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________________ विसं तालउडं जहा ॥२॥ दुजए कामभोगे य, निच्चसो परिवजए। संकठाणाणि सवाणि, वजिजा पणिहाण ॥३॥ धम्मारामे चरे भिक्खू, चिईमं धम्मसारही। धम्मारामरए दंते. बंभचेरसमाहिए ॥४॥ देवदाणवगंधवा, जक्खरक्खसकिन्नरा। भयारिं नमसंति, दुकरं जे करंतितं (ते)॥५॥ एस धम्मे धुवे नियए, सासए जिणदेसिए। सिद्धा सिझंति चाणेणं, सिज्झिस्संति वहाऽवरे ॥५२६॥ त्ति मि. भचेरसमाहिठाणऽज्झयण १६॥ जे केइ उ (जे के इमे) पवइए नियंठे, धर्म सुणित्ता विणओववन्ने । सुदाइहं लहिउँ बोहिलाभ, विहरिज पच्छा य जहामुहं तु ॥७॥ सिजा दढा पाउरणं मि अस्थि, उप्पजई भुत्तु सहेब पाउँ । जाणामि जं वद आउसुत्ति !, किं नाम काहामि सुएण? भंते ! ॥८॥ जे केई उ पाइए, निदासीले पगामसो। भुचा पिचा सुहं सुअई, पावसमणित्ति बुचई ॥९॥आयरियउवज्झाएहि, सुजं विणर्य च गाहिए। ते चेत्र सिंसई पाले. पावसमणित्ति दुबई ॥५३०॥ आयरियउव. ज्झायाणं, सम्मं नो पडितप्पई। अप्पडिपूअए थडे, पावसमणित्ति बुचई ॥१॥ संमहमाणे पाणाणि, चीयाणि हरियाणि य। असंजए संजय मन्त्रमाणे, पावसमणित्ति वुचई ॥२॥ संथारं फलग पीढं, निसिज पायकंबलं । अप्पमजियमारहई, पावसमणित्ति वुच्चाई ॥३॥ दवदवस्स चरई, पमते अ अभिक्खणं। उधणे य चंडे य, पारसमणित्ति बुच्चई ॥४॥ पडिलेहेइ पमत्तो, अक्उज्झइ पायर्कचलं। पडिलेहाअणाउत्ते, पावसमणित्ति वुच्चई ॥५॥ पडिलेहेइ पमत्ते, से किंचि हु निसामिआ। गुरुं परिभाषए निच्च, पावसमणित्ति वुच्चई ॥६॥ बहुमाई पमुहरी, थदे लुदे अणिग्गहे। असंविभागी अचियत्ते, पावसमणित्ति वुच्चई ॥ ७॥ विवायं च उदीरेइ, अधम्मे अत्तपण्हहा। बुग्गहे कलहे रत्ते, पावसमणिनि वुच्चई ॥८॥ अथिरासणे कुकुईए, जत्थ तत्थ निसीअई। आसणमि अणाउत्ते, पावसमणित्ति वुच्चई ॥९॥ ससरक्खपाओ सुअई, सिजन पडिलेहइ। संधारए अणाउत्तो, पावसमणित्ति वुच्चई ॥५४०॥ दुखदहीविगईओ, आहारह अभिक्खणं । अरए य तवोकम्मे, पावसमणित्ति वुचई ॥१॥ अत्यंतमि य सूरंमि, आहारेइ अभिक्खणं। चोइओ पडिचोएइ. पावसमणिति पुचई ॥२॥ आयरियपरिचाई, परपासंडसेवए। गाणंगणिए दुम्भूए, पावसमणिनि वुच्चई ॥३॥ सयं गेहं परिच्चज, परमेहसि वावरे (ववहरे)। निमित्तेण य ववहरई, पावसमणित्ति वुच्चई ॥४॥ संनाइपिंड जेमेइ, निच्छई सामुदाणियं। गिहिनिसिज च वाहेइ. पावसमणित्ति बुचई ॥५॥ एयारिसे पंच कुसीलसंवुडे, रूर्वधरे मुणिपवराण हिडिमे। अयंसि लोए विसमे व गरहिए, न से इहं नेव परत्थलोए॥६॥ जे बज एए उ सदा उ दोसे, से सुत्रए होइ मुणीण मज्झे। अयंसि लोए अमयं व पूइए, आराहए दुहओ लोगमिणं ॥५४७॥ ति पेमि, पावसमणिजऽज्झयण १७॥ कपिले नयरे राया, उदिनचलवाहणे । नामेणं संजओ नाम, मिग उवनिम्गए ॥८॥ हयाणीए गयाणीए, रहाणीए तहेव या पायताणीए महया, सबओ । उज्जाणे, अणगारे तबोधणे। सज्झायझाणजत्तो, धम्मज्झाणं लियाय ॥१॥ अफोरमंडवंमी. झायर्ड झवियासवे। तस्सागए मिए पासं, बहेद से नराहिवे ॥२॥ अह आसगओ राया, खिप्पमागम्म सो तहिं। हए मिए उ पासित्ता, अणगारं तत्थ पासई ॥३॥ अह राया तत्थ संभंतो, अणगारो मणाऽऽहओ। मए उ मंदपुण्णेणं, रसगिद्धेण घंतुणा ॥ ४॥ आसं विसजइताणं, अणगारस्स सो निवो। विणएणं वंदई पाए, भगवं ! इत्य मे खमे ॥५॥ अह मोणेण सो भगवं, अणगारो झाणमस्सिओ। रायाण न पडिमतेइ नओ राया भयदुओ॥