिबिंदू सो बीयरुत्ति नायबो॥२॥ सो होइ अभिगमई सुअनाणं जस्स अस्थओ दिटुं। इकारस अंगाई पइण्णगं दिट्टिवाओ य ॥३॥ दवाण सवभावा सापमाणेहि जस्स उवलहा। सवाई नयविहीहि य वित्थारमहति नायवो ॥४॥दसणनाणचरिते तबविणए सचसमिइगुत्तीसु। जो किरियाभावरूई सोखलु किरियारूई नाम ॥५॥ अणभिग्गहियकुदिट्टी संखेवरुइत्ति होइनायत्रो। अविसारओ पवयणे अणभिम्गहिओय सेसेसु ॥६॥जो अस्थिकायधम्म सुयधम्म खलु चरित्तधम्म च । सदहइ जिणाभिहियं सो धम्मरुद्धत्ति नायबो ॥ ७॥ परमत्थसंधवो वा सुदिट्ठपरमत्यसेवणा वावि। बावनकुदंसणवजणा य सम्मत्तसहहणा ॥८॥ नस्थि चरिनं सम्मनविहणं दंसणे उभइया । सम्मत्तचरित्नाई जगवं पुर्व वसम्मत्तं ॥९॥णादंसणिस्स नाणं नाणेण विणा न हुँति चरणगुणा । अगुणिस्स नत्थि मुक्खो नस्थि अमुक्खस्स निवाणं ॥१०९०॥ निस्संकिय निकंखिय निचितिगिच्छं अमूढदिट्टी य। उचवूह थिरीकरण वच्छल पभावणेऽद्रुते ॥१॥ सामाइयऽत्य पढमं छेदोवट्ठावणं भवे चितियं । परिहारविसुद्धीयं सुहुमं तह संपरायं च ॥२॥ अकसाय अहक्खायं, छउमत्थस्स जिणस्स बा। एवं चयरित्तकरं, चारित्नं होड आहियं ॥३॥ (३२२) १२८८ उत्तराध्ययनानि मूलसूत्रं, असा -२० मुनि दीपरत्नसागर Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ RA नबो अ दुविहो वुत्नो, बाहिरऽम्भतरो नहा। बाहिरो छविहो बुत्तो, एवमभितरो तयो॥४॥ नाणेण जाणई भावे, सम्मत्तेण य सद्दहे। चरित्तेण निगिण्हाइ. तवेण परिसुज्झई ॥५॥ खवित्ता पुच्चकम्माई. संजमेण तवेण य। सबदुक्ख - प्पहीणट्टा. पकमंनि महेसिणो ॥१०९६॥ नि मि, मोक्खमग्गगइअज्झयणं २८॥ सुझं मे आउसंतेण भगवया एवमक्खाय-इह खलु सम्मत्तपरक्कमे नामऽज्झयणे समणेणं भगवया महावीरेणं कासवेणं पवेइए जं सम्मं सहइना पत्नियाइत्ता रोयइत्ता फासइना पालइत्ता सोहइना तीरइना किट्टइना आराहइत्ता आणाए अणुपालइत्ता बहवे जीवा सिझंति बुझंति मुचंति परिनिब्बायंति सब्बदुक्खाणमंतं करेंति ।१३। तस्स णं अयमट्टे एवमाहिज्जइ. तंजहा-संवेगे निब्बेए धम्मसद्धा गुरुसाहम्मियसुस्सूसणया आलोयणया निंदणया गरिहणया सामाइए चउवीसस्थए चंदणए १० पडिकमणे काउस्सग्गे पञ्चक्खाणे थयथुइमंगले कालपडिलेहणया पायच्छितकरणे खमावणया सज्झाए वायणया परिपुच्छणया २० परियट्टणया अणुप्पेहा धम्मकहा मुयस्स आराहणया एगग्गमणसंनिवेसणया संजमे तवे वोदाणे सुहसाए अप्पडिचदया ३० विवित्तसयणासणसेवणया विणियट्टणया संभोगपञ्चक्खाणे उचहिपञ्चकखाणे आहारपञ्चक्खाणे कसायपञ्चक्खाणे जोगपचक्खाणे सरीरपञ्चक्खाणे सहायपञ्चक्खाणे भत्तपञ्चक्खाणे ४० सम्भावपञ्चक्खाणे पडिरूवया वेयावचे सव्वगुणसंपण्णया वीयरागया खंती मुत्ती महवे अजये भावसचे ५० करणसमे जोगसचे मणगुनया वयगुनया कायगुत्नया मणसमाधारणया वयसमाधारणया कायसमाधारणया नाणसंपनया दसणसंपन्नया ६० चरित्तसंपन्नया सोइंदियनिम्गहे चकिखदियनिग्गहे पाणिदियनिग्गहे जिभिदियनिग्गहे फासिदियनिग्गहे कोहविजए माणविजए मायाविजए लोभविजए पिजदोसमिच्छादसणविजए सेलेसी अकम्मया ७३।१४। संवेगेणं भंते ! जीव किं जणयइ?. संवेगेणं अणुत्तरं धम्मसद्ध जणयइ. अणुनराए धम्मसदाए संवेग हब्बमागच्छइ. अणंताणचंधिकोहमाणमायालोभे खबेइ. कम्मं न बंधइ, तप्पञ्चइयं च मिच्छतपिसोहिं काऊण दंसणाराहए भवइ, ईसणविसोहीए णं विसुद्धाए अत्धेगइया तेणेव णं भवग्गहणेणं सिज्झति ज्झंति विमुचंनि परिनिब्वायंनि सब्बदुक्खाणमंतं करेंनि, सोहीए य णं विसुद्धाए नचं पुणो भवम्गहणं नाइकमंति । १५ निब्बेएणं भंते ! जीवे किं जणयइ ?. निवेएणं दिवमाणुस्सतिरिच्छिएमु कामभोएसु निवेयं हनमागच्छद. सव्वविसएम विरज्जइ, सवविसएमु विरजमाणे आरंभपरिचायं करेइ, आरंभपरिच्चायं करेमाणे संसारमग्गं वुच्छिदइ सिद्धिमग्गपडिवन्ने य हवइ ।१६। धम्मसद्धाए णं भने ! जीवे कि जणयइ ?, धम्म सायामुक्खेसु रजमाणे विरजइ अगारधम्मं च णं चयइ, अणगारिए णं जीवे सारीरमाणसाणं दुक्खाणं छेयणभेयणस जोगाईणं वुच्छेयं करेइ अब्बाचाहं च णं सुहं निवत्तेइ ।१७। गुरुसाहम्मियसुस्सूसणयाए णं भंते ! जीवे किं जणेइ ?. गुरु० विणयपडिवनि जणेइ, विणयपडिवन्ने णं जीवे अणचासायणसीले नेरइयतिरिक्खजोणियमणुस्सदेवदुग्गईओ निरंभइ. वण्णसंजलणभत्तिबहमाणयाए माणुस्सदेवसुग्गईओ निबंधइ सिद्धिमुगई च विसोहेइ पसत्थाई च णं विणयमूलाई सबक 4 विणइना हवइ । १८। आलोयणाए णं भंते ! जीवे किं जणेइ, आलोयणाए मायानियाणमिच्छादरिसणसाहाण मुक्खमग्मविग्घाणं अर्णनसंसारबद्धणाणं उद्धरणं करेइ उजुभावं च जणेइ. उजुभावं पडियने य णं जीवे अमाई इत्थीवेयं णपुंसगवेयं च न चन्धड. पुश्वचद्धं च णं रिजरइ ।१९। निंदणयाए णं भंते ! जीवे किं जणेइ . निंदणयाए पच्छाणुनावं जणेइ. पच्छाणुनावणं विरजमाणे करणगुणसेदि पडियजइ, करणगुणसेढिपडिवच्ने य अणगारे मोहणिजं कम्मं उग्घाएइ ।२०। गरिहणाए णं भंते ! जीवे किं जणेइ?, गरहणाए अपुरकारं जणेइ. अपुरकारगए णं जीवे अप्पसन्थेहिनो जोगेहिनो नियत्नद पसत्थेहि य पडिवजइ, पसत्थजोगपडियने .यणं अणगारे अणंतघाईपजवे खवेइ । २१ । सामाइएणं भंते ! जीवे कि जणेइ ?, सामाइएणं साक्जजोगविरई जणयइ । २२। चउचीसत्थएणं भंते ! जीव कि जणेइ ?. उवीसथएणं दसणविसोहि जणइ ।२३। बंदणएण भंते ! जीवे किं जणेइ ?, वंदणएणं नीयागोयं कम्मं खवेइ उच्चागोयं निबंधइ सोहगं च णं अप्पडिहयं आणाफलं निवत्तेइ दाहिणभावं चणं जणेइ।२४॥ पडिकमणेणं भंते ! जीवे किंजणेइ ?. पडिकमणेणं वयछिदाई पिहेइ. पिहियवयछिदे पुण जीवे निरुदासवे असचलचरिने अट्टसु पबयणमायासु उवउत्ते अपहृते सुप्पणिहिए विहरइ ।२५। काउस्सग्गेणं भंते ! जीवे कि जणेइ ?. काउस्सम्गेणं तीयपड़प्पन्नं पायच्छिनं विसोहइ, विमुद्धपायन्छिने य जीवे निवयहियए ओहरियभरुव भारवहे धम्मज्झाणोवगए सुहसुहेणं विहरइ ।२६। पञ्चक्खाणेणं भंते ! जीवे कि जणेइ ?. पच्चक्खाणेणं आसवदाराई निर्मभइ । २ थयथुइमंगलेणं भंते! जीवे कि जणेइ?, थयथुइमंगटेणं नाणदंसण चरित्तचोहिलाभं संजणइ. नाणदंसणचरित्तचोहिलाभसंपन्ने णं जीवे अंतकिरियं कप्पविमाणोववत्तियं आराहणं आराडेइ ।२८। कालपडिलेहणाए णं भंते ! जीये किं जणेइ ?. काल नाणावरणिज कम्म खवेइ।२९। पायच्छिनकभरणेणं भंते ! जीवे कि जणेइ?, पावकम्मविसोहि जणेइ निरइयारे आविभवइ, सम्मं च णं पायच्छित्तं पडिवजमाणे मग्गं च मग्गफलं च विसोहेइ आयारं आयारफलं च आराहेइ। 300 खमावणयाए णं भने! जीचे कि जणेइ ?. Fखमा पन्हायणभाव जणद, पन्हायणभावमुवगए य सबपाणभूयजीवसत्तेसु मित्तीभावं उप्पाएइ. मित्तीभावमुक्गए य जीवे भावविसोहि काऊण निभए भवद । ३१ । सन्झाएणं भने ! जीवे किंजणे, सझाएणं नाणावर णिजं कम्मं खवेइ । ३२। वायणयाए णं भंते ! जीये कि जणेइ ?. वायणाए निजरं जणेइ. सुअस्स य अणुसजणाए अणासायणाए बट्टइ. मुयम्स य अणुसजणाए अणासायणाए बट्टमाणे नित्यधम्मं अवलंबड, नित्यधम्ममवनं. बमाणे महानिजराए महापज्जवसाणे हवइ ।३३। पडिपुच्छणाएणं भंते ! जीवे किं जणेइ ?. पडि सुत्तत्थतदुभयाई विसोहेइ, कंखामोहणिज कम्मं बुडिदेइ । ३४॥ परियट्टणयाए णं भंते! जीवे कि जणेइ ?, परिवंजणाई जणेइ वंजणसद्धिं च उप्पाएइ ।३५। अणुप्पेहाए णं भंते! जीवे कि जणेइ ?, अणु० आउयवज्जाओ सत्त कम्मपयडीओ धणियबंधणबदाओ सिढिलबंधणबद्धाओ पकरेइ, दीहकालट्टिईयाओ हस्सकालाडिईयाओ पकरेइ, निवाणुभावाओ मंदाणुभावाओं पकरेइ, बहुप्पएसम्गाओ अप्पपएसम्माओं पकरेइ. आउं च णं कम्मं सिय पंधइ सिय नो बंधइ, अस्सायावेयणिजं च णं कम्मं नो भुजो भुजो उवचिणइ, अणाइयं च णं अणवयम्गं दीहमदं चाउरतसंसारकनारंभ १२८९ उत्तराध्ययनानि मूलमूत्र, ॐto-२९ मुनि दीपरत्नसागर Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ खिप्पामेव वीइवयइ।