________________ इक्कतीसई // 5 // अजहन्नमणुक्कोस, तित्तीसं सागरोवमा। महाविमाणसबढे, ठिई एसा वियाहिया // 6 // जा चेव उ आउठिई, देवाणं तु वियाहिया। सा तेसिं कायठिई, जहन्नमुक्कोसिया भवे // 7 // अर्णतकालमुक्कोसं, अंतोली देवाणं हुज अंतरं // 8 // एएसिं वन्नओ०॥९॥ संसारत्था य सिद्धा य, इह (इ)जीवा वियाहिया। रूविणो चेवरूवी य, अजीवा दुविहाविय // 1620 // इइ जीवमजीवे य, सुच्चा सदहिऊण य / सञ्चनयाण अणुमए, रमिजा संजमे मुणी // 1 // तओ बहूणि वासाणि, सामन्नमणुपालिया। इमेणं कमजोगेणं, अप्पाणं संलिहे मुणी // 2 // बारसेव उ वासाई, संलेहुक्कोसिया भवे।संवच्छर मजिनमिया, छम्मासा य जहन्निया // 3 // पढमे वासचउकंमि, विगईनिजूहणं करे। बिइए वासचउकंमि, विचित्तं तु तवं चरे // 4 // एगंतरमा थाम, कटु संवच्छरे दुवे। तओ संवच्छरऽदं तु, विगिढ़ तु तवं चरे // 5 // तओ संवच्छरद्धं तु, नाइविगिटुं तवं चरे। परिमियं चेव आयाम, तमि संवच्छरे करे // 6 // कोडीसहियमायाम, कटु संवच्छरे मुणी। मासद्धमासिएणं तु, आहारेणं तवं चरे॥७॥ कंदप्पमाभिओगं किनिसियं मोहमासुरत्तं च। एयाओ दुग्गईओ मरणंमि विराहिया (ए) हुंति // 8 // मिच्छादसणरत्ता, सनियाणा हु हिंसगा। इय जे मरति जीवा, तेसिं पुण दुलहा वोही॥९॥ सम्मईसणरत्ता अनियाणा सुक्कलेसमोगाढा / इय जे मरंति जीवा सुलभा तेसि भवे वोही // 1630 // मिच्छादसणरत्ता सनियाणा कण्हलेसमोगाढा। इय जे मरंति जीवा तेसिं पुण दुलहा बोही // 1 // जिणवयणे अणुरत्ता जिणवयणं जे करेंति भावेणं / अमला असंकिलिट्ठा ते हुंति परित्तसंसारी // 2 // बालमरणाणि बहुसो अकाममरणाणि चेव बहुयाणि / मरिहंति ते वराया जिणवयणं जे न याणंति // 3 // बहुआगमविन्नाणा समाहिउप्पायगा य गुणगाही। एएण कारणेणं अरिहा आलोयणं सोउं // 4 // कंदप्प कोक्कुईया तहसीलसहाव हासविगहाहिं। विम्हावितो य परं कंदप्पं भावणं करइ // 5 // मंताजोगं काउं भूईकम्मं च जे पउंजेति। सायरसइढिहेउं अभिओगं भावणं कुणइ // 6 // नाणस्स केवलीणं धम्मायरियस्स संघसाहणं / माई अवनवाई किदिबसियं भावणं कुणइ // 7 // अणुबद्धरोसपसरो तह य निमित्तंमि होइ पडिसेवी। एएहि कारणेहिं आसुरियं भावणं कुणइ॥८॥ सत्थरगहणं विसभक्खणं च जलणं च जलपवेसोय। अणयारभंडसेवी जम्मणमरणाणि बंधति // 9 // इति पाउकरे बुद्धे, नायए परिनियुए। छत्तीसं उत्तरज्झाए, भवसिद्धीयसंमए॥१६४०॥त्ति बेमि, जीवाजीवविभत्ती 36 // सूत्राणि 88 // उत्तराध्ययनं त्रिभुवनासाधारणमहिमनिधानश्रीसिद्धगियंधित्यकायां श्रीवर्धमानजैनागममन्दिरे पर्यायानपेक्षं मूलसूत्रं चतुर्थ।