६॥ संजओ अहमस्सीति, भगवं ! वाहराहि मे। कुदे तेएण अणगारे, दहिजा नरकोडिओ ॥ ७॥ अभओ पत्थिवा! तुझं, अभयदाया भवाहि य । अणिचे जीवलोगमि. किं हिंसाए पसजसि ? ॥८॥ जया(हा) सवं परिचज, गंतवमवसस्स ने। अणिच्चे जीवलोगंमि, किरजंमि पसजसि? ॥९॥ जीवियं चेव रुवं च, विजुसंपायचंचलं। जत्थ तं मुज्झसी राय!, पिच्चत्वं नावचुज्झसी ॥५६०॥ दाराणि य सुया चेव, मित्ता य नह पंधवा। जीवंतमणुजीवंति, मयं नाणुवयंनि य॥१॥नीहरंति मयं पुत्ता, पियरं परमक्खिया। पियरो य तहा पुत्ते, बंधू रायं ! तवं चरे ॥२॥ तओ तेणऽजिए दवे, दारे य परिरक्खिए। कीलनऽन्ने नरा रायं !, हट्टतुट्ठमलंकिया ॥३॥ तेणावि जं कयं कम्म, मुहं वा जइबा दुई। कम्मुणा तेण संजुत्तो, गच्छइ उ पर भवं ॥४॥ सोऊण तस्स सो धम्म, अणगारस्स अंतिए। मया संवेगनिश्वेयं, समावनो नराहिवो ॥५॥ संजओ चइउं रज, निक्खतो जिणसासणे। गहभालिरस भगवओ, अणगारस्स अंनिए ॥६॥ चिच्चा रहूं पाइओ, सत्तिओ परिभासई। जहा ते दीसई रूवं. पसन्नं ते तहा मणो ॥७॥ किनामे किंगुत्ते, कस्सट्टाएव माहणे ?। कहं पटियरसी चुढे ?, कहं विणीयनि बुञ्चसि ? ॥८॥ संजओ नाम नामेणं, नहा गुनेण गोयमो। गहभाली ममायरिया, विजाचरणपारगा॥९॥ किरियं अकिरिअं विणयं, अन्नाणं च महामुणी:। एएहिं चउहि ठाणेहि. मेअन्ने किं पभासई ? ॥५७०॥ इइ पाउकरे बुद्धे, नायए परिनिघुडे। विजाचरणसंपन्ने, सच्चे RI सबपरकमे ॥१॥ पडति नरए घार, जेनरा पावकारिणो। दिसंच गई गच्छति, चरित्ता धम्ममारियं ॥२॥ मायाबुइयमेयं तु, मुसा भासा निरस्थिया। संजममाणोऽवि अहं. यसामि इरियामि य ॥३॥ सोने दिही अणारिया। विजमाणे परे लोए, सम्मं जाणामि अप्पगं ॥४॥ अहमासी महापाणे, जुइमं वरिसस ओचमे। जा सा पाली महापाली, दिशा परिससओवमा ॥५॥ से चुए भलोगाओं, माणुस भयमागए। अप्पणो य परेसिं च, आउं जाणे जहा तहा ॥६॥ नाणा रुदं च छंदं च. परिवजिज संजओ। अणट्ठा जे य सवत्था. इइ विजामणुसंचरे ॥ ७॥ पडिकमामि पसिणाणं, परमतेहि या पुणो । अहो उदिओ अहोराय, इह विजा तवं चरे ॥८॥ जंच में पुच्छसी काले, सम्म सुद्धेण (बुदेण) चेयसा। ताई पाउकरे युद्धे. तं नाणं जिणसासणे ॥९॥ किरियं चरोअए धीरो. अकिरियं परिवजए। दिट्ठीए दिविसंपनो, धम्मं चरस बरं ॥५८०॥ एवं पुण्ण(ण)पर्य सुचा, अन्धधम्मोवसोहियं। भरहोऽपि भारहं वासं, चिया कामाई पाए॥१॥ सगरोऽवि सागरतं. भरहवासं नराहियो। इस्सरियं केवलं हिच्चा, दयाए परिनिबुडे ॥२॥ चाइना भारह वासं, पायही महिड्दिनो। परजमम्भवगओ, मघवं नाम महाजसो ॥३॥ सर्णकुमारो मणुस्सिदो, चकवट्ठी महिदिओ। पुतं रजे ठवित्ताणं, सोऽपि राया तवं चरेसाचइत्ता भारहं वासं. चकवट्टी महिदिओ।संती संनिकरो टोए. पत्तो गइमणुनरे ।।५॥ इखागरायवसहो. कुंथ नाम नरेसरो। (३२०) १२८० उत्तराध्ययनानि मूलसूत्रं, अन्य -१८ मुनि दीपरत्नसागर
SR No.003945
Book TitleAagam Manjusha 43 Mulsuttam Mool 04 Uttarjjhayanam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandsagarsuri, Sagaranandsuri
PublisherDeepratnasagar
Publication Year2012
Total Pages31
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_uttaradhyayan
File Size24 MB
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