३६॥ धम्मकहाए णं भंते ! जीवे किंजणेइ ?, कम्मनिजरं जणेइ, धम्मकहाए णं पवयणं पभावेइ, पवयणपभावए णं जीवे आगमिस्समदत्ताए कम्मं निबंधइ।३। सुयस्स आराहणयाए णं भंते ! किं जणेइ ?. सुयअन्नाणं खवेइ, न य संकिलिस्सइ । ३८। एगग्गमणसंनिवेसणाएणं भंते ! जीवे किं जणेइ ?, एग चित्तनिरोहं करेइ ।३९। संजमेणं भंते ! जीवे किं जणेइ ?. संजमेणं अणण्यत्नं जणेइ । ४०॥ तवणं भंते! जीवे कि जणेइ? तवेणं बोयाणं जणेइ। ४१। वोयाणेणं भंते ! जीवे किं जणेइ, बोयाणेणं अकिरियं जणेइ, अकिरियाए भवित्ता तओ पच्छा सिज्झइ०॥४२॥ सुहसाएणं भंते ! जीवे किं जणेइ ?. सुह० अणुस्सुयत्तं जणेइ. अणुस्सुए णं जीवे अणुकंपए अणुभडे विगयसोगे चरित्तमोहणिज्ज कम्म खवेद ।४३। अपडिबडयाए णं भंते ! जीवे कि जणेइ ?, अप० निस्संगत्तं जणेइ. निस्संगत्तेणं जीवे एगे एगग्गचित्ते दिया य राओ य असजमाणे अप्पडिबद्धे आवि विहरइ ॥४४विवित्तसयणासणयाए णं भंते ! जीवे किं जणेइ ?, विवि० चरित्तगुत्ति जणेइ, चरित्तगुत्ते णं जीवे विवित्ताहारे दढचरिते एगेतरए मुक्खभावपडिवन्ने अट्टविहं कम्मर्गठिं निजरेइ ।४५विणियट्टणयाए णं भंते ! जीवे किं जणेइ ?, विनि० पावकम्माणं अकरणयाए अम्भुट्टेइ पुत्रवद्धाण य निजरणयाए पावं नियत्तेइ. तओ पच्छा चाउरतं संसारकतारं बीईवयइ । ४६। संभोगपञ्चक्खाणेणं भंते ! जीवे किंजणेइ ?. संभो आलंबणाई खवेइ. निरालंबणस्स य आययट्रिया जोगा भवन्ति, सणं लाभेण संतसइ परस्स लाभं नो आसाएइ नो तकेइ नो पीहेइ नो पत्थेइ नो अभिलसइ, परस्स लाभ अणासाएमाणे अतकेमाणे अपीहेमाणे अपत्थेमाणे अणभिलसेमाणे दुचं सुहसिज्जं उबसंपजिनाणं विहरइ।४। उबहिपञ्चक्खाणेणं भंते ! जीवे कि जणेइ?, उब. अपलिमयं जणेइ, निरुवहिए णं जीवे निकखे उबहिमंतरेण य न संकिलिस्सइ।४८ा आहारपचक्खाणेणं भंते ! जीवे कि जणेइ ?. आहा जीवियासंसपओगं युच्छिदइ. जीवियासंसप्पओगं वुच्छिदिता जीवे आहारमंतरेण न संकिलिस्सइ । ४९। कसायपञ्चक्खाणेणं भंते ! जीवे किं जणेइ ?. कसा वीयरायभावं जणेइ, बीयरायभावं पटिबन्नेऽविय णं जीवे समसुहदुस्खे भवइ 1५० । जोगपचरखाणेणं भंते ! अजोगयं जणेइ, अजोगी णं जीवे नवं कम्मं न बन्धइ पुत्रबद्धं निजरेइ ।५१। सरीरपचक्खाणेणं भंते. सिद्धाइसयगुणत्तणं निवत्तेइ, सिद्धाइसयगुणसंपने य क जीवे लोगग्गभावमुबगए परमसुही भवइ । २। सहायपचक्खाणेणं भंते एगीभाव जणेइ, एगीभावभुए यजीवे एगम्गं भावेमाणे अप्पसहे अप्पझंझे अप्पकलहे अप्पकसाए अप्पतुमंतुमे संजमबहुले संवरबहुले समाहिए आविभवह। ५३१ भत्तपचक्खाणेणं भंते. गाई भवसयाई निरंभइ।५४ सम्भावपञ्चक्खाणेणं भंते अणियहि जणयइ, अनियहि पडिवन्ने य अणगारे चत्तारि केबलिकमंसे खबेइ.संजहा-वेयणिज आउयं नाम गोयं.ता लाघवियं जणेइ, लदुभूए णं जीवे अप्पमत्ते पागडलिंगे पसत्वलिंगे विसुद्धसम्मत्ते सत्तसमिइसमत्ते सवपाणभूयजीवसत्तेसु वीससणिजरूवे अप्पडिलेहे जिइंदिए विपुलतवसमिइसमन्नागए आवि भवइ ।५६। वेयावच्चेणं भंते० ति. त्ययरनामगुत्नं कम्मं निबंधइ ।५७। सवगुणसंपुषयाए णं भंते. अपुणरावत्तिं जणेइ, अपुणरावत्ति पत्तए णं जीवे सारीरमाणसाणं दुक्खाणं नो भागी भवइ ।५८। वीयरागयाए णं भंते नेहाणुबंधणाणि तण्हाणुधणाणि य बुछिदइ. मणुण्णामणुण्णेसु सहरूवरसफरिसर्गधेसु सचित्ताचित्तमीसएसु चेव विरजइ ।५९/ खंतीए णं भंते० परीसहे जिणेइ । ६० मुत्तीए णं भंते अकिंचणं जणेइ, अकिंचणे य जीवे अत्थलोलाणं पुरिसाणं अप्पत्यणिजे भवइ ।६१। अजवयाए ण भंते० काउज्जुययं भावुजुययं भासुजुयर्य अविसंवायणं जणेइ, अविसंवायणसंपन्नयाए ण जीवे धम्मस्स आराहए भवइ । ६२। महवयाए णं भंते. अणुस्सियनं जणेइ, अणुस्सियत्तेणं जीये मिउमदवसंपने PA अट्ट मयट्टाणाई निवेद।६३। भावसचेणं भंते. भावविसोहि जणेइ, भावविसोहीए वट्टमाणे अरहतपन्नत्तस्स धम्मस्स आराहण्याए अच्भुट्टेइ, अरहतपन्नत्तस्स धम्मस्स आराहणयाए अभुट्टिना परलोगधम्मस्स आराहए भवइ । ६४। करणसच्चेणं भंते करणसत्ति जणेइ, करणसच्चे वट्टमाणो जहा वाई तहा कारी भवइ ।६५। जोगसचेणं भंते ! णं जीवे जोगे विसोहेइ । ६६। मणगुनयाए णं भंते एगग्गं जणेइ, एगग्गचित्तेणं मणगुत्ते संजमाराहए भवद । ६७। वयगत्तयाए णं भंते निव्विकारत्तं जणेइ, निम्विकारे णं जीवे वइगुत्ते जोगे अज्झप्पजोगसाहणजुत्ते यावि भवइ । ६८। कायगुत्तयाए णं मंते संवर जणयइ. संवरेणं कायगुत्नेणं पुणो पावासवनिरोहं करेइ ।६९। मणसमाधारणयाएणं भंते एगग्गं जणेइत्ता नाणपजवे जणयइ त्ता सम्मत्तं विसोहेइ मिच्छत्तं च निजरेइ।७। वयसमाहारणयाए णं भंते वयसाहारणं दसणफ्जवे विसोहेइ ना सुलहबोहियत्नं च निब्वनेइ दाइहबोहियनं कायसमाधारणयाए णं भंते० चरित्तपजवे विसोहेडत्ता अहकखायचरितं विसोहेइत्ता चत्तारि केवलिकम्मसे खवेइ. तओ पच्छा सिज्झइ०1७२शनाणसंपन्नयाए णं जीवे चाउरते संसारकंतारे न विणस्सइ-'जहा सूई ससुत्ता, पडिया न विणस्सई । तहा जीवे समुत्ते, संसारे न विणस्सई ।। १०९७॥ नाणविणयनवचरित्तजोगे संपाउणइ, ससमयपरसमयविसारए य (अ)संघायणिजे भवह 1७३। दसणसंपन्नयाए णं भंते० भवमिच्छत्तछेयर्ण करेइ परं न विज्झायइ, अणुत्तरेणं नाणदंसणेणं अप्पाणं संजोएमाणे सम्मं भावमाणे विहरह।७४। चरित्नसंपचयाए णं भंते सेलेसीभाव जणेइ, सेलेसि पडिवन्ने अणगारे चनारि कम्मंसे खवेद तओ पच्छा सिज्झइ०1७५। सोइंदियनिग्गहेणं भंते. मणुन्नामणुन्नेसु सहेसु रागहोसणिम्गहं जणेइ तप्पञ्चइयं चणं कम्मं न बंधइ पुत्रबद्धं च निजरेइ । ७६। एवं चक्खिदिय०। ७७। पाणिदिय०।७८। जिभिदिय०।७९ फासिदिय०।८। कोहविजएणं भंते ! संति जणेइ कोहवेयणिज कम्मं न बंधइ पुष्वनिबद्धं च निजरेइ । ८१ एवं माणविजए महवं०1८२। माया• अज्जवं । ८३। लोभ संतोसं । ८४। पिजदोसमि. च्छादसणविजए णं भंते नाणदंसणचरित्ताराहणयाए अन्भुढेइ अट्टविहस्स कम्मगंठिविमोयणयाए, तप्पढमयाए जहाणुपुष्टि अट्ठावीसइविहं मोहणिज्ज कम्मं उग्घाएइ पंचविहं नाणावरणिजं नवविहं दंसणावरणिज्ज पंचविहं अंत राइयं, एए तिन्नि कम्मसे जुगवं खवेइ, तओ पच्छा अणुत्तरं अणंतं कसिणं पडिपुन्नं निरावरणं वितिमिरं विसुद्धं लोगालोगप्पभासर्ग केवलबरनाणदंसणं समुप्पाडेइ, जाव सजोगी हवद ताव य इरियावहियं कम्मं निबंधइ-सुहफ| १२९० उत्तराध्ययनानि मूलसूत्रं, Asear-6 मुनि दीपरत्नसागर । Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ का रिसं दुसमपट्टिईयं तं पढमसमए बद्धं बिइयसमए वेइयं तइयसमए निजिन्नं तं बद्धं पुढं उदीरियं वेइयं निज्जिन्नं, सेयाले अकम्मं चावि भवइ । ८५॥ अहाउयं पालइत्ता अंतोमुहुत्तदावसेसाए जोगनिरोहं करेमाणो सहमकिरिय अप्पडिवाई सुकझाणं झायमाणे तप्पढमयाए मणजोगं निरंमइ, वयजोगं निरंभइ, आणापाणनिरोहं करेइ, ईसिपंचहस्सक्खरुच्चारणद्धाए य णं अणगारे समुच्छिन्नकिरियं अणियट्टिकज्झाणं झियायमाणे वैयणिजं आउयं नामं गुत्तं च एए चत्तारिवि कम्मंसे जुगवं खवेइ । ८६ । तओ ओरालिये कम्माई च साहिं विप्पजहणाहिं विप्पजहित्ता उज्जुसेढीपत्ते अफुसमाणगई उड्ढं एगसमएणं अविग्गहेणं तत्थ गंता सागारोवउत्ते सिज्झइ जाव अंत करेइ १८७। एसो खलु सम्मत्तपरकमस्स अज्झयणस्स अट्टे समणेणं भगवया महावीरेण आघविए पत्नविए परूचिए दंसिए निर्दसिए उपदंसिए । ८८। ति बेमि सम्मत्तपरकम २९ ॥ जहा उ पावगं कम्मं रागदोससमज्जियं खवेइ तवसा भिक्खू, तमेगग्गमणो सुणे ॥ १०९८ ॥ पाणिवहमुसावाया अदत्तमेहुणपरिम्हा विरओ राईभोयणविरओ, जीवो भवइ अणासवो ॥९॥ पंचसमिओ तिगुत्तो, अकसाओ जिइंदिओ जगारवो य निस्सलो, जीवो भवइ अणासवो ॥ ११०० ॥ एएसि तु चिक्जासे, रागद्दोससमज्जियं । खवेइ तं जहा भिक्खू, तं मे एगमणा सुण ॥१॥ जहा महातलागस्स, संनिरुद्धे जलागमे। उस्सिंचणाए तवणाए. कमेण सोसणा भवे ॥ २ ॥ एवं तु संजयस्सावि, पावकम्मनिरासवे । भवकोडीसंचियं कम्मं तवसा निज्जरिज्जइ ॥ ३ ॥ सो तवो दुविहो वृत्तौ बाहिरऽच्मंतरो तहा। बाहिरो छविहो वृत्तो, एवमभितरी तवो ॥ ४ ॥ अणसणमूणोअरिया भिक्खायरिया य रसपरिच्चाओ। कायकिलेसो संलीणया य बज्झो तवो होइ ॥ ५ ॥ इत्तरियमरणकाला य, अणसणा दुविहा भवे इत्तरिया सावकखा, निरखकखा उ विज्जियां ॥ ६ ॥ जो सो इत्तरियतवो, सो समासेण छबिहो। सेढितवो पयरतवो घणो य तह होइ वग्गो य ॥ ७ ॥ तत्तो य वगवग्गो उ पंचमो छट्टओ पइन्नतवो। मणइच्छियचित्तत्थो नायको होइ इत्तरिओ ॥ ८ ॥ जा सा अणसणा मरणे, दुबिहा सा वियाहिया सवीयारमवीयारा कार्याचिङ्कं पई भवे ॥ ९ ॥ अह्वा सपरिकम्मा, अपरिकम्मा य आहिया । नीहारिमणीहारी, आहारच्छेअओ दुखुवि ॥ १११० ॥ ओमोअरणं पंचहा, समासेण वियाहियं दवओ खित्तकालेणं, भावेणं पज्जवेहि य ॥१॥ जो जस्स उ आहारो, तत्तो ओमं तु जो करे जहन्नेणेगसित्थाई, एवं दद्वेण ऊ भवे ॥ २ ॥ गामे नगरे नह रायहाणिनिगमे य आगरे पड़ी। खेडे कच्चडदोणमुहपट्टणमडवसंवाहे ॥ ३॥ आसमपए विहारे संनिवेसे समा (भा) यघोसे य। थलिसेणाखंधारे सत्ये संवह कोट्टे य ॥४॥ वाडेसु य रत्थासु य घरेसु वा एवमित्तियं खित्तं । कम्पइ उ ए माई एवं खित्तेण ऊ भवे ॥ ५ ॥ पेडा य अपेडा गोमुत्ति पयंगवीहिया चैव संबुकावट्टायय गंतुंपच्चागया छड्डा ॥ ६ ॥ दिवसस्स पोरिसीणं चउण्हंपि उ जत्तिओ भये कालो। एवं चरमाणो खलु कालप्रेमाणं मुणेयवं ॥ ७ ॥ अह्वा तद्वयपोरिसीए, ऊणाए घासमेसंतो। चउभागूणाए वा, एवं कालेण ऊ भवे ॥ ८ ॥ इत्थी वा पुरिसो वा अलंकिओ वाऽणलंकिओ बावि । अन्नयरवयत्थो वा अण्णयरेणं च वत्थेणं ॥ ९ ॥ अण्णेण विसेसेणं वण्णेणं भावमणुमुते । एवं चरमाणा खलु भावोमोणं मुणेयवं ॥ ११२० ॥ दवे खित्ते काले भावमि य आहिया उ जे भाषा। एएहिं ओमचरओ पज्जवचरओ भवे भिक्खु ॥ १ ॥ अद्भुविहगोयरमां तु. तहा सत्तेव एसणा। अभिग्गहा य जे अन्ने, भिक्वारियमाइ (हि) या ॥ २ ॥ खीरदहिसप्पिमाई, पणीयं पाणभोयणं । परिवज्जणं रसाणं तु, भणियं रसविकजणं ॥ ३ ॥ ठाणा वीरासणाईया, जीवस्स उ सुहावहा। उग्गा जहा धरिजंति, कायकिलेसं तमाहियं ॥ ४ ॥ एतमणावाए, इत्थी पविवज्जिये। सयणासणसेवणया, विवित्तं सयणासणं ॥ ५ ॥ एसो बाहिरगतवो, समासेण वियाहिओ अग्भितरं तवं इत्तो, वृच्छामि अणुपुष्वसो ॥ ६ ॥ पायच्छिन्तं विणओ वेयावच्च तहेव सज्झाओ। झाणं च विसग्गो, एसो अभितरो तवो ॥ ७॥ आलोअणारिहाईयं, पायच्छित्तं तु दसविहं । जे भिक्खू बहई सम्मं, पायच्छित्तं तमाहियं ॥ ८॥ अच्मुद्वाणं अंज (गंज) लिकरणं, तहेवासणदायणं । गुरुभत्तिभावसुस्सूसा, विणओ एस वियाहिओ ॥ ९ ॥ यरियमाइयंमि, वेयावचे य दसविहे। आसेवणं जहाथामं, वेयावचं तमाहियं ॥ ११३०॥ वायणा पुच्छणा चेव, तहेव परियहणा अणुप्पेहा धम्मकहा, सज्झाओ पंचहा भवे ॥ १ ॥ अहरुदाणि वज्जित्ता, झाइजा सुसमाहिए। धम्मसुकाई झाणाई, झाणं तं तु बुहा वए (वयन्ति ॥ २ ॥ सयणासण ठाणे वा, जे उ भिक्खू ण वावरे कायस्स विउस्सग्गो, छट्टो सो परिकित्तिओ ॥ ३ ॥ एवं तवं तु दुविहं, जं सम्मं आयरे मुणी से खिप्यं सङ्घसंसारा. विप्पमुचइ पंडिए ॥ ११२४ ॥ त्ति बेमि तवमग्गिनं ३० ॥ चरणविहिं पवक्खामि, जीवस्स उ सुहावहं। जं चरिता बहू जीवा, तिम्रा संसारसागरं ॥ ५॥ एगओ विरदं कुज्जा, एगओ अ पवत्तणं अस्संजमे नियत्तिं च संजमे य पवत्तणं ॥ ६ ॥ रागद्दोस य दो पावे. पात्रकम्मपत्रत्तणे जे भिक्खू रुंभइ निचं, से न अच्छइ मंडले ॥ ७ ॥ दंडाणं गारवाणं च सहाणं च तियं तियं जे भिक्खु ० ॥ ८ ॥ दिवे य जे उवसग्गे, तहा तेरिच्छमाणुसे । जे भिक्खू० ॥ ९ ॥ विगहा कसायसन्नाणं, झाणाणं च दुयं तहा। जे भिक्खु०॥११४०॥ वसु इंदियत्थेसु, समिईसु किरियासु य जे भिक्खू० ॥१॥ लेसासु छसु काएस, छक्के आहारकारणे जे भिक्खू० ॥ २ ॥ पिंडुग्गह पडिमासु, भयट्ठाणेसु सत्तसु । जे भिक्खू० ॥ ३ ॥ मए बंभगुत्तीसु, भिक्खुधम्मंमि दसविहे जे भिक्खु ॥ ४ ॥ उवासगाणं पडिमासु, भिक्खूणं पडिमा य जे भिक्खू० ॥ ५ ॥ किरियासु भूयगामेसु परमाहम्मिएस य जे भिक्खू० ॥ ६ ॥ गाहासोलसएहिं नहा अस्सं जमंमि य जे भिक्खुः ॥ ७ ॥ बंभंमि नायज्झयणे, ठाणेसु यऽसमाहिए। जे भिक्खू० ॥ ८॥ इकवीसाए सबले, बाबीसाए परीसहे जे भिक्खू० ॥ ९ ॥ तेवीसईसुयगडे, रूचाहिए सुरेषु य जे भिक्खू० ॥ ११५० ॥ पणवीसा भावणाहि च, उद्देसेस दसाइणं जे भिक्खू० ॥ १ ॥ अणगारगुणेहिं च, पगप्पंमि तहेव य जे भिक्खू० ॥ २ ॥ पावसुयप्पसंगेमु, मोहट्टाणेसु चैव य जे भिक्खू० ॥ ३ ॥ सिद्धाइगुण जोगेसु, नित्तीसासायणासु य जे भिक्खू जयई निचं. से न अच्छइ मंडले ॥ ४॥ इइ एएस जे भिक्खु, ठाणेसु जयई सया खिप्पं से सङ्घसंसारा, विप्पमुच्चइ पंडिए । ११५५ ॥ त्तित्रेमि, चरणविहिजं ३१॥ अच्चतकालस्स समूलयस्स, सङ्घस्स दुक्खस्स उ जो प ( उ ) मोक्खो । तं भासओ मे पडिपुन्नचित्ता ! सुणेह एगग्गहियं हियत्थं ॥ ६ ॥ णाणस्स सङ्घ (च) स्स पगासणाए, अन्नाणमोहस्स विवजणाए। रागस्स दोसस्स य संखएणं, एगंतसुक्ख समुवेइ मोक्खं ॥ ७॥ तस्सेस मग्गो गुरुविद्धसेवा, विवज्ञणा १२९१ उत्तराध्ययनानि मूलसूत्रं, अन्सयाणं - ७३२ मुनि दीपरत्नसागर 1 1 1 Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बालजणस्स दूरा । सज्झायएगंतनिसे (निवेस)वणा य, सुत्तत्वसंचिंतणया चिई य ॥ ८॥आहारमिच्छे मियमेसणिज, सहायमिच्छे निउणत्यचुदि। निकेयमिच्छेज विवेगजोगं, समाहिकामे समणे तवस्सी ॥९॥ न वा लभिजा निउणं सहायं, गुणाहियं वा गुणओ समं वा। एगोवि पावाई विवजयंतो(अणायरंतो), विहरेज कामेसु असनमाणो॥ ११६०॥ जहा य अंडप्पभवा बलागा, अंडं बलागप्पभवं जहा य । एमेव मोहाययणं खु तण्हं. माहं च तव्हा. ययणं वयंनि ॥१॥ रागो य दोसोविय कम्मबीयं, कम्मं च मोहप्पभवं वयंति। कम्मंच जाईमरणस्स मूलं, दुक्खं च जाईमरणं वयंति ॥२॥ दुक्खं हर्य जस्स न होइ मोहो. मोहो हओ जस्स न होइ तण्हा । तण्हा हया जस्स न हो। लोभो, लोभो हओ जम्स न किंचणाई ॥३॥ रागं च दोसं च तहेव मोहं, उदनुकामेण समूलजालं। जे जे उचाया पडिवजियचा. ते कित्तइस्सामि अहाणुपुचि ॥४॥रसा पगाम नहु सेवियचा. पायं रसा दित्तिकरा नराणं । दिन च कामा समभिवंनि, दुर्म जहा साउफलंब पक्खी ॥५॥ जहा दवग्गी पउरिंधणे वणे, समारुओ नोत्रसमं उबेइ। एबिंदियम्गीवि पगामभोइणो, न भयारिस्स हियाय कस्सई ॥६॥ विवित्तसिजासगजंनियाणं. ओमासणाणं (E) दमिइंदियार्ण । न रागसत्तू घरिसद चित, पराइओ बाहिरिवोसहेहिं ।। ॥ जहा बिरालावसहस्स मूले, न मूसगाणं वसही पसस्था। एमव इ नजंपियं इंगिय पहियं वा । इन्धीण चित्तंसि निवेसइना, दटुं ववम्से समणे तवस्सी॥९॥ असणं चेव अपस्थणं च, अचितणं चेव अकित्तणं च। इत्थीजणस्सारियाणजुम्गं. हियं सया भवए स्याणं ॥११७०॥ कामं तु देवी| हिवि भूसियाहिं, न चाइया खोभइ तिगुना। नहावि एगनहियंनि नचा. विविनवासो मुणिणं पसत्थो ॥१॥ मुक्खाभिकंखिस्सवि माणवस्स, संसारभीरुस्स ठियस्स धम्मे। नेयारिस दुनरमस्थि लोए. जह स्थिओ बालमणोहराओ ॥२॥ एए य संगा समडकमिना, मुहतरा चेव हवंति सेसा। जहा महासागरमुत्तरित्ता, नई भवे अवि गंगासमाणा ॥३॥ कामाणुगिद्धिप्पभवं खुदुक्खं, सबस्स टोगस्स सदेवगस्स। जं काइयं माणसियं च किंचि, तस्सतयं गच्छइ बीयरागो॥४॥ जहा य किंपागफन्ला मणोरमा, रसेण पनेण य भुजमाणा। ते सुदए जीविय पञ्चमाणा. एओवमा कामगुणा विवागे॥