________________
4
1
1
महालओ। महाउदगवेगस्स, गई तत्थ न विजई ॥ ७ ॥ दीवे अ इइ के बुत्ते ?, केसी गोयममच्चवी तओ केसिं बुवतं तु गोयमो इणमच्चवी ॥ ८ ॥ जरामरणवेगेणं. बुज्झमाणाण पाणिणं धम्मो दीवो पट्टा य. गई सरणमुत्तमं ॥ ९ ॥ साहू गोयम ! पन्ना ते, छिन्नो मे संसओ इमो अन्नोऽचि संसओ मज्झ तं मे कहसु गोयमा ! ॥ ९०० ॥ अन्नवंसि महोहंसि, नावा विपरिधावई। जंसि गोयममारूढो, कहं पारं गमिस्ससी १ ॥ १ ॥ जा उ अस्साविणी नावा, नसा पारस्त गामिणी । जा निरस्साविणी नावा, सा उ पारस्स गामिणी ॥ २ ॥ नावा अ इइ का वृत्ता ?, केसी गोयममच्चची । तओ केसिं बुवतं तु गोयमो इणमच्चवी ॥ ३ ॥ सरीरमाहु नावत्ति, जीवो बुच्चइ नाविओ। संसारो अन्नको वृत्तो. जं तरंनि महेसिणो ॥ ४ ॥ साहु गोयम ! पन्ना ते, छिन्नो मे संसओ इमो अन्नोऽवि संसओ मज्झं तं मे कहसु गोयमा ! ॥५॥ अंधयारे तमे घोरे, चिति पाणिणो बहू को करिस्सइ उज्जोयं ?. सबलोगंमि पाणिणं ॥ ६ ॥ उग्गओ विमलो भाणू, सबलोगपभंकरो। सो करिस्सइ उज्जोयं, सबलोगंमि पाणिणं ॥ ७ ॥ भाणू अ इति के वृत्ते ?. केसी गोयमः ॥ ८ ॥ उग्गओ खीणसंसारो, लबण्णू जिणभक्खरो सो करिस्सइ उज्जोयं सव्वलोगंमि पाणिणं ॥ ९ ॥ साहु गोयम! पन्ना ते, छिन्नो मे संसओ इमो अन्नोऽवि संसओ मज्झ तं मे कहसु गोयमा ! ॥ ९१०॥ सारीरमाणसे दुक्खे, बज्झ (पच ) माणाण पाणिणं । खेमं सिवं अणाचाहं ठाणं कि मन्नसी ? मुणी ! ॥ १ ॥ अस्थि एवं धुवं ठाणं, लोगग्गंमि दुरारुहं । जत्थ नत्थि जरा मचू, वाहिणो वेयणा तहा ॥ २ ॥ ठाणे अ इइ के बुत्ते ?. केसी० ॥ ३ ॥ निव्वाणंति अबार्हति, सिद्धी लोगग्गमेव य खेमं सिवं अणाचाहं जं तरंति महेसिणो ॥ ४ ॥ तं ठाणं सासयं वासं लोगग्गंमि दुराम्हं । जं संपत्ता न सोयंति, भवोहंतकरा मुणी ॥ ५ ॥ साहु गोयम ! पन्ना ते, छिन्नो मे संसओ इमो नमो ते संसयाईय! सव्वसुतमहोयही ॥ ६ ॥ एवं तु संसए छिन्ने केसी घोरपरकमे अभिवंदित्ता सिरसा, गोयमं तु महायसं ॥ ७॥ पंचमहव्वयं धम्मं, पडिवजइ भावओ पुरिमस्स पच्छिमंमी, मग्गे तत्थ सुहावहे ॥ ८ ॥ केसीगोअमओ निचं तंमि आसि समागमे। मुयसीलसमुक्करिसो, महत्यत्यविणिच्छओ ॥ ९ ॥ तोसिया परिसा सब्वा, सम्मग्गं समुवट्टिया। संध्या ते पसीयंतु, भयवं केसीगोयम् ॥ ९२० ॥ त्ति बेमि, केसिगोयमिजं २३ ॥ अट्टप्पवयणमायाओ समिई गुनी तहेब य। पंचैव य समिईओ, तओ गुत्तीउ आहिया ॥ १ ॥ इरियाभासेसणाऽऽदाणे, उच्चारे समिई इय। मणगुनी वयगुत्ती, कायगुती उ अट्टमा ॥ २ ॥ एयाओ अट्ट समिईओ, समासेण वियाहिया दुवालसंग जिणक्खायं. मायं जत्थ उ पत्रयणं ॥ ३ ॥ आलंबणेण कालेनं मग्गेण जयणाइ य चउकारणपरिसुद्धं, संजए इरियं रिए ॥ ४ ॥ तत्थ आळंबणं नाणं, दंसणं चरणं तहा। कालेय दिवसे वृत्ते, मग्गे उप्पवजिए ॥ ५॥ दबओ खित्तओ चेव कालओ भावओ तहा। जयणा चउत्रिहा वृत्ता तं में कित्तयओ सुण ॥ ६ ॥ दवओ चक्म्वुसा पेहे. जुगमित्तं च खिनओ। कालओ जाव रीइजा, उपउत्तो य भावओ ॥ ७ ॥ इंदियत्थे विवजित्ता, सज्झायं चैव पंचहा तम्मुक्ती तप्पुरकारे, उवडते रियं रिए ॥ ८ ॥ कोहे माणे य माया य. लोभे य उपउत्तया हासमय (तत्र भय) मोहरिए, बिगहासु (विगहा य) तहेव य ॥ ९ ॥ एवाई अड्ड ठाणाई, परिवजित्तु संजओ असावलं मियं काले, भासं भासिज पन्नवं ॥ ९३० ॥ गवेस नाए महणेय (णेणं). परिभोगेसणाणि य (य जा)। आहारोवहि सिजाए (आहारमुबहि सेज्जं च). एए निन्नि विसोहए (हिया) ॥ १ ॥ उग्गमुष्यायणं पढमे, बीए सोहिज एसणं परिभोगंमि चउकं विसोहिज जयं जई ॥ २ ॥ ओहो यहोवग्गहियं मंडयं दुविहं मुणी गिव्हंतो निक्खिवंतो य, पउंजिल इमं विहिं ॥ ३ ॥ चक्सा पडिलेहित्ता, पमजिल जयं जई आदिए निक्खिविजा वा दुहओऽवि समिए सया ॥ ४ ॥ उच्चारं पासवणं, खेळ सिंघाण जहिये। आहार उबहिं देहं अन्नं वाचि नहाविहं ॥५॥ अणावायमसंलोए, अणावाए चैव होइ संलोए। आवायमसंलोए, आवाए चैव संलोए ॥ ६ ॥ अणावायमसंलोए, परस्सऽणुवघाइए। समे अज्झसिरे वावि, अचिरकालकर्यमिय ॥ ७॥ विच्छिन्ने दूरमोगाडे, णासन्ने चिलवज्जिए। नसपात्रीयरहिए, उच्चाराईणि बोसिरे ॥ ८ ॥ एयाओ पंच समिईओ, समासेण वियाहिया इत्तो उ तओं गुत्तीओ, वृच्छामि अणुपुच्वसो ॥ ९ ॥ सच्चा तहेब मोसा य. सच्चामोसा तब य चन्थी असन्वमोसा य, मणगुत्ती चउडिहा ॥ ९४० ॥ संरंभसमारंभ, आरंभ य तहेव य। मणं पवट्टमाणं तु नियत्तिज जयं जई ॥ १॥ सच्चा० । वयं० ॥२॥ संरं । वयं ० ॥ ३ ॥ ठाणे निसीयणे चैव तहेव य तुयट्टणे उघणे पघणे इंदियाण य जुंजणे ॥ ४ ॥ संर०॥ कार्य० ॥ ५ ॥ एयाओ पंच समि ईओ. चरणस्स य पवत्तणे गुत्ती नियत्तणेऽवृत्ता, असुभत्थेसु य सव्वसो ॥ ६ ॥ एया पवयणमाया, जे सम्मं जायरे मुणी सो खिप्यं सव्वसंसारा. विष्पमुचद पंडिए ॥ ९४७ ॥ नि बेमि. पवयणमायरज्झयणं २४ ॥ माणकुलसंभूओ. आसी विप्पो महायसो जायाई जमजन्नमि, जयघोसत्ति नामओ ॥ ८ ॥ इंदियग्गामनिग्गाही मग्गगामी महामुनी गामाणुगामं रीयंते पत्तो वागारसि पुरिं ॥ ९ ॥ वाणारसीइ बहिया, उज्जाणंमि मणोरमे। फामुएसिजसं थार, तत्थ वासमुवाए ॥ ९५०॥ अह तेणेव काले पुरीए तत्थ माणे विजयघोसत्ति नामेणं, जन्नं जयइ बेयवी ॥ १॥ अह से तन्थ अणगारे. मासखमणपारणे विजयघोसम्स जन्नमि, भिक्खमडा (सट्टा ) उचट्टिए ॥ २ ॥ समुवट्टियं तहिं संतं, जायगो पडिसेहए। न हु दाहामि ते भिक्खं भिक्खु ! जायाहि अन्नओ ॥ ३ ॥ जे य बेयविऊ विप्पा, जन्नमडा य जे दिया। जोइसंगविक जे य. जे य धम्माण पारगा ॥ ४ ॥ जे समन्था समुदनुं, परं अप्पाणमेव य । तेसिमन्नमिणं देयं भो भिक्खु ! सतकामियं ॥ ५ ॥ सो तत्थ एव पडिसिद्धो जायगेण महामुणी। नवि रुट्टो नवि तुझे, उत्तमट्टगवेसओ ॥ ६॥ नऽण्ण पाणहेडं वा नवि निवारणाय वा । तेसि विमुक्खणट्टाए, इ वयणमच्यची ॥ ७ ॥ नवि जाणसि वेयमुहं. नवि जन्नाण जं मुहं नक्खत्ताणं मुहं जंच, जं च धम्माण वा मुहं ॥ ८ ॥ जे समत्थाः । न ते तुमं विजाणासि, अह जाणासि तो भाग ॥९॥ नस्सऽक्वपमुक्ख च अचयंतो नहिं दिओ। सपरिलो पंजली होउं पुच्छई तं महामुनीं ॥ ९६० ॥ वेयाणं च मुहं ब्रूहि. ब्रूहि जन्माण जं मुहं नक्खताण मुहं ब्रूहि ब्रूहि धम्माण वा मुहं ॥ १ ॥ जे समन्थाः। एवं मे संसयं स साहू ! कहय पुच्छओ ॥ २॥ अग्निमुह वैया, जन्नट्टी वेयसा मुहं । नक्खत्ताणं मुहं चंदो, धम्माणं कासवो मुहं ॥३॥ जहा चंद गहाईया, चिती पंजलीउडा। वेदमाणा नसता, उत्तमं मणहारिणो ॥ ४ ॥ अजाणगा जन्नवाई, विजामाहणसंपया। मूढा सज्झायनवसा, भास१२८६ उत्तराध्ययनानि मूलमूत्रं असणं- २५ मुनि दीपरत्नसागर