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ण लभड़। यंभा कोहा पमाएणं, रा(रो)गेणालस्सएण य॥९॥ अह अहहिं ठाणेहि, सिक्खासीलेत्ति बुचइ।अहस्सिरे सयाईते, न य मम्ममुयाहरे॥३३॥नासीले ण विसीले, ण सिया अइलोलए। अकोहणे सचरए. सिक्खासीलेत्ति चुच्चइ ॥१॥ अह चोदसहि ठाणेहि, वहमाणो उ संजए। अविणीए पुचती सो उ, णिशाणं च ण गच्छइ ॥२॥ अभिक्खणं कोही भवइ, पर्वधं च पकुवा। मित्तिजमाणो वमति, सुर्य लड़धूण मज्जइ ॥३॥ अपि पावपरिक्खेवी, अचि मिनेसु कुष्पति। सुप्पियस्सावि मित्तस्स, रहे भासह पाचगं ॥४॥ पइण्णवाई दुहिले, यडे लदे अनिग्गहे। असंविभागी अचियत्ते, अविणीएत्ति पुचइ ॥५॥ अह पचरसहिं ठाणेहि. सुषिणीएत्ति बुबइ। नीयाचित्ती अचवले, अमाई अकुऊहले ॥६॥ अप्पं च अहिक्खिवति, पर्वधं च ण कुबइ। मित्तिजमाणो भजति, सुयं लडुं न मजति ॥ ७॥ न य पावपरिक्खेवी, न य मित्तेसु कुष्पति। अप्पियस्सावि मित्तस्स, रहे कलाण भासइ ॥८॥ कलहडमरवजए, बुद्ध (अ) अभिआइए। हिरिमं पडिसलीणो, सुपिणीएत्ति पुचड़ ॥९॥ बसे गुरुकुले निचं, जोगवं उपहाण । पियंकरे पियंचाई, से सिक्ख लधुमरिहति ॥३४०॥ जहा संखमि पर्य निहियं, दुहओवि चिरायइ। एवं बहुस्सुए भिक्खू, धम्मो कित्ती तहा सुर्य ॥१॥ जहा से कंचोयाण, आइने कथए सिया। आसे जवेण पवरे, एवं हवइ बहुस्सुए॥२॥ जहाऽऽइनसमारुडे, खरे ददपरकमे। उभो नंदिघोसेणं, एवं०॥३॥ जहा करेणुपरिकिषणे, कुंजरे सहिहायणे । बलवंते अप्पडिहए,०॥४॥ जहा से तिक्ससिंगे, जायक्वंधे पिरायइ । वसमे जूहाहिवती,०॥५॥ जहा से तिक्खदाढे, ओदग्गे दुष्पहंसए । सीहे मियाण पवरे,०॥६॥ जहा से वासुदेवे, संखचक्रगदाधरे। अप्पडिहयचले जोहे.॥॥ जहा से चाउरते, चकवट्टी महिहिढए। चोदसरयणाहिबई,०॥८॥ जहा से सहस्सक्खे, वजपाणी पुरंदरे । सके देवाहिवई,०॥९॥ जहा से तिमिरविसे, उत्तिटुंति दिवागरे। जलते इव तेएणं, ॥३५०॥ जहा से उडुबई चंदे. नक्खत्तपरिवारिए। पडिपुण्णे पुण्णिमासीए, ॥१॥ जहा से सामाइयाण(सामाइयंगाणं), कोट्ठागारे सुरक्खिए। नाणाधणपडिप्पुण्णे,०॥२॥ जहा सा दुमाण पवरा, जंचूनाम सुदंसणा । अणाढियस्स देवस्स. ॥३॥ जहा सा नईण पवरा, सलिला सागरंगमा। सीया नीलवंतपव(म)हा, ॥४॥ जहा से नगाण पवरे, सुमहं मंदरे गिरी। नाणोसहीपजलिए,०॥५॥ जहा से सयंभूरमणे, उदही अक्खओदए। नाणारयणपडिपुण्णे, एवं भवइ बहुस्सुए ॥६॥ समुहगंभीरसमा दुरासया, अचकिया केणइ दुप्पहंसया। सुयस्स पुण्णा विउलस्स ताइणो,खवेतु कम्मं गहमुत्तमं गया।आतम्हा सुयमहिडेजा, उत्तमहगवेसए। जेणऽपाणं परं चेव, सिदि संपाउणिज्जासि ॥३५८॥त्ति बेमि, बहस्मयपयज्झयणं ११॥ सोबागकलसंभओ. ग(अत्तरचरो मणी। हरिएसचलो नाम, आसि भिक्खू जिईदिओ ॥९॥ इरिएसणभासाए, उचारसमिइंसु य। जओ आयाणणिक्खेवे, संजओ सुसमाहिओ ॥३६०॥ मणगुत्ता वयगुत्तो, कायगुत्तो जिइंदिओ। भिक्खडा भइनमि, जयवाडमुवडिओ ॥१॥ तं पासिऊणमिजतं, तवेण परिसोसियं। पंतोवहिउवगरणं, उवहसंति अणारिया ॥२॥ जाइमयं पडियदा, हिंसगा अजिइंदिया। अबभचारिणो बाला, इमं वयणमब्बची ॥३॥ कयरे(को रे) आगच्छई दित्तकवे, काले विकराले फुकनासे। ओमचेलए पंसुपिसायभूए, संकरसं परिहरिय कंठे ॥४॥ कयरे (कोरे) तुम इय अदंसणिजे ,काएप आसाएँ इहमागओऽसि ?। ओमचेलगा पंसुपिसायभूया, गच्छ क्खलाहि किमिहं ठिओऽसि ॥५॥ जक्खो तहिं तिंदुयरुत्ववासी, अणुकंपओ तस्स महामुणिस्स। पच्छायइना नियगं सरीरं, हमाई क्यणाई उदाहरित्या ॥६॥ समणो अहं संजउ भयारी, विरओ घणपयण(सयण) परिग्गहाओ। परप्पवित्तस्स उमिक्खकाले, अनस्स अट्ठा इय(ह)मागओ मि॥आवियरिजइ खज्जइ भुजई य, असं पसू(भूयं भवयाणमेयं । जाणाहि मे जाय(ण)जीवि(क)णुत्ति, सेसावसेसं यहओ (ऊ) नयस्सी ॥८॥ उबक्खई भोयण माहणाणं, अत्तट्टियं सिदमिहेगपक्खं । न ऊ व(उच) यं एरिसमसपाणं, दाहामु तुझं किमिहं ठिओऽसि ॥९॥ बलेसुबीयाई वयंति कासया, तहेच निमेसु य आससाए। एयाइ सदाइ दलाह मझ, आराहए(हा) पुण्णमिणं खु खिनं ॥४७॥ खिलाणि अम्हं विइयाणि लोए, जहिं पकिन्ना विरुहति पुण्णा । जे माहणा जाइविजोक्वेया, ताई तु खित्ताई सुपेसलाई ॥१॥ कोहो य माणो य वहो य जेसि, मोसं अदत्तं च परिग्गहं च। ते माहणा जाइविजाविही(ह)णा, ताई तु खित्ताई सुपावयाई ॥२॥ तुभित्य भो.! भारहरा गिराणं, अटुं न याणाह अहिज बेए। उच्चावयाई मुणिणो चरंति, ताई तु खिलाई सुपेसलाई ॥३॥ अज्मावयाणं पडिकलभासी, पभाससे कि सगासि अम्हं?। एवं विणस्सउ अन्नपाणं, न यण दाहामु तुम नियंठा ! ॥४॥ समिईहिं मन सुसमाहियस्स, गुत्तीहिं गुत्तस्स जिइंदियस्स। जद मे न दाहित्य अहेसणिज्ज, किमज जमाण लभित्थ लाभं? ॥५॥ के इत्थ खना उपजोइया बा, अज्झाचया वा सह खंडिएहिं ?। एवं सु दंडेण फलेण हता, कंठमि पितृण खलिज जो णं ॥६॥ अज्झावयाणं वयणं सुणिना, उदाइया नत्य बहु कुमारा। दंडेहिं वित्तेहि कसेहिं चेत्र, समागया नं इसि (मुणि) नालयंनि ॥ ७॥रण्णो तहिं कोसलियस धूया, भदत्ति नामेण अणिदियंगी। तं पासिया संजय हम्ममाणं, कुडे कुमारे परिनिवेइ ॥८॥ देवाभिओगेण निओइएणं, दिशा मुरण्णा मणसा न झाया। नरिददेविंदऽभिवदिएण, जेणामि चंता इसिणा स एसो ॥९॥ एसो हुसो उम्गतबो महापा, जिइंदिओ संजओं बंभयारी। जो मे नया निच्छई दिजमाणी, पिउणा सयं कोसलिएण रण्णा ॥ ३८०॥ महाजसो एस महाणुभागो, घोरवओ घोरपरकमो य। मा एयं हीन्ह अहीलणिजं, मा सो तेएण मे निदहिजा ॥१॥ एयाई तीसे वयणाई सुचा, पत्तीइ भदाइ सुभासियाई। इसिस्स वेयावडियट्टयाए, जक्खा कुमारे विणिचारयति ॥२॥ते पोररूवा ठिब अंतरिक्खे, अमुरा नहिं ने जणं तालयंति । ते भिन्नदेहे रहिरं वर्मते, पासिनु भदा इणमाहु भुजो॥३॥ गिरि नहेहिं खणह, अयं दंतेहिं खायह। जायतेयं पायेहि हणह, जं भिक्खं अवमन्नह ॥४॥ आसीविसो उम्णतयो महेसी, घोरवओ घोरपरकमो य। अगणि व पक्खंद पयंगसेणा, जे भिक्खं भत्तकाले बहेह ॥५॥ सीसेण एवं सरणं उबेह, समागया सवजणेण तुम्हे । जइ इच्छह जीवियं वा धणं वा, टोगपि एसो कुवित्रो इहिजा ॥६॥ अबहेडिय (आरडिए) पिट्ठिसउत्तमंगे, पसारियाचाहु अकम्मचिट्ठ। निम्भेरियच्छे सहिरं वर्मते, उड्ढंमुहे निग्गयजीहनित्ते ॥ ७॥ ते पासिया खंडिय कट्टभूए, विमणो वि(व)समो अह माहणो सो। इसि पसाएर सभारियाओ, हीलं च निंदं च समाह भने ! ॥८॥ (३१९) १२७६ उत्तराध्ययनानि मूलमूत्र, अजल -२२
मुनि दीपरत्नसागर
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