५॥जे इंदियाणं विसया मणुष्णा, नातेसु भार्च निसिरे कयाई। न या मणुन्नेसु मणंपि कुजा, समाहिकामे समणे नवम्सी ॥ ६॥ चक्षुम्स रुवं गहणं वयंति, नं रागहेउं तु मणुन्नमाहु । तं दोसहेउं अमणुन्नमाहु, समो य जो तेसु स वीयरागो ॥ ७॥ रुवस्स चक्खं गहणं वयंति. चक्नुस्स रूवं गहणं वयंति। रागस्स हेउं समणुन्नमाहु, दोसम्स हेउं जमणुन्नमाहु ॥८॥ रूबेसु जो गिडिमुवेद तिवं, अकालियं पावइ सो विणासं । रागाउरे से जह वा पयंगे, आलोअलोले समुवेइ मच्चु ॥९॥ जे यावि दोस समुवेइ ति, तसि क्खणे से उ उवेइ दुक्खं । दुहनदोसेण सएण जंतू न किंचि सर्व अवरज्वाई से ॥११८०॥ एतरनो रुहरंसि रूये, अनालिसे से कुणई पओस । दुक्खस्स संपीलमुवेद पाले, न लिप्पई नेण मुणी चिरागे ॥१॥रूवाणुगासाणुगए य जीवे, चराचरेहिं सयणेगरूवे। चिनहिने परियावेइ चारे, पीलेड अन्नद्गुरुः किलिट्टे ॥२॥ रुवाणुवाएण परिग्गहेण, उप्पायणे रक्खणसंनिओगे। वए विओगे य कहं सुह से, संभोगकाले य अतिनलाभे ॥३॥ सवे अतिते य परिग्गहंमि, सत्तोवसनोन उबेइ नुदि। अनुट्टिदोसेण दुही परस्स, लोभाषिले आययई अदनं ॥४॥ तण्हाभिभूयस्स अदनहारिणो, रुवे अतित्तस्स परिग्गहे य। मायामुसं वड्ढइ लोभदोसा, नत्थावि दुक्खा न विमुबह से ॥५॥ मोसस्स पच्छा य परत्थओ य, पओगकालय दुही दुरंते। एवं अदनाणि समायअंतो, रुवे अतितो दुहओ अणिस्सो ॥ ६॥ रुवाणुरत्नस्स नरम्स एवं. कनो सुहं हुज्ज कयाइ किंचि ?। नत्थोवभोगेऽपि किलेसदुक्ख. निवत्नई जस्स कएण दुक्खं ॥७॥ एमेव रूबंमि गा पओसं. उबेइ दुक्खाहपरंपराओं। पद्दचित्तो य चिणाइ कम्म, जं से पुणो होड दुहं विवागे ॥८॥रुचे चिरत्नो मणुआ विसागा, एएण दुक्खोहपरंपरेण । न लिपपई भवमज्झेऽवि संतो, जलेणवा पुक्खरिणीपलासं ॥ ९॥ सोयम्स सदं गहर्ण०॥११९०॥ सहस्स सोयं गहणं०1०स वीयरागो ॥१॥ सहेसु जो मेहिमुवेइ०॥२॥जे यावि दोसः ॥३॥ एगेनरने रुइरंसि सहे०॥४॥ सदाणुगासाणु०॥५॥ सदाणुवाएण परिम्गहेण०॥६॥ सहे अतिते॥७॥ तण्हाभिभूयस्स०॥८॥ मोसस्स पच्छा य० ॥९॥ सदाणु० ॥१२००॥ एमेव सदमि० ॥१॥ सहे विरत्नो ॥२॥ घाणस्स गंध गहणं वयंनि ॥३॥ गंधस्स पाणं ॥४॥ गंधेसु जो गेहि रागाउरे ओसहिगंधगिडे, सप्पे चिलाओविव निक्खमंते ॥५॥जे यावि दोस०॥६॥ एगंतरत्तो रुदरंमि गंधे०॥७॥ गंधाणु०॥८॥ गन्धाणुवा॥९॥ गंधे अनित्ते० ॥१२१०॥ नण्हा ॥१॥ मोसम्सः ॥२॥ गंधाणु०॥३॥ एमेव गंधमि०॥४॥ गंधे विरत्तो०॥५॥ जिभाए रसं गहर्ण० ॥ ६॥ रसस्स जीहं गहणं वयंतिः ॥ ७॥ रसेम जो गेहि। रागाउरे बडिसविभिन्नकाए. मच्छे जहा आमिसभोगगिडे ॥८॥ गाथाः १३ ॥१२२८ ॥ कायस्स फार्स गहणं वयंति० ॥९॥ फासस्स कार्य गहणं० ॥१२३०॥ फासेसु जो गेहिमुनरागाउरे सीयजलायसन्ने, गाहम्गहीए महिसे व रन्ने ॥१॥ एवं फासाभिलावे गावाः १३ ॥१२४१॥ मणम्स भावं गहणं ॥२॥ भावम्स मणं ग० ॥३॥ भावेसु जो गेहि रागाउरे कामगुणेमु गिद्दे, | करेणुमम्गावहिएव नागे। भावामिलावे गावाः १३॥१२५४॥ एपिदियत्था यमणस्स अत्या. दुस्खस्स हेमणुयम्स रागिणो। ने चेव थेवपि कयाइ दुक्खं. न बीयरागम्स करिनि किचि ॥५॥ न कामभोगा समयं उचिंति, न यावि भोगा | चिगई उविति। जे तापोसी य परिगही य. सो तेशु मोहा विगई उबेइ ॥६॥ कोहं च माणं च नहेब मायं. लोभं दुगुठं अरई रईचा हासं भयं सोगपुमिन्यिपेयं, नपुंसपेयं विविहे य भावे ॥७॥ आवजई एक्मणेगरूवे, एवंविहे कामगुणेसु सत्तो। अन्ने य एयप्पभवे विसेसे. कारुण्णदीणे हिरिमे वइस्सो ॥८॥ कप्पं न इच्छिन्न सहायलिच्छू. पच्छाणुनावण नवप्पभाचं । एवं विकारे अमियप्पयारे. आवनई इंदियचोरवस्से ॥९॥ नओ सि जायंनि पओअणाई, 13 निमजिउं मोहमहन्नवंमि। सुहेसिणो दुस्खविणोयणट्ठा, तप्पच्चयं उजमए अरागी ॥१२६०॥ बिरजमाणस्स य इंदियन्या. सदाइया नावइयप्पगारा।न नस्स संबंचिमणुन्नयं पा, निवत्तयंनी अमणुन्नयं वा ॥१॥ एवं ससं | कप्पविकप्पणासु, संजायई समयमुवट्ठियस्स । अत्थं च संकप्पयओ तओ से, पहीयए कामगुणेसु तव्हा ॥२॥ सो बीयरागो कयसबकिचो, संवेइ नाणाचरणं खणणं । नहेब दरिसणमावरे, ज चनरायं पकरेइ कम्मं ॥३॥ (३२३) १२९२ उनराध्ययनानि मूलमूत्रं, अन्सा -३२ मुनि दीपरत्नसागर Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सव्वं तओ जाणइ पासई य, अमोहणो होइ निरंतराए। अणासवे झाणसमाहिजुत्तो, आउफ्खए मुक्खमुवेइ सुद्धे ॥४॥ सो तस्स सबस्स दुहस्स मुक्खो, जं चाहई सययं जंतुमेयं । दीहामयश्चिप्पमुको पसत्थो, तो होइ अच्चंतसुही कयत्थो ॥५॥ अणाइकालप्पभवस्स एसो, सबस्स दुक्खस्स पमुक्खमग्गो। वियाहिओ जं समुविच्च सत्ता, कमेण अच्चंतसुही भवंति ॥१२६६॥ ति बेमि, पमायठाणं ३२॥ अट्ट कम्माई वुच्छामि. आणुपुषिं जहकम। जेहिं बड़े अयं जीवे, संसारे परिव(य)लए॥७॥ नाणस्सावरणिजं, इंसणाचरणं तहा। वेयणिज तहा मोहं. आउकम्मं तहेव य ॥८॥नामकम्मं च गोयं च, अंतरायं तहेब य। एवमेयाई कम्माई. अट्टेव य समासओ ॥९॥ नाणावरणं पंचविहं. सु आभिणित्रोहियं । ओहिं नाणं तईयं, मणनाणं च केवलं ॥१२७०॥ निदा तहेव पयला निहानिहा य पयलपयला या तत्तो य थीणगिद्धी पंचमा होइ नाया।१॥ चक्खुमचक्खूओहिस्स, दंसणे केवले य आवरणे । एवं तु नवविगप्पं, नायव दसणावरणं ॥२॥ वेयणियपि हु (य) दुविहं, सायमसायं च आहियं । सायस्स उ बहू भेया. एमेवासायस्सवि ॥३॥ मोहणियंपिय दुविहं. दसणे चरणे तहा। दंसणे तिविहं वृत्तं. चरणे दुविहं भवे ॥४॥ सम्मत्तं चेव मिच्छतं, सम्मामिच्छत्तमेव या एयाओ विनि पयडीओ. मोहणिजस्स दंसणे॥५॥चरितमोहर्ण कम्म, विहं तु वियाहियं। कर कम्म, दुविहं तु वियाहिय। कसायमोहणिजे च.नोकसायं तहवय ॥६॥ सोलसविहभेएणं, कम्मं तु कसायज। सत्तविहं नवविहं वा, कम्मं नोकसायजं ॥ ७॥ नेरइयतिरिक्खाऊ, मणुस्साउं तहेव य। देवाऊयं चउत्थं तु, आउकम्मं चउविहं ॥८॥ नामकम्मं दुविहं. मुहममुहं च आहियं। सहस्स उ बहू भेया. एमेव य असुहस्सवि ॥ ९॥ गोयं कम्म विहं. उचं नीयं च आहियं । उचं अट्ठविहं होइ, एवं नीयपि आहियं ॥१२८०॥ दाणे लाभे य भोगे य, उवभोगे वीरिए तहा। पंचविहमन्तरायं, समासेण वियाहियं ॥१॥ एयाओ मूलपयडीओ, उत्तराओ अ आहिया। पएसगं खिनकाले य, भावं चादुत्तरं सुण ॥२॥ सवेसिं चेव कम्माणं, पएसम्गमणंतगं । गंठिप(य)सत्ताऽणाइ (ईयं), अंतो सिद्धाण आहियं ॥३॥ सबजीचाण कम्मं तु. संगहे छहिसागयं । सकेसुवि पएसेस, सई सघण बदगं ॥४॥ उ. दहीसरिसनामाणं, नीसई कोडिकोडीओ। उक्कोसिया होइ ठिई, अंतमुहुत्तं जहन्निया ॥५॥ आवरणिबाण दुण्डंपि, वेयणिजे तहेव य । अंतराए य कम्मंमि, ठिई एसा वियाहिया ॥ ६॥ उयहीसरिसनामाणं, सन्तरि कोडिकोडिओ। मोहणिजस्स उक्कोसा, अंतमुहुनं जहन्निया ॥७॥ तित्तीससागरोवमा, उक्कोसेणं वियाहिया। ठिई उ आउकम्मस्स, अंतमुहुत्तं जहन्निया ॥ ८॥ उदहीसरिसनामाणं, वीसई कोडिकोडिओ। नामगोआण उक्कोसा, अन्तमुहुत्ता जहन्निया ॥९॥ सिद्धाणऽणंतभागो, अणुभागा हवंति उ। सवेसुवि पएसम्ग, सबजीवेसु (स) इच्छियं ॥ १२९० ॥ तम्हा एएसि कम्माणं, अणुभागे वियाणिया। एएसिं संवरे चेव, खवणे य जए बुहे ॥१॥नि बेमि, कम्मपयडी ३३॥ सज्झयणं पवक्खामि, आणुपुषिं जहक्कम। छहँपि कम्मलेसाणं, अणुभावे मुणेहि मे ॥२॥ नामाई वणरसगंधफासपरिणामलक्खणं ठाणं। ठिई गइंच आउं. लेसाणं तु सुणेह मे ॥३॥ किण्हा नीला य काऊय, नेऊ पम्हा नहेब य । सुक्का लेसा य छट्ठा उ, नामाई तु जहकमं ॥४॥ जीमूतनिसंकासा, गवलरिट्ठगसंनिभा। खंजंजणनयणनिभा, किण्हलेसा उ वण्णओ ॥५॥ नीलासोगसंकासा, चासपिच्छसमप्पभा। वेरुलियनिडसंकासा, नीललेसा उ वष्णओ ॥६॥ अयसीपुप्फसंकासा, कोइलच्छदसंनिभा। पारेवयगीवनिभा, काउलेसा उ वणओ ॥ ७॥ हिंगुल्यधाउसंकासा, तरुणाइचसंनिभा। सुयतुंटपईवनिभा, नेउलेसा उ वष्णओ॥८॥ हरियालभेयसंकासा, हलिहाभेदसंनिभा। सणासणकुसुमनिभा, पम्हलेसा उ वण्णओ॥९॥ संखंककुंदसंकासा, खीरधारसमप्पभा । स्ययहारसंकासा, सुकलेसा उ वण्णओ॥१३००॥ जह कड़यतुंबयरसो निंबरसो कडुपरोहिणिरसो वा। इनोवि अगंनगुगो रसोउ ॥२॥जह तरुणअचयरसा तुयरकवित्थस्स वावि जारिसआ। काऊड० ॥३॥ जह परिणयंत्रगरसा पककवित्थरस वावि जारि सओ। तेऊ० ॥४॥वरवारुणीइ व रसो विविहाण व आसवाण जारिसओ। महमेगस्स व रसो इनो पम्हाइपरएणं॥५॥ खजुरमरियरसो खीररसो खंडसकररसो वा इनो उसकाइ०॥६॥जह गोमडस्त गंधो मुणगमडस्स व जहा अहिमडस्स। इनोवि अणंतगुणो लेसाणं अप्पसत्थाणं ॥७॥जह मुरहिकमुमगंधो गंधवासाण पिस्समाणाणं। इत्तोचि अर्णतगुणो पसत्यलेसाण निण्हंपि ॥८॥जह करगयम्स फासो गोजिम्भाए व सागपनाणं। इनोवि० अप्पसत्थाणं ॥९॥जह चूरस्सवि फासो नवणीयस्स व सिरीसकुसुमाणं। इत्तोवि०निष्हंपि॥१३१०॥तिविहो व नवविहो वा सत्तावीसइविहिकसीओ(होवा। दुसओ नेयालो वालेसाण होइ परिणामो ॥१॥ पंचासवप्पमनो नीहि अगुनो छम् अविरओ या तिवारंभपरिणओ खुद्दो साहस्सिओ नरो ॥२॥ निबंधसपरिणामो, निस्संसो अजिइंदिओ। एयजोगसमाउत्तो. कण्हलेसं तु परिणमे ॥३॥ इस्सात्रमरिसअनवो. अविज माया अहीरिया। गेही पओसे य सटे, रसन्योलुए सायगवेसए य॥४॥ आरंभा अविरो. मुद्दो साहस्सिओ नरो। एय०,नीललेसं० ॥५॥ वंके वंकसमायारे, नियडिडे अणुजुए। पलिउंचग ओवहिए, मिच्छदिट्टी अणारिए ॥६॥ उष्फलगट्टबाई य, नेणे अ(या)विय मच्छरी। एय०,काउलेसं०॥ ७॥ नीआवित्ती अचवले, अमाई अकुहले। विणीयविणए दंते. जोगवं उवहाणवं ॥८॥ पियधम्मे दधम्मे, वजभीरू हिएसए। एयः, तेउलेसं॥९॥ पयणुकोहमाणो य, मायान्टोभे य पयणुए। पसंतचिने दंतप्पा, जोगवं उपहाणवं ॥१३२०॥ तहा य पयणुवाई य, उवसंते जिइंदिए। एय०. पम्हलेसं॥१॥ अट्टरुदाणि वजिना, धम्ममुक्काणि साहए। पसंतचिने दंतप्पा, समिए गुने य गुनिसु ॥२॥ सरागे बीयरागे वा, उपसंते जिइंदिए। एय०. सुकलेसं तु परिणमे ॥३॥ अस्संखिजाणोसप्पिणीण उस्सप्पिणीण जे समया। संखाईया लोगा लेसाण हवंनि ठाणाई ॥४॥ मुहत्तदं तु जहन्ना तित्तीसा सागरा मुहुनऽहिया। उकोसा होइ ठिइ णायचा किण्हलेसाए ॥५॥ मुहत्तद्धं तु जहन्ना दसउदहिपलियमसंखभागमभहिया। नीललेसाए ॥६॥ मुहुनदं तु जहन्ना तिण्णुदही पलियमसंखभागमभहिया। काउलेसाए॥७॥ मुहुनदं नु जहन्ना दोण्हुदही पलियमसंख. | भागमभहिया। तेउलेसाए ॥८॥ मुहुत्तदं तु जहन्ना दसउदही होइ मुत्तमम्भहिया ।० पम्हलेसाए ॥९॥ मुहुत्तई तु जहन्ना वित्तीसं सागरा मुहुनहिया। सुकन्टेसाए ॥१३३०॥ एसा खल लेसाणं ओहेण ठिई उ वणिया १२९३ उत्तराध्ययनानि मूलमूत्रं, -४ मुनि दीपरत्नसागर Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 1 होइ। चउसुचि गई इत्तो लेसाण ठिई उ वुच्छामि ॥ १ ॥ दसवाससहस्साई काऊ ठिई जहनिया होइ। तिन्नोदही पलिय असंखेजभागं च उक्कोसा ॥ २ ॥ तिष्णुदही पटिओषममसंखभागो जहन नीलठिई दसउदहीपलिओषममसंखभागं च उक्कोसा ॥ ३ ॥ दसउदही पलिओचममसंखभागं जहनिया होइ। तित्तीससागराई उक्कोसा होइ किन्हाए ॥ ४ ॥ एसा नेरइयाणं लेसाण ठिई उ बष्णिया होइ। तेण परं बुच्छामि तिरियमणुस्साण देवाणं ॥ ५ ॥ अंतोमुहत्तमदं लेसाण ठिई जहिं जहि जा उ तिरियाण नराणं वा वजित्ता केवलं लेसं ॥ ६ ॥ मुहुत्तद्धं तु जहन्ना उक्कोसा होइ पुण्वकोडी उ। नवहिं वरिसेहिं ऊणा नायव्वा सुकलेसाए ॥ ७॥ एसा तिरियनराणं लेसाण ठिई उ वष्णिया होइ। तेण परं वृच्छामि लेसाण ठिई उ देवाणं ॥ ८ ॥ दसवाससहस्साई किन्हाऍ ठिई जहन्निया होइ। पटियमसंखिन्नइमो उकोसो होइ किन्हाए ॥ ९ ॥ जा किव्हाइ लिई खलु उक्कोसा सा उ समयमम्भहिया। जहणं नीलाए पलियमसंखं च उकोसा ॥ १३४०॥ जा नीलाइ ठिई खलु उक्कोसा सा उ समयमम्भहिया। जहन्नेणं काऊए पलियमसंखं च उक्कोसा ॥ १ ॥ तेण परं बुच्छामी तेऊलेसा जहा सुरगणाणं भवणवइवाणमंतरजोइसवेमाणियाणं च ॥ २ ॥ पलिओवमं जना उक्कोसा सागरा उ दुण्हऽहिया पलियमसंखिजेणं होई भागेण तेऊए ॥ ३ ॥ दसवाससहस्साई वेऊइ ठिई जहन्निया होइ। दुन्नुदही पलिओवम असंखभागं च उक्कोसा ॥ ४ ॥ जा तेऊ ठिई खल उक्कोसा साउ समयमम्भहिया। जहन्नेण पम्हाए दस मुडुतहियाई उकोसा ॥ ५ ॥ जा म्हाइ० । जहन्नेणं सुकाए तित्तीस मुहुत्तमम्भहिया ॥ ६ ॥ किव्हा नीला काऊ तिनिवि लेखाउ अहम्मलेसाउ। एयाहिं विह्निवि जीवो दुग्गई उबवजई ॥ ७ ॥ तेऊ पम्हा सुका तिन्निवि एयाउ धम्मलेसाउ एयाहिं तिहिवि जीवो सुग्गई उपजाई ॥ ८॥ साहिं समाहिं पढमे समयंमि परिणयाहिं तु न हु कस्सइ उपवत्ती परे भवे अस्थि जीवस्स ॥ ९ ॥ साहिं सव्वाहिं चरमे समयंमि परिणयाहिं तु । न० ॥ १३५० ॥ अंतमुद्दत्तमि गए अंतमुहुत्तंमि सेसए चैव लेसाहिं परिणयाहिं जीवा गच्छंति परलोयं ॥१॥ तम्हा एयासि लेसाणं, अणुभावं वियाणिया अप्पसत्थाउ वज्जित्ता, पसत्थाओ अहिए ।। १३५२ ॥ त्ति बेमि, लेसज्झयणं ३४ ॥ सुणेह मे एगमणा, मग्गं सब्बन्नु (बुद्धेहिं) देसियं जमायरंतो भिक्खू, दुक्खाणंतकरो भवे ॥ ३ ॥ गिहवासं परिचज्जा, पव्वज्जामस्सिए मुणी इमे संगे वियाणिजा, जेहिं सजति मावा ॥ ४ ॥ तहेब हिंसं अलियं, चोजं अचंभसेवणं इच्छाकामं च लोभं च संजओ परिवजाए ॥ ५ ॥ मणोहरं चित्तघरं, मधूवणवासिय सकवार्ड पंडरुडोयं, मणसावि न पत्थए ॥ ३ ॥ इंदियाणि उ भिक्खुस्स, तारिसंमि उवस्सए । दुकराई निवारे (तु धारेउं), कामरागचिचढणे ॥ ७ ॥ सुसाणे सुन्नगारे वा, रुक्खमूले व इकओ। पइरिके परकडे वा, वासं तत्थऽभिरोयए ॥ ८ ॥ फासूर्यमि अणाबाहे. इत्थीहिं अणभिए। तत्थ संकप्पए वासं, भिक्खू परमसंजए ॥ ९ ॥ न सयं गिहाई कुविजा, नेव अन्नेहिं कारए गिहकम्मसमारंभे, भूषाणं दिस्सए वहो ॥ १३६० ॥ तसाणं थावराणं च सुट्टमाणं बायराण य तम्हा गिहसमारंभ, संजओ परिवज्जए ॥ १॥ नहेब भत्तपाणेसु, पयणे पावणेस य पाणभूयदयट्ठाए, न पए ण पयावए ॥ २ ॥ जलधन्ननिस्सिया जीवा, पुढवीकट्टनिस्सिया। हम्मेति भत्तपाणेसु, तम्हा भिक्खु न पयावए ॥ ३ ॥ विसप्पे सङ्घओधारे, बहुपाणविणासणे नस्थि जोइसमे सत्थे, तम्हा जोई न दीवए ॥ ४ ॥ हिरण्णं जायरुवं च मणसावि न पत्थए। समलिदुकंचणे भिक्खु, विरए कयविकए ॥ ५॥ किणतो कइओ होइ, विकिणतोय वाणिओ कयविक्रयंमि वहतो, भिक्खू हवइ न तारिखो ॥ ६ ॥ भिक्खियां न केय, भिक्खुणा भिक्खवित्तिणा। कयविकओ महादोसो, भिक्खाचित्ती सुहावहा ॥ ७॥ समुयाणं उंठमेसिजा, जहासुत्तमणिदियं लाभालाभंमि संतुडे, पिंडवायं चरे मुणी ॥ ८ ॥ अलोलो न रसे गिद्धो, जिन्भादतो अमुच्छिओ। न रसट्टाऍ भुंजिजा, जवणट्टाए महामुनी ॥ ९ ॥ अञ्चणं रयणं चेव, वंदणं पूअणं तहा इड्ढीसकारसम्माणं, मणसावि न पत्थए । १३७० ॥ सुकं झाणं झियाइजा, अणियाणे अकिंचणे वोसट्टकाए विहरिजा, जाव कालस्स पजओ ॥ १ ॥ निज्जूहिऊण आहार, कालधम्मे उबट्टिए। चइऊण माणुसं बुंदि, पहू दुक्खा विमुञ्च ॥ २ ॥ निम्ममो निरहंकारो, बीयराओ अणासवो संपत्तो केवलं नाणं, सासयं परिनिबुडे ॥ १३७३ ॥ नि बेमि, अणगारमा ३५ ॥ जीवाजीवविभति मे, सुणेहेगमणा इओ जं जाणिऊण भिक्खु, सम्मं जयइ संजमे ॥ ४ ॥ जीवा चेत्र अजीवा य, एस लोए वियाहिए। अजीवदेसमागासे, अलोए से वियाहिए ॥ ५॥ दशओ खिनओ चेव कालओ भावओ तहा। परूवणा तेसि भवे, जीवाणमजीवाण य ॥ ६ ॥ रूविणो चेवरूवा य, अजीवा दुबिहा भवे। अरूवी दसहा वृत्ता, रूविणोऽवि चउशिहा ॥ ७ ॥ धम्मत्थिकाए तहेसे, तप्पएसे य आहिए। अधम्मे तस्स देसे य, नप्पएसे य आहिए ॥ ८ ॥ आगासे तस्स देसे य, तप्पएसे य आहिए। अदासमए चेव, अरूवी दसहा भये ॥ ९ ॥ धम्माधम्मे य दोडवेए लोगमित्ता वियाहिया लोगालोगे य आगासे, समए समयखिनिए । १३८० ॥ धम्माधम्मागासा, निनिवि एए अणाइया । अपज्जवसिया चैव सङ्घद्धं तु वियाहिया ॥ १ ॥ समएवि संतई पप्प, एवमेव वियाहिए। आएसं पप्प साईए, सपज्जवसिएऽविय ॥ २ ॥ खंधा य खंपदेसा य, तप्पएसा नहेब य परमाणुणो अ बोदशा, रूविणो अचाि ॥ ३ ॥ एगत्तेण पुडुत्तेणं, खंधा य परमाणू अ लोएगदेसे लोए अ, भइअशा ते उ खित्तओ। एतो कालविभागं तु, तेसिं वृच्छं चउच्विहं ॥ ४ ॥ संतई पप्प तेऽणाई, अप्पज्जवसिआविअ लिई पटुच साईआ, सप्पजवसिआवि ॥ ५ ॥ असंखकालमुकोर्स, इकं समयं जहन्नयं अजीवाण य रूवीणं, ठिई एसा विआहिआ ॥ ६ ॥ अनंतकालमुकोर्स, इकं समयं जहणणयं अजीवाण य रूवीणं, अंतरेयं विजहि ॥ ७॥ ओ गंधओ व रसओ फासओ तहा। संठाणओ य विन्नेओ, परिणामो तेसि पंचहा ॥ ८ ॥ वन्नओ परिणया जे उ, पंचहा ते पकित्तिया किव्हा नीला य लोहिया, हालिदा सुकिला तहा ॥ ९ ॥ गंधओ परिणया जे य, दुबिहा ने वियाहिया सुभिगंधपरिणामा, दुब्भिगंधा तहेव य ॥ १३९०॥ रसओ परिणया जे उ, पंचहा ते पकित्तिया। तित्तकडुयकसाया, अंबिला महुरा तहा ॥ १ ॥ फासओ परिणया जे उ, अट्टहा ते पकिलिया। कक्खडा मउया चेत्र, गुरुया लहुया तहा ॥ २ ॥ सीया उन्हाय निदा य, तहा लुक्खा य आहिया इति फासपरिणया एए, पुग्गला समुदाहिया ॥ ३ ॥ संठाणपरिणया जे उ, पंचहा ते पकित्तिया परिमंडला य वट्टा य, तंसा चउरंसमायया ॥ ४ ॥ वण्णओ जे भवे किन्हे भइए १२९४ उत्तराध्ययनानि मूलसूत्र, अजलयणं- 25 । मुनि दीपरत्नसागर म्य कश्य Page #28 -------------------------------------------------------------------------- ________________ या से उ गंधओ। रसओ फासओ चेत्र, भइए संठाणओऽविय ॥५॥ पणओ जे भवे नीले, भहए॥६॥ वण्णो लोहिए जे उ, भइए से उ गंधओ। रसओ फासओ चेत्र, भहए संठाणओविय॥७॥ वण्णओ पीअए जे उ. भइए से उ गंधओ। रसओ फासओ चेत्र, भइए संठाणओऽविध ॥८॥वष्णओ मुकिले जे उ, भइए से उगंधओ। रसओ फासओ चेव, भइए संताणओऽविज ॥९॥ गंधओ जे भये सुम्भी. भइए से उ वष्णओ। रसओ फासओ चेच. भइए संठाणओऽविअ ॥ १४०० ॥ गंधओ जे भवे दुभी, भइए से उ बण्णाओ। रसओ फासओ चेच, भइए संठाणओविय ॥१॥ रसओ तित्तओ जे उ. भइए से उ बन्नओ। गंधओ फासओ ब. भइए संठाणओविय ॥२॥ रसओ कडुए जे उ, भइए से उ वणओ। गंधओ फासओ चेव, भइए संठाणओविय॥३॥रसओ कसाए जे उ, भइए से उ वष्णओ। गंधओ फासओ चेव, भइए संठाणओविय॥४॥रसओ अंबिले जे उ. भइए से उ वण्णओ। गंधओ फासओ चेय, भदए संठाणओऽविध ॥५॥ रसओ महुरए जे उ, भइए से उ वण्णओ। गंधओ रसओ चेव. भइए संठाणओविय ॥६॥ फासओ कक्खडे जे उ. भइए से उवण्णओ । गंधओ रसओ चेव, भइए संठाणओविय ॥ ७॥ फासओ मउए जे उ. भइए से उ वष्णओ। गंधओ रसओ चेव, भइए संठाणओविय । ८॥ फासओ गुरुए जे उ. भइए से उवष्णओ । गंधओ रसओ चेब, भडए संठाणओबिय ॥९॥ फासओ लहुए जे उ. भहए से उवण्णओ। | गंधओ रसओ चेव, भइए संठाणओविय ॥१४१०॥ फासओ सीअए जे उ, भइए से उ वाणओ। गंधओ रसओ चेव, भइए संठाणओविय ॥१॥ फासओ उण्हए जे उ. भइए से उवण्णओ। गंधओ रसओ चेव, भइए संठाणओविय ॥२॥ फासओ निइए जे उ, भइए से उवण्णओ। गंधओ रसओ चेच, भइए संठाणओविय ॥३॥ फासओ लुक्खए जे उ, भइए से उवष्णओ। गंधओ रसओ चेत्र, भइए संठाणओविय॥४॥ परिमंडलसंठाणे, भइए से उ वण्णओ। गंधओ रसओ चेच, भइए फासओविय ॥ संठाणओ भवे बट्टे, भइए से उ वण्णओ। गंधो रसओ चेत्र. भइए कासओविय ॥६॥ संठाणओ भवे तसे. भइए से उवण्णओ। गंधओ रसओ चेव. भइए कासओऽविय ॥७॥ संठाणओ य चउरंसे, भइए से उ बण्णओ। गंधो रसओ चेव, भइए फासओपिय ॥८॥ जे आययसंठाणे, भइए से उ बन्नओ। गंधओ रसओ चेव. भइए फासओविय ॥५॥ एसा अजीबविभत्ती. समासेण वियाहिया। इनो जीवविनि, | बुच्छामि आणुपुवसो ॥१४२०॥ संसारत्था य सिद्धा य, दुविहा जीवा चियाहिया। सिद्धा णेगविहा वुत्ता, तं मे कित्तयओ सुण ॥१॥ इत्थी पुरिससिद्धा य. नहेब य नपुंसगा। सलिंगे अन्नलिंगे य, गिहिलिंगे नहेब य ॥२॥ उको. सोगाहणाए य, जहन्नमज्झिमाइ य । उइदं अहे य तिरियं च, समुइंमि जन्ममि य ॥३॥ दस य नपुंसएसु, वीसं इत्थियासु य। पुरिसेसु य अट्ठसयं, समएणगेण सिज्झई ॥४॥ चत्तारि य गिहिलिंगे, अन्नलिंगे दसेव य। सलिंगेण य असयं, समएणेगेण सिज्झई ॥५॥ उक्कोसोगाहणाए उ, सिझने जुगवं दुवे। चनारि जहन्नाए, जबमज्झट्टत्तरं सयं ॥६॥ चउगड्ढलोए य दुवे समुहे. तओ जले वीसमहे नहेब। सयं च अतृत्तर निरियलोए. समएणगेण उ सिज्झई धुवं ॥ ७॥ कहिं पडिहया सिद्धा?, कहिं सिद्धा पइडिया ?। कहिं चुदि चइनाणं?, कत्थ गंतूण सिज्झइ? ८॥ अलोए पडिहया सिदा, लोयग्गे य पइडिया । इहं बुदि चइनाणं, तत्थ गंतण सिज्झई ॥५॥ वारसहि जो. यणेहि. सबस्सुवरि भवे। ईसीपभारनामा उ, पुढवी छत्तसंठिया ॥१४३०॥ पणयाल सयसहस्सा, जोअणाणं तु आयया। तावइयं चेव विच्छिन्ना. तिगुणो साहिय (तम्सेव) परिरओ॥१॥ अद्दजायणबाहाडा, सा मझमि दिया. हिया। परिहायती चरिमंते, मच्छीपत्ताउ तणुययरी ॥२॥ अजुणसुवन्नगमई सा पुढवी निम्मन्या सहावेणं । उत्नाणयछत्तयसंठिया य भणिया जिणवरेहिं ॥३॥ संखंककुंदसंकासा, पंदुरा निम्मन्ला मुभा ।। सीआए जोधणे ननो, लोयंनो उ वियाहिओ ॥४॥ जोअणस्स उ जो नत्थ, कोसो उपरिमो भये। तस्स कोसस्स छम्भाए, सिद्धाणोगाणा भवे ॥५॥ तत्थ सिद्धा महाभागा. लोग गंमि पइट्टिया। भवपचउम्मुका, सिद्धि वरगई गया ॥६॥ उस्सेहो जम्स जो होइ. भवंमि चरमंमि उ । तिभागहीणा तत्तो य, सिद्धाणोगाहणा भवे ॥ ७॥ एगनेण य साईया. अपजबसियाविय । पुहुनेण अणाईया. अपज्जवसियाविय ॥८॥ अमविणो जीवघणा, नाणदसणसन्निया। अउन, मुह संपत्ता. उपमा जम्स नस्थि उ ॥९॥ लोएगदेसे ते सवे, नाणदसणसन्निया । संसारपारनिस्थिन्ना. सिद्धिं वरगई गया ॥१४४०॥ संसारथा उ जे जीवा. दुबिहा ने वियाहिया। नसा य थावरा चेव. थावरा निविहा नहि ॥शा पटवी आउजीवा य. नहेब य वणस्सई । इचेए थावरा तिबिहा, तेसिं भेए मुह मे ॥२॥ दुबिहा पुढविजीवा उ. सुहमा बायरा नहा। पजत्तमप्पजना, एवमेव दहा पुणो ॥३॥ नायरा जे उ पजत्ता, दविहा ने वियाहिया। सहा खरा य बोदवा. सण्हा सनविहा तहि ॥४॥ किण्हा नीला य रुहिरा य, हालिहा सुकिला तहा। पंटुपणग मट्टिया, खरा उनीसईविहा ॥५॥ पुढवी य सकरा वाल्या य उबले सिला य लोणसे। अयन उयनंबसीसगाप्पमुचने य बहरे य ॥६॥ हरियाले हिंगलए मणोसिला सासगंजण पवाले। अम्भपडलऽभवालय बायस्काए मणिविहाणा ॥७॥ गोमिजए य रुयगे अंके फलिहे य लोहियक्खे या मरगय मसारगड़े भुयमोयग इंदनीले य॥८॥चंदण गेम्य हंसगम्भे पुलए सागंधिए य बोदवे। चंदप्पभ वैसलिए जलकंते सरकते य॥९॥ एए खरपुढवीए. भेया छत्नीसमाहिया। एगविहमनाणना, मुहमा नन्थ वियाहिया ॥१४५०॥ सुहमा य नन्य बियाहिया ॥१४५०॥ सुहमा यसबलोगमि, लोगदसे य वायरा। एनो कालविभाग | तु, नेसि वृच्छं चउविहं ॥१॥ संतई पप्पऽणाईया, अपजवसियाविय । ठिई पडुन साईया, सपनवसियाविय ॥२॥ पायीससहस्साई. वासाणुकोसिया भवे । आउठिई पुढवीणं, अंनोमुहनं जहन्निया ॥३॥ असंखकालमुकोसा, | अंतमुहर्त जहन्नयं। कायठिई पुढवीणं. ते कार्य तु अमुंचओ॥४॥ अणंतकालमुक्कोस, अंतोमुहुनं जहन्नयं। विजदंमि सए काए. पुढविजीवाण अंतरं ।।५।। एएसि वन्नओ चेव, गंधओ रसफासओ। संठाणादेसओ वाचि. बिहाणाई सहस्ससो॥६॥ दुविहा आउजीवा उ. सुहमा बायरा तहा। पजत्तमपज्जत्ता, एवमेव दुहा पुणो ।। ७॥ बायरा जे उ पजत्ता. पंचहा ने पकिनिया। सुद्धोदए य उस्से य. हरयणू महिया हिमे ॥८॥ एगबिहमनाणना, मुहमा नन्थ वियाहिया। सुहमा सबलोगमि, लोगदेसे य बायरा ॥९॥ संतई०॥१४६०॥ सत्तेव सहस्साई, वासाणुकोसिया भवे। आउठिई आऊणं, अंतोमुहुर्त जहन्नयं ॥१॥ असंखकालमुक्कोसाका कायटिई आऊर्ण०॥२॥ अणंतकालमुकोसंग २१२९५ उत्तराध्ययनानि मूलमूत्र , #rearer-२६ मुनि दीपरत्नसागर P4. 7 Page #29 -------------------------------------------------------------------------- ________________ य विजमि सए काए. आउजीवाण अंतरं ॥ ३ ॥ एएसिं बनओ० ॥ ४ ॥ दुबिहा वणस्सईजीवा, सुहुमा बायरा तहा। पलत्तमपज्जत्ता, एवमेव दहा पुणो ॥ ५ ॥ त्रायरा जे उपजत्ता, दुविहा ते वियाहिया साहारणसरीरा य. पत्तेगा. य तहेव य ॥ ६॥ पत्तेयसरीरा उ णेगहा ते पकित्तिया रुक्खा गुच्छा य गुम्मा य लया वही तणा तहा ॥ ७ ॥ वलय पत्रया कुहणा, जलरुहा ओसही तिणा । हरियकाया उ बोद्धवा. पत्तेया इति आहिया ॥ ८॥ साहारणसरीरा उ. गहा ते पकिन्तिया । आलए मूलए चेव, सिंगधेरे तहेब य ॥ ९ ॥ हिरिली सिरिली सिस्सिरीली, जावई केय कंदली पडु ल्हसुण कंदे य. कंदली य कुह्वये । १४७० ॥ लोही णीहू य श्रीहू य. तुहगा य तहेव य कण्हे य वज्जकंदे य. कंदे सूरणए तहा ॥१॥ अस्सकन्नी य बोद्धवा, सीहकन्नी तहेव य। मुसुंडी य इलिदा य णेगहा एवमायओ ॥ २ ॥ एगविहमणाणत्ता० ॥ ३ ॥ संवई पप्पऽणाईआ ० ॥ ४ ॥ दस चेव सहस्साई वासाणुकोसिया भवे । वणस्सईणं आउं तु. अंतोमुहुत्तं जनयं ॥ ५ ॥ अनंतकालः | कार्यटिई पणगाणं ॥ ६ ॥ असंखकालमुकोसा, अंतोमुहुत्तं जनयं विजढंमि सए काए. पणगजीवाण अंतरं ॥ ७॥ एएसि वण्णओ ० ॥८॥ इच्चेए थावरा तिविहा. समासेण वियाहिया । इत्तो उ तसे तिविहे वृच्छामि अणुपुत्रसो || ९ || तेऊ वाऊ य चोदवा, ओराठा य तसा तहा इथेए तस तिविहा, तेसिं भेए सुणेह मे ॥ १४८ ॥ दुविहा तेउजीवा उ. सुहमा बायरा तहा। पज्ञत्तमपजत्ता. एवमेव दुहा पुणो ॥ १ ॥ वायरा जे उपजना, गहा ने वियाहिया इंगाले मुम्मुरे अगणी, अचि जाला तहेब य ॥ २ ॥ उक्का विज्जू य बोद्धवा, गहा एवमायओ एगविमनाणत्ता सुद्दुमा ते वियाहिया ॥ ३ ॥ सहुमा० ॥ ४ ॥ संतई पप्पः ॥ ५ ॥ तिन्नेव अहोरना. उक्कोसेण वियाहिया आउठिई तेऊणं, अंतोमुहुत्तं जहन्नयं ॥ ६ ॥ असंखकालमुकोसा। कायठिई तेऊणं० ॥७॥ अनंतकालमुकोसं अंतोमुहुत्तं जहन्नयं विजढंमि सए काए. तेउजीवाण अंतरं ॥ ८ ॥ एएसिं वन्नओ० ||९|| दुविहा वाउजीवा य, सुहुमा बायरा तहा। पज्जत्तमपत्ता, एवमेव दुहा पुणो || १४९० ॥ चायरा जे उपजता, पंचहा ते पकित्तिया उकलिया मंडलिया. घण गुंजा सुदवाया य ॥१॥ संवट्टगवाए य. णेगहा एवमाअओ । एगविणाणना. सुमा तत्थ वियाहिया ॥ २ ॥ सुट्टमा सबलो० ॥ ३ ॥ संतई पप्प० ॥ ४ ॥ तिन्नेव सहस्साई वासाणुकोसिया भवे । आउलिई वाऊणं अंतोमुहुत्तं जहन्नयं ॥ ५ ॥ असंखकालः । कायलिई वाऊणं० ॥ ६ ॥ अणंतकालमुकोसं० । विजढंमि सए काए, वाउजीवाण अंतरं ॥ ७ ॥ एएसि बन्नओ० ॥ ८ ॥ ओराला तसा जे उ, चउहा ते पकित्तिया इंद्रिय तेइंद्रिय, चउरो पंचिंदिया चैव ॥ ९॥ बेइंद्रिया उ जे जीवा, दुविहा ते पकित्तिया पजनमपत्ता, नेसि भेए सुणेह मे ॥ १५००॥ किमिणा सोमंगला चेव, अलसा माइवाया। वासीमुहा य सिप्पीया, संखा संखणगा तहा ॥१॥ पोयाऽणुडया चैव तहेब य वराडगा जलूगा जालगा चैव चंदणा य तत्र य ॥ २ ॥ इति इंदिया एए. गहा एवमायओ लोएगदेसे ते सवे, न सङ्घस्य वियाहिया ॥ ३ ॥ संतई० ॥ ४ ॥ वासाई बारसेव उ. उक्कोसेण वियाहिया बेइंदियआउटिई. अंतोमुहुत्तं जहत्रयं ॥ ५ ॥ संखिज्जकालमुकोसा. अंनोमुहुतं जहन्नयं । बेदियकायलिई ॥ ६ ॥ अनंतकाल० । चेइंद्रियजीवाणं, अंतरेयं वियाहियं ॥ ७॥ एएसि बन्नओ ॥ ८ ॥ तेइंदिया य जे जीवा दुविहा ते पकित्तिया पजत्तमपजत्ता, तेसि भेए सुणेह मे ॥ ९ ॥ कुंथु पित्रीलिउहंसा, उकलुदेहिया तहा। तणहारा कड़हारा य, मालुगा पत्तहारगा ॥ १५१०॥ कप्पासिऽट्टिमिजाय विदुगा तउसमिजगा सदावरी य गुम्मी य, बोद्धवा इंदगाइ य ॥१॥ इंदगोवसमाईया, गहा एवमायओ लोएगदेसे ते सधे न सङ्घस्थ वियाहिया ॥ २ ॥ संनई पप्प० ॥ ३ ॥ एगुणवन्नऽहोरता, उक्कोसेण वियाहिया तेइंदिय आउठिई, अंतोमुहुत्तं जनयं ॥ ४ ॥ संखिजकालमुकोसा। तेईदियकायठिई० ॥ ५ ॥ अनंतकालमुक्कासं० तेईदियजीवाणं ॥ ६ ॥ एएसि वन्नओ० ॥ ७ ॥ चउरिदिया उ जे जीवा, दुबिहा ते पकित्तिया पजत्तमपजत्ता, तेसि भेए सुणेह मे ॥ ८ ॥ अंधिया पुत्तिया चेव, मच्छिया मसगा तहा। भमरे कीड पयंगे य. ठिकणे कुंकणे नहा ॥ ९ ॥ कुकडे सिंगिरीडी य, नंदावते य विच्छिए । डोले भिंगिरिडिओ. विरिली अच्छिवेहए ॥१५२० ॥ अच्छिरे माहले अच्छि (रोडए), विचित्ते चित्तपत्तए। ओहिंजलिया जलकारी य. नीया तंबबगाइया ॥ १ ॥ इइ चउरिंदिया एए. गहा एवमायओ लोगस्स एगदेसंमि ने स परिकित्तिया ॥२॥ संतई पप्प० ॥३॥ छच्चेव य मासाऊ, उक्कोसेण वियाहिया चउरिदियआउठिई, अंतोमुद्दत्तं जहन्नयं ॥ ४ ॥ संखिजकालमुकोस, अंतोमुत्तं जहन्नयं चउरिदियकायठिई० ॥ ५ ॥ अनंतकालमुको अंनोमुहनं जन्त्रयं ॥ ६ ॥ एएसि वनओ० ॥ ७॥ पंचिदिया उ जे जीवा चउनिहा ते वियाहिया नेरइया तिरिक्खा य, मणुया देवा य आहिया ॥ ८॥ नेरइया सत्तविहा. पुढवीस सत्तसू भवे। रयणाभ सकराभा बालुयाभा य आहिया ॥ ९ ॥ पंकामा धूमामा, तमा तमतमा तहा। इइ नेरइया एए. सत्तहा परिकित्तिया ॥ १५३० ॥ लोगस्स एगदेसंमि ते स उ वियाहिया । इनो कालविभागं तु तेसिं वृच्छ्रं चउविहं ॥ १॥ संतई पप्पः ॥ २ ॥ सागरोवममेगं तु. उकोसेण वियाहिया । पढमाइ जहन्नेणं. दसवाससहस्सिया ॥ ३ ॥ तिन्नेव य सागराऊ उक्कोसेण वियाहिया दुच्चाए जहन्नेणं, एगं तू सागरोवमं ॥ ४ ॥ सत्नेव सांगराऊ उक्कों सेण वियाहिया नईयाए जहनेणं, निन्नेव उ सागरोत्रमा ॥५॥ दससागरोवमाऊ, उक्कोसेण वियाहिया चउत्थीह जहन्नेणं, सत्तेव उ सागरोपमा ॥ ६ ॥ सतरससागराऊ उक्कोसेण वियाहिया पंचमाए जहन्नेणं दस चेव उ सागरा ॥ ७॥ चावीससागराऊ उक्कोसेण वियाहिया उडीद जहनेणं, सत्तरस सागरोवमा ॥ ८ ॥ तित्तीससागराऊ उक्कोसेण वियाहिया सत्तमाए जहन्नेणं, बाबीसं सागरोवमा ॥ ९॥ जा चेव उ आउटिई, नेरयाणं वियाहिया । सा तेसिं कायलिई, जहनुकोसिया भये ।। १५४० ॥ अणंतकालमुकोसं । णेरइयाणं तु अंतरं ॥१॥ एएसि बन्नओ चेवः ॥ २॥ पंचिदियतिरिक्खा उ, दुबिहा ते वियाहिया संमुच्छिमतिरिक्खा उ. गच्भवकंनिया तहा ॥ ३ ॥ दुविहावि ते भवे तिविहा, जलयरा थलारा वहा सहारा य बोद्धवा, तेसि भेए सुणेह मे ॥ ४ ॥ मच्छा य कच्छभा य, गाहा य मगरा तहा सुसुमारा य बोद्धवा, पंचहा जलयराऽऽहिया ॥५॥ लोएगदेसे वे सवे. न सङ्घस्य वियाहिया इनो कालविभागं तु, तेसिं वृच्छ्रं चविहं ॥ ६ ॥ संतई पप्प ॥ ७ ॥ इक्का य पुडकोडीओ, उक्कोसेण वियाहिया आउठिई जलयराणं, अंतोमुहुत्तं जनयं ॥ ८ ॥ पुत्रकोडीपुडुतं तु, उक्कोसेण वियाहिया कायटिई जलयराणं, अंतोमुदृत्तं जनयं ॥ ९ ॥ अनंतकालमुकोर्स० जलयराण (३२४) १२९६ उत्तराध्ययनानि मूलसूत्रं असणं- 25 मुनि दीपरत्नसागर ★ Page #30 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पिसाय भूया जाता E तु अंतरं ॥१५५०॥ एएसि वन्नओ०॥१॥ चउप्पया य परिसप्पा, दुविहा बलयरा भवे। चउप्पया चउविहा उ, ते मे कित्तयओ सुण॥२॥ एगखुरा दुखुरा चेव, गंडीपय सनष्फया। हयमाइ गोणमाई, गय माई सीहमाइणो ॥ ३॥ भुओरगपरिसप्पा, परिसप्पा दुविहा भवे। गोहाई अहिमाईया, इविक्का गहा भवे ॥४॥ लोएगदेसे ते सच्चे, न सवत्थ वियाहिया। इत्तो कालविभागं तु, तेसि बुच्छ चाउविहं ॥५॥ संतई पप्प०॥६॥ पलिओवमा उ तिन्नि उ, उक्कोसेण वियाहिया। आउठिई थलयराणं, अंतोमुहुत्तं जहन्नयं ॥ ७॥ पलिओषमा उ तिनि उ, उक्कोसेर्ण विवाहिया। पुषकोडीपुहर्त तु. अंतोमुत्तं जहन्नया | ॥८॥ कायठिई बलयराणं, अंतरं तेसिमं भवे। कालं अणंतमुक्कोसं, अंतोमुहुर्त जहन्नयं ॥९॥ विजदंमि सए काए, थलयराणं तु अंतरं। चम्मे उ लोमपक्खीया, तइया समुग्गपक्खिया ॥१५६०॥ विययपक्खी य बोदवा, पक्खिणो य चउबिहा। लोएगदेसे ते सो, न सबत्य वियाहिया ॥१॥ संतई पप्प०॥२॥ पलिओवमस्स भागो, असंखिजइमो भवे । आउठिई खहयराणं, अंतोमुहुतं जहन्नयं ॥३॥ असंखभागो पलियस्स, उक्कोसेण उ साहिओ। पुष्चकोडीपुहुत्तेणं, अंतोमुहुतं जहन्नयं ॥४॥ कायठिई खयराणं, अंतरं ते( रेयं )वियाहियं । अणंतकालमुक्कोसं, अंतोमुहुत्तं जहन्नयं ॥५॥ एएसि वन्नओ०॥६॥ मणुया दुविहभेया उ, ते मे कित्तयओ सुण । समुच्छिमाइ मणुया, गम्भवक्कंतिया तहा ॥७॥ गम्भवक्कंतिया जे उ, तिविहा ते वियाहिया। अकम्मकम्मभूमा य, अंतरहीवगा तहा ॥८॥ पनरस तीसइविहा, भेआ अट्ठवीसई । संखा उ कमसो तेसिं, इह एसा वियाहिया ॥९॥ समुच्छिमाण एसेव, भेओ होइ आहिओ। लोगस्स एगदेसंमि, ते सोऽवि विवाहिया ॥१५७०॥ संतई पप्प० ॥१॥ पलिओवमाई तिन्नि उ, उक्कोसेण वियाहिया। आउठिई मणुयाणं, अंतोमुहुतं जहन्नयं ॥२॥ पलिओवमाई तिन्नि उ, उक्कोसेण वियाहिया । पुषकोडिपुहुत्तेणं, अंतोमुहुत्तं जहन्नयं ॥३॥ कायठिई मणुयाण, अंतरं तेसिमं भवे। अणंतकालमुक्कोस, अंतोमुहुत्तं जहन्नयं ॥ ४॥ एएसिं वन्नओ०॥५॥ देवा चउबिहा बुत्ता, ते मे कित्तयओ सुण। भोमिज वाणमंतर, जोइस वेमाणिया तहा ॥६॥ दसहा उ भवणवासी, अट्टहा वणचारिणो। पंचविहा जोइसिया, दुविहा वेमाणिया तहा ॥७॥ असुरा नाग सुवण्णा, विजू अम्गी य आहिया। दीवोदही दिसा वाया, यणिया में य, रक्खसा किन्नरा य किंपुरिसा। महोरगा य गंधवा, अढविहा वाणमंतरा ॥९॥चंदा सूरा य नक्खत्ता, गहा तारागणा तहा। दिसाबिचारिणो दुविहा ते पकित्तिया। कप्पोवगा य बोदवा, कप्पाईया तहेब य ॥१॥ कप्पोवगा बारसहा, सोहम्मीसाणगा तहा। सर्णकुमारमाहिंदा, बंभलोगा य लंतगा॥२॥ महासुक्का सहस्सारा, आणया पाणया तहा। आरणा अचुया चेव, इइ कप्पोवगा सुरा ॥३॥ कप्पाइया उजे देवा, दुबिहा ते वियाहिया। गेविनगाणुत्तरा चेव, गेविजा नवविहा तहिं ॥४॥ हिडिमाहिट्ठिमा चेव, हिडिमामज्झिमा तहा। हिटिमाउवरिमा चेव, मज्झिमाहिडिमा तहा ॥ ५॥ मज्झिमामज्झिमा चेव, मज्झिमाउवरिमा तहा। उवरिमाहिट्ठिमा चेव, उवरिमामज्झिमा तहा ॥ ६॥ उवरिमाउवरिमा चेव, इह गेविजगा सुरा। विजया वेजयंता य, जयंता अप्पराजिया ॥७॥ सवट्ठसिद्धगा चेव, पंचहाऽणुत्तरा सुरा। इइ वेमाणिया एए, गहा एवमायओ ॥८॥ लोगस्स एगदेसंमि, ते सव्वे परिकित्तिया। इत्तो कालविभागं तु, तेसि बुच्छ चउब्विहं ॥९॥ संतई पप्पडणाईया, अपज्जवसियाविय। ठिई पहुच साईया, सपजवसियापिय ॥१५९०॥ साहीयं सागरं इकं, उक्कोसेण ठिई भवे। भोमिजाण जहनेणं, दसवाससहस्सिया ॥१॥ पलिओचममेगं नु, उकोसण वियाहियं । वंतराणं जहन्नेणं, दसवाससहस्सिया ॥२॥ पलिओवममेर्ग तु, वासलक्खेण साहियं। पलिओवमट्ठभागो, जोइसेसु जहनिया ॥३॥ दो चेव सागराई, उकोसेणं वियाहिया। सोहम्मंमि जहन्नेणं, एगं च पलिओवमं ॥४॥ सागरा साहिया दुनि, उकोसेण वियाहिया। ईसाणमि जहन्नेणं, साहियं पलिओवमं ॥५॥ सागराणि य सत्तेव, उकोसेण ठिई भवे। सर्णकुमारे जहन्नेणं, दुखि ऊ सागरोवमा ॥६॥ सागरा साहिया सत्त, उक्कोसेण वियाहिया। माहिदमि जहन्नेणं, साहिया दुन्नि सागरा ॥७॥ दस चेव सागराई, उक्कोसेण वियाहिया। बंभलोए जहन्नेणं, सन उ सागरोवमा ॥८॥ चउडस उ सागराई, ।लंतगमि जहन्नेणं, दस उसागरोवमा ॥९॥ सत्तरस सागराई, उक्कोसेण वियाहिया। महासुके जहन्नेणं, चउद्दस सागरोवमा ॥१६००॥ अट्ठारस सागराई, उक्कोसण वियाहिया स्सारे जहन्नेणं, सत्तरस सागरोवमा॥१॥सागरा अउणवीसं तु, उक्कोसेण ठिई भवे। आणयमिजहन्नेर्ण, अट्ठारस सागरोवमा ॥२॥ वीस तु (सई)सागराई तु, उक्कोसेण ठिई भवे। पाणयंमि जहन्नेणं, सागरा अउणवीसई ॥३॥ सागरा इकवीसं तु, उक्कोसेण ठिई भये। आरणमि जहन्नेणं, बीसई सागरोवमा ॥४॥ बाबीस सागराई, उक्कोसेण ठिई भवे। अचुमि जहन्नेणं, सागरा इकवीसई ॥५॥ तेवीससागराई, उक्कोसेणं ठिई भवे। पढममि जहन्नेणं, बावीसं सागरोवमा ॥६॥ चउवीसं सागराई, उक्कोसेण ठिई भवे। बिइयंमि जहन्नेणं, तेवीसं सागरोवमा ॥७॥ पणवीस सागरा ऊ, उक्कोसेण ठिई भवे। नइयंमि जहन्नेणं.चउवीसं सागरोवमा ॥८॥ छब्बीस सागराई, उकोसेण ठिई भवे। चउत्थयंमि जहन्नेणं, सागरा पणवीसई ॥९॥ सागरा सत्तवीस तु, उकोसेण ठिई भवे। पंचमंमि जहन्नेणं, सागरा उछवीसई ॥१६१०॥ सागरा अट्टवीसं तु, उक्कोसेणं ठिई भये। छटुंमि जहन्नेणं, सागरा सत्तवीसई ॥१॥ सागरा अउणतीसं तु, उक्कोसेण ठिई भवे। सत्तमंमि जहन्नेणं, सागरा अहवीसई ॥२॥ तीसं तु सागराई, उक्कोसेणं ठिई भवे। अट्ठमंमि जहन्नेणं, सागरा अउणतीसई ॥३॥ सागरा इकतीसंतु, उक्कोसेण ठिई भवे। नवमंमि जहनेणं, तीसई सागरोबमा ४ा तित्तीस सागरा ऊ, उक्कोसेण ठिई भवे। चउसुंपि विजयाईसुं, जहन्ना १२९७ उत्तराध्ययनानि मूलसूत्रं, असम/-8 मुनि दीपरनसागर Page #31 -------------------------------------------------------------------------- ________________ इक्कतीसई // 5 // अजहन्नमणुक्कोस, तित्तीसं सागरोवमा। महाविमाणसबढे, ठिई एसा वियाहिया // 6 // जा चेव उ आउठिई, देवाणं तु वियाहिया। सा तेसिं कायठिई, जहन्नमुक्कोसिया भवे // 7 // अर्णतकालमुक्कोसं, अंतोली देवाणं हुज अंतरं // 8 // एएसिं वन्नओ०॥९॥ संसारत्था य सिद्धा य, इह (इ)जीवा वियाहिया। रूविणो चेवरूवी य, अजीवा दुविहाविय // 1620 // इइ जीवमजीवे य, सुच्चा सदहिऊण य / सञ्चनयाण अणुमए, रमिजा संजमे मुणी // 1 // तओ बहूणि वासाणि, सामन्नमणुपालिया। इमेणं कमजोगेणं, अप्पाणं संलिहे मुणी // 2 // बारसेव उ वासाई, संलेहुक्कोसिया भवे।संवच्छर मजिनमिया, छम्मासा य जहन्निया // 3 // पढमे वासचउकंमि, विगईनिजूहणं करे। बिइए वासचउकंमि, विचित्तं तु तवं चरे // 4 // एगंतरमा थाम, कटु संवच्छरे दुवे। तओ संवच्छरऽदं तु, विगिढ़ तु तवं चरे // 5 // तओ संवच्छरद्धं तु, नाइविगिटुं तवं चरे। परिमियं चेव आयाम, तमि संवच्छरे करे // 6 // कोडीसहियमायाम, कटु संवच्छरे मुणी। मासद्धमासिएणं तु, आहारेणं तवं चरे॥७॥ कंदप्पमाभिओगं किनिसियं मोहमासुरत्तं च। एयाओ दुग्गईओ मरणंमि विराहिया (ए) हुंति // 8 // मिच्छादसणरत्ता, सनियाणा हु हिंसगा। इय जे मरति जीवा, तेसिं पुण दुलहा वोही॥९॥ सम्मईसणरत्ता अनियाणा सुक्कलेसमोगाढा / इय जे मरंति जीवा सुलभा तेसि भवे वोही // 1630 // मिच्छादसणरत्ता सनियाणा कण्हलेसमोगाढा। इय जे मरंति जीवा तेसिं पुण दुलहा बोही // 1 // जिणवयणे अणुरत्ता जिणवयणं जे करेंति भावेणं / अमला असंकिलिट्ठा ते हुंति परित्तसंसारी // 2 // बालमरणाणि बहुसो अकाममरणाणि चेव बहुयाणि / मरिहंति ते वराया जिणवयणं जे न याणंति // 3 // बहुआगमविन्नाणा समाहिउप्पायगा य गुणगाही। एएण कारणेणं अरिहा आलोयणं सोउं // 4 // कंदप्प कोक्कुईया तहसीलसहाव हासविगहाहिं। विम्हावितो य परं कंदप्पं भावणं करइ // 5 // मंताजोगं काउं भूईकम्मं च जे पउंजेति। सायरसइढिहेउं अभिओगं भावणं कुणइ // 6 // नाणस्स केवलीणं धम्मायरियस्स संघसाहणं / माई अवनवाई किदिबसियं भावणं कुणइ // 7 // अणुबद्धरोसपसरो तह य निमित्तंमि होइ पडिसेवी। एएहि कारणेहिं आसुरियं भावणं कुणइ॥८॥ सत्थरगहणं विसभक्खणं च जलणं च जलपवेसोय। अणयारभंडसेवी जम्मणमरणाणि बंधति // 9 // इति पाउकरे बुद्धे, नायए परिनियुए। छत्तीसं उत्तरज्झाए, भवसिद्धीयसंमए॥१६४०॥त्ति बेमि, जीवाजीवविभत्ती 36 // सूत्राणि 88 // उत्तराध्ययनं त्रिभुवनासाधारणमहिमनिधानश्रीसिद्धगियंधित्यकायां श्रीवर्धमानजैनागममन्दिरे पर्यायानपेक्षं मूलसूत्रं चतुर्